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शिल्पिास्त्र संग्राहक तथा प्रसारक

स्त्व. गोपाळ गजानन जोिी


जीवन गौरव ग्रंथ २०२०

( श्री जोिीजीं के शिल्पिास्त्रदिशक २२ हहंदी लेखोंका संकलन)

संपादक

डॉ . अिोक सदाशिव नेने

डॉ .लीना हुन्नगीकर

२२ डडसेंबर २०२०
प्राचीन विज्ञान की नयी अद्भुत खोज

प्रा. पेन्ना मधस


ु द
ू न

भारत का इततहास ककतना उज्जिल है ये आज के पीढी के ललए किर एक बार बताने

की अत्त्यंत आिश्यकता है I ताकी कठोर तपस्या और मल्


ू यिान जीिन इन्ही के बतु नयाद पर

अपने पि
ू ज
व ोंने जजस विज्ञान के गहरातययोंको खोज कर अपने सामने रखे है उस विज्ञान को

पाश्चात्यों की ही दे न समझने की भल
ू अभी आगे अपने दे शिासी नहीं करें गे I भारत एक

तनरं तर संिेदना और स्पंद शील दे श है इसमें विज्ञान में आनंद लेने का स्िभाि से ही लसद्ध

है I विद्यालय और महाविद्यालयों में विज्ञान को पाश्चात्यों की ही दे न बताने की सतत प्रयास

होने के कारण अपने आज के पीढी में भारतीयता एक विडम्बना बनी है उसे दरू करने का

प्रयास हमेशा प्रशंसनीय है I

आयावभट िराहलमहहर, भास्कराचायव कणाद इत्याहद महवषव उस काल के िैज्नातनक थे

जजन्होंने ने विश्ि की खोज करके अत्यंत गढ़


ू रहस्य को ग्रन्थ बद्ध ककया है I

नागपुर के गो.गा. जोशी जी महान संशोधक थे जजन्होंने अथक पररश्रम से अनेक प्राचीन

ग्रंथों का संग्रह ककया और संशोधन कर के अनेक लेख प्रकालशत ककये थे I उनके परम लशष्यों

में डा. अशोक नेने जी एक है मगर नेने जी ने अपने गुरु भक्ती के कारण अपने गुरू जी के

सारे लेखों का संकलन करके जोशी जी के स्मारक के रूप में एक गौरि ग्रन्थ प्रकालशत करने

का संकल्प ककया जो अत्यंत सराहनीय प्रयत्न है I


जोशी जी के लेखों की सूची मात्र पयावप्त है उनके संशोधन की गहराई को समझने के

ललए I दे खखये-

१ कृवषशास्त्र २ जलशास्त्र ३ खतनशास्त्र कृतक िज्र विचार ४ नौका शास्त्र ५ रथ शास्त्र ६विमान

शास्त्र विमान के बत्तीस रहस्य ७ िास्तुशास्त्र विश्िकमव िास्तुशास्त्र दं क्षिण भारतके मंदीर ८

प्राकार (यध्
ु द) शास्त्र ९ नगर रचना शास्त्र १० यंत्रशास्त्र शल्
ु बसत्र
ु और िास्तरु चना शास्त्र

भाषालीलािती ग्रंथ पररचय भारतीय लशल्पग्रंथोंका प्राजप्तस्थान – इतने विलभन्न विषयों पर

प्रामाखणक लेखों के द्िारा अपने प्राचीन विज्ञान की धारा को अनेक िषों तक सुरक्षित रखने

का यह प्रयास ककसी संस्था के द्िारा होता है , ककसी व्यक्ती के द्िारा संभि नहीं है I

मगर जोशी जी ने महान तपस्या के द्िारा अनेक िषों के पररश्रम से अनेक ग्रंथों को संगह
ृ ीत

ककया और संशोधन का एक नया रास्ता हदखाया I इन लेखों के अध्ययन से अिश्य ही आज

के पीढी को एक नया प्रकाश प्राप्त होगा और संशोधन एक नयी हदशा में आगे बढे गा यह मेरी

उम्मीद है I

इस अत्यंत गंभीर और महत्त्िपूणव कायव में डा. अशोक जी नेने का पररश्रम अत्यंत श्लाघनीय है

क्यों की नेने सर ने अनेक िषों से इन लेखों को और ग्रंथों को सरु क्षित रख कर उत्साही छात्रों

को मागव दशवन करते आये I आज इस ग्रन्थ के प्रकाशन के द्िारा उन्होंने प्राचीन विज्ञान में

प्रिेश के ललए एक सुगम मागव को ही उजाला कर हदया है I

मेरा पूरा विशिास है की अनेक संशोधनों के ललए आिश्यक सामग्री एकत्र उपलब्ध करने िाला

यह ग्रन्थ संशोधक छात्रों के ललए एक प्रेरणा स्थान हो कर हदशा हदखाएगा I

डा. अशोक नेने सर को अनेक अलभनन्दन और शभ


ु कामना समवपवत करते हुए मझ
ु े यह अिसर

प्रदान करने के ललए धन्य िाद दे ता हूूँ I

प्रा. पेन्ना मधुसूदन


अधधष्ठाता, भारतीय दशवन संकाय
कविकुलगुरु काललदास संस्कृत विजश्िद्यालय, रामटे क, नागपुर
अनुक्रमणिका

लेख का शशर्षक पष्ृ ठ


अनुक्रमणिका १
संपादककय / उपोद्घात २
प्राचीन भारतीय शिल्पिास्त्र पररचयात्मक लेख
अ -प्राचीन भारतीय शशल्पशास्त्र पररचय ४
ब -भारतीय शशल्पशार ग्रंथों के प्राप्ततस्त्थान ८
क -भारतीय शशल्पशास्त्र- आधुननक ग्रंथ तथा लेख १६
प्राचीन भारतीय शिल्पिास्त्र
१-प्राचीन कृषर्शास्त्र १९
२ - प्राचीन जलशार २२
३ -भारतीय खननशास्त्र २७
४-प्राचीन नौका शास्त्र ३०
५-प्राचीन रथशास्त्र-सडक यातायात ३२
६-भारतीय षवमानशास्त्र ३४
७-भारतीय वास्त्तुशास्त्र ३७
८-भारतीय युध्दशास्त्र ४१
९-भारतीय नगररचना शास्त्र ४५
१०-भारतीय यंरशास्त्र ४७
संककर्ण लेख
११-भारतीय शशल्पवांग्मय प्रदशषनी-त्ररवें द्रम ४९
१२-शशल्पशास्त्र की दृष्टीसे तंजावर ५२
१३-शासककय हस्त्तशलणखत ग्रंथसंग्रह,अडयार ५५
१४-भारतीय शशल्पशास्त्र ५८
१५-स्त्व. कृष्िाजी षवनायक वझेजी का जीवन कायष ६३
१६-भारतीय शशल्पशास्त्र का षवस्त्तार ६९
१७-नारद शशल्पशार की षवर्यसूची ७५
१८-यंरसवषस्त्व ग्रंथ की अनुक्रमणिका ७८
१९-रावसाहे व वझेजींके शब्दप्रयोगोंका पररचय ७०

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 1


संपादकीय

शशल्पशास्त्र के मेरे गुरु स्त्वर्गषय श्री. गोपाळ गजानन जोशी के २० हहंदी लेख, जो पुिे के
सातताहहक शशल्पसंसार मे १९५५ मे छपे थे, इनका संकलन और आवश्यक संपादन कर यह
संग्रह प्रकाशशत करने मे मझ
ु े आनंद और गरु
ु के अपार ऋि से आंशशक मक्
ु ती का अनभ
ु व
हो रहा है .

श्री. गो.ग.जोशी उपाख्य आबासाहे ब का बहुतांश लेखन मराठी और हहंदी भार्ामे हुआ. इसशलए
मैंने उनके मराठी लेखोंका अंग्रेजी मे भार्ातंर करके एक ग्रंथ पहलेही प्रकाशशत ककया है . ६५
साल पेहले छपे लेख, सातताहहक १९५५ के बाद बंद होनेसे, अप्रातय हो गये है . राष्रभार्ाप्रेमी
पाठकोंके शलए इसका पुनुरुथ्थान अनत आवश्यक था.

श्री. जोशीजी का जन्म १५ जनवरी १९११को धुशलया गांवमे हुवा. उन्होमे स्त्थापत्य शास्त्र की
पदषवका (एल,सी,ई) की पढाई शासककय तंरननकेतन नागपूर मे की. १९३३ मे पदषवका प्रातत
होनेपर महाराष्र राज्य के सावषजननक बांधकाम षवभाग मे रे सर पदपर ननयुक्त हुवे. बादमे वह
एप्स्त्टमेटर और आखरी मे ओव्हरशसअर पद से ननवत्त
ृ हुवे. शशक्षि लेते समयमे ही उनका
शशल्पशास्त्र के महान संशोधक श्री. वझेजी के साहहत्यसे पररचय हुवा. श्री वझेजीले साहहत्यसे
प्रेरिा लेकर वझेजीका अधरु ा कायष आगे बढाने का संकल्प ककया. सवष प्रथम प्राचीन भारतीय
शशल्पशास्त्र का समग्र वांग्मय, जो पूरे भारतमे त्रबखरा हुवा पडा था, वह एकत्ररत करना शुरू
ककया. अपनी अत्यल्प आमदानीमेसे उन्होंने प्रमुख मूल ग्रंथ खररदे . सभी प्राच्च षवद्याके
ग्रंथालयोमे जा कर शशल्पसाहहत्यकी सूची बनाई. इष्ट शमरोसे, उनके दृष्टीसे अनावश्यक ग्रंथ
इकठ्ठा शलये. कररब ५५ साल की मेहनतसे उनका व्यप्क्तगत संग्रह मे ५००० (पांच हजार)
ग्रंथ, हस्त्तशलणखत या महु द्रत ग्रंथ, लेख, जनषल्स, सच
ू ीपत्ररका, नक्षे, छायार्चर, वतषमान परमे
छपे समाचार आहद इकठ्ठा हुए. २७६ जीवन , रामनगर नागपूर का तीन कमरे का उनका मकान
संशोधकोंके शलये एक आकर्षि बन गया. उनका यह संग्रह सबके शलए खुला मंहदर था. अनेक
प्रशसध्द व्यप्क्त उनके मागषदशषन के शलए या लेख या ग्रंथ मांगने आते थे. उन प्रशसध्द
व्यप्क्तयोंमे कुछ थे, केसरी के संपादक ग.षव.केतकर, नानाजी दे शमुख, मोरोपंत षपंगळे , मा,गो,
वैद्य, डॉ. र.पु.कुलकिी, और अनेक पाप्श्चमात्य संशोधक लेखक, जैसे स्त्टे ला क्रेमररश
(षवष्िुधमोत्तर पुराि की भार्ांतरकार). श्री. जोशीजीने अनेक मराठी, हहंदी और अंग्रेजी लेख
शलखे. इंस्त्टीट्युशन ऑफ इंप्जननअसष के सहयोगसे,उन्होने अपने शशल्प वांग्मयकी सात बार
भारतके ५ शहरोमे प्रदशषनी लगाई. दे शके कुछ संग्राहकोंने यह संग्रह खररदने की इच्छा भी
व्यक्त की थी मगर उन्होने नम्रतासे नकार हदया क्यु की वे चाहते थी की यह संग्रह नागपरू मे

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 2


ही रहे . उनकी अंनतम इच्छा, उनका यह अनुठा नागपूरके ककसी संस्त्था को दे नेकी थी. पर
कोईभी संस्त्थाने इस प्रस्त्ताव गंशभरतासे नही ककया .

श्री. जोशीजी का २२ डडसंबर १९९२ को स्त्वगषवास हुआ. उनके मत्ृ यु पश्चात कुछ शशल्पशास्त्र
अनुयायी एकर होके एक रस्त्ट स्त्थाषपत ककया, प्जसका नाम रखा गया ’ गो.ग.जोशी शशल्प
संशोधन रस्त्ट ‘. प्रस्त्तुत संपादक ने यह रस्त्ट के पंजीकरि ले अनेक प्रयत्न ककये पर असफल
हुवे.

उपयुक्त स्त्थायी जगह न ननलने पर यह संग्रह सात जगह पर स्त्थानांतररत हुआ. टस्त्ट के
अध्यक्ष के ननधनपर यह संग्रह परू ी तरह त्रबखर गया और नामशेर् हो गया.

श्री.जोशीजी का, उनके गुरु की तरह, एक ध्येय था कक भारतीय शशल्पशास्त्र यह षवर्य हमारे
अशभयांत्ररकी के पाठ्यक्रम का भाग बने . इस हदशा मे भारत सरकार कुछ कदम उठा रही है ,
ऐसे नषवन शशक्षि नीनत की घोर्िा से लगता है .

ऐसी आशा है कक यह जीवन गौरव ग्रंथ, अशभयांत्ररकी के शशक्षक और षवद्याथीओंको, हमारे


गौरवशाली ज्ञान की प्रनत अशभमान की, प्रेरिा दे गी.

डॉ.अशोक सदाशशव नेने नागपूर

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 3


प्राचीन भारतीय शशल्पशास्त्र पररचय

शशल्पशास्त्रके एक प्रमुख संहहताकर महषर्ष भग


ृ ुने भारतीय शशल्पशास्त्र दश प्रमुख उपशास्त्रोंमे

षवभाप्जत ककया है . इन दश उपशास्त्रोंकी ३२ षवद्याएँ तथा ६४ कलाएँ बतायी गयी है . यह

भारतीय शशल्पशास्त्रका षवस्त्तारपट पष्ृ ठ १८८- १८९ पर दीया है . गत १५० साल भारतके

अनेकषवध संशोधक संसार को प्राचीन भारतीय शशल्पशास्त्रका स्त्वरुप बतानेके शलए संशोधन कर

रहे है और अपने संशोधनके ननत्कर्ष ग्रंथ या लेख द्वारा प्रकाशशत भी कर रहे है . परू ी संसार

यह ननप्श्चतरूप से जानता है की भारतीय शशल्पशाप्स्त्रयोंका ज्ञान तथा प्रत्यक्ष कायष पध्दनत

प्रशंसनीय तथा अनक


ु रिीय रही . आज भारतमे असंख्य इंप्जननअररंग तथा पॉशलटे प्क्नक है

ककं तु एकभी संस्त्थामे आधुननक पाप्श्चमात्य शशल्पशशक्षाके साथ प्राचीन भारतीय शशल्पपध्दतीका

ज्ञान या पररचय ककया जाता नही . पारतंत्र्यके समय यह चल जाना नैसर्गषक था ककं तु अपने

राष्रको स्त्वातंत्र्य प्रातत होकर १७ (अब ७२ ) साल त्रबत चुके मगर यह राष्रीय भुशमका

इंप्जननअररंग के षवद्यार्थषयोंको शमलने की कोई कायषवाही अभीतक शुरु नही और भषवष्यमे शुरु

होने की आशा भी हदख नही रही. जानकारोंसे पुछनेपर ऐसा बताया जाता है की भारतीय

शशल्पशास्त्रोंपर तयारग्रंथ न होनेके कारि भारतीय शशल्पशास्त्र की शशक्षा भारत के इंप्जननअररंग

के नये षवद्यार्थषयोंको नही दे सकते . ग्रंथन होनेपर नये ग्रंथ शलखना यही एक मागष है . और

इन ग्रंथोंके ननशमषती के शलए प्रथमत: आज जो ग्रंथ षवचाराहष संशोधनपर वांग्मय उपलब्ध है

उसकी जानकारी तथा संस्त्कृत अननवायष है . यह जानकारी शमलानेका और संकलनका कायष कोई

समथष संस्त्था ही कर सकती है और उसे करना आवश्यक है . ज्ञात हुआ है की इस षवर्यकी

संस्त्था यह राष्टीयकायष आवश्यक नही समझती . प्रातत पररप्स्त्थतीमे कुछ करना आवश्यक है

और यह अल्पस्त्वल्प कायष मै व्यप्क्तश: प्रयास के रुपमे सन १९५० से मेरे गुरु तथा एस

षवर्यके प्रथम श्रेिीके संशोधक इंप्जननअर वझे जी से प्रेरिा लेकर शुरु कीया है . १९५० से

१९५६ तक जो कुछ जानकारी प्रातत हुई वह जानकारी ननम्नशलणखत सूची के लेख ,शशल्पसंसार

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 4


के अंकोमे प्रकाशशत की है . गत ८ सालमे जानकारीमे काफी प्रगनत हुई है . वह जानकारी मै

प्रत्यक्ष शमलनेपर या पर द्वारा दे सकता हूं .

गोपाल गजानान जोशी रामनगर नागपरू

लेख का शशर्षक खंड पष्ृ ठ


शशल्पकलाननधी वझेजी का कायष १.१२ १८० -१८७
भारतीय शशल्पशास्त्र का षवस्त्तारपट १. १८८-१९०
भारतीय अशभयांत्ररकी कायष के सूर १.६ ९२-९५
डॉ. प्रसन्न कुमार आचायष जी का जीवन कायष १. २२९-२४१
श्री. प.ह. थत्तेजी का संशोधन कायष १. १९-२०
१ कृषर्शास्त्र १.१७ २८३-२८५
२ जलशास्त्र १.८ १३०-१३४
अततपन्यास पर ननबंध –सुब्रय्या शास्त्री १.८ ११९-१२०,२९
३ खननशास्त्र १. १७ २७९-२८२
कृतक वज्र षवचार १.९ १४८ -१५२
४ नौका शास्त्र १. १७ २८६
५ रथ शास्त्र १. १७ २८७-२८८
६ षवमान शास्त्र १. १६३-१६६
षवमान के बत्तीस रहस्त्य १.८ १११ -११२
षवमान के बत्तीस रहस्त्य भाग २, २.१. ३-१०
महषर्ष भारद्वाज प्रणित वैमाननक शास्त्र १. १२१-१५४

प्राचीन भारतमे षवमान १. २४६-२५०


७ वास्त्तुशास्त्र १. १७ २६८-२७५
नारद शशल्पशार की षवर्य सूची १.५ ७८-८०
षवश्वकमष शलणखत शशल्पग्रंथ १. २४९-२५०
षवश्वकमष वास्त्तुशास्त्र १. ३९४-४००
दं क्षक्षि भारतके मंदीर १. २४१-२४६
८ प्राकार (युध्द) शास्त्र १.५ ७१-७४

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 5


९ नगर रचना शास्त्र १.३ ४७-४८

१० यंरशास्त्र १.११ २७५-२८०

१० यंरशास्त्र-श्री, वझेजीका लेख १. १७ १७०-१७६


शशल्पपररभार्ा –चचाष १. २ १३८-१४७
शशल्पपररभार्ा – श्री वझे १. २ १५१-१५२
गोलाध्याय १. ३०-३१
शुल्बसुर और वास्त्तुरचना शास्त्र १. २४-२९
भार्ालीलावती ग्रंथ पररचय १.२० ३६१-३६८

भार्ालीलावती श्लोक १ से ५३ १. २० ३८०-३८९

भार्ालीलावती १. २० ४०९-४१६

भार्ालीलावती १. २१ ११-१२

भार्ालीलावती भार्ालीलावती १. २१ १६ -२२

भार्ालीलावती १. २१ २७-५५

अंकपाशरस्त्तताहद गणित १. २१ १ -७
सुब्रय्या शास्त्री का ग्रंथसंगह १. १०७- ११०
प्राचीन भारतीय बौप्ध्दक शास्त्र के ग्रंथोंके नाम १. ११५-११९
तथा संक्षक्षतत पररचय
संस्त्कृत शशल्पग्रंथ नामावली १.४ ५३ -५८
अंग्रेजी और अन्य भारतीय भार्ओंमे शलखे संदभष १.४ ६१ -६३
लेख
सरस्त्वती महाल ग्रंथालय तंजावर १.२ ३५ -३६
शशल्पदृष्टीसे तंजावर १. २ ६९ -७०
भारतका सवषश्रेष्ठ हस्त्तशलणखत ग्रंथसंग्रह १. १६६ -१६८
(अडड्यार)
भारतीय शशल्पग्रंथोंका प्राप्ततस्त्थान १. २५७ - २६१
भारतीय शशल्पग्रंथोंका प्राप्ततस्त्थान १. २६२ - २६३

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 6


फुलीश षवसडम १. १७ २७१

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 7


भारतीय शशल्पशार संबंर्धत महु द्रत ग्रंथों के प्राप्ततस्त्थान

[सातताहहक शशल्पसंसार, पुिे . २३ अप्रैल १९५५, पष्ृ ठ २५७ से २६२]

१ त्ररवेंद्रम संस्त्कृत शसररज , गव्हनणमेंट प्रेस , त्ररवेंद्रम

• मातंगलीला
• नीनतसार: -कामंदक
• वास्त्तुषवद्या
• गोलदीषपका (ज्योनतर्)
• मनुष्यालय चंहद्रका
• मयमतम ्
• तंरसमुच्चय (तंर)
• ईशानगुरुदे वपध्दनत (मंर)
• शशल्परत्नाकर
• आश्वलायन गह्
ृ यसूर
• कौहटलीय अथषशास्त्र भाग १,२,३
• रिदीषपका (युध्दशास्त्र)
• शशल्परत्नम ्
• ननर्धप्रदीप
• वैखानसागम:
• वास्त्तुषवद्या सव्याख्या

२ ओररएंटल ररसचण इंस्स्त्टट्युट , म्है सूर

▪ सरस्त्वतीषवलास
▪ कौहटलीय अथषशास्त्र
▪ कौहटलीय अथषशास्त्रपदसूची खंड १,२,३
▪ आयुवेद सूरम ्
▪ अशभलषर्ताथष र्चंतामणि
▪ तैतररय ब्राम्हि
▪ षवद्यामाधवीयम ् (मह
ु ू तष दीषपकायत
ु म ्)

३ मद्रास गव्हनणमेंट ओररएंटल सीररज

▪ खंड २२ – काव्य, संगीत, नाट्य तथा शशल्पशास्त्र


▪ खंड २३ – वैद्यक शास्त्र

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 8


▪ खंड २४ –ज्योनतष्य
▪ खंड २५ –३१ संककिष
▪ त्ररवें द्रम कॅटलोग्स १ से१०
▪ संस्त्कृत हस्त्तशलणखत ग्रंथ- खंड १,२,३
महु द्रत ग्रंथ
• गणितसार संग्रह - संस्त्कृत
• धनषु वषद्याषवलासम -संस्त्कृत
• खड्गलक्षिशशरोमणि- संस्त्कृत
• तंरसारसंग्रह- संस्त्कृत
• वास्त्तुलक्षि -मल्याळम
• अश्वशास्त्रम -कन्नड
• सूपशास्त्र
• रत्नदीषपका रत्नशास्त्र -संस्त्कृत
• अश्वर्चककत्सा – मल्याळम

४ - कलकत्ता ओररएंटल बुक सीररज

▪ युप्क्तकल्पतरु (सं)
▪ चािाक्यराजनीनत शास्त्र (सं)
▪ भारतेर प्राचीन मानमंहदर (बं)
▪ प्राचीन हहंद ु दं डनननत (बं)
▪ जनषल्स इंडडयन हहस्त्टोररकल क्वाटष ली
▪ सुविष वणिक समाचार (बं)

५ व्ही रामस्त्वामी िास्त्रलु अ‍ॅंड सन्स वाववल प्रेस चेन्नाई

संस्त्कृत -शलपी तेलगु

• कृष्िवास्त्तुशास्त्र (वास्त्तुसार संग्रह)


• वेदकाशलन व्यवसाय
• जलागषल शास्त्र
• भग
ृ ुसूर
• मयवास्त्तु
• वास्त्तस
ु वषस्त्व
• सनतकुमार शशल्पशार
• कामकलाषवलास

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 9


• वक्ष
ृ ायव
ुष ेद
• शारं गधर संहहता
• सहदे व पशव
ु ैद्यशास्त्र
• र्चररत्नाकर
• प्राचीन दे शचररर
• गह
ृ प्रवेश
• र्चरलेखन
• आकाक्षषवमानमूळ
• वध्
ृ दपाराशर
• बह
ृ तजातकम ्
• वात्स्त्यायन कामसूर
• पाकशास्त्र
• ब्रम्हांडपुराि -तेलगु

६ -नागरी प्रचाररर्ीसभा, कािी 9दे व पुरस्त्कार ग्रंथावशल)

▪ भारतीय मूनतषकला (रायकृष्िदास)


▪ भारतीय वास्त्तुकला
▪ भारतीय र्चरकला
▪ संस्त्कृत साहहत्य का इनतहास
▪ हस्त्तशलणखत पुस्त्तकों का संक्षक्षतत इनतहास
▪ आयष भार्ा पुस्त्तकालय का सूचीपर
▪ काशी का मंहदर (वेधशाला)
▪ भारत कलाभूवन का सूचीपर
▪ प्राचीन भारतीय सभ्यता का इनतहास
▪ भारत के प्राचीन इनतहास की सामुग्री
▪ हस्त्तशलणखत हहंदी पुस्त्तकों का ५० वर्ष का इनतहास
▪ कृषर्कौमुदी
▪ दरबार ए अकबर- अनुवाद भाग १ से ४
▪ हहंदरु ाजयंर भाग १ से २
▪ र्चनी यारी संग
ु यंग
ु के यारा का विषन
▪ र्चनी यारी फाहहयान के यारा का विषन
▪ भारतीय सप्ृ ष्टक्रमषवचार (संपि
ू ाषनंद)
▪ सघ
ु ड दप्जषन

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 10


▪ सुनारी

७- जी ए नटे िन अ‍ॅंड कंपनी चेन्नाई

▪ टे म्पल्स, चचेसॅंड मॉस्त्कस-याकुब हसन -६८ र्चर


▪ द इंडडयन ररव्ह्यु

८ भागणव पस्त्
ु तकालय ,गाय घाट , कािी

▪ भोजन शास्त्र
▪ पाकचंहद्रका
▪ वास्त्तरु ाजवल्लभ
▪ वस्त्तुमुक्तावशल

९ ननिषयसागर प्रेस ,गोलभाट स्त्टीट मुंबई २

▪ आश्वलायन गह्
ृ यसूर
▪ उदकशांनत (ऋग्वेदीय)
▪ उदकशांनत (आपस्त्तंभीय)
▪ कंु डाकष
▪ कंु डरत्नावली सहटक
▪ गरुडपुराि (सारोध्दार)
▪ षवदरू नीनत
▪ मनुस्त्मनृ त
▪ नाट्यशास्त्र भरतमूनन षवरर्चत
▪ काव्यमाला माशसक -दृतीगती प्रकाश
▪ लीलावती (हहंदी अनुवाद सहहत) -पाटी गणित
▪ द्रव्यगुि षवज्ञान भाग १ से ८ और १२ (वैद्यकीत षववेचन)
▪ षवदरू नीनत मराठी
▪ र्टपंचाशशका साथष
▪ दृगागषल शास्त्र सटीक
▪ शारं गधर संहहता- सटीक -

