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भारतीय दण्ड संहिता

नोट- इस संक्षिप्त नोट को तैयार करने में पूर्ण सावधानी


बरती गयी है क्षिर भी क्षकसी त्रक्षु ट से बचने के क्षिए सम्बक्षधधत
के पाठ्य-पुस्तक का अध्ययन करें
प्रस्तावना
 अपराध तथा समाज का संबध ं अनादिकाल से रहा है ।
 समाज को अपरादधयो से बचाने के दलये िण्ड का प्रावधान दकया गया ।
 सभ्य समाज में िण्ड का एक महत्वपूर्ण स्थान है।
 सामादजक शादतत को भंग करने पर िण्ड की संरचना की गयी है।
 शादतत तथा सरु क्षा से समाज को संरदक्षत करने के दलये िण्ड राय य वारारा
दनधाण ररत दकया गया है ।
 प्रथम दवदध आयोग की स्थापना सन् 1834 में की गई
 लाडण मैकाले वारारा इसका नेतत्ृ व दकया गया।
 06 अक्टूबर 1860 को संदहता पाररत हुई।
 01 जनवरी 1862 में लागू की गई
अपराध के आवश्यक तत्वः-
 मानव
 आपरादधक आशय
 आपरादधक कृत्य
 मानव की क्षदत
धारा 1- संक्षहता का क्षवस्तार
 जम्मू कश्मीर राय य के दसवाय सम्पूर्ण भारत
धारा-2 -भारत के भीतर क्षकये गये अपराधों का दण्ड
धारा 3 -भारत से परे क्षकधतु उसके भीतर क्षवचारर्ीय अपराधों का दण्ड

धारा 4
 भारतीय नागररक वारारा भारत से बाहर दकया गया अपराध
 भारत में पंजीकृत दकसी पोत या दवमान पर दकया गया अपराध

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 दकसी कम््यूटर साधन को लक्ष्य बनाते हुए दकया गया अपराध ।


धारा 5
 सैतय तयायालय वारारा िण्ड िेने पर रोक नही होगी ।
धारा 6
 पररभाषाओं का अपवािों के अध्याधीन समझा जाये ।
धारा 10
 परु ु ष- दकसी भी आयु का नर ।
 स्त्री- दकसी भी आयु की नारी ।
धारा 14
 सरकार का सेवक
 कोई अदधकारी या सेवक ।
धारा 21
िोक सेवक- दवदध के अनक्र ु म में दनयक्त
ु कोई व्यदक्त इसमे तीनों सेनायें
तयायाधीश, तयादयक अदधकारी तथा कोई भी अतय अदधकारी दजसका कतण व्य
लोक कर्त्णव्यों का दनवण हन करना है।
 तयायालय का हर आदिसर, समापक, ररदसवर या कदमश्नर भी आता है।
 लोक सेवक की सहायता करने वाला हर जूरी सिस्य, असेसर या पंचायत
का सिस्य
 हर मध्यस्थ या सक्षम लोक प्रादधकारी ।
 व्यदक्त को परररोध मे रखने में सक्षम हो ।
 अपराधो को दनयदतित करने वाले अपराधो की इदर्त्ला िेने वाले ।
 लोक स्वास्थय, क्षेम की संरक्षा करने वाले ।
 सरकार की ओर से सम्पदर्त् को ग्रहर् करने ।
 व्यय , सवेक्षर्, संदविा करने या धन सम्बदतध अतवेषर् या िस्तावेज बनाये
या प्रमादर्त करे ।
 दनवाण चक दनयमावली तैयार करे, प्रकादशत करे, सरकार की सेवा या वेतन
में हो ।
 लोक कतण व्य के पालन के दलए सरकार से िीस या कमीशन लेता हो।

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 नगर आयक्त
ु भी लोक सेवक है ।
धारा 22 जंगम सम्पक्षि (चि सम्पक्षि)
 दजसमें मूतण सम्पदर्त् भी आती है ।
 भूबद्ध या भूदम से जड ु ी हुयी कोई वस्तु ।
धारा 23- सदोष अक्षभिाभ
 अवैध रूप से प्राप्त लाभ
 सिोष हादन
 दवदधक रूप से हकिार व्यदक्त की हादन।
धारा 24- बेईमानी से
 दकसी को सिोष लाभ तथा अतय को हादन।
धारा 25- कपट पूवणक
 कपट के आशय से कायण करना।
धारा 26- क्षवश्वास करने का कारर्
 प्रयाप्त हेतु रखने वाला व्यदक्त ।
धारा – 27 पत्नी, क्षिक्षपक या सेवक के कब्जे में सम्पक्षि
 मादलक की सम्पदर्त् मानी जाती है।
धारा – 28 कूटकरर्
इसके दनम्नदलदखत अवयव है
 एक वस्तु को िूसरे के समान बनाना ।
 दजससे धोखा हो सके ।
 ऐसा कायण धोखा करने का आशय हो ।
 कायण वारारा धोखा दिये जाने की संभावना हो ।
धारा 29- दस्तावेज
 दकसी दवषय का धोतक है।
 इसके समतल्ु य अतय रुप में प्रिदशण त हर वस्तु सम्मदलत है ।
 ऐसी सामग्री साक्ष्य के रुप में प्रयोग की जाये ।
धारा 29(क)- इिेक्ट्राक्षनक अक्षभिेख
 आंकडा, ररकाडण वारारा प्राप्त की गयी छाया ।

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 िोन अथवा कम््यूटर वारारा उत्पादित की गयी लघु दस्लप ।


 इलेक्रादनक रुप से भेजी गयी ध्वदन ।
धारा 30- मूल्यवान प्रक्षतभूक्षत
 दजससे कोई अदधकार सदृ जत हो ।
 कोई दिकी अवधारर्ा के आधार पर पाररत की जा सके ।
 प्रदतदलदप मूल्यवान प्रदतभूदत की श्रेर्ी मे नही आती है ।
 तलाक दवक्रय-दबलेख, दकराया पि, बीमा पादलसी आदि इसके अततगण त
है।
धारा 34
सामाधय आशय के अग्रसर करने में कई व्यक्षियों द्वारा क्षकये गये कायण
आवश्यक तत्व –
 कोई आपरादधक कायण
 व्यदक्तयो वारारा दकया गया हो
 सामातय आशय को अग्रसर करने में हो ।
 उनके बीच दनधाण ररत योजना के अततगण त कायण हो ।
 सभी अदभयक्त ु दकसी न दकसी प्रकार सम्मदलत हो ।
 सभी की शाररररक उपदस्थदत सिैव आवश्यक नही है ।
धारा 44- िक्षत
आवश्यक तत्व-
 दकसी व्यदक्त को क्षदत हो ।
 अवैध रुप से क्षदत काररत हो ।
 शरीर मन ख्यादत सम्पदर्त् के संबधं मे हो ।
धारा 52- सद्भाव पूवणक
 सम्यक सतकणता से न दकया गया हो।
 ध्यान तथा दवश्वास के साथ दकया गया हो।
 कायण की प्रकृदत पररर्ाम एवं महत्व के संबध ं में जानता हो।
धारा 52 क- संश्रय
 दकसी व्यदक्त को आश्रय, भोजन, पेय, धन, वस्त्र आदि िेना।

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 आयद्ध ु , गोला , बारुद्ध ले जाने का साधन िेना ।


 पकडे जाने से बचाना।
 पत्नी तथा पदत वारारा दिया गया संश्रय अपराध नही है।
धारा 53- दण्ड
 मत्ृ यु िण्ड
 आजीवन कारावास
 कारावास –
 1. कदिन कारावास 2. सािा कारावास
 सम्पदर्त् का समपहरर्
 जम ु ाण ना
धारा 75 पूवण दोष क्षसक्षि के पश्चात अध्याय 12 या अध्याय 17 के अधीन
कक्षतपय अपराधों के क्षिए वाक्षधणत दण्ड
 3 वषण या अदधक के िण्ड से िदण्डत व्यदक्त पन ु ः अपराध करता है।
 वह आजीवन कारावास या 10 वषण तक से िदण्डत होगा।
धारा 76
क्षवक्षध द्वारा आबि या तथ्य की भूि के कारर् अपने आप को क्षवक्षध द्वारा
आबि होने का क्षवश्वास करने वािे व्यक्षि द्वारा क्षकया गया कायण
तत्व क्षनम्न हैः-
 व्यदक्त वारारा दकया गया कायण जो दवदध वारारा बाध्य है
 दवदध वारारा अपने को बाध्य समझता है।
 भूल तथ्य से संबदं धत होनी चादहये दवदध से नही।
 कायण सद्भावपूवणक दवश्वास के साथ होना चादहये।
धारा 77 धयाक्षयकतः कायण करते हुये धयायाधीश का कायण
 तयायधीश वारारा ऐसी दकसी शदक्त के प्रयोग में की जाती है।
 दजसके बारे में उसे दवश्वास है दक वह उसे दवदध वारारा िी गयी हो।
धारा 78 धयायािय के क्षनर्णय या आदेश के अनुसरर् में क्षकया गया कायण
 दनर्ण य या आिेश के अनश ु रर् में की जाये।
 दनर्ण य या आिेश के प्रवत ृ रहते की जाये।

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 अदधकाररता के दवपरीत िी जाये।


 दवश्वास करता हो दक उसे वैसी अदधकाररता थी।
धारा 79—क्षवक्षध द्वारा धयायानुमत या तथ्य की भूि से अपने को क्षवक्षध
द्वारा धयायानुमत होने का क्षवश्वास करने वािे व्यक्षि द्वारा क्षकया गया कायण
अवयवः-
 भूल तथ्य से संबदं धत हो दवदध से नही।
 भूल सिभावना में की गयी हो।
 कताण दवदध वारारा कायण करने के दलये अपने को अदधकृत मानता हो।
धारा 80- क्षवक्षधपूर्ण कायण करने में दुर्णटना
अवयवः-
 कायण एक िघ ु ण टना या िभु ाण ग्य हो।
 दबना आशय या ज्ञान के दकया गया हो।
 वैध साधनों वारारा वैध रीदत से दकया गया हो
 उदचत सतकणता और सावधानी से दकया गया हो।
धारा 81- कायण, क्षजससे अपहाक्षन काररत होना संभाव्य है, क्षकधतु जो
अपराक्षधक आशय के क्षबना और अधय अपहाक्षन के क्षनवारर् क्षिए क्षकया
गया है-
अवयवः-
 जानता हो दक अपहादन होनी सम्भाव्य है।
 अपरादधक आशय के दबना दकया जाता है।
 सद्भावपूवणक दकया गया हो।
 अतय अपहादन के दनवारर् के दलये दकया गया हो।
धारा 82- सात वषण से कम आयु के क्षशशु का कायण-
अवयवः-
 ऐसा दशशु दववेक दवहीन होता है।
 अपराध करने में सक्षम नही होता है।
 आयु के साक्ष्य का प्रमार् ही दनिोष मानने का आधार है।

