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छिन्नमस्ता देवी के महामंत्र

।।ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचिनिये हुं फट स्वाहा।।

छिन्नमस्ता बीज मंत्र का मतलब

“श्रीं” यह लक्ष्मी बीज है।


“ह्रीं” यह जीवन में सभी दृष्टियों से उन्नति में सहायक है।
“क्लीं” यह मनोभव बीज है, यह समस्त पापों का नाश करने वाला है।
“ऐं” यह जीवन में समस्त गुणों को देने वाला और संजीवनी विद्या प्रदान करने वाला बीज
है।
“वं” यह वरुण देव का प्रतीक है, जिससे स्वयं के शरीर पर नियंत्रण रहता है और
अपने स्वरूप को कई रूपों में विभक्त कर सकता है।
“जं” यह इन्द्र का प्रतीक है, जिससे स्वयं के शरीर पर नियंत्रण रहता है और अपने
स्वरूप को कई रूपों में विभक्त कर सकता है।
“रं” यह रेफ युक्त है, यह अग्नि देव का प्रतीक है, यह बीज जीवन की पूर्णता का प्रतीक
है।
“वं” यह पृथ्वी पति बीज है, जिससे की साधक पूरी पृथ्वी पर नियंत्रण करने में समर्थ
का प्रतीक है।
‘ऐं” यह त्रिपुरा देवी का प्रतीक है।
“रं” यह त्रिपुर सुन्दरी का बीजाक्षर है।
‘ओं” यह सदैव त्रैलोक्य विजयिनी देवी का आत्म रूप प्रतीक है।
“चं” चन्द्र का प्रतीक है यह पूरे शरीर को नियंत्रित, सुन्दर व सुखी रखता है।
‘नं” यह गणेश का प्रतीक है यह ऋद्धि-सिद्धि देने में समर्थ है।
“ईं” यह साक्षात् कमला का बीजाक्षर है।
“यं’ सरस्वती का बीज है, जिससे साधक को वाक् सिद्धि होती है।
“हुं” हुं यह माला युग्म बीज है, जो आत्म और प्रकृति का संगम है, इससे साधक सम्पूर्ण
प्रकृति पर नियंत्रण स्थापित करता है।
“फट्” यह वैखरी प्रतीक है, जिससे साधक किसी भी क्षण मनोवांछित कार्य सम्पन्न कर
सकता है।
“स्वा” यह कामदेव का बीज है, जिससे साधक का शरीर सुन्दर, स्वस्थ वा आकर्षक बन
जाता है।
“हा” यह रति बीज है, यह पूर्ण पौरुष प्रदान करने में समर्थ है।

इस सभी बीज मंत्र से माता छिन्नमस्ता का मंत्र बनता है जो बहुत ही शक्तिशाली मायावी
मंत्र है। इस मंत्र को प्रतिदिन अनुष्ठान के रूप में जप करने से सभी मनोकामना
पूर्ण होती हे। अब बात करते हैं इस बीज मंत्र से किस तरह से मायावी मंत्र बनते
हैं।

1-ॐ हुं स्वाहा।।

2-ॐ फट स्वाहा।।

3-ॐ हुं फट स्वाहा।।

4-ॐ फट हुं स्वाहा।।

5-ॐ हुं फट ॐ फट स्वाहा।।

6-ॐ फट हुं फट स्वाहा।।

।।यह रहे मायावी मंत्र।।

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