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अथ अथार्लङ्कार �नरूप्यन स
पञ्चधेय�म� मन
ु ेर�भमतम ् स यथाक्रममे भेदाः अत प्र�तपाद्य -
संपण
ू ्चन्द्र
र नीलोत्पलदले�ण स
उपमेयस् यत्साम् गण
ु लेशन
े सोपमा सस (कालभा. 2.30)
(7) समच
ु ्चयोपम - समच
ु ्चयोपमाऽप्यि न कान्त्य मख
ु ं यथ स
तत्त मख
ु �श्र धत्ता�मत्यसावद्भुत सस (काद. 2.24)
स गण
ु ो वास्त दोषो वेत्या�चख्यासोपम �वदुः सस (काद. 2.32)
(22) चटूपमा - मग
ृ े�णाङ्क ते वक्त मग
ृ ेणैवाङ्�कत शशी स
(24) अभतो
ू पमा - सवर्पद्मप्रभ समाहृ इथ क्व�चत स
�नरूप्ये स त्वदाननमधीरा�मा�वदर्शनद��ध स
(32) हेतप
ू मा - कान्त् चन्द्र धाम्न सय�
ू धैय�ण चाणर्वम स
उभयोः समानमेकं गण
ु ा�द �सद् भवेद्यथैक स
अ�लमालेव सन
ु ीला तवैव म�दरे�णे कबर� सस (कालर. 8.6)
इयमन्य सामान्य यत्रेवा�दप्रयोगसाम� स
गम्ये सप
ु ्र�सध तद्वा�चपदाप्रयोगे सस (कालर. 8.7)
उदा. - मख
ु मापण
ू ्कपोल
र मग
ृ मद�ल�खताधर्पत्रल ते स
अनप
ु ममेतद्विस्त्वत्युप तद्�वशेषण चासत् स
इदुमप
ु मीयेत तया सुतनोरस्या स्नावरणम ् सस (कालर. 8.16)
उदा. - मख
ु �मन् दुसुन्दर�म �बस�कसलयकोमले भुजाल�तके स
पद�मदमन्यपदाथ समस्यतेऽथोपमेयवचने स
उदा. - पद्यायत मख
ु ं ते नयनयुगं कुवलयायते य�ददम ् स
उदा. - अ�लवलयैरलकै�रव कु सम
ु स्तबकै स्तनै�र वसन्त स
भािन् लता ललना इथ पा�ण�भ�रव �कसलयैः सप�द सस (कालर. 8.30) इयं समस्त�वषय स
उपमा - भेदे स�त साध�यम ् स सा च प्रथ �त्र भव�त - (1) भेद प्रधा,
(2) अभेद प्रधा, (3) भेदाभेद प्रधा स मम्मटमते भेदे स�त एथ इयं भव�त स अत
उपमायां चत्वार अंशाः - उपमानं, उपमेयं, साधारण धमर्, उपमा प्र�तपा वाचकं च स
सा�ात् सादृश वाचका�न यथा, इथ, वा, व�त प्रत्यया (तत तस्येवे�) भविन् स
आ�यां ध�मर व्यव�ह प्र�तपा वाचका�न - �नभ, संकाश, सदृ, तुल्, सम, उपम
आदयः, व�त प्रत् (तेन तुल्य �क्र चेत्) स उभावप्येत वाक्यग, त�द्धत,
तत धमर्लुप् - "मख
ु ं चन्द इथ", "मख
ु ं चन्द्", "मख
ु ं चन्द् समं",
"मख
ु ं चन्द्र" स
बहुपदा - "पण
ू र चन् सुन्दर मख
ु म ्" स
वाचक लुप्त - कमर क्य - "नायकः नायक�मख
ु ं चन्द्र�" स
- समासगा - "मख
ु चन्द प्रकाश" स
वाक्यग - "मख
ु ेन सदृश न दृश्य" स
�त्रलुप - "मग
ृ नयना" स (मग
ृ स् नयने इथ नयने यस्या सा - मध्यमपदलोप समासः)
राजानकरुय्यकमत - उपमानोपमेययोः साध�ये भेदाभेदतुल्यत् उपमा सस (अस. 11)स
अस्याश पण
ू ार्लुप्तात्वभेदािच्चरन्तनैबर्हु�वधत् स तत्रा साधारणधमर्स
पथ
ृ ङ्�नद�श च सम्बिन्धभेदमा प्र�तवस्तूपमा स �बम्बप्र�त�बम्ब वा
दृष्टान्त स क्रमेणोदाहरण -
पीयषकवेः
ू जयदेवस्या�भमत यत् - उपमा यत सादृश्यल�मीरुल् द्वयो स
(कान.ु प.ृ 33) साम्य वाच्यमवैध�य वाक्यैक उपमा द्वयो सस इ�त �वश्नाथः
तत्र वतृ ्त स
षड्�वधा पण
ू ा�, लुप्ता चैक�वंश�त�वधां प्र�तपादय �वश्वनाथ स तत
धमर्लुप्ताय पञ्, उपमानलुप्ताया द्व, वाचकलुप्ताय अ�प द्व,
सहचरमधुहस्तन्यस्तचूताङ्कुर शतमखमप
ु तस्थ प्राञ्ज पुष्पधन् सस
यथो�वमप
ु मेयस् य�द स्यादुपमानत स (साद. 10.25)
उदा. - चन्द्रा शक
ु ्लरुचा हं सो हं सायते चारुगते कान्त स
यौवनन
े ेव व�नता नयेन श्रीमर्नो सस (तत्र वतृ ्त)
यथा -"मख
ु ं मख
ु �मव" स द्�वती-सदृ-व्यवच्छे फलम ् स
भामहेनेय�मदम्प्रथमतयोिल्ल स
एतदनस
ु ारेण चेतनोत्प्रे�ाऽचेतनोत् चे�त द्�वधेयम स
अपाङ्गभागपा�तन् दृष्टेरंशु�भरुत् स
चम्पकतरु�शखर�म कु सम
ु समह
ू च्छले मदन�शखी स
अयमच
ु ्चैरारू पश्य� प�थकािन्दध�ु�र सस (कालर. 8.33)