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धारा 83- सात वषण से उपर क्षकधतु 12 वषण से कम आयु के अपररपक्ट्व


समझ के क्षशशु का कायण
अवयवः-
 इस आयु के बच्चे वारारा दकया गया कायण ।
 आचरर् की प्रकृदत तथा पररर्ाम समझने में असमथण हो।
 ऐसी असमथण ता कायण करते समय अदस्तत्व में हो।
धारा 84- क्षवकृतक्षचि व्यक्षि का कायण
अवयवः-
 कायण अस्वस्थ मदस्त्क के व्यदक्त वारारा दकया गया हो।
 कायण की प्रकृदत ना जानता हो।
 ऐसी अक्षमता उसके अस्वथ्य मदस्त्क के कारर् होनी चादहये।
 कायण करते समय अक्षमता अदस्तत्व में हो।
धारा 85- ऐसे व्यक्षि का कायण जो अपनी इच्छा के क्षवरुि मतता में होने
के कारर् क्षनर्णय में पहुचुँ ने में असमर्ण है।
अवयवः-
 मतता के कारर् कायण की प्रकृदत समझने में असमण थ हो ।
 िोषपूर्ण या दवदधदवरुद्ध था इससे जानने में समथण न हो ।
 दजस वस्तु ने उसे उतमत दकया था ।
 ज्ञान के दबना इच्छा के दवरुद्ध िी गयी हो ।
धारा 86- क्षकसी व्यक्षि द्वारा, जो मतता में है, क्षकया गया अपराध क्षजसमें
क्षवशेष आशय या ज्ञान का होना अपेक्षित है।
अवयवः-
 व्यदक्त स्वेच्छा से नशे में हो।
 नक ु सान या क्षदत पहुचुँ ाने वाला कायण करता हो।
 मतता बचाव तब नही होगी जब वह अपनी इच्छा से नशे का सेवन दकया
हो।
धारा 87-सम्मक्षत से क्षकया गया कायण क्षजससे मत्ृ यु या र्ोर उपहक्षत काररत
करने का आशय ना हो और ना उसकी समभाव्यता का ज्ञान है

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अवयवः-
 कायण ज्ञान तथा आशय से न दकया गया हो ।
 गम्भीर चोट न पहुच ुँ ाने के आशय दकया गया हो ।
 क्षदत व्यदक्त की सहमदत से की गयी हो ।
 सहमदत िेने वाले व्यदक्त की उम्र 18 वषण से अदधक हो ।
 स्वेच्छा से िी हो ।
धारा 88 – क्षकसी व्यक्षि के िायदे के क्षिये सम्मक्षत से सदभावपूवणक क्षकया
गया कायण, क्षजससे मत्ृ यु काररत करने का आशय नही है।
अवयवः-
 कायण उसके लाभ के दलये दकया गया हो ।
 उसकी सहमदत से दकया गया हो ।
 सहमदत दववदक्षत या अदभवयक्त हो
 सिभावपूवणक दकया गया हो ।
 मत्ृ यु काररत करने के आशय से न दकया गया हो ।
 अपहादन से मत्ृ यु होनी समभाव्य हो ।
धारा 89– संरिक द्वारा या उसकी सम्मक्षत से क्षशशु या उधमत व्यक्षि के
िायदे के क्षिये सदभावपूवणक क्षकया गया कायणः
अवयवः-
 कायण 12 वषण से कम आयु के दशशु या पागल व्यदक्त के लाभ के दलय़े दकया
गया हो।
 सद्भावपूवणक दकया गया हो ।
 अदभभावक वारारा सहमदत िी गयी हो ।
 सहमदत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हो सकती हो ।
धारा 90- सम्मक्षत, क्षजसके संबधं में ज्ञात हो क्षक वह भय या भ्रम के अधीन
दी गयी है
अवयवः-
 अपहादन के भय से िी गयी हो ।
 तथ्य के भ्रम के कारर् िी गयी हो ।

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 12 वषण से कम आयु के दशशु वारारा िी गयी हो


 दवकृतदचत व्यदक्त वारारा िी गयी हो ।
 मर्त् व्यदक्त वारारा िी गयी हो ।
धारा 91- ऐसे कायों का अपवजणन जो काररत अपहाक्षन के क्षबना भी स्वतः
अपराध है
अवयवः-
 कायण काररत अपहादन के दबना स्वंय अपराध हो।
 सहमदत के आधार पर बचाव नही कर सकता।
 कायण दवदध वारारा मना दकया गया हो।
धारा 92- सम्मक्षत के क्षबना क्षकसी व्यक्षि के िायदे के क्षिए सद्भावपूवणक
क्षकया गया कायण-
अवयवः-
 कायण व्यदक्त के िायिे के दलये दकया गया हो ।
 सद्भावपूवणक दकया गया हो ।
 पररदस्थदतयों के अनस ु ार यदु क्तसंगत हो ।
 सम्मदत के दबना उसे बचाने के दलये दकया गया हो ।
 ऐसी पररदस्थदत हो दक सम्मदत िेना सम्भव न हो ।
 संरक्षक वारारा सम्मदत ली जा सकती है ।
धारा 93- सद्भावपूवणक दी गई संसूचना
अवयवः-
 व्यदक्त को सद्भावपूवणक सूदचत दकया गया हो ।
 उसके िायिे के दलये हो ।
धारा 94- वह कायण क्षजसको करने के क्षिए कोई व्यक्षि धमक्षकयों द्वारा
क्षववश क्षकया गाय है -
अवयवः-
 स्वेच्छा से िबाव के सम्मख ु कायण न दकया हो ।
 कायण धमकी से दववश होकर दकया हो ।
 मत्ृ यु का भय दिया गया हो ।

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 कताण के पास उक्त कायण करने के अलावा कोई दवकल्प न हो ।


धारा 95- तुच्छ अपहाक्षन काररत करने वािा कायण
अवयवः-
 यदु क्तसंगत व्यदक्त दशकायत ना करे ।
 कायण तच्ु छ प्रकृदत का हो ।
 क्षदत की प्रकृदत सामातय हो।
धारा 96- प्राईवेट प्रक्षतरिा में की गई बातें
अवयवः-
 कायण अपनी व्यदक्तगत रक्षा के दलये दकया गया हो।
 समाज की सहायता प्राप्त ना हो सकती हो।
 अपने शरीर तथा सम्पदर्त् पर दकये गये आक्रमर् से रक्षा करने में समथण हो
धारा 97- शरीर तर्ा सम्पक्षि की प्राईवेट प्रक्षतरिा का अक्षधकार-
अवयवः-
 शरीर पर प्रभाव डालने वाले अपराध के दवरुद्ध स्वंय की हो ।
 समाज की सहायता प्राप्त ना हो सकती हो ।
 अपने शरीर तथा सम्पदर्त् पर दकये गये आक्रमर् के दवरुद्ध हो ।
 स्वंय तथा िूसरे की रक्षा करे ।
 चोरी, लूट, ररदि या अपरादधक अदतचार के मामलो में अपनी सम्पदर्त् की
रक्षा करे ।
धारा 98- ऐसे व्यक्षि के कायण के क्षवरूि प्राईवेट प्रक्षतरिा का अक्षधकार जो
क्षवकृतक्षचत आक्षद हो
अवयवः-
 कायण समझ की पररपक्वता के अभाव में हो।
 दवकृतदचर्त् व्यदक्त वारारा दकये जाने पर बचाव का अदधकार हो।
 मनः दस्थदत के अभाव में दकया हो।
 अवैध कायण के दवरुद्ध प्रदतरक्षा का अदधकार प्राप्त है।
धारा 99- कायण क्षजनके क्षवरूि प्राईवेट प्रक्षतरिा का कोई अक्षधकार नहीं है
अवयवः-

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 कायण लोकसेवक वारारा दकया गया हो।


 सद्भावपूवणक दकया गया हो।
 पिाभास के अततगण त दकया गया हो।
 मत्ृ यु या घोर उपहदत की आंशका न हो।
धारा 100- शरीर की प्राइवेट प्रक्षतरिा के अक्षधकार का क्षवस्तार मत्ृ यु
काररत करने पर कब होता है ?
 हमला मत्ृ यु का पररर्ाम न हो ।
 पररर्ाम घोर उपहदत हो ।
 बलात्कार करने के आशय से दकया गया हो ।
 प्रकृदत दवरूद्ध काम त्ृ र्ा की तदृ प्त के आशय से हो ।
 व्यपहरर् या अपहरर् के दलये हो।
 सिोष परररोध से छुडाने के दलये प्रादधकाररयो की सहायता प्राप्त न हो
सके ।
 तेजाब िें क कर या सेवन कराने से संबदं धत हो ।
धारा 101- कब ऐसे अक्षधकार का क्षवस्तार मत्ृ यु से क्षभधन कोई अपहाक्षन
काररत करने तक का होता है
 हमलावर की मत्ृ यु के अलावा कोई अपहादन ।
 अपहादन सीमा से अदधक नही ।
 अपहादन पररसीमाओ के अध्यधीन हो ।
धारा 102- शरीर की प्राइवेट प्रक्षतरिा के अक्षधकार का प्रारम्भ और बने
रहना-
 शरीर को खतरे की आशंका उत्पतन होने पर ।
 अपराध करने के प्रयत्न या धमकी पर ।
 भय समाप्त न होने तक बना रहेगा ।
धारा 103- शरीर की प्राइवेट प्रक्षतरिा के अक्षधकार का प्रारम्भ और बना
रहना
 लूट
 रादि गहृ भेिन