९ चौखंबा संस्त्कृत शसररज – कािी

▪ इंडडयन अॅस्त्थेहटक्स व्हो.१


▪ गणित का इनतहास
▪ गोशलय रे खा गणितम यंरस्त्य

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 11


▪ गननत कौमुहद
▪ चाषपय त्ररकोि गणितम
▪ बीजगणित
▪ लीलावती
▪ वास्त्तरु त्नावशल
▪ वास्त्तरु त्नाकर यंरस्त्थ
▪ वास्त्तस
ु ाररिी
▪ सरलत्ररकोिशमनत
▪ सरल रे खागणितम
▪ गोशभल गह्
ृ यसूर
▪ वास्त्तुपूजा पध्दनत:
▪ शशलान्यास पध्दनत:
▪ वीरशमरोदय- राजनीनत,व्यवहार
▪ रसगंगाधर रहस्त्य
▪ चािाक्यसूरम
▪ षवदरू नीनत
▪ डडक्शनरी ऑफ इंडडयन बड्षस
▪ डडक्शनरी ऑफ इंडडयन मॅमल्स
▪ शारदानतलकम
▪ नलपाक: (पाकदपषि)
▪ अॅंशट इंडडया -मुजुमदार
▪ षवक्रमस्त्मनृ त ग्रंथ
▪ गंगा पुरातत्व अंक
▪ गंगा षवज्ञान अंक
▪ गंगा वेदांक
▪ कौहटल्य की राज्य व्यवस्त्था
▪ भारतीय शशल्पकला
▪ कला और हस्त्तकायष
▪ भारतीय र्चरशशल्प
▪ पाकषवज्ञान
▪ अजंठा र्चरावली
▪ शशल्पकथाए
▪ कूपोत्सगष पध्दनत

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 12


▪ गह
ृ ोत्सगष पध्दनत
▪ रसरत्नसमच्
ु चय
▪ शारं गधर संहहता (भा.टी)
▪ हाररत संहहता (भा.टी)

११- गायकवाड ओररएंटल सीररज वडोदरा

▪ समरं गि सर
ू धार भाग १और २
▪ मानसोल्लास भाग १ से ३
▪ गणित नतलक:
▪ अपराप्जत पच्
ृ छा
▪ तांबुल मंप्जरी (यंरस्त्थ)
▪ कषवंद्राचायष सूची
▪ जेसलमेर ग्रंथ सूची
▪ वडोदरा राजकीय ग्रंथसूची
▪ बाशलद्वीपग्रंथा:
▪ पत्तन भांडागार ग्रंथसूची
▪ ग्रंथ नाम सूची

१२ सयाजी साहहत्यमाला

▪ संस्त्कृत वांग्मयाचा इनतहास-मोडोनील


▪ हदघ्घ ननकाय भाग १ और २-राजवाडे
▪ हहंदस्त्
ु तानचा लष्करी इनतहास
▪ नकुला षवद्या (ककटकशास्त्र)
▪ जातकातील ननवडक गोष्टी -जोशी
▪ प्राचीन युध्दषवद्या – वझे
▪ मेग्याप्स्त्थनीस समयनु हहंद (गुज)
▪ इत्सींग समयनु हहंद (गज
ु )
▪ युध्दकालीन समाज
▪ वात्स्त्यायन कालीन भारतीय समाज प्स्त्थनत
▪ प्राचीन पूवष भारत (गुज)
▪ प्रािीयोंना शुभाशुभ लक्षि (गुज)
▪ आयाषनूं आहद ननवास स्त्थान (गुज)

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 13


▪ भर्गरथ

१३ महादे व रामचंद्र जागुष्टे बुकसेलर अहमदाबाद

▪ गायकवाड्स ऑककषओलोजीका
▪ जनषल ऑफ इंडडयन सोसायटी ऑफ ओररएंटल आटष नंबर १०
▪ अजंठा नो कला मंडपो
▪ कलाकारनी संस्त्कार यारा
▪ कलार्चंतन
▪ गज
ु रातनंु पाटनगर अमदाबाद
▪ गुजरात कलकलाप भाग १और २.
▪ रुपदशषनी र्चरकार
▪ शशल्पपररचय (गुज)
▪ शशल्पदीपक (सं.गुज)-गंगाधर प्रिीत
▪ कलाकौशल्य (गुज)
▪ इमारत बांधकाम
▪ गह
ृ षवधान (यंरस्त्य)
▪ गज दोरीना हहसाबनी बुक
▪ पररिाम मंप्जरी
▪ प्रासाद मंडन भाग १ और २.
▪ बह
ृ त शशल्पशार भाग १ से ३
▪ भारतीय शशल्प अने स्त्थापत्य
▪ राजवल्लभ (यंरस्त्य)
▪ वास्त्तषु वधान
▪ वास्त्तुसार प्रकरि
▪ शशल्पसार संग्रह
▪ शशल्पर्चंतामणि भाग १
▪ शशल्परत्नाकर
▪ शशल्पसमप्ृ ध्द
शशल्प की हहंदी पुस्त्तके
▪ नूतनवास्त्तुप्रबंध अथाषत गहृ स्त्थभूर्ि
▪ बह
ृ द् वास्त्तुमाला (भा.टी.)

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 14


▪ लघुशशल्पशास्त्रसंग्रह
▪ वास्त्तुसार प्रकरि (हहंदी टीका)
▪ वास्त्तुमुक्तावली
▪ वास्त्तुराजवल्लभ
▪ वास्त्तुमाणिक्यरत्नाकर
▪ षवश्वकमषप्रकाश
▪ षवश्वकमष षवद्याप्रकाश

शशल्पना संस्त्कृत पस्त्


ु तको

▪ दे वतामूनतष प्रकरि-रुपमंडनसहहत
▪ वास्त्तुषवद्या सव्याख्या
• प्रासाद मंडनम ्
• शशल्परत्न
• षवश्वाशमर धनुवेद

पाकशास्त्रनां पुस्त्तको

• पक्वान्न पोथी
• पाकशास्त्र
• रसूइनुं रसायि
• वीसमी सहदनु पाकशास्त्र
• शाकपाक पक्वान्नशास्त्र
• स्त्वाहदष्ट्वानी संग्रह
• सुरती रसथाळ

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 15


प्राचीन भारतीय अशभयांत्ररकी पर भारतीय और आंग्ल भार्ाओंके संदभष

[ सातताहहक शशल्पसंसार, पुिे. खंड १अंक ४, जनवरी २२,१९५५ ]

अंग्रेजी ग्रंथ

• राम राज-एसे ऑन द आककषटे क्चर ऑफ हहंदज



• प्रसन्न कुमार आचायष -इंडडयन आककषटे क्चर
• प्रसन्न कुमार आचायष – डडक्शनरी ऑफ हहंद ु आककषटे क्चर
• पी एन बोस -षप्रंशसपल्स ऑफ इंडडयन शशल्पशास्त्र
• षवभुती भुर्ि शमर -टाउन तलॅ ननंग इन अॅंशट इंडडया
• एन के बसु- कॅनंस ऑफ ओररसन आककषटे क्चर
• फग्यस
ुष न-हहस्त्री ऑफ इंडडयन अॅंड ईस्त्टनष आककषटे क्चर
• हॅवेल - अॅंशट अॅंड मेडडव्हल आककषटे क्चर
• हॅवेल – हॅंडबुक ऑफ इंडडयन आटष
• पसी ब्राउन - इंडडयन अॅंड ईस्त्टनष आककषटे क्चर
• कुमारस्त्वामी- हहस्त्री ऑफ इंडडयन अॅंड इंडोनेशशअन आटष
• ओ.सी. गांगुली - इंडडयन आककषटे क्चर
• ए.व्ही.टी. अय्यर- हहस्त्री ऑफ इंडडयन आककषटे क्चर
• व्ही.रामस्त्वामी- ओररप्जन ऑफ साउथ इंडडयन टें पल्स.
• लोंघस्त्टष - पल्लव आककषटे क्चर
• लोंघस्त्टष - ओररप्जन ऑफ साउथ इंडडयन आककषटे क्चर
• व्ही. ए. प्स्त्मथ - हहस्त्री ऑफ अली फाइन आट्षस
• व्ही. ए. प्स्त्मथ -अॅंहटक्युटीज अॅत मथुरा
• जे माशषल-मोहें जो दारो अॅंड इंडस शसप्व्हलाइझेशन
• बगेस अॅंड फग्यस
ुष न- केव्ह तेंपल्स ऑफ इंडडया
• एम गांगुली -ओररसा अॅंड हर ररमेंस
• जौव्ह डुब्रेल – वेहदक अॅंहटक्यट
ु ीज
• जे एन बॅनजी -डेव्हलपमेट ऑफ आयकोनोग्राफी
• स्त्टे ला क्रेमररश -षवष्िुधमोत्तर परु ाि
• ए. कननंगहॅम -आककषओलोप्जकल ररपोट्षस
• एन आर रॉय – मौयषन अॅंड संग
ु ा आटष
• डी.आर. भांडारकर- एक्सवेशन अॅट बेसनगर अॅंड नागरी -(ए.एस.आर)
• डी.आर. भांडारकर-अशोका
• कॅटलोग्स ऑफ आककषओलोप्जकल म्युणझयम्स –( सांची, मथुरा, सारनाथ, नालंदा)

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 16


• आककषओलोप्जकल ररपोट्षस
• मॅकदोनाल्ड अॅंड कीथ – वेहदक इंडेक्स
• मॅकडोनाल्ड- अॅंड कीथ- हहस्त्टरी ऑफ संस्त्कृत शलटरे चर
• मॅक कक्रंडल – इंडडया ऑफ मॅगास्त्त्थेंस

जनषल्स

▪ जनषल ऑफ रॉयल एशशएहटक सोसायटी.


▪ जनषल ऑफ अमेररकन ओररएंटल सोसायटी.
▪ जनषल ऑफ ओररएंटल आट्षस
▪ जनषल ऑफ त्रबहार अॅंड ओररसा ररसचष सोसायटी.
▪ इंडडयन हहस्त्टोररकल क्वाटष ली
▪ इंडडयन कल्चर
▪ मॉडनष ररव्ह्यु
▪ कोलकोता ररव्ह्यु

शसंचन षवर्यक अंग्रेजी ग्रंथ

▪ षवल्यम षवलकॉक्स (१९३०)-लेक्चर ऑन अॅंशट इररगेशन –


▪ वॉटर रांस्त्पोटष -सी डबल्यु अॅंड पी सी ररपोटष -दे हली -१९५०
▪ इररगेशन इन इंडडया थ्रु एजेस -सेंरल बोडष ऑफ इररगेशन दे हली -१९५१
▪ के वेंकटरमन-वॉटर डडव्हाननंग -सेंरल बोडष ऑफ इररगेशन जनषल, दे हली -१९५०

बंगाली ग्रंथ

▪ भारतीय शशल्प मे मूती- अवननंद्र नाथ ठाकूर-१८४७


▪ बांगला प्रत- षवश्वषवद्यालय संग्रह - अवननंद्र नाथ ठाकूर-१८४७
▪ सहज र्चरशशक्षा-अवननंद्र नाथ ठाकूर-१८४८
▪ बागेश्वरी शशल्पप्रबंधावली- अवननंद्र नाथ ठाकूर-१८८९
▪ भारत शशल्प-७ प्रबंध - अवननंद्र नाथ ठाकूर-१९०३
▪ आटष और अहहताप्ग्न -जाशमनीकांत सेन -१९१०
▪ सर्चर अजंठा- आशसत हवालदार-१९१३
▪ प्राचीन शशल्पपररचय – र्गररशचंद्र घोर् -१९१३
▪ सौंदयष तत्व -अक्षयकुमार गुहा-१९१६
▪ षवष्िुमुती पररचय -षवनोदत्रबहारी षवद्याषवनोद-१९२०

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 17


▪ बाघगुहा और रामगड – आशसत हवालदार-१९२१
▪ रुपशशल्प -अधेंद ु कुमार गंगोपाध्याय -१९३९
▪ भारतके चारुशशल्प-– आशसत हवालदार-१९३९
▪ भारत के मंहदर-ज्योनतश चंद्र घोर् –
▪ शशल्पकथाए – नंदलाल बोस-
▪ कोिाकष का शशल्प -ननमषल कुमार बोस

मराठी ग्रंथ

o सव्हे पररज्ञान -र्चतो षवश्वनाथ -१८६७


o यंरकलादशष -ग.खं. हटकेकर-१८८४
o मॅररऑट ची तपशशल पुस्त्तके- श.श्री. दे शपांडे -१८९४
o जमीन मोजिीचे पुस्त्तक- ग.रा.कुलकिी-१९०६
o प्राचीन यंरकला साहहत्य – म.मै.सुरतकर-१९०८
o जमीन मोजिीचे पुस्त्तक पुरविी- वाघ. गुजर-१९१०
o ऑइल इंप्जंस -वा.ह.मनोहर-१९१४
o ननररक्षकांचे ननररक्षि-गो.षव शशंरे-१९२८
o इंप्जन-बॉयलर प्रकाश -द.रा.वैद्य -१९२८
o लोहमगष व आगगाडी – षव,कक.कवे-१९३०
o मोटर कशी चालवावी- र.श्री. दे शपांडे-१९३१
o मोजिी शशक्षक – म.ग.हदवाि -१९३१
o मल-जलाची व्यवस्त्था- र.श्री. दे शपांडे-१९३६
o सुलभ वास्त्तुशास्त्र - र.श्री. दे शपांडे-१९४०

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 18


१ कृषर्शास्त्र

[सातताहहक शशल्पससार ३० एषप्रल १९५५ पष्ृ ठ २८३ -२८५]

शशल्पसंसार के तीसरे अंकसे इस अंक तक मैंने पाठकोंकी सेवा मे शशल्पशास्त्र वांग्मयके


संबंबंधमे कुछ जानकारी नम्रतासे मेरी टुटीफुटी हहंदीमे सादर की । इस लेख मे कृषर्शास्त्र की
संक्षक्षतत जानकारी दे रहा हु ।

कृषर्शास्त्र

१- वक्ष
ृ षवद्या
• पाराशरीय कृषर्- हस्त्तशलणखत पोथी , भांडारकर इंस्त्टीट्युट पुिे
• काश्यपीय कृषर्- हस्त्तशलणखत पोथी , अड्यार लायब्ररी अड्यार
• कृषर्शासनम ् हहंदी अथष सहहत, कवषवीर बुकडेपो , महाल नागपूर.
• वक्ष
ृ ायव
ु ेदीय साथष उपवनषवनोद (मराठी), ले. वैद्यराज दत्तो बल्लाळ बोरकर, इस्त्लामपरू
• कृषर्संगह- हस्त्तशलणखत.
• वक्ष
ृ ायुवेदम ् -साथष तेलगु -प्र. व्ही रामस्त्वामी शास्त्रलु, चेन्नाई .
• उपवन षवनोद-ले. जी.पी. मुजुमदार, इंडडयन ररसचष इंस्त्टीट्युट, कलकत्ता .
• वक्ष
ृ ायव
ु ेदम ् -साथष तेलगु -ले. डॉ लप्ममपनत, ओररएनंटल बक
ु डेपो, पि
ु े.
• उपवन रहस्त्य (दोहा रुपांतररत),ले. उमाप्रसाद शमाष, काशी -१९५०.
उपर ननहदषष्ट चार का मुल शारं गधर संहहता मे है ।
• कृषर्दपषि, कृषर्षवद्या , वक्ष
ृ ारोपि प्रिाशल -ले. हे मचंद्र शमश्र, काशीपुरा कृषर्शाला,
कलकत्ता.
• आयषकृषर् षवज्ञान- हहंदी- ले. पि
ू श
ष ंग, प्र. ब्रम्हप्रेस , इटावा मध्यप्रदे श
• अॅग्रीकल्चर अॅंड अलाइड आट्षस -वाय एन अय्यर ,बंगळुरू
• स्त्टडी ऑफ अग्रीकल्चर इन अॅंशंट इंडडया -ले. राधारमि गंगोपाध्याय, प्र. मुखजी अड
ॅं
कं. श्रीरामपूर (प.बंगाल)
• अग्रीकल्चर शसस्त्टीम इन अॅंशंट इंडडया -ले.एन एन घोर्ाल, कोलकाता युननव्हशसषटी .
• वनस्त्पती -तलंटस अॅंड तलंटस लाईफ - ले. जी.पी. मज
ु म
ु दार, कोलकाता यनु नव्हशसषटी .
• अद्भुत वक्ष
ृ ोत्पादन- नराठी लेखमाला -श्री प. ह. थत्ते, उद्यम माशसक नागपूर, अगस्त्त
१९२७ से जुलै १९२९.
• द्रम
ु कल्प -जैन लायब्ररी

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 19


• वनप्रधान भारतीय संस्त्कृनत ले. कन्ह्य्यालाल मुंशी, भारत सरकार प्रकाशन
• प्राचेन हहंदी शशल्पशास्त्रसार- प्रकरि- ५ – कृषर्शास्त्र- ले. कृ.षव. वझे
• हाररत संहहता-साथष मराठी, हहंदी
• इंडडयन मेडडशसनल तलॅं ट्स – डॉ. बसु और ककतीकर
• वनस्त्पनत कोश – ले. शं.दा. पदे .

स्त्फुट लेख -कृवििास्त्र

o बह
ृ त पारशरीय कृषर्शास्त्र मराठी -ले. कृ.षव. वझे उद्यम नागपूर मे १९२३
o भारतीय कृषर्शास्त्र मराठी-वक्ष
ृ षवद्या - ले. कृ.षव. वझे ,दो लेख महाराष्र साहहत्य
पत्ररका वर्ष १, १९२९
o स्त्टडी ऑफ बॉटनी - ले. कृ.षव. वझे , वेहदक मॅगणझन लाहोर
o बीज,खाद, रं र्गन कपास -तीन लेख- ले. कृ.षव. वझे , उद्यम नागपरू मे जनवरी-माचष
१९२५.
o ओररप्जन अॅंड डेव्हलपमेंट ऑफ सायंस ऑफ अॅग्रीकल्चर इन अॅंशट इंडडया- श्री जी पी
मुजुमदार, १३ वी ओररएट कॉन्फरं स ,
o चंद्रगुतत कालीन कृषर्-मराठी, ले. कृ.षव. वझे
o अवर्षि प्रताप -शमन -ले. श्री.प.ह.थत्ते , महाराष्र कृषर्वल माशसक , १९२३ १९२४
o महाभारत शांनतपवष अ, १८४ पौधोंके ज्ञानेंहद्रये .

खेतोंमे शसचाई का विषन जलशास्त्र मे आता है ।

२-पिु ववद्या

• मातंग लीला - त्ररवेंद्रम संस्त्कृत शसररज


• गजलक्षि -त्ररवें द्रम संस्त्कृत शसररज
• हस्त्त्यायुवेद – आनंदाश्रम शसररज पुिे
• कररकल्पलता- वेंकटे श्वर प्रेस मुंबई
• संक्षक्षतत शाशलहोर -ले. ककशोर शसंह रािवत , जयपूर.
• शाशलहोर संग्रह -ले, नाकुल, वेंकटे श्वर प्रेस मुंबई
• अश्वषवचार – बजरं ग पुस्त्तकालय कानपूर
• अश्वर्चककत्सा – ले. पक्षपालशसंह,डायमंड ज्यत्रु बली प्रेस, आझमगड.
• अश्वर्चककत्सा –मल्याळम – चैनाई मॅन्युस्त्क्रीतट लायब्ररी.
• अश्वशारम कन्नड - चैनाई मॅन्यस्त्
ु क्रीतट लायब्ररी.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 20


• सहदे व पशुवैद्यक शास्त्र - चैनाई मॅन्युस्त्क्रीतट लायब्ररी.
• अश्वशास्त्र – संपदन-डॉ कुलकिी,डेक्कन कॉलेज पुिे.
• गवायुवेद- कल्याि गो षवशेर्ांक १९४५.
• शसंहदपषि -संग्राहक श्री हदक्षक्षत सागर से प्रातत हस्त्तशलणखत -शसंहदया ओररएंटल
इंस्त्टीट्युट उज्जैन को हस्त्तांतरि

(३) वस्त्रननमाणर्ववद्या

• वेदमे चरखा-पं श्री दा सातवळे कर


• चरखा -श्री, कृ.षव.वझे भारतीय षविकला (मराठी)-ले. वाय एन पौनीकर नागपरू .
• डाक्का मसशलन – प्रबोध कुमार दत्त, मॉडनष ररव्ह्यु , जुलै १९११
• सूत का और बुनाई का धंदा-उद्यम नागपूर जुलै १९२१

(४) पाकिास्त्र (सूपिास्त्र)

▪ पाकचंहद्रका -साथष मराठी तथा हहंदी


▪ नलपाकदपषि-चौखंबा संस्त्कृत पस्त्
ु तकालय, काशी
▪ क्षेमकुतुहल -ओररएंटल बुका डेपो पुिे
▪ भोजनकुतह
ु ल -हस्त्तशलणखत -भांडारकर इंस्त्टीटयट
ु पि
ु े.
▪ सूपशास्त्रम -कन्नड- ताशमळनाडु ओररएंटल शसररज चेन्नाई
▪ पाकषवलास -श्री. वेंकटे श्वर प्रेस, मुंबई
▪ पाकप्रदीप -श्री. वेंकटे श्वर प्रेस, मुंबई
▪ बह
ृ त पाकसंग्रह -ले. शं दा. पदे
▪ पनतपूजाषवधानम – रावबहादरू लाड, गोषवंददास – चेन्नाई
▪ अशभशलताथष र्चंतामणि -भाग १ मैसूर ओररएंटल शसररज , मैसूर
▪ जलेबी, तांबल
ु आहद पर ननबंध ,ले. पी के गोडे. भांडारकर इंस्त्टीटयट
ु पि
ु े.
▪ पथ्यापथ्यननघंटु, द्रव्यगुिदपषि चरकसंहहता का सूरस्त्थान आहद भोजनशास्त्र के
संबंधा मे षववरिा दे ते है ।

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 21


२ भारतीय जलशास्त्र

सातताहहक शशल्पसंसार, पुिे , खंड १अंक ८, १९ फरवरी १९५५ पष्ृ ठ -१३०-१३५

इस लेखमे भारतीय जलशास्त्रका मुहद्रत वांग्मय बतानेकी चेष्टा करा रहा हूं . आप ् यानी पानी
पंचमहाभूतोंमेसे एक है . इसका इनतहास वेदोंमे आया है . पानीके उत्पषत्तका इनतहास पुरुर्ाथष
माशसक (मराठी), अगस्त्त १९३७ के अंक मे बताया है . लेखक ने बताया है कक शमरवायु और
वरुिवायु (ऑक्सीजन और हायड्रोजन ) शमल कर पानी बना. ननघंटु शब्दकोशमे पानी के १००
अथषपूिष नांम बताये है.

भारत एक कृर्ीप्रधान दे श है और भारतीयोंने पानीके महत्व तथा शप्क्त जानकर उसे दे वता
स्त्वरुपा माना है . ऋग्वेदमे आपोहहष्टा नामक सुक्त(१०-९-१ ) मे पाथषना की है ‘पानी कल्यािकी
जननी है, उसकी शप्क्त हमे प्रातत हो और उन्ननतप्रत ले जाये’.

श्री. वझेजीने अपनी पस्त्


ु तक ‘ प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्र’ मे पानीके संबंर्धत कई वेहदक मंर
उद्घत
ृ ककये है . म्है सूर राज्यके षवद्वान संशोधक यज्ञनारायिने ‘ अग्र
ॅ ीकल्चर इन वेहदक इंडडया
ग्रंथके पहहले अध्यायमे कृषर्के संबंधमे ननम्नशलणखत षवर्योंकी चचाष की है .

पजषन्य और पानीके स्त्रोत, अनतवष्ृ टी ननवारि मंर, नदी के पानी से शसंचन, नदी प्रवाहसे भूमी
की हानी रोकनेके उपात, पक्के और कच्चे कुवे, पानी के अन्य स्त्रोत, वर्ाष आरं भ का आनंद
और जलयारा .

स्त्थापत्यवेद (अशभयांत्ररकी) अथवषवेद का उपवेद माना जाता है.

वेिीराम शमाष गौडने अपने वेदषवज्ञानशममांसा- (प्र. भागषव पुस्त्तकालय बनारस) ग्रंथमे वेद और
उनके उपवेद बातये है .

जलशार का उल्लेख परु ािोंमे और नीनत ग्रंथोंमे भी आता है . नारदव्दारा यर्ु धप्ष्टर को पछ
ु े
गये सवाल नारनीनतमे हदये है जैसे;

• हे राजन वर्ाषसे र्गरनेवाला पानी नदीया, नहर तालाब मे भर जाता है , उस जल का


अपव्यय न हो इसकी दक्षता आप लेतो कक नही ?
• जलयुक्त जलाशयोंका रक्षि आप करते हो या नही ?( संदभष -नारदनीनत प्र. जगदीश्वर
प्रेस मुंबई).

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 22


• नारद के दस
ु रे ग्रंथ नारद शशल्पशास्त्र मे पानी संबंर्धत चार अध्याय है , १-
जलाशयतटाकलक्षि ं
(पॉड्स , टॅं क्स), २-प्रिाली सेतुलक्षि (आचष ब्रीजेस),
३=जलदग
ु ल
ष क्षि (वॉटर फोट्षस), ४-वाहहनी दग
ु ल
ष क्षि (ररव्हर फोट्षस).

श्री. वझे अपने मराठी लेख ‘ प्राचीन आयषशशल्पांची उपलब्ध माहहती’ मे सूर्चत करते है कक
वशसष्ठशशल्पसंहहता यह ग्रंथ जलशास्त्र और नौकाशास्त्र के संबधमे है संदभष उद्यम माशसक
जन
ू १९२२). परं तु मल
ु संहहता अनप
ु लब्ध होनेसे यह जानकारी यजव
ु ेदके अंतगषत वशसष्ठ के
सुक्तोंसे प्रातत करनी होगी.

भग
ृ शु शल्पसंहहतामे जलशास्त्र की तीन षवद्याए बतायी है -१-स्त्तंभन (स्त्टोरे ज), २-संसेचन
(सतलाय) और ३-संहरि(ड्रेनेज). इस संहहता की शास्त्रीय, मनोरं जक बाते कुछ इस प्रकारकी
है.वशशष्ठ ऋर्ीद्वारा बताए बहते पानीके १९ गुिधमष, ऋर्ी पाराशर की पजषन्य भषवष्य पध्दती,
भग
ृ ु ऋर्ीद्वारा बताए प्स्त्थर पानीके १० गुिधमष इत्याहद .

भूगभषजल का स्त्थान ननप्श्चत करनेका भी एक शास्त्र था प्जसका नाम है दृगागषल शास्त्र (वॉटर
डडव्हाननंग) . वराहशमहहर के प्रशसध्द ग्रंथ ‘बह
ृ तसंहहता-अध्याय ५३ मे षवस्त्तत
ृ जानकारी उपल्ब्ध
है . इस षवर्यमे अन्य ननम्नशलणखत वांग्मय उपलब्ध है .

• दृगागषल शास्त्र -ले. षवठ्ठल शास्त्री गोरे , प्र. ननिषयसागर प्रेस, मंब
ु ई.
• जलागषल शास्त्रम (तेलगु), प्र. रामस्त्वामी शास्त्रलु, चेन्नाई
• षवहहरी -प्राचीन व अवाषचीन (मराठी),ले. प.ह.थत्ते, माशसक उद्यम फरवरी १९२२ से
हदसेंबर १९२६,खंडश: प्रकाशशत.
• वॉटर डडव्हाननंग – अश
ॅं ट अॅंड मॉडनष -ले. के. वेंकटरामन, जनषल ऑफ सी.बी आय .पी
दे हली, माचष १९५०
• वॉटर डडव्हाननंग –ले.मेजर पोगसन ,बॉम्बे इंप्जननअररंग कॉग्रें स, १९२३, पेपर नं.८२.

