Professional Documents
Culture Documents
मयमतम््नामक्ग्रंथमे्संपर्
ू ्ण वास्तुशास्रकी चचाण्की्गयी्है ।्संपर्
ू ्ण वास्त्ु ननमाणर्मे्
इस्ग्रंथको्प्रमार््माना्गया्है ।
मयमतम्-्अध्याय्१
असरु राज्’मय’्के्मयमतम्ग्रंथमे्ववद्वानों, दे वों्एवं्मनष्ु योंके्संपर्
ू ्ण भवनलक्षर्ोंका्
om
वर्णन्प्रस्तुत्ककया्है।
संग्रहाध्याय
मङ्गलाचरण
सवणस्व्के्ज्ञाता, संसार्के्स्वामी्दे वता्को्ससर्झुका्कर्प्रर्ाम्करने्के्पश्चात्मैं्(मय)्ने्
s.c
उनसे्(वास्तुशास्र्से्सम्बन्धित)्प्रश्न्ककया्एवं्उनसे्पयाणप्त्शास्र-श्रवर््करने्के्पश्चात्
क्रमानुसार्उस्शास्र्का्उपदे श्करता्हूूँ्॥१॥
दे वों्एवं्मनुष्यों्के्सभी्प्रकार्के्वास्तु्आदद्(भूसम, भवन्एवं्उपस्कर्आदद)्के्ववद्वान्
ok
स्थपनत्मय्मुनन्सुख्प्रदान्करने्वाले्सभी्प्रकार्के्वास्तु्के्लक्षर््का्उपदे श्करते्हैं्॥२॥
ग्रन्थविषयसच
ू ना
वास्तक
ु ायण्के्प्रारन्म्भक्चरर््में ्प्रथमतः्ध्यातव्य्तथ्य्है ्-्सवणप्रथम्भसू म्एवं्भवन्के्प्रकार्
Bo
जाती्है ्।्वास्तद
ु े वों्का्बसलकमण्ववधि्(ककस्दे वता्की्पज
ू ा्ककस्सामग्री्से्की्जाय, यही्
बसलकमण्ववधि्है )्से्पज
ू न्ककया्जाता्है ्।्तत्पश्चात्नगर्आदद्में ्ववववि्प्रकार्के्ग्रामों्का्
लक्षर््एवं्उनके्ववधयास्का्वर्णन्ककया्गया्है ्(इसी्भाूँनत्नगर-योजना्पर्भी्ववचार्ककया्
गया्है )्॥४॥
इसके्पश्चात्इस्ग्रधथ्में ्भल
ू म्ब्(गह
ृ ्के्तल), गभण-ववधयास, उपपीठ्एवं्गह
ृ ्के्अधिष्ठान्के्
लक्षर्ों्का्वर्णन्ककया्गया्है ्॥५॥
भवनननमाणर््के्प्रसङ्ग्में ्स्तम्भों्का्लक्षर्, गह
ृ ्की्प्रस्तारववधि, भवन्के्ववसभधन्अङ्गों्की्
आपस्में ्सन्धिं्एवं्भवन्के्सशखरों्के्लक्षर््वर्र्णत्है ्॥६॥
भवन्के्तलों्के्प्रसङ्ग्में ्(ववशेषतः्मन्धदरननमाणर््में )्एक्तल्का्वविान.्दस
ू रे ्तल्का्
वविान, तीसरे ्तल्का्वविान्एवं्चतथ
ु ्ण तल्आदद्का्वविान्लक्षर्ों-सदहत्वर्र्णत्है ्॥७॥
इसके्पश्चात्गह
ृ -ववधयास-मागण, गह
ृ प्रवेश, राजगह
ृ ्का्वविान्एवं्द्वारववधयास्का्लक्षर््वर्र्णत्है ्
॥९॥
तदनधतर्यान्के्लक्षर्, शयन्के्लक्षर्, सलङ्ग्(दे वसलङ्ग)्एवं्उनके्पीठ्के्लक्षर््एवं्उसके्
अनुरूप्उधचत्कमण्की्ववधि्वर्र्णत्है ्॥१०॥
om
दे वालय्के्प्रसङ्ग्में ्मूनतण्के्लक्षर्, दे वता्एवं्दे ववयों्के्प्रमार््का्लक्षर्, नेरों्के्उधमीलन्की्
ववधि्क्रमानुसार्संक्षेप्में ्वर्र्णत्है ्॥११॥
इनत्मयमते्वास्तुशास्रे्संग्रहाध्यायः्प्रथमः
ok
मयमतम्-्अध्याय्२
असरु राज्’मय’्के्मयमतम्ग्रंथमे्ववद्वानों, दे वों्एवं्मनष्ु योंके्संपर्
ू ्ण भवनलक्षर्ोंका्
Bo
वर्णन्प्रस्तुत्ककया्है।
िस्तुप्रकार
44
आवास्एवं्भूसम्के्प्रकार्-्अमर्(दे व)्एवं्मरर्िमाण्(मनुष्य)्जहाूँ्जहाूँ्ननवास्करते्हैं,
ववद्वज्जन्उसे्वस्तु्(वास्तु)्कहते्है ्।्उन्ननवासस्थलों्के्भेदों्का्मैं्(मय्ऋवष)्वर्णन्करता्
हूूँ्॥१॥
वास्तु्चार्प्रकार्के्होते्हैं्-्भूसम, प्रासाद्(दे वालय), यान्एवं्शयन्।्इनमें ्प्रिान्वास्तु्भूसम्
ही्हैं; क्योंकक्शेष्इसी्से्उत्पधन्होते्हैं्॥२॥
प्रासाद्आदद्वास्तु्प्रिान्वस्तु्(वास्तु)्भूसम्से्उत्पधन्होने्एवं्उस्पर्आधश्रत्होने्के्कारर््
वास्तु्ही्है ्।्इसी्कारर््प्राचीन्आचायो्ने्इधहें ्वास्तु्की्संज्ञा्प्रदान्की्है ्॥३॥
(चारो्वास्तुओं्में ्प्रथमतः्प्रिान्वास्तु्पर्ववचार्करना्चादहये्।)्भवन-प्रासादादद्के्ननमाणर््के्
सलये्भूसम्की्परीक्षा्वर्ण्(रं ग), गधि, रस्(स्वाद), आकृनत, ददशा, शब्द्एवं्स्पशण्के्द्वारा्करनी्
चादहये्।्परीक्षा्के्पश्चात््ही्ननमाणर्कायण्की्आवश्यकता्के्अनस
ु ार्भसू म-ग्रहर््करना्चादहये्
॥४॥
भूममभेद
प्रत्येक्वर्ण्(ब्राह्मर्ादद)्के्अनस
ु ार्भसू म्का्वर्णन्ककया्गया्है ्।्इस्दृन्ष्ि्से्भसू म्क्रमशः्दो्
प्रकार्की्होती्है ्-्गौर््एवं्अङ्गी्(प्रिान)्॥५॥
भसू म्अङ्गी्होती्है ्तथा्ग्रामादद्गौर््के्अधतगणत्आते्है ्।्सभागार, शाला, प्रपा्(प्याऊ),
रङ्गमण्डप्एवं्मन्धदर्(प्रासाद्होते्है )्॥्६॥
इधहें ्प्रासाद्कहते्है ्।्सशबबका, धगन्ललका, रथ, स्यधदन्एवं्आनीक्को्यान्कहा्जाता्है ्॥७॥
शयन्के्अधतगणत्मञ्च्(ससंहासन), मन्ञ्चसलका्(ददवान), काष्ठ्(काष्ठ्के्आसन), पञ्जर्(वपंजरा),
om
फलकासन्(बेञ्च), पयणङ्क्(पलंग), बालपयणङ्क्आदद्ग्रहर््ककये्जाते्हैं्॥८॥
भूप्राधान्य्हे तु
उपयक्
ुण त्चारो्में ्प्रथम्स्थान्भूसम्का्कहा्जाता्हैं; क्योंकक्भूतों(पञ्च्महाभूतों)्में ्प्रथम्स्थान्
s.c
भूसम्का्है , संसार्की्न्स्थनत्इसी्पर्है ्एवं्यही्सबका्आिार्है ्॥९॥
िणाानुरूप्भूमम
ब्राह्मर्ो्के्सलये्प्रशस्त्भूसम्के्लक्षर््इस्प्रकार्है ्-्भूसम्चौकोर्(लम्बाई-चौड़ाई्का्प्रमार््
ok
सम)्हो, समट्िी्का्रं ग्श्वेत्हो, उदम्
ु बर्के्वक्ष
ृ ्से्(गूलर)्युक्त्हो्एवं्भूसम्का्ढलान्उत्तर्
ददशा्की्ओर्रहे ्॥१०॥
कषाय-मिरु ्स्वाद्वाली्भूसम्(ब्राह्मर्ो्के्सलये)्सुखद्कही्गयी्है ्।्क्षबरयों्के्सलये्श्रेष्ठ्
भूसम्के्लक्षर््इस्प्रकार्है ्-्भूसम्लम्बाई्में ्चौडाई्से्आठ्भाग्अधिक्हो, समट्िी्का्रं ग्
Bo
लाल्हो्एवं्स्वाद्में ्नतक्त्हो्॥११॥
पूव्ण की्ओर्ढलान्वाली, ववस्तत
ृ , पीपल्के्वक्ष
ृ ्से्समन्धवत्भूसम्पीपल्के्वक्ष
ृ ्से्समन्धवत्
भसू म्राजाओं्(क्षबरयों)्के्सलये्शभ
ु ्एवं्सवणदा्सभी्प्रकार्की्सम्पवत्त्प्रदान्करने्वाली्कही्
गई्है ्॥१२॥
44
भूमीपरीक्षा
दे वों्एवं्ब्राह्मर्ों्के्सलये्आयताकार्भसू म्भे्प्रशस्त्होती्है ्।्भसू म्की्आकृनत्अननधदनीय्
होनी्चादहये्एवं्उसे्दक्षक्षर््तथा्पन्श्चम्में ्ऊूँची्होनी्चादहये्॥१॥
भसू म, अश्व, गज, वेर्,ु वीर्ा, समद्र
ु ्(जल)्एवं्दधु दसु भ्वाद्य्की्ध्वनन्से्यक्
ु त्होनी्चादहये्तथा्
पध
ु नाग्(नागकेसर), जानत-पष्ु प्(चमेली), कमल, िाधय्एवं्पािल्(गल
ु ाब)्के्सग
ु धि्से्सव
ु ाससत्
om
होनी्चादहये्॥२॥
पश्ु के्गधि्के्समान्एवं्न्जस्पर्सभी्प्रकार्के्बीज्उगे, ऐसी्भसू म्श्रेष्ठ्होती्है ्।्भसू म्
एक्रं ग्की, सघन, कोमल्एवं्छूने्में ्सुख्प्रदान्करने्वाली्होनी्चादहये्॥३॥
न्जस्समतल्भूसम्पर्बेल, नीम, ननगण्
ुण डी, वपन्ण्डत, सप्तपर्णक्(सप्तच्छद)्एवं्सहकार्(आम)-ये्
छः्वक्ष
ृ ्हों्एवं्भूसम्समतल्हो्॥४॥
s.c
रं ग्मे्श्वेत, लाल, पीली्तथा्कपोत्के्समान्काली, स्वाद्मे्नतक्त, कड़वी, कसैली, नमकीन, खट्िी्
॥५॥
एवं्मीठी्-्इन्छः्स्वादोवाली्भूसम्सभी्प्रकार्की्सम्पवत्तयाूँ्प्रदान्करती्है ्।्रं ग, गधि्एवं्
ok
स्वाद्से्युक्त्न्जस्भूसम्पर्जलिारा्का्प्रवाह्दादहनी्ओर्हो, वह्भूसम्शुभ्होती्है ्॥६॥
(उत्खनन्करने्पर)्पुरुषाञ्जसल-प्रमार््(पुरुष-प्रमार्)्पर्जल्ददखाई्पड़े, मन्को्अच्छी्लगने्
वाली, कपालान्स्थ-ववहीन, कंकड़-पत्थररदहत, कीिों्एवं्दीमक्की्बाूँबी्आदद्से्ववहीन्॥७॥
हड्डी्आदद्से्रदहत, नछद्ररदहत, महीन्बालू्वाली, जले्कोयले, वक्ष
ृ ्के्मूल्एवं्ककसी्प्रकार्के्शूल्
Bo
से्रदहत्॥८॥
कीचड़.्िल
ू , कूप, काष्ठ, समट्िी्के्ढे ले्एवं्बालू, राख्आदद्से्तथा्भूसे्से्रदहत्॥९॥
ननन््य्भूमी
44
भूसम्सभी्वर्ण्वालों्के्सलये्शुभ्एवं्समद्
ृ धि्प्रदान्करने्वाली्होती्है ्।्जो्भूसम्दधि, घत
ृ ,
मि्ु (मद्य), तेल्तथा्रक्त्गधि्वाली्होती्है ्(वह्भी्प्रशस्त्होती्है ्)्॥१०॥
शव, मछली्एवं्पक्षी्के्गधि्वाली्भूसम्अग्राह्य्होती्है ्।्इसी्प्रकार्सभागार, चैत्य्(ग्राम्का्
प्रिान्वक्ष
ृ )्एवं्राजभवन्के्ननकि्की्भूसम्गह
ृ ननमाणर््की्दृन्ष्ि्से्त्याज्ज्होती्है ्॥११॥
दे वालय्के्ननकि, काूँिेदार्वक्ष
ृ ्से्युक्त, वत्त
ृ ाकार, बरकोर्, ववषम्(न्जसकी्आकृनत्असमान्हो),
वज्र्के्सदृश्(कई्कोर््वाली)्तथा्कछुये्के्समान्आकृनत्(बीच्मे्ऊूँची)्वाली्भूसम्
गह
ृ ननमाणर््के्सलये्प्रशस्त्नही्होती्है ्॥१२॥
न्जस्भूसम्पर्चाण्डाल्(शव्आदद्से्आजीववका्चलाने्वाले)्के्गह
ृ ्की्छाया्पड़े, चमण्द्वारा्
आजीववका्चलाने्वाले्के्गह
ृ ्के्पास, एक, दो, तीन्एवं्चार्मागो्पर्(एक-दो्राजमागो, नतराहे ्
एवं्चौराहे )्पर्न्स्थत्तथा्जहाूँ्ठीक्मागण्न्हों, ऐसे्स्थान्पर्गह
ृ -ननमाणर््प्रशस्त्नहीं्होता्
॥१३॥
मध्य्में ्दबी, पर्व्(ढोल्के्सदृश्एक्वाद्य), पक्षी, मरु ज्(एक्वाद्य)्तथा्मछली्के्समान्
आकार्की्भूसम्तथा्जहाूँ्चारो्कोनों्पर्महावक्ष
ृ ्लगे्हों, ऐसी्भूसम्गह
ृ ननमाणर््के्सलये्उधचत्
नहीं्होती्है ्॥१४॥
ग्रामादद्के्प्रिान्वक्ष
ृ , न्जसके्चारो्कोनों्पर्साल्वक्ष
ृ ्हों, सपण्के्आवास्के्ननकि्एवं्समधश्रत्
जानत्के्वक्ष
ृ ों्के्बाग्के्पास्की्भूसम्गह
ृ -ननमाणर््केल्सलये्अप्रशस्त्होती्है ्॥१५॥
श्मशान्के्क्षेर, आश्रमस्थान, बधदर्एवं्सुअर्के्आकार्की, वनसपण्के्सदृश, कुठार्की्आकृनत्
वाली, शूप्ण एवं्ऊखल्की्आकृनत्वाली्भूसम्त्याज्य्होती्है ्॥१६॥
शङ्ख, शङ्कु, ववडाल, धगरधगि्तथा्नछपकली्की्आकृनत्वाली, ऊसर्एवं्कीड़े्लगी्भूसम्गह
ृ ्
om
ननमाणर््के्सलये्त्याज्य्होती्है ्॥१७॥
इसी्प्रकार्अधय्आकृनत्वाली्भूसम, बहुत्से्प्रवेशमागण्वाली्एवं्मागण्से्ववद्ि्भूसम्ववद्वानों्
द्वारा्ननन्धदत्है ्॥१८॥
यदद्अज्ञानतावश्ऐसी्भूसम्पर्गह
ृ ्बन्भी्जाय्तो्इससे्महान्दोष्उत्पधन्होता्है ्।्अतः्
s.c
सभी्प्रकार्से्ऐसी्भूसम्का्पररत्याग्करना्चादहये्॥१९॥
सिोत्कृष्ट्भूमी
श्वेत, रक्त, पीत्एवं्कृष्र््वर्ण्वाली, अश्व्एवं्गज्के्नननाद्से्युक्त, मिरु ्आदद्छः्स्वादो्
वाली, एक्वर्ण्की, गो-िाधय्एवं्कमल्के्गधि्से्युक्त, पत्थर्एवं्भूसे्से्रदहत, दक्षक्षर््एवं्
ok
पन्श्चम्मे्ऊूँची, पूव्ण एवं्उत्तर्मे्ढलान्वाली, श्रेष्ठ्सुरसभ्के्सदृश, शूल्एवं्अन्स्थ्से्रदहत,
कर्द्(िल
ू , बालू्आदद)्रदहत्भूसम्सभी्के्सलये्अनुकूल्होती्है , ऐसा्सभी्श्रेष्ठ्मुननयों्का्
ववचार्है ्॥२०॥
Bo
44
मयमतम्-्अध्याय्४
असुरराज्’मय’्के्मयमतम्ग्रंथमे्ववद्वानों, दे वों्एवं्मनष्ु योंके्संपूर््ण भवनलक्षर्ोंका्वर्णन्प्रस्तत
ु ्ककया्है ।
भम
ू ीपररग्रह
भम
ू ीग्रहण्कर्त्ाव्य
ननमाणर्-हे त्ु भसु म्का्ग्रहर््-्आकार, रं ग्एवं्शब्द्आदद्गर्
ु ों्से्यक्
ु त्भसू म्का्चयन्करने्के्
पश्चात्बद्
ु धिमान्स्थपनत्को्दे वबसल्(वास्तद
ु े वों्की्पज
ू ा)्करनी्चादहये्।्इसके्पश्चात्॥१॥
वह्स्वन्स्तवाचक्घोष्एवं्जय्आदद्मंगलकारी्शब्दों्के्साथ्इस्प्रकार्कहे -राक्षसों्के्साथ्
दे वता्एवं्भत
ू ्(मानवेतर्प्रार्ी)्दरू ्हो्जायूँ्॥२॥
वे्इस्भसू म्से्अधयर्स्थान्पर्जाकर्अपना्ननवास्बनायें्।्हम्इस्भसू म्को्(गह
ृ ननमाणर्-
हे तु)्ग्रहर््कर्रहे ्हैं्।्इस्मधर्का्उच्चारर््करते्हुये्ग्रहर््की्गी्भूसम्पर्(अिोरे र्खत्कायण्
करना्चादहये)्॥३॥
उस्भूसम्में ्हल्चलवा्कर्गोबरसमधश्रत्सभी्प्रकार्के्बीजों्को्उसमें ्बो्दे ना्चादहये्।्उन्
बीजों्को्उगा्हुआ्एवं्उनमें ्पके्हुये्फल्दे ख्कर्-्॥४॥
वष
ृ भ्एवं्बछड़ो्के्साथ्गायों्को्वहाूँ्बसा्दे ना्चादहये; क्योंकक्गायों्के्वहाूँ्चलने्एवं्सूँघ
ू ने्
से्वह्भूसम्पववर्हो्जाती्है ्॥५॥
प्रसधन्वष
ृ ों्के्नाद्से्एवं्बछड़ों्के्मुख्से्धगरे ्हुये्फेन्से्भूसम्पररष्कृत्हो्जाती्है ्एवं्
om
उसके्सभी्दोष्िल
ु ्जाते्है ्॥६॥
गोमूर्से्सींची्गई्तथा्गोबर्से्लीपी्हुई, शरीर्रगड़ने्से्धगरे ्हुये्रोमों्से्युक्त्तथा्गायों्के्
पैरों्द्वारा्ककये्गये्खेल्से्भूसम्(शुद्ि्हो्जानत्है ।)्॥७॥
गाय्के्गधि्से्युक्त, इसके्पश्चात्पुण्यजल्से्पुनः्पववर्की्गई्भूसम्पर्(ननमाणर्कायण्के्
s.c
सलये)्शुभ्नतधथ्से्युक्त्नक्षर्का्ववचार्करना्चादहये्॥८॥
ववद्वानों्द्वारा्सुववचाररत्शुभ्करर्, मुहूत्ण एवं्सुधदर्लग्न्में ्अक्षत्एवं्श्वेत्पुष्पों्से्
वास्तुदेवों्का्पूजन्करना्चादहये्॥९॥
ब्राह्मर्ों्द्वारा्यथाशन्क्त्स्वन्स्तवाचन्कराना्चादहये्।्इसके्पश्चात्वास्तुक्षेर्के्मध्य्में ्
ok
पधृ थवीतल्की्खद
ु ाई्करनी्चादहये्॥१०॥
वास्तु्के्मध्य्मेख्एक्हाथ्गहरा, चौकोर, न्जसकी्ददशायें्ठीक्हों, दोषरदहत्गड्ढा्खोदना्
चादहये्।्यह्गड्ढा्सूँकरा्नहीं्होना्चादहये्तथा्न्ही्बहुत्गहरा्होना्चादहये्॥११॥
इसके्पश्चात्यथोधचत्ववधि्से्पज
ू ा्करके्तथा्उस्गड्ढे ्की्वधदना्करने्के्पश्चात्चधदन्
Bo
एवं्अक्षतसमधश्रत्तथा्सभी्रत््नों्से्यक्
ु त्जल्को-्॥१२॥
पयसा्त्ु ततः्प्राज्ञो्ननशादौ्पररपरू येत्।
बद्
ु धिमान््मनष्ु य्को्राबर्के्प्रारम्भ्में ्गड्ढे ्में ्डालते्हुये्उसे्जल्से्पर्
ू ्ण करना्चादहये्।्
इसके्पश्चात्पववर्होकर्साविान्मन्से्गड्ढे ्के्पास्भसू म्पर्कुश्बबछा्कर्पव
ू ्ण ददशा्की्
44
ओर्मख
ु ्करके्बैठ्जाना्चादहये्॥१३॥
उपवास्करते्हुये्इस्मधर्का्जप्करना्चादहये्।्मधर्इस्प्रकार्है -्हे ्पधृ थवी, इस्भसू म्पर्
उत्तम्समद्
ृ धि्स्थावपत्कर्इसे्िन-िाधय्से्वद्
ृ धि्प्रदान्करो्।्तुम्कलयार्कारी्बनो, तुम्हें ्
प्रर्ाम्॥१४-१५॥
उर्त्माददभम
ू ीलक्षण
बद्
ु धिमान्स्थपनत्को्ददन्होने्पर्प्रथमतः्उस्गड्ढे ्की्परीक्षा्करनी्चादहये्।्इसमें ्जल्
बचा्हुआ्दे ख्कर्सभी्प्रकार्की्सम्पवत्तयों्के्सलये्उस्भसू म्को्ननमाणर्हे त्ु ग्रहर््करना्
चादहये्॥१६॥
भसू म्यदद्गीली्रहे ्तो्उस्पर्ननसमणत्गह
ृ ्में ्ववनाश्होता्है ्।्यदद्शष्ु क्रहे ्तो्उस्गह
ृ ्में ्
िन-िान्की्हानन्होती्है ्।्यदद्उस्गड्ढे ्के्खोदने्से्ननकली्समट्िी्से्उसे्भरा्जाय्एवं्
परु ी्समट्िी्उसमें ्समा्जाय्तो्भसू म्को्मध्यम्श्रेर्ी्का्समझना्चादहये्॥१७॥
यदद्समट्िी्से्गड्ढा्भर्जाय्एवं्समट्िी्बच्भी्जाय्अथाणत्समट्िी्अधिक्हो्तो्भूसम्उत्तम,
यदद्गड्ढा्भी्न्भरे ्एवं्समट्िी्समाप्त्हो्जाय्अथाणत्समट्िी्गड्ढा्भरने्में ्कम्पड़े्तो्भूसम्
हीन्कोदि्की्होती्है ्।्उस्गड्ढे ्के्मध्यमें ्यदद्जल्दादहनी्ओर्घूम्कर्बहे ्तो्इस्प्रकार्
की्सुरसभ्की्मूनतण्के्सदृश्वाली्भूसम्सवणसम्पवत्तकारक्होती्है ्॥१८॥
इसे्ननमाणर्-हे तु्ग्रहर््करना्चादहये्।्इस्प्रकार्पूवोक्त्ववधि्से्ववववि्प्रकार्की्भूसमयों्का्
ज्ञान्कर्व्यन्क्त्को्ग्राम, अग्रहार, पुर, पतन, खवणि, स्थानीय, खेि, ननगम्एवं्अधय्की्स्थापना्के्
सलये्भूसम्का्ग्रहर््करना्चादहये्॥१९॥
om
मयमतम्-्अध्याय्५
असुरराज्’मय’्के्मयमतम्ग्रंथमे्ववद्वानों, दे वों्एवं्मनष्ु योंके्संपूर््ण भवनलक्षर्ोंका्वर्णन्प्रस्तत
s.c ु ्ककया्है ।
मानोपकरण
भसू म-मापन्के्उपकरर््-्सभी्प्रकार्के्वास्तओ
ु ्ं (भसू म्एवं्भवन)्का्ननिाणरर््मान्या्प्रमार््
ok
से्ही्ककया्जाता्है ; अतः्मैं्(मय्ऋवष)्संक्षेप्में ्मापन्के्उपकरर्ों्के्ववषय्में ्बतलाता्हूूँ्
॥१॥
(मापन्की्प्रथम्इकाई)्अङ्गल
ु -माप्परमार्ओ
ु ं्के्क्रमशः्वद्
ृ धि्से्होती्है ्।्परमार्ओ
ु ंका्
Bo
उपयुक्
ण त्माप्क्रमशः्आठ्गुना्बढ़ते्हुये्'यव' बनते्हैं्।्यव्का्आठ्गन
ु ा्'अङ्गुल' माप्होता्है्
।्बारह्अङ्गुल्माप्को्'ववतन्स्त' (बबत्ता)्कहते्है ्॥४॥
दो्ववतन्स्त्का्एक्'हस्त' होता्है , न्जसे्'ककष्कु' भी्कहा्गया्है ्।्पच्चीस्हाथ्का्एक्
'प्राजापत्य' होता्है ्॥५॥
छब्बीस्हाथ्की्एक्'िनुसमणष्ि' तथा्सत्ताईस्हाथ्से्एक्'िनुग्रह
ण ' माप्बनता्है ्।्यान्(वाहन)्
तथा्शयन्(आसन्एवं्शय्या)्में ्ककष्कु्माप्तथा्ववमान्में ्प्राजापत्य्माप्का्प्रयोग्होता्है ्
॥६॥
वास्तुननमाणर््में ्'िनुमन्ुण ष्ि' माप्का्तथा्ग्रामादद्के्मापन्में ्'िनुग्रह
ण ' प्रमार््का्प्रयोग्होता्है ्।्
अथवा्सभी्प्रकार्के्वास्तु-कमण्में ्'ककष्कु' प्रमार््का्प्रयोग्ककया्जा्सकता्है ्॥७॥
हस्त्माप्को्'रन्त््
न', 'अरन्त््न, 'भज
ु ', बाहु' एवं्'कर' कहते्हैं्।्चार्हस्त्से्'िनद
ु ण ण्ड' माप्बनता्है ्
।्इसी्को्'यन्ष्ि' भी्कहते्है ्॥८॥
आठ्दण्ड्(यन्ष्ि)्को्'रज्जु' कहा्जाता्है ्।्दण्डमाप्से्ही्ग्राम, पत्तन, नगर, ननगम, खेि्एवं्
वेश्म्(भवन)्आदद्का्मापन्करना्चादहये्॥९॥
गह
ृ ादद्का्माप्हस्त्से, यान्एवं्शयन्का्मापन्ववतन्स्त्(बबत्ता)्से्एवं्छोिी्वस्तुओं्का्
मापन्अङ्गुल्से्करना्चादहये, ऐसा्ववद्वानों्का्मत्है ्॥१०॥
'यव' माप्से्अत्यधत्छोिी्वस्तुओं्का्मापन्ककया्जाता्है ्।्यह्मध्यमा्अङ्गुसल्में ्बीच्
वाले्पवण्के्बराबर्)अङ्गुसल्के्मध्य्के्जोड़्के्ऊपर्बनी्यव्की्आकृनत्)्होता्है ्॥११॥
इस्माप्को्'माराङ्गुल' कहते्है ्।्इसका्प्रयोग्यज्ञ्में ्ककया्जाता्है ्एवं्यह्माप्यज्ञकताण्की्
अङ्गुसल्से्सलया्जाता्है ्।्इसे्'दे हलब्िाङ्गुल' भी्कहते्है ्॥१२॥
om
इस्प्रकार्माप्का्ज्ञान्करने्के्पश्चात्स्थपनत्को्दृढ़तापूवक
ण ्(साविानी्पूवक
ण )्मापनकायण्
करना्चादहये्।
मिल्पपलक्षण
संसार्में ्अपने-अपने्कायों्के्अनुसार्चार्प्रकार्के्सशलपी्होते्हैं्॥१३॥
s.c
चार्प्रकार्के्सशलपी्-्स्थवपती, सूरग्राही, विणकक्(बढ़ई)्एवं्तक्षक्(छीलने, कािने्एवं्आकृनतयाूँ्
उकेरने्वाले)्होते्हैं्।्ये्सभी्(स्थापत्यादद्कमण्के्सलये)्प्रससद्ि्स्थान्वाले, सङ्कीर्ण्जानत्से्
उत्पधन्एवं्अपने्कायो्के्सलये्असभष्ि्गुर्ों्से्युक्त्होते्हैं्॥१४॥
'स्थपनत' संज्ञक्सशलपी्को्भवन्की्स्थापना्में ्योग्य्एवं्(गह
ृ -ननमाणर््के्सहायक)्अधय्शास्रों्
ok
का्भी्ज्ञाता्होना्चादहये्।्शारीररक्दृन्ष्ि्से्सामाधय्से्न्कम्अङ्गो्वाला्तथा्न्ही्
अधिक्अङ्गो्वाला्(अथाणत्सम्पूर््ण रूप्से्स्वस्थ)्िासमणक्ववृ त्त्वाला्एवं्दयावान्होना्चादहये्
॥१५॥
Bo
तथा्सात्प्रकार्के्व्यसनों्(वाधचक्आघात्पहुूँचाना, सम्पवत्त्के्सलये्दहंसा्का्मागण्अपनाना,
शारीररक्चोि्पहुूँचाना, सशकार, जुआ, स्री्एवं्सुरापान्-अथणशास्र्-्८३.२३.३२)्से्रदहत्होना्
चादहये्॥१७॥
सूत्रग्राही
'सूरग्राही' स्थपनत्का्पुर्या्सशष्य्होता्है ्।्उसे्यशस्वी, दृढ़्मानससकता्से्युक्त्एवं्वास्तु-
ववद्या्मे्पारं गत्होना्चादहये्॥१८॥
सूरग्राही्को्स्थपनत्की्आज्ञानुसार्कायण्करने्वाला्एवं्(स्थापत्यसम्बधिी)्सभी्कायों्का्ज्ञाता्
होना्चादहये्।्उसे्सूर्एवं्दण्ड्के्प्रयोग्का्ज्ञाता्एवं्ववववि्प्रकार्के्मापन्मान-उधमान्
(लम्बाई, चौड़ाई, ऊूँचाई्एवं्उनके्उधचत्अनुपात)्का्ज्ञाता्होना्चादहये्॥१९॥
पत्थर, काष्ठ्एवं्ईि्आदद्को्मोिा्एवं्पतला्कािने्के्कारर््वह्सशलपी्'तक्षक' कहलाता्है ्।्
यह्सर
ू ग्राही्के्इच्छानस
ु ार्कायण्करता्है ्॥२०॥
विणकक्मवृ त्तका्के्कमण्(गह
ृ ननमाणर्)्का्ज्ञाता, गर्
ु वान, अपने्कायण्मे्समथण, अपने्क्षेर्से्
सम्बद्ि्सभी्कायो्को्स्वतधरतापूवक
ण ्करनेवाला, तक्षक्द्वारा्कािे ्छाूँिे्गये्सभी्िुकड़ों्को्
युन्क्तपूवक
ण ्जोड़्सकता्है ्॥२१॥
सवणदा्सूरग्राही्के्अनुसार्कायण्करने्वाला्सशलपी्'विणकक' कहा्जाता्है ्।्इस्प्रकार्ये्सभी्
सशलपी्कायण्करने्वाले, अपने्कायों्में ्कुशल, शुद्ि, बलवान, दयावान्होते्है ्॥२२॥
ये्सभी्सशलपी्अपने्गुरु्(प्रिान्स्थपनत)्का्सम्मान्करने्वाले, सदा्प्रसधन्रहने्वाले्एवं्
सदै व्स्थपनत्की्आज्ञा्का्अनुसरर््करने्वाले्होते्है ्।्उनके्सलये्स्थपनत्ही्ववश्वकमाण्माना्
जाता्है ्॥२३॥
om
उपयक्
ुण त्(सूरग्राही, तक्षक्एवं्विणकक)्सशन्लपयों्के्ववना्स्थपनत्(भवनननमाणर्सम्बधिी)्सभी्कायण्
नही्कर्सकता्है ्।्इससलये्स्थपनत्आदद्चारो्सशन्लपयों्का्सदा्सत्कार्करना्चादहये्॥२४॥
इस्संसार्में ्इन्स्थपनत्आदद्को्ग्रहर््ककये्ववना्कोई्भी्(ननमाणर्सम्बधिी)्सुधदर्कायण्
सम्भव्नही्है ्।्अतः्तीनों्सशन्लपयों्को्उनके्गुरु्(प्रहान्स्थपनत)्के्साथ्ग्रहर््करना्चादहये्
।्इसी्से्मनुष्य्संसार्(शीत, िप
करते्है ्॥२५॥
ू , वषाण्एवं्गह
s.c
ृ ्के्अभाव्में ्होने्वाले्कष्िों)्से्मुन्क्त्प्राप्त्
ok
मयमतम्-्अध्याय्६
असुरराज्’मय’्के्मयमतम्ग्रंथमे्ववद्वानों, दे वों्एवं्मनष्ु योंके्संपूर््ण भवनलक्षर्ोंका्वर्णन्प्रस्तत
ु ्ककया्है ।
Bo
ददक्पररच्छे द
ददशा-ननिाणरर््-्मैं्(मय)्ददशा्के्ननिाणरर््के्ववषय्में ्कहता्हूूँ्।्यह्कायण्उत्तरायर््मास्में ्
44
शुभ्शुक्ल्पक्ष्में ्सूयोदय्होने्पर्शङ्कु्द्वारा्करना्चादहये्॥१॥
शुभ्पक्ष्एवं्नक्षर्में ्सूयम
ण ण्डल्के्ननमणल्रहने्पर्ग्रहर््ककये्गये्वास्तु्के्मध्य्की्भूसम्
को्समतल्करना्चादहये्॥२॥
िङ्कुलक्षण
न्जस्स्थान्पर्शङ्कुस्थापन्करना्हो, उस्स्थान्से्चारो्ददशाओं्में ्दण्डप्रमार््से्चौकोर्ककये्
गये्भूखण्ड्को्जल्द्वारा्समतल्करना्चादहये्॥
उस्समतल्भूसम्के्मध्य्में ्शङ्कुस्थापन्करना्चादहये्।्अब्शङ्कु्के्प्रमार््का्वर्णन्ककया्
जा्रहा्है ्॥३॥
शङ्कु्का्लक्षर््इस्प्रकार्है ्-्यह्एक्हाथ्लम्बा्हो, शीषण्पर्इसका्माप्एक्अङ्गल
ु ्हो्तथा्
मल
ू ्भाग्में ्इसका्व्यास्पाूँच्अङ्गल
ु ्हो्।्इसकी्गोलाई्सध
ु दर्हो, ककसी्प्रकार्का्इसमें ्व्रर््
न्हो्अथाणत्इसका्काष्ठ्किा-फिा्न्हो्एवं्श्रेष्ठ्हो्॥४॥
(उपयक्
ुण त्माप्उत्तम्शङ्कुमान्का्है ।)्मध्यम्शङ्कु्अट्ठारह्अङ्गुल्लम्बा्एवं्कननष्ठ्शङ्कु्
बारह्या्नौ्अङ्गुल्लम्बा्होता्है ्।्लम्बाई्के्समान्ही्इसका्मूल्एवं्अग्र्भाग्में ्भी्माप्
रखना्चादहये्॥५॥
दधत्(मौलससरी), चधदन, खैर्या्कत्था, कदर, शमी, शाक्(सागौन)्एवं्नतधदक
ु ्(तें द)्के्वक्ष
ृ ्शङ्कु-
वक्ष
ृ ्कहलाते्है ्अथाणत्इनके्काष्ठ्से्शङ्कुननमाणर््करना्चादहये्॥६॥
इनके्अनतररक्त्कठोर्काष्ठ्वाले्वक्ष
ृ ों्से्भी्शङ्कु्ननमाणर््ककया्जा्सकता्है ्।्शङ्कु्का्अग्र्
भाग्धचरवत्त
ृ क्(दोषहीन्गोलाई)्होना्चादहये्।्शङ्कु्ननमाणर््के्पश्चात्प्रातःकाल्भूतल्के्पूव्ण
om
ननिाणररत्स्थल्पर्उसे्स्थावपत्करना्चादहये्॥७॥
शङ्कु्प्रमार््का्दग
ु ुना्माप्लेकर्शङ्कु्को्केधद्र्बना्कर्वत्त
ृ ्खींचना्चादहये्।्ददन्के्
पूवाणह्र््एवं्अपराह्र््में ्उस्मण्डलाकृनत्पर्शङ्कु्की्छाया्पड़ती्है ्॥८॥
उपयक्
ुण त्छायायें्न्जन-न्जन्बबधदओ
ु ं्पर्पड़ती्है , उन्बबधदओ
ु ं्को्सूर्से्समलाना्चादहये्।्इससे्
s.c
पूव्ण एवं्पन्श्चम्ददशा्का्ज्ञान्होता्है ्(पूवाणह्र््मे्जहाूँ्छाया्पड़ती्है , वह्पन्श्चम्ददशा्एवं्
अपराह्र््में ्जहाूँ्छाया्पड़ती्है , वह्पूव्ण ददशा्होती्है ्)।्पूवोक्त्बबधदओ
मछली्की्आकृनत्बनानी्चादहये्॥९॥
ु ्ं को्केधद्र्बनाकर्
दो्सूरों्को्बबधदओ
ु ं्के्केधद्र्में ्इस्प्रकार्रखना्चादहये्कक्वे्दक्षक्षर््से्उत्तर्तक्जायूँ्।्इसी्
ok
प्रकार्दस
ू रे ्सूर्को्उत्तर्से्दक्षक्षर््तक्ले्जाना्चादहये्।
कहने्का्तात्पयण्यह्है ्कक्एक्बबधद्ु को्केधद्र्बनाकर्चाप्की्आकृनत्उत्तर्से्दक्षक्षर््तक्
बनानी्चादहये्।्पुनः्दस
ू रे ्बबधद्ु को्केधद्र्बनाकर्दस
ू री्चापाकृनत्बनानी्चादहये्।्मण्डल्के्
दो्छोरों्पर्ये्चापाकृनतयाूँ्एक-दस
ू रे ्को्कािती्है ्।्इस्प्रकार्मत्स्य्की्आकृनत्बनती्है ्
Bo
॥१०॥
इन्सर
ू ों्से्बद्
ु धिमान्स्थपनत्उत्तर्एवं्दक्षक्षर््ददशा्का्ननिाणरर््करते्है ्।्(पव
ू ्ण के्बाूँयीं्और्
उत्तर्ददशा्एवं्दादहनी्ओर्दक्षक्षर््ददशा्होती्है ्।्इस्प्रकार्भसू म्में ्ददशा्का्ज्ञान्होता्है )।
44
अिु्ध्छाया -
जब्सूय्ण कधया्या्वष
ृ भ्रासश्में ्होता्है , उस्समय्सूय्ण की्अपच्छाया्नही्पड़ती्है ्(अथाणत्
इस्न्स्थनत्में ्शङ्कु्की्छाया्सीिे्पूव्ण और्पन्श्चम्ददशा्पर्पड़ती्है ्)्॥११॥
वििेष -
सूय्ण की्छाया्बारहो्महीनों्में ्एक्समान्नहीं्होती्है ्।्अतः्सूय्ण के्नक्षरों्के्सङ््क्रमर््के्
अनुसार्शुद्ि्रूप्से्पूवण्एवं्पन्श्चम्का्ननिाणरर््ककस्प्रकार्ककया्जाय्एवं्अपच्छाया्से्बचा्
जाय, इसका्उपाय्आगे्के्श्लोकों्में ्वर्र्णत्है ्।
मेष, समथन
ु , ससंह्एवं्तल
ु ा्रासश्में ्सय
ू ्ण के्रहने्पर्जहाूँ्शङ्कु्की्छाया्पड़े, उससे्दो्अङ्गल
ु ्
पीछे ्हि्कर्पव
ू ्ण एवं्पन्श्चम्का्ननिाणरर््करना्चादहये्।्न्जस्समय्सूय्ण ककण, वन्ृ श्चक्एवं्
मीन्रासश्पर्हो, उस्समय्अङ्गल
ु ्हि्कर्ददशाननिाणरर््करना्चादहये्॥१२॥
िनु्एवं्कुम्भ्पर्सूय्ण के्रहने्पर्छः्अङ्गुल्एवं्मकर्पर्आठ्अङ्गुल्हि्कर्शङ्कु्की्
छाया्के्दादहने्एवं्बाूँये्सुर्का्प्रयोग्करना्चादहये्॥१३॥
रज्जल
ु क्षण
माप-सर
ू ्का्लक्षर््-्रज्ज्ु अथवा्सर
ू ्को्आठ्दण्ड्लम्बा्होना्चादहये्।्इसका्ननमाणर््ताल,
केतक्के्रे श,े कपास, कुश्अथवा्धयग्रोि्(बरगद)्के्छाल्से्होना्चादहये्॥१४॥
दे वता, ब्राह्मर््एवं्राजा्(क्षबरय)्के्वास्तु-मापन्के्सलये्रज्ज्ु को्अङ्गल
ु ्के्अग्र्बाग्के्
om
बराबर्मोिा, तीन्बवत्तयों्से्ननसमणत्एवं्ववना्गाूँठ्का्बनाना्चादहये्।्वैश्य्एवं्शूद्र्के्सलये्
रज्जु्को्बवत्तयों्से्बूँिा्होना्चादहये्॥१५॥
खातिङ्कुलक्षण
गड्ढे ्में ्गाड़े्जाने्वाले्शङ्कु्का्लक्षर््-्गड्ढे ्में ्गाड़े्जाने्वाले्शङ्कु्न्जन्वक्ष
s.c ृ ों्के्काष्ठ्से्
बनते्है , उनके्नाम्है ्-्खददर, खाददर, महा, क्षीररर्ी्तथा्अधय्कठोर्काष्ठ्वाले्वक्ष
ृ ्॥१६॥
इसकी्लम्बाई्ग्यारह्अङ्गल
ु ्से्लेकर्इक्कीस्अङ्गल
ु ्तक्होनी्चादहये्एवं्व्यास्एक्मट्
ु ठी्
होना्चादहए्।्इसका्मूल्सई
ू ्की्भाूँनत्नक
ु ीला्होना्चादहये्॥१७॥
स्थपनत्पूव्ण या्उत्तर्की्ओर्मुख्करके्स्थापक्की्आज्ञा्से्बाूँयें्हाथ्में ्खातशङ्कु्लेकर्एवं्
ok
दादहने्हाथ्में ्हथौड़ा्लेकर्क्रमशः्आठ्बार्शङ्कु्पर्प्रहार्करे ्॥१८॥
सत्र
ू विन्यास
सर
ू ्को्भसू म्पर्फैलाना्-्चूँ कू क्इस्सूर्से्भवन-ननमाणर्सम्बधिी्कायण्में ्प्रमार््या्माप्
Bo
ननन्श्चत्ककया्जाता्है ; अतः्इसे्'प्रमार्सर
ू ' कहा्जाता्है ्॥१९॥
प्रमार्सर
ू ्के्कायणक्षेर्के्बाहर्के्चारो्ओर्के्क्षेर्का्न्जससे्मापन्ककया्जाता्है , उस्सर
ू ्को्
'पयणधत्सूर' कहते्है ्।्न्जस्सूर्से्ननन्श्चत्स्थान्का्ननिाणरर्, दे वताओम्के्पद्का्ननिाणरन्
तथा्वास्तुपद्का्ववधयास्ककया्जाता्है , उसे्'ववधयाससूर' कहते्है ्॥२०॥
44
गह
ृ ्के्दक्षक्षर््भाग्में ्गह
ृ ्का्गभण्होता्है , अतः्उसी्के्पास्से्सूरपात्प्रारम्भ्करना्चादहये्
॥२१॥
उस्सूर्से्शङ्कु्का्मान्लेते्हुये्शङ्कु्को्भूसम्में ्गाड़ना्चादहये्।्इसी्से्प्रवेशमागण्(अथवा्
गह
ृ ्से्बाहर्ननकलने्का्मागण)्या्सभवत्त-ननमाणर््के्सलये्मापन्करना्चादहये्॥२२॥
नगर, ग्राम्एवं्दग
ु ्ण के्मापन्के्सलये्सवणप्रथम्सूरपात्वायव्य्कोर््(उत्तर-पन्श्चम)्में ्करना्
चादहये्।्इसके्पश्चात्दक्षक्षर््से्उत्तर्तथा्पूव्ण से्पन्श्चम्सूरपात्करना्चादहये्।्॥२३॥
इसके्पश्चात्पन्श्चम्से्पूव्ण एवं्उत्तर्से्दक्षक्षर््तक्सूरप्रपात्करना्चादहये्।्न्जस्सूर्से्
ब्रह्मा्के्पद्से्प्रारम्भ्कर्पूव्ण ददशा्तक्मापन्ककया्जाता्है , उसे्'बरसूर' कहते्है ्॥२४॥
इसके्पश्चात्ब्रह्मस्थान्से्पन्श्चम्की्ओर्जाने्वाले्सर
ू ्को्'िन' दक्षक्षर््की्ओर्जाने्वाले्
सर
ू ्को्'िाधय' एवं्उत्तर्की्ओर्जाने्वाले्सर
ू ्को्'सख
ु ' कहते्है ्॥२५॥
न्जस्सर
ू ्से्सख
ु प्रमार््प्राप्त्होता्है , उसका्माप्यहाूँ्वर्र्णत्है ्।्बल्के्सलये्केधद्र्के्चारो्
ओर्मण्डप्के्व्यास्से्एक्हाथ, दो्हाथ्या्तीन्हाथ्की्दरू ी्लेते्हुये्उत्खनन्करना्चादहये्
॥२६॥
पन
ु रपच्छाया
पन
ु ः्दोषयक्
ु त्छाया्-्पव
ू ्ण एवं्पन्श्चम्के्ननिाणरर््के्सलये्प्रत्येक्माह्प्रत्येक्दस्ददन्के्
काल-खण्ड्मे्संख्याओं्का्संयोजन्इस्प्रकार्करना्चादहये-्सय
ू ्ण का्सङ््
क्रमर््मेष्रासश्मे्
होने्पर्दो, एक, शध
ू य; वष
ृ ्मे्होने्पर्शध
ू य, एक, दो; समथन
ु ्मे्होने्पर्दो, तीन, चार; ककण्मे्होने्
om
पर्चार, तीन, दो; ससंह्मे्होने्पर्दो, एक, शूधय; कधया्मे्होने्पर्शूधय, एक, दो; तुला्मे्होने्पर्
दो, तीन, चार; वन्ृ श्चक्मे्होने्पर्चार, पाूँच, छः; िन्ु मे्होने्पर्छ;, सात, आठ; मकर्मे्होने्पर्
आठ, सात, छः; कुम्भ्में ्होने्पर्छ;, पाूँच, चार्तथा्मीन्में ्होने्पर्चार, तीन्एवं्दो्॥२७॥
रासश्के्साथ्सूय्ण की्गनत्का्ववचार्एवं्युन्क्तपव
ू क
ण ्समीक्षा्करते्हुये्पूवोक्त्अङ्गुसलयों्को्
छोड़्दे ना्चादहये्।्इसके्अनुसार्सीमा्एवं्ददशा्आदद्का्शङ्कु्द्वारा्ग्रहर््करते्हुये्स्थान्
s.c
को्तैयार्करना्चादहए्॥२८॥
ok
मयमतम्-्अध्याय्७
असरु राज्’मय’्के्मयमतम्ग्रंथमे्ववद्वानों, दे वों्एवं्मनष्ु योंके्संपर्
ू ्ण भवनलक्षर्ोंका्
वर्णन्प्रस्तुत्ककया्है।
Bo
िास्तुपद-विन्यास्-
मैं्(मय्ऋवष)्सभी्वास्तुमण्डलों्के्पद्पद-ववधयास्का्वर्णन्करता्हूूँ्।
44
om
'ववशालाक्ष' मे्सात्सौ्चौरासी्पद्तथा्'ववप्रभन्क्तक' मे्आठ्सौ्इकतालीस्पद्होते्है ्॥१९॥
'ववश्वेशसार' मे्नौ्सौ्पद्एवं्'ईश्वरकाधत' मे्नौ्सौ्इकसठ्पद्होते्है ्॥२०॥
'इधद्रकाधत' पदववधयास्मे्एक्हजार्चौबीस्पद्होते्है ्।्ये्तधरशास्र्के्प्राचीन्ववद्वानों्के्मत्
है ्॥२१॥
सकल
s.c
प्रथम्वास्तुपद-ववधयास्मे्केवल्एक्पद्होता्है ्।्यह्यनतयों्के्सलये्अनुकूल्होता्है ्।्इसमे्
अन्ग्नकायण्होता्है ्एवं्इसमे्कुश्बबछाया्जाता्है ्।्इस्पर्वपतप
ृ ूजन, दे वपूजन्एवं्गुरुपूजन्का्
कायण्सम्पधन्होता्है ्।्इसके्चारो्ओर्खींची्गई्रे खाये्भानु, अककण, तोय्एवं्शसश्कहलाती्है ्
ok
॥२२॥
पेचक
Bo
महापीठ
महापीठ्पद-ववधयास्मे्सोलह्पद्होते्है ्एवं्इसमे्पच्चीस्दे वता्होते्है ्।्इन्पदो्मे्(ईशान्
कोर््से्प्रारम्भ्कर्क्रमशः)्दे वता्इस्प्रकार्होते्है ्-्ईश, जयधत, आददत्य, भश
ृ , अन्ग्न,
ववतथ, यम्॥२५॥
भङ्
ृ ग, वपत,ृ सुग्रीव, वरुर्, शोष, मारुत, मुख्य, सोम्एवं्अददनत्बाह्य्पदो्के्दे वता्कहे ्गये्है ्॥२६॥
अधदर्के्पदो्के्दे वता्आपवत्स, आयण, साववर, वववस्वान, इधद्र, समर, रुद्रज्एवं्भुिर्है ्।्केधद्र्मे्
ब्रह्मा्न्स्थत्होते्है , जो्सबके्स्वामी्कहे ्गये्है ्॥२७॥
उपपीठादी
उपपीठ्वास्तु-ववधयास्में ्वे्(पव
ू ोक्त)्दे वता्अपने्पदों्के्अनतररक्त्अपने्दोनो्पाश्वो्मे्एक-एक्
पद्की्वद्
ृ धि्प्राप्त्करते्हुये्न्स्थत्होते्है ्॥२८॥
बुद्धिमान्(स्थपनत)्को्चादहये्कक्उन्दे वो्के्दोनो्पाश्वो्मे्एक-एक्पद्की्वद्
ृ धि्तब्तक्
करे , जब्तक्इधद्रकाधत्पद्न्बन्जाय्॥२९॥
न्जन्वास्तु-ववधयासों्मे्सम्संख्या्मे्पद्हो, उधहे ्चौसठ्पद्वाले्वास्तु्के्समान्एवं्ववषम्
संख्या्मे्पद्हो्तो्इक्यासी्पद्वाले्वास्तु्के्समान्(दे वों्को)्रखना्चादहये्॥३०॥
सभी्वास्त-ु ववधयासों्मे्मण्डूकसंज्ञक्वास्तुपद-्ववधयास्सभी्ननमाणर्-कायो्के्सलये्उपयुक्त्होता्
है ; क्योंकक्यह्(तान्धरक)्ववधि्पर्आिाररत्होता्है ्॥३१॥
इससलये्मै्(मय्ऋवष)्तधरों्से्संक्षेप्में ्ववषय्ग्रहर््कर्सकल्एवं्ननष्कल्चौसठ्एवं्इक्यासी्
om
दो्पदववधयासों्का्वर्णन्करता्हूूँ्॥३२॥
(उपयक्
ुण त्दोनो्पदववधयासो्मे)्वास्तुपद्के्मध्य्मे्ब्रह्मा्आदद्दे वता्स्थावपत्ककये्जाते्है ्।्
ईशान्कोर््से्प्रारम्भ्कर्पथ
ृ क-पथ
ृ क्स्थावपत्ककये्जाने्वाले्दे वता्का्यहाूँ्वर्णन्ककया्जा्
रहा्है ्॥३३॥
दै ितस्थान
s.c
वास्तुदेवों्के्स्थान्-्(ईशान्कोर््से्प्रारम्भ्करते्हुये्दे वता्इस्प्रकार्है ्-)्ईशान, पजणधय,
जयधत, महे धद्रक, आददत्य, सत्यक, भश
ृ ्तथा्अधतररक्ष्॥३४॥
(आग्धये्कोर््से्नैऋत्य्कोर््के्दे वता्इस्प्रकार्है )-्अन्ग्न, पूषा, ववतथ, राक्षस, यम, गधिवण,
ok
भङ्
ृ गराज, मष
ृ ्तथा्वपतद
ृ े वता्॥३५॥
(पन्श्चम्से्वायव्य्तक्तथा्उत्तर्के्दे वता्इस्प्रकार्है )्दौवाररक, सुग्रीव, पुष्पदधत, जलाधिप्
(वरुर्), असुर, शोष, रोग, वायु्एवं्(उत्तर्ददशा्मे)्नाग्॥३६॥
Bo
दक्षक्षर्-पन्श्चम्(नैऋत्य्कोर्)्मे्इधद्र्एवं्इधद्रराज्तथा्पन्श्चमोत्तर्(वायव्य्कोर्)्मे्रुद्र्एवं्
रुद्रजय्दे वता्कहे ्गये्है ्॥३९॥
मध्य्मे्न्स्थत्ब्रह्मा्शम्भु्है ्तथा्अयण, वववस्वान्समर्एवं्भि
ू र्-्ये्चार्दे वता्उनकी्ओर्मख
ु ्
करके्न्स्थत्होए्है ्॥४०॥
ईशान्आदद्चारो्कोर्ों्के्बाहर्क्रमशः्चार्स्री-दे वताओं-चरकी, ववदारी, पत
ू ना्एवं्पापराक्शसी्की्
स्थापना्होनी्चादहये्।्ये्चारो्ववना्पद्के्ही्बसल्(वास्त्ु के्ननसमत्त्हववष)्ग्रहर््करती्है ्।्
शेष्दे वो्का्पद्कहा्गया्है ्॥४१॥
इस्प्रकार्इक्यासी्संख्याओ्का्एक्पद्वास्तच
ु क्र्मे्मण्डलदे वताओं्का्होता्है , न्जसका्वववरर््
अग्रसलर्खत्है -्२०्+्७्+्६्+्६्+्६्+६्+्६्+्१२्+्४्+्८्=्८१्अथाणत्खड़ी्और्पड़ी्
दश-दश्रे खायें्होने्से्इक्यासी्पद्का्वास्तच
ु क्र्सम्पधन्होता्है ्॥४२॥
चौसठ्पद्वाले्मण्डूक्पद्मे्मध्य्के्चार्पद्मे्ब्रह्मा्होते्है ्॥४३॥
मण्डूकपद
(ब्रह्मा्के्पश्चात्उनके्चारो्ओर०्आयणक्आदद्चार्दे वता्(आयण, वववस्वान, समर, भूिर)्पूव्ण से्
आरम्भ्होकर्तीने-तीन्पद्मे्न्स्थत्होते्है ्।्आप्आदद्आठ्दे वता्(आप, आपवत्स, सववधद्र,
साववधद्र, इधद्र, इधद्रराज, रुद्र्एवं्रुद्रजय)्ब्रह्मा्के्चारो्कोर्ों्मे्आिे-आिे्पद्मे्प्रनतन्ष्ठत्होते्है्
॥४४॥
महे धद्र, राक्षस, पष्ु प्एवं्भललािक्-्ये्चारो्दे वता्ददशाओं्मे्(क्रमशः्पव
ू ,ण दक्षक्षर्, पन्श्चम्एवं्पव
ू ्ण
मे)्दो-दो्पद्के्भागी्बनते्है ्॥४५॥
जयधत, अधतररक्ष, ववतथ, मष
ृ , सग्र
ु ीव, रोग, मख्
ु य्एवं्ददनत्को्एक-एक्पद्प्राप्त्होता्है ्॥४६॥
om
शेष्बचे्ईश्आददआठ्दे वता्(ईश, पजणधय, अन्ग्न, पूषा, वपतद
ृ े वता, दौवाररक, वायु्एवं्नाग)्कोर्ों्पर्
आिा-आिा्पद्पाप्त्करते्है ्।्इस्प्रकार्मण्डूक्वास्तुपद्मे्दे वताओं्को्स्थान्प्राप्त्होता्है ्
॥४७॥
अपने-अपने्क्रम्से्ये्सभी्दे वता्बाूँये्से्दादहने्पदो्मे्न्स्थत्होते्है ्।्सभी्दे वगर््ब्रह्मा्को्
दे खते्हुये्अपने-अपने्पदों्मे्स्थान्ग्रहर््करते्है ्॥४८॥
s.c
िास्तप
ु रु
ु षविधान
वास्तप
ु रु
ु ष्की्रचना्-्वास्तु-परु
ु ष्ननकुब्ज्पव
ू ्ण की्ददशा्मे्ससर्ककये्वास्तभ
ु सू म्पर्न्स्थत्होता्
है ्।्उसके्छः्वंश्(अन्स्थयाूँ), चार्ममणस्थल, चार्ससरायें्एवं्एक्ह्रदय्होते्है ्॥४९॥
ok
उस्वास्तुपुरुष्के्ससर्आयणकसंज्ञक्दे वता्होते्है ्।्सववधद्र्दादहनी्भुजा्एवं्साववधद्र्कक्ष्होते्है ्
॥५०॥
आप्एवं्आपवत्स्कक्षसदहत्वाम्भुजा, वववस्वान्दक्षक्षर््पाश्वण्एव्महीिर्वाम्पाश्वण्बनते्है ्
Bo
॥५१॥
वास्तुपुरुष्का्मध्य्शरीर्ब्रह्मा्से्ननसमणत्होता्है ्एवं्समर्उसके्पुरुषसलङ्ग्होते्है ्।्इधद्र्एवं्
इधद्रराज्वास्तुपुरुष्के्दक्षक्षर््पाद्कहे ्गये्है ्॥५२॥
रुद्रं ्एवं्रुद्रजय्इसके्वाम्पद्है ्एवं्वह्अिोमुख्होकर्भूसम्पर्सोता्है ्।्इसके्छः्वंश्
44
पुनमाण्डूकपद
पन
ु ः्मण्डूक-्पदववधयास्-्वास्तु-मण्डल्मे्४५्दे वता्होते्है ्।्मण्डूकसंज्ञक्वास्तम
ु ण्डल्में ्चौंसठ्
पद्होते्है ्।्केधद्र्मे्ब्रह्मा्के्चार्पद्होते्है ्।्ब्रह्मा्की्ओर्मख
ु ्ककये्चार्दे वों्के्तीन-तीन्
पद, सोलह्दे वों्के्आिे-आिे्पद, आठ्दे वों्के्एक-एक्पद्एवं्सोलह्के्दो्पद्होते्है ्॥५६-५७॥
परमशायी्वास्तु-मण्डल्मे्ब्रह्मा्को्नौ्पद्प्राप्त्होते्है ्।्उनकी्ओर्मुख्ककये्चारो्दे वों्को्
छः-छः्पद, कोर््मे्न्स्थत्दे वो्को्दो-दो्पद्एवं्बाहर्न्स्थत्सभी्दे वो्को्एक-एक्पद्प्राप्त्
होता्है ्॥५८॥
om
मयमतम्-्अध्याय्८
असरु राज्’मय’्के्मयमतम्ग्रंथमे्ववद्वानों, दे वों्एवं्मनष्ु योंके्संपर्
ू ्ण भवनलक्षर्ोंका्
वर्णन्प्रस्तुत्ककया्है।
बमलकमा
s.c
अपने-अपने्वास्तप
ु द्में ्न्स्थत्वास्तद
ु े वों्का्बसलकमण्(पज
ू ा्एवं्नैवेद्य)्होना्चादहये्।्इनका्
बसलकमण्सामाधय्आहत्य्मागण्(प्रत्येक्दे वता्के्अनस
ु ार्पज
ू ा्एवं्नैवेद्य)्से्करना्चादहये्।्
ok
बसलकमण्में ्ब्रह्मा्आदद्दे वों्की्क्रमानस
ु ार्पज
ू ा्करनी्चादहये्॥१॥
आहत्यबमल
पज
ू न-सामग्री्एवं्नैवेद्य्-्बसलकमण्मे्दे वों्को्इस्प्रकार्क्रम्दे ना्चादहये्-्ब्रह्मस्थान्की्
Bo
पज
ू ा्गधि, मालय, िप
ू , दि
ू , मि,ु घी्खीर्एवं्िान्के्लावा्से्करनी्चादहये्॥२॥
(इसके्पश्चात्ब्रह्मा्के्चारो्ओर्न्स्थत्दे वोंकी्पज
ू ा्होती्है ।)्आयणक्का्बसलकमण्फलननसमणत्
भोज्य्पदाथण, उड़द्एवं्नतल्से्करना्चादहये्।्वववस्वान्को्दधि्एवं्समरक्को्दव
ू ाण्प्रदान्
करना्चादहये्॥३॥
44
महीिर्को्दि
ू ्प्रदान्करना्चादहये्।्इस्प्रकार्वास्तम
ु ण्डल्के्भीतर्केधद्रस्थ्दे वों्का्बसलकमण्
सम्पधन्होता्है ्(इसके्पश्चात्बाह्य्कोष्ठों्के्दे वों्का्बसलकमण्होता्है ्।)्पजणधय्को्घी्एवं्
ऐधद्र्को्पुष्पसदहत्नवनीत्प्रदान्करना्चादहये्॥४॥
इधद्र्को्कोष्ठ्एवं्पुष्प, सूय्ण को्कधद्एवं्मि,ु सत्यक्को्मि्ु तथा्भश
ृ ्को्नवनीत्प्रदान्
करना्चादहये्॥५॥
आकाश्को्उड़द्एवं्हरताल, अन्ग्न्को्दि
ू , घी्एवं्तगरपुष्प्तथा्पूषा्को्सशम्बाधन्(तरकारी)्
एवं्पायस्प्रदान्करना्चादहये्॥६॥
ववतथ्को्पका्हुआ्कङ्कु, राक्षस्को्मददरा, यम्को्तरकारी्एवं्र्खचड़ी्तथा्गधिवण्को्
सुगन्धि्बसलरूप्मे्प्रदान्करना्चादहये्॥७॥
भङ्
ृ गराज्को्समद्र
ु ्की्मछली, मष
ृ ्को्मछली्एवं्भात, ननऋनत्को्तेल्में ्पका्वपण्याक्(वपण्डी्
या्मदु ठया)्तथा्दौवाररक्को्बीज्की्बसल्दे नी्चादहये्॥८॥
सग्र
ु ीव्को्लड्डू, पष्ु पदधत्को्पष्ु प्एवं्जल, वरुर््को्दि
ू ्एवं्िाधय्(अधन)्तथा्असरु ्को्रक्त्
प्रदान्करना्चादहये्॥९॥
शोष्को्नतलयुक्त्चावल, रोग्को्सूखी्मछली, वायु्को्चबी्एवं्हररद्रा्(हलदी)्तथा्नाग्को्
मद्य्एवं्लावा्प्रदान्करना्चादहये्॥१०॥
मुख्य्को्अधन्का्चर्
ू ्ण (आिा), दधि, एवं्घत
ृ , भललाि्को्गुड़्में ्पका्भात्एवं्सोम्को्दि
ू -
भात्प्रदान्करना्चादहये्॥११॥
मग
ृ ्को्शुष्क्मांस, दे वमाता्अददनत्को्लड्डू, उददनत्को्नतल-भोज्य्एवं्ईश्को्दि
ु ्में ्पका्
अधन्एवं्घत
ृ ्को्बसलरूप्में ्चढ़ाना्चादहये्॥१२॥
om
लावा्एवं्िाधय्सववधद्र्को, सुगन्धित्जल्साववधद्र्को, बकरी्का्मेद्एवं्मूँग
ू ्का्चर्
ू ्ण इधद्र्एवं्
इधद्रराज्को्प्रदान्करना्चादहये्॥१३॥
रुद्र्एवं्रुद्रजय्को्मांस्तथा्चबी, आप्एवं्आपवत्स्को्कुमुदपुष्प, मछली्का्मांस, शङ्ख्
(शङ्ख्के्मध्य्न्स्थत्मांस)्एवं्कछुये्का्मांस्प्रदान्करना्चादहये्॥१४॥
चरकी्को्मद्य्एवं्घत
s.c
ृ , ववदारी्को्लवर्, पूतना्को्नतल्एवं्वपष्ि्तथा्पाप-राक्षसी्को्मूँग
सत्त्व्प्रदान्करना्चादहये्॥१५॥
ू ्का्
साधारणबमल
सामाधय्रूप्से्सभी्दे वों्को्प्रदान्की्जाने्वाली्बसल्इस्प्रकार्है -्सािारर््बसल्घत
ृ ्के्
ok
सदहत्शुद्ि्भोजन्एवं्दधि्है ्।्सभी्दे वों्को्क्रमशः्गधि्आदद्प्रदान्करना्चादहये्॥१६॥
कधया्या्वेश्या्को्बसल-पदाथण्िारर््करने्योग्य्माना्गया्है ्।्इधहे ्अङ्गधयास्एवं्करधयास्
द्वारा्पववर्मन्(एवं्शरीर)्वाली्बनना्चादहये्॥१७॥
Bo
॥१९॥
इस्प्रकार्पूव्ण में ्कही्गयी्ववधि्से्दे वों्को्उनके्क्रम्के्अनुसार्तप्ृ त्करके्उधहे ्ववधिपूवक
ण ्
ववसन्जणत्करना्चादहये, न्जससे्वास्तक्ष
ु ेर्का्ननमाणर््करने्के्सलये्ववधयास्(भवनननमाणर््की्
योजना)्ककया्जा्सके्॥२०॥
ब्रह्मा्एवं्बाह्य्दे वों्को्उनके-उनके्स्थानों्पर्रखना्चादहये, न्जससे्दे वालय्एवं्द्वार्का्
वविान्उनको्ध्यान्में ्रखते्हुये्ककया्जा्सके्॥२१॥
पद्से्रदहत्शेष्सभी्दे वों्को्वास्त्ु की्रक्षा्के्सलये्स्थान्दे ना्चादहये्।्इसी्ववधि्से्
ग्रामादद्मे्भी्दे वों्का्ववधयास्करना्चादहये्।्इस्प्रकार्वास्तु-पदववधयास्एवं्वास्तद
ु े वों्के्
पज
ू न्के्रहस्य्का्वर्णन्ककया्गया्है ्॥२२॥
प्रातःकाल्से्उपवास्करते्हुये्स्थपनत्ववशद्
ु ि्शरीर्एवं्शाधत्मन्से्वास्त्ु दे वों्की्ववशेष्एवं्
सामाधय्बसल्को्लेकर्पव
ू व
ण र्र्णत्रीनत्से्भली-भाूँनत्पूजा्करे ्एवं्बसल्प्रदान्करे ्॥२३॥
मयमतम्-्अध्याय्९
मयमतम्एक्वास्तश
ु ास्र्है।्मयमतम्एक्उधचत्असभववधयास, सही्आयाम्और्
om
उपयक्
ु त्सामग्री्के्चयन्के्सलए्संकेत्दे ता्है ।
ग्रामववधयास
ग्रामयोजना्-्अब्ग्राम्आदद्का्ननयमानुसार्प्रमार््एवं्ववधयास्(ननमाणर्-योजना)्का्वर्णन्
ककया्जा्रहा्है ्।
पुनमाानोपकरण
s.c
पुनः्प्रमार्-चचाण्-पाूँच्सौ्दण्डों्का्एक्क्रोश्एव्उसके्दग
ु ने्(दो्क्रोश)्का्एक्अिणगव्यूत्
मान्होता्है ्॥१॥
ok
एक्अिणगव्यूत्का्दग
ु ुना्एक्गव्यूत्होता्है ्।्आठ्हजार्दण्ड्का्एक्योजन्होता्है ्।्आठ्
िनु्(दण्ड)्का्चौकोर्माप
काकनीका्एवं्उसका्चौगुना्माप्माष्कहलाता्है ्॥२॥
Bo
माश्का्चार्गुना्वतणनक्एवं्पाूँच्गुना्वादिकासंज्ञक्माप्होता्है ्।्वादिका्का्चार्गुना्
स्थान्ग्राम्मे्एक्पररवार्के
सलये्उत्तम्होता्है ्॥३॥
44
ग्रामाददमानम
ग्रामादद्का्प्रमार््-्(सबसे्बड़े)्ग्राम्का्मान्सौ्हजार्दण्ड्कहा्गया्है ्॥४॥
बीस्हजार्दण्ड्से्प्रारम्भ्कर्सम्संख्या्में ्मानवद्
ृ धि्करते्हुये्ग्रामों्के्पाूँच्प्रकार्के्प्रमार््
होते्है ्।्ग्राम्के्बीस्भाग
में ्एक्भाग्एक्कुिुम्ब्की्भुसम्होती्है ्॥५॥
हीन्(सबसे्छोिे )्ग्राम्का्मान्पाूँच्सौ्दण्ड्का्होता्है ्।्इससे्प्रारम्भ्कर्पाूँच्सौ्दण्ड्
बढ़ाते्हुये्बीस्हजार्दण्ड्तक
मान्प्राप्त्करना्चादहये्॥६॥
ग्राम्के्चालीस्भेद्होते्है ्।्यह्ग्राम्का्मान्है ्।्(चौड़ाई्में )्दो्हजार्दण्ड, एक्हजार्पाूँच्
सौ्दण्ड्तथा्हजार्दण्ड
(ग्राम्का्मान्है )्॥७॥
नौ्सौ, सात्सौ, पाूँच्सौ्एवं्नतन्सौ्(ग्राम्का)्ववस्तार्होता्है ्।्नगर्का्दण्डमान्एक्हजार्
दण्ड्से्प्रारम्भ्कर्दो
हजार्दण्डपयणधत्होता्है्॥८॥
(सबसे्बड़े)्नगर्का्मान्आठ्हजार्दण्ड्होता्है ्।्दो-दो्हजार्दधड्कम्करते्हुये्नगर्के्
चार्प्रकार्के्मान्प्राप्त्होते
om
है ्॥९॥
ग्राम, खेि, खवणि, दग
ु ्ण एवं्नगर्-्ये्पाूँच्प्रकार्के्(वसनत-ववधयास)्होते्है ्।्अब्मै्(मय्ऋवष)्
दण्ड्के्द्वारा्प्रत्येक्के्तीन
- तीन्भेद्कहता्हूूँ्॥१०॥
छोिे ्मे्भी्सबसे्छोिा्ग्राम्चौसठ्दण्ड्होता्है ्।्मध्यम्ग्राम्का्उसका्दग
s.c ु न
ु ा्एवं्उत्तम्तीन्
गन
ु ा्होता्है ्॥११॥
छोिे ्खेि्का्माप्दो्सौ्छप्पन, मध्यम्खेि्का्तीन्सौ्बीस्तथा्उत्तम्खेि्का्माप्तीन्सौ्
चौरासी्दण्ड्होता्है ्॥१२॥
छोिे ्खवणि्का्माप्चार्सौ्अड़तालीस, मध्यम्खवणि्का्माप्पाूँच्सौ्बारह्तथा्उत्तम्खवणि्का्
ok
माप्पाूँच्सौ्नछहत्तर्दण्ड
कहा्गया्है ्॥१३॥
कननष्ठ्दग
ु ्ण छः्सौ्चालीस्दण्ड, मध्यम्दग
ु ्ण सात्सौ्चार्दण्ड्एवं्उत्तम्दग
ु ्ण सात्सौ्अड़सठ्
Bo
दण्ड्का्होता्है ्॥१४॥
कननष्ठ्नगर्आठ्सौ्बत्तीस्दण्ड, मध्यम्नगर्आठ्सौ्नछयानबे्दण्ड्तथा्उत्तम्नगर्नौ्सौ्
साठ्दण्ड्माप्का्होता्है
॥१५॥
44
सोलह्दण्ड्की्वद्
ृ धि्करते्हुये्प्रत्येक्के्नौ्भेद्होते्है ्।्इनकी्लम्बाई्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी, तीन्
चौथाई, आिी्या्चौथाई
अधिक्होती्है ्॥१६॥
अथवा्छः्या्आठ्भाग्अधिक्हो्सकता्है ्।्इच्छानस
ु ार्इसकी्लम्बाई-चौड़ाई्समान्भी्हो्
सकती्है ्।्इनकी्लम्बाई
एवं्चौड़ाई्ववषम्दण्डसंख्या्में ्होनी्चादहये्॥१७॥
शेष्का्सम्बधि्उस्क्षेर्से्होता्है , न्जस्पर्ननमाणर्कायण्नहीं्हुआ्रहता्।्इस्ववधि्का्प्रयोग्
सभी्ग्राम्आदद
वास्तुक्षेरों्पर्होता्है ्।
आयादद
आयादद्को्प्राप्त्करने्के्सलये्दण्डो्को्बढ़ाया-घिाया्जा्सकता्है ्॥१८॥
न्जस्वास्तु्का्माप्आय, व्यय, नक्षर, योनन, आय,ु नतधथ्एवं्वार्के्ववपरीत्न्हो्एवं्न्ही्
यजमान्(गह
ृ स्वामी)्के्नाम,
जधमनक्षर्अथवा्स्थान्से्ववपरीत्होना्चादहये्(कहने्का्तात्पयण्यह्है ्कक्ग्राम्आदद्
वसनतववधयास्के्सभी्ववचारर्ीय
om
बबधद्ु गह
ृ स्वामी्एवं्उसकी्भूसम्के्अनुकूल्होने्चादहये)्॥१९॥
सभी्प्रकार्की्सम्पवत्तयो्की्प्रान्प्त्के्सलये्वास्तुक्षेर्को्उसके्मान्समेत्ग्रहर््करना्चादहये्
।्वास्तुक्षेर्के्चौड़ाई्एवं
लम्बाई्को्जोड़्कर्आठ्से्एवं्नौ्से्गुर्ा्करना्चादहये्।्प्राप्त्गुर्नफल्में ्क्रमशः्बारह्
s.c
एवं्दश्का्भाग्दे ना्चादहये
॥२०॥
शेष्संख्या्से्क्रमशः्आय्एवं्व्यय्का्ज्ञान्करना्चादहये्।्(लम्बाई्एवं्चौड़ाई्के्योग्में )्
ok
तीन्से्गर्
ु ा्कर्आठ्से
गई्है ्॥२१॥
(उपयक्
ुण त)्आठ्योननयाूँ्कही्गई्है ्।्इनमे्ध्वज, ससंह, वष
ृ ्एवं्गज्प्रशस्त्है ्।्पुनः्(लम्बाई्एं्
चौड़ाई्के्योग्में )्आठ्का
44
विप्रसंख्या
ब्राह्मर्ों्की्संख्या्-्सवणश्रेष्ठ्ग्राम्वह्है , जहाूँ्बारह्हजार्ब्राह्मर््हों्।्मध्यम्ग्राम्में ्दस्
हजार्तथा्छोिे ्ग्राम्में ्आठ
हजार्ब्राह्मर््होते्हैं्॥२५॥
सात्हजार्ब्राह्मर््मध्योत्तम्ग्राम्में ्होते्है ्।्छः्हजार्ब्राह्मर््मध्यम-मध्यम्ग्राम्मे्तथा्
पाूँच्हजार्ब्राह्मर््मध्यम्के
om
अिम्ग्राम्मे्होते्है ्॥२६॥
अिमोत्तम्(छोिे ्ग्राम्मे्उत्तम)्ग्राम्मे्चार्हजार, अिमसम्(छोिे ्मे्मध्यम)्ग्राम्मे्तीन्
हजार्तथा्अिमािम्(छोिे ्मे
s.c
सबसे्छोिे )्ग्राम्मे्दो्हजार्ब्राह्मर््रहते्है ्॥२७॥
नीचोत्तम्ग्राम्में ्एक्हजार्ब्राह्मर््रहते्है ्।्नीच-मध्यम्ग्राम्में ्सात्सौ्एवं्नीचालप्ग्राम्
में ्पाूँच्सौ्ब्राह्मर््होते्है ,
ऐसा्आचायों्का्कथन्है ्॥२८॥
ok
ब्राह्मर्ों्के्आवास्की्दृष्िी्से्दस्प्रकार्के्क्षुद्रक्ग्राम्इस्प्रकार्है ्-्एक्हजार्आठ, दो्
हजार्सोलह, तीन्हजार्चौबीस,
Bo
वास्तुववधयास्मे्सूरपथ्से्मागणववधयास्एवं्अयुग्म्ववधयास्मे्मध्यम्पद्से्वीथी्का्ववधयास्
ककया्जाता्है ्॥३२॥
ग्रामनामानन
ग्रामो्के्नाम्-्ग्राम्आठ्प्रकार्के्होते्है ्-्दण्डक, स्वन्स्तक, प्रस्तर, प्रकीर्णक, नधद्यावतण, पराग,
पद्म्एवं्श्रीप्रनतन्ष्ठत्॥३३-३४॥
िीथथविधानम
मागण-वविान्-्सभी्ग्राम्अधदर्एवं्बाहर्से्मङ्गलजीवी्से्आवत
ृ ्होते्है ्।्ग्राम्मे्ब्रह्मस्थान्
(मध्य्भाग)्में ्दे वालय्या
om
'महापथ' संज्ञक्मागण्छः
दण्ड्चौड़े्होते्है ्॥३६॥
ग्राम्की्मध्य-वीथी्'ब्रह्मवीथी' होती्है ्।्वही्ग्राम्की्नासभ्होती्है ्।्द्वार्से्युक्त्वीथी्
'राजवीथी' होती्है ्।्दोनो्पाश्वों्से
है ्।्इन्दोनों्को्'रथ्या' भी
कहा्जाता्है ्।्प्राचीन्ववद्वानों्के्अनुसार्अधय्मागो्को्भी्इसी्प्रकार्समझना्चादहये्
॥३९॥
44
ग्रामभेद
ग्राम्के्भेद्-्ब्राह्मर्ों्से्पररपूर््ण वसनत-ववधयास्को्'मङ्गल' कहते्है ्।्राजा्(क्षबरय)्तथा्
व्यापाररयों्से्युक्त्स्थान्'पुर'
॥४०॥
पव
ू ्ण एवं्उत्तर्की्ओर्सीिी्रे खा्से्बने्हुये्दण्ड्के्समान्मागण्होते्है ्एवं्चार्द्वार्से्यक्
ु त्
होते्है ्।्ऐसे्ग्राम्को
मुननजन्दण्डक्कहते्है ्।्जहाूँ्दण्ड्के्सदृश्एक्वीथी्होती्है , उसे्भी्'दण्डक' ग्राम्कहते्है ्
॥४१-४२॥
नौ्पदों्से्युक्त्ग्राम्में ्पद्से्बाहर्चारो्ओर्एक्मागण्होता्है ्।्एक्वीथी्उत्तर-पूव्ण से्
प्रारम्भ्होकर्पव
ू ्ण की्ओर्जाती
है ्।्वह्दक्षक्षर््से्प्रारम्भ्होती्है ्॥४३॥
दक्षक्षर््वीथी्पूवण-दक्षक्षर््से्प्रारम्भ्होकर्पन्श्चम्की्ओर्जाती्है ्।्दक्षक्षर््से्पन्श्चम्होकर्
जाने्वाली्वीथी्उत्तर्की्ओर
om
जाती्है ्॥४४॥
दस
ू री्वीथी्उत्तरसे्प्रारम्भ्होती्है , इससलये्उत्तरवीथी्है ्।्इसका्मुख्पूव्ण की्ओर्होता्है ्।्इस्
ग्राम्को्'स्वन्स्तक' कहा
या्सात्होते्है ्॥४६॥
'प्रकीर्णक' ग्राम्पाूँच्प्रकार्के्होते्है ्।्इसमे्चार्मागण्पूव्ण से्पन्श्चम्जाते्है ्।्उत्तर्से्बारह,
ok
ग्यारह, दस, नौ्या्आठ्मागण
जाते्है ्॥४७॥
Bo
सोलह्एवं्सरह्मागो्द्वारा्।्(इस्ग्राम्का्ववधयास्ककया्जाता्है )्॥४८॥
नधद्यावतण्ग्राम्(उपयुक्
ण त्मागो्से)्यक्
ु त्होता्है ्।्यह्नधद्यावतण्आकृनत्का्होता्है ्।्बाहर्
44
की्ओर्जाने्वाले्मागो्के्बाहर
om
॥५३॥
अथवा्'श्रीवत्स' आदद्अधय्ग्रामों्का्भी्ववधयास्करना्चादहये्।्सभी्ग्रामों्के्नासभ्(केधद्र-
स्थल)्को्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को
ववद्ि्नही्करना्चादहये्॥५४॥
ग्राम्अथवा्गह
s.c
ृ ्में ्दण्डच्छे द्नही्करना्चादहये्।्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्ग्राम्अथवा्गह
ववधयास्हे तु्सकल्(एकपद्वास्तु)
ृ ्के्
से्लेकर्आसन्(एक्हजार्पद्वास्तु)्तक्(ककसी्उपयुक्त)्पदववधयास्को्ग्रहर््करना्चादहये्
ok
॥५५॥
छोिे ्ग्राम्में ्चार्मागण, मध्यम्ग्राम्में ्आठ्मागण्एवं्उत्तम्ग्राम्में ्बारह्अथवा्सोलह्मागण्
होते्है ्॥५६॥
Bo
्िार
्िार - भललाि, महे धद्र, राक्षस्एवं्पुष्पदधत्पद्द्वारस्थापन्के्स्थान्है ्तथा्जलमागण्भी्चार्है ्
॥५७॥
जलमागण्के्चार्वास्तु-पद्ववतथ, जयधत, सुग्रीव्एवं्मुख्य्है ्।्भश
ृ , पूषा, भङ्
ृ गराज, दौवाररक, शोष,
44
नाग, ददनत्एवं्जलद
॥५८॥
इन्आठ्वास्तुदेवों्के्पद्उपद्वार्के्स्थान्है ्।्इन्उपद्वारों्का्ववस्तार्तीन, पाूँच्या्सात्
हस्त्होता्है ्॥५९॥
इन्उपद्वारों्की्ऊूँचाई्उसकी्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी, डेढ़्गुनी्अथवा्नतन्चौथाई्होनी्चादहये्।्सभी्
ग्रामों्के्चारो्ओर्बारह
पररका्(खाई)्एवं्वप्र्(प्राचीर, घेरने्वाली्सभवत्त)्होनी्चादहये्॥६०॥
नदद्के्दक्षक्षर््ति्पर्उससे्नघरे ्ग्राम्(उत्तम)्होते्है ्।्इक्यासी्वास्तप
ु द्एवं्चौसठ्वास्तप
ु द-
ववधयास्से्यक्
ु त्ग्राम्का
om
प्रासादस्थान
वास्तु-क्षेर्के्भीतर्ब्राह्मर््एवं्दे वता्की्स्थापना्करनी्चादहये्।्सशवालय्की्स्थापना्ग्राम्
के्बाहर्होनी्चादहये्अथाणत
भङ्
s.c
सशवालय्की्स्थापना्इच्छानुसार्ग्राम्के्भीतर्या्बाहर्कही्भी्हो्सकती्है ्॥६४॥
ृ गराज्के्या्पावक्के्भाग्पर्ववनायक्का्मन्धदर्होना्चादहये्।्ईश्के्पद्पर, सोम्के्
पद्पर्अथवा्अधय्ककसी
वास्तुपद्पर्सशवमन्धदर्की्स्थापना्करनी्चादहये्॥६५॥
ok
दे वालय्के्बाहर्गह
ृ ो्की्श्रेर्ी्पूवव
ण र्र्णत्मान्के्अनुसार्ननयमपूवक
ण ्होनी्चादहये्।्सशव्के्
पररवार-दे वताओ्के्स्थान्का
Bo
यहाूँ्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥६६॥
सूय्ण के्वास्तुपद्पर्सूयद
ण े वता्का्स्थान्एवं्अन्ग्न्के्पद्पर्कासलका्का्मन्धदर्होना्चादहये्
।्भश
ृ ्के्वास्तुपद्पर
ववष्र्म
ु न्धदर्तथा्यम्के्पद्पर्षण्मख
ु ्(कानतणकेय)्का्मन्धदर्होना्चादहये्॥६७॥
44
भश
ृ , मग
ृ ्या्नैऋत्य्स्थानपर्केशव्का्मन्धदर्होना्चादहये्।्सग्र
ु ीव्के्पद्पर्या्पष्ु पदधत्के्
पद्पर्गर्ाध्यक्ष्(गर्ेश)
का्मन्धदर्होना्चादहये्॥६८॥
आयणक्का्भवन्नैऋत्य्कोर््मे्एवं्ववष्र््ु का्ववमान्(दे वालय)्वरुर््के्पद्पर्होना्चादहये्।्
मन्धदर्में ्ऊपरी्तल्से
क्रमशः्ववष्र्ु्की्स्थानक्(खड़ी), आसन्(बैठी)्एवं्शयन्प्रनतमा्होनी्चादहये्॥६९॥
अथवा्भत
ू ल्पर्बड़ी्एवं्भारी्तथा्ऊपरी्तल्पर्स्थानक्मद्र
ु ा्में ्ववष्र्ुप्रनतमा्होनी्चादहये्।्
सग
ु ल्के्पद्पर्सग
ु त
(बुद्ि)्की्प्रनतमा्एवं्भङ्
ृ गराज्के्पद्पर्न्जन-दे वालय्होना्चादहये्॥७०॥
वायु्के्पद्पर्मददरा्का्मन्धदर, मुख्य्के्पद्पर्कात्यायनी्का्मन्धदर, सोम्के्पद्पर्िनद्
(कुबेर)्का्मन्धदर्अथवा
मातद
ृ े ववयों्का्मन्धदर्होना्चादहये्॥७१॥
सशवालय्ईश, पजणधय्या्जयधत्के्पद्पर, कुबेर्का्मन्धदर्सोम्अथवा्शोष्के्पद्पर्ननसमणत्
कराना्चादहये्॥७२॥
वही्गर्ेश्का्भवन्होना्चादहये्।्अथवा्अददनत्के्पद्पर्मातद
ृ े ववयो्का्मन्धदर्होना्चादहये्
।्मध्य्में ्ववष्र्ु्का
om
मन्धदर्होना्चादहये्।्वही्सभामण्डप्भी्होना्चादहये-्ऐसा्कहा्गया्है ्॥७३॥
अथवा्सभास्थल्ब्रह्मा्के्पद्पर्ईशान्कोर््या्आग्नेय्कोर््में ्होना्चादहये्।्ववष्र्ुमन्धदर्
उत्तर-पन्श्चम्मे्अथवा्दक्षक्षर्
ववषमसंख्या)्से्ननसमणत्होने्पर्ब्रह्मस्थान्आठ्भाग्एवं्नौ्भाग्से्ननसमणत्होना्चादहये्
ok
॥७५॥
ब्रह्मा्के्भाग्को्छोड़्कर्पूव्ण ददशा्से्प्रारम्भ्कर्क्रमशः्नसलनक, स्वन्स्तक,नधद्यावतण,
प्रलीनक, श्रीप्रनतन्ष्ठत, चतम
ु ख
ुण ्एवं
Bo
पद्मसम्भवन्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्वहाूँ्तीन्तल्से्लेकर्बारह्तलपयणधत्ववष्र्ुच्छधद्
ववमान्का्ननमाणर््होना
चादहये्॥७६॥७७॥
44
यह्ववष्र्म
ु न्धदर्ग्रामादद्से्बाहर्भी्हो्सकता्है ्।्इसमें ्ववष्र््ु की्खड़ी, बैठी्या्शयन्करती्
हुई्मूनतण्स्थावपत्करनी
चादहये्॥७८॥
ग्रामों्में ्क्रमानस
ु ार्उत्कृष्ि, मध्यम, अिम्एवं्नीच्आदद्भवन्होने्चादहये; ककधत्ु उत्तर्ग्राम्में ्
नीच्भवन्नहीं्होना
चादहये्॥७९॥
यदद्ग्राम्क्षुद्र्हो्तो्वहाूँ्क्षुद्र्ववमान्(छोिा्मन्धदर)्ही्उधचत्है ्एवं्वही्बनाना्चादहये्।्तीन,
चार्एवं्पाूँच्तल्का
॥८१॥
इससलये्ग्राम्अथवा्नगर्की्श्रेर्ी्के्समान्या्अधिक्श्रेर्ी्का्मन्धदर्ननसमणत्होना्चादहये्।्
हररहर्मन्धदर्अथवा्अधय
सभी्वास्तुननसमणत्यथोधचत्होनी्चादहये्॥८२॥
om
दौिाररक
चण्डश्वर, कुमार, िनद, काली, पूतना, कालीसुत्तथा्खड््गी्-्ये्दे वता्दौवाररक्कहे ्गये्है ्॥८३॥
ग्राम्आदद्में ्पूवम
ण ुख्या्पन्श्चममुख्सशव्का्स्थान्होना्चादहये्।्यदद्उनका्मुख्ग्रामादद्से्
बाहर्की्ओर्हो्तो्प्रशस्त
s.c
होता्है ्।्ववष्र्ु्का्मुख्सभी्ददशाओं्में ्हो्सकता्है ; ककधतु्उनका्मुख्यदद्ग्राम्कक्ओर्हो्
तो्शुभ्होता्है ्॥८४॥
शेष्दे वगर््पूवम
ण ुख्होने्चादहये्।्मातद
ृ े ववयों्को्उत्तरमुख्स्थावपत्करना्चादहये्।्सूयम
ण न्धदर्
का्द्वार्पन्श्चममुख्होना
ok
चादहये्।्पुर्आदद्में ्मनुष्यों्के्गह
ृ ्से्पहले्दे वालयों्का्ननमाणर््कराना्चादहये्॥८५॥
दे वालय्आदद्का्ननमाणर्
नहीं्होना्चादहये्॥८६॥
पष्ु पवादिका्होनी्चादहये्।्पव
ू ण
या्पन्श्चम्द्वार्के्ननकि्तपन्स्वयों्का्आवास्होना्चादहये्॥८७॥
जलाशय, वापी्एवं्कूप्सभी्स्थानों्पर्होना्चादहये्।्वैश्यों्का्आवास्दक्षक्षर््में ्एवं्शद्र
ू ों्का्
आवास्चारो्ओर्होना
चादहये्॥८८॥
पूव्ण अथवा्उत्तर्ददशा्में ्कुम्हारो्के्गह
ृ ्होने्चादहये्।्वही्नाइयों्का्एवं्अधय्हस्तकौशल्
वालों्के्भी्गह
ृ ्होने्चादहये
॥८९॥
उत्तर-पन्श्चम्ददशा्में ्मछुआरों्का्ननवास्होना्चादहये्।्पन्श्चमी्क्षेर्में ्मांस्से्आजीववका्
चलाने्वालों्का्ननवास्होना
चादहये्॥९०॥
तेसलयों्के्गह
ृ ्उत्तर्ददशा्में ्होने्चादहये्।
गह
ृ लक्षण
गह
ृ ्के्लक्षण - गह
ृ ों्की्चौड़ाई्तीन, पाूँच, सात्या्नौ्िनुप्रमार््होनी्चादहये्॥९१॥
om
गह
ृ ों्की्लम्बाई्चौड़ाई्से्क्रमशः्दो-दो्दण्ड्बढ़ानी्चादहये्।्लम्बाई्उतनी्ही्ग्रहर््करनी्
चादहये, न्जतनी्कक्चौड़ाई्की
दग
ु ुनी्से्अधिक्न्हो्जाय्॥९२॥
गह
ृ ों्का्ननमाणर््ववधि्के्अनुसार्हस्तप्रमार््से्करना्चादहये्।्ये्गह
ृ ्रुचक, स्वन्स्तक,
नधद्यावतण्और्सवणतोभद्र्(ककसी्एक
शैली्के)्हो्सकते्है ्॥९३॥
s.c
गह
ृ ्(सवणतोभद्र्या)्विणमान्हो्सकता्है ्।्आकृनत्की्दृन्ष्ि्से्ये्चार्गह
ृ ्कहे ्गये्है ्।्अथवा्
दण्डक, लाङ्गल्या्शूप्ण गह
ृ
ok
इच्छानस
ु ार्हो्सकते्है ्॥९४॥
ग्राम्से्कुछ्दरू ्आग्नेय्अथवा्वायव्य्कोर््में ्स्थपनतयों्का्आवास्होना्चादहये्।्शेष्का्
Bo
आवास्भी्वही्बनवाना
चादहये्॥९५॥
उससे्कुछ्दरू ्रजक्(िोबी)्आदद्का्आवास्होना्चादहये्।्ग्राम्से्पव
ू ्ण ददशा्मे्एक्कोस्की्
दरू ी्पर्चण्डाल्वगण्का
44
आवास्होना्चादहये्॥९६॥
वहाूँ्चण्डाल-न्स्रयाूँ्ताम्र, अयस्एवं्सीसे्के्आभष
ू र््पहने्हुये्ननवास्करे ्।्ददन्के्प्रथम्प्रहर्
में ्ग्राम्में ्प्रवेश्कर
चण्डाल्वगण्ग्राम्की्गधदगी्साफ्करें ्॥९७॥
पूवोत्तर्ददशा्में ्ग्राम्से्पाूँच्सौ्दण्ड्दरू ्शवों्(की्अधत्येन्ष्ि्कक्रया)्का्स्थान्होना्चादहये्।्
शेष्लोगों्(सामाधय्जनों्से
पथ
ृ क्)्का्श्मशान्उससे्दरू ्होना्चादहये्॥९८॥
विन्यासदोष
भिन-विन्यास्के्दोष - चण्डाल्एवं्चमणकार्का्आवास, श्मशान, जलाशय, दे वालय, ववश्वकोष्ठ्(सभी्
पदाथो्का्संग्रहस्थल),
ग्राम्के्चारो्ओर्का्पररवेश्एवं्ग्राम्के्चारो्ओर्के्मागण्यदद्उधचत्स्थान्पर्नहीं्होते्है ्
(तो्उनका्पररर्ाम्कष्िकर
होता्है ्)्॥९९॥
उपयक्
ुण त्का्दष्ु पररर्ाम्ग्राम्का्ववनाश, राजा्का्भङ्ग्(हानन)्एवं्मत्ृ यु्होता्है ्।्दे वालय्एवं्
om
हाि्का्ररक्त्होना, कूड़े्का
गभाविन्यास s.c
मिलान्यास - सभी्ग्रामाददकों्के्गभण-ववधयास्का्वर्णन्ककया्जाता्है ्॥१०१॥
(ग्रामादद्का)्गभणयुक्त्होना्सभी्प्रकार्की्सम्पवत्तयों्का्एवं्गभणहीन्होना्सभी्प्रकार्के्
ववनाश्का्कारर््होता्है ्।
ok
इससलये्प्रयत्नपव
ू क
ण ्सही्रीनत्से्गभणववधयास्करना्चादहये्॥१०२॥
॥१०४॥
ताम्रपार्की्चौड़ाई्पाूँच्प्रकार्की्कही्गई्है ्।्इनका्प्रमार््चौदह, बारह, दश, आठ्या्चार्
अङ्गुल्होना्चादहये्॥१०५॥
ताम्रपार्की्ऊूँचाई्चौड़ाई्के्समान्होनी्चादहये्।्उसमें ्पच्चीस्अथवा्नौ्कोष्ठ्होने्चादहये्
॥१०६॥
उपपीठ्पद्से्यक्
ु त्(पच्चीस्कोष्ठ्वाले)्उस्पार्में ्वास्तद
ु े वों्को्स्थान्दे ना्चादहये्।्सय
ू ्ण के्
कोष्ठ्में ्रजतननसमणत्वष
ृ ्एवं
सुवर्णननसमणत्इधद्र्को्स्थावपत्करना्चादहये्॥१०७॥
यम्के्पद्पर्ताम्रननसमणत्यमराज, लौहननसमणत्ससंह्एवं्रजतननसमणत्वरुर््को्स्थावपत्करना्
चादहये्॥१०८॥
सोम्के्पद्पर्श्वेत्वर्ण्का्(रजतमय)्अश्व्तथा्रजतननसमणत्गज्रखना्चादहये्।्ईश्के्पद्
पर्पारा, अन्ग्न्पर्दिन,
ननऋनत्पर्सीसा्रखना्चादहये्॥१०९॥
समीरर््के्पद्पर्सुवर्ण, जयधत्पर्ससधदरू , भश
ृ ्पर्हररताल्तथा्ववतथ्पर्मनःसशला्
(मैनससल)्रखना्चादहये्॥११०॥
om
भङ्
ृ गराज्पर्माक्षक्षक्(एक्खननज्पदाथण), सुकधिर्पर्लाजावतण, शोष्पर्गैररक्(गेरु)्तथा्
गर्मख्
ु य्पर्अञ्जन्रखना
चादहये्॥१११॥
अददनत्पर्रक्त्वर्ण्का्ताम्र्रखना्चादहये्।्उपयक्
ुण त्सभी्को्भली्भाूँनत्जान्कर्क्रमानुसार्
रखना्चादहये्।्चतुष्पदो्पर
s.c
लोकनाथों्को्इस्प्रकार्स्थावपत्करना्चादहये, न्जससे्उनका्मुख्केधद्र्की्ओर्रहे ्॥११२॥
इन्दे वों्की्प्रनतमा्की्ऊूँचाई्छः, पाूँच, चार, तीन्या्दो्अङ्गुल्होनी्चादहये्एवं्उनके्वाहनों्
ok
की्ऊूँचाई्पूवोक्त्माप्की
आिी्होनी्चादहये्।्प्रनतमायें्स्थानक्मुद्रा्(खड़ी)्अथवा्आसन्मुद्रा्(बैठी)्में ्होनी्चादहये्
॥११३॥
Bo
आपवत्स्पर्मोती, मरीधच्पर्मूँग
ू ा, सववता्पर्पष्ु पराग्(पोखराज)्तथा्वववस्वान्पर्वैदय
ू ्ण मर्र््
रखना्चादहये्॥११४॥
इधद्रजय्पर्हीरा, समरक्पर्इधद्रनील, रुद्रराज्पर्महानील्तथा्महीिर्पर्मरकत्(पधना)्रखना्
चादहये्॥११५॥
44
पार्के्मध्य्मे्पद्मराग्(रुबी)्रखना्चादहये्।्रत्न्एवं्िातुओं्को्पार्में ्उनके्उधचत्स्थान्
पर्रखना्चादहये्॥११६॥
उन्दे वों्के्स्थान्एवं्न्स्थनत्को्ववधिपूवक
ण ्ज्ञात्कर्रत््नादद्को्रखना्चादहये्।्चारो्ददशाओं्
में ्सुवर्ण, आयस्(लौह),
ताूँबे्एवं्चाूँदी्के्स्वन्स्तक्रखने्चादहये्॥११७॥
ब्रह्मस्थान्के्बाहर्पूव,ण दक्षक्षर्, पन्श्चम, पन्श्चम्एवं्उत्तर्ददशा्में ्सुवर्ण्के्साथ्शासलिाधय,
चाूँदी्के्साथ्व्रीदह, अयस्के
साथ्कोद्रव्(कोदो)्रखना्चादहये्॥११८॥
दिन्के्साथ्कङ्कु्िाधय, सीसा्के्साथ्माष्(उड़द), नतल्पारे ्के्साथ, मूँग
ू ्को्अयस्(लोह)्के्
साथ्तथा्कुलत्थ्को्ताम्र
िातु्के्साथ्रखना्चादहये्॥११९॥
प्रथमतः्पार्के्सलये्बसल्(उपयक्
ुण त्वर्र्णत्पदाथण)्प्रदान्करना्चादहये्।्इसके्पश्चात्सभी्
पदाथो्को्पार्में ्रख्दे ना
चादहये्।्(पार्को्ढकने्के्सलये)्एक्अङ्गुल्से्अधिक्चौड़ा्तथा्बारह्अङ्गुल्लम्बा्पर्
लेना्चादहये्॥१२०॥
बारह्अङ्गुल्से्लेकर्पाूँच-पाूँच्अङ्गुल्के्वद्
ृ धि-मान्से्बत्तीस्अङ्गुल्तक्(पर)्का्प्रमार््हो्
om
सकता्है ्।्यह
इधद्रकीलसंज्ञक्पर्खददर्के्काष्ठ्का्गोलाकार्ननसमणत्होना्चादहये्॥१२१॥
गभण-ववधयास्के्ज्ञाता्को्इस्पर्को्पार्के्ऊपर्रखना्चादहये्।्यह्गभण्ववधयास्स्थानीय,
द्रोर्मुख्तथा्खवणि्एवं
प्रत्येक्प्रकार्के्नगर्मे्करना्चादहये्।
(उपयक्
s.c
ुण त्के्अनतररक्त)्ग्राम, ननगम, खेि, पत्तन्तथा्कोत्मकोलक्आदद्वसनतववधयासों्में ्गभण-
ववधयास्ब्रह्मा, आयण, अकण,
ok
वववस्वान, यम, समर, वरुर्, सोम्एवं्पधृ थवीिर्के्भाग्में ्या्द्वार्के्दक्षक्षर््भाग्में ्करना्
चादहये्॥१२३-१२४॥
(द्वार्के्दक्षक्षर््भाग्में )्पुष्पदधत, भललाि, महे धद्र्एवं्गह
ृ क्षत्के्पद्पर्अथवा्ववष्र्ु्के्स्थान्
Bo
(मन्धदर), लक्ष्मी्के्स्थान
या्स्कधद्के्स्थान्में ्ग्राम्की्रक्षा्के्सलये्एवं्सभी्प्रकार्की्कामनाओं्की्वद्
ृ िी्के्सलये्
गभण-ववधयास्करना्चादहये्।
44
रखना्चादहये्।्अवर्र्णत्सभी्पदाथों्को्ब्रह्म्आदद्के्भाग्में ्रखना्चादहये्(अवर्र्णत्पदाथो्
का्वर्णन्'गभणववधयास'
अध्याय्मे्प्राप्त्होता्है)्॥१२७॥
न्जस्वविे्से्गभणववधयास्सरु क्षक्षत्एवं्न्स्थर्है ्(तथा्भवनननमाणर््भी्सरु क्षक्षत्एवं्न्स्थर्रहे ),
उसी्रीनत्से्स्थपनत्को्गभण
स्थावपत्करना्चादहये्।्यहाूँ्न्जनका्वर्णन्नहीं्ककया्गया्है , उन्सभी्का्वर्णन्गभणलक्षर््
(गभणववधयास, अध्याय-१२)्में
ककया्गया्है ्॥१२८॥
इस्प्रकार्दे वों्के्अनुरूप्भूसम्का्माप्(वास्तुमण्डल), वर्ण्एवं्अधय्जानतयों्के्अनुकूल्माप,
ग्रामाददकों्का्प्रमार्,
om
मागणयोजना्आदद्को्तधरों्से्अलङ्कारसदहत, सुधदर्ढं ग्से्एवं्संक्षेप्में ्सलया्गया्है ्॥१२९॥
राजा्को्मापन्आदद्कमण्में ्ननपुर््चारो्स्थपनतयों्को्भूसम्एवं्गाये्प्रदान्करनी्चादहये; जो्
व्यन्क्त्इस्प्रकार्करता्है ,
उसे्संसार्मे्चधद्रमा्एवं्तारों्की्न्स्थनतपयणधत्सवणदा्िन्एवं्अनेक्(समद्
ृ धिदायक)्वस्तुओं्
की्प्रान्प्त्होती्रहती्है ्एवं्वह
सवणदा्प्रसधन्रहता्है ्॥१३०॥
s.c
ok
मयमतम्-्अध्याय्१०
मयमतम्एक्वास्तुशास्र्है।्मयमतम्एक्उधचत्असभववधयास, सही्आयाम्और्
उपयक्
ु त्सामग्री्के्चयन्के्सलए्संकेत्दे ता्है ।
Bo
नगरमान
नगर्-्योजना - मै्नगर्आदद्के्प्रमार््एवं्ववधयास्का्क्रमानुसार्वर्णन्करता्हूूँ्।
44
नगरों्का्प्रमाण - नगर्का्प्रमार््तीन्सौ्िनुष्से्प्रारम्भ्होकर्एक-एक्सौ्दण्ड्की्वद्
ृ िी्
करते्हुये्आठ्हजार्दण्ड्तक्प्राप्त्होता्है ्।्इसके्अठहत्तर्भेद्बनते्है ्।्इस्प्रकार्नगरों्
के्ववस्तार्का्प्रमार््प्राप्त्होता्है ्॥१-२॥
एक्सौ्दण्ड्से्प्रारम्भ्कर्दश-दश्दण्ड्की्वद्
ृ धि्करते्हुये्तीन्सौ्दण्डपयणधत्सभी्क्षुद्र्
नगरों्के्इक्कीस्ववस्तार-प्रमार््प्राप्त्होते्है ्॥३॥
राजाओं्के्उत्तम्पुरों्की्पररधि्का्प्रमार््सोलह्हजार्यन्ष्िप्रमार््से्प्रारम्भ्कर्पाूँच्सौ्दण्ड्
कम्करते्हुये्चार्हजार्पयणधत्कहा्गया्है ्।्इस्प्रकार्इनके्पच्चीस्प्रमार्भेद्बनते्है ्॥४॥
तीन्सौ्दण्ड्से्प्रारम्भ्कर्बीस-बीस्दण्ड्की्वद्
ृ धि्करते्समय्चार्सौ्दण्डपयणधत्खेि्के्
छः्प्रकार्के्भेद्वर्र्णत्है ्।्इनमे्दो्श्रेष्ठ, दो्मध्यम्एवं्दो्कननष्ठ्प्रकार्के्खेि्होते्है ्
॥५॥
उससे्(चार्सौ्दण्ड्से)्चोबीस-चौबीस्दण्ड्की्वद्
ृ धि्करते्हुये्चार्सौ्नछयानबे्दण्डपयणधत्
द्रोर्मख
ु ्वास्त्ु के्पाूँच्प्रकार्बनते्है ्।्ये्इनके्ववस्तारमान्कहे ्गये्है ्॥६॥
दो्सौ्दण्ड्से्प्रारम्भ्करते्हुये्पचास-पचास्दण्ड्की्क्रमशः्वद्
ृ धि्चार्सौ्दण्डपयंधत्की्
जाती्है ्।्इस्प्रकार्खवणि्के्ववस्तार्के्पाूँच्प्रमार्भेद्प्राप्त्होते्है ्॥७॥
दो्सौ्से्प्रारम्भ्कर्दश-दश्दण्ड्की्वद्
ृ धि्करते्हुये्तीन्सौ्चालीस्दण्डपयणधत्ननगम्के्
ववस्तार्का्मान्प्राप्त्होता्है ्।्ववस्तारमान्की्दृन्ष्ि्से्इसके्पधद्रह्भेद्बनते्है ्॥८॥
शत्दण्ड्से्प्रारम्भ्कर्एक-एक्सौ्दण्ड्की्वद्
ृ िी्करते्हुये्पाूँच्सौ्पयणधत्कोत्मकोलक्का्
ववस्तार्रक्खा्जाता्है ्।्ववस्तारमान्की्दृन्ष्ि्से्इसके्पाूँच्भेद्होते्है ्॥९॥
ववद्वान्मनीवषयों्ने्पुरों्के्ववस्तार्के्प्रमार्ों्का्इस्प्रकार्वर्णन्ककया्है ्।्ववडम्ब्का्
ववस्तार्मान्तीन्सौ्दण्ड्से्प्रारम्भ्कर्पचास-पचास्दण्ड्की्वद्
ृ धि्करते्हुये्पाूँच्सौ्
om
दण्डपयणधत्होता्है ्।्इसके्प्रमार््की्दृन्ष्ि्से्सात्भेद्बनते्है ्।्पूवव
ण र्र्णत्मान्ही्इनका्
(समानुपानतक)्मान्होता्है ्॥१०-११॥
इन्पुराददकों्की्लम्बाई्इनकी्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी, तीन्चौथाई, आिी्अथवा्चतुथांश्अधिक्होती्
है ्।्अथवा्चौड़ाई्का्षष्ठांश्या्अष्िमांश्अधिक्लम्बाई्रखनी्चादहये्॥१२॥
िप्रविधान
s.c
प्राकार-योजना - नगर्का्प्राकारमण्डल्(चारददवारी)्पाूँच्प्रकार्की्होती्है -्चौकोर, आयताकार,
वत्त
ृ ाकार, वत्त
ृ ायताकार्(लम्बाई्सलये्वत्त
ृ ाकार)्तथा्गोलवत्त
ृ ाकार्॥१३॥
प्राकार-मण्डल्की्लम्बाई्दश, आठ, सात, पाूँच्एवं्चार्तथा्चौड़ाई्सात, छः, पाूँच, चार्एवं्तीन्
ok
रखनी्चादहये्॥१४॥
वप्र्के्मूल्का्ववस्तार्दो, तीन्या्चा्हस्त्तथा्ऊूँचाई्सात, दश्या्ग्यारह्हस्त्रखना्चादहये्
।्इसके्ऊध्वण्भाग्का्ववस्तार्मूल्से्तीन्भाग्कम्होना्चादहये्।्दे वालय्आदद्के्बाहर्एवं्
Bo
भीतर्पररखा्(जलयुक्त्खाई)्होनी्चादहये्॥१५॥
िज्यास्थान
त्याज्य्स्थान - पेचक्वास्तु-ववधयास्(चार्पद्वास्तु)्या्आसन्वास्तुववधयास्(एक्सौ्पद्
44
वास्तु)्अथवा्इन्दोनों्के्मध्य्आने्वाले्वास्तु-ववधयासों्में ्से्ककसी्का्प्रयोग्ककया्जा्
सकता्है ्।्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्ननमाणर््करते्समय्वास्तु्के्सूराददकों्एवं्ववषम्स्थलों्का्
पररत्याग्करना्चादहये्॥१६॥
मागा
वहाूँ्मागण्की्योजना्इच्छानुसार्ववधिपूवक
ण ्पूव्ण तथा्उत्तर्से्प्रारम्भ्करते्हुये्करनी्चादहये्
॥१७॥
मागो्का्ववस्तार्एक्दण्ड्से्प्रारम्भ्कर्आिा-आिा्दण्ड्बढ़ाते्हुये्सात्दण्डपयणधत्रखना्
चादहये्।्इस्प्रकार्ववस्तार्की्दृन्ष्ि्से्मागण्के्तेरह्भेद्कहे ्गये्है ्॥१८॥
राजधानी
राष्र्(राज्य)्के्मध्य्भाग्में , नदी्के्ननकि, श्रेष्ठ्लोगो्की्जनसंख्या्जहाूँ्अधिक्हो, ऐसा्
वसनत-ववधयास्केवल्नगर्होता्है ्।्उस्नगर्में ्यदद्राजभवन्हो्तो्उसे्राजिानी्कहते्है ्
॥१९॥
चार्ददशाओं्में ्चार्द्वार्से्युक्त, द्वारों्पर्शालयुक्त्गोपुर, क्रय-ववक्रय्के्स्थानों्(बाजार)्से्
युक्त्एवं्सभी्वर्ो्के्आवास्से्युक्त्स्थान्(नगर्होता्है ्)्॥२०॥
सभी्दे वों्के्मन्धदर्से्युक्त्स्थान्को्केवल्नगर्कहा्गया्है ्।्(राजिानी्के)्पूव्ण एवं्उत्तर्
ददशा्में ्गहरा्होता्है ्तथा्बाहर्चारो्ओर्गीली्समट्िी्से्ननसमणत्प्राकार्होता्है ्॥२१॥
प्राकार-मण्डल्के्बाहर्चारो्ओर्पररखा्होती्है ्।्नगर्(राजिानी)्के्रक्षाथण्सशववर्होता्है , जहाूँ्
से्प्रत्येक्ददशा्पर्दृन्ष्ि्रक्खी्जानत्है ्।्राज्य्के्प्रहरी्सैननक्पूव्ण एवं्दक्षक्षर््ददशा्मे्मुख्
करके्पहरा्दे ते्है ्॥२२॥
om
नगर्में ्ऊूँचे-ऊूँचे्गोपुर्(प्रवेशद्वार)्होते्है , न्जनमें ्अनेक्मासलकायें्होती्है ्।्उसमे्सभी्दे वों्के्
मन्धदर, नाना्प्रकार्की्गर्र्काये्एवं्बहुत्से्उद्यान्होते्है ्॥२३॥
यहाूँ्गज, अश्व, रथ्एवं्पैदल्सैननक्होते्है ्।्सभी्प्रकार्के्एवं्सभी्वर्ण्के्लोग्ननवास्करते्
है ्।्इस्नगर्में ्द्वार्एवं्उपद्वार्(छोिे ्प्रवेशद्वार)्होते्है ्।्नगर्के्भीतर्अनेक्प्रकार्के्
जनावास्होते्है ्॥२४॥
s.c
इस्प्रकार्का्राजभवन्से्युक्त्नगर्राजिानी्कहलाता्है ्।्जो्वन-प्रदे श्में ्न्स्थत्होता्है ,
जहाूँ्सभी्प्रकार्के्लोग्बसते्है ्एवं्क्रय-ववक्रय्के्स्थल्(हाि, बाजार)्से्युक्त्पुर्को्नगर्
कहते्है ्॥२५॥
ok
खेटादटभेद
नदी्अथवा्पवणत्से्नघरे ्एवं्शूद्रों्के्ननवास्से्युक्त्स्थान्को्खेि्कहते्है ्॥२६॥
चारो्ओर्पवणत्से्नघरे ्हुये, सभी्वर्ो्के्आवास्से्युक्त्स्थान्को्खवणिक्कहते्है ्।्खेि्एवं्
Bo
खवणि्के्मध्य्न्स्थत्घनी्जनसंख्या्वाले्स्थान्को्कुब्ज्कहते्है ्॥२७॥
अधय्द्वीपों्से्आये्हुये्वस्तुओं्से्युक्त, सभी्प्रकार्के्लोगों्से्युक्त, क्रयववक्रयस्थल्से्
युक्त, रत््न, िन, ससलक्के्वस्रों्से्युक्त्तथा्ववववि्प्रकार्के्सुगन्धियों्(इर्आदद)्से्युक्त,
सागर-ति्पर्न्स्थत्एवं्उससे्सम्बद्ि्नगर्को्पत्तन्कहते्है ्॥२८॥
44
om
समधश्रत्लक्षर््होते्है ्॥३७॥
न्जस्दग
ु ्ण की्सुरक्षा-व्यवस्था्प्राकृनतक्होती्है , उसे्दै वदग
ु ्ण कहते्है ्।्न्जस्दग
ु ्ण के्बाहर्कीचड़्
(दलदल)्हो, उसे्पङ्कदग
ु ण्कहते्है ्।्चारो्ओर्नदी्या्समुद्र्से्नघरे ्दग
ु ण्को्जलदग
ु ्ण तथा्वन्
एवं्जल्से्रदहत्(ऊषर्या्रे धगस्तान्क्षेर्में ्न्स्थत)्दग
ु ्ण को्इररर््दग
ु ्ण कहते्है ्॥३८॥
दग
शस्रास्र्होना्चादहये्।्दग
ु ्ण अत्यधत्ववस्तत
s.c
ु ्ण प्रत्येक्दृन्ष्ि्से्सभी्लक्षर्ों्से्पररपूर््ण होना्चादहये्।्दग
ु ्ण मे्अक्षय्जल, अधन्एवं्
ृ , उधनत्एवं्ठोस्होना्चादहये्।्उसे्प्राकार-मण्डल्
एवं्सभी्द्वारों्पर्रक्षकों्से्युक्त्होना्चादहये्॥३९॥
बाहर्से्दग
ु ्ण में ्प्रवेश्हे तु्ऐसा्मागण्होना्चादहये, न्जस्पर्जल्न्हो, वन्द्वारा्नछपा्हो्तथा्
ok
इस्मागण्से्दग
ु ्ण मे्प्रवेश्कदठनाई्से्होता्है ्।्दग
ु ्ण का्प्रवेशद्वार्गोपुरमण्डप्से्युक्त,
सोपानयुक्त्हो्एवं्ढका्न्हो्॥४०॥
प्रवेशद्वार्पर्दो्कपाि्हो, न्जनमे्चार्पररघागणल्(द्वार्को्खल
ु ने्से्रोकने्के्सलये्लगी्
अगणला)्तथा्एक्हाथ्ऊूँची्इधद्रकील्लगी्होनी्चादहये्।्द्वार्पर्मध्य्में ्काष्ठ्की्स्थर्
ू ा्
Bo
(खम्भा)्से्यक्
ु त्कक्ष्होना्चादहये, न्जसमें ्समण्ठक्(द्वार्पर्लिकने्वाली्ववशेष्आकृनत)्लगा्
हो्।्उस्कक्ष्में ्प्रवेश्हे त्ु सीदढ़याूँ्बनी्होनी्चादहये, जो्नछपी्हो्॥४१॥
द्वारों्को्मण्डप, सभा्अथवा्शाला्के्आकार्का्बनाना्चादहये्।्इनकी्योजना्बारह्में ्से्
ककसी्एक्प्रकार्की्होनी्चादहये्।्बारह्आकृनत-योजनायें्इस्प्रकार्है -्चौकोर, वत्त
ृ , आयत,
44
om
नगरविन्यास
नगर्-्योजना - अब्क्रमशः्सभी्(नगरों)्का्ववधयास्संक्षेप्में ्वर्र्णत्ककया्जा्रहा्है ्॥५१॥
पूव्ण से्पन्श्चम्की्ओर्जाने्वाले्मागों्की्संख्या्बारह, दश, आठ, छः, चार्या्दो्होनी्चादहये्।्
इसी्प्रकार्उत्तर्(से्दक्षक्षर््जाने्वाले)्मागों्की्भी्योजना्रखनी्चादहये्।्अथवा्अयुग्म्
(ववषम)्संख्या्में ्मागण्होने्चादहये्॥५२॥ s.c
अयुग्म्संख्याओं्में ्ग्यारह, नौ, सात, पाूँच, तीन्या्एक्मागण्होने्चादहये्।्युग्म्(सम)्अथव्
अयुग्म्(ववषम)्पदों्में ्दो, तीन्एवं्एक्अज्(ब्रह्मा)्का्भाग्होता्है ्॥५३॥
इस्प्रकार्सभी्नगराददकों्के्मागो्का्वर्णन्ककया्गया्है ्।्दण्ड्के्समान्एक्वीथी्(मागण)्
को्दण्डक्कहते्है ्॥५४॥
ok
उत्तर्ददशा्से्आता्हा्एक्मागण्यदद्पूवोक्त्मागण्के्साल्मध्य्में ्संयुक्त्होता्है ्तो्उसे्
कतणररदण्डक्कहते्है ्।्यदद्पूव्ण ददशा्से्ईिो्से्ननसमणत्दो्मागण्आते्है ्॥५५॥
तो्उसे्बाहुदण्डक्कहा्जाता्है ्।्यदद्चारो्ददशाओं्में ्द्वार्हो्तथा्वीथी्के्मध्य्में ्दोनों्
Bo
पाश्वो्मे्बहुत्से्कुट्दिमयुक्त्(ईिों्से्ननसमणत)्मागण्आकर्समले्एव्शेष्न्स्थनत्पूवव
ण र्र्णत्रहे ्
तो्उसे्कुदिकामुख्दण्डक्कहते्है ्॥५६॥
पूव्ण से्आने्वाले्तीन्मागण्तथा्उत्तर्से्आने्वाले्तीन्मागण्जब्आपस्में ्संयुक्त्होते्है ्तो्
उसे्कलकाबधिदण्डक्कहा्गया्है ्॥५७॥
44
om
नौ्द्वार्पूव्ण से्ननकलते्हो्तथा्नौ्द्वार्उत्तर्से्ननकलते्हो, इन्मागो्पर्द्वार्एवं्उपद्वार्
(छोिे ्प्रवेशद्वार)्हो, इन्मागो्के्साथ्अगणल-कुट्दिम्मागण्भी्हो्तथा्नगर्मे्राजगह
ृ ्भी्हो्
तो्उसकी्संज्ञा्जयाङ्ग्होती्है ्॥६७-६८॥
पूव्ण ददशा्से्दश्मागो्का्प्रारम्भ्होता्हो्तथा्उत्तर्ददशा्से्भी्दश्मागण्ननकलते्हो; साथ्ही्
s.c
इन्मागो्के्साथ्अनेक्अगणलायुक्त्कुट्दिम्मागण्हो्तथा्नगर्मे्राजभवन्भी्हो्तो्उसे्
श्रेष्ठ्जनों्ने्ववजय्संज्ञा्प्रदान्की्है ्॥६९॥
(सवणतोभद्र्योजना्मे)्पूव्ण से्ग्यारह्मागण्तथा्उत्तर्से्ग्यारह्मागण्ननकलते्हो, ब्रह्मभाग्क्
पन्श्चम्मे्इन्च्छत्स्थान्पर्राजा्का्आवास्हो, उसके्सम्मुख्बहुत्ववशाल्आूँगन्होना्चादहये्
ok
॥७०-७१॥
इसके्पश्चात्अभीष्ि्स्थन्पर्राननयों्का्आवास्होना्चादहये्।्पूव्ण से्ननकले्मागण्को्
राजवीथी्कहते्है ्॥७२॥
राजवीथे्के्दोनो्पाश्वों्मे्िनाढ्य्लोगों्की्मासलका-पङ्न्क्त्(भवनो्की्पङ्न्क्त्होनी्चादहये्।्
Bo
उनके्पाश्वों्मे्व्यापाररयों्का्आवास्होना्चादहये्।्उसके्दक्षक्षर््में ्तधतव
ु ायों्(जल
ु ाहो)्का्
आवास्होना्चादहये्।्उसके्उत्तर्मे्कुम्हारों्का्आवास्होना्चाइये्और्इनके्समीप्ही्
जात्यधतरो्(छोिी्जानत्वालों)्का्आवास्होना्चादहये्॥७३-७४॥
शेष्सभी्पव
ू व
ण र्र्णत्ननयमों्के्अनस
ु ार्होना्चादहये्।्यह्सवणतोभद्र्व्यवस्था्है ्।्इस्प्रकार्
44
अन्तरापण
हाि-योजना्-्अब्मैं्(मय)्कुिुम्बावसलक्(पररवारों्के्आवास्की्पंन्क्त)्तथा्बाजारों्का्वर्णन्
करता्हूूँ्॥७७॥
बाजार्के्चारो्ओर्रथ्के्चलने्योग्य्मागण्हो्एवं्मध्य्मे्व्यापाररयों्के्गह