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 अदग्न वारारा ररदि


 चोरी ररदि या अदतचार से आशंका मत्ृ यु या घोर उपहदत हो।
 अदग्न या दवस्िोटक पिाथण वारारा ररदि कायण करना।
धारा 104- ऐसे अक्षधकार का क्षवस्तार मत्ृ यु से क्षभधन कोई अपहाक्षन काररत
करने तक का कब होता है
 धारा 99 में दिये गये दनबण तधनो के अधीन िोषकताण की मत्ृ यु से दभतन।
 कोई अपहादन स्वेच्छाकाररत करने तक का है।
धारा 105- सम्पक्षि के प्राइवेट प्रक्षतरिा के अक्षधकार का प्रारम्भ और
बना रहना
 चोरी के दवरुद्ध अपराधी के सम्पदर्त् सदहत पहुच ुँ से बाहर हो जाने ।
 लोक प्रादधकारी की सहायता प्राप्त कर लेने तक ।
 सम्पदर्त् वापस प्राप्त कर लेने तक ।
 लूट में मत्ृ य,ु घोर उपहदत, सिोष अवरोध की आशंका बने रहने तक ।
 अदतचार या ररदि के दवरुद्ध कायण करने तक ।
 गहृ भेिन में गहृ भेिन शरु ु होने तथा अतत तक
धारा 106- र्ातक हमिे के क्षवरुि प्राईवेट प्रक्षतरिा का अक्षधकार जबक्षक
क्षनदोष व्यक्षि को अपहाक्षन होने की जोक्षखम हो
 दनिोष व्यदक्त की अपहादन के जोदखम के दबना ।
 मत्ृ यु , घोर उपहदत की आशंका ना हो ।
 पररसीमा से अदधक न हो ।
धारा 107- क्षकसी बात का दुष्प्प्ररे र्- तब कहा जाता है
 कोई बात करने हेतु दकसी को उकसाना
 षडयति अके ले या अतय से दमलकर करने के उद्देश्य से ।
 कायण या अवैध लोप वारारा साशय सहायता करना ।
धारा 108- दुष्प्प्ररे क-
 अपराध दकये जाने का ि्ु प्रेरर् ।
 ि्ु प्रेरित व्यदक्त वारारा उसी आशय या ज्ञान से कायण करना ।
 दवदध अनस ु ार असमथण व्यदक्त वारारा अपराध करना ।

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धारा 108 क- भारत से बाहर के अपराधों का भारत में दुष्प्प्ररे र्


 भारत के बाहर या परे अपराध का ।
 भारत में दकये जाने पर अपराध होना ।
धारा 109- दुष्प्प्ररे र् का दण्ड, यक्षद दुष्प्प्ररे रत कायण उसके पररर्ामस्वरुप
क्षकया जाएं, और जहां क्षक उसके दण्ड के क्षिए कोई अक्षभव्यि उपिब्ध
नहीं है
 ि्ु प्रेिर् के अनस ु रर् में ि्ु प्रेररत कायण दकया गया हो ।
 संदहता में िण्ड का कोई अदभव्यक्त उपबतध न हो ।
धारा 114- अपराध क्षकये जाते समय दुष्प्प्ररे क की उपक्षस्र्क्षत
 कायण की प्रकृदत दनदित रुप से अपराध गदित करे ।
 कायण या अपराध दकया गया हो ।
 वह घटनास्थल पर उपरदस्थत हो ।
 अतय व्यदक्त भले ही वास्तदवक अपराध करे ।
धारा 120 क- आपराक्षधक षडयधत्र की पररभाषा
अवयवः-
 िो या अदधक व्यदक्तयो के बीच समझौता ।
 अवैध कायण ।
 वैध कायण अवैध साधनों वारारा ।
 करना या करवाना ।
धारा 120 ख- आपराक्षधक षडयधत्र का दण्ड
 मत्ृ य,ु आजीवन कारावास या िो वषण से अदधक के दलये उसी िण्ड से
 िो वषण से कम िण्डनीय अपराध के दलये 6 मास या जम ु ाण ना या िोनो ।
धारा 121- भारत सरकार के क्षवरूि युि करना या करने का प्रयत्न
करना या युि करने का दुष्प्प्ररे र् करना
 िण्ड – मत्ृ यु या आजीवन कारावास और जम ु ाण ना
धारा 122- भारत सरकार के क्षवरूि युि करने के आशय से आयुि आक्षद
संग्रह करना ।
 िण्ड – 10 वषण तक का कारावास और जम ु ाण ना

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धारा 123- युि करने की पररकल्पना को सुकर बनाने के आशय से


क्षछपाना
 िण्ड – 10 वषण तक का कारावास और जम ु ाण ना
धारा 124- क्षकसी क्षवक्षधपूर्ण शक्षि का प्रयोग करने के क्षिए क्षववश करने या
उसका प्रयोग अवरोक्षधत करने के आशय से राष्प्रपक्षत, राज्यपाि आक्षद
पर हमिा करना
 िण्ड – 10 वषण तक का कारावास और जम ु ाण ना
धारा 124 क- राज्यद्रोह
 िण्ड- आजीवन कारावास या जम ु ाण ना।
धारा 136- अक्षभत्याजक को संश्रय देना
 िण्ड- िो वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से
धारा 140- सैक्षनक, नौसैक्षनक या वायुसैक्षनक द्वारा उपयोग में िायी जाने
वािी पोशाक पहनना या टोकन धारर् करना।
 िण्ड- 3 मास तक या जम ु ाण ने से जो 500 रुपये तक हो सके गा या िोनों से
धारा 141- क्षवक्षध क्षवरुि जमाव
 पाुँच या अदधक व्यदक्तयों का उद्देश्य ।
 आपरादधक बल के प्रयोग वारारा आतंदकत करना है ।
(क) के तरीय सरकार या
(ख) राय य सरकार या
(ग) संसि या
(घ) दकसी लोकसेवक को
 दकसी दवदध या दवदधक आिेश के दन्पािन का दवरोध करना ।
 ररदि या आपरादधक अदतचार या अतय अपराध करना ।
 आपरादधक बल वारारा
(क) दकसी सम्पदर्त् का कब्जा लेना या
(ख) दकसी व्यदक्त को अमूतण से वंदचत करना या
(ग) दकसी अदधकार या अनदु मत अदधकार को प्रवदतण त करना
 दकसी व्यदक्त को आपरादधक बल वारारा

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(क) अवैध रूप से कायण करना ।


(ख) वैध कायण करने के दलये अवैध रुप से दववश करना ।
धारा 142- क्षवक्षध क्षवरुि जमाव का सदस्य होना
 तथ्यों से पररदचत होते हुए ।
 जमाव बनाते हैं ।
 साशय सदम्मदलत या बना रहता है ।
धारा 143- दण्ड
 6 मास तक िण्ड या जम ु ाण ने से या िोनों से ।
धारा 144- र्ातक आयुध से सक्षज्जत होकर क्षवक्षध क्षवरुि जमाव में
सक्षम्मक्षित होना।
 िण्ड- िो वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से।
धारा 145- क्षकसी क्षवक्षध क्षवरुि जमाव में यह जानते हुए क्षक उसके क्षबखर
जाने का समादेश दे क्षदया गया है, सक्षम्मक्षित होना या उसमें बने रहना-
 िण्ड-2 वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से ।
धारा 146- बल्वा करना
अवयव-
 अदभयक्त ु ो की संख्या 5 या अदधक हो ।
 उनका सामातय उद्देश्य एक हो ।
 उस उद्देश्य के अनस ु रर् में बल या दहंसा का प्रयोग दकया गया हो ।
धारा 147- बल्वा करने के क्षिए दण्ड
 िो वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से ।
धारा 148- र्ातक आयुध से सक्षज्जत होकर बल्वा करना-
 िण्ड - तीन वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से।
धारा 149- क्षवक्षध क्षवरुि जमाव का प्रत्येक सदस्य, सामाधय उद्देश्य को
अग्रसर करने के क्षिए क्षकये गये अपराध का दोषी
अवयव-
 दकसी सिस्य वारारा कोई अपराध दकया जाना ।
 अपराध जमाव के सामातय उद्देश्य को अग्रसर करने में दकया जाए,

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 हर सिस्य सम्भाव्य जानता हो ।


धारा 151- पाुँच या अक्षधक व्यक्षियों के जमाव को क्षबखर जाने का
समादेश क्षदये जाने के पश्चात उसमें जानते हुए सक्षम्मक्षित या बने रहना
दण्ड- 6 मास तक या जमु ाण ने से या िोनों से ।
धारा 153 क- धमण, मूिवंश, जधमस्र्ान, क्षनवास स्र्ान, भाषा इत्याक्षद के
आधारों पर क्षवक्षभधन समूहों के बीच शत्रुता का सम्प्रवतणन और सौहादण बने
रहने पर प्रक्षतकूि प्रभाव डािने वािे कायण करना-
 िण्ड- 03 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनो से ।
 पूजा के स्थान आदि में अपराध करने की िशा में िण्ड 05 वषण और
जमु ाण ना ।
धारा 153 कक- क्षकसी जुिूस में जानबूझ कर आयुध िे जाने या क्षकसी
सामूक्षहक क्षिि या सामूक्षहक प्रक्षशिर् का आयुध सक्षहत संचािन या
आयोजन करना या उसमें भाग िेना
 िण्ड- 06 मास तक और 2000 रुपये तक जम ु ाण ना।
धारा 153 ख- राष्प्रीय अखण्डता पर प्रक्षतकूि प्रभाव डािने वािे िांछन
का प्राख्यान
 िण्ड- 3 वषण तक या जम ु ाण ने या िोनों से ।
 अपराध उपासना स्थल पर दकये जाने पर,
 िण्ड-05 वषण और जम ु ाण ना ।
धारा 159- दंगा –इस अपराध के क्षनम्नक्षिक्षखत अवयव हैं
 िो या िो से अदधक व्यदक्तयों के बीच लडाई,
 लडाई दकसी सावण जदनक स्थान में हो,
 उनकी लडाई से लोक शादतत को व्यवधान पहुच ुँ े।
धारा 160- दंगा करने के क्षिये दण्ड
 एक मास तक या 100 रुपये जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 166- िोकसेवक, जो क्षकसी व्यक्षि को िक्षत काररत करने के आशय
से क्षवक्षध की अवज्ञा करता है
 िण्ड- एक वषण तक या जम ु ाण ना से या िोनों से ।

