You are on page 1of 1

RYAN INTERNATIONAL SCHOOL, GHAZIABAD

इतने ऊँचे उठो

इतने ऊँचे उठो क िजतना उठा गगन है ।


दे खो इस सार द ु नया को एक ि ट से
!सं#चत करो धरा, समता क' भाव विृ ट से
जा त भेद क', धम+-वेश क'
काले गोरे रं ग-/वेष क'
1वालाओं से जलते जग म3
इतने शीतल बहो क िजतना मलय पवन है ॥

नये हाथ से, वत+मान का 9प सँवारो


नयी त!ू लका से #च;< के रं ग उभारो
नये राग को नत
ू न =वर दो
भाषा को नत
ू न अ?र दो
यग
ु क' नयी मू त+-रचना म3
इतने मौ!लक बनो क िजतना =वयं सज
ृ न है ॥

लो अतीत से उतना ह िजतना पोषक है


जीण+-शीण+ का मोह मBृ यु का ह /योतक है
तोड़ो बDधन, Eके न #चDतन
ग त, जीवन का सBय #चरDतन
धारा के शाFवत Gवाह म3
इतने ग तमय बनो क िजतना पHरवत+न है ।

चाह रहे हम इस धरती को =वग+ बनाना


अगर कह ं हो =वग+, उसे धरती पर लाना
सरू ज, चाँद, चाँदनी, तारे
सब हI G तपल साथ हमारे
दो कु9प को 9प सलोना
इतने सD
ु दर बनो क िजतना आकष+ण है ॥

- वा!रका $साद माहे )वर*

You might also like