Professional Documents
Culture Documents
क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब िो सीधा पढ़े तो रामायण िी िथा पढ़ी जाए और जब उसी किताब में लिख़े शब्दों िो
उल्टा िरि़े पढ़े तो िृष्ण भागवत िी िथा सुनाई द़े । जी हां, िांचीपुरम ि़े 17वीं शती ि़े िवव वेंिटाध्वरर रचचत
ग्रन्थ राघवयादवीयम ् ऐसा ह़ी एि अद्भुत ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ िो ‘अनुलोम-ववलोम काव्य’ भी िहा जाता है ।
पूऱे ग्रन्थ में ि़ेवि 30 श्िोि हैं। इन श्िोिों िो सीध़े-सीध़े पढत़े जाएँ, तो रामिथा बनती है और ववपऱीत (उल्टा)
क्रम में पढऩे पर िृष्णिथा। इस प्रिार हैं तो ि़ेवि 30 श्िोि, ि़ेकिन िृष्णिथा ि़े भी 30 श्िोि जोड़ लिए जाएँ
तो बनत़े हैं 60 श्िोि। पुस्ति ि़े नाम स़े भी यह प्रदलशित होता है , राघव (राम) + यादव (िृष्ण) ि़े चररत िो
बताऩे वाि़ी गाथा है राघवयादवीयम। उदाहरण ि़े तौर पर पस्
ु ति िा पहिा श्िोि है ैः
अथाितैः मैं उन भगवान श्रीराम ि़े चरणों में प्रणाम िरता हूं जो जजनि़े ह्रदय में सीताजी रहती है तथा जजन्होंऩे
अपनी पत्नी सीता ि़े लिए सहयाद्ऱी िी पहाडड़यों स़े होत़े हुए िंिा जािर रावण िा वध किया तथा वनवास पूरा
िर अयोध्या वावपस िौट़े ।
वविोमम ्
अथाितैः मैं रूजक्मणी तथा गोवपयों ि़े पूज्य भगवान श्रीिृष्ण ि़े चरणों में प्रणाम िरता हूं जो सदा ह़ी मां िक्ष्मी ि़े
साथ ववराजमान है तथा जजनिी शोभा समस्त जवाहरातों िी शोभा हर ि़ेती है ।
मैं उन भगवान श्रीराम ि़े चरणों में प्रणाम िरता हूं जजन्होंऩे मैं भगवान श्रीिृष्ण - तपस्वी व त्यागी, रूजक्मणी तथा गोवपयों संग
अपनी पत्नी सीता ि़े संधान में मिय और सहयाद्ऱी िी क्रीड़ारत, गोवपयों ि़े पूज्य - ि़े चरणों में प्रणाम िरता हूं जजनि़े
पहाडड़यों स़े होत़े हुए िंिा जािर रावण िा वध किया तथा ह्रदय में मां िक्ष्मी ववराजमान हैं तथा जो शुभ्र आभूषणों स़े मंडित
अयोध्या वापस िौट द़ीघि िाि ति सीता संग वैभव वविास हैं.
संग वास किया ।
साि़ेताख्या ज्यायामासीत ् या ववप्राद़ीप्ता आयािधारा । वाराशावासाग्र्या साश्वाववद्यावाद़े ताजीरा पैःू ।
पूैः आजीत अद़े वाद्याववश्वासा अग्र्या सावाशारावा ॥ २॥ राधायिप्ता द़ीप्रा ववद्यासीमा या ज्याख्याता ि़े सा ॥ २॥
पथ्
ृ वी पर साि़ेत, यानन अयोध्या, नामि एि शहर था जो व़ेदों समुद्र ि़े मध्य में अवजस्थत, ववश्व ि़े स्मरणीय शहरों में एि,
में ननपण
ु ब्राह्मणों तथा वणणिो ि़े लिए प्रलसद्द था एवं अजा द्वारिा शहर था जहाँ अनचगनत हाथी-घोड़़े थ़े, जो अऩेिों ववद्वानों
ि़े पुत्र दशरथ िा धाम था जहाँ होऩे वाि़े यज्ञों में अपिण िो ि़े वाद-वववाद िी प्रनतयोचगता स्थि़ी थी, जहाँ राधास्वामी श्रीिृष्ण
स्वीिार िरऩे ि़े लिए द़े वता भी सदा आतुर रहत़े थ़े और यह िा ननवास था, एवं आध्याजत्मि ज्ञान िा प्रलसद्द िेंद्र था.