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धारा 166 क- िोकसेवक जो क्षवक्षध के अधीन के क्षनदेश की अवज्ञा करता


है
 िण्ड- 6 मास से कम की नहीं होगी, दकततु जो िो वषण तक की हो सके गी
और जमु ाण ने से ।
धारा 166 ख- पीक्ष़ित का उपचार न करने के क्षिये दण्ड
 िण्ड- 01 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनो से ।
धारा 170- िोकसेवक का प्रक्षतरूपर्
 िण्ड- िो वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से ।
धारा 171- कपटपूर्ण आशय से िोकसेवक के उपयोग की पोशाक पहनना
या टोकन धारर् करना
 िण्ड-03 मास तक या 200 रुपये जम ु ाण ना से या िोनों से ।
धारा 171 क- अभ्यर्ी, क्षनवाणचन अक्षधकार की पररभाषा
 अभ्यथी के रुप नाम दनदिण ि दकया हो ।
 दनवाण चन में अभ्यथी के रुप में खडे होने या ना होने का अदधकार ।
 मत िेने से दवरत रहने का अदधकार ।
धारा 171 ख- ररश्वत
 पररतोषर् िेता है ।
 दकसी व्यदक्त को उत्प्रेररत करे ।
 स्वंय के दलये या अतय के दलये पररतोषर् प्राप्त करे ।
 पररतोषर् प्राप्त करने के दलये सहमत हो ।
धारा 171 ग- क्षनवाणचनों में असम्यक असर डािना
 दनवाण चन अदधकार के प्रयोग में हस्तक्षेप करना ।
 प्रभादवत करने का प्रयत्न करना ।
 क्षदत करने की धमकी िेना ।
 िेवीय अप्रसाि या आध्यादत्मक पररदनतिा का भाजन बनाना ।
धारा 171 र्- क्षनवाणचनों में प्रक्षतरूपर्
 जीदवत या मत ृ व्यदक्त के नाम से मत िेना ।
 एक बार मत िे चूकने के पिात पन ु ः मत िेना ।

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 दकसी प्रकार से मतिान को ि्ु प्रेररत करना ।


धारा 171 ़ि- ररश्वत के क्षिये दण्ड
 िण्ड- 1 वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से ।
 परततु सत्कार के रूप में ररश्वत के वल जम ु ाण ने से ।
धारा 174- िोकसेवक का आदेश न मानकर गैर-हाक्षजर रहना
 िण्ड- 1 मास तक या 500 रुपये जम ु ाण ना या िोनो से ।
 दकसी तयायालय में उपदस्थत न होने पर –
 िण्ड-06 मास तक या 1000 रुपये जम ु ाण ना या िोनो ।
धारा 174क- 1974 के अक्षधक्षनयम 2 की धारा 82 दण्ड प्रक्षिया संक्षहता
के अधीन क्षकसी उदर्ोषर्ा के उिर में गैर-हाक्षजरी
 िण्ड-07 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा182- इस साशय से क्षमथ्या इक्षििा देना िोकसेवक अपनी क्षवक्षधपूर्ण
शक्षि को उपयोग दूसरे व्यक्षि को िक्षत काररत करने के क्षिए करे
 िण्ड- 6 माह तक का कारावास या 1000 रुपये जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 183- िोकसेवक के क्षवक्षधपूर्ण प्राक्षधकार द्वारा सम्पक्षि क्षिये जाने का
प्रक्षतरोध
 िण्ड- 6 माह तक या 1000 रुपये जम ु ाण ना या िोनों से
धारा 184- िोकसेवक के प्राक्षधकार द्वारा क्षविय के क्षिए प्रस्र्ाक्षपत की
गयी सम्पक्षि के क्षविय में बाधा डािना
 िण्ड- 1 माह तक या 500 रुपये जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 185- िोकसेवक के प्राक्षधकार द्वारा क्षविय के क्षिए प्रस्र्ाक्षपत की
गयी सम्पक्षि का अवैध िय या उसके क्षिए अवैध बोिी िगाना
 िण्ड- 1 माह तक या 200 रुपये जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 186- िोकसेवक के िोककृत्यों के क्षनवणहन में बाधा डािना
 िण्ड- 3 माह तक या 500 रुपये जम ु ाण ना या िोनों ।
धारा 187- िोकसेवक की सहायता करने का िोप जबक्षक सहायता देने
के क्षिए क्षवक्षध द्वारा आबि हो
 िण्ड- 1 माह तक या 200 रुपये जम ु ाण ना या िोनों से ।

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 यदि तयायालय आिेश के दन्पािन में लोप दकया जाता है- िण्ड 6 माह
तक या 500 रुपये जमु ाण ना या िोनों से ।
धारा 188- िोकसेवक द्वारा सम्यक् रूप से प्रख्याक्षपत आदेश की अवज्ञा
 िण्ड- 6 माह तक की या 1000 रुपये जम ु ाण ना यो िोनों से ।
धारा 191- क्षमथ्या साक्ष्य देना
अवयवः
 सत्य कथन करने के दलये वैध रुप से आबद्ध हो ।
 ऐसा सत्य कथन न दकया गया हो ।
 दकसी दवषय पर दमथ्या घोषर्ा करे ।
धारा 192 क्षमथ्या साक्ष्य गढ़ना
अवयव-
 दकसी पररदस्थदत को उत्पतन करना ।
 दकसी पस्ु तक अथवा अदभलेख में दमथ्या प्रदवदि करना ।
 िस्तावेज रचना ।
 तयादयक कायण वाही में प्रस्तुत दकया जाये ।
 दजसके आधार पर तयायालय गलत मत बनाये ।
धारा 193- क्षमथ्या साक्ष्य के क्षिए दण्ड
 िण्ड-7 वषण तक का कारावास और जम ु ाण ना ।
 तयायालय से दभतन मामलों में -िण्ड
 3 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 195 क- क्षकसी व्यक्षि को क्षमथ्या साक्ष्य देने के क्षिए धमकाना या
उत्प्रेररत करना
 िण्ड- 07 वषण या जम ु ाण ना या िोनो से
धारा 196- उस साक्ष्य को काम में िाना क्षजसका क्षमथ्या होना ज्ञात है
 िण्ड-दमथ्या साक्ष्य िेने या गढ़ने के दलए िदण्डत दकया जाएगा ।
धारा 201- अपराध के साक्ष्य का क्षविोपन या अपराधी को प्रक्षतच्छाक्षदत
करने के क्षिए क्षमथ्या इक्षििा देना
 मत्ृ यु िण्ड से िण्डनीय है तो िण्ड 7 वषण तक और जम ु ाण ने से ।

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 आजीवन कारावास या 10 वषण तक के कारावास से िण्डनीय है तो िण्ड


03 वषण और जमु ाण ने से ।
 10 वषण से कम से िण्डनीय है तो उपबदतधत कारावास की िीघण तम अवदध
की एक-चौथाई कारावास या जमु ाण ना या िोनों से ।
धारा 211- िक्षत करने के आशय से अपराध का क्षमथ्या आरोप
 िण्ड- 07 वषण और जम ु ाण ने से
धारा 212- अपराधी को संश्रय देना
 िण्ड-05 वषण और जम ु ाण ना
 पदत या पत्नी वारारा एक िूसरे को संश्रय िेने पर यह धारा लागू नहीं है ।
धारा 216- ऐसे अपराधी को संश्रय देना जो अक्षभरिा से क्षनकि भागा हो
या क्षजसको पक़िने का आदेश क्षदया जा चुका है
 िण्ड-07 वषण और जम ु ाण ना
धारा 216 क- िुटेरों या डाकुओं को संश्रय देने के क्षिए शाक्षस्त
 िण्ड- 7 वषण तक और जम ु ाण ने से
धारा 218 -क्षकसी व्यक्षि को दण्ड से या क्षकसी सम्पक्षि को समपहरर् से
बचाने के आशय से िोकसेवक द्वारा अशुि अक्षभिेख या िेख की रचना
 िण्ड- 3 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 223- िोकसेवक द्वारा उपेिा से परररोध या अक्षभरिा में से क्षनकि
भागना या सहन करना
 िण्ड- 2 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 224- क्षकसी व्यक्षि द्वारा क्षवक्षध के अनुसार अपने पक़िे जाने में
प्रक्षतरोध या बाधा साशय करेगा या क्षवक्षध पूवणक क्षनरुि हो, क्षनकि भागता
है तो
 िण्ड- 2 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 225- क्षकसी अधय व्यक्षि के क्षवक्षध के अनुसार पक़िे जाने में प्रक्षतरोध
या बाधा
 िण्ड- 7 वषण और जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 227- दण्ड के पररहार की शतण का अक्षतिमर्

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 शेष अवदध के दलये िण्ड ।


धारा 228- धयाक्षयक कायणवाही में बैठे हुए िोकसेवक का साशय अपमान
या उसके कायण में क्षवघ्न डािना
 िण्ड- 6 माह तक या जम ु ाण ना 1000 रुपये या िोनों से ।
धारा 228 क- कक्षतपय अपराधों आक्षद से पीक्ष़ित व्यक्षि की पहचान का
प्रकटीकरर्
 िण्ड- 2 वषण और जम ु ाण ने से ।
धारा 229 क- जमानत या बंधपत्र पर छो़िे गये व्यक्षि द्वारा धयायािय में
हाक्षजर होने में असििता
 िण्ड- 1 वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से ।
धारा 255 सरकारी स्टाम्प का कूटकरर्
 िण्ड- आजीवन कारावास और जम ु ाण ने से ।
धारा 256- सरकारी स्टाम्प के कूटकरर् के क्षिए उपकरर् या सामग्री
कब्जे में रखना
 िण्ड- 7 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 257- सरकारी स्टाम्प के कूटकरर् के क्षिए उपकरर् बनाना या
बेचना या खरीदना या व्ययक्षनत करना
 िण्ड- 7 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 258- कूटकृत सरकारी स्टाम्प का क्षविय
 िण्ड- 7 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 259- सरकारी कूटकृत स्टाम्प को कब्जे में रखना– असिी के रूप
प्रयोग में िाएगा
 िण्ड- 7 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 260- क्षकसी सरकारी स्टाम्प को कूटकृत जानते हुए उसे असिी
स्टाम्प के रूप में उपयोग में िाना
 िण्ड- 7 वषण या जम ु ाण ने से या िोनो से ।
धारा 263 क- बनावटी स्टाम्पों का प्रक्षतषेध
 िण्ड- 200 रुपये जम ु ाण ने से िदण्डत दकया जाएगा ।

