वभाव- नयम अथवा दै व उपायसे स तान ा त कर य द वह द घजीवी, नीरोग स र और प डत न हो तो इससे पता- माताके मनके क क अव ध नह रहती। असत् पु ारा माता- पता न य क भोगते ह । त शा ने मानवके उस अभावको भी पूण करनेका उपाय कर दया है। पु के ज म हण करनेके बाद उस करणका अवल बन कर जातपु का सं कार काय स करनेसे-पु प डत, क व, वा मी भृ त नाना स गुण स होता है । नीचे उसक या द जाती है-
पु के ज म लेते ही-नाड़ी े दके पूव- पता वण ारा पु का
मुखावलोकन कर घरम जाकर गु , पंचदे वता और ता रणीक पूजा कर वसुधारा (धाराहोम) दे गा। उसके बाद पंचा त दान कर कां य ( फू ल ) पा म समानांश घृत, मधु लेकर उसके ऊपर "ऐ" इस म का सात बार जप करना होगा। बादम दा हने हाथसे अना मका अंगल ु ी ारा इस घृत और मधुको लेकर- " आयुवचो बलं मेधा ब तां ते सदा शशो" इस म का पाठ करते-करते शशुके मुखम दे ना होगा। इससे शशुक आयुवृ होती है । इस लए इसका नाम आयुजनन है । इस समय पता मन ही मन शशुका एक गु त नाम रखेगा। इसके बाद बालकक ज ा तीन बार द ण हाथ ारा मा जत कर पता वेत वा अथवा वणशलाका ारा मधु लेकर बालकक ज ाम “वा भवकू ट" अथात् “ ल हेसाः" इस म का पं याकारसे लख दे गा । असु वधा होनेसे अथवा आप य रहने से अपने इ म को लख द। इससे बालक स यवाद , जते य, क व और बा मी हो सकता है । यथा- क ववा मी भवेत् पु ः स यवाद जते यः । -त सार वा तवम यह वा भवम वागीश व दायक है। यह म पुर रण पूवक मूख के म तकपर हाथ दे कर एक सौ आठबार जप करनेसे वह मूख क व हो सकता है और ज ाम यास करनेपर व ा हो सकता है। ज ायां यसनादे व मूकोऽ प सुक वभवेत् । -ग वत वयः ा त महामूख उपयु पम योग कर सकनेपर जब मूख वको र कर सुक व होता है तब शशुक तो वात ही नह । इस लए नवजात शशुका वा भवकू ट म ारा ही सं कार करना क ः है। सं कारके अ त म नाडी े दन होना आव यक है । कसी बाधा व नवश नाड़ी े दके पूव ही उ अनु ानको न कर सकनेसे तीन रातम स कया जा सकता है । पताके र दे शम रहनेसे बालकके पतृ अथवा मातुल भी उसको कर सकते ह । अ यके ारा नह होगा । उसके बाद कु लधमके अनुसार यारह दन अथवा एक मास शुभाशौचके बाद अव ाके अनुसार यथाश उपचार ारा कु लदे वताक पूजा करेगा। बादम फर ेत वा, कु श अथवा वणशलाका ारा पूव वा भव बालकके ओ म लख दे ना होगा। उससे बालक वा योचारणम समथ होने मा क व व स होता है । बादम माताके ोड म कु शके ऊपर शशुको रखकर ा ण स हत समवेत होकर- "इमंपु ं कामयत कामजाना महैव ह, दे वे यः पु णा त सव मदम् स ननम् शवशा त तारायै के शवे य तारायै यः उभाय । शवाय शवयशसे" इस म का पाठ करते-करते कु श और वण ारा जल छड़क कर शा त करनी होगी । बाद म शशु को गोदम लेकर- ा व णुः शवो गा गणेशो भा कर तथा। का इ ो वायु कु बेर व णो नबृह तः । शशोः शुभं कु व तु र तु प थ सवदा।। इस र ाम का पाठ करना होगा । उसके बाद गोदम शशुको कु छ। र बाहर लाकर- त दु व हतं पुर ता ु मु रन् प येयम् शरदः शतं जीवेयम् शरदः शृणयु ाम शरदः शतम्" इस म का पाठ करते-करते शशुको सूय दशन कराकर गृहम जाना होगा। इस दन ा ण को पूजोपकरण; अ व ा द और द णा दे ने क व ध है। उ काय गु , पुरो हत, अथा त ा भ ा णके ारा स होना चा हये । सदाचारी ता क साधकके ारा शा त काय करा -सकने पर और अ ा होगा; त म भी वह व ा है-- शा त कु या ालक य ा णैः सह साधकः ।। -महो तारोक प इस नयमसे आयुजनन ु और सं कार करनेसे बालक सव कार महत् पदवा य होगा, उसम स दे ह लेश भी नह है ।