You are on page 1of 142

विश्व भगू ोल राज होल्कर

ब्रह्माण्ड
ब्रह्माण्ड: सक्ष्ू मतम अणओ
ु ं से लेकर विशाल आकाशगंगाओ ं तक के सवममवलत स्िरूप को ब्रह्माण्ड कहा जाता
है।
ब्रह्माण्ड की उत्पवि / विस्तार से सबं ंवित प्रारंवभक मत:
• 140 ई. में क्लॉवडयस टॉलमी ने सिवप्रथम ब्रह्माण्ड का वनयवमत अध्ययन कर भक ू े न्द्रीय अििारणा का
प्रवतपादन वकया एिं बताया वक 'पृथ्िी ब्रह्माण्ड के के न्द्र में है। सयू व एिं अन्द्य ग्रह पृथ्िी की पररक्रमा करते
हैं।'
• लगभग छठीं शताब्दी में भारतीय खगोलशास्त्री िराह वमवहर ने बताया वक ‘चंरमा पृथ्िी की पररक्रमा करता
है तथा पृथ्िी सयू व की पररक्रमा करती है।
• 1543 ई. में वनकोलस कॉपरवनकस (पोलैंड) ने सयू व कें वन्द्रत अििारणा प्रस्ततु की एिं बताया वक 'ब्रह्माण्ड
के के न्द्र में पृथ्िी नहीं बवल्क सयू व है। दैवनक गवत में पृथ्िी अपने अक्ष पर तथा िावषवक गवत में सयू व के चारों
ओर पररक्रमण करती है।'
• 1805 ई. में वब्रवटश खगोल शास्त्री हशेल ने ब्रह्माण्ड का अध्ययन दरू बीन से वकया।
• 1925 ई. में अमेररकी खगोलशास्त्री एडविन पॉिेल हब्बल ने बताया वक ब्रह्माण्ड में हमारी आकाशगंगा
की भांवत लाखों आकाशगंगाएं हैं। आकाशगंगाओ ं के बीच की दरू ी बढ़ रही है। जैसे-जैसे आकाशगंगाओ ं
के बीच की दरू ी बढ़ रही है िैसे िैसे इनके दरू जाने की गवत तेज होती जा रही है। इस वसद्ांत को ‘विस्तृत
ब्रह्माण्ड का वसद्ांत’ कहा जाता है।
ब्रह्माण्ड की उत्पवत से संबंवित वसद्ांत:
• महाविस्फोट वसद्ातं (Big Bang Theory): जॉजव लैमेत्रे
• सामयािस्था वसद्ातं (steady State Theory): थॉमस गोल्ड एिं हमवन बााँडी
• दोलन (Pulsating) वसद्ातं : एलन साँडेजा
• स्फीवत वसद्ातं (Inflationary Theory) : एलन गथु
महाविस्फोट वसद्ांत (Big Bang Theory): ब्रह्माण्ड की उत्पवि के संबंि में यह सिावविक मान्द्य वसद्ांत है।
इस वसद्ांत का प्रवतपादन िषव 1927 ई. में बेवल्जयम के खगोलशास्त्री जॉजव लैमेत्रे ने वकया था। इस वसध्दांत में जॉजव
लैमेत्रे ने ब्रह्माण्ड, आकाशगंगा एिं सौरमंडल की उत्पवि के बारे में बताया। बाद में िषव 1967 में रॉबटव िेगनर ने इस
वसद्ांत की विस्तृत व्याख्या प्रस्ततु की।
जॉजव लैमैत्रे के अनसु ार, आज से लगभग 15 अरब िषव पिू व समपणू व ब्रह्माण्ड एक गमव एिं सघन वबन्द्दु अथिा
अवनन वपण्ड के रूप में के वन्द्रत था। इसका वनमावण भारी पदाथों से हुआ था । अत्यविक संकेन्द्रण के कारण उस वबन्द्दु

1
विश्व भगू ोल राज होल्कर
में अचानक विस्फोट हुआ। यह विस्फोट वबग बैंग कहलाता है। इस विस्फोट के बाद उस भारी पदाथव में वबखराि
हुआ। विस्फोट के कुछ समय बाद ही उस वबन्द्दु का व्यास कई अरब मील का हो गया और िह वबन्द्दु एक आग के
गोले में बदल गया। विस्फोट के कुछ समय बाद इसका तापमान कुछ कम हुआ वजससे मल ू कणों एिं प्रवतकणों का
वनमावण हुआ। इन कणों ने आगे चलकर परमाणु का वनमावण वकया।
जैस-े जैसे समय गजु रता गया िैसे ही हाइड्रोजन परमाणु का वनमावण हुआ। बाद में हाइड्रोजन परमाणओ ु ं से
हीवलयम परमाणओ ु ं की उत्पवि हुई। ब्रह्माण्ड में सिावविक मात्रा में हाइड्रोजन एिं हीवलयम ही पाया जाता है। कुछ
अरब िषों के पश्चात इन्द्ही हाइड्रोजन एिं हीवलयम के बादलों ने ही सक ं ु वचत होकर आकाशगगं ाओ ं एिं तारों का
वनमावण वकया। वबग बैंग के लगभग 10.5 अरब िषव बाद (आज से, लनभग 4.5 अरब िषव पहले) सौरमण्डल का
विकास हुआ। सौरमंडल के विकास की प्रवक्रया में ही विवभन्द्न ग्रहों एिं उपग्रह आवद का वनमावण हुआ।
निीनतम खोजों से यह ज्ञात हुआ है वक वबग बैंग आज से लगभग 13.7 अरब िषव पिू व हुआ था। इससे
पहले ब्रह्माण्ड का अवस्तत्ि एक मटर के दाने के बराबर था।

आकाश गंगा (Galaxy): आकाशगंगा असंख्य तारों का एक विशाल पाँजु होता है। इसमें एक के न्द्रीय बल्ज
(Bulge) एिं तीन घणू वनशील भजु ाएं होती हैं। आकाशगंगा के के न्द्र को बल्ज कहते हैं। बल्ज में तारों का सक
ं े न्द्रण
सिावविक होता है।
आकाशगगं ा के वनमावण की शरुु आत हाइड्रोजन गैस से बने विशाल बादल के सच
ं यन से होती है। यह
वनहाररका (Nebula) कहलाती है।
मंदावकनी आकाशगंगा (Mandakini Galaxy):
• हमारा सौर पररिार वजस आकाशगंगा में वस्थत है, उसे मंदावकनी कहते हैं। इसका आकार सवपवल है।
• मंदावकनी की आयु लगभग 12 अरब िषव है।
• मंदावकनी के के न्द्र से सयू व की दरू ी 32000 प्रकाश िषव है।
• सयू व मंदावकनी के के न्द्र का एक चक्कर 25 करोड िषव में परू ा करता है।
एंड्रोमेडा आकाशगगं ा:
• यह हमारी आकाशगंगा मंदावकनी के सबसे वनकट की आकाशगंगा है।
• मंदावकनी से इसकी दरू ी 2.2 वमवलयन प्रकाश िषव है।

2
विश्व भगू ोल राज होल्कर
तारे का जीिनचक्र
स्टेलर नेबल
ु ा: तारे का जीिन आकाशगंगा की तीसरी भजु ा में हाइड्रोजन एिं हीवलयम के बादलों के बनने से शरूु
होता है। ये बादल स्टेलर नेबल
ु ा कहलाते हैं।
भ्रणू तारा (Embryo Star): जब आकाशगंगा में हाइड्रोजन का विशाल बादल गरुु त्िाकषवण के प्रभाि से
वसकुड़ने लगता है तो इसका के न्द्र सघन हो जाता है। यह वपण्ड आवद तारा या भ्रणू तारा कहलाता है।
तारा (Star): आवद तारा के वसकुड़ने की प्रवक्रया अरबों िषव तक चलती है तथा इस प्रवक्रया के दौरान आंतररक
ताप अपररवमत रूप से बढ़ जाता है। इसके पररणामस्िरूप हाइड्रोजन से हीवलयम के नावभक बनने लगते हैं। इससे
असीवमत मात्रा में विवकरण ऊजाव मक्त
ु होती है और वपण्ड के अन्द्दर का तापमान एिं दाब बढ़ जाता है।
तारों में ऊजाव का स्त्रोत: नावभकीय संलयन
तारों का तत्िीय संगठन:
हाइड्रोजन: 71% हीवलयम: 27.1%
काबवन, नाइट्रोजन एिं वनयॉन: 1.5% लौह तत्क-: 0.5%
रक्त दानि (Red Giant): तारों के के न्द्र में नावभकीय सलं यन वक्रया में हाइड्रोजन, हीवलयम में पररिवतवत होता
है। कुछ समय पश्चात तारे के क्रोड में हीवलयम गैस की प्रिानता बढ़ जाती है। इससे नावभकीय संलयन अवभवक्रया
रुक जाती है। इससे क्रोड का दबाि कम हो जाता है और तारा वसकुड़ने लगता है। तारे के बाहरी भाग में नावभकीय
सलं यन होता है वजससे विवकरण ऊजाव की तीव्रता घट जाती है। इस वस्थवत में तारे का रंग बदल कर लाल हो जाता
है। इस अिस्था में तारा लाल दानि तारा कहलाता है।
रक्त दानि अिस्था में तारे के पहुचं ने के बाद तारे का भविष्य उसके प्रारंवभक रव्यमान पर वनभवर करता है।
तारे के प्रारंवभक रव्यमान की तल ु ना चन्द्रशेखर सीमा के साथ की जाती है। 1.4 ms को चन्द्रशेखर सीमा कहते हैं।
वस्थवत - I: यवद वकसी तारे का रव्यमान सयू व के रव्यमान से कम या बराबर (चन्द्रशेखर सीमा) है तो िह
तारा लाल दानि तारे से श्वेत िामन तारे में बदल जाता है और अतं तः काला बौना (Black Dwarf) में
पररिवतवत हो जाता है।
वस्थवत - II: यवद वकसी तारे का रव्यमान सयू व के रव्यमान से अविक या कई गनु ा अविक होता है तो िह
तारा लाल दानि तारा से सपु रनोिा अिस्था से गजु रता है। इसके बाद िह न्द्यट्रू ॉन तारा या ब्लैक होल में
रूपातं ररत हो जाता है।

3
विश्व भगू ोल राज होल्कर
अन्द्य महत्िपणू व तथ्य
श्वेत िामन (White Dwarf):
जब वकसी तारे का रव्यमान सयू व के रव्यमान के बराबर या कम होता है तो उसका बाह्य किच प्रसाररत होकर अंततः
लप्तु हो जाता है। बचा हुआ क्रोड िीरे -िीरे सक
ं वचत होकर अत्यविक घनत्ि के रव्य के गोले के रूप में बचा रहता
है। इससे अदं र का ताप अत्यविक बढ़ जाता है। वजससे हीवलयम के नावभक सल ं वयत होकर काबवन जैसे तत्िों में
पररिवतवत होने लगते हैं। हीवलयम के सल ं यन के पररणामस्िरूप मक्त
ु कम ऊजाव के कारण यह क्रोड वकसी श्वेत िामन
के समान दीप्त हो जाता है। श्वेत िामन की सरं चना का पता सिवप्रथम आर एच फाउबर द्वारा लगाया गया था।
काला बौना (Black Dwarf):
श्वेत िामन तारा एक जीिाश्म तारा होता है। जब श्वेत िामन के क्रोड का हीवलयम िीरे -िीरे समाप्त हो जाता है तो
िह ऊजाव एिं प्रकाश का उत्सजवन नहीं करता और ठण्डा होकर सघन काला बौना तारा बन जाता है।
सपु रनोिा:
ऐसे तारे जो सयू व से कई गनु ा रव्यमान में भारी होते हैं और रक्त दानि अिस्था को प्राप्त हो जाते हैं। उनका क्रोड़
अत्यविक गरुु त्ि के कारण वसकुडता जाता है और तापमान में अवतशय िृवद् से क्रोड का हीवलयम, काबवन में
पररिवतवत हो जाता है। यह काबवन क्रमशः भारी पदाथों जैसे- लोहे में पररिवतवत होता रहता है।
अतं में तारे का के न्द्र लोहे से यक्त
ु हो जाता है वजसके फलस्िरूप के न्द्र में नावभकीय सल
ं यन वक्रया रुक
जाती है। पररणामस्िरूप तारे की मध्यिती परत गरुु त्िाकषवण के कारण तारे के के न्द्र पर ध्िस्त हो जाती है। इससे
वनकली ऊजाव तारे की ऊपरी परत को उडा देती हैं। यह विस्फोट सपु रनोिा विस्फोट कहलाता है।
न्द्यट्रू ॉन तारा:
जब कोई विशाल तारा अपनी अंवतम अिस्था में पहुचाँ जाता है। तब उसमें विस्फोट होता है। इस सपु रनोिा विस्फोट
से बचे हुए के न्द्रीय भाग से जो वक अत्यविक घनत्ि एिं कुछ मील व्यास का होता है। यह न्द्यट्रू ॉन तारा होता है। इसमें
सभी तत्ि न्द्यट्रू ॉन के रूप में संगवठत रहते हैं। इस तारे का पता सिवप्रथम 1967 ई. में वमस जोकवलन बेल ने लगाया
था।
कृ ष्ण वििर (Black Hole):
न्द्यट्रू ॉन तारे का अपररवमत रव्यमान अंतत: एक ही वबन्द्दु पर संकेवन्द्रत हो जाता है। ऐसे असीवमत घनत्ि के रव्य यक्त

वपण्ड को कृ ष्ण वििर कहते हैं।
इसकी गरुु त्िीय शवक्त इतनी अविक होती है वक इनसे प्रकाश का भी पलायन नहीं हो सकता।

4
विश्व भगू ोल राज होल्कर
नक्षत्र या तारामंडल (Constellation of Stars):
तारामण्डल, मंदावकनी में पाए जाने िाले तारों का समहू होता है जो कुछ विशेष आकृ वतयों के रूप में व्यिवस्थत
होते हैं। जैस-े सप्तऋवष मंडल

• इटं रनेशनल एस्ट्रोनॉवमकल यवू नयन के अनसु ार, आकाश में कुल 88 तारामंडल हैं।
• सबसे बड़ा तारामंडल सेन्द्टॉरस (Centaurus) है। इसमें 94 तारे हैं।
क्िाससव (Quasars):
• क्िाससव एक अद्व ताराित रे वडयो स्त्रोत है, जो 4 से 10 अरब प्रकाश िषव की दरू ी पर वस्थत है।
• ये प्रकाश उत्सवजवत करते हैं। इनसे आने िाली रे वडयो तरंगें ही इनके बारे में जानकारी के स्त्रोत हैं।
प्रॉवक्समा सेंचरु ी: यह हमारी मंदावकनी में सौरमंडल से सिावविक नजदीक वस्थत तारा है।
पल्सर (Pulsar): यह एक खगोलीय वपण्ड है जो स्पंदन के रूप में वनयवमत अन्द्तराल पर रे वडयो तरंगे उत्सवजवत
करता रहता है। इसे न्द्यट्रू ॉन तारा भी कहते हैं।
ध्रिु तारा (Pole Star):
• यह पृथ्िी के उिरी ध्रिु पर खड़े व्यवक्त के वशरोवबन्द्दु (Zenith)पर वस्थत है। इसकी वकरणें पृथ्िी के उिरी
ध्रिु पर 90° का कोण बनाती हैं।
• ध्रिु तारा की वकरणों के पृथ्िी के िरातल पर आपतन कोण (Angle of Incidence) के आिार पर पृथ्िी
के अक्षांशों का वनिावरण वकया जाता है।
साइरस स्टार या डॉग स्टार:
• यह रात में आकाश में वदखने िाला सिावविक चमकीला तारा है।
• प्रॉवक्समा सेंचरु ी के बाद यह सौरमडं ल के दसू रा सबसे नजदीक वस्थत तारा है।

5
विश्व भगू ोल राज होल्कर

सौरमण्डल (Solar System)


सयू व एिं उसके चारों ओर भ्रमण करने िाले 8 ग्रह, 205 उपग्रह, िमू के त,ु उल्काएं एिं क्षरु ग्रह संयक्त
ु रूप से सौरमंडल
कहलाते हैं।
सयू व (Sun)
• सयू व, सौरमंडल का जनक, के न्द्र एिं ऊजाव का स्रोत है। यह एक मध्यम आयु का तारा है। सयू व की आयु 4.5
अरब िषव है।
• सयू व का व्यास 13.84 लाख वकलोमीटर है। सयू व के के न्द्र का तापमान 15 वमवलयन वडग्री सेंटीग्रेड है।
• सयू व की ऊजाव का स्त्रोत उसके के न्द्र में हाइड्रोजन परमाणओ
ु ं का नावभकीय संलयन द्वारा हीवलयम परमाणुओ ं
में बदलना है।
• सौर पररिार के रव्यमान का 99.8% सयू व में वनवहत है। सयू व नावभकीय संलयन के फलस्िरूप हमें प्रवत
सेकण्ड 40 लाख टन ऊजाव सूयावतप के रूप में प्रदान कर सकता है।
• सयू व की पृथ्िी से न्द्यनू तम दरू ी 14.70 करोड़ वकमी., अविकतम दरू ी 15.21 करोड़ वकमी. एिं माध्य दरू ी
14.96 करोड़ वकमी. है।
• सयू व का आयतन पृथ्िी से 13 लाख गनु ा और रव्यमान पृथ्िी से 3,32,000 गनु ा है।
• सयू व का रासायवनक संगठन: हाइड्रोजन: 71% , हीवलयम: 26.5% , अन्द्य तत्ि: 2.5%
• सयू व के आंतररक भाग क्रोड का तापमान 1.5x107 वडग्री सेंटीग्रेड होता है। सयू व की बाहरी सतह का तापमान
6000° C है। सौर कलंक या सौर िब्बों का तापमान 1500 वडग्री सेंटीग्रेड होता है।
• सयू व के के न्द्र का तापमान अत्यविक उच्च होने के कारण उपवस्थत सभी पदाथव गैस और प्लाज्मा के रूप में
वमलते हैं।
• सौर पररिार का गरुु त्ि के न्द्र सयू व है।
• पृथ्िी को सयू ावतप का 1/22 अरब िााँ भाग प्राप्त होता है। सयू व के प्रकाश को पृथ्िी तक पहुाँचने में 8 वमनट
16.6 सेकंड का समय लगता है।
• सयू व अतं तः श्वेत िामन तारे में पररिवतवत हो जाएगा।

6
विश्व भगू ोल राज होल्कर
सयू व की संरचना:

आतं ररक सरं चना:


1. के न्द्र (Core): यह सयू व का के न्द्रीय भाग है। सयू व के के न्द्र का व्यास 3.48 लाख वकमी. है। इस भाग का
तापमान 15 वमवलयन वडग्री सेंटीग्रेड होता है।
2. विवकरण मेखला (Radiative Zone): यह सयू व के के न्द्र को चारों ओर से ढाँके हुए है।
3. संिहनीय मेखला (Convection Zone): यह विवकरण मेखला को घेरे हुए है। इसका वनमावण परत
कोवशकाओ ं से हुआ है।
बाहरी संरचना:
1. प्रकाश मडं ल (Photo Sphere): संिहनीय मेखला की सतह (सयू व का िरातल) को प्रकाश मंडल कहते
हैं। इस मंडल का तापमान 6000 वडग्री सेंटीग्रेड होता है। इस मंडल में ही सौर कलंक पाए जाते हैं।
2. िणव मडं ल (Chromo Sphere): िणवमंडल ही सयू व का िायमु ंडल है। यह फोटो स्फे यर के ऊपर एक
आिरण के रूप में 2000-3000 वकमी. तक फै ला हुआ है। इस मंडल में प्रकाश मंडल की अपेक्षा गैसों
का घनत्ि कम है तथा तापमान अविक है। इस मंडल में कभी कभी तीव्र गहन प्रकाश की उत्पवि होती है
वजसे सौर ज्िाला कहा जाता है।
3. कोरोना (Corona): यह सयू व के िायमु ण्डल का सबसे बाहरी आिरण है। यह िणव मण्डल के ऊपर पाया
जाता है। सौर पिन इसी मण्डल में पायी जाती है। कोरोना से रे वडयो तरंगे वनकलती हैं। यह के िल सयू वग्रहण
के समय वदखता है।
सयू व से सबं ंवित प्रमख
ु घटनाएं:
• सौर िषव (Cosmic Year): सयू व अपनी मंदावकनी की पररक्रमा 250 वमवलयन (25 करोड) िषव में करता
है। यह अिवि सौर िषव कहलाती है।

7
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• सौर पररभ्रमण (Solar Rotation): सयू व का अपने अक्ष पर पवश्चम से पिू व वदशा में घणू वन करना सौर पररभ्रमण
कहलाता है। सयू व अपने अक्ष पर 7.25 वडग्री का कोण बनाता है। सयू व का भूमध्य रे खीय भाग 24.47 वदन
में एक चक्कर परू ा करता है। सयू व की घणू वन गवत उसके वनमन अक्षाश
ं ों पर सिावविक होती है।
• ऑरोरा (Aurora): कभी- कभी सयू व के प्रकाश मंडल से परमाणओ ु ं का तफ ू ान बहुत अविक िेग से
वनकलता है जो सयू व की आकषवण शवक्त को भी पार करके अन्द्तररक्ष में चला जाता है। यह सौर ज्िाला
कहलाता है। जब यह पृथ्िी के िायमु ंडल में प्रिेश करता है तो हिा के कणों से टकराकर रंगीन प्रकाश
उत्पन्द्न करता है। इस प्रकाश को उिरी ध्रिु पर ऑरोरा बोररयावलस एिं दवक्षणी ध्रिु पर ऑरोरा ऑस्ट्रावलस
कहा जाता है।

ग्रह (Planet)
ग्रह (Planet): तारों की पररक्रमा करने िाले प्रकाश रवहत आकाशीय वपण्ड ग्रह कहलाते हैं। ये सयू व से ही वनकले
हुए वपण्ड हैं। ग्रह सयू व की पररक्रमा करते हैं। ग्रहों का अपना प्रकाश नहीं होता। ये सयू व के प्रकाश से ही चमकते हैं।
ग्रहों को प्राप्त होने िाली ऊष्मा का स्त्रोत सयू व ही है।
अगस्त, 2006 में प्राग (चेक गणराज्य) में आयोवजत अंतरावष्ट्रीय खगोलीय सघं (IAU) के अवििेशन में
यह वनणवय वलया गया वक प्लटू ो सौरमडं ल का ग्रह नहीं है। ितवमान में सौरमंडल के के िल 8 ग्रह हैं।
ग्रह की नई पररभाषा: के िल िे आकाशीय वपण्ड ही ग्रह माने जायेंगे जो अपनी वनवश्चत कक्षा में सयू व की पररक्रमा
करते हैं। वजनका आकार लगभग गोल है। तथा िे अन्द्य ग्रहों की कक्षा का अवतक्रमण नहीं करते।

• प्लटू ो की कक्षा, िरुण ग्रह की कक्षा का अवतक्रमण करती है। इसवलए प्लटू ो को ग्रहों की श्रेणी से बाहर
कर वदया गया। अब प्लटू ो को बौना ग्रह माना जाता है।
• ितवमान में सौरमंडल के 8 ग्रह हैं- बिु , शक्र
ु , पृथ्िी, मंगल, बृहस्पवत, शवन, अरुण एिं िरुण (नेप्च्यनू )
ग्रहों के गवत सबं ंिी वनगम: सन् 1571 ई. में कै पलर ने ग्रहों की गवत से सबं वं ित तीन वनयमों का प्रवतपादन
वकया-
1. प्रथम वनयम: सभी ग्रह सयू व के चारों ओर दीघवििृ ाकार कक्षाओ ं में पररक्रमा करते हैं। इन कक्षाओ ं का के न्द्र
सयू व है। यह वनयम 'ग्रहों की कक्षाओ’ं का वनयम कहलाता है।
2. वद्वतीय वनयम: ग्रहों की गवत के वद्वतीय वनयम के अनसु ार, ग्रह की क्षेत्रफलीय चाल वनयत (constant)
रहती है। वकसी ग्रह के कक्षीय तल में ग्रह तथा सयू व को वमलाने िाली रे खा समान समयांतराल में समान
क्षेत्रफल तय करती है। अथावत अपनी कक्षा में ग्रह की चाल वनरंतर बदलती रहती है। जब ग्रह सयू व से दरू स्थ
होता है तो उसकी चाल न्द्यनू तम तथा जब सयू व के समीपस्थ होता है तो ग्रह की चाल अविकतम होती है।
3. तृतीय वनयम: इस वनगम के अनसु ार, जो ग्रह सयू व से वजतना अविक दरू होगा उसका पररक्रमण काल उतना
ही अविक होगा जैसे बिु का पररक्रमण काल 88 वदन एिं िरुण का पररक्रमण काल 164.8 िषव है।

8
विश्व भगू ोल राज होल्कर
ग्रहों के सबं ंि में महत्िपणू व तथ्य:

सभी ग्रह (शक्र


ु एिं अरुण को छोड़कर) सयू व की पररक्रमा पवश्चम से पिू व वदशा में करते हैं। जबवक शक्र ु एिं अरुण
(Uranus) सयू व की पररक्रमा पिू व से पवश्चम वदशा में करते हैं। सौरमडं ल का सबसे बड़ा ग्रह बृहस्पवत (Jupiter) एिं
सबसे छोटा ग्रह बिु (Mercury) है।

• आतं ररक ग्रह (Inner Planets) or (Inferior Planet): ये छोटे एिं ठोस होते हैं। ये सयू व के वनकट होते
हैं एिं भारी पदाथों से बने होते हैं। इन ग्रहों में- बिु , शक्र
ु , पृथ्िी एिं मगं ल ग्रह शावमल हैं।
• बाह्य ग्रह (outer Planets) or (Jovian Planets): ये ग्रह आकार में बड़े एिं हल्के होते हैं। ये सयू व से दरू
वस्थत हैं एिं हल्के पदाथों से वनवमवत हैं। इन ग्रहों में- बृहस्पवत, शवन, अरुण (यरू े नस) एिं िरुण (नेपच्यनू )
ग्रह शावमल हैं।
कुल 5 ग्रहों- बिु , शक्र
ु , मगं ल, बृहस्पवत एिं शवन को नगं ी आाँखों से देखा जा सकता है।
सयू व से बढ़ती दरू ी के अनसु ार ग्रहों का क्रमः बिु (न्द्यनू तम), शुक्र, पृथ्िी, मंगल, बृहस्पवत, शवन, अरुण एिं
िरुण (सयू व से सिावविक दरू )
आकार के अनसु ार ग्रहों का अिरोही क्रम (Descending Order): 1. बृहस्पवत 2. शवन 3. अरुण 4.
िरुण 5. पृथ्िी 6. शक्र
ु 7. मंगल 8. बिु
रव्यमान के अनसु ार ग्रहों का अिरोही क्रम (Desc. Order): 1. बृहस्पवत 2. शवन 3. िरुण 4. अरुण 5.
पृथ्िी 6. शक्र
ु 7. मंगल 8. बिु
घनत्ि के अनसु ार ग्रहों का अिरोही क्रम (Desc. order): 1. पृथ्िी 2. बिु 3. शक्रु 4. मंगल 5. िरुण 6.
बृहस्पवत 7. अरुण 8. शवन
पररक्रमण अिवि एिं पररक्रमण िेग के अनसु ार ग्रहों का क्रम:
• पररक्रमण अिवि (आरोही क्रम): बिु , शक्र
ु , पृथ्िी, मगं ल, बृहस्पवत, शवन, अरुण एिं िरुण
• पररक्रमण िेग (अिरोही क्रम): बिु , शक्र
ु , पृथ्िी, मगं ल, बृहस्पवत, शवन, अरुण एिं िरुण

9
विश्व भगू ोल राज होल्कर
सौरमंडल के ग्रह
बिु (Mercury) है क्योंवक शक्र
ु के िायमु ंडल में 90-95%
तक काबवन डाई ऑक्साइड गैस विद्यमान है।
• बिु , सयू व के सबसे नजदीक वस्थत ग्रह है। • शक्र
ु ग्रह सबु ह पिू व वदशा में एिं शाम को
इसकी सयू व से दरू ी 5.8 करोड़ वकमी. है। पवश्चम वदशा में वदखाई देता है। इसे सबु ह का
• बिु , सयू व की पररक्रमा सबसे कम समय (88 तारा एिं सांझ का तारा भी कहते हैं।
वदन) में परू ी करता है। यह सिावविक कक्षीय • शक्र
ु अपने अक्ष पर पिू व से पवश्चम (East to
गवत िाला ग्रह है। West) वदशा में घूणवन करता है।
• बिु , सिावविक तापान्द्तर िाला ग्रह है इसका • शक्र
ु का अपना कोई उपग्रह नहीं है। शक्र
ु ग्रह
तापान्द्तर लगभग 600°C है। की उत्पवि 4.6 वबवलयन िषव पिू व की है।
• बिु एक पावथवि ग्रह (Terrestrial Planet)
है एिं आकार में सबसे छोटा ग्रह है। इसका पथ्ृ िी (Earth):
व्यास 4880 वकमी. है।
• पृथ्िी, सौरमंडल का 5िााँ सबसे बड़ा ग्रह है।
• बिु का रव्यमान पृथ्िी का 1/18 भाग है। सयू व से दरू ी के क्रम में पृथ्िी तीसरा ग्रह है।
• बिु का पलायन िेग अविक है। अतः इस सयू व से पृथ्िी की औसत दरू ी 14.96 वकमी.
उपग्रह पर िायमु ंडल नहीं पाया जाता। है।
• इसकी कक्षा का झक
ु ाि 7° है। • पृथ्िी का भूमध्य रे खीय व्यास 12756.6
• बिु का कोई उपग्रह नहीं है। वकमी. है। पृथ्िी का ध्रिु ीय व्यास 12,714
वकमी. है।
• यह सयू ोदय के 2 घंटे पहले वदखाई देता है।
यह प्रातः एिं सायं के तारे के रूप में िषव में • पृथ्िी के भमू ध्य रे खीय व्यास एिं ध्रिु ीय
3 बार वदखाई देता है। व्यास में लगभग 42.6 वकमी. (वत्रज्या 21
वकमी.) का अतं र है।
शक्र
ु (Venus): • पृथ्िी, शक्र
ु एिं मंगल ग्रह के मध्य वस्थत है।
• यह सयू व से वनकटिती दसू रा ग्रह है। • पृथ्िी अपने अक्ष पर 23½° झक ु ी हुई है।
• यह पृथ्िी के सिावविक वनकट ग्रह (पृथ्िी से इसी झक ु ाि के कारण पृथ्िी पर मौसम
लगभग 4 करोड़ वकमी. दरू वस्थत) है। पररितवन होता है।
• रव्यमान एिं आकार में पृथ्िी के समान होने • पृथ्िी अपने अक्ष पर एक चक्कर लगाने में
के कारण शक्रु को 'पृथ्िी की जड़ु िा बहन 23 घंटे 56 वमनट एिं 4.09 सेकंड का समय
ग्रह' कहा जाता है। लेती है।
• शक्र
ु , सौरमंडल का सिावविक चमकीला ग्रह • पृथ्िी का आकार पृथव्याकार (Geoid) हैं।
है। शक्र
ु , सौरमंडल का सिावविक गमव ग्रह भी पृथ्िी दोनों ध्रिु ों पर चपटी है।

10
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• पृथ्िी की भमू ध्य रे खीय वत्रज्या ध्रिु ीय • आयरन ऑक्साइड की उपवस्थवत के कारण
वत्रज्या से लगभग 21 वकमी. अविक है। इसकी सतह का रंग लाल वदखाई देता है।
• पृथ्िी सयू व के चारों ओर लगभग 29.8 इसवलए इसे लाल ग्रह भी कहते हैं।
वकमी. प्रवत सेकण्ड की दर से चक्कर लगाती • मगं ल ग्रह पर पृथ्िी के समान ऋतु पररितवन
है। होता है। मंगल सयू व की पररक्रमा 686.98
• पृथ्िी पर उपवस्थत पाररवस्थवतकी के कारण वदन में परू ी करता है।
इसे हरा ग्रह कहा जाता है एिं जल की • मगं ल ग्रह के िायुमंडल में काबवन डाई
उपवस्थवत के कारण इसे नीला ग्रह भी कहा ऑक्साइड, नाइट्रोजन एिं ऑगवन गैस
जाता है। सयू व का प्रकाश पृथ्िी तक पहुचाँ ने विद्यमान हैं।
में 8 वमनट 16 सेकेंड का समय लेता है। • फोबोस एिं डीमोस मंगल ग्रह के दो
• पृथ्िी के 71 प्रवतशत भाग पर जल एिं 29 प्राकृ वतक उपग्रह हैं।
प्रवतशत भाग पर स्थल पाया जाता है। • मगं ल ग्रह का सबसे ऊाँ चा पिवत वनक्स
• पृथ्िी की अनमु ावनत आयु 4.6 वबवलयन ओलंवपया है। यह एिरे स्ट से भी तीन गनु ा
िषव है। पृथ्िी का पररक्रमण समय 365 वदन ऊाँ चा है।
5 घंटे 48 वम. 46 सेकंड है एिं पररभ्रमण • सौरमडं ल का सबसे बडा ज्िालामुखी
समय 23 घंटे 56 वम. 4 सेकंड है। ‘ओलंपस मेसी’ मंगल ग्रह पर वस्थत है।
• पृथ्िी का एकमात्र प्राकृ वतक उपग्रह चन्द्रमा
है। पृथ्िी की चंरमा से दरू ी 3,84,000
बहृ स्पवत (Jupiter):
वकमी. है। • यह सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका
• सयू व के पश्चात पृथ्िी के सबसे वनकट का तारा व्यास 1,42,800 वकमी. है।
प्रॉवक्समा सेंचरु ी है। पृथ्िी का अक्ष इसकी • बृहस्पवत की सयू व से औसत दरू ी 77.83
कक्षा के साथ 66½° का कोण बनाता है। करोड़ वकमी. है।
मगं ल (Mars): • बृहस्पवत अपने अक्ष पर सिावविक तेज गवत
से घणू वन करता है। यह अपने अक्ष पर 9 घंटे
• यह सयू व से दरू ी के क्रम में चौथा एिं आकार 55 वमनट में एक चक्कर परू ा कर लेता है।
में सातिां ग्रह है।
• बृहस्पवत की पररक्रमण (Revolution)
• मगं ल अपने अक्ष पर 25°12' झक ु ा हुआ है। अिवि 11.86 िषव है।
इस कारण यहााँ पृथ्िी के समान वदन रात की
• बृहस्पवत का पलायन िेग सौरमंडल में
अिवि होती है।
सिावविक है।
• मगं ल अपने अक्ष पर 24 घंटे 37 वमनट और
• इसका औसत घनत्ि 1.33 ग्राम/घन सेमी.
23 सेकंड में एक घणू वन चक्र परू ा करता है।
है।