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अध्याय-14
धारा 268- िोक धयूसेधस
अवयव-
 कायण अवैध लोप वारारा करना ।
 दजससे क्षदत संकट या क्षोभ सामातय लोगो को उत्पतन हो ।
 सावण जदनक अदधकार के प्रयोग में क्षदत बाधा या संकट उत्पतन करे ।
धारा 269- उपेिापूर्ण कायण क्षजससे जीवन के क्षिए संकटपूर्ण रोग का
संिमर् िैिना सम्भाव्य हो
 िण्ड- 6 मास तक या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 270- पररद्वेषपूर्ण कायण क्षजससे जीवन के क्षिए संकटपूर्ण रोग का
संिमर् िैिना सम्भाव्य हो
 िण्ड- 2 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 272- क्षविय के क्षिए आशक्षयत खाद्य या पेय का अपक्षमश्रर्
 िण्ड- आजीवन कारावास और जम ु ाण ने से
धारा 273- अपायकर खाद्य या पेय का क्षविय
 िण्ड- आजीवन कारावास और जम ु ाण ने से
धारा 274- औषक्षधयों का अपक्षमश्रर्
 िण्ड- आजीवन कारावास और जम ु ाण ने से
धारा 275- अपक्षमक्षश्रत औषक्षधयों का क्षविय
 िण्ड- आजीवन कारावास और जम ु ाण ने से
धारा 276- औषक्षध का क्षभधन औषक्षध या क्षनक्षमणत के तौर पर क्षविय
 िण्ड- आजीवन कारावास और जम ु ाण ने से
धारा 277- िोक जिश्रोत या जिाशय का जि किुक्षषत करना
 िण्ड- 3 मास या 500 रुपये जम ु ाण ना या िोनों से
धारा 278- वायुमण्डि को स्वास्थ्य के क्षिए अपायकर बनाना
िण्ड- 500 रुपये जमु ाण ना
धारा 279- िोक मागण पर उताविेपन से वाहन चिाना या हाुँकना
 िण्ड- 6 मास या 1000 रुपये जम ु ाण ना या िोनों से ।

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धारा 283- िोक मागण या नौका पररवहन पर् में संकट या बाधा
 िण्ड- 200 रुपये जमु ाण ना।
धारा 285- अक्षनन या ज्विनशीि पदार्ण के सम्बधध में उपेिापूर्ण
आचरर्
 िण्ड- 6 मास या 1000 रुपये जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 289- जीव-जधतु के सम्बधध में उपेिापूर्ण आचरर्
 िण्ड- 6 मास या 1000 रुपये जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 292 अश्लीि पुस्तकों आक्षद का क्षविय आक्षद
 िण्ड- 2 वषण तक और 2000 रुपये जम ु ाण ना
 िूसरी बार िोषदसदद्ध की िशा में 5 वषण तक और 5000 रुपये जम ु ाण ना ।
धारा 293- तरुर् व्यक्षि (क्षजसकी उम्र 20 वषण से कम हो) को अश्लीि
वस्तुओ ं का क्षविय आक्षद
 िण्ड- 3 वषण और 2000 रुपये तक का जम ु ाण ना ।
धारा 294- अश्लीि कायण और गाने
 िण्ड- 3 माह तक या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 295- क्षकसी वगण के धमण का अपमान करने के आशय से उपासना के
स्र्ान को िक्षत करना या अपक्षवत्र करना या क्षकसी पक्षवत्र वस्तु को नष्ट
कर देना
 िण्ड- 2 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 295 क- क्षवमक्षशणत और क्षवद्वेषपूर्ण कायण जो क्षकसी वगण धमण या धाक्षमणक
क्षवश्वासो को अपमान करके उसकी धाक्षमणक भावनाओ को आहत करने के
आशय से क्षकये गये हो ।
 िण्ड- 3 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से।
धारा 296- धाक्षमणक जमाव में क्षवघ्न/बाधा करना
 िण्ड- 1 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से।
धारा 297- कक्षिस्तानों आक्षद में अक्षतचार करना
 िण्ड- 1 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से ।

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धारा 298- धाक्षमणक भावनाओं को ठे स पहुचुँ ाने के क्षवमक्षशणत आशय से


शब्द उच्चाररत करना आक्षद
 िण्ड- 1 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 299- आपराक्षधक मानव वध
अवयव-
 दकसी मानव की मत्ृ यु काररत करना ।
 ऐसी मत्ृ यु कायण वारारा काररत हो ।
 कायण मत्ृ यु करने के आशय से या
 ऐसी शारीररक उपहदत दजससे मत्ृ यु होना सम्भाव्य हो ।
 कायण ज्ञान के साथ मत्ृ यु काररत करने के दलये दकया गया हो ।
धारा 300- हत्या
अवयव-
 अपवादिक िशाओ को छोडकर मानव वध हत्या है ।
 मत्ृ यु काररत करने के आशय से या
 ऐसी शारीररक उपहदत काररत की जाये दजससे मत्ृ यु होना सम्भाव्य हो ।
 प्रकृदत के सामातय अनक्र ु म में मत्ृ यु काररत करना पयाण प्त हो ।
 इस ज्ञान से दक उस कायण से मत्ृ यु हो जायेगी ऐसी शारीररक उपहदत करे ।
धारा 301 क्षजस व्यक्षि की मत्ृ यु काररत करने का आशय र्ा , उससे
क्षभधन व्यक्षि की मत्ृ यु करके आपराक्षधक मानव वध-
अवयव-
 ऐसी बात करने के वारारा दजसमें मत्ृ यु काररत करना हो ।
 मत्ृ यु काररत करने का उसका आशय ना हो ।
 उसकी मत्ृ यु काररत करेगा ।
धारा 302 हत्या के क्षिये दण्ड
 मत्ृ यु या आजीवन कारावास और जम ु ाण ने से ।
धारा 304 हत्या की कोक्षट में न आने वािे आपराक्षधक मानव वध के क्षिये
दण्ड
 िण्ड- आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।

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 िण्ड- 10 वषण तक या जमु ाण ने या िोंनो से।


धारा 304 क उपेिा या उताविापन द्वारा मत्ृ यु काररत करना
 िण्ड- 02 वषण या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 304 ख दहेज मत्ृ य-ु जहाुँ क्षकसी स्त्री की मत्ृ यु क्षववाह के
 िण्ड- आजीवन कारावास जो 7 वषण से कम की नहीं होगी
धारा 306 आत्महत्या का दुष्प्प्ररे र्
 दण्ड 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 307 हत्या करने का प्रयत्न
 िण्ड 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
 उपहदत होने की िशा में- आजीवन कारावास से िदण्डत होगा ।
धारा 308 अपराक्षधक मानव वध करने का प्रयत्न
 िण्ड – 07 वषण या जम ु ाण ना या िोनो से ।
धारा 309 आत्महत्या का प्रयत्न करेगा
 िण्ड- 01 वषण या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 313 स्त्री की सम्मक्षत के क्षबना गभणपात काररत करना
 िण्ड- आजीवन कारावास या िस वषण और जम ु ाण ने से ।
धारा 315 क्षशशु का जीक्षवत पैदा होना रोकने या जधम के पश्चात उसकी
मत्ृ यु काररत करने के आशय से क्षकया गया कायण
 िण्ड- 10 वषण या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा 317 क्षशशु की माता क्षपता या संरिक द्वारा 12 वषण से कम आयु का
असुरक्षित स्र्ान पर डाि देना या पररत्याग कर देना
 िण्ड- 07 वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से ।
धारा 318 मतृ शरीर के गप्तु व्ययन (क्षनस्तारर्) द्वारा जधम क्षछपाना
िण्ड- 02 वषण तक या जमु ाण ने से या िोनों से
धारा 319 उपहक्षत
अवयव-
 दकसी व्यदक्त को-
 शारीररक पीडा

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 रोग या अंग शैदथल्य काररत करना ।

धारा 320 र्ोर उपहक्षत- नीचे दलखी दकस्मे घोर कहलाती है


 पसंु त्वहरर्
 दकसी नेि की दृदि स्थायी दवच्छे ि ।
 अंग या जोड का दवच्छे ि ।
 अंग या जोड की शदक्तयो का नाश ।
 दसर या चेहरे का स्थायी दविूपीकरर् ।
 दकसी कान के सन ु ने की शदक्त का स्थायी दवच्छे ि ।
 अदस्थ या िांत का भंग होना
 व्यदक्त 20 दिनो तक तीव्र शाररररक पीडा में रहा हो ।
 सामातय कायण करने में असमथण हो ।
धारा 321- स्वेच्छया उपहक्षत काररत करना
अवयव-
 उपहदत ज्ञान के साथ करता है ।
 सम्भाव्य जानता है दक उपहदत कर रहा है ।
धारा 322- स्वेच््या र्ोर उपहक्षत काररत करना-
अवयव-
 आशय के साथ उपहदत काररत करना ।
 जानते हुये ऐसी उपहदत करना जो गम्भीर प्रकृदत की हो।
धारा 323- स्वेच्छया उपहक्षत काररत करने पर दण्ड-
 िण्ड- 01 वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से ।
धारा 324 -खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया उपहक्षत काररत
करना
 िण्ड- 03 वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से ।
धारा 325 -स्वेच्छया र्ोर उपहक्षत काररत करने के क्षिये दण्ड –
 िण्ड- 07 वषण और जम ु ाण ना से ।

