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कालिकाष्टकं - Kalikashtakam
कालिकाष्टकं - Kalikashtakam
॥ ा र तं प की प्रस्ततत॥
॥ सादर आभार – श्री महें द्र लसंह, श्री पखराज मेिाड़ा, श्री संजर् D जो ी, श्रीमती मीनाक्षी लसंह ॥
श्री मच्छङ्कराचार्य विरचचतं श्री कालिकाष्टकं
॥ध्र्ानम ्॥
ये भगवती कालिका गिे में रक्त टपकते िुए मुण्ड समूिों की मािा िैं, ये अत्यन्त घोर शब्द कर रिी िैं, इनकी
सन्
ु दर दाढें िैं तथा स्वरुप भयानक िै, ये वस्त्ररहित िैं ये श्मशानमें ननवास करती िैं, इनके केश बिखरे िुए िैं
और ये मिाकािके साथ कामिीिा में ननरत िैं ॥१॥
॥स्ततत:॥
ब्रह्मा आहद तीनों दे वता आपके तीनों गुणोंका आश्रय िेकर तथा आप भगवती कािी की िी आराधना कर
प्रधान िुए िैं । आपका स्वरूप आद्य िै , दे वताओंमें अग्रगण्य िै तथा आप प्रधान यज्ञ स्वरूप िैं और ववश्व का
मूि िैं, आपके इस स्वरूपको दे वता भी निीं जानते ॥४॥
आपका यि स्वरूप सारे ववश्वको मुग्ध करनेवािा िै , वाणीद्वारा स्तुनत ककये जानेयोग्य िै , आप ननज दास का
सि भांनत पोषण करने वािी तथा शत्रओ
ु ं का संिार करने वािी िैं, आपकी कृपा से शत्रग
ु ण की वाणी का
स्तम्भन एवं उच्चाटन िो जाता िै, आपके इस स्वरूपको दे वता भी निीं जानते ॥५॥
आप स्वगा को दे नेवािी और कल्पिताके समान िैं । और भक्तोंके मनमें उत्पन्न िोने वािी कामनाऔं को
यथाथा रूप में पूणा करने वािी िैं । और वे आपकी कृपा प्राप्त कर सदाके लिये कृताथा िो जाते िैं, आपके इस
स्वरूपको दे वता भी निीं जानते ॥६॥
आप सुरापनसे मत्त रिती िैं और अपने भक्तोंपर सदा स्नेि रखती िैं । भक्तोंके मनोिर तथा पववत्र हृदयमें िी
सदा आपका आववभााव िोता िै । जप, ध्यान तथा पूजारूपी अमत
ृ से आप भक्तोंके अज्ञानरूपी पंक (कीचड /
गन्दगी ) को धो डािनेवािी िैं, आपके इस स्वरूपको दे वता भी निीं जानते ॥७॥
आपका स्वरूप चचदानन्द, मन्द-मन्द मुसकान से युक्त, शरत्कािीन करोडों चन्द्रमाके प्रभासमूिके प्रनतबिम्ि-
॥ ा र तं प की प्रस्ततत॥
॥ सादर आभार – श्री महें द्र लसंह, श्री पखराज मेिाड़ा, श्री संजर् D जो ी, श्रीमती मीनाक्षी लसंह ॥
श्री मच्छङ्कराचार्य विरचचतं श्री कालिकाष्टकं
सदृश और मुननयों तथा कववयोंके हृदयको प्रकालशत करनेवािा िै , आपके इस स्वरूपको दे वता भी निीं जानते
॥८॥
आपके ध्यान से पववत्र िोकर चंचितावश इस अत्यन्त गुप्तभावको जो मैंने संसारमें प्रकट कर हदया िै , मेरे इस
अपराधको आप क्षमा करें , आपके इस स्वरूपको दे वता भी निीं जानते ॥१०॥
॥फिश्रतत:॥
यहद कोई मनुष्य ध्यानयुक्त िोकर सदै व इस स्तोत्र का पाठ करता िै , तो वि सारे िोकोंमे मिान ् िो जाता िै
उसे अपने घरमें आठों लसवद्धयााँ प्राप्त रिती िैं और मरणोपरांत मुक्क्त प्राप्त िोती िै , आपके इस स्वरूपको
दे वता भी निीं जानते ॥११॥
जय मााँ सवेश्वरी
॥ ा र तं प की प्रस्ततत॥
॥ सादर आभार – श्री महें द्र लसंह, श्री पखराज मेिाड़ा, श्री संजर् D जो ी, श्रीमती मीनाक्षी लसंह ॥