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The University of Delhi, informally known as Delhi University (DU), is a collegiate public central university
located in New Delhi, India. It was founded in 1922 by an Act of the Central Legislative Assembly and is
recognized as an Institute of Eminence (I
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युग ों से दिल्ली
अनु क्रम
यूदनट ।
यूदनट II
दिल्ली के शहि : 13वीीं औि 14वीीं सिी की शहिी बस्ियाीं महिौली, दसिी, तु गलकाबाि, दििोजाबाि
यूदनट III
18वीीं औि 19वीीं शताब्दी की शुरुआत में शाहजहानाबाि : िाजनीदत, सादहस्िक सींस्कृदत औि दिल्ली
कॉले ज
यूदनट IV
यूदनट V
यूदनट VI
यूदनट VII
युग ों से दिल्ली
अथिा
“पुराने दकिे के पास उपिब्ध पुरािशेष ों से दिल्ली के ऐदिहादसक काि में सोंक्रमण का पिा चििा
है ।' स्पष्ट कीदिए।
उत्तर - पुरािशेष :
दतलपत क्षेत्र में उत्खनन द्वािा भू िी दमटटी के दिदत्रत बतान पाए गए हैं। उन्ीीं से दमलते -जुलते उत्तिीय काली
दिकनी दमटटी के बता न पुिाने दकले के आसपास उपलब्ध हुए हैं , जहाीं दिल्ली की सबसे पुिानी बिी िी।
इससे पता िलता है दक इस क्षेत्र में मौयाकाल से ले कि सूींग, कुशाण गुप्त, िाजपूत तिा सल्तनत समय में भी
लोग िहते िे । ऐसे बता नोीं के दमलने से मौया िाज्य का प्रमाण दसद्ध होता है । महािाज अशोक का इस क्षे त्र
पि िाज्य होने में कोई सन्दे ह नहीीं है ।
सन् 1966 में आज की श्रीदनवासपुिी के पास अशोक . का एक दशलाले ख दमला िा। इस पि ब्राह्मी तिा
प्राकृत दलदपयोीं से कुछ पींस्ियाीं उत्कीणा हैं , दजनका आशय है दक धम्मा के प्रिाि हे तु महािाज अशोक ने
जम्बूद्वीप में इसको थिादपत दकया, दजससे जनता िे वताओीं के दनकट आ सके। यह थिान पुिाने दकले औि
यमु ना निी से अदधक िू ि नहीीं है ।
अों धेरे में : िाि शताब्दी ईसा पूवा तक इन्द्रप्रथि को भु ला दिया गया िा। भाित दवजय अदभयान में दसकन्दि
के साि आने वाले सुप्रदतदित ले खकोीं ने अपने ले खोीं में इसका कोई दजक्र नहीीं दकया है । शतास्ब्दयाीं बीत
गयीीं, पिन्तु इस क्षे त्र को इदतहास में कोई थिान नहीीं दमला, जबदक इसकी उपद्रवोीं से भिी कहानी का वणान
दकया जाना िादहए िा।
िीनी यात्री कादयान औि ह्रनसाीं ग क्रमशः िौिी औि सातवीीं ईस्वी शताब्दी में भाित आए पिन्तु उन्ोींने भी,
यद्यदप वे बहुत ही परिश्रमी ले खक िे , इस क्षे त्र का अपने आले खोीं में कोई दजक्र नहीीं दकया।
गणराज्यकािीन दिल्ली
महाभाित काल में भी अनेक गणिाज्य िे। महाभाित के अध्ययन से ज्ञात होता है दक उस समय यौधे य,
मािि, दशदि, औिु म्बर, अन्धक-िृ ष्णि, दिगिा , माध्यमकेन्द्र अम्बष्ठ, िािधान, यािि, कुकुर, ि ि
इिादि प्रमु ख गणिाज्य ;में सम्भवतः महाभाित के समय में यािव, कुकुि, भोज, अन्धक औि वृस्ि गणोीं ने
पिस्पि दमलकि एक सींघ बनाया हआ िा दजसके मु स्खया श्रीकि िे वहााँ पि कुछ दविोधी गुट भी िे | इसी
शुरू में दिल्ली पाीं गैदलहा दसद्ध युग से इसदलए काम में से सींक्रमण किता है
गणोीं की शासन-पद्धदत िाजतन्त्र से सवािा दभन्न िी। गण के प्रमु ख दवषयोीं पि सभा में ििाा होती िी।
इसदलए गणोीं में बहुत से दवषयो को िखने में कदिनाई उत्पन्न होती िी यही कािण है दक शत्रओीं को गणत-
सी बातोीं का पता िल जाता िा | िू सिे ,गुण ों में अने क कुििृ द् ों और िादि ने िाओों का प्रिाि ह िा था
औि वे आपस में लड़ते -झगड़ते िहते िे। इसदलए शत्रु -िाजाओीं को दवदवध तिीकोीं से गणो में िुट डलवाने
औि उनको सैदनक शस्ि द्वािा नष्ट किने में आसानी हो जाती िी। महाभाित में भीष्म ने गणोीं की िक्षा
किने के दलए उपाय बताए हैं ।
उन्ोींने कहा प्रथम गण ों क फूट से अपनी िक्षा अवश्य ही किनी िादहए। िू सरे , गण ों क अपनी बातें
गुप्त िखनी िादहए, इसदलए मु स्खया को सािी बातें सभा में नहीीं िखनी िादहएाँ । िीसरे , गण ों क अपने
मु स्खया तिा कुलवृद्धोीं का आिि-मान किना िादहए औि उनकी आज्ञा का पालन किना िादहए। िोिे ,
गण ों क शास्त् ों में कहे हुए धमा , नीदत औि मयाा िाओीं का पालन किना िादहए। पााँचिें , गण ों में सब
उत्तििायी व्यस्ि लोभ, क्रोध औि पक्षपात से िू ि कि सभी बातोीं को िीक तिह समझें । छठे , गण अकेिे
िहें बस्ि कई गण इकििे होकि एक सींघ बना लें तादक उनकी प्रदतिक्षा दृढ़ हो। साििें , गण ों में
कुलवृद्धोीं, जादतयोीं के नेता तिा सींघ मु स्खया के बन्धु -बान्धव दनयन्त्रण से बाहि होने का यत्न किते हैं ।
कुलवृद्धोीं औि सींघ मु स्खया का कता व्य है दक उनको दनयन्त्रण में िखा जाए। भीष्म ने युदधदिि को बताया
दक इन सब उपायोीं के किने से इसकी िक्षा आन्तरिक औि बाहिी कदिनाइयोीं से होगी।
महाभाित के शस्न्तपवा में दलखा है दक श्रीकृि को वृस्ि-सींघ को िलाने में बड़ी कदिनाइयोीं का सामना
किना पड़ा। इसका कािण यह िा दक दविोधी िलोीं के नेता उनकी तीव्र आलोिना किते िे । दविोधी िलोीं
के नेता कई बाि उत्ते दजत होकि अपनी तलवाि को म्यान से बाहि खीींि ले ते िे। ऐसी परिस्थिदत में
गणिाज्योीं को िलाना अिन्त कदिन िा। इसदलए श्रीकृि ने अपनी सब कदिनाइयोीं को महदषा नािि के
सामने िखा। महदषा नािि ने कहा, 'हे कृि!' गणिाज्य में िो प्रकाि के खतिे होते हैं -'अन्दरूनी और
बाहरी।'
यहााँ आपकी अन्दरूनी कदिनाइयााँ हैं । आप उनके हृिय को िीिने वाले शब्दोीं की दिन्ता न कीदजए बस्ि
अपनी मधु ि वाणी से उनके आक्षे पोीं का उत्ति िीदजए। दजस तिह साि मै िान पि प्रिे क बैल बोझ ढो
सकता है पिन्तु कदिन मागा पि अनुभवी औि अच्छा पशु ही बोझ ढो सकता है , उसी प्रकाि, हे केशव!
आप जैसा योग्य व्यस्ि ही सींघ (गणिाज्य) को िूट से बिा सकता है । आप आन्धक-वृस्ि सींघ के सभापदत
हो, इसदलए आपका यह कता व्य है दक इस तिह से काम कीदजए दजससे इस सींघ का नाश न हो। तु म्हािे
ऊपि ही आन्धक-िृ ष्णि, यािि, कुकुर और ि ि इिादि जादतयोीं का कल्याण दनभा ि है ।
यौधे य गणराज्य : यूनानी इदतहासकाि एरियन ने दलखा है , 'दसकन्दि जब व्यास निी पि पहुाँ िा तो उसने
सुना दक उस निी के पाि का प्रिे श बहत ही अदधक उपजाऊ है औि उसके दनवासी बहुत अच्छे कृषक
हैं । वे युद्ध में बहुत वीि हैं औि बहुत अच्छी शासन-पद्धदत के अनुसाि िहते हैं क्ोींदक वहााँ जनता पि
कुिीनिन्त्र का शासन है जो अपने अदधकािोीं का प्रयोग न्याय औि सींयम से किते है ।
आचाया चाणक्य ने भी इन लोगोीं के बािे में दलखा है , वे कृदष तिा शास्त्ोीं से अपना गुजािा किने वाले हैं ।
यूनानी इदतहासकािोीं ने दलखा है , 'उनके सभासिोीं की सींख्या 5,000 िी।' यूनानी इदतहासकािोीं ने
िु भाा ग्यवश इस गणिाज्य का नाम नहीीं दलखा है पिन्तु डा. काशीप्रसाि िायसिाि तिा डॉ. अल्ते कर ने
अपनी खोजोीं के आधाि पि यह दसद्ध दकया है दक इस गणिाज्य का नाम यौधे य िा।' डॉ. अल्ते कि ने दलखा
है , 'यौधे य गणराज्य बहुत दविृ त िा। इसके दसक्ोीं से यह दसद्ध होता है दक यह पूवा में सहािनपुि से
ले कि पदिम में भावलपुि तक िैला हुआ िा।
उत्ति-पदिम में यह लु दधयाना से ले कि िदक्षण-पूवा में दिल्ली तक िैला हुआ िा।' डॉ काशी प्रसाि
िायसिाि के मतानुसाि पूवा में यौधे योीं की सीमा मगध िाज्य से दमली हुई िी। डॉ अल्ते कि ने बहत खोज
यूनानी इदतहासकाि एरियन ने दलखा है , 'यौधे य ों के पास बहुि अदधक हाथी थे ।' मे क क्राइन्डल ने स्वयीं
दलखा है , 'दसकन्दि ने भी कहा दक अभी यूनादनयोीं को छोटी सेनाआ स लड़ना पड़ा िा पिन्तु अब पहली
बाि उनको बहुत बड़ी सेनाओीं का सामना किना पड़े गा। उसके दसपादहयोीं में उन लोगोीं ने एक इीं ि भी
आगे बढ़ने से इीं काि कि दिया जो इनके नाम से बहुत आतीं दकत हो गए िे ।' इसदलए डॉ. काशीप्रसाि
जायसवाल ने दलखा है -'इस गणराज्य के िात्कादिक िय और बाि में नन्द साम्राज्य की दवशाल सेना
के भय से यूनानी सैदनकोीं का अन्त में दिल टू ट गया औि वे आपस में इकट्ठे होकि सोि-दविाि किने लगे।
उन्ोींने यह दनणाय दकया दक वे औि आगे नहीीं बढ़ें गे, अतः इस गणिाज्य से दसकन्दि वापस लौटकि िला
गया।'
महाभाित युद्ध के बाि अनेक छोटे -बड़े िाज्य नष्ट हो गए औि उत्तिी भाित में केवल तक्षदशला
(राििदपण्डी के पास का नगर), पााँ िाल (बिे ली तिा बिायूाँ के पास का प्रिे श), हस्िनापुि (मे िि के पास
का प्रिे श), मगध (गया तिा पटना के पास का प्रिे श), कौशल (अयोध्या तिा श्राविी के पास का प्रिे श)
औि कश्मीि के शस्िशाली िाज्य िह गए
हष्णिनापुर का राज्य :-
पुिाणोीं में जो सूिी दमलती है , उससे पता िलता है दक महाभाित युद्ध के बाि हस्िनापुि में 7 िाजाओीं ने
िाज्य दकया। अजुान के पुत्र अदभमन्यु के वींश में सातवें िाजा दनिक्षु के समय में गींगा निी में भयींकि बाढ़
आई दजसके िलस्वरूप हस्िनापुि बह गया। इसके बाि इस वींश के िाजाओीं ने अपनी िाजधानी
कौशाम्बी (इिाहाबाि के समीप) बना ली। इसके बाि महात्मा बुद्ध के काल तक 19 िाजाओीं ने यहााँ
िाज्य दकया। अतः पुिाणोीं के अनुसाि महाभाित के युद्ध से ले कि महात्मा बुद्ध के काल तक इस वींश के
कुल 27 िाजा हुए। 27वााँ िाजा उियन महात्मा बुद्ध का समकालीन िा।
मगध का राज्य :
महाभाित युद्ध से कम-से-कम 14 वषा पूवा सम्राट जिासन्ध की हिा कि िी गई िी। जिासन्ध को माि कि
श्रीकृि तिा पाण्डवोीं ने सहिे व को मगध के दसींहासन पि बैिाया िा। महाभाित युद्ध में सहिे व मािा गया।
उसके वींश को बाहा द्रि कहा जाता है । सहिे व की मृ िु के बाि इस िों श के 23 रािाओों ने 1006 िषा तक
िाज्य दकया। बौद्ध काल में मगध सम्राट अजातशत्र ने अपने िाज्य का मगध सम्राट अजातशत्रु ने अपने
राज्य क बहुि फैिाया" औि इनमें से अनेक िाज्योीं को नष्ट कि दिया। बाि में महापद्मनन्द तिा 43
अदधकति िाज्योीं को अपने साम्राज्य में शादमल कि दलया।
प्राीं तोीं के सबसे बड़े अदधकािी को समाहताा कहा जाता िा। (प्रान्तीय गवनाि को बाि में आयापुत्र, उपिाजा
या िज्जु क भी कहा जाने लगा िा।) प्रिे क प्राीं त को िाि दजलोीं में बााँ टा जाता िा। दजले के अदधकािी को
थिादनक कहा जाता िा। समाहिाा नगर, गााँि, खान, िन इत्यादि से कि इकट्ठा किवाता िा। पशुओीं
औि सड़कोीं पि िलने वाली सवारियोीं के मादलकोीं पि भी कि लगाया जाता िा। प्राीं तीय औि दजले के
अदधकारियोीं की सहायता के दलए अन्य अनेक छोटे अदधकािी, क्लका तिा गुप्तिि होते िे। अशोक के
दशलाले खोीं से पता िलता है दक सािा साम्राज्य िाि बड़े -बड़े प्राीं तोीं में बाँटा हुआ िा।
ग्राम प्रशासन पींिायतें किती िीीं औि सिकाि उनके मामलोीं में अनावश्यक हिक्षे प नहीीं किती िी। िस
गााँ वोीं का प्रबन्ध किने वाले अदधकािी को सींग्रहण कहा जाता िा। दजस अदधकािी के अधीन 200 गााँि
होते िे , उसको खािवदटक कहा जाता िा। दजसके अधीन 400 गााँि होते िे, उसको द्रोणमु ख कहा जाता
िा। दजस अदधकािी के अधीन 800 गााँि ह थे उसको थिादनक कहा जाता िा। सिकाि गााँ व के
अदधकारियोीं को भू दम िान में िे ती ही औि कृषकोीं को अच्छे बीज तिा ऋण िे ती िी।
अश क के िम्भ :-
सम्राट अशोक ने अपने साम्राज्य के दवदभन्न भागोीं में कई थिानोीं पि िम्भ भी बनवाए दजनमें धमा का
उपिे श दिया गया है । इन िम्भोीं में से अिन्त प्रदसद्ध िम्भ सारनाथ, रुदमनिे ई (िुष्णम्बनी), कौशाम्बी
(इिाहाबाि), साोंची (ि पाि, मध्य प्रिे श), अम्बाला तिा मे िि दजलोीं में पाए गए हैं।
इसके अलावा महात्मा बुद्ध के जन्म-थिान लु स्म्बनी को जाने वाले मागा पि ही लौरिया अििज्य, िामपुिवा,
नन्दगढ़ तिा दनगदलव में भी िम्भ पाए गये हैं ।
िम्भ ों की किा :-
इन िम्भोीं के ऊपि शेि, बैल या दकसी अन्य पशु की मू दता बनी हुई है । ये िम्भ िालीस से ले कि पिास
िुट तक ऊाँिे हैं औि िु नाि के रे िीिे पाषाण (पत्थर) की चटान ों से काटकि बनवाये गए हैं । उन पि
ऐसी पॉदलश की गई है दक िो हजाि वषा बाि भी आीं धी, तू िान, वषाा औि धू प से उनकी िमक में कोई
अन्ति (िका) नहीीं आया है । इन िम्भोीं को पहादड़योीं से काटना, उनको दघसकि सुन्दि बनाना औि पिास
टन भािी तिा िालीस िुट तक ऊाँिे िम्भोीं को सैंकड़ोीं मील ले जाना औि उनको वहााँ पि दबिुल पक्ी
तिह लगाना उस काल की दशल्पकला की महानता दसद्ध किना है । (इस महानता का अनुमान हम तब
लगा सकते हैं जब हम यह पढ़ते हैं दक बाि में सम्राट दििोजशाह तु गलक ने इन िो िम्भोीं को मे िि तिा
अम्बाला से उखड़वाकि दिल्ली मीं गवाया औि उसको 42 पदहय ों की गाडी िथा 8400 व्यष्णि लगाने
पड़े । एक अन्य पुिक में दलखा है दक दििोजशाह तु गलक को इस काया के दलए 20,000 व्यष्णि िगाने
पडे ।)
इन दशलाले खोीं औि िम्भो का बने हुये िो हजाि वषा से भी अदधक हो िु के हैं । इनसे अशोक के
साम्राज्य-दििार, सीमाओों, शासन-प्रबन्ध, घरे िू िीिन, धमा के दसद्ान्त िथा प्रचार के बािे में बहुत
प्रकाश पड़ता है । ये अशोक के दशलाले ख उत्ति-पदिमी भाित में खिोिी दलदप में औि शेष भागोीं में ब्राह्मी
दलदप में हैं । (खिोिी दलदप प्रािीन ईिादनयोीं की िी औि यह िााँ यी से बाीं यी तिि दलखी जाती है ।) इससे यह
भी पता िलता है दक अशोक ने अपना धमा -प्रिाि सींस्कृत की बजाय पाली भाषा में दकया क्ोींदक यह उस
समय की लोक-भाषा िी। भाब्रा ले ख से अशोक के बौद्ध धमा में दवश्वास तिा उसके बौद्ध सींघ से सम्बन्धोीं
पि कािी प्रकाश पड़ता है । (िाब्रा िेख रािस्थान में बैरि की पहादडय ों पर खुिा हुआ है । ) इसके
अदतरिि इस ले ख में अशोक ने बौद्ध दभक्षु ओीं को महात्मा बुद्ध के बताये मागा पि िलने के दलए कहा है ।
प्रश्न - पुरािाष्णत्वक साक्ष् ों के साथ िािक ट और अनों गपुर पररसर पर चचाा करें ।
उत्तर – िािक ट –
लालकोट एक बहुत छोटा शहि िा। इसमें 5000 से अदधक लोग शादमल नहीीं हो सकते िे , ले दकन यह
बढ़ता गया। इसे बढ़ाया गया िा औि दजस िीवाि पि हम खड़े िे वह शायि इसका पहला दविाि िा।
दिि इसे दकला िाय दपिौिा के नाम से जाना जाता है । अपने छोटे आकाि के बावजूि , लालकोट को िौहान
द्वािा 1153 ईस्वी और 1164 ईस्वी के बीि दवजय प्राप्त किने के दलए पयाा प्त महत्वपूणा माना गया िा।
दकले को लालकोट कहा जाता िा ले दकन शहि को दढदलका कहा जाता िा, जहााँ से दिल्ली शब्द की
उत्पदत्त हुई है - दिष्णल्लका, दिल्ली, िे हिी और दफर दिल्ली। शहि का योदगनीपुि के नाम से भी जाना
जाता िा औि जैन ग्रींिोीं में इसे इसी नाम से जाना जाता है । योदगनीपुि नाम जादहि तौि पि स्मृ दत के माध्यम
से िहता िा क्ोींदक इसका उल्लेख शाहजहााँ के एक िमा में दकया गया है।
लगभग 1153-1164 ई। में, शहि िौहानोीं द्वािा उग आया िा। िौहान, दजनका अजमे ि में आधाि िा, ने
शािीरिक रूप से कब्जा नहीीं दकया औि शासन दकया। शायि ऐसा क्ा हुआ िा दक तोमि ने उस समय के
िाजा-अनींगपाल तोमि (शहर क अनों गपाि ि मर द्वारा स्थादपि दकया गया था) ने िौहानोीं की
आत्महिा स्वाकाि कि ली, औि अपनी बेटी को दवजेता के बेटे की शािी में िे दिया।
दििेिा का नाम दिशाि िे ि था और उनके बेटे का नाम स मेश्वर था। पृथ्वीिाज िौहान, सोमे श्वि के
पुत्र से उत्पन्न पुत्र औि तोमि िाजकमािी ने पहली बाि अजमे ि को आक्रमणकािी तकों के हािोीं खा दिया
औि इसके तु िींत बाि 1192 ईस्वी में दिल्ली क ख दिया। िूाँ दक दकले को पृथ्वीिाज के दकले के रूप में
जाना जाता िा, इसदलए तु का इसे दकला िाय दपिौिा कहते िे । िूाँ दक उन्ें पृथ्वीिाज शब्द का उच्चािण किने
में कदिनाई हुई िी, इसदलए उन्ोींने इसे दपिोिा में औि िाजा शब्द को िाय तक कहा। इसी तिह, तु का
दडली शब्द का उच्चािण नहीीं कि सके, उन्ोींने इसे िे हली कहा, यह दिल्ली बन गया। उच्चािण की कहानी
19वीीं शताब्दी तक जािी िही जब एक अींग्रेज ने इस पि रिपोटा िी िी।
उन्ोींने ऐसा िात के खाने के बाि दकया, बहुत सािे दडर ीं क किने के बाि, और डी-ए-एच-एि-आई
दिखने के बिाय, उन्ोींने डी-ए-एल-एि-आई दलखा। यही स्पेदलीं ग हमािे पास आज तक है । दवडीं बना यह
है दक यह इदतहास कई बाि िादश के दहसाब से बनाया गया है ।
एक नक्शा है जो दिल्ली को दिखाता है जैसा दक लालकोट औि दकला िाय दपिौिा के समय िा। यह साकेत
में वता मान प्रेस एन्क्क्लेव िोड से शुरू होता है , जहाीं िीिार ों और गढ ों के खोंडहर अिी िी अष्णित्व में हैं ।
दिि जैसे ही अिदबींिो मागा पि किम बढ़ाते हैं , आिम खान के मकबिे तक पहुीं िना जािी िहता है । सड़क
के िोनोीं दकनािोीं पि प्रख्यात अदधक प्रमु ख है । इस प्रिा का अिा है दक नीिे िबी हुई सींििनाएाँ हैं। वता मान
महिौली बस-स्टैं ड के बाई ओि एक ििा है , जो एक मीं दिि की तिह दिखता है ।
यह ििा लालकोट शहि की िीवाि पि भी स्थित है , जो वािव में , कुिी खान की कब्र और उससे िी
आगे िक िारी है । िौमु खा ििवाजा लालकोट-दकला िाय दपिौिा का दहस्सा बना। कुव्वतु ल-इस्लाम
मस्िि औि कुतु ब मीनाि जुड़वाीं शहि के केंद्र में िे।
िािक ट :-
इस सामान्य ऐदतहादसक अवलोकन के बाि हम हमािे सामने ब्रीि के माध्यम से, लालकोट में उदित प्रवेश
किते हैं । हम ऊींिी झादड़योीं के बीि कुछ िू िी पि रुकते हैं , जहाीं कुछ टू टी हुई िीवािें दिखाई िे ती हैं । यह
दनमाा ण का पहला ििण िा। यह एक कच्ची मलबे की िीवाि िी, इस पि लाल ईींट की पित िी। लाल ईटोीं
को 60 इत के कोण पि िखा गया िा दजससे िीवाि का आधाि ऊपि से मोटा हो गया िा। यह एक
इीं जीदनयरिीं ग आवश्यकता िी। इसने ि उद्दे श्य रखे सबसे पहिे, 60 पि पर बढना आसान नही ों था।
िू सरे , क ई िी आसानी से इसके ष्णखिाफ सीढी नही ों िगा सकिा था। यहाीं तक दक अगि एक ने
दकया, तो वह दडिेंडि के दलए बहुत सुदवधाजनक लक्ष्य बन गया।
जब िाज्य समृ द्ध हुआ, तो दनमाा ण का एक िू सिा ििण जोड़ा गया। िीवािोीं पि कपड़े पहने पत्थिोीं का
दलबास जोड़ा गया िा। तीसिा ििण लालकोट दविाि का दनमाा ण होगा, औि िौिा, एक औि दविाि जो
वािव में , दकिा राय दपथौरा की िीवािोीं का दनमाा ण होगा। तो लगभग िाि ििण िे ।
दलबास के रूप में लगाए गए पत्थि के खींडोीं को लोहे के डॉवल्स द्वािा एक साि िखा गया िा। पूवा-तु की
काल में दकसी को मोटाा ि का उपयोग नहीीं दमला। ि हे के डॉल्स औि पत्थिोीं के सटीक काम पि अदधक
जोि दिया गया िा। वे आज भी एक साि आयोदजत होते है |
बुिाः-
अब हम लगभग गायब होने वाले गढ़ के सामने हैं । गढ़ोीं का दनमाा ण दनम्नदलस्खत कािणोीं से महत्वपूणा है -
सबसे पहले , यदि िो गढ़ोीं के बीि की िीवाि (दिसे पिाा कहा िािा है ) के साि एक दकले पि हमला
दकया जाता है , जो घुमाविाि या गोल होते हैं , तो सीधे िक्षक की हदियाि प्रणादलयोीं का सामना किना
पड़े गा। ले दकन अगि िक्षक गढ़ोीं में तै नात होते तो वे िीवाि को ढकने की कोदशश किने वाले व्यस्ियोीं को
ले जा सकते िे , यानी वे दकनािे से या फ्लै क में िू सिे , इस गढ़ ने िु श्मन के स्वभाव का एक अच्छा दृश्य
दिया।
स हन गेट : -
अब हम सोहन बुजा या सोहन गेट की ओि बढ़ते हैं । घनी झादड़योीं के बीि एक जगहपि हमें उस मू ल या
दनकलते हैं । ि चीिें हमारा ध्यान आकदषाि करिी हैं । जमीन अपेक्षाकृत सपाट औि पत्थिोीं की
अनुपस्थिदत के रूप में । इसदलए, यह अच्छी तिह से एक ऐसा क्षे त्र हो सकता है जहाीं एक बड़े आकाि का
पानी का टैं क हो सकता है। यह जल आपूदता का एक प्रमु ख स्रोत हो सकता िा।
प्रदसद्ध पानी की टीं की, अनींगताल, आसपास कहीीं होना िादहए िा। िू सिी तिि एक अवसाि भी िा,
(िीवाि के उत्तिी तिि) दजस पि हम िढ़ने वाले िे । क्ा यह सही थिल िा या अनींगताल के दलए िू सिा,
दनदितता के साि नहीीं कहा जा सकता है । ऐसा हुआ दक हमािे िलने के कुछ महीने बाि ही, भाितीय
पुिातत्व सवेक्षण ने िीिार-सह-टीिे पर खुिाई शुरू कर िी, दजस पि हम िढ़ िहे िे ।
वे लालकोट के महल परिसि की तलाश कि िहे िे । वे सफेि प्लास्टि वाले कमिोीं का पता लगाने में सिल
िहे जो ताजा दिखते िे । अिाउद्दीन ष्णखििी ने अपने दसरी दकिे का दनमाा ण किने से पहले महल का
इिे माल सल्तनतकालीन शासकोीं द्वािा दकया गया िा। यहाीं तक दक जब वह दसिी में थिानाीं तरित हो गया
िा, तो उसने लालकोट महल को अपनी जेल के रूप में इिे माल दकया, दजसे उसने कासि-ए-सईि कहा।
पुिातत्ववेत्ता भी उत्तिी छोि पि स्थित महल के परिसि से सीधे अवसाि की ओि जाने वाली सीढ़ी की
सीदढ़योीं को खोल दिया। यह दनणाा यक प्रमाण िा दक यह दवशेष अवसाि अनींगाल्ट िा। इसका मतलब यह
भी है दक अन्य अवसाि सींभवतः शहि की सामान्य आबािी के दलए िा।
हम उत्ति-पदिम दिशा में ऊाँिी िीवाि पि िलते हैं औि सोहन बुजा तक पहुाँ िते हैं । पूिब की ओि एक
आीं गन बनाने के दलए एक पूिक िीवाि शाखा है । उसके भीति अन्य गढ़ हैं । गेट की िीवािोीं के सामने
जमीन के िि में स्पष्ट अींति है । आम तौि पि, एक बाहिी िीवाि के सामने एक रक्षात्मक खाई की
उम्मीि ह गी, ले दकन यह मामला नहीीं िा। दजन लोगोीं ने इस दवशेष दकले का दनमाा ण दकया, उन्ोींने िू सिी
तिि दकसी तिह का टीला बनाकि एक कृदत्रम खाई का दनमाा ण दकया।
िीवाि औि टीले के बीि की खाई स्वतः एक खाई बन गई। जो कोई भी दकले पि हमला किना िाहता िा,
उसे पहले टीले पि िढ़ना िा, दिि खाई में उतिना औि दिि ऊपि िढ़ना िा। जबदक िु श्मन टीले की
िीवाि के ढलान पि बातिीत किने की कोदशश कि िहा होगा, दजसे काउों टर एस्कापा के नाम से जाना
जाता है . वह दकले के िक्षकोीं से प्रोजेक्टाइल की बौछाि के दलए एक असहाय दशकाि बन जाएगा।
लालकोट के खींडहि प्रािीि पि िलते हुए हम अब ितेह बुजा पहुाँ िे। इस दवशेष गढ़ को दिि से प्रवेश के