आपाण्डुगण्डपाल��वर�चतमृगना�भपत्र स
श�शशङ्कये प�ततं लाञ्छनमस् मख
ु े सुतनोः सस (कालर. 8.35)
रुद्र अ�तशयोिक्तमूलकालङ्कारे पथ
ृ गयं ल��तः स यथा -
संभत
ू मतद्व� वा �व�ेया सेयमतु ्प्र सस (कालर. 9.11)
अ�तसान्द्रत नण
ृ ां गात्राण्यनु�लम्पतीव सस (कालर. 9.12)
सर�स समल
ु ्लसदम्भ कादम्ब�वयोगदूयमाने स
मम्मटमते भेदाः -
लग्न मन्य ल�लततनु ते पादयोः पद्मल�म सस" (काप.उ. 416) अंशे क�वकिल्पत -
सा जा�त, गण
ु , �क्र, द्र भेदेन चतु�वर्ध पन
ु ः प्रत्य भाव, अभाव रूपे च,
ते च गण
ु रूपाध्यवस, �क्रयारूपाध्यवसाया, ततः स�न�मत्, अ�न�मत्ताभ्य,
पन
ु ः हेतु, स्वर, ्् रूपे त्रै�वध् च षण्णव�तध स
ठ. अनप
ु ात्त�न�मत्तजात्यभावस्वरूपो - (अक�न् दुशून्याभावा)
ड्. गण
ु स्वरूपोत्प - "भक्ताना मनोगतो रागः रामस् पादपद्मय अवतीणर् इ�त
नन
ू ं अवै�म" स (राग गण
ु ः उत्प्रे�)
ड्. गण
ु हेततू ्प्र - "हारेषु त्रु�टते भयेन �ीणं वलग्न (नीवी वा) स्व
एथ नन
ू ं अमच
ु त्" स
ढ. गण
ु फलोत्प्र - "प्रतीप नप
ृ ाः देहान ् सौख्येच्छ सत्य जहुः" स
ण ्. �क्रयाहेतूत्प - "�रपण
ू ां तरलप्राणपारण रामस् करवालः नन
ू ं तरलः
जीवहेतुभत
ू ा" स
लताङ्गना�लंगनलालसा पन
ु ः �व�नगर्म न शक्नुविन ध्रुव" स
(आ�लंगन �क्रयाय फलत्व) स
स्मरारेय मÐ
ू ध् ज्वलनक�पश भा�त �न�हतः स
गण
ु ोत्प्र - सैषा स्थल यत �व�चन्वत त्वा भ्रष मया नप
ू ुरमेकम�ु याम ् स
�न�मत्तोपादानस्यै उदाहरणे स
अनप
ु ादाने - "�लम्पती तमोऽङ्गा�" इत्या� स (अस. प.ृ 91)
�दग्द��ण गन्धवह मख
ु ेन व्यल�क�नःश्वास�मवोत्ससज (अस. 53)
अभद
ू हं प�ू वर्कय गतानामतीव भ�ू मः स्मरमागर्णाना सस (अस. 56)
यत्रोल्लसत्फेनत�तच मक
ु ्ताट्टहा �वभा�त �सप् सस (अस. 58)
उदा. - त्वन्मुखश्री नन
ू ं पद्मैव�राय शशी सस (चन्द. 5.29)
�कं पन
ु �रदं भवे�द�त सौधतलाल�यसकलदेहायाः स
- (स्थाणुवा पर
ु ुष वा)
भेदानक
ु ्त - "�कं चन् एथ अत प्रकाश ?" स
उद्गाढोत्क�लकावत स्वसमयोपन्यास�वस्रि
ल�लतस�वलासवचनैम्ख�म�
ुर ह�रणा�� �निश्चत परतः सस (अस. 36)
प�रत
ू ा नु �वषमेषु ध�रत् संहृत नु ककुभिस्त�मरे सस (अस. 37)
गण
ु ानां समतां दृष्ट रूपक नाम तद्�वदु सस (कालभा. 2.21)
समस्तव्यस्तरू - िस्मत मख
ु ेन्दो�योत्स्न समस्तव्यस्तरू सस (काद. 2.68)
�ध्रय मÐ
ू ध् भप
ू ालैभर्वच्चरणपङ्क सस (काद. 2.69)
अवयवरूपकम - अकस्मादे ते चिण् स्फु�रताधरपल्लव स
मख
ु ं मक
ु ्तारु धत्त घमार्म्भःकणमञ्ज सस (काद. 2.71)
�ववण
ृ ो�त मदावस्था�मद वदनपङ्कजम सस (काद. 2.73)
मख
ु ेन मगु ्ध सोऽप्ये जनो रागमयः कृतः सस (काद. 2.75)
अ�क्रयाचन्द्रकायार्णामन् च �क्र स
समाधानरूपकम - मख
ु ेन् दुर� ते चिण् मां �नदर ्ह� �नदर ्यम स
भाग्यदोषान्ममैवे तत्समाधानरूपक सस (काद. 2.92)
रूपकरूपक - मख
ु पङ्कजरङ्गेऽिस् भ्रूलतान�त यथ स
द्वयम� पन
ु द्र्�वधैतत्समस्त�वषयैकदे� सस (कालर. 8.41)
�नरवयवल�णम ् - मक
ु ्त्वावयव�वव� �वधीयते यत्त तत्त �नरवयवम ् स
उदा. - कः परयेद
ू शेषान्कामानुपश�मतसकलसंताप स
कु सम
ु ायुधपरमास्त लावण्यमहोद�धगुर्ण�नधान स
आनन्दमिन्दरम हृ� द�यता स्खल� मे शल्यम सस (कालर. 8.49)
न�लनीनां कमलमख
ु ैम्खेन्दु�भय��षत
ुर मदनः सस (कालर. 8.50)
स्मरशबरचापयिष्टय�त जनानन्दजल�धश�शलेख स
ल�मीस्त् मख
ु �मन् दुनर्य नीलोत्पल करौ कमले स
कमलाननन
ै ्�लन्
र के सरदशनैः िस्मत चक्र सस (कालर. 8.56)
न्यन्तधार्नव्यसनर रा�त्रकापा�लक�य स
रससंमह
ु � �व सहसा परं मह
ु � होई �रउसण
े ा सस" (काप.उ. 422)
दुगार्मागर्णनीललो� स�मत्स्वीकारवैश्व स
पव