11
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• बृहस्पवत का िायमु ंडल हल्की गैसों जैसे • शवन के कुल 82 प्राकृ वतक उपग्रह हैं।
हाइड्रोजन, हीवलयम, वमथेन एिं अमोवनया ितवमान में सिावविक उपग्रह शवन के पास हैं।
आवद से वनवमवत है। • शवन का सबसे बड़ा उपग्रह 'टाइटन' है।
• बृहस्पवत सयू व से प्राप्त ऊजाव का 2.5 गनु ा सौरमंडल का यही मात्र उपग्रह है वजसके
ऊजाव इन्द्रारे ड तरंगों के रूप में अंतररक्ष में पास अपना स्थायी िायमु ंडल है।
विसवजवत करता है। • शवन के अन्द्य प्रमख
ु उपग्रह- ररया, एटलस,
• ितवमान में बृहस्पवत के 79 ज्ञात प्राकृ वतक फोइबे, हेलन, टेथीस, वममांस, वडओन आवद
उपग्रह हैं। इनमें गैवनवमड उपग्रह सौरमंडल हैं।
का सबसे बड़ा उपग्रह है।
अरुण (Uranus):
• बृहस्पवत तारा और ग्रह दोनों के गणु ों से यक्त

ग्रह है। बृहस्पवत के पास स्ियं की रे वडयो • यरू े नस की खोज 1781 ई. में सर विवलयम
ऊजाव है। इसे तारा सदृश (Near Star) ग्रह हशेल ने की थी।
कहा जाता है। • यह आकार में तीसरा सबसे बड़ा ग्रह है।
• उपग्रहों सवहत बृहस्पवत एक लघु सौर तंत्र के • यह सयू व की एक पररक्रमा 84 िषव में परू ा
रूप में है। करता है।
शवन (Saturn): • इसका गरुु त्िाकषवण लगभग पृथ्िी के समान
है।
• बृहस्पवत के बाद यह आकार में दसू रा सबसे
• यरू े नस का अक्षीय झकु ाि 82°5’ है। अविक
बड़ा ग्रह है। इसके चारों ओर िलय पायी
अक्षीय झक ु ाि होने के कारण इसे लेटा हुआ
जाती हैं। इन िलयों की संख्या 7 है।
ग्रह भी कहते हैं।
• सौरमडं ल में सबसे कम घनत्ि शवन का है।
• यह शक्र
ु ग्रह की भााँवत ग्रहों की सामान्द्य
शवन का पलायन िेग 36 वकमी./ सेकंड है।
वदशा के विपरीत पिू व से पवश्चम वदशा में सयू व
• शवन के िायमु ंडल में अमोवनया एिं वमथेन के चारों ओर पररभ्रमण करता है। शवन ग्रह
के बादल पाए जाते हैं। की भांवत यरू े नस के भी चारों ओर िलय हैं।
• शवन का घणू वन अक्ष 26°44' झक
ु ा हुआ है। [10 िलय]
• शवन को अपने अक्ष पर एक बार घणू वन परू ा • यरू े नस के उपग्रह पिू व से पवश्चम वदशा में
करने में 10 घंटा 34 वमनट का समय लगता यरू े नस के चक्कर लगाते हैं। यरू े नस अपने
है। जबवक सयू व की पररक्रमा परू ी करने में अक्ष पर 17 घंटे 14 वमनट में घणू वन परू ा
29.5 िषव लगते हैं। करता है।
• शवन को आकाशगंगा सदृश ग्रह (Galaxy • यरू े नस के कुल ज्ञात प्राकृ वतक उपग्रहों की
Like Planet) कहा जाता है। संख्या 27 है। यरू े नस का सबसे बड़ा उपग्रह
टाइटेवनया है।

12
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• दरू बीन से देखने पर यरू े नस एक हरी वडस्क हैं। इसके िायमु डं ल में अमोवनया,
जैसा वदखता है। हाइड्रोजन, हीवलयम आवद गैसें भी पायी
जाती हैं।
• यरू े नस पर सयू ोदय पवश्चम में तथा सयू ावस्त
पिू व में होता है। सूयव से दरू होने के कारण यह • अरुण (Uranus) एिं िरुण (Neptune)
अत्यविक ठण्डा है। को जड़ु िा ग्रह भी कहा जाता है।
• िरुण की सयू व से औसत दरू ी 449.66 करोड़
िरुण (Neptune): वकमी. है। िरुण अपने अक्ष पर 28°48'
• नेप्च्यनू ग्रह की खोज िषव 1846 ई. में जॉन झक ु ा हुआ है।
गाले, लैिेररयर एिं एडमस ने की थी। • िरुण के ज्ञात प्राकृ वतक उपग्रहों की सख्ं या
• यह सयू व से सिावविक दरू ी पर वस्थत है 14 है। इनमें वट्रटोन एिं मेरीड प्रमख
ु हैं।
इसवलए यह सौरमंडल का सबसे ठण्डा ग्रह • ट्राइटोन / वट्रटोन िरुण का सबसे बडा उपग्रह
माना जाता है। है।
• यह सयू व की एक पररक्रमा 164.79 िषों में • अरुण एिं िरुण ग्रहों को ननन आाँखों से नहीं
परू ी करता है। जबवक अपने अक्ष पर एक देखा जा सकता के िल 5 ग्रह- बिु , शुक्र,
पररक्रमा 17 घंटे 50 वमनट में परू ी करता है। मंगल, बृहस्पवत एिं शवन को ननन आाँखों से
• िरुण का िायमु ंडल सघन है। इसके देखा जा सकता है।
िायमु ंडल में वमथेन गैस के बादल पाये जाते • सौरमंडल में सिावविक घनत्ि पृथ्िी का है।

अन्द्य महत्िपणू व तथ्य


• सयू व से वनकटतम ग्रह – बिु (Mercury) • भोर (सबु ह) एिं सााँझ (शाम) का तारा –
• सयू व से सिावविक दरू वस्थत ग्रह – िरुण शक्र

(Neptune) • पृथ्िी की जड़ु िा बहन – शक्र

• पृथ्िी से वनकटतम ग्रह – शक्र
ु (Venus) • सिावविक तापातं र िाला ग्रह – बिु
• सबसे बड़ा ग्रह – बृहस्पवत (Jupiter) • अपने अक्ष पर सिावविक तीव्र गवत िाला ग्रह
• सबसे छोटा ग्रह – बिु – बृहस्पवत
• सिावविक चमकीला ग्रह – शुक्र • न्द्यनू तम पररभ्रमण गवत िाला ग्रह – शक्र

• सिावविक घनत्ि िाला ग्रह – पृथ्िी • लाल ग्रह – मंगल (Mars)
(Earth) • हरा एिं नीला ग्रह – पृथ्िी
• सिावविक गमव ग्रह – शक्र
ु • हरे रंग का वदखने िाला ग्रह – अरुण
• सिावविक ठण्डा ग्रह – िरुण (Uranus)
• सिावविक उपग्रहों िाला ग्रह – शवन • अरुण का जड़ु िा ग्रह – िरुण

13
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• गैसों का गोला कहलाने िाला ग्रह – शवन • वजन ग्रहों के उपग्रह नहीं हैं – बिु , शक्र

(Saturn) • सिावविक पलायन िेग िाला ग्रह – बृहस्पवत
• सबसे कम घनत्ि िाला ग्रह – शवन • सौरमडं ल का सबसे बड़ा उपग्रह – गैनीवमड
• सिावविक कक्षीय गवत िाला ग्रह – बिु (बृहस्पवत ग्रह पर)
• आकाशगंगा सदृश ग्रह – शवन • सौरमडं ल का सबसे ऊंचा पिवत – ओलमपस
• मास्टर ऑफ गॉड्स कहलाने िाला ग्रह – मीन्द्स (मंगल ग्रह पर)
बृहस्पवत • सौरमडं ल की सबसे बड़ी घाटी – मेररनेररस
• तारा सदृश ग्रह – बृहस्पवत (मगं ल ग्रह पर)
• लेटा हुआ ग्रह – अरुण • वजस ग्रह के पास अपनी ऊजाव है – बृहस्पवत

प्लरू ो की ितवमान वस्थवत:


• इसकी खोज 1930 ई. में क्लाइड टॉमबैग ने की थी।
• 24 अगस्त, 2006 में प्राग (चेक गणराज्य) में हुए इटं रनेशनल एस्ट्रोनॉवमकल यवू नयन (IAU) के सममेलन
में िैज्ञावनकों ने इसके ग्रह होने का दजाव समाप्त कर वदया तथा इसे बौने ग्रह (Dwarf Planet) की श्रेणी में
रख कर इसको नया नाम 134340 वदया।
उपग्रह (Satellite): ये िे आकाशीय वपण्ड हैं, जो अपने-अपने ग्रहों की पररक्रमा करते हैं तथा अपने ग्रह के
साथ-साथ सयू व की भी पररक्रमा करते हैं। ग्रहों की भााँवत इनमें भी स्ियं का प्रकाश नहीं होता। उपग्रह भी सयू व के
प्रकाश से प्रकावशत होते हैं। उपग्रहों का भ्रमण पथ भी ग्रहों की तरह परिलयाकार (Parabolic) होता है।
चन्द्रमा (Moon):
• चन्द्रमा पृथ्िी का एकमात्र उपग्रह है। यह की अपेक्षा ठोस है। चन्द्रमा की क्रस्ट में
सौरमडं ल का पााँचिा सबसे बड़ा उपग्रह है। मख्ु य रूप से ऑक्सीजन तथा वसवलके ट
चन्द्रमा को जीिाश्म ग्रह (Fossil Planet) पाया जाता है।
भी कहा जाता है। • चन्द्रमा भक
ू ं पीय दृवि से वनवष्क्रय है यहााँ
• चन्द्रमा की उत्पवि पृथ्िी के वनमावण के समय वििवतववनकी घटनाएं नहीं होती।
पृथ्िी के चारों ओर पररक्रमण • चन्द्रमा का पलायन िेग पृथ्िी से कम है।
(Revolution) कर रहे कणों के वमलने से चन्द्रमा के िायमु डं ल में भारी गैसों का
हुई। अभाि है। चन्द्रमा पर पृथ्िी जैसा िायमु डं ल
• चन्द्रमा का रव्यमान एिं घनत्ि पृथ्िी से कम नहीं है। िाममु डं ल के अभाि के कारण
है परन्द्तु चन्द्रमा की भ-ू पपवटी (Crust) पृथ्िी

14
विश्व भगू ोल राज होल्कर
चन्द्रमा पर मौसमी तत्ि जैसे बादल, िषाव • चन्द्रमा का घनत्ि 3.34 ग्राम / घन सेमी. है।
तथा कुहासा आवद का अभाि है।
• चन्द्रमा के प्रकाश को पृथ्िी तक पहुचाँ ने में
• चन्द्रमा अपने अक्ष पर 29 वदन 12 घटं े तथा 1.34 सेकेण्ड का समय लगता है।
44 वमनट में एक पररभ्रमण (Rotation) परू ा
• चन्द्रमा का रव्यमान पृथ्िी के 1/ 81.3 भाग
कर लेता है। यह अिवि चन्द्र मास (Lunar
के बराबर है। चन्द्रमा का गरुु त्िाकषवण पृथ्िी
Month) कहलाती है। 12 चन्द्रमासों की
के गरुु त्िाकषवण का 1/6 भाग है।
अिवि चन्द्र िषव (Lunar year) कहलाती
है। चन्द्र वदिस की अिवि 24 घटं े 52 वमनट • चन्द्रमा का पलायन िेग 2.38 वकमी /
की होती है। सेकेण्ड है। चन्द्रमा की पररक्रमण गवत 3700
वकमी / घंटा है। नील आमवस्ट्रााँग चन्द्रमा पर
• चन्द्रमा की घणू वन अिवि एिं पररक्रमण
कदम रखने िाले पहले व्यवक्त हैं।
अिवि समान होती है। जब तक चन्द्रमा
पृथ्िी की एक पररक्रमा पणू व करता है तब तक • चन्द्रमा पर 20 जल ु ाई, 1969 में अपोलो-
िह अपने अक्ष पर भी एक बार घमू लेता है। 11 अंतररक्ष यान से जाने िाले नील
यही कारण है जो हम चन्द्रमा का के िल 59 आमवस्ट्रााँग तथा उनके सावथयों ने वजस स्थान
प्रवतशत भाग ही देख पाते हैं। पर उतरा था, उसे ‘सी ऑफ़ ट्रेंवक्िवलटी
(शांत सागर)’ कहा जाता है।
• चन्द्रमा की पृथ्िी से औसत दरू ी 3,84, 400
वकमी. है। चन्द्रमा का अक्षीय झक ु ाि 5° है।
क्षरु ग्रह (Asteroids): मंगल और बृहस्पवत ग्रह के मध्य क्षेत्र में पाए जाने िाले खगोलीय वपण्ड क्षुरग्रह
कहलाते हैं। ये सभी वपण्ड अन्द्य ग्रहों की तरह सयू व के चारों तरफ दीघवििृ ाकार कक्षा (Elliptical Orbit) में पवश्चम
से पिू व वदशा में पररक्रमा करते हैं। सेरस (Ceres) क्षरु ग्रह सिावविक चमकीला एिं विशाल है।
उल्कावपंड (Meteor): ये अंतररक्ष में तेज गवत से घमू ते हुए सक्ष्ू म ब्रह्मांडीय वपण्ड हैं। इनका वनमावण मख्ु यतः
ठोस पदाथव, िल ू एिं गैसों से हुआ है। पृथ्िी के गरुु त्िाकषवण के कारण ये वपण्ड पृथ्िी की ओर गवतशील होते हैं तथा
पृथ्िी के िायमु ंडलीय घषवण के कारण जलने एिं चमकने लगते हैं। इन्द्हें टूटता हुआ तारा (Shooting Star) भी
कहा जाता है।
पच्ु छल तारा या िमू के तु (Comets): पत्थर, िलू , बफव , वहमानी एिं गैस से वनवमवत वपण्ड हैं। ये सयू व से दरू
ठंडे एिं अंिेरे क्षेत्र में पाए जाते हैं। ये सौर तंत्र के स्थायी सदस्य होते हैं। नावभ (के न्द्र), कोमा एिं पाँछ
ू ये िमू के तु के
तीन भाग हैं। इसकी पाँछ ू सदैि सयू व के विपरीत वदशा में रहती है।

15
विश्व भगू ोल राज होल्कर
पथ्ृ िी की गवतयााँ
पथ्ृ िी की गवतयााँ: पृथ्िी की दो प्रकार की गवतयााँ हैं –
1. घणू नव (Rotation) गवत [दैवनक गवत]: पृथ्िी का अपने अक्ष पर पवश्चम से पिू व वदशा में घमू ना। इसे पररभ्रमण
भी कहते हैं।
2. पररक्रमण (Revolution): पृथ्िी का सयू व के चारों ओर घमू ना। यह पृथ्िी की िावषवक गवत होती है। पृथ्िी
365 वदन एिं 6 घंटे में सयू व का एक चक्कर परू ा करती है।
उपसौर (Perihelion): जब पृथ्िी सयू व के सबसे नजदीक होती है।
अपसौर (Aphelion): जब पृथ्िी सयू व से अविकतम दरू ी पर होती है।
पथ्ृ िी की गवतयों के प्रभाि
1. वदन एिं रात का छोटा ि बड़ा होना:
कारण:

• पृथ्िी का अपने अक्ष पर झक


ु ा होना
• पृथ्िी द्वारा सयू व की पररक्रमा करना (पररक्रमण गवत)
प्रभाि:

• विषिु त रे खा से उिर एिं दवक्षण वदशा में जाने पर वदन एिं रात की अिवि में अंतर आता है।
• विषिु त रे खा पर वदन एिं रात की अिवि समान रहती है।
• 21 माचव से 23 वसतंबर के मध्य उिरी गोलाद्व में वदन बड़े एिं रातें छोटी होती हैं। [उ. ध्रिु पर 6 माह
वदन]
• 23 वसतंबर से 21 माचव के मध्य दवक्षणी गोलाद्व में वदन बड़े एिं रातें छोटी होती हैं। [द. ध्रिु पर 6 माह
वदन]
• उिरी ध्रुि एिं दवक्षणी ध्रिु पर 6 महीने तक वदन एिं 6 महीने तक रात रहती है।
2. ऋतु पररितवन:
कारण:

• पृथ्िी का अपने अक्ष पर झक


ु ा होना।
• पृथ्िी का अपने अक्ष पर घमू ना (पररभ्रमण गवत)
• पृथ्िी द्वारा सयू व की पररक्रमा करना (पररक्रमण गवत)

16
विश्व भगू ोल राज होल्कर
ऋतु पररितवन
पृथ्िी के अपने अक्ष पर झकु ाि एिं अपने अक्ष पर घणू वन करने तथा सयू व की पररक्रमा करने के कारण पृथ्िी की सयू व
के सापेक्ष वस्थवत बदलती रहती है। यही वस्थवतयााँ पृथ्िी पर ऋतु पररितवन का कारण बनती हैं। वस्थवतयां वनमनवलवखत
हैं –
ग्रीष्म अयनांत (Summer Solstice): [21 जनू ]
• इस समय सयू व की वकरणें ककव रे खा पर लंबित पड़ती हैं।
• 21 जनू को उिरी गोलाद्व में वदन सबसे बड़ा एिं रात सबसे छोटी होती है।
• 21 जनू को दवक्षणी गोलाद्व में वदन सबसे छोटा एिं रात सबसे बड़ी होती है।
• 21 जनू के पश्चात् 23 वसतंबर तक सयू व विषिु त रे खा की ओर उन्द्मख
ु होता है। वजससे उिरी गोलाद्व में वदन
की अिवि कम होने लगती है एिं रात की अिवि बढ़ने लगती है।
• 21 जनू के बाद उिरी गोलाद्व में गमी कम होने लगती है।
शरद विषिु (Autumn Equinox): [23 वसतंबर]
• 21 जनू के बाद सयू व विषिु त रे खा की ओर उन्द्मख
ु होता है एिं यह 23 वसतंबर को विषिु त रे खा पर चमकता
है।
• 23 वसतंबर को सयू व की वकरणें विषिु त रे खा पर सीिी पड़ती हैं।
• 23 वसतंबर को दोनों गोलाद्ों में वदन एिं रात की अिवि बराबर होती है।
• 23 वसतंबर के बाद, सयू व मकर रे खा की ओर उन्द्मख
ु हो जाता है।
शीत अयनातं (Winter Solstice): [22 वदसबं र]
• इस समय सयू व की वकरणें मकर रे खा पर लंबित पड़ती हैं।
• 22 वदसंबर को दवक्षणी गोलाद्व में वदन सबसे बड़ा एिं रात सबसे छोटी होती है।
• 22 वदसंबर को उिरी गोलाद्व में वदन सबसे छोटा एिं रात सबसे बड़ी होती है।
• 22 वदसंबर के बाद सयू व पनु ः विषिु त रे खा की ओर उन्द्मख
ु होता है। वजससे 21 माचव तक दवक्षण गोलाद्व
में वदन छोटे एिं रात बड़ी होने लगती हैं तथा उिरी गोलाद्व में वदन बड़े एिं रात छोटी होने लगती हैं।
• 22 वदसंबर के बाद दवक्षणी गोलाद्व में ग्रीष्म ऋतु की समावप्त हो जाती है।

17
विश्व भगू ोल राज होल्कर
बसतं विषिु (Spring Equinox): [21 माचव]
• 22 वदसंबर के बाद सयू व पनु ः विषिु त रे खा की ओर उन्द्मुख होता है एिं यह 21 माचव को विषिु त रे खा पर
चमकता है।
• 21 माचव को सयू व की वकरणें विषिु त रे खा पर सीिी पड़ती हैं।
• 21 माचव को दोनों गोलाद्ों में वदन एिं रात की अिवि बराबर होती है।
• 21 माचव एिं 23 वसतंबर को सूयव की वकरणें विषिु त रे खा पर लमबित पड़ती है। इन दोनों वदन दोनों गोलाद्ों
में वदन एिं रात की अिवि बराबर होती है। इन दोनों वस्थवतयों में दोनों गोलाद्ों में ऋतु में समानता पायी
जाती है। इन दोनों वस्थवतयों को विषिु (Equinox) कहा जाता है।
• 21 माचव के बाद सयू व पनु ः ककव रे खा की ओर उन्द्मख
ु हो जाता है।
• 21 माचव के बाद उिरी गोलाद्व में वदन बड़े एिं रातें छोटी होने लगती है तथा दवक्षणी गोलाद्व में वदन छोटे
एिं रातें बड़ी होने लगती हैं।

ज्िार-भाटा (Tide)
सयू व एिं चन्द्रमा की आकषवण शवक्तयों के कारण सागरीय एिं महासागरीय जल के ऊपर उठने तथा वगरने को ज्िार-
भाटा कहा जाता है।
ज्िार भाटा की उत्पवि के कारण
• सयू व की आकषवण शवक्त
• चन्द्रमा की आकषवण शवक्त [ज्िारीय बल]
• पृथ्िी का अपके न्द्रीय बल (Rotation के कारण उत्पन्द्न)

18
विश्व भगू ोल राज होल्कर
दैवनक ज्िार
प्रवतवदन एक स्थान पर एक ज्िार एिं एक भाटा को दैवनक ज्िार-भाटा कहते हैं।

• पृथ्िी पर प्रवतवदन प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्िार-भाटा आता है।


• पृथ्िी पर ज्िार प्रत्येक 12 घटं े पर आना चावहए वकन्द्तु यह 26 वमनट की देरी [12 घटं ा 26 वमनट बाद] से
आता है। इसका कारण चन्द्रमा का पृथ्िी के सापेक्ष गवतशील होना है।
ज्िार भाटे की ऊाँचाई में वभन्द्नता के कारण
• सागर की गहराई
• सागरीय तट की संरचना
• सागर का खल
ु ा या बंद होना
ज्िार-भाटे के प्रकार
1. उच्च / दीघव ज्िार (Spring Tide)
जब सयू ,व पृथ्िी एिं चन्द्रमा एक सीिी रे खा में होते हैं तो इस वस्थवत में उनकी सवममवलत आकषवण शवक्त के
पररणामस्िरूप दीघव ज्िार की उत्पवि होती है।
सयू व, पृथ्िी एिं चन्द्रमा के एक सीि में होने की वस्थवत यवु त- वियवु त (Syzygy) कहलाती है। यह वस्थवत
पवू णवमा एिं अमािस्या के वदन घवटत होती है।
यवु त (Conjunction): जब सयू व एिं पृथ्िी के बीच चन्द्रमा होता है। इस वस्थवत को यवु त कहते हैं। यह
सयू वग्रहण की वस्थवत होती हैं। यह वस्थवत के िल अमािस्या के वदन ही बनती है।
इस वस्थवत में उच्च ज्िार आता है क्योंवक सयू व एिं चन्द्रमा की सवममवलत गरुु त्िाकषवण (ज्िारीय बल)
पृथ्िी पर लगता है।

वियवु त (Opposition): जब सयू व एिं चन्द्रमा के बीच पृथ्िी आ जाती है। यह वस्थवत वियवु त कहलाती है।
यह चन्द्रग्रहण की वस्थवत होती है तथा के िल पवू णवमा के वदन घवटत होती है।

19
विश्व भगू ोल राज होल्कर

2. वनमन ज्िार (Low Tide)


प्रत्येक मास के शक्ु ल पक्ष तथा कृ ष्ण पक्ष की सप्तमी या अिमी के वदन सयू व, पृथ्िी एिं चन्द्रमा वमलकर समकोण
बनाते हैं। इस वस्थवत में सयू व एिं चन्द्रमा का ज्िारोत्पादक बल एक दसू रे के विपरीत कायव करते हैं। इस कारण वनमन
ज्िार की उत्पवि होती है।
वनमन या लघु ज्िार सामान्द्य ज्िार से 20% नीचा एिं दीघव या उच्च ज्िार सामान्द्य ज्िार से 20% ऊाँ चा
होता है।

अन्द्य महत्िपणू व तथ्य:


• पृथ्िी के एक घणू वन की अिवि 23 घंटा, 56 वमनट एिं 4.09 सेकेण्ड है।
• पृथ्िी के घणू वन की गवत भमू ध्य रे खा पर सिावविक (0.46 वकमी. प्रवत सेकेण्ड) एिं ध्रिु ों पर शन्द्ू य होती है।
यह ध्रिु ों की ओर क्रमशः कम होती जाती है।
• पिनों एिं समरु ी िाराओ ं में विक्षेपण, दैवनक ज्िार-भाटा की वस्थवत में पररितवन, ध्रिु ों का चपटाकार
स्िरूप, भमू ध्य रे खा का उभार, उिरी चमु बकीय ध्रिु का गवतमान होना आवद पृथ्िी की घणू वन गवत के कारण
है।
• पृथ्िी की घणू वन गवत के कारण ही 24 घंटे में प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्िार एिं दो बार भाटा आता है।
दैवनक ज्िारों में 24 घंटे 52 वमनट का अंतर होता है।
• उप-भू (Perigee): जब पृथ्िी चन्द्रमा से सिावविक वनकट होती है। इस वस्थवत में उच्च ज्िार आता है।
• अप- भू (Apogee): जब चंरमा पृथ्िी से अविकतम दरू ी पर वस्थत होता है। इस वस्थवत में वनमन या लघु
ज्िार आता है।
• विश्व का सबसे ऊंचा ज्िार फंडी की खाड़ी (कनाडा) में एिं भारत का सबसे ऊंचा ज्िार ओखा तट
(गजु रात) में आता है।

20
विश्व भगू ोल राज होल्कर
सयू वग्रहण एिं चन्द्रग्रहण
पवू णवमा (Full Moon): पृथ्िी पर चन्द्रमा का समपणू व प्रकावशत भाग महीने में के िल एक बार ही वदखाई देता है। यह
पवू णवमा का वदन होता है।
अमािस्या (New Moon): पृथ्िी पर चन्द्रमा का समपणू व अप्रकावशत भाग महीने में के िल एक बार ही वदखाई देता
है। यह अमािस्या का वदन होता है।
चन्द्रग्रहण (Lunar Eclipse)
• जब पृथ्िी, सयू व और चन्द्रमा के बीच आ जाती है तो सयू व की रोशनी चन्द्रमा तक नहीं पहुचाँ पाती तथा
पृथ्िी की छाया के कारण चन्द्रमा पर अिं ेरा छा जाता है। यह वस्थवत चन्द्रग्रहण कहलाती है।
• इसे वियवु त की वस्थवत भी कहते हैं।
• चन्द्रग्रहण हमेशा पवू णवमा की रात को ही होता है।

सयू वग्रहण (Solar Eclipse)


• जब सयू व एिं पृथ्िी के बीच चन्द्रमा आ जाता है तो पृथ्िी पर प्रकाश न पड़कर चन्द्रमा की परछाई पड़ती
है।
• इसे यवु त की वस्थवत भी कहते हैं।
• सयू व ग्रहण हमेशा अमािस्या को ही होता है।
• नोट: एक िषव में अविकतम 7 बार सयू वग्रहण एिं चन्द्रग्रहण की वस्थवत उत्पन्द्न होती है।

21
विश्व भगू ोल राज होल्कर
प्रत्येक पवू णवमा को चन्द्रग्रहण एिं प्रत्येक अमािस्या को सयू वग्रहण न लगने का कारण:
प्रत्येक पवू णवमा को चन्द्रग्रहण एिं प्रत्येक अमािस्या को सयू वग्रहण लगना चावहए वकन्द्तु ऐसा नहीं होता क्योंवक चन्द्रमा
अपने अक्ष पर 5° झक ु ा हुआ है।
जब चन्द्रमा और पृथ्िी एक ही वबन्द्दु पर पररक्रमण पथ में पहुचं ते हैं उस समय चन्द्रमा अपने अक्षीय झक
ु ाि
के कारण पृथ्िी से थोड़ा आगे वनकल जाता है। इसी कारण प्रत्येक पवू णवमा को चन्द्र ग्रहण एिं प्रत्येक अमािस्या को
सयू व ग्रहण लगने की वस्थवत नहीं बन पाती।
पणू व सयू व ग्रहण कभी-कभी देखे जाते हैं वकन्द्तु सयू व, चन्द्रमा एिं पृथ्िी के आकार में अंतर होने के कारण पणू व
चन्द्र ग्रहण प्राय: नहीं देखे जाते।

अन्द्य तथ्यः
• वकसी भी पररवस्थवत में पणू व सयू व ग्रहण 8 वमनट से अविक नहीं हो सकता।
• पणू व सयू वग्रहण के समय सयू व के चारों ओर हीरक िलय (Diamond Ring) वदखायी देती हैं।
• पणू व सयू वग्रहण के समय भारी मात्रा में पराबैंगनी वकरणें (Ultra Violet) उत्सवजवत होती हैं। इसवलए सयू वग्रहण
को नंगी आाँखों से नहीं देखा जाता।
• सयू वग्रहण की वस्थवत में यवु त वस्थवत बनती है और चन्द्रग्रहण की वस्थवत में वियवु त वस्थवत बनती है।

अक्षांश एिं देशांतर


अक्षांश (Latitudes)
• भपू ष्ठृ पर विषिु त रे खा या भमू ध्य रे खा के उिर एिं दवक्षण में एक ‘यामयोिर (Meridian) पर वकसी भी
वबन्द्दु को पृथ्िी के के न्द्र से मापी गयी कोणीय दरू ी (Angular Distance) को अक्षांश कहते हैं’।
• अक्षांश का मापन अंश, वमनट एिं सेकेण्ड में वकया जाता है।
• भमू ध्य रे खा (Equator) को 0° अक्षांश द्वारा प्रदवशवत वकया जाता है। यह पृथ्िी को दो बराबर भागों में
बांटती है।
• उिरी एिं दवक्षणी गोलाद्ों में 0° से 90° तक के अक्षांश िृि पाए जाते हैं।
• कुल 181 होते हैं। [1° के अतं राल पर अक्षाश
ं रे खाएं- 179]

22
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• 0° अक्षांश या विषुित रे खा सभी अक्षांशों में बड़ी होती है। इसकी कुल लंबाई 40,075 वकमी. है। इसे
िृहद िृि भी कहते हैं। विषिु त रे खा के अवतररक्त कोई भी अक्षांश िृहद िृि नहीं है क्योंवक िे विषुित रे खा
की अपेक्षा छोटे हैं।
• विषिु त रे खा के उिर में वस्थत अक्षांशों को उिरी अक्षांश एिं दवक्षण में वस्थत अक्षांशों को दवक्षणी अक्षांश
कहते हैं।
• विषिु त रे खा पृथ्िी को दो बराबर भागों में विभावजत करती है। इसके उिर में वस्थत भाग उिरी गोलाद्व एिं
दवक्षण में वस्थत भाग दवक्षणी गोलाद्व कहलाता है।
• भमू ध्य रे खीय व्यास की लंबाई 12756.6 वकमी. है जबवक ध्रिु ीय व्यास की लंबाई 12714 वकमी. है। दोनों
व्यास में लगभग 42.6 वकमी. का अतं र है।
• पृथ्िी की भमू ध्य रे खीय पररवि लगभग 40,075 वकमी. है जबवक ध्रिु ीय पररवि 40,008 वकमी. है।
• 1° अक्षांश की पृथ्िी के िरातल पर दरू ी 111.13 वकमी. है।
• एक सेकेण्ड अक्षांश की कोणीय दरू ी 31 मीटर होती है।
• पृथ्िी पर एक वमनट अक्षाश
ं की दरू ी 1.86 वकमी. होती है।
• वकसी अक्षांश का सहअक्षांश ज्ञात करने के वलए वदए गए अक्षांश को 90 में से घटा वदया जाता है। सह
अक्षांश को प्रदवशवत करने के वलए उिरी या दवक्षणी अक्षांश नहीं वलखा जाता।
• नलोब पर समान अक्षांशीय कोण िाले स्थानों को वमलाने िाली रे खाओ ं को अक्षांश रे खाएं कहा जाता है।
नलोब पर 1° अक्षांश के अंतराल पर कुल अक्षांश रे खाओ ं की संख्या 179 (भमू ध्य रे खा सवहत) हैं। िह
इसवलए क्योंवक 90° उिरी एिं 90° दवक्षणी अक्षांश नलोब पर रे खा न होकर मात्र वबन्द्दु है। अतः 90° उिरी
अक्षांश एिं 90° दवक्षणी अक्षांश के िल अक्षांशों में शावमल वकया जाता है अक्षांश रे खाओ ं में नहीं।

23
विश्व भगू ोल राज होल्कर
महत्िपणू व अक्षांश:
• भमू ध्य रे खा के उिर तथा दवक्षण जाने पर अक्षाश
ं ों का कोणीय मान बढ़ता जाता है वकन्द्तु उनकी लबं ाई
घटती जाती है।
• 60° उिरी तथा दवक्षणी अक्षांशों की लबं ाई विषिु त रे खा की लगभग आिी है।
• 80° उिरी तथा दवक्षणी अक्षांश रे खाओ ं की लबं ाई विषित रे खा की लगभग 1/6 है।
1. विषिु त रे खा (Equator)
• पृथ्िी के भमू ध्य रे खीय उभार के कारण ध्रिु तारे का आपतन कोण भमू ध्य रे खा या विषिु त रे खा पर 0° है।
इसे 0° अक्षांश कहा जाता है।
• 0° अक्षांश पर खींची गयी रे खा को विषिु त रे खा या भमू ध्य रे खा कहते हैं।
• अक्षाश
ं रे खाओ ं में विषिु त रे खा सबसे बड़ी है इसवलए इसे िृहद िृि कहा जाता है। इसकी कुल लबं ाई
40,075 वकमी. है।
भमू ध्य रे खा पर अिवस्थत देश: [कुल-13]

