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Arthalankaram

अथ अथार्लङ्कार �नरूप्यन स

1. उपमा - आचायर्भरतस्या�भमत - यित्किञ् च काव्यबन्धे सादृश्येनोपमीय स

उपमा नाम सा �ेया गण


ु ाकृ�तसमाश्र सस (नाशा. 16.41)

एकस्यैके सा कायार ह्यनेकेनाथव पन


ु ःस

अनेकस् तथैके न बहूनां बहु�भस्तथ सस (नाशा. 16.42)

प्रशंसोप, �नन्दोपम, किल्पतोपम, सदृश्युप, �किञ्चत्सदृश्य चे�त

पञ्चधेय�म� मन
ु ेर�भमतम ् स यथाक्रममे भेदाः अत प्र�तपाद्य -

दृष्ट तु तां �वशाला�ीं तुतोष मनज


ु ा�धपः स

म�ु न�भः सा�धतां कृच्छ्र �स�दं◌्ध म�ू तर्मती�म सस (नाशा. 16.47)

सा तं सवर्गुणैह�न सस्वज ककर्शच्छ�व स

वने कण्ट�कन वल्ल दावदग्ध�म द ्रुम सस (नाशा. 16.48)


�रन्त दानस�ललं लालामन्थरगा�मन स

मतङ्गज �वराजन्त जङ्गम इथ पवर्ता सस (नाशा. 16.49)

यत्त्वयाऽ कृतं कमर पर�चत्तानुरो�धन स

सदृश तत्तवै स्याद�तमानुषकमर् सस (नाशा. 16.50)

संपण
ू ्चन्द्र
र नीलोत्पलदले�ण स

मत्तमात्तङ्गग संप्राप्त सखी मम सस (नाशा. 16.51)

भामहकृतं ल�णं यथा - �वरुद्धेनोपमा देशकाल�क्रया�द� स

उपमेयस् यत्साम् गण
ु लेशन
े सोपमा सस (कालभा. 2.30)

दिण्डन यथा - यथाकथिञ्चत सादृश् यत्रोद् प्रतीय स

उपमा नाम सा तस्या प्रपञ्चो प्रद�य सस (काद. 2.14)

दिण्डनाऽत्रोपमा धम�पमाप् रभृत द्वा�तं◌्रशद्भे �नरू�पता स


यथाक्रममेतेष ल�णा�न सोदाहरणा�न प्र�तपादया स

(1) धम�पमा - अम्भोरुह�मवाता मगु ्ध करतलं यथ स

इ�त धम�पमा सा�ात्तुल्यधमर्प्रद सस (काद. 2.15)

(2) वस्तूपम - राजीव�मव ते वक्त नेत् नीलोत्पल इथ स

इयं प्रतीयमानैकधम वस्तूपमै सा सस (काद. 2.16)

(3) �वपयार्सोपम - त्वदानन�मवोिन्नद्रमर�वन्दमभ स

सा प्र�स�द्ध�वपयार्साद्�वपयार्सो सस (काद. 2.17)

(4) अन्योन्योप - तवानन�मवाम्भोजमम्भोज� ते मख


ु म ्स

इत्यन्योन्यो सेयमन्योन्योत्कषर्शं सस (काद. 2.18)

(5) �नयमोपमा - त्वन्मु कमलेनैव तुल्य नान्ये के न�चत् स

इत्यन्यसाम्यव्यावृत्त सा �नयमोपमा सस (काद. 2.19)

(6) अ�नयमोपमा - पद् तावत्तवान्वे मख


ु मन्यच तादृशम स
अिस् चेदस्त तत्कार�त्यसाव�नयमोप सस (काद. 2.20)

(7) समच
ु ्चयोपम - समच
ु ्चयोपमाऽप्यि न कान्त्य मख
ु ं यथ स

ह्लादनाख्य चान्वे� कमर्णेन्दु�मतीद सस (काद. 2.21)

(8) अ�तशयोपमा - त्वय्य त्वन्मु दृष् दृश्य �द�व चन्द्र स

इयत्ये �भदा नान्येत्यसाव�तशयोप सस (काद. 2.22)

(9) उत्प्रे��तो - मय्येवास् मख


ु श्री�रत्यल�मन्दो�वर्क स

पद्मेऽ सा यदस्त्येवेत्यसावुत्प्रे� सस (काद. 2.23)

(10) अद्भुतोप - य�द �किञ्च भवेत् पद् सभ


ु ् �वभ्रान्तलो च स

तत्त मख
ु �श्र धत्ता�मत्यसावद्भुत सस (काद. 2.24)

(11) मोहोपमा - शशीत्युत्प् तन्वङ् त्वन्मु त्वन्मुखाश स

इन् दुमप्यनुधावामीत्य मोहोपमा स्मृत सस (काद. 2.25)


(12) संशयोपमा - �कं पद्ममन्तभ्र्रा �कन्त लोले�णं मख
ु म ्स

मम दोलायते �चत्त�मतीय संशयोपमा सस (काद. 2.26)

(13) �नणर्योपम - न पद्मस्यन्


े दु�नग्राह्यस्येन् द्यु�त स

अतस्त्वन्मुखमेवेद�मत �नणर्योपम सस (काद. 2.27)

(14) श्लेषोपम - �श�शरांशप


ु ्र�तस्प श्रीमत्सुर�भग च स

अम्भोज�म ते वक्त्र� श्लेषोपम सस (काद. 2.28)

(15) समानोपमा - सरूपशब्दवाच्यत् सा समानोपमा यथा स

बाले वोद्यानमालेय सालकाननशो�भनी सस (काद. 2.29)

(16) �नन्दोपम - पद् बहुरजश्चन् �यी ताभ्या तवाननम ् स

समानम�प सोत्सेक�म� �नन्दोपम स्मृत सस (काद. 2.30)

(17) प्रशंसोप - ब्रह्मणोऽप्य पद्मश्च शम्भु�शरोद्ध स

तौ तुल्य त्वन्मुखेने सा प्रशंसोपमोच् सस (काद. 2.31)


(18) आ�चख्यासोपम - चन्द् त्वन्मु तुल्य�मत्या�चख्य मे मनः स

स गण
ु ो वास्त दोषो वेत्या�चख्यासोपम �वदुः सस (काद. 2.32)

(19) �वरोधोपमा - शतपत् शरच्चन्द्रस्त्वदा त्रय स

परस्पर�वरोधी� सा �वरोधोपमा मता सस (काद. 2.33)

(20) प्र�तषेधोप - न जातु शिक्त�रन्दोस मख


ु ेन प्र�तगिजर्त स

कलङ्�कन जडस्ये� प्र�तषेधोपम सा सस (काद. 2.34)

(21) असाधारणोपमा - चन्द्रार�वन् कािन्तम�तक् मख


ु ं यथ स

आत्मनै भवत्तुल्य�मत्यसाधारणो सस (काद. 2.35)

(22) चटूपमा - मग
ृ े�णाङ्क ते वक्त मग
ृ ेणैवाङ्�कत शशी स

तथा�प सम एवासौ नोत्कष�� चटूपमा सस (काद. 2.36)

(23) आख्यानोपम - न पद् मख


ु मेवेदं न भङ्ग
ृ च�ुषी इमे स
इ�त �वस्पष्टसादृश् तत्त्वाख्यानोप सा सस (काद. 2.37)

(24) अभतो
ू पमा - सवर्पद्मप्रभ समाहृ इथ क्व�चत स

त्वदानन �वभाती�त तामभतो


ू पमां �वदुः सस (काद. 2.38)

(25) असंभा�वतोपमा - चन्द्र�वम्ब �वषं चन्दना�द पावकः स

परुष वा�गतो वक्त्रा�दत्यसंभा�वत सस (काद. 2.39)

(26) बहूपमा - चन्दनोदकचन्द्रांशुचन्द्रकान्त स

स्पशर्स्तवेत्य� बोधयन्त बहूपमा सस (काद. 2.40)

(27) �व�क्रयोप - चन्द्र�बम्बा�दवोत पद्मगभार्�दवोद् स

यथ तन्वङ् वदन�मत्यस �व�क्रयोप सस (काद. 2.41)

(28) मालोपमा - पष्ण्


ू या इवाह्नी पष
ू ा व्योम्न वासरः स

�वक्रमस्त्वय्यधाल्ल� मालोपमा मता सस (काद. 2.42)

(29) वाक्याथ�पम - वाक्याथ�नै वाक्याथर कोऽ�प यद्युपमीयत स


एकानेकेव शब्दत्वात वाक्याथ�पम द्�वध सस (काद. 2.43)

सेयं वाक्याथ�पम एकेवशब्दघ�टत अनेकेवशब्दघ�टत च स यथाक्रममेतयोरुदाह

�नरूप्ये स त्वदाननमधीरा�मा�वदर्शनद��ध स

भ्र मद्भृङ्ग�मवाल�य भा�त पङ्कजम सस (काद. 2.44)

न�लन्य इथ तन्वङ्ग्यास्त पद्म�मवानन स

मया मधुव्रतेन पायं पायमरम्य सस (काद. 2.45)

(30) प्र�तवस्तू - वस्त �किञ्चदुपन्य न्यसनात्तत्सधम स

साम्यप्रती�तरस् प्र�तवस्तू यथा सस (काद. 2.46)

उदा. - नैकोऽ�प त्वादृशोऽद्य जायमानेषु राजसु स

ननु द्�वतीय नास्त्य पा�रजातस् पादपः सस (काद. 2.47)

(31) तुल्ययोगोपम - अ�धके न समीकृत् ह�नमेक�क्रया�व स


यद्ब्रुव स्मृत सेयं तुल्ययोगोपम यथा सस (काद. 2.48)

उदा. - �दवो जागित्त र�ायै पुलोमा�रभुर्व भवान ् स

असुरास्ते हन्यन् सावलेपास्त्व नराः सस (काद. 2.49)

(32) हेतप
ू मा - कान्त् चन्द्र धाम्न सय�
ू धैय�ण चाणर्वम स

राजन्नन करोषी�त सैषा हेतप


ू मा मता सस (काद. 2.50)

उभयोः समानमेकं गण
ु ा�द �सद् भवेद्यथैक स

अथ�ऽन्य तथा तत् साध्य इ�त सोपमा त्रे सस (कालर. 8.4)

वाक्योपम समासोपमा प्रत्ययो चे�त रुद्रटमतेन �त्र�व स

वाक्योपमा षोढा तत त्वेक प्रयुज् यत स

उपमान�मवाद�नामेकं सामान्यमुपमेयम सस (कालर. 8.5)

उदा. - कमल�मव चारुवदन मण


ृ ाल�मव कोमलं भुजायुगलम ् स

अ�लमालेव सन
ु ीला तवैव म�दरे�णे कबर� सस (कालर. 8.6)
इयमन्य सामान्य यत्रेवा�दप्रयोगसाम� स

गम्ये सप
ु ्र�सध तद्वा�चपदाप्रयोगे सस (कालर. 8.7)

उदा. - श�शमण्डल�म वदनं मण


ृ ाल�मव भुजलतायुगलमेतत् स

करकुम्भा�व च कु चौ रम्भागभार्�वव ते सस (कालर. 8.8)

वस्त्वन्तरमस्त्य सम�म�त परस्परस यत भवेत् स

उभयोरुपमानत् सक्रममुभयोप सान्य सस (कालर. 8.9)

उदा. - श�शमण्डल�म �वमलं वदनं ते मख


ु �मवेन् दु�बम्बम स

कु मुद�मव िस्मतमेतित्स्मत कु मुदं च धवल�मदम ् सस (कालर. 8.10)

सा स्यादनन्वयाख यत्रै वस्त्वनन्यसदृश स

स्वस स्वयमे भवेदुपमानं चोपमेयं च सस (कालर. 8.11)

उदा. - आनन्दसुन्दर�म त्व�म त्व सर�स नागनासोर स


इय�मय�मव यथ च तनुः स्फारस्फुरद रु�चप्र सस (कालर. 8.12)

(मम्मटा�दमते अयमनन्वयनाम अन् एथ अलङ्कार स)

सा किल्पतोपमाख् यैरुपमेय �वशेषणैयुर्क्त स

ताव�द्भस्तादृ स्यादुपमान तथा यत सस (कालर. 8.13)

उदा. - मख
ु मापण
ू ्कपोल
र मग
ृ मद�ल�खताधर्पत्रल ते स

भा�त लसत्सकलकल स्फुटलाञ्छन�मन्दु�बम् सस (कालर. 8.14)

अनप
ु ममेतद्विस्त्वत्युप तद्�वशेषण चासत् स

संभाव् सयद्यथ या �क्रय सोपमोत्पाद् सस (कालर. 8.15)

उदा. - कु मुददलद��धतीनां त्वक्सम् च्यवे य�द ताभ्य स

इदुमप
ु मीयेत तया सुतनोरस्या स्नावरणम ् सस (कालर. 8.16)

(मम्मटमते अयम�तशयोक्ते प्रकारोऽ एवालङ्कार स)

सामान्यपदे समं यत समस्ये तप


ू मानपदम ् स
अन्तभूर्तेवाथ सात समासोपमा प्रथ सस (कालर. 8.17)

उदा. - मख
ु �मन् दुसुन्दर�म �बस�कसलयकोमले भुजाल�तके स

जघनस्थल च सुन्द� यथ शैल�शला�वशालेयम ् सस (कालर. 8.18)

पद�मदमन्यपदाथ समस्यतेऽथोपमेयवचने स

यस्या तु सा द्�वतीय सवर्समासे� सम्पूणा सस (कालर. 8.19)

उदा. - शर�दन् दुसुन्दरमु कुवलयदलद�घर्लोचन सा मे स

दह�त मनः कथम�नशं रम्भागभार्�भरामो सस (कालर. 8.20)

उपमानपदेन समं यत समस्ये चोपमेयपदम ् स

अन्यपदाथ सो�दतसामान्येवा�भधेयान् सस (कालर. 8.21)

उदा. - नव�वक�सतकलकरे कुवलयदललोचने �सतांशम


ु �ु ख स

दह�स मनो यत्Ïत् रम्भागभ� युक्त ते सस (कालर. 8.22)


उपमानात्सामान् प्रत्ययमुत् या प्रयुज् स

सा प्रत्ययो स्यादन्तभूर्तेवशब्द सस (कालर. 8.23)

उदा. - पद्यायत मख
ु ं ते नयनयुगं कुवलयायते य�ददम ् स

कु मुदायते तथा िस्मतमेव शरदेव सुतनु त्वम सस (कालर. 8.24)

मालोपमे�त सेयं यत्रै वस्त्वनेकसामान् स

उपमीयेतानेकै रुपमानैरेकसामान्य सस (कालर. 8.25)

उदा. - श्याम लतेव तन्व चन्द्रकलेवा�त�नम सा मे स

हं सीव कलालापा चैतन्य हर�त �नद्र सस (कालर. 8.26)

अथार्नामौपम् यत बहूनां भवेद्यथापूवर् स

उपमानमतु ्तरेषा सेयं रशनोपमेत्यन् सस (कालर. 8.27)

(मम्मटे गौरव�भया रशनोपमा नैव स्वीकृत स)

उदा. - न् इथ �वमलं स�ललं स�लल�मवानन्दका� श�श�बम्बम स


श�श�बम्ब�म लस�यु�त तरुणीवदन शरत्कुरु सस (कालर. 8.28)

�क्रयतेऽथर्योस या तदवयवानां तथैकदेशानाम ् स

परमन्य ते भवतः समस्त�वषयैकदे�शन् सस (कालर. 8.29)

उदा. - अ�लवलयैरलकै�रव कु सम
ु स्तबकै स्तनै�र वसन्त स

भािन् लता ललना इथ पा�ण�भ�रव �कसलयैः सप�द सस (कालर. 8.30) इयं समस्त�वषय स

कमलदलैरधरै�रव दशनै�रव के सरै�वर्राजन् स

अ�लवलयैरलकै�रव कमलैवर्दनै�र न�लन्य सस (कालर. 8.31) इयम ् एकदेश�वषया स

उपमा - भेदे स�त साध�यम ् स सा च प्रथ �त्र भव�त - (1) भेद प्रधा,

(2) अभेद प्रधा, (3) भेदाभेद प्रधा स मम्मटमते भेदे स�त एथ इयं भव�त स अत

एकवाक्य अपे��तम ् स प्रकृत (वदनादेः) ततो �भन्ने (राका चन्द्रा�)

लोकप्र�सद च एकवाक् प्र�तपाद, क�व समप सम्मत, कािन्तमत्त्वा�द यत्


साध�यं (समान धमर्त सम्बन्) सा उपमा सस लोकप्र�सद् उत्प्र

व्यावतर् , तत उपमा क�व प्रौ �सद्; �भन् पदं अनन्व व्यावतर् , तत

उपमानोपमेययोरा�लं�गतत्वात; वाच् पदं रूपका� व्यावतर् , तत गम्यमानौपम

त्वात; क�वसम्म पदं ह�नोपमा�द व्यावतर् , तत क�वसम्मत्यभावा स एकवाक्यत

पदं उपमेयोपमा व्यावतर् , तत वाक् द्वयापे� सत्त्वा स

उपमायां चत्वार अंशाः - उपमानं, उपमेयं, साधारण धमर्, उपमा प्र�तपा वाचकं च स

एषां चतुणा� सत्त् पण


ू �पमा स सा श्रौ, आथ� चे�त द्�व�वध स श्रौत्

सा�ात् सादृश वाचका�न यथा, इथ, वा, व�त प्रत्यया (तत तस्येवे�) भविन् स

आ�यां ध�मर व्यव�ह प्र�तपा वाचका�न - �नभ, संकाश, सदृ, तुल्, सम, उपम

आदयः, व�त प्रत् (तेन तुल्य �क्र चेत्) स उभावप्येत वाक्यग, त�द्धत,

समासगत भेदेन �त्र स


उदा - वाक्यग श्रौ - "मख
ु ं चन्द इथ सुन्दरम" स

समासगा श्रौ - "मख


ु ं चन्द् सुन्दरम" स

त�द्धत श्रौ - "मख


ु ं चन्द्र सुन्दरम" स

वाक्यग आथ� - "मख


ु ं चन्द् समं सुन्दरम" स

समासगा आथ� - "मख


ु ं चन्द्र सुन्दरम" स

त�द्धत आथ� - "मख


ु ं चन्द्र प्रकाश" स

यदा एङ, द्�, �यंशाः लुप्यन् तदा लुप्तोपम स

तत धमर्लुप् - "मख
ु ं चन्द इथ", "मख
ु ं चन्द्", "मख
ु ं चन्द् समं",

"मख
ु ं चन्द्र" स

उपमानलुप्त वाक्यग - "मख


ु ं सुन्दर", "मख
ु ं प्रकाश" स (अत वाचकस्या� लोपः)

समासगा - द्�वपद - "चन् सुन्दर मख


ु म ्" स

बहुपदा - "पण
ू र चन् सुन्दर मख
ु म ्" स
वाचक लुप्त - कमर क्य - "नायकः नायक�मख
ु ं चन्द्र�" स

आधार क्य च - "राजा रणमख


ु े अन्तःपुर�य�" स

कतरृ क्य - "मख


ु ं चन्दयते" स

कमर णमुल् - "नायकः ना�यकामख


ु ं चन्द्र पश्य�" स

कतरृ णमुल् - "मख


ु ं चन्द्रक काशते" स

धमर वाचक लुप्त - िक्वब् - "मख


ु ं चन्द् (�वधव�त वा)" स

- समासगा - "मख
ु चन्द प्रकाश" स

धम�पमान लुप्त - समासगा - "मख


ु सदृश न दृश्य" स

वाक्यग - "मख
ु ेन सदृश न दृश्य" स

वाचकोपमेय लुप्त - "एतत् चन्द्र�" स

�त्रलुप - "मग
ृ नयना" स (मग
ृ स् नयने इथ नयने यस्या सा - मध्यमपदलोप समासः)
राजानकरुय्यकमत - उपमानोपमेययोः साध�ये भेदाभेदतुल्यत् उपमा सस (अस. 11)स

उपमानोपमेययो�रत्यप्रतीतोपमानोपमेय�नषेधाथ स साध�ये त्र प्रकार स

भेदप्राधान व्य�तरेका�दवत स अभेदप्राधान रूपका�दवत स द्वयोस्तुल्य

यथास्याम स यदाहुः - "यत �कं �चत्सामान् किश्चच �वशेषः स �वषयः सदृशताया"

इ�त उपमैवानेकप्रक- वै�च�येणानेकालंकारबीजभते


ू �त प्रथ �न�दर ्ष् स

अस्याश पण
ू ार्लुप्तात्वभेदािच्चरन्तनैबर्हु�वधत् स तत्रा साधारणधमर्स

क्व�चदनुगा�मतयैकरूप् �नद�शः स क्व�चद्वस्तुप्र�तवस्त पथ


ृ ङ्�नद�श

पथ
ृ ङ्�नद�श च सम्बिन्धभेदमा प्र�तवस्तूपमा स �बम्बप्र�त�बम्ब वा

दृष्टान्त स क्रमेणोदाहरण -

उदा. - प्रभामहत �शखयेव द�पिस्त्रमागर �त्र�दव मागर् स

संस्कारवत्य �गरा मनीषी तया स पतश्


ू �वभ�ू षतश् सस (अस. 13)
उदा. - यान्त् मह
ु ुब्�लतक
र न्धरमान तदावतृ ्तवृन्तशत्र�न वहन्त् स

�दग्धोऽमृते च �वषेण च प�मला�या गाढं �नखात इथ मे हृदय कटा�ः सस (अस. 14)

उदा. - पाण्ड्योऽयमंसा�पर्तलम्ब �कप्ताङ्गरा ह�रचन्दने स

आभा�त बालातपरक्तसानु स�नझर्रोद्ग इवा�द्ररा सस (अस. 15)

पीयषकवेः
ू जयदेवस्या�भमत यत् - उपमा यत सादृश्यल�मीरुल् द्वयो स

उदा. - हृदय खेलतोरुच्चैस्तन्वङ्गीस्त सस (चन्द. 11)

चमत्का�रसाम्यमुप, सा प्रत्ययाव्ययतुल्याथर्समासैश - इ�त प्रथमवाग्

(कान.ु प.ृ 33) साम्य वाच्यमवैध�य वाक्यैक उपमा द्वयो सस इ�त �वश्नाथः

(साद. 10.14) रूपका�दष साम्यस व्यङ्ग्यत, व्य�तरेक च वैध�यस्याप्युिक,

उपमेयोपमायां च वाक्यद्वय, अनन्वय त्वेकस्य साम्योिक्त�रत्यस भेदः इ�त

तत्र वतृ ्त स

षड्�वधा पण
ू ा�, लुप्ता चैक�वंश�त�वधां प्र�तपादय �वश्वनाथ स तत
धमर्लुप्ताय पञ्, उपमानलुप्ताया द्व, वाचकलुप्ताय अ�प द्व,

धम�पमानलुप्ताय अ�प द्व, तथैव धमर्वाचकलुप्ताय, उपमेयलुप्ताय एकः, तथैव

धम�पमेयलुप्ताया, तथा च �त्रलुप्त भेदा भविन् इ�त साकल्ये एक�वंश�तभ�दाः स

�वश्वनाथमते उपमाया भेदा इत्थ भविन् - पण


ू �पमायाः षड्�वधत्व - यथा -

(1) त�द्धत श्रौ पण


ू �पमा - "सौरभमम्भोरुहव मख
ु स् स"

(2) समासगा श्रौ पण


ू �पमा - "कुम्भा�व स्तन पीनौ स"

(3) वाक्यग श्रौ पण


ू �पमा - "हृदय मदय�त वदनं यथ शर�दन् दुयर् बाले स"

(4) त�द्धत आथ� पण


ू �पमा - "मधुरः सुधावदधरः स"

(5) समासगा आथ� पण


ू �पमा - "पल्लवतुल्योऽ�तपेल पा�णः स"

(6) वाक्यग आथ� पण


ू �पमा - "च�कतमग
ृ लोचनाभ्या सदृश चपले च लोचने तस्या" स

(साद. 10.16 वतृ ्त) स


के शव�मश्रस दशभेदान ् उपमाया ऊर�कु रुत (अशे. प.ृ 30) स ते यथा - वाक्याथ�पम,

सा�तशयोपमा, श्लेषोपम, �नन्दोपम, भतो


ू पमा, �वपयर्योपम, संशयोपमा, �नयमोपमा,

स्वोपम, �व�क्रयोप चे�त स वाक्याथ�नै वाक्याथ यदुपमीयते, सा

वाक्याथ�पम, सा च द्�वध - सादृश्यानपे, तत्सापे� च स

उपमानस्यैवोपमेयताया �वपयर्योपम, यथा -

अथ सुल�लतयो�षद्भ्रूलताचारुशा र�तवलयपदाङ्क चापमासज् कण्ठ स

सहचरमधुहस्तन्यस्तचूताङ्कुर शतमखमप
ु तस्थ प्राञ्ज पुष्पधन् सस

(अशे. प.ृ 31) इत्युदाहरण के शवेनेह कु मारसम्भवगत दत्तम, भ्रूलता उपमेयभत


ू ाया

उपमानत्वात, मदनधनुष उपमानभतस्


ू चोपमेयतयोल्लेखा�द �वपयर्य स

यत्रेतरव्यावृत साम्यलाभस् �नयमोपमा स

यथा - कस्त पुरन्दरादन् प्र�तमल भ�वष्य� स

ऋते सहस्र�करमात्त्वत्प् �ह कः सस (अशे. प.ृ 31)


स्वोपम तु मम्मटा�द�भ प्रोक्तोऽनन्वयालङ स

उपमेयस ्प उपमान�वकारतयोक्त �व�क्रयोप, यथा -

ह�रणादथ तन्नयनाद पद्मा पद्मपत् स

आहृत कािन्तसार �व�धरसज


ृ त् सभ
ु ्रु दृिष्ट सस (अशे. प.ृ 31)

अत श्रीपादस्य मतं सम�भव्याहारोपमाप्यि (अशे. प.ृ 32) इ�त के शव उदाजहार स

2. रशनोपमा - आमम्मटम इयं न के ना�प पथ


ृ गलङ्कारत्व स्वीकृत स मम्म एनामप
ु मा

प्रपञ आ�वभार्वय� स �वश्वनाथे पन


ु ः पथ
ृ क्तयाऽस् ल�णमका�र, तद्यथ -

यथो�वमप
ु मेयस् य�द स्यादुपमानत स (साद. 10.25)

उदा. - चन्द्रा शक
ु ्लरुचा हं सो हं सायते चारुगते कान्त स

कान्तायत स्पशर्खेन वा�र वार�यते स्वच्छत �वहायः सस (तत्र वतृ ्त)

3. मालोपमा - इयम�प आमम्मटमस्वीकृ पथ


ृ गलङ्कारतय, �वश्वनाथे तु पथ
ृ ग्ल��त स
मालोपमा यदेकस्योपमान बहु दृश्य स (साद. 10.26) इ�त च ल�णम ् स

उदा. - वा�रजेनेव सरसी श�शनेव �नशी�थनी स

यौवनन
े ेव व�नता नयेन श्रीमर्नो सस (तत्र वतृ ्त)

4. अनन्वय - न �वद्यत अन्वय उपमानान्तरे सम्बन् यिस्मन स अनन्वय स

यथा -"मख
ु ं मख
ु �मव" स द्�वती-सदृ-व्यवच्छे फलम ् स

उदा. - गगनं गगनाकारं सागरः सागरोपमः स रामरावणयोः युद् रामरावणयो�रव सस"

रुय्यकमत - "एकस्यैवोपमानोपमेयत्वेऽनन्" (अस. 12)

उदा. - युद्धेऽजुर्नोऽज इथ प्र�थतप्र भीमोऽ�प भीम इथ वै�रषु भीमकमार स

न्यग्रोधव�तर्नमथा�ध कु रूणामुत्प्रासनाथ जग्मतुरादरे सस (अस. 16)

जयदेवकृतं ल�णन्त्वस्यालङ्क रुय्यक सं�वधानमेव समथर्य� स

उदा. - इन् दु�रन्दु� स (चन्द. 5.12)

5. उपमेयोपमा - उपमानोपमेययोः �वपयार्स वाक्यद्व - "मख


ु ं चन् इथ, चन्द
मख
ु �मव" स रुय्यकमत - "द्वयो पयार्ये तिस्मन्नुपमेयोप" सस (अस. 13)

इयं च धमर्स साधारण्य वस्तुप्र�तवस्तु�न च द्�वध स

आद्य यथा - ख�मव जलं जल�मव खं हं सश्चन इथ हं स इथ चन्द स

कु मुदाकारास्तारास्ताराकारा कु मुदा�न सस (अस. 17)

द्�वतीय यथा - सच्छायाम्भोजवदन सच्छायवदनाम्बु स

वाप्योऽङ्ग इवाभािन् यत वाप् इवाङ्गना सस (अस. 18)

जयदेवोऽत "पयार्ये द्वयोस्तचदुपमेयोपमा मता सस" (चन्द. 1.13) इ�त

ल�णं �वधाय रुय्यकमेवानुकरो स

तदुदाहरणं यथा - धम�ऽथर इथ पण


ू ्श्री
र धमर इथ त्व� सस (चन्द. 1.13)

भामहेनेय�मदम्प्रथमतयोिल्ल स

धमर्सूरेलर्�ण - द्वयो क्रम भवेतां चेदुपमानोपमेयते स


वाक्यद्वयेनोपमेयोप सा क�थता द्�वध सस (सार. प.ृ 573)

धमर्स वस्तुप्र�तवस्त �नद�शः, साधारण्ये वे�त द्�वध एनां धमर्सू�र�वर्भज स

पिण्डतराजस् उक्तधमा व्यक्तधम चे�त �भन्नावे भेदौ व्यवस्थापय स

6. उत्प्र - अ�वव��तसामान्य �किञ्चच्पमया सह स

अतद्गुण�क्रयायोगादुत्प्रे�ा�तशय सस (कालभा. 2.91)

दिण्डन सं�वधानं यथा - अन्यथै िस्थत विृ त्तश्चेतनस्येत वा स

अन्यथोत्प्र यत तामतु ्प्रे �वदुयर्थ सस (काद. 2.221)

एतदनस
ु ारेण चेतनोत्प्रे�ाऽचेतनोत् चे�त द्�वधेयम स

(1) चेतनोत्प्र - मध्यिन्दनाकर्सन् सरसीं गाहते गजः स

मन्य मा�तण्डगृह्या पद्मान्युद्धतुर् सस (काद. 2.222)

स्नातु पातुं �वसान्यत्त क�रणो जलगाहनम ् स

तद्वैर�नष्क्रया क�वनोत्प्र व�यते सस (काद. 2.223)


(2) अचेतनोत्प्र - कणर्स भष
ू ण�मदं ममाया�त �वरो�धनः स

इ�त कण�त्पल प्रायस दृष्ट �वलङ्घ्य सस (काद. 2.224)

अपाङ्गभागपा�तन् दृष्टेरंशु�भरुत् स

स्पृश्य वा न वेत्येव क�वनोत्प्र व�यते सस (काद. 2.225)

रुद्रटम - अ�तसारूप्यादैक �वधाय �सद्धोपमानसद्भ स

आरोप्यत च तिस्मन्नतद्गुणाद सोत्प्र सस (कालर. 8.32)

चम्पकतरु�शखर�म कु सम
ु समह
ू च्छले मदन�शखी स

अयमच
ु ्चैरारू पश्य� प�थकािन्दध�ु�र सस (कालर. 8.33)

सान्येत्युपमेयग यस्या संभाव्यतेऽन् यदुपमेय स

उपमानप्र�तबपरोपमानस् तत्वे सस (कालर. 8.34)

आपाण्डुगण्डपाल��वर�चतमृगना�भपत्र स
श�शशङ्कये प�ततं लाञ्छनमस् मख
ु े सुतनोः सस (कालर. 8.35)

रुद्रटम भेदान्तरम - यत �व�शष्ट वस्तु� सत्यसत्यमारोप् समं तस् स

वस्त्वन्तरमुपपत सम्भाव् सापरोत्प्र सस (कालर. 8.36)

उदा. - अ�तघनकुङ्कुमराग पुरः पताकेव दृश्य सन्ध् स

उदयतटान्त�रतस प्रथयत्यासन भानोः सस (कालर. 8.37)

रुद्र अ�तशयोिक्तमूलकालङ्कारे पथ
ृ गयं ल��तः स यथा -

यत्रा�ततथाभू संभाव्ये �क्रयाद्यसंभाव स

संभत
ू मतद्व� वा �व�ेया सेयमतु ्प्र सस (कालर. 9.11)

घनसमयस�ललधौते नभ�स शरच्चिन्द �वसपर्न् स

अ�तसान्द्रत नण
ृ ां गात्राण्यनु�लम्पतीव सस (कालर. 9.12)

