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Date: 01-12-2019.
श्री गणेशाय नमः।

॥ रुद्रयामलोक्त - बगलाप्रत्यङ्गिरा-कवचम ॥

॥ एक आवश्यक सचू ना ॥
इस माध्यम से दी गयी जानकारी का मख्ु य उद्देश्य ससर्फ उनलोगों तक देवी-
देवताओ ं के स्तोत्र , कवच आसद का ज्ञान सरल शब्दों में देना-पहचुँ ाना है,
जो इसको जानने-सीखने के इच्छुक है ।
यह ससर्फ देखने-सनु ने-पढ़ने-और-सीखने के उद्देश्य से बनाई गयी है ।
वेद - शास्त्र, ग्रथं ों और अन्य पस्ु तकों मे सदया हआ बहमल्ू य ज्ञान देखने-
पढ़ने-सनु ने-समझने-जानने और सजं ो कर सरु सित रखने योग्य है । पर इस
जानकारी का गलत तरीके से उपयोग, या प्रयोग आपका नक ु सान कर सकता
है । अतः सावधान रहें ।
इससे होने वाले सकसी भी तरह की लाभ-हासन के सलये हम सजम्मेवार नही
होंगे ।
(धन्यवाद )

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॥ रुद्रयामलोक्त - बगलाप्रत्यङ्गिरा-कवचम ॥ ( Easy To Learn)


श्री ङ्गशव उवाच
अधनु ाऽहं* प्रवक्ष्याङ्गम बगलायाः सदुलल
ु भम । *अधनु ा-अहं
यस्य पठन-मात्रेन पवनोऽङ्गप ङ्गिरायते ॥
ु कमलानने ।
प्रत्यङ्गिरा तां देवङ्गे श शृणस्व
यस्य स्मरण-मात्रेण शत्रवो ङ्गवलयं गताः ॥

श्रीदेव्यवाच
स्नेहोऽङ्गि यङ्गद मे नाथ ! संसाराणलव-तारक । *संसार-आणलव
तथा कथय मां शम्भो बगला-प्रत्यङ्गिरा मम ॥
श्री भ ैरव उवाच -
ु । *हठात-तं
यं यं प्राथ लयते मन्त्री हठात्तं* तम-वाप्नयात
ङ्गवद्वेषणाकष लणे च िम्भनं वैङ्गरणां ङ्गवभो ॥ *ङ्गवद्वेषण-आकष लणे
उच्चाटनं मारणं च येन कतुं ु क्षमो भवेत ।
तत्सवुं ब्रूङ्गह मे देव ! यङ्गद मां दयसे हर ॥
श्री सदाङ्गशव उवाच
अधनु ा ङ्गह महादेङ्गव ! परा-ङ्गनष्ठा मङ्गत-भलवते ।
अतएव महेशाङ्गन ! ङ्गकङ्गिन वक्तु-महलङ्गस ॥

श्री पावलत्यवाच -
ङ्गिघांसन्तं ङ्गिघांसीयान्न? तेन ब्रह्महा भवेत । ?त्र
श्रङ्गु तरेषा ङ्गह ङ्गगङ्गरश ! कथं मां त्वं ङ्गनङ्गनन्दङ्गस ॥।
श्री ङ्गशव उवाच -
साध-ु साध ु प्रवक्ष्याङ्गम शृणष्व
ु ा-वङ्गहतानघे ।
प्रत्यङ्गिरां बगलायाः सवलशत्र-ु ङ्गनवाङ्गरणीम ॥
नाङ्गशनीं सवलदुष्टानां सवल-पापौघ-हाङ्गरणीम ।
सवल-प्राङ्गण-ङ्गहतां देवीं सवलदुःख-ङ्गवनाङ्गशनीम ॥
भोगदां मोक्षदां च ैव राज्य-सौभाग्य-दाङ्गयनीम ।
मन्त्र-दोष-प्रमोचनीं ग्रह-दोष-ङ्गनवाङ्गरणीम ॥

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ङ्गवङ्गनयोग - ॐ अस्य श्री बगला-प्रत्यङ्गिरा मन्त्रस्य नारद ऋङ्गषः, ङ्गत्रष्टुप छन्दः,


प्रत्यङ्गिरा देवता, "ह्लीं" बीिं, "हूँ" शङ्गक्तः, "ह्रीं" कीलकं ,
ह्लीं ह्लीं ह्लीं ह्लीं प्रत्यङ्गिरा "देवता?" मम शत्र-ु ङ्गवनाशे ङ्गवङ्गनयोगः।
प्रत्यङ्गिरा मन्त्र -
ॐ प्रत्यङ्गिराय ै नमः, प्रत्यङ्गिरे सकल-कामान साधय मम रक्षां कुरू-२,
सवालन शत्रून खादय-२, मारय-२, घातय-२, ॐ ह्रीं फट स्वाहा ।
ॐ भ्रामरी िङ्गम्भनी देवी क्षोङ्गभनी मोङ्गहनी तथा ।
संहाङ्गरणी द्राङ्गवणी च िृङ्गम्भणी रौद्ररूङ्गपणी ॥१॥
इत्यष्टौ* शक्तयो देङ्गव ! शत्रपु क्षे ङ्गनयोङ्गिताः । *इत्य-अष्टौ
धारयेत कण्ठदेश े च सवलशत्र ु ङ्गवनाङ्गशनी ॥२॥

ॐ ह्रीं भ्रामङ्गर सवलशत्रून भ्रामय भ्रामय ॐ ह्रीं स्वाहा ॥


ॐ ह्रीं िङ्गम्भनी मम शत्रून िम्भय िम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा ॥
ॐ ह्रीं क्षोङ्गभनी मम शत्रून क्षोभय क्षोभय ॐ ह्रीं स्वाहा ॥
ॐ ह्रीं मोङ्गहङ्गन मम शत्रून मोहय मोहय ॐ ह्रीं स्वाहा ॥
ॐ ह्रीं द्राङ्गवङ्गण मम शत्रून द्रावय-२ ॐ ह्रीं स्वाहा ॥
ॐ ह्रीं संहाङ्गरङ्गण मम शत्रून संहारय संहारय ॐ ह्रीं स्वाहा॥
ॐ ह्रीं िृङ्गम्भनी मम शत्रून िृम्भय िृम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा॥
ॐ ह्रीं रौङ्गद्र मम शत्रून सन्तापय सन्तापय ॐ ह्रीं स्वाहा॥
॥ फलश्रतु ी ॥
इयं ङ्गवद्या महाङ्गवद्या सवलशत्र ु ङ्गनवाङ्गरणी ।
धाङ्गरता साधके न्द्रेण सवालन-दुष्टान ङ्गवनाशयेत ॥ २॥
ङ्गत्रसन्ध्यमेकसन्ध्यं* वा यः पठे त-ङ्गिर-मानसः । *ङ्गत्रसन्ध्यम-एक-सन्ध्यं ।
न तस्य दुललभ ं लोके कल्प-वृक्ष इव ङ्गितः ।
यं यं स्पृशङ्गत हिेन, यं यं पश्यङ्गत चक्षषु ा ।
स एव दासतां याङ्गत सारात्सारङ्गममं * मनमु ॥ सारात-सारम-इमं?*
***ॐ***

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|| General Information ||
दश महासवद्या मे माता ( बगलामख ु ी ) अष्ट,ं महासवद्या हैं , यह स्वयं मे अत्यन्त उग्र और
प्रचण्ड शसि हैं , इन्हें ब्रह्मास्त्र सवद्या के नाम से भी जानते हैं ।

माता प्रत्यंसगरा भी स्वयं मे अत्यन्त उग्र और प्रचण्ड शसि हैं । इस कवच में इन दोनों
सवद्या और इनकी शसि का एक साथ समावेश है, सजससे यह कवच और भी प्रचण्ड, असत
उग्र और शसिशाली हो जाता है ।

यह सभी महा- शसियाुँ गप्तु रूप से सवश्व के संचालन मे सतत प्रयत्नशील तथा सियाशील
रहती हैं, तथा अपना-अपना सहयोग देती है । पर इनके मन्त्र आसद का गलत प्रयोग - या
गलत तरीके से प्रयोग, साधक को सवषम पररसस्थती मे डाल सकता है ।
इसससलये तंत्र के िेत्र मे इनके मन्त्र-स्तोत्र आसद असत, गोपनीय होते हैं और गरुु परम्परा से
आ रहे ज्ञान को भी सवशेष रुप से गप्तु रखा जाता है ।

अतः एक आम साधक या गहृ स्थ व्यसि को, हमेशा इन शसियों का बार - बार स्मरण,
इस उग्र रुप में इनका आवाहन या उग्र रुप में मन्त्र-जप, पजू न-आसद से बचना चासहये ।
आप अपने कायफ सससि के सलये सकसी भी अन्य सौम्य देवी-देवता, की शरण मे जा सकते
हैं ।
सजनके पास ज्ञानी गरुु हैं, उनकी बात अलग है ।
सकसी भी तरह की गलतर्हमी-या-भ्रान्ती र्ै लाना मेरा कतई उद्देश्य नही है ॥
मैने एक ("Disclaimer") भी इसी उद्देश्य से लगाया जाता है ॥

आपलोगों की जानकारी के सलये यह भी बता दंू ,


मैं स्वयं भी सकसी-तरह के प्रयोग आसद से कोसों दरू हं ।
न जानता हं , न करने की इच्छा है ,
अतः इस संबन्ध में सकसी तरह के मेसेज आसद का जबाब देने मे असमथफ हं ।

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इस कवच में आप आसानी से देख सकतें है सक , इस कवच के सवसनयोग में " मम शत्रु
हनने " कहा गया है । मन्त्र मे भी "मारय-घातय.." जैसे शब्दों का प्रयोग है ।

तथा कवच के मल ू भाग मे स्तम्भय, सवद्रावय, सतं ापय.. जैसे अनेक शब्द है ।
और साथ ही साथ माता बगलामख ु ी सक शसि भी है, अतः इन सब कारणो से यह कवच
कार्ी उग्र हो जाता है । अगर आप पत्रु प्रासप्त, धन प्रसप्त, अच्छी नौकरी आसद ..जैसी इच्छा
के सलये इसका प्रयोग करते है तो, आपके मन्त्र-कवच के शब्दों में और आपकी
मनोकामना दोनो मे सभन्नता हो जाती है, सजससे आपकी ऐसी मनोकामना पणू फ होने मे
सन्देह रहेगा ।

वैसे ये महासवद्या है, कुछ भी करने-देने में सिम है ।


पर हमे भी मन्त्र-कवच-शब्द आसद के प्रयोग मे मनोकामना के अनसु ार समानता और
सवचारों मे उसी प्रकार सक अनक ु ू लता रखनी चसहये ।
एक साधक के रूप में आपको हमेशा अपने, सवसनयोग, मन्त्र, कवच स्तोत्र आसद मे प्रयोग
हए शब्दों पर सवशेष ध्यान रखना चासहये, क्योंसक अपने बोली-वचन और उससे उत्पन्न
हए कमफर्ल के सलये आप खदु सजम्मेवार होते हैं ।

आप परू ी तरह से सोच-समझ के इस कवच का प्रयोग करें , जब आपको इसकी सचमचु


जरूरत हो, और सकसी योग्य और ज्ञानी व्यसि-गरुु के सनदेश मे इसका प्रयोग उत्तम और
सरु सित होगा ।

अगर आप ऐसे ही पाठ करते है तो,


साधना के वि आपकी भावना परू ी तरह से शि ु और सनमफल होनी चासहये ।
आप अपनी असतररि सरु िा के सलये थोड़ा मत्ृ यञ्ु जय मन्त्र का २१-५१-१०८ बार जप
और अन्त मे देवी से िमा प्राथफना करना न भल
ू ें ।

। ॐ नमः सशवाय ।
। ॐ ह्लीं बगला प्रत्यंसगरायै नमः ॥

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विशेष –
To repeat kavach 3/11/21/51/101 - repeat only Main Part .

श्री बगला-प्रत्यङ्वगरा "माता" का एक बहुत ही उग्र, गप्तु और रहस्यमय रूप हैं,

अतः उनके वकसी भी पजू ा, पाठ मन्त्र-जप इत्यावि में,


कोई भी एक किच पाठ अिश्य करना चावहये ।
किच का पाठ हमेशा ज्यािा सरु वित होता है,
तथा किच से भी साधक के सारे - कायय वसद्ध होते है ।
पर इनसे संबवन्त्धत प्रयोग, बहुत सोच-विचार के करना चावहये ।

विशेष -तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र, जानने-िेखने-सनु ने-और पढ़ने में कोई हजय नहीं ।


पर ठीक से जाने-समझे वबना िसू रे पे कभी प्रयोग ना करें ।

नोट-
कुछ कवठन शब्ि * को वचवन्त्हत करके , उसे "-" से सरल वकया है,
और मलू शब्ि के साथ नजिीक ही रखा गया है,
साधक लोग िोनो शब्िों को एक ही जगह पर िेख कर तल ु नात्मक पाठ कर सकें ।
कुछ ही शब्िों का सही तरह से सवं ध-विच्छे ि, करने का का प्रयास वकया गया है ।
अगर कुछ गलती/रवु ट हो तो, िमा प्राथी हूँ ।

(धन्त्यिाि)

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