• एवशया के देश: 1. मालदीि 2. इडं ोनेवशया 3. वकररबाती


• द० अमेररका के देश: 1. इक्िाडोर 2. कोलवं बया 3. ब्राजील
• अरीका के देश: 1. साओ टॉम और वप्रवं सप 2. सोमावलया 3. के न्द्या 4. यगु ाडं ा 5. गैबोन 6. कागं ो
गणराज्य 7. लोकतावं त्रक गणराज्य कागं ो
2. ककव रे खा (Tropic of Cancer)
• नलोब पर उिरी गोलाद्व में 0 से 23½° की कोणीय दरू ी पर खींचा गया काल्पवनक िृि ककव िृि कहलाता
है।
• 23½° उिरी अक्षांश को ककव रे खा कहते हैं।
ककव रे खा पर अिवस्थत देश: [कुल 17 देश]

• उिरी अमेररका के देश: 1. मैवक्सको 2. बहामास


• अरीका के देश: 1. वमस्त्र 2. लीवबया 3. नाइजर 4. अल्जीररया 5. माली 6. मॉरीतावनया 7. प. सहारा
• एवशया के देश: 1. ताइिान 2. चीन 3. मयांमार 4. बांनलादेश 5. भारत 6. ओमान 7. संयक्त
ु अरब
अमीरात 8. सऊदी अरब

24
विश्व भगू ोल राज होल्कर
3. मकर रे खा (Tropic of Capricorn)
• नलोब पर दवक्षणी गोलाद्व में 0° अक्षांश से 23½° की कोंणीय दरू ी पर खींचा गया काल्पवनक िृि मकर
िृि कहलाता है।
• 23½° दवक्षणी अक्षांश को मकर रे खा कहते हैं।
मकर रे खा पर अिवस्थत देश:

• द. अमेररका के देश: 1. अजेंटीना 2. ब्राजील 3. वचली 4. परानिे


• अरीका के देश: 1. नामीवबया 2. बोत्सिाना 3. द. अरीका 4. मोजावमबक 5. मेडागास्कर
• ऑस्ट्रेवलया: 1. ऑस्ट्रेवलया 2. टोंगा 3. रें च पॉलीनेवशया (रांस)
4. आकव वटक िृि (Tropic of Arctic): 66½° उिरी अक्षाशं को आकव वटक रे खा कहा जाता है।
आकव वटक रे खा पर अिवस्थत देश: 1. कनाडा 2. वफनलैंड 3. ग्रीनलैंड 4. रूस 5. नॉिे 6. स्िीडन 7.
अलास्का (USA)
5. अंटाकव वटक िृि (Tropic of Antarctica): 66½° दवक्षणी अक्षांश को अंटाकव वटक िृि कहते हैं।
अंटाकव वटक िृि को प्रकाश िृि (Light circle) भी कहा जाता है।

देशांतर (Longitude)
• देशांतर, नलोब पर वनवमवत होने िाले ऐसे काल्पवनक अद्वििृ हैं, जो उिर से दवक्षण वदशा की ओर उिरी
ध्रिु एिं दवक्षणी ध्रिु को जोड़ते हैं।
• देशांतर सदैि अक्षांशों के लमबित वनवमवत होते हैं।
• कुल देशांतरों की संख्या 360 है। देशांतर रे खाओ ं के बीच की दरू ी ध्रिु ों पर 0 होती है।
• देशांतर रे खाओ ं की लंबाई बराबर होती है।
• नलोब पर उिरी ध्रिु तथा दवक्षणी ध्रिु को वमलाने िाली रे खा देशांतर रे खा कहलाती है।
• 0° देशांतर ग्रीनविच नामक स्थान से होकर गजु रता है। इसे मानक देशांतर या प्रिान यामयोिर (मध्याह्न
रे खा) कहते हैं। इसे ग्रीनविच मीन टाइम रे खा भी कहते हैं। समय का वनिावरण इसी को आभार मानकर वकया
जाता है।
• 180° देशांतर रे खा तथा 0° देशांतर रे खा न पिू ी होगी न पवश्चमी ।
• 180° देशांतर रे खा तथा 0° देशांतर रे खा के सहारे नलोब को दो भागों में बांट वदया जाता है। इसका पिू ी
भाग पिू ी गोलाद्व तथा पवश्चमी भाग पवश्चमी गोलाद्व कहा जाता है।

25
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• 1’ वमनट के अंतराल पर नलोब पर खींची गयी देशांतर रे खाओ ं की कुल संख्या 360 होती है। [180°
देशांतर दो बार वगना जाता है। 0° देशांतर को रे खा नहीं माना जाता]
• 1 वमनट के अंतराल पर खींची गयी देशांतर रे खाओ ं की कुल संख्या 21600 होगी।
• 1 सेकेण्ड के अतं राल पर खींची गयी देशातं र रे खाओ ं की कुल सख्ं या 12,96,000 होगी।
• भमू ध्य रे खा पर 1° अतं राल पर दो देशातं र रे खाओ ं के बीच की दरू ी 111.32 वकमी. होगी।
• दो देशातं रों के मध्य सिावविक दरू ी भमू ध्य रे खा पर होती है। ध्रिु ों की ओर जाने पर देशातं र रे खाओ ं के बीच
की दरू ी घटती जाती है और ध्रिु ों पर ये रे खाएं आपस में वमल जाती हैं।
• दो देशातं रों के मध्य का क्षेत्र गोर (GORE) कहलाता है।
• 180° पिू ी देशातं र एिं 180° पवश्चमी देशातं र एक ही रे खा है।

अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा


• अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा का वनिावरण िषव 1884 में िावशंगटन डी.सी. (USA) में आयोवजत वकए गए एक
अंतरावष्ट्रीय सममेलन में वकया गया। इस सममेलन में 180° देशांतर के सहारे गुजरने िाली एक काल्पवनक
रे खा को अंतरावष्ट्रीय वतवथ रे खा घोवषत वकया गया।
• अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा पर समय को 24 घंटों में समायोवजत वकया गया है। इसमें 15° देशांतर पर 1 घंटे का
समय कवटबंि वनिावररत वकया गया है।
• अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा के पिू व एिं पवश्चम में एक वदन का अंतर पाया जाता है। जब कोई जलयान पवश्चम
वदशा में यात्रा करता है तो एक वदन जोड़ वदया जाता है। िहीं जब कोई जलयान पिू व वदशा में यात्रा करता है
तो एक वदन घटा वदया जाता है।
• एक ही साथ वकसी एक समय पर परू े नलोब पर तीन वदन होते हैं। ऐसा अंतरावष्ट्रीय वतवथ रे खा के सीिा न
होकर टेढ़ी मेढ़ी होने के कारण होता है।

26
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• 180° देशांतर रे खा (अंतरावष्ट्रीय वतवथ रे खा) तीन बार विचवलत होती है। यह रे खा कुल 8 स्थानों पर
विचवलत हुई है।
o अल्यवु शयन द्वीप: 169° पिू ी देशांतर से खींची गयी
o रूस का भख ू डं : 169° पवश्चमी देशांतर से खींची गयी
o वफजी, टोंगा एिं चैथम द्वीप: प्रशातं महासागर में मोडी गयी।
• अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा आकव वटक सागर, चक्ु ची सागर, बेररंग जल संवि एिं प्रशातं महासागर से होकर
गजु रती हैं।
• बेररंग जलसवं ि अंतरावष्ट्रीय वतवथ रे खा के समानातं र वस्थत है।
• अतं रावष्ट्रीय वतवथ रे खा अण्टाकव वटका महाद्वीप पर वस्थत दवक्षणी ध्रिु पर रॉस सागर, रॉस बफव सेल्फ एिं
क्िीन मॉड पिवत स्थल से होकर गजु रती है।

27
विश्व भगू ोल राज होल्कर
समय का वनिावरण
• पृथ्िी पर समय का वनिावरण पृथ्िी के घणू वन तथा पररक्रमण के आिार पर वकया जाता है। पृथ्िी एक घणू वन
परू ा करने में लगभग 24 घंटे का समय लेती है। इसका तात्पयव है वक पृथ्िी 24 घंटे में 360° का घणू वन परू ा
करती है। इसवलए प्रत्येक 15° देशांतर की दरू ी घणू वन करने में 1 घंटा तथा 1° देशांतर की दरू ी परू ा करने के
वलए 4 वमनट का समय लेती है।
• पृथ्िी को एक-एक घंटे के 24 टाइम जोन में बााँटा गया है।
• प्रत्येक टाइम जोन 15° के बराबर है।
• 0° देशांतर को मध्याह्न देशांतर (Noon Meridian) कहा जाता है एिं 180° देशांतर को अद्व रावत्र देशांतर
(Mid Night Meridian) कहा जाता है। 180° देशांतर के समय को 0 घंटे (Zero Hour) कहा जाता
है।
• पृथ्िी पर ध्रिु ों को समय विहीन स्थान माना जाता है।

ग्रीनविच मीन टाइम (GMT)


• 22 अक्टूबर, 1884 को िावशंगटन डी.सी. (USA) में आयोवजत वकये गए एक अंतरावष्ट्रीय संगोष्ठी में
ग्रीनविच नामक स्थान से गजु रने िाली 0° देशांतर रे खा को प्रिान मध्याह्न रे खा माना गया तथा इसे ग्रीनविच
मीन टाइम (GMT) का नाम वदया गया ।
• समय का वनिावरण इसी ग्रीनविच मीन टाइम (0° देशांतर रे खा) को आिार मान कर वकया जाता है।
• 0° देशांतर पर हुए समय को ग्रीन विच मीन टाइम / ब्रह्माण्ड समय (Universals Time) / जल
ू ू समय के
नाम से जाना जाता है।
अंतरावष्ट्रीय मानक समय रे खा (IST) मा 0° देशांतर रे खा वनमनवलवखत देशों से होकर गजु रती है –
1. यनू ाइटेड वकंगडम 2. रांस 3. स्पेन 4. अल्जीररया 5. माली 6. बवु कव ना फासो 7. टोंगा 8. घाना 9.
अण्टाकव वटका
GMT को मानक समय के रूप में उपयोग करने िाले देश:
वब्रटेन लाइबेररया बवु कव ना फासो आइसलैंड पतु वगाल
वसएरा वलओन कनारी द्वीप (स्पेन) आयरलैंड टोंगा सेनेगल
घाना मॉररतावनया माली वगनी गावमबया
आवश्वनी कोस्ट असेंसन द्वीप (वब्रटेन)

28
विश्व भगू ोल राज होल्कर
मानक समय (Standard Time)
• मानक समय वकसी देश के मध्य से गजु रने िाली यामयोिर का माध्य होता है। यह स्थानीय समय की
असवु ििा के कारण सपं णू व देश के वलए लागू माना जाता है।
• प्रत्येक देश का मानक समय ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से आिे घटं े के गणु क के अतं र पर वनिावररत
वकया जाता है।
• भारत में 82½° पिू ी देशातं र को मानक समय के वलए देशांतर माना गया है। यह देशातं र भारत के लगभग
मध्य से गजु रता है। भारत की मानक समय रे खा (82½° पिू ी देशातं र) प्रयागराज के वनकट नैनी से गजु रती
है। भारत की मानक समय रे खा (IST) [82½° पिू ी देशातं र] का समय ग्रीनविच मीन टाइम (GMT) से
5.30 घटं े आगे होता है।
• सयं क्त
ु राज्य अमेररका में 6 टाइम कनाडा में 6 टाइम जोन, चीन में 2 टाइम जोन है।

स्थानीय समय (Local Time)


• स्थानीय समय से तात्पयव वकसी स्थान पर मध्याह्न सयू व की सहायता से वनवश्चत वकए गए समय से होता है।
• प्रत्येक स्थान का देशातं र अलग-अलग होता है इसवलए प्रत्येक स्थान का स्थानीय समय भी अलग अलग
होता है। वकन्द्तु एक ही देशातं र रे खा पर वस्थत स्थानों का स्थानीय समय एक ही होता है।
• वकसी भी देशांतर से जब बायीं ओर जाते हैं तो प्रत्येक 1° देशातं र पर समय में 4 वमनट की कमी आती है
जबवक दायी ओर जाने पर 4 वमनट की िृवद् होती है।
• भारत के सिावविक पिू व (वकविथ,ु अरुणाचल प्रदेश) एिं सिावविक पवश्चम (गहु ारमोती, गजु रात) में वस्थत
स्थानों के स्थानीय समय में लगभग 2 घटं े का अतं र वमलता है।

29
विश्व भगू ोल राज होल्कर
पथ्ृ िी की उत्पवि
पृथ्िी एिं अन्द्य ग्रहों की उत्पवि के संबंि में दो प्रकार के िैज्ञावनक मत प्रचवलत हैं। जो वनमनवलवखत हैं –

पृथ्िी की उत्पवि से
सबं ंवित संकल्पनाएाँ

अद्वैतिादी द्वैतिादी
संकल्पना सकं ल्पना

कांट की लाप्लास की चैमबरवलन जेमस जींस की रसेल की ऑटोवश्मड की


िायव्य रावश वनहाररका से और मोल्टन ज्िारीय द्वैतारकिाद अंतरतारक िलू
पररकल्पना संबंवित की ग्रहाणु पररकल्पना संकल्पना पररकल्पना
पररकल्पना पररकल्पना

1. अद्वैतिारी संकल्पना (Monistic Concept): इस संकल्पना को Parental Hypothesis भी कहा जाता


है। महत्िपूणव अद्वैतिादी संकल्पनाएं वनमनवलवखत हैं –
A. कांट की िायव्य रावश पररकल्पना (Kant's Gaseous Hypothesis):

• इसका प्रवतपादन सन् 1755 ई. में काण्ट द्वारा वकया गया। यह न्द्यटू न के गरुु त्िाकषवण के वनयमों पर आिाररत
है।
• इसके अनसु ार, वकसी वनहाररका पर लगने िाले के न्द्रापसाररत बल द्वारा उस तप्त एिं गवतशील वनहाररका
से कई गोल छल्ले अलग हुए। इन छल्लों के शीतलन से सौरमंडल के विवभन्द्न ग्रहों का वनमावण हुआ। पृथ्िी
का वनमावण भी इन्द्ही छल्लों द्वारा हुआ।
B. लाप्लास की वनहाररका पररकल्पना:

• लाप्लास ने 1796 ई. में काण्ट के वसद्ांत को संशोवित वकया।


• इसके अनसु ार, एक विशाल तप्त वनहाररका से पहले एक ही छल्ला बाहर वनकला तथा बाद में छल्लों (9
छल्लों) में विभावजत हो गया वजससे सौरमंडल के विवभन्द्न ग्रहों का वनमावण हुआ एिं पृथ्िी का वनमावण
हुआ।

30
विश्व भगू ोल राज होल्कर
2. द्वैतिादी संकल्पना (Dualistic Concept):
A. चैमबरवलन ि मोल्टेन की ग्रहाणु पररकल्पना:

• इसका प्रवतपादन िषव 1905 में चैमबरवलन और मोल्टन ने वकया था।


• इसके अनसु ार, ग्रहों का वनमावण तप्त गैसीय वनहाररका से न होकर एक ठोस वपण्ड से हुआ है।
• इस पररकल्पना के अनसु ार, प्रारंभ में ब्रह्मांड में दो विशाल तारे थे वजनमें एक सयू व था। दसू रा तारा भ्रमणशील
था। जब यह भ्रमणशील तारा सयू व के पास पहुचाँ ा तो इस तारे की आकषवण शवक्त के कारण सयू व के िरातल
से असंख्य कण अलग हो गए। बाद में, इन्द्हीं कणों के आपस में वमलने से ग्रहों एिं पृथ्िी का वनमावण हुआ।
B. जेमस जींस की ज्िारीय पररकल्पना:

• इसका प्रवतपादन िषव 1919 में जेमस जींस ने वकया। बाद में हेराल्ड जेफरीज ने इसमें संशोिन वकया।
• इसके अनसु ार, सौरमडं ल का वनमावण सयू व एिं एक अन्द्य तारे के सयं ोग से हुआ है।
• इस पररकल्पना के अनसु ार, दसू रे तारे के सयू व के वनकट आने से सयू व का कुछ भाग ज्िारीय उद्भेदन के कारण
वफलामेंट के रूप में वखचं गया तथा बाद में टूट कर सयू व के चक्कर लगाने लगा। यही वफलामेंट सौरमडं ल
के ग्रहों की उत्पवि का कारण बना।
C. ऑटोवश्मड की अतं रतारक िल
ू पररकल्पना:
• इसका प्रवतपादन िषव 1943 ई. में ऑटोवश्मड ने वकया।
• इस पररकल्पना के अनसु ार, ग्रहों की उत्पवि गैस एिं िल ू कणों से हुई है।
• इसके अनसु ार, जब सयू व आकाशगगं ा के करीब से गजु र रहा था तो उसने अपनी आकषवण शवक्त द्वारा कुछ
गैस के बादलों एिं िल ू कणों को अपनी ओर आकवषवत कर वलया। ये गैसीय बादल एिं िल ू कण सामवू हक
रूप से सयू व की पररक्रमा करने लगे। बाद में इन्द्हीं िल
ू कणों के सगं वठत एिं घनीभतू होने से पृथ्िी एिं अन्द्य
ग्रहों की उत्पवि हुई।
D. अवभनि तारा पररकल्पना:

• इसका प्रवतपादन िषव 1939 ई. में रे ड होयल एिं वलवटलटन ने वकया।


• इन्द्होने बताया वक ग्रहों की उत्पवि में दो नहीं बवल्क तीन तारों का योगदान है। वजनमें एक सयू व, दसू रा सयू व
का साथी तारा एिं तीसरा तारा इनके पास आने िाला तारा है।
• इस पररकल्पना के अनसु ार, ग्रहों का वनमावण सयू व से न होकर उसके साथी तारे के विस्फोट से हुआ है।

31
विश्व भगू ोल राज होल्कर
3. आिवु नक वसद्ांत:
A. वबग बैंग (महाविस्फोट) वसद्ांत:

• इस वसद्ांत का प्रवतपादन िषव 1927 ई. में जॉजव लैमेंतेयर ने वकया। िषव 1967 ई. में रॉबटव िेगनर ने इस
वसद्ांत की व्याख्या प्रस्ततु की।
• इस वसद्ांत के अनसु ार, ब्रह्मांड की उत्पवि आज से लगभग 15 वबवलयन िषव पिू व घने पदाथों िाले विशाल
अवननवपण्ड के आकवस्मक जोरदार विस्फोट से हुई है।
B. स्फीवत वसद्ांत:

• इस वसद्ांत का प्रवतपादन एलेन गथु ने वकया है।


• इस वसद्ांत के अनसु ार, ब्रह्माडं के दृश्य रव्यमान के घनत्ि की तल
ु ना में उसका िास्तविक घनत्ि काफी
अविक है। इससे स्पि होता है वक ब्रह्माण्ड में अदृश्य काले पदाथों का अवस्तत्ि है। इन्द्हीं काले पदाथों के
समहू न से आकाशगंगाओ ं का वनमावण हुआ है।

32
विश्व भगू ोल राज होल्कर
पथ्ृ िी का भगू वभवक इवतहास
उल्कावपडं ों एिं चन्द्रमा की चट्टानों के नमनू ों के अध्ययन से पृथ्िी की आयु 4.6 अरब िषव मानी गयी है। इसे अविक
प्रमावणक माना गया है। पृथ्िी पर सिावविक प्राचीन पत्थर के नमनू ों के रे वडयो िमी तत्िों के परीक्षण के आिार पर
पृथ्िी की आयु 3.9 वबवलयन (अरब) िषव मानी गयी है। पृथ्िी के भगू वभवक इवतहास की व्याख्या सिवप्रथम रांसीसी
िैज्ञावनक ‘कास्ते द बफन’ ने प्रस्ततु की थी।
कालखण्ड:
1. महाकल्प (Era): सबसे बड़ा कालखडं
2. यगु (Epoch): महाकल्पों को यगु ों में भावजत वकया जाता है
3. शक या कल्प (Period): प्रत्येक यगु को कल्प या शक में विभावजत वकया जाता है।
पृथ्िी का भगू वभवक इवतहास:
- आद्यमहाकल्प o जरु ै वसक
- प्री पैल्योजोइक o वक्रटैवशयस
- पैल्योजोइक (प्रथम यगु ) - सेनोजोइक (तृतीय यगु )
o कै वमब्रयन o पैवलयोसीन
o आड़ोविवसयन o इयोसीन
o वसल्यरू रयन o ओवलगोसीन
o वडिोवनयन o मायोसीन
o काबोवनफे रस o प्लायोसीन
o पवमवयन - वनयोजोइक (चतथु व यगु )
- मेसोजोइक (वद्वतीय युग) o प्लीस्टोसीन
o वट्रयावसक o होलोसीन

1. आद्य महाकल्प या प्रीपैल्योजोइक: इसे आवकव यन एिं प्री-कै वमब्रयन दो भागों में विभावजत वकया गया है।
A. आवकव यन काल [Archean Era or Azoic]:
• शैलों में जीिाश्मों का पणू वतः अभाि।
• चट्टानों में ग्रेनाइट एिं नीस की अविकता।
• चट्टानों में सोना तथा लोहा पाया जाता है।
• इस काल में कनावडयन एिं फे नोस्कैं वडयन शील्ड का वनमावण हुआ।

33
विश्व भगू ोल राज होल्कर
B. प्री-कै वमब्रयन काल [Pre-Cambrian Era]:
• समरु में रीढ़ विहीन जीि का प्रादभु ावि।
• स्थल मंडल अभी भी जीि रवहत था।
• समरु में रीढ़ यक्त
ु जीिों का भी प्रादभु ावि।
• भारत में अरािली पिवत एिं िारिाड क्रम की चट्टानों का वनमावण।
2. परु ाजीि महाकल्प (Paleo-zoic Era): इसे 6 कल्प या शक में विभावजत वकया जाता है।
I. कै वमब्रयन शक/कल्प:
• स्थान भागों पर समरु ों का अवतक्रमण।
• प्राचीनतम अिसादी शैलों का वनमावण।
• भारत में विन्द्ध्याचल पिवतमाला का वनमावण।
• सिवप्रथम िनस्पवत एिं जीिों की उत्पवि [जीि वबना रीड िाले)।
• समरु में शैिालों की उत्पवि।
II. आड़ोविवसयन काल /शक:
• िनस्पवतयों का विस्तार
• समरु में रें गने िाले जीिों की उत्पवि
• स्थल भाग अभी भी जीि विहीन था।
• समरु का विस्तार हुआ।
III. वसल्यरु रयन कल्प/शक: [रीढ़ िाले जीिों का काल]
• पृथ्िी की ‘कै वलडोवनयन हलचल’ के पररणाम स्िरूप उिरी अमेररका के अप्लेवशयन, स्कॉटलैंड एिं
स्कैं वडनेविया के पिवतों का वनमावण
• सिवप्रथम रीढ़ िाले जीिों का आविभावि
• समरु ों में मछवलयों की उत्पवि
• प्रिाल जीिों का विकास
• स्थल पर पहली बार पौिों का उदभि् [पौिे पणवरवहत थे एिं पौिों का सिवप्रथम विकास ऑस्ट्रेवलया
में हुआ]
IV. वडिोवनयन काल / शक: [मत्स्य युग]
• शाकव मछली का आविभावि
• उभयचर जीिों (Amphibians) की उत्पवि
• फनव िनस्पवतयों की उत्पवि ।

34
विश्व भगू ोल राज होल्कर
V. काबोवनफे रस कल्प /शक: [बड़े िृक्षों का काल] या [कोयला यगु ]
• स्थल भाग पर रें गने िाले जीिों (Raptiles) की उत्पवि
• गोंडिाना क्रम की चट्टानों का वनमावण
• लंबे-लंबे पेड़ों की उत्पवि
VI. पवमवयन कल्प/शक:
• इस काल में ‘िैरीसन हलचल’ हुई।
• िैरीसन हलचल के कारण ब्लैक फॉरे स्ट एिं िास्जेज जैसे भ्रन्द्शोत्थ पिवतों का वनमावण ।
• स्पेवनस, मेसेटा, अल्टाई, वतएनशान एिं अप्लेवशयन जैसे पिवतों का वनमावण
3. मध्यजीिी महाकल्प (Mesozoic Era): इसे तीन भागों में विभावजत वकया जाता है -
I. वट्रयावसक कल्प [रंगने िाले जीिों का काल]:
• स्थल पर बड़े-बड़े रें गने िाले जीिों का विकास
• आवकव योप्टेररस की उत्पवि [आवकव योप्टेररस: स्थल एिं आकाश दोनों में विचरण करने िाला जीि]
• लॉबस्टर (के कडा प्रजावत) का उद्भि
• रें गने िाले जीिों में स्तनिाररयों की उत्पवि
• मेंडक एिं कछुआ की उत्पवि
• मांसाहारी मत्स्य तुल्य रें गने िाले जीिों की उत्पवि
II. जरु ै वसक कल्प [Jurassic Period]:
• डायनासोर का विकास
• जलचर, स्थल चर एिं नभचर तीनों का आविभावि
• जरू ा पिवत का विकास
• पष्ु पयक्त
ु िनस्पवतयों की उत्पवि
• प्रथम उडने िाले पवक्षयों का उद्भि
III. वक्रटेवशयस कल्प:
• आिृतबीजी (एंवजयोस्पमव) पौिों का विकास
• रॉकी एिं एंडीज पिवतों की उत्पवि आरंभ
• दक्कन ट्रैप में ज्िालामख
ु ी लािा का उद्भेदन
• दक्कन ट्रैप एिं काली वमट्टी का वनमावण
• उ. प. अलास्का, कनाडा, मैवक्सको, वब्रटेन का डोबर क्षेत्र एिं ऑस्ट्रेवलया में खवडया वमट्टी का जमाि

35
विश्व भगू ोल राज होल्कर
4. निजीिी महाकल्प [Cenozoic Era]: इस कल्प को तृतीयक या टवशवयरी यगु भी कहा जाता है। इसे 5
कालों में विभावजत वकया जाता है -
I. पैल्योसीन काल (Paleocene Period):
• इस काल में 'लैरामाइड हलचल' हुई वजसके पररणामस्िरूप उिरी अमेररका में रॉकी पिवतमाला का
वनमावण हुआ।
• इस काल में सिवप्रथम स्तनपायी जीिों एिं पच्ु छविहीन बंदरों (APE) का आविभावि हुआ।
• इस काल तक डायनासोर समाप्त हो चक
ु े थे।
II. इओसीन कल्प (Eocene period]:
• स्थल पर रें गने िाले जीि प्रायः विलप्तु
• प्राचीन बदं र एिं वगब्बन मयामं ार में उत्पन्द्न
• हाथी, घोडा, गैंडा एिं सअ ु र के पिू वजों का आविभावि
• इस यगु में बड़ी मात्रा में ज्िालामख
ु ी उद्गार हुए।
• इस यगु में िृहद् वहमालय का वनमावण प्रारंभ हुआ।
• इस काल से पिू व वनवमवत पिवतों की ऊंचाई में िृवद् हुई।
III. ओवलगोसीन कल्प (Oligocene Period):
• आल्पस पिवत का वनमावण प्रारंभ
• कुिा, वबल्ली एिं भालुओ ं के पिू वजों की उत्पवि
• पच्ु छविहीन बंदर (APE) का विकास
• िृहद् वहमालय का विकास जारी रहा।
IV. मायोसीन कल्प (Miocene Period):
• इस काल में लघु या मध्य वहमालय का वनमावण हुआ।
• जलपक्षी (हसं , बतख), पेंवनिन आवद की उत्पवि।
• शाकव मछली का सिावविक विकास हुआ।
• हाथी का विकास इसी काल में हुआ।
V. प्लायोसीन कल्प (Pliocene Period):
• ितवमान महासागरों एिं महाद्वीपों का स्िरुप प्राप्त
• वशिावलक वहमालय की उत्पवि ।
• यरू ोप, उिरी अमेररका, वसंि एिं भारत में विस्तृत मैदानों का विकास
• शाकव का विनाश

36
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• मानि के पिू वजों का विकास
• भारत के उिरी विशाल मैदान का आविभावि
• ब्लैक सागर, उिरी सागर, कै वस्पयन सागर एिं अरब सागर की उत्पवि ।
5. नतू न महाकल्प (Neozoic Era): इसे दो भागों में विभावजत वकया जाता है –
I. प्लीस्टोसीन कल्प (Pleistocene Period):
• इस कल्प में यरू ोप में क्रमश: चार वहमयगु - गंजु , वमडं ेल, ररस एिं िमु व देखे गए।
• उिरी अमेररका में क्रमश: चार वहमयगु - नेब्रास्कन, कन्द्सान, इलीनोइन (आयोिा) एिं विसं ावकन देखे
गए।
• पृथ्िी पर उड़ने िाले पवक्षयों का आविभावि
• उ. अमेररका की िृहद झीलों एिं नॉिे के वफयोडव तटों का वनमावण
II. होलोसीन कल्प (Holocene Period): [मानि यगु ]
• उिरी अरीका एिं मध्य एवशया में मरुस्थलों का उदभि

• मानि ने कृ वष कायव एिं पशपु ालन प्रारंभ वकया।
• यह कल्प अभी चल रहा है।

37
विश्व भगू ोल राज होल्कर
पथ्ृ िी की आतं ररक संरचना

पथ्ृ िी की आतं ररक सरं चना के बारे में जानने के स्त्रोत:


स्रोत

पृथ्िी की उत्पवि से
अप्राकृ वतक स्रोत संबंवित वसद्ांत प्राकृ वतक स्रोत

घनत्ि दाब तापमान ज्िालामख


ु ी भक
ू ं पीय तरंगें उल्कावपंड

अप्राकृवतक स्रोत
1. घनत्ि (Density)
पृथ्िी का औसत घनत्ि 5.5 gm/cm3 है। पृथ्िी की भ-ू पपवटी (Crust) का घनत्ि लगभग 3 gm/cm3 है। पृथ्िी
की क्रोड का औसत घनत्ि 11 से 13.5 gm/cm3 है। इससे स्पि होता है वक पृथ्िी की आंतररक संरचना कई भागों
में विभक्त है और पृथ्िी की क्रोड़ का घनत्ि सिावविक हैं।
2. दबाि (Pressure)
दबाि बढ़ने से घनत्ि बढ़ता है। वकन्द्तु चट्टानों की एक सीमा है वजससे अविक उसका घनत्ि नहीं हो सकता। पृथ्िी
के अंदर अविक घनत्ि पाया जाता है इसका अथव हुआ वक पृथ्िी का आंतररक भाग अविक घनत्ि िाली भारी
िातओु ं की चट्टानों से बना है।
3. तापमान (Temperature)
• सामान्द्यतः 8 वकमी. तक पृथ्िी की गहराई में प्रिेश करने पर प्रवत 32 मीटर पर 1 वडग्री सेंटीग्रेड तापमान में
िृवद् होती है। इसके बाद गहराई के साथ िृवद् दर कम हो जाती है।
• प्रथम 100 वकमी. की गहराई में प्रत्येक वकमी. पर 12°C की िृवद् होती है।
• 300 वकमी. की गहराई में प्रत्येक वकमी. पर 2° C एिं उसके बाद प्रत्येक वकमी. की गहराई पर 1°C की
िृवद् होती है।
• पृथ्िी के आंतररक भाग से बाहर की ओर ऊष्मा का प्रिाह तापीय संिहन तरंगों के रूप में होता है।

38
विश्व भगू ोल राज होल्कर
पथ्ृ िी की उत्पवि से संबंवित वसद्ातं
1. ग्रहाणु संकल्पना: इस संकल्पना का प्रवतपादन टी. सी. चैमबरवलन ने वकया। इस संकल्पना के अनसु ार,
पृथ्िी का वनमावण ठोस ग्रहाणु के एकत्रीकरण से हुआ है। अत: पृथ्िी का क्रोड ठोस होना चावहए।
2. ज्िारीय संकल्पना: इस संकल्पना का प्रवतपादन जेमस जीन ने वकया। इस संकल्पना के अनसु ार, पृथ्िी की
उत्पवि सयू व द्वारा वनःसृत ज्िारीय पदाथव के ठोस होने से हुई है अतः पृथ्िी का क्रोड़ तरल अिस्था में होना
चावहए।
3. वनहाररका वसध्दांत: लाप्लास के वनहाररका वसद्ांत के अनुसार, पृथ्िी का क्रोड गैसीय अिस्था में होना
चावहए।

प्राकृवतक स्त्रोत
ज्िालामख
ु ी: ज्िालामख
ु ी उद्गार से वनकलने िाला तरल मैनमा इस ओर संकेत करता है वक पृथ्िी के अंदर कोई
परत तरल अथिा अद्वतरल अिस्था में है।
भक
ू मपीय तरंग:ें भक
ू मपीय तरंगों के अध्ययन से पृथ्िी की आंतररक संरचना के बारे में पयावप्त जानकारी प्राप्त हुई है।

पथ्ृ िी की विवभन्द्न परतें

39
विश्व भगू ोल राज होल्कर
1. भ-ू पपवटी (Crust):
यह पृथ्िी का सबसे बाहरी भाग है। महासागरों के नीचे इसकी मोटाई 5 वकमी. है जबवक महाद्वीपों के नीचे इसकी
मोटाई 30 वकमी. है। पिवतीय श्रृंखलाओ ं के क्षेत्र में इसकी मोटाई 70 से 100 वकमी. है।
क्रस्ट को दो भागों में विभावजत वकया गया है –
1. ऊपरी क्रस्ट [औसत घनत्ि: 2.7 gm/cm3]
2. वनचली क्रस्ट [औसत घनत्ि: 3 gm/cm3]
ऊपरी क्रस्ट एिं वनचले क्रस्ट के मध्य ‘कोनराड़ असमबध्दता’ पायी जाती है।
क्रस्ट का वनमावण वसवलका एिं एल्यवु मवनयम से हुआ है। इसे वसयाल (SiAl) परत भी कहा जाता है।
क्रस्ट में पाए जाने िाले तत्ि:
ऑक्सीजन: 46.60% वसवलकॉन: 27.72%
एल्यवु मवनयम: 8.13% लोहा: 5% एिं अन्द्य पदाथव (कै वल्सयम, सोवडयम, पोटेवशयम एिं मैननीवशयम आवद)
2. मेंटल (mantle):
• क्रस्ट के वनचले आिार पर भक
ू ं पीय लहरों की गवत में अचानक िृवद् हो जाती है।
• वनचली क्रस्ट तथा ऊपरी मैंटल के मध्य मोहो असमबध्दता पायी जाती है।
• मोहो असमबद्ता से लगभग 2900 वकमी. की गहराई तक मैंटल का विस्तार है।
• मैंटल का आयतन पृथ्िी के कुल आयतन का लगभग 83% एिं रव्यमान का लगभग 68% है।
• मैंटल का वनमावण वसवलका एिं मैननीवशयम से हुआ है। इसवलए इसे वसमा/सीमा (SiMa) भी कहा जाता
है।
• ऊपरी मेंटल एिं वनचले मेंटल के बीच ‘रे पेटी असंबध्दता’ पायी जाती है।
मेंटल के भाग:
a. मोहो असमबद्ता से 200 वकमी. की गहराई िाला भाग
b. 200 से 700 वकमी.
c. 700 से 2900 वकमी.
दबु वलता मंडल (Asthenosphere): ऊपरी मैंटल के ऊपरी भाग को दबु वलता मंडल कहते हैं। यह भाग पृथ्िी पर
उत्पन्द्न होने िाले ज्िालामखु ी के मैनमा की आपवू तव करता है। स्थल मंडल, दबु वलतामंडल के ऊपर तैर रहा है। दबु वलता
मंडल को प्लावस्टक या तरल अिस्था में माना जाता है। इसका विस्तार 100 वकमी. से 700 वकमी. तक माना जाता
है। इसे वनमन गवत क्षेत्र (Low Velocity Zone) भी कहते हैं। यहााँ भक ू ं पीय तरंगों में मंदन (Deceleration) उत्पन्द्न
होते हैं।

40
विश्व भगू ोल राज होल्कर

3. क्रोड (Core):
• वनचले मैंटल के आिार पर भक
ू ं प की P तरंगों की गवत में अचानक िृवद् होती है।
• वनचले मेंटल एिं ऊपरी क्रोड के बीच में ‘गटु ेनबगव-विसाटव' असंबद्ता पायी जाती है।
• गटु ेनबगव असंबद्ता से लेकर 6,371 वकमी. (या 2900 वकमी. से. 6,371 वकमी.) की गहराई तक के भाग
को क्रोड (core) कहा जाता है।
• क्रोड का आयतन परू ी पृथ्िी का मात्र 16% है परंतु इसका रव्यमान पृथ्िी के कुल रव्यमान का लगभग
32% है ।
• क्रोड़ के आंतररक भागों का वनमावण मख्ु य रूप से वनके ल और लोहा से हुआ है। इसे वनफे (NiFe) भी कहा
जाता है।
• बाहरी क्रोड में S तरंगें प्रिेश नहीं कर पाती इसवलए इस भाग को तरल अिस्था में माना जाता है।
• आतं ररक क्रोड में P तरंगों की गवत 11.23 वकमी./से. होती है। अतः इसे ठोस अथिा प्लावस्टक अिस्था
में माना जाता है।
• क्रोड का घनत्ि मेंटल के घनत्ि के दोगनु े से भी अविक है।
• बाहरी क्रोड एिं आंतररक क्रोड के बीच 'लैहमैन असंबद्ता’ पायी जाती है।
क्रोड का विभाजन: क्रोड को दो भागों में विभावजत वकया जाता है –
a. बाहरी क्रोड (Outer Core): विस्तार 2900 से 5150 वकमी.
b. आतं ररक क्रोड (Inner core): विस्तार 5150 से 6371 वकमी.