पल्ल�वत चन्द्रकरैर� नीलाश्मकु�ट्टमोव स

ताराप्र�तमा�भ�र पिु ष्पतमवनीपते सौधम ् सस (कालर. 9.13)


अन्य�न�मत्तवशाद्यद भवेद्वस् तस् तु तथात्व स

हेत्वन्तरमतद� यत्रारोप् सान्येयम सस (कालर. 9.14)

सर�स समल
ु ्लसदम्भ कादम्ब�वयोगदूयमाने स

न�लनी जलप्रवे चकार वषार्गम सद्य सस (कालर. 9.15)

संभावना - उत्क को�टकः सन्दहः द्वयो (साध्य अध्यवसाय) उत्प्रे�

मुख्य ल�णम ् स "स्थाणुवा पर


ु ुष वा" इत्य समको�टकः स सन्देह "चन् एथ

इ�त मन्य"- इत्य उत्कटको�टक स उपमानं च क�वकिल्पतम स (मन्य इत्या�द वाचकः)

सम्भावनमथोत्प् प्रकृत समेन यत् स (काप.स.ू 137)

मम्मटमते भेदाः -

हेततू ्प्र - "उन्मेष यो मम न सहते जा�तवैर� �नशायाम ्

इन्दो�रन्द�वरदलद तस् सौन्दयर्दप स


नीतः शाÏन् प्रसभमन वक्त्रकान्त हषार् ल-

लग्न मन्य ल�लततनु ते पादयोः पद्मल�म सस" (काप.उ. 416) अंशे क�वकिल्पत -

�क्रयोत्प - "�लम्पती तमोऽङ्गा� वषर्तीवाञ्ज नभः स

असत्पुरुषसेव दृिष्ट�वर्फल गता सस" (काप.उ. 417)

फलोत्प्र - "ज�टलः शर�रबद् प्रथमाश यथा" स

सा जा�त, गण
ु , �क्र, द्र भेदेन चतु�वर्ध पन
ु ः प्रत्य भाव, अभाव रूपे च,

ते च गण
ु रूपाध्यवस, �क्रयारूपाध्यवसाया, ततः स�न�मत्, अ�न�मत्ताभ्य,

पन
ु ः हेतु, स्वर, ्् रूपे त्रै�वध् च षण्णव�तध स

ठ. अनप
ु ात्त�न�मत्तजात्यभावस्वरूपो - (अक�न् दुशून्याभावा)

"भुवना�न �वभाव्यन् प्र�सद्धाक शन्यवत


ू स"

्. जा�तहेततू ्प्र - "यथ क��या सुरस�रतेव जगत्त् प�व�त्रत" स


ड़. जा�तफलोत्प्र - "रणांगणे यथ करवालः चमर्मय कोशं जहौ" (वै�रणां रत् कोशाय)

ड्. गण
ु स्वरूपोत्प - "भक्ताना मनोगतो रागः रामस् पादपद्मय अवतीणर् इ�त

नन
ू ं अवै�म" स (राग गण
ु ः उत्प्रे�)

ड्. गण
ु हेततू ्प्र - "हारेषु त्रु�टते भयेन �ीणं वलग्न (नीवी वा) स्व

एथ नन
ू ं अमच
ु त्" स

ढ. गण
ु फलोत्प्र - "प्रतीप नप
ृ ाः देहान ् सौख्येच्छ सत्य जहुः" स

ढ़. �क्रयास्वरूपोत - "�रपुवधूच�ुस्तरलत रामखड्ग न्यस् ध्रुव" स

ण ्. �क्रयाहेतूत्प - "�रपण
ू ां तरलप्राणपारण रामस् करवालः नन
ू ं तरलः

संजातः" स (तारल् �क्रया हेतुत्व) स "खलु यतः ल�मीः सुधारससहजा अतः

जीवहेतुभत
ू ा" स

त्. �क्रयाफलोत्प - "समीराः नीरन् �नकुञ्जािन्न�व

लताङ्गना�लंगनलालसा पन
ु ः �व�नगर्म न शक्नुविन ध्रुव" स
(आ�लंगन �क्रयाय फलत्व) स

त ्. द्रव्योत् - "शेषः रघद्वहभुजाकृ�तम


ू आप नन
ू म ्" स

त्त. द्रव्यहेतूत् - "श्रेष्ठसप ता�या�दव रघुप�तशर�रात् भीताः न

गरा�ण �वमुञ्चिन नाकुल�नाः" स (श्लेषोत्था�प उत्प्र)

थ ्. द्रव्यफलोत् - "सं�ायै जननीजनस् ते जाताः ध्रुव" स (ये सदाचारं

त्यजिन ष�डिन्द वैफल्यात) स

�वश्वनाथस् उत्प्रे� द्वा�तं◌्रशद्भेदानूर�कर स तत प्रथ वाच्य

प्रतीयमाने भेदद्वयम स उभौ इमौ भेदौ जा�त-गण


ु -�क्र-द्र-भेदेन प्रत्य

द्�वधे� अष्ट भेदाः स भावाभावा�भमानतः तथा च �न�मत्तस गण


ु �क्रयास्वरूपत

प्रत्य चतु�वर्ध इ�त द्वा�तं◌्रशद्भे स

रुय्यकमत - अध्यवसाय व्यापारप्राधा उत्प्र स (अस. 21) स तत भेदाः -


जात्युत्प् - स वः पाया�दन् दुनर्व�बसलताको�टकु�ट

स्मरारेय मÐ
ू ध् ज्वलनक�पश भा�त �न�हतः स

स्रवन्मन्दा�क प्र�त�दवस�सक् पयसा

कपालेनोन्मुक् स्फ�टकधवलेनाङ्क इथ सस (अस. 48)

�क्रयोत्प - �लम्प्त तमोङ्गा� वषर्तीवाञ्ज नभः स (अस. 49)

गण
ु ोत्प्र - सैषा स्थल यत �व�चन्वत त्वा भ्रष मया नप
ू ुरमेकम�ु याम ् स

अदृश् त्वच्चरणार�वन्द�वश् लेषदुःख बद्धमौन सस (अस. 50)

द्रव्योत् - पातालमेतन्नयनोत्सव �वलोक् शन्य


ू मगृ लाञ्छने स

इहाङ्गना�भ स्वमुखच्छल कृताम्बर चन्द्रम सिृ ष्ट सस (अस. 51)

एता�न भावा�भमाने उदाहरणा�न स अभावा�भमाने यथा -

कपोलफलकावस्या कष्ट भतू ्व तथा�वधौ स

अपश्यन्ता�ववान्योन्यमी �ामतां गतौ सस (अस. 52)


गण
ु स् �न�नर्�मत्तत - " नव�वसलताको�टकु �टलः "इत्या� स (अस. प.ृ 90)

�कयायाः �न�नर्�मत्तत - "ईदृ�ा �ामतां गतौ" इत्या� स (अस. प.ृ 91)

�न�मत्तोपादानस्यै उदाहरणे स

अनप
ु ादाने - "�लम्पती तमोऽङ्गा�" इत्या� स (अस. प.ृ 91)

हेततू ्प्र - "�वश्लेषदुःखा�द बद्धमौन " इत्या� स (अस. प.ृ 91)

स्वरूपोत्प - कुबेरजुष्टा �दशमुष्णरश् गन्तु प्रवृत समयं �वलङ्घ स

�दग्द��ण गन्धवह मख
ु ेन व्यल�क�नःश्वास�मवोत्ससज (अस. 53)

फलोत्प्र - चोलस् यद्भी�तपला�यत भालत्वच कण्ट�कन वनान्ता स

अद्या� �कं वानुभ�वष्यती� व्यपाटयन्द्रष्टु�मवा सस (अस. 54)

प्रतीयमानोत्प - म�हलासहस्रभ�र यथ हृदय सुभग ! सा अमान्त स

अन�ु दनमनन्यकमा अङ्ग तनुकम�प तनकरो


ू �त सस (अस. 55)
िश्लष्टशब्दहेतुय - अनन्यसामान्यत प्र�सद्धस्त् गीतो जगतीतले यः स

अभद
ू हं प�ू वर्कय गतानामतीव भ�ू मः स्मरमागर्णाना सस (अस. 56)

उपमोपक्रमोत्प - कस्तूर��तलकिन भालफलके देव्य मख


ु ाम्भोरु

रोलम्बिन तमालबालमुकुलोत्तंसिन मौलाव�प स

याः कण� �वकचोत्पलिन कु चयोरङ्क च कालागर


ु -

स्थासिन प्रथयन तास्त �शवं श्रीकण्ठकण्ठि सस (अस. 57)

सापह्नवोत्प् - गतासु तीरं �त�मघट्टन ससंभ्र पौर�वला�सनीषु स

यत्रोल्लसत्फेनत�तच मक
ु ्ताट्टहा �वभा�त �सप् सस (अस. 58)

जयदेवस् - उत्प्रे�ोन्न यत हेत्वा�द�नर्ह्नु �वना स

उदा. - त्वन्मुखश्री नन
ू ं पद्मैव�राय शशी सस (चन्द. 5.29)

अत्यन्तसादृश्यादसत धमर्स कल्पनमुत्प् स इ�त प्रथमवाग् (कान.ु प.ृ 34) स

7. ससन्देह - उपमानेन तत्त्व भेदञ् वदतः पन


ु ःस
ससन्देह वचःस्तुत् ससन्देह �वदुयर्थ सस (कालभा. 3.43)

वस्तु� यत्रैकिस्मन्ननेक�वष भव�त संदे हः स

प्र�तपत् सादृश्याद�नश् संशयः स इ�त सस (कालर. 8.59)

�क�मदं ल�ना�लकुलं कमलं �कं वा मख


ु ं सन
ु ीलकचम ् स

इ�त संशेते लोकस्त्व सुतनु सरोवतीणार्याम सस (कालर. 8.60)

उपमेये सदसंभ�व �वपर�तं वा तथोपमानेऽ�प स

यत स �नश्चयगभर्स्ततोऽ �नश्चयान्तोऽन सस (कालर. 8.61)

एयÏत् श�श�बम्ब न तदिस् कथं कलङ्कमङ्केऽ सस (कालर. 8.62)

�कं पन
ु �रदं भवे�द�त सौधतलाल�यसकलदेहायाः स

वदन�मदं ते वरतनु �वलोक् संशेरते प�थकाः सस (कालर. 8.63)

�कमयं ह�रः कथं तद्गौर �कं वा हरः क् सोऽस् वषः


ृ स
इ�त संशय् भवन्त नाम्न �निश्चन्व लोकाः सस (कालर. 8.64)

यत्रानेकत् संदे हस्त्वेककारकत्व स

स्यादेकत्वग वा सादृश्यात्सं सोऽन्य सस (कालर. 8.65)

गमनमधीतं हं सैस्त्वत सुभगे त्वय नु हं सेभ्य स

�कं श�शनः प्र�त�बम वदनं ते �कं मख


ु स् शशी सस (कालर. 8.66)

- (स्थाणुवा पर
ु ुष वा)

भेदोक्त - शुद् - "मख


ु ं वा चन्द वा"

�नश्चयगभर - "�कमयं चन्द ? स तु गगने प्रकाश"

�नश्चयान् - "�कमयं चन्द ? य�द त�हर क् कलङ्क ?" इत्या�दन मख


ु �म�त �नश्चीयत स

भेदानक
ु ्त - "�कं चन् एथ अत प्रकाश ?" स

"अस्या सगर्�वध प्रजाप� अभत्


ू चन्द नु कािन्तप् ?" स (काप.उ. 420)

ससन्देहस् भैदोक्त तदनक


ु ्त च संशयः स (काप.स.ू 138)
�वषयस् सिन्दहमानत् सन्देह स (अस. 17)

तदत रुय्य भेदाभेदव्य�त�रक्तत् शुद्, �नश्चयगभर, �नश्चयान्तश्च

केवलं भेदत्र स्वीकुरु स

शुद् यथा - �कं तारुण्यतरो�र रसभरो�द्भन नवा वल्लर

ल�लाप्रोच्छ�ल �कं लह�रका लावण्यवारां�नधे स

उद्गाढोत्क�लकावत स्वसमयोपन्यास�वस्रि

�कं सा�ादुपदेशयिष्टरथव देवस् शङ्गा�रण


ृ सस (अस. 34)

�नश्चयगयभर - अयं मातर्ण् �कं स खलु तुरगैः सप्त�भ�रत

कृशानुः �कं सा�ात्प्रस �दशो नैष �नयतम ् स

कृतान्त �कं सा�ान्म�हषवहनोऽसा�व� पुरः

समालोक्याज त्वा �वदध�त �वकल्पान्प्र�त सस (अस. 35)


�नश्चयान् - इन् दु �कं क् कलङ्क सर�सजमेतित्कमम् कु त गतम ् स

ल�लतस�वलासवचनैम्ख�म�
ुर ह�रणा�� �निश्चत परतः सस (अस. 36)

क्व�चदारोप्यमाणान �भन्नाश्रय दृश्य यथा -

रिञ्जत नु �व�वधास्तरुशै ना�मतं नु गगनं स्थ�गत नु स

प�रत
ू ा नु �वषमेषु ध�रत् संहृत नु ककुभिस्त�मरे सस (अस. 37)

सन्देह�व�च�कत्साय सन्देहऽलङ्का इ�त जयदेवः सस (चन्द. 5.31)

उदा. - पङ्कज वा सुधांशुव�त्यस्मा तु न �नणर्य स (चन्द. 5.32)

�वश्वनाथस्त सन्देह प्र�तभोित् स्या�दत्यपे� स (साद. 10.35)

भेदत्र चास्यास स्वीकरो� स

8. रूपकम - (रूपयती�) - अ�तसाम्यात अभेदारोपः, अनपह्नुतभेद वा सादृश्याधार

प्रकृ �व�वधदृश्याण रूप�नवर्णर रूपकम इ�त म�ु नः स तत्कृत ल�णं यथा -

स्व�वकल्प र�चतं तुल्यावयवल�णम स


�किञ्चत्सादृश्यसम यद ्रू रूपक तु तत् सस (नाशा. 16.56)

तत्त्व�नरूपण� भामहः स भामहकृतं ल�णं यथा -

उपमानेन यतत्त्वमुपमेय रूप्य स

गण
ु ानां समतां दृष्ट रूपक नाम तद्�वदु सस (कालभा. 2.21)

दिण्डन यथा - उपमैव �तरोभतभेद


ू ा रूपकमुच्य स

यथा बाहुलता पा�णपद् चरणपल्लव सस (काद. 2.66)

असमस्तरूपक - अङ्गुल् पल्लवान्यास कु सम


ु ा�न नखित्षः स

बाहू लते वसन्तश्रीस नः प्रत्य�चा� सस (काद. 2.67)

समस्तव्यस्तरू - िस्मत मख
ु ेन्दो�योत्स्न समस्तव्यस्तरू सस (काद. 2.68)

सकलरूपकम - ताम्राङ्गु�लदलश नखद��ध�तके सरम ् स

�ध्रय मÐ
ू ध् भप
ू ालैभर्वच्चरणपङ्क सस (काद. 2.69)
अवयवरूपकम - अकस्मादे ते चिण् स्फु�रताधरपल्लव स

मख
ु ं मक
ु ्तारु धत्त घमार्म्भःकणमञ्ज सस (काद. 2.71)

अवय�वरूपकम - विल्गतभ गलद्घमर्जलमालो�हते�ण स

�ववण
ृ ो�त मदावस्था�मद वदनपङ्कजम सस (काद. 2.73)

एकाङ्गरूपक - मदपाटलगण्डे रक्तनेत्रोत् ते स

मख
ु ेन मगु ्ध सोऽप्ये जनो रागमयः कृतः सस (काद. 2.75)

युक्तरूपक - िस्मतपुष्पोज्ज लोलनेत् रभृङ्ग� मख


ु म ्स

इ�त पुष्पद्�वरेफाण सङ्गत् युक्तरूपक सस (काद. 2.77)

अयुक्तरूपक - इदमा�रिस्मतज्योत् िस्नग्धनेत्रो मख


ु म ्स

इ�त ज्योत्स्नोत्पलायोगादय नाम रूपकम सस (काद. 2.78)

�वषमरूपकम - रूपणादङ्�गनोऽङ्गा रूपणारूपणाश्र स

रूपक �वषमं नाम ल�लतं जायते यथा सस (काद. 2.79)


उदा. - मदरक्तकपोले मन्मथस्त्वन्मुखेन स

नित्तर्तभ्रूलते म�दर ्तु भुवनत्रय सस (काद. 2.80)

स�वशेषणरूपकम - ह�रपादः �शरोलग्नजह्नुकन्याजलांश स

जयत्यसुर�नःशङ्कसुरानन्दोत्सव सस (काद. 2.81)

�वशेषणसमग्र रूप केतोयर्द�दृश स

पादे तदपर्णादेतत्स�वशेषणरूप सस (काद. 2.82)

�वरुद्धरू - न मीलय�त पद्मा न नभोऽप्यवगाहत स

त्वन्मुखेन्दुमर्मास हरणायैव कल्पत सस (काद. 2.83)

अ�क्रयाचन्द्रकायार्णामन् च �क्र स

अत सन्द�यत यस्माद्�वर नाम रूपकम सस (काद. 2.84)

हेतुरूपकम - गाम्भीय� समद


ु ्रोऽ गौरवेणा�स पवर्त स
कामदत्वाच लोकानाम�स त्व कल्पपादप सस (काद. 2.85)

गाम्भीयर्प्रमु हेतु�भः सागरो �ग�रः स

कल्पद्रु �क्रय त�ददं हेतुरूपकम सस (काद. 2.86)

िश्लष्टरूप - राजहं सोपभोगाह� भ्रमरप्रा�यसौ स

स�ख वक्त्राम्बुज तवे�त िश्लष्टरूप सस (काद. 2.87)

उपमारूपक व्य�तरेकरूपक - इष्ट साध�यवैध�यदशर्नाद्गौणमुख्य स

उपमाव्य�तरेकाख् रूपकद्�वत यथा सस (काद. 2.88)

यथाक्रममेतयोरुदाह यथा - अयमालो�हतच्छाय मदेन मख


ु चन्द्र स

सन्नद्धोदयरा चन्द् प्र�तगजर सस (काद. 2.89)

चन्द्र पीयते देवैमर्य त्वन्मुखचन्द स

असमग्रोऽप् शश्वदयमापूणर्मण् सस (काद. 2.90)

समाधानरूपकम - मख
ु ेन् दुर� ते चिण् मां �नदर ्ह� �नदर ्यम स
भाग्यदोषान्ममैवे तत्समाधानरूपक सस (काद. 2.92)

रूपकरूपक - मख
ु पङ्कजरङ्गेऽिस् भ्रूलतान�त यथ स

ल�लानतृ ्य करोती�त रम्य रूपकरूपक सस (काद. 2.93)

अपह्नवरूपक - नैतन्मुख�मद पद् न नेत् भ्रमरा�व स

एता�न के सराण्ये नैता दन्ता�चर्षस सस (काद. 2.94)

तत्त्वार इ�त वामनः स स्वरूपापर्ण� कुन्तक स उपमानोपमेययोरभेद इ�त

दिण्-मम्म-वाग्भटद्-के शव�मश-पिण्डतराजादय स अभेदरूपारो इ�त रुय्-हे म-

जयदेव-�वश्वनाथादय स �वश्वनाथे रूपकभेदा मम्मटव ल��ताः, परन्त आरोप्यमाणस

उपमानस्यापे�य आरोप�वषय उपमेये य�द वै�शष्ट्य, आ�धक्य वा �कम�प स्यात,

त�हर अ�धकारूढवै�शष्ट नाम रूपक मन्तव्य�म असाव�भप्रै स

धमर्सू�रस् - �वषया�नह्नवेनान्यस्यार रूपक मतम ् स (सार. प.ृ 528)


रुद्रटम - यत गण
ु ानां साम्य सत्युपमानोपमेययोर�भद स

अ�व�व��तसामान्य कल्प् इ�त रूपक प्रथम सस (कालर. 8.38)

सा�ादेव भवािन्वष्णुभार् ल�मी�रयं च ते स

नान्यभद्भूतस सषृ ्ट लोके �मथुनमीदृशम सस (कालर. 8.39)

उपसजर्नोपमेय कृत्व समासमेतयोरुभयो स

यत्त प्रयुज् तद ्रूपमन्यत्समासो सस (कालर. 8.40)

सावयवं �नरवयवं सङ्क�ण चे�त �भद्यत भयः


ू स

द्वयम� पन
ु द्र्�वधैतत्समस्त�वषयैकदे� सस (कालर. 8.41)

उभयस्यावयवानामन्योन तद्वदे यित्क्र स

तत्सावयव त्रे सहजाहाय�भयैस्तै स्यात सस (कालर. 8.42)

उदा. - ललनाः सरोरु�हण् कमला�न मख


ु ा�न के सरैदर ्शनै स

अधरैदर ्लैश तासां नव�बसनाला�न बाहुलताः सस (कालर. 8.43)


�वक�सतताराकु मुदे गगनसरस्यमलचिन्द्रकास स

�वलस�त श�शकलहं सः प्रावृड्�वपदप सद्य सस (कालर. 8.44)

अ�लकुलकुन्तलभारा सर�सजवदनाश् चक्रवाककुच स

राजिन् हं सवसनाः सम्प् वाणी�वला�सन्य सस (कालर. 8.45)

�नरवयवल�णम ् - मक
ु ्त्वावयव�वव� �वधीयते यत्त तत्त �नरवयवम ् स

भव�त चतुधार शुद् माला रशना परम्प�रतम सस (कालर. 8.46)

शुद्ध�म सा माला रशनाया वैपर�त्यमन्य�दद स

यिस्मन्नुपमानाभ् समस्यमुपमेयमन्या सस (कालर. 8.47)

उदा. - कः परयेद
ू शेषान्कामानुपश�मतसकलसंताप स

अ�खला�थर्ना य�द त्व न स्या कल्पद्र राजन ् सस (कालर. 8.48)

कु सम
ु ायुधपरमास्त लावण्यमहोद�धगुर्ण�नधान स
आनन्दमिन्दरम हृ� द�यता स्खल� मे शल्यम सस (कालर. 8.49)

�कसलयकरैलर्ताना करकमलैः का�मनां जगज्जय� स

न�लनीनां कमलमख
ु ैम्खेन्दु�भय��षत
ुर मदनः सस (कालर. 8.50)

स्मरशबरचापयिष्टय�त जनानन्दजल�धश�शलेख स

लावण्यस�लल�सन्ध सकलकलाकमलसरसीयम ् सस (कालर. 8.51)

इ�त यथाक्र चतुणार्मुदाहरणा� स

उपमेयस् �क्रय तदवयवानां च साकमप


ु मानैः स

उभयेषां �नरवयवै�वर्�ेय त�द�त संक�णर्म सस (कालर. 8.52)

ल�मीस्त् मख
ु �मन् दुनर्य नीलोत्पल करौ कमले स

के शाः के �ककलापो दशना अ�प कुन्दक�लकास् सस (कालर. 8.53)

सुतनु सरो गगन�मदं हं सरवो मदनचाप�नघ�षः स

कु मुदवनं हरह�सतं कुवलयजालं दृश सद


ु ृशाम सस (कालर. 8.54)
इन्द्रस यथ बाहू जयल�मीद्वारतोरणस्तम स

खङ्ग कृतान्तरसन िजह्व च सरस्वत राजन ् सस (कालर. 8.55)

उक्त समस्त�वषय ल�णमनयोस्तथैकदेशीदम स

कमलाननन
ै ्�लन्
र के सरदशनैः िस्मत चक्र सस (कालर. 8.56)

अ�तसाम्यादुपमेय यस्यामसदे कथ्यत सद�प स

उपमानमेव स�द�त च �व�ेयापह्नु�त सेयम ् सस (कालर. 8.57)

नव�बस�कसलयकोमलसकलावयवा �वला�सनी सैषा स

आनन्दय� जनानां नयना�न �सतांशुलेखेव सस (कालर. 8.58)

मम्मटमते - तद ्रूपकमभे प उपमानोपमेययोः स (काप.स.ू 139)

समस्तवस्तु�वष श्रौ आरो�पता यदा सस (काप.स.ू 140)

(आरोप्यमाणस प्राधान, श्रौ, आथ� भेदश्)


सावयवं (साङ्ग) - समस्तवस्तु�वष -

"ज्योत्स भस्मच्छुरणधव �बभ्र तारकास्थ-

न्यन्तधार्नव्यसनर रा�त्रकापा�लक�य स

द्वीपा�वीप भ्रम दधती चन्द्रमुद्रा

न्यस् �सद्धाञ्जनप�र लाञ्छनस च्छले सस" (काप.उ. 421)

श्रौ आथार्श ते यिस्मन्नेकदेश�वव� तत् स (काप.स.ू 141)

एकदेशविृ त् - "जस् रणन्तेउर करे कु णन्तस मण्डलग्गलअ स

रससंमह
ु � �व सहसा परं मह
ु � होई �रउसण
े ा सस" (काप.उ. 422)

(रा�ा रणान्तःपुर मण्डलाग्र करे गह


ृ �ता) स

�नरवयवं - केवलः - "मख


ु ं चन्द", "कुरङ्गीवाङ्गा िस्त�मतय� गीतध्व�नष यत्

सखीं कान्तोदन् श्रुतम पन


ु ः प्रश्न यत् स

अ�नद् यच्चान् स्व�प� तदहो वे�य�भनवां


प्रवृत्तोऽस सेक्तु हृ� मन�सजः प्रेमल�तका सस" (काप.उ. 423)

मालारूप - "सौन्दयर् तरङ्�गण तरु�णमोत्कषर हष�द्गम

कान्ते कामर्णकम नमर्रहसामुल्लासनावासभ स

�वद्य वक्र�गर �वधेरनव�धप्रावीण्यसा�ाित

बाणाः पञ् �शल�मख


ु स् ललनाचूडाम�णः सा �प्र सस" (काप.उ. 424)

परम्प�रत - िश्लष् - केवलः - "अलौ�ककमहालोकप्रका� जगत्त् स

स्तूयत देव सद्वंशमुक्तारत न कैभर्वान" सस (काप.उ. 427)

मालारूप - "�वद्वन्मानसह वै�रकमलासंकोच द�प्तद्यु

दुगार्मागर्णनीललो� स�मत्स्वीकारवैश्व स

सत्यप्री�त�वधा �वजयप्राग्भाव प्र

साम्राज वरवीर वत्सरशत वै�रञ्चमुच्च �क्रय सस" (काप.उ. 425)


अिश्लष् - केवलः - "चतुदर ्शलोकविल्लकन"

मालारूप - "आलानं जयकुञ्जरस दृषदा सेतु�वर्पद्वा�रध

पव
ू ार्�द करवालचण्डमहस ल�लोपधानं �श्र स

समग्राम ामृतसागरप्रमथनक्र� मन्दर

राजन ् राज�त वीरवै�रव�नतावैधव्यदस् भुजः सस" (काप.उ. 426)

अभेदप्राधान आरोपे आरोप�वषयापह्नव रूपकम सस (अस. 15)

अनेनाप्यष् भेदाः स्वीकृता स

यत्रोपमान�चत सवर्थाप्युपरज् स

उपमेयमयी �भित्तस् रूपक�मष्य सस (चन्द. 5.18)

जयदेवेन ल�णक�तक
ृ ं पद्य�मदमुदाहरणत्वेना प्रस्तु स

के शव�मश्रस पञ्चध रूपकमा - �वरुद्, समस्तम, व्यस्त, रूपकरूपक,

िश्लष् च स यत उपमान�वरुद्धोऽथर �वरुद् स


रूपकरूप यथा - मख
ु पङ्कजरङ्गेऽिस् भ्रूल नतर्क यथ स

नर�न�तर लसत्स्वणर्केतक�दललो सस (अशे. प.ृ 33)

9. अपह्नु�त - अपह्नु�तरभीष् च �किञ्चदन्तगर्तो स

भत
ू ाथार्पह्नवादस् �क्रय चा�भधा यथा सस (कालभा. 3.21)

मम्मटमते - प्रकृ यिन्न�षध्यान् साध्यत सा त्वपह्नु� स (काप.स.ू 146)

उपमेयं असत्य कृत्व उपमानं सत्याप्य स

आरोप्यप्रकृत�नष - "अयं चन्द, न मख


ु म ्" स

�न�षध्यारोप - "एतन्मुख नािस्, चन्द अयम ्" स

"अयं शशाङ्कस वप�ु ष कलङ्क न",

"अवाप्त प्रागल् प�रणतरुच शेलतनये कलङ्क नैवायं �वलस�त शशाङ्कस वप�ु ष स

अमुख्येय मन्य �वगलदमतस्यन्द�


ृ श�श र�तश्रान शेते रज�नरमणी गाढमुर�स" सस (काप.उ. 430)
छला�दशब्दप्रय (आथ�) - "यय स�ख �कयदेतत् पश् वैरं स्मरस

�प्रय�वरहकृशेऽिस् रा�गलोके तथा �ह स

उपवनसहकारोद्भा�सभृङ्गच्

प्र�त�व�शखमनेनोट्टङ कालकूटम ्" सस (काप.उ. 431)

�वषयस्यापह्नवेऽपह्नु सस (अस. 20)

अस् चालङ्कारस त्र बन्धच्छा स अपह्नवपूवर आरोपः, आरोपपव


ू ्कोऽपह्न
र ,

छला�दशब्दैरसत्यत्वप्र�तपादकैवार्पह्न स

आद्य यथा - यदेतच्चन्द्रोन्तजर्लदल प्रकुर

तदाचष्ट लोकः शशङ इ�त नो मां प्र तथा स

अहं ित्वन्द मन्य त्वद�र�वरहक्लान्तत-

कटा�ोल्कापातव्रण�कणकलङ्काङ्�कत सस (अस. 42)

द्�वतीय यथा - �वलसदमरनार�नेत्रनीलाब्जष-


न्य�धवस� सदा यः संयमाधःकृता�न स

न तु रु�चरकलाप वतर्त यो मयरेू

�वतरतु स कु मारो ब्रह्मचयर् वः सस (अस. 44)

ततीयो
ृ यथा - उद्भ्रान्तोिज्झतगेहगूजर्रवकुलोच्चै कु च-

प्रेङ्खोलामलहारविल्ल�वगलन्मुक्ताफ स

साध� त्व�द्रपु�भस्त्वद�य शन्य


ू मरौ धावतां

भ्रष राजमग
ृ ाङ्ककुन्दमुकुलस्थू श्रमाम्भःक सस (अस. 45)

जयदेवस् मतेन - अतथ्यमारोप�यतु तथ्यापािस्तरपह्नु सस (चन्द. 5.24)

उदा. - नायं सुधांशुः �कं त�हर व्योमगङ्गासरोरु सस (चन्द. 5.24)

तदत्रायमलङ्कारस् भेदचतुष्टय नावीन्ये प्र�तपादय स क्रमशस्ते

सोदाहरणं ल�णं प्र�तपाद् स


(1) पयर्स्तापह्नु - पयर्स्तापह्नु�त धमर्मात �न�षध्यत स

नायं सुधांशुः �कं त�हर सुधांशुः प्रेयसीमुख सस (चन्द. 5.25)

(2) भ्रान्तापह्न - भ्रान्तापह्नु�तर शङ्कय तथ्य�नणर् स

शर�रं सोत्कम् ज्वर �कं न स�ख स्मर सस (चन्द. 5.26)

(3) छेकापह्नु�त - छेकापह्नु�तरन्य शङ्कय तथ्य�नह्न स

प्रजल्पन्म लग्न कान्त �कं न �ह नप


ू ुरः सस (चन्द. 5.27)

(4) कैतवापह्नु�त - कैतवापह्नु�त�यक् व्याजाद्यै�नर्ह पदैः स

�नयार्िन स्मरनाराचा कान्तादृक्पातकैतव सस (चन्द. 5.28)

पद्येष चैतेषु पव
ू ार्धार ल�णद्योतका उत्तराधार्श्चोदाहरणघट स

�वश्नाथ स्त मम्मटप्रो ल�णमनद्


ू अपरथाप्यपह्नु�त�मत ल�य�त -

गोपनीयं कमप्यथ द्योत�यत् कथञ्च स

य�द श्लेषेणान्य वान्यथयेत साप्यपह्नु� सस (साद. 10.38)


श्लेषे यथा - काले वा�रधराणामप�ततया नैव शक्यत स्थातुम स

उत्किण्ठता तरले, न�ह न�ह स�ख �पिच्छल पन्था सस (तत्र वतृ ्त)

अश्लेषे यथा - इह पुरोऽ�नलकिम्पत�वग् �मल�त का न वनस्प�तन लता स

स्मर� �कं स�ख कान्तरतोत्स न�ह घनागमर��तरुदाहृ सस (तत्र वतृ ्त)

