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G G Joshi Jeevan Gaurav Granth
G G Joshi Jeevan Gaurav Granth
संपादक
डॉ .लीना हुन्नगीकर
२२ डडसेंबर २०२०
प्राचीन विज्ञान की नयी अद्भुत खोज
अपने पि
ू ज
व ोंने जजस विज्ञान के गहरातययोंको खोज कर अपने सामने रखे है उस विज्ञान को
पाश्चात्यों की ही दे न समझने की भल
ू अभी आगे अपने दे शिासी नहीं करें गे I भारत एक
तनरं तर संिेदना और स्पंद शील दे श है इसमें विज्ञान में आनंद लेने का स्िभाि से ही लसद्ध
होने के कारण अपने आज के पीढी में भारतीयता एक विडम्बना बनी है उसे दरू करने का
नागपुर के गो.गा. जोशी जी महान संशोधक थे जजन्होंने अथक पररश्रम से अनेक प्राचीन
ग्रंथों का संग्रह ककया और संशोधन कर के अनेक लेख प्रकालशत ककये थे I उनके परम लशष्यों
में डा. अशोक नेने जी एक है मगर नेने जी ने अपने गुरु भक्ती के कारण अपने गुरू जी के
सारे लेखों का संकलन करके जोशी जी के स्मारक के रूप में एक गौरि ग्रन्थ प्रकालशत करने
ललए I दे खखये-
१ कृवषशास्त्र २ जलशास्त्र ३ खतनशास्त्र कृतक िज्र विचार ४ नौका शास्त्र ५ रथ शास्त्र ६विमान
शास्त्र विमान के बत्तीस रहस्य ७ िास्तुशास्त्र विश्िकमव िास्तुशास्त्र दं क्षिण भारतके मंदीर ८
प्राकार (यध्
ु द) शास्त्र ९ नगर रचना शास्त्र १० यंत्रशास्त्र शल्
ु बसत्र
ु और िास्तरु चना शास्त्र
प्रामाखणक लेखों के द्िारा अपने प्राचीन विज्ञान की धारा को अनेक िषों तक सुरक्षित रखने
का यह प्रयास ककसी संस्था के द्िारा होता है , ककसी व्यक्ती के द्िारा संभि नहीं है I
मगर जोशी जी ने महान तपस्या के द्िारा अनेक िषों के पररश्रम से अनेक ग्रंथों को संगह
ृ ीत
के पीढी को एक नया प्रकाश प्राप्त होगा और संशोधन एक नयी हदशा में आगे बढे गा यह मेरी
उम्मीद है I
इस अत्यंत गंभीर और महत्त्िपूणव कायव में डा. अशोक जी नेने का पररश्रम अत्यंत श्लाघनीय है
क्यों की नेने सर ने अनेक िषों से इन लेखों को और ग्रंथों को सरु क्षित रख कर उत्साही छात्रों
को मागव दशवन करते आये I आज इस ग्रन्थ के प्रकाशन के द्िारा उन्होंने प्राचीन विज्ञान में
मेरा पूरा विशिास है की अनेक संशोधनों के ललए आिश्यक सामग्री एकत्र उपलब्ध करने िाला
शशल्पशास्त्र के मेरे गुरु स्त्वर्गषय श्री. गोपाळ गजानन जोशी के २० हहंदी लेख, जो पुिे के
सातताहहक शशल्पसंसार मे १९५५ मे छपे थे, इनका संकलन और आवश्यक संपादन कर यह
संग्रह प्रकाशशत करने मे मझ
ु े आनंद और गरु
ु के अपार ऋि से आंशशक मक्
ु ती का अनभ
ु व
हो रहा है .
श्री. गो.ग.जोशी उपाख्य आबासाहे ब का बहुतांश लेखन मराठी और हहंदी भार्ामे हुआ. इसशलए
मैंने उनके मराठी लेखोंका अंग्रेजी मे भार्ातंर करके एक ग्रंथ पहलेही प्रकाशशत ककया है . ६५
साल पेहले छपे लेख, सातताहहक १९५५ के बाद बंद होनेसे, अप्रातय हो गये है . राष्रभार्ाप्रेमी
पाठकोंके शलए इसका पुनुरुथ्थान अनत आवश्यक था.
श्री. जोशीजी का जन्म १५ जनवरी १९११को धुशलया गांवमे हुवा. उन्होमे स्त्थापत्य शास्त्र की
पदषवका (एल,सी,ई) की पढाई शासककय तंरननकेतन नागपूर मे की. १९३३ मे पदषवका प्रातत
होनेपर महाराष्र राज्य के सावषजननक बांधकाम षवभाग मे रे सर पदपर ननयुक्त हुवे. बादमे वह
एप्स्त्टमेटर और आखरी मे ओव्हरशसअर पद से ननवत्त
ृ हुवे. शशक्षि लेते समयमे ही उनका
शशल्पशास्त्र के महान संशोधक श्री. वझेजी के साहहत्यसे पररचय हुवा. श्री वझेजीले साहहत्यसे
प्रेरिा लेकर वझेजीका अधरु ा कायष आगे बढाने का संकल्प ककया. सवष प्रथम प्राचीन भारतीय
शशल्पशास्त्र का समग्र वांग्मय, जो पूरे भारतमे त्रबखरा हुवा पडा था, वह एकत्ररत करना शुरू
ककया. अपनी अत्यल्प आमदानीमेसे उन्होंने प्रमुख मूल ग्रंथ खररदे . सभी प्राच्च षवद्याके
ग्रंथालयोमे जा कर शशल्पसाहहत्यकी सूची बनाई. इष्ट शमरोसे, उनके दृष्टीसे अनावश्यक ग्रंथ
इकठ्ठा शलये. कररब ५५ साल की मेहनतसे उनका व्यप्क्तगत संग्रह मे ५००० (पांच हजार)
ग्रंथ, हस्त्तशलणखत या महु द्रत ग्रंथ, लेख, जनषल्स, सच
ू ीपत्ररका, नक्षे, छायार्चर, वतषमान परमे
छपे समाचार आहद इकठ्ठा हुए. २७६ जीवन , रामनगर नागपूर का तीन कमरे का उनका मकान
संशोधकोंके शलये एक आकर्षि बन गया. उनका यह संग्रह सबके शलए खुला मंहदर था. अनेक
प्रशसध्द व्यप्क्त उनके मागषदशषन के शलए या लेख या ग्रंथ मांगने आते थे. उन प्रशसध्द
व्यप्क्तयोंमे कुछ थे, केसरी के संपादक ग.षव.केतकर, नानाजी दे शमुख, मोरोपंत षपंगळे , मा,गो,
वैद्य, डॉ. र.पु.कुलकिी, और अनेक पाप्श्चमात्य संशोधक लेखक, जैसे स्त्टे ला क्रेमररश
(षवष्िुधमोत्तर पुराि की भार्ांतरकार). श्री. जोशीजीने अनेक मराठी, हहंदी और अंग्रेजी लेख
शलखे. इंस्त्टीट्युशन ऑफ इंप्जननअसष के सहयोगसे,उन्होने अपने शशल्प वांग्मयकी सात बार
भारतके ५ शहरोमे प्रदशषनी लगाई. दे शके कुछ संग्राहकोंने यह संग्रह खररदने की इच्छा भी
व्यक्त की थी मगर उन्होने नम्रतासे नकार हदया क्यु की वे चाहते थी की यह संग्रह नागपरू मे
श्री. जोशीजी का २२ डडसंबर १९९२ को स्त्वगषवास हुआ. उनके मत्ृ यु पश्चात कुछ शशल्पशास्त्र
अनुयायी एकर होके एक रस्त्ट स्त्थाषपत ककया, प्जसका नाम रखा गया ’ गो.ग.जोशी शशल्प
संशोधन रस्त्ट ‘. प्रस्त्तुत संपादक ने यह रस्त्ट के पंजीकरि ले अनेक प्रयत्न ककये पर असफल
हुवे.
उपयुक्त स्त्थायी जगह न ननलने पर यह संग्रह सात जगह पर स्त्थानांतररत हुआ. टस्त्ट के
अध्यक्ष के ननधनपर यह संग्रह परू ी तरह त्रबखर गया और नामशेर् हो गया.
श्री.जोशीजी का, उनके गुरु की तरह, एक ध्येय था कक भारतीय शशल्पशास्त्र यह षवर्य हमारे
अशभयांत्ररकी के पाठ्यक्रम का भाग बने . इस हदशा मे भारत सरकार कुछ कदम उठा रही है ,
ऐसे नषवन शशक्षि नीनत की घोर्िा से लगता है .