भीति िखा गया िा-अब तक िीवाि एक सामन की तिह बाहि दनकल िही िी, अब यह अींिि की ओि लग
िहा िा, इसे पुनः प्रवेशी कहा जाता है । री-एों टर े ट में गेट रखने का फायिा यह था दक दडिेंडि िु श्मन को
फ्लैं क में ले जाने की स्थिदत में िा। गेट के एक हाि में एक डबल टॉवि के रूप में एक बादबाकन िा, दजसने
बाहिी िक्षा के उद्दे श्य की सेवा की। हमने इस तथ्य पि भी ध्यान दिया दक दकसी भी िाटक में िक्षात्मक
उद्दे श्योीं के दलए सीधे प्रवेश नहीीं िा।
हम अब गजनी गेट की ओि िल पड़े । यह लालकोट दविाि का पदिमी द्वाि िा। गजनी गेट क्ोीं कहा
जाता है इसका एक कािण यह हो सकता है दक इसका सामना पदिम की ओि हो, यानी गजनी की ओि।
इसके बािे में दिलिस्प बात यह है दक आउटिका का व्यापक सेट है - िीन या िीन से अदधक। यह
माना जाता है दक इसका दनमाा ण इस तिह दकया गया िा क्ोींदक तु का इस दवशेष द्वाि के माध्यम से दकले में
प्रवेश कि गए होींगे। अपनी सिलता के द्वािा प्रिदशात दकया गया दक गेट कमजोि िा, उन्ोींने इसे
आउटवका की एक श्रृींखला द्वािा मजबूत किने का दनणाय दलया। यह दवशेष द्वाि दिलिस्प भी है क्ोींदक यह
एकमात्र है दजसने िो खड़े आयताकाि पत्थिोीं में प टा क्यूदिस खाोंचे क सोंरदक्षि दकया खाोंच ों के माध्यम
से एक लोहे का गेट उतािा या उतािा गया।
रै म्पटा िीिारें :-
हम गेट के दवविण पि किीब से नजि डालने के दलए नीिे जाते हैं , .. जैसे दक खाीं िे औि काज छे ि। हम
वापस िीवाि पि िढ़ गए। हम अपने िलने के अींत के किीब आ िहे हैं । खोंडहर ह चुकी ििार िीिार ों
पि तीन घींटे िलना मु स्िल है । हमें बहुत धीिे -धीिे हि किम पि सावधानी से िलना है तादक दगिना न
पड़े । िलने के समापन से पहले हमें पदिम में एक सिेि िीवाि जैसी सींििना दिखाई गई, जो लालकोट
अिेक्जेंडर ऐदमोंदगयन 1862 में दिखिे हैं लालकोट का दकला, दजसे अनींग पाल ने 1060 में बनाया िा,
एक अदनयदमत गोल आकाि का है , जो परिदध में 2 ference मील है । इसकी िीवािें उतनी ही बुलींि औि
उतनी ही दवशाल हैं दजतनी तु गलकाबाि की, हालाीं दक पत्थि के ब्लॉक इतने दवशाल नहीीं हैं । दवदभन्न मापोीं
से प्रािीि की मोटाई 28 से 30 िीट तक पाई गई, दजसमें से पैिापेट दसिा एक-आधा है । पैिाडे ट्स की
समान मोटाई भी ए.एन. 1340 में इब्न बबुिा द्वािा दिए गए माप से ली गई है , जो कहते हैं दक िीवािें
ग्यािह हाि की मोटी िीीं। इस माप को उसी रूप में स्वीकाि किना जो दक दििोज शाह के समय में
उपयोग में िा, अिाात्, 16 इीं ि का, जैसा दक दििोज शाह के िीं भ की लीं बाई से दलया गया िा, पिानी दिली
की िीवािोीं की मोटाई 14 िीट िी।
उदित क्रम में मौजूि है , दसवाय िदक्षण की ओि, जहााँ एक गहिी औि व्यापक खोह है , जो सींभवतः एक
बाि भि गई िी पानी। मु ख्य िीवािोीं का लगभग आधा दहस्सा अभी भी उतना ही मजबूत औि िोस है ,
दजतना पहली बाि बनाया गया िा।
सभी मु ख्य दबींिुओीं पि 60 से 100 फीट व्यास के बड़े गढ़ हैं । इनमें से िो सबसे बड़े , जो उत्ति की ओि हैं ,
िते ह बुजा औि सोहन बुजा कहलाते हैं । इन गढोीं के बीि की िीवाि की लीं बी लाइनें आधाि पि छीले हुए
छोटे टॉविोीं की सींख्या से दटकी हुई है औि शीषा पि 45 फीट व्यास में, उनके बीच 80 फीट के पिे हैं ।
इन टाविोीं के आधाि के साि, जो अभी भी 30 िीट की ऊाँिाई पि हैं , िीवाि की एक बाहिी-िे खा है दजसमें
िौनी या िॉस्सब्रेबी बनती है , दजसकी ऊाँिाई भी 30 िीट है । इस िीवाि का पैिापेट पूिी तिह से गायब हो
गया है , औि िीवाि खुि ही इतनी टू ट गई है , जैसे कई थिानोीं पि खाई में एक आसान वींश को वहन किना।
काउों टर-स्क्रैप िीिार ों के ऊपरी दहस्से में लगभग सभी नीिे दगिे हुए हैं , उत्ति-पदिम की तिि को
छोड़कि, जहाीं सींख्या में िोगुना मजबूती है अलग दकए गए गढ़ोीं द्वािा एड।
गेटिे :-
दकले के पदिम आधे भाग में तीन द्वािोीं की स्थिदत को आसानी से पहिाना जा सकता है , ले दकन पूवी आधे
दहस्से की िीवािें इतनी टू ट िु की हैं दक अब एक िू सिे द्वाि की सींभादवत स्थिदत का अनुमान लगाना सींभव
नहीीं है । उत्ति द्वाि को दववेकपूणा रूप से िते ह बुजा के पास दिि से प्रवेश किने वाले कोण में िखा गया है ,
जहाीं यह अभी भी प्रािीि के उिात्त द्रव्यमान में एक अींति बनाता है , दजसके द्वािा ििवाहे अपने मवेदशयोीं
के साि प्रवेश किते हैं । पदिम द्वाि एकमात्र है , दजसमें से अब िीवाि का कोई भी दहस्सा बिता है । कहा
जाता है दक इसे िणजीत द्वाि कहा जाता है । यह प्रिे श द्वार 17 फीट चौडा था, औि अभी भी बाएीं हाि
की ओि एक बड़ा ऊपि-िादहने पत्थि पि खड़ा है , दजसमें एक पोटा कुदलस की िढ़ाई औि वींश का
मागािशान किने के दलए एक ग्रोव है ।
यह अब प्रािीि के द्रव्यमान में मात्र एक अींति है। िदक्षण-पूवा की ओि, मु झे लगता है दक, सि िॉमस
मे टासेि के घि के पास एक गेट िहा है , जो तु गलकाबाि औि मिु िा की ओि जाता है ।
गिनी गेट :-
दजया बिनी के अदधकाि पि, सईि अहमि कहते हैं , दक िाय दपिौिा के दकले के पदिमी द्वाि को मस्स्लम
दवजय के बाि गजनी गेट कहा जाता िा, क्ा स गजना मे दनकोीं ने दकले को प्रप्त दकया िा। मु झे लगता है
दकलालकोट का िणजीत गेट होना िादहए –
(i) मु सलमान कभी भी लालकोट का उल्लेख नहीीं किता है , ले दकन इसे हमे शा िाय दपिौिा के दकले
के एक दहस्से के रूप में शादमल किता है ।
(ii) िाय दपिौिा के बड़े औि कमजोि दकले के कब्जे को दिल्ली की दवजय नहीीं कहा जा सकता िा,
(iii) िीं जीत गेट के पास जाने वाली स्पष्ट िे खभाल को काम की एक िोहिी िे खा द्वािा मजबूत दकया गया
है , औि तीन अलग-अलग आउट-व द्वािा गेटवे के सामने तु िींत ही पता िलता है दक यह सबसे
कमजोि दबींिु माना जाता है ।
गढ़, औि इसदलए दक इस पि हमला होने की सबसे अदधक सींभावना िी। इस कािण यह दनष्कषा दनकलता
है दक िणजीत द्वाि वह िा, दजसके द्वािा मु स्स्लम ने दिली के गढ़ लालकोट में प्रवेश दकया, औि अपनी
सिलता से अपनी कमजोिी सादबत किने के बाि वे अपनी सुिक्षा के दलए इस दबींिु पि काम को मजबूत
किने के दलए आगे बढ़े । िीक इसी तिह का एक मामलाीं िालीस साल से भी कम समय बाि आया, जब
सम्राट अल्तमश ने ग्वादियर के दकिे में एक प्रिे श द्वार प्राप्त दकया, जो उिवाही नामक पदिम की
ओि गहिी खढ से दघिा िा, दजसने अपने िु श्मनोीं को िायिा उिाने से िोकने के दलए तु िींत एक दवशाल
िीवाि से इसे बींि कि दिया। उसी कमजोि दबींिु के। मे िा मानना है दक पदिमी गेट को सिल - कािण के
दलए गजनी गेट कहा जाता िा क्ोींदक गिनी दिल्ली के पदिम में स्थित है ।
िाय दपिौिा का दकला, जो तीन तिि लालकोट के गढ़ को घेिे हुए है , को प्रतीत होता है दक इसे मु स्स्लमोीं
के हमलोीं से दहीं िू शहि दिली की िक्षा के दलए बनाया गया िा।
ए० डी० 1100 के रूप में, महमूि के िों शि, सल्जुकी की बढ़ती शस्ि से पहले गजनी से सेवादनवृत्त हुए,
ने लाहौि में अपनी नई िाजधानी तय की िी, हालाीं दक गजनी अभी भी उनके िाज्य से सींबींदधत िा, औि
कभी-कभी सिकाि की सीट िी। ले दकन एक नया औि अदधक िु जेय िु श्मन जल्द ही दिखाई दिया, जब
मु ज-ओद्दीन सैम, दजसे आमतौि पि मु हम्मि गोिी कहा जाता िा, मुल्तान औि पेशावि शहिोीं पि कब्जा
किने के बाि, 1180 ईस्वी में िाहौर से पहले दिखाई दिया, औि कब्जा किके गजनवीड वींश का अींत
कि दिया 1186 ई० में उनकी रािधानी िी।
यह खतिा अब आसन्न हो गया िा, औि कुछ साल बाि ही हम गोिी के िाजा को पूणा रूप से अजमे ि में
खोजते हैं । ले दकन दिली के िाजा ने अपने आक्रमण को अच्छी तिह से तै याि दकया िा, औि अपने
सहयोदगयोीं की सहायता से, उन्ोींने करनाि और थाना के बीच में , दििौरी में मुष्णिम ों को बड़े कत्ल के
साि हिाया। लाहौि से पहले िजेय मोि की पहली उपस्थिदत के रूप में पृथ्वी िाजा के अदभगम से मे ल
खाती है ।
दिली शहि के दकले को िाजा द्वािा एक अच्छी तिह से आशींका से मजबूि दकया गया िा दक जल्द ही दिली
पि हमला हो सकता है य औि इसदलए यह हुआ, िो साल के दलए दतलौिी की लड़ाई के बाि िाजा एक
कैिी िा, औि दिल्ली मु स्स्लम के कब्जे में िा।
िाय दपिौिा के दकिे का सदकाट 4 मीि और 3 फिााग है , या लालकोट का दसिा तीन गुना है । ले दकन
शहि की सुिक्षा हि तिह से गढ़ के लोगोीं के दलए नीि है । िीवािें केवल आधी ऊाँिाई पि हैं औि टाविोीं को
अदधक लीं बे अींतिाल पि िखा गया है । शहि की िीिार िािक ट के उत्तर में ष्णस्थि है , दजसे िते ह बुजा
कहा जाता है , उत्ति-पूवा में एक मील के तीन-िौिाई दहस्से के दलए, जहाीं यह िदक्षण-पूवा में 1 मील से
िमिम बुजा तक जाती है। इस गढ़ से लगभग एक मील के दलए िीवाि की दिशा
िदक्षण-पदिम औि दिि उत्ति-पदिम में िोड़ी िू िी पि पहाड़ी के िदक्षणी छोि पि स्थित है दजस पि अिीम
खान का मकबरा ष्णस्थि है । इस दबींिु से पिे िीवाि को िी के साि उत्ति की ओि कुछ िू िी के दलए पता
लगाया जा सकता है डीजी जो शायि सबसे ज्यािा लालकोट के िदक्षण-पूवा कोने से जुड़ा िा, कहीीं सि टी।
मे टकाि के घि के पड़ोस में िा।
िाय दपिौिा या दिल्ली प्रॉपि के दकले के बािे में कहा जाता है दक इसमें गजनी गेट. के अलावा नौ द्वाि िे ,
दजनमें से अदधकाीं श का अभी भी पता लगाया जा सकता है । तीन पदिम की ओि हैं , दजनमें से िो लालकोट
के गढ़ के हैं , औि तीसिे में एक छोटा-सा काम है । उत्ति की ओि पााँ ि, जहााँ पनाह की ओि, औि एक
तिि पूवा दिशा में तु गलकाबाि की ओि, जो दक बड़ौन गेट िहा होगा, ऐसा प्रािीं दभक मु हम्मडन इदतहास में
अक्सि उल्लेख दकया गया है । िदक्षण की ओि एक गेट भी िहा होगा, मे टकाि के घि के किीब िहा होगा।
िनिरी 1191 में मुष्णिम द्वारा कब्जा दकए िाने पर ऐसा दहों िू शहर दििी था।
इसकी िीवािोीं का सदकाट लगभग 4% मील िा, औि इसने भाित के मु गल सींप्रभु की िाजधानी, मॉडे म
शाहिहानाबाि के आधे दहस्से के बिाबि जमीन को कवि दकया। इसके पास 27 दहों िू मोंदिर थे , दजनमें
से कई धनी नक्ाशीिाि िीं भ अभी भी दिली के अींदतम दहीं ि शासकोीं के स्वाि औि धन िोनोीं को
आकदषात किने के दलए बने हुए हैं।
प्रश्न - कुिु ब प्राोंगण का अदिप्राय समय के साथ पररिदिा ि हुआ। व्याख्या कीदिए।
िािक ट : तोमि िाजपूत सम्भवत: पहले सूिजकुड (हरियाणा की साह पास बसे। कालान्ति में वहाीं से 10
दक.मी. पदिम की ओि अनींगपाल ने लाल बनवाया। पत्थि की मोटी िीवािें ही अब दकले का अवशेष िह
गई हैं । िीवाि िी दजसके अब कुछ ही भाग बिे हैं ।
लालकोट के अन्दि कई भवनोीं के दित्रण आज भी दिखाई िे ते हैं । कताि अन्य स्मािक इसी की परिदध में
हैं । दिल्ली-कुतु ब, बििपुि-कुतु ब औि महिौली क़ुतु ब सड़के लालकोट की िीवािोीं को काटती हैं।
शाकम्भिी के निे श दवग्रहिाज ितु िा ने 12वीीं शती के पूवा भाग में तोमिोीं से दिल्ली को हिगत दकया औि
उसके पौत्र पृथ्वीिाज तृ तीय ने एक दवशाल सुिक्षा िीवाि बनाकि लालकोट का क्षे त्र दविृ त दकया।
पृथ्वीिाज िाय दपिौिा के नाम से भी प्रदसद्ध िा। अतः दविृ त लालकोट को दकला िाय दपिौिा के नाम से
भी जाना जाता है । दकिा राय दपथौरा का घेरा िगिग साि दक.मी. था।
लालकोट के समान इसकी सुिक्षा िीवािें दिल्ली-कुतु ब औि बििपुि-कुतु ब की सड़कोीं द्वािा कटी हुई हैं ।
कुतु बमीनाि पि िढ़ कि िे खने से इसके दविाि औि बनावट का अनुमान होता है । िीिार 6 मी. तक
िौड़ी है औि कहीीं-कहीीं 18 मी. ऊाँिी है । कहा जाता है दक इन पि 13 द्वाि िे । इनमें से िाणी, बकाा औि
बुिायूीं द्वाि अभी मौजूि हैं । बुिायूीं द्वाि का उल्लेख इब्नबतू ता ने भी दकया है । यह सम्भवतः नगि का मु ख्य
द्वाि िा।
दकला िाय दपिौिा औि इसकी नगिी दिल्ली क्षे त्र की सवाप्रिम नगिी िी। इसदलए वता मान दिल्ली का
आिस्म्भक दनमाा ता पृथ्वीिाज को माना जाता है । पृथ्वीराि चौहान साम्भर, अिमेर और दिल्ली का रािा
था। उसका सबसे बड़ा शत्रु कन्नौज का िाजा जयिन्द िा। इसी िाजा की पुत्री सींयोदगता ने 1175 ई. में
पृथ्वीिाज को अपने दपता की इच्छा के दवपिीत अपना वि िु ना। 1182 ई. में पृथ्वीराि ने चन्दे ि रािा
पिमल को पिाि दकया औि उसकी िाजधानी महोबा को हिगत दकया। उसने 1192 ई. में म हम्मि
ग री के भीषण आक्रमण को तिाइन के युद्ध में दकल दकया। दकन्तु िू सिे साल तिाइन के मै िान में ही
पृथ्वीिाज हाि गया औि माि डाला गया। पृथ्वीिाज के प्रेम औि युद्ध की गािायें िन्दबििाई द्वािा िदित
पृथ्वीिाज िासो में दमलती हैं।
मोहम्मि गोिी द्वािा दकला िाय दपिौिा की दवजय के तु िन्त बाि 1193 ई. में कुव्विु ि इिाम नामक
मस्िि का बनाना शुरू हुआ। 43 मी. िम्बी और 33 मी. चौडी आयिाकार िूदम पिीं बनी यह दिल्ली
की सबसे पुिानी मस्िि है । कुतु बउद्दीन ऐबक, जो उस समय गोिी का सेनानायक िा, औि कालान्ति में
सुल्तान बना इसका दनमाा ता है । मस्िि की भू दम के िािोीं ओि दहन्क्िू धमा के सत्ताईस बड़े -बड़े मस्न्दि व
अन्य प्रासाि िे ।
इनको कुतु बउद्दीन ऐबक ने ध्वि किवाया औि इनका सामान मस्िि के दनमाा ण में प्रयोग दकया। इस
तीन साल में मस्िि बनकि तै याि हो गई। कुछ समय बाि एक पत्थि की जाली प्रािा ना मण्डप के आगे
लगा िी गई। जाली के दकनािे अदभले खोीं औि ज्यादमतीय आकािोीं से सस्ज्जत हैं। कुतु बउद्दीन के िामाि
औि उत्तिादधकािी शम्सउद्दीन इल्तु िदमश ने 1230 ई. में खम्भोीं औि प्रािा ना मण्डप को दविृत कि
मस्िि का आकाि िु गना कि दिया। इस प्रकाि दवशाल कुतु बमीनाि भी मस्िि के अहाते में आ गई।
अलाउद्दीन स्खलजी ने अहाते को औि भी दविृत दकया। उसने पूवी िीवाि पि िो औि उत्तिी औि िदक्षणी
िीवािोीं पि एक-एक प्रवेश द्वाि बनवाये। िदक्षणी िीवाि के प्रवेश द्वाि को अलाई ििवाजा कहते हैं जो अब
भी सुिदक्षत है ।
िारि का सबसे ऊाँचा िम्भ, कुिु ब मीनार 72.5 मी. ऊाँची है । जमीन पि इसका घेिा 14.32 मी. औि
िोटी पि 2.75 मी. है। इस गोपुच्छनुमा मीनाि के अन्दि ऊपि तक िढ़ने के दलए 379 सीदढ़याीं हैं । मीं दजलोीं
का दवभाजन छज्जोीं से दकया गया है । इसकी तीन नीिे की मीं दजलोीं की बनावट ऊपि की मीं दजलोीं से दभन्न
प्रकाि की है । सबसे नीिे की मीं दजल के उभाि कोण औि गोलाई वाले हैं । िू सिी मीं दजल के उभाि गोलाई
वाले हैं । तीसिी मीं दजल पि कोण वाले उभाि हैं । ये उभाि मीनाि की मजबूती के दलये बनाए गए हैं । छज्जोीं
पि आने के दलए ििवाजे हैं । उिार ों आदि पर के अदििेख ों की नक्काशी ने मीनार की शोभा को औि
भी बढ़ा दिया है । सािी मीनाि पि थिान थिान पि छोटी साधािण स्खड़की के समान छे ि हैं दजनसे अन्दि
सीदढ़योीं पि िोशनी िहती है ।
कुतु ब मीनाि के दनमाा ण का श्रेय कुतु बद्दीन ऐबक को दिया जाता है । पिन्तु यह भी कहा जाता है दक वह
एक ही मीं दजल बना पाया औि बाकी मीं दजलें उसके उत्तिादधकािी इल्तु त दमश ने बनवाईीं। सतह के
अदभले खोीं के अनुसाि दििोज तु गलक औि दसकन्दि लोिी ने मीनाि की मिम्मत किवाई। असली मीनाि
िाि मीं दजल ऊींिी िी। इसकी सबसे ऊपि की मीं दजल 1378 ई. में दबििी दगरने से टू ट गई। तब दििोज
तु गलक ने इसका जीणोद्वाि किवाया।
सींगमिमि का प्रयोग कि उसने िो मीं दजलें बनवाई। उसकी छतिी भू कम्प के झटके से दगि गई। 10वीीं शती
में मे जि स्स्मि ने छतिी क मुगि शैिी पर बनिाया दकन्तु यह इिनी बेमेि थी दक 1824 में इसको
दगिा दिया गया। यह अब िदक्षण पूवा के मै िान में िखी हुई है ।
कुतबद्दीन ने इसे दवजय िम्भ के रूप में खड़ा दकया होगा। दकन्तु मस्िि के दन होने के कािण सींभव है
इसे अजान के दलए भी प्रयुि दकया जाता िहा हो। कदत का मत है दक दिल्ली सदहि दिों ध्याचि औि
दहमालय के बीि की समि भू दम पि अपना साम्राज्य थिादपत किने के बाि वीसलिे व ने दवजयिम्भ के
रूप में इसका दनमाा ण कि िा। आगे िलकि मु सलमान दवजेताओीं ने इसे दभन्न रूप िे दिया। िीं भ का वा
दनमाा णकताा कौन िा? यह गुत्थी अभी इदतहासकाि सुलझा नहीीं पाये हैं ।
िौह िम्भ :-
कुव्वतु ल इस्लाम मस्िि के प्राीं गण में सुप्रदसद्ध लौह िम्भ है । यह ढाल कि बनाया गया है । इसकी ऊोंचाई
7.20 मी. है । लगभग एक मीटि भाग जमीन के अन्दि है । यह साि लोहे का बना है । इसका सबसे नीिे
का भाग गाीं ििाि है औि लोहे के टु कड़ोीं द्वािा बुदनयाि से कसकि िखा गया है । जमीन की सतह के नीिे
के भाग को एक जि की िािि से जकड़ दिया गया है । इतना समय बीतने पि भी इस पि जींग नहीीं लगा।
यह प्रािीन भाितीय धातु कदमा कोीं की कुशलता का परििायक है । इसके नीिे का घेरा 6 फुट 4 इों च िथा
च टी का घेरा 2 फुट 4 इों च है ।
इस लौह िम्भ के बािे में कहा जाता है दक इसे ईसा से 895 िषा पूिा िाजा महािे व ने थिादपत दकया िा।
कुछ लोग इसे तीसिी औि िौिी शताब्दी में िाजा धावा की लगाई हुई मानते हैं । कुछ लोग इसे महािाज
िन्द्र द्वािा लगाई गई दविु की लाट मानते हैं। लौह िम्भ पि जो अदभले ख अींदकत हैं उन पि िाजा िन्द्र
(375 ई. से 414 ई. िक) औि उसकी दिस्िजयोीं का उल्लेख है । िन्द्रगुप्त की बींगाल दवजय तिा
वाहदलक दवजय आदि का वणान है । उसका िाज्य पदिम में अिब सागि व सौिाष्टर तक, पूवा में बींगाल औि
असम तक, उत्ति में दहमालय की तलहटी से ले कि िदक्षण में नमा िा निी तक िा। अदधकाीं श दिद्वान ों ने
इस चन्द्र क चन्द्रगुप्त दद्विीय माना है । कुछ यह भी कहते हैं दक यह लौह िम्भ पहले इन्द्रप्रथि में िा।
बाि में इसे मगध ले जाया गया। वहाीं से दिि िाजा अनींगपाल द्वािा वादपस लाया गया औि दविु मीं दिि के
सामने दविु ध्वज के रूप में लगाया गया।
जब यह िौह िम्भ यहाों गाडा गया िब िक ज्य दिषी ने रािा अनों गपाि से कहा दक दकली नाग के
िन पि गढ़ी है , इसदलए अब तु म्हािे वींश का िाज स्थिि िहे गा। िाजा ने ज्योदतषी की बात पि दवश्वास नहीीं
दकया औि उसे उखड़वा दिया। उसके नीिे के दहस्से में खून के धब्बे दमले। ज्योदतषी की बात सही पाई
गई। िाजा ने उसे दिि गड़वाया। उस समय तक शेष नाग' आगे सिक गया औि दकल्ली उतनी मजबूती से
नहीीं गड़ सकी। इसीदलए कहा गया है दक कीली तो िह गई ढीली। इसी कािण सम्भवतः इस नगि का नाम
ढीली पड़ा जो बाि में दिल्ली हो गया। िाजा अनींग पाल के िाज वींश का िाज्य स्थिि नहीीं िहा।
म हम्मि शाह के शासनकाि में नादिरशाह ने भाित पि आक्रमण दकया िा। उसने इस कीली को
उखाड़ने के बहत प्रयत्न दकए। उसने इसे तोपोीं से उखाड़ना िाहाीं । पिन्तु इस कीली पि कोई असि नहीीं
हुआ।
िम्भ पि सींस्कृत में गुप्तकालीन ब्राह्मी दलदप के अदभलेख हैं । अदभले ख में दकसी शस्िशाली िन्द्र की याि
में लौह िम्भ का दविुपि नामक पहाड़ पि दविु -ध्वज की तिह थिादपत दकया जाना दलखा है। िन्द्र को
सम्राट चन्द्रगुप्त दद्विीय (375-413) समझा जाता है । िम्भ की िोटी पि एक गहिा छे ि है जो इस बात
का सींकेत है दक सम्भवतः िम्भ के शीषा पि गरुड़ की मू दता जुड़ी हुई िी, जो गुप्त ध्वजोीं की दवशेषता है।
इसे कहाीं से थिानान्तरित दकया गया है यह अज्ञात है । िािण पिम्पिा के अनुसाि अनींगपाल तोमि इसे यहाीं
लाया।
कुतु बद्दीन के िामाि औि उत्तिादधकािी इल्तु तदमश की समादध कुव्वतु ल इस्लाम मस्िि के उत्ति-पदिम
में है । इसको उसने अपने जीवनकाल ही में बनवा दिया िा। यह समादध दहन्क्िू व इस्लामी थिापि कला के
सस्म्मश्रण का उिाहिण है । समादध एक िौकोि कमिे में है । कमिा 9 मी. िम्बा, 9 मी. चौडा औि 8.5
मी. ऊोंचा है । इसके पूवा, उत्ति औि िदक्षण में तीन मे हिाबी प्रवेश द्वाि हैं । प्रवेश द्वाि 4.5 मी. ऊोंचे औि
2.25 मी. चौडे हैं । इनको कुिान की आयतोीं की नक्ाशी से सजाया गया है ।
अनींगपुि ग्राम के दनकट एक बाीं धा है। कहा जाता है दक उसे तोमि वींश के िाजा अनींगपाल ने बनवाया।
इसे एक तीं ग घाटी के मु हाने पि थिानीय दबल्लौिी पत्थि से बनवाया गया है । दवशाल झील बिसात के
महीनोीं में अदत िमणीक दृश्य प्रिु त किती है । बाीं धा के कपाटोीं से होकि पानी घाटी में बहता िा औि नीिे
खेतोीं की दसींिाई किता िा।
रिकॉडा दकए गए इदतहास में पृथ्वीिाज िौहान के शासनकाल में दिल्ली के 7 शहिोीं में से पहला दकला िाय
दपिौिा है दजसके पवाजोीं ने 10 वीीं शताब्दी में दिल्ली को तोमि िाजपूतोीं से कब्जा कि दलया िा। पृथ्वीिाज
उन्ोींने 1192 ईस्वी में िराइन के दद्विीय युद् में अपनी हाि औि मृ िु तक इस 6.5 दकलोमीटि लीं बे
दकले से दिल्ली पि शासन दकया, जो मामलु क/गुलाम वींश पि दनयींत्रण िखता िा। शहि के अवशेष िदक्षण
दिल्ली के वसींत कुींज, दकशनगढ़, महिौली औि साकेत क्षे त्रोीं में िैले हुए हैं ।
2. महरौिी :-
कुतु बुद्दीन ऐबक गोिी की वसीयत के बाि 1193 से घ री का िाइसराय था और 1206 में दिल्ली का
सुल्तान बना। इस प्रकाि, अगले छह-डे ढ़ शतास्ब्दयोीं के दलए दिल्ली में इस्लामी सींस्कृदत औि दवश्वास का
प्रभाव शुरू हुआ, मु ख्यतः वािु कला में ।
दिल्ली के 7 ऐदतहादसक शहिोीं में से िू सिा, महिौली कुतु बुद्दीन ऐबक द्वािा बनाया गया िा। कुतु ब मीनाि,
उनकी 72.5 मीटर िोंबी दििय का टॉिर, 1220 ईस्वी में पूिा हुआ, आज ' तक खड़ा है । 11 वीीं औि
12 वीीं शताब्दी के सींत कुिु बुदडों ग िष्णियार काकी, शम्सी मकबरा, िाहि महि और कब्र ों के
मकबरे जैसी अन्य इमाितें औि दनमाा ण आज खींडहि में पड़े हैं ।
3. दसरी का दकिा :-
का दनमाा ण दकया, दजसमें मोटी िीवािें स्खींिी हुई िीीं, पदिम एदशया के सल्जूदकयन िाजवींश के कािीगिोीं का
उपयोग किके दजन्ोींने मीं गोल के आक्रमणकारियोीं से बिने के दलए उनके ििबाि में शिण ली।
आज के िाि बुटीक के परिसि, हौज खास उस समय का एक बड़ा भींडाि िा, हालाीं दक स्खलजी की इच्छा
