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शताक्षरा गायत्री
शताक्षरा गायत्री
इसे मृत्य पर ववजय पाने वाला मिा मृत्यंजय मंत्र किा जाता िै। इस मंत्र के कई नाम
और रूप िैं। इसे वशव के उग्र पिलू की ओर संकेत करते हुए रुद्र मंत्र किा जाता िै ;
वशव के तीन आँ खों की ओर इशारा करते हुए त्रयंबकम मंत्र और इसे कभी कभी मृत-
संजीवनी मंत्र के रूप में जाना जाता िै क्ोंवक यि कठोर तपस्या पूरी करने के बार्द
पयरातन ऋवष शयक्र को प्रर्दान की गई "जीवन बिाल" करने वाली ववद्या का एक घटक
िै।
ऋवष-मयवनयों ने मिा मृत्यंजय मंत्र को वेर्द का ह्रर्दय किा िै। वचंतन और ध्यान के वलए
इस्तेमाल वकए जाने वाले अनेक मंत्रों में गायत्री मंत्र के साथ इस मंत्र का सवोच्च स्थान
िै।तब यि
गायञी + शक्ति + मृत्ूँजय = शताक्षरा गायत्री मँत्र बनता िै -
।। ॐ भूभूव: स्व: ॐ तत्सववतयवूरेण्यम्भगोर्दे वस्य धीमवि वधयो योन:
प्रचोर्दयात् , जातवेर्दसे सयनवाम सोममारातीयतो वनर्दिावतवेर्द: ।।
स: न: पषर्दू वतर्दय गाूवि ववश्वानावेववसन्धय र्दय ररतात्क्ति: .त्र्यम्बकं यजामिे सयगक्तन्धं पयविवधूनम्।
उवाूरुकवमव बन्धनान् मृत्ोमयूक्षीय मामृतात्॥
स्वािा ।।