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इसे सुनकर श्री राधा रानी पल भर में कृपा बरसती है श्री राधा कृपा कटाक्ष जरूर पढ़े
इसे सुनकर श्री राधा रानी पल भर में कृपा बरसती है श्री राधा कृपा कटाक्ष जरूर पढ़े
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- ( ) *
“भावाथर्”: “राधा” साध्य है उनको पाने का साधन भी राधा नाम ही है। मन्त्र भी
राधा है और मन्त्र देने वाली गुरु भी स्वयं राधा जी ही है सब कुछ राधा नाम में
ही समाया हुआ है और सबका जीवन प्राण भी राधा ही है राधा नाम के
अितिरक्त ब्रम्हांड में शेष बचता क्या है?
मुनी%वृ%व(%ते
+,लोकशोकहा3रणी,
6स8व9पंकजे
=नकंजभू@वला=सनी।
Bजे%भानुन(%नी Bजे%
सूनुसंगते, कदा क3रEसीह
मां कृपा-कटाG-भाजनम्॥
(१)
भावाथर् : समस्त मुिनगण आपके चरणों की वंदना करते हैं, आप तीनों लोकों
का शोक दू र करने वाली हैं, आप प्रसन्निचत्त प्रफुिल्लत मुख कमल वाली हैं,
आप धरा पर िनकुंज में िवलास करने वाली हैं। आप राजा वृषभानु की
राजकुमारी हैं, आप ब्रजराज नन्द िकशोर श्री कृष्ण की िचरसंिगनी है, हे
जगज्जननी श्रीराधे माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृिष्ट से कृताथर् करोगी ?
(१)
अशोकवृG वLरी
@वतानमMपNOते,
6वालPालपLव
6भाQणा3Rघ् कोमले ।
वराभयUुरVरे
6भूतसWदालये, कदा
क3रEसीह मां कृपा-
कटाG-भाजनम्॥ (२)
भावाथर् : आप अशोक की वृक्ष-लताओं से बने हुए मंिदर में िवराजमान हैं, आप
सूयर् की प्रचंड अिग्न की लाल ज्वालाओं के समान कोमल चरणों वाली हैं,
आप भक्तों को अभीष्ट वरदान, अभय दान देने के िलए सदैव उत्सुक रहने
वाली हैं। आप के हाथ सुन्दर कमल के समान हैं, आप अपार ऐश्वयर् की
भंङार स्वािमनी हैं, हे सवेर्श्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृिष्ट से कृताथर्
करोगी ? (२)
अनंगरंगमंगल
6संगभंगुरYुवां, सु@वYम
ससZम
[ग\बाणपातनैः।
=नर\रं वशीकृत
6तीतन%न%ने, कदा
क3रEसीह मां कृपा-कटाG
भाजनम्॥ (३)
भावाथर् : रास क्रीड़ा के रंगमंच पर मंगलमय प्रसंग में आप अपनी बाँकी भृकुटी
से आश्चयर् उत्पन्न करते हुए सहज कटाक्ष रूपी वाणों की वषार् करती रहती
हैं। आप श्री नन्दिकशोर को िनरंतर अपने बस में िकये रहती हैं, हे जगज्जननी
वृन्दावनेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृिष्ट से कृताथर् करोगी ? (३)
त3ड़bुवणचWक
6दीdगौर@वगहे,
मुख6भापराg-
को3टशारदे%म
ु hङले ।
@व+च,+च,-
संचरjकोरशावलोचने,
कदा क3रEसीह मां कृपा-
कटाG भाजनम्॥ (४)
भावाथर् : आप िबजली के सदृश, स्वणर् तथा चम्पा के पुष्प के समान सुनहरी
आभा वाली हैं, आप दीपक के समान गोरे अंगों वाली हैं, आप अपने
मुखारिवं द की चाँदनी से शरद पूिणर् मा के करोड़ों चन्द्रमा को लजाने वाली हैं।
आपके नेत्र पल-पल में िविचत्र िचत्रों की छटा िदखाने वाले चंचल चकोर िशशु
के समान हैं, हे वृन्दावनेश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृिष्ट से कृताथर्
करोगी ? (४)
मदोlदा+तयौवने 6मोद
मानमmण्त,े
@6यानुरागरं=जते
कला@वलासपmण्डते।
अनoधoकुंजराज