ृ ों्की्पङ्न्क्त्
होनी्चादहये्।्उनके्दक्षक्षर््पाश्वण्मे्जल
ु ाहों्के्गह
ृ ्होने्चादहये्॥७८॥
उत्तर्भाग्मे्कुम्हारो्के्भवन्होने्चादहये्।्अधय्सशन्लपयों्के्गह
ृ ्भी्रथमागण्से्संयक्
ु त्होने्
चादहये्॥७९॥
जो्मागण्ब्रह्म-पद्को्घेरता्हो, उस्पर्पान, फल्एवं्सारयक्
ु त्सामधग्रयो्का्हाि्बनाना्चादहये्
॥८०॥
ईशान्से्महे धद्र्पद्तक्हाि-बाजार्ननसमणत्करना्चादहये्।्वही्पर्मछली, माूँस, सूखे्पदाथण्एवं्
शाक्(सब्जी, तरकारी)्का्हाि्भी्होना्चादहये्॥८१॥
महे धद्र्पद्से्प्रारम्भ्कर्अन्ग्नकोर्-पयणधत्भक्ष्य्एवं्भोज्य्(खाने-पीने्योग्य)्पदाथों्का्हाि्
बनाना्चादहये्तथा्अन्ग्न्से्गह
ृ क्षतपयणधत्भाण्डों्(बरतन)्का्हाि्होना्चादहये्॥८२॥
गह
ृ क्षत्से्ननऋनत्के्पद्तक्कांस्य्आदद्िातुओं्से्ननसमणत्पदाथों्का्हाि्होना्चादहये्।्
वपतप
ृ द्से्पुष्पदधत्के्पद्तक्वस्रों्का्हाि्होना्चादहये्॥८३॥
om
पुष्पदधत्से्समीर्पदपयणधत्चावल, अधन्एवं्भूसे्के्बाजार्होने्चादहये्।्वायु्से्भललाि्के्
पद्तक्वस्र्आदद्के्हाि्होने्चादहये्॥८४॥
उसी्स्थान्पर्नमक्आदद्पदाथण्एवं्तेल्आदद्का्हाि्होना्चादहये्।्भललाि्से्ईश्तक्
सुगधि्एवं्पुष्प्आदद्का्हाि्होना्चादहये्॥८५॥
s.c
इस्प्रकार्वसनत-ववधयास्(नगरादद)्मे्चारो्ओर्नौ्प्रकार्के्हािों्का्वर्णन्ककया्गया्है ्।्
मध्य्भाग्मे्जाने्वाले्मागो्पर्रत््न, सुवर्ण्एवं्वस्रो्का्हाि्होना्चादहये्॥८६॥
इनके्अनतररक्त्मान्ञ्जष्ठ्(मजीठ, रं ग), काली्समचण, पीपल, हाररद्र्(हलदी), शहद, घी, तेल्तथा्
औषि्के्हाि्सभी्स्थानों्पर्होने्चादहये्॥८७॥
ok
आयण, वववस्वान, समर्एवं्पधृ थवीिर्के्पद्पर्शास्ता, दग
ु ाण, गजमुख्एवं्लक्ष्मी्का्स्थान्होना्
चादहये्॥८८॥
न्जस्प्रकार्ग्राम्मे्उसी्प्रकार्(नगर्आदद्मे्भी)्चारो्ओर्दे वालय्होना्चादहये्।्इससे्कुछ्
दरू ्सभी्वर्ण्के्मनष्ु यों्का्आवास्होना्चादहये्॥८९॥ नगर्से्दो्सौ्दण्ड्दरू ्ले्जाकर्पव
ू ्ण
Bo
अथवा्आग्नेय्कोर््मे्चण्डालों्एवं्कोसलकों्के्कुिीर्होने्चादहये्॥९०॥
यहाूँ्न्जन्सबका्वर्णन्नही्ककया्गया्है , वे्सब्उसी्प्रकार्होंगे, जैसे्ग्रामों्मे्वर्र्णत्है ्।्पत्तन्
में ्ऋतप
ु थ्(सीिी्सड़क)्होती्है ्एवं्वहाूँ्बाजार्नही्होते्है ्।्शेष्नगर्आदद्स्थानों्मे्
यथोधचत्(आवश्यकतानस
ु ार)्हाि्आदद्होना्चादहये्॥९१॥
44
प्राचीन्आचायो्ने्दस्प्रकार्के्वासयोग्य्अधिष्ठानो्का्वर्णन्ककया्है ्-्स्नानीय, दग
ु ,ण परु ,
पत्तन, कोत्मकोल, द्रोर्मख
ु , ननगम, खेि, ग्राम्तथा्खवणि्।्(इनकी्स्थापना्भौगोसलक्न्स्थत्के्
अनुसार्होती्है )्॥९२॥
इस्प्रकार्तधरों्से्ग्रहर््कर्संक्षेप्मे्भूसम, दे वताओं, चार्वर्ों, जात्यधतरो्(सङ्कर्जानत),
ग्रामादद्के्प्रमार्, मागण-ववधयास्का्सुधदर्सजावि्के्साथ्वर्णन्ककया्गया्है ्॥९३॥
राजा्को्मापन्आदद्कायण्में ्ननपुर््चारो्स्थपनत्आदद्को्गाय्एवं्पधृ थवी्प्रदान्करना्चादहये्
।्ऐसा्करने्से्जब्तक्संसार्मे्चधद्रमा्एवं्तारे ्रहें गे्तब्तक्वह्राजा्प्रसधनतापूवक
ण ्
पधृ थवी्पर्िन्आदद्अनेक्समद्
ृ धिदायक्वस्तुओं्से्युक्त्एवं्सवणदा्प्रसधन्रहता्है ्॥९४॥
इनत्मयमते्वस्तुशास्रे्नगरवविानो
मयमतम्-्अध्याय्११
भूमम्के्तल्एिं्आयाम -
अब्मै्(मय)्संक्षेप्मे्क्रमानुसार्भूसमलम्बवविान्का्वर्णन्करता्हूूँ्।्क्षय्(कम्करते्हुये)्एवं्
वद्
ृ धि्(बढाते्हुये)्वविान्के्अनुसार्ववधयास-भेद्इस्प्रकार्है ्-्चौकोर, आयताकार, गोलाकार,
लम्बाई्सलये्गोलाकार, अष्िकोर्, षट््कोर््एवं्द्व्यस्रवत्त
ृ ्(दो्कोर्ों्के्साथ्गोलाकार)्॥१-२॥
इसे्भूसमलम्ब्कहते्है ्।्एक्भूसम्(के्भवन)्का्मान्तीन्या्चार्हस्त्से्प्रारम्भ्कर्दो-दो्
हाथ्की्वद्
ृ धि्करते्हुये्चार्प्रकार्का्होता्है ्॥३॥
om
पाूँच्या्छः्हाथ्से्प्रारम्भ्कर्दो-दो्हाथ्बढ़ाते्हुये्ग्यारह्या्बारह्हाथ्तक्दो्तल्वाले्
भवन्के्चार्प्रकार्के्मान्होते्है ्॥४॥
तीन्तल्वाले्भवन्के्सात्या्आठ्हाथ्से्प्रारम्भ्कर्दो-दो्हाथ्बढ़ाते्हुये्पधद्रह्या्सोलह्
हस्तपयणधत्पाूँच्प्रकार्के्मान्होते्है ्॥५॥
नौ्या्दश्हाथ्से्प्रारम्भ्कर्पधद्रह्या्सोलह्हाथ्तक्चार्और्पाूँच्तल्वाले्भवन्के्चार्
s.c
प्रकार्के्मान्वर्र्णत्है ्॥६॥
अथवा्एक्तल्का्क्षुद्र्प्रमार््एक्हाथ्या्दो्हाथ्कहा्गया्है ्।्कुछ्ववद्वान््दे वों्एवं्
मनष्ु यो्के्कई्तल्वाले्भवन्के्ववस्तारप्रमार््में ्आिा्हाथ्जोड़ने्या्कम्करने्के्सलये्
कहते्है ्।्यह्सम्या्ववषम्संख्या्वाले्सभी्हस्त-प्रमार््के्सलये्है ्।्(लम्बाई्के्सलये)्
ok
ववस्तारप्रमार््मे्तीन्के्साथ्ववस्तार्का्सात, छः, पाूँच, चार्या्नतन्अंश्अधिक्जोड़ना्चादहये्
॥७-८॥
शान्धतक, पौन्ष्िक, जयद, अद्भत
ु ्एवं्सावणकासमक्भवनों्मे्पव
ू ोक्त्प्रमार््के्अनतररक्त्भवन्की्
Bo
ऊूँचाई्उसके्चौड़ाई्की्दग
ु न
ु ी, डेढ़गन
ु ी्अथवा्सवा्गन
ु ी्अधिक्होनी्चादहये्॥९॥
चौड़ाई्मे्पधद्रह्हाथ्से्कम्माप्का्भवन्क्षुद्रववमानक्होता्है ्।्सरह्या्अट्ठारह्हाथ्से्
प्रारम्भ्कर्दो-दो्हाथ्बढ़ाना्चादहये्॥१०॥
(दो-दो्हाथ्बढ़ाते्हुये)्सत्तर्हाथ्तक्माप्ले्जाना्चादहये्।्चार्तल्से्बारह्तलपयणधत्भवन्
44
om
बड़े्भवनों्की्ऊूँचाई्कर-प्रमार््में ्दी्गई्है ्।्इनका्ववस्तर्दश्मे्सातवाूँ्भाग्होना्चादहये्
॥२१॥
छोिे ्भवनों्की्ऊूँचाई्उनके्ववस्तर्की्दग
ु ुने्होनी्चादहये्।्सावणभौम्दे वों्का्मन्धदर्बारह्तलों्
का्होना्चादहये्॥२२॥
होना्चादहये्॥२३॥
s.c
राक्षस, गधिवण्एवं्यक्षो्का्भवन्एकादश्तल्का्तथा्ब्राह्मर्ों्का्भवन्नौ्या्दश्तल्का्
मैने्(मय्ऋवष्ने)्ववसभधन्ऊूँचई्वाले्एवं्ववस्तार्वाले्अत्यधत्छोिे , मध्यम्एवं्बडे्भवनों्का्
वर्णन्प्राचीन्ववद्वानों्के्मतानस
ु ार्ककया्।्इस्प्रकार्यह्ब्रह्मा्आदद्दे वों्एवं्मनष्ु यो्के्
भवनो्का्वर्णन्ननयमानस
ु ार्ककया्गया्॥२७॥
इनत्मयमते्वस्तश
ु ास्रे्भल
ू म्बवविानो्नामैकादशोऽध्यायः
44
मयमतम्-्अध्याय्१२
मिलान्यास्-
दे वों्के्ब्राह्मर्ों्के्एवं्अधय्वर्ण्वालों्के्भवनों्के्गभणधयास्(सशलाधयास)्की्ववधि्का्भली-
भाूँनत्एवं्संक्षेप्मे्अब्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥१॥
सभी्पदाथों्से्यक्
ु त्गभण्(भवन्की्नींव्का्गत)्सम्पदा्का्स्थल्होता्है ्तथा्ककसी्पदाथण्के्
कम्होने्से्अथवा्गभणधयास्न्होने्से्वह्गभण्सभी्प्रकार्की्ववपवत्तयों्का्कारर््(उस्पर्
ननसमणत्भवन्एवं्भवन्के्ननवाससयों्के्सलये)्बनता्है ्॥२॥
इससलये्सभी्प्रकार्के्प्रयत्नपूवक
ण ्गभण्का्धयास्करना्चादहये्।्गभण्के्गतण्की्गहराई्को्
अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्तक्समतल्करना्चादहये्॥३॥
गतण्को्ईंिों्एवं्पत्थरो्से्सम्एवं्चौकोर्करना्चादहये्।्पानी्से्गड्ढे ्को्भरने्के्बाद्इसके्
मूल्मे्सभी्प्रकार्की्समट्दियाूँ्डालनी्चादहये्॥४॥
यह्मवृ त्तका्नदी्से, तालाब्से, अधन्के्खेत्से, पवणत्से, बाूँबी्से, हल्से, बैल्के्सींग्से्एवं्
गजदधत्से्प्राप्त्होती्है्॥५॥
उसके्ऊपर्गतण्के्मध्य्में ्पद्म्(लाल्कमल)्की्जड़, पूव्ण ददशा्में ्उत्पल्(नीलकमल)्की्जड़्
om
एवं्दक्षक्षर््में ्कुमुद्(की्जड़)्डालनी्चादहये्॥६॥
पन्श्चम्ददशा्में ्सौगन्धि्(एक्प्रकार्की्सुगन्धित्घास), उत्तर्ददशा्में ्नील-लोह्(नीले्या्काले्
रं ग्का्िातु)्डालना्चादहये्।्उनके्ऊपर्आठो्ददशाओं्में ्आठ्िाधयशासल्(चावल्का्एक्
प्रकार), व्रीदह्(चावल्का्एक्प्रकार), कोद्रव्(कोदो), कङ्कु, मुद्ग्(मूँग
ू ), माष्(उड़द), कुलत्थ्(कुलथा)्
पेटी -
s.c
एवं्नतल्को्प्रदक्षक्षर््क्रम्से्ईशान्से्प्रारम्भ्करते्हुये्गतण्मे्डालना्चादहये्॥७-८॥
उसके्ऊपर्ताूँबे्से्ननसमणत्मञ्जूषा्(पेिी, बाक्स)्रखना्चादहये्।्प्रमार््की्दृन्ष्ि्से्यह्पार्
चौड़ाई्में ्तीन्या्चार्अंगुल्से्प्रारम्भ्करते्हुये्दो-दो्अंगुल्की्वद्
ृ धि्के्साथ्पच्चीस-छब्बीस्
ok
अंगुलपयणधत्बारह्प्रकार्का्होता्है ्।्इसकी्ऊूँचाई्इसकी्चौड़ाई्के्बराबर्अथवा्आठ, छः्या्
पाूँच्भाग्कम्रखनी्चादहये्॥९-१०॥
उपयक्
ुण त्माप्एक्से्बारह्तलपयणधत्भवनों्के्क्रमानुसार्वर्र्णत्है ्।्(अथवा)्पादलम्ब्(स्तम्भ)्
के्वविान्के्अनस
ु ार्गह
ृ ्की्ऊूँचाई्के्तीसरे ्भाग्के्प्रमार््को्ग्रहर््करना्चादहये्॥११॥
Bo
अथवा्भवन्के्स्तम्भ्के्ववष्कम्ब्(घेरा)्से्आठ्भाग्कम्मञ्जष
ू ा्का्माप्रखना्चादहये्।्
मञ्जष
ू ा्की्चौड़ाई्फेला्(गतण्के्तल्का्मेहराब)्का्तीन्चौथाई्भाग्या्पव
ू व
ण र्र्णत्माप्के्
अनस
ु ार्रखना्चादहये्॥१२॥
मञ्जष
ू ा्की्आकृनत्बरवगण्मण्डप्के्सदृश, वत्त
ृ ाकार्अथवा्चौकोर्होना्चादहये्।्इसमे्पच्चीस्
44
कोष्ठ्या्नौ्कोष्ठ्होना्चादहये्॥१३॥
फेला्की्ऊूँचाई्के्तीन्भाग्करने्चादहये्।्उसके्एक्भाग्के्बराबर्कोष्ठ्की्सभवत्त्की्ऊूँचाई्
होनी्चादहये्।्उस्सभवत्त्की्मोिाई्दो, तीन्या्चार्यव्(ववना्नछलके्वाले्यव्के्मध्य्भाग्की्
चौड़ाई)्के्बराबर्रखनी्चादहये्।्उपपीठ्वास्तुववधयास्पर्पच्चीस्वास्तुदेवों्को्स्थावपत्करना्
चादहये्॥१४॥
नीव्मे्वास्तु-पूजन्की्सामग्री्रखना्-्न्जस्ददन्गभणस्थापन्का्वविान्करना्हो, उसके्एक्
ददन्पूव्ण गतण्के्ऊपर्की्(आस-पास्की)्भूसम्को्सभी्प्रकार्के्गधिो्से्सुवाससत्कर्पुष्पों्
तथा्दीपकों्से्सुसन्ज्जत्करना्चादहये्।्मञ्जूषापार्को्पञ्चगव्य्(गाय्का्दि
ू , दही, घी, मूर्एवं्
गोबर)्से्स्वच्छ्कर्उस्पर्सूर्लपेिना्चादहये्।्इसके्पश्चात्भूसम्पर्शुद्ि्शासल्का्िान्
बबछाना्चादहये्॥१५-१६॥
उस्शासल्के्आस्तरर््पर्चन्ण्डत्अथवा्मण्डूक्वास्तप
ु द्का्ववधयास्कर्श्वेत्तण्डुल्की्िारा्
के्द्वारा्ब्रह्मा्आदद्वास्तुदेवों्का्पदववधयास्करना्चादहये्॥१७॥
वास्तु-दे वों्की्पज
ू ा्गधि्एवं्पष्ु प्आदद्से्करके्संसार्के्स्वामी्(सशव)्का्जप्करना्चादहये्।्
इसके्पश्चात्पाूँच-पाूँच्कलशो्का्धयास्करना्चादहये्।्इन्कलशों्को्वस्रों्से्सजाना्चादहये,
उनमें ्सुगन्धित्जल्से्भरना्चादहये्तथा्गधि्एवं्पुष्पों्से्उनकी्पूजा्करनी्चादहये्।्इन्
कलशों्को्दोषरदहत, नछद्ररदहत्एवं्एक्सूर्(एक्लाइन)्में ्रक्खा्होना्चादहये्॥१८-१९॥
शासल्िाधय्के्ऊपर्ननसमणत्स्थन्ण्डल्मण्डल्के्ऊपर्प्रदक्षक्षर्क्रम्से्(पूवण, दक्षक्षर्, पन्श्चम्एवं्
उत्तर)्गधि्एवं्पुष्प्आदद्से्वास्तुदेवों्को्ननयमानुसार्बसल्प्रदान्कर्एवं्उनकी्पूजा्करने्के्
पश्चात्मञ्जूषा-पार्को्श्वेत्वस्र्से्लपेिना्चादहये्।्उसके्ऊपर्श्वेत्वस्र्को्फैलाना्चादहये्
एवं्उसके्ऊपर्दभण्(कुश)्बबछाना्चादहये्॥२०-२१॥
om
तदनधतर्सूरग्राही्आदद्के्द्वारा्सम्माननत्बुद्धिमान्एवं्वास्तुशास्र्के्ज्ञाता्स्थपनत्को्शुद्ि्
जल्पान्कर्राबर्को्उपवास्करना्चादहये्॥२२॥
(अगले्ददन)्मञ्जूषा्मे्प्रयत्नपूरक्िाधय्आदद्वस्तुओं्को्रखना्चादहये्।्ये्पदाथण्है ्-सोने्के्
शासल, चाूँदी्के्व्रीदह, ताूँबे्के्कुलत्थ, राूँगे्के्कङ्कु, सीसे्के्उड़द, अयस्(लोहे )्के्मूँूग, अयस्के्
कोदो्तथा्पारे ्के्नतल्॥२३-२४॥
उपयक्
s.c
ुण त्वस्तुओं्को्ईशान्कोर््से्प्रारम्भ्करते्हुये्(प्रदक्षक्षर्क्रम्से)्आठो्ददशाओं्(एवं्कोर्ों)्
में ्रखना्चादहये्।्इसके्पश्चात्जयधत्के्पद्पर्ससधदरू ्एवं्भश
ृ ्पर्हररताल्रखना्चादहये्
॥२५॥
ok
ववतथ्के्पद्पर्मनःसशला्(मैनससल), भङ्
ृ गराज्पर्माक्षक्षक्(लाल्खड़ड़या), सुग्रीव्पर्लाजावतण,
शोष्पर्गेरु, गर्मुक्य़्पर्अञ्जन, उददर्पर्दरद्(लाल्ताूँबा), मध्य्भाग्पर्पद्मराग्(रूबी्
पत्थर), मरीधच्पर्मूँग
ू ा, सववधद्र्पर्पुष्पराग, वववस्वान्पर्वैदय
ू ्ण मर्र्, इधद्रजय्पर्हीरा, समर्पर्
इधद्रनील, रुद्रराज्पर्महानील, महीिर्पर्मरकत्(पधना)्एवं्आपवत्स्पर्मोती्का्स्थापन्करना्
Bo
चादहये्।्इन्सभी्पदाथों्को्मध्य्से्प्रारम्भ्कर्पव
ू ्ण क्रम्से्क्रमानस
ु ार्रखना्चादहये्।्॥२६-
२७-२८-२९॥
उपयक्
ुण त्कोष्ठों्मे्इन्ओषधियों्को्ईशान्कोर््से्प्रारम्भ्करते्हुये्रखना्चादहये्-्
ववष्र्क्र
ु ाधता, बरशल
ू ा, श्री, सहा, दव
ु ाण, भङ्
ृ गक, अपामागण्तथा्एकपराब्ज्॥३०॥
44
om
॥४०॥
(पधृ थवी्का्ध्यान्करने्के्पश्चात)्सन्ृ ष्ि, न्स्थनत्एवं्ववनाश्के्आिारभूत्संसार्के्स्वामी्का्
जप्करना्चादहये्।्ब्रह्मा्आदद्दे वों्एवं्दे ववयों्के्(मन्धदर्के)्दक्षक्षर््द्वार्के्स्तम्भ्के्मूल्
में , होमस्तम्भ्के्नीचे,प्रनतस्तम्भ्के्नीचे, पादक
ु ा्से्प्रनत्के्नीचे्उधचत्रीनत्से्रखना्चादहये्
॥४१-४२॥
s.c
ननयत्स्थान्से्ऊूँचा्या्नीचा्गभण-स्थापन्सम्पवत्त्के्ववनाश्का्कारर््होता्है ्।्मञ्जूषा-
स्थापन्के्पश्चात्सार-वक्ष
ृ ्के्काष्ठ्या्पाषार्-खण्डो्से्भूसम्को्चौकोर्बनाना्चादहये्॥४३॥
इस्पार्के्ऊपर्पार्का्दग
ु ना्चौड़ा्एवं्पाूँच्अंगुल्मोिा्प्रनतमाफलक्स्थावपत्करना्चादहये्
ok
॥४४॥
उसके्ऊपर्चार्ईंिो्से्जुड़्े हुये्स्तम्भ्की्स्थापना्करनी्चादहये्।्वह्स्तम्भ्रत्न्एवं्
ओषधियों्से्युक्त्हो्एवं्वस्र्तथा्पुष्प्आदद्से्अलङ्कृत्हो्॥४५॥
इस्प्रकार्सशवालय्के्भू-गभण्ववधयास्की्ववधि्का्वर्णन्ककया्गया्।्अब्अधय्मन्धदरों्के्
Bo
गभण-ववधयास्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्।
विष्णग
ु भा
विष्णम
ु ल्न्दर्का्मिलान्यास - ववष्र्द
ु े व्के्भवन्में ्मध्य्भाग्मे्सव
ु र्णननसमणत्चक्र्स्थावपत्करना्
चादहये्।्शङ्ख, िनष
ु , दण्ड्सव
ु र्ण-ननसमणत्एवं्लोहे ्की्तलवार्होनी्चादहये्।्िनष
ु ्एवं्शङ्ख्वाम्
44
om
गभणधयास्मे्वायु्के्भवन्में ्कृष्र््वर्ण्का्मग
ृ ्तथा्तारापनत्(चधद्रमा)्के्भवन्में ्सुवर्णननसमणत्
व्याल्स्थावपत्करना्चादहये्।्कुबेर्के्भवन्मे्मनुष्य्(की्प्रनतमा)्एवं्मदन्(कामदे व)्के्भवन्
में ्मकर्स्थावपत्करना्चादहये्॥५७॥
ववघ्नेश्(गर्ेश)्के्भवन्के्गभण्मे्कुठारदधत्(गजदधत)्एवं्अक्षमाला्स्थावपत्करनी्चादहये्।्
s.c
आयणक्के्भवन्में ्सुवर्णननसमणत्िे ढ़ा्दण्ड्एवं्ओम्स्थावपत्करना्चादहये्॥५८॥
सुगत्के्भवन्के्गभणधयास्के्सलये्सोने्के्पीपल, करक्(कमण्डलु), ससंह्एवं्छर्ननसमणत्कराना्
चादहये्।्सामने्के्भाग्मे्अश्वत्थ्(पीपल)्स्थावपत्करना्चादहये्एवं्उसके्ऊपर्छर्स्थावपत्
करना्चादहये्।्वाम्भाग्में ्कुन्ण्डका्(कमण्डलु)्एवं्दादहने्भाग्में ्केसरी्(ससंह)्तथा्गभण्में ्
ok
श्रीवत्स, अशोक्एवं्ससंह्स्थावपत्करना्चादहये्॥५९-६०॥
(श्रीवत्स, अशोक्एवं्ससंह्के्अनतररक्त)्कमण्डलु, अक्षमाला्एवं्मोर्का्पंख्सुवर्णमय्तथा्
बरच्छर, करक्एवं्तालवधृ त्(ताल्का्पंखा)्सोने्से्ननसमणत्होना्चादहये्॥६१॥
(न्जनमन्धदर्में )्वक्ष
ृ ्को्सम्मख
ु , उसके्ऊपर्छर्स्थावपत्करना्चादहये्।्मोर-पंख्को्दादहने्
Bo
भाग्मे्एवं्वामभाग्मे्कुन्ण्डका्(कमण्डल)ु ्के्साथ्अक्षमाला्स्थावपत्करनी्चादहये्॥६२॥
न्जन-मन्धदर्में ्श्रीरूप्को्गभण्के्मध्य्में ्स्थावपत्करना्चादहये्एवं्ससंह्को्भी्वही्स्थावपत्
करना्चादहये्।्करक्एवं्तालवधृ त्को्उसके्बाये्स्थावपत्करना्चादहये्॥६३॥
बद्
ु धिमान्(स्थपनत)्को्दग
ु ाण-मन्धदर्के्गभण-ववधयास्मे्शक
ु ्एवं्चक्र्सव
ु र्ण्ननसमणत, ससंह्एवं्शंख्
44
रजत-ननसमणत, मग
ृ ्ताम्र-ननसमणत्तथा्तलवार्लोहा-ननसमणत्स्थावपत्करना्चादहये्।्क्षेरपाल्के्
मन्धदर्के्गभण-ववधयास्में ्सव
ु र्णननसमणत्खट््वाङ्ग, तलवार्एवं्शन्क्त्स्थावपत्करनी्चादहये्॥६४-
६५॥
सुवर्णपद्म्लक्ष्मी-मन्धदर्में , तीन्वर्ण्का्ॐकार्सरस्वती्मन्धदर्मे्तथा्ज्येष्ठा्के्मन्धदर्मे्
सुवर्णननसमणत्काक, केतु्एवं्कमल्गभण्मे्स्थावपत्करना्चादहये्॥६६॥
काली-मन्धदर्के्गभणववधयास्के्कपाल, शूल्एवं्घण्िो्के्साथ्प्रेतो्को्स्थावपत्करना्चादहये्।्
मातक
ृ ाओं्के्भवन्के्गभण्में ्हं स, वष
ृ भ, मयूर, गरुड़, ससंह, गज्एवं्प्रेतों्की्सुवर्ण-प्रनतमायें्स्थावपत्
करनी्चादहये्।्रोदहर्ी्के्मन्धदर्के्गभण्में ्पद्म, अक्षसूर्एवं्दीप्स्थावपत्करना्चादहये्॥६७-
६८॥
पावणती-मन्धदर्के्गभण्में ्दपणर््एवं्अक्षमाला्तथा्मोदहनी-मन्धदर्में ्पद्म, अक्षमाला्एवं्पर्
ू -ण कुम्भ्
स्थावपत्करना्चादहये्॥६९॥
न्जन्दे वी्एवं्दे वों्का्उललेख्यहाूँ्नही्ककया्गया्है , उनके्मन्धदर्के्गभण्में ्उनके्ववसशष्ि्
धचह्न्एवं्वाहन्के्साथ्छर, ध्वज्एवं्पताका्स्थावपत्करनी्चादहये्॥७०॥
मानष
ु हर्मयागभाक
मनष्ु य्के्भवन्का्सशलाधयास्-्द्ववजधमा्वर्ण्वालों्के्भवन्के्गभण्मे्न्जन्वस्तओ
ु ं्का्
ववधयास्होता्है , उनका्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्।्उनमे्कारक्तथा्दधतकाष्ठ्ताम्रमय्एवं्
सव
ु र्णमय्होता्है ्॥७१॥
यज्ञोपवीत्(जनेऊ), यज्ञान्ग्न्एवं्यज्ञपार्रजत-ननसमणत्होते्है ्।्यज्ञोपवीत्गभण्के्मध्य्मे्तथा्
om
यज्ञपार्उसके्दादहने्होना्चादहये्॥७२॥
यज्ञोपवीत्के्वाम्भाग्मे्करक्तथा्दधत-काष्ठ्एवं्यज्ञान्ग्न्सम्मुख्होना्चादहये्।्चारो्
ददशाओं्में ्स्वन्स्तक्होने्चादहये्।्ब्राह्मर््के्गह
ृ ्का्गभण-ववधयास्इस्प्रकार्वर्र्णत्है ्॥७३॥
(क्षबरय्के्गह
ृ ्का्गभण-ववधयास्इस्प्रकार्होना्चादहये)्मध्य्मे्सुवर्णमय्चक्र, उसके्वाम्भाग्
मे्रजत-ननसमणत्शंख्एवं्ताम्रननसमणत्िनुष्होना्चादहये्।्चक्र्के्दक्षक्षर््भाग्में ्सोने्का्दण्ड्
s.c
होना्चादहये्॥७४॥
दक्षक्षर््भाग्में ्ही्लोहे ्का्खड््ग्तथा्चारो्ददशाओं्में ्चार्गज्होने्चादहये्।्ये्क्रमशः्सुवर्ण,
लोहा, ताूँबा्एवं्रजत-ननसमणत्हो्॥७५॥
मध्य्भाग्में ्सुवर्णननसमणत्श्रीरूपक्एवं्चारो्ददशाओं्में ्स्वन्स्तक्तथा्छर, ध्वज, पताका्एवं्दण्ड्
ok
ननन्श्चत्रूप्से्होना्चादहये्।्यह्गभण-धयास्राजा्के्गह
ृ ्के्सलये्होता्है ्॥७६॥
ये्सभी्गभण-धयास्राजभवन्के्द्वार्के्स्थान्पर्होने्चादहये्।्अधय्क्षबरयों्के्गह
ृ ों्मे्उधचत्
स्थान्पर्होना्चादहये्।्यदद्राजा्'वाष्र्ेयक' श्रेर्ी्का्हो्तो्यह्गभण-धयास्ववजयद्वार्के्
Bo
दक्षक्षर््ओर्होना्चादहये्॥७७॥
(वैश्य-गह
ृ ो्का्गभण-धयास्इस्प्रकार्होना्चादहये)्लोहे ्से्ननसमणत्हल्का्अग्र्भाग्(न्जह्वा)्एवं्
शंख्तथा्ताूँबे्से्ननसमणत्केकड़ा, (ववष्र्ु्के)्पाूँच्अस्र्एवं्उड़द्सीसा्(लेड)्से्ननसमणत्होना्
चादहये्।्इनके्अनतररक्त्अश्व, वष
ृ , गज्एवं्ससंह्होना्चादहये्॥७८॥
44
om
दीपक्एवं्शयन्(आसन)्स्थावपत्करना्चादहये्।्॥८६-८७॥
न्जन्सामधग्रयों्से्न्जन्कायों्को्सम्पधन्ककया्जाता्है , उन्सामधग्रयों्को्उनके्कक्षों्के्गभण्में ्
स्थावपत्करना्चादहये्।्जो्न्जनके्प्रतीक्हो, उन्धचह्नो्को्उसके्गभण्में ्स्थावपत्करना्चादहये्
॥८८॥
s.c
सभागार, प्रपा्(प्याऊ)्एवं्मण्डपो्मे्दक्षक्षर्ी्कोने्के्स्तम्भ्अथवा्दस
दादहने्स्तम्भ्के्नीचे्गभण-स्थापन्करना्चादहये्॥८९॥
उपयक्
ू रे ्स्तम्भ्या्द्वार्के्
सभागार्के्गभण-स्थापन्में ्(पव
ू ोक्त)्सव
ु र्ण-ननसमणत्पदाथों्को्रखना्चादहये्।्गभण-स्थापन्
सभागार्के्द्वार्अथवा्स्तम्भ्के्नीचे्अथवा्कोर््मे्न्स्थत्स्तम्भ्के्मल
ू ्मे्करना्चादहये्
॥९३॥
उपयक्
ुण त्हे म-गभण्का्स्थापन्तल
ु ाभार्एवं्असभषेक्मण्डप्(राजभवन्के्ववसशष्ि्अवसरों्पर्
44
अयं्मन्त्र्-
मधर्इस्प्रकार्है ्-्मधरो्एवं्स्वर्के्दे वता्के्सलये्स्वाहा्॥्सभी्रत्नो्के्अधिपनत्के्सलये्
स्वाहा्।्उत्तम्एवं्सत्यवादी्प्रजापनत्के्सलये्स्वाहा्।्लक्ष्मी्को्प्रर्ाम्।्सरस्वती्को्प्रर्ाम्।्
वववस्वान्को्प्रर्ाम्।्वज्रपार्र््को्प्रर्ाम्।्सभी्ववघ्नो्के्ववनाशक्असभनव्को्प्रर्ाम्।्अन्ग्न्
को्प्रर्ाम्एवं्स्वाहा्॥
om
बावड़ी्आदद्का्सशलाधयास्-्वापी्(बावड़ी)्कूप, तालाब, दीनघणका्(लम्बा्सरोवर, जलाशय)्एवं्पुल्
के्ननमाणर््मे्गभण-स्थापन्हे त्ु स्वर्ण-ननसमणत्मछली, मेढक, केकड़ा, सपण्एवं्सूँस
ू ्को्पार्में ्रखकर्
उत्तर्ददशा्या्पव
ू ्ण ददशा्में ्एक्परु
ु ष्की्अञ्जली्के्माप्के्गड्ढे ्मे्स्थावपत्करना्चादहये्॥९९-
१००॥
प्रथमेष्टक s.c
सशलाधयास्की्प्रथम्ईि-स्थापना्-्भवन्के्गभण्का्स्थापन्शभ
ु ्मह
ु ू त,ण लग्न्एवं्होरा्से्यक्
ु त्
राबर्में ्करना्चादहये्तथा्शभ
ु ्मह
ु ू त,ण लग्न्एवं्होरा्से्यक्
ु त्ददन्मे्चार्ईंिो्की्स्थापना्करनी्
चादहये्॥१०१॥
न्जस-न्जस्स्थान्पर्गभण-स्थापन्ककया्गया्हो, वहाूँ्प्रथम्ईि्मवृ त्तका, जड़, अधन, िातु, रत्न्एवं्
ok
ओषधियों्के्साथ्स्थावपत्करनी्चादहये्॥१०२॥
(इनके्अनतररक्त)्गधियुक्त्पदाथो्एवं्बीजों्के्साथ्प्रथम्ईि्का्धयास्करना्चादहये्।्प्रस्तर्
से्ननसमणत्होने्वाले्भवन्में ्प्रस्तरमयी्सशला्एवं्ईि्से्ननसमणत्होने्वाले्भवन्मे्इष्िका्का्
Bo
धयास्करना्चादहये्॥१०३॥
गभण्मे्रक्खी्जाने्वाली्मञ्जूषा्के्बराबर्चौड़ी, चौड़ाई्से्दग
ु ुनी्लम्बी्एवं्चौड़ाई्की्आिी्मोिी्
चारों्इष्िकायें्होनी्चादहये्।्इष्िका्का्यह्प्रमार््सभी्भवनों्के्सलये्होता्है ्॥१०४॥
मध्यम्एवं्उससे्बडे्आकार्के्ईि्आठ्या्बारह्होने्चादहये्।्पुरुष-इष्िकाओं्की्लम्बाई्सीिी्
44
होनी्चादहये्एवं्उनका्माप्सम्संख्या्वाली्अंगुसलयों्से्रखना्चादहये्॥१०५॥
स्री-इष्िकाओ्की्लम्बाई्का्माप्ववषम्संख्या्मे्होना्चादहये्तथा्नंपुसक्इष्िकाओं्की्रे खा्
वक्र्होनी्चादहये्।्ईिो्को्स्पशण्मे्धचकना, अच्छी्प्रकार्पका्हुआ, (ठोकने्पर)्सुधदर्स्वर्से्
युक्त्एवं्दे खने्में ्सुधदर्होना्चादहये्॥१०६॥
पुरुष, स्री्एवं्नपुंसक्इष्िकाओं्का्भवन्में ्प्रयोग्क्रमानुसार्करना्चादहये्।्जैसा्पहले्प्राप्त्
होता्है , उसी्प्रकार्उनकी्स्थापना्करनी्चादहये्॥१०७॥
प्रथमेष्िका्को्दोषहीन्तथा्बबधद्ु एवं्रे खाओं्(अप्रशस्त्धचह्नो)्से्रदहत्होना्चादहये्तथा्
प्रारम्भ्मे्ही्झषाल्स्तम्भ्के्नीचे्स्थावपत्करना्चादहये्॥१०८॥
ववमान्(मन्धदर)्मे्ननखात्स्तम्भ्के्नीचे्एवं्गभणधयास्के्ऊपर्इष्िका्रखनी्चादहये्।्उधहे ्
पव
ू -ण दक्षक्षर््से्(प्रारम्भ्कर)्प्रदक्षक्षर्क्रम्से्तीनों्कोर्ों्(दक्षक्षर्-पन्श्चम, उत्तर-पन्श्चम्एवं्उत्तर-पव
ू )ण ्
मे्स्थावपत्करना्चादहये्॥१०९॥
दे वों्एवं्ब्राह्मर्ों्के्भवन्मे्इष्िका-स्थापन्पूवोक्त्क्रम्से्होना्चादहये्।्कुछ्ववद्वानों्के्
अनुसार्गतण्की्गहराई्ववस्तार्के्२/५्भाग्(से्अधिक)्नही्होनी्चादहये्॥११०॥
इष्िकाओ्के्चयन्से्तैयार्गतण्मे्सुधदर्वेष्िारर््कर्प्रथम्इष्िका्को्पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्
स्थावपत्करना्चादहये्॥१११॥
शुभ्ददन, पक्ष, नक्षर, होरा्एवं्मुहूत्ण प्राप्त्होने्पर्प्रथमतः्गभण्मे्रक्खे्जाने्वाले्पार्मे्मूनतणयाूँ,
वनस्पनतयाूँ, मर्र्, सुवर्ण्आदद्अष्ििातु्तथा्वर्ो; यथा्अञ्जन्आदद्को्रखना्चादहये्।्राबर्में ्
मवृ त्तका, जड़्एवं्आठ्प्रकार्के्अधनों्को्गतण्के्मूल्में ्रखना्चादहये्।्(अगले्ददन्प्रातः)्गभण-
om
स्थापन्की्मञ्जूषा्के्सलये्बसल-कमण्करने्के्पश्चात्गतण्मे्जल्के्भीतर्गभण-स्थापन्करना्
चादहये्॥११२॥
दे वों्के्एवं्मनुष्यों्के्भवन्में ्द्वार्एवं्स्तम्भ्के्मूल्में ्ववधिपूवक
ण ्अववकलाङ्ग्(सम्पूर््ण
अङ्गो्के्सदहत)्प्रारम्भ्मे्गभण-स्थापन्करना्चादहये्।्इसी्के्ऊपर्स्तम्भ्आदद्का्ननमाणर््
स्थावपत्करना्चादहये्॥११३॥
s.c
करना्चादहये्।्गभण-स्थल्के्ऊपर्सम्पूर््ण वैभव्से्युक्त्स्तम्भ्आदद्को्ववधि-वविानपूवक
ण ्
द्वार-योग्एवं्स्तम्भ्को्पच्चीस्कलशों्के्जल्से्पववर्करना्चादहये्।्इधहें ्श्वेत्चधदन्एवं्
नवीन्वस्र्से्युक्त्करना्चादहये्एवं्सभी्मङ्गल्पदाथो्से्युक्त्करने्के्पश्चात्स्थपनत्को्
ok
स्तम्भ्एवं्द्वार-योग्को्स्थावपत्करना्चादहये्॥११४॥
इनत्मयमते्वस्तुशास्रे्गभणववधयासो्नाम्द्वादशोऽध्यायः
Bo
मयमतम्-्अध्याय्१३
उपपीठ-विन्यास
44
om
।्एक्भाग्से्जधम्एवं्वाजम, दो्भाग्से्पादक
ु , दो्से्पङ्कज, एक्से्कम्प, बारह्से्कण्ठ, एक्
से्उत्तर, तीन्से्अम्बुज, एक्से्कपोत, दो्से्आसलङ्ग्एवं्एक्से्प्रनतवाजन्ननसमणत्करना्चादहये्
।्प्रनतभद्र्नामक्यह्उपपीठ्इन्सभी्अलङ्कारों्से्युक्त्होता्है ्॥९-१०-११॥
प्रनतभद्र्दो्प्रकार्के्होते्है ्।्(प्रथम्प्रकार्ऊपर्वर्र्णत्है ।)्दस
ू रे ्प्रकार्में ्एक्भाग्अधिक्होता्
s.c
है ्।्(इसके्अट्ठाईस्भाग्ककये्जाते्है ्।)्इसमें ्दो्भाग्से्पादक
ु , तीन्से्पङ्कज, एक्से्
आसलङ्ग, एक्से्अधतररत, दो्से्प्रनत, एक्से्ऊध्वण्वाजन, आठ्से्कण्ठ, एक्से्उत्तर, एक्से्
अब्ज, तीन्से्कपोत, एक्से्आसलङ्ग, एक्से्अधतररत, दो्से्प्रनत्एवं्एक्भाग्से्ऊध्वणवाजन्का्
ननमाणर््ककया्जाता्है ्॥१२-१३-१४॥
ok
इस्उपपीठ्में ्ऊूँचाई्के्इक्कीस्भाग्ककये्जाते्है ्।्दो्भाग्से्जधम, दो्से्अम्बुज, आिे्से्
कण्ठ, आिे्से्पद्म, दो्से्वाजन, आिे्से्अब्ज, आिे्से्कम्प, आठ्से्कण्ठ, एक्से्उत्तर, आिे्से्
पद्म, तीन्से्गोपानक्एवं्आिे्से्ऊध्वण्कम्प्ननसमणत्होते्है ्।्(इनसे्युक्त्उपपीठ)्की्संज्ञा्
सभ
ु द्रक्होती्है ्॥१५-१६॥
Bo
(सभ
ु द्र्उपपीठ्का्दस
ू रा्भेद्इस्प्रकार्है ्।्इसमें ्भी्ऊूँचाई्के्इक्कीस्भाग्ककये्जाते्है ्।)्
इसमें ्दो्भाग्से्जधम, तीन्से्पद्म, एक्से्कधिर, दो्से्वाजन, एक्से्कम्प, आठ्से्गल, एक्
से्कम्प, दो्से्वाजन्एवं्एक्से्कम्प्ननसमणत्होता्है ्।्इस्प्रकार्सभी्(उपयक्
ुण त)्अलङ्करर्ों्
से्यक्
ु त्सभ
ु द्र्उपपीठ्दो्प्रकार्के्होते्है ्॥१७-१८॥
44
अवपणत्(भवन्का्भागववशेष)्से्यक्
ु त्एवं्अवपणत्से्रदहत्सभी्प्रकार्के्भवनों्में ्ससंह, गज,
मकर, व्याल, भत
ु ्(प्रार्ी), पर्एवं्न्जसके्मस्तक्पर्बाल्मीन्सवार्हो, ऐसा्मत्स्य्अलङ्करर्रूप्
में ्अंककत्करना्चादहये्॥१९-२०॥
उपपीठ्के्प्रत्येक्अङ्ग्को्वद्
ृ धिक्रम्से्अथवा्हीन-क्रम्से्ननसमणत्करना्चादहये्एवं्उसी्प्रकार्
उपपीठ्को्अधिष्ठान्से्जोड़ना्चादहये्॥२१॥
उपपीठ्अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्से्दग
ु ुना, डेढ़्गुना, बराबर, आिा, तीन्चौथाई, २/५, दो्नतहाई्या्आिी्
होना्चादहये्।्यदद्अपने्सभी्अङ्गो्के्साथ्उपपीठ्अददष्ठान्के्बराबर्हो्तो्भी्उसका्
वाजन्बड़ा्होना्चादहये्।्उपपीठ्के्दृढ़्बनाने्के्सलये्बुद्धिमान्स्थपनत्को्उसके्सभी्अङ्गो्
को्उधचत्माप्मे्रखना्चादहये्॥२२॥
मयमतम्-्अध्याय्१४
अथधष्ठान्का्ननमााण्-
दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्अधय्वर्ण्वालों्के्गह
ृ -ननमाणर््के्अनरू
ु प्दो्प्रकार्की्भसू म-जाङ्गल्(सख
ू ी)्
एवं्अनप
ू ्(न्स्नग्ि)्होती्है ्।॥१॥
जाङ्गल्भसू म्अत्यधत्कंकरीली्होती्है ्एवं्खोदने्में ्कड़ी्होती्है ्।्इसमें ्खद
ु ाई्के्पश्चात्
अत्यधत्स्वच्छ, चधद्रमा्के्सदृश्जल्प्राप्त्होता्है ्॥२॥
भवन्की्योजना्के्अनरू
ु प्खद
ु ाई्करने्पर्धल्कमल्एवं्ककड़ी्से्यक्
ु त्महीन्बाल्ू प्राप्त्
om
होते्है ्।्ऐसी्भूसम्को्अनूप्कहते्है ्।्इसमें ्खद
ु ाई्करते्ही्जल्ददखाई्पड़ने्लगता्है ्॥३॥
(जलदशणन्के्पश्चात्)्गड्ढे ्को्ईंिो, प्रस्तर, समट्िी, धचकने्बालू्एवं्कङ्कड़्से्भरना्चादहये्।्
इधहे ्इस्प्रकार्भरना्चादहये, न्जससे्कक्खोदा्गया्गड्ढा्छे दरदहत्एवं्दृढ़्हो्जाय्।्इसे्
गजपाद्से्एवं्बड़े्काष्ठखण्डों्से्(कूि-पीि्कर)्सघन्बना्दे ना्चादहये्॥४-५॥
उस्गतण्को्(कङ्कड़्आदद्से्भरने्के्बाद्शेष्बचे्गड्ढे ्को)्जल्से्भरना्चादहये्।्जल्के्
s.c
क्षीर््न्होने्पर्शुभ्होता्है ्।्बुद्धिमान्(स्थपनत)्को्जल्से्ही्भूसम्के्समान्होने्(समतल्
होने)्की्परीक्षा्करने्के्पश्चात्गतण्में ्गभण-धयास्करना्चादहये्।्इसके्पश्चात्््ननयमपूवक
ण ्
वास्तु-होम्करना्चादहये्॥६॥
उस्स्थान्पर्स्तम्भ्का्दग
ु ुना्या्तीन्गुना्व्यास्वाला्एवं्उसका्आिा्मोिाई्वाला्बहल्से्
ok
युक्त्उपान्स्थावपत्करना्चादहये्।्उसके्ऊपर्बुद्धिमान्(स्थपनत)्को्उपान्के्अनुरूप्
प्रमार््का्पद्म्तथा्उपोपान्ननसमणत्करना्चादहये्॥७-८॥
भूसम्को्एक्हाथ्के्प्रमार््से्ऊूँचा्बनाकर्एवं्सघन्कर्उसके्ऊपर्न्जस्उपान्को्स्थावपत्
Bo
om
सात्भाग, कम्प्एक्भाग, कधिर्तीन्भाग, कम्प्एक्भाग, वाजन्तीन्भाग्तथा्एक्भाग्मे्
अिोकम्प्एवं्ऊध्वणकम्प्॥१९॥
इस्प्रकार्ऊूँचई्में ्चौबीस्भागों्में ्बाूँिे्गये्पादबधि्का्वर्णन्प्राचीन्ऋवषयों्द्वारा्ककया्
गया्है , जो्दे वों, ब्राह्मर्ों, राजाओं्(ऋवषयों)्वैश्यों्एवं्शूद्रों्के्भवन्के्अनुकूल्है ्॥२०॥
s.c
उरगबधि्अधिष्ठान्-्ऊूँचाई्में ्अट्ठारह्बागों्में ्ववभान्जत्उरगबधि्अधिष्ठान, के्दो्प्रनत्
नाग-मुख्के्सदृश्होते्है ्।्इसमें ्वाजन्एक्बाग, प्रनतमुख्दो्बाग, बरयस्रक्एक्बाग, दृक््तीन्
भाग, वत्त
ृ कुमुद्चः्भाग्एवं्वप्रक्पाूँच्भाग्से्ननसमणत्होता्है ्।्यह्दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओं्
के्भवनों्के्योग्य्होता्है ्॥२१-२२॥
ok
प्रनतक्रम
प्रनतक्रम्अधिष्ठान्-्प्रनतक्रम्अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्के्इक्कीस्भाग्करने्चादहये्।्एक्भाग्से्
क्षुद्रोपान, डेढ़्भाग्से्अब्ज, आिे्भाग्से्कम्प, सात्भाग्से्जगती, छः्भाग्से्िारायुक्त्कुमुद,
एक्भाग्से्आसलङ्गाधत, एक्भाग्से्आसलङ्गादद, दो्भाग्से्प्रनतमख
ु ्एवं्एक्भाग्से्
Bo
पद्मयक्
ु त्वाजन्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्अधिष्ठान्पर्गज, ससंह, मकर्एवं्व्याल्आदद्का्
आभष
ू र््के्रूप्में ्अंकन्करना्चादहये्॥२३॥
इस्प्रकार्सस
ु न्ज्जत्प्रनतक्रम्अधिष्ठान्दे वालय्के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्।्जब्इस्पर्पर्एवं्
लताददकों्का्अंकन्ककया्जाता्है , तब्वह्ब्राह्मर््एवं्राजाओं्के्गह
ृ ्के्अनरू
ु प्होता्है ; साथ्
44
ही्उधहे ्शभ
ु , समद्
ृ धि्तथा्ववजय्प्रदान्करता्है ्॥२४॥
प्मकेसर
पद्मकेसर्अधिष्ठान्-्पद्मकेसर्अधिष्ठान्के्छब्बीस्भाग्(ऊूँचाई्में )्ककये्जाते्है ्।्इसमें ्
जधम्एक्भाग, अब्जक्दो्भाग, वप्र्एक्भाग, पद्म्छः्भाग, गल्एक्भाग, अब्ज्एक्भाग,
कुमुद्एक्भाग, पद्म्चार्भाग, कम्प्एक्भाग, गल्एक्भाग, कम्प्दो्भाग, पद्म्एक्भाग, पिी्
दो्भाग, कमल्एक्भाग्एवं्कम्प्एक्भाग्होता्है ्॥२५॥
यह्अधिष्ठान्पद्मकेसर्है ्।्इस्पद्मकेसर्अधिष्ठान्में ्कम्पवाजन, पङ्कज, कुम्भ, वप्र्और्
कधिर्जब्युक्त्होता्है ्तो्यह्शम्भु-मन्धदर्के्अनुकूल्हो्जाता्है ्॥२६॥
पुष्पपुष्पक्अधिष्ठान्-्पुष्पपुष्पकल्अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्को्उधनीस्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्
इसमें ्एक्भाग्से्जधम, पाूँच्से्ववप्र, एक्से्कञ्ज, आिे्से्गल, आिे्से्अब्ज, चार्से्कुमुद,
आिे्से्पङ्कज, आिे्से्कम्प, दो्से्कण्ठ, आिे्से्कम्प, आिे्से्पद्म, दो्से्महावाजन, आिे्से्
दल्तथा्आिे्से्पङ्कजयक्
ु त्कम्प्ननसमणत्होते्है ्।्इस्प्रकर्अनेक्पद्म-पष्ु पों्से्यक्
ु त्
अधिष्ठान्पष्ु पपष्ु पकल्कहलाता्है ्।्सशन्लपयों्के्अनुसार्यह्अधिष्ठान्मध्यम्एवं्बड़े्ववमानों्
(मन्धदरो)्के्अधिक्अनुकूल्होता्है ्॥२७-२८॥
श्रीबधि्अधिष्ठान्-्श्रीबधि्अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्के्बत्तीस्भाग्ककये्जाते्है ्।्इसमे्दो्भाग्
से्अधिष्ठान्का्ननचला्भाग, एक्से्अब्ज, सात्से्ह्रत्, एक्से्पद्म, एक्से्कैरव, चार्से्अब्ज,
एक्से्गल, एक्से्अिर, तीन्से्गल, एक्से्कम्प, एक्से्दल, चार्से्कपोत, एक्से्
आसलङ्गादद, एक्से्आसलङ्गाधत, दो्से्प्रनतमुख्एवं्एक्से्पङ्कजयुक्त्वाजन्ननसमणत्होते्है ्।्
इसकी्स्थापना्कुशल्विणकक्द्वारा्करानी्चादहये्।्यह्अधिष्ठान्दे वालयों्एवं्राजभवनों्के्
सलये्अनुकूल्होता्है ्तथा्श्री, सौभाग्य, आरोग्य्एवं्भोग्प्रदान्करता्है ्॥२९-३०॥
om
मञ्चबधि्अधिष्ठान्-्मञ्चबधि्अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्के्छब्बीस्भाग्करने्चादहये्।्एक्भाग्
से्खरु , छः्से्जगती, पाूँच्से्कैरव, एक्से्कम्प, तीन्से्कण्ठ, एक्से्कम्प, एक्से्पद्म, तीन्से्
कपोत, एक-एक्भाग्से्ऊपर-नीचे्के्सदृश्ननमाणर्, एक-एक्भाग्से्अधतवक्र्एवं्आददवक्र्
तथा्एक्भाग्से्कम्प्ननसमणत्होना्चादहये्।्यह्अधिष्ठान्राजगह
ृ ्के्अनुकूल्होता्है ्॥३१॥
s.c
श्रीकाधत्अधिष्ठान्-्जब्अधिष्ठान्आसलङ्ग्एवं्अधतररत्प्रनत्से्युक्त्हो्एवं्वाजन्से्रदहत्
हो्तो्उसे्श्रीकाधत्कहते्है ्।्इसका्कुमुद्अष्िकोर््अथवा्वत्त
अम्बरामाधगणयों्के्अनुकूल्होता्है ्॥३२॥
ृ ाकार्हो्सकता्है ्एवं्यह्
श्रेणीबन्ध
ok
श्रेर्ीबधि्अधिष्ठान्-्दे वालयों्के्अनुकूल्श्रेर्ीबधि्संज्ञक्अधिष्ठान्ऊूँचाई्में ्छब्बीस्भागों्में ्
बाूँिा्जाता्है ्।्इसमें ्एक्भाग्से्जधम, दो्से्अब्ज, एक्से्कम्प, छः्से्जगती, चार्से्कुमुद,
एक्से्कम्प, दो्से्कण्ठ, एक्से्कम्प, दो्से्पद्म, एक्से्पट्ि, दो्से्कण्ठ, एक्से्वाजन, डेढ़्
से्अब्ज्एवं्एक्से्पट्ि्ननसमणत्होता्है ्॥३३॥
Bo
पद्मबधि्अधिष्ठान्-्पद्मबधि्अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्को्अट्ठारह्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्डेढ़्
भाग्से्जधम, आिे्भाग्से्क्षुद्र, पाूँच्से्पद्म, एक्से्िक्
ृ ्, तीन्से्अब्ज, एक्से्कुमद
ु , एक्से्
पद्म, एक्से्आसलङ्ग, एक्से्आसलङ्गात, दो्से्प्रनत्एवं्एक्से्वाजन्ननसमणत्होता्है ्।्इस्
अधिष्ठान्को्ववना्ककसी्दोष्के्प्रिान्दे वों्के्मन्धदर्में ्ननसमणत्करना्चादहये्॥३४॥
44
om
अधिष्ठान्को्अधिक्दृढ़्बनाने्के्सलये्बुद्धिमान्(स्थपनत)्को्एक्भाग्या्आिा, बरपद(पौन्
भाग)्या्चतुथांश, डेढ़्भाग्अथवा्एक्भाग्का्चतुथांश्जोड़ना्या्घिाना्चादहये्।्इस्माप्
का्ननर्णय्भवन्के्अनुसार्उसके्उत्तम्(बड़ा), मध्यम्अथवा्छोिे ्आकार्के्अनुसार्करना्
चादहये्।्यह्भवन्की्शोभा्के्सलये्होता्है ्।्यह्मत्संयमी, ननमणल्बद्
ु िी, तधर्एवं्पुरार््के्
ज्ञाता्ववद्वानों्का्है ्॥३९॥
अथधष्ठानपयाायनामान
s.c
अधिष्ठान्के्पयाणयवाची्शब्द्-्मसूरक, अधिष्ठान्वास्त्वािार, िरातल, तल, कुट्दिम्अथा्
आद्यङ्ग्अधिष्ठान्के्पयाणयवाची्है ्॥४०॥
ok
ननगणम्का्प्रमार््-्न्जतना्जगती्का्ननष्क्राधत्ननसमणत्हो, उतना्ही्कुमद
ु ्का्ननगणम्ननसमणत्
करना्चादहये्।्सभी्अम्बुजों्की्ऊूँचाई्ननगणम्के्बराबर्रखनी्चादहये्॥४१॥
दल्(पवत्तयों्की्पंन्क्त)्के्अग्र्भाग्पंन्क्त्की्ऊूँचाई्का्चतुथांश्या्चतुथांश्का्आिा्होना्
चादहये्।्सभी्वेरों्का्ननगणम्चौथाई्होना्चादहये्॥४२॥
Bo
महावाजन्का्ननगणम्उसके्बराबर्आथवा्तीन्चौथाई्होना्चादहये्।्शोभा्एवं्बल्के्अनस
ु ार्
अधिष्ठान्के्सभी्भागों्का्प्रवेश्एवं्ननगणम्रखना्चादहये्॥४३॥
अथधष्ठानप्रनतच्छे दविथध
अधिष्ठान्में ्खण्ड्करने्की्ववधि्-्बद्
ु धिमान्(स्थपनत)्को्अधिष्ठान्में ्कहीं्भी्प्रनतच्छे द्
44
स्तर्मभलक्षण
स्तम्भ्के्लक्षर््-्मैं्(मय्ऋवष)्अधय्लक्षर्ों्के्साथ्स्तम्भों्की्लम्बाई, चौड़ाई, आकृनत्एवं्
उनके्अलङ्करर््आदद्का्संक्षेप्मे्सम्यक्््रूप्से्क्रमशः्वर्णन्कर्रहा्हूूँ्॥१॥
स्थार्ु, स्थर्
ू , पाद, जङ्घा, चरर्, अङ््निक, स्तम्भ, तसलप्एवं्कम्प्(स्तम्भ्के)्पयाणयवाची्शब्द्है ्
॥२॥
स्तर्मभमान
om
स्तम्भ्का्प्रमार््-्बारह्तल्के्भवन्में ्भूतल्पर्बनने्वाले्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्आठ्हाथ्एक्
बबत्ता्(साढ़े ्आठ्हाथ)्होनी्चादहये्।्प्रत्येक्तल्पर्एक-एक्बबत्ता्कम्करते्हुये्सबसे्ऊपर्के्
तल्पर्तीन्हाथ्ऊूँचाई्होनी्चादहये्॥३॥
अथवा्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्का्मापन्ददये्गये्माप्से्(दस
ू रे ्ढं ग्से)्करना्चादहये्।्अधिष्ठान्की्
ऊूँचाई्का्दग
ु ुना्माप्स्तम्भ्का्रखना्चादहये्॥४॥
s.c
(बारह्तल्के्भवन्में )्स्वयम्भू्के्अनुसार्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्अधिष्ठान्के्दग
ु ुने्से्अधिक्होनी्
चादहये्।्भत
ू ल्के्स्तम्भ्का्ववस्तार्अट्ठाईस्मारा्(अङ्गल
ु -माप)्होना्चादहये्॥५॥
प्रत्येक्तल्मे्उपयक्
ुण त्माप्से्दो-दो्अङ्गल
ु ्कम्करते्हुये्ऊपर्के्तल्में ्स्तम्भ्की्चौडाई्
का्माप्प्राप्त्होता्है ्।्अथवा्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्का्दसवाूँ, नवाूँ्या्आठवाूँ्भाग्उसकी्चौड़ाई्का्
ok
माप्होना्चादहये्॥६॥
अथवा्स्तम्भ्का्ववस्तार्आिा, तीन्भाग्कम्अथवा्चतथ
ु ांश्कम्रखना्चादहये्।्सभवत्त-स्तम्भ्
के्ववस्तार्से्सभवत्त-ववष्कम्भ्का्ववस्तार्दग
ु न
ु ा, तीन्गन
ु ा, चार्गन
ु ा, पाूँच्गन
ु ा्या्छः्गन
ु ा्रखना्
Bo
चादहए्।्स्तम्भ-स्थापन-ववधि्के्ज्ञाता्अधिष्ठान्के्ऊपर्स्तम्भ्के्स्थापन्के्समय्होम्करने्
का्वविान्बतलाते्है ्॥७-८॥
स्तम्भ्के्भेद्-्प्रनतस्तम्भ्के्प्रनत्के्ऊपर्एवं्उत्तर्(सभवत्त)्के्नीचे्ननसमणत्ककया्जाता्है ्।्
जधम्(अधिष्ठान्का्एक्भाग)्के्ऊपर्स्तम्भ्को्स्थावपत्ककया्जाता्है ्एवं्उसकी्चौड़ाई्
44
om
भद्रक्संज्ञक्स्तम्भ्के्मूल्में ्पद्मासन, चक्रवाक्की्आकृनत्से्युक्त्दो्मन्ण्ड्एवं्मध्य्में ्भद्र्
ननसमणत्होता्है ्॥१९॥
न्जसके्मूल्में ्व्याल, गज, ससंह, एवं्भूत्आदद्(अधय्प्रार्ी)्अलंकृत्हो्एवं्ऊपर्इच्छानुसार्
आकृनत्का्ननमाणर््ककया्गया्हो, उस्स्तम्भ्को्उसके्अलङ्कार्के्अनुसार्संज्ञा्दी्जाती्है ्
॥२०॥
न्जस्स्तम्भ्पर्लम्बाई्में ्हाथे्का्सूँड़
शुण्डपाद्स्तम्भ्कहते्है ्॥२१॥
s.c
ू ्ननसमणत्हो्एवं्कुम्भ्तथा्मन्ण्ड्से्युक्त्हो, उसे्
चार्भाग्मे्सशखा्का्मान्रक्खा्जाता्है ्।्सभी्स्तम्भ्पोनतका्से्यक्
ु त्एवं्ववसभधन्प्रकार्
की्आकृनतयों्से्सस
ु न्ज्जत्होते्है ्॥२६-२७॥
दण्डलक्षण
दण्ड्का्लक्षर््-्स्तम्भ्के्अग्र्(ऊध्वण)्भाग्की्चौड़ाई्को्दण्ड्कहते्है ्।्भवन्के्सभी्भागों्
का्प्रमार््दण्डमान्से्मापा्जाता्है ्॥२८॥
कलश्के्लक्षर््-्कलशों्के्नाम्क्रमशः्श्रीकर, चधद्रकाधत, सौमुख्य्एवं्वप्रयदशणन्है ्।्इनका्माप्
(चौड़ाई्में )्सवा्दण्ड, डेढ़्दण्ड, पौने्दो्दण्ड्तथा्दो्दण्ड्एवं्इसके्दग
ु ुना्ऊूँचा्होता्है ्॥२९-३०॥
स्तम्भ्के्ऊध्वण्भाग्से्पोनतका, खण्ड, मन्ण्ड, कुम्भ, स्कधि, पद्म्एवं्मालास्थान्का्क्रमशः्
ननमाणर््करना्चादहये्॥३१॥
कुम्भ्की्ऊूँचाई्के्नौ्भाग्करने्चादहये्।्इसमें ्एक्भाग्से्िग
ृ , चार्भाग्से्कमल, एक्भाग्
से्कण्ठ, एक्भाग्से्मख
ु , एक्भाग्से्पद्म, आिा्भाग्से्वत्त
ृ ्एवं्आिा्भाग्से्दो्हीरकों्का्
ननमाणर््करना्चादहये्।्हीरकों्का्व्यास्स्तम्भ्की्चौड़ाई्के्बराबर्एवं्मख
ु ्उसके्कर्ण्तक्
ववस्तत
ृ ्होना्चादहये्॥३२-३३॥
कर्ण्फलक्के्बराबर्चौड़ा्होना्चादहये्एवं्कर्ण्के्बराबर्कुम्भ्का्ववस्तार्रखना्चादहये्अथवा्
फलक्का्ववस्तार्चार्दण्ड्या्नतन्दण्ड्होना्चादहये्॥३४॥
अथवा्साढ़े ्तीन्दण्ड्ववस्तार्होना्चादहये्एवं्उसकी्ऊूँचाई्तीन्दण्ड्रखनी्चादहये्।्ऊूँचाई्को्
तीन्बराबर्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्ऊध्वण्भाग्की्ननसमणनत्(उत्सन्धि)्एक्भाग्से्करनी्चादहये्
॥३५॥
एक्भाग्से्वेर्ं एवं्एक्भाग्से्अधदर्की्ओर्मुड़ा्पद्म्होना्चादहये्।्वह्कुम्भ्स्तम्भ्की्
om
आकृनत्के्समान्वेर्से्नागवक्र्के्आकार्का्होना्चादहये्॥३६॥
स्तम्भ्के्ववस्तार्के्समान्िक
ृ ्, कण्ठ्एवं्वीरकाण्ड्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्सभी्स्तम्भों्का्
वीरकाण्ड्चौकोर्होना्चादहये्॥३७॥
उसकी्(वीरकाण्ड्की)्ऊूँचाई्से्पौन्भाग्कम्(एक्चौथाई्अथवा)्एक्दण्ड्ऊूँचा्स्कधि्होना्
s.c
चादहये्।्उसके्नीचे्उसके्आिे्माप्का्पद्म्होना्चादहये, जो्परों्से्अलंकृत्हो्।्उसके्नीचे्
माला-स्थान्होना्चादहये, जो्दण्डप्रमार््ऊूँचा्हो्॥३८॥
पोनतका
पोनतका्(स्तम्भ्का्ऊपरी्भाग, जो्स्तम्भ्से्बाहर्ननकला्हो)्का्ववस्तार्स्तम्भ्के्ववस्तार्के्
ok
बराबर्होना्चादहये्एवं्उसकी्ऊूँचाई्भी्ववस्तार्के्बराबर्होनी्चादहये्॥३९॥
उत्तम्पोनतका्की्चौड़ा्पाूँच्दण्ड्एवं्उसकी्ऊूँचाई्की्आिी्होनी्चादहये्।्कननष्ठ्पोनतका्की्
चौड़ाई्तीन्दण्ड्एवं्मध्यम्पोनतका्की्चौड़ाई्तीन्भाग्कम्चार्दण्ड्होनी्चादहये्।्(स्तम्भ्
का)्पव
ू ोक्त्प्रमार््मण्डी्एवं्कुम्भ्के्साथ्चार्गन
ु ा्हो्जाता्है ्॥४०-४१॥
Bo
(मण्डी, कुम्भ्आदद्से्रदहत)्केवल्स्तम्भ्का्माप्नतन्गन
ु ा्होता्है ्।्सभी्पादों्का्यथोधचत्
माप्वर्र्णत्ककया्गया्है ्॥४२॥
पोनतका्की्ऊूँचाई्के्तीसरे ्या्चौथे्भाग्के्बराबर्पोनतका्के्ऊपर्अग्रपट्दिका्ननसमणत्होती्है ्
।्इसका्छायामान्आिा, दो-नतहाई्अथवा्तीन-चौथाई्होना्चादहये्॥४३॥
44
om
यदद्स्तम्भ-स्थापन्ननयमानुकूल्न्हो्तो्वह्भसू म्एवं्भवन्(तथा्उसके्स्वामी)्का्ववनाश्
करने्वाला्होता्है ्।्अनुकूल्स्तम्भ-स्थापन्कलयार््प्रदान्करता्है ्॥५४॥
न्जतना्ववस्तत
ृ ्काष्ठस्तम्भ्होता्है , उतना्ववस्तत
ृ , उसका्आिा, दग
ु ुना्या्तीन्गुना्ववस्तत
ृ ्
प्रस्तरस्तम्भ्हो्सकता्है ; ककधतु्इसका्प्रयोग्केवल्दे वालय्में ्होना्चादहये, मनुष्यालय्मे्नही्
होना्चादहये्॥५५॥
s.c
प्राचीन्मनीवषयों्ने्सभी्स्तम्भों्को्ईि, प्रस्तर्अथवा्काष्ठ्से्ननसमणत्कहा्है ्।्दे वगह
की्संख्या्सम्अथवा्ववषम्हो्सकती्है ; ककधतु्मनुष्यों्के्गह
ृ ोंमे्स्तम्भ्
ृ ्में ्स्तम्भों्की्संख्या्ववषम्होनी्
चादहये्॥५६॥
ok
न्जस्प्रकार्आजुसूर्(मापसूर)्हो, उसी्के्अनुसार्अधतःस्तम्भ्एवं्बदहःस्तम्भ्का्ननमाणर््करना्
चादहये्।्उसी्के्अनुसार्गह
ृ ्की्सभवत्त्के्मध्य्शालाओं्की्भी्न्स्थनत्होनी्चादहये्॥५७॥
यह्माप्दे वालयों्मे्स्तम्भ्के्बाहर्से्सलया्जाता्है ्।्(ककधतु)्शयन्एवं्आसन्के्ननमाणर््में ्
पाद्(पाये्=्स्तम्भ)्के्अधदर्से्सलया्जाता्है ्।्(प्रासादों्के्ननमाणर््में ्ऊूँचाई्का्माप)्कुछ्
Bo
ववद्वानों्के्अनस
ु ार्उपान्से्सशरःप्रदे श्तक्माप्लेना्चादहये्तथा्कुछ्के्मतानस
ु ार्मापन्कायण्
प्रासाद्की्स्तप
ू ी्तक्होना्चादहये्।्॥५८॥
सभी्स्थानों्पर्प्रासादों्की्ऊूँचाई्का्माप्इसी्प्रकार्लेना्चादहये, ऐसा्मनु नयों्का्मत्है ्।्
सभागार्एवं्मण्डप्में ्स्तम्भों्के्बाहर्से्अथवा्स्तम्भ्के्मध्य्से्माप-सर
ू ्ले्जाना्चादहये्
44
॥५९॥
भवनों्में ्मानसर
ू ्बाहर्(सभवत्त्अथवा्स्तम्भ्के्बाहर)्से, भीतर्से्एवं्मध्य्से्प्रयक्
ु त्होना्
चादहये्।्इस्प्रकार्का्(ववववि्प्रकार्से्मानसूर्का)्प्रयोग्सभी्सम्पदाओं्को्प्रदान्करने्वाला्
होता्है ्।्इसके्ववपरीत्(मानसूर्द्वारा्भली-भाूँनत्मापन्न्करने्पर)्होने्पर्गह
ृ स्वामी्के्
सलये्ववपवत्तकारक्होता्है , ऐसा्शास्रों्का्मत्है ्॥६०॥
द्रव्यपररग्रहः
पदाथों्का्संग्रह्-्स्तम्भ्एवं्उत्तर्(स्तम्भ्के्ऊपर्ननसमणत्सभवत्त)्आदद्अङ्गों्में ्प्रयुक्त्होने्
वाले्द्रव्य्काष्ठ, प्रस्तर्एवं्ईिे ्है ्॥६१॥
िक्ष
ृ लक्षण
वक्ष
ृ ्के्लक्षर््-्(भवनों्में ्प्रयक्
ु त्होने्वाले्काष्ठ्के्गर्
ु -िमण्इस्प्रकार्है -)्न्स्नग्िसार्(ठोस्
एवं्धचकना), महासार्(अत्यधत्दृढं )्न्ही्बहुत्परु ाना्तथा्न्ही्अपररपक्व्हो, िे ढ़ा्न्हो्तथा्
वक्ष
ृ ्में ्ककसी्प्रकार्का्चोि्एवं्दोष्न्हो; ऐसा्वक्ष
ृ ्गह
ृ ननमाणर््में ्ग्रहर््करने्योग्य्होता्है ्
॥६२॥
पववर्स्थल, पवणत, वन्एवं्तीथों्मे्न्स्थत, दे खने्में ्सुधदर्तथा्मन्को्आकृष्ि्करने्वाले्वक्ष
ृ ्
सभी्प्रकार्की्सम्पवत्त्एवं्समद्
ृ धि्प्रदान्करने्वाले्होते्है , इसमेम्सधदे ह्नही्है ्॥६३॥
स्तम्भ्में ्प्रयोग्के्योग्य्वक्ष
ृ ्इस्प्रकार्है ्-्पुरुष, कत्था, साल, महुआ, चम्पक, शीशम, अजन
ुण ,
अजकर्ी, क्षीररर्ी, पद्म, चधदन, वपसशत, िधवन, वपण्डी, ससंह, राजादन, शमी्एवं्नतलक्।्इसी्प्रकार्
ननम्ब, आसन, सशरीष, एक, काल, कट््
फल, नतसमस, सलकुच, किहल, सप्तपर्णक, भौमा्एवं्गवाक्षी्के्वक्ष
ृ ्
भी्ग्रहर््करने्योग्य्होते्है ्॥६४-६५-६६॥
om
सशलालक्षर्म््
सशला्के्लक्षर््-्शुभ्सशला्एक्रं ग्की, दृढ़, (ककधतु्छूने्पर)्धचकनी, छूने्पर्अच्छी्लगने्वाली,
भूसम्में ्गड़ी्होने्पर्पव
ू म
ण ुख्अथवा्उत्तर्की्ओर्मुख्वाली्होती्है ्॥६७॥
इष्टकालक्षण
(न्जसमें ्समट्िी्खब
s.c
ईिो्के्लक्षर््-्इष्िकाये्स्रीसलङ्ग, पूँन्ु ललङ्ग, एवं्नपुंसक्सलङ्ग्की्होती्है ्।्इधहे ्दोषहीन, घनी्
ू ्दबा्कर्बैठायी्गई्हो), आग्मे्चारो्ओर्समान्रूप्से्पकी्हो, (बजाने्पर)्
सुधदर्स्वर्वाली, दरार, िूिन्तथा्नछद्ररदहत्होनी्चादहये्।्(ये्लक्षर्)्स्रीसलङ्ग, एवं्पूँन्ु ललङ्ग्
(दोनो)्इष्िकाओं्के्सलये्कहे ्गये्है ्॥६८-६९॥
ok
इस्प्रकार्के्इन्पदाथो्से्ननसमणत्भवन्ननन्श्चत्रूप्से्िमण, अथण्एवं्काम्के्सुख्को्प्रदान्
करने्वाला्होता्है ्॥७०॥
वज्याण्वक्ष
ृ ाः
त्याज्य्वक्ष
ृ ्-्गह
ृ ननमाणर््में ्त्याज्य्वक्ष
ृ ्इस्प्रकार्है ्-्दे वालय्के्ननकि्न्स्थत्वक्ष
ृ , शस्रादद्से्
Bo
आहत्वक्ष
ृ , आकाशीय्बबजली्से्जला्हुआ्वक्ष
ृ , वन्की्अन्ग्न्से्जला्हुआ्तथा्प्रेतस्थल्पर्
उगा्हुआ्वक्ष
ृ ्(भवन्के्काष्ठ्के्सलये)्ग्राह्य्नही्होता्है ्॥७१॥
प्रिान्मागण्पर्उगा्हुआ्वक्ष
ृ , ग्राम्में ्उत्पधन्वक्ष
ृ , घि्के्जल्से्ससन्ञ्चत्वक्ष
ृ ्तथा्पक्षक्षयों्एवं्
पशओ
ु ं्से्सेववत्वक्ष
ृ ्गह
ृ ननमाणर््के्सलये्ग्राह्य्नही्होता्है ्॥७२॥
44
om
(गह
ृ स्वामी)्को्शुभ्कृत्य्करके्सवणद्वाररक्नक्षर्में ्शुभ्(शुक्ल)्पक्ष्में ्एवं्शुभ्मुहूत्ण मे्वन्
की्ओर्प्रस्थान्करना्चादहये्॥८१॥
अच्छे ्लक्षर्ों्वाले्शकुनों्एवं्मङ्गलध्वनन्के्साथ्वनदे वताओं्एवं्सभी्अभीष्ि्वक्ष
ृ ों्की्गधि,
पुष्प, िप
ू , मांस, र्खचड़ी, दि
ू , भात, मछली्एवं्ववववि्प्रकार्की्भोज्य्सामधग्रयों्से्पूजा्करनी्
चादहये्॥८२-८३॥
(वक्ष
s.c
ृ ों्में ्ननवास्करने्वाले)्भूतों्(प्रेत, वपशाच, ब्रह्म्आदद)्के्सलये्क्रूर्बसल्(रक्त, मांस्आदद)्
दे कर्अपने्कायण्के्अनुकूल्वक्ष
ृ ्का्चयन्करना्चादहये्।्ये्वक्ष
ृ ्जड़्से्सशरोभाग्तक्सीिे,
गोलाकार्एवं्अनेक्शाखाओं्से्युक्त्होने्चादहये्॥८४॥
ok
उपयक्
ुण त्वक्ष
ृ ्'पुरुष' होते्है ्।्जो्वक्ष
ृ ्मूल्में ्स्थूल्एवं्ऊध्वण्भाग्में ्पतले्होते्है , वे्'स्री' वक्ष
ृ ्हैं्
तथा्न्जनका्मूल्कृश्एवं्ऊध्वण्भाग्स्थल
ू ्हो, वे्वक्ष
ृ ्'षण्ड' (नपुंसक)्होते्है ्॥८५॥
'मुहूतस्
ण तम्भ' (सशलाधयास्के्स्थान्पर्स्थावपत्होने्वाला्स्तम्भ)्पुरुष्वक्ष
ृ ्का्होना्चादहये्।्
गह
ृ ्के्अधय्भागों्के्सलये्परु
ु ष, स्री्एवं्षण्ड्तीनों्वक्ष
ृ ों्का्प्रयोग्हो्सकता्है ्॥८६॥
Bo
(काष्ठानयन्के्सलये्गये्व्यन्क्त्को)्बद्
ु धिमान्एवं्पववर्व्यन्क्त्(स्थपनत)्को्वक्ष
ृ ्के्नीचे्पव
ू ्ण
ददशा्में ्कुश्बबछा्कर्एवं्अपने्दादहने्भाग्में ्परश्ु रख्कर्राबर्में ्वही्शयन्करना्चादहये्
॥८७॥
इसके्पश्चात्््राबर्(शेष्रहने्पर)्शद्
ु ि्जल्पीकर्पन्श्चमासभमुख्होकर्सध
ु दर्वेष्िारर््कर्
44
om
कािने्के्पश्चात्््अधय्वक्ष
ृ ो्के्मध्य्धगरता्हुआ्वक्ष
ृ ्यदद्अधय्वक्ष
ृ ों्के्शीषण्भाग्से्सहारा्
पाकर्धगरने्से्रुक्जाता्है ्तो्गह
ृ स्वामी्का्ववनाश्होता्है ्तथा्जड़्के्सहारे ्रुकने्पर्
गह
ृ स्वामी्के्अस्वास्थ्य्का्कारर््बनता्है ्॥९७॥
यदद्वक्ष
ृ ्का्मध्य्भाग्िूि्जाय्तो्वक्ष
ृ ्कािने्वाले्का्नाश्होता्है ्तथा्शीषण्भाग्के्िूिने्
पर्सधतनत्का्नाश्होता्है ्।्वक्ष
धगरना)्प्रशस्त्होता्है ्।्वक्ष
(किे ्वक्ष
s.c
ृ ों्का्एक-दस
ू रे ्पर्धगरना्(एक्वक्ष
ृ ्के्ऊपर्दस
ृ ों्के्दोनों्भागों्को्बराबर्कािना्चादहये्॥९८॥
ू रे ्किे ्वक्ष
ृ ्का्
ृ ्के्दोनों्छोरों्को्बराबर्काि्कर)्काष्ठ्को्चौकोर्एवं्सीिा्बनाना्चादहये्तथा्उसे्
मुहूतस्
ण तम्भ्के्सलये्ग्रहर््करना्चादहये्।्तत्पश्चात्््उस्काष्ठ्को्श्वेत्वस्र्से्ढूँ ककर्स्यधदन्
ok
(रथ, गाड़ी)्मे्रखना्चादहये्॥९९॥
दे वों, ब्राह्मर्ों, राजाओं्एवं्वैश्यों्का्काष्ठ्शकि्(गाड़ी)्द्वारा्ले्लाया्जाना्चादहये्तथा्
बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्शूद्र्के्गह
ृ ्का्काष्ठ्पुरुष्के्कधिों्द्वारा्ढ़ोकर्ले्जाना्चादहये्॥१००॥
वक्ष
ृ ों्(काष्ठों)्को्सलिा्कर्दोनों्पाश्वों्से्शकि्में ्रखना्चादहये्।्स्थपनत्द्वारा्चन
ु े्गये्वक्ष
ृ ों्
Bo
को्प्रशस्त्द्वारा्द्वारा्(कमणमण्डप्में )्प्रवेश्कराना्चादहये्॥१०१॥
कमणमण्डप्(कायणशाला)्में ्वक्ष
ृ ों्का्प्रवेश्कराकर्उधहें ्बाल्ू पर्सलिा्दे ना्चादहये्।्उनका्शीषण्
भाग्पव
ू ्ण अथवा्उत्तर्की्ओर्होना्चादहये्।्इनके्सख
ू ने्तक्इनकी्रक्षा्करनी्चादहये्॥१०२॥
छः्मासों्तक्इन्वक्ष
ृ ों्को्अपने्स्थान्से्नहीं्दहलाना्चादहये्।्इसी्प्रकार्सभी्इधद्रकीलों्
44
(कीलों)्को्भी्प्रयत्नपव
ू क
ण ्प्राप्त्करना्चादहये्॥१०३॥
अधय्िात्ु आदद्पदाथों्का्संग्रह्करके्उधहें ्भी्इसी्प्रकार्करना्चादहये्।्॥१०३॥
मुहूर्त्ास्तर्मभ
मुहूत-ण स्तम्भ्-्दे वों्एवं्द्ववजानतयों्(ब्राह्मर्, क्षबरय, वैश्य)्के्मुहूतस्
ण तम्भ्(का्काष्ठ)्क्रमशः्इस्
प्रकार्होता्है -्कातणमाल, खददर, खाददर, मिक
ू ्एवं्राजादन्।्इनका्ववस्तार्एवं्लम्बाई्क्रमशः्इस्
प्रकार्वर्र्णत्है ्॥१०४-१०५॥
इनकी्ऊूँचाई्(या्लम्बाई)्बारह, ग्यारह, दश्या्नौ्ववतन्स्त्(बबत्ता)्एवं्ववस्तार्भी्इतने्ही्अंगुल्
का्होता्है ्।्इसके्अग्र्भाग्(शीषण्भाग)्का्ववस्तार्दश्भाग्कम्होता्है ्॥१०६॥
गतण्में ्रहने्वाले्मूल्भाग्की्चौड़ाई्पाूँच, साढ़े ्चार, चार्या्तीन्बबत्ता्होनी्चादहये्।्अथवा्
स्तम्भ्की्ऊूँचाई्एवं्चौड़ाई्भवन्के्तल्के्अनुसार्रखनी्चादहये्॥१०७॥
झषालाङ््नि्स्तम्भ्में ्सभी्स्थानों्पर्गतण्का्पररत्याग्करना्चादहये्॥१०७॥
अश्वत्थ्(पीपल), उदम्
ु बर्(गल
ू र), प्लक्ष्(पाकड़), वि्(बरगद), सप्तपर्ण, बबलव्(बेल), पलाश, कुिज,
पीलु, श्लेष्मातकी्(सलसोढ़ा), लोध्र, कदम्ब, पाररजात, सशरीष, कोववदार्(कचनार), नतन्धरर्ी, महाद्रम
ु ,
सशलीधध्र, सपणमार, शालमली्(सेमल), सरल्(चीड़), ककंशुक, अररमेद, अभया, अक्ष, आमलकद्रम
ु , कवपत्थ्
(कैथा), कण्िक, पुरजीव, डुण्डुक, कारस्कर, करञ्ज, वरर्, अश्वमारक, बदर, बकुल, वपण्डी, पद्मक, नतलक,
पािली, अगरु्तथा्कपूर्के्वक्ष
ृ ों्का्प्रयोग्गह
ृ ननमाणर््मे्नही्करना्चादहये्।्ये्सभी्वक्ष
ृ ्दे वों्के्
योग्य्है ; लेककन्मनुष्यों्सलये्अनथणकारक्होते्है ्।्इससलये्मनुष्यों्के्गह
ृ -ननमाणर््के्सलये्इनको्
प्रयत््नपूवक
ण ्नहीं्ग्रहर््करना्चादहये्अथाणत्््इन्वक्ष
ृ काष्ठों्का्पररत्याग्कर्दे ना्चादहये्।॥१०८-
१०९-११०-१११-११२-११३॥
इष्टकासंग्रहणम
om
ईंिों्का्संग्रह्-्(मवृ त्तका्चार्प्रकार्की्होती्है -)्ऊषर्(लोनी, नमकीन), पाण्डुर्(सफेद), कृष्र्-
धचक्कर््(काली्और्धचकनी)्एवं्ताम्रपुललक्(लाल्वर्ण्की्र्खली्हुई)्॥११४॥
मवृ त्तकायें्चार्प्रकार्की्होती्है ्।्इनमें ्ताम्रपुललक्मवृ त्तका्इष्िकादद्के्सलये्ग्रहर््करने्योग्य्
होती्है ्।्इसमें ्कंकड़, पत्थर, जड़्एवं्अन्स्थ्के्िुकड़े्नही्होने्चादहये; साथ्ही्इसमें ्महीन्बालू्
होना्चादहये्॥११५॥
s.c
यह्मवृ त्तका्एक्रं ग्की्एवं्छूने्में ्सुखद्होनी्चादहये्।्लोष्ि्(िाइलस)्एवं्ईि्के्ननमाणर््के्
सलये्(गतण्में )्घुिने्के्बराबर्जल्में ्समट्िी्डालनी्चादहये्॥११६॥
समट्िी्एवं्पानी्को्अच्छी्तरह्से्समलाकर्पैरों्से्चालीस्बार्उनका्मदण न्करना्चादहये्।्
ok
इसके्पश्चात्््क्षीरद्रम
ु , कदम्ब, आम, अभया्एवं्वक्ष
ृ ्के्छाल्के्जल्से्एवं्बरफला्के्जल्से्
ससन्ञ्चत्कर्तीस्बार्मदण न्करना्चादहये्अथाणत्््पैरों्से्सानना्चादहये्॥११७॥
(उपयक्
ुण त्ववधि्से्तैयार्की्गई्समट्िी्से)्चार, पाूँच, छः्या्आठ्अङ्गुल्चौड़ी, चौड़ाई्की्दग
ु ुनी्
लम्बी्तथा्चौड़ाई्की्चतथ
ु ांश, आिा्अथवा्तीसरे ्भाग्के्बराबर्मोिी्ईिो्का्ननमाणर््करना्
Bo
चादहये्।्इनकी्मोिाई्एक्छोर्से्दस
ू रे ्छोर्तक्बराबर्होती्है ्।्ईिों्को्पर्
ू ्ण रूप्से्सख
ु ाकर्
पन
ु ः्इधहें ्समान्रूप्से्पकाया्जाता्है ्॥११८-११९॥
इसके्पश्चात्््एक, दो, तीन्या्चार्मास्बीत्जाने्पर्बद्
ु धिमान्(स्थपनत)्को्ईिों्को्यत््नपव
ू क
ण ्
जल्में ्डाल्कर्पन
ु ः्जल्से्ननकालना्चादहये्।्जब्ईिे ्सख
ू ्जायूँ्तब्इन्च्छत्ननमाणर्कायण्मे्
44
इनका्प्रयोग्करना्चादहये्॥१२०॥
इस्प्रकार्ववधिपव
ू क
ण ्वक्ष
ृ ्(काष्ठ), ईि्एवं्सशला्आदद्लेकर्भवनननमाणर््करना्चादहये्।्श्रेष्ठ्
जन्ऐसे्भवन्को्समद्
ृ धिदायक्कहते्है ्।्जो्पदाथण्ननन्धदत्है ्अथवा्दस
ू रे ्भवन्से्सलये्गये्
है ्(पुरने्भवन्से्ननकले्ईि, काष्ठ्आदद), उनसे्ननसमणत्भवन्नष्ि्हो्जाते्है ्तथा्(गह
ृ स्वामी्के्
सलये)्ववपवत्त्के्कारर््बनते्है , ऐसा्प्राचीन्जनों्का्मत्है ्॥१२१॥
स्तम्भों्की्लम्बाई, मोिाई्एवं्आकारों्का्वर्णन्उनके्अलङ्कार्एवं्सज्जासदहत्क्रमानुसार्ककया्
गया्है ्।्मनुष्यों्एवं्दे वों्के्गह
ृ ्में ्ववधिपूवक
ण ्इनका्प्रयोग्सम्पवत्त्प्रदान्करता्है , ऐसा्मय्
द्वारा्वर्र्णत्है ्॥१२२॥
मयमतम्-्अध्याय्१६
प्रस्तर-ननमााण्-
मैं्(मय्ऋवष)्सभी्प्रकार्के्भवनों्के्अनुरूप्उत्तर्से्प्रारम्भ्कर्वनृ त्(प्रनत)्पयणधत्प्रसात्
(प्रस्तर)्के्अंगों्का्सम्यक्रूप्से्क्रमशः्वर्णन्कर्रहा्हूूँ्॥१॥
उर्त्रिाजनौ
उत्तर्एवं्वाजन्-्उत्तर्(स्तम्भ्के्ऊपर्की्सभवत्त)्तीन्प्रकार्का्होता्है ्।्प्रथम्की्चौड़ाई्
स्तम्भ्के्बराबर्होनी्चादहये्एवं्उसकी्ऊूँचाई्चौड़ाई्के्बराबर्होनी्चादहये्।्दस
ु रे ्उत्तर्की्
om
ऊूँचाई्चौड़ाई्से्तीन्चौथाई्अधिक्होनी्चादहये्एवं्तीसरे ्उत्तर्की्ऊूँचाई्चौड़ाई्की्आिी्
होनी्चादहये्॥२॥
इन्तीनों्उत्तरों्की्संज्ञा्खण्डोत्तर, परबधि्एवं्रूपोत्तर्है ्।्इनका्कर्णननगणम्(कोर्ों्पर्ननकली्
ननसमणनत)्तीन्चौथाई, तीन्भाग्कम्अथवा्आिा्होना्चादहये्।्॥३॥
उत्तर्से्वनृ त्(अथवा्प्रनत)्के्मध्य्होने्वाले्ननवेश्स्वन्स्तक, विणमान, नधद्यावतण्अथवा्
s.c
सवणतोभद्र्आकृनत्के्होते्है ्॥४॥
वाजन्के्तीसरे ्अथवा्चौथे्भाग्से्चार्कोर्ों्वाले्एवं्ऊपरी्भाग्में ्पर्ण्से्युक्त्ननगणम्का्
प्रारम्भ्होना्चादहये्।्ननगणम्के्ऊपर्मुन्ष्िबधि्ननसमणत्होना्चादहये्।्॥५॥
वाजन्के्ऊपर्मुन्ष्िबधि्तुलाच्छे द्के्द्वारा्अथवा्स्वतधर्रूप्से्ननसमणत्होना्चादहये्।्
ok
स्तम्भ्की्चौड़ाई्का्आिा्चौड़ा्एवं्अपनी्चौड़ाई्का्आिा्मोिा्अम्बुजपट्ि्ननसमणत्होना्
चादहये्।्वाजन्के्नीचे्वाली्से्युक्त्दण्डननगणम्का्ननमाणर््होना्चादहये्॥६॥
उसके्ऊपर्मूल्एवं्ऊध्वण्भाग्में ्सशखा्से्(चल
ू )्युक्त्प्रमासलका्ननसमणत्होती्है ्।्यह्स्तम्भ्
Bo
चौकोर्होती्है ्॥९॥
िलयं्गोपानञ्च
इसके्ऊपर्ऊूँचाई्पर्इच्छानुसार्चौड़ा्एवं्ऊूँचा्वलय्होना्चादहये्।्उसके्ऊपर्गोपान्तथा्
उसके्ऊपर्क्षेपर्ाम्बुज्पट्दिका्होती्है , जो्मुन्ष्िबधि्के्समान्ववस्तत
ृ ्एवं्ऊूँची्होती्है ्॥१०-
११॥
यह्पट्दिका्दन्ण्डका्के्ऊपर्छील-काि्कर्लगाई्जाती्है ्।्उसके्ऊपर्उसके्प्रमार््के्
अनुसार्काि्कर्बुद्धिमान्(स्थपनत)्को्गोपान्ननसमणत्करना्चादहये्॥१२॥
उत्तर्के्अन्धतम्भाग्में ्इच्छानुसार्युन्क्तपूवक
ण ्अवलम्ब्ननसमणत्करना्चादहये्।्वाजन्अथवा्
तल
ु ा्के्ऊपर्बद्
ु धिमान्(स्थपनत)्को्गोपान्लगाना्चादहये्॥१३॥
न्जतना्(सभवत्त्से)्तल
ु ा्का्अधतर्होता्है , उतना्ही्अधतर्गोपान्का्भी्होना्चादहये्।्गोपान्
यदद्दन्ण्डका्के्ऊपरी्भाग्में ्ननसमणत्हो्तो्वाजन्के्अन्धतम्भाग्में ्अवलम्बन्होना्चादहये्
॥१४॥
गोपान्के्ऊपर्दण्ड्का्आिा्चौड़ा्एवं्चौड़ाई्का्आिा्मोिा्कम्प्ननसमणत्होना्चादहये्।्इसे्
वलयनछद्र्अधतर्के्बराबर्अधतर्पर्रखते्हुये्उसके्समानाधतर्ननसमणत्करना्चादहये्॥१५॥
कायपाद
दन्ण्डका्एवं्वाजन्के्बीच्में ्पूवोक्त्वर्र्णत्भाग्के्अनुसार्कायपाद्(स्तम्भ्को्सहारा्दे ने्
वाली्कड़ी)्लगाना्चादहये्।्यह्स्तम्भ्के्ववस्तार्के्बराबर्होता्है ्एवं्उसका्ननष्क्राधत्उसके्
ववस्तार्के्आिे्का्आिा्होता्है ्एवं्अग्रपट्िी्से्युक्त्होता्है ्॥१६॥
स्तम्भों्के्मध्य्भाग्को्सार्वक्ष
ृ ्के्काष्ि्के्फलकों्(पिरों)्से्छा्दे ना्चादहये्।्इसे्दण्ड़्के्
om
आठवें्भाग्की्मोिाई्वाले्फलकों्से्छाना्चादहये्।्इसके्ऊपर्गोपान्के्ऊपर्िातुननसमणत्
लोष्िकों्(िाइलस)्से्आच्छादन्करना्चादहये्।्इसके्साथ्दो्या्तीन्दण्ड्माप्की्ऊूँचाई्पर्
ननकली्हुई्कपोतपासलका्ननसमणत्होनी्चादहये्॥१७-१८॥
छोिे ्भवन्में ्एक्हाथ्की्एवं्बड़े्भवन्में ्दो्हाथ्की्सुधदरता्के्लये्धचरयुक्त्कर्णपासलका्
लगानी्चादहये्॥१९॥
s.c
कपोत्पर्ननसमणत्करनी्चादहये्।्अथवा्इसे्भवन्के्मध्य्भाग्में ्प्रस्तर-ननसमणत्कर्णपासलका्
इस्प्रकार्पव
ू ोक्त्वर्र्णत्भागों्को्प्रस्तर्अथवा्ईंिो्से्दृढ़्बनाना्चादहये्।्न्जस्वस्त्ु के्
प्रयोग्से्न्स्थरता्प्राप्त्हो, उसी्का्प्रयोग्बद्
ु धिमान्(स्थपनत)्को्करना्चादहये्।्कपोत्की्
ऊूँचाई्के्तीन्भाग्अथवा्चतथ
ु ांश्के्बराबर्क्षुद्रननष्कृनत्(बाहर्ननकला्भाग)्बनाना्चादहये्
॥२३-२४॥
44
कपोत्के्नीव्र्के्ऊपर्नाससका्(र्खड़की्के्सदृश्आकृनत)्होती्है , जो्कर्र्णका्(लता)्की्भाूँनत्
होती्है ्।्यह्सवा्दण्ड, डेढ़्दण्ड्या्दो्दण्ड्ववस्तत
ृ ्होती्है ्॥२५॥
इसके्शीषण्भाग्की्आकृनत्ससंह्के्कान्के्सदृश्होती्है ्।्पट्दिक्के्अन्धतम्भाग्में ्
स्वन्स्तक्की्आकृनत्वाली्पट्दिका्होती्है ्।्नाससका्के्ऊपर्नाससका्ननसमणत्होनी्चादहये्।्
इसके मूल्भाग्एवं्ऊध्वण्भाग्का्प्रमार््शोभा्के्अनुसार्होना्चादहये्।्प्रनतवाजनक्के्ऊपर्
नाससका्की्ऊूँचाई्नहीं्होनी्चादहये्॥२६-२७॥
प्रस्तर्का्ऊपरी्भाग्-्प्रस्तर्के्ऊध्वण्भाग्की्योजना्इस्प्रकार्है ्-्आसलङ्ग्का्माप्पाद्
के्चतुथांश्माप्का्होता्है ्एवं्पादववननगणत्(बाहर्ननकला्भाग)्भी्चतुथांश्माप्का्होना्
चादहये्।्उन्दोनों्के्मध्य्में ्ऊध्वण्भाग्पर्ननष्क्राधत्स्थावपत्करना्चादहये्॥२८॥
दो्स्तम्भों्के्मध्य, स्तम्भों्के्ऊपर्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्का्बरपट्िाग्र्(तीन्पट्दियों्की्आकृनत)्
ननसमणत्होनी्चादहये्।्उसके्ऊपर्प्रनत्का्ननमाणर््करना्चादहये, न्जसका्माप्एक्दण्ड, तीन्
चौथाई्अथवा्आिा्दण्ड्होना्चादहये्॥२९॥
प्रनतवक्र्संज्ञक्भाग्का्माप्प्रनत्के्माप्का्तीन्चौथाई, आिा, एक्दण्ड, सवा्दण्ड्अथवा्डेढ़्
दण्ड्रखना्चादहये्॥३०॥
उसके्ऊपर्उसकी्गनत्का्ननमाणर््पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्करना्चादहये्।्प्रनत्की्रचना्व्याल्के्
सदहत, ससंह्के्सदहत, गज्के्सदहत्अथवा्सीिी्करनी्चादहये्।्॥३१॥
इसके्ऊपर्इसकी्ऊूँचाई्के्तीसरे ्अथवा्चौथे्भाग्से्वाजन्एवं्ननगणम्का्प्रारम्भ्करना्
चादहये्।्ये्समकर, धचरखण्ड्एवं्नागवक्र्-्तीन्प्रकार्के्होते्है ्।्॥३२॥
नागवक्र्आकृनत्में ्नाग्के्फर््एवं्स्वन्स्त्की्आकृनत्में ्(नाग्का)्ससर्ननसमणत्होता्है ्।्
om
दे वों्एवं्ब्राह्मर्ों्के्भवन्में ्समकर्प्रनत्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्॥३३॥
(समकर्प्रनत)्आकृनत्में ्चौकोर्एवं्शीषणभाग्में ्मकर्ननसमणत्होता्है ्।्धचरखण्ड्प्रनत्राजाओं,
व्यापाररओं्(वैश्यों)्एवं्शूद्रों्के्(भवन्के)्अनुकूल्होता्है ्।्इसकी्आकृनत्अिणचधद्र्के्सदृश्
होती्है ्।्इसका्शीषणभाग्गज्की्आकृनत्से्युक्त्होता्है ्।्इस्प्रनत्का्अग्र्भाग्धचर्की्
३५॥
s.c
भाूँनत्होता्है ; इससलये्इसे्ककर, ककणि, बधि्अथवा्अधय्संज्ञा्से्भी्सम्बोधित्करते्है ्॥३४-
वाजन्के्ऊपर्(अथवा)्वलीक्के्ऊपर्भली-भाूँनत्तुला्(बीम)्को्स्थावपत्करना्चादहये्।्
इसकी्ऊूँचाई्एक्दण्ड्अथवा्तीन्चौथाई्दण्ड्होनी्चादहये्तथा्इसकी्मोिाई्ऊूँचाई्की्आिी्
ok
होनी्चादहये्॥३६॥
वलीक्की्लम्बाई्तीन, चार्या्पाूँच्दण्ड्होनी्चादहये्।्इसके्अग्र्भाग्में ्नासलयाूँ, व्याल्या्
बबधद्ु होना्चादहये्एवं्इसका्पाश्वण्भाग्तरङ्ग्की्भाूँनत्होना्चादहये्॥३७॥
(उपयक्
ुण त्वर्णन्के्अनस
ु ार)्वलीक्होना्चादहये्।्वलीक्के्ऊपर्वर्णपट्दिका्का्ननमाणर््करना्
Bo
चादहये्।्इसका्ववस्तार्आिा्दण्ड्एवं्ऊूँचाई्ववस्तार्का्आिा्होना्चादहये्।्उसके्मध्य्
भाग्को्फलकों्द्वारा्छे दरदहत्करना्चादहये्।्इसके्ऊपर्एक्दण्ड्ऊूँची्न्स्थर्तल
ु ा्स्थावपत्
करनी्चादहये्।्तल
ु ा्का्ववस्तार्तीन्चौथाई्दण्ड्होना्चादहये्।्इसे्द्वार्की्ओर्उधमख
ु ्
होना्चादहये्॥३८-३९॥
44
तल
ु ा्के्ऊपर्तल
ु ा्की्चौड़ाई्के्बराबर्ऊूँचाई्वाली्जयधती्रक्खी्जानी्चादहये्।्जयधती्के्
ऊपर्आिा्दण्ड्ऊूँचा्अनम
ु ागणक्रखना्चादहये्॥४०॥
उसके्ऊपर्फलको्को्स्थावपत्करना्चादहये्।्इसकी्मोिाई्दण्ड्के्चौथे्या्छठवे्भाग्के्
बराबर्होनी्चादहये्।्प्रस्तर्एवं्स्तम्भ्के्ववस्तार्को्ईंिों्एवं्चर्
ू ्ण से्जोड़ना्चादहये्॥४१॥
कराल, मुद्धग, गुलमास, कलक्एवं्धचक्कर््(ये्सभी्ईंिो्को्जोड़ने्एवं्लेप्में ्प्रयुक्त्होते्है )्का्
प्रयोग्करना्चादहये्।्उत्तर्एवं्वाजन्पाश्वण्में ्लगने्चादहये्।्॥४२॥
तुला्(की्स्थापना)्द्वार्के्अनुसार्होनी्चादहये्।्जयधती्(उसके्ऊपर)्नतरछी्रक्खी्जानी्
चादहये्।्उसके्ऊपर्द्वार्के्अनुसार्अनुमागण्रक्खा्जाना्चादहये्।्॥४३॥
दे वालय्एवं्राजभवन्में ्तुला्द्वार्से्नतरछी्होनी्चादहये्।्वलीक्एवं्तुला्के्मध्य्का्
अवकाश्दो्या्तीन्दण्ड्होना्चादहये्॥४४॥
जयन्धतयों्के्मध्य्का्अधतर्डेढ़्या्ढ़ाई्दण्ड्होता्है ्।्उनके्ऊपर्एक-एक्दण्ड्के्अधतर्
पर्रक्खे्अनम
ु ागण्उनके्मध्य्के्नछद्र्को्भर्दे ते्है ्॥४५॥
इस्प्रकार्प्रस्र-कक्रय्धचर-ववधचर्अङ्गो्से्ननसमणत्होती्है ्।्क्षुद्रं्एवं्तल
ु ा्को्इस्प्रकार्रखना्
चादहये, न्जससे्कक्वे्दृढ़तापूवक
ण ्स्थावपत्हो्जायूँ्॥४६॥
रूप्(आकृनत)्के्साथ्अथवा्ववना्रूप्के्(प्रस्तर-प्रकलपन्में )्सभी्अङ्गों्का्प्रयोग्करना्
चादहये्।्तुला्के्ऊपर्फलकों्द्वारा्आच्छादन्करना्चादहये्।्अथवा्ईंिों्से्आच्छादन्करना्
चादहये्।्शेष्कायण्पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्करना्चादहये्॥४७॥
प्रस्तर्की्ऊूँचाई्मसूर्की्ऊूँचाई्के्बराबर्होनी्चादहये्एवं्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्से्दश्या्आठ्
भाग्कम्होनी्चादहये्।्प्रस्तर्की्ऊूँचाई्एवं्माप्इस्प्रकार्रखना्चादहये, न्जससे्कक्भवन्
को्दृढ़ता्एवं्सौधदयण्प्रदान्ककया्जा्सके, ऐसा्ववद्वानों्का्मत्है ्॥४८॥
om
लेप
लेप-सामग्री्-्लेप्के्सलये्यह्समश्रर््तैयार्ककया्जाता्है ्-्शहद, घत
ृ , दही, दि
ू , उड़द्का्पानी,
चमड़ा, केला, गुड़, बरफला्एवं्नाररयल्।्इधहें ्क्रमशः्एक-एक्भाग्बढ़ाते्हुये्लेना्चादहये्।्इनमें ्
एक्सौ्भाग्चन
ू ा्समलाना्चादहये्तथा्इस्समश्रर््में ्दग
ु ुनी्मारा्में ्बालू्समलाना्चादहये्॥४९॥
युग्मायुग्ममान
सम्एवं्ववषम्मान्-्मनुष्यों्के्गह
s.c
ृ ्में ्हस्त, स्तम्भ्तथा्तुला्आदद्का्प्रयोग्ववषम्संख्याओं्
में ्करना्चादहये; ककधतु्दे वालय्में ्हस्त्आदद्का्प्रयोग्सम्अथवा्ववषम्संख्याओं्में ्होता्है ्
।
ok
्िार
दे वता, ब्राह्मर््एवं्राजाओं्के्गह
ृ ्में ्मध्य्में ्द्वारस्थापन्ननधदनीय्नही्है ; ककधतु्अधय्वर्ण्
वालों्के्सलये्द्वार्मध्य्के्पाश्वण्में ्शुभ्होता्है ्॥५०॥
िेदद
Bo
कम्प्के्नीचे्स्तम्भों्को्उधचत्रीनत्से्जोड़ना्चाइये्।्इन्स्तम्भों्का्मल
ू ्एवं्अग्र्भाग्
कम्प्के्अनस
ु ार्होना्चादहये्तथा्इसे्पद्मपट्िी्एवं्अग्रबधिन्से्यक्
ु त्होना्चादहये्॥५३॥
जालकानन
झरोखा, जाल्-्ववद्वानों्के्अनुसार्वेददयों्के्ऊपर्जालकों्(र्खड़की, रोशनदान)्का्प्रयोग्करना्
चादहये्।्इधहे ्सभवत्त्के्साथ्स्तम्भ्के्मध्य्भाग्में ्नही्होना्चादहये्।्इनकी्चौड़ाई्चार्दण्ड्
होनी्चादहये्॥५४॥
इनकी्चौड़ाई्दो्दण्ड्से्प्रारम्भ्कर्(चार्दण्डपयणधत)्तथा्ऊूँचाई्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी्होनी्चादहये्
।्अथवा्ऊूँचाई्डेढ़्या्पौने्दो्भाग्(चौड़ाई्की)्होनी्चादहये्।्यह्स्तम्भ्के्मध्य्रधध्र्को्
छोड़्कर्होनी्चादहये्॥५५॥
सम्एवं्ववषम्संख्याओं्वाले्पादों्एवं्कम्पों्से्यक्
ु त्सजाविी्र्खड़ककयों्का्यथोधचत्ऊूँचाई्
एवं्ववस्तार्के्साथ्प्रयोग्करना्चादहये्।्इनकी्संज्ञा्गवाक्श, कुञ्जराक्ष, नधद्यावतण, ऋजकु क्रय,
पष्ु पखण्ड्एवं्सकर्ण्है ्।्गवाक्ष्संज्ञक्जालक्(र्खड़की, झरोखा)्लम्बा, अनेक्कोर्ों्वाला्एवं्
नछद्रयुक्त्होता्है ्॥५६-५७॥
चौकोर्एवं्कर्णकनछद्र्(ववसभधन्प्रकार्के्नछद्रों्वाले)्से्युक्त्जालक्कुञ्जराक्ष्संज्ञक्होता्है ्।्
पाूँच्सूरों्से्प्रदक्षक्षर्क्रम्(बायें्से्दादहने)्से्ननसमत्नछद्रयुक्त्जालक्नधद्यावतण्आकृनत्का्
होने्के्कारर््नधद्यावतण्संज्ञक्होता्है ्।्नतरछे ्एवं्सीिे्स्तम्भों्से्ननसमणत्एवं्कम्पयुक्त्
जालक्की्संज्ञा्ऋजुकक्रय्होती्है ्॥५८-५९॥
पुष्पखण्ड्एवं्सकर्ण्जालक्नधद्यावतण्के्समान्होते्है ्।्सभवत्त्के्मध्य्से्हि्कर्जालकों्के्
स्तम्भों्का्योग्होता्है ्एवं्जालक्कवाि्(पललों)्से्युक्त्होते्है ्॥६०॥
om
ये्कवाि्एक्अथवा्दो्होते्है ्एवं्खल
ु ने्तथा्बधद्होने्में ्समथण्होते्है ्।्जालकों्की्न्स्थनत्
स्तम्भ्के्बराबर्अथवा्भवन्की्ग्रीवा्के्बराबर्होती्है ्॥६१॥
गोल्आकृनत्वाले्जालक्सूय्ण की्आकृनत्वाले्एवं्नछद्रयुक्त्होते्है ्।्ये्स्वन्स्तक, विणमान्तथा्
सवणतोभद्र्प्रकार्के्होते्है ्॥६२॥
मभवर्त्
दीवार्-्बुद्धिमान, (स्थपनत)्को्गह
s.c
ृ स्वामी्की्इच्छानुसार्अथवा्आवश्यकतानुसार)्काष्ठ, प्रस्तर्
अथवा्ईंिो्से्सभवत्त-ननमाणर््करना्चादहये्।्इस्प्रकार्जालक्(काष्ठ-ननसमणत), फलक्
(प्रस्तरफलकों्से्ननसमणत)्तथा्ऐष्िक्(ईंिो्से्ननसमणत)्तीन्प्रकार्की्सभवत्तयाूँ्होती्है ्॥६३॥
ok
जालक्सभवत्त्जालकों्(काष्ठननसमणत)्से्युक्त, ऐष्िक्सभवत्त्ईंिों्से्युक्त्तथा्फालक्सभवत्त्
फलकों्(प्रस्तरखण्डों)्से्युक्त्होती्है ्।्सभवत्त्के्मध्य्में ्पाद्होते्हैं्॥६४॥
दीवार्बनाते्समय्ऊपर्एवं्नीचे्कमलपुष्पों्के्समूह्से्युक्त्पट्दिका्का्ननमाणर््करना्
चादहये्।्फलकों्की्मोिाई्स्तम्भ्के्चौथे, छठे ्या्आठवें्भाग्के्बराबर्होनी्चादहये्॥६५॥
Bo
अथवा्सभी्स्थान्पर्सशबबका्(पालकी)्की्सभवत्त्के्समान्फलका्ननसमणत्होनी्चादहये्।्(यहाूँ्
सम्भवतः्काष्ठखण्डों्से्ननसमणत्सभवत्त्का्तात्पयण्है )्इस्प्रकार्जहाूँ-जहाूँ्उधचत्हो, फलका्कुड्य्
वहाूँ-वहाूँ्(फलकननसमणत्सभवत्त)्का्प्रयोग्करना्चादहये, ऐसा्वास्तश
ु ास्र्के्ववशेषज्ञो्का्मत्है ्
॥६६॥
44
सल्न्धकाया्का्विधान्-
पाश्वण्में ्खड़े्एवं्लेिे्(ऊध्वाणिर्एवं्क्षैनतज्न्स्थनत)्पदाथों्की्सन्धि्होती्है ्।्एक्वस्तु्(के्
ननमाणर्)्में ्बहुत्वस्तुओं्के्संयोग्से, वक्ष
ृ ्के्अग्र्भाग्(के्काष्ठों)्की्दब
ु ल
ण ता्के्कारर्, दब
ु ल
ण ्
के्बलवद्
ृ धि्के्कारर््सन्धिकमण्प्रशस्त्होता्है ्।्समान्जानत्वाले्वक्ष
ृ ों्(कोष्ठों)्का्सन्धिकमण्
प्रशस्त्होता्है ्॥१-२॥
सन्धि्के्भेद्-्सन्धियाूँ्छः्प्रकार्की्होती्है -्मलललील, ब्रह्मराज, वेर्ुपवणक, पूकपवण, दे वसन्धि्एवं्
om
दन्ण्डका्॥३॥
सल्न्धविथध
जोड़ने्के्ववधि्-्स्थपनत्घर्के्बाहर्खड़े्होकर्चारो्ददशाओं्से्उसका्ननरीक्षर््करे ्।्
तत्पश्चात्दक्षक्षर््को्उत्तर्से्एवं्दीघण्(लम्बाई)्को्अदीघण्(छोिी्लम्बाई)्से्क्रमशः्जोड़े्॥४॥
यदद्मध्य्एवं्दक्षक्षर््में ्सन्धि्करना्चाहते्हों्तो्मध्य्के्अनत्दीघण्को्पूव्ण की्भाूँनत्छोिे ्
s.c
दीघण्से्जोड़ना्चादहये्॥५॥
अथवा्वाम्भाग्एवं्दक्षक्षर््भाग्में ्समान्माप्के्द्रव्य्हो्तथा्मध्य्में ्न्स्थत्पदाथण्दीघण्हों्
तो्उनमें ्सन्धि्करनी्चादहये्।्यदद्मध्य्का्पदाथण्न्हो्तथा्दोनों्ओर्समान्माप्के्द्रव्य्
हो्तो्भी्सन्धि्करनी्चादहये्॥६॥
ok
इस्प्रकार्गह
ृ ्के्बाहरी्भाग्कक्सन्धि्करनी्चादहये्।्भीतरी्भाग्की्सन्धि्के्सलये्गह
ृ ्के्
मध्य्स्थान्में ्खड़े्होकर्स्थपनत्को्चारो्ददशाओं्का्ननरीक्षर््करना्चादहये्।्न्जस्प्राकर्
बाहरी्भाग्की्सन्धि्होती्है , उसी्प्रकार्भीतरी्भाग्की्भी्सन्धि्होती्है ्॥७॥
Bo
भाग्को्जोड़ने्से्सन्धिकायण्सुखद्होता्है ्।्मूल्भाग्को्नीचे्सलिा्कर्रखना्चादहये्एवं्
उसके्ऊपर्अग्र्भाग्को्जोड़ना्चादहये्॥९॥
दो्द्रव्यों्को्जोड़्कर्एक्सन्धि्होती्है ्।्इसे्मलललील्कहा्गया्है ्।्तीन्पदाथो्को्जोड़ने्
से्दो्सन्धियाूँ्बनती्है ्।्इसे्ब्रह्मराज्कहते्है ्।्चार्एवं्पाूँच्पदाथों्के्योग्से्क्रमशः्तीन्
एवं्चार्सन्धियाूँ्होती्है ्॥१०-११॥
(तीन्एवं्चार्सन्धियों्को)्वेर्ुपवण्कहते्है ्।्यह्दे वालय्एवं्मनुष्यों्के्गह
ृ ों्में ्होता्है ्।्छः्
एवं्सात्पदाथो्के्योग्से्पाूँच्एवं्छः्सन्धियाूँ्बनती्है ्॥१२॥
(उपयक्
ुण त्सन्धियों्के)्पूकपवण्कहा्गया्है ; साथ्ही्इसे्िन-िाधय्प्रदान्करने्वाला्कहा्गया्है ्
।्आठ्एवं्नौ्पदाथों्के्योग्से्सात्एवं्आठ्सन्धियाूँ्ननसमणत्होती्है ्॥१३॥
(पव
ू ोक्त्सन्धियों्को)्दे वसन्धि्कहते्है ्।्यह्सभी्प्रकार्के्गह
ृ ों्के्अनक
ु ू ल्होती्है ्।्बहुत-से्
पदाथों्से्बहुत-सी्सन्धियाूँ्ननसमणत्होती्है ्।्इनमें ्दीघण्एवं्अलप्दीघण्(कम्लम्बा)्के्संयोग्का्
ननयम्पहले्की्भाूँनत्ही्लगता्है ्।्इस्सन्धि्को्दन्ण्डका्कहा्गया्है ्।्यह्सन्धि्िन, िाधय्
एवं्सुख्प्रदान्करती्है ्॥१४॥
(सवणतोभद्र्सन्धि्में )्दक्षक्षर््एवं्अपर्भाग्(दक्षक्षर्-पूव)ण ्में ्पदाथण्का्मूल्रखना्प्रशस्त्होता्है ;
साथ्ही्इसका्ऊध्वण्भाग्ईशान्कोर््में ्होना्चादहये्।्अब्इनके्बधिन्का्उललेख्ककया्जाता्
है ्।्प्रथम्आिार्पूव्ण ददशा्होती्है , जहाूँ्मूल्एवं्अग्र्छे द्से्युक्त्पदाथण्रक्खा्जाता्है ्।्उसके्
ऊपर्दक्षक्षर््एवं्उत्तर्में ्अग्र्भाग्से्युक्त्पदाथण्रक्खा्जाता्है ्।्इनके्मूल्भाग्एवं्ऊध्वण्छे द्
से्युक्त्अग्र्भाग्संयक्
ु त्होते्है ्।्पन्श्चमी्ददशा्में ्रक्खे्पदाथण्का्छे द्नीचे्की्ओर्रखना्
चादहये्एवं्इसे्आिेय्होना्चादहये्।्इस्प्रकार्दक्षक्षर््से्प्रारम्भ्होने्वाला्यह्संयोग्(सन्धि)्
om
सवणतोभद्र्संज्ञक्होता्है ्॥१५-१८॥
नन््याितासल्न्ध
नधद्यावतण्सन्धि्नधद्यावतण्आकृनत्के्अनुसार्बनाई्जाती्है ्।्दक्षक्षर््से्उत्तर्की्ओर्जाने्
वाली्लम्बाई्में ्दक्षक्षर््ददशा्में ्ननकला्भाग्कर्णकयुक्त्होता्है ्॥१९॥
पूव्ण एवं्पन्श्चम्की्(दस
s.c
पूव्ण से्पन्श्चम्की्ओर्जाने्वाले्आयाम्(लम्बाई)्का्कर्णक्पन्श्चम्में ्होता्है ्।्दक्षक्षर््एवं्
उत्तर्की्लम्बाई्(सन्धि्के्दस
ू री्ओर)्में ्उत्तर्ददशा्में ्कर्णक्होता्है ्॥२०॥
ू री्ददशा्में )्लम्बाई्में ्पूव्ण ददशा्में ्कर्णक्होता्है ्।्आिार्एवं्आिेय्
ननयम्के्अनुसार्पूव्ण आदद्में ्इस्प्रकार्रखना्चादहये्।्इस्नधद्यावतण्सन्धि्को्दक्षक्षर्क्रम्से्
ok
करना्चादहये्॥२१॥
स्िल्स्तबन्धसल्न्ध
जब्पूव-ण उत्तर्की्ओर्शीषण्भाग्वाले्दीघण्से्बहुत्से्पदाथण्जुड़ते्है , जब्नतरछे ्अग्र्भाग्वाले्
दीघण्से्दो्या्बहुत्से्पदाथण्सशखाओं्(चल
ू ों)्से्जड़
ु ते्है ्एवं्यह्योग्यदद्स्वन्स्तक्की्आकृनत्
Bo
पव
ू ्ण ददशा्का्पदाथण्दक्षक्षर््की्ओर्एवं्पन्श्चम्ददशा्का्पदाथण्उत्तर्की्ओर्कक्षों्की्सभवत्त्का्
आश्रय्लेते्हुये्उधचत्रीनत्से्रखते्हुये्जोड़ना्चादहये्।्इस्बधि्को्विणमान्कहते्है ्।्ननचले्
तल्के्कायण्के्अनुसर्ऊपर्एवं्उसके्ऊपर्के्तल्में ्भी्करना्चादहये्॥२५-२६॥
इसके्ववपरीत्करने्से्ववपत्ती्आती्है , ऐसा्शास्रों्का्मत्है ्।्दीघण्एवं्अदीघण्(कम्लम्बा)्का्
संयोग्पदाथों्का्ववधिवत्परीक्षर््एवं्ननरीक्षर््करके्ही्करना्चादहये्॥२७॥
न्जस्स्थान्पर्न्जतने्बल्की्एवं्न्जस्प्रकार्के्योग्(सन्धि, जोड़)्की्आवश्यकता्हो, वहाूँ्उसी्
प्रकार्की्सन्धि्का्प्रयोग्बुद्धिमान्(स्थपनत)्को्करना्चादहये्।्इस्प्रकार्ववशेष्ववधि्से्की्
गई्सन्धि्सम्पवत्तकारक्होती्है ्॥२८॥
सन्धि्के्भेद्-्स्तम्भों्की्पाूँच्प्रकार्की्सन्धियाूँ्इस्प्रकार्कही्गई्है -्मेषयुद्ि,बरखण्ड,
सौभद्र, अिणपार्र्क्एवं्महावत्त
ृ ्॥२९॥
(खड़ी्न्स्थनत्की्सन्धियाूँ्पव
ू व
ण र्र्णत्है )्लेिी्न्स्थनत्(अथवा्क्षैनतज)्की्पाूँच्प्रकार्की्सन्धियाूँ्
इस्प्रकार्है ्-्षट््सशखा, झषदधत, सक
ू रिार्, सङ्कीर्णकील्एवं्वज्राभ्॥३०॥
स्तर्मभसन्धय
स्तम्भ्की्सन्धियाूँ्-्जब्सन्धि्वाले्पदाथण्का्मध्य्भाग्चौड़ाई्में ्स्तम्भ्के्तीसरे ्भाग्के्