ववश्व ि़े सवोत्तम शहरों में एि था.
मारमं सि
ु ु माराभं रसाज आप नत
ृ ाचश्रतं । त़ेन रातम ् अवाम अस गोपािात ् अमराववि ।
िाववरामदिाप गोसम अवामतरा नत़े ॥ ६॥ तं चश्रत नप
ृ जा सारभं रामा िुसुमं रमा ॥ ६॥
िक्ष्मीपनत नारायण ि़े सुन्दर सिोऩे, त़ेजस्वी मानव अवतार नारद द्वारा िाए गए, द़े वताओं ि़े रिि, ननज पनत ि़े रूप में
राम िा वरण, रसाजा (भलू मपत्र
ु ी) - धरातल्
ु य धैयश
ि ीि, ननज प्राप्त, सत्यवाद़ी िृष्ण, ि़े द्वारा प्ऱेवषत, तत्वतैः (वास्तव में)
वाणी स़े असीम आनन्द प्रदाता, सुचध सत्यवाद़ी सीता – ऩे उज्जवि पाररजात पुष्प िो नप
ृ जा (नऱे श-पुत्री) रमा (रुजक्मणी) ऩे
किया था. प्राप्त किया.
रामनामा सदा ख़ेदभाव़े दयावान ् अतापीनत़ेजाैः ररपौ आनत़े । म़ेरुभूज़ेत्रगा िाणुऱे गोसुम़े सा अरसा भास्वता हा सदा मोददिा ।
िाददमोदासहाता स्वभासा रसाम़े सग
ु ैः ऱे णि
ु ागात्रज़े भरु
ू म़े ॥ ७॥ त़ेन वा पाररजात़ेन पीता नवा यादव़े अभात ् अख़ेदा समानामर ॥ ७॥
श्री राम - दैःु णखयों ि़े प्रनत सदै व दयािु, सूयि िी तरह अपराज़ेय म़ेरु (सुम़ेरु) पवित स़े भी सुन्दर रै वति पवित पर ननवास
त़ेजस्वी मगर सहज प्राप्य, द़े वताओं ि़े सख
ु में ववघ्न िािऩे िरत़े समय रुजक्मणी िो स्वणणिम चमिीि़े पाररजात पुष्पों िी
वाि़े रािसों ि़े ववनाशि - अपऩे बैऱी - समस्त भूलम ि़े प्राजप्त उपरांत धरती ि़े अन्य पष्ु प िम सुगजन्धत, अवप्रय िगऩे
ववज़ेता, भ्रमणशीि ऱे णि
ु ा-पत्र
ु परशरु ाम - िो पराजजत िर िग़े. उन्हें िृष्ण िी संगत में ओजस्वी, नविि़ेवर, दै वीय रूप
अपऩे त़ेज-प्रताप स़े शीति शांत किया था. प्राप्त िरऩे िी अनभ
ु ूनत होऩे िगी.
समस्त आसुऱी स़ेना ि़े ववनाशि, सौम्यता ि़े ववपऱीत अपऩे गि़े में मोनतयों ि़े हार जैस़े पाररजात पुष्पों िो धारण किए
प्रभावशाि़ी ऩेत्रधाऱी रिि राम अपऩे अयोध्या ननवास में सीता हुए, प्रसन्नता व परोपिार िी अचधष्ठात्री, ननभीि रुजक्मणी, आतशी
संग सानंद रह रह़े है थ़े. पुष्पधाऱी िृष्ण संग ननज गह
ृ िो प्रस्थान िर गयी.
पाप स़े पररपूणि िैि़ेयी पुत्र भरत ि़े लिए क्रोधाजनन स़े पागि सूक्ष्मिदट (पति़े िमर वाि़ी), अनत ववदष
ु ी, सत्यभामा िृष्ण
तप रह़ी थी. िक्ष्मी िी िाजन्त स़े उज्जवलित धरती (अयोध्या) द्वारा उतावि़ेपन में भ़ेदभावपव
ू ि
ि पाररजात पष्ु प रुजक्मणी िो
िो उस मध्यमा (मझि़ी पत्नी) ऩे पापी ववचध स़े भरत ि़े द़े ऩे स़े आहत होिर क्रोध और घण
ृ ा स़े भर गई.
लिए ि़े लिया.