ू ार्�द करवालचण्डमहस ल�लोपधानं �श्र स
यत्रोपमान�चत सवर्थाप्युपरज् स
जयदेवेन ल�णक�तक
ृ ं पद्य�मदमुदाहरणत्वेना प्रस्तु स
भत
ू ाथार्पह्नवादस् �क्रय चा�भधा यथा सस (कालभा. 3.21)
उपवनसहकारोद्भा�सभृङ्गच्
छला�दशब्दैरसत्यत्वप्र�तपादकैवार्पह्न स
ततीयो
ृ यथा - उद्भ्रान्तोिज्झतगेहगूजर्रवकुलोच्चै कु च-
प्रेङ्खोलामलहारविल्ल�वगलन्मुक्ताफ स
भ्रष राजमग
ृ ाङ्ककुन्दमुकुलस्थू श्रमाम्भःक सस (अस. 45)
पद्येष चैतेषु पव
ू ार्धार ल�णद्योतका उत्तराधार्श्चोदाहरणघट स
उत्किण्ठता तरले, न�ह न�ह स�ख �पिच्छल पन्था सस (तत्र वतृ ्त)
इह स�वधे मगु ्धदृ भ्र मुदा �कं प�रभ्रम सस (तत्र वतृ ्त)
नायं �नश्चयान् सन्देह, तत संशय�नश्चययोरेकाश्रयत्वेनावस्थ,
न च रूपकध्व�न�र, मख
ु स् कमलत्वेना�नधार्रणा स
श्लेषनाम् गण
ु स् �नरूपण वर�व�तर स दिण्ड� वामने चायं गण
ु रूपे
अलङ्काररूपेणोभय �ववतः
ृ स भामहोद्भटरुय्यकाद एनं केवलमथार्लङ्कारेष्
यत्तत्त्वमुपमे साध्यत स
गण
ु �क्रयाभ् नाम्न च िश्लष् तद�भधीयते सस (कालभा. 3.14)
भ�ू तं च वष
ृ ारूढ स एथ परमेश्वर जय�त सस (कालर. 10.8)
वाक्ये सप
ु ्र�स वक्रश्ल स �व�ेयः सस (कालर. 10.9)
नण
ृ ामपाङ्गे कृतश् कामस्तस्य करस्थ ननु मा�लकश्र सस (कालर. 10.15)
वाक्ये सप
ु ्र�स स �ेयोऽसम्भवश्लेषः (कालर. 10.16)
अबलेव वै�रसेना नप
ृ जन्य भज्यत भवता सस (कालर. 10.26)
रचय�ततरां स्वैराचारप्रवतर्नकत
क्रमेणात्रोपस्था उदाहरणा�न स
मोहात्समा��प� जी�वतमप्यकाण्
�नणर्य� स यथाक्रममत्रोपस्थाप्य स
उच्छलद्भू�रक�ल शश
ु ुभे वा�हनीप�तः सस (चन्द. 5.63)
�वश्वनाथादयश रुय्यकमूर�कुर स
अयमैन्दमख
ु ं पश् रक्तश्चुम् चन्द्र सस (चन्द. 5.62)
मम्मटस् - अभवन ् वस्त सम्बन उपमा प�रकल्पक स (काप.स.ू 149) इ�त ल�णं
प्रथमस्योदाहर - कोऽत भ�ू मवलये जनान ् मुधा तापयन ् स�ु चरमे�त सम्पदम स
असम्भवद्वस्तु�नदश पन
ु द्र्�व - एकवाक्यग, अनेकवाक्यग च स
आथ� - "क् सय
ू ्प्र
र वंशः क् चाल्प�वषय म�तः स
संभवन्वस्तुसंबन - एकवाक्यगत -
शैलशख
े रगतो दृषत्कणशरुमारुतधु पतत्यध सस" (काप.उ. 438)
अिग्नश तमनह
ु रतः स दण्ड - अप्रस्तुतप् स्यादप्रक्रा या स्तु�त सस (काद. 2.340)
मक
ु ्त् सल�लहं सं �वक�सतकमलोज्ज्व सरः सरसम ् स
बकलु�लतजलं पल्वलम�भलष� सखे न हं सोऽ�स सस (कालर. 8.75)
�चत्रस्थानवल शन्यवलभावेकैकमाभाषत
ू सस" (काप.उ. 440)
ड़. सामान्य - "एतत्तस मख
ु ाित्कय त कम�लनीपत् कणं वा�रणो
यन्मुक्ताम�ण�रत्यम स जडः शणृ ्वन्यदस्मा स
अङ्गुल्यग्रलघु�क्रयाप्र�वल�यन् शनैः
"पस्त्वाद
ंु प्र�वचले य�द यद्यधोऽ� यायात् य�द प्रणय न महान�प स्यात स
युज्ये प्र�तकतुर् न पन
ु स्तस्य पादग्र स
�ीणेनैतदनिु ष्ठत य�द ततः �कं लज्जस नो मनाक्
उभयरू - "अन्तिश्छद् भय
ू ां�स कण्टक बहवो ब�हः स
कथं कमलनाभस् मा भव
ू न ् भङ्गुर गण
ु ाः सस" (?)
धमर्सूरेलर्� मम्मटमनुसर� -
अङ्गुल्यग्रलघु�क्रयाप्र�वल�यन् शनै-
ततीयो
ृ यथा - पश्याम �क�मयं प्रपद इ�त स्थैय मयालिम्बत
�कं मां नालपतीत्यय खलु शठः कोपस्तयाप्या�श स
इत्यन्योन्य�वल�दृिष्ट तिस्मन्नवस्थान
अन्योिक्तनाम पथ
ृ गललङ्कारमस प्र�तपादय, अतः मम्मटस
मम्मटमतेनास भेदाः -
सामा सामण्मपआवइण रेह िच्च ण होई सस (काप.उ. 450) (अन्य त सौकु माय� .. स)"
स्वच्छन् सख
ु ं जनस् वसतिश्चन्तानलोद्दी स
यथेवान�भधानेऽ�प गण
ु साम्यप्रती� सस (कालभा. 2.34)
स भोजः पन
ु ः उभयन्यासम अथार्न्तरस्या�भ स्वीकुवार एनां तत्र गताथर्य� स
मम्मटमते - प्र�तवस्तू तु सा सस
�वनावन्तीन �नपण
ु ाः सद
ु ृश रतनमर्� सस" (?)