बराबर्एवं्लम्बाई्चौड़ाई्कक्दग
ु ुनी्अथवा्ढाई्गुनी्हो्तो्इसे्मेषयुद्ि्सन्धि्कहते्है ्॥३१॥
बरखण्ड्सन्धि्स्वन्स्तक्के्आकार्की्होती्है ्।्इसके्तीन्भाग्एवं्तीन्चसू लयाूँ्होती्है ्।्पाश्वण्
में ्चार्सशखा्(चल
ू ी)्से्युक्त्सन्धि्सौभद्र्कहलाती्है ्॥३२॥
न्जस्सन्धि्के्सलये्स्तम्भ्की्मोिाई्के्अनुसार्आिा्भाग्मूल्(ननचले)्भाग्का्एवं्आिा्
भाग्अग्र्(ऊध्वण)्भाग्का्कािा्जाता्है , उसे्अिणपार्र््सन्धि्कहते्है ्॥३३॥
जब्चसू लका्का्आकार्अिणवत्त
ृ ाकार्हो्एवं्मध्य्भाग्(जहाूँ्जोड़्बैठाया्जाय)्में ्अिणवत्त
ृ ्हो्तो्
om
उस्सन्धि्को्महावत्त
ृ ्कहते्है ्।्बुद्धिमान्(स्थपनत)्स्तम्भों्के्वत्त
ृ ाकार्भाग्में ्इस्सन्धि्का्
प्रयोग्करते्है ्॥३४॥
स्तम्भों्में ्की्जाने्वाली्सन्धि्स्तम्भों्की्लम्बाई्के्मध्य्भाग्के्नीचे्करनी्चादहये्।्स्तम्भ्
के्मध्य्एवं्उसके्ऊपर्यदद्सन्धि्हो्तो्वह्सवणदा्ववपवत्त्प्रदान्करती्है ्॥३५॥
s.c
कुम्भ्एवं्मन्ण्ड्आदद्से्युक्त्स्तम्भ्की्सन्धि्(उपयक्
ुण त्दोनों्की्सन्धि)्सम्पनत-कारक्होती्है ्
।्सज्जा्से्युक्त्प्रस्तर-स्तम्भ्की्सन्धि्जैसी्आवश्यकता्हो, उसके्अनुसार्करनी्चादहये्॥३६॥
खड़े्वक्ष
ृ ्के्(काष्ठों्के)्ववववि्अङ्गों्का्संयोग्अनुकुलता्के्अनुसार्करना्चादहये्।्ऊध्वण्भाग्
का्मूल्भाग्के्साथ्एव्ननचले्भाग्के्साथ्शीषण्भाग्की्सन्धि्सभी्प्रकार्की्सम्पवत्तयों्का्
ok
नाश्करती्है ्॥३७॥
िनयतसन्धय
क्षैनतज्सन्धियाूँ्-्न्जसके्दोनो्छोरों्पर्अिणपार्र््सन्धियाूँ्हो्एवं्सन्धि्वाले्पदाथण्में ्छः्
लाङ्गल्(हल्के)्आकार्की्सशखायें्(चल
ू े)्बनी्हो, साथ्ही्मध्य्की्कील्मोिी्हो, उस्सन्धि्को्
Bo
षट््सशखा्सन्धि्कहते्है ्॥३८॥
झषदधतक्सन्धि्में ्पदाथण्के्ऊपर्एवं्नीचे्दोनों्ओर्बहुत-सी्सशखायें्होती्है ्।्ये्सभी्
सशखायें्आवश्यकतानस
ु ार्एवं्बल्के्अनस
ु ार्ननसमणत्होती्है ्॥३९॥
सअ
ू र्की्नाक्के्समान, आवश्यकतानस
ु ार्शन्क्त्एवं्योग्से्यक्
ु त, ववसभधन्बल्की्सशखाओं्
44
वाली्सन्धि्सक
ू रिार््कही्जाती्है ्॥४०॥
ववसभधन्प्रकार्की्कीलों्से्यक्
ु त्सन्धि्को्सङ्कीर्णकीलक्कहते्है ्।्वज्रसन्धनभ्सन्धि्में ्वज्र्
के्आकृनत्की्सशखा्होती्है ्॥४१॥
इस्प्रकार्एक्पंन्क्त्को्जोड़ने्में ्ऊपर्से्ननचे्तक्एक्की्आकार्की्सन्धि्का्प्रयोग्करना्
चादहये्।्इसके्ववपरीत्सन्धि्करने्पर्ववपवत्त्आती्है ्॥४२॥
(सन्धि्करते्समय्इस्बात्का्ध्यान्रखना्चादहये्कक)्मूल्भाग्भीतर्की्ओर्एवं्अग्र्भाग्
बाहर्की्ओर्रहे ्।्यदद्अग्र्भाग्भीतर्एवं्मल
ू ्भाग्बाहर्रहता्है ्तो्वह्स्वामी्के्ववनाश्
का्कारर््बनता्है ्॥४३॥
वि्ध्एिं्कील्-
सशखा, दधत, शल
ू ्एवं्ववद्ि्-्ये्सभी्(चल
ू ी, चल
ू ्के)्पयाणय्है ्तथा्शलय, शङ्कु, आर्र््तथा्कील-्
ये्सभी्शब्द्(कील्के)्पयाणय्है ्।्शल
ू ्एवं्कील्का्माप्स्तम्भ्की्चौड़ाई्का्आठ, सात्या्
छठवें्भाग्के्बराबर्होता्है ्॥४४॥
सल्न्धदोषा
सन्धि्के्दोष - बुद्धिमान्(स्थपनत)्को्चादहये्कक्कील्का्पाश्वण्स्तम्भ्के्मध्य्में ्लगाये्
॥४५॥
स्तम्भ्का्अन्धतम्भाग्एवं्दधत, (सशखा, चल
ू )्का्अन्धतम्भाग्यदद्आपस्में ्जुड़्े तो्ववनाश्के्
कारर््बनते्है ्।्इसी्प्रकार्यदद्दधत्का्अन्धतम्भाग्स्तम्भ्के्मध्य्में ्पड़े्तो्भी्वही्
पररर्ाम्होता्है ्।्यदद्स्तम्भ्का्अन्धतम्भाग्सन्धि्के्मध्य्पड़े्तो्वह्रोगकारक्होता्है ्
तथा्सन्धि्का्मध्य्एवं्पाद्का्मध्य्यदद्एक्साथ्हो्तो्वह्क्षय्का्कारर््होता्है ्॥४६॥
om
ददक, ववददक्एवं्द्वार्के्दे वताओं्के्सभी्भागों्को्छोड़कर्सन्धि्का्प्रयोग्करना्चादहये्।्
अकण्(सूय)ण , अककण्(यम), वरुर््एवं्इधद्ु दे वों्का्स्थान्ददक्कहलाता्है ्(ये्ददशायें्क्रमशः्पूव,ण
दक्षक्षर्, पन्श्चम्एवं्उत्तर्है )्॥४७॥
अन्ग्न, राक्षस, वायु्एवं्ईश्दे वता्का्स्थान्ववददक्(कोर्)्कहलाता्है ्।्गह
ृ क्षत, पुष्पाख्य, भललाि्
स्थानों्पर्शलय्(कील)्एवं्दधत्(चल
s.c
एवं्महे धद्र्दे वों्का्भाग्द्वारभाग्है ्।्इन्स्थानों्पर्सन्धि्नही्करनी्चादहये्।्पूव-ण वर्र्णत्
ू )्का्प्रयोग्नही्करना्चादहये्॥४८-४९॥
इसी्प्रकार्दधत्का्प्रयोग्मध्य्अथवा्मध्यािण्के्मध्य्(चतुथांश्भाग्के्बबधद)ु ्को्छोड़्कर्
करना्चादहये्।्दधत्का्प्रयोग्पदाथण्के्केधद्र-सूर्के्दादहने्एवं्बाूँयें्भाग्में ्करना्चादहये्
ok
॥५०॥
पदाथण्के्ववस्तार्के्मध्य्में ्न्स्थत्सशखा्(चल
ू )्शीि्ही्ववनाश्करती्है ्।्सशखा्के्सलये्
ननसमणत्स्थान्में ्कील्लगाना्तथा्कील्के्स्थान्में ्सशखा्का्प्रयोग्करना्वेिन्होता्है ्॥५१॥
(उपयक्
ुण त्वेिन)्िमण, अथण, काम्एव्सख
ु ्का्नाश्करती्है ्।्बाूँये्स्थान्में ्होने्वाली्सन्धि्
Bo
दादहने्एवं्दादहने्स्थान्की्सन्धि्बाूँये्हो्तो्इसका्(प्रनतसन्धि्का)्पररत्याग्करना्चादहये्
॥५२॥
पदाथण्की्चौड़ाई्के्बराबर्स्थान्पर्लम्बाई्में ्हुई्सन्धि्कलप्यशलय्कहलाती्है ्।्पव
ू व
ण र्र्णत्
ववधि्से्पदाथण्के्मध्य्स्थान्को्छोड़्कर्सन्धि्करनी्चादहये्॥५३॥
44
अज्ञानता्अथवा्शीिता्के्कारर््वन्जणत्स्थान्पर्यदद्सन्धि्की्जाय्तो्सभी्वर्ण्वाले्गह
ृ स्थो्
की्सभी्सम्पवत्तयों्का्नाश्होता्है ्॥५४॥
पुराने्पदाथों्की्नये्पदाथण्से्तथा्नये्पदाथों्की्पुराने्पदाथों्के्साथ्सन्धि्नहीं्करनी्चादहये्
।्नये्पदाथों्की्नये्से्एवं्पुराने्पदाथों्का्पुराने्पदाथण्से्सन्धि्करनी्चादहये्॥५५॥
उधचत्रीनत्से्पदाथों्की्सन्धि्सम्पवत्तकारक्होती्है ्।्इसके्ववपररत्करने्से्ननश्चय्ही्ववनाश्
होता्है ्॥५६॥
(स्तम्भ्के)्ऊपर्के्सभी्वाजन्आदद्पदाथण्सशखा्के्साथ्अथवा्ववना्सशखा्के्पूवव
ण र्र्णत्ववधि्
के्अनुसार्उधचत्रीनत्से्जोड़ना्चादहये्॥५७॥
सन्धि्स्तम्भ्के्ऊपर्होती्है ्।्उनके्मध्य्में ्सन्धि्नही्करनी्चादहये्।्ब्रह्मस्थल्(मध्य्
स्थान)्के्ऊपर्पदाथों्की्सन्धि्ववपवत्तकारक्होती्है ्॥५८॥
ब्रह्मस्थान्पर्न्स्थत्स्तम्भ्गह
ृ स्वामी्का्ववनाश्करता्है ्।्तल
ु ा्आदद्यदद्ऊपर्न्स्थत्पदाथण्
वहाूँ्पड़े्तो्दोष्नहीं्होता्है ्॥५९॥
पंन्ु ललङ्ग, स्रीसलङ्ग्एवं्नपस
ु ंकसलङ्ग्वक्ष
ृ ों्के्काष्ठों्के्सन्धि्की्समय्इस्बात्का्ध्यान्
रखना्चादहये्कक्पुरुष-काष्ठ्से्पुरुष-काष्ठ्का्एवं्इसी्प्रकार्स्री-काष्ठ्से्स्रीकाष्ठ्का्ही्
सन्धिकमण्हो्।्इनके्साथ्नपुंसक्काष्ठ्की्सन्धि्नहीं्होनी्चादहये्।्नपुंसक्काष्ठ्का्
सजातीय्काष्ठ्से्संयोग्होना्चादहये्।्एक्जानत्के्काष्ठों्की्सन्धि्शुभ्पररर्ाम्दे ती्है ्
॥६०॥
इस्ववधि्से्मनुष्यों्एवं्दे वों्के्आवास्में ्पदाथों्की्सन्धि्करनी्चादहये्।्इस्रीनत्से्की्गई्
सन्धि्सम्पवत्त्प्रदान्करती्है ्।्इसके्ववपरीत्रीनत्से्हुई्सन्धि्सभी्सम्पवत्तयों्का्नाश्करती्
है ्॥६१॥
om
अच्छे ्स्थपनत्को्छोिा, ककधतु्गहरा्नछद्र्बनाना्चादहये्।्कील्काष्ठ, प्रस्तर्या्गजदधत्ननसमणत्
से्होना्चादहये्।्पकी्ईंि्में ्नछद्र्छोि्एवं्कम्गहरा्होना्चादहये्।इसके्नछद्र्को्सुिा्को्
प्रयोग्से्पतला्एवं्उधचत्घेरे्वाला्बनाना्चादहये्।्न्जनका्यहाूँ्वर्णन्नही्ककया्गया्है , उनके्
योग्को्बुद्धिमान्स्थपनत्को्अपनी्बुद्धि्द्वारा्युन्क्तपूवक
ण ्करना्चादहये्॥६२॥
s.c
मयमतम्-्अध्याय्१८
ok
प्रासाद्के्उ्ाधा्िगा्-
अब्मैं्(मय्ऋवष)्इन्(प्रासादों)्के्गले्के्अलङ्करर्ों्का, शीषण-भाग्के्आच्छादन्का, लुपा्के्
प्रमार््का्एवं्स्तूवपका्के्लक्षर््का्क्रमशः्वर्णन्करता्हूूँ्॥१॥
Bo
गललक्षण
गल्का्लक्षर््-्भवन्का्गल्वेददका्की्ऊूँचाई्का्दग
ु ुना्ऊूँचा्होना्चादहये्।्उसके्ऊपर्
सशखरोदय्गल्का्दग
ु ुना्अथवा्तीन्गुना्ऊूँचा्होना्चादहये्।्अथवा्गल्की्ऊूँचाई्वेददका्की्
ऊूँचाई्के्बराबर्होनी्चादहये्॥२॥
44
om
५.्तेरह्भाग्में ्छः्भाग्-्कौसल
६.्पधद्रह्भाग्में ्सात्भाग्-्शौरसेन
७.्सरह्भाग्में ्आठ्भाग्-्गाधिार
८.्दन्ण्डका्मोिाई्का्आिा्भाग्-्आवन्धतक्॥७-१०॥
s.c
ज्ञाननयों्द्वारा्इनका्(पाञ्चाल्आदद्का)्नाम्क्रमशः्जानना्चादहये्।्ये्सभी्जङ्घा्के्बाहर्
ननकले्होते्है ्।्इन्सशखरों्में ्नीचे्वाला्(आवन्धतक)्सशखर्मनुष्य्के्आवास्के्योग्य्एवं्शेष्
सभी्दे वालय्के्योग्य्होते्है ्॥११॥
इन्आवन्धतक्आदद्सशखरों्पर्लुपा-संयोजन्के्सलये्दश्भाग्से्प्रारम्भ्कर्एक-एक्अंश्
ok
बढ़ाते्हुये्सरह्भाग्पयणधत्आठ्प्रकार्की्ऊूँचाइयाूँ्प्राप्त्होती्है ्।्इनके्नाम्इस्प्रकार्है ्-्
व्यासमश्र, कसलङ्ग, कौसशक, वराि, द्राववड, बबणर, कोललक्तथा्शौन्ण्डका्॥१२-१४॥
मिखराकृनत
सशखर्की्आकृनत्-्दे वों्एवं्सािओ
ु ं-संधयाससयों्का्भवन्के्सशखरों्के्आकार्चौकोर, वत्त
ृ ाकार,
Bo
स्थवू पकोत्सेध
सशखर्की्ऊूँचाई्के्चौथे्या्पाूँचवें्भाग्के्बराबर्ऊूँचा्कमल्होना्चादहये्।
उसके्ऊपर्पद्म्के्बराबर्अथवा्उसके्तीसरे ्भाग्के्बराबर्लम्बी्स्थवू पका्(स्तूवपका)्होती्है ्
॥१८॥
अत्यधत्छोिे ्भवन्में ्स्थवू पका्(स्तूवपका)्का्प्रमार््सशखर्का्आिा्अथवा्तीसरे ्भाग्के्
बराबर्होना्चादहये्।्इस्प्रकार्संक्षेप्में ्स्थवू पका्को्अलङ्करर्ों्का्वर्णन्ऊपर्ककया्गया्
॥१९॥
लुपासंख्या
दे वों्एवं्मनष्ु यों्के्भवन्में ्चार्प्रकार्के्लप
ु ाओं्(लट्ठे , लकड़ी्के्पट्िे )्की्संख्या्होती्है ्।्
यह्पाूँच्से्लेकर्ग्यारह्पयणधत्(पाूँच, सात, नौ, ग्यारह)्अथवा्चार्से्लेकर्दस्तक्(चार, छः,
आठ, दश)्होती्है ्॥२०॥
पुष्कर
पूव-ण वर्र्णत्अधतर्की्ऊूँचाई्व्यासमश्र्नामक्पुष्कर्(सशखर्का्एक्भाग)्की्है ्।्ऊध्वण-न्स्थतं्एवं्
अिोभाग्में ्न्स्थत्पुष्कर्का्माप्आिे्प्रमार््से्रखना्चादहये्॥२१॥
आिे्प्रमार््से्प्रारम्भ्कर्सबसे्ऊूँचे्प्रमार््तक्जाना्चादहये्।्इसके्पश्चात्वापस्(नीचे्तक)्
लौिना्चादहये्।्आरोह्एवं्अवरोह्का्यह्गोपनीय्क्रम्इस्प्रकार्वर्र्णत्है ्॥२२॥
लुपामान
(दो)्दन्ण्डकाओं्के्मध्य्के्मोिाई्(चौड़ाई)्के्आिे्माप्के्बराबर्एक्सम्चतुभज
ुण ्बनाना्
om
चादहये्।्इस्चतुभज
ुण ्के्चारो्भुजाओं्(सूरों)्की्संज्ञा्क, उष्र्ीष, आसन्एवं्सीम्होती्है ्॥२३॥
आसन्सूर्के्नीचे्दन्ण्डका्एवं्उत्तर्के्बराबर्सूर्फैलाना्चादहये्(रे खा्बनानी्चादहये)्।्इसके्
पश्चात्आसनसूर्पर्चार्से्प्रारम्भ्कर्दश्भागपयणधत्(चार, पाूँच, छः, सात, आठ, नौ, दश)्बबधद्ु
धचन्ह्नत्करना्चादहये्॥२४॥
s.c
क्सूर्एवं्उष्र्ीष्सूर्की्सन्धि्से्उस्बबधद्ु को्सीम्की्छाया्(सशखर्का्एक्भाग)्की्
ऊूँचाई्तक्ले्जाना्चादहये्।्छाया्की्ऊूँचाई्तक्लम्बाई्के्मान्को्क्सूर्के्म्ल्से्
आसानसूर्पर्धयस्त्करना्चादहये्॥२५॥
ये्ही्सूर्दन्ण्डका्आदद्तक्होते्है ्।्लुपाओं्की्लम्बाई्क्एवं्उष्र्ीष्सूर्के्सन्धिस्थल्से्
ok
बबधद्ु के्अधत्तक्होती्है ्॥२६॥
क्सूर्पर्उनका्(लुपाओं्का)्ववस्तार्पुनः्ववधयस्त्करना्चादहये्(अथाणत्लुपायें्कहाूँ-कहाूँ्
लगनी्है ्-्इसे्धचन्ह्नत्करना्चादहये)्।्सभी्को्अपने्कर्ण्से्छायामान्तक्मापना्चादहये्
॥२७॥
Bo
वे्पयणधत्सर
ू ्मलल्(सशखर्के्एक्भाग)्तक्सूर्की्भाूँनत्होते्है ्।्इस्प्रकार्मध्य्में ्न्स्थत्
लप
ु ा्अधय्लप
ु ाओं्(पाश्वण्के्न्स्थत्लप
ु ा)्की्संख्या्के्अनस
ु ार्बढ़्सकते्है ्॥२८॥
इस्प्रकार्(लप
ु ा-संयोजन)्करने्से्तथा्आरोह्एवं्अवरोह्से्पष्ु कर्ननसमणत्होता्है ्एवं्इससे्
मलल्की्लम्बाई्ज्ञात्होती्है ्॥२९॥
44
पञ्चलप
ु ाभेद
लप
ु ायें्(अपनी्न्स्थनत्के्अनस
ु ार्दो्प्रकार्की)्समध्य्(मध्य्में ्लगने्वाली)्एवं्ववमध्य्(मध्य्
से्हि्कर्लगने्वाली)्होती्है ्।्लुपायें्पाूँच्प्रकार्की्क्रमशः्इस्प्रकार्होती्है ्-्मध्य,
मध्यकर्ण, आकर्ण, अनक
ु ोदिक्एवं्कोदि्।्यदद्रे खा्का्ववभाजन्सम्भागों्में ्हुआ्हो्तो्लुपा्की्
संख्या्ववषम्होती्है ्एवं्ववषम्भागों्में ्सम्संख्या्में ्लुपायें्होती्है ्॥३०-३१॥
काधता, अधतरा, अससका, उष्र्ीष, सीमाधत, चसू लका, भ्रमर्ीया, समया्एवं्असमया्उन्सूरों्से्न्स्थत्
होकर्दधत्एवं्स्तन्संज्ञक्सुरों्को्सूर्में ्बाूँिती्है ्(दधत्से्स्तन्संज्ञक्सूर्के्मध्य्
उपयक्
ुण तों्की्न्स्थनत्होनत्है )्।्नीचे्न्स्थत्शनयत्सूर्(क्षैनतज्सूर)्पष्ृ ठवंश्(लुपायें्न्जस्पर्
दिकती्है )्को्सूर्में ्बाूँिते्है ्।्॥३२-३३॥
शनयत्सर
ू ्के्भीतरी्भाग्में ्न्स्थत्कील्के्ऊध्वण्भाग्में ्कूि्को्अिणचधद्र्की्भाूँनत्स्थावपत्
कर्सभी्सम्चसू लकाओं्को्धचन्ह्नत्करना्चादहये्॥३४॥
लप
ु ा्एवं्ववलप
ु ्के्मध्य्में ्भीतर्न्स्थर्चसू लका्की्आकृनत्ननसमणत्होती्है ्।्इस्प्रकार्ऋज्ु
ननसमणत्होता्है ्एवं्इसकी्आकृनत्कुक्कुि्पक्षी्के्पंख्के्समान्होती्है ्॥३५॥
बालकूि्के्ववस्तार्में ्न्स्थत्सूरस्तन्के्मध्य्में , वलय्के्नछद्र्के्मध्य्में ्न्स्थत्कूि्का्
मध्यम्सूर्होता्है ्॥३६॥
पयणधत-सूर्से्अधतर-दन्ण्डका्के्वाम्भाग्में ्जो्ववस्तार्होता्है , वहाूँ्अधतजाणनुक्का्व्यास्एव्
उसके्मध्य्में ्चसू लका्की्न्स्थनत्होती्है ्॥३७॥
मिखराियिमान
सशखर्के्अङ्गों्के्प्रमार््-्लुपा्की्चौड़ाई्एक्दण्ड, सवा्दण्ड्या्डेढ़्दण्ड्होती्है ्तथा्उसकी्
om
मोिाई्का्माप्ववस्तार्का्तीसरा, चौथा्या्पाूँचवाूँ्भाग्होता्है ्॥३८॥
जानु्का्व्यास्उत्तर्का्आिा्अथवा्चूसलका्के्आिे्का्आिा्(चतुथांश)्होना्चादहये्।्इसकी्
मोिाई्दन्ण्डका्के्बराबर, तीन्चौथाई्अथवा्आिी्होनी्चादहये्॥३९॥
वलय्एवं्जानु्के्नीव्र्(ककनारा)्का्माप्दन्ण्डका्के्ववस्तार्का्आिा्होना्चादहये्।्मलल्का्
s.c
मध्य्एवं्आददक्अमीली्एवं्जानु्के्आलम्बन्से्जानु्के्अधत्तक्चसू लका्का्अंश्होता्है ्।्
नीव्र्का्आलम्बन-सूर्शयन्से्होता्है ्।्॥४०-४१॥
कुठाररका, ललाि्एव्जघन्का्मान्एक्समान्होता्है ्।्पाद-ववष्कम्भ्एवं्कर्ण्का्माप्समान्
होता्है ्अथवा्ववष्कम्भ्का्दग
ु ुना्होता्है ्॥४२॥
ok
कूि्के्व्यास्के्बराबर्लुपा्की्वपण्डी्होती्है ्एवं्कर्ण्की्लम्बाई्उसकी्दग
ु ुनी्होती्है ्।्उसके्
आिे्माप्का्नासलका-लम्ब्होता्है ्।्इसके्ऊपर्मलल्के्अग्र्भाग्को्जोड़ा्जाता्है ्॥४३॥
नछद्र्उसकी्मोिाई्के्अनुसार्होना्चादहये, न्जससे्उसमें ्मललों्का्प्रवेश्हो्सके्।्जानुक,
लप
ु ामध्य्एवं्मध्य्पष्ृ ठ्पर्न्स्थत्वंश्समान्के्माप्के्होते्है ्।्उनकी्मोिाई्चल
ू ी्के्भाग्के्
Bo
अथवा्लप
ु ा्के्मध्य्भाग्के्बराबर्होती्है ्।्अथवा्लप
ु ा्की्मोिाई्के्आठवें ्भाग्के्बराबर्
वलय्एवं्वंश्का्ववस्तार्होता्है ्॥४४-४५॥
छादन
आच्छादन, छाजन्-्उपयुणक्त्माप्का्आिा्मोिा्(आच्छादन्होना्चादहये)्।्काष्ठ्के्फलकों, िात्ु
44
om
आसन्एवं्क्सूर्के्अग्रभाग्से्एवं्मलल्से्संयुक्त, मध्य्भाग्एव्उसके्बाद्सीिी्रे खा्को्
बुद्धिअमन्ने्परलेखा्कहा्है ्॥५५॥
घदटका
लुपा्की्चौड़ाई्के्मान्से्चौकोर्घदिका्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्यह्एक्ववतन्स्त्(बबत्ता,
s.c
बासलश्त)्लम्बी, सीिी, मध्यम्सूर्से्युक्त्होती्है ्॥५६॥
चसू लका, अधतवणर्,ण लुपा्एवं्नतयणक्सूर्के्मध्य्में ्घदिका्को्स्थावपत्करना्चादहये्।्इसके्
पश्चात्इसे्शमन्सूर्के्समान्नछद्रयुक्त्करना्चादहये्॥५७॥
प्रत्येक्वर्ण्की्घदिका्को्उसके्वर्ण्पर्स्थावपत्करना्चादहये्।्क्षक्षप्त्सूर्के्शेष्भाग्के्वर्ण्
ok
लुपा्के्उदर्भाग्पर्दन्ण्डका, उत्तर्एवं्वलय्पर्न्स्थत्समसूर्का्आलेखन्करना्चादहये्।्
उदर्भाग्की्लम्बाई्के्मध्य्भाग्में ्सम-सूर्के्अङ्कन्से्ककर्ननसमणत्होता्है ्॥५८-५९॥
न्जस्प्रकार्घदिका्ललाि्के्मध्य्में ्हो्तथा्ककर्सम्हो, उस्ववधि्से्लुपा्के्उदर्भाग्में ्
लम्बाई्में ्रखकर्उसे्ललाि्की्आकृनत्में ्कािना्चादहये्।्वलय्आदद्को्लप
ु ा के्उदर्भाग्में ्
Bo
इन्च्छत्भाग्रखना्चादहये्।्वलय्के्नछद्रों्के्साथ्छाया्के्स्थावपत्करना्चादहये्॥६०-६१॥
उस-उस्घदिका्के्साथ्तथा्मध्य्में ्न्स्थत्उनके्मध्य्भाग्से्संयक्
ु त्जो्ललाि्से्सम्बद्ि्
छाया्है , वह्उन-उन्(घदिकाओं)्की्होती्है ्॥६२॥
दन्ण्डका, वलय, नछद्र, स्तन, जान्ु एवं्उत्तर्आदद्पर, सशर्के्मध्य्भाग्में ्तथा्अिण्के्मध्य्में ्
44
तल
ु ा्के्ऊपर्मण्
ु ड्(सजाविी्अङ्ग)्स्थावपत्करना्चादहये्।्॥६३॥
ववि्भाग्(शीषण्भाग)्सशखा्से्यक्
ु त, तल
ु ा-पाद्से्यक्
ु त, वंश्से्यक्
ु त, वर्ण्से्यक्
ु त, मत्स्य-बधि्
एवं्खजरूण -पर्के्समान्आकृनत्से्युक्त्होती्है ्॥६४॥
पुनश्छादन
पुनः्आच्छादन्-्सशखर्के्भीतरी्भाग्में ्वलयक्ष्के्साथ्लुपा्रखनी्चादहये्।्लुपा्के्ऊपर्
फलक्अथवा्कम्प्रखना्चादहये्तथा्सुिा्(गारा)्एवं्ईिों्से्आच्छादन्को्सुधदर्बनाना्चादहये्
(अथाणत्उधहे ्सही्एवं्सुधदर्बनाना्चादहये)्।्॥६५॥
स्थवू पकाकील
स्तवू पका्की्कील्-्स्थवू पका्(स्तवू पका)्के्कील्की्लम्बाई्स्तम्भ्की्लम्बाई्के्बराबर्होनी्
चादहये्।्इसके्शीषण्भाग्की्चौड़ाई्चौथाई्दण्ड्एवं्मल
ू ्की्चौड़ाई्आिा्दण्ड्होनी्चादहये्।्
इसके्मल
ू ्का्वेिन्शङ्ग्कु्के्मल
ू ्से्लेकर्मण्
ु ड्पयणधत्होना्चादहये्॥६६-६७॥
वंश्के्नीचे्मधडनाग, अग्रपट्दिका, बालकूि, स्तन, शङ्कुमूल्एवं्मुण्डक्स्थावपत्करना्चादहये्
॥६८॥
सशखर्के्भीतरी्भाग्की्सज्जा्अधतःस्थ्वलय, नासलयों्से्युक्त्वर्णपट्दिका, मत्स्यबधिन,
खजूरण पर, मलय, वलक्ष्तथा्स्वन्स्त्िाराओं्से्करनी्चादहये्॥६९॥
मुखपट्िी्का्ववस्तर्एक्दण्ड्या्डेढ़्दण्ड्होना्चादहये्।्नीप्र्का्माप्उसके्छिवें्या्आठवें्
भाग्के्बराबर्होना्चादहये्एवं्सुअकी्चौड़ाई्कर्र्णका्की्ऊूँचाई्के्बराबर्होनी्चादहये्।्
शन्क्तध्वज्के्मूल्की्चौड़ाई्एक्दण्ड्होनी्चादहये्।्उसका्कण्ठ्उसके्बराबर, उसका्सवा्भाग्
om
या्डेढ़्भाग्अधिक्होना्चादहये्।्ग्रीवा्के्अधत्तक्जाने्वाले्गग्रपर्का्मान्स्तम्भ्की्
चौड़ाई्का्आिा्ऊूँचा्होना्चादहये्।्॥७०-७१-७२॥
दो्गग्रपरों्के्मध्य्का्भाग्दो्दण्ड्से्प्रारम्भ्कर्तीन्दण्ड्तक्होना्चादहये्।्कर्र्णका्वायु्
के्वेग्से्दहलती्हुई्लता्की्भाूँनत्होनी्चादहये्॥७३॥
s.c
नीचे्अिणकर्ण्होना्चादहये्एवं्उसके्ऊपर्सशर्होना्चादहये्।्डेढ़्भाग्से्अननत्होनी्चादहये्।्
ग्रीवा्के्ऊपर्कपोल-पयणधत्का्भाग्तीन्या्साढ़े ्तीन्दण्ड्होना्चादहये्॥७४॥
उससे्पर्एवं्शूल्से्युक्त्शन्क्तध्वज्लगा्होना्चादहये्।्वहाूँ्नेर्से्युक्त्मलल, चसू लका्एवं्
स्तनमण्डल्आदद्ननसमणत्होना्चादहये्॥७५॥
ok
क्षैनतज्न्स्थत्पट्ि्कमल्आदद्से्अलङ््कृत्होना्चादहये्।्अिणकर्ण, ऊध्वणपट्ि्एवं्ऊध्वणप्रनत्के्
ऊपर्मुन्ष्िबधि्ननसमणत्होना्चादहये्॥७६॥
शोभा्के्अनुसार्ननष्क्राधत्होना्चादहये्।्उसके्ऊपर्बरमुख्होना्चादहये, जो्शूल्के्समान,
मतल्के्सदृश, व्याल्(गज्अथवा्सपण)्के्सदृश्अथवा्नत्ृ यादद्के्दृश्यों्से्यक्
ु त्हो्॥७७॥
Bo
ललाटभष
ू ण
ललाि्के्अलङ्करर््-्उसके्ऊपर्कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्से्अलङ्कृत्ववमान्(मन्धदर)्के्सदृश्
रचना्होती्चादहये, जो्पट्ि, क्षुद्रकम्प्आदद्अङ्गों्अथवा्मध्य्तोरर््से्यक्
ु त्हो्॥७८॥
तोरर््के्मध्य्में ्लक्ष्मी्अङ्ककत्होनी्चादहये, न्जनका्(गजों्द्वारा)्ऐषेक्ककया्जा्रहा्ओ्एव्
44
om
दे वों, ब्राह्मर्ों्, क्षबरयों्एवं्वैश्यों्के्सलये्तो्यह्अनुकूल्ऐ; ककधतु्शूद्रो्के्सलये्नही्है ्।्इन्
अङ्गों्को्(यथोधचत्रीनत्से)्ननयोन्जत्कर्ध्वजदण्ड्को्उसके्ऊपर्रखना्चादहये्।्इन्लक्षर्ों्
से्युक्त्ववमान्(दे वालय, ऊूँचा्भवन)्सम्पनतकारक्होता्है ्॥९१॥
लेप्एिं्गारा्-
s.c
कराल, मुद्गी, गुलमाष, कलक्एवं्धचक्कर््-्ये्पाूँचों्चर्
ू ्ण सभी्(ननमाणर्)्कायो्के्सलये्उधचत्होते्
है ्।्कराल्अभया्(हरण , हरीतकी)्अथवा्अक्ष्(बहे ड़ा, बबभीतक)्के्बीज्के्बराबर्आकार्के्कङ्कड़्
होते्है ्॥९२-९३॥
मूँग
ू ्के्दाने्के्बराबर्छोिे ्कङ्कड़्को्मुद्ग्कहते्है ्।्डेढ़्भाग, तीन्चौथाई्अथवा्दग
ु ुने्माप्
ok
में ्बालू्से्युक्त्ककञलक्(कमल्के्सूर, रे श)े ्में ्शकणरा्(कङ्कड़)्एवं्सीवपयों्(के्चर्
ू ्ण के्साथ)्
चन
ू ा्समलाने्पर्गुलमाष्(एक्प्रकार्का्गारा)्तैयार्होता्है ्।्करालं्एव्मुद्गी्को्भी्इसी्माप्
से्तैयार्ककया्जाता्है ्॥९४-९५॥
पव
ू -ण वर्र्णत्माप्में ्बाल्ू के्साथ्चर्क्(चने्के्आकार्का्चन
ू ा)्को्एक्साथ्पीसना्चादहये्।्
Bo
साथ्पहले्तीन्बार्कूिना्चादहये्॥९८॥
इसके्पश्चात्क्षीरद्रम
ु , कदम्ब, आम, अभया, (हरण )्तथा्अक्श्(बहे ड़ा)्के्छाल्के्जल्के्साथ, इसके्
पश्चात्बरफला्(हरण , बहे ड़ा्एवं्आूँवला्)्के्जल्के्साथ, तदनधतर्उड़द्के्पानी्के्साथ्(कूिा्
जाता्है )्॥९९॥
इसके्पश्चात्कुङ्कड़, सीवपयाूँ्एवं्चन
ू े्में ्कूप्का्(अथवा्गड्ढ़े ्का)्जल्समला्कर्खरु ्से्
ववधिवत्कुिाई्करना्चादहये्।्पुनः्इसको्कपड़े्से्छानना्चादहये्॥१००॥
इस्(तरल्पदाथण)्से्कलक्एवं्धचक्कर््को्बुद्धिमान्(स्थपनत)्को्तैयार्करना्चादहये्।्दही,
दि
ू , उड़द्का्पानी, गुड़,घी, केला, नाररयल्का्पानी्एवं्पके्आम्का्रस-्इन्पदाथों्का्उधचत्
मारा्में ्संयोजन्कर्सशलपी्लोग्'बुद्िोदक' तैयार्करते्है ्॥१०१-१०२॥
प्रथमतः्साफ्पानी्से्(सभवत्त्आदद)्स्थान्को्शुद्ि्कर्(साफ्कर)्पन
ु ः्बधिोदक्का्लेप्करना्
चादहये्।्लेप्के्पश्चात्सि
ु ा्से्लेप्करके्ववसभधन्प्रकार्के्रूपों्(धचरों)्आदद्का्ननमाणर््करना्
चादहये्॥१०३॥
गोपान्के्ऊपर्पकी्समट्िी्के्द्वारा्ननसमणत्अथवा्िातु-ननसमणत्लोष्ि्(िाइलस)्से्बुद्धिमान्
स्थपनत्को्आच्छादन्करना्चादहये्॥१०४॥
उसके्ऊपर्कराल, मुद्गी्एवं्गुलमाष्को्एक-एक्अङ्गुल, कलक्को्उसका्आिा्(आिा्अङ्गुल)्
तथा्धचक्कर््को्कलक्का्आिा्मोिा्रखना्चादहये्॥१०५॥
जल्वाले्स्थान्पर्उपयक्
ुण त्पदाथो्को्पयाणप्त्मोिा्लगाना्चादहये्।्इधहें ्बधिोदक्से्गीला्कर्
यदद्छः्मास्के्सलये्छोड़्ददया्जाय्तो्उत्तम्पररर्ाम्प्राप्त्होता्है ्(इससे्ईंिो्की्जोड़ाई्
अत्यधिक्द्रढ़
ु ्होती्है )्।्चार्मास्छोड़ने्पर्मध्यम्एवं्दो्मास्छोड़ने्पर्कम्पररर्ाम्प्राप्त्
om
होता्है ्॥१०६-१०७॥
लुपाओं्के्ऊपर्ईंिों्को्बबछाना्चादहये्एवं्उसके्ऊपर्चन
ू ा्डालना्चादहये्।्छत्को्प्रयत्नपूवक
ण ्
(पूवोक्त्लेप्से)्घना्आच्छाददत्करना्चादहये्॥१०८॥
दे वताओं्एवं्ब्राह्मर्ों्के्सभी्भवनों्के्भीतर्एवं्बाहर्बुद्धिमान्को्व्यन्क्त्को्धचरों्से्युक्त्
करना्चादहये्॥१०९॥
ववप्र्आदद्सभी्वर्ण्वालों्के्गह
धचर्बनाने्चादहये्।्ये्धचर्गह
s.c
ृ ों्मे्माङ्गसलक्कथाओं्से्युक्त, श्रद्िा, नत्ृ य्एवं्नािक्आदद्के्
ृ स्वामी्को्समद्
ृ धि्प्रदान्करने्वाले्होते्है ्॥११०॥
युद्ि, मत्ृ य,ु दःु ख्से्युक्त्दे वासुर्की्कथा्का्धचरर्, नग्न, तपन्स्वयों्की्लीला्तथा्रोधगयों-
ok
दःु र्खयों्का्अङ्कन्नही्करना्चादहये्।्अधय्लोगो्के्ननवास्स्थान्में ्उनकी्इच्छानुसार्
अङ्कन्करना्चादहये्॥१११॥
(अच्छे ्सुबधिन्के्सलये)्पाूँच्भाग्उड़द्का्पानी, नौ्भाग्गुड़, आठ्भाग्दही, दो्भाग्घी, सात्
भाग्क्षीर, छः्भाग्चमण, दश्भाग्बरफला, चार्भाग्नाररयल्का्पानी, एक्भाग्शहद्एवं्तीन्
Bo
भाग्केला्होना्चादहये्।्इनमें ्दश्भाग्चन
ू ा्समलाने्से्सब
ु धिन्(अच्छा्मसाला, लेप)्प्राप्त्
होता्है ्।्इन्सभी्पदाथों्में ्गड़
ु , दही्एवं्दि
ू ्अधिक्होना्चादहये्॥११२-११४॥
दो्भाग्चन
ू ा, कराल, मि,ु घी, केला, नाररयल, उड़द, शन्ु क्त्(सीपी)्का्जल, दि
ू , दही, गड़
ु ्एवं्बरफला-
इनसे्प्राप्त्चर्
ू ्ण में ्इनके्सौवें ्भाग्के्बराबर्चन
ू ा्समलाना्चादहये्।्इस्ववधि्से्तैयार्बधि्
44
(ईंिों्को्जोड़ने्का्गारा)्पत्थर्के्समान्दृढ़्होता्है ्-्ऐसा्तधर्के्ज्ञाता्ऋवषयों्का्कथन्है ्
॥११५॥
सशरोभाग्की्ईंि्-्अब्दे वों, ब्राह्मर्ों, क्षबरयो्एवं्वैश्यों्के्भवन्में ्मूध्नेष्िका्(भवन्के्ऊध्वण्
भाग्में ्रक्खी्जाने्वाली्इष्िका)्रक्खी्जानी्चादहये्।्इसे्चार्लक्षर्ों्से्युक्त्होना्चादहये्-्
ये्धचकनी्हो, भली-भाूँनत्पकी्हों, (ठोकने्पर)्इससे्सुधदर्स्वर्उत्पधन्हो्तथा्दे खने्में ्सुधदर्
हों्॥११६-११७॥
ये्ईंिे ्स्रीसलङ्ग्अथवा्पुन्ललङ्ग्होनी्चादहये्।्ये्िूिी्न्हों्तथा्नछद्र्आदद्से्रदहत्हो्।्
लम्बाई, चौड़ाई्एवं्मोिाई्में ्ये्प्रथम्ईंिों्(सशलाधयास्की्ईंिो)्के्समान्होती्है ्॥११८॥
प्रस्तर्से्ननसमणत्भवन्में ्सशला्को्सभी्दोषों्से्रदहत्होना्चादहये्।्जधम्(नींव)्से्लेकर्
सशखर्के्अन्धतम्बाग्तक्भवन्न्जस्द्रव्य्से्ननसमणत्होता्है , उसी्द्रव्य्(ईंिो्अथवा्सशलाओं)्
से्ननसमणत्इष्िका्को्भवन्के्प्रारम्भ्एवं्अन्धतम्भाग्(सशखर)्में ्भी्स्थावपत्करना्चादहये्।्
यह्प्रशस्त्होता्है ्।्समधश्रत्द्रव्यों्से्ननसमणत्भवन्में ्ऊपरी्भाग्में ्जो्द्रव्य्ऊपर्न्स्थत्हो,
उसी्द्रव्य्का्ववधयास्भवन्के्ऊपरी्भाग्में ्करना्चादहये्।्यह्रहस्य्(ऋवषयों्द्वारा)्कहा्
गया्है ्।्॥११९-१२०॥
स्थवू पकाकील
स्तूवपका्की्कील्-्स्थूवपका्(स्तूवपका)्की्कील्िातुननसमणत्या्काष्ठननसमणत्होनी्चादहये्॥१२१॥
कील्की्चौड़ाई्ऊध्वण्भाग्एवं्अिोभाग्में ्समान्होनी्चादहये्।्इसकी्लम्बाई्(ऊपरी्मन्ञ्जल्
के)्स्तम्भ्के्बराबर्होनी्चादहये्तथा्अग्र्भाग्(ऊपरी्भाग्का्अन्धतम्भाग)्एक्अङ्गुल्चौड़ा्
एवं्नीचे्की्अपेक्षा्पतला्होना्चादहये्॥१२२॥
कील्के्नीचे्का्एक-नतहाई्भाग्चौकोर्होना्चादहये्तथा्उसके्ऊपर्गोलाकार्होना्चादहये्।्
om
इसके्ननचले्भाग्में ्मोर्के्पैर्की्आकृनत्होनी्चादहये्।्॥१२३॥
इसकी्लम्बाई्चौड़ाई्की्तीन्गुनी्होनी्चादहये्एवं्चौड़ाई्ऊपरी्स्तम्भ्के्बराबर्होनी्चादहये्।्
यह्भूसम्पर्दृढ़तापूवक
ण ्दिका्रहे ्एवं्इसे्पञ्चमूनतणयों्से्युक्त्होना्चादहये्॥१२४॥
अथवा्स्तूवपका-कील्की्लम्बाई्भवन्की्सशखा्की्लम्बाई्से्दग
ु ुनी्तथा्चौड़ाई्स्तम्भ्के्
s.c
व्यास्की्आिी, तीसरे ्अथवा्चौथे्भाग्के्बराबर्होनी्चादहये्।्॥१२५॥
यदद्कील्के्अग्र्भाग्का्व्यास्आिा्अङ्गुल्हो्तो्मयूर-पाद्बल्की्आवश्यकता्के्अनुसार्
रखना्चादहये्।्सशखर्की्आकृनत्के्अनुसार्कील्की्आकृनत्अथवा्सलङ्ग्की्आकृनत्का्
स्तूवपक-कील्ननसमणत्होना्चादहये्।्इस्प्रकार्तीन्प्रकार्के्स्तूवपका-कील्वर्णन्ववद्वानों्ने्
ok
ककया्है ्॥१२६॥
मूध्नेष्टकाददस्थापन
मुध्नेष्िका्आदद्की्स्थापना्-्गह
ृ ्के्उत्तरी्भाग्में ्मण्डप्को्स्वच्छ्करके, चार्दीपों्से्युक्त,
वस्रों्से्आच्छाददत्करके्सभी्मंगल्पदाथों्से्यक्
ु त्करना्चादहये्।्शद्
ु ि्शासलिाधय्को्बबछा्
Bo
कर्स्थन्ण्डल्वास्तम
ु ण्डल्अथवा्मण्डूक्वास्तम
ु ण्डल्ननसमणत्करना्चादहये्।्इसके्पश्चात्
वास्तम
ु ण्डल्में ्ब्रह्मा्आदद्दे वों्का्ववधयास्कर्उनको्श्वेत्तण्डुल्(अक्षत)्समवपणत्करना्
चादहये्॥१२७-१२९॥
गधि्तथा्पष्ु प्आदद्से्गह
ृ -दे वता्की्पज
ू ा्एवं्स्तवन्करना्चादहये्।्दे वताओं्को्उनके्नाम्
44
से्ववधिपव
ू क
ण ्बसल्प्रदान्करनी्चादहये्॥१३०॥
स्थपनत्को्पच्चीस्सध
ु दर्लक्षर्ों्वाले्कलश्स्थावपत्करने्चादहये्।्इन्कलशों्में ्सग
ु न्धित्
जल्भरना्चादहये्तथा्पाूँच्रत्नों्को्डालना्चादहये्।्सूर, वस्र, कूचण्तथा्स्वर्ण्से्युक्त्करके्
इन्कलशों्को्ढूँ क्दे ना्चादहये्।्उपपीठ्संज्ञक्वास्तुमण्डल्में ्दे वों्को्उनके्नाम्से्आहूत्कर्
'ॐ्से्प्रारम्भ्कर्'नमः' से्अधत्करते्हुये्उन्दे वों्की्गधि्आदद्से्क्रमशः्पूजा्करनी्चादहये्
॥१३१-१३२॥
इष्िकाओं्एवं्कील्को्पञ्चगव्य्से, नवरत्नों्एवं्कुशा्के्जल्से्प्रक्षासलत्करके्क्रमशः्सूरों्से्
लपेिना्चादहये्।्प्रत्येक्कुम्भ्के्दादहने्भाग्में ्शुद्ि्शासलिाधय्के्द्वारा्ननसमणतस्थन्ण्डल्
वास्तुमण्डल्में ्॥१३३-१३४॥
वास्तद
ु े वों्की्पज
ू ा्गधि्एवं्पष्ु पों्से्करके्एवं्उधहे ्ववधि्के्अनस
ु ार्बसल्प्रदान्कर्ईंिो्एवं्
कीलों्को्शभ
ु ्वस्र्से्लपेिना्चादहये्॥१३५॥
श्वेत्वस्र्के्आस्तरर््(चादर, बबछा्वस्र)्के्ऊपर्बबछे ्हुये्पववर्कुश्पर्इष्िका्एवं्कीलों्को्
रखना्चादहये्।्स्थपनत्को्अच्छा्वेष, श्वेत्पुष्पों्की्माला, श्वेत्(चधदन)्का्लेप, श्वेत्वस्र्के्
उत्तरीय्को्ऊपर्ओढ़्कर्तथा्सुवर्णननसमत्अंगूठी्िारर््कर्शुद्ि्जल्पीना्चादहये्तथा्राबर्
में ्उपवास्रखते्हुये्वहीं्ननवास्करना्चादहये्॥१३६-१३७॥
स्थपनत्को्(राबर्में ्)्कलश्के्उत्तरी्भाग्में ्श्वेत्वस्र्के्बबस्तर्(अथवा्चादर, बबछावन)्पर्
रहना्चादहये्।्इसके्पश्चात्प्रभात्वेला्में ्शुद्ि्नक्षर्एवं्करर््में , सुधदर्मुहूत्ण एवं्शुभ्लग्न्
में ्स्थपनत्को्स्थापक्(भवन-स्वामी)्के्साथ्पुष्प, कुण्डल, हार, किक्(हाथ्के्आभूषर्)्एवं्
अंगूठी-्इन्पाूँच्अंगों्के्सुवर्ण्ननसमणत्आभूषर्ों्से्अलङ््कृत्होकर्सुवर्ण-ननसमणत्जनेऊ्तथा्
om
नवीन्वस्र्का्पररच्छद्(ओढ़ने्का्वस्र)्िारर््करना्चादहये्।्श्वेत्लेप्तथा्ससर्पर्सफेद्
पुष्प्िारर््करना्चादहये्एवं्पववर्होना्चादहये्॥१३८-१४०॥
(पववर्तन्एवं्मन्से)्ददशाओं्के्गजों, समुद्रों्एवं्पवणतों्से्युक्त्तथा्अनधत्सपण्पर्न्स्थत्
पधृ थवी्का्ध्यान्करते्हुये्सन्ृ ष्ि, न्स्थनत्एवं्प्रलय्के्आिार, भुवनों्के्अधिपनत्दे वता्का्जप्
(स्तुनत)्करना्चादहये्॥१४१-१४२॥
पूवव
s.c
ण र्र्णत्कलशों्के्जलों्से्इष्िका्एवं्कील्को्स्नान्कराकर्गधि, पुष्प, िप
वास्तुदेवों्की्पूजा्करनी्चादहये्॥१४३॥
ू ्एवं्दीप्से्
ननयमानुसार्वास्तुदेवों्को्बसल्प्रदान्कर्जय्आदद्मङ्गल्शब्दों, ब्राह्मर्ो्द्वारा्ककये्जा्रहे ्
ok
वेदपाठ्एवं्शङ्ख्तथा्भेरी्आदद्वाद्यों्की्ध्वनन्के्साथ्मुध्नेष्िका्को्क्रमानुसार्पूव्ण से्
दक्षक्षर््क्रम्में ्स्थावपत्करना्चादहये्।्इसे्ववमान्(भवन)्के्सशखर्के्अिण्भाग्में ्अथवा्गग्र्
एवं्पर्के्मध्य्में ्स्थावपत्करना्चादहये्।्॥१४४-१४५॥
सशखर्के्तीसरे ्अथवा्चौथे्भाग्के्अधत्तक, पद्म्के्नीचे्से, स्थवू पका्(स्तवू पका)्की्लम्बाई्
Bo
से्कील्की्लम्बाई्ग्रहर््करनी्चादहये्॥१४६॥
इष्िका्के्स्थान्को्पहले्ही्नछद्ररदहत्एवं्दृढ़्करना्चादहये; साथ्ही्उसके्मध्य्में ्नवरत्नों्को्
क्रमानस
ु ार्रखना्चादहये्॥१४७॥
इधद्र्के्पद्पर्मरकत्मर्र्, अन्ग्न्के्पद्पर्वैदय
ू ्ण मर्र्, यम्के्स्थान्पर्इधद्रनील्मर्र््एवं्
44
वपतप
ृ द्पर्मोती्स्थावपत्करना्चादहये्॥१४८॥
वरुर््के्स्थान्पर्स्फदिक, वाय्ु के्स्थान्पर्महानील्मर्र्, सोम्के्पद्पर्वज्र्(हीरा)्तथा्
ईशान्में ्प्रवाल्(मूँग
ू ा)्स्थावपत्करना्चादहये्॥१४९॥
मध्य्भाग्में ्मार्र्क्य, सोना, रस्(िातुननणसमत्अधन्के्दाने), उपरस्(रं गे्हुये्पदाथण), बीज, िाधय्
(अधन)्एव्औषि्(जड़ी)्डालना्चादहये्॥१५०॥
उसके्ऊपर्बराबर्एवं्न्स्थर्करते्हुये्स्तूवपका-कील्स्थावपत्करना्चादहये्।्इससे्ननचली्भूसम्
तक्उत्तर्ददशा्में ्महाध्वज्स्थावपत्होता्है ्॥१५१॥
इसे्रे शमी्वस्र्अथवा्सूती्वस्र्से्ननसमणत्सुधदर्(ध्वज)्ईशान्कोर््में ्लिकाना्चादहये्।्यदद्
यह्ईशान्कोर््की्भूसम्को्छूता्है ्तो्वह्भवन्सभी्(वर्ों)्के्प्रार्र्यों्के्सलये्सम्पवत्त्एवं्
समद्
ृ धिदायक्होता्है ्॥१५२॥
भवन्के्स्थवू पकील्(स्तवू पका-कील)्को्श्वेत्वस्रों्से्लपेि्कर्चारो्ददशाओं्में ्बछड़ो्के्साथ्
चार्गायें्रखनी्चादहये्।्द्वार्को्नये्रं ग-बबरं गे्वस्रों्से्सजाना्चादहये्॥१५३-१५४॥
दक्षक्षणादान
दान-दक्षक्षर्ा्-्यजमान्(गह
ृ स्वामी)्को्शुद्ि्मन-मन्स्तष्क्से्गुरु्(प्रिान्आचायण), ववमान्(भवन्
या्मन्धदर), स्थवू पका्(स्तूवपका, स्तम्भ, द्वार्एवं्सज्जा्को्प्रर्ाम्कर्प्रसधन्भाव्से्स्थपनत्को्
वस्र, िन, अधन्एवं्बछड़े्सदहत्पशु्(गाय)्प्रदान्करना्चादहये्एवं्शेष्(उसके्सहायकों)्को्
भन्क्तपूवक
ण ्(िनादद्द्वारा)्तप्ृ त्करना्चादहये्॥१५५-१५६॥
रत्नाददस्थान
रत्न्आदद्का्स्थान्-्इस्प्रकार्प्रासादों्के्सशरोभाग्में , भवन्के्सशलाधयास्से्जुड़्े सभवत्तयों्में ,
प्रत्येक्तल्के्बीच्मेम,मण्डप्में , मध्य्भाग्मे, सभागार्आदद्में , सशखर्पर्न्स्थत्पद्म्के्नीचे्
om
एवं्गोपुर्द्वारों्के्शीषण्भाग्में ्प्रासाद्के्सदृश्रत्नादद्स्थावपत्करना्चादहये्-्ऐसा्श्रेष्ठ्
मुननयों्का्वचन्है ्॥१५७-१५८॥
कमासमाल्तत
कायण्की्समान्प्त्-्इस्प्रकार्भवन-ननमाणर््के्प्रारम्भ्में ्एवं्अधत्में ्ववधिपूवक
ण ्सभी्कक्रयायें्
सम्पधन्करने्से्गह
गह
ृ स्वामी्के्द्वरा्ववधिपूवक
गह
s.c
ृ ्में ्सम्पदा्आती्है ्॥१५९॥
ण ्ककया्गया्कमण्श्री, सौभाग्य, आयु्एवं्िन्प्रदान्करता्है ्।्
ृ स्वामी्के्अभाव्में ्उसका्पुर्अथवा्सशष्य्उसकी्आकृनत्को्वस्र्पर्रे खाङ्ककत्कर्उसके्
(वस्र्पर्अंककत्धचर्के)्द्वारा्सभी्कायो्को्सम्पधन्करे ्।्अधय्व्यन्क्त्के्द्वारा्ककया्गया्
ok
कायण्यदद्शीिता्अथवा्अज्ञानतावश्सही्रीनत्से्नहीं्होता्है ्तो्गह
ृ स्वामी्को्ववपरीत्पररर्ाम्
प्राप्त्होता्है ्॥१६०-१६१॥
गह
ृ कताण्न्जस्ववधि्से्कायण्का्प्रारम्भ्करे , उसी्ववधि्से्कायण्करते्हुये्समापन्करना्चादहये्।्
यदद्बीच्में ्अधय्ववधि्का्अनस
ु रर््ककया्जाय्तो्गह
ृ स्वामी्का्अशभ
ु ्होता्है ्॥१६२॥
Bo
इस्प्रकार्अलङ्कारों्से्यक्
ु त्ग्रीवा, पद्म्की्आकृनत, मललों्का्प्रमार््एवं्शीषण-स्थान्के्
अलङ्करर््का्ननमाणर््करना्चादहये्।्उधचत्रीनत्से्कराल्आदद्से्बधि्(ईंिो्का्जोड़ने्का्
गारा)्बनाकर्ऊध्वण्भाग्में ्भली-भाूँनत्ईंिो्को्जोड़ना्चादहये्॥१६३॥
स्थवू पकीलिक्ष
ृ ा
44
स्तवू पका-कील्के्वक्ष
ृ ्-्स्थवू पकील्के्सलये्प्रससद्ि्वक्ष
ृ ्कत्था, चीड़, साल, स्तबक, अशोक, किहल,
नतसमस, नीम, सप्तवर्ण्-्ये्सभी्वक्ष
ृ ्तथा्परुष, वकुल, वदहन्(अगरु), क्षीररर्ी्(सनोवर्का्वक्ष
ृ )्
आदद्वक्ष
ृ ्एवं्इस्प्रकार्के्अधय्सुदृढ़्म्दोषहीन्एवं्ठोस्वक्ष
ृ ्उपयुक्त्होते्है ्॥१६४॥
भवन्के्सम्पूर््ण हो्जाने्पर्यजमान, गुरु्एवं्विणकक्(बढ़ई)्को्शुभ्उत्तरायर््नक्षर्एवं्पक्ष्में ्
जलसम्प्रोक्षर््कमण्का्प्रारम्भ्करना्चादहये्॥१६५॥
अथधिासमण्डप
नवीं, सातवीं, तीसरी्एवं्पाूँचवी्राबर्में ्ववधिपूवक
ण ्अङ्कुरापणर््कमण्करना्चादहये्।्भवन्के्उत्तर-
पूव्ण भाग्में ्स्वधिवास-योग्य्मण्डप्बनाना्चादहये्॥१६६॥
इस्मण्डप्को्चौकोर, नौ, सात, या्पाूँच्हस्तमाप्का्एवं्आठ्स्तम्भों्से्यक्
ु त्ननसमणत्करना्
चादहये्तथा्नवीन्वस्रों्से्सजाना्चादहये्।्अधदर्ववतान्को्सध
ु दर्वस्र्से्तथा्श्वेत्पष्ु पों्से्
सजा्कर्मण्डप्को्मनोहर्बनाना्चादहये्॥१६७॥
उसके्मध्य्भाग्में ्शासलिाधय्से्एक्दण्ड्प्रमार््का्स्थन्ण्डल्वास्तुमण्डल्ननसमणत्करना्
चादहये्॥१६८॥
चौसठ्पद्बनाकर्श्वेत्चावल्से्ब्रह्मा्आदद्वास्तुदेवताओ्को्क्रमानुसार्स्थावपत्कर्तथा्
पुष्प-गधि-िप
ू -दीप्आदद्से्उनकी्पूजा्कर्उनेहं्ववधिपूवक
ण ्बसल्प्रदान्करनी्चादहये्।्इसके्
ऊपर्वस्रों्से्सुशोसभत्पच्चीस्कलश्रखना्चादहये्।्॥१६९-१७०॥
इन्कलशों्को्रत्नों, सुवर्ण, सूरों्एवं्ढक्कनों्से्युक्त्करना्चादहये्।्ये्कलश्दोषरदहत,
नछद्ररदहत्एवं्हािक-जल्(सुनहरा, पीला्जल)्अथवा्ितूरायुक्त्जल्से्भरे ्होने्चादहये्।्उपपीठ्
om
वास्तुमण्डल्पर्रक्खे्गये्प्रत्येक्घि्को्उस-उस्वास्तुदेवता्(न्जसके्पद्पर्कलश्हो)्का्नाम्
लेते्हुये्ओंकार्से्प्रारम्भ्कर्नमः्से्अधत्करते्हुये्वास्तुदेवता्की्पज
ु ा्(आवाहन्करते्हुये)्
करनी्चादहये्।्॥१७१-१७२॥
पववर्मन्एवं्आत्मा्वाले, व्रत्में ्न्स्थत्स्थपनत्को्शुद्ि्जल्पीकर्उपवास्रखते्हुये्कलश्के्
s.c
उत्तरी्भाग्में ्कुश्के्बबस्तर्पर, न्जसके्चतुददण क्चार्दीपक्जल्रहे ्हों्एवं्जो्माङ्गसलक्
पदाथों्से्सुशोसभत्हो, राबर्में ्ननवास्करना्चादहये्॥१७३-१७४॥
मन्धदर्के्अग्र्भाग्में ्ववधिपूवक
ण ्चार्तोरर्ों्से्सुसन्ज्जत, चार्द्वारों्से्युक्त्याग-मण्डप्
ननसमणत्करना्चादहये्।्इस्यागमण्डप्को्वस्रों, कुशमालाओं्एवं्पुष्पों्से्अलङ््कृत्करना्चादहये्
ok
।्इसके्मध्य्भाग्में ्याग-मण्डप्के्ववस्तार्के्तीसरे ्भाग्के्माप्से्वेददका्का्ननमाणर््करना्
चादहये्॥१७५-१७६॥
चारो्ददशाओं्में ्चौकोर्तथा्ददक्कोर्ों्में ्पीपल्के्पत्ते्के्सदृश्कुण्ड्ननसमणत्करना्चादहये्।्
इधद्र्एवं्ईशकोर््के्मध्य्अष्िकोर््का्तीन्मेखला्अथवा्एक्मेखल्से्यक्
ु त्कुण्ड्ननसमणत्
Bo
करना्चादहये्॥१७७॥
कुर्मभस्थापन
कुम्भ्की्स्थापना्-्स्थापक्को्मनू तणरक्षक्के्साथ्ववधिपूवक
ण ्हवन्करना्चादहये्।्शासलिाधय्
द्वारा्वेदद्के्मध्य्में ्स्थन्ण्डल्वास्तम
ु ण्डल्ननसमणत्कर्बद्
ु धिमान्व्यन्क्त्को्बीज-मधर्का्
44
स्मरर््करते्हुये्सम्यक््
्रीनत्से्मनू तणकुम्भ्का्धयास्करना्चादहये्॥१७८-१७९॥
प्रासाद्के्चारो्ददशाओं्में ्वत्त
ृ ाकार्कुण्ड्में ्स्थापक्को्ववधिपव
ू णक्अन्ग्न्स्थावपत्करनी्चादहये्
॥१८०॥
ववमान्(मन्धदर)्को्जधम्(प्रारम्भ)्से्लेकर्स्थूवपकापयणधत्वस्रों्से्आवत्त
ृ ्करना्चादहये्।्
स्थवू पकील्को्कुशा्से्युक्त्नवीन्वस्र्से्सुसन्ज्जत्करना्चादहये्।्॥१८१॥
स्थापक्को्बसल्का्अधन, खीर, यव्(जौ)्से्पका्अधन, र्खचड़ी, गुड़्एवं्शुद्ि्अधन्(चावल), पीला,
काला्एवं्लाल्(रं ग्में ्रं गा्चावल)-्ये्सभी्सामग्री्सुवर्ण-पार्में ्लेकर्वास्तु-दे वता्के्आगे्
रखकर्दही, दि
ू , घी, शहद, रत्न, पुष्प, अक्षत्एवं्जल्तथा्केला्से्युक्त्पार्लेकर्अधय्सशन्लपयों्
के्साथ्राबर्में ्इन्पदायों्के्द्वारा्वास्तुदेवता्को्बसल्प्रदान्करनी्चादहये्॥१८२-१८४॥
चक्षुमोक्षण
आूँख्खोलना्-्इसके्पश्चात्प्रातःकाल्शभ
ु ्नक्षर्एवं्करर््से्यक्
ु त्वेला्में ्स्थपनत्को्सध
ु दर्
वेष्िारर््कर, पाूँचों्अंगों्में ्आभष
ू र््िारर््कर, सव
ु र्ण-ननसमणत्जनेऊ्तथा्श्वेत्(चधदन)्का्लेप्
िारर््कर, सशर्पर्श्वेत्पष्ु प्से्यक्
ु त्पगड़ी्तथा्कोरे ्वस्र्को्पहन्कर्ददशा-मूनतणयों्एवं्अधय्
(मुनतणयों)्की्ओर्चक्षुमोक्षर््(आूँख्खोलने्का्कृत्य)्करना्चादहये्एवं्इन्मूनतणयों्को्गधि्एवं्
पुष्प्से्युक्त्कलश्के्जल्से्स्नान्कराना्चादहये्॥१८५-१८७॥
प्रथमतः्सोने्की्सुई्से्नेर-मण्डल्की्आकृनत्बना्कर्(तदनधतर)्तीक्ष्र््शस्र्से्तीन्(नेर)्
मण्डल्ननसमणत्करना्चादहये्॥१८८॥
ब्राह्मर्ों्के्सलये्नवीन्वस्र्से्अधन्के्ढे र्को्ढूँ क्कर्बछड़े्सदहत्गाय्एवं्कधया्को्क्रमशः्
ददखाना्चादहये्॥१८९॥
सर्मप्रोक्षण
om
सम्प्रोक्षर््कायण्-्इसके्पश्चात्स्थापक्की्आज्ञा्से्शङ्ख, काहल्(पीि्कर्बजाया्जाने्वाला्
वाद्य)्तथा्तूय्ण आदद्वाद्यों्के्स्वर्एवं्(ब्राह्मर्ों्द्वारा्ककये्जाने्वाले)्स्वन्स्त-पाठ्के्साथ्
स्थपनत्को्मन्धदर्पर्चढ़ाकर्स्तूवपका्से्प्रारम्भ्कर्भूसम्तक्चारो्ददशाओं्में ्रे शमी्अथवा्
सूती्वस्र्से्ननसमणत्एवं्नर्(की्आकृनत्से्युक्त)्ध्वज्को्लिकाना्चादहये्॥१९०-१९१॥
s.c
बुद्धिमान्स्थपनत्को्चधदन्एवं्अगरु्के्जल्से, सभी्गधिों्से्युक्त्जल्से, कलश्के्जल्से्
एवं्कुश्के्जल्से्ऊपर्से्चारो्ओर्प्रोक्षर््करना्चादहये्एवं्संसार्के्स्वामी्की्स्तुनत्करनी्
चादहये्॥१९२॥
स्थवू पकुर्मभ
ok
दे वालयों्में ्स्थूवपकुम्भ्सुवर्ण, ताूँबा, चाूँदी, प्रस्तर, ईंि्अथवा्सुिा-इन्पाूँच्पदाथो्के्समश्रर््से्
ननसमणत्करना्चादहये्।्इसे्कील्के्समान्रखना्चादहये्।्॥१९३-१९४॥
इसे्न्स्थर्करते्हुये्स्थावपत्करके्सुगन्धित्जल्से्इसका्प्रोक्षर््करना्चादहये्।्ववमान्
(दे वालय)्से्उतरने्के्पश्चात्गभणगह
ृ ्एवं्मण्डप्का्प्रोक्षर््करना्चादहये्तथा्सम्मख
ु ्खड़े्होकर्
Bo
वास्तद
ु े व्को्प्रर्ाम्कर्इस्प्रकार्कहना्चादहये्।्॥१९५॥
(हे ्ईश्वर)्इस्भवन्की्धगरने्से, जल्के्प्रकोप्से, (गजादद्पशओ
ु ं्के)्दाूँत्से्धगरने्से, वाय्ु के्
प्रकोप्से, अन्ग्न्द्वाराजलने्से्एवं्चोरों्से्रक्षा्कीन्जये्और्मेरा्कलयार््ककन्जये्॥१९६॥
रोगरदहत, प्रसधनता, िनय्क्त, कीनत्का्ववस्तार्करने्वाली, बड़े्चमत्कारो्से्एवं्बल्से्यक्
ु त, ववना्
44
उपद्रव्के्ननरधतर्कमण्से्यक्
ु त्यह्पधृ थवी्धचरकाल्तक्िमणपव
ू क
ण ्रहे ्॥१९७॥
ब्रह्मा, ववष्र्,ु सशव, सभी्दे वता, क्षोर्ी्(पधृ थवी), लक्ष्मी, वाग्वि्ू (सरस्वती), ससंहकेत,ु ज्येष्ठा, ववश्वदे व्
तथा्दे ववयाूँ्प्रजाजनों्को्श्री, सौभाग्य, आरोग्य्एवं्भोग्प्रदान्करें ्॥१९८॥
इस्प्रकार्कहने्के्पश्चात्स्थपनत्का्कायण्पूर््ण हो्जाता्है ्।्इसके्पश्चात्स्थापक्को्ववधि-
पूवक
ण ्यज्ञ्आदद्कायण्से्तथा्घि्के्जल, पञ्चगव्य्एवं्कुश्के्जल्से्प्रोक्षर््कर्(ववमान्को)्
शुद्ि्करना्चादहये्॥१९९-२००॥
स्थापक्को्गधि्एवं्पुष्प्आदद्से्पूजा्करनी्चादहये्तथा्नैवेद्य्प्रदान्करना्चादहये; साथ्ही्
दे वालय्के्प्रिान्दे वता्को्ननसमत्त्बना्कर्प्रासाद्के्बीज-मधर्का्धयास्करना्चादहये्॥२०१॥
दक्षक्षणादान
दक्षक्षर्ा्एवं्दान्-्प्रसन-मनत्यजमान्द्वालय्के्सम्मख
ु ्खड़े्होकर्स्थपनत्के्सम्पर्
ू ्ण िमण्
(उत्तरदानयत्व)्को, जो्उसके्ऊपर्कष्ि्के्साथ्थे, उन्सबको्प्रसधन्भाव्से्स्थापक्की्आज्ञा्से्
ग्रहर््करे ्एवं्शन्क्त्के्अनस
ु ार्स्थापक्एवं्स्थपनत्का्सत्कार्करे ्॥२०२-२०३॥
अपने्पुर, भाई्एवं्पत्नी्के्साथ्यजमान्िन, अधन, पशु, वस्र, वाहन्तथा्भूसम्के्दान्से्एवं्
सोने्तथा्सुधदर्वस्रों्से्शेष्तक्षक्आदद्सभी्सशन्लपयों्को्भी्सधतुष्ि्करे ्॥२०४-२०५॥
ववमान, स्थवू पका्(स्तूवपका), स्तम्भ्एं्मण्डप्को्अलङ्करर्ोम्से्युक्त, वस्रादद, ध्वज्एवं्गाय्को्
प्रसधन्भाव्से्स्थपनत्को्दे ना्चादहये्॥२०६॥
सर्मप्रोक्षणािश्यकता
सम्प्रोक्षर््की्आवश्यकता्-्इस्प्रकार्से्ननसमणत्वास्तु्युगों्तक्ननत्य्वद्
ृ धि्को्प्राप्त्होता्है ्।्
यजमान्को्इस्लोक्एवं्परलोक्में ्न्स्थर्फल्भली्भाूँनत्प्राप्त्होता्है ्॥२०७॥
om
यदद्वास्तु-कृत्य्अधय्ववधि्से्होता्है ्तो्वह्वास्तु्फलदायी्नही्होता्है ्।्उस्भवन्में ्भूत,
प्रेत, वपशाच्एवं्राक्षस्ननवास्करते्है ्।्इससलये्प्रासाद्ननसमणत्हो्जाने्पर्सब्प्रकार्से्प्रोक्षर््
कमण्अवश्य्करना्चादहये्॥२०८॥
मण्डप्में , सभा्में , रङ्गमण्डप्में , ववहारशाला्में , हेमगभण्के्सभागार्में , तुलाभारकूि्में , ववश्वकोष्ठ्
में , प्रपा्(जल्का्प्याऊ)्में , िाधयगह
s.c
ृ ्में ्तथा्रसोई्में ्ववधिपूवक
ण ्वास्तुदेव्को्बसलप्रदान्कर्पववर्
धचत्त्एवं्आत्मा्से्पाूँच्अङ्गो्में ्आभूषर््िारर््कर, नवीन्वस्र्पहन्कर्तथा्नवीन्उत्तरीय्
(ऊपर्ओढ़ने्का्चादर)्िारर््कर्सभी्प्रकार्के्मङ्गल-स्वर्के्साथ्जलसम्प्रोक्षर््कमण्सम्पधन्
करना्चादहये्॥२०९-२१२॥
ok
सर्मप्रोक्षणकाल
सम्प्रोक्षर््का्समय्-्यदद्सम्प्रोक्षर्-कमण्उत्तरायर््मासों्में्ककया्जाय्तो्अनत्उत्तम्होता्है ्।्इदद्शीिता्
हो्तो्दक्षक्षर्ायन्मासों्में्भी्करना्चादहये्॥२१३॥
कताण्प्रासाद्के्पूरीतरह्पूर््ण हो्जाने्पर्तीन्राबर, एक्राबर्अथवा्उसी्ददन्वहाूँ्अधिवास्करे ्तो्वह्महान्
Bo
फल्प्राप्त्होता्है्॥२१४॥
दे वालय्मे्एक, तीन्या्पाूँच्दे वतामूनतण्हो्तो्एक, तीन्या्पाूँच्कलशों्में्मधरसदहत्उनके्नीचे्सुवर्ण्के्साथ्
रत्नन्को्दे खकर्ववधिपव
ू क
ण ्कलशों्का्धयास्करना्चादहये्॥२१५॥
इस्प्रकार्प्रसधनतापव
ू क
ण ्भवन्का्ननमाणर््पूर््ण होता्है ्तो्गह
ृ स्वामी, उसके्पररवार, उसके्पररजन्एवं्उसके्
गायों्के्वंश्की्वद्
ृ धि्होती्है ्।्इसके्ववपरीत्वास्तक
ु ायण्सम्पधन्होने्पर्एवं्वास्तद
ु े वता्के्बसल्से्रदहत्
44
होने्पर्वह्ननसमणत्भवन्अनथणकारी्होता्है ्॥२१६॥
मयमतम्-्अध्याय्१९
एक्तल्का्विधान्-
एक्तल्वाले्भवन्(दे वालय)्का्शास्र्के्अनुसार्चार्प्रकार्का्प्रमार््संक्षेप्में ्कहता्हूूँ्।्यह्
तीन्हाथ्से्प्रारम्भ्कर्नौ्हाथ्तक्एवं्चार्हाथ्से्प्रारम्भ्कर्दस्हाथ्तक्ववस्तत
ृ ्होता्है ्
॥१॥
इनकी्ऊूँचाई्चौड़ाई्के्दस्भाग्में ्सातवें्भाग्के्बराबर, चौड़ाई्का्डेढ़्गन
ु ा, चौड़ाई्का्तीन्
चौथाई्(अथाणत्चौड़ाई्के्दग
ु न
ु े्से्चतथ
ु ांश्कम)्या्चौड़ाई्का्दग
ु न
ु ा्ऊूँचा्(ये्चार्प्रकार्के्मान)्
होनी्चादहये्।्चार्प्रकार्की्ऊूँचाई्वाले्भवन्की्संज्ञा्शान्धतक, पौन्ष्िक, जयद्एवं्अद्भत
ु ्होती्
है ्॥२॥
इन्(दे वालयों)्की्आकृनत्चौकोर, गोल, आयताकार, दो्कोर्ों्के्साथ्गोलाई्सलये, षट््कोर््तथा्
अष्िकोर््होती्है ्।्इनका्सशखर्भी्इनकी्आकृनत्के्अनुरूप्होता्है ्॥३॥
मुखमण्डप
दे वालय्के्मुखभाग्पर्ननसमणत्मण्डप्का्माप्दे वालय्के्समान, तीन्चौथाई्अथवा्आिा्होना्
चादहये्॥४॥
(दे वालय्के)्समान्मण्डप्अधतराल्(मण्डप्एवं्मन्धदर्का्मध्य्भाग)्एवं्वेशक्(प्रवेश, पोचण)्से्
om
युक्त्तथा्सम्संख्या्वाले्स्तम्भों्से्युक्त्एवं्सम्पूर््ण अङ्गों्से्अलंकृत्होना्चादहये्॥५॥
अधतराल्का्ववस्तार्डेढ़्हाथ, दो्हाथ्या्प्रासाद्के्बराबर्एवं्उसकी्लम्बाई्दो्दण्ड्होनी्
चादहये्।्उसका्वेशन्अवकाश्एवं्अधतराल्से्युक्त्हो्तो्उसका्माप्दो्या्तीन्हाथ्का्होना्
चादहये्।्वेशन्के्बगल्में ्सोपान्ननसमणत्हो्एवं्वह्गज्के्सूँड़
ू ्से्सुसन्ज्जत्हो्॥६-७॥
s.c
सभवत्तननष्कम्भ्का्मान्प्रिान्भवन्की्सभवत्त्के्बराबर, उसका्आिा्या्उससे्चतुथांश्कम्होना्
चादहये्।्पाश्वण्भाग्में ्दो्या्तीन्दण्ड्माप्का्वेशन्एवं्अग्र्भाग्में ्मण्डप्होना्चादहये, ऐसा्
बुद्धिमान्(ऋवष)्का्मत्है ॥८॥
ववस्तार, ऊूँचाई्एवं्लम्बाई्के्हस्तमान्में ्एक्हाथ्कम्(अथाणत)्तीन्चतुथांश, आिा्अथवा्
ok
चौथाई्प्रमार््होना्चादहये्।्वहीं्(प्रिान)्भवन्के्ननमाणर््में ्अनेक्शास्रकारों्द्वारा्ककसी्भी्
प्रकार्की्वद्
ृ धि्अथवा्हानन्को्वन्जणत्ककया्गया्है ्॥९॥
भवन्के्पयाणयवाची्नाम्-्ववद्वानों्के्अनुसार्भवन्के्पयाणयवाची्शब्द्ये्है ्-्ववमान, भवन,
हम्यण, सौि, िाम, ननकेतन, प्रासाद, सदन, सद्म, गेह, आवासक, ग,ृ आलय, ननलय, वास, आस्पद, वस्तु,
Bo
वास्तक
ु , क्षेर, आयतन, वेश्म, मन्धदर, धिष्ण्यक, पद, लय, क्षय, अगार, उदवाससत्तथा्स्थान्॥१०-१२॥
गभागह
ृ मान
गभणगह
ृ -प्रिान्भनू तकक्ष्का्मान्-्ववस्तार्में ्गभणगह
ृ ्का्प्रमार््मन्धदर्के्प्रमार््के्तीन्भाग्में ्
एक्भाग, पाूँच्भाग्में ्तीन्भाव, सात्में ्चार्भाग, नौ्में ्पाूँच्भाग, ग्यारह्में ्छः्भाग, तेरह्में ्
44
om
की्होनी्चादहये्॥२१॥
सभवत्त्के्व्यास्के्बाहरी्भाग्के्बारह्भाग्करने्चादहये्।्पाूँचवे्भाग्में ्द्वार्योग्का्मध्य्
भाग्होना्चादहये्तथा्दस
ू री्ओर्से्भी्इतनी्ही्दरू ी्रखनी्चादहये्।्इन्दोनों्(बबधदओ
ु ं)्के्
मध्य्ववद्वानों्ने्सभवत्तमध्य्कहा्है ्॥२२॥
नालमान
s.c
नाली्का्मान्-्सभी्भवनों्में ्तल्के्पाूँच्भेद्होते्है ्-्जधम्का्अन्धतम्भाग, जगती्का्
अन्धतम्भाग, कैरव्का्अन्धतम्भाग, गल्का्अन्धतम्भाग्एवं्पट्दिका्का्अन्धतम्भाग्।्इनके्
ननचले्एवं्ऊपरी्भाग्में ्नछद्र्होना्चादहये्एवं्नाली्बाहर्होनी्चादहये्॥२३-२४॥
ok
बारह्अङ्गुल्से्प्रारम्भ्करते्हुये्तीन-तीन्अङ्गुल्की्वद्
ृ धि्से्चौबीस्अङ्गुल्पयणधत्पाूँच्
प्रकार्की्नाली्की्लम्बाई्होती्है ्॥२५॥
आठ्अङ्गल
ु ्से्प्रारम्भ्कर्दो-दो्अङ्गुल्बढ़ाते्हुये्सोलह्अङ्गुलपयणधत्पाूँच्प्रकार्की्नाली्की्
चौड़ाई्होती्है ्॥२६॥
Bo
इनकी्मोिाई्(गहराई)्चौड़ाई्के्बराबर, तीन्चौथाई्या्आिी्होनी्चादहये्।्मध्यम्माप्तीन,
चार, पाूँच्या्छः्अङ्गल
ु ्चौड़ा्एवं्उतना्ही्गहरा्होता्है ्॥२७॥
नाली्के्अग्र्भाग्(दस
ू रे ्छोर)्की्चौड़ाई्मल
ू ्भाग्के्पाूँच्भाग्में ्से्तीन्भाग्के्बराबर्एवं्
िारा्से्यक्
ु त्होनी्चादहये्।्इसका्अग्र्भाग्मल
ू ्भाग्से्कुछ्नीचा्(ढालदार)्एवं्ससंह्के्मुख्
44
से्यक्
ु त्होता्है ्॥२८॥
इस्प्रकार्दे वालय्के्मध्य्भाग्के्वाम्भाग्में ्प्रर्ाल्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्अधतःपीठ्का्
नाल्बराबर्(सतह्पर)्एवं्बाहर्होना्चादहये्॥२९॥
अलङ्करण
सज्जा्-्प्रासाद्के्सभी्अङ्गों्का्संक्षेप्में ्क्रमशः्ववस्तार, लम्बाई्एवं्ऊूँचाई्का्वर्णन्ककया्
गया्है ्।्अब्उसके्अलङ्करर््का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥३०॥
यदद्दे वालय्का्ग्रीवा्एवं्मस्तक्(शीषण्भाग)्वत्त
ृ ाकार्हो्तो्उसकी्संज्ञा्'वैजयधत' होती्है ्।्
यदद्दे वालय्के्कर्णभाग्(कोर्ों)्में ्कूि्ननसमणत्हों्तो्वह्'श्रीभोग' संज्ञक्होता्है ्।्यदद्मध्य्
भाग्में ्भद्र्हो, तो्वह्'श्रीववशाल' एवं्शीषणभाग्यदद्अष्िकोर््हो्तो्वह्'स्वन्स्तबधि' संज्ञक्
प्रासाद्होता्है ्॥३१॥
चार्कोर््वाले्शीषण्से्यक्
ु त्प्रासाद्'श्रीकर', दो्कोर््एवं्वत्त
ृ ाकार्प्रासाद्'हन्स्तपष्ृ ठ' तथा्छः्कोर््
के्शीषण्वाला्प्रासाद्'स्कधदकाधत' संज्ञक्होता्है ्।्ये्सभी्भवन्लम्बाई्सलये्होते्है ्॥३२॥
केसर्संज्ञक्प्रासाद्में ्मध्य्भाग्में ्भद्र्एवं्शीषणभाग्में ्कर्णकूि, कोष्ठक्एवं्भद्रनासी्आदद्
अङ्ग्ननसमणत्होते्है ्।्इसके्गल्एवं्मस्तक्(छत, आच्छादन)्वत्त
ृ ाकार्अथवा्चतुष्कोर््होते्है ्।्
मध्य-भद्रक्का्प्रमार््(भवन्की्चौड़ाई्के)्पाूँच, सात्या्छः्भाग्के्तीसरे ्एवं्दस
ू रे ्भाग्के्
बराबर्होनी्चादहये्॥३३-३४॥
धामभेद
भवन्के्भेद्-्भवन्के्तीन्भेद्होते्है ्-्नागर, द्राववड्एवं्वेसर्।्सम, चतुभज
ुण ्एवं्आयताकार्
भवन्नागर्कहे ्गये्है ्॥३५॥
आठ्भुजा्(एवं्कोर्)्तथा्छः्भुजा्(एव्कोर्)्वाला्लम्बा्भवन्द्राववड़्कहा्जाता्है ्।्वत्त
ृ ाकार,
om
लम्बाई्सलये्वत्त
ृ ाकार, दो्कोर््एवं्वत्त
ृ ाकार्भवन्वेसर्कहलाता्है ्॥३६॥
स्तूवपका्पयणधत्चौकोर्भवन्को्नागर्कहते्है ्।्ग्रीवा्से्अष्िकोर््ववमान्(भवन, प्रासाद)्द्राववड्
होता्है ्।्ग्रीवा्से्वत्त
ृ ाकार्भवन्वेसर्कहलाता्है ्।
विमानतलदे िता
s.c
ववमान्-्दे वालय्के्तलों्के्दे वता्-्ववमानों्(दे वालयों)्के्प्रत्येक्तल्में ्ददशाओं्में ्दे वताओं्का्
क्रमशः्धयास्करना्चादहये्।्पूव्ण ददशा्में ्नधदी्एवं्काल्के्रूप्में ्द्वारपाल्का्ववधयास्करना्
चादहये्॥३९॥
दक्षक्षर््ददशा्में ्दक्षक्षर्ामूनतण्को, पन्श्चम्ददशा्में ्अच्युत्को्या्सलङ्गसम्भूत्को्एवं्उत्तर्में ्
ok
वपतामह्को्ववधयस्त्करना्चादहये्॥४०॥
मण्डप्के्मध्य्भाग्में ्दक्षक्षर््में ्ववनायक, एवं्उनके्पूव्ण या्पन्श्चम्में ्नत्त
ृ रूप्का्ववधयास्
ववशेष्रूप्से्करना्चादहये्॥४१॥
उत्तर्भाग्में ्कात्यायनी्एवं्क्षेरपाल्को्तथा्स्थानक्का्आसन्(खड़े्अथवा्बैठे)्मद्र
ु ा्में ्
Bo
ददशामनू तणयों्का्ववधयास्करना्चादहये्।्ववसशष्ि्कथाओं्से्यक्
ु त्आकृनतयों्का्भी्ननयमानस
ु ार्
अङ्कन्करना्चादहये्।्इस्प्रकार्मल
ू -तल्(भत
ू ल)्के्दे वता-ववधयास्का्वर्णन्ककया्गया्।्अब्
ऊपरी्तलों्के्ववधयास्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥४२-४३॥
दस
ू रे ्तल्में ्पव
ू ्ण ददशा्में ्परु धदर्या्सब्र
ु ह्मण्य्को, दक्षक्षर््में ्वीरभद्र्को, पन्श्चम्में ्नरससंह्को्
44
(मन्धदर्के)्दस
ू रे ्तल्के्पाूँच्प्रकार्के्प्रमार््को्क्रमशः्संक्षेप्में ्कहता्हूूँ्।्पाूँच-छः्हाथ्से्
प्रारम्भ्कर्दो-दो्हाथ्की्वद्
ृ धि्से्तेरह्या्चौदह्हाथपयणधत्उसकी्ऊूँचाई्पूव-ण वर्र्णत्ननयम्के्
अनुसार्होनी्चादहये्।्(ननचले्तल्के)्ववस्तार्के्छः्या्सात्भाग्करने्चादहये्।्उसके्एक्
भाग्को्सौन्ष्ठक्(कर्णकूि)्के्सलये्ग्रहर््करना्चादहये्॥१-२॥
कोष्ठ्(मन्धदर्के्मध्य्भाग्का्कूि)्की्लम्बाई्के्सलये्दो्या्तीन्भाग्का्प्रमार््एवं्शेष्
भाग्में ्हार्(गसलयारा)्एवं्पञ्जर्(अलङ्करर्ववशेष)्होना्चादहये्।्ववमान्(दे वालय)्की्ऊूँचाई्
को्अट्ठाईस्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्॥३॥
om
(उपयक्
ुण त्अट्ठाईस्भाग्में )्तीन्भाग्मसरू क्(अधिष्ठान), छः्भाग्अड़िि्(भत
ू ल), तीन्भाग्
मञ्च, पाूँच्भाग्अंनि्(तल), दो्भाग्मञ्च, एक्भाग्ववतददण क्(वेददका), दो्भाग्कधिर, साढ़े ्चार्
भाग्सशकर्एवं्डेढ़्भाग्कुम्भ्के्सलये्होता्है ्।्यह्पररकलपना्मल
ू ्से्(सशखरपयणधत)्की्गई्
है ्॥४-५॥
स्िल्स्तक s.c
(स्वन्स्त्दे वालय्का)्अधिष्ठान्चतभ
ु ज
ुण ्होता्है ्एवं्कधिर्तथा्मस्तक्(शीषणभाग)्भी्उसी्प्रकार्
होता्है ्।्यह्चार्कूिों्एवं्चार्कोष्ठों्(मध्य-कूि)्से्युक्त्होता्है ्॥६॥
ऊपरी्भाग्में ्आठ्दभ्रनीड्(सजाविी्र्खड़ककयाूँ)्तथा्अड़तालीस्अलपनाससक्(अत्यधत्छोिे ्
अलङ्करर्-ववशेष)्होते्है ्।्सशखरभाग्में ्चार्बड़े्आकार्के्नीड्(सजाविी्र्खड़ककयाूँ)्होते्है ्
ok
॥७॥
हार्(चारो्ओर्ननसमणत्गसलयारा)्के्मध्य्भाग्में ्सभवत्त्पर्कुम्भ्से्ननगणत्लतायें्ननसमणत्होती्
है ्तथा्तोरर्, वेददका्एवं्ववसभधन्प्रकार्के्अङ्कनों्से्भवन्सुसन्ज्जत्रहता्है ्।्यह्भवन्सभी्
Bo
om
यदद्दे वालय्कूि, शाला्(मध्य्कोष्ठ)्एवं्अधतर-प्रस्तर्से्रदहत्हो, चार्भुजाओं्वाला्हो्तथा्
लम्बाई्चौड़आई्से्चतुथांश्अधिक्हो, वेदी, कधिर्एवं्सशखर्आयताकार्हो्एवं्तीन्स्तूवपयाूँ्हो्
तो्उसका्नाम्'सुमङ्गल' होता्है ्॥२२-२३॥
यदद्दे वालय्की्वेददका, गल्एवं्सशरोभाग्वत्त
ृ ायत्(लम्बाई्सलये्वत्त
ृ ाकार)्हो्तथा्सभी्अङ्गों्से्
s.c
भवन्युक्त्हो्तो्उसकी्संज्ञा्'गाधिार' होती्है ्॥२४॥
यदद्दे वालय्आयताकार्हो्तथा्लम्बाई्चौड़ाई्से्आिा्भाग्अधिक्हो, सशरोभाग्दो्कोर््से्
युक्त्गोलाई्सलये्हो्तथा्मुखभाग्(सामने)्पर्नेरशाला्(नेर्की्आकृनत्का्प्रकोष्ठ)्हो्तो्उसे्
'हन्स्तपष्ृ ठ्कहते्है ्।्इसका्अधिष्ठान्दो्कोर््से्युक्त्गोलाकार्भी्हो्सकता्है ्॥२५॥
ok
यदद्दे वालय्का्अधिष्ठान्चौकोर्हो्एवं्गभणगह
ृ ्वत्त
ृ ाकार्हो्तथा्भवन्सभी्अलङ्करर्ों्से्
युक्त्हो्तो्उसकी्संज्ञा्'मनोहर' होती्है ्॥२६॥
यदद्जधम्(भवन्के्मूल)्से्लेकर्कुम्भ्(सशखर्भाग)्तक्दे वालय्बाहर्एवं्भीतर्से्वत्त
ृ ाकार्
हो्एवं्शेष्भाग्पव
ू व
ण र्र्णत्ववधि्के्अनस
ु ार्हो्तो्उसे्'ईश्वरकाधत' कहते्है ्॥२७॥
Bo
यदद्दे वालय्का्गभणगह
ृ ्चौकोर्हो, अधिष्ठान्गोलाकार्हो्तथा्जधम्से्लेकर्स्तवू पकापयणधत्
भवन्वत्त
ृ ाकार्हो्तो्उसे्'वत्त
ृ हम्यण' कहते्है ्॥२८॥
यदद्अधिष्ठान्चौकोर्हो्तथा्कधिर्एवं्सशर्षट््कोर््हो्एवं्शेष्सभी्भाग्पव
ू व
ण त्हो्तो्उस्
दे वालय्की्संज्ञा्'कुबेरकाधत' होती्है ्॥२९॥
44
om
(तोरर््एवं्नीड)्की्पररधि्स्तम्भ्के्मूल्भाग्के्तीन्चौथाई्के्बराबर्होनी्चादहये्।्हार्के्
मध्य, भवन-मध्य, कूि्पर्एवं्कोष्ठ्पर्तोरर््से्अलङ्करर््करना्चादहये्॥३७॥
द्वार्के्रक्षक्का्कक्ष्द्वार्के्दोनों्पाश्वों्में , द्वार्के्समीप्अथवा्पद्के्मध्य्में ्होना्
चादहये्।्इसकी्ऊूँचाई्उत्तरमण्डपयणधत, खण्डपयणधत, पोनतकापयणधत्अथवा्तोरर्पयणधत्कही्गई्है ्।्
s.c
सभी्भवनों्में ्उधचत्रीनत्से्प्रवेश-भाग्का्ननमाणर््युन्क्तपूवक
ण ्करना्चादहये्॥३८-३९॥
मयमतम्-्अध्याय्२१
ok
(त्रत्रभूममविधान)
Bo
तीन्तल्वाले्भवन्का्वविान्-्तीन्तल्वाले्भवन्के्पाूँच्प्रकार्के्प्रमार््को्अब्संक्षेप्
में ्वर्र्णत्ककया्जा्रहा्है ्।्सात्या्आठ्हाथ्से्प्ररम्भ्कपणधद्रह्या्सोलह्हाथपयणधत्दो-दो्
हाथ्क्रमशः्वद्
ृ धि्करते्हुये्इसे्ले्जाना्चादहये्।्यह्इनका्व्यास्है ्।्उूँ चाई्पूवव
ण र्र्णत्ननयम्
के्अनुसार्होनी्चादहये्॥१॥
44
यदद्(भूतल्की्चौड़ाई)्सात, आठ्या्नौ्हाथ्हो्तो्उसके्सात्या्आठ्भाग्करने्चादहये्।्
इसके्एक्बाग्से्ऊि्की्चौड़ाई, दो्या्तीन्भाग्से्कोष्ठ्(मध्य्में ्न्स्थत्कोष्ठ्या्कूि)्की्
चौड़ाई, आिे्भाग्से्लम्ब्पञ्जर्(हारा्संज्ञक्मागण्के्ऊपर्लिकती्आक्रुनत्)्एवं्इसी्के्
बराबर्प्रमार््का्हारा्संज्ञक्मागण्या्गसलयारा्होना्चादहये्॥२-३॥
ऊपरी्तल्(द्ववतीय्तल)्के्छः्भाग्करना्चादहये्।्एक्भाग्से्कूि्एवं्उसका्दग
ु ुना्चौड़ा्
कोष्ठक्एवं्मध्य्में ्एक्भाग्से्हारा्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥४॥
उसके्ऊपरी्तल्(तत
ृ ीय्तल)्के्मध्य्भाग्में ्भद्र्का्ननमाणर््होना्चादहये्।्बुद्धिमान्
(स्थपनत)्को्भद्र्का्माप्एक्दण्ड, डेढ़्दण्ड्या्दो्दण्ड्रखना्चादहये्॥५॥
दे वालय्की्सम्पूर््ण ऊूँचाई्को्चौबीस्भागों्में ्ववभक्त्करना्चादहये्।्तीन्भाग्से्िरातल्
(अधिष्ठान), चार्भाग्से्अिःस्तम्भ्(प्रथम्तल्की्ऊूँचाई), दो्भाग्से्मञ्च, पौने्चार्भाग्से्
(द्ववतीय्तल्का)्अड़ििक्(स्तम्भ), डेढ़्भाग्से्मञ्चक, साढ़े ्तीन्भाग्से्तसलप्(तत
ृ ीय्मंन्जल्
का्स्तम्भ्अथवा्ऊूँचाई), सवा्भाग्से्प्रस्तर, आिे्भाग्से्वेदी्एवं्गल, साढ़े ्तीन्भाग्से्
सशखर्एवं्एक्बाग्से्घि्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥६-८॥
दे वालय्मे्आठ्कूि्(कोर््के्कोष्ठ), आठ्नीड्(कूि्एवं्कोष्ठ्के्मध्य्के्कोष्ठ)्एवं्आठ्
कोष्ठक्(मध्य्कोष्ठ)्होना्चादहये्।्इधहे ्जधम्(प्रारम्भ)्से्स्तूवपकापयणधत्चौकोर्बनाना्
चादहये्।्ऊपरी्तल्पर्सोलह्अलपनीड्(छोिे ्कोष्ठ)्एवं्नछयानबे्अलपनास्का्ननमाणर््करना्
चादहये्।्अधिष्ठान, स्तम्भ्एवं्वेददका्आदद्की्आकृनत्ववसभधन्प्रकार्की्हो्सकती्है ्।्
शीषणभाग्पर्आठ्अभ्रनास्(सजाविी्र्खड़कीयाूँ)्होती्है ्।्कोष्ठ्कूि्से्उधनत्हों्एवं्आपस्में ्
समान्ऊूँचाई्के्हों, तो्वह्दे वालय्शम्भु्का्वास्होता्है ्एवं्यह्तीन्तल्का्दे वालय्
'स्वन्स्तक' संज्ञक्होता्है ्॥९-१०॥
om
विमलाकृनतक
दे वालय्की्चौड़ाई्के्सात्या्नौ्भाग्करने्पर्सौन्ष्ठक्(कोर््के्कोष्ठों)्को्एक्भाग्चौड़ा,
शाला्(मध्य्का्लम्बा्कोष्ठ)्एक्या्दो्भाग्चौड़ा्तथा्हारा-मागण्को्एक्भाग्से्ननसमणत्
करना्चादहये्॥११॥ s.c
(इस्दे वालय्में )्आठ्कूि, बारह्कोष्ठ, आठ्नीड्तथा्एक्सौ्बीच्अलपनाससक्होना्चादहये्
॥१२॥
मस्तक, वेदी्एवं्कधिर्अष्िकोर््एवं्आठ्नाससक्होना्चादहये्।्'ववमलाकृनतक' नामक्यह्
दे वालय्भगवान्सशव्के्ननवासयोग्य्होता्है ्॥१३॥
ok
जब्चौड़ाई्सात्या्नौ्हाथ्हो्तो्उसके्सात्या्नौ्भाग्करने्चादहये्।्कूि्की्चौड़ाई्एक्
भाग्हो्एवं्इनकी्संख्या्आठ्हो्।्बारह्कोष्ठ्हों, आठ्ऊध्वणपञ्जर्हो, आठ्गलनास्हो्तथा्
एक्सौ्बीस्(सजाविी्आकृनत्हो)्तो्उस्ववमान्(दे वालय)्की्संज्ञा्'ववमलाकृनत' होती्है ्॥१४॥
Bo
हल्स्तपष्ृ ठ
ग्यारह्हाथ्के्ववस्तार्को्आठ्भाग्में ्ववभक्त्करना्चादहये्।्लम्बाई्को्ववस्तार्से्चार्
भाग्अधिक्रखना्चादहये्तथा्(एक्ओर)्वत्त
ृ ाकार्(एवं्एक्ओर्दो्कोर्)्होना्चादहये्॥१५॥
अधिष्ठान्दो्कोर््(एक्ससरे ्पर्एवं्दस
ू रे ्ससर्पर)्वत्त
ृ ाकार्होना्चादहये्।्इसी्प्रकार्कधिर्
44
एवं्मस्तक्(सशखर)्होना्चादहये्।्ववस्तार्के्आिे्प्रमार््से्वत्त
ृ ाकृनत्ननसमणत्करना्चादहये्
॥१६॥
कोर््(एवं्भज
ु ा)्के्बगल्एवं्पष्ृ ठ्भाग्के्बारह्भाग्दो्बार्करना्चादहये्।्कूि, कोष्ठक्एवं्
नीड्के्ववस्तार्का्ननमाणर््एक्भाग्से्करना्चादहये्।्कोष्ठक्को्दग
ु न
ु ा्लम्बा्तथा्हारामागण्
(की्चौड़ाई)्एक्भाग्से्ननसमणत्करनी्चादहये्॥१७॥
मख
ु -मण्डप्का्प्रमार््भवन्के्बराबर, तीन्चौथाई्या्आिा्होना्चादहये्।्मण्डप्के्ऊपर्उसी्
प्रकार्का्अलङ्करर््होना्चादहये, न्जस्प्रकार्भवन्के्ऊपर्होता्है ्।्सभी्भवनों्(दे वालयों)्में ्
मण्डप्को्कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्से्यक्
ु त्ननसमणत्करना्चादहये्॥१८-१९॥
अथवा्बरवगणसदहत्भवन्(अथाणत्कूि्आदद्से्रदहत्तीन्वगण्वाले्भवन)्को्तोरर््आदद्से्
सजाना्चादहये्।्यदद्मण्डप्प्रिान्भवन्के्बराबर्हो्तो्अधतराल्नीचा्होना्चादहये्॥२०॥
कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्सभी्अवयव्मान-सर
ू ्से्बाहर्की्ओर्ननकले्होते्है ्।्ये्भाग्अपने्
चौड़ाई्के्आिे्अथवा्उसके्आिे, एक्दण्ड, डेढ़्दण्ड, ढ़ाई्दण्ड, तीन्दण्डपयणधत्मानसर
ू ्से्बाहर्
ननकले्होते्है ्।्न्जस्भवन्में ्इस्ववधि्से्कूिादद्अङ्गों्का्ननमाणर््होता्है , वह्सदै व्सम्पवत्त्
प्रदान्करता्है ्।्एक्सीिी्रे खा्(ऋजु्सूर्)्से्इसका्प्रमार््लेना्चादहये्।्ऋजुसूर्का्िूिना्
ववपवत्त्प्रदान्करता्है ्।्॥२१-२२॥
ऊध्वण-तल्(्की्चौड़ाई)्को्छः्भाग्मे्बाूँिना्चादहये्।्उसके्पष्ृ ठ-भाग्के्दोनों्पाश्वो्को्
बारह-बारह्भाग्मे्बाूँिना्चादहये्।्ऊपरी्तल्के्चार्भाग्करने्चादहये्।्चौकोर्भाग्पर्
पहले्के्समान्यथोधचत्रीनत्से्कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥२३-२४॥
भवन्के्शीषण्भाग्में ्सामने्की्ओर्नेरशाला्(नेर्के्आकार्का्प्रकोष्ठ)्एवं्वक्र्(मुखभाग)्
ननसमणत्करना्चादहये्तथा्क्षुद्रनासी्एवं्स्तम्भ्से्युक्त्गभणकूि्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥२५॥
om
कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्का्ननमाणर््इस्प्रकार्करना्चादहये, न्जससे्भवन्सुधदर्लगे्।्सशखर्भाग्
पर्तीस्नाससकायें्ननसमणत्होनी्चादहये्॥२६॥
भवन्पर्आठ्कूि्एवं्आठ्कोष्ि्तथा्बारह्नीड्होना्चादहये्।्हारा-मागण्पर्बारह्क्षुद्रनीडों्
का्ननमाणर््होना्चादहये्॥२७॥
s.c
ववसभधन्प्रकार्के्मसुरक्(अधिष्ठान), स्तम्भ्एवं्वेददका्आदद्से्भवन्को्अलङ््कृत्करना्
चादहये्।्अधिष्ठान्उपपीठ्से्युक्त्हो्अथवा्केवल्अधिष्ठान्हो्।्यह्'हन्स्तपष्ृ ठ' नामक्भवन्
सभी्दे वों्केसलये्अनुकूल्होता्है ्॥२८॥
स्तर्मभतोरण
ok
स्तम्भ्की्ऊूँचाई्के्दो्नतहाई्भाग्के्बराबर्(स्तम्भतोरर्)्की्ऊूँचाई्रखनी्चादहये्एवं्इसके्
सभी्अङ्गों्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्इसे्पोनतकाववहीन्तथा्वीरकाण्ड्के्ऊपर्मन्ण्ड्से्
युक्त, उत्तर-वाजन, अब्ज-क्षेपर््(पट्दिका्पर्ननसमणत्पद्मपुष्प)्एवं्ननम्न-वाजन्से्युक्त्ननसमणत्
Bo
करना्चादहये्॥२९-३०॥
उसके्ऊपर्झष-काण्ड्(मछली्की्आकृनत्वाली्गोलाई-युक्त्पट्दिका)्ववसभधन्प्रकार्के्परों्से्
सुसन्ज्जत्होना्चादहये्।्इसे्तोरर््की्आकृनत्से्युक्त्एवं्कधिर्पर्कमल्की्नाल्अङ्ककत्
होनी्चादहये्।्सभी्अलङ्करर्ों्से्युक्त्'स्तम्भतोरर्' का्वर्णन्ककया्गया्है ्॥३१॥
44
om
भद्रकोष्ठ
तेरह्हाथ्की्चौड़ाई्को्नौ्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्गभणगह
ृ ्को्तीन्भाग्से्एवं्गह
ृ वपण्डी्
(सभवत्त)्एक्भाग्से्बनानी्चादहये्।्अधिार्(असलधद, बरामदा)्को्एक्भाग्से्तथा्एक्भाग्
से्उसके्चारो्ओर्अधिाररका्(असलधद्के्बाहर्की्दीवार)्बनानी्चादहये्॥४०-४१॥
s.c
एक्भाग्से्सौन्ष्ठक्एवं्कोष्ठ्का्ववस्तर्रखना्चादहये्।्इसकी्लम्बाई्चौड़ाई्से्तीन्भाग्
अधिक्होनी्चादहये्।्आिे्भाग्से्नीड्का्ववस्तार्तथा्शेष्भाग्से्हारामागण्ननसमणत्होना्
चादहये्॥४२॥
कोष्ठ्के्मध्य्में ्तीन्दण्ड्के्प्रमार््से्ननगणमन्(बाहर्की्ओर्ननकला्भाग)्से्युक्त्नासी्
ok
होनी्चादहये्।्ऊपरी्तल्के्छः्भाग्करने्चादहये्।्उसके्एक्भाग्से्कूि्ननसमणत्करना्
चादहये्।्कोष्ठक्की्लम्बाई्दग
ु ुनी्होनी्चादहये्।्एक्भाग्से्पञ्जर्से्युक्त्हारा्होनी्
चादहये्।्उसके्ऊपरी्भाग्(तल)्के्तीन्भाग्करने्चादहये्।्मध्य्भाग्में ्एक्दण्ड्का्
ननगणम्होना्चादहये्॥४३-४४॥
Bo
यदद्अधिष्ठान्चौकोर्हो्तो्गल्तथा्सशखर्अष्िकोर््होना्चादहये्।्प्रथम्तल्के्चारो्कोनों्
पर्कूि्होना्चादहये्एवं्सशरोभाग्चौकोर्होना्चादहये्॥४५॥
ऊपरी्तल्पर्सौन्ष्ठकों्(कोष्ठों)्का्शीषण्अष्िकोर््होना्चादहये्।्इसी्प्रकार्आठ्कूि, नीड्एवं्
कोष्ठक्होना्चादहये्॥४६॥
44
इसी्प्रकार्क्षुद्रनीड्होना्चादहये्।्गल-नाससकायें्चौसठ्होनी्चादहये्।्नाससकाओं्का्अलङ्करर््
स्वन्स्तक्की्आकृनत्का्होना्चादहये्।्इस्भवन्की्संज्ञा्'भद्रकोष्ठ' उधचत्ही्है ्॥४७॥
जब्प्रत्येक्ऊपरर्तल्में ्वत्त
ृ ाकर्कर्ण-कूि्ननसमणत्हो, सशखर्वत्त
ृ ाकार्हो्तथा्चार्नाससयों्से्
युक्त्हो, तो्उस्दे वालय्को्'वत्त
ृ कूि' कहते्है ्।्यह्दे वालय्सवणदा्दे वों्के्अनुकूल्होता्है ्॥४८-
४९॥
सुमङ्गल
यदद्दे वालय्चार्भुजाओं्वाला्आयताकार्हो्तथा्उसकी्लम्बाई्चौड़ाई्से्आठ्भाग्अधिक्
हो, चार्भुजाओं्वाला्कर्णकूि्हो्एवं्उसका्सशखर्वत्त
ृ ायताकार्(दीघण-वत्त
ृ ्के्आकार्का)्हो्तथा्
कोष्ठभद्र्न्हो्एवं्शेष्पूवव
ण र्र्णत्अवयव्ननसमणत्हो्तो्तीन्स्तूवपकाओं्से्युक्त्इस्दे वालय्
की्संज्ञा्'सुमङ्गल' होती्है ्।्॥५०-५१॥
गान्धार
दे वालय्का्पधद्रह्हाथ्व्यास्होने्पर्उसके्पधद्रह्भाग्करने्चादहये्।्चार्भाग्से्गभणगह
ृ ,
एक्भाग्से्अधिारी्(सभवत्त्की्मोिाई), एक्भाग्से्असलधद, एक्भाग्से्खण्डहम्यण, एक्भाग्से्
कूि, एक्भाग्से्कोष्ठ्एवं्एक्भाग्से्पञ्जर्ननसमणत्करना्चादहये्।्कोष्ठक्की्लम्बाई्
उसकी्चौड़ाई्से्दग
ु ुनी्होनी्चादहये, ऐसा्बुद्धिमानों्का्मत्है ्॥५२-५३॥
ऊपरी्तल्के्छः्भाग्होने्चादहये्।्सौन्ष्ठक्की्चौड़ाई्एक्भाग्होनी्चादहये्।्कोष्ठक्की्
लम्बाई्दग
ु ुनी्होनी्चादहये्एवं्हारा्एक्भाग्से्होनी्चादहये्।्उसके्ऊपर्के्तल्का्चार्
भाग्करना्चादहये्एवं्दो्भाग्से्मध्य-ननगणम्ननसमणत्करना्चादहये्॥५४-५५॥
इसका्माप्एक्दण्ड, डेढ़्दण्ड्या्दो्दण्ड्होना्चादहये्।्अधिष्ठान्चौकोर्होना्चादहये्एवं्
इसी्प्रकार्कधिर्(गल)्तथा्शीषण्होना्चादहये्॥५६॥
om
कूिों्की्संख्या्आठ्हो्एवं्इसी्प्रकार्नीड्एवं्कोष्ठक्भी्होना्चादहये्।्ऊध्वण्भाग्में ्
वषणस्थल्(जल्का्स्थान)्से्युक्त्आठ्लम्बनीड्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥५७॥
स्वन्स्तक्के्आकार्की्नाससका्सभी्स्थलों्पर्सुशोसभत्होती्है ्।्ववसभधन्प्रकार्के्मसूरक्
(अधिष्ठान), स्तम्भ, वेदी, जालक्(झरोखा)्एवं्तोरर््इस्भवन्के्अनुकूल्होते्है ्॥५८॥
s.c
यदद्कूि्एवं्कोष्ठ्ऊूँचे्एवं्अधतर-प्रस्तर्(आिार-वेददका)्से्युक्त्हो, गल्एवं्सशर्अष्िकोर््
हों्तो्ऐसे्दे वालय्को्'गाधिार' कहते्है ्॥५९॥
श्रीभोग
यदद्वेदी, कधिर्एवं्सशखर्गोलाकार्हो्तथा्अधय्अङ्ग्पूव-ण वर्र्णत्ववधि्के्अनुसार्हो्तो्उस्
ok
दे वालय्की्संज्ञा्'श्रीभोग' होती्है ्॥६०॥
कूटकोष्ठ
वत्त
ृ ाकार, वत्त
ृ ायताकार्(लम्बाई-युक्त्गोलाई), दो्कोर््वाले्(एवं्दस
ू रे ्ससरे ्पर)्वत्त
ृ ाकार, आठ्कोर््
एवं्छः्कोर््वाले्भवन्में ्प्रत्येक्तल्में ्कूि, कोष्ठक्एवं्नीड्होना्चादहये्।्इनके्ऊपर्
Bo
न्जस्रीनत्से्भवन्सध
ु दर्लगे्एवं्दृढ़्हो, उस्रीनत्का्प्रयोग्बद्
ु धिमान्स्थपनत्को्करना्
चादहये्॥६२-६३॥
पुनः्धामभेद
पुनः्भवन्के्भेद्-्दे वालय्दो्प्रकार्के्होते्है ्-्अवपणत्एवं्अनवपणत्।्अवपणत्दे वालय्में ्
असलधद्नही्होता्है ्एवं्अनवपणत्में ्असलधद्होता्है ्।्इस्अलपक्रम्का्प्रयोग्सभी्दे वालयों्में ्
बुद्धिमान्स्थपनत्को्करना्चादहये्॥६०-६५॥
नालीगह
ृ
गभणगह
ृ ्-्गभणगह
ृ ्अथवा्नाली-गह
ृ ्का्प्रमार््दे वालय्का्तीसरा्भाग, पाूँच्भाग्में ्तीन्भाग,
सात्में ्चार्भाग, नौ्में ्पाूँच्भाग, ग्यारह्में ्छः्भाग, तेरह्में ्सात्भाग, पधद्रह्में ्आठ्भाग,
सरह्में ्नौ्भाग्अथवा्मन्धदर्का्आिा्होना्चादहये्॥६६॥
िेददका
भवन्के्अवयवों्के्नीचे, कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्के्नीचे्एवं्ग्रीवा्के्नीचे्वेददका्ननसमणत्करनी्
चादहये्।्हाराभाग्के्नीचे्वेददका्का्ननमाणर््हो्भी्सकता्है ्तथा्नही्भी्हो्सकता्है ्।्वहाूँ्
नीड्एवं्अलप-नास्का्ननमाणर््(ऊपरी्भाग्में )्होना्चादहये्॥६७॥
तोरणाददविधान
तोरर््आदद्का्वविान्-्तोरर््तीन्प्राकर्के्होते्है ्-्पर्तोरर्, मकर-तोरर््एवं्धचर-तोरर््।्
अब्इनकी्सज्जा्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥६८॥
उगते्हुये्चधद्रमा्के्समान्एवं्परों्से्अलङ््कृत्तोरर््को्'परतोरर्' कहते्है ्।्मध्य्में ्दो्
मकरों्के्मुख्पर्न्स्थत्पूररन्(सशव)्हो्एव्तोरर््पर्ववववि्प्रकार्की्लतायें्ननसमणत्हो्तो्
वह्'मकरतोरर्' होता्है ्॥६९॥
om
(धचरतोरर््में )्मध्य्भाग्में ्पूररन्(सशव)्न्स्थत्रहते्है , न्जधहे ्नक्र-तुण्ड्(मकरों्के्मुख्का्
अग्र-भाग)्दोनों्ओर्से्पकड़े्रहता्है ्।्दोनों्मकर-मुखों्से्ववद्यािर, भूत, ससंह, व्याल, हं स्एवं्
बच्चे्ननकलते्है ्जो्पुष्पों्की्माला, अधय्मर्र्बधि्आदद्आभूषर्ों्से्सुसन्ज्जत्रहते्है ्।्इस्
तोरर््की्संज्ञा्'धचरतोरर्' है ्तथा्यह्दे वों्एवं्राजाओं्के्सलये्(दे वालय्एवं्राज-भवन्में )्
प्रशस्त्होता्है ्।
s.c
इस्तोरर््की्गुहाओं्(सजाविी्र्खड़ककयो्के्भीतर्का्कक्षनुमा्स्थान)्में ्प्रनतमायें्होती्है ्।्
तोरर््के्दोनो्पाश्वो्में ्स्तम्भ्होते्है ्एवं्नीचे्उत्तर्होते्है ्।्॥७३॥
स्तम्भ्की्ऊूँचाई्को्पाूँच, छः्या्सात्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्दो्भाग्तोरर््के्ऊध्वण्भाग्के्
ok
सलये्एवं्शेष्भाग्स्तम्भ्के्सलये्छोड़ना्चादहये्।्स्तम्भ्चौकोर, अष्िकोर््या्वत्त
ृ ाकार्होना्
चादहये्।्यह्कुम्भ्एवं्मन्ण्ड्से्युक्त्एवं्पोनतका्के्ववना्भी्हो्सकता्है ्।्इसके्अनतररक्त्
उत्तर, वाजन, अब्ज-क्षेपर््एवं्क्षुद्र-वाजन्ननसमणत्होती्है ्॥७४-७५॥
पोनतका्के्ऊपर्या्वीरकाण्ड्के्ऊपर्(स्तम्भ्की)्सन्धि्के्ऊध्वण्भाग्पर्मकर-ववष्िर्
Bo
(मकराकृनत्ढलान)्ननसमणत्करना्चादहये्॥७६॥
तोरर््की्ऊूँचाई्की्आिी्उसकी्चौड़ाई्रखनी्चादहये्(अथवा)्तीन, चार्या्पाूँच्दण्ड्तोरर््का्
ववस्तार्रखना्चादहये्।्(अथवा)्तोरर््की्ऊूँचाई्द्वार्के्बराबर्हो्एवं्चौड़ाई्दोनों्स्तम्भों्के्
मध्यभाग्के्बराबर्होनी्चादहये्।्ऊपरी्भाग्में ्मकर्के्आकार्का्उत्तर्ननसमणत्करना्
44
चादहये, न्जस्पर्अष्ि-मङ्गल्पदाथण्अङ्ककत्हो्।्फलक्पर्पञ्चवक्र्(सशव)्अङ्ककत्हो्एवं्
ऊध्वण्भाग्में ्शल
ू ्ननसमणत्हो्।्ऊध्वण्भाग्में ्छर, ध्वज, पताका, श्री, भेरी, कुम्भ, दीप्एवं्
नधद्यावतण्आकृनत्(स्वन्स्तक)्सभी्पर्इन्अष्िमङ्गल्धचह्नो्का्अङ्कन्होना्चादहये्।्इस्
दे वता्आदद्के्(भवनों्में )्चार्प्रकार्के्तोरर्ों्के्भेद्वर्र्णत्है ्॥७७-७९॥
पद्मासन्(पद्म-फलक)्के्ऊपर्कुम्भ्के्नतरछे ्(पाश्वण्में )्सुधदर्लता्की्आकृनत्होनी्चादहये्
।्उसके्ऊपरी्फलक्के्ऊध्वण्भाग्में ्कुम्भ्की्लता्के्अग्र्भाग्में ्पद्म-पुष्प्अङ्ककत्होना्
चादहये्॥८०-८१॥
पद्म, कुम्भ्एवं्लता्तथा्अधय्सज्जाओं्का्भी्अङ्कन्होना्चादहये्।्ऊपरी्जोड़्के्ऊपर्
वीरकाण्ड्होना्चादहये्।्ऊध्वण्भाग्में ्स्तम्भकुम्भलता्एवं्स्तम्भतोरर््होना्चादहये्।्दे वालय्
एवं्उससे्सभधन्(मनुष्य-आवास)्में ्हारा-मागण्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥८२-८३॥
'वत्त
ृ स्फुदित' दे वालयों्का्अलङ्करर््होता्है ्।्इसकी्लम्बाई्तोरर््के्स्तम्भ्के्बराबर्होती्है ्
।्इसकी्चौड़ाई्छः, आठ, दश, बारह्या्चौदह्माप्(मारक)्की्होनी्चादहये्तथा्ननष्क्राधत्(बाहर्
ननकला्भाग)्चौड़ाई्का्आिा, दो्नतहाई्या्एक्नतहाई्होना्चादहये्।्इसका्आच्छादन्
गोलाकार्होता्है ्।्ऊध्वण्भाग्कधिर्(गल)से्युक्त्होता्है , न्जस्पर्'शक
ु नासस' ननसमणत्होती्है ्
॥८४-८५॥
सीढ़ी्-्प्रत्येक्तल्में ्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्सीढ़ी्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्इसका्मूल्
(प्रारम्भ, प्रकार)्तीन्प्रकार्का्सम्भव्है ्-्चौकोर, गोलाकार्या्आयताकार्।्सीढ़ीयोंके्चार्
प्रकार्होते्है ्-बरखण्ड, शङ्खमण्डल, वलली्मण्डल, एवं्अिणगोमूर्॥८६-८७॥
मूल्(प्रारम्भ)्से्ऊपर्तक्चौड़ाई्में ्क्रमशः्क्षीर््होने्वाला्सोपान्'शङ्खमण्डल' है ्।्
वललीमण्डल्सोपान्की्संरचना्वक्ष
ृ ्पर्चढ़ी्हुई्(गोलाई्में ्सलपिी्हुई)्लता्के्समान्की्
om
जाती्है ्।्अश्वपाद्(अश्व्के्खरु ्अथवा्अिणचधद्र्का्प्रथम्सोपान्पट्िी)्के्ऊपर्से्प्रारम्भ्
होकर्दक्षक्षर््की्ओर्मुड़ते्हुये्दो्दण्ड्से्लेकर्सात्दण्डपयणधत्सोपान्की्चौड़ाई्हो्सकती्है ्
।्अश्वपाद्का्ववस्तार्सोपान्के्प्रमार््से्दग
ु ुना्से्लेकर्चार्गुना्तक्होता्है ्॥८८-९०॥
सोपान-पट्दियों्के्मध्य्की्ऊूँचाई्शनयत्व्यास्(लेिाई्गई्पट्दियों्की्चौडाई)्की्चौथाई, आिी्
s.c
या्तीन्चौथाई्होनी्चादहये्।्गज, बच्चों्एवं्वद्
ृ िो्को्ध्यान्में ्रखते्हुये्सोपान-पट्दियों्को्
बराबर्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्(अथाणत्उनकी्लम्बाई-चौड़ाई्आदद्पूव-ण ननिाणररत्प्रमार््में ्हो)्।्
सोपान्के्बबछे ्फलक्का्व्यास्(गहराई)्सोलह्से्अट्ठारह्अङ्गुल्होना्चादहये्एवं्ऊूँचाई्
उसके्छठे ्भाग्के्बराबर्होनी्चादहये्।्इस्प्रकार्सोपान्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥९१-९२॥
ok
हस्त्की्चौड़ाई्दो्दण्ड्एवं्मोिाई्उसकी्चतुथांश्होनी्चादहये्।्न्स्थत्(खड़ी्न्स्थनत)्एवं्