प्रा. हररदास शमर ने अपने ग्रंथमे जलशास्त्रके १५ प्रमख


ु ग्रंथोंके नाम हदये है . जलागषल ,
जलागषल यंर, जलाशयोत्सगष, जलाशयोत्सगषतत्व, जलाशयोत्सगषप्रमािदशषन,
जलाशयोत्सगषप्रयोग, जलाशयोत्सगषषवधी, जलाशयारामोत्सगषषवधी, जलाशयकालननिषय,
जलाशयपध्दनत, जलाशयरामोत्सगषमुख , तडाग प्रनतष्ठा, तडाग उत्सगष, वास्त्तुरत्नाकर ,
कुपाहदजललक्षि. वास्त्तुशास्त्रके प्राय: सब ग्रंथोंमे कुवाअ, तालाब आदीके ननमाषि संबंधमे
जानकारी है. उदाहरिाथष, वास्त्तुराजवल्लभ (गुजराती),जागुष्टे बुकसेलर अहमदाबाद.

भारत सरकार के सेंरल बोडष ऑफ इररगेशन नामक संस्त्थाके दे हली प्स्त्थत ग्रंथलयमे जलशास्त्र
का पुस्त्तक भंडार है ,उन मे से कुछ प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार है .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 23


• लेक्चसष ऑन द अॅंशंट शसस्त्टीम ऑफ इररगेशन इन बेंगाल- सर षवप्ल्ययम षवल्कॉक्स
१९३०, प्र. कोलकाता युननव्हशसषटी.
• वॉटर रांस्त्पोटष इन इंडडया - सी.बी आय.पी. गुजराती
• इररगेशन इन इंडडया थ्रु एजेस- शलफलेट नं ७, सी.बी आय.पी -१९५१
• इररगेशन वक्सष इन इंडडया अॅंड इप्जतत -आर बी बकले १८९३ प्र. ए.पी एन स्त्पेंस
लंडन. राएनल ररव्ह्यु ऑफ इररगेशन इन इंडडया, भारत सरकार, १९२२.
• इररगेशन इन पंजाब- मॉन्टे ग्यु - सी.बी आय.पी १९४६.
• इररगेशन इन इंडडया -ए डेंककन, थॅचर अॅंड कं. लंडन १८९३.
• इररगेशन इन इंडडया -षवल्यम -युएस प्जलोजीकल सव्हे १९०३.
• ररपोटष ऑफ इंडडयन इररगेशन कशमहट,१९०१-१९०४, चार खंडमे.
• ऐन ए अकबरी-ले अबुल फज़ल, भार्ांतर-अॅलन -तीन भाग, प्र. अशशएहटक सोसायटी
ऑफ बेंगाल, कोलकाता.
• ररपोटष ऑफ रॉयल कशमशन ऑन अॅग्रीकल्चर, १९२८.
• हहस्त्री ऑफ कॅनॉल्स -ले जे.जे. ह्टन. इसमे हदल्ली के लाल ककले मे १२० कक.शम,
दरू से नहर खोदकर पानी लायाअ गया था ऐसा विषन है .
• वेस्त्टनष जमुना कॅनॉल- मेजर डब्लु. इ. बेकर १८४९.यह ग्रंथ सी.बी आय.पी. दे हलीमे
उपल्ब्ध है .इसमे कई प्राचीन अॅक्वॅडक्ट (ननम्न भूयारी नहर) के र्चर है .

अनेक प्राचीन संदभोंसे यह शसध्द होता है कक संसारमे शसचाई का शास्त्र सवषप्रथम भारतमे
षवकशसत हुवा, उसके पश्चात यहासे इप्जतत, बॅत्रबलोननया , दक्षक्षि अमेररका पहुचा (संदभष रुडकी
हरटाइज ऑन शसप्व्हल इंप्जननअररंग १९०१). पेरु दे श मे इंका सभ्यता कालके शसंचाई के अवशेर्
शमले है . शसंचाईशास्त्र के जगमान्य तज्ञ सर षवशलयम षवल्कॉक्सने कोलकाता षवश्वषवद्यालयमे
बंगालके प्राचीन शसंचाईके षवर्यमे चार व्याख्यान हदये. जो महु द्रत स्त्वरुप मे उपलब्ध है . राजा
भर्गरथ षवश्वका प्रथम शसंचनतज्ञ था. शसंचाई षवद्याको भर्गरथ षवद्या ऐसा नाम श्री कालेलकर
ने हदया. भर्गरथ और भारतके सप
ु र
ु ोंकी प्रशंसा सर षवल्कॉक्स ननम्न शब्दोंमे करते है ;

महषर्ष व्यासने महाभारतमे भारतीयोंके बुध्दीसामथ्यष का विषन भलेही दै षवक शब्दोंमे कीया हो,
पर वस्त्तुप्स्त्थतीमे वह यथाथष है. यहा का हर दक्षक्षि वाहहनी नदी (जैसे भार्गरथी, मठभागा)
प्रथम एक खोदी गयी नहरे थी. मुझे याद है जब मैंने नकाशा पर नहर के शलए लककर
बानाई तब मैंने ए पाया कक वैसाही मृत नहर मौजुद है , ये दे खकर मै आश्चयषचककत हो गया.
पुरािोंमे बताया है कक हहमालय और षवध्यपवषत के बीचमे षवशाल जलाशय था उसे अगस्त्त्य
ऋर्ीने संहरि कीया (पीके सुखा डाला) और वहा की जमीन खेती योग्य बनाई.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 24


रामायि मे ह्नुमान ने समुद्रपर रामसेतु बनाने की कथा है , यह सेतु बनाने वाले सामान्य वानर
नही थे ककं तु नल जाती के अशभयंता थे. हहंदस्त्
ु तान और श्रीलंका के बीचमे बहोत कम गहरईवाला
जलमागष है उसवर यह बडे बडे पत्थरोंसे यह सेतु (अॅडम्स ब्रीज ) पांच हदनोमे बानाया गया .
अर्धक जानकारी के शलए पंडडत षवष्िुशास्त्री तोफखानेजी का, माशसक पुरुर्ाथष १९४१ मे छपा
‘वानरांची संस्त्कृती’ लेख पढे . राजा नल बडा शशल्पशास्त्रवेत्त था. नल व्दारा पानी ले जाने की
षवद्या उसे अवगत थी. पहले शमट्टीके खपरे ल एक दस
ु रे मे फसाकर (इंटरलॉककं ग) नल बनते
थे. ऐसे नल आजभी श्रीलंकामे उत्खनन मे पाये जाते है.

सन १८०० मे ईस्त्ट इंडडया कंपनीने डॉ. फ्ांसीस बच


ु ानान को दक्षक्षि और उत्तर मे कृर्ी तथा
व्यापार का अभ्यास करने हे तु भेजा . डॉ. बुचानानके इस याराका वत
ृ ांत लडंन मे ’ बुचानान
जनी फ्ोम मद्रास इटीसी’ प्रशसधद हुवा है. उस वत
ृ ांत के कुछ अंश इस प्रकार है ;

मैंने दक्षक्षि भारत मे ‘कोंडातुरु’ मे एक प्रशसध्द शसंचाई योजना दे खी, जहांपर एक सेतु
बनाकर अनत षवशाल जलाशय बनाया गया था. इस जलाशय की लंबाई ७ से ८ मील थी.
इस जलाशय का पानी असंख्य नहरोंमे छोडा गया था. इस जलाशयका पानी ३२ गांवोंके शलये
अकालके समय ८ महहनोंतक पयाषतत था. मेरे अकॉषट यारामे कावेरी पाक नामक अनतषवशाल
जलाशय दे खा, प्जसका पानी शसचाइके काम आता था.
अर्धक जानकारी के शलए श्री. रमेश दत्त का ‘एकॉनोशमक हहस्त्टरीऑफ इंडडया अंडर अली
त्रब्रहटश रुल” पढे .

भारत के प्राचीन तालाब और नहरोंकी षवशेर्ता का विषन सी राजगोपालाचारीने, १९५१ मे हुयी


फस्त्टष कॉग्रें स ऑन इररगेशन अॅंड ड्रेनेज, इसमे अपने अध्यक्षक्षय भार्ि मे ककया है वह
मनननय है.

भारत सरकार व्दारा १९५१मे प्रकाशशत ग्रंथ “ फाइव थाउजंड इअसष ऑफ आककषटे क्चर” मे जो
मोहें जो -दारो के र्चर है उससे भारत मे जलशास्त्र ककतना उन्नत था इसकी कल्पना कक जा
सकती है.

डॉ. प्रसन्न कुमार आचायषने अपने ‘एशलमें ट्स ऑफ हहंद ु आककषटे क्चर अॅंड शसप्व्हलाज़ेशन ग्रंथ के
पष्ृ ठ ७१-७७ मे प्राचीन स्त्नानगह
ृ का विषन हदया है . औरं गजेबके कालमे औरं गाबाद और ब-
हािपरू मे आधनु नक जलप्रदाय जैसी व्यवस्त्था थी . औरं गाबाद के पासकी नदी मे जलकुषपका
(इनटे ल वेल्स )बनाकर गुरुत्वाकर्षिसे पानी शहर तक पहुचानेकी व्यवस्त्था थी. यह जानकारी
अकोला के श्री.गोगटे ने औरं गबादकी नहरे इस मराठी लेख मे बताई है (संदभष उद्यम माशसक
नागपूर के जुल-ै १९२२ अंका मे प्रकाशशत हुइ है . षवजयनगर साम्राज्यमे शसंचन व्यवस्त्था कैसी

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 25


थी इसका विषन श्री महाशलंगमने अपने लेख ‘ इररगेशन अंडर षवजयनगर ककं गस (१९३६) ’
मे बतायी है. प्राचीन भारतमे जलशक्ती का उपयोग करने के शलए जलयंर बनाये जाते है.
इसका विषन श्री.वझेजीने अपनी लेखमाला ‘स्त्टडी ऑफ मेकॅननक्स फ्ॉम इंडडयन बुक्स’ मे दीया
है-संदभष वेहदक मॅगणझन लाहोर , नोव्हें बर १९२३. वैसाही विषन डॉ. राघवनने ‘यंराज इन अॅंशट
इंडडया’ पुस्त्तक मे ककया है -प्र. इंडडयन इंप्स्त्टट्युट ऑफ कल्चर, बंगळुरू. इस दे शके ननम्नशलणखत
प्राध्यापकोंने अपनी ककताबोंमे प्राचीन भारतीय जलशास्त्र का संक्षक्षतत विषन हदया है .

• प्रा. भीमचंद्र चटजी- हायड्रो-इलेप्क्रक प्रप्क्टस इन इंडडया.


• प्रा.के सी बॅनजी-इंडडयन वॉटर वक्सष
• प्रा. व्ही,बी. षप्रयरं जन- षप्रंशसपल्स ऑफ इररगेशन. नगर रचना शास्त्रमे

नगर रचना शास्त्रमे जलव्यवस्त्थापन का बडा मह्त्व है. प्राचीन कालमे यह व्यवथा कैसी
होती थी इसका विषन मैंने अपने ‘नगर रचना शास्त्र’ इस लेख ककया है , कृपया वह पढे .

अंतमे मै ऐसी आशा करता हूं कोई राष्रभार्ाप्रेमी उपरननषदषष्ट तथा अन्य भारतीय जलशास्त्र
वांग्मयसे षवस्त्तत
ृ जानकारी शमलाकर भारतीय जलशास्त्रका इनतहास संसारके रखे और आगाशम
संतानोंको स्त्फुती प्रदान करे .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 26


३ भारतीय खननशार

सातताहहक शशल्पसंसार पुिे ३० एषप्रल १९५५ पष्ृ ठ २७९ -२८२

भारतीय संस्त्कृतीके षवद्वान संशोधक डॉ. अळतेकरजीके ‘प्राचीन भारतीय शशक्षि पध्दती ‘
नामक मराठी ग्रंथमे एक मनननय पररच्छे द है - ‘खननशास्त्र का हहंदओ
ु ंका ज्ञान अत्यल्प था
और सोना चांदी वगैरेह धातु खदानसे ननकालनेकी पध्दतीभी बहोत सदोर् थी -ऐसा षवधान
ग्रीक खननशास्त्रज्ञ ‘ स्त्रं बो ने ककया है . ग्रीक लोगोंने हहंदओ
ु ंकी खदाने प्रत्यक्ष रुपसे नही दे खी
होंगी .

यह पररच्छे द पढनेपर हहंदओ


ु ंका प्राचीन कालमे धातुशास्त्र का ज्ञान सचमुच ककस स्त्थरका था
यह जाननेकी प्जज्ञासा ननमाषि होती है .

• अथषशास्त्रमे सोना, चांदी, तांबा लोह वगैरे अशुध्द धातु खदानसे ननकालते समय कौन
से रुपमे हदखते है इस बातका षववरि आता है .
• वेदकालमे धातुओंके कारखाने थे ऐसा प्राच्य षवद्या संशोधक बताते है . पं. सातवळे कर
जीने ‘ वेदोंमे लोहे के कारखाने ‘ इस नाम की पप्ु स्त्तका प्रकाशशत की है .
• प्राचीन ग्रंथ ‘रसरत्न समुच्चय ‘ ग्रंथमे धातु प्रमुखत: नौ प्रकारके होते है ऐसा बताया है
. सोना, चांदी, तांबा, लोहा, सीसा, कर्थल, वत्त
ृ . इस सबके संबंधमे भारतीयोंका ज्ञान
उच्च स्त्थरका था .
• एंस्त्क्लोषपडडया त्रब्रटाननका खंड १४ (१९१५) मे शलखा है “ १५४५ मे एक भारतीयने इंग्लंडमे
सवषप्रथम सूईया बनाई, पर ये कला उस व्यक्तीके ननधन पश्चात लुतत हो गयी.१५६०
मे णितोफर र्ग्रननंगमे इस कला को पुनुरुप्ज्जषवत ककया . पहहले हहंदस्त्
ु तानमे सुइयां
बहोत बनती थी पर अब षवदे शसे आती है.
• शस्त्रकमषमे सोना, चांदी या तांबेकी सुइयां का उपयोग होता था ऐसा वैद्यक ग्रंथोंमे
बताया है .

श्री. वझेजीने अपने ग्रंथोंमे खननशास्त्रका षवस्त्तार और संदभष बताये है . जैसे धातुकल्प,
रत्नपररक्षा, लोहािषव, लोहप्रदीप. महावज्र, भैरवतंर और पार्ािभेद.

धातुकल्प -भांडारकर प्राच्यषवद्या संशोधन संस्त्था, पुिे मे उपलब्ध है -पोथी क्रमांक ११४५,
१८८६ से १८९२ तक.

खननशास्त्रपर मुहद्रत वांग्मय बहुत थोडा है , उनमे ननम्न शलणखत प्रमुख है .

प्राचीन हहंदी शशल्पशारसार (मराठी), प्रकरि- ७-खननशास्त्र - लेखक कृ.षव. वझे.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 27


हहंदी शशल्पशार भाग १(मराठी), धातु, रत्न प्रकरि-- लेखक कृ.षव. वझे.

शशल्पशशक्सिका महत्व (३२ शशल्पकला) -मराठी पुस्त्तक ,लेखक कृ.षव. वझे.

रत्नोपरत्न- उनके उपयोग -उद्यम नागपूर -लेखक कृ.षव. वझे , शसतंबर १९२५.

धातु और खदान षवर्यक सामान्य षवचार - उद्यम नागपूर -लेखक कृ.षव. वझे , नोव्हें बर
१९२१.

भारतीय भघ
ू टना- महाराष्र साहहत्यपत्ररका , लेखक कृ.षव. वझे १९२८,

हत्यारोंको धार लगाना- उद्यम नागपूर -लेखक कृ.षव. वझे , जुलै १९२४.

खदानसे ननकले हुए पथ्थर नरम करना इत्याहद- उद्यम नागपरू -लेखक कृ.षव. वझे , अगस्त्त
से अक्टोबर १९२४.

कांस्त्यघंटा और उससे बोध – उद्यम नागपूर - लेखक ले. बा.ना. सहस्त्रबुध्दे , १९२१.

सेंट झेप्व्हअर कॉलेज मुबंईके श्री भागवत ने इस ग्रंथपर संशोधन करके ,मेटल्स इन अॅशंट
इंडडया इस शशर्षकका एक पुस्त्तक शलखा है . इस पुस्त्तकमे इसापूवष ७००० से इ.स. १६०० तकका
हहंद ु धातुशास्त्रका इनतहास बताया है . इस अप्रकाशशत ग्रंथको उनकी षवदर्
ु ी पत्नी श्रीमती दग
ु ाष
भागवतमे १८ भागोंमे माशसक सष्ृ टीज्ञानमे ऑक्टोबर १९४३ से शसतंबर १९४५ प्रकाशशत ककया.
इस अप्रशसध्द ग्रंथका भावाथष “ नॉलेज ऑफ मेटल्स इन अॅंशट इंडडया” इस शशर्षकसे, जनषल
ऑफ केशमकल एज्युकेशन, खंड १०, अंक ११, नोव्हें बर १९३३ मे प्रकाशशत हुआ है . श्री एस
परमशशवम ने प्राच्य षवद्यापररर्द चार ननम्नशलणखत अंग्रजी ननबंध प्रस्त्तुत ककये संदभष खंड
११, पष्ृ ठ १८५ से २०९.

१-मेटलवककिंग इन षप्रहहस्त्टोररक इंडडया, २-षप्रहहस्त्टोररक ब्रांझ,३- षप्रहहस्त्टोररक आयनष,४-


मेटलोग्राफी ऑफ इंडो-ग्रीक कॉइंस फ़्रोम तक्षशशला.

वेदकालीन भूस्त्तरशास्त्र -ले. ना.म.पावगी. खननशास्त्रमे रत्नषवद्या (जेमोलोजी) आती है उसपर


ननम्नशलणखत वांग्मय है.

• रत्नप्रदीप (मराठी) -के. य.ल. खांबेटे, जलगांव ,महाराष्र, इसमे हहरा, माणिक मोती
वगैरेकी जानकारी है.
• रत्नदीषपका रत्नशास्त्रम- ताशमळनाडू सासककय ओररएंटल शसररज . रसप्रकाश सुधारक
अध्याय ७
• पदाथष विषन भाग १-(मराठी) - ले. बा.प्र.मोडक (१८११)-रत्न, पष्ृ ठ ५३ से ७१.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 28


• रत्नपररक्षा (हहंदी) -ले. गुरुदासजी,( १९५३) प्र. वेंकटे श्वर प्रेस मुंबई .
• मणि मोहरा रत्नपररक्षा (हहंदी),ले. अभयचंद्र जाजु , हहटया, काशी. रत्नपरीक्षक – ले.
घासीराम जैन, सुदशषन प्रेस, मथुरा.
• रत्नसागर-,( १९६२) ले. मननर्ी समथषदान, राजस्त्तान प्रेस, अजमेर
• रत्नदीपक -ले. लममीनारायि पंडडत, प्र. वेंकटे श्वर प्रेस, मुंबई

इस षवर्यपर हस्त्तशलणखत ग्रंथ कई होंगे . हहंदओ


ु ंके रत्नशास्त्रके ज्ञानके संबंधमे ,वेहदक
मॅगणझन लाहोरमे सी कोनेरी का एक लेख डडसेंबर १९२३ के अंकमे छपा है .लेखका शशर्षक
है ‘नॉलेज ऑफ प्रेशस स्त्टोंस अॅंड व्हॅल्यए
ु बल मेटल्स इन अॅंशंट इडडया’ . इस लेखमे हहंदओ
ु ंको
कृत्ररम सुविष और रत्न बनानेकी षवद्या(कृत्ररम स्त्विष रत्नाहद कक्रयाज्ञानम ्) अवगत थी ऐसा
शलखा है.

कोई सज्जन ऐसा जरूर पूछेंगे कक शास्त्र (सायंस) प्राचीन कालसे अब बहुत प्रगत हुआ है . इस
शलये खननशास्त्रके प्राचीन ज्ञानसे अब क्या फायदा होगा. इस प्रश्नपर मैं उनका ध्यान, त्रब्रहटश
कंस्त्रक्टशन इंप्जननअर, माशसक के फरवरी माचष १९५३ अंकमे छपे लेख के और आकषर्षत करना
चाहता हूं. लेखका शशर्षक है ‘अॅंशट इडडयन फाइंडडग्स मे सोल्व्ह करोजन प्रोब्लेम्स’ . इसशलए
यह भारतीय शाखाका सखोल अभ्यास करके यह ज्ञान संसारको प्रदान करना आवश्यक है .मै
आशा करता हूं कक इस दृष्टीसे कोई भारतीय अवश्य कदम उठायेगा.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 29


४ नौका शास्त्र

[सातताहहक शशल्पसंसार , पुिे, ३० एषप्रल १९५५]

मुल संस्त्कृत ग्रंथ – युप्क्तकल्पतरु, अप्ब्धयान, जलयानज्ञान , शसंद,ु वारु वगैरेह उनमेसे
मुहद्रत –

• युप्क्तकल्पतरु -कलकत्ता ओररएंटल शसररज


• साथषवाह -ले. मोतीचंद्र , रथशास्त्र के ग्रंथांक ६मे दे णखये.
• हहस्त्री ऑफ इंडडयन शशषपंग-ले. राधाकुमद ं
ु मुखजी, लॉगमन ग्रीन अॅंड कंपनी, मंब
ु ई
१९१२.
• नोटस ऑन अॅंशंट हहंद ु शशषपंग - ले. राधाकुमुद मख
ु जी, भांडारकर स्त्मत
ृ ी ग्रंथ क्र.१९
• भारत मे जलयातायात- मॅनेजर ऑफ पप्ब्लकेशंस दे हली
• वॉटर रांसपोटष इन इंडडया - मॅनेजर ऑफ पप्ब्लकेशंस दे हली
• प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्रसार, प्रकरि ८, नौकाशास्त्र -ले. कृ.षव. वझे
• वेदकालीन इनतहास -पूवाषधष -ले. प. ह. थत्ते
लेख

▪ मत्स्त्ययंर अथवा होकायंर (मराठी ननबंध) -ले. . प. ह. थत्ते, भारत इनतहास संशोधन
मंडळ पुिे, रैमाशसक वर्ष १४ अंक २
▪ इंडडयन शशषपंग इंडस्त्री अॅंड मकेंटाईन मरीन- डुग
ं रसी धनसी वेल्फेअर रस्त्ट- जुलै
१९२३ तथा वैहदक मॅगणझन लाहोर - जुलै १९२३
▪ मुंबई का जहाज बनानेवाला पारसी पररवार -ले. पारसनीस. मराठी सहहत्य पररचय
▪ प्राचीन हहंदओ
ु ंका जलपयषटन : वास्त्को- ड -गामा की हहंदस्त्
ु तान की पहली सफर-
मराठी पुस्त्तक ५, मुंबई राज्य.
▪ भारत की नाषवक परं परा (मराठी)-ले. सुमती मोरारजी -इशलस्त्रे ड वीकली तथा अमत
ृ ,
नाशशक ,मे १९५४
▪ हहंद की दो हजार वर्ोंकी नाषवक परं परा- ले. सुमती मोरारजी, रषववार सकाळ पुिे
२८-२-१९५४
▪ प्राचीन भारते नौसाधनम ् (संस्त्कृत) – संस्त्कृत भषवतत्वम ् , संस्त्कृत षवश्वपररर्द
षवशेर्ांक -ले. वासुदेवशास्त्री बागेवाडीकर.
▪ वॉर इन अॅंशंट इंडडया -ले. हदक्षक्षतार
▪ समुद्रयानम ् (संस्त्कृत)- माशसक संस्त्कृत चंहद्रका , नाशशक, सतटें बर १९०७, पष्ृ ठ ८९-
१००

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 30


▪ कल्याि हहद ु संस्त्कृनत अंक, १९५०, ‘यातायात के प्राचीन वैज्ञाननक साधन ,ले.
शशवपज
ु नशसंह, पष्ृ ठ ७२८.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 31


५ रथ शास्त्र-सडक यातायात

मुहद्रत ग्रंथ

• प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्रसार (मराठी) ,ले. कृ.षव. वझे, प्रकरि ९


• इनलॅं ड रांस्त्पोटष अॅंड कम्यनु नकेशन इन मेडीव्हल इंडडया-त्रबजोय कुमार सरकार,
कलकत्ता युननव्हशसषटी प्रेस १९२५.
• हायवेज अॅंड बायवेज ऑफ इंडडया- द मॉसन अॅंड व्हनोन कं, मंब
ु ई
• अवर रोडस , गव्हमेंट ऑफ इंडडया पब्लीकेशंस १९४८
• ग्रंथमाला-यातायातके साधन -१९०३
• प्राचीन भारत की पथ पध्दनत- साथषवाह -डॉ मोतीचंद्र- त्रबहार राष्रभार्ा पररर्द पटना,
१९५३

लेख

हटतपिी – नगर रचना शास्त्रके लेखमे जो जो वांग्मय सूर्चत ककया है वह रथशास्त्र के संबंधमे
भी जरूर पढना चाहहये. शुक्रनीनत,कौहटल्य अथषशास्त्र आहद ग्रंथ भी इस षवर्यके संबंधमे अवश्य
पढना चाहहये.

o हायवेज इन पंजाब -पास्त्ट अॅंड प्रेझेंट – ड्ब्यु एस डोमषन , पेपर पंजाब यनु नव्हशसषटी
कॉग्रें स -१९१९.
o श्री त्रब्रजमोहन दास – अध्यक्षक्षय भार्ि- इंडडअन रोड कॉग्रेस -१९४०.
o राम का सेतु – माशसक मनोरं जन , जुलै १९५५.
o भारत मे राजमागष ननमाषि की कथा- श्री त्रब्रजमोहन दास, जनषल ऑफ इंस्त्टीट्युशन
ऑफ इंप्जननअसष इंडडया , खंड ३३, क्र;१, सतटे बर १९५२.
o रथलक्षि -षवश्वकमाष रर्चत, शांनतननकेतन षवश्वभारती ग्रंथालय क्रमांक २०४८, २०७३.

भारतीय शशलशास्त्त्र्के उपशास्त्रोंके संबंधमे प्जतने संक्षेपमे मैंने गत चार महहनोंमे शशल्पवांग्मय-
सूची पाठकोंको सादर की है . इस वांग्मयका मैंए नागपूरमे हदनांक ९ से १० एषप्रलको ,
इंस्त्टीट्युशन ऑफ इंप्जननअसष इंडडया के गव्हननिंग कौंशसल के सभासदोंके शलये प्रदशषन रुपमे
आयोजन ककया था . यह संपूिष संग्रह मेरे पास नही है . मेरे अभ्यास के आरं भ होनेसे बताने
लायक वांग्मय छूट गया है इस बातकी मुझे स्त्पष्ट कल्पना है . गत पांच सालके प्रयत्नसे
प्जतनी जानकारी एकत्ररत हुई उतनीही सादर करनेका आदे श मे. गद्रे जीसे शमला और मैंए उसका
नम्रतासे यथाशप्क्त पालन ककया .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 32


वैसा दे खा जाय तो यह कायष एक व्यक्तीके करने लायक नही है . इंस्त्टीट्युशन ऑफ इंप्जननअसष
इंडडया को संकलन का यह कायष हाथमे लेना आवश्यक और अननवायष है . भारतीय शशल्पशास्त्र
संबंर्धत सब वांग्मय इस संस्त्थाके संग्रहमे न हो, तो उसमे एक बडी भारी न्यूनता रह जाती है
. मै षवश्वास करता हूं कक भषवष्य मे यह संस्त्था इस न्यूनता को पूिष करे गी और अपने दे शके
अशभयंताओंको इस राष्रीय ज्ञान भंडारका उचीत पररचय करा दे गी .