िी दक एक ऐसा टॉिर ह ि कुिु ब मीनार को सिल बनाए। इस्लादमक वािु कला के अनुसाि अपने
कमल के रूपाीं कनोीं औि एक सच्चे सच्चे मे हिाब को िे खने के दलए अलाई ििवाजा पि जाएाँ ।
4. िु गिकाबाि:-
दिल्ली िाज्य के शहिोीं की सूिी में िौिा, तु गलकाबाि है, दजसका दनमाा ण हे डस्टर ॉन्क्ग, अिािािी शासक
तु गलक द्वािा दकया गया िा, जो भयानक िडाइय ,ों आक्रमण ,ों िृग ों और मृत्यु की अवदध के िौिान हुआ
िा। िाजधानी को िौलताबाि में थिानाीं तरित किने औि दिि वापस थिानाीं तरित किने के बाि, मोहम्मि
दबन तु गलक ने दकला िाय दपिोिा औि दसिी दकले के बीि एक छोटा शहि जहानपन्ना बनाया।
उन्ोींने तु गलकाबाि दकले को िाग दिया, यह डि िा दक यह सींत दनजामु द्दीन औदलया के अदभशाप के
तहत िा। ले दकन, तु गलकाबाि मु ख्य शहि बना िहा, जहााँ बािी मोंदिि, दबकाई मोंडि, ष्णखरकी मष्णिि
और दचराग-ए-दिल्ली की िरगाह जैसी वािु कला की तु गलक शैली के उिाहिण अभी भी कािवाीं सेि,
मििसोीं औि नहिोीं के साि बने हुए हैं ।
5. दफर िाबािः-
दिल्ली में शहिोीं की सूिी में पाीं िवें , दििोजाबाि का दनमाा ण दििोज तु गलक ने यमु ना निी के बगल में
दकया िा। महल िीं भोीं वाले हॉल औि ऊींिी िीवािोीं के साि-साि मस्ििोीं, कबूति टॉवि औि पानी की
टीं की औि 1500 साल पुिाने अशोकन िीं भ के साि हैं ।
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उन्ोींने दिल्ली के आसपास कई दशकाि लॉज औि मस्ििोीं का दनमाा ण दकया औि सुल्तान घोिी के
मकबिे , कुतु ब मीनाि, सूिज कींड औि हौज-खास की मिम्मत की।
दफर ि का मकबरा हौि-खास में ष्णस्थि है औि कोटला दििोज शाह एक प्रदसद्ध खेल स्टे दडयम है ।
लोधी उद्यानोीं में कब्रोीं को छोड़कि, तु गलक का अनुसिण किने वाले सैय्यि औि लोिी ने कला या
वािु कला के दलए बहुत कम काम दकया।
6. शेरगढः-
अिोंकृि पुराण दकिा 1540 में शेरशाह द्वािा बनाया गया िा, दजसने ऐसा किने के दलए हुमायूाँ की
िाजधानी िीनपना को जमीन पि धकेल दिया िा। 1555 में िब हुमायूाँ ने दिल्ली वापस जीता, तो उसने
शेि शाह की कस््ला को पूिा दकया औि शेि मीं डल में सीदढ़योीं से दगिने के बाि, 1556 में शेरगढ पि
शासन दकया।
उनकी दवधवा हमीिा बान बेगम द्वािा दनदमा त हुमायूाँ के मकबिे के साि ये खींडहि आज भी एक बड़ा
आकषाण हैं । यहााँ के अींदतम सम्राट बहािु ि शाह जिि को पकड़ दलया गया िा औि िीं गून को दनवाा दसत
कि दिया गया िा जबदक उनके िो बेटोीं औि पोते को दब्रदटश कैप्टन ने माि डाला िा।
7. शाहिहानाबािः-
सबसे बड़े मु गलोीं में से एक, अकबि ने अपने सभी प्रयासोीं को िते हपुि सीकिी में केंदद्रत दकया। ले दकन
उनके पोते शाहजहााँ , दजन्ोींने ताजमहल का दनमाा ण दकया, ने भी दिल्ली के सात शहिोीं में से एक,
शाहिहानाबाि, क 17 िी ों शिाब्दी में पुिानी दिल्ली में बनाया औि िोकस को वापस दिल्ली लाया।
जामा मस्िि औि लाल दकला इस िीवािोीं के शहि को िस दकलोमीटि परिदध के साि, इसकी सींकिी
गदलयोीं, दहीं िू मीं दििोीं औि िे वी-िे वताओीं, इसके ििा औि गुरुद्वािा, इसके सात द्वािोीं के साि इस भव्य शहि
आक्रमणकारियोीं द्वािा दिल्ली के निसींहाि औि लू टपाट के साि समाप्त हुआ, जबदक दब्रदटश ने कलकत्ता
से भाित पि शासन दकया िा।
1911 में दिल्ली की मदहमा वापस आ गई जब िाजधानी दिल्ली औि नई दिल्ली में थिानाीं तरित हो गई
औि िायसीना दहल्स के आसपास औि भाितीय सींसि, िाष्टरपदत भवन, कनॉट प्ले स, सड़कोीं, पाको औि
अन्य सींििनाओीं के साि बनाया गया िा। तत्कालीन शासक ने आज्ञा िी होगी।
पिीं पिा के अनुसाि, दिल्ली शहि महाभाित के काल का है । इसे महाकाव्य इों द्रप्रस्थ की साइट पि बनाया
गया है , जहाीं पाीं डवोीं के प्रदसद्ध महल औि ििबाि स्थित िे । यदि आप इस कहानी को पढते हैं दक इीं द्रप्रथि
को महान महाकाव्य से सींबींदधत कैसे बनाया गया िा, तो आपको पता िले गा दक इसका दनमाा ण मोवा ने
दकया िा। उन्ोींने इसे पाीं डव िाजकुमािोीं के आभाि के टोकन के रूप में बनाया क्ोींदक उन्ोींने अदि-िे वता
अदि के अनुिोधा पि खाीं डव वन को नष्ट कि िहे िे , तब उन्ोींने उसे भागने की अनुमदत िी िी।
इों द्रप्रस्थ की साइट िगिग 3,000 साि पुिानी बताई जाती है । 1955 में जब भाितीय पुिातत्व सवेक्षण ने
इस थिल की खुिाई की तो उन्ें यहाीं कई प्रकाि के बािीक भू िे िीं ग के बता न दमले । उनके पास काले िीं ग में
सिल दडजाइन िे । पुिातत्वदवि इस तिह के बता नोीं को 'पेंटेड ग्रे वेयि' कहते हैं। उन्ें माना जाता है दक वे
सी० 1000 ई.पू. क्ा दिलिस्प लगता है तथ्य यह है दक इस तिह के दिदत्रत ग्रे वेयि कई थिानोीं पि पाए गए
हैं जो महाभाित से जुड़े हैं।
कभी इीं द्रपत नामक एक गााँ व हुआ किता िा जहााँ मूि इों द्रप्रस्थ ष्णस्थि िा। गााँ व इीं द्रप्रथि बीसवीीं सिी की
शुरुआत तक बना िहा। नई दिल्ली की दब्रदटश िाजधानी के दनमाा ण के दलए इसे कई अन्य गाीं वोीं के साि
धवि कि दिया गया िा। मू ल इीं द्रप्रथि के पास सींस्कृत में एक दशलाले ख में इीं द्रप्रथि का उल्लेख है ।
दशलाले ख अब लाल दकला सींग्रहालय में है । जब धृ तिाष्टर, कौिवोीं के प्रमु ख, िाज्य पि आयोदजत हुए, तो
पाीं डवोीं (जो वैध उत्तिादधकािी िे ) ने अपने दलए पाीं ि गााँ व माीं गे।
इन पााँ ि गााँ वोीं के नाम समाप्त होते हैं (सोंस्कृि प्रचार के दहों िी समकक्ष)। वे िे इीं द्रपत, बागपत, दतलपत,
सोनीपत, औि पानीपत। ये सभी थिान दिल्ली के 22 दकमी के िायिे में स्थित हैं औि इन सभी में एक ही
दिदत्रत ग्रे वेयि पाया गया है ।
यदि हम महाकाव्य को भू ल जाते हैं औि अकेले इदतहास से िले जाते हैं . तो हम कहें गे दक दिल्ली 11वीीं
शताब्दी में पहली बाि िाजपूतोीं के शहि के रूप में ऐदतहादसक रूप से महत्वपूणा हो गई िी। महत्वपूणा
जनजादतयाीं तोमि, प्रदतहाि औि िौहान िे । यह सूरिपाि. एक ि मर रािा था, दजसने सूिज कुींड का
दनमाा ण दकया िा, दजसे आप में से बहुत से लोगोीं ने िे खा होगा।
वषों में दिल्ली सात शहिोीं का थिान बन गया, दजनमें से अदधकाीं श भाितीय इदतहास के मु स्स्लम काल से
सींबींदधत िे । अलग-अलग िाजवींशोीं (या कभी-कभी एक ही वींश से, जैसे तु गलक के मामले में ) दिल्ली आने
वाले कुछ अजीबोगिीब कािणोीं के दलए, जो मौजूिा िाजधानी को दिि से बसाने और पुनदना दमाि करने
के बजाय शहि के एक अलग दहस्से में अपनी िाजधानी बनाना पसींि किते िे । जब दकसी अन्य थिान पि
दशफ्ट दकया जाता है , तो वे अक्सि मौजूिा इमाितोीं को धवि कि िे ते हैं औि नए दनमाा ण के दलए सामग्री
का उपयोग किते हैं ।
यह अनींगपाल, एक िाजपूत िाजा िा, दजसने दिल्ली के पहले शहि की थिापना की िी। इदतहासकाि
दनदित तािीख के बािे में दनदित नहीीं हैं दक यह कब हुआ।
उत्ति भाित के एक ि कदप्रय महाकाव्य, पृथ्वीरािराि के अनु सार, उन्ोींने लालकोट का दनमाा ण दकया
औि प्रदसद्ध लोहे के िीं भ को दिल्ली लाया। आप में से कई लोगोीं ने इसे कुतु ब मीनाि के आीं गन में िे खा
होगा।
पृथ्वीिाज III, दजसे िाय दपिोिा भी कहा जाता है , ने अपने िािोीं ओि बड़े पैमाने पि पत्थि की प्रािीि का
दनमाा ण किके लाल कोट को पुनदनादमा त औि दविारित दकया। उन्ोींने कछ प्रभावशाली द्वाि भी जोड़े । उस
समय को दकला िाय दपिौिा (िाय दपिौिा का दकला) कहा जाता िा। 1206 और 1290 के बीच
कुिु बुद्दीन और गुिाम िों श के अन्य शासकोीं द्वािा कब्जा कि दलया गया िा। अब गढ़ के अवशेषोीं में एक
पत्थि की िीवाि, कुछ द्वाि, औि बबाा ि लाल कोट के कुछ दहस्सोीं को शादमल दकया गया है । ले दकन अभी
भी थिल पि खिाई िल िही है ।
इसदलए यदि आप कुतु ब मीनाि की यात्रा किते हैं , तो आप दिल्ली के पहले शहि का िे ख सकते हैं।
यह अिाउद्दीन ष्णखििी था दिसने 1303 में दिल्ली के िू सिे शहि दसिी की नीींव िखी िी। यह एक
मु स्स्लम िाजा द्वािा बनाया गया पहला नया शहि िा। अलाउद्दीन स्खलजी ने हौज खास में एक दवशाल टैं क
भी खोिा, दजसे मू ल रूप से हौि- प - अिाई के नाम से जाना जाता है । यह जलाशय उसकी नई
िाजधानी में िहने वाले लोगोीं को पानी की आपूदता किने के दलए बनाया गया िा। पहले की तिह, िू सिा
शहि आज भी बहुत कम बिा है। एकमात्र सींििना दजसे आप अब िे ख पाएीं गे , वह एक मोटी पत्थि की
िीवाि के साि 'लौ के आकाि' की लड़ाई औि कुछ टू टी हुई सींििनाएीं हैं जो एक महल का दहस्सा हो
सकती हैं । ये युद्ध पहली बाि खालदजयोीं द्वािा शुरू दकए गए िे । आपने उन्ें शाहपुि जाट के पास खेल
गााँ व मागा पि िे खा होगा।
अगले तीन शहिोीं को 1321 और 1414 के बीच िु गिक द्वारा बनाया गया िा। दघयासुद्दीन तु गलक ने
तीसिा शहि तु गलकाबाि बनाया। अभी भी जो कुछ बिे हुए हैं , वे एक उजाड़ पहाड़ी पि दघसी-दपटी मलबे
की िीवािें , दघयासुद्दीन तु गलक का मकबिा औि उसके खींडहि दकले हैं । दकले , अब सैकड़ोीं बींििोीं का घि
है , अपनी ढहती अवथिा के बावजूि िोपता हुआ दिखता है । इदतहासकािोीं के अनुसाि, िु गिकाबाि का
पूिा दकला एक बाि बारिश के पानी की एक कृदत्रम झील के भीति खड़ा िा। ले दकन अब झील का कोई
दनशान नहीीं है । कई पयाटक सूरिकोंु ड के िािे में उस जगह का जायजा ले ते हैं जहााँ हि साल वादषाक
दशल्प मे ला आयोदजत दकया जाता है।
आक्रमणकारियोीं द्वािा दिल्ली में निसींहाि औि लू टपाट के साि समाप्त हुआ, जबदक दब्रदटश ने कलकत्ता
से भाित पि शासन दकया िा।
1911 में दिल्ली की मदहमा वापस आ गई जब िाजधानी दिल्ली औि नई दिल्ली में थिानाीं तरित हो गई औि
िायसीना दहल्स के आसपास औि भाितीय सोंसि, राष्टरपदि ििन, कनॉट प्लेस, सडक ,ों पाकों औि अन्य
सींििनाओीं के साि बनाया गया िा। तत्कालीन शासक ने आज्ञा िी होगी।
'यहााँ हम दिल्ली शहि में खड़े हैं , पुिाने भाित औि नए का प्रतीक। यह पुिानी दिल्ली की सींकिी गदलयाीं
औि घि नहीीं हैं औि न ही नई दिल्ली की िौड़ी जगह औि दिखावा किने वाली इमाितें हैं , बस्ि इस
यह कई पहलु ओीं के साि एक मदण है , कुछ उज्ज्वि और कुछ उम्र के दहसाब से अींधेिा, भाित के जीवन
औि युग के िौिान दविाि प्रिु त किता है ।' हम दिल्ली शहि में भाित के अच्छे औि बु िे का सामना किते
हैं जा कई साम्राज्योीं औि एक गणतीं त्र की नसािी की कब्र िहा है । क्ा जबििि कहानी है उसकी! यहााँ
हमािे इदतहास की सहस्राब्दी की पिीं पिा हमें हि किम पि घेिती है , औि असींख्य पीढ़ीयोीं का जुलूस
हमािी नजिोीं से गुजिता है ।
िशाा ता है औि इसमें दकसी अन्य शहि की तु लना में भाित की िाजधानी होने का अनूिा गौिव है । प्रािीन
दकींविीं ती है दक 'वह दिल्ली पि शासन किता है , भाित पि शासन किता है '।
इसने समय औि भाग्य के सभी दृदष्टकोणोीं को जीदवत िखा है । यद्यदप इसने अक्सि अपनी साइट, अपने
चररि और अपने नाम को बिल दिया है , ले दकन इसके अस्ित्व के दनिीं ति धागे में कई सभ्यताओीं का
उिय औि पतन िे खा गया है । महाभाित के इीं द्रप्रथि से वता मान नई दिल्ली तक, यह एक महानगि में
दवकदसत हुआ है । िाजा दिल्लू की दिल्ली से नई दिल्ली तक हमे शा सत्ता की कमान सींभाली है ।
दिल्ली की एक बिी का सबसे पहला सींिभा महाभाित में दमलता है । हष्णिनापुर के रािा धृ िराष्टर के
पास अपना साम्राज्य थिादपत किने के दलए दिल्ली से लेकि पाीं डवोीं तक के िािे हैं । दिल्ली के इस दहस्से
को खाीं डवप्रथि के नाम से जाना जाता िा। पाींडव िाजकमाि युदधादिि ने खाीं डववन के रूप में जाने वाले
जींगल को साि दकया औि दिल्ली में इों द्रप्रस्थ शहर की थिापना की।
वािव में यह एक भव्य शहि िा जो इतना भव्य िा दक इसने कौिवोीं को पाीं डवोीं का िु श्मन बना दिया।
उस समय से दिल्ली कई िाजवींशोीं औि साम्राज्योीं के उत्थान औि पतन का गवाह बना। शहि के थिान ने
अपने िणनीदतक औि वादणस्ज्यक मू ल्य के कािण प्रािीन काल से सभी प्रकाि के भाितीय शासकोीं को
आकदषात दकया।
यह तका िे ना आसान होगा दक दिल्ली के शहि वािदवकता में सात से कम या अदधक िे । ले दकन स्वीकृत
सींख्या सात (नई दिल्ली को छोड़कि) है औि ये ऐसे शहि हैं दजनके अवशेष खाली हैं । इदतहासकाि 'दिल्ली
के सात शहिोीं' की बात किते हैं , ले दकन 1100 A.D. और 1947 A.D. के बीि, वािव में आि वषा हो
गए हैं ।
दसरि
तु गलकाबाि
जहााँ पनाह
शाहजहानाबाि
नई दिल्ली
इन शहिोीं में से प्रिे क ने एक दवशेष िाजवींश के महल - दकला को दवकदसत दकया औि हि वींश ने प्रदतिा
के दलए एक नया मु ख्यालय बनाने की कामना की। यहाीं तक दक एक ही िाजवींश के िाजाओीं के पास भी
यह महत्वाकाीं क्षा िी, औि उन्ें एहसास हुआ दक अगि उनके पास ऐसा किने का साधन है । प्रिे क क्रदमक
शासनकाल के साि, कुछ दवदशष्ट वािु दशल्प दवशेषताओीं को जोड़ा गया या शहिी आकारिकी में कुछ
परिवता न हुए। अक्सि, कुछ महत्वपूणा नए भवन, उिय, कुछ स्मािकीय-िाहे एक मस्िि हो या एक
मकबरा, एक महि, एक दकिे या एक दििय-टॉिर।
भाित की िाजधानी के रूप में दिल्ली की कहानी बािहवीीं शताब्दी के अींत में उत्तिी भाित के-मु स्स्लम
दवजय के साि शुरू हुई। तब से , कुछ अींतसींबींधोीं के साि, यह हि केंद्रीय िाजनीदतक प्रादधकिण की सीट
िही है ।
दिल्ली का इदिहास
दिल्ली का एक लीं बा इदतहास िहा है , औि कई साम्राज्योीं की िाजधानी के रूप में भाित का एक महत्वपूणा
िाजनीदतक केंद्र िहा है । दिल्ली के अदधकाीं श प्रािीन इदतहास का कोई रिकॉडा नहीीं है औि इसे अपने
इदतहास की खोई हुई अवदध माना जा सकता है । दिल्ली के इदतहास का व्यापक कविे ज 12 वीीं शताब्दी में
दिल्ली सल्तनत की शुरुआत के साि शुरू होता है। तब से , दिल्ली शस्िशाली साम्राज्योीं औि शस्िशाली
िाज्योीं के उत्तिादधकाि का केंद्र िहा है , जो दिल्ली को सबसे लीं बे समय तक सेवा िे ने वाली िाजधादनयोीं में
से एक है औि िु दनया के सबसे पुिाने बसे शहिोीं में से एक है ।
डे ल्ही क बहुि ही प्रदसद् शहर माना जाता है । कई बाि इसे नष्ट कि दिया गया औि पुनदनामाा ण दकया
गया, बाहिी लोगोीं के रूप में दजन्ोींने भाितीय उपमहाद्वीप पि सिलतापूवाक आक्रमण दकया, दिल्ली की
मौजूिा िाजधानी शहि में तोड़िोड़ किें गे, औि जो लोग जीतना औि िहना िाहते िे , वे शहि के
िणनीदतक थिान से प्रभादवत होींगे क्ोींदक इसे अपनी िाजधानी बनाया जाएगा औि इसका पुनदना माा ण अपने
तिीके से दकया जाएगा।
दिल्ली सल्तनत लगाताि पाीं ि िाजवींशोीं की एक श्रृींखला के दलए दिया गया नाम है , जो दिल्ली के साि
उनकी िाजधानी के रूप में भाितीय उपमहाद्वीप की प्रमु ख शस्ि के रूप में बना िहा। दिल्ली सल्तनत
का शासन 1206 में कुिु ब-उि-िीन ऐबक द्वािा थिादपत दकया गया िा। दिल्ली सल्तनत के अवशेषोीं में
कुतु ब मीनाि औि इसके आसपास के स्मािक औि तु गलकाबाि दकले शादमल हैं। इस समय के िौिान,
शहि सींस्कृदत का केंद्र बन गया। दिल्ली सल्तनि का अों ि 1526 में हुआ, जब बाबि ने पानीपत की
पहली लड़ाई में दिल्ली के अींदतम सुल्तान इब्रादहम लोिी की सेना को हिाया औि मु गल साम्राज्य का गिन
दकया।
मु गल साम्राज्य ने तीन शतास्ब्दयोीं तक इस क्षेत्र पि शासन दकया। 16वीीं शताब्दी के िौिान, शहि में
दगिावट आई क्ोींदक मु गल िाजधानी को थिानाीं तरित कि दिया गया िा। पाीं िवे मु गल बािशाह शाहजहााँ ने
दिल्ली के भीति शाहजहााँ नाबाि की िाििीवािी औि उसके स्थि ,ों िाि दकिे और िामा मष्णिि का
दनमाा ण किवाया। उनके शासनकाल को साम्राज्य का आीं िल माना जाएगा।
अपने उत्तिादधकािी औिीं गजेब की मृ िु के बाि, मु गल साम्राज्य दवद्रोह की एक श्रृींखला से त्रि िा। उन्ोींने
मिािा औि दसख साम्राज्योीं के प्रमु ख दहस्से खो दिए, औि दिल्ली को नािे ि शाह द्वािा बखाा ि औि लू ट
दलया गया। 1803 में, दब्रदटश ईस्ट इों दडया कोंपनी द्वािा दिल्ली पि कब्जा कि दलया गया िा।
भाित में कींपनी शासन के िौिान, मु गल सम्राट बहािु ि शाह दद्वतीय को केवल एक आीं कड़ा तक सीदमत
कि दिया गया िा। 1857 के िारिीय दिद्र ह ने कींपनी शासन को समाप्त किने की माीं ग की औि बहािु ि
शाह दद्वतीय को भाित का सम्राट घोदषत दकया। हालादक, अींग्रेजोीं ने जल्द ही दिल्ली औि उनके अन्य क्षे त्रोीं
को हटा दिया, औि अल्पकादलक दवद्रोह को समाप्त कि दिया। इसने भाित में प्रिक्ष दब्रदटश शासन की
शुरुआत को भी दिस्न्त दकया। 1911 में, दब्रदटश िारि की रािधानी को कलकत्ता से नई दिल्ली में
थिानाीं तरित कि दिया गया िा, जो दक दिल्ली का अींदतम आीं तरिक शहि िा, दजसे एडदवन लु दटयीं स द्वािा
दडजाइन दकया गया िा। अींग्रेजोीं से भाित की स्वतीं त्रता के बाि, नई दिल्ली भाित के नवगदित गणतीं त्र की
िाजधानी बन गई।
मुहम्मि-दबन-िु गिक ने 1327 में चौहान शहि, जहााँ पनाह का दनमाा ण दकया। इसमें मु ख्य रूप से दकला
िाय दपिौिा औि दसिी के बीि एक िीवाि का घेिा िा। वह दिल्ली के पहले औि िू सिे शहिोीं को िीवािोीं से
जोड़ना िाहते िे तादक या तो िहने वाले लोग सुिदक्षत औि सींिदक्षत महसूस कि सकें। तु गलकाबाि की
िदक्षणी पहाड़ी श्रृींखला औि जहााँ पनाह शहि के जींगल पि एक छोटे से दकले आदिलाबाि को छोड़कि िौिे
शहि के बािे में शायि ही कुछ बिा हो।
यह दििोज शाह तु गलक िा दजसने 1354 में पाोंचिें शहर दफर िाबाि का दनमाण दकया िा। इसने एक
बड़े क्षे त्र को कवि दकया दजसमें ऊींिी िीवािें िीीं दजनमें गढ़-ितु ष्कोण, खम वाले हॉल, मस्ििें , कबूति
टॉवि औि बावली िे । पूिे परिसि को अब कोटला दििोज शाह के नाम से जाना जाता है । उनके द्वािा
थिादपत एक मििसे (स्कल) के अवशेष औि दवशाल टैं क की साइट (मू ल रूप से अलाउद्दीन खलजी द्वािा
दनदमा त ले दकन उनके द्वािा पुनदनादमा त) को अब हौज खास के नाम से जाना जाता है औि हौज-वे-अलाई के
रूप में नहीीं। टैं क अब पूिी तिह से सूखा है। ले दकन हमें याि दिलाने के दलए कुछ टू टे हुए किम हैं जहाीं
यह एक समय हुआ किता िा।
दििोज शाह को इमाित बनाने में मजा आया। उसके द्वािा बनाए गए कुछ दशकाि लॉज अभी भी हैं। इनमें
से मालिा महल, भू ली-भदटयािी-का-महल औि पीि रिज पि स्थित हैं । उसने कई मष्णििें िी बनिाई।
सबसे प्रदसद्ध तीन में से एक हैं कलान मस्िि, स्खिकी मस्िि औि बेगमपुिी मस्िि।
िीन-ए-पनाह, छठे शहर, क पुराण दकिा के रूप में जाना जाता है । यह मु गल सम्राट हुमायूीं द्वािा शुरू
दकया गया िा औि 1533 के आसपास शेिशाह द्वािा पूिा दकया गया िा। यह एक आयताकाि क्षे त्र पि
बनाया गया है औि इसमें तीन प्रवेश द्वाि, ऊींिी उिी हुई िीवािें औि गढ़ हैं । शेि मीं डल, लाल पत्थि औि
सींगमिमि से बना एक दिलिस्प िो मीं दजला टॉवि है जो पुिाण दकला के भीति स्थित है जो हुमायूाँ का
पुिकालय हुआ किता िा। यह कहा जाता है दक वह पुिकालय के ििणोीं से दगि गया जब वह अजान
(प्रािा ना कॉल) का जवाब िे ने के दलए दनकला औि परिणामस्वरूप मृिु हो गई।
दकले में एक आलीशान मस्िि भा है । पुिाण दकला दिल्ली दिदड़याघि के किीब है औि यह एक लोकदप्रय
दपकदनक थिल है । शाहजहाीं नाबाि, शाहजहााँ द्वािा दनदमा त, 1638 और 1648 के बीच, पााँचिााँ मुगि
सम्राट, अों दिम और साि शहर ों में से सबसे िव्य है ।
ग्यािह वषों तक आगिा से शासन किने के बाि शाहजहााँ ने अपनी िाजधानी को दिल्ली थिानाीं तरित किने
क्ोींदक उन्ोींने आगिा की सड़कोीं को बहुत सींकिा पाया औि अपने भव्य िाज्य के जुलू सोीं के दलए
िमनकािी पाया या यह हो सकता िा क्ोींदक वह अपने दप्रय मु मताज महल की यािोीं से बिना िाहता िा।
ले दकन सबसे महत्वपूणा कािण हो सकता है क्ोींदक उसमें कलाकाि औि दबल्डि अदधक सृजन किने की
लालसा िखते िे ।
पदसिा ि स्पीयर अपने िारि के इदिहास, िॉल्यूम सस में दिखिे हैं -'शाहजहााँ एक महान कायाकािी
क्षमता का व्यस्ि िा, दजसमें उन्ोींने शानिाि औि परिष्कृत कलात्मक भावना के दलए दवशेष रूप से
वािु कला के दलए एक प्रेम जोड़ा। वह एक दवशेष अिा में : अपने दिन के वािु दनिे शक िे ।' औि इस बाि
वह न केवल एक सुींिि मकबिा बनाना िाहते िे , बस्ि एक पूिा शहि भी बनाना िाहते िे ।
शाहजहााँ ने गढ़ औि एक शाही आवासीय परिसि के साि, दिल्ली में अपनी नई िाजधानी बनाने का िैसला
दकया। 'दिल्ली प्रािीन काल से दहीं िुिान की िाजधानी िही है ,' उन्ोींने अपने सींस्मिण में दलखा है दक
उन्ोींने अपनी योजना को अींदतम रूप दिया, 'यह दिि से मु ग़ल साम्राज्य की सीट होगी। यहााँ मैं एक
शस्िशाली दकला खड़ा करू
ाँ गा जो हमािे िोिोीं की ईषाया औि हमािे िु श्मनोीं की दनिाशा होगी।'
दिल्ली का छिा शहर िीन-ए-पनाह, हुमायूाँ की िु खि मौत की ििा नाक याि दिलाता िहा। इसदलए
उसने अपना नया शहि औि दकला कहीीं औि बनाने का िैसला दकया। ले दकन वह एक नई साइट िाहते िे
दजसमें एक सुींिि परिदृश्य भी हो।
हम अब तालकटोिा औि िायसीना दहल के नाम से जानते हैं । ले दकन जब शाहजहााँ ने अपने िो सबसे खास
िाजदमस्त्ी उिाि हीिा औि उिाि हादमि को ियदनत थिल पि एक नजि डालने के दलए भे जा, तो
उन्ोींने इसे एक बाि में ही िु किा दिया। उन्ोींने िाजा को बताया दक दमटटी बहुत अदधक खदनजोीं से भिी
हुई िी, दवशेष रूप से नमक का पात्र, जो इमाितोीं को नुकसान पहुीं िाएगा। उन्ोींने सिीमगढ दकिे के
करीब यमुना निी के िादहने दकनारे पि एक खली जगह का ियन दकया, दजसे इस्लाम शाह सूिी ने
बनाया िा। उन्ोींने कहा दक वहाीं की दमटटी में कोई खदनज नहीीं िा औि दसिा दनमाा ण के दलए सही िा।
मीि-ए-लम्रत उनसे सहमत िे औि शाहजहााँ ने अपनी अींदतम स्वीकृदत िी।
उसने पूिे साम्राज्य से आदकाटे क्ट औि मजिू ि भे जे। दकले के दनमाा ण के दलए पत्थिोीं को आगिा के पास
