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मााँ की भावना

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(पस्
ु तक के कुछ अंश)

आज पार्थ के परम ममत्र की पत्र


ु ी का वववाह समारोह र्ा। उसने बहुत आग्रह कर बल
ु ाया र्ा। पार्थ
की पत्नी तो कई दिनों से इसके मलए तैयारी कर रही र्ी। शाम को सजधज कर िोनों वववाह

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समारोह में पंहुंचे। जैसा कार्थ र्ा उसी अंिाज में वववाह समारोह का भव्य आयोजन ककया गया र्ा।
शहर की प्रमसद्ध पांच मसतारा होटल के प्रांगण में कायथक्रम आयोजजत ककया ककया र्ा। समारोह
स्र्ल रौशनी में नहाया हुआ र्ा। आगरा के प्रमसद्ध कैटरसथ को ववशेष रूप से बल
ु ाया गया र्ा।
प्रमसवद्ध के अनरू
ु प ही एक से बढ़कर एक व्यंजन नाम की प्लेट सदहत सजाये गये र्े।
आगे............
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आज पार्थ के परम ममत्र की पत्र
ु ी का वववाह समारोह र्ा। उसने बहुत आग्रह कर बल
ु ाया र्ा। पार्थ

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की पत्नी तो कई दिनों से इसके मलए तैयारी कर रही र्ी। शाम को सजधज कर िोनों वववाह
समारोह में पंहुंचे। जैसा कार्थ र्ा उसी अंिाज में वववाह समारोह का भव्य आयोजन ककया गया र्ा।
शहर की प्रमसद्ध पांच मसतारा होटल के प्रांगण में कायथक्रम आयोजजत ककया ककया र्ा। समारोह
स्र्ल रौशनी में नहाया हुआ र्ा। आगरा के प्रमसद्ध कैटरसथ को ववशेष रूप से बल
ु ाया गया र्ा।
प्रमसवद्ध के अनरू
ु प ही एक से बढ़कर एक व्यंजन नाम की प्लेट सदहत सजाये गये र्े। िोस्त और
उनकी पत्नी पार्थ और साक्षी से गमथजोशी से ममले और आग्रह पव
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थ ववमभन्न प्रकार के सलािों,
अचार और खाने की प्लेटों से सजे काउं टर तक लेकर आये और खाने में कंजस
ू ी नहीं करने की
दहिायत नहीं िे ते हुए वापस मेहमानों की आगवानी में चले गये। पार्थ और साक्षी ने प्लेट में

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पसंिीिा पकवान लेकर खाने के मलए खाली टे बल पर बैठ गए। खाना शरू
शहर की कॉलेज में पढ़ाई कर रही बेटी को साक्षी ने फ़ोन लगाया

"खाना खा मलया बेटा?"


ु करने के सार् ही िस

"मााँ आजकल मेस में बबलकुल खराब खाना ममल रहा है ।" बेटी की आवाज में उिासी र्ी।
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"बेटा कॉलेज वाले मेस की फीस तो अच्छी खासी लेते है ।" साक्षी ने कोर माँह
ु में र्ालते हुए कहा।

"हााँ, लेककन यहााँ िाल में पानी में तो कोई कंजस


ू ी नहीं करते बस िाल ही नहीं र्ालते। रोदटयााँ भी
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आधी कच्ची हैं। मैं ढं ग से नहीं खा पाई।" बेटी की मशकायत भरी आवाज़ र्ी।

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ु कर साक्षी का पहला कोर ही गले में अटक गया। वह भराथई हुई बोली

"पार्थ मेरी बेटी ढं ग से नहीं खा पायी और मैं यहााँ इतने पकवान मलए बैठी हूाँ। ये मेरे गले नहीं
उतरें गे।"
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"अरे यार हॉस्टल में हम भी रहे हैं। ऐसा ही खाना हमने भी खाया है । ये आम बात है।" पार्थ ने
समझाने की कोमशश की लेककन साक्षी बबना खाना खाये उठ गई और तेजी से बाहर की ओर चल
िी। पीछे पीछे पार्थ भी जो हार् में र्ा उसे मुंह में िबाकर चल दिया। घर पहुाँचने पाँर मााँ उनके
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हाव भाव से समझ गई र्ी कुछ ठीक नहीं है । पूछने पर पार्थ मााँ से साक्षी के बचपने की मशकायत
करता हुआ बोला

"मााँ हॉस्टल में मैं भी रहा हूाँ। मैंने तो कभी नहीं सन


ु ा आप मेरी चचंता में कभी ऐसे ककसी समारोह
में खाना छोड़ कर उठी हों।"
पार्थ की बातें िरू से सन
ु कर सन
ु रहे उसके वपता ववचमलत हो कर बोल उठे

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"नहीं बेटा उस जमाने इतनी समवृ द्ध कहााँ र्ी कक ऐसा अवसर ममले कक ऐसे पकवान बने और कोई
बीच में उठे । तेरी मेस की फीस इकट्ठा करने के मलए तेरी मााँ ने िनु नया के सारे उपवास ढूाँढ
ननकाले र्े। िे वता भी भला मान गए और तू पढ़ भी गया। हम नहीं समझ पाएंगे लेककन न जाने
क्यों ये ऐसी ही होती हैं।"

सास ने प्यार से साक्षी के मसर को सहलाया। बहुत प्रयास और कसम के बाि भी कसम तोड़ने के
नाम पर साक्षी रोटी का एक कोर ही खखला पाई। साक्षी परू ी रात बेटी की चचंता में करवट बिलती
रही। सुबह जाकर र्ोड़ी िे र के मलए हलकी सी आाँख लगी। उसमे भी वह बेटी को सपने में गरमा

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गरम रोटी िे कर उसकी पसंिीिा मटर पनीर की सब्जी परोसती रही। नींि में भी उसके हार् दहल
रहे र्े और होठ बर्बर्ा रहे र्े। पार्थ उठ गया र्ा। उसने िे खा साक्षी का फोन मसरहाने रखा र्ा।
उसमें बेटी के मैसेंजर पर फोटो भेजने के नोदटकफकेशन आये हुए र्े। पार्थ ने फोन उठा कर फोटो
िे खी। बेटी ने िे र रात मनाई पाटी की फोटो र्ाली हुई र्ी और मैसेज भी भेजा हुआ र्ा जजसमें
मलखा र्ा
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"ममा, रात को हमने बारह बजे यहााँ मेरी नई बेस्ट फ्रेंर् प्रेरणा का बर्थर्े मनाया और पाटी की।
बहुत मज़ा आया ममा"
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पार्थ को पहली बार बेटी की फोटो िे खकर खुशी नहीं हुई र्ी। उसने सारी फोटो डर्लीट कर फोन
वापस साक्षी के मसरहाने रख दिया और मन ही मन बड़बड़ाया "न जाने क्यों बच्चे मााँ की भावना
को कभी उस मशद्दत से महसूस नहीं कर पाते।"
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