शानयन्(लेिी्न्स्थनत)्वाले्फलकों्को्हस्त्में ्दृढतापूवक
ण ्बैठाना्चादहये्।्(हस्त्सीढ़ी्के्पाश्वण्
का्एक्अङ्ग्है ्)्॥९३॥
सोपानों्की्संख्या्ववषम्होनी्चादहये्।्ये्गप्ु त्(सभवत्त्आदद्में ्नछपी)्या्प्रकि्हो्सकती्है ्।्
Bo
चार्तल्से्लेकर्बहुतलों्के्दे िालयों्का्विधान्-
चार्तल्वाले्भवन्(दे वालय)्के्पाूँच्प्रकार्के्प्रमार्ों्का्संक्षेप्में ्क्रमानुसार्वर्णन्कर्रहा्हूूँ्
।्इसका्व्यास्तेरह्या्चौदह्हाथ्से्प्रारम्भ्कर्दो-दो्हाथ्बढ़ाते्हुये्इक्कीस्या्बाईस्हाथ्
तक्जाता्है ्एवं्भवन्की्ऊूँचाई्पूवोक्त्ननयम्के्अनुसार्रक्खी्जाती्है ्॥१॥
सुभद्रकम
om
ववस्तार्एवं्ऊूँचाई्के्प्रमार््से्भवन्के्भागों्की्चचाण्कर्रहा्हूूँ्।्तेरह्हस्त्के्व्यास्को्
बराबर-बराबर्आठ्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्एक्भाग्से्कूि्का्ववस्तार, दो्भाग्से्शाला्का्
ववस्तार्एवं्एक्भाग्से्पञ्जर्का्ववस्तार्करना्चादहये्।्उसके्ऊपर्(दस
ू रे ्तल)्को्भी्आठ्
भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्सभाकक्ष, शाला्एवं्पञ्जर्के्ऊपर्पव
ू व
ण र्र्णत्(कूिादद)्का्ननमाणर््करना्
चादहये्॥२-४॥ s.c
ऊपरी्भाग्(तीसरी्मन्ञ्जल)्के्छः्भाग्करने्चादहये्।्एक्भाग्से्कूि्का्ववस्तार, दो्भाग्से्
कोष्ठक्की्लम्बाई्एवं्आिे्भाग्से्नीड़्का्माप्करना्चादहये्॥५॥
उसके्ऊपर्(के्तल)्के्तीन्भाग्करना्चादहये्।्मध्य्का्भाग्एक्अंश्(आिा)्रखना्चादहये्
एवं्ननगणम्का्माप्एक्दण्ड्रखना्चादहये्।्बुद्धिमान्स्थपनत्को्ऊूँचाई्के्उधतालीस्भाग्
ok
करने्चादहये्॥६॥
(प्रथम्तल्में )्ढ़ाई्भाग्से्अधिष्ठान, पाूँच्भाग्से्स्तम्भ्की्लम्बाई्(प्रथम्तल्के्भवन्की्
ऊूँचाई), (द्ववतीय्तल्में )्इसके्आिे्माप्की्प्रस्तर्की्ऊूँचाई्एवं्पौने्पाूँच्भाग्से्(तल्की)्
Bo
पूरा्भवन्भूतल्से्चौकोर्होता्है ्॥७-१०॥
इस्भवन्में ्बारह्सौष्ठी, बारह्कोष्ठं ्एवं्पञ्जर्सशखर्पर्चार्नासी्होनी्चादहये्एवं्
अलपनाससयों्से्अलङ््कृत्होना्चादहये्।्तल्के्नीचे्(अधिष्ठान)्पूवव
ण र्र्णत्ननयम्के्अनुसार्
होना्चादहये्तथा्स्तम्भ, अलङ््करर््एवं्तोरर््ननसमणत्होना्चादहये्।्सभी्अलङ्करर्ों्से्युक्त्
इस्भवन्(दे वालय)्की्संज्ञा्'सुभद्रक' होती्है ्।्॥११-१२॥
श्रीवििाल
न्जस्दे वालय्के्(कोर्ों्पर्तथा्मध्य्में )्कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्हो्तथा्बीच-बीच्में ्भवन्की्
छत्गोलाई्सलये्हो, कोर्कोष्ठ्भी्मण्डलाकार्हो, गभणगह
ृ ्भवन्के्ववस्तार्के्आिे्पर्(मध्य)्
न्स्थत्हो, भीतर्की्सभवत्त्की्मोिाई्शेष्का्तत
ृ ीयांश्हो्तथा्यही्माप्बाहर्की्सभवत्त्(अधिार्
हार)्का्होना्चादहये्।्इस्भवन्के्अनरू
ु प्ववववि्प्रकार्के्अधिष्ठान्स्तम्भ्एवं्वेदद्आदद्
होते्है ्एवं्इस्दे वालय्की्संज्ञा्'श्रीववशाल' होती्है ्॥१३-१४॥
भद्रकोष्ठ
भवन्के्पधद्रह्हाथ्के्व्यास्को्नौ्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्तीन्भाग्से्गभणगूह्की्चौड़ाई्
रखनी्चादहये्।्भीतरी्सभवत्त्की्मोिाई्के्सलये्एक्भाग्एवं्चारो्ओर्असलधद्की्चौड़ाई्के्
सलये्एक्भाग्तथा्खण्डहम्यणक्के्सलये्एक्भाग्रखना्चादहये्॥१५-१६॥
सभा, शाला्एवं्नीड्की्चौड़ाई्एक-एक्अंश्से्रखनी्चादहये्।्इनकी्लम्बाई्चौड़ाई्की्तीन्
गुनी्होनी्चादहये्।्इनकी्चौड़ाई्के्माप्से्इनका्ननगणम्ननसमणत्करना्चादहये्।्शाला्के्मध्य्
भाग्में ्महानासी्ननसमणत्होनी्चादहये, न्जसकी्चौड़ाइ्एवं्गहराई्एक्भाग्माप्की्हो्।्सभा,
कोष्ठक्एवं्नीडों्के्मध्य्आिे्भाग्से्हारक्(हारामागण)्ननसमणत्होना्चादहये्॥१७-१८॥
om
ऊपरी्(दस
ू रे )्तल्की्चौड़ाई्को्आठ्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्एक्भाग्से्कूि्एवं्एक्भाग्से्
कोष्ठक्रखना्चादहये्।्कोष्ठक्की्लम्बाई्ववस्तार्की्दग
ु ुनी्होनी्चादहये्।्कूि्एवं्शाला्के्
मध्य्में ्एक्भाग्से्नीड्की्रचना्करनी्चादहये्।्उसके्ऊपर्(तत
ृ ीय्बल)्के्छः्भाग्करने्
चादहये्एवं्कूि्तथा्कोष्ठक्का्ननमाणर््एक्भाग्से्करना्चादहये्॥१९-२०॥
(कूि्एवं्कोष्ठक्की)्लम्बाई्चौड़ाई्की्दग
s.c
ु ुनी्होनी्चादहये्।्इनके्मध्य्में ्आिे्भाग्से्पञ्जर्
होना्चादहये्।्इसके्ऊपरी्भाग्के्चार्भाग्होने्चादहये्।्मध्य्भाग्में ्एक्दण्ड्का्ननगणम्
होना्चादहये्।्कर्णकूि्अष्िकोर््हों्एवं्कोष्ठक्क्रकरी्(ददशाओं्में ्कोर्)्हो्।्महासशखर्
अष्िकोर््हो्तथा्आठ्नाससयों्से्अलङ््कृत्हो्।्कूि, कोष्ठक्एवं्नीड्की्संख्या, ववस्तार्एवं्
ok
ऊूँचाई्आदद्के्माप्पूवोक्त्रीनत्से्होने्चादहये्।्चार्तल्वाला्यह्दे वलय्'भद्रकोष्ठ' संज्ञक्
होता्है ्॥२१-२३॥
सरह्हाथ्के्व्यास्को्दश्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्चार्भाग्से्नालीगह
ृ ्(गभणगह
ृ ), एक्भाग्से्
अधिाररका्(भीतरी्सभवत्त), एक्भाग्से्असलधद्एवं्एक्भाग्से्चारो्ओर्खण्ड-हम्यणक्का्
Bo
ननमाणर््करना्चादहये्॥२४-२५॥
कूि, कोष्ठ्एवं्नीड्की्रचना्एक-एक्भाग्से्करनी्चादहये्।्कोष्ठ्की्लम्बाई्चौड़ाई्की्दग
ु न
ु ी्
हो्एवं्शेष्भाग्से्पञ्जरयक्
ु त्हारा्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥२६॥
इसके्ऊपर्(दस
ू रे ्तल)्जलस्थान्को्छोड़्कर्आठ्भाग्करना्चादहये्।्एक्भाग्से्कूि्की्
44
चौड़ाई्रखनी्चादहये्।्कोष्ठक्की्लम्बाई्चौड़ाई्की्दग
ु न
ु ी्होनी्चादहये्।्हारा्के्मध्य्में ्एक्
भाग्से्लम्ब्पञ्जर्(लिकती्हुई्सजाविी्आकृनत)्होनी्चादहये्।्इसके्ऊपर्(तीसरे ्तल्पर)्
छः्भाग्करने्चादहये्।्एक्भाग्से्सौन्ष्ठक्का्ववस्तार्करना्चादहये्॥२७-२८॥
कोष्ठक्की्लम्बा्(चौड़ाई्की)्दग
ु ुनी्होनी्चादहये्।्हारामागण्में ्क्षुद्र-पञ्जर्होना्चादहये्।्उसके्
ऊपर्(चतुथ्ण तल्पर)्के्तीन्भाग्होने्चादहये्।्मध्य्भाग्में ्एक्दण्ड्का्ननगणम्ननसमणत्होना्
चादहये्॥२९॥
इस्भवन्(दे वालय)्का्अधिष्ठान्चौकोर्होना्चादहये्एवं्गल्तथा्मस्तक्आठ्कोर््का्होना्
चादहये्।्बारह्कोष्ठक, बारह्सौन्ष्ठक्एवं्आठ्पञ्जर्होना्चादहये्।्आठ्लम्बपञ्जर्एवं्सोलह्
क्षुद्रनीड्होना्चादहये्।्गल्पर्आठ्नासी्हों्एवं्कोष्ठक्कुछ्ऊूँचे्हो्।्ववसभधन्प्रकार्के्
मसूरक, स्तम्भ, वेदी, जालक्(झरोखा, रोशनदान)्एवं्तोरर््हों्।्नाना्प्रकार्के्अलङ्करर्ों्एवं्
ववसभधन्प्रकार्के्अङ्कनों्से्यक्
ु त्हो्।्अधिष्ठान्उपपीठ्से्यक्
ु त्हो्या्केवल्मसरू क्हो्।्
स्वन्स्तक्की्आकृनत्ननसमणत्हो्एवं्नाससकाओं्से्सस
ु न्ज्जत्हो्।्ऊूँचे्भाग्की्संरचना्पव
ू -ण
वर्र्णत्ववधि्से्हो्।्इस्दे वालय्को्'जयावह' संज्ञा्दी्गई्है ्॥३०-३३॥
भद्रकूट
उधनीस्हाथ्की्चौड़ाई्को्दश्भागों्में ्बाूँिा्जाता्है ्।्चार्भाग्से्गभणगह
ृ , एक्भाग्से्सभवत्त्
की्मोिाई, एक्भाग्से्अधिार, एक्भाग्स्चारो्ओर्खण्डहम्यणक, एक-एक्भाग्से्कूि, कोष्ठक्
एवं्नीड्की्चौड़ाई्रखनी्चादहये्।्कोष्ठक्की्लम्बाई्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी्होनी्चादहये्तथा्एक्
भाग्से्हारा-मागण्की्रचना्होनी्चादहये्॥३४-३६॥
कपोतपञ्जर
सौन्ष्ठक्का्व्यस्मध्य्में ्पाूँच्में ्से्दो्भाग्से्ननसमणत्होना्चादहये्।्एक्भाग्से्ववननष्क्राधत्
om
का्ननमाणर््होना्चादहये, जो्दो्स्तम्भों्से्युक्त्हो्।्यह्उपपीठ, अधिष्ठान, मञ्च, ववतददण क, कधिर्
एवं्सशरोभाग्से्युक्त्हो्तथा्सभी्अलङ्करर्ों्से्युक्त्हो्।्पादक
ु ्से्उत्तर्के्मध्य्नौ्भाग्से्
उपपीठ, दो्भाग्ऊूँचा्मसूरक, उनका्दग
ु ुना्ऊूँचा्स्तम्भ, आिे्भाग्से्प्रस्तर्की्ऊूँचाई, आिे्भाग्
से्वेददका्तथा्उत्तर्से्प्रारम्भ्कर्कपोत्तक्गल्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥३७-४०॥
s.c
पञ्जर्की्आकृनत्से्युक्त्एवंकपोत्से्ववननगणत्(कपोतपञ्जर)्होता्है ्।्न्जस्प्रकार्अच्छा्लगे्
एवं्ठीक्हो, उस्प्रकार्शन्क्त-ध्वज्से्युक्त्होना्चादहये्।्यह्कपोतपञ्जर सभी्प्रकार्के्दे वालय्
के्अनुकूल्होता्है ्।्इसे्हारा्के्या्शाला्के्मध्य्में ्ननसमणत्करना्चादहये्॥४१-४२॥
पुनः्भद्रकूि
ok
कूि, कोष्ठक्एवं्नीड्अधतर-प्रस्तर्से्युक्त्होते्है ्।्इसके्ऊपर्जल-स्थल्को्छोड़्कर्आठ्
भाग्बचते्है ्।्एक्भाग्से्सौन्ष्ठक्का्ननमाणर््होना्चादहये्।्कोष्ठक्की्लम्बाई्(चौड़ाई्
की)दग
ु ुनी्होनी्चादहये्।्उनके्मध्य्में ्पञ्जर्होना्चादहये्।्उसके्ऊपर्छः्भाग्करना्चादहये्
।्सौन्ष्ठक्एवं्कोष्ठ्पहले्की्भाूँनत्होने्चादहये्।्इसके्ऊपरी्भाग्में ्जो्योजना्'ववजय' के्
Bo
सलये्कही्गयी्है , वही्यहाूँ्भी्होनी्चादहये्।्कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्सभी्अङ्गों्की्संख्या्पव
ू -ण
वर्र्णत्होनी्चादहये्।्महानीड्की्संख्या्सोलह्होनी्चादहये्।्इस्दे वालय्की्संज्ञा्'भद्रकूि' होती्
है ्॥४३-४५॥
मनोहर
44
om
अिणनाससक्एवं्आठ्अलपनाससक्होना्चादहये्॥५२॥
प्रथम्तल्में ्कूि, नीड्एवं्कोष्ठक्मध्यम्मञ्च्(प्रस्तर)्से्युक्त्एवं्ऊूँचे्हो्।्इसके्ऊपर्शाला्
(मध्य्कोष्ठ)्उधनत्हो, इसके्ऊपर्ऊूँचा्ऊध्वण-कूि्हो, जो्गोलाई्सलये्हो्।्मध्य्में ्शीषण-भाग्
आठ्पट्िो्वाला्हो्।्प्रथम्तल्में कूि्का्सशखर्चौकोर्हो्एवं्वहाूँ्ऊपर्ववना्ककसी्खल
ु े्स्थान्
s.c
के्अलप-नास्होना्चादहये्।्ववसभधन्प्रकार्के्मसूरक, स्तम्भ्एवं्अलङ्करर्ों्से्युक्त्इस्
दे वालय्की्संज्ञा्'सुखावह' होती्है ्॥५३-५४॥
पाूँच्तल्के्दे वालय्का्वविान्-्पाूँच्तल्के्दे वालय्की्ऊूँचाई्को्अड़तालीस्बराबर्भागों्में ्
बाूँिना्चादहये्।्पौने्तीन्भाग्से्कुट्दिम, साढ़े ्पाूँच्भाग्से्चरर््(स्तम्भ, द्ववतीय्तल्की्
ok
ऊूँचाई), ढ़ाई्भाग्से्मञ्च, सवा्पाूँच्भाग्से्पादक्(स्तम्भ, द्ववतीय्तल्की्ऊूँचाई)्ढाई्भाग्से्
प्रस्तर, पाूँच्भाग्से्तसलप्(तत
ृ ीय्तल्की्ऊूँचाई), सवा्दो्भाग्से्मञ्च, पौने्पाूँच्भाग्से्अड़िि्
(स्तम्भ, चतुथ्ण तल्की्ऊूँचाई), दो्भाग्से्प्रस्तर, सवा्चार्भाग्से्तसलप्(स्तम्भ, पाूँचवे्तल्की्
ऊूँचाई)्पौने्दो्भाग्से्मञ्च, एक्भाग्से्वेददका, दो्भाग्से्कधिर, सवा्चार्भाग्से्सशखर्एवं्
Bo
तल्की्ऊूँचाई)्एवं्तीन्भाग्से्तल्(अधिष्ठान)्ननसमणत्करना्चादहये्।्इसकी्चौड़ाई्पव
ू व
ण र्र्णत्
ननयम्के्अनस
ु ार्होनी्चादहये्॥५८॥
(सातवें्तल्के्सलये)्ननचले्तल्के्ऊपर्ऊूँचाई्में ्साढ़े ्छः्भाग्से्स्तम्भ्एवं्मसूरक्सवा्तीन्
भाग्से्ननसमणत्करना्चादहये्तथा्ववस्तार्को्ग्यारह्या्बारह्भाग्से्रखना्चादहये्।्सात्तल्
वाला्यह्ववमान्प्रत्येक्स्थान्एवं्अवसर्के्सलये्उपयुक्त्करना्होता्है ्॥५९॥
उसके्ऊपरी्तल्में ्सात्भाग्से्स्तम्भ्एवं्साढ़े ्तीन्भाग्से्कुट्दिम्रखना्चादहये्।्इसकी्
चौड़ाई्को्दश, ग्यारह, बारह्या्तेरह्भाग्में ्बाूँिना्चादहये्।्आठ्तल्के्मन्धदर्के्ननमाणर््के्
ववषय्में ्मुननयों्का्ववचार्इस्प्रकार्वर्र्णत्है ्।्॥६०-६१॥
उसके्ऊपरी्तल्(नौ्तल)्में ्ननचले्तल्से्ऊपर्साढ़े ्सात्भाग्से्स्तम्भ्एवं्पौने्चार्भाग्से्
तल्(अधिष्ठान)्बनाना्चादहये्।्तल्का्ववस्तार्पव
ू व
ण त्होना्चादहये्।्इस्प्रकार्नौ्तल्का्
मन्धदर्ननसमणत्होता्है ्।्अब्दशवें्तल्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥६२॥
(दसवें्तल्के्सलये)्ननचले्तल्के्ऊपर्आठ्भाग्से्पाद्(स्तम्भ, तल्की्ऊूँचाई)्एवं्चार्भाग्
से्मसूरक्होता्है ्।्चौड़ाई्पूवोक्त्रीनत्से्या्चौदह्भाग्में ्बाूँिनी्चादहये्॥६३॥
इसके्ऊपरी्तल्(ग्यारह्तल)्में ्ननचले्तल्के्ऊपर्साढ़े ्आठ्भाग्से्स्तम्भ्एवं्सवा्चार्से्
मसूरक्ननसमणत्करना्चादहये्।्चौड़ाई्पूवव
ण र्र्णत्अथवा्पधद्रह, सोलह्या्सरह्भागों्में ्बाूँिनी्
चादहये्।्इस्प्रकार्ग्यारह्तल्का्दे वालय्ननसमणत्होता्है ्।्अब्बारह्तल्के्दे वालय्का्वर्णन्
ककया्जा्रहा्है ्॥६४-६५॥
्िादितलविधान
om
बारह्तल्के्दे वालय्का्वविान्-्(बारह्तल्के्दे वालय्के्सलये)्ननचले्तल्(की्भूसम)्के्नौ्
भाग्करने्चादहये्।्साढ़े ्चार्भाग्से्मसूरक्होने्चादहये्।्चौड़ाई्को्सोलह्से्चौबीस्भागों्में ्
बाूँिना्चादहये्।्गभणगह
ृ ्से्लेकर्भवन्की्सीमा्तक्क्रमशः्गह
ृ वपन्ण्द्(सभवत्त), असलधद्र्एवं्
हारामागण्को्उनके्भाग्के्अनुसार्रखना्चादहये्।्गभणगह
ृ ्दो, तीन, चार्या्छः्भाग्से्या्
s.c
पूवोक्त्भाग्से्ननसमणत्करना्चादहये्॥६६-६८॥
असलधद्र्की्संरचना्एक्या्डेढ़्भाग्से्करनी्चादहये्एवं्शेष्भाग्से्सभवत्त्ननसमणत्होनी्चादहये्
।्कुछ्ववद्वानों्के्अनुसार्बारहवें ्तल्के्सत्ताईस्भाग्करने्चादहये्।्छः्भाग्से्सभवत्त्एवं्
पाूँच्भाग्से्असलधद्र्ननसमणत्होना्चादहये्।्बाहरी्भाग्में ्कूिादद्से्अलङ्करर््होना्चादहये्।्
ok
वहाूँ्कूि, कोष्ठ, नीड, क्षुद्र-शाल्एवं्गजशुण्ड्ननसमणत्होना्चादहये्॥६९-७०॥
इन्अलङ्करर्ों्को्इस्प्रकार्ननसमणत्करना्चादहये, न्जससे्वे्सुधदर्लगें ्।्इधहे ्सम-हस्तप्रमार््
से्या्ववषम-हस्तप्रमार््से्ननसमणत्करना्चादहये्॥७१॥
यदद्प्रमार््सम्संख्या्में ्हों्तो्कूि्का्व्यास्दो्भाग्से्एवं्चौड़ाई्उसके्दग
ु न
ु ी्रखनी्चादहये्
Bo
।्अथवा्शाला्(कूि)्की्चौड़ाई्चार्भाग्से्रखनी्चादहये्।्सम्संख्या्का्माप्होने्पर्सभी्
भागों्का्माप्सम्संख्या्में ्होना्चादहये्।्श्रेष्ठ्मनु नयों्ने्ववसभधन्भागों्एवं्अलङ्करर्ो्का्
वर्णन्ककया्है ्।्बद्
ु धिमान्सशलपी्को्उन्स्थानों्पर्उसी्ववधि्से्ननमाणर््करना्चादहये्॥७२-
७३॥
44
om
होता्है ्।्इसके्मध्य्भाग्में ्नासस्एवं्अिणकोदि्ननसमणत्होता्है ्।्यह्मुखपट्दिका्एवं्
शन्क्तध्वज्से्युक्त्होता्है ्॥८२-८३॥
अनेक्स्तूवपकाओं्से्युक्त्कोष्ठ्मध्य्में ्होना्चादहये्।्इसका्वपछला्भाग्हाथी्के्पीठ्की्
समान्एवं्अग्र्भाग्शाला्के्आकार्का्होना्चादहये्।्कूि्एवं्कोष्ठ्मध्यपञ्जर्होना्चादहये्।्
s.c
इसका्मुख्पाश्वण्में ्होना्चादहये्एवं्गज-शुण्ड्से्सुसन्ज्जत्होना्चादहये्॥८४-८५॥
'जानत' (भवन्का्प्रकारववशेष)्का्वर्णन्इस्प्रकार्ककया्गया्।्(छधदभवन्में )्भवन्के्कर्ण्
(कोर्ों)्पर्कोष्ठ, मध्य्भाग्में ्कूि्तथा्इन्दोनों्के्मध्य्में ्क्षूद्रकोष्ठ्आदद्ननसमणत्हो्तो्उसे्
'छधद' कहा्जाता्है ्।्(ववकलप्भवन्में )्कूि्या्कोष्ठ्अधतर-प्रस्तर्से्युक्त्हो, ऊूँचे्या्नीचे्हों्
ok
तो्उस्भवन्को्'ववकलप' कहा्जाता्है ्।्'आभास' भवन्में ्इन्दोनों्व्यवस्थाओं्के्समधश्रत्रूप्
का्प्रयोग्ककया्जाता्है ्।्यह्छोिे , मध्यम्एवं्उत्तम्श्रेर्ी्के्भवनों्के्अनुकूल्होता्है ्।्'जानत'
आदद्भेदों्से्युक्त्दे वालय्सम्पवत्त्प्रदान्करते्है ्।्इसके्ववपरीत्रीनत्से्ननसमणत्दे वालय्
ववनाश्के्कारर््बनते्है ्॥८९॥
Bo
(कूिादद्का)्मान्पर्
ू ्ण होता्है ्।्यदद्भवन्का्मान्पर्
ू ्ण होताहै ्तो्संसार्सम्पर्
ू तण ा्को्प्राप्त्
होता्है ्(अथाणत्गह
ृ कताण्को्समद्
ृ धि्एवं्पर्
ू तण ा्इस्संसार्में ्प्राप्त्होती्है )्॥९०-९२॥
इससलये्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्प्रत्येक्अङ्ग्का्ननमाणर््अत्यधत्साविानीपूवक
ण ्करना्चादहये्।्
इस्प्रकार्मन्धदरों्का्लक्षर््संक्षेप्में ्वर्र्णत्ककया्गया्।्एक्तल्से्लेकर्बारह्तल्तक्के्
भवन्की्ऊूँचाई्एवं्चौड़ाई्हस्त-मान्से्वर्र्णत्की्गई्है ्।्कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्अङ्गों्के्भेदों्
का्क्रमानुसार्वर्णन्ककया्गया्।्दे वों्के्वप्रय्एवं्पववर्ववमानों्एवं्उअनेक्ववसभधन्भेदों्का्
दोषहीन्वर्णन्न्जस्प्रकार्प्राचीन्ऋवषयों्ने्ककया, न्जसका्प्रथमतः्ब्रह्मा्ने्उपदे श्ददया, उसे्
संक्षक्षप्त्करके्मय्ने्यहाूँ्प्रस्तुत्ककया्॥९३-९४॥
मयमतम्-्अध्याय्२३
तत्र्प्राकारविधान
चार्दीवारी्एवं्सहायक्दे वपररवार्के्स्थान्का्वविान्-्बुद्धिमान्ऋवषयों्ने्दे वालय्की्रक्षा्
के्सलये, शोभा्के्सलये्एवं्पररवार्(सहायक्दे व, सेवकवगण)्के्सलये्प्राकार्का्वर्णन्न्जस्प्रकार्
ककया्गया्है , उसका्वर्णन्अब्ककया्जा्रहा्है ्॥१॥
प्राकारमान
om
प्राकार्का्मान्-्प्रिान्दे वालय्की्चौड़ाई्को्चार्पद्में ्बाूँिना्चादहये्।्प्रथम्साल्(प्राकार)्
की्संज्ञा्'महापीठ' है ्एवं्इसमें ्सोलह्पद्होते्है्।्द्ववतीय्साल्की्संज्ञा्'मण्डूक' (चौसठ्पद),
मध्य्साल्(तत
ृ ीय)्की्संज्ञा्"भद्रमहासन' (एक्सौ्छत्तीस्पद), चतथ
ु ्ण 'सुप्रतीकाधत' (चार्सौ्चौरासी्
पद)्एवं्पाूँचवे्की्संज्ञा्'इधद्रकाधत' (एक्हजार्चौबीस्पद)्होती्है ्(ये्पाूँच्प्रकार्होते्है )्।्॥२-
३॥ s.c
(उपयक्
ुण त्प्राकारभेद)्यग्ु म्संख्या्वाले्पदों्के्अनस
ु ार्वर्र्णत्है ्।्अब्असम्संख्या्के्अनस
ु ार्
(प्राकार)्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्।्ववमान्(दे वालय)्का्मार्एक्पद्होता्है ्।्प्रथम्साल्'पीठ'
(नौ्पद), दस
ु रा्'स्थन्ण्डल' (उनचास्पद), मध्य्साल्(तत
ृ ीय)्'उभयचन्ण्डत' (एक्सौ्उनहत्तर्पद)्
संज्ञक, चौथ्'सुसंदहत' (चार्सौ्इकतालीस)्संज्ञक्एवं्पाूँचवाूँ्'ईशकाधत' (नौ्सौ्इकसठ्पद)्संज्ञक्
ok
होता्है ्॥४-५॥
चतुष्कोर््क्षेर्के्अग्र्भाग्की्लम्बाई्का्वर्णन्ऊपर्ककया्जा्चक
ु ा्है ्।्यह्लम्बाई्(मन्धदर्के्
चौड़ाई्की)्क्रमशः्सवा, डेढ़, तीन, चौथाई्एवं्दग
ु ुनी्होती्है ्।्प्राकारों्के्अग्र्भाग्की्लम्बाई्
Bo
दग
ु ुनी, ढाई्गुनी, तीन्गुनी्या्चार्गुनी्कही्गई्है ्॥६-७॥
छोिे ्मन्धदरों्में ्भी्अत्यधत्छोिे ्मन्धदर्की्चौड़ाई्के्डेढ़्बाग्की्दरू ी्पर्(प्रथम्प्राकार)्
'अधतमणण्डल', उसके्आगे्उतनी्ही्दरू ी्तीन्हाथ्पर्दस
ू रा्प्राकार, उससे्पाूँच्हाथ्दरू ी्पर्तीसरा्
प्राकार, उससे्सात्हाथ्की्दरू ी्पर्चौथा्प्राकार्एवं्नौ्हाथ्की्दरू ी्पर्पाूँचवाूँ्प्राकार्होना्
44
चादहये्॥८-९॥
(छोिे ्मन्धदर्के)्मध्यम्कोदि्के्दे वालय्की्चौड़ाई्के्आिे्माप्की्दरू ी्पर्अधतरमण्डल्की्
रचना्की्जाती्है ्।्दस
ू रा्प्राकार्पाूँच्हाथ्की्दरू ी्पर्होता्है ्।्तीसरा्साल्(प्राकार)्सात्हाथ्
की्दरू ी्पर, चतुथ्ण साल्नौ्हाथ्की्दरु ी्पर्एवं्पाूँचवाूँ्ग्यारह्हाथ्की्दरू ी्पर्होना्चादहये्॥१०-
१२॥
(छोिे ्दे वालयों्के)्उत्तम्श्रेर्ी्के्दे वालयों्का्प्रथम्साल्उसकी्चौड़ाई्के्आिे्माप्की्दरू ी्पर्
होना्चादहये्।्दस
ू रा्साल्सात्हाथ्की्दरु ी्पर, तीसरा्नौ्हाथ्की्दरू ी्पर, चौथा्ग्यारह्हाथ्कक्
दरू ी्पर्एवं्पाूँचवाूँ्तेरह्हाथ्की्दरू ी्पर्होना्चादहये्।्इस्प्रकार्अत्यधत्छोिे , क्षुद्र-मध्यम्एवं्
क्षुद्र्उत्तम्कोदि्के्दे वालय्के्सालों्(प्राकारों)्का्वर्णन्ककया्गया्॥१३-१५॥
बद्
ु धिमान्व्यन्क्त्को्इस्ववधि्से्या्पव
ू ोक्त्क्रम्से्चारो्ओर्प्राकार्की्रचना्करनी्चादहये्।्
इसके्मख
ु भाग्की्लम्बाई्पव
ू -ण वर्र्णत्रखनी्चादहये्।्माप्के्ज्ञाता्सभवत्त्के्भीतर्से्माप्लेते्
है ्।्कुछ्ववद्वानों्के्अनस
ु ार्सभवत्त्के्मध्य्से्एवं्कुछ्के्अनस
ु ार्सभवत्त्के्बाहर्से्माप्लेना्
चादहये्॥१६-१७॥
प्राकारमभवर्त्
अधतमणण्डल्की्सभवत्त्का्ववष्कम्भ्(मोिाई)्डेढ़्हाथ्होना्चादहये्।्इसके्आगे्के्प्राकारों्के्
ववष्कम्भो्का्माप्तीन-तीन्अङ्गुल्बढ़ाते्हुये्दो्हाथ्तक्क्रमानुसार्ले्जाना्चादहये्।्पाूँचो्
सालो्(प्राकारों)्का्ववष्कम्भ्इस्प्रकार्ग्रहर््करना्चादहये्।्उनके्ववष्कम्भ-मान्से्उनकी्ऊूँचाई्
तीन्गुनी्या्चार्गुनी्अधिक्होनी्चादहये्।्अग्र्भाग्(ऊपरी्भाग)्का्ववस्तार्(मूल्से)्आठ्
भाग्कम्होना्चादहये्॥१८-१९॥
om
प्राकार्की्ऊूँचाई्उत्तर्के्अधत्तक्या्(स्तम्भ्के)्कुम्भ्या्मन्ण्ड्तक्रखनी्चादहये्।्प्राकार्
को्मसूरक्से्युक्त्एवं्खण्डहम्यण्से्सुसन्ज्जत्होना्चादहये्।्यह्सभवत्त्सीिी्हो्अथवा्बुद्बुद्
(गोल्सजाविी्बबधद)ु ्या्अिणचधद्र्उसके्शीषणभाग्पर्सुसन्ज्जत्होना्चादहये्॥२०-२१॥
(छोिे ्दे वालयो्के)्सबसे्छोिे ्मन्धदर्के्सालों्की्सभवत्त्(प्राकारों्की्मोिाई)्हस्त-प्रमार््से्होती्
॥२२॥
s.c
है ्।्इसे्डेढ़्हाथ्से्प्रारम्भ्होकर्पूव-ण वर्र्णत्रीनत्(तीन-तीन्अङ्गुल)्से्क्रमानुसार्बढ़ाना्चादहये्
यक्
ु त्होती्है ्॥२६-२७॥
बाह्य्सभवत्त्की्सबसे्अधिक्ऊूँचाई्प्रिान्दे वालय्की्ननचली्भसू म्के्स्थलभाग्से्उत्तर्पयणधत,
प्रस्तर्तक, खण्डहम्यण्के्उत्तर्तक्अथवा्सशखर्पयणधत्हो्सकती्है ्॥२८-२९॥
दो्या्एक्तलयुक्त्मण्डप्(दे वालय)्के्चाओ्ओर्हो्सकता्है ्।्यह्अधिष्ठान्से्युक्त, उसके्
बराबर्ऊूँचा, आठ्भाग्कम्या्तीन्चौथाई्ऊूँचा्ओ्सकता्है ्।्मण्डप्के्स्तम्भ्(अधिष्ठान्से)्
दग
ु ुने्ऊूँचे्या्(दग
ु ुने्से)्आठ्या्छः्भाग्कम्ऊूँचे्हो्सकते्है ्॥३०-३१॥
सालिीषाालङ्कार
प्राकार्के्शीषणभाग्के्अलङ्करर््-्साल्(प्राकार)्के्शीषणभाग्पर्वष
ृ भ्या्बूतों्का्स्वरूप्
अङ्ककत्करना्चादहये्।्मूल्दे व-भवन्का्जधमतल्(अधिष्ठान)्साल्के्जधम्से्एक्हाथ्ऊूँचा्
रखना्चादहये्॥३२॥
अथधष्ठानोत्सेध
अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्-्क्षुद्र्दे वालय्में ्शेष्सालों्मे्प्रत्येक्साल्छः-छः्अङ्गल
ु ्कम्होता्जाता्
है ्।्मध्यम्दे वालय्में ्अट्ठारह्अङ्गल
ु ्का्अधतर्होता्है ्।्प्रत्येक्साल्में ्(प्रथम्से)्पाूँचवे्
तक्चार-चार्अङ्गुल्कम्होता्जाता्है ्।्स्थपनत्को्इसी्ववधि्से्साल-योजना्करनी्चादहये्
॥३३-३४॥
पररिारालयविधान
दे व-पररवार्के्भवन्का्वविान्-्पररवार्दे वालय्(प्रिान्दे व-मूनतण्से्पथ
ृ क््दे व-पररवार्का्
मन्धदर, जो्मन्धदर्पररसर्में ्बने्होते्है )्के्गभणगह
ृ ्का्मान्प्रिान्दे वालय्के्ववस्तार्का्आिा्
होता्है ्।्इस्तीसरे ्भाग, आिा, तीन्चौथाई्के्बराबर्भी्रक्खा्जाता्है ्।्इस्भवन्का्ववस्तार्
तीन, चार, पाूँच, छः्या्सात्हात्रखना्चादहये्॥३५॥
om
शास्र्के्ज्ञाताओं्के्अनुसार्आथ, बारह, सोलह्या्बत्तीस्पररवार-दे वता्होते्है ्।्पररवार-दे वों्की्
मूनतण्की्ऊूँचाई्ननयमानुसार्होनी्चादहये्।्जो्प्रमार््सकल्बेरों्(बेरों, पट्दियों्पर्ननसमणत्
आकृनत)्के्सलये्कही्गई्है , वही्प्रमार््श्रेष्ठ्स्थपनत्को्ग्रहर््करना्चादहये्।्ये्(मूनतणयाूँ)्सभी्
लक्षर्ों्से्युक्त्बैठी्या्खड़ी्मुद्रा्में ्होनी्चादहये्॥३६-३८॥
अष्टौ्पररिार
s.c
आठ्पररवार-दे वता्-्छोिे ्दे वालयों्में ्एक्ही्प्राकार्एवं्आठ्पररवार्दे वता्होने्चादहये्।्यदद्
पीठ-संज्ञक्वास्त-ु पद्हो्तो्आयणक्के्पद्से्प्रारम्भ्कर्ऋषभ, गर्ाधिप, कमलजा्(लक्ष्मी),
मातक
ृ ायें, गुह, आयण, अच्यत
ु ्एवं्चण्डेश्होने्चादहये्॥३९॥
ok
्िादि्पररिार
बारह्पररवार-दे वता्-्उपपीठ्वास्तुपद्पर्बारह्पररवार-दे वताओं्की्स्थापना्करनी्चादहये्।्पहले्
की्भाूँनत्आयणक्पद्से्प्रारम्भ्कर्वष
ृ , कमलजा, गह
ृ ्एवं्हरर्होने्चादहये्।्सूय्ण के्पद्से्दादहनी्
ओर्रवव, गजवदन, यम, मातक
ृ ायें, जलेश, दग
ु ाण, िनद्एवं्चण्ड्क्रमानस
ु ार्होने्चादहये्॥४०-४१॥
Bo
षोडि्पररिार
षोडश्पररवार-दे वता्-्उग्र्पीठ्वास्तप
ु द्पर्सोलह्दे व-पररवार्स्थावपत्करना्चादहये्।्आयणक्पद्
पर्वष
ृ ्आदद्दे वों्को्पहले्के्सदृश्स्थावपत्करना्चादहये्।्ईश, जयधत, भश
ृ , अन्ग्न, ववतथ,
भङ्
ृ गनप
ृ , वपत,ृ सग
ु ल, शोष,वायु,मख्
ु य्एवं्उददनत्के्पद्पर्क्रमशः्चधद्र, चधद्र, सय
ू ,ण गजवदन, श्री,
44
सरस्वती, मातक
ृ ायें, शक्र
ु , जीव, दग
ु ाण, ददनत्एवं्उददनत्होनी्चादहये्॥४२-४४॥
्िात्रत्रंित्पररिार
बत्तीस्पररवार-दे वता्-्स्थन्ण्डल्वास्तुपद्पर्बत्तीस्पररवारदे वता्स्थावपत्ककये्जाते्है ्।्ब्रह्मा्के्
पद्के्बाहर्नौ्पदो्पर्श्री, ज्येष्ठा, उमा्एवं्सरस्वती्को्क्रमशः्साववधद्र, इधद्रजय, रुद्रजय्एवं्
आपवत्स्के्पद्पर्रखना्चादहये्।्आयणक्आदद्के्पद्पर्वष
ृ भ्आदद्दे वों्को्पहले्की्भाूँनत्
स्थावपत्करना्चादहये्।्॥४५-४६॥
ईश, पजणधय, महे धद्र, सूय,ण सत्य, अधतररक्ष, अनल, पष
ू ा, गह
ृ क्षत, यम, गधिवण, मष
ृ , वपत,ृ बोिन, पुष्पदधत,
वरुर्, यक्ष, समीरर्, नाग, भललाि, सोम, मग
ृ ्एवं्उददनत्के्पद्पर्क्रमशः्दे वों्की्स्थापना्करनी्
चादहये्।्(ये्दे वता्है ०)्ईश, शसश, नन्धदकेश्वर, सुरपनत, महाकाल, ददनकर, वन्ह्न, बह
ृ स्पनत, गजवदन,
यम, भङ्
ृ गरीदि, चामुण्डा, ननऋनत, अगस्त्य, ववश्वकमाण, जलपनत, भग
ृ ु, दक्ष्प्रजापनत, वायु, दग
ु ाण, वीरभद्र,
िनद, चण्डेश्वर्एवं्शक्
ु त्।्ववद्वानों्के्कथनानुसार्स्थन्ण्डल्वास्तु-ववभाग्में ्यह्व्यवस्था्होनी्
चादहये्॥४७-५२॥
वास्तु-ववधयास्सम्पदों्का्हो्अथवा्ववषम्पदों्का्हो, पररवार-दे वता्प्राकार्की्सभवत्त्पर्ननसमणत्
होने्चादहये्।्उससे्पथ
ृ क््होने्की्न्स्थनत्में ्मध्य्पद्के्पास्होने्चादहये्।्जहाूँ्तीन्अथवा्
पाूँच्प्राकार्हो, वहाूँ्प्रारन्म्भक्आठ्दे वता्मध्याहार्या्अधताहार्पर्ननसमणत्होने्चादहये्।्यदद्
दे वालय्पन्श्चम-मुख्हो्तो्समर्के्पद्पर्वष
ृ भ्की्न्स्थनत्होनी्चादहये्॥५३-५४॥
कमजल, गह
ृ ्एवं्हरर्को्भुिर, आयण्एवं्वववस्वान्के्पद्पर्होना्चादहये्।्न्जस्ददशा्में ्ईश्वर्
के्भवन्का्मुख्हो, उसी्ददशा्में ्उनका्भी्मुख्होना्चादहये्।्शेष्दे वों्को्पूवव
ण र्र्णत्पदो्पर्
होना्चादहये्एवं्उनका्मुख्दे वालय्की्ओर्होना्चादहये्॥५५॥
दे वालय्का्मुख्चाहे ्पूव्ण ददशा्में ्हो, चाहे ्पन्श्चम्में ्हो, वष
ृ ्का्मुख्अथवा्पष्ृ ठभाग्सशव्की्
om
ओर्होना्चादहये्।्चण्डेश्एवं्गजानन्का्मुख्क्रमशः्दक्षक्षर््एवं्उत्तर्की्ओर्होना्चादहये्।्
दे व-पररवार्के्भवन्सभी्अङ्गो्से्युक्त, उधचत्रीनत्से्प्रासाद, मण्डप, सभा्अथवा्शाला्के्
आकार्का्ननसमणत्करना्चादहये्।्॥५६-५७॥
मध्यहार्एवं्अधतहाणर्के्बीच्में ्मासलका-पङ्न्क्त्ननसमणत्होनी्चादहये्।्यह्एक, दो, नतन, चार्या्
s.c
पाूँच्तल्की्होनी्चादहये्।्दीवार्के्ऊपर्एवं्स्तम्भ्के्ऊपर्स्तम्भ्ननसमणत्होना्चादहये्।्
सभवत्त्के्ऊपर्स्तम्भ्ननसमणत्हो्सकते्है ; ककधतु्स्तम्भ्के्ऊपर्सभवत्त्नही्ननसमणत्होनी्चादहये्।्
मासलका-पङ्न्क्त्को्कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्से्युक्त्एवं्जालसभवत्त्से्अलङ्कृत्होना्चादहये्।्यह्
मण्डप्के्आकृनत्की, शाला्या्सभा्के्आकृनत्की्होनी्चादहये्॥५८-६०॥
ok
अब्भन्क्तमान्(ववभाजन, दरू ी)्एवं्स्तम्भ्का्आयाम्संक्षेप्में ्वर्र्णत्ककया्जा्रहा्है ्।्प्रिान्
दे वभवन्के्उपानत्(अधिष्ठान्का्ऊपरी्भाग)्से्उत्तरपयणधत्की्दरू ी्को्सात्बराबर्भागों्में ्
बाूँि्कर्दो्भाग्से्मसूरक्(अधिष्ठान)्की्ऊूँचाई्एवं्पाूँच्भाग्से्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्रखनी्
चादहये्।्स्तम्भ्को्सबी्अङ्गो्से्यक्
ु त्ननसमणत्करना्चादहये्या्स्तम्भ्के्प्रमार््को्नौ्भागों्
Bo
में ्बाूँिना्चादहये्।्दो्भाग्से्अधिष्ठान्एवं्शेष्भाग्से्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्रखनी्चादहये्।्ढ़ाई्
हाथ्से्प्रारम्भ्कर्छः-्छः-्अङ्गल
ु ्बढ़ाते्हुये्छः्हाथ्तक्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्रखनी्चादहये्।्
इस्प्रकार्स्तम्भों्की्उूँ चाई्पधद्रह्प्रकार्की्हो्सकती्है ्।्भीतरी्सभवत्त्की्मोिाई्के्अनस
ु ार्
स्तम्भ्की्चौड़ाई्होनी्चादहये्।्यह्भन्क्तमान्एवं्लम्बाई्छोिे ्एवं्बड़े्सभी्दे वालयों्के्सलये्
44
समान्है ्।्अथवा्छः्अङ्गल
ु ्से्प्रारम्भ्करके्एक-एक्अङ्गल
ु ्बढ़ाते्हुये्बीस्अङ्गल
ु पयणधत्
पादववष्कम्भ्(स्तम्भ्की्चौड़ाई)्रखना्चादहये्।्॥६१-६६॥
अधिष्ठान्की्ऊूँचाइ्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्का्आिा, छः्या्आठ्भाग्कम्या्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्का्
तीसरा्अथवा्चौथा्भाग्रखना्चादहये्।्यह्अधिष्ठान्पादबधि्या्चारुबधि्शैली्का्होना्
चादहये्।्इसका्चतुथांश्कम्प्रस्तर्होना्चादहये, जो्अलङ्करर्ों्से्सुसन्ज्जत्हो्।्इस्प्रकार्
पूवव
ण र्र्णत्रीनत्से्उधचत्ढं ग्से ननमाणर्कायण्करना्चादहये्॥६७-६९॥
(न्जस्प्रकार्दे वालय्में ्मासलका)्उसी्प्रकार्मनुष्यो्के्आवास्में ्खलूररका्का्ननमाणर््गह
ृ ्के्
चारो्ओर्होना्चादहये, जो्प्रथम्आवरर््(प्राकार)्से्लेकर्तीसरे ्प्राकार्तक्होता्है ्॥७०॥
उनके्द्वारों्को्अभीन्प्सत्ददशा्में ्मनुष्यों्के्भवन्में ्कहे ्गये्ननयम्के्अनुसर्स्थावपत्करना्
चादहये्।्(मासलकापङ्न्क्त्में )्पररवार-दे वालयों्को्न्जन-न्जन्पदों्में ्कहा्गया्है , उधहे ्क्रमानुसार्
वही्ननसमणत्करना्चादहये्।्आयणक्के्पद्से्प्रारम्भ्करते्हुये्पव
ू व
ण र्र्णत्ननयम्के्अनस
ु ार्
दे वालय्की्ओर्उधमख
ु ्बनाना्चादहये्।्इन्पररवार-दे वालयोंके्बाहर्नत्ृ य-मण्डप्एवं्पीठ्(वेदी)्
आदद्का्ननमाणर््करना्चादहये्अथवा्स्नान-मण्डप्एवं्नत्ृ य-मण्डप्पररवारदे वालय्के्भीतर्भी्
प्रमार््के्अनुसार्ननसमणत्हो्सकता्है ्॥७१-७३॥
पीठलक्षण
पीठ्के्लक्षर््-्गभणगह
ृ ्के्व्यास्के्आिे्प्रमार््से्दो्पीठों्की्चौड़ाई्एवं्ऊूँचाई्रखनी्चादहये्
।्बसलववष्िर्(जहाूँ्बसल्दी्जाय)्की्ऊूँचाई्एवं्चौड़ाई्एक, दो्या्तीन्हाथ्होनी्चादहये्।्
(वपशाच)्पीठ्को्गोपुर्से्बाहर्प्रासाद्की्चौड़ाई्के्आिे्भग्की्दरू ी्पर्ननसमणत्करना्चादहये्
।्बसलववष्िर्की्गोपुर्से्दरू ी्उपयक्
ुण त्माप्के्बराबर्अथवा्तीन्चौथाई्होनी्चादहये्।्
वपशाचपीठ्को्पाूँचो्प्राकारों्के्बाहर्एवं्मन्धदर्के्सम्मुख्होना्चादहये्तथा्बसलववष्िर्को्
om
वपशाचपीठ्एवं्प्रासाद्के्मध्य्में ्ननसमणत्करना्चादहये्॥७४-७६॥
पीठ्की्ऊूँचाई्को्सोलह्बराबर्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्एक्भाग्से्जधम, चार्भाग्से्जगती,
तीन्भाग्से्कुमुद, उसके्ऊपर्एक्भाग्से्पट्ि, तीन्भाग्से्कण्ठ, ऊपर्एक्भाग्से्कम्प्एवं्
उसके्ऊपर्दो्भाग्से्वाजन्होना्चादहये्।्॥७७-७८॥
s.c
उसके्ऊपर्एक्भाग्से्वाजन्एवं्कमलपुष्प्होना्चादहये्।्कमल्का्घेरा्(पीठ्के)्व्यास्का्
आिा्या्तीन्चौथाई्होना्चादहये्।्पद्म्के्ऊपर्मध्य्भाग्में ्कर्र्णका्ननसमणत्करनी्चादहये,
न्जसका्ववस्तार्पद्म्का्तीन्चौथाई्हो्।्पद्म्की्ऊूँचाई्उसकी्चौड़ाई्का्आिा्अथवा्
कर्र्णका्की्ऊूँचाई्का्आिा्होना्चादहये्।्पीठ्मध्य्भाग्में ्भद्रयुक्त, भद्ररदहत्या्उपपीठ्से्
ok
युक्त्हो्सकता्है ्।्पीठ्की्आकृनत्अधिष्ठान्के्अनुसार्या्उससे्पथ
ृ क््हो्सकती्है ्।्इस्
प्रकार्प्राचीन्श्रेष्ठ्मुननयों्ने्पीठ्के्अलङ्करर्ों्का्वर्णन्ककया्है ्॥७९-८१॥
प्रासाद्के्आिे्माप्से्वष
ृ भ्के्अग्र्भाग्में ्ध्वज्स्थान्का्ननमाणर््होना्चादहये्एवं्आगे्
बरसशखालय्(बरशल
ू )्होना्चादहये्।्ये्सभी्वष
ृ ्आदद्गोपरु ्के्वाम्भाग्में ्(प्राकार्के)्भीतर्
Bo
होने्चादहये्॥८२॥
प्राकाराथश्रतस्थान
प्राकार्के्आधश्रत्स्थान्-्मयाणदद्साल्(प्राकार)्से्सिा्कर्आग्नेय्कोर््में ्हवव्का्प्रकोष्ठ्
होना्चादहये्।्अन्ग्नकोर््एवं्गोपरु ्के्मध्य्में ्िन-िाधय्का्गह
ृ ्होना्चादहये्।्यम्के्प्रकोष्ठ्
44
पर्मज्जनशाला्(स्नानमण्डप)्एवं्वही्पष्ु पमण्डप्ननसमणत्होना्चादहये्॥८३-८४॥
ननऋनत्के्स्थान्पर्अस्र-मण्डप्एवं्वरुर््तथा्वाय्ु के्स्थान्पर्शयनस्थान्ननसमणत्करना्
चादहये्॥८५॥
सोम्के्पद्पर्िमणश्रवर्-मण्डप्(जहाूँ्िमणसभा, िमणववषयक्प्रवचन्होते्हो्)्होना्चादहये्।्ईश्
के्पद्पर्एवं्आपवत्स्के्पद्पर्वापी्एवं्कूप्होना्चादहये्।्ईश्एवं्गोपुर्के्मध्य्स्थल्में ्
वाद्यस्थान्होना्चादहये्।्ववमान्के्ननकि्ही्ईश्के्पद्पर्चण्डेश्वर्का्स्थान्होना्चादहये्।्
अथवा्पूवव
ण र्र्णत्स्थान्पर्बुद्धिमान्को्ननमाणर््करना्चादहये्॥८६-८७॥
(ववमान्के)्पीठ्के्सामने्ववमान्के्मान्के्अनुसार्शन्क्तस्तम्भ्होना्चादहये्।्क्षुद्र्(अत्यधत्
छोिे )्मन्धदर्की्ऊूँचाई्के्दग
ु ुने्माप्की्शन्क्तस्तम्भ्की्ऊूँचाई्होनी्चादहये्।्अलप्(छोिे )्
ववमान्का्शन्क्तस्तम्भ्उसके्बराबर्माप्का्तथा्मध्यम्ववमान्में ्उसकी्ऊूँचाई्का्आिा्या्
तीन्चौथाई्माप्का्शन्क्तस्तम्भ्होना्चादहये्।्उत्तम्ववमान्में ्उसकी्ऊूँचाई्के्तीसरे ्या्आिे्
भाग्के्बराबर्शन्क्तस्तम्भ्की्ऊूँचाई्होनी्चादहये्।्इसकी्चौड़ाई्एक्हाथ, सोलह्अङ्गल
ु ्या्
दश्अङ्गल
ु ्होनी्चादहये्।्शन्क्तस्तम्भ्को्मन्ण्ड्एवं्कुम्भ्से्यक्
ु त्होना्चादहये्एवं्उसके्ऊपर्
भूत्या्वष
ृ भ्की्आकृनत्होनी्चादहये्।्यह्भाग्प्रस्तर्या्काष्ठ्से्ननसमणत्होना्चादहये्तथा्
इसे्वत्त
ृ ाकार, अष्िकोर््या्सोलह्कोर््का्होना्चादहये्।्॥८८-९१॥
इतर्स्थानानन
अन्य्स्थान्-
वेशस्थान्(पुरोदहत्का्आवास), वापी्(बावड़ी), कूप, बगीचा्एवं्दीनघणका्(तालाब)्सभी्स्थानों्में ्
(कही्भी)्हो्सकते्है ्।्इसी्प्रकार्मठ्एवं्भोजनशाला्भी्कहीं्भी्ननसमणत्हो्सकते्है ्॥९२॥
यदद्ववमान्में ्एक्प्राकार्हो्तो्वह्अधतमणण्डल्न्होकर्अधतहाणर्होता्है ्।्यदद्तीन्प्राकार्हो्
om
तो्वे्अधतहाणर, मध्यमहार्एवं्मयाणदासभवत्त्होते्है ्।्यदद्पाूँच्प्राकार्हो्(तो्वे्पूवव
ण र्र्णत्होते्है )्
इन्प्राकारों्के्ऊपर्चारो्ओर्पङ्न्क्त्में ्वष
ृ भों्की्आकृनतयाूँ्ननसमणत्होती्है ्॥९३-९४॥
शन्क्तस्तम्भ्से्पूव्ण प्रिान्दे वालय्की्चौड़ाई्के्तीन, चार्या्पाूँच्गुनी्दरू ी्पर्गर्र्कागह
ृ ्एवं्
उसके्दोनों्पाश्वों्में ्संवादहका-स्थान्होना्चादहये्।्प्राकार्के्बाहर्चारो्ओर्(मन्धदर्के)्सेवकों्
s.c
का्आवास्होना्चादहये्।्इसी्प्रकार्दाससयों्का्आवास्होना्चादहये्अथवा्पूव्ण ददशा्में ्
सेवकाददकों्का्आवास्होना्चादहये्।्गुरुमठ्(प्रिान्पुजारी्का्स्थान)्दक्षक्षर््ददशा्में ्होना्
चादहये्अथवा्पूव्ण ददशा्में ्होना्चादहये, न्जसका्मुख्दक्षक्षर््ददशा्में ्हो्।्शेष्के्ववषय्में , जो्
नही्कहा्गया्है , वह्सब राजा्के्अनुसार्करना्चादहये्॥९५-९७॥
ok
विष्णुपररिारक
ववष्र्ू-दे वालय्के्पररवार्-दे वता्-्अब्मै्ववष्र्ूभवन्के्पररवारदे वों्के्ववषय्में ्कहता्हूूँ्।्प्रमख
ु ्
स्थान्(पूव्ण मे)्वैनतेय्(गरुड़), अन्ग्नकोर््में ्गजमुख, दक्षक्षर््में ्वपतामह्एवं्वपतप
ृ द्पर्सप्त्
मातक
ृ ायें्कही्गई्है ्।्जलेश्के्पद्पर्गह
ु , वायव्य्कोर््में ्दग
ु ाण, सोम्के्पद्पर्िनाधिप्कुबेर्
Bo
तथा्ईशान्कोर््पर्सेनापनत्का्स्थान्होना्चादहये्।्पीठ्आदद्की्न्स्थनत्पव
ू व
ण र्र्णत्ननयमों्के्
अनस
ु ार्होनी्चादहये्॥९८-९९॥
(उपयक्
ुण त्व्यवस्था)्एक्प्राकार्होने्पर्इस्प्रकार्होनी्चादहये्।्अब्बारह्पररवारदे वों्का्वर्णन्
ककया्जा्रहा्है ्।्ववष्र्ु्के्सामने्चक्र, उसके्दादहने्गरुड्एवं्वाम्भाग्में ्शङ्ख्होना्चादहये्।्
44
सय
ू ्ण एवं्चधद्रमा्गोपुर्के्दोनों्पाश्वों्मे्ननसमणत्हो्एवं्इनका्मख
ु ्भीतर्की्ओर्होना्चादहये्।्
आग्नेय्कोर््में ्हववष्को्पकाने्का्स्थान्होना्चादहये्एवं्शेष्ननमाणर््पव
ू व
ण र्र्णत्ननयम्के्
अनुसार्होना्चादहये्।॥१००-१०२॥
जहाूँ्सोलह्पररवारदे वों्की्स्थापना्करनी्हो, वहाूँ्उनकी्स्थापना्मध्यहार्एवं्अधतहाणर्के्बीच्में ्
करनी्चादहये्।्मण्डप्के्आगे्पक्षक्षराज्(गरुड)्एवं्पीथ्होना्चादहये्।्सशव्को्छोड़कर्सभी्
लोकपालों्को्उनके्स्थानों्पर्स्थावपत्करना्चादहये्।्कोर््एवं्द्वारपालों्के्मध्य्भाग्मे्
आददत्य, भग
ृ ,ु दोनो्अन्श्वनीकुमार, सरस्वती, पद्मा, पधृ थवी, मुननगर््एवं्सधचवदे वों्को्स्थावपत्करना्
चादहये्।्यदद्दे वपररवार्की्संख्या्बत्तीस्हो्तो्उधहे ्वही्उधचत्रीनत्से्स्थावपत्करना्चादहये्
।्॥१०३-१०५॥
चण्ड, प्रचण्ड, रथनेसम, पाञ्चजधय, दग
ु ाण, गर्ेश, रवव्तथा्चधद्र-इन्सभी्महान्दे वों्को्तथा्सवेश्वर्
एवं्सरु पनत-्इन्दस्को्पाूँचों्प्राकारों्के्गोपरु ्की्ओर्मख
ु ्ककये्हुये्ननसमणत्करना्चादहये्
॥१०६॥
िष
ृ लक्षण
वष
ृ भ्के्लक्षर््-्वष
ृ ्(की्प्रनतमा)्का्लक्षर््अब्संक्षेप्में ्वर्र्णत्ककया्जा्रहा्है ्।्श्रेष्ठ्वष
ृ ्
की्ऊूँचाई्द्वार्के्बराबर्या्सलङ्ग्के्बराबर्होती्है ्।्मध्यम्वष
ृ ्उससे्चार्भाग्कम्एवं्
छोिा्वष
ृ ्तीन्भाग्में ्दो्भाग्के्बराबर्ऊूँचा्होता्है ्।्(अथवा)्छोिे ्वष
ृ ्की्ऊूँचाई्गभणगह
ृ ्की्
ऊूँचाई्की्आिी्होती्है ्एवं्श्रेष्ठ्वष
ृ ्की्ऊूँचाई्गभणगह
ृ ्के्बराबर्होती्है ्।्इन्दो्ऊूँचाई्के्
मध्य्के्अधतर्को्आठ्भागों्में ्बाूँिा्गया्है ्।्इस्प्रकार्एक्हाथ्से्लेकर्नौ्हाथ्तक्
कननष्ठ्आदद्तीन(उत्तर, मध्यम, कननष्ठ्ऊूँचाई्वाले)्वष
ृ ों्के्तीन-तीन्भेद्बनते्है ्।्इसमें ्एक्
om
अंश्(अङ्गुलप्रमार्)्का्माप्मूनतण्की्ऊूँचाई्के्पधद्रहवे्भाग्के्बराबर्कहा्गया्है ्॥१०७-११०॥
इसकी्लम्बाई्चालीस्अङ्गुल्होती्है ्।्इसके्प्रमान्का्वर्णन्अब्ककया्जा्रहा्है ्।्सशर्के्
ऊध्वण्भाग से्लेकर्गले्तक्का्माप्द्स्अङ्गुल्होता्है ्।्इसके्पश्चात्उसके्नीचे्गले्का्
माप्आठ्अङ्गुल्तथा्गले्से्ऊरू्भाग्के्अधत्तक्का्माप्सोलह्अङ्गुल्होता्है ्।्ऊरू्की्
s.c
लम्बाई्का्प्रमार््छः्अङ्गुल्एवं्जानु्(घुिने)्का्माप्दो्अङ्गुल्होता्है ्।्जङ्घा्(घुिने्के्
नीचे्का्भाग)्की्लम्बाई्छः्अङ्गुल्एवं्खरु ्की्लम्बाई्कोलक्(दो्अङ्गुल)्होती्है ्।्दोनों्
सींगों्के्मध्य्की्दरू ी्दो्अङ्गुल्तथा्सींग्की्लम्बाई्दो्कोलक्(चार्अङ्गुल)्होनी्चादहये्।्
॥१११-११३॥
ok
सींग्के्ननचले्भाग्का्व्यास्तीन्अङ्गुल्से्एवं्ऊपरी्ससरा्दो्अङ्गुल्का्होना्चादहये्।्वष
ृ ्
का्ललाि्नौ्अङ्गुल्का्एवं्मुख्का्व्यास्पाूँच्अङ्गुल्का्होना्चादहये्।्मुख्की्ऊूँचाई्
उसकी्चौड़ाई्के्बराबर्रखनी्चादहये्।्नेरों्की्लम्बाई्दो्अङ्गुल्एवं्उसकी्ऊूँचाई्(चौड़ाई्के)्
डेढ़्अङ्गल
ु ्होनी्चादहये्।्नेरों्के्मध्य्में ्मख
ु भाग्की्लम्बाई्आठ्अङ्गल
ु ्होनी्चादहये्।्
Bo
इसके्पश्चात्पष्ृ ठभाग्ग्रीवा्के्अधत्तक्छः्अङ्गल
ु ्होनी्चादहये्।्नेर्के्मध्य्से्ललाि्की्
ऊूँचाई्चार्अङ्गल
ु ्कही्गई्है ्॥११४-११६॥
नेर्से्कान्की्दरू ी्कान्की्लम्बाई्के्बराबर्होनी्चादहये्एवं्कान्की्लम्बाई्पाूँच्अङ्गल
ु ्
होनी्चादहये्।्कानों्को्मल
ू ्में ्दो्अङ्गल
ु ्चौड़ा, मध्य्में ्दो्अङ्गल
ु ्चौड़ा्एव्ऊपरी्भाग्एक्
44
अङ्गल
ु ्चौड़ा्होना्चादहये्।्इनकी्मोिाई्आिी्अङ्गल
ु ्होनी्चादहये्॥११७॥
नाक्की्लम्बाई्डेढ़्अङ्गल
ु , चौड़ाई्एक्अङ्गल
ु ्तथा्ऊूँचाई्एक्अङ्गल
ु ्होनी्चादहये्।्मख
ु ्की्
लम्बाई्पाूँच्अङ्गुल, ऊपरी्ओठ्तीन्अङ्गुल्तथा्ननचला्ओठ्दो्अङ्गुल्होना्चादहये्॥११८-
११९॥
न्जह्वा्की्लम्बाई्तीन्अङ्गुल, चौड़ाई्दो्अङ्गुल्एवं्ऊूँचाई्(मोिाई)्एक्अङ्गुल्होनी्चादहये्।्
ग्रीवा्का्व्यास्दश्अङ्गुल्एवं्उसका्ननचला्भाग्बारह्अङ्गुल्होना्चादहये्।्पष्ृ ठ्पर्इसका्
मूल्भाग्आठ्अङ्गुल्एवं्शीषण्के्नीचे्छः्अङ्गुल्होना्चादहये्।्ककुत्(पीठ्का्ऊभरा्भाग)्
का्व्यास्छः्अङ्गुल्एवं्इसकी्ऊूँचाइ्चौड़ाई्की्आिी्होनी्चादहये्॥१२०-१२१॥
ग्रीवा्के्अग्र्भाग्मे्ककुत्की्चौड़ाई्दो्अङ्गुल्होनी्चादहये्।्ककुत्तक्शरीर्की्ऊूँचाई्
अट्ठारह्अङ्गल
ु ्एवं्पीठ्तक्ऊूँचाई्चौदह्अङ्गुल्होनी्चादहये्तथा्व्यास्बारह्अङ्गल
ु ्होना्
चादहये्।्वपछले्ऊरुओं्की्चौड़ाई्दश, आठ्एवं्चार्अङ्गल
ु ्होनी्चादहये्॥१२२-१२३॥
उनकी्लम्बाई्पाूँच्अङ्गुल्एवं्जानु्(घुिना)्दो्अङ्गुल्का्होना्चादहये्।्जङ्घा्(घुिने्से्नीचे्
का्भाग)्की्लम्बाई्पाूँच्अङ्गुल्एवं्चौड़ाई्चार्अङ्गुल्होनी्चादहये्।्खरु ों्की्ऊूँचाई्तीन्
अङ्गुल्एवं्इसी्प्रकार्पूँछ
ू ्के्मूल्भाग्का्माप्(तीन्अङ्गुल)्होना्चादहये्।्इसका्अग्र्भाग्
डेढ़्अङ्गुल्होना्चादहये्एवं्जङ्घा्के्अधत्तक्यह्लिकती्होनी्चादहये्॥१२४-१२५॥
मुष्क्(अण्डकोश)्की्लम्बाई्तीन्अङ्गुल्एवं्चौड़ाई्दो्अङ्गुल्होनी्चादहये्तथा्शेफ्(सलङ्ग)्
की्लम्बाई्तीन्अङ्गुल्एवं्पेि्के्पास्इसकी्मोिाई्एक्अङ्गुल्होनी्चादहये्॥१२६॥
ऊरूमल्की्चौड़ाई्चार्अङ्गुल्एवं्आगे्जङ्घा्के्अग्रभाग्पर्दो्अङ्गुल्प्रमार््का्होना्चादहये्
om
।्शेष्को्आवश्यकतानुसार्ननसमणत्करना्चादहये्।्वष
ृ भ्की्मूनतण्को्खड़ी्अथवा्शनयत्(बैठी,
फैली्हुई)्मुद्रा्में , जो्उधचत्लगे, ननसमणत्करनी्चादहये्॥१२७॥
यह्प्रनतमा्सुिा्(चन
ू ा, गारा)्लौह्(िातु)्या्अधय्पदाथों्से, जो्अनुकूल्हो, ननसमणत्होनी्चादहये्।्
प्रनतमा्यदद्िातुननसमणत्हो्तो्वह्घन्(ठोस, पूर््ण रूप्से्भरी्हुई)्या्खोखली्आवश्यकतानुसार्
हो्सकती्है ्।्वष
s.c
ृ भ्की्ऊूँचाई्सशव्की्मूनतण्की्ऊूँचाई्के्अनुसार्हो्सकती्है ्॥१२८-१२९॥
इसकाकुछ्कम्या्अधिक्होना्सभी्प्रकार्के्दोषों्को्उत्पधन्करता्है ्।्अतः्ज्ञाता्सशलपी्को्
दोषों्को्त्यागते्हुये्सभी्लक्षर्ों्से्युक्त्वष
ृ प्रनतमा्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्श्रेष्ठ्मुननयों्के्
अनुसार्वष
ृ प्रनतमा्की्ऊूँचाई्तीन्प्रकार्की्होनी्चादहये.्१.्सशव-सलङ्ग्के्द्वार्के्बराबर्उत्तम्
ok
प्रनतमा,
२.्उससे्चार्भाग्कम्मध्यम्प्रनतमा्तथा
३.्तीन्भाग्में ्से्दो्भाग्के्बराबर्कननष्ठ्प्रनतमा्(इस्प्रकार्वष
ृ ्की्तीन्ऊूँचाई्वाले्प्रमार््
की्प्रनतमायें्होती्है )्॥१३०-१३१॥
Bo
मयमतम्-्अध्याय्२४
44
om
रक्खा्जाता्है ्।्(प्रिान्प्रासाद्के्ववस्तार्के्)्तीन्भाग्में ्से्एक्भाग, डेढ़्भाग, दो्भाग, चार्
भाग्में ्तीन्भाग्या्पाूँच्मे्से्चार्भाग्के्बराबर्रखना्चादहये्।्अब्ववस्तार्को्हस्त-माप्
मे्वर्र्णत्ककया्जा्रहा्है ्॥५-६॥
(यदद्प्रमुख्दे वालय्छोिा्हो्तो)्द्वारशोभा्आदद्हारों्का्प्रमार््दो्हाअथ्माप्से्प्रारभ्कर्
s.c
उसे्एक-एक्हाथ्बढ़ाते्हुये्सोलह्हाथ्तक्रखना्चादहये्।्(मध्यम्आकार्के्दे वालय्में )्
द्वारशोभा्आदद्पाूँच्द्वारों्में ्से्एक-एक्के्तीन्प्रकार्के्मान्होते्है्।्प्रथम्द्वार्द्वारशोभा्
से्तीन्हाथ्मान्से्प्रारभ्करते्हुये्दो-दो्हाथ्बढ़ाते्हुये्इकतीस्हाथ्तक्ले्जाना्चादहये्।्
(प्रमुख्दे वालय्के्उत्तम्आकार्के्होने्पर)्नौ्हाथ्से्प्रारभ्करते्हुये्सैतीस्हाथ्तक्दो-दो्
ok
हाथ्बढ़ाते्हुये्कुल्पधद्रह्प्रकार्के्प्रमार््प्राप्त्होते्है ्।्ये्ववस्तार-प्रमार््पाूँचों्द्वारों्में ्
द्वारशोभा्से्प्रारभ्होकर्गोपुर-पयणधत्रक्खे्जाते्है ्॥७-१०॥
पञ्चविधगोपुर
पाूँच्प्रकार्के्गोपरु ्-्द्वारशोभा, द्वारशाला, द्वारप्रासाद, द्वारहयण्एवं्गोपरु ्ये्पाूँच्द्वारों्के्
Bo
om
बढ़ाते्हुये्ले्जाना्चादहये्।्इस्प्रकार्प्रत्येक्द्वार्के्पधद्रह्प्रमार््पथ
ृ क-पथ
ृ क्प्राप्त्होते्है ्।्
ववस्तार्के्अनुसार्उनकी्ऊूँचाई्अग्र्वर्र्णत्प्रकार्से्प्राप्त्होती्है ्॥२३-२५॥
उनकी्ऊूँचाई्क्रमशः्उनकी्चौड़ाई्के्पाूँच्भाग्से्सात्भाग, सात्भाग्से्दस्भाग, दग
ु ुनी, ढाई्
गुनी्एवं्सवा्दोगुनी्होनी्चादहये्।्ये्पाूँच्ऊूँचाई्के्प्रमार््कहे ्गये्है ्॥२६॥
अथधष्टानाददमान
s.c
अधिष्ठान्आदद्के्प्रमार््-्प्रिान्भवन्को्दे खकर्ही्गोपुर्के्पाद्(स्तभ)्एवं्अधिष्ठान्की्
ऊूँचाई्रखनी्चादहये्।्अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्प्रिान्भवन्के्चार, पाूँच, छः, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह्
एवं्बारह्भागों्से्एक-एक्भाग्कम्रखना्चादहये्।्शेष्भाग्से्उपपीठ्का्ननमाणर््करना्
ok
चादहये्।्शेष्भाग्से्उपपीठ्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्यह्पादबधि्मसुरक्(अधिष्ठान)्होता्
है ्॥२७-२८॥
प्रासाद्के्स्तभ्का्प्रमार््भी्इसी्प्रकार्रखना्चादहये्।्अथवा्गोपुर-स्तभ्की्ऊूँचाई्आठ, नौ्
या्दस्भाग्में ्एक-एक्भाग्कम्रखनी्चादहये्।्(स्तभ्के्सलये)्अधिष्ठान्में ्होमाधत्तक्
Bo
खातपादक्(स्तभ्के्सलये्गड्ढा)्ननसमणत्करना्चादहये्।्इसकी्(द्वार्की)्ऊूँचाई्उत्तर्(सभवत्त्का्
भागववशेष)्तक्रखनी्चादहये्एवं्द्वार्का्ववस्तार्इसका्आिा्होना्चादहये्।्प्रवेश्के्दक्षक्षर््
में ्सभवत्त्के्नीचे्गभणधयास्(सशलाधयास)्करना्चादहये्॥२९-३०॥
गोपरु भेद
44
om
बाूँिना्चादहये्।्डेढ़्भाग्से्कपोत्की्ऊूँचाई, ढाई्भाग्से्चरर््(द्ववतीय्तल्की्ऊूँचाई), एक्
भाग्से्प्रस्तर, दो्भाग्से्पाद्(तत
ृ ीय्तल्की्ऊूँचाई), पौने्एक्भाग्से्कपोत, एक्भाग्से्ग्रीवा,
ढाई्भाग्से्सशर्एवं्शेष्भाग्से्स्थप
ू ी्(स्थवू पका)्की्ऊूँचाई्रखनी्चादहये्।्इस्प्रकार्बरतल्
गोपुर्का्वर्णन्ककया्गया्।्अब्चतुस्तल्गोपुर्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥४१-४३॥
चतुस्तलगोपुर
s.c
चार्तल्का्गोपुर्-्(चार्तल्के्गोपुर्में )्उत्तर्से्सशखा्तक्के्प्रमार््को्अट्ठारह्भागों्में ्
बाूँिा्जाता्है ्।्पौने्दो्भाग्से्मञ्च, तीन्भाग्से्तसलप्(द्ववतीय्तल), डेढ़्भाग्से्प्रस्तर्की्
ऊूँचाई, ढाई्भाग्से्पद्(तत
ृ ीय्तल), सवा्एक्भाग्से्मञ्च्की्ऊूँचाई, दो्भाग्से्स्तभ्की्
ok
ऊूँचाई्(चतुथ्ण तल), एक्भाग्से्मञ्च, एक्भाग्से्गल, तीन्भाग्से्सशखर्एवं्शेष्भाग्से्
सशका्का्प्रमार््रखना्चादहये्।्अब्पाूँच्तल्के्गोपुर्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥४४-४५॥
पाूँच्तल्का्गोपुर्-्(पाूँच्तल्के्गोपुर्के्मान्को)्स्थप
ू ी्से्उत्तर्पयणधतप्रमार््को्तेईस्भागों्
में ्बाूँिना्चादहये्।्दो्भाग्से्प्रस्तर्की्ऊूँचाई, साढ़े ्तीन्भाग्से्चरर््(दस
ू रा्तल), पौने्दो्भाग्
Bo
om
भाग)्एवं्शेष्भाग्से्सभवत्तववष्कभ्(सभवत्त्कीचौड़ाई)्रखनी्चादहये्।्एक्भाग्से्कूि्का्ववस्तार्
रखना्चादहये्।्कोष्ठक्का्ववस्तार्तीन्भाग्से्एवं्लबाई्पाूँच्भाग्से्ननसमणत्करनी्चादहये्।्
कूि्एवं्कोष्ठ्के्मध्य्भाग्को्पञ्जर्आदद्से्अलंकृत्करना्चादहये्।्इस्प्रकार्द्ववतल्गोपुर्
का्वर्णन्ककया्गया्है ्।्अब्बरतल्गोपुर्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥६०-६२॥
से्गह
s.c
(बरतल्गोपुर्में )्चौड़ाई्के्नौ्भाग्करने्चादहये्।्तीन्भाग्से्नालीगेह्(मध्य्भाग), एक्भाग्
ृ वपण्डी्(अधतःसभवत्त)्एवं्एक्भाग्से्असलधदहारा्(बाह्य्सभवत्त)्ननसमणत्करनी्चादहये्।्कूि्
एवं्कोष्ठ्आदद्सभी्अंगो्को्पहले्के्समान्ननसमणत्करना्चादहये्।्शेष्भाग्से्सभवत्त-ववष्कभ्
एवं्एक्भाग्से्कूि्का्ववस्तार्रखना्चादहये्॥६३-६४॥
ok
शाला्(मध्य्कोष्ठ)्की्लबाई्तीन्भाग्एवं्लब-पञ्जर्(मध्य्में ्लिकता्हुआ्कोष्ठ)्एक्भाग,
आिे्भाग्से्हाराभाग्ननसमणत्होना्चादहये्।्कोष्ठ्की्लबाई्पाूँच्या्छः्भाग्होनी्चादहये्एवं्
ऊध्वण्भाग्मे्चौड़ाई्सात्भाग्होनी्चादहये्॥६५॥
कूि्की्चौड़ाई्एक्भाग्से, शाला्(मध्य्कोष्ठ)्की्चौड़ाई्एवं्लबाई्दोनों्दो्भाग्से, हारा्(मध्य्
Bo
ननसमणनत)्दो्भाग्से्एवं्क्षुद्रनीड्(छोिी्सजाविी्र्खड़कीयाूँ)्आिे्भाग्से्ननसमणत्करनी्चादहये्।्
शाला्की्लबाई्को्पाूँच्भाग्से्ननसमणत्करना्चादहये्।्इस्प्रकार्बरतल्गोपरु ्का्वर्णन्ककया्
गया्है ्।्शेष्भागो्का्ननमाणर् ववद्वान्लोगों्को्अपने्ववचार्के्अनस
ु ार्करना्चादहये्॥६६-६७॥
(चार्तलों्वाले्गोपरु ्में )्चौड़ाई्के्दस्भाग्करने्चादहये्।्तीन्भाग्से्नालीगेह्(मध्य्भाग),
44
डेढ़्भाग्से्सभवत्त-ववष्कभ्(भीतरी्सभवत्त्की्मोिाई)्एक्भाग्से्असलधद्एवं्एक्भाग्से्खण्डहयण्
(बाह्य्सभवत्त्से्सबद्ि्संरचना)्ननसमणत्करनी्चादहये्।्कूि्एवं्कोष्ठ्का्ननमाणर््पहले्के्
समान्करना्चादहये्।्सामने्एवं्पीछे ्के्भाग्में ्महाशाला्(बड़ा्प्रकोष्ठ)्पाूँच्भाग्एवं्छः्भाग्
से्ननसमणत्करना्चादहये्।्इस्प्रकार्सभी्अंगो्से्युक्त्चार्तल्से्यक्
ु त्श्रेष्ठ्गोपुर्ननसमणत्
होता्है ्॥६८-७०॥
(पञ्चतल्गोपुर्में )्ववस्तार्के्ग्यारह्भाग्करने्चादहये्।्तीन्भाग्से्नालीगेह, दो्भाग्से्
सभवत्त-ववष्कभ, एक्भाग्से्असलधद, एक्भाग्से्खण्डहयण्एवं्अधय्अंगो्का्ननमाणर््पूव-ण वर्र्णत्
ववधि्से्करना्चादहये्।्इस्प्रकार्पञ्चतल्गोपुर्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्अब्षट््तल्गोपुर्
का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्।्॥७१-७२॥
(षट््तल्में )्चौड़ाई्के्बारह्भाग्करने्चादहये्।्चार्भाग्से्नालीगेह, दो्भाग्से्सभवत्त-ववष्कभ,
एक्भाग्से्अधिारक्(मागणववशेष)्एवं्एक्भाग्से्खण्डहयण्ननसमणत्करना्चादहये्।्कूि्एवं्
कोष्ठ्आदद्की्संरचना्पहले्के्समान्करनी्चादहये्॥७३॥
(सात्तल्के्गोपुर्में )्चौड़ाई्के्तेरह्भाग्करने्चादहये्।्चार्भाग्से्गभणगह
ृ ्(नालीगह
ृ ,
मध्यभाग), ढाई्भाग्से्सभवत्त-ववष्कभ, एक्भाग्से्असलधद्र्एवं्एक्भाग्से्खण्डहयण्का्ननमाणर््
करना्चादहये्।्कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्पूवव
ण धि्से्ननसमणत्करनी्चादहये्।्सामने्एवं्पष्ृ ठभाग्में ्
छः्भाग्से्महाशाला्ननसमणत्करना्चादहये्।्इसे्पञ्जर, हन्स्तपष्ृ ठ, पक्षशाला्आदद्से्युक्त्करना्
चादहये्।्इसमें ्ववसभधन्प्रकार्के्मसूरक्(अधिष्ठान), स्तभ, वेदी्एवं्जालक-तोरर््ननसमणत्करना्
चादहये्।्इस्प्रकार्सभी्स्थानों्के्अनुकूल्सप्ततल्गोपुर्का्वर्णन्ककया्गया्॥७४-७७॥
्िारविस्तारमान
om
द्वार्की्चौड़ाई्का्प्रमार््-्ऊपरी्तल्के्द्वार्की्चौड़ाई्मूल्द्वार्(ननचले्तल, भूतल्के्
द्वार)्के्ववस्तार्से्पाूँच्या्चार्भाग्कम्होना्चादहये्।्प्रत्येक्तल्के्मध्य्भाग्में ्पाद्एवं्
उत्तर्(चौखि)्से्युक्त्द्वार्स्थावपत्होना्चादहये्।्ऊपरी्तलों्में ्सोपान्का्ववधयास्गभण-गह
ृ ्
(मध्य्भाग)्में ्करना्चादहये्।्॥७८-७९॥
s.c
सोपान्चौकोर्उपपीठ्से्प्रारभ्करना्प्रशस्त्होता्है ्।्बुद्धिमान्(स्थपनत)्को्न्जस्प्रकार्
सोपान्का्ननमाणर््सुधदर्लगे, उस्प्रकार्समुधचत्रीनत्से्करना्चादहये्॥८०॥
गोपुरालङ्कार
गोपुर्के्अलङ्कार्-्गोपुरों्के्प्रत्येक्अलङ्कार्का्वर्णन्अब्ककया्जा्रहा्है ्।्द्वारशोभा्गोपुर्
ok
का्ननमाणर््मण्डप्के्सदृश्करना्चादहये्।्द्वारशाला्गोपुर्का्ननमाणर््दण्डशाला्के्समान्
करना्चादहये्।्द्वारप्रासाद्गोपुर्का्ननमाणर््प्रासाद्(मन्धदर)्की्आकृनत्के्सदृश्करना्चादहये्
।्द्वारहयण्गोपुर्की्आकृनत्मासलका्की्आकृनत्के्समान्होनी्चादहये्।्द्वारगोपुरसंज्ञक्गोपुर्
का्स्वरूप्शाला्के्समान्होना्चादहये्।्सभी्गोपरु ो्का्अलङ्करर््ववशेष्रूप्से्यथोधचत्रीनत्
Bo
से्करना्चादहये्॥८१-८३॥
श्रीकर-्िारिोभा
श्रीकर-रीनत्से्द्वारशोभा्-्श्रीकर्के्भी्अलङ्कारों्का्वर्णन्क्रमानस
ु ार्ककया्जा्रहा्है ्।्इसकी्
लबाई्चौड़ाई्की्दग
ु न
ु ी्या्दग
ु न
ु ी्से्चौथाई्कम्होनी्चादहये्।्ववस्तार्के्पाूँच, सात्या्नौ्भाग्
44
करने्चादहये्।्ववस्तार्के्भाग-प्रमार््से्लबाई्के्भाग्ननन्श्चत्करना्चादहये्।्इसे्एक, दो्या्
तीन्तल्से्एवं्सभी्अंगों्से्यक्
ु त्ननसमणत्करना्चादहये्॥८४-८६॥
स्वन्स्तक्के्आकृनत्की्नासा्(सजाविी्छोिी्र्खड़की)्सभी्स्थानों्पर्होनी्चादहये्।्सामने्एवं्
पीछे ्महानासी्तथा्दोनों्पाश्वों्में ्वंशनासी्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्सशरोभाग्में ्क्रकर्कोष्ठ्
(ववसशष्ि्आकृनत)्या्सम्संख्या्में ्स्थप
ू ी्होनी्चादहये्।्साथ्ही्इसके्सशरोभाग्पर्लुपा्हो्
अथवा्इसकी्आकृनत्मण्डप्के्सदृश्होनी्चादहये्॥८७-८८॥
रनतकान्त-्िारिोभा
रनतकाधत्रीनत्से्द्वारशोभा्-्रनतकाधत्शैली्में ्लबाई्चौड़ाई्से्डेढ़्गुनी्अधिक्होती्है ्।्कूि्
एवं्कोष्ठ्आदद्सभी्अंगो्को्पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्करना्चादहये्।्इसका्सशरोभाग्शाला्के्
आकार्का्होना्चादहये्एवं्षण्र्ासी्(छोिी-छोिी्छः्सजाविी्र्खड़ककयाूँ)्सामने्एवं्पीछे ्होनी्
चादहये्तथा्अिणकोदि्(ववसशष्ि्आकृनत)्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्स्थवू पयों्की्संख्या्सम्होनी्
चादहये्।्इसे्अधतःपाद्(भीतरी्स्तभ)्एवं्उत्तर्से्यक्
ु त्तथा्मध्यवेशन्(मध्य्भाग्में ्कक्ष)्से्
यक्
ु त्सामने्ननसमणत्करना्चादहये्॥८९-९०॥
कान्तविजय-्िारिोभा
काधतववजय्रीनत्से्द्वारशोभा्-्काधतववजय्द्वारशोभा्की्लबाई्उसकी्चौड़ाई्से्दो्नतहाई्
अधिक्होती्है ्।्इसके्तल्पूवण वर्र्णत्एवं्कूि्तथा्कोष्ठ्आदद्अंग्भी्पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्
ननसमणत्करने्चादहये्।्इसे्भीतरी्स्तभो्एवं्उत्तर्से्युक्त्तथा्ववववि्अगो्से्सुसन्ज्जत्करना्
चादहये्।्सशखर्के्आगे्एवं्पीछे ्षण्र्ासी्(छः्नाससयाूँ)्तथा्दोनों्पाश्वो्मे्सभा्के्आकार्का्
सशरोभाग्होना्चादहये, न्जस्पर्ववषम्संख्या्में ्स्थवू पकायें्होनी्चादहये्।
इस्प्रकार्द्वारशोभा्के्तीन्भेदों्का्वर्णन्ककया्गया, जो्अपने्सभी्अंगो्से्युक्त्है ्एवं्
om
न्जनका्मुखभाग्अलंकृत्है ्॥९१-९३॥
विजयवििाल-्िारिाला
द्वारशालासंज्ञक्गोपुर्का्ववजयववशाल्प्रकार्-्ववजयववशाल्द्वारशाला्की्लबाई्उसकी्चौड़ाई्
की्दग
ु ुनी, सवा्भाग, डेढ़्भाग्अथवा्चतुथांश्कम्दग
ु ुनी्रखनी्चादहये्।्इसकी्चौड़ाई्के्सात, नौ्
s.c
या्ग्यारह्भाग्करने्चादहये्तथा्इसके्दो, तीन्या्चार्तल्होने्चादहये्॥९४-९५॥
तीन्या्चार्तले्में ्असलधद्र्एवं्चार्मुखपट्दिकायें्मुखभाग्एवं्पीछे ्महानासी्(बड़ी्सजाविी्
र्खड़की)्अिणकोदि्एवं्भद्रक्होना्चादहये्।्इसका्सशरोभाग्शाला्के्आकार्का्होना्चादहये्एवं्
दोनो्पाश्वों्मे्पञ्जर्होने्चादहये्।्इसे्ववषम्संख्या्में ्स्थवू पकाओं्एवं्सभी्अंगो्से्युक्त्
ok
करना्चादहये्॥९६-९७॥
वििालालय-्िारिाला
ववशालालय्प्रकार्की्द्वारशाला्-्ववशालालय्द्वारशाला्की्लबाई्उसकी्चौड़ाई्से्चतुथांश्कम्
दग
ु न
ु ी्रखनी्चादहये्।्इसके्तल्पव
ु व
ण र्र्णत्ववधि्से्ननसमणत्होने्चादहये्तथा्इसे्कूि्एवं्कोष्ठ्
Bo
आदद्से्सस
ु न्ज्जत्होना्चादहये्।्इसको्शीषणभाग्पर्अिणकोदि, भद्र्तथा्आगे्एवं्पीछे ्भद्रनासी्
से्यक्
ु त्करना्चादहये्।्दोनों्पाश्वों्मे्चार्नाससयाूँ, सशखर्भाग्शालायक्
ु त्एवं्ववषम्संख्या्मेम्
स्थवू पकायें्ननसमणत्होनी्चादहये्।्शेष्अंग्पव
ू ्ण के्सदृश्ननसमणत्होने्चादहये्॥९८-९९॥
विप्रतीकान्त-्िारिाला
44
ववप्रतीकाधत्रीनत्से्द्वारशाला्-्ववप्रतीकाधत्द्वारशाला्की्लबाई्उसकी्चौड़ाई्से्दो्नतहाई्
अथाणत्तीन्भाग्में ्से्दो्भाग्के्बराबर्अधिक्रखनी्चादहये्।्कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्सभी्अंगों्
को्पहले्समान्ननसमणत्करना्चादहये्।्तलों्का्ननमाणर््पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्करना्चादहये्।्चारो्
ददशाओं्में ्भद्रक, सशखर्पर्चार्नाससयाूँ्एवं्सशरो्भाग्कोभद्र्से्युक्त्करना्चादहये्।्इसके्
भीतरी्भाग्में ्स्तभ्एवं्उत्तर्ननसमणत्करना्चादहये्एवं्इसे्ववषम्संख्या्में ्स्थवू पकाओं्से्युक्त्
करना्चादहये्।्इस्प्रकार्सबी्अवयवों्से्युक्त्तीन्प्रकार्की्द्वारशालाओं्का्वर्णन्ककया्
गया्॥१००-१०२॥
श्रीकान्त-्िारप्रासाद
द्वारप्रासादसंज्ञक्गोपुर्का्श्रीकाधत्प्रकार्-्श्रीकाधत्द्वारप्रासाद्की्लबाई्उसकी्चौड़ाई्से्डेढ्
गुनी्अधिक्होती्है ्।्इसकी्चौड़ाई्को्नौ, दस्या्ग्यारह्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्इसमें ्तीन,
चार्या्पाच्तल्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्द्वार्के्ऊपर्भीतरी्भाग्में ्रङ्ग्एवं्पररभद्र्
ननसमणत्करना्चादहये्।्इसका्सशरोभाग्शाला्(कोष्ठक)्के्आकार्का्हो्एवं्सामने्तथा्पीछे ्
महानासी्का्ननमाणर््होना्चादहये्।्इसे्अिणकोदि्से्यक्
ु त्एवं्चार्पञ्जरों्से्सश
ु ोसभत्होना्
चादहये्।
श्रीकेि-्िारप्रासाद
श्रीकेश्रीनत्से्द्वारप्रासाद्-्श्रीकेश्द्वारप्रासाद्में ्लबाई्चौड़ाई्से्तीन्गुनी्अधिक्होती्है ्।्
इसके्तल्पहले्के्सदृश्होने्चादहये्एवं्द्वर्पर्ननगणम्कुदिम्(थोड़ा्बाहर्ननकला्हुआ्
अधिष्ठान)्ननसमणत्होना्चादहये्।्इसे्अधिार्(मध्य्में ्न्स्थत्मागण)्से्युक्त्एवं्कूि-कोष्ठ्आदद्
सभी्अवयवों्से्युक्त्होना्चादहये्॥१०६-१०७॥
इसे्ववसभधन्प्रकार्के्अधिष्ठानों, स्तभों्एवं्वेददका्आदद्से्सुसन्ज्जत्करना्चादहये्।्इसके्
om
भीतरी्भाग्में ्स्तभ्एवं्उत्तर्तथा्मध्य्भाग्में्वारर््का्ननमाणर््करना्चादहये्।्इसका्
सशरोभाग्शाला्के्आकार्का्हो्एवं्सामने्तथा्पीछे ्महानासी्होनी्चादहये्।्दोनों्पाश्वो्में ्
चार्नाससयाूँ्ननसमणत्होनी्चादहये्एवं्इसे्सभी्अंगो्से्युक्त्होना्चादहये्।्सभी्स्थानों्पर्
स्वन्स्तक्के्आकृनत्वाली्नाससयाूँ्सुशोसभत्होनी्चादहये्तथा्इसे्नधद्यावतण्गवाक्ष्एवं्जालक्
केिवििाल-्िारप्रासाद
s.c
(झरोखा)्आदद्से्सुसन्ज्जत्करना्चादहये्॥१०८-११०॥
केशववशालसंज्ञक्द्वारप्रासाद्गोपुर्-्एक्शववशाल्द्वारप्रासाद्की्लबाइ्चौड़ाई्के्डेढ़्गुनी्अधिक्
होती्है ्तलों्काननमाणर््पहले्के्समान्होना्चादहये्एवं्मध्य्भाग्में ्वारर््(दालान, ओसारा)्
ok
होना्चादहये्।्कूि, कोष्ठ्आदद्अलंकरर्ों्का्ननमणर््पहले्की्भाूँनत्होना्चादहये्।्सामने, पीछे ्
एवं्दोनों्पाश्वों्में ्चार्महानासस्ननसमणत्करनी्चादहये्।्इसका्सशरोभाग्सभा्के्आकार्का्हो्
।्उसके्मुखभाग, पष्ृ ठभाग्एवं्दोनों्पाश्वों्में ्ववषम्संख्या्में ्स्थवू पकायें्होनी्चादहये्।्इस्
प्रकार्द्वारप्रासाद्गोपरु ्के्तीन्भेद्होते्है ्॥१११-११३॥
Bo
स्िल्स्तक-्िारहया
द्वारहयण्गोपरु ्का्स्वन्स्तकसंज्ञक्भेद्-्स्वन्स्तकसंज्ञक्द्वारहयण्गोपरु ्की्लबाई्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी्
होती्है ्एवं्चौड़ाई्को्दस, ग्यारह्या्बारह्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्इसे्चार, पाूँच्या्छः्तल्से्
यक्
ु त्ननसमणत्करना्चादहये्।्भीतरी्भाग्में ्स्तभ्एवं्उत्तर्होना्चादहये्तथा्तलों्की्योजना्
44
पव
ू -ण वर्र्णत्होनी्चादहये्।्कूि, कोष्ठ्आदद्सभी्अवयवों्तथा्अधिार्आदद्से्सस
ु न्ज्जत्करना्
चादहये्।्इस्गोपरु ्को्सभाकार्सशखर्से्यक्
ु त्तथा्स्वन्स्तकाकार्नाससयों्से्यक्
ु त्करना्
चादहये्।्सभा्के्अग्र-भाग्में ्आठ्नाससयाूँ्एवं्ववषम्संख्या्में ्स्थवू पकाओं्का्ननमाणर््करना्
चादहये्॥११४-११६॥
ददिास्िल्स्तक-्िारहया
ददशास्वन्स्तक्संज्ञक्द्वारहयण्-्ददशास्वन्स्तक्संज्ञक्द्वारहयण्गोपुर्की्लबाई्ववस्तार्की्दग
ु ुनी्
होनी्चादहये्।्इसके्तलों्की्योजना्कूि-कोष्ठादद्सज्जा्पहले्के्सदृश्होनी्चादहये्।्इसे्
अधिारी्(भीतरी्सभवत्त), अधिार, हाराङ्ग्एवं्खण्डहयण्से्युक्त्करना्चादहये्।्इसका्सशरोभाग्
आयतमण्डलाकार्(गोलाई्सलये्लबाई)्एवं्सामने्तथा्पीचे्अनतभद्रांश्ननसमणत्करना्चादहये्।्
इसे्चार्महानाससयों्एवं्चार्पञ्जरों्से्अलंकृत्करना्चादहये्।्भीतरी्भाग्को्स्तभ, उत्तर्एवं्
सभी्अंगो्से्यक्
ु त्करना्चादहये्।्न्जनका्जहाूँ्उललेख्नही्ककया्गया्है , उन्सबको्पहले्के्
समान्ननसमणत्करना्चादहये्तथा्ववषम्संख्या्में ्स्थवू पकायें्ननसमणत्होनी्चादहये्॥११७-११९॥
मदा ल-्िारहया
मदण ल्संज्ञक्द्वारहयण्गोपुर्-्मदण ल्की्लबाई्उसकी्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी्होती्है ्।्तलों्का्ननमाणर््
एवं्कूि्तथा्कोष्ठ्आदद्अलंकरर्ों्का्ननमाणर््पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्होता्है ्।्सामने्एवं्पीचे्
सभा्के्अग्र्भाग्के्सदृश्ननमाणर््होना्चादहये्तथा्इसका्ननगणत्ववस्तार्के्तीसरे ्भाग्के्
बराबर्होना्चादहये्।्इसका्शीषणभाग्शाला्के्आकार्का्हो्एवं्क्षुद्रनाससयों्से्सुसन्ज्जत्हो्।्
मुखभाग्एवं्पष्ृ ठभाग्की्महानासी्एवं्चार्पञ्जरों्से्सज्जा्होनी्चादहये्।्भीतर्स्तभ्एवं्
उत्तर्ननसमणत्होना्चादहये्।्इस्प्रकार्द्वारहयण्तीन्प्रकार्से्वर्र्णत्है ्॥१२०-१२२॥
द्वारगोपुर्का्माराकाण्ड्संज्ञक्भेद्-्माराकाण्ड्की्लबाई्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी्होती्है ्।्इसकी्
om
चौड़ाई्के्ग्यारह, बारह्या्तेरह्भाग्करने्चादहये्एवं्पाूँच, छः्या्सात्तल्होने्चादहये्।्
तलयोजना्पूवव
ण त्एवं्कूि्तथा्कोष्ठ्आदद्भी्पहले्के्सदृश्होने्चादहये्।्इसके्भीतरी्भाग्
में ्स्तभ्एवं्उत्तर्हो्तथा्चारो्ददशाओं्में ्भद्रक्ननसमणत्हो्।्इसे्गह
ृ वपण्डी्(भीतरी्सभवत्त),
असलधद्एवं्हारा्से्अलंकृत्करना्चादहये्तथा्खण्डहयण्ननसमणत्होना्चादहये्।्इसका्सशरोभाग्
यथोधचत्रीनत्से्ननसमणत्होनी्चादहये्॥१२३-१२६॥
श्रीवििाल-्िारगोपुर
s.c
शाला्की्आकृनत्का्हो्तथा्सामने्एवं्पीछे ्महानासी्ननसमणत्हो्।्दोनों्पाश्वों्में ्क्षुद्रनाससयाूँ्
श्रीववशाल्संज्ञक्द्वारगोपुर्-्श्रीववशाल्द्वारगोपुर्की्चौड़ाई्के्पाूँच्भाग्में ्से्दो्भाग्के्
ok
बराबर्अधिक्लबाई्रखनी्चादहये्।्तल-योजना्पहले्के्सदृश्होनी्चादहये्तथा्मूल्से्ऊपर्
क्रकरी्आकार्(क्रास्का्आकार)्में ्ननसमणत्करना्चादहये्।्इसके्सशरोभाग्पर्क्रकरश्रेष्ठ्(क्रास्
के्आकार्का्कोष्ठ)्या्सभा्का्आकार्ननसमणत्करना्चादहये्।्इसे्ववसभधन्प्रकार्के्
अधिष्ठानों, स्तभों्एवं्वेददकाओं्से्सस
ु न्ज्जत्करना्चादहये्।्चारो्ददशाओं्में ्महानासी्एवं्
Bo
क्षुद्रनासी्ननसमणत्करना्चादहये्।्स्वन्स्तकाकार्नाससयाूँ्सभी्ओर्ननसमणत्होनी्चादहये्॥१२७-
१२९॥
चतम
ु ख
ुण ्संज्ञक्द्वारगोपरु ्-्चतम
ु ख
ुण ्द्वारगोपरु ्की्लबाई्उसकी्चौड़ाई्से्चार्भाग्अधिक्होती्
है ्।्इसके्तलों्का्भाग्पव
ू -ण वर्र्णत्हो्एव्प्रत्येक्ददशा्में ्भद्रक्हो्।्हारा्के्मध्य्में ्कुभलता्
44
से्यक्
ु त्सभवत्त्हो्एवं्तोरर्,जालक्तथा्वत्त
ृ स्फुदित्(अलङ्करर्ववशेष)्आदद्से्सस
ु न्ज्जत्हो्।्
कूिों, नीडों्(सजाविी्र्खड़ककयों), कोष्ठो्एवं्क्षुद्रकोष्ठों्से्अलंकृत्हो्एवं्गह
ृ वपण्डी, असलधद्र, हारा्एवं्
खण्डहयण्आदद्से्सुसन्ज्जत्हो्॥१३०-१३२॥
इसका्सशरो-भाग्सभा्की्आकृनत्का्या्शाला्की्आकृनत्का्होता्है ्।्यह्चार्नाससयों्से्
युक्त्होता्है ्एवं्पाश्वों्में ्दो-दो्नाससकायें्होती्है ्।्ऊपरी्(तल)्कूि्आदद्सबी्अंगो्से्
सुसन्ज्जत्होता्है ्तथा्भीतर्सोपान्से्युक्त्होता्है ्।्इस्प्रकार्यह्गोपुर्तीन्प्रकार्का्होता्
है ्॥१३३-१३४॥
श्रीकर्आदद्ग्पुर्वषाण्के्स्थल्(वषाण्के्जल्के्ननकास-स्थल)्से्युक्त्अथवा्इससे्रदहत्हो्
सकते्है ्एवं्ये्सघन्अथवा्घनरदहत्अंगों्से्यक्
ु त्आवश्यकतानुसार्ननसमणत्ककये्जाते्है ्
॥१३५॥
शोभा्आदद्पधद्रह्गोपरु ों्में ्अनेक्प्रकार्के्स्तभ, मसरू क्(अधिष्ठा), अनेक्प्रकार्के्लक्षर्ों्से्
यक्
ु त्अवयव, ववववि्प्रकार्के्उपपीठ्मण्डक्सदहत, भद्र्से्यक्
ु त्या्भद्ररदहत्तथा्घने्या्ववरल्
अंग्आदद्से्यक्
ु त्एक्से्लेकर्सात्तलों्तक्का्ननमाणर््उधचत्रीनत्से्करना्चादहये्।्इनके्
शीषणभाग्शाला्के्आकार, सभा्के्आकार्या्मण्डप्के्आकार्के्ननसमणत्होने्चादहये्।्इस्प्रकार्
राजाओं्एवं्दे वों्के्भवनों्के्गोपुरों्का्वर्णन्ककया्गया्॥१३६-१३७॥
मयमतम्-्अध्याय्२५
्
om
मण्डप्का्वविान्-्दे वों, ब्राह्मर्ों, क्षबरयों, वैश्यों्एवं्शद्र
ू ों्के्अनक
ु ू ल्मण्डपों्का्वर्णन्उधचत्रीनत्
से्ककया्जा्रहा्है ्॥१॥
मण्डपयोग्यदे ि
मण्डप्के्अनुकूल्स्थान्(मण्डपों्का्स्थान)्प्रासाद्(दे वालय)्के्अग्र्भाग्में , पुण्यक्षेर्(तीथणस्थल)्
में , आराम्(उद्यान, पाकण)्में , ग्राम्आदद्वास्तुक्षेर्के्बीच्में , चारो्ददशाओं्एवं्ददशाओं्के्कोर्ों्
s.c
में , गह
ृ ों्के्बाहर, भीतर, मध्य्में ्एवं्सामने्होता्है ्॥२॥
मण्डप्की्आिश्यकता
(मण्डप्के्प्रयोजन्इस्प्रकार्है -)्वास्के्सलये्मण्डप, यज्ञ-मण्डप, असभषेक्आदद्उत्सवों्के्
ok
अनुरूप्मण्डप, नत्ृ य्के्सलये्मण्डप, वैवादहक्कायण्के्सलये्मण्डप, मैर्(सामूदहक्उत्सव, कायणक्रम)्
एवं्उपनयन्संस्कार्के्योग्य्मण्डप, आस्थान-मण्डप्(राजा्की्सभा्अथवा्दे वों्के्जन-सामाधय्
के्दशणन्हे तु्ववशेष्अवसरों्पर्ननसमणत्मण्डप), बलालोनक-मण्डप्(सैधय्कायणसम्बधिी्मण्डप),
सन्धिकायाणहणक्मण्डप्(न्जस्मण्डप्में ्सन्धि्आदद्से्सम्बन्धित्कायण्सम्पधन्हो), क्षौर्मण्डप्
Bo
(जहाूँ्मुण्डन्आदद्कायण्सम्पधन्हो)्तथा्भुन्क्तकमणसुखान्धवत्मण्डप्(जहाूँ्समूहभोज्एवं्सुख्
उठाया्जाय)्॥३-५॥
मण्डपों्के्नाम्-्अब्उन्मण्डपों्के्नामों्का्क्रमशः्ववधिपूवणक्उललेख्ककया्जा्रहा्है ्।्ये्
सोलह्चतुष्कोर््मण्डप्है , जो्दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओं्के्सलये्होते्है ्।्(उनके्नाम्इस्प्रकार्
44
है )्-्मेरुक, ववजय, ससद्ि, पद्मक, भद्रक, सशव, वेद, अलंकृत, दभण, कौसशक, कुलिाररर्, सुखाङ्ग, गभण,
मालय्तथा्मालयाद्भुत्॥६-७॥
िन, सुभूषर्, आहलय, स्रग
ु क, कोर्, खवणि, श्रीरूप्एवं्मङ्गल-्ये्आठ्आयाताकार्मण्डप्दे वता्आदद्
के्एवं्राजाओं्के्अनुकूल्होते्है ्तथा्वैश्य्एवं्शूद्रोम्के्अनुकूल्मण्डपों्के्नाम्इस्प्रकार्है ्-्
मागण, सौभद्रक, सध
ु दर, सािारर्, सौख्य, ईश्वरकाधत, श्रीभद्र्तथा्सवणतोभद्र्॥८-१०॥
इनके्स्तम्भों्के्भन्क्तमान्(ववभाजन्का्प्रमार्)्लम्बाई्एवं्चौडाई, इनके्अधिष्ठान, आकार, प्रपा्
(ननसमणनत्ववशेष), मध्यम्रङ्ग, अलङ्कार, स्तम्भों्के्पक्ष्(स्तम्भों्की्योजना)्एवं्उनकी्आकृनत-्
इन्सभी्का्वर्णन्अब्मैं्(मय्ऋवष)्करता्हूूँ्॥११-१२॥
भल्क्तमान
भन्क्त्का्प्रमार्, प्रमार्योजना्-्डेढ़्हाथ्से्प्रारम्भ्कर्छः-छः्अगल
ु ्बढ़ाते्हुये्पाूँच्हाथ्तक्
पधद्रह्प्रकार्के्स्तम्भ-मान्प्राप्त्होते्है ्।्इसकी्लम्बाई्का्मान्चौड़ाई्के्भन्क्तमान्से्ग्रहर््
ककया्जाता्है ्।्चौड़ाई्से्ग्रहर््ककये्गये्लम्बाई्के्मान्के्सलये्चौड़ाई्को्एक, दो, तीन, चार्
या्पाूँच्भाग्में ्बाूँिना्चादहये्एवं्लम्बाई्को्एक्भाग्अधिक्होना्चादहये्।्अपने्ववस्तार्के्
भन्क्तमान्से्तीन-तीन्अंगुल्बढ़ाते्हुये्एक्हाथ्तक्ले्जाना्चादहये्।्इस्प्रकार्लम्बाई्के्
आठ्प्रमार््प्राप्त्होते्है्।्इससे्प्रमार्योजना्बनानी्चादहये्तथा्सभी्लम्बे्मण्डप्इसी्
भन्क्तमान्से्ननसमणत्होने्चादहये्॥१३-१६॥
स्तर्मभमान
स्तम्भ-प्रमार््-्ढाई्हाथ्से्प्रारम्भ्कर्छः-छः-्अंगुल्बढ़ाते्हुये्आठ्हाथ्तक्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्
ले्जानी्चादहये्।्इस्प्रकार्स्तम्भ्के्तेईस्प्रमार््बनते्है ्।्अथवा्तीन-तीन्अंगुल्बढ़ाते्हुये्
om
स्तम्भ्का्मान्प्राप्त्होता्है ्॥१७॥
स्तम्भ्का्ववस्तार्(घेरा)्आठ्अंगुल्से्प्रारम्भ्कर्आिा्अंगुल्बढ़ाते्हुये्उधनीस्अंगुल्तक्ले्
जाना्चादहये्।्इस्स्तम्भ्के्मूल्का्ववस्तार्प्राप्त्करने्के्सलये्उसकी्ऊूँचाई्के्ग्यारह, दस,
नौ्या्आठ्भाग्करने्चादहये्एवं्उसमें ्से्एक्कम्करने्पर्(दस, नौ, आठ, सात्भाग)्मूल्के्
ववस्तार्या्पररधि्का्होता्है ्॥१८-१९॥
अथधष्ठानोत्सेध
s.c
अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्-्सामाधयतया्सभी्वास्तुओं्मे्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्के्आिे्प्रमार््से्
अधिष्ठान्का्मान्रक्खा्जाता्है ्।्अथवा्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्के्पाूँच्भाग्करने्पर्अधिष्ठान्दो्
ok
भाग्के्बराबर्रक्खा्जाता्है ्या्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्के्तीन्भाग्करने्पर्एक्भाग्के्बराबर्
अधिष्ठान्रक्खा्जाता्है ्॥२०-२१॥
उपपीठोत्सेध
उपपीठ्की्ऊूँचाई्-्अधिष्ठान्उपपीठ्से्यक्
ु त्या्केवल्अधिष्ठान्(उपपीठरदहत्अधिष्ठान)्होना्
Bo
मण्डप्का्लक्षर््-्अधिष्ठान, उसके्ऊपर्स्तम्भ्एवं्प्रस्तर-्इन्तीन्वगो्से्यक्
ु त, कपोत्एवं्
प्रनत्से्यक्
ु त्ननमाणर््को्मण्डप्कहा्जाता्है ्॥२५॥
मण्डपिब्दाथा
मण्डप्शब्द्का्अथण्-्मण्ड्अथाणत्अलङ्करर््।्उसकी्जो्रक्षा्करता्है , उसे्मण्डप्कहते्है ्।
प्रपालक्षण
प्रपा्का्लक्षर््-्सभी्वर्ों्के्अनुकूल्प्रपा्के्सामाधय्स्वरूप्का्वर्णन्करता्हूूँ्।्इसके्स्तम्भ्
भूतल्से्प्रारम्भ्होते्है ्एवं्इनके्ऊपर्उत्तर्होते्है ्।्उत्तर्(स्तम्भ्के्ऊपर्सभवत्त), उसके्ऊपर्
ऊध्वणवंश्(प्रिान्वंश, छाजन्के्लट्ठे )्होते्है ्।्इनके्साथ्प्राग्वंश्(प्रिान्वंश्से्जुड़्े पूव्ण की्
ओर्जाने्वाले्अंश), अनुवंश्(सहायक्वंश)्आदद्होते्है ्।्प्रपा्का्आच्छादन्नाररयल्के्पत्ते्
तथा्अधय्पत्तों्से्ककया्जाता्है ्॥२६-२७॥
स्तम्भों्की्लम्बाई्पव
ू व
ण र्णन्के्अनस
ु ार्रखनी्चादहये्।्स्तम्भ्का्ववष्कम्भ्(स्तम्भ्का्घेरा)्
चार, छः, आठ्या्दस्अंगल
ु ्होना्चादहये्।्यह्मान्सारदारु्(ठोस्काष्ठ)्से्ननसमणत्स्तम्भ्का्
कहा्गया्है ्।्वंश-ननसमणत्स्तम्भ्का्मान्भी्यही्है ्।्जहाूँ्जैसी्आवश्यकता्हो, वहाूँ्वैसा्
ननमाणर््करना्चादहये्॥२८-२९॥
स्तम्भ्की्ऊूँचाई्के्दस, नौ, आठ, सात, छः्या्पाूँच्भाग्करना्चादहये्।
रङ्गलक्षण
रङ्ग्का्लक्षर््-्(पूवव
ण र्र्णत्भाग्के्बराबर)्वेददका्की्ऊूँचाई्होनी्चादहये्।्एक्भाग्से्मध्य्
भाग्में ्रङ्ग्ननसमणत्करना्चादहये्।्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्के्चार्भाग्करने्पर्एक्भाग्से्
मसूरक्(अधिष्ठान), दो्भाग्से्स्तम्भ्की्लम्बाई्एवं्एक्भाग्से्प्रस्तर्ननसमणत्करना्चादहये्
॥३०-३१॥
om
भवन-योजना्सम्संख्या्मे्हो्या्ववषम्संख्या्में ्हो, रङ्ग्की्ववशालता्दो्भाग्या्एक्भाग्
रखनी्चादहये्।्आठ्स्तम्भों्से्युक्त्अथवा्चार्स्तम्भों्से्युक्त्रङ्ग्का्ननमाणर््प्रपा्आदद्के्
समान्करना्चादहये्॥३२॥
रङ्ग्सभी्अंगो्से्युक्त्एवं्समधश्रत्पदाथो्से्युक्त्होता्है ्।्शाला, सभागार, प्रपा्एवं्मण्डपों्के्
॥३३-३४॥
मामलकामण्डप
s.c
मध्य्में -्इन्चार्स्थलों्पर्रङ्ग्का्ननमाणर््होता्है ्।्इसका्मान्तीन्प्रकार्का्कहा्गया्है ्
मासलका-मण्डप्-्मण्डप्के्ऊपर्का्तल्मासलका्मण्डप्होता्है ्।्यदद्मण्डप्के्दो्तल्हो्तो्
ok
वह्सशखरयुक्त्होता्है ्।्दोनों्तलों्के्मध्य्में ्न्स्थत्भाग्को्प्रनतमध्य्कहते्है ्॥३५॥
मेरुक
मेरुक्-्मेरुक्मण्डप्चौकोर, चार्स्तम्भों्से्युक्त, एक्भाग्(भन्क्त)्माप्का्तथा्आठ्
नाससकाओं्से्यक्
ु त्होता्है ्।्इसे्ब्रह्मासन्कहा्गया्है ्॥३६॥
Bo
ववजय्-्ववजय्संज्ञक्मण्डप्दो्बन्क्त्से्यक्
ु त्एवं्चतष्ु कोर््होता्है ्।्यह्आठ्स्तम्भों्एवं्
आठ्नाससयों्से्अलंकृत्होता्है ्।्यह्अधिष्ठान्से्यक्
ु त्एवं्मध्य्स्तम्भ्से्रदहत्होता्है ्।्
वववाह्के्सलये्नौ्स्तम्भों्से्यक्
ु त्प्रपा्ननसमणत्होनी्चादहये्॥३७-३८॥
मस्ध
44
om
कुण्ड्का्केधद्र्(नासभ)्कमल्के्समान्होना्चादहये्।्इसकी्आकृनत्वत्त
ृ ्के्समान्होनी्चादहये्
।्इसका्व्यास्चार, पाूँच्या्छः्अंगुल्होना्चादहये्तथा्इसकी्ऊूँचाई्चार्या्तीन्भाग्होनी्
चादहये्॥४६॥
योननकुण्ड
s.c
योनन्की्आकृनत्का्दण्ड्-्कुण्ड्के्पूव्ण भाग्को्पाूँच्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्कोर््से्आिा्
भाग्ग्रहर््कर्(सीिी्रे खा्द्वारा्उत्तर्एवं्दक्षक्षर््के)्मध्य्भाग्को्जोड़ना्चादहये्।्इसके्
पश्चात्(उत्तर, पन्श्चम)्कोर््को्गोलाई्से्घेरना्चादहये्।्इसी्प्रकार्दस
ू री्ओर्भी्करना्चादहये्
अथाणत्दक्षक्षर्-पन्श्चम्के्कोर््को्भी्गोलाई्से्घेरना्चादहये्।्इस्प्रकार्दो्सूरों्के्प्रयोग्से्
ok
योनन्की्आकृनत्ननष्पधन्होती्है ्॥४७॥
अधाचन्द्रकुण्ड
अिणचधद्रकार्कुण्ड्-्कुण्ड्के्व्यास्के्दसवे्भाग्में ्ऊपर्एवं्नीचे्(बबधद्ु बनाना्चादहये्।्उस्
बबधद्ु से)्ज्यासर
ू ्(सीिी्रे खा)्खींचना्चादहये्।्इस्मान्से्अिणचधद्राकार्रे खा्खींचनी्चादहये्।्
Bo
इस्प्रकार्वास्तवु वद्या्के्ज्ञाता्को्अिणचधद्रकुण्ड्ननसमणत्करना्चादहये्॥४८॥
त्र्यस्त्रकुण्ड
बरकोर््कुण्ड्-्चौकोर्क्षेर्के्व्यास्के्आठ्भाग्में ्छः्भाग्करके्तीन्सर
ू ों्से्त्र्यस्र्कुण्ड्
ननसमणत्होता्है ्।
44
िर्त्
ृ कुण्ड
वत्त
ृ ाकार्कुण्ड्-्बरकोर््कुण्ड्का्वर्णन्ककया्जा्चक
ु ा्है ्।्क्षेर्को्अट्ठारह्भागों्में ्बाूँिना्
चादहये्।्वत्त
ृ ाकार्कुण्ड्इस्प्रकार्ननसमणत्करना्चादहये्(सुर्इस्प्रकार्घुमाना्चादहये), न्जससे्
कक्कुण्ड्एक्भाग्बाहर्रहे ्॥४९॥
छः्कोर््का्कुण्ड्-्(चतुष्कोर्)्कुण्ड्के्क्षेर्को्पाूँच्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्एक्वत्त
ृ ्इस्
प्रकार्खींचना्चादहये, न्जससे्उसकी्पररधि्उन्पाूँच्भागों्से्अधिक्हो्।्इसके्पश्चात्प्रत्येक्
भाग्में ्मत्स्य्की्आकृनत्ननसमणत्करनी्चादहये्।्इस्प्रकार्छः्सूरों्के्द्वारा्षट््कोर््कुण्ड्
ननसमणत्होता्है ्॥५०॥
पद्माकार्कुण्ड्-्पव
ू व
ण र्र्णत्ववधि्से्वत
ृ ्बनाकर्उसके्मध्य्में ्एक्वत्त
ृ ्ननसमणत्करना्चादहये्।्
इसके्पश्चात्मध्य्से्प्रारम्भ्करते्हुये्पद्म्का्आकार्एवं्कर्र्णका्आदद्न्जस्प्रकार्बने, उस्
प्रकार्ववद्वान्को्पद्मकुण्ड्ननसमणत्करना्चादहये्।्॥५१॥