एक जगह से लाया गया िा औि भािी गादड़योीं में दिल्ली ले जाया गया िा।गादड़योीं ने सड़कोीं को जाम कि
दिया (कुछ टै दिक जाम जैसा दक अब आपको दिल्ली में दमल जाता है ) औि सामान्य व्यापारियोीं के दलए
मु स्िलें खड़ी कि िी, दजन्ें अपने गोिाम तक पहुीं िने के दलए उम्र का इीं तजाि किना पड़ा। कभी-कभी
यह पूिी तिह से अरािकिा और भ्रम का कारण बन जाता है औि पूिे पड़ोस का परिणाम होता है । यहााँ
तक दक आगिा में अींग्रेजी कािखाने भी अपना माल तट पि नहीीं ले जा सकते िे । ले दकन लोगोीं को इससे
हाि धोना पड़ा। आस्खिकाि कोई भी सम्राट के आिे शोीं के स्खलाि नहीीं लड़ सकता िा|
नए शहि की आधािदशला 1638 में िखी गई िी। दनमााण इज्जि खान. अिाह ििी खान और मकरामि
खान की िे खिे ख में शुरू हुआ, दजसमें उिाि हादमि औि उिाि हीिा िे । मीि बकि अली खान, उस
समय के सबसे प्रदसद्ध कहानीकािोीं में से एक, हमें बयाना में काम शुरू होने के बाि जो हुआ उसका एक
दिलिस्प दवविण िे ता है । उनकी कहानी के अनुसाि, नीींव डालते ही हीिा औि हादमि िोनोीं गायब हो गए।
िोनोीं में से दकसी का कोई पता नहीीं िल सका। खबि सम्राट तक पहुीं िी जो दिींता के साि उन्मत्त िा। औि
वह उन िोनोीं से बहुत नािाज िा।
आि की दिल्ली
भाित के स्वतींत्रता दिवस (15 अगि) पि हि साल, भाित के प्रधान मींत्री लाल दकल में िाष्टरीय धवज
िहिाते हैं औि अपनी प्रिाि से िाष्टरीय प्रसािण भाषण िे ते हैं । दिल्ली का सबसे बड़ा स्मािक लाल दकला
अपने सबसे लोकदप्रय पयाटन थिलोीं में से एक है औि हि साल हजािोीं आगींतुकोीं को आकदषात किता है ।
मु गल इदतहास का वणान किने वाला एक साउीं ड एीं ड लाइट शो शाम को पयाटकोीं के आकषाण का केंद्र है ।
प्रमु ख वािु कला की दवशेषताएीं दमदश्रत स्थिदत में हैं , व्यापक जल सुदवधाएाँ सूखी हैं । कुछ इमाितें कािी
अच्छी स्थिदत में हैं , उनके सजावटी तत्व दबना ढके हुए हैं , िू सिोीं में , सोंगमरमर के फूि ों के फूि ों क
िूटेर ों द्वारा हटा दिया गया है ।
िाय घि, हालाीं दक इसकी ऐदतहादसक स्थिदत में नहीीं है , एक काम किने वाला िे ििाीं है । मस्िि औि
हमाम या सावाजदनक स्नानागाि जनता के दलए बींि हैं , हालाीं दक आगींतुक अपनी काीं ि की स्खड़दकयोीं या
सींगमिमि के लै दटसवका के माध्यम से सहकमी कि सकते हैं । वॉकवे ढह िहे हैं , औि सािा िदनक
शौचािय प्रिे श द्वार पि औि पाका के अींिि उपलब्ध हैं । लाहौिी गेट प्रवेश द्वाि एक आभू षण औि दशल्प
भीं डाि के साि एक मॉल की ओि जाता है । 20वीीं सिी के भाितीय शहीिोीं औि उनकी कहादनयोीं, एक
पुिातास्त्वक सींग्रहालय औि एक भाितीय युद्ध-स्मािक सींग्रहालय का दित्रण किते हुए 'िि दित्रोीं' का एक
सींग्रहालय भी है ।
लाल दकला िारिीय रुपये के महात्मा गाोंधी नई श्ृोंखिा के 500 के नोट के पीछे दिखाई िे ता है । अप्रैल
2018 में , डालदमया भाित समू ह ने सिकाि की 'एडॉप्ट ए हे रिटे ज' योजना के तहत पाीं ि साल की अवदधा के
दलए 25 किोड़ रुपये के अनुबींध के अनुसाि िखिखाव, दवकास औि सींिालन के दलए लाल दकले को
अपनाया। पयाटन, औि सींस्कृदत औि भाितीय पुराित्व सिे क्षण (ए.एस.आई.) के मीं त्रलयोीं के साि
समझौता ज्ञापन पि हिाक्षि दकए गए।
सोींिे के बाि, डालदमया ने दकले में प्रकाश औि ध्वदन शो का दनयींत्रण ले दलया। अनुबींध के तहत, डालदमया
को अन्य लोगोीं के अलावा, पनसािापना, भदनमाा ण, बुदनयािी सुदवधाएीं प्रिान किने , बैटिी सींिादलत कािोीं
की व्यवथिा किके दवकास में सींलि होना होगा। यह मींत्रालयोीं से मीं जूिी के बाि आगींतुकोीं को िाजा कि
सकता है , दजससे िाजस्व दकले के िखिखाव औि दवकास की ओि जाएगा। डालदमया को अनुबींध के तहत
उत्तििायी नहीीं िहिाया जाना िादहए यदि ए.एस.आई. या दिल्ली दििा किेक्टर ने स्मारक पि अपने
काम के स्खलाि िावोीं का पीछा दकया। डालदमया के ब्राीं ड को अनुबींध के तहत दृश्यता प्राप्त किना भी है
क्ोींदक दकले में घटनाओीं के िौिान बेिे जाने वाले स्मृदत दिन् औि बैनि पि इसका नाम हो सकता है।
सुरक्षाः-
आतीं कवािी हमलोीं को िोकने के दलए, भाितीय स्वतीं त्रता दिवस की पूवा सींध्या पि लाल दकले के आसपास
सुिक्षा दवशेष रूप से सख्त है । दिल्ली पुदलस औि अधासैदनक बल के अदधकािी दकले के आस-पास के
इलाकोीं पि नजि िखते हैं औि दकले के पास िाष्टरीय सुिक्षा गाडा के शापाशूटि हाई-िाइज पि तै नात दकए
जाते हैं । दकले के िािोीं ओि का हवाई क्षे त्र हवाई हमलोीं को िोकने के दलए उत्सव के िौिान एक दनदमत
नो-फ्लाई जोन है , औि आस-पास के इलाकोीं में सुिदक्षत घि मौजूि हैं , दजन पि हमले की स्थिदत में
प्रधानमीं त्री औि अन्य भाितीय नेता पीछे हट सकते हैं ।
यह दकिा 22 दिसोंबर 2000 क िश्कर-ए-िै यबा के सिस्ोीं द्वािा दकए गए एक आतीं कवािी हमले का
थिल िा। भाित-पादकिान की शाीं दत वाताा को पटिी से उतािने के प्रयास के रूप में वदणात समािाि
मीदडया में िो सैदनकोीं औि एक नागरिक की मौत हो गई िी।
िािुकिा:-
लाल दकले का क्षे त्रिल 254.67 एकड (103.06 हेक्टेयर) है , जो िक्षात्मक िीवािोीं के 2.41 दकलोमीटि
(1.50 मील) घेिे हुए है , जो दक बुजा औि गढ़ोीं से दघिा हुआ है औि निी के दकनािे की ऊींिाई 18 मीटि (59
िीट) से 33 मीटि तक है । (108 िीट) शहि की तरु। दकला अष्टकोणीय है , दजसके उत्ति-िदक्षण की धु िी
पूवा-पदिम धु िी से अदधक लीं बी है । दकले की इमाितोीं में सींगमिमि, िूलोीं की सजावट औि डबल गुींबि
बाि में मु गल वािु कला की दमसाल िे ते हैं ।
यह उच्च िि के अलीं किण को प्रिदशात किता है , औि कोदहनूि हीिा कदित तौि पि साज-सामान का
दहस्सा िा। दकले की कलाकृदत िािसी, यूिोपीय औि भाितीय कला का सींश्लेषण किती है , दजसके
परिणामस्वरूप एक अनूिी शाहजहानी शैली रूप, अदभव्यस्ि
औि िीं ग में समृ द्ध है । लाल दकला भाित के दनमाा ण परिसिोीं में से एक है जो इदतहास औि इसकी कलाओीं
की एक लीं बी अवदध को घेिता है । 1913 में राष्टरीय महत्व के स्मािक के रूप में स्मिणोत्सव शुरू होने से
पहले ही इसे उत्ति-आधु दनकता के दलए सींिदक्षत किने का प्रयास दकया गया िा।
िाह री और दिल्ली गेट िनिा द्वारा उपय ग दकए िािे थे , औि स्खजिाबाि गेट सम्राट के दलए िा।
लाहौिी गेट एक मु ख्य प्रवेश द्वाि है , जो एक गुींबििाि खिीिािी क्षे त्र की ओि जाता है , दजसे िटटा िौक
(कवि बाजाि) के रूप में जाना जाता है ।
उिर - मे हिौली भाित में दिल्ली के िदक्षण दजले में एक पड़ोस है । यह दिल्ली के दवधान सभा क्षे त्र में एक
दनवाा िन क्षे त्र का प्रदतदनदधत्व किता है। यह क्षे त्र गुड़गाीं व के किीब औि वसींत कुींज के बगल में स्थित है ।
आम आिमी पाटी के नरे श यािि महरौिी से मौजूिा दवधायक
इदिहास:-
महात्मा गाीं धी अपने उसा 27 जनविी 1948 को कुतु बुद्दीन बस्ख्तयाि काकी की ििगाह पि गए। महरौिी
उन साि प्राचीन शहर ों में से एक है जो दिल्ली की वतामान स्थिदत को बनाते हैं। महिौली एक सींस्कृत
शब्द दमदहिा-आवली से दलया गया है। यह शहि-जहाज को िशाा ता है जहााँ दवक्रमादिि के ििबाि के
जाने-माने खगोलशास्त्ी विाह-दमदहिा अपने सहायकोीं गदणतज्ञोीं औि लाल कोट दकले के साि िहते िे तीं वि
प्रमु ख जींगपाल प्रिम द्वािा लगभग 7 ई० पू० 11िी ों शिाब्दी, दजसने अपनी िाजधानी को कन्नौज से लाल
कोट में थिानाीं तरित कि दिया, तीं विोीं को 12वीीं शताब्दी में िौहानोीं द्वािा हिाया गया िा। \
पृथ्वीिाज िौहान ने दकले का औि दविाि दकया औि इसे दकला िाय दपिौिा कहा। ;वह 1192 में मोहम्मि
गोिी द्वािा पिादजत औि मािे गए, दजन्ोींने अपना सामान्य कुतु ब-उि-िीन अयबक को लगाया औि
अिगादनिान लौट आए। इसके बाि 1206 में, म हम्मि ग री की मृत्यु के बाि, कुतु बुद्दीन ने खुि को
दिल्ली के पहले सुल्तान के रूप में दवकदसत दकया। इस प्रकाि दिल्ली दिल्ली के मामलु क वींश (गुलाम
वींश) की िाजधानी बन गई, जो उत्तिी भाित पि शासन किने वाले मु स्स्लम सुल्तानोीं का पहला िाजवींश िा।
महरौिी ममिुक राििों श की रािधानी रही, दिसने 1290 िक शासन दकया। स्खलजी वींश के
िौिान, िाजधानी दसिी में थिानाीं तरित हो गई।
12वीीं शताब्दी के जैन शास्त्ोीं में , थिान को योदगदनपुिा के रूप में भी वदणात दकया गया है , जो अब कुतु ब
मीनाि परिसि के पास “योगमाया मीं दिि" की उपस्थिदत से ध्यान िे ने योग्य है , माना जाता है दक इसका
दनमाा ण पाीं डवोीं द्वािा दकया गया िा। साि ही, महान दसख सींत-सैदनक बाबा बींिा दसींह बहािु ि का शहीि
थिल भी है ।
िूग ि और िििायु :-
महिौली दिल्ली के िदक्षण दजले में 28/30/57 पर ष्णस्थि है ? एन 77/10/39° ई० इसके उत्ति में
मालवीय नगि स्थित है । वसींत कींज पदिम औि तु गलकाबाि क िाक्षण म स्ा है । दिल्ली के बाकी दहस्सोीं
की तिह. महिौली में गमी औि सदिा योीं के तापमान के बीि एक उच्च-शुष्क जलवायु है । जबदक गदमा योीं का
तापमान 46 दडग्री सेस्ल्सयस तक जा सकता है सदिा याीं के साि गमा जलवाय के दलए उपयोग दकए जाने
वाले लोगोीं को िीं ड लग सकता है।
महरौिी की दमट्टी में रे िीिे ि मट से ि मट बुनािट होती है । आबािी बढ़ने के कािण हाल ही में जल
िि 45 मीटि से 50 मीटि के बीि नीिे िला गया है।
जमाली कमाली मस्िि औि मकबिा परिसि, महिौली पुिातत्व पाका लौह िींभ िीं द्रगुप्त II द्वािा दनदमा त,
कुतु ब परिसि के भीति हालाीं दक महिौली आज दकसी भी सामान्य पड़ोस की तिह है , इसका अतीत वही है
जो इसे वािु कला की दृदष्ट से अलग किता है ।
अदहीं सा महल दिल्ली के महिौली में स्थित एक जैन मीं दिि है । मीं दिि के मु ख्य िे वता महावीि वता मान समय
के 24वें औि अींदतम तीिा कि (मानि आध्याष्णत्मक मागािशाक) हैं । यहााँ पि तीिा कि महावीि की एक
भव्य मू दता थिादपत है।
भले ही िास िाजवींश के शासन में आने के बाि िाजधानी महिौली से थिानाीं तरित हो गई ले दकन कई अन्य
िाजवींशोीं ने महिौली की वािु कला में महत्वपूणा योगिान दिया।
िािुकिा का सबसे दृश्यमान दहस्सा कुिु ब मीनार है जो प्रािीन दहीं िू औि बौद्ध मीं दििोीं बनाया गया िा,
दजसे कुतु ब उि िीन अयबक ने इल्तु तदमश औि अलाउद्दीन स्खलजी द्वािा जाट के परिवधा न के साि शुरू
दकया िा। कुतु ब परिसि आज एक यूनेस्को दवश्व धिोहि थिल के औि वादषाक कुतु ब महोत्सव का थिल भी
है । कुतु ब मीनाि से सटे मीं दििोीं के कई िींभ हैं ले दकन वे क्षदतग्रि स्थिदत में हैं । 13वीीं शताब्दी के सूिी
सींत, ख्वाजा कुतबुद्दीन बस्ख्तयाि काकी का मकबिा, कुतु ब मीनाि परिसि के पास भी स्थित है औि
वादषाक िूलवाले -की-सायि महोत्सव का आयोजन थिल भी है ।
ििगाह परिसि में बाि के मु गल सम्राटोीं, बहािु ि शाह प्रिम शाह आलम दद्वतीय औि अकबि दद्वतीय की
कलें हैं , जो एक समीप के सोंगमरमर के बाडे में है। ििगाह के बाई ओि, एक छोटी मस्िि मोती मस्िि
है , दजसे औिीं गजेब के बेटे, बहािु ि शाह प्रिम द्वािा दनजी प्रािा ना के दलए बनाया गया िा।
बिबन का मकबरा, दिल्ली सल्तनि के गुिाम िों शीय शासक का यहाीं 13 वीीं शताब्दी | में दनमाा ण
दकया गया िा, हालाीं दक इसे अब भी जीणा -शीणा अवथिा में िे खा जा सकता है ।
वािु कला की दृदष्ट से महत्वपूणा सींििना, क्ोींदक यह भाित-इस्लामी वािु कला का पहला सच्चा मे हिाब है ,
एक और मकबरा, ि दक बिबन के पुि खान शादहि का िा, दजनकी मृ िु होने से पहले उनकी मृ िु
हो गई िी, वह भी पास में ही महिौली पुिातत्व पाका में स्थित है ।
दसकोंिर ि धी के शासनकाि के िौरान 1506 में िाजो की बावली के रूप में जानी जाने वाली एक
बावली या सौते ली इमाित का दनमाा ण दकया गया िा। इसका उपयोग पानी को स्टोि किने के दलए दकया
जाता िा, हालाीं दक अब यह पूिी तिह से सूख गया है औि अब पता िल गया है ि सुखी बाओली के रूप में
(सूखा कुआाँ )।
जमाली कमली मस्िि का दनमाा ण 1528 में हुआ िा, सूिी सींत शेख हादमि दबन िजलु ल्लाह के सम्मान
में , दजसे ििवेश शेख जमाली कम्बोह दिहलवी या जलाल खान के नाम से भी जाना जाता है। उनकी मौत
पि 1536 में बना सींत का मकबिा मस्िि से सींटा हुआ है ।
अिम खान का मकबरा 1566 में उनके पालक भाई औि जनिल अिम खान की याि में सम्राट अकबि
द्वािा बनवाया गया िा। इस मकबिे को भु लभु दलयान भी कहा जाता है , क्ोींदक इसके मागा की भू लभु लैया में
कोई खो सकता है , बाि में इसका उपयोग दकया गया िा। अों ग्रेि एक दनिास, दिश्ाम गृह औि यहाीं तक
दक एक पुदलस स्टे शन के रूप में । अधम खान की कब्र के किीब, एक अन्य मु गल जनिल, मु हम्मि कुली
खान, बाि में यह मु गल ििबाि में गवनाि-जनिल के एजें ट सि िॉमस मे टकाि के दनवास के रूप में काया
दकया। 200 एकड में फैिा महरौिी पुराित्व पाका, 1997 में कुतु ब मीनाि थिल से सटा हुआ िा।
उिर - दसिी िोटा , नई दिल्ली शहि में , मीं गोलोीं के हमले से शहि की िक्षा किने के दलए, दिल्ली सल्तनत
के शासक अलाउद्दीन स्खलजी के शासन के िौिान बनाया गया िा। यह 1303 के आसपास दनदमाि
मध्ययुगीन दिल्ली के सात शहिोीं में से िू सिा िा (दजसे तु का द्वािा पहली बाि पूिी तिह से बनाया गया िा)
दजसे वता मान में केवल कछ अवशेषोीं के साि में िे खा गया है |
दसिी िोटा के पास आधु दनक ऑदडटोरियम, एदशयाई खेल गाीं व परिसि औि आवासीय औि व्यावसादयक
प्रदतिान खींडहि गााँ व मागा औि िदक्षण दिल्ली के मध्य में अदबिा माग के बीि के आधु दनक परिदृश्य को
भि िे ते हैं ।
इदिहास:-
अलाउद्दीन, खलजी वींश का सबसे प्रदसद्ध व्यस्ि है क्ोींदक उसने िदक्षणी भाित में अपना प्रभु त्व बढ़ाया
औि दिल्ली के िू सिे शहि दसिी की थिापना की। उन्ोींने भाित औि दिल्ली के मीं गोल आक्रमणोीं से बिाव
के दलए 1297 और 1307 के बीच दसरी का दनमााण दकया। जवाब में , उसने दसिी िोटा का दनमाा ण
दकया, बड़े पैमाने पि तु की लोगोीं की नकल की।
िोटा ने अपने क्षे त्र को बढ़ाने के दलए अपने अदभयानोीं के िौिान अपनी शस्ि की सीट के रूप में काया
दकया। पदिम एदशया के लगाताि मीं गोल आक्रमणोीं के कािण, सेल्जूक्स ने दिल्ली में शिण ली। दिल्ली में
इस युग के थिापि स्मािकोीं में सेल्जूक वींश के दशल्पकािोीं को श्रेय दिया जाता है ।
1303 में, मोंग ि ों के सेनापदि िागी ने दसिी दकले को घेि दलया जब भाित में मीं गोल अदभयान के िौिान
अलाउद्दीन पीछे हट गया। तारिगी दसिी दकले के दकले में प्रवेश नहीीं कि सकता िा औि अींत में वह मध्य
एदशया में अपने साम्राज्य के दलए पीछे हट गया। इसके बाि, अमर हा (1306) में अिाउद्दीन की सेना ने
मीं गोलोीं को दनणाा यक रूप से हिाया।
दसिी जो अब नई दिल्ली का एक दहस्सा है बाि में जहााँ पनाह के दकल स'S िा। दसिी को तब "िारुि
ष्णखिाफि" या 'सेिेट ऑफ कैदिफेट' के नाम से भा जा िा। दिल्ली पि आक्रमण किने वाले मीं गोल
शासक तै मिलाने ने अपने सींस्मिणा मला है . "दसिी शहि के आसपास है । इसकी इमाितें बुलींि हैं। वे पत्थि
औि ईट से बन िु गा । दघिे हए हैं . औि वे बहत मजबूत हैं -दसिी के दकले से ले कि पुिानी दिल्ली तक, जो
काका िू िी पि है -पत्थि औि सीमें ट से बनी एक मजबूत िीवाि है ।
यह दहस्सा जहााँ पनाह कहलाता है । बसे हुए शहि के बीि में स्थित है । तीन शहिोीं (पुरानी दिल्ली, दसरी
और िु गिकाबाि) के दकले में तीस गेट हैं। जहााँ पनाह में ते िह गेट हैं , दसिी के सात गेट हैं । पुिानी दिल्ली
के दकले में िस गेट हैं , कुछ खुलने वाले हैं । बाहिी औि कुछ शहि के इीं टीरियि की ओि।"
दकोंििों िी:-
अला-उि-िीन के युद्ध के कािनामोीं के अनुसाि, दसिी का नाम िोटा को दिया गया िा क्ोींदक दकले की
नीींव गींभीि दसि पि बनी हुई िी (दहों िी में 'सर' का अथा िगिग 8,000 मोंग दियाई सैदनक ों का 'दसर'
था)।
सोंरचनाः-
शाहपुि जाट गाीं व के पास दसिी िोटा इलाके में तोहिे वाला मस्िि का दृश्य। दसिी दकला दिल्ली के पास
एक पुिाने दशदवि में कुतु ब मीनाि के उत्तर-पूिा में 5 दकमी (3.1 मीि) में बनाया गया िा।
पहला शहि मु सलमानोीं द्वािा बनाया गया माना जाता है , यह एक अींडाकाि आकाि में िा; इसके खींड
वता मान में लगभग 1.7 दकमी 2 (0.7 िगा मीि) के क्षे त्र में दिखाई िे ते हैं।स्खलजी वींश के िू सिे शासक
अलाउद्दीन ने 1303 ई० में दसिी शहि की नीींव िखी। दसिी ' में दनदमात सींििनाओीं में कहा गया िा दक
वािु कला में अलाउद्दीन के गहिे दहतोीं औि आयादतत कौशल द्वािा समदिा त उनकी उपलस्ब्धयोीं के साि
स्खलजी वींश के शासकोीं (दवशेष प से , वींश के छह शासकोीं में से पहले तीन में से) के उत्साह की एक अच्छी
छाप िी।
सेल्जुक के कलाकािोीं ने नए शहि के दनमाा ण के प्रयासोीं में समृ द्ध योगिान दिया। दकविता दक अल्लाउद्दीन
की दिपुि इमारि में 70,000 श्दमक ों का िुडाि िा। शहि को महलोीं औि अन्य सींििनाओीं के साि
एक अींडाकाि योजना के साि बनाया गया िा। प्रवेश आि दवकास के दलए सात द्वाि िे , ले दकन वता मान में
केवल िदक्षण-पूवी द्वाि मौजूि है ।
दकले को कभी शहि का गौिव माना जाता िा, दजसे हजाि सुतन नामक एक हजाि भोीं में से एक माना
जाता िा। महल दकले की सीमा के बाहि बनाया गया िा, औि इसमें मिमि के िशा औि अन्य पत्थि की
सजावट िी। माना जाता है दक इसके ििवाजे (ििवाजे) को खूबसूिती से सजाया गया है । खींडहिोीं के पूवी
दहस्से में ज्वाला के आकाि की िडाइय ों के अिशेष, िीर ों के दिए िूप ह ल्स, और गढ हैं , दजन्ें वें के
अनूिे नए अदतरिि माना जाता िा।
दनकटििी शाहपुर िाट गााँि में (दचि), काि की कुछ िीणा-शीणा सोंरचनाएाँ दिखाई िे ती हैं ।
तोहिेवाला गुम्बि मस्िि (दिदत्रत) एक ऐसी सींििना है , दजसके खींडहि गुींबििाि केंद्रीय अपाटा मेंट के
रूप में दिखाई िे ते हैं औि खलजीस वािु कला की ढलान वाली िीवाि की दवशेषता है ।
दसिी, अपने नए शहि, अिा-उि-िीन क पानी की आपूदिा प्रिान किने के दलए दसिी दकले के दनमाा ण
के अलावा, इसके िािोीं ओि गढ़ औि हौज खास कॉम्प्प्लेक्स में एक जलाशय के साि पानी की आपूदता
आसपास की गदतदवदध, दजसने अपने मू ल आकाि को िोगुना कि दलया, कुतु ब मीनाि को ही जोड़ दिया
गया (टॉवि पि स्थित नागिी दशलाले ख इस मीनाि को 'दवजया िम्ब' कहते हैं ।
अिा-उि-िीन की दििय मीनार और कुिु ब मीनार के नए (मीनाि) को बड़ा (डबल) बनाने की भव्य
योजना। यह योजना आधी पूिी हो गई िी, जैसा दक 1316 में अिाउद्दीन की मृत्यु के कारण स्थि पि
खींडहिोीं से िे खा जा सकता है ।
दकले के दवनाश का श्रेय थिानीय शासकोीं को दिया जाता है दजन्ोींने अपने स्वयीं के भवनोीं के दलए दकले के
पत्थि, ईटोीं औि अन्य कलाकृदतयोीं को हटा दिया। दवशेष रूप से , पूवी भाित (दबहाि) से पश्तू न अफगान
िों श के शेरशाह सूरी (1540-1545) ने अपना शहि बनाने के दलए दसिी से सामग्री ली।
दकले की पि िीवािोीं का बाहि की तिि व्यापक आधाि िा। पि िीवािोीं के भीति एक सींिदक्षत मागा
प्रिान दकया गया िा।
उत्खनन:-
बाकी सींििनाएीं पुिातत्वदविोीं द्वािा अस्पष्टीकृत िहीीं औि जब एदशयाड 1982 के दिए एदशयाड दििे ि
कॉम्प्प्लेक्स का दनमाा ण दकया गया िा, तब उन्ें अनजाने में ििन कि दिया गया िा। एएसआई ने अब
दिसींबि 2008 से खुिाई का कायाक्रम शुरू दकया है , तादक िीवाि के कुछ दहस्सोीं का पता लगाया जा सके।
सदियोीं से दछपी हुई है जो िीवाि की पहले से खोिी गई खींडोीं के साि एक दनिीं ति दलीं क प्रिान किने वाली
पूिी िीवाि को उजागि किने में सक्षम होगी।
प्रािीन दकले के शहि के खींडहिोीं के पास, एदशयाई गाीं व परिसि, दजसे दसिी िोटा कॉम्प्प्लेक्स के रूप में
जाना जाता है , का दिकास एदशयाड 1982 (1982 एदशयाई खेि )ों खेल आयोजन के िौिान दकया गया
िा। खेलकूि के आयोजन के दलए दसिी दकले के खींडहि के आसपास की भू दम में इस परिसि का दवकास
दकया गया िा। इन इमाितोीं में टे दनस, बैडदमोंटन और बास्केटबॉि, एक ष्णस्वदमोंग पूि, एक ग ल्फ
क सा, व्यायामशािा, एर दबक्स केंद्र, िॉदगोंग टर ै क, दक्रकेट के मैिान, बडे सिागार, उच्च आिासीय
2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स, दविोध औि अिालती हिक्षेपोीं के बीि यह परिसि अब औि अदधक परिष्कृत
औि दविारित हो िहा है ।
2010 के कॉमनिे ल्थ गेम्स से पहले प्रािीन स्मािकोीं को सुशोदभत किने के रूप में , भाितीय पुिातत्व
सवेक्षण (एएसआई), दिल्ली में दविासत स्मािकोीं के सींिक्षक, ने कई सींििनाओीं की बहाली के काम शुरू
कि दिए हैं , दजसमें दसिी िोटा की िीवािें शादमल हैं। दकले की िीवािोीं के तीन दहस्सोीं के उनके मू ल्याीं कन
के अनुसाि, एदशयाड गाीं व के पास पहला खींड अच्छी हालत में है , पींिशील पाका के बगल में िू सिा खींड 50
लाख रुपये (यूएोंस + 100,000) की लागत वाले सींिक्षण कायों की आवश्यकता है औि तीसिा खींड अगले
एदशयाड गाीं व को 5 लाख रुपये (यूएस + 10,000) की लागत के सींिक्षण उपायोीं की आवश्यकता है ।
इसके अलावा, पींिशील पाका, जो दक खिाब हालत के रूप में मल्याीं दकत दकया गया है , को भी 30 लाख
रुपये (यूएस + 60,000) की लागत से पुनथिाा पना कायो के दलए पहिाना गया है।
थिान: दकला हौज खास के िदक्षणी छोि पि स्थित है औि दिल्ली से 13 दकमी (8.1 मील) िू ि है । यह िदक्षण
दिल्ली में पींिशील सड़क से स्वीकाया है । मू लिीं ि से दििाग दिल्ली होते हुए मू लिीं ि का िािा दकले के बीि
से गुजिता है । दसिी िोटा ऑदडटोरियम परिसि (िाि ऑदडटोरियम), दिल्म महोत्सव दनिे शालय द्वािा
सींिादलत दसिी िोटा क्षेत्र के भीति, भाित सिकाि की सींयुि क्षमता 2500 से अदधक है । यह नई दिल्ली में
एक प्रदतदित मनोिीं जन केंद्र है जहाीं दिल्म समािोह, नृि प्रिशान, नाटक औि सींगीत का आयोजन दकया
