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युग

चार युग च के भीतर एक युग या युग का नाम

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युग, ह स यता के अनुसार, एक नधा रत सं या के


वष क कालाव ध है। हांड का काल च चार युग
के बाद दोहराता है। ह ा ड व ान से हमे यह
पता चलता है क हर ४.१-८.२ अरब साल बाद हांड
म जीवन एक बार नमाण एवं न होता है। इस
कालाव ध को हम ा का एक पूरा दन (रात और दन
मलाकर) भी मानते है। ा का जीवनकाल ४० अरब
से ३११० अरब वष के बीच होता है।

काल के अंग वशेष के प म 'युग' श द का योग


ऋ वेद से ही मलता है (दश युगे, ऋग्0 1.158.6) इस
युग श द का प रमाण अ प है। यौ तष-पुराणा द म
युग के प रमाण एवं युगधम आ द क सु वशद चचा
मलती है।
वेदांग यो तष म युग का ववरण है (1,5 ोक)। यह
युग पंचसंव सरा मक है। कौ ट य ने भी इस
पंचव सरा मक युग का उ लेख कया है। महाभारत म
भी यह युग मृत आ है। पर यह युग पा रभा षक है,
अथात् शा कार ने शा ीय वहार स के लये इस
युग क क पना क है। सतयुग, ेतायुग, ापरयुग और
कलयुग एक प रक पना है सतयुग क प रक पना म
सभी इ छा क पू त त काल होती है ेतायुग म कुछ
इ छा को छोड़कर अ या धक इ छा क पू त होती है
और ापर म आधे इ छा क पू त होती है कलयुग म
कोई ब त ब त कम इ छा क पू त होती है पर तु
कालयुग क पूण क पना होने पर सतयुग पुनः ारंभ
होता है ।

जो वा त वक व है मा इसम जीवनयापन करने के


लए मान सक व शारी रक प र म करना पड़ता है ।
पर तु प रक पना क नया म वयं क आ मा व
चेतना को ा त करने के लए अधम क श य से यु द
करना पड़ता है साथ ही इस व म मनु य के
अस य वचन व छलकपट को भी समझना पड़ता है ।

प रक पना क नया के म क इस वा त वक व के
ख दद से भी अ या धक खभरा है अ या धक उलझन
है अ या धक ाकुलता बैचैनी जब मनु य क मन
प रक पना क नया म वेश करती है तब से अं तम
ण अथात पांच वष तक सुख और चैन पूरी तरहा से
जीवन से चला जाता है मा सदै व चतन मनन
प रक पना ही रहता है ना जगने पर प रक पना ख म
होती है ना न ा म मा दन रात प रक पना आती ही
रहती है । कहा जाऐ तो भूख गरीबी बीमरी धोखा
अपमान मृ यु से भी भयावह कुछ है तो प रक पना क
नया क क पना अगर वा त वक नया म सतयुग
ेता युग व ारापाक युग व कालयुग होता तो व का
हर मनु य ाकुलता बैचैनी के कारण आ मह या कर
लेता ।
युग आ द का प रमाण
मु य लौ कक युग स य (उकृत), ेता, ापर और
क ल नाम से चार भाग म (चतुधा) वभ है। इस युग
के आधार पर ही म वंतर और क प क गणना क
जाती है। इस गणना के अनुसार स य आ द चार युग
सं या (युगारंभ के पहले का काल) और सं यांश (युगांत
के बाद का काल) के साथ 12000 वष प र मत होते ह।
चार युग का मान 4000 + 3000 + 2000 + 1000
= 10000 वष है; सं या का 400 + 300 + 200 +
100 = 1000 वष; सं यांश का भी 1000 वष है। युग
का यह प रमाण द वष म है। द वष = 360
मनु य वष है; अत: 12000 x 360 = 4320000 वष
चतुयुग का मानुष प रमाण आ। तदनुसार स ययुग =
1728000; ेता = 1296000; ापर = 864000;
क ल = 432000 वष है। ई श 1000 चतुयुग (चतुयुग
को युग भी कहा जाता है) से एक क प याने ाक
आयु 100 वष है। 71 द युग से एक म वंतर होता
है। यह व तुत: महायुग है। अ य अवांतर युग भी है।
येक सं या म ३६० के गुणा करना होता है य क
और क लयुग जो क १२०० द वष अव ध का था वह
मानव वष के प म ४३२००० वष का बना होता है
चार युग क अव ध इस कार है स य 17,28,000
वष , ेता 12,96,000 वष , ापर 8,64,000 वष
क लयुग 4,32,000 वष चार युग का जोड़
43,20,000 वष यानी एक चतुयुग | सरी गलती यह
ई क जब ापर समा त आ तो उस समय २४०० वा
वष चल रहा था जब क लयुग शु आ तो उसको
क लयुग थम वष लखा जाना चा हए था ले कन लखा
गया क लयुग २४०१ तो जो कहा जाता है क २०१८ म
क लयुग शु ए ५१२० वष हो गए ह उसमे से ु टपूण
जुड़े २४०० वष नकालने ह गे शेष बचे २७२० वष ही
सही अंक है | तीसरी गलती यह ई क कहा गया
क लयुग के बाद स ययुग आएगा ये वहा रक नह है
क लयुग क आखरी रा ी सोयगे सुबह उठगे तो सबकुछ
सही होगा हर सतोगुणी होगा यह संभव नह है
पतन जस कार धीरे धीरे आ उसी कार उ थान
होगा अधोगामी क लयुग के बीतने पर उ वगामी
क लयुग क शु आत होगी फर ापर फर ेता फर
स ययुग आएगा |

युग गणना वामी ी यु े र गरी जी


के अनुसार

गधम
सूय अपने महा क ( ा) के च कर लगाता है इसके
एक च कर मे पृ वी के 24000 वष लगते ह इसमे
12000 वष (चार युग क अव ध)का एक आरोही
अधच तथा 12000 (चार युग क अव ध)वष का
एक अवरोही अधच होता है ।

अवरोही अधच म 12000 वष म सूय अपने


महाके से सबसे र थ थान तक प ंचता है तब धम
का ास होते होते वह इतनी नकृ अव था मे प ंच
जाता है इस काल मे मनु य थूल जगत से परे कुछ भी
समझ नह पाता था यु तलवार से लड़े जा रहे थे ।
उसी कार आरोही अधच म सूय जब महके के
सबसे नकट थान क ओर बढ़ना शु करता है तब
धम भी उ त होना शु हो जाता है । यह वकास
12000 वष म धीरे धीरे पूण होता है । इन दोन
आरोही या अवरोही च म येक को एक दै व युग
कहते ह ।

धम (मान सक सद्च र ता) क उ त धीरे धीरे होती है


और 12000 वष क अवधी म यह चार अव था म
वभा जत होती है -

क ल युग - 1200 वष (जब सूय अपने प र मा पथ के


1/20 ह से म मण करता है) धम अपनी ारं भक
अव था मे होता है । मनु य क बु न य प रवतनशील
वा जगत से अ धक कुछ भी समझने म असमथ होती
है ।
ापर युग - 2400 वष (जब सूय अपने प र मा पथ के
2/20 ह से म मण करता है) इस काल मे धम अपनी
तीय अव था मे प ंच जाता है । मनु य क बु वा
जगत का सृजन करने वाले सू म त व और उनके गुण
को समझने लगती है ।

ेता युग - 3600 वष (जब सूय अपने प र मा पथ के


3/20 ह से म मण करता है) धम तृतीय अव था मे
प ंच जाता है । मनु य क बु सम त व ुत श य
के मूल ोत अथात ई रीय चु बक य श को समझने
म समथ हो जाती है ।
स ययुग - 4800 वष (जब सूय अपने प र मा पथ के
4/20 ह से म मण करता है) धम चौथी अव था मे
प ंच कर पूण वक सत हो जाता है । बु सब कुछ
समझने के यो य हो जाती है । सृ से परे पर का
भी पूण ान हो सकता है । स ययुग म ए महान ऋ ष
मनु ने अपनी मनु स हता म प वणन कया है-