41
विश्व भगू ोल राज होल्कर
चट्टानें (Rocks)
चट्टान (Rock): पृथ्िी पर पाए जाने िाले िे समस्त पदाथव जो िातु नहीं हैं, चट्टान कहलाते हैं। चट्टानें वकसी एक
खवनज से वनवमवत अथिा खवनजों का समहू हो सकती हैं।
भपू टल के वनमावण में 24 खवनज महत्िपणू व हैं। इनमें से भी मात्र 6 खवनज ही प्रिान रूप में पाए जाते हैं। इन
खवनजों में फे ल्सपार, क्िाट्वज, पायरॉवक्सन, एमफीबोल्स, अभ्रक एिं ओलीविन अवत महत्िपणू व हैं। चट्टान
वनमावणकारी खवनज िगव में वसवलके ट सिवप्रमखु है।
पथ्ृ िी का क्रस्ट:
• पृथ्िी के क्रस्ट में पाए जाने िाले तत्िों की संख्या 110 है वकन्द्तु क्रस्ट के वनमावण में के िल 8 तत्ि प्रमख

माने जाते हैं।
• भपू ष्ठृ का 98.77 प्रवतशत भाग के िल 8 खवनजों से बना है। इन तत्िों में ऑक्सीजन (46.8%), वसवलकॉन
(27.7%), एल्यवु मवनयम (8.13%), लोहा (5%), कै वल्सयम (3.63%), सोवडयम (2.83%), पोटेवशयम
(2.59% ) एिं मैननीवशयम (2.09%) से वनवमवत है।
चट्टानों का िगीकरण:
वनमावण की विवि के आिार पर चट्टानों को तीन भागों में विभक्त वकया जा सकता है –
1. आननेय चट्टान (Igneous Rocks)
2. अिसादी चट्टान (Sedimentary Rocks)
3. कायान्द्तररत चट्टान (Metamorphic Rocks)
1. आननेय चट्टान:
• ज्िालामख
ु ी उद्गार के समय भ-ू गभव से वनकलने िाला लािा ही िरातल पर जमकर ठण्डा हो जाने के पश्चात्
आननेय शैलो में पररिवतवत हो जाता है।
• पृथ्िी की उत्पवि के पश्चात् सिवप्रथम इन्द्ही चट्टानों का वनमावण हुआ। इसवलए इन्द्हें प्राथवमक शैल भी कहा
जाता है।
• ये चट्टानें रिेदार, परतविहीन एिं कठोर होती हैं। इन चट्टानों में जीिाश्म नहीं पाये जाते ।
• आननेय चट्टानों पर रासायवनक अपक्षय का प्रभाि कम पाया जाता है। इन चट्टानों पर यांवत्रक एिं भौवतक
अपक्षय का प्रभाि होता है। यांवत्रक एिं भौवतक अपक्षय के कारण इनका विघटन एिं वियोजन होता है।
• प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आननेय चट्टानों द्वारा ही अिसादी एिं रूपांतररत चट्टानों का वनमावण होता है।
• ये चट्टानें रन्द्ध्र हीन होती हैं। इनमें खवनज तत्िों की मात्रा अविक पायी जाती है।

42
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• क्रस्ट का लगभग 90% भाग इन्द्ही चट्टानों से वनवमवत है।
• आननेय चट्टानों के उदाहरण: ग्रेनाइट, बेसाल्ट, पेनमाटाइट, डायोराइट, गैब्रो, वपचस्टोन एिं प्यवू मस आवद ।
आननेय चट्टानों के प्रकार:
वस्थवत एिं संरचना के आिार पर आननेय चट्टान:
1. अन्द्तः वनवमवत आननेय (Intrusive Igneous Rocks): इनका वनमावण सतह के नीचे मैनमा के ठण्डा होने
के कारण होता है। ये दो प्रकार की होती हैं –
A. पातालीय चट्टान:
• इनका वनमावण पृथ्िी की गहराई में होता है।
• अत्यविक िीमी गवत से ठंडा होने के कारण इसके रिे बड़े-बड़े होते हैं।
• उदाहरण: ग्रेनाईट, गैब्रो एिं डाइओराइट
B. मध्यिती चट्टान:
• इनका वनमावण ज्िालामुखी उदगार के समय िरातलीय अिरोि के कारण मैनमा के दरारों, वछरों
एिं नाली में जमकर ठोस होने से होता है।
• इसके रूप- लेकोवलथ, फै कोवलथ, बेथोवलथ, वसल एिं डाइक।
• उदाहरण: डोलोराइट, मैननेटाइट आवद।
2. बाह्य आननेय चट्टान (Extrusive Igneous Rocks): जब मैनमा क्रस्ट के ऊपर जमकर ठोस होता है तो
इन चट्टानों का वनमावण होता है।
• मैनमा के जल्दी ठंडा होने के कारण इनका रिा छोटा होता है।
• इनके क्षरण से काली वमटटी का वनमावण होता है।
• ये रंध्रविहीन होती हैं।
• बेसाल्ट इसी प्रकार की चट्टान है।
• ऑवलिीन, माइका, एमफीबोल, पायरॉवक्सन, फे ल्सपार एिं क्िाटवज आवद इसके उदाहरण हैं।

रासायवनक सरं चना के आिार पर आननेय चट्टान का िगीकरण: रासायवनक सरं चना के आिार पर आननेय
चट्टानों को दो भागों में विभावजत वकया जाता है –
1. अमलीय आननेय चट्टान
2. क्षारीय आननेय चट्टान

43
विश्व भगू ोल राज होल्कर
1. अमलीय आननेय चट्टान:
• इसमें बालू एिं वसवलका की मात्रा 65-85% तक होती है।
• इसका रंग हल्का होता है। इसका औसत घनत्ि कम (2.75 से 2.8 तक) होता है।
• महाद्वीपीय क्रस्ट का वनमावण इसी से हुआ है। इसमें सोवडयम, पोटेवशयम, एल्यवु मवनयम एिं फे ल्सपार पाया
जाता है।
• उदाहरण: ग्रेनाइट, रायोलाइट, वपचस्टोन, ऑब्सीवडयन. ii) सारीय आननेय चट्टान:
2. क्षारीय आननेय चट्टान:
• इसमें बालू एिं वसवलका की मात्रा लगभग 40-55% होती है।
• वसवलका की मात्रा कम होने के कारण इसका रंग गहरा होता है।
• इसका औसत घनत्ि अमलीय आननेय से अविक (2.8 से 3) होता है।
• महासागरीय क्रस्ट का वनमावण इसी से होता है।
• इसमें लोहा, मैननीवशयम एिं चनू ा की मात्रा अविक पायी जाती है।
• उदाहरण: बेसाल्ट, डोलोराइट तथा गैब्रो
नोट:

• भारत में राजस्थान का अरािली पिवत, छोटा नागपरु की पहावड़यााँ, राजमहल श्रेणी, रााँची का पठार, अजतं ा
की गफ
ु ाएाँ आवद आननेय चट्टानों से वनवमवत हैं।
• अविकाश ं खवनज एिं िातु अयस्क - लौह अयस्क, सोना, चााँदी, सीसा, जस्ता, तााँबा, मैंगनीज, वनके ल,
क्रोमाइट एिं प्लेवटनम आवद िातु खवनज आननेय चट्टानों में पाए जाते हैं।
• ग्रेनाइट कठोर चट्टान होती है। इसका उपयोग भिन वनमावण एिं सजािट के वलए वकया जाता है।

2. अिसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks):


• पृथ्िी तल पर आननेय एिं रूपांतररत चट्टानों के अपरदन एिं वनक्षेपण के फलस्िरूप अिसादी चट्टानों का
वनमावण होता है।
• इसकी संरचना परतदार होती है। इसकी परतों में जैि अिशेष पाए जाते हैं।
• इन चट्टानों में प्राकृ वतक गैस, कोयला एिं खवनज तेल के भण्डार पाये जाते हैं।
• इन चट्टानों का वनमावण अपरदन से प्राप्त बारीक कणों द्वारा होता है। अतः इनके कण बारीक होते हैं। रिे नहीं
बन पाते।

44
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• इनका वनमावण जल एिं स्थल दोनों भागों में होता है।
• सपं णू व भपू ष्ठृ (Crust) के ऊपर अिसादी चट्टानें लगभग 75% भाग पर फै ली हुई हैं। क्रस्ट के वनमावण में
अिसादी शैलों का योगदान मात्र 5% है।
• अिसादी चट्टानों में 80% शैल, 12% बलआ
ु पत्थर एिं 8% चनू ा पत्थर पाया जाता है।
• ये चट्टानें वछरयक्त
ु होती हैं इनमें पानी आसानी से प्रिेश करता है।
• इन चट्टानों में संवियााँ एिं जोड़ बहुतायत में पाये जाते हैं। इन चट्टानों पर अपरदन की वक्रयाओ ं का प्रभाि
शीघ्र पड़ता है।
• इन चट्टानों में आवथवक महत्ि के खवनज कम पाए जाते हैं।
• इन चट्टानों में खवनज तेल, बॉक्साइट, मैगनीज एिं वटन आवद के अयस्क उपवस्थत होते हैं।
• भिन वनमावण में उपयोग वकया जाने िाला पत्थर इन्द्हीं चट्टानों से प्राप्त वकया जाता है।
वनमावण प्रक्रम के आिार पर अिसादी शैलों का िगीकरण:
A. यांवत्रक वक्रया द्वारा वनवमवत: बालक
ु ा पत्थर, चीका वमट्टी, कॉनलोमेरेट या गोलाश्म, शेल एिं लोएस
B. जैविक तत्िों द्वारा वनवमवत: चनू ा पत्थर, कोयला एिं पीट
C. रासायवनक वक्रया द्वारा वनवमवत: खवडया वमट्टी, सेलखड़ी एिं नमक की चट्टानें

3. रूपांतररत/कायान्द्तररत चट्टान (Metamorphic Rocks):


• रूपांतररत चट्टानों का वनमावण ताप एिं दाब के कारण आननेय तथा अिसादी चट्टानों के संगठन तथा स्िरूप
में पररितवन के कारण होता है। मे सिावविक कठोर चट्टानें होती हैं।
• इन चट्टानों में जीिाश्म नहीं पाया जाता। इन चट्टानों में हीरा, संगमरमर, अभ्रक एिं क्िाटवजाइट आवद पाए
जाते हैं।
रूपांतरण के कारक:

• ताप या ऊष्मा
• दबाि या संपीडन
• घोलीकरण
रूपांतरण के प्रकार:

• तापीय रूपातं रण (Thermal Metamorphism)


• गवतक रूपातं रण (Dynamic Metamorphism)

45
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• ताप-जलीय रूपांतरण (Hydro Thermal metamorphism)
• जलीय रूपांतरण (Hydro Metamorphism)

रूपांतरण से वनवमवत चट्टानें:


अिसादी चट्टानों का रूपांतरण:

• शेल – स्लेट
• चनू ा पत्थर एिं डोलोमाइट – संगमरमर
• चॉक एिं डोलोमाइट – संगमरमर
• बालक
ु ा पत्थर – क्िाटवजाइट
• कांनलोमेरेट (गोलाश्म) – क्िाटवजाइट

आननेय चट्टानों का रूपांतरण:

• ग्रेनाइट – नीस
• बेसाल्ट – वसस्ट या एमफीबोलाइट

रूपांतररत चट्टानों का पनु : रूपांतरण:

• स्लेट – फाइलाइट
• फाइलाइट – वसस्ट
• गैब्रो – सरपेंटाइन

46
विश्व भगू ोल राज होल्कर
ज्िालामख
ु ी (Volcano)

ज्िालामख
ु ी: यह एक वछर होता है वजससे होकर पृथ्िी के अंदर का अत्यंत तप्त गमव लािा, गैस, जल एिं चट्टानों
के टुकडों से यक्त
ु पदाथव पृथ्िी के िरातल पर प्रकट होते हैं।
ज्िालामख
ु ीयता: इसमें पृथ्िी के आंतररक भाग में मैनमा एिं गैस के उत्पन्द्न होने से लेकर िरातल के अंदर एिं
ऊपर लािा प्रकट होने एिं ठण्डा ि ठोस होने की समस्त प्रवक्रया शावमल होती है।
लािा एिं मैनमा:
• लािा: यह पृथ्िी के अंदर का िह तप्त तरल पदाथव होता है जो ज्िालामख
ु ी वछर से बाहर आता है।
• मैनमा: यह पृथ्िी के अदं र का िह तप्त तरल पदाथव होता है जो बाहर नहीं आ पाता अदं र ही जमकर ठोस
बन जाता है। अथावत पृथ्िी के अंदर का तप्त तरल पदाथव जब तक बाहर नहीं आता िह मैनमा कहलाता है।
ज्िालामखु ी वछर से बाहर वनकलने के बाद िही पदाथव लािा कहलाता है।
ज्िालामख
ु ी वक्रया के रूप:
• िरातल के नीचे होने िाली वक्रया: ज्िालामख ु ी वक्रया के दौरान जब िरातल के नीचे भगू भव में मैनमा ठण्डा
होकर जम जाता है। इस वक्रया के पररणामस्िरूप- बैथोवलथ, फै कोवलथ, लोपोवलथ, वसल एिं डाइक जैसी
अन्द्तः स्थलाकृ वतयों का वनमावण होता है।
• िरातल के ऊपर होने िाली ज्िालामुखी वक्रया : ज्िालामुखी वक्रया के दौरान जब िरातल के ऊपर आकर
लािा ठण्डा होकर जम जाता है। इस वक्रया के पररणामस्िरूप ज्िालामख ु ी पिवत, पठु ार, गमव जल के झरने,
गेसर, िाँआ
ु रे आवद का वनमावण होता है।
ज्िालामख
ु ी से वनःसृत पदाथव:
• गैस: जलिाष्प (60-90%), CO2, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, हाइड्रोजन क्लोराइड, काबवन मोनोऑक्साइड,
हाइड्रोजन फ्लोराइड, हीवलयम एिं सल्फर डाई ऑक्साइड
• अन्द्य पदाथव: िल
ू , राख, चट्टानी टुकडे आवद।
ज्िालामख
ु ी वक्रया से संबंवित पदाथव:
• लैवपली: मटर के दाने के आकार के टुकडे
• टफ: िलू एिं राख से बने चट्टानी टुकड़े
• बम: बड़े- बड़े आकार के चट्टानी टुकडे

47
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• प्यवू मक: जल से कम घनत्ि िाले एिं जल पर तैर सकने योनय चट्टानी टुकड़े।
• पाइरोक्लास्ट: िरातल पर आए बडे-बडे वशलाखंड
• मैवफक: गहरे रंग के खवनज (मैननीवशयम की अविकता)
• फे वल्सक: हल्के रंग के खवनज (वसवलका एिं फे ल्सपार की अविकता)

लािा के प्रकार: वसवलका की मात्रा के आिार पर लािा दो प्रकार का होता है –


1. अमलीय लािा:
• अत्यन्द्त गाढ़ा एिं वचपवचपा होता है।
• वसवलका की मात्रा अविक (65-80%)
• इसका रंग हल्का होता है (रंग हल्का पीला)
• इसका घनत्ि कम है।
• इसमें मुख्यतः सोवडयम, पोटेवशयम, एल्यवु मवनयम एिं फे ल्सपार पाया जाता है।
• यह िरातल पर दरू तक नहीं फै लता (गाढ़ा होने के कारण) बवल्क क्रेटर के आसपास शंकु का वनमावण
करता है।
2. क्षारीय लािा:
• यह कम गाढ़ा एिं कम वचपवचपा होता है।
• वसवलका की मात्रा कम (40-55%) होती है।
• इसका रंग गहरा होता है।
• इसका घनत्ि अविक होता है।
• इसमें मुख्यतः लोहा, मैननीवशयम एिं चनू ा पाया जाता है।
• यह िरातल पर दरू तक फै लता है। यह शील्डनुमा शंकु का वनमावण करता है।
• इसका विस्फोट या उदगार अमलीय लािा की अपेक्षा कम तीव्रता या कम विस्फोटक होता है।

48
विश्व भगू ोल राज होल्कर
ज्िालामख
ु ी का िगीकरण:
सवक्रयता के आिार पर:
1. सवक्रय ज्िालामख ु ी (Active Volcanoes): इन ज्िालामवु खयों से लािा, गैस, जलिाष्प एिं विखंवडत
पदाथव सदैि वनकलते रहते हैं।
प्रमख
ु सवक्रय ज्िालामख ु ी:
• वकलाय:ु हिाई द्वीप, अमेररका
• स्ट्रामबोली: वलपारी दीप, वससली (भूमध्य सागर का प्रकाश स्तंभ)
• एटना: इटली कोटोपैक्सी: इक्िेडोर
• माउंट एबवश ु : अंटाकव वटका
• बैरेन द्वीप: अंडमान वनकोबार (भारत) लााँवगला एिं बागाना: पापआ
ु न्द्यू वगनी
• समेरु, मेरापी, दक
ु ोनो, वसनाबंग, अगंगु : इडं ोनेवशया
• मोनालोआ : हिाई द्वीप
• ओजोस डेल सलाडो: अजेंटीना एिं वचली सीमा (दवक्षण अमेररका)
2. सषु प्तु ज्िालामख ु ी (Dormant Volcanoes): ये िे ज्िालामख
ु ी हैं जो िषों से सवक्रय नहीं हैं, परन्द्तु कभी
भी विस्फोट कर सकते हैं।
प्रमख
ु सषु प्तु / प्रसप्तु ज्िालामख
ु ी:
• विसवु ियस: इटली
• फ्यजू ीयामा: जापान
• क्राकाताओ: इडं ोनेवशया
• नारकोंडम द्वीप: अडं मान-वनकोबार
3. मृत / शातं ज्िालामखु ी: ये िे ज्िालामख
ु ी हैं वजनमें िषों से उद्गार नहीं हुआ और न ही भविष्य में सभं ािना
है।
प्रमख
ु मृत/शांत ज्िालामुखी:
• वकवलमंजारो: प.ू अरीका
• माउंट पोपा: मयामं ार
• कोह सल्ु तान: ईरान
• वचमबाराजो: इक्िेडोर
• देिबंद: ईरान
• एकााँकागआ
ु : एंडीज

49
विश्व भगू ोल राज होल्कर
लािा के आिार पर ज्िालामख
ु ी िगीकरण: लािा के आिार पर ज्िालामवु खयों को 4 िगों में विभावजत वकया
जाता है –
1. पीवलयन तुल्य ज्िालामख
ु ी:
• ये सिावविक विनाशकारी होते हैं।
• इनके लािा में वसवलका की मात्रा अविक होती है इसवलए यह लािा गाढ़ा, वचपवचपा एिं अमलीय
होता है।
• इसका उद्गार अत्यविक विस्फोटक होता है।
• इसके उद्गार में वपछले उद्गार के कारण वनवमवत ज्िालामख
ु ी शंकु नि हो जाता है।
• उदाहरण: माउंट पीली (माटीवनक द्वीप), क्राकाताओ (इडं ोनेवशया), माउंट ताल (वफवलपींस)
2. िल्कै वनयन तल्ु य ज्िालामख
ु ी:
• इसका लािा अमलीय से लेकर क्षारीय तक प्रत्येक प्रकार का होता है।
• इस प्रकार के ज्िालामख ु ी उद्गार में गैसों का अत्यविक वनष्कासन होता है इस कारण इस
ज्िालामख ु ी से वनकले ज्िालामख ु ी मेघ फूलगोभी के आकार में दरू तक छाए रहते हैं।
• वप्लवनयन या विसवु ियस प्रकार के ज्िालामख ु ी भी इसी श्रेणी में शावमल वकए जाते हैं।
3. स्ट्रामबोली तल्ु य ज्िालामख ु ी:
• इसके लािा में अमल की मात्रा कम होती है।
• सामान्द्यतः इनमें विस्फोटक उद्गार नहीं होते।
4. हिाईयन तल्ु य ज्िालामख
ु ी:
• इनका लािा तरल एिं क्षारीय होता है।
• इनके उद्गार प्रायः शांत होते हैं।
• इनसे वनकला लािा दरू तक फै लकर जमा होता है एिं शील्ड शंकु का वनमावण करता है।

50
विश्व भगू ोल राज होल्कर
ज्िालामख
ु ी उद्गार के कारण:
1. प्लेट टेक्टोवनक्स: यह दो प्रकार के प्लेट संचलन से उत्पन्द्न होता है –
a. जब दो प्लेट आपस में टकराती है: जब दो प्लेट आपस में टकराती हैं तो भारी प्लेट, हल्की प्लेट के
नीचे क्षेवपत होने लगती है। यह प्लेट नीचे जाकर एण्डेसाइट (हल्की चट्टान) के रूप में पररिवतवत हो जाती
है। यह एण्डेसाइट गब्ु बारों की तरह पृथ्िी के नीचे से ऊपर उठती है तथा ज्िालामख
ु ी का रूप िारण करती
है।

b. जब दो प्लेट एक दसू रे से दरू जाती हैं: जब दो प्लेटें एक-दसू रे से दरू जाती हैं तो इस वक्रया में भ्रंश का
वनमावण होता है। वजस स्थान पर इन दोनों प्लेटों के मध्य भ्रंश का वनमावण होता है उस स्थान पर दाब कम हो
जाता है। अंदर से अविक दाब लगने के कारण उस स्थान पर ज्िालामख ु ी उदगार
् होता है।

2. कमजोर भपू टल: ज्िालामख


ु ी का लािा कमजोर भू-पटल (क्रस्ट) को तोड़कर बाहर आ जाता है।
3. भ-ू गभव में अत्यविक तापमान: यह उच्च तापमान भगू भव में पाए जाने िाले रे वडयोिमी पदाथों के विघटन,
रासायवनक प्रक्रम एिं उच्च दाब के कारण होता है।

ज्िालामख
ु ी वक्रया द्वारा वनवमवत स्थलाकृवतयााँ: ज्िालामखु ी वक्रया से दो प्रकार की स्थलाकृ वतयों का
वनमावण होता है। जो वनमनवलवखत हैं –
1. बाह्य स्थलाकृ वतयााँ [लािा के िरातल के ऊपर जमने से वनवमवत]
2. आतं ररक स्थलाकृ वतयााँ [मैनमा के िरातल के अंदर जमने से वनवमवत]
बाह्य स्थलाकृ वतयााँ: इन स्थलाकृ वतयों में वनमनवलवखत स्थलाकृ वतयों को शावमल वकया जाता है –
1. ज्िालामख ु ी शक ं ु (Volcanic Cone): जब राख एिं लािा जालामुखी के मखु से वनकलकर तथा
बहकर ज्िालामुखी के आस-पास जमा होता है तो एक शंकु का रूप ले लेता है। इसका वनमावण मुख्यतः 3
प्रकार से होता है –
(i) राख शंकु (ii) लािा शंकु
(iii) वमवश्रत शंकु

51
विश्व भगू ोल राज होल्कर
(i) राख शक
ं ु / वसण्डर शक
ं ु (Ash or Cinder Cone):
• विस्फोटीय ज्िालामुखी द्वारा जमा की गयी राख से बनने िाली शंक्िाकार आकृ वत को राख शंकु
कहते हैं।
• इनकी ऊाँ चाई कम होती है तथा वकनारे अितल होते हैं।
• ये शंकु हिाई द्वीप में अविक पाए जाते हैं।
• उदाहरण: पैराक्यवु टन पिवत (मैवक्सको), जोरल्लो पिवत (मैवक्सको) एिं लजु ोन द्वीप (वफलीपींस)

(ii) लािा शक ं ु : इस प्रकार के शंकु का वनमावण अमलीय एिं क्षारीय दोनों प्रकार के लािा से होता है। लािा
शंकु को पनु : दो भागों में विभावजत वकया जाता है –
A. अमलीय लािा शंकु
B. क्षारीय लािा शंकु
A. अमलीय लािा शक
ं ु:
• अमलीय लािा में वसवलका की मात्रा अविक पायी जाती है। इस कारण यह गाढ़ा एिं
वचपवचपा होता है। यह लािा ज्िालामुखी के मख
ु के पास ही ठण्डा होकर जम जाता है।
• इस शंकु में तीव्र ढाल िाले गमु बद का वनमावण होता है।

B. क्षारीय लािा शंकु:

• क्षारीय लािा में वसवलका की मात्रा कम होती है अतः यह पतला लािा होता है जो जालामख
ु ी
के मख ु से दरू तक फै ल कर ठण्डा होकर जमता है।
• इस प्रकार के शंकु की ऊंचाई कम होती है एिं ढाल मंद पाया जाता है।

52
विश्व भगू ोल राज होल्कर
(iii) वमवश्रत ज्िालामखु ी शक ं ु : ये सबसे बड़े एिं सबसे ऊंचे शक
ं ु होते हैं, इनका वनमावण लािा, राख एिं
अन्द्य ज्िालामख ु ी पदाथों द्वारा होता है। उदाहरण: फ्यजू ीयामा (जापान), मेयान (वफलीपींस), रे वनयर
(USA)
2. काल्डेरा (Caldera): ज्िालामुखी वक्रया के समय तीव्र विस्फोट से शंकु का ऊपरी भाग नि हो जाता है या
क्रेटर के नीचे िाँस जाने से काल्डेरा का विकास होता है। िास्ति में यह क्रेटर का ही विस्तृत रूप है।
क्रेटर: ज्िालामख
ु ी के शांत होने के बाद उसके मख
ु पर जब ज्िालामख ु ी ग्रीिा में लािा ठण्डा होकर जम
जाता है तो मखु एक गड्ढे का रूप ले लेता है। यह गड्ढा ही क्रेटर कहलाता है।

3. लािा डॉट एिं ज्िालामख


ु ी ग्रीिा:
• जब ज्िालामुखी उद्गार से वनकलने िाला लािा अत्यविक अमलीय एिं वसवलकायक्त ु होता है तो लािा की
एक कठोर पट्टी ज्िालामुखी नावलका एिं वििर (क्रेटर) में जमा हो जाती है। जब ज्िालामख ु ी शंकु का
क्रेटर लािा से भर जाता है तो इसे ज्िालामुखी प्लग या लािा डॉट कहा जाता है।
• ज्िालामख
ु ी नावलका में जमा हुआ लािा की पट्टीनुमा आकृ वत ज्िालामख
ु ी ग्रीिा कहलाती है।
• लािा डॉट एिं ज्िालामुखी ग्रीिा का समेवकत रूप डायट्रम कहलाता है।
4. ज्िालामख
ु ी पठार:
• इसका वनमावण क्षारीय लािा के जमने से होता है। क्षारीय लािा पतला होता है और बहुत दरू तक फै ल जाता
है। पररणामस्िरूप कम ऊाँ चाई एिं मंद ढलान के उच्च भाग का वनमावण होता है। यह बेसावल्टक लािा
िरातल के ऊपर मोटी परत के रूप में जमा होता जाता है। ये परतें लािा पठार या ट्रैप का वनमावण करती हैं।
• उदाहरण: दक्कन ट्रैप (भारत), कोलंवबया स्नैक पठार (USA), पराना पठार (ब्राजील), ड्रेकेन्द्सबगव पठार
(द. अरीका) एिं िलकै नो-वड-फ्यगू ो (निाटेमाला)
5. ज्िालामख
ु ी पिवत: इसका वनमावण अमलीय लािा के जमने से होता है। अमलीय लािा गाढ़ा एिं वचपवचपा
होता है। यह ज्िालामखु ी मख
ु के पास ही जमकर ठोस बन जाता है पररणामस्िरूप एक उच्च तथा तीव्र ढाल की
स्थलाकृ वत का वनमावण होता है वजसे ज्िालामख
ु ी पिवत कहते हैं।
6. गीजर (Gyser): इनका संबंि ज्िालामख
ु ी वक्रया से होता है। ये गमव जल के ऐसे स्रोत हैं जहााँ से समय-समय
पर गमव जल की फुहारें वनकलती रहती हैं जैसे- ओल्ड फे थफुल गीजर (यलो स्टोन नेशनल पाकव , USA)
7. िआ
ु ाँरे (Fumaroles): ये ज्िालामख
ु ी वक्रया की अंवतम अिस्था के प्रतीक हैं। इनसे गैस एिं जलिाष्प
वनकलता रहता है। उदाहरण: दस हजार िआ
ु ंरों की घाटी (अलास्का, USA), कोह सल्ु तान िंआ
ु रा (ईरान), व्हाइट
द्वीप िआ
ु ंरा (न्द्यजू ीलैंड)

53
विश्व भगू ोल राज होल्कर
आतं ररक स्थलाकृवतयााँ
इन स्थलाकृ वतयों का वनमावण िरातल के अंदर मैनमा के जमकर ठोस हो जाने से होता है। इनमें वनमनवलवखत
स्थलाकृ वतयों को शावमल वकया जाता है –

• बैथोवलथ: यह आननेय चट्टानों का वपण्ड है। यह मैनमा का भण्डार है जो पृथ्िी के अंदर वस्थत होता है। यहीं
से मैनमा ऊपर जाकर ज्िालामुखी के रूप में बाहर वनकलता है।
• लैकोवलथ: ये गंबु दनमु ा अंतभेदी चट्टान हैं जो अन्द्य चट्टानों पर ऊपर की ओर दबाि डालती हैं तथा एक
पठारी भवू म का वनमावण करती हैं। ये आकृ वतयााँ कनावटक के पठार में पायी जाती हैं।
• लैपोवलथ: इसमें मैनमा िरातल के अंदर क्षैवतज रूप में तश्तरीनमु ा आकृ वत में जमा होता है।
• फै कोवलथ: जब चट्टानें मोडदार अिस्था में होती हैं तो मैनमा अपनवत या अवभनवत के तल पर जमा होता है
वजससे इसका वनमावण होता है।
• वसल: मैनमा जब चट्टानों के बीच में क्षैवतज रूप में जमा होता है तो वसल का वनमावण होता है।
• डाइक: जब मैनमा चट्टानों की दरारों में ऊध्िाविर रूप में जमा होता है तो वनवमवत आकृ वत को डाइक कहा
जाता है।

ज्िालामख
ु ी के अंग:

54
विश्व भगू ोल राज होल्कर
ज्िालामख
ु ी का िैवश्वक वितरण:
80 प्रवतशत ज्िालामख ु ी विनाशात्मक प्लेटों के वकनारों पर, 15 प्रवतशत रचनात्मक प्लेटों के वकनारों पर एिं शेष
ज्िालामखु ी प्लेट के आंतररक भागों में पाए जाते हैं।
1. परर-प्रशांत महासागरीय मेखला (Circum Pacific Belt):
• यहााँ विनाशात्मक प्लेटों के वकनारों के सहारे ज्िालामख
ु ी वमलते हैं।
• यहााँ विश्व के ज्िालामवु खयों का लगभग 2/3 भाग वमलता है जो प्रशांत महासागर के दोनों तटीय भागों,
द्वीप चापों एिं समरु ी द्वीपों के सहारे पाया जाता है। इसे प्रशांत महासागर का अवनन िलय (Fire Ring
of the Pacific Ocean) कहा जाता है।
• यह पेटी अंटाकव वटका के माउंट इरे बस (एबवश
ु ) से शुरू होकर दवक्षण अमेररका के एंडीज पिवतमाला
और उ० अमेररका के रॉकी पिवतमाला से होते हुए अलास्का, पिू ी रूप, वफलीपींस आवद के आगे
मध्य महाद्वीपीय पेटी तक विस्तृत है।
2. मध्य महाद्वीपीय पेटी (Mid- Continental Belt):
• इस क्षेत्र में यरू े वशयन प्लेट तथा अरीकन ि इवं डयन प्लेट का अवभसरण होता है।
• इसकी एक शाखा अरीका की भ्रंश घाटी एिं दसू री शाखा स्पेन ि इटली होते हुए काके शस ि वहमालय
की ओर बढ़ते हुए दवक्षण की ओर मडु कर प्रशांत महासागरीय पेटी में वमल जाती है।
• मध्य महाद्वीपीय पेटी मख्ु य रूप से अल्पाइन - वहमालय पिवत श्रृंखला के साथ चलती है।
• भमू ध्य सागर के ज्िालामख
ु ी इसी पेटी के अंतगवत आते हैं। इनमें स्ट्रॉमबोली, विसवु ियस एिं माउंट
एटना प्रमख
ु हैं।
• इसी पेटी में कोह सल्ु तान (ईरान), देमबंद (ईरान) एिं अरारात (अमेवनया), कै मरून पिवत (प. अरीका)
आवद शावमल हैं।
• इस पेटी में भमू ध्य सागर, काके शस, आमेवनया, ईरान, बलोवचस्तान, यनू ान, मयांमार, इडं ोनेवशया एिं
अंडमान शावमल हैं।
3. मध्य अटलांवटक मेखला:
• ये रचनात्मक प्लेट वकनारों के सहारे वमलते हैं। यहााँ दो प्लेटों के अपसरण से भ्रंश का वनमावण होता है
वजससे ज्िालामुखी वक्रया की उत्पवि होती है।
• उदाहरण: हेकला एिं लॉकी (आइसलैंड के ज्िालामुखी), एंटलीज ज्िालामुखी (द. अटलांवटक
महासागर), एजोसव एिं सेंट हेलेना ज्िालामुखी (उ. अटलांवटक महासागर)
4. अरीकन ररफ्ट िैली: यह अरीका के पिू ी भाग में झील प्रदेश लेकर लाल सागर तक फै ली हुई है।

55
विश्व भगू ोल राज होल्कर
विश्व के प्रमख
ु ज्िालामख
ु ी:
ओजेस डेल सलाडो – अजेंटीना एिं वचली माउंट रे वनयर – USA
माउंट शस्ता – USA कोटोपैक्सी – इक्िेडोर
पोपो कै वपटल – मैवक्सको मोनालोआ – हिाई डीप (USA)
माउंट कै मरून – कै मरून (अरीका) माउंट इरे बस – रॉस (अंटाकव वटका)
माउंट एटना – वससली (इटली) माउंट पीली – मावटवनीक द्वीप
हैक्ला एिं लाकी – आइसलैंड विसवु ियस – नेपल्स की खाडी (इटली)
वकवलमंजारो – तंजावनया मेयाना – वफलीपींस
इजाफ जालाजोकुल – आइसलैंड स्ट्रॉमबोली – वलपारी द्वीप (भमू ध्य सागर)
क्राकाताओ – इडं ोनेवशया कटमई – अलास्का (USA)
वचमबाराजो – इक्िेडोर फ्यजू ीयामा – जापान
माउंट ताल – वफलीपींस माउंट वपनाटुिो – वफलीपींस
देिबदं – ईरान कोह सल्ु तान – ईरान
माउंट पोपा – मयामं ार

56
विश्व भगू ोल राज होल्कर
भक
ू मप [Earthquake]
भक
ू मप: पृथ्िी के अंतगवत एिं बवहजावत बलों के कारण ऊजाव का वनष्कासन होता है। यह ऊजाव तरंग उत्पन्द्न करती है
तथा ये तरंगें पृथ्िी पर सभी वदशाओ ं में फै लती हैं तथा कंपन उत्पन्द्न करती हैं। यह कंपन ही भक
ू मप कहलाता है।
भक
ू मप की उत्पवि के कारक: भकू ं प उत्पवि के कारकों को दो भागों में विभावजत वकया जाता है –
1. प्राकृ वतक कारक:
a. ज्िालामख ु ी वक्रया
b. प्लेटों की गवतशीलता
c. संतल ु न स्थापना का प्रयास
d. िलन एिं अंशन
e. प्लटू ोवनक घटनाएं
f. भपू टल (Crust) का संकुचन
g. भगू वभवक गैसों का फै लान
h. प्रत्यास्थ पनु श्चलन वसद्ांत
2. मानिीय कारक:
a. अवस्थर प्रदेशों में सड़क, बािं एिं विशाल जलाशय आवद का वनमावण
b. परमाणु परीक्षण

प्रत्यास्थ पनु श्चलन वसद्ांत (Elastic Rebound Theory): पृथ्िी के वनचले भाग में चट्टानें रबर की भााँवत
लचीली होती हैं। अत: वकसी तनाि या वखंचाि के कारण एक वनवश्चत सीमा तक िीरे -िीरे बढ़ती हैं और एक वनवश्चत
सीमा के पश्चात् टूट जाती हैं। टूटने के पश्चात चट्टानें पनु : अपनी प्रारंवभक वस्थवत में आने का प्रयास करती हैं।
पररणामस्िरूप पृथ्िी में कंपन उत्पन्द्न होता है वजससे भकू मप उत्पन्द्न होता है।
भक
ू ं प मल
ू (Focus): वजस स्थान पर भकू ं पीय तरंगे उत्पन्द्न होती हैं उसे भकू ं प मलू (Focus) कहते हैं।
भक
ू ं प के न्द्र (Epi-centre): वजस स्थान पर सबसे पहले भकू ं पीय तरंगों का अनभु ि वकया जाता है, उसे भकू ं प
के न्द्र कहते हैं। यह भक
ू ं प मल
ू (Focus) के ठीक ऊपर िरातल पर वस्थत होता है।
समघात रे खाएं (Isoseismal Lines): यह भकू ं पीय तरंगों द्वारा उत्पन्द्न समान घात क्षेत्रों ( Places of Equal
Intensity) को वमलाने िाली रे खाएं हैं।

57
विश्व भगू ोल राज होल्कर
भक
ू ं पीय तरंगें: इन्द्हें तीन श्रेवणयों में विभावजत वकया जाता है –
1. प्राथवमक अथिा अनदु ध्ै यव तरंगें (Primary or Longitudinal Waves):
• इन्द्हें ‘P-तरंगें’ भी कहा जाता है।
• ये अनदु ध्ै यव तरंगें होती है एिं ध्िवन तरंगों की भावं त चलती हैं।
• भकू ं पीय तरंगों में सिावविक तीव्र गवत इसी की होती है।
• ये ठोस, तरल एिं गैस सभी माध्यमों से होकर गजु र सकती हैं।
• भक
ू ं प के दौरान िरातल पर सबसे पहले यही तरंगें पहुचं ती हैं।
• इनकी सिावविक गवत ठोस में होती है।
2. अनप्रु स्थ तरंगे (Transverse Waves) या ‘S-तरंग’ें :
• ये प्रकाश तरंगों के समान चलती हैं।
• ये तरंगें के िल ठोस माध्यम में ही चलती हैं।
• तरल माध्यम में ये तरंगे प्रायः विलप्तु हो जाती हैं।
• P - तरंगों की तल
ु ना में इनकी गवत 40 प्रवतशत कम होती है।
• पृथ्िी की क्रोड (Core) में ये तरंगें नहीं गजु र पाती इसी कारण पृथ्िी के क्रोड के तरल होने का अनमु ान
लगाया जाता है।
3. िरातलीय तरंगें (Surface Waves) या ‘L-तरंग'ें :
• ये तरंगें ठोस एिं तरल माध्यम से होकर गजु र सकती हैं।
• ये तरंगें पृथ्िी के ऊपरी भाग को ही प्रभावित करती हैं।
• ये तरंगें अत्यविक प्रभािशाली एिं सिावविक विनाशकारी होती हैं।
• इन तरंगों की गवत बहुत िीमी होती है। ये तरंगें सबसे लंबा मागव तय करती हैं।
• इन तरंगों में कमपन्द्न की गवत सिावविक होती है।

भक
ू मप मापने िाले यंत्र:
• सीस्मोग्राफ: वजन यत्रं ों द्वारा भक
ू मपीय तरंगों की तीव्रता मापी जाती है उन्द्हें सीस्मोग्राफ कहते हैं।
• मरके ली स्के ल: इसके द्वारा भक ू ं प की तीव्रता की माप उसके विनाशकारी प्रभाि के रूप में गुणात्मक मापन
द्वारा मापी जाती है। िैज्ञावनकों ने इस पैमाने को प्रमावणक नहीं माना। इसमें 12 अंक होते हैं।
• ररक्टर स्के ल: इसके द्वारा भकू मप की तीव्रता और पररणाम मापा जाता है। इसमें 1- 9 तक की संख्याएं होती
हैं। इसमें प्रत्येक संख्या अपने पीछे िाली संख्या से 10 गनु ा तेज भक
ू ं प तीव्रता प्रस्ततु करती है।

58
विश्व भगू ोल राज होल्कर
भक
ू मपों का िैवश्वक वितरण:
1. प्रशांत महासागरीय तटीय पेटी (Circum Pacific Belt):
• यह विश्व का सबसे विस्तृत भक
ू मप क्षेत्र है, यहााँ समपणू व विश्व के लगभग 63% भक
ू मप आते हैं।
• इस क्षेत्र में प्रशातं महासागर के चारों ओर के समरु तटीय भाग सवममवलत हैं- वचली, कै वलफॉवनवया,
अलास्का, जापान, वफलीपींस एिं न्द्यजू ीलैंड आवद।
• यहााँ भक
ू मपों की अविकता का कारण प्लेट अवभसरण, निीन िवलत पिवतों का क्षेत्र, ज्िालामख
ु ी
वक्रयाए,ं क्रस्ट के चट्टानी सस्ं तरों में भ्रश
ं न।
2. मध्य महाद्वीपीय पेटी:
• इस पेटी में विश्व के लगभग 21% भक
ू मप आते हैं।
• यह प्लेट अवभसरण का क्षेत्र है। यहााँ आने िाले भक
ू मप भ्रंशमूलक होते हैं।
• यह पेटी के प िडे से आरमभ होकर अटलांवटक महासागर, भूमध्य सागर से आगे बढ़ते हुए आल्पस,
काके शस, वहमालय से होते हुए प्रशांत महासागरीय पेटी में वमल जाती हैं।
• भारत का भक
ू ं पीय क्षेत्र इसी पेटी में शावमल वकया जाता है।
3. मध्य अटलांवटक पेटी:
• यह पेटी मध्य अटलांवटक कटक के सहारे वस्थत है। इस क्षेत्र में प्लेट अपसरण के कारण भ्रंश का
वनमावण होता है वजससे ज्िालामख
ु ी वक्रया होती है तथा भक
ू मप आते हैं।
• इस पेटी के सिावविक भक
ू मप भमू ध्य रे खा के आस-पास आते हैं।
4. अन्द्य क्षेत्र:
• नील नदी से लेकर समपणू व अरीका का पिू ी भाग
• अदन की खाड़ी से अरब सागर तक का क्षेत्र
• वहन्द्द महासागरीय क्षेत्र
अन्द्य महत्िपणू व तथ्य:
• भक
ू मप आने से पहले िायमु ंडल में रे डॉन गैस की मात्रा बढ़ती है।
• भक
ू मप मल
ू (Focus) से वनकलने िाली ऊजाव प्रत्यास्थ ऊजाव होती है।
• समान भक
ू ं प तीव्रता िाले स्थानों को वमलाने िाली रे खाएं आइसो सीस्मल रे खाएं कहलाती हैं।
• 105° और 145° के बीच का क्षेत्र भक
ू मपीय छाया क्षेत्र कहलाता है। इस क्षेत्र में P तथा S तरंगें अनपु वस्थत
होती हैं।

59
विश्व भगू ोल राज होल्कर
अन्द्तजावत एिं बवहजावत बल
अन्द्तजावत बल (Endogenic Force): पृथ्िी के आंतररक भाग से लगने िाले बल को अन्द्तजावत बल कहा
जाता है। इसे रचनात्मक भ-ू संचलन भी कहा जाता है क्योंवक इससे विवभन्द्न स्थलाकृ वतयों का वनमावण होता है।
कारक: भ-ू संचलन, भक
ू मप, ज्िालामुखी एिं भू-स्खलन
बवहजावत बल: यह बल पृथ्िी की सतह के ऊपर कायव करता है एिं अन्द्तजावत बलों द्वारा वनवमवत स्थलाकृ वतयों को
समतल रूप में पररिवतवत करता है।
कारक: अपक्षय, अपरदन, गरुु त्िाकषवण एिं वनक्षेपण

अन्द्तजावत बल

पटल विरूपणी बल आकवस्मक संचलन


(दीघवकावलक
सच
ं लन) भक
ू ंप ज्िालामख
ु ी भ-ू स्खलन

महाद्वीप वनमावणकारी बल पिवत वनमावणकारी बल


(लंबित संचलन) (क्षैवतज सचं लन)

संपीडन तनाि
उपररमख
ु ी अिोमख
ु ी
संचलन िलन भ्रंशन चटखन दरार

दीघवकावलक संचलन [पटल विरूपणी बल]:


• दीघवकावलक सचं लन से विशाल भू-भाग िीरे - िीरे ऊपर उठते हैं या नीचे िाँसते हैं। इसके द्वारा िृहत
स्थलरूपों का सृजन होता है।
• इस बल द्वारा महाद्वीप, पिवत एिं पठारों का वनमावण होता है।
• वदशा के आिार पर यह दो प्रकार का होता है –
1. लबं ित / ऊध्िाविर सचं लन [महाद्वीप वनमावणकारी]
2. क्षैवतज सचं लन [पिवत वनमावणकारी]

60
विश्व भगू ोल राज होल्कर
1. लबं ित / ऊध्िाविर सचं लन (महाद्वीप वनमावणकारी):

• ऊध्िाविर संचलन में भ-ू पृष्ठ का एक विस्तृत क्षेत्र ऊपर- उठता है या नीचे िाँसता है।
• इसमें िलन या मोड की कोई वक्रया नहीं होती।
• इस वक्रया द्वारा महाद्वीप, पठार एिं मैदान का वनमावण होता है।
• भ्रंशोत्थ पिवतों का वनमावण भ्रंशन एिं लंबित संचलन द्वारा होता है।
• पृथ्िी के अन्द्तजावत बलों के ऊध्िाविर लगने के फलस्िरूप क्रस्ट के दो भागों में टूटने से महाद्वीपों का
वनमावण होता है।

2. क्षैवतज संचलन (पिवत वनमावणकारी):

• यह अपेक्षाकृ त छोटे क्षेत्रों में शुरू होता है। इसके द्वारा चट्टानें क्षैवतज वदशा में गवत करती हैं तथा उनमें
अत्यविक मोड आते हैं। कभी-कभी टूटी हुई परतें एक-दसू रे के ऊपर चढ़ जाती हैं।
• क्षैवतज संचलन में दो प्रकार के बल कायव करते हैं –
I. दबाि या संपीडन (Compression)
II. तनाि बल (Tension)
• सपं ीडन एिं तनाि बल दोनों एक दसू रे से संबंवित हैं। इनसे चट्टानों पर दो प्रकार की गवतयााँ उत्पन्द्न
होती हैं – वसकुडन एिं प्रसार
• चट्टानों में वसकुडन आते ही मोड पडने लगते हैं एिं प्रसार के कारण चटकन एिं भ्रंशन होते हैं।
• भ-ू पृष्ठ पर पिवतों का वनमावण संपीडन एिं तनाि बल द्वारा होता है।

61
विश्व भगू ोल राज होल्कर
िलन के प्रकार (Types of Folds): क्षैवतज संचलन द्वारा लगने िाले संपीडन बल के कारण चट्टानों में उत्पन्द्न
होने िाले मडु ाि को िलन (Fold) कहते हैं। इसके वनमनवलवखत प्रकार हैं –
a. समवमत िलन (Symmetrical Fold): इस प्रकार के िलन में िलन की दोनों भजु ाओ ं का झक
ु ाि समान
एिं अक्ष रे खा लमबित होती है।

b. असमवमत िलन (Asymmetrical Fold): िलन की एक भजु ा दसू री भुजा की अपेक्षा कम या अविक
झक
ु ी होती है।

c. एकनत िलन (Monoclinal Fold): इसमें एक भजु ा िरातल से समकोण बनाती है परन्द्तु दसू री भजु ा
सािारण रूप से झक
ु ी हुई होती है।

d. समनत िलन (Isoclinal Fold): िलन की दोनों भजु ाएं एक ही वदशा में झुकी हुई होती है तथा एक दसू रे
के समानान्द्तर हो जाती हैं।

e. पररिलन / शयन िलन (Recumbent Fold): िलन की दोनों भजु ाएं परस्पर समानान्द्तर होती हुई क्षैवतज
वदशा में हो जाती हैं।

62
विश्व भगू ोल राज होल्कर
भ्रंश (Fault): भ-ू संचलन में तनाि बल के कारण चट्टानों में एक तल के सहारे भ्रंश का वनमावण होता है।
भ्रंश सामान्द्यतः चार प्रकार का होता है –
1. सामान्द्य भ्रशं (Normal Fault): इसमें भ्रंश तल के सहारे दोनों ओर के शैलखंड विपरीत वदशा में वखसकते
हैं।
2. व्युत्क्रम भ्रंश: भ्रंश तल के सहारे दो शैलखंड आमने-सामने वखसकते हैं। बाद में एक शैलखंड दसू रे पर चढ़
जाता है।
3. पावश्ववक भ्रशं : भ्रंश तल के सहारे शैल खंडों में क्षैवतज संचलन होने पर पावश्ववक भ्रंश का वनमावण होता है।
4. सोपानी भ्रंश: इसमें समानांतर भ्रंश इस प्रकार पाए जाते हैं वक सभी भ्रंश तलों के ढाल की वदशा समान
होती हैं।
भ्रंशन द्वारा वनवमवत स्थलाकृ वतयााँ: भ्रंशन वक्रया द्वारा वनमनवलवखत स्थलाकृ वतयों का वनमावण होता है –
1. भ्रश
ं घाटी (Rift Valley):
• भ्रशं घाटी का वनमावण तब होता है जब दो भ्रंश रे खाओ ं के बीच के चट्टानी स्तभं नीचे िसं जाते हैं। जब
तनाि बल के कारण दो भख ू ंड विपरीत वदशा में वखसकते हैं तो भ्रश
ं घाटी का वनमावण होता है।
• जॉडवन की भ्रंश घाटी में मृत सागर वस्थत है।
• अरीका में न्द्यासा, रूडोल्फ, टंगावनका, अल्बटव एिं एडिडव झीलें भ्रंश घाटी में वस्थत हैं।
• कै वलफॉवनवया (USA) की मृत घाटी भी भ्रंश घाटी है।
• ऑस्ट्रेवलया की स्पेन्द्सर खाडी, भारत की नमवदा, ताप्ती एिं दामोदर नदी घावटयााँ भ्रंश घाटी के उदाहरण
हैं।
2. रै मप घाटी (Ramp Valley):
रै मप घाटी का वनमावण तब होता है जब दो भ्रंश रे खाओ ं के बीच का स्तंभ यथावस्थवत में ही रहे वकन्द्तु
संपीडनात्मक बल के कारण वकनारे के दोनों स्तंभ ऊपर उठ जाएं। जैसे – ब्रह्मपत्रु घाटी
ब्लॉक पिवत (Block Mountain): जब दो भ्रश ं ों के बीच का स्तभं यथाित रहे एिं वकनारे के स्तभं नीचे
िाँस जाएाँ तब ब्लॉक पिवत का वनमावण होता है। उदाहरण – सतपडु ा (भारत), ब्लैक फॉरे स्ट (जमवनी),
िॉस्जेज पिवत (जमवनी), िासाच रें ज (USA), वसएरा नेिादा (USA) एिं साल्ट रें ज (पावकस्तान)
हॉस्टव पिवत (Horst Mountain): जब दो भ्रश ं ों के वकनारे के स्तभं यथाित रहे एिं बीच का स्तभं ऊपर
उठ जाए तो हॉस्टव पिवत का वनमावण होता है। उदाहरण – जमवनी का हॉजव पिवत

63
विश्व भगू ोल राज होल्कर
बवहजावत बल
• बवहजावत प्रवक्रयाएाँ अपनी ऊजाव सयू व द्वारा प्राप्त ऊजाव एिं अंतजववनत शवक्तयों से उत्पन्द्न (Gradient) से प्राप्त
करती हैं।
• अनाच्छादन (Denudation) के अंतगवत अपक्षय (Weathering), अपरदन, पररिहन एिं िृहत् क्षरण को
वकया जाता है।
अपक्षय (Weathering): चट्टानों के अपने ही स्थान पर कमजोर होने, टूटने, सड़ने तथा विखवण्डत होने को
अपक्षय कहते हैं।
कारक:
1. भौवतक एिं यांवत्रक अपक्षय:
• ताप: यह शष्ु क एिं उष्ण मरुस्थलीय प्रदेशों में अविक होता है। तापांतर के कारण चट्टटानों में फै लने
और वसकुडने से तनाि उत्पन्द्न होता है। इससे बड़ी चट्टानें टुकड़ों में विघवटत हो जाती हैं।
• अपशल्कन (Exfoliation): कुछ चट्टानें ऊष्मा की अच्छी चालक नहीं होती अतः ताप के कारण
उनका ऊपरी भाग अत्यविक गमव हो जाता है और आंतररक भाग ठण्डा बना रहता है। अतः चट्टानों
का ऊपरी भाग प्याज के वछलकों की तरह चट्टान से टूट जाता है।
• तषु ार चीरण / चट्टानों में जल प्रिेश: यह वक्रया मध्य अक्षांशों या अविक ऊाँ चाई पर वस्थत चट्टानों में
होती है। इसमें सिवप्रथम चट्टानों के अंदर जल प्रिेश कर जाता है एिं वहमकरण होने पर जल बफव में
बदल जाता है वजससे जल का आयतन बढ़ जाता है और चट्टानों को देता है।
• दाब मवु क्त: अपरदन के कारण जब ऊपरी चट्टानें हट जाती हैं तो नीचे की चट्टानों को दाब से मवु क्त वमल
जाती है इससे चट्टानों में विसरण होता है और दरारें आ जाती हैं।
• लिण अपक्षय: चट्टानों में नमक तापीय वक्रया, जलयोजन एिं वक्रस्टलीकरण के कारण फै लता है।
सोवडयम, पोटेवशयम, कै वल्सयम आवद लिणों में आयतवनक फै लाि की प्रिृवि होती है। अतः सतह
के उच्च तापमान के कारण ये लिण आयतन में िृवद् करते हैं। इससे चट्टानों में अपक्षय होने लगता है।
2. रासायवनक अपक्षय:
यह अविकतर कोष्ण तथा आरव प्रदेशों में होता है। इसमें ऊष्मा के साथ जल एिं िायु की विद्यमानता
आिश्यक है।
a. जलयोजन (Hydration): खवनज स्ियं जलिाररत करके विस्ताररत हो जाते हैं तथा आयतन में िृवद्
हो जाने के कारण चट्टानों को तोड़ते हैं।

64
विश्व भगू ोल राज होल्कर
b. काबोनीकरण (Carbonation): यह कै वल्सयम यक्त ु चट्टानों में देखी जाती है क्योंवक कै वल्सयम
काबोनेट एिं मैननीवशयम काबोनेट काबववनक एवसड में घल ु जाता है। इस वक्रया द्वारा कास्टव
स्थलाकृ वतयों का वनमावण होता है।
c. ऑक्सीकरण (Oxidation): इस वक्रया में जल तथा िायु में वमली हुई ऑक्सीजन लौहयक्त ु , चट्टानों
को ऑक्साइडों के रूप में बदल देती है और लौह यक्त
ु चट्टानें भरु भरु ी होकर नि हो जाती हैं।
भौवतक अपक्षय एिं रासायवनक अपक्षय में अंतर:
रासायवनक अपक्षय भौवतक अपक्षय
यह उष्ण एिं आरव प्रदेशों में होता है। यह शीत एिं शष्ु क प्रदेशों में होता है।
रासायवनक वक्रया द्वारा शैलों का अपक्षय। भौवतक बल द्वारा चट्टानों का अपक्षय।
चट्टानों में रासायवनक पररितवन आता है। रासायवनक पररितवन नहीं आता।
मख्ु य कारक: ऑक्सीकरण, जलयोजन, मख्ु य कारक : लाप, पाला एिं दाबमवु क्त।
काबोनीकरण एिं विलयन।
इसमें चट्टानें के िल तल पर ही प्रिावहत होती हैं। इसमें चट्टानें एक साथ काफी गहराई तक प्रभावित
होती हैं।

3. जैविक अपक्षय:
• िनस्पवत तथा जीि जन्द्तु चट्टानों के विघटन तथा वियोजन में सहयोग प्रदान करते हैं।
• जैविक अपक्षय के तीन कारक हैं- िनस्पवत, जीि जन्द्तु एिं मानि
• कीडे- मकोड़े तथा वबलकारी प्राणी लगातार िरातलीय चट्टानों को ढीली एिं पोली बनाते हैं वजससे
उनका विघटन आसानी से हो जाता है।
• िनस्पवतयााँ अपनी जडों द्वारा चट्टानों में दरारे पैदा कर अपक्षय में अपनी भवू मका वनभाती हैं।
• मानिीय गवतविवियों जैसे खनन एिं वनमावण कायव, अपक्षय में सहायक होती हैं।

अपरदन (Erosion)
अपक्षय द्वारा प्राप्त पदाथों का अन्द्यत्र स्थानान्द्तरण पररिहन कहा जाता है तथा पररिहन वक्रया में पदाथों का अपक्षय
अपरदन कहलाता है। अपरदन की प्रवक्रयाएं वनमनवलवखत हैं –

• अपघषवण (Abrasion): जब वकसी प्रक्रम द्वारा अपने साथ काँ कड, पत्थर, बालू आवद बहाकर लाए जाते
हैं तो ये कंकड़-पत्थर अपने संपकव में आने िाली चट्टानों का घषवण द्वारा क्षरण करते हैं। यह अपघषवण
कहलाता है।

65
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• सवन्द्नघषवण (Attrition): वकसी प्रक्रम के साथ बहने िाले पदाथव आपस में टकराकर जब टूटते हैं तो यह
वक्रया सवन्द्नघषवण कहलाती है।
• घोलन या संक्षारण (Corosion): घल ु नशील चट्टानें जैसे- चूना पत्थर एिं डोलोमाइट आवद का जलवक्रया
द्वारा घल
ु कर शैल से अलग होना घोलन कहलाता है। यह भवू मगत जल तथा बहते जल द्वारा होता है। इसके
द्वारा कास्टव आकृ वतयों का वनमावण होता है।
• जलगवत वक्रया (Hydraulic Action): जब जल की तीव्र गवत के द्वारा चट्टानों में टूटफूट होती है तो इसे
जलगवत वक्रया कहा जाता है। यह सागरीय लहरों एिं नदी द्वारा होती है।
• जलदाब वक्रया (Water Pressure): जब कोई चट्टान जल के दाब द्वारा टूटती है तो यह जलदाब वक्रया
कहलाती है। यह सागरीय लहरों द्वारा संपन्द्न होती है।
• उत्पाटन (Plucking): जब वहमावनयााँ अपने प्रिाह मागव में पड़ने िाली चट्टानों को तोड़ते हुए आगे बढ़ती
हैं तो यह वक्रया उत्पाटन कहलाती है।
• अपिहन (Deflation): यह पिनों द्वारा होता है। इसमें पिनों द्वारा चट्टानों को तोड़ा जाता है और अपने
साथ बहाकर ले जाया जाता है।
नोट:

• भौवतक अपक्षय को विघटन एिं रासायवनक अपक्षय को वियोजन कहा जाता है।
• अपरदन में अपक्षय एिं पररिहन वक्रया साथ-साथ होती है।

66
विश्व भगू ोल राज होल्कर
स्थलाकृवतयााँ
अपरदन के प्रक्रम: नदी, भवू मगत जल, सागरीय तरंगें, वहमानी, पररवहमानी एिं पिन।
स्थलाकृ वतयों के प्रकार:
A. अपरदनात्मक स्थलाकृ वत
B. वनक्षेपणात्मक स्थलाकृ वत

1. नदी द्वारा वनवमवत स्थलाकृवतयााँ:


A. अपरदनात्मक स्थलाकृ वतयााँ:
• V आकार की घाटी: नदी द्वारा अपनी घाटी में वकये गए ऊध्िाविर कटाि के कारण घाटी पतली, गहरी
और V आकार की हो जाती है। इसमें दीिारों का ढाल तीव्र एिं उिल होता है। आकार के अनसु ार, ये दो
प्रकार के होते हैं –
o गॉजव: यह बहुत गहरी एिं साँकरी घाटी होती है।
o कै वनयन: गॉजव के विस्तृत रूप को कै वनयन कहा है। यह अपेक्षाकृ त खडी ढाल िाली होती है।
• जलप्रपात ि वक्षवप्रकाएं: जब नदी के मागव में कठोर एिं मुलायम चट्टानें अनप्रु स्थ वदशा में अिवस्थत हो
तो कोमल चट्टानों का अपरदन हो जाता है। फलत: नदी की तली ऊबड़-खाबड़ हो जाती है। इस ढाल पर
नदी तीव्र झोंके की तरह आगे बढ़ती है, वजसे वक्षवप्रका (Rapid) कहते हैं।
• जलप्रपात: जब नवदयों का जल ऊंचाई से खडे ढाल से तीव्र िेग से नीचे की ओर वगरता है तो उसे जल
प्रपात कहते हैं। इसका वनमावण चट्टानी संरचना में विषमता के कारण असमान अपरदन, भख
ू ंड में उत्थान,
भ्रंश कगारों के वनमावण आवद के कारण होता है।

• जलगवतवका (Potholes): जब जलप्रपात की तली में कोमल चट्टान आती है तो उसका अपरदन हो
जाता है एिं िहााँ पर छोटा सा एक गतव बन जाता है। नदी को जल इस गतव में भंिर के रूप में घमू ने लगता
है। जो छे दक का कायव करता है।
• नदी-विसपव (Meanders): मैदानी क्षेत्रों में नदी की िारा अविक अिसादी बोझ के कारण दाएं-बाएं
बलखाती प्रिावहत होती है और विसपव बनाती है। विसपव बनने के कारण –

67
विश्व भगू ोल राज होल्कर
o मंद दाल पर बहते जल में तटों पर क्षैवतज या पावश्ववक कटाि करने की प्रिृवत का होना।
o तटों पर जलोढ़ या अवनयवमत ि असंगवठत जमाि वजससे जल के दबाि के कारण नदी पाश्वों का
बढ़ना।
o प्रिावहत जल का कोररयावलसल बल के प्रभाि से विक्षेपण।
• गोखरु झील (Oxbow Lake): जब नदी अपने विसपव को त्यागकर सीिे मागव से प्रिावहत होती हैं।
नदी का अिवशि भाग गोखरु झील बन जाता है।

B. वनक्षेपण द्वारा वनवमवत स्थलाकृ वतयााँ:


• जलोढ़ शक ं ु : जब नवदयााँ पिवतीय भाग से वनकलकर समतल प्रदेश में प्रिेश करती हैं तो चट्टानों के बड़े -
बड़े अिसाद पीछे छूट जाते हैं तथा उनसे बनी आकृ वत जलोद शक ं ु कहलाती है। विवभन्द्न जलोढ शक ं ु ओं
के वमलने पर भाबर प्रदेश का वनमावण होता है।
• जलोढ़ पंख (Alluvial Fans): नदी का जल जलोढ शक ं ु ओ ं को अनेक िाराओ ं द्वारा पार करता है
और तलछट के वनक्षेप द्वारा पंखनमु ा मैदान का वनमावण करता है वजसे जलोढ़ पंख कहते हैं। अनेक जलोढ
पंखों के वमलने से वगररपाद मैदान या तराई प्रदेश का वनमावण होता है।
• गवु मफत नदी (Braided Rivers): वनचली घाटी में नदी की भार िहन की शवक्त बेहद कम हो जाती
है एिं सपाट मैदान वदखाई देता है। भारिहन क्षमता में कमी के कारण नदी अपने तल पर ही वनक्षेषण कर
देती है वजससे उसकी िारा अिरुद् हो जाती है पररणामस्िरूप नदी अब कई शाखाओ ं में बंट जाती है।
अनेक िाराओ ं से यक्त
ु यह नदी गवु मफत नदी कहलाती है।
• प्राकृ वतक तटबंि: नदी में अविक मात्रा में जल आने से उसके वकनारों को पार करके जल बहने लगता
है। इस अिस्था में नदी की पररिहन शवक्त एिं अिसाद दोनों ही अविक हो जाते हैं। इस दौरान नदी के दोनों
वकनारों पर अत्यविक मात्रा में वनक्षेप होने लगता है। वनक्षेपण के पररणामस्िरूप तटबंिों का वनमावण होता
है।
• बाढ़ का मैदान: नदी में अत्यविक जलरावश एिं पररिहन भार बढ़ने से नदी वनमनिती क्षेत्रों में अपने
अिसादों का वनक्षेपण करती है। इस कारण नदी की िारा अिरुद् हो जाती है एिं नदी का जल आस-पास
के मैदानों में फै ल जाता है। यह एक मैदान के समान वदखाई देता है। इसे ही बाढ़ का मैदान कहा जाता है।