जाता है ।
(उिू ा किी-किी अिदिया का उच्चारण करिे हैं , 1238-3 अप्रैि 1325), दजन्ें हजित दनजामु द्दीन
औि महबूब-ए-इिाही (उिू ा सपज. भगवान के दप्रय) के रूप में भी जाना जाता है , एक सुन्नी मु स्स्लम
दवद्वान, सूिी सींत िे । दिश्ती ऑडा ि, औि भाितीय उपमहाद्वीप पि सबसे प्रदसद्ध सूदियोीं में से एक है ।
उनके पुवावती ििीिु द्दीन गींजशकि, कतबद्दीन बस्खयाि काकी औि मोडनद्दीन दिश्ती िे , जो भाितीय
उपमहाद्वीप में दिश्ती आध्यास्त्मक श्रृींखला या दसलदसला के स्वामी िे ।
दनजामु द्दीन औदलया ने अपने पूवावदता योीं की तिह प्रेम को ईश्वि को साकाि किने के साधन के रूप में बल
दिया। उसके दलए उसके ईश्वि के प्रेम ने मानवता के प्रदत प्रेम उत्पन्न दकया।
िु दनया की उनकी दृदष्ट धादमाक बहुििाि और ियािुिा के एक दवकदसत दृदष्टकोण से दिदित िी। 14वीीं
शताब्दी के इदतहासकाि दजयाउद्दीन बिनी द्वािा यह िावा दकया जाता है दक दिल्ली के मु सलमानोीं पि
उनका प्रभाव ऐसा िा दक साीं सारिक मामलोीं के प्रदत उनके दृदष्टकोण में एक प्रदतमान परिवता न प्रभादवत
हआ िा। लोगोीं का झुकाव होने लगा क िहस्वाि औि प्रािा ना की ओि औि शेष िु दनया से अलग िी।
उन्ोींने अक्सि स्वीकाि दकया दक कई उपिे श सुनने के बाि भी दहीं िुओीं को इस्लाम में कोई दिलिस्पी नहीीं
है ।
दनिामुद्दीन औदिया का िन्म बिायूाँ , उत्तर प्रिे श में हुआ िा (इसके अलावा, विु अन के रूप में जाना
जाता है , यह पदिमी उत्ति प्रिे श, के केंद्र में गींगा निी के पास स्थित है )। अपने दपता, सैयि अब्दु ल्ला दबन
अहमि अलहुसैनी बिायुनी की मृ िु के बाि पााँ ि वषा की आयु में , वह अपनी मााँ बीबी जुलेखा के साि
दिल्ली आए। उनकी जीवनी में मुगि सम्राट अकबर के िािू गर, अबू-फिि इब्न मुबारक द्वािा दलस्खत
16वीीं शताब्दी के ििावेज ऐन-ए-अकबिी का उल्लेख है ।
बीस वषा की आयु में , दनजामु द्दीन अजोधन (पादकिान में वता मान पाकपट्टन शिीि) गए औि सूफी सोंि
फरीिु द्दीन गोंिशकर के दशष्य बन गए, दजन्ें आमतौि पि बाबा ििीि के नाम से जाना जाता है ।
दनजामु द्दीन ने अजोधन में दनवास नहीीं दकया, ले दकन दिल्ली में अपने धादमा क अध्ययनोीं के साि-साि सूिी
भस्ि प्रिाओीं औि दनधाा रित मु किमोीं को शुरू किते हुए जािी िखा। बाबा ििीि की उपस्थिदत में िमजान
का महीना दबताने के दलए वह हि साल अजोधन जाते िे। यह अजोधन की तीसिी यात्रा पि िा दक बाबा
ििीि ने उन्ें अपना उत्तिादधकािी बनाया। उसके कुछ समय बाि, जब दनजामु द्दीन दिल्ली लौटा, तो उसे
खबि दमली दक बाबा ििीि की मृ िु हो गई है ।
दनजामु द्दीन दिल्ली के दवदभन्न थिानोीं पि िहता िा, अींततः शहि के जीवन के शोि औि ऊहापोह से घबिाए
दिल्ली के पड़ोस दघयासपुि में बसने से पहले में बस गए। उन्ोींने यहाीं अपना खानकाह बनवाया, एक ऐसा
थिान जहााँ सभी क्षे त्रोीं के लोगोीं को भोजन किाया जाता िा, जहााँ उन्ोींने िू सिोीं को आध्यास्त्मक दशक्षा प्रिान
की िी औि उनका अपना क्वाटा ि िा। लीं बे समय से पहले , खानकाह अमीि औि गिीब सभी प्रकाि के लोगोीं
के दलए एक जगह बन गया।
प्रमुख दिश्वासः-
इस जीवन के भीति ईश्वि को गले लगाने के पािीं परिक सूिी दविािोीं पि दवश्वास किने के अलावा (जैसा दक
वह इस दविाि के दविोधी िे दक ईश्वि के साि ऐसा आीं दशक दवलय मृ िु के बाि ही सींभव है ) , अहीं काि को
नष्ट किके औि आत्मा को दनमा ल किके, औि यह दक यह कािी सींभव है सूिी प्रिाओीं को शादमल किने
के प्रयासोीं में , दनिामुद्दीन ने िारि में दचश्ती सूफी आिे श के दपछले सींतोीं द्वािा पेश की गई अनूिी
दवशेषताओीं का भी दविाि औि अभ्यास दकया। इनमें शादमल हैं :-
जरूितमीं िोीं की मिि किना, भू खे को खाना स्खलाना औि शोदपतोीं के प्रदत सहानुभूदत िखना।
सुल्तानोीं, िाजकुमािोीं औि िईसोीं के साि घुलने -दमलने की प्रबल अस्वीकृदत।
सेमा के पक्ष में एक साहदसक रुख, दजसे कुछ लोग असामादजक मानते िे । शायि यह इस दृदष्टकोण
के साि िा दक यह दहीं िू पूजा के कुछ तिीकोीं में सींगीत की भू दमका के अनुरूप िा, थिानीय लोगोीं के
साि सींपका के आधाि के रूप में काम कि सकता िा औि िोनोीं समु िायोीं के बीि आपसी समायोजन
की सुदवधा प्रिान किे गा।
वािव में , कव्वाली, भस्ि सींगीत का एक रूप है , जो मूल रूप से उनके सबसे पोदषत दशष्योीं में से एक
अमीि खुसिो द्वािा बनाया गया िा।
उिर - तु गलकाबाि का दकला दिल्ली का एक खींडहि दकला है , दजसे 1321 में दिल्ली सल्तनत ऑि
इीं दडया के सींथिापक तु गलक वींश के सींथिापक दघयास-उि-िीन तु गलक ने बनवाया िा. क्ोींदक उन्ोींने
िू षण की थिापना की िी दिल्ली का तजी ऐदिहादसक शहर, दिसे बाि में 1327 में छोड़ दिया गया िा।
यह अपना नाम पास के तु गलकाबाि आवासीय-वादणस्ज्यक क्षे त्र के साि-साि तु गलकाबाि इीं स्टीट्यू शनल
एरिया में उधाि िे ता है । िु गिक ने कुिु ब-बिरपुर िोड भी बनाया, जो नए शहि को ग्रैंड टर ीं क िोड से
जोड़ता िा।
सड़क को अब गली-बििपुि िोड के नाम से जाना जाता है । दकले के दलए प्रवेश शुि भाितीयोीं के दलए
20/- है । इसके अलावा, पास में डॉ० किणी दसींह शदटीं ग िें ज औि ओखला औद्योदगक क्षे त्र
सरिस्का टाइगि रिजवा से दिल्ली तक िैले उत्तिी अिावली तें िुए वन्यजीव गदलयािे के भीति आसपास एक
महत्वपूणा जैव दवदवधता क्षे त्र है । अभयािण्य के िािोीं ओि ऐदतहादसक थिान बडखल झील (6 दकमी उत्ति
पूवा), 10वीीं सिी के प्रािीन सूरिकोंु ड ििाशय और अनों गपुर बाोंध, िमिमा झीि, िु गिकाबाि दकिा
और आदििाबाि खोंडहर (िोनोीं दिल्ली में ) हैं। यह ििीिाबाि के पाली-धु ज-कोट गाीं वोीं, पदवत्र मीं गि बानी
औि असोला भट्टी वन्यजीव अभयािण्य में मौसमी झिनोीं के दलए सदन्नदहत है । दिल्ली रिज के वनाच्छादित
पहाड़ी क्षे त्र में परििि खुली गडढोीं की खानोीं में कई िजान झीलें हैं ।
इदिहास:-
गािी मदिक दिल्ली, िारि के ष्णखििी शासक ों के सामोंि थे । एक बाि अपने स्खलजी गुरु के साि
टहलने के िौिान, गाजी मदलक ने सुझाव दिया दक िाजा दिल्ली के िदक्षणी दहस्से में एक पहाड़ी पि एक
दकले का दनमाा ण किें । िाजा ने गाजी मदलक का मजाक उड़ाते हुए खुि को दकले का दनमाा ण किने के दलए
कहा जब वह िाजा बन जाएगा।
उद्धिण के अनुसाि 1321 में, गािी मदिक ने खष्णज्जय ों क दनकाि दिया और िु गिक िों श की
शुरुआत किते हुए दघया-उि-िीन तु गलक की उपादध धािण की। उन्ोींने तु िींत अपने समिा शहि का
दनमाा ण शुरू कि दिया, दजसे उन्ोींने मीं गोल अभद्र लोगोीं से िू ि िखने के दलए अभे द्य, दिि भी सुींिि दकले
के रूप में िे खा िा। हालाीं दक, दनयदत वैसी नहीीं होगी जैसी उसे पसींि िी।
दघयास-उि-िीन को आमतौि पि एक उिाि शासक के रूप में माना जाता है । हालाीं दक, वह अपने सपनोीं
के दकले के बािे में इतना भावुक िा दक उसने एक आिे श जािी दकया दक दिल्ली के सभी मजिू िोीं को
अपने दकले पि काम किना होगा। सींत दनजामु द्दीन औदलया, एक सूिी िकीि, उनकी बाओली (कुएीं ) पि
काम किने से िोक दिया गया। सूिी सींत औि शाही सम्राट के बीि टकिाव भाित में एक दकींविीं ती बन
गया है । सींत ने एक शाप दिया िा जो आज तक पूिे इदतहास में गूींजता है ।
शासक की मृ त्युः-
सींत के शापोीं में से एक हनुज दिली िु ि अथि (दिल्ली अभी भी िू ि है )। सम्राट इस समय बींगाल में एक
अदभयान में तल्लीन िे। वह सिल िा औि दिल्ली के िािे में िा। हालाीं दक, उनके बेटे, मुहम्मि दबन
िु गिक ने उनसे उत्ति प्रिे श के कािागाि में मु लाकात की। िाजकुमाि के आिे शोीं के अनुसाि, एक
शदमयाना (तम्बू) सम्राट पि दगि गया, औि उन्ें मौत के घाट उताि दिया गया (1324)।
'दगयास उि-िीन तु गलक का मकबिा' दकलबा के िदक्षणी िौकी के दलए एक मागा से जुड़ा हुआ है । 27
िीट की ऊाँिाई वाले 600 िुट लम्बे इस एलीवेटेड वकावे को एक पूवा कृदत्रम झील की ओि ले जाया जाता
है . हालाीं दक 20वीीं सिी में कुछ समय के दलए मे हिौली-बििपुि िोड के िािे को तोड़ दिया गया िा। एक
पुिाने पीपल के पेड़ के पास से गुजिने के बाि, दगयास उि-िीन तु गलक के मकबिे का परिसि ऊींिे प्रवेश
द्वाि से लाल बलु आ पत्थि से बना है , दजसमें किमोीं की उड़ान भिी गई है ।
वािदवक मकबिे को एकल-गुींबििाि वगाा काि मकबिे (लगभग 8 मीटि x 8 मी) को ढलान वाली िीवािोीं
के साि बनाया गया है । ग्रेनाइट से बनी दकिेबोंिी की िीिार ों के दवपिीत, मकबिे के दकनािोीं का सामना
दिकनी लाल बलु आ पत्थि से दकया गया है औि सींगमिमि से खुिे हुए पैनलोीं औि मे हिाब सीमाओीं के साि
जुड़ा हुआ है । एदडिस एक अष्टकोणीय डर म पि आिाम किने वाले सुरुदिपूणा गुींबि के ऊपि स्थित है , जो
सींगमिमि औि स्लेट के सिेि स्लैब से ढीं का है।
आदकाटे क्चरः-
तु गलकाबाि में अभी भी उल्लेखनीय, बड़े पैमाने पि पत्थि के दकले हैं जो शहि की अदनयदमत जमीन को
घेिे हुए हैं । ढलानिाि मलबे से भिी शहि की िीवािें िु गिक िों श के स्मारक ों की एक दिदशष्ट दिशेषिा,
10 से 15 मीटि ऊींिी हैं . यद्धित पैिापेट द्वािा सबसे ऊपि है औि िो कहादनयोीं की ऊींिाई तक के परिपत्र
गढ़ोीं द्वािा मजबत दकया गया है । माना जाता है दक यह शहि कभी 52 गेट हुआ किता िा, दजसमें से आज
के 13 ही बिे हैं । गढ़वाले शहि में सात िे न वाटि टैं क िे ।
1. ‘इसके द्वाि के बीि एक आयताकाि दग्रड के साि बने घिोीं के साि व्यापक शहि क्षे त्र
2. अपने उच्चतम दबींिु पि एक टॉवि के साि गढ़ दजसे दबजाई-मीं डल के रूप में जाना जाता है औि कई
आज शहि का अदधकाीं श भाग घने काीं टेिाि वनस्पदतयोीं के कािण िु गाम है । पूवा शहि क्षे त्र का एक बढ़ता
हुआ दहस्सा आधु दनक बिी द्वािा कब्जा कि दलया गया है , दवशेष रूप से इसकी झीलोीं के आसपास के क्षेत्र
में ।
तु गलकाबाि का िदक्षण दगयास उि-िीन तु गलक के मकबरे के दकिेबोंि िौकी के भीति एक दवशाल
कृदत्रम जल भीं डाि िा। यह अच्छी तिह से सींिदक्षत मकबिा दकले से जड़ा हा है , जो एक ऊींिे थिान पि है
जो आज भी खड़ा है ।
िदक्षण पूवा में अच्छी तिह से दिखाई िे ने वाले के अवशेष हैं आदििाबाि का दकिा दगयास उि-िीन
िु गिक के उत्तरादधकारी मुहम्मि िु गिक (1325-1351) द्वािा वषों बाि बनाया गया जो तु गलकाबाि
दकले के साि दनमाा ण की मु ख्य दवशेषताओीं को साझा किता है ।
उत्तर- दििोज शाह कोटला या कोटला सुल्तान दििोजाशाह तु गलक द्वािा बनाया गया एक दकला िा, दजसे
दििोजाबाि कहा जाता िा। तीसिी शताब्दी ईसा पूवा से एक प्रािीन पॉदिश सैंडस्ट न ट परा अश कन
िीं भ महल के ढहते अवशेषोीं से उगता है , जो मौया सम्राट द्वािा छोड़े गए अशोक के कई िीं भोीं में से एक
है , इसे हरियाणा सल्तनत के दििोज शाह तु गलक के आिे श के तहत हरियाणा में यमु नानगि दजले के पौींग
घाटी में टोपिा कलाीं से दिल्ली ले जाया गया औि 1356 में इसके वता मान थिान पि दिि से खड़ा दकया
गया।
ओदबदलस्क पि मू ल दशलाले ख मु ख्य रूप से ब्राह्मी दलदप में है ले दकन भाषा कुछ पाली औि सींस्कृत बाि में
जोड़ा गया, प्राकृत िा। 1837 में जेम्स दप्रींसेप द्वािा दशलाले ख का सलतापूवाक अनुवाि दकया गया िा। इस
औि अन्य प्रािीन िट ों (िोंि ,ों ओदबदिस्क) ने दििोज शाह तु गलक औि दिल्ली सल्तनत को अपने
वािु सींिक्षण के दलए कुछ प्रदसस्द्ध अदजात की है । अशोकन िीं भ के अलावा, दकला परिसि में जमी
मस्िि (मस्िि), एक बावली औि एक बड़ा उद्यान परिसि भी है ।
इदिहासः-
दिल्ली के सुल्तान दफर ि शाह िु गिक (1351/1388) ने दिल्ली सल्तनत की नई िाजधानी के रूप में
1354 में दििोजाबाि के गढ़ वाले शहि की थिापना की औि इसमें वता मान दििोज शाह कोटला का थिान
भी शादमल िा। कोटला का शास्ब्दक अिा है दकला या गढ़। इसमें एक िीं भ है , दजसे ओदबदलस्क या लाट
भी कहा जाता है , एक अशोक िम्भ है , दजसका श्रेय मौया शासक अशोक को दिया जाता है ।
तीसिी शताब्दी ईसा पूवा से पॉदलश दकए गए बलु आ पत्थि औि डे दटीं ग से बना 13.1 मीटर ऊोंचा िोंि, 14
िी ों शिाब्दी में दफर ि शाह के आिे श के तहत अींबाला से लाया गया िा। यह सल्तनत के दकले के अींिि,
एक मस्िि के पास एक दत्रििीय मे हिाबिाि मीं डप पि थिादपत दकया गया िा। इसके बाि की
शतास्ब्दयोीं में , इसके दनकट की सींििना औि इमाितोीं को नष्ट कि दिया गया क्ोींदक बाि के शासकोीं ने
इन्ें नष्ट कि दिया औि दनमाा ण सामग्री के रूप में स्पोदलया का पुनः उपयोग दकया।
स्वतीं त्रता-पूवा युग में , िाजधानी में सभागािोीं की कमी के कािण, यहाीं या कुतु ब परिसि में अदधकाीं श
शास्त्ीय सींगीत प्रिशान दकए गए िे । बाि में , एनएसडी के प्रमु ख अब्रादहम अलकाजी ने यहाीं धािमवीि
भािती के अींधा युग के ऐदतहादसक उत्पािन का मीं िन दकया औि 1964 में इसका प्रीदमयर प्रधानमोंिी
जवाहिलाल नेहरू ने दकया िा।
उत्तर - लाल दकला भाित में दिल्ली शहि का एक ऐदतहादसक दकला है । भाित के स्वतीं त्रता दिवस (15
अगि) पि हि साल, प्रधानमीं त्री दकले के मु ख्य द्वाि पि भाितीय 'दिरों गा झोंडा' िहिाते हैं औि अपनी
प्रािीि से िाष्टरीय प्रसािण भाषण िे ते हैं ।
15 अगि 1947 क , िारि के पहिे प्रधान मोंिी ििाहरिाि ने हरू ने लाहौि गेट के ऊपि भाितीय
िाष्टरीय ध्वज उिाया। प्रिे क बाि के स्वतीं त्रता दिवस पि, पीआि पउम मीं त्री ने झींडा उिाया है औि एक
भाषण दिया है जो िाष्टरीय िि पि प्रसारित होता है
इदतहास: पाीं िवें मु गल बािशाह शाहजहााँ द्वािा 1639 में अपनी दकले बींि िाजधानी शाहजहानाबाि के
महल के रूप में दनदमा त, लाल दकले को लाल बलु आ पत्थि की दवशाल िीवािोीं के दलए नादमत दकया गया है
औि यह 1546 ईस्वी में इिाम शाह सूिी द्वािा दनदमा त पुिाने सलीम दकले के दनकट है । शाही अपाटा मेंट
में मीं डप की एक पींस्ि होती है , दजसे जल धािा द्वािा स्वगा की धािा (नाहर-ए-दबदहश्त) के रूप में जाना
ििनात्मकता के क्षे त्र का प्रदतदनदधत्व किने के दलए माना जाता है , हालाीं दक महल को इस्लादमक प्रोटोटाइप
के अनसाि योजनाबद्ध दकया गया िा, प्रिे क मीं डप में मु गल इमाितोीं के दवदशष्ट तत्व शादमल हैं जो िािसी,
तै मूि औि दहीं िू के सींलयन को िशाा ते हैं । लाल दकले की नवीन थिापि शैली, दजसमें इसकी उद्यान
दडजाइन शादमल है , दिल्ली, रािस्थान, पोंिाब, कश्मीर, ब्रि, र दहिखोंड और अन्य िगह ों पि बाि
की इमाितोीं औि उद्यानोीं को प्रभादवत दकया।
1747 में नादिि शाह के मु गल साम्राज्य पि आक्रमण के िौिान दकले को अपनी कलाकृदत औि आभू षणोीं
से लू टा गया िा। बाि में 1857 के दिद्र ह के बाि दकिे की अदधकाीं श कीमती सींगमिमि सींििनाएीं
अींग्रेजोीं द्वािा नष्ट कि िी गई। दकले की िक्षात्मक िीवािोीं को कािी हि तक बख्शा गया िा, औि दकले को
बाि में एक गैिीसन के रूप में इिे माल दकया गया िा। लाल दकला वह थिल भी िा, जहााँ अींग्रेजोीं ने अींदतम
मु गल सम्राट को 1858 में यींगून जाने से पहले मु किमे में डाल दिया िा।
इसे 2007 में लाल दकला परिसि के दहस्से के रूप में एक यूनेस्को दवश्व दविासत थिल नादमत दकया गया
िा।
सम्राट शाहिहााँ ने 12 मई 1638 को लाल दकले का दनमाा ण शुरू दकया, जब उन्ोींने अपनी िाजधानी को
आगिा से दिल्ली थिानाीं तरित किने का िैसला दकया। मू ल रूप से लाल औि सिेि, शाहजहााँ के पसींिीिा
िीं ग, इसके दडजाइन का श्रेय वािु काि उिाि अहमि औिी को दिया जाता है , दजन्ोींने ताज महल का
दनमाा ण भी दकया िा। यह दकला यमु ना पीके दकनािे स्थित है , दजसने अदधकाीं श िीवािोीं के आसपास के
खींिोीं को स्खलाया िा। मोहिा म के पदवत्र महीने में दनमााण 13 मई 1638 को शुरू हुआ।
शाहिहााँ द्वारा पयािेक्षण दकया गया यह 6 अप्रैि 1648 को पूिा हुआ। अन्य मु गल दकलोीं के दवपिीत,
लाल दकले की सीमा की िीवािें पुिाने सादलमगढ़ दकले को समादहत किने के दलए दवषम हैं । यह दकला-
महल मध्ययुगीन शहि शाहजहााँ नाबाि का केंद्र दबींिु िा, जो वता मान में पुिानी दिल्ली है । इसकी योजना
औि सौींियाशास्त् शाहजहााँ के शासनकाल के िौिान प्रिदलत मु गल ििनात्मकता के क्षेत्र का प्रदतदनदधत्व
किते हैं । उनके उत्तिादधकािी औिीं गजेब ने पला मस्िि को सम्राट के दनजी क्वाटा ि में जोडा, महल के प्रवेश
द्वाि को औि अदधक बनाने के दलए िो मु ख्य द्वाि के सामने बबािीक का दनमाा ण दकया।
मु गल िाजवींश की प्रशासदनक औि िाजकोषीय सींििना औिीं गजेब के बाि घट गई, औि 18वीीं शताब्दी में
महल का अध: पतन हुआ। 1712 में िब िहों िर शाह ने लाल दकला सींभाला, तो यह 30 साल तक दबना
सम्राट के िहा। अपने शासन की शुरुआत के एक साल के भीति, शाह की हिा कि िी गई औि उसकी
जगह िरुाखदसयि को ले दलया गया। पैसे जुटाने के दलए, इस अवदध के िौिान िीं ग महल की िाीं िी की छत
को ताीं बे से बिल दिया गया िा। मु हम्मि शाह, कला में रुदि के दलए 'िीं गीला' (िीं गीन) के रूप में जाना जाता
है , 1719 में लाल दकले पि कब्जा कि दलया।
1739 में, फारसी सम्राट नादिर शाह ने मुगि सेना को आसानी से हिाया, लाल दकले को लूट दलया,
दजसमें मयूि दसींहासन भी शादमल िा। नादिर ' शाह तीन महीने के बाि िािस लौट आया, एक नष्ट शहि
औि मु हम्मि शाह को एक कमजोि मु गल साम्राज्य छोड़ दिया। 1752 मु गल साम्राज्य की आीं तरिक
कमजोिी ने मु गलोीं को दिल्ली का शीषाक बना दिया, औि सींदध ने मिािोीं की िक्षा की। दिल्ली में दसींहासन
के दलए।
1758 में िाहौर और पेशािर की मराठा दवजय ने उन्ें अहमि शाह िु िाा नी के साि सींघषा में िखा।
1760 में , मिािोीं ने अहमि शाह िु िाा नी की सेनाओीं से दिल्ली की िक्षा के दलए धन जुटाने के दलए िीवान-
ए-खास की िाीं िी की छत को हटा दिया। 1761 में, मराठ ों ने पानीपि की तीसिी लड़ाई हािने के बाि,
अहमि शाह िु िाा नी द्वािा दिल्ली पि छापा मािा गया िा। िस साल बाि, शाह आलम ने मिािा समिा न के
साि दिल्ली में िाजगद्दी हादसल की। बघेल दसींह धालीवाल के नेतृत्व में दसख दमसल किोिदसींदहया ने दिल्ली
पि जीत िजा की औि लाल िीं ग को सींक्षेप में जीत दलया।
1788 में, एक मराठा ने लाल दकले औि दिल्ली पि थिायी रूप से कब्जा कि दलया औि 1802 में दद्वतीय
आीं ग्ल-मिािा युद्ध के बाि दब्रदटश ईस्ट इीं दडया कींपनी द्वािा उन्ें अपिथि दकए जाने तक अगले िो िशकोीं
तक उत्ति भाित पि शासन दकया।
1803 में दद्विीय एों ग्ल -मराठा युद्ध के िौिान, दब्रदटश ईस्ट इीं दडया कींपनी की सेना ने दिल्ली की लड़ाई में
मिािा सेना को हिाया, इससे शहि का मिािा शासन औि लाल दकले का दनयींत्रण समाप्त हो गया।
तनसम, लड़ाई के बाि, अींग्रेजोीं ने मु गल क्षेत्रोीं के प्रशासन को सींभाला औि लाल दकले में एक िे दजडें ट
थिादपत दकया। दकले पि कब्जा किने के दलए अींदतम मुगल सम्राट, बहािु ि शाह दद्वतीय, अींग्रेजोीं के
स्खलाि 1857 के दवद्रोह का प्रतीक बन गया। दजसमें शाहजहााँ बाि के दनवादसयोीं ने भाग दलया।
मु गल सत्ता की सीट औि इसकी िक्षात्मक क्षमताओीं के रूप में इसकी स्थिदत के बावजूि , लाल दकले का
बिाव नहीीं दकया गया िा। अींग्रेजोीं के स्खलाि 1857 के दिद्र ह दिफि होने के बाि, बहािु ि शाह दद्वतीय
ने 17 दसिों बर क दकिे को छोड़ दिया औि दब्रदटश बलोीं द्वािा दगिफ्ताि दकया गया िा। बहािु ि शाह
जिि दब्रदटश दकले के कैिी के रूप में लाल दकले में लौट आया, 1858 में कोदशश की गई औि उसी वषा
7 अक्टू बि को िीं गून में दनवाा दसत कि दिया गया।
मीं जूिी िे िी। सभी िनीििोीं को हटा दिया गया िा या नष्ट कि दिया गया िा, हरम अपाटा मेंट, नौकर ों के
क्वाटा र औि बगीिे नष्ट हो गए, औि पत्थि की एक बैिक बन गई। शाही बाड़े में पूवा की ओि केवल
सींगमिमि की इमाितें पूणा दवनाश से बि गई, ले दकन उन्ें लूट दलया गया औि क्षदतग्रि कि दिया गया।
जबदक िक्षात्मक िीवािें औि टॉवि अपेक्षाकृत अशि िे , अींग्रेजोीं द्वािा िो दतहाई से अदधक आीं तरिक
सींििनाओीं को नष्ट कि दिया गया िा। 1899 से 1905 तक भाित के वायसिाय लॉडा कजान ने दकले की
मिम्मत किने का आिे श दिया, दजसमें िीवािोीं का पुनदनामाा ण औि पानी की व्यवथिा के साि बगीिोीं की
बहाली शादमल िी।
लाल दकले के अदधकाीं श गहने औि कलाकदतयाीं 1747 के नादिर शाह का ' के िौिान औि दिि अींग्रेजोीं
के स्खलाि 1857 के असिल भाितीय दवद्रोह क बाि का िोिी हो गई। अींतत: उन्ें दनजी सींग्राहकोीं या
दब्रदटश सोंग्रहािय, दब्रदटश िाइब्ररा मार दिक्ट ररया एों ड अल्बटा सोंग्रहािय को बेि दिया गया।
उिाहिण के दलए, कोह-ए-नूि हा शाहजहााँ का जेड वाइन कप औि बहािु ि शाह दद्वतीय का मु कुट सभी
वता मान म लिान स्थित हैं । दब्रदटश सिकाि द्वािा अब तक बहाली के दवदभन्न अनुिोधोीं को अस्वीकाि कि
दिया गया है
1911 में दिल्ली िरबार के दलए दब्रदटश िाजा औि िानी की यात्रा िे खी गई। यात्रा की तै यािी में , कुछ
इमाितोीं को बहाल दकया गया िा। लाल दकला पुिातत्व सींग्रहालय भी डर म हाउस से ममताज महल में
थिानाीं तरित दकया गया िा।
INA पिीक्षण, दजसे लाल दकला पिीक्षण के रूप में भी जाना जाता है , भाितीय िाष्टरीय सेना के कई
अदधकारियोीं के कोटा -माशाल का उल्लेख किता है। पहला नवींबि औि दिसींबि 1945 के बीि लाल दकले में
आयोदजत दकया गया िा।
15 अगि 1947 क , भाित के पहले प्रधान मीं त्री जवाहिलाल नेहरू ने लाहौि गेट के ऊपि भाितीय
िाष्टरीय ध्वज उिाया। प्रिे क बाि के स्वतीं त्रता दिवस पि, प्रधान मीं त्री ने झींडा उिाया औि एक भाषण दिया
जो िाष्टरीय िि पि प्रसारित होता है ।
प्रश्न - शाहिहानाबाि के दसटीस्केप में मुगि इों पीररयि पािर का प्रदिदबोंब क्या है ?