तानवात ् अपिा उमाभा राम़े िाननद आस सा । हह दाहमयी ि़ेिैिावास़ेद्धवत
ृ ािया ।
या िता अवद्
ृ धस़ेवािा िैि़ेयी महद अहह ॥ १०॥ सा सदाननिा आम़ेरा भामा िोपदवानता ॥ १०॥
िीणता ि़े िारण, िता जैसी बनी, पीतवणी, समस्त आनन्दों सुमुखी (सुन्दर चहऱे वाि़ी) सत्यभामा, अत्यंत ववचलित और अशांत
स़े पऱे िैि़ेयी, राम ि़े वनगमन िा िारण बन, उनि़े होिर दावाजनन (जंगि िी आग) िी तरह क्रोध स़े िाि हो अपऩे
अलभष़ेि िो अस्वीिारत़े हुए, वद्
ृ ध राजा िी स़ेवा स़े ववमुख भवन, जो मयूरों िा वास और क्रीिास्थि था, उनि़े िपाटों िो
हो गयी. बंद िर ददया ताकि स़ेवविाओं िा प्रव़ेश अवरुद्ध हो जाए.
ववनम्र, आदरणीय, सत्य ि़े त्याग स़े और वचन पािन ना संगीत िी धनी, यानन सत्यभामा, ि़े प्रनत समवपित प्रभु (िृष्ण) –
िरऩे स़े िजज्जत होऩे वाि़े, वपता ि़े सम्मान में अद्भुत राम वीर, दृढचचत्त – िदाचचत भय व िज्जा स़े आक्रांत हो सत्यभामा ि़े
– त़ेजोमय, मक्
ु ताहारधाऱी, वीर, साहसी - वन िो प्रस्थान ननवास पंहुच़े.
किए.
या नयानघधीतादा रसायाैः तनया दव़े । भान ् अिोकि न पाता सैः ह्ऱीता या ववदहतागसा ।
सा गता दह ववयाता ह्ऱीसतापा न किि ऊनाभा ॥ १२॥ व़ेदयानैः तया सारदात धीघनया अनया ॥ १२॥
अपऩे शरणागतों िो शास्त्रोचचत सद्बुद्चध द़े ऩे वाि़ी, धरती त़ेजस्वी रिि िृष्ण - वैभवदाता, जजनिा वाहन गरुड़ है – उनिी
पुत्री सीता, इस िज्जाजनि िायि स़े आहत, अपनी िाजन्त िो ओर, गूढ ज्ञान स़े पररपूणि सत्यभामा ऩे अपऩे िो नीचा ददखाऩे स़े
बबना गँवाए, वन गमन िा साहस िर गईं. अपमाननत, (रुजक्मणी िो पुष्प द़े ऩे स़े) द़े खा ह़ी नह़ीं.
तामसी, उपद्रवी, दम्भी, अननयंबत्रत शत्रुदि िो अपऩे त़ेज स़े सत्यभामा, अदासी पुष्पधाऱी िृष्ण, ि़े शब्दों पर ना तो ध्यान ह़ी
दहन िरऩे वाि़े शूरवीर राम ि़े ननिट, भारद्वाज आदद संयमी द़ी ना तो िुछ बोि़ी जब ति कि िृष्ण ऩे पाररजात वि
ृ िो िाऩे
ऋवष, थिान स़े क्िांत पँहुच याचना िी. िा संिल्प ना लिया.
असंख्य रािसों िा नाश अपऩे त़ेजप्रताप स़े िरऩेवाि़े (राम), म़ेघवणि ि़े श्रीिृष्ण, सत्यभामा िो घोर अन्याय स़े शांत िरऩे ह़ेतु,
स्वगितुल्य सुगजन्धत पवन संचाररत स्थि (चचत्रिूट) पर अप्सराओं स़े शोभायमान, रम्भा जैसी सुंदररयों स़े चमित़े आँगन,
यिराज िुब़ेर तुल्य वैभव व आभा संग लिए पंहुच.़े स्वगि िो गए ताकि व़े सुगजन्धत पाररजात वि
ृ ति पहुँच सिें.