वक्रोक परोक्तेरन्यथाका, इह तु स्वोक्तेरेवे भेदः स गोपनकृता गोपनीयस्या�

प्रथमम�भ�हतत्व व्याजोक्त अ�प भेदोऽवगन्तव इ�त तत्र स

10. �नश्चय - �वश्वनाथेनायमलङ्कारोऽङ्गीक स

अन्यिन्न�ष प्रकृतस्था �नश्चय पन


ु ः स (साद. 10.39)

अपह्नुत प्रकृत �नषेधः, अप्रकृत च स्थापन, इह तु अप्रकृत �नषेधः,

प्रकृतस् च स्थापन स उदा. - वदन�मदं न सरोजं, नयने नेन्द�वर एते स

इह स�वधे मगु ्धदृ भ्र मुदा �कं प�रभ्रम सस (तत्र वतृ ्त)
नायं �नश्चयान् सन्देह, तत संशय�नश्चययोरेकाश्रयत्वेनावस्थ,

न च रूपकध्व�न�र, मख
ु स् कमलत्वेना�नधार्रणा स

11. श्लेष - नाट्यशास् अग्न च नायं �नरू�पत स परन्त तत काव्यगुणेष

श्लेषनाम् गण
ु स् �नरूपण वर�व�तर स दिण्ड� वामने चायं गण
ु रूपे

अलङ्काररूपेणोभय �ववतः
ृ स भामहोद्भटरुय्यकाद एनं केवलमथार्लङ्कारेष्

पठिन् स रुद-भोज-मम्मटादय शब्दश्लेषमथर्श् चे�त द्�व�वध श्लेष

प्र�तपादयि स तेषु एकं शब्दालङ्कार,े अपरं चाथार्लङ्कारे व्यवस्थापयि स

अन्य तु उभाव�प शब्दाथर्श्ल अथार्लङ्कारेष् प�रगणयिन् स उपमानेन

यत्तत्त्वमुपमे साध्यत स

गण
ु �क्रयाभ् नाम्न च िश्लष् तद�भधीयते सस (कालभा. 3.14)

यत्रैकमनेकाथ�वार् र�चतं पदैरनेकिस्मन स

अथ� कु रुत �नश्चयमथर्श्ल स �व�ेयः सस (कालर. 10.1)


रुद्रटम शुद्धश्ल दश�वधः - अ�वशेषः, �वरोधः, अ�धकः, वक्, व्याज, उिक्त,

असम्भव, अवयवः, तत्त्, �वरोधाभासश् स (कालर. 10.1-2)

अ�वशेषः श्लेषोऽस �व�ेयो यत वाक्यमेकस्मा स

अथार्दन् गमयेद�व�शष्ट�वशेषणोपेतम सस (कालर. 10.3)

उदा. - शर�दन् दुसुन्दरर सुकु मारां सुर�भप�रमलाम�नशम ् स

�नदधा�त नाल्पपुण् कण्ठ नवमा�लकां कान्ताम सस (कालर. 10.4)

�वरोधः श्लेष - यत �वरुद्ध�वशेषणमवगमयेदन्यमथर्साम स

प्रक्रान्तमतोऽन वाक्यश्ले �वरोधोऽसौ सस (कालर. 10.5)

उदा. - संव�धर्त�व�वधा�धककमलोऽप्यद�लतना�ल सोऽभत्


ू स

सकला�रदारर�सकोऽप्यन�भमतपराङ्गनासङ सस (कालर. 10.6)

अ�धकश्लेष - यत्रा�धकमारब्धादसमान�वशे तथा वाक्यम स


अथार्न्तरमवगमयेद�धकश्ल स �व�ेयः सस (कालर. 10.7)

उदा. - प्रेम �नधाय मÐ


ू ध् वक्रम �बभ�तर यः कलावन्तम स

भ�ू तं च वष
ृ ारूढ स एथ परमेश्वर जय�त सस (कालर. 10.8)

वक् श्लेष - यत्राथार्दन्यरसस्तत्प गम्यतेऽन्योऽथ स

वाक्ये सप
ु ्र�स वक्रश्ल स �व�ेयः सस (कालर. 10.9)

उदा. - आक्र मध्यदेश �वदधत् संवाहनं तथाङ्गानाम स

पत�त करः काञ्च्याम तव�निजर्तकामरूप सस (कालर. 10.10)

ब्याजश्ले - यिस्मन �नन्द स्तु�तत �नन्दाय वा स्तु�त प्रतीय स

अन्या�वव��ताय व्याजश्ले स �व�ेयः सस (कालर. 10.11)

उदा. - त्वय मदथ� समप


ु ेत् दत्त�मद यथा भोगवते शर�रम ् स

तथास् ते द�ू त कृतस् शक्य प्र�त�क्रय न जन्मन मे सस (कालर. 10.12)

भोगवते इ�त सपार्, अन्य �वला�सने स दती


ू �वला�सना रमणं �वधाय अधरेऽहं सप�ण
दष्ट इ�त व्याज कृतवती स

मम्मटा�दमतेना अथर्शक्त्यु ध्व�न, व्याजस्तु�तरलङ्का स्यात स

उिक्तश्ले - यत �वव��तमथ� पुष्णन् लौ�कक� प्र�सद्धो स

गम्येतान् तस्मादुिक्तश्ल स �व�ेयः सस (कालर. 10.14)

उदा. - कलावतः सम् भृतमण्डल यया हसन्त्य हृताश ल�मीः स

नण
ृ ामपाङ्गे कृतश् कामस्तस्य करस्थ ननु मा�लकश्र सस (कालर. 10.15)

असम्भवश्ले - गम्ये प्रक्रान्तादस तद्�वशेषणोऽन्योऽथर

वाक्ये सप
ु ्र�स स �ेयोऽसम्भवश्लेषः (कालर. 10.16)

उदा. - प�रहृतभुजङ्गसङ समनयनो न कु रुत वष


ृ ं चाधः स

नन्वन एथ दृष्टस्त परमेश्वर जग�त सस (कालर. 10.17)

अवयवश्लेष - यत्रावयवमुखिस्थतसमुदाय�वशे प्रधानाथर स


पुष्यन गम्येतान् सोऽयं स्यादवयवश्ले सस (कालर. 10.18)

उदा. - भुजयुगले बलभद् सकलजगल्लङ्घ तथा ब�लिजत् स

अक्रू हृदयेऽस राजाभद


ू ज्न
ुर यश�स सस (कालर. 10.19)

तत्त्वश्ल - यिस्मन वाक्ये यो प्रक्रा प्रसाधय तत्त्व स

गम्येतान्यद्वा तत्त्वश्ल स �व�ेयः सस (कालर. 10.20)

उदा. - नयने �ह तरलतारे सुतनु कपोलौ च चन्द्रका ते स

अधरोऽपद्मरागिस्त्रभुव ततो वदनम ् सस (कालर. 10.21)

स इ�त �वरोधाभासो यिस्मन्नथर्द पथ


ृ ग्भूतम स

अन्यद्वाक गमयेद�वरुद् सद्�वरुद् सस (कालर. 10.22)

यथ द��णोऽ�प वामो बलभद्रोऽ प्रल एध भुजः स

दुय�धनोऽ�प राजन्यु�धिष्ठरोऽस्तीत �चत्र सस (कालर. 10.23)

एषां तु चतुणार्म� संक�णार्ना स्युरग�णत भेदाः स


तन्नामानस्तेष ल�णमंशेषु संयोज्यम सस (कालर. 10.24)

योगवशादेतेषां �तलतण्डुलवच दुग्धजलवच स

व्यक्ताव्यक्तांशत्वा उत्पद्य द्वेध सस (कालर. 10.25)

अ�भयुज् लोलनयना साध्वसज�नतोरुवेपथुस्व स

अबलेव वै�रसेना नप
ृ जन्य भज्यत भवता सस (कालर. 10.26)

सन्नार�भरण भवान�प न �कं �कं ना�धरूढ वष


ृ ं

�कं वा नो भवता �नकाम�वषमा दग्धा पुरो �वद्�वषाम स

इत्थ द्व परमेश्वरा�व �शवस्त् चैकरूपिस्थ

यÏत् लोक�वभो न जातु कु रुष सङ्ग भुजंगैः सह सस (कालर. 10.27)

आलोकनं भवत्य जननयनानन्दनेन्दुकरजाल स

हृदयाकषर्णपा स्मरतापप्रशम�हमस�ल सस (कालर. 10.28)


आदौ चुम्ब� चन्द्र�बम्ब�व लोलः कपोलस्थल�

संप्रा प्रस क्रम कु रुत पीनस्तनास्फालन स

युष्मद्वै�रवधूजन सततं कण्ठ लगत्युल्लस

�कं वा यन् करोत्यवा�रतरस कामीव बाष्प पतन ् सस (कालर. 10.29)

श्लेष स वाक् एकिस्मन यत्रानेकाथर भवेत् स (काप.स.ू 147)

- एकाथर्प्र�तपादकाना शब्दाना यत अनेकोऽथर् स

ठ. "उदयमयते �दङ्मा�लन् �नराकु रुतेतराम

नय�त �नधनं �नद्रामुद प्रवतर् �क्रय स

रचय�ततरां स्वैराचारप्रवतर्नकत

यय यय लसत्तेज पुञ्ज �वभा�त �वभाकरः सस" (काप.उ. 433) (�वभाकरः - अकर्भूप)

्. अप्रस्त - "महापदोपिस्थतय सदारामा�वयो�गनः स

अलंकाराश्र राम भविन् भवतो �हताः सस" (शब्दश्ले) (?)


प्रस्त - "अप�वक्रमसङ्क गोसहस्रोल्लसत्त स

नाकोल्ला�सनमत्ये रामो हयर्श्वमोज सस" (अप्रस्तुत इन्द्रसूयर) (?)

द्वयो प्राकर�णकयोरप्राकर�ण प्राकर�णकाप्राकर�णकय िश्लष्टपदोप�नबन

श्ले इ�त रुय्य स तिन्नबद का�रका यथा -

�वशेष्यस्या साम्य द्वयोव�पादान श्लेष सस (अस. 33)

क्रमेणात्रोपस्था उदाहरणा�न स

प्राकर�णकय िश्लष्टत् - येन ध्वस्तमनोभव ब�लिजत्काय पुरास्त्रीक

यश्चोद्वृत्तभुजङ्गहार गङ्गा च यो धारयन ् स

यस्याहु श�शमिच्छरोह इ�त स्तुत् च नामामराः

पायात् स्वयमन्धक�यकरस्त सवर्दोमाधव स (अस. 117)

अप्रस्तुत िश्लष्टत् - नीतानामाकुल�भावं लुब्धैभूर्�र�शल�मुख स


सदृश वनवद्ध
ृ ान कमलानां तद��णे सस (अस. 118)

प्रस्तुताप्रस् िश्लष्टत् - स्वेच्छोपजात�वषयोऽ न या�त वक्तु

देह��त मागर्णशतैश ददा�त दुःखम ् स

मोहात्समा��प� जी�वतमप्यकाण्

कष्ट मनोभव इवेश्वरदु�वर्दग सस (अस. 119)

जयदेव स्त् खण्डश्ले भङ्गश्लेषोऽथर्श्लेषश �त्र�व श्लेषालङ्का

�नणर्य� स यथाक्रममत्रोपस्थाप्य स

खण्डश्ले - खण्डश्ले पदानां चेदेकैकं पथ


ृ गथर्त स

उच्छलद्भू�रक�ल शश
ु ुभे वा�हनीप�तः सस (चन्द. 5.63)

भङ्गश्ले - भङ्गश्ले पदस्तोमस्य चेत्पृथगथर् स

अजरामरता कस् नायोध्ये पुर� �प्र सस (चन्द. 5.64)

अथर्श्ले - अथर्श्लेषोऽथर्मा यद्यनेकाथर्संश स


कु �टलाः श्यामल द�घार् कटा�ाः कुन्तलाश ते सस (चन्द. 5.65)

केवलप्रस्तुतगतत, केवलाप्रस्तुतगतत च द्�वध श्ले इ�त धमर्सू�र स

यल्ल�ण यथा - श्लेष साम्य समा�दष्ट �वशेषण�वशेष्ययो स (सार. प.ृ 596)

12. समासोिक्त - अलङ्कारस्या ल�णे उद्भट मतमेके मानयिन्, वामनस्यापर स

भोज-रुद् वामनमतमेव मन्येत, मम्म-रुय्-हे मचन्-�वद्याध-�वद्याना-

�वश्वनाथादयश रुय्यकमूर�कुर स

भामहस् यथा - यत्रोक गम्यतेऽन्योथर्स्तत्समान�व स

सा समासोिक्तरु�द् सं��प्ताथर्त यथा सस (कालभा. 2.79)

रुद्रटम - सकलसमान�वशेषणमेकं यत्रा�भधीयमा सत् स

उपमानमेव गमयेदुपमेयं सा समासोिक्त सस (कालर. 8.67)

फलम�वकलमलघीयो लघुप�रण�त जायतेऽस् सुस्वाद स


प्री�णतसकलप्रण�यप सदुन्नते सुतरोः सस (कालर. 8.68)

(�वशेषणमात्रसाम, �वव��तमप्रस्त, प्रस्त �वशेषणं)

"अयमैन्द्र�म पश् रक्तश्चुम् चन्द्र" स रक्त - नायकः

मम्मटमते - परोिक्तभ�दकै िश्लष्ट समासोिक्त स (काप.स.ू 148)

�वश्वनाथस - समासोिक्तस् सा कायार समै�लर्ङ्ग�वशेषण स

व्यवहारसमारोप प्रकृतेऽन् वस्तुन सस (साद. 10.56)

रुय्यकमत - �वशेषणसाम्यादप्रस्त गम्यत् समासोिक्त स (अस. 31)

तच् �वशेषणसाम्य िश्लष्टत, साधारण्येनौपम्यगभर्त च भावाित्त् भव�त स

तत िश्लष्टत यथा - उपोढरागेण �वलोलतारकं तथा गह


ृ �तं श�शना �नशामख
ु म ्स

यथा समस्त �त�मरांशुकं तया पुरोऽ�प रागाद्ग�लत न ल��तम ् सस (अस. 96)

साधारण्ये यथा - तन्व मनोरमा बाला लोला�ी पुष्पहा�सन स

�वकासम�े त सुभग भवद्दशर्नमा सस (अस. 97)


औपम्यगभर्त् यथा - दन्तप्रभापुष्प पा�णपल्लवशो�भन स

के शपाशा�लवनृ ्दे सुवेषा ह�रणे�णा सस (अस. 98)

जयदेवस्त सोदाहरणं ल�णमेवं प्रस्त -

समासोिक्त प�रस्फू�तर प्रस्तुतेऽप्रस चेत् स

अयमैन्दमख
ु ं पश् रक्तश्चुम् चन्द्र सस (चन्द. 5.62)

धमर्सू�रर� मम्मटमनुसरिन्नत ल�य�त - �वशेषणान्ये परमथ� गम�यतुं यदा स

प्रकृत समथार्� समासोिक्तस्त भवेत् सस (सार. प.ृ 588)

(�वव��तः), चन्द्र - प्रस्त

उपमेयश्लेषोक् उपमानप्रती� समासोिक्त�र� वाग्भटप्रथ ल�णम ् स

उदाहरणत्वेनास का�लदासस् - उपोढरागेण �वलोलतारकं तथा गह


ृ �तं श�शना �नशामख
ु म ्स

यथा समस्त �त�मरांशुकं तया पुरोऽ�प रागाद ग�लतं न ल��तम ् सस


इ�त पद्य प्रस्त स (कान.ु प.ृ 36) स अन्यदेवा�भप्र अन्या�भधान

समासोिक्त�र� ल�णं �वदधानः के शव�मश्रस समासोिक्तम अन्यापदेश चा�भन्नत्व

मनुते स (अशे. प.ृ 34)

13. �नदशर्न - प्र उल्लेख �वष्णुधम�त्त प्राप् स कायार्न्त

प्रवृत आनुषङ्�गकफलोपलब् �नदशर्ने� दण्ड स वाचकपदर�हतं गम्यमानौपम्य

�क्रय �व�शष्टाथर्प्रद �नदशर्ने� भामहः स तद्यथ -

�क्रयय �व�शष्टस तदथर्स्योपदशर्न स

�ेया �नदशर्न नाम यथेवव�त�भ�वर्न सस (कालभा. 3.33)

वस्तुसम्बन्धाभावे उपमानोपमेयभावसम्बन्धकल् �वदशर्ने� उद्भ स

(उद्भ �वदशर्न इत्ये पाठः)

मम्मटस् - अभवन ् वस्त सम्बन उपमा प�रकल्पक स (काप.स.ू 149) इ�त ल�णं

करो�त स रुय्यक - संभवतासंभवता वा वस्तुसम्बन् गम्यमान प्र�त�बम्बक


�नदशर्न स (अस. 27) चन्द्रालोकक सोदाहरणं ल�णं �नरूपयन्न -

वाक्याथर्य सदृशयोरैक्यारो �नदशर्न स

या दातुः सौम्यत सेयं सुधांशोरकलङ्कत सस (चन्द. 5.58)

�वश्वना एतल्ल�ण मनाङ �वपयार्सयन्नू -

सम्भवन वस्त सम्बन्धोऽसम्भ वा�प कु त्र� च स

यत �बम्बानु�बम्बत बोधयेत् सा �नदशर्न सस (साद. 10.51)

प्रथमस्योदाहर - कोऽत भ�ू मवलये जनान ् मुधा तापयन ् स�ु चरमे�त सम्पदम स

वेदयिन्न� �दनेन भानम


ु ानाससाद चरमाचलं यतः सस (तत्र वतृ ्त)

अत रवेर�दृशाथर्वेदन�क्रय वक्तृत्वेनान् सम्भवत्य स

असम्भवद्वस्तु�नदश पन
ु द्र्�व - एकवाक्यग, अनेकवाक्यग च स

आद्योदाहरणम - कलय�त कुवलयमालाल�लतं कु �टलः कटा��व�ेपः स


अधरः �कसलयल�लामाननमस्या कला�नधे�वर्लासम सस (तत्र वतृ ्त)

अनेकवाक्यग यथा - इदं �कलाव्याजमनोहर वपुः तपः�मं साध�यतुं प इच्छ� स

ध्रु स नीलोत्पलपत्रधा शमीलतां छे त्तुमृ�ष�यवस्य सस (तत्र वतृ ्त)

इ�त का�लदासीयं पद्य �वश्वना उदाजहार स

धमर्सू�ररेना�मत् ल�य�त - अन्यधमार्न्यसम्बन्धा वस्तुनो�वयो स

प्र�त�बम्बत्वमा� यत तत �नदशर्न सस (सार. प.ृ 578)

आथ� - "क् सय
ू ्प्र
र वंशः क् चाल्प�वषय म�तः स

�ततीषुर् दुस्तर मोहादुडु पेनािस् सागरम ् सस" (काप.उ. 435)

संभवन्वस्तुसंबन - एकवाक्यगत -

"उदय�त �वततो�वरिश्मरज्जाव�हमर �हमधािम् या�त चास्तम स

वह�त �ग�ररयं �वलिम्बघण्टाद्वयप�रवा�रतवारणेन्द्र" सस (काप.उ. 436)

मालारूप - "दो�यां �ततीषर्� तरङ्गवत भुजङ्गमादातु�मच्छ करे ह�रणाङ्क�बम्ब स


मेरु �ललङ्घ�यष� ध्रुवम देव यस्त गण
ु ान ् ग�दतुमुद्यममादधा� सस" (काप.उ. 437)

"��प�स शुकं वषद


ृ ं शकवदने मग
ृ मपर्य� मग
ृ ादनरदने स" (?)

स्वस्वहेत्वन्वय - "उन्नत पदमवाप् यो लघुह�लयैव स पते�द�त ब्रुव स

शैलशख
े रगतो दृषत्कणशरुमारुतधु पतत्यध सस" (काप.उ. 438)

14. अप्रस्तुतप् - अप्रस्तु स्तु�तरप्रस्तुतप्र भामहः स दण्ड

अिग्नश तमनह
ु रतः स दण्ड - अप्रस्तुतप् स्यादप्रक्रा या स्तु�त सस (काद. 2.340)

भामहस् - अ�धकारादपेतस् वस्तुनोऽन्य या स्तु�त स

अप्रस्तुतप् सा चैवं कथ्यत यथा सस (कालभा. 3.29)

रुद्र - असमान�वशेषणम�प यत समाने�तवतृ ्तमुपमेयम स

उक्ते गम्यत परमप


ु मानेने�त साऽन्योिक् सस (कालर. 8.74)

मक
ु ्त् सल�लहं सं �वक�सतकमलोज्ज्व सरः सरसम ् स
बकलु�लतजलं पल्वलम�भलष� सखे न हं सोऽ�स सस (कालर. 8.75)

मम्मटस् - अप्रस्तुतप् या सैव प्रस्तुता सस (काप.स.ू 151)

- अप्राकर�णक अ�भधानेन प्राकर�णक आ�ेपः सस (तत्र वतृ ्त)

ठ. काय� - "याता �कं न �मलिन् सुन्द� पन


ु िश्चन् त्वय मत्कृत

नो कायार �नतरां कृशा�स कथयत्येव सबाष्प म�य स

लज्जामन्थरतारक �नपतत्पीताश्र च�ुषा

दृष्ट मां ह�सतेन भा�वमरणोत्साहस्त स�ू चतः सस" (काप.उ. 439)

्. �न�मत्त - "राजन ् राजसुता न पाठय�त मां देव्योऽ� तष्णी


ू िस्थता

कुब्ज भोजय मां कु मारस�चवैनार्द्या �कं भुज्यत स

इत्थ नाथ शुकस्तवा�रभवन मक


ु ्तोऽध्वग पञ्जरात

�चत्रस्थानवल शन्यवलभावेकैकमाभाषत
ू सस" (काप.उ. 440)

ड़. सामान्य - "एतत्तस मख
ु ाित्कय त कम�लनीपत् कणं वा�रणो
यन्मुक्ताम�ण�रत्यम स जडः शणृ ्वन्यदस्मा स

अङ्गुल्यग्रलघु�क्रयाप्र�वल�यन् शनैः

कु त्रोड् गतो ममेत्यनु�दन �नद्रा नान्तःशुच सस" (काप.उ. 441)

ड्. �वशेषे - "पादाहतं यदुत्था मध


ू ार्नम�धरोह� स

स्वस्थादेवापमानेऽ दे�हनस्तद्व रजः सस" (?)

ड्. तुल्य - श्लेष - "सहकारः सदामोदः वसन्तश्रीसमिन स

समुज्ज्वलरु श्रीमा प्रभूतोत्क�लकाक सस" (�वशेषणे श्लेष) (?)

"पस्त्वाद
ंु प्र�वचले य�द यद्यधोऽ� यायात् य�द प्रणय न महान�प स्यात स

अभ्युद्धरेत् �वश्व�मतीदृशी के ना�प �दक् प्रक�ट पर


ु ुषोत्तम सस" (काप.उ. 443)

समासोिक्त - "येनास्यभ्यु�दत चन् ग�मतः क्लÏन् रवौ तत ते

युज्ये प्र�तकतुर् न पन
ु स्तस्य पादग्र स
�ीणेनैतदनिु ष्ठत य�द ततः �कं लज्जस नो मनाक्

अस्त्वे जडधामता तु भवतो यद्व्योि �वस्फूजर् सस" (काप.उ. 444)

सादृश्यमा - वाच्यसंभ - "एकः कपोतपोतः शतशः श्येना �ुधा�भधाविन् स

अम्बरमावृ�तशून् हकहक शरणं �वधेः करुण सस" (?)

वाच्यासंभ - "को�कलोऽहं भवान ् काकः समानः का�लमावयोः स

अन्तर कथ�यष्यिन काकल�को�वदाः पन


ु ः सस" (?)

उभयरू - "अन्तिश्छद् भय
ू ां�स कण्टक बहवो ब�हः स

कथं कमलनाभस् मा भव
ू न ् भङ्गुर गण
ु ाः सस" (?)

धमर्सूरेलर्� मम्मटमनुसर� -

अप्रस्तु वाच्ये प्रस्त गम्यत य�द स

अप्रस्तुतप्रश क�थता पञ्चध बुधैः सस (सार. प.ृ 604)

"अप्रस्तुतात्सामान्य�वशे कायर्कारणभाव सारूप् च


प्रस्तुतप्रतीतावपशंसा सस" इ�त रुय्य स (अस. 34)

सामान्य�वशेषभाव सामान्याद्�वशेष �वशेषाद्व सामान्यस प्रती द्वै�वध्य स

कायर्कारणभावेऽप्यनय भङ्ग् द्�वधात्व स सारूप् त्वेक भेद इत्यस्य

पञ् प्रकार स तत्राद यथा -

तन्नािस �कम�प पत्यु प्रकिल् यन् �नय�तग�ृ हण्य स

अनवरतगमनशीलस् कालप�थकस् पाथेयम ् सस (अस. 126)

द्�वतीय यथा - एतत्तस मख


ु ाित्कयत्कम�लनीप कणं वा�रणो

यन्मुक्ताम�ण�रत्यम स जडः शणृ ्वन्यदस्मा स

अङ्गुल्यग्रलघु�क्रयाप्र�वल�यन् शनै-

स्तत्रोड गतो इहे त्न�ु दनं �नद्रा नान्त शच


ु ा सस (अस. 127)

ततीयो
ृ यथा - पश्याम �क�मयं प्रपद इ�त स्थैय मयालिम्बत
�कं मां नालपतीत्यय खलु शठः कोपस्तयाप्या�श स

इत्यन्योन्य�वल�दृिष्ट तिस्मन्नवस्थान

सव्याज ह�सतं मया ध�ृ तहरो बाष्पस् मक


ु ्तस्त सस (अस. 128)

चतुथ� यथा - इन् दु�लर् इवाञ्जने ज�डता दृिष्टमृर्गीणा

प्रम्लानारु� �वद ्रुमरु श्यामे हे मप्र स

काकर्श् कलया�म को�कलवधक


ू ण्ठेिष् प्रस्त

सीतायाः पुरतश् हन् �श�खनां बहार् सगहार इथ सस (अस. 129)

पञ्चमस् प्रका साध�यवैध�याभ्या द्�व�वध स उपयुर्क्तान्

साध�यस्योदाहरणा� स वैध�यस् यथा -

धन्या खलु वने वाताः कल्हारस्पशर्शीत स

राम�मन्द�वरश्या ये स्पृशन्त्य�नवा�र सस (अस. 133)

जयदेवस्त मम्मटस ल�ण�वधानमनुकुव्र न्न स्वक ल�णं प्रस्तव स तद्यथ -


अप्रस्तुतप् स्यात् यत प्रस्तुतान स

कायर्कारणसामान्य�वशेषादेर मता सस (चन्द. 5.66)

उदाहरणं यथा - कमलैः कमलावासैः �कं �कं नासा�द सुन्दरम स

अप्यम्बुध परं पारं प्रयाि व्यवसा�यन सस (चन्द. 5.67)

उपमेयस् �किञ्चदुक्तावप्रस्तुत - इ�त वाग्भटप्रथ ल�णम ् स

"लावण्य�सन्धुरपर �ह केयमत यत्राप कद�लकाण्डमृणालदण्ड स

यत्रोत्पल श�शना सह संप्लवन् उन्मज्ज द्�वरदकुम्भत च यत सस"

इ�त पद्यमुदाहृ तेन (कान.ु प.ृ 36), एतत् तु पद्य मम्मटे

रपकालङ्कारस्योदाहरणत् प्रस्तुत� वाग्भट�यल�णोदाहरण �चन्त् स

अन्योिक्तनाम पथ
ृ गललङ्कारमस प्र�तपादय, अतः मम्मटस

अप्रस्तुतप्रशंसातस अप्रस्तुतप् अन्यैवे� ऊह्यम स


15. अ�तशयोिक्त - भरतेन अयमलङ्कार न प्र�तपा�द स भामहमतेन लोका�तक्रान्तगो

वचोऽ�तशयोिक्त स तच् नालङ्कारमात्, अलङ्काराणा मल


ू म�प स तद्यथ -

�न�मत्तत वचो यत्त लोका�तक्रान्तगो च स

मन्यन्तेऽ�तशयो�कं◌ तामलङ्कारतय यथा सस (कालभा. 2.81)

दण्ड, अिग्न, उद्भ, वामनः, भोजः, कुन्तकश अस् लोकसीमा�तगोचरत्व

द्रढयि स मम्मट धमर्सू�रश अलङ्कार�वशेषमे एनां मनुतः स उद्भटेने चतुषुर

भेदेषु �वभािजतः, य एथ भेदा मम्मटे नामान्तरैरूर�कृत स

मम्मटमतेनास भेदाः -

ठ. �नगीयार्ध्यवसा - "चन् एवायं प्रकाश" स (प्रकृत परेण)

्. अन्यदा� शब् प्रयो - "अण्ण लडहत्तणअ अण्ण �वअ का �व वत्तणच्छ स

सामा सामण्मपआवइण रेह िच्च ण होई सस (काप.उ. 450) (अन्य त सौकु माय� .. स)"

ड़. यद्यथ�िक्तमूल - "राकायामकलङ्क चेदमत


ृ ांशोभर्वेद्वप स
तस्य मख
ु ं तदा साम्यपराभवमवाप्नुय ा" सस (काप.उ. 451)

ड्. पौवार्पयर्�वपयर - "प्राग ह�रणा�ीणां �चत्तमुत्क�लकाकुल स

पश्चादु�द्भन्न रसालमुकुल�श्र सस" (?)

"सममेव समाक्रान द्वयम द्�वरदगा�मन स

तेन �संहासनं �प�यं मण्डल च मह���ताम ् सस" (?)

रुय्यक - अध्यव�सतप्राधा त्व�तशयोिक् सस (अस. 22)

अयन्त्वलङ्कारस् पञ्चभेदान स्वीकुरु स ते यथा -

ठ. भेदेऽभेदः - कमलमनम्भ� कमले च कुवलये ता�न कनकल�तकायाम ् स

सा च सुकु मारसुभगेत्युत्पातपरम् केयम ् सस (अस. 61)

्. अभेदे भेदः - अन्यल्लटभत्वमन च का�प व�तनच्छाय स

श्याम सामान्यप्रजा रेखैव न भव�त सस (अस. 62)


ड़. संबन्धेऽसम्बन - लावण्यद्र�वणव न ग�णतः क्लेश महान्स्वीकृ

स्वच्छन् सख
ु ं जनस् वसतिश्चन्तानलोद्दी स

एषा�प स्वयमे तुल्यरमणाभावाद्वरा हता

कोऽथर्श्चेत वेधसा �व�न�हतस्तन्वास्त तन्वत सस (अस. 64)

ड्. असम्बन् सम्बन् - पुष्प प्रवालोप�ह य�द स्यान्मुक्ता वा स्फुट�वद्रुम स स

ततोऽनुकुयार्द्�वशद तस्यास्ताम्रौष्ठपयर िस्मतस्य (अस. 66)

ड्. कायर्कारणपौवार्पयर्�वध् - हृदयम�धिष्ठतमा मालत्या कु सम


ु चापबाणेन स

चरमं रमणीवल्ल लोचन�वषयं त्वय भजता सस (अस. 68)

जयदेवस्त्वत्राक्रमा�तश, अत्यन्ता�तशयोिक, चपला�तशयोिक्त,

सम्बन्धा�तशयोिक, भेदका�तशयोिक्त, रूपका�तशयोिक्तश्चेत्य�तशयो

षड्�वधत् स्वीकृतवान स क्रमेणैतेष सोदाहरणल�णा�न �नरूप्यन्त -

(ठ) अक्रमा�तशयोिक - अक्रमा�तशयोिक्तश युगपदत्कायर्कार स


आ�लङ्गिन समं देव ज्या शराश् पराश् ते सस (चन्द. 5.41)

(्) अत्यन्ता�तशयोिक - अत्यन्ता�तशयोिक्तस्तत्पौवार्पयर् स

अग् मानो गतः पश्चादनुनीत �प्रय सा सस (चन्द. 5.42)

(ड़) चपला�तशयोिक्त - चपला�तशयोिक्तस् काय� हेतुप्रसिक् स

यामी�त �प्रयपृष्ट वलयोऽभवद�ू मर्क सस (चन्द. 5.43)

(ड्) सम्बन्धा�तशयोिक - सम्बन्धा�तशयोिक स्यात्तदभावेऽ तद्वच स

पश् सौधाग्रसंसक �वभा�त �वधुमण्डलम सस (चन्द. 5.44)

(ड्) भेदका�तशयोिक्त - भेदका�तशयोिक्तश्चेदेकस्यैवान्यतो स

अहो अन्यै लावण्यल�ल बालाकु चस्थल सस (चन्द. 5.45)

(ढ) रूपका�तशयोिक् - रूपका�तशयोिक्तश् रूप् रूपकमध्यग स

पश् नीलोत्पलद्वन्द्वािन्नः �शताः शराः सस (चन्द. 5.46)


धमर्सू�स्त एनां षोढा �वभजते, क�व प्रौढोिक्त च सवार्सा षण्णाम�तशयोक्तीन

सामान्यल�ण च प्र�तपादय स अत्युिक्तर�तशयोिक्त� वाग्भटप्र स (कान.ु प.ृ 36)

16. प्र�तवस्तू - भामहः दण्ड चैनामप


ु माभेदेषु क्रोडीकुर स

भामहस्या�भमत यत् - समानवस्तुन्यास प्र�तवस्तूपमोच स

यथेवान�भधानेऽ�प गण
ु साम्यप्रती� सस (कालभा. 2.34)

उद्भटोऽस इदम्प्रथम स्वतन्त् ददौ स रुद्रटम इयमुभयन्यासालङ्क एथ

स भोजः पन
ु ः उभयन्यासम अथार्न्तरस्या�भ स्वीकुवार एनां तत्र गताथर्य� स

(वाक्यदयं अपे��तं, एकः साधारणधमर् उभयत वतर्त)

मम्मटमते - प्र�तवस्तू तु सा सस

सामान्यस द्�वरेकस यत वाक्यद्व िस्थ�त स (काप.स.ू 154)

साध�ये - "देवीभावं ग�मता प�रवारपदं कथं भजत्वेष स

न खलु प�रभोगयोग्य दैवतरूपाङ्�क रत्नम सस" (काप.उ. 453)


वैध�ये - "चकोयर एथ चतुराश्चिन्द्रकापानक स

�वनावन्तीन �नपण
ु ाः सद
ु ृश रतनमर्� सस" (?)