उत्तर - शाही रािधानी शाहिहााँनाबाि मुगि सम्राट शाहिहााँ (1628- 58) द्वारा 1639 और 1648
के बीि बनाया गया िा औि यह दिल्ली दत्रकोण के िदक्षण-पूवी भागोीं में यमु ना निी के दकनािे एक बड़े क्षेत्र
में िैला िा। उत्ति भाित के महान जलोढ़ मै िानी इलाकोीं में अिावली पवातमाला के बाहिी इलाके दिल्ली
रिज में अपने टदमा नल दबींिु हैं , जो जमु ना निी के कटाव से शहि को प्राकृदतक सुिक्षा प्रिान किते हैं ।
इस प्रकाि, कमाीं दडीं ग पिोीं के दलए ऊींिाइयोीं, पत्थि-खिानोीं के दलए िटटानें , औि पानी की आपूदता के दलए
निी ऐसे कािक िे दजन्ें शाहजहााँ को अपनी िाजधानी शहि के दनमाा ण के दलए आकदषात किना िादहए िा
जो दक वािव में शेिशाह औि दििोज शाह के शहिोीं को ओविलै प किते िे । दिल्ली के ियन के अन्य
कािण िे दक इसने शाही शहि के रूप में ख्यादत प्राप्त की औि लगभग तीन सौ वषों तक मु स्स्लम शासकोीं
की िाजधानी के रूप में काया दकया। इसने धादमा क केंद्र के रूप में पदवत्रता की एक आभा भी प्राप्त की।
यह दसद्धाीं त स्टीफन पी० ब्लेक द्वािा प्रिारित दकया गया िा। उनके अनुसाि कई अन्य िाजधानी शहिोीं
जैसे दक इताम्बुल, इस्फहान, टोक्ो औि पीदकींग के रूप में , शाहजहानाबाि भी सींप्रभु शहि के मॉडल का
'अनुकिणीय' िा। सींप्रभु शहि, ब्ले क ऑदपन, 'िे शभि - नौकिशाही साम्राज्य की िाजधानी, एक प्रकाि
का िाज्य िा, जो एदशयाई साम्राज्य ों की दिशेषिा िगिग 1400 से 1750 तक िा। िे शभि-
नौकिशाही सम्राट शहि के सामादजक, आदिा क औि साींस्कृदतक जीवन पि हावी िा औि वह इसके दनदमा त
रूप पि भी हावी िहा।
ब्ले क आगे बताते हैं दक माइक्र -पररप्रेक्ष् से सोंप्रिु शहर एक व्यापक रूप से दविारित दपतृ सत्तात्मक
घि िा, औि सत्ता का केंद्र शाही महल में िा। शहि इमाितोीं के बगीिोीं के ले आउट के रूप में शाही हवेली
का दविाि िा, औि शहि की िु कानोीं ने महल परिसि के भीति इमाितोीं के ले आउट की नकल की। इसी
तिह शहि में उत्पािन औि दवदनमय के सींगिन, बड़े औि बड़े , उसी प्रणाली का अनुसिण किते िे जैसा
दक महल-दकले में प्रिदलत िा। शहि के दनवादसयोीं के सामादजक सींपका के सींबींध में भी शाही महल ने
मॉडल दनधाा रित दकया। मै क्रो-परिप्रेक्ष्य से सींप्रभु शहि लघु में िाज्य िा।
सम्राट का इिािा िा दक शष्णि आज्ञाकाररिा, सोंसाधन ों और प्रिाि के सींबींध में शहि की उसकी कमान
उस प्रभाव की प्रतीकात्मक होनी िादहए, दजसे उसने औि उसके अधीनथिोीं ने साम्राज्य पि प्रयोग दकया
िा।
ब्ले क िाज्योीं में सींप्रभु शहिोीं में समाज की सींििना, शाही महल में प्रिदलत पैटना का भी पालन किती है ।
सम्राट औि उसके रईस ों के बीच एक पैटना -क्लाइों ट सींबींध िा, दिि िईसोीं औि उनके घि के सिस्ोीं के
बीि एक दवशाल दविृत परिवाि में शहि को बाध्य दकया।
महल के दकले के िै दनक अनुिानोीं में इन सींबींधोीं की समीक्षा की गई औि उन्ें मजबूत दकया गया।
साोंस्कृदिक िीिन ने सम्राट ,ों रािकुमार ों और महान रईस ों के घिोीं का भी िक्ि लगाया. जो दवदभन्न
कलाकृदतयोीं में पािीं गत िे , औि उन्ोींने कला औि दशल्प, सादहि, दित्रकला, सींगीत औि वािु कला को
सींिक्षण प्रिान दकया।
ये दवशेषताएीं शाहजहानाबाि में मौजूि िीीं, औि शहि ने मु गल सम्राट की शस्ि को प्रदतदबींदबत दकया, या
दकतना शहि के दनवादसयोीं पि अभ्यास किने वाले शासक को प्रभादवत किना दवद्वानोीं के बीि ििाा का
दवषय है । यह इीं दगत कि सकता है दक मु गल भाित के महान शहिोीं में महज रियासत नहीीं िी क्ोींदक मै क्स
वेबि ने फ्ाीं सीसी यात्री बदनायि के खाते के आधाि पि कल्पना की िी। इसके बिले में उनके पास खुि का
एक तका औि सींििना िी। कुछ दसद्धाीं त िे दजन्ोींने उनके दनमाा ण को दनिे दशत दकया जो दवदभन्न तिीकोीं से
शासक की शस्ि को प्रकट किता िा
पूोंिी उसकी शष्णि और धन के प्रतीक के रूप में खड़ी िी। शाहिहानाबाि की य िना, दनस्सोंिेह,
शासक की शस्ि को मध्ययुगीन भाित के कई अन्य शहिोीं के रूप में िशाा ती है , ले दकन इसमें कुछ
दवदशष्ट दवशेषताएीं भी िीीं जो कई मामलोीं में एक स्वतीं त्र शहिी दवकास को िशाा ती िीीं।
शाहिहााँ की िािु किा में सबसे गहिी रुदि िी। उसने आगिा के महल में बलु आ पत्थि में अकबि की
अवदध की कई सींििनाओीं को सींगमिमि में अपने स्वयीं के दडजाइन के साि बिल दिया। जैसा दक मु हम्मि
सलीह कींबोह, एक समकालीन इदतहासकाि हमें बताता है ,
अपने िै दनक ििबाि के िईसोीं औि िाजकुमािोीं ने इमाितोीं औि बगीिोीं के दलए अपनी योजनाओीं का
प्रिशान दकया. औि वह शाम को इमाितोीं के दडजाइन भी िे खते िे जो दनमाा णाधीन िे । 1639 में उन्ोींने न
केवल इस कािण से एक नई िाजधानी का िैसला दकया दक वह अपने पूवावदता योीं से अलग होना िाहते िे ,
यह इसदलए भी िा क्ोींदक क्षिण के कािण शाही िाजधानी आगिा के दविाि की गुींजाइश मु स्िल हो गई
िी, औि उत्सव के अवसिोीं पि महल-दकले औि इतने पि भीड़ का प्रबींधन किना मु स्िल है ।
शाहिहााँ ने िािुकार-
योजनाकािोीं औि ज्योदतदषयोीं को अपनी नई िाजधानी के दलए एक साइट का ियन किने का दनिे श दिया
औि उनकी पसींि दिल्ली दत्रकोण में एक थिान पि दगि गई, जहााँ अराििी के दनिादसय ों ने यमुना निी
के पाठ्यक्रम को इस तिह से दनयींदत्रत दकया दक यह बिल न जाए।
शाहजहानाबाि की थिापना को समझने के दलए इस तथ्य को ध्यान में िखना होगा दक मु गल शासकोीं ने
शहि को स्वगा औि पृथ्वी का दमलन थिल माना िा। उनका दवश्वास इस्लादमक वािु कला के पािीं परिक
दसद्धाीं तोीं के अनुसाि उत्पन्न हुआ जो यह मानता िा दक शहि मु नष्य औि ब्रह्ाोंड के ि प्रमुख झवोीं के बीि
स्थित है , औि िोनोीं के दसद्धाीं तोीं को दकया गया है । इसदलए यह शहि एक पदवत्र केंद्र िा दजसे श्साम्राज्य
औि ब्रह्माीं ड को शादमल किने के दलए माना जाता िा। यह एक जैदवक सादृश्य िा दजसने शहिी प्रणाली
"योजना औि कायाप्रणाली को दनयींदत्रत दकया िा।
वह एक ने स्टेड पिानु क्रम का प्रिीकात्मक केंद्र थारू शहर, साम्राज्य औि ब्रह्माींड। 'यह जाय
'समकालीन इदतहासकाि मु हम्मि सलीह की दटप्पणी में परिलदक्षत होता है दक शाहजहानाबाि की िाि
िीवािें ' पृथ्वी के केंद्र को घेिती हैं ।
ये दविाि केवल इस्लामी वािु कला तक ही सीदमत नहीीं िे , दहीं िू वािु कािोीं औि दबल्डिोीं ने भी इस दवश्वास
का पोषण दकया दक िाजधानी शहि िाज्य के केंद्र में स्थित िा, शहि के केंद्र में महल-दकला औि िाजा का
दसींहासन। ब्रह्माीं ड के केंद्र में । उनमें से कई शाहजहानाबाि की दनमाा ण गदतदवदधयोीं से जुड़े िे।
शाहिहानाबाि का दसटीस्केप :-
शाहजहााँ ने नई िाजधानी पि अपनी दृदष्ट डाली। इसका दसटीस्केप शासक औि उसके िईसोीं की
सींििनाओीं पि केंदद्रत िा। इस तिह यह सिवीड् स की िाजधानी इस्फहान से दमलता-जुलता िा, दजसे
सोलहवीीं शताब्दी के किीब सआिवी शासक शाह अब्बास ने दडजाइन दकया िा। शाहजहााँ नाबाि का क्षे त्र
दिल्ली के सुल्तानोीं के पहले के शहिोीं या उप-महाद्वीप पि दकसी भी अन्य शासकोीं की तुलना में बहुत बड़ा
िा।.
िो प्रदसद्ध वािु कािोीं उिाि अहमि औि उिाि हादमि की िे खिे ख में शुरू की गई साइट पि दनमाा ण
काया। शाहजहााँ ने पूिे प्रोजेक्ट पि कड़ी नजि िखी, दजसमें साम्राज्य के भव्य मीं दििोीं के थिानोीं औि दनमाा ण
की योजनाएीं शादमल िीीं। िो सप्ताह के बाि, जब प्रािीं दभक स्पेट का काम पूिा हो गया, तो िाजकुमािोीं औि
उच्च-श्रेणी के िईसोीं को भी भू दम के भू खींड दमले. तादक उनकी हवेली पि भी काम शुरू हो सके। शाही
सींििनाओीं पि काम तीन सूबेिार ों - दगरि खान, अल्लाह ििी खान और मकरमाि खान की िे खिे ख
में दकया गया िा।
जब अींत में पूिा हुआ शहि शानिाि िा औि इसे िु दनया के सबसे बड़े औि सबसे अदधक आबािी वाले
शहि के रूप में माना जाता िा। मु हम्मि सलीह शहि की सभी प्रशींसा किते हैं औि कहते हैं दक न तो
नगर दनय िन :-
मगल बािशाह दवशेष रूप से शाहजहााँ के नगि दनयोजन के घाघ स्वामी िे जो बहुत ही उच्च कोदट का
सौींिया बोध िखते िे । उन्ोींने बड़े औि महान पैमाने पि सब कुल, योजनाबद्ध दकया। पोंररम का फैशन
(1670 ई०) तय होने से बहुत पहले , शहि को प्रमख सड़कोीं को िािे से हटा दिया गया िा, औि बुलेवाि
आधु दनक यूिोप में आधु दनक शहिोीं की आकषाक दवशींपताएीं बन गई. शाहजहााँ ने 1638 में दिल्ली के
िाीं िनी िौक में एक सुींिि गुलििा की योजना बनाई िी ।
इसमें बदला न में अन्टि-डे न-दलीं डन के साि एक समान समानता िी, दजसकी थिापना फ्ेदडर क ि ग्रेट ने
लगभग 1740 में की िी, जो दक यूिोप में 'बुलेवाडा का सबसे शानिाि उिाहिण' िा।
एक ििना, वािु कला पि एक प्रािीन ग्रि है , दजसमें एक अलौदकक दडजाइन है , दजसे कमुा क या धनुष
कहा जाता है , जो निी या समु द्र के दकनािे पि स्थित एक साइट के दलए धनुष है ।
हालााँ दक, एक दभन्नता इसमें दवकदसत हुई िी दक सबसे शुभ थिान पि यानी िो मु ख्य सड़कोीं के मोड़ पि,
इस थिान पि महल-दकले का कब्जा िा। मू ल कमा का योजना में एक बिी में सबसे शुभ थिान पि एक
मीं दिि का कब्जा होना िा।
कमुा क योजना का ियन प्रतीकात्मक रूप से िाजा की शस्ि को िशाा ता है । शाहिहानाबाि की योजना
पािीं परिक इस्लादमक शहि योजना को भी िशाा ती है । इसके अनुसाि शहि की अवधािणा िो झवोीं -
आिमी और ब्रह्ाोंड - के बीि स्थित है औि यह िोनोीं के प्रतीकात्मक दसद्धाीं तोीं को शादमल किता है।
शहि एक प्रतीकात्मक रूप में पुरुषोीं औि ब्रह्माीं ड की छदवयोीं पि आकदषात हुआ। शहि की योजना को
पुरुषोीं की शािीरिक ििना का अनुकिण किने के दलए भी िे खा गया िा, दजसमें निपअमतेम अपने भीति
ब्रह्माीं ड की सभी सींभावनाएीं शादमल िीीं।
खेपउमा, शहर के ब्रह्ाण्ड सोंबोंधी अवधािणा के तो शाहजहााँ के ििबाि के ईिानी वािु कािोीं के काया में
प्रिदलत पाया गया। जैसा दक िीवाि वाले शहि को परिभादषत दकया है |
उत्तर - भाित के इदतहास के साि-साि िु दनया को भी तीन कालखींडोीं में बाींटा गया है :-
प्रािीन, मध्यकालीन औि आधु दनक माना जाता है दक औिीं गजेब की मृ िु ने आधु दनक काल की शुरुआत
को दिदित दकया है । इस इदिहास क 1947 में स्विों ििा की उपलस्ब्ध के साि समाप्त किने के दलए
िे खा जाता है ।
मुगि ों का पिन:-
ग्रेट मु गलोीं की अवदध, जो 1526 में बाबि के दसींहासन पि पहुीं िने के साि शुरू हुई, 1707 में औरों गिेब
की मृ िु के साि समाप्त हुई। औिीं गजेब की मृ िु ने भाितीय इदतहास में एक युग के अींत को दिदित
दकया। जब औिीं गजेब की मृ िु हुई, भाित में मु गलोीं का साम्राज्य सबसे बड़ा िा। दिि भी, उनकी मृ िु के
लगभग पिास वषों के भीति, मु गल साम्राज्य का दवघटन हो गया।
औरों गिेब की मृत्यु के बाि उसके तीन बेटोीं के बीि उत्तिादधकाि का युद्ध हुआ। यह सबसे बड़े भाई,
दप्रींस की जीत में समाप्त हुआ। पैंसि वषीय िाजकुमाि बहािु ि शाह के नाम से दसींहासन पि िढ़ा।
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बहािु ि शाह ने समझौता औि सुलह की - नीदत का पालन दकया औि िाजपूतोीं, मिािोीं, बुींिेलोीं, जाटोीं औि
दसखोीं का अपमान किने की कोदशश की। उसके शासनकाल के िौिान मिािा औि दसख अदधक
शस्िशाली बन गए। । उसे दसखोीं के दवद्रोह का भी सामना किना पड़ा। बहािु र शाह की मृत्यु 1712 में
हुई।
सैय्यि ने मोहम्मि शाह को, बहािु ि शाह के 18 वषीय पोते को दसींहासन पि िढ़ने में मिि की। मोहम्मि
शाह के कमजोि शासन औि बड़प्पन के दवदभन्न गुटोीं के बीि दनिीं ति प्रदतद्वीं दद्वता का लाभ उिाते हुए, कुछ
शस्िशाली औि महत्वाकाीं क्षी रईस ों ने िगिग स्विों ि िाज्योीं की थिापना की।
है ििाबाि, बींगाल, अवध औि िोदहलखींड ने मु गल सम्राट के दलए नाममात्र की विािािी की पेशकश की।
मु गल साम्राज्य व्यावहारिक रूप से टू ट गया।।
मोहम्मि शाह का लगभग 30 वषों का लीं बा शासन (1719-1748 ई०) साम्राज्य को बिाने का आस्खिी
मौका िा। जब उनका शासनकाल शुरू हुआ, तब भी लोगोीं के बीि मु गल प्रदतिा एक महत्वपूणा
िाजनीदतक शस्ि िी। एक मजबूत शासक वींश को बिा सकता िा। ले दकन मोहम्मि शाह काया के बिाबि
नहीीं िा। उन्ोींने िाज्य के मामलोीं की उपेक्षा की औि सक्षम वजीिोीं को कभी पूिा समिा न नहीीं दिया।
अपने अक्षम शासकोीं, कमजोि प्रशासन औि खिाब सैन्य ताकत के साि भाित की स्थिदत ने दविे शी
आक्रमणकारियोीं को आकदषात दकया। फारस के शासक नादिर शाह ने 1739 में पींजाब पि हमला
दकया िा। मोहम्मि शाह को आसानी से हिा दिया गया औि कैि कि दलया गया। नादिि शाह दिल्ली की
ओि कूि कि गया। नादिि शाह एक क्रूि आक्रमणकािी िा।
मयूर दसोंहासन:-
नादिि शाह के आक्रमण ने पहले से ही मु गल साम्राज्य को कुिल दिया। औि इसके दवघटन की प्रदक्रया
1911 से पहले दिल्ली एक िाजनीदतक काला पानी िा। िाजधानी के हिाीं तिण के बाि, धीिे धीिे , दनवादसयोीं
ने िाजनीदत में रुदि ले ना शुरू कि दिया, खासकि अस्खल भाितीय प्रदतिा के िाजनेताओीं के सींपका के
साि| िाष्टरवािी िाजनीदत के दहस्से के रूप में बने नािोीं औि दविािधािाओीं का इिे माल थिानीय दशकायतोीं
में दकया जाने लगा।
1906-09 का रािनीदिक उत्साह 1912 में पुनजीदवत हुआ जब िाज्य में प्रवेश के िौिान हादडिं ग की
हिा का प्रयास दकया गया। यह ििमपींदियोीं द्वािा िाजधानी के हिाीं तिण के दनणाय का उत्ति िा। िु ख की
औपिारिक अदभव्यस्ि पािीं परिक विािािोीं के साि-साि कई धादमा क औि सामादजक समू होीं द्वािा की
गई, दजनमें मोहम्मि अली से पुरुष शादमल िे । हालाीं दक, दिल्ली की भागीिािी नगण्य िी।
1914 के दिल्ली-िाहौर षडयोंि ने जब किोि िण्ड की घोषणा की तो उस समय बहत आक्रोश िैल
गया। अमीि िीं ि, एक थिानीय व्यस्ि, दजसने बहुत लोकदप्रयता हादसल की, को मौत की सजा िी गई।
कुछ अन्य पुरुषोीं को भी इस घटना में िींसाया गया िा। ििमपींिी िाष्टरवाि को दिल्ली में उतना समिा न नहीीं
दमला, दजतना उसे बींगाल में दमला िा। 1912 में अदधक से अदधक रािनीदिक रूप से सदक्रय बींगाली
दिल्ली आने लगे
स्खलाित आीं िोलन, ििम िाष्टरवाि की खिाब प्रदतदक्रया के दवपिीत, दिल्ली के लोगोीं से भािी प्रदतदक्रया
प्राप्त हुई। यह मु ख्य रूप से अली ब्रिसा के सींिक्षण के कािण िा, जो 1912 में खुि को दिल्ली में स्थित कि
िु के िे । मोहम्मि अली के अखबार ि कॉमरे ड ने उिू ा हमििा के साि बहुत लोकदप्रयता हादसल की।
सहानुभूदत िखने के दलए गदित एक सींघ की कािी बड़ी सिस्ता िी। िररयागोंि में डॉ. अों सारी का घि,
िाि-उस-सलाम, काीं ग्रेस की कई बैिकोीं का थिान बन गया इन सभी नेताओीं को थिानीय िमड़े के
व्यापारियोीं द्वािा आदिा क रूप से मिि की गई, जो 1870 के िशक से तु की के समिा क िे। दिल्ली में
युवकोीं के उग्रवािी िाष्टरवाि की ओि न रुख किने का कािण मोहम्मि अली जैसे सींवैधादनक
आीं िोलनकारियोीं का प्रभाव िा।
वह अलामा बजने में सक्षम िा जब उपायुि, बीडॉन ने िीथा स्थि ों की िो सूिी तै याि की, एक को
सींिदक्षत दकया जाना िा औि िू सिा नष्ट दकया जाना िा। िाजधानी को दिल्ली थिानाीं तरित किने के साि,
लाहौि के प्रकाश दिल्ली में आया समाज के मु ख्यालय को थिानाीं तरित किना िाहते िे , औि प्रदतदनदध सभा
ने गुरुकुल काीं गड़ी की एक शाखा शुरू किने के बािे में सोिा। शहि में दवशेषकि जाटोीं में आया समाज का
प्रभाव बढ़ गया। गुरुकुल काीं गड़ी औि सेंट स्टीिींस कॉले ज के कुछ सिस्ोीं के बीि घदनि सींबींध मुीं शी िाम
(दजन्ें स्वामी श्रद्धानींि के नाम से जाना जाता है )
औि सी.एि. एीं डर यूज। इस कॉले ज के छात्र 1890 के िशक से आया समाज के प्रदत सहानुभूदत िखते हैं
1915 से 1917 के बीच, जब अली ब्रिसा जेल में िे , दिल्ली में िाजनीदतक गदतदवदध अपने सबसे दनिले
िि पि िी। 1917 में , िाज्य सदिव, मोींटेग की यात्रा की प्रिाशा में , शहि में बड़ी सींख्या में िाजनीदतक
बैिकें हुई। इस िौिान कुछ लोगोीं की दिलिस्पी ह म रूि िीग और एनी बेसेंट के िाष्टरीय दशक्षा
आीं िोलन में लग गई। इसमें शादमल लोगोीं में इीं द्रप्रथि स्कूल की दप्रींदसपल दमस जी मीनि, अींसािी औि ए.सी.
सेन जैसे डॉक्टि, आर.एस. पीरे िाि, आसफ अिी, अब्दु ि रहमान, अब्दु ि अिीि, एस.एन. ब स,
और दशि नारायण, औि कुछ बैंकि औि व्यापािी।
1917 में उत्पन्न िाष्टरवािी दवशेषताओीं वाला पहला िाजनीदतक सींगिन िो वकीलोीं द्वािा भाितीय सींघ िा।
इसका इिे माल अजमल खान ने मॉन्टे ग के सामने निमपींदियोीं के दविािोीं को प्रिु त किने के दलए दकया
िा । एसोदसएशन ने दिल्ली प्राीं त के दलए दवदशष्ट माीं गें िखीीं। उन्ोींने दिल्ली को एक परिषि के साि
िाज्यपाल का प्राीं त बनाने की मााँ ग की, क्ोींदक इसका प्राोंिीय पररषि या शाही पररषि में कोई
प्रदतदनदधत्व नहीीं िा। दिल्ली का अपना कोटा होना िादहए औि साि ही एक अलग दवश्वदवद्यालय भी होना
िादहए।
1918 के अींत से अदधक से अदधक लोग िाजनीदत में शादमल हो गए िे । यह 1918 औि 1921 के बीि
कीमतोीं में अभू तपूवा वृस्द्ध, उच्च दकिाये, कपड़ा बाजाि में मीं िी, आयकि औि सुपि-टै क्स लगाने, औि
अक्टू बि 1918 की इन्क्फ्लू एीं जा महामािी के कािण िा। 07 माचा 1919 क गाोंधीिी द्वािा सींबोदधत एक
सभा के बाि िॉले ट सिाग्रह आीं िोलन ने गदत पकड़ी। दिल्ली में एक सौ बीस लोगोीं द्वािा सिाग्रह प्रदतज्ञा
पि हिाक्षि दकए गए। दिल्ली में सिाग्रह स्वामी श्रद्धानन्द के नेतृत्व में दकया गया। असहयोग गदतदवदधयााँ
अगि 1920 में शुरू हुई। दपयिी लाल, अजमल खान ने अपनी उपादधयााँ छोड़ िी औि दहीं िू कॉले ज के
प्रािाया दगडवानी ने इिीिा िे दिया।
इस आीं िोलन की दवशेषता मु सलमानोीं द्वािा गोहिा के परििाग औि महिौली में गुलिािोशन का
बदहष्काि किने वाले दहीं िुओीं औि मु सलमानोीं िोनोीं द्वािा की गई िी। इन वषों में थिानीय दशकायतोीं को पूिी
तिह भु लाया नहीीं गया। अगि 1920 में, मॉदनिं ग प स्ट ने दशकायत की दक सिाग्रह औि असहयोग के
नेता ने दिल्ली में दकिायेिािोीं के मु द्दोीं की उपेक्षा की िी | नई दिल्ली नगि पादलका की थिापना 1916 में हुई
िी; यह 1925 में एक प्रभावी दनकाय बन गया। दिल्ली के उपायुि को शहि के दवकास औि नजूल
सींपदत्तयोीं के प्रबींधन का प्रभाि दिया गया िा, ले दकन उपायुि की यह दजम्मेिािी 1928 में समाप्त हो गई।
शहि' के िख-िखाव की अपेक्षा िाजधानी के िख-िखाव की अदधक दिींता िी। सबसे अच्छी तिह से
दवकदसत नगिपादलका सेवा, जल आपूदता प्रणाली, पुिाने की कीमत पि नए शहि के लाभ में बिल गई |
दनष्कषा :-
भाित सिकाि की सीट के हिाींतिण के बाि िाजनीदतक गदतदवदधयाीं स्थिि हो गईीं। कभीकभी थिानीय
समस्ाओीं से जुड़े होने पि इसने थिानीय दनवादसयोीं को प्रभादवत दकया। 'पुिाना शहि' शहिी क्षे त्र का
िाजनीदतक दिल बन गया। िोनोीं समु िायोीं औि दवदभन्न िाजनीदतक समू होीं के बीि सींतुलन बनाए िखने के
दलए अदधकािी पहले से कहीीं अदधक जागरूक हो गए।
नई दिल्ली में शाही िाजधानी का थिानाीं तिण उन तिीकोीं का उिाहिण है दजसमें अींग्रेजोीं ने गदतशील औि
दवदवध अष्णखि िारिीय स्विों ििा आों ि िन के जवाब में भाित में अपने शाही दमशन को दिि से
परिभादषत किने का प्रयास दकया।
इस पुनपारिभादषत ने औपदनवेदशक नीदत दनमाा ताओीं को यह िावा किने की अनुमदत िी दक भाित में दब्रटे न
की शाही स्थिदत कमजोि नहीीं हुई है । इसके बाि, इसने दिल्ली के िाजनीदतक औि जातीय अलगाव को भी
समाप्त कि दिया। अदधक से अदधक लोग िाष्टरीय िाजनीदत में शादमल होने के साि दिल्ली ते जी से भाित
का दहस्सा बन गया।
प्रश्न - दिल्ली में दििािन के समय हुए िों ग ों का क्या प्रिाि पडा?