68
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• डेल्टा (Delta): वनमनिती मैदानों में ढाल की कमी एिं अिसादों की अविकता के कारण नही की
पररिहन क्षमता कम हो जाती है। इन क्षेत्रों में नदी अपने अिसादों का जमाि करने लगती है। इसे डेल्टा
जैसी आकृ वत के रूप में देखा जा सकता है।
o डेल्टा के प्रकार:
▪ चापाकार डेल्टा (Arcuate Delta): उदाहरण – नील, नाइजर, वसंि,ु इरािदी, िोल्गा,
डेन्द्यबू , पो, गंगा-ब्रह्मपत्रु , मेकांग एिं लीना आवद।
▪ पजं ाकार डेल्टा: उदाहरण – वमसीवसपी एिं वमसौरी नदी।
▪ दन्द्ताकार डेल्टा: उदाहरण – टाइबर (इटली) एिं इब्रो (स्पेन) नदी।
▪ ज्िारनदमख ु डेल्टा (Estuarine Delta): उदाहरण – अमेजन, नमवदा, ताप्ती, सीन, ओब
एिं विश्चल ु ा नदी।

2. भवू मगत जल द्वारा वनवमवत स्थलाकृवतयााँ:


• जब चट्टानें पारगमय, कम सघन, अत्यविक जोड, संवि ि दरारों िाली हो तो िरातलीय जल का अंत:
स्त्रिण (Infilteration) आसानी से होता है।
• भवू मगत जल, चनू ा पत्थर या डोलोमाइट जैसी चट्टानों वजनमें कै वल्सयम काबोनेट की प्रिानता होती है, में
घोलीकरण ि अिक्षेपण द्वारा अनेक स्थल रूपों का विकास करता है। ऐसे स्थलरूपों को कास्टव स्थलाकृ वत
कहा जाता है।
A. अपरदनात्मक स्थलाकृ वतयााँ:
• लैपीज (Lapies): िषाव जलवक्रया द्वारा चट्टानों के कुछ अंश को घल
ु ाकर भूवम के अंदर प्रिेश करता है
तो सतह के ऊपर वमट्टी की एक पतली परत विकवसत हो जाती है वजसे टेरारोसा कहा जाता है। जल की
घल
ु न वक्रया के फलस्िरूप ऊपरी सतह अत्यविक ऊबड-खाबड़ हो जाती है वजसे लैपीज कहा जाता है।
• घोलरंध्र (Sink Holes): चनू ा पत्थर क्षेत्रों में िषाव जल विलयन वक्रया द्वारा चट्टानों की संवियों पर कई
छोटे-छोटे वछरों का वनमावण करता है। इन्द्हें घोलरंध्र कहते हैं।
o विलयन रंध्र (Swallow Holes): जब घोलरंध्रों का आकार बढ़ जाता है।
o डोलाइन (Doline): जब विलयन रंध्रों का आकार बढ़ जाता है।
o युिाला (Uvala): जब डोलाइन वमलकर एक विस्तृत गतव का रूप िारण करते हैं।
o पोल्जे: यह यिु ाला से भी अविक विस्तृत गतव होता है।
• कन्द्दरा (caverns): इसका वनमावण घल ु न वकया तथा अपघषवण द्वारा होता है। यह ऊपरी सतह के नीचे
एक ररक्त स्थान होती है और इसके अंदर वनरंतर जल का प्रिाह होता रहता है।

69
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• अंिी घाटी (Blind Valley): कास्टव प्रदेशों में नवदयों का जल विलयन रंध्रों से नीचे की ओर ररसने
लगता है एिं नवदयों की आगे की घाटी शष्ु क रह जाती है, वजसे शष्ु क घाटी कहते हैं। जबवक घाटी का
वपछला भाग अंिी घाटी कहलाता है।
B. वनक्षेपणात्मक स्थलाकृ वतयााँ:
• स्टेलेक्टाइट (Stalectite): भवू मगत कंदराओ ं में जल के िाष्पीकरण के फलस्िरूप कन्द्दरा के तल एिं
छत पर कै वल्सयम काबोनेट का वनक्षेप होने लगता है। ये वनक्षेप लमबे एिं पतले स्तंभों के रूप में होता है
जो वनक्षेप कन्द्दरा की छत से लटककर तल की ओर बढ़ता है उसे स्टेलेक्टाइट कहा जाता है।
• स्टेलैनमाइट (Stalegmite): ऊपर से टपक रही बाँदू ें जब कन्द्दरा के तल पर वनरंतर वगरती हैं तो उससे
वनवमवत आकृ वत ऊपर की ओर विकवसत होने लगती है वजसे स्टेलैनमाइट कहते हैं।

3. वहमानी (Glaciers) द्वारा वनवमवत स्थलाकृवतयााँ:


पृथ्िी पर परत के रूप में प्रिावहत या पिवतीय ढालों से घावटयों में रै वखक प्रिाह के रूप में बहती वहम संहवत (Mass)
को वहमनद (Glacier) कहते हैं।
A. अपरदनात्मक स्थलाकृ वतयााँ:
• U आकार की घाटी: पिवतों पर पहले से मौजदू नदी घाटी में वहमानी के लंबित् अपरदन से U आकार
की घाटी का वनमावण होता है।
• लटकती घाटी (Hanging Valley): जब वकसी मख्ु य वहमनद से कोई सहायक वहमनद आकर वमलती
है तो सहायक वहमनद की घाटी मख्ु य वहमनद की घाटी पर लटकती सी प्रतीत होती है वजसे लटकती घाटी
कहते हैं।
• वहम गह्वार / सकव (Cirque): जब वकसी पिवतीय भाग से वहमावनयााँ हटती हैं तो िहााँ आरामकुसी की
तरह की आकृ वत बनती है वजसे सकव कहा जाता है।
• एरीट (Arete): वकसी पिवत के दोनों ओर सकव के विकवसत होने से मध्य का भाग अपरवदत हो जाता है।
अपरवदत होकर यह भाग नक
ु ीला हो जाता है वजसे एरीट कहते हैं।
• वगररश्रृंग या हॉनव (Horn): जब वकसी पिवतीय भाग पर चारों ओर से सकव बनने लगते हैं तो बीच का
नक
ु ीला शीषव हॉनव कहलाता है। एिरे स्ट िास्ति में एक हॉनव हैं।
• ननु ाटक (Nunatak): वकसी पिवतीय भाग में वहमाच्छादन के बािजदू चट्टानों के वनकले हुए ऊंचे टीले
ननु ाटक कहलाते हैं।
• भेडवशला/भेडपीठ (Roche Mountanne): वहमानी के मागव में जब कोई बड़ी ऊाँ ची चट्टान
अिरोिक के रूप में आती है तो वहमानी उसके ऊपर से बहने लगती है तथा चढ़ते समय अपघषवण के

70
विश्व भगू ोल राज होल्कर
कारण इसे मन्द्द एिं वचकना कर देती हैं। वकन्द्त,ु विपरीत वदशा की ढाल वजस पर वहमानी उतरती है, को
तोड फोड कर अविक तीव्र ऊबड़-खाबड ढाल बना देती है। ऐसे चट्टानी टीले दरू से देखने पर भेड़ की पीठ
के समान वदखते हैं। अतः इन्द्हें भेडवशला कहते हैं।

B. वनक्षेपणात्मक स्थलाकृ वतयााँ:


• एस्कर: वहमानी-जलोढ के द्वारा वनक्षेवपत स्थान पर सांप की तरह टेढ़ी-मेढ़ी एक स्थलाकृ वत वनवमवत होती
है, वजसे एस्कर कहा जाता है।
• वहमोढ़ (Moraines): ये वहमनद वटल या गोलाश्मी मृवतका के जमाि की लबं ी कट्कें हैं। वहमावनयों
द्वारा अपरवदत ि परिवहत पदाथों का वनक्षेप वहमोढ़ कहलाता है। यह प्राय: उन्द्ही स्थानों पर होता है जहााँ
वहमावनयााँ वपघलकर जल में पररिवतवत होने लगती हैं।
• वटल मैदान: वहमानी द्वारा विस्तृत क्षेत्र में बोल्डर क्ले के वनक्षेपण के फलस्िरूप वटल मैदान का वनमावण
होता है। उिरी अमेररका के प्रेयरी के मैदान वटल मैदान के उदाहरण हैं।
• ड्रमवलन (Drumlin): जब वहमावनयों के तलस्थ वहमोढ का थोडे-थोड़े समय पर गंबु दाकार टीलों के
रूप में जमाि होता है तो उससे बनी स्थलाकृ वतयों को ड्रमवलन कहते हैं। इसका आकार उल्टे नौका के
समान होता है।
• वहम-जलोढ मैदान (Out Wash Plain): वहमनद के वपघलने पर उसका जल कई िाराओ ं में बंट
जाता है एिं डेल्टा के समान िरातल पर एक विशेष प्रकार के मैदान का वनमावण करता है। इसे वहम-जलोढ
मैदान कहते हैं।

4. पिन द्वारा वनवमवत स्थलाकृवतयााँ:


पिन के कायव:

• अपघषवण (Abrasion or Corrosion): अपघषवण द्वारा बालू के कणों से यक्त


ु पिनें चट्टानों को वघसकर
वचकना बना देती हैं।
• अपिाहन (Deflation): इस वक्रया द्वारा पिन असंगवठत चट्टानी कृ णों को उडाकर ले जाती है फलतः
िरातल पर गतों का वनमावण होता है वजन्द्हें िात गतव कहते हैं।
• सवन्द्नघषवण (Attrition): इस वक्रया के द्वारा पिन के साथ उडते हुए रे त के कण परस्पर घषवण द्वारा छोटे हो
जाते हैं।

71
विश्व भगू ोल राज होल्कर
A. अपरदनात्मक स्थलाकृ वतयााँ:
• इन्द्सेलबगव (Inselberg): पिन के प्रभािकारी अपरदन से जब चट्टानी भाग कट-छाँ टकर समतल हो
जाता है और यत्र-तत्र कडे चट्टान टीले के रूप में उभरे रहते हैं। इन गबंु दाकार टीलों को ही इन्द्सेलबगव कहते
हैं।

• यारडागं (Yardang): जब कठोर तथा कोमल चट्टानें लमबित वदशा में एक दसू रे के समानातं र खड़ी हो
तो िायु कोमल चट्टानों का अपरदन कर देती है और कठोर चट्टानें नक
ु ीले स्तंभों के रूप में खड़ी रहती हैं,
इन्द्हें यारडांग कहते हैं।

• ज्यगू ेन (Zeugen): िरातल पर जब कोमल चट्टान के ऊपर कठोर चट्टान क्षैवतज वदशा में वबछी रहती है
तो अपक्षय के कारण ऊपरी चट्टान में दरारें पड़ जाती हैं। पिन की अपरदन वक्रया से ये दरारें बढ़ती जाती
हैं। नीचे की कोमल चहटान को िायु उड़ा ले जाती है। इस प्रकार कोमल चटान के ऊपर कठोर चट्टान मेज
की भााँवत वदखाई देने लगती है, वजसे ज्यगू ेन कहते हैं।

• छत्रक शैल या गारा (Mushroom Rock or Gara): पिन द्वारा अपरवदत शैल के हल्के तथा
बारीक कण अविक ऊंचाई तक उठाए जाते हैं तथा भारी एिं बड़े कण िरातल के साथ घसीटे जाते हैं। बड़े
कण छोटे कणों की अपेक्षा अविक कटाि करते हैं। इससे मरू भवू मयों में खड़ी चट्टान का अपरदन ऊपर की
अपेक्षा नीचे अविक होता है फलस्िरूप एक छतरीनमु ा या कुकुरमिु ानमु ा आकृ वत बन जाती है। इसे छत्रक
शैल या गारा कहते हैं।

72
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• ड्राईकांटर (Dreikanter): भवू म पर वबछे कठोर चट्टानी टुकड़ों पर बलायक्त
ु हिा की चोट पड़ने से
उनका आकार वघसकर वचकना एिं वतकोना हो जाता है। ये वतकोने टुकडे ड्राईकांटर कहलाते हैं।
• िातगतव (Blow-Outs): िनस्पवत विहीन मरुस्थलीय प्रदेशों में तीव्र िेग से चलती हुई िायु में भंिर
उत्पन्द्न हो जाती है और िरातल पर वबछी हुई कोमल तथा असंगवठत शैल को उड़ा ले जाती है फलस्िरूप
बनी तश्तरीनमु ा आकृ वत ही िातगतव कहलाती है।
• जालीदार वशला (Stone Lattice): जन तीव्र गवत से चलने िाली पिन के मागव में विविितापणू व
सरं चना िाली चट्टान उपवस्थत होती है तो उसके कोमल भागों को काटकर पिन आर-पार प्रिावहत होने
लगती है वजससे िह चट्टान जाली के समान वदखाई पड़ने लगती है। यही जालीदार वशला कहलाती है।
B. वनक्षेपणात्मक स्थलाकृ वतयााँ:
• बालक ु ा स्तपू (Sand Dunes): ऐसे टीले जो हिा द्वारा उडाकर लायी गयी रे त आवद पदाथों के जमान
से बनते हैं, बालक ु ा स्तपू कहलाते हैं। ये पिन की वदशा में वखसकते या स्थानांतररत होते रहते हैं।
बरखान (Barkhan): बरखान एक विशेष आकृ वत िाला बालू का टीला होता है वजसका अग्र भाग अद्व
चन्द्राकार होता है और उसके दोनों छोरों पर आगे की ओर एक-एक सींग जैसी आकृ वत वनकली रहती है।
आगे िाले पिनविमख ु ढाल तीव्र होते हैं। इसके विपरीत पिनमख ु ढाल उिल एिं मंद होते हैं।

• लोएस (Loess): मरुस्थलीय क्षेत्रों के बाहर पिन द्वारा उडाकर लाए गए महीन बालकू णों के िृहत् वनक्षेप
को लोएस कहते हैं। इसकी वमट्टी जल वमलने पर अत्यंत उपजाऊ हो जाती है। चीन के उिरी मैदान में लोएस
वमट्टी वमलती है जो गोबी मरुस्थल से उड़कर पहुचाँ ी है। ऑक्सीकरण के कारण इसका रंग पीला होता है।
• पेडीमेंट (Pediment): मरूस्थलीय प्रदेशों में वकसी पिवत, पठार या इसं ेलबगव के पदीय प्रदेशों में वमलने
िाले सामान्द्य ढालयक्त
ु अपरवदत शैल सतह िाले मैदान को पीडमेंट/पेडीमेंट कहते हैं।
• प्लाया (Playa): मरुस्थल की अतं ःप्रिावहत नवदयााँ िषाव के बाद अस्थायी झीलों का वनमावण करती हैं
वजन्द्हें प्लाया कहते हैं। खारे जल के प्लाया को सैलीनास कहते हैं।
• बजाड़ा (Bajada): इसका वनमावण पेडीमेंट के नीचे तथा प्लाया के वकनारों पर जलोढ पंखों के वमलने से
होता है।

73
विश्व भगू ोल राज होल्कर
5. सागरीय जल द्वारा वनवमवत स्थलाकृवतयााँ:
A. अपरदनात्मक स्थलाकृ वतयााँ:
• तटीय कगार या भृगु (coastal cliff): जब समरु तट वबल्कुल खड़ा हो उसे भृगु कहते हैं।
• तटीय कन्द्दरा (Coastal Caves): तटीय चट्टानों के बीच में जहााँ संवियााँ, भ्रंश ि कमजोर चट्टान वमलते
हैं, िहााँ सागरीय तरंगे तेजी से अपरदन करती हैं वजससे िहााँ तटीय कन्द्दरा का वनमावण होता है।
• स्टैक (Stack): कन्द्दराओ ं के वमलने से बने प्राकृ वतक मेहराबों की प्रकृ वत अस्थायी होती है। इस मेहराब
के ध्िस्त होने के बाद चट्टान का जो भाग समरु जल में स्तंभ के समान शेष रह जाता है, उसे स्टैक कहते
हैं।

• तट रे खा (Coast Line): समरु तट और समरु ी वकनारे के मध्य की सीमा रे खा को तटरे खा कहते हैं।
समरु ी तट पर अविक अिरोिी चट्टानों से अंतरीप (Cape) तथा कम अिरोिी चट्टानों से खावड़यों (Gulf
& Bays) का वनमावण होता है।
तटरे खाओ ं के प्रकार:
o वफयाडव तट: वकसी वहमानीकृ त उच्च भवू म के सागरीय जल के नीचे अंशतः िंस जाने से वफयडव
तट का वनमावण होता है। इनके वकनारे , खड़ी दीिार के समान होते हैं। नॉिे का तट वफयडव तट का
सन्द्ु दर उदाहरण है।
o ररया तट: नवदयों द्वारा अपरवदत उच्च भवू म के िंस जाने से ररया तट का वनमावण होता है। ये V
आकार की घाटी तथा ढलएु वकनारे िाली होती है। उदाहरण- प्रायद्वीपीय भारत के पवश्चमी तट का
उिरी भाग।
o डॉल्मेवशयन तट: समानान्द्तर पिवतीय कटकों िाले तटों के िसं ाि से डॉल्मेवशयन तट का वनमावण
होता है। उदाहरण- यूगोस्लाविया का डॉल्मेवशयन तट
o हैफा तट या वनमनन वनमन भवू म का तट: सागरीय तटीय भाग में वकसी वनमन भवू म के डूब जाने से
वनवमवत तट। यह तट कटा- फंटा नहीं होता तथा इस पर घावटयों का अभाि पाया जाता है। इस पर
रोविकाओ ं की समानान्द्तर श्रृंखला वमलती है वजससे सागरीय जल वघरकर लैगनू झीलों का वनमावण
करता है। उदाहरण- यरू ोप का बावल्टक तट।

74
विश्व भगू ोल राज होल्कर
o वनगवत समरु तट: स्थलखंड के ऊपर उठने से या समरु ी जलस्तर के नीचे वगरने से वनगवत समुर तट
का वनमावण होता है। इस प्रकार के तट पर वस्पट, लैगनू , पवु लन, वक्लफ तथा मेहराब वमलते हैं।
उदाहरण- गुजरात का कावठयािाड़ तट

वनक्षेपणात्मक स्थलाकृवतयााँ:
• पवु लन (Beach): तटीय भागों में भाटा जलस्तर और समुरी तट रे खा के मध्य बाल,ू बजरी, गोलाश्म
आवद पदाथों के अस्थायी जमाि से वनवमवत आकृ वत
• रोविका (Bars): तरंगों तथा िाराओ ं द्वारा वनक्षेप के कारण वनवमवत बािं को रोविका कहते हैं। तट के
समानान्द्तर बनी रोविका को अपतट रोविका एिं वकसी द्वीप के चारों ओर बनी रोविका को लपू रोविका
कहते हैं।
• संयोजक रोविका: दो सदु रू िती तटों या वकसी द्वीप को तटों से जोड़ने िाली रोविका को संयोजक रोविका
कहते हैं। जब इसके दोनों छोर स्थल भाग से वमल जाते हैं तो उनके द्वारा वघरे हुए क्षेत्र में समरु ी खारे जल
िाली लैगनू झील का वनमावण होता है। उदाहरण- वचल्का झील, पवु लकट झील एिं बेमिनाद झील।
o तट से वकसी द्वीप को वमलाने िाली संयोजक रोविका टोमबोलो (Tombolo) कहलाती है।

75
विश्व भगू ोल राज होल्कर
महासागरीय जल िाराएं

महासागरीय िारा: एक वनवश्चत वदशा में महासागरीय जल के प्रिावहत होने की सामान्द्य गवत को महासागरीय िारा
(Ocean Current) कहते हैं।
जलिाराओ ं की उत्पवि के कारक:
• पृथ्िी की पररभ्रमण गवत (Rotation of Earth): सागरीय िाराओ ं का प्रिाह प्राय: गोलाकार होता है।
इसका कारण पृथ्िी का घणू वन है। पृथ्िी की पररभ्रमण गवत के कारण जल पृथ्िी की घणू वन वदशा के विपरीत
वदशा में गवत करता है। भमू ध्य रे खीय िारा की उत्पवि पृथ्िी की पररभ्रमण गवत के कारण हुई है। पृथ्िी की
पररभ्रमण गवत के कारण ही सागरीय िाराएं उिरी गोलाद्व में दायीं ओर तथा दवक्षणी गोलाद्व में बायीं ओर
मड़ु जाती हैं।
• िायदु ाब (Air Pressure): जहााँ िायदु ाब अविक होता है िहााँ जल का तल नीचे रहता है तथा कम
िायदु ाब िाले क्षेत्रों में जल का तल ऊपर रहता है। ऊाँ चे जल तल से नीचे जल तल की ओर जल िाराएं
प्रिावहत होती हैं। इस प्रकार जलिाराओ ं की उत्पवि होती है।
• प्रचवलत पिनें (Prevailing Winds): सागरों के ऊपर चलने िाली पिनें अपने साथ जल को बहाकर ले
जाती हैं। स्थायी पिनें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से िाराओ ं को जन्द्म देती है। विश्व की अविकांश िाराएं
प्रचवलत पिनों का अनगु मन करती हैं।
• तापमान में वभन्द्नता: तापमान अविक होने पर जल का घनत्ि कम होता है तथा तापमान कम होने पर घनत्ि
बढ़ जाता है। भारी जल संकुवचत होकर नीचे बैठ जाता है, जबवक हल्का जल प्रसाररत होता है।
पररणामस्िरूप गमव जलिाराएं ठण्डे प्रदेशों की ओर तथा ठण्डी जलिाराएं गमव प्रदेशों की ओर प्रिावहत
होती हैं।
• लिणता में वभन्द्नता: लिणता कम होने से घनत्ि कम होता है तथा लिणता में िृवद् से जल के घनत्ि में
िृवद् होती है। जल का प्रिाह कम घनत्ि के स्थानों से अविक घनत्ि के स्थानों की ओर होता है।
• िाष्पीकरण एिं िषाव: अविक िाष्पीकरण िाले सागरों में जल तल नीचे रहता है जबवक अविक िषाव िाले
सागरों में जल तल ऊपर रहता है। िाराओ ं का प्रिाह ऊंचे जल तल से नीचे जल तल की ओर होता है।
• महाद्वीपीय तटीय बािाए:ं महाद्वीपों के तट िारा एिं उसके प्रिाह की वदशा दोनों को प्रभावित करते हैं।

76
विश्व भगू ोल राज होल्कर
विश्व की प्रमख
ु सागरीय जलिाराएाँ
1. अटलांवटक महासागर की िाराएं
A. उिरी अटलावं टक महासागर की िाराए:ं

• उिरी विषिु त रे खीय िारा (गमव) कै ररवबयन िारा (गमव)


• एटं ीलीज िारा (गमव) फ्लोररडा की िारा (गमव)
• गल्फ स्ट्रीम िारा (गमव) नॉिे की िारा (गमव)
• रे नेल की िारा (ठण्डी) लेब्राडोर की िारा (ठण्डी)
• कनारी की िारा (ठण्डी)
B. दवक्षण अटलांवटक महासागर की िाराए:ं

• दवक्षण विषिु त रे खीय िारा (गमव) ब्राजील की िारा (गमव)


• वगनी तट की िारा (गमव) फॉकलैंड की िारा (ठण्डी)
• बेंगल
ु ा की िारा (ठण्डी)

2. प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) की िाराएं


A. उिरी प्रशातं महासागर की िाराए:ं

• उिरी विषिु तरे खीय िारा (गमव) क्यरू ोवशयो की िारा (गमव)
• अलास्का की िारा (गमव) कै वलफॉवनवया की िारा (ठण्डी)
• ओखाटस्क की िारा (ठण्डी) ओयावशयो की िारा (ठण्डी)
B. दवक्षणी प्रशातं महासागर की िाराए:ं

• दवक्षणी विषिु त रे खीय िारा (गमव) पिू ी ऑस्ट्रेवलया की िारा (गमव)


• पेरू या हमबोल्ट की िारा (ठण्डी) एलनीनो की िारा (गमव)
• लावननो की िारा (ठण्डी) के वल्िन िारा (गमव)

77
विश्व भगू ोल राज होल्कर
3. वहन्द्द महासागर की िाराएं
A. उिरी वहन्द्द महासागर की िाराए:ं

• उिरी विषिु तरे खीय िारा (गमव) द.प. मानसनू ी िारा (गमव)
• प्रवतविषिु त रे खीय िारा (गमव) उ.प.ू मानसनू ी िारा (गमव)
B. दवक्षण वहन्द्द महासागर की िाराए:ं

• दवक्षणी विषिु त रे खीय िारा (गमव) मोजावमबक की िारा (गमव)


• मेडागास्कर की िारा (गमव) पवश्चम ऑस्ट्रेवलया की िारा (ठण्डी)
विश्व की प्रमख
ु जलिाराएं
गमव जलिारा ठण्डी जलिारा
क्यरू ोवशयो की िारा रे नेल की िारा
एंटीलीज िारा कनारी की िारा
गल्फ स्ट्रीम िारा लेब्राडोर की िारा
कै ररवबयन िारा बेंगलु ा की िारा
फ्लोररडा की िारा फॉकलैंड की िारा
नॉिे की िारा कै वलफॉवनवया की िारा
एलनीनो की िारा ओखाटस्क की िारा
वगनी तट की िारा ओयावशयो की िारा
ब्राजील की िारा पेरू या हमबोल्ट की िारा
के वल्िन िारा लावननो की िारा
मोजावमबक की िारा
मेडागास्कर की िारा
अलास्का की िारा

78
विश्व भगू ोल राज होल्कर
महासागरीय तापमान
महासागरीय तापमान को वनिावररत करने िाले कारक:
• सयू ावताप की मात्रा सागरीय जल का घनत्ि
• िाष्पीकरण एिं सघं नन ऊष्मा सतं ल
ु न
• स्थानीय मौसमी दशाएं सागरीय जल की लिणता
सागरीय तापमान को प्रभावित करने िाले घटक: [सतह पर]
• अक्षांशीय वस्थवत प्रचवलत पिनें
• महाद्वीपीय स्थलखंड महासागरीय िाराएं
अन्द्य महत्िपणू व तथ्य:
• महासागरीय जल की सतह का औसत दैवनक तापान्द्तर लगभग नगण्य (1°C या इससे कम) होता है।
• महासागरीय सतह के जल का उच्चतम तापमान 2 बजे अपराह्न एिं न्द्यनू तम तापमान 5 बजे प्रातः अंवकत
वकया जाता है।
• स्थल से वघरे छोटे सागरों में िावषवक तापान्द्तर अविक होता है।
• विषिु त रे खा से ध्रिु ों की ओर जाने पर सागरीय जल का तापमान घटता है।
• सबसे अविक तापमान स्थल भाग से वघरे सागरों का होता है।
• व्यापाररक पिनों के कारण उष्ण कवटबंिों में महासागर के पवश्चमी भाग अविक गमव होते हैं।
• पछुआ पिनों के कारण महासागरों के पिू ी भाग अविक गमव होते हैं।
• समरु में गहराई बढ़ने के साथ तापमान में कमी आती है।
• महासागरों का तापमान (गहराई में) उष्ण कवटबन्द्िों तथा ध्रिु ों पर समान होता है।
• उच्च अक्षांशों में सागरीय तापमान व्यत्ु क्रम वमलता है अथावत सतह का तापमान कम एिं गहराई में अविक
होता है। इसका प्रमख ु कारण इन अक्षांशों में स्िच्छ जल की अविक प्रावप्त है।

79
विश्व भगू ोल राज होल्कर
महासागरीय लिणता
लिणता:
• सागरीय जल के भार एिं उसमें घल
ु े पदाथों के भार का अनपु ात ही सागरीय लिणता है।
• सागरीय लिणता की मात्रा प्रवत हजार ग्राम जल में घल
ु े लिण की मात्रा के रूप में दशावया जाता है। [x ०/॰॰ ]
• समान लिणता िाले स्थानों को वमलाने िाली रे खा समलिण रे खा (Isohaline) कहलाती है।
• सागर की लिणता का मापन सैलीनोनैक्टर (Salinonactor) यंत्र द्वारा वकया जाता है।
सागरीय जल में पाए जाने िाले लिण:
• सोवडयम क्लोराइड: 77.8% मैननीवशयम क्लोराइड 10.9%
• मैननीवशयम सल्फे ट: 4.7% कै वल्सयम सल्फे ट: 3.6%
अन्द्य लिण: पोटेवशयम सल्फे ट, कै वल्सयम काबोनेट एिं मैननीवशयम ब्रोमाइड

• महासागरों की औसत लिणता 35 ०/॰॰ होती है।


• नवदयााँ लिणता को सागरों तक पहुचाँ ाने िाले कारकों में सिवप्रमख
ु हैं परन्द्तु नवदयों द्वारा लाए गए लिणों में
कै वल्सयम की मात्रा 60% होती है। नवदयों के जल में सोवडयम क्लोराइड के िल 2% होता है।
सिावविक लिणता िाले क्षेत्र:
• लेक िॉन सील: 330 ०/॰॰ (तक
ु ी) मृत सागर: 238 ०/॰॰ (जॉडवन)
• ग्रेट सॉल्ट लेक: 220 ०/॰॰ (अमेररका)
लिणता की मात्रा को वनयवं त्रत करने िाले कारक
A. लिणता में िृवद् करने िाले कारक:
• उच्च तापमान िषाव का अभाि
• िाष्पीकरण की तीव्र गवत समरु ी िाराएं ि लहरें
• अत्यविक गमव एिं शष्ु क पिन
• स्िच्छ एिं स्पि आकाश
B. लिणता कम करने िाले कारक:
• वनमन तापमान (अपिाद: भमू ध्य रे खा) सागरीय िाराएं
• ठण्डी पिनें िाष्पीकरण की गवत मन्द्द
• नदी जल की अविक मात्रा अत्यविक िषाव

80
विश्व भगू ोल राज होल्कर
लिणता का वितरण:
सिावविक लिणता:

• उिरी गोलाद्व में: 20°- 40° अक्षांशों के मध्य


• दवक्षणी गोलाद्ों में: 10°- 30° अक्षांशों के मध्य
नोट: भमू ध्य रे खा के आस पास के क्षेत्रों में लिणता अविक होनी चावहए क्योंवक िाष्पीकरण की दर अविक है वकन्द्तु
इस क्षेत्र में िषाव की मात्रा अविक होने के कारण लिणता कम है।
लिणता में वभन्द्नता के कारण: स्िच्छ जल आपवू तव, िषाव की मात्रा, िाष्पीकरण की दर, सागरीय िाराएं, पिनें एिं
समरु ी जीि
सागरीय लिणता के स्त्रोत:

• नवदयााँ पिनें
• सागरीय लहरें ज्िालामख
ु ी वक्रया

81
विश्व भगू ोल राज होल्कर
िायमु ण्डल (Atmosphere)
िायमु ण्डल का संघटन
• िायमु ण्डल अनेक गैसों का वमश्रण है वजसमें ठोस एिं तरल कण भी पाए जाते हैं।
• िायु रंगहीन, गिं हीन एिं स्िादहीन है।
• िायमु ण्डल का 99% भाग भपू ष्ठृ से 32 वकमी. की ऊाँ चाई तक सीवमत है।
• पहले िायमु ण्डल की ऊाँ चाई 800 वकमी. तक मानी जाती थी परन्द्तु निीनतम खोजों के अनसु ार िायमु ण्डल
की ऊाँ चाई 32000 वकमी. है।
• िायमु ण्डल की कोई ऊपरी सीमा नहीं है।
िायमु ण्डल में विद्यमान गैसों की मात्रा
• नाइट्रोजन (N2): 78.08% ऑक्सीजन (O2): 20.94%
• ऑगवन (Ar): 0.93% काबवन डाई ऑक्साइड (CO2): 0.03%
• वनयॉन (Ne): 0.0018% हीवलयम (He): 0.0005%
• ओजोन (O3): 0.00006% हाइड्रोजन (H): 0.00005%
• अन्द्य गैसें: मीथेन (CH4), वक्रप्टोन एिं जीनॉन
नाइट्रोजन (N2):
• इसकी उपवस्थवत के कारण िायदु ाब, पिनों की शवक्त तथा प्रकाश के पराितवन का आभास होता है।
• इस गैस का कोई रंग, गंि एिं स्िाद नहीं होता।
• यह िस्तओ
ु ं को तेजी से जलने से बचाती है इससे आग पर वनयंत्रण रहता है।
• नाइट्रोजन से पेड-पौिों में प्रोटीन का वनमावण होता है।
• यह िायमु ंडल में 128 वकमी. की ऊाँ चाई तक फै ली हुई है।
ऑक्सीजन (O2):
• यह जीिनदायी गैस है जो श्वसन वक्रया में काम आती है।
• ऑक्सीजन के अभाि में ईिन
ं नहीं जलाया जा सकता।
• यह िायमु ंडल में 64 वकमी. तक है परन्द्तु 16 वकमी. के ऊपर यह बहुत कम है।

82
विश्व भगू ोल राज होल्कर
काबवन डाई ऑक्साइड (CO2):
• यह एक भारी गैस है इसवलए िायमु ंडल की वनचली परत में ही वमलती है।
• यह पेड़-पौिों के वलए प्रकाश संश्लेषण में आिश्यक गैस है।
• यह सयू व से आने िाली विवकरणों के वलए पारगमय तथा पृथ्िी की पावथवि विवकरणों के वलए अपारगमय गैस
है इस प्रकार यह हररत गृह प्रभाि के वलए उिरदायी है।
• यह िायमु ण्डल की वनचली परत को गमव रखती है।
हाइड्रोजन:
• यह एक हल्की गैस है जो लगभग 1100 वकमी. की ऊंचाई तक पायी जाती है।
ओजोन:
• यह ऑक्सीजन का ही एक विशेष रूप है जो िायुमण्डल में ऊाँ चाई पर अवत न्द्यनू मात्रा में पायी जाती है।
• यह गैस समताप मण्डल (Stratosphere) के वनचले भाग में पायी जाती है।
• यह सयू व से आने िाली पराबैंगनी वकरणों को अिशोवषत करती है तथा पृथ्िी के वलए एक सरु क्षा किच का
कायव करती है।
जलिाष्प (Water Vapour):
• यह जलिायु को सिावविक प्रभावित करता है।
• ऊाँ चाई बढ़ने के साथ जलिाष्प की मात्रा घटती जाती है।
• जलिाष्प सयू व से आने िाले सयू ावतप के कुछ भाग को अिशोवषत करता है तथा पृथ्िी द्वारा विवकररत ऊष्मा
को सजं ोये रखता है इस प्रकार यह एक कंबल का काम करता है वजससे पृथ्िी न तो अविक गमव न अविक
ठण्डी होती है।
• यह िषाव करिाने के वलए उिरदायी होता है।
िल
ू के कण:
• िल
ू के कण प्रायः िायमु ण्डल की वनचली परतों में पाये जाते हैं।
• अविकाश
ं िल ू कण आरवताग्राही बनकर बादलों के वनमावण में भाग लेते हैं।
• िल
ू कण सयू व की वकरणों को परािवतवत करते हैं।
• आकाश का नीला रंग िल
ू कणों की उपवस्थवत के कारण होता है।
• सयू ोदय एिं सयू ावस्त के समय आकाश में लाल और नारंगी रंग का प्रकाश िल
ू कणों की उपवस्थवत के
कारण वदखायी पडता है।

