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पाठ – हम पंछ उ मु त गगन के

क व – शव मंगल संह सम
ु न
क वता का सारांश
क व शवमंगल संह ‘सम
ु न’ ने हम पंछ उ मु त गगन के क वता म प य के ज रये वतं ता के
म व का वणन कया है। क वता म प ी कहते ह क हम खल
ु े आसमान म घम
ू ने वाले ाणी ह, हम
पंजरे म बंद कर दे ने पर हम अपने सरु ले गीत नह ं गा पाएंगे।
हम सोने के पंजरे म भी मत रखना, य क हमारे पंख पंजरे से टकराकर टूट जाएंगे | हम वतं
होकर नद -झरन का जल पीते ह, पंजरे म हम भला या खा-पी पाएंगे। हम गल
ु ामी म सोने के कटोरे
म मले मैदे से यादा, वतं होकर कड़वी नबौर खाना पसंद है ।
आगे क वता म पंछ कहते ह क पंजरे म बंद होकर तो पेड़ क ऊँची टह नय पर झल
ू ा झल
ू ना अब
एक सपना मा बन गया है। हम आकाश म उड़कर इसक सीमा तक पहुंचने क तयो गता करना
चाहते ह, फर चाहे हम उस सीमा तक पहुँच या हमार साँस ह य न चढ़ जाएँ पर हम आकाश म ह
जीना-मरना है। अंत म प ी कहते ह क तुम चाहे हमारे घ सले और आ य उजाड़ दो। मगर, हमसे उड़ने
क आज़ाद मत छ नो, यह तो हमारा जीवन है ।
मु य बंद ु
. क व ने प य के मा यम से वतं ता का मह व बताया है |
. क व ने समझाया है क य द पशु प य के त म
े है तो उ ह वतं छोड़ न क कैद करके रख |
श दाथ
1½ mUeqDr & Lora= ¼2½ dud & l¨uk
3½ iqyfdr & d¨ey ¼4½ dVqd & dM+ok
5½ fuc©jh & uhe dk Qy ¼6½ Qquxh & isM+ dh Mky
7½ rkjd & rkjs :ih ¼8½ uhM+ & ?k¨alyk
9½ fo/u & ck/kk
10½ f{kfrt & जहाँ धरती और आकाश मलते तीत ह |
सं त नो र
s
1) इस क वता म प ी या चाहते ह ?
आज़ाद रहना
2½ इस क वता म प ी कैसे पंजरे म बंद ह \
l¨us d¢ fiatjs म
3) प य को कैसा जल पीना पसंद है ?
बहता जल
4½ Lo.kZ J`a[kyk ls D;k rkRi;Z gS \
l¨us dh tathj
5) if{k;¨a d¨ l¨us dh dV¨jh esa j[kh eSnk ls d©u&lh pht+ vf/kd vPNh yxrh gS \
dM+oh fuc©jh
6) इस क वता म प य के या अरमान ह ?
नीले नभ क सीमा पाना
पा य पु तक से नो र
न 1 ) हर तरह क सख
ु सु वधाएँ पाकर भी प ी पंजरे म बंद य नह ं रहना चाहते ?
उ र - प ी ह या मनु य कोई भी बंधन म रहना नह ं चाहता है | प ी के पास वे सार सख
ु सु वधाएँ
ह, जो उनके जीवन के लए आव यक है। पर तु वह वत ता नह ं है, जो उ ह य है| वे इस खल
ु े-
ऊँचे नीले आकाश म आज़ाद पव
ू क जीवन के अंत तक उड़ना चाहते ह। इस कार क उड़ान उनम नई
उमंग व स नता भर दे ती है , जो पंजरे क सुख-सु वधाएँ नह ं दे सकती है । इस लए हर तरह क सुख
सु वधाएँ पाकर भी प ी पंजरे म बंद नह ं रहना चाहते ह।

न 2 ) प ी उ मु त रहकर अपनी कौन-कौन सी इ छाएँ परू करना चाहते ह ?


उ र – प ी जीवन भर खल
ु े आकाश म उड़ कर अपनी बहुत सी इ छाएँ पूर करना चाहते ह | जैसे –
. वे बहते झरने और नद का पानी पीना चाहते ह |
. वतं रहकर कड़वी नबौर खाना चाहते ह |
. पेड़ क डा लय पर झल
ू ा झल
ू ना चाहते ह |
. आसमान क सीमा नापना चाहते ह |
. जीवन भर बना कसी कावट के उड़ना चाहते ह |

न 3 ) भाव प ट क िजये –
या तो तज मलन बन जाता / या तनती साँस क डोर ||
उ र – तुत पंि त हमार पा य पु तक वसंत के पाठ हम पंछ उ मु त गगन के पाठ से ल
गई है िजसके क व ‘ ी शव मंगल संह ’ “सुमन” ह | इन पंि तय म क व बताना चाहते ह
क प ी जीवन भर वतं
रहकर उड़ना चाहते ह | वे जहाँ धरती और आकाश मलते हुए तीत
होते ह, वहाँ तक उड़ना चाहते ह और वे या तो तज के छोर को पाना चाहते ह या उड़ते
उड़ते ह अपने जीवन को ख़ म कर दे ना चाहते ह |

भाषा क बात
‘ वण- ंख
ृ ला’ और ‘लाल करण-सी’ श द गुणवाचक वशेषण ह। क वता से ढूँढ़कर इस कार के तीन
और उदाहरण ल खए।
(i) पुल कत-पंख
(ii) कड़वा- नबौर
(iii) उ मु त-गगन

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