कामके=लको@वदे कदा
क3रEसीह मां कृपा-
कटाG-भाजनम्॥ (५)
भावाथर् : आप अपने िचर-यौवन के आनन्द के मग्न रहने वाली है, आनंद से
पूिरत मन ही आपका सवोर्त्तम आभूषण है, आप अपने िप्रयतम के अनुराग में
रंगी हुई िवलासपूणर् कला पारंगत हैं। आप अपने अनन्य भक्त गोिपकाओं से
धन्य हुए िनकुंज-राज के प्रेम क्रीड़ा की िवधा में भी प्रवीण हैं, हे िनकुँजेश्वरी
माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृिष्ट से कृताथर् करोगी ? (५)
6शgमंदहाtचूणपूणसौuसागरे,
कदा क3रEसीह मां कृपा-
कटाG भाजनम्॥ (६)
भावाथर् : आप संपूणर् हाव-भाव रूपी श्रृंगारों से पिरपूणर् हैं, आप धीरज रूपी
हीरों के हारों से िवभूिषत हैं, आप शुद्ध स्वणर् के कलशों के समान अंगो वाली
है, आपके पयोंधर स्वणर् कलशों के समान मनोहर हैं। आपकी मंद-मंद मधुर
मुस्कान सागर के समान आनन्द प्रदान करने वाली है, हे कृष्णिप्रया माँ! आप
मुझे कब अपनी कृपा दृिष्ट से कृताथर् करोगी ? (६)
मृणालबालवLरी
तरंगरंगदोलते,
लतागलाtलोलनील
लोचनावलोकने।
ललLुल=म्लlनोw
मुx मोहनाyये, कदा
क3रEसीह मां कृपा-कटाG
भाजनम्॥ (७)
भावाथर् : जल की लहरों से किम्पत हुए नूतन कमल-नाल के समान आपकी
सुकोमल भुजाएँ हैं, आपके नीले चंचल नेत्र पवन के झोंकों से नाचते हुए लता
के अग्र-भाग के समान अवलोकन करने वाले हैं। सभी के मन को ललचाने
वाले, लुभाने वाले मोहन भी आप पर मुग्ध होकर आपके िमलन के िलये आतुर
रहते हैं ऎसे मनमोहन को आप आश्रय देने वाली हैं, हे वृषभानुनन्दनी माँ! आप
मुझे कब अपनी कृपा दृिष्ट से कृताथर् करोगी ? (७)
सुव{ा|=लकां+चते
+,रेखक}ुक~गे,
+,सु,मंगलीगुण
+,र•दीÄdदी+धअ+त।
सलोलनीलकु\ले
6सूनगुÅगुिÉफते, कदा
क3रEसीह मां कृपा-कटाG
भाजनम्॥ (८)
भावाथर् : आप स्वणर् की मालाओं से िवभूिषत है, आप तीन रेखाओं युक्त शंख
के समान सुन्दर कण्ठ वाली हैं, आपने अपने कण्ठ में प्रकृित के तीनों गुणों का
मंगलसूत्र धारण िकया हुआ है, इन तीनों रत्नों से युक्त मंगलसूत्र समस्त
संसार को प्रकाशमान कर रहा है। आपके काले घुंघराले केश िदव्य पुष्पों के
गुच्छों से अलंकृत हैं, हे कीरितनन्दनी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा दृिष्ट से
कृताथर् करोगी ? (८)
=नत}@ब}ल}मान
पुÜमेखलागुण,
6शgर•@कáकणी
कलापमàमंजुले।
करीâशुMद(Mका
वरोहसोभगोäके, कदा
क3रEसीह मां कृपा-कटाG
भाजनम्॥ (९)
भावाथर् : आपका उर भाग में फूलों की मालाओं से शोभायमान हैं, आपका
मध्य भाग रत्नों से जिड़त स्वणर् आभूषणों से सुशोिभत है। आपकी जंघायें
हाथी की सूंड़ के समान अत्यन्त सुन्दर हैं, हे ब्रजनन्दनी माँ! आप मुझे कब
अपनी कृपा दृिष्ट से कृताथर् करोगी ? (९)
अनेकम&नादमंजु
नूपुरारव0लत्,
समाजराजहंसवंश
7न8णा:तग।
=वलोलहेमव?री
=वडBम्बचाEचं कमे, कदा
कFरGसीह मां कृपा-
कटाJ-भाजनम्॥ (१०)
भावाथर् : आपके चरणों में स्वणर् मिण्डत नू¬पुर की सुमधुर ध्विन अनेकों वेद
मंत्रो के समान गुंजायमान करने वाले हैं, जैसे मनोहर राजहसों की ध्विन
गूँजायमान हो रही है। आपके अंगों की छिव चलते हुए ऐसी प्रतीत हो रही है