च वाया : सह ा ण वषणा तु कृतं युगम ।

त य ताव छ त सं याम संधा तथा वध: ।।

इतरेषु ससं येशु ससं यानशेषु च षु ।

एकपायेन वत ते सह ा ण शता न च ।।
यदे तत प रसं यातमादावेव चतुयुगम ।

एतद ादशसाह दे वानां युगमु यते ।।

दे वीकानां युगाना तु सह ं प रसं यया ।

मेकमह यम तावती रा रेव च ।।

कृत युग या स ययुग चार हज़ार वष का होता है उसके


उदय क सं ध के उतने ही सौ वष और अ त क सं ध के
भी उतने ही सौ वष होते ह

इसके आगे के युग और युग संधी येक मश 1000


और 100 वष के हसाब से घट जाती ह । उदाहरण-
स ययुग (400+4000+400=4800)

ेता (300+3000+300=3600)

ापर (200+2000+200=2400)

क लयुग (100+1000+100=1200)

चार युग (चतुयुग)क अव ध का जोड़ एक दै व


युग(12000 वष) कहते ह ।

1000 दै व युग से ा का एक दन बनता है और इतने


ही दै व युग से ा क एक रात ।
ा वह महा क है जसके च कर सूय 24000 वष
म लगाता है ।

ईसा पूव सन 11501 म जब शारद य वषुव मेष रा श


के थम ब पर था तब सूय का अपने प र मा माग म
महके के नकटतम ब से र थ ब क ओर
थान शु आ और उसी के साथ मानव क बु
ीण होने लगी । 4800 वष(स ययुग) के अंत तक
आ या मक ान को समझने क श को खो दया
3600 वष( ेतायुग) चु बक य ान को समझने क
श का ास 2400 वष ( ापर) व ुत श य को
समझने क श य का ास अगले 1200 वष
(क लयुग) पूण होने पर ईसवी सन 499 म सूय अपने
महके से र थ ब पर आ गया था। भौ तक जगत से
परे कुछ भी समझ पाने क मता मनु य म नह रही थी
। इस कार 499 ईसवी पूरे युगच (24000 वष) का
सबसे अंधकारमय काल था इसके प ात सूय अपने
महके के नकटतम ब क ओर बढ़ने लगा और
मानव क बु धीरे धीरे वक सत होने लगी इस
उ वगामी क लयुग के 1100 वष (ईसवी सन 1599)
तक मानव बु जड़ होने के कारण सू म श य का
ान नह था राजनी तक तर पर भी कह शां त नह थी

इस काल के बाद आरोही ापर युग से पहले क लयुग के


सं धकाल के 100 वष म वधुयुत श य सू म त व
का पुनः ान होना शु आ।

क लयुग के अंत मे दशम अवतार कह दसवे गु गो वद


सह जी ही तो नह जनका ज म 1666 और नवाण
1708 म आ था ।

ईसवी सन 1600 म ग बट ने चुमवक य श य को


1601 म के लर ने खगोल व ान के नयम को
गैली लयो ने टे ले कोप को 1621 म ेबल ने
माइ ो कोप 1670 म नूतन ने गु वाकषण नयम
1700 म सेवरी ने ट म इंजन से पानी ख चने 1720 म
ट फन े ने मानव शरीर पर व ुत श के प रणाम
को पूनह बताया । व ान क पुनः ग त के साथ व
भर म रेलवे और टे ली ा फक तार का जाल बीच गया ।

1899 म ापर युग क सं ध के 200 वष पूण होकर


2000 वष अव ध के वा त वक ापर युग क शु आत
ई जसमे व ुत श य और उनके गुणधम का पूण
ान मानव ा त करेगा।

वतमान पंचांग म क लयुग 432000 वष का य


दशाया गया है -------

ऐसा होने का कारण है मनु मृ त म दए सू म कलयुग


क अव ध पृ वी के 1200 वष को 1200 दै ववष मान
लेना जसमे 30 -30 दै व दन के 12 दै व महीने होते ह
और एक दै व दन पृ वी के 1 वष के बराबर होता है ।

इस कार 1200 दै व वष =1200×30×12 =


432000 दै व दवस = 432000 सौर वष

यह गलती राजा परी त के दरबारी पं डत के गलत


गड़ना के आधार पर ई है राजा यु ध र ने जब
क लयुग के आगमन से पूव हमालय म जाने का न य
कया तो उनके साथ उनके दरबार के सभी ानीजन भी
क लयुग को दे खने क अ न छा से हमालय चले गए
महाराजा परी त के दरबार मे कोई ऐसा ानीजन न
बचा जो युग युगांतर क कालगड़ना का ान रखता हो
अतः उस समय चल रहे ापर युग के 2400 वष म एक
क सं या जोड़ कर क लयुग के थम वष के थान पर
2401 लखा गया य क क लयुग के शु होने पर
बु अपने न नतर तर पर चली गयी और यह गलती
कसी के ान म न आई इस कार 1200 वष अवरोही
क लयुग के बीतने पर सन 499 ईसवी म क लयुग के
चरम ब आया और 1200 वष अव ध का उ वगामी
क लयुग शु आ जो ईसवी सन 1699 म समा त
आ (गु गो व द सह जी जनका ज म क लयुग के
आ खरी चरण म सन १६६६ म ज म लया और
क लयुग क समा त १६९९ के बाद १७०८ म नवाण
ा त कया शोध का वषय है वही क क अवतार तो
नह थे ?) और ापर के सं धकाल 200 वष क
शु आत ई जो 1899 म समा त आ तब से आज सन
2017 तक 117 वष बीत चुके ह यानी ापर का 318
वा वष चल रहा है ।

यहां यह भी यान दे ने यो य है क क लयुग क समा त


पर सीधा स ययुग नह आता पहले ापर फर ेता फर
स ययुग आता है सुधार धीरे धीरे होता है रात रात नह ।
ऐसा संभव नह ह क क लयुग के आखरी दन सोये
सुबह उठे तो सब कुछ स ययुग म अ छा अ छा था ।

कहा जाता है २०१८ म क लयुग के 5120 वा वष चल


रहा है अब इसम से ापर के 2400 वष घटाने पर
( य क ापर के 2400 वष पूण होने पर 1 जोड़ कर
ही क लयुग क गनती शु क गई थी)2720 वष शेष
रहते ह जसमे आरोही क लयुग के 1200 और अवरोही
क लयुग के 1200 वष घटाने पर 320 वष शेष रहते ह
जो वतमान म ापर के 320 वे वष को द शत करते ह

केव य दशनम नामक पु तक म दए ान पर


आधा रत ।

वै ा नक माण
राम#भगवान ी राम जी के ज म-समय पर आधु नक
शोध

युगधम का व तार के साथ तपादन इ तहास पुराण


म ब त मलता है (दे खये, म यपुरण 142-144 अ0;
ग ड़पुराण 1.223 अ यय; वनपव 149 अ याय)।
कस काल म युग (चतुयुग) संबंधी पूव धारण वृ
ई थी, इस संबंध म गवेषक का अनुमान है क खो ीय
चौथी शती म यह ववरण अपने पूण पम स हो
गया था। व तुत: ईसा पूव थम शती म भी यह काल
माना जाए तो कोई दोष तीत नह होता।

क लयुग का आर भ
व ान ने क लयुगारंभ के वषय म व श वचार कया
है। कुछ के वचार से महाभारत यु से इसका आरंभ
होता है, कुछ के अनुसार कृ ण के नधन से तथा एकाध
के मत से ौपद क मृ यु त थ से क ल का आरंभ माना
जा सकता है। यत: महाभारत यु का कोई सवसंमत
काल न त नह है, अत: इस वषय म अं तम नणय
कर सकना अभी संभव नह है।

इ ह भी दे ख
भूवै ा नक कालगणना
युग (भौ मक )
युग वणन - व भ युग क वशेषताएँ

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साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

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