83
विश्व भगू ोल राज होल्कर
िायमु ण्डल की सरं चना
िायमु ण्डल को पााँच मख्ु य परतों में बााँट सकते हैं –
1. क्षोभमण्डल (Troposphere)
2. समताप मण्डल (Stratosphere)
3. मध्यमण्डल (Mesosphere)
4. आयनमण्डल (Ionosphere)
5. बवहमवण्डल (Exosphere)

क्षोभ मण्डल (Troposphere)


• यह िायमु ंडल की सबसे वनचली परत है।
• विषिु त रे खा पर इसकी ऊाँ चाई 18 वकमी. एिं ध्रिु ों पर ऊाँ चाई 8 वकमी है। इसका कारण सिं हनीय िाराएं
हैं जो भमू ध्य रे खा पर उपवस्थत हैं।
• इस मण्डल में ऊाँ चाई बढ़ने पर तापमान में वगरािट आती है।
• सामान्द्य ह्रास दर (Normal Lapse Rate): 165 मी. की ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान में 1°C की कमी
आती है यही सामान्द्य ह्रास दर कहलाती है।
• सिं हनीय िाराओ ं की उपवस्थवत के कारण वकसी भी अक्षांश पर क्षोभमण्डल की ऊाँ चाई शीत ऋतु की
अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में अविक होती है।
• ऋतु तथा मौसम संबंिी सभी घटनाएाँ जैसे- बादल, िषाव, आाँिी, तफ
ू ान आवद क्षोभमण्डल में होती हैं।
• क्षोभ सीमा: यह 1.5 वकमी. मोटी अस्थायी परत है। इस परत में िायमु ण्डल के तापमान का वगरना बंद हो
जाता है। क्षोभमण्डल की हिा एिं संिहनीय िाराएं चलना बंद हो जाती हैं।

84
विश्व भगू ोल राज होल्कर
समताप मंडल (Stratosphere)
• यह परत क्षोभ सीमा के ऊपर से शरू
ु होती है एिं पृथ्िी से 50 वकमी. तक की ऊाँ चाई तक विस्तृत है।
• इसकी मोटाई भमू ध्य रे खा पर कम तथा ध्रिु ों पर अविक होती है। (कारण: ध्रिु ों पर क्षोभमण्डल के िल 8
वकमी. तक की ऊंचाई पर ही है अतः ध्रिु ों पर समताप मंडल की ऊंचाई क्षोभसीमा से (50 – 8 = 42
वकमी.) ऊाँ ची होगी।
• समताप मंडल में ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान में िृवद् होती है। यह तापमान में िृवद् ओजोन गैस की
उपवस्थवत के कारण होती है।
• समताप मडं ल में िायु सैवतज वदशा में प्रिावहत होती है।
• िायु के क्षैवतज प्रिाह एिं मौसमी पररघटनाओ ं के शातं रहने के कारण िाययु ान समताप मण्डल में उड़ते हैं।
• समताप सीमा: यह समताप मण्डल की बाहरी सीमा है यहााँ ओजोन गैस अत्यविक मात्रा में पायी जाती है।
मध्य मण्डल (Mesosphere)
• यह समताप मण्डल के ऊपर वस्थत है इसका विस्तार 80 वकमी. तक है।
• इस मण्डल में ऊाँ चाई बढ़ने के साथ तापमान में वगरािट आती है।
आयनमण्डल (Ionosphere)
• मध्य मण्डल के ऊपर 400 वकमी. की ऊाँ चाई तक आयन मण्डल पाया जाता है।
• आयन मण्डल में उपवस्थत गैसों के कण विद्यतु आिेवशत होते हैं।
• िायमु ण्डल की इस परत द्वारा रे वडयो तरंगों को परािवतवत वकया जाता है।
• आयनमण्डल में ऊाँ चाई में िृवद् के साथ तापमान में भी िृवद् होती है। इसका कारण िायु के कणों का विद्यतु
आिेवशत होना है।
• आयन मण्डल को 4 छोटी परतों में बााँटा जाता है –
o D-Layer: यह 60-99 वकमी. के बीच वस्थत है। इस परत से रे वडयो तरंगों की दीघव तरंगदैध्यव
िाली तरंगों का पराितवन होता है।
o E-Layer: इस परत से रे वडयो तरंगों की मध्यम तरंगदैध्यव िाली तरंगों का पराितवन होता है।
o F-Layer: इस परत से रे वडयो तरंगों की लघु तरंगदैध्यव िाली तरंगों का पराितवन होता है।
o G-Layer: इस परत से सभी प्रकार की रे वडयो तरंगे परािवतवत हो सकती हैं।

85
विश्व भगू ोल राज होल्कर
बवहमवण्डल (Exosphere)
• यह िायमु ण्डल की सबसे ऊपरी परत है।
• यहााँ िायु बहुत विरल होती है एिं िीरे -िीरे अंतररक्ष में विलीन हो जाती है।
• इस मण्डल में हाइड्रोजन एिं हीवलयम जैसी हल्की गैसें पायी जाती हैं।
• इस मण्डल में कृ वत्रम उपग्रह स्थावपत वकये जाते हैं।

सयू ावतप (Insolation)


सयू ावतप (Insolation):
• पृथ्िी की सतह पर आने िाली सौर विवकरण को सयू ावतप कहते हैं।
• सौर विवकरण लघु तरंगों के रूप में पृथ्िी तक पहुचाँ ती हैं।
• सयू ावतप (सौर विवकरण) से 2 कै लोरी प्रवत िगव सेमी. प्रवत वमनट की दर में पृथ्िी का िरातल ऊजाव प्राप्त
करता है।
• सौर विवकररत ऊजाव का 51% पृथ्िी के िरातल पर पहुचाँ ता है।
सयू ावतप को प्रभावित करने िाले तत्ि:
• सयू व की वकरणों का आपतन कोण वदन की लबं ाई अपना िपू की अिवि
• िायमु ण्डल की पारगमयता विषिु त रे खा से दरू ी
तापमान में विषमता के कारण:
a. अक्षांशीय वितरण: उष्ण कवटबंिीय प्रदेशों में सयू ावतप की मात्रा सिावविक होती है तथा ििु ों की ओर
क्रमश: इसकी मात्रा कम होती जाती है।
b. ऊाँचाई: ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान में वगरािट आती है।
c. स्थल एिं जल का प्रभाि: जल देर से गमव एिं देर से ठण्डा होता है। अतः जल का तापान्द्तर कम होता है।
जबवक स्थल जल्दी गमव एिं जल्दी ठण्डा होता है। इस कारण ही महासागरों की अपेक्षा स्थलखंडों पर
तापान्द्तर अविक होता है।
d. समरु ी िाराए:ं गमव जल िाराएं समरु तटीय भागों के तापमान में िृवद् करती हैं जबवक ठण्डी जलिाराएं
समरु तटीय भागों के तापमान में वगरािट लाती हैं।
e. प्रचवलत िाय:ु ठण्डी क्षेत्रीय पिनें तापमान में वगरािट लाती हैं जबवक गमव क्षेत्रीय पिनें तापमान में िृवद्
करती हैं।

86
विश्व भगू ोल राज होल्कर
िायमु ण्डल के ठण्डा एिं गमव होने के कारक:
1. विवकरण (Radiation)
2. संचालन (Conduction)
3. संिहन (Convection)
4. अवभिहन (Advection)
ऊष्मा बजट (Heat Budget):
• सयू व से 100 यवू नट सौर विवकरण पृथ्िी पर उत्सवजवत होती हैं वजनमें से 35 यवू नट विवकरण बादलों (27
यवू नट), िलू कणों (6 यवू नट) एिं वहमनदों (2 यवू नट) द्वारा परािवतवत कर दी जाती हैं एिं 14 यवू नट
िायमु ण्डल द्वारा अिशोवषत कर ली जाती हैं। इस प्रकार सूयव से आने िाली सौर विवकरणों की 51 यवू नट
ही पृथ्िी की सतह तक पहुचं ती हैं।
o 100 – (35+14) = 51 यवू नट
• पृथ्िी पर पड़ने िाली 51 यवू नट पावथवि विवकरणों के रूप में पृथ्िी द्वारा परािवतवत की जाती हैं वजनमें से 17
यवू नट सीिा अंतररक्ष में चली जाती हैं एिं 34 यवू नट िायमु ण्डल द्वारा अिशोवषत कर ली जाती हैं।
• िायमु ण्डल द्वारा 14 यवू नट सौर विवकरण एिं 34 यवू नट पावथवि विवकरण का अिशोषण अथावत कुल 48
यवू नट का अिशोषण वकया जाता है। ये 48 यवू नट ही िायमु ण्डल को गमव करती हैं।

87
विश्व भगू ोल राज होल्कर
िायमु ण्डलीय दाब
िायदु ाब: िायमु ण्डलीय दाब का अथव है वकसी वदए गए स्थान तथा समय पर िहााँ की हिा के स्तंभ का भार
िायदु ाब मापन:
• बैरोमीटर में प्रवत इकाई क्षेत्रफल पर पड़ने िाले बल के रूप में मापा जाता है।
• दाब की इकाई वमलीबार है।
• बैरोमीटर में िायदु ाब की तेजी से वगरािट तफ
ू ान का संकेत देता है।
• बैरोमीटर के पाठन का पहले वगरना वफर िीरे -िीरे बढ़ना िषाव का संकेत है।
• बैरोमीटर के पाठन का लगातार बढ़ना प्रवत चक्रिात और साफ मौसम का संकेत देता है।
समदाब रे खाएं (Isobar): ये िे काल्पवनक रेखाएं हैं जो समान िायदु ाब िाले स्थानों को वमलाती हैं। िायदु ाब
को मौसम के पिू ावनमु ान का सूचक माना जाता है।
िायमु ण्डलीय दाब को प्रभावित करने िाले कारक:
1. ऊध्िाविर िायमु ण्डलीय दाब:
दाब α घनत्ि α 1/आयतन

• घनत्ि के कम होने के कारण ऊाँ चाई के साथ िायदु ाब में कमी आती है। इसीवलए पृथ्िी से ऊंचाई बढ़ने
पर िायदु ाब में कमी आती है।
• िायु के संकुचन से घनत्ि में िृवद् होती है वजससे िायदु ाब में िृवद् होती है। िायु के फै लाि से घनत्ि
में कमी आती है वजससे िायदु ाब में कमी आती है।

2. िायु प्रसार एिं िायदु ाब: जब िायु नीचे से ऊपर उठती है तो उसके घनत्ि में कमी आती है इसवलए िायदु ाब
में कमी आती है।
3. िायु संकुचन एिं िायदु ाब: जब िायु ऊपर से नीचे की तरफ आती है तो घनत्ि में िृवद् होती है वजससे
िायदु ाब में भी िृवद् होती है।

88
विश्व भगू ोल राज होल्कर
िायदु ाब के प्रक्रम: िायदु ाब के दो प्रक्रम हैं –
1. तापीय प्रक्रम (इसमें ऊष्मा का प्रिाह होता है)
2. रुद्ोष्म प्रक्रम (इसमें ऊष्मा वनयत रहती है)
1. तापीय प्रक्रम:
ऊष्मीय प्रसार: जब सौर विवकरण पृथ्िी की सतह पर पड़ती है तो सतह गमव हो जाती है तथा सतह से संपकव
िाली िायु गमव होकर प्रसाररत होती है वजससे उसके आयतन में िृवद्, घनत्ि में कमी तथा िायदु ाब में कमी
आती है।
ऊष्मीय संकुचन: जब ठण्डे क्षेत्रों की िायु पृथ्िी की सतह पर अत्यविक ठण्डी होती है तो उसके संपकव में
जो िायु आती है तो ऊष्मा का संचरण िायु की सतह की ओर होने लग जाता है वजससे घनत्ि में िृवद्,
आयतन में कमी एिं िायदु ाब में िृवद् होती है।
2. रुद्ोष्म प्रक्रम:
रुद्ोष्म संकुचन: ऊष्मा एिं िायु दोनों में संकुचन के कारण घनत्ि में िृवद् होती है वजससे िायदु ाब में िृवद्
होती है।

रुद्ोष्म प्रसार: गवतज ऊजाव के वस्थवतज ऊजाव में पररितवन से वनमन दाब का वनमावण होता है।

89
विश्व भगू ोल राज होल्कर
िायदु ाब पेवटयााँ

1. भमू ध्य रे खीय वनमन िायदु ाब क्षेत्र: [तापीय प्रकम के कारण]

• इसका विस्तार विषिु त रे खा के दोनों तरफ 10°N एिं 10°S अक्षांशों के बीच है।
• इसका वनमावण िायु के ऊष्मीय प्रसार के कारण होता है वजसका कारण भूमध्य रे खीय क्षेत्रों में उच्च सौर
विवकरण एिं उच्च सतही तापमान गमव एिं हल्की िायु संिहनीय िारा का वनमावण करती है। इस कारण इस
क्षेत्र में िायमु ण्डलीय वस्थवत शांत या पिन रवहत होती है।
• पिन रवहत एिं िायमु ण्डलीय वस्थवत शााँत रहने के कारण यह क्षेत्र डोलड्रम कहलाता है।
2. उपोष्ण कवटबंिीय उच्च िायदु ाब पेटी: [गवतज प्रक्रम के कारण]

• इसका विस्तार दोनों गोलाद्ों में 23½°N से 35°N एिं 23½° S से 35°S के बीच है।
• विषिु त रे खीय वनमन िायदु ाब से ऊपर उठने िाली िायु जब क्षोभ सीमा पर पहुचाँ ती है तो कोररयावलस बल
के प्रभाि से यह ध्रिु ों की ओर विक्षेवपत हो जाती है। यह िायु ठण्डी होती है और भारी होती है। इस कारण
यह नीचे उतरने लगती है तथा रुद्ोष्म संकुचन द्वारा उच्च िायदु ाब का वनमावण करती है।
• यह अक्षांश 'अश्व अक्षांश’ भी कहलाते हैं।

90
विश्व भगू ोल राज होल्कर
3. उपध्रिु ीय वनमन िायदु ाब पेटी [गवतज प्रक्रम के कारण]:

• इसका विस्तार दोनों गोलाद्ों में 45°N से 66½°N तथा 45°S से 66½°S के बीच है।
• इसका वनमावण पछुआ पिनों एिं ध्रिु ीय पिनों के उस क्षेत्र में टकराने के कारण होता है। पिनों के टकराने
से िायु ऊपर उठती है और रुध्दोष्म प्रसार द्वारा हल्की एिं गमव होकर वनमम िायदु ाब का वनमावण करती है।
4. ध्रिु ीय उच्च िायदु ाब पेटी: यह दोनों ध्रिु ों पर पायी जाती है इसका वनमावण ऊष्मीय संकुचन के कारण होता है।
ध्रिु ों पर तापमान का कम होना यहााँ वनमन िायदु ाब वनमावण का कारण है। यहााँ उच्च िायदु ाब का कारण तापीय
प्रक्रम है।

पिन (Wind)
पिन (Wind): िायदु ाब में क्षैवतज विषमताओ ं के कारण बना उच्च िायदु ाब क्षेत्र से वनमन िायदु ाब क्षेत्र की
ओर बहती है। क्षैवतज रूप से गवतशील इस हिा को पिन कहते हैं।
पिनों की वदशा वनिावरण: पिनों की वदशा फे रेल के वनयम एिं बाइज बैलॉट के वनयम द्वारा वनिावररत होती है।
फै रे ल का वनयम (Ferrel's Law): इसके अनसु ार, उिरी गोलाद्व में पिन दावहने ओर (Right Hand
Side) और दवक्षणी गोलाद्व में बायीं ओर (Left Hand Side) मडु जाती है। ऐसा कोररयावलस बल के
कारण होता है।
Note: भमू ध्य रे खा पर कोररयावलस बल का प्रभाि शन्द्ू य होता है अतः भमू ध्य रे खा पर पिनों की
वदशा में कोई विक्षेप नहीं होता है। ध्रिु ों पर अविकतम विक्षेप होता है।
बाइज-बैलेट का वनयम (Buy’s – Ballot Law): 'यवद कोई व्यवक्त उिरी गोलाद्व में पिन की ओर पीठ
करके खड़ा हो तो उच्च दाब उसके दायीं ओर तथा वनमन दाब उसके बायीं ओर होगा।
पिनों के प्रकार: पिनें तीन प्रकार की होती हैं –
1. प्रचवलत पिन या भमू ण्डलीय पिन
2. मौसमी पिन या सामवयक पिन
3. स्थानीय पिन
1. प्रचवलत पिन / भमू ण्डलीय पिन:
ये सालभर वनवश्चत वदशा में प्रिावहत होने िाली पिनें हैं। इन्द्हें प्रचवलत स्थायी, सनातनी या भमू ण्डलीय पिनों के रूप
में जाना जाता है ये पिनें 3 प्रकार की हैं –
a. व्यापाररक पिनें (Trade Winds)

91
विश्व भगू ोल राज होल्कर
b. पछुआ पिनें (Westerlies)
c. ध्रिु ीय पिनें (Polar winds)
a. व्यापाररक पिनें (Trade Winds):

• ये उपोष्ण उच्च िायदु ाब कवटबंिों से विषिु तीय वनमन िायदु ाब की ओर दोनों गोलाद्ों में वनरंतर बहती
हैं।
o वदशा:
▪ उिरी गोलाद्व: उिर-पिू ी व्यापाररक पिन
▪ दवक्षणी गोलाद्व: दवक्षण-पिू ी व्यापाररक पिन
• विषिु त रे खा के समीप ये दोनों पिनें टकराकर ऊपर उठती हैं और घनघोर संिहनीय िषाव करती हैं।
b. पछुआ पिनें (Westerlies):

• ये उपोष्ण कवटबंिीय उच्च िायदु ाब क्षेत्रों से उपध्रिु ीय वनमन िायदु ाब क्षेत्रों की तरफ गवत करती है।
o वदशा:
▪ उिरी गोलाद्व: दवक्षण-पवश्चम से उिर-पिू व
▪ दवक्षणी गोलाद्व: उिर-पवश्चम से दवक्षण-पिू व
• पछुआ पिनों का सिावविक विकास दवक्षणी गोलाद्व में 40-65° अक्षांशों के मध्य होता है। इसका
कारण दवक्षणी गोलाद्व में स्थलीय अिरोिों का अभाि है।
• इन पिनों को अक्षांशों की वस्थवत ि गवत के आिार पर वनमन नामों से जाना जाता है –
o 40°S अक्षाश ं : गरजता चालीसा
o 50°S अक्षांश: प्रचंड पचासा
o 60°S अक्षांश: चीखता साठा
c. ध्रिु ीय पिनें:

• ध्रिु ीय उच्च िायदु ाब से उपध्रुिीय वनमन िायदु ाब क्षेत्र की ओर बहती हैं।


o वदशा:
▪ उिरी गोलाद्व: उिर पिू व से दवक्षण पवश्चम
▪ दवक्षणी गोलाद्व: दवक्षण पिू व से उिर पवश्चम
• ये पिनें अत्यन्द्त ठण्डी एिं बफीली होती हैं।
• उपध्रिु ीय वनमन िायदु ाब कवटबंि में जब पछुआ पिनें इन ध्रिु ीय पिनों से टकराती हैं तो ध्रिु ीय िाताग्रों
का वनमावण होता है और इस क्षेत्र में शीतोष्ण कवटबंिीय चक्रिातों की उत्पवि होती है।

92
विश्व भगू ोल राज होल्कर
2. मौसमी पिनें:
मौसमी पिनों की वदशा वदन और रात एिं मौसम के अनसु ार पररिवतवत होती रहती है। वनमन पिनों को इस श्रेणी में
mरखा जाता है -
A. स्थल एिं समरु ी पिन
B. पिवत एिं घाटी समीर
C. मानसनू ी पिनें
A. स्थल एिं समरु ी पिन:
समरु ी समीर: यह तटिती क्षेत्रों में प्रिावहत होती है। वदन के समय स्थल का तापमान समरु ी सतह से ज्यादा
होता है वजसके कारण स्थल पर वनमन िायदु ाब क्षेत्र एिं समरु में उच्च िायदु ाब क्षेत्र का वनमावण होता है। अतः
पिन की वदशा समरु से स्थल की तरफ होती है।
इसके कारण तटिती क्षेत्रों में वदन के तापमान को ज्यादा उठने नहीं देती। समरु ी समीर को प्रयोग कर
मछुआरे समरु से तट की तरफ लौटते हैं।

स्थलीय समीर: रात के समय जल की अपेक्षाकृ त स्थल तेजी से ठण्डा होता है वजसके कारण स्थल पर उच्च
िायदु ाब एिं समरु में वनमन िायदु ाब का वनमावण होता है अत: पिन की वदशा स्थल से समरु की तरफ होती है।
इसी पिन का प्रयोग कर मछुआरे रात में तट से समरु की तरफ जाते हैं।
B. पिवत एिं घाटी समीर:
घाटी समीर: वदन के समय पिवत का तापमान ज्यादा सौर विवकरण प्राप्त करने के कारण घाटी से अपेक्षाकृ त
ज्यादा होता है वजसके कारण पिवत पर वनमन िायदु ाब एिं घाटी में उच्च िायदु ाब का वनमावण होता है। अतः
पिन का प्रसार से पिवत की तरफ होता है इस कारण इसको घाटी समीर कहते हैं।

93
विश्व भगू ोल राज होल्कर
पिवत समीर: रात में पिवत से पावथवि विवकरण का पलायन तेजी से होता है अतः पिवत घाटी के अपेक्षाकृ त ज्यादा
ठण्डा होता है इस कारण पिन का प्रिाह पिवत से घाटी की तरफ होता है, इस कारण इसको पिवत समीर कहते
हैं।
C. मानसनू ी पिनें: इनका प्रिाह भारतीय उपमहाद्वीप में होता है गमी के मौसम में दवक्षणी पवश्चमी मानसनू पिनों
का प्रिाह होता है एिं शीत ऋतु में उिरी पिू ी मानसनू पिनों का प्रिाह होता है।
ब्यफ
ू ोटव स्के ल: इस स्के ल का उपयोग िायु की गवत अथिा िेग के मापन एिं आलेखन में वकया जाता है। इस स्के ल
का आविष्कार 1805 ई. में सर रावं सस ब्यफ ू ोटव द्वारा वकया गया था।

स्थानीय पिनें
ये पिनें तापमान तथा िायदु ाब के स्थानीय अंतर से चला करती हैं और बहुत छोटे क्षेत्र को प्रभावित करती हैं। जहााँ
गमव स्थानीय पिन वकसी प्रदेश विशेष के तापमान में िृवद् लाती हैं, िहीं ठंडी स्थानीय पिन कभी-कभी तापमान
को वहमांक से भी नीचे कर देती हैं। ये स्थानीय पिनें क्षोभमण्डल की वनचली परतों तक ही सीवमत रहती हैं।
कुछ स्थानीय पिनें –
• वचनक ू : इसका शावब्दक अथव ‘वहम भक्षी’ होता है। यह रॉकी पिवत के पिू ी ढालों के सहारे चलने िाली गमव
तथा शष्ु क हिा है। यह दवक्षण में कोलेरैड़ो से उिर में कनाडा के वब्रवटश कोलवं नया तक प्रिावहत होती है।
इससे चारागाह बफव मक्त ु हो जाते हैं।
• फॉन (Fohn): यह आल्पस पिवत के उिरी ढाल के सहारे उतरने िाली गमव ि शष्ु क हिा है। इसका सिावविक
प्रभाि वस्िट्जरलैंड में होता है। यह बफव को वपघलाती है। यह अगं रू की खेती के वलए लाभदायक है।
• वसरॉको (Sirroco): यह गमव, शष्ु क तथा रे त से भरी हिा है जो सहारा के रे वगस्तानी भाग से उिर की ओर
भमू ध्य सागर होकर इटली और स्पेन में प्रिेश करती है। यहााँ इनसे होने िाली िषाव को रक्त िषाव (Blood
Rain) के नाम से जाना जाता है। वमस्त्र, लीवबया, ट्यनू ीवशया में वसरॉको का स्थानीय नाम क्रमशः खमवसन,
वगबली, वचली है। स्पेन तथा कनारी ि मेवडरा द्वीपों में वसरॉको का स्थानीय नाम क्रमशः लेिश े ि लेस्ट है।
• ब्लैक रॉलर: ये उिरी अमेररका के विशाल मैदानों में चलने िाली गमव एिं िल
ू भरी शष्ु क हिाएाँ हैं।
• योमा: यह जापान में सेंटाआना के समान चलने िाली गमव एिं शष्ु क हता है।
• टेमपोरल: यह मध्य अमेररका में चलने िाली मानसनू ी हिा है।
• वसममू : अरब के रे वगस्तान में चलने िाली गमव ि शष्ु क हिा वजससे रे त की आंिी आती है।
• सामनु : यह ईरान ि ईराक के कुवदवस्तान में चलने िाली स्थानीय हिा है। यह गमव एिं शष्ु क हिा है।
• शामल: यह इराक, ईरान और अरब के मरुस्थलीय क्षेत्र में चलने िाली गमव, शष्ु क एिं रे तीली पिनें हैं।

94
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• सीस्टन: यह पिू ी ईरान में ग्रीष्मकाल में प्रिावहत होने िाली तीव्र पिन है।
• हबूब: उिरी सडू ान में मुख्यतः खारतमू के समीप चलने िाली यह िल
ू भरी आंवियााँ हैं।
• काराबरु ान: यह मध्य एवशया के ताररम बेवसन में उिर-पिू व की ओर प्रिावहत होने िाली िल
ू भरी आाँवियााँ
हैं।
• कोइमबैंग: यह जािा द्वीप (इडं ोनेवशया) में चलने िाली गमव एिं शष्ु क पिन है। यह तंबाकू की फसल को
नक
ु सान पहुचाँ ाती है।
• हरमट्टन: यह सहारा रे वगस्तान में उिर-पिू व तथा पिू ी वदशा से पवश्चमी वदशा में चलने िाली गमव तथा शष्ु क
हिा है, जो अरीका के पवश्चमी तट की उष्ण एिं आरव हिा में शष्ु कता लाती है। इसे वगनी तट पर ‘डॉक्टर
हिा’ कहा जाता है।
• वब्रकफील्डर: यह ऑस्ट्रेवलया के विक्टोररया प्रांत में चलने िाली गमव एिं शष्ु क हिा है।
• नािेस्टर: यह उिरी न्द्यजू ीलैंड में चलने िाली गमव एिं शष्ु क हिा है।
• सेंटाएना: यह कै वलफॉवनवया में चलने िाली गमव एिं शष्ु क हिा है।
• ल:ू यह उिर भारत में गवमवयों में उिर पवश्चम तथा पवश्चम से पिू व वदशा में चलने िाली प्रचंड ि शष्ु क हिा
है।
• जोंडा: ये अजेंटीना और उरुनिे में एंडीज से मैदानी भागों की ओर चलने िाली कोष्ण शष्ु क पिनें हैं।
• वमस्ट्रल: ये ठण्डी ध्रिु ीय हिाएं हैं जो रोन नदी की घाटी से होकर चलती हैं। ये भूमध्य सागर के उिर-पवश्चमी
भाग विशेषकर स्पेन एिं रांस को प्रभावित करती हैं।
• बोरा: ये ठण्डी एिं शष्ु क हिाएाँ हैं जो एवड्रयावटक सागर के पिू ी वकनारों पर चलती हैं। ये मख्ु यतः इटली
एिं यगू ोस्लाविया को प्रभावित करती हैं।
• वब्लजडव: ये बफीली ध्रिु ीय हिाएं हैं। इन हिाओ ं से साइबेररया, कनाडा एिं संयक्त
ु राज्य अमेररका प्रभावित
होते हैं। रूस में इन हिाओ ं को परु गा एिं साइबेररया में बुरान कहा जाता है।
• नाटे: ये संयक्त
ु राज्य अमेररका में शीत ऋतु में चलने िाली ध्रुिीय पिनें हैं।
• पैंपैरो: ये अजेंटीना, वचली ि उरुनिे में बहने िाली तीव्र ठण्डी हिाएं हैं।
• ग्रेगाले: ये दवक्षण यरू ोप के भमू ध्यसागरीय क्षेत्रों में बहने िाली ठण्डी हिाएाँ हैं।
• जरू न: ये जरू ा पिवत (वस्िट्जरलैंड) से जेनेिा झील (इटली) तक रावत्र के समय चलने िाली ठण्डी एिं शष्ु क
पिनें हैं।
• मैस्ट्रो: ये भमू ध्यसागरीय क्षेत्र के मध्यिती भाग में चलने िाली हिा है।
• पनु ा: यह एडं ीज क्षेत्र में चलने िाली ठण्डी हिा है।
• पापागायो: यह मैवक्सको के तट पर चलने िाली तीव्र शष्ु क एिं शीतल उिर-पिू ी पिने हैं।

95
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• पोनन्द्तः ये भमू ध्य सागरीय क्षेत्र में विशेषकर कोवसवका तट एिं भमू ध्यसागरीय रांस में चलने िाली ठण्डी
पवश्चमी हिाएं हैं।
• विरासेन: ये पेरू तथा वचली के पवश्चमी तट पर चलने िाली समरु ी पिनें हैं।
• दवक्षणी बस्टवर: ये न्द्यू साउथ िेल्स (ऑस्ट्रेवलया) में चलने िाली तेज एिं शष्ु क ठण्डी पिनें हैं।
• बाईज: यह रांस में प्रभािी रहने िाली अत्यंत ठण्डी एिं शष्ु क पिन है।
• लेिांटर: यह दवक्षणी स्पेन में प्रभािी रहने िाली अत्यंत शवक्तशाली पिू ी उण्डी पिनें हैं।

जेट स्ट्रीम (Jet Stream)


जेट िारा एक उच्च तलीय, संकीणव तथा क्षैवतज अक्ष के सहारे तीव्र गवत से प्रिावहत होने िाली भव्ू यािती
(Geotropic Wind) पिन है जो क्षोभसीमा (Tropopause) के वनकट प्रिावहत होती है। सामान्द्यतः इनकी गवत
150 से 200 वकमी. प्रवत घंटा रहती है। परन्द्त,ु कोर पर इनकी गवत सिावविक (325 वकमी. प्रवत घंटा) तक वमलती
है। मध्य अक्षांशों (30° से 35° अक्षांशों के बीच) इनकी गवत सिावविक होती है।
जेट िायिु ाराएं सामान्द्यतः उिरी गोलाद्व में ही वमलती हैं (कारण: स्थलीय भाग अविक होने से तापमान
में अन्द्तर अविक होता है वजस से दाब प्रिणता अविक होती है)। दवक्षणी गोलाद्ों में ध्रुिों पर सवक्रय होती है अन्द्य
अक्षांशों में बहुत कम।
जेट हिाओ ं का प्रिाह पथ सीिा न होकर सवपवलाकार अथिा विसपावकार होता है। ये पररध्रुिीय (Circum
Polar) िायु िाराएं हैं। जेट िायु िाराओ ं को रॉस्बी लहरों (Rosby Waves) के नाम से भी जाना जाता है।
उत्पवि का कारण:
जेट िारा पछुआ अथिा अद्व पछुआ (Quasi Westerlies) हिाएं हैं जो ऊपरी िायमु ण्डल में उष्ण एिं ठण्डी
िायरु ावशयों के बीच िाताग्रीय क्षेत्रों में दाब की क्षैवतज प्रिणता में अन्द्तर तथा कोणीय संिेग संरक्षण
(Conservation of Angular Momentum) के कारण अवस्तत्ि में आती हैं।
1. िायदु ाब प्रिणता (Pressure Gradient)
2. कोंणीय सिं ेग सरं क्षण (Conservation of Angular Momentum)
जेट िाराओ ं के प्रकार:
a. ध्रिु ीय रावत्र जेट स्ट्रीम (Polar Night Jet Stream)
b. ध्रिु ीय िाताग्रीय जेट स्ट्रीम
c. उपोष्ण पछुआ जेट स्ट्रीम
d. उष्ण कवटबंिीय पिू ी जेट स्ट्रीम

96
विश्व भगू ोल राज होल्कर
a. ध्रिु ीय रावत्र जेट स्ट्रीम: उिरी एिं दवक्षणी गोलाद्ों में 60° अक्षाश
ं ों से ध्रिु ों के बीच यह जेट स्ट्रीम पायी जाती
है।
b. ध्रिु ीय िाताग्रीय जेट स्ट्रीम: इनका सबं िं ध्रिु ीय िाताग्रों से है। ये 30°-70° उिरी अक्षाश
ं ों में क्षोभ सीमा पर
वमलती हैं। इनकी गवत 150-300 वकमी. प्रवत घटं ा तक होती हैं। इन्द्हें रॉस्बी तरंगें कहते हैं।
c. उपोष्ण पछुआ जेट स्ट्रीम: ये 20°-35° उिरी अक्षाश ं ों के बीच वमलती हैं। इनकी गवत सिावविक होती है (340-
385 वकमी. प्रवत घटं ा तक)। इनकी उत्पवि का मख्ु य कारण विषिु त रे खीय क्षेत्र में तापीय संिहन वक्रया के कारण
ऊपर उठी हुई िायु का क्षोभ सीमा पेटी में उिर-पिू ी प्रिाह है।
नोट: भारत में शीत ऋतु में पवश्चमी विक्षोभ लाने के वलए ये जेट स्ट्रीम ही वजममेदार है।
d. उष्ण कवटबिं ीय पिू ी जेट स्ट्रीम: इस जेट पिन की वदशा उिर-पिू व होती है। ये वसफव उिरी गोलाद्व में 8°-35°
अक्षाश
ं ों के मध्य उिरी गोलाद्व में ग्रीष्म काल में उत्पन्द्न होती है। भारतीय मानसनू की दशा में इनकी उत्पवि वतब्बत
के पठार क्षेत्र में होती है।
नोट: भारतीय मानसनू की उत्पवि के वलए ये जेट पिनें वजममेदार हैं।
जेट पिनों का महत्ि:
• ताप, आरवता और संिेग के स्थानान्द्तरण में जेट िाराओ ं की महत्िपणू व भवू मका होती है।
• जब इन िाराओ ं का ऊपरी िायमु ण्डल में अवभसरण होता है तो ये िरातल पर प्रवत चक्रिातीय दशाओ ं
का वनमावण करती हैं और जब ऊपरी िायमु ण्डल में अपसरण होता है तो ये चक्रिातीय दशाओ ं एिं अिदाबों
की उत्पवि करती हैं।
• जेट िाराओ ं के अपसरण (ऊपर उठती िाय)ु एिं अवभसरण (नीचे उतरती िाय)ु के कारण क्षोभमण्डल एिं
समतापमण्डल के बीच हिा का वमश्रण होता है इससे प्रदषू क तत्ि समतापमण्डल में पहुाँच जाते हैं एिं
क्षोभमण्डल में प्रदषू ण स्तर वनयंवत्रत रहता है।

