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सा रम्या नगरी महान् स नृपत िः सामन्तचक्रं च ्

पार्श्वे स्य च सा तवदग्धपररषत्तार्श्चन्द्रतिम्बाननािः।

उद् वृत्तिः स च राजपुत्रतनवहस्ते वन्दिनस्तािः कथािः

सवं यस्य वशादगात्स्मृत पथं कालाय स्मै नमिः।।

वह रमणीय नगरी, वह महान सम्राट और उसके अधीनस्थ रजवाड ़ों का समूह, उसके दाए़ों -बाए़ों वह ववद्वान ़ों
की सभा, वे चा़ोंदनी जै सी ग री च़ों द्रमुखिया़ों और वह मु़ोंहज र राजकुमार ़ों का ठाठ, वे भाट ल ग, उनके द्वारा
गाए जाते प्रशखि गान, वजसके वश में ये सभी यादें बनकर रह गए, उस कालदे वता क हमारा नमस्कार है ।

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