दण्ििां प्रदमो राजाल्या हतामयिाररहा । न सदातनभोनयाभैः नो ऩेता वनम ् आस सैः ।
सैः समानवताऩेनोभोनयाभैः न तदा आस न ॥ १५॥ हाररिायमताहल्याजारामोदप्रिाण्िदम ् ॥ १५॥
दं ििवन में संयमी (राम) - स्वस्थ नऱे शों ि़े शत्रु (परशुराम) सदा आनंददायी जननायि श्रीिृष्ण नन्दनवन िो जा पहुंच़े, जो इंद्र
िो पराजजत िरऩेवाि़े, मानवयोनन वाि़े व्यजक्तयों (मनुष्यों) ि़े अनतआनंद िा श्रोत था – वह़ी इन्द्र जो आिषिि िाया वाि़ी
िो अपऩे ननष्ििंि िीनति स़े आनजन्दत िरऩेवाि़े - ऩे प्रव़ेश अदहल्या िा प्ऱेमी था, जजसऩे (छिपूवि
ि ) अदहल्या िी सहमनत पा
किया. ि़ी थी.
व़े राम शीघ्र ह़ी महाज्ञानी - जजनिी वाणी व़ेद है , जजन्हें व़ेद हाय, वो इंद्र, पथ्
ृ वी िो जिप्रदान िरऩे वाि़े, किन्नरों-गन्धवों ि़े
िंठस्थ है - िुम्भज (मटि़े में जन्मऩे ि़े िारण अगस्त्य सुऱीि़े संगीत रस िा आनंद ि़ेऩे वाि़े, द़े वाचधपनत ऩे ज्यों ह़ी
ऋवष िा एि अन्य नाम) ि़े ननिट जा पंहुच़े. व़े ननमिि वि
ृ जम्बासरु संहारि (िृष्ण) िा आगमन सन
ु ा, व़े अनजाऩे भय स़े
वल्िि (छाि) पररधानधाऱी हैं, जो नाना दोष (पाप) वाि़े ग्रलसत हो गए.
ववराध ि़े संहारि हैं.
व़ेदों में ननपुण, सन्तों ि़े रिि (राम) िा गरुड़ (जटायु) ऩे व़े (िृष्ण) - वद्
ृ धावस्था व मत्ृ यु स़े पऱे - पाररजात वि
ृ ि़े उन्मूिन
झि
ु िर नमन किया जजनि़े प्रनत अपूणि िामयाचना चुड़ि
ै , िी इच्छा स़े गए, तब इंद्र - स्वगि में रहत़े हुए भी िृष्ण ि़े दहतैषी
िंि़ेश िी बहन (शूपण
ि खा), िो भी थी. – िो अपार दैःु ख प्राप्त हुआ.
पथ्
ृ वी िो वप्रय (ववष्णु यानन राम) ि़े दादहनी भुजा व उन्हें उल्िास, जीवनीशजक्त और त़ेज ि़े ह्रास होऩे िा भान होऩे पर
गौरव द़े ऩे वाि़े, ननिर िक्ष्मण द्वारा नाि िाट़े जाऩे पर, उस ि़ेशव (िृष्ण) स़े लमत्रवत वाणी में इंद्र – जजसऩे उन्नत पवितों िो
माँसभिी नासाववह़ीन (शूपण
ि खा) ऩे सूयव
ि श
ं ी (राम) ि़े प्रनत वैर परास्त िर महत्वह़ीन किया (उद्दं ि उड़नशीि पवितों ि़े पंखों िो
पाि लिया. इंद्र ऩे अपऩे वज्रायुध स़े िाट ददया था), जजसऩे अमर द़े वों ि़े
नायि ि़े रूप में दष्ु ट असुरों िो श्रीववह़ीन किया - ऩे धरा व नभ
ि़े रचनयता (िृष्ण) स़े िहा.
पथ्
ृ वी व स्वगि ि़े सुदरू िोऩे ति व्याप्त िीनति ि़े स्वामी राम ह़े (िृष्ण), सवििामनापूनति िरऩे वाि़े द़े वों ि़े गवि िा शमन िरऩे
द्वारा खर िी स़ेना िो श्रीववह़ीन परास्त िरऩे स़े, उनिी एि वाि़े, जजनिा वाहन व़ेदात्मा गरुड़ है , जो वैभव प्रदाता श्रीपनत हैं,
गौरवशाि़ी, ननिर, शत्रु संहारि ि़े रूप में शाि़ीन छवव चमि जजन्हें स्वयं िुछ ना चादहए, आप इस ददव्य वि
ृ िो धरती पर ना
उठी. ि़े जाएँ.