उिर - दिल्ली िों गे 'दििािन के िि हुए नरसोंहार की याि दििािे हैं ' : अिािि
नयी दिल्ली, तीन मई (भाषा) दिल्ली की एक अिालत ने 2020 के दिल्ली िीं गोीं को 'दवभाजन के समय हुए
निसींहाि की याि दिलाने वाला' बताया है । अिालत ने व्यापक पैमाने पि हुई दहीं सा के िौिान िू सिे मजहब
के एक लड़के पि हमला किने के आिोपी शख्स की अदग्रम जमानत यादिका खारिज किते हुए यह
दटप्पणी की। दगिफ्तािी के भय से , दसिाज अहमि खान ने अिालत का रुख कि मामले में अदग्रम जमानत
का अनुिोध किते हुए िावा दकया दक उसे इसमें गलत तिीके से िींसाया गया औि उसका कदित अपिाध
से कोई ले ना-िे ना नहीीं है ।
अदग्रम िमानि यादचका खारिज किते हुए अदतरिि सत्र न्यायाधीश दवनोि यािव ने कहा दक आिोपी के
स्खलाि लगे आिोप "गींभीि प्रकृदत" के हैं औि साीं प्रिादयक िीं गे की आग भड़काने एवीं उसकी सादजश ििे
जाने का पिाा िाश किने के दलए उसकी मौजूिगी बहुत जरूिी है ।
दपछले साल ििविी में नागररकिा सोंश धन कानू न के समथा क ों औि दविोदधयोीं के बीि झड़पोीं के
अदनयींदत्रत हो जाने से उत्तिपूवा दिल्ली में साीं प्रिादयक दहस्सा भड़क गई िी, दजसमें कम से कम 53 लोगोीं
की मौत हो गई िी औि किीब 200 लोग घायल हो गए िे ।
न्यायाधीश ने अपने 29 अप्रैि के आिे श में कहा, "यह सबको पता है दक 24/25 फरिरी 2020 के
मनहूस दिन उत्तिपूवा दिल्ली के कुछ दहस्से साीं प्रिादयक उन्माि की भें ट िढ़ गए, जो दवभाजन के दिनोीं के
निसींहाि की याि दिलाते हैं ।"
न्यायाधीश ने कहा, "जल्द ही, िीं गे जींगल की आग तिह िाजधानी के दक्षदिि िक फैि गए, नये इलाके
इसकी िपेट में आ गए औि बहुत सी मासूम जानें जाती िहीीं।"
उन्ोींने कहा दक मौजूिा मामले में , एक दकशोि िमन पि िीं गाई भीड़ ने 25 फरिरी क दनमाम तिीके से
महज इसदलए हमला कि दिया िा क्ोींदक वह िू सिे समु िाय से िा।
न्यायाधीश ने अपने 29 अप्रैि के आिे श में कहा, "यह सबको पता है दक 24/25 फरिरी 2020 के
मनहूस दिन उत्तिपूवा दिल्ली के कुछ दहस्से साीं प्रिादयक उन्माि की भें ट िढ़ गए, जो दवभाजन के दिनोीं के
निसींहाि की याि दिलाते हैं ।"
न्यायाधीश ने कहा, "जल्द ही, िीं गे जींगल की आग तिह िाजधानी के दक्षदतज तक िैल गए, नये इलाके
इसकी िपेट में आ गए औि बहुत सी मासूम जानें जाती िहीीं।"
उन्ोींने कहा दक मौजूिा मामले में , एक दकशोि िमन पि िीं गाई भीड़ ने 25 ििविी को दनमा म तिीके से
महज इसदलए हमला कि दिया िा क्ोींदक वह िू सिे समु िाय से िा।
न्यायाधीश ने कहा, "मामिे में िाोंच अदधकारी के ििाब से साफ है दक सीसीटीिी फुटे ि में
आिे िक अपने हाथ ों में िािा दिए साफ-साफ दिख रहा है और मामिे में अन्य आर पी उसके ि
बेटे अरमान और अमन अब िक फरार हैं ।"
दनष्कषा -
अगि 1947 को कई क्षे त्रोीं द्वािा स्वतींत्रता को दिदित किने के दलए मनाया गया िा, जबदक कुछ के दलए
यह केवल दवभाजन िा। कुछ लोगोीं के दलए यह केवल दवभाजन का ििा ले कि आया। आजािी के साि हुए
दवभाजन के कािण दिल्ली पिे शान िी। सत्ता का हिाीं तिण सुिारू नहीीं िा। इसने धमा के आधाि पि
समु िायोीं के यहिीकिण का नेतृत्व दकया। मु सलमान भाित में साीं प्रिादयक निित का दनशाना बने। यह
सि है दक पादकिान (पूवा औि पदिम िोनोीं) में दसखोीं, दहीं िुओीं औि अन्य अल्पसींख्यक समु िायोीं के साि
भी ऐसा ही हश्र हुआ िा। हालााँ दक, दिल्ली में जो हुआ उस पि ििाा किने की आवश्यकता है क्ोींदक इसने
दिल्ली शहि के परिदृश्य को बिल दिया।
दिल्ली क 1940 और 1950 के िशक के िौिान जो कुछ भी सहना पड़ा, उसके आघात से उबिने में
लगभग 30 साल लग गए। 2020 के िशक में दवभाजन औि दिल्ली के बािे में दलखने से यह आभास होता
है दक यह एक सहस्राब्दी पहले हुआ िा, ले दकन यह दिल्ली की सुींििता है दक इसकी प्रकृदत क्षमाशील है
ले दकन भु लक्ड़ नहीीं है ।
प्रश्न - मुगि ों के अों िगाि दिल्ली में किा और सोंस्कृदि का दिकास कैसा था बिाइए ?
उसके शासन काल में दकिा-ए-मुबारक (िाि दकिा) साीं स्कृदतक गदतदवदधयोीं का केंद्र बन गया औि
शाहजहााँ नाबाि, जो दिल्ली के नाम से लोकदप्रय िहा है , अिािहवीीं शताब्दी के प्रािीं भ में उत्तिी भाित में
मु गल सींस्कृदत के अग्रणी केन्द्र के रूप में उभिा। इस काल की साीं स्कृदतक व्यवथिा में ििबािी सींस्कृदत का
परिच्यवन औि लोक सींस्कृदत का उत्थान िो महत्त्वपूणा तत्त्व िे । अन्य कलाओीं की तिह सींगीत के
अदभजातपन औि सींभ्ाीं तता का क्षय हुआ औि कुछ हि तक दवदशष्ट ििबािी तकनीकें औि दृश्यश्रव्यात्मक
पिीं पिाएाँ दविृ त वगा के दलए सुलभ हो गईीं।
नादिरशाह (1739) दजसने मु गल शासकोीं की असीम समृ स्द्ध को पिावनत दकया, के आक्रमण के पिात्
ििबािी सींिक्षण में दनःसींिेह सींगीन कमी आई। इसके परिणामस्वरूप बािशाह ने साीं ध्यकालीन सींगीतमय
समािोहोीं औि साीं स्कृदतक सभाओीं से स्वयीं को अलग कि दलया औि ििबाि से ऐसी गदतदवदधयोीं को
दनलीं दबत कि दिया। यद्यदप इससे शहि की साीं स्कृदतक गदतदवदधयोीं औि हषोल्लास में कोई कमी नहीीं आई।
शाहजहााँ नाबाि वािु कलात्मक भव्यता की एक िीघाा है। शाहजहााँ के शासनकाल के िौिान मु गल
वािु कला ने उच्चतम दनपुणता औि प्रभावशीलता ग्रहण की। उसके समय की इमाितोीं का अलीं किण
अदधक दववेकशील हो गया। शाहिहााँनाबाि की इमारिें मेहराब ों और गुोंबि ों के आकाि में परिवता न भी
िशाा ती हैं । अब मे हिाबें नक्ाशीिाि होने लगीीं, दजनके घुमाव नौ अधा िन्द्राकाि वलयोीं के द्वािा बेलबूटेिाि
बनाये जाने लगे। उत्ति काल में ये मे हिाबें शाहजहााँ नाबािी मे हिाबोीं के नाम से ही जानी गई।
शाहजहााँ नाबाि के भवनोीं में गुींबिोीं का पूणा दवकदसत रूप एक सामान्य दृश्य बन गया। यह बाहा रूपिे खा
में बुलबुले की भााँ दत िा, जो इसकी ग्रीिा के पास सोंकुदचि हो गया िा। इस काल के अन्य महत्त्वपूणा
वािु गत दवकासोीं में सस्म्मदलत हैं - शुोंडाकृदि या िे दष्टि िों ड ों के साथ िोंि, मेहराबिार िाखे
(िीिारगीर), बेिबूटेिार आधार युि िम्भशीषा ।
मोहम्मि शाह का शासन मु गल दित्रकला के पुनजीवन औि िे हली कलम नामक शैली के दवकास के दलये
भी उस्ल्लस्खत है । काल में इस ििण की दित्रकलाएाँ यह िशाा ती हैं दक औिीं गजेब के उत्ति काल में मु गल
दित्रकला का िू सिा जन्म हुआ। कलम के मू लभूत औि बेहतिीन उिाहिणोीं में िाजकीय व्यस्िदित्र औि
ििबाि के दृश्य है , जहााँ बािशाह आकषाण का केन्द्र दबीं िु है । िु िामन इस शासनकाल का अग्रणी दित्रकाि
है ।
पूवाकालीन दित्रोीं की प्रदतदलदपयााँ बनाने पि अपना ध्यान केंदद्रत दकया। दित्र-सींग्रहोीं औि सुदिदत्रत
पाीं डुदलदपयााँ बनाना एक लाभिायक व्यवसाय िा। अिािहवीीं शताब्दी के मध्य तक बहुत से मु गल दित्रकाि
मु दशािाबाि, िैजाबाि जैसे प्राीं तीय िाज्योीं की ओि थिानाींतरित हो गए। मु गल पिीं पिा के हास के िौिान एक
नयी पद्धदत के आदवभाा व को नया िािा दमला, दजसने पदिम के प्रभाव को िशाा या औि यूिोदपयोीं की मााँ ग
के अनुसाि ढल गई।
साीं स्कृदतक परिवेश को सजीव बनाने में सींगीत ने अपनी अहम भू दमका दनभायी। सींगीत कलाओीं को न
केवल िाजििबाि औि सींभ्ाीं त केंद्रोीं से विन् अपवािात्मक रूप से थिानीय जनसाधािण के एक दवशाल
भाग से भी सींिक्षण प्राप्त हुआ। गायन औि नृि आमोि-प्रमोि के दप्रय साधन के साि-साि हषोल्लास का
अींतदनादहत अींश भी बन गये। इन िोनोीं कलाओीं के दलए दकसी दवशेष खुशी या उत्सव की अपेक्षा नहीीं िी।
सूिी सभाओीं की व्यवथिा मकबिोीं औि सींतोीं का ििगाहोीं पि उसा के उत्सव पि औि महीने की खास
दिदथय ों दिशेषिः नौिन्दी की दतदि पि दनयदमत रूप से की जाती िी। यहााँ तक दक शोक समािोह जैसे
मु हिा म आदि के दलए भी एक दवशेष प्रकाि का वािक सींगीत मिदसया-ख्वानी, दवकदसत हुआ।
व्यावसादयक कलाकािोीं की बड़ी सींख्या उभिकि सामने आई। इस काल के िौिान उत्कृष्ट सींगीतकािोीं की
एक बड़ी सींख्या समृ द्ध हुई। लोकदप्रय कलाकािोीं की सींख्या गणना से पिे हो गई।
इस काल में ध्रु पि की लोकदप्रयता का यिे ष्ट हास हुआ औि इसके बिले ख्याल गायन ने लोकदप्रयता
अदजात की। कदवत्त, जींगला, तिाना औि कई अन्य लोकदप्रय साीं गीदतक िाग िे । कव्वािी सूफी सिाओों
(महदफि-ए-समा), उसा औि अन्य उत्सवोीं में अींतदनादहत बन गई िी। यह काल कव्वालोीं की दनपुणता के
पूणा िलन का प्रिक्षिशी है । अिािहवीीं शताब्दी के िौिान मरदसया-ख्वानी ने साोंगीदिक और
सादहष्णत्यक रूप की प्रदतिा अदजात की।'
यह काल मदहला अिाकािोीं की प्रदतिा के वृहत् उत्थान का साक्षी है । अब वे अपने समु िायोीं के पु रुष
अिाकािोीं के सहायक कलाकाि मात्र नहीीं िही। इसके बजाए वे स्वतीं त्र रूप से प्रिशान किने लगी औि
उनकी प्रदतभाएीं स्वीकृत हुईीं। ये गदणकाएाँ बहुत-ही सुरुदि सींपन्न िी औि उनमें से अदधसींख्य उच्चवगीय
समाज में अदतशय सम्मान का पात्र िीीं।
ये गदणकाएाँ िव्य-शैिी में िीिन-यापन किती िीीं। महदिलोीं में आवश्यक दशष्टािािोीं औि सभ्यािािोीं में
अिीं त दनपुण िीीं। अदधकाीं श गदणकाएाँ दविु षी, कुशल विा औि वाक्पटु िीीं तिा उन्ोींने आिीं दभक
मध्यकाल की गदणकाओीं की भााँ दत सामादजक जीवन को प्रभादवत किना शुरू कि दिया।
वाद्य सींगीत में भी भािी सींख्या में परिवता न उभिकि सामने आए। बीनकािोीं (वीणा वािक) की सींख्या में
लगाताि कमी आई, जबदक दसताि की लोकदप्रयता दिनोीं-दिन बढ़ती गई। सािीं गी गदणकाओीं के नृिात्मक
गीतोीं के दलए श्रेि सींगदत वाद्य बन गया। कुछ शैदलयााँ भी दवकदसत हुईीं।
पारिवारिक सींगीत के प्रदत बहुत सींवेिनशील औि सींिक्षण दप्रय होने लगे िे । केवल कुछ ियदनत लोगोीं को
औि वह भी प्रिक्ष वींशजोीं को ही प्रदशक्षण दिया जाता िा। इसके साि ही बीन बजाना एक िु ष्साध्य कला
िी। परिणामस्वरूप कलाकािोीं की अिीं त सीदमत सींख्या को ही ज्ञात िी। इन परिस्थिदतयोीं के तहत दसताि
ने जो अपेक्षाकृत एक नया वाद्य िा लोकदप्रयता अदजात की।
सींभवतया दसताि, सहताि (तीन तािोीं वाला िािसी वाद्य यींत्र) औि तम्बुिा( एक ताि वाद्य) के दमश्रण से
दवकदसत हुआ। प्रािीं भ में दसताि में प्रयुि पद्धदत ध्रु पि औि बीन में प्रयुि पद्धदतयोीं के समान िीीं औि यह
लयात्मक जदटलताओीं पि जोि िे ती िीीं। यहााँ तक दक 19िी ों शिाब्दी में नई ख्याि शैिी के प्रािीं भ के बाि
भी इसने ऐसी कुछ पद्धदतयोीं को बनाए िखा, दजन्ें मदसि-खानी बाज के नाम से जाना जाता िा। प्रख्यात
दसिार िािक अिरों ग ने अन्य िाद्य यों ि ों की स्वरदिदप का प्रयोग किते हुए वािन पद्धदत का कुछ
नवीकिण दकया। इस क्षमता के कािण दक अन्य तींत्री वाद्योीं की पद्धदतयााँ इस पि आसानी से अनुप्रयुि हो
सकती है , दसताि ने धीिे -धीिे बीन औि िबाब की लोकदप्रयता को धुीं धला कि दिया।
यह रुदिकि है दक इस काल के हमािे स्रोतोीं ने दकसी एक भी तबला वािक का उल्लेख नहीीं है । यद्यदप हमें
उनके बािे में बताया गया है , जो पखिज़, ि िक और िमिमी (एक ि क शैिी का सोंघािी िाद्य)
बजाते िे । तथ्यतः नृि के सींगत वाद्य के रूप में (पीट कि बजाने) में तबले का प्रयोग 19वीीं शताब्दी के
िौिान अवध ििबाि में किक के उद्भव के साि जुड़ा हुआ है ।
ििगाह कुली अलीखान शाहजहााँ नाबाि के कई दवख्यात औि प्रदतभाशाली सादजींिा (वािकोीं) के बािे में
उल्लेख किता है ; बादकि तम्बूिींिी दजसका प्रिशान, “यहााँ तक दक जानविोीं औि दनजीव विु ओीं को भी
दहला सकता है िा; हसन खान िबाबी औि गुलाम मोहम्मि सािीं गी नवाज जो अपने वाद्य को बजाने में
अतु लनीय िी, हुसैन खान ढोलक नवाज, जो "इस किा क इसकी ऊाँचाइय ों िक िे गया और ि िक
का बेहिर िािक में अिी दिल्ली पर अपना दनशान छ डने क बाकी था।" एक सादजींिे शहनवाज
द्वािा एक वाद्य यींत्र प्रिदलत दकया गया, दजससे "ढोलक, पखावज़ औि तीं बूिे की ध्वदन को उच्चारित दकया
जा सकता िा। दनष्कषा
उपिोि वणान यह भली-भााँ दत प्रदतदबींदबत किता है दक शाहजहााँ नाबाि उत्तिी भाित में सींगीत-कलाओीं का
अग्रणी केंद्र िा। जो प्रवृदत्तयााँ यहााँ सुव्यवस्थित हुईीं, वे आगे अन्य थिानोीं, दवशेषतया लखनऊ में परिष्कृत
हुई, जो 18िी ों शिाब्दी के उत्तरित्ती काि में उत्ति भाित की साीं स्कृदतक धु िी के रूप में उभिा।
प्रश्न - दिल्ली आदथा क और साोंस्कृदिक केंद्र के रूप में दशल्प और कारीगर के बारे में बिाइए?
दिल्ली उत्तिी भाित की दनखदलस साीं स्कृदतक ही नहीीं धुिी िी; विन् एक व्यि व्यावसादयक केन्द्र भी िी।
एक उच्चििीय आदिा क व्यवथिा के सभी तत्त्व दजसमें पूाँजी का सींिय, लीं बी िू िी का व्यापाि औि दवदनमय
पत्रोीं की उच्च ििीय दक्रया-दवदध युि एक दवशाल पूाँजीबाजाि सस्म्मदलत हैं , अपने सवोत्तम रूप में पुिानी
दिल्ली के नाम से दवख्यात मु गल िाजधानी शाहजहााँ नाबाि में साक्षीकृत दकये जा सकते हैं ।
समु िाय, कािीगिोीं औि कलाकािोीं ने भी आगिा से नई िाजधानी की ओि अपने सींपोषण हे तु थिानाीं तिण
दकया। अगले शासक औरों गिेब का िी 1679 तक ििबाि औि दशदवि यह िहा। शाही अनुिींजन औि
िे खभाल से सींयोदजत 'शाीं दत की यह आधी शताब्दी समृद्ध वादणस्ज्यक केन्द्र के रूप में िाजधानी नगि के
दवकास हे तु एक वििान दसद्ध हुई।' इसकी समीपवती भू दम कछािी दमट्टी से सींपन्न िी औि यह नगि कृदष
उत्पािनोीं के प्रमु ख स्रोतोीं की आसान पहुाँ ि के भीति स्थित िा।
सामान्य वषों के िौिान ऐसे अन्नागािोीं से बींजािे कृदष पैिावाि को शहिी जनसींख्या की आवश्यकताओीं की
पूदता के दलए ला सकते िे। इसके अदतरिि नगि महत्त्वपूणा थिानोीं से मु ख्य िाजमागों द्वािा जुड़ा हुआ िा
जो इसके नगि द्वािोीं से प्रािीं भ होते िे , दजनके नाम उनके गोंिव्य स्थान ों के आधाि पि िखे गये िे ।
इस प्रकाि उत्पािन को दनयींदत्रत किने वाले महत्त्वपूणा नगिीय केंद्र तिा दनकटथि क्षे त्रोीं के बाजाि
िाजधानी से सड़क मागा से भली-भााँ दत जुड़े हुए िे। इसके साि एक अदतरिि लाभ भी िा दक यमु ना
दिल्ली में समि वषा भि नौवहन के योग्य होती िी, दजसने एक समृ स्द्धशील जलमागीय व्यापाि को
सुदवधाजनक बनाया।
हमीिा खािू ननकिी अिि कन करिी हैं - “शाहजहााँ नाबाि में समृ स्द्ध औि वैभव के प्रकृष्ट प्रिशान के
साि दिल्ली के आिीं दभक सुल्तानोीं द्वािा छोड़ी गई नगिीय अदधवास की दविासत ने नवागींतुकोीं के बाहुल्य
को नगि की ओि आकदषात दकया।
लाखोीं उद्यमी पुरुष दजनमें बहुत से लाभे च्छु दशल्पी औि व्यापािी िे , नगि–अदभमु ख हुए। पुिानी सल्तनतोीं
के साह ों के िों शि अिी िी सामीप्य में िे । 1785 से पहले कम से कम एक नगि सेि अिवा व्यापारिक
साहूकािोीं के समू ह का औपिारिक प्रमु ख मू ल नगि के अींिि दवकदसत हुआ। इन बदनयोीं के अदतरिि
थिानीय िकानिाि औि व्यापािी, आिमे दनयाई, मध्य एदशयाई औि कश्मीिी भी नगि में बािीं बाि आते िे ,
जो उन्ें सभी प्रकाि की वादणस्ज्यक विु एाँ उपलब्ध किाता िा। हुमायूाँ के मकबिे के समीप स्थित अिब
की सिाय इन अथिायी भ्मणकताा ओीं से अक्सि भिी िहती िी। मुद्रा पररििा क, िेखक, पररिाहक और
अन्य कुशि िथा अकुशि श्दमक नगर में प्रिु िता से प्राप्त होते िे ।
प्रश्न - शाहिहानाबाि के आदथा क िीिन में दिदिन्न बािार ों की क्या िदमका थी?