जैसे स्वणर्लता लहरा रही है, हे जगदीश्वरी माँ! आप मुझे कब अपनी कृपा
दृिष्ट से कृताथर् करोगी ? (१०)
अन\को3ट@वåुलोक
नमपदमजा+चते, 3हमाçदजा
पुलोमजा-@वरं+चजावर6दे।
अपार=सçदवृçदçदx
-सéदांगुलीनखे, कदा
क3रEसीह मां कृपा
-कटाG भाजनम्॥ (११)
भावाथर् : अनंत कोिट बैकुंठो की स्वािमनी श्रीलक्ष्मी जी आपकी पूजा करती
हैं, श्रीपावर्ती जी, इन्द्राणी जी और सरस्वती जी ने भी आपकी चरण वन्दना
कर वरदान पाया है। आपके चरण-कमलों की एक उं गली के नख का ध्यान
करने मात्र से अपार िसिद्ध की प्रािप्त होती है, हे करूणामयी माँ! आप मुझे
कब अपनी कृपा दृिष्ट से कृताथर् करोगी ? (११)
रमेèरी Gमेèरी
6मोदकाननेèरी, íजेèरी
íजा+धपे yीरा+धके
नमोgुते॥ (१२)
भावाथर् : आप सभी प्रकार के यज्ञों की स्वािमनी हैं, आप संपूणर् िक्रयाओं की
स्वािमनी हैं, आप स्वधा देवी की स्वािमनी हैं, आप सब देवताओं की स्वािमनी
हैं, आप तीनों वेदों की स्वािमनी है, आप संपूणर् जगत पर शासन करने वाली
हैं। आप रमा देवी की स्वािमनी हैं, आप क्षमा देवी की स्वािमनी हैं, आप
आमोद-प्रमोद की स्वािमनी हैं, हे ब्रजेश्वरी! हे ब्रज की अधीष्ठात्री देवी
श्रीरािधके! आपको मेरा बारंबार नमन है। (१२)
इतीदमतभुतgवं =नशî
भानुन=न्दनी, करोतु संततं
जनं कृपाकटाG भाजनम्।
भवेïादैव सं+चत-
+,Qपकमनाशनं,
लभेïादíजेâसूनु
मMल6वेशनम्॥ (१३)
भावाथर् : हे वृषभानु नंिदनी! मेरी इस िनमर्ल स्तुित को सुनकर सदैव के िलए
मुझ दास को अपनी दया दृिष्ट से कृताथर् करने की कृपा करो। केवल आपकी
दया से ही मेरे प्रारब्ध कमोर्ं, संिचत कमोर्ं और िक्रयामाण कमोर्ं का नाश हो
सकेगा, आपकी कृपा से ही भगवान श्रीकृष्ण के िनत्य िदव्यधाम की लीलाओं
में सदा के िलए प्रवेश हो जाएगा। (१३)
जय श्री राधे
) *
Sapna
March 19, 2018
% Reply
Virasat Admin
March 19, 2018
% Reply
Ajay Katyal
May 15, 2019
% Reply
hamari virasat
May 15, 2019
Shri Radhe
% Reply
Deepti kesharwani
May 26, 2019
% Reply
hamari virasat
May 27, 2019
% Reply
Pihu
June 9, 2019
% Reply
hamari virasat
June 9, 2019
% Reply
Jagdish
July 7, 2019
% Reply
hamari virasat
July 7, 2019
radhe radhe
% Reply
म\री =वनायक
July 15, 2019
श्री राधे राधे । श्री राधा कृपा कटाक्ष का अथर् बहुत सुंदर और सटीक ।
अगर इसके प्रारम्भ में श्यामजू के ध्यान के श्लोक को जोड़ िदया जाए तो
और आभार होगा ।
% Reply
hamari virasat
July 18, 2019
Ji jarur apka bhot bahot dhanywad.. add kar diya shri radha
rani ka mantra…Shri Radhe
राधा साध्यम साधनं यस्य राधा, मंत्रो राधा मन्त्र
दात्री च राधाl
सवर्ं राधा जीवनम् यस्य राधा, राधा राधा वािच
िकम तस्य शेषम ll”
% Reply
म\री =वनायक
August 1, 2019
% Reply
Shaini
March 6, 2020
% Reply
hamari virasat
March 8, 2020
radhe radhe
% Reply
Shubh Shukla
March 29, 2020
% Reply
hamari virasat
March 29, 2020
Radhe Radhe
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