भारतीय शशल्पशास्त्रका षवस्त्तारपट पष्ृ ठ १८८- १८९ पर दीया है . गत १५० साल भारतके
अनेकषवध संशोधक संसार को प्राचीन भारतीय शशल्पशास्त्रका स्त्वरुप बतानेके शलए संशोधन कर
रहे है और अपने संशोधनके ननत्कर्ष ग्रंथ या लेख द्वारा प्रकाशशत भी कर रहे है . परू ी संसार
ककं तु एकभी संस्त्थामे आधुननक पाप्श्चमात्य शशल्पशशक्षाके साथ प्राचीन भारतीय शशल्पपध्दतीका
ज्ञान या पररचय ककया जाता नही . पारतंत्र्यके समय यह चल जाना नैसर्गषक था ककं तु अपने
राष्रको स्त्वातंत्र्य प्रातत होकर १७ (अब ७२ ) साल त्रबत चुके मगर यह राष्रीय भुशमका
इंप्जननअररंग के षवद्यार्थषयोंको शमलने की कोई कायषवाही अभीतक शुरु नही और भषवष्यमे शुरु
होने की आशा भी हदख नही रही. जानकारोंसे पुछनेपर ऐसा बताया जाता है की भारतीय
के नये षवद्यार्थषयोंको नही दे सकते . ग्रंथन होनेपर नये ग्रंथ शलखना यही एक मागष है . और
उसकी जानकारी तथा संस्त्कृत अननवायष है . यह जानकारी शमलानेका और संकलनका कायष कोई
संस्त्था यह राष्टीयकायष आवश्यक नही समझती . प्रातत पररप्स्त्थतीमे कुछ करना आवश्यक है
षवर्यके प्रथम श्रेिीके संशोधक इंप्जननअर वझे जी से प्रेरिा लेकर शुरु कीया है . १९५० से
१९५६ तक जो कुछ जानकारी प्रातत हुई वह जानकारी ननम्नशलणखत सूची के लेख ,शशल्पसंसार
भार्ालीलावती १. २० ४०९-४१६
भार्ालीलावती १. २१ ११-१२
भार्ालीलावती १. २१ २७-५५
अंकपाशरस्त्तताहद गणित १. २१ १ -७
सुब्रय्या शास्त्री का ग्रंथसंगह १. १०७- ११०
प्राचीन भारतीय बौप्ध्दक शास्त्र के ग्रंथोंके नाम १. ११५-११९
तथा संक्षक्षतत पररचय
संस्त्कृत शशल्पग्रंथ नामावली १.४ ५३ -५८
अंग्रेजी और अन्य भारतीय भार्ओंमे शलखे संदभष १.४ ६१ -६३
लेख
सरस्त्वती महाल ग्रंथालय तंजावर १.२ ३५ -३६
शशल्पदृष्टीसे तंजावर १. २ ६९ -७०
भारतका सवषश्रेष्ठ हस्त्तशलणखत ग्रंथसंग्रह १. १६६ -१६८
(अडड्यार)
भारतीय शशल्पग्रंथोंका प्राप्ततस्त्थान १. २५७ - २६१
भारतीय शशल्पग्रंथोंका प्राप्ततस्त्थान १. २६२ - २६३
• मातंगलीला
• नीनतसार: -कामंदक
• वास्त्तुषवद्या
• गोलदीषपका (ज्योनतर्)
• मनुष्यालय चंहद्रका
• मयमतम ्
• तंरसमुच्चय (तंर)
• ईशानगुरुदे वपध्दनत (मंर)
• शशल्परत्नाकर
• आश्वलायन गह्
ृ यसूर
• कौहटलीय अथषशास्त्र भाग १,२,३
• रिदीषपका (युध्दशास्त्र)
• शशल्परत्नम ्
• ननर्धप्रदीप
• वैखानसागम:
• वास्त्तुषवद्या सव्याख्या
▪ सरस्त्वतीषवलास
▪ कौहटलीय अथषशास्त्र
▪ कौहटलीय अथषशास्त्रपदसूची खंड १,२,३
▪ आयुवेद सूरम ्
▪ अशभलषर्ताथष र्चंतामणि
▪ तैतररय ब्राम्हि
▪ षवद्यामाधवीयम ् (मह
ु ू तष दीषपकायत
ु म ्)
▪ युप्क्तकल्पतरु (सं)
▪ चािाक्यराजनीनत शास्त्र (सं)
▪ भारतेर प्राचीन मानमंहदर (बं)
▪ प्राचीन हहंद ु दं डनननत (बं)
▪ जनषल्स इंडडयन हहस्त्टोररकल क्वाटष ली
▪ सुविष वणिक समाचार (बं)
८ भागणव पस्त्
ु तकालय ,गाय घाट , कािी
▪ भोजन शास्त्र
▪ पाकचंहद्रका
▪ वास्त्तरु ाजवल्लभ
▪ वस्त्तुमुक्तावशल
▪ आश्वलायन गह्
ृ यसूर
▪ उदकशांनत (ऋग्वेदीय)
▪ उदकशांनत (आपस्त्तंभीय)
▪ कंु डाकष
▪ कंु डरत्नावली सहटक
▪ गरुडपुराि (सारोध्दार)
▪ षवदरू नीनत
▪ मनुस्त्मनृ त
▪ नाट्यशास्त्र भरतमूनन षवरर्चत
▪ काव्यमाला माशसक -दृतीगती प्रकाश
▪ लीलावती (हहंदी अनुवाद सहहत) -पाटी गणित
▪ द्रव्यगुि षवज्ञान भाग १ से ८ और १२ (वैद्यकीत षववेचन)
▪ षवदरू नीनत मराठी
▪ र्टपंचाशशका साथष
▪ दृगागषल शास्त्र सटीक
▪ शारं गधर संहहता- सटीक -
▪ समरं गि सर
ू धार भाग १और २
▪ मानसोल्लास भाग १ से ३
▪ गणित नतलक:
▪ अपराप्जत पच्
ृ छा
▪ तांबुल मंप्जरी (यंरस्त्थ)
▪ कषवंद्राचायष सूची
▪ जेसलमेर ग्रंथ सूची
▪ वडोदरा राजकीय ग्रंथसूची
▪ बाशलद्वीपग्रंथा:
▪ पत्तन भांडागार ग्रंथसूची
▪ ग्रंथ नाम सूची
१२ सयाजी साहहत्यमाला
▪ गायकवाड्स ऑककषओलोजीका
▪ जनषल ऑफ इंडडयन सोसायटी ऑफ ओररएंटल आटष नंबर १०
▪ अजंठा नो कला मंडपो
▪ कलाकारनी संस्त्कार यारा
▪ कलार्चंतन
▪ गज
ु रातनंु पाटनगर अमदाबाद
▪ गुजरात कलकलाप भाग १और २.
▪ रुपदशषनी र्चरकार
▪ शशल्पपररचय (गुज)
▪ शशल्पदीपक (सं.गुज)-गंगाधर प्रिीत
▪ कलाकौशल्य (गुज)
▪ इमारत बांधकाम
▪ गह
ृ षवधान (यंरस्त्य)
▪ गज दोरीना हहसाबनी बुक
▪ पररिाम मंप्जरी
▪ प्रासाद मंडन भाग १ और २.
▪ बह
ृ त शशल्पशार भाग १ से ३
▪ भारतीय शशल्प अने स्त्थापत्य
▪ राजवल्लभ (यंरस्त्य)
▪ वास्त्तषु वधान
▪ वास्त्तुसार प्रकरि
▪ शशल्पसार संग्रह
▪ शशल्पर्चंतामणि भाग १
▪ शशल्परत्नाकर
▪ शशल्पसमप्ृ ध्द
शशल्प की हहंदी पुस्त्तके
▪ नूतनवास्त्तुप्रबंध अथाषत गहृ स्त्थभूर्ि
▪ बह
ृ द् वास्त्तुमाला (भा.टी.)
▪ दे वतामूनतष प्रकरि-रुपमंडनसहहत
▪ वास्त्तुषवद्या सव्याख्या
• प्रासाद मंडनम ्
• शशल्परत्न
• षवश्वाशमर धनुवेद
पाकशास्त्रनां पुस्त्तको
• पक्वान्न पोथी
• पाकशास्त्र
• रसूइनुं रसायि
• वीसमी सहदनु पाकशास्त्र
• शाकपाक पक्वान्नशास्त्र
• स्त्वाहदष्ट्वानी संग्रह
• सुरती रसथाळ
अंग्रेजी ग्रंथ
जनषल्स
बंगाली ग्रंथ
मराठी ग्रंथ
कृषर्शास्त्र
१- वक्ष
ृ षवद्या
• पाराशरीय कृषर्- हस्त्तशलणखत पोथी , भांडारकर इंस्त्टीट्युट पुिे
• काश्यपीय कृषर्- हस्त्तशलणखत पोथी , अड्यार लायब्ररी अड्यार
• कृषर्शासनम ् हहंदी अथष सहहत, कवषवीर बुकडेपो , महाल नागपूर.
• वक्ष
ृ ायव
ु ेदीय साथष उपवनषवनोद (मराठी), ले. वैद्यराज दत्तो बल्लाळ बोरकर, इस्त्लामपरू
• कृषर्संगह- हस्त्तशलणखत.
• वक्ष
ृ ायुवेदम ् -साथष तेलगु -प्र. व्ही रामस्त्वामी शास्त्रलु, चेन्नाई .
• उपवन षवनोद-ले. जी.पी. मुजुमदार, इंडडयन ररसचष इंस्त्टीट्युट, कलकत्ता .
• वक्ष
ृ ायव
ु ेदम ् -साथष तेलगु -ले. डॉ लप्ममपनत, ओररएनंटल बक
ु डेपो, पि
ु े.
• उपवन रहस्त्य (दोहा रुपांतररत),ले. उमाप्रसाद शमाष, काशी -१९५०.
उपर ननहदषष्ट चार का मुल शारं गधर संहहता मे है ।
• कृषर्दपषि, कृषर्षवद्या , वक्ष
ृ ारोपि प्रिाशल -ले. हे मचंद्र शमश्र, काशीपुरा कृषर्शाला,
कलकत्ता.
• आयषकृषर् षवज्ञान- हहंदी- ले. पि
ू श
ष ंग, प्र. ब्रम्हप्रेस , इटावा मध्यप्रदे श
• अॅग्रीकल्चर अॅंड अलाइड आट्षस -वाय एन अय्यर ,बंगळुरू
• स्त्टडी ऑफ अग्रीकल्चर इन अॅंशंट इंडडया -ले. राधारमि गंगोपाध्याय, प्र. मुखजी अड
ॅं
कं. श्रीरामपूर (प.बंगाल)
• अग्रीकल्चर शसस्त्टीम इन अॅंशंट इंडडया -ले.एन एन घोर्ाल, कोलकाता युननव्हशसषटी .
• वनस्त्पती -तलंटस अॅंड तलंटस लाईफ - ले. जी.पी. मज
ु म
ु दार, कोलकाता यनु नव्हशसषटी .
• अद्भुत वक्ष
ृ ोत्पादन- नराठी लेखमाला -श्री प. ह. थत्ते, उद्यम माशसक नागपूर, अगस्त्त
१९२७ से जुलै १९२९.
• द्रम
ु कल्प -जैन लायब्ररी
o बह
ृ त पारशरीय कृषर्शास्त्र मराठी -ले. कृ.षव. वझे उद्यम नागपूर मे १९२३
o भारतीय कृषर्शास्त्र मराठी-वक्ष
ृ षवद्या - ले. कृ.षव. वझे ,दो लेख महाराष्र साहहत्य
पत्ररका वर्ष १, १९२९
o स्त्टडी ऑफ बॉटनी - ले. कृ.षव. वझे , वेहदक मॅगणझन लाहोर
o बीज,खाद, रं र्गन कपास -तीन लेख- ले. कृ.षव. वझे , उद्यम नागपरू मे जनवरी-माचष
१९२५.
o ओररप्जन अॅंड डेव्हलपमेंट ऑफ सायंस ऑफ अॅग्रीकल्चर इन अॅंशट इंडडया- श्री जी पी
मुजुमदार, १३ वी ओररएट कॉन्फरं स ,
o चंद्रगुतत कालीन कृषर्-मराठी, ले. कृ.षव. वझे
o अवर्षि प्रताप -शमन -ले. श्री.प.ह.थत्ते , महाराष्र कृषर्वल माशसक , १९२३ १९२४
o महाभारत शांनतपवष अ, १८४ पौधोंके ज्ञानेंहद्रये .
२-पिु ववद्या
(३) वस्त्रननमाणर्ववद्या
इस लेखमे भारतीय जलशास्त्रका मुहद्रत वांग्मय बतानेकी चेष्टा करा रहा हूं . आप ् यानी पानी
पंचमहाभूतोंमेसे एक है . इसका इनतहास वेदोंमे आया है . पानीके उत्पषत्तका इनतहास पुरुर्ाथष
माशसक (मराठी), अगस्त्त १९३७ के अंक मे बताया है . लेखक ने बताया है कक शमरवायु और
वरुिवायु (ऑक्सीजन और हायड्रोजन ) शमल कर पानी बना. ननघंटु शब्दकोशमे पानी के १००
अथषपूिष नांम बताये है.
भारत एक कृर्ीप्रधान दे श है और भारतीयोंने पानीके महत्व तथा शप्क्त जानकर उसे दे वता
स्त्वरुपा माना है . ऋग्वेदमे आपोहहष्टा नामक सुक्त(१०-९-१ ) मे पाथषना की है ‘पानी कल्यािकी
जननी है, उसकी शप्क्त हमे प्रातत हो और उन्ननतप्रत ले जाये’.
पजषन्य और पानीके स्त्रोत, अनतवष्ृ टी ननवारि मंर, नदी के पानी से शसंचन, नदी प्रवाहसे भूमी
की हानी रोकनेके उपात, पक्के और कच्चे कुवे, पानी के अन्य स्त्रोत, वर्ाष आरं भ का आनंद
और जलयारा .
वेिीराम शमाष गौडने अपने वेदषवज्ञानशममांसा- (प्र. भागषव पुस्त्तकालय बनारस) ग्रंथमे वेद और
उनके उपवेद बातये है .
जलशार का उल्लेख परु ािोंमे और नीनत ग्रंथोंमे भी आता है . नारदव्दारा यर्ु धप्ष्टर को पछ
ु े
गये सवाल नारनीनतमे हदये है जैसे;
श्री. वझे अपने मराठी लेख ‘ प्राचीन आयषशशल्पांची उपलब्ध माहहती’ मे सूर्चत करते है कक
वशसष्ठशशल्पसंहहता यह ग्रंथ जलशास्त्र और नौकाशास्त्र के संबधमे है संदभष उद्यम माशसक
जन
ू १९२२). परं तु मल
ु संहहता अनप
ु लब्ध होनेसे यह जानकारी यजव
ु ेदके अंतगषत वशसष्ठ के
सुक्तोंसे प्रातत करनी होगी.
