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माण का ल ण …
माण के भेद …
य
इनम से आ मा, मन और इं य का संयोग प जो ान
का करण वा माण है वही य है। व तु के साथ
इं य- संयोग होने से जो उसका ान होता है उसी को
' य ' कहते ह। यह माण सबसे े माना जाता है।
(१) इं य,
(२) इं य का संबंध और
(३) इं यसंबंध से उ प ान
अनुमान
य को लेकर जो ान (तथा ान के कारण) को
अनुमान कहते ह। जैस,े हमने बराबर दे खा है क जहाँ
धुआँ रहता है वहाँ आग रहती है। इसी को नैया यक
' ा त ान' कहते ह जो अनुमान क पहली सीढ ़ है।
हमने कह धूआँ दे खा जो आग क जस धूएँ के साथ
सदा हमने आग दे खी है वह यहाँ ह। इसके अनंतर हम
यह ान या अनुमान उ प आ क 'यहाँ आग है'।
अपने समझने के लये तो उपयु तीन खंड काफ है पर
नैया यक का काय है सरे के मन म ान कराना, इससे
वे अनुमान के पाँच खंड करते ह जो 'अवयव' कहलाते
ह।
उपमान
गौतम का तीसरा माण 'उपमान' है। कसी जानी ई
व तु के सा य से न जानी ई व तु का ान जस
माण से होता है वही उपमान है। जैस,े नीलगाय गाय के
स श होती है। कसी के मुँह से यह सुनकर जब हम
जंगल म नीलगाय दे खते ह तब चट हम ान हो जाता है
क 'यह नीलगाय है'। इससे तीत आ क कसी व तु
का उसके नाम के साथ संबंध ही उप म त ान का
वषय है। वैशे षक और बौ नैया यक उपमान को
अलग माण नह मानते, य और श द माण के ही
अंतगत मानते ह। वे कहते ह क 'गो के स श गवय होता
है' यह श द या आगम ान है य क यह आ त या
व ासपा मनु य कै कहे ए श द ारा आ फर
इसके उपरांत यह ान 'यह जंतु जो हम दे खते ह गो
के स श है' यह य ान आ। इसका उ र
नैया यक यह दे ते ह क यहाँ तक का ान तो श द और
य ही आ पर इसके अनंतर जो यह ान होता है
क 'इसी जंतु का नाम गवय है' वह न य है, न
अनुमान, न श द, वह उपमान ही है। उपमान को कई नए
दाश नक ने इस कार अनुमान कै अंतगत कया है। वे
कहते ह क 'इस जंतु का नाम गवय ह', ' य क यह गो
के स श है' जो जो जंतु गो के स श होते है उनका नाम
गवय होता है। पर इसका उ र यह है क 'जो जो जंतु गो
के स य होते ह वे गवय ह' यह बात मन म नह आती,
मन म केवल इतना ही आता ह क 'मने अ छे आदमी के
मुँह से सुना है क गवय गाय के स श होता है ?'
शद
चौथा माण है - श द। सू म लखा है क आ तोपदे श
अथात आ त पु ष का वा य श द माण है। भा यकार
ने आ तपु ष का ल ण यह बतलाया है क जो
सा ा कृतधमा हो, जैसा दे खा सुना (अनुभव कया) हो
ठ क ठ क वैसा ही कहनेवाला हो, वही आ त है, चाहे
वह आय हो या ले छ। गौतम ने आ तोपदे श के दो भेद
कए ह— ाथ और अ ाथ। य जानी ई बात
को बतानेवाला ाथ और केवल अनुमान से जानी
जानेवाली बात (जैसे वग, अपवग, पुनज इ या द)
को बतानेवाला अ ाथ कहलाता है। इसपर भा य करते
ए वा यान ने कहा है क इस कार लौ कक और
ऋ ष— वा य (वै दक) का वभाग हो जाता है अथात्
अ ाथ मे केवल वेदवा य ही माण को ट म माना जा
सकता है। नैया यक के मत से वेद ई रकृत है इससे
उसके वा य सदा स य और व सनीय ह पर लौ कक
वा य तभी स य माने जा सकते ह। जब उनका
कहनेवाला ामा णक माना जाय। सू म वेद के
ामा य के वषय म कई शंकाएँ उठाकर उनका
समाधान कया गया है। मीमांसक ई र को नह मानते
पर वे भी वेद को अपौ षेय और न य मानते ह। न य
तो मीमांसक श द मा को मानते ह और श द और अथ
का न य संबंध बतलाते ह। पर नैया यक श द का अथ
के साथ कोई न य संबंध नह मानते। वा य का अथ
या है, इस वषय म ब त मतभेद है। मीमांसक के मत
से नयोग या ेरणा ही वा याथ है—अथात् 'ऐसा करो',
'ऐसा न करो' यही बात सब वा य से कही जाती है चाहे
साफ साफ चाहे ऐसे अथवाले सरे वा य से संबंध
ारा। पर नैया यक के मत से कई पद के संबंध से
नकलनेवाला अथ ही वा याथ है। परंतु वा य म जो पद
होते ह वा याथ के मूल कारण वे ही ह। यायमंजरी म
पद म दो कार क श मानी गई है— थम
अ भधा ी श जससे एक एक पद अपने अपने अथ
का बोध कराता है और सरी ता पय श जससे कई
पद के संबंध का अथ सू चत होता है। श के