मालारूप - "�वमल एथ र�व�वर्शद शशी प्रकृ�तशो एथ �ह दपर्ण स

�शव�ग�रः �शवहाससहोदरः सहजसुन्द एथ �ह सज्जन सस" (?)

"य�द दहत्यनलोऽ �कमद्भु य�द च गौरवम�द्र �कं ततः स

लवणमम्ब सदैव महोदधेः प्रकृ�तर सताम�वषा�दता सस" (काप.उ. 454)

रुय्यक मतेन तु "वाक्याथर्गतत् सामान्यस वाक्यद्व पथ


ृ ङ्�नद�श

प्र�तवस्तू स" इ�त स (अस. 25)

उदा. - चकोयर एथ चतुराश्चिन्द्रकाचामक स

आवन्त एथ �नपण
ु ाः सद
ु ृश रतनमर्� सस (अस. 78)

चन्द्रालोककारस्या� यथा - वाक्ययोरथर्सामान प्र�तवस्तू मता स


तापेन भ्राज सय
ू ्र शरश्चापे
ू राजते सस (चन्द. 5.55)

पद्यस्या पव
ू ार्ध ल�णम ् उत्तराध चोदाहरणं प्रस्त स

17. दृष्टान - उद्भटेनाय�मदम्प्र उिल्ल�खत स वामन-हे मचन्-के शव�मश्रा

�वहाय परव�तर्�भ प्रा सव�ः स्वीकृत स भोज एनं साम्यालङ्कारभेदे गताथर्य� स

रुद्रटम - अथर्�वशेष पव�


ू यादृ न्यस् �वव��तेतरयोः स

तादृशमन् न्यस्येद पन
ु ः सोऽत दृष्टान सस (कालर. 8.94)

त्व� दृष एथ तस्य �नवार्� मनो मनोभवज्व�लतम स

आलोके �ह �सतांशो�वर्क�स कु मुदं कु मुद्वत्य सस (कालर. 8.95)

लोकं लो�लत�कसलय�वषवनवातोऽ�प मङ�ु मोहय�त स

तापय�ततरां तस्य हृदय त्वद्रमणवाता सस (कालर. 8.96)

(�बम्बप्�बम्बभाव, वाक्यद्व)

साध�ये - "अ�व�दतगण
ु ाऽ�प सत्क�वफ�ण�त कण�षु वम�त मधुधाराम ् स
अन�धगतप�रमलाऽ�प �ह हर�त दृश मालतीमाला सस" (साद. 50 वतृ ्त)

वैध�ये - "त्व� दृष् कुरङ्गा�या स्रंस मदनव्यथ स

दृष्टानुदयभाजीन ग्ला�न कु मुदसंहतेः सस" (साद. 50 वतृ ्त)

धमर्सूरेलर्�ण - �बम्बानु�बम्बभावाच् चेदुपमानोपमेय स

साध�यं पथ
ृ गा�दष्ट स दृष्टान द्�वध मतः।। (सार. प.ृ 569)

द्वयोर� वाक्ययो साध�यं पथ


ृ क् पथ
ृ क् �न�दर ्ष् स्या�द� मम्मटोऽ�भप्र स

रुय्यकस "तस्या� �बम्बप्र�त�बम्बभा �नद�शे दृष्टान" (अस. 26) इ�त

ल�णं �वधाय साध�यवैध�याभ्या द्वै�वध्यमप् समथर्य� स

आद्य यथा - अिब्धलर्ङ् एथ वानरभटैः �कं त्वस गम्भीरत-

मापाताल�नमग्नपीवरतनुजार्ना मन्थाचल स

देवीं वाचमप
ु ासते �ह बहवः सारं तु सारस्वत
जानीते �नतरामसौ गर
ु ुकुिक्लष मुरा�रः क�वः सस (अस. 79)

द्�वतीय यथा - कृतं च गवार्�भमुख मनस्त्व �कमन्यदेव �न�हताश् नोऽरयः स

तमां�स �तष्ठिन �ह तावदं शम


ु ान् यावदायात्युदया�द्रमौ�लत सस (अस. 80)

चन्द्रालोकका सोदाहरणं ल�ण�वधानं यथा -

चेद �बम्बप्र�त�बम् दृष्टान्तस्तदलङ् स

स्यान्मल्लप्र�तम संग्रामोद्दामहुङ् सस (चन्द. 5.56)

18. द�पकम ् - भरतम�ु नमतेन - नाना�धकरणाथार्ना शब्दाना संप्रद�पक स

एकवाक्ये संयुक्त तद्दीपकमुच् सस (नाशा. 16.53)

भामहमतेन - आ�दमध्यान्त�वष �त्र द�पक�मष्यत स

एकस्यै �यवस्थत्वा�द त�द्भद् �त्र सस (कालभा. 2.25)

रुद्रटम - यत्रैकमनेकेष वाक्याथार्न �क्रयाप भव�त स

तद्वत कारकपदम�प तदेत�द�त द�पकं द्वेध सस (कालर. 7.64)


आदौ मध्येऽन् वा वाक्य तत् िस्थत द�पय�त स

वाक्याथार्�न भय
ू िस्त्रधेत् भवेत् षोढा सस (कालर. 7.65)

उदाहरणा�न - कान्त ददा�त मदनं मदनः सन्तापमसममनुपशयम स

सन्ताप मरणमहो तथा�प शरणं नण


ृ ां सैव सस (आ�द�क्रयाद�पक)

तारुण्यमाशुमद मदनः कु रुत �वलास�वस्तारम स

स च रमणीषु प्रभवञ्जनहृदयाव बलवत् सस (मध्य�क्रयाद�प)

नवयौवनमङ्गेष �प्रयसङ्गमनो �ह हृदयेष स

अथ चेष्टास �वकारः प्रभव रम्य कु मार�णाम ् सस (अन्त�क्रयाद�प)

�नद्रापहर जागरमप
ु शमय�त मदनदहनसन्तापम स

जनय�त कान्तासङ्गमसु च कोन्यस्त बन्धु सस (आ�दकत्


रृ द�पकम)

स्रंसय गात्रम�ख ग्लपय� चेतो �नकाममनुरागः स


जन्मसुलभ प्र सखे प्राणान मङ्� मुष्णा� सस (मध्यकतृ द�पकम ् )

दरू ादुत्कण्ठन द�यतानां सिन्नध तु लज्जन् स

त्रस्य वेपमानाः शयने नवप�रणयाः वध्व सस (अन्तकतृर्द�पक) (कालर. 7.66-71)

अस् द�पकस् प्रायोऽलङ्कारान् समावेश इष्यत, तथा आद्ययोरुदाहरणय

कारणमाला-सद्भा, ततीय
ृ -चतुथर-पञ्चमेष वास्तवसमुच्चय, षष्ठ जातेः (तत्र) स

मम्मटमते - कारकस् सकृद्वृित् बह्वीष �क्रया (एका �क्र वा अनेककारकेषु)


सकृद्वृित्तस धमर्स प्रकृताप्रकृतात् स

सैव �क्रया बह्वीष कारकस्ये� द�पकम ् सस (काप.स.ू 156)

�क्रया द�पकम ् - "कृपणानां धनं नागानां फणाम�णः के सराः �संहानाम ् स

कुलबा�लकानां स्तना कुतः स्पृश्यन्तेऽमृतान सस" - छाया - (काप.उ. 457)

कारकद�पकम ् - "िस्वद्य कूण�त वेल्ल� �वचल�त �न�मष�त �वलोकय�त �तयर्क स

अनन्तनर्न् चुिम्बतु�मच्छ नवप�रणया वधूः शयने सस" (काप.उ. 458)

रुय्यक - प्रस्तुताप्रस्त तु द�पकम ् सस (अस. 24)

उदाहरणा�न यथा - राजते �म�हरेण नभो रसेन काव्य स्मरे यौवनम ् स

अमते
ृ न धुनीधवस्त्व नरनाथ भुवन�मदम ् सस

संचारपत
ू ा�न �दगन्तरा� कृत्व �दनान्त �नलयाय गन्तुम स

प्रचक पल्लवरागताम प्रभापतङ् मन


ु ेश् धेनुः सस

कृपणानां धनं नागानां फणाम�णः के सराः �संहानाम ् स


कुलबा�लकानां च स्तना कुतः स्पृश्यन्तेऽमृतान सस (अस. 74-76)

एवमेक�क्र द�पकत्र �नण�तम ् स अत च यथानेककारकगतत्वेनैक�क् द�पकं,

तथानेक�क्रयागतत्वेनैककारक द�पकम ् स यथा -

साधूनामप
ु कतु� ल�मीं धतु� �वहायसा गन्तुम स

न कुतह
ू �ल कस् मनश्च�रत च महात्मना श्रोतु सस (अस. 77)

चन्द्रालोरस्त् रुय्यकमनुकुवर्न ल�णं ल�य�त स

त�दत्थम - प्रस्तुताप्रस्त च तुल्यत् द�पकं मतम ् स

मेधां बुधः सुधा�मन् दु�बर्भ� वसुधां भवान ् सस (चन्द. 5.53)

उदाहरणन्त्वत्रैवोत् सिन्न�हतम स

आविृ त्तद�पक�म� द�पकान्तरमस्यैवाकलन स तद्यथ -

आवतृ ्त द�पकपदे भवेदाव�ृ तद�पकम ् स


द�प्त्यािग्नभा भातीन् दु कान्त् भा�त र�विस्त्व सस (चन्द. 5.54)

धमर्सू�रस् द्र-गण
ु -�क्रयाण सद्भा �त्र�व, तेषामभावे पन
ु िस्त्र�वध�

षोढा द�पकं �वभज�त स आ�दमध्यव�तर्नैक जा�त�क्रयागुणद्रव्य पदाथ�न

यत्राथर्सङ्ग� द�पक�म�त प्रथमवाग् स (कान.ु प.ृ 36)

19. मालाद�पकम ् - मम्मटस् मालाद�पकं द�पकभेदतया व्यवस्थापय स

रुय्य पन
ु रेनं पथ
ृ गलङ्कार स्वीचका स एतत्कृत ल�णं यथा -

पव
ू ्स
र पव
ू ्स्योत्
र तरोत्तरगुणाव मालाद�पकम ् स (अस. 55)

उदाहरणम ् - संग्रामाङ्गणसंग भवता चापे समारो�पते

देवाकणर् येन येन सहसा यद्यत्समासा�दत स

कोदण्डे शराः शरैर�र�शरस्तेना� भम


ू ण्डलम

तेन त्व भवता च क��तर्रमल क��या च लोकत्रय सस (अस. 189)

चन्दलोककारोऽत द�पकैकावल्यो संयोगजन्य फलमेव मालाद�पकत्वेनानुगृह्णा स


तत्कृत ल�णमुदाहरणञ्चेदम - द�पकैकावल�योगान्मालाद�पकमुच्य स

स्मरे हृदय तस्यास्त त्व� कृता िस्थ�त सस (चन्द. 5.89)

धमर्सू�रस्त्व शङ्खलान्यायमूलक
ृ े अलङ्कारेष गणय�त स उत्तरोत्तरभा -

"त्व� संगरसंप्राप धनुषासा�दताः शराः स शरैर�र�शरस्ते भस्तय


ू त्व त्वय यशः सस" (?)

20. तुल्ययो�गत - भामह-दिण्डनोलर्� न परव�तर्�भरनुकृत, उद्भटल�णम य

ऊर�चक्र स भामहस् यथा - न्यूनस्या �व�शष्टे गण


ु साम्य�वव�य स

तुल्कायर्�क्रयायोगा�दत्य तुल्ययो�गत सस (कालभा. 3.27)

�नयतानां सकृद्धम सा पन
ु स्तुल्ययो�ग स (काप.स.ू 158)

प्राकर�णकान अप्राकर�णकान वा एकस्यै स

प्राकर�ण - "पाण्ड �ामं वदनं हृदय सरसं तवालसं च वपुः स

आवेदय�त �नतान्त �े�त्रयरो स�ख हृदन् सस" (काप.उ. 460)


अप्राकर�ण - "कु मुदकमलनीलनीरजा�ललर्�लत�वलासजुषोदृर् पुरः का स

अमत
ृ ममतर
ृ िश्मरम्बुज प्र�तहतमेकप तवाननस् सस" (काप.उ. 461)

रुय्यकस - औपम्यस गम्यत् पदाथर्गतत्व प्रस्तुतानामप्रस्त वा

समानधमार्�भसम्बन तुल्ययो�गत स (अस. 23)

तत प्राकर�णकानामप्राकर�णक वाथार्ना समानगण


ु �क्रया�भसंबन्धाभ

तुल्ययो�गत चतुधार स यथाक्रममेतेषामुदाहरणा प्र�तपाद्यन् स

प्राकर�णकान गण
ु ा�भसम्बन्धत् - योगपट् जटाजालं तारवी त्वङ्मृगािजन स

उ�चता�न तवाङ्गेष यद्यमू� तदुच्यताम सस (अस. 71)

�क्रया�भसम्बन्ध - सज्जातपत्रप्रकरािञ समुद्वहिन स्फुटपाटलत्व स

�वकस्वराण्यकर्करप्रभावा� पद्मा च व�ृ द्धमीय सस (अस. 70)

अप्राकर�णकान गण
ु ा�भसंबन्धत्व - त्वदङ्गमादर द्रष् कस् �चत्त न भासते स

मालतीशशभल
ृ ्लेखाकदल�ना कठोरता सस (अस. 73)
�क्रया�भसंबन्धत यथा - धावत्त्वदश्वपृतनाप� मख
ु ेऽस्

�न�नर्द्रनीलन�लनच्छदकोमला स

भग्नस गज
ू ्रनृपस
र रजः कया�प

तन्व् तवा�सलतया च यशः प्रमृष् सस (अस. 72)

जयदेवकृतं ल�णं यथा - �क्रया�द�भरनेक तुल्यत तुल्ययो�गत स (चन्द. 5.51)

उदाहरणं यथा - सङ्कुचिन सरोजा�न स्वै�रणीवदना� च स

प्राचीनाचलचूडाग्रचुिम्ब सुधाकरे सस (चन्द. 5.52)

�वश्वनाथस् - पदाथार्ना प्रस्तुतानामन्य वा यदा भवेत् स

एकधमार्�भसम्बन स्यात तदा तुल्ययो�गत सस (साद. 10.47-48)

इ�त ल�णं �व�हतवान ् स पिण्डतराजस् द�पकतुल्ययो�गतयो अभेदं प्र�तपादय स

सेयं स्तुत्यथर्�नन्दाथार द्�व�वधे� दण्ड स प्रस्तुताना


अप्रस्तुताना वे�त उद्भटमम्मटाद� द्�व�वध�वभाज सर�णः स धमर्सू�रस्

द्�व�वधा भेदसर�ण�मत्थ व्यवस्थापय - (1) धमर्स �क्र-गण


ु -रूपतय

द्वै�वध् चातु�वर्ध्यमस्येत् स (2) द्र-गण


ु -कमर्णा तदभावानां च षण्णा

धमर्त्वमङ्गीक प्रकृताप्रकृतगत द्वादशप्रक इत्यन् स

उदा. - �डण्डीरपाण्डु राम क�तर्यश गण


ु ाश ्च ते स

अन्त�नर्गूढब्रह्म सञ्चरिन �नरगर्ला सस (सार. प.ृ 59?)

अत प्रकृतान रामगण
ु क�त�नां द्रव्यगुणकमर् तदभावरूपैश धम�ः षड्�भरौपम् गम्यत स

अप्रकृतान तुल्ययो�गत, यथा - गाम्भीय� रघद्वहे


ू �विजताः सप्ता� पाथोधयः

प्रा �नःसत
ृ जीवना हृ� �ववद्धौवार्िग
ृ ्न�चन्त स

त्यक्त शतै ्यगुणे पाण्डुरमुख �डण्डीर�पण्डच्छल

कम्पन् सततं मनाग�प ध�ृ तं नाद्या� �वन्दन्त् सस (सार. प.ृ 60?)

21. व्य�तरेक - भामहस् मतेन - उपमानवतोऽथर्स यद्�वशेष�नदेशर्न स


व्य�तरेक त�मच्छिन �वशेषापादनाद्यथ सस (कालभा. 2.75)

रुद्र उपमेयस् आ�धक्यम - यो गण


ु उपमेये स्यात प्र�तपन च दोष उपमाने स

व्यस्तसमस्तन् तौ व्य�तरेक �त्र कु रुत सस (कालर. 7.86)

उदाहरणम ् - सकलङ्के जडेन च साम्य दोषाकरेण क�दृक ते स

अभुजङ्ग समनयनः कथमप


ु मेयो हरेणा�स सस (कालर. 7.87)

रुद्रटम भेदान्तरम -

यो गण
ु उपमाने तत् प�रपन्थ च दोष उपमेये स

भवतो यत समस्त स व्य�तरेकोऽयमन्यस सस (कालर. 7.89)

उदाहरणं य�दह दत्त, तदग् द�यते, मम्मटे व्य�तरेकस्योदाहरणत् तदेव प्रस्तु स

रुय्यकस उपमानस्या�धक्येऽ व्य�तरेकालङ्कृ�तमूर�करो स

"�ीणः �ीणोऽ�प शशी"त्या�दपद् (अग् उद्धृ) असौ उपमानस्


चन्द्रस प्रक प्र�तपा�द मनुते स

जयदेवोऽप्यस्या�भम सहकुवर्न्न ब्रवी

यत् - "व्य�तरेक �वशेषश्चेदुपमानोपमेययो स "इ�त स (चन्द. 5.59)

उदाहरणं यथा -"शैला इवोन्नता सन्त �कं तु प्रकृ�तकोमल स" (चन्द. 5.59)

मम्मटेनाय �नराकृतः स मम्मटस ल�णम ् -

उपमानाद यदन्यस व्य�तरेक स एथ सः स (काप.स.ू 159)

"�ीणः �ीणोऽ�प शशी भयो


ू भयोऽ�भवध
ू ्त
र सत्यम स

�वरम प्रस सुन्द� यौवनम�नव�तर यातं तु सस" (काप.उ. 462)

हेतुद्वयोक् शाब्द - "अकलङ्क मख


ु ं तस्य न कलङ्क �वधुयर्थ स" (साद. 53 वतृ ्त)

आथ� - "अकलङ्क मख
ु ं तस्य न कलङ्�क�वधूपम म स" (तत्र वतृ ्त)

आ��प्त - "आननेनाकलङ्के जयतीन्दु कलङ्�कनम स" (काप.उ. 564)

उपमेयोत्कषार्नुक शाब्द - "मख


ु ं तस्य न कलङ्क �वधुयर्थ स" (साद. 53 वतृ ्त)
आथ� - "मख
ु ं तस्य न कलङ्�क�वधूपम म स" (तत्र वतृ ्त)

आ��प्त - "मख
ु ं तस्य जयतीन्दु कलङ्�कनम स"

उपमान�नकषार्नुक् शाब्द - "अकलङ्क मख


ु ं तस्य न �वधुयर्थ स"

आथ� - "अकलङ्क मख
ु ं तस्य न �वधूपमम ् स"

आ��प्त - "अकलङ्क मख
ु ं तस्य जयतीन् दुम स"

उभयानक
ु ्त शाब्द - "मख
ु ं तस्य न �वधुयर्थ स"

आथ� - "मख
ु ं तस्य न �वधूपमम ् स"

आ��प्त - "मख
ु ं तस्य जयतीन् दुम स"

श्लेष हेतुद्वयोक् शाब्द - "िजतेिन्द्रय सम्यिग्वद्यावृद्ध�नष स

अ�तगाढगण
ु स्यास नाब्जवद्भङ् गण
ु ाः" सस (काप.उ. 466)

आथ� - "अ�तगाढगण
ु स्यास नाब्जाभ भङ्गुर गण
ु ाः स" (साद. 53 वतृ ्त)
आ��प्त - "अ�तगाढगण
ु स्यास न गण
ु ा अब्जभङ्गुर स" (तत्र वतृ ्त)

उपमेयोत्कषार्नुक शाब्द - "अस् नाब्जवद्भङ् गण


ु ाः" स

आथ� - "अस् नाब्जाभ भङ्गुर गण


ु ाः स"

आ��प्त - "अस् न गण
ु ा अब्जभङ्गुर स"

उपमान�नकषार्नुक् शाब्द - "अ�तगाढगण


ु ास्यास नाब्जव गण
ु ाः" स

आथ� - "अ�तगाढगण
ु स्यास नाब्जाभ गण
ु ाः स"

आ��प्त - "अ�तगाढगण
ु ः सोयं गण
ु ैः अब्ज जय�त स"

उभयानक
ु ्त शाब्द - "अस् नाब्जव गण
ु ाः" स

आथ� - "अस् नाब्जाभ गण


ु ाः स"

आ��प्त - "एध गण
ु ैः अब्ज जय�त स"

एवमेव उपमेयस् उपमानान्न्यूनत्वे स

यथा - "हनम
ू दाद्यैयर्श मया पन
ु द्र्�वष हसैदर ्तपथ
ू �सतीकृतः स" (तत्र वतृ ्त)
मालाव्य�तरेक - (तुल्याथ व�तः, �वषमादयश् िश्लष्ट)

"हरवन् �वषमदृिष्टहर्�र �वभो �वधत


ू �वततवषः
ृ स

र�ववन् चा�तदुःसहकरता�पतभःू कदा�चद�स सस" (काप.उ. 468)

�वश्वनाथ रुद्रटमनुस उपमेयस् न्यूनतायाम� व्य�तरेकमूर�कुरु (साद. 10.52) स

व्य�तरेकसप चत्वा�रंशद्भ अनेन �ववे�चताः स धमर्सू�रमर्म्मटमेवानुह, तस् ल�णम ् -

व्य�तरेकस्तूपमानादुपमेयेऽ�तशा�य स (सार. प.ृ 582) व्य�तरेकभेद अनेन न द�शर्ता स

22. आ�ेपः - भामहस् - प्र�तष इवेष्टस यो �वशेषा�भ�धत्सय स

आ�ेप इ�त तं सन्त शंसिन् द्�व�वध यथा सस (कालभा. 2.68)

रुद्र - वस्त प्र�सद्ध यद्�वरुद्ध वास् वचनमा��प् स

अन्यत्तथात्व�स यत ब्रूया आ�ेपः सस (कालर. 8.89)

जनय�त संतापमसौ चन्द्रकलाकोमल मे �चत्र स


अथवा �कमत �चत् दह�त �हमानी �ह भ�ू मरुह सस (कालर. 8.90)

यथ गणया�म गण
ु ानहमलमथवासत्प्रला� �धङ्माम स

कः खलु कुम्भैरम् मातुमलं जल�नधेर�खलम ् सस (कालर. 8.91)

उक्त�वषय वस्तु�नषेध - "बालक नाहं दती


ू तस्या �प्रयोऽ इ�त न मे व्यापार स

सा �म्रय तवायशः एतत् धमार्�र भणामः सस" (दती


ू त्ववस्तु) (साद. 64 वतृ ्त)

कथन�नषेधे - "ज्योत्स मौिक्तकदा चन्दनरस शीतांशुकान्तद्

कप्रूर कदल�मण
ृ ालवलयान्यम्भोिजनीपल्ल स

अन्तमार्नसमास्त प्रभव तस्या स्फु�लङ्गोत-

व्यापारा भविन् हन् �कमनेनोक्ते न ब्रूम सस" (काप.उ. 472)

व�यमाण�वषये सवार्त्म �नषेधे - "स्मरशरशत�वधुराय भणा�म सख्या कृते �कम�प स

�ण�मह �वश्र सखे �नदर ्यहृदय �कं वदाम्यथव सस" (साद. 64 वतृ ्त)

आं�शक�नषेधे - "यथ �वरहे ह�रणा�� �नर��य नवमा�लकां द�लताम ् स


हन् �नतान्त�मदानीम आः �कं हतजिल्पतैरथव सस" (तत्र वतृ ्त)

गम्य�नषेध - "गच् गच्छ� चेत्पान पन्थान सन्त ते �शवाः स

ममा�प जन् तत्र भय


ू ाद्य गतो भवान ् सस" (साद. 65 वतृ ्त)

रुय्यक यथा - उक्तव�यमाणयो प्राकर�णकयो�वर्शेषप्रत �नषेधाभास

आ�ेपः इ�त सस (अस. 38) स अनेना�प चतु�वर्धत्वम स्वीकृतम स क्रम

तिन्नरूप् स उक्त�वषय वस्तु�नषेध - (उप�र तिू ल्ल�खतमेतत)

वस्तुकथनस �नषेधे - प्रसीदे ब्रूया�मदमस कोपे न घटते

क�रष्याम्ये नो पन
ु �र�त भवेदभ्युपगम स

न मे दोषोऽस्ती� त्व�मदम� �ह �ास्य� मष


ृ ा

�कमेतिस्मन्वक् �म�म�त न वे�द �प्रयत सस (अस. 146)

सामान्यस्योक �वशेषस्या�ेपत् - सुभग �वलम्बस स्तोक याव�ददं �वरहकातरं हृदयम स


संस्थाप भ�णष्या� अथवा व्रज �कं भणामः सस (अस. 147)

अंशस्योक्तावंशान्त �नषेधे - ज्योत्स तमः �पकवचः क्रकचस्तुष

�ारो मण
ृ ालवलया�न कृतान्तदन्त स

सव� दुरन्त�मदमद �शर�षमद्व


सा नन
ू माः �कमथवा हतजिल्पते सस (अस. 148)

जयदेविस्त्वत ब्रू - आ�ेपस्त प्रयुक् प्र�तषे �वचारणात् स

चन् सन्दशर्यात्मानमथवा �प्रयामुख सस (चन्द. 5.72)

उत्तराधर्म पद्यस्योदाहरणम द्योतय� स

�वश्वनाथ मम्मटकृत ल�णमस् सवर्थ स्वीकुरु, परन्त �वकल्पतय अन्यथाप्या�ेपम

ल�य�त, तद्यथ - अ�नष्टस तथाथर्स �वध्याभास परो मतः स (साद. 10.65)

तथे�त पव
ू ्व
र �वशेषप्र�तपत् स

उदा. - गच् गच्छ� चेत् कान् पन्थनः सन्त ते �शवाः स


ममा�प जन् तत्र भय
ू ाद यत गतो भवान ् सस (तत्र वतृ ्त)

एके न प्रस्तु अ�स�द्धरा� इ�त के शव�मश् स (अशे. प.ृ 37)

यथा - इन्द् �कं य�द स कणर्नरेन्द्रसूनुरैरा �कमसौ य�द त��वपेन्द स

दम्भो�लनाप्यलमयंय तत्प्रत स्वग�ऽप्य ननु मुधा य�द तत्पुर सा सस (अशे. प.ृ 37)

23. �वभावना - भामहमतेन - �क्रयाय प्र�तषे या तत्फलस �वभावना स

�ेया �वभावनैवासौ समाधौ सुलभे स�त सस (कालभा. 2.77)

रुद्र अ�तशयोिक्तमूलकालङ्कारे अयमलङ्कार प�रग�णतः स

सेयं �वभावनाख्य यस्यामुपलभ्यमानम�भधेय स

अ�भधीयते यतः स्यात्तत्कारणमन ्तर सस (कालर. 9.16)

�नहतातुल�त�मरभरः स्फारस्फुरदुरुतरप्रभ स

शं वो �दनकृ�द्दश्यादतैलप जगद्दी सस (कालर. 9.17)


यस्या तथा �वकारस्तत्कारणमन्त सवु ्यक् स

प्रभव वस्तु�वशेष �वभावना सेयमन्य तु सस (कालर. 9.18)

जाता ते स�ख सांप्रतमश्रमप�रम ग�तः �क�मयम ् स

कस्मादभवदकस्मा�दयममधुमदाल दृिष् सस (कालर. 9.19)

यस् यथात्व लोके प्र�सद्धम �वद्यत तस्मात स

अन्यस्या तथात्व यस्यामुच्य सान्येयम सस (कालर. 9.20)

स्फुटमपर �नद्राय सरसमचैतन्यकारण पस


ुं ाम ् स

अपटलमान्ध्य�न�मत मदहेतुरनासवो ल�मीः सस (कालर. 9.21)

- हेतुरूप�क्रया�नषेधे फलप्रकाशन

"अ�प ला�ारसा�सक्त रक्त तच्चरणद्वय स" (?)