भग
ृ शु शल्पसंहहतामे जलशास्त्र की तीन षवद्याए बतायी है -१-स्त्तंभन (स्त्टोरे ज), २-संसेचन
(सतलाय) और ३-संहरि(ड्रेनेज). इस संहहता की शास्त्रीय, मनोरं जक बाते कुछ इस प्रकारकी
है.वशशष्ठ ऋर्ीद्वारा बताए बहते पानीके १९ गुिधमष, ऋर्ी पाराशर की पजषन्य भषवष्य पध्दती,
भग
ृ ु ऋर्ीद्वारा बताए प्स्त्थर पानीके १० गुिधमष इत्याहद .
भूगभषजल का स्त्थान ननप्श्चत करनेका भी एक शास्त्र था प्जसका नाम है दृगागषल शास्त्र (वॉटर
डडव्हाननंग) . वराहशमहहर के प्रशसध्द ग्रंथ ‘बह
ृ तसंहहता-अध्याय ५३ मे षवस्त्तत
ृ जानकारी उपल्ब्ध
है . इस षवर्यमे अन्य ननम्नशलणखत वांग्मय उपलब्ध है .
• दृगागषल शास्त्र -ले. षवठ्ठल शास्त्री गोरे , प्र. ननिषयसागर प्रेस, मंब
ु ई.
• जलागषल शास्त्रम (तेलगु), प्र. रामस्त्वामी शास्त्रलु, चेन्नाई
• षवहहरी -प्राचीन व अवाषचीन (मराठी),ले. प.ह.थत्ते, माशसक उद्यम फरवरी १९२२ से
हदसेंबर १९२६,खंडश: प्रकाशशत.
• वॉटर डडव्हाननंग – अश
ॅं ट अॅंड मॉडनष -ले. के. वेंकटरामन, जनषल ऑफ सी.बी आय .पी
दे हली, माचष १९५०
• वॉटर डडव्हाननंग –ले.मेजर पोगसन ,बॉम्बे इंप्जननअररंग कॉग्रें स, १९२३, पेपर नं.८२.
भारत सरकार के सेंरल बोडष ऑफ इररगेशन नामक संस्त्थाके दे हली प्स्त्थत ग्रंथलयमे जलशास्त्र
का पुस्त्तक भंडार है ,उन मे से कुछ प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार है .
अनेक प्राचीन संदभोंसे यह शसध्द होता है कक संसारमे शसचाई का शास्त्र सवषप्रथम भारतमे
षवकशसत हुवा, उसके पश्चात यहासे इप्जतत, बॅत्रबलोननया , दक्षक्षि अमेररका पहुचा (संदभष रुडकी
हरटाइज ऑन शसप्व्हल इंप्जननअररंग १९०१). पेरु दे श मे इंका सभ्यता कालके शसंचाई के अवशेर्
शमले है . शसंचाईशास्त्र के जगमान्य तज्ञ सर षवशलयम षवल्कॉक्सने कोलकाता षवश्वषवद्यालयमे
बंगालके प्राचीन शसंचाईके षवर्यमे चार व्याख्यान हदये. जो महु द्रत स्त्वरुप मे उपलब्ध है . राजा
भर्गरथ षवश्वका प्रथम शसंचनतज्ञ था. शसंचाई षवद्याको भर्गरथ षवद्या ऐसा नाम श्री कालेलकर
ने हदया. भर्गरथ और भारतके सप
ु र
ु ोंकी प्रशंसा सर षवल्कॉक्स ननम्न शब्दोंमे करते है ;
महषर्ष व्यासने महाभारतमे भारतीयोंके बुध्दीसामथ्यष का विषन भलेही दै षवक शब्दोंमे कीया हो,
पर वस्त्तुप्स्त्थतीमे वह यथाथष है. यहा का हर दक्षक्षि वाहहनी नदी (जैसे भार्गरथी, मठभागा)
प्रथम एक खोदी गयी नहरे थी. मुझे याद है जब मैंने नकाशा पर नहर के शलए लककर
बानाई तब मैंने ए पाया कक वैसाही मृत नहर मौजुद है , ये दे खकर मै आश्चयषचककत हो गया.
पुरािोंमे बताया है कक हहमालय और षवध्यपवषत के बीचमे षवशाल जलाशय था उसे अगस्त्त्य
ऋर्ीने संहरि कीया (पीके सुखा डाला) और वहा की जमीन खेती योग्य बनाई.
मैंने दक्षक्षि भारत मे ‘कोंडातुरु’ मे एक प्रशसध्द शसंचाई योजना दे खी, जहांपर एक सेतु
बनाकर अनत षवशाल जलाशय बनाया गया था. इस जलाशय की लंबाई ७ से ८ मील थी.
इस जलाशय का पानी असंख्य नहरोंमे छोडा गया था. इस जलाशयका पानी ३२ गांवोंके शलये
अकालके समय ८ महहनोंतक पयाषतत था. मेरे अकॉषट यारामे कावेरी पाक नामक अनतषवशाल
जलाशय दे खा, प्जसका पानी शसचाइके काम आता था.
अर्धक जानकारी के शलए श्री. रमेश दत्त का ‘एकॉनोशमक हहस्त्टरीऑफ इंडडया अंडर अली
त्रब्रहटश रुल” पढे .
भारत सरकार व्दारा १९५१मे प्रकाशशत ग्रंथ “ फाइव थाउजंड इअसष ऑफ आककषटे क्चर” मे जो
मोहें जो -दारो के र्चर है उससे भारत मे जलशास्त्र ककतना उन्नत था इसकी कल्पना कक जा
सकती है.
डॉ. प्रसन्न कुमार आचायषने अपने ‘एशलमें ट्स ऑफ हहंद ु आककषटे क्चर अॅंड शसप्व्हलाज़ेशन ग्रंथ के
पष्ृ ठ ७१-७७ मे प्राचीन स्त्नानगह
ृ का विषन हदया है . औरं गजेबके कालमे औरं गाबाद और ब-
हािपरू मे आधनु नक जलप्रदाय जैसी व्यवस्त्था थी . औरं गाबाद के पासकी नदी मे जलकुषपका
(इनटे ल वेल्स )बनाकर गुरुत्वाकर्षिसे पानी शहर तक पहुचानेकी व्यवस्त्था थी. यह जानकारी
अकोला के श्री.गोगटे ने औरं गबादकी नहरे इस मराठी लेख मे बताई है (संदभष उद्यम माशसक
नागपूर के जुल-ै १९२२ अंका मे प्रकाशशत हुइ है . षवजयनगर साम्राज्यमे शसंचन व्यवस्त्था कैसी
नगर रचना शास्त्रमे जलव्यवस्त्थापन का बडा मह्त्व है. प्राचीन कालमे यह व्यवथा कैसी
होती थी इसका विषन मैंने अपने ‘नगर रचना शास्त्र’ इस लेख ककया है , कृपया वह पढे .
अंतमे मै ऐसी आशा करता हूं कोई राष्रभार्ाप्रेमी उपरननषदषष्ट तथा अन्य भारतीय जलशास्त्र
वांग्मयसे षवस्त्तत
ृ जानकारी शमलाकर भारतीय जलशास्त्रका इनतहास संसारके रखे और आगाशम
संतानोंको स्त्फुती प्रदान करे .
भारतीय संस्त्कृतीके षवद्वान संशोधक डॉ. अळतेकरजीके ‘प्राचीन भारतीय शशक्षि पध्दती ‘
नामक मराठी ग्रंथमे एक मनननय पररच्छे द है - ‘खननशास्त्र का हहंदओ
ु ंका ज्ञान अत्यल्प था
और सोना चांदी वगैरेह धातु खदानसे ननकालनेकी पध्दतीभी बहोत सदोर् थी -ऐसा षवधान
ग्रीक खननशास्त्रज्ञ ‘ स्त्रं बो ने ककया है . ग्रीक लोगोंने हहंदओ
ु ंकी खदाने प्रत्यक्ष रुपसे नही दे खी
होंगी .
• अथषशास्त्रमे सोना, चांदी, तांबा लोह वगैरे अशुध्द धातु खदानसे ननकालते समय कौन
से रुपमे हदखते है इस बातका षववरि आता है .
• वेदकालमे धातुओंके कारखाने थे ऐसा प्राच्य षवद्या संशोधक बताते है . पं. सातवळे कर
जीने ‘ वेदोंमे लोहे के कारखाने ‘ इस नाम की पप्ु स्त्तका प्रकाशशत की है .
• प्राचीन ग्रंथ ‘रसरत्न समुच्चय ‘ ग्रंथमे धातु प्रमुखत: नौ प्रकारके होते है ऐसा बताया है
. सोना, चांदी, तांबा, लोहा, सीसा, कर्थल, वत्त
ृ . इस सबके संबंधमे भारतीयोंका ज्ञान
उच्च स्त्थरका था .
• एंस्त्क्लोषपडडया त्रब्रटाननका खंड १४ (१९१५) मे शलखा है “ १५४५ मे एक भारतीयने इंग्लंडमे
सवषप्रथम सूईया बनाई, पर ये कला उस व्यक्तीके ननधन पश्चात लुतत हो गयी.१५६०
मे णितोफर र्ग्रननंगमे इस कला को पुनुरुप्ज्जषवत ककया . पहहले हहंदस्त्
ु तानमे सुइयां
बहोत बनती थी पर अब षवदे शसे आती है.
• शस्त्रकमषमे सोना, चांदी या तांबेकी सुइयां का उपयोग होता था ऐसा वैद्यक ग्रंथोंमे
बताया है .
श्री. वझेजीने अपने ग्रंथोंमे खननशास्त्रका षवस्त्तार और संदभष बताये है . जैसे धातुकल्प,
रत्नपररक्षा, लोहािषव, लोहप्रदीप. महावज्र, भैरवतंर और पार्ािभेद.
धातुकल्प -भांडारकर प्राच्यषवद्या संशोधन संस्त्था, पुिे मे उपलब्ध है -पोथी क्रमांक ११४५,
१८८६ से १८९२ तक.
रत्नोपरत्न- उनके उपयोग -उद्यम नागपूर -लेखक कृ.षव. वझे , शसतंबर १९२५.
धातु और खदान षवर्यक सामान्य षवचार - उद्यम नागपूर -लेखक कृ.षव. वझे , नोव्हें बर
१९२१.
भारतीय भघ
ू टना- महाराष्र साहहत्यपत्ररका , लेखक कृ.षव. वझे १९२८,
हत्यारोंको धार लगाना- उद्यम नागपूर -लेखक कृ.षव. वझे , जुलै १९२४.
खदानसे ननकले हुए पथ्थर नरम करना इत्याहद- उद्यम नागपरू -लेखक कृ.षव. वझे , अगस्त्त
से अक्टोबर १९२४.
कांस्त्यघंटा और उससे बोध – उद्यम नागपूर - लेखक ले. बा.ना. सहस्त्रबुध्दे , १९२१.
सेंट झेप्व्हअर कॉलेज मुबंईके श्री भागवत ने इस ग्रंथपर संशोधन करके ,मेटल्स इन अॅशंट
इंडडया इस शशर्षकका एक पुस्त्तक शलखा है . इस पुस्त्तकमे इसापूवष ७००० से इ.स. १६०० तकका
हहंद ु धातुशास्त्रका इनतहास बताया है . इस अप्रकाशशत ग्रंथको उनकी षवदर्
ु ी पत्नी श्रीमती दग
ु ाष
भागवतमे १८ भागोंमे माशसक सष्ृ टीज्ञानमे ऑक्टोबर १९४३ से शसतंबर १९४५ प्रकाशशत ककया.