आवन्त एथ �नपण
ु ाः सद
ु ृश रतनमर्� सस (अस. 78)
पद्यस्या पव
ू ार्ध ल�णम ् उत्तराध चोदाहरणं प्रस्त स
तादृशमन् न्यस्येद पन
ु ः सोऽत दृष्टान सस (कालर. 8.94)
(�बम्बप्�बम्बभाव, वाक्यद्व)
साध�ये - "अ�व�दतगण
ु ाऽ�प सत्क�वफ�ण�त कण�षु वम�त मधुधाराम ् स
अन�धगतप�रमलाऽ�प �ह हर�त दृश मालतीमाला सस" (साद. 50 वतृ ्त)
साध�यं पथ
ृ गा�दष्ट स दृष्टान द्�वध मतः।। (सार. प.ृ 569)
मापाताल�नमग्नपीवरतनुजार्ना मन्थाचल स
देवीं वाचमप
ु ासते �ह बहवः सारं तु सारस्वत
जानीते �नतरामसौ गर
ु ुकुिक्लष मुरा�रः क�वः सस (अस. 79)
वाक्याथार्�न भय
ू िस्त्रधेत् भवेत् षोढा सस (कालर. 7.65)
�नद्रापहर जागरमप
ु शमय�त मदनदहनसन्तापम स
कारणमाला-सद्भा, ततीय
ृ -चतुथर-पञ्चमेष वास्तवसमुच्चय, षष्ठ जातेः (तत्र) स
अमते
ृ न धुनीधवस्त्व नरनाथ भुवन�मदम ् सस
संचारपत
ू ा�न �दगन्तरा� कृत्व �दनान्त �नलयाय गन्तुम स
साधूनामप
ु कतु� ल�मीं धतु� �वहायसा गन्तुम स
न कुतह
ू �ल कस् मनश्च�रत च महात्मना श्रोतु सस (अस. 77)
उदाहरणन्त्वत्रैवोत् सिन्न�हतम स
धमर्सू�रस् द्र-गण
ु -�क्रयाण सद्भा �त्र�व, तेषामभावे पन
ु िस्त्र�वध�
रुय्य पन
ु रेनं पथ
ृ गलङ्कार स्वीचका स एतत्कृत ल�णं यथा -
पव
ू ्स
र पव
ू ्स्योत्
र तरोत्तरगुणाव मालाद�पकम ् स (अस. 55)
धमर्सू�रस्त्व शङ्खलान्यायमूलक
ृ े अलङ्कारेष गणय�त स उत्तरोत्तरभा -
�नयतानां सकृद्धम सा पन
ु स्तुल्ययो�ग स (काप.स.ू 158)
अमत
ृ ममतर
ृ िश्मरम्बुज प्र�तहतमेकप तवाननस् सस" (काप.उ. 461)
प्राकर�णकान गण
ु ा�भसम्बन्धत् - योगपट् जटाजालं तारवी त्वङ्मृगािजन स
अप्राकर�णकान गण
ु ा�भसंबन्धत्व - त्वदङ्गमादर द्रष् कस् �चत्त न भासते स
मालतीशशभल
ृ ्लेखाकदल�ना कठोरता सस (अस. 73)
�क्रया�भसंबन्धत यथा - धावत्त्वदश्वपृतनाप� मख
ु ेऽस्
�न�नर्द्रनीलन�लनच्छदकोमला स
भग्नस गज
ू ्रनृपस
र रजः कया�प
अत प्रकृतान रामगण
ु क�त�नां द्रव्यगुणकमर् तदभावरूपैश धम�ः षड्�भरौपम् गम्यत स
प्रा �नःसत
ृ जीवना हृ� �ववद्धौवार्िग
ृ ्न�चन्त स
रुद्रटम भेदान्तरम -
यो गण
ु उपमाने तत् प�रपन्थ च दोष उपमेये स
उदाहरणं यथा -"शैला इवोन्नता सन्त �कं तु प्रकृ�तकोमल स" (चन्द. 5.59)
आथ� - "अकलङ्क मख
ु ं तस्य न कलङ्�क�वधूपम म स" (तत्र वतृ ्त)
आ��प्त - "मख
ु ं तस्य जयतीन्दु कलङ्�कनम स"
आथ� - "अकलङ्क मख
ु ं तस्य न �वधूपमम ् स"
आ��प्त - "अकलङ्क मख
ु ं तस्य जयतीन् दुम स"
उभयानक
ु ्त शाब्द - "मख
ु ं तस्य न �वधुयर्थ स"
आथ� - "मख
ु ं तस्य न �वधूपमम ् स"
आ��प्त - "मख
ु ं तस्य जयतीन् दुम स"
अ�तगाढगण
ु स्यास नाब्जवद्भङ् गण
ु ाः" सस (काप.उ. 466)
आथ� - "अ�तगाढगण
ु स्यास नाब्जाभ भङ्गुर गण
ु ाः स" (साद. 53 वतृ ्त)
आ��प्त - "अ�तगाढगण
ु स्यास न गण
ु ा अब्जभङ्गुर स" (तत्र वतृ ्त)
आ��प्त - "अस् न गण
ु ा अब्जभङ्गुर स"
आथ� - "अ�तगाढगण
ु स्यास नाब्जाभ गण
ु ाः स"
आ��प्त - "अ�तगाढगण
ु ः सोयं गण
ु ैः अब्ज जय�त स"
उभयानक
ु ्त शाब्द - "अस् नाब्जव गण
ु ाः" स
आ��प्त - "एध गण
ु ैः अब्ज जय�त स"
यथा - "हनम
ू दाद्यैयर्श मया पन
ु द्र्�वष हसैदर ्तपथ
ू �सतीकृतः स" (तत्र वतृ ्त)
मालाव्य�तरेक - (तुल्याथ व�तः, �वषमादयश् िश्लष्ट)
यथ गणया�म गण
ु ानहमलमथवासत्प्रला� �धङ्माम स
कप्रूर कदल�मण
ृ ालवलयान्यम्भोिजनीपल्ल स
�ण�मह �वश्र सखे �नदर ्यहृदय �कं वदाम्यथव सस" (साद. 64 वतृ ्त)
क�रष्याम्ये नो पन
ु �र�त भवेदभ्युपगम स
�ारो मण
ृ ालवलया�न कृतान्तदन्त स
सा नन
ू माः �कमथवा हतजिल्पते सस (अस. 148)
तथे�त पव
ू ्व
र �वशेषप्र�तपत् स
दम्भो�लनाप्यलमयंय तत्प्रत स्वग�ऽप्य ननु मुधा य�द तत्पुर सा सस (अशे. प.ृ 37)
�नहतातुल�त�मरभरः स्फारस्फुरदुरुतरप्रभ स
- हेतुरूप�क्रया�नषेधे फलप्रकाशन
अनक
ु ्त - "अनायासकृशं मध्यमशङ्कतर दृश स अभष
ू णमनोहा�र वपुभार्� मग
ृ ीदृश सस" (तत्र वतृ ्त)
रुय्यक यथा - कारणाभावे कायर्स्योत्पित्त�वर् सस (अस. 41)
असंभत
ृ ं मण्डनमङ्गयष्टेरनासवा करणं मदस् स
उदाहरणन्त्वत सिन्न�हतम स
अनक
ु ्त - "ध�ननोऽ�प �नरुन्मा युवानोऽ�प न चञ्चला स
हरता�प तनुं यस् शंभुना न बलं हृतम सस" (तत्र वतृ ्त)
पन
ु ः �चन्त्या�चन्त्य द्�व�वधे� कृत्व समुदायेन �त्र�व स
पन
ु र�प तत्प्र�तबद्धा तत्स्य यथासङ्ख्य सस (कालर. 7.34)
त��वगण
ु ं �त्रगु वा बहूष�ू द्दष्ट जायते रम्यम स
�त्रगुणोदाहरण - कज्जल�हमकनकरु सप
ु णर्हंसवृषवाहना शं वः स
द्वयोबर्हुगुणोदाहरण - दुग्धोद�धशैलस् सप
ु णर्वृषवाहन घनेन् दुरु स
तापं च संमदरसं च र�तं च पुष्णन शौय�ष्मण च �वनयेन च ल�लया च सस" (काप.उ. 477)
सकल�मदं सख
ु दुःखं भव�त यथावासनं तथाह�ह स
पव
ू ्वद�भधा
र ैक
य �वशेषसामान्ययोद्र्�वत तु स
अनुकूलतया �ह नण
ृ ां सकलं स्फुटम�भमतीभव� सस (कालर. 8.83)
हृदये �नव्ताना
रृ भव�त नण
ृ ां सवर्मे �नव्तय
रृ स
"हनम
ु ानतरदÏब् दुष्कर �कं महात्मनाम स" (?)
