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भाग - 1 सूय� �व�ान (sun science)- आज भी कई लोग इस �व�ान का उप…

India: great mysterious passed technology and knowledge.


November 2, 2015 at 9:02 AM ·

भाग - 1
सूय� �व�ान (sun science)- आज भी कई लोग इस �व�ान का उपयोग करके �बना खाए �पए तं�र�त जीवन
जीते हे...और आधु�नक �व�ान से भी कही गुना �यादा आधु�नक ये हमारे �ह���तान का �ान हे.... आज नह�
तो कल इस �ान के �बना कोई सं�कृ�त �टक नह� सकती....इसी �ाचीन(अ�याआधु�नक) भारत क� खोज
�फरसे सारी ��नया करेगी. सं�कृत एक पूण� और �ाकृ�तक भाषा हे. �जसका अहसास पूरी ��नया को हे (हमारे
अलावा)..
पदाथ� प�रवत�न �कतना अ�छा लगता है ना सुनकर, एक पदाथ� का �सरे पदाथ� म� �पांतरण. स�दय� से इस
�वषय को समझने क� सीखने क� पर,ये �सफ� पढ़ने और सुनने म� ही सहज लगता है ये �वषय इतना सरल है नह�
और ना ही इस �वषय के रह�य ही इतने सहज �ा�य है क� �जनका �ान पाकर हम इस �द� �वषय म� पारंगतता
हा�सल कर सके. एक बात म� आपको बता �ँ सदगु�दे व ने इस �वषय को न �सफ� जन सामा�य के �लए सरल
�प म� ��तुत �कया अ�पतु �वषय क� गोपनीयता को भी सू�ब� �प म� सभी �श�य� के सम� रख कर इस
���ा�य �वषय को समझने और सीखने म� सहज कर �दया. ‘सूत रह�यम’ एक ऐसा ही ��थ है �जसमे म�ने सूय�
�व�ानं और पारद तं� के अ�य�धक गोपनीय रह�य� को सदगु�दे व के �ारा �ा�त कर �लखा है. उसी ��थ म� से
कुछ �व�धय� और रह�य� को �मशः ‘तं�-कौमुद�’ के इन प�� पर ��त अंक हम दे ते रह�गे. इस बार का ये लेख
उसी क� कड़ी है.
१९७१ म� �व�ानं ने ९२ अणुओ क� खोज क� और बताया क� ��ा�ड म� इतने ही अणु ह� इससे �यादा नह�,
१९८७ म� पुनः घोषणा क� गयी क� १0३ अणु होते ह�. मतलब समझे आप, अरे नह� समझे , अरे �व�ानं क�
�गनती बदलती रहती है समयानुसार �यूं�क उसक� रह�य� का खोज क�� ब�हग�त होता है और इसी कारण आज
भी वो स�पूण� १४७ अणु� को नह� खोज पाया पर अ�या�म का खोज क�� होता है अ�तःगत. और
सह��ा��दय� पहले ही �स�ा�म ने ये �प� कर �दया था क� १४७ अणु होते है, और ये सम�त अणु उप��थत
होते ह� सूय� क� र��मय� म�. सूय� क� वे र��मयाँ �जनका परो� �प से रंग �ेत ���गोचर होता है व�तुतः वे ७
अलग अलग रंग� से यु� होती है तथा �जनका संयु� �प सफ़ेद ही �दखाई दे गा. ब�गनी, जामुनी,नीला,हरा,
पीला,नारंगी और लाल ये सात रंग होते ह� इन �करण� के. वेद� म� सूय� को ७ अ�ो के रथ पर आरोहण करते �ए
बताया है तो उसका ब�त ही गूढ़ अथ� है. अथा�त सूय� �व�ानं को य�द समझना हो तो पहले उसक� ७ वण�य
�करण� को समझना होगा. ��येक �करण २१ अणु� के गुण� से यु� होती है, इस �कार ७X२१=१४७ हो गए
ना. ��येक अणु का अपना गुण होता है.
सम� सृ�� इ�ही १४७ अणु� से �न�म�त है , चाहे कम हो या �यादा पर है इसी से �न�म�त, जैसे एक कागज २१
अणुओ से �न�म�त है तो �वण� ९७ अणुओ से �न�म�त है, इस �कार अणु� क� सं�या ��येक व�तु या �ाणी म�
�भ� �भ� होगी. और सूय� �व�ानं का मूल ही ये है क� य�द उन अणु� को उनके गुण� को समझ �लया जाये तो
पदाथ� का �पांतरण सहज हो जायेगा. ��येक अणु का अपना गुण है, अथा�त १४७ अणु� के अपने अपने गुण
ह� �ज�ह� समझने के बाद �नमा�ण और �पांतरण क� ��या सहज हो जाती है �यूं�क ये ��या �� ��या है
संजीवन ��या है,इसके �लए साधक को स��� �द� �� मं� का अपने मुख से उ�चारण करने का अ�यास
करना पड़ता है उस ��या म� �स� होना पड़ता है, और म� आपको बता �ँ क� मुख का अथ� �ज�हा, कंठ,
दांत,�ास या आहार नली नह� होता मुख का अथ� होता है ना�भ, जब मं� �वा�ध�ान का अथ� ही होता है �वयं
का अ�ध�ान , भवन या घर जहा से मं� ना�भ तक प�चता है और ना�भ तक प�च कर सम�त वायु और
उप��थत अ��न क� ऊजा� से तेजोमय होकर जीवन दे ता है पदाथ� या जीव को. और �जस भी साधक को ये मं�
�स� होता है वो नवीन सृ�� का सृजन कर सकता है जीवन दान दे सकता है, भगवान कृ�ण ने अपने गु�
संद�पन ऋ�ष के पु� को, अ�भम�यू पु� परी��त को ऐसे ही तो जीवन �दया था और १९८४ क� अमरनाथ या�ा
म� सदगु�दे व �ारा सु�म�ा को पुनः जीवन दे ने क� घटना कौन भूल सकता है, ��येक �करण �जनका अपना वण�
या रंग होता है उनका �वामी एक ��ऋ�ष होता है और होता है उनका अपना एक मं�,याद र�खये ये मं�
२१-२१ �वशेष अणु� के गुण� से यु� होते ह� और इन म��� के बीजा�र� का पर�पर स�पुट पदाथ� के गुणधम�
या संयोजन के अनुसार �कया जाता है �जसका �ान साधक को स��� �दान कर दे ते है, तब साधक य�द �वयं
के शा�� ��ो का �नमा�ण करता है तो �वभ� कर लेता है उसी अनु�प अपनी आ�मा को भी(इस �वषय क�
गूढता तो आगे आने वाले अंको म� �प� क� जायेगी, �यूं�क इसी �वषय पर १००० प�े �लखे जा सकते ह�)
,पदाथ� तो �कृ�त म� सदै व ही उप��थत रहते ह� ये अलग बात है क� वो �दखाई ना दे पर जब �कसी भी श�� या
उपादान के मा�यम से उनके घटक अणु� का पर�पर योग कर �दया जाये तो वे �कट अव�था म� �दखने लगते
ह�. एक सूय� �व�ानी या रस शा�� का �ाता ये भली भां�त जानता है क� उसे कब �कस अणु को पकड़ना है और
कब उसका �कसी और अणु से योग या �वखंडन करना है,मह�वपूण� यही है क� कब उन अणु� को �कस
तरीके से �वभ� �कया जाये और कैसे उनका योग कर �कसी नवीन पदाथ� क� �ा��त क� जाये. और ये भी
अ�यंत ��कर काय� है , याद र�खये पढ़ने म� �कतना आसान लगता है न अणु� को �वभ� कर उनका योग
करना, पर ऐसा है नह� �यूं�क य�द सही तरीके से �वखंडन या संलयन क� ��या न हो पाए तो जो ऊजा� मु�
होती है वो अ�य�धक �वनाशकारी होती है और कई स�दय� तक अपने �वनाश से मानव सं�कृ�त और जीवन को
�भा�वत कर दे ती है, मुझे पता है �हरो�शमा और नागासाक� को आप भूले नह� ह�गे. खैर म� आपको इतना बता
�ँ क� इन �करण� का योग या �वखंडन करते समय २ मह�वपूण� उपादान होते ह� �जनका �योग करने से
सफलता �मलती है १. १४७ फलको से यु� ल�स �जसमे से �भ� �भ� अणु� से यु� �करण ही गुजर सकती है
और �जसको ग�त दे कर उससे मनोवां�छत त�व� के अणु� का योग कराया जा सके और �सरा “अणु �स��
मात�ड गोलक” �जसको योगी अपने गले म� धारण करते है और �जसके �ारा बगैर ल�स के भी अणु� को
�वभ� या संल�यत �कया जा सकता है. इसका �नमा�ण ही अ�यंत ��कर है, और �जसे �ा�त कर उन स�त म���
को सहज ही �स� �कये जा सकते ह� �ज�ह� स�त ऋ�ष मं� कहा जाता है और जो क� १४७ अणु� को �स�
करने म� �योग �कये जाते ह�. इस गु�टका और ल�स का �नमा�ण पारद(mercury) के �ारा ही होता है या ये
कहना चा�हए क� सूत के �ारा होता है ऐसे सूत के �ारा �जस पर २२ सं�कार हो चुके हो �यूं�क १८ सं�कार के
बाद पारद �वपरीत ग�त करने लगता है अथा�त भ�म �प से पुनः जी�वत होता �आ ठोस और �� क� अव�था
म� आने लगता है तथा २२वे म� पूरी तरह पारदश� और सृजन �मता से यु� हो जाता है , ऐसे पारद से ही अणु
�स�� मात�ड मं� का लोम �वलोम �योग कर इस �कार का गोलक और ल�स �न�म�त �कया जाता है. ये ��या
अ�यंत ��कर और गोपनीय है.

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Amit Jain
What is exact kriya and vidhi
12 hrs Like Reply More

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