उक्त - "अनायासकृशं मध्यमशङ्कतर दृश स अभष


ू णमनोहा�र वपुव्
र य� सभ
ु ्रु सस" (साद. 66 वतृ ्त)

अनक
ु ्त - "अनायासकृशं मध्यमशङ्कतर दृश स अभष
ू णमनोहा�र वपुभार्� मग
ृ ीदृश सस" (तत्र वतृ ्त)
रुय्यक यथा - कारणाभावे कायर्स्योत्पित्त�वर् सस (अस. 41)

उक्त�न�मत्ताऽनुक्त�न�म चेय�म�त द्�व�वध स तत्राद्यस्योदा यथा -

असंभत
ृ ं मण्डनमङ्गयष्टेरनासवा करणं मदस् स

कामस् पुष्पव्य�त�रक्तम बाल्यात्प साथ वयः प्रपे सस (अस. 161)

द्�वतीय यथा - अङ्गलेखामकाश्मीरसमालम्भन�पञ्ज स

अनलक्तकताम्राभामोष्ठल च �बभ्रती सस (अस. 162)

जयदेवोऽत प्रकारान्त रुय्यकमेवानुकुवर ल�णं �वदधा�त स त�दत्थम -

�वभावना �वनाऽ�प स्यात कारणं कायर्जन चेत् स

पश्, ला�ारसा�सक्त रक्त त्वच्चरणद्व सस (चन्द. 5.77)

उदाहरणन्त्वत सिन्न�हतम स

24. �वशेषोिक्त - भामहस् - एकदेशस् �वगमे या गण


ु ान्तरसंिस्थ� स
�वशेषप्रथनाया �वशेषोिक्तमर् यथा सस (कालभा. 3.23) कारणेषु सत्स्व फलाभावः स

उक्त - "ध�ननोऽ�प �नरुन्मा युवानोऽ�प न चञ्चला स

प्रभवोऽप्यप्रमत महाम�हमशा�लनः सस" (साद. 67 वतृ ्त)

अनक
ु ्त - "ध�ननोऽ�प �नरुन्मा युवानोऽ�प न चञ्चला स

प्रभवोऽप्यप्रमत �कयन्त सिन् भतले


ू सस" (तत्र वतृ ्त)

अ�चन्त् - "स एकस्त्र जय�त जगिन् कु सम


ु ायुधः स

हरता�प तनुं यस् शंभुना न बलं हृतम सस" (तत्र वतृ ्त)

रुय्यककृ ल�णं यथा - कारणसाम�ये कायार्नुत्पित्त�वर्शेषो स (अस. 42)

सेयं �वशेषोिक्तरुक्त�न�मत्ताऽनुक्त�न चे�त द्�व�वध स अनक


ु ्त�न�मत्

पन
ु ः �चन्त्या�चन्त्य द्�व�वधे� कृत्व समुदायेन �त्र�व स

प्रत्येकस्योदा यथा क्रम -

(1) कप्ूर इथ दग्धोऽ� शिक्तमान् जने जने स


नमोऽस्त्ववायर्वीय तस्म कु सम
ु धन्वन सस (अस. 163)

(2) आहूतोऽ�प सहायैरो�मत्युक्त �वमक


ु ्त�नद्रो स

गन्तुमन अ�प प�थकः संकोचं नैव �श�थलय�त सस (अस. 164)

(3) स एकस्त्र जय�त जगिन् कु सम


ु ायुधः स

हरता�प तनुं यस् शंभुना न हृत बलम ् सस (अस. 165)

रुय्यकमनुकुवर् जयदेवेन ल�णं कृतम ् -

�वशेषोिक्तरनुत्पित कायर्स स�त कारणे स

नमन्तम� धीमन्त न लङ्घय� कश्च सस (चन्द. 5.78)

उदाहरणन्त्वत �न�दर ्ष्ट स

25. यथासंख्य - भामहस् - भय


ू सामप
ु �दष्टानामथार्नामसधमर्ण स

क्रम योऽन�ु नद�शो यथासंख्य तदुच्यत सस (कालभा. 2.89)


रुद्रटम - �न�दर ्श्यन यिस्मन्नथ �व�वधा ययैव प�रपाट्य स

पन
ु र�प तत्प्र�तबद्धा तत्स्य यथासङ्ख्य सस (कालर. 7.34)

त��वगण
ु ं �त्रगु वा बहूष�ू द्दष्ट जायते रम्यम स

यत् तेषु तथैव ततो द्वयोस् बहुशोऽ�प बध्नीयात सस (कालर. 7.35)

�त्रगुणोदाहरण - कज्जल�हमकनकरु सप
ु णर्हंसवृषवाहना शं वः स

जल�न�ध�ग�रपद्मस ह�रहरचतुरानना ददतु सस (कालर. 7.36)

द्वयोबर्हुगुणोदाहरण - दुग्धोद�धशैलस् सप
ु णर्वृषवाहन घनेन् दुरु स

मधुमकरध्वजमथन पातां वः शा�गशलधरौ


ू सस (कालर. 7.37)

मम्मटे - यथासङ्ख् क्रम क्र�मकाण समन्वय स (काप.स.ू 164)

यथा - "एकिस्त् वस�स चेत�स �चत्र देव द्�वषा च �वदुषां च मग


ृ ीदृशा च स

तापं च संमदरसं च र�तं च पुष्णन शौय�ष्मण च �वनयेन च ल�लया च सस" (काप.उ. 477)

उ�द्दष्टानामथार क्रमेणानु�नद� यथासंख्यम स (अस. 59)


तच् यथासंख्य शाब्दमाथ चे�त द्�वध स आद्य यथा -

लावण्यौक� सप्रतापग�रमण्यग् त्या�गना

देवत्वय्यवनीभर�मभु �नष्पा�दत वेधसा स

इन् दु �कं घ�टतः �कमेष �व�हतः पष


ू ा �कमतु ्पा�दत

�चन्तारत्नम मुधैव �कममी सषृ ्टा कुल�माभतः


ृ सस (अस. 198)

द्�वतीय यथा - कज्जल�हमकनकरु सप


ु णर्वृषहंसवाहना शं वः स

जल�न�ध�ग�रकमलस्थ ह�रहरचतुरानना ददतु सस (अस. 199)

जयदेवस् सं�वधानत्व सोदाहरणं ल�णं यथा -

यथासंख्य द्�वधाथार्श् च क्रमादेकैकमिन्व स

शत्र �मत् द्�वषत्प जप रञ्ज भञ्ज सस (चन्द. 5.92)

26. अथार्न्तरन्य - रुद्र - ध�मर्णमथर्�वशे सामान्य वा�भधाय तित्सद्ध स


यत सधमर्क�मतर न्यस्येत्सोऽथार्न्तर सस (कालर. 8.79)

तुङ्गानाम� मेघा शैलानामप


ु �र �वदधते छायाम ् स

उपकतु� �ह समथार भविन् महतां मह�यांसः सस (कालर. 8.80)

सकल�मदं सख
ु दुःखं भव�त यथावासनं तथाह�ह स

रमयिन्ततरा तरुणीनर्ख�ताद� र�तकलहे सस (कालर. 8.81)

पव
ू ्वद�भधा
र ैक
य �वशेषसामान्ययोद्र्�वत तु स

तित्सद्धयेऽ�भदध्याद्�व यत सोऽन्योऽयम सस (कालर. 8.82)

अ�भसा�रका�भर�भहत�न�बडतमा �नन्द्य �सतांशुर�प स

अनुकूलतया �ह नण
ृ ां सकलं स्फुटम�भमतीभव� सस (कालर. 8.83)

हृदये �नव्ताना
रृ भव�त नण
ृ ां सवर्मे �नव्तय
रृ स

इन् दुर� तथा�ह मनः खेदय�ततरां �प्रया�वर सस (कालर. 8.84)

सामान्यावप्य स्फुटमुपमाया स्वरूपऽपेतौ स


�न�दर ्श्ये यिस्मन्नुभयन्य स �व�ेयः सस (कालर. 8.85)

सकलजगत्साधारण�वभव भु�व साधवोऽधुना �वरलाः स

सिन् �कयन्तस्तर सुस्वादुसुगिन चारुफला सस (कालर. 8.86)

साध�ये �वशेषेण सामान्यसमथर् - "�नजदोषावत


ृ मनसाम�तसुन्दरमे भा�त �वपर�तम ् स

पश्य� �पत्तोपहत श�शशभ


ु ् शङ्खम� पीतम ् सस"(काप.उ. 478)

सामान्ये �वशेषसमथर्न - "यावदथर्पदा वाचमेवमादाय माधवः स

�वरराम मह�यांसः प्रकृत �मतभा�षणः सस" (साद. 61 वतृ ्त)

"हनम
ु ानतरदÏब् दुष्कर �कं महात्मनाम स" (?)

वैध�ये �वशेषेण सामान्यसमथर् - "गण


ु ानामेव दौरात्म्याद् धुय� �नयुज्यत स

असंजात�कणस्कन् सख
ु ं स्व�प� गौगर्�ल सस" (काप.उ. 480)

सामान्ये �वशेषसमथर्न - "इत्थमाराध्यमानोऽ िक्लश्ना भुवनत्रय स


शाम्येत्प्रत्यप नोपकारेण दुजर्न सस" (साद. 61 वतृ ्त)

रुय्यकस - सामान्य�वशेषकायर्कारणभावाभ् �न�दर ्ष्टप्रकृतसमथर्नमथार्न् स

(अस. 35) इत्यने तस्यै मम्मटस्वीकृतभेदचतुष्ट कायर्कारणभावाभ्यामष भेदान ् �नरूपय� स

जयदेवस् यथा - भवेदथार्न्तरन्यासोऽनुषक्ताथार्न्त स

हनम
ु ानिब्धमतर दुष्कर �कं महात्मनाम सस (चन्द. 5.68)

उदाहरणन्त्वत सुस्पष्ट स

27. �वरोधः - भामहस् - गण


ु स् वा �क्रया वा �वरुद्धान्य�क्र स

या �वशेषा�भधानाय �वरोधं तं �वदुयर्थ सस (कालभा. 3.25)

रुद्र - यिस्मन्द्रव्या परस्पर सवर्थ �वरुद्धान स

एकत्रावस्थ समकालं भव�त स �वरोधः सस (कालर. 9.30)

अस् सजातीयानां �वधीयमानस् सिन् चत्वार स

भेदास्तन्नामा पञ् त्वन् तदन्येषाम सस (कालर. 9.31)


जा�तद्रव्य�वर न संभवत्ये तेन न षडेते स

अन्य तु व�यमाणाः सिन् �वरोधास्त चत्वार सस (कालर. 9.32)

यत्रावश्यंभ ययोः यज्जातीययोभर्वेदे स

एकत �वरोधवतोस्तयोरभावोऽयमन्यस सस (कालर. 9.33)

अत्रेन्द्रनील�भ गह
ु ासु शैले सदा सुवेलाख्य स

अन्योन्यान�भभू तेजस्तमस प्रवत� सस (कालर. 9.34)

सत्य त्वमे सरलो जग�त जराज�नतकुब्जभावोऽ� स

ब्रह्मन्प �वमलो �वतताध्वरधूमम�लनोऽ� सस (कालर. 9.35)

बालमग
ृ लोचनायाश्च�रत�मद �चत्र यदसौ माम ् स

जडय�त संतापय�त च दरेू हृदय च मे वस�त सस (कालर. 9.36)

एकस्यामे तनौ �बभ�तर युगपन्नरत्व�संहत स


मनज
ु त्ववराहत् तथैव यो �वभुरसौ जय�त सस (कालर. 9.37)

तेजिस्वन गह
ृ �तं मादर ्वमुपया� पश् लोहम�प स

पात् तु महद्�व�हत तर�त तदन्यच तारय�त सस (कालर. 9.38)

सा कोमला�प दलय�त मम हृदय पश्यत �दशः सकलाः स

अ�भनवकदम्बधूल�धूसरशुभ्रभ्रमद सस (कालर. 9.39)

वरतनु �वरुद्धमेत च�रतमदृष्टपूवर् लोके स

मन्था� येन �नतरामबला �ह बलान्मन यन


ू ाम ् सस (कालर. 9.40)

अ�ववे�कतया स्थान जातं न जलं न च स्थल तस्या स

अनुरज् चलप्रकृ त्वय्य भतार यया मक


ु ्त सस (कालर. 9.41)

न मदु
ृ न क�ठन�मदं मे हतहृदय पश् मन्दपुण्याय स

यद्�वरहानलतप् न �वलयमप
ु या�त न च दाढयर्म सस (कालर. 9.42)

नास्त न या�त हं सः पश्यन्गग घनश्याम म स


�चरप�र�चतां च �ब�सनीं स्वयमुपभुक्ता�त�रक्तरस सस (कालर. 9.43)

न स्त न चायमस्त जातः कुलपांसनो जनो यत स

कथ�मव तत्पाताल न यातु कुलमनवलिम्बतय सस (कालर. 9.44)

�वरोधः सोऽ�वरोधेऽ�प �वरुद्धत यद्वच स (काप.स.ू 166)

वस्तुवृत्तेऽ�वरोधेऽ �वरोधत्वेना�भधानम - मम्मटमते ्श भेदाः स

1. जात्य जा�तः - " अ�भनवन�लनी�कसलयमण


ृ ालवलया�द दवदहनरा�शः स

सुभगकुरङ्गदृशोऽस �व�धवशतस्त्वद्�वयोगप�वप सस (काप.उ. 482)

2. गण
ु ेन जा�तः - �गरयोऽप्यनुन्न�तयु मरुदप्यचलोऽब्धयोऽप्यगम् स

�वश्वम्भराप्य�तलघुनर् तवािन्तक �नयतम ् सस (काप.उ. 483)

3. �क्रय जा�तः - येषां कण्ठप�रग्रहप्रण संप्रा धाराधर-

स्ती�ण सोऽप्यनुरज्य च कम�प स्नेह पराप्नो� च स


तेषां संगरसंगसक्तमनसा रा�ां त्वय भप
ू ते

पांसन
ू ां पटलैः प्रसाधन�व�ध�नर्वर् कौतुकम ् सस (काप.उ. 484)

4. द्रव् जा�तः - सज
ृ �त च जग�ददमव�त च संहर�त च हेलयैव यो �नयतम ् स

अवसरवशतः शफरो जनादर ्न सोऽ�प �चत्र�म द सस (काप.उ. 485)

5. गण
ु ेन गण
ु ः - सततं मस
ु लासक्त बहुतरगह
ृ कमर्घटनय नप
ृ ते स

द्�वजपत्नीन क�ठनाः स�त भव�त कराः सरोजसुकु माराः सस (काप.उ. 486)

6. �क्रय गण
ु ः - पेशलम�प खलवचनं दह�ततरां मानसं सतत्त्व�वदा स

परुषम� सज
ु नवाक्य मलयजरसवत् प्रमोदय सस (काप.उ. 487)

7. द्रव् गण
ु ः - क्रौञ्चा�द्ररुद्दामद यन्मागर्णानगर्लशातप स

अभन्नव
ू ाम्भोजदला�भजा स भागर्व सत्यमपूवर्सग सस (काप.उ. 488)

8. �क्रय �क्र - प�रच्छेदातीत सकलवचनानाम�वषयः

पन
ु जर्न्मन्यिस्मन्ननु यो न गतवान ् स
�ववेकप्रध्वंसादुप�चतमहामोहग

�वकारः कोऽप्यन्तजर्ड च तापं च कु रुत सस (काप.उ. 489)

9. द्रव् �क्र - अयं वारामेको �नलय इ�त रत्नाक इ�त

�श्रतोऽस्मा�भस्तृष्णातर�लतमनो�भजर् स

ङ एवं जानीते �नजकरपुट�कोटरगतं

�णादेनं ताम्यित्त�ममकरमापास् म�ु नः सस (काप.उ. 490)

10. दव्यस द्रव् - समदमतङ्गजमदजल�नःस्यन्दतरङ्�गणीप�रष्व स

���त�तलक त्व� तटज�ु ष शङ्करचूडापगा� का�लन्द सस (काप.उ. 491)

रुय्यकोऽ "�वरुद्धाभास �वरोधः" (अस. 40) इ�त ल�णं प्र�तपा मम्मटस्य

दशभेदान ् स्वीकुरु स

जयदेवस् यथा - �वरोधोऽनप


ु पित्तश्च गण
ु द्रव्य�क्रय स
अमन्दचन्दनस्य स्वच्छन दन्दहती� माम ् सस (चन्द. 5.74)

28. स्वभावोिक् - भामहस् - स्वभावोिक्तरलङ् इ�त के �चत्प्रच स

अथर्स तदवस्थत् स्वभावोऽ�भ�हत यथा सस (कालभा. 2.93)

रुद्रट जा�तनामानमलङ्कारमे �नरूपय� स तल्ल�ण यथा -

संस्थानावयवस्थान�क्र यद्यस सदृश भव�त स

लोके �चरप्र�स तत्कथनमन्य जा�तः सस (कालर. 7.30)

�शशम
ु गु ्धयुव�तकातर�तयर्क्सम्भ्रान्तह�नप स

सा कालावस्थो�चतचेष्टा �वशेषतो रम्य सस (कालर. 7.31)

उदाहरणम ् - धूल�धूसरतनवो राज्यिस्थ�तरचनकिल्पतैकनृ स

कृतमख
ु वाद्य�वकारा क्र�डि स�ु नभर्र �डम्भा सस (कालर. 7.32)

मम्मटे - स्वभावोिक्तस �डम्भादे स्व�क्रयारूपवण स (काप.स.ू 168)

पश्चादङ् प्रसा �त्रकन�त�वत द्राघ�यत्वाङ्गमु


आसज्याभुग्नकण मख
ु मुर�स सटां धू�लध्रूम �वधूय स

घासग्रासा�भलाषादनवरतचलत्प्रोथतुण्डस

मन्द शब्दायमान �व�लख�त शयनादुित्थत �मां खुरे ण सस (काप.उ. 492)

उदाहरणान्तरम - करार�वन्दे पदार�वन्द मख


ु ार�वन्द �व�नवेशयन्तम स

वटस् पत्र पुटे शयानं बालं मुकुन्द मनसा स्मरा� सस (?)

रुय्यको ब्रू - स�
ू मवस्तुस्वभावयथावद्वण स्वभावोिक् इ�त स (अस. 79)

उदाहरणं यथा - हुंकारो नखको�टचञ्चुपुटकव्याघट्टनोट-

स्तन्व् कुन्तलकौतुकव्य�तक सीत्कारसीमिन्त स

पषृ ्ठिश्लष्यदवामनस्तनभरोत्सेधाङ्कपा-

सेकाकेकरलोचनस् कृ�तनः कणार्वतंसीभवेत सस ( अस. 251)

जयदेवस् यथा - स्वभावोिक् स्वभावस जात्या�दष च वणर्नम स


कुरङ्गैरुत्तरङ् स्तब्धकण�रुद�� सस (चन्द. 5.112)

यथािस्थतवस्तुस्वरूपवणर्नम जा�तः, सा च त्रस्ताभर्कद�न�तयर्ग्युव�तप

�वशेषतो रम्य - इ�त प्रथमवाग् स (प.ृ 32)

29. व्याजस्तु� - दरू ा�धकगण


ु स्तोत्रव्यपद तुल्यताम स

�किञ्चद्�व�धत्सो �नन्द व्याजस्तु�तर यथा सस (कालभा. 3.31)

मम्मटमते - व्याजस्तु�तमुर �नन्द स्तु�तवा, रू�ढरन्य स (काप.स.ू 169)

�हत्व त्वामुपरोधवन्ध्यमन मन्य न मौ�लः परः

लज्जावजर्नमन्त न रमामन्य संदृश्य स

यस्त्या तनुतेतरां मख
ु शतैरेत्या�श्रता �श्र

प्रा त्यागकृतावमाननम� त्वय्य यस्या िस्थ�त सस (काप.उ. 493)

हे हेलािजतबो�धसत्त वचसां �कं �वस्तरैस्तोय

नािस् त्वत्सद परः पर�हताधाने गह


ृ �तव्र स
तष्यत्पान्थजनोपकारघटनावैमुख्यलब्

भारप्रोद्व करो�ष कृपया साहायकं यन्मरो सस (काप.उ. 494)

रुय्यक सं�वधानं यथा -

स्तु�त�नन्दाभ् �नन्दास्तुत्योगर्म व्याजस्तु� स इ�त स (अस. 37)

सेयं व्याजस्तु� स्तुते�नर्न्दार पयर्वसानरू, �नन्दाया स्तु�तरूप

पवर्सानरू चे�त द्�व�वध स तदेतयोरुदाहरण क्रम यथा -

हे हेलािजतबो�धसत्त वचसां �कं �वस्तरैस्तोय

नािस् त्वत्सद परः पर�हताधाने गह


ृ �तव्र स

तष्यत्पान्थजनोपकारघटनावैमुख्यलब्
ृ -

भारप्रोद्व करो�ष कृपया साहायकं यन्मरो सस (अस. 142)

इन्दोलर् �त्रपुरज�य कण्ठपीठ मुरा�र-


�दर ्ङ्नागान मदजलमषीभािञ् गण्डस्थला स

अद्याप्युव�वलय�त श्याम�लम्नानु�लप-

न्युद्भास थ् धव�लतं �कं यशो�भस्तद�यै सस (अस. 143)

जयदेवस् यथा - उिक्त�याजस्तु�त�नर्न्दास्तु� स्तु�त�नन्दय स

कस्त �ववेको नय�स स्वग पात�कनोऽ�प यत् सस (चन्द. 5.71)

30. सहोिक्त - �भन्नयो पदाथर्यो कृते �क्रयाद्वयस् एकायामेव �कयायां

प्रयुक्ता सहोिक्त�र� भामहः स यथा - तुल्यकाल �क्र यत वस्तुद्वयसमाश स

पदेनैके न कथ्येत सहोिक्त सा मता यथा सस (कालभा. 3.39)

दण्ड पन
ु ः द्वयो गण
ु योः स्थान एके गण
ु े क�थतेऽ�प सहोिक्तमूर�कुरु स

रुद्रटम वास्तवमूलकोऽयमलङ्का स तल्ल�ण यथा -

भव�त यथारूपोऽथर कुवर्न्नेवाप तथाभत


ू म ्स

उिक्तस्त समाना तेन समं या सहोिक्त सा स (कालर. 7.13)


उदाहरणम ् - कष्ट सखे क् यामः सकलजगन्मन्मथ सह तस्या स

प्र�त�दनमुपै व�ृ दं◌्ध कु चकलश�नतम्ब�भित्तभ सस (कालर. 7.14)

रुद्रटम प्रकारान्त - यो वा येन �क्रय तथैव भवता च तेन तस्या� स

अ�भधानं यत् �क्रय समानमन्य सहोिक्तस् सस (कालर. 7.15)

भवदपराधैः साध� सन्ताप वधर्तेतरा तस्या स

�यमे�त वराक� स्नेहे समं त्वद�ये सस (कालर. 7.16)

रुद्रटम प्रकारान्त - अन्योन् �नरपे�ौ यावथार्वेककालमेक�वध स

भवतस्तत्कथ यत् सा�प सहोिक्त �कलेत्यपर सस (कालर. 7.17)

उदाहरणम ् - कु मुददलैः सह सम्प् �वघटन्त चक्रवाक�मथुना स

सह कमलैलर्लनाना मानः सङ्कोचमाया� स (कालर. 7.18)

औपम्यमूलकालङ्कारे पथ
ृ क्तय रुद्र सहोिक्तरल��त, यथा -
सा �ह सहोिक्तयर्स् प्र�सद्धदूरा�धक योऽथर् स

तस् समान�क् इ�त कथ्येतान् समं तेन सस (कालर. 8.99)

मधुपानोद्धतमधुकरमदकलकलकण्ठद��पतोत्क स

सप�द मधौ �नजसदनं मनसा सह यान्त्य प�थकाः सस (कालर. 8.100)

यत्रैककतृर स्यादनेककमार्�श �क्र तत स

कथ्येतापरस�हत कम�कं सेयमन्य स्यात सस (कालर. 8.101)

स त्वा �वभ�तर हृदय गर


ु ु�भरसंख्यैमर्नोर साधर्म स

ननु कोपनेऽवकाशः कथमपरस्य भवेत्त सस (कालर. 8.102)

रुय्यकस उपमानोपमेययोरेकस् प्राधान्य�नद�शेऽप सहाथर्सम्बन

सहो�कं ◌्त स्वीकरो� स (अस. 29) स तदेतस्य भेदाः क्रम �नरुप्यन स (तत्र वतृ ्त)

कायर्कारणप्र�त�नयम�वपयर् यथा - "भवदपराधैः साध� संतापो वधर्तेतरामस्य स"

श्लेष�भित्तकाभेदाध्यवसाय यथा - "अस्त भास्वानयातः सह �रपु�भरयं सं�ह्रयन् बला�न स"


अश्लेषमूल सहोिक्तयर् - "कु मुदवनैः सह संप्र �वघटन्त चक्रवाक�मथुना स"

जयदेवस् मतेन - सहोिक्त सहभावश्चे भासते जनरञ्जन स

�दगन्तमगम यस् क��तर् प्रत्य�थर सहसस (चन्द. 5.60)

एवमेव �वद्याना-�वद्याध-धमर्सू�रप्रमु स

मम्मटमते अस्य ल�णम ् - सा सहोिक्त सहाथर्स बलादेकं द्�ववाचकम स (काप.स.ू 170)

सह �दअह�णसा�हं द�हरा सासदण्ड सह म�णवलये�हं वाप्पघार गलिन् स

तुह सह
ु अ �वओए तीय उिव्विग्गर सह अ तणुलताए दुब्बल जी�वदासा सस (काप.उ. 495)

31. �वनोिक्त - मम्मटेनेय�मदम्प्रथ �नरू�पत स यत अन्ये �वना अन्य भव�त,

न इतरः स क्व�चत शोभनः, क्व�चदशोभन स

अरु�च�नर्श �वना शशी श�शना सा�प �वना महत्तम स

उभयेन �वना मनोभवस्फु�रत नैव चकािस् का�मनोः सस (काप.उ. 496)


मग
ृ लोचनया �वना �व�चत्रव्यवहारप्र�तभाप्र स

अमतद्यु�तसुन्दराश
ृ योऽ सह
ु ृद तेन �वना नरेन्द्रसू सस (काप.उ. 497)

धमर्सू�ररस्यामौपम् गम्यत् प्र�तपादय स (सार. प.ृ 586)

रुय्यकस मम्मटस्या�भम स्वीकुरु "�वना किञ्चदन्य सदसत्त्वाभा

�वनोिक्त" (अस. 30) इ�त ल�णं �नरूपयन स सत्त्व शोभनत्वस्याभावोऽशोभनत् स

एवमसत्त्वस्याशोभनत्वस्याभावोऽशोभ स ते द्व यत कस्य�चदसिन्नधानािन्नबध्

सा द्�वध �वनोिक्त स तत्राद यथा - �वनयेन �वना का श्र का �नशा श�शना �वना स

र�हता सत्क�वत्व क�दृश वािग्वदग्ध सस (अस. 93)

द्�वतीय यथा - मग
ृ लोचना �वना �व�चत्रव्यवहारप्र�तभाप्र स

अमतद्यु�तसुन्दराश
ृ योऽ सह
ु ृद तेन �वना नरेन्द्रसू सस (अस. 95)

जयदेवस् यथा - �वनोिक्तश्च �वना �किञ्चत प्रस्त ह�नमच


ु ्यत स

�वद्य हृद्या सावद्य �वना �वनयसम्पदम सस (चन्द. 5.61)


32. प�रविृ त्त - भामहस् - �व�शष्टस यदादानमन्यापोहे वस्तुन स

अथार्न्तरन्यास प�रविृ त्तरस यथा सस (कालभा. 3.41)

रुद्र - युगपदादानेऽन्योन् वस्तुनो �क्रये यत् स

क्व�चदुपचय�त वा प्र�स�द से�त प�रविृ त्त सस (कालर. 7.77)

उदाहरणम ् - दत्व दशर्नमेत प्रा वरतनु त्वय क्र�त

�कं त्वमपहर� मनो यद ददा�स रणरणकमेतदसत् सस (कालर. 7.78)

मम्मटे - प�रविृ त्त�वर्�नम योऽथार्ना स्यात समासमैः (काप.स.ू 172)

लतानामेतासाम�ु दतकु सम
ु ानां मरुदय मतं लास्य दत्व शय�त भश
ृ मामोदमसमम ् स

लतास्त्वध्वन्यान दृशमादा सहसा ददत्या�धव्या�धभ्र�मरु�दतमोहव्य सस (काप.उ. 498)

प्रथमा समेन समस्, द्�वतीय उत्तमे न्यूनस स

नाना�वधैः प्रहरणैनृ सम्प्रह स्वीकृत दारुण�ननादवत प्रहारा स


दृप्ता�रवीर�वजय वसुन्धरेय �न�वर्प्रलम्भप�ररम्भ�व�ध�वर सस (काप.उ. 499)

तदत रुय्य "समन्यूना�धकाना समा�धकन्यूनै�वर्�नम प�रविृ त्त" (अस. 62) इ�त

ल�णं �वधाय मम्मटस्य �त्रप्रक प�रविृ त्तम�भधत् स जयदेवोऽत

प्रकारान्त रुय्यकमेवानुकरो स

33. भा�वकम ् - भामहस् - भा�वकत्व�म� प्राह प्रबन्ध�व गण


ु म ्स

प्रत् इथ दृश्यन यत्राथ भतभ


ू ा�वनः सस (कालभा. 3.53)

प्रत् इथ यद भावाः �क्रयन भतभ


ू ा�वनः स तद भा�वकम ् स (काप.स.ू 173)

भावः कवेर�भप्रायोऽत्रास भा�वकम ् (तत्र वतृ ्त)

आसीदञ्जनमत्र पश्या� यथ लोचने स

भा�वभष
ू णसम्भारा सा�ात्कुव तवाकृ�तम ् सस (काप.उ. 500)

रुय्यकस् प्रकारान्त मम्मटस्य ल�ण�वधानप्रका स्वीकुरु स

चन्द्रालोककारस् सं�वधानमेतत्सहकृतमे स
34. काव्य�लङ्ग - (हेतुः) रुद्र - हेतुमता सह हेतोर�भधानमभेदकृद भवेद यत स

सोऽलङ्कार हेतुः स्यादन्येभ पथ


ृ ग्भूत सस (कालर. 7.82)

उदाहरणम ् - अ�वरलकमल�वकासः सकला�लमदश् को�कलानन्द स

रम्योऽयमे� सम्प् लोकोत्कण्ठाक कालः सस (कालर. 7.83)

काव्य�लङ् हेतोवार्क्यपदाथर स (काप.स.ू 174)

मम्मटमतेनास त्रै�वध् - वाक्याथर्त, अनेकपदाथर्तय एकपदाथर्तय च स

क्रमेणोदाहरणा स वपुः प्रादुभार्वादनु�मत� जन्म� पुरा

पुरारे न प्रा क्व�चद� भवन्त प्रणतवा स

नमन ् मक
ु ्त सम्प्रत्यहमतनुरग्रेऽप्य

महे श �न्तव् त�ददमपराधद्वयम� सस (काप.उ. 501)

प्रण�यसखीसल�लप�रहासरसा�धगतैलर्�लत�शर�षपुष्पहनन ताम्य� यत् स


वप�ु ष वधाय तत यथ शस्त्रमुप�� पततु �शरस्यकाण्डयमद इवैष भुजः सस (काप.उ. 502)

भस्मोद्धूलनभद् भवते रुद्रा�म शुभं

हा सोपानपरम्परा �ग�रसुताकान्तालयालङ्कृ�त स

अद्याराधनतो�षते �वभुना युष्मत्सपयार्स-

लोकोच्छे�द� मो�नाम�न महामोहे �नधीयामहे सस (काप.उ. 503)

रुय्यकोऽप मम्मटमेवानुकरो� स

जयदेवस्या�भमत यथा - स्यात काव्य�लङ् वागथ� नत


ू नाथर्समपर् स

िजतोऽ�स मन्दकन्द मिच्चत्तेऽि �त्रलोच सस (चन्द. 5.38)

35. पयार्योिक् - पयार्योिक्त�र नामान्तरमस प्रयुक दृश्य स

पयार्ये भङ्ग्यन्त प्रकारान्त वा उिक्त�र� ल�णमस् भामहे अग्न

चािस् स भामहस्या�भमत यथा - पयार्योक् यदन्ये प्रकारेणा�भधीय स

उवाच रत्नाहरण चैद्य शा�गधनुय्थ


र सस (कालभा. 3.8)
इष्टाथर्मन�भध तत्प्रती प्रकारान्त कथनं पयार्योक्त�म दण्ड स

वाच्यवाचकव्यापारशून्य अवगमनव्यापारे अन्यथ वा अ�भधानं पयार्योक्त�म

उद्भ स एतदेव द्रढय मम्मट -

पयार्योक् �वना वाच्वाचकत्वे यद वचः स (काप.स.ू 175)

वाच्यवाचकव्य�त�रक् अवगमनव्यापारे यत् प्र�तपाद तत् पयार्ये

भङ्ग्यन्त कथनात् पयार्योक्त स

यं प्रे �चररूढा� �नवासप्री�तरुिज स मदेनैरावणमख


ु े मानेन हृदय हरेः सस (काप.उ. 504)

रुय्यकेनाप्येतत्सम - गम्यस्या पयार्यान्तरेणा�भधा पयार्योक्त सस (अस. 36)

उदा. - स्पृष्टास नन्दन शच्या के शसंभोगला�लताः स

साव�ं पा�रजातस् मञ्जय यस् स�ै नकैः सस (अस. 141)

जयदेवस् मतन्त्वेतस्मा�द्भन्नम स त�द -


कायार्द्य प्रस्तुतैर पयार्यो�कं◌् प्रच� स

तण
ृ ान्यङ्कुरयाम �वप�नप
ृ सद्म सस (चन्द. 5.70)

ठ्ठड् द्यण् ध्त्ड् दृ क़्ण्ठ्ठद्ध�ठ.