इस अप्रशसध्द ग्रंथका भावाथष “ नॉलेज ऑफ मेटल्स इन अॅंशट इंडडया” इस शशर्षकसे, जनषल
ऑफ केशमकल एज्युकेशन, खंड १०, अंक ११, नोव्हें बर १९३३ मे प्रकाशशत हुआ है . श्री एस
परमशशवम ने प्राच्य षवद्यापररर्द चार ननम्नशलणखत अंग्रजी ननबंध प्रस्त्तुत ककये संदभष खंड
११, पष्ृ ठ १८५ से २०९.
• रत्नप्रदीप (मराठी) -के. य.ल. खांबेटे, जलगांव ,महाराष्र, इसमे हहरा, माणिक मोती
वगैरेकी जानकारी है.
• रत्नदीषपका रत्नशास्त्रम- ताशमळनाडू सासककय ओररएंटल शसररज . रसप्रकाश सुधारक
अध्याय ७
• पदाथष विषन भाग १-(मराठी) - ले. बा.प्र.मोडक (१८११)-रत्न, पष्ृ ठ ५३ से ७१.
कोई सज्जन ऐसा जरूर पूछेंगे कक शास्त्र (सायंस) प्राचीन कालसे अब बहुत प्रगत हुआ है . इस
शलये खननशास्त्रके प्राचीन ज्ञानसे अब क्या फायदा होगा. इस प्रश्नपर मैं उनका ध्यान, त्रब्रहटश
कंस्त्रक्टशन इंप्जननअर, माशसक के फरवरी माचष १९५३ अंकमे छपे लेख के और आकषर्षत करना
चाहता हूं. लेखका शशर्षक है ‘अॅंशट इडडयन फाइंडडग्स मे सोल्व्ह करोजन प्रोब्लेम्स’ . इसशलए
यह भारतीय शाखाका सखोल अभ्यास करके यह ज्ञान संसारको प्रदान करना आवश्यक है .मै
आशा करता हूं कक इस दृष्टीसे कोई भारतीय अवश्य कदम उठायेगा.
मुल संस्त्कृत ग्रंथ – युप्क्तकल्पतरु, अप्ब्धयान, जलयानज्ञान , शसंद,ु वारु वगैरेह उनमेसे
मुहद्रत –
▪ मत्स्त्ययंर अथवा होकायंर (मराठी ननबंध) -ले. . प. ह. थत्ते, भारत इनतहास संशोधन
मंडळ पुिे, रैमाशसक वर्ष १४ अंक २
▪ इंडडयन शशषपंग इंडस्त्री अॅंड मकेंटाईन मरीन- डुग
ं रसी धनसी वेल्फेअर रस्त्ट- जुलै
१९२३ तथा वैहदक मॅगणझन लाहोर - जुलै १९२३
▪ मुंबई का जहाज बनानेवाला पारसी पररवार -ले. पारसनीस. मराठी सहहत्य पररचय
▪ प्राचीन हहंदओ
ु ंका जलपयषटन : वास्त्को- ड -गामा की हहंदस्त्
ु तान की पहली सफर-
मराठी पुस्त्तक ५, मुंबई राज्य.
▪ भारत की नाषवक परं परा (मराठी)-ले. सुमती मोरारजी -इशलस्त्रे ड वीकली तथा अमत
ृ ,
नाशशक ,मे १९५४
▪ हहंद की दो हजार वर्ोंकी नाषवक परं परा- ले. सुमती मोरारजी, रषववार सकाळ पुिे
२८-२-१९५४
▪ प्राचीन भारते नौसाधनम ् (संस्त्कृत) – संस्त्कृत भषवतत्वम ् , संस्त्कृत षवश्वपररर्द
षवशेर्ांक -ले. वासुदेवशास्त्री बागेवाडीकर.
▪ वॉर इन अॅंशंट इंडडया -ले. हदक्षक्षतार
▪ समुद्रयानम ् (संस्त्कृत)- माशसक संस्त्कृत चंहद्रका , नाशशक, सतटें बर १९०७, पष्ृ ठ ८९-
१००
मुहद्रत ग्रंथ
लेख
हटतपिी – नगर रचना शास्त्रके लेखमे जो जो वांग्मय सूर्चत ककया है वह रथशास्त्र के संबंधमे
भी जरूर पढना चाहहये. शुक्रनीनत,कौहटल्य अथषशास्त्र आहद ग्रंथ भी इस षवर्यके संबंधमे अवश्य
पढना चाहहये.
o हायवेज इन पंजाब -पास्त्ट अॅंड प्रेझेंट – ड्ब्यु एस डोमषन , पेपर पंजाब यनु नव्हशसषटी
कॉग्रें स -१९१९.
o श्री त्रब्रजमोहन दास – अध्यक्षक्षय भार्ि- इंडडअन रोड कॉग्रेस -१९४०.
o राम का सेतु – माशसक मनोरं जन , जुलै १९५५.
o भारत मे राजमागष ननमाषि की कथा- श्री त्रब्रजमोहन दास, जनषल ऑफ इंस्त्टीट्युशन
ऑफ इंप्जननअसष इंडडया , खंड ३३, क्र;१, सतटे बर १९५२.
o रथलक्षि -षवश्वकमाष रर्चत, शांनतननकेतन षवश्वभारती ग्रंथालय क्रमांक २०४८, २०७३.
भारतीय शशलशास्त्त्र्के उपशास्त्रोंके संबंधमे प्जतने संक्षेपमे मैंने गत चार महहनोंमे शशल्पवांग्मय-
सूची पाठकोंको सादर की है . इस वांग्मयका मैंए नागपूरमे हदनांक ९ से १० एषप्रलको ,
इंस्त्टीट्युशन ऑफ इंप्जननअसष इंडडया के गव्हननिंग कौंशसल के सभासदोंके शलये प्रदशषन रुपमे
आयोजन ककया था . यह संपूिष संग्रह मेरे पास नही है . मेरे अभ्यास के आरं भ होनेसे बताने
लायक वांग्मय छूट गया है इस बातकी मुझे स्त्पष्ट कल्पना है . गत पांच सालके प्रयत्नसे
प्जतनी जानकारी एकत्ररत हुई उतनीही सादर करनेका आदे श मे. गद्रे जीसे शमला और मैंए उसका
नम्रतासे यथाशप्क्त पालन ककया .
यहद मेजर गद्रे जी ननतांत उत्साह और अतुलनीय त्यागसे शशल्पसंसार सातताहहक का आयोजन
नही करते तो मेरी गत पांच सालकी अत्यल्प सेवा झोपडीमे पडी रहती . आप मुझे कायािंषवत
नही करते तो यह संक्षक्षततसी शशल्पा वांग्मय की सूर्च प्जज्ञासुओंके सामने नही आती !
मै बडी नम्रतासे षवहदत करता हूं कक डॉ प्रसन्नकुमार आचायष, डॉ पी के गोडे आहद षवद्वानोंको
यह सच
ू ी उपयक्
ु तसी होगी .
इस उपयुक्तता का प्रमख
ु श्रेय नन:संदेह मेजर गद्रे जीका है . मेरा कायष ऐसाही चलता रहे गा
. प्जज्ञासु शमलने पर मै कफर सेवाके शलये हाप्जर हूं .मेरे टुटे फुटे लेखन के षवद्वान और
वंदनीय पाठकोंके प्रनत मेरे साष्टांग प्रणिपात . प्जन षवद्वान संशोधकोंके ग्रंथोंसे जानकारी
मैंए कृतज्ञतासे उद्गत
ृ की , उनके पनत भी मेरे श्रध्दापूवक
ष नम्र प्रिाम.
मझ
ु े कोई पर शलखना चाहे तो कृपया ननम्न शलणखत मेरे रहहवास के पते पर शलखे:-
गोपाळ गजानन जोशी षपंपुटकर वाडा, पोशलस नाका रोड, सकषल ७अ , नागपूर शहर
हदनांक १२ फरवरी १९५५ के शशल्पसंसारके अंक मे मेजर गद्रे जीने भारतीय षवमानशस्त्रके
संबंधमे कुछ जानकारी दी है . पं. सब्र
ु ायशास्त्री शलणखत महषर्ष भारव्दाज प्रणित वैमाननक
प्रकरिका इनतहास पढनेपर कुछ बुध्दीवादी उसपर पूित
ष या षवश्वास नही रखेंगे ऐसा संभव है .
प्जन प्जज्ञासओ
ू ंको भारतीय षवमानशास्त्रकी सत्यता जाननी है वे कृपया ननम्नशलणखत वांग्मयका
अवलोकन करनेके बाद अपना ननप्श्चत मत बनावे . प्राचीन कालमे भारत षवमानशास्त्र जानता
था यह मेरा ननप्श्चत मत है .
(१) प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्रसार (मराठी), लेखक श्री. कृ.षव.वझे, प्रकरि १०—
षवमानशास्त्र.भग
ृ ुशशल्पसंहहतामे शशल्पशास्त्रके जो दस उपशास्त्र बताये है उनमेसे अप्ग्नयानशास्त्र
या षवमानशास्त्र एक उपशास्त्र है. वझेजीको षवमानशस्त्रके संबंधमे अगप्स्त्त षवमानशास्त्र संहहता
उज्जैन के राजोपध्याय दामोदर भट्ट जोशी, त्यंबककर के प्राचीन पोठी संग्रहमे शमली. दख
ु की
बात है की पोथी पि
ू रु
ष पमे नही थी. वह पोथी शके १५५० की थी . उपर ननहदष ष्ट अगप्स्त्त
षवमानशास्त्र संहहताके आधारसे ननम्नशलणखत लेख प्रकाशशत हुए .
(६) बलंस
ू , एअर शशतस अॅंड फ्टलाइअंग मशशंस, प्र. गर्ट्रषड बेकन, लंडन.
(७)प्रक्टीकल काइट्स अॅंड एरोतलेंस-ले.फ्ेड्शिक वॉकर, प्र. र्गलबटष पीटमन, लंडन (१९०९)
वेद कालमे षवमानशास्त्र था ऐसे वेदके संशोधकोंका दाव है. इस षवर्य मे ननम्नशलणखत संदभष
दे खे .
मै आशा करता हूं कक इस लेख का कोई ना कोई वाचक उपरननहदष ष्ट वांग्मय का अभ्यास करे
और एक ननिषयरूप प्रबंध शलख कर संसार को भारतीय षवमान शास्त्र का सम्यग पररचय करा
दे . भारव्दाज षवमानशास्त्र नामक ग्रंथ इंटरनॅशनल इंप्स्त्टट्य्ट ऑफ संस्त्कृत ररसचष , म्है सरु ,
पूिष रुपसे प्रकाशशत करने वाली है .
शशल्पसंसारके हदनांक २६ माचष १९५५ के अंकमे (पष्ृ ठ १८६ से १८९पर) मैंने भारतीय शशल्पशास्त्र
का भग
ृ ु शशल्पसंहहतानस
ु ार षवस्त्तार बताया था . आज इस लेख मे भारतीय वास्त्तश
ु ास्त्रसंबंधमे
चंद बाते और वांग्मय बतानेकी चेष्टा कर रहा हूं . मैंने यह पहलेही बतलाया है कक मानव
जानतके उपयोगके पशु पक्षी इनकी दे खभाल , तथा खुद मानवजाती का धप
ु , हवा तथा वर्ाषसे
कैसे रक्षि करना; उनके शलये छोटे तंबुसे लेकर बडे राहवाडे और गुफाओं तकका ननस्त्तारके हे तु
कैसे ननमाषि करना यह बाते वास्त्तुशास्त्र का कक्षामे आती है . वास्त्तुशास्त्र के शलये आजकल
‘आककषटे क्चर’ यह समानाथी अंग्रेजी शब्द का उपयोग ककया जाता है . पशु, पक्षी और मानवके
ननशमषनतपर पथ्
ृ वीपर वास्त्तुशास्त्रका जन्म हुवा. धीरे धीरे इन सभी ने वास्त्तुशास्त्रकी प्रगती के
शलये मदद की.