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धारा 326- खतरनाक आयुधों या साधनों द्वारा स्वेच्छया र्ोर उपहक्षत


काररत करना-
 िण्ड- आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 326क- तेजाब इत्याक्षद के प्रयोग से स्वेच्छया र्ोर उपहक्षत काररत
 िण्ड- आजीवन कारावास या 10 वषण से कम नहीं और जम ु ाण ना पीदडत के
इलाज हेतु
धारा 326ख- स्वेच्छया तेजाब िे कना या िे कने का प्रयत्न करना-
 िण्ड- 05 वषण से कम नहीं जो 07 वषण तक हो सके गी ।
धारा 328- अपराध करने के आशय से क्षवष इत्याक्षद द्वारा उपहक्षत काररत
करना
 िण्ड- 10 वषण तक और जम ु ाण ना ।
धारा 330- संस्वीकृक्षत उद्दाक्षपत करने या क्षववश करके सम्पक्षि का
प्रत्यावतणना कराने के क्षिये स्वेच्छया उपहक्षत काररत करना-
 िण्ड- 07 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 331-संस्वीकृक्षत उद्दाक्षपत करने क्षिये या क्षववश करके सम्पक्षि का
प्रत्यावतणन कराने के क्षिये स्वेच्छया र्ोर उपहक्षत काररत करना-
 िण्ड- 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 332-िोक सेवक को अपने कतणव्य से भयोपरत करने के क्षिये
स्वेच्छया उपहक्षत काररत करना
 िण्ड- 03 वषण तक और जम ु ाण ने से या िोनो से ।
धारा 333-िोक सेवक को अपने कतणव्य से भयोपरत करने के क्षिये
स्वेच्छया र्ोर उपहक्षत काररत करना
 िण्ड- 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 336 -कायण क्षजससे दूसरो का जीवन या बैयक्षिक िेम संकटापधन हो
जाय-
 िण्ड- 03 माह तक या 250 रुपये जम ु ाण ने या िोनों से ।
धारा 337-ऐसे कायण द्वारा उपहक्षत काररत करना क्षजससे दूसरों का जीवन
वैयक्षिक िेम संकटापधन हो जाये

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 िण्ड- 06 माह तक या 500 रुपये जम


ु ाण ने से या िोनों से।
धारा 338- ऐसे कायण द्वारा र्ोर उपहक्षत काररत करना क्षजससे दूसरों के
जीवन या वैयक्षिक िेम संकटापधन हो जाये-
 िण्ड- 02 वषण तक या जम ु ाण ना से या िोनों से
धारा 339- सदोष अवरोध-
अवयव-
 व्यदक्त को स्वेच्छया बाधा डालना।
 उस दिशा में जाने से दनवाररत करना।
 दजस दिशा में जाने का उसे अदधकार हो।
धारा 340- सदोष परररोध-
अवयवः
 व्यदक्त का सिोष अवरोध हो
 उसे दनदित पररसीमा से बहार जाने से रोक िे।
धारा 341- सदोष अवरोध के क्षिये दण्ड-
 िण्ड- 01 माह तक या 500/- रू0 तक जम ु ाण ना या िोंनों से
धारा 342- सदोष परररोध के क्षिये दण्ड-
 िण्ड- 01 वषण तक या 1000/- रू0 तक जम ु ाण ना या िोंनों से
धारा 349- बि
अवयवः
 शाररररक शदक्त वारारा
 व्यदक्त में गदत पररवतण न या गदतहीनता काररत करे।
 ऐसे स्पशण से दजससे व्यदक्त की संवेिन शदक्त पर प्रभाव पडे।
धारा 350-आपराक्षधक बि
अवयवः
 व्यदक्त के दवरुद्ध साशय बल प्रयोग
 उसकी सम्मदत के दबना प्रयोग दकया गया हो।
 अपराध करने के दलये दकया गया हो।
 भय या क्षोभ करने के दलये दकया गया हो।

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धारा 351- हमिा


अवयवः
 अंग दवच्छे ि या तैयारी करना।
 आशय या ज्ञान से आशंका उत्पतन करना।
 अपरादधक बल का प्रयोग करना।
धारा 352- गम्भीर प्रकोपन होने से अधयर्ा हमिा करने या आपराक्षधक
बि का प्रयोग करने के क्षिये दण्ड
 03 माह तक या जम ु ाण ना 500/- तक या िोनों से
धारा 353- िोक सेवक को अपने कतणव्य के क्षनवणहन से भयोपरत करने के
क्षिये हमिा या आपराक्षधक बि का प्रयोग
 िण्ड- 02 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों ।
धारा 354- स्त्री की िज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमिा या
आपराक्षधक बि का प्रयोग –
 दण्ड- 05 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 354क- िैक्षगक ं उत्पी़िन और िैक्षगक ं उत्पी़िन के क्षिये दण्ड –
 िण्ड--- 03 वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से
धारा 354ख- क्षववस्त्र करने के आशय से स्त्री पर हमिा या आपराक्षधक
बि प्रयोग
 दण्ड- 07 वषण तक जो 03 वषण से कम नहीं होगी और जम ु ाण ने से।
धारा 354ग- दृश्यकाररता
प्रर्म अपराध के क्षिये
 िण्ड- 03 वषण तक जो 01 वषण से कम नही होगी। और जम ु ाण ने से
क्षद्वतीय अपराध के क्षिये
 िण्ड- 07 वषण जो 03 वषण से कम नही होगा।
धारा 354र् पीछा करना
 प्रथम अपराध के दलये
 िण्ड- 03 वषण तक और जम ु ाण ने से।
 दवारतीय अपराध के दलये

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 िण्ड- 05 वषण और जमु ाण ने से।


धारा 356- क्षकसी व्यक्षि द्वारा िे जाई जाने वािी सम्पक्षि को चोरी के
प्रयत्नों में हमिा या आपराक्षधक बि का प्रयोग
 िण्ड- 02 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से।
धारा 359- अपहरर् - 2 प्रकार के -
1.भारत में से ।
2.दवदध पूर्ण संरक्षता में से ।
धारा 360 भारत में से व्यपहरर्
अवयव-
 दशकार परु ु ष या स्त्री िोनो होते है ।
 वयस्क या अवयस्क कोई भी हो सकता है ।
धारा 361 क्षवक्षधपूर्ण संरिकता में से व्यपहरर्
अवयव-
 दकसी अवयस्क या दवकृतदचर्त् व्यदक्त को ले जाना।
 बहका ले जाना।
 नर हो तो 16 वषण से कम।
 नारी हो तो 18 वषण से कम आयु की हो।
 दवदधक संरक्षक अनम ु दत के दबना ले जाये।
 दवकृतदचर्त् या अवयस्क की दवदधक संरक्षकता में से सहमदत के दबना ले
जाये।

धारा 362-अपहरर्
अवयव-
 बलपूवणक बाध्यता के साथ।
 प्रवंचना पूवण उपायो वारारा।
 उत्प्रेरर् वारारा।
 दकसी स्थान से ले जाने का हो।
धारा 363- व्यपहरर् के क्षिये दण्ड-

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 दण्ड- 07 वषण तक और जमु ाण ने से ।


धारा 363 क – भीख मांगने के प्रयोजनों के क्षिये अप्राप्तवय का व्यपहरर्
या क्षवकिांगीकरर्
 िण्ड- 10 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 364-हत्या करने के क्षिये व्यपहरर् या अपहरर् -
 दण्ड- आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से
धारा 364 क – क्षिरौती ( क्षकसी क्षवदेशी राज्य या अधतराष्प्रीय अंतर
सरकारी या क्षकसी अधय व्यक्षियों को क्षकसी कायण को करने या करने से
क्षवरत रहने के क्षिये व्यपहरर्-
 िण्ड- मत्ृ यु या आजीवन कारावास और जम ु ाण ने से ।
धारा 365- क्षकसी व्यक्षि का गप्तु रीक्षत से और सदोष परररोध करने के
आशय से अपहरर् या व्यपहरर्
 िण्ड- 07 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 366 -क्षववाह आक्षद को करने के क्षिये क्षववश करने के क्षिये क्षकसी स्त्री
को व्यपहृत या अपहृत करना या उत्प्रेररत करना क्षजसमें संभोग करने के
क्षिये हो तो -
 िण्ड- 10 वषण तक और जम ु ाण ना ।
धारा 366ख- क्षवदेश से ि़िकी का आयात करना वह भी संभोग के क्षिये
तो
 दण्ड- 10 वषण तक और जम ु ाण ना से।
धारा 368- व्यपहृत या अपहृत व्यक्षि को सदोष क्षछपाना या परररोध में
रखना
 िण्ड- व्यपहरर् या अपहरर् के िण्ड से।
धारा 370- दास के रुप में क्षकसी व्यक्षि को खरीदना या बेचना
 िण्ड- 07 वषण तक और जम ु ाण ने से
धारा 370 (क)- ऐसे व्यक्षि का, क्षजसका दुवणव्यपार क्षकया गया, शोषर्
 िण्ड-07 वषण तक जो 05 वषण से कम नही और जम ु ाण ने से

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िैक्षगक शोषर् की दशा में


 िण्ड-05 वषण तक जो 03 वषण से कम नही होगा और जम ु ाण ने से
धारा 375 बिात्संग
अवयव-
 जहा ऐसा अपराध सात पररदस्थदतयो में से दकसी एक से अधीन दकया
जाये –
 उस स्त्री की इच्छा के दवरुद्ध।
 स्त्री की सम्मदत के दबना।
 उसके दकसी दहतबद्ध व्यदक्त को मत्ृ यु या उपहदत के भय में डालकर
सम्मदत प्राप्त की गयी हो।
 ऐसी सदम्मदत दजसके संबंध में नही जानती दक वह परु ु ष उसका पदत है।
 दवदधपूवणक दववादहत है।
 दवकृतदचर्त् या मतता की िशा में है।
 कायण की प्रकृदत और पररर्ाम जानने में असमथण है।
 सम्मदत जबदक वह 18 वषण से कम आयु की हो।
 सम्मदत संसूदचत करने में असमथण हो।
 15 वषण से कम आयु की पत्नी के साथ मैथुन बलात्कार कहलायेगा।
धारा 376- बिात्संग के क्षिये दण्ड-
 आजीवन कारावास जो 07 वषण से कम न होगा और जम ु ाण ने से है।
 अदभरक्षा में बलात्संग होने की िशा में िण्ड।
 आजीवन कारावास जो 10 वषण से कम नही होगा और जम ु ाण ने से।
धारा 376 (क)- पीक्षडता की मत्ृ यु काररत करने या िगातार क्षनष्प्िीय
क्षस्र्क्षत में बने रहने के क्षिये पररर्ाम उत्पधन करने के क्षिये दण्ड
 मत्ृ यि ु ण्ड या आजीवन कारावास से
धारा 376 (ख) -पर् ृ क रहने के दौरान पक्षत द्वारा अपनी पत्नी के सार्
मैर्ुन
 िण्ड-07 वषण तक जो 02 वषण से कम नही होगा और जमाण ने से

