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ह द क वता Hindi Kavita

सा हर लु धयानवी Sahir Ludhianvi

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Talkhiyan Sahir Ludhianvi

त खयाँ सा हर लु धयानवी

1. र े -अमल

च द क लयाँ नशात क चुनकर


मु त महवे-यास रहता ँ
तेरा मलना ख़ुशी क बात सही
तुझ से मलकर उदास रहता ँ

2. एक मंज़र

उफक के दरीचे से करण ने झांका


फ़ज़ा तन गई, रा ते मु कुराये

समटने लगी नम कुहरे क चादर


जवां शा सार ने घूँघट उठाये

प रद क आवाज़ से खेत च के
पुरअसरार लै म रहट गुनगुनाये

हस शबनम-आलूद पगडं डय से
लपटने लगे स ज पेड़ के साए

वो र एक ट ले पे आँचल सा झलका
तस वुर म लाख दए झल मलाये

3. एक वाकया

अं धयारी रात के आँगन म ये सुबह के कदम क आहट


ये भीगी-भीगी सद हवा, ये ह क ह क धु धलाहट

गाडी म ँ तनहा महवे-सफ़र और न द नह है आँख म


भूले बसरे मान के वाब क जम है आँख म

अगले दन हाँथ हलाते ह, पचली पीत याद आती ह


गुमग ता खु शयाँ आँख म आंसू बनकर लहराती ह
सीने के वीरां गोश म, एक ट स-सी करवट लेती है
नाकाम उमंग रोती ह उ मीद सहारे दे ती है

वो राह ज़हन म घूमती ह जन राह से आज आया ँ


कतनी उ मीद से प ंचा था, कतनी मायूसी लाया ँ

4. यकसूई

अहदे -गुमग ता क त वीर दखाती य हो?


एक आवारा-ए-मं जल को सताती य हो?

वो हस अहद जो श म दा-ए-ईफा न आ
उस हस अहद का मफ म जलाती य हो?

ज़ दगी शोला-ए-बेबाक बना लो अपनी


खुद को खाक तरे-खामोश बनाती य हो?

म तस वुफ़ के मरा हल का नह ँ कायल


मेरी त वीर पे तुम फूल चढ़ाती य हो

कौन कहता है क आह ह मसाइब का इलाज़


जान को अपनी अबस रोग लगाती य हो?

एक सरकश से मुह बत क तम ा रखकर


खुद को आईने के फंदे म फंसाती य हो?

मै समझता ँ तक स को तम न का फरेब
तुम रसूमात को ईमान बनती य हो?

जब तु हे मुझसे जयादा है जमाने का ख़याल


फर मेरी याद म यूँ अ क बहाती य हो?

तुममे ह मत है तो नया से बगावत कर लो


वरना माँ बाप जहां कहते ह शाद कर लो

5. शाहकार

मुस वर म तेरा शाहकार वापस करने आया ं


अब इन रंगीन ख़सार म थोड़ी ज़दया भर दे
हजाब आलूद नज़र म ज़रा बेबा कयां भर दे
लब क भीगी भीगी सलवट को मुज़म हल कर दे
नुमाया रग-ए-पेशानी पे अ स-ए-सोज़-ए- दल कर दे
तब सुम आफ़र चेहरे म कुछ संजीदापन कर दे
जवां सीने के मख ती उठाने स रनगूं कर दे
घने बाल को कम कर दे , मगर र शांदगी दे दे
नज़र से त कनत ले कर मज़ाज-ए-आ जजी दे दे
मगर हां बच के बदले इसे सोफ़े पे बठला दे
यहां मेरे बजाए इक चमकती कार दखला दे

6. नज़रे-का लज

ऐ सरज़मीन-ए-पाक़ के यारां-ए-नेक नाम


बा-सद-खलूस शायर-ए-आवारा का सलाम

ऐ वाद -ए-जमील मरे दल क धडकन


आदाब कह रही ह तेरी बारगाह म

तू आज भी है मेरे लए ज त-ए-ख़याल
ह तुझ म दफन मेरी जवानी के चार साल
कु हलाये ह यहाँ पे मेरी ज़ दगी के फूल
इन रा त म दफन ह मेरी ख़ुशी के फूल

तेरी नवा जश को भुलाया न जाएगा


माजी का न श दल से मटाया न जाएगा

तेरी नशात खैज़-फ़ज़ा-ए-जवान क खैर


गुल हाय रंग-ओ-बू के हस कारवाँ क खैर

दौर-ए- खजां म भी तेरी क लयाँ खली रहे


ता-ह ये हस फज़ाएँ बसी रहे

हम एक ख़ार थे जो चमन से नकल गए


नंग-ए-वतन थे खुद ही वतन से नकल गए

गाये ह फ़ज़ा म वफा के राग भी


नगमात आ तश भी बखेरी है आग भी

सरकश बने ह गीत बगावत के गाये ह


बरस नए नजाम के न शे बनाए ह

नगमा नशात- ह का गाया है बारहा


गीत म आंसू को छु पाया है बारहा

मासू मय के जुम म बदनाम भी ए


तेरे तुफैल मो रद-ए-इलज़ाम भी ए

इस सरज़मीन पे आज हम इक बार ही सही


नया हमारे नाम से बेज़ार ही सही

ले कन हम इन फ़ज़ा के पाले ए तो ह
गर यां नह तो यां से नकाले ए तो ह!

लु धयाना गवनमट कॉलेज 1943

7. माअजूरी

खलवत-ओ-जलवत म तुम मुझसे मली हो बरहा


तुमने या दे खा नह , म मु कुरा सकता नह

म क मायूसी मेरी फतरत म दा खल हो चुक


ज़ भी खुद पर क ं तो गुनगुना सकता नह

मुझमे या दे खा क तुम उ फत का दम भरने लगी


म तो खुद अपने भी कोई काम आ सकता नह

ह-अफज़ा है जुनून-े इ क के नगमे मगर


अब मै इन गाये ए गीत को गा सकता नह

मने दे खा है शक ते-साजे-उ फत का समां


अब कसी तहरीक पर बरबत उठा सकता नह

तुम मेरी होकर भी बेगाना ही पाओगी मुझे


म तु हारा होकर भी तुम म समा सकता नह

गाये ह मने खुलूस-े दल से भी उ फत के गीत


अब रयाकारी से भी चा ं तो गा सकता नह

कस तरह तुमको बना लूं म शरीके ज़ दगी


म तो अपनी ज़ दगी का भार उठा सकता नह

यास क तारी कय म डू ब जाने दो मुझे


अब म श मा-ए-आरजू क लौ बढ़ा सकता नह
8. खाना-आबाद

(एक दो त क शाद पर)