(२) संसारके सवषप्रथम ज्ञानग्रंथ जो वेद है उनमेभी वास्त्तुशास्त्र षवर्यक उल्लेख आते है
.महाराष्राके एक नामवंत समाजसध
ु ारक श्री. गोपाळ गिेश आगरकरने अपने दै ननक ‘सध
ु ारक’
मे भारतीय कलांचे पुराित्व नामक मराठी लेखमे वेदोंमे जो जो कारीगरी की बाते आयी है
उनकी एक सच
ू ी दी है . इन सच
ू ीमे चन
ू ा, मकान, वाडे, शहर, ककले आहदके संबंधमे ऋग्वेदकी
ऋचाए बतायी है. यह लेख षवषवध षवर्य संग्रह भाग १ पष्ृ ठ ४२ पर प्रकाशशत हुआ है (१८९१)
वेश्मशास्त्र का षवस्त्तार
वास- टें ट उटज - हट कुट्हट- कॉटे ज मंहदर- हाउसेस
मंहदर-हाउसेस
शाला- गह
ृ - आगर- हाउसेस हाम्यष प्रासाद
शेड क्वाड्रंगल्स मॅंशंस पॅलेसेस
प्रा. हररदास शमरजी ने अपने शशल्पशास्त्र षवर्यक सूची ग्रंथमे भारतीय वास्त्तुशास्त्र का
ननम्नशलणखत षवस्त्तार बताया है .
श्री. वझे और प्रा. हररदास शमरजीके उपरननहदष ष्ट जानकारीसे भारतीय वास्त्तुशास्त्रमे कौनसी बाते
समाषवष्ट होती है इसका पाठकोंको पता चला होगा. अलबत इसके साथा मानवी जीवनसे
ननगडडत जलशास्त्र, युध्दशास्त्र, रथशास्त्र, नगर रचना शास्त्र आहद संबंर्धत बातें वास्त्तुशास्त्रमे
आयेगी. भारतीय शशल्पशास्त्रके वास्त्तुखंडका षवस्त्तार शशपसंसारके पष्ृ ठ १८९ पर है .
(४) वास्त्तश
ु ास्त्र शशल्पशास्त्रका एक उपषवभाग होनेसे सभी प्रमख
ु शशल्पशास्त्रके ग्रंथोंमे
वास्त्तुशास्त्र की जानकारी आती है .
(७) भग
ृ ुशशल्पसंहहता वझेजी को १९२० मे उज्जैनमे अपूिष रुपमे शमली थी. उसपरसे आपने
काफी पररचय हदया. आपके ननधनके पश्चात यह संहहता अज्ञात हो गयी. ककं तु इसके काफी
उध्दरि उपलब्धा है. मंब
ु ई के प्रशसध्द र्चरकार श्री, नी.म. केळकर सांप्रत भग
ृ शु शल्पसंहहता का
पता लगाने की कोशशस कर रहे है. (८) मंहदरषवद्याके संबंधमे एक अत्ररसंहहता ‘
समुतर्चनार्धकरिम ् ‘नामक ग्रंथ १९४३ मे श्री पी रघुनाथ चक्रवनतष और एम रामकृष्ि कवीजी
ने नतरुपतीसे प्रकाशशत ककया है.
(९)षवश्वकमाष के कई ग्रंथ बताये जाते है . उसमेसे कुछ मेजर गद्रे जीने शशल्पसंसारके पष्ृ ठ ५०
पर (हदनांक २२ जनवरी १९५५) हदये है . उना ग्रंथोंमेसे ननम्नशलणखत महु द्रत है . षवश्वाशमर एक
नही अनेक थे ऐसा मानना है.
(१०) मया के मयदीषपका, मयमत, मयमत प्रनतष्ठा, मयशास्त्रम ् ,मयशशल्प, मयसंग्रह आहद.
मयसंस्त्कृनत दक्षक्षि अमेररका तक पहुची थी ऐसा षवद्वानोंका मानना है , अर्धक जानकारी के
शलए श्री.सी चमनलाल का हहंद ु अमेररका पढे .
(१३) शुक्राचायष की स्त्वतंर शशल्पसंहहता ज्ञात नही पर उनका ग्रंथ शुक्रनीनत काफी प्रशसध्द और
मुहद्रत स्त्वरुप मे उपल्ब्ध है . ग्रंथमे युध्दशास्त्र की काफी जानकारी है .
(१४)अठरह शशल्पशास्त्रोपदे शकोंके अन्य षवर्यपर ग्रंथ उपलब्ध है . कश्यप शशल्पशास्त्र (संस्त्कृत)
का संपादन श्री .वझेजी ने ककया ,प्र. आनंदाश्रम, पि
ु े.
(१५) कश्यपकी वैद्यक शास्त्र और कृषर्शास्त्र परभी संहहता उपलब्ध है . कप्श्मर प्रदे श संपूिष
जलमग्न था, कश्यप ऋर्ीने पानी का ननकास कर बसने योग्य बनाया, इसी शलए उस प्रांत
कप्श्मर(कश्यप मीर) नामसे प्रशसध्द हुआ. कश्यापमूनी ने कप्श्मरसे इप्जतत तक भ्रमि ककया.
दस हजार छोटे पुल (कल्व्हटष ) बनाये. इससे पता चलता है के भारतीय शशल्पशास्त्र दरू दरू तक
पहुचा था. (
१६) वास्त्तुशास्त्र षवशयक ग्रंथ अनेक है.उनमेसे ननम्नशलणखत प्रमुख और प्रशसध्द है . (ग्रंथोंके
प्रकाशक और प्रातती स्त्थान अन्य लेखमे हदय है)
• भारतीय वास्त्तश
ु ास्त्र -रामराजा
• इंडडयन आककषटे क्चर- व्ही.टी,अय्यर
• थ्री मेजर स्त्टाईल्स ऑफ इंडडयन आककषटे क्चर-गेव्हले और रामचंद्रन
परु ाि ग्रंथ: अप्ग्नपरु ान, गरुडपरु ाि, नारदपरु ाि, ब्रम्हांडपरु ाि, भषवष्यपरु ाि, मत्स्त्यपरु ाि,
शलंगपुराि, वायुपुरान, स्त्कंदपुराि इत्याहद. मूनतषशास्त्र जैसा ही र्चरशास्त्र वास्त्तुशास्त्र का एक
अंग है. इस शास्त्र के कुछ प्रशसध्द ग्रंथ है , र्चरलक्षि, षवष्िुधमोत्तर पुराि, र्चरसूर इत्याहद.
(२१) भारत अब स्त्वतंर हो गया है . वास्त्तुशास्त्रके बारे मे भारतकी गौरवपूिष परं परा है. उसकी
जानकारी खुदको भारतीय कहलानेवाले स्त्थापप्त्य्वशारदोंको पूित
ष या रहना अत्यावश्यक है . अपना
दे श सदै व गौरवमे रहे ऐसी प्जनकी श्रध्दा है और जो उसके पत
ू ीके शलए प्रयत्नशील है वे अवश्य
पूवज
ष ोंके इस षवद्याधन की कदर करें गे और यह भांडार आगामी षपढीको योग्य रुपसे सौप दें गे
ऐसी आशा करता हूं .
ककं तु एक छोटीसी बात मनमे खटकती है . प्जस दे शका प्राचीन युध्द इनतहास अनत स्त्फुतीप्रद
और जो शास्त्र के रुपमे आजभी प्रशसध्द है , उस युध्दशास्त्र का पररचय इस षवद्यापीठमे
हदया जाएगा या नही ?
भ्रुगु शशल्पसंहहता मे प्राकारशास्त्र याने युध्दशास्त्रका षवस्त्तार ननम्नशलणखत ताशलकामे हदया है.
युध्दशास्त्र
चार षवद्याए
दग
ु षष वद्या कूटषवद्या आकारषवद्या यध्
ु दषवद्या
फोट्षस कॅसल्स मोट वॉरफेअर
छ कलाए
मल्लयुध्द शरसंधान अस्त्रननपातन व्युहरचना शल्यादृनत व्रिव्याधी
ननवारि
रे सशलंग वेपन्स शमसाइल्स स्त्रे टेजी सजषरी वुंड ड्रेशसग
ऋग्वेद के एक मंर मे कहा है –‘शरुको हटानेवाले तुम्हारे शस्त्र और अस्त्र प्स्त्थर और मजबुत
हो, तुम्हारी सेना चतुर तथा इमानदार हो’. धनुवेद याने युध्दशास्त्र यजुवेदका उपवेद माना
जाता है. यामलाष्टक ग्रंथमे उपवेदोंकी अनक्र
ु मणिका दीयी है. नारदनीनत मे नारदने धमषराज
• हे राजन, तु अपने सभी प्रकारके ककलोमे अनाज , पानी, दवाईयां और यंर आहदका
उत्कृष्ठ प्रबंध रखता है या नही ?
• अजेय शरक
ु ो जीतना, जीते हुए व्यप्क्तओंका प्रनतपाल करना तथा शरिांगतोंको संरक्षि
दे ना यह तीन बातोंका तु पालन करता है या नही ?
• वनदग
ु -ष फॉरे स्त्ट फोटष
• र्गररदग
ु -ष हहल फोटष
• जलदग
ु -ष सी फोटष
• वाहहनीदग
ु -ष ररव्हर फोटष
• युध्ददग
ु -ष वॉर फोटष
कुछ ग्रंथोके छ या सात प्रकार बताए है . धनुवेद षवर्यपर सात संहहता उपल्ब्ध है . प्जनके
रचनयता -वशशष्ठ, षवश्वाशमर, जामदग्न्य, भारव्दाज, औशनस, वैशंपायन और शारं गधर है .
इनके अलावा युध्दशास्त्रपर अनेक संदभष ग्रंथ और लेख उपलब्ध है .
अब भारत स्त्वतंर हुआ है . भारतको स्त्वातंर शमलने के बाद अपने राष्र की संरक्षि शशक्षा कैसी
रहना चाहहये इसके संबंध मे बहोत राष्रहहतैशी षवद्वानोंने पहले ही अपने षवचार उपररननहदषष्ट
ग्रंथोंमे और लेखोंमे एकत्ररत रखे है
१-कुछ हदन पूवष सायंस कॉलेज नागपूरमें त्रब्रहटश कौंशसल की ओरसे एक नगररचना शास्त्र
षवर्यक प्रदशषनी हुई थी . इस प्रदशषनीमे आंग्ल नगररचना पध्दतीका और आंग्ल प्रगतीका
पररचय करा हदया गया . यह प्रदशषनी दे खकर कुछ भारतीयोंके मन मे यह प्रश्न जरूर उठा
होगा की इस तरहका कोई अपना भी नगररचना शास्त्र है या नही ? यहद है तो उसका स्त्वरुप
कैसा है ? ऐसे प्जज्ञासु सज्जनोंके शलए ननम्न जानकारी प्रस्त्तुत की जाती है .
२- अन्य राष्रोंके समान अपने राष्रका भी एक सबसे प्राचीन और स्त्वयंपूिष नगररचना शास्त्र
है . इसमे नगरके नागररक और फौजी ऐसी दो प्रमुख शाखाए मानी गयी है और इन दो
शाखाओंकी की कई उप शाखाए है . मानव शरररके जैसे नौ अंग होते है वैसेही नगरके नौ अंग
होते है . ‘नवांग नगरं प्राहु:’ ये प्रपा (पानी का प्रबंध), मंडप (धमषशाला), आपि (बाजार),
सवषजनवास (बस्त्ती), राजवरालय (सरकारी कायाषलय), रक्षक (पुशलस और सैननक), वनोपवन
(शशक्षि संस्त्था षवभाग), दे वालय और स्त्मशान (ननरुपयोगी वस्त्तुओंकी जहा अंनतम व्यवथा की
जाती है वह स्त्थान) है . पररप्स्त्थती के अनुसार नगर रचना कई (मुख्यत: चौदाह) तरहसे की
जाती है .