असंजात�कणस्कन् सख
ु ं स्व�प� गौगर्�ल सस" (काप.उ. 480)
हनम
ु ानिब्धमतर दुष्कर �कं महात्मनाम सस (चन्द. 5.68)
उदाहरणन्त्वत सुस्पष्ट स
अत्रेन्द्रनील�भ गह
ु ासु शैले सदा सुवेलाख्य स
बालमग
ृ लोचनायाश्च�रत�मद �चत्र यदसौ माम ् स
तेजिस्वन गह
ृ �तं मादर ्वमुपया� पश् लोहम�प स
न मदु
ृ न क�ठन�मदं मे हतहृदय पश् मन्दपुण्याय स
यद्�वरहानलतप् न �वलयमप
ु या�त न च दाढयर्म सस (कालर. 9.42)
2. गण
ु ेन जा�तः - �गरयोऽप्यनुन्न�तयु मरुदप्यचलोऽब्धयोऽप्यगम् स
पांसन
ू ां पटलैः प्रसाधन�व�ध�नर्वर् कौतुकम ् सस (काप.उ. 484)
4. द्रव् जा�तः - सज
ृ �त च जग�ददमव�त च संहर�त च हेलयैव यो �नयतम ् स
5. गण
ु ेन गण
ु ः - सततं मस
ु लासक्त बहुतरगह
ृ कमर्घटनय नप
ृ ते स
6. �क्रय गण
ु ः - पेशलम�प खलवचनं दह�ततरां मानसं सतत्त्व�वदा स
परुषम� सज
ु नवाक्य मलयजरसवत् प्रमोदय सस (काप.उ. 487)
7. द्रव् गण
ु ः - क्रौञ्चा�द्ररुद्दामद यन्मागर्णानगर्लशातप स
अभन्नव
ू ाम्भोजदला�भजा स भागर्व सत्यमपूवर्सग सस (काप.उ. 488)
पन
ु जर्न्मन्यिस्मन्ननु यो न गतवान ् स
�ववेकप्रध्वंसादुप�चतमहामोहग
�श्रतोऽस्मा�भस्तृष्णातर�लतमनो�भजर् स
दशभेदान ् स्वीकुरु स
�शशम
ु गु ्धयुव�तकातर�तयर्क्सम्भ्रान्तह�नप स
कृतमख
ु वाद्य�वकारा क्र�डि स�ु नभर्र �डम्भा सस (कालर. 7.32)
घासग्रासा�भलाषादनवरतचलत्प्रोथतुण्डस
रुय्यको ब्रू - स�
ू मवस्तुस्वभावयथावद्वण स्वभावोिक् इ�त स (अस. 79)
पषृ ्ठिश्लष्यदवामनस्तनभरोत्सेधाङ्कपा-
यस्त्या तनुतेतरां मख
ु शतैरेत्या�श्रता �श्र
तष्यत्पान्थजनोपकारघटनावैमुख्यलब्
ृ -
अद्याप्युव�वलय�त श्याम�लम्नानु�लप-
दण्ड पन
ु ः द्वयो गण
ु योः स्थान एके गण
ु े क�थतेऽ�प सहोिक्तमूर�कुरु स
औपम्यमूलकालङ्कारे पथ
ृ क्तय रुद्र सहोिक्तरल��त, यथा -
सा �ह सहोिक्तयर्स् प्र�सद्धदूरा�धक योऽथर् स
मधुपानोद्धतमधुकरमदकलकलकण्ठद��पतोत्क स
सहो�कं ◌्त स्वीकरो� स (अस. 29) स तदेतस्य भेदाः क्रम �नरुप्यन स (तत्र वतृ ्त)
एवमेव �वद्याना-�वद्याध-धमर्सू�रप्रमु स
तुह सह
ु अ �वओए तीय उिव्विग्गर सह अ तणुलताए दुब्बल जी�वदासा सस (काप.उ. 495)
अमतद्यु�तसुन्दराश
ृ योऽ सह
ु ृद तेन �वना नरेन्द्रसू सस (काप.उ. 497)
सा द्�वध �वनोिक्त स तत्राद यथा - �वनयेन �वना का श्र का �नशा श�शना �वना स
द्�वतीय यथा - मग
ृ लोचना �वना �व�चत्रव्यवहारप्र�तभाप्र स
अमतद्यु�तसुन्दराश
ृ योऽ सह
ु ृद तेन �वना नरेन्द्रसू सस (अस. 95)
लतानामेतासाम�ु दतकु सम
ु ानां मरुदय मतं लास्य दत्व शय�त भश
ृ मामोदमसमम ् स
प्रकारान्त रुय्यकमेवानुकरो स
भा�वभष
ू णसम्भारा सा�ात्कुव तवाकृ�तम ् सस (काप.उ. 500)
चन्द्रालोककारस् सं�वधानमेतत्सहकृतमे स
34. काव्य�लङ्ग - (हेतुः) रुद्र - हेतुमता सह हेतोर�भधानमभेदकृद भवेद यत स
नमन ् मक
ु ्त सम्प्रत्यहमतनुरग्रेऽप्य
हा सोपानपरम्परा �ग�रसुताकान्तालयालङ्कृ�त स
रुय्यकोऽप मम्मटमेवानुकरो� स
तण
ृ ान्यङ्कुरयाम �वप�नप
ृ सद्म सस (चन्द. 5.70)
मक
ु ्ता के�ल�वसत
ू ्रहारग�लत सम्माजर्नी�भहृर
यद �वद्वद्भवन भोजनप
ृ तेस्तत त्यागल�ला�यतम सस (काप.उ. 505)
37. समच
ु ्चय - रुद्रटम - यत्रैकत्रा वस्त परं शयात् सख
ु ावहाद्ये स
�ेयः समच
ु ्चयोऽस त्रेधान सदसतोय�गः सस (कालर. 7.19)
क्रम उदाहरणा�न -
सौधतलं काव्यकथ सह
ु ृद िस्नग् �वदग्धाश सस (कालर. 7.21)
तरलत्वममा�लन् प�मलतामाय�तं सम
ु ाधुयर्म स
क्व�चद� रूपव� गण
ु ा जग�त सन
ु ीतं �वधातु�रदम ् सस
व्य�धकरण वा यिस्मन गण
ु �क्र चैककालमेकिस्मन स
औपम्यमूलकालङ्कारे पथ
ृ गयं रुद्र प�रग�णतः, ल�णं च -