अष्िकोर््कुण्ड्-्कुण्ड्के्क्षेर्को्चौबीस्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्एक्भाग्बाहर्रहे , इस्प्रकार्
एक्वत्त
ृ ्खींचना्चादहये्।्दोनों्कोर्ों्से्एवं्कोर्ों्के्अिण्भाग्से्आठ्सूरों्(रे खाओं)्से्
अष्िकोर््कुण्ड्ननसमणत्करना्चादहये्॥५२॥
सततास्त्रकुण्ड
सप्तकोर््कुण्ड्-्कुण्ड्के्क्षेर्को्दस्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्उसमें ्एक्वत्त
ृ ्इस्प्रकार्खींचना्
चादहये, न्जससे्एक्भाग्क्षेर्के्बाहर्रहे ्।्सात्सूरों्के्प्रयोग्से्सप्तकोर््कुण्ड्ननसमणत्होता्
है , न्जसका्पट्िदै घ्य्(सात्कोर्ों्का्माप)्तैतीस्हो्एवं्क्षेर्का्माप्चौसठ्हो्॥५३॥
om
पञ्चास्रकुण्ड
पञ्चकोर््कुण्ड्-्कुण्ड्के्क्षेर्को्सात्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्एवं्उसमें ्एक्वत्त
ृ ्इस्प्रकार्
खींचना्चादहये, न्जससे्उसका्एक्भाग्बाहर्रहे ्।्पाूँच्सूरों्के्द्वारा्पञ्चकोर््कुण्ड्बनाना्
चादहये, न्जससे्पट्ि्का्आयाम्चतुष्कोर््का्तीन्चौथाई्हो्॥५४॥
s.c
प्राप्त्भागों्के्उतने्भाग्करके्पहले्के्समान्एक-एक्भाग्कम्या्अधिक्करते्हुये्कोर्ों्को्
पररधि्के्बराबर्ननसमणत्करना्चादहये्।्इस्प्रकार्बुद्धिमान्स्थपनत्को्सभी्प्रकार्के्कुण्डों्
की्योजना्करनी्चादहये्॥५५॥
पाूँच्में ्तीन्चतुथांशयुक्त्एक्भाग, सात्में ्दो्भाग, सोलह्में ्पाूँच्भाग, नौ्में ्तीन्चतुथांशयुक्त्
ok
एक्भाग, ग्यारह्में ्डेढ़्भाग, तेरह्में ्सवा्एक्भाग्कहा्गया्है ्।्पधद्रह्में ्एक्भाग्कम्एवं्
सोलह्भाग, सरह्भाग्तथा्उधनीस्भाग्में ्क्रमशः्आठ्भाग्कम्होना्चादहये्॥५६॥
मस्ध
ससद्िमण्डप्-्यदद्ससद्ि्मण्डप्को्दे वालय्के्सम्मख
ु ्स्थावपत्ककया्जाय्तो्उसमें ्अधिष्ठान,
Bo
से्यक्
ु त्ननसमणत्करना्चादहये्॥५९॥
मण्डप्की्सभवत्त्का्ववष्कम्भ्(मोिाई)्प्रिान्भवन्(या्दे वालय)्की्मोिाई्के्बराबर्तीन्चौथाई्
अथवा्तीन्में ्दो्भाग्के्बराबर्होना्चादहये्।्यह्सभी्भवनों्के्सम्मुख्अधतराल्(मागण)्से्
युक्त्एवं्वेश्(आच्छाददत्स्थल)्से्युक्त्होना्चादहये्॥६०॥
प्मक
पद्मक्-्चौकोर्क्षेर्को्चार्भन्क्त्(इकाई्माप)्एवं्चार्द्वार्से्युक्त्करना्चादहये्।्
मुखभाग्एवं्पष्ृ ठभाग्पर्दो्भन्क्त्एवं्एक्भाग्से्ननगणम्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्मुखभाग्
एवं्पष्ृ ठभाग्पर्दो्भन्क्त्एवं्एक्भाग्से्ननगणम्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्मध्य्भाग्में ्
स्तम्भ्नही्होना्चादहये्एवं्दो्भन्क्त्से्ऊध्वणकूि्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥६१-६२॥
इसमें ्नतरे सठ्स्तम्भ्तथा्अट्ठाईस्अलपनाससकायें्(छोिी्सजाविी्र्खड़ककयाूँ)्होनी्चादहये्।्चारों्
ददशाओं्में ्सोपान्होने्चादहये्एवं्लाङ्गल्के्आकार्की्सभवत्त्होनी्चादहये्।्आठ्पञ्जर्
(सजाविी्अंग)्होने्चादहये्।्पद्मक्(कमलपष्ु प्के्समान)्इस्मण्डप्की्संज्ञा्पद्मक्है ्।्
दे वालय्के्सम्मुख्यह्मण्डप्दे वों्के्असभषेक्के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्।्यह्एक्मुख्वाला्हो्
तो्मध्य्में ्आूँगन्होना्चादहये्।्यह्यज्ञकायण्के्अनुकूल्होता्है ्एवं्आठों्ददशाओं्में ्वारर््
(ककसी्भी्ददशा्में )्हो्सकता्है ्॥६३-६५॥
भद्रक
भद्रक्-्भद्रक्मण्डप्चौकोर्होता्है ्एवं्इसका्माप्पाूँच्भाग्रक्खा्जाता्है ्।्मध्य्भाग्में ्
तीन्भाग्से्कूि्एवं्चारो्ओर्एक्भाग्से्मण्डप्ननसमणत्होता्है ्।्यह्बत्ती्स्तम्भों्एवं्
चौबीस्नाससकाओं्से्युक्त्तथा्आठ्पञ्जरों्से्युक्त्होता्है ्।्सभवत्त्कुम्भलता्से्सुसन्ज्जत्
om
होती्है ्॥६६-६७॥
चारो्ददशाओं्में ्चार्द्वार्एवं्कोनों्पर्लाङ्गलसभवत्त्(हल्के्आकार्की्सभवत्त)्होनी्चादहये्।्
अथवा्मध्य्भाग्में ्आूँगन्हो्एवं्तीन्भन्क्त्(तीन्ईकाई)्ववस्तर्वाले्स्तम्भों्से्युक्त्रखना्
चादहये्।्मण्डप्को्भवन्के्सतह्के्बराबर, दस्या्आठ्भाग्कम्रखना्चादहये्।्यह्मण्डप्
मिि
s.c
(दे वाददकों्के)्स्नान्के्सलये्एवं्नत्ृ य्के्सलये्अनुकूल्होता्है ्॥६८-६९॥
om
कौसशक्-्दस्अंशो्वाला्चौकोर्मण्डप्एक्सौ्बारह्स्तम्भों्से्युक्त्होता्है ्।्यह्नौ्कूिों्से्
युक्त्एवं्एक्भाग्के्अधतराल्से्युक्त्होता्है ्।्इसे्'कौसशक' कहते्है ्।्चतुष्कोर््होने्पर्यह्
'जानतक' होता्है ्।्यदद्इसमें ्एक्मुख्(द्वार)्एवं्एक्भद्र्हो्तो्इसे्'नधद' कहते्है ्तथा्दो्
मुख्होने्पर्इसकी्संज्ञा्"भद्रकौसशक' होती्है ्।्तीन्मुख्होने्पर्'जयकोश' तथा्चार्मुख्होने्
पर्इसे्'पूर्क
s.c
ण ोश' कहते्है्।्यह्अधिष्ठान, स्तम्भ्एवं्कोनों्पर्लाङ्गल्के्आकार्की्सभवत्त्से्
युक्त्होता्है ्।्इसे्अड़तालीस्अलपनाससकाओं्एवं्सभी्अलङ्करर्ों्से्सुसन्ज्जत्करना्चादहये्।्
॥८३-८४-८५॥
कुलधारण
ok
कुलिारर््-्इसमें ्एक्समचतुष्कोर््क्षेर्ग्यारह्भाग्से्युक्त्होता्है ्।्इसके्चारो्ओर्एक्
भाग्से्मण्डप्ननसमणत्होता्है ्।्चारो्कोर्ों्पर्दो्भाग्से्चार्कूि्होते्है ्॥८६-८७॥
चारो्ददशाओं्में ्दो्भाग्चौड़ा्एवं्तीन्भाग्लम्बा्कोष्ठ्होना्चादहये्।्तीन्भन्क्तमाप्का्
चौकोर्मध्यरङ्ग्एवं्उसके्ऊपर्कूि्होना्चादहये्।्कूि्एवं्शाला्के्बीच्में ्क्रकरीकृत्(क्रास्के्
Bo
आकार्में )्मागण्होने्चादहये्।्जानत्आदद्को्मख
ु भद्र्आदद्सभी्अंगो्से्यक्
ु त्होना्चादहये्
॥८८-८९॥
ऊपरी्भाग्में ्सभाङ्ग, नीड, प्रस्तर्एवं्नौ्बोिक्होना्चादहये्।्मण्डप्ढका्हुआ्अथवा्खल
ु ा्
हुआ्गोपनीय्अथवा्खल ु े्कायण्की्आवश्यकता्के्अनस
ु ार्ननसमणत्ककया्जा्सकता्है ्।्इस्सम-
44
om
गभणमण्डप्-्चौदह्भाग्ववस्तार्वाला्यह्मण्डप्चौकोर्होता्है ्।्दो्भाग्से्गभणकूि्(मध्य्भाग्
के्ऊपर्ननसमणत्कूि)्होना्चादहये, न्जसके्चारो्ओर्एक्भाग्से्असलधद्र्(गसलयारा)्ननसमणत्हो्।्
एक्भाग्से्अधतराल्(मागण)्ननसमणत्होना्चादहये, न्जसके्ऊपर्छत्न्ननसमणत्हो्॥९९-१००॥
चारो्कोनों्पर्दो-दो्भाग्से्आूँगन्ननसमणत्होने्चादहये, न्जनके्ऊपर्ऊध्वणकूि्हो्सकते्हो्(या्
आूँगन्खल
s.c
ु े्रह्सकते्है )्।्चारो्ददशाओं्में ्दो्भाग्चौड़े्एवं्तीन्भाग्लम्बे्आूँगन्या्तो्
कोष्ठ्से्युक्त्(या्ववना्कोष्ठ्के)्होने्चादहये्।्उनके्बाहर्चारो्ओर्एक्भाग्से्असलधद्र्
होना्चादहये्॥१०१॥
अभीष्ि्ददशा्में ्सभवत्त्हो्एवं्आठो्ददशाओं्में ्भद्र्ननसमणत्होने्चादहये्।्अधिष्ठान्पर्दो्सौ्
ok
आठ्स्तम्भ्ननसमणत्होने्चादहये्।्गभणसंज्ञक्सुधदर्मण्डप्दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओं्के्अनुकूल्
होता्है ्॥१०२-१०३॥
मापय
मालय्-्इस्मण्डप्में ्पधद्रह्भाग्ववस्तत
ृ ्चौकोर्क्षेर्होता्है ्।्इसके्मध्य्में ्तीन्भाग्से्
Bo
ऊध्वणकूि-यक्
ु त्मध्यरं ग्अथवा्आूँगन्होना्चादहये्।्चारो्ओर्एक्भाग्से्असलधद्र्तथा्एक्
भाग्से्अधतराल्होना्चादहये्।्शेष्अंग्पव
ू व
ण र्र्णत्होने्चादहये; ककधत्ु कोष्ि्एक्भाग्अधिक्
लम्बा्होना्चादहये्।्अधिष्ठान्पर्दो्सौ्बत्तीस्स्तम्भ्होने्चादहये्।्सभी्सज्जाओं्से्यक्
ु त्
इस्मण्डप्की्संज्ञा्मालय्होती्है ्।्॥१०४-१०६॥
44
मापया्भत
ु
मालयाद्भत
ु म्-्मालयाद्भत
ु ्मण्डप्सोलह्भागों्के्सम-चतष्ु कोर््क्षेर्से्यक्
ु त्होता्है ्।्दो्भाग्
से्ऊध्वणकूि्होता्है ्एवं्एक्भाग्माप्के्असलधद्र्से्नघरा्होता्है ्।्सामने्दो्भाग्एवं्एक्भाग्
माप्का्भद्र्होता्है ्एवं्कोने्में ्लाङ्गल्के्आकार्की्सभवत्त्होती्है ्।्पाश्वण्में ्सीढ़ी्ननसमणत्
होती्है ्एवं्यह्धचर-प्रस्तर्से्युक्त्होता्है ्॥१०७-१०८॥
उसके्बाहर्दो्भाग्के्प्रमार््से्चारो्ओर्जलपाद्(जलस्थान)्होना्चादहये्तथा्उसके्बाहर्
चारो्ओर्चार्भाग्माप्का्मण्डप्होना्चादहये्।्दो्भाग्का्चौकोर्क्षेर्हो्एवं्एक्भाग्से्
व्यविान्(अधतराल)्ननसमणत्हो्।्उसके्मध्य्में्चारो्ओर्सोलह्भागों्वाला्आूँगन्होना्चादहये्
॥१०९-११०॥
कोनों्पर्लाङ्गल्के्आकार्की्सभवत्त्हो्एवं्ऊध्वण्भाग्पर्हारामागण्से्अलंकरर््हो्।्दो्भाग्
ववस्तत
ृ ्क्षेर्ननगणम्से्यक्
ु त्हो्एवं्चारो्ददशाओं्में ्भद्र्ननसमणत्हो्।्पाश्वण्में ्सीढ़ी्हो्एवं्सभी्
प्रकार्के्आभरर्ों्से्यक्
ु त्हो्।्ये्सोलह्प्रकार्के्चौकोर्मण्डप्दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओं्के्
सलये्उपयुक्त्होते्है ्॥१११-११२॥
बुद्धिमान्व्यन्क्त्(स्थपनत)्को्उपयक्
ुण त्चतुष्कोर््मण्डपों्में ्प्रत्येक्में ्पाश्वो्में ्एक-एक्भाग्
बढ़ाते्हुये्बत्तीस्भाग्तक्ववस्तार्ले्जाना्चादहये्।्ये्मण्डप्खल
ु े्या्बधद्हो्सकते्है ्एवं्
आवश्यकतानुसार्सभवत्त्एवं्स्तम्भ्ननसमणत्ककये्जाने्चादहये्।्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्यथावसर्
एवं्शोभा्के्अनुकूल्मण्डप-ननमाणर््करना्चादहये्।्आयताकार्मण्डपो्का्वर्णन्इस्प्रकार्ककया्
गया्॥११३-११४॥
धन
om
िन्-्यह्मण्डप्तीन्भाग्चौड़ा्एवं्लम्बाई्में ्दो्भाग्अधिक्होता्है ्।्सामने्एक्भाग्से्
वार्(प्रवेश)्होता्है ्एवं्यह्चौबीस्स्तम्भों्से्युक्त्होता्है ्।्इसमें ्बीस्नाससयाूँ्होती्है ्।्िन्
प्रदान्करने्वाला्यह्मण्डप्िनसंज्ञक्होता्है ्॥११५-११६॥
सुभूषण
s.c
सुभूषर्म्-्इसका्ववस्तार्चार्भागों्से्एवं्लम्बाई्उससे्दो्भाग्अधिक्रक्खा्जाता्है ्।्एक्
भाग्से्चारो्ओर्मण्डप्एवं्शेष्भाग्से्आूँगन्ननसमणत्करना्चादहये्।्मुख-भद्रक्(सामने्बना्
पोचण)्दो्भाग्ववस्तत
ृ ्एवं्एक्भाग्(आगे्ननकला्भाग)्माप्का्होना्चादहये्।्अधिष्ठान्पर्
बाहरी्भाग्में ्बत्तीस्स्तम्भ्होने्चादहये्।्सभी्अलंकरर्ों्से्युक्त्इस्मण्डप्का्नाम्सुभूषर््
ok
होता्है ्।्॥११७-११८॥
आहपय
आहलय्-्इस्मण्डप्की्चौड़ाई्पाूँच्भाग्एवं्लम्बाई्उससे्दो्भाग्अधिक्होती्है ्।्चारो्ओर्
मण्डप्एक्भाग्से्एवं्शेष्भाग्से्कूि्ननसमणत्करे ्या्(खल
ु ा)्आूँगन्छोड़्दे ना्चादहये्।्तीन्
Bo
भाग्ववस्तार्वाला्एक्भाग्का्मख
ु भद्र्ननसमणत्करना्चादहये्।्अधिष्ठान्चालीस्स्तम्भों्से्
यक्
ु त्होना्चादहये्।्ववधचर्एवं्सभी्अलंकारों्से्यक्
ु त्आहत्य्संज्ञक्मण्डप्सभी्स्थानों्के्
सलये्उपयक्
ु त्होता्है ्॥११९-१२१॥
स्त्रग
ु ाख्य
44
स्रग
ु ्मण्डप्-्यह्मण्डप्छः्भाग्ववस्तत
ृ ्होता्है ्एवं्इसकी्लम्बाई्चौड़ाई्से्दो्भाग्अधिक्
होती्है ्।्मध्य्भाग्में ्चार्भाग्लम्बा्एवं्दो्भाग्चौड़ा्सभागार्होता्है , न्जसके्चारो्ओर्
मण्डप्होता्है ्।्दो्भाग्से्मुखभद्र्का्ननमाणर््इच्छानुसार्ककसी्भी्ददशा्में ्ककया्जा्सकता्है ्
।्अधिष्ठान्साठ्स्तम्भों्से्युक्त्होता्है ्तथा्नाससयाूँ्ननसमणत्होती्है ्।्सभी्आभरर्ों्से्
सुसन्ज्जत्एव्मनोहर्इस्मण्डप्की्संज्ञा्स्रग
ु ्है ्॥१२२-१२३॥
कोण
कोर््-्यह्मण्डप्सात्भाग्ववस्तत
ृ ्एवं्लम्बाई्में ्चौड़ाई्से्दो्भाग्अधिक्होता्है ्।्तीन्
भाग्चौड़ा्एवं्पाूँच्भाग्लम्बा्इसका्सभाङ्गर््होता्है ्।्इसके्चारो्ओर्मण्डप्दो्भाग्से्
ननसमणत्होता्है ्एवं्इच्छानुसार्ददशा्में ्सभवत्त्ननसमणत्की्जा्सकती्है ्।्मुखभद्र्तीन्भाग्चौड़ा्
एवं्एक्भाग्ननगणम्से्युक्त्होता्है ्।्यह्आवश्यकतानुसार्नाससयों्से्युक्त्होता्है ्एवं्इसका्
अधिष्ठान्बहत्तर्स्तम्भों्से्यक्
ु त्होता्है ्।्कोर्संज्ञक्यह्मण्डप्सभी्अलंकरर्ों्से्सस
ु न्ज्जत्
होता्है ्।्॥१२४-१२५-१२६॥
खिाट
खवणि्-्इस्मण्डप्की्चौड़ाई्आठ्भाग्एवं्लम्बाई्उससे्दो्भाग्अधिक्होती्है ्।्मध्य्भाग्
में ्दो्भाग्चौड़ा्एवं्चार्भाग्लम्बा्जल-स्थान्होना्चादहये्।्चारो्ओर्एक्भाग्से्असलधद्र्
एवं्उसके्बाहर्दो्भाग्से्मण्डप्होना्चादहये्।्॥१२७-१२८॥
उसके्मध्य्भाग्में ्स्तम्भ्नहीं्होना्चादहये्।्अभीन्प्सत्ददशा्में ्सभवत्त्होनी्चादहये्।्पहले्के्
समान्अड़सठ्एवं्मुख-भद्र्होना्चादहये्।्मुखभाग्पर्एक्भाग्से्प्रवेश्एवं्मुखभाग्सीदढ़यों्
से्युक्त्होना्चादहये्।्ववसभधन्अलंकारो्से्सुसन्ज्जत्खवणिसंज्ञक्यह्मण्डप्दे वों्आदद्के्सलये्
प्रशस्त्होता्है ्।्॥१२९-१३०॥
om
श्रीरूप
श्रीरूप्-्यह्मधडप्नौ्भाग्ववस्तत
ृ ्होता्है ्एवं्इसकी्लम्बाई्चौड़ाई्से्दो्भाग्अधिक्होती्है ्
।्चारो्ओर्एक्भाग्से्असलधद्र्एवं्उसके्बाहर्दो्भाग्से्मण्डप्होता्है ्।्मध्य्भाग्में ्
स्तम्भ्नही्होता्है ्तथा्बाहर्की्ओर्एक्भाग्से्मागण्होता्है ्॥१३१-१३२॥
s.c
इसमें ्उनहत्तर्स्तम्भ्होते्है ्तथा्इन्च्छत्ददशा्में ्द्वार्एवं्सभवत्त्का्ननमाणर््ककया्जाता्है ्।्
पूवव
ण र्र्णत्रीनत्से्मुखभद्र्होता्है , जो्मागण्से्यक्
युक्त्इस्मण्डप्को्श्रीरूप्कहते्है ्॥१३३॥
ु त्या्उसके्ववना्होता्है ्।्ववसभधन्अंगो्से्
मङ्गल
ok
मङ्गल्-्यह्मण्डप्दस्भाग्चौड़ा्एवं्लम्बाई्उससे्दो्भाग्अधिक्होती्है ्।्मध्य्भाग्में ्दो्
भाग्चौड़ा्एवं्चार्भाग्लम्बा्सभागार्होता्है ्।्चारो्ओर्एक्भाग्से्असलधद्र्एवं्एक्भाग्
से्जल-स्थान्होता्है ्॥१३४-१३५॥
उसके्बाहर्चारो्ओर्दो्भाग्से्मण्डप्होता्है ्।्स्तम्भ, सभवत्त, मख
ु भद्र्आदद्का्ननमाणर््
Bo
इच्छानस
ु ार्ककया्जाता्है ्।्अथवा्मध्यकूि्एवं्असलधद्र्पहले्के्सदृश्ननसमणत्करना्चादहये्।्
सभी्मण्डपों्को्जल-स्थान्के्ववना्ही्ननसमणत्करना्चादहये्।॥१३६-१३७॥
दोनों्पाश्वों्में ्दो्भाग्से्चौकोर्छः्कूिों्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्सामने्एवं्पीछे ्दो्भाग्
चौड़ा्एवं्चार्भाग्लम्बा्कोष्ठ्ननसमणत्करना्चादहये्।्कोनों्पर्लाङ्गल-सभवत्त्तथा्चारो्ओर्
44
सभवत्त्ननसमणत्करनी्चादहये्या्सभवत्त्नही्भी्हो्सकती्है ्।्यह्खल
ु ा्अथवा्ढूँ का्हो्सकता्है ्।्
वही्स्तम्भ्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्॥१३८-१३९॥
सभी्अंगो्से्युक्त्इस्मण्डप्की्संज्ञा्मङ्गल्है ्।्आठ्चतुष्कोर््से्यक्
ु त्ये्(आयताकार)्
मण्डप्दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओं्के्सलये्कहे ्गये्है ्॥१४०॥
पूवोक्त्चतुष्कोर््(आयताकार)्मण्डपों्में ्चौड़ाई्में ्एक-एक्भाग्बढ़ाते्हुये्वहाूँ्तक्लम्बाई्का्
माप्रखना्चादहये, जब्तक्लम्बाई्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी्न्हो्जाय्।्बुद्धिमान्स्थपनत्को्मण्डप्
में ्स्तम्भ्एवं्सभवत्त्आदद्सबी्अलंकरर्ों्का्इच्छानुसार्एवं्न्जस्प्रकार्सुधदर्लगे, उस्प्रकार्
ननमाणर््करना्चादहये्।्अब्वैश्य्एवं्शूद्रो्के्अनुकूल्आठ्आयताकार्मण्डपों्का्वर्णन्ककया्
जा्रहा्है ्।्॥१४१-१४२॥
मागा
मागण्-्इस्मण्डप्का्ववस्तार्दो्भाग्एवं्लम्बाई्ववस्तार्की्दग
ु न
ु ी्होनी्चादहये्।्इसमें ्पधद्रह्
स्तम्भ्हों्एवं्दो्भाग्(चौड़ा)्एवं्एक्भाग्(बाहर्की्ओर्ननकला)्मख
ु भद्रक्(प्रोच)्होना्चादहये्
।्इसका्सोपान्पाश्वण्में ्ननसमणत्होना्चादहये्तथा्नाससकाओं्से्यह्सुशोसभत्होना्चादहये्।्
इसका्मुख-भाग्इन्च्छत्ददशा्में ्रखना्चादहये्।्इसे्मागण्संज्ञक्मण्डप्कहते्है ्॥१४३-१४४॥
सौभद्र्-्सौभद्र्मण्डप्का्ववस्तार्तीन्भाग्एवं्लम्बाई्ववस्तार्की्दग
ु ुनी्होती्है ्।्यह्
अट्ठाईस्स्तम्भों्से्युक्त्होता्है ्एवं्सामने्एक्भाग्से्वार्(मागण)्से्ननसमणत्होता्है ्।्उधचत्
रीनत्से्नाससयों्एवं्स्तम्भों्से्युक्त्यह्सुधदर्मण्डप्सौभद्र्संज्ञक्होता्है ्॥१४५-१४६॥
सुन्दर
सुधदर्-्इस्मण्डप्की्चौड़ाई्चार्भाग्एवं्लम्बाई्उसकी्दग
ु ुनी्होती्है ्।्मध्य्भाग्दो्भाग्
चौड़ा्एवं्चार्भाग्लम्बा्होता्है , न्जस्पर्कूि्ननसमणत्होता्है ्अथवा्वहाूँ्(खल
ु ा्हुआ)्आूँगन्
om
होता्है ्।बत्तीस्स्तम्भों्से्युक्त्इस्मण्डप्में ्एक्भाग्से्मुख-भद्रक्ननसमणत्होता्है ्।्सुधदर्
नामक्यह्मण्डप्आवश्यकतानुसार्नाससयों्एवं्स्तम्भों्से्युक्त्होता्है ्॥१४७-१४८॥
साधारण
सािारर््-्यह्मण्डप्पाूँच्भाग्ववस्तत
ृ ्एवं्लम्बाई्में ्चौड़ाई्से्चार्भाग्अधिक्होता्है ्।्
s.c
बगल्में ्दो्भाग्चौड़े्एवं्तीन्भाग्लम्बे्दो्आूँगन्होते्है ्।्इसमें ्छप्पन्खम्भे्होते्है ्एवं्
सामने्एक्भाग्से्वार्ननसमणत्होता्है ्।्तीन्भाग्ववस्तत
ृ ्एवं्एक्भाग्(बाहर्ननकला)्माप्से्
मुख-भद्रक्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्मुख्भाग्पर्सोपान्एवं्चारो्ओर्सभवत्त्होनी्चादहये्।्
आवश्यकतानुसार्नासी्आदद्अंगो्से्युक्त्इस्मण्डप्को्सािारर््कहते्है ्॥१४९-१५१॥
ok
सौख्य
सौख्य्-्यह्छः्भाग्चौड़ा्एवं्चौड़ाई्से्तीन्भाग्अधिक्लम्बा्होता्है ्।्मध्य्भाग्में ्दो्
भाग्चौड़ा्एवं्पाूँच्भाग्लम्बा्सभागार्होता्है ्।्चारो्ओर्दो्भाग्से्मण्डप्एवं्सामने्एक्
भाग्से्वार्ननसमणत्होता्है ्।्पहले्के्समान्मख
ु -भद्रक्ननसमणत्होता्है ्एवं्नाससकाओं्से्
Bo
सस
ु न्ज्जत्होता्है ्।्साठ्स्तम्भों्से्एवं्सभी्अंगो्से्यक्
ु त्इस्मण्डप्की्संज्ञा्सौख्य्है ्।्यह्
सभी्लोगों्के्सलये्अनक
ु ू ल्होता्है ्॥१५२-१५४॥
ईश्िरकान्त
ईश्वरकाधत्-्इस्मण्डप्की्चौड़ाई्सात्भाग्से्एवं्लम्बाई्उससे्चार्भाग्अधिक्होती्है ्।्
44
om
भाग्में ्दो्भाग्चौड़ा्एवं्पाूँच्भाग्लम्बा्दो्आूँगन्होना्चादहये्।्चारो्ओर्उसके्बाहर्दो्
भाग्से्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्मण्डप्बनाना्चादहये्।्सामने्एवं्पीछे ्पाूँच्भाग्चौड़े्एवं्दो्भाग्
लम्बे्(गहरे )्भद्र्(पोचण)्होने्चादहये्॥१६४-१६६॥
दोनो्पाश्वो्में ्तीन्भाग्चौड़े्एवं्एक्भाग्लम्बे्दो्भद्रक्होने्चादहये्।्कोनों्पर्लाङ्गल्के्
s.c
समान्सभवत्त्एवं्स्तम्भ्होने्चादहये्।्अधिष्ठानपर्एक्सौ्अट्ठाईस्स्तम्भ्ननसमणत्होने्चादहये्
।्अधय्अवयवों्को्आवश्यकतानुसार्उधचत्रीनत्से्बुद्धिमान्स्थपनत्को्संयुक्त्करना्चादहये्
।्सवणतोभद्र्संज्ञक्मण्डप्सभी्अलंकरर्ों्से्युक्त्होता्है ्।्इस्प्रकार्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्इस्
मण्डप्का्ननमाणर््दे वाददकों्के्भवन्में ्करना्चादहये्॥१६७-१६९॥
ok
मण्डपमुखाय
मण्डप्की्लम्बाई्-्मण्डपों्की्लम्बाई्का्वविान्उनकी्चौड़ाई्के्अनुसार्ककया्जाता्है ्।्
जानतरूप्का्वर्णन्पहले्ककया्जा्चक
ु ा्है ्।्छधदरूप्में ्लम्बाई्चौड़ा्से्एक्भाग्अधिक्होती्है ्
।्ववकलप्रीनत्में ्दो्भाग्एवं्आभास्रीनत्में ्तीन्भाग्अधिक्लम्बाई्रक्खी्जाती्है ्।्चौकोर,
Bo
मण्डपों्के्अधय्भेद्-्गह
ृ ववधयास्के्अंगभत
ू ्रङ्गस्थल्को्गह
ृ मण्डप्कहते्है ्।्न्जस्प्रकार्
प्रासाद्में ्गभणगह
ृ ्होता्है , उसी्प्रकार्गह
ृ ्में ्मण्डप्होता्है ्जो्ववशेष्रूप्से्असलधद्र्से्यक्
ु त्
होता्है ्।्अधिष्ठान्आदद्से्युक्त्यह्मण्डप्दे वालय्के्आकार्का्होता्है ्।्न्जस्गह
ृ मण्डप्में ्
वो्ववसशष्ि्अंग्होते्है , जो्दे वालय्के्मण्डप्के्अंग्होते्है , उसे्गह
ृ प्रासादमण्डप्कहते्है ्॥१७३-
१७४॥
यदद्मण्डप्के्ऊपर्तल्ननसमणत्हो्तो्उसे्मासलकामण्डप्कहते्है ्।्यह्मण्डप्ईंिो, सशलाओं,
काष्ठ, गजदधत्या्िातुओं्से्ननसमणत्होता्है ्।्यह्सभी्प्रकार्के्समधश्रत्द्रव्यों्से्ननसमणत्होता्
है ्॥१७५॥
जलक्रीडामण्डप
जलक्रीडा-मण्डप्-्राजा्की्इच्छा्के्अनस
ु ार्जल-क्रीडा्से्यक्
ु त्मण्डप्चौकोर्या्आयताकार्हो्
सकता्है ्।्इसमें ्एक्या्अनेक्तल्हो्सकते्है ्॥१७६॥
यह्मण्डप्खल
ु ा्अथवा्(सभवत्त्से)्ढूँ का्हो्सकता्है ्।्यह्अंनि-सभवत्तयों्(पंन्क्त्में ्ननररत्स्तम्भों)्
से्नघरा्होता्है ्।्ददशाओं्में ्भद्र्(पोचण)्ननसमणत्होते्है ्।्यह्मध्य्भाग्में ्रङ्गसदहत्होता्है ्
अथवा्वहाूँ्आूँगन्होता्है ्।्ऊपरी्तल्स्तम्भों्अथवा्सभवत्तयों्से्नघरा्होता्है ्॥१७७॥
इसकी्सीढी्गुप्त्द्वार्के्पीछे ्होती्है , न्जसके्द्वार्पर्बहुत्से्यधर्ननसमणत्होते्है ्।्ये्गज,
भूत, हं स, व्याल, कवप्एवं्शालभन्ञ्जका्(पेड़्की्शाख्पकड़्कर्तोड़ने्की्मुद्रा्में ्स्री्आकृनत)्
आदद्के्रूप्में ्होते्है , न्जनके्भीतर्जल्भरा्होता्है ्॥१७८॥
मण्डप्का्शीषण्भाग्हम्यण्के्शीषण्भाग्के्समान्या्सभागार्के्शीषण्भाग्के्समान्होता्है ्।्
यह्कूि, नीड, गज-तुण्ड्(हाथी्की्सूँूड)्एवं्कोष्ठक्से्सुसन्ज्जत्होता्है ्।्यह्तोरर््आदद, अनेक्
om
जालकों्(झरोखों)्एवं्नाससकाओं्से्अलंकृत्होता्है ्।्मण्डप्के्सामने्या्मध्य्भाग्में ्अनेक्
यधरों्से्युक्त्जलाशय्होता्है , जो्ईंिों्या्प्रस्तरों्से्सुसन्ज्जत्होता्है ्।्जल्से्युक्त्यह्
जलाशय्गुप्त्होता्है ्अथवा्खल
ु ा्होता्है ्॥१७९-१८०॥
इस्प्रकार्राजाओं्के्जल-क्रीडा्के्सलये्न्जस्मण्डप्का्उललेख्ककया्गया्है , वह्रमर्ीय्स्थान्
भोग्प्रदान्करने्वाला्होता्है ्॥१८१॥
मण्डपयोग्यिक्ष
s.c
में ्रहता्है ्।्यह्अलंकारों्से्युक्त, ववसभधन्प्रकार्के्धचरों्से्युक्त, स्री, सौभाग्य, आरोग्य्एवं्
ृ
मण्डप्के्अनुकूल्वख
ृ ्-्खददर, खाददर, वन्ह्न, ननम्ब, साल, सससलधद्रक, वपसशत, नतधदक
ु , राजादन, होम्
ok
एवं्मिक
ू ्के्वक्ष
ृ ्(के्काष्ठ)्स्तम्भ्ननमाणर््के्सलये्अनुकूल्होते्है ्।्ये्वक्ष
ृ ्दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्
राजाओं्के्सम्बद्ि्सभी्कायो्के्सलये्प्रशस्त्होते्है ्।्पूवोक्त्सभी्वक्ष
ृ ्(काष्ठ)्सभी्प्रकार्के्
स्तम्भों्के्सलये्उपयुक्त्होते्है ्॥१८२-१८३॥
वपसशत, नतधदक
ु , ननम्ब, राजादन, मिक
ू ्एवं्सससलधद्र्के्वक्ष
ृ ्से्ननसमणत्स्तम्भ्वैश्यों्एवं्शद्र
ू ो्के्
Bo
सलये्होते्है ्।्स्तम्भों्की्आकृनतयाूँ्वत्त
ृ ाकार्चौकोर, अष्िकोर््या्सोलह्कोर््की्हो्सकती्है ्
एवं्त्वक्सार्अथाणत्बाूँस्से्ननसमणत्स्तम्भ्सभी्के्सलये्अनक
ु ू ल्होती्है ्॥१८४-१८५॥
ताल, नासलकेर्(नाररयल), क्रमक
ु , वेर््ु (बाूँस)्एवं्केतकी्वक्ष
ृ ्सभी्के्सलये्अनक
ु ू ल्होते्है ्।्ईंिो,
प्रस्तरों्एवं्वक्ष
ृ ों्(काष्ठों)्से्ननसमणत्भवन्दे वों, ब्राह्मर्ों्तथा्राजाओं्(क्षबरयों)्-इन्सभी्वर्ण्के्
44
गह
ृ स्वासमयों्के्सलये्उपयक्
ु त्होता्है ; ककधत्वैश्यों्एवं्शद्र
ू ो्के्भवन्में ्प्रस्तर्का्प्रयोग्कभी्भी्
अनक
ु ू ल्नही्होता्है ्॥१८६-१८७॥
मुखमन्डप
मुखमण्डप्-्मन्धदर्के्मुख-भाग्पर्ननसमणत्मण्डप्श्रेष्ठ्होता्है ्।्उनके्आद्यङ्ग्(अधिष्ठान),
स्तम्भ, उत्तर्एवं्वाजन्मन्धदर्के्समान्होते्है ; ककधतु्उनके्माप्उनसे्सात, आठ, नौ्या्दस्
भाग्कम्होते्है ्।्अथवा्सभी्अंगो्का्माप्पूवण-वर्र्णत्माप्के्समान्रखना्चादहए्॥१८८-१८९॥
मण्डपों्की्ददशा्एवं्उनका्प्रमार््वही्होना्चादहए, जो्मन्धदरों्का्कहा्गया्है ्।्सभवत्त्की्
चौड़ाई्स्तम्भ्की्चौड़ाई्से्पाूँच, चार, तीन्अथवा्दग
ु ुनी्होनी्चादहये्।्काष्ठस्तम्भ्के्व्यास्से्
सभवत्त्की्चौड़ाई्उससे्चतुथांश्कम्तीसरे ्भाग्के्बराबर्या्आिे्के्बराबर्होनी्चादहए्।्
अथवा्कुड्यस्तम्भ्(सभवत्त्से्संलग्न्स्तम्भ)्की्चौड़ाई्सभवत्त्की्चौड़ाई्बराबर्भी्हो्सकता्है ्
॥१९०-१९१॥
मण्डपगभास्थान
मण्डप्का्गभणस्थल्-्सशलाधयास्स्थल्-्मण्डप्के्गभण-स्थल्तीन्हो्सकते्है ्-्मध्य्आूँगन्के्
दक्षक्षर््भाग्में ्स्तम्भ्के्मूल्में , द्वार्के्दक्षक्षर््भाग्में ्स्तम्भ्के्नीचे्या्कोने्में ्द्ववतीय्
स्तम्भ्के्नीचे्।्इन्तीन्स्थानों्के्ववषय्में ्मुननजन्कहते्है ्॥१९२॥
अमलन्द्र
असलधद्-्(मण्डप्आदद्के)्सामने, पीछे ्या्चारो्ओर्असलधद्र्संज्ञक्मागण्होता्है , न्जसकी्चौड़ाई्
मण्डप्की्चौड़ाई्से्एक्भाग्या्डेढ़्भाग्होनी्चादहये्।्यह्दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओ्के्
मण्डपों्के्सलये्वविान्ककया्गया्है ्।्लम्बाई्मण्डप्के्अनुसार्होती्है ्॥१९३॥
om
मासलका्-्मासलका्के्अवयवों्के्प्रासाद्के्अंगो्के्अनुसार्रखना्चादहये्।्ऊपरी्तल्की्सभवत्त्
भूतल्की्मूल्सभवत्त्के्ऊपर्ननसमणत्करनी्चादहये्एवं्स्तम्भों्को्स्तम्भों्के्ऊपर्ननसमणत्करना्
चादहये्।्आवश्यकतानुसार्तल्एक-दो्या्तीन्हो्सकते्है ्॥१९४॥
कुछ्ववद्वानों्के्अनुसार्स्तम्भों्के्बाहरी्भाग्के्अनुसार्उनकी्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्का्मान्
s.c
लेना्चादहये; जबकक्अधय्ववद्वानों्के्मतानुसास्र्मान्का्ग्रहर््सभवत्त्के्मध्य्से्करना्चादहये्।्
ननवास-योग्य्मण्डप्के्शीषण्का्ननमाणर््शाला्के्आकार्का्या्सभा्के्आकार्का्करना्चादहये्
॥१९५-१९६॥
मण्डप्के्एक, दो, तीन्या्चार्मुखभाग्हो्सकते्है ्।्ये्भद्र्से्युक्त्या्भद्ररदहत्हो्सकते्है ्।्
ok
मध्य्भाग्में ्ऊपर्कूि्हो्सकता्है , रङ्गस्थल्या्आूँगन्हो्सकता्है ्।्ये्मण्डप्चौकोर्या्
आयताकार्हो्सकते्है ्।्ये्सभी्दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओं्के्अनुकूल्होते्है ्।्आयताकार्
मण्डप्वैश्यों्एवं्शूद्रों्के्अनुकूल्होते्है ्॥१९७॥
सभाविधानम
Bo
तत्र्सभाभेद
सभागार्का्वविान्एवं्भेद्-्अब्नौ्प्रकार्के्सभागारों्के्लक्षर््का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्।्
इनमें ्प्रथम्मललवसधतक्संज्ञक्है ्।्इसके्पश्चात्पञ्चवसधतक, एकवसधतक, सवणभोभद्र,
पावणतकूमणक, माहे धद्र, सोमवत्त
ृ , शक
ु ववमान्एवं्श्रीप्रनतन्ष्ठत्होते्है ्।्इन्नौ्सभाओं्में ्सें्पाूँच्
44
om
सवणतोभद्र्-्यह्सभागार्चार्कोर्ों्वाला, चार्भाग्माप्का, बाहर्सोलह्स्तम्भों्से्युक्त, भीतरी्
भाग्में ्आठ्स्तम्भ्एवं्आठ्लम्बी्लुपाओं्से्युक्त, सोलह्कूि, चौबीस्स्वन्स्तपुच्छ्तथा्
अड़तालीस्वलक्षों्से्युक्त्होता्है ्।्मध्य्में ्कूि्होता्है ्।्सवणतोभद्र्संज्ञक्सभागार्चार्चौकोर्
(कक्षों)्से्युक्त्होता्है ्।्॥२०८-२०९॥
पािातकूमाक
s.c
पावणतकूमणक्-्पावणतकूमणक्सभागार्आयताकार, चार्भाग्चौड़ा्तथा्पाूँच्भाग्लम्बा्होता्है ्।्
बाहरी्भाग्में ्अट्ठारह्स्तम्भ्एवं्भीतरी्भाग्में ्दस्स्तम्भ्होते्है ्तथा्अट्ठारह्रन्श्मयाूँ्
(लुपायें)्होती्है ्।्सोलह्एवं्चौदह्कूि्होते्है ्।्छः्(या्सोलह)्बाहर्एवं्चौदह्भीतर्होते्है ्।्
ok
इसमें ्चौसठ्वलक्ष्तथा्सोलह्चतुष्कोष्ठ्होते्है ्॥२१०-२११॥
माहे न्द्र
माहे धद्र्सभागह
ृ ्चार्भाग्चौड़ा्एवं्छः्भाग्लम्बा्होता्है ्।्इसमें ्बीस्स्तम्भ्एवं्भीतर्स्तम्भ्
होते्है ्।्इसके्भीतरी्भाग्में ्आठ्कूि्एवं्बाहरी्भाग्में ्सोलह्कूि्होते्है ्तथा्सोलह्लम्बी्
Bo
रन्श्मयाूँ्(लप
ु ाये)्होती्है ्॥२१२-२१३॥
इसमें ्चौबीस्स्वन्स्तक्एवं्मध्य्में ्तीन्कूि्होते्है ्तथा्इसमें ्अस्सी्वलक्ष्एवं्उधतालीस्कूि्
होते्है ्।्भीतरी्भाग्में ्स्तम्भ्नही्होते्है ्एवं्भाग्के्अनस
ु ार्वही्योजना्करनी्चादहये्।्
मनु नयों्ने्माहे धद्र्सभागार्को्राजाओं्के्अनक
ु ू ल्बताया्है ्॥२१४-२१५॥
44
सोमिर्त्
ृ
सोमवत्त
ृ ्-्इसकी्चौड़ाई्चार्भाग्एवं्लम्बाई्सात्भाग्होती्है ्।्भीतरी्भाग्में ्चौदह्एवं्बाहर्
बाईस्स्तम्भ्होते्है ्तथा्चौबीस्स्वन्स्तपुच्छ्होते्है ्।्सोलह्लम्बी्रन्श्मयाूँ्एवं्नछयानबे्वलक्ष्
होते्है ्।्मध्य्भाग्में ्चार्कूि, भीतरी्भाग्में ्दस्एवं्बाहर्अट्ठारह्कूि्होते्है ्।्इसमें ्चार्
कोदियाूँ्(कोदिलुपायें)्एवं्सात्कर्णिारायें्होती्है ्तथा्मध्य्भाग्में ्स्तम्भ्नही्होते्है ्।्इस्
सभागह
ृ ्की्संज्ञा्सोमवत्त
ृ ्होती्है ्॥२१६-२१८॥
िुकविमान
शुकववमान्-्यह्सभागार्पाूँच्भाग्चौड़ा्एवं्आठ्भाग्लम्बा्होता्है्।्इसमें ्छब्बीस्स्तम्भ्
होते्है ्।्अट्ठारह्स्तम्भ्भीतर्होते्हैं्एवं्चार्कोदियों्(कोने्की्लुपाओं)्से्युक्त्होते्है ्।्यह्
बत्तीस्स्वन्स्तक्एवं्बहत्तर्वलक्षों्से्युक्त, सशरोभाग्पर्चार्कूिों्से्युक्त्तथा्सोलह्रन्श्मयों्
(लप
ु ाओं)्से्यक्
ु त्होता्है ्।्यह्चौबीस्अधतःकूिों्एवं्बाईस्बदहःकूिों्से्यक्
ु त्होता्है ्।्आठ्
कर्णिाराओं्से्समन्धवत्यह्सभागार्शक
ु ववमान्संज्ञक्होता्है ्॥२१९-२२१॥
श्रीप्रनतल्ष्ठत
श्रीप्रनतन्ष्ठत्-्इस्सभागह
ृ ्की्चौड़ाई्पाूँच्भाग्एवं्लम्बाई्नौ्भाग्होती्है ्।्इसमें ्अट्ठाईस्
गार्(स्तम्भ, पाद)्बत्तीस्स्वन्स्तपुच्छ, बत्तीस्भीतरी्भाग्के्स्तम्भ्एवं्उसी्प्रकार्मध्य्रन्श्मयाूँ्
(मध्य्में ्न्स्थत्लुपाये), सशरोभाग्पर्पाूँच्कूि्एवं्चार्कोदियों्(कोदि-लुपाओं)्से्यह्युक्त्होता्
है ्।्इसमें ्एक्सौ्साठ्वलक्ष्होते्है ्।्इसमेम्दस्कूि्होते्है ्एवं्इस्सभागह
ृ ्की्संज्ञा्
श्रीप्रनतन्ष्ठत्होती्है ्।्॥२२२-२२३-२२४॥
उसी्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्के्माप्में ्तीन-तीन्भाग्बढ़ाने्से्चार्आयताकार्भवन्बनते्है , न्जनमें ्
बारह्भीतरी्भाग्में ्एवं्सोलह्बाहरी्भाग्में ्स्तम्भ्बनते्है ्।्इसमें ्एक्भाग्से्वार्(मागण्या्
om
पोचण)्तथा्दो्भाग्से्शाला्ननसमणत्होती्है ्।्बाहरी्एवं्भीतरी्भाग्में ्चार्वार्(चार्स्थानों्
पर)्बहत्तर्स्तम्भ्बनते्है ्।्मन्धदर्के्सदृश्अलंकृत्कर्इसमें ्चार्द्वार्एवं्दो्चसू लकायें्
ननसमणत्होती्है ्।्यह्श्रीप्रनतन्ष्ठत्संज्ञक्सभागार्राजा्के्सलये्श्रीप्रनतष्ठा्वाला्(प्रनतष्ठकाकारक)्
होता्है ्॥२२५-२२७॥
उपयक्
s.c
ुण त्माप्मे्एक-एक्भाग्बढ़ाने्पर्सभाओं्के्अधय्प्रकार्प्राप्त्होते्है ्।्उनके्नाम्छधद,
ववकलप्एवं्आभास्है ्।्उनमें ्स्तम्भ, रन्श्म्(लुपा), वलक्ष्एवं्कूि्का्आवश्यकतानुसार्ननमाणर््
करना्चादहये्।्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्के्भाग्(माप्की्ईकाई)्इच्छानुसार्एवं्न्जससे्सभी्सुधदर्
लगे, उस्प्रकार्रखना्चादहये्।्॥२२८-२२९॥
ok
कूि्को्लम्बी्रन्श्मयों्से्युक्त्ननसमणत्करना्चादहये्अथवा्कूि्को्चौकोर्बनाना्चादहये्।्
स्तम्भों्के्ऊपर्उत्तर्का्उद्गम्(ऊूँचाई)्दन्ण्डका्के्ननगणम्के्बराबर्रखना्चादहये्।्चसू लका्का्
लन्म्बक्(ऊपर्लिकता्भाग)्तुला्एवं्प्रस्तर्के्भाग्के्अनुसार्होना्चादहये्।्ऋजु्अथवा्
स्वन्स्तक्वलक्ष्में ्प्रववष्ि्होना्चादहये्।॥२३०-२३१॥
Bo
प्रनतचसू लक्का्ववधयास्एवं्मद्
ु गर्का्आलम्बन्न्स्थर्होता्है ्।्आूँगन्के्वलक्ष्अनल
ु ोम्(नीचे्
से्ऊपर्सीिे)्एवं्प्रनतलोम्(ववपरीत्ववधि)्से्ननसमणत्होते्है ्।्दो्कोदियों्(कोदि-लप
ु ाओं)्का्
संयोग्गभणगह
ृ ्के्दादहने्नछद्र्में ्होता्है ्।्सशलपी्को्सवणप्रथम्स्तम्भ्का्वविान्करना्चादहये्
॥२३४-२३५॥
पादबधि्अधिष्ठान्स्तम्भ्के्माप्का्आिा्होना्चादहये्।्यदद्ककसी्अंग्आदद्का्वर्णन्नही्
ककया्गया्हो्तो्उसका्प्रयोग्आवश्यकतानुसार्करना्चादहये्।्सभा्हल्के्लाङ्गल्के्समान्
सभवत्त्से्युक्त, मध्य्भाग्रङ्ग्से्युक्त्या्रङ्ग्से्रदहत्हो्सकता्है ्।्सभा्सभा्के्अनुरूप्
(सभ्य)्लोगों्से्बनती्है ्-्ऐसा्प्राचीन्ववद्वानों्ने्कहा्है ्।्सभ्यजनों्के्मागण्ननिाणररत्होते्है ्
॥२३६-२३७॥
मयमतम्-्अध्याय्२६
्
om
िाला्की्चौड़ाई - यदद्भवन्एक्शाला्से्ननसमणत्हो्तो्उसके्ववस्तार्के्ग्यारह्माप्बनते्है ्।्
ये्माप्तीन्हाथ्से्प्रारम्भ्होकर्तेईस्हाथ्तक्तथा्चार्हाथ्से्लेकर्चौबीस्हाथ्तक्दो-दो्
बढ़ाते्हुये्सलये्जाते्है ्॥३-४॥
यदद्भवन्द्ववशाल्या्बरशाल्हो्तो्उसका्सात्प्रकार्का्ववस्तार्सम्भव्है ्।्यह्माप्सात्या्
आठ्हाथ्से्प्रारम्भ्होकर्उधनीस्(सात्से्उधनीस)्या्बीस्हाथ्(आठ्से्बीस)्तक्क्रमशः्दो-
s.c
दो्हाथ्बढ़ाते्हुये्जाता्है ्॥५॥
िालायामः
िाला्की्लर्मबाई - शाला्की्लम्बाई्उसकी्चौड़ाई्से्सवा्भाग, डेढ्भाग्पौने्दो्या्चौड़ाई्की्
दग
ु न
ु ी्होनी्चादहए्।्इसमें ्चतथ
ु ांश, आिा, तीन्चौथाई्या्चौड़ाई्का्तीन्गन
ु ा्माप्अधिकतम्
ok
बढ़ाया्जा्सकता्है ्।्इस्प्रकार्लम्बाई्का्माप्आठ्प्रकार्से्सलया्जाता्है ्॥६-७॥
ये्सभी्लम्बाई्के्माप्दे वालय्के्सलये्अनक
ु ू ल्होते्है ्।्सामाधय्जन्के्सलये्दग
ु न
ु ी्लम्बाई्
अनक
ु ू ल्होती्है ्।्सभी्ववहार्एवं्आश्रम-वाससयों्(साि-ु संधयाससयों)्के्ननवास्के्सलये्दग
ु न
ु ी्या्
Bo
उससे्अधिक्लम्बाई्उपयक्
ु त्होती्है ्।्न्जस्आवास्में ्सभी्प्रकार्के्व्यन्क्त्एक्साथ्ननवास्
करते्हो, वहाूँ्भवन्की्लम्बाई्(बराबर्या)्चौड़ाई्की्दग
ु न
ु ी्होनी्चादहये्॥८॥
िालोत्सेधः
िाला्की्ऊँचाई - शाला्की्ऊूँचाई्पाूँच्प्रकार्की्होती्है ्-्ववस्तार्के्बराबर्ऊूँचाई, सवा्भाग्
44
om
में ्ननसमणत्करनी्चादहये्॥१६-१८॥
दक्षक्षर्, पन्श्चम्एवं्उत्तर्की्शाला्सम्पवत्त्तथा्पूव,ण दक्षक्षर््एवं्पन्श्चम्की्शाला्जय्प्रदान्करती्
है ्।्दक्षक्षर््एवं्पन्श्चम्से्रदहत्बरशाल-गह
ृ ्सवणदोषकारक्होता्है ्॥१९॥
लाङ्गल्शालगह
ृ ्गर्र्का्आदद्के्सलये्एवं्शूपश
ण ाल-गह
ृ ्(शोलक्१९)उग्र्कमण्द्वारा्आजीववका्
s.c
चलाने्वालों्के्सलये्अनुकूल्होता्है ्।्लाङ्गल्एवं्शूप्ण गह
ृ ों्में ्तथा्सभी्पथ
शालाववहीन्स्थानों्पर्द्वार्से्युक्त्सभवत्त्ननसमणत्करनी्चादहये्।्द्ववशाल्गह
तथा्बरशाल्गह
ृ क्शाला-गह
ृ ों्में ्
ृ ्में ्एक्सन्धि्
ृ ्में ्दो्सन्धियाूँ्होती्है ्।्अब्पूवव
ण र्र्णत्दण्डक्आदद्गह
ृ ों्के्ववधयास्का्वर्णन्
करता्हूूँ्॥२०-२१॥
ok
प्रथमदण्डकम
प्रथम्दण्डक - प्रथम्दण्डक्में ्ववस्तार्के्तीन्भाग्एवं्लम्बाई्के्चार्भाग्करने्चादहये्।्इनमें ्
गह
ृ ्की्चौड़ाई्दो्भाग्से्तथा्एक्भाग्से्सामने्वार्(मागण, बरामदा)्ननसमणत्करना्चादहये्।्
इसका्मख
ु भाग्खन्ण्डत्दण्ड्के्सामने्होना्चादहये्।्यह्आवास्सभी्लोगों्के्सलये्अनक
ु ू ल्
Bo
भाग्पव
ू ोक्त्रीनत्से्ननसमणत्करने्चादहये्।्इस्भवन्को्दण्डक्कहते्है ्॥२४-२५॥
भवन्की्द्वार-व्यवस्था्-्गह
ृ ्की्लम्बाई्के्नौ्भाग्करने्चादहये्।्इसमें ्पाूँच्भाग्दादहने्हाथ्
एवं्तीन्भाग्बाूँये्हाथ्में ्छोड़्दे ना्चादहये्।्इन्दोनों्छोड़े्गये्भाग्के्मध्य्में ्(अथाणत्एक्
भाग्में )्द्वार्की्स्थापना्करनी्चादहये्॥२६॥
कुछ्ववद्वानों्के्मतानुसार्मध्य्सूर्(अथाणत्लम्बाई्के्मध्य्बबधद)ु ्से्वाम्भाग्में ्मनुष्यों्के्
आवास्में ्द्वार्की्स्थापना्होनी्चादहये्।्सभी्भवनों्में ्शाला्की्लम्बाई्के्एक्भाग्में ्द्वार्
की्स्थापना्करनी्चादहये्॥२७॥
तत
ृ ीयदण्डकम
तत
ृ ीय्दण्डक - गह
ृ ्की्चौड़ाई्के्तीन्भाग्तथा्लम्बाई्के्उसके्दग
ु ुने्भाग्(छः्भाग)्करने्
चादहये्।्एक्भाग्से्चंक्रमर््तथा्मध्य्भाग्को्सभवत्त्से्युक्त्करना्चादहये्।्यह्कुलया्के्
समान्(मड़
ु ा्हुआ)्द्वार्से्यक्
ु त्होता्है ्तथा्शेष्भाग्पहले्के्समान्ननसमणत्होता्है ्।्वंश्
(मध्य-काष्ठ)्के्नीचे्गह
ृ ्होना्चादहये्एवं्इसके्अग्र्भाग्में ्रङ्गस्थल्ननसमणत्होना्चादहये्
॥२८-२९॥
इसके्चारो्ओर्सभवत्त्होनी्चादहये्एवं्रङ्गस्थल्स्तम्भों्से्युक्त्होना्चादहये्।्एक्भाग्के्
सामने, दोनों्पाश्वों्में ्या्वपछले्भाग्मे्असलधद्र्ननसमणत्होना्चादहये्।्इसका्अलंकरर््मन्धदर्
के्सदृश्करना्चादहये्तथा्इसकी्संज्ञा्दण्डक्होती्है ्।
चतुथद
ा ण्डकम
चतुथ्ा दण्डक - इस्भवन्के्मध्य्भाग्में ्रङ्गस्थल्होता्है ्तथा्वंश्(मध्य्में ्लगे्वंशसंज्ञक्
काष्ठ)्के्नीचे्एवं्ऊपर्कक्ष्होता्है ्।्भीतरी्भाग्में ्स्तम्भों्का्संयोजन्आवश्यकतानुसार्
होता्है ्।्वंश्के्सामने्द्वार्नही्होना्चादहये्।्इस्भवन्के्अधय्भाग्पूवव
ण र्र्णत्रीनत्से्
om
ननसमणत्होते्है ्।्इस्शाल्गह
ृ ्की्संज्ञा्दण्डक्होती्है ्॥३१-३२॥
पञ्चमदण्डकम
पाँचिाँ्दण्डक - इस्भवन्के्ववस्तार्के्छः्भाग्एवं्लम्बाई्के्बारह्भाग्होते्है ्।्एक्भाग्से्
चारो्ओर्असलधद्र्ननसमणत्होता्है ्तथा्दो्भाग्से्शाला्ननमाणर््होता्है ्।्इसके्सामने्इसी्के्
s.c
बराबर्भाग्से्असलधद्र्का्ननमाणर््होता्है ्।्भीतरी्स्तम्भों्का्संयोजन्आवश्यकतानुसार्करना्
चादहये्।्शाला्की्लम्बाई्के्अनुसार्दोनों्पाश्वों्में ्दो्कक्ष्ननसमणत्होते्है , जो्दो्भाग्चौड़े्एवं्
तीन्भाग्लम्बे्होते्है ्॥३३-३४॥
मध्य्भाग्में ्दो्भाग्चौड़ा्एवं्चार्भाग्लम्बा्रङ्गस्थल्होता्है ्।्शेष्अवयव्पहले्के्
ok
अनुसार्ननसमणत्होते्है ्।्इस्भवन्को्दण्डक्कहते्है ्॥३५॥
असलधद्का्प्रमार््-्द्ववशाल्एवं्बरशाल्भवन्में ्सामने्के्असलधद्र्के्ववस्तार्का्माप्भवन्के्
तीन्भाग्में ्एक्भाग, पाूँच्भाग्में ्दो्भाग, सात्भाग्में ्तीन्भाग्और्नौ्भाग्में ्चार्भाग्
होता्है ्॥३६॥
Bo
ये्सभी्दण्डकगह
ृ ्जानतशैली्के्होते्है ्।्ये्दे वो, ब्राह्मर्ों, राजाओं, नान्स्तकों, वैश्यों, शद्र
ू ो, यद्
ु ि्करने्
वाली्तथा्रूप्के्माध्यम्से्आजीववका्चलाने्वाली्न्स्रयों्के्सलये्प्रशस्त्कहे ्गये्है ्॥३७॥
मौमलकम
मौमलक - मौसलक्भवन्का्शीषणभाग्सभा्के्आकार्का्(बीच्में ्उठा्हुआ)्होता्है ्।्अथवा्यह्
44
कानन्(ववसशष्ि्शीषण्रचना)्से्यक्
ु त्होता्है ्।्इसे्मौसलक्भवन्कहते्है ्।्यह्पव
ू -ण वर्र्णत्लोगों्
के्सलये्प्रशस्त्होता्है ; ककधत्ु न्स्रयों्(सम्भवतः्रूप्के्द्वारा्आजीववका्वाली्न्स्रयों)्के्सलये्
उपयुक्त्नही्होता्है ्॥३८॥
स्िल्स्तकम
स्िल्स्तक - भवन्के्अग्र्भाग्में ्चार्भाग्से्भद्र्ननसमणत्करना्चादहये्तथा्ननगणम्(आगे्ननकला्
भाग)्दो्भाग्माप्का्होना्चादहये्।्आवास्तीन्नेरों्(ववसशष्ि्ननसमणनत)्से्युक्त्होता्है ्।्इस्
भवन्को्स्वन्स्तक्कहते्है ्एवं्यह्ववकलप्जानत्का्भवन्है ्।्यह्दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओं्के्
सलये्प्रशस्त्है ; ककधतु्अधत्यजों्(शूद्रो)्के्सलये्उपयुक्त्नही्होता्है ्॥३९-४०॥
चतुमख
ुा म
चतम
ु ख
ुा - भवन्के्सम्मख
ु ्न्जस्प्रकार्का्भद्र्होता्है , उसी्प्रकार्पीछे ्भी्(भद्र)्होता्है ्।्क्रकरी्
तथा्वंश्के्मल
ू ्भाग्एवं्अग्र्भाग्में ्चार्नेर्होते्है ्।्यह्अधिष्ठान्आदद्अंगो्से्यक्
ु त्
होता्है ्।्यह्दे वालय्के्समान्अलंकृत्और्नाससका, तोरर्, वातायन्आदद्अंगो्से्यक्
ु त्होता्है ्
।्यह्भव्चतुमख
ुण संज्ञक्होता्है ्तथा्आभास्शैली्में ्ननसमणत्होता्है ्।्यह्दे वों, ब्राह्मर्ों्और्
राजाओं्के्अनुकूल्एवं्सम्पवत्त्प्रदान्करने्वाला्होता्है ्॥४१-४३॥
दण्डकाददसामान्यलक्षणम
दण्डक्आदद्भिनों्के्सामान्य्लक्षण - दण्डक्आदद्चारो्भवनों्को्एक्तल्से्लेकर्पाूँच्तल्
तक्रक्खा्जा्सकता्है ्।्इसका्स्थान्एवं्अंगो्का्ववधयास्गह
ृ स्वामी्की्इच्छा्के्अनुसार्
करना्चादहये्॥४४॥
गज, अश्व्एवं्वष
ृ भ्आदद्प्रत्येक्पशु्का्आवास्पथ
ृ क््पंन्क्त्में ्होना्चादहये्।्यह्दो्या्तीन्
om
चसू लयों्(सम्भवतः्र्खड़की)्से्युक्त, प्रग्रीव्(मुखशाला)्से्युक्त्एवं्तलप्(द्वार)्से्युक्त्होता्है ्
।्इसकी्ऊूँचाई्(ववस्तार्के)्बराबर, सवा्भाग्या्डेढ़्भाग्अधिक्होनी्चादहये्।्दण्डक्एवं्
मौसलक्भवन्के्वारर््(द्वार)्इन्च्छत्ददशा्में ्ननसमणत्होने्चादहये्॥४५-४६॥
्वििालविधानम
चतुमख
ुा म
चतुमख
ुण ्द्ववशाल्भवन्-्चौकोर्द्ववशाल्गह
भाग्से्गह
s.c
ृ ्के्दस्भाग्कर्एक्भाग्से्बाहर्का्मागण्एवं्दो्
ृ ्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्सामने्एक्भाग्से्वार्(मागण)्एवं्नौ्भाग्से्मण्डप्
होना्चादहये्।्उसको्घेरते्हुये्एक्भाग्से्असलधद्एवं्शेष्भाग्से्चंक्रमर््का्ननमाणर््करना्
ok
चादहये्॥४७-४८॥
गह
ृ ्का्मुखभाग्एवं्बाहरी्मागण्लागल्के्आकार्का्होना्चादहये, ककधतु्मुखभाग्पर्न्स्थत्
चंक्रमर््(गसलयारा)्तथा्भीतरी्ववधयास्चौकोर्होना्चादहये्॥४९॥
दो्कक्षों्से्ननसमणत्मख्
ु य्भवन्मध्य्भाग्में ्रङ्गस्थल्से्यक्
ु त्होना्चादहये्।्बाह्य्चंक्रमर््के्
Bo
बाहर्दो्भाग्से्मख
ु भद्र्(सामने्का्पोचण)्ननसमणत्होना्चादहये्।्चार्मख
ु ्(द्वार)्से्यक्
ु त्इस्
द्ववशाल्भवन्की्संज्ञा्चतम
ु ख
ुण ्है ्॥५०॥
स्िल्स्तकम
स्िल्स्तक - इस्द्ववशाल्भवन्के्एक्शाला्की्लम्बाई्के्पाूँच्भाग्करने्चादहये्।्द्वार्का्
44
ननमाणर््पव
ू व
ण र्र्णत्ननयमों्के्अनस
ु ार्होना्चादहये्एवं्यह्भवन्सभी्अलंकरर्ों्से्युक्त्होना्
चादहये्।्मण्डप्एवं्बाहरी्असलधद्र्आयताकार्होना्चादहये्।्इसमें ्तीन्नेर्होते्है ्और्लम्बाई्
में ्इसमें ्आयताकार्भद्र्होता्है ्।्इस्भवनको्स्वन्स्तक्कहते्है ्।्शेष्अवयवों्का्ननमाणर््पहले्
के्समान्करना्चादहये्।्॥५१-५३॥
दण्डिक्त्रम
दण्डवक्र्-्दण्डवक्र्भवन्दो्मुखों्से्युक्त्कहा्गया्है ्।्यदद्मण्डप्न्ननसमणत्हो, तो्वहाूँ्
खल
ु ा्आूँगन्होता्है ्।्न्जस्स्थान्पर्कक्ष्न्ननसमणत्हो्वहाूँ्सभवत्त्एवं्द्वार्ननसमणत्होता्है ्।्
रूप्से्आजीववका्चलाने्वाली्न्स्रयों्के्भवन्एक्तल्से्लेकर्अनेक्तल्से्युक्त्ननसमणत्
करना्चादहये्॥५४-५५॥
त्रत्रिालाविधानम
मेरुकान्तम
तीन्शाला्वाले्मेरुकाधत्भवन्-्इस्बरशाल्भवन्की्चौड़ाई्के्आथ्भाग्एवं्लम्बाई्के्१०्
भाग्करने्चादहये्।्इसमें ्दो्भाग्से्आूँगन, तीन्ओर्एक्भाग्से्असलधद्र्तथा्दो्भाग्से्
शाला्का्ववस्तार्रखना्चादहये्॥५६॥
इस्भवन्का्मुखभद्र्दो्भाग्से्ननसमणत्होता्है , न्जसके्मध्य्भाग्में ्स्तम्भ्नही्होता्है ्।्
इसके्मुख्(द्वार)्की्संख्या्छः्होती्है ्तथा्मध्य्भाग्में ्ननसमणत्आूँगन्छत्से्ढूँ का्होता्है ्।्
एक्या्अनेक्तल्से्युक्त्यह्भवन्अलंकरर्ोम्से्सुसन्ज्जत्होता्है ्।्द्वार्आदद्की्
व्यवस्था्पहले्के्समान्होती्है ्।्मेरुकाधत्संज्ञक्यह्भवन्उग्रजीववयों्(कठोर्कायण्करने्वालों)्
के्सलये्उपयुक्त्होता्है ्॥५७-५८॥
मौमलभद्रम
om
मौमलभद्र - इस्भवन्की्चौड़ाई्के्दस्भाग्एवं्लम्बाई्के्बारह्भाग्करने्चादहये्।्दोनो्पाश्वों्
एवं्वपछले्भाग्में ्एक्भाग्से्वार्(मागण)्एवं्दो्भाग्से्गह
ृ ्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्
मुखभाग्पर्एक्भाग्से्(मागण, भद्र)्होता्है , न्जसके्मध्य्भाग्में ्दो्भाग्से्आूँगन्होता्है ्।्
चारो्ओर्एक्भाग्से्वार्ननसमणत्होता्है , जो्ढका्हो्सकता्है ्।्इसकी्लम्बाई्चौड़ाई्से्दो्
s.c
भाग्अधिक्होती्है ्एवं्इसके्चार्मुख्होते्है ्।्मुखभाग्पर्(द्वार्के्सामने)्द्वारभद्रक्(द्वार्
पर्बना्पोचण)्होता्है , न्जसका्माप्चार्भाग्होता्है ्एवं्दो्भाग्बाहर्ननकला्होता्है ्।्इस्
भवन्के्दोनों्पाश्वों्में ्या्पष्ृ ठभाग्में ्दो्ललाि्(मुख, ननकलने्का्मागण)्ननसमणत्होते्है ्।्इसके्
शेष्अंग्पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्ननसमणत्होते्है ्।्इस्भवन्की्संज्ञा्मौसलभद्र्होती्है ्॥५९-६२॥
ok
त्रत्रिालकप्रमाणम
बरशाल्भवन्का्प्रमार््-्इस्भवन्के्पाूँच्ववस्तारमाप्होते्है ्।्यह्पधद्रह्हाथ्से्प्रारम्भ्
होकर्(तेईस्हाथ्पयणधत)्या्सोलह्हाथ्से्प्रारम्भ्होकर्चौबीस्हाथ्पयणधत्जाता्है ्।्इनके्
मध्य्क्रमशः्दो-दो्हाथ्माप्की्वद्
ृ धि्की्जाती्है ्॥६३॥
Bo
चतःु िालाविधानम
चतःु िालाप्रमाणभेदानन
चार्शालाओं्वाले्भवन्की्योजना्-्चतःु शाल्भवन्का्ववस्तार्उधतीस्प्रकार्के्मान्से्यक्
ु त्
होता्है ्।्इसका्ववस्तार्नौ्हाथ्से्प्रारम्भ्होकर्पौसठ्हाथ्तक्तथा्दस्हाथ्से्छाछठ्हाथ्
44
om
चौड़ाई्के्आठ्भाग्करने्पर्मध्य्भाग्में ्दो्भाग्से्आूँगन्होना्चादहये्।्इसके्चारो्ओर्
उसके्आिे्माप्से्मागण्होना्चादहये्तथा्दो्भाग्से्गह
ृ ्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्चारो्कोर्ों्
पर्सभास्थल्(बाहरी्कक्ष)्एवं्मध्य्भाग्में ्वार्(मागण)्होना्चादहये्॥७३-७४॥
गह
ृ स्वामी्का्आवास्भवन्के्पूव्ण या्पन्श्चम्में ्होना्चादहये्।्यह्चारो्ओर्सभवत्त्से्युक्त्हो्
s.c
तथा्कुलया्के्सदृश्(थोड़ा्मुड़्े हुये)्द्वार्से्युक्त्हो्।्सभवत्त्में ्बाहर्की्ओर्जालक्
(झरोखा)ननसमणत्हो्तथा्भीतर्की्ओर्स्तम्भ्ननसमणत्होने्चादहये्।्प्रिान्द्वार्पक्ष्(लम्बाई्की्
ओर)्के्एक्भाग्से्ननसमणत्होना्चादहये्।्मुखभाग्पूव्ण या्पन्श्चम्में ्होना्चादहये्॥७५-७६॥
इस्भवन्में ्जालक्एवं्कपाि्बाहर्एवं्भीतर्होना्चादहये्।्इसमें ्क्रकरी्वंश्(आपस्में ्क्रास्
ok
बनाते्हुये्बीम)्हो्एवं्आठ्मुखभाग्भद्र्से्युक्त्हो्।्भवन्के्चार्मुखों्के्मध्य्भाग्मे्
अिण्सभा्के्आकार्के्कक्ष्होने्चादहये्।्कोर्ों्में ्भीतर्की्ओर्अधतभद्रसभा्(कक्ष)्हो, न्जसके्
छत्शंख्के्आकार्की्लुपा्से्युक्त्हो्॥७७-७८॥
(सशखरभाग्पर)्मख
ु पट्दिका्अिणकोदि्(लप
ु ा)्से्यक्
ु त्होती्है ्।्चारो्ओर्दन्ण्डकावार्(ननमाणर्-
Bo
ववशेष)्होना्चादहये्तथा्सशखरभाग्पर्नीव्रपट्दिका्(न्जस्पट्िी्पर्लप
ु ाओं्का्ननचला्ससरा्दृढ़्
ककया्जाता्है )्होती्है ्।्प्रस्तर्नाससकाओं्से्यक्
ु त्तथा्अधतर्प्रस्तर्से्यक्
ु त्होते्है ्।्लप
ु ायें,
द्वार्एवं्वंश्(बीम)्(चारो्भवनों्के)्समान्होने्चादहये्॥७९-८०॥
इसके्ववपरीत्अनथणकारक्ही्होता्है , इसमें ्सधदे ह्नही्है ्।्सभी्खल
ु े्स्थल्मण्डप्के्समान्
44
होते्है ्।्ये्एक्तल्या्अनेक्तलों्से्यक्
ु त्होते्है ्एवं्दे वालय्के्समान्सस
ु न्ज्जत्होते्है ्।्ये्
भवन्सदा्दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओं्के्ननवास्के्अनक
ु ू ल्होते्है ्॥८१-८२॥
हस्त-माप्की्वद्
ृ धि्करते्हुये्या्घिाते्हुये्न्जस्प्रकार्माप्पूर््ण हो, उस्प्रकार्माप्करना्
चादहये्।्यह्ननयम्सभी्भवनों्पर्समान्रूप्से्सम्मत्है ्॥८३॥
चारो्भवनों्के्अधत्में ्ननसमणत्मुख्दक्षक्षर््भाग्में ्होने्चादहये्।्इन्आथ्मुखोम्के्ऊपरी्तल्
पर्ग्रीवा्स्तूवपका्एवं्वंश्से्युक्त्होनी्चादहये्।्वंश्के्ऊपर्स्तूवपका्समान्होनी्चादहये्।्
भद्र्के्ऊपर्मुखभाग्पर्कूि्होना्चादहये्तथा्भीतरी्द्वार्बाहर्की्ओर्मुख्ककये्हुये्होना्
चादहये्।्यह्सवणतोभद्र्संज्ञक्भवन्राजाओं्के्ननवास्के्योग्य्होता्है ्॥८४-८५॥
्वितीयसिातोभद्रम
सवणतोभद्र्का्दस
ू रा्भेद्-्भवन्की्चौड़ाई्के्बारह्भाग्करने्चादहये्।्मध्य्भाग्में ्दो्भाग्में ्
आूँगन्होना्चादहये्।्उसके्चारो्ओर्एक्भाग्से्मागण्ननसमणत्होना्चादहये्।्एक्भाग्से्
भीतर्का्वार्(बरामदा)्ननसमणत्होता्है ्।्शाला्का्ववस्तार्दो्भाग्से्एवं्बाहरी्मागण्उसके्
आिे्माप्से्ननसमणत्होना्चादहये्।्इस्भवन्की्संज्ञा्सवणतोभद्र्है ्तथा्इसकी्सजावि्पूवण-
वर्र्णत्रीनत्से्करनी्चादहये्।्॥८६-८७॥
तत
ृ ीयसिातोभद्रम
सवणतोभद्र्का्तीसरा्भेद्-्भवन्की्चौड़ाई्के्चौदह्भाग्करने्चादहये्।्दो्भाग्से्मध्य्आूँगन्
तथा्उसके्चारो्ओर्एक्भाग्से्मागण्ननसमणत्होना्चादहये्।्दो्भाग्से्शाला्का्ववस्तार्तथा्
उसके्आिे्माप्से्बाहरी्मागण्ननसमणत्करना्चादहये्।्बड़ा्मागण्दो्भाग्से्होना्चादहये्।्चारो्
शालाओं्का्शीषण्भाग्सभा्के्आकार्का्(बीच्में ्उठा्हुआ)्होना्चादहये्॥८८-८९॥
om
मध्य्भाग्में ्नाससकायें्होनी्चादहये्।्भद्र्आदद्का्ननमाणर््पहले्के्समान्होना्चादहये्।्सभी्
कक्षों्के्मध्य्भाग्में ्स्तम्भ्नही्स्थावपत्करना्चादहये्।्इस्भवन्में ्(कम्से्कम)्तीन्तल्
होते्है ्एवं्यह्खण्दहम्यण्आदद्भागों्से्सुसन्ज्जत्होता्है ्।्इस्भवन्को्सवणतोभद्र्कहते्है ्एवं्
यह्दे वों, ब्राह्मर्ों्तथा्राजाओं्के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्॥९०-९१॥
चतुथस
ा िातोभद्रम
s.c
सवणतोभद्र्का्चतुथ्ण प्रकार्-्भवन्की्चौड़ाई्के्सोलह्भाग्करने्चादहये्।्मध्य्आूँगन्चार्भाग्
से्होना्चादहये्।्शेष्अंगों्को्पहले्के्समान्रखना्चादहये्।्सशखर्की्आकृनत्(पूवव
ण र्र्णत्
आकृनतयों्से)्हीन्होती्है ्॥९२॥
ok
यह्नाससका, तोरर््आदद्अंगों्एवं्जालकों्(झरोखों)्से्युक्त्होता्है ्।्तीन्तल्आदद्तलों्से्
युक्त्तथा्दे वालय्के्सदृश्सुसन्ज्जत्होता्है ्।्इसमें ्प्रत्येक्तल्पर्सीढ़ी्एवं्बीच-बीच्
में मण्डप्होताहै ्अथवा्खल
ु ा्आूँगन्होता्है ्।्न्जनकी्चचाण्नही्की्गई्है , उनका्भी्
आवश्यकतानस
ु ार्ननमाणर््करना्चादहये्।्इस्भवन्की्संज्ञा्सवणतोभद्र्है ्।्यह्राजाओं्के्ननवास्
Bo
के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्॥९३-९४॥
पञ्चमसिातोभद्रम
सवणतोभद्र्का्पञ्चम्प्रकार्-्भवन्की्चौड़ाई्के्अट्ठारह्भाग्करने्चादहये्।्दो्भाग्से्मध्य-
आूँगन, चारो्ओर्एक्भाग्से्मागण, एक्भाग्से्भीतरी्मागण, दो्भाग्से्शाला्का्ववस्तार, उसके्
44
आिे्भाग्से्बाहर्का्मागण्या्गसलयारा, दो्भाग्से्ववस्तत
ृ ्मागण्तथा्उसके्बाहर्एक्भाग्से्
ननसमणत्होना्चादहये्।्भवन्का्शीषण्शाला्के्आकार्का्(सीिा)्या्सभा्के्आकार्का्(उभरा्
हुआ)्होना्चादहये्॥९५-९७॥
यह्तीन्तल्आदद्(अनेक्तलों)्से्युक्त, खण्ड-हम्यण्आदद्से्सुशोसभत्होता्है ्।्शेष्अवयवों्का्
संयोजन्आवश्यकतानुसार्एवं्इच्छानुसार्करना्चादहये्।्भवन्के्स्थानों्की्ननमाणर्-योजना्
गह
ृ स्वामी्के्मन्के्अनुसार्करनी्चादहये्।्इसके्अलङ्करर््बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्दे वालय्के्
समान्करना्चादहये्।्यह्सवणतोभद्र्भवन्होता्है ्एवं्इसे्राजभवन्कहा्गया है ्॥९८-९९॥
विमानाददलक्षणम
ववमान्आदद्के्लक्षर््-्न्जस्भवन्का्शीषण-भाग्शाला्के्आकार्का्होता्है , उसे्ववमान्कहते्
है ्।्न्जस्भवन्का्शीषण-भाग्मुण्ड्के्आकार्का्होता्है , उसे्हम्यण्कहते्है ्।्ववसभधन्आकार्के्
अवयवों्से्यक्
ु त, अनेक्तल्से्यक्
ु त्तथा्माला्के्समान्एक-दस
ू रे ्से्संयक्
ु त्भवन्की्संज्ञा्
मासलका्होती्है ्।
जब्भवन्की्चौड़ाई्के्छः्या्आठ्भाग्ककये्जाते्है ्तब्लम्बाई्आठ्भाग, बारह्भाग्या्
चौदह्भाग्रक्खी्जानी्चादहये्।्प्रिान्भवन्का्मागण्एक्भाग्या्दो्भाग्ववस्तत
ृ ्होना्चादहये्
।्लम्बाई्यदद्आठ्भाग्से्हो्तो्वार्(मागण, बरामदा)्एक्भाग्या्डेढ़्भाग्से्होना्चादहये्
॥१००-१०१॥
प्रथमिधामानम
विणमान्भवन्का्प्रथम्प्रकार्-्अब्मैं्संक्षेप्में ्क्रमशः्विणमान्शालगह
ृ ्के्ववधयास्के्बारे ्में ्
कहता्हूूँ्।्गह
ृ ्की्चौड़ाई्के्छः्भाग्करने्चादहये्।्उसमें ्दो्भाग्से्भवन्का्ववस्तार्रखना्
चादहये्।्दो्भाग्से्आूँगन्रखना्चादहये्।्बाहर्चारो्ओर्सभवत्त्होनी्चादहये्॥१०२-१०३॥
om
प्रिान्आवास्के्मुखभाग्(पूव्ण में )्पर्एक्भाग्से्मागण्बनाना्चादहये्।्यह्भवन्मध्य्भाग्में ्
सभवत्त्तथा्कुलया्के्सदृश्(मोड़्वाले)्द्वार्से्युक्त्होता्है ्॥१०४॥
पन्श्चम्भाग्में ्एक्लम्बी्शाला्हो, जो्दो्नेरोम्से्युक्त्हो्एवं्ऊूँची्हो्।्पूव्ण ददशा्की्शाला्
(पन्श्चम्की्शाला्की्अपेक्षा)्कुछ्नीची्एवं्लम्बी्तथा्सामने्मुख्(द्वार)्से्युक्त्होती्है ्।्
s.c
बगल्के्दो्कक्ष्मुखववहीन्एवं्नीचे्(अधय्वंशो्की्अपेक्षा्कम्ऊूँचे)्वंश्(लट्ि)्से्युक्त्होते्
है ्।्मध्य्भाग्में ्दो्अंशो्से्वारर््(पोचण)्होता्है , न्जसके्एक-एक्ददशा्में ्ननष्क्राधत्(ननगणम,
बाहर्ननकला्भाग)्ननसमणत्होता्है ्॥१०५-१०६॥
इसमें ्छोिे ्स्तम्भ्इस्प्रकार्ननसमणत्होते्है , न्जससे्यह्सुधदर्लगे्।्कोने्पर्दो्भाग्से्
ok
शंखावतण्आकृनत्का्सोपान्ननसमणत्होता्है ्॥१०७॥
इस्भवन्को्नाससका, तोरर्, स्तम्भ्तथा्जालकों्आदद्से्सुसन्ज्जत्करना्चादहये्। इसकी्
सजावि्मन्धदर्के्समान्उन्अवयवोम्से्भी्करनी्चादहये, न्जनका्यहाूँ्वर्णन्नहीं्है ; ककधतु्
पहले्(दे वालय्के्प्रसंग्में )्ककया्गया्है ्।्यह्भवन्एक, दो्या्तीन्तल्से्यक्
ु त्होता्है ्।्
Bo
यदद्इसका्ननमाणर््राजा्के्सलये्ककया्जाय्तो्उत्तर्ददशा्में ्द्वार्नहीं्होना्चादहये्॥१०८॥
्वितीयिधामानम
विणमान्शालगह
ृ ्का्दस
ू रा्भेद्-्उसी्प्रकार्एक्भाग्से्स्तम्भ्एवं्सभवत्त्से्यक्
ु त्खल
ु ा्मागण्
बनाना्चादहये्।्मख्
ु य्भवन्दक्षक्षर््भाग्मे्होता्है ्एवं्इसका्मल
ू ्वंश्ऊूँचा्होता्है ्।्इसका्
44
भद्र्(पोचण)्इच्छानस
ु ार्ककसी्भी्ददशा्में ्एवं्गह
ृ ्इन्च्छत्ददशा्में ्ननसमणत्करना्चादहये्॥१०९-
११०॥
यह्भवन्दन्ण्डका-मागण्से्युक्त्एवं्दे वालय्के्समान्द्वार, तोरर्, नासोयों, वेददकाओं्एवं्जालकों्
से्सुसन्ज्जत्होता्है ्।्बुद्धिमान्(स्थपनत्को)्इच्छानुसार, न्जस्प्रकार्सुधदर्लगे, उस्प्रकार्
भवन्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्इस्भवन्को्विणमान्कहते्है ्।्यह्शालगह
ृ ्चारो्वर्ों्के्
सलये्प्रशस्त्होता्है ्॥१११-११२॥
तत
ृ ीयिधामानम
विणमान्भवन्का्तीसरा्प्रकार-्गह
ृ ्के्ववस्तार्के्दस्भाग्करने्चादहये्।्उसमें ्दो्भाग्से्
आूँगन्होना्चादहये्तथा्उसके्बाहर्एक्भाग्से्वार्(मागण)्एवं्दो्भाग्से्शाल-भवन्की्
चौड़ाई्रखनी्चादहये्।्उसके्आिे्माप्से्बाहरी्मागण्ननसमणत्करना्चादहये्।्द्वार्को्भद्र्से्
यक्
ु त्ननसमणत्करना्चादहये्।्कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्सभी्अवयवों्का्ननमाणर््आवश्यकतानस
ु ार्एवं्
इच्छानस
ु ार्करना्चादहये्।्यह्शाल-भवन्विणमान्संज्ञक्होता्है ्।्यह्चारो्वर्ों्के्सलये्
उपयक्
ु त्बताया्गया्है ्॥११३-११४॥
चतुथि
ा धामानम
विणमान्का्चतुथ्ण प्रकार्-्अथवा्पूरे्भवन्की्चौड़ाई्के्दस्भाग्करने्पर्दो्भाग्बाहरी्वार्
(मागण, बरामदा)्ननसमणत्करना्चादहये्।्प्रत्येक्तल्के्खल
ु े्स्थान्को्मण्डप्के्समान्बनाना्
चादहये्।्ऊपरी्तलों्पर्क्रमानुसार्उधचत्सजावि्करनी्चादहये्॥११५-११६॥
मुख-भाग्पर्भद्र्को्छोड़कर्शेष्अवयवों्को्जैसा्पहले्कहा्गया्है , वैसा्ही्ननसमणत्करना्
चादहये्।्मुक-मण्डप्को्भवन्के्समान, तीन्चौथाइ्या्भवन्के्आिे्माप्से्रखना्चादहये्
॥११७॥
om
शेष्भागोम्को्पूवव
ण र्र्णत्रीनत्में ्ननसमणत्करना्चादहये्।्यह्शालभवन्ब्राह्मर््आदद्सभी्वर्ो्
के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्।्सुधदर्विणमान्भवन्तीन, चार्या्पाूँच्तल्का्होता्है ्॥११८॥
पञ्चिधामानम
विणमान्भवन्का्पाूँचवाूँ्प्रकर्-्भवन्के्ववस्तार्के्बारह्भाग्करने्पर्दो्भाग्से्मध्य्
s.c
आूँगन्दो्भाग्से्शाला्का्ववस्तार्तथा्उसके्बाहर्दो्भाग्से्असलधद्र्होता्है ्।्उसके्बाहर्
एक्भाग्से्वार्तथा्आवश्यकतानुसार्स्तम्भ्एवं्सभवत्त्ननसमणत्करना्चादहये्।्दोनो्पाश्वों्मे्
उसके्बाहर्दो्भाग्ववस्तत
ृ ्एक्भाग्से्ननगणम्(से्युक्त्भद्र)्होना्चादहये्॥११९-१२०॥
उसके्साथ्वार्(बरामदा), मुख-पट्िी्आदद्अवयव, नेरशाला्ननसमणत्होते्है्।्सामने्एवं्दोनों्
ok
पाश्वों्में ्नेरशाला्एवं्असलधद्र्पहले्के्समान्होने्चादहये्।्इन्दोनों्के्मध्य्दस
ू रे ्तल्पर्
आठ्भाग्लम्बा्जल-स्थल्होना्चादहये्।्तीसरे ्तल्पर्वार्(मागण,बरामदा)्ननसमणत्हो्तथा्चौथे्
तल्में ्उन-उन्स्थलों्पर्कक्ष्होना्चादहये्।्॥१२१-१२२॥
पाूँचवे्तल्में ्दोनों्कोनों्पर्कर्णकूि्(कक्ष)्ननसमणत्करना्चादहये्।्छठवें्तल्पर्उन्दोनों्कर्ण-
Bo
कूिों्के्मध्य्में ्उसके्आिे्माप्का्सभा-मुख्बनाना्चादहये्।्छठवे्तल्पर्ही्प्रिान्भवन्के्
दोनों्पाश्वो्में ्दो्नेरकूि्होने्चादहये्।्उन्दोनों्के्मध्य्में ्सामने्सोपान्ननसमणत्करना्चादहये्
।्चौथे्तल्पर्सामने्की्ओर्दो्कर्णकूि्ननसमणत्करना्चादहये्।्पाूँचवे्तल्पर्एक्भाग्से्
लम्बाई्में ्शाला्एवं्वही्पर्दोनों्पाश्वों्में ्पञ्जर्ननसमणत्होना्चादहये, न्जसकी्लम्बाई्एवं्
44
चौड़ाई्दो्भाग्हो्॥१२३-१२५॥
(प्रथम्तल्में )्आूँगन्एवं्उसके्ऊपर्मण्डप्तथा्उसके्ऊपर्स्तम्भों्से्यक्
ु त्स्थान्होना्
चादहये्।्यह्द्वार्एवं्नेर्(सम्भवतः्दस
ू रे ्द्वार)्से्युक्त्होता्है ्एव्इसके्वाम्भाग्में ्
सोपान्ननसमणत्होता्है ्।्प्रत्येक्तल्पर्मुख-चङ््क्रमर््(सामने्का्बरामदा)्से्नछपी्सीदढ़याूँ्
होनी्चादहए्॥१२६-१२७॥
वपछले्भाग्में ्आठ्भाग्चौड़ा्एवं्दो्भाग्ननगणम्युक्त्भद्र्होता्है ्।्उसके्दोनों्पाश्वण-मुखों्पर्
एक्भाग्से्तीन्तलों्से्युक्त्वार्(बरामदा)्ननसमणत्होता्है ्।्पाूँचवे्तल्पर्दो्भाग्ववस्तत
ृ ्
एवं्एक्भाग्बाहर्की्ओर्ननकला्ननगणम्ननसमणत्होता्है ्।्पष्ृ ठभाग्की्शाला्वार, मुखपट्िी्
आदद्अंगो्से्युक्त्होती्है ्।्चौथे्तल्पर्दोनों्पाश्वों्में ्दो-दो्भाग्माप्से्दो्कूि्ननसमणत्
होते्है ्।्उसके्चारो्ओर्भवन्की्चौड़ाई्के्माप्से्मण्डप्ननसमणत्होता्है ्।्दस
ू रे ्तल्पर्नेर्
से्यक्
ु त्भद्राङ्गी्साला्(भद्र्के्समान्शाला)्ननसमणत्होती्है ्॥१२८-१३०॥
चार्मख
ु ्वाले्वास्त्ु (गह
ृ )्के्मध्य्चार्सर
ू ्(रे खायें)्खींचनी्चादहये्।्उन्सर
ू ों्के्वाम्भाग्में ्
ननयम्के्अनुसार्द्वार्बनाना्चादहये्।्मध्य्भाग्में ्स्तम्भ्स्थावपत्कर्पाश्वण्भाग्में ्द्वार्
बनाना्चादहये्।्इस्प्रकार्से्ननसमणत्द्वार्को्ववद्वान्कम्पद्वार्कहते्है ्।्प्रतेक्तल्पर्
स्तम्भ्आदद्अवयवों्द्वारा्दे वालय्की्भाूँनत्अलंकरर््करना्चादहये्।्सात्तल्वाला्यह्
राजभवन्विणमान्कहलाता्है ्।्॥१३१-१३२-१३३॥
षष्ठिधामानम
विणमान्भवन्का्छठवाूँ्प्रकार्-्भवन्के्ववस्तार्के्चौदह्भाग्करने्पर्दो्भाग्से्मध्य्भाग्
मे्आूँगन, उसके्चारो्ओर्एक्भाग्से्वार्(मागण)्तथा्दो्भाग्से्शाला्का्ववस्तार्रखना्
om
चादहये्।्दो्भाग्से्पथ
ृ ुवार्(बड़ा्गसलयारा)्एवं्बाहरी्वार्उसके्आिे्माप्से्होना्चादहये्।्
चारो्ओर्दन्ण्डकावार्मुन्ष्िबधि्(ववसशष्ि्आकृनत)्से्सुसन्ज्जत्होनी्चादहये्॥१३४-१३५॥
भवन्के्चल
ू हम्यण्आदद्अवयवों, सभवत्त्एवं्ऊपर्महावार्(बड़ा्गसलयारा)्ननसमणत्करना्चादहये्।्
कूि, कोष्ठ्आदद्सभी्अंगो्को्उधचत्रीनत्से्आवश्यकतानुसार्ननसमणत्करना्चादहये्।्यह्भवन्
नही्होना्चादहये्॥१३६॥
सततिधामानम
s.c
विणमान्संज्ञक्होता्है ; ककधतु्यदद्यह्राजा्के्सलये्ननसमणत्हो्तो्इसका्द्वार्उत्तर्ददशा्में ्
विणमान्का्सातवाूँ्प्रकार्-्गह
ृ ्के्ववस्तार्के्सोलह्भाग्करना्चादहये्।्इसमें ्दो्भाग्से्मध्य्
ok
आूँगन्एवं्इतने्ही्माप्का्शाला्का्ववस्तार्होना्चादहये्।्चारो्ओर्सभवत्त्ननसमणत्होनी्
चादहये्।्दो्भाग्से्बड़ा्मागण्तथा्स्तम्भो्का्ननमाणर््आवश्यकतानुसार्होना्चादहये्।्इसके्
बाहर्एक्भाग्से्वार्एवं्दो्भाग्से्पथ
ृ व
ु ार्(बड़ा्गसलयारा)्होना्चादहये्।्स्तम्भ्एवं्सभवत्त्का्
ननमाणर््आवश्यकतानस
ु ार्एवं्न्जस्प्रकार्सध
ु दर्लगे, उस्प्रकार्करना्चादहये्॥१३७-१३९॥
Bo
अनस
ु ार्ननसमणत्करना्चादहये्।्दस
ू रे ्या्तीसरे ्तल्पर्गोपान्के्ऊपर्मञ्चक्ननसमणत्करना्
चादहये्॥१४०-१४२॥
सामने्कर्ण्एवं्कूि्पर्शंखावतण्सोपान्(सोपान्का्ववशेष्प्रकार)्ननसमणत्होना्चादहये्।्प्रत्येक्
तल्पर्सोपान्एवं्मुखभाग्पर्चङ््क्रमर््(चलने्का्मागण)्होना्चादहये्॥१४३॥
स्तम्भ्को्स्तम्भ्पर्आधश्रत्होना्चादहये्।्स्तम्भ्को्इस्प्रकार्ननसमणत्करना्चादहये, न्जससे्
वह्दृढ़्हो्एवं्सुधदर्लगे्।्यदद्यह्आश्रय्थोड़ा्हो्(अथाणत्पूर््ण रूप्से्आधश्रत्न्हो, दिका्न्
हो)्या्बबलकुल्आश्रय्न्हो्तो्वह्स्तम्भ्ववपवत्तकारक्होता्है ्॥१४४॥
वशण-स्थल्(जलस्थान)्एवं्चल
ू हम्यण्प्रत्येक्तल्पर्ननसमणत्होना्चादहये्।्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्
गोपान्(काननणस), लुपा, वक्र-स्तम्भ, नािक्(ववसभधन्प्रकार्के्धचर), मुन्ष्िबधि, ननयह
ूण , वलभी्एवं्
कचग्रह्(आदद्ववववि्अलंकरर्)्जहाूँ्जहाूँ्आवश्यकता्हो, वहाूँ-वहाूँ्इनका्संयोजन्करना्चादहये्
॥१४५-१४६॥
बद्
ु धिमान्व्यन्क्त्को्इन्भवनों्का्आूँगन्(हॉल)्सभागह
ृ ्के्आकार्का, मण्डप्के्आकार्का्या्
मासलका्के्आकार्का्ननसमणत्करना्चादहये्।्मण्डप्के्मध्य्में ्स्तम्भ्का्प्रयोग्नही्करना्
चादहये्॥१४७॥
भवन्के्सामने्मण्डप्भवन्की्चौड़ाई्के्बराबर, उसका्तीन्चौथाई्या्आिे्माप्का्होना्
चादहये्।्आवश्यकतानुसार्इसे्भीतरी्स्तम्भ्से्युक्त्करना्चादहये्।्यह्एक, दो्या्तीन्से्
युक्त्होता्है ्एवं्मासलका्के्समान्होता्है ्।्यह्वववत
ृ ्स्तम्भों्से्युक्त्या्असलधद्र्से्युक्त्
होता्है ्।्इसे्भीतरर्सोपान्से्युक्त्होना्चादहये्।्यहाूँ्न्जन्अंगो्का्वर्णन्ककया्गया्है ,
उनका्तथा्न्जनका्वर्णन्नही्ककया्गया्है , उनका्ननमाणर््पहले्वर्र्णत्ववधि्के्अनुसार्करना्
om
चादहये्॥१४८-१५०॥
तीसरे ्तल्से्प्रारम्भ्कर्नवें्तल्या्ग्यारह्तल्तक्विणमान्शाल-भवन्हो्सकता्है ्।्यह्
भवन्ववशेष्रूप्से्राजाओं्के्अनुरूप्होता्है ्॥१५१॥
प्रथमनन््यािताम
s.c
नधद्यावतण्का्प्रथम्प्रकार्-्नधद्यावतण्शाल-भवन्के्ववधयास्एवं्सज्जा्का्वर्णन्अब्ककया्जा्
रहा्है ्।्भवन्के्ववस्तार्के्छः्भाग्करना्चादहये्।्उनमें ्दो्भाग्से्मध्य्आूँगन्तथा्दो्
भाग्शाला्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्इसका्प्रमार््चारो्(शालाओं)्के्सलये्होता्है ्।्बाहरी्
मागण्एवं्सभवत्त्नधद्यावतण्की्आकृनत्में ्होनी्चादहये्॥१५३-१५३॥
ok
(प्रिान)्शाला्में ्एक्द्वार्नही्होता्है ्या्चार्द्वार्होते्है ्।्द्वार्बाहर्एवं्भीतर्जालक्एवं्
कपाि्से्युक्त्होते्है ्॥१५४॥
मुख्य्गह
ृ ्चारो्ओर्सभवत्त्से्युक्त्होता्है ्।्इसका्सभतरी्भाग्सभवत्त्से्बूँिा्होता्है , न्जसमें ्
कुलयाभ्(थोड़ा्मड
ु ा्हुआ)्द्वार्होता्है ्।्मख
ु ्भाग्पर्चंक्रमर््(मागण)्होता्है ्।्भीतरी्भाग्में ्
Bo
स्तम्भ्होते्है ्एवं्खल
ु ा्(सभवत्त्के्ववना)्होता्है ्।्बाहरी्भाग्सभवत्त्से्ढूँ का्होता्है ्।्चारो्
ददशाओ्मे्ननगणम्होते्है ्एवं्अिणकूि्की्आकृनत्ननसमणत्होती्है ्।्यह्दन्ण्डकावार्से्युक्त्तथा्
दे वालय्के्सदृश्अलंकृत्होता्है ्॥१५५-१५६॥
यह्भवन्चारो्वर्ो्के्अनक
ु ू ल्होता्है ्।्वैश्य्एवं्शद्र
ू ्वर्ण्के्सलये्भवन्का्मख
ु ्पव
ू ्ण ददशा्में ्
44
होना्चादहये्।्यह्एक्भाग्असलधद्र्से्नघरा्हो्तथा्बाहरी्द्वार्अलंकृत्होना्चादहये्।्
अधिष्ठान्एवं्स्तम्भ्आदद्का्संयोजन्पव
ू व
ण र्र्णत्रीनत्से्होना्चादहये्।्एक, दो्या्तीन्तल्से्
युक्त्तथा्सीिे्शीषण्भाग्वाली्यह्शाला्प्रासाद-डलप्होती्है ्।्बुद्धिमान्(स्थपनत)्को्चारो्
वर्ो्के्अनुरूप्इस्शाल-भवन्की्योजना्करनी्चादहये्॥१५७-१५८॥
्वितीयनन््यािताम
नधद्यावतण्का्दस
ू रा्प्रकार्-्भवन्के्ववस्तार्के्दस्भाग्में ्दो्भाग्से्मध्य-आूँगन्ननसमणत्
करना्चादहये्।्चारो्ओर्एक्भाग्से्मागण्तथा्दो्भाग्से्भवन्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्
बाहर्एक्भाग्से्असलधद्र्तथा्भद्र्आदद्का्ननमाणर््पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्करना्चादहये्।्इसमें ्
हम्यण्आदद्अंगो्से्अलंकरर््आवश्यकतानुसार्एवं्शोभा्के्अनुसार्करना्चादहये्॥१५९-१६०॥
तत
ृ ीयनन््यािताम
नधद्यावतण्का्तीसरा्प्रकार्-्भवन्के्ववस्तार्के्बारह्भाग्करने्चादहये्।्दो्भाग्से्मध्य-
आूँगन्एव्दो्भाग्से्गह
ृ ्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्मख्
ु य्गहृ ्के्भीतरी्भाग्में ्एक्सभवत्त्
(ववभाजक्दीवार)्होती्है ्।्बाहरी्भाग्में ्चारो्ओर्दो्भाग्से्ववस्तत
ृ ्मागण्होना्चादहये्।्
उसके्चारो्ओर्के्भाग्असलधद्र्(बरामदा)्होना्चादहये, न्जसमें ्इच्छानुसार्स्तम्भ्या्सभवत्त्का्
ननमाणर््करना्चादहये्।्असलधद्र्को्चल
ू ्एवं्हम्यण्आदद्से्आवश्यकतानुसार्या्इच्छानुसार्युक्त्
करना्चादहये्।्द्वार, मुखभद्र्और्अधिष्ठान्आदद्का्ननमाणर््पहले्के्समान्करना्चादहये्।्
॥१६१-१६३॥
चारो्शालगह
ृ ों्में ्शीषण्भाग्मध्य्वंश्के्ऊपर्होता्है ्।्सामने्वाले्भाग्में ्कूि्एवं्पाश्वण-
शालायें्आनन्(मुख)्से्युक्त्होती्है ्।्नधद्यावतण्की्आकृनत्वाला्यह्भवन्चार्मुखों्(प्रवेश्
भाग)्से्युक्त्होता्है ्॥१६४-१६५॥
om
आूँगन्के्ऊपर्आूँगन्एवं्पक्षशाला्(बाहरी्कक्ष)्के्ऊपर्पक्षशाला्ननसमणत्करना्चादहये्।्मध्य-
आूँगन्का्ननमाणर््सभागार, मण्डप्या्मासलका्के्समान्करना्चादहये्।्यह्भवन्तीन्तल्से्
प्रारम्भ्कर्(उससे्अधिक्तलों्से्युक्त)्ऊह्एवं्प्रत्यूह्आदद्अंगो्से्युक्त्होना्चादहये्।्यह्
प्रासाद-भवन्ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओं्के्सलये्अनुकूल्होता्है ्॥१६६-१६७॥
चतुथन
ा न््यािताम
s.c
नधद्यावतण्का्चौथा्प्रकार्-्भवन्के्ववस्तार्के्चौदह्भाग्करने्चादहये्।्दो्भाग्से्मध्य-
आूँगन्, एक्भाग्से्चारो्ओर्मागण्एवं्दो्भाग्से्गह
ृ ्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्दो्भाग्से्
पथ
ृ व
ु ार्(ववस्तत
ृ ्मागण)्होना्चादहये, न्जसके्भीतरी्भाग्में ्आवश्यकतानुसार्स्तम्भ्ननसमणत्करना्
ok
चादहये्।्उसके्बाहर्एक्भाग्से्सभवत्त्एवं्स्तम्भ्आदद्से्युक्त्मागण्ननसमणत्करना्चादहये्
॥१६८-१६९॥
नधद्यावतण्की्आकृनत्वाला्यह्भवन्चारो्ददशाओं्में ्मुख्से्युक्त्होता्है ्।्ऊध्वणशालायें्आठ्
मख
ु ों्से्यक्
ु त्होती्है ्एवं्ये्चार्मख
ु ्वाली्शालाओं्पर्व्यवन्स्थत्की्जाती्है ्।्इस्प्रकार्
Bo
ननचले्तल्एवं्ऊपरी्तल्की्शालाओं्को्समलाकर्भवन्के्बारह्मख
ु ्होते्है ्।्चारो्ददशाओं्में ्
भद्र्एवं्द्वारशालायें्सश
ु ोसभत्होती्है ्।्न्जन्अंगो्का्वर्णन्यहाूँ्नही्ककया्गया्है , उन्सभी्का्
ननमाणर््भी्पहले्की्भाूँनत्करना्चादहये्॥१७०-१७१॥
पञ्चमनन््यािताम
44
नधद्यावतण्का्पाूँचवा्प्रकार्-्भवन्की्चौड़ाई्के्सोलह्भाग्करने्पर्दो्भाग्से्मध्य्आूँगन्
एवं्दो्भाग्से्शाला्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्चौड़ा्मागण्उसी्के्सामने्होना्चादहये्।्इसके्
बाहर्एक्भाग्से्बाहरी्मागण्एवं्उसके्बाहर्एक्भाग्चौड़ा्मागण्होना्चादहये ॥१७२-१७३॥
इस्भवन्में ्आवश्यकतानुसार्एवं्इच्छानुसार्असलधद्र्(बरामदा)्तथा्चूल-हम्याणङ्ग्का्ननमाणर््
करना्चादहये्।्इसके्ऊपर्ननसमणत्शाला्का्शीषण्भाग्चौकोर्होना्चादहये्॥१७४॥
यह्भवन्तीन्तल्से्प्रारम्भ्होकर्नौ्तल्तक्होता्है ्एवं्यह्राजा्तथा्ब्राह्मर््के्योग्य्
होता्है ्।्द्वार्एवं्सभवत्तयाूँ्आदद्पूव-ण वर्र्णत्ननर्णय्के्अनुसार्ननसमणत्होनी्चादहये्।्इसका्
अलंकरर््प्रासाद्के्समान्होना्चादहये्एवं्इसके्जालक्(झरोखे)्नधद्यावतण्के्सदृश्होने्चादहये्
।्इस्भवन्में ्ऊह, प्रत्यह
ू ्आदद्सभ्गह
ृ ्के्अलंकरर्ों्की्आवश्यकता्होती्है ्॥१७५-१७६॥
स्िल्स्तकम
स्वन्स्तक्भवन्-्इस्स्वन्स्तक्भवन्की्चौड़ाई्के्छः्भाग्करने्चादहये्।्इसमें ्दो्भाग्से्
आूँगन्एवं्उसी्के्समान्शाला्का्ववस्तार्रखना्चादहये्।्इसका्द्वार्कुलया्के्समान्(मड़
ु ा्
हुआ)्होना्चादहये्।्इसके्वपचले्भाग्में ्दीघण्कोष्ठ्एवं्सामने्भी्उसी्प्रकार्कोष्ठ्होना्
चादहये्॥१७७-१७८॥
इसके्दोनों्पाश्वो्में ्मुखपट्दिका्से्युक्त्ककणरी्शाला्(चौकोर्ननमाणर्)्ननसमणत्होना्चादहये्।्
वपछले्भाग्में ्पष्ृ ठ्से्युक्त, ववना्पट्दिका्के्कोष्ठक्का्ननमाणर््होना्चादहये्॥१७९॥
अथवा्यह्भवन्दन्ण्डकामागण्से्युक्त, छः्नेरो्(झरोखों, र्खड़ककयो)्से्युक्त्एव्भद्र्से्युक्त्
होना्चादहये्।्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्सभी्अलंकरर््प्रासाद्के्सदृश्करना्चादहये्।्पूव-ण मुख्यह्
स्वन्स्तक्भवन्वैश्यों्एवं्शुद्रो्के्सलये्अनुकूल्कहा्गया्है ्॥१८०॥
स्िल्स्तकान्तरम
om
अधय्प्रकार्का्स्वन्स्तक्-्वही्भवन्एक्भाग्माप्के्असलधद्र्से्नघरा्होता्है ्तथा्खण्ड-हम्यण्
आदद्से्अलंकृत्होता्है ्।्यह्पूव-ण वर्र्णत्भद्र्से्युक्त्होता्है ्एवं्इसकी्सज्जा्पहले्के्समान्
ही्करनी्चादहये्।्भवन्के्सम्पूर््ण ववस्तार्को्बारह, चौदह्या्सोलह्भागों्में ्इच्छानुसार्बाूँिना्
चादहये्॥१८१-१८२॥
आूँगन, बाहरी्मागण, ववस्तत
से्रखना्चादहये्॥१८३॥
s.c
ृ ्मागण्एवं्असलधद्र्का्ननमाणर््होना्चादहये्।्शाला्का्ववस्तार्दो्भाग्
अनक
ु ू ल्होता्है ्॥१८६-१८७॥
चतःु िालसामान्यविथधः
चतुश्शाल्भवनों्के्सामाधय्ननयम्-्ववद्वानों्के्मतानुसार्चतुश्शाल्भवन्पूवव
ण र्र्णत्व्यास्से्
युक्त्होते्है ; ककधतु्लम्बे्नही्होते्है ्।्ये्चौकोर्भवन्दे वो, ब्राह्मर्ो, दान्आदद्के्सलये्एवं्
सभी्नान्स्तकों्के्सलये्प्रशस्त्होते्है ्।्॥१८८॥
(इस्ववषय्में )्मुनन-जन्इस्प्रकार्कहते्है ्-्यदद्गह
ृ ्के्ववस्तार्के्नौ, आठ, सात, या्छः्भाग्
ककये्जायूँ्तो्प्रिान्भवन्की्चौड़ाई्दो्भाग्के्बराबर्होगी्।्यदद्ववस्तार्के्पाूँच्भाग्ककये्
जायूँ्तो्प्रिान्भवन्की्चौड़ाई्एक्भाग्से्रखनी्चादहये्॥१८९॥
सततिालादद
सात्शाला्आदद्से्ननसमणत्गह
ृ ्-्सात्कक्षों्के्राजगह
ृ ्का्ववस्तार्चौसठ्हाथ्एवं्लम्बाई्उसकी्
दग
ु ुनी्होती्है ्।्इसमें ्दो्द्वार, दस्नेर, दो्आूँगन्एवं्प्रिान्भवन्में ्छः्सन्धियाूँ्होती्है ्।्
इसकी्सज्जा्भवन्(मन्धदर)्के्समान्करनी्चादहये्।्॥१९०॥
चौड़ाई्पाूँच्भाग्रहने्पर्लम्बाई्नौ्भाग्होनी्चादहये्।्चौड़ाई्छः्बाग्होने्पर्लम्बाई्ग्यारह्
भाग, सात्भाग्होने्पर्बारह्भाग, आठ्भाग्होने्पर्चौदह्भाग्या्नौ्भाग्होने्पर्सोलह्
भाग्लम्बाई्होनी्चादहये्।्ये्सप्तशाल्भवन्के्पाूँच्प्रकार्की्लम्बाई्के्माप्है ्।्दश-शाल्
भवन्में ्भवन्की्चौड़ाई्पूव-ण वर्र्णत्भागों्में ्होती्है ्।्इसकी्लम्बाई्(पाूँच्भाग्पर)्तेरह्भाग,
(छः्भाग्पर)्सोलह्भाग, (सात्भाग्पर)्सरह्भाग, (आठ्भाग्पर)्बीस्भाग्या्(नौ्भाग्पर)्
तेईस्भाग्होनी्चादहये्॥१९१-१९२॥
यदद्दश-शाल्भवन्राजा्के्सलये्ननसमणत्हो्तो्इसकी्चौड़ाइ्अस्सी्हाथ्एवं्लम्बाई्उसकी्
om
तीनगुनी्होनी्चादहये्।्इसके्बारह्ललाि, तीन्प्रिान्द्वार, तीन्आूँगन्एवं्आठ्सन्धियाूँ्होनी्
चादहये्।्इसका्संयोजन्हम्यण्के्समान्करना्चादहये्।्॥१९३॥
असलधद्र्का्माप्भवन्के्तीसरे ्भाग्के्बराबर्या्आिा्होना्चादहये्।्इसका्प्रवेशभाग्(भद्र,
प्रोच)्तीन्भाग्या्छः्भाग्से्(चौड़ाई्के)्होना्चादहये्।्उसके्बाहर्एवं्अधदर्(भद्र्के)्आिे्
॥१९४॥
s.c
भाग्से्नालनीप्र्(संरचनाववशेष)्होना्चादहये्।्यह्सभी्भवनों्के्सलये्सामाधय्ननयम्है ्
स्तम्भ्के्गतण्में ्करना्चादहये्।्इसे्भवन्के्मध्य्भाग्के्वाम्भाग्के्अथवा्भवन्की्
प्रिान्शाला्के्वाम्भाग्में ्स्थावपत्करना्चादहये्॥१९७॥
सभवत्त्की्चौड़ा्के्आठ्भाग्करने्चादहये्एवं्इसके्सामने्वाले्भाग्से्चार्भाग्तथा्भीतरी्
भाग्से्तीन्भाग्(छोड़कर्उन्दोनों्के्मध्य्में ्न्स्थत)्भाग्में ्गभणववधयास्करना्चादहये्।्
दे वालय्के्द्वार्के्मध्य्में ्गभण-धयास्करना्चादहये; ककधतु्ब्राह्मर््आदद्(चारो्वर्ो्के)्भवन्
मे्यह्(मध्य्मे्गभण-ववधयास)्प्रशस्त्नही्होता्है ्॥१९८॥
िंि्िारम
वंशद्वार्-्ब्राह्मर््आदद्वर्ो्के्भवन्में ्वंशद्वार्(मध्य्वंश्के्सामने्द्वार)्नही्रखना्चादहये्
।्नान्स्तकों्एवं्संधयाससयों्के्गह
ृ ्में ्वंश-द्वार्दोषकारक्नही्होता्है ्॥१९९॥
विहारिालम
मठ्-्प्रमख
ु ्भवन्की्चौड़ाई्से्तीन्गन
ु ी्अधिक्उसकी्लम्बाई्होनी्चादहये्।्भवन्की्लम्बाई्
चौड़ाई्के्दग
ु न
ु े्माप्से्लेकर्तेईस्भाग्माप्पयणधत्रक्खी्जाती्है ्।्इस्प्रकार्लम्बाई्की्
दृन्ष्ि्से्ग्यारह्प्रकार्के्भवन्ननसमणत्होते्है ्॥२००॥
प्रिान्भवन्के्सामने्भद्र्ननसमणत्होना्चादहये्।्इसे्सभागार, कोष्ठ्एवं्नीड्(सजाविी्र्खड़की)्
से्सुसन्ज्जत्करना्चादहये्।्भवन्के्पष्ृ ठ-भाग्मे्वार्(बरामदा)्ननसमणत्हो्या्गभणकूि्के्सदृश्
दो्ललाि्(झरोखा)्ननसमणत्होना्चादहये्।्इसे्एक-दो्या्तीन्से्युक्त्तथा्आगे्एवं्पीछे ्ववधचर्
नाससयों्(सजाविी्आकृनत)्से्सुसन्ज्जत्करना्चादहये्।्यही्ववहारशाल्(मठ)्है ्।्इसका्ननमाणर््
मन्धदर्के्समान्करना्चादहये्॥२०१-२०२॥
िालापादप्रमाणम
भवन्के्स्तम्भों्का्माप्-्सभी्भवनों्के्स्तम्भों्की्लम्बाईएवं्ववष्कम्भ्(पररधि)्का्वर्णन्
om
ककया्जा्रहा्है ्।्स्तम्भ्की्लम्बाई्ढाई्हाथ्से्साढ़े ्तीन्हाथ्या्चार्हाथ्से्अधिक्तक्
रक्खी्जाती्है ्।्तीन्अंगुल्या्छः्अंगुल्की्वद्
ृ धि्करते्हुये्नौ्तक्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्होती्है ्
।्इसकी्चौड़ाई्छः्से्प्रारम्भ्कर्आिा्या्एक्अंगुल्बढ़ाते्हुये्दस्या्चौदह्अंगुल्माप्तक्
ले्जानी्चादहये्।्अथवा्ववद्वानों्द्वारा्पूवव
ण र्र्णत्मान्के्अनुसार्इनका्मान्रखना्चादहये्
॥२०३-२०५॥
आयाददलक्षणम
s.c
आय्आदद्के्लक्षर््-्भवन्की्चौड़ाई्के्माप्का्तीन्गुना्कर्उसमें ्आठ्से्भाग्दे ना्चादहये्
।्जो्शेष्संख्या्बचे, उससे्(एक्से्आठ्तक्क्रमशः)्ध्वज, िम
ू , ससंह, श्वान, वष
ृ , खर, गज्एवं्
ok
वायस्योननयाूँ्होती्है ्।्इनमें ्ध्वज, ससंह, वष
ृ ्एवं्गज्योननयाूँ्शुभ्एवं्अधय्अशुभ्होती्है ्
॥२०६॥
भवन्की्लम्बाई्में ्आठ्का्गुर्ा्करने्पर्गुर्नफल्में ्सत्ताइस्का्भाग्दे ना्चादहये्।्शेष्से्
अन्श्वनी्आदद्नक्षरों्का्एवं्उनके्अनस
ु ार्रासशयों्का्ज्ञान्होता्है ्।्॥२०७॥
Bo
भवन्की्लम्बाई्में ्क्रमशः्आठ्एवं्नौ्का्गर्
ु ा्करना्चादहये्।्प्राप्त्गर्
ु नफल्में ्बारह्एवं्
दस्से्भाग्दे ना्चादहये्।्इससे्दो्सभधन-सभधन्प्रकार्का्शेष्प्राप्त्होता्है ्।्इनेह्'िन' एवं्
'ऋर्' कहते्है ्।्आय्अथवा्िन्का्ऋर््से्अधिक्होना्प्रशस्त्होता्है्॥२०८॥
भवन्की्पररधि्को्नौ्से्गुना्करना्चादहये्।्गर्
ु नफल्में ्तीस्का्भाग्दे ना्चादहये्।्शेष्से्
44
om
द्वार्एवं्सभवत्त्का्संयोजन्गह