५-वारािसी नगर संसारका सबसे परु ाना बसाया हुआ नगर है . कांजीवरम के नगर रचना के
बारे मे , जगषवख्यात नगररचना शास्त्रज्ञ प्रो. गेडीज शलखते है कक—भारतमे इस शहरके अलावा
कहीभी शास्त्रशुध्द नगर रचना मैंने दे खी नही.
६- प्जज्ञासुओंको उपरननहदषष्ट ग्रंथ तथा ननबंधोंके बारे मे षवशेर् जानकारी इस लेखकको जबाबी-
पर भेजनेपर अवश्य शमलेगी.सांप्रत ग्रंथ मोल न शमलने के कारि नजीकके ककसी प्राच्चषवद्या
संशोधन संस्त्थामे या षवश्वषवद्यालयोंके ग्रंथालयोंमे जाके पढना आवश्यक होगा .
७-खेद की बाद है की इस महत्वपूिष षवर्यपर राष्रभार्ामे अभीतक कोई ग्रंथ या लेख प्रशसध्द
नही हुआ . आशा की जाती है कक प्जज्ञासु भारतीय , पाप्श्चमात्य नगररचनाशास्त्रके साथ -
साथही भारतीय नगररचनाशास्त्रकाभी आस्त्थपूवक
ष पररचय कर लेंगे और राष्र भार्ामे एक
षवस्त्तत
ृ ग्रंथ शशघ्रानतशशघ्र प्रशसध्द करें गे.
मानवी शारररक शप्क्त हर एक अपेक्षक्षत कामके शलए परू ी नही होती . इस शलए अपनी थोडीही
शप्क्त काम मे लाकर अपेक्षक्षत काम करवानेके शलए जो साधन मानव जातीने अपनी
बुध्दीसामथ्यषसे ननमाषि ककये है , उन्हे ‘यंर’ कहते है . ऐसाही अपनी थोडी शक्तीसे जादा काम
लेते समय दस
ु रोंकी शप्क्त अपने काबूमे लाना पडता है . कई काममे सष्ृ टीके पंचतत्वो परभी
काबू करना पडता है . ‘यंर ’ शब्द ‘ यम ् (याने काबूमे लाना) धातूसे ननकला है .
इस लेखमे हम शसफष शशल्पशास्त्रीय यंरोंके संबंध मे जो वांग्मय है उसका षवचार करने वाले है
. शशल्पशारीय यंरोंके संबंधमे मूलग्रंथोंकी कमी है . श्री.वझेजीने अपने संशोधनत्मक लेखमे इस
षवर्यपर ननम्न शलणखत ग्रंथ बताये है. (प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्र भाग १-पष्ृ ठ १८).
दस
ु रा ग्रंथ शशल्पसंहहता संभवत: वराहशमहहरकी बह
ृ त संहहता होगा. यंरर्चतामणि यह मंरशास्त्र
का है. यंरसवषस्त्व ग्रंथका उल्लेख भारद्वाज के षवमानशास्त्रमे की बार शमलता है. श्री. वझे जी
को इस ग्रंथकी केवल अनुक्रमणिका ही प्रातत हुई थी . वह दस
ु रे लेखमे हदयी है .
यह बडी खेद की बात है कक भारतमे षवमानतक कई यंरोंकी ननशमषती हुई थी उनके संबंधमे
आज अत्यल्प ग्रंथ उपलब्ध है .खोज करनेपरभी राष्रभार्ामे प्राचीन यंरोंके संबंधमे कुछ
वांग्मय शमला नही. मै आशा करता हूं कक कोई राष्रभार्ा प्रेमी यह न्यून पूिष करे गा; प्जससे
भारतके प्राचीन यंरशास्त्र का पूिष रुपसे इनतहास राष्रभार्ा मे आयेगा.
२-नागपरू - जनवरी १९५६ -इंडडयन रोड कॉग्रेस, २०वा वाषर्षक अर्धवेशन , नागपरू .
१-प्रास्त्ताषवक- वेद, उपवेद, परु ाि, अथषशास्त्र नीनत, भारत से संबर्धत दे शोंका शशल्प
२-वास्त्तश
ु ास्त्र – भवन, मंहदर रचना, मनु तष षवद्या तथा र्चरकला
३-रथशास्त्र -सडक,पुल, सुरंग
४-जलशास्त्र -नदी और जलाशय, नहर, कंू आ
५-नगररचना शास्त्र
६-यंरशास्त्र
७-युध्दशास्त्र -सभी प्रकार का
८-नौका शास्त्र
९-धातुशास्त्र -रत्नशास्त्रसहहत
१०-षवमान
११-कृषर्
१२-पश-ु पक्षी-ककटक
१३-पाकशास्त्र
१४-गणित -सवष प्रकार के
१५-षवद्युत तथा चुंबकत्व
१६-वस्त्र
१७-खगोल
१८-पदाथष षवज्ञान
१९-रसायन शास्त्र
२०-शशल्पवांग्मयके संबंधमे प्रमख
ु ग्रंथालयो मे संग्रहीत वांग्मय सच
ू ी
..
..
शशल्पसंसार के हदनांक १५ जनवरी १९५५ के अंकमे माननीय गद्रे जीने पॅनोरमा ऑफ संस्त्कृत
शलटरे चर शीर्षकसे एक लेख शलखा है . इस लेखमे तंजावर सरस्त्वती महाल प्राचीन हस्त्तशलणखत
ग्रंथालय का अल्प पररचय हदया है . कुछ पाठकोंको इस लेखसे तंजावर के संबंध मे प्जज्ञासा
ननमाषि हुयी होंगी . उनके शलए कुछ चंद बाते इस लेख मे दे नेकी चेष्टा कर रहा हूं .
लेखक सूर्चत करते है कक भारतीय स्त्थापत्यके इनतहासमे इससे बडी, इससे उं ची और षवशाल
इमारत आजतक नही बनाई गयी . त्रब्रटे नके षवशालतम र्गररजाघर, वोसेस्त्टर , कैथीद्रे लकी उं चाई
बराबरही इन मंहदरोंके शशखरकी उं चाई है . इसे संसारके कुछ षवशालतम मंहदरोंके श्रेिीमे ले जा
बैठाती है .
पं. सातवळे करजी सामवेदके संशोधनके संबंधमे सन १९४०मे तंजावर गये थे . आपने अपने
माशसक ‘पुरुर्ाथष’ जून १९४७ मे हदये प्रवासविषन मे बताया है कक तंजावरका मंहदर पररर्धकी
दृष्टीसे बहोत बडा है . इतनी बडी पररर्ध अन्य कोई मंहदरकी नही है . यहां का नंदी २० हात
उं चाई का है . दीवार द्वार और मंहदरपरकी मूनतषयां बडी रे णखव और प्रमािबध्द है . एक समयमे
अंदाजन ५०,००० जनसमुदाय बैठ सकेगा इतनी षवशाल खुली जगह इस मंहदरमे है . इस
मंहदरका कलश एकही अखंड पत्थरका, १६ हाथ चौरस चौडा है . यह कलश प्जसका वजन
कुछ टनोंमे होगा कई मीलोंसे कृरीम ढलान बनाकर वहासे २०० फुट उं चाई पर चढाया गया
था. यह ढलान प्जस गांवसे प्रारं भ होती थी उसे कलशपूर कहते थे . तंजावर के राजा व्यंकोजी
शांनतननकेतन के प्रशसध्द शशल्पशास्त्र संशोधक प्रा. हररद्स शमरने अपने ग्रंथ ‘ कॉन्रीब्युशन
तो अ त्रबबलोग्राफी ऑफ इंडडयन आटष अॅंड अस्त्
ॅ थेहटक्स “ मे इस ग्रंथालयके ४० शशल्पग्रंथोंकी
सूची दी है .
इनके अनतररक्त स्त्वगीय वझेजीने अपने प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्र भाग १(मराठी) में इस
ग्रंथालयले ननन्नककणखत हस्त्तशलणखत शशल्पग्रंथोंकी सच
ू ी दी है .
शायदहह ककसी ग्रंथालयमे इतनी बडी संख्यामे शशल्पग्रंथ होंगे . इन्हे प्रकाशमे लानेकी प्जम्मेदारी
भारतीय शशल्पव्यवसायीयोंकी है .
ककसीभी ज्ञान शाखाका जब षवचार ककया जाता है तब भारतीय ज्ञान भांडारको सवषश्रेष्ठ स्त्थान
शमलता है. कारि की वह बडा प्राचीन है और उसे बडे गहराई तक सोचषवचार कर ज्ञाननयोंने
अपनी भावी संतानोंके शलये बनाया है . आज उसका पूिष संसार को मागषदशषन हो रहा है :
प्राचीन कालमे भारतमे बडे बडे षवद्याषपठ थे और उनका ग्रंथसंग्रह भी प्रचंड था . भारतीय
ज्ञानभांडार के एक अर्धकारी संशोधक डॉ. अनंत सदाशशव अळतेकर अपने ‘प्राचीन भारतीय
शशक्षि पध्दती’ नामक मराठी ग्रंथमे नालंदा षवद्यापीठ के अनत थोर ग्रंथालयका पररचय
ननम्नशलणखत शब्दोंमे दे ते है .
‘ नालंदा षवद्यापीठ का ग्रंथालय अनत षवशाल था. रत्नसागर, रत्नोदर्ध तथा रत्नरं जक इन
नामोंसे इमारतोंमे ककताबे रखी जाती थी. प्जस गली मे ये इमारते थी उसे धमषगंज ऐसा नाम
था .चीन. कोररया आहद दरू दे शसे षवद्याथी त्ररषपटक आहद ग्रंथोंकी शध्
ु द प्रत प्रातत करने हे तु
आते थे .इप्त्संगने नालंदासे ५ लक्ष श्लोका के चारसो ग्रंथ अपने शलये शलखवा शलये . ऐसे
काम का मठ को दानद्रव्य शमलता था.‘
उस कालमे ग्रंथोंकी नकल करनेवाले, नकल के अंत मे वाचकोंके शलये एक षवनंती शलखते थे
; इसका अथष
अंग्रेजी राज्य शुरु होने के बाद प्जन षवद्याप्रेमी अंगेजोने भारतीय ज्ञान भांडारका अध्ययन
ककया उनमेसे कनषल मेकंझी अग्रगण्य थे. वे एक इंप्जननअर थे, जो १७५२ मे इस्त्ट इंडडया कंपनी
मे मद्रास शाखामे दाणखल हुए. भारतीय ज्ञानके प्रती होनेके कारि कनषल मेकंझी १८२१तक
(ननधनतक) प्राचीन हस्त्तशलणखत ग्रंथ, मुद्रा, शशलालेख आहद एकत्ररत करते गये और उनका
अध्ययन करते गये. उनके मत्ृ युपश्चात यह सारा संग्रह इस्त्ट इंडडया कंपनीने मेकंझीके पत्नीसे
एक सहस्त्र पौंड मे खररदा और कई ग्रंथोंका अंग्रेजी भार्ातर करके इंग्लड भेज हदया. यह संग्रह
चोदा१४ भार्ा और १६ शलपीओंमे था. यह अब इस्त्ट इंडडया कंपनीके ग्रंथालय, लंडनमे रखा
गया.
जो बचा हुआ संग्रह था उसे ‘मद्रास ओररएंटल मॅन्युस्त्क्रीतट्स लायब्ररी मे रखा गया प्जसे अब
लोग ‘अड्यार ग्रंथालय ‘ नामसे जानते है . बादमे और भी ग्रंथ जमा हुए. सन १९३८, १९४०
और १९४२ मे ग्रंथालय की तीन सूचीया प्रशसध्द हुई. इन सूचीओंके अनुसार ग्रंथोंकी संख्या
ननम्नशलणखत प्रकार की है.
