दे खो इस सार द ु नया को एक ि ट से !सं#चत करो धरा, समता क' भाव विृ ट से जा त भेद क', धम+-वेश क' काले गोरे रं ग-/वेष क' 1वालाओं से जलते जग म3 इतने शीतल बहो क िजतना मलय पवन है ॥
नये हाथ से, वत+मान का 9प सँवारो
नयी त!ू लका से #च;< के रं ग उभारो नये राग को नत ू न =वर दो भाषा को नत ू न अ?र दो यग ु क' नयी मू त+-रचना म3 इतने मौ!लक बनो क िजतना =वयं सज ृ न है ॥
लो अतीत से उतना ह िजतना पोषक है
जीण+-शीण+ का मोह मBृ यु का ह /योतक है तोड़ो बDधन, Eके न #चDतन ग त, जीवन का सBय #चरDतन धारा के शाFवत Gवाह म3 इतने ग तमय बनो क िजतना पHरवत+न है ।
चाह रहे हम इस धरती को =वग+ बनाना
अगर कह ं हो =वग+, उसे धरती पर लाना सरू ज, चाँद, चाँदनी, तारे सब हI G तपल साथ हमारे दो कु9प को 9प सलोना इतने सD ु दर बनो क िजतना आकष+ण है ॥