ृ -स्वामी्की्इच्छा्के्अनुसार्करना्चादहये्।्शेष्का्ननमाणर््
बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्पूव-ण वर्र्णत्क्रम्में ्करना्चादहये्॥२१७॥
सशर्ख्के्पद्पर्गोशाला, ननऋनत्के्पद्पर्बकररयों्की्शाला, वायु्के्पद्पर्भैंसो्की्शाला्
तथा्ईश्के्कोर््पर्अश्वशाला्एवं्गजशाला्होनी्चादहये्।्सभी्प्रकार्के्वाहनों्का्स्थान्
द्वार्के्वाम्भाग्में ्होना्चादहये्॥२१८॥
उपयक्
s.c
ुण त्सभी्ननयम्चारो्वर्ो्के्भवन्के्सलये्कहे ्गये्है ्।्राजाओं्के्आवास्के्सलये्ववशेष्
संयोजन्होता्है ्।्उनके्भवन्में ्तीन्प्रकार, भवनोम्की्तीन्पंन्क्तयाूँ्एवं्तीन्भोग्(अधतःपुर)्
होना्चादहये्।्शेष्ननयम्उसी्प्रकार्है , जो्तीनों्वर्ो्के्सलये्ववदहत्है ्॥२१९॥
ok
मनुष्यों्के्गह
ृ ्में ्एक, दो्या्तीन्साल्(प्राकार)्एवं्दे वालयों्में ्पाूँच, तीन्या्एक्साल्होता्है ्।्
ववधि्के्ज्ञाता्(स्थपनत)्को्मनुष्यों्के्आवास्के्सलये्पूवव
ण र्र्णत्माप्का्प्रयोग्करना्चादहये्
॥२२०॥
Bo
मयमतम्-्अध्याय्२७
्
44
िाटमभवर्त््-
बाहरी्सभवत्त्का्वविान्-्चार्दण्ड्(सोलह्हस्त)्से्प्रारम्भ्कर्दो-दो्हाथ्बढ़ाते्हुये्तीस्हाथ्
तक्एक-एक्गह
ृ ्का्मान्होता्है ्।्क्षुद्र्(छोिे )्गह
ृ ों्के्ये्आठ्प्रकार्के्मान्है ्।्अब्मध्यम्
मान्वाले्गह
ृ ्(के्वािसभवत्त)्का्मान्आठ्दण्ड्से्प्रारम्भ्होकर्दो-दो्दण्ड्बढ़ाते्हुये्बत्तीस्
दण्ड्तक्होता्है ्।्(उत्तम्गह
ृ ्के्मन्मे)्यहाूँ्से्(बत्तीस्दण्ड्से)्प्रारम्भ्कर्दो-दो्दण्ड्बढ़ाते्
हुये्एक्सौ्दण्ड्तक्ले्जाना्चादहये्।्वािसभवत्त्का्यह्मान्गह
ृ ्के्भीतरी्भाग्से्सलया्जाना्
चादहये्॥१-४॥
ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओं्के्भवन्की्वािसभवत्त्ववशेष्रूप्से्चौकोर्होनी्चादहये्।्क्षबरय्आदद्वर्ो्
(वैश्य्एवं्शद्र
ू )्के्मान्में ्लम्बाई्चौड़ाई्से्आठ्भाग, छः्भाग्एवं्चार्भाग्अधिक्होती्है ्।्
सोलह्हाथ्से्कम्माप्वाले्गह
ृ ्का्ननमाणर््नही्करना्चादहये्।्वािसभवत्त्की्ऊूँचाई्नौ, आठ,
सात्या्छः्हाथ्होनी्चादहये्।्इसके्तल्कक्मोिाई्तीन्या्चार्भाग्के्बराबर्होनी्चादहये्
तथा्अग्र्भाग्(ऊपरी्भाग)्की्मोिाई्अिोभाग्से्चतथ
ु ांश्कम्होनी्चादहये्।्इसका्सशरोभाग्
सीिा्अथवा्चधद्रकार्नाससयों्से्सस
ु न्ज्जत्होना्चादहये्॥५-७॥
यह्चारो्ददशाओं्में ्चार्द्वारों्से्युक्त्होता्है ्।्ये्द्वार्तलप्(कपाि)्युक्त्होते्है ्।्यह्
ववसभधन्अंगो्से्सुशोसभत्द्वार-गोपुर्से्युक्त्होता्है ्।्इसके्बाहर्पररखा्होती्है ्एवं्सभी्
प्रकार्की्सुरक्षा, व्यवस्था्होती्है ्।्इस्प्रकार्वािसभवत्त्का्वर्णन्ककया्गया्है , जो्गह
ृ ्के्बाहर्
से्आवत
ृ ्करती्है ्॥८-९॥
खलूररखा
खलूररखा्-्अथवा्(वािसभवत्त्के्स्थान्पर)्खलूररका्का्ननमाणर््होता्है ्।्यह्समट्िी्से्अथवा्
लकड़ी्के्लट्ठोंसे्ननसमणत्होती्है , न्जसे्घास्आदद्से्आच्छाददत्ककया्जाता्है ्।्यह्वेददका्एवं्
om
स्तम्भो्से्युक्त्होती्है्॥१०॥
मभन्नामभन्नगह
ृ
संयुक्त्एवं्पथ
ृ क्गह
ृ ्-्गह
ृ -ननमाणर््सभधन्एवं्असभधनभेद्से्दो्प्रकार्के्होते्है ।्स्पष्ि्रूप्से्
सभधन्एवं्वपण्डभेद्(असभधन)्गह
ृ ्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥११॥
सभधन्गह
ृ ्सन्धिरदहत्होता्है ्।्असभधन्गह
ददशाओं्में ्चार्प्रिान्गह
॥१२॥
s.c
ृ ्सन्धि्से्युक्त्होता्है ्।्सभधन्गह
ृ ों्में ्चारो्
ृ ्ननसमणत्होते्है ्तथा्ददक्कोर्ों्में ्मण्डप्या्खलूररका्ननसमणत्होती्है ्
यदद्वािसभवत्त्के्भीतर्तीन, दो्या्एकशाल्भवन्हो्तो्वह्दभ
ु ाणग्यकारक्होता्है , इससलये्
ok
चतुश्शाल्भवन्प्रशस्त्होता्है ्तथा्इसका्माप्इसके्ववस्तार्के्माप्से्ग्रहर््करना्चादहये्
॥१३॥
छोिे ्लोगों्के्सलये्छोिे ्मान्का्प्रयोग्करना्चादहये्तथा्श्रेष्ठ्लोगों्के्सलये्उत्तम्मान्का्
प्रयोग्करना्चादहये्।्छोिे ्लोगों्के्सलये्कभी्भी्उत्तम्मान्का्प्रयोग्नही्करना्चादहये्।्
Bo
om
पूजा्की्जाती्है ्॥२४॥
वेददका्की्ऊूँचाई्तीन्ताल्(बबत्ता, बासलश्त)्एव्चौड़ाई्ऊूँचाई्के्समान्होती्है ्।्इसके्मध्य्
भाग्में ्वेददका्के्आिे्माप्से्ब्रह्मपीठ्का्ननमाणर््होता्है ्।्राजा्(क्षबरय)्एवं्वैश्य्के्भवन्
में ्इसका्मान्छः-छः्अंगुल्कम्रखना्चादहये्।्शूद्र्एवं्अधय्जानतयों्के्भवन्में ्ब्रह्मवेददका्
का्ननमाणर््नही्करना्चादहये्।्॥२५-२६॥
मध्य-मण्डप्के्लक्षर््-्मण्डप्का्ननमाणर््गह
s.c
ृ ्के्आकार्के्अनुसार्आयताकार्या्चौकोर्होता्
है ्।्स्तम्भ्का्मान्पाूँच्ताल्से्प्रारम्भ्होकर्तीन-तीन्अंगुल्बढ़ाते्हुये्सात्ताल्तक्जाता्
है ्।्इस्प्रकार्स्तम्भ्की्लम्बाई्नौ्प्रकार्की्होती्है ्।्स्तम्भ्का्ववष्कम्भ्(घेरा)्पाूँच्अंगुल्
ok
से्प्रारम्भ्होकर्तेरह्अंगुल्पयणधत्होता्है ्।्इस्प्रकार्पादववष्कम्भ्नौ्प्रकार्का्होता्है ्।्
इसके्अग्र्भाग्(पाद्के्शीषण्भाग)्का्ववष्कम्भ्(नीचे्के्माप्से)्आठ्भाग्कम्होता्है ्।्पाद्
के्अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्की्आिी, छः्या्आठ्भाग्कम्होती्है ्अथवा्
अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्स्तम्भ्के्तीसरे ्या्चौथे्भाग्के्बराबर्होती्है ्।्स्तम्भों्की्आकृनत्
Bo
चौकोर, वत्त
ृ ाकार, अष्िकोर््या्धचरखण्ड्होती्है ्॥२७-३०॥
ब्राह्मर्ो्एवं्राजाओं्(क्षबरयों)्के्स्तम्भ्शमी, खाददर, खददरकाष्ठ्से्ननसमणत्होते्है ्।्वैश्य्के्
स्तम्भ्ससलीधध्र, वपसशत्एवं्मिक
ू काष्ठ्के्होते्है ्।्शद्र
ू ों्के्स्तम्भ्राजादन, ननम्ब, ससलीधध्र,
वपसशत्या्नतनक
ु ्के्काष्ठ्से्ननसमणत्होते्है ्।्त्वक्सार्(बाूँस)्के्स्तम्भ्सभी्के्सलये्अनक
ु ू ल्
44
होते्है ्॥३१-३२॥
बाह्मर््एवं्राजाओं्के्मण्डप्पक्की्ईंिों्एवं्गारा्से्ननसमणत्होते्है ्।्वैश्यों्आदद्के्मण्डप्
कच्ची्ईंिो्से्ननसमणत्होते्है ्।्सभी्मण्डप्ववववि्अलंकरर्ो्से्सुसन्ज्जत्होते्है ्।्अथवा्
(मण्डप्के्स्थान्पर)्नाररयल्के्परों्से्आच्छाददत्प्रपा्का्ननमाणर््होता्है ्।्गह
ृ ्एवं्मण्डप्के्
बीच्में ्चारो्ओर्तीन, चार, पाूँच्या्छः्हाथ्ववस्तार्का्एवं्सभी्स्थानों्पर्समान्माप्का्
मागण्ननसमणत्करना्चादहये्।्छोिे ्भवनों्में ्एक्या्दो्हाथ्चौड़ा्मागण्होना्चादहये्॥३३-३५॥
अन्नागाराददस्थान
अधनागार्आदद्(िाधय, िन्एवं्सौख्य्गह
ृ )्का्मध्य्वास्तु्के्मध्य्से्दादहनी्ओर्होना्चादहये्
।्यह्क्रमशः्बारह, नौ, सात्एवं्पाूँच्अंगुल्होना्चादहये्।्(कहने्का्तात्पयण्यह्है ्कक्ये्कक्ष्
वास्तुमध्य्से्हिकर्दक्षक्षर््भाग्में ्ननसमणत्होने्चादहये)्॥३६॥
अधनागार्आदद्(िाधय, िन्एवं्सख
ु )्के्स्तम्भ्गह
ृ ों्के्क्रमशः्दस, नौ, आठ्एवं्सातवें्भाग्से्
होते्है ्।्एक-एक्स्तम्भ्स्तम्भ-स्थापन-कमण्द्वारा्स्थावपत्होना्चादहये्।्इधहे ्वास्त्ु के्मध्य्
से्उत्तर, पव
ू ,ण दक्षक्षर््एवं्पन्श्चम्में ्क्रमशः्स्थावपत्करना्चादहये्।्गह
ृ ्एवं्स्तम्भो्के्मध्य्में ्
न्स्थत्सभवत्त्को्मध्यसभवत्त्कहते्है ्।्गह
ृ ों्(कक्षो)्के्मुख्(द्वार)्भीतर्की्ओर्एवं्वास्तु्का्
(गह
ृ ्के्बाहरी्भाग्का)्द्वार्बाहर्की्ओर्होना्चादहये्॥३७-३९॥
सुखालय
सुखालय्-्ब्राह्मर्ों्का्सुखालय्महीिर, इधद,ु भललाि, मग
ृ ्एवं्अददनत्के्पद्पर्ननसमणत्होना्
चादहये्।्उसकी्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्इस्प्रकार्है ्-्पाूँच्हाथ्से्नौ्हाथ्तक, साढ़े ्पाूँच्से्साढ़े ्
दस्तक्एवं्सात्हाथ्से्ग्यारह्हाथ्तक्।्इस्प्रकार्इनका्तीन्प्रकार्का्प्रमार््होता्है ्
॥४०-४१॥
om
सामान्यप्रमाण
सामाधय्माप्-्सभी्भवनों्की्चल
ू ी्(स्तम्भ्का्ऊपरी्भाग)्की्ऊूँचाई्गह
ृ ्के्अन्धतम्भाग्तक्
की्चौड़ाई्के्बराबर्होनी्चादहये्।्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्के्बराबर्सभवत्त्की्ऊूँचाई्होनी्चादहये्तथा्
मोिाई्(चौड़ाई)्स्तम्भ्की्चौड़ाई्की्तीनगुनी्होनी्चादहये्॥४२॥
।्स्तम्भ्का्व्यास्पूवव
s.c
दो्स्तम्भों्के्मध्य्का्अधतराल्भवन्की्चौड़ाई्के्तीसरे ्या्पाूँचवे्भाग्के्बराबर्होना्चादहये्
ण र्णन्के्अनुसार्या्भवन्के्हस्त-माप्के्व्यास्के्अनुसार्रखना्चादहये्
।्भवन्का्ववस्तार्न्जतने्हाथ्हो, उतने्अंगुल्का्स्तम्भ्का्ववस्तार्होना्चादहये्।्सभी्प्रकार्
के्भवनों्के्स्तम्भ्का्ववष्कम्भ्(ववस्तार)्इसी्प्रकार्होना्चादहये्॥४३-४४॥
ok
पुनः्सुखालय
पुनः्सुखालय्-्भवन्का्द्वार्महे धद्र्के्पद्पर्एवं्जल्की्नाली्मुख्य्के्पद्पर्होनी्चादहये्
।्इस्प्रकार्का्भवन्ब्राह्मर्ो्के्सलये्सवण-सम्पवत्तकारक्होता्है ्॥४५॥
अन्नालय
Bo
अधनगह
ृ ्-्महानस्(रसोई्-कक्ष)्का्ननमाणर््महे धद्र, अकण, आयणक, सत्य्तथा्भश
ृ ्के्पद्पर्होना्
चादहये्।्इसका्माप्पाूँच्प्रकार्का्-्तीन्हाथ्एवं्पाूँच्हाथ, साढ़े ्तीन्तथा्साढ़े ्छः्हाथ, चार्
एवं्सात्हाथ, साढ़े ्चार्तथा्साढ़े ्आठ्हाथ्और्पाूँच्एवं्नौ्हाथ्तक्होता्है ्॥४६-४७॥
गह
ृ ्का्द्वार्गह
ृ क्षत्के्भाग्पर्एवं्जल-प्रर्ाल्जयधत्के्भाग्पर्होता्है ्।्इस्प्रकार्पव
ू ्ण
44
ददशा्मे्न्स्थत्राजा्का्गह
ृ ्कोश्को्लाने्वाला्एवं्वद्
ृ धि्करने्वाला्होता्है ्॥४८॥
धान्यालय
िाधयगह
ृ ्-्िाधयालय्की्न्स्थनत्गह
ृ क्षत, अकी्(यम), गधिवण, भङ्
ृ गराज्तथा्वववस्वान्के्पद्पर्
होनी्चादहये्।्उसकी्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्पाूँच्हाथ्तथा्नौ्हाथ, साढ़े ्
छः्एवं्साढ़े ्दस्हाथ, सात्एवं्ग्यारह्हाथ, नौ्एवं्तेरह्हाथ्और्ग्यारह्एवं्पधद्रह्हाथ-्ये्पाूँच्
प्रकार्के्माप्होते्है ्।्॥४९-५०॥
पुष्पदधत्के्पद्पर्द्वार्होना्चादहये्तथा्ववतथ्के्पद्पर्जलननकास्होना्चादहये्।्वैश्यों्का्
दक्षक्षर््ददशा्में ्आवास्िन, िाधय्एवं्सुख्प्रदान्करता्है ्॥५१॥
िनगह
ृ ्-्िनालय्पष्ु पदधत, असरु , शोष, वरुर््एवं्समर्के्पद्पर्होता्है ्।्इसे्िाधयालय्के्
समान्या्उससे्कुछ्कम्होना्चादहये्।्पन्श्चम्ददशा्में ्शद्र
ू ्का्वास्िन, िाधय्एवं्शभ
ु ता्
प्रदान्करता्है ्॥५२-५३॥
इस्भवन्में ्भललाि्के्पद्पर्द्वार्तथा्सुग्रीव्के्पद्पर्जलप्रर्ाल्होना्चादहये्।्इस्प्रकार्
चारो्वर्ो्के्आवास्की्ववधि्का्वर्णन्ककया्गया्॥५४॥
गह
ृ ोध्िाभागाङ्गान
गह
ृ ्के्ऊपरी्भाग्के्अंग्-्स्तम्भ्के्ऊपर्पोनतका, उत्तर, वाजन, तुला, जयधती, अनुमागण, फलका,
ऊपरी्भूसम्का्तल्(फशण), कपोत, उसकी्प्रनत, ववतन्स्त-जलक्(काननणस), मुन्ष्िबधि, मर्
ृ ाली, दन्ण्डका,
लुपा-कक्रया्(लुपा्का्ढाूँचा), लुपा-प्रच्छादन्तथा्पट्दिका्से्युक्त्मुख्की्रचना्होनी्चादहये्।्गह
ृ ्
के्दक्षक्षर््पाश्वण्में ्बड़ा्द्वार्होना्चादहये्॥५५-५७॥
om
वास्तु्मण्डप्का्मान्-्मण्डप्का्प्रमार््दो्हाथ, साढे ्तीन्हाथ्और्चार्हाथ्होता्है ्।्अथवा्
वास्तु-मण्डप्(गह
ृ ्का्मण्डप)्चार्हाथ्प्रमार््से्प्रारम्भ्होकर्बत्तीस्हाथ्तक्होता्है ्।्छोिे ्
भवन्में ्प्रपा्का्ननमाणर््होता्है , न्जसका्प्रमार््एक्भन्क्त्से्लेकर्इकतीस्भन्क्त्तक्होता्है ्
।्यह्ताल्एवं्नाररयल्के्पत्तों्से्आच्छाददत्होता्है ्एवं्स्तम्भ्तथा्बीम्से्बना्होता्है ्॥५८-
५९॥
गभास्थान
गभण-धयास्का्स्थान्-्अब्मै्गह
s.c
ृ ो्के्गभणस्थान्का्वर्णन्पूव-ण वर्णन्के्अनुसार्करता्हूूँ्।्यह्
ववशेष्रूप्से्दे वों्के्भाग्के्अनुसार्ववधयास्के्ववषय्में ्है ्॥६०॥
ok
चार्प्रिान्भवनों्मे्उत्तर्से्प्रारम्भ्कर्पुष्पदधत, भललाि, महे धद्र्एवं्गह
ृ क्षत्के्पद्पर्सभनत्के्
नीचे्मुख्य्द्वार्के्दादहने्भाग्में ्गभणधयास्होना्चादहये्॥६१॥
सभवत्त्की्चौड़ाई्के्नौ्भाग्या्आठ्भाग्करने्चादहये्।्बाहर्से्चौथे्भाग्एवं्भीतर्से्तीसरे ्
भाग्को्लेकर्इन्दोनों्(बबधदओ
ु ं)्के्मध्य्में ्गभणधयास्करना्चादहये्॥६२॥
Bo
गह
ृ स्वामी्के्कक्ष्की्सभवत्त्की्चौड़ाई्को्पाूँच, छः्या्सात्भाग्में ्बाूँिना्चादहये्।्सभतर्से्
दादहने्भाग्में ्दो्भाग्लेना्चादहये्॥६३॥
स्तम्भ्के्मल
ू ्में ्गभणधयास्अन्च्छ्तरह्नछपा्कर्करना्चादहये्।्इसे्द्वार्के्दादहने्स्तम्भ्के्
नीचे, भीतरी्सभवत्त्के्नीचे्अथवा्नछपे्स्तम्भ्के्नीचे, वास्त-ु मण्डल्के्मध्य्से्दक्षक्षर््स्तम्भ्के्
44
नीचे्स्थावपत्करना्चादहये्।्वपण्डसभधन्(संयक्
ु त्एवं्पथ
ृ क)्गह
ृ ्में ्गभण-धयास्के्ये्पाूँच्स्थान्
है ्॥६४-६५॥
मुहूतास्तर्मभ
मुहूत्त-ण स्तम्भ्-्ववधि्के्ज्ञाता्के्द्वारा्उसके्(गभणधयास्के)्ऊपर्उत्तम्मुहूत-ण स्तम्भ्की्स्थापना्
करनी्चादहये्।्ये्स्तम्भ्खददर, खाददर, मिक
ू ्या्राजादन्के्काष्ठ्से्ननसमणत्होते्है ्।्इनकी्
लम्बाई्एवं्चौड़ाई्इस्प्रकार्कही्गई्है -्इसकी्लम्बाई्बारह, ग्यारह, दस्या्नौ्बबत्ता्तथा्इसकी्
चौड़ाई्बबत्ते्के्माप्के्बराबर्अंगुल्होती्है ्।्शीषण्भाग्में ्इसकी्चौड़ाई्आठ्भाग्कम्होनी्
चादहये्।्गड्ढे ्मे्रक्खा्जाने्वाला्उसकी्लम्बाई्का्पाूँच, साढे ्चार, चार्या्तीन्बबत्ता्के्बराबर्
का्भाग्होता्है ्।्इसके्शीषण्भाग्को्वत्त
ृ ाकार, कमलपुष्प्की्कली्के्समान, खण्डाग्र्या्बुद्बुद्
के्समान्ननसमणत्करना्चादहये्।्स्तम्भ्की्पज
ू ा्ब्राह्मर््आदद्चारो्वर्ो्द्वारा्भली-भाूँनत्
करनी्चादहये्॥६६-६९॥
सामान्यविथध
सामाधय्ववधि-्वपण्डशाला्(सम्पूर््ण भवन्का्एक्भाग)्का्ननमाणर््मध्य्मे्न्स्थत्स्तम्भ्को्
छोड़कर्करना्चादहये्(अथाणत्गह
ृ ्के्मध्य्में ्स्तम्भ्नही्होना्चादहये)्गह
ृ ्की्मध्य्सभवत्त्
स्तम्भ्के्मध्य्भाग्से्सम्बद्ि्नही्होनी्चादहये्।्इस्सभवत्त्पर्दो्कुलयाभ्द्वार्(मुडा्हुआ्
द्वार)्होना्चादहये्॥७०॥
(सुखालय)्भवन्में ्भीतरी्द्वर्दक्षक्षर्-पूव्ण मे्होना्चादहये्।्गह
ृ ्का्पाश्वण्दक्षक्षर््भाग्में ्होना्
चादहये्एवं्गह
ृ ्के्पाश्वण्(दक्षक्षर््भाग्में )्रसोई्होनी्चादहये्।्(िाधयालय)्भवन्का्भीतरी्द्वार्
पन्श्चमोत्तर्ददशा्मे्होना्चदहये्।्गह
ृ ्का्पाश्वण्भाग्उत्तर्ददशा्मे्होना्चादहये्।्(िनालय्
om
भवन)्पाश्वण्भाग्के्पन्श्चम्में ्होना्चादहये्।्सभधन्शालागह
ृ ो्मे्शालाओ्में ्सन्धिकायण्नदह्
करना्चादहये्॥७१-७३॥
दे वों्(वास्तुदेवों)्की्स्थापना्वपण्डशालाओं्मे्(भवन्के्संयुक्त्खण्ड्में )्करना्चादहये्।्ब्रह्मा्
एवं्उनके्चतुददण क्बाह्य्दे वों्की्स्थापना्उधचत्रीनत्से्करनी्चादहये्।्ववना्पदो्वाले्शेष्सभी्
s.c
दे वों्को्रक्षा्के्सलये्स्थावपत्करना्चादहये्॥७४॥
ऐसा्भी्कहा्गया्है ्कक्वपण्डशाला्में ्मध्य्भाग्में ्स्तम्भ्नही्होना्चादहये्।्अब्मै्कफर्से्
क्रमानुसार्दोनो्पाश्वों्मे, पीछे ्तथा्सामने्स्तम्भों्की्संख्या्का्वर्णन्हस्तसंख्या्(हस्त-माप)्के्
अनुसार्करता्हूूँ्॥७५-७६॥
ok
भवन्का्माप्(ववस्तार)्तीन्या्साढे ्तीन्हाथ्होने्पर्आठ्स्तम्भ्होते्है ्।्माप्चार, साढ़े ्चार्
या्पाूँच्हाथ्होने्पर्सोलह्स्तम्भ, माप्छः, साढे ्छः्या्सात्हाथ्होने्पर्चौबीस्स्तम्भ, माप्
साढे ्आठ्या्नौ्हाथ्होने्पर्बत्तीस्स्तम्भः्माप्साढे ्दस्या्ग्यारह्हाथ्होने्पर्चालीस्
स्तम्भ; माप्साढ़े ्बारह्या्तेरह्हाथ्ववस्तत
ृ ्होने्पर्अड़तालीस्स्तम्भ्होने्चादहये्।्न्जस्प्रकार्
Bo
भाग्करना्चादहये्तथा्सामने्तीन्भाग्से्असलधद्र्ननसमणत्करना्चादहये्।्ग्यारह्भाग्ववस्तार्
होने्पर्दस्भाग्करना्चादहये्तथा्चार्भाग्से्बरामदा्करना्चादहये्।्तेरह्भाग्ववस्तार्होने्
पर्बारह्भाग्करने्चादहये्और्छः्भाग्से्सामने्असलधद्र्ननसमणत्करना्चादहये्।्असलधद्र्का्
भाग्इस्पर्जानना्चादहये्॥८१-८२॥
स्िाममस्थान
गह
ृ स्वामी्का्स्थान्-्स्वामी्के्स्थान्का्ववस्तार्चौवन्अंगुल्होना्चादहये्।्बड़े्गह
ृ ्में ्
अठहत्तर्अंगुल्होना्चादहये्।्प्रारम्भ्से्लेकर्छः-छः्अगुल्बढ़ाते्हुये्इसके्पाूँच्प्रमार््प्राप्त्
होते्है ्॥८३-८४॥
स्तम्भ्की्ऊूँचाई्के्साठ्भाग्करने्चादहये्।्सोलह्भाग्से्वेददका्का्ननमाणर््होना्चादहये्।्
वेददका्का्दग
ु ुना्स्तम्भ्होना्चादहये्तथा्शेष्से्प्रस्तर्की्रचना्करनी्चादहये्॥८५॥
अधिष्ठान्पादबधि्रीनत्से्ननसमणत्होना्चादहये्एवं्स्तम्भ्सभी्अंगो्से्यक्
ु त्होना्चादहये्।्
उत्तर्के्ऊपर्भत
ू , कपोत्एवं्प्रनत्ननसमणत्होनी्चादहये्।्इसे्व्याल, गज, मकर, ससंह्तथा्नाससका्
आदद्अलंकरर्ों्से्सस
ु न्ज्जत्करना्चादहये्।्द्वार्तोरर््से्यक्
ु त्हो्तथा्सभवत्त्का्भीतरी्भाग्
अलंकृत्होना्चादहये्॥८६-८७॥
स्वामी्का्आवास्भवन्के्भीतर्होता्है ्एवं्वहाूँ्मण्डप्ननसमणत्करना्चादहये्।्स्वामी्के्वास-
गह
ृ ्में ्शय्या्वंश्(वास्तुपद्की्रे खा)्पर्नही्होनी्चादहये्॥८८॥
स्वामी्के्आवास्में ्न्स्थत्स्तम्भ्दो्भाग्वाले्कहे ्गये्है ; (जबकक्शेष्स्थान्पर्न्स्थत)्स्तम्भ्
एक-दस
ु रे ्से्पथ
ृ क्होकर्न्स्थत्होते्है ्।्स्तम्भ्का्ववस्तार्स्तम्भ्(की्लम्बाई)्का्आिा्होता्
है ्एवं्इसका्अलंकरर््इच्छानुसार्ककया्जाता्है ्।्स्वामी्का्स्थान्भवन्के्प्रत्येक्तल्में ्
होना्चादहये्।्इसकी्सभवत्तयाूँ्ईिो, गारा्या्फलक्से्ननसमणत्होती्है ्।्राजाओं्के्आवास्की्
om
सभवत्त्सोने्एवं्ताम्र्आदद्िातुओं्से्ननसमणत्होती्है ्॥८९-९१॥
प्रिान्भवन्का्आच्छादन्-्अधनागार्आदद्गह
ृ ों्मे्ऊपर्पाञ्चाल्आदद्रीनतयों्से्दो-दो्लुपायें्
होनी्चादहये्।्लुपा-ननयोजन्एवं्उनका्क्रम्पूव-ण वर्र्णत्ववधि्से्होना्चादहये्।्लुपाओं्के्धयून्
होने्से्िन्का्क्षय्होता्है ्एवं्अधिक्होने्से्ऋर््एवं्बधिन्होता्है ्।्वैश्य्एवं्शूद्र्के्गह
ृ ों्
में ्तीन्चल
दे वगह
s.c
ू ी्तथा्राजा्के्भवन्मे्पाूँच्या्सात्चल
ू ी्होनी्चादहये्।्ब्राह्मर्ों्के्गह
ृ ्में ्ग्यारह, नान्स्तकों्एवं्आश्रमवाससयों्के्गह
॥९२-९४॥
ृ ्में ्सम्संख्या्में ्चल
ृ ्में ्नौ,
ू ी्ननसमणत्होनी्चादहये्
इस्प्रकार्आच्छाददत्होना्चादहये, न्जससे्गह
ृ ्की्वषाण्के्जल्से्रक्षा्हो्सके्।्सभी्वर्ो्के्
गह
ृ ्के्अधिष्ठान्की्ऊूँचाई्स्तम्भ्की्आिी्होनी्चादहये्।्कुछ्ववद्वानों्के्मतानस
ु ार्अधिष्ठान्
की्ऊूँचाई्गह
ृ स्वामी्के्वक्ष्या्नासभ्के्बराबर्होनी्चादहये्।्यह्मान्दक्षक्षर््ददशा्से्प्रारम्भ्
होकर्चारो्ददशा्के्भवनों्के्सलये्क्रमशः्कहा्गया्है ्॥९५-९८॥
44
गह
ृ ्के्अधय्कक्षों्की्संरचना्प्रिान्भवन्के्अनस
ु ार्करनी्चादहये्।्गह
ृ स्वामी्के्भोग्का्
स्थान्वही्(ननददण ष्ि्स्थल्पर)्करना्चादहये्॥९९॥
भोगविन्यास
भोग्का्ववधयास्-्पके्भात्के्एवं्नमक्के्जल्का्पार्पूवोत्तर्ददशा्में ्रखना्चादहये्।्
अधतररक्ष्के्पद्पर्चल
ू हा, सत्य्के्पद्पर्ओखली्एवं्ईशान्के्स्थान्पर्पाकस्थल्सभी्
व्यन्क्तयों्के्सलये्कलयार्कर्होता्है ्॥१००॥
चप
ु लीलक्षण
चल
ू हे ्के्लक्षर््-्चल
ू हे ्के्पाूँच्प्रकार्कहे ्गये्है ्।्इनका्ववस्ता-मान्आठ्अंगुल्से्लेकर्दो-दो्
अंगुल्बढ़ाए्हुये्सोलह्अंगुल्तक्तथा्ऊूँचाई्बारह्अंगुल्से्प्रारम्भ्करते्हुये-्तीन-तीन्अंगुल्
बढ़ाते्हुये्एक्हाथ्तक्होता्है ्॥१०१॥
चल
ू हे ्के्मख
ु ्का्ववस्तार्चार्अंगल
ु ्से्लेकर्बारह्अंगल
ु ्तक्और्इसी्प्रमार््से्पि
ु ्(चल
ू हे ्के्
स्थान)्की्चौड़ाई्एवं्पष्ृ ठ्कूि्(धचमनी)्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्इसकी्चौड़ाई्एवं्ऊूँचाई्
समान्होनी्चादहये्।्यह्चल
ू हे ्का्उपयक्
ु त्प्रमार््है ्।्चल
ू हे ्का्सबसे्छोिा्प्रमार््छोिे ्लोगों्
के्सलये्उपयुक्त्होता्है ्॥१०२॥
राजाओं्के्चल
ू हे ्का्आकार्मनुष्य्के्शीषण्के्समान, दे वों्एवं्ब्राह्मर्ों्का्चल
ू हा्चौकोर, वैश्यों्का्
चल
ू हा्आयताकार्तथा्अधय्आकृनत्के्चल
ू हे ्अधय्वर्ण्के्लोगों्के्सलये्अभीष्ि्होते्है ्॥१०३॥
चल
ू ीसंख्या
चल
ू ी्की्संख्या्-्मनुष्यो्तथा्दे वों्के्भवन्में ्चल
ू ी्की्संख्य्एक, तीन, पाूँच, सात, नौ्या्ग्यारह्
होती्है ्।्इनकी्संख्या्सम्एवं्ववषम्होती्है ्।्दे वों, ब्राह्मर्ों्एवं्राजाओ्के्भवन्मे्सभी्
संख्याये्अनुकूल्होती्है ्।्शेष्वर्ण्के्लोगों्के्भवन्में ्उसी्संख्याये्अनुकूल्होती्है ्।्शेष्
om
वर्ण्के्लोगों्के्भवन्मे्उसी्संख्या्का्प्रयोग्करना्चादहये, जैसा्ववद्वानों्ने्कहा्है ्॥१०४॥
पुनभोगविन्यास
पुनः्भोगे्का्ववधयास्-्अधनप्राशन्(भोजन)्का्स्थान्आयण, इधद्र्तथा्सववधद्र्के्पद्पर्होना्
चादहये्।्श्रवर््(वेदाभ्यास, अध्यय्न)्का्स्थान्वववस्वान्के्पद्पर, वववाह्का्स्थान्समर्के्पद्
s.c
पर्तथा्क्षौरकमण्(बाल्किवाने)्का्स्थान्इधद्रजय, वायु्एवं्सोम्के्पद्पर्कहा्गया्है ्।्आय-
व्यय्(दहसाब-ककताब)्का्स्थान्वपत,ृ दौवाररक्एवं्जल्के्पद्पर्और्सुगल्तथा्पुष्पदधत्के्
पद्पर्प्रसूनतगह
ृ ्होना्चादहये्।्जलकोश्(जलसंग्रह)्आपवत्स्के्स्थान्पर्एवं्कुण्ड्(जलकुण्ड)्
आय्के्पद्पर्होना्चादहये्।्अङ्कन्(चक्की)्महे धद्र्के्पद्पर्तथा्पेषर्ी्(ससल)्महीिर्के्
ok
पद्पर्होना्चादहये्॥१०५-१०८॥
िस्तुभेद
वास्तु्के्भेद्-्पूवव
ण र्र्णत्भवनों्के्क्रम्में ्वास्तुभेद्का्वर्णन्करता्हूूँ्।्इनमें ्प्रथम्ददशाभद्र,
उसके्पश्चात्दस
ू रा्गरुड़पक्ष, तीसरा्कायभार्एवं्चौथा्तल
ु ानीय्होता्है ्॥१०९॥
Bo
ददसशभद्रकम
ददशाभद्र्भवन्-्ददसशभद्र्भवन्में ्उसकी्लम्बाई्के्समान्सभी्ददशाओं्में ्भद्रक्होना्चादहये्।्
सभी्ददशाओं्में ्आंगन्तथा्ददक्कोर्ों्में ्प्रनतवािभ्ू (खल
ु ा्स्थान्या्यागस्थल)्होना्चादहये्।्
शेष्पव
ू व
ण र्र्णत्ननयम्के्अनस
ु ार, ववशेष्रूप्से्ब्राह्मर््एव्राजाओ्के्भवन्में ्ननसमणत्करना्
44
चादहये्॥११०-१११॥
गरुडपक्ष
गरुड़पक्ष्-्गरुडपक्ष्भवन्के्ननयम्वही्है , जो्राजभवनों्के्होते्है ्।
कायभार
कायभार्-्इस्भवन्की्लम्बाई्ववस्तार्की्दग
ु ुनी्होती्है ्एवं्लम्बाई्के्पाूँच्भाग्करने्चादहये्
।्दो्भाग्पन्श्चम्में ्छोड़कर्शेष्भाग्मे्चौसठ्भाग्ननसमणत्करना्चादहये्।्मण्डप्आदद्सभी्
भागो्का्ननमाणर््पहले्के्समान्करना्चादहये्।्प्रिान्भवन्दक्षक्षर््ददशा्में ्एवं्शेष्
भोगाधिवास्होते्है ्॥११२-११३॥
अररष्िागार्एवं्गह
ृ ्के्सामानों्का्भंग
ृ राज, दौवाररक, सुग्रीव्एवं्वपत्ृ के्पद्पर्होना्चादहये्।्
द्वार्के्वाम्भाग्में ्वरुर््के्पद्पर्दानशाला, असुर्के्पद्पर्िाधयगह
ृ , इधद्रराज्के्पद्पर्
आयि
ु , समर्के्पद्पर्समरवास्(अनतधथगह
ृ )्रोग्के्पद्पर्उलख
ू ल्यधर्(ओखली), भि
ू र्के्पद्
पर्कोश-गह
ृ , नाग्के्पद्पर्घी्एवं्औषि्जयधत्के्पद्पर्ववष, आपवत्स्के्पद्पर्ववषघात,
पजणधय्के्पद्पर्कूप्तथा्सशव्के्पद्पर्दे वगह
ृ ्होना्चादहये्।्सववर्से्अधतररक्ष्के्पद्तक्
खाद्यसामग्री्एवं्रसोई्का्स्थान्होना्चादहये्।्ववतथ, पूषा्एवं्सववधद्र्के्पद्पर्भुन्क्तगेह्
(भोजनशाला)्होनी्चादहये्॥११४-११८॥
यह्वैश्यों्में ्ऐश्वयणशाली्लोगों्के्सलये्है ्।्कायभार्संज्ञक्भवन्पन्श्चम्भाग्को्छोड़कर्सभी्
वैश्यो्के्सलये्अनुकूल्होता्है ्।्अब्तुलानीय्भवन्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥११९-१२०॥
तुलानीय
तुलानीय्-्तुलानीय्भवन्की्लम्बाई्उसकी्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी्होती्है ्।्लम्बाई्के्सात्भाग्
ककये्जाते्है ्।्वास्तु-मध्य्में ्तीन्भाग्सलया्जाता्है ्एवं्चौसठ्पदों्को्बाूँिा्जाता्है ्।्मण्डप्
om
आदद्सभी्अंगो्का्ननमाणर््पहले्के्समान्होता्है ्।्पूव्ण एवं्पन्श्चम्मे्दो-दो्भाग्प्रयत्नपूवक
ण ्
छोड़कर्मध्य्स्थान्को्ववद्वान्व्यन्क्त्को्उधचत्रीनत्से्आवश्यकतानस
ु ार्अलंकृत्करना्
चादहये्॥१२१-१२२॥
वायु, भललाि्एवं्सोम्के्पद्पर्आस्थानशाला्(स्वागतकक्ष)्होना्चादहये्।्मुख्य्के्पद्पर्
स्थान्इच्छानुसार्ननसमणत्करना्चादहये्।्समद्
ककया्गया्॥१२३-१२४॥
s.c
ओखली, आप्के्पद्पर्गर्र्काओं्का्स्थान, वाहन्सामने्(द्वार्के)्वाम्भाग्में ्तथा्शेष्
ृ ि्शूद्रो्के्स्थान्का्इस्प्रकार्भली-भाूँनत्वर्णन्
्िारमान
द्वार्के्मान्-्ववधि्के्ज्ञाता्(स्थपनत)्को्मनष्ु यों्के्भवन्के्द्वार्का्ननमाणर््इस्प्रकार्
करना्चादहये्।्स्तम्भ्की्लम्बाई्के्आठ्भाग्करने्चादहये्।्उसके्साढ़े ्छः्भाग्से्द्वार्की्
लम्बाई्रखनी्चादहये्।्लम्बाई्के्नौ्भाग्करके्उसके्आिे्भाग्को्छोड़्दे ना्चादहये्।्शेष्
44
भाग्के्बराबर्द्वार्की्चौड़ाई्रखनी्चादहये्॥१२८॥
स्तम्भ्की्लम्बाई्के्पाूँच्भाग्करने्चादहये्।्चार्भाग्से्द्वार्की्लम्बाई्रखनी्चादहये्।्
शेष्भाग्के्छः्भाग्करने्चादहये्।्सढ़े ्तीन्भाग्से्उत्तर्(सलधिल)्तथा्ढ़ाई्भाग्से्प्रनत्
होनी्चादहये्।्द्वार्पर्बधि्(बधद्करनेवाला्भाग)्होना्चादहये, न्जसकी्मोिाई्पूवव
ण र्र्णत्होनी्
चादहये्॥१२९॥
कमाकाल
उददत्होते्हुये्सूय्ण की्ककरर्ोंसे्जब्(शङ्कु्की्छाया्पड़े)्तब्अधनशाला्का्ननमाणर््करना्
चादहये्।्दोपहर्के्पश्चात्जब्सूय्ण कीककरर्ें ्पन्श्चम्से्अत्यधत्ढलकर्आती्है , उस्समय्अनत्
उधनत्िनगह
ृ ्ननसमणत्होना्चादहये्।्दक्षक्षर््गह
ृ ्अत्यधत्उूँ चा्एवं्ववस्तत
ृ ्होना्चादहये्।्(इस्
समय्सूय्ण दक्षक्षर््में ्होता्है )्।्सुखगह
ृ ्का्ननमाणर््उस्समय्करना्चादहये, जब्सूय्ण की्ककरर्े्
उतर्ददशा्से्आती्है ्या्जब्ककरर्े्सख
ु द्हो्।्प्राचीन्मनीवषयों्के्अनस
ु ार्ब्राह्मर्, राजा्
(क्षबरय)्वैश्य्एवं्शद्र
ू ो्के्भवन्का्ननमाणर््सय
ू ्ण के्उददत्होने्एवं्डूबने्के्समय्के्अनस
ु ार्
करना्चादहये्॥१३०-१३१॥
्िारस्थान
द्वार्का्स्थान्गह
ृ ्का्मुख्य्प्रवेशद्वार्राक्षस, पुष्पदधत, भललाि्या्महे धद्र्के्पद्पर्प्रशस्त्
होता्है ्।्यह्गह
ृ स्वामी्के्िन, वंश्एवं्पशुओं्की्वद्
ृ धि्करता्है ्।्गह
ृ ्की्सभवत्त्एवं्स्तम्भ्के्
मध्य्में ्न्स्थत्प्रवेशद्वार्प्रशस्त्होता्है ्॥१३२॥
गह
ृ ्में ्वास-योजना्-्गह
ृ स्वामी्का्कक्ष्भवन्के्दादहनी्ओर्एवं्उसकी्स्री्का्कक्ष्बायी्और्
होना्चादहये्।्इसके्ववपरीत्होनेपर्प्रशस्त्नही्होता्है ्एवं्यही्न्स्थनत्उनके्धचत्त्को्सदै व्
दःु खी्बनाती्है ्॥१३३॥
om
सम्पवत्त्एवं्समद्
ृ धि्के्सलये्गह
ृ ्का्ननमाणर््वास्तु-क्षेर्के्मध्य्मे, गह
ृ ्के्मध्य्मे, स्तम्भ्एवं्
सभवत्त्के्ववषय्में ्न्जस्प्रकार्कहा्गया्है .्उसी्प्रकार्करना्चादहये्।्इनके्आपस्में ्समधश्रत्हो्
जाने्पर्सभी्प्रकार्की्सम्पवत्तयों्का्नाश्होता्है ्।्अतः्ननमाणर्कायण्भली-भाूँनत्परीक्षा्करके्
ही्करना्चादहये्॥१३४॥
आरर्मभकाल
गह
s.c
ृ -ननमाणर््का्आरम्भकाल्-्सूय्ण के्मेष्और्वष
ृ ्में ्जाने्पर्अधनगह
ृ ्का्ननमाणर््करना्चादहये्
।्ककण्और्ससंह्में ्सूय्ण के्रहने्पर्िाधयालय्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्तुला्और्वन्ृ श्चक्में ्
सूय्ण के्रहने्पर्िनालय्एवं्मकर्तथा्कुम्भ्में ्सूय्ण के्होने्पर्सुखालय्का्ननमाणर््होता्है ्।्
ok
सूय्ण के्मीन, समथन
ु , कधया्या्िनु्में ्होने्पर्कमणववत्व्यन्क्त्को्सभी्ददशाओं्में ्(अथाणत्ककसी्
भी्ददशा्में )्घर्नही्बनवाना्चादहये्।्यदद्कोई्व्यन्क्त्इस्व्यवस्था्की्उपेक्षा्कर्अपनी्
इच्छा्के्अनुसार्गह
ृ -ननमाणर््प्रारम्भ्करता्है ्तो्वह्या्तो्यमलोक्जाता्है ्अथवा्उसके्सेवकों्
का्नाश्होता्है ्॥१३५-१३६॥
Bo
मयमतम्-्अध्याय्२८
्
44
(गह
ृ प्रिेि)
गह
ृ ्में ्प्रथम्प्रवेश्-्जब्गह
ृ ्ननसमणत्हो्जाय्तब्गह
ृ ्में ्प्रवेश्करना्चादहये्।्ववना्पर्
ू ्ण रूप्से्
ननसमणत्गह
ृ ्में ्प्रवेश्करने्की्शीिता्नही्करनी्चादहये्।्गह
ृ ननमाणर््के्पर्
ू ्ण होने्के्पश्चात्गह
ृ -
प्रवेश्करने्मे्ववलम्ब्होने्पर्उस्गह
ृ ्में ्दे व्एवं्भत
ु ्आदद्गर्ों्का्वास्हो्जाता्है ्॥१॥
जब्गह
ृ -ननमाणर््का्कायण्समापन्की्ओर्पहुूँच्े तब्शुभ्नक्षर, नतधथ, वार, शुभ्होरा, शुभ्मुहूत,ण
अंश, करर््एवं्शुभ्लग्न्में ्गह
ृ प्रवेश्करना्चादहये्॥२॥
अथधिास
प्रवेश्से्पूव्ण के्कृत्य्-्गह
ृ प्रवेश्के्एक्ददन्पूव्ण गह
ृ ्में ्ब्राह्मर्, पशु्एवं्वष
ृ भ्को्बसाना्चादहये्
एवं्जल्आदद्से्उधहे ्तप्ृ त्कराना्चादहये्।्स्वाध्याय्(वेद-पाठ)्तथा्होम्आदद्तथा्
स्वन्स्तवाचन्से्ब्राह्मर््को्प्रसधन्करना्चादहये्।्गह
ृ ्की्सफाई्करनी्चादहये्।्सभवत्त्पर्
हररद्रा्(हलदी), सरसों, कुष्ठ्(कूि), वचा्के्समश्रर््का्लेप्करना्चादहये्तथा्भसू म्पर्चधदन्के्
जल्का्नछड़काव्करना्चादहये्॥३॥
भवन्के्उत्तर-पूव्ण भाग्में ्ननशाकाल्में ्(पूवस
ण धध्या्में )्बुद्धिमान्मनुष्य्को्अधिवास-कमण्करना्
चादहये्।्गह
ृ ्को्ववतान, पताका्तथा्रं ग-बबरं गे्वस्राददकों्से्मण्डप्को्सजाना्चादहये्॥४॥
स्थपनत्को्श्वेत्वस्र, सोने्का्यज्ञोपवीत, श्वेत्पष्ु प, श्वेत्लेप्(चधदन), सोने्एवं्रत्नों्से्युक्त्
ववववि्आभूषर््को्िारर््कर्प्रसधन्मन्से्उपन्स्थत्रहना्चादहये्॥५॥
कलि्स्थापन
कलश्की्स्थापना-्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्पच्चीस्जलपूर््ण कलश्को्नये्वस्रों्से्लपेिना्चादहये्
एवं्उनमें ्सुवर्ण्तथा्रत्न्डालना्चादहये्।्इधहे ्तण्डुल्(चावल)्से्युक्त्उपपीठ्वास्तुपद्पर्
om
स्थावपत्करना्चादहये्॥६॥
इन्कलशों्के्उत्तर्ददशा्मे्बसल्के्अधन्(दे वों्को्समवपणत्करने्वाले्अधन)्श्वेत, लाल, पीला्
एवं्कृष्र््वर्ण्(का्चावल), मूँग
ू , पाअस्(दि
ू ्में ्पका्भात), पका्यव, वपङ्गाधन्(केसर्का्चावल),
कृसर्(र्खचड़ी), गुड़्मे्पका्भात्एवं्शुद्िाधन्(केवल्बात)्रखना्चादहये्॥७॥
s.c
इसके्पश्चात्स्थपनत्पलंग्पर्बैठता्है , न्जस्पर्सुद्नर्बबस्तर्बबछा्होता्है , चार्दीपक्होते्है्
तथा्उस्पर्वस्र्(चादर)्होता्है ्।्स्थपनत्सदै व्'शम्बर' (शुभ्वाचक्शब्द)्बोलता्रहता्है ्॥८॥
एक्सुवर्णपार्में ्सभी्अधन, बसल्एवं्चरु्(हवन्के्सलये्खीर), रत्न, सुवर्ण, दही, गुड, मि,ु फूल, घी,
अक्षत, िान्का्लावा, रजनन, तगरु, कुष्ठ्(कूि), अच्छकलक्(हलदी्का्समश्रर्)्आदद्रक्खा्जाता्है ्
ok
॥९॥
इसके्पश्चात्स्थपनत्सभी्दे वों्को्(वास्तुमण्डल)्उनके्कोष्ठों्में ्रखता्है ्और्ननमणल्कलशोम्
को्एक्हाथ्की्पंन्क्त्में ्रखता्है ्।्तक्षक्(स्थपनत)्इन्कलशों्को्श्वेत्पुष्प, यूप्(काष्ठ्की्
खि
ूँू ी, न्जसकी्प्रयोग्यज्ञभसू म्में ्होता्है ), दीप्तथा्गधि्अवपणत्करता्है ्।्प्रत्येक्दे वता्को्
Bo
आदरपव
ू क
ण ्ओंकार्से्प्रारम्भ्कर्नमः्पयणधत्नाम्लेते्हुये्बसल्प्रदान्करता्है , ऐसा्प्राचीन्
ववद्वानों्का्मत्है ्।्॥१०॥
बमलविधान
बसलप्रदान्-्सबसे्पहले्ववधिपव
ू क
ण ्अज्(ब्रह्मा)्को्नमन्करते्हुये्उधहे ्बसल-प्रदान्करे ्।्इसके्
44
पश्चात्चतम
ु ख
ुण ्ब्रह्मा्के्चारो्ददशाओं्मे्न्स्थत्दे वों्को्उनके्अनक
ु ू ल्बसल, पष्ु प, गधि्एवं्िप
ू ्
आदद्से्तप्ृ त्करना्चादहये्॥११-१२॥
बधिओ
ु ं्के्साथ्इधद्र्के्सलये्पूव्ण ददशा्में , अन्ग्न्के्सलये्अन्ग्नकोर््में , यम्के्सलये्दक्षक्षर््ददशा्
मे, ननऋनत्एवं्उसके्वपर्ु आदद्बधिु-वगण्के्सलये्नैऋत्य्कोर््में , पन्श्चम्मे्वरुर््के्सलये,
वायव्य्कोर््में ्पररवार्के्साथ्अननल्के्सलये, सोम्के्पद्पर्उत्तर्ददशा्में ्समरो्के्साथ्सोम्
के्सलये्बसल्प्रदान्करना्चादहये्।्पूवोत्तर्ददशा्में ्बधि-ु बाधिवों्के्सदहत्सशव्के्सलये्बसल्
प्रदान्करना्चादहये्।्इस्प्रकार्सभी्ददशाओं्एवं्कोर्ों्में ्बसल्प्रदान्करना्चादहये्॥१३-१४॥
चरकी्के्सलये्ईश्पद्(के्बाहर), ववदारी्के्सलये्ज्वलन्(के्स्थान्के्बाहर), पूतना्के्सलये्
वपतप
ृ द्के्बाहर, इसी्प्रकार्पापराक्षसी्के्सलये्मारुत्के्पद्के्बाहरी्भाग्पर्बसल-कमण्करना्
चादहये्॥१५॥
स्तम्भ्पर्वन्(वक्ष
ृ )्एवं्घास्के्सलये, ददन्में ्ववचरर््करने्वालों्के्सलये्ददशाओं्में , राबर्मे्
ववचरर््करने्वालों्(राक्षस्आदद)्के्सलये्ददक्कोर्ों्मे्बसल्प्रदान्करना्चादहये्।्सपण्एवं्
दे वताओं्के्सलये्(भसू म्के्नीचे्न्स्थत्दे वों्के्सलये)्पथ्
ृ वी्पर्बसल्डालनी्चादहये्।्िमण्एवं्
सभी्दे वों्के्सलये्आकाश्की्ओर्बसल्फेंकनी्चादहये्।्द्वार्के्वाम्भाग्में ्मनु्एवं्अधय्को्
तथा्शयन्पर्श्री्को्बसल्प्रदान्करना्चादहये्॥१६॥
शालाओं्मे, मण्डप्में , सभागारो्में , मासलकाओं्में , मध्य्आूँगन्मे्तथा्ववमान्(मन्धदर्)्में , मुख्य्
मण्डप्में ्भवन्के्आभ्यधतर्दे वों्का्चौसठ्पद्वास्तु-मण्डल्में ्आवाहन्कर्गधि-पुष्प्आदद्से्
उनकी्पूजा्करनी्चादहये्।्उनको्जल्तथा्सुधदर्बसल्प्रदान्करने्के्पश्चात्जल्एवं्िप
ू ्
स्थपनत्द्वारा्प्रदान्ककया्जाना्चादहये्।्॥१७-१८॥
उत्तम्िप
ू ्में ्तुलसी, सज्जणरस्(साल्वक्ष
ृ ्का्रस), अजन
ुण , मञ्जरी, घनवाचक, पिोल्(ककड़ी्की्एक्
om
जानत), गुग्गुल, रपुष, दहंग, महौषधि्(दव
ू ाण), सरसो्तथा्कुरवक्(सदाबहार्पुष्प)्होते्है ्॥१९॥
(उपयक्
ुण त्िप
ू )्प्रभूत्िन्एवं्अधन्प्रदान्करता्है ्।्भूत, वपशाच्एवं्राक्षसो्को्दरू ्करता्है ्और्
कीि, सपण, मक्खी, चह
ू ा, मकड़ी्एवं्चीदियों्का्दाह्करता्है ्(अथाणत्ये्घर्से्दरू ्रहते्है )्॥२०॥
इसके्पश्चात्पारों्के्पन्श्चम्भाग्में ्िाधय्के्बबछौने्पर्तक्षक्(स्थपनत)्के्सभी्सािन्
सलये्(इस्प्रकार)्कहना्चादहये्॥२१॥
आरोग्य, प्रसधनता, िन्एवं्यश्की्वद्
s.c
(उपकरर्, औजार)्रखकर्उनको्बसल्प्रदान्करना्चादहये्।्उस्संग्रह्के्मध्य्न्स्थत्होकर्उनके्
ृ धि्से्युक्त, महान्कमण्से्यक्
ु त, ननरधतर्उपद्रवकारी्कमों्
से्रदहत्पधृ थवी्िमण्के्मागण्पर्धचर्काल्तक्जीववत्रहे ्।्िाराननपात्से, जल्के्प्रकोप्से,
ok
(गज्के)्दाूँतों्द्वारा्धगराये्जाने्से, वायु्के्प्रकोप्से, अन्ग्न्के्दाह्से्और्चोरों्द्वारा्चोरी्से्
इस्गह
ृ ्की्रक्षा्कीन्जये्।्यह्गह
ृ ्मेरे्सलये्कलयार्कारी्हो्॥२२-२३॥
स्थपनतननगामनम
स्थपनत्का्ननकलना्-्इस्प्रकार्कहते्हुये्सम्पर्
ू ्ण सािनों्(उपकरर्ों)्को्खड़े्होकर्स्थपनत्
Bo
इसके्पश्चात्गह
ृ ्की्भली-भाूँनत्सफाई्करके्कुष्ठ, अगरु्एवं्चधदन-समधश्रत्जल्से्तथा्कलश्
के्सग
ु धियक्
ु त्मर्र््एव्सव
ु र्णसमधश्रत्जल्से्ससज्चन्करना्चादहये्।्तदनधतर्लावा्एवं्शासल्
(चावल)्को्भवन्के्भीतर्छींिना्चादहये्।्इसके्पश्चात्सम्पूर््ण गह
ृ ्में ्आठो्प्रकार्के्अधन,
िन्और्रत्नों्को्रखना्चादहये्।॥२६-२७॥
गह
ृ पनतगदृ हणीप्रिेिः
गह
ृ स्वामी्एवं्गह
ृ स्वासमनी्का्प्रवेश्-्गह
ृ पनत्एवं्गदृ हर्ी्माङ्गसलक्प्रतीकों्से्युक्त, स्वजनों,
सेवकों, पुरों्(सधतानो), बधि-ु बाधिवों्से्युक्त्होकर्अपने्उस्गह
ृ ्में ्जगत्पनत्ईश्वर्का्धचधतन्
करते्हुये्प्रवेश्करते्है , गह
ृ ्के्सभी्वस्तुओं्से्युक्त्होता्है ्॥२८॥
प्रसधन्मन्से्गह
ृ ्में ्प्रवेश्कर, गह
ृ ्मे्रखे्गये्सभी्पदाथों्को्दे खकर्गह
ृ पनत्एवं्गह
ृ स्वासमनी्
को्शय्या्पर्बैठना्चादहये्।्इसके्पश्चात्गदृ हर्ी्व्यञ्जनसदहत्अधन्को्लेकर्गह
ृ ्के्ननसमत्त्
बसल्प्रदान्करती्है ्।्बसल्दे ने्से्बचे्हुये्अधन्को्गदृ हर्ी्अपने्कुल्के्साथ्चलने्वाली्मल
ू ्
दासी्को्दे ती्है ्एवं्दे वता, ब्राह्मर््तथा्तक्षक्(स्थपनत)्आदद्को्िन, रत्न, पशु, अधन्एवं्
वस्रादद्दे कर्तप्ृ त्करती्है ्।्॥२९-३०॥
गह
ृ ्में ्सवणप्रथम्आत्मीय्जन, गुरुजन्(बड़े्लोग), समरगर्, सेवकगर््एवं्अधय्सम्बन्धियों्को्
भोजन्कराना्चादहये्।्गह
ृ पनत्एवं्गदृ हर्ी्अपने्गुरुजनों्को्प्रर्ाम्करे ्।्इसी्क्रम्से्पुर-पौरों्
को्भी्भोजन्कराना्चादहये्॥३१॥
गह
ृ स्वामी्उस्पववर्गह
ृ ्में ्प्रवेश्करे , जो्जलपूर््ण घिों्से्युक्त्हो, केले्के्फलयुक्त्डाली्से्
युक्त्हो, पूग्(सुपाड़ी)्वक्ष
ृ ्(की्डाली)्से्युक्त्हो, दीप, पीपल्के्पत्ते, श्वेत्पुष्प, अङ्कुररत्बीजों्से्
युक्त्हो्।्मांगसलक्कधयाओं, ननमणल्युवनतयों, प्रिान्ब्राह्मर्ों्से्युक्त्हो्एवं्न्जस्भवन्का्
द्वार्वधदनवार्से्सुसन्ज्जत्हो्॥३२॥
om
गह
ृ पनत्न्जस्प्रकार्वववाह्के्समय्गदृ हर्ी्का्हाथ्पकड़ता्है , उसी्प्रकार्श्वेत्वस्र, जल्एवं्
जलते्हुये्दीपक्से्युक्त्होकर, प्रसधन्मन्से्श्वेत्पुष्प्एवं्वस्र्िारर््कर्गदृ हर्ी्का्हाथ्
पकड़कर्गह
ृ ्में ्प्रवेश्करे ्॥३३॥
ववना्बसल्प्रदान्ककये, ववना्भोजन्कराये, ववना्गह
ृ ्आच्छाददत्ककये, ववना्गभणववधयास्ककये,
s.c
ब्राह्मर््एवं्स्थपनत्आदद्जहाूँ्तप्ृ त्न्ककये्गये्हो्या्जहाूँ्ववस्तर्न्हो, ऐसे्गह
ृ ्में ्प्रवेश्
करने्पर्मार्ववपवत्त्आती्है ्।्दष्ु ि्ह्रदय्(दःु खी्मन, अप्रसधन्धचत्त)्प्रवेश्करने्वाला्गह
ववपवत्त्का्भाजन्बनता्है ्॥३४॥
ृ पनत्
मयमतम्-्अध्याय्२९
्
44
om
आकार्या्मग्न्(खोखला)्होना्चादहये्तथा्एक्मान्का्प्रयोग्करना्चादहये्॥८-९॥
एक्बार्अभीष्ि्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्का्चयन्करने्के्पश्चात्उसी्के्अनुसार्भवनननमाणर््
करना्चादहये्।्यदद्भवन्ननसमणत्होने्के्पश्चात्ककसी्भी्कारर््से्उससे्छोिा्है ्तो्वह्
राजा्के्सलये्अशुभ्होता्है ्एवं्ननरधतर्ववपवत्तकारक्बनता्है ्।्यदद्भवन्को्बाहर्बढ़ाकर्
s.c
ननसमणत्करना्अभीष्ि्हो्तो्उसे्पुव्ण या्उत्तर्ददशा्में ्बढ़ाना्श्रेयस्कर्होता्है ्अथवा्चारो्ओर्
बढ़ाना्चादहये, ऐसा्प्राचीन्मनीवषयों्का्मत्है ्॥१०-११॥
छोिे ्भवनों्की्योजना्-्प्रथम्आूँगन्पूव्ण या्दक्षक्षर््मे्होना्चादहये्।्भवन्के्मध्य्में ्पीठ्
होना्चादहये, न्जसकी्ऊूँचाई्एवं्चौड़ाई्आिा्दण्ड्हो्।्यही्सह्(ब्रह्मा)्की्वेदी्पीठ्से्चारो्
ok
ओर्एक्दण्ड्अधिक्बड़ी्होती्है ्॥१२-१३॥
वेदी्की्दक्षक्षर््तीस्हाथ्की्दरु ी्पर्सीि्में ्राजा्का्भवन्होना्चादहये्।्वेदी्के्पन्श्चम्में ्
मध्यसूर्होता्है ्।्वेदी्के्उत्तर्में ्इसी्प्रमार््की्दरू ी्पर्रानी्का्भवन्होता्है , न्जसका्मध्य्
सर
ू ्वेदी्के्पव
ू ्ण में ्होता्है ्॥१४-१५॥
Bo
om
दण्डपयणधत्होती्है ्।्पररखा्के्बाहर्एवं्भीतर्भाग्में ्तीन्दण्ड्ववस्तत
ृ ्मागण्होना्चादहये्।्
पररखा्के्मूल्भाग्का्ववस्तार्ऊपरी्भाग्के्ववस्तार्के्आठवे्भाग्के्बराबर्होना्चादहये्।्
इसकी्गहराई्आवश्यकतानुसार्(पररन्स्थनत्के्अनुसार)्एवं्आकृनत्घण्िे ्के्समान्(अथवा्
सुरक्षा्के्अनुसार)्होनी्चादहये्॥२७-२८॥
पुनगह
णृ ववधयासः
पुनः्गह
s.c
ृ ्का्ववधयास्-्रानी्के्भवन्के्बाहर्गह
ृ ों्को्आवश्यकतानुसार्ननसमणत्करना्चादहये्।्
अब्मै्यहाूँ्उनके्दै ववक्भाग्का्वर्णन्कर्रहा्हूूँ्।्प्रथम्प्राकार्के्बाहर्का्भवन्दे वता्के्
भाग्के्अनुसार्होना्चादहये्॥२९॥
ok
प्रथमािरण
द्वारहम्यण्संज्ञक्द्वार्आयण्के्पद्पर्होना्चादहये्।्इधद्र्एवं्सूय्ण के्पद्पर्एक्बड़ा्आूँगन्
होना्चादहये्।्भश
ृ ्एवं्व्योम्के्पद्पर्वत्त
ृ ्(शालाववशेष)्होना्चादहये्।्पूषा्के्पर्पर्स्वर्ण्
होना्चादहये्।्सभी्सालाओं्(प्राकारों)्का्आूँगन्राक्षस्के्पद्से्लेकर्ववतथ्के्पद्तक्होना्
Bo
चादहये्।्यम्के्पद्पर्अत्यधत्उधनत्सेनावेशहम्यण्(रक्षाकमी्से्यक्
ु त्प्रवेशद्वार्पर्ननसमणत्
शाला)्होना्चादहये्।्गधिवण्के्पद्पर्नीड़्(सजाविी्र्खड़की्की्आकृनत)्के्समान्ननमाणर््
होना्चादहये, जो्नत्ृ य्करने्के्अनक
ु ू ल्रङ्गस्थल्से्सश
ु ोसभत्हो्।्यह्ववमान्मन्धदर, शाला्या्
हम्यण्में ्होना्चादहये्॥३०-३२॥
44
भङ्
ृ गराज्के्पद्पर्अश्वशाला, भश
ृ ्के्पद्पर्सनू तकागह
ृ , वपत्ृ के्पद्पर्स्थानहम्यण्(स्वागत्
कक्ष), दौवाररक्एवं्सक
ु ण्ठ्के्पद्पर्जललीला्(स्थानववशेष, सम्भवतः्जलक्रीडा-स्थल)्ननसमणत्
करना्चादहये्।्पुष्पदधत्के्पद्पर्खलूररका्(अनतररक्त्बाहर्ननकला्स्थान्या्कक्ष)्ननसमणत्
करना्चादहये, जहाूँ्नमक्एवं्मररच्आदद्मसाले्रक्खे्जायूँ्॥३३-३४॥
वरुर्, असुर, शोष्एवं्समर्के्पद्पर्सङ्करालय्(समलने-जुलने्का्स्थान)्होना्चादहये्।्इसके्
दादहने्एवं्बाूँये्रानी्का्कक्ष्एवं्गभाणगार्होना्चादहये्।्समर्के्पद्पर्नत्ृ यशाला्एवं्रस्
(नाट्यशाला)्तथा्उपस्करगह
ृ ्(नत्ृ यादद्से्सम्बन्धित्सामग्री्रखने्का्कक्ष्)्होना्चादहये्।्
रोग्एवं्समीरर््के्पद्पर्पूर््ण रूप्से्बधद्आवास्कक्ष्होना्चादहये्॥३५-३६॥
विणमान्आदद्चतुश्शाल्गह
ृ ो्में ्नाग्के्पद्पर्सैरधध्री्(केशसज्जा्करने्वाली्स्री)्एवं्िारी्
न्स्रयों्(बच्चों्की्दे ख-रे ख्करने्वाली्मदहलाओं)्का्कक्ष, मुख्य्के्पद्पर्कधयाओं्का्गह
ृ ्
होना्चादहये्।्भललाि्के्पद्पर्औषिकक्ष्एवं्मग
ृ ्के्पद्पर्सांवादहका्गह
ृ ्(मासलश्करने्
वाली्स्री्का्कक्ष)्होना्चादहये्।्रुचक्आदद्चतश्ु शाल्गह
ृ ्में ्यहाूँ्कक्ष्ननसमणत्करना्चादहये्
।्उददनत्एवं्आपवत्स्के्पद्पर्स्नानगह
ृ ्होना्चादहये, जहा~म्पीने्का्जल्एवं्उष्र््जल्
होना्चादहये्।्ववद्वानों्के्अनुसार्यह्प्रासाद्के्समय्होना्चादहये्।्इष्िदे व्का्स्थान्ईशान्
एवं्जयधत्के्पद्पर्होना्चादहये्॥३७-४०॥
महे धद्र्के्पद्पर्भोजनकक्ष्होना्चादहये्।्महीिर्और्मरीच्के्पद्पर्(भोजनकक्ष)्अथवा्
पावणत्कूमण्सभाकक्ष्के्समान्सम्बाि्(समलने-जुलने्का्स्थान)्ननसमणत्कराना्चादहये्।्सभी्
द्वार्एवं्सभवत्तयाूँ्गह
ृ स्वामी्की्इच्छा्के्अनुसार्होनी्चादहये्।्प्रथम्आवरर््(प्रथम्आकार)्
में ्(सभी्अंगो्का)्वर्णन्ककया्गया्।्अब्द्ववतीय्आवरर््का्वर्णन्क्रमानुसार्ककया्जा्रहा्
है ्॥४१-४२॥
om
्वितीयािरण
द्ववतीय्प्राकार्-्इधद्र्एवं्आददत्य्के्पद्पर्छर्एवं्भेरी्का्स्थान्एवं्शंख, काहल्तथा्तूय्ण
आदद्अधय्वाद्यों्का्स्थान्होना्चादहये्।्सत्य्के्पद्पर्दान्की्सामग्री, भश
ृ ्के्पद्पर्
िमणसम्बधिी्कायणहेतु्जल, पंन्क्तक्(आकाश)्के्पद्पर्ओखली, ज्वलन्(अन्ग्न)्के्पद्पर्
s.c
इधिन, पूषा, साववधद्र्एवं्ववतथ्के्पद्पर्अश्वशाला्होनी्चादहये्॥४३-४४॥
पूव्ण में ्न्स्थत्शालाओं्के्द्वार्पन्श्चम्ददशा्में , दक्षक्षर््में ्न्स्थत्शालाओं्के्द्वार्उत्तर्में ,
पन्श्चम्में ्न्स्थत्भवनों्का्मुख्पूव्ण में ्एवं्उत्तर्मे्न्स्थत्शालाओं्के्मुख्दक्षक्षर््में ्होने्
चादहये्।्सभी्गह
ृ ्मध्य्में ्न्स्थत्भवन्के्सामने्मागण्द्वारा्पथ
ृ क्-पथ
ृ क््होना्चादहये्॥४५-
ok
४६॥
राक्षस्के्पद्पर्शस्रागार, (द्वार्के)्वाम्भाग्में ्द्वारशाला्(द्वाररक्षक्का्कक्ष), िमणराज्के्
पद्पर्अधन्एवं्पेय्पदाथों्को्तैयार्करने्का्कक्ष्होना्चादहये्।्चतुश्शाल्गह
ृ ्को्मध्य्
रङ्ग्(मध्य्में ्आच्छाददत्हाल्या्बड़ा्कमरा)्से्यक्
ु त्ननसमणत्करना्चादहये्।्गधिवण्के्पद्
Bo
का्स्थान)्तथा्स्नानगह
ृ ्होना्चादहये्॥४७-५०॥
नाग्एवं्रुद्र्के्भाग्पर्लम्बी्दीनघणका्(तालाब)्होनी्चादहये्।्कधयाओं्एवं्(उनकी)्िाबरयों्
का्स्थान्मुख्य्के्पद्पर्होना्चादहये्।्सामाधयतया्ववद्वानों्के्मतानुसार्कञ्जुककयों्से्
मद्गु्(एक्ववशेष्प्रकार्के्राजसेवक, सङ्कर्जानत्के्लोग)्का्स्थान्अधयर्(राजभवन्से्हि्
कर)्होना्चादहये्।्भललाि, सोम्एवं्मग
ृ ्के्पद्पर्कृण्व्आदद्(धचरकार्एवं्कलाकार्आदद)्
का्ननवास्होना्चादहये्।्अददनत्के्पद्पर्कुन्ब्जनी्(कुबड़ी), वामनी्कधया्(बौनी)्एवं्षण्डकी्
(दहजड़ी)्आदद्का्स्थान्होना्चादहये्।्उददनत, ईश्एवं्पजणधय्के्पद्पर्िारी्न्स्रयों्का्स्थान्
होना्चादहये्॥५१-५३॥
आप्एवं्आपवत्स्के्पद्पर्बावडी, कूप, दीनघणका्(तालाब), पीने्योग्य्जल्का्स्थान्एवं्पुष्पों्
का्बाग्होना्चादहये्।्जयधत्के्पद्पर्दक्षक्षर्ा-गह
ृ ्एवं्सुरेधद्र्के्पद्पर्दानशाला्होनी्
चादहये्।्पव
ू ्ण से्दक्षक्षर््की्ओर्ननसमणत्इन्सभी्भवनों्का्मख
ु ्मख्
ु य्भवन्की्ओर्होना्
चादहये्॥५४-५५॥
तत
ृ ीयावरर्म
तत
ृ ीय्आवरर््या्प्राकार्-्इधद्र्के्पद्पर्शास्र, रवव्के्पद्पर्संगीत, सत्य्एवं्भश
ृ ्के्पद्
पर्अध्यय्न, आकाश्के्पद्पर्प्रिान्रसोईगह
ृ , पूषा्एवं्पावक्के्पद्पर्गायों्एवं्उनके्बछड़ो्
को्रखना्चादहये्।्ववतथ्के्पद्पर्नमक, वललूर्(सूखा्मांस), स्नायु्(नस, नाड़ी)्तथा्चमण्
रखना्चादहये्।्राक्षस्के्पद्पर्गजशाला्एवं्िमण्के्पद्पर्धचर्एवं्सशलप्का्स्थान्होना्
चादहये्एवं्इसकी्योजना्दण्डक, शूप्ण या्लांगल्(हल)्के्समान्करनी्चादहये्॥५६-५७॥
गधिवण्एवं्भंग
ृ राज्के्पद्पर्रसपदाथों्का्स्थान्बनाना्चादहये्।्मष
ृ ्के्पद्पर्दाह्
(इधिन), वपत्ृ एवं्दौवाररक्के्पद्पर्दान-सामग्री, सुग्रीव्के्पद्पर्मललों्का्ननवास्तथा्
om
पुष्पदधत्के्पद्पर्चार्कोष्ठ्(शालायें)्होने्चादहये्।्॥५८-५९॥
वारुर््के्पद्पर्युवराज्की्शाला्या्मासलका्होनी्चादहये्।्वही्पर्अश्वशाला्एवं्पुरोदहत्
का्आवास्होना्चादहये्।्असुर्के्पद्पर्चधद्रशाला्एवं्शोष्के्पद्पर्दहरर्ों्का्स्थान्होना्
चादहये्।्रोग्के्पद्पर्गिे्एवं्ऊूँि्का्स्थानन्होना्चादहये्एवं्औषि-स्थान्भी्वही्ननसमणत्
s.c
करना्चादहये्।्वायु्के्पद्पर्वापी्एवं्गोरनाग्के्पद्पर्पुष्कररर्ी्(कमल्का्तालाब)्होना्
चादहये्।्मुख्य्एवं्भललाि्के्पद्पर्गजशाला्एवं्अश्वशाला्होनी्चादहये्॥६०-६२॥
सोम्के्पद्पर्प्रसूनतगह
ृ ्एवं्उपनीनतका्(ववचार-ववमशण्का्स्थान)्होनी्चादहये्।्मग
ृ , अददनत,
उददनत, ईशान्एवं्जयधत्के्पद्पर्दीनघणका्(तालाब)्आदद्होना्चादहये्।्वही्पर्ववहार्एवं्
ok
आराम्(उपवन)्तथा्आूँगन्से्युक्त्सभा-स्थल्होना्चादहये्॥६३-६४॥
नगर
नगर्-्(राज)्भवन्के्सामने्एवं्बगल्में ्राजा्की्सेनापंन्क्त्होनी्चादहये्।्उसके्बाहर्
व्यापाररयों्के्आवास्की्पंन्क्त्आवश्यकतानस
ु ार्होनी्चादहये्।्राजभवन्की्पन्श्चम्ददशा्में ्
Bo
ननवास्करते्है ्तथा्(नगर)्छः्प्रकार्की्सेनाओं्से्यक्
ु त्होता्है ्।्पव
ू ोत्तर्कोर््एवं्दक्षक्षर्-
पव
ू ्ण कोन्में ्गजशाला्एवं्अश्वशाला्होती्है ्।्नगर्ववसभधन्वर्ण्के्लोगों्से्यक्
ु त, ववसभधन्
व्यापारीवगण्से्युक्त्होता्है ्।्सभी्वगण्के्लोग्राजा्की्इच्छा्के्अनुसार्अपने-अपने्
असभिान्वाले्होने्चादहये्।्॥६७-६९॥
नगरमभवर्त्
नगर्का्प्राकार्-्नगर्को्चारो्ओर्से्घेरने्वाला्प्राकार्दो्दण्ड्चौड़ा्होना्चादहये्।्इसकी्
चौड़ाई्क्रमशः्पाूँच, छः्या्सात्हाथ्माप्की्भी्कही्गई्है ्।्इसकी्ऊूँचाई्चौड़ाई्से्दग
ु ुनी्या्
तीन्गुनी्होनी्चादहये्एवं्इसके्बाहर्समट्िी्की्सभवत्त्होनी्चादहये्या्इसके्बाहर्एक्
िनुप्रमार््(एक्दधड)्से्पररखा्एवं्वप्र्(समट्िी्की्सभवत्त)्होनी्चादहये्।्उसके्बाहर्सभी्
स्थान्पर्सशन्लपका्(रचना्ववशेष)्होनी्चादहये्॥७०-७१॥
राजिेश्मगोपरु ाण
राजभवन्के्गोपरु ्द्वार्-्सभी्राजभवनों्में ्छोिा्या्बड़ा्गोपरु ्होना्चादहये्।्बाहरी्(प्राकार्
का)्गोपरु ्स्वामी्(राजा)्के्आवास्बराबर्होना्चादहये्।्यदद्स्वामी्का्आवास्छोिा्हो्तो्
गोपुर्आवास्से्छोिा्एवं्एक्तल्का्होना्चादहये्।्यदद्प्रिान्भवन्नौ्या्ग्यारह्तल्का्
हो्तो्द्वार-गोपुर्सात्तल्का्होना्चादहये्।्भीतरी्(सभवत्त्पर्ननसमणत)्गोपुर्बाहरी्सभवत्तयों्के्
गोपुर्से्क्रमशः्एक-एक्तल्कम्होता्जाना्चादहये्॥७२-७४॥
नरे धद्र्राजाओं्(राजाओं्का्स्तरववशेष)्का्सबसे्बड़ा्गोपुर्द्वार्महे धद्र्के्पद्पर्या्राक्षस्के्
पद्पर्पाूँच्या्तीन्तल्का्होना्चादहये्।्पुष्पदधत्और्भललाि्के्पद्पर्कम्तलों्का्
गोपुर्द्वार्होना्चादहये्।्सुग्रीव, मुख्य, जयधत्एवं्ववतथ्के्पद्पर्पक्षद्वार्(पाश्वणद्वार)्एक्
या्दो्तल्से्युक्त्ननसमणत्करना्चादहये्।्॥७५-७७॥
om
ववशेष्रूप्से्नरे धद्रों्का्भवन्इधद्र्के्पद्पर्होना्चादहये्।्ब्रह्मा्के्भाग्से्संलग्न्
राजभवन्सभी्प्रकार्की्सम्पवत्तयों्एवं्सुखों्का्प्रदाता्होता्है ॥७८॥
िेश्मतललर्मबविधान
राजभवन्के्तल्का्वविान्-्सम्पूर््ण पधृ थवी्के्स्वामी्राजा्का्भवन्ग्यारह्तल्का्होता्है ्।्
s.c
ब्राह्मर्ों्का्भवन्नौ्तल्का, राजाओं्(क्षबरयों)्का्भवन्सात्तल्का, मण्डल्के्स्वासमयों्का्
भवन्छः्तल्क्युवराज्का्भवन्पाूँच्तल्का, वैश्यों्का्चार्तल्का्तथा्योद्िाओं्एवं्
सेनाओं्के्स्वामी्का्भवन्भी्चार्तल्का्होता्है ्।्शूद्रों्का्भवन्एक्से्लेकर्तीन्
तलपयणधत्होना्चादहये्।्सामधत्आदद्प्रमुखों्का्भवन्पाूँच्भूसमयों्का्होना्चादहये्॥७९-८१॥
ok
सभी्राजभवन्सम्या्ववषम्संख्या्वाले्तल्से्युक्त्होते्है ्।्राजा्की्न्स्रयों्तथा्दे ववयों्
(अधय्पन्त्नयो)्के्भवन्के्तल्सम्या्ववषम्संख्या्में ्होते्है ्।्दन्ण्डयुक्त, लूपायुक्त, दो्नेर्
(र्खड़की)्एवं्प्रस्तर्से्युक्त्मवृ त्तका-ननसमणत, तर्
ृ ों्(घास-फूस)्से्आच्छाददत, एक्तल्या्दो्तल्
से्यक्
ु त, स्तवू पका्एवं्कर्णलप
ु ा्से्रदहत्भवन्सभी्वर्ण्वालों्के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्॥८२-८३॥
Bo
नरे न्द्रिेश्म
नरे धद्र्का्राजभवन्-्अब्मै्(मय)्ववशेष्रूप्से्नरे धद्र्के्सनातन्आवास्के्ववषय्में ्कहता्
हूूँ्॥८६॥
प्राकार
प्राकार, बाहरी्सभवत्त्-्प्राकार्की्चौड़ाई्एक्दण्ड्(एवं्उससे्लगी्हुई)्पररखा्दो्या्तीन्दण्ड्
की्होनी्चादहये्।्वत्त
ृ -मागण्चार्दण्ड्एवं्बीस्दण्ड्तक्गह
ृ ों्की्पंन्क्तयाूँ्होनी्चादहये्।्
वेश्याओं्की्क्रीड़ा्से्आवत
ृ ्मागण्तीन्या्चार्दण्ड्मान्का्होना्चादहये्।्वत्त
ृ -मागण्चार्दण्ड्
एवं्बीस्दण्ड्तक्गह
ृ ों्की्पंन्क्तयाूँ्होनी्चादहये्।्(इसके्पश्चात्)्तीन्दण्ड्का्वप्र्मागण्
(समट्दि्से्ननसमणत्मागण)्तथा्पाूँच्हाथ्प्रमार््का्प्राकार्(दस
ू रा्प्राकार)्होना्चादहये्॥८७-८८॥
उसकी्(द्ववतीय्प्राकार्की्)्पररखा्चार्दण्ड्चौड़ी्होनी्चादहये्।्पररखा्के्चारो्ओर्आठ्
यन्ष्ि्ववस्तत
ृ ्मागण्होना्चादहये्।्उसके्पश्चात्अड़तालीस्दण्ड्ववस्तत
ृ ्क्षेर्में ्सभी्प्रकार्के्
भवन्होने्चादहये्।्उसके्बाहर्चारो्ओर्छः्या्सात्िन्ु प्रमार््ववस्तत
ृ ्मागण्होने्चादहये्।्
पुनः्चार्दण्ड्प्रमर््का्वप्र्एवं्सात्हाथ्का्प्राकार्(तीसरा्प्राकार)्होना्चादहये्।्(इसके्
पश्चात)्एक्दण्ड्प्रमार््का्नागों्से्युक्त्बधिन्(बाूँि, खाई)्होना्चादहये्॥८९-९१॥
पररखा्की्चौड़ाई्आठ्दण्ड्से्लेकर्बारह्दण्डपयणधत्होनी्चादहये्।्प्राकार्की्चौड़ाई्के्बराबर्
सभतरी्एवं्बाहरी्मागण्होना्चादहये्।्उसे्बाहर्दस्दण्ड्तक्सभी्प्रकार्के्लोगों्का्आवास्
होना्चादहये्।्अथवा्वहाूँ्प्राकार्(चौथा्प्राकार)्या्आवास्के्साथ्पररखाये्होनी्चादहये्।्
वास्तुववदों्के्द्वारा्इस्प्रकार्वप्र्एवं्प्राकार्की्प्रशंसा्की्गई्है ्।्पाूँचवाूँ्आवरर््(प्राकार)्
आठ्हाथ्चौड़ा्होना्चादहये्।्भीतरी्भागों्की्योजना्आवश्यकतानुसार्करनी्चादहये्॥९२-९४॥
om
िेश्मविन्यास
राजभवन्का्ववधयास्-्राजभवन्के्चन
ु े्हुये्ववस्तार्एवं्लम्बाई्के्छः्एवं्नौ्भाग्करने्
चादहये्।्एक्भाग्सामने्के्सलये, एक्भाग्पीछे ्के्सलये्एवं्एक-एक्भाग्दोनों्पाश्वो्के्
सलये्रखना्चादहये्।्शेष्भाग्में ्पैंतीस्भाग्ब्रह्मा्का्स्थान्होता्है ्।्उस्स्थान्पर्सौ्
s.c
स्तम्भों्वाला्मण्डप्एवं्उसके्भीतर्वेददकापीठ्होना्चादहये्या्उसके्भीतर्दे वालय्हो्एवं्
उसके्चारो्ओर्प्रपा्ननसमणत्हो्।्एक्भाग्से्मागण्एवं्उसी्प्रमार््से्खलुररका्(अनतररक्त्
भाग)्ननसमणत्करना्चादहये्।्यह्चार्द्वारों्से्युक्त, सौन्ष्ठक्(लम्बा्कक्ष)्एवं्कोष्ठ्से्युक्त्
होने्पर्प्रशस्त्होती्है ्॥९५-९७॥
ok
राजभवन्का्केधद्रभाग्के्ननयमों्का्वर्णन्ककया्गया्।्वहाूँ्नौ्पदों्पर्प्रमुख्दे वता्का्
स्थान्भी्हो्सकता्है ्।्राजभवन्को्अभीन्प्सत्भाग्में , दे वालय्के्दक्षक्षर््भाग्में ्तथा्ज्येष्ठ्
राननयों्के्आवास्के्उत्तर्भाग्में ्होना्चादहये्।्आयण्के्पद्पर्द्वार्होना्चादहये्एवं्न्जसके्
पन्श्चम्में ्हम्यण, शाला्या्सभी्रं ग-ववरं गे्अलंकरर्ों्से्यक्
ु त्असभषेक-सभा्होनी्चादहये्।्चारो्
Bo
कोनों्पर्दृढ़्स्तम्भों्से्यक्
ु त्खलरू रकायक्
ु त्सभा्होनी्चादहये्॥९८-१००॥
पव
ू ोत्तर्ददशा्में ्जल, स्नान्एवं्दे वों्का्गह
ृ ्होना्चादहये्।्सामने्होम्का्स्थान्होना्चादहये्।्
पव
ू -ण दक्षक्षर््ददशा्में ्सेना्के्अवलोकन्का्हम्यण्(कक्ष)्या्कूि्होना्चादहये्।्पन्श्चम-दक्षक्षर््
कोर््में ्नत्ृ य, वाद्य्एवं्अधय्मनोरञ्जन्के्स्थान्तथा्उत्तर-पन्श्चम्कोर््मे्गायक्गादद्का्
44
एवं्अधय्(नाट्याददकमी)्न्स्रयों्का्स्थान्होना्चादहये्॥१०१-१०२॥
पव
ू ्ण ददशा्में ्दग
ु ्ण का्आूँगन्एवं्मेरु्गोपरु , पव
ू ोत्तर्ददशा्मे्जल, जलक्रीडा्का्आूँगन्एवं्सभा्
होनी्चादहये्।्वहाूँ्भोजन्एवं्पा्का्गह
ृ ्सभी्उधचत्लक्षर्ों्से्युक्त्ननसमणत्करना्चादहये्।्
पूव-ण दक्षक्षर््कोर््में ्मध्य-आूँगन्से्युक्त्सभा्होनी्चादहये्।्वहाूँ्रत्न, सव
ु र्ण्एवं्वस्र्आदद्का्
गह
ृ ्प्रशस्त्होता्है ्।्उसके्पश्चात्दक्षक्षर््को्में ्मध्य-आूँगन्से्युक्त्सभा्होनी्चादहये्।्
इसके्बाहर्चारो्ओर्न्स्रयों्के्अपने्भवन्होने्चादहये्।्वहाूँ्आराम्(बगीचा)्से्युक्त्
क्रीड़ागह
ृ ्एवं्जल्का्स्थान्होना्चादहये्।्पूवोत्तर्कोर््में ्सभी्न्स्रयों्का्सभावास्(सभी्के्
रूप्में ्आवास्या्कक्ष)्होना्चादहये्॥१०३-१०६॥
यहाूँ्राजभवन्के्न्जन्भीतरी्अंगो्एवं्बाहरी्अंगो्का्वर्णन्नही्ककया्गया्है , उनके्ववषय्में्
पव
ू व
ण र्र्णत्ननयम्जानना्चादहये्।्इस्प्रकार्मनु नयों्ने्राजाओं्के्पद्मक्आवास्का्वर्णन्
ककया्है ्॥१०७॥
सौबलिेश्म
प्रथमािरण
सौबल्राजगह
ृ ्(पथम्आवरर्, प्राकार)्-्राजभवन्की्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्सुननन्श्चत्कर्स्थानीय्
संज्ञक्वास्तुमण्डल्(एक्सौ्बीस्पद्वास्तु)्ननसमणत्करना्चादहये्।्मध्य्पद्में ्सकल्
वास्तुमण्डल्के्अनुसार्ब्रह्मा्की्पीठ्बनानी्चादहये्।्यह्वेददका्पर्मण्डप्में ्होनी्चादहये्।्
रानी्का्भवन्दक्षक्षर््एवं्उत्तर्में ्होना्चादहये्।्पन्श्चम्ददशा्में ्राजा्का्भवन्अनेक्तलों्से्
युक्त्होना्चादहये्।्पूव्ण ददशा्में ्आूँगन्होना्चादहये्एवं्मध्य्भाग्में ्द्वारशोभा्संज्ञक्द्वार्
om
आदद्से्सुसन्ज्जत्होना्चादहये्।्द्वार्के्पन्श्चम्में ्पुवी्भाग्में ्असभषेक्गह
ृ ्होना्चादहये्।्
इसकी्योजना्पीठ्वास्तु्पद्पर्होनी्चादहये्।्इस्पर्साल्(प्रथम्आवरर्)्पूव-ण वर्णन्के्
अनुसार्करना्चादहये्॥१०८-११०॥
्वितीयािरण
s.c
उसके्पश्चात्(्प्रथम्आवरर््के्पश्चात्)्पूव्ण से्प्रारम्भ्कर्क्रमशः्जयधत, भानु्एवं्भश
ृ ्के्
पद्पर्आूँगन्होना्चादहये्।्उनके्मध्य्में ्तीन्तल्से्युक्त्द्वारहम्यण्द्वार्होना्चादहये्।्
अन्ग्न्के्पद्पर्रसोई्एवं्ववतथ्के्पद्पर्मूल्कोश्(पररवाररक्कोष)्होना्चादहये्।्उसी्
पद-भाग्पर्द्वारप्रासाद्द्वार्का्ननमाणर््होना्चादहये्।्॥१११-११३॥
ok
यम, भंग
ृ राज्एवं्वपतभ
ृ ाग्पर्न्स्रयों्का्भवन्होना्चादहये्।्सुगल्के्पद्पर्नत्त
ृ शाला्
(रं गमञ्च, नाट्यगह
ृ )्एवं्वारुर््के्पद्पर्राजभवन्होना्चादहये्।्शोष्के्पद्पर्अधतःपुर्एवं्
वायु्के्पद्पर्जल-क्रीड़ा्के्ननसमत्त्वापी्होनी्चादहये्।्मुख्य्के्पद्पर्राजमदहषी्का्
आवास, शाला्या्मासलका्होनी्चादहये्।्॥११४-११५॥
Bo
तल
ु ाभार्का्ननमाणर््सोम्के्पद्पर्और्उसके्पश्चात्हे मगभण्का्कृत्य्होना्चादहये्।्ददनत्के्
भाग्पर्सव
ु र्ण्एवं्रत्न्तथा्सग
ु न्धि्का्कक्ष्होना्चादहये्।्वही्गजशाला्होनी्चादहये्।्ईश्
के्पद्पर्वापी्एवं्कूप्होना्चादहये्।्वही्वचोगह
ृ ्(शौचगह
ृ )्एवं्जलयधर्स्थावपत्करना्
चादहये्।्वही्पर्साल्(द्ववतीय्आवरर्)्एवं्मागण्का्ननमाणर््पव
ू व
ण र्र्णत्ववधि्से्करना्चादहये्
44
॥११६-११७॥
तत
ृ ीय्आवरर््-्उसके्(द्ववतीय्आवरर्)्के्बाहर्स्थन्ण्डल्वास्तम
ु ण्डल्(उनचास्पद्का्
वास्तुमधडल)्ननसमणत्करना्चादहये्।्बुद्धिमानों्के्मतानुसार्पजणधय, महेधद्र, भानु, सत्य्एवं्
अधतररक्ष्के्पद्पर्आूँगन्ननसमणत्करना्चादहये्।्महे धद्र्के्पद्पर्चार्या्पाूँच्तल्से्युक्त्
द्वार्ननसमणत्करना्चादहये्।्वही्शंख, भेरी्आदद्वाद्यों्के्ववसभधन्प्रकार्के्शब्द्होते्है ्।्
यहाूँ्न्जन्बातों्का्वर्णन्नही्ककया्गया्है , उधसभी्का्चारो्ओर्ननमाणर््पूवव
ण र्णन्के्अनुसार्
करना्चादहये्।्इस्(तत
ृ ीय्आवरर्)्के्बाहर्परमशायी्वास्तुमण्डल्(इक्यासी्पद)्ननसमणत्
करना्चादहये्।्इसके्पूव्ण भाग्में ्आूँगन्होना्चादहये्॥११८-१२०॥
चतुथाािरण
चौथा्आवरर््-्इसका्(पव
ू व
ण र्र्णत्आूँगन्का)्अधिकांश्भाग्जयधत्से्अधतक्षणपयणधत्होना्
चादहये्।्न्जनकी्यहाूँ्चचाण्नही्की्गई्है , वे्सभी्श्येन्(अन्ग्न)्के्पद्से्प्रारम्भ्करते्हुये्
ननसमणत्होने्चादहये्॥१२१॥
पञ्चमािरण
पाूँचवा्आवरर््-्उसके्(चौथे्आवरर््के)्बाहर्स्थानीय्वास्तुमण्दल्(एक्सौ्इक्कीस्पद)्के्
पूव्ण ददशा्में ्आूँगन्होना्चादहये्।्इस्आूँगन्की्चौड़ाई्उसकी्लम्बाई्के्सात्भाग्में ्दो्बाग्
से्रखनी्चादहये्।्यह्गोपुर्द्वार्से्एवं्दग
ु ्ण के्मन्धदर्से्युक्त्होना्चादहये्।्इसके्पूव-ण
दक्षक्षर््भाग्में ्बड़ी्रसोईगह
ृ ्होनी्चादहये्।्वही्राजभवन्के्राजकीय्कायो्का्लेखन्करने्
वाले्(प्रशासन)्कसमणयों्का्स्थान्होना्चादहये्॥१२२-१२४॥
दक्षक्षर््भाग्में ्आठ्पदों्पर्एक्बड़ा्आवत
ृ ्आूँगन्होना्चादहये, जहाूँ्अश्वकक्रडा्या्गज-क्रीडा्
om
होनी्चादहये्।्वही्ऊूँचा्कूि्एवं्ननऋनत्के्पद्पर्राजभवन्होना्चादहये्।्उसके्बाहरी्भाग्
में ्खलूररका्तथा्उसके्बाहर्वरुर््पद्पर्न्स्रयों्का्आवास्होना्चादहये्।्नप
ृ -भवन्के्वाम्
भाग्में ्न्स्रयों्का्सङ्करालय्(समलने-जुलने्का्कक्ष), जलक्रीडास्थान, सभा, मासलका्या्
आवासभवन्होना्चादहये्।्॥१२५-१२७॥
s.c
वायु्के्पद्पर्वापी, ववहार्(उद्यान्आदद)्एवं्आश्रम्आदद्का्स्थान्होना्चादहये्।्सोम्के्
पद्पर्तुलाभार्एवं्उसके्बाद्सुवर्णगभण्का्कृत्य्करना्चादहये्।्ईश्के्पद्पर्सशवालय्
उधचत्रीनत्से्ननसमणत्करना्चादहये्।्उसके्(पाूँचवी्सभवत्त्के)्बाहर्नगर्या्सशववर्का्ननमाणर््
पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्करना्चादहये्।्इस्राजभवन्का्सौबल्कहा्गया्है ्॥१२८-१२९॥
ok
अथधराजमल्न्दर
अधिराज्राजभवन्-्अब्मै्ववशेष्रूप्से्संक्षेप्में ्अधिराज्राजाओं्के्भवन्का्वर्णन्करता्
हूूँ्।्ववस्तार्एवं्लम्बाई्का्ननश्चय्करने्के्पश्चात्वहाूँ्उभयचन्धदत्वास्तुमधडल्(उनहत्तर्
पद)्ननसमणत्करना्चादहये्।्उसके्मध्य्पद्मे्ब्रह्मा्का्आसन्या्असभषेक्के्योग्य्सभागर्
Bo
एवं्मण्डप्ननसमणत्करना्चादहये्॥१३०॥
उसके्पन्श्चम्भाग्में ्पाूँच, सात्या्नौ्तल्का्राजभवन्होना्चादहये्।्उसके्पष्ृ ठ्भाग्एवं्
दोनो्पाश्वों्में ्एक्भाग्से्आूँगन्से्यक्
ु त्खलरू रका्होनी्चादहये्।्राजा्की्इच्छानस
ु ार्भीतरी्
भाग्में ्भोजन-कक्ष्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥१३१-१३२॥
44
पव
ू ोत्तर्कोर््में ्स्नानगह
ृ ्एवं्दे वालय्होना्चादहये्।्सामने्नौ्भाग्से्अत्यधत्लम्बा-चौड़ा्
ववशाल्आूँगन्होना्चादहये, न्जसके्पव
ू ्ण भाग्में ्मध्यभाग्से्यक्
ु त्खलरू रका्ननसमणत्होनी्चादहये्
।्दो्या्तीन्तलयक्
ु त्द्वार्हो, न्जस्पर्भेरी्होनी्चादहये्।्भवन्का्मुख-मण्डप्यहाूँ्ननसमणत्
करना्चादहये्तथा्पाश्वण-भाग्में ्पोत्का्पाश्वणभाग्ननसमणत्करना्चादहये.........................्द्वार्
के्समीप्राजा्का्प्रयोगस्थल्(अभ्यासस्थल)्होना्चादहये्।्आूँगन्के्दो्यातीन्पाश्वण्भागों्में ्
गोलक्आदद्(खेलों)्का्स्थान्होना्चादहये्।्न्जस्भवन्में ्मूल्कोश्(प्रिान्खजाना)्रक्खा्
जाय, वह्पूवोत्तर्कोर््में ्होना्चादहये्॥१३३-१३६॥
उसके्पन्श्चम्भाग्में ्वस्र्आदद्का्स्थान्एवं्कक्ष्होना्चादहये्।्द्वार्के्उत्तर्भाग्में ्पीने्
योग्य्पानी्एवं्उष्र््जल्का्कक्ष्ननसमणत्करना्चादहये्।्वहीं्पर्पाक-गह
ृ ्एवं्सभी्वस्तुओं्
को्रखने्का्स्थान्(संग्रह्कक्ष)्ननसमणत्करना्चादहये्।्द्वार्के्दक्षक्षर््भाग्में ्अधिवासक्गह
ृ ्
(कपड़ा्बदलने्का्स्थान)्ननसमणत्करना्चादहये्।्उसके्दक्षक्षर््भाग्में ्सग
ु धि्आदद्(श्रग
ं ृ ारपरक्
सामग्री्)्का्कक्ष्होना्चादहये्।्पव
ू -ण दक्षक्षर््में ्ननसमणत्कक्ष्में ्मल
ू ्कोश्रखने्का्गह
ृ ्ननसमणत्
होना्चादहये्।्राक्षस्के्पद्पर्एवं्उसके्पन्श्चम्भाग्में ्गजशाला्होनी्चादहये्।्उसके्
पश्चात्दक्षक्षर्-पन्श्चम्कोर््में ्सशव्का्स्थान्एवं्रत्न्और्सुवर्ण्रखने्का्कक्ष्होना्चादहये्।्
॥१३७-१४०॥
पूवोत्तर्कोर््में ्दान्एवं्अध्ययन्हे तु्शाला्होनी्चादहये्।्प्रायः्प्रयोगशाला्एवं्छोिा्द्वार्
होना्चादहये्।्(यहाूँ्मूल-पाठ्खन्ण्डत्है ्।)्द्वार्के्दोनों्पाश्वों्में ्सार-द्रव्यों्का्स्थान्एवं्
कूि-गह
ृ ्होना्चादहये्।्वही्पर्गजशाला,सभी्प्रकार्के्ओषधियों्का्कक्ष्एवं्शस्रागार्होना्
चादहये्।्अधय्सभी्व्यवस्थायें्राजा्की्इच्छा्के्अनुसार्करनी्चादहये्॥१४१-१४२॥
राजा्का्भवन्मुखाङ्गर््(सम्मुख्आूँगन)्एवं्मुखमण्डल्से्युक्त्होना्चादहये्।्राजा्की्
om
इच्छानुसार्भोग-गह
ृ ्एवं्रक्षा-व्यवस्था्करनी्चादहये्।्(यहाूँ्मूल्पाठ्खन्ण्डत्है )्।्॥१४३॥
उसके्दक्षक्षर््पाश्वण्भाग्में ्बारह्पद्का्लम्बा्आूँगन्होना्चादहये्।्वही्पन्श्चम्भाग्में ्
मण्डप, शाला्या्मासलका्होनी्चादहये्।्उसके्दोनों्पाश्वो्मे्स्नान-गह
ृ ्एवं्मण्डप्होना्चादहये्
।्आूँगन्के्दक्षक्षर््भाग्में ्सभी्प्रकार्की्वस्तुओं्का्संग्रहकक्ष्होना्चादहये्।्पूव्ण भाग्में ्
s.c
पररघा, समण्ठक्एवं्कूिशाला्से्सुसन्ज्जत्वेशन्(प्रवेश्द्वार)्होना्चादहये्।्राजभवन्के्एवं्
आूँगन्के्पूव्ण भाग, दोनों्पाश्वों्एवं्पन्श्चम्भाग्मे्न्स्रयों्का्आूँगन्से्युक्त्आवास्या्
मासलकागह
ृ ों्की्पंन्क्त्होनी्चादहये्।्भवन्के्उत्तर्पाश्वण्में ्राजभवन्के्समान्ऊूँचा्राजमदहषी्
का्भवन्होना्चादहये्।्उसके्एक्भाग्माप्से्पाश्वण्भाग्में ्राननयों्की्मासलका-पंन्क्त्(भवनों्
ok
की्पंन्क्त)्होनी्चादहये्।्वही्कधयाओं्का्आवास्एवं्कुब्जक्आदद्(सेवकों)्का्आवास्होना्
चादहये्॥१४४-१४८॥
दक्षक्षर््से्उत्तर्की्ओर्क्रमशः्एक, दो्या्तीन्भाग्से्ववशाल्उद्यान्एवं्उसके्बाहर्साल्
(प्राकार)्होना्चादहये्।्उसके्उत्तर्भाग्में ्जलक्रीड़ा्का्स्थान, जल्का्स्थान्एवं्राजा्की्
Bo
दीनघणका्(जल-वापी)्होनी्चादहये्।्राजभवन्के्पन्श्चम्भाग्में ्न्स्रयों्की्सङ्करशाला्(समलने-
जल
ु ने्का्कक्ष)्होना्चादहये्।्॥१४९-१५०॥
राजभवन्के्पव
ू ोत्तर्भाग्में ्बाहर्नव्पदों्में ्इष्िदे वों्का्गह
ृ ्होना्चादहये्।्वहीं्पर्आग्रायर््
(पज
ू ाकृत्य)्की्शाला, पष्ु पवादिका्एवं्कूप्होना्चादहये्।्पव
ू ्ण ददशा्में ्तीस्पदों्से्एक्ववस्तत
ृ ्
44
आूँगन्ननसमणत्होना्चादहये्।्महे धद्र्के्पद्पर्तीन्या्चार्तल्से्यक्
ु त्गोपरु द्वार्ननसमणत्
होना्चादहये्।्द्वार्के्दक्षक्षर््ओर्पावणती, सरस्वती्एवं्लक्ष्मी्का्मन्धदर्होना्चादहये्।्इनका्
मुख्भीतर्की्ओर्होना्चादहये्एवं्ये्दो, तीन्या्चार्तल्से्मुक्त्होने्चादहये्।्इसके्पूव्ण
भाग्में ्शंख, भेरी्आदद्वादों्का्कक्ष्होना्चादहये्॥१५१-१५४॥
उसके्दक्षक्षर््भाग्मे्सभी्प्रकार्के्रक्षकों्से्युक्त्बड़ी्रसोई्होनी्चादहये्।्आूँगन्के्दक्षक्षर््
भाग्में ्दो्या्तीन्तल्से्युक्त्द्वार्होना्चादहये्।्द्वार्के्दोनो्पाश्वो्मे्लेखक्(दहसाब्
सलखने्वाले)्की्खलूरी्होनी्चादहये्।्आूँगन्के्उत्तर्भाग्में ्एक्ववशाल्सभागह
ृ ्होना्चादहये,
न्जसका्मुख्दक्षक्षर््की्ओर्हो, साथ्ही्सुसन्ज्जत, सुधदर्एवं्उूँ चा्हो, न्जसके्पन्श्चम्भाग्में ्
पूव्ण की्ओर्गीत्आदद्की्सभा्होनी्चादहये्।्अधय्सभी्राजा्की्इच्छा्के्अनुसार्करना्
चादहये्।्॥१५५-१५७॥
राजभवन्के्बाहर्प्रस्तर्एवं्ईि्से्प्राकार्ननसमणत्करना्चादहये, न्जसके्मल
ू ्की्चौड़ाई्एवं्
ऊूँचई्पव
ू व
ण र्र्णत्ननयम्के्अनस
ु ार्होनी्चादहये्।्उसके्बाहर्पररखा्होनी्चादहये्।्उत्तम्
राजभवन्ईि्आदद्से्ननसमणत्होना्चादहये; इसे्'जयङ्ग' कहते्है ्॥१५८॥
पररखा्को्प्रवादहत्होने्वाले्जल्से्भरना्चादहये्।्इसे्कदण म, मत्स्य, जोक, जलसपण, पद्म,
काूँिेदार्मछसलयाूँ, कच्छप, केकड़ा्एवं्शंखो्से्युक्त्करना्चादहये्।्॥१५९॥
सभवत्त्पर्ननवास्करने्योग्य्कूि्से्युक्त्आलम्बन्ननसमणत्होने्चादहये्।्यह्जाल, लता्एवं्
परों्से्पररपूर््ण होता्है ्।्इसका्भीतरी्भाग्झुका्एवं्उठा्होता्है ्।्सभवत्त्नछद्र्से्युक्त्होती्
है ्एवं्अनेक्यधरों्से्युक्त्होती्है ्।्इस्प्रकार्राजभवन्बाहर, भीतर्एवं्मध्य्भाग्में ्
दग
ु य
ण ुक्त्होना्चादहये्।्राजा्के्सभी्जन्(प्रजा)्रक्षर्ीय्होते्है , इससलये्बाहर्(दग
ु ्ण के्बाहर)्
छः्प्रकार्के्बल्(सैननक)्होने्चादहये्॥१६०-१६१॥
om
नगरभेद
नगर्के्भेद्-्ववद्वानों्के्मतानुसार्राजाओं्के्नगर्चार्प्रकार्के्होते्है -्स्थानीय, आहुत,
यारामर्र््एवं्ववजय्॥१६२॥
जनपद्के्मध्य्में ्(वतणमान्राजा्के)्कुल्के्मूल्राजाओं्के्द्वारा्बसाया्गया्नगर्स्थानीय्
संज्ञक्होता्है ्।्यह्तर्
s.c
ृ , जल्एवं्भूसम्से्युक्त्होता्है ्।्॥१६३॥
प्रभु्(स्वामी), मधर्(सही्मधरर्ा)्एवं्उत्साहरूपी्तीन्शन्क्तयों्से्युक्त; तर्
युक्त; नदी्से्आवत
ृ , भूसम्एवं्जल्से्
ृ ्या्अधय्रक्षर्ों्से्युक्त्नगर्को्कभी्ररक्त्नही्छोड़ना्चादहये्।्
प्रनतपक्षी्राजागर््इस्नगर्(आहुत)्को्दग ु म
ण ्कहते्है ्।्भूसम, जल्एवं्तर्
ृ ्से्युक्त्तथा्युद्ि्
ok
की्यारा्के्सलये्ननसमणत्नगर्को्संग्राम्(यारामर्र्)्कहते्है ्।्जो्नगर्ववजय्के्अवसर्पर्
स्थावपत्ककया्जाता्है , तीन्आवश्यक्वस्तुओं्स्युक्त्होता्है ्एवं्न्जसका्प्रिान्उद्दे श्य्सीमा्
की्रक्षा्है , ववज्ञोने्उस्नगर्को्ववजय्कहा्है ्॥१६४-१६६॥
बड़े्राजभवन्में ्िनष
ु ्(शस्र)्से्यक्
ु त्भवन्यदद्(शरओ
ु ं्द्वारा)्अधिगह
ृ ीत्कर्सलया्जाता्है ्
Bo
तो्शेष्राजभवन्शन्क्तहीन्हो्जाता्है ्॥१६७॥
हल्स्तिाला
गजशाला-्तीन्हाथ्से्प्रारम्भ्कर्आिा-आिा्हाथ्बढ़ाते्हुये्पाूँच्हाथ्तक्गजशाला्के्पाूँच्
माप्प्राप्त्होते्है ्॥१६८॥
44
लम्बाइ्एवं्चौड़ाई्के्अनस
ु ार्गजशाला्तीन्प्रकार्की्होती्है ्।्ये्क्रमशः्नौ्एवं्छः्भाग, सत्
एवं्चार्भाग्तथा्तीन्एवं्पाूँच्भाग्के्होते्है ्।्छोिे ्राजभवन्में ्छोिे ्माप्की्एवं्बड़े्
राजभवन्में ्बड़े्माप्की्गजशाला्ननसमणत्करनी्चादहये्।्मुखशाला्एक्भाग्माप्से्होनी्
चादहये्तथा्मध्य्भाग्के्ववस्तार्से्ननगणत्ननसमणत्होना्चादहये्।्इसके्दक्षक्षर््भाग्में ्एक्
भाग्माप्से्शयनस्थान्ननसमणत्होना्चादहये्॥१६९-१७०॥
गजशाला्के्स्तम्भ्के्सलये्अनुकूल्काष्ठ्राजादन, मिक
ू , खददर, खाददर, अजन
ुण , नतन्धरर्ी,
स्तम्बक, वपसशत, शमी, क्षीररर्ी्एवं्पद्मक्होते्है ्॥१७१-१७२॥
(गज)्शाला्के्स्तम्भों्की्ऊूँचाई्सात, आठ्या्नौ्हाथ्होनी्चादहये्।्इसमें ्स्तम्भ्का्भूसम्में ्
गड़ा्भाग्नही्ग्रहर््ककया्जाता्है ्।्इसकी्चौड़ाई्भूसम्मे्गड़े्भाग्के्अनुसार्इस्प्रकार्
होनी्चादहये, न्जसमें ्स्तम्भ्दृढ़तापव
ू क
ण ्स्थावपत्हो्सके्।्ये्शालास्तम्भ्वक्ष
ृ ्की्शाखाओं्के्
समान्सशखाओं्से्यक्
ु त्होने्चादहये्॥१७३॥
गजशाला्के्स्तम्भ्वत्त
ृ ाकार्होने्चादहये्।्इनकी्मोिाई्एक्हाथ, तीन्चौथाई्हाथ्या्आिा्
हाथ्इस्तरह्तीन्प्रकार्की्कही्गई्है ्।्इसके्ऊध्वण्भाग्की्चौड़ाई्(नीचे्से)्आठ्भाग्कम्
होनी्चादहये्॥१७४-१७५॥
चौड़ाई्के्सोलह्भाग्करने्पर्पाूँच्भाग्शाला्की्चौड़ाई्में ्एवं्तीन्भाग्पष्ृ ठ्भाग्में ्ग्रहर््
करना्चादहये्।्वाम्भाग्में ्आठ्भाग्छोड़कर्पूवोक्त्ननयम्के्अनुसार्स्तम्भ्को्(भूसम्के्
सभतर)्गाड़ना्चादहये्॥१७६॥
सभवत्त्के्ऊूँचाई्स्तम्भ्की्आिी्ऊूँचाई्तक्होनी्चादहये्।्उसके्ऊपर्किक्(तर्
ृ -सींक्आदद्
से)्आच्छाददत्करना्चादहये, न्जसे्खोला्एवं्बधद्ककया्जा्सके्।्ववतन्स्तगोस्तन्(ववशेष्प्रकार्
om
की्र्खड़की्या्झरोखा)्एवं्बाहर्की्ओर्मुख्होना्चादहये्।्इसका्तल्(भूसम, फशण)्गज्के्
प्रमार््से्फलक-प्रस्तर्(काष्ठ-फलक्)्से्ननसमणत्करना्चादहये्।्इसका्प्रस्तर्सशलाओं्एवं्ईंिो्
से्ननसमणत्नही्करना्चादहये्।्इसमें ्(गजशाला)्मूर्ननकलने्का्द्वार्(बाहर्ननकलने्के)्
द्वार्की्न्स्थनत्के्अनुसार्ननसमणत्करना्चादहये्।्अधय्सभी्व्यवस्थायें्बुद्धिमान्स्थपनत्को्
आवश्यकतानुसार्करनी्चादहये्॥१७७-१८०॥
अश्ििाला
s.c
अश्वशाल, घुड़शाल्-्अश्वशाला्के्पाूँच्प्रकार्के्प्रमार्-्नौ, आठ, सात, छः्या्पाूँच्हाथ्होना्
चादहये्तथा्इसकी्लम्बाई्तीन्भन्क्त्(इकाई)्से्लेकर्इक्कीस्भन्क्त्तक्होनी्चादहये्॥१८१॥
ok
अश्वशाला्चार्द्वार, चार्कक्ष्एवं्प्रत्येक्कक्ष्में ्प्रग्रीव्से्युक्त्होनी्चादहये्।्स्तम्भ्का्
व्यास्दस्या्बारह्हाथ्कहा्गया्है ्।्सभवत्त्की्ऊूँचाई्तीन,चार, पाूँच्या्छः्हाथ्होनी्चादहये्
।्सभधन्एवं्असभधन्(दोनो्प्रकार्की्शालाओं)्की्सभवत्त्का्जोड़्समुधचत्रीनत्से्होना्चादहये्
।्प्रत्येक्गह
ृ ्में ्नेरसभवत्त्एवं्पष्ृ ठ्भाग्में ्जालक्(झरोखा)्होना्चादहये्।्गह
ृ ्के्अन्धतम्भाग्
Bo
में ्दृढ़्कर्णिारा्(रचनाववशेष)्होनी्चादहये्॥१८२-१८४॥
ववषय्संख्या्वाले बबछाये्गये्वंश्के्ऊपर्प्रस्तरफलकों्(काष्ठ-खण्ड)्से्भसू म्ननसमणत्होनी्
चादहये्।्इसमें ्मर
ू ्ननकलेके्सलये्नछद्र्होना्चादहये्एवं्इसे्ठोस्काष्ठ्से्दृढ़्बनाना्चादहये्।्
प्रत्येक्अश्वस्थान्मे्प्रवेश्के्सलये्एक्भन्क्त-प्रमार््का्प्रवेश्मागण्होना्चादहये्।्(अश्वशाला्
44
की)्कील्ठोस्काष्ठ्से्ननसमणत्चौदह्अंगल
ु ्लम्बी्होनी्चादहये्।्इसकी्चौड़ाई्दो्या्तीन्
अंगल
ु ्एवं्अग्र्भाग्में ्सई
ू ्के्समान्नोंक्होनी्चादहये्।्पश्चाद्बधि्को्अग्रबधि्में ्
दृढ़तापूवक
ण ्इस्प्रकार्जोड़ना्चादहये, जैसे्गतण्में ्दृढ़तापूवक
ण ्बैठाया्जाता्है ्॥१८५-१८७॥
नानालया
ववववि्भवन्-्मोर्एवं्बधदर्आदद्के्गह
ृ , तोते्का्वपञ्जरा, एक्जोड़ी्बैल, गाय्एवं्बछडो, जल,
िाधय्एवं्िन्के्कक्ष; वस्र, रत्न, अस्र-शस्र, द्यूतक्रीडा्एवं्कायण्करने्के्सलये्आवरर्-कक्ष;
दानशाला, भोजनगह
ृ ्एवं्दक्षक्षर्ायुक्त्यज्ञशाला्होनी्चादहये्॥१८८-१८९॥
दक्षक्षर््ददशा्में ्उधचत्स्थान्पर्वपञ्जरे ्का्स्थान्होना्चादहये्।्बगीचे्और्जलाशय्के्पास्
स्थान-मण्डप्(बैठने्के्सलये्मण्डप)्होना्चादहये्।्बैलों्के्सलये्कूिागार्या्गोल्कक्ष्होना्
चादहये्॥१९०॥
मन्त्रिालाददविथध
मधरर्ा्कक्ष्आदद्की्ववधि्-्राजा्मधरर्ा-कक्ष्पव
ू -ण पन्श्चम्लम्बा, सध
ु दर्एवं्ऊूँची्सभवत्तयों्से्
यक्
ु त्होना्चादहये्।्सभा्स्तम्भों्से्आवत
ृ ्तथा्सभवत्तहीन्होनी्चादहये, न्जससे्दरू ्तक्दे खा्जा्
सके्॥१९१॥
अथवा्वहाूँ्पन्श्चम्ददशा्में ्कूिागार्होना्चादहये, जो्राज-ससंहासन्युक्त्हो्एवं्इस्प्रकार्
ननसमणत्हो, न्जससे्कक्उसका्मुख्पूव्ण की्ओर्हो्।्उसके्पूव-ण दक्षक्षर््भाग्मे्मधरी्का्आसन्
होना्चादहये्।्दत
ू ्का्पूवोत्तर्भाग्में ्एवं्प्रशास्ता्का्उत्तर्भाग्में ्आसन्होना्चादहये्।्
उसके्दक्षक्षर््भाग्में ्सेनापनत्का्आसन्होना्चादहये्।्सभी्आसनों्के्मध्य्बराबर्नासलक्
का्अधतर्होना्चादहये्।्मधरनासलका्सुधदर्एवं्एक-एक्अंगुल्की्दरू ी्पर्पाूँच्गाूँठ्से्युक्त्
होनी्चादहये्।्यह्नछद्रयुक्त्एवं्अग्र्भाग्में ्(दोनो्ओर)्कली्से्युक्त्होनी्चादहये्॥१९२-
om
१९४॥
प्रसाधनगह
ृ
भवन्की्चौड़ाई्के्पाूँच्भाग्एवं्लम्बाई्के्छः्भाग्करने्चादहये्।्मध्य्भाग्में ्एक्भाग्
(चौड़ा)्एवं्दो्भाग्लम्बा्आूँगन्होना्चादहये्।्यह्वक्ष्के्बराबर्ऊूँची्सभवत्त्से्ढूँ का्होना्
चादहये्।्उसके्मध्य्में ्वत्त
s.c
ृ ाकार्प्रस्तर्होना्चादहये्तथा्पूवोत्तर्भाग्में ्जलपूर््ण पार्होना्
चादहये्।्उसके्दक्षक्षर््भाग्में ्केश्िोने्के्सलये्पयंक्(आसन)्होना्चादहये्॥१९५-१९६॥
मण्डप-मासलका्पूवोत्तर्द्वार्से्युक्त्होती्है ्।्प्रसािन्करने्वाली्स्री्का्आसन्समर्के्पद्
पर्तथा्वहीं्पर्मदहलाओं्का्स्थानमण्डप्होना्चादहये्।्इसका्ववस्तार्पाूँच्हाथ्से्प्रारम्भ्
ok
होकर्पच्चीस्हाथ्तक्ववशम्संख्या्वाले्माप्में ्होना्चादहये्।्सभा, मण्डप्एवं्शालाओं्की्
लम्बाई्के्सामाधय्ननयम्होते्है ्।्चौड़ाई्पधद्रह्हाथ्होने्पर्लम्बाई्इक्कीस्हाथ्एवं्ऊूँचाई्
चल
ू ी-पयणधत्होनी्चादहये; ककधतु्वर्तेरह्हाथ्से्अधिक्नही्होनी्चादहये्॥१९७-१९९॥
अमभषेकिाला
Bo
असभषेक्के्अनक
ु ू ल्शाला्पव
ू ाणसभमख
ु ्ननसमणत्करनी्चादहये्।्इसके्मध्य्भाग्में ्रं गमञ्च्से्
यक्
ु त्सभा्होनी्चादहये्।्राजा्का्मण्डप्दक्षक्षर््भाग्मे्होना्चादहये्एवं्न्जस्कक्ष्में ्
पट्िासभषेक्हो, उसे्उत्तर्ददशा्में ्होना्चादहये्॥२००-२०१॥
(मध्य्भाग्में )्पाूँच, सात्या्नौ्हाथ्चौड़ी्एवं्लम्बाई्में ्चौड़ाई्की्दग
ु न
ु ी्वेददका्होनी्चादहये्
44
