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संकलन

आशुतोष उपाध्याय
परमाणु की कहानी/ संकलन: आशुतोष उपाध्याय

प्रकाशन वर्ष: अक्टू बर 2022

प्रकाशक:
डॉ. डी.डी. पन्त स्मारक बाल ववज्ञान खोजशाला
सत्यवनकेतन, बे रीनाग (वपथौरागढ़), उत्तराखं ड

सभी वित्र इन्टरनेट से साभार

मुखपृष्ट: क्ां टम सू क्ष्मदशी से वलया गया हाइडरोजन परमाणु का पहला वास्तववक


वित्र (Stodolna et al./Physical Review Letters).

यह पुस्तक कॉपीराइट मुक्त है और गै र-व्यावसावयक उपयोग हे तु साभार उपयोग


की जा सकती है .
ह म मनुष्य स्वभाव से ही वजज्ञासु होते हैं । वकसी वशशु के
व्यवहार से हम इस बात को जान सकते हैं । उसे कोई नया
खखलौना लाकर दीवजए। खेलने के बजाय वशशु यह जानने में
ज़्यादा वदलिस्पी लेता है वक आखखर इसके भीतर है क्या! और
इस खोजबीन में वह अकसर खखलौने को ही तोड़ डालता है ।

अपने उद्भव से ही मनुष्य प्रकृवत की संरिना को जानने के


वलए उत्सुक रहता था। इतनी सारी वस्तुएं जो उसके िारों तरफ़
मौजूद हैं , आखखर वकस िीज़ से बनी हैं ? अगर इन्हें तोड़ते जाएं
तो आखखर क्या वनकलकर आएगा?

मगर पुरातन काल में न तो ववज्ञान था और न


ही ऐसी तकनीकी, जो वस्तुओं को एक सीमा से
ज़्यादा तोड़ पाती। ऐसे में हजारों साल पहले के
दाशषवनकों ने अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ाए
और इस सवाल का जवाब दे ने की कोवशश
की वक तमाम िीज़ें आखखर बनी वकन
ईंटों से हैं ।
आज हम जानते हैं वक पदाथष की सबसे छोटी इकाई
परमाणु है । पदाथष िाहे वकसी भी अवस्था का हो, वह परमाणुओं
से वमलकर बना होता है । परमाणु अत्यंत सूक्ष्म आकार के होते
हैं । मापन इकाइयों के वहसाब से कहें तो पीकोमीटर आकार के,
यानी मीटर के 10 अरबवें वहस्से के बराबर! इस माप से आप
परमाणु की सूक्ष्मता का अंदाज़ लगा सकते हैं ।

अब अगर आप यह पूछें वक परमाणु की खोज वकसने की


तो जवाब में वै ज्ञावनकों की एक लम्बी वलस्ट बन जाएगी। आज
परमाणु के बारे में हम जो कुछ जानते हैं उसका पता लगाने में
वै ज्ञानकों की कई पीवढ़यों का योगदान रहा है ।

ईसा से कोई 400 साल पहले डे मोक्रिटस नाम के एक ग्रीक


दाशषवनक हुए। डे मोविटस ही वह शख्स थे वजन्होंने 'एटम'
यानी परमाणु नाम वदया था। 'एटम' शब्द ग्रीक भार्ा के
'एटमॉस' शब्द से बना है , वजसका मतलब होता है अववभाज्य-
वजसे तोड़ा न जा सके। डे मोविटस मानते थे वक यवद हम वकसी
भी पदाथष को तोड़ते िले जाएं तो एक मुकाम ऐसा आएगा जब
उसे और तोड़ा नहीं जा सकेगा। पदाथष
की यही सबसे छोटी इकाई होगी और
डे मोविटस ने उसे एटम नाम दे वदया।

डे मोविटस का
परमाणु मॉडल
डे मोविटस अपने इस वविार को ब्रह्माण्ड का क्रसद्ांत
कहते थे। उनके इस वसद्ां त से वनम्न पां ि बातें वनकलती है :

1. सभी पदाथष परमाणुओं से वमलकर बने हैं । परमाणु पदाथष


की सबसे छोटी इकाई है और वह इतनी छोटी है वक हम
उसे दे ख नहीं सकते।
2. परमाणुओं के बीि में ररक्त स्थान होता है ।
3. परमाणु पूरी तरह ठोस होते हैं ।
4. परमाणुओं की कोई आं तररक संरिना नहीं होती।
5. वववभन्न पदाथों के परमाणु आकार-प्रकार और भार में
अलग-अलग होते हैं ।

डे मोविटस का ब्रह्माण्ड वसद्ां त अगले दो


हजार से भी ज्यादा सालों तक िलता रहा।
सन 1800 में जॉन डाल्टन नाम के एक
वै ज्ञावनक ने डे मोविटस के मॉडल में कुछ
फेरबदल वकए और परमाणु का पहला
आधुवनक मॉडल दे ने का प्रयास वकया।