हतपापचय़े ह़े यैः िंि़ेशैः अयम ् असारधीैः । घोरम ् आह ग्रहं हाहापैः अरात़ेैः रववराजजराैः ।
रजजराववरत़ेरापैः हा हा अहम ् ग्रहम ् आर घैः ॥ २०॥ धीरसामयशोि़े अिं यैः ह़े य़े च पपात हैः ॥ २०॥
पापी रािसों िा संहार िरऩेवाि़े (राम) पर आक्रमण िा व्यथाग्रलसत हो, शत्रु ि़े शजक्त िो भूि, उन्हें (िृष्ण िो) बंद़ी
ववचार, नीच, वविृत िंि़ेश – सदै व जजसि़े संग मददरापान बनाऩे िा आद़े श गन्धविराज इंद्र – सय
ू ि िी तरह शभ्र
ु स्वणािभूषण
िरऩेवाि़े क्रूर रािसगण ववद्यमान हैं – ऩे किया. अिंिृत मगर िुजत्सत बुद्चध स़े ग्रस्त - ऩे द़े ददया
ताड़िापुत्र माऱीच िो िाट मारऩे स़े प्रलसद्द, अपनी वाणी स़े प्रद्युम्न संग द़े विोि में ववचरण िर रह़े िृष्ण िो रोिऩे में, पत्र
ु
पाप िा नाश िरऩे वाि़े, जजनिा नाम मनभावन है , हाय, जयंत ि़े शत्रु प्रद्युम्न ि़े अट्टहास िो अपनी बाणवषाि स़े िाट िर
असहाय सीता अपऩे उस स्वामी राम ि़े बबना व्यािुि हो गईं शांत िरऩेवाि़े, अथाह संपवत्त ि़े स्वामी, पवितों ि़े आक्रमणिताि
(माऱीच द्वारा राम ि़े स्वर में सीता िो पि
ु ारऩे स़े). इंद्र, असमथि हो गए.
िक्ष्मी जैसी त़ेजस्वी िा, अंत समय आसन्न होऩे ि़े िारण तब, एि ब्राह्मण िी मैत्री स़े उस िप्ु त अववनाशी, चचरस्थायी ज्ञान
नीच दष्ु ट छि़ी नीच रािस (रावण) द्वारा, उच्च ववचारों वाि़े व त़ेज िो पन
ु प्रािप्त िर नाि़ेश (स्वगिराज, इंद्र) – जजनिी इच्छा
वनद़े वताओं ि़े सामऩे ह़ी उस सविपूजजता सीता िा अपहरण पिायन िरऩे वाि़े द़े वताओं िी रिा िरऩे िी थी – ऩे आिुि
िर लिया गया. िुमार प्रद्युम्न िा प्रताप हर लिया.
मनोहाऱी, म़ेघवणीय (राम) – िो सीता स़े ववयोग ि़े पश्चात तब द़े वताओं स़े युद्ध िा पररत्याग िर चि
ु ़े , अतुल्य साहसी
संग लमिा ननववििार हनम
ु ान िा और सुग्रीव िा जो अपनी (प्रद्युम्न), आिाश में संचाररत शीति पवन स़े पन
ु जीववत हो
पत्नी रुमा ि़े श्रद्ध़ेय थ़े, जो बाि़ी द्वारा सताए जाऩे ि़े गरु
ु जनों िा गण
ु गान अजिन किया जब उनि़े द्वारा शत्रओ
ु ं िो
िारण अपना सुख गवाँ ववचारह़ीन, शजक्तह़ीन हो राम ि़े मार ववजय प्राप्त किया गया.
शरणागत हो गए थ़े.
सूयि स़े भी त़ेज में प्रशंलसत, रमणीि पत्नी (सीता) िो ननरं तर उस िृष्ण ऩे – जजनि़े त़ेज ि़े समि सूयि भी गौण है – जजसऩे
अतुि आनंद प्रदाता, जजनि़े नयन िमि जैस़े उज्जवि हैं – अपऩे उत्त़ेजजत स़ेवि गरुड़ िी रिा िी, जजस गरुड़ ऩे अपऩे िैनों
उन्होंऩे इंद्र ि़े पुत्र बाि़ी िा संहार किया. िी फड़फड़ाहट मात्र स़े शत्रुओं िी शजक्त और गवि िो िीण किया
था – जजस (िृष्ण) ऩे िभी लशव िो भी पराजजत किया था.