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धारा 376 (ग)- प्राक्षधकार व्यक्षि द्वारा मैर्ुन


 10 वषण तक जो 05 वषण से कम नही होगी और जम ु ाण ने से
धारा 376 (र्)- सामूक्षहक बिात्संग
 आजीवन कारावास जो 20 वषण से कम नही होगा और जम ु ाण ने से
धारा 376 (़ि)- पुनरावृक्षि अपराधी के क्षिये दण्ड
 मत्ृ यु या आजीवन कारावास।
धारा 377- प्रकृक्षत के क्षवरूि अपराध-
 िण्ड- 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 378- चोरी
अवयव -
 1.सम्पदर्त् को बेईमानी से लेने का आशय,
 2.सम्पदर्त् चल हो।
 3.सम्पदर्त् को िूसरे व्यदक्त के कब्जे से दलया जाय।
 4.सम्पदर्त् को िूसरे व्यदक्त की सम्मदत दलए दबना दलया जाय,
 5.सम्पदर्त् को लेने के दलए उसे उसके स्थान से कुछ िूर हटाया जाय।
धारा 379- चोरी के क्षिए दण्ड
 तीन वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से
धारा 380- क्षनवास गहृ आक्षद में चोरी
 िण्ड- 7 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 381- क्षिपक या िेवक द्वारा स्वामी के कब्जे की सम्पक्षि की चोरी-
 7 वषण तक और जम ु ाण ने से
धारा 382
 10 वषण तक और जम ु ाण ने से
धारा 383- उद्दापन की पररभाषा
अवयवः-
 साशय क्षदत काररत करने के भय में डाले।
 कोई सम्पदर्त् या मल्ु यवान प्रदतभूत िेने के दलए बेईमानी से उत्पेररत करे।
धारा 384- उद्दापन के क्षिए दण्ड

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 तीन वषण तक या जमु ाण ना या िोनों से


धारा 385- उद्दापन करने के क्षिए क्षकसी व्यक्षि को िक्षत के भय में डािना
 िण्ड- िो वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से।
धारा 386- क्षकसी व्यक्षि को मत्ृ यु या र्ोर उपहक्षत के भय में डािकर
उद्दापन
 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 387- उद्दापन करने के क्षिये क्षकसी व्यक्षि को मत्ृ यु या र्ोर उपहक्षत
के भय में डािना
 7 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 390- िूट
 लूट में या तो चोरी या उद्दापन होता है।
 सिोष अवरोध या तत्काल मत्ृ यु का भय काररत दकया जाता है।
धारा 391- डकै ती
 जब पाुँच या अदधक व्यदक्त संयक्त ु हो कर लूट करते हैं या
 करने का प्रयत्न करते हैं या
 ऐसे लूट करने वाले व्यदक्त की संख्या 05 या 05 से अदधक हो।
धारा 392- िूट के क्षिए दण्ड-
 10 वषण तक और जम ु ाण ने से
 लूट राजमागण पर सूयाण स्त और सूयोिय के बीच की जाये तो कारावास 14
वषण तक का होगा।
धारा 393- िूट करने का प्रयत्न-
 7 वषण तक और जम ु ाण ने से
धारा 394- िूट करने में स्वेच्छा उपहक्षत काररत करना-
 िण्ड-आजीवन कारावास से या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से
धारा 395- डकै ती के क्षिए दण्ड
 िण्ड-आजीवन कारावास से या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से
धारा 396- हत्या सक्षहत डकै ती
 िण्ड- मत्ृ यु या आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से

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धारा 397- मत्ृ यु या र्ोर उपहक्षत काररत करने के प्रयत्न के सार् िूट या
डकै ती
 िण्ड- 07 वषण से कम नही होगा।
धारा 398- र्ातक आयुध से सक्षज्जत होकर िूट या डकै ती करने का
प्रयत्न
 िण्ड -07 वषण से कम का नही होगा ।
धारा 399- डकै ती करने के क्षिये तैयारी करना
 िण्ड -10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 401- चोरों की टोिी का होने के क्षिये दण्ड
 िण्ड -07 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 402- डकै ती करने के प्रयोजन से एकक्षत्रत होना -
 िण्ड -07 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 405- आपराक्षधक धयास भंग -
 तयस्त सम्पदर्त् का बेईमानी से िदु वण दनयोग कर लेना।
 दववदक्षत या वैध संदविा का अदतक्रमर् करके संपदर्त् का उपयोग करे।
 जानबूझकर दकसी अतय व्यदक्त का सहन करे।
 बेईमानी पूवणक सम्पदर्त् का उपयोग या व्ययन करे।
धारा 406- आपराक्षधक धयास भंग के क्षिए दण्ड
 तीन वषण तक की सजा या जम ु ाण ना या िोनों से
धारा 407- वाहक आक्षद द्वारा आपराक्षधक धयास भंग
 िण्ड -07 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 408- क्षिक्षपक या सेवक द्वारा अपराक्षधक धयास भंग
 िण्ड -07 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 409- िोक सेवक द्वारा या बैंकर व्यापारी या अक्षभकताण द्वारा
आपराक्षधक धयासभंग
 िण्ड –आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 407- वाहक आक्षद द्वारा आपराक्षधक धयास भंग
 िण्ड -07 वषण तक और जम ु ाण ने से ।

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धारा 408- क्षिक्षपक या सेवक द्वारा अपराक्षधक धयास भंग


 िण्ड -07 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 409- िोक सेवक द्वारा या बैंकर व्यापारी या अक्षभकताण द्वारा
आपराक्षधक धयासभंग
 िण्ड –आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 410- चुराई हुई सम्पक्षि
अवयव-
 वह सम्पदर्त्, दजसका कब्जा चोरी वारारा, या
 उद्दापन या लूट वारारा अततररत दकया गया है
 सम्पदर्त्, दजसका आपरादधक िदु वण दनयोग दकया गया है या
धारा 411- चुराई हुई सम्पक्षि को बेईमानी से प्राप्त करना
 िण्ड -03 वषण तक या जम ु ाण ने से
धारा 413- चुराई हुई सम्पक्षि का अभ्यासतः व्यापार करना
 िण्ड -10 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 414- चरु ाई हुई सम्पक्षि क्षछपाने में सहायता करना
 िण्ड -03 वषण तक और जम ु ाण ने से
 धारा 415- छि
अवयव
 दकसी व्यदक्त को प्रवंदचत दकया जाय,
 (क) प्रवंदचत व्यदक्त को कपटपूवणक या बेईमानी से,
 (ख) दकसी व्यदक्त को सम्पदर्त् पररिर्त् करे।
 (ग) दकसी व्यदक्त को कोई सम्पदर्त् रखने हेतु सम्मदत िेने के दलए उत्प्रेररत
करे,
 (घ) कायण करने या न करने का लोप करने के दलये उत्प्रेररत करे।
 उस लोप से शारीररक, मानदसक ख्यादत या सम्पदर्त् का नक ु सान हो।
धारा419- प्रक्षतरूपर् द्वारा छि के क्षिए दण्ड
 िण्ड -10 वषण तक और जम ु ाण ने से।

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धारा 420- छि करना और सम्पक्षि पररदि करने के क्षिए बेईमानी से


उत्प्रेररत करना
 िण्ड -07 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 425- ररक्षष्ट
अवयव -
 लोक या दकसी व्यदक्त को सिोष हादन या नक ु सान हो।
 दकसी सम्पदर्त् को नि करना या
 उसकी दस्थदत में कोई तब्िीली करना,
 सम्पदर्त् नि हो जाये या
 उपयोदगता कम हो जाये या
 उस पर क्षदत कारक प्रभाव पडे।
धारा 429- क्षकसी मूल्य के ढोर, आक्षद को या पचास रुपए के मूल्य के
क्षकसी जीवजधतु को वध करने या उसे क्षवकिांग करने द्वारा ररक्षष्ट
 िण्ड -05 वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनो से ।
धारा 430- क्षसचं न संकमण को िक्षत करने या जि को दोषपूवणक मो़िने द्वारा
ररक्षष्ट
 िण्ड -05 वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनो से ।
धारा 435- सो रुपये का या (कृक्षष उपज की दशा में) दस रुपये का
नक ु सान काररत करने के आशय से अक्षनन या क्षवस्िोटक पदार्ण द्वारा ररक्षष्ट
 िण्ड -07 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 436- गहृ आक्षद को नष्ट करने के आशय से अक्षनन या क्षवस्िोटक
पदार्णद्वारा ररक्षष्ट
 िण्ड –आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 441- आपराक्षधक अक्षतचार
अवयव -
 व्यदक्त के अदधपत्य में दवद्धमान दकसी सम्पदर्त् में प्रवेश,
 दवदध सम्मत प्रवेश की िशा में दवदध दवरुद्ध ररदत से सम्पदर्त् पर बना
रहना।

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 ऐसी प्रदवदि या अवैध रीदत से बना रहना