यहद मेजर गद्रे जी ननतांत उत्साह और अतुलनीय त्यागसे शशल्पसंसार सातताहहक का आयोजन
नही करते तो मेरी गत पांच सालकी अत्यल्प सेवा झोपडीमे पडी रहती . आप मुझे कायािंषवत
नही करते तो यह संक्षक्षततसी शशल्पा वांग्मय की सूर्च प्जज्ञासुओंके सामने नही आती !

मै बडी नम्रतासे षवहदत करता हूं कक डॉ प्रसन्नकुमार आचायष, डॉ पी के गोडे आहद षवद्वानोंको
यह सच
ू ी उपयक्
ु तसी होगी .

इस उपयुक्तता का प्रमख
ु श्रेय नन:संदेह मेजर गद्रे जीका है . मेरा कायष ऐसाही चलता रहे गा
. प्जज्ञासु शमलने पर मै कफर सेवाके शलये हाप्जर हूं .मेरे टुटे फुटे लेखन के षवद्वान और
वंदनीय पाठकोंके प्रनत मेरे साष्टांग प्रणिपात . प्जन षवद्वान संशोधकोंके ग्रंथोंसे जानकारी
मैंए कृतज्ञतासे उद्गत
ृ की , उनके पनत भी मेरे श्रध्दापूवक
ष नम्र प्रिाम.

मझ
ु े कोई पर शलखना चाहे तो कृपया ननम्न शलणखत मेरे रहहवास के पते पर शलखे:-

गोपाळ गजानन जोशी षपंपुटकर वाडा, पोशलस नाका रोड, सकषल ७अ , नागपूर शहर

शशल्पसंसार -३० एषप्रल १९५५ पष्ृ ठ २८७

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 33


६ भारतीय षवमानशास्त्र

[ सातताहहक शशल्पसंसार, पुिे, १२ माचष १९५० पष्ृ ठ १६३- १६६ ]

हदनांक १२ फरवरी १९५५ के शशल्पसंसारके अंक मे मेजर गद्रे जीने भारतीय षवमानशस्त्रके
संबंधमे कुछ जानकारी दी है . पं. सब्र
ु ायशास्त्री शलणखत महषर्ष भारव्दाज प्रणित वैमाननक
प्रकरिका इनतहास पढनेपर कुछ बुध्दीवादी उसपर पूित
ष या षवश्वास नही रखेंगे ऐसा संभव है .
प्जन प्जज्ञासओ
ू ंको भारतीय षवमानशास्त्रकी सत्यता जाननी है वे कृपया ननम्नशलणखत वांग्मयका
अवलोकन करनेके बाद अपना ननप्श्चत मत बनावे . प्राचीन कालमे भारत षवमानशास्त्र जानता
था यह मेरा ननप्श्चत मत है .

(१) प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्रसार (मराठी), लेखक श्री. कृ.षव.वझे, प्रकरि १०—
षवमानशास्त्र.भग
ृ ुशशल्पसंहहतामे शशल्पशास्त्रके जो दस उपशास्त्र बताये है उनमेसे अप्ग्नयानशास्त्र
या षवमानशास्त्र एक उपशास्त्र है. वझेजीको षवमानशस्त्रके संबंधमे अगप्स्त्त षवमानशास्त्र संहहता
उज्जैन के राजोपध्याय दामोदर भट्ट जोशी, त्यंबककर के प्राचीन पोठी संग्रहमे शमली. दख
ु की
बात है की पोथी पि
ू रु
ष पमे नही थी. वह पोथी शके १५५० की थी . उपर ननहदष ष्ट अगप्स्त्त
षवमानशास्त्र संहहताके आधारसे ननम्नशलणखत लेख प्रकाशशत हुए .

(२) भारतीयांची षवमान षवद्या (मराठी) उद्यम नागपरू , जन


ू , जल
ु ै १९२३, ले. प.ह.थत्ते.

(३) एअरक्राफ्टट्स इन अॅंशट


ं इडडया, वेहदक मॅगणझन लाहोर, डडसेंबर १९२३, ले. प.ह.थत्ते. प्जज्ञासु
इन लेखोंके साथ साथ ननम्नशलणखत अंग्रेजी ग्रंथ भी पढे तो षवर्य समझने मे आसानी होगी.

(४) द षप्रहहस्त्टरी ऑफ एव्हीएशन-बी. लॉफर. पप्ब्लकेशन २५२, अॅंथ्रोपोलोप्जकल शसररज-१८.

(५) हहरोज ऑफ द एअर – प्र. ब्लकी अॅंड संस, प्रकरि १ और २.

(६) बलंस
ू , एअर शशतस अॅंड फ्टलाइअंग मशशंस, प्र. गर्ट्रषड बेकन, लंडन.

(७)प्रक्टीकल काइट्स अॅंड एरोतलेंस-ले.फ्ेड्शिक वॉकर, प्र. र्गलबटष पीटमन, लंडन (१९०९)

वेद कालमे षवमानशास्त्र था ऐसे वेदके संशोधकोंका दाव है. इस षवर्य मे ननम्नशलणखत संदभष
दे खे .

• यातायात के प्राचीन वैज्ञाननक साधन-ले. शशवपूजनशसंह कुशवाहा, कळ्याि हहंदस


ु ंकृती
अंक, (१९९०), पष्ृ ठ ७२९.
• वेदोंमे षवमान-ले. बाळकृष्ि, गंगा वेदांक , जनवरी (१९३२), पष्ृ ठ २०५.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 34


• ऋषर् दयानंद ऋग्वेदाहद भाष्य - नौषवमानषवद्या . हवाई नौका-ले. षवश्वनाथ
षवद्यालंकार, वैहदक षवज्ञान माशसक पर, अजमेर ,डडसेंबर (१९३२)
• आयषवीरता और युध्दषवद्या अभ्यास -स्त्वामी दयानंद षवरोचन , काशी (१९२४)
• ऋग्वेद का वरुिसुक्त मंडल १ सुक्त २५- ले. रामनाथ षवद्यालंकार . गुरुकुल पत्ररका
कांगडी, अंक अगस्त्त (१९५४)
• पं. सातवळे कर सच
ू ीत करते है “अप्श्वनौ के षवमान, भज्
ु जु के सेनासहहत तीन दीन
अहोरार उडान भरते थे ऐसा विषन वेदमंरोंने आता है” . इन षवमानोंका आकार
पक्षक्षयोंके समान था. इस संबंधमे अर्धक जानकारी श्री षप्रयरत्न आर्ष जी के ‘वेदोंमे दो
वैज्ञाननक शककयां ’ के ग्रंथमे उपलब्ध है .इसके प्रकाशक श्रध्दानंद बशलदान भवन
दे हली यह है.
• षवद्युतशास्त्र के संबंध मे ननम्नशलणखत वांग्मयका अवलोकन करना आवश्यक है .
• अग्न्यश्वषवद्या -इलेक्रीशसटी –(अंग्रेजी), लेखक वासुदेव शरि गोशभल, बनारस हहंद ु
यनु नव्हशसषटी, वेहदक मॅगणझन लाहोर, एषप्रल १९२७.
• इलेक्रीशसटी अॅंड मॅग्नेहटझम इन अॅंशट इंडडया-ले. भोसले,कृष्िराव, ऑल इंडडया
ं स.
ओररएंटल कॉफरं
• भारतीय शशल्पशास्त्रमे षवमानषवद्या (केसरी पुिे-मराठी लेखमाला), २१-९, १९५२, ५-
१०-१९५२, २२-२-१९५३
• भारव्दाजाचे वैमाननक शास्त्र(मराठी)-ले. ग.षव केतकर, माशसक षववेक , १४ शसतंबर
१९५२.
• इंडडयन होम ऑफ अॅंशट एरोनोहटक्स -ग़.व.केतकर, डेली मराठा, २६ सतटें बर १९५२.

महषर्ष भारव्दाजकृत षवमानशास्त्र है वह यंरसवषस्त्व नामक ग़्रंथका एक भाग है . इस ग्रंथकी


अनुक्रमणिका और संदभषग्रंथ उपलब्ध है . इसके २७७ श्लोक और कई सूर शशल्पसंसारके पष्ृ ठ
१२१ से १२९ तक मुहद्रत हुए है . इसके अलावा ननम्नशलणखत संदभष प्जज्ञासु अवश्य पढे .

• प्राचीन भारतीय षवमान षवद्या – आनंद माशसक पुिे.अगस्त्त १९२९.


• प्राचीन षवमान कलेचा शोध -ले. शशवकर बापुजी तळपदे .
• अंतररक्ष षवजय अथवा षवमान षवद्येचा षवकास-ले. श्री.ग.वा. जोशी, प्र. जनादष न सदाशशव
शल. पुिे.
• प्राचीन षवमान षवद्या -लेखांक १,२- ले. पं श्री. दा.सातवळे कर, केसरी १०-१३ मई १९५३.
समरांगि सर
ू धार (राजा भोज रर्चत), प्र. वडोदरा ओररएंटल शसररज , अध्याय ३१.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 35


• युप्क्तकल्पतरू, प्र. कलकत्ता ओररएंटल शसररज , अध्याय ५
• एप्व्हएशन इन अॅंशंट इंडडया -ले. अप्रबुध्द, भांडारकर ग्रंथालय, पुिे.
• षवमानवाहक पक्षी- हंस, र्गध्द, सारस- आनंद पुिे १९२४.
• ं
यंराज ऑर मेकॅननकल कॉराअवें सेस -ले. व्ही राधवन, प्र. ओररएंटल इंस्त्टीटुट ऑफ
कल्चर, बंग़ळुरु .
• आयषशशल्प यंरशास्त्र -के, कृ.षव.वझे-(मराठी( आकाशयंरे)
• हहंदग्र
ु ंथ और मॉडनष मशीनरी (उदष )ु -पं हे मराज ,मस्त्ताना जोगी,हदल्ली. जनवरी १९५३.
• स्त्टडी ऑफ मेकॅननक्स फ्ोम इंडडयन बक्
ु स , ले. वझे, वेहदक मॅगणझन लाहोर, अक्टुबर,
नोव्हें बर १९२३, इसमे भू, वाय,ु जल, तेजो और आकाशयंरोंका विषन हदया है .
• वाप्ल्मकी रामायि मे अग्न्यस्त्रे तथा रामायि काशलन राक्षस और वानर (मराठी लेख
-लेखक दामोदर शास्त्री, ग्वाल्हे र आमी, माशसक पुरुर्ाथष १९३६, १९४१ के अंक पढे .

भारतीय युध्दपध्दतीके संबंधमे जो ननम्नशलणखत संशोधनात्मक ग्रंथ प्रकाशशत हुए है इनमे


षवमानोंका उल्लेख आता है .

• द आटष ऑफ वॉर इन अॅंशंट इंडडया, ले. डॉ.व्ही आर हदक्षक्षतार, प्रकरि ७.


• वेद षवद्या शममांसा- ले. वेणिराम शमाष गौड , इनके ग्रंथमे ‘उल्का लक्षि, षवद्यत

लक्षि और भूशमकंपन यह अध्याय है .
• हमारी प्रचीन वैमाननक कला-ले. दामोदर झा, कल्याि हहंद ु संस्त्कृनत अंक, जनवरी
१९५० , पष्ृ ठ ७३६
• महषर्ष भारव्दाजकाभी एक धनव
ु ेद था. उसके बारे मे अर्धक जानकारी ‘प्राचीन यध्
ु दषवद्या
( ले. वझे ) से शमल सकती है.

मै आशा करता हूं कक इस लेख का कोई ना कोई वाचक उपरननहदष ष्ट वांग्मय का अभ्यास करे
और एक ननिषयरूप प्रबंध शलख कर संसार को भारतीय षवमान शास्त्र का सम्यग पररचय करा
दे . भारव्दाज षवमानशास्त्र नामक ग्रंथ इंटरनॅशनल इंप्स्त्टट्य्ट ऑफ संस्त्कृत ररसचष , म्है सरु ,
पूिष रुपसे प्रकाशशत करने वाली है .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 36


७ भारतीय वास्त्तुशास्त्र

[ सातताहहक शशल्पसंसार,पुिे ३० अप्रेल १९५५, पष्ृ ठ २६८ से २७५ ]

शशल्पसंसारके हदनांक २६ माचष १९५५ के अंकमे (पष्ृ ठ १८६ से १८९पर) मैंने भारतीय शशल्पशास्त्र
का भग
ृ ु शशल्पसंहहतानस
ु ार षवस्त्तार बताया था . आज इस लेख मे भारतीय वास्त्तश
ु ास्त्रसंबंधमे
चंद बाते और वांग्मय बतानेकी चेष्टा कर रहा हूं . मैंने यह पहलेही बतलाया है कक मानव
जानतके उपयोगके पशु पक्षी इनकी दे खभाल , तथा खुद मानवजाती का धप
ु , हवा तथा वर्ाषसे
कैसे रक्षि करना; उनके शलये छोटे तंबुसे लेकर बडे राहवाडे और गुफाओं तकका ननस्त्तारके हे तु
कैसे ननमाषि करना यह बाते वास्त्तुशास्त्र का कक्षामे आती है . वास्त्तुशास्त्र के शलये आजकल
‘आककषटे क्चर’ यह समानाथी अंग्रेजी शब्द का उपयोग ककया जाता है . पशु, पक्षी और मानवके
ननशमषनतपर पथ्
ृ वीपर वास्त्तुशास्त्रका जन्म हुवा. धीरे धीरे इन सभी ने वास्त्तुशास्त्रकी प्रगती के
शलये मदद की.

(२) संसारके सवषप्रथम ज्ञानग्रंथ जो वेद है उनमेभी वास्त्तुशास्त्र षवर्यक उल्लेख आते है
.महाराष्राके एक नामवंत समाजसध
ु ारक श्री. गोपाळ गिेश आगरकरने अपने दै ननक ‘सध
ु ारक’
मे भारतीय कलांचे पुराित्व नामक मराठी लेखमे वेदोंमे जो जो कारीगरी की बाते आयी है
उनकी एक सच
ू ी दी है . इन सच
ू ीमे चन
ू ा, मकान, वाडे, शहर, ककले आहदके संबंधमे ऋग्वेदकी
ऋचाए बतायी है. यह लेख षवषवध षवर्य संग्रह भाग १ पष्ृ ठ ४२ पर प्रकाशशत हुआ है (१८९१)

(३) श्री. वझेजी अपने प्राचीन हहंदी शल्पशास्त्र के वंशवक्ष


ृ मे वास्त्तु याने वेश्मशास्त्र का
ननम्नशलणखत षवस्त्तार बताते है

वेश्मशास्त्र का षवस्त्तार
वास- टें ट उटज - हट कुट्हट- कॉटे ज मंहदर- हाउसेस
मंहदर-हाउसेस
शाला- गह
ृ - आगर- हाउसेस हाम्यष प्रासाद
शेड क्वाड्रंगल्स मॅंशंस पॅलेसेस

प्रा. हररदास शमरजी ने अपने शशल्पशास्त्र षवर्यक सूची ग्रंथमे भारतीय वास्त्तुशास्त्र का
ननम्नशलणखत षवस्त्तार बताया है .

भारतीय वास्त्तुशास्त्र के तीन अंग

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 37


पषवर धाशमषक वास्त्तु
{वेदी, र्चती, यप
ु }
ननधमी वास्त्तु अंत्यसंस्त्कार षवर्यक
{षवमान, प्रासाद, मंडप}
{गह
ृ , शाला} {स्त्मशान, चैत्य, स्त्तुप,}
{मठ, समार्ध, षवहार}
{यंर, मंडल, चक्र}

श्री. वझे और प्रा. हररदास शमरजीके उपरननहदष ष्ट जानकारीसे भारतीय वास्त्तुशास्त्रमे कौनसी बाते
समाषवष्ट होती है इसका पाठकोंको पता चला होगा. अलबत इसके साथा मानवी जीवनसे
ननगडडत जलशास्त्र, युध्दशास्त्र, रथशास्त्र, नगर रचना शास्त्र आहद संबंर्धत बातें वास्त्तुशास्त्रमे
आयेगी. भारतीय शशल्पशास्त्रके वास्त्तुखंडका षवस्त्तार शशपसंसारके पष्ृ ठ १८९ पर है .

(४) वास्त्तश
ु ास्त्र शशल्पशास्त्रका एक उपषवभाग होनेसे सभी प्रमख
ु शशल्पशास्त्रके ग्रंथोंमे
वास्त्तुशास्त्र की जानकारी आती है .

(५) मत्स्त्यपुरािमे भारतके प्राचीन अठरह शशल्पशास्त्रोपदे शक बताये है . भग


ृ ु, अत्रर, वशसष्ठ,
षवश्वकमाष. मय, नारद, नग्नप्जत, षवशालाक्ष, पुरंदर, ब्रम्हा, कुमार, नंदीश, शौनक, गगष, वासुदेव,
अनरु
ु ध्द, शक्र
ु और बह
ृ स्त्पनत यह वे अठरह शशल्पसंहहताकार है.

(६) इन अठरह मे से आज केवल भग


ृ ु, अत्रर, षवश्वकमाष, मय, नारद, गगष और शक्र
ु के जो ग्रंथ
मुहद्रत या हस्त्तशलणखत रुपमे है उनमे वास्त्तुशास्त्र की जानकारी शमलती है .

(७) भग
ृ ुशशल्पसंहहता वझेजी को १९२० मे उज्जैनमे अपूिष रुपमे शमली थी. उसपरसे आपने
काफी पररचय हदया. आपके ननधनके पश्चात यह संहहता अज्ञात हो गयी. ककं तु इसके काफी
उध्दरि उपलब्धा है. मंब
ु ई के प्रशसध्द र्चरकार श्री, नी.म. केळकर सांप्रत भग
ृ शु शल्पसंहहता का
पता लगाने की कोशशस कर रहे है. (८) मंहदरषवद्याके संबंधमे एक अत्ररसंहहता ‘
समुतर्चनार्धकरिम ् ‘नामक ग्रंथ १९४३ मे श्री पी रघुनाथ चक्रवनतष और एम रामकृष्ि कवीजी
ने नतरुपतीसे प्रकाशशत ककया है.

(९)षवश्वकमाष के कई ग्रंथ बताये जाते है . उसमेसे कुछ मेजर गद्रे जीने शशल्पसंसारके पष्ृ ठ ५०
पर (हदनांक २२ जनवरी १९५५) हदये है . उना ग्रंथोंमेसे ननम्नशलणखत महु द्रत है . षवश्वाशमर एक
नही अनेक थे ऐसा मानना है.

• आयषतत्व - आयष पुस्त्तक प्रसारक मंडली प्रभास पाटि (१९५३)

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 38


• षवश्वकमाष प्रकाश शास्त्रम ्- संस्त्कृत – अनुवाद शप्क्तधर शमाष प्र. पालाराम खाली जलंदर.
• षवश्वकमाष षवद्या प्रकाश- संस्त्कृत – अनुवाद रषवदत्त शास्त्री (१९६३)
• षवश्वकमाष प्रकाश-सं शमहहरचंद्र, प्र. वेंकटे श्वर प्रेस, मुंबई
• वास्त्तुषवद्या -त्ररवेंद्रम संस्त्कृत शसररज , त्ररवेंद्रम(१९४०)
• अपराप्जतवास्त्तश
ु ास्त्रम ् (अपराप्जतपच्
ृ छा) ,सं. पी ए मनकड, गायकवाड ओररएंटल
शसररज बडोदा(१९५०)
• वास्त्तुसार इस ग्रंथ के रचनयता षवश्वकमाष नही परं तु मंड्न है .
• इसके अलावा प्जस अप्रकाशशत ग्रंथके रचनयता षवश्वकमाष है उनके नाम ननम्नशलणखत
है, षवश्वकमाष पध्दती, वास्त्तुषवधी, वास्त्तुसमुच्च्यय, षवश्वकमषमत आहद है.

(१०) मया के मयदीषपका, मयमत, मयमत प्रनतष्ठा, मयशास्त्रम ् ,मयशशल्प, मयसंग्रह आहद.
मयसंस्त्कृनत दक्षक्षि अमेररका तक पहुची थी ऐसा षवद्वानोंका मानना है , अर्धक जानकारी के
शलए श्री.सी चमनलाल का हहंद ु अमेररका पढे .

(११) नारद के दो शशल्पग्रंथ मुख्य है एक है नारद शशल्पशास्त्र और दस


ु रा नारद शशल्पम ्.नारद
पुराि और नारद नीनत मे शशल्पशास्त्रके संदभष शमलते है .

(१२) गगष की शशल्पसंहहता अपि


ू ष और हस्त्तशलणखत रुपमे हरननटी कॉलेज लंडन के ग्रंथालयमे
है. भारत मे यह ग्रंथ उपलब्ध्द नही .

(१३) शुक्राचायष की स्त्वतंर शशल्पसंहहता ज्ञात नही पर उनका ग्रंथ शुक्रनीनत काफी प्रशसध्द और
मुहद्रत स्त्वरुप मे उपल्ब्ध है . ग्रंथमे युध्दशास्त्र की काफी जानकारी है .

(१४)अठरह शशल्पशास्त्रोपदे शकोंके अन्य षवर्यपर ग्रंथ उपलब्ध है . कश्यप शशल्पशास्त्र (संस्त्कृत)
का संपादन श्री .वझेजी ने ककया ,प्र. आनंदाश्रम, पि
ु े.

(१५) कश्यपकी वैद्यक शास्त्र और कृषर्शास्त्र परभी संहहता उपलब्ध है . कप्श्मर प्रदे श संपूिष
जलमग्न था, कश्यप ऋर्ीने पानी का ननकास कर बसने योग्य बनाया, इसी शलए उस प्रांत
कप्श्मर(कश्यप मीर) नामसे प्रशसध्द हुआ. कश्यापमूनी ने कप्श्मरसे इप्जतत तक भ्रमि ककया.
दस हजार छोटे पुल (कल्व्हटष ) बनाये. इससे पता चलता है के भारतीय शशल्पशास्त्र दरू दरू तक
पहुचा था. (

१६) वास्त्तुशास्त्र षवशयक ग्रंथ अनेक है.उनमेसे ननम्नशलणखत प्रमुख और प्रशसध्द है . (ग्रंथोंके
प्रकाशक और प्रातती स्त्थान अन्य लेखमे हदय है)

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 39


मानसार राजवल्लभ शशल्पदीपक
गह
ृ षवधान प्रमाि मंप्जरी प्रासाद मंडन
बह
ृ त शशल्पशास्त्र शशल्प र्चंतामणि वास्त्तुषवधान
समरांगि सूरधार मनुष्यालय चंहद्रका शशल्परत्नम
तंरसमुच्च्यय ननर्धप्रदीप इशान शशवगुरुदे व पध्दनत
कृष्िवास्त्तुशास्त्र वास्त्तुमाणिक्यरत्नाकर शशल्पवचषस्त्व कानडी
वास्त्तुराजवल्लभ वास्त्तुमुक्तावशल वास्त्तुरत्नावशल
वास्त्तुरत्नाकर वास्त्तुसाररिी बह
ृ त संहहता
भूवनदीपक वास्त्तुप्रबंध युप्क्तकल्पतरु
अंग्रेजी संदभष

• भारतीय वास्त्तश
ु ास्त्र -रामराजा
• इंडडयन आककषटे क्चर- व्ही.टी,अय्यर
• थ्री मेजर स्त्टाईल्स ऑफ इंडडयन आककषटे क्चर-गेव्हले और रामचंद्रन

आगम और पुराि ग्रंथोंमेभी काफी रुपमे वास्त्तुशास्त्र आता है . जैसाकक ;

आगम ग्रंथ : अंशुभद


े ागम, काशमकागम, वैखानसागम, सूरभेदागम, कारिागम,

परु ाि ग्रंथ: अप्ग्नपरु ान, गरुडपरु ाि, नारदपरु ाि, ब्रम्हांडपरु ाि, भषवष्यपरु ाि, मत्स्त्यपरु ाि,
शलंगपुराि, वायुपुरान, स्त्कंदपुराि इत्याहद. मूनतषशास्त्र जैसा ही र्चरशास्त्र वास्त्तुशास्त्र का एक
अंग है. इस शास्त्र के कुछ प्रशसध्द ग्रंथ है , र्चरलक्षि, षवष्िुधमोत्तर पुराि, र्चरसूर इत्याहद.

(२१) भारत अब स्त्वतंर हो गया है . वास्त्तुशास्त्रके बारे मे भारतकी गौरवपूिष परं परा है. उसकी
जानकारी खुदको भारतीय कहलानेवाले स्त्थापप्त्य्वशारदोंको पूित
ष या रहना अत्यावश्यक है . अपना
दे श सदै व गौरवमे रहे ऐसी प्जनकी श्रध्दा है और जो उसके पत
ू ीके शलए प्रयत्नशील है वे अवश्य
पूवज
ष ोंके इस षवद्याधन की कदर करें गे और यह भांडार आगामी षपढीको योग्य रुपसे सौप दें गे
ऐसी आशा करता हूं .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 40


८ भारतीय युध्दशास्त्र

[सातताहहक शशल्पसंसार, पुिे, २७ जनवरी १९५५]

प्राचीन भारतीय अशभयांत्ररकी को शशल्पशास्त्र कहते है . महषर्ष भग


ृ न
ु े अपनी शशल्पसंहहता ‘भ्रुगु
शशल्पसंहहता मे शशल्पशास्त्र के दस उपशास्त्र बताये है.

१-कृषर्शास्त्र, २-जलशास्त्र, ३-खननशास्त्र, ४-नौकाशास्त्र, ५-रथशास्त्र, ६-षवमानशास्त्र, ७-


वास्त्तश
ु ास्त्र, ८-प्राकारशास्त्र, ९-नगररचना शास्त्र और यंरशास्त्र. इन दस उपशास्त्रमे ३२ षवद्याए
और ६४ कलाए बतायी है . मयमतके अनुसार स्त्थपनतको इन सवष शास्त्रोंका ज्ञान होना आवश्यक
है .

मकर-संक्रांनतके पूवहष दन पुिे के ननकट खडकवासलामे भारतके ‘ राष्टीय संरक्षि षवद्यापीठ


(नॅशनल डडफेंस अक
ॅ ॅ डमी) का बडे उत्साहसे उद्घाटन हुआ .यह षवद्यापीठ भारतके शलए
अशभमान की बात है .

ककं तु एक छोटीसी बात मनमे खटकती है . प्जस दे शका प्राचीन युध्द इनतहास अनत स्त्फुतीप्रद
और जो शास्त्र के रुपमे आजभी प्रशसध्द है , उस युध्दशास्त्र का पररचय इस षवद्यापीठमे
हदया जाएगा या नही ?

भ्रुगु शशल्पसंहहता मे प्राकारशास्त्र याने युध्दशास्त्रका षवस्त्तार ननम्नशलणखत ताशलकामे हदया है.

युध्दशास्त्र
चार षवद्याए
दग
ु षष वद्या कूटषवद्या आकारषवद्या यध्
ु दषवद्या
फोट्षस कॅसल्स मोट वॉरफेअर
छ कलाए
मल्लयुध्द शरसंधान अस्त्रननपातन व्युहरचना शल्यादृनत व्रिव्याधी
ननवारि
रे सशलंग वेपन्स शमसाइल्स स्त्रे टेजी सजषरी वुंड ड्रेशसग

ऋग्वेद के एक मंर मे कहा है –‘शरुको हटानेवाले तुम्हारे शस्त्र और अस्त्र प्स्त्थर और मजबुत
हो, तुम्हारी सेना चतुर तथा इमानदार हो’. धनुवेद याने युध्दशास्त्र यजुवेदका उपवेद माना
जाता है. यामलाष्टक ग्रंथमे उपवेदोंकी अनक्र
ु मणिका दीयी है. नारदनीनत मे नारदने धमषराज

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 41


युर्धप्ष्टर को राजनीनतके जो प्रश्न पुछे उनका विषन है . उनमेसे अर्धकतर युध्दशास्त्र संबंधमे
है. जैसे;

• हे राजन, तु अपने सभी प्रकारके ककलोमे अनाज , पानी, दवाईयां और यंर आहदका
उत्कृष्ठ प्रबंध रखता है या नही ?
• अजेय शरक
ु ो जीतना, जीते हुए व्यप्क्तओंका प्रनतपाल करना तथा शरिांगतोंको संरक्षि
दे ना यह तीन बातोंका तु पालन करता है या नही ?