हं सजारुद्धबिजा परोदारसुभा अजनन । यं रमा आर यताघ ववरिोरणवराजजर ।
राजज रावण रिोरववघाताय रमा आर यम ् ॥ २५॥ ननजभा सुरद रोपजािबद्ध रुजासहम ् ॥ २५॥
समुद्र िांघ िर सहयाद्ऱी पवित ति जा समुद्र तट ति पहुंचऩे जो गदाधाऱी हैं, अपररलमत त़ेज ि़े स्वामी हैं, वो िृष्ण – प्रद्युम्न
वाि़े िी प्राजप्त दत
ू हनुमान ि़े रूप में होऩे स़े, इंद्र स़े भी िो ददए िष्ट स़े अत्यचधि िुवपत हो - स्वगि में उत्पन्न वि
ृ िो
अचधि प्रतापी, असरु ों िी समद्
ृ चध िो असहनशीि, उस रिि झपट िर ववजयी हुए.
राम िी िीनति में वद्
ृ चध हो गई.
वीर वानर स़ेना ि़े त्राता ि़े रूप में ववख्यात राम, उस जो व्यजक्त, प्रभु हरर िी स़ेवा में रत, उनिा यशगान िरता है , वह
स़ेतुसमुन्द्र पर चिऩे िग़े, जो अथाह ववस्तत
ृ सागर ि़े जीव- प्रभु िी दया प्राप्त िर शत्रुओं पर ववजय पाता है . जो ऐसा नह़ीं
जंतुओं स़े भी रिा िर रहा था. िरता है वह ननहत्थ़े शत्रु स़े भी भयभीत होिर िाजन्तववह़ीन हो
जाता है .
चमत्िाररि रूप स़े साहसी उस राम द्वारा रावण ि़े प्राण हरऩे व़े, प्रद्युम्न िो युद्ध ि़े िष्टों स़े उबारऩे ि़े पश्चात िक्ष्मी िो
पर द़े वताओं ऩे उनिी स्तनु त िी. व़े रूपवती भलू मजा सीता ि़े ननज विस्थि़ी रखऩे वाि़े, िीनतियों ि़े शरणस्थि जो प्रद्यम्
ु न ि़े
संग हैं, तथा शरणागतों िा िष्ट ननवारण िरत़े हैं. दहतैषी िृष्ण, ऐरावत वाि़े स्वगििोि िो जीत िर पथ्
ृ वी िो वापस
िौट आए.
नालिि़ेर सुभािारागारा असौ सुरसावपिा । ना अमुना नदह ज़ेभ़ेर पूैः आम़े अिररणा वरा ।
रावणाररिम़ेरा पैःू आभ़ेज़े दह न न अमन
ु ा ॥ २९॥ िा अवप सारसस
ु ौरागा रािाभासरु ि़ेलिना ॥ २९॥
नाररयि वि
ृ ों स़े आच्छाददत, रं ग-बबरं ग़े भवनों स़े ननलमित अऩेिों ववजयी गजराजों वाि़ी भूलम द्वारिा नगर में धमि ि़े वाहि
अयोध्या नगर, रावण िो पराजजत िरऩे वाि़े राम िा, अब सतावप्रय िृष्ण, ददव्य वि
ृ पाररजात स़े द़ीजप्तमान, िा प्रव़ेश
समुचचत ननवास स्थि बन गया. क्रीड़ारत गोवपयों संग हुआ.
सा अग्र्यतामरसागाराम ् अिामा घनभा आर गौैः ॥ भा अजराग सम
ु ़ेरा श्रीसत्याजजरपद़े अजनन ।
ननजद़े अपरजजनत आस श्रीैः राम़े सुगराजभा ॥ ३०॥ गौरभा अनघमा िामरागा स अरमत अग्र्यसा ॥ ३०॥
अयोध्या िा समद्
ृ ध स्थि, तामरस (िमि) पर ववराजमान श्रीसत्य (सत्यभामा) ि़े आँगन में अवजस्थत पाररजात में पष्ु प
राज्यिक्ष्मी िा सवोत्तम ननवास बना. सविस्व न्योछावर प्रस्फुदटत हुए. सत्यभामा, इस ननमिि संपवत्त िो पा िृष्ण िी प्रथम
िराऩेवाि़े अज़ेय राम ि़े प्रतापी शासन िा उदय हुआ. भायाि रुजक्मणी ि़े प्रनत इष्यािभाव िा त्याग िर, िृष्ण संग
सुखपूवि
ि रहऩे िगी.