अ -वास्त्तश
ु ास्त्र
अंशम
ु भेद, अगस्त्त्य वास्त्तुशास्त्र, अंगल
ु ाहदमाप्न्निषय: , अद्भत
ु सागर,
अर्धष्टानलक्षिम, अशभशलपाथष र्चंतामणि , गह
ृ द्वारननमाषिहद , मयवास्त्तुशास्त्रम,
मयमत, मानसार, मानसोल्लस, वस्त्तुदेवतापूजा, वास्त्तुपदन्यासषवर्ध:, वास्त्तुषवद्या.
वास्त्तुशास्त्रषवधानम, शशल्परत्नम, शशल्पशास्त्रम (अगस्त्त्यम), शुक्रनीनत, शशल्पशास्त्रम
(षवश्वकमीय), शशल्पसंग्रह:, शशल्पसार:, सनतकुमार वास्त्तुशास्त्रम,
षवश्वकमाषवास्त्तुशास्त्रम, प्रमािबोर्धनी, रत्नदीषपका -रत्नशास्त्रम (मल्याळम)
..
आ-गणित
क्षेरगणित, क्षेरतत्वप्रदीषपका, गणित युप्क्तभार्ा , गणित सारसंग्रह, गणितादशष,
गणितामत
ृ म, गणितािषव:, गणितािषवषवचंद्रपदकानन, लीलावती
इ-युध्द्शास्त्र
रिदीषपका, युध्दकौशल्याहद षवर्य: , रिरं गभैरवतंर
ई-पशुशास्त्र
अश्वप्रशंसा, अश्वलक्षिम, अश्वायव
ु ेद, पालकातयम हस्त्यायव
ु ेद
कुछ ग्रंथ ग्रंथालयकी ओरसे ननकलने वाले अधषवाषर्षक वाताषपरमे प्रकाशशत होते है.
अपने भारत का राष्रीय ज्ञान-भंडार संसार के सभी राष्रों के ननतांत आदर का षवर्य है.वे राष्र
भारतीय षवद्या षवर्यक मुहद्रत तथा हस्त्तशलणखत ग्रंथों का और संशोधनात्मक वांग्मय का बडी
आस्त्था और आदर से संग्रह तथा अध्ययन करते है.
वेद, वेदांग, परु ाि, स्त्तोर, कप्ल्पत कथा, उपननर्द, कामशास्त्र, काव्य, नाट्य ्, अलंकार
शास्त्र,संर्गत, नत्ृ य, प्रािीशास्त्र, व्याकरि,धाशमषक संस्त्कार, पूजा, व्यवहार, अथषशास्त्र,
नीनतशास्त्र, तत्वज्ञान, ज्योनतर्, वैद्यक,गणित, शशल्पशास्त्र, जैन वांग्मय, बौध्द वांग्मय इत्याहद.
मैंने मुंबईसे प्रकाशशत होने वाले ‘षवश्वकमाष षवकास नामके मराठी माशसक के १९५४ के अंक मे
इन अमेररकन भारतीय वांग्मय षवर्यक सूची का पररचय मराठी पाठकों को हदया था. इस
पररचय लेख के संबंध मे यन
ु ाइटे ड स्त्टे स्त्स इंफमेशन सषवषस के मंब
ु ई षवभाग के संपकष अर्धकारी
ने मुझे शलखे हुए पर मे ननम्नशलणखत मनननय षवचार प्रकट ककया था:
भारतीय ज्ञान भंडार के समान भारतीय शशल्पशास्त्र भी संसार के ननतांत आदर का और प्जज्ञासा
का षवर्य है . भारतकी षवषवध मनोहार शशल्पकृनतयां दे खने के शलए बडी दरू दरू से कला ममषज्ञ
और प्जज्ञासु आते है.इन शशल्प कृनतयोंमे प्राचीन नगर , नहर, ककले, मकान, घाट, मंहदर,
मूनतषया, धातुकाम, रत्नकाम . लकडी, हाथी-दांत आहदयों पर की कारीगरी, चमडे का काम,
कौशल से खेती मे पैदा हुए फल-फुल आहद का समावेश होता है .
भारत मे अशभयांत्ररकी कॉलेजों की स्त्थापना हुए दे ड सौ सालसे अर्धक हुए, बडे कष्ट के बाद
इस दे श को स्त्वतंरता ननली ककं तु आत्मषवस्त्तत
ृ भारतीयों को अपने दे श के शशल्पशास्त्र की याद
न आई.
जहां तक मझ
ु े भारतीय शशल्पशास्त्र का पररचय हुआ उससे मैं कह सकता हूं कक प्रकृनत
अनुसार ननप्श्चत ककया हुआ शशल्पशास्त्र इस दे श को सदा सवषदा फायदे का होगा. स्त्मरि रहे
के दे श के संशोधक इंप्जननअर श्री. कृष्िाजी षवनायक वझे जी ने सन १९२१ मे भारतीय
शशल्पशास्त्र, भारतीय इंप्जननअररंग कॉलेजों मे शसखाना चाहहए इसके शलए काफी जोर का
आंदोलन ककया था परं तु वह असफल रहा.
श्री. कृष्िाजी षवनायक वझेजी ने भारतीय शशल्पशास्त्र के पुनरुत्थान के शलए जो कष्ट उठाए
उसका इनतहास सन हदसंबर १९५० मे श्री उमाकांत केशव आपटे जी के शलखे हुए वझेजी के
स्त्फूनतषदायक चररर पढ कर मन का ननश्चय हुआ कक अब दे श को स्त्वतंरता शमली है ठीक
तरह से प्रयत्न कर भारतीय शशल्पशास्त्र के पुनरुत्थान की कुछ तैयारी हम जरूर कर सकेंगे .
मझ
ु े इस बात की ठीक कल्पना थी की यह कायष ककसी एक व्यप्क्त का नही ककं तु हम जरूर
कर सकेंगे ककं तु ककसी बडी संस्त्था या शासन का है .परं तु संस्त्था या शासन को कायािंषवत करने
के शलए वैयप्क्तक प्रयत्न प्रथम आवश्यक होता है .
(२) जलशार -सब कामों के शलए पानी कैसे प्रातत करना; शमला हुआ पानी इस स्त्थल तक कैसे
ले जाना, ननरुपयोगी पानी कैसे ननकाल सालना और पानी से कौन कौन से काम लेना, यह
बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .
(४) नौका शास्त्र- पानी के गुिधमष, उस पर कैसे तरना, तैरने के शलए नाव , जहाज कैसे
बनाना , यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .
(७) वास्त्तश
ु ास्त्र- मानव और पशु पक्षी इनकी धूप, तेज हवा और बाररश से रक्षाके शलए छोटे
कनात से लेकर राजमहल और गुफा तक ननवास स्त्थान कैसे बनाए यह बाते इस उपशास्त्र की
कक्षा मे आती है .
(९)नगर रचना -गांव, नगर, शहर, बंदरगाह तथा राजधानी कैसे बसाना, उसमे सुषवधाएं कैसी
ननमाषि करना और उसकी व्यवस्त्था कैसी रहनी चाहहए यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे
आती है .
(१०) यंर शास्त्र-मानव, पशु-पक्षी और पंचमहाभूत इनकी शप्क्त काम मे लाकर बडे बडे काम
कर लेना , यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .
ठीक तरह से तलाश करने पर ऐसे ज्ञात हुआ है कक उपरननहदष ष्ट शास्त्रों के अंगोपांगोपर असंखु
मूल संस्त्कृत ग्रंथ और उन पर गत दे ढ सौ साक मे शलखे गये संशोधनात्मल ग्रंथ और लेख
आज उपलब्ध है . हर हदन कुछ ना कुछ नया वंग्मय दृष्टीमे आता है . गत पांच साल में इन
शारों पर जो वांग्मय मुझे ज्ञात हुआ उसकी षवर्यवार सूची मै ने मेजर गद्रे जी के संपादकत्व
मे प्रकाशशत होने वाले सातताहहक ‘शशल्पसंसार पि
ु े’ के कुछ अंकों मे प्रकाशशत की है .पाठक
कृपया वे अंक दे खे.
इन सर्ू चयों मे मैंने प्जन ग्रंथों और लेखों का उल्लेख ककया है उनमे से कुछ मैंने संग्रह भी
ककया है. मेरा ननयोजन कायष होने के पश्चात मेरा संग्रह सावषजननक बन जाएगा. अपने शशल्प
वांग्मय संग्रह की एक सूची मैंने बनाई है जो इस लेख के पररशशष्य के रुप मे है
मझ
ु े षवश्वास है इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंप्जननअसष और उसके सभासद इस कायष के महत्व को
समझ कर इस संपषत्त की रक्षा के शलए उर्चत कायष करें गे .
[ सातताहहक शशल्पसंसार, पि
ु े २५ माचष १९५५ पष्ृ ठ १८३ से १९६ ]
शशल्पसंसार के संपादक महोदयने वझेजी के संबंधमे मुझे ज्ञात चंद बाते शशल्पसंसार के
पाठकोंके सामने रखने की इच्छा प्रकट की. तद्नुसार इस लेखमे शशल्पसंसारकी प्रकाशन मयाषदा
षवचारमे लेकर यथाशप्क्त वझेजीके जीवन-कायषका पररचय दे नेका प्रयत्न कर रहा हूं.
वझेजी का पूिष नाम कृष्िाजी षवनायक वझे है . आपका जन्म कोकिमे एक षवद्यासंपन्न
गररब घराने मे हदनांक १६ डडसेंबर १८६९ को हुवा. बुध्दीमान होने के कारि वझेजीका प्राथशमक
तथा माध्यशमक शशक्षि अत्यल्प कालमे पूिष हुवा और हर समय आपकी शैक्षणिक प्रगनत प्रथम
श्रेिीकी ही रही. मॅहरक होके वझेजी १६ वर्ष की उम्रमे पन
ू ा इंप्जननअररंग कॉलेजके एल.सी.ई.
शाखाके षवद्याथी हुए और सन १८९१ मे आप वह शशक्षिक्रम पि
ू ष करके मंब
ु ई सावषजननक
बांधकाम षवभाग मे अशभयंता बने. बचपनसे घरमे भारतीय संस्त्कृतीकी गहरीशशक्षा प्रातत होने
के कारि वझेजीको इंप्जननअररंग कॉलेजकी शशक्षा अपूिष तथा अभारतीय लगी. आप लाहोरके
वेहदक मॅगणझनके एक लेख मे कहत है कक-
डडसेंबर १८९१मे मैंने मुंबई षवश्वषवद्यालय की एल.सी.ई. परीक्षा उषत्तिष की.पर मुझे आश्चयष
इस बात का हुवा कक मेरे पूरे शशक्षाकालमे ककसीभी भारतीय ग्रंथ या लेखकका या भारतीय
सूर का उल्लेख भी नही ककया गया मेरा इस बातप्र षवश्वास ही नही था कक भारतमे ऐसी
एक भी वास्त्तु नही है प्जसका उल्लेख हमारे पाठ्यक्रम हो सके.
मुझे ननप्श्चत रुपसे ताजमहाल, अजंठा एलोरा के शैल शशल्प, राजस्त्तान के षवशाल ककले,
अशोक स्त्तंभ आहद जगप्रशसध्द शशल्पा का पता था. इस शलये मैंने ननश्चय ककया की मै
प्राचीन भारतीय शशल्पशास्त्र इस षवर्यका अध्ययन करुं गा. इस संबधमे जो जो ग्रंथ है वह
पारं पाररक कारर्गरोंसे प्रातत करने होंगे.