।्इसकी्ऊूँचाई्चौड़ाई्के्तीन, चार्या्पाूँच्भाग्के्बराबर्होनी्चादहये्।्स्तम्भों्की्ऊूँचाई्
वेददका्के्बराबर्एवं्चौड़ाई्वेददका्के्अनस
ु ार्होनी्चादहये्।्भीतरी्भाग्स्तम्भों्से्यक्
ु त्होना्
चादहये; ककधतु्मध्य्भाग्में ्स्तम्भ्नही्होना्चादहये्।्स्तम्भों्की्चौड़ाई्बारह, सोलह्या्
अट्ठारह्अंगुल्होनी्चादहये्।्एक्भन्क्त्(माप्की्इकाई)्पयणधत्जाल्से्यह्आवत
ृ ्होना्
चादहये; न्जससे्कक्वहाूँ्प्रकाश्का्प्रवेश्हो्सके्॥२०२-२०४॥
तुलाभारस्थान
तुलाभार्का्स्थान्-्तुलाभार्कृत्य्के्अनुरूप्कूि्या्मण्डप्होता्है ्।्तोरण्के्स्तम्भ्की्
लम्बाई्तीन्हाथ्एवं्व्यास्दस्अंगुल्होना्चादहये्।्इसके्पष्ृ ठ्भाग्में ्(ऊध्वण्भाग्मे)्नौ,
आठ्या्सात्अंगुल्की्सशखा्होनी्चादहये्।्इसे्वास्तु्के्मध्य्में ्इस्प्रकार्स्थावपत्करना्
चादहये, न्जससे्यह्दक्षक्षर्-उत्तर्की्ओर्रहे ्।्तोरर््के्मध्य्भाग्की्ऊूँचाई्समान्होनी्चादहये्
॥२०५-२०७॥
एक-दस
ू रे ्में ्प्रववष्ि्लट्ठे ्(क्रास्बीम)्मध्य्भाग्में ्वक्रतण्
ु ड्(मड़
ु ्े हुये्मख
ु ्या्सूँड
ू ्की्आकृनत)्
से्युक्त्होते्है ्।्पूव्ण से्पन्श्चम्में ्लगाई्गई्प्रिान्तुला्के्दोनों्ससरे ्अचल्(न्दहलने-डूलने्
वाले)्ननसमणत्करना्चादहये्।्तुला्के्मध्य्में ्लगी्अरे ्(तीसलयाूँ, श्रख
ं ृ लाये)्महाराज्के्(पदादद)्
अनुसार्होनी्चादहये्।्मध्य्भाग्में ्दृढ़्काष्ठ्से्ननसमणत्कुण्डल्जड़्दे ना्चादहये्।्इस्कुण्डल्
को्वक्रतुण्ड्से्दृढ़तापूवक
ण ्जोड़ना्चादहये्।्फलकासन्(काष्ठ्का्आसन)्का्ननमाणर््पुं-काष्ठ्या्
नपुंसक-काष्ठ्को्छोड़कर्करना्चादहये्।्इसे्समान्रूप्से्लम्बी्एवं्दृढ्श्रख
ं ृ लाओं्द्वार्
साविानी्से्जोड़ना्चादहये्।्इसे्दो-दो्वक्रतुण्डों्से्दो-दो्बार्प्रयत्नपूवक
ण ्जोड़ना्चादहये्॥२०८-
२११॥
om
वास्तु्की्चारो्ददशाओं्मे्तथा्पूवम
ण ुख्तोरर््होना्चादहये्।्स्तम्भ, ववष्ि्(क्रास्बीम)्एवं्तुला्
प्रशस्त्एवं्दृढ्काष्ठों्से्ननसमणत्करना्चादहये्।्चारो्ओर्बाहर्प्रपा्(मण्डप)्का्ननमाणर््होना्
चादहये, जो्वास्तु्के्मध्य्तक्पहुूँचता्हो्।्उसी्के्बराबर्उसके्बाहर्चारो्ओर्(दस
ू री्प्रपा)्
ननसमणत्करनी्चादहये्।्तोरर््काष्ठ्(क्रमशः)्उदम्
ु बर्(गूलर), वि्(बड़), अश्वत्थ्(पीपल)्तथा्
लगाना्चादहये्॥२१२-२१४॥
s.c
धयग्रोि्(बरगद)्के्काष्ठ्से्ननसमणत्होना्चादहये्।्इसी्क्रम्से्पीला, लाल, श्वेत्एवं्नीला्ध्वज्
जब्राजा्तुला्के्बराबर्(तुला्के्दोनो्पलडे्बराबर)्हो्जाय्एवं्राजा्का्मुख्इधद्र्की्ददशा्
(पूव)ण ्की्ओर्हो्जाय, तो्राजा्को्सभी्सुख्प्राप्त्होते्है ्।्अपने्सन्ञ्चत्सुवर्ण्रासश्को्
ok
दे खकर्राजा्पथ्
ृ वी्पर्कुबेर्के्समान्हो्जाता्है ्॥२१५॥
दहरण्यगभास्थान
दहरण्यगभण्का्स्थान्-्सुवर्ण-गभण्से्युक्त्भवन्के्सभवत्त्की्लम्बाई्सात्या्नौ्हाथ, व्यास्
चौकोर्एवं्व्यास्के्बराबर्भत
ू ल्से्उसकी्ऊूँचाई्होती्है ्।्स्तम्भ्का्व्यास्दस्या्बारह्
Bo
अंगल
ु ्का्कहा्गया्है ्।्यह्वत्त
ृ ाकार्या्चौकोर्होता्है ्एवं्इसे्भसू म्के्भीतर्यथाशन्क्त्
दृढ़तापव
ू क
ण ्गाड़ना्चादहये्।्आवत
ृ सभवत्त्(भवन्के्पास्की्सभवत्त)्की्ऊूँचाई्तीन्हाथ्एवं्इसकी्
वेददका्एक्दण्ड्ऊूँची्होनी्चादहये्।्(भवन्का)्भीतरी्भाग्सोलह्ववष्िों्(क्रास्बीम)्की्दो्
पंन्क्तयों्से्सस
ु न्ज्जत्होना्चादहये, जो्स्तम्भों्के्अग्र्भाग्पर्दिके्है ्॥२१६-२१८॥
44
om
मयमतम्-्अध्याय्३०
्
्िार्का्विधान्- s.c
मुननयों्के्वास्तु-परक्वाक्य्को्सुखपूवक
ण ्बुद्धि्मे्िारर््कर्(मै्मय)्ब्राह्मर्, राजा्(क्षबरय),
व्यापारी्(वैश्य)्एवं्शूद्रजनों्के्भवनों्के्मुख-द्वार्की्न्स्थनत, चौड़ाई्एवं्ऊूँचाई्तथा्पथ
ृ क-पथ
ृ क्
उनके्भेद्एवं्सज्जा्के्साथ्नामों्का्उललेख्करूूँगा्॥१॥
ok
्िार्के्प्रमाण्-
द्वार्की्चौड़ाई्(कम्से्कम)्तीन्बबत्ता्एवं्लम्बाई्(ऊूँचाई)्सात्बबत्ता्होनी्चादहये्।्(पूवोक्त)्
चौड़ाई्एवं्लम्बाई्मे्क्रमशः्छः्एवं्बारह्अंगुल्बढ़ाते्हुये्पधद्रह्बबत्ता्चौड़ाई्एवं्इक्कीस्बबत्ता्
(ऊूँचाई)्ले्जानी्चादहये्।्इस्प्रकार्द्वार्के्ववस्तार्एवं्ऊूँचाई्के्पच्चीस्प्रकार्के्प्रमार््
Bo
बनते्है ्॥२-३॥
इनमें ्प्रथम्मान्शयन-गह
ृ ्के्सलये्उपयुक्त्है ्।्(आगे्के)्बारह्प्रमार््गह
ृ ्के्होते्है ्।्
ववद्वानों्के्मतानुसार्गह
ृ ्के्बाहर्चारो्ओर्खलूरी्के्द्वारमान्भी्यही्है ्।्(तत्पश्चात)्बारह्
प्रमार््नगर, ग्राम, दग
ु ्ण एवं्राजभवन्के्होते्है ्।्द्वार्की्ऊूँचाई्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी्एवं्छः्अंगुल्
44
या्नौ्अंगुल्अधिक्होनी्चादहये्।्यह्माप्सभी्के्सलये्कहा्गया्है ्॥४-५॥
छोिे ्द्वारो्की्चौड़ाई्के्तीन्मान्प्राप्त्होते्है -्दो्बबत्ता्छः्अंगुल, दो्बबत्ता्तीन्अंगुल्तथा्दो्
बबत्ता्।्उनकी्ऊूँचाई्चौड़ाई्की्दग
ु ुनी्होनी्चादहये्।्इस्प्रमार््में ्छः्अंगुल्या्दो्अंगुल्
अधिक्लेना्चादहये्।्इस्द्वारो्से्ब्राह्मर््आदद्(अधय्वर्ों)्का्प्रवेश्प्रशस्त्होता्है ्॥६-७॥
द्वार्की्ऊूँचाई्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्के्आथ्भाग्में ्साढ़े ्छः्भाग्के्बराबर्एवं्ववस्तार्स्तम्भ्
की्ऊूँचाई्के्नौ्भाग्में ्साढ़े ्आठ्भाग्के्बराबर्होनी्चादहये्।्छोिे ्एवं्मध्यम्द्वार्प्रत्येक्
भसू म्पर्होते्है ्।्न्जस्द्वार्की्ऊूँचाई्चौड़ाई्की्दग
ु न
ु ी्होती्है , वह्मनष्ु यो्के्आवास्के्सलये्
शभ
ु ्नही्होता्है ्॥८-९॥
दे वालयों्में ्द्वार्की्उचाई्स्तम्भ्के्आठ्भाग्में ्सात, नौ्मे्आठ्तथा्दस्में ्नौ्भाग्के्
बराबर्एवं्चौड़ाई्उचाई्की्आिी्होनी्चादहये्।्प्रत्येक्तल्में ्उस्तल्के्स्तम्भ्के्अनस
ु ार्
द्वार्का्मा्रखना्चादहये्॥१०॥
योगमान
द्वार्का्योगमान्-्द्वार्के्योग्के्ववस्तार्का्मान्स्तम्भ्के्बराबर, उससे्एक्चौथाई्भाग्
या्उससे्आिा्भाग्अधिक्होना्चादहये्।्उसकी्मोिाई्चौड़ाई्की्आिी्होनी्चादहये्।्चौखि्
का्जो्भाग्उत्तर्(सलधिल)्के्नीचे्एवं्वाजन्(ऊपरी्भाग)्तक्जाता्है , उसकी्चौड़ाई्बरपाद्
(पौने्तीन्भाग)्होनी्चादहये्।्॥११-१२॥
किाट
कपाि, द्वार्का्पलला्-्कवाि्की्चौड़ाई्स्तम्भ्की्चौड़ाई्के्तीसरे , चौथे्या्पाूँचवे्भाग्के्
om
बराबर्होनी्चादहये्।्दे वता, ब्राह्मर््एवं्राजाओं्के्द्वार्में ्दो्कपाि्एवं्शेष्के्सलये्एक्
कपाि्कहा्गया्है ्।्सामधत्एवं्प्रमुख्आदद्के्सलये्द्वार्के्दो्कपात्प्रशस्त्होते्है ्॥१३-
१४॥
द्वार्के्कपािों्की्उचाई्साढ़े ्चार, पाूँच, सात, आठ्या्ग्यारह्हाथ्होनी्चादहये्।्यह्उचाई्भवन्
s.c
के्भीतरी्भाग्की्उचाई्के्अनुसार्होनी्चादहये्।्इसमे्आिा्भाग्गुलफ्(नीचे्की्चौखि)्एवं्
आिा्भाग्ववमल्(ऊपर्क्चौखि)्के्सलये्होता्है ्।्यह्दृढ़ता्के्सलये्थोडा्मोिा्रक्खा्जाता्
है ्।्कपाि्के्भीतरी्भाग्में ्सरप्(द्वार्के्खुलने-बधद्होने्पर्ननयधरर््रखने्वाला्अंग)्
लगाया्जाता्है , न्जसकी्उचाई्कपाि्के्तीन्भाग्में ्दो्भाग्के्या्पाूँच्भाग्में ्चार्भाग्के्
ok
बराबर्होती्है ्।्इसके्ववषय्में ्पहले्वर्णन्ककया्जा्चक
ु ा्है ्॥१५-१६॥
दो्कपाि्होने्पर्एक्बड़ा्एवं्दस
ू रा्छोिा्होता्है ्।्दादहनी्ओर्के्कपाि्की्उचाई्के्पाूँच्
भाग्एवं्चौड़ाई्के्तीन्भाग्करने्चादहये्।्(लम्बाई्के)्तीन्भाग्को्ऊपर्एवं्नीचे्के्सलये्
एवं्एक्भाग्दोनो्पाश्वो्के्सलये्छोडकर्मध्य्मे्बचे्द्वारभाग्को्'आवार' कहते्है ्।्इसे्लोहे ्
Bo
के्पट्िो्से्इस्प्रकार्दृढ्करना्चादहये, न्जससे्कक्कपाि्दृढ्हो्एवं्सध
ु दर्लगे्॥१७-१९॥
भाजन्(साूँकेि)्का्भीतरी्व्यास्बडे्द्वार, मध्य्द्वार्या्छोिे ्द्वार्के्अनस
ु ार्तीन, चार्या्पाूँच्
अंगल
ु ्का्होना्चादहये्अथवा्(साूँकेि्के)्बाहरी्चौडाई्का्आिा, दो्नतहाई, तीन्चौथाई्या्तीसरे ्
भाग्के्अनस
ु ार्होना्चादहये्।्अथवा्इसका्माप्दस्अंगल
ु ्या्ववकासन्(घम
ू ने्वाली्कील)्की्
44
चौड़ाई्के्बराबर्होनी्चादहये्।्वेर्(कील्के्नोक)्को्(साूँकेि्मे)्इस्प्रकार्रखना्चादहये,
न्जससे्कक्यह्हाथी्की्सूँड
ू ्के्समान्लगे्॥२०-२१॥
कपाि्के्सलये्ववषम्संख्या्के्फलक्का्प्रयोग्करना्चादहये्एवं्मध्य्भाग्मे्जोड्नही्होना्
चादहये्।्कपाि्की्भेषर्ी्(सहारा्दे ने्वाला्भाग)्मध्य्भाग्को्छोडकर्होनी्चादहये्।्दो्कपाि्
होने्पर्दृढ़ता्को्ध्यान्मे्रखते्हुये्भेषर्ी्का्प्रयोग्(अनावश्यक्होने्पर)्नही्करना्चादहये्
॥२२-२३॥
तलप्(कपािफलक)्पर्तीन, पाूँच, सात, नौ्या्ग्यारह्दण्ड्लगना चादहये, न्जनकी्मोिाई्तलप्की्
आिी्एवं्चौड़ाई्मोिाई्की्दग
ु ुनी्होनी्चादहये्।्उनकी्आकृनत्अश्व्के्कधिे्या्नख्के्समान,
पीपल्के्पत्ते्के्अग्र्भाग्के्समान, स्वन्स्तक्के्समान, घदिका्(छोिा्घि)्या्समर्णका्के्समान्
होनी्चादहये्।्॥२४-२५॥
कवाि्को्श्रीमख
ु , वामदण्ड, वपञ्जरी, गल, अगणल्(कड़ड़याूँ, श्रख
ं ृ लाये)्क्षेपर्, सन्धिपर, गच्
ु छे , वन,
लतागल
ु म्(झरु मि
ु ), भीतरसे्पकडने्वाले्भाग्(है ण्डल)्वालाग्र्(पूँछ
ू ), मध्य्भाग्में ्कुण्डल, ववषार््
(सींग), पररघा्एवं्क्षुद्र्दण्ड्(छोिा्दण्ड, न्जससे्द्वार्को्खल
ु ने्से्रोका्जा्सके)्से्यक्
ु त्करना्
चादहय्॥२६-२७॥
कपाि्को्सभी्प्रकार्से्सुधदर्इधद्रकील्से्युक्त्करना्चादहये्या्अधय्िातु्से्उधचत्रीनत्से्
दृढ्करना्चादहये्।्गुलफ्(ननचले्भाग),सन्धिस्थान्पर्एवं्ललाि्(सामने्के्भाग)्पर्इधद्रकील्
को्शंग
ृ ्एवं्लोहे ्के्पर्द्वारा्प्रयत्नपूवक
ण ्इस्प्रकार्लगाचा्चादहये, न्जससे्कक्वे्दृढ्रहे ्एवं्
सुधदर्लगे्।्दो्कसलयो्के्बीच्में ्सूई्के्समान्लम्बी्पर्बरनेरा्लगानी्चादहये्।्चौखि्का्
भीतर्िूँसा्भाग्पूरी्ऊूँचाई्का्तीसरा्भाग्होना्चादहये, न्जससे्कक्वह्दृढ्रहे ्॥२८-३०॥
पट्ि्के्सामने्स्कधिपट्दिका्(दोनो्कपािों्के्मध्य्के्अवकाश्को्ढूँ कने्वाली्पट्िी)्को्प्रवेश्
om
करते्समय्दादहने्कपािफलक्पर्इस्प्रकार्लगाना्चादहये, न्जससे्कक्वह्सुधदर्प्रतीत्हो्।्
इसकी्मोिाई्कपािफलक्के्समान्एवं्चौडाई्मोिाई्की्दग
ु ुनी्होती्है ्।्यह्पद्मपर्की्
आकृनत्से्सुसन्ज्जत्होती्है ्।्दक्षक्षर््योग्पर्अगणल्(ससकडी, ससिककनी)्एवं्वामयोग्पर्
कपािफलक्होना्चादहये्।्॥३१-३२॥
िुभािुभ्िार
s.c
प्रशस्त्एवं्अप्रशस्त्द्वार्-्ववद्वान्को्(द्वार्खोलते्समय)्बाूँये्हाथ्से्कपािफलक्एवं्दादहने्
हाथ्से्घदिका्(द्वार्को्खोलने्बधद्करने्का्अवयव)्का्प्रयोग्करना्चादहये्।्चाहे ्
द्वारफलक्एक्हो्या्दो्हो्।्द्वार्को्खोलने्एवं्बधद्करते्समय्उत्पधन्स्वर्भेरी्के्स्वर्
ok
के्समान, गज्के्स्वर्या्ससंह्के्स्वर्के्समान, वीर्ा्एवं्वेर्ु्के्स्वर्के्समान्हो्तो्वह्
नाद्प्रशस्त्होता्है ्।्कण्ठ्से्ननकले्गजणन्के्समान, धचललाने्के्समान, गूँज
ू ने्के्समान्एवं्
अधय्प्रकार्के्स्वर्अप्रशस्त्होते्है ्॥३३-३५॥
द्वार्के्नीचे्का्भाग्एवं्ऊपर्का्भाग्समान्रूप्से्खल
ु ना्चादहये्।्भीतरी्अगणला्का्उसके्
Bo
नछद्र्से्(जहाूँ्फूँसाया्जाय)्छोिा्होना्या्अगणला्एवं्योग्का्आपस्में ्रगडना्बधिओ
ु ं्के्नाश्
का्कारर्, शरओ
ु ं्से्पीडा्एवं्सदा्उपद्र्का्कारर््होता्है ्।्जो्द्वार्अपने-आप्खल
ु े्तथा्
अपने-आप्बधद्हो, वह्बधि-ु बाधिव्के्ववनाश्का, सम्पवत्त्की्हानन्का्एवं्ववपवत्त्का्कारर््
होता्है ्॥३६-३७॥
44
द्वार्का्वक्ष
ृ , कोप, चारददवारी, खम्भा्एवं्कूप्से्ववद्ि्होना्(इनका्द्वार्के्सामने्होना), दे वालय्
से्ववद्ि्होना, मागण्से्ववद्ि्होना, बाूँबी्एवं्भस्म्से्ववद्ि्होना, ससरा्एवं्ममणस्थान्से्ववद्ि्
होना्ववष-नाडी्के्समान्(अप्रशस्त)्होता्है ्और्वह्सपो्का्स्थान्(मत्ृ युकारक्स्थान)्होता्है ्।्
द्वार्गह
ृ ्का्रक्षक्एवं्दृढ्होना्चादहये्।्ऐसा्द्वार्ववद्वानो्को्प्रसधन्करता्है ्॥३८-४०॥
गज्के्ऊपर्बैठकर्आते-जाते्समय्द्वार्के्कपाि्के्आघात्से्यदद्ब्राह्मर््की्मत्ृ यु्हो्
जाती्है ्तो्द्वार्राजा्के्ववनाश्का्कारर््बनता्है ्।्जब्पैदल्हो्और्ऐसी्घिना्हो्तो्वह्
राजा्की्अवननत्का्कारर््बनता्है ्।्यदद्राजा्बडे्द्वार्से्प्रवेश्करता्है ्तो्वह्ननःसधदे ह्
धचरकाल्तक्जीववत्रहता्है ्।्वह्दस
ू रे ्के्राज्य्पर्भी्अधिकार्प्राप्त्करता्है ्एवं्कभी्भी्
क्षीर््नही्होता्है ्॥४१-४२॥
्िारस्थान
द्वार्की्न्स्थनत्-्दे वो, ब्राह्मर्ो्एवं्राजाओं्का्द्वार्मध्य्में ्तथा्शेश्मनष्ु यों्के्आवास्का्
द्वार्मध्य्भाग्के्पाश्वण्मे्होना्चादहये्॥४३॥
बत्तीस्पद्वास्तम
ु ण्डल्मे्महे धद्र, राक्षस, पष्ु पदधत्एवं्भललाि-्इन्चारो्पदो्पर्द्वार्होना्
चादहये्।्ये्द्वार्अपनी्ददशाओं्के्अधिपनत्दे वों्द्वारा्संरक्षक्षत्होते्है ्।्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्
इसी्प्रकार्भीतर्के्द्वार्एवं्बाहर्के्द्वारों्का्समायोजन्करना्चादहये्।्शेष्अधय्सभी्द्वर्
दोषयुक्त्होते्है ्।्ब्रह्मा्के्समान्एवं्ब्रह्मा्की्ओर्(बाहर्ननकलने्वाले्व्यन्क्त्की्पीठ)्वाले्
द्वार्ननवषद्ि्होते्है ्।्प्रलाप्करने्से्क्या्लाभ? अधय्स्थान्पर्द्वार्ननन्धदत्होते्है ्॥४४-
४६॥
द्वार्के्ववस्तार्का्माप्सुननन्श्चत्होना्चादहये्।्माप्से्कम्या्अधिक्रोग्का्कारर््होता्है ्
।्खोलने्एवं्बधद्करने्पर्जहाूँ्इसे्रोका्जाय, उसी्न्स्थनत्मे्कपाि्का्न्स्थत्रहना्तथा्ऊपर्
om
एवं्ननचे्का्व्यास्एवं्लम्बाई्बराबर्रहे ्तो्वह्द्वार्प्रशस्त्होता्है ्।्यदद्(खोलने्एवं्बधद्
करने्पर्द्वार्का)्स्वर्िोबी्के्वस्र्िोने्जैसा्हो्तो्वह्गह
ृ स्वामी्के्ववपवत्त्का्कारर््बनता्
है ्॥४७-४९॥
जलद्वार्(जलप्रर्ाली)्को्जयधत, ववतथ, सुग्रीव्एवं्मुख्य्के्पद्पर्क्रमशः्ननसमणत्करना्चादहये्
ृ , पूषा, भग
s.c
।्अधय्स्थान्(जलद्वार्के्सलये)्छोड्दे ना्चादहये्॥५०॥
पजणधय, भश ं ृ राज, दौवाररक, शोष, नग्एवं्अददनत्के्पद्उपद्वार्का्प्रयोग्करना्चादहये्।्
इसे्सुरङ्ग्कहते्है ्।्ये्एक्या्दो्तल्से्युक्त्बहुत-सी्रक्षाओं्(सुरक्षा-बल)्से्युक्त्होते्है ्
॥५१-५२॥
ok
(यहाूँ्कुछ्छूि्है ; पाठ्खन्ण्डत्है )्।्स्तम्भ्एवं्अधिष्ठान्की्ऊूँ्के्मान्को्लेकर्जो्शेष्बचे,
उससे्उपपीठ्की्ऊूँचाई्एवं्द्वार्की्ऊूँचाई्लेनी्चादहये; न्जसका्वर्णन्पहले्ककया्गया्है ्।्
सामने्द्वार्(कपाि)्से्लगे्गुप्त्या्ददखाई्पडने्वाले्सोपान्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्द्वार्
के्योग्को्द्वारगोपरु ्के्बराबर्गहराई्मे्(भसू म्मे)्स्थावपत्करना्चादहये्।्भवन्की्बाहरी्
Bo
सभवत्त्राजभवन्एवं्अधय्भवनों्की्सीमा्ननिाणररत्करता्है ्॥५३-५४॥
गोपरु मान
गोपरु ्के्मान्-्अब्द्वारशोभा्से्लेकर्द्वारगोपरु ्तक्(सभी्द्वारो)्का्ववस्तार, लम्बाई्एवं्
ऊूँचाई्के्प्रमार््का्वर्णन्संक्षेप्में ्क्रमशः्ककया्जा्रहा्है ्।्प्रथम्आवरर््द्वारशोभा्के्पाूँच्
44
om
के्गोपुरों्का्वर्णन्ककया्गया्।्अब्दो्तल्के्गोपुरों्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥६६-६७॥
्वितलगोपुर
रनतकान्त
दो्तल्के्गोपुर्-्(रनतकाधत)्-्(द्ववतल्गोपुर्में )्लम्बाई्छः्भाग्एवं्चौड़ाई्दो्भाग्होनी्
s.c
चादहये्।्मध्य्भाग्मे्एक्भाग्चौड़ा्एवं्तीन्भाग्लम्बा्नालीगह
ृ ्(कक्ष)्होना्चादहये्।्यह्
चारो्ओर्एक्भाग्मोिी्सभवत्त्से्नघरा्होना्चादहये्तथा्उसके्आिे्भाग्से्तीन्भाग्से्वार्
(मागण, बरामदा)्होना्चादहये्।्उसके्बाहर्उसके्आिे्भाग्से्तीन्भाग्चौडा्गोपानमञ्चक्
ननसमणत्होना्चादहये्।्अधिष्ठान्उपपीठ्से्युक्त्तथा्स्तम्भ्आदद्से्सुसन्ज्जत्होना्चादहये्।्
ok
महावार्अष्िनाससयों्से्युक्त्और्सशखर्कोष्ठक्के्आकार्का्होना्चादहये्।्सामने्एवं्पीछे ्
दो्भाग्चौडी्महानासी्होनी्चादहये्।्यह्भद्र्से्युक्त, भद्र्से्रदहत्या्स्तम्भसदहत्भद्र्से्
युक्त्होती्है ्।्महावार्दक्षक्षर््भाग्से्सोपान्से्युक्त्होता्है ्।्इसका्नाम्'रनतकाधत' है ्एवं्
यह्सभी्की्प्रसधनता्में ्वद्
ृ धि्करता्है ्॥६८-७२॥
Bo
कान्तविजय
काधतववजय्-्उसी्सशखर्में ्यदद्चार्नाससयाूँ्हो्तो्उसकी्संज्ञा्'काधतववजय' होती्है ्एवं्यह्
सभी्की्शोभा्बढ़ाने्वाला्होता्है ्॥७३॥
सम
ु ङ्गल
44
सम
ु ङ्गल्-्यदद्सशखर्हीन्(छोिा, धचपिा)्हो्एवं्हारा्से्यक्
ु त्हो्तथा्वार्की्बाहरी्सभवत्त्पर्
चारो्ओर्नाससयाूँ्ननसमणत्हो्तो्उसकी्संज्ञा्'सम
ु ङ्गल' होती्है ्।्इस्प्रकार्द्ववतल्गोपरु ्का्
वर्णन्ककया्गया, अब्बरतल्गोपुर्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥७४॥
त्रत्रतलगोपुर
मदा ल
बरतलगोपुर्(मदण ल)्-्यह्गोपुर्चार्भाग्चौडा्एवं्छः्भाग्लम्बा्होता्है ्।्द्वार्के्दोनो्पाश्वो्
मे्एक-एक्भाग्के्आवास्होते्है ्।्उसके्चारो्ओर्आिे्भाग्से्सभवत्त्ननसमणत्होती्है ्।्उसके्
चारो्ओर्एक्भाग्से्वार्ननसमणत्होता्ह, न्जस्पर्दो्नाससयाूँ्ननसमणत्होती्है ्।्दोनो्गह
ृ ्
सोपान्से्युक्त्होते्है ्एवं्ऊपर्भी्हारा्ननसमणत्होते्है ्।्उन्दोनो्के्मध्य्वास्तल्(गिर)्
ननसमणत्होता्है , न्जसका्माप्द्वार्की्चौड़ाई्के्बराबर्होता्है ्।्इस्द्वारहम्यण्गोपरु ्की्संज्ञा्
'मदण ल' होती्है ्एवं्यह्राजगह
ृ ्में ्ननसमणत्होता्है ्॥७५-७८॥
मारखण्ड्-्यह्गोपरु ्छः्भाग्चौड़ा्एवं्दस्भाग्लम्बा्होता्है ्।्द्वार्के्दोनो्पाश्वो्मे्एक्
भाग्से्कक्ष्ननसमणत्होते्है ्।्दोनो्कक्ष्आिे्भाग्मोिी्सभवत्त्से्नघरे ्होते्है ्।्उसके्बाहर्एक्
भाग्से्चारो्ओर्वार्ननसमणत्होता्है ्।्उन्दोनो्के्मध्य्द्वार्की्चौड़ाई्के्बराबर्जलस्थल्
(गिर)्ननसमणत्होता्है ्।्उसके्बाहर्एक्भाग्से्चारो्ओर्वार्ननसमणत्होता्है ्।्उसके्चारो्
ओर्महावार्(बडा्मागण, बरामदा)्ननसमणत्होता्है , न्जस्पर्नाससकाये्ननसमणत्होती्है ्।्इसका्
सशखर्हीन्(लगभग्धचपिा)्होता्है ्एवं्ऊपर्हार्ननसमणत्होता्है ्।्बाहरी्वार्पर्चौदह्
नाससकाये्ननसमणत्होती्है्।्द्वार, सोपान्एवं्मागण्का्ननमाणर््आवश्यकतानुसार्करना्चादहये्।्
इस्गोपुर्की्संज्ञा्'मारखण्ड' है ्एवं्यह्राजाओं्को्ववजय्प्रदान्करता्है ्।्॥७९-८०-८१-८२-८३॥
om
श्रीननकेतन
इस्गोपुर्द्वार्की्चौड़ाई्आठ्भाग्एवं्लम्बाई्दस्भाग्होती्है ्।्नालीगह
ृ ्(मध्य्कक्ष)्दो्
भाग्से्एवं्चारो्ओर्एक्भाग्से्सभवत्त्होती्है ्।्तत्पश्चात्आिे्भाग्से्असलधद्र्(बरामदा)्एवं्
एक्भाग्से्चारो्ओर्अधिार्(मागण, गसलयारा)्होता्है ्।्इसके्पश्चात्एक्भाग्से्चारो्ओर्
s.c
असलधद्र्एवं्एक्भाग्से्हार्(बाहरी्सभवत्त)्ननसमणत्होता्है ्।्कूि्की्चौड़ाई्दो्भाग्से्एवं्शाला्
की्लम्बाई्छः्भाग्से्होती्है ्।्कोष्ठक्का्ववस्तार्चार्भाग्से्एवं्(उसी्प्रकार्उसकी)्
लम्बाई्होती्है ्।्द्वार्का्ननमाणर््एक्भाग्से्चल
ू हम्यण्से्युक्त्करना्चादहये्।्कूि्एवं्शाला्
के्मध्य्मे्जल्का्स्थान्होना्चादहये्।्इस्प्रकार्आददतल्(भूतल)्का्वर्णन्ककया्गया्।्अब्
ok
दस
ू रे ्तल्के्भागों्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥८४-८८॥
नाली-गह
ृ , चारो्ओर्की्सभवत्त्एवं्असलधद्र्पूवव
ण र्णन्के्अनुसार्होना्चादहये्।्आिे्भाग्से्चारो्
ओर्गोपानप्रस्तर्से्युक्त्वपण्डी्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्ऊपरी्भाग्में ्आठ्नाससयों्से्युक्त्
महावार्ननसमणत्होता्है ्।्सशखर्कोष्ठक्के्आकार्का्होता्है ्एवं्इसका्ववस्तार्लम्बाई्का्
Bo
शद्
ु ि्(एक)्या्समधश्रत्(अनेक)्पदाथों्से्ननसमणत्तीन्तल्के्गोपरु ों्के्तीन्प्रकारों्का्वर्णन्
ककया्गया्।्ये्ववसभधन्प्रकार्की्र्खड़ककयों्एवं्अधतःसालो्(भीतरी्प्राकारों)्से्यक्
ु त्होते्है ्।्
अब्सात्तल्से्प्रारम्भ्कर्चार्तल्पयणधत्गोपुरों्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥९१-९४॥
सतततलगोपुर
भद्रकपयाण
सात-तल्गोपुर्(भद्रकलयार्)्-्इस्गोपरु ्की्चौडाई्चौदह्भाग्एवं्लम्बाई्सोलह्भाग्होती्है ्।्
नालीगेह्(मध्यकक्ष)्दो्भाग्चौडा्एवं्छः्भाग्लम्बा्होता्है ्।्इसके्चारो्ओर्सभवत्त्होती्है ्।्
दो्भाग्मान्के्चार्असलधद्र्होते्है ्।्चारो्ओर्आिे्भाग्से्चार्हारा्का्ननमाणर््करना्चादहये्
।्इसके्बाहर्चारो्ओर्एक्भाग्से्असलधद्र्होता्है ्।्एक्भाग्से्हार-भाग्एवं्आिे्भाग्से्
सभवत्त्होती्है ्।्हार्के्भाग्के्बराबर्दोनो्पाश्वो्में ्पञ्जर्ननसमणत्होते्है ्॥९५-९७॥
प्रत्येक्ऊपरी्तल्की्भसू म्प्रनतयक्
ु त्होती्है ्।्तीसरे ्तल्को्खण्डहम्यण्आदद्से्सस
ु न्ज्जत्एवं्
जलस्थल्से्यक्
ु त्बनाना्चादहये्।्प्रत्येक्ऊपरी्तल्की्ग्रीव्पर्चार्महावार्(बडे्बरामदे )्होते्
है ्।्प्रत्येक्ऊपरी्तल्के्द्वार्के्मध्य्में ्स्तम्भ्ननसमणत्करना्चादहये्।्छत्पर्छत्के्माप्
की्पट्दिका्एवं्ववषम्संख्या्में ्स्तूवपकाये्होनी्चादहये्॥९८-१००॥
इसे्तोरर्ो, झरोखो्एवं्क्षुद्रनीडो्(छोिी्सजाविी्र्खड़ककयों)्से्भली-भाूँनत्अलंकृत्करना्चादहये्।्
प्रत्येक्तल्पर्महावार्(की्सभवत्तयों)्को्नाससयों्से्सुसन्ज्जत्करना्चादहये्।्यह्द्वार्के्दोनो्
पाश्वो्मे्तथा्कूि्और्शाला्के्मध्य्मे्होता्है ्।्इसके्पश्चात्उपपीठ, चढने्के्सलये्सीढ़ी्एवं्
चार्(चलने्के्सलये्मागण)्होता्है ्।्आूँगन्एवं्कूि्का्सोपान्बरखण्ड्या्श्रङ्
ृ गमण्डल्(शैली्का)्
होता्है ्।्प्रत्येक्ऊपरी्तल्मे्सोपान्की्योजना्आवश्यकतानुसार्की्जानी्चादहये्।्इस्
द्वारगोपुर्को्'भद्रकलयार्' संज्ञा्से्असभदहत्ककया्जाता्है ्॥१०१-१०३॥
om
सुभद्र
सुभद्र्-्उसी्मे्मध्य्भाग्तथा्दोनो्पाश्वो्मे्नाससका्हो्तथा्सामने्एवं्पीछे ्नाससयाूँ्हो्तो्
उसकी्संज्ञा्'सुभद्र' होती्है ्॥१०४॥
भद्रसुन्दर
s.c
भद्रसुधदर्-्मध्य्भाग्में ्दो्भाग्से्जलस्थान्तथा्दोनो्पाश्वों्मे्दो्भाग्प्रमार््से्चार्
नाससयों्से्युक्त्सौन्ष्ठक्होता्है ्।्इसे्'भद्रसुधदर' नाम्से्असभदहत्ककया्गया्है ्।्पाश्वण्भाग्
में ्इसी्के्ववस्तार्मे्सोलह्भाग्एवं्लम्बाई्मे्अट्ठारह्भाग्रक्खा्जाता्है ्।्इसकी्लम्बाई्
चौड़ाई्से्चतुथांश्अधिक्होती्है ्।्शेष्भागो्को्आवश्यकतानुसार्रखना्चादहये्।्इसका्ननमाणर््
ok
एक्या्अनेक्द्रव्यों्से्क्या्जाता्है ्॥१०५-१०७॥
षट्तलगोपुर
छः्तल्का्गोपुर्-्इस्प्रकार्सप्ततल्गोपुर्का्वर्णन्ककया्गया्है ्।्इसके्तीन्प्रकार्होते्है ्
।्इसी्मे्ननचले्तल्को्छोड्छः्तल्के्गोपरु ्बनते्है ; न्जधहे ्क्रमशः्सब
ु ल, सक
ु ु मार्एवं्सध
ु दर्
Bo
कहा्गया्है ्॥१०८-१०९॥
पञ्चतलगोपरु
पाूँच्तल्का्गोपरु ्-्द्वार्की्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्चौदह्भाग होनी्चादहये्।्गह
ृ ्की्सभवत्त्एवं्गह
ृ ्
(मध्य्कक्ष)्पहले्के्समान्होना्चादहये्।्उसके्चारो्ओर्हार्(बाह्य्सभनत)्एवं्असलधद्र्क्रमशः्
44
पाूँच्तथा्डेढ़्भाग्से्होनी्चादहये्।्असलधद्र्एवं्बाह्य्सभवत्त्की्चौड़ाई्एक्भाग्होनी्चादहये्।्
आूँगन्में ्दो्भाग्से्सौन्ष्ठक्एवं्छः्भाग्लम्बी्शाला्होनी्चादहये्।्कूि्एवं्शाला्के्मध्य्
भाग्मे्तीन्भाग्से्जलस्थान्होना्चादहये्।्ववस्तार्में ्जलस्थान्दो्भाग्से्हो्एवं्तीन्
महावार्से्युक्त्हो्।्शेष्अंगो्का्ननमाणर््पूवव
ण र्र्णत्रीनत्से्करना्चादहये्।्पञ्चतल्गोपुर्को्
क्रमशः्श्रीच्छधद, श्रीववशाल्एवं्ववजय्कहा्गया्है ्।्इस्प्रकार्ववसभधन्अंगो्से्सुशोसभत्
पञ्चतल्गोपुर्तीन्प्रकार्के्कहे ्गये्है ्॥११०-११४॥
चतुस्तलगोपुर
चार्तल्का्गोपुर्-्उस्लम्बाईएवं्चौड़ाई्मे्से्दो्भाग्छोड्ददया्जाय, दो्महावारों्से्युक्त्हो्
तता्कूि्एवं्कोष्ठ्पहले्के्समान्हो्(तो्वह्चतुस्तल्गोपुर्होता्है ), यह्लसलत, कलयार््एवं्
कोमल-्तीन्प्रकार्का्होता्है ्।्ये्चतस्
ु तल्संज्ञक्गोपरु ्ग्रामो्एवं्राजभवन्के्सलये्उपयक्
ु त्
होते्है ्॥११५-११६॥
सामान्यविथध
सामाधय्ननयम्-्सप्ततल्आदद्तीन्गोपुरों्में ्तीन्असलधद्र, दो्एवं्एक्असलधद्र्होते्है ्।्शेष्मे्
सभवत्त्का्प्रयोग्करना्चादहये्।्इस्प्रकार्प्रत्येक्के्तीन्भेद्होते्है ्एवं्उनका्अलंकरर््इस्
प्रकार्करना्चादहये, न्जससे्कक्वे्सुधदर्एवं्दृढ्रहे ्।्स्तम्भ्एवं्प्रस्तर्की्चौड़ाई्एवं्लम्बाई्
पूवव
ण र्र्णत्रीनत्से्रखनी्चादहये्।
ऊपरी्तल्एवं्ननचले्तल्के्मध्य्के्स्थान्(या्संरचना)्को्'प्रनत' कहते्है ्।्गभणधयास्
प्रवेशद्वार्के्दादहनी्ओर्सभवत्त्के्नीचे्होना्चादहये्॥११९॥
ब्राह्मर््आदद्चारो्वर्ो्के्ननवास्के्सलये्मय्ने्एक्से्लेकर्सात्तल्तक्गोपुरो्का्वर्णन्
om
ककया्है , न्जनके्इक्कीस्भेद्बनते्है ्।्इनमें ्से्ब्राह्मर््आदद्को्उपयुक्त्गोपुर्का्चयन्करना्
चादहये्।्प्रारन्म्भक्तीन्भेद्सभी्वर्ो्के्अनुकूल्होते्है ; ववशेष्रूप्से्उन्लोगो्के्सलये, जो्
मनुष्यो्मे्समद्
ृ धिशासल्है ्।्दस
ू रे ्ग्राम, अग्रहार, पुर, पत्तन्के्सलये्एवं्सभी्राजभवन्एवं्दे वालयो्
के्सलये्प्रशस्त्होते्है ्॥१२०-१२१॥
s.c
मयमतम्-्अध्याय्३१
ok
यानियनभेद
यान्एवं्शयन्के्भेद्-्अब्मै्(मय)्यानो्(वाहनो)्एवं्शयनो्के्लक्षर््को्क्रमशः्कहता्हूूँ्।्
सशबबका्(पालकी)्एवं्रथ्यान्है ्तथा्पयणङ्क्(पलंग)्आदद्शयन्है ्।्शयन्के्अधतगणत्उधही्
Bo
से्उत्पधन्(उधही्की्शैली्मे्ननसमणत)्पीठ्आदद्आसन्आते्है ्॥१॥
मित्रबकाभेद
सशबबका्के्भेद्-्मेरे्(मय्के)्अनुसार्पीठा, सशखरा्और्मौण्डी्-्ये्तीन्प्रकार्की्सशबबकायें्
होती्है ्।्इनकी्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्समान्होती्है्।्इनमे्भेद्सभवत्त्(पाश्वण्का्ककनारा), सशखर्
44
om
करना्चादहये्।्इनका्ववस्तार्ढ़ाई, दो्या्डेढ़्अंगुल्होना्चादहये्।्कम्पकों्के्ऊपर्एवं्नीचे्
एक्अंगुल्मोिा्फलक्होता्है ्एवं्इनकी्ऊूँचाई्(हस्त्एवं्ईवषका्के्मध्य)्छठे ्भाग्के्बराबर्
होती्है ्।्मध्य्कम्प्को्छोड़कर्(फलक्की्ऊूँचाई)्आवश्यकतानुसार्रखनी्चादहये्।्मध्य्
सभवत्त्पर्मध्य्भाग्के्दो्भाग्मे्नर, नारी, चक्रवाक, लता, चार्पैर्वाले्पशु, नािक्आदद्के्
s.c
दृश्यों्से्अलंकरर््होने्चादहये्।्हस्त्एवं्अधिक्(सम्भवतः्ईवषका)्के्मध्य्मे्अग्रभाग्मे्
व्यालस्थान्होता्है ्।्ननगणमन्के्साथ्मुन्ष्िबधि-माप्चौड़ाई्का्दग
ु ुना्होता्है ्(इधहे ्हस्त्एवं्
ईवषका्के्मध्य्में ्स्थावपत्ककया्जाता्है )्।्उसके्नीचे्अंनि्(स्तम्भ, पाद)्होता्है , न्जसकी्
ऊूँचाई्अिोभाग्(व्याल्के्नीचे्भाग)्के्बराबर्होती्है ्।्उससे्सम्बद्ि्ननगणम्उसके्बराबर्
ok
माप्का्या्चौड़ाई्के्आिे्माप्का्होता्है ्एवं्नक्रमुख्(मकराकृनत)्से्सुसन्ज्जत्होते्है ्।्
स्तम्भ्का्व्यास्पाूँच, सात्या्नौ्भाग्चौड़ा्तथा्नौ, दस्या्ग्यारह्भाग्लम्बा्होता्है ्।्इन्
पादों्की्चौड़ाई्एवं्मोिाई्कम्प्की्चौड़ाई्एवं्मोिाई्के्अनुरूप्होती्है ्॥१२-१८॥
बड़े्काष्ठखण्ड्(चौखि, फ्रेम)्के्अग्र्भाग्एवं्मल
ू ्भाग्(ऊपरी्एवं्ननचले्ससरे )्पर्दृढ्एवं्
Bo
आवश्यकतानस
ु ार्सशखा्(खि
ूँू ी्जैसी्आकृनत)्ननसमणत्करनी्चादहये, न्जससे्कक्वह्काष्ठ्(फ्रेम्के्
दस
ू रे ्फलक्में )्सरलता्से्स्थावपत्ककया्जा्सके्(दस
ू रे ्फलक्मे्सशखा्के्अनस
ु ार्गड्ढा्
ननसमणत्होता्है , न्जसमे्सशखा्दृढ़ता्से्स्थावपत्की्जाती्है )्इसमें ्पाूँच्या्चार्अंगल
ु ्का्
ननगणम्होता्है , न्जस्पर्पद्म, पद्म्का्अग्रहस्त्एवं्कोने्पर्उसी्के्माप्का्कमल्या्चौकोर्
44
आकृनत्ननसमणत्होती्है ्॥१९-२०॥
छोिे -छोिे ्खण्डो्के्ऊपर्ववस्तत
ृ ्कम्प्या्फलक्होना्चादहये, न्जसकी्ऊूँचाई्एक्भाग्के्बराबर्
होनी्चादहये्।्यह्शोभा्के्सलये्या्आवश्यकतानुसार्होता्है ्।्वही्छोिे -छोिे ्स्तम्भ्एवं्
गुसलकाये्(गोसलयाूँ)्शोभाथण्ननसमणत्होती्है ्।्अथवा्सामने्पाूँच्या्तीन्भाग्के्बराबर्द्वार्
होना्चादहये, न्जसका्ववस्तार्तीन्या्चार्अंगुल्एवं्ऊूँचाई्सात्या्आठ्अंगुल्होनी्चादहये्।्
स्तम्भ, कुम्भ, अवलग्न्(स्कधि)्तथा्हीरक्(आकृनतववशेष)्से्युक्त्और्सुधदर्गोल्होना्चादहये्
।्बुद्धिमन्व्यन्क्त्को्द्वार्के्गुलफ्को्दृढ़तापूवक
ण ्कील्से्जड़्दे ना्चादहये्।्इस्प्रकार्
ववसभधन्प्रकार्से्अलंकृत्सशबबका्को्'पैदठका' कहा्गया्है ्॥२१-२४॥
सशबबकाओं्के्अधय्प्रकार्-्(शेखरी)्सशबबका्की्ऊूँचाई्उसकी्चौड़ाई्के्बराबर्एवं्सभवत्त्चौड़ाई्
की्आिी्या्तीन्भाग्के्बराबर्होती्है ्।्स्तम्भों्से्युक्त्एवं्सशखर्से्युक्त्सशबबका्को्
'शेखरी' कहा्गया्है ्।्'मौण्डी' सशबबका्मण्
ु ड्के्आकार्की्होती्है ्एवं्सभवत्तयाूँ्'शेखरी' के्समान्
होती्है ्।्इसकी्चौड़ाई्के्समान्ऊूँचाई्होती्है ्।्यह्मण्डप्के्समान्होता्है ्एवं्कहा्जाता्
है ्॥२५-२६॥
इन्सशबबकाओं्का्प्रमार््स्तम्भ्के्मध्य्से्सलया्जाता्है ्।्यान्एवं्शयन्के्ननमाणर््के्
सलये्प्राचीन्मनीवषयों्के्अनुसार्प्रशस्त्वक्ष
ृ ्शाक्(सागौन), काल, नतसमश, पनस्(किहल), ननम्ब,
अजुन
ण ्एवं्मिक
ू ्(महुआ)्के्होते्है ्।्श्रीयुक्त्मनुष्य्जब्यान्पर्सवार्होता्है ्तब्उसकी्
प्रसधनता्असभव्यक्त्होती्है ्।्इस्प्रकार्के्लक्षर्ों्से्युक्त्सशबबका्उस्व्यन्क्त्को्सफलता्
एवं्समद्
ृ धि्प्रदान्करती्है ्॥२७-२८॥
मित्रबका-ननमााण्का्अध्याय्समातत्हुआ
रथः
om
रथ्-्रथ्का्ववस्तार्दोनो्चक्रों्के्बाहरी्भाग्से्ग्रहर््ककया्जाता्है ्।्यह्छः, सात्या्आठ्
बबत्ता्होता्है ्।्यह्माप्चक्रों्की्दोनों्नासभयों्के्अन्धतम्भाग्से्या्अक्ष्(िरु ी)्के्ऊपर्
रक्खे्उत्तर्(पट्िी)्की्लम्बाई्से्अथवा्रथ्के्बाह्य्भाग्की्चौड़ाई्के्अनुसार्रक्खी्जाती्है ्
।्इसकी्लम्बाई्चौड़ाई्से्डेढ़्गुनी्अधिक्होती्है ्॥२९॥
s.c
रथ्में ्पाूँच्भार्(लम्बी्पट्दियाूँ)्होती्है , न्जनकी्मोिाई्एवं्ऊूँचाई्चार, तीन्या्दो्अंगुल्होती्
है ्।्अथवा्उनकी्संख्या्तीन, सात्या्नौ्होती्है ्तथा्उनका्ववस्तार्एवं्ऊूँचाई्पूवव
ण र्र्णत्
रक्खा्जाता्है ्।्उधहे ्लम्बाई्के्अनुसार्रक्खा्जाता्है ्एवं्उपयुक्त्नतयणक््कम्पो्से्दृढ़्ककया्
जाता्है ्॥३०-३१॥
ok
मध्य्भार्के्ऊपर्तुला्होती्है ्।्इसके्जोड़्से्प्रारम्भ्कर्कूपर्(रथ्का्दण्ड)्होता्है ्।्इस्
कूपर्का्माप्रथ्के्सामने्के्भाग्से्सलया्जाता्है , न्जसका्माप्तीन्हाथ्से्प्रारम्भ्होता्है ्
एवं्उसका्अग्र्भाग्(छोर)्मुड़ा्होता्है ्।्इस्कूपर्को्मध्यभार्कहा्जाता्है ्।्यह्युग्
(जआ
ु )्को्सहारा्प्रदान्करता्है ्।्इसके्ऊपर्एक्अंगल
ु ्मोिा्फलक्प्रस्तर्(पट्िी)्होता्है ्
Bo
॥३२-३३॥
अक्ष, अक्षोत्तर, चक्रपट्ि्एवं्भारोपिानक्(का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है )्।्भारोपिानक्(लम्बी्पट्िी्
का्सहारा)्की्ऊूँचाई्पाूँच, छः्या्सात्अंगल
ु ; मोिाई्दे ्या्तीन्अंगल
ु ्एवं्लम्बाई्अट्ठारह्
अंगल
ु ्होती्है ्।्ये्पाश्वण्में ्लगे्होते्है ्।्इनकी्आकृनत्पोनतका्के्समान्होती्है ्एवं्लोहे ्की्
44
पट्िी्से्ये्दृढ़तापव
ू क
ण ्जड़ी्होती्है ्॥३४-३५॥
अक्ष्के्ऊपर्उत्तर्(क्रास्बीम)्के्मध्य्में ्एक्नछद्र्होता्है , न्जसकी्चौड़ाई्एवं्गहराई्बराबर्
होती्है ्।्इसे्अक्ष्की्रक्षा्के्सलये्ननचले्भाग्में ्दोनो्पाश्वो्से्दृढतापूवक
ण ्कसा्जाता्है ्।्
इसकी्मोिाई्चौड़ई्की्आिी्होती्है , जो्कक्उपिान्के्बराबर्होती्है ्।्इसकी्लम्बाई्अक्ष्के्
बराबर्होती्है ्।्यदद्यह्(उत्तर)्काष्ठननसमणत्हो्तो्चौकोर्होता्है ्एवं्लोहे ्की्पट्िी, कील्एवं्
उसी्काष्ठ्की्सशखा्(नुकीली्लकड़ी)्द्वारा्दृढ्ककया्जाता्है ्।्अक्ष्के्ऊपरी्भाग्में ्उत्तर्को्
काष्ठ्के्कील्से्दृढतापूवक
ण ्कसा्जाता्है ्॥३६-३८॥
चक्र्का्ववस्तार्अक्ष्के्उत्तर्के्बराबर्कहा्गया्है ्।्नासभ्की्ऊूँचाई्(घेरा)्दस्अंगुल्एवं्
लम्बाई-्चौड़ाई्एक्ववतन्स्त्(बबत्ता)्होनी्चादहये्।्पट्ि्एवं्नासभ्के्बीच्में ्बत्तीस, चौबीस्या्
सोलह्अथवा्आवश्यकता्के्अनुसार्संख्या्में ्अरें ्(नतसलयाूँ)्होती्है ्।्ये्छोर्पर्तीन्अंगुल्
चौड़ी्होती्है ्अथवा्मल
ू ्भाग्में ्सूँकरी्डेढ़्अंगल
ु ्माप्की्होती्है ्।्ये्यव्के्आकार्की्एवं्
मल
ू ्तथा्अग्र्भाग्(दोनो्छोर)्पर्सशका्(नोक)्से्यक्
ु त्होती्है ्।्जब्पदहया्रोहारोह्(ऊपर-
नीचे)्होता्है , उस्समय्अक्ष्का्मध्य्भाग्आूँख्के्सदृश्प्रतीत्होता्है्॥३९-४१॥
भार्(लम्बी्पट्िी)्को्लोहे ्के्पट्ि, कील्एवं्पट्िबधि्आदद्से्जो्जहाूँ्उधचत्हो, कसना्
चादहये्।्लोहपट्िी्की्लम्बाई्उसकी्चौड़ाई्से्दग
ु ुनी्होनी्चादहये्।्उपपीठ्एवं्गोपनीय्भाग्
को्यथास्थान्स्थावपत्करना्चादहये्॥४२-४३॥
स्तम्भों्की्ऊूँचाई्चक्र्के्आिे्भाग्के्बराबर्होती्है ्।्यह्आिे्भाग्में ्हस्त्(हत्था, रे सलंग)्
को्सहारा्दे ता्है ्।्चसू लका्(ऊध्वणभाग्की्संरचना)्की्ऊूँचाई्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्की्आिी्होती्
है ्।्पट्दिकाओं्के्मध्य्भाग्मे्आगे, दोनो्पाश्वो्में ्एवं्तलभाग्में ्गुसलकायें्(गोली्
आकृनतयाूँ)्होती्है ्।्पष्ृ ठ्भाग्पाूँच्अंगुल्ऊूँची्मुखपट्दिका्से्नघरा्होता्है ्।्कोने्के्स्तम्भों्
om
के्मध्य्भाग्में ्उत्तर्पर्मुकुल्(कमल-कसलका)्अंककत्होते्है ्॥४५॥
भार, भारोपिान, अक्ष, अक्षोत्तर, कूबर्(कूपर)्एवं्कूबर्के्छोर्को्लोहपट्िो्एवं्कीलों्से्इस्प्रकार्
जोड़ना्चादहये, न्जससे्कक्वे्सही्स्थान्पर्ठीक्से्जुड़्े ।्अक्ष्एवं्अक्षोत्तर्के्मध्य्में ्लकड़ी्
की्कील्का्प्रयोग्करना्चादहये्॥४६-४७॥
s.c
रथ्पर्आरोहर््सवणराज्पर्अधिकार्प्राप्त्करने्के्समय्(साम्राज्य्का्अधिपनत्बनने्के्
समय), राज-युद्ि्के्समय, महोत्सव्के्समय, मंगलवेला्में , दे वपूजा्तथा्सोमयाग्के्समय्तथा्
न्जन्कायो्मे्कहा्गया्हो, उस्समय्करना्चादहये्॥४८-४९॥
चक्र्का्माप्(पररधि)्वास्(गभणगह
ृ , रथ्में ्बैठने्का्स्थान)्की्चौड़ाई्का्दग
ु ुना्या्तीन्गुना्
ok
होता्है ्।्अथवा्इसका्माप्सात्ताल्एवं्ववस्तार्तीन्या्चार्अंगुल्होना्चादहये्।्(रथ्के)्
स्तम्भ्के्माप्के्अनुसार्उत्तर्आदद्का्ननमाणर््पुवव
ण र्र्णत्ववधि्से्करना्चादहये्।्हार्(फ्रेम,
चौखि)्के्ऊपर्अधतराल्में ्चौसठ्छोिे ्स्तम्भ्होते्है ्और्स्तम्भ्से्यक्
ु त्होते्है ्।्स्तम्भोम्
का्उदय्छः, साढ़े ्पाूँच्या्पाूँच्ताल्का्होता्है ्।्यह्एक, दो्या्तीन्तलों्से्यक्
ु त्एवं्एक्
Bo
या्चार्मख
ु ्(प्रवेश)्से्यक्
ु त्होता्है ्।्इसका्आकार्मण्डप्के्समान्एवं्सशरोभाग्शाला्के्
समान्(सीिा)्होता्है ्॥५०-५३॥
(अथवा)्चक्र्का्माप्तीन, चार, पाूँच, छःया्सात्हाथ्एवं्मोिाई्उसका्चार, पाूँच, छः्सात्या्
आठवाूँ्भाग्होता्है ्।्अक्ष्(िरु ी), अक्षोत्तर्(िरु ी्की्पट्िी)्तथा्भारोपिान्(लम्बी्सहारा्दे ने्
44
वाली्बीम)्की्चौड़ाई्एवं्मोिाई्आवश्यकतानस
ु ार्होनी्चादहये्एवं्काष्ठकीलों्से्दृढ्ककया्
जाना्चादहये्।्यह्एक, दो्या्तीन्तल्से्यक्
ु त्एवं्प्रासाद्(दे वालय)्के्समान्अलंकृत्होना्
चादहये्॥५४-५५॥
(अथवा)्सोलह्स्तम्भों्से्युक्त, सभी्ददशाओं्में ्मुखभद्र्से्युक्त, सभी्प्रकार्के्अलंकरर्ो्से्
युक्त्रं ग्(रङ्गमञ्च्की्आकृनत)्को्रथ्में ्दृढ़तापूवक
ण ्जोड़ना्चादहये्।्इस्प्रकार्ववद्वानों्के्
अनुसार्सशलप-ववशेषज्ञ्की्इच्छानुसार्रथ्में ्(आकृनत्आदद्का)्संयोजन्करना्चादहये्॥५६-
५७॥
लेर्खत्(धचरर्)्में ्पादक
ु ्(न्प्लधथ), (दस
ू रा)्जोड़े्सदहत्पद्म, (तीसरा)्मुनतणयों्सदहत्स्तम्भ,
(चौथा)्तुयक
ण ्आदद्से्युक्त्पट्िी, पाूँचवाूँ्बोधि्एवं्छठवा्कमलकसलका्होती्है ्॥५८॥
दो, तीन, चार, एक्एवं्नौ्वगों्से्ववप्रभाग्की्गर्ना्की्जाती्है ्।्पद्म, सहकर्ण्के्साथ्पट्िी्
एवं्व्याल्तथा्नक्र्से्सश
ु ोसभत्प्रस्तर्का्ननमाणर््होना्चादहये्।्दो्भाग्से्पद्म, जगती, प्रवेश्
का्आिार्एवं्कुमद
ु ्एक-एक्भाग्से्ननसमणत्होना्चादहये्॥५९-६०॥
यदद्सोलह्भाग्हो्तो्तीन्भाग्से्पट्िी, एक्भाग्से्वेदी, एक्भाग्से्िरातल्(आिार), पाूँच्
भाग्से्पद्म, दो्भाग्से्वेददका, एक्भाग्से्वेदी, एक्भाग्से्गल, एक्भाग्से्प्रस्तर्एवं्(शेष्
से)्मुनन, दे व, नाट्य्दृश्य्एवं्उपिान्आदद्ननसमणत्होने्चादहये्॥६१॥
मयमतम्-्अध्याय्३२
om
ियन
शयन्-्(सबसे्छोिे )्शयन्की्चौड़ाई्तीन्बबत्ता्एवं्लम्बाई्पाूँच्बबत्ता्होती्है ्।्ज्येष्ठ्(उससे्
बडे्शयन)्की्चौड़ाई्तीन्अंगुल्एवं्लम्बाई्पाूँच्अंगुल्अधिक्होती्है ्।्ईवषका्(पट्िी, दण्ड)्की्
चौड़ाई्चार्अंगुल्या्पाूँच्अंगुल्होती्है ्।्इसकी्मोिाईचौड़ाई्की्आिी्होती्है ्।्मध्य्पट्ि्
s.c
व्यास्के्तीसरे ्भाग्के्बरबर्होता्है ्।्(अथवा)्ईवषका्की्मोिाई्उसकी्चौड़ाई्के्तीसरे ्या्
चौथे्भाग्के्बराबर्होती्है ्॥१-२॥
(शयन्के)्शीषण्भाग्एवं्पष्ृ ठ्(पैर्की्ओर्दो्लम्बी्पट्दियाूँ्)्या्तो्अधत्तक्होती्है ्या्
ok
कोने्पर्समाप्त्हो्जाती्है ्।्पाश्वण्की्पट्दियाूँ्शीषण्भाग्से्पष्ृ ठ्भाग्तक्लम्बी्होती्है ्।्
इनके्मध्य्भाग्में ्सशखा्लगी्होती्है , न्जससे्के्ये्दृढ़्रहे ्।्बड़ी्पट्दियोम्की्लम्बाई्इस्
प्रकार्रखनी्चादहये, न्जससे्कक्ये्(शयन्के)्पाये्में ्दृढ़तापुवक
ण ्स्थावपत्की्जा्सके्॥३-४॥
शयन्के्पाद्(पाये)्की्लम्बाई्डेढ़्या्एक्बबत्ता्या्उससे्कम्होनी्चादहये्।्इनकी्चौड़ाई्
Bo
पयणङ्क, दीवान्-्पयंक्का्ननमाणर््फलक्से्या्ववसभधन्प्रकार्की्पट्दियों्से्ककया्जाना्चादहये्
।्पाद्एवं्पट्दियों्से्युक्त्पयंक्की्लम्बाई, चौड़ाई्एवं्ऊूँचाई्शयन्के्बराबर्होनी्चादहये्।्
'पयंकसशबबका' (पयंक्का्प्रकार)्के्ऊध्वण्भाग्में ्तोरर््होता्है , न्जस्पर्कुण्डल, कील्एवं्बक्
(बगुले)्की्चोंच्के्आकार्की्कील्(आदद्अलंकरर्)्ननसमणत्होते्है ्।्यह्राजा-राननयों, ब्राह्मर्ों्
आदद्के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्॥७-८॥
यदद्पयंक्का्ससर्पव
ू ्ण की्ओर्हो्तो्लेिने्वाले्का्मख
ु ्दक्षक्षर््की्ओर्होना्चादहये्।्दक्षक्षर््
की्ओर्ससर्होने्पर्मख
ु ्पन्श्चम्की्ओर्होना्चादहये्।्अधय्ददशायें्इष्ि्नही्होती्है ्।्
व्यािपाद्शयन्एवं्मग
ृ पाद्शयन्ब्राह्मर््एवं्राजाओं्के्सलये्प्रशस्त्होते्है ्।्शेष्अधय्वर्ण्
के्सलये्अनक
ु ू ल्होते्है ्॥९॥
आसन
आसन्-्सीिे्पाद्वाले्उत्तम, मध्यम्एवं्छोिे ्आसन्को्शयन्के्समान्ननसमणत्करना्चादहये्।्
इनकी्चौड़ाई्उधतीस, सत्ताईस्या्पच्चीस्अंगल
ु ्तथा्ऊूँचाई्चौड़ाई्के्बराबर्होती्है ्।्समान्
लम्बाई-चौड़ाई्वाले्आसन्को्'पीठ' और्आयताकार्को्'आसन' कहते्है ्।्इसकी्लम्बाई-चौड़ाई्से्
आठवाूँ्भाग्अधिक्या्दग
ु ुनी्होती्है ्।्दे वों, ब्राह्मर्ो्एवं्राजाओम्के्आसन्(के्पाद्का्
आकार)्ससंह, गज, भूत्(प्रार्ी, जीव)्या्वष
ृ ्के्समान्होता्है ्।्ससंह्एवं्गज्के्समान्(पाद्से्
युक्त)्आसन्की्संज्ञा्उनकी्आकृनत्के्अनुसार्होती्है ्॥१०-१२॥
मसंहासन
ससंहासन्-्अब्(मै, मय)्दे वों्एवं्राजाओ्के्(ससंहासन्का)्वर्णन्करता्हूूँ, जो्उत्तर, कमल, कपोत,
मसलङ्ग्आदद्से्युक्त्एवं्ववसभधन्प्रकार्के्रं ग-बबरं गे्अलंकरर्ों्से्युक्त्होता्है ्।्यह्उपपीठ्
एव्पद्मबधि्से्युक्त्होता्है ्।्यह्कोनों्एवं्बीच-बीच्में ्स्तम्भससंह्से्अलंकृत्होता्है ्॥१३-
om
१४॥
ससंहासन्इसके्ऊपर्होता्है ्।्यह्तोरर्युक्त, लहरों्(की्आक्रुनतयों)्से्सुसन्ज्जत, सुवर्ण्एवं्
रत्नोंसे्अलंकृत्होता्है ्।्इसके्सभी्अंग्दृढ्होते्है , ऐसा्मुननयों्ने्कहा्है ्।्इसके्आसन-
फलक्की्चौड़ाई्ससंहासन्के्बराबर्एवं्लम्बाई्चौड़ाई्की्दग
ु ुने्होती्है ्।्उसके्पाद्(पाये)्पाूँच्
s.c
अंगुल्से्अधिक्नही्होने्चादहये्।्ऊूँचाई्के्सलये्ऊपर्वाजन्होता्है ्॥१५-१६॥
इसके्वपछले्भाग्में ्अिण-उत्तर्होता्है ्तथा्उसके्मध्य्भाग्में ्उसकी्चौड़ाई्के्बराबर्'खात'
होता्है ्।्मध्य्भाग्में ्एक्ववष्िर्(कुशन)्होता्है , न्जसकी्चौड़ाई्पाूँच्भाग्एवं्लम्बाई्एक्
भाग्(अधिक)्होती्है ्।्आसन्का्वपछला्भाग्उधचत्माप्का्होना्चादहये्।्ऐसा्न्होने्पर्
ok
आसन्प्रशस्त्नही्होता्है ्।्आसन्एवं्शयन्की्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्उत्तम्होनी्चादहये्एवं्
इच्छानुसार्होनी्चादहये्।्एवं्इच्छानुसार्होनी्चादहये्।्इसकी्लम्बाई-चौड़ाई्(आसन्के्अनुसार)्
बढ़ाई-घिाई्जाती्है ्॥१७-१९॥
पूजापीठ
Bo
पज
ू ापीठ्-्पज
ू ा्पीठ्की्चौड़ाई्छः्अंगल
ु ्से्प्रारम्भ्होकर्दो-दो्अंगल
ु ्बढ़ाते्हुये्एक्हाथ्पयणधत्
दस्प्रकार्की्होती्है ्।्कुछ्ववद्वानों्के्मतानस
ु ार्इसकी्चौड़ाई्चार्अंगल
ु ्होती्है ्।्यह्
चौकोर, आयताकार्या्गोल्होता्है ्।्इसकी्ऊूँचाई्चौड़ाई्की्आिी, छठे ्या्आठवे्भाग्के्बराबर्
होती्है ्।्इसकी्ऊूँचाई्चौड़ाई्की्आिी, छठे ्या्आठवे्भाग्के्बराबर्होती्है ्।्यह्ससंह्पाद,
44
कम्प्एवं्वाजन्से्यक्
ु त्होत्है ्॥२०-२१॥
उसके्ऊपरी्भाग्में ्कर्र्णका्से्सश
ु ोसभत्सध
ु दर्पद्मपष्ु प्की्पंखड़ु डयाूँ्होती्है ।्इसे्'शोभन' कहते्
है ' क्योंकक्यह्सभी्दे वों्से्पून्जत्होता्है ्।्ववसभधन्धचरों्(वर्ों)्से्अलंकृत्इस्पीठ्को्पूजा-
पीठ्कहते्है , जो्गहृ ्की्पूजा्के्सलये्होता्है ्।्इसे्धयग्रोि, उदम्
ु बर, वि, वपप्पल, बबलव्या्
आमलक्के्काष्ठ्से्ननसमणत्करते्है ्।्इन्काष्ठों्से्ननसमणत्पीठ्सभी्कायो्के्योग्य्होते्है ्
एवं्ससद्धि्प्रदान्करते्है ्।्॥२२-२३॥
आयादद
आयादद्-्आय्को्आठ्से्गुर्ा्कर्एवं्बारह्से्भाग्दे कर्प्राप्त्ककया्जाता्है ्।्व्यय्नौ्से्
गुर्ा्कर्एवं्दस्से्भाग्दे कर्प्राप्त्ककया्जाता्है ्।्गुह्य्को्तीन्से्गुर्ा्कर्एवं्आठ्से्
भाग्दे कर्प्राप्त्ककया्जाता्है ्।्उड््व्एवं्वाय्ु को्आथ्से्गुर्ा्अक्र्एवं्सत्ताईस्से्भाग्दे कर्
तथा्अंश्को्चार्से्गुर्ा्कर्एवं्नौ्से्भाग्दे कर्प्राप्त्ककया्जाता्है ्।्वार्का्ज्ञान्नौ्से्
गर्
ु ा्कर्एवं्सात्से्भाग्दे कर्प्राप्त्होता्है ्।्यान, शयन, रथ्एवं्आसन्आदद्का्ननमाणर््इस्
प्रकार्होता्है ्॥२४॥
मयमतम्-्अध्याय्३३
ननष्कलाददमलङ्गभेद
ननष्कल्आदद्सलङ्ग्के्भेद्-्सलङ्ग्(दे व-प्रतीक)्के्ननष्कल, सकल्एवं्समश्र-्ये्तीन्भेद्होते्है ्
om
।्ननष्कल्(प्रतीक)्को्सलङ्ग्एवं्सकल्(आकृनतयक्
ु त)्को्बेर्(प्रनतमा)्कहते्है ्।्मख
ु सलङ्ग्इन्
दोनो्का्समधश्रत्स्वरूप्होता्है ्।्इसकी्ऊूँचाई्एवं्आकृनत्सलङ्ग्के्समान्होती्है ्॥१॥
बबम्बमूनतण्(प्रनतमा)्(मानव)्शरीर्के्समान्तथा्ववश्वमूनतणस्वरूप्(मूनतण्के्सामाधय्लक्षर््एवं्
मानक)्होती्है ्।्यह्दे वता्के्धचह्न, शरीर, प्रनतछधद, प्रनतमा्के्प्रतीकों्तथा्नाम्से्होती्है ्।्
इस्प्रकार्दृश्य्दे व्(दे वता्की्प्रनतमा)्का्वर्णन्ककया्गया्।्अब्ननष्कल्(प्रतीक, सलङ्गादद)्का्
s.c
वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥२-३॥
मिलालक्षण
ब्राह्मर््आदद्(ब्राह्मर्, क्षबरय, वैश्य, शूद्र)्के्सलये्अनुकूल्सशला्(प्रनतमा्ननमाणर््हे तु्क्रमशः)्श्वेत,
ok
लाल, पीली्एवं्काली्होती्है ्।्सशला्को्एक्रं ग्की, ठोस, स्पशण्में ्कोमल्एवं्भूसम्के्भीतर्
अच्छी्तरह्गड़ी्होनी्चादहये्।्इसकी्उधचत्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्होनी्चादहये्।्यह्दे खने्में ्
सुधदर्एवं्युगा्(बहुत्पुरानी्न्हो)्होनी्चादहये्॥४॥ववद्वानों्ने्इन्सशलाओं्को्गदहणत्कहा्है ्-्
वायु, िप
ू ्एवं्अन्ग्न्से्क्षनतग्रस्त, अत्याधिक्मद
ृ ्ु (जलदी्िूिने्वाली)्खारे ्जल्के्सम्पकण्वाली,
Bo
om
व्यन्क्त्को्उसका्प्रयत्नपूवक
ण ्त्याग्करना्चादहये्॥१६॥
(भूसम्से्बाहर्ननकालते्समय)्सशला्का्मुख्नीचे्की्ओर्एवं्सशर्ऊपर्होता्है ्।्सशला्का्
मूल्भाग्दक्षक्षर््ददशा्या्पन्श्चम्ददशा्एवं्अग्र्भाग्उत्तर्या्पूव्ण की्ओर्होता्है ्।्(भूसम्में )्
जब्सशला्न्स्थत्(खड़ी)्हो्तो्अग्र्भाग्ऊपर्एवं्मूल्भाग्नीचे्होता्है ्।्(दक्षक्षर्-पन्श्चम्एवं्
s.c
उत्तर-पूव्ण मे्लेिी्न्स्थनत्मे)्नैऋत्य्कोर््में ्अग्र्भाग्एवं्ईशान्में ्(मूल)्तथा्(उत्तर-पन्श्चम्एवं्
दक्षक्षर्-पूव्ण मे्लेिी्न्स्थनत्की्सशला्का्)्अग्र्भाग्आग्नेय्कोर््में ्तथा्(मूल्भाग)्वायव्य्
कोर््में ्होता्है ्॥१७-१८॥
मिलासंग्रहन
ok
सशला-संग्रह्-्(सूय्ण के)्उत्तरायर््मास्मे, शुक्ल्पक्ष्मे, शुभ्उदय्काल्में , शुभ्पक्ष, नक्षर्एवं्
करर््से्युक्त्मुहूत्ण में ्सलंग-ननमाणर््(हे तु्प्रस्तर्लेने्के्सलये)्वन, उपवन, पवणत्अथवा्शुद्ि्
स्थान्पर्जाना्चादहये, जहाूँ्भूसम्में ्प्रस्तर्प्राप्त्होता्हो्।्यह्क्षेर्ववशेष्रूप्से्पूव,ण उत्तर्या्
ईशान्ददशा्में ्होना्चादहये्।्॥१९-२०-२१॥
Bo
स्थापक, स्थपनत्एवं्कताण्तीनों्को्मंगल्कृत्य्करने्के्पश्चात्शभ
ु ्शकुनो्एवं्मंगलध्वनन्के्
साथ्(प्रस्थान्करना्चादहये), स्थापक्एवं्स्थपनत्श्वेत्को्वस्र्िारर््कर, श्वेत्सग
ु धि्एवं्लेप्
िारर््कर्तथा्श्वेत्वस्र्का्उत्तरीय्(ऊपर्ओढने्का्चादर)्ओढकर, ससर्पर्श्वेत्पष्ु प्िारर््
कर्एवं्पाूँच्अंगो्में ्आभष
ू र््िारर््कर्(सशला्प्राप्त्करनी्चादहये्)्॥२२-२३॥
44
गधि, पष्ु प, िप
ू , मांस, रक्त, दि
ु , भात, मछली्एवं्ववववि्प्रकार्के्भोज्य्पदाथों्से्अभीष्ि्वक्ष
ृ ों,
प्रस्तरो्तथा्वनदे वता्की्पज
ू ा्करनी्चादहये्।्भत
ू ो्एवं्क्रूर्दे वो्को्बसल्प्रदान्कर्कायण्के्
अनुकूल्श्रेष्ठ्सशला्का्चयन्करना्चादहये्।्श्रेष्ठ्स्थपनत्उधचत्वेष्िारर््कर्पूवाणसभमुख्
होकर्मधर-पाठ्करे ्॥२४-२६॥
अयं्मन्त्र-
मधर्इस्प्रकार्है ्-्भूत्एवं्गुह्यको्के्साथ्दे वगर््तथा्क्रूर्वनदे वता्यहाूँ्से्दरू ्चले्जायूँ्।्
आप्सबको्बसल्प्राप्त्हो्।्मै्इस्कायण्को्करूूँगा्।्आप्ननवासस्थान्बदल्दे ्॥२७॥
इस्प्रकार्कहने्के्पश्चात्प्रर्ाम्कर्सशला-छे दन्प्रारम्भ्करे ्।्उसी्समय्स्थापक्उसके्
(सशला)्के्उत्तर्ददशा्में ्ननयमपूवक
ण ्हवन्करे ्।्तत्पश्चात्सोने्की्सूई्एवं्अष्ठील्(गोल्पत्थर)्
से्पहले्शोिन्करना्चादहये्।्(अथाणत्सशला्पर्ननशान्बनाना्चादहये)्।्तदनधतर्तीक्ष्र््शस्र्
से्तथा्बड़े्पत्थर्से्उसपर्प्रहार्करना्चादहये्॥२८-२९॥
वान्ञ्चत्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्से्प्रयत्नपव
ू क
ण ्अधिक्सशला्(का्माप)्लेकर्उसे्चौकोर्बनाकर्उसके्
मुखभाग्का्ननर्णय्करना्चादहये्॥३०॥
इसे्शुद्ि्कर्एवं्गधि्आदद्से्ववधिपूवक
ण ्पूजा्करके्सलङ्ग, वपण्डका्(सलङ्ग्का्आिार)्या्
मूनतण्के्सलये्प्रस्तर्या्काष्ठ्को्वस्र्से्लपेि्कर्रथ्पर्साविानी्से्रखकर्सभी्मङ्गल्
(कृत्यों्एवं्पदाथो)्के्साथ्कमणमण्डप्(जहाूँ्ननमाणर््करना्हो)्में ्लाना्चादहये्।्वहाूँ्नछपे्रूप्से्
(सबकी्आूँखो्से्बचाकर्)्वर्र्णत्ववधि्से्भली-भाूँनत्कायण्करना्चादहये्॥३१-३३॥
यदद्ववद्वान्को्कही्गई्ववधि्से्(सशलादी)्न्प्राप्त्हो्तो्अधय्स्थान्से्सशलादद्ग्रहर््करना्
चादहये्।्उसके्उत्तर्ददशा्में ्पुवोक्त्ववधि्से्(हवन्आदद्करके)्वहाूँ्उत्खनन्कर, प्रशस्त्नक्षर्
om
एवं्मुहूत्ण मे्लाकर, ववधिपूवक
ण ्हवन्कर्एवं्जल्से्शुद्ि्करके्गधि्आदद्से्पूजन्कर्सभी्
प्रकार्की्मंगलध्वननयों्के्साथ्पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्(कमणमण्डप्तक)्लाना्चादहये्।्इससे्उधचत्
ददशा्न्होने्का्दोष्समाप्त्हो्जाता्है ्॥३४-३६॥
मलङ्गप्रमाण
s.c
सलङ्ग्का्स्थान्-्सलङ्ग्के्मान्से्ववमान्(दे वालय)्का्प्रमार््अथवा्दे वालय्के्प्रमार््से्
सलङ्ग्के्मान्का्ननिाणरर््करना्चादहये्।्ववद्वान्व्यन्क्त्को्गभण्के्मध्यसूर्से्वाम्भाग्मे्
कुछ्ईशान्कोर््का्आश्रय्लेते्हुये्पूजा्ककये्जाने्वाले्सलङ्ग्को्स्थावपत्करना्चादहये्॥३७॥
द्वार्की्चौड़ाई्के्इक्कीस्भाग्करने्चादहये्।्ब्रह्मा्के्भाग्में ्इसका्मध्य्भाग्होता्है ्।्
ok
मध्यम्भाग्के्छः्भाग्करने्चादहये्।्इसके्वाम्भाग्में ्दो्भाग्छोड़कर्उस्भाग्से्सूर्को्
पूव-ण उत्तर्की्ओर्ले्जाना्चादहये्।्इस्सूर्को्ब्रह्मसूर्कहते्है ्तथा्वह्सूर्सशव्के्मध्य्
भाग्को्ननददण ष्ि्करता्है ्॥३८-३९॥
नागरमलङ्ग
Bo
om
ववद्वानों्के्मतानुसार्एक्हाथ्से्प्रारम्भ्कर्तीन-तीन्अंगुल्बढ़ाना्चादहये्॥४९-५०॥
यदद्सलङ्ग्के्प्रमार््में ्ऊपर्ददये्मान्से्एक्अंगुल्कम्या्अधिक्हो्और्ऐसा्आयादद्की्
दृन्ष्ि्से्ककया्गया्हो्तो्वह्दोषपूर््ण नही्होता्है ्।्छोिे , मध्यम्एवं्बड़े्दे वालय्के्सलये्सलङ्ग्
के्नौ्मान्होते्है ्।्ये्पच्चीस्अंगुल्से्प्रारम्भ्होकर्आठ्या्सोलह्अंगुल्बढ़ाते्हुये्होते्है ्
॥५१-५३॥
्िाराददतो्मानानन
s.c
द्वार्आदद्के्अनुसार्प्रमार््-्श्रेष्ठ्सलङ्ग्की्ऊूँचाई्द्वार्की्ऊूँचाई्के्बराबर्तथा्कननष्ठ्
सलङ्ग्की्ऊूँचाई्उससे्तीन्भाग्कम्होती्है ्।्(अथवा)्श्रेष्ठ्सलङ्ग्की्ऊूँचाइ्स्तम्भ्की्ऊूँचाई्
ok
के्नौ्भाग्करने्पर्सात्भाग्के्बराबर्होती्है ्।्कननष्ठ्सलङ्ग्नौ्भाग्में ्से्पाूँच्भाग्के्
बराबर्होता्है ्।्उनके्(ज्येष्ठ्एवं्कननष्ठ्के)्मध्य्के्अधतर्को्आठ्भाग्बाूँिना्चादहये्।्
इससे्नौ्प्रकार्के्सलङ्गो्की्ऊूँचाई्बनती्है ्।्नागर्आदद्दे वालय्के्सलङ्गो्का्व्यास्
पव
ू व
ण र्र्णत्मान्के्अनस
ु ार्रखना्चादहये्॥५४-५५॥
Bo
कुछ्श्रेष्ठ्ऋवषयों्के्अनस
ु ार्कुम्भयोनन्के्बारे ्में ्कहा्गया्है ्कक्दे वालय्की्ऊूँचाई्अधिष्ठान्
से्सशखर, ग्रीवा्या्स्तवू पकापयणधत्मान्को्अंगल
ु -प्रमार््से्ववभान्जत्करना्चादहये्(एवं्उसके्
अनस
ु ार्सलङ्ग्का्मान्ननिाणररत्करना्चादहये)्।्एक्बार्ऊूँचाई्का्ननर्णय्कर्लेने्के्पश्चात्
उसमे्अंगल
ु ्की्वद्
ृ धि्या्हानन्नही्होनी्चादहये्॥५६-५७॥
44
आयादद
आयादद्-्ऊूँचाई्में ्आठ्का्गर्
ु ा्करना्चादहये्एवं्उसमें ्सत्ताईस्का्भाग्दे ना्चादहये्।्शेष्
एक्के्सत्ताईस्तक्नक्षर्का्ज्ञान्होता्है ्।्एक्से्अश्वयुज्नक्षर्होता्है ्।्ऊूँचाई्में ्चार्का्
गुर्ा्करना्चादहये्।्गुर्नफल्में ्नौ्का्भाग्दे ना्चादहये्।्शेष्से्तस्कर्आदद्'अंशक' प्राप्त्
होते्है ्।्इनमें ्(प्रथम्तस्कर)्अधय्भुन्क्त, शन्क्त, िन, राज, षण्ड, अभय, ववपत्एवं्समद्
ृ धि्-्ये्
नौ्क्रमशः्अंशक्होते्है ्।्इनमें ्तस्कर, ववपत्एवं्षण्ड्वास्तुववदों्द्वारा्ननधदनीय्है ्॥५८-६०॥
ऊूँचाई्को्आठ, नौ्एवं्तीन्से्गुर्ा्करे ्एवं्(प्राप्तांक)्में ्बारह, दस्एवं्आठ्से्(क्रमशः)्भाग्
दे ना्चादहए्।्शेष्से्िन, ऋर््एवं्योनन्का्ज्ञान्होता्है ्।्यदद्िन्अधिक्हो्एवं्ऋर््कम्हो्
तो्चयन्ककया्गया्प्रमार््सम्पवत्तकारक्होता्है ्।्योननयों्में ्ध्वज, ससंह, वष
ृ ्एव्गज्शुभ्होते्
है
॥६१-६२॥
ऊूँचाई्को्नौ्सो्गर्
ु ा्करना्चादहये्।्गर्
ु न-फल्में ्सात्से्भाग्दे ना्चादहये्।्शेष्से्सय
ू ्ण
आदद्सात्ददन्का्ज्ञान्होता्है ्।्इनमें ्क्रूर्ददनों्को्छोड़्दे ना्चादहये्।्॥६३॥
सलङ्ग्के्नक्षर्का्ववरोि्ग्राम्या्कताण्के्नक्षर्से्नही्होना्चादहये्।्वह्सलङ्ग्दे श, दे श्के्
स्वामी्एवं्उस्दे श्की्जनता्के्सलये्शुभ्होता्है ्॥६४॥
मलङ्गतक्षणम
सलङ्ग्का्तक्षर््=्छे दन, किाई-्अभीन्प्सत्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्से्(सशला्को)्चौकोर्बनाना्
चादहये्।्इसके्पश्चात्यथोधचत्दे वता्की्आकृनत्उत्कीर्ण्करनी्चादहये्।्इसे्'जानत' रूप्कहते्
है ्।्'छधद' रूप्अष्िकोर््या्षोडशकोर््होता्है ्।्वत्त
ृ ाकार्सलङ्ग्'आभास' होता्है ्।्इस्प्रकार्
सलङ्ग्का्छे दन्तीन्प्रकार्का्होता्है ्॥६५-६६॥
om
सलङ्ग्की्ऊूँचाई्के्तीन्भाग्करना्चादहये्।्मूल्में ्ब्रह्मा्का्भाग्होता्है , जो्चौकोर्होता्है्
।्मध्य्का्अष्िकोर््भाग्वैष्र्व्होता्है ्।्ऊध्वण्भाग्वत्त
ृ ाकार्होता्है ्तथा्यह्ईशभाग्होता्है ्
॥६७॥
अष्िकोर््बनाने्की्तीन्ववधियाूँ्है ्।्अभीष्ि्मान्(सलङ्गमान)्से्एक्सम्चतुरस्र्(चौकोर)्
s.c
ननसमणत्करना्चादहये्।्अिणकर्ों्से्दो्रे खायें्(कोर््तक)्खींचनी्चादहये्तथा्चतुरस्र्के्मध्य्
से्रे खायें्खीचनी्चादहये्।्इस्प्रकार्अष्िकोर््ननसमणत्होगा्।्(द्रष्िव्य्२५.५२)्।्चतुरस्र्के्एक्
चतुथांश्एवं्तीन्भाग्के्बीच्में ्मध्य्पट्ि्होता्है ्।्चौकोर्की्चौड़ाई्के्सात्भाग्करने्पर्
तीसरे ्भाग्में ्मध्य्पट्ि्होता्है ्।्इस्प्रकार्(अष्िकोर्)्तीन्प्रकार्से्कहा्गया्है ्॥६८-६९॥
ok
अब्षोडशास्र्का्लक्षर््कहते्है ्।्कोर््के्अधत्से्पट्िसूर-रे खा्में ्नतलछे ्समले्सूर्का्पट्िािण्
से्जो्अंककत्हो्तो्उसे्षोडशास्र्कहते्है ्।्इस्प्रकार्षोडशास्र्के्मध्य्में ्कोदि्छे दन्से्
बुद्धिमान्को्वत्त
ृ ्बनाना्चादहये, जो्न्ही्ऊूँचा्होता्है ्और्न्ही्नीचा्होता्है ्।्॥७०-७१॥
सिातोभद्राददमलङ्गप्रमाणम
Bo
सवणतोभद्र्आदद्सलंगो्का्प्रमार््-्प्रथम्प्रकार्का्सलङ्ग्'सवणतोभद्र' दस
ू रा्विणमान', तीसरा्
'सशवाधिक' एवं्चौथा्'स्वन्स्तक' होता्है ्।्'सवणतोभद्र' सलङ्ग्ब्राह्मर््के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्।्
'विणमान' राजाओं्को्सख
ु ्एवं्वद्
ृ धि्प्रदान्करता्है ्।्'शम्भभ
ु ागाधिक' वैश्यों्को्िन्प्रदान्करता्
है ्एवं्'स्वन्स्तक' चतथ
ु ्ण वर्ण्के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्॥७२-७३॥
44
सवणतोभद्र्सलङ्ग्को्तीस्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्दस्भाग्ननचले्भाग्के्सलये्तथा्उतना्ही्
भाग्मध्य्एवं्ऊध्वण्भाग्के्सलये्होना्चादहये्।्शम्भभ
ू ाग्पर्
ू तण ः्गोल्होता्है ्।्यह्ब्राह्मर्ों्
एवं्राजाओ्के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्॥७४॥
विणमान्सलङ्ग्चार्प्रकार्के्होते्है ्।्इसका्ननिाणरर््ब्रह्मा, ववष्र्ु्एवं्सशवभाग्की्ऊूँचाई्से्
होता्है ्।्ननचले्भाग्से्प्रारम्भ्करते्हुये्चार्भाग्(ब्रह्मा्का), पाूँच्भाग्(ववष्र्ु्का)्एवं्छः्
भाग्सशवतत्त्व्का्होता्है ्।्(अथवा)्पाूँच, छः्एवं्सात्भाग्होता्है ्।्(अथवा)्छः, सात्या्आठ्
भाग्होता्है ्।्(अथवा्अनत
ृ ः)्सात, आठ्एव्नौ्भाग्होता्है ्।्यह्सलङ्ग्राजाओं्को्सभी्
प्रकार्की्सम्पनतयाूँ, ववजय्एवं्पुरों्की्वद्
ृ धि्प्रदान्करता्है ्॥७५-७६॥
सशवधिक्सलङ्ग्चार्प्रकार्का्होता्है ्।्ब्रह्मा्से्प्रारम्भ्कर्तीन्तत्त्व्सात-सात्एवं्आठ्भाग्
(या)्पाूँच, पाूँच, छः्भाग्(अथवा)्चार, चार, पाूँच्भाग्एवं्(अधततः)्तीन, तीन, चार्भाग्होते्है ्।्
यह्सलङ्ग्वैश्यों्को्सभी्प्रकार्की्समद्
ृ िी्प्रदान्करता्है , जो्संयमी्है्।्ऐसा्(ववद्वानों्द्वारा)्
कहा्गया्है ्।्॥७७-७८॥
स्वन्स्तक्सलङ्ग्की्ऊूँचाई्के्नौ्भाग्करने्चादहये्।्इनमे्दो्भाग्मल
ू ्के्सलये, तीन्भाग्मध्य्
के्सलये्एवं्चार्भाग्पूजा्के्सलये्(उध्वण्भाग्)्होता्है ्।्यह्शूद्रो्के्सलये्सभीकामनाओं्को्
प्रदान्करने्वाला्होता्है ्॥७९॥
सुराथचाताददमलङ्गभेदाः
सुराधचणत्आदद्सलङ्गो्के्भेद्-्सुराधचणत्सलङ्ग, िारासलङ्ग,साहस्रसलङ्ग्एवं्रैरासशक्सलङ्ग्सभी्
के्कामनाओं्को्पूर््ण करता्है ्॥८०॥
(सुरगर्ाधचणत)्सलङ्ग्की्चौड़ाई्उसकी्लम्बाई्के्चौथे्भाग्के्बराबर्होती्है ्एवं्शेष्पहले्के्
समान्होता्है ्।्इस्सलङ्ग्को्सुराधचणत्कहते्है ्॥८१॥
om
िारासलङ्ग्सभी्सलङ्गो्के्समान्होता्है ्।्इसका्मूल्भाग्आठ, सोलह्या्चार्कोर्ों्वाला्होता्
है ्।्इसका्ऊपरी्भाग्दग
ु ुना्होता्है ्।्यह्िारायुक्त्िारासलङ्ग्सभी्वर्ो्के्सलये्प्रशस्त्होता्
है ्॥८२॥
सवणतोभद्र्सलङ्ग्में ्पूजाभाग्में ्पच्चीस्िारायें्क्रमशः्ननसमणत्की्जायूँ्तथा्प्रत्येक्पर्चालीस्
है ्॥८३॥
रैरासशक्सलङ्ग्में ्वत्त
s.c
(सलङ्ग)्ननसमणत्ककये्जायूँ्तो्इस्प्रकार्सहस्र्सलङ्ग्ननसमणत्होते्है ्एवं्इसे्साहस्रसलङ्ग्कहते्
आषण्=्ऋवष्के्अनक
ु ू ल्सलङ्ग्-्ऋवषयों्के्अनुकूल्चार्प्रकार्के्सलङ्ग्होते्है ्-्सस्थल
ू मल
ू ्
(तल्में ्अधिक्चौड़ा)्सलङ्ग, यवमध्य्(मध्य्भाग्में ्यव्के्समान)्सलङ्ग, वपपीसलकामध्य्(मध्य्
भाग्में ्चींिी्के्समान)्सलङ्ग्तथा्सशरः्स्थल
ू ्(ऊपरी्भाग्में ्स्थल
ू )्सलङ्ग्।्आवश्यकतानस
ु ार्
तल, मध्य्या्ऊपरी्भाग्का्ववस्तार्वान्ञ्छत्ववस्तार्से्आठ्भाग्कम्होता्है ्।्आषण्सलङ्ग्में्
44
om
में ्होनी्चादहये्।्प्रथम्दो्माप्सलङ्गो्के्सलये्सामाधय्होते्है ्।्शैवाधिक्सलङ्ग्के्सलये्
नतसरा्माप्होता्है ्।्विणमान्सलङ्ग्के्सलये्चार्भाग्का्माप्कहा्गया्है ्।्मापों्को्एक-
दस
ू रे ्में ्समलाकर्गोलाई्का्ननमाणर््अशुभ्होता्है ्॥९४-९६॥
रपुषाकार्सलङ्ग्के्गोलाई्की्ऊूँचाई्सलङ्ग्की्चौड़ाई्के्छः्भाग्में ्ढाई्भाग्के्बराबर्रक्खी्
s.c
जाती्है ्।्कुकुिाण्ड्की्ऊूँचाई्आिे्माप्से, अिणचधद्र्की्ऊूँचाई्तीसरे ्भाग्के्बराबर्एवं्बुदबुद्
की्ऊूँचाई्आठ्भाग्में ्साढ़े ्तीन्भाग्माप्से्रक्खी्जाती्है ्॥९७॥
सभी्प्रकार्के्सलङ्गो्का्सामाधय्ननयम्इस्प्रकार्है ्।्सलङ्गो्की्गोलाई्का्माप्सलङ्ग्के्
ऊपरी्भाग्का्तीसरा्भाग्होता्है ्।्यह्सशरोमाप्क्रमशः्कननष्ठ, मध्यम्एवं्श्रेष्ठ्सलङ्ग्का्
ok
होता्है ्॥९८-९९॥
सलङ्ग्के्सशरोभाग्के्अभीष्ि्भाग्को्दोनो्पाश्वो्मे्(बराबर)्रखना्चादहये्।्उसपर्चार्
मत्स्याकृनत्ननसमणत्करनी्चादहये्।्प्रत्येक्आकृनत्के्मुख्एवं्पूँछ
ू ्तक्दो्रे खाये्खींचनी्चादहये्
।्जहाूँ्उनका्संयोग्हो, वहाूँ्तीन्बबधद्ु लगाना्चादहये्।्इस्प्रकार्प्रयत्नपव
ू क
ण ्सशवसलङ्ग्की्
Bo
वतणना्करनी्चादहये्॥१००॥
लक्षणो्धरणम
लक्षर्ों्का्उद्िरर््-्अब्मै्सभी्सलङ्गो्का्लक्षर्ोद्िरर््कहता्हूूँ्।्सलङ्गो्की्नघसाई्धचकने्
पत्थर, महीन्बाल्ू के्साथ्गाय्के्बाल्की्रस्सी्आदद्से्एक्बार्में ्करनी्चादहये्एवं्
44
साविानीपव
ू क
ण ्सलङ्ग्के्धचह्नो्की्परीक्षा्करनी्चादहये्।्इसके्पश्चात्शभ
ु ्लक्षर्ो्का्उद्िरर््
प्रारम्भ्करना्चादहये्।्॥१०१-१०२॥
मन्धदर्के्ननकि्रं ग-बबरं गे्वस्रों्से्अलंकृत्मण्डप्में ्शासल्आदद्िाधयों्से्युक्त्सुधदर्
स्थन्ण्डल्पर्आसन्के्ऊपर्प्रस्तर-शयन्पर, जो्कक्श्वेत्वस्र्से्सन्ज्जत्हो, सलङ्ग्की्स्थापना्
करनी्चादहये्।्आचायण्एवं्स्थपनत्नवीन्वस्र, सुवर्ण्एवं्पुष्पादद्से्तथा्पाूँचो्अंगो्मे्अलंकारो्
से्सुसन्ज्जत्होकर्तथा्श्वेत्पुष्प, लेप्आदद्से्एवं्उष्र्ीष्(पगडी)्आदद्िारर््कर्सुधदर्बने्
॥१०३-१०५॥
आचायण्नेर-मधर्का्स्मरर््करते्हुये्सोने्की्सूई्से्अजसूर, पाश्वणसूर्तथा्रे खा्का्लेखन्करे ्
॥१०६॥
सव
ु र्ण्अस्र्से्रे खाङ्कन्प्रारम्भ्कर्स्थपनत्पन
ु ः्छोिे ्शस्र्से्हाथ्में ्घी, दि
ू ्एवं्मि्ु के्साथ्
उधचत्रे खा्बनाये, न्जससे्सध
ु दर्झरने्का्रूप्बने्॥१०७॥
श्वेत्वस्र्से्सभी्अधनों्को्ढूँ ककर्गाय, ब्राह्मर्, गोवत्स्तथा्कधया्आदद्को्ददखाये्तथा्शेष्
को्उधचत्रीनत्से्बुद्धिमान्को्करना्चादहये्॥१०८॥
नागरमलङ्गलक्षणो्धरणम
नागर्सशवसलङ्ग्का्लक्षर्ोद्िरर््-्प्रथम्प्रकार्के्नागर्सलङ्ग्मे्सशव-भाग्की्ऊूँचाई्के्
सोलह्भाग्करने्चादहये्।्छोिे ्सलङ्ग्में ्छः्भाग्(मध्यम्सलङ्ग्में )्चार्भाग्एवं्(बड़े्सलङ्ग्
में )्तीन्भाग्ऊपरी्भाग्में ्एवं्ननचले्भाग्में ्तीन्भाग्छोड्दे ना्चादहये्।्इस्प्रकार्सभी्
सलङ्गो्की्तीन्प्रकार्की्ऊूँचाई्होती्है ्।्ववष्र्ूभाग्में ्पाश्वण्में ्दो्रे खाये्खीचनी्चादहये्।्छोिे ्
सलङ्गो्में ्ये्रे खायें्चार, तीन्एवं्दो्भाग्से्होती्हुई्पष्ृ ठ्भाग्में ्समलती्है ्।्मध्यम्सलङ्ग्में ्
om
ये्रे खायें्पाूँच, चार, तीन्एवं्दो्भाग्से्होती्हुई्पीछे ्समलती्है ्।्श्रेष्ठ्सलङ्ग्में ्ये्रे खाये्छः,
पाूँच, चार, तीन्एवं्दो्भाग्से्होती्हुई्पीछे ्समलती्है ्।्श्रेष्ठ्सलङ्ग्मे्ये्रे खायें्छः, पाूँच, चार,
तीन्एवं्दो्भाग्से्होती्हुई्पीछे ्समलती्है ्।्सलङ्ग्की्चौड़ाई्(लम्बाई्की)्दो्नतहाई्होती्है ्
।्या्सलङ्ग्की्चौड़ाई्पुरी्लम्बाई्तक्समान्एवं्एक्कृष्र्ल्भाग्(ववशेष्माप)्कम्होती्है ्।्
द्राविडमलङ्गलक्षणो्धरणम
s.c
इस्प्रकार्मय्ने्नागरसलङ्ग्के्सूर्का्भली-भाूँनत्वर्णन्ककया्॥१०९-११३॥
द्राववडसलङ्ग्का्लक्षर्ोद्िरर््-्द्राववड्सलङ्ग्के्सशवतत्त्व्की्ऊूँचाइ्को्पधद्रह्भाग्में ्बाूँिना्
चादहये्।्सूर्की्लम्बाई्हीन्(छोिे )्आदद्क्रम्से्(मध्यम्एवं्श्रेष्ठ)्नौ, दस्या्ग्यारह्होनी्
ok
चादहये्।्आठ, नौ्या्दसवें ्भाग्से्सूर्लिकाना्चादहये्।्इनका्पष्ृ ठ्भाग्में ्संयोग, चार, तीन्
या्दो्पर्(गोलाई्बनाते्हुये)्होता्है ्।्यह्माप्छोिे ्सलङ्ग्के्सलये्कहा्गया्है ्।्पाूँच, चार,
तीन्एवं्दो्मध्यम्सलङ्ग्के्सलये्तथा्छः, पाूँच, चार, तीन्एवं्दो्भाग्श्रेष्ठ्सलङ्ग्के्कहा्गया्
है ्।्द्राववड्सलङ्ग्के्सर
ू ्की्चौड़ाई्(सशवभाग्की्ऊूँचाई्की)्आिी्होती्है ्॥११४-११६॥
Bo
िेसरमलङ्गलक्षणो्धरणम
वेसरसलङ्ग्का्लक्षर्ोद्िरर््-्वेसर्सलङ्ग्के्पूजाभाग्की्ऊूँचाई्को्पधद्रह्भागों्में ्बाूँिना्
चादहये्।्सर
ू ्की्ऊूँचाई्को्आठवें ्भाग्से्प्रारम्भ्कर्दस्भाग्तक्रखना्चादहये्।्सर
ू ों्का्
संयोग्पाूँच, चार्एवं्तीन्भाग्पर्(गोलाई्बनाते्हुये)्होना्चादहये्।्सर
ू ्की्चौड़ाई्सलङ्ग्की्
44
पररधि्के्सोलहवे्भाग्के्बराबर्होनी्चादहये्।्यह्श्रेष्ठ्वेसर-सलङ्ग्का्प्रमार््है ्॥११७-११८॥
मध्यम्सलङ्ग्के्(सशवतत्त्व)्की्ऊूँचाई्को्आठ्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्सर
ू ्की्ऊूँचाई्चार्भाग्
होनी्चादहये्।्सूर्तीन्भाग्से्प्रारम्भ्होकर्दो्या्एक्भाग्पर्संयुक्त्होता्है ्।्सूर्की्
चौड़ाई्पौन्भाग्के्बराबर्होती्है ्।्छोिे ्वेसर्सलङ्ग्की्(सशवभाग्की)्ऊूँचाई्को्बारह्भागों्में ्
बाूँिना्चादहये्।्शेष्प्रकक्रया्पहले्के्समान्होती्है ्।्सुर्की्चौड़ाई्(सशवभाग्के)्दो्भाग्के्
बराबर्होती्है ्॥११९-१२१॥
सूत्रयासगार्मभीये
रे खाओं्की्चौड़ाई्एवं्गहराई्-्सभी्प्रकार्के्सलङ्गो्में ्प्राप्त्भाग्(ननन्श्चत्ककये्गये्भाग)्मे्
नौ्भाग्करने्पर्एक्भाग्से्रे खाओं्की्चौड़ाई्एवं्गहराई्ननसमणत्करनी्चादहये्।्ये्रे खायें्
स्पष्ि्एवं्ननयमानुसार्होती्है ्।्दृढमनत्व्यन्क्त्को्आठ्यवों्को्लेकर्(आठ्यव्के्माप्से)्
नौ्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्एक्हाथ्ऊूँचे्सलङ्ग्में ्एक्भाग्से्रे खा्बनानी्चादहये्।्एक-एक्
भाग्बढ़ाते्हुये्नौ्हाथपयणधत्सलङ्ग्में ्आठ्यव्के्माप्से्गहरी्एवं्लम्बी्रे खा्बनती्है ्।्
॥१२२-१२४॥
(अथवा्एक्हाथ्से्सलङ्ग्में )्आिे्यव्के्माप्से्रे खाये्ननसमणत्होनी्चादहये्तथा्श्रेष्ठ्सलङ्ग्
मे्साढ़े ्चार्यवमाप्से्रे खाओं्की्चौड़ाई्एवं्गहराई्रखनी्चादहये्।्(इसके्मध्य्प्रत्येक्हाथ्
माप्पर)्आिे्यव्के्माप्को्जोडते्जाना्चादहये्।्मध्य्सूर्(रे खा)्की्चौड़ाई्की्आिी्पाश्वण्
सूरों्की्चौड़ाई्होती्है ्।्अधय्सभी्रे खायें्समान्चौड़ाई्एवं्माप्की्होती्है ्॥१२५-१२६॥
सामान्यविथधः
सामाधय्ननयम्-्अब्मै्(मय)्नागर्आदद्सलङ्गो्के्लक्षर्ोद्िरर््के्सामाधय्ननयमों्का्वर्णन्
करता्हूूँ्।्पूजा्भाग्की्ऊूँचाई्के्सोलह्भाग्करने्चादहये्।्इसमें ्नीचे्दो्भाग्तथा्ऊपर्चार्
om
भाग्छोड़्दे ना्चादहये्।्अग्र्भागसदहत्सूर्के्दस्भाग्होते्है ्।्मर्र््रे खा्दो्भाग्छोड़कर्
(पूजाभाग्के)्नीचे्से्प्रारम्भ्करनी्चादहये्।्मुकुल्को्एक्भाग्छोड़कर्वे्रे खायें्पष्ृ ठ्भाग्में ्
जुड़ती्है ्।्मुकुल्की्चौडाई्एक्भाग्के्बराबर्होनी्चादहये्॥१२७-१२९॥
अथवा्सलङ्ग्(के्सशवभाग)्की्ऊूँचाई्के्सोलह्भाग्करने्चादहये्।्नीचे्एक्भाग्छोड़कर्दस्
सलङ्गो्के्सलये्सामाधय्होता्है ्॥१३०॥
s.c
भाग्नाल्के्सलये्ग्रहर््करना्चादहये्।्शेष्कायण्पूव-ण वर्र्णत्होना्चादहये्।्यह्ननयम्सभी्
अथवा्सशवभाग्के्बारह्भाग्करने्चादहये्।्दो्भाग्ऊपर्एवं्एक्भाग्नीचे्छोड़ना्चादहये्
तथा्नौ्भाग्(सूर्तथा)्अग्र्भाग्(मुकुल)्के्सलये्ग्रहर््करना्चादहये्।्शेष्पूवव
ण र्र्णत्रीनत्से्
ok
करना्चादहये्॥१३१॥
अथवा्सशवभाग्के्अट्ठारह्भाग्करने्चादहये्।्दो्भाग्नीचे्एवं्पाूँच्भाग्ऊपर्छोड़्दे ना्
चादहये्।्ग्यारह्भाग्अजसूर्के्सलये्लेना्चादहये, न्जसमें ्एक्भाग्मुकुल्के्सलये्होता्है ्।्शेष्
पव
ू व
ण त्होता्है ्॥१३२॥
Bo
अथवा्सशवभाग्के्सोलह्भाग्करने्चादहये्।्दो्भाग्नीचे्एवं्चार्भाग्ऊपर्छोड़कर्दस्भाग्
से्सर
ू ्की्ऊूँचाई्रखनी्चादहये्।्दो्सर
ू ्आठवे्भाग्से्प्रारम्भ्कर्पाूँच, छः्एवं्आठ्भाग्से्ले्
जाते्हुये्पष्ृ ठ्भाग्में ्एक्भाग्पर्संयक्
ु त्करना्चादहये्।्शेष्सभी्पहले्के्समान्होता्है ्
॥१३३-१३४॥
44
सर
ू ्को्पहले्भस्म्लगे्सर
ू ्के्साथ्लपेिना्चादहये्।्इसके्घदिकाग्र्(सर
ू ्का्अग्र्भाग)्से्
धचह्न्बनाकर्पाश्वण्भाग्मे्सर
ू ्से्लक्षर््अङ्ककत्करना्चादहये्॥१३५॥
सूत्राग्रलक्षणम
सूर्के्अग्र्भाग्का्लक्षर््-्सभी्सूर्के्अग्र्भाग्पर्गोला्बनाना्चादहये्।्इसे्सलङ्ग्की्
आकृनत्के्अनुसार्या्सामाधय्ननयम्के्अनुसार्बनाना्चादहये्।्गोल्आकृनत्सभी्सलङ्गो्में ्
सामाधय्है ्।्यह्पीपल्के्पत्ते्के्सदृश, कदली्(केला)्के्मुकुल्(कली)्के्समान, जौ्के्समान्
या्कमलपुष्प्की्कली्के्समान्होती्है ्।
सूर्के्अग्र-भाग्की्चौड़ाई्(सशवतत्त्व्के)्भाग्एक्भाग्के्बराबर्एवं्ऊूँचाई्चौड़ाई्के्बराबर्
होती्है ्॥१३६-१३७॥
सर
ू ्के्अग्रभाग्का्आकार्सलङ्ग्(के्आकार)्के्अनस
ु ार्कहा्जा्रहा्है ्।्सलङ्ग्के्अग्रभाग्की्
आकृनत्छर्के्समान्होने्पर्सर
ू ाग्र्गज-नेर्के्समान्होता्है ्।्सलङ्ग्का्अग्र्भाग्अिणचधद्र्
के्समान्एवं्बद
ु बद
ु ्के्समान्होने्पर्सर
ू ्का्अग्र्भाग्शल
ू ्के्अग्र्भाग्के्समान्होता्है ्।्
सलङ्ग्का्अग्र्भाग्रपुषाभ्(ककड़ी)्होने्पर्सूराग्र्कुक्कुि्(मुगी)्के्अण्डे्के्समान्होता्है ्।्
कुक्कुि्के्अण्डे्के्समान्सलङ्ग्के्अग्र-भाग्के्होने्पर्सूराग्र्छर्के्समान्होता्है ्॥१३८-
१४०॥
मध्यम्सूर्की्चौड़ाई्सलङ्ग्की्पररधि्के्सरह्भाग्करने्पर्दो-नतहाई्के्बराबर्होती्है ्तथा्
पाश्वणसूर्चौड़ाई्मे्उसके्आिे्होते्है ्।्सलङ्ग्की्लम्बाई्मे्सामाधय्सभी्ननयम्उसी्प्रकार्
होते्है ्॥१४१-१४२॥
सलङ्गो्की्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्उनके्नाम्एवं्भेदो्के्साथ, उष्र्ीष्(सशरोभाग)्का्मान, छर्के्
om
समान्आदद्(अधय्आकृनतयाूँ)्एवं्उष्र्ीषसूर्का्वर्णन्मैने्(मय्ने्)्यहाूँ्नागर्आदद्क्रम्से्
आवश्यकतानुसार्ककया्॥१४३॥
स्फादटकमलङ्गम
स्फदिक्सशवसलङ्ग्-्अब्मै्(मय)्छोिे , मध्यम्एवं्उत्तम्स्फदिकसलङ्ग्का्क्रमशः्वर्णन्कर्रहा्
s.c
हूूँ्।्छोिे ्सलङ्ग्के्पूजा-भाग्की्ऊूँचाई्एक्अंगुल्से्प्रारम्भ्होकर्एक-एक्अंगुल्बढ़ाते्हुये्छः्
अंगुल्तक्जाती्है ्।्मध्यम्सलङ्ग्के्पूजा्भाग्की्ऊूँचाई्सात्अंगुल्से्प्रारम्भ्होकर्बारह्
अंगुल्तक्जाती्है ्।्उत्तम्सलङ्ग्के्पूजा्भाग्की्ऊूँचाई्छः्प्रकार्की्होती्है ्।्यह्तेरह्भाग्
से्प्रारम्भ्होकर्एक-एक्अंगुल्बढ़ाते्हुये्अट्ठारह्भाग्तक्जाती्है ्।्(अथवा)्ऊूँचाई्में ्डेढ़-डेढ़्
ok
अंगुल्की्वद्
ृ धि्करनी्चादहये्।्इस्प्रकार्(सभी्सलङ्गो्में )्ग्यारह्संख्याभेद्प्राप्त्होते्है ्।्
श्रेष्ठ, मध्यम्एवं्कननष्ठ्सलङ्गों्के्तैतीस्ऊूँचाई-मान्(इस्प्रकार)्प्राप्त्होते्है ्॥१४४-१४७॥
(पीदठका्में ्स्थावपत्होने्वाला)्स्फदिकसलङ्ग्के्(अिोभाग्के)्पूजा्भाग्की्ऊूँचाई्के्आिे्भाग्
या्तीसरे ्भाग्के्बराबर्होती्है ्।्पज
ू ाभाग्की्चौड़ाई्इसकी्ऊूँचाई्के्बराबर, तीन्चौथाई्या्
Bo
(सलङ्ग्के्पीठ्की)्चौड़ाई्(सलङ्ग्की)्दग
ु न
ु ी, ढाई्गन
ु ी्या्तीन्गन
ु ी्होती्है ्।्पीठ्का्मण्डन्
(ककनारा, घेरा)्एवं्नाल्उधचत्रीनत्से्ननसमणत्होना्चादहये्।्वपन्ण्डका्(पीठ)्की्ऊूँचाई्पज
ू ाभाग्
के्बराबर्या्उसके्तीन-चौथाई्होनी्चादहये्।्॥१५१-१५२॥
मवृ त्तका-ननसमणत्एवं्अधय्सशवसलङ्ग्-्सलङ्ग्का्ननमाणर््मवृ त्तका, काष्ठ, रत्न्एवं्लौह्(िाड)्से्
स्फदिक्के्समान्दृढ्करना्चादहये्।्मवृ त्तकाननसमणत्सलङ्ग्इच्छानुसार्पक्का्या्कच्चा्हो्
सकता्है ्।्काष्ठसलङ्ग्दोषरदहत्(काष्ठ्से)्ननसमणत्होना्चादहये्।्िातु-ननसमणत्सलङ्ग्घना्(ठोस)्
होना्चादहये्।्लोहसलङ्ग्घना्होना्चादहये्।्लोहननसमणत्सलङ्ग्अङ्गसदहत्मूनतण्अथवा्
अङ्गरदहत्(सलङ्गरूप)्होता्है ्।्िातुननसमणत्सलङ्ग्पून्जत्होने्पर्भोग्एवं्मुन्क्त्प्रदान्करता्है ्
।्सशला्से्सभधन्सलङ्ग्को्मर्र्सलङ्ग्कहते्है ्॥१५३-१५५॥
अपनी्जानत्की्वस्त्ु से्अथवा्लोहे ्से्अथवा्स्फदिक्आदद्िात्ु या्रत्न्से्तत्तत्सलङ्गो्की्
रचना्करनी्चादहये्।्स्फदिक्से्सभधन्वस्त्ु में ्पीठस्थान्बनाना्चादहये्।्इस्प्रकार्लौहपीठ्में ्
रत्नननसमणत्प्रनतमा्की्स्थापना्की्जाती्है ्।्संकलप्के्अनस
ु ार्ब्रह्मा, ववष्र््ु एवं्शंकर्के्सलङ्ग्
की्युन्क्तपूवक
ण ्न्स्थनत्भोग्एवं्मोक्ष्प्रादान्करने्वाली्होती्है ्॥१५६-१५७॥
बार्सलङ्ग्(स्वयम्भूसलङ्ग)्को्पीदठका्में ्न्जस्प्रकार्न्स्थत्हो, उस्प्रकार्स्थावपत्करना्चादहये्
।्इसका्पूजाभाग्पाूँच्में ्से्तीन्भाग, आिा्या्इसकी्ऊूँचाई्का्दो्नतहाई्होता्है ्।्शेष्भाग्
बार्सलङ्ग्में ्पीठबधि्(पीठ्से्सम्बद्ि)्होता्है ्॥१५८-१५९॥
(मर्र्सलङ्ग्के्सलये)्पूर्णतः्त्याज्य्मर्र्याूँ्इस्प्रकार्है -्रे खा, बबधद्ु एवं्कलङ्क्आदद्से्युक्त,
वववर्ण्(रङ्ग्का्साफ्न्होना), मक्षक्षका्(धचह्न)्से्युक्त्(काक)्पद्के्धचह्न्से्युक्त, दरार-युक्त्
एवं्शकणरा्(बालुका)्युक्त्मर्र्याूँ्॥१६०॥
om
मलङ्गस्थापनम
सलङ्ग्की्स्थापना्-्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्बडे्सलङ्ग्की्स्थापना्अधिष्ठानननसमणत्होने्पर,
मध्यम्सलङ्ग्की्स्थापनादे वालय्के्आिा्ननसमणत्होने्पर्तथा्छोिे ्सलङ्ग्की्स्थापना्दे वालय्
के्पूर््ण होने्पर्करनी्चादहये्॥१६१॥
मलङ्गस्थापनफलम
s.c
सलङ्ग-स्थापना्का्फल्-्वर्र्णत्ववधि्से्स्थावपत्सलङ्ग्श्री, सौभाग्य, आरोग्य्एवं्भोग्प्रदान्
करता्है ्।्कही्गई्ववधि्से्स्थापना्न्करने्पर्स्वामी्(स्थापक)्के्सलये्ववपवत्तकारक्तथा्
ननत्य्रोग्एवं्शोक्प्रदान्करने्वाला्होता्है ्॥१६२॥
ok
मयमतम्-्अध्याय्३४
Bo
पीठ-लक्षर््-्अब्मै्(मय)्ननष्कल्(न्जसमे्दे वो्के्अंग्न्ननसमणत्हो)्सलङ्गो्एवं्सकल्
(दे वमूनतणयों)्के्पीठ्(आिार)्के्सामाधय्ननयमो्के्अनुसार्लक्षर्ों्का्वर्णन्कर्रहा्हूूँ्॥१॥
पीठद्रव्याणण
44
पीठों्के्द्रव्य्-्(पीठ्एवं्सलङ्गादद्का)्ननमाणर््एक्ही्जानत्के्द्रव्य्से्करना्चादहये्।्कई्
द्रव्यो्का्समश्रर््प्रशस्त्नही्होता्है ्।्कुछ्ववद्वान्प्रस्तर्एवं्काष्ठननसमणत्सलङ्गादद्मे्पकी्
ईि्से्ननसमणत्पीठ्के्ववषय्मे्कहते्है ्।्मर्र्सलङ्गो्एवं्िातुननसमणत्सलङ्गो्में ्िातुननसमणत्
वपण्ड्होना्चादहये्।्स्री-सशला्को्लेकर्सलङ्ग्के्पीठ्का्भली-भाूँनत्ननमाणर््करना्चादहये्॥२-
३॥
पीठप्रमाणम
पीठ्का्प्रमार््-्कननष्ठ्पीठ्(सलङ्ग्के)्पज
ू ाभाग्का्दग
ु न
ु ा्होता्है ्एवं्श्रेष्ठ्पीठ्सलङ्ग्की्
ऊूँचाई्के्बराबर्होता्है ्।्इन्दोनों्के्मध्य्आठ्भाग्करने्पर्नौ्प्रकार्के्पीठ-ववस्तार्प्राप्त्
होते्है ्।्उत्तम, मध्यम्एवं्हीन्के्तीन-तीन्भेद्कहे ्गये्है ्॥४॥
अथवा्हीन्(सबसे्छोिा)्पीठ्सलङ्ग्की्ऊूँचाई्का्आिा्एवं्श्रेष्ठ्पीठ्सलङ्ग्की्ऊूँचाई्से्
चतथ
ु ांश्कम्होता्है ्।्इन्दोनो्के्मध्य्आठ्भाग्करने्पर्पीठ्का्व्यास्पव
ू व
ण र्णन्के्अनस
ु ार्
होता्है ्॥५॥
पीठ्की्चौड़ाइ्सलङ्ग्की्पररधि्की्तीन्गुनी, पररधि्के्बराबर्या्गभणगह
ृ ्के्तीसरे ्भाग्के्
बराबर्या्चौथे्भाग्के्बराबर्अथवा्सलङ्ग्की्चौड़ई्की्दग
ु ुनी, ढाई्गुनी्या्तीन्गुनी्होनी्
चादहये्॥६-७॥
पीठ्के्ववस्तार्को्आठ्भाग्कम्रखना्चादहये्।्इसके्ऊपर्सजावि्होती्है ्।्ववस्तार्को्या्
तो्आठ्भाग्कम्रखना्चादहये्या्आठ्भाग्बढ़ाकर्रखना्चादहये्।्सभी्पीठों्के्मूल्भाग्
(नीचे्का)्ववस्तार्जधमभाग्तक्होता्है ्एवं्ऊपरी्भाग्का्ववस्तार्महापट्दिका्तक्होता्है ्।्
यह्ववष्र्ुभाग्के्बराबर, सवा्भाग्या्डेढ्भाग्अधिक्होता्है ्॥८-९॥
om
पीठाकारः
पीठ्की्आकृनत्-्पीठ्की्आकृनत्चौकोर, अष्िकोर्, षट््कोर्, बारहकोर्, सोलह्कोर्, वत्त
ृ ाकार्या्
उधही्में ्आयताकार्हो्सकती्है ्।्यह्बरकोर््या्अिणचधद्र्भी्हो्सकती्है ्।्इस्प्रकार्इसकी्
चौदह्आकृनतयाूँ्हो्सकती्है ्॥१०-११॥
s.c
सम्पीठ्सलङ्गो्के्अनुकूल्होते्है ्।्आयत्पीठ्सकल्(मूनतणयों)्के्सलये्होते्है ्।्बरकोर््एवं्
अिणचधद्र्पीठ्क्रमशः्ननष्कल्(सलङ्ग)्एवं्सकल्(मूनतण)्के्अनुकूल्होते्है ्॥१२॥
पीठनामानन
पीठो्के्नाम्-्नौ्पीठों्के्नाम्इस्प्रकार्कहे ्गये्है ्-्भद्रपीठ, पद्मपीठ, वज्रपीठ, महाम्बुज,
ok
श्रीकर, पीठपद्म, महावज्र, सौम्यक्एवं्श्रीकामाख्य्।्बरकोर््एवं्अिणचधद्र्पीठ्अपने्नाम्के्
अनुरूप्होते्है ्॥१३-१४॥