मत्स्त्यपुरािमे जो १८ शशल्पशारोपदे शोंके नाम बताए है उनमे एक नाम नारदका है . नारदका


‘नारद शशल्पशार’ एक षवख्यात ग्रंथ है. यह अनतप्राचीन मुल संस्त्कृत ग्रंथ डॉ. वाकिकर व
डॉ.अयंगार, इन्होने संपाहदत करके प्रकाशशत ककया है. इसके प्रकाशक है , जैन पप्ब्लकेशंस,
बंगळरू . इस ग्रंथमे दग
ु क
ष े (ककलेके) पांच प्रकार अध्याय ३६ मे बताए है .

• वनदग
ु -ष फॉरे स्त्ट फोटष
• र्गररदग
ु -ष हहल फोटष
• जलदग
ु -ष सी फोटष
• वाहहनीदग
ु -ष ररव्हर फोटष
• युध्ददग
ु -ष वॉर फोटष

कुछ ग्रंथोके छ या सात प्रकार बताए है . धनुवेद षवर्यपर सात संहहता उपल्ब्ध है . प्जनके
रचनयता -वशशष्ठ, षवश्वाशमर, जामदग्न्य, भारव्दाज, औशनस, वैशंपायन और शारं गधर है .
इनके अलावा युध्दशास्त्रपर अनेक संदभष ग्रंथ और लेख उपलब्ध है .

• षवक्रमाहदत्य वीरे श्वरे यम


• कोदं डमंडन
• कोदं डशास्त्र -हदशलप भूपती
• वास्त्तरु ाजवल्लभ-जागुष्टे बक
ु सेलसष-अहमदाबाद
• बह
ृ तज्योनतष्यािषव – श्री वेंकटे श्वर प्रेस, मुंबई
• धनुवेद -सं. जयदे व शमाष,स्त्टार प्रेस प्रयाग
• धनुवेद संहहता -सं दीपनारायिशसंह -डुमराव राज्य
• बािषवद्या- ले. तयारे लाल बरौठ, अलीगड
• पौरस्त्त्य धनव
ु ेद-ले. महे श कुमार, शांनतननकेतन गरु
ु कुल, वंद
ृ ावन उ.प्र.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 42


• शुक्रनीनत -अनेक भार्ाओंमे उपलबध-हहंदी - श्री वें कटे श्वर प्रेस, मुंबई
• कामंदकीय नीनतसार हहंदी अनुवाद- श्री वें कटे श्वर प्रेस, मुंबई
• कौहटशलय अथषशास्त्र- हहंदी -चौखंबा पुस्त्तकालय बनारस.
• खड्ग लक्षि शशरोमणि-तेलगु -ताशमलनाडु हस्त्तशलणखत ग्रंथालय -चेन्नाई
• धनषु वषद्याषवलासम - तेलगु -ताशमलनाडु हस्त्तशलणखत ग्रंथालय -चेन्नाई
• युप्क्तकल्पतरु -कोलकाता ओररएंटल सीररज, कोलकाता
• समरं गि सूरधार- वडोदरा ओररएंटल सीररज, - वडोदरा
• रामायि और महाभारत तो भारतीय युध्दशास्त्रके प्रमुख गंथ
ृ है
• वेपन्स ऑफ अॅंशट हहंदज
ु – गन पाउडर-डॉ ओपटष
• आयषशशल्प धनषु वषद्या (मराठी)- ले. कृ.षव. वझे-प्र. काशलका प्रेस पि
ु े.
• प्राचीन धनुषवषद्या (मराठी) - ले. कृ.षव. वझे-तुकाराम बुक डेपो मुंबई
• प्राचीन हहंदी शशल्पसार (मराठी) - ले. कृ.षव. वझे-प्रकरि १२ -प्राकार शास्त्र
• आयािंचे युध्दशास्त्र -(मराठी)-धनुवेद लेखमाला, ले. गोषवंदशास्त्री गाडर्गळ, १९३७ से
१९४२,२७ लेख
• वाप्ल्मकी रामायि मे अग्न्यस्त्रे तथा रामायि काशलन राक्षस और वानर (मराठी लेख
-लेखक दामोदर शास्त्री, ग्वाल्हे र आमी, माशसक पुरुर्ाथष १९३६, १९४१ के अंक पढे .
• रामायि युध्दकांड (मराठी) -पं सातवळे कर
• आयोंके अस्त्र-शस्त्र, ले. अशोक नाथजी शास्त्री, कल्याि हहंद ु संस्त्कृती अंक १९५१
• स्त्वामी दयानंद प्रिीत -आयषगौरव -प्र. चौखंबा पुस्त्तकालय बनारस.
• आटष ऑफ वॉर इन अॅंशंट इडडया-डॉ.पी.सी. चक्रवती (१९४०)
• आटष ऑफ वॉर इन अॅंशंट इडडया-जी टी दाते (१९२५)
• वॉर इन अॅंशंट इडडया- डॉ. रामचंद्र हदक्षक्षतायर चेन्नई
• परशुराम की लष्कर शाळा(मराठी) -ले.प.ह.थत्ते, भांडारकर इंस्त्टीट्युट पुिे
• फोट्षस इन अॅंशंट इडडया-मनोरजन घोर् , ७ ओररएंटल कॉनफरं स
• इंडडयंस अॅंड एलीफंट्सइन अली वॉरफेअर, ले सी ए.ककं केड ,४ ओररएंटल कॉनफरं स
• द मेथड ऑफ अॅंशट साउथ इंडडयन आमी-के एस वैद्यनाथन, जनषल ऑफ शमस्त्टीक
सोसायटी, खंड ३२ पष्ृ ठ २९३

भारतीय युध्दशारके अंतगषत युध्दनीनत, अस्त्र-शस्त्र सेना, सेनाके षवशभन्न अंग,युध्दपध्दनत,


नौकायुध्द, षवमानयुध्द परराष्टीय संबध, दत
ू ावास, हथी, घोडे, झंदा नगारा आहद अनेक षवर्य
आते है. इसके अनतररक्त नगररचना, पशुशास्त्र, यंरशास्त्र इन शास्त्रोंका युध्दशास्त्रसे संबंध है .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 43


पूरी मठके जगत ् गुरु शंकराचायषजी ने अपने व्याख्यानोमे माउं ट व्हे रेनॉन युननव्हशसषटी अमेररकाके
प्राच्यषवद्या संशोधक प्रा. चचषवुड के एक ग्रंथका उल्लेख ककया . उस ग्रंथका नाम था’ एररएल
वॉरफेअर ऑफ इंडडया .डॉ. इ,डी. कुलकिी डेक्कन कॉलेज पुिे मे युध्दशास्त्रपर संशोधन कर
रहे है .उन्होने अहमदाबाद के प्राच्यषवद्या पररर्दमे एक ननबंधा पढा था.

अब भारत स्त्वतंर हुआ है . भारतको स्त्वातंर शमलने के बाद अपने राष्र की संरक्षि शशक्षा कैसी
रहना चाहहये इसके संबंध मे बहोत राष्रहहतैशी षवद्वानोंने पहले ही अपने षवचार उपररननहदषष्ट
ग्रंथोंमे और लेखोंमे एकत्ररत रखे है

हमारे राष्रीय संरक्षि षवद्यापीठमे भारतीय यध्


ु दशास्त्रषवर्यक सवष वांग्मय संग्रहहत होना
आवश्यक है . तथा उसपर संशोधन भी होना चाहहये. अद्यावत आधुननक युध्दषवद्याके साथ
उसकी शशक्षा भी षवद्यापीठ मे शमलनी चाहहए नही तो यह राष्रीय संरक्षि षवद्यापीठ अभारतीय
संरक्षि षवद्यापीठ समझा जाएगा . आशा की जाती है कक अर्धकारी वगष इस राष्रीय मानत्रबंद ु
का यथोर्चत षवचार करगा .

राष्रभार्ामे भारतीय यध्


ु दशास्त्रषवर्यक षवस्त्तत
ृ गंथोंकी कमी है . क्या कोई राष्रभार्ाशभमानी
इस षवर्यपर एक षवस्त्तत
ृ ग्रंथ शलखकर संसारको भारतीय युध्दपरं पराका यथातथ्य पररचय
नही दें गे ?

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 44


९ भारतीय नगर रचना शास्त्र

[सातताहहक शशल्पसंसार खंड १ अंक ३ ,१५ जनवरी १९५५, पष्ृ ठ ८५-८६]

१-कुछ हदन पूवष सायंस कॉलेज नागपूरमें त्रब्रहटश कौंशसल की ओरसे एक नगररचना शास्त्र
षवर्यक प्रदशषनी हुई थी . इस प्रदशषनीमे आंग्ल नगररचना पध्दतीका और आंग्ल प्रगतीका
पररचय करा हदया गया . यह प्रदशषनी दे खकर कुछ भारतीयोंके मन मे यह प्रश्न जरूर उठा
होगा की इस तरहका कोई अपना भी नगररचना शास्त्र है या नही ? यहद है तो उसका स्त्वरुप
कैसा है ? ऐसे प्जज्ञासु सज्जनोंके शलए ननम्न जानकारी प्रस्त्तुत की जाती है .

२- अन्य राष्रोंके समान अपने राष्रका भी एक सबसे प्राचीन और स्त्वयंपूिष नगररचना शास्त्र
है . इसमे नगरके नागररक और फौजी ऐसी दो प्रमुख शाखाए मानी गयी है और इन दो
शाखाओंकी की कई उप शाखाए है . मानव शरररके जैसे नौ अंग होते है वैसेही नगरके नौ अंग
होते है . ‘नवांग नगरं प्राहु:’ ये प्रपा (पानी का प्रबंध), मंडप (धमषशाला), आपि (बाजार),
सवषजनवास (बस्त्ती), राजवरालय (सरकारी कायाषलय), रक्षक (पुशलस और सैननक), वनोपवन
(शशक्षि संस्त्था षवभाग), दे वालय और स्त्मशान (ननरुपयोगी वस्त्तुओंकी जहा अंनतम व्यवथा की
जाती है वह स्त्थान) है . पररप्स्त्थती के अनुसार नगर रचना कई (मुख्यत: चौदाह) तरहसे की
जाती है .

३-नगरमे हर एक षवर्यमे अच्छा प्रबंध हो इस हे तु शास्त्रकारोंने बडी सोच समझके साथ


ननयमभी बनाए है . उदाहरिाथष अपने दे शमे जब आदशष समाज व्यवस्त्था थी तब सावषजननक
स्त्थानमे गंदगी फैलाने की सख्त मनाई थी और ऐसे काम करनेवालोंको दं ड हुआ करता था .
कौहटल्यके मतानुसार कुत्ते त्रबल्ली इत्याहदका शव नगरमे रखनेपर ३ पि (एक पि = एक
आना) , गधे इत्याहद बडे जानवरोंका शव नगरमे रखने पर ६ पि दं ड और मनष्यका शव
नगरमे रखने ५० पि दं ड होता था . सडकपर कचरा-कुडा डालने पर आधा पि दं ड, पानी रोक
कर सडक पर ककचड करने पर एक चौथाई पि दं ड, होता था . पषवर स्त्थान (घाट)
,उदकस्त्थान (कुआ हौद) इत्याहदके पास मलमुर षवसजषन करनेपर भारी मारामे दं ड होता था .

४-भारतीय नगररचना शास्त्रपर मझ


ु े ज्ञात ग्रंथ है - मयमत, यप्ु क्तकल्पतरू, मानसार, काश्यप
शशल्प, कौहटल्य अथषशास्त्र, वास्त्तरु ाजवल्लभ, नारद शशल्पशास्त्र इत्याहद . इस षवर्यका सरल
षववरि ननम्नशलणखत ग्रंथोंमे और प्रबंधोंमे ककया गया है .

• एसे ऑन आककषटे क्चर ओफ हहंदज


ु -ले. राम राजा (१८३४)

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 45


• इंडडयन आककषटे क्चर पाटष १ -ए व्ही टी अय्यर (१९२६)
• टाउन तलॅ ननंग इन अॅंशंट डेक्कन इंडडया -वेंकट रामन अय्यर (१९१६)
• टाउन तलॅ ननंग इन अॅंशंट इंडडया-त्रबनोय त्रबहारी दत्त (१९२५)
• हहंद ु टें पलस -स्त्टे ला क्रेमररश
• प्राची हहंदी शशल्पशास्त्रसार-मराठी (१९२४)-कृ.षव. वझे
• नगररचनाशास्त्र - मराठी (१९३१)- कृ.षव. वझे
• अॅंशंट इंडडयन इंप्जननअररंग कफलोसॉफी - टाउन तलॅ ननंग(१९२६)-वेहदक मॅगणझन लाहोर
• टाउन तलॅ ननंग अॅंड हाउस त्रबल्डीग इन अॅंशंट इंडडया- शोधननबंध -के रं गाचारी-
ओररएंटल कोंफरें सेस -१९२६ , १९२९)

५-वारािसी नगर संसारका सबसे परु ाना बसाया हुआ नगर है . कांजीवरम के नगर रचना के
बारे मे , जगषवख्यात नगररचना शास्त्रज्ञ प्रो. गेडीज शलखते है कक—भारतमे इस शहरके अलावा
कहीभी शास्त्रशुध्द नगर रचना मैंने दे खी नही.

६- प्जज्ञासुओंको उपरननहदषष्ट ग्रंथ तथा ननबंधोंके बारे मे षवशेर् जानकारी इस लेखकको जबाबी-
पर भेजनेपर अवश्य शमलेगी.सांप्रत ग्रंथ मोल न शमलने के कारि नजीकके ककसी प्राच्चषवद्या
संशोधन संस्त्थामे या षवश्वषवद्यालयोंके ग्रंथालयोंमे जाके पढना आवश्यक होगा .

७-खेद की बाद है की इस महत्वपूिष षवर्यपर राष्रभार्ामे अभीतक कोई ग्रंथ या लेख प्रशसध्द
नही हुआ . आशा की जाती है कक प्जज्ञासु भारतीय , पाप्श्चमात्य नगररचनाशास्त्रके साथ -
साथही भारतीय नगररचनाशास्त्रकाभी आस्त्थपूवक
ष पररचय कर लेंगे और राष्र भार्ामे एक
षवस्त्तत
ृ ग्रंथ शशघ्रानतशशघ्र प्रशसध्द करें गे.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 46


१० यंर शास्त्र

[ सातताहहक शशल्पसंसार पुिे ,३०एषप्रल १९५५, पष्ृ ठ २७५ से २७८ ]

मानवी शारररक शप्क्त हर एक अपेक्षक्षत कामके शलए परू ी नही होती . इस शलए अपनी थोडीही
शप्क्त काम मे लाकर अपेक्षक्षत काम करवानेके शलए जो साधन मानव जातीने अपनी
बुध्दीसामथ्यषसे ननमाषि ककये है , उन्हे ‘यंर’ कहते है . ऐसाही अपनी थोडी शक्तीसे जादा काम
लेते समय दस
ु रोंकी शप्क्त अपने काबूमे लाना पडता है . कई काममे सष्ृ टीके पंचतत्वो परभी
काबू करना पडता है . ‘यंर ’ शब्द ‘ यम ् (याने काबूमे लाना) धातूसे ननकला है .

भारतीय षवद्याकी तीन शाखाओंमे मख्


ु यत: यंर का उल्लेख होता है .एक शशल्पशास्त्रमे यानी
अशभयांत्ररकी की सभी उपशास्त्रोंमे अनेक षवध यंरोंसे काम शलया जाता है . वैद्यक शास्त्रमेभी
कई यंर है, प्जसके जररये अपेक्षक्षत गुि और शप्क्तकी दवाइयां बनायी जाती है . वैद्यक ग्रंथोंमे
वैद्यक यंरोंका षववरि आता है . मंरशास्त्रमे षवशशष्ठ हे तुपूतीके ककये षवशशष्ठ बीजाक्षरोंकी
आकृती याने यंर बनाई जाती है . इस आकृतीका षवशशष्ठ पध्दतीसे पूजन करनेपर और मंरोंका
जप करनेपर इष्ट हे तु पि
ू ष होते है ऐसा मंरशास्त्र का शसध्दांत है . यंरर्चंतामणि सररखे ग्रंथोंमे
मंरशास्त्रके यंरोंका षववरि आता है .

इस लेखमे हम शसफष शशल्पशास्त्रीय यंरोंके संबंध मे जो वांग्मय है उसका षवचार करने वाले है
. शशल्पशारीय यंरोंके संबंधमे मूलग्रंथोंकी कमी है . श्री.वझेजीने अपने संशोधनत्मक लेखमे इस
षवर्यपर ननम्न शलणखत ग्रंथ बताये है. (प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्र भाग १-पष्ृ ठ १८).

यंरािषव शशल्पसंहहता अ १८ यंरर्चंतामणि यंरसवषस्त्व


यंरार्धकार सय
ू शष सध्दांत शसध्दांतशशरोमणि समरांगि सर
ू धार अ. ३१
यंरािषवके बहुतसे उध्दरि वेहदक मॅगणझन लाहोरसे प्रकाशशत हुए ‘स्त्टोरी ऑफ मेकॅननक्स फ्ोम
इंडडयन इंप्जननअररंग’.कुल पांच लेख है पर वझेजी की यंरािषव कहासे प्रापत हुआ इसका पता
नही चलता.

दस
ु रा ग्रंथ शशल्पसंहहता संभवत: वराहशमहहरकी बह
ृ त संहहता होगा. यंरर्चतामणि यह मंरशास्त्र
का है. यंरसवषस्त्व ग्रंथका उल्लेख भारद्वाज के षवमानशास्त्रमे की बार शमलता है. श्री. वझे जी
को इस ग्रंथकी केवल अनुक्रमणिका ही प्रातत हुई थी . वह दस
ु रे लेखमे हदयी है .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 47


यंरार्धकार इस ग्रंथ की जानकारी मुझे प्रातत नही हुई. सूयशष सध्दांत और शसध्दांतशशरोमणि यह
ज्योनतष्यशास्त्रके ग्रंथ है . राजा भोज का ग्रंथ समरं गिा सूरधार , गायकवाड ओररएंटल शसरीज,
वडोदरा का मुहद्रत ग्रंथ है .

आज यंरशास्त्रपर ननम्नशलणखत वांग्मय उपलब्ध है.

• यंरमाला माशसक (मराठी), चमत्कार शतक लेखमाला.


• षवचार बतानेवाले यंर (१९०३). भाग २.पष्ृ ठ १९-२०, प्राचीन करपल्लवी; ओष्ठपल्लवी;
पुष्पभार्ा; रं गभार्ा; ध्वजभार्ा इत्याहद.
• वेदकालके श्रम बचानेवाले यंर -खेती, शसंचन, स्त्थपत्य, यातायात, वैद्यक इत्याहद.
• अप्ग्नप्रकाश यंर, भाग ४.
• यंर और यांत्ररक कारखानोंके दष्ु पररिाम
• प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्रसार (मराठी), लेखक श्री. कृ.षव.वझे, प्रकरि १४ यंरशास्त्र
• आयषशशल्प यंरशास्त्र - लेखक श्री. कृ.षव.वझे, काशलका प्रेस,पुिे
• स्त्टडी ऑफ मेकॅननक्स फ्ोम इंडडयन बुक्स , वेहदक मॅगणझन लाहोर, अक्टुबर, नोव्हें बर
१९२३, इसमे भू, वायु, जल, तेजो और आकाशयंरोंका विषन हदया है .
• कफप्जक्स इन अॅंशट इंडडया - वेहदक मॅगणझन लाहोर,सतटें बर १९२३,
• हहंदी शशल्पशास्त्र भाग १- लेखक श्री. कृ.षव.वझे, प्रकरि ८और ९.
• यंरे आणि बेकारी-उद्यम , डडसेंबर १९२६.
• यांत्ररक युग- श्री द.गो.आपटे , १९२६, आनंद छपखाना पुिे.
• यंराज ऑर मेकॅननकल कॉन्रीव्हं सेस. ले. डॉ. व्ही राघवन, १९५२, इंडडयन इंस्त्टीटुशन
ऑफ कल्चर, बंगलोर.
• मत्स्त्य यंर या होकायंर -श्री.प.ह.थत्ते, भारत इनतहास संशोधन मंडळ,रै माशसक, पुिे .
• हहंदग्र
ु ंथ और मॉडनष मशीनरी (उदष )ु -पं हे मराज ,मस्त्ताना जोगी,हदल्ली.

यह बडी खेद की बात है कक भारतमे षवमानतक कई यंरोंकी ननशमषती हुई थी उनके संबंधमे
आज अत्यल्प ग्रंथ उपलब्ध है .खोज करनेपरभी राष्रभार्ामे प्राचीन यंरोंके संबंधमे कुछ
वांग्मय शमला नही. मै आशा करता हूं कक कोई राष्रभार्ा प्रेमी यह न्यून पूिष करे गा; प्जससे
भारतके प्राचीन यंरशास्त्र का पूिष रुपसे इनतहास राष्रभार्ा मे आयेगा.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 48


११ भारतीय शशल्पवांग्मय प्रदशषनी-त्ररवेंद्रम १९५७

इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंजीननयसष (इंडडया) जंनल


ष के हहंदी पररशशष्ट के पाठकों को भारतीय
शशल्पशास्त्र की सामान्य रुपरे खा ज्ञात है . कृपया इस जनषल के जून १९५५ के अंक का भारतीय
शशल्पशास्त्र शसतम्बर १९५६ के अंक का भारतीय स्त्थपती’ तथा मई १९५६के अंकका ‘भारतीय
शशल्पवांग्मय प्रदशषनी, चंडीगड लेख दे णखये . गत सात साल से मेरा शशल्पवांग्मय के संकलन
तथा प्रचारका प्रयत्न चल रहा है . उस प्रयत्न को सन १९५४ मे इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंजीननयसष
की सहायता शमली . इस सहायता मे इंप्स्त्टट्युशन के वयोवध्
ृ द तथा ज्ञानवध्
ृ द सदस्त्य मेजर
नारायि बालकृष्ि गद्रे (तंजावर ) तथा ब्रजमोहनलालजी (हदल्ली) की वैयप्क्तक सहायता तथा
प्रोत्साहन षवशेर् रुप से थे . इस सहायता के फलस्त्वरुप भारतीय शशल्पशास्त्र प्रचार की दृष्टीसे
भी तीन साल मे ननम्नशलणखत सात शशल्पवांग्मय प्रदशषनी का आयोजन हुआ .

१- एषप्रल १९५५ - इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंजीननयसष (इंडडया) , कौंशसल शमहटंग , ७ हदन.

२-नागपरू - जनवरी १९५६ -इंडडयन रोड कॉग्रेस, २०वा वाषर्षक अर्धवेशन , नागपरू .

३-चंदीगड -फरवरी १९५६, इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंजीननयसष (इंडडया) , ३६ वे वाषर्षक


अर्धवेशन के साथ.

४- रायगड(मध्य प्रदे श) शसतंबर १९५६, करोडीमल पॉशलटे क्नीक ,राष्रपतीद्वारा उदघाटन.

५- मुंबई- शसतंबर १९५६, इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंजीननयसष (इंडडया) , वाषर्षक संमेलन ,


कावसजी जहांर्गर रस्त्ट , ३ हदन

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 49


६- शसतंबर १९५६, इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंजीननयसष (इंडडया) , ३ हदन

७- त्ररवें द्रम -जनवरी- फरवरी १९५७, इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंजीननयसष (इंडडया) , ३७ वे वाषर्षक


अर्धवेशन के साथ.

इस प्रदशषनी का वैशशष्ठ यह था की सभी सदस्त्योंको ८ पष्ृ ठ की पररच्य पुप्स्त्तका दी गई


थी . मेरे दो सहायक नागपूरसे अंदाजन ८००प्रदशषनीय वस्त्तु, प्जनका वजन २००ककलो
था, त्ररवेंद्रम ले गये थे . प्रदशषनी का आयोजन त्ररवेंद्रम इंप्जननअररंग के हॉल मे ककया
गया . इस प्रदशषनी के ननम्नशलणखत २० षवभाग थे .

१-प्रास्त्ताषवक- वेद, उपवेद, परु ाि, अथषशास्त्र नीनत, भारत से संबर्धत दे शोंका शशल्प
२-वास्त्तश
ु ास्त्र – भवन, मंहदर रचना, मनु तष षवद्या तथा र्चरकला
३-रथशास्त्र -सडक,पुल, सुरंग
४-जलशास्त्र -नदी और जलाशय, नहर, कंू आ
५-नगररचना शास्त्र
६-यंरशास्त्र
७-युध्दशास्त्र -सभी प्रकार का
८-नौका शास्त्र
९-धातुशास्त्र -रत्नशास्त्रसहहत
१०-षवमान

११-कृषर्
१२-पश-ु पक्षी-ककटक
१३-पाकशास्त्र
१४-गणित -सवष प्रकार के
१५-षवद्युत तथा चुंबकत्व
१६-वस्त्र
१७-खगोल
१८-पदाथष षवज्ञान
१९-रसायन शास्त्र
२०-शशल्पवांग्मयके संबंधमे प्रमख
ु ग्रंथालयो मे संग्रहीत वांग्मय सच
ू ी

..

..

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 50


..

इस प्रदशषनी की बाह्य व्यवस्त्था त्ररवेंद्रम केंद्र के सेक्रेटरी मानननय एइयनजी और प्राध्यापक


वसद
ु े वमजी ने की . मझ
ु े यह बताने मे हर्ष होता है की हमारी प्रत्येक कहठनाइयों का ननराकरि
उन महाभावोंने तथा उनके सहाय्यकों ने बडी आस्त्था से ककया . प्रदशषनीकॉलेजा के दस
ु रे तला
मे आयोप्जत थी . प्रकाश वगैरा ठीक रहे तथा प्रदशषनीय वस्त्तु सुरक्षक्षत रहे , इस दृष्टी से
पप्श्चम हदशा की कांच की णखडककयोंसे वेप्ष्टत बडा वरांडा काम मे लाया गया . अंदाजसे १४०
फुट मेज लंबाई की प्रदशषनी थी . बडे अक्षर के षवर्यवार माहहती परक तथा र्चर हदवालोंपर
लगाये गये थे और नीचे ग्रंथ तथा लेख मेजों पर रखे थे . इस प्रदशषनी की षवशेर्ता यह थी
की वह नागररकों के शलए भी खुली थी . शलषपपरक ,र्चर तथा वांग्मय समझाने का कायष मे
खुद मेरे सहयक इंजीननअर शमर श्री डेहाडराय, तजावर, तंजावर सरस्त्वती महाल लायब्ररी के
ररसचष प्रोफेसर के वासुदेव शास्त्री , त्ररवेंद्रम के प्राच्च षवद्याप्रेमी छ: स्त्वयंसेवक तथा मेजर गद्रे
जी करते थे . प्रदशषनी प्रात: आठ बजे से शाम को सात बजे तक खुली रहती थी . प्रोफेसर के
वासद
ु े व शास्त्री अपने साथ तंजावर सरस्त्वती महाल लायब्ररी के कुछ दष्ु प्रातय हस्त्तशलणखत ग्रंथ
बताने के शलये ले आये थे . प्जसमे यामलाष्टक नाम का हस्त्तशलणखत ग्रंथ था .चार हदन मे
अंदाजन एक हजार लोगोंने यह प्रदशषनी दे खी . प्जसमे केरल के राज्यपाल माननीय बी रामकृष्ि
राव थे .वह एक घंटेतक प्रदशषनी दे खते रहे .