मेरे ३० सालके संशोधन काल मे मै ने कुल ४०० ग्रंथ दे खे, उनमेसे ४० ग्रंथ पढे .
धमषशशक्षा वझेजीका जीवन कायष षवषवध क्षेरोंमे प्रशसध्द है. वझेजी एक बुप्ध्दवादी षवचारवंत थे.
आपकी यह दृढ धारिा थी कक इस प्राचीन दे श मे धमष और व्यवहार परपरावलंबी है.इस दे श
का प्राचीन ज्ञान भांडार पूरी संसारके परम आदरका एकमेव स्त्थान जो हहंदध
ु मष उसका ठीक
ध्यान हुए त्रबना समझमे नही आयेगा. इसी शलये आपने सवष प्रतम धमषशशक्षापर ८ ग्रंथ शलखे.
उनमे आपने हहंदध
ु मषका यथाथष ज्ञान आगामी पीहढयोंकी जानकारीके शलये ननवेदन ककया है.
वझेजीके चररर लेखक श्री. बाबासहे ब आपटे जीने यह धमषशशक्षाषवर्यक ग्रंथ वझेजीके
जीषवतकायषका प्रमुख अंग समझा है और इस अतुलनीय महान कयषके कारि वझेजीको ‘
महाराष्रके स्त्मनृ तकार ‘ नामसे गौरव ककया है. और भारतीय शशल्पशास्त्र ठीक तरहसे समझनेके
शलये भारतीय भार्ा , धमष और पुरािोंका ज्ञान आवश्यक है .
श्री. वझेजीके धमषशशक्षा षवर्यक मराठी ग्रंथोंके नाम प्राय: मराठीमे ही हदखाये है ककं तु वसह्य
विषन हहंदी मे हदया है.
८ धमषशशक्षिाचा ओनामा , पुस्त्तक ८-स्त्री धमष शशक्षा, ननत्यकमष, त्योहार, संस्त्कार, ननर्ेध,
भजन व्रत तीथषयारा- पष्ृ ठ संख्या १२०.
भारतीय शशल्पशास्त्रके क्षेरमे वझेजीका कायष मुझे धमषशशक्षाके कायषसेही ज्यादा महत्वपूिष लगता
है. आपने भारतके कररब सब शशल्पशास्त्र संबर्धत ग्रंथ पढ कर भारतीय शशल्पशास्त्रके ३
(२) जलशार -सब कामों के शलए पानी कैसे प्रातत करना; शमला हुआ पानी इस स्त्थल तक कैसे
ले जाना, ननरुपयोगी पानी कैसे ननकाल सालना और पानी से कौन कौन से काम लेना, यह
बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .
(३) खननशार-खदानों से शमट्टी , धातुएं इत्याहद ननकालना, उसका शुध्दीकरि , उसके गुिधमष
तथा उपयोग मे लाने हे तु आवश्यक संस्त्कार आहद बाते इत्याहद इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती
है .
(४) नौका शास्त्र- पानी के गुिधमष, उस पर कैसे तरना, तैरने के शलए नाव , जहाज कैसे
बनाना , यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .
(७) वास्त्तुशास्त्र- मानव और पशु पक्षी इनकी धूप, तेज हवा और बाररश से रक्षाके शलए छोटे
कनात से लेकर राजमहल और गुफा तक ननवास स्त्थान कैसे बनाए यह बाते इस उपशास्त्र की
कक्षा मे आती है .
(८) प्राकार शास्त्र- हहंस्त्र पशु,जंगली मनव और शरु आहद के उपद्रव से अपना और अपने राज्य
का संरक्षन करना, उपद्रव करने वालोंका नास करना यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती
है .
(१०) यंर शास्त्र-मानव, पशु-पक्षी और पंचमहाभूत इनकी शप्क्त काम मे लाकर बडे बडे काम
कर लेना , यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .
इन दस उपशास्त्रोंपर वझेजीका सषवस्त्तर मराठी और अंग्रेजी ग्रंथ शलखनेका संकल्प था. परं तु
भारतीयोंके अनास्त्थाके कारि और उनके अनपेक्षक्षत ननधनके कारि पूरा नही हो सका. अपने
अभ्यास के शलये वझेजीने मल
ु ग्रंथ भी काफी जमा ककये थे. उनके दे हांतके बाद, उनके कुछ
ग्रंथ इनतहास संशोधन मंडळ पुिे और कुछ सावषजननक वाचनालय , नाशशक को दान हदये.
उसमे खेदकी बात यह है कक अनत महत्वपूिष हस्त्तशलककत ग्रंथ-जैसे भग
ृ ुसंहहता, अगस्त्त्यकी
षवमान संहहता, जामदग्न्य धनुवेद, धातुकल्प इअनका कुछ भी पता नही लगता. शशल्पका
गवेर्िात्मक लेखन प्रकाशशत करनेके पहले, यह षवर्य भारतके अशभयांत्ररकी महाषवद्यालयोंके
शशक्षिक्रममे लाने के शलये, पुिेके अशभयांत्ररकी महाषवद्यालयोंके आचायषके जररये १९२९मे
काफी प्रयत्न ककया पर वह प्रयत्न असफल रहा. वझेजीके शशल्पशास्त्र षवर्यक प्रकाशशत
मराठी ग्रंथ नीचे हदये है:-
यह ग्रंथ होने के बाद कुछही हदनोमे हदनांक ३१ माचष १९२९ को वझेजी का स्त्वगषवास हुवा.
उनके कुछ अप्रकशशत ग्रंथ उनके दे हांतके पश्चात प्रशसध्द हुवे वह इस प्रकार है ,
▪ गह
ृ शशल्प – नवंबर , हदसंबर-१९१९
▪ धातषु वचार -सोना चांदी - नवंबर , हदसंबर-१९२१
▪ यंर और बेकारी -जून, जुलै १९२३, हदसंबर-१९२६
▪ प्राचीन उद्यम प्रकक्रया- ११ लेख जल
ु ै क से माचष १९२५
षवस्त्तार भयसे, प्जन अनेक माशसकोंमे उनके लेख छपे उनके केवल नाम ननचे हदये है.
षवश्वब्रम्हवत्त
ृ पुि,े षवषवधज्ञानषवस्त्तार, पुिे, आयषषवज्ञान गोवा, सहषवचार बडोदा. महाराष्र
कृषर्वल, पि
ु ,े मातभ
ृ शू म ग्वाल्हे र, गोधन नागपरू , ब्राम्हिपत्ररका इस्त्लामपरू , परु
ु र्ाथष औंध, .
महाराष्र साहहत्य पत्ररका, पुि,े लोकसत्ता नाशशक इत्याहद.
लाहोर (पाककस्त्तान से प्रकाशशत होनेवाले माशसकमे वझेजीके अनेक लेख छपे. उनमेसे अनेक
अप्रातय है . यह माशसक गुरुकुल कांगडी और हररव्दार के सहयोगसे छपता था इसशलए कुछ
अंक प्रातत हुवे है .
वझेजीने नागपरू , पि
ु े, दे वास आहद स्त्थानोंपर भार्िभी हदये. उन्होने पि
ु ेके और नाशशकके
हटळक नहाषवद्यालय और तळे गांव के समथष षवद्यालय मे नन:शुल्क अध्यापन का कायष ककया.
उनका एक महत्वपि
ू ष कायष यह भी है की उन्होने मंब
ु ई प्रांत मे ओव्हरशसअसष तथा सब-
ओव्हरशसअसष की संघटना बनाई प्जसके वह कई सालतक अध्यक्ष रहे .
यह मेरे षवस्त्तत
ृ ननवेदनसे पाठकोंकी मेरी जैसे राय होगी की ऐसे व्यक्तीका कायष जनता के
लाना अत्यावशक है . मै आशा करता हूं भारतके हर राप्ष्रयवत्त
ृ ीका व्यप्क्त श्री, वझेजी के
अनुपमेय कायषका लाभ उठायेंगे और भावी षपढीके शलये उसकी रक्षा करें गे.
(भग
ृ ु शशल्पसंहहतानुसार )
३ खंड
१. धातख
ु ंड २. साधनखंड ३. वास्त्तख
ु ंड
१.कृषर्शास्त्र- बायोलोजी ४.नौकाशास्त्र –मरीन ७.वेश्मशास्त्र –शेल्टर
२.जलशास्त्र – ५. रथशास्त्र – कम्यनु नकेशन ८.प्राकारशास्त्र – प्रोटे क्शन
हाय्ड्रोशलक्स ६.अप्ग्नयानशास्त्र- ९. नगररचना - टाउन तलॅ ननंग
३. खननशास्त्र – मायननंग एरोनॉहटक्स
१०. यंरशास्त्र - मेकॅननक्स- उपरननहदष ष्ट सभी उपशास्त्रोंसे संलग्न
१-वक्ष
ृ षवद्या-४ कलाए (१से ४)
२. वक्ष
ृ ारोहि – पेड पर चढना.
४. वेिुति
ृ ाहदकृनत - बांस, वेत से तटाई, टोकरीया आहद बनाना.
६.दग्ु धदोहषवकार – दध
ु से , दही मख्खन षवषवध पदाथष बनाना.
९.पशच
ु मािंगननहाषर – मरे हुये जानवरकी चमडी ननकालना.
१३.गह
ृ भांडाहदमाजषन- बतषन मांजना.
१५. मनोकुलसेवा – दस
ु रोंकी मनपसंत सेवा करना.
१७. शशशस
ु ंरक्षि- शशशु संगोपन.
१८.सयक्
ु तताडन –योग्य शशक्षा करना.
(७) दृनतषवद्या
(१०) पथ
ृ :करि षवद्या
(११) तरीषवद्या
(१२) नौ षवद्या
(१५) पथषवद्या
४२. वत्त
ृ खंडबंधन –कमानदार पल
ु बनाना.
४५. वायब
ु ंधन – षवमान के शलये अजस्त्र गब्ु बारे (बलन
ू ) बनाना.
४९. ति
ृ ाद्याच्छादन - घास आहदसे मकान का छत बनाना.
(२४) दग
ु ष षवद्या – ककलए का ननमाषि करना.
(२६) यध्
ु द षवद्या -
५८. मल्लयध्
ु द -कुस्त्ती
(२९) राजगह
ृ षवद्या –राजवाडे की ननशमषती.
सूरै: पंचशतैयक्
ुष तं शतार्धकरिैस्त्तथा ।
अष्टाध्यायसमायुक्तमनतगूढं मनोरमं ॥ बोधानंद की टीका
आठ अध्याय, एकसो एक प्रकरि और पांचसो श्लोक वाला यह ग्रंथ
मनोहर और गुढ है । – बोधानंद
अध्याय -१
[सातताहहक शशल्पसंसार, पुि,े अंक १.४, हदनांक २२ जनवरी १९५५, पष्ृ ठ ५१ -५२]
संपादककय हटतपिी- अनेक संस्त्कृत षवद्वानोंने शशल्पशार के अनेक संस्त्कृत ग्रंथोंका आग्ल
या भारतीय भार्ओंमे अनुवाद ककया परं तु वे पाररवाररक अशभयांत्ररकी शब्दोंका सही भार्ांतर
करनेमे असमथष रहे । परं तु स्त्व. वझे, डॉ. र.पु. कुलकिी और गो.ग.जोशीजी स्त्वयं स्त्थापत्य
होने के कारि अशभयांत्ररकी शब्दोंका योग्य भार्ांतर ककया। श्री .वझेजीने अनेक संस्त्कृतजन्य
शब्दोंका प्रयोग ककया. ऐसे ८०० शब्दोंका संकलन श्री . जोशीजीने ककया था , उनमेसे १००
शब्द उन्होने अपने इस लेख द्वारा प्रकाशशत ककये ।
जलशास्त्र -वॉटर इंप्जननअररंग