अथिा
दिल्ली में अनदगनि बाज़ार थे ; उनमें से कुछ सामान्य िे , जबदक कुछ दवदशष्ट माल के ले न-िे न का
व्यापाि किते िे औि कुछ िोक दबक्री का व्यापाि किने वाले बाज़ाि िे । नखास िोज-मिाा बाजाि िा, जहााँ
पि पड़ोसी क्षे त्रोीं के लोग आकि अपने उत्पाि की दबक्री दकया किते िे । ये नखास शहि के दवदभन्न थिानोीं
पि आयोदजत होते िे । इसके अदतरिि कुछ अन्य बाज़ाि िे , जो शहि के दवदभन्न जगहोीं में िहने वाले लोगोीं
की अन्य दवदशष्ट मालोीं की मााँ ग को पूिा किते िे। इसके अलावा िो अन्य प्रकाि के बाज़ाि िे , जो शहि की
पूिी जनसींख्या को अि् भु त विु ओीं की आपूदता किते िे। इसके अदतरिि पििू न/िुटकि िु कानोीं की भी
बड़ी तािात िी। िु कानें दवदभन्न थिलोीं में स्थित होकि जीवन की अपरिहायाताओीं औि दवलादसताओीं की
आपूदता किती िीीं।।
बािशाह शाहजहााँ के शासन काल में इनकी (बाज़ािोीं) नीींव बड़ी समझिािी से पड़ी िी औि दिशेषिया
18िी ों शिाबिी के मध्य तक जनसींख्या की वृस्द्ध तिा शहि के दविाि के कािण धीिे -धीिे ये अपने
परिसिोीं से दविृ त हो गए।
ििगाह कुली खान का यािा िृ त्ताोंि, 'मुरक्का-ए-िे हिी' इस दवकास का स्पष्ट झलक दिखलाता है। कुछ
बाज़ाि पटरियोीं पि लगते िे , जहााँ के दवक्रेता िु कानोीं से अच्छी औि आकषाक विु ओीं का दवक्रय किते िे ।
रिहायशी इलाकोीं की िु कानोीं का भी प्रिलन हुआ िा।
कटरा एक प्रकार का बाज़ार केन्द्र था, जो िोक दबक्री बाज़ाि का काया किता िा। ये व्यापारिक केन्द्र
इनसे सींबद्ध भािी यातायात के कािण लाल दकले से कुछ िू िी पि अवस्थित िे । िू सिे शब्दोीं में दशल्पी वगों
का काया थिल औि रिहायशी भवन शहि के अींतगात अवस्थित िे ; यद्यदप उनमें से कुछ शहि के उपनगिोीं
से आया किते िे ।
जामा मस्िि के िािोीं ओि से िाि बाजाि दनकलते िे । पदिम दिशा की ओि एक मशहूि बाजाि दनकलता
िा, दजसका उल्लेख दकया जा सकता है । यहााँ नशीले पेय औि अिीम जैसे मािक पिािों का दवक्रय होता
िा। वस्त् व्यापारियोीं की कोदियााँ इसी इलाके में िीीं। यह बाज़ाि मशहूि िौड़ा बाजाि की ओि ले जाता िा।
तााँ बे औि पीतल के बता न यहााँ बेिे जाते िे । यह हिदशल्प ों और कागि का िी व्यापाररक केंद्र था। ये
बाजाि दवदभन्न गदलयोीं से दििाीं दकत िे , जो मु हल्लोीं तिा कुिोीं के नाम से दवख्यात अन्य बाजािोीं की ओि ले
जाते िे । िौड़ा बाज़ाि, काजी का हौज नामक िौिाहे पि समाप्त होता िा औि इस थिान से शहि के दवदभन्न
भागोीं की ओि कई मागा जाते िे।
िामा मष्णिि की िदक्षणी सीदढय ों पर दचििी कब्र नामक एक प्रदसद्ध बाजाि िा, जहााँ पि छु ट-पुट
विु ओ,ीं मोदियोीं औि मशहूि हिदशल्पकािोीं की िु कानें अवस्थित िीीं। दशल्पकािोीं के दनवास औि
कािखाने इससे सटे हुए िे , जैसे छत्ता-ए-मोमगिान औि इस बाज़ाि के अींत में कसाइयोीं का मु हल्ला या
कस्साबपुिा अवस्थित िा औि यह दिल्ली ििवाजे के समीप िा।
जामा मस्िि की उत्तिी सीदढ़योीं के दनकट एक बाज़ाि िा, जहााँ िौहररय ,ों आिूषण ों के मीनाकार ों और
इसके िैसी अन्य औद्य दगक किाएाँ दजनमें पच्चीकािी, जवाहिात को िमकाने की कला, सींगमिमि जैसे
पत्थिोीं पि दवदभन्न िीं गोीं के टु कड़े लगाने औि नक्ाशी, खुिाकािी अिवा बक्सोीं औि शीशोीं पि हािी के िााँ त
जड़ने की कला औि खत्ताकािी अिवा आबनूस लकड़ी पि हािी-िााँ त अिवा दकसी पिािा की जड़ाई
अिवा नक्ाशी की कलाओीं सदहत बहुत-सी िु कानें अवस्थित िीीं।
जामा मस्िि की पूवी सीदढ़योीं का िािा खास बाज़ाि की ओि जाता िा, जहााँ हिदशल्पकािोीं औि अन्य
विु ओीं के दवक्रय किने वालोीं की िु कानें िीीं। ििगाह अली खान अपने यात्रा वृत्ताीं त में उल्लेख किता है -
उपलब्ध विु ओीं की दवदभन्न दकस्में दकसी भी आिमी को उनमें खो जाने पि मजबूि कि सकती िीीं औि
गिीब आाँ खें यहााँ प्रिु िता से प्रिदशात अनूिी विु ओीं को लगाताि दनहािने के अभ्यास में ही दनपुण हो
सकती िीीं
शस्त् दवक्रेता दवदभन्न प्रकाि के दनिाविण शस्त्ोीं का ग्राहकोीं को आकदषात किने के दलए प्रिशान किते िे ,
जो उनके शस्त्ोीं की तीक्ष्णता को नाप सकते िे । वस्त् व्यापािी समि वाताविण को िीं गीन बनाते हुए अपने
सामानोीं को प्रिदशात किते िे औि ग्राहकोीं को आकदषात किने में एक-िू सिे से बढ़कि लगे िहते िे ,
इस प्रकाि मानवीय आवश्यकताओीं औि दवलादसताओीं की विु एाँ लोगोीं के इस हीं गामें में उपलब्ध िीीं। ' िैज
प्रािीि के अकबिाबािी ििवाजे को जोड़ने वाली सड़क पि अवस्थित िा। इसकी योजना शाहजहााँ के
समय में बनाई गई औि समकालीनोीं द्वािा इसे सौींिया के महान् आकषाण का थिान कहा गया। इसके
बीिोीं-बीि नहर-ए-फैि बहती िी औि इसके िोनोीं ओि िु काने दबखिी हुई िीीं। अन्य बाजाि उस सड़क
पि अवस्थित िे , जो नगि प्रािीि के लाहौिी ििवाजे को दकले के लाहौिी ििवाजे से जोड़ती िी। िते हपुिी
िौिाहा जुड़ा हुआ िा। सड़क के िोनोीं ओि बहुत से वृक्ष पींस्िबद्ध िे औि1500 से अदधक िु कानोीं का
दनमाा ण यहााँ हुआ िा। इनका स्वादमत्व िाजकुमािी जहााँ आिा तिा िते हपुिी बेगम (शाहजहााँ की बेगमोीं में
से एक) के पास िा। लाल दकले की ओि से प्रािीं भ होने वाले इस ओि के बाज़ाि उिू ा बािार,
िौहरी/अशफी बािार, चााँिनी चौक, फिे हपुरी बािार और खारी बाििी कहिािे थे ।
िरगाह कुिी खान, चााँिनी चौक की िूरर-िूरर प्रशीं सा किता है , जो दिल्ली में उपलब्ध अि् भु त विु ओीं
औि दशल्पकृदतयोीं के दलए मशहूि िा। वह इनकी व्याख्या दनम्नदलस्खत शब्दोीं द्वािा किता है िााँ िनी िौक
शहि का सबसे खूबसूित औि अिदधक सस्ज्जत मागा है। आनींि के इच्छु कोीं के दलए यह एक मनोिीं जन का
केंद्र है तिा इच्छु क खिीिािोीं के दलए िु लाभ विु ओीं की िीघाा है ।
िु कानोीं में प्रिदशात मादणक औि बिकशााँ के ित्न (जौहरियोीं की िु कानोीं की शोभा बढ़ाते िे औि उनके
काउन्टर बहुमूल्य रत् ों औि मोदतयोीं से भिे होते िे औि िू सिी ओि वस्त् व्यापािी ग्राहकोीं को आकदषात
किने के दलए अपनी गीतात्मक वाणी में स्पष्ट इशािोीं का प्रयोग किते िे दवदभन्न प्रकाि की सुगस्न्धयााँ औि
अका बेिने वाले अत्ताि अपनी मीिी बोली औि अपने अदभकताा ओीं की सहायता से एक जीवींत व्यवसाय का
वहन किते िे ।
दकसी के द्वािा स्वयीं पि आिोदपत समू िा आत्म दनयींत्रण िीन दनदमा त िीनी दमट्टी के बता नोीं औि स्वणा जदटत
औि िीं गीन शीशे के हुक्ोीं को िे खते ही दपघलकि बह जाता िा। िु कानोीं में प्रिदशात कटोरियााँ , जग औि
शिाब पीने के दिदशष्ट िाम िय िृ द् पुण्यात्माओों को भी इसका स्वाि ले ने के दलए आकदषात किते िे ।
िु लाभ औि अनूिी विु ओीं का इस बाज़ाि में उपलब्ध दमश्रण एक साि नहीीं खिीिा जा सकता िा, भले ही
कारू
ाँ का खजाना भी, दकसी की सेवा में उपस्थित हो।'
िााँ िनी िौक के पड़ोस में कूिा नटवााँ िा। मूलतः यह जगह नटिाओों, शाही िरबार में नृ त्याोंगनाओों के
प्रदशक्षक ,ों िरबाररय ों औि प्रिशान किने वाले कलाकािोीं के दलए दनदमात िी। 19वीीं शताब्दी के प्रािीं दभक
काल तक यह दहन्क्िू औि मु स्स्लम कलाकािोीं जैसे दनमाा ताओीं, दित्रकािोीं, मू दता कािोीं औि अन्य
हिदशल्पकािोीं भि गया िा।
िल बाजाि में बहुत सी िु कानें िीीं, जहााँ गदमा योीं के िौिान िािस, बल्ख, बुखािा औि समिकन्द से मे वोीं की
आपूदता होती िी औि जाड़ोीं में उत्कृष्ट ताजे काले औि सिेि अींगूि ऊपि उल्लस्खत िे शोीं से माँ गाए जाते
िे ।जैसा बदनायि बताते हैं , िरबाररय ों क फि बहुि दप्रय थे औि उनका मु ख्य व्यय इन्ीीं पि होता िा।
उसके वणान के अनुसाि अनदगनत नानबाई िे । वह हमें ऐसी िु कानोीं के बािे में भी बताता है , जहााँ मााँ स
भू ना हुआ बेिा जाता िा कई तिीकोीं से काटा।
दिल्ली के बाजािोीं में एक व्यि शहिी केन्द्र की तिह गहमा-गहमी िहती िी, जहााँ कोई भी सवोत्तम दकस्म
की सभी प्रकाि की विु ओीं को प्राप्त कि सकता िा।
िौह िोंि दिल्ली में क़ुतु ब मीनाि के दनकट स्थित एक दवशाल िम्भ है। यह अपनेआप में प्रािीन भाितीय
धातु कमा की पिाकािा है। यह कदित रूप से रािा चन्द्रगुप्त दिक्रमादित्य (राि 375 - 413) से दनमाा ण
किाया गया, दकींतु कुछ दवशेषज्ञोीं का मानना है दक इसके पहले दनमाा ण दकया गया, सींभवतः 912 ईपू में।
िीं भ की उाँ िाई लगभग सात मीटि है औि पहले दहीं िू व जैन मीं दिि का एक दहस्सा िा। ते िहवीीं सिी में
कुतु बुद्दीन ऐबक ने मीं दिि को नष्ट किके क़ुतु ब मीनाि की थिापना की। लौह-िम्भ में लोहे की मात्रा किीब
98% है औि अभी तक जींग नहीीं लगा है ।
लगभग 1600 से अदधक वषों से यह खुले आसमान के नीिे सदियोीं से सभी मौसमोीं में अदविल खड़ा है।
इतने वषों में आज तक उसमें जींग नहीीं लगी, यह बात िु दनया के दलए आिया का दवषय है । जहाीं तक इस
िीं भ के इदतहास का प्रश्न है , यह िौिी सिी में बना िा। इस िम्भ पर सोंस्कृि में ि खुिा हुआ है ,
उसके अनुसाि इसे ध्वज िीं भ के रूप में खड़ा दकया गया िा।
िन्द्रिाज द्वािा मिु िा में दविु पहाड़ी पि दनदमा त भगवान दविु के मीं दिि के सामने इसे ध्वज िींभ के रूप
में खड़ा दकया गया िा। इस पि गरुड़ थिादपत किने हे तु इसे बनाया गया होगा, अत: इसे गरुड़ िीं भ भी
कहते हैं । 1050 में यह िोंि दिल्ली के सोंस्थापक अनों गपाि द्वारा िाया गया।
इस िीं भ की ऊोंचाई 735.5 से.मी. है । इसमें से 50 सेमी. नीिे है । 45 से.मी. िािोीं ओि पत्थि का
प्ले टिामा है । इस िीं भ का घेिा 41.6 से.मी. नीिे है तिा 30.4 से.मी. ऊपि है । इसके ऊपि गरुड़ की मू दता
पहले कभी होगी। िीं भ का कुि ििन 6096 दक.ग्रा. है । 1961 में इसके िासायदनक पिीक्षण से पता लगा
दक यह िीं भ आियाजनक रूप से शुद्ध इस्पात का बना है तिा आज के इस्पात की तु लना में इसमें काबान
की मात्रा कािी कम है ।
िारिीय पुराित्व सिे क्षण के मुख्य रसायन शास्त्ी डॉ॰ बी.बी. लाल इस दनष्कषा पि पहुीं िे हैं दक इस
िीं भ का दनमाा ण गमा लोहे के 20-30 दकलो को टु कड़ोीं को जोड़ने से हुआ है । माना जाता है दक 120
कािीगिोीं ने दिनोीं के परिश्रम के बाि इस िम्भ का दनमाा ण दकया। आज से सोलह सौ वषा पूवा गमा लोहे के
टु कड़ोीं को जोड़ने की उि तकनीक भी आिया का दवषय है , क्ोींदक पूिे लौह िम्भ में एक भी जोड़ कहीीं
भी दिखाई नहीीं िे ता। सोलह शतास्ब्दयोीं से खुले में िहने के बाि भी उसके वैसे के वैसे बने िहने (जींग न
लगने) की स्थिदत ने दवशेषज्ञोीं को िदकत दकया है।
इसमें िास्फोिस की अदधक मात्रा व सल्फि तिा मैं गनीज कम मात्रा में है । स्लग की अदधक मात्रा अकेले
तिा सामू दहक रूप से जींग प्रदतिोधक क्षमता बढ़ा िे ते हैं। इसके अदतरिि 50 से 600 माइक्रोन मोटी
(एक माइक्र न = 1 दम.मी. का एक हिारिाों दहस्सा) आक्साइड की पित भी िीं भ को जींग से बिाती
है ।
इदतहासकािोीं ने महिौली के लोह िीं भ को सम्राट िीं द्रगुप्त दद्वतीय के काल में िखा है औि लोह िीं भ में
कुछ इदतहासकाि मानते है दक उस लोह िींभ में जो लेख है वो गुप्त ले खो की शैली का है औि कुछ
कहते है दक िीं द्रगुप्त दद्वतीय के धनुधाा िी दसक्ो में एक िीं भ नज़ि आता है दजसपि गरुड़ है ,पि वह
िीं भ कम औि िाजिीं ड अदधक नज़ि आता है ।
लोह िीं भ के अनुसाि िाजा िीं द्र ने वींग िे श को हिाया िा औि सप्त दसींधु नदियोीं के मु हाने पि वदिको
को हिाया िा।
जेम्स िेगुाससनजैसे पदिमी इदतहासकाि मानते है दक यह लोह िीं भ गुप्त वींश के िीं द्रगुप्त दद्वतीय का
है ।
कुछ इदतहासकािोीं के अनुसाि यह िीं भ सम्राट अशोक का है जो उन्ोींने अपने िािा िीं द्र गुप्त मौया की
याि में बनवाया िा।
अश क िोंि –
बौद्ध धमा का अनुयायी बनने के बाि सम्राट अशोक ने भाित के अलावा बाहि के िे शोीं में भी बौद्ध धमा का
प्रिाि किवाया। उसने अपने पुत्र महें द्र औि पुत्री सींघदमत्रा को बौद्ध धमा का प्रिाि किने के दलए श्रीलीं का
भे जा िा। अशोक ने तीन वषा में िौिासी हजाि िू पोीं का दनमाा ण किाया औि भाित के कई थिानोीं पि
उसने िीं भ भी दनदमा त किवाया।
अपनी दवदशष्ट मूदिा किा के कारण ये िीं भ सबसे अदधक प्रदसद्ध हुए। वािव में सािनाि का िीं भ
धमा िक्र प्रवता न की घटना का एक स्मािक िा औि धमासींघ की अक्षु ण्णता को बनाए िखने के दलए इसकी
थिापना की गई िी।
सािनाि स्थित अशोक िीं भ को िु नाि के बलु आ पत्थि के लगभग 45 फुट िोंबे प्रिरखोंड से दनदमात
दकया गया िा। धिती में गड़े हुए आधाि को छोड़कि इसका िीं ड गोलाकाि है , जो ऊपि की ओि क्रमश:
पतला होता जाता है । िीं ड के ऊपि इसका कींि औि कींि के ऊपि शीषा है । कींि के नीिे प्रलीं दबत
िलोींवाला उलटा कमल है । गोलाकाि कींि िक्र से िाि भागोीं में दवभि है ।
उनमें क्रमश: हाथी, घ डा, साोंड िथा शेर की सिीि प्रदिकृदियााँ उभिी हुई है । कींि के ऊपि शीषा में
िाि शेि की मू दता याीं हैं जो पीि से एक िू सिी से जुड़ी हुई हैं । इन िािोीं के बीि में एक छोटा िीं ड िा जो 32
दतस्ल्लयोीं वाले धमािक्र को धािण किता िा, जो भगवान बुद्ध के 32 महापुरूष लक्षणोीं के प्रतीक स्वरूप
िा। अपने मू तान औि पादलश की दृदष्ट से यह िीं भ अि् भु त है । इस समय िींभ का दनिला भाग अपने मू ल
थिान में है । धमाचक्र के केवल कुछ ही टु कड़े उपलब्ध हुए।
बौद्ध धमा में शेि को बुद्ध का पयाा य माना गया है । बुद्ध के पयाा यवािी शब्दोीं में शाक्दसींह औि निदसींह
शादमल हैं । यह हमें पादल गािाओीं में दमलता है । इसी कािण बुद् द्वारा उपिे दशि धम्मचक्कप्पित्तन सुत्त
को बुद्ध की दसींहगजाना कहा गया है ।
ये िहाड़ते हुए दसींह धम्म िक्प्पवत्तन के रूप में दृदष्टमान हैं । बुद्ध को ज्ञान प्राप्त होने के बाि दभक्षु ओीं ने
िािोीं दिशाओीं में जाकि लोक कल्याण हे तु बहुजन दहताय बहुजन सुखाय का आिे श इदसपिन (मृगिाि)
में दिया िा, जो आज सािनाि के नाम से दवदश्वदवख्यात है ।
इसदलए यहााँ पि मौया काल के तीसिे सम्राट िन्द्रगुप्त मौया के पौत्र िक्रवती अशोक महान ने िीं भ के िािोीं
दिशाओीं में दसोंह गिाना किते हुए शेिोीं को बनवाया िा। इसे ही वता मान में अशोक िम्भ के नाम से जाना
जाता है ।
सम्राट अशोक ने भाित के दवदभन्न दहस्सोीं में बौद्ध धमा के प्रिाि के दलए िीं भोीं का दनमाा ण किाया औि बु द्ध
के उपिे शोीं को इन िीं भोीं पि दशलाले ख के रुप में उत्कीणा किाया। यहाीं हम आपको महान सम्राट अशोक
द्वािा बनवाये गए कुछ मु ख्य िीं भोीं दनम्म है -
प्रश्न - चचाा करें दक कैसे गादिब का िीिन और काया 19िी ों शिाब्दी के िौरान दिल्ली के सोंक्र मण
क िशाािा है ।
उिू ा शायिी में दकसी शख्स का नाम सबसे ज्यािा दलया जाता हैं तो वह हैं दमज़ाा ग़ादलब. दमज़ाा ग़ादलब मु ग़ल
शासन के िौिान ग़ज़ल गायक, कदव औि शायि हुआ किते िे . उिू ा भाषा के िनकाि औि शायि दमज़ाा
ग़ादलब का नाम आज भी कािी अिब से दलया जाता हैं . उनके िवािा दलखी गई गज़लें औि शायरियााँ आज
भी युवाओीं औि प्रेमी जोड़ोीं को अपनी औि आकदषात किती हैं दमज़ाा ग़ादिब की शायरियााँ बेहि ही
आसान औि कुछ पींस्ियोीं में हुआ किती िी. दजसके कािण यह जन-मन में पहुाँ ि गयी
दमज़ाा ग़ादिब उिू ा और फारसी भाषा के के महान शायि औि गायक िे . उन्ें उिू ा भाषा में आज तक का
सबसे महान शायि माना जाता हैं . िािसी शब्दोीं का दहींिी में जुडाव का श्रेय ग़ादलब को ही दिया जाता हैं
इसी कािण उन्ें मीि तकी “मीर” भी कहा जाता िहा हैं. दमज़ाा ग़ादलब के द्वािा दलखी गयी शायरियााँ दहीं िी
औि िािसी भाषा में भी मौजूि हैं . दमज़ाा ग़ादलब ने खुि के दलए दलखा हैं
दमज़ाा ग़ादिब का िन्म 27 दिसम्बि 1797 को आगिा के काला महल में हुआ िा. उनके दपता का नाम
दमज़ाा अब्दु ल्लाह बेग खान औि माता का नाम इज्ज़त दनसा बेगम िा. दमज़ाा ग़ादलब का असल नाम दमज़ाा
असि-उल्लाह बेग खान िा. उनके पूवाज भाित में नहीीं बस्ि तु की में िहा किते िे.
भाित मु गलोीं के बढते प्रभाव को िे खते हुए सन 1750 में इनके िािा दमज़ाा क़ोबान बेग खान समिकींि
छोड़कि भाित में आकि बस गए दमज़ाा ग़ादलब के िािा सैदनक पृिभू दम से जुड़े हुए िे दमज़ाा अब्दु ल्लाह
बेग खान (दमज़ाा ग़ादिब के दपिा) ने आगिा की इज्ज़त दनसा बेगम से दनकाह दकया औि वह ससुि के
घि में साि िहने लग गए. उनके दपता लखनऊ में दनजाम के यहााँ काम दकया किते िे
मात्र 5 साल की उम्र में साि 1803 में इनके दपता की मृ िु हो गयी दजसके बाि कुछ सालोीं तक दमज़ाा
अपने िािा दमज़ाा नसरुल्ला बेग खान जो की वो दब्रदटश ईस्ट इीं दडया कींपनी में सैन्य अदधकािी िे के साि
िहे ले दकन कुछ समय बाि उनके िािा की भी मृिु हो गयी छोटे से दमज़ाा ग़ादलब का जीवनयापन िािा
की आने वाली पेंशन से होने लगा|
13 साल की उम्र में दमज़ाा ग़ादलब का दनकाह 11 साल की उमिाव बेगम से हो गया िा. कुछ इदतहासकािोीं
के अनुसाि दमज़ाा ग़ादिब के िीिन में उनकी पत्नी का बहुत बड़ा प्रभाव िहा हैं . उनकी शायरियोीं में कहीीं
न कही उनके वैवादहक जीवन की प्रदतकृदत नजि आती हैं . ले दकन तब भी दमज़ाा ग़ादलब की पत्नी के बािे में
इदतहास में ज्यािा जानकािी नही दमलती हैं
दमज़ाा ग़ादलब ने जीवन में शािी को कैि की तिह बताया िा. इसका सबूत उनके िोि की पत्नी की मौत के
शोक पत्र में िे खने को दमलता हैं दजसमे दमज़ाा ने दलखा िा दक “मु झे खेि है . ले दकन उसे भी ईष्याा . कल्पना
किो! वह अपनी जीं जीिोीं से मु ि हो गई है औि यहाीं मैं आधी शताब्दी से अपने िींिे को ले कि घूम िहा हूाँ . ”
दमज़ाा ग़ादलब के िै िादहक िीिन में एक िु खि पक्ष यह भी हैं दक ग़ादलब को सात सींताने हुई िी ले दकन
उन सातोीं बच्चोीं में से एक भी बि नहीीं पाई इसी वजह से उन्ें िो बुिी आितें लग गयी िी एक शिाब औि
िू सिी जुआ. ये िोनोीं आितें उनका मिते िम तक साि नहीीं छोड़ सकी
दमज़ाा ग़ादिब पर 1954 में दिल्म बनायीीं गयी िी. दजसका नाम “दमज़ाा ग़ादलब” ही िा. इस दिल्म में दमज़ाा
ग़ादलब का दकििाि भाित भू षण ने दनभाया िा. औि सौिभ मोिी ने डायिे क्ट दकया िा. इस दिल्म को बेस्ट
दिल्म का िाष्टरीय पुरुस्काि भी प्राप्त हुआ िा. पदकिान में भी दमज़ाा ग़ादलब पि एक दिल्म 1961 में
बनायीीं जा िु की हैं
प्रश्न - 1857 में अों ग्रेि ों द्वारा दिल्ली पर पुनः कब्जा करने के बाि शहर के िीिन और इसके
पररदृश्य में क्या बििाि आया।
सुबह के सात बजे बािशाह बहािु िशाह ज़फि लाल दकलें में निी के सामने के तसबीहखाने में सुबह की
नमाज़ पढ़ िु के िे तभी उन्ें यमु ना पुल के पास 'ट ि हाउज़' से धुाँ आ उिता दिखाई दिया उन्ोींने फौिन
इसका कािण जानने के दलए अपना हिकािा वहााँ भे जा औि प्रधानमीं त्री हकीम अहसानुल्लाह खााँ औि
दकले की सुिक्षा के दलए दज़म्मेिाि कैप्टे न डगिस को तुिींत तलब कि दलया हिकािे ने आ कि बताया दक
अींग्रेज़ी सेना की विी में कुछ भाितीय सवाि नींगी तलवािोीं के साि यमु ना पुल पाि कि िु के हैं औि उन्ोींने
निी के पूवी दकनािे पि बने टोल हाउज़ में आग लगा कि उसे लू ट दलया है
बािशाह क सोंिेश -
ये सुनते ही बािशाह ने शहि औि दकले के सािे ििवाज़े बींि किने का हुक्म दिया ले दकन इस सब के
बावजूि िाि बजे के आसपास इन बादगयोीं के नेता ने बािशाह को सींिेश दभजवाया दक वो उनसे दमलना
िाहते हैं वो िीवानेखास के अहाते में जमा हो गए औि हवा में अपनी बींिूकें औि दपिौलें िाग़ने लगे
दिल्ली के उस समय के रईस अब्दु ि ििीफ़ ने 11 मई, 1857 के अपने िोज़नामिे में दलखा, "बािशाह
की हालत वही िी जो शतिीं ज की दबसात पि शह दिए जाने के बाि बािशाह की होती है . बहुत िे ि िु प
िहने के बाि बहािु िशाह ज़फि ने कहा, मे िे जैस बुज़ुगा आिमी की इतनी बेइज़्ज़ती क्ोीं की जा िही है ? इस
शोि की वजह क्ा है ? हमािी दज़िगी का सूिज पहले ही अपनी शाम तक पहुीं ि िु का है . ये हमािी दज़िगी
के आदखिी दिन हैं . इन दिनोीं हम दसफा तन्ाई िाहते हैं ."
कहा जाता है दक इन घटनाओीं ने दिल्लीवादसयोीं के जीवन में भािी उिलपुिल मिा िी िी. ले दकन फारूक़ी
का मानना है दक तमाम उिलपुिल के बावजू ि व्यवथिा पहले की तिह क़ायम िी
फ़ारूकी कहिे हैं , "1857 के बािे में कहा जाता है दक भाितीय समाज में एका नहीीं िा. हि जगह
अिाजकता िैली हुई िी. दसपादहयोीं में कोई अनुशासन नहीीं िा. ले दकन मैं ने अपनी दकताब में यही बात
सामने िखने की कोदशश की है दक ऐसा हिदगज़ नहीीं िा"
"ले दकन ज़ादहि सी बात िी दक डे ढ़ लाख आबािी वाले शहि में अगि तीस हज़ाि सैदनक आ जाएीं गे तो कुछ
न कुछ अव्यवथिा तो िैले गी ही ले दकन इसके बावजूि जो सबसे है रिअों गेज़ चीज़ है दक जब कमााँ डि इन
िीफ कोतवाल से कहता है दक उन दसपादहयोीं को पकड़ लाओीं जो मोिे पि नहीीं गए िे , वो िाि दसपाही
पकड़ दलए जाते हैं औि वो आ कि माफी भी मााँ गते हैं , अगि आपको लड़ाई के मोिे पि 500 िािपाइयोीं
की ज़रूित है औि उनमें 400 चारपाइयााँ पहुीं िाई जा िही हैं , इसका मतलब है दक उनको वहााँ पहुीं िाने
की कोई न कोई व्यवथिा मौजूि है ."
"ये सब िीज़े हवा से तो नहीीं हो िही िीीं न दकसी ने कहा, कोई ले कि आया, वो दनयत जगह पि पहुीं िीीं
उनका पैसा दिया गया लड़ाई दसफा दसपाही ही नहीीं लड़ते उस ज़माने में औि आज भी आपको टाट की
ब ररयााँ चादहए था आपक दमट्टी, ग़ारा, पानी औि क़ुली भी िादहए िे . एक दसपाही के पीछे िाि मज़िू ि
होते िे अगि व्यवथिा नहीीं िी तो वो सब कहााँ से आ िहे िे ?"
12 मई की सुबह िक दिल्ली अों ग्रेज़ ों से पूिी तिह खाली हो िु की िी. ले दकन कुछ अींग्रेज़ मदहलाओीं ने
दकले के बाविीखाने के पास कुछ कमिोीं में शिण ली िी. बादग़योीं ने बािशाह के दविोध के बावजूि उन
741सब को क़त्ल कि दिया |
ले दकन अींग्रेज़ोीं औि औितोीं ने दकले के अींिि आ कि एक भवन में पनाह ली िी. इन 56 लोगोीं को दजनमें
ज़्यािाति औितें औि बच्चे िे , इन बादग़योीं ने बहुत बेिहमी से मािा."
"जब बाि में बहािु रशाह ज़फ़र के दखिाफ़ मुकिमा िला तो उनके दखलाफ सबसे बड़ा इल्जाम यही
बग़ावत किने वालोीं के पााँ व उखड़ने लगे औि दिल्ली से खिे ड़े जा िु के अींग्रेज़ोीं ने वापसी की अींबाला से
आए सैदनकोीं ने बाज़ी पलट िी औि अींग्रेज़ एक बाि दिि दिल्ली में िादखल हो गए|
अींग्रेज़ो ने यहााँ क़त्ले आम दकया औि दसफा एक मोहल्ले कच्चा िलााँ में 1400 लोग माि डाले गए उस समय
के दब्रदटश सैदनक 19 िषीय एडिडा दिबाडा ने अपने चाचा गॉडा न के दिखे एक पत्र में दलखा, "मैं ने
इससे पहले बहुत भयावह दृश्य िे खे हैं ले दकन मैं ने जो कल िे खा है , मैं ईश्वि से प्रािा ना किता हूाँ दक वो मु झे
ऐसा दृश्य दिि कभी न दिखाए."
"औरि ों क ि बख़्श दिया गया िेदकन उनके पदिय ों और बेट ों क मारे िाने के बाि उनकी चीखें
अिी िी मेरे कान ों में गूाँि रही हैं . ईश्वर िानिा है दक उन ि ग ों के प्रदि मेरे दिि में क ई रहम नही ों
था िेदकन िब मेरी आाँ ख ों के सामने बुज़ुगा ि ग ों क इकट्ठा करके ग िी मारी गई, मुझ पर उसका
असर पडे बग़ैर नही ों रह सका."
बहािु िशाह ज़फि की इतनी बेइज़्ज़ती हुई दक लाल दकले में उन्ें िे खने अींग्रेज़ोीं के समू ह के समू ह आते िे
दक वो िे खने में कैसे लगते हैं
महमूि फारूकी बिािे हैं , "अींग्रेज़ सैलानी जैसे लाल दकले को िे खने आते िे वैसे उनकी कोििी में आ
कि िे खते िे दक बहािु िशाह ज़फि कैसे लगते हैं . दजस बािशाहे - दहीं िुिान का दिल्ली में ये हाल िा,
ज़ादहि है उन्ोींने अपनी दज़िगी के बाकी साल अपनी मौत के इीं ते ज़ाि में ही गुज़ािे ."
"दिल्ली से उनको िीं गून भे जा गया औि उसी के आसपास बमाा के बािशाह को भाित भे जा गया ित्नादगरि
में . आदखि में बहािु रशाह ज़फ़र ने दबल्कुि ठीक ही दिखा, 'दकतना बिनसीब है ज़फि िफ़्न के दलए.
िो गज़ ज़मीन भी न दमली कूएयाि में .'"
बहािु िशाह ज़फि की जान तो बख़्श िी गई ले दकन उनके तीन बेटोीं दमज़ाा मु ग़ल, दखज़्र सुल्तान औि अबू
बक्र को प्वॉएीं ट ब्लैं क िें ज से गोली से उड़ा दिया गया, वो भी उस समय जब उन्ोींने हदियाि डाल दिए िे .
दिदियम हॉडसन ने अपनी बहन क पि में दिखा, "मैं स्वभाव से दनिा यी नहीीं हूाँ ले दकन मैं मानता हूाँ इन
कमबख्त लोगोीं को धिती से छु टकािा दिला कि मु झे बहुत आनींि की अनुभूदत हुई."
बािशाह को लाल दकले की एक कोििी में एक साधािण क़ैिी की तिह िखा गया | सर िॉिा कैंपबेि ने
अपनी दकताब 'मेमॉएसा ऑफ़ माई इों दडयन कररयर' में दलखा, "बािशाह को इस तिह िखा गया जैसे
दपींजड़े में जानवि को िखा जाता है ."
उस समय वहााँ तै नात िेष्णटटनें ट चाल्सा दग्रदफ़थ्स ने भी अपनी दकताब 'सीज ऑफ डे ल्ही' में दलखा, "मु ग़ल
बािशाहत का आदखिी नुमाइीं िा एक साधािण सी िािपाई पि बैिा हुआ िा. उनकी लीं बी सफेि िाढ़ी िी
जो उनकी कमि को छू िही िी. उन्ोींने सफेि िीं ग के कपड़े औि उसी िीं ग का साफा पहन िखा िा."
"उनके पीछे िो अिा ली खड़े िे जो मोि के पींख से बने पींखे से उनके ऊपि हवा कि िहे िे . उनके मुीं ह से
एक शब्द भी नहीीं दनकला. उनकी आाँ खें ज़मीन पि गड़ी हुई िीीं. बािशाह से तीन दफट की िू िी पि एक
दब्रदटश अफसि बैिा हुआ िा."
"उसके िोनोीं तिफ सींगीन दलए हुए अींग्रेज़ सींतिी खड़े हुए िे . उनको आिे श िे दक अगि बािशाह को
बिाने की कोदशश की जाए तो वो उन्ें तु िींत अपने हािोीं से माि िें ."