त्ररवेंद्रम के इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंजीननयसष के अर्धवेशन मे कायषकारिी ने ऐसा ननिषय शलया


की भारतीय शशल्पशास्त्र की एक संशोधन शाखा नागपूर मे स्त्थाषपत की जाये .

भारतीय शशल्प संशोधन संस्त्था के उद्घाटन की और हम लोग ध्यान दे ते रहें गे और जब वह


संस्त्था खुल जाएगी , तब उसे हर प्रकार से अपनी सहायता पहुचायेंगे . यह अपनी एक दे श
सेवा होगी .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 51


१२ शशल्पशास्त्र की दृष्टीसे तंजावर

[सातताहहक शशल्पसंसार – २९ जानेवारी १९५५ पष्ृ ठ ७०]

शशल्पसंसार के हदनांक १५ जनवरी १९५५ के अंकमे माननीय गद्रे जीने पॅनोरमा ऑफ संस्त्कृत
शलटरे चर शीर्षकसे एक लेख शलखा है . इस लेखमे तंजावर सरस्त्वती महाल प्राचीन हस्त्तशलणखत
ग्रंथालय का अल्प पररचय हदया है . कुछ पाठकोंको इस लेखसे तंजावर के संबंध मे प्जज्ञासा
ननमाषि हुयी होंगी . उनके शलए कुछ चंद बाते इस लेख मे दे नेकी चेष्टा कर रहा हूं .

तंजावर शशल्पशास्त्रकी दृष्टीसे बडा मह्त्वपूिष स्त्थान है . हदनांक १६ मई १९५४ के धमषयुगमे


तंजौर मंहदरष पर एक सर्चर और बडा माहहतीपि
ू ष लेख प्रशसध्द हुआ है . उसपरसे तंजोरके
मंहदरोंकी प्राचीनता, भव्यता, कुशलता और आकर्षकता ध्यानमे आती है .पर आश्चयष होता है
कक २०० फुट गोपरू का कलश इतनी उं चाईपर एक सहस्त्रवर्षपव
ू ष कैसे ले गये होंगे?

लेखक सूर्चत करते है कक भारतीय स्त्थापत्यके इनतहासमे इससे बडी, इससे उं ची और षवशाल
इमारत आजतक नही बनाई गयी . त्रब्रटे नके षवशालतम र्गररजाघर, वोसेस्त्टर , कैथीद्रे लकी उं चाई
बराबरही इन मंहदरोंके शशखरकी उं चाई है . इसे संसारके कुछ षवशालतम मंहदरोंके श्रेिीमे ले जा
बैठाती है .

पं. सातवळे करजी सामवेदके संशोधनके संबंधमे सन १९४०मे तंजावर गये थे . आपने अपने
माशसक ‘पुरुर्ाथष’ जून १९४७ मे हदये प्रवासविषन मे बताया है कक तंजावरका मंहदर पररर्धकी
दृष्टीसे बहोत बडा है . इतनी बडी पररर्ध अन्य कोई मंहदरकी नही है . यहां का नंदी २० हात
उं चाई का है . दीवार द्वार और मंहदरपरकी मूनतषयां बडी रे णखव और प्रमािबध्द है . एक समयमे
अंदाजन ५०,००० जनसमुदाय बैठ सकेगा इतनी षवशाल खुली जगह इस मंहदरमे है . इस
मंहदरका कलश एकही अखंड पत्थरका, १६ हाथ चौरस चौडा है . यह कलश प्जसका वजन
कुछ टनोंमे होगा कई मीलोंसे कृरीम ढलान बनाकर वहासे २०० फुट उं चाई पर चढाया गया
था. यह ढलान प्जस गांवसे प्रारं भ होती थी उसे कलशपूर कहते थे . तंजावर के राजा व्यंकोजी

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 52


भोसले का राजवाडा शशल्पकी दृष्टीसे दे खने योग्य है .भारतीय शशल्पशास्त्रकी जो ३२ षवद्याए
और ६४ कलाए बतायी जाती है उनमे घंटापथ षवद्या (हील रोडस) एक है . उसके अंतगषत
षववरकरि कला ( टनेशलंग) आती है . इस कला का प्रत्यक्ष पररचय राजा व्यंकोजी के राजवाडे
मे होता है . इस राजमहालके चारो हदशाओंमे चार २५ से ४०शमल लंबाईके षववर बनाये गये
है . कुछ ककले तक खुदे हुए है . कुछ इतने चौडे है कक तीन शस्त्रधारी सैननक आ जा सकते
है .कुछ षववर इतने उं चे है कक घड
ु सवार भी आ जा सकते है . इसपरसे भारतीय शशल्पकला
उन हदनोमे ककस पूित
ष ातक पहुची थी इसकी कल्पना की जा सकती है .

मा. गद्रे जीने सरस्त्वती महाल ग्रंथालयके संबंधमे महत्वपि


ू ष बाते की है . शशल्पशास्त्रके
षवद्याथी गिोंको ग्रंथालयके विषनात्मक ग्रंथसूचीका १८वा खंड – व्रत,आगम और तंर लेनेसे
लाभ होगा . श्री वझेने अपने संशोधन कायषमे ग्रंथालयके ग्रंथोंका लाभ उठाया था .

शांनतननकेतन के प्रशसध्द शशल्पशास्त्र संशोधक प्रा. हररद्स शमरने अपने ग्रंथ ‘ कॉन्रीब्युशन
तो अ त्रबबलोग्राफी ऑफ इंडडयन आटष अॅंड अस्त्
ॅ थेहटक्स “ मे इस ग्रंथालयके ४० शशल्पग्रंथोंकी
सूची दी है .

इनके अनतररक्त स्त्वगीय वझेजीने अपने प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्र भाग १(मराठी) में इस
ग्रंथालयले ननन्नककणखत हस्त्तशलणखत शशल्पग्रंथोंकी सच
ू ी दी है .

शशल्पकमष शशल्प, मानवसार, शशल्पशास्त्रोक्त र्ोडश संस्त्कार, शशल्पसंसार, शशल्पआयाहद,


शशल्पमनू तषध्यान, यध्
ु दजयािषव , प्रनतमालक्षि, मंडपकंु डशसध्दी , प्रासादलक्षि ,
शशल्पकलादीषपका. तारालक्षि, शाशलहोर, भूमौजलाहदपरीक्षा, राजगह
ृ ननमाषि.

शायदहह ककसी ग्रंथालयमे इतनी बडी संख्यामे शशल्पग्रंथ होंगे . इन्हे प्रकाशमे लानेकी प्जम्मेदारी
भारतीय शशल्पव्यवसायीयोंकी है .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 53


इस ग्रंथालयकी और एक षवशेर्ता यह है कक अन्य कोई ग्रंथालयमे न शमलनेवाली और बडे
जानकारोंकोभी अज्ञात ऐसी उपवेदोंकी जानकारी दे नेवाली यामलाष्टकम नामकी पोथी यहा
नाममार ककमतमे उपलब्ध है .

आशा की जाती है की प्जस संस्त्कृनत तंजावरके मंहदर और शशल्पकृती बनायी होगी और


सरस्त्वती महाल ग्रंथालयमे संस्त्कृत ग्रंथ एकत्ररत ला के संरक्षि ककये गये उनको समझकर
भारतीय शशल्प व्यवसायी उसका ठीक लाभ उठायेंगे.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 54


१३ भारतका सवषश्रेष्ठ शासमीय हस्त्तशलणखत ग्रंथसंग्रह

[ सातताहहक शशल्पसंसार पुिे, १२ माचष १९५५,पष्ृ ठ १६६-६८]

ककसीभी ज्ञान शाखाका जब षवचार ककया जाता है तब भारतीय ज्ञान भांडारको सवषश्रेष्ठ स्त्थान
शमलता है. कारि की वह बडा प्राचीन है और उसे बडे गहराई तक सोचषवचार कर ज्ञाननयोंने
अपनी भावी संतानोंके शलये बनाया है . आज उसका पूिष संसार को मागषदशषन हो रहा है :

अनत प्राचीन कालमे भारतीय अपने ज्ञानग्रंथ मख


ु ोद्गत रखते थे . बादमे तालपरपर ग्रंथ शलखना
शुरू हुआ, उसके बाद कागजपर . प्जन प्जज्ञासुओंको लेखनकला का इनतहास पढना हो वे कृपया
‘शलहहण्याची कला’ नामक मराठी लेख , अमत
ृ माशसक , जुलै १९५४ , ले. डॉ. पु.म. जोशी पढे
.

प्राचीन कालमे भारतमे बडे बडे षवद्याषपठ थे और उनका ग्रंथसंग्रह भी प्रचंड था . भारतीय
ज्ञानभांडार के एक अर्धकारी संशोधक डॉ. अनंत सदाशशव अळतेकर अपने ‘प्राचीन भारतीय
शशक्षि पध्दती’ नामक मराठी ग्रंथमे नालंदा षवद्यापीठ के अनत थोर ग्रंथालयका पररचय
ननम्नशलणखत शब्दोंमे दे ते है .

‘ नालंदा षवद्यापीठ का ग्रंथालय अनत षवशाल था. रत्नसागर, रत्नोदर्ध तथा रत्नरं जक इन
नामोंसे इमारतोंमे ककताबे रखी जाती थी. प्जस गली मे ये इमारते थी उसे धमषगंज ऐसा नाम
था .चीन. कोररया आहद दरू दे शसे षवद्याथी त्ररषपटक आहद ग्रंथोंकी शध्
ु द प्रत प्रातत करने हे तु
आते थे .इप्त्संगने नालंदासे ५ लक्ष श्लोका के चारसो ग्रंथ अपने शलये शलखवा शलये . ऐसे
काम का मठ को दानद्रव्य शमलता था.‘

उस कालमे ग्रंथोंकी नकल करनेवाले, नकल के अंत मे वाचकोंके शलये एक षवनंती शलखते थे
; इसका अथष

भग्नपप्ृ ष्ठ कहट ग्रीवा तततदृप्ष्टरधोमुखे:


कष्टे न शलणखतं शास्त्रं यत्नेन पररपालयेत ्
इसका अथष है कक बडे कष्टसे मैंए यह ग्रंथ शलखा है , इस शलये कृपया बडी सावधानीसे उसका
उपयोग करे . और एक षवनंनत शलखी जाती थी कक ‘मेरा रक्षि पानी, तेल, हदमक और मुखोंसे
मेरा रक्षि करो. पर खेद की बात है कक बाह्य दे श के आक्रमकोंने हमारे ग्रंथालय जलाके नष्ट
ककये .झांसी की महारािी लममीबाईके राज्यमे हस्त्तशलणखत ग्रंथोंका बडा भारी संगह था. १८५७
के स्त्वातंत्र्य समर मे नष्ट हुआ .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 55


ऐसे ग्रंथ रक्षि करने वाले ग्रंथालय भारत मे अनेक है . इन ग्रंथोंकी सूची ताशमळनाडु सरकार
द्वारा प्रकाशशत कॅटलोगरस कॅटलोगोरुम व्होल्युम १ के प्रारं भमे शमलेगी. इस ग्रंथ का संपादन
डॉ. एस राघवन इन्होने ककया है .यह सूची बहोतही षवस्त्तत
ृ है .अखंड भारत मे मौजुद ७० से
अर्धक ग्रंथालयोमे उपलब्ध ग्रंथोंका इसमे उल्लेख है. पर भारत के बाहरभी की जगह भारतीय
ग्रंथ संग्रह है .भारत मे भी अनेक व्यक्तीगत ग्रंथ संग्रह है प्जनकी जानकारी डॉ. राघवनके पास
न पहुची होगी. इस लेखमे वाचकोंको ताशमळनाडु राज्यके शासकीय हस्त्तशलणखत ग्रंथभांडार का
पररचय दे नेकी इच्छा है .

अंग्रेजी राज्य शुरु होने के बाद प्जन षवद्याप्रेमी अंगेजोने भारतीय ज्ञान भांडारका अध्ययन
ककया उनमेसे कनषल मेकंझी अग्रगण्य थे. वे एक इंप्जननअर थे, जो १७५२ मे इस्त्ट इंडडया कंपनी
मे मद्रास शाखामे दाणखल हुए. भारतीय ज्ञानके प्रती होनेके कारि कनषल मेकंझी १८२१तक
(ननधनतक) प्राचीन हस्त्तशलणखत ग्रंथ, मुद्रा, शशलालेख आहद एकत्ररत करते गये और उनका
अध्ययन करते गये. उनके मत्ृ युपश्चात यह सारा संग्रह इस्त्ट इंडडया कंपनीने मेकंझीके पत्नीसे
एक सहस्त्र पौंड मे खररदा और कई ग्रंथोंका अंग्रेजी भार्ातर करके इंग्लड भेज हदया. यह संग्रह
चोदा१४ भार्ा और १६ शलपीओंमे था. यह अब इस्त्ट इंडडया कंपनीके ग्रंथालय, लंडनमे रखा
गया.

जो बचा हुआ संग्रह था उसे ‘मद्रास ओररएंटल मॅन्युस्त्क्रीतट्स लायब्ररी मे रखा गया प्जसे अब
लोग ‘अड्यार ग्रंथालय ‘ नामसे जानते है . बादमे और भी ग्रंथ जमा हुए. सन १९३८, १९४०
और १९४२ मे ग्रंथालय की तीन सूचीया प्रशसध्द हुई. इन सूचीओंके अनुसार ग्रंथोंकी संख्या
ननम्नशलणखत प्रकार की है.

भार्ा हस्त्तशलणखत महु द्रत


अंग्रेजी - २७००
संस्त्कृत ३४०४४ ३०६७
ताशमळ ५७९० १३७९
तेलगु ४६८३ ७८८
कन्नड २५०३ ३३३
मल्याळम ३२४ १०२
उदष ु ८३५ ६०
मराठी इत्याहद १००० १०००
# यह आंकडे १९५५ के है

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 56


इस ग्रंथसंग्रह की सूची कुल ५६ खंडोंमे है प्जनमेसे ३२ केवल संस्त्कृतके है . संर्गत, नत्ृ य तथा
शशल्पशास्त्रका समावेश २२ वे खंड मे, वैध्यक तथा ज्योनतष्य शास्त्रका समावेश २३ और २४ वे
खंड मे आता है. शशलसंसारके वाचकोंको शशल्पशास्त्रमे षवशेर् रुची होनेके कारि संबंर्धत
संस्त्कृत ग्रंथोंकी सूची ननचे दी है . कई पूिष कै तो कई अपूिष है .कई साथष है और षवच्ध
शलपीओंमे है .

अ -वास्त्तश
ु ास्त्र
अंशम
ु भेद, अगस्त्त्य वास्त्तुशास्त्र, अंगल
ु ाहदमाप्न्निषय: , अद्भत
ु सागर,
अर्धष्टानलक्षिम, अशभशलपाथष र्चंतामणि , गह
ृ द्वारननमाषिहद , मयवास्त्तुशास्त्रम,
मयमत, मानसार, मानसोल्लस, वस्त्तुदेवतापूजा, वास्त्तुपदन्यासषवर्ध:, वास्त्तुषवद्या.
वास्त्तुशास्त्रषवधानम, शशल्परत्नम, शशल्पशास्त्रम (अगस्त्त्यम), शुक्रनीनत, शशल्पशास्त्रम
(षवश्वकमीय), शशल्पसंग्रह:, शशल्पसार:, सनतकुमार वास्त्तुशास्त्रम,
षवश्वकमाषवास्त्तुशास्त्रम, प्रमािबोर्धनी, रत्नदीषपका -रत्नशास्त्रम (मल्याळम)
..

आ-गणित
क्षेरगणित, क्षेरतत्वप्रदीषपका, गणित युप्क्तभार्ा , गणित सारसंग्रह, गणितादशष,
गणितामत
ृ म, गणितािषव:, गणितािषवषवचंद्रपदकानन, लीलावती
इ-युध्द्शास्त्र
रिदीषपका, युध्दकौशल्याहद षवर्य: , रिरं गभैरवतंर
ई-पशुशास्त्र
अश्वप्रशंसा, अश्वलक्षिम, अश्वायव
ु ेद, पालकातयम हस्त्यायव
ु ेद

इस ग्रंथालयकी ओरसे हस्त्तशलणखत ग्रंथ प्रकाशशत भी ककये जाते है . उनमेसे शशल्पशास्त्रकी


दृष्टीसे नीचे हदये गये प्रमुख है . धनुषवषद्याषवलासमु (तेलगु), खड्गलक्षिशशरोमणि (तेलगु),
वास्त्तल
ु क्षिम (मल्याळम), अश्वशास्त्रम (कन्नड), सप
ू शास्त्रम (कन्नड).

कुछ ग्रंथ ग्रंथालयकी ओरसे ननकलने वाले अधषवाषर्षक वाताषपरमे प्रकाशशत होते है.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 57


१४ भारतीय शशल्पशास्त्र

[जनषल ऑफ इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंप्जननअसष(इंडडया) पष्ृ ठ ५४ से ५८,१९५४]

अपने भारत का राष्रीय ज्ञान-भंडार संसार के सभी राष्रों के ननतांत आदर का षवर्य है.वे राष्र
भारतीय षवद्या षवर्यक मुहद्रत तथा हस्त्तशलणखत ग्रंथों का और संशोधनात्मक वांग्मय का बडी
आस्त्था और आदर से संग्रह तथा अध्ययन करते है.

अमेररका की सोसायटी ने उस दे श मे संस्त्थात्मक और वैयप्क्तक रीनत से सन १९३६ तक


भारतीय षवद्या के संबंध मे प्जतने हस्त्तशलणखत और मुहद्रत ग्रंथ संग्रहहत ककए उनकी अलग
अलग षवसत
ृ सूची काफी कष्ट उठाकर अॅउर पैसे खचष करके बनाई है और प्रकाशशत भी की है.
इस सूचीसे ज्ञात होता है कक उस समय तक अमेररका मे ननम्नशलणखत भार्ाओं मे और
षवर्योंपर ७२७३ भारतीय हस्त्तशलणखत ग्रंथा और ४४९१ मुहद्रत ग्रंथ थे.

संग्रहहत ग्रंथों की भार्ाएं:

संस्त्कृत, बंगाली, ब्रम्ही, गुजराती, हहंदी, हहंदस्त्


ु तानी, गावानी, कानडी, काप्श्मरी, मल्याळम,
मराठी, नेपाली, ओररया, पाली, पंजाबी, प्राकृत, पुश्तु, राजस्त्तानी, सयामी, शसंहली, ताशमळ,
तेलगु और नतबेती.

संग्रहहत ग्रंथों के षवर्य:

वेद, वेदांग, परु ाि, स्त्तोर, कप्ल्पत कथा, उपननर्द, कामशास्त्र, काव्य, नाट्य ्, अलंकार
शास्त्र,संर्गत, नत्ृ य, प्रािीशास्त्र, व्याकरि,धाशमषक संस्त्कार, पूजा, व्यवहार, अथषशास्त्र,
नीनतशास्त्र, तत्वज्ञान, ज्योनतर्, वैद्यक,गणित, शशल्पशास्त्र, जैन वांग्मय, बौध्द वांग्मय इत्याहद.

मैंने मुंबईसे प्रकाशशत होने वाले ‘षवश्वकमाष षवकास नामके मराठी माशसक के १९५४ के अंक मे
इन अमेररकन भारतीय वांग्मय षवर्यक सूची का पररचय मराठी पाठकों को हदया था. इस
पररचय लेख के संबंध मे यन
ु ाइटे ड स्त्टे स्त्स इंफमेशन सषवषस के मंब
ु ई षवभाग के संपकष अर्धकारी
ने मुझे शलखे हुए पर मे ननम्नशलणखत मनननय षवचार प्रकट ककया था:

“आपका ‘अमेररका मे प्राच्य संशोधन’ षवर्यपर, षवद्वत्तापूिष लेख हमने ध्यानपूवक


ष पढा. हम
अमेररकावासी भारत का षवश्वप्रती योगदान के संबध
ं मे सचेत है और यह हमारे भारतीय ज्ञान
संपदा का संग्रहि से स्त्पष्ट होता है . हमे प्राचीन भारतीय सभ्यता से बहोत कुछ शसखना

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 58


है.षवशेर्त: अमेररकन ओररएंटल सोसायटी इस षवर्य मे रुची रखती है. हम आपका लेख हमार
ग्रंथालय मे रखेंगे .

भारतीय ज्ञान भंडार के समान भारतीय शशल्पशास्त्र भी संसार के ननतांत आदर का और प्जज्ञासा
का षवर्य है . भारतकी षवषवध मनोहार शशल्पकृनतयां दे खने के शलए बडी दरू दरू से कला ममषज्ञ
और प्जज्ञासु आते है.इन शशल्प कृनतयोंमे प्राचीन नगर , नहर, ककले, मकान, घाट, मंहदर,
मूनतषया, धातुकाम, रत्नकाम . लकडी, हाथी-दांत आहदयों पर की कारीगरी, चमडे का काम,
कौशल से खेती मे पैदा हुए फल-फुल आहद का समावेश होता है .

आजकल भारत के प्राय: सभी प्रांतोंमे शशल्पशास्त्र (इंप्जननअरींग) के एक या अनेक षवद्यालय


व महा षवद्यालय स्त्थाषपत है. इन मे शशल्पशास्त्र की सभी शाखाओं की शशक्षा दी जाती है.
भारत अपने शशल्पशास्त्र के शलए सारे संसार मे प्रशसध्द होने पर भी इन असंख्य शशल्प
शशक्षि संस्त्थाओं मे एक मे भी भारतीय शशल्पशास्त्र के संबंध मे कुछ भी न बताया जाना बडे
खेद की बात है.पुछ्ताछ करने पर ज्ञात होता है को इस दे श के बहुत सारे शशक्षक और शशल्प
व्यवसायी इस दे श के शशल्प शास्त्र के संबंध मे अज्ञ और उदास है , कोई तो इससे घि
ृ ा भी
रखते है. गत दे ड सौ साल मे अंग्रेजों से हमे जो शशक्षा शमली उसका यह कडवा फल है.

भारत मे अशभयांत्ररकी कॉलेजों की स्त्थापना हुए दे ड सौ सालसे अर्धक हुए, बडे कष्ट के बाद
इस दे श को स्त्वतंरता ननली ककं तु आत्मषवस्त्तत
ृ भारतीयों को अपने दे श के शशल्पशास्त्र की याद
न आई.

जहां तक मझ
ु े भारतीय शशल्पशास्त्र का पररचय हुआ उससे मैं कह सकता हूं कक प्रकृनत
अनुसार ननप्श्चत ककया हुआ शशल्पशास्त्र इस दे श को सदा सवषदा फायदे का होगा. स्त्मरि रहे
के दे श के संशोधक इंप्जननअर श्री. कृष्िाजी षवनायक वझे जी ने सन १९२१ मे भारतीय
शशल्पशास्त्र, भारतीय इंप्जननअररंग कॉलेजों मे शसखाना चाहहए इसके शलए काफी जोर का
आंदोलन ककया था परं तु वह असफल रहा.

श्री. कृष्िाजी षवनायक वझेजी ने भारतीय शशल्पशास्त्र के पुनरुत्थान के शलए जो कष्ट उठाए
उसका इनतहास सन हदसंबर १९५० मे श्री उमाकांत केशव आपटे जी के शलखे हुए वझेजी के
स्त्फूनतषदायक चररर पढ कर मन का ननश्चय हुआ कक अब दे श को स्त्वतंरता शमली है ठीक
तरह से प्रयत्न कर भारतीय शशल्पशास्त्र के पुनरुत्थान की कुछ तैयारी हम जरूर कर सकेंगे .
मझ
ु े इस बात की ठीक कल्पना थी की यह कायष ककसी एक व्यप्क्त का नही ककं तु हम जरूर
कर सकेंगे ककं तु ककसी बडी संस्त्था या शासन का है .परं तु संस्त्था या शासन को कायािंषवत करने
के शलए वैयप्क्तक प्रयत्न प्रथम आवश्यक होता है .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 59


मैंने पुनुरुत्थान के प्रयत्न मे पहका काम यह ननप्श्चत ककया कक उपल्ब्ध हस्त्तशलणखत और
मुहद्रत वांग्मय का संकलन और सूचीकरि हो. स्त्वर्गषय वझेजीने भारतीय शशल्पशास्त्र का १०
उपशार, ३२षवद्या और ६४कलाओं मे षवस्त्तार ननश्चय ककया था. उसी को लेकर मैंने अपना
कायष चालू रखा. यह भारतीय शशल्पशास्त्र का षवस्त्तार मेजर गद्रे जी ने अपने इंप्स्त्टट्युट ऑफ
इंप्जननअसष (इंडडया) के शसतंबर १९५४ के जनषल मे प्रकाशशत हुए हहंदी लेख मे बताया है .

५६ उस षवस्त्तारपट से पाठकों कोपता लगेगा कक भारतीय शशल्पशास्त्रके दस उपशास्त्र मे


ननम्नशलणखत बातें आती है.

(१) कृषर्शास्त्र- वनस्त्पनत तथा वक्ष


ृ , पशु और मानव -इनकी शररर रचना तथा उनका योग्य
संवधषन और उपयोग इस उपशास्त्र की कक्षा मे आता है .

(२) जलशार -सब कामों के शलए पानी कैसे प्रातत करना; शमला हुआ पानी इस स्त्थल तक कैसे
ले जाना, ननरुपयोगी पानी कैसे ननकाल सालना और पानी से कौन कौन से काम लेना, यह
बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .

(३) खननशार-खदानों से शमट्टी , धातए


ु ं इत्याहद ननकालना, उसका शध्
ु दीकरि , उसके गि
ु धमष
तथा उपयोग मे लाने हे तु आवश्यक संस्त्कार आहद बाते इत्याहद इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती
है .

(४) नौका शास्त्र- पानी के गुिधमष, उस पर कैसे तरना, तैरने के शलए नाव , जहाज कैसे
बनाना , यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .

(५) रथशास्त्र – जमीन पर मामुली और व्यापार का सामान और प्रािी सुषवधा से ले जाने के


शलए रास्त्ते, पुल, सरु ं ग कैसे बनाना और साथ ही साथ सामान और पािी ले जाने वाले वाहन
कैसे बनाना, यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .

(६) षवमान शास्त्र या अप्ग्नयान शास्त्र – शरु ककले को जब घेर लेता है और सब और आग


लगा कर अंदर की सेना की नाकेबदी करता है उस समय आगपर से उड जाने के शलए
षवमान कैसे बनाना , उसे कैसे चलाना यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .

(७) वास्त्तश
ु ास्त्र- मानव और पशु पक्षी इनकी धूप, तेज हवा और बाररश से रक्षाके शलए छोटे
कनात से लेकर राजमहल और गुफा तक ननवास स्त्थान कैसे बनाए यह बाते इस उपशास्त्र की
कक्षा मे आती है .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 60


(८) प्राकार शास्त्र- हहंस्त्र पशु,जंगली मनव और शरु आहद के उपद्रव से अपना और अपने राज्य
का संरक्षन करना, उपद्रव करने वालोंका नास करना यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती
है .

