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) "जीवन पथ जटिल है ये , कालचक्र कटिन है ये , पग पग पे भेद -भाव है , रक्त-रं जजत पााँव है , जन्म से ककसी क सर वंश की छााँव है , े झि क रथ पे सवार डाकओं का गााँव है , े ू ु ककसी क पास है छल-कपि, ककसी को रूप का वरदान है , े ये सोच क मत बैि जा कक ये ववधि का वविान है . े बजा रहा मदंग है , ये कहता अंग-अंग है , ृ की प्राण अभी शेष है , मान अभी शेष है , उिा ले ज्ञान का िनुष, एक कण भी और कछ मांग मत भग वान से. ु ज्ञान की कमान पे लगा दे तू ववजय ततलक, काल क कपाल पे ललख दे तू ये गुलाल से, े 'की रोक सकता कोई तो रोक क टदखा मझे, े ु ज्ञान क मंच पर सब एक सामान हैं, े

हक़ छीनता आया है जो अब छीन क बता मझ.' े ु े ववधि का वविान पलि दे , तो ब्रह्मास्त्र ज्ञान है . तो आज से ये िान ले, ये बात गांि बााँि ले, की कमम क करुक्षेर में , े ु ना रूप काम आता है , ना झि काम आता है , ू

ना जाती काम आती है , ना बाप का नाम काम आता है , लसर् ज्ञान ही आपको आपका हक़ टदलाता है . म

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