 (क) कोई अपराध काररत करने
 (ख) दजसके आदधपत्य में सम्पदर्त् हो अदभिस्त, अपमादनत या क्षब्ु ध करने
का आशय हो ।
धारा 442- गहृ -अक्षतचार
अवयव-
 दकसी दनमाण र्, तम्बू या जलयान जो मानव दनवास के रुप में उपयोग में
आता हो
 उपासना स्थल के रुप में प्रयक्त ु हो,
 प्रवेश करके या उसमें बना रहकर ।
 अपरादधक अदतचार करना।
धारा 443- प्रच्छधन गहृ अक्षतचार
अवयव-
 दजसे गहृ अदतचार की संज्ञा िी जा सके ।
 ऐसा अदतचार दजसे प्रच्छन ग्रह अदतचार कहा जा सके ।
धारा 444- रात्रौ प्रच्छधन गहृ अक्षतचार
अवयव
 सूयाण स्त के पिात् और सय ू ोिय के पूवण,
 प्रच्छतन गहृ अदतचार करता है ।

धारा 445- गहृ भेदन


अवयवः-
 उस रास्ते से प्रवेश करना या बहार दनकलना,
 दजसे स्वंय या ि्ु प्रेरक ने बनाया हो ।
 दिवार या दनमाण र् पर सीढी वारारा या,
 चढकर पहुच ुँ ना या बहार दनकलना ।
 दकसी ताले को खोलकर प्रवेश तथा बाहर दनकलना ।
 दकसी प्रकार की धमकी के वारारा प्रवेश या बाहर आना ।

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 बति रास्ते को खोलकर गहृ अदतचार करना।


धारा 446-रात्रौ गहृ -भेदन-
 सूयाण स्त के पिात् और सूयोिय से पूवण गहृ भेिन करना
धारा 447- आपराक्षधक अक्षतचार के क्षिए दण्ड
 िण्ड- 03 मास तक या 500 रुपये जम ु ाण ना या िोनो।
धारा 448- गहृ अक्षतचार के क्षिए दण्ड
 िण्ड- 01 वषण तक या 1000 रुपये जम ु ाण ना या िोनो।
धारा 449-मत्ृ यु से दण्डनीय अपराध करने के क्षिए गहृ अक्षतचार
 आजीवन कारावास या 10 वषण , और जम ु ाण ने से ।
धारा 450-आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध करने के क्षिए गहृ
अक्षतचार
 10 वषण तक और जम ु ाण ने से
धारा 451- कारावास से दण्डनीय अपराध करने के क्षिए गहृ अक्षतचार
 02 वषण और जम ु ाण ने से ।
 चोरी की िशा में 07 वषण तक।
धारा 452- उपहक्षत हमिा या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् गहृ
अक्षतचार
 07 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 453- प्रच्छधन गहृ अक्षतचार या गहृ भेदन के क्षिए दण्ड
 02 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 454- कारावास से दण्डनीय अपराध के क्षिए प्रच्छधन गहृ अक्षतचार
या गहृ भेदन
 03 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
 चोरी की िशा में 10 वषण तक।
धारा 455- उपहक्षत, हमिे या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् प्रच्छधन
गहृ अक्षतचार या गहृ भेदन

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 10 वषण तक और जमु ाण ने से ।
धारा 456- रात्रौ प्रच्छधन गहृ अक्षतचार या रात्रौ गहृ भेदन के क्षिए दण्ड
 03 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 457- कारावास से दण्डनीय अपराध करने के क्षिए रात्रौ प्रच्छधन
गहृ अक्षतचार या रात्रौ गहृ भेदन
 05 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
 चोरी की िशा में 14 वषण तक।

धारा 458- उपहक्षत, हमिा या सदोष अवरोध की तैयारी के पश्चात् रात्रौ


प्रच्छधन गहृ अक्षतचार या रात्रौ गहृ भेदन
 िण्ड- 14 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 459- प्रच्छधन गहृ अक्षतचार या गहृ भेदन करने समय काररत र्ोर
उपहक्षत
 िण्ड- आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से
धारा 460- रात्रौ प्रच्छधन गहृ अक्षतचार या रात्रौ गहृ भेदन में संयुि
सम्पृि समस्त व्यक्षि दण्डनीय हैं, जबक्षक उनमें से एक द्वारा मत्ृ यु या र्ोर
उपहक्षत काररत हो
 िण्ड- आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से
धारा 463- कूट रचना
 दमथ्या िस्तावेज या दमथ्या इलेक्रॉदनक अदभलेख या
 िस्तावेज या इलेक्रॉदनक अदभलेख के दकसी भाग को या
 लोक या दकसी व्यदक्त को नक ु सान या
 क्षदत करने के आशय से रचता है या
 दकसी िावे या हक का समथण न दकया जाए या
 कोई व्यदक्त सम्पदर्त् अलग करे या
 अदभव्यक्त या दववदक्षत संदविा करे, या
 आशय से रचता है दक कपट करे ।

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धारा 464- क्षमथ्या दस्तावेज रचना


अवयवः-
 बेईमानी या कपटपूवणक िस्तावेज या उसके भाग को रचता,
 हस्ताक्षररत मरु ांदकत या दन्पादित करता है।
 दकसी भाग को रचकर प्रेदषत करता है।
 इलेक्रादनक हस्ताक्षर करता है।
 प्रमादर्त करने वाला कोई दचतह लगाता है।
 रचना को संबंध में जानता है।
 दवकृतदचर्त् या मतता में होने के कारर् पररवतण न के संबध ं में न जान सके ।
 प्रवंचना के साथ दकया जाये ।
धारा 465- कूटरचना के क्षिए दण्ड
 िण्ड- 02 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनो से ।
धारा 467- मूल्यवान प्रक्षतभूक्षत क्षवि इत्याक्षद की कूटरचना
 िण्ड- आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से ।
धारा 468- छि के प्रयोजन से कूट रचना
 िण्ड-7 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 470- कूटरक्षचत दस्तावेज या इिैक्ट्राक्षनक अक्षभिेख
 पूर्णतः या भागतः कूटरचना की गयी हो
 इलैक्रादनक िस्तावेज या अदभलेख हो।
धारा 471- कूटरक्षचत दस्तावेज या इिैक्ट्राक्षनक अक्षभिेख का असिी के
रूप में उपयोग में िाना
 कूटरचना के िण्ड से िदण्डत दकया जायेगा।
धारा 477क- िेखा का क्षमथ्याकरर्
अवयव-
 दलदपक,अदधकारी या सेवक की हैदसयत में कायण कर रहा हो।
 कपट करने के आशय से।
 पस्ु तक,कागज,लेख या मूल्यवान प्रदतभूदत या
 लेखा के नि, पररवदतण त, दवकृत या दमथ्याकृत कर िे

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 दमथ्या पवृ दि करे या करने का लोप करे।

धारा 489क- करेंसी नोटों या बैंक नोटों का कूटकरर्


 दण्ड- आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 489ख- कूटरक्षचत या कूटकृत करेंसी नोटों या बैंक नोटों को असिी
के रूप में उपयोग में िाना
 दण्ड- आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 489ग- कूटरक्षचत या कूटकृत करेंसी नोटों या बैंक नोटों को कब्जे में
रखना
 िण्ड- 07 वषण तक या जम ु ाण ना या िोनो से।
धारा 489र्- करेंसी नोटों या बैंक नोटों की कूटरचना या कूटकरर् के क्षिए
उपकरर् या सामग्री बनाना या कब्जे में रखना
 दण्ड- आजीवन कारावास या 10 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 489़ि- करेंसी नोटों या बैंक नोटों से सदृश्य रखने वािे दस्तावेजों
की रचना या उपयोग
 िण्ड- जम ु ाण ना 100 रुपये तक।
 पदु लस अदधकारी को नाम पता बताने से इतकार करने की िशा में 200
रुपये जमु ाण ना।
धारा 494-पक्षत या पत्नी के जीवनकाि में दूसरा क्षववाह करना
 िण्ड-07 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 495- वही अपराध पूवणवती क्षववाह को उस व्यक्षि से क्षछपाकर
क्षजसके सार् पश्चात्वती क्षववाह क्षकया जाता है
 िण्ड-10 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 497- जारकमण
इस अपराध के दनम्न अवयव हैं-
 िण्ड-05 वषण तक या जम ु ाण ने से।
 पत्नी ि्ु प्रेरक के रुप में िण्डनीय नही।

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धारा-498 क्षववाक्षहत स्त्री को आपराक्षधक आशय से िुसिाकर िे जाना


या िे आना या क्षनरुि रखना
 िण्ड-02 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 498क- क्षकसी स्त्री के पक्षत अर्वा पक्षत के सम्बक्षधधयों द्वारा उसको
िूरता के अधीन रखना
 िण्ड-03 वषण तक और जम ु ाण ने से।
धारा 499- मानहाक्षन
अवयव
 दकसी व्यदक्त के बारे में लांक्षल लगाये या प्रकादशत करे।
 दजसे ख्यादत को नक ु सान हो।
 ऐसा प्रकाशन अपवाि के अततगण त न आता हो।
धारा 500- मानहाक्षन के क्षिए दण्ड
 2 वषण तक या जम ु ाण ने से या िोनों से।
धारा 503-आपराक्षधक अक्षभत्रास
अवयव -
 क्षदत करने की धमकी िेना ।
 एसी धमकी शरीर या सम्पर्त्ी या
 ख्यादत के दवपररत हो ।
 संिास काररत हो ।
 अवैध कायण कराया जाये ।
 वैध कायण का लोप कराया जाये ।
धारा 504- िोक शाक्षधत भंग कराने को प्रकोक्षपत करने के आशय से
साशय अपमान
 िण्ड- 2वषण तक या जम ु ाण ना या िोनों से ।
धारा – 506 आपराक्षधक अक्षभत्रास के क्षिये दण्ड – जो कोई आपराक्षधक
अक्षभत्रास का अपराध करेगा दण्ड

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 िो वषण तक या जम ु ाण ना या िोनो से
 धमकी, मत्ृ यु या घोरउपहदत की िेने पर 07 वषण तक या जमु ाण ने से या िोनो
से ।
धारा 509- शब्द, अंग क्षविेप या कायण जो क्षकसी स्त्री की िज्जा का
अनादर करने के क्षिए आशक्षयत हैं
 03 वषण तक की और जम ु ाण ने से ।
धारा 511- आजीवन कारावास या अधय कारावास से दण्डनीय अपराधो
को करने के प्रयत्न करने के क्षिये दण्ड
 आजीवन कारावास या िीघण तम अवदध के आधे से।
धधयवाद

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