(९)नगर रचना -गांव, नगर, शहर, बंदरगाह तथा राजधानी कैसे बसाना, उसमे सुषवधाएं कैसी
ननमाषि करना और उसकी व्यवस्त्था कैसी रहनी चाहहए यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे
आती है .

(१०) यंर शास्त्र-मानव, पशु-पक्षी और पंचमहाभूत इनकी शप्क्त काम मे लाकर बडे बडे काम
कर लेना , यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .

ठीक तरह से तलाश करने पर ऐसे ज्ञात हुआ है कक उपरननहदष ष्ट शास्त्रों के अंगोपांगोपर असंखु
मूल संस्त्कृत ग्रंथ और उन पर गत दे ढ सौ साक मे शलखे गये संशोधनात्मल ग्रंथ और लेख
आज उपलब्ध है . हर हदन कुछ ना कुछ नया वंग्मय दृष्टीमे आता है . गत पांच साल में इन
शारों पर जो वांग्मय मुझे ज्ञात हुआ उसकी षवर्यवार सूची मै ने मेजर गद्रे जी के संपादकत्व
मे प्रकाशशत होने वाले सातताहहक ‘शशल्पसंसार पि
ु े’ के कुछ अंकों मे प्रकाशशत की है .पाठक
कृपया वे अंक दे खे.

इन सर्ू चयों मे मैंने प्जन ग्रंथों और लेखों का उल्लेख ककया है उनमे से कुछ मैंने संग्रह भी
ककया है. मेरा ननयोजन कायष होने के पश्चात मेरा संग्रह सावषजननक बन जाएगा. अपने शशल्प
वांग्मय संग्रह की एक सूची मैंने बनाई है जो इस लेख के पररशशष्य के रुप मे है

१-सूचीपर २-हस्त्तशलणखत सूचीया ३-नीनतग्रंथ


४-वास्त्तुशास्त्र ५-रथशास्त्र ६-नगर रचना शास्त्र
७-नौका शास्त्र ८-खननशास्त्र ९-यंरशास्त्र
१०-षवमानशास्त्र ११-जलशार १२-यध्
ु दशास्त्र
१३-इनतहास ग्रंथ १४-कृषर्शास्त्र (पाकशास्त्र, पशश
ु ास्त्र, वस्त्रशास्त्र इत्याहद
१५- परु ाि ग्रंथ १६- भारतीय संस्त्कृती षवर्यक संककिष ग्रंथ.
१७- माशसकपर, वाषर्षक अहवाल, गौरव ग्रंथ, वतषमानपर की कतरन वगैरा और लेख की
सूर्चयां.

हदनांक ९ एषप्रल १९५५ को नागपूर मे इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंप्जननअसष की कौंशसल की बैठक हुई


थी. इस समय जो माननीय सदस्त्य नागतप्र मे पधारे थे मुझे इनके समक्ष अपना छोटासा संग्रह
रखनेका सौभाग्य शमला था प्जससे वह बहुत प्रभाषवत हुए थे . ककं तु थोडे से समय मे वह

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 61


उस संग्रह को भली भांनत न दे ख सके . इस शलए इस लेख और उसके पररशशष्ट मे उस संग्रह
का संक्षक्षतत षववरि उसकी षवशेर् जानकारी के शलए हदया गया है.

इस राष्रीय षवर्य का महत्व ध्यान मे ला कर बारत सरकार या भारत की इंप्स्त्टट्यश


ु न ऑफ
इंप्जननअसष इस कायष मे हदलचस्त्पी ले तो कुछ हदनों मे भारतीय शशल्पशास्त्र के सब अंग-उपांगो
का उपल्ब्ध मूल वांग्मय और संशोधन पर लेखन एकत्ररत हो जाएगा. उसके बाद नया संशोधन
हाथ मे शलया जाएगा. यह कायष पूिष होनेपर उस से पाठ्य पुस्त्तके शलखी जा सकती है और
शशक्षिक्रम मे सप्म्मशलत हो सकती है . यह कायष ककसी एक व्यप्क्त से नही हो सकता. यहद
इसपर हठक से ध्यान हदए जाए तो आगाशम संतानों को भारतीय शशल्पशास्त्र की शशक्षा
शमलने की व्यवस्त्था हो सकेगी . अपार श्रम और धन त्रबना यह कायष हो नही सकेगा .और यह
श्रम और पैसा उपल्ब्ध वांग्मय नष्ट होने से पहले ही खचष हो तो कुछ हाथ लगेगा, नही तो
भारत की यह षवशाल सांस्त्कृनतक संपषत्त नष्ट हो जाएगी.

मझ
ु े षवश्वास है इंप्स्त्टट्युशन ऑफ इंप्जननअसष और उसके सभासद इस कायष के महत्व को
समझ कर इस संपषत्त की रक्षा के शलए उर्चत कायष करें गे .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 62


१५ महाराष्टीय स्त्मनृ तकार शशल्पकलाषवधी वझेजीका जीवन कायष

[ सातताहहक शशल्पसंसार, पि
ु े २५ माचष १९५५ पष्ृ ठ १८३ से १९६ ]

शशल्पसंसार के संपादक महोदयने वझेजी के संबंधमे मुझे ज्ञात चंद बाते शशल्पसंसार के
पाठकोंके सामने रखने की इच्छा प्रकट की. तद्नुसार इस लेखमे शशल्पसंसारकी प्रकाशन मयाषदा
षवचारमे लेकर यथाशप्क्त वझेजीके जीवन-कायषका पररचय दे नेका प्रयत्न कर रहा हूं.

वझेजी का पूिष नाम कृष्िाजी षवनायक वझे है . आपका जन्म कोकिमे एक षवद्यासंपन्न
गररब घराने मे हदनांक १६ डडसेंबर १८६९ को हुवा. बुध्दीमान होने के कारि वझेजीका प्राथशमक
तथा माध्यशमक शशक्षि अत्यल्प कालमे पूिष हुवा और हर समय आपकी शैक्षणिक प्रगनत प्रथम
श्रेिीकी ही रही. मॅहरक होके वझेजी १६ वर्ष की उम्रमे पन
ू ा इंप्जननअररंग कॉलेजके एल.सी.ई.
शाखाके षवद्याथी हुए और सन १८९१ मे आप वह शशक्षिक्रम पि
ू ष करके मंब
ु ई सावषजननक
बांधकाम षवभाग मे अशभयंता बने. बचपनसे घरमे भारतीय संस्त्कृतीकी गहरीशशक्षा प्रातत होने
के कारि वझेजीको इंप्जननअररंग कॉलेजकी शशक्षा अपूिष तथा अभारतीय लगी. आप लाहोरके
वेहदक मॅगणझनके एक लेख मे कहत है कक-

डडसेंबर १८९१मे मैंने मुंबई षवश्वषवद्यालय की एल.सी.ई. परीक्षा उषत्तिष की.पर मुझे आश्चयष
इस बात का हुवा कक मेरे पूरे शशक्षाकालमे ककसीभी भारतीय ग्रंथ या लेखकका या भारतीय
सूर का उल्लेख भी नही ककया गया मेरा इस बातप्र षवश्वास ही नही था कक भारतमे ऐसी
एक भी वास्त्तु नही है प्जसका उल्लेख हमारे पाठ्यक्रम हो सके.
मुझे ननप्श्चत रुपसे ताजमहाल, अजंठा एलोरा के शैल शशल्प, राजस्त्तान के षवशाल ककले,
अशोक स्त्तंभ आहद जगप्रशसध्द शशल्पा का पता था. इस शलये मैंने ननश्चय ककया की मै
प्राचीन भारतीय शशल्पशास्त्र इस षवर्यका अध्ययन करुं गा. इस संबधमे जो जो ग्रंथ है वह
पारं पाररक कारर्गरोंसे प्रातत करने होंगे.
मेरे ३० सालके संशोधन काल मे मै ने कुल ४०० ग्रंथ दे खे, उनमेसे ४० ग्रंथ पढे .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 63


प्जतने नेकनामीसे वझेजीने नौकरी की उतनी ही शानसे सेवाननवत्त
ृ हो गये. सन १९१६ जागनतक
महायुध्दका समय था.भारतीय शशल्पशारोंमे युध्दशास्त्रका अंतभाषव होने के कारि वझेजीने
उसला सांगोपांग अभ्यास ककया था. वझेजीको प्रत्यक्ष युध्द दे खने की इच्छा थी. उन्होने त्रब्रहटश
सरकार को अजष ककया की ‘ मै इस महायुध्दमे चाहे जो काम करनेके शलए राजी हूं. मुझे
युध्दशास्त्रके प्रत्यक्ष अभ्यास के शलये अभ्यास युध्द दे खनेकी इच्छा है , इस शलये मुझे युध्दपर
भेजा जाये. उनकी यह षवनंती अमान्य हो गयी. षवनंतीके अस्त्वीकृतीपर आते ही सरकारी नौकरी
से स्त्वेच्छा ननवत
ृ ी लीयी. और ३० सालमे जो कुछ ज्ञान एकठ्ठा ककया था वह जनताके सम्मुख
प्रस्त्तत
ु करने की तय्यारी शरू
ु की. सेवाषववत्त
ृ ी के बाद लोकमान्य हटळकजीके उत्तेजनसे षवषवध
दे शोपयोगी षवर्योंपर ग्रंथ तथा लेख शलखे और व्याख्यान हदये.

धमषशशक्षा वझेजीका जीवन कायष षवषवध क्षेरोंमे प्रशसध्द है. वझेजी एक बुप्ध्दवादी षवचारवंत थे.
आपकी यह दृढ धारिा थी कक इस प्राचीन दे श मे धमष और व्यवहार परपरावलंबी है.इस दे श
का प्राचीन ज्ञान भांडार पूरी संसारके परम आदरका एकमेव स्त्थान जो हहंदध
ु मष उसका ठीक
ध्यान हुए त्रबना समझमे नही आयेगा. इसी शलये आपने सवष प्रतम धमषशशक्षापर ८ ग्रंथ शलखे.
उनमे आपने हहंदध
ु मषका यथाथष ज्ञान आगामी पीहढयोंकी जानकारीके शलये ननवेदन ककया है.
वझेजीके चररर लेखक श्री. बाबासहे ब आपटे जीने यह धमषशशक्षाषवर्यक ग्रंथ वझेजीके
जीषवतकायषका प्रमुख अंग समझा है और इस अतुलनीय महान कयषके कारि वझेजीको ‘
महाराष्रके स्त्मनृ तकार ‘ नामसे गौरव ककया है. और भारतीय शशल्पशास्त्र ठीक तरहसे समझनेके
शलये भारतीय भार्ा , धमष और पुरािोंका ज्ञान आवश्यक है .

श्री. वझेजीके धमषशशक्षा षवर्यक मराठी ग्रंथोंके नाम प्राय: मराठीमे ही हदखाये है ककं तु वसह्य
विषन हहंदी मे हदया है.

१ धमषशशक्षिाचा ओनामा , पुस्त्तक १- ननत्यकमष, संध्या, उपासना, पंचमहा यज्ञ, षववाह,


पन
ु जषन्म,मोक्ष-पष्ृ ठ संख्या ८०.

३ धमषशशक्षिाचा ओनामा , पुस्त्तक ३- षवर्ध, संस्त्कार, हहंदध


ु माष रचना,पंचायतन पूजा, जात
कमष, उपनयन, गह
ृ स्त्थाश्रम, वानप्रस्त्थ, सन्यास, अंत्यकमष. पष्ृ ठ संख्या २८६.

४ धमषशशक्षिाचा ओनामा , पुस्त्तक ४-ननर्ेध, अहहंसा, असत्य. ब्रम्हचयष, अपररग्रह - पष्ृ ठ


संख्या ६०.

५ धमषशशक्षिाचा ओनामा , पुस्त्तक ५-ननवत्त


ृ ेधमष, ककतषन, पुराि, पठि, नामस्त्मरि पष्ृ ठ
संख्या ३९.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 64


६-७ धमषशशक्षिाचा ओनामा , पुस्त्तक ६-७ -सत्संग, अप्ग्नहोर, यज्ञ इत्याहद. पष्ृ ठ संख्या ६०

८ धमषशशक्षिाचा ओनामा , पुस्त्तक ८-स्त्री धमष शशक्षा, ननत्यकमष, त्योहार, संस्त्कार, ननर्ेध,
भजन व्रत तीथषयारा- पष्ृ ठ संख्या १२०.

उपरननहदषष्ट ७ मुहद्रत पुस्त्तकोमें से कोई भी पुस्त्तक आज उपलब्ध नही है . मेरे संग्रह मे एक


एक प्रत उपल्ब्ध है. इसके अलावा वझेजीने अस्त्पश्ृ यता षववारि नामक पुप्स्त्तका शलखी.
वझेजीने धमषशशक्षापर अगणित लेख शलखे

• विषव्यवस्त्था-पुरुर्ाथष माशसक अंक ३,४


• परु
ु र्सक्
ु त – गोधन माशसक, अंक ६,७
• सदगुरु की आवश्यकता- शसध्दांतहृदय -बेळगाव-मे, जुलै १९२८
• पुरुर्सुक्त –वैश्यधमोशभमान पुप्स्त्तका
• रामदासका चररर -टं कार ,१५ फरवरी १९२९
• मूनतषपूजा – लोकसत्ता नाशशक – ४ लेख
• षवद्याथीओंके धमष – आयोंकी यज्ञशाळा रचना. संधोपासना. पंचमहा यज्ञ,उपवासा
क्या होता है, संध्यावंदन, विषव्यवस्त्था तोडना अननष्ट क्यौ?,, नये स्त्मनृ तकी
अवश्यकता, षवद्याथीयोंको उपदे श, षवद्या कैसी शसखना .
• नवाकाळ मुंबई -मूनतषपुजा,हहंदध
ु मषकी रचना, धमषशास्त्रका अन्य शास्त्तोंसे संबध- १२ से
२७ डडसेंबर १९२८.
• नवाकाळ मुंबई- संध्या और उपनयन -४ जनवरी १९२९.
• दशहरे का महत्व- गुजरात षवद्यापीठ पत्ररला, अहमदाबाद.
• हहंद ु शशक्षि पध्दनत- हटळक महाषवद्यालय रैमाशसक पुिे १९४७.
• ब्राम्हिोंका कतषव्य- मातभ
ृ ूशम, ग्वाल्हे र.

इसके अलावा अनेक वत


ृ परोंमे वझेजीके लेख प्राकशशत हुवे पर बडे खेद की बात है कक इन
लेखोंका पता मुझे नही शमला. मेरे संग्रह मे वझेजीके हस्त्तशलणखत लेखोंकेकी हटतपणिया
है.हहंदध
ु मषके रहस्त्यपर वझेजीने कई स्त्थानोपर भार्ि हदये थे ज्नका वत्त
ृ त ं स्त्थाननक वत्त
ृ पर मे
छपा है

भारतीय शशल्पशास्त्र गवेर्िा

भारतीय शशल्पशास्त्रके क्षेरमे वझेजीका कायष मुझे धमषशशक्षाके कायषसेही ज्यादा महत्वपूिष लगता
है. आपने भारतके कररब सब शशल्पशास्त्र संबर्धत ग्रंथ पढ कर भारतीय शशल्पशास्त्रके ३

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 65


खंड, १० उपशास्त्र, ३२षवद्याए और ६४ कलाए ऐसा षवस्त्तार , उन्हे शमली भग
ृ ु संहहतापेसे
ननप्श्चत ककया. यह षवस्त्तारपट पष्ृ ठ ८८ और ८९ पर हदया है. इन दस शास्त्रोंमे कौन कौनसी
बातें आती हैं इसका संक्षक्षतत षववरि नीचे हदया है.

(१) कृषर्शास्त्र- वनस्त्पनत तथा वक्ष


ृ , पशु और मानव -इनकी शररर रचना तथा उनका योग्य
संवधषन और उपयोग इस उपशास्त्र की कक्षा मे आता है .

(२) जलशार -सब कामों के शलए पानी कैसे प्रातत करना; शमला हुआ पानी इस स्त्थल तक कैसे
ले जाना, ननरुपयोगी पानी कैसे ननकाल सालना और पानी से कौन कौन से काम लेना, यह
बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .

(३) खननशार-खदानों से शमट्टी , धातुएं इत्याहद ननकालना, उसका शुध्दीकरि , उसके गुिधमष
तथा उपयोग मे लाने हे तु आवश्यक संस्त्कार आहद बाते इत्याहद इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती
है .

(४) नौका शास्त्र- पानी के गुिधमष, उस पर कैसे तरना, तैरने के शलए नाव , जहाज कैसे
बनाना , यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .

(५) रथशास्त्र – जमीन पर मामुली और व्यापार का सामान और प्रािी सुषवधा से ले जाने के


शलए रास्त्ते, पल
ु , सरु ं ग कैसे बनाना और साथ ही साथ सामान और पािी ले जाने वाले वाहन
कैसे बनाना, यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .

(६) षवमान शास्त्र या अप्ग्नयान शास्त्र – शरु ककले को जब घेर लेता है और सब और आग


लगा कर अंदर की सेना की नाकेबदी करता है उस समय आगपर से उड जाने के शलए
षवमान कैसे बनाना , उसे कैसे चलाना यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .

(७) वास्त्तुशास्त्र- मानव और पशु पक्षी इनकी धूप, तेज हवा और बाररश से रक्षाके शलए छोटे
कनात से लेकर राजमहल और गुफा तक ननवास स्त्थान कैसे बनाए यह बाते इस उपशास्त्र की
कक्षा मे आती है .

(८) प्राकार शास्त्र- हहंस्त्र पशु,जंगली मनव और शरु आहद के उपद्रव से अपना और अपने राज्य
का संरक्षन करना, उपद्रव करने वालोंका नास करना यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती
है .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 66


(९)नगर रचना -गांव, नगर, शहर, बंदरगाह तथा राजधानी कैसे बसाना, उसमे सुषवधाएं कैसी
ननमाषि करना और उसकी व्यवस्त्था कैसी रहनी चाहहए यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे
आती है .

(१०) यंर शास्त्र-मानव, पशु-पक्षी और पंचमहाभूत इनकी शप्क्त काम मे लाकर बडे बडे काम
कर लेना , यह बाते इस उपशास्त्र की कक्षा मे आती है .

इन दस उपशास्त्रोंपर वझेजीका सषवस्त्तर मराठी और अंग्रेजी ग्रंथ शलखनेका संकल्प था. परं तु
भारतीयोंके अनास्त्थाके कारि और उनके अनपेक्षक्षत ननधनके कारि पूरा नही हो सका. अपने
अभ्यास के शलये वझेजीने मल
ु ग्रंथ भी काफी जमा ककये थे. उनके दे हांतके बाद, उनके कुछ
ग्रंथ इनतहास संशोधन मंडळ पुिे और कुछ सावषजननक वाचनालय , नाशशक को दान हदये.
उसमे खेदकी बात यह है कक अनत महत्वपूिष हस्त्तशलककत ग्रंथ-जैसे भग
ृ ुसंहहता, अगस्त्त्यकी
षवमान संहहता, जामदग्न्य धनुवेद, धातुकल्प इअनका कुछ भी पता नही लगता. शशल्पका
गवेर्िात्मक लेखन प्रकाशशत करनेके पहले, यह षवर्य भारतके अशभयांत्ररकी महाषवद्यालयोंके
शशक्षिक्रममे लाने के शलये, पुिेके अशभयांत्ररकी महाषवद्यालयोंके आचायषके जररये १९२९मे
काफी प्रयत्न ककया पर वह प्रयत्न असफल रहा. वझेजीके शशल्पशास्त्र षवर्यक प्रकाशशत
मराठी ग्रंथ नीचे हदये है:-

१- शशल्पशशक्षिाचे महत्व (१९२२)- ३२ षवद्याओंका संक्षक्षतत विषन- कुल पष्ृ ठ ५०.


२- प्राचीन हहंदी शशल्पशारसार -१४ प्रकरि- कुल पष्ृ ठ २१६.
३- काश्यपशशल्प (संस्त्कृत) -अध्याय ८८- कुल पष्ृ ठ २७४.
४- प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्र भाग १, प्रकरि- १४ कुल पष्ृ ठ २००.
५- आयषशशल्प यंरशास्त्र- प्रकरि- ३ कुल पष्ृ ठ ४६.
६- आयषशशल्प र्चरषवद्या - प्रकरि- कुल पष्ृ ठ
७- आयषशशल्प वास्त्तषु वद्या - प्रकरि- कुल पष्ृ ठ
८- प्राचीन हहंदी युध्दषवद्या -

यह ग्रंथ होने के बाद कुछही हदनोमे हदनांक ३१ माचष १९२९ को वझेजी का स्त्वगषवास हुवा.
उनके कुछ अप्रकशशत ग्रंथ उनके दे हांतके पश्चात प्रशसध्द हुवे वह इस प्रकार है ,

• वेश्मशास्त्र – हस्त्तशलणखत हटळक महाषवद्यालय पुिे.


• नगर रचना -इचलकरं जी ग्रंथमाला
• प्राचीन हहंदी शशल्पशास्त्र भाग ४ प्रकरि-१३ कुल पष्ृ ठ १८४

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 67


इन ग्रंथोंके अलावा ‘ चरखा और उसके उपयोय नामका एक छोटासा ग्रंथ शलखा व प्रकाशक
है, तरुि भारत बेळगांव. वझेजीके स्त्फुट लेखोंकी सूची ननम्नप्राकार है .

• नाशलया-लोकशशक्षि पुिे – १८३५

नागपूरके उद्यम माशसक मे उनके जो लेख छपे उनकी सूची इस प्रकार है ;

▪ गह
ृ शशल्प – नवंबर , हदसंबर-१९१९
▪ धातषु वचार -सोना चांदी - नवंबर , हदसंबर-१९२१
▪ यंर और बेकारी -जून, जुलै १९२३, हदसंबर-१९२६
▪ प्राचीन उद्यम प्रकक्रया- ११ लेख जल
ु ै क से माचष १९२५

पुिे के र्चरमय जगत मे छपे ३ लेख

o हहंद ु और पाप्श्चमात्य वास्त्तुशास्त्र- माचष, अप्रेल १९२४


o र्चरलेखन -अगस्त्त १९२५
o हहंदी यंरशास्त्र -माचष १९२६

षवस्त्तार भयसे, प्जन अनेक माशसकोंमे उनके लेख छपे उनके केवल नाम ननचे हदये है.

षवश्वब्रम्हवत्त
ृ पुि,े षवषवधज्ञानषवस्त्तार, पुिे, आयषषवज्ञान गोवा, सहषवचार बडोदा. महाराष्र
कृषर्वल, पि
ु ,े मातभ
ृ शू म ग्वाल्हे र, गोधन नागपरू , ब्राम्हिपत्ररका इस्त्लामपरू , परु
ु र्ाथष औंध, .
महाराष्र साहहत्य पत्ररका, पुि,े लोकसत्ता नाशशक इत्याहद.

श्री. वझेजीके अनेक ननम्नशलणखत अंगेजी लेख प्रशसध्द हुए.

• मुंबई इंप्जननअररंग कॉग्रें स (१९२३) -अ स्त्टडी ऑफ त्रबप्ल्डंग्स


• वाषर्षक लेखसंग्रह- भांडारकर ओररएंटल ररसचष इंप्स्त्टट्युट पुिे.
o अमेररकन सायंहटकफक
o पूना इंप्जननअररंग कॉलेज मॅगणझन
o मैसरु इंप्जननअररंग असोशसअशन जनषल
o अमेररकन इंप्जननअसष इंप्स्त्टट्युट जनषल
• शसंध इंप्जननअररंग कॉलेज मॅगणझन

लाहोर (पाककस्त्तान से प्रकाशशत होनेवाले माशसकमे वझेजीके अनेक लेख छपे. उनमेसे अनेक
अप्रातय है . यह माशसक गुरुकुल कांगडी और हररव्दार के सहयोगसे छपता था इसशलए कुछ
अंक प्रातत हुवे है .

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 68


➢ त्रबप्ल्डंग कंस्त्रक्शन -प्रकरि १ से -१० मई १९२२ से जून १९२३.
➢ मेक्याननक्स -यंरशास्त्र – अक्टुबर १९२३ से नव्हंबर १९२३.
➢ सायंस ऑफ वॉर -प्राकारशास्त्र - शसतंबर१९२३ से जुलै १९२४
➢ कफप्जक्स इन अॅंशट इंडडया- शसतंबर १९२५.
➢ टाउन तलॅ ननंग -नगर रचना - जुन १९२४ से अक्टुबर १९२७.

वझेजीने नागपरू , पि
ु े, दे वास आहद स्त्थानोंपर भार्िभी हदये. उन्होने पि
ु ेके और नाशशकके
हटळक नहाषवद्यालय और तळे गांव के समथष षवद्यालय मे नन:शुल्क अध्यापन का कायष ककया.
उनका एक महत्वपि
ू ष कायष यह भी है की उन्होने मंब
ु ई प्रांत मे ओव्हरशसअसष तथा सब-
ओव्हरशसअसष की संघटना बनाई प्जसके वह कई सालतक अध्यक्ष रहे .

राप्ष्रय शशक्षि, व्यापार और राज्यशास्त्र मे उल्लेखननय काम ककया. इन षवर्योंपर उनकी एक


प्रकाशशत और चार अप्रकाशशत पुस्त्तके मनननय है .

• व्यापारी शशक्षि-पुस्त्तक १ -वाणिज्य


• व्यापारी शशक्षि-पस्त्
ु तक २-गोरक्षा
• व्यापारी शशक्षि-पुस्त्तक ३-कृषर्
• भावी हहंदी स्त्वराज्य
• आजकी स्त्वराज्य संस्त्थाए

यह मेरे षवस्त्तत
ृ ननवेदनसे पाठकोंकी मेरी जैसे राय होगी की ऐसे व्यक्तीका कायष जनता के
लाना अत्यावशक है . मै आशा करता हूं भारतके हर राप्ष्रयवत्त
ृ ीका व्यप्क्त श्री, वझेजी के
अनुपमेय कायषका लाभ उठायेंगे और भावी षपढीके शलये उसकी रक्षा करें गे.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 69


१६ भारतीय शशल्पशास्त्र का षवस्त्तार

(भग
ृ ु शशल्पसंहहतानुसार )

३ खंड

१. धातख
ु ंड २. साधनखंड ३. वास्त्तख
ु ंड
१.कृषर्शास्त्र- बायोलोजी ४.नौकाशास्त्र –मरीन ७.वेश्मशास्त्र –शेल्टर
२.जलशास्त्र – ५. रथशास्त्र – कम्यनु नकेशन ८.प्राकारशास्त्र – प्रोटे क्शन
हाय्ड्रोशलक्स ६.अप्ग्नयानशास्त्र- ९. नगररचना - टाउन तलॅ ननंग
३. खननशास्त्र – मायननंग एरोनॉहटक्स
१०. यंरशास्त्र - मेकॅननक्स- उपरननहदष ष्ट सभी उपशास्त्रोंसे संलग्न

(१ ) कृषर्शास्त्र की ३ षवद्याए और २१ कलाए

१-वक्ष
ृ षवद्या-४ कलाए (१से ४)

१. सीराध्याकर्षि – पेडकी छाल से रस्त्सी बनाना.

२. वक्ष
ृ ारोहि – पेड पर चढना.

३. यावादीक्षुषवकार- गन्ना आहदसे गुड बनाना.

४. वेिुति
ृ ाहदकृनत - बांस, वेत से तटाई, टोकरीया आहद बनाना.