97
विश्व भगू ोल राज होल्कर
चक्रिात (Cyclone)
विशेषताएं:
• ये वनमन िायदु ाब के के न्द्र होते हैं। इनके के न्द्र में िायदु ाब सबसे कम होता है।
• चक्रिात में पिन पररवि से के न्द्र की ओर चलती है। इनकी वदशा उिरी गोलाद्व में घड़ी की सईु के विपरीत
(Anti-Clockwise) एिं दवक्षणी गोलाद्व में घड़ी की सईु की वदशा (Clockwise) में होती है।
• इनके आगमन पर आकाश में सबसे पहले पक्षाभ मेघ वदखायी देते हैं। िायदु ाब तेजी से वगरता है। चन्द्रमा
एिं सयू व के चारों तरफ प्रभामण्डल वदखाई पड़ता है। िायु की वदशा पिू व से दवक्षण-पिू व होने लगती है।

शीतोष्ण कवटबंिीय चक्रिात उष्ण कवटबिं ीय चक्रिात


उत्पविः इनकी उत्पवि शीत काल में दो विपरीत िाताग्रों उत्पविः इनकी उत्पवि महाद्वीप एिं महासागर के वमलन
के वमलने से होती है। क्षेत्र में ग्रीष्मकाल में तापीय कारणों से होती है।
क्षेत्र: शीतोष्ण कवटबंिीय भाग क्षेत्र: उष्ण कवटबंिीय क्षेत्रों में [भमू ध्य रे खा के दोनों
ओर 5° अक्षांशों को छोड़कर]
आकार: िृिाकार आकार: िृिाकार
समयािवि: कुछ महीनो तक बना रहता समयािविः कुछ वदनों तक ही बना रहता है।
उत्पवि समय: शीत ऋतु उत्पवि समयः ग्रीष्म ऋतु
ऊजाव का स्त्रोत: िायरु ावश के घनत्ि में अन्द्तर पर वनभवर ऊजाव का स्त्रोत: संघनन की गप्तु ऊष्मा
आाँख: कम दाब, िषाव नहीं, आकाश साफ आाँख: िायु प्रिाह शातं , कोई िषाव नहीं
तापमान: िाताग्र के अलग-अलग खंडो में अलग- तापमान: के न्द्र में समान तापमान, समदाब रे खाओ ं की
अलग तापमान संख्या कम ।
वदशा: पछुआ पिनों के प्रभाि से पवश्चम से पिू व वदशा: व्यापाररक पिनों के कारण पिू व से पवश्चम
इनमें िाताग्र अनपु वस्थत होते हैं।

अन्द्य नाम: हररके न (USA), टाइफून (चीन) तारनैडो


(USA), विली-विली (ऑस्ट्रेवलया) एिं चक्रिात
(भारत)

98
विश्व भगू ोल राज होल्कर
प्रवत चक्रिात (Anti-Cyclones)
विशेषताएं:
• इसके के न्द्र में िायदु ाब उच्चतम होता है। िायदु ाब बाहर की ओर घटता जाता है।
• इसमें हिाएं के न्द्र से पररवि की ओर चलती हैं।
• प्रवत चक्रिात उपोष्ण कवटबिं ीय उच्च दाब क्षेत्रों में अविक उत्पन्द्न होते हैं। भमू ध्यरे खीय भागों में इनका
अभाि रहता है।
• प्रवत चक्रिातों में मौसम साफ होता है तथा हिाएं मदं गवत से चलती हैं।
• इनका आकार प्राय: गोलाकार होता है परन्द्तु कभी-कभी ये V आकार में भी वमलते हैं। इनका आकार
चक्रिातों से अविक विस्तृत होता है।
• उिरी गोलाद्व में इनकी वदशा घड़ी की सईु के अनरू
ु प (Clockwise) एिं दवक्षणी गोलाद्व में घड़ी की सईु
के विपरीत (Anti-Clockwise) होती है।
• प्रवत चक्रिात के के न्द्र में हिाएं ऊपर से नीचे उतरती है अतः मौसम साफ एिं िषाव रवहत होता है।
• प्रवतचक्रिात में िाताग्रों का वनमावण नहीं होता।
• प्रवत चक्रिातों का मागव एिं वदशा अवनवश्चत होती है।
• प्रवत चक्रिात के आने से िषाव की संभािना समाप्त हो जाती है।

99
विश्व भगू ोल राज होल्कर
बादल (Clouds)
िायभु ार में पररितवन के कारण जब िायु लंबित ऊपर उठे और िहााँ फै लकर ठण्डी हो जाए तब िरातल से अविक
ऊाँ चाई पर कुहरा छाने जैसी वस्थवत बनती है। बादल मुख्यतः हिा के रुद्ोष्म प्रवक्रया द्वारा ठण्डे होने पर उसके
तापमान के ओसांक वबन्द्दु के नीचे वगरने से बनते हैं। बादल वनमावण में िल
ू कण महत्िपणू व भूवमका वनभाते हैं।
बादलों का िगीकरण:
बादल

उच्च मेघ मध्य मेघ वनमन मेघ

पक्षाभ पक्षाभ पक्षाभ स्तरी कपासी स्तरी स्तरी कपासी कपासी िषाव
मेघ स्तरी कपासी मध्य मध्य मेघ कपासी मेघ िषी मेघ स्तरी मेघ
मेघ मेघ मेघ मेघ मेघ

1. उच्च मेघ (6000-12000 मी.)


A. पक्षाभ मेघ (Cirrus Clouds):
• ये िायमु ण्डल में सिावविक ऊाँ चाई पर पाए जाते हैं। इनकी रचना वहमकणों से होती है।
• ये अत्यविक ऊाँ चाई पर सफे द रंग के वछतराए हुए मेघ हैं। ये मेघ िषाव नहीं करते।
• चक्रिात आने से पहले सबसे पहले ये मेघ वदखाई देते हैं। इन मेघों को चक्रिात के सचू क मे भी कहा जाता
है। इन मेघों से स्िच्छ मौसम की पिू व सचू ना वमलती है।

100
विश्व भगू ोल राज होल्कर
B. पक्षाभ-स्तरी मेघ (Cirrostratus Clouds):
• ये मेघ एक िृहद क्षेत्र में दवू िया चादर की भााँवत फै ले होते हैं। इन मेघों से वदन में सयू व एिं रावत्र में चन्द्रमा के
चारों ओर प्रभामण्डल (Halo) का वनमावण होता है।
• चक्रिात के आगमन पर पक्षाभ मेघ के बाद ये मेघ वदखाई देते हैं। ये मेघ वनकट भविष्य में चक्रिात के
आगमन की सचू ना देते हैं।
C. पक्षाभ-कपासी मेघ (Cirrocumulus Clouds):
• ये मेघ सफे द रंग के पतले गोलाकार िब्बों की भााँवत वदखाई देते हैं।
• ये मेघ सदैि पंवक्तयों अथिा समहू ों में होते हैं। ये मेघ छायाहीन होते हैं इन्द्हें Mackerel Sky भी कहा जाता
है।

2. मध्य मेघ (2000-6000 मी. ऊाँचाई):


A. स्तरी मध्य मेघ (Altostratus Clouds):
• ये भरू े अथिा नीले रंग के मोटी परत की भावं त आसमान में छाए रहते हैं।
• इनसे विस्तृत क्षेत्रों पर िषाव की सभं ािना रहती है।
B. कपासी मध्य मेघ (Altocumulus Clouds):
• ये मेघ सफे द और भरू े रंग के होते हैं। ये आकाश में महीन चादर की तरह वबछे रहते हैं।
• ये मेघ छायादार होते हैं। पिवत वशखरों पर उत्पन्द्न ऐसे मेघों को 'पताका मेघ (Banner Clouds)’ भी कहा
जाता है।

3. वनमन मेघ (2000 मी. की ऊाँचाई तक):


A. स्तरी मेघ (Stratus Cloud):
• ये िरातल से थोडी ऊाँ चाई पर कोहरे की भााँवत पाए जाते हैं। इनका वनमावण कोहरे की वनचली परतों के
विसरण अथिा उनके उत्थान के कारण होता है।
• इनके खंवडत होने से नीला आकाश वदखाई पड़ता है। अतः इन खंवडत मेघों को ‘Fracto-Stratus
Clouds’ भी कहते हैं। ये मेघ आकाश में परू ी तरह छाए रहते हैं।

101
विश्व भगू ोल राज होल्कर
B. स्तरी कपासी मेघ (Stratocumulus Clouds):
• ये हल्के भरू े या सफे द रंग के गोलाकार िब्बों के रूप में वमलते हैं।
• ये मेघ साफ मौसम के सचू क हैं। जाडे के मौसम में ये मेघ समपणू व आसमान को ढाँक लेते हैं।
C. कपासी मेघ (Cumulus Cloud):
• ये आकाश में गमु बदाकार ि फूलगोभी की भााँवत छाए रहते हैं।
• ये मेघ प्रायः साफ मौसम की सूचना देते हैं।
D. कपासी िषाव मेघ (Cumulonimbus Clouds):
• ये अत्यविक गहरे काले एिं सघन मेघ होते हैं।
• ये नीचे से ऊपर की ओर लंबित विशाल मीनार की भांवत उठे होते हैं।
• कभी कभी ये िरातल से काफी ऊाँ चाई तक विस्तृत रहते हैं।
• इन बादलों से भारी िषाव, ओला, तवडत झंझा आवद उत्पन्द्न होते हैं।
• शीतोष्ण कवटबंिीय चक्रिातों में शीत िाताग्र के सहारे इन्द्ही बादलों से िषाव होती है।
• इन बादलों में भयंकर मेघ गजवन तथा वबजली की चमक होती है।
E. िषाव स्तरी मेघ (Nimbostratus Clouds):
• ये िरातल से कम ऊाँ चाई पर वस्थत घने, काले एिं विस्तृत मेघ हैं।
• इनके छाने से अंिकार छाया रहता है।
• ये िायमु ंडल में आरवता को बढ़ा देते हैं।
• शीतोष्ण कवटबंिीय चक्रिातों में उष्ण िाताग्र के सहारे इन बादलों से िषाव होती है।

102
विश्व भगू ोल राज होल्कर
िषाव (Rain Fall)
जब जलिाष्प यक्त
ु िायु ऊपर उठती है तो तापमान में कमी आने के कारण उसका संघनन (Condensation) होने
लगता है। इस तरह बादलों का वनमावण होता है। कुछ समय बाद बादलों में जलिाष्प की मात्रा अविक हो जाती है।
यह िषवण (Precipitation) के रूप में जमीन पर वगरने लगती है।
िषवण (Precipitation) के प्रकार:

• िषाव (Rainfall) ओलािृवि (Hailfall)


• सवहम िृवि (Sleet) वहमपात (Snowfall)
• बंदू ा-बांदी (Drizzle)
िषाव (Rainfall): जलिाष्प यक्तु िायु के ऊपर उठकर सघं वनत होने के कारण बादलों का वनमावण होता है तथा
बादलों में जलकणों की मात्रा अविक हो जाने के कारण यह जल िषाव के रूप में जमीन पर वगरता है।
िषाव के प्रकार:
a. संिहनीय िषाव (Convectional Rainfall)
b. पिवतकृ त िषाव (Orographic Rainfall)
c. चक्रिाती िषाव या िाताग्री िषाव (Cyclonic or frontal Rainfall)
a. संिहनीय िषाव:
• इसकी उत्पवि गमव ि आरव पिनों के ऊपर उठने से होती है। पृथ्िी की सतह जब गमव हो जाती है तो अपने
सपं कव िाली िायु को गमव कर देती है। चाँवू क गमव िायु हल्की होती है अतः यह ऊपर उठने लगती है तथा
सिं हनीय िाराओ ं का वनमावण करती है जो ऊपर जाकर सघं वनत हो जाते हैं एिं िषाव करते हैं।
• इस प्रकार की िषाव के वलए िायु में आरवता का होना आिश्यक है। इस प्रकार की िषाव के वलए वकसी
अिरोिक की आिश्यकता नहीं होती।
• विषिु तीय प्रदेश में इसी प्रकार की िषाव होती है िहााँ तापमान अविक होने से एिं संिहनीय िाराओ ं के
वनमावण से यह वस्थवत बनती है। यह िषाव बस कुछ समय के वलए होती है तथा लगभग प्रवतवदन होती है।
विषिु त रे खीय प्रदेशों में वदन के 2 बजे से 4 बजे के बीच सिं हनीय िषाव होती है।

103
विश्व भगू ोल राज होल्कर
b. पिवतीय िषाव:
• जब जलिाष्प से लदी िायु को वकसी पिवत या ढलान के साथ चढ़ना होता है तो िायु रुद्ोष्म प्रक्रम के
कारण ठण्डी होने लगती है। ऊपर चढ़ने के कारण िायु संतप्तृ हो जाती है तथा संघवनत होकर बादलों का
रूप ले लेती है। संघनन के पश्चात िषाव होने लगती है। यही पिवतीय िषाव कहलाती है।
• संसार की अविकतम िषाव इसी रूप में होती है। ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ िषाव की मात्रा बढ़ जाती है।
पिनावभमखु ढाल (Wind-ward Slope): पिवत का जो ढाल आने िाली पिन के सामने होता है िह
पिनावभमुख ढाल कहलाता है। यहााँ बहुत अविक मात्रा में िषाव होती है। इस ढाल के सहारे िायु ऊपर उठती
है।
पिनविमख ु ढाल / िृवि छाया क्षेत्र (Lee-ward Side or Rain Shadow Zone): यह पिवत का दसू रा ढलान
होता है जहााँ से िायु नीचे उतरती है। इस ढाल पर िायु शष्ु क होने लगती है तथा कम िषाव करती है। महाबलेश्वर
पिनावभमुख ढाल पर अिवस्थत होने के कारण अविक िषाव प्राप्त करता है जबवक पणु े पिनविमख ु ढाल पर
अिवस्थत होने के कारण कम िषाव प्राप्त करता है।

c. चक्रिाती या िाताग्री िषाव (Cyclonic Rainfall): चक्रिातों के कारण होने िाली िषाव को चक्रिाती
िषाव कहते हैं।

• प्रवक्रया: विशेषकर शीतोष्ण कवटबंिीय चक्रिातीय क्षेत्रों में गमव एिं शीतल िायरु ावश के टकराने से तफ
ू ानी
दशाएं उत्पन्द्न होती हैं तथा गमव िायरु ावश हल्की होने के कारण शीतल िायरु ावश के ऊपर चढ़ जाती है।
ऊपर चढ़ने िाली िायरु ावश संघवनत होकर िषाव करती है।
• यह िषाव शीतोष्ण कवटबंिीय भागों में होती है। भारत के उिर-पवश्चमी भागों में शीत ऋतु में इसी प्रकार की
िषाव होती है।

104
विश्व भगू ोल राज होल्कर
विश्व जलिायु प्रदेश
1. विषिु त रे खीय (उष्ण एिं आरव • िायदु ाब: वनमन िायदु ाब पेटी ि उच्च
जलिाय)ु : िायदु ाब पेटी के मध्य वस्थत
• पिन प्रिाह: व्यापाररक या सन्द्मागी पिनें
• क्षेत्र: अमेजन बेवसन, कागं ो बेवसन,
• तापमान:
मलेवशया एिं ईस्ट इण्डीज, वफ़लीपीन्द्स,
कमबोवडया [10°N से 10°S के बीच] o औसत तापमान 18°C से अविक,
o मावसक तापान्द्तर 20°C से 30°C
• िायदु ाब: वनमन दाब [कारण: अत्यविक
के मध्य,
ताप]
o िावषवक तापान्द्तर 10°C तक
• पिन प्रिाह: डोलड्रम [पिनों का प्रिाह
• आरवता: 60 से 75%
शातं ]
• िषाव: गवमवयों में अविक
• तापमान:
o न्द्यनू तम तापमान = 15°C • िन: आरव शष्ु क उष्ण कवटबिं ीय िन
o अविकतम तापमान = 40°C (वशकार भवू म)
o िावषवक तापान्द्तर = 5°C • िनस्पवतया:ं सिाना घास, हाथी घास आवद
o दैवनक तापान्द्तर = 12°C तक 3. मानसनू ी जलिायु (भारत तल्ु य):
• िषाव: संिहनीय िषाव, िावषवक औसत िषाव
200 CM से अविक • क्षेत्र: भारत, मयांमार, बांनलादेश, इण्डो चीन,
द० चीन, प.ू एवशया एिं उिरी ऑस्ट्रेवलया
• आरवता: 75% से अविक
• िायदु ाब: वनमन िायदु ाब (ऋतु के साथ
• िन: उष्ण कवटबंिीय सदाबहार आरव िन
िायदु ाब में पररितवन)
• िनस्पवत: महोगनी, आबनूस, रोजिङु ,
• पिन प्रिाह: मानसनू ी पिनें
मैंग्रोि (डेल्टाई भाग), अविपादप एिं
लताएं। • तापमान: गवमवयों में 27°C (कुछ स्थानों पर
40°C तक), िावषवक तापान्द्तर 15°C तक
2. सिाना प्रदेश या सडू ान तल्ु य जलिाय:ु • आरवता: शीत एिं ग्रीष्म ऋतु में कम, िषाव
• क्षेत्र: सडू ान, द. अमेररका में (िेनेजएु ला, ऋतु में अविक
आतं ररक पिू ी ब्राजील एिं परानिे), अरीका • िषाव: औसत िावषवक िषाव 40-200 CM
में (सहारा की द. सीमा से लगे क्षेत्र, पिू ी तक, महासागरीय एिं मानसनू ी पिनों द्वारा
अरीका) एिं ऑस्ट्रेवलया का उिरी, उ. एिं उष्ण कवटबंिीय चक्रिातों द्वारा िषाव
पिू ी तथा मध्य क्षेत्र • िन: उष्ण कवटबंिीय पणवपाती/मानसनू ी िन

105
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• िनस्पवत: साल, सागिान, शीशम, बााँस, • तापमान: अविकतम तापमान कम तथा
बेंत, बेर, बबल
ू आवद । िावषवक तापान्द्तर भी कम
4. शष्ु क मरुस्थलीय (सहारा तल्ु य): • आरवता: 70-80%
• िषाव: औसत िावषवक िषाव 58 CM
• क्षेत्र: द.प. USA, उिरी मैवक्सको, उिरी
अरीका, पवश्चमी एिं दवक्षण एवशया में 6. उष्ण शीतोष्ण पिू ी सीमान्द्त (चीन
अरब, पावकस्तान एिं भारत का पवश्चमी तल्ु य):
भाग, द. अमेररका में अटाकामा, द.प.
अरीका में कालाहारी आवद। • क्षेत्र: मध्यिती चीन, द.प.ू USA, दवक्षण
ब्राजील, अजेंटीना का पिू ी भाग, द. प.ू
• िायदु ाब: वनमन िायदु ाब
अरीका एिं द.प.ू ऑस्ट्रेवलया
• पिन प्रिाह: व्यापाररक / सन्द्मागी पिनें
• िायदु ाब: उच्च िायदु ाब
• तापमान:
• पिन प्रिाह: िायु की शांत दशा, अश्व
o सवदवयों में औसत तापमान 10°C, अक्षांश
o गवमवयों में औसत तापमान 30°C,
• तापमान: औसत तापमान 20°C से 22°C
o िावषवक तापान्द्तर 20°C
तक, िावषवक तापान्द्तर 12°C-18°C
• आरवता: अवत न्द्यनू
• आरवता: ग्रीष्म ऋतु शष्ु क, शीत ऋतु आरव
• िषाव: औसत िावषवक िषाव 10-12 CM
• िषाव: औसत िावषवक िषाव 40-80CM /
• िन: उष्ण कवटबंिीय मरुस्थलीय यहााँ पछुआ पिनों के प्रभाि से शीत ऋतु में
• िनस्पवत: मेवस्क (द.प. USA), वक्रयाशॉट िषाव तथा सन्द्मागी / व्यापाररक पिनों के
झाडी, नागफनी, खजरू , बबल ू , खेजडी, प्रभाि से ग्रीष्म ऋतु शष्ु क अथिा कम िषाव।
मैमीलेररया, यकू ा, सीरस, अगेि आवद । • िन: उपोष्ण कवटबिं ीय सदाबहार िन
5. उष्णकवटबंिीय सागरीय जलिाय:ु • िनस्पवत: ओक, लॉरे ल, मैननेवलया, बीच,
मैपल, चेस्टनट, एश िालनट आवद।
• क्षेत्र: उष्ण कवटबिं ीय महासागरों के पवश्चमी
क्षेत्र, मध्य अमेररका, पिू ी अरीका, 7. भमू ध्य सागरीय जलिाय:ु
मेडागास्कर, उ.प.ू ऑस्ट्रेवलया, पिू ी ब्राजील
• क्षेत्र: भमू ध्य सागर के तटिती भाग (स्पेन,
ि द. अमेररका का कै ररवबयाई भाग,
इटली, रांस, जमवनी, मोरक्को, लीवबया,
वफलीपींस तथा क्यबू ा
ट्यवू नवशया, अल्जीररया, वमस्त्र, अरब
• िायदु ाब: वनमन िायदु ाब पेटी गणराज्य), कै वलफॉवनवया, मध्य वचली, द.
• पिन प्रिाह: व्यापाररक / सन्द्मागी पिनें अरीका एिं द. ऑस्ट्रेवलया

106
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• िायदु ाब: वनमन िायदु ाब पेटी एिं उच्च • घास के मैदान:
िायदु ाब पेटी के मध्य वस्थत o स्टेपी – यरू े वशया
• पिन प्रिाह: पछुआ पिनें o डाउन्द्स – ऑस्ट्रेवलया
• तापमान: o प्रेयरी – उ. अमेररका
o औसत तापमान: 20°C-26°C o पमपास – द. अमेररका
(ग्रीष्म ऋत)ु o िेल्ड – द. अरीका
o औसत तापमान: 5°C-15°C 9. वब्रवटश तल्ु य जलिाय:ु
(शीत ऋत)ु
o िावषवक तापान्द्तर: 10°C-15°C • क्षेत्र: वब्रवटश कोलंवबया, उ. प. यरू ोप, तटीय
[दैवनक तापान्द्तर अविक] द. वचली, तस्मावनया, न्द्यजू ीलैंड के दवक्षणी
• आरवता: ग्रीष्म ऋतु शष्ु क, शीत ऋतु आरव द्वीप
(शीत ऋतु में िषाव होती है ग्रीष्म ऋतु में नहीं) • िायदु ाब: वनमन िायदु ाब पेटी
• िषाव: औसत िावषवक िषाव 40-80 CM • पिन प्रिाह: पछुआ पिनें एिं ध्रिु ीय पिनें
• िन: भमू ध्य सागरीय िन • तापमान:
• िनस्पवत: कॉकव , ओक, जैतून, चेस्टनट, o शीत ऋत:ु औसत तापमान 4°C
पाइन, चैपरल झाडी एिं रसदार फल o ग्रीष्म ऋत:ु औसत तापमान 16°C
o िावषवक तापान्द्तर: 8°C से 12°C
8. शीतोष्ण कवटबंिीय घास के मैदान: तक
• क्षेत्र: यरू ोप एिं मध्य एवशया का उ.प.ू भाग, • आरवता: शीत ऋतु में अविक
उ. अमेररका, अजेंटीना, अरीका एिं • िषाव: औसत िावषवक िषाव 60 CM से 100
ऑस्ट्रेवलया CM तक
• िायदु ाब: वनमन िायदु ाब • िन: उपध्रिु ीय िन
• पिन प्रिाह: पछुआ पिनें एिं ध्रिु ीय पिनें • िनस्पवत: चीड, देिदार, ओक, पाइन आवद।
• तापमान: 26°C (ग्रीष्म ऋत)ु , शीत ऋतु में
वहमाक
10. साइबेररया तल्ु य जलिाय:ु
ं से नीचे
• अपिाद: द. गोलाद्व में समरु ी प्रभाि के • क्षेत्र: कनाडा का उिरी भाग, उ. अमेररका
कारण औसत तापमान 10°C तक शीत का उिरी भाग, यरू े वशया का रूस एिं
ऋतु में रहता है। साइबेररयाई भाग
• आरवता: गवमवयों में अविक सवदवयों में कम • िायदु ाब: वनमन िायदु ाब एिं उच्च िायदु ाब
• िषाव: औसत िावषवक िषाव 40 CM से 70 पेटी के मध्य
CM तक • पिन प्रिाह: पछुआ पिनें एिं ध्रिु ीय पिनें

107
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• तापमान: िावषवक तापान्द्तर 55°C तक 11. ध्रिु ीय जलिायु / टुन्द्ड्रा जलिाय:ु
o विश्व का न्द्यनू तम तापमान:
• क्षेत्र: उिरी कनाडा, उिरी एवशया में
बखोयान्द्स्क (-58°C)
साइबेररया से ध्रिु ों तक
• आरवता: अवत न्द्यनू
• िायदु ाब: उच्च िायदु ाब
• िषाव: औसत िावषवक िषाव 38 CM से
• पिन प्रिाह: ध्रिु ीय पिनें
अविक नहीं
• तापमान: िावषवक तापान्द्तर 40°C से 50°C
• िन: टैगा िन / शंकुिारी िन / कोणिारी िन
तक
• िनस्पवत: लाचव, स्प्रसू , मॉस, लाइके न, चीड,
• आरवता: वनमन आरवता
देिदार, फर, हेमलॉक आवद।
• िषाव: औसत िावषवक िषाव 25 CM
• िन: टुण्ड्रा िन
• िनस्पवत: के िल ग्रीष्म ऋतु में 2-3 माह तक
ही िनस्पवत का विकास होता है, अविकतर
बफव जमी रहती है।

108
विश्व भगू ोल राज होल्कर
वमट्टी / मदृ ा (Soil)
वमट्टी (Soil): वमट्टी खवनज एिं जैविक तत्िों का ऐसा वमश्रण होती है वजसमें उिवरता की शवक्त होती है। यह िरातल
के ऊपरी भाग में पायी जाती है। मृदा को अनिीकरणीय (Non-Renewable) ससं ािन माना जाता है।
मदृ ा वनमावण के कारक:
• आिारभतू चट्टान या आिारभूत जनक पदाथव जलिायु (Climate)
• स्थलाकृ वतक उच्चािच जैविक प्रभाि
मदृ ा पररच्छे वदका (Soil Profile):
मृदा पररच्छे वदका में चट्टानों से प्राप्त अपक्षवयत पदाथव ही होते हैं परन्द्तु आिारी चट्टान वजस पर मृदा का वनक्षेप होता
है, स्ियं पररच्छे वदका का भाग नहीं होती। इस आिार पर चट्टान के ऊपर के तीन संस्तर एक-दसू रे के ऊपर होते हैं।
क – सस्ं तर (A – Horizon):
यह वमट्टी का सबसे ऊपरी स्तर है वजसमें जैि पदाथव तथा ह्यमू स होता है। इसे ऊपरी स्तर (Top Soil) भी
कहते हैं। इसके ऊपरी भाग में ह्यमू स तथा वनचले भाग में जैि तत्िों की अविकता होती है। इस स्तर के
तीसरे भाग में जल द्वारा ऊपरी भागों में ह्यमू स तथा जैि पदाथव ले लाया जाता है। इसे अपिहन क्षेत्र (Zone
of Eluviation) कहते हैं।
ख – संस्तर (B – Horizon):
क – संस्तर के नीचे ख – संस्तर होता है। इसे मध्य संस्तर (Sub – Soil) भी कहते हैं। इसके ऊपरी भाग
को संक्रमण (Transitional) क्षेत्र कहते हैं। इसके वनचले भाग में कोलॉयड (Colloids) बहुत अविक
होते हैं। इसे विवनक्षेपण क्षेत्र (Zone of Illuviation) कहते हैं।
ग – सस्ं तर (C – Horizon): इसमें अपक्षवयत मूल चट्टानी पदाथव होता है।
घ – संस्तर (D – Horizon):
इसमें मलू चट्टानी पदाथव होता है, वजसका अपक्षय नहीं हुआ। इसे आिार चट्टान भी कहते हैं। िास्ति में
यह मल ू चट्टानी भाग है वजस पर अन्द्य तीन संस्तर वटके हुए हैं। अतः यह मृदा पररच्छे वदका का भाग नहीं
है।

109
विश्व भगू ोल राज होल्कर
मदृ ा का िगीकरण:
1. क्षेत्रीय मृदा (Zonal Soil)
a. पेडाल्फर [63.5 CM से अविक िषाव]
उदाहरण: पॉडजॉल मृदा, लाल-पीली मृदा, लैटराइट मृदा, चरनोजम (काली मृदा), टुण्ड्रा मृदा
b. पेडोकल [63.5 CM से कम िषाव]
उदाहरण: प्रेयरी मृदा, चेस्टनट मृदा, सरोजेमस मृदा, मरुस्थलीय मृदा
2. अक्षेत्रीय मृदा (Azonal soil)
a. जलोढ़ मृदा
b. लोएस मृदा

1. क्षेत्रीय मदृ ा (Zonal Soil):


यह मृदा अपनी आिारी चट्टानों से संबंवित होती है। इस मृदा में संस्तरों का पूणव विकास वमलता है। इसे दो भागों में
विभावजत वकया जाता है –
A. पेडाल्फर मृदा
B. पेडोकल मृदा
A. पेडाल्फर मृदा:
i. पॉडजॉल मृदा:
• यह कोणिारी उच्च अक्षांशीय प्रदेशों में पायी जाती है।
• इसमें ह्यमू स की मात्रा कम होती है।
• यह अमलीय तथा कम उपजाऊ होती है।
• खाद, उिवरक एिं फसल शस्याितवन से उपजाऊ बनायी जा सकती है।
ii. लाल पीली मृदा:
• यह उष्ण कवटबंिीय उच्च ताप एिं उच्च आरवता िाले प्रदेशों में पायी जाती है।
• इसमें ह्यूमस की मात्रा कम होती है।
• इसका लाल रंग लोहे की उपवस्थवत के कारण होता है।
• इसमें कै वल्सयम की मात्रा कम होती है। यह अमलीय मृदा होती है।
• यह कपास एिं तमबाकू उत्पादन के वलए उपयक्त
ु मृदा है।
• यह चीड के िृक्षों के वलए उपयक्त
ु मृदा है।

110
विश्व भगू ोल राज होल्कर
iii. लैटराइट मृदा:
• यह भमू ध्य रे खीय सिाना, उष्ण एिं आरव जलिायु प्रदेशों में विस्ताररत है। इसका वनमावण वनक्षालन
वक्रया द्वारा हुआ है।
• इसमें ह्यमू स का पणू वतः अभाि पाया जाता है।
• इसमें लोहे एिं एल्यवु मवनयम के वनक्षेप पाए जाते हैं।
• इसमें बॉक्साइट, वलमोनाइट एिं मैननेटाइट खवनज पाया जाता है।
• यह कृ वष के उद्देश्य से अनपु युक्त मृदा है।
• इस मृदा क्षेत्र में कठोर लकड़ी िाली एिं कांटेदार िनस्पवत पायी जाती है।
• यह मृदा जायरे बेवसन, अमेजन बेवसन एिं द. प.ू एवशया में पायी जाती है।
B. पेडोकल मृदा:
iv. चरनोजम (काली मृदा):
• यह समशीतोष्ण (Semi-Temperate) क्षेत्रों में पायी जाती है।
• इस मृदा में ह्यमू स एिं कै वल्सयम की मात्रा अविक होती है।
• इस मृदा की आरवता ग्रहण क्षमता अविक होती है इसवलए वसंचाई की आिश्यकता कम होती है।
• यह मृदा रूस के स्टेपी, उिरी अमेररका के प्रेयरी, अजेंटीना के पमपास, अरीका के िेल्ड क्षेत्रों में
पायी जाती है।
v. टुण्ड्रा मृदा:
• यह टुण्ड्रा प्रदेशों में पायी जाती है।
• यह अल्प विकवसत मृदा होती है।
• इसमें जैि तत्िों एिं महत्िपणू व खवनजों का अभाि पाया जाता है।
• इस मृदा क्षेत्र में काई (Lichen) एिं मॉस (Moss) मख्ु यत: पायी जाती है।
vi. प्रेयरी मृदा:
• यह शीतोष्ण आरव प्रदेशों में लंबी घास भवू मयों में पायी जाने िाली मृदा है।
• इस मृदा में चरनोजम एिं पॉड्जॉल मृदा के वमवश्रत गुण पाये जाते हैं।
• ह्यमू स की अविकता के कारण इसका रंग काला भरू ा होता है।
• यह मृदा अत्यंत उपजाऊ होती है। इसमें चनू े का अंश भी पाया जाता है।
• मक्का इस मृदा क्षेत्र की मख्ु य फसल है।
• यह मृदा उिरी अमेररका के प्रेयरी, दवक्षणी अमेररका के पमपास, हाँगरी के पस्ु टाज, ऑस्ट्रेवलया की
डाउन्द्स घास भूवमयों में पायी जाती है।

111
विश्व भगू ोल राज होल्कर
vii. चेस्टनट मृदा:
• यह मृदा महाद्वीपों के शष्ु क एिं अद्वशष्ु क भागों में पायी जