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पाठ -7 गद

ू ड़ साँई

1.लेखक परिचय, शब्दार्थ, मौखिक छात्र स्वयं करें ।

लिखित

2. निम्नलिखित पंक्तियों का संदर्भ सहित आशय स्पष्ट कीजिए।

क." अच्छा , कल जरूर आना भल


ू ना मत।"

यह वाक्य मोहन तथा गद ू ड़ साँईं के बीच के प्रेम को व्यक्त करता है । एक दिन जब साँईं ने मोहन के पिता ने
उसे डाँटा, तो उसी दिन से गद ू ड़ सँईं ने मोहन की गली में आना ही छोड़ दिया। कुछ दिनों के बाद जब मोहन
को साँईं दिखाई दिए और मोहन ने उनके न आने का कारण जानना चाहा तो,उन्होंने कहा कि तम् ु हारे बाबा
बिगड़ते हैं, इसलिए मैं नहीं आता। इस बात को सन ु कर मोहन ने कहा कि, "अच्छा कल जरूर आना भल ू ना
मत"। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रेम भावना में उम्र का कोई विशेष महत्व नहीं होता।

ख. "मत मारो, मत मारो, बच्चों को कहीं चोट लग


जाएगी।

बच्चे जब साँईं का गदू ड़ खींच कर भागते थे, तो उसे विशेष आनंद की अनभ ु ति
ू होती थी ।ऐसे ही जब एक
बच्चा साँई गदू ड़ खींच कर भागा और वह उसकी तरफ दौड़, तो ठोकर खाकर गिर पड़ा। उसी समय दस ू री
तरफ से मोहन की पिता ने उस लड़के को पीटना शरू ु किया, तो साँईं का ह्रदय दया से भर गया। वह बोला- मत
मारो ,बच्चे को कहीं चोट लग जाएगी, जबकि साँईं को पहले ही चोट लग चक ु ी थी। इसका आशय यह है कि
सच्चे ह्रदय के लिए स्वयं कष्ट में रहकर भी दसू रों को कष्ट से बचाते हैं।

ग. " गद
ू ड़ साँईं ! तम
ु निरे गद
ू ड़ नहीं गद
ू ड़ी के लाल हो।"

ग) गद
ु ड़ी का लाल होना एक मह ु ावरा है । इसका अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जिसकी बद्
ु धिमानी एवं योग्यता को
लोग न समझते हों। साँईं को गद ु ड़ी का लाल कहने का आशय यह है कि सभी लोग उसे चिथड़ों वाला साँईं ही
जानते थे, परं तु वह बालकों को भगवान स्वरूप मानते थे तथा उनके मनोविनोद के लिए ही गद ु ड़ी रखते थे। इसे
केवल साँईं ही समझते थे। इसी कारण लेखक ने उसे गद ु ड़ी का लाल कहा।

4. पाठ के अनस
ु ार चरित्र चित्रण कीजिए
क. गद
ू ड़ साँई …...
क) साँईं बैरागी था, मोह - माया से दरू था। उसे बच्चों से बहुत लगाव था। बच्चों को भगवान मानता था। मोहन के
घर के सामने बैठ जाता और मोहन से बातें करता। उनकी दी हुई रोटी - साग बड़े चाव से खाता था। बच्चों को रोता
दे खकर रो पड़ता था।

ख. मोहन…….

ख) मोहन दस वर्ष का बालक था। मोहन साँईं को गरीब जानकर, साग - रोटी दे दे ता था। उसे साँईं से बात करना
अच्छा लगता था। पिता के डांटने पर भी वह साँईं को खाना दे ता था।

मोहन के पिता…...
ग) मोहन के पिता पाश्चात्य शिक्षा और सभ्यता से प्रभावित थे। उनको फ़कीरों पर विश्वास नहीं था। वे सभी
फ़कीरों को ढोंगी समझते थे। उन्होंने मोहन को साईं से मिलने को मना किया।

5. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

क. साँईं मोहन के पिता के डांटने पर भी मोहन के घर क्यों जाता था?

क) मोहन को उसके पिता साँईं के पास जाने से रोकते थे। उन्हें फ़कीरों से स्वाभाविक चिढ़ थी। वे चाहते थे कि
मोहन ऐसे लोगों से दरू रहे , पर इतना सब होते हुए भी साँईं मोहन के घर जाता था, क्योंकि मोहन को उससे बहुत
लगाव था। वह पिता की नज़र बचाकर माँ से ज़िद करके उसे रोटियाँ भी दे ता था।

ख. मोहन के पिता को फकीरों पर विश्वास क्यों नहीं था?

ख) मोहन के पिता को फ़कीरों पर विश्वास इसलिए नहीं था, क्योंकि वे पाश्चात्य शिक्षा और सभ्यता से प्रभावित
थे। उनका मानना था कि सभी फ़कीर ढोंगी होते हैं।

ग. साँईं बच्चों के पीछे चिथड़ों को लेकर क्यों भागता था?

ग) साँईं बच्चों के पीछे चिथड़ों को लेकर इसलिए भागता था, क्योंकि वह बच्चों को भगवान समझता था और
बच्चे जब उसके पीछे भागते थे, तो उसे ऐसा लगता था जैसे भगवान ही आ रहे हों।

घ. साँईं बच्चे के गले में गलबाहीं डाल कर क्यों निकल पड़ा?

घ) साँईं बच्चे के गले में गलबहियाँ डालकर इसलिए निकल पड़ा, क्योंकि वह बच्चों से बहुत प्यार करता था। वह
किसी भी दशा में स्वयं को बच्चों से अलग नहीं कर पाता था। वह उनमें भगवान का रूप दे खता था। यही कारण
था कि मोहन के पिता ने जब बच्चे को पीटा और बच्चा रोने लगा, तो साँईं भी रोने लगे और कहने लगे कि चिथड़ों
पर तो भगवान ही दया करते हैं। इतना कहते वह बालक का मँह ु पोंछते हुए उसके साथ चल पड़े।
6. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तारपर्व
ू क लिखिए-
क. साँईं गद
ू ड़ क्यों रखता था?
क) साँईं बच्चों के मनोविनोद के लिए गदु ड़ रखता था। बच्चे इस चिथड़े को लेकर भागते, साँईं उनसे लड़कर छीन
लेता, रखता फिर उन्हीं से छिनवाने के लिए। साँईं मानता था कि सोने का खिलौना तो उचक्के भी छीनते हैं, पर
चिथड़ों पर भगवान ही दया करते हैं।

ख. लेखक ने कहानी का शीर्षक' गद


ू ड़ साँई ' क्यों रखा है ?अपने विचार लिखिए।
ख) लेखक के कहानी का शीर्षक गद
ु ड़ साँईं रखने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-
१) वह हमेशा अपने साथ दो-तीन चिथड़े रखता था।

२) बच्चे जब चिथड़े खींचकर भागते थे, वह नाराज़ नहीं, बल्कि खश


ु होते थे। ३) बच्चों को वह भगवान का रूप
मानते थे।

४) उनका स्वभाव सरल था। उनके अंदर किसी प्रकार के माया - मोह की भावना नहीं थी।

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