तराने गूंज उठे ह फजां म शा दयान के


हवा है इ -आग , ज़रा-ज़रा मु कुराता है

मगर र, एक अफसुदा मकां म सद ब तर पर


कोई दल है क हर आहट पे यूँ ही च क जाता है

मेरी आँख म आंसू आ गए नाद दा आँख के


मेरे दल म कोई ग़मगीन न मे सरसराता है

ये र मे-इ कता-इ-अहदे -अ फत, ये हवाते-नौ


मोह बत रो रही है और तम न मु कुराता है

ये शाद खाना-आबाद हो, मेरे मोहत रम भाई


मुबा रक कह नह सकता मेरा दल कांप जाता है

9. सरज़मीने-यास

जीने से दल बेज़ार है
हर सांस एक आज़ार है

कतनी हज़ है ज़दगी
अंदोह-ग है ज़दगी

वी ब मे-अहबाबे-वतन
वी हमनवायाने-सुखन

आते ह जस दम याद अब
करते ह दल नाशाद अब

गुज़री ई रंगी नयां


खोई ई दलच पयां

पहर लाती ह मुझे


अ सर सताती ह मुझे

वो जामजमे वो च चहे
वो ह-अफ़ज़ा कहकहे

जब दल को मौत आई न थी
यूं बे हसी छाई न थी

वो नाज़नीनाने-वतन
ज़ोहरा- ज़बीनाने-वतन

जन मे से एक रंग कबा
आ तश-नफ़स आ तश-नवा

करके मोह बत आशना


रंगे अक दत आशना

मेरे दले नाकाम को


खूं-ग ता-ए-आलाम को

दागे-जदाई दे गई
सारी खुदाई ले गई

उन साअत क याद मे
उन राहत क याद मे

मरमूम सा रहता ं म
गम क कसक सहता ं म

सुनता ं जब अहबाब से
क से गमे-अ याम के

बेताब हो जाता ं म
आह मे खो जाता ं म

फ़र वो अज़ीज़-ओ-अकरबा
जो तोड कर अहदे -वफ़ा

अहबाब से मुंह मोड कर


नया से र ता तोड कर

ह े -उफ़ से उस तरफ़
रंग-े शफ़क से उस तरफ़

एक वाद -ए-खामोश क
एक आलमे-बेहोश क

गहराइय मे सो गये
ता र कय मे खो गये

उन का तस वुर नागाहां
लेता है दल म चुट कयां

और खूं लाता है मुझे


बेकल बनाता है मुझे

वो गांव क हमजो लयां


मफ़लूक दहकां-ज़ा दयां

जो द ते-फ़त-यास से
और यू रशे-इफ़लास से

इ मत लुटाकर रह गई
खुद को गंवा कर रह गई

गमग जवानी बन गई
सवा कहानी बन गई

उनसे कभी ग लय मे जब
होता ं म दोचार जब

नज़र झुका लेता ं म


खुद को छु पा लेता ं म

कतनी हज़ है ज़दगी
अ दोह-ग है ज़दगी

10. शक त

अपने सीने से लगाये ये उ मीद क लाश


मु त ज़ी त को नाशाद कया है मैन

तूने तो एक ही सदमे से कया था दो चार


दल को हर तरह से बबाद कया है मैन

जब भी राह म नज़र आये हरीरी मलबूस


सद आह से तुझे याद कया है मैन

और अब जब क मेरी ह क पहनाई म
एक सुनसान सी म मूम घटा छाई है

तू दमकते ए आ रज़ क शुआय लेकर


गुलशुदा श मएँ जलाने को चली आई है

मेरी महबूब ये ह गामा-ए-तजद द-ए-वफ़ा


मेरी अफ़सुदा जवानी के लये रास नह

म ने जो फूल चुने थे तेरे क़दम के लये


उन का धुंधला-सा तस वुर भी मेरे पास नह

एक यख़ब ता उदासी है दल-ओ-जाँ पे मुहीत


अब मेरी ह म बाक़ है न उ मीद न जोश

रह गया दब के गराँबार सला सल के तले


मेरी दरमा दा जवानी क उम ग का ख़रोश

(जी त= ज़दगी, नाशाद=ग़मग़ीन,उ साहहीन, हरीरी मलबूस=


रेशमा कपड़े का टु कड़ा, आ रज़=गाल और ह ठ के अंग,
शुआ= करण, गुलशुदा=बुझ चुक ,मृत ाय, श मा=आग,
तज़द द= फर से जाग उठना, अफ़सुदा=मुरझाई ई,
कु हलाई ई, तस वुर=ख़याल, वचार,याद, यख़ब ता=
जमी ई, मुहीत=फैला आ, गराँबार=तनी ई,कसी ई,
सला सल=ज़ंजीर, दरमा दा=असहाय,बेसहारा)

11. कसी को उदास दे खकर

तु हे उदास सी पाता ं म कई दन से,


न जाने कौन से सदमे उठा रही हो तुम?

वो शो खयां वो तब सुम वो कहकहे न रहे


हर एक चीज को हसरत से दे खती हो तुम।

छु पा-छु पा के खमोशी मे अपनी बेचैनी,


खुद अपने राज़ क तशहीर बन गई हो तुम।

मेरी उ मीद अगर मट गई तो मटने दो,


उ मीद या है बस इक पेशो-पस है कुछ भी नह ।

मेरी हयात क गमगी नय क गम न करो,


गमे-हयात गमे-यक-नफ़स है कुछ भी नह ।

तुम अपने न क रअनाईय पे रहम करो,


वफ़ा फ़रेब है तूल-े हवस है कुछ भी नह ।

मुझे तु हारे तगाफ़ल से य शकायत हो,


मेरी फ़ना मेरे एहसास क तकाज़ा है।

मै जानता ं क नया क खौफ़ है तुमको,


मुझे खबर है, ये नया अज़ीब नया है।

यहां हयात के पद मे मौत पलती है,


शक ते-साज क आवाज हे-न मा है।

मुझे तु हारी जुदाई का कोई रंज़ नह ,


मेरे खयाल क नया मे मेरे पास हो तुम।

ये तुमने ठ क कहा है, तु हे मला ना क ं


मगर मुझे ये बता दो क य उदास हो तुम?

खफ़ा न होन मेरी जरते-तखातुब पर


तु हे खबर है मेरी जदगी क आस हो तुम?

मेरा तो कुच भी नह है, मै रो के जी लूंगा,


मगर खुदा के लये तुम असीरे-गम न रहो,

आ ही या जो तुम को जमने से छ न लया


यहां पे कौन आ है कसी का, सोचो तो,

मुझे कसम है मेरी ख भरी जवानी क


मै खुश ं, मेरी मुह बत के फ़ूल ठु करा दो।

मै अपनी ह क हर एक खुशी मटा लूंगा,


मगर तु हारी मसरत मटा नह सकता।

मै खुद को मौत के हांथ मे स प सकता ं,


मगर ये बारे-मसाइब उठा नह सकता।

तु हारे गम के सवा और भी तो गम ह मुझे


नजात जनमे मै इक लहज़ा पा नह सकता।

ये ऊंचे ऊंचे मकान के ो ढय के तले,


हर एक गाम पे भूखे भखा रय क सदा।

हर एक घर मे ये इफ़लास और भूख का शोर


हर एक स त ये इ सा नयत क आहो बका।

ये करखान मे लोहे क शोरो-गुल जसमे,


है द न लाख गरीबो क ह का न मा।

ये शाहराह पे रंगीन सा डय क झलक,


ये झोपड मे गरीब क बेकफ़न लाश।

ये माल-रोड पे कार क रेल-पेल का शोर,


ये पट रय पे गरीब के ज़द- ब चे।

गली-गली मे ये बकते ए जवां चेहरे,


हसीन आंख मे अफ़सुदगी सी छाई ई।

ये जंग और ये मेरे वतन के शोख जवां,


खरीद जाती है उठती जवा नयां जनक ।

ये बात-बात पे कनून -जा ते क गर त,


ये ज़ लत, ये गुलामी, ये दौरे मज़बूरी।

ये गम ब त है मेरी ज़ दगी मटाने को,


उदास रह के मेरे दल को और रंज न दो।

फ़र न क जे मीरी गु ताख- नगाही का गला


दे खये आपने फ़र यारे से दे खा मुझको।

12. मेरे गीत

मेरे सरकश तराने सुन के नया ये समझती है


क शायद मेरे दल को इ क़ के न म से नफ़रत है

मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल म कैफ़ मलता है


मेरी फ़तरत को ख़ूँरेज़ी के अफ़सान से र बत है
मेरी नया म कुछ व नह है र स-ओ-न म क
मेरा महबूब न मा शोर-ए-आहंग-ए-बग़ावत है

मगर ऐ काश! दे ख वो मेरी पुरसोज़ रात को


म जब तार पे नज़र गाड़कर आसूँ बहाता ँ
तस वुर बनके भूली वारदात याद आती ह
तो सोज़-ओ-दद क श त से पहर त मलाता ँ
कोई वाब म वाबीदा उमंग को जगाती है
तो अपनी ज़ दगी को मौत के पहलू म पाता ँ

म शायर ँ मुझे फ़तरत के नज़ार से उ फ़त है


मेरा दल मन-ए-न मा-सराई हो नह सकता
मुझे इ सा नयत का दद भी ब शा है क़दरत ने
मेरा मक़सद फ़क़त शोला नवाई हो नह सकता
जवाँ ँ म जवानी ल ज़श का एक तूफ़ाँ है
मेरी बात म र ग-ए-पारसाई हो नह सकता

मेरे सरकश तरान क हक़ क़त है तो इतनी है


क जब म दे खता ँ भूक के मारे कसान को
ग़रीब को, मुफ़ लस को, बेकस को, बेसहार को
ससकती नाज़नीन को, तड़पते नौजवान को
कूमत के तश द को, अमारत के तक बुर को
कसी के चथड़ को और शह शाही ख़ज़ान को

तो दल ताब-ए- नशात-ए-ब म-ए-इ त ला नह सकता


म चा ँ भी तो वाब-आवार तराने गा नह सकता

(सरकश=सरचढ़े , जंग-ओ-जदल=यु और संघष, कैफ़=शां त,


खूँरेजी=खूनखराबा, र बत= नेह, र स=नृ य, आहंग=आलाप,
तस वुर=खयाल, सोज=जलन, श त=तेज, उ फत= ेम,
न मासराई=न म गाने वाला, फ़कत=केवल, सफ़, मुफ़ लस=
गरीब, तक बुर=मग र,गुमान, ताब-ए- नशात=खुशी क जलन,
ब म-ए-इ त=समाज क भीड़ या मह फ़ल)

13. अशआर-१

हरच द मेरी कु वते-गु तार है महबूस,


खामोश मगर तबअए-खुदआरा नह होती।

माअमूरा-ए-एहसास मे है ह -सा बपा,


इ सान को तज़लील गंवारा नह होती।

नालां ं मै बेदारी-ए-एहसास के हाथ ,


नया मेरे अफ़कार क नया नह होती।

बेगाना- सफ़त जादा-ए-मं ज़ल से गुज़र जा,


हर चीज़ सजावारे-नज़ारा नह होती।

फ़तरत क मशीयत भी बडी चीज है ले कन,


फ़तरत कभी बेबस का सहारा नह होती।

14. सोचता ँ

सोचता ँ क मुह बत से कनारा कर लूँ


दल को बेगाना-ए-तरग़ीब-ओ-तम ा कर लूँ

सोचता ँ क मुह बत है जुनून-ए-रसवा


चंद बेकार-से बे दा ख़याल का जूम
एक आज़ाद को पाबंद बनाने क हवस
एक बेगाने को अपनाने क सइ-ए-मौ म
सोचता ँ क मुह बत है सु र-ए-म ती
इसक त वीर म रौशन है फ़ज़ा-ए-ह ती

सोचता ँ क मुह बत है बशर क फ़तरत


इसका मट जाना, मटा दे ना ब त मु कल है
सोचता ँ क मुह बत से है ता बदा हयात
आप ये शमा बुझा दे ना ब त मु कल है

सोचता ँ क मुह बत पे कड़ी शत ह


इक तम न म मसरत पे बड़ी शत ह

सोचता ँ क मुह बत है इक अफ़सुदा सी लाश


चादर-ए-इ ज़त-ओ-नामूस म कफ़नाई ई
दौर-ए-समाया क र द ई सवा ह ती
दरगह-ए-मज़हब-ओ-इ लाक़ से ठु कराई ई
सोचता ँ क बशर और मुह बत का जुनूँ
ऐसी बोसीदा तम न से है इक कार-ए-ज़बूँ

सोचता ँ क मुह बत न बचेगी ज़दा


पेश-अज़-व त क सड़ जाये ये गलती ई लाश
यही बेहतर है क बेगाना-ए-उ फ़त होकर
अपने सीने म क ँ ज ब-ए-नफ़रत क तलाश

और सौदा-ए-मुह बत से कनारा कर लूँ


दल को बेगाना-ए-तरग़ीब-ओ-तम ा कर लूँ

15. नाकामी

मैने हरच द गमे-इ क को खोना चाहा,


गमे-उ फ़त गमे- नया मे समोना चाहा!

वही अफ़साने मेरी स त रवां ह अब तक,


वही शोले मेरे सीने म नहां ह अब तक।

वही बेसूद ख लश है मेरे सीने मे हनोज़,


वही बेकार तम ाय जवां ह अब तक।

वही गेसू मेरी रातो पे है बखरे- बखरे,


वही आंख मेरी जा नब नगरां ह अब तक।

कसरते-गम भी मेरे गम का मुदावा न ई,


मेरे बेचैन खयाल को सुकूं मल ना सका।

दल ने नया के हर एक दद को अपना तो लया,


मुज़म हल ह को अंदाजे-जुनूं मल न सका।

मेरी तखईल का शीराजा-ए-बरहम है वही,


मेरे बुझते ए एहसास का आलम है वही।

वही बेजान इरादे वही बेरंग सवाल,


वही बे ह कशाकश वही बेचैन खयाल।

आह! इस क कशे-सुबहो-मसा का अंजाम


म भी नाकाम, मेरी सयी-ए-अमला भी नाकाम॥

16. मुझे सोचने दे

मेरी नाकाम मोह बत क कहानी मत छे ड़,


अपनी मायूस उमंग का फ़साना न सुना|

ज दगी त ख़ सही, जहर सही, सम ही सही,


दद -आजार सही, ज़ सही, गम ही सही|

ले कन इस दद -गमो-ज़ क वुसअत को तो दे ख,
जु म क छाँव म दम तोड़ती खलकत को तो दे ख,

अपनी मायूस उमंग का फ़साना न सुना,


मेरी नाकाम मोह बत क कहानी मत छे ड़

जलसा-गाह म ये दहशतज़दा सहमे अ बोह,


रहगुज़ार पे फलाकतज़दा लोगो के गरोह|

भूख और यास से पजमुदा सयहफाम ज़म ,


तीरा-ओ-तार मकां मुफ लस -बीमार मक |

नौ-ए-इंसान म ये सरमाया-ओ-मेहनत का तज़ाद,


अ नो-तहजीब के परचम तले कौम का फसाद|
हर तरफ आ तशो-आहन का ये सैलाबे-अजीम,
नत नए तज़ पे होती ई नया तकसीम|

लहलहाते ए खेत पे जबानी का समाँ


और दहकान के छ पर म न ब ी न धुवां|

ये फलक-बोस मल दलकश -सीली बाज़ार,


ये गलाज़त पे झपटते गुए भूखे नादार|

र सा हल पे वो श फाक मकान क कतार,


सरसराते ए पद म समटते गुलज़ार|

दरो-द वार पे अनवार का सैलाबे-रवां,


जैसे एक शायरे मदहोश के वाब का जहां|

ये सभी य है? ये या है? मुझे कुछ सोचने दे ,


कौन इंसान का खुदा है? मुझे कुछ सोचने दे |

अपनी मायूस उमंग का फ़साना न सूना|


मेरी नाकाम मोह बत क कहानी मत छे ड़||

17. सुबहे-नौरोज़

फूट पड़ी मश रक से करने


हाल बना माज़ी का फ़साना, गूंजा मु तक बल का तराना
भेजे ह एहबाब ने तोहफ़े, अटे पड़े ह मेज़ के कोने
हन बनी ई ह राह
ज मनाओ साल-ए-नौ के
नकली है बंगले के दर से
इक मुफ़ लस दहकान क बेट , अफ़सुदा, मुरझाई ई-सी
ज म के खते जोड़ दबाती, आँचल से सीने को छु पाती
मु म इक नोट दबाये
ज मनाओ साल-ए-नौ के
भूके, ज़द, गदागर ब चे
कार के पीछे भाग रहे ह, व त से पहले जाग उठे ह
पीप भरी आँख सहलाते, सर के फोड़ को खुजलाते
वो दे खो कुछ और भी नकले
ज मनाओ साल-ए-नौ के

(सुबहे-नौरोज़=नव- दवस का भात, माज़ी=अतीत,


मु तक बल=भ व य, एहबाब= म , साल-ए-नौ=नववष के,
दहकान= कसान, गदागर= भखारी)

18. गुरेज़

मरा जुनून-ए-वफ़ा है ज़वाल-आमादा


शक त हो गया तेरा फ़सून-ए-ज़ेबाई
उन आरज़ू पे छाई है गद-ए-मायूसी
ज ह ने तेरे तब सुम म परव रश पाई
फ़रेब-ए-शौक़ के रंग त ल म टू ट गए
हक़ क़त ने हवा दस से फर जला पाई
सुकून-ओ- वाब के पद सरकते जाते ह
दमाग़-ओ- दल म ह वहशत क कार-फ़रमाई
वो तारे जनम मोह बत का नूर ताबाँ था
वो तारे डू ब गए ले के रंग-ओ-रानाई
सुला गई थ ज ह तेरी मु त फ़त नज़र
वो दद जाग उठे फर से ले के अंगड़ाई
अजीब आलम-ए-अ सुदगी है -बा-फ़रोग़
न जब नज़र को तक़ाज़ा न दल तम ाई
तरी नज़र तरे गेसू तरी जब तरे लब
मरी उदास-तबीअत है सब से उकताई
म ज़दगी के हक़ाएक़ से भाग आया था
क मुझ को ख़ुद म छु पाए तरी फ़सू-ँ ज़ाई
मगर यहाँ भी तआ'क़ब कया हक़ाएक़ ने
यहाँ भी मल न सक ज त-ए-शकेबाई
हर एक हाथ म ले कर हज़ार आईने
हयात बंद दरीच से भी गुज़र आई

मरे हर एक तरफ़ एक शोर गूँज उठा


और उस म डू ब गई इशरत क शहनाई
कहाँ तलक करे छु प-छु प के न मा-पैराई
वो दे ख सामने के पुर- शकोह ऐवाँ से
कसी कराए क लड़क क चीख़ टकराई
वो फर समाज ने दो यार करने वाल को
सज़ा के तौर पर ब शी तवील त हाई
फर एक तीरा-ओ-तारीक झ पड़ी के तले
ससकते ब चे पे बेवा क आँख भर आई
वो फर बक कसी मजबूर क जवाँ बेट
वो फर झुका कसी दर पर ग़ र-ए-बरनाई
वो फर कसान के मजमे' पे गन-मशीन से
क़ूक़-याफ़ता तबक़े ने आग बरसाई
सुकूत-ए-ह क़ा-ए- ज़दाँ से एक गूँज उठ
और इस के साथ मरे सा थय क याद आई
नह नह मुझे यूँ मु त फ़त नज़र से न दे ख
नह नह मुझे अब ताब-ए-न मा-पैराई
मरा जुनून-ए-वफ़ा है ज़वाल-आमादा
शक त हो गया तेरा फुसून-ए-ज़ेबाई

19. चकले

ये कूचे ये नीलाम घर दलकशी के


ये लुटते ए कारवाँ ज़दगी के
कहाँ ह कहाँ ह मुहा फ़ज़ ख़ुद के
सना- वान-ए-त द स-ए-मश रक़ कहाँ ह
ये पुर-पेच ग लयाँ ये बे- वाब बाज़ार
ये गुमनाम राही ये स क क झंकार
ये इ मत के सौदे ये सौद पे तकरार
सना- वान-ए-त द स-ए-मश रक़ कहाँ ह
तअ फ़न से पुर नीम-रौशन ये ग लयाँ
ये मसली ई अध खली ज़द क लयाँ
ये बकती ई खोखली रंग-र लयाँ
सना- वान-ए-त द स-ए-मश रक़ कहाँ ह
वो उजले दरीच म पायल क छन छन
तन फ़स क उलझन पे तबले क धन धन
ये बे- ह कमर म खाँसी क ठन ठन
सना- वान-ए-त द स-ए-मश रक़ कहाँ ह
ये गूँजे ए क़हक़हे रा त पर
ये चार तरफ़ भीड़ सी खड़ कय पर
ये आवाज़े खचते ए आँचल पर
सना- वान-ए-त द स-ए-मश रक़ कहाँ ह
ये फूल के गजरे ये पीक के छ टे
ये बेबाक नज़र ये गु ताख़ फ़क़रे
ये ढलके बदन और ये मदक़ूक़ चेहरे
सना- वान-ए-त द स-ए-मश रक़ कहाँ ह
ये भूक नगाह हसीन क जा नब
ये बढ़ते ए हाथ सीन क जा नब
लपकते ए पाँव ज़ीन क जा नब
सना- वान-ए-त द स-ए-मश रक़ कहाँ ह
यहाँ पीर भी आ चुके ह जवाँ भी
तनौ-मंद बेटे भी अ बा मयाँ भी
ये बीवी भी है और बहन भी है माँ भी
सना- वान-ए-त द स-ए-मश रक़ कहाँ ह
मदद चाहती है ये ह वा क बेट
यशोधा क हम- जस राधा क बेट
पय बर क उ मत जलेख़ा क बेट
सना- वान-ए-त द स-ए-मश रक़ कहाँ ह
बुलाओ ख़ुदायान-ए-द को बुलाओ
ये कूचे ये ग लयाँ ये मंज़र दखाओ
सना- वान-ए-त द स-ए-मश रक़ को लाओ
सना- वान-ए-त द स-ए-मश रक़ कहाँ ह

20. ताजमहल

ताज तेरे लये इक मज़हर-ए-उ फ़त ही सही


तुझको इस वाद -ए-रंग से अक़ दत ही सही

मेरी महबूब कह और मला कर मुझ से!

ब म-ए-शाही म ग़रीब का गुज़र या मानी


स त जस राह म ह सतवत-ए-शाही के नशाँ
उस पे उ फ़त भरी ह का सफ़र या मानी

मेरी महबूब! पस-ए-पदा-ए-तशहीर-ए-वफ़ा

तू ने सतवत के नशान को तो दे खा होता


मुदा शाह के मक़ा बर से बहलने वाली
अपने तारीक मकान को तो दे खा होता

अन गनत लोग ने नया म मुह बत क है


कौन कहता है क सा दक़ न थे ज बे उनके
ले कन उन के लये तशहीर का सामान नह
य क वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़ लस थे

ये इमारात-ओ-मक़ा बर, ये फ़सील, ये हसार


मुतल-क़ल म शहंशाह क अज़मत के सुतूँ
सीना-ए-दहर के नासूर ह, कुहना नासूर
ज ब है जसम तेरे और मेरे अजदाद का ख़ूँ

मेरी महबूब ! उ ह भी तो मुह बत होगी


जनक स ाई ने ब शी है इसे श ल-ए-जमील
उन के यार के मक़ा बर रहे बेनाम-ओ-नमूद
आज तक उन पे जलाई न कसी ने क़ंद ल

ये चमनज़ार ये जमुना का कनारा ये महल


ये मुन क़श दर-ओ-द वार, ये महराब ये ताक़

इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर


हम ग़रीब क मुह बत का उड़ाया है मज़ाक़

मेरी महबूब कह और मला कर मुझ से!

(मज़हर-ए-उ फ़त= ेम का ोतक, वाद -ए-रंग =


रमणीय थान, अक़ दत= ा, ब म-ए-शाही=
बादशाह के दरबार, स त=अं कत, सतवत-ए-शाही=
राजसी वैभव, पस-ए-पदा-ए-तशहीर-ए-वफ़ा= ेम के
व ापन के परदे के पीछे , मक़ा बर=मक़बर ,
तारीक=अंधेरे, सा दक़=प व , तशहीर= व ापन,
मुफ़ लस= नधन, फ़सील=प रकोटे , हसार= क़ले,
मुतल-क़ल म=आदे श दे ने म वत , सुतूँ=
ख भे, सीना-ए-दहर=संसार के व थल के,
कुहना=पुराने, ज ब=समाया आ है, अजदाद=
पूवज , स ाई=कारीगरी, जमील=सु दर,
बेनाम-ओ-नमूद=अनाम और बना नशान के,
क़ंद ल=मोमबती, चमनज़ार=उ ान, मुन क़श=
न क़ाशी कए ए)
21. ल हा-ए-गनीमत

मु करा ऐ ज़मीने-तीरा-ओ-तार
सर उठा, ऐ दबी ई मखलूक

दे ख वो मग र ी उफ़क के करीब
आं धयां पेचो-ताब खाने लग
और पुराने कमार-खाने मे
कुहना शा तर बहम उलझने लगे

कोई तेरी तरफ़ नह नगरां


ये गराबार सद ज़ंज़ीर
जंग-खुद ह, आहनी ही सही
आज मौका है, टू ट सकती है

फ़सते-यक-नफ़स गनीमत जान


सर उठा ऐ दबी ई मखलूक

22. तुलूअ-ए-इ तरा कयत

ज बपा है कु टया म, ऊंचे ऐवां कांप रहे ह


मज र के बगड़े तेवर दे ख के सु तां कांप रहे ह
जागे ह अफलास के मारे उ े ह बेबस खयारे
सीन म तूफां का तलातुम आंख म बजली के शरारे
चौक-चौक पर गली गली म सुख फरेरे लहराते ह
मजलूम के बागी ल कर सैल- सफत उमड़े आते ह
शाही दरबार के दर से फौजी पहरे ख म ए ह
ज़ाती जागीर के हक और मुह मल दावे ख म ए ह
शोर मचा है बाजार म, टू ट गए दर जदान के
वापस मांग रही है नया ग बशुदा हक इंसान के
वा बाजा खातून हक-ए- नसाई मांग रही ह
स दय क खामोश जबान सहर-नवाई मांग रही ह
र द कुचली आवाज के शोर से धरती गूंज उठ है
नया के अ याय नगर म हक क पहली गूंज उठ है
जमा ए ह चौराह पर आकर भूखे और गदागर
एक लपकती आंधी बन कर एक भभकता शोला होकर
कांध पर संगीन कुदाल ह ठ पर बेबाक तराने
दहकान के दल नकले ह अपनी बगड़ी आप बनाने
आज पुरानी तदबीर से आग के शोले थम न सकगे
उभरे ज बे दब न सकगे, उखड़े परचम जम न सकगे
राजमहल के दरबान से ये सरकश तूफां न केगा
चंद कराए के तनक से सैल-े बे-पायां न केगा
कांप रहे ह जा लम सु तां टू ट गए दल ह बार के
भाग रहे ह ज ले-इलाही मुंह उतरे ह ग ार के
एक नया सूरज चमका है, एक अनोखी जू बारी है
ख म ई अफराद क शाही, अब ज र क सालारी है.

23. फ़नकार

म ने जो गीत तरे यार क ख़ा तर ल खे


आज उन गीत को बाज़ार म ले आया ँ
आज कान पे नीलाम उठे गा उन का
तू ने जन गीत पे रखी थी मोह बत क असास
आज चाँद के तराज़ू म तुलेगी हर चीज़
मेरे अ कार मरी शाइरी मेरा एहसास
जो तरी ज़ात से मंसूब थे उन गीत को
मुफ़ लसी जस बनाने पे उतर आई है
भूक तेरे ख़-ए-रनग के फ़सान के एवज़
चंद अ शया-ए-ज़ रत क तम ाई है
दे ख इस अरसा-ए-गह-ए-मेहनत-ओ-सरमाया म
मेरे न मे भी मरे पास नह रह सकते
तेरे ज वे कसी ज़रदार क मीरास सही
तेरे ख़ाके भी मरे पास नह रह सकते
आज उन गीत को बाज़ार म ले आया ँ
म ने जो गीत तरे यार क ख़ा तर ल खे

24. कभी कभी

कभी कभी मेरे दल म ख़याल आता है

क ज़ दगी तेरी ज फ़ क नम छाँव म


गुज़रने पाती तो शादाब हो भी सकती थी
ये तीरगी जो मेरी ज़ी त का मुक़ र है
तेरी नज़र क शुआ म खो भी सकती थी

अजब न था के म बेगाना-ए-अलम रह कर
तेरे जमाल क रानाईय म खो रहता
तेरा गुदाज़ बदन तेरी नीमबाज़ आँख
इ ह हसीन फ़सान म महव हो रहता

पुकारत मुझे जब त ख़याँ ज़माने क


तेरे लब से हलावट के घूँट पी लेता
हयात चीखती फरती बरहना-सर, और म
घनेरी ज फ़ के साये म छु प के जी लेता

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है


के तू नह , तेरा ग़म, तेरी जु तजू भी नह
गुज़र रही है कुछ इस तरह ज़ दगी जैसे
इसे कसी के सहारे क आरज़ू भी नह

ज़माने भर के ख को लगा चुका ँ गले


गुज़र रहा ँ कुछ अनजानी र गुज़ार से
महीब साये मेरी स त बढ़ते आते ह
हयात-ओ-मौत के पुरहौल ख़ारज़ार से

न कोई जादह-ए-मं ज़ल न रौशनी का सुराग़


भटक रही है ख़ला म ज़ दगी मेरी
इ ह ख़ला म रह जाऊँगा कभी खोकर
म जानता ँ मेरी हमनफ़स मगर फर भी

कभी कभी मेरे दल म ख़याल आता है

25. फ़रार

अपने माज़ी के तस वुर से हरासाँ ँ म


अपने गुज़रे ए अ याम से नफ़रत है मुझे
अपनी बे-कार तम ा पे श मदा ँ
अपनी बे-सूद उमीद पे नदामत है मुझे

मेरे माज़ी को अंधेरे म दबा रहने दो


मेरा माज़ी मरी ज़ लत के सवा कुछ भी नह
मेरी उ मीद का हा सल मरी का वश का सला
एक बे-नाम अ ज़ यत के सवा कुछ भी नह

कतनी बे-कार उमीद का सहारा ले कर


म ने ऐवान सजाए थे कसी क ख़ा तर
कतनी बे-र त तम ा के मुबहम ख़ाके
अपने वाब म बसाए थे कसी क ख़ा तर

मुझ से अब मेरी मोह बत के फ़साने न कहो


मुझ को कहने दो क म ने उ ह चाहा ही नह
और वो म त नगाह जो मुझे भूल ग
म ने उन म त नगाह को सराहा ही नह

मुझ को कहने दो क म आज भी जी सकता ँ


इ क़ नाकाम सही ज़दगी नाकाम नह
इन को अपनाने क वा हश उ ह पाने क तलब
शौक़-ए-बेकार सही सई-ए-ग़म-ए-अंजाम नह

वही गेसू वही नज़र वही आ रज़ वही ज म


म जो चा ँ तो मुझे और भी मल सकते ह
वो कँवल जन को कभी उन के लए खलना था
उन क नज़र से ब त र भी खल सकते ह

26. कल और आज

आज भी बूंद बरसगी
आज भी बादल छाये ह

और क व इस सोच म है

ब ती पे बादल छाये ह, पर ये ब ती कसक है


धरती पर अमृत बरसेगा, ले कन धरती कसक है
हल जोतेगी खेत म अ हड़ टोली दहका ( कसान ) क
धरती से फुटे गी मेहनत फाकाकश इंसान क
फसल काट के मेहनतकश ग ले के ढे र लगाएंगे
जागीर के मा लक आकर सब पूंजी ले जाएंगे
बुढ़े दहका के घर ब नये क कुक आएगी
और कज के सूद म कोई गोरी बेची जाएगी
आज भी जनता भूखी है और कल भी जनता तरसी थी
आज भी रम झम बरखा होगी
कल भी बा रश बरसी थी

आज भी बादल छाये ह
आज भी बूंद बरसगी

और क व सोच रहा है...

27. हरास

तेरे ह ठ पे तब सुम क वो हलक -सी लक र


मेरे तख़ईल म रह-रह के झलक उठती है
यूं अचानक तरे आ रज़ का ख़याल आता है
जैसे ज मत म कोई शम्अ भड़क उठती है

तेरे पैराहने-रंग क जनुंखेज़ महक


वाब बन-बन के मरे ज़ेहन म लहराती है
रात क सद ख़ामोशी म हर इक झोक से
तेरे अनफ़ास, तरे ज म क आंच आती है

म सुलगते ए राज़ को अयां तो कर ं


ले कन इन राज़ क त हीर से जी डरता है
रात के वाब उजाले म बयां तो कर ं
इन हस वाब क ताबीर से जी डरता है

तेरी साँस क थकन, तेरी नगाह का सुकूत


दर- हक़ कत कोई रंगीन शरारत ही न हो
म जसे यार का अंदाज़ समझ बैठा ँ
वो तब सुम, वो तक लुम तरी आदत ही न हो

सोचता ँ क तुझे मलके म जस सोच म ँ


पहले उस सोच का मकसूम समझ लूं तो क ं
म तरे शहर म अनजान ँ, परदे सी ँ
तरे अ ताफ़ का मफ़ म समझ लूं तो क ं
कह ऐसा न हो, पां मरे थरा जाए
और तरी मरमरी बाँह का सहारा न मले
अ क बहते रह खामोश सयह रात म
और तरे रेशमी आंचल का कनारा न मले

(तब सुम=मु कराहट, ख़ईल=क पना म,


आ रज़=कपोल, ज मत म=अँधेरे म, पैराहन=
लबास, जनुंखेज़=उ माद-भरी, ज़ेहन=म त क,
अनफ़ास= ास , अयां= कट, त हीर= व ापन,
वाब क ताबीर= व -फल, सुकूत=मौन,
तक लुम=बातचीत का ढं ग, मकसूम=प रणाम,
अ ताफ़ का=कृपा का, मफ़ म=अथ,
मरमरी=संगमरमर क बनी)

28. इसी दोराहे पर

अब न इन ऊंचे मकान म क़दम र खूंगा


मने इक बार ये पहले भी क़सम खाई थी
अपनी नादार मोह बत क शक त के तुफ़ैल
ज़ दगी पहले भी शरमाई थी, झुंझलाई थी

और ये अहद कया था क ब-ई-हाले-तबाह


अब कभी यार भरे गीत नह गाऊंगा
कसी चलमन ने पुकारा भी तो बढ़ जाऊँगा
कोई दरवाज़ा खुला भी तो पलट आऊंगा

फर तरे कांपते ह ट क फ़ सूकार हंसी


जाल बुनने लगी, बुनती रही, बुनती ही रही
म खचा तुझसे, मगर तू मरी राह के लए
फूल चुनती रही, चुनती रही, चुनती ही रही

बफ़ बरसाई मरे ज़ेहनो-तस वुर ने मगर


दल म इक शोला-ए-बेनाम-सा लहरा ही गया
तेरी चुपचाप नगाह को सुलगते पाकर
मेरी बेज़ार तबीयत को भी यार आ ही गया

अपनी बदली ई नज़र के तकाज़े न छु पा


म इस अंदाज़ का मफ़ म समझ सकता ँ
तेरे ज़रकार दरीच को बुलंद क क़सम
अपने इकदाम का मकसूम समझ सकता ँ

अब न इन ऊँचे मकान म क़दम र खूंगा


मने इक बार ये पहले भी क़सम खाई थी
इसी समाया-ओ-इफ़लास के दोराहे पर
ज़ दगी पहले भी शरमाई थी, झुंझलाई थी

(अहद= त ा, ब-ई-हाले-तबाह=य तबाह-हाल


होने पर भी, फ़ सूकार=जा -भरी, ज़ेहनो-तस वुर=
म त क तथा क पना, शोला-ए-बेनाम-सा=
अनाम–सा शोला, मफ़ म=अथ, ज़रकार= व णम,
इकदाम का मकसूम=कदम बढ़ाने का प रणाम,
समाया-ओ-इफ़लास=धन तथा नधनता)

29. एक त वीरे-रंग

म ने जस व त तुझे पहले-पहल दे खा था
तू जवानी का कोई वाब नज़र आई थी
न का न म-ए-जावेद ई थी मालूम
इ क़ का ज बा-ए-बेताब नज़र आई थी

ऐ तरब-ज़ार जवानी क परेशाँ ततली


तू भी इक बू-ए- गर तार है मालूम न था
तेरे ज व म बहार नज़र आती थ मुझे
तू सतम-ख़ुदा-ए-इदबार है मालूम न था

तेरे नाजक से पर पर ये ज़र-ओ-सीम का बोझ


तेरी परवाज़ को आज़ाद न होने दे गा
तू ने राहत क तम ा म जो ग़म पाला है
वो तरी ह को आबाद न होने दे गा

तू ने सरमाए क छाँव म पनपने के लए


अपने दल अपनी मोह बत का ल बेचा है
दन क तज़ईन-ए-फ़सुदा का असासा ले कर
शोख़ रात क मसरत का ल बेचा है

ज़ म-ख़ुदा ह तख़ युल क उड़ान तेरी


तेरे गीत म तरी ह के ग़म पलते ह
सुमग आँख म यूँ हसरत लौ दे ती ह
जैसे वीरान मज़ार पे दए जुलते ह

इस से या फ़ाएदा रंगीन लबाद के तले


ह जलती रहे घुलती रहे पज़मुदा रहे
ह ट हँसते ह दखावे के तब सुम के लए
दल ग़म-ए-ज़ी त से बोझल रहे आजदा रहे

दल क त क भी है आसाइश-ए-ह ती क दलील
ज़दगी सफ़ ज़र-ओ-सीम का पैमाना नह
ज़ी त एहसास भी है शौक़ भी है दद भी है
सफ़ अ फ़ास क तरतीब का अ साना नह

उ भर रगते रहने से कह बेहतर है


एक ल हा जो तरी ह म वुसअत भर दे
एक ल हा जो तरे गीत को शोख़ी दे दे
एक ल हा जो तरी लय म मसरत भर दे

30. एहसासे-कामरां

उफके- स से फूट है नई सु ह क जौ
शब का तारीक जगर चाक आ जाता है
तीरगी जतना संभलने के लए कती है
सुख सैल और भी बेबाक आ जाता है

सामराज अपने वसील पे भरोसा न करे


कुहना जंजीर क झनकार नह रह सकती
ज बए-नफरते-ज र क बढ़ती रौ म
मु क और कौम क द वार नह रह सकती

संगो-आहन क चटान ह अवामी ज बे


मौत के रगते साय से कहो कट जाएं
करवट ले के मचलने को है सैल-े अनवार
तीरा-ओ-तार घटा से कहो छं ट जाएं

सालहा-साल के बेचैन शरार का खरोश


एक नई जी त का दर बाज कया चाहता है
अ मे-आजा द-ए-इंसां-ब-हजारां जब त
एक नए दौर का आगाज कया चाहता है

बरतर-अकवाम के माजूर खुदा से कहो


आ खरी बार जरा अपना तराना हराएं
और फर अपनी सयासत पे पशेमां होकर
अपने नापाक इराद का कफन ले आएं

सुख तूफान क मौज को जकड़ने के लए


कोई जंजीरे- गरां काम नह आ सकती
र स करती ई करन के तलातुम क कसम
असए-दहर पे अब शाम नह छा सकती

31. ख़ुदकुशी से पहले

उफ़ ये बेदद सयाही ये हवा के झ के


कस को मालूम है इस शब क सहर हो क न हो
इक नज़र तेरे दरीचे क तरफ़ दे ख तो लूँ
डू बती आँख म फर ताब-ए-नज़र हो क न हो

अभी रौशन ह तरे गम श ब ताँ के दए


नील-गूँ पद से छनती ह शुआएँ अब तक
अजनबी बाँह के ह क़े म लचकती ह गी
तेरे महके ए बाल क रदाएँ अब तक

सद होती ई ब ी के धुएँ के हमराह


हाथ फैलाए बढ़े आते ह ओझल साए
कौन प छे मरी आँख के सुलगते आँसू
कौन उलझे ए बाल क गरह सुलझाए

आह ये ग़ार-ए-हलाकत ये दए का महबस
उ अपनी इ ही तारीक मकान म कट
ज़दगी फ़तरत-ए-बे- हस क पुरानी त सीर
इक हक़ क़त थी मगर चंद फ़सान म कट

कतनी आसाइश हँसती रह ऐवान म


कतने दर मेरी जवानी पे सदा बंद रहे
कतने हाथ ने बुना अतलस-ओ-कम वाब मगर
मेरे म बूस क तक़द र म पैवंद रहे

ज म सहते ए इंसान के इस म तल म
कोई फ़दा के तस वुर से कहाँ तक बहले
उ भर रगते रहने क सज़ा है जीना
एक दो दन क अ ज़ यत हो तो कोई सह ले

वही ज मत है फ़ज़ा पे अभी तक तारी


जाने कब ख़ म हो इंसाँ के ल क त तीर
जाने कब नखरे सयह-पोश फ़ज़ा का जौबन
जाने कब जागे सतम-ख़ुदा बशर क तक़द र

अभी रौशन ह तरे गम श ब ताँ के दए


आज म मौत के ग़ार म उतर जाऊँगा
और दम तोड़ती ब ी के धुएँ के हमराह
सरहद-ए-मग-ए-मुसलसल से गुज़र जाऊँगा

32. ये कसका ल है?

ये कसका ल है कौन मरा


ऐ रहबर-ए-मु क-ओ-कौम बता
ये कसका ल है कौन मरा.

ये जलते ए घर कसके ह
ये कटते ए तन कसके है,
तकसीम के अंधे तूफ़ान म
लुटते ए गुलशन कसके ह,
बदब त फजाय कसक ह
बरबाद नशेमन कसके ह,

कुछ हम भी सुन,े हमको भी सुना.

ऐ रहबर-ए-मु क-ओ-कौम बता


ये कसका ल है कौन मरा.
कस काम के ह ये द न धरम
जो शम के दामन चाक कर,
कस तरह के ह ये दे श भगत
जो बसते घर को खाक कर,
ये ह कैसी ह ह
जो धरती को नापाक कर,

आँखे तो उठा, नज़र तो मला.

ऐ रहबर-ए-मु क-ओ-कौम बता


ये कसका ल है कौन मरा.

जस राम के नाम पे खून बहे


उस राम क इ जत या होगी,
जस द न के हाथ लाज लूटे
उस द न क क मत या होगी,
इ सान क इस ज लत से परे
शैतान क ज लत या होगी,

ये वेद हटा, कुरआन उठा.

ऐ रहबर-ए-मु क-ओ-कौम बता


ये कसका ल है कौन मरा

33. मेरे गीत तु हारे ह

अब तक मेरे गीत म उ मीद भी थी पसपाई भी


मौत के क़दम क आहट भी, जीवन क अंगड़ाई भी
मु तक बल क करण भी थ , हाल क बोझल ज मत भी
तूफान का शोर भी था और वाब क शहनाई भी

आज से म अपने गीत म आतश–पारे भर ं गा


म म लचक ली तान म जीवन–धारे भर ं गा
जीवन के अं धयारे पथ पर मशअल लेकर नकलूंगा
धरती के फैले आँचल म सुख सतारे भर ं गा
आज से ऐ मज़ र- कसान ! मेरे राग तु हारे ह
फ़ाकाकश इंसान ! मेरे जोग बहाग तु हारे ह
जब तक तुम भूके-नंगे हो, ये शोले खामोश न ह गे
जब तक बे-आराम हो तुम, ये नगम राहत कोश न ह गे

मुझको इसका रंज नह है लोग मुझे फ़नकार न मान


फ़ -सुखन के ता जर मेरे शे’र को अशआर न मान
मेरा फ़न, मेरी उ मीद, आज से तुमको अपन ह
आज से मेरे गीत तु हारे ःख और सुख का दपन ह

तुम से कु वत लेकर अब म तुमको राह दखाऊँगा


तुम परचम लहराना साथी, म बरबत पर गाऊंगा
आज से मेरे फ़न का मकसद जंजीर पघलाना है
आज से म शबनम के बदले अंगारे बरसाऊंगा

34. नूरजहाँ क मज़ार पर

पहलू-ए-शाह म ये तर-ए-जम र क क़बर


कतने गुमगु ता फ़सान का पता दे ती है
कतने ख़ूरेज़ हक़ायक़ से उठाती है नक़ाब
कतनी कुचली इ जान का पता दे ती है

कैसे म र शह शाह क त क के लये


सालहासाल हसीना के बाज़ार लगे
कैसे बहक ई नज़र क त युश के लये
सुख़ महल म जवाँ ज म के अ बार लगे
कैसे हर शाख से मुंह बंद महकती क लयाँ
नोच ली जाती थ तजईने=हरम क खा तर
और मुरझा के भी आजादन हो सकती थ
ज ले-सुबहान क उ फत के भरम क खा तर

कैसे इक फद के होठ क ज़रा सी जु बश


सद कर सकती थी बेलौस वफा के चराग
लूट सकती थी दमकते ए माथ का सुहाग
तोड़ सकती थी मये-इ क से लबरेज़ अयाग