अब्ऊूँचाई्एवं्अनेक्भागों्के्अनुसार्पीठों्के्सजाविों्का्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥१५॥
भद्रपीठम
Bo
एवं्दस
ू रो्को्श्री, सौभाग्य, आरोग्य्एवं्भोग्प्रदान्करते्है ्॥१६-१७॥
प्मपीठम
पद्मपीठ्-्पद्म्पीथ्की्ऊूँचाई्को्सोलह्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्दो्भाग्से्पट्ि, पाूँच्भाग्
से्पद्म, दो्भाग्से्वत्त
ृ , चार्भाग्से्दल, दो्भाग्से्पट्ि्एवं्एक्भाग्से्घत
ृ वारर्होना्चादहये्
॥१८॥
िज्रप्मपीठम
वज्रपीठ्-्पीठ्की्ऊूँचाई्के्चौदह्भाग्होते्है ्।्जधम्डेढ़्भाग्से, ननम्न्आिा्भाग्से, पद्म्
साढे ्तीन्भाग्से्क्रमशः्होते्है ्।्पट्ि्एवं्ननम्न्आिे-आिे्भाभ्से्तथा्वज्र, ननम्न्एवं्
कम्पक्पहले्के्समान्होते्है ्।्तीन्भाग्से्पद्म, आिे्भाग्से्ननम्न, उसके्ऊपर्डेढ़्भाग्से्
पट्दिका्होती्है ्।्हवन्के्सलये्आिे्भाग्से्पीठ्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्इस्पीठ्का्नाम्
वज्रपीठ्है ्एवं्यह्सभी्सलङ्गो्के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्॥१९-२०॥
महाब्जपीठम
महाब्ज्पीठ्-्पीठ्की्ऊूँचाई्के्अट्ठारह्भाग्करने्चादहये्।्जधम्ढाई्भाग्से, अब्ज्चार्भाग्
से, पट्ि्आिे्भाग्से, ननम्न्डेढ्भाग्से, पङ्कज्ढाई्भाग्से, वत्त
ृ ्आिे्भाग्से, अब्ज्आिे्भाग्
से, ननम्न्आिे्भाग्से, पट्ि्तीन्भाग्से, पंकज्आिे्भाग्से्ननसमणत्होते्है ्।्श्रीपट्ि्डेढ़्भाग्
से्एवं्उसका्स्नेह-भार्आिे्भाग्से्होता्है ्।्इस्पीठ्की्संज्ञा्महाब्ज्होती्है ्एवं्यह्मनुष्यों्
तथा्ऋवषयों्द्वारा्ननसमणत्सलङ्ग्के्सलये्प्रशस्त्होता्है ्॥२१-२२॥
श्रीकरपीठम
श्रीकर्पीठ्-्पीठ्की्ऊूँचाई्के्सोलह्भाग्करने्चादहये्।्एक्भाग्से्जधम, तीन्भाग्से्वप्र,
om
चार्भाग्से्पद्म, आिे्भाग्से्ह्रद््, दो्भाग्से्वत्त
ृ , आिे्भाग्से्िग
ृ ्, तीन्भाग्से्पद्म, डेढ़्
भाग्से्पट्दिका, स्नेहवारर्आिे्भाग्से्तथा्उसकी्चौड़ाई्भी्उतने्ही्भाग्से्होती्है ्।्नाल्
का्व्यास्तीन्या्चार्भाग्से्एवं्इसका्ननगणम्तीन्भाग्से्होता्है ्।्इसका्अग्र्श्रीप्रदान्
करने्वाला्होता्है ्एवं्यह्पीठ्श्रीकर्संज्ञक्होता्है ्॥२२-२४॥
पीठप्मपीठ
s.c
पीठपद्म्पीठ्-्पीठपद्म्पीठ्की्ऊूँचाई्को्दस्भागों्में ्बाूँिा्जाता्है ्।्खरु ्डेढ़्भाग, ननम्न्
आिा्भाग, अब्ज्ढाई्भाग, पट्ि्आिा्भाग, ननम्न्आिा्भा, पट्ि्आिा्भाग, अब्ज्ढाई्भाग,
ननम्न्आिा्भाग, पट्ि्डेढ़्भाग्एवं्ननम्न्आिा्भाग्से्ननसमणत्होता्है ्॥२५॥
ok
महािज्रसौर्मयपीठे
महावज्र्एवं्सौम्य्पीठ्-्पीठ्की्ऊूँचाई्को्पधद्रह्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्जधम्डेड़्ह्भाग्से,
ननम्न्एक्भाग्से, पट्ि्चार्भाग्से्अथवा्जधम्डेढ़्भाग्से, ननम्न्एक्भाग्से, पङ्कज्चार्
भाग्से, वज्र्ढाई्भाग्से, वत्त
ृ ्डेढ्भाग्से, कञ्ज्ढाई्भाग्से, उसके्ऊपर्पट्ि्डेढ़्भाग्से्एवं्
Bo
om
क्रमशः्बढते्हुये्सलङ्ग्से्समले्।्सशवतत्त्व्का्मूल्पीठ्के्ऊपरी्तल्से्थोडा्नीचा्होना्चादहये्
।्यदद्उस्उससे्ऊूँचा्होगा्तो्सभी्का्अशुभ्होता्है ्॥३६-३८॥
अिणचधद्र्पीठ्का्िनुषाकार्भाग्द्वार्के्सामने्होना्चादहये्तथा्बरकोर््पीठ्का्सीिा्भाग्
द्वार्के्सम्मुख्होना्चादहये्।्ववद्वानों्के्अनुसार्पीठ्के्कोर््को्द्वार-सूर्का्वेि्नही्
करना्चादहये्॥३९॥
s.c
एक्ही्पत्थर्से्ववना्सन्धि्के्ननसमणत्पीठ्शुभ्होता्है ्।्यदद्एक्ही्पत्थर्न्प्राप्त्हो्तो्
पीठ्का्ऊपरी्भाग्एक्पत्थर्का्होना्चादहये्।्छोिे ्एवं्बड़े्पीठ्में ्मध्य्भागों्में ्सन्धि्नही्
होनी्चादहये्॥४०-४१॥
ok
ऊपरी्भाग्में ्पीठ्के्भागो्की्सन्धि्अधत्में ्होनी्चादहये्।्प्रर्ाल्के्मध्य्में , (पीठ्के)्आिे्
भाग्के्मध्य्में ्एवं्कोर्ों्पर्सन्धि्नही्होनी्चादहये्॥४२॥
लम्बे्एवं्छोिे ्भागों्के्दक्षक्षर््एवं्वाम्भाग्को्ननयमानुसार्जोड़ना्चादहये्।्पीठ्के्ननचले्
भाग्को्तीन्खण्डो्में ्अथवा्आवश्यकतानस
ु ार्बनाना्चादहये्॥४३॥
Bo
ब्रह्ममिला
ब्रह्मसशला्-्ब्रह्मसशला्की्सबसे्बडी्चौड़ाइ्सलङ्ग्की्ऊूँचाई्के्बराबर्होती्है ्।्सबसे्छोिा्
माप्सलङ्ग्के्पज
ू ा्भाग्की्ऊूँचाई्का्दग
ु न
ु ा्होता्है ्।्इन्दोनों्के्मध्य्के्अधतर्को्आठ्
भागों्में ्बाूँिते्है ्।्इस्प्रकार्ववस्तार्के्नौ्प्रकार्बनते्है ्।्इसकी्सबसे्अधिक्मोिाई्ववस्तार्
44
की्आिी्होती्है ्एवं्सबसे्कम्मोिाई्चौडाई्की्चतथ
ु ांश्होती्है ्।्इन्दोनों्के्मध्य्के्भेद्
को्पहले्के्समान्बाूँिते्है ्॥४४-४५॥
अथवा्ब्रह्मसशलाकी्श्रेष्ठ्चौड़ाई्सलङ्ग्की्पररधि्की्दग
ु ुनी्होती्है ्।्सबसे्कम्चौड़ाई्(सलङ्ग्
की्पररधि)्डेढ्गुनी्होती्है ्।्इसकी्मोिाई्चौड़ाई्की्तीन्चौथाई्होती्है ्।्सबसे्कम्माप्
चौड़ाई्की्आिी्होती्है ्।्व्यास्एवं्मोिाई्(या्ऊूँचाई)्के्दोनो्मापों्के्मध्य्के्भेद्पहले्के्
समान्नौ्भेद्बनते्है ्॥४६॥
(सलङ्ग्के)्ब्रह्म्भाग्को्स्थावपत्करने्के्लये्(ब्रह्मसशला)्के्मध्य्में ्ब्रह्मतत्त्व्के्आकार्के्
अनुसार्गड्ढा्बनाना्चादहये्।्गतण्की्गहराई्उसकी्चौड़ाई्के्आिी्होती्है ्अथवा्सलङ्ग्के्
ननचले्भाग्की्ऊूँचाई्के्आठवे्भाग्के्बराबर्होती्है ्।्इसमें ्रत्नों्को्रखना्चादहये्एवं्इसमें ्
सलङ्ग्के्मल
ू ्भाग्को्भली्भाूँनत-्दृढतापव
ू क
ण ्स्थावपत्करना्चादहये्।्ब्रह्मसशला्को्नपंस
ु क्
सशला्से्ननसमणत्करनी्चादहये्।॥४७-४९॥
नन््याितामिला
नधद्यावतण्सशलाये्-्चार्सशलाये्प्रदक्षक्षर्क्रम्से्ब्रह्मसशला्एवं्पीठ्के्मध्य्के्अवकाश्में ्
नधद्यावतण्आकृनत्ननसमणत्करती्है ्॥५०॥
प्रनतमापीठ
प्रनतमाओं्के्पीठ्-्मूनतणयों्की्पीठों्में ्कुछ्स्थानक्(खड़ी)्एवं्कुछ्आसन्(बैठी)्प्रनतमाओं्के्
अनुकूल्होती्है ्।्आसन-प्रनतमाओं्के्(पीठ्की्चौड़ाई)्(उन्प्रनतमाओं्से)्एक, दो, तीन, चार, पाूँच्
या्छः्अंगुल्अधिक्होती्है ्।्इसकी्लम्बाई्उसकी्चौड़ाई्से्आठ्भाग्अधिक्होती्है ्।्पीठ्
की्चौड़ाई्(प्रनतमा्की)्चौड़ाई्के्दग
ु ुने्से्अधिक्नही्होनी्चादहये्॥५१-५२॥
om
पीठ्की्ऊूँचाई्प्रनतमा्की्ऊूँचाई्के्तीसरे ्भाग्के्बराबर्होती्है , यदद्शयन्प्रनतमा्हो्।्आसन-
प्रनतमा्में ्चौथे्भाग्एवं्स्थानक्प्रनतमा्में ्पाूँचवे्भाग्के्बराबर्पीठ्होता्है ्।्शयन्प्रनतमा्के्
(पीठ्की)्लम्बाई्एवं्चौड़ाई्यथोधचत्(पूवव
ण र्र्णत)्रीनत्से्ग्रहर््करनी्चादहये्॥५३॥
ब्रह्मा्आदद्दे वों्एवं्दे ववयों्के्आसन्को्ससंहासन्कहते्है ्।्जब्इसे्पीठ्पर्स्थावपत्ककया्
s.c
जाता्है , तब्इसके्पाद्ससंह्के्सदृश्होते्है ्।्इसके्तीन्और्तरङ्गे्ननसमणत्होती्है ्एवं्यह्
ववसभधन्अलंकरर्ो्से्सुसन्ज्जत्होता्है ्।्इस्ससंहासन्की्ननमाणर्ववधि्को्दे खकर्इसक्
अलंकरर््करना्चादहये्॥५४-५५॥
पीठमान्प्रासादमान
ok
पीठ्के्प्रमार््के्अनुसार्प्रासाद्का्प्रमार््-्बार्सलङ्ग्आदद्के, ऋवषयों्द्वारा्ननसमणत्सलङ्गो्
के्तथा्स्वयम्भू्सलङ्गो्के्पीठो्का्ननमाणर््बुद्धिमान्व्यन्क्त्इच्छानुसार्प्रासाद्की्आकृनत्का्
कर्सकता्है ्।्पूवव
ण र्र्णत्पुरुषननसमणत्सलङ्गो्के्पीठ्के्ववस्तार्आददके्माप्पहले्कहे ्गये्
ननयमो्के्अनस
ु ार्होने्चादहये्।्पीठों्के्प्रमार््के्अनस
ु ार्ववमान्(दे वालयो)्के्ववस्तार्का्
Bo
सम्यक्प्रकार्से्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्।्नालीगेह्(गभणगह
ृ )्का्ववस्तार्पीठ्का्दग
ु न
ु ा, चौगन
ु ा्
या्पाूँच्गन
ु ा्होना्चादहये्या्पहले्के्समान्(माप्के्अनस
ु ार)्ननसमणत्करना्चादहये्।्इसकी्
सभवत्त्की्मोिाई्इसके्तीसरे ्भाग्या्आिे्के्बराबर्होती्है ्।्यह्अधिार्(पररक्रमामागण)्से्
यक्
ु त्या्ववना्अधिार्के्हो्सकती्है ्।्कूि्एवं्कोष्ठ्आदद्पहले्के्सदृश्(ननसमणत)्होते्है ्।्
44
प्रासाद्का्वर्णन्सलङ्ग्के्प्रमार््के्अनस
ु ार्ककया्गया्है , न्जसकी्ऊूँचाई्पहले्के्समान्होती्है्
॥५६-६०॥
बेरमानत्प्रासादमान
बेर्-्प्रनतमा्के्मान्के्अनुसार्दे वालय्का्प्रमार््-्दे वालय्का्ननमाणर््न्जस्प्रकार्भवन्के्
स्तम्भ्एवं्द्वार्के्प्रमार््के्अनुसार्होता्है , उसी्प्रकार्प्रनतमा्के्प्रमार््के्अनुसार्भी्होता्
है ्।्इसी्प्रकार्आकारयक्
ु त्प्रनतमा्के्अनुसार्भी्दे वालय्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्(गभण)्गह
ृ ्
का्ववस्तार्बेर्की्लम्बाई्के्बराबर, उससे्डेढ्गुना्या्दग
ु ुना्होना्चादहये्।्(अथवा)्बेर्के्पाूँच्
भाग्में ्तीन्भाग्के्बराबर्ववस्तार्रखना्चादहये्।्(अथवा)्बेर्(की्लम्बाई)्गह
ृ ्के्ववस्तार्के्
चार्भाग, तीन्भाग्या्आिे्के्बराबर्एवं्(गभणगह
ृ ्की्चौड़ाई)्(उसकी्ऊूँचाई)्की्आिी्होनी्
चादहये्॥६१-६३॥
अष्टबन्धसंग्रहण
अष्िबधि=्गारा्का्संग्रह्-्लाक्षा्(लाख), गड
ु , मि,ु उन्च्छष्ि्गग्ु गल
ु ्की्समान्मारा्एवं्इसका्
दग
ु न
ु ा्सजणरस्(साल्वक्ष
ृ ्का्रस)्लेना्चादहये्।्इसमें ्गैररकचर्
ू ्ण एवं्इसका्आिा्घनचर्
ु ्ण
(सम्भवतः्ईि्का्चर्
ू )ण ्लेना्चादहये्।्इन्सभी्का्आिा्तेल्लेकर्लोह्(िातु)्के्पार्में ्
डालना्चादहये्।्इन्सभी्को्लोह्(िातु)्के्कलछुल्से्चलाकर्(समलाकर)्िीमी्आूँच्पर्पकाना्
चादहये्।्इसे्अष्िबधि्कहते्है ्।्यह्प्रस्तर्के्समान्दृढ़ता्से्जोड़ता्है ्॥६४-६६॥
गभणगह
ृ ्में ्बेर्के्स्थान्-्(दे वालय)्कताण्की्इच्छा्के्अनुसार्एक्या्अनेक्सलङ्गों्की्स्थापना्
करनी्चादहये्।्इसे्मध्य्में , सभवत्त्के्पाश्वो्में ्या्जहाूँ्जहाूँ्चारो्ओर्चाहे , स्थावपत्ककया्जा्
सकता्है ्।्दे वालय्एक्या्कई्हो्सकते्है ्।्इनमे्शूल्एवं्सलङ्ग्वाला्भवन्अधय्भवनों्से्
बड़ा्होना्चादहये्।्शेष्भवनो्को्बुद्धिमान्स्थपनत्को्उससे्हीन्बनाना्चादहये्॥६७-६८॥
om
गभण-गह
ृ ्को्उनचास्भागों्में ्बाूँिना्चादहये्।्मध्य्के्आठ्भागों्में ्ब्रह्मा्का्पद्होता्है ्।्
चारो्ओर्आठ्भाग्आठो्दे वताओं्के्सलये, इसके्बाहर्सोलह्भाग्मनुष्यों्के्सलये्एवं्बाहर्के्
चौबीस्भाग्वपशाच्के्सलये्होते्है ्॥६९॥
सशवसलङ्ग्को्ब्रह्मा्के्भाग्मे, ववष्र्ु्को्दे वों्के्भाग्में ,अधय्दे वोम्को्मनुष्यों्के्भाग्में ,
वपशाचभाग्में ्मातद
s.c
ृ े वों, असुरों, राक्षसों, गधिवण्आदद्दे वो, यक्षो्एवं्अधय्शेष्दे वों्की्स्थापना्करनी्
चादहये्।्मध्य्मे्ब्रह्मा्का्सूर्होता्है ्।्उसके्वाम्भाग्में ्सशव्तथा्दोनो्के्मध्य्में ्
ववष्र्ुसूर्होता्है ्।्दे वों्को्क्रमशः्ववष्र्ुसूर्पर्स्थावपत्करना्चादहये्।्ये्सूर्ददशाओं्से्खींच्े
जाते्है ्॥७०-७१॥
ok
सलङ्ग्सकल्(अंगो्से्युक्त), अकल्(अंगववहीन)्या्समधश्रत्हो, बुद्धिमान्स्थपनत्को्साविान्
होकर्न्स्थरतापूवक
ण ्उसे्स्थावपत्करना्चादहये्।्(स्थपनत्को)्सुवर्ण्यज्ञोपवीत्तथा्आभूषर्ों्से्
सुसन्ज्जत्होकर, सभी्प्रकार्के्वैभव्से्युक्त्होकर्(सलङ्ग्के)्स्थापक्के्साथ्(सशवसलङ्ग)्की्
स्थापना्करनी्चादहये्।्सवाणत्म्सलङ्ग्(सामाधयतया्आकृनतहीन्होने्के्कारर्)्आकाशरूप्होते्
Bo
दे वालय्में ्ननयमानस
ु ार्स्थावपत्ककया्जाता्है ्॥७४॥
मयमतम्-्अध्याय्३५
जीणो्धार-्विधान्-
अब्मै्(मय)्हम्यो्(मन्धदरो), सलङ्गो, पीठो, प्रनतमाओं्एवं्अधय्वास्त-ु ननमाणर्ों्के्अधय्लक्षर्ों्से्
अनक
ु मणववधि्का्संक्षेप्में ्उनके्क्रम्से्भली-भाूँनत्वर्णन्करता्हूूँ्॥१॥
भिनजीणो्धार
भवन्का्जीर्ोद्िार्-्भवन्(दे वालय)्िूि्सकता्है , धगर्सकता्है , िे ढ़ा्हो्सकता्है , परु ाना्हो्
सकता्है ्या्जीर्ण्हो्सकता्है ्।्अथवा्इसकी्जानत, छधद, ववकलप्या्आभास्संस्थान्से्सभधन्
om
हो्सकती्है ्।्अथवा्इसकी्जानत, छधद, ववकलप्या्आभास्संस्थान्से्सभधन्हो्सकती्है ्।्
न्जन्(दे वालयों)्का्लक्षर््स्पष्ि्न्हो, वहाूँ्स्थावपत्सलङ्ग्के्भेद्के्अनुसार्(अनुकमणवविान्
होना्चादहये)्इसमें ्अधय्द्रव्य, अच्छे ्द्रव्य, नवीन्घर, ववस्तार्एवं्ऊूँचाई्आदद्से्उधचत्आय्
आदद्का्ननिाणरर््तथा्अलंकरर््आदद्से्(अनुकमण्होना्चादहये)्॥२-४॥
न्जन्दे वालयों्के्प्रिान्अंगो्एवं्उपांगो्के्लक्षर््प्राप्त्हो्रहे ्हो, उनका्(अनुकमणवविान)्उधही्के्
s.c
द्रव्यों्से्करना्चादहये्।्यदद्उनमें ्ककसी्तत्त्व्की्कमी्हो्या्कोई्और्अभाव्हो्तो्ववद्वानों्
के्अनुसार्उसे्पूर््ण करना्चादहये्।्इससे्वे्पूर्त
ण ा्को्प्राप्त्करते्है ्एवं्सौम्य्रीनत्से्द्रव्यों्
का्प्रयोग्करना्चादहये्।्यह्सब्ऊूँचाई्आदद्के्अनुसार्होना्चादहये्एवं्उनको्सौन्ष्ठक्एवं्
कोष्ठ्आदद्अलंकारो्से्युक्त्करना्चादहये्।्ववना्उसमें ्कुछ्जोड़े्उसके्वास्तववक्स्वरूप्को्
ok
बनाये्रखना्चादहये्॥५-७॥
नागर्दे वालय्में ्नागर्दे वालय्(का्अनुकमण-वविान)्कहा्गया्है ्।्इसी्प्रकार्द्राववड्दे वालय्में ्
द्राववड्एवं्वेसर्दे वालय्में ्वेसर्प्रशस्त्कहा्गया्है ्।्अवपणत्भवन्में ्भी्अवपणत्(भवन्का्
Bo
om
स्थान्पर्दस
ू रा्ऐसा्सलङ्ग्स्थावपत्करना्चादहये, न्जसे्सूय्ण की्ककरर्ें ्भी्न्स्पशण्की्हो्।्जो्
सलङ्ग्अपववर्वस्तुओं्के्मध्य्में ्रक्खा्हो, या्जो्पीठ्के्खात्के्ननचले्तल्का्स्पशण्करे ,
अथवा्जो्पीदठका्के्ऊपर्न्ददखाई्पडे, उसे्'तुच्छ' सलङ्ग्कहते्है ्।्न्जस्सलङ्ग्की्ददशा्सही्
न्हो, वह्भी्उसी्प्रकार्(तुच्छ्)्होता्है ्।्ववद्वान्व्यन्क्त्वक्र्एवं्वक्रवत्त
ृ ्ं सलङ्ग्को्माप्के्
अनुसार्ठीक्कर्सकता्है ्॥१८-२०॥
s.c
जो्सलङ्ग्ज्ञात्काल्तक्भूसम्में ्गड़ा्हो, उसे्अिोगत्सलङ्ग्कहते्है ्।्इसे्बाहर्ननकाल्कर्
इसका्माप्करना्चादहये्।्अज्ञात्काल्से्गड़े्सलङ्ग्को्ऊध्वणगत्सलङ्ग्कहते्है ्।्यदद्इसमें ्
कोई्दोष्न्हो्तो्उसे्पुनः्उसी्स्थान्पर्स्थावपत्करना्चादहये्॥२१-२२॥
ok
यदद्सलङ्ग्नदी्में ्धगर्जाय्तो्उसे्ननकाल्कर्उसके्पुराने्स्थान्से्एक्सौ्दण्ड्दरू ्ददव्य्
सलङ्ग्की्ववधि्से्पववर्स्थान्पर्पूवम
ण ुख्ववधिपूवक
ण ्स्थावपत्करना्चादहये्॥२३॥
यदद्कोई्सलङ्ग्सभी्लक्षर्ों्से्युक्त्हो; ककधतु्मधर्एवं्कक्रया्से्रदहत्एवं्अज्ञानतापूवक
ण ्
स्थावपत्हो्तो्उसे्ववधिपव
ू क
ण ्पन
ु ः्स्थावपत्करना्चादहये्।्हीन, जले्हुये, जीर्ण, फूिे ्एवं्िूिे ्हुये्
Bo
सभी्लक्षर्ों्से्यक्
ु त्होने्पर्भी्तल्या्अक्ष्(अथाणत्उधचत्आकृनत्न्होने्पर)्से्रदहत्होने्
पर्अथवा्त्याज्य्क्षेर्में ्होने्पर्वह्सलङ्ग्स्थापना्के्योग्य्नही्होता्है , अतः्उसका्पर्
ू ्ण रूप्
से्त्याग्करना्चादहये्।्उसके्स्थान्पर्नवीन्सलङ्ग्की्ववधिपूवक
ण ्स्थापना्करनी्चादहये्।्
यदद्ककसी्सलङ्ग्को्चोर्छोड़्गये्हो्एवं्वह्पञ्च-सधिान्के्भीतर्धगरा्हो्तथा्वह्सलङ्ग्
दोषरदहत्हो्तो्उसे्वही्पर्ववधिपूवक
ण ्स्थावपत्करना्चादहये्॥२७-२८॥
चाण्डाल्एवं्शूद्र्आदद्द्वारा्स्पशण्ककया्गया्सलङ्ग्(पूजा्के्सलये)्अयोग्य्कहा्गया्है ्।्यदद्
नदी्के्ति्पर्स्पशण्ककया्गया्हो्एवं्वह्सलङ्ग्मन्धदरववहीन्हो्तो्उसे्पूव्ण ददशा्या्उत्तर्
ददशा्में ्अधयर्पववर्स्थान्पर्ले्जाकर्पूवव
ण र्र्णत्ववधि्द्वारा्लाये्गये्सलङ्ग्के्समान्
सम्यक््प्रकार्से्स्थावपत्करना्चादहये्।्यदद्बेर्(प्रनतमा)्को्भी्पररन्स्थनतवश्नये्स्थान्पर्
ले्जाया्एवं्वह्दोषहीन्हो्तो्उसे्स्थावपत्करना्चादहये्।्इस्ववषय्में ्यदद्कुछ्न्कहा्गया्
हो्तो्जो्कुछ्सलङ्ग्के्सलये्कहा्गया्है , उसी्ववधि्को्मानना्चादहये्॥२९-३१॥
कुछ्ववद्वानों्के्मतानस
ु ार्यदद्सलङ्ग्बारह्वषों्से्अधिक्समय्तक्शूधय्(पज
ू ा्आदद्से्
रदहत, त्यक्त)्रहा्हो्तो्ऐसे्सलङ्ग्को्दोषरदहत्होने्पर्भी्ग्रहर््नही्करना्चादहये्।्
बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्उसे्शीि्ही्नदी्में ्प्रवादहत्कर्दे ना्चादहये्॥३२॥
पीठजीणो्धार
पीठ्का्जीर्ोद्िार्-्सशला्आदद्द्वारा्ननसमणत्पीठं ्यदद्दोषरदहत्हो्तभी्उसका्ग्रहर््करना्
चादहये्।्ब्रह्मसशला, अधय्द्रव्य्एवं्वपण्ड्आदद्का्ग्रहर््पहले्के्समान्करना्चादहये्॥३३॥
ववना्लक्षर््के, हीन्(अपूर्)ण , िूिे -फूिे ्पीठ्का्त्याग्कर्पूवव
ण र्र्णत्ववधि्से्पीठ्का्ननमाणर््करना्
चादहये्।्पाषार्ननसमणत्पीठ्के्स्थान्पर्पाषार्ननसमणत्तथा्काष्ठमय्पीठ्के्स्थान्पर्काष्ठमय्
om
पीठ्ननसमणत्करना्चादहये्।्यदद्पूव्ण पीठ्धगर्जाय्तो्पहले्के्समान्उधचत्रीनत्से्ननमाणर््
करना्चादहये्।्प्रस्तर्के्प्राप्त्न्होने्पर्या्इष्िका-ननसमणत्पीठ्होने्पर्पीठ्को्इष्िका्से्ही्
ननसमणत्करना्चादहये्॥३४-३६॥
बेरजीणो्धार
त्याग्कर्नवीन्प्रनतमा्की्पूवव
s.c
बेर्का्जीर्ोद्िार्-्यदद्प्रस्तरननसमणत्या्काष्ठननसमणत्बेर्(प्रनतमा)्अपूर््ण हो्तो्उसका्तुरधत्
ण र्र्णत्ववधि्से्स्थापना्करनी्चादहये्।्उधचत्माप्से्युक्त्होने्
पर्भी्यदद्बेर्जीर्ण्हो्या्िूि-फूि्जाय्तो्उसका्त्याग्कर्उसके्स्थान्पर्नवीन्बेरे्
स्थावपत्करना्चादहये्॥३७-३८॥
ok
िातु-ननसमणत्या्मवृ त्तकाननसमणत्बेर्हाथ, नाक, पैर, आभूषर्, कान्एवं्दाूँत्आदद्से्रदहत्हो्तो्उसे्
उसी्द्रव्य्(िातु्में ्िातु्एवं्मवृ त्तका्में ्मवृ त्तका)्द्वारा्(उन्अंगो्को)्दृढ्ककया्जाता्है ; ककधतु्
यदद्प्रिान्अंग्से्रदहत्हो्तो्उसे्त्याग्कर्दस
ू री्नवीन्प्रनतमा्की्स्थापना्करनी्चादहये्
॥३९॥
Bo
सामान्यविथध
सामाधय्ननयम्-्दे वालय, सलङ्ग, पीठ्या्प्रनतमाओं्में ्(जीर्ोद्िार्करते्समय)्उधही्द्रव्यों्या्
उत्तम्द्रव्यों्का्प्रयोग्करना्चादहये्।्हीन्द्रव्यों्का्प्रयोग्कभी्नही्करना्चादहये्।्(उपयक्
ुण त्
के)्जीर्ण्हो्जाने्पर्जो्ववद्वान्उसका्ननमाणर््(जीर्ोद्िार)्करना्चाहता्है , उसे्उसी्द्रव्य्से्
44
पव
ू व
ण र्र्णत्रीते्से्ववधिपव
ू क
ण ्सम्(ठीक)्करना्चादहये्।्यदद्उपयक्
ुण त्हीन्(कम्या्छोिे )्हो्तो्
उसे्पव
ू -ण रूप्के्बराबर्करना्चादहये्।्उससे्अधिक्करने्पर्शभ
ु ्की्कामना्करने्वाले्को्सदा्
सवणदा्अभीष्ि्की्प्रान्प्त्होती्है ्॥४०-४२॥
हीन्का्ननमाणर््श्रेष्ठ्द्रव्यों्से्करना्चादहये्या्पहले्प्रयुक्त्द्रव्य्से्करना्चादहये्।्इसका्माप्
गभणगह
ृ , स्तम्भ्एवं्द्वार्आदद्के्प्रमार््के्अनुसार्होना्चादहये्।्यदद्प्रनतमा्मवृ त्तका-ननसमणत्हो्
तो्उसे्जल्में ्प्रवादहत्करना्चादहये्।्काष्ठ-ननसमणत्को्अन्ग्न्में ्प्रज्ज्वसलत्करना्चादहय्।्
िातुननसमणत्को्अन्ग्न्में ्जलाने्पर्शुद्ि्रूप्(िातु)्प्राप्त्होता्है ्॥४३-४४॥
ग्रामादद्का्जीर्ोद्िार्-्ग्राम्आदद्का, गह
ृ ्आदद्का्तथा्शाला्आदद्का्व्यास्एवं्लम्बाई्
(जीर्ोद्िार्के्समय)्मूल्से्कम्नही्होना्चादहये्।्यह्प्रशस्त्नही्होता, ऐसा्श्रेष्ठ्मुननयों्का्
मत्है ्।्इसे्उसके्बराबर्बनाये्या्उससे्अधिक्बनाना्चादहये्।्आवश्यकतानुसार्इसे्चारो्
ओर्बढाना्चादहये्अथवा्पव
ू व
ण र्र्णत्ददशा्में ्बढ़ाना्चादहये्।्दक्षक्षर््या्पन्श्चम्ददशा्में ्बढ़ाने्
पर्वस्त्ु (गह
ृ )्का्ववनाश्होता्है ्॥४५-४६॥
गह
ृ ्या्मासलका्में ्ऊपर्के्तल्पव
ू स
ण ंख्या्के्अनस
ु ार्ननसमणत्करना्चादहये्।्उससे्कम्करना्
उधचत्नही्होता्है ्।्इसक्अननमाणर््पूवव
ण र्र्णत्क्रम्से्करना्चादहये्॥४७॥
बालस्थापन
बाल-स्थापन्-्ननमाणर्-कायण्के्आरम्भ्मे्अथवा्जीर्ण्होने्या्िूिने्पर, हीन्अंगो्(अपूर्)ण ्के्
ननमाणर््में , सलङ्ग्अथवा्बेर्(प्रनतमा)्के्धगरने, फूिने, प्रिान्अंग्के्हीन्होने्(िूिने्या्खोने)्पर,
पीठबधि्के्समय्बाल-स्थापन्(सामनयक्स्थापना)्करनी्चादहये्॥४८॥
प्रिान्भवन्के्उत्तर्में ्नौ्स्तम्भो्पर्(बाल्भवन)्का्स्थापन्करना्चादहये्।्बाल-स्थापन्का्
माप्प्रिान्भवन्के्तीसरे , चौथे, पाूँचवे्या्छठे ्भाग्के्बराबर्होता्है ्।्अथवा्इसका्माप्तीन,
om
चार, पाूँच, छः्या्सात्हाथ्छोिे ्या्बड़े्(भवन्के्)्अनुसार्होना्चादहये्॥४९॥
(बालभवन्की)्सभवत्त्की्मोिई्प्रिान्भवन्के्भूतल्के्स्तम्भ्की्दग
ु ुनी्या्नतगनी्होती्है ्।्
शेष्गह
ृ ्नीचे्होते्है ्।्यह्(बालभवन)्सभा्या्मण्डप्हो्सकता्है ्॥५०॥
(सलङ्ग्की्ऊूँचाई)्गभणगह
ृ ्के्चतुथांश्से्लेकर्आिे्तक्हो्सकती्है ्।्इन्दोनो्मापों्के्मध्य्
s.c
के्अधतर्को्आठ्से्भाग्दे ने्पर्(सलङ्ग)्के्नौ्ऊूँचाई्के्माप्प्राप्त्होते्है ्।्सलङ्ग्की्
पररधि्उसकी्ऊूँचाई्के्बराबर्होती्है ्।्यह्अच्छी्गोलाई्से्युक्त्होता्है ्एवं्इसका्सशरोभाग्
छर्के्समान्एवं्सूरहीन्होता्है ्॥५१॥
तरुर््सलङ्ग्के्नौ्प्रमार््प्राप्त्होते्है ्।्यह्स्थापक्के्अंगुसल-प्रमार््से्पधद्रह्अंगुल्माप्से्
ok
प्रारम्भ्होता्है ्एवं्एक-एक्अंगुल्प्रत्येक्में ्बढ़ाया्जाता्है ्।्इसे्पीठ्में ्इसकी्लम्बाई्के्
तीसरे ्या्चौथे्भाग्के्बराबर्गहराई्में ्स्थावपत्ककया्जाता्है ्॥५२॥
तरुर््सलङ्ग्की्सबसे्अधिक्ऊूँचाई्प्रिान्भवन्के्मूल्भाग्के्बराबर्होती्है ्एवं्सबसे्कम्
ऊूँचाई्उसकी्आिी्होती्है ्।्इन्दोनों्के्मध्य्के्अधतर्को्आठ्से्भाग्दे ने्पर्ऊूँचाइयों्के्
Bo
नौ्भेद्प्राप्त्होते्है ्॥५३॥
तरुर््प्रनतमा्की्ऊूँचाई्के्नौ्भेद्प्राप्त्होते्है ्।्इसे्सात्अंगल
ु ्से्प्रारम्भ्कर्प्रत्येक्(अगले्
चरर््पर)्दो्अंगल
ु ्बढ़ाते्जाना्चादहये्।्यह्ववधि्सकल्(अंगयक्
ु त)्एवं्सकल्(अंगववहीन)्
दोनों्(प्रकार्के्प्रनतमाओं, सलङ्गों)्के्सलये्कही्गई्है ्॥५४॥
44
जब्कोई्तरुर््प्रनतमा्पज
ू न्के्सलये्ननसमणत्हो्तो्उसकी्सबसे्अधिक्ऊूँचाई्मल
ू ्चल्प्रनतमा्
की्आिी्तथा्सबसे्कम्ऊूँचाई्उसके्चतथ
ु ांश्होनी्चादहये्।्इन्दोनों्मापो्के्मध्य्के्माप्
को्आठ्से्भाग्दे ने्पर्ऊूँचाई्के्नौ्प्रमार््प्राप्त्होते्है ्॥५५॥
तरुर््पीठ्की्सबसे्अधिक्ऊूँचाई्एवं्ववस्तार्मूल्अचल्पीठ्के्बराबर्होती्है ्एवं्सबसे्कम्
माप्उसका्तीन्चौथाई्होता्है ्।्इन्दोनों्मापों्के्मध्य्के्अधतर्में ्आठ्से्भाग्दे ने्पर्
ऊूँचाई्एवं्ववस्तार्के्नौ्माप्प्राप्त्होते्है ्॥५६॥
तरुर््दे वालय्में ्प्रनतमा्या्सलङ्ग्प्रस्तर, लोह्(िातु)्अथवा्काष्ठननसमणत्होते्है ्।्(बाल्अथवा्
तरुर्)्सलङ्ग्के्सलये्अनुकूल्वक्ष
ृ ्सरल, कालज, चधदन, साल, खददर, मारुत, पीपल्एवं्नतधदक
ु ्
॥५७॥
तरुर्ालय्में ्स्थावपत्होने्वाली्सलङ्ग्या्प्रनतमा्होनी्चादहये्।्जब्तक्प्रिान्दे वालय्का्
ननमाणर््नही्होता्है ्एवं्जब्तक्वान्ञ्छत्लक्ष्य्ससद्ि्नही्हो्जाता, तब्तक्के्सलये्ही्इसे्
करना्चादहये्।्प्राचीन्मनीवषयों्के्अनस
ु ार्तरुर्ालय्को्बारह्वषण्से्अधिक्नही्करना्चादहये्
।्यह्सीमा्अधय्कायोम्के्सलये्भी्है ्।्यदद्अवधि्इससे्अधिक्हो्तो्सभी्प्रकार्के्दोष्
उत्पधन्होते्है ्॥५८॥
इस्प्रकार्मन्धदरों, सलङ्गो, पीठों, मूनतणयों, ग्राम्आदद्आवासयोग्य्स्थानोंमे्यदद्दोष्आ्जायूँ्तो्
उनके्अवश्य्करने्योग्य्अनुकमण-ववधि्का्वर्णन्ककया्गया्।्इनसे्सभधन्ववधि्सभी्प्रकार्के्
दोषों्का्कारर््बनती्है ्॥५९॥
om
मयमतम्-्अध्याय्३६
प्रनतमालक्षण s.c
प्रनतमा्के्लक्षर््-्अब्ब्रह्मा्आदद्दे वों्एवं्दे ववयों्के्ववधयास, रं ग, आयि
ु , वाहन, अलंकार, धचह्न्
एवं्ववमान्का्क्रमशः्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्॥१॥
ब्रह्म
ब्रह्मा्-्ब्रह्मा्के्चार्मुख, चार्भुजायें, तपाये्गये्सोने्के्समान्वर्ण्तथा्ववद्युत्के्प्रकाश्
ok
की्ककरर्ों्के्समान्पीली्जिाये्होती्है , न्जन्पर्मुकुि्बूँिा्होता्है ्।्ये्कुण्डल, बाजूबधद, हार,
मग
ृ चमण्एवं्उत्तरीय्से्सुशोसभत्होते्है ्।्उत्तरीय्(ऊपरी्भाग्में ्ओढ़ा्जाने्वाला्वस्र, चादर)्
को्जनेऊ्के्समान्गलाधत्तक्रखना्चादहये्॥२-३॥
Bo
उनके्बभ्रु्वर्ण्(भूरी, पीली)्के्ऊरु्भाग्मे्मौन्ञ्जक्(मूँज
ू ्की)्मेखला्रहती्है ्।्वह्श्वेत्तथा्
पववर्माला्एवं्वस्र्िारर््ककये्रहते्है ्।्दादहने्दोनो्हाथो्में ्अक्षमाला्एवं्कूचण्(कूँू ची)्होती्
है ्।्वाम्भाग्के्(दोनो्हाथों्में )्कमण्डलु्एवं्कुश्होता्है ्।्अथवा्दक्षक्षर््हाथों्में ्स्रक
ु ्
(काष्ठननसमणत्चम्मच, न्जससे्हवन्ककया्जाता्है )्एवं्स्रव
ु ्(काष्ठननसमणत्यज्ञीय्पार)्होता्है ्
44
om
प्राप्त्होता्है ्॥१२-१३॥
त्रत्रविक्रम
बरववक्रम्-्प्रलयकालीन्बादल्के्समान, गभणगह
ृ ्के्सभवत्त्के्सहारे ्खडे, पञ्चायुि्शरीर्वाले्
बरववक्रम्होते्है ्।्वामन्की्प्रनतमा्भी्इसी्प्रकार्होती्है ्॥१४॥
नारमसंह
s.c
नारससंह्-्नारससंह्(की्प्रनतमा)्वैष्र्व्है ्।्इनका्मुख्ससंह्का, अत्यधत्रूक्ष्(भयानक), उग्र्
दाूँत्एवं्वे्अत्यधत्बली्होते्है ्।्उनकी्माूँसल्जाूँघें्मुड़ी्होती्है ्एवं्वे्रोम्तथा्माला्से्
युक्त्होते्है ्।्वे्कुण्डल्से्युक्त, स्थल
ू ्न्जह्वा्वाले, करण्ड्एवं्मुकुि्से्अलंकृत्होते्है ्।्
ok
उनका्वर्ण्श्वेत्होता्है ्।्(नारससंह)्ववशाल्शरीर्मंगलमय्एवं्प्रचण्ड्वेग्से्युक्त्होते्है ्।्
उनके्दस्या्आठ्हाथ्होते्है ्एवं्वे्तीक्ष्र््दाूँत्एवं्नख्से्युक्त्होते्है ्।्वे्पीले्जनेऊ,
पुष्पमालाओं्से्अलंकृत्होते्है ्तथा्हार, केयूर, किक्एवं्कदिसूर्आदद्से्सुशोसभत्होते्है ्।्
नारससंह्दे व्रक्त्वस्र्िारर््ककये्हुये्रहते्है ्एवं्यद्
ु ि्में ्उनके्दोनो्हाथो्में ्अस्र्नही्होते्
Bo
ग्राम्आदद्में ्चतभ
ु ज
ुण , शंख्एवं्चक्र्िारर््ककये, सभी्आभरर्ों्से्सस
ु न्ज्जत, पीत्वस्र्िारर््
ककये, पववर्नारससंह्दे व्को्वायव्य्कोर््में ्खड़ी्या्बैठी्मद्र
ु ा्में ्स्थावपत्करना्चादहये्।्
(आसीन्मुद्रा्में ्)्इनके्दो्हाथ्शन्क्तशाली्जानुओं्पर्न्स्थत्होते्है ्एवं्उनकी्जङ्घायें्
पट्दिका्के्ऊपर्उठी्होती्है ्।्उनकी्मुद्रा्दण्ड्होती्है ्(अथवा्उनके्हाथ्में ्दण्ड्हो)्अथवा्
अभय्मुद्रा्होती्है ्।्अथवा्अधय्मुद्रा्होती्है ्।्उधहे ्योगपट्ि्से्लपेिना्चादहये्।्इनकी्
स्थानक्(खडी्मुद्रा)्प्रनतमा्पद्माकार्पीठ्पर्वरद्एवं्अभय्मुद्रा्वाले्हाथों्से्युक्त्होनी्
चादहये्।्(नारससंह्की्यह्प्रनतमा)्शान्धत, पुन्ष्ि, जय, आरोग्य, भोग, ऐश्वयण्एवं्िन्प्रदान्करती्
है ्॥२१-२४॥
अनन्तिायी
अनधतशायी्-्(अनधतशायी्ववष्र््ु का)्शयन्करता्हुआ्रूप्अनधत्रूप्वाली्शय्या्पर्ननसमणत्
करना्चादहये्।्यह्(सपणरूप)्शय्या्तीन्मेखला्(तीन्कुण्डली्मारी्हुई)्एवं्पाूँच्या्सात्फर्ों्
से्यक्
ु त्होनी्चादहये्।्दे वता्का्सशर्पव
ू ्ण या्दक्षक्षर््ददशा्में ्होना्चादहये्।्इनकी्दो्भज
ु ायें्
होनी्चादहये्एवं्दे वता्को्प्रभु्(भास्वर, प्रकाशमान)्होना्चादहये्।्दक्षक्षर््हस्त्में ्दण्ड्होना्
चादहये्अथवा्उनका्हाथ्सशर्को्िारर््ककये्हो्(सहारा्ददये्हो)्।्उनके्बाूँये्हाथ्में ्पुष्प्
होना्चादहये्।्इस्प्रकार्(अनधतशायी)्योगननद्रा्मे्होते्है ्।्कृत्(सतयुग)्आदद्युगों्में ्इनका्
वर्ण्क्रमशः्श्वेत, पीत, अञ्जन्के्समान्कृष्र््एवं्श्याम्होता्है ्। इनके्आभूषर््पहले्के्वर्णन्
के्अनुसार्होने्चादहये्॥२५-२७॥
(अनधतशायी्की)्नासभ्से्उत्पधन्कमल्पर्ध्यानस्थ्िाता्आसीन्रहते्है ्।्श्री्एवं्भूसम्को्
हाथ्में ्पुष्प्लेकर्सशर्की्ओर्एवं्पैर्की्ओर्स्थावपत्करना्चादहये्।्दे वता्के्पाश्वण्में ्
om
पुष्प्से्युक्त्(उनका)्हाथ्हो, दस
ू रा्घूिने्पर्फैला्हो्।्दे व्का्वाम्पैर्श्री्की्ओर्एवं्
दक्षक्षर््पैर्भूसम्की्ओर्होना्चादहये्।्शंख, चक्र, गदा, शाङ्णग्िनुष्एवं्खड्ग्का्अंकन्अपने्
रूप्में ्होना्चादहये्॥२८-३०॥
शंख्का्स्वामी्वामन्पुरुष्होता्है , न्जसका्वर्ण्श्वेत्होता्है ्।्चक्र्रक्त्वर्ण्का्पुरुष्है ्।्
s.c
गदा्सोने्के्वर्ण्की्स्री्होती्है ्।्शाङ्णग्कृष्र््वर्ण्का्पुरुष्होता्है ्।्खड््ग्श्यामल्वर्ण्की,
सभी्आभरर्ों्से्आभूवषत्स्री्होती्है ्।्ये्सभी्वाम्भाग्मे्न्स्थत्होते्है ्।्वाम्हस्त्में ्
सूधचयाूँ्(धचह्न)्होती्है ्एवं्दक्षक्षर््हाथ्उठा्होता्है ्।्सभी्अनेक्वर्ों्के्वस्र्िारर््ककये्
होते्है ्एवं्उनके्ससर्पर्अस्र्रक्खे्होते्है ्।्(दे वता्के)्पाश्वण्भाग्में ्क्रोधित्मि्ु एवं्कैिभ्
ok
(असुरों)्को्स्थावपत्करना्चादहये्।्सुरेधद्र्को्अधय्दे वों्एवं्महवषणयों्के्साथ्पूवम
ण ुख्होना्
चादहये्।्॥३१-३२-३३॥
दहत्की्कामना्करने्वालों्को्ननयमानुसार्हरर्को्ग्राम्आदद्वास्तु्के्मध्य्में ्अथवा्बाहर्
ददशाओं्एवं्ददक्कोर्ों्में ्स्थावपत्करना्चादहये्॥३४॥
Bo
महे श्िर
महे श्वर-्(महे श्वर्के)्उध्वण्भाग्में ्वपशंग्वर्ण्(भरू ा्लाल)्की्जिायें्सव
ु र्ण्एवं्अन्ग्न्के्समान्
भास्वर्होती्है ्।्उनके्ऊरू्सघन्होते्है ्।्वे्ककरर्समह
ू ्से्यक्
ु त्चधद्रमा्को्अपनी्जिाओं्में ्
िारर््करते्है ्।्वे्चार्भज
ु ाओं्एवं्तीन्नेरों्वाले, सौम्य्एवं्पर्
ू ्ण यव
ु ावस्था्से्यक्
ु त्होते्है ्।्
44
(महे श्वर)्ववस्तत
ृ ्वक्ष्वाले, वष
ृ ्पर्सवार, श्रख
ं ृ ला, अंकुश्एवं्पाश्िारर््ककये्रहते्है ्।्इनकी्
भज
ु ायें्ववस्तत
ृ ्एवं्ऊूँची्होती्है ्तथा्गज्के्सूँड
ू ्के्समान्होते्है ्।्वे्हार्एवं्नप
ू रु , किक,
कदिसूर, नागननसमणत्कुण्डल, उदर-भाग्को्बाूँिने्वाली्मेखला्से्युक्त्एवं्मग
ृ चमण्से्युक्त्होते्
है ्॥३५-३८॥
(महे श्वर्की)्दस्या्आठ्भुजायें्सभी्प्रकार्के्अलंकरर्ों्से्युक्त्होती्है ्।्दादहने्हाथ्में ्
शन्क्त, शूल, असस, गदा्एवं्अन्ग्न्होती्है ्।्वाम्हस्त्में ्नाग, खट््वाङ्ग, खेिक, कपाल्एवं्
नागपाश्होते्है ्।्व्यािचमण्के्वस्र्को्िारर््ककये्सशव्प्रसधन्(भाव्से्युक्त)्होते्है ्।्
अष्िभुजाओं्वाले्महे श्वर्उपयक्
ुण त्अस्रों्में ्गदा्एवं्असस्से्रदहत्होते्है ्।्ये्बैठे्हुये, खड़े्
अथवा्वष
ृ ्पर्आरूढ्होते्है ्एवं्वष
ृ ध्वज्से्युक्त्होते्है ्॥३९-४१॥
(महे श्वर)्भंग
ृ ी्वाद्य्एवं्नत्ृ य्तथा्(अधय)्वाद्यों्से्प्रसधन्होकर्नाचते्हुये, नन्धद्आदद्गर्ों्
से्यक्
ु त, दे वाददकों्से्सेववत्रहते्है ्।्दहत्की्कामना्करने्वालों्के्द्वारा्(महे श्वर्की)्
स्थापना्ग्राम्या्नगर्में ्करनी्चादहये्॥४२॥
षोडिमुर्त्य
ा
सोलह्मूनतणयाूँ्-्अब्मै्(मय)्महे श्वर्की्सोलह्प्रकार्की्मूवत्तणयों्का्वर्णन्क्रमशः्ननयमानुसार्
करता्हूूँ्।्सुखासन, वववाह, उमास्कधद, वष
ृ ारूढ, पुरारर, नत्त
ृ , चधद्रशेखर, अिणनारी, ववष्ण्विण,
चण्डेशानुग्रह, कामारर, कालनाश, दक्षक्षर्ामूनतण, सभक्षािन, मुखसलङ्ग्एवं्सलङ्गसम्भूत्॥४३-४५॥
सोलह्मूनतणयों्के्सामाधय्लक्षर््इस्प्रकार्वर्र्णत्है ्।्(महे श्वर)्तीन्नेरों, चार्भुजाओं, सशर्पर्
बालचधद्र, व्यािचमण्का्वस्र्िारर््ककये, हार्एवं्केयूर्से्अलंकृत, जनेऊ्से्युक्त्तथा्दो्
कुण्डलों्से्ववभूवषत्होते्है ्।्अब्क्रमशः्प्रत्येक्के्रूप्का्पथ
ृ क-पथ
ृ क्वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्
om
॥४६-४८॥
सुखासनमूवत्तणः
सूखासन्मूनतण्आसन्पर्सुखपूवक
ण ्बैठे्हुये्वरद्एवं्अभय्मुद्राओं्में ्हाथ्वाले्महे श्वर्के्
दादहने्हाथ्में ्िङ्क्(परशु)्एवं्वाम्हाथ्में ्कृष्र््(दहरर्)्ननसमणत्करना्चादहये्।्वाम्पैर्
s.c
आसन्पर्शनयत्।्(लेिा्हुआ, मोड़्कर्रक्खा्हुआ)्एवं्दादहना्पैर्पीठ्पर्दिका्होना्चादहये्
।्न्जनका्वर्णन्यहाूँ्न्ककया्गया्हो, वह्सब्पव
ू व
ण र्णन्के्अनुसार्सुखासन्मूनतण्में ्होना्
चादहये्।्इस्प्रकार्की्मूनतण्की्पूजा्ननन्श्चत्रूप्से्मोक्ष्प्रदान्करती्है
॥४९-५०॥
ok
िैिाहमूवर्त्ा
(महे श्वर्की्मूनतण्को)्थोड़ा्बरभङ्गी्(तीन्स्थान्पर्मुडी्हुई)्ननसमणत्करना्चादहये्।्वाम्पैर्
मुड़ा्होना्चादहये्।्दे वता्का्दादहना्हाथ्दे वी्के्हाथ्से्जुड़ा्होना्चादहये्।्दे वता्का्बाूँया्
हाथ्वरदमद्र
ु ा्में ्होना्चादहये्।्(शेष्दो्हाथ)्कृष्र््(मग
ृ )्एवं्परश्ु से्यक्
ु त्होना्चादहये्।्हर्
Bo
(सशव)्सभी्आभरर्ों्से्यक्
ु त्एवं्क्षौम्वस्र्(रे शमी्वस्र)्िारर््ककये्होने्चादहये्॥५१-५२॥
दे वी्को्दे वता्के्बाहु्के्माप्(बाहु्के्बराबर्ऊूँचाई)्का्ननसमणत्करना्चादहये्।्दे वी्को्दो्
बाहु्से्यक्
ु त, दो्नेरो्वाली, सध
ु दर्मखु ्वाली, श्याम्वर्ण्की, कोमल्तथा्थोड़ी्िे ढी्ननसमणत्करना्
चादहये्।्गौरी्को्केयरू , किक, अंगठ ू ी्से्यक्
ु त, ससर्पर्करन्ण्डका्एवं्सभी्प्रकार्के्आभरर्ों्से्
44
अलंकृत्होना्चादहये्।्गौरी्दक
ु ू ल-वस्र्िारर््ककये्एवं्हाथों्में ्कमल्सलये्होती्है ्।्इनके्
चरर्-कमल्नप
ू रु ्आदद्अलंकरर्ों्से्शोभायमान्होते्है ्।्(इस्प्रकार्की)्गौरी्को्(हर्दे व्के)्
दादहने्भाग्में ्स्थावपत्करना्चादहये्॥५३-५५॥
लक्ष्मी्को्सुवर्ण्वर्ण्की्दो्भुजाओं्एवं्दो्नेरों्से्युक्त्तथा्सभी्आभूषर्ों्से्युक्त्उमा्के्
पाश्वण्में ्ननसमणत्करना्चादहये्।्सशला्अथवा्ववष्र्ुमूनतण्पर्जलिारा्डालनी्चादहये्।्सोलह्
पिल्वाले्कमल्पर्आसीन्ब्रह्मा्वववाह-हवन्के्सम्मुख्हो्।्इस्प्रकार्सभी्दे वगर्ों्से्
युक्त, दे वों्द्वारा्पून्जत्दे वता्का्कलयार््(वववाह)्ननसमणत्करना्चादहये्।्यह्(मूनतण)्सभी्
प्रकार्का्कलयार््करने्वाली्एवं्ससद्धि्प्रदान्करने्वाली्होती्है ्॥५६-५८॥
सोमास्कन्दमूवर्त्ा
सोमाकधद्मनू तण्-्(महे श्वर्दे व्को्अिणचधद्र्के्आकार्के्आसन्पर्आसीन्ननसमणत्करना्
चादहये्।्उनके्वाम्भाग्में ्गौरी्हो्।्उनका्हाथ्उमा्के्साथ्हो्(महे श्वर्का्एक्हाथ्उमा्
को्पकड़े)्।्दे वी्का्हाथ्नछपा्हो्।्उमा्एवं्महे श्वर्के्अपने-अपने्रूप्का्जैसा्वर्णन्पहले्
ककया्गया्है , वैसा्ही्ननमाणर््होना्चादहये्।्ववद्वान्को्दे वी्को्दे वता्के्वाम्भाग्में ्ननसमणत्
करना्चादहये्॥५९-६०॥
उमा्एवं्शंकर्के्बीच्में ्बालरूप्में ्स्कधद्होते्है ्।्उमा्एवं्स्कधद्के्साथ्शंकर्को्
सुखासन्में ्ननसमणत्करना्चादहये्।्उमा्एवं्स्कधद्से्युक्त्दे वता्(शंकर)्सभी्कामनाओं्की्
पूनतण्करते्है ्।्अथण्एवं्ससद्धि्प्रदान्करते्है ्॥६१॥
िष
ृ ारूढमूवर्त्
वष
ृ ्पर्आरूढ्मूनतण्-्उमा्एवं्ईश्वर्(सशव)्पीठ्पर्न्स्थत्होते्है ्एवं्वष
ृ भ्पीछे ्न्स्थत्होता्है ्
om
।्सशव्की्बाूँई्कोहनी्वष
ृ ्के्मस्तक्पर्रक्खी्होती्है ्।्दादहना्हाथ्लिका्रहता्है ्।्बायें्
हाथ्में ्शूल्होता्है ्।्(शेष्दो्हाथों्में )्कृष्र््(मग
ृ )्एवं्परशु्होता्है ्।्इसे्वष
ृ ारूढ्(सशवमूनतण)्
कहते्है ्।्इस्मूनतण्की्पूजा्दाररद्र्य्के्ववनाश्के्सलये्होती्है ्एव्यह्सभी्प्रार्र्यों्का्
कलयार््करती्है ्॥६२-६४॥
त्रत्रपुरान्तकमूवर्त्ा
s.c
बरपुराधतक्-्(भगवान्सशव)्दक्षक्षर््पैर्पर्भली-भाूँनत्न्स्थत्होते्है ्एवं्बायाूँ्पैर्मुड़ा्होता्है ्
।्ये्िनुष्एवं्बार््से्युक्त्तथा्कृष्र््(मग
ृ )्एवं्परशुसे्युक्त्होते्है ्।्ये्वष
ृ भ्द्वारा्खींच्े
जा्रहे ्पर्न्स्थत्होते्है ्एवं्सभी्दे वगर्ों्से्युक्त्होते्है ्।्बरपुर्का्वि्करने्वाले्दे व्
ok
(सशव)्को्उमा्के्सदहत्ननसमणत्करना्चादहये्।्शरओ
ु ं्के्ववनाश्के्सलये्बरपुरसुधदर्का्पूजन्
करना्चादहये्॥६५-६६॥
नर्त्
ृ मूर्त्य
ा
नत्ृ य्करती्मनू तणयाूँ्-्भज
ु ंगलसलत्नत्ृ य्को्यहाूँ्सधध्या्नत्ृ य्कहा्गया्है ्।्इनके्दादहने्हाथ्
Bo
om
कृष्र््(मग
ृ )्तथा्परशु्से्युक्त्ननसमणत्करना्चादहये्॥८०॥
अधानारीश्िरमूवर्त्ा
अिणनारीश्वर्मूवत्तण्-्वाम्भाग्में ्उमा्एवं्दादहने्भाग्में ्ईश्होना्चादहये्।्(दादहना्भाग)्
अत्यधत्पीत्वर्ण्की्जिा, मुकुि्एवं्अनेक्प्रकार्(के्अलंकरर्ों)्से्अलंकृत्होना्चादहये्।्
s.c
आिा्वाम्भाग्िन्म्मल्सीमधत्(माूँग)्से्युक्त्होना्चादहये्एवं्मस्तक्पर्नतलक्होना्
चादहये्।्दादहने्कान्में ्वासुकक्सपण्का्कुण्डल्होना्चादहये्।्बाूँये्कान्में ्ताड़डक्एवं्पासलका्
(आभूषर्ववशेष)्होना्चादहये्।्॥८१-८२॥
(दोनों)्दादहने्हाथों्कें्कपाल, शूल्या्िं क, (परशु)्होना्चादहये्।्बाूँये्हाथ्में ्कमल्होना्चादहये्
ok
तथा्वह्केयूर्एवं्किक्(बाजूबधद्एवं्कंगन)्से्सुसन्ज्जत्होना्चादहये्।्दादहने्बाग्में ्पववर्
(यज्ञोपवीत)्हो्एवं्वाम्में ्अक्षमाला्होनी्चादहये्।्गले्का्वाम्भाग्हार्से्युक्त्तथा्दक्षक्षर््
भाग्अन्ग्न्से्युक्त्होना्चादहये्।्॥८३-८४॥
उमा्के्आिे्भाग्में ्स्तन्एवं्दादहने्(सशव्के)्भाग्में ्पीन्वक्ष्होना्चादहये्।्दादहने्आिे्
Bo
सशव्के्भाग्में ्कमर्पर्व्यािचमण्से्ननसमणत्वस्र्होना्चादहये्।्उमा्वाला्आिा्भाग्
कदिसर
ू ्(करिनी)्तथा्रं ग-बबरं गे्वस्रों्से्आच्छाददत्होना्चादहये्॥८५-८६॥
दे वता्एवं्दे वी्के्दोनो्पैर्एक्ही्पद्मपष्ु प्पर्न्स्थत्रहते्है ; ककधत्ु वाम्पाद्नप
ू रु ्से्
सस
ु न्ज्जत्एवं्थोड़ा्झक
ु ा्होता्है ्।्दे वी्का्वाम्पाद्अंगल
ु ीय्(बबनछया)्से्अलंकृत्होता्है ्
44
॥८७॥
अथवा, दे वता्को्चतभ
ु ज
ुण ्ननसमणत्करना्चादहये्।्उमा्के्(दस
ू रे ्हाथ्में )्शक
ु ्होना्चादहये्।्ईश्
(सशव)्का्आिा्भाग्रक्त्वर्ण्का्एवं्उमा्का्आिा्भाग्श्याम्वर्ण्का्होना्चादहये्।्
ववद्वान्व्यन्क्त्को्इन्लक्षर्ों्से्युक्त्अिणनारीश्वर्के्रूप्का्ननमाणर््करना्चादहये्॥८८-८९॥
हररहरमूवर्त्ा
हररहर्मूवत्तण्-्(इस्मूनतण्का)्आिा्भाग्ववष्र्ु्का्एवं्आिा्भाग्ईश्वर्(सशव)्का्होता्है ्।्
इसे्पूवव
ण त्ननसमणत्करना्चादहये्।्कृष्र््के्आिे्भाग्में ्शंख्एवं्दण्ड्तथा्सशव्के्आिे्भाग्
में ्शूल्एवं्िं क्(परशु)्होना्चादहये्।्एकही्पद्म्पर्न्स्थत्(हरर-हर्को)्उनके्अपने-अपने्
सम्पूर््ण आभरर्ों्से्अलंकृत्करना्चादहये्।्वाम्भाग्ववष्र्ु्का्एवं्दक्षक्षर््भाग्शंकर्का्होता्
है ्॥९०-९१॥
चण्डेिानग्र
ु हमवू र्त्ा
चण्डेशानग्र
ु ह्मवू त्तण्-्प्रत्यालीढ्(िनष
ु ्खीचे्हुये)्दे वता्के्पाश्वण्में ्चण्डेश्को्स्थावपत्करना्
चादहये्।्ह्रदय्पर्हाथ्बाूँिे्हुये्चण्डेश्प्रकोष्ठ्(दोनों्बूँिे्हाथों्के्मध्य)्में ्परश्ु सलये्हो्।्
वह्पुष्पमाला्से्युक्त, अत्यधत्ऊजाणवान्तथा्तेज्से्युक्त्हो्।्यह्चण्डेश्वर्प्रसाद्रूप्है ्
॥९२॥
कामाररमूवर्त्ा
कामारर्मूवत्तण्-्अब्कामारर्सशव्का्रूप-वर्णन्ककया्जा्रहा्है ्।्दे वता्के्पाश्वण्में ्काम्
ननसमणत्होना्चादहए्।्उसक्अरूप्कहा्जा्रहा्है ्।्कामदे व्पयंक्के्बधि्(ककनारे )्बैठे्हो्एवं्
अपना्हाथ्ऊपर्उठाये्हो्।्कामारर्सशव्का्रूप्उग्र्हो्एवं्उधहे ्लक्षर्ों्के्अनुसार्ननसमणत्
करना्चादहये्॥९३-९४॥
om
कालनािमूवर्त्ा
कालनाश्मूवत्तण्-्(सशव्का)्दादहना्पैर्ऊपर्उठा्हो्एवं्बाूँयाूँ्पैर्मुड़ा्होना्चादहये्।्दादहने्
हाथ्में ्शूल्एवं्बाूँये्हाथ्में ्परशु्होना्चादहये्।्(दस
ू रे )्दादहने्हाथ्में ्नाग-पाश्तथा्(दस
ू रा)्
वाम्हस्त्सूधचत्करता्हो्।्उनका्पैर्काल्के्ह्रदय्पर्हो्एवं्शूल्का्मुख्नीचे्की्ओर्
भयानक्होनी्चादहये्॥९५-९७॥
दक्षक्षणामूनता
s.c
होना्चादहये्।्अब्कालनाश्के्ववग्रह्के्बारे ्में ्कहा्जा्रहा्है ्।्उनका्रूप्उग्र्एवं्दृन्ष्ि्
मभक्षाटनमूवर्त्ा
सभक्षािन्मवू त्तण्-्सभक्षािन्मनू तण्को्नग्न्रूप, बरलोचन्एवं्चार्भज
ू ाओं्से्यक्
ु त्होना्चादहये्।्
बाूँये्हाथ्में ्मयूरपूँछ
ू ्एवं्कपाल्होता्है ्।्दादहना्हाथ्दहरर््के्मुख्तक्गया्होता्है ्एवं्
दस
ू रा्हाथ्डमर्सलये्ऊूँचा्उठा्होता्है ्।्पैर्पादक
ु ्(जूता, चप्पल)्से्युक्त्होते्है ्।्दे वता्
चलने्के्सलये्तत्पर्होते्है ्॥१०२-१०३॥
कङ्कालमूवर्त्ा
कंकाल्मूवत्तण्-्अथवा्महे श्वर्आठ्भुजाओं, चार्भज
ु ाओं्या्चार्भुजाओं्या्छः्भुजाओं्से्युक्त्
होते्है ्।्ये्मर्र्यों, मोनतयों्एवं्नागों्से्सुसन्ज्जत्होते्है ्।्सपण्का्कुण्डल्(दादहने्कान्में )्
होता्है ्तथा्बाूँये्में ्पासलक्या्पर्होता्है ्।्उनकी्कदि्क्षुररका्से्आभूवषत्होती्है ्।्दे वता्
व्यािचमण्का्वस्र्िारर््ककये, श्वेत्वर्ण्के्एवं्तीन्नेरों्से्युक्त्होते्है ्॥१०४-१०५॥
दे वता्के्पैर्पादक
ु ्से्सुसन्ज्जत्होते्है ्एवं्हाथ्में ्तदु िकािण्(कच्छप्के्आिे्खोल्से्ननसमणत्
पार)्होता्है ्।्ये्सभी्आभष
ू र्ों्से्आभवु षत्एवं्सभी्भत
ू ों्से्यक्
ु त्होते्है ्।्आवेशयक्
ु त्
न्स्रयों्से्नघरे ्हुये्एवं्सध
ु दर्वेष्से्यक्
ु त्कंकालमवू त्तण्सशव्होते्है ्॥१०६॥
मुखमलङ्ग
मुखसलंग्-्अब्मै्(मय)्सभी्इच्छाओं्की्ससद्धि्के्सलये्मुखसलङ्ग्का्वर्णन्कर्रहा्हूूँ्।्
सशवभाग्की्चौड़ाई्सलङ्ग्की्ऊूँचाई्के्दस्भाग्में ्तीन्भाग्के्बराबर्होती्है ्।्कधिों्के्
सलये्दस्में ्दो्भाग, गले्के्सलये्एक्भाग, मुख्के्सलये्तीन्भाग, सशरोभाग्के्सलये्एक्भाग,
मुकुि्के्सलये्दो्भाग, एक्भाग्मुखववष्कम्भ्के्सलये्होना्चादहये्।्सलङ्ग्के्ऊपरी्भाग्की्
चौड़ाई्भी्उसी्प्रकार्होनी्चादहये्।्ववष्र्ु्एवं्वपतामह्के्भाग्ऋवष-सलङ्ग्के्अनुसार्होने्
चादहये्॥१०७-१०९॥
om
ललाि, बाल-चधद्र, मुख, ओष्ठ, नाससका, नेर, कर्ण, गण्ड्(कपोल)्सभी्के्ववषय्में ्जैसा्कहा्गया्है ,
वैसा्ही्होना्चादहये्।्शास्रज्ञ्को्इसे्मान्एवं्उधमान्(लम्बाई, चौड़ाई, ऊूँचाई)्के्प्रमार््से्
ननसमणत्करना्चादहये्॥११०-१११॥
चारो्मुखों्का्अलंकरन्अब्वर्र्णत्ककया्जा्रहा्है ्।्पूव्ण ददशा्का्मुख्तत्पुरुष्संज्ञक, तीन्
s.c
नेरों्से्युक्त्एवं्न्स्मत्(मुस्कुराहि)्युक्त्होता्है ्।्जिाजूि्चधद्र्से्युक्त्एवं्कुङ्कुम्के्
समान्(रक्त्वर्ण्का)्होता्है ्।्ये्नक्रकुण्डल्(मकराकृनत्कुण्डल)्से्सुशोसभत्होते्है ्एवं्इनके्
नेर्कमल-पर्के्सदृश्होते्है ्।
इनका्दक्षक्षर््मुख्अघोर्संज्ञक्होता्है ्।्आूँखे्एवं्मुख्ससंह्के्समान्होते्है ्।्इनका्वर्ण्
ok
राजावतण्(लाजावतण)्के्समान्होता्है ्एवं्सपण्से्आवत
ृ ्एवं्जिायें्चधद्रमा्से्युक्त्होती्है ्।्
यह्मुख्दाढ़्से्युक्त, मोिी्न्जह्वा्से्युक्त, भूरी्दाढी-मूँछ
ू ों्से्युक्त्एवं्तीन्नेरों्से्युक्त्
होता्है ्॥११४-११५॥
दे वता्का्पन्श्चम्मख
ु ्प्रसधन्रहता्है ्।्ये्रत्नों्एवं्कुण्डल्से्मन्ण्डत्होते्है ्।्बूँिी्जिा्सपण्
Bo
एवं्अिणचधद्र्से्यक्
ु त्होती्है ्।्मख
ु ्पर्
ू ्ण चधद्र्के्समान्होता्है ्।्इसे्सद्योजात्कहते्है ्।्
उत्तर्मख
ु ्बधिक
ू पष्ु प्के्समान्होता्है ्।्जिाजि
ू ्चधद्रमा्से्यक्
ु त्होता्है ्एवं्मस्तक्पर्
नतलक्होता्है ्।्यव
ु नतयों्के्आभरर्ों्से्यक्
ु त्दे वता्का्मख
ु ्िन्म्मल्(केशसज्जाववशेष)्से्
प्रकाशमान्रहता्है ्।्मख
ु सलङ्ग्एक, दो, तीन्या्चार्मख
ु ों्से्यक्
ु त्होता्है ्॥११६-११८॥
44
षण्मख
ु
षण्मख
ु ्-्सभी्आभष
ू र्ोंसे्आभवू षत्षण्मख
ु ्का्सौधदयण्कंु कुम्के्रं ग्का्होता्है ्।्उनके्दादहने्
एवं्बाूँये्पीले्एवं्श्याम्वर्ण्की्गजा्एवं्वलली्संज्ञक्दे ववयाूँ्सभी्आभूषर्ों्से्आभूवषत्
ननसमणत्होती्है ्॥११९॥
ग्राम्आदद्वास्तुओं्के्मध्य्में ्एवं्चारो्ददशाओं्में ्षण्मुख्की्मूनतण्प्रशस्त्होती्है ्।्वीधथयों्
के्अग्र्भाग्या्मध्य्भाग्में ्तथा्ईशान्कोर््में ्षण्मुख्वद्
ृ धि्प्रदान्करते्है ्।्भोग्के्सलये्
इनकी्स्थापना्पन्श्चम्में ्एवं्मोक्ष्के्सलये्मध्य्में ्करनी्चादहये्॥१२०-१२१॥
गणाथधप
गर्ाधिप्-्गर्ाधिप्गजमुख, एकदधत, समन्स्थत, तीन्नेरों्से्युक्त, लाल्वर्ण्के, चार्भुजाओं्
वाले, भूत्रूप, बड़े्उदर्वाले, सपण्के्यज्ञोपवीत्वाले्होते्है ्।्इनके्उरू्एवं्जानु्सघन्होते्है ्।्
ये्पद्मासन्पर्न्स्थत्होते्है ्।्इनका्वाम्पाद्शनयत्मद्र
ु ा्में ्एवं्दक्षक्षर््पैर्मड
ु ा्होता्है ्।्
इनकी्सूँड
ू ्बाूँयी्ओर्मड़
ु ी्होती्है ्॥१२२-१२३॥
दादहने्दोनों्हाथों्से्दाूँत्एवं्अंकुश्पकड़े्होते्है ्।्दोनों्वाम्हस्तों्में ्अक्षमाला्एवं्लड्डू्दे ना्
चादहये्।्(गर्ाधिप)्का्सशरोभाग्करन्ण्डका्(सशरोभूषर्)्से्सुसन्ज्जत्होता्है ्एवं्वे्हार्आदद्
आभूषर्ों्से्आभूवषत्होते्है ्॥१२४-१२५॥
इस्प्रकार्गर्ाधिप्को्खड़ा्या्पद्मपीठ्पर्आसीन्ननसमणत्करना्चादहये्।्नत्ृ य्करते्हुये्
इनकी्छः्या्चार्भुजायें्होती्है ्।्मूषक्इनका्वाहन्एवं्केतु्(ध्वज, पहचान)्होता्है ्॥१२६॥
सूया
सूय्ण -्सूय्ण का्बडा्रथ्एक्चक्र, सात्अश्वों्एवं्आगे्अरुर््(सूय्ण का्सारधथ)्से्युक्त्रहता्है ्
।्दो्हाथो्वाले, हाथ्में ्कमल-पुष्प्से्युक्त्(सूय्ण दे व्का)्वक्ष्कञ्चक
ु ्से्आच्छाददत्रहता्है ्।्
om
इनके्सुधदर्केश्अकुन्ञ्चत्(सीिे)्होते्है ्तथा्प्रभामण्डल्से्युक्त्होते्है ्अथवा्ये्कोशवेष्िन्
(लम्बे्वस्र)्से्युक्त्होते्है ्एवं्स्वर्ण्तथा्रत्नों्से्सुसन्ज्जत्रहते्है ्।्उधहे ्मुकुि्से्एवं्
अधय्सभी्अलंकरर्ों्से्युक्त्करना्चादहये्॥१२७-१२८॥
सूय्ण को्एक्मुख्एवं्स्कधियुक्त्दो्बाहु्होते्है ्।्इधहे ्हाथ्में ्कमल्एवं्पुरुष्की्आकृनत्से्
पूजा्के्अनुकूल्हो्।्ससधदरू ्वर्ण्के्सूयम
s.c
युक्त्ननसमणत्करना्चादहये्।्इधहे ्अश्व्पर्आरूढ़्या्पद्म्पर्न्स्थत्ननसमणत्करना्चादहये, जो्
ण ण्डल्में ्श्याम्वर्ण्की्दे वी्उषा्एवं्सुवर्ण्वर्ण्की्
प्रत्यूषा्की्स्थापना्करनी्चादहये्।॥१२९-१३१॥
(सूय्ण की्प्रनतमा)्चार्भुजाओं्से्युक्त्होने्पर्दो्हाथों्में ्रक्त्कमल्होता्है ्।्अधय्दो्हाथ्
ok
अभय्एवं्वरद्मुद्रा्में ्होते्है ्।्उनका्सारधथ्अरुर््दो्हाथो्से्युक्त्होता्है ्एवं्वह्रथ्पर्
न्स्थत्होता्है ्॥१३२॥
सम्पूर््ण लोक्के्एकमार्जीवात्मा्सूयद
ण े व्सदा्ही्हीन्शरीर्(सम्पूर््ण शरीर)्वाले्होते्है ्।्ददन्
के्स्वामी्सय
ू ्ण की्स्थापना्करनी्चादहये; क्योंकक्यही्ब्रह्मा, ववष्र््ु एवं्सशव्आदद्दे व्है ्।्इनके्
Bo
ददक्पालका
इन्द्र
इधद्र्-्दे वों्के्राजा्शचीपनत्इधद्र्हाथ्में ्वज्र्िारर््ककये्हुये; ससंह्के्समान्स्कधि्वाले;
ववशाल्नेरो्वाले; ककरीि, कुण्डल, हार्एवं्केयूर्िारर््ककये्हुये; गज्वाहन्वाले; दो्भुजाओं्वाले;
श्याम्वर्ण्वाले; रक्त्वर्ण्के्वस्र्िारर््ककये्हुये; सुखी; ललाि, वक्षःस्थल्एवं्पैरों्में ्सभी्
आभूषर््िारर््ककये्हुये; ववशाल्नेरों्वाले्तथा्चौड़ी्ग्रीवा्वाले्होते्है ्॥१३६-१३८॥
अल्ग्न
अन्ग्न-्अन्ग्नदे व्का्स्वरूप्वद्
ृ ि्व्यन्क्त्के्समान्होता्है ्।्ये्अिणचधद्राकार्आसन्पर्न्स्थत्
रहते्है ्।्इनकी्ज्योनत्प्रकाशमान्सुवर्ण्के्सदृश्होती्है ्।्इनकी्आूँखे्एवं्भौंहें ्वपङ्ग्(भूरे)्
रं ग्की्होती्है ्।्इनकी्दाढ़ी्सोने्की्कूँू ची्के्समान्होती्है ्एवं्इसी्प्रकार्इनके्केश्होते्है ्
।्इनका्वस्र्उददत्होते्हुये्सय
ू ्ण के्सदृश्होता्है ्एवं्यज्ञोपवीत्भी्उसी्प्रकार्होता्है ्॥१३९-
१४०॥
(अन्ग्नदे व)्दादहने्हाथ्में ्अक्षमाला्एवं्बाूँये्हाथ्में ्करक्(समट्िी्का्पार)्िारर््ककये्रहते्है ्
।्ये्सात्अस्र-शस्रों्से्युक्त्होते्है ्।्इनकी्जिा्एवं्दाढ़ी्से्सात्प्रकार्की्ककरर्े्प्रकासशत्
होती्रहती्है ्।्इनकी्माला्से्प्रज्ज्वसलत्ज्वाला्ननकलती्रहती्है ्।्इनके्पाश्वण्में ्अंशु-
मधडल्ननसमणत्रहता्है ्॥१४१॥
(अन्ग्नदे व)्मेष्पर्सवार्एवं्कुण्ड्में ्न्स्थत्रहते्है ्।्ये्योग-पट्ि्से्सलपिे ्होते्है ्।्इनक्
एदादहने्रत्नकुण्डल्से्ववभूवषत्स्वाहा्ननसमणत्होती्है ्।्वपङ्ग्वर्ण्के्आभरर्ों्से्सुसन्ज्जत्
पुण्य्अन्ग्न्सभी्याजों्के्अनुकूल्होते्है ्॥१४२-१४३॥
यम
om
यम्-्(यमराज)्हाथ्में ्दण्ड्िारर््ककये्हुये, (दस
ू रे ्हाथ्में )्पाश्िारर््ककये्हुये्एवं्जलती्
हुई्अन्ग्न्के्समान्नेरों्वाले्होते्है ्।्ये्बड़े्भैंसे्पर्सवार्होते्है ्एवं्इनका्शरीर्नीले्
अञ्जन्के्समान्प्रकाशमान्रहता्है ्॥१४४॥
यम्के्दोनों्पाश्वों्में ्उनके्ही्समान्सहायक्पुरुष्होते्है ्।्उनका्वक्षःस्थल्ददव्य्तथा्
ववस्तत
s.c
ृ ्होता्है ्एवं्वे्शन्क्तशाली्संहारो्(अस्रों)्से्युक्त्होते्है ्।्वे्द्वार्पर्खड़े्होते्है ,
क्रोियुक्त्होते्है ्एवं्सम्पूर््ण लोकों्को्भयभीत्करते्है ्।्(यम्के)्दादहने्एवं्बाूँये्पाश्वण्में ्
धचरगुप्त्एवं्कसल्होते्है ्।्ये्दोनो्कृष्र््एवं्श्याम्(गहरे ्रं ग)्के्होते्है , लाल्वस्र्िारर््
ककये्होते्है ्तथा्साविान्मुद्रा्में ्होते्है ्॥१४५-१४६॥
ok
मदहष्ध्वज्एवं्वाहन्वाले, आसीन्यम्के्पीठ्के्पाश्वण्में ्उग्र्तेज्वाले्मत्ृ यु्एवं्सदहता्
न्स्थत्होते्है ्।्उनके्दोनों्पाश्वो्में ्नील्वर्ण्एवं्रक्त्वर्ण्की्दो्चामरिाररर्ी्न्स्रयाूँ्होती्है ्
।्बाूँये्एवं्दक्षक्षर््पाश्वण्में ्िमण्एवं्अिमण्होते्है ्।्इस्प्रकार्यम्का्वर्णन्मेरे्(मय्के)्
द्वारा्ककया्गया्॥१४७-१४८॥
Bo
ननऋनत
ननऋनत्-्ननऋनत्ववशाल्नेर्वाले, हाथ्में ्खड््ग्सलये्हुये, बड़ी्भज
ु ाओं्वाले, पीले्वस्रों्वाले,
शव्पर्आरूढ, नीले्रं ग्के, अत्यधत्बलशाली, सभी्अलंकारों्से्यक्
ु त, सहायकरदहतः्ककधत्ु संसार्
के्स्वामी्है ्॥१४९-१५०॥
44
िरुण
वरुर््-्वरुर्दे व्शङ्ख्एवं्कुधद्के्पष्ु प्के्समान्उज्ज्वल, हाथ्में ्पाश्सलये, अत्यधत्
शन्क्तशाली्है ्।्हार, केयरू ्एवं्सुधदर्कुण्डलों्से्सुसन्ज्जत, पीला्वस्र्िारर्, अतुलनीय, सोने्के्
वर्ण्वाले्एवं्सभी्को्प्रसधनता्दे ने्वाले्है ्।्ये्आसीन्मुद्रा्में ्या्मकर्पर्खड़े्रहते्है ्
॥१५१-१५२॥
िायु
वायु्-्वायुदेव्हाथ्में ्ध्वज्सलये, अत्यधत्बलशाली, ताूँब्े के्समान्नेर्वाले, िम
ू ्के्समान्वर्ण्
वाले, मुड़ी्भौहों्वाले, ववधचर्वर्ो्के्वस्र्वाले्एवं्आभूषर्ों्से्सुसन्ज्जत्होते्है ्।्इधहे ्मग
ृ ्पर्
आरूढ़्ननसमणत्करना्चादहये्॥१५३॥
कुबेर
कुबेर्-्बद्
ु धिमान्व्यन्क्त्को्कुबेर्की्प्रनतमा्को्इस्प्रकार्ननसमणत्करना्चादहये्।्वे्सभी्
यक्षों्के्स्वामी्, मक
ु ु ि्आदद्से्सश
ु ोसभत, तप्त्सव
ु र्ण्के्समान्वर्ण्वाले, वर्प्रदान्करने्वाले्
तथा्अभय्प्रदान्करने्वाले्हाथों्से्यक्
ु त्होते्है ्।्ये्मेष्पर्आरूढ़, हाथ्में ्गदा्सलये्दौ्पैर्
एवं्दो्हाथों्से्युक्त्होते्है ्।्नर्पर्आरूढ़्कुबेर्शङ्ख्एवं्पद्मननधियों्को्िारर््करते्है ्।्
इधहे ्सभी्आभूषर्ों्से्युक्त्एवं्दे वी्के्साथ्ननसमणत्करना्चादहये्॥१५४-१५६॥
चन्द्र
चधद्र्-्चधद्रमा्ससंहासन्पर्आसीन्होते्है ्।्ये्कुधद्एवं्शङ्ग्के्समान्श्वेत्वर्ण्के्होते्।्
(चधद्रमा)्प्रभामण्डल्से्युक्त्होते्है ्तथा्दो्भुजाओं्एवं्श्वेत्वस्र्िारर््ककये्होते्है ्।्ये्
आसीन्या्खड़े्हो्सकते्है ्।्उनके्प्रकाशमान्हाथ्में ्कुमुदपुष्प्होता्है ्।्(चधद्रमा्का)्
यज्ञोपवीत्सुवर्णननसमणत्होता्है ्।्सोम्सौम्य्एवं्घिते-बढ़ते्रहते्है ्।्ये्श्वेत्माला्एवं्वस्र्
om
से्युक्त, सोने्के्समान्एवं्लाल्नेरों्वाले्होते्है ्॥१५७-१५८॥
रे वती्एवं्रोदहर्ी्िाधय्के्अंकुर्से्युक्त्होती्है ्।्इनके्नेर्कमलपुष्प्के्समान्प्रकाशमान्
होते्है ्।्ये्दोनो्पववर्तथा्कृष्र््वस्र्िारर््करती्है ्।्पन्श्चम्ददशा्में ्हाथ्में ्चामर-व्यजन्
िारर््ककये्ननशा्एवं्ज्योत्सना्होती्है ्।्ननशा्चधद्रमा्की्गौरी्(पत्नी)्है ्एवं्ज्योत्सना्
मानवों्की्प्रकाश्होती्है ्॥१५९-१६०॥
ईिान
ईशान्-्ईशान्वष
s.c
ृ ्पर्सवार, अत्यधत्तेजस्वी, श्वेत्वर्ण्के्एवं्श्वेत्नेरों्वाले्होते्है ्।्ये्हाथ्
में ्बरशूल्सलये, संसार्के्स्वामी, तीन्नेरों्वाले्एवं्लोक्का्कलयार््करने्वाले्होते्है ्॥१६१॥
ok
काम
कामदे व्-्कामदे व्सोने्के्समान, अच्छी्प्रकार्से्सभी्आभरर्ों्से्सुसन्ज्जत, दो्बाहुओं्वाले,
सुधदर्आकृनत्वाले, सौम्य्एवं्नवयुवा्होते्है ्।्ये्पीठ्पर्आसीन्या्रथ्पर्आसीन्होते्है ्
एवं्सम्पर्
ू ्ण लोकों्द्वारा्पन्ू जत्होते्है ्॥१६२-१६३॥
Bo
।्इनका्ध्वज्मकर्होता्है ्॥१६४-१६६॥
अल्श्िनी
दोनों्अन्श्वनीकुमार्-्(दोनों्अन्श्वनीकुमार)्अश्व-रूप्वाले, ससंहासन्पर्बैठे हुये, दाड़डमी्पुष्प्के्
समान्वर्ण्वाले, अपने्कधिों्पर्यज्ञोपवीत्िारर््ककये्रहते्है ्।्ये्दोनों्धचककत्सक्होते्है ्एवं्
दो्न्स्रयाूँ्चमर्िारर््ककये्होती्है ्।्(उन्न्स्रयों्में ्एक)्मत
ृ ्सञ्जीवनी्पीत्वर्ण्की्होती्है ्
(तथा्दस
ू री)्ववशलयकरर्ी्पीछे ्लाल्रं ग्की्होती्है ्।्दो्न्स्रयाूँ्पीत्एवं्वपङ्गल्
(लासलमायुक्त)्वर्ण्की्होती्है ्।्बाूँयी्ओर्िधवधतरर्एवं्आरेय्रहते्है ्।्ये्दोनों्पीत्एवं्
रक्त्वर्ण्के्एवं्कृष्र््वस्र्िारर््ककये्रहते्है्॥१६८-१७०॥
िसि
वसद
ु े वगर््-्(वस्ु दे वगर्)्हाथ्में ्खड््ग्एवं्खेिक्िारर््ककये, सभी्आभष
ू र्ों्से्सस
ु न्ज्जत, दो्
भज
ु ाओं्वाले, रक्त्वर्ण्के, पीत्वस्रों्से्यक्
ु त्एवं्पववर्होते्है ्।्बैठे्हुये्खड़ी्मद्र
ु ा्में ्ये्आठों्
वस्ु भयानक्होते्है ्।्िर, ध्रव
ु , सोम, आप, अनल, अननल, प्रत्यष
ू ्एवं्प्रभाव-्ये्आठ्वस्ु कहे ्गये्
है ्॥१७१-१७२॥
मरु्गणा
मरुद््गर््-्(मरुतों्के)्केश्जूि्में ्आबद्ि्होते्है , न्जधहे ्सुधदर्न्स्रयाूँ्अपने्स्तनों्पर्लिकाती्
है ्।्सभी्ददव्य्पुरुष्िारर््करते्है ्तथा्सभी्उत्तम्दक
ु ू ल्वस्र्िारर््करते्है ्।्आठों्
मरुद््गर््सभी्यज्ञो्के्योग्य्होते्है ्॥१७३-१७४॥
रुद्र्वि्येश्िर
रुद्र्एवं्ववद्येश्वर्-्रुद्र्दे वगर््रुद्रान्ग्न्(भयानक्अन्ग्न)्के्समान्होते्है ्।्(ववद्येश्वर)्नील्
om
लोदहत, जीमूत्(बादल)्के्वर्ण्के, कंु कुम्(लाल)्वर्ण्के्तथा्कृष्र््वर्ण्के्होते्है ्।्ये्चतुभज
ुण ,
तीन्नेरों्वाले, िङ्क्शूल्एवं्जिािारी्होते्है ्।्ये्वरद्एवं्अभय्मुद्रा्में ्हाथ्वाले, क्षौम्वस्र्
िारर््ककये्हुये्तथा्पववर्होते्है ्॥१७५-१७६॥
सभी्यज्ञो्से्युक्त्आठ्ववद्येश्वर्अनधत, सूक्ष्म, सशवोत्कृष्ि, एकनेरक, एकरुद्र, बरमूनतण, श्रीखण्ड्
तथा्सशकन्ण्डक्कहे ्गये्है ्॥१७७॥
क्षेत्रपाल
s.c
क्षेरपाल्-्(क्षेरपाल)्तामस्रूप्वाले्तथा्प्रलयकालीन्मेघ्के्समान्कृष्र््वर्ण्वाले्होते्है ्।्
सान्त्त्वक्(रूप्में )्दो्या्चार्भुजाओं्से्युक्त्एवं्राजस्(रूप्में )्छः्भुजाओं्एवं्तामस्(रूप्
ok
में )्आठ्भुजाओं्से्युक्त्होते्है ्।्गोचर्भूसम्में ्उनके्सलये्उधचत्स्थान्होता्है ्।्दो्भुजाओं्
में ्कपाल्तथा्शूल्एवं्चार्भुजाओं्में ्खट््वांग्एवं्परशु्होता्है ्।्दो्भुजायें्वरद्एवं्अभय्
मुद्रा्में ्होती्है ्॥१७८-१७९॥
(छः्हाथों्में )्दादहने्हाथो्में ्शल
ू , असस्एवं्घण्िा्होता्है ्तथा्वाम्हस्तों्में ्खेिक, कपाल्एवं्
Bo
om
(ललाईयुक्त्नेरों)्वाले, पीत्वर्ण्के, अत्यधत्वद्
ृ ि, रक्त्वर्ण्के्वस्र्पहने्हुये, केशभार्(जिा-
जूि)्को्िारर््ककये्एवं्ववसभधन्प्रकार्के्आभूषर्ों्से्आभूवषत्होते्है ्॥१९२-१९३॥
सततरोदहण्य
सात्रोदहर्ी्-्सप्त्रोदहर्ीगर््सुधदर्रूप्वाली, सोने्के्समान्वर्ण्वाली, नागों्से्आभूवषत,
गरुड
s.c
श्वेत्वस्र्िारर््की्हुई्आसीन्या्खड़ी्मुद्रा्में ्होती्है ्॥१९४॥
कर्दादहना्पैर्लिकाये्रहते्है ्।्इनकी्वाम्भज
ु ा्गज्के्सूँड
ू ्के्समान्होती्है ्तथा्घि
ु ने्एवं्
ऊरु्के्बाहर्(पीठासन्पर्दिकी)्रहती्है ्।्वे्गोलाई्वाले्अथवा्िे ड़्े दण्ड्को्(हाथों्में )्िारर््
ककये्रहते्है ्।्इनके्कोमल्काले्घूँघ
ु राले्केश्फैले्रहते्है ्॥१९८-२००॥
ये्वाहन्एवं्ध्वज्(दोनों्में )्गज्से्यक्
ु त, हार्आदद्से्अलंकृत्होते्है ्।्अथवा्जब्ये्चार्
44
भज
ु ाओं्एवं्तीन्नेरों्वाले्होते्है , तब्उनका्ध्वज्सवणर्कुक्कुि्(मग
ु ाण)्होता्है ्॥२०१॥
(शास्ता)्ज्ञानी, योगासन्मद्र
ु ा्में ्आसीन, सदा्अध्ययन्करने्वाले, पववर्दोनों्कधिों्पर्
यज्ञोपवीत्िारर््ककये्हुये, युवा, वीरासन्से्युक्त, उललासयुक्त, गीत-भाव्वाले, दे व-भाव्वाले्तथा्
सुखासन्में ्न्स्थत्होते्है ्।्ये्वाम्ऊरु्के्ऊपर्दादहना्पैर्दिकाये्न्स्थत्होते्है ्॥२०२-२०३॥
(शास्ता)्नौ्शन्क्तयों्से्तथा्चौसठ्योधगननयों्से्युक्त्होते्है ्।्पूर्ाण्एवं्पुष्कला्दे ववयाूँ्उनके्
वाम्एवं्दक्षक्षर््भाग्में ्होती्है ्।्इनका्वर्ण्कृष्र््एवं्सुवर्ण्के्समान्होता्है ्।्दोनों्
सौगधध्य्पुष्प्सलये, सभी्अलंकारों्से्सुसन्ज्जत्एवं्पीत्तथा्श्वेत्वस्र्िारर््ककये्रहती्है ्
॥२०४-२०५॥
इनके्वाम्हस्त्में ्मि्ु होता्है ्।्ये्मि्ु के्समान्शोभा्वाले, दो्भुजाओं्वाले, मांसल्शरीर्
वाले, र्खले्मुख्वाले्एवं्लम्बे्उदर्वाले्होते्है ्।्इनके्वाम्हस्त्में ्शीि-ु पार्(मिु-पार)्एवं्
दादहने्हाथ्में ्दण्ड्ननसमणत्करना्चादहये्।्इनके्द्वारपाल्शन्क्त्िारर््करने्वाले, दण्ड्एवं्
लांगल्से्यक्
ु त्होते्है ्॥२०६-२०७॥
दे वों्के्वप्रय्शास्ता्को्वर्ाणधतर्(छोिी्जानत्के)्आश्रमस्थान्में , वेश्या्के्आवास्में , दग
ु म
ण ्में ,
ननगम्में , खवणि्में ्एवं्खेि्में ्स्थावपत्करना्चादहये्।्ग्राम्आदद्वास्तुओं्के्मध्य्में , बाहर,
दक्षक्षर््द्वार्पर्कलयार्ेच्छुओं्को्दे वभावी्एवं्ज्ञानभावी्(शास्ता)्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्
नगर्एवं्पत्तन्में ्गीतभावी्की्स्थापना्करनी्चादहये्॥२०८-२१०॥
मातक
ृ ा
मातक
ृ ायें्-्अब्मै्(मय)्मातक
ृ ाओं्के्लक्षर्, स्थापन्एवं्स्थान्के्ववषय्में ्कहता्हूूँ्।्ये्
ब्राह्मी, माहे श्वरी, कौमारी, वैष्र्वी, वाराही, इधद्रार्ी्तथा्काली्है ्।्इनके्दक्षक्षर््एवं्वाम्भाग्में ्
वीरभद्र्एवं्ववनायक्रहते्है ्॥२११-२१२॥
om
िीरभद्र
वीरभद्र्-्वीरभद्र्वष
ृ ्पर्आरूढ, हाथ्में ्शूल्सलये, गदा्िारर््ककये, हाथ्में ्वीर्ा्सलये्अथवा्
(नीचे्के्हाथ)्वरद्एवं्अभय्मुद्रा्में ्होते्है ्।्ये्चार्भुजाओं्एवं्तीन्नेरों्से्युक्त्होते्है ्।्
ये्जिा्िारर््ककये्हुये्एवं्जिा्में ्चधद्रमा्िारर््ककये्होते्है ्।्सभी्आभूषर्ों्से्युक्त, श्वेत्
वर्ण्के्एवं्वष
s.c
ृ ध्वज्वाले्(वीरभद्र)्पद्मासन्से्युक्त्दे वता्विवक्ष
लोकों्के्स्वामी, कलयार््करने्वाले्(लोकेश, शंकर)्शम्भु्मातक
॥२१३-२१५॥
ृ ्का्आश्रय्सलये्होते्है ्।्
ृ ाओं्के्आगे्न्स्थत्होते्है ्
ब्रह्माणी
ok
ब्रह्मार्ी्-्ब्रह्मार्ी्को्ब्रह्मा्के्समान्ननसमणत्करना्चादहये्।्ये्चार्मुखों्वाली; ववशाल्नेरो्
वाली; तप्त्सुवर्ण्के्समान्वर्ण्वाली; वरद्मुद्रा, अभयमुद्रा, शूल्तथा्अक्षमाला्से्युक्त्चार्
भुजाओं्वाली; रक्तकमल्के्आसन्पर्आसीन; वाहन्एवं्ध्वज्में ्हं स्से्युक्त्तथा्व्यािचमण्से्
यक्
ु त्होती्है ्॥२१६-२१७॥
Bo
माहे श्िरी
माहे श्वरी्-्माहे श्वरी्को्तीन्नेरोंवाली, लाल्वर्ण्की, हाथ्में ्शल
ू ्सलये, वष
ृ ध्वज्से्यक्
ु त, वरद्
तथा्अभय्मद्र
ु ा्से्यक्
ु त्हाथों्वाली, अक्षमाला्से्यक्
ु त, जिा्एवं्मक
ु ु ि्से्यक्
ु त, शम्भ्ु (के्
अनस
ु ार, उधही्के्समान)्आभवू षत, चधदन्के्वक्ष
ृ ्से्यक्
ु त्तथा्वष
ृ ्पर्आरूढ़्होती्है ्॥२१८-
44
२१९॥
कौमारी
कौमारी्-्वस्र्से्मुकुि्बाूँिे्हुये, शन्क्त्एवं्कुक्कुि्िारर््करने्वाली, रक्त्वर्ण्की, अत्यधत्
शन्क्तयुक्त, हार्एवं्केयूर्से्आभूवषत, वरद्एवं्अभय्मुद्रा्में ्हस्ते्से्युक्त, कंु कुम्के्समान्
प्रभा्वाली, सभी्आभूषर्ों्से्आभूवषत, मयूरध्वज्से्युक्त्एवं्मयूर्पर्आरूढ, उदम्
ु बर्वक्ष
ृ ्का्
आश्रय्ली्हुई्कौमारी्दे वी्का्प्रकलपन्बुद्धिमान्मनुष्य्को्करना्चादहये्॥२२०-२२१॥
िैष्णिी
वैष्र्वी्-्ववद्वान्व्यन्क्त्को्वैष्र्वी्का्ननमाणर््इस्प्रकार्करना्चादहये-्वह्दे वी्शंख्एवं्
चक्र्िारर््ककये्हो्एवं्(शेष्दो)्हाथ्वरद्एवं्अभय्मुद्रा्में ्हो्।्उधहें ्अच्छी्प्रकार्खड़ी,
श्याम्वर्ण्की, पीत्वस्र्िारर््की्हुई्एवं्सुधदर्नेरों्से्युक्त्ननसमणत्करना्चादहये्।्
गरुड़ध्वज्एवं्वाहन्वाली्(वैष्र्वी)्पीपल्के्वक्ष
ृ ्से्संयक्
ु त्होती्है ्।्ये्ववष्र््ु के्आभष
ू र्ों्से्
अलंकृत्होती्है ्॥२२२-२२३॥
िाराही
वाराही्-्वरद्एवं्अभय्हस्त्वाली्वाराही्कृष्र््के्समान्होती्है ्।्हल्एवं्मुसल्को्िारर््
कर्चमणवस्र्से्युक्त्होती्है ्।्शंख्वर्ण्की्(वाराही)्वरद, अभय्एवं्दण्ड्को्हाथ्में ्िारर््
करती्है ्।्(बड़े)्दाूँतो्वाली, ववशाल्शरीर्वाली, प्रकाशमान्मुकुि्एवं्ककरीि्से्युक्त, कृष्र््वस्र्
िारर््करने्वाली्दे वी्सभी्आभूषर्ों्से्आभूवषत्होती्है ्।्(वाराही)्करञ्ज्के्वक्ष
ृ ्के्युक्त्
तथा्मदहष्ध्वज्एवं्वाहन्से्युक्त्होती्है ्॥२२४-२२६॥
इन्द्राणी
इधद्रार्ी्-्(इधद्रार्ी)्ककरीि्एवं्मुकुि्से्युक्त्एवं्सभी्आभूषर्ों्से्सुसन्ज्जत्होती्है ्।्हाथ्
om
में ्वरद्एवं्अभय्मुद्रा्तथा्पाश्एवं्कमल्िारर््ककये्होती्है ्।्ये्चधद्रमा्के्समान्होती्है ्
।्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्इधद्रार्ी्को्कलपद्रम
ु ्से्युक्त्ननसमणत्करना्चादहये्॥२२७-२२८॥
चामुण्डी
चामुण्डी्-्चामुण्डी्दे वी्कपाल्सलये, शूल्िारर््की्हुई, वरद्एवं्अभय्मुद्रा्में ्हाथ्वाली्होती्
s.c
है ्।्(अथवा)्उनकी्आठ्भुजायें्होती्है ्।्शूल्एवं्कपाल्(के्अनतररक्त), वाम्हस्त्में ्दण्ड,
िनुष, खड््ग, खेिक, पाश्एवं्बार््िारर््ककये्रहती्है ्।्इनकी्आठ्भुजायें्कही्गई्है ्।्इनके्
दस्हाथ्(भी)्कहे ्गये्है ्।्सभी्का्पूव्ण में ्वर्णन्ककया्गया्है ्।्(इनके्अनतररक्त्हाथों्में )्
डमरु्एवं्शूल्कहा्गया्है ्।्ये्रक्तवर्ण्के्नेरों्वाली, कुदिका्पर्आसीन्एवं्स्तनोंपर्सपणबधि्
ok
िारर््ककये्रहती्है ्॥२२९-२३१॥
वह्सशरों्(मुण्डो)्की्माला्िारर््ककये्रहती्है ्।्वह्पतले्उदर्वाली्शव्पर्आरूढ्होती्है ्।्
ये्मांसरदहत्खल
ु े्मुख्वाली, लम्बी्न्जह्वा्वाली, तीन्नेरों्वाली, व्यािचमण्िारर््की्हुई्होती्है ्
।्इसके्केश्ज्वाला्के्सदृश्एवं्सपो्से्यक्
ु त्होते्है ्।्ये्अभीष्ि्प्रदान्करती्है ्।्काली,
Bo
ननसमणत्करना्चादहये्॥२३२॥
मातक
ृ ा्स्थापन
मातक
ृ ाओं्की्स्थापना्-्मातक
ृ ाओं्की्स्थापना्ग्राम्से्दरू , ग्राम्के्उत्तर्या्ईशान्कोर््में ्की्
जानी्चदहये्।्इधहे ्बरशूल्के्आकार्के्शूल्एवं्वस्रों्से्व्याह्रत्(जागत
ृ , मधरयुक्त)्करना्
चादहये्।्(अथवा)्ददशाओं्के्द्वार्के्पास्इधहे ्पूवम
ण ुख्या्उत्तरमुख्स्थावपत्करना्चादहये्
॥२३५॥
(इसके्पश्चात)्इधहे ्ब्रह्मस्थान्पर्दक्षक्षर्क्रम्से्क्रमशः्स्थावपत्करना्चादहये्।्इससे्शान्धत,
पुन्ष्ि, जय, आरोग्य, भोग, ऐश्वयण्एवं्आयु्की्वद्
ृ धि्होती्है ्।्इससे्ववपरीत्होने्पर्ननस्सधदे ह्
शरत
ु ा्होती्है ्॥२३६-२३७॥
पव
ू व
ण र्र्णत्वविान्के्अनस
ु ार्यदद्मध्य्में ्ब्रह्मार्ी्स्थावपत्होती है ्तो्यह्प्रनतष्ठा्सभी्को्
मोदहत्करती्है ्एवं्सभी्कामनाये्पररपर्
ू ्ण होती्है ्।्यदद्मध्य्में ्चामण्
ु डी्की्स्थापना्की्
जाय्तो्प्रनतन्ष्ठत्होने्पर्प्रजा्(सधतनत)्की्प्रान्प्त्होती्है ्।्(मातक
ृ ाओं्की्स्थापना)्
कामासन्में ्होने्पर्योग, वीरासन्में ्होने्पर्शान्धत्प्राप्त्होती्है ्।्सख
ु ासन्में ्(प्रनतष्ठा)्होने्
पर्सभी्कामनाओं्की्प्रान्प्त्होती्है ्॥२३८-२३९॥
पुनः्चामुण्डी
ववद्वान्व्यन्क्त्को्काश्ठ, मवृ त्तका्या्सुिा्(चन
ू ा-गारा)्से्आठ, दस, बारह्या्सोलह्भुजाओम्से्
युक्त्चामुण्डी्का्ननमाणर््करना्चादहये्।्अथवा्आठ्भुजाओं्से्युक्त्नत्ृ यमुद्रा्में ्चामुण्डी्का्
ननमाणर््आवश्यकतानुसार्करना्चादहये्।्इसे्सधध्यानत्ृ य्(सशव)्के्समीप्अथवा्न्जस्प्रकार्
सधध्यानत्ृ य
om
होता्है , उस्प्रकार्ननसमणत्करना्चादहये्या्लोक्की्शान्धत्के्सलये्(चामुण्डी्के)्चार्या्छः्
भुजायें्ननसमणत्करनी्चादहये्॥२४०-२४२॥
पररिार
पररवार्-्द्वार्के्बाहर्न्स्थत्दो्दौवायों्(द्वारपालों)्की्स्थापना्करनी्चादहये्।्ये्शूल्आदद्
॥२४३॥
s.c
िारर््करने्वाले्भूत्होते्है ्।्ये्भयानक्भूतों्के्समूह्से्युक्त्एवं्वपशाचों्से्नघरे ्होते्है ्
लक्ष्मी
लक्ष्मी्-्पद्मासन्पर्आसीन्लन्क्ष्म्दो्भज
ु ाओं्से्यक्
ु त्एवं्सव
ु र्ण्आभा्वाली्होती्है ्।्उनके्
(दोनो्कुण्डलों्में ्से्एक)्नक्र-कुण्डल्(तथा्दस
ू रा)्शंखकुण्डल्होता्है ्एवं्वह्कुण्डल्सव
ु र्ण्एवं्
रत्नों्से्प्रकाशमान्होता्है ्।्वे्यौवनसम्पधन, सध
ु दर्अंगो्वाली, मड
ु ्े हुये्भौंहो्से्लीला्करती्
44
om
से्युक्त्तथा्मदहष्का्ससर्कािने्के्सलये्उद्यत्होती्है ्।्इनके्(दादहने्हाथ्में )्शन्क्त,
बार्, मुसल, शूल्तथा्खड््
ग्एवं्बाूँयें्हाथ्में ्क्रमशः्चमण, वराखेि, पूर््ण चाप, अङ्कुश्तथा्नागपाश्
होते्है ्।्इनके्सभी्करकमलों्में ्सभी्अस्र्होते्है ्॥२५८-२५९॥
ये्सुधदर्वस्रों्से्युक्त, नीले्केशों्वाली, नील्कमल्के्पर्के्समान्नेरों्वाली, तीन्नेरों्वाली,
s.c
सुधदर्अंगो्वाली, उधनत्एवं्पीन्वक्षो्वाली, सुधदर्मध्य्भाग्वाली, श्याम्वर्ण्की्तथा्स्तनों्
पर्सपणबधि्िारर््ककये्होती्है ्।्ये्ससंह्पर्आरूढ, ससंह-ध्वज्से्युक्त्एवं्ससंहचमण्का्वस्र्
िारर््ककये्होती्है ्।्दस्भुजाओं्वाली्कात्यायनी्मदहष्के्ससर्पर्खड़ी्रहती्है ्॥२६०-२६२॥
दग
ु ाा
ok
दग
ु ाण्-्दग
ु ाण्दे वी्चार्भुजाओं्से्युक्त्पंकज्के्आसन्पर्न्स्थत्होती्है ्।्इनके्हाथ्वरद्एवं्
अभय्मुद्रा्में ्होते्है ्तथा्(शेष्दो्हाथों्में )्शंख्एवं्चक्र्िारर््ककये्रहती्है ्।्अष्ि्भुजाओं्
से्युक्त्होने्पर्(पूवाणर्र्णत्पदाथों्में ्से)्खेिक्एवं्शन्क्त्से्रदहत्होती्है ्एवं्शुक्िारर््
करती्है ्।्वह्दग
ु ाण्है ्तथा्दग
ु ्ण एवं्ग्रामादद्वास्तओ
ु ं्में ्ववशेष्रूप्से्(स्थावपत)्होती्है ्॥२६३-
Bo
२६४॥
सरस्िती
सरस्वती्-्सरस्वती्दे वी्श्वेत्वर्ण्की, ससर्पर्जिा्िारर््ककये, चार्भज
ु ाओं्वाली, श्वेत्कमल्
के्आसन्पर्आसीन, रत्नकुण्डल्से्सस
ु न्ज्जत, यज्ञोपवीत्से्यक्
ु त, सध
ु दर्मोनतयों्का्हार्िारर््
44
om
पािाती
पावणती्-्पावणती्दे वी्प्रसधनमुख, सौम्य्दृष्िी्वाली, सुधदर्रूप्वाली, सभी्आभूषर्ों्से्युक्त,
श्यामवर्ण्की, दो्भुजाओं्वाली, दक
ु ू ल्वस्र्िारर््की्हुई, हाथ्में ्पुष्प्सलये, अत्यधत्सुधदर्होती्
है ्।्चारो्ददशाओं्में , मध्य्में ्या्भललाि्के्पद्पर्सुसम्पधन्एवं्पररवार्(सहायकों)्से्युक्त्
सप्तमाता्-्सप्तमाता्को्ग्राम्एवं्नगर्के्बाहर्स्थावपत्करना्चादहये्।्ये्स्थल
ू ्शरीर्की,
बडे्उदर्वाली, पाश्वण्में ्दो्विओ
ु ं्से्युक्त, श्याम्वर्ण्की, बड़े्नेरों्वाली, लाल्वस्र्िारर््ककये्
ok
तथा्दो्भुजाओं्से्युक्त्होती्है ्।्ये्ववशेष्रूप्से्भूत, प्रेत्एवं्वपशाच्आददसे्सेववत्होती्है ्
॥२७९-२८०॥
बु्ध
बद्
ु ि्-्बुद्िदे व्पयणङ्कबधि्मद्र
ु ा्(एक्के्ऊपर्दस
ू रा्पैर्रखकर, पालथी्मार्कर्बैठना)्में ्
Bo
गधिवण्आदद्उनकी्सेवा्करते्है ्।्इस्प्रकार्अश्वत्थ्(पीपल)्वक्ष
ृ ्से्संयक्
ु त्बद्
ु ि्के्रूप्का्
ननमाणर््करना्चादहये्॥२८१-२८३॥
न्जन्-्जैन्(न्जन)्नीले्(काले)्अञ्जन्के्समान्वर्ण्वाले, अशोक्वक्ष
ृ ्द्वारा्सेववत्होते्है ्।्
इनका्आसन्स्थानक्मुद्रा्(खड़ी्प्रनतमा)्में ्वर्र्णत्है ्तथा्इनका्आसन्(पीठ)्ससंह्या्पद्म्
होता्है ्।्इनका्(एक)्हाथ्बगल्में ्लिका्रहता्है ्तथा्(दस
ू रा)्स्तनाधत्पर्दिका्होता्है ्।्
इनका्माप्दे वों्के्अनुसार्रखना्चादहये्।्इनके्चामर्ग्रहर््करने्वाले्का्मान्दे वता्के्
अंगुल-मान्से्तीस्अंगुल्का्होता्है ्।्शेष्मान्पूवव
ण र्णन्के्अनुसार्आवश्यकतानुसार्रक्खा्
जाना्चादहये्।्इनका्रूप्वस्ररदहत्होता्है ्।्तीन्छरों्से्युक्त्ये्दे वों्एवं्अमरों्(अधय्दे वों)्
द्वारा्सेववत्होते्है ्।्पाश्वण्में ्न्स्थत्उनकी्भुजाये्लताओं्एवं्रत्नों्से्युक्त्होती्है ्।्प्रत्येक्
अपने्वर्ण्से्युक्त्होते्है ्।्इनकी्दो्भुजायें्होती्है ्।्उनके्पाश्वण्में ्यक्षेधद्र्एवं्अपरान्जत्
होते्है ्।्उनका्शीषण्(न्जन्दे व्के)्कमर्तक्होता्है ्।्इन्दोनों्को्पव
ू व
ण र्र्णत्ननयमों्के्
अनस
ु ार्सशलपशास्र्के्तलस्पशी्ववद्वानों्द्वारा्ननसमणत्करना्चादहये्॥२८४-२८७॥
सामान्यविथध
सामाधय्ननयम्-्इसी्प्रकार्अधय्दे वों्का्भी्ननमाणर््करना्चादहये्तथा्उनके्धचह्नो्को्भी्
प्रदसशणत्करना्चादहये्।्सपो्को्सात्या्तीन्भोगों्(कुण्डसलयों)्से्युक्त्तथा्राक्षसों्एवं्
वपशाचों्को्भयानक्स्वरूप्वाला्ननसमणत्करना्चादहये्।्प्रेत्तथा्भूत-वेताल्आदद्सभी्को्
यथोधचत्रीनत्से्ननसमणत्करना्चादहये्।्उधहे ्अनुकूल्स्थान्पर्रखना्चादहये्।्इस्प्रकार्मैने्
(मय्ने)्संक्षेप्में ्प्रनतमाओं्के्लक्षर््का्वर्णन्ककया्॥२८८-२९१॥
बेरमान
प्रनतमाओं्के्प्रमाण्-
om
यजमान्(स्थापक)्के्बराबर्ऊूँचा्बेर्श्रेष्ठ, आठ्भाग्कम्मध्यम्तथा्उससे्एक्भाग्कम्
अिम्(छोिा, हीन)्होता्है ्।्इसे्(यजमान्की)्रुधच्के्अनुसार्या्उसे्पथ
ृ क्््इच्छानुसार्ननसमणत्
करना्चादहये्।्अथवा्(प्रनतमा्यजमान्के)्स्कधि, स्तनाधत्या्नासभ्तक्ननसमणत्करनी्चादहये्
।्ये्(क्रमशः)्श्रेष्ठ, मध्यम्एवं्कननष्ठ्होती्है ्।्(ककधतु्यदद्यजमान)्कूबड़युक्त्या्बौना्हो्
िाम्(मन्धदर), गभणगह
s.c
तो्(यजमान्के्प्रमार््को)्छोड़्दे ना्चादहये्॥२९२-२९३॥
ृ , स्तम्भ, द्वार्अथवा्ननमाणर््करने्वाले्की्ऊूँचाई्के्अनुसार्लम्बोच्च्
मान्को्बराबर्अंगुल-मान्से्बाूँिना्चादहये्।्बुद्धिमान्व्यन्क्त्को्अंगुलच्छे द्(सभधन)्को्
छोड़कर्संख्या्की्वद्
ृ धि्या्हानन्(कम)्कर्पूर्ण्संख्या्कर्लेनी्चादहये्।्इसे्इस्प्रकार्
ok
करना्चादहये, न्जससे्आय, व्यय, नक्षर, वार, अष्ि्योननयाूँ्एवं्अंशक्शुभ्हों्॥३९४-३९५॥
ऋवषयों्के्अनुसार्आय्एवं्व्यय्क्रमशः्लाभ्एवं्हानन्के्कारर््होते्है ्।्मूवत्तण्की्ऊूँचाई्को्
आठ, नौ्एवं्तीन्से्गुर्ा्करना्चादहये्।्प्राप्तांक्को्क्रमशः्बारह, आठ, आठ्से्ववभान्जत्
करना्चादहये्।्इससे्आय, व्यय्एवं्योनन्का्ज्ञान्होता्है ्।्यदद्आय्अधिक्हो्एवं्व्यय्
Bo
om
नधदी्तथा्काल्पूव्ण ददशा्में , दण्डी्एवं्मुण्डी्दक्षक्षर््में , वैजय्एवं्भङ्
ृ गरीिी्पन्श्चम्में ्तथा्
गोप्एवं्अनधतक्उत्तर्ददशा्में ्होते्है ्।्इधहे ्क्रमशः्दक्षक्षर्-क्रम्से्(प्रथम्नाम्दादहनी्ओर)्
स्थावपत्करना्चादहये्॥३१०॥
इन्द्वारपालों्के्वर्ण्इस्प्रकार्कहे ्गये्है ्-्श्याम्वर्ण्(नधदी), कंु कुम्के्समान्वर्ण्(काल),
समान्वर्ण्(भङ्
s.c
इधद्रक्वर्ण्अथाणत्इधद्रनील्वर्ण्(दण्डी), लाल्वर्ण्(मुण्डी), श्वेत्वर्ण्(वैजय), मयूर्के्कण्ठ्के्
ृ गरीिी), नील्पद्म्के्समान्वर्ण्(गोप)्तथा्काला्वर्ण्(अनधतक)्॥३११॥
इनके्आयुि्इस्प्रकार्है ्-्दण्ड, िङ्क, तीक्ष्र््नोक्से्युक्त्खड््ग, सभन्ण्डपाल, वेल, शूल, वज्र्एवं्
स्फुररत्सशखा्से्युक्त्शन्क्त्।्ये्चार्भुजाओं्से्युक्त, तीन्या्दो्नेर्तथा्उग्र्दाूँतो्से्युक्त्
ok
होते्है ्।्इनके्मुकुि्के्तल्शूल्से्युक्त्होते्है ्तथा्अंगो्पर्सपण्अंककत्होते्है ्॥३१२॥
प्रत्येक्के्एक्हाथ्सूची्के्समान, दस
ू रा्अिणचधद्र्के्समान्तथा्अधय्हाथ्र्खले्हुये्कमल्के्
समान्होते्है ्।्उनके्शरीर्उधचत्मांस्से्युक्त्होते्है ्।्दे वों्के्समान्उनके्चेहरे ्भयरदहत्
होते्है ; ककधत्ु (दे खने्वालों्के्सलये)्भय्उत्पधन्करते्है ्।्ये्प्रचण्ड्स्वरूप्वाले्होते्है ्।्ये्
Bo
ववसभधन्कायों्के्सलये्उपयक्
ु त्होते्है ्।्ये्हात्में ्शल
ू ्िारर््ककये, केशों्से्यक्
ु त्सशवालय्में ्
स्थावपत्होते्है ्॥३१३॥
सभी्के्प्रमार््नौ्ताल्कहे ्गये्है ्।्ववद्वाध््सशन्लपयों्को्ताल-प्रमार््के्क्रम्को्हर्के्द्वारा्
उपददष्ि्शास्र्(आगम)्के्अनस
ु ार्ग्रहर््करना्चादहये्।्सभी्के्एक्पैर्मड़
ु ्े होने्चादहये्।्
44
मयमतम्नामक्ग्रं
् थमे्संपण
ू ्ा िास्ति
ु ास्त्रकी्चचाा्की्गयी्है ।्संपण
ू ्ा िास्त्ु ननमााणमे्इस्ग्रंथको्
प्रमाण्माना्गया्है ।
पररमिष्ट
(कूपारर्मभ)
om
कूपारम्भ्-्ग्राम्आदद्में ्यदद्कूप्नैऋत्य्कोर््में ्हो्तो्व्याधि्एवं्पीड़ा, वारुर््ददिा्में ्पश्ु
की्वद्
ृ धि, वायव्य्कोर््में ्शर-ु नाश, उत्तर्ददशा्में ्सभी्सख
ु ों्को्प्रदान्करने्वाला्तथा्ईशान्
कोर््में ्शर्ंु का्नाश्करने्वाला्होता्है ्।्ऐसा्कहा्गया्है ्॥१-२॥
चन्द्रगतु त्-
चधद्रगुप्त्ने्कहा्है ्कक्खेत्एवं्उद्यानों्में ्ईशान्तथा्पन्श्चम्ददशा्में ्कूप्प्रशस्त्होता्है ्
॥३॥
िराहममदहर्-
s.c
यदद्ग्राम्के्या्पुर्के्आग्नेय्कोर््में ्कूप्हो्तो्वह्सदा्भय्प्रदान्करता्है ्तथा्मनुष्य्
का्नाश्करता्है ्।्नैऋत्य्कोर््में ्कूप्होने्पर्िन्की्हानन्तथा्वायव्य्कोर््में ्होने्पर्
ok
स्री्की्हाने्होती्है ्।्इन्तीनों्ददशाओं्को्छोड़कर्शेष्ददशाओं्में ्कूप्शुभ्होता्है ्॥४-५॥
नतधथ्के्ववधि्के्ववषय्में ्नसृ संह्ने्इस्प्रकार्कहा्है ्-्धचरा्नक्षर, अमावस्या्नतधथ्तथा्
ररक्ता्नतधथयाूँ्(चार, नौ, चौदह)्छोड़कर्शेष्नतधथयाूँ्शुभ्होती्है ्।्शकुन्(अपशकुन)्होने्पर्
ववशेष्रूप्से्छोड़्दे ना्चादहये्।्अथवा्शुक्र, बुि, बह
ृ स्पनत्एवं्चधद्र्वगों्का्उदय्शुभ्होता्है ्
Bo
॥६-७॥
नक्षत्रविथधमाह्-
नक्षर-ववधि्के्ववषय्में ्कहा्गया्है ्कक्कूप-खनन्में ्अिोमुख्ये्नक्षर्शुभ्होते्है -्मूल,
कृवत्तका, मघा, आश्लेषा, ववशाखा, भरर्ी्तथा्तीनों्पूवाण्(पूवाणफालगुनी, पूवाणषाढ़ा्एवं्पूवाणभाद्रपदा)्
44
om
s.c
ok
Bo
44