36. उदात्त - भामहोऽत्रोदाहरणमुखेनैवोदात �नरूपय� स तद्यथ -

उदात्त शिक्तमान रामो गर


ु ुवक्यानुरोधक स

�वहायोपनतं राज्य यथा वनमप


ु ागमत् सस (कालभा. 3.11)

उदात्त वस्तुन सम्पत (काप.स.ू 176)

मक
ु ्ता के�ल�वसत
ू ्रहारग�लत सम्माजर्नी�भहृर

प्रा प्राङ्गणसी मन्थरचलद्बालाङ ला�ारुणा स

दरू ाद्दा�डमबीजशङ्�कत� कषर्िन केल�शुकाः

यद �वद्वद्भवन भोजनप
ृ तेस्तत त्यागल�ला�यतम सस (काप.उ. 505)

मम्मटमते वैकिल्पक ल�णम ् (अन्य�व उदात्त) - महतां चोपल�णम ् स (काप.स.ू 177)


उदाहरणम ् - त�ददमरण्य यिस्मन दशरथवचनानप
ु ालनव्यसन स

�नवसन ् बाहुसहायश्चका र�ः �यं रामः सस (काप.उ. 506)

रुय्यको प्रथमम ल�णं द्रढय - सम�ृ द्धमद्वस्तुवणर्नमुद सस (अस. 81)

उदाहरणन्त तदेव, यत्खल मम्मटे प्र�तपा�दत स

जयदेवकृतं सोदाहरणं ल�णं यथा - उदात्तमृ�द्धश्च श्लाघ् चान्योपल�णम स

सानौ यस्याभव युद् तद्धूजर्�ट�कर��ट सस (चन्द. 5.115)

37. समच
ु ्चय - रुद्रटम - यत्रैकत्रा वस्त परं शयात् सख
ु ावहाद्ये स

�ेयः समच
ु ्चयोऽस त्रेधान सदसतोय�गः सस (कालर. 7.19)

क्रम उदाहरणा�न -

दुग� �त्रकू प�रखा पयो�न�धः प्रभुदर्शा सुभटाश् रा�साः स

नरोऽ�भयोक्त स�चवैः प्लवङ्गम �कमत वो हास्यपद महद्भय सस (कालर. 7.20)


सख
ु �मदमेताव�दह स्फारस्फुर�दन्दुमण रजनी स

सौधतलं काव्यकथ सह
ु ृद िस्नग् �वदग्धाश सस (कालर. 7.21)

तरलत्वममा�लन् प�मलतामाय�तं सम
ु ाधुयर्म स

आधास्यन्नस्त मदनस्त नयनयोः कु रुत सस

प्रस्फुरन्नधर गात् रोमाञ्चयन �गरः स्खलयन स

मण्डय� रह�स तरुणी कु सम


ु शरस्तरलयन्नय सस

सतोय�गः - सामोदे मधुकु सम


ु े जननयनानन्दन सुधाचन्द स

क्व�चद� रूपव� गण
ु ा जग�त सन
ु ीतं �वधातु�रदम ् सस

असतोय�गः - आ�लङ्�गता कर�रैः शम्यस्तप्तोषपांसु�नच स

मरुतोऽ�तखरा ग्रीष �कमतोऽन्यदभद्रम मरौ सस

सदसतोय�गः - कमलवनेषु तुषारो रूप�वलासा�दशा�लनीष जरा स

रमणीष्व� दुश्च�रत धातुलर्�मीश नीचेषु सस (कालर. 7.22-26)


रुद मतेन समच
ु ्चयस प्रकारान्त -

व्य�धकरण वा यिस्मन गण
ु �क्र चैककालमेकिस्मन स

उपजायेते देशे समच


ु ्चय स्यात तदन्योऽस सस (कालर. 7.27)

उदाहरणम ् - �वद�लतसकला�रकुलं यथ बल�मदमभवदाशु �वमलं च स

प्रस्खलन्मु नरा�धप म�लना�न च ता�न जाता�न स (कालर. 7.28)

�क्रयासमुच् - दैवादहमत तया चपलायतनेत्र �वयुक्तश स

अ�वरल�वलोलजलदः कालः समप


ु ागतश्चायम सस (कालर. 7.29)

औपम्यमूलकालङ्कारे पथ
ृ गयं रुद्र प�रग�णतः, ल�णं च -

सोऽयं समच
ु ्चय स्याद्यत्रानेक एकसामान्य स

अ�नवा�द�रव्या�द सत्युपमानोपमेयत् सस (कालर. 8.103)

जालेन सर�स मीना �हंस्रैरे वने च वागुरया स


संसारे भत
ू सज
ृ ा स्नेहे नराश् बध्यन् सस (कालर. 8.104)

अथ मम्मटकृत समच
ु ्चयल�णम -

तित्स�द्धहेतावेकिस यत्रान् तत्कर भवेत् स समच


ु ्चचयोऽस (काप.स.ू 178)

अयं सद्योग असद्योग सदसद्योग च पयर्वस्य स

दुवार्रा स्मरमागर्ण �प्रयत दरेू मनोऽत्युत्सु

गाढं प्र नवं वयोऽ�तक�ठनाः प्राण कुलं �नमर्लम स

स्त्री धैयर्�वरो� मन्मथसुहृ कालः कृतान्तोऽ�म

नो सख्यश्चतुर कथं नु �वरहः सोढव् इत्थ शठः सस एतदसद्योग स (काप.उ. 507)

कुलमम�लनं भद् म�ू तर्मर्� श्रु�तशा�ल

भुजबलमलं स्फ�त ल�मीः प्रभुत्वमखिण् स

प्रकृ�तसुभ ह्येत भावा अमी�भरयं जनो

व्रज सुतरां दप� राजन ् य एथ तवाङ्कुशा सस अत सतां योगः स (काप.उ. 508)


शशी �दवसधूसरो �वगतयौवना का�मनी

सरो �वगतवा�रजं मख
ु मन�रं स्वाकृते स

प्रभुधर्नपरा सततदुगर्त सज्जन

नप
ृ ाङ्गणगत खलो मन�स सप् शल्या� मे सस अत सदसद्योग स (काप.उ. 509)

त�ददं तत्त् रुय्यक द्�वतीयसमुच्चय ल�णे स्वीकृतम स तदेवम ् -

एकस् �स�द्धहते ुत्वेऽन तत्करत् च स इ�त (अस. 67)

जयदेवस्या�भधान यथा - भय
ू सामेकसम्बन्धभाज गुम्फ समच
ु ्चय स

नश्यिन पश्चात पश्यिन भ्रश्य च यथ द्�वष सस (चन्द. 5.97)

38. समच
ु ्चय (अन्य) - मम्मट - स त्वन् युगपद या गण
ु �क्रय स (काप.स.ू 179)

�वद�लतसकला�रकुलं यथ बल�मदमभवदाशु �वमलं च स

प्रखलमुखा नरा�धप म�लना�न च जाता�न सस अत गण


ु योय�गपद्यम स (काप.उ. 510)
अयमेकपदे तया �वयोगः �प्रय चोपनतः सुदुस्सह मे स

नववा�रधरोदयादहो�भभर्�वतव् च �नरापतत्वरम्य सस (काप.उ. 511)

अत �क्रययोय�गपद् स

कलुषं च तवा�हतेष्वकस्मा �सतपङ्केरुहसोदर च�ुः स

प�ततं च मह�पतीन् तेषां वप�ु ष प्रस ्फुटमाप कटा�ैः सस (काप.उ. 512)

अत गण
ु �क्रययोय�गपद् स

गण
ु �क्रयायौगपद समच
ु ्चय सस (अस. 66) स

रुय्यकस्या प्रथमसमुच्चयगतल� मम्मटकृतसमुच्च (अन्य) इत्यस्या�भव्यि

सह�क्रय स

39. पयार्य - रुद्रटम - वस्त �वव��तवस्तुप्र�तपादनशक्तम तस् स

यदजनकमजन्य वा तत् कथनं यत् स पयार्य स (कालर. 7.42)

उदाहरणम ् - राजन ् जहा�स �नद्र �रपुबन्द��न�बड�नगडशब्द स


तेनैव यदन्त�रत स कलकलो बिन्दवृन्द सस (कालर. 7.43)

एकं प्रकारान्तर - यत्रैकमनेकिस्मनन्नेकम वा स्यात स

वस्त सख
ु ा�दप्रकृ �क्रय वान्य स पयार्य स (कालर. 7.44)

उदाहरणम ् - कमलेषु �वकासोऽभदुदय


ू �त भानावुपेत् कु मुदे भ्य स

नभसोऽपससार तमो बभव


ू तिस्मन्नत लोकः सस (कालर. 7.45)

मम्मटमते - क्रमेणानेकिस् पयार्य स (काप.स.ू 180)

वास्त�वक एकत्व आरो�पते चा�प अयं भव�त स

नन्वाश्रयिस्थ�त यथ कालकूट के नोत्तरोत्तर�व�शष्टपदोप�द स

प्रागणर् हृदय वषल�


ृ मणोऽथ कण्ठेऽधुन वस�स वा�च पन
ु ः खलानाम ् सस (काप.उ. 513)

�बम्बोष एथ रागस्त तिन् पम


ू ्दृश
र स

अधुना हृदयेऽप्य मग
ृ शावा�� ल�यते सस (काप.उ. 514) अत आरो�पतमेकत्वम स
तं ताण �स�रसहोअररअणाहरणिम् �हअअमेक्करसम स

�बम्बाहर �पआणं �णवे�सअं कु सम


ु बाणेण सस (काप.उ. 515) एकमनेकत �क्र इत्यस्येदमुदाहरण स

40. पयार्य (अन्य) - अन्यस्ततोऽन् स (काप.स.ू 181)

अनेकमेकिस्मन भव�त �क्रय वा स

मधु�रमरु�चर वचः खलानाममत


ृ महो प्रथ पथ
ृ ु व्यनिक स

अथ कथय�त मोहहेतुमन्तगर्त� हालहलं �वषं तदेव सस (काप.उ. 516)

तद गेहं नत�भित् मिन्दर�मद लब्धावकाश �दवः

सा धेनज
ु ्रत
र नदिन् क�रणामेता घनाभा घटाः स

स �ुद् मस
ु लध्व�न कल�मदं सङ्गीतक यो�षताम ्

आश्चय �दवसैद्र्�वजोऽय�मयत भ�ू मं समारो�पतः सस (काप.उ. 517)

रुय्यकोऽ पयार्यस द्वै�वध् प्र�तपादय, परमसौ मम्मटे पथ


ृ क् पथ
ृ क्

व्यवस्था�पतय पयार्ययो ल�णद्वयमादा एकालङ्कारत्व प्रथ यमकं �नरूपय� स


त�दत्थम - एकमनेकिस्मन्ननेकमेकिस् क्रम पयार्य सस (अस. 60)

द्�वतीयस् - एकिस्मन्नाधारेऽनेकमाधे स द्�वतीय सस (अस. 61)

तत्रानेकोऽसंहतर संहतरूपश्चे द्�व�वध स तच् द्वै�वध्यमाधाधेयगत�म�त

चत्वारोऽस भेदाः स क्रमेणोदाहरणा -

नन्वाश्रयिस्थ�त �कल कालकूट के नोत्तरोत्तर�व�शष्टपदोप�द स

प्रागणर् हृदय वषल�


ृ मणोऽथ कण्ठेऽधुन वस�स वा�च पन
ु ः खलानाम ् सस (अस. 200)

�वसषृ ्टरागादधरािन्नव�तर स्तनाङ्गरागारु�णत कन् दुकात स

कु शाङ्कुरादानप�र�ताङ्गु� कृतोऽ�सत
ू ्रप् तया करः सस (अस. 201)

�नशासु भास्वत्कलनूपुराण यः संचरोऽभद�भ


ू सा�रकाणाम ् स

नदन्मुखोल्का�व�चता�मषा� स वाह्यत राजपथः �शवा�भः सस (अस. 202)

यत्र मगु ्धे� कृशोदर��त �प्रये कान्ते� महोत्सवोऽभूत स


तत्र दैवाद्वदन मद�ये पत्नी� भाय��त �गरश्चरिन सस (अस. 203)

चन्द्रालोककारिस्त ब्रू - पयार्यश्चेदने स्यादेकस समन्वय स

पद् मक
ु ्त् गता चन्द का�मनीवदनोपमा सस (चन्द. 5.93)

�वश्वनाथस् मम्मटे पथ
ृ क् पथ
ृ क् व्यवस्था�पतयोरुभयो पयार्ययोलर्�

एकालङ्कारतय �नरूपय�, तथा�ह - क्व�चदेकमनेकिस्मन्नन चैकगं क्रमा स

भव�त �क्रय वा चेत् तदा पयार् इष्यत सस (साद. 10.79-80)

क्रमेणास्योदाहरण तत्र - िस्थता �णं प�मसु ता�डताधराः पयोधरोत्सेध�नपातचू�णर्त स

वल�षु तस्या स्ख�लता प्रपे�द �चरेण ना�भं प्रथमोद�बन् सस (तत्र वतृ ्त)

इ�त का�लदासीय-कु मारसम्भव तपो�नरत-पावर्तीवणर् प्रथम,

�वचरिन् �वला�सन्य यत श्रोणीभरालस स वकक


ृ ाक�शवास्त धावन्त्य�रपु यथ सस

(तत्र वतृ ्त) इ�त द्�वतीयस स अय एकस् अनेकत, अनेकेषामेकत वा सम्पादन,

�वधानवणर्न वोदाहरणा�न -
�वसषृ ्टरागादधरािन्नव�तर, स्तनाङ्गरागादरुण कन् दुकात स

कु शाङ्कुरादानप�र�ताङ्गु� कृतोऽ�सत
ू ्रप् तया करः सस (तत्र वतृ ्त)

ययोरारो�पतस्तार हारस्तेऽ�रवधूजनै स

�नधीयन्त तयोः स्थूला स्तनयोरश �बन्दव सस (तत्र वतृ ्त)

एकस् अनेकत क्रमेण वतर्नाद्�वशेषा, �व�नमयाभावाच् प�रवतृ ्तेरस भेदः इत्य� तत्र स

41. अनम
ु ानम ् - रुद्र - वस्त परो�ं यिस्मन साध्यमुपन्य साधकं तस् स

पन
ु रन्यदुपन्यस् �वपर�तं चैतदनम
ु ानम ् सस (कालर. 7.56)

उदाहरणम ् - साव�माग�मष्यनन
् ू प�ततोऽ�स पादयोस्तस्य स

कथमन्यथ ललाटे यावकरस�तलकपङ्िक्त�रय सस (कालर. 7.57)

अस् भेदान्तरा� - यत बल�यः कारणमालोक्याभूतमे भत�


ू म�त स

भावी�त वा तथान्य त कथ्ये तदन्यदनुमानम सस (कालर. 7.59)


उदाहरणम ् - अ�वरल�वलोलजलदः कुटजाज्
ुर ननीपसुर�भवनवात स

अयमायातः कालो हन् मत


ृ ाः प�थकग�े हन्य सस (कालर. 7.60)

भा�वन्या - यास्यिन यथा तण


ू � �वक�सतकमलोज्ज्वलाद सरसः स

हं सा यथैवमेतां म�लनय�त घनावल� ककुभम ् सस (कालर. 7.62)

मम्मटे - अनम
ु ानं तदुक्त यत् साध्यसाधकयोवर् सस (काप.स.ू 182)

यत्रै लहर�चलाचलदृश व्यापारयिन भ्रु

यत् तत्र पतिन् सन्ततमम ममर्स्पृ मागर्णा स

तच्चक्र�कृतचापमिञ्चतशरप्रेङ्खत

धावत्यग एथ शासनधरः सत्य तदासां स्मर सस (काप.उ. 518)

अत तु रुय्यक ल�णं मम्मटस ल�णेन सह प्रकारान्त साम्यमादधा� स

तद्यथ - साध्-साधन�नद�शोऽनम
ु ानम ् स (अस. 58)

तदनस
ु ारमनम
ु ान�मदं क�वकिल्पतवै�च�य शुद्धञ्च द्�वध व्यप�दश्य स
क्रम एतयोरुदाहरण यथा - यथा रन्ध व्योम्नश्चलजलदध स्थगय�

स्फु�लङ्गान रूप दध�त च यथा क�टमणयः स

यथा �वद्युज्ज्वालोज्ज्वलनप�र�प ककुभ-

स्तथ मन्य लग्न प�थकतरुषण् स्मरदव सस (अस. 196)

यत्रै लहर�चलाञ्चलदृ व्यापारयिन भ्रु

यत्तत् पतिन् संततममी ममर्स्पृ मागर्णा स

तच्चक्र�कृतचापमिञ्चतशरप्रे क्रोध

धावत्यग एथ शासनधरः सत्य सदासां स्मर सस (अस. 197)

चन्द्रालोककारेणाप्यतदनुक
े स तत्कृत सं�वधानं यथा -

अनम
ु ानं च कायार्दे कारणाद्यवधारणम स

अिस् �किञ्चद्यदन मां �वलोक् िस्मत मनाक् सस (चन्द. 5.36)


42. प�रकरः - रुद्रटम - सा�भप्राय सम्यग �वशेषणैवर्स् यद �व�शष्ये स

द्रव्या�दभेद�भ चतु�वर्ध प�रकरः स इ�त सस (कालर. 7.72)

उदाहरणा�न - उ�चतप�रणामरमणीयं स्वाद सग


ु िन् स्वय करे प�ततम ् स

फलमतु ्सृज तदानीं ताम्य� मगु ्ध मुधेदानीम ् सस (कालर. 7.73)

काय�षु �वघ्नतेच् �व�हतमह�योपराधसंवरणम ् स

अस्माकमधन्यानामाजर्व दुलर्भ जातम ् सस (कालर. 7.74)

सततम�नव्तमानसमाया
रृ ससहस्रसङ्कटिक् स

गत�नद्रम�वश्व जीव�त राजा िजगीषुरयम ् सस (कालर. 7.75)

अत्यन्तमसहमानामुरुशक्तीनाम�नघ्नवृत् स

एकं सकले जग�त स्पृहणीय जन् के स�रणाम ् सस (कालर. 7.76)

मम्मटमते - साकूतैरुिक् प�रकरस्त सः स (काप.स.ू 183)

महौजसो मानधना धना�चर्त धनुभृ्त


र संय�त लब्धक�तर् स
न संहतास्तस न भेदवतृ ्तय �प्रया वाञ्छन्त्यसु समी�हतुम ् सस (काप.उ. 519)

रुय्यकस्या�भ यत् - �वशेषणसा�भप्रायत प�रकरः सस (अस. 32)

यथा - रा�ो मानधनस् काम्कभृत


ुर दुय�धनस्याग्

प्रत् कु रुबान्धव �मषतः कणर्स शल्यस च स

पीतं तस् मयाद् पाण्डववधूकेशाम्बराक�षर

कोष्ण जीवत एथ ती�णकरज�ुण्णादसृग्व� सस (अस. 116)

जयदेवस्त्वेतद�भमतम समथर्य� स

43. ब्याजोिक् - ब्याजोिक्तश्छद्मनो�द्भन्नवस्तुर स (काप.स.ू 184)

शैलेन्द्रप्र�तपाद्यमान�ग�रजाहस्तोपग-

रोमाञ्चा�द�वसंष्ठुलाखल�व�धव्यासङ्गभङ ्ग स

हा शतै ्य तु�हनाचलस् करयो�रत्यू�चवान सिस्मत


शैलान्तःपुरमातृमण्डलगणैदृर्ष्टो वः �शवः सस (काप.उ. 520)

रुय्यकस् मम्मटमेवानुकरो� स रुय्यकोऽप सहकृता�भमतो दृश्य स

44. प�रसङ्ख् - रुद्रटम - पषृ ्टमपृष् वा सद्गुणा� यत् कथ्यत क्व�चत तुल्यम सस

अन्य तु तदभावः प्रतीय से�त प�रसङ्ख् सस (कालर. 7.79)

उदाहरणा�न - �कं सख
ु मपारतन्�य �कं धनम�वनाश-�नमर्ल �वद्य स

�कं काय� सन्तोष �वप्र महे च्छत रा�ाम ् सस (कालर. 7.80)

अपषृ ्टोदाहरणम - कौ�टल्य कच�नचये करचरणाधरदलेषु रागस्त स

का�ठन्य कु चयुगले तरलत्व नयनयोवर्स� सस (कालर. 7.81)

मम्मटस - �किञ्चत पषृ ्टमपृष् वा क�थतं यत् प्रकल्प स

तादृगन्यव्यपो प�रसङ्ख् तु सा स्मृत सस (काप.स.ू 185)

मम्मटमते सदृशवस्त्वन्तरव्यव फलम ् स कथनं प्रश्नपूव तदन्यथ च

प�रदृष्ट स तत्रा व्यपोह्यमान प्रतीयमान वाच्यत् चे�त चत्वार भेदाः स


�कमासेव्य पस
ुं ां स�वधमनवद्य द्युस�रत �कमेकान्त ध्येय चरणयुगलं कौस्तुभभृत स

�कमाराध्य पण
ु ्य �कम�भलषणीयं च करुण यदासक्त् चेतो �नरव�ध�वमक
ु ्त् प्रभव सस

(काप.उ. 521)

�कं भष
ू णं सद
ु ृढम यशो न रत्न �कं कायर्मायर्च�र सुकृ तं न दोषः स

�कं च�ुरप्र�तह �धषणा न नेत् जाना�त कस्त्वदप सदसद्�ववेकम सस (काप.उ. 522)

कौ�टल्य कच�नचये करचरणाधरदलेषु रागस्त स

का�ठन्य कु चयुगले तरलत्व नयनयोवर्स� सस (काप.उ. 523)

भिक्तभर् न �वभवे व्यसन शास्त न युव�तकामास्त स

�चन्त यश�स न वप�ु ष प्रा प�रदृश्य महताम ् सस (काप.उ. 524)

रुय्य यथा - एकस्यानेक प्राप्ताव �नयमनं प�रसंख्य स (अस. 63)

तत प्रश्नपू�व, तदन्यथ, शाब्द, आथ� चेत्यस चत्वार भेदाः स


उदाहरणा�न तप
ू युर्क्तान् स

जयदेवस् यथा - प�रसङ्ख् �न�षध्यैकमन्यिस् वस्तुयन्त् स

स्नेह�य प्रद�पे स्वान्ते न नतभ्रुवा सस (चन्द. 5.95)

�वश्वनाथ सवर्थ मम्मटमनुहरती� न तत किश्च �वशेषः स

45. कारणमाला - मम्मटमते - यथोत्तर चेत् पव


ू ्स
र पव
ू ्स्याथर
र हेतुता स

कारणमाला स्यात (काप.स.ू 186 )स

िजतेिन्द्रय �वनयस् कारणं गण


ु प्रक �वनयादवाप्यत स

गण
ु प्रकष जनोऽनुरज्यत जनानुरागप्रभ �ह सम्पद सस (काप.उ. 525)

रुय्यकस् मम्मटमेवानुकरो� स

46. अन्योन् - रुद्रटम - यत परस्परमेक कारकभावोऽ�भधेययोः �क्रय स

सञ्जाये स्फा�रततत्त्व�वशेषस्तदन्य सस (कालर. 7.91)

उदाहरणम ् - रूप यौवनल�म्य यौवनम�प रूपसम्पदस्तस स


अन्योन्यमलङ्क �वभा�त शर�दन् दुसुन्दया सस (कालर. 7.92)

मम्मटस - �क्रय तु परस्परम स वस्तुनोजर्ननेऽनन्यम स (काप.स.ू 187)

हं साणं सरे�हं सर� सा�रज्ज अह सराण हं से�हं स

अण्णोण् �वअ एए अप्पाण णथक गरुअिन सस

रुय्यक यथा - परस्पर �क्रयाजननेऽन्योन सस (अस. 49)

उदाहरणम ् - कण्ठस तस्या स्तनबन्धुर मक


ु ्ताकलापस च �नस्तलस स

अन्योन्यशोभाजननाद्व साधारणो भष
ू णभष्यभाव
ू सस (अस. 180)

जयदेवस् यथा - अन्योन् नाम यत स्यादुपकारक परस्परम स

�त्रया श�शना भा�त शशी भा�त �त्रयाम सस (चन्द.5.84)

अन्योन्यमुभयोरेक�क्रय कारणं �मथः स (साद. 10.72)

उदा. - त्वय सा शोभते तन्व तया त्वम� शोभसे स


रजन्य शोभते चन्द्रश्चन्द �नशी�थनी सस (तत्र वतृ ्त)

47. उत्तर - रुद्रटेन वास्तवमूलक , औपम्यमूलकेऽ� च वग� सिन्नवे�शत स

यत �ातादप्यन्य तत्त्व विक् तत्तुल्य स

काय�णानन्यसमख्यात तदुत्तर �ेयम ् सस (कालर. 8.72)

�कं मरणं दा�र�यं को व्या�धज��वत द�रद्र स

कः स्वगर सिन्मत सुकलत् सप


ु ्रभ सस
ु ुतः सस (कालर. 8.73)

उत्तरवचनश्रवणादुन् यत पव
ू र वचनानाम ् स

�क्रय तदुत्तर प्रश्नादप्यु यत सस (कालर. 7.93)

उदाहरणम ् - ्ण मानमन्यथ मे भ्रुकु� मौनं �वधातुमहमसहा स

शक्नो� तस् पुरतः स�ख न खलु पराङ्मुखीभ�वतुम सस (कालर. 7.94)

उदाहरणान्तरम - �कं स्वगार्द�धकसु बन्धुसुहृत्पिण् समं ल�मीः स

सौराज्यमदु�भर् सत्काव्यरसामृतस्व सस (कालर. 7.95)


मम्मटस - .. उत्तरश्रु�तमा स प्रश्नस्योन यत �क्रय तत वा स�त स

असकृद यद असम्भाव्यमुत् स्यात तदुत्तरम सस (काप.स.ू 188)

वा�णअअ हित्थदन् कु त्त अम्हा वग्घ�कत् अ स

जाव लु�लआलअमह
ु � घरिम् प�रसक्क सोण्ह सस (काप.उ. 528)

प्रश्नादनन लोका�तक्रान्तगोचर यदसम्भाव्यर प्र�तवचन तत

अपरमतु ्तरम सस का �वसमा देव्वग �कं लद् जं जणो गण


ु ग्गाह स

�कं सौख्ख सुकलत्त �कं दुक्ख जं खलो लोओ सस

प�रसङ्ख्याय व्यावतर्नम भव�त, नेहे�त न तत्रा�तव्याि स

तदत रुय्यक प्र�तपाद मम्मटाद�भन्न स

48. स�
ू मम ् - रुद्रटम - यत्रायुिक्तम गमय�त शब्द �नजाथर्सम्बन् स

अथार्न्तरमुपपित्तम� तत् सञ्जायत स�


ू मम ् सस (कालर. 7.98)
उदा. - आदौ पश्य� बु�द्ध�यवसायोऽकालह�नमारभ स

धैय� व्यूढमहाभरमुत्सा साधयत्यथर् सस (कालर. 7.99)

मम्मटमते - कुतोऽ�प ल��तः स�


ू मोऽप्यथ�ऽन्यस प्रकाश् स

धम�ण के न�चद यत तत् स�


ू मं प�रच�ते सस (काप.स.ू 189)

वक्त्रस्यिन्दस्वद�ब
े नद
् ुप्रब �भन्न कुङ्कुम का�प कण्ठ स

पस्त्
ुं तन्व् व्यञ्जयन वयस्य िस्मत् पाणौ खड्गलेखा �ललेख सस (काप.उ. 530)

सङ्केतकालमनस �वटं �ात्व �वदग्धय स हसन्नेत्रा�पर्ता ल�लापद् �नमी�लतम ् सस

(काप.उ. 531)

रुय्यक यथा - संल��तस�


ू माथर्प्रका स�
ू मम ् सस (अस. 76)

तच् स�
ू म�मङ्�गताकाराभ्य द्�व�वधम स उदाहरणमनयोः "संकेतकालमनस�म"त्या�

"वक्त्र"त्या� चोपयुर्क् पद्यद्वयम स

इङ्�गताकारल�येऽथ स�
ू म�म�त प्रथमवाग् (कान.ु प.ृ 43)
उदा. - अद्या� तन्मन� सम्प् वतर्त मे रात् म�य �ुतव�त ���तपालप�ु या स

जीवे�त मङ्गलवच प�रहृत कोपात् कण� कृतं कनकपत्रमनालपन् सस

इ�त �बल्हणकवेश्चौरसुरतपञ्चा�शका पद्यमस उदाजहार स

संल��तस्त स�
ू मोऽथर आकारेणेङ्�गते वा स

कया�प सच
ू ्यत भङ्ग् यत स�
ू मं तदुच्यत सस (साद. 10.91)

वक्त्रस्यिन्दस्वद�ब
े नद
् ुप्रब �भन्न कुङ्कुम का�प कण्ठ स

पस्त्
ुं तन्व् व्यञ्जयन वयस्य िस्मत् पाणौ खड्गलेखा �ललेख सस

(तत्र वतृ ्त) स अत आकारेण स इङ्�गते, यथा -

सङ्केतकालमनस �वटं �ात्व �वदग्धय स

हसन्नेत्रा�पर्ता ल�लापद् �नमी�लतम ् सस (तत्र वतृ ्त)

49. सारः - अलङ्कारस्या आ�वभार्वक रुद् स पव


ू ्स्मा
र पव
ू ्स्म
र वस्तु
उत्तरोत्तरवस्त सारश्चेत प्रद�य, तदा सारालङ्कार स धमर्सू�ररप्ये

मनुते स पिण्डतराजस् एकस्यै वस्तुन कालभेदेना�प यद्युत्कष प्र�तपाद्,

तदा�प सारालङ्कारमूर�करो� स

रुद्र - यत यथा समुदायाद्यैकदेश क्रम गण


ु व�द�त स

�नधार्यर् पराव�ध �नर�तशयं भवेत् सारम ् सस (कालर. 7.96)

उदाहरणम ् - राज्य सारं वसुधा वसुधायां पुरं पुरे सौधम ् स

सौधे तल्प तल्प वराङ्गनानङ्गसवर्स सस (कालर. 7.97)

मम्मटमते - उत्तरोत्तरमुष� भवेत् सारः पराव�धः स (काप.स.ू 190)

उदा. - राज्य सारं वसुधा वसुधायां पुरं पुरे सौधम ् स

सौधे तल्प तल्प वराङ्गनानङ्गसवर्स सस (काप.उ. 532)

उत्तरोत्तरमुत्क सारः स (अस. 56)

उदा. - जये ध�र�याः पुरमेव सारं पुरे गह


ृ ं सद्म चैकदेशः स
तथा�प शय्य शयने वराङ्ग रत्नोज्ज् राज्यसुखस सारम ् सस (अस. 190)

जयदेवेन तु रुय्यक सं�वधानमनुकृ त्यै ल�णं कृतम ् स यथा -

सारो नाम पदोत्कषर सारताया यथोत्तरम स

सारं सारस्वत तत काव्य तत �शवस्तव सस (चन्द. 5.90)

प्रथमवाग्भट समुदायादुत्क ृष्टोत्कृष्ट�नधा सार�म�त ल�य�त स

उदाहरणेऽस् न �कम�प नावीन्यम स (कान.ु प.ृ 43)

50. लेशः - मम्मटे नैव �नरू�पत स

रुद्रटम - दोषीभावो यिस्मन गण


ु स् दोषस् वा गण
ु ीभावः स

अ�भधीयते तथा�वधकमर्�न�मत् स लेशः स्यात सस (कालर. 7.100)

उदाहरणम ् - अन्यै यौवनश्रीस्तस सा का�प दैवह�तकायाः स

मथ्ना� यया यन
ू ां मनां�स समाकृष् सस (कालर. 7.101)
मम्मटमतेनेदमुदाहरणम अ�तशयोक्ते एकस् प्रकार स्यात स

दोषस् गण
ु ीभावे उदा. - हृदय सदैव येषामन�भ�ं गण
ु �वयोगदुःखस् स

धन्यास् गण
ु ह�ना �वदग्धगोष्ठ�रसापेत सस (कालर. 7.102)

कायर्त गण
ु दोष�वपयर्य लेश इ�त प्रथमवाग्भटक ल�णम ् स गण
ु स् दोषीभावे,

दोषस् गण
ु ीभावे चासौ तथैवोदाहर�त स

51. अवसरः - मम्मटे नैव �नरू�पत स

अथार्न्तरमुत्कृ सरसं य�द वोपल�णं �क्रय स

अथर्स तद�भधानप्रसङ् यत सोऽवसरः सस (कालर. 7.103)

त�ददमरण्य यिस्मन दशरथवचनानप


ु ालनव्यसन स

�नवसन ् बाहुसहायश्चका र�ः �यं रामः सस (कालर. 7.104)

52. मी�लतम ् - मम्मटे नैव स्वीकृत स

तन्मी�लत�म� यिस्मन समान�चह्ने हषर्कोपा� स


अपरेण �तरिस्क्र �नत्येनागन्तुकेना सस (कालर. 7.106)

�तयर्क्प्रे�ण सिु स्नग् च स्वभावतस्तस् स

अनुरागो नयनयुगे सन्न� के नोपल�येत सस (कालर. 7.107)

वस्तुन वस्त्वन्तर�नगू मी�लतम ् सस (अस. 71)

तच् सहजागन्तुकाभ्य द्�व�वधम स क्रम यथा -

अपाङ्गतरल दृश मधुरवक्रवण �गरो

�वलासभरमन्थर ग�तरतीव कान्त मख


ु म ्स

इ�त स्फु�रतमङ्गकैमृर्गद स्वत ल�लया

तदत न मदोदयः कृतपदोऽ�प संल�यते सस (अस. 230)

ये कन्दरास �नवसिन् सदा �हमाद्रेस्त्वत्पातशङ्� �ववशा द्�वषस् स

अप्यङ्गमुत्पलकमुद्व सकम्प तेषामहो यय �भया न बुधोऽप्य�भ� सस (अस. 231)


मी�लतं बहुसादृश्य भेदवच्चेन ल�यते स

रसो नाल�� ला�ायाश्चरण सहजारुण सस (चन्द. 5.33)

53. असङ्ग�त - �वस्पष् समकालं कारणमन्य कायर्मन् स

यस्यामुपलभ्ये �व�ेया संग�तः सेयम ् सस (कालर. 9.48)

नवयौवनेन सुतनो�रन् दुकलाकोमला� पय


ू ्र न् स

अङ्गान्यसंगतान यन
ू ां हृ� वधर्त कामः सस (कालर. 9.49)

- �भन्नदेशतयात्यन कायर्कारणभूतयो स

मम्मटमते - युगपद्धमर्यो ख्या�त सा स्यादसङ्ग� सस (काप.स.ू 191)

जस्से वणो तस्से वेअणा ्णइ तं जमो अ�लअम ् स

दन्तक्ख कवोले वहूए वेअणा सवत्तीण सस (काप.उ. 533)

तयो�वर्�भन्न देशत्वेऽसङ् सस (अस. 44)

सा बाला वयमप्रगल्भव सा स्त वयं कातराः


सा पीनोन्न�तमत्पयोधरभ धत्त सखेदा वयम ् स

सा क्लान् जघनस्थले गर
ु ुण गन्तु न शक्त वयं

दोषैरन्यसमा�श्रतैरप जाताः स् इत्यद्भु सस (अस. 170)

आख्यान �भन्नदेशत् कायर्हेत्वोरसङ्ग स

त्वद्भक्त नमत्यङ् भङ्गमे� भवक्लम सस (चन्द. 5.79)

कायर्कारणयो�भर्न्नदेशतायामसङ् स (साद. 10.69)

54. समा�धः - समा�धः सुकरं काय� कारणान्तरयोगत स (काप.स.ू 192)

मानमस्य �नराकतु� पादयोम� प�तष्यत स

उपकाराय �दष्ट्येदमुद� घनगिजर्तम सस (काप.उ. 534)

रुय्यकस प्रकारान्त त�दत्थन्त्व स्वीकुरु स चन्द्रालोककारो

ल�ण�मदमनुकरो�त स अतस्त न कोऽ�प �वशेषः स


55. समम ् - समं योग्यत योगो य�द सम्भा�वत क्व�चत स (काप.स.ू 193)

सद्योग असद्योग चायं द्�वध स

दातुः �शल्पा�तशय�नकषस्थानमे मग
ृ ा�ी रूप देवोऽप्ययमनुपम दत्तपत स्मरस स

जातं देवात् सदृशमनयो सङ्गत यत् तदेतच्छृङ्गारस्योपनतमध राज्यमेकातपत् सस (काप.उ. 535)

�चत् �चत् यय यय महिच्चत्रम �व�चत् जातो देवादु�चतरचना सं�वधाता �वधाता स

यिन्नम्बान प�रणतफलस्फ��तरास्वादनी यच्चैतस्य कवलनकलाको�वदः काकलोकः सस (काप.उ. 536)

तद्�वपयर् समम ् सस (अस. 46)

स चालङ्कारोऽ�भर अन�भरूपत्व द्�व�धः स तत आद्य यथा -

त्वमेवंसौन्दय स च रु�चरताया प�र�चतः

कलानां सीमान्त पर�मह युवामेव भजथः स

अ�य द्वन्द �दष्ट् त�दह सुभगे संवद�त वा-

मतः शेषं यत्स्यािज्जत तदानीं ग�ु णतया सस (अस. 175)


द्�वतीय यथा - �चत् �चत् यय यय महिच्चत्रमेतद्�व

जातो दैवादु�चतरचनासं�वधाता �वधाता स

यिन्नम्बान प�रणतफलस्फ��तरास्वादनी

यच्चैतस्य कवलनकलाको�वदः काकलोकः सस (अस. 176)

सममौ�चत्यतोऽनेकवस्तुसम्बन्धवण स

अनर
ु ूप कृतं सद हारेण कु चमण्डलम सस (चन्द. 5.81)

समं स्यादानुरूप् श्लाघ योग्यस वस्तुन स (साद. 10.71)

उदा. - श�शनमप
ु गतेयं कौमुद� मेघमक
ु ्त जल�न�धमनर
ु ूप जह्नुकन्यावतीण स

इ�त समगण
ु योगप्रीतयस पौराः श्रवणक नप
ृ ाणामेकवाक्य �वववर् सस

(तत्र वतृ ्त) स का�लदासीय�मदं पद्यम स

56. �वषमम ् - भामहे न दिण्डन मम्मटे नैव स्वीकृत स


रुद्र यल्ल�ण कृतं, तदनस
ु ारेण अस् अन्तभार् �वरोधे वा असङ्गत वा स्यात स

कायर्स कारणस् च यत �वरोधः परस्पर गण


ु योः स

तद्वित्क्रययो संजायेते�त तद्�वषम म सस (कालर. 9.45)

अ�रक�रकुम्भ�वदारणरु�धरारुणदारुण खग्डात स

वसुधा�धपते धवलं कान्त च यशो बभव


ू यथ सस (कालर. 9.46)

आनन्दममन्द�म कुवलयदललोचनो ददा�स त्वम स

�वरहस्त्वय ज�नतस्तापय�ततरा शर�रं मे सस (कालर. 9.47)

�वरूपकायार्ऽनथर्योरुत्पित्त�वर्र च �वषमम ् स (अस. 45)

सोदाहरणमस् भेदाः यथा -

�वरूपकाय�त्पित्त �वषमम ् -

सद्य करस्पशर्मवा �चत् रणे रणे यस् कृपाणलेखा स

तमालनीला शर�दन् दुपाण् यशिस्त्रलोकाभ प्रसू सस (अस. 171)


अनथ�त्पित्तर �वषमम ् -

तीथार्न्तरे मलपङ्कवती�वर्ह �दव्यास्तनूस्तनुभ सहसा लभन्त स

वाराण�स त्व� तु मक
ु ्तकलेवराणा लाभोऽस्त मल
ू म�प यात्यपुनभर्व सस (अस. 172)

�वरूपसंघटनारू �वषमम ् -

अरण्यान क्वेय धतक


ृ नकसत
ू ् क् स मग
ृ ः

क् मक
ु ्ताहारोऽय क् च स पतगः क्वेयमबल स

क् तत्कन्यारत ल�लतम�हभतुर् क् च वयं

स्वमाकूत धाता �कम�प �नभत


ृ ं पल्लवय� सस (अस. 173)

�वषमं यद्यनौ�चत्यादनेकान्वयकल् स

क्वा�ततीव्र�व सपार् क्वास चन्दनभूरु सस (चन्द. 5.80)

�वषम इ�त प्र�थतोऽ वक्त �वघटय�त कम�प सम्बन्ध स


यत्राथर्योरस परमतमाशङ्क तत् सत्त् सस (कालर. 7.47)

उदाहरणम ् - यो यस् नैव �वषयो न स तं कुयार्दह बलात्कार स

सततं खलेषु भवतां क् खलाः क् च सज्जनस्तुल सस (कालर. 7.48)

प्रकारान्त - अ�भधीयते सतो वा सम्बन्धस्याथर्योरनौ� च स

यत स �वषमोऽन्योऽय यत्रासम्भाव्य वा सस (कालर. 7.49)

उदाहरणम ् - रूप क् मधुरमेतत् क् चेदमस्या सुदारुण व्यसनम स

इ�त �चन्तयिन प�थकास्त वै�रवधूं वने दृष्ट सस (कालर. 7.50)

त�द�त चतुधार �वषमं यत्राण् नैव गुव्�


र च कायार्त स

काय� कुयार्त कतार ह�नोऽ�प ततोऽ�धकोऽ�प वा सस (कालर. 7.51)

उदाहरणा�न - त्वद्भृत्यावयव सोढुं समरे �मा न ते सह


ु ृद स

अ�सधारापथप�ततं त्व तु �नहन्य महेन्द्र सस (कालर. 7.52)

त्व तावदास् दरेू भतृ ्यावयवोऽ� ते �नहिन् हतान ् स


का गणना तैः समरे सोढुं शक्रोऽ न सहस्त्वा सस (कालर. 7.53)

प्रकारान्त - यत �क्रया�वपत्त भवेदेव �क्रयाफ तावत् स

कतुर्रनथर् भवेत् तदपरम�भधीयते �वषमम ् सस (कालर. 7.54)

उदाहरणम ् - उत्कण् प�रतापो रणरणकं जागरस्तनो तनुता स

फल�मदमहो मयाप्त सख
ु ाय मग
ृ लोचनां दृष्ट सस (कालर. 7.55)

मम्मटमते - क्व�च यद�तवैध�यान् श्लेष घटना�मयात् स

कतुर् �क्रयाफलावािप्तन�वानथ यद भवेत् सस

गण
ु �क्रयाभ् कायर्स कारणस् गण
ु �क्र स

क्रम च �वरुद यत् स एध �वषमो मतः सस (काप.स.ू 194)

(1) द्वयो अनप


ु पद्यमानतय योगः, (2) कतार �क्रयाय प्रणाशा अभीष्ट फलं न

लभेत, अनथ� च आसादयेत् (3-4) सत्य� कायर्स कारणानर


ु ूपानुकार तयोग्ण
ुर
�क्र च परस्पर �वरुध्य इत्यय चतु�वर्ध स

�शर�षाद�प मद्वङ्
ृ केयमायतलोचना स

अयं क् च कुकूलािग्नककर् मदनानलः सस (काप.उ. 537)

�सं�हकासुतसन्त्र शशः शीतांशम


ु ा�श्र स

जग्र साश्र तत तमन्य �सं�हकासुतः सस (काप.उ. 538)

सद्य करस्पशर्मवा �चत् रणे रणे यस् कृपाणलेखा स

तमालनीला शर�दन् दुपाण् यशिस्त्रलोक्या प्रसू सस (काप.उ. 539)

आनन्दममन्द�म कुवलयदललोचने ददा�स त्वम स

�वरहस्त्वय ज�नतस्तापय�ततरा शर�रं मे सस (काप.उ. 540)

मम्मटमतेनैतद� उदाहरणं भव�त (माघकाव्य 13-सग� )

�वपुलेन सागरशयस् कु��णा भुवना�न यस् प�परे युग�ये स

मद�वभ्रमासकल पपे पन
ु ः स पुरिस्त्रयैकतमयै दृश सस (काप.उ. 541)
�वरूपकायार्ऽनथर्योरुत्पिरूपसंघटन च �वषमम ् सस (अस. 45)

उदाहरणा�न - सद्य करस्पशर्मवा �चत् रणे रणे यस् कृपाणलेखा स

तमालनीला शर�दन् दुपाण् यशिस्त्रलोकाभ प्रसू सस (अस. 171)

तीथार्न्तरे मलपङ्कवती�वर्ह �दव्यास्तनूस्तनुभ सहसा लभन्त स

वाराण�स त्व� तु मक
ु ्तकलेवराणा लाभोऽस्त मल
ू म�प यात्यपुनभर्व सस (अस. 172)

अरण्यान क्वेय धतक


ृ नकसत
ू ् क् स मग
ृ ः

क् मक
ु ्ताहारोऽय क् च स पतगः क्वेयमबल स

क् तत्कन्यारत ल�लतम�हभतुर् क् च वयं

स्वमाकूत धाता �कम�प �नभत


ृ ं पल्लवय� सस (अस. 173)

पर�हअअं मग्गंती हा�रअं अत्तुण उए �हअअं स

अंहो ल्लाहस ङए मल
ू ाओ �वच्छेइ जाआ सस (अस. 174)
�वषमं यद्यनौ�चत्यादनेकान्वयकल् स

क्वा�ततीव्र�व सपार् क्वास चन्दनभूरु सस (चन्द. 5.80)

गण
ु ौ �क्र वा चेत् स्याता �वरुद हेतुकायर्यो सस (साद. 10.69)

यद्वारब्धप वैफल्यमनथर् च सम्भव स

�वरूपयो सङ्घटन या च तद �वषमं स्मृतम सस (साद. 10.70)

57. अ�धकम ् - रुद्रटम - यत्रान्योन्य� �वरुद्धबलवित्क्रय वा स

वस्तुद्वयमेकस्माज इ�त तद्भवेद�धक सस (कालर. 9.26)

मुञ्च� वा�र पयोदो ज्वलन्तमन च यत्तदाश्चयर स

उदपद् नीर�नधे�वर्षम मृत चे�त तिच्चत् सस (कालर. 9.27)

यत्राधा सम
ु हत्याधेयमविस्थ तनीयोऽ�प स

अ�त�रच्ये कथं�चत्तद�धकमपर प�र�ेयम ् सस (कालर. 9.28)

जगद्�वशाल हृ� तस् तन्व प्र�व सास्त स् तथा यथा तत् स


पयार्प्तमासीद�ख न तस्यास्तत्रावका कुतोऽपरस्या (कालर. 9.29)

मम्मटमते - महतोयर्न्मह�यांसावा�श्रताश क्रमा स

आश्रयाश्र स्याता तनतु ्वेऽप्य�ध तु तत् सस (काप.स.ू 195)

अहो �वशालं भप
ू ाल भुवन�त्रतयोदर स मा�त मातुमशक्योऽ� यशोरा�शयर्द ते सस (काप.उ. 542)

युगान्तकालप्र�तसंहृता जगिन् यस्या स�वकाशमासत स

तनौ ममुस्त न कैटभद्�वषस्तपोधनाभ्यागमसम मुदः सस (काप.उ. 543)

आधारादाधेयस्याधेयादाधारस वाऽऽ�धक्येऽ�धक�म� वाग्भटप्र स

आधरादाधेयस्या�धक् यथा - युगान्कालप्र�तसंहृतात जगिन् यस्या स�वकाशमासत स

तनौ ममुस्त न कैटभद्�वषस्तपोधनाभ्यागमसम मुदः स

आधेयादाधारस्या�धक् यथा - नवेन् दुन तन्नभसोपमेय शावैक�संहेन च काननेन स

रघोः कुलं कुड्मलपुष्कर तोयेन चाप्रौढन रेन्द्रम सस (कान.ु प.ृ 45)


आश्रयाश्र�यणोरानुरूप्य स (अस. 48)

आश्रया�धक्यरूपम � - द्यौर क्व�चदा�श् प्र�वत पातालमत क्व�-

त्क्वाप्य धराधराधरजलाधाराव�धवर्तर् स

स्फ�तस्फ�तम नभः �कय�ददं यस्येत्थमेवं�व-

दर ्रू परू णमस्त शन्


ू य�म� यन्नामा� नास्त गतम ् सस (अस. 179)

आ�श्रता�धक्यरूपम � - दोदर ्ण्डािञ्चतच्द्रशेखरधनुदर्ण्डा


न -

ष्टंकारध्व�नरायर्बालच�रतप्रस्तावना� स

द्राक्पयर्स्तकपालसंपुट�मलद्ब्रह्मा-

भ्राम्यित्पिण्डतच कथमहो नाद्या� �वश्राम् सस (अस. 180)

अ�धकं बोध्यमाधारादाधेया�धकवणर्न स

यया व्याप् जगत्तस्य वा�च मािन् न ते गण


ु ाः सस (चन्द. 5.83)

आश्रयाश्र�यणोरेकस्या�धक्यऽ�धक
े स (साद. 10.72)
उदा. - �कम�धकमस् ब्रू म�हमानं वा�रधेहर्�रयर स

अ�ात एथ शेते कु �ौ �न��प् भुवना�न सस (तत्र वतृ ्त)

58. प्रत्यनी - रुद्रटम - वक्तुमुपमेयमुत्तममुपमा तिज्जगीषय यत स

तस् �वरोधीत्युक्त कल्पय


् प्रत्यन तत् सस (कालर. 8.92)

य�द यथ तया िजगीषोस्तद्वदनमहा कािन्तसवर्स् स

मम तत �कमाप�ततं तप�स �सतांशो यदेवं माम ् सस (कालर. 8.93)

मम्मटमते - प्र�तप�मशक् प्र�तकत �तरिस्क् स

या तद�यस् तत्स्तुत प्रत्यन तदुच्यत सस (काप.स.ू 196)

त्व �व�निजर्तमनोभवरू सा च सुन्द भवत्यनुरक् स

पञ्च�भयुर्गपद शरैस्ता तापयत्यनुशया�द कामः सस (काप.उ. 544)

यस् �किञ्दपकतुर्म�म काय�नग्रहगृह�त�वग स


कान्तवक्त्रसदृशा कृती राहु�रन् दुमधुना� बाधते सस (काप.उ. 545)

भोज स्त प्रत्यन �वरोधं चा�भन्न मनुते स प्रत्यन यद्य� भव�त �वरोधे

पयर्व�स�तस्तथा उभयोरन्तरम� स्पष्टम स प्रत्यन न �वरोधस् प्र�तपाद

ल�यम ् अ�पतु �वरोधे असमथर्स जनस् अशक्ते प्र�तपाद ल�यम ् सस

प्र�तप�प्र�तकारा तद�य�तरस्कार प्रत्यनी सस (अस. 69)

उदाहरणे तु न तथा नावीन्यम स

जयदेवस् यथा - प्रत्यन बलवतः शत्र प�े पराक्र स

जैत्रनेत्रा कणार्वुत्पलाभ्या कृतौ सस (चन्द. 5.99)

प्र�तप�बाधाशक तद�य�तरस्कार प्रत्यनी इ�त वाग्भटप्र स

उदा. - चक्र �वष्णो कृतशीषर्शेष प्रहतुर्�मच्छ नास् शक्त स

राहुः समानाख्यतयै वध्यान तमो�शषः सन ् भज�त स् चक्रा सस (कान.ु प.ृ 45)

59. एकावल� - एकावल��त सेयं यत्राथर्परम यथालाभम ् स


आधीयते यथोत्तर�वशेषण िस्थत्यपोहाभ्य सस (कालर. 7.109)

उदा. - स�ललं �वका�स कमलं कमला�न सग


ु िन्धमधुसमृद्ध स

मधु ल�ना�लकुलाकुलम�लकुलम�प मधुरा�ण त�मह सस (कालर. 7.110)

(अत �व�धमख
ु ेन �नद�शः)

नाकु सम
ु स्तरुरिस्मन्नुद नामधू�न कु सम
ु ा�न स

नाल�ना�लकुलं, मधु नामधुरक्वाणम�लवलयम सस (कालर. 7.111)

भोज स्त सा�भप्राय�वशेषणप्र एकावल�ं गताथर्य� स भोजवज� प्रा

सव�ः परव�तर्�भ�रयमूर�कृत स तत मम्मटस ल�णम ् -

स्थाप्यतेऽपोह् वा�प सैकावल� द्�वध (काप.स.ू 198)

पुरा�ण यस्या सवराङ्गना� वराङ्गन रूपपुरस्कृताङ् स

रूप समुन्मी�लतसद्�वलासमस �वलासः कु सम


ु ायुधस् सस (काप.उ. 548)
न तज्जल यन् सच
ु ारुपङ्क न पङ्कज तद यदल�नषट्पदम स

न षट्पदोऽस न जुगुञ् यः कलं न गिु ञ्जत तन् जहार यन्मन सस (काप.उ. 549)

(न षट्पदोऽस कलगिु ञ्जत न यो इ�त मम्मटस पाठः)

यथापव�
ू परस् �वशेषणतया स्थापनापोहन एकावल� सस (अस. 54) इ�त रुय्य स

उदाहरणे त्वस न �कम�प नत


ू नत्वम स

जयदेवस् - गह
ृ �तमक
ु ्तर�त्यथर्श्रे�णरे मता स

नत
े ् कणार्न्त�वश्र कण� दोम्
ूर लदो�लन सस (चन्द. 5.88)

धमर्सू�र पन
ु �रत्थ ल�य�त - �वशेषणं पव
ू ्पूवर्स्
र योत्तरोत्तरम स

एकावल�मलङ्कारमू�चर तत पिण्डता सस (सार. प.ृ 643)

60. स्मरणम - रुद्रटम - वस्तु�वशेष दृष्ट प्र�तपत स्मर� यत तत्दृशम स

कालान्तरानुभूत वस्त्वन्तर�मत स्मरणम सस (कालर. 8.109)

यथ भग्न पश्यन् सथूलस्थूलेन्द्रनीलम�णम


भभ
ू न्ना
ृ मयरू ाः स्मरन्त् कृष्णसपार्णा सस (कालर. 8. 110)

मम्मटस - यथानुभवमथर्स दृष् तत् सदृश स्मृ�त स स्मरणम (काप.स.ू 199)

�नम्नना�भकुहरेष यदम्भ प्ला�वत चलदृशा लहर��भः स

तद्भव कु हरुतै सुरनायर् स्मा�रता सुरतकण्ठरुताना सस (काप.उ. 550)

रुय्यक - सदृशानुभवाद्वस्त्वन्तरस स्मरणम सस (अस. 14)

उदाहरणम ् - अ�तश�यतसुरासुरप्रभा �शशम


ु वलोक् तवैव तुल्यरूप स

कु�शकसुतमखद्�वषा प्रमा धतध


ृ नुषं रघुनन्दन स्मरा� सस (अस. 19)

जयदेवस्त स्मृ�त�रत्य�भधानमात्र स्मरणालङ्का स्वीकुरु स

उदा. - पङ्कज पश्यतस्तस् मख


ु ं मे गाहते मनः स (चन्द. 5.31)

61. भ्रािन्तम - रुद्रटम - अथर्�वशेष पश्यन्नवगच ्छेदन् तत्सदृश स

�नः संदे हं यिस्मन्प्र�त भ्रािन्तम इ�त सस (कालर. 8.87)


पालय�त त्व� वसुधां �व�वधाध्वरधूममा�लनी ककुभः स

पश्यन् दयन्त
ू घनसमयाशङ्कय हं साः सस (कालर. 8.88)

मम्मटस - भ्रािन्तम अन्यसं�वत्तत्तुल्यद स (काप.स.ू 200)

कपाले माजार्र पप इ�त करान ् ले�ढ श�शनः

तरुिच्छद्रप् �बस�म�त कर� संकलय�त स

रतान्त तल्पस्था हर�त व�नताप्यंशुक�म�

प्रभामत्तश् जग�ददमहो �वप्लवय� सस (काप.उ. 552)

सादृश्याद्वस्त्वन्तरप्रती�तभ्र सस (अस. 18)

उदाहरणम ् - ओष्ठ �बम्बफलाशयालमलकेषूत्पाकजम्बू�

कणार्लंकृ�तभाि दा�डमफलभ्रान् च शोणे मणौ स

�नष्पत्त सकृदुत्पलच्छददृशामात्तक्ल मरौ


राजन ् गज
ु ्रराजपञ्जरशुक
र सद्यस्तृ म�ू छर ्तम सस (अस. 38)

जयदेवेन भ्रािन्त� नाम्नै भ्रािन्तमानलङ् व्प�दष्ट स

उदा. - अयं प्रमत्तमधुपस्त्व वेद पङ्कजम स (चन्द. 5.32)

�वश्वनाथस् ससन्दे इथ इहा�प प्र�तभोित्थतत्वमपे (साद. 10.36)

62. प्रतीप - रुद्रटम - यत्रानुकम्प सममप


ु माने �नन्द्य वा�प स

उपमेयम�तस्तोतु दुरवस्थ�म� प्रती स्यात सस (कालर. 8.76)

वदन�मदं सम�मन्दो सुन्दरम� ते कथं �चरं न भवेत् स

म�लनय�त यत्कपोल लोचनस�ललं �ह कज्जलवत सस (कालर. 8.77)

गवर्मसंवाह्य�म लोचनयुगलेन वह�स �कं भद् स

सन्तीदृशा �द�श �द�श सरःसु ननु नीलन�लना�न सस (कालर. 8.78)

मम्मटस - आ�ेप उपमानस् प्रतीपमुपमेय स

तस्यै य�द वा कल्प् �तरस्कार�नवन्धन सस (काप.स.ू 201)


कै म�यैन उपमानस् आ�ेप उपमानान्तर�वव�य उपमेयस् अनादर इ�त

अस् द्वै�वध्य स यथा - लावण्यौक� सप्रतापग�रमण्यग् त्या�गना

देव त्वय्यवनीभर�मभु �नष्प�दते वेधसा स

इन् दु �कं घ�टतः �कमेष �व�हतः पष


ू ा �कमतु ्पा�दत

�चन्तारत्नम मुधैव �कममी स्रष् कुल�माभतः


ृ सस (काप.उ. 553)

ए ए�ह दाव सुन्द� कण्ण दाऊण सण


ु सु वअ�णज्ज स

तुज् मह
ु े ण �कसोद�र चन्द उव�मज्ज जणेण सस (काप.उ. 554)

गवर्मसंवाह्य�म लोचनयुगलेन �कं वह�स मगु ्ध स

सन्तीदृशा �द�श �द�श सरःसु ननु नीलन�लना�न सस (काप.उ. 555)

अहमेव गर
ु ु सुदारुणाना�म� हालाहल तात मा स् दृप् स

ननु सिन् भवादृशा� भयो


ू भुवनेऽिस्मन वचना�न दुजर्नानाम सस (काप.उ. 556)
रुय्यकस प्रतीप ल�णम ् इत्थ �वदधा�त -

उपमानस्या�े उपमेयताकल्पन वा प्रतीप सस (अस. 70)

उदाहरणा�न तु मम्मटस्य स

जयदेवो यता - प्रतीपमुपमान ह�नत्वमुपमेयत स

दृष् चेद्वदन तस्या �कं पद्म �क�मन् दुन सस (चन्द. 5.100)

�वश्वनाथस् द्�वध प्रती ल�य�त स प्रथ ल�णं यथा -

प्र�सद्धस्योपमानस्यो प्रकल्प स

�नष्फलत्वा�भधा वा प्रतीप�म कथ्यत सस (साद. 10.87)

यथा - यत्त्वन्नेत्रसमानकािन् मग्न त�दन्द�वरम स (तत्र वतृ ्त)

तथा च - तद वक्त य�द म�ु द्र श�शकथा हा हे म सा चे�यु�तः

तच्च�ुयर् हा�रतं कुवलयैस्तच्चेित्स का सुधा ? स

�धक्कन्दपर्धनुभ् य�द च ते �कं वा बहु ब्रूम


यत्सत् पन
ु रुक्तवस्तु�वम सगर्क् वेधसः सस (तत्र वतृ ्त)

इत्युपमानस्योमेयत्वकल्पनायास्तिन्नष्फ क्रमेणोदाहर स

द्�वतीय �वश्वनाथस ल�णं चेत्थम -

उक्त् चात्यन्तमुत्कषर्मत्युत् वस्तुन स

किल्पतेऽप्युपमानत प्रती के �चद�ू चरे सस (साद. 10.88)

उदा. - अहमेव गर
ु ु सुदारुणाना�म� हालाहल तात मा स् दृप् स

ननु सिन् भवादृशा� भयो


ू भुवनेऽिस्मन वचना�न दुजर्नानाम सस (तत्र वतृ ्त)

63. सामान्यम - मम्मटमते - प्रस्तु यदन्ये गण


ु साम्य�वव�य स

ऐकात्म् बध्यत योगात् तत् सामान्य�म� स्मृतम सस (काप.स.ू 202)

मलयजरस�व�लप्ततनव नवहारलता�वभ�ू षताः

�सततरदन्तपत्रकृतवक् रु�चरामलांशुका स
शशभ�ृ त �वततधािम् धवलय�त धराम�वभाव्यता गताः

�प्रयवस� प्रयाि सख
ु मेव �नरस्त�भयोऽ�भसा�रका सस (काप.उ. 557)

रुय्यको प्रकारान्त मम्मटमे समथर्य� स

जयदेवस्त - सामान्य य�द सादृश्य भेद एथ न ल�यते स

पद्माकरप्र�वष् मख
ु ं नाल�� सभ
ु ्रुवा सस (चन्द. 5.34)

�वश्वनाथ - सामान्य प्रकृतस्यान्यतादा सदृशैगुर्ण स (साद. 10.89)

उदा. - मिल्लका�चतधिम्मल्लाश्चारुचन्दनच स

अ�वभाव्या सख
ु ं यािन् चिन्द्रकास्व�भसा� सस (तत्र वतृ ्त)

64. �वशेषः - रुद्रटेना अ�तशयोिक्तमूलकेष अलङ्कारेष प�रग�णतः स

्�णं यथा - �किञ्चदवश्याधे यिस्मन्न�भधीय �नराधारम ् स

तादृगुपलभ्यमा �व�ेयोऽसौ �वशेष इ�त सस (कालर. 9.5)

�दवमप्युपयातानामाकल्पमनल्पगुण येषाम ् स
रमयिन् जगिन् �गरः कथ�मह कवयो न ते वन्द्य सस (कालर. 9.6)

यत्रैकमनेकिस्मन्ना वस्त �वद्यमानतय स

युगपद�भधीयतेऽसावत्रान स्याद्�वश इ�त सस (कालर. 9.7)

हृदय च�ु�ष वा�च च यथ सैवा�भनवयौवना वस�त स

वयमत �नरवकाशा �वरम कृतं पादपतनेन सस (कालर. 9.8)

यत्रान्यत्कुव युगपत्कायार्न् च कुव�त स

कतुर्मशक् कतार �व�ेयोऽसौ �वशेषोऽन्य सस (कालर. 9.9)

�ल�खतं बालमग
ृ ा�या मम मन�स तया शर�रमात्मीयम स

स्फुटमात्म �लखन्त् �तलकं �वमले कपोलतले सस (कालर. 9.10)

मम्मट - �वना प्र�सद्धमाधारमाध व्यविस्थ� स

एकात्म युगपद विृ त्तरेकस्यानेकगोच सस


अन्य त प्रकुवर कायर्शक्यस्यान्यवस् स

तथैवकरणं चे�त �वशेषिस्त्र� स्मृत सस (काप.स.ू 203)

प्र�सद्धाधारप�रह आधेयस् �व�शष्ट िस्थ�त, यथा -

�दवमप्युपयातानामाकल्पमनल्पगुण येषाम ् स

रमयिन् जगिन् �गरः कथ�मह कवयो न ते वन्द्य सस (काप.उ. 559)

एकम�प वस्त एके नैव स्वभावे युगपदनेकत वतर्त, यथा -

सा थसइ तुज् �हअए सा िच्च अच्छ�स सा अ वअणेसु स

अह्मा�रसा सुन्द ओसासो कत् पावाणं सस (काप.उ. 560)

रभसा आरभमाणः यत्नेनाशक्यम कायार्न्तरमारभ, यथा -

स्फुरदद्भुतरूपमुत्प्रत त्वा सज
ृ तानवद्य�वद्य स

�व�धना ससज
ृ े नवो मनोभभु
ू ्�
र सत्य स�वता बह
ृ स्प�तश सस (काप.उ. 561)

यथा वा - ग�ृ हणी स�चवः सखी �मथः �प्रय�शष ल�लते कला�वधौ स


करुण �वमख
ु ेन मतृ ्युन हरता त्वा थ् �कं न मे हृतम सस (काप.उ. 562)

रुय्यकस - अनाधारमाधेयमेकमनेकगोचरमशक्यवस्त्वन्तर �वशेषः सस (अस. 50)

तस् पन
ु स्त् भेदाः स ते यथा -

आधारह�न आधेयरूप �वशेषालङ्कार -

�दवमप्युपयातानामाकल्पमनल्पगुण येषाम ् स

रमयिन् जगिन् �गरः कथ�मव कवयो न ते वन्द्य सस (अस. 182)

एकस्यानेकगोचरत्वर �वशेषः -

प्रासा सा प�थ प�थ च सा पषृ ्ठत सा पुरः सा

पयर्ङ् सा �द�श �द�श च सा तद्�वयोगातुरस स

हं हो चेतः प्रकृ�तरप नािस् मे का�प सा सा

सा सा सा सा जग�त सकले कोऽयमद्वैतवाद सस (अस. 183)


असम्भाव्यवस्त्वन �नष्पादनरू �वशेषः -

�नमेषम�प यद्येक �ीणदोषे क�रष्य� स

पदं �चत्त तदा शम्भ �कं न सम्पाद�यष्य सस (अस. 184)

जयदेवेन - �वशेषः ख्यातमाधार �वनाप्याधेयवणर्न स

गतेऽ�प सय�
ू द�पस्थास्तमिश्छन् तत्करा सस (चन्द. 5.85)

प्र�सद्धा �वनाप्याधेयस्यावस्थ �वशेष इ�त वाग्भटथमः स

उदाहरणं तु अनेन उप�र उद्धृ �दवमप्युपयाताना�मत्याद् दत्तम स

�वश्वनाथस् �त्र�व �वशेषमर�करो


ू �त, तथा�ह -

यदाधेयमनाधारमेकं चानेकगोचरम ् स

�किञ्चत प्रकुवर कायर्मशक्यस्येत वा सस

कायर्स कारणं दैवाद �वशेषिस्त्र�वधस सस (साद. 10.74)

क्रमेणोदाहरणा - �दवमप्युपयातानामाकल्पमनल्पगुण येषाम ् स


रमयिन् जगिन् �गरः कथ�मव कवयो न ते वन्द्य सस (तत्र वतृ ्त)

कानने स�रदुद्दे �गर�णाम�प कन्दर स

पश्यन्त्यन्तकसं त्वामेक �रपवः पुरः सस (तत्र वतृ ्त)

ग�ृ हणी स�चवः सखी �मथः �प्रय�शष ल�लते कला�वधौ स

करुण �वमख
ु ेन मतृ ्युन हरता त्वा थ् �कं न मे हृतम सस (तत्र वतृ ्त)

65. तद्गुण - रुग्रटम - यिस्मन्नैकगुणानामथार् योगल�यरूपाणाम स

संसग� नानात्व न ल�यते तद्गुण स इ�त सस (कालर. 9.22)

नवधौतधवलवसनाश्चिन्द् सान्द् �तरोग�मताः स

रमणभवनान्यशङ्क सपर्न्त्य�भसा�र सप�द सस (कालर. 9.23)

असमानगण
ु ं यिस्मन्न�तबहलगुण वस्तुन वस्त स

संसषृ ्ट तद्गुणता धत्तेऽन्यस्तद् स इ�त सस (कालर. 9.24)


कुब्जकमाला� कृता कातर्स्वरभास् त्वय कण्ठ स

एतत्प्रभानु�ल चम्पकदामभ् कु रुत सस (कालर. 9.25)

मम्मटे - स्वमुत्सृ गण
ु ं योगादत्युज्ज्वलगु यत् स

वस्त तद्गुणतामे� भण्यत स तु तद्गुण सस (काप.स.ू 204)

�व�भन्नवणा गरुडाग्र सय
ू ्स
र रथ्या प�रतः स्फुरन्त स

रत्नै पन
ु यर् रुच रुच स्वामा�निन्य वंशकर�रनीलैः सस (काप.उ. 563)

रुय्यक - स्वगुणत्यागादत्युत्कृष्टगुणस्वीकारस सस (अस. 73)

उदाहरणे तु रुय्यक न �कम�प नत


ू नत्वम स

जयदेवः - तद्गुण स्वगुणत्यागादन् स्वगुणोदय स

पद्मरागार नासामौिक्तक तेऽधरा�श्रत सस (चन्द. 5.102)

यत वस्त स्वगुणमुत्सृज्यान्यगुणय ो तद्गुणतामे� स तद्गुण इ�त

प्रथमवाग् स (कान.ु प.ृ 45)


66. अतद्गुण - म्मटस - तद ्रूपाननुहारश्चे तत् स्यादतद्गु स (काप.स.ू 205)

धवलोऽ�स जह �व सुन्द यह �व तुए मज् रिञ्अं �हअअं स

राअभ�रए �व �हअए सह
ु अ �ण�हत्त ण रत्तो� सस (काप.उ. 564)

अप्रकृत रूप प्रकृत कुतोऽ�प नान�ु वधीयते �न�मत्तवशात, तत्रा अतद्गुण स

यथा - गाङ्गमम् �सतमम्ब यामन


ु ं कज्जलाभमुभय मज्जत स

राजहं स यथ सैव शभ
ु ्र चीयते न च न चापचीयते सस (काप.उ. 565)

रुय्यक यथा - स�त हेतौ तद्गुणाननुहारोऽतद्गु सस (अस. 74)

उदाहरणन्त मम्मटानुगतम स

जयदेवस् यथा - सङ्गतान्यगुणानङ्गीकारमाहुरतद्ग स

�वशन्न� रवेमर्ध् शीत एथ सदा शशी सस (चन्द. 5.105)

तत् संिश्लष्टम वस्त यद गण


ु ं नाश्रय सोऽतद्गुण इ�त प्रथमवाग् स
उदा. - सज्जणसंगे �वदुज्जणस कसु�समानओसरइं स

स�समण्डलमब्भप�र�हउ �कस णुिव्व कुरं गो सस (कान.ु प.ृ 45)

67. व्याघात - अन्यैरप्र�तहत कारणमतु ्पादन न कायर्स स

यिस्मन्न�भधीय व्याघात स इ�त �व�ेयः सस (कालर. 9.52)

यत्क सुरतप्रद� �नष्कज्जलवतर महामणयः स

माल्यस्या न गम्य हृतवसनवधू�वसृष्ट सस (कालर. 9.53)

मम्मटे - यद यथा सा�धतं के नाप्यपरे तदन्यथ स

तथैव तद �वधीयेत स व्याघा इ�त स्मृत सस (काप.स.ू 206)

दृश दग्ध मन�सजं जीवयिन् दृशै याः स

�वरूपा�स ज�यनीस्ता स्तुव वामलोचनाः सस (काप.उ. 566)

रुय्यकस् प्रकारान्त त�दत्थन्त्व समथर्य� स

जयदेवस्त - स्या व्याघातोऽन्यथाका वस्त्वन्य�क्रयम स


यैजर्गत प्रीय हिन् तैरेव कु सम
ु ायुधः सस (चन्द. 5.86)

�वश्वनाथस् - व्याघात स तु के ना�प वस्त येन यथाकृतम ् स

तेनैव चेदुपायेन कु रुतेऽन्यस्तदन सस (साद. 10.74-75)

तदुदाहरणं यथा - दृश दग्ध मन�सजं जीवयिन् दृशै याः स

�वरूपा�स ज�यनीस्ता स्तुव वामलोचनाः सस (तत्र वतृ ्त)

प्रकारान्तर व्याघातस ल�य�त �वश्वनाथ - सौकय�ण च कायर्स �वरुद

�क्रय य�द स उदा. - इहैव त्व �तष् द ्रुतमहमहो� क�तपयैः

समागन्त कान्त मदुर�


ृ स न चायाससहना स

मदु
ृ त्व मे हेतुः सुभग भवता गन्तुम�धक

न मद्व
ृ सोढा यद्�वरहकृतमायासमसम म स (तत्र वतृ ्त)

अत नायके न ना�यकाया मदु


ृ त्व सहगमनाभावहेतुत्वेनोक्त स ना�यकया च प्रत्
सहगमने ततोऽ�प सौकय�ण हेतुतयोपन्यस्त स (तत्र वतृ ्त) स एके न कृतकायर्मपरे

तथैवान्यथ �वधीयते स व्याघात इ�त ल�णं प्रथमवाग्भ (कान.ु प.ृ 44) स

उदाहरणमसौ मम्मटदत्तम ददा�त स

68. संसिृ ष्ट - भामहस् - वरा �वभष


ू ा संसिृ ष्टबर्ह्वलङ्कारय स

र�चता रत्नमाले सा चैवम�ु दता यथा सस (कालभा. 3.49)

मम्मटस - सैषा संसिृ ष्टरेतेषा भेदेन य�दह िस्थ�त स (काप. 207)

भेदेन इ�त यथासम्भवमन्यो �नरपे�तया (तत्र वतृ ्त) स

शब्दालङ्कारस ंसृिष्टय - वदनसौरभलोभप�रभ्रमद्भ्रमरसम्भ्रमशो स

च�लतया �वदधे कलमेखलाकलकलोऽलकलोलदृशान्य सस (काप.उ. 567)

अथार्लङ्कारस ंसृिष्टय - �लम्पती तमोऽङ्गा� वषर्तीवाञ्ज नभः स

असत्पुरुषसेव दृिष्ट�वर्फल गता सस (काप.उ. 568)

अत पव
ू ार्ध परस्पर�नरपे� यमकानप
ु ्रा, उत्तराध च तथा�वधे एथ
उपमोत्प्र संसÏृ ष् प्रयोजय स

शब्दाथार्लङ्कार संसिृ ष्टयर् - सो णित् एत् गामे जो एअं महमहन्तलावण् स

तरुणा �हअअल�ू डं प�रसक्कन्त �णवारेइ सस (काप.उ. 569)

अत अनप
ु ्रा यमकं चान्योन्य�नरपे स

रुय्यकस "एषां �तलतण्डुलन्याय �मश्रत संसिृ ष्ट" (अस. 85) इ�त

ल�णं �नरूपय� स मम्मटस्येवालङ्कारस् त्रै�वध्यमप् प्र�तपा�दत स

यथाक्रममेतेषामुदाहरणा

यथा - शब्दालङ्कारस ंसृिष - कु सम


ु सौरभलोभप�रभ्रमद्भ्रमरसंभ्रमसंभ स

च�लतया �वदधे कलमेखलाकलकलोऽलकलोलदृशान्य सस (अस. 264)

अथार्लङ्कारस ंसृिष - दे�व �पा गल�त च�ुरमन्दतारमुन्मीलया न�लनीव सभङ्गमब्ज


ृ स

एध त्वदाननरुच �वलुण्ठ्यमा पश्याम्ब त्यज� �नष्प्र� शशाङ्क सस (अस. 265)


उभयसंसिृ ष्ट - आनन्दमन्थरपुरन्दरमुकल्य मौलौ हठेन �न�हतं म�हषासुरस् स

पादाम्बुज भवतु मे �वजयाय मञ्जुमञ्जीर�शिञ्जतमनोहरमिम्बक सस (अस. 267)

69. सङ्कर - मम्मट - अ�वश्रािन्तजुषामात्मन्यङ्गा तु सङ्करः (काप.स.ू 208)

यत्रै अनासा�दतस्वतन्त्रभ परस्परम अनुग्राह्यानुग्रा दध�त,

स एतेषां सङ्क�यर्माणरूपत् सङ्कर स

आत्त सीमन्तरत् मरक�त�न हृत हे मताटङ्कपत

लुप्ताया मेखलायां झ�ट�त म�णतुलाको�टयुग्म गह


ृ �ते स

शोणं �बम्बोष्ठकान् त्वद�रमृगदृशा�मत्वर�णामर

राजन ् गुञ्जाफलाना स् इ�त शबरा नैव हारं हरिन् सस (काप.उ. 570)

अत तद्गुणमपे� भ्रािन्त प्रादुभूर्, तदाश्रय च तद्गुण

प्रभूतचमत्कृ�त�न�म सञ्जा इ�त मम्मट वतृ ्त स

यथा वा - जटाभा�भभार्�भ करधतकलङ्का�वलय



�वयो�गव्यापत्ते� क�लतवैराग्य�वशद स

प�रप्रेङ्खत्ताराप�रकरकपालाङ्�

शशी भस्मापाण्ड �पतव


ृ न इथ व्योिम चर�त सस (काप.उ. 571)

उपमा रूपकम उत्प्र श्लेषश्चे चत्वारोऽ अङ्गाङ्�गत प्रतीयन स

अयं शब्दालङ्कारयोर स्यात, यथा -

राज�त तट�यम�भहतदानवरासा�तपा�तसारवनदा स

गजता च यय
ू म�वरतदानवरा सा�तपा�त सारा वनदा सस (काप.उ. 572)

अत यमकम ् अनुलोमप्र�तलोम �चत्रभे पादद्वयगत परस्परापे� स

अन्यच - एकस् च ग्र न्यायदोषाभावाद�नश्च स (काप.स.ू 209)

अयं �नश्चयाभावरू द्�वतीय सङ्कर स यथा -

जह ग�हरो जह रअण�णब्भर जहअ �णम्मलच्छ स


यह �कं �व�हणा एसो सरसवाणीओ जल�णह� ण �कओ सस

अत समासोिक्त, अथवा अप्रस्तुतप् इ�त सन्देह स यथा वा -

नयनानन्ददायीन्दो�बर्म्बम प्रसीद स

अधुना�प �नरुद्धाशम�वशीणर् तमः सस (काप.उ. 574)

अत पयार्योक्तम�तशयोिक्त रूपक द�पकं तुल्ययो�गत समासोिक्तरप्रस्तुतप

वे�त सन्देह स स्फुटमेक �वषये शब्दाथार्लङ्कृ�तद् स व्यविस्थ च (काप.स.ू 210)

अ�भन्न एथ पदे शब्दाथार्लङ्क व्यवस्थ यत समासादयतः, स अपरः सङ्कर स

यथा - स्पष्टोल्लसित्करणकेसरसूयर्�बम्ब�वस्तीणर् �दवसार�वन्दम स

िश्लष्टाष्ट�दग्दलकलापमुखावतारबद्धान्धकारम सङ्चुको सस (काप.उ. 579)

अनुग्राह्यानुग्रा, सन्देहे, एकपदप्र�तपाद्य च व्यवस्थापना स

रुय्यक यथा - �ीरनीरन्याये तु सङ्कर सस (अस. 86)

अनतु ्कटभेदत्व�मश् सङ्कर स तच् �मश्रत्वमङ्गाङ्�ग, संशयेन,


एकवाचकानप
ु ्रवेश च �त्र स क्रम यथा -

अङ्गुल��भ�र के शसंचयं सं�नयम् �त�मरं मर��च�भः स

कुड्मल�कृतसरोजलोचन चुम्बती रजनीमख


ु ं शशी सस (अस. 268)

यः कौमारहरः स एथ �ह वरस्त एथ चैत्र�-

स्त चोन्मी�लतमालतीसुरभय प्रौढ कदम्बा�नला स

सा चैवािस् तथा�प तत सुरतव्यापारल�ला�वध

रेवारोध�स वेतसीतरुतल चेतः समतु ्कण्ठ सस (अस. 271)

मुरा�र�नगर्त नन
ू ं नरकप्र�तपिन् स

तवा�प मÐ
ू ध् गङ्गे चक्रधा प�तष्य� सस (अस. 276)

70. वास्तवम - रुद्र - वास्तव�म� तज्�ेय �क्रय वस्तुरूपकथ यत् स

पुष्टाथर्म�वपर� �नरुपममन�तशयमश्लेष सस (कालर. 7.10)


तस् सहोिक्तसमुच्चयजा�तयथासङ्ख्यभावपया स

�वषमानम
ु ानद�पकप�रकरप�रविृ त्तप�रसङ्ख् सस (कालर. 7.11)

हेतुः कारणमाला व्य�तरेकोऽन्योन्यमुत सारम ् स

स�
ू मं लेशोऽवसरो मी�लतमेकावल� भेदाः सस (कालर. 7.12)

71. भावः - रुद्रटम - यस् �वकारः प्रभवन्नप्र� हेतुना येन स

गमय�त तद�भप्रा तत् प्र�तबन च भावोऽसौ सस (कालर. 7.38)

ग्रामतर तरुण् नववञ्जुलमञ्जर�सनाथकर स

पश्यन्त भव�त मह
ु ु �नर्तरा म�लना मख
ु च्छाय सस (कालर. 7.39)

मम्मटेनेदमुदाहरण मध्यमकाव्य (गण


ु ीभत
ू व्यङ्ग्) कृत्व दत्तम स

प्रकारान्त भावः - अ�भधेयम�भदधानं तदेव तदसदृशसकलगुणदोषम स

अथार्न्तरमवगमय यद्वाक् सोऽपरो भावः सस (कालर. 7.40)

उदाहरणम ् - एका�कनी यदबला तरुण तथाहमिस्मन गह


ृ े गह
ृ प�तश् गतो �वदेशम ् स
�कं याचसे त�दह वास�मयं वराक� श्वश्रूमर्मान्ध ननु मढ
ू पान् सस (कालर. 7.40)

वाग्भटप्रथम - यत प्रतीयमानोऽ वाच्योपयोग स भाव इ�त ल�णमाह स

(कान.ु प.ृ 44) उदाहरणमसौ ग्रामतर तरुण् - इत्ये प्रस्त स

72. मतम ् - रुद्र - तन्मत�म� यत्रोक् वक्तान्यमत �सद्धमुपमेय स

ब्रूयादथोपमा तथा �व�शष्ट स्वमत�सद् सस (कालर. 8.69)

म�दरामदभरपाटलम�लकुलनीलालका�लधिम्मल्ल स

तरुणीमुख�म� य�ददं ङथय�त लोकः समस्तोऽयम सस (कालर. 8.70)

उदाहरणम ् - मन्येऽह�मन्दुरे स्फुटमुदयेऽरुणरु िस्थतै पश्चात स

उदय�गर� छद्मपरै�नर्शातमो�भगृर इथ सस (कालर. 8.71)

वाग्भटप्रतम - प्रकृतमुित् वक्त यदन्यथ मन्यत तन्मतम स (कान.ु प.ृ 44)

उदा. - यदेतत् कन्यानामुर� तरुणीसङ्गसम


कृतोद्भे �किञ्चत पुलक�मदमाहुः �कल जनाः स

म�तस्त्वेषास्म कु चयुगतट�चुम्बन�शल

समावेषाकृष्टस्मरशरशलाकोत इथ सस (कान.ु प.ृ 44)

मम्मटा�द�नरू�पतायामपह्न अस्यान्तभार कतु� शक्यत स

73. पव
ू ्म
र - भामह-दिण्-मम्मटा�द�भनार्यमलङ्क �नरू�पत स

रुद्र - यत्रैक�वधाव जायेते यौ तयोरपव


ू ्स
र स

अ�भधानं प्राग्भ सतोऽ�भधीयेत तत् पव


ू ्म
र सस (कालर. 8.97)

काले जलदकुलाकुलदश�द�श पव�


ू �वयो�गनीवदनम ् स

गलद�वरलस�ललभरं पश्चादुपजायत गगनम ् सस (कालर. 8.98)

रुद्रटेना�तशयमूलकालङ्कारे पथ
ृ क्तय अयं �नरू�पत स

यत्रा�तप्रब �वव�यते पव
ू ्मे
र जन्यस स

प्रादुभार पश्चाज्जनक तु तद भवेत्पूवर् सस (कालर. 9.3)


जन्मसुलभम�भलषतामाद दन्दह्य मनो यन
ू ाम ् स

गर
ु ुर�नवारप्र पश्चान्मदनान ज्वल� सस (कालर. 9.4)

मम्मटमतेनायम�तशयोक्त कारणकायर्भाव�वपयर्यरूप एथ भेदः स

अवार्चीनस्याथर पथ
ृ ग�भधानं पव
ू ्म
र इ�त वाग्भटप्रथ ल�णम ् स भवभतेः

पद्य�मदमनेनोदाहृत - हृदयम�धिष्ठतमा मालत्या कु सम


ु चापबाणेन स

चरमं रमणीवल्लभलोचन�वषय त्वय भजता सस (कान.ु प.ृ 43)

74. साम्यम - वामन-मम्मटा�द�भरेतन्ना अलङ्कार नैव �नरू�पत स रुद्रटे

ल�णम ् - अथर्�क्र यिस्मन्नुपमानस्य साम्यमुपमेयम स

तत्सामान्यगुणम�धककारण तद्भवेत्साम सस (कालर. 8.105)

अ�भसर रमणं �क�ममां �दशमैन्द्र�माक �वलोकय�स स

श�शनः करो�त काय� सकलं मख


ु मेव ते मगु ्ध सस (कालर. 8.106)
सवार्कार यिस्मन्नुभयोर�भधातुमन् साम्यम स

उपमेयोत्कषर्क कुव�त �वशेषमन्यत्त सस (कालर. 8.107)

मग
ृ ं मग
ृ ाङ्क सहजं कलङ्क �वभ�तर तस्यास् मख
ु ं कदा�चत् स

आहायर्मेव मग
ृ ना�भपत्र�मयानशेष तयो�वर्शेष सस (कालर. 8.108)

75. �प�हतम ् - भामह-दिण्-वामन-मम्म-प् रभृ�त�भन� स्वीकृतम स

रुद्रटम - यत्रा�तप्रब गण
ु ः समाना�धकरणमसमानम ् स

अथार्न्त �पदध्यादा�वभूर्तम तित्प�हतम सस (कालर. 9.50)

�प्रयतम�वयोगज�न कृशता कथ�मव तवेयमङ्गेष स

लस�दन् दुकलाकोमलकािन्तकलापे ल�येत सस (कालर. 9.51)

एकत्राधा यत्राधेयद्वयस्यैके �पधीयते, तत् �प�हतम ् स इ�त वाग्भटप्रथ ल�णम ् स

अनन्तरत्नप्र यस् �हमं न सौभाग्य�वलो� जातम ् स

एको �ह दोषो गण
ु सिन्नपात �नमज्जतीन्द �करणेिष्ववाङ् सस
इ�त क�लदासीयं �हमालयवणर्नमस उदाहर�त स (कान.ु प.ृ 43)

76. प�रणामः - रुय्यकोऽस्या�वभार्व�य प्रतीय, ततः प्रा भामह-दिण्-वामन-

कुन्तका�दष अस् अ�नरू�पतत्वा स परव�तर्ष शोभाकर-जयदेव-�वद्याना-�वद्याध-

�वश्वनाथाप्पयद��-पिण्डतरा-प् रभृ�त�भर �नरू�पत स रूप इथ अिस्मन्न

प्रकृ अप्रकृत आरोपो भव�त स रूपक रूपारोप, प�रणामे तु कायार्रो इ�त भेदः स

रुय्-�वश्वना-पिण्डतराजाप्पयद���तान मतेन अत आरोप्यमाणस प्रकृतरू

प�रणमनं, �वद्यानाथाद�ना च मतेन आरोप्यमाणस अवस्थान्तरप्राि स्वी�क्र स

आरोप्यमाणस प्रकृतोपयो�गत प�रणामः सस (अस. 16)

तस् सामाना�धकरण्यवैय�धकरण्यप्रय द्वै�वध्य स आद्य यथा -

ती�वा भते
ू शमौ�लस्रजममरधुनीमात्मन ततीय
ृ -

स्तस् सौ�म�त्रमैत्रीमयमुपहृतवा ना�वकाय स


व्यामग्राह्यस्त शबरयुव�त�भः कौतुकोदञ्चद�

कृच्छ्रादन्वीयमानस्त् �ग�रं �चत्रकू प्रतस सस (अस. 32)

द्�वतीय यथा - अथ पिक्त्रमतामुपे�यव सरसैवर्क्त्रपथा�श्रतैव स

���तभतुर्रुपाय चकार प्रथ तत्परतस्तुरंगमाद् सस (अस. 33)

जयदेवस्त - प�रणामोऽनयोयर्िस्मन्नभ पयर्वस्य स

कान्ते पषृ ्ट रह�स मौनमेवोत्तर ददौ सस (चन्द. 5.22)

�वश्वनाथोऽप्येवम ल�य�त - �वषयात्मतय रोप्य प्रकृताथ�पयो�ग स

प�रणामो भवेत् तुल्यातुल्या�धकर द्�वध सस (साद. 10.34)

उदा. - िस्मतेनोपायन दरू ादागतस् कृतं मम स

स्तनोपपीडमाश्ले कृतो द्यूत पणस्तय सस (तत्र वतृ ्त)

अत प्रथमा वैय�धकरण्ये, द्�वतीयाध च सामाना�धकरण्ये प्रयो स

रूपक उपरञ्जकतामात्, अत तु प्रकृ उपयोगोऽपी�त �वशेषः स रूपकवदयम�


अ�धकारूढवै�शष्ट्योऽ �वश्वनाथे स तस्योदाहरण च का�लदासीयं पद्य�मद प्रदत् -

वनेचराणां व�नतासखानां दर�गह


ृ ोत्सङ्ग�नषक्तभ स

भविन् यत्रौषध रजन्यामतैलपूरा सुरतप्रद�प सस

धमर्सू�रमतेनास ल�णम ् - आरोप् म�ू या �वषयः प�रणामं भजेद्य� स

प्रकृताथ�पयोग प�रणामः स तु द्�वध सस (सार. प.ृ 543-44)

अयं च सामाना�धकरण्-वैय�धकरण्याभ्य द्वेध �वभािजतो धमर्सू�रण स

आद्यस्योदाहरण - बोधाय �वबुधल�म्य नष्टाय दशमख


ु ा�ददष्टाया स

भवतो गारुडमन् �वजयन्त राम चापटङ्कारा सस (सार. प.ृ 544)

चापटङ्कारै�र� पाठादयमेव वैय�धकरण्यस्योदाहरण स

77. उल्लेख - अस्याप्यलङ्कारस्या�वभा रुय् एथ प्रतीय स आमन


ु ेरा

मम्मटादस्यानुल्लेख स परव�तर्ष हे मचन्-वाग्भटद्�वत-शौद्धोध-के शव�मश्रा�द�भर


नायमल
ु ्ले उिल्ल�खत स धमर्सू�-शोभाकर-जयदेव-�वद्याना-�वश्वनाथाप्पयद��-

नर�संहक�व-नरेन्द्रप्रभसू�र �नरू�पत स

रुय्यक यथा - एकस्या� �न�मत्तवशादनेकध ग्रहणमुल्ल स (अस. 19)

उदा. - यथारु� यथा�थर्त् यथाव्युत्पि �भद्यत स

आभासोऽप्यथ एकिस्मन्ननुसंधानसा�ध सस (अस. 40)

बहु�भब्हुधोल्लेखादेकस्योल्ले
र मता स

स्त्री कामः �प्रयैश्च कालः शत्रु�भरै सः सस (चन्द. 5.23)

�वश्वनाथेनाय�मत्थमल - क्व�च भेदाद ग्रह�तॄण �वषयाणां तथा क्व�चत स

एकस्यानेकधोल्ले यः स उल्ले उच्यत सस (साद. 10.37)

�ातभेद
ृ �नबन्धन यथा - �प्रय इ�त गोपवध�भः
ू �शशु�र�त वद्धैरध
ृ इ�त देवैः स

नारायण इ�त भक्तैब्र्रह्मेत् यो�ग�भद�वः सस (तत्र वतृ ्त)

अत भगवतः �प्रयत्वाद� वास्तवत्व ग्रह�तृभेदा न मालारूपकम, न च भ्रािन्तम,


न चायमभेदे भेद इ�त रूपा�तशयोिक् स

�वषयभेद�नबन्ध उल्लेख यथा - गाम्भीय� समद


ु ्रोऽ गौरवेणा�स पवर्त सस (तत्र वतृ ्त)

धमर्सूरेलर्�ण - -

78. प्रश्नोत्त - अलङ्कारोऽय भोज-द्�वतीयवाग्-�वद्याध-धमर्सू�र�भ प्र�तपा�द स

भोजस्त्वे वाकोवाक्य�म� सं�पय�त प्रश्नोत्तर वाग्भट प्रश्नोत्त �र

धमर्सू�- �वद्याधर सस भोज�न�दर ्ष् वाकोवाक्य�म� नामान्तर �वद्याधर

�वकल्पय� स प्रश्नोत्तरद् चमत्कारापादनम, प्र एवोत्तर�नबन्धन इ�त

सामान्यमस ल�णं सव� स्वीकुवर्ि स

जयदेवस् यथा - प्रश्नोत क्रमेणोक स्यूतमुत्तरमुत्त स

यत्रा वेतसी पान् तत्रा सुतरा स�रत् सस (चन्द. 5.108)

धमर्सूरेलर्� यथा - �मश्रश्चमित्क्र यः प्रश्नोत्त �र सा स (सार. प.ृ 706)


समुदायादुत्क ृष्टोत्कृष्ट�नधा सार�म�त वाग्भटप्र स (काव्यान. प.ृ 42)

79. अथार्पित् - भोजोऽस्यालङ्कारस्या�वभार प्रतीय स अप्पयद���-

नर�संहप् रभृतयोऽथार्प कै म�ु तकन्यायमपे�न्, �वश्वनाथ, तमनर


ु ुन्धा

धमर्सू�रश ल�णे दण्डापू�पकन्या प्रदशर् स

�वश्वनाथस ल�णम ् - दण्डापू�पकयान्याथार्गमोऽथार्पित्त� स (साद. 10.83)

�वश्वना एनं द्�वध �वभाजय�त - प्कर�णकादथार्दप्राकर�णकस्याथर्स्याप

प्रथ, अप्राकर�णका प्राकर�णकस्य द्�वतीय भेदः स उभयोरुदाहरणा� -

हारोऽयं ह�रणा�ीणां लुठ�त स्तनमण्ड स

मक
ु ्तानामप्यवस्थ के वयं स्मर�कङ्कर सस (तत्र वतृ ्त)

�वललाप सबाष्पगद्ग सहजामप्यपहा धीरताम ् स

अ�ततप्तमयोऽ� मादर ्व भजते कैव कथा शर��रषु सस (तत्र वतृ ्त)

(द्�वतीय पद्य का�लदासीय-रघुवंशेऽज�वलापप्रसङ् स अ�भतप्तमयोऽ�- इ�त तत पाठः)


धमर्सू�रस् इह कै म�ु तकन्यायमप्युिल्ल स तल्ल�ण यथा -

ङÏस्मिश्चद �नष्पन् यद्यथार्न्तरमापत स

दण्डापूपनयेनाथार्पित्त ह्यलङ्कृ� सस (सार. प.ृ 657)

भोजेन षड्�वधेय प�रकिल्पत, रुय्-�वद्याना-�वश्वना-धमर्सूरय

द्वै�वध्यमस ऊर�कुवर्िन स पिण्डतराज पन


ु श्चतु�व�श�तभ�दानस्य प्रत्यपाद स

रुय्यक यथा - दण्डापू�पकयाथार्न्तरापतनमपित्त स (अस. 64)

अलङ्कारस्या द्वै�वध्यमन स्वीकृतम स प्राकर�णकादप्राकर�णकस्याथर्स्या

प्रका स अप्राकर�णकात्प्राकर�णकस्याथ द्�वतीय स आद्य यथा -

पशप
ु �तर�प तान्यहा� कृच्छ्रादगमयद�द्रसुतासमाग स

कमपरमवशं न �वप्रकुयुर्�वर्भ तं यदमी स्पृशिन भावाः सस (अस. 213)

द्�वतीय यथा - धतध


ृ न�ु ष बाहुशा�ल�न शैला न नमिन् यत्तदाश्चयर स
�रपस
ु �
ं केषु गणना कैव वराकेषु काकेषु सस (अस. 214)

अथार्पित् स्वय �सध्येत पदाथार्न्तरवणर् स

स िजतस्त्वन्मुखेनने का वा�ता सरसीरुहाम सस (चन्द. 5.37)

80. अनुकल्प - अलङ्कारोऽय धमर्सूरे प्र न कु त्राप्युिल्ल दृश्य स

अनुकल्पस् गौणोिक्तमुर्ख्योिक्तसमनन स (सार. प.ृ 721)

उदा. - श्लाघ् कोदण्ड�वद्याय राघवो रावणोऽ�प वा स

यथा ध्वान्तह द�स्तपन दहनोऽथवा स स (तत्र वतृ ्त)

तुल्यबलत् �वकल्प, प्रधानापे� त�दतरमुख्यासम्भावन गौणा�भधाने �वकल् इत्यनयोभ�द स

81. समी�हतम ् - वाग्भटप्रथमेनायमलङ् �नरू�पत स

कायर्मारभमाणस दैवादुपायसम्पित् समी�हतम ् स

मनिस्वन वल्लभवेश गन्तुमुत्किण् यावदभिू न्नशायाम स

तावन्नवाम्भोधरधीरनादप्रबो सौध�शखी चुकूज सस (कान.ु प.ृ 42)


82. उभयन्यास - वाग्भटप्र - सामान्य सामान्ये यत् सम�यते स उभयन्यास स (कान.ु प.ृ 44)

उदा. - आपत्समुद्धरणधीर� परेषां जाता महत्य� कुले न भविन् सव� स

�वन्ध्याटवी �वरलाः खलु पादपास्त ये दिन्तदन्तमुशलोिल्ल� सहन्त सस (कान.ु प.ृ 44)

83. अनुकूलम ् - �वश्वनाथ - अनुकूलं प्रा�तकूल्यमनुकूलानुब चेत् स (साद. 10.64)

उदा. - कु �पता�स यदा तिन् �नधाय करज�तम ् स

बधान भुजपाशाभ्या कण्ठमस दृढ तदा सस (तत्र वतृ ्त)

84. �व�चत्र - रुय्यक - स्व�वपर�तफल�नष्पत् प्रयत �व�चत्र स (अस. 47)

उदा. - घेत्तु मुञ्च अहरो अण्णन् थ्इ पेिक्खउ �दट् स

घ�डदुं �वहडं�त भुआ कआअ सुरअिम् वीसामो सस (अस. 177)

जयदेवस्त - �व�चत् चेत् प्रयत स्या �वपर�तफलप्र स

नमिन् सन्तस्त्रैलोक् लब्धु समुन्न�तम सस (चन्द. 5.82)


�व�चत् तद �वरुद् कृ�त�रष्टफला चेत् स (साद. 10.71)

उदा. - प्रणमत्युन्न �तहेतोज��वतहेतो�वर्म प्राणा स

दुःखीय�त सख
ु हेतोः को मढ
ू ः सेवकादन्य सस (तत्र वतृ ्त)

85. �वकल्प - रुय्यकमन - तुल्यबल�वरोध �वकल्प स (अस. 65)

उदा. - भिक्तप्रह्व�वलोकनप् नीलोत्पलस्प�धर

ध्यानालम्बनत समा�ध�नरतैन�ते �हतप्राप् स

लावण्यस महा�नधी र�सकतां ल�मीदृशोस्तन्

युष्माक कु रुता भवा�तर्शमन नेत् तनुवार हरेः सस (अस. 216)

जयदेवस्त - �वकल्पस्तुल्यबलयो�वर्रोधश्चातुर स

कान्ता�चत्तेऽध वा�प कु र त्व वीतरागताम ् सस (चन्द. 5.96)

�वस्वनाथ - �वकल्पस्तुल्यबलयो�वर्रोधश्चातुर स (साद. 10.83)

उदा. - नमयन्त �शरां�स धन�ूं ष वा कणर्पूर��क्रयताम मौ�यो वा स


(अत �शरसां धनुषां च नमनयोः सिन् �वग्रहोपल�णत्व �वरोधः )

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