सहमी सहमी सी फ़ज़ा म ये वीराँ मक़द


इतना ख़ामोश है फ़ रयादकुना हो जैसे
सद शाख़ म हवा चीख़ रही है ऐसे
ह-ए-तक़द स-ओ-वफ़ा म सया वाँ हो जैसे

तू मेरी जाँ हैरत-ओ-हसरत से न दे ख


हम म कोई भी जहाँ नूर-ओ-जहांगीर नह
तू मुझे छो ड़के ठु करा के भी जा सकती है
तेरे हाथ म मेरा सात है ज़ जीर नह

(मग र=घमंडी, त क =संतोष,चैन,


तकद स=प व ता)

35. जागीर

फर उसी वाद -ए-शादाब म लौट आया ँ


जस म प हाँ मरे वाब क तरब-गाह ह
मेरे अहबाब के सामान-ए-ता युश के लए
शोख़ सीने ह जवाँ ज म हस बाँह ह
स ज़ खेत म ये बक ई दोशीज़ाएँ
इन क शरयान म कस कस का ल जारी है
कस म जुरअत है क इस राज़ क तशहीर करे
सब के लब पर मरी हैबत का फ़सूँ तारी है
हाए वो गम ओ दल-आवेज़ उबलते सीने
जन से हम सतवत-ए-आबा का सला लेते ह
जाने उन मरमर ज म को ये म रयल दहक़ाँ
कैसे इन तेरह घर द म जनम दे ते ह
ये लहकते ए पौदे ये दमकते ए खेत
पहले अ दाद क जागीर थे अब मेरे ह
ये चारा-गाह ये रेवड़ ये मवेशी ये कसान
सब के सब मेरे ह सब मेरे ह सब मेरे ह
इन क मेहनत भी मरी हा सल-ए-मेहनत भी मरा
इन के बाज़ू भी मरे क़ वत-ए-बाज़ू भी मरी
म ख़ुदावंद ँ उस वुसअत-ए-बे-पायाँ का
मौज-ए-आ रज़ भी मरी नकहत-ए-गेसू भी मरी
म उन अ दाद का बेटा ँ ज ह ने पैहम
अजनबी क़ौम के साए क हमायत क है
उ क साअत-ए-नापाक से ले कर अब तक
हर कड़े व त म सरकार क ख़दमत क है
ख़ाक पर रगने वाले ये फ़सुदा ढाँचे
इन क नज़र कभी तलवार बनी ह न बन
इन क ग़ैरत पे हर इक हाथ झपट सकता है
इन के अब क कमान न तनी ह न तन
हाए ये शाम ये झरने ये शफ़क़ क लाली
म इन आसूदा फ़ज़ा म ज़रा झूम न लूँ
वो दबे पाँव इधर कौन चली जाती है
बढ़ के उस शोख़ के तश ए लब चूम न लूँ

36. मादाम
आप बेवजह परेशान-सी य ह मादाम?
लोग कहते ह तो फर ठ क ही कहते ह गे
मेरे अहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मेरे माहौल म इ सान न रहते ह गे

नूर-ए-सरमाया से है -ए-तम न क जला


हम जहाँ ह वहाँ तहज़ीब नह पल सकती
मुफ़ लसी ह स-ए-लताफ़त को मटा दे ती है
भूख आदाब के साँचे म नह ढल सकती

लोग कहते ह तो, लोग पे ता जुब कैसा


सच तो कहते ह क, नादार क इ ज़त कैसी
लोग कहते ह=मगर आप अभी तक चुप ह
आप भी क हए ग़रीबो म शराफ़त कैसी

नेक मादाम ! ब त ज द वो दौर आयेगा


जब हम ज़ी त के अदवार परखने ह गे
अपनी ज़ लत क क़सम, आपक अज़मत क क़सम
हमको ताज़ीम के मे'आर परखने ह गे

हम ने हर दौर म तज़लील सही है ले कन


हम ने हर दौर के चेहरे को ज़आ ब शी है
हम ने हर दौर म मेहनत के सतम झेले ह
हम ने हर दौर के हाथ को हना ब शी है

ले कन इन त ख मुबा हस से भला या हा सल?


लोग कहते ह तो फर ठ क ही कहते ह गे
मेरे एहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी
मेरे माहौल म इ सान न रहते ह गे

वजह बेरंगी-ए-गुलज़ार क ँ या न क ँ
कौन है कतना गुनहगार क ँ या न क ँ

( जला= काश, लताफ़त= सवाई, ज़ी त=


ज़ दगी, ताज़ीम=महानता,बड़ पन, मे'आर=
मानक, टडड, तज़लील=अनादर करना,
ज़आ= काश, मुबा हस= ववाद)

37. आज

सा थयो! मने बरस तु हारे लए


चाँद, तार , बहार के सपने बुने
न और इ क़ के गीत गाता रहा
आरज़ू के ऐवां सजाता रहा
म तु हारा मुग ी, तु हारे लए
जब भी आया नए गीत लाता रहा
आज ले कन मरे दामने-चाक म
गद-राहे-सफ़र के सवा कुछ नह
मेरे बरबत के सीने म न म का दम घुट गया है
तान चीख के अ बार म दब गई ह
और गीत के सुर हच कयाँ बन गए ह
म तु हारा मुग ी ँ, न मा नह ँ
और न मे क त लाक का साज़ -सामां
सा थय ! आज तुमने भसम कर दया है
और म, अपना टू टा आ साज़ थामे
सद लाश के अ बार को तक रहा ँ
मेरे चार तरफ मौत क वहशत नाचती ह
और इंसान क हैवा नयत जाग उठ है
बब रयत के खूं वार अफ़रीत
अपने नापाक जबड़ो को खोले
खून पी-पी के गुरा रहे ह
ब चे मां क गोद म सहमे ए ह
इ मत सर-बरह् ना परीशान ह
हर तरफ़ शोरे-आहो-बुका है
और म इस तबाही के तूफ़ान म
आग और खून के हैजान म
सर नगूं और शक ता मकान के
मलबे से पुर रा त पर
अपने न म क झोली पसारे
दर-ब-दर फर रहा ँ-
मुझको अ न और तहजीब क भीक दो
मेरे गीत क लय, मेरे सुर, मेरी नै
मेरे मज ह ह टो को फर स प दो
सा थय ! मने बरस तु हारे लए
इ कलाब और बग़ावत के नगमे अलापे
अजनबी राज के ज म क छा म
सरफ़रोशी के वाबीदा ज़ बे उभारे
इस सुबह क राह दे खी
जसम इस मु क क ह आज़ाद हो
आज जंज़ीरे-महकू मयत कट चुक है
और इस मु क के ब ो-बर, बामो-दर
अजनबी कौम के ज मत-अफशां फरेरे क मन स
छा से आज़ाद ह
खेत सोना उगलने को बेचैन ह
वा दयां लहलहाने को बेताब ह
कोहसार के सीने म हैजान है
संग और ख त बे वाब-ओ-बेदार ह
इनक आँख म ता’मीर के वाब ह
इनके वाब को त मील का ख दो
मु क क वा दयां,घा टय ,
औरत, ब चयां-
हाथ फैलाए खैरात क मु तज़र ह
इनको अमन और तहज़ीब क भीक दो
मां को उनके ह ट क शादा बयां
न ह ब च को उनक ख़ुशी ब श दो
मु क क ह को ज़ दगी ब श दो
मुझको मेरा नर, मेरी लै ब श दो
मेरे सुर ब श दो, मेरी नै ब श दो
आज सारी फ़जा है भकारी
और म इस भकारी फ़जा म
अपने नगम क झोली पसरे
दर-ब–दर फर रहा ं
मुझको फर मेरा खोया आ साज़ दो
म तु हारा मुग ी, तु हारे लए
जब भी आया नए गीत लाता र ंगा

(आरज़ू के ऐवां=कामना के महल,


मुग ी=गायक, दामने-चाक म=फटे दामन
म, त लाक=रचना, वहशत=वीभ सताएँ,
हैवा नयत=पशुता, बब रयत=बबरता,
अफ़रीत=रा स, इ मत=सती व, बर ा=
नंग,े शोरे-आहो-बुका=आह और वलाप का
शोर, हैजान= चंडता, सर नगू= ं सर झुकाए,
शक ता=टू टे-फूटे , मज ह=घायल, सरफ़रोशी=
ब लदान, वाबीदा=सोये ए, महकू मयत=
दासता, ब ो-बर=समु और धरती, बामो-दर=
छत और ार, ज मत-अफशां=अ धकार
फ़ैलाने वाले, फरेर=े झंडे, कोहसार =पहाड़ ,
संग और ख त=प थर और ट,
बे वाब-ओ-बेदार=जाग क, ता’मीर= नमाण,
त मील=पूणता, मु तज़र= ती त,
शादा बयां=खु शयाँ, फ़जा=वातावरण)