(२) पशुषवद्या-६ कलाए (५ से १० तक)

५. गजाश्वसारथ्य – हाथी घोडा उनपर बैठना और चलाना.

६.दग्ु धदोहषवकार – दध
ु से , दही मख्खन षवषवध पदाथष बनाना.

७.गनतशशक्षा- पशुंओंको षवषवध चाल शशखाना.

८. पल्यािकक्रया- पशुवर वैठनेके शलए जीन, हौद वगैरे बनाना.

९.पशच
ु मािंगननहाषर – मरे हुये जानवरकी चमडी ननकालना.

१०. चमषमादषवकक्रया – चमषपर प्रकक्रया करना.

३-मनष्ु यषवद्या -कला (११से २१ तक)

११. क्षुरकमष – दाढी, हजामत . मंड


ु न करना.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 70


१२.कंचुकादीशसवन – स्त्तीयोंके अंत:वषस्त्र आहद की शसलाई.

१३.गह
ृ भांडाहदमाजषन- बतषन मांजना.

१४. वस्त्रसंमाजषन- कपडे धोना.

१५. मनोकुलसेवा – दस
ु रोंकी मनपसंत सेवा करना.

१६.नानादे शीयविषलेखन- नाना दे शोंकी भार्ा शसखना.

१७. शशशस
ु ंरक्षि- शशशु संगोपन.

१८.सयक्
ु तताडन –योग्य शशक्षा करना.

१९. शय्यास्त्तरि – त्रबछाना अगाना.

२०.पुष्पाहदग्रंथन-फुल पत्तीओंसे माला बनाना.

२१.अन्नपाचन- खाना पकाना.

(२) जलशास्त्र की ३ (४ से ६) षवद्या और १ कला (२२वी)

(४) संसेचन षवद्या – जलपुती, शीतलीकरि और शसंचन करना.

(५) संहरि षवद्या- अनतररक्त और अपायकारक जमा हुवा पानी ननकालना.

(६) स्त्तंभन षवद्या- पानी रोधकर उसका उपयोग करना.

संसेचन षवद्या के अंतगषत एक ही कला -२२.जलवाय्वप्ग्न संयोग – बारुद की सहाय्यतासे


भुगभषसे पानी का स्त्रोत ननमाषि करना .

(३) खननशास्त्रकी ४ षवद्या (७ से १०) और १२ कला (२३ से ३२)

(७) दृनतषवद्या

२३. रत्नाहद सदसज्ज्ञान –रत्नपररक्षा

(८) भस्त्मीकरि षवद्या

२४. क्षारननष्कासन- क्षार बनान.

२५.क्षारपररक्षा –क्षार पररक्षा.

२६.स्त्नेहननष्कासन – तेल बीजोंसे तेल ननकालना.

२७. इप्ष्टकाहदभाजन – इटे कवेलु पकाना.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 71


(९) संकर षवद्या

२८. धात्वौर्धीनां संयोग – धातु शमर्श्रत दवाईया बनाना.

२९. कांचपाराहदकरि – कांचके वतषन बनाना.

३०. लोहाशभसार – कच्चा लोहा बनाना.

३१. भांडकक्रया- शमट्टीके वतषन बनाना.

३२. स्त्विाषहदतायात्मदशषन - सोने पररक्षा करना.

३३. मकरं दाहदकृती – अकष आसवे बनाना.

(१०) पथ
ृ :करि षवद्या

३४.संयोगे धातुज्ञान – अशुध्द शमश्रिातून शुध्द धातु काढिे .

(४) नौकाशास्त्र की ३ षवद्याए और ४ चार कलाए.

(११) तरीषवद्या

३५.बाव्हाहदशभजषलतरि – हात आदींसे तैरना.

(१२) नौ षवद्या

३६. सूराहदरज्जुकरि – रस्त्सी बनाना.

३७. पटबंधन – नौका वस्त्र बनाना.

(१३) नौका षवद्या

३८. नौकानयन- नाव और जहाजे सशास्त्र चलाना.

(५) रथशास्त्र –४ षवद्याए और ५ कलाए

(१४) अश्वषवद्या –रस्त्ते बनाना

३९. समभूशमकक्रया – जमीन समतल बनाना

(१५) पथषवद्या

४०. शशलाचाष – फरसबंदी

(१६) घंटापथ षवद्या

४१.षववरीकरि – सुरंग खोदना.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 72


(१७) सेतु षवद्या

४२. वत्त
ृ खंडबंधन –कमानदार पल
ु बनाना.

४३. जलबंधन – मागषमे बहते पानी के उपर मागष (पल


ु ) ननमाषि करना.

(६) अप्ग्नयान शास्त्र – २ षवद्यांए व ३ कलांए.

१८) शकंु त षवद्या

४४. शकंु तशशक्षा – पक्षीओंको षवमान उडानेका शशक्षि दे ना .

१९) षवमान षवद्या

४५. वायब
ु ंधन – षवमान के शलये अजस्त्र गब्ु बारे (बलन
ू ) बनाना.

४६. स्त्विषलेपाहदसप्त्क्रया – हीन धातुको सोने चांदीका मुलामा दे ना.

(७) वेश्मशास्त्र ४ षवद्यांए और ११ कलांए.

(२०) वासो षवद्या

४७.चमषकैर्ेयवामयकाषपाषसाहद पटबंधन –चमडा , कपास के वस्त्र बनाना.

(२१) कुटटी षवद्या

४८. मत्ृ साधन – मीट्टी तयार करना.

४९. ति
ृ ाद्याच्छादन - घास आहदसे मकान का छत बनाना.

(२२) मंहदर षवद्या

५०. चूिोपलेप – हदवाल को तलॅ स्त्टर करना.

५१. विषकमष –रं गसफेदी करना.

५२. दारुकमष – बढाई काम.

५३. मत्ृ कमष – शमट्टीका बांधकाम

(२३) प्रासाद षवद्या

५४. र्चराद्यालेखन- र्चर बनाना.

५५.प्रनतमाकरि- मूनतष बनाना.

५६. तलकक्रया- मकानकी फरशी लगाना.

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 73


५७. शशखरकमष- कलश वा घुम्मज बनाना.

(८) प्राकारशास्त्र - ४ षवद्याए व ६ कलांए

(२४) दग
ु ष षवद्या – ककलए का ननमाषि करना.

(२५) आकार षवद्या –खंदक खोदना

(२६) यध्
ु द षवद्या -

५८. मल्लयध्
ु द -कुस्त्ती

५९. शस्त्रसंधान – शरसे यध्


ु द करना.

६०. अस्त्रननतपातन- अस्त्र फेकना.

६१. व्युहरचना – सैन्यकी युध्दप्रसंग मे रचना करना.

६२. शल्यादृनत – लढाईमे होनेवाले षवषवध जखमोंपर इलाज करना.

६३. व्रिव्यार्धननराकरि- शरररके फोड आहद त्रबमारी का इलाज करना.

(९) नगर रचना शास्त्र -५ षवद्याए व १ कला.

(२८) युध्द षवद्या – बाजारोंका ननयोजन.

(२९) राजगह
ृ षवद्या –राजवाडे की ननशमषती.

(३०) सवषजनवास षवद्या – षवषवध स्त्तरके लोगोंके शलए मकान बनाना.

(३१) वनोपवन षवद्या - बर्गचा तयार करना.

६४. वनोपवन रचना- बागकाम

(३२) दे वालय षवद्या- दे वालय से संबर्धत कायष

(१०) यंरशास्त्रमे एकभी षवद्या या कला नही आती

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 74


१७ नारद शशल्पशास्त्रम की षवर्यसच
ू ी

[ यह ग्रंथ इंटरनॅशनल इंस्त्टीट्युशन ऑफ संस्त्कृत ररसच ्ष मैसूर , मुहद्रत करनेवाली है .


इंस्त्टीट्यट
ु के संचालक सूर्चत करते है कक यह ग्रंथ पांच सहस्त्र वर्ष परु ाना है . ]

पाठ षवर्यनामानन आंग्ल अनुवाद


० तर ग्रंथारम्भ: इंरोडक्शन
१ कल्पाहद वर्षधारया बार्धतानां जनानां रे न -सओदन मेंस व्हे ल
षवलाप:
२ जनकृत शशवस्त्तनु त: दे अर प्रेअर तु गॉड
३ तर नारदगमनम, तेन महर्ीिां जना नारद कम्स अड
ॅं इंस्त्रक्टस दे म
ननलयननमाषिो पदे शक्रमश्च .
४ वास्त्तप
ु रु
ु र् महहमा पॅरोन-सेंट ऑफ इंजीननअररंग
५ भवनयोग्यभशू मलक्षिं, भप
ू रीक्षा च ग्राउं ड सट
ु े बल रे सीडेंस, इट्स इंस्त्पेक्शन
६ ग्रामसीमांतलक्षिकठनं व्हीलेज बाउं ड्रीज
७ ग्रामाहदस्त्थलसमीकरिलक्षिं लेव्हशलग ऑफ व्हीलेज साइट
८ मागषलक्षिकथनं रोड्स अड
ॅं स्त्रीट्स
९ जलाशयतटाक लक्षिकथनं ं
पॉड्स अड
ॅं लेक्स
१० प्रिालीसेतु लक्षिकथनं आचष त्रब्रजेस
..

पाठ षवर्यनामानन आंग्ल अनव


ु ाद
११ गह
ृ ादीनामायाहदमानक्रम: मेजरमेंट्स
१२ दशषवधग्रानननमाषि लक्षिं टे न काइंड्स ऑफ व्हीलेजेस
ग्राम लक्षिकथनं नेचर ओफ व्हीलेज
१३ अग्रहार ग्राम लक्षि अग्रहार ग्राम
१४ महा ग्राम लक्षि महा ग्राम
१५ ब्रम्हपथ ग्राम लक्षि ब्रम्हपथ ग्राम
१६ शंकर ग्राम लक्षि शंकर ग्राम
१७ वासव ग्राम लक्षि वासव ग्राम
१८ संककिष ग्राम लक्षि संककिष ग्राम
१९ मुखभद्र ग्राम लक्षि मुखभद्र ग्राम
२० मंगल ग्राम लक्षि मंगल ग्राम

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 75


..

पाठ षवर्यनामानन आंग्ल अनुवाद


२१ शुभ ग्राम लक्षि शुभ ग्राम
२२ चतुदषशषवर्ध नगरननमाषि लक्षि फोटीन काइंड्स ओफ टाउं स अॅंड शसटीज
द्रोिक द्रोिक
प्रस्त्तर प्रस्त्तर
२३ नगर लक्षिं नगर लक्षिं नगर लक्षिं
२४ ननगम नगर लक्षिं ननगम
२५ पट्टिाख्य नगर लक्षिं पट्टि
२६ सवषतोभद्र नगर लक्षिं सवषतोभद्र
२७ कामक
ुष नगर लक्षिं कामक
ुष
२८ स्त्वप्स्त्तक नगर लक्षिं स्त्वप्स्त्तक
२९ चतम
ु ख
ुष नगर लक्षिं चतम
ु ख
ुष
३० अष्टमख
ु अष्टमख

..

पाठ षवर्यनामानन आंग्ल अनुवाद


३१ वैजयंती नगर लक्षिं वैजयंती
३२ भप
ू ाल नगर लक्षिं भप
ू ाल
३३ दे वेशनगर लक्षिं दे वेशा
३४ परु ं दरनगर लक्षिं परु ं दरा
३५ श्रीनगर लक्षिं श्रीनगर
३६ पंचषवधा दग
ु नष नमाषि क्रम: -वनदग
ु ष फाइव्ह काइंड्स ऑफ फोट्षस – फॉरे स्त्ट
लक्षिं फोटष
३७ र्गररदग
ु ष लक्षिं हील -फोरे स
३८ जलदग
ु ष लक्षिं वॉटर फोटष
३९ वाहहनीदग
ु ष लक्षिं ररव्हर फोटष
४० युध्ददग
ु ष लक्षिं बॅटल फोटष
..

पाठ षवर्यनामानन आंग्ल अनव


ु ाद
४१ संककिषनगर लक्षिं मेरोपोशलस
४२ ग्रामषवधीनगरषवर्ध लक्षिं व्हीलेज अॅंड शसटी स्त्टीट्स
४३ ग्रानगह
ृ प्रमािाहद साईजेस ऑफ प्व्हलेज टे नामेंट्स

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 76


४४ नगरसदनभनलक्षिप्रमािाहद टाऊन रे शसडेंसेस,टाईतस, अॅंड मेजरमेट्स
४५ क्षत्ररयप्रासादननमाषि लक्षिं कंस्त्रक्शन ऑफ पॅलेसेस
४६ राजद्वार लक्षिं पॅलेस इंरंनस
४७ पट्टमहहर्ीभवंद्वार शाला लक्षिं इंरंनस ऑफ क्वींस सइ
ु ट
४८ षववाहशाला लक्षिं हॉल ऑफ वेडडंग
४९ भूशमलम्बन लक्षिं फाउं डेशन
५० शभषत्तलक्षिकथनं वॉल्स
..

पाठ षवर्यनामानन आंग्ल अनव


ु ाद
५१ अर्धष्ठािलक्षिं बेसमेंट
५२ उपपीठलक्षिं पेडेस्त्टल्स
५३ नानाषवधस्त्तम्बलक्षिं षपलसष
५४ भौमशभत्तीलक्षिं अथषन वॉल्स
५५ संर्धकमषलक्षिं ज्वाएंहटंग
५६ नतयषकदारुषवर्ध क्रॉस बीम्स
५७ चंद्रशाला लक्षिं अॅटीक
५८ शशखरकल्शस्त्थापनषवर्ध डोम्स अॅंड षपनाकल्स
५९ भौमांतगह
षृ ाहदप्रमािक्रम: सेलसष

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 77


१८ यंरसवषस्त्व ग्रंथ की अनक्र
ु मणिका

कै. कृ.षव. वझे के हस्त्तशलणखत से उद्घत


[सातताहहक शशल्पसंसार पुिे ३० एषप्रल १९५५ पष्ृ ठ २७७ से २७८]

सूरै: पंचशतैयक्
ुष तं शतार्धकरिैस्त्तथा ।
अष्टाध्यायसमायुक्तमनतगूढं मनोरमं ॥ बोधानंद की टीका
आठ अध्याय, एकसो एक प्रकरि और पांचसो श्लोक वाला यह ग्रंथ
मनोहर और गुढ है । – बोधानंद
अध्याय -१

१-मंगलाचरि २-षवमानशब्दाथाषर्धकरिं ३-यतत्ृ वार्धकारननिषय:


४- मागाषर्धकरिं ५-आवताषर्धकरिं ६-अंगार्धकरिं
७-वस्त्रार्धकरिं ८-आहारार्धकरिं ९-कमाषर्धकारार्धकरिं
१०-षवमानार्धकरिं ११-जात्यर्धकरिं १२-विाषर्धकरिं
अध्याय - २

१३-संज्ञार्धकरिं १४-लोहार्धकरिं १५-संस्त्कारर्धकरिं


१६-दपषिार्धकरिं १७-शक्यर्धकरिं १८-यंरार्धकरिं
१९-तैलार्धकरिं २०-और्ध्यर्धकरिं २१-वातार्धकरिं
२२-भारार्धकरिं २३-वेगार्धकरिं २४-चक्रार्धकरिं
अध्याय - ३

२५-भ्रामण्यार्धकरिं २६-कालार्धकरिं २७-षवकल्पार्धकरिं


२८-संस्त्कारार्धकरिं २९-प्रकाशार्धकरिं ३०-प्रकाशार्धकरिं
३१-उष्िार्धकरिं ३२-शैत्यार्धकरिं ३३-आंदोलनार्धकरिं
३४-नतयषचार्धकरिं ३५-षवश्वतोमख
ु ार्धकरिं ३६-धम
ू ार्धकरिं
३७-प्रािार्धकरिं ३८-संध्यार्धकरिं
अध्याय - ४

३९- आहारार्धकरिं ४०-ल,गार्धकरिं ४१-व,गार्धकरिं


४२-ह,गार्धकरिं ४३-ल,ह,गार्धकरिं ४४-ल,व.गार्धकरिं
४५-ल,व.ह.गार्धकरिं ४६-वातगषमनार्धकरिं ४७-वातगषमनार्धकरिं
४८-अंतलषक्षार्धकरिं ४९-बहहलषक्षार्धकरिं ५०-बाह्याभ्यंरलक्षार्धकरिं

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 78


अध्याय - ५

५१-तंरार्धकरिं ५२-षवध्युत्प्रसारिार्धकरिं ५३-व्यात्यर्धकरिं


५४-स्त्तंभनार्धकरिं ५५-मोहनार्धकरिं ५६-षवकाशार्धकरिं
५७-हदंडडनदशषनार्धकरिं ५८-अदृश्यर्धकरिं ५९-नतयषचार्धकरिं
६०-भारवाहनार्धकरिं ६१-घंटारवार्धकरिं ६२-शक्र
ु भ्रमिार्धकरिं
६३-चक्रगत्यर्धकरिं
अध्याय - ६

६४-वगषषवभजंत्यर्धकरिं ६५-नामननिषयार्धकरिं ६६-शक्त्युद्गमार्धकरिं


६७-भत
ू वाहार्धकरिं ६८-धम
ू यानार्धकरिं ६९-शशखोद्गमार्धकरिं
७०- अंशुवाहार्धकरिं ७१-तारामुखार्धकरिं ७२-मणिवाहार्धकरिं
७३-मरुत्सखार्धकरिं ७४-शांनतगभाषर्धकरिं ७५-गारुडार्धकरिं
अध्याय - ७

७६-शसंहहकार्धकरिं ७७-त्ररपरु ार्धकरिं ७८-गढ


ु ाचारार्धकरिं
७९-कूमाषर्धकरिं ८०-वाशलन्यार्धकरिं ८१-मांडशलकार्धकरिं
८२- आंदोशलकार्धकरिं ८३-ध्वजांगार्धकरिं ८४-वत्ृ यावनार्धकरिं
८५-वैररंर्चकार्धकरिं
अध्याय -८

८७-हदंडडनिषयार्धकरिं ८८-ध्वजार्धकरिं ८९-कालार्धकरिं


९०-षवस्त्ततकक्रयार्धकरिं ९१-अंगोपसंहारार्धकरिं ९२-नत:प्रसरिार्धकरिं
९३-प्रािकंु डल्यर्धकरिं ९४-शब्दाकर्षिार्धकरिं ९५-रोपाकर्षिार्धकरिं
९६-प्रनतत्रबंबाकर्षिार्धकरिं ९७-गमागमार्धकरिं ९८-आवासस्त्थानार्धकरिं
९९-शोधनार्धकरिं १००-पररच्छे दार्धकरिं १०१-रक्षिार्धकरिं

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 79


१९ रावसाहे व वझेजींके शब्दप्रयोगोंका पररचय

[सातताहहक शशल्पसंसार, पुि,े अंक १.४, हदनांक २२ जनवरी १९५५, पष्ृ ठ ५१ -५२]

संपादककय हटतपिी- अनेक संस्त्कृत षवद्वानोंने शशल्पशार के अनेक संस्त्कृत ग्रंथोंका आग्ल
या भारतीय भार्ओंमे अनुवाद ककया परं तु वे पाररवाररक अशभयांत्ररकी शब्दोंका सही भार्ांतर
करनेमे असमथष रहे । परं तु स्त्व. वझे, डॉ. र.पु. कुलकिी और गो.ग.जोशीजी स्त्वयं स्त्थापत्य
होने के कारि अशभयांत्ररकी शब्दोंका योग्य भार्ांतर ककया। श्री .वझेजीने अनेक संस्त्कृतजन्य
शब्दोंका प्रयोग ककया. ऐसे ८०० शब्दोंका संकलन श्री . जोशीजीने ककया था , उनमेसे १००
शब्द उन्होने अपने इस लेख द्वारा प्रकाशशत ककये ।
जलशास्त्र -वॉटर इंप्जननअररंग

संस्त्कृत शब्द आंग्ल प्रनतशब्द संस्त्कृत शब्द आंग्ल प्रनतशब्द


नदी मातक
ृ दे श कॅनोल फेड लॅं ड दे व मातक
ृ दे श रे न फेड लॅं ड
अनुप दे श माशी लॅं ड प्रपात वॉटर फॉल
धरि: / बंधन डॅम स्त्रोत कॅनाल
सेतु बंड संचेतन इरीगशन
संहरि ड्रेनेज स्त्तंभन स्त्टोरे ज
हे मंत ऋतु रबी सीजन शरद ऋतु खररफ सीजन
वसंत ऋतु हॉट वेदर सीजन कपाट ररव्हाप्ल्वंग गेट
उध्व्पाषनत व्हहटष कली स्त्लाइडडंग कुक्षपानत स्त्लाइड स्त्लाइडडंग
जलयंर पशशषयन व्हील अरर स्त्लाइडडग गेट
..

नगर रचनाशास्त्र - टाउन तलॅ ननंग

प्रपा वॉटर सतलाय रक्षक: उग्र: पोशलस


आराम: षवहार ररकक्रएशन तलेस सैननक सोल्जर
आपि माकेट नगर लाजष टाउन
प्रनतमा स्त्टॅ चु पूर शसटी
दे वालय टें पल सवषजनवास रे शसडेंशल एररया
पत्तन हाबषर ग्राम टाउन
खेट व्हीलेज खवषट हॅम्लेट
मंरशाला कौशसल हॉल सभा कोटष

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 80


प्रभा गॅलेरी कुहटका ब्लोक तलॉट

तक्षि कला -कापेंटरी

पाद पोस्त्ट पट्हटका बॅटन


पोनतका कॉबेल फलक तलॅं क
तुला बीम संर्ध जॉइंट
कट: ,कंटक रीज गंपा ककं ग पोस्त्ट
पाशलका इव्ह धारि स्त््ट
व्दार डोअर खटकी षवंडो
वातायन व्हें हटलेटर गवाक्ष स्त्कायलाइट
आधार बेस
प्राकारशास्त्र फोटीकफकेशन

पररखा मोट कूट फोटीफाइड टाउन


प्राकार फोरे स /रॅम्पटष आकर: /गव्हर: रें चेस
दग
ु ष हील फोटष आयुध वेपन
भूदग
ु ष लॅं ड फोटष स्त्वायुध शापष वेपन
जलदग
ु ष सी फोटष उग्रायुध हे वी वेपन
नतग्मायुध पॉयझंड वेपन जलास्त्र प्स्त्प्रंकशलग वेपन
अस्त्र शमसाईल काष्ठास्त्र अरॅ ोज
ननमाषय व्हीप्जबल लोष्ठास्त्र कॅनन बॉल
मानयक स्त्मोकलेस कवच: /वत्यष आमषर
दहनास्त्र गॅस वेपन शशत्रबर कॅम्प
शशल्पद्रव्य – इंप्जननअररंग मटे ररअल्स

पार्ाि इप्ग्नअस रॉक्स प्रस्त्तर सेशसमेंटरी रॉक्स


आहदनतज मेतेरोररक परपुटी लॅ शमनेटेड
प्व्दनतज टे रेस्त्रीअल ग्रावा बोल्डर
ककषर कंकर इष्टका ब्रीक
शशला फॅग/ स्त्लॅ ब चूिष सुधा लाइम
अश्मा स्त्टोन मेटल दृर्द ग्रावल
कराल फाइन ग्रावल शसकता सॅंड
पुटभेदक चक्र लाइम मॉटष र शमल मेखला हे डर स्त्टोन

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 81


मग्ु दी कोअसष सॅंड गल्
ु माश फाइन सॅंड
र्चक्कि / कल्क ग्राउं ड स्त्टोन कारवंद एमरी
उपला /खंड ब्रीक बॅट्स पर शीट
यंर शास्त्र - मेकॅशमक्स

प्रसरि एक्सपांशन कायष वकष


आकंु चन कॉन्रक्शन कमष आउट-टमष

श्री. गो.ग. जोशी जीवन गौरव ग्रंथ 82


डॉ. अशोक सदाशशव नेने डॉ. लीना हुन्नगीकर

• बी .ई. (नागपरू ), एम.ई., पीएचडी रूडकी • एम.ए, पी.एच. डी.


• वव. एन. आय. टी. नागपूर यहा १९७२ ते • सह प्राध्यापक तथा ववभाग प्रमुख -सांस्कृत
२००२ तक स्थापत्य ववभागमे अध्यापन ववभाग, एच ्.पी. टी. आट्णस अ‍ॅंड आर.वाय.के,
का काम सायांस कॉलेि नाशशक .
• १५० से अधिक प्रकल्प के मद
ृ ा • गत १० सालसे अध्यापन कायण.
अशभयाांत्रिकी सल्लागारका . • वैयस्ततक स्वरूपमे सांस्कृत भाषा ववषयक
• महाराष्ट्र , मध्य प्रदे श व ओररसा यहाां मद
ृ ा ववववि स्तरोंपर कायण .
पररक्षा, गुणवत्ता ननयांिण तथा प्रयोगशाला • कणेरी मठ गुरुकुल मे प्राथशमक शाला के
प्रस्थावपत करना इत्यादद कामोंमे योगदान ववद्याथीयोंके शलये सांस्कृत पाठ्यक्रम

• राष्ट्टीय व आांतरराष्ट्टीय स्तरपर ५० से ननशमणती मे सहयोग.

अधिक शोि ननबांि प्रशसध्द . • वल्डण हे ररटे ि वीक २०२० के उपलक्षमे ४

• उत्कृष्ट्ठ शोि ननबांिके शलए १९८५ मे स्व्हडडओ यु ट्युबपर प्रसाररत.


आय आय टी रूडकी का खोसला स्वणणपदक • कालीदास की नाटकोंमे ववदष
ु क - स्व्हडडओ
प्रदान . यु ट्युबपर प्रसाररत.
• तीन सांशोिकोंकोको पी एच डी व दोन • इनतहास सांकलन सशमती, नाशशक और
सांशोिकोंको एम ई पदवी उनके मागणदशणनमे वैददक शशल्प शोि प्रनतष्ट्ठान, नागपरू से
प्राप्त . प्रशसध्द श्री. वझे गौरव ग्रांथ (२०१९) की
• नवी ददल्ली स्स्थत भारतीय मद
ृ ा
सांपाददका.
अशभयाांत्रिकी सोसायटीव्दारा उन्हे एक
• गुरु गोववांद अशभयाांत्रिकी महाववद्यालय
आांतररास्ष्ट्रय सांस्थापर (ऐनतहाशसक
ां
कॉफरस (२०१८) मे शशल्पशास्ि पर
वास्तुओांका सांरक्षण ) चार साल के शलए
शोिननबांि का वाचन.
मनोननत.
• सांस्कृत ववश्वववद्यालय आणांद -(२०१९) मे
• स्वयांशशक्षण पध्दतीके पाच सांगणक
स्वाफ्टवेअर ननमाणण ‘ सांस्कृत वाांग्मय मे नगररचना शास्ि

• ‘काली शमट्टी मे सुरक्षक्षत बुननयाद के शलए ववषयपर शोिननबांि का वाचन.


स्िओफोमका उपयोग’ इस ववषय पर उन्हे • ां
वल्डण सांस्कृत कॉफरस नयी दे हली (२०१२)
भारतीय पेटेंट प्राप्त. मे शोिननबांि का वाचन.
• प्राचीन भारतीय अशभयाांत्रिकी इस ववषयपर • पुणे ववद्यापीठ की सांस्कृत पाठ्यक्रम
सांशोिन. सशमती की सदस्य.
• पाांच मुदित, दस वेब ग्रांथ प्रशसध्द .

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