सोऽयं समच
ु ्चय स्याद्यत्रानेक एकसामान्य स
अथ मम्मटकृत समच
ु ्चयल�णम -
सरो �वगतवा�रजं मख
ु मन�रं स्वाकृते स
नप
ृ ाङ्गणगत खलो मन�स सप् शल्या� मे सस अत सदसद्योग स (काप.उ. 509)
जयदेवस्या�भधान यथा - भय
ू सामेकसम्बन्धभाज गुम्फ समच
ु ्चय स
38. समच
ु ्चय (अन्य) - मम्मट - स त्वन् युगपद या गण
ु �क्रय स (काप.स.ू 179)
अत �क्रययोय�गपद् स
अत गण
ु �क्रययोय�गपद् स
गण
ु �क्रयायौगपद समच
ु ्चय सस (अस. 66) स
सह�क्रय स
वस्त सख
ु ा�दप्रकृ �क्रय वान्य स पयार्य स (कालर. 7.44)
अधुना हृदयेऽप्य मग
ृ शावा�� ल�यते सस (काप.उ. 514) अत आरो�पतमेकत्वम स
तं ताण �स�रसहोअररअणाहरणिम् �हअअमेक्करसम स
सा धेनज
ु ्रत
र नदिन् क�रणामेता घनाभा घटाः स
स �ुद् मस
ु लध्व�न कल�मदं सङ्गीतक यो�षताम ्
कु शाङ्कुरादानप�र�ताङ्गु� कृतोऽ�सत
ू ्रप् तया करः सस (अस. 201)
पद् मक
ु ्त् गता चन्द का�मनीवदनोपमा सस (चन्द. 5.93)
�वश्वनाथस् मम्मटे पथ
ृ क् पथ
ृ क् व्यवस्था�पतयोरुभयो पयार्ययोलर्�
वल�षु तस्या स्ख�लता प्रपे�द �चरेण ना�भं प्रथमोद�बन् सस (तत्र वतृ ्त)
�वधानवणर्न वोदाहरणा�न -
�वसषृ ्टरागादधरािन्नव�तर, स्तनाङ्गरागादरुण कन् दुकात स
कु शाङ्कुरादानप�र�ताङ्गु� कृतोऽ�सत
ू ्रप् तया करः सस (तत्र वतृ ्त)
ययोरारो�पतस्तार हारस्तेऽ�रवधूजनै स
एकस् अनेकत क्रमेण वतर्नाद्�वशेषा, �व�नमयाभावाच् प�रवतृ ्तेरस भेदः इत्य� तत्र स
41. अनम
ु ानम ् - रुद्र - वस्त परो�ं यिस्मन साध्यमुपन्य साधकं तस् स
पन
ु रन्यदुपन्यस् �वपर�तं चैतदनम
ु ानम ् सस (कालर. 7.56)
उदाहरणम ् - साव�माग�मष्यनन
् ू प�ततोऽ�स पादयोस्तस्य स
मम्मटे - अनम
ु ानं तदुक्त यत् साध्यसाधकयोवर् सस (काप.स.ू 182)
तच्चक्र�कृतचापमिञ्चतशरप्रेङ्खत
तद्यथ - साध्-साधन�नद�शोऽनम
ु ानम ् स (अस. 58)
तदनस
ु ारमनम
ु ान�मदं क�वकिल्पतवै�च�य शुद्धञ्च द्�वध व्यप�दश्य स
क्रम एतयोरुदाहरण यथा - यथा रन्ध व्योम्नश्चलजलदध स्थगय�
तच्चक्र�कृतचापमिञ्चतशरप्रे क्रोध
चन्द्रालोककारेणाप्यतदनुक
े स तत्कृत सं�वधानं यथा -
अनम
ु ानं च कायार्दे कारणाद्यवधारणम स
सततम�नव्तमानसमाया
रृ ससहस्रसङ्कटिक् स
अत्यन्तमसहमानामुरुशक्तीनाम�नघ्नवृत् स
जयदेवस्त्वेतद�भमतम समथर्य� स
शैलेन्द्रप्र�तपाद्यमान�ग�रजाहस्तोपग-
रोमाञ्चा�द�वसंष्ठुलाखल�व�धव्यासङ्गभङ ्ग स
44. प�रसङ्ख् - रुद्रटम - पषृ ्टमपृष् वा सद्गुणा� यत् कथ्यत क्व�चत तुल्यम सस
उदाहरणा�न - �कं सख
ु मपारतन्�य �कं धनम�वनाश-�नमर्ल �वद्य स
�कमाराध्य पण
ु ्य �कम�भलषणीयं च करुण यदासक्त् चेतो �नरव�ध�वमक
ु ्त् प्रभव सस
(काप.उ. 521)
�कं भष
ू णं सद
ु ृढम यशो न रत्न �कं कायर्मायर्च�र सुकृ तं न दोषः स
गण
ु प्रकष जनोऽनुरज्यत जनानुरागप्रभ �ह सम्पद सस (काप.उ. 525)
रुय्यकस् मम्मटमेवानुकरो� स
अन्योन्यशोभाजननाद्व साधारणो भष
ू णभष्यभाव
ू सस (अस. 180)
उत्तरवचनश्रवणादुन् यत पव
ू र वचनानाम ् स
जाव लु�लआलअमह
ु � घरिम् प�रसक्क सोण्ह सस (काप.उ. 528)
48. स�
ू मम ् - रुद्रटम - यत्रायुिक्तम गमय�त शब्द �नजाथर्सम्बन् स
वक्त्रस्यिन्दस्वद�ब
े नद
् ुप्रब �भन्न कुङ्कुम का�प कण्ठ स
पस्त्
ुं तन्व् व्यञ्जयन वयस्य िस्मत् पाणौ खड्गलेखा �ललेख सस (काप.उ. 530)
(काप.उ. 531)
तच् स�
ू म�मङ्�गताकाराभ्य द्�व�वधम स उदाहरणमनयोः "संकेतकालमनस�म"त्या�
इङ्�गताकारल�येऽथ स�
ू म�म�त प्रथमवाग् (कान.ु प.ृ 43)
उदा. - अद्या� तन्मन� सम्प् वतर्त मे रात् म�य �ुतव�त ���तपालप�ु या स
संल��तस्त स�
ू मोऽथर आकारेणेङ्�गते वा स
कया�प सच
ू ्यत भङ्ग् यत स�
ू मं तदुच्यत सस (साद. 10.91)
वक्त्रस्यिन्दस्वद�ब
े नद
् ुप्रब �भन्न कुङ्कुम का�प कण्ठ स
पस्त्
ुं तन्व् व्यञ्जयन वयस्य िस्मत् पाणौ खड्गलेखा �ललेख सस
तदा�प सारालङ्कारमूर�करो� स
मथ्ना� यया यन
ू ां मनां�स समाकृष् सस (कालर. 7.101)
मम्मटमतेनेदमुदाहरणम अ�तशयोक्ते एकस् प्रकार स्यात स
दोषस् गण
ु ीभावे उदा. - हृदय सदैव येषामन�भ�ं गण
ु �वयोगदुःखस् स
धन्यास् गण
ु ह�ना �वदग्धगोष्ठ�रसापेत सस (कालर. 7.102)
कायर्त गण
ु दोष�वपयर्य लेश इ�त प्रथमवाग्भटक ल�णम ् स गण
ु स् दोषीभावे,
दोषस् गण
ु ीभावे चासौ तथैवोदाहर�त स
अङ्गान्यसंगतान यन
ू ां हृ� वधर्त कामः सस (कालर. 9.49)
- �भन्नदेशतयात्यन कायर्कारणभूतयो स
सा क्लान् जघनस्थले गर
ु ुण गन्तु न शक्त वयं
दातुः �शल्पा�तशय�नकषस्थानमे मग
ृ ा�ी रूप देवोऽप्ययमनुपम दत्तपत स्मरस स
यिन्नम्बान प�रणतफलस्फ��तरास्वादनी
सममौ�चत्यतोऽनेकवस्तुसम्बन्धवण स
अनर
ु ूप कृतं सद हारेण कु चमण्डलम सस (चन्द. 5.81)
उदा. - श�शनमप
ु गतेयं कौमुद� मेघमक
ु ्त जल�न�धमनर
ु ूप जह्नुकन्यावतीण स
इ�त समगण
ु योगप्रीतयस पौराः श्रवणक नप
ृ ाणामेकवाक्य �वववर् सस
अ�रक�रकुम्भ�वदारणरु�धरारुणदारुण खग्डात स
�वरूपकाय�त्पित्त �वषमम ् -
वाराण�स त्व� तु मक
ु ्तकलेवराणा लाभोऽस्त मल
ू म�प यात्यपुनभर्व सस (अस. 172)
�वरूपसंघटनारू �वषमम ् -
क् मक
ु ्ताहारोऽय क् च स पतगः क्वेयमबल स
�वषमं यद्यनौ�चत्यादनेकान्वयकल् स
फल�मदमहो मयाप्त सख
ु ाय मग
ृ लोचनां दृष्ट सस (कालर. 7.55)
गण
ु �क्रयाभ् कायर्स कारणस् गण
ु �क्र स
�शर�षाद�प मद्वङ्
ृ केयमायतलोचना स
मद�वभ्रमासकल पपे पन
ु ः स पुरिस्त्रयैकतमयै दृश सस (काप.उ. 541)
�वरूपकायार्ऽनथर्योरुत्पिरूपसंघटन च �वषमम ् सस (अस. 45)
वाराण�स त्व� तु मक
ु ्तकलेवराणा लाभोऽस्त मल
ू म�प यात्यपुनभर्व सस (अस. 172)
क् मक
ु ्ताहारोऽय क् च स पतगः क्वेयमबल स
अंहो ल्लाहस ङए मल
ू ाओ �वच्छेइ जाआ सस (अस. 174)
�वषमं यद्यनौ�चत्यादनेकान्वयकल् स
गण
ु ौ �क्र वा चेत् स्याता �वरुद हेतुकायर्यो सस (साद. 10.69)
यत्राधा सम
ु हत्याधेयमविस्थ तनीयोऽ�प स
अहो �वशालं भप
ू ाल भुवन�त्रतयोदर स मा�त मातुमशक्योऽ� यशोरा�शयर्द ते सस (काप.उ. 542)
त्क्वाप्य धराधराधरजलाधाराव�धवर्तर् स
ष्टंकारध्व�नरायर्बालच�रतप्रस्तावना� स
द्राक्पयर्स्तकपालसंपुट�मलद्ब्रह्मा-
अ�धकं बोध्यमाधारादाधेया�धकवणर्न स
आश्रयाश्र�यणोरेकस्या�धक्यऽ�धक
े स (साद. 10.72)
उदा. - �कम�धकमस् ब्रू म�हमानं वा�रधेहर्�रयर स
भोज स्त प्रत्यन �वरोधं चा�भन्न मनुते स प्रत्यन यद्य� भव�त �वरोधे
(अत �व�धमख
ु ेन �नद�शः)
नाकु सम
ु स्तरुरिस्मन्नुद नामधू�न कु सम
ु ा�न स
न षट्पदोऽस न जुगुञ् यः कलं न गिु ञ्जत तन् जहार यन्मन सस (काप.उ. 549)
यथापव�
ू परस् �वशेषणतया स्थापनापोहन एकावल� सस (अस. 54) इ�त रुय्य स
जयदेवस् - गह
ृ �तमक
ु ्तर�त्यथर्श्रे�णरे मता स
नत
े ् कणार्न्त�वश्र कण� दोम्
ूर लदो�लन सस (चन्द. 5.88)
धमर्सू�र पन
ु �रत्थ ल�य�त - �वशेषणं पव
ू ्पूवर्स्
र योत्तरोत्तरम स
भभ
ू न्ना
ृ मयरू ाः स्मरन्त् कृष्णसपार्णा सस (कालर. 8. 110)
पश्यन् दयन्त
ू घनसमयाशङ्कय हं साः सस (कालर. 8.88)
तुज् मह
ु े ण �कसोद�र चन्द उव�मज्ज जणेण सस (काप.उ. 554)
अहमेव गर
ु ु सुदारुणाना�म� हालाहल तात मा स् दृप् स
उदाहरणा�न तु मम्मटस्य स
प्र�सद्धस्योपमानस्यो प्रकल्प स
इत्युपमानस्योमेयत्वकल्पनायास्तिन्नष्फ क्रमेणोदाहर स
उदा. - अहमेव गर
ु ु सुदारुणाना�म� हालाहल तात मा स् दृप् स
�सततरदन्तपत्रकृतवक् रु�चरामलांशुका स
शशभ�ृ त �वततधािम् धवलय�त धराम�वभाव्यता गताः
�प्रयवस� प्रयाि सख
ु मेव �नरस्त�भयोऽ�भसा�रका सस (काप.उ. 557)
पद्माकरप्र�वष् मख
ु ं नाल�� सभ
ु ्रुवा सस (चन्द. 5.34)
उदा. - मिल्लका�चतधिम्मल्लाश्चारुचन्दनच स
अ�वभाव्या सख
ु ं यािन् चिन्द्रकास्व�भसा� सस (तत्र वतृ ्त)
�दवमप्युपयातानामाकल्पमनल्पगुण येषाम ् स
रमयिन् जगिन् �गरः कथ�मह कवयो न ते वन्द्य सस (कालर. 9.6)
�ल�खतं बालमग
ृ ा�या मम मन�स तया शर�रमात्मीयम स
�दवमप्युपयातानामाकल्पमनल्पगुण येषाम ् स
स्फुरदद्भुतरूपमुत्प्रत त्वा सज
ृ तानवद्य�वद्य स
�व�धना ससज
ृ े नवो मनोभभु
ू ्�
र सत्य स�वता बह
ृ स्प�तश सस (काप.उ. 561)
तस् पन
ु स्त् भेदाः स ते यथा -
�दवमप्युपयातानामाकल्पमनल्पगुण येषाम ् स
एकस्यानेकगोचरत्वर �वशेषः -
गतेऽ�प सय�
ू द�पस्थास्तमिश्छन् तत्करा सस (चन्द. 5.85)
यदाधेयमनाधारमेकं चानेकगोचरम ् स
करुण �वमख
ु ेन मतृ ्युन हरता त्वा थ् �कं न मे हृतम सस (तत्र वतृ ्त)
असमानगण
ु ं यिस्मन्न�तबहलगुण वस्तुन वस्त स
मम्मटे - स्वमुत्सृ गण
ु ं योगादत्युज्ज्वलगु यत् स
�व�भन्नवणा गरुडाग्र सय
ू ्स
र रथ्या प�रतः स्फुरन्त स
रत्नै पन
ु यर् रुच रुच स्वामा�निन्य वंशकर�रनीलैः सस (काप.उ. 563)
राअभ�रए �व �हअए सह
ु अ �ण�हत्त ण रत्तो� सस (काप.उ. 564)
राजहं स यथ सैव शभ
ु ्र चीयते न च न चापचीयते सस (काप.उ. 565)
उदाहरणन्त मम्मटानुगतम स
मदु
ृ त्व मे हेतुः सुभग भवता गन्तुम�धक
न मद्व
ृ सोढा यद्�वरहकृतमायासमसम म स (तत्र वतृ ्त)
अत पव
ू ार्ध परस्पर�नरपे� यमकानप
ु ्रा, उत्तराध च तथा�वधे एथ
उपमोत्प्र संसÏृ ष् प्रयोजय स
अत अनप
ु ्रा यमकं चान्योन्य�नरपे स
यथाक्रममेतेषामुदाहरणा
प�रप्रेङ्खत्ताराप�रकरकपालाङ्�
राज�त तट�यम�भहतदानवरासा�तपा�तसारवनदा स
गजता च यय
ू म�वरतदानवरा सा�तपा�त सारा वनदा सस (काप.उ. 572)
नयनानन्ददायीन्दो�बर्म्बम प्रसीद स
मुरा�र�नगर्त नन
ू ं नरकप्र�तपिन् स
तवा�प मÐ
ू ध् गङ्गे चक्रधा प�तष्य� सस (अस. 276)
�वषमानम
ु ानद�पकप�रकरप�रविृ त्तप�रसङ्ख् सस (कालर. 7.11)
स�
ू मं लेशोऽवसरो मी�लतमेकावल� भेदाः सस (कालर. 7.12)
पश्यन्त भव�त मह
ु ु �नर्तरा म�लना मख
ु च्छाय सस (कालर. 7.39)
म�दरामदभरपाटलम�लकुलनीलालका�लधिम्मल्ल स
म�तस्त्वेषास्म कु चयुगतट�चुम्बन�शल
73. पव
ू ्म
र - भामह-दिण्-मम्मटा�द�भनार्यमलङ्क �नरू�पत स
रुद्रटेना�तशयमूलकालङ्कारे पथ
ृ क्तय अयं �नरू�पत स
यत्रा�तप्रब �वव�यते पव
ू ्मे
र जन्यस स
गर
ु ुर�नवारप्र पश्चान्मदनान ज्वल� सस (कालर. 9.4)
अवार्चीनस्याथर पथ
ृ ग�भधानं पव
ू ्म
र इ�त वाग्भटप्रथ ल�णम ् स भवभतेः
ू
मग
ृ ं मग
ृ ाङ्क सहजं कलङ्क �वभ�तर तस्यास् मख
ु ं कदा�चत् स
आहायर्मेव मग
ृ ना�भपत्र�मयानशेष तयो�वर्शेष सस (कालर. 8.108)
रुद्रटम - यत्रा�तप्रब गण
ु ः समाना�धकरणमसमानम ् स
एको �ह दोषो गण
ु सिन्नपात �नमज्जतीन्द �करणेिष्ववाङ् सस
इ�त क�लदासीयं �हमालयवणर्नमस उदाहर�त स (कान.ु प.ृ 43)
प्रकृ अप्रकृत आरोपो भव�त स रूपक रूपारोप, प�रणामे तु कायार्रो इ�त भेदः स
ती�वा भते
ू शमौ�लस्रजममरधुनीमात्मन ततीय
ृ -
नर�संहक�व-नरेन्द्रप्रभसू�र �नरू�पत स
बहु�भब्हुधोल्लेखादेकस्योल्ले
र मता स
�ातभेद
ृ �नबन्धन यथा - �प्रय इ�त गोपवध�भः
ू �शशु�र�त वद्धैरध
ृ इ�त देवैः स
धमर्सूरेलर्�ण - -
मक
ु ्तानामप्यवस्थ के वयं स्मर�कङ्कर सस (तत्र वतृ ्त)
पशप
ु �तर�प तान्यहा� कृच्छ्रादगमयद�द्रसुतासमाग स
दुःखीय�त सख
ु हेतोः को मढ
ू ः सेवकादन्य सस (तत्र वतृ ्त)
जयदेवस्त - �वकल्पस्तुल्यबलयो�वर्रोधश्चातुर स