जॉन डाल्टन के परमाणु


मॉडल के अनुसार:
● सभी पदाथष परमाणु नामक अवतसूक्ष्म कणों से वमलकर
बने हैं ।
● परमाणुओं को न तो नष्ट वकया जा सकता है और न ही
बदला।
● वकसी भी तत्व को उसके परमाणुओं के भार के अनुसार
पररभावर्त वकया जाता है ।
● जब तत्व आपस में विया करते हैं , तब उनके परमाणु ही
वमलकर नए यौवगकों को जन्म दे ते हैं ।

इ सके बाद 1890 में एक और वै ज्ञावनक आए, वजनका नाम था


जे.जे . थॉमसन। थॉमसन साहब ने ही उस कण की खोज
की थी, वजसे आज हम इलेक्टरॉन के नाम से जानते हैं । इसकी
खोज के वलए उन्होंने वजस उपकरण का इस्तेमाल वकया उसे
'कैथोड रे ट्यू ब' कहते हैं । शुरुआती दौर के टे वलववज़न और
कंप्यूटर मॉवनटर कैथोड रे ट्यूब के उदाहरण हैं ।

1. थॉमसन ने सबसे पहले एक कैथोड रे ट्यू ब ली और उसे


लगभग पूरा खाली कर वदया। यानी उन्होंने उसके भीतर
की हवा को भी जहां तक संभव था, बाहर खींि वलया।
2. इसके बाद ट्यूब से एक ववद् युत आवे श को प्रवावहत
वकया गया, जो ट्यू ब के ऋणाग्र से धनाग्र की ओर िलता
है (एनोड वह सुिालक होता है जो सभी ऋणावे शों को
अपनी ओर आकवर्ष त करता है और कैथोड सभी
धनावे शों को।)
3. ये आवे श तो अदृश्य थे ले वकन थॉमसन आवे शों को
दे खना और समझना िाहते थे। इसके वलए उन्होंने एक
स्फुरदीप्त (फ्लुओरोसे न्ट) पदाष वलया और उसे ट्यू ब के
पीछे वफट कर वदया। जब भी पदे से कोई पुंज टकराता
तो उसमें एक वबन्दु उभर जाता था।
4. उन्होंने ऐसी व्यवस्था बनायी थी वक यवद कोई बाधा न
डाली जाए तो पुंज हमे शा सीधी रे खा में िलते थे।
5. उपकरण में ववक्षेपण कुंडवलयां भी लगाई गयी थीं, वजनमें
एक धनावे वशत थी और दू सरी ऋणावे वशत।

इस प्रयोग के माध्यम से थॉमसन ने वदखाया वक कैथोड रे से


वनकलने वाला आवे श पुं ज ऋणावे वशत कुंडली से दू र जा रहा है ।
इस अवलोकन के आधार पर उन्होंने वनष्कर्ष
वनकाला वक आवे श पुंज भी ऋणावे वशत है ।

उन्होंने यह भी बताया वक यह आवे श


हाइडरोजन के परमाणु से 1000 गुना हल्का है ।
थॉमसन के वविार से ये ऋणात्मक आवे श परमाणु के भीतर होने
िावहए। ठीक उसी तरह जैसे तरबूज के भीतर उसके बीज पाये
जाते हैं । इन ऋणावे शों को उन्होंने 'कॉपपसल' यानी कवणका
कहा, वजन्हें बाद में इले क्टरॉन नाम वदया गया।

स न 1910 के आसपास परमाणु की कहानी में एक और


वकरदार प्रवे श करते हैं । ये थे अर्न्स्प रदरफोडप , जो
थॉमसन के मॉडल से संतुष्ट नहीं थे। इसवलए उन्होंने खुद एक
प्रयोग तै यार वकया वजसे 'गोल्ड फॉइल एक्सपेररमेंट' यानी
स्वणष पत्र प्रयोग कहते हैं ।

अपने प्रयोग को रदरफोडष ने कुछ इस तरह वडज़ाइन वकया:

1. उन्होंने सोने के बहुत पतले पत्र पर रे वडओधमी अल्फा


कणों (धनावे वशत) की वर्ाष की।
2. उन्होंने पत्र के दू सरी ओर वनकलने वाले कणों के
ववक्षेपण को नोट वकया।
3. उन्होंने पाया वक ज्यादातर कण दू सरी ओर वबना
ववक्षेवपत हुए सीधे वनकल गये। जबवक कुछ थोड़ा बहुत
ववक्षेवपत भी हुए।
4. कभी-कभी कुछ कण स्वणष पत्र से टकराकर लौट आये।
5. रदरफोडष ने कहा वक स्वणष पत्र में एक धनावे वशत केंद्र
भी होना िावहए। इसे उन्होंने नावभक नाम वदया।

इस तरह रदरफोडष का परमाणु मॉडल कहता है वक:

# परमाणु का नावभक धनावे वशत कणों का सघन द्रव्य


होना िावहए।
# इलेक्टरान नावभक के िारों ओर िक्कर काटते हैं ।
# यह सवाल भी उठा वक ऋणावे वशत कण नावभक के
धनवे वशत कणों से आकवर्ष त क्यों नहीं हो रहे हैं ।
# रदरफोडष ने कहा वक परमाणु एक सूक्ष्म सौर मण्डल
जैसी व्यवस्था है और इलेक्टरॉन नावभक के िारों ओर
बहुत बड़ी कक्षा में िक्कर लगाते हैं । इस कारण
रदरफोडष के मॉडल को प्लेनेटरी मॉडल भी कहा जाता
है ।
ल गभग इसी समय एक और जबदष स्त वै ज्ञावनक हुए। उनका
नाम था नील्स बोर। उन्होंने बताया वक रदरफोडष का
प्लेनेटरी मॉडल कुछ हद तक ठीक है लेवकन इसमें कई
गड़बवड़यां हैं । िूंवक बोर आधुवनक भौवतकी यानी क्ां टम
वफ़वज़क्स और ऊजाष के ववशेर्ज्ञ थे, तो उन्हें रदरफोडष के मॉडल
की गड़बवड़यां दू र करने में काफ़ी हद तक कामयाबी वमल गयी।
रदरफोडष के मॉडल पर एक सवाल यह खड़ा वकया जाता था वक
इसमें इलेक्टरॉन नावभक में वगरते क्यों नहीं हैं । बोर ने इस सवाल
का सटीक जवाब खोज वनकाला।

रदरफोडष और बोर का वमलाजुला परमाणु मॉडल अब कुछ


इस तरह बन गया:

# इलेक्टरॉन नावभक के िारों ओर वनवित कक्षाओं में घूमते


हैं । इन इलेक्टरॉनों का वनवित आकार और ऊजाष होती है ।
# वजस इलेक्टरॉन की ऊजाष कम होती है , उसकी कक्षा भी
छोटी होती है ।
# इसका मतलब यह वनकला वक कक्षाओं को भरने के िम
में इलेक्टरॉन पहले कम ऊजाष स्तर से शुरुआत करते हैं ।
# जब कोई ऊजाष स्तर की अपनी क्षमता के उच्चतम वबन्दु
पर पहुं ि जाता है तो एक नया ऊजाष स्तर शुरू हो जाता
है ।
# जब कोई इलेक्टरॉन एक ऊजाष स्तर से दू सरे में आता है
तो ऊजाष वववकरण की पररघटना वदखाई दे ती है । कोई
इलेक्टरॉन ऊजाष अवशोवर्त कर वनिले ऊजाष स्तर से ऊंिे
ऊजाष स्तर तक जा सकता है । इसी प्रकार ऊंिे ऊजाष
स्तर से वनिले स्तर पर आने पर वह ऊजाष अवमुक्त
करता है ।

अं त में इस कहानी में एक और महान पात्र का प्रवे श होता


है । और वह हैं अत्यंत बुखद्मान इरक्रिन श्रोक्रडन्जर। धारा
पलट दे ने वाले इस महान भौवतकववद के परमाणु मॉडल को हम
आज भी अपनी पुस्तकों में पढ़ते हैं ।

श्रोवडन्जर के परमाणु मॉडल को इलेक्टरॉन अभ्र (बादल)


मॉडल भी कहते हैं । इसके अनुसार:

1. कोई भी इलेक्टरॉन वकसी बंधी हुई कक्षा में नहीं घूमता।


2. हम केवल वकसी क्षे त्र में उसके होने की संभावना बता
सकते हैं ।
3. हम पक्के तौर पर यह नहीं कह सकते वक इस वक्त
कोई इले क्टरॉन ठीक-ठीक कहां पर होगा।
4. वकसी इलेक्टरॉन के होने की संभावना बोर के ऊजाष स्तर
के आधार पर बताई जा सकती है ।

अंत में, वनष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं वक:

# वकसी पदाथष की सबसे छोटी इकाई परमाणु होती है ।


# परमाणुओं को उनकी संरिना के आधार पर अलग-
अलग पहिाना जा सकता है ।
# वकसी परमाणु को उसे बनाने वाले घटक छोटे कणों में
बां टा जा सकता है , वजन्हें हम प्रोटॉन, न्यूटरॉन और
इलेक्टरॉन के नाम से जानते हैं ।
# नावभक परमाणु का केंद्र होता है ।
# इलेक्टरॉन अपनी ऊजाष के अनुसार कक्षाओं में स्थान पाते
हैं ।
# जब कोई ऊजाष स्तर (कक्षा) भर जाता है तो शेर्
इलेक्टरॉनों के वलए एक नया ऊजाष स्तर बनता है ।

तोभीयहकहानी
थी परमाणु की अब तक की कहानी। ववज्ञान में वकसी
का अंत नहीं होता, बस वह आगे बढ़ती रहती
है । परमाणुओं की दु वनया सबसे नयी और रहस्यमय है । इसमें
हमारे स्थूल संसार के वनयम काम नहीं करते, इसवलए सामान्य
बुखद् व आँ खों से इसे समझना मुखिल पड़ता है । जैसे-जैसे
ववज्ञान आगे बढ़े गा, परमाणुओं की दु वनया के नये -नये रहस्य
उजागर होते जाएं गे। इसवलए ववज्ञान में वदलिस्पी बनाए रखें।
कौन जाने कुछ रहस्य आप ही के हाथों अनावृ त होने का इं तज़ार
कर रहे हों!

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