38. नया सफ़र है पुराने चराग़ गुल कर दो


फ़रेब-ए-ज त-ए-फ़दा के जाल टू ट गए
हयात अपनी उमीद पे शमसार सी है
चमन म ज -ए-व द-ए-बहार हो भी चुका
मगर नगाह-ए-गुल-ओ-लाला सोगवार सी है
फ़ज़ा म गम बगूल का र स जारी है
उफ़क़ पे ख़ून क मीना छलक रही है अभी
कहाँ का महर-ए-मुन वर कहाँ क तनवीर
क बाम-ओ-दर पे सयाही झलक रही है अभी
फ़ज़ाएँ सोच रही ह क इ न-ए-आदम ने
ख़रद गँवा के जुनूँ आज़मा के या पाया
वही शक त-ए-तम ा वही ग़म-ए-अ याम
नगार-ए-ज़ी त ने सब कुछ लुटा के या पाया
भटक के रह ग नज़र ख़ला क वुसअत म
हरीम-ए-शा हद-ए-राना का कुछ पता न मला
तवील राहगुज़र ख़ म हो गई ले कन
हनूज़ अपनी मसाफ़त का मुंतहा न मला
सफ़र-नसीब रफ़ क़ो क़दम बढ़ाए चलो
पुराने राह-नुमा लौट कर न दे खगे
तुल-ू ए-सु ह से तार क मौत होती है
शब के राज- लारे इधर न दे खगे

39. मताअ-ए-गैर

मेरे वाब के झरख को सजाने वाली


तेरे वाब म कह मेरा गुज़र है क नही
पूछकर अपनी नगाह से बतादे मुझको
मेरी रात के मुक़ र म सहर है क नही

चार दन क ये रफ़ाकत जो रफ़ाकत भी नही


उ भर के लए आज़ार ई जाती है
ज़ दगी यूँ तो हमेशा से परेशां सी थी
अब तो हर सांस गराँ-बार ई जाती है

मेरी उजड़ी ई न द के श ब तान म


तू कसी वाब के पैकर क तरह आती है
कभी अपनी सी कभी गैर नज़र आई है
कभी इखलास क मूरत कभी हरजाई है

यार पर बस तो नही है मेरा ले कन फर भी


तू बतादे क तुझे यार क ँ या ना क ँ
तूने खुद अपने तब सुम से जगाया है ज ह
उन तम ा का इज़हार क ँ या ना क ँ

तू कसी और के दामन क काली है ले कन


मेरी रात तेरी खुशबू से बसी रहती ह
तू कह भी हो तेरे फूल से आ रज़ क कसम
तेरी पलक मेरी आँख पे झुक रहती ह

तेरे हाथ क हरारत तेरी साँस क महक


तैरती रहती है एहसास क पहनाई म
ढूं ढती रहती ह ताखील क बाह तुझको
साड रात को सुलगती ई त हाई म

तेरा अ ताफ-ओ-करम एक हक कत है मगर


ये हक कत भी हक कत म फ़साना ना ही ना हो
तेरी माणूस नगाह का ये मोहतात पयाम
दल के ख़ून करने का एक और बहाना ही ना हो

कौन जाने मेरे इमरोज़ का फ़दा या है


कुबत बढ़के पशेमाँ भी हो जाती ह
दल के दामन से लपटती ई रंगीन नज़र
दे खते दे खते अंजान भी हो जाती ह
मेरी दरमा दा जवानी के तम ा के
मु म हल वाब क ताबीर बतादे मुझको
तेरे दामन म गु ल तां भी ह वीराने भी
मेरा हा सल मेरी तक़द र बतादे मुझको

40. आवाज़े-आदम

दबेगी कब तलक आवाज़-ए-आदम हम भी दे खगे


कगे कब तलक ज बात-ए-बरहम हम भी दे खगे
चलो यूँही सही ये जौर-ए-पैहम हम भी दे खगे
दर-ए- ज़दाँ से दे ख या उ ज-ए-दार से दे ख
तु ह वा सर-ए-बाज़ार-ए-आलम हम भी दे खगे
ज़रा दम लो मआल-ए-शौकत-ए-जम हम भी दे खगे
ये ज़ोम-ए-क़ वत-ए-फ़ौलाद-ओ-आहन दे ख लो तुम भी
ब-फ़ैज़-ए-ज बा-ए-ईमान-ए-मोहकम हम भी दे खगे
जबीन-ए-कज-कुलाही ख़ाक पर ख़म हम भी दे खगे
मुकाफ़ात-ए-अमल तारीख़-ए-इंसाँ क रवायत है
करोगे कब तलक नावक फ़राहम हम भी दे खगे
कहाँ तक है तु हारे ज म म दम हम भी दे खगे
ये हंगाम-ए- वदा-ए-शब है ऐ ज मत के फ़रज़ंदो
सहर के दोश पर गुलनार परचम हम भी दे खगे
तु ह भी दे खना होगा ये आलम हम भी दे खगे

41. इंतज़ार

चाँद म म है आसमां चुप है


न द क गोद म जहाँ चुप है

र वाद म धया बादल


झुक के पबत को यार करते ह
दल म नाकाम हसरत लेकर
हम तेरा इंतज़ार करते ह

इन बहार के साये म आजा


फर मुह बत जवाँ रहे न रहे
ज़दगी तेरे नामुराद पर
कल तलक मेहरबां रहे न रहे

रोज क तरह आज भी तारे


सुबह क गद म ना खो जाएँ
आ तेरे ग़म म जागती आँखे
कम से कम एक रात सो जाएँ

चाँद म म है आसमां चुप है


न द क गोद म जहाँ चुप है

42. तेरी आवाज़

रात सुनसान थी, बोझल थी फज़ा क साँस


ह पे छाये थे बेनाम ग़म के साए
दल को ये ज़द थी क तू आए तस ली दे ने
मेरी को शश थी क कमब त को न द आ जाए

दे र तक आंख म चुभती रही तार क चमक


दे र तक ज़हन सुलगता रहा त हाई म
अपने ठु कराए ए दो त क पुर सश के लए
तू न आई मगर इस रात क पहनाई म

यूँ अचानक तेरी आवाज़ कह से आई


जैसे परबत का जगर चीर के झरना फूटे
या ज़मीन क मुह बत म तड़प कर नागाह
आसमान से कोई शोख़ सतारा टू टे

शहद सा घुल गया त ख़ाबा-ए-त हाई म


रंग सा फैल गया दल के सयहखा़ने म
दे र तक यूँ तेरी म ताना सदाय गूंज
जस तरह फूल चटखने लग वीराने म

तू ब त र कसी अंजुमन-ए-नाज़ म थी
फर भी महसूस कया म ने क तू आई है
और न म म छु पा कर मेरे खोये ए वाब
मेरी ठ ई न द को मना लाई है

रात क सतह पे उभरे तेरे चेहरे के नुक़ूश


वही चुपचाप सी आँख वही सादा सी नज़र
वही ढलका आ आँचल वही र तार का ख़म
वही रह रह के लचकता आ नाजक पैकर

तू मेरे पास न थी फर भी सहर होने तक


तेरा हर साँस मेरे ज म को छू कर गुज़रा
क़तरा क़तरा तेरे द दार क शबनम टपक
ल हा ल हा तेरी ख़ुशबू से मुअ र गुज़रा

अब यही है तुझे मंज़ूर तो ऐ जान-ए-बहार


म तेरी राह न दे खूँगा सयाह रात म
ढूं ढ लगी मेरी तरसी ई नज़र तुझ को
न मा-ओ-शेर क उभरी ई बरसात म

अब तेरा यार सताएगा तो मेरी ह ती


तेरी म ती भरी आवाज़ म ढल जायेगी
और ये ह जो तेरे लए बेचैन सी है
गीत बन कर तेरे होठ पे मचल जायेगी

तेरे न मात तेरे न क ठं डक लेकर


मेरे तपते ए माहौल म आ जायगे
चाँद घ ड़य के लए हो क हमेशा के लए
मेरी जागी ई रात को सुला जायगे

43. खूबसूरत मोड़

चलो इक बार फर से अज़नबी बन जाएँ हम दोन


न म तुमसे कोई उ मीद रखो दलनवाज़ी क
न तुम मेरी तरफ दे खो गलत अंदाज़ नज़र से
न मेरे दल क धड़कन लडखडाये मेरी बात से
न ज़ा हर हो हमारी कशमकश का राज़ नज़र से

तु हे भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से


मुझे भी लोग कहते ह क ये जलवे पराये ह
मेरे हमराह भी सवाइयां ह मेरे माजी क
तु हारे साथ म गुजारी ई रात के साये ह

तआ फ़ रोग बन जाए तो उसको भूलना बेहतर


तआलुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अ छा
वो अफसाना जसे अंजाम तक लाना न हो मुम कन
उसे इक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अ छा

चलो इक बार फर से अज़नबी बन जाएँ हम दोन

 
 

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