अतर ल णा भी नैया यक ने मानी है। आलंका रक
ने तीसरी वृ ंजना भी मानी है पर नैया यक उसे
पृथक् वृ नह मानते। सू के अनुसार जन कई अ र
के अंत म वभ हो वे ही पद ह और वभ याँ दो
कार क होती ह—नाम वभ और आ यात
वभ । इस कार नैया यक नाम और आ यात दो ही
कार के पद मानते ह। अ य पद को भा यकार ने नाम
के ही अंतगत स कया है। याय म ऊपर लखे चार
ही माण माने गए ह। मीमांसक और वेदांती अथाप ,
ऐ त , संभव और अभाव ये चार और माण कहते ह।
नैया यक इन चार को अपने चार माण के अंतगत
मानते ह।
अथाप
या ुत वषय क उपप जस अथ के बना न हो,
उस अथ के ान को 'अथाप ' कहते ह। जैस-े -दे वद
दन म कुछ भी नह खाता, फर भी खूब मोटा है'। इस
वा य म 'न खाना तथा प मोटा होना' इन दोन कथन म
सम वय क उपप नह होती। अत: उपप के लए
'रा म भोजन करता है' यह क पना क जाती है। इस
कथन से यह प हो गया क 'य प दन म वह नह
खाता, पर तु रा म खाता है'। अतएव दे वद मोटा है।
यहाँ पर थम वा य म उपप लाने के लए, 'रा म
खाता है' यह क पना वयं क जाती है। इसी को
'अथाप ' कहते ह।
अथाप के भेद …
अनुपल ध या अभाव
अभाव माण -- य आ द माण के ारा जब
कसी व तु का ान नह होता, तब 'वह व तु नह है' इस
कार उस व तु के 'अभाव' का ान हम होता है। इस
'अभाव' का ान इ यस कष आ द के ारा तो हो
नह सकता, य क इ यस कष 'भाव' पदाथ के
साथ होता है। अतएव 'अनुपल ध', या 'अभाव' नाम के
एक ऐसे वत माण को मीमांसक मानते ह, जसके
ारा कसी व तु के 'अभाव' का ान हो। यह तो
मीमांसक का एक साधारण मत है। क तु भाकर इसे
नह वीकार करते। उनका कथन है क जतने ' माण'
है, सब के अपने-अपने वत ' मेय' ह, क तु 'अभाव'
माण का कोई भी अपना ' वषय' नह है। जैस-े -'इस
भू म पर घट नह है', इस ान म य द वहाँ घट होता, तो
भूतल के समान उसका भी ान होता, क तु ऐसा नह
है। फर हम दे खते ह 'केवल भू म', जस का ान हम
य से होता है। व तुत: 'अभाव' का अपना व प तो
कुछ भी नही है। वह तो जहाँ रहता है, उसी आधार के
साथ कहा जाता है। इस लए यथाथ म भूतल के ान के
अतर 'घट नह है' इस कार का ान होता ही नह ।
अतएव 'अभाव' अ धकरण व प ही है। इस का पृथक्
अ त व नह है।
स भव माण
कुमा रल ने 'स भव' क चचा क है। जैस-े -'एक सेर ध
म आधा सेर ध तो अव य है'; अथात् एक सेर होने म
स दे ह हो सकता है, क तु उसके आधा सेर होने म तो
कोई भी स दे ह नह हो सकता। इसे ही 'स भव' का नाम
का माण 'पौरा णक ' ने माना है। कुमा रल ने इस
'अनुमान' के अ तगत माना है।
ऐत माण
'ए त ' का भी उ लेख कुमा रल ने कया है। जैसे 'इस
वट के वृ पर भूत रहता है'। यह वृ लोग कहते आये
ह। अत: यह भी एक वत माण है। पर तु इस कथन
क स यता का नणय नह हो सकता, अतएव यह
माण नह है। य द माण है तो यह 'आगम' के
अ तभूत है। क तु इन दोन को अ य मीमांसक क
तरह कुमा रल ने भी वीकार नह कया।
तभा माण
' तभा' अथात् ' ा तभ ान' सदै व स य नह होता,
अतएव इसे भी मीमांसक लोग माण के प म नह
वीकार करते।
मेय
माण का वषय ( जसे मा णत कया जाय) मेय
कहलाता है। ऐसे वषय याय के अ तगत बारह गनाए
गए ह—
ामा यवाद का मह व
यायशा तथा मीमांसाशा म ' ामा यवाद' सब से
क ठन वषय कहा जाता है। म थला म व म डली म
स है क १४व सद म एक समय एक ब त बड़े
व ान् और क व कसी अ य ा त से म थला के
महाराज क सभा म आये। उनक क व वश और
व ा से सभी च कत ए। वह म थला म रह कर
' ामा यवाद' का वशेष अ ययन करने लगे। कुछ दन
के प ात् महाराज ने उनसे एक दन नवीन क वता
सुनाने के लए कहा, तो ब त दे र सोचने के बाद उ होने
एक क वता क रचना क --
इ ह भी दे ख
य
उपमान
अनुमान
आ त माण
बाहरी क ड़याँ
याय दशन व सां य दशन म माणमीमांसा : एक
तुलना मक अ ययन
वैशे षक दशन म माण मीमांसा : श तपादभा य
तथा उप कारभा य के वशेष स दभ म
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title= माण_(भारतीय_दशन)&oldid=3984900" से लया गया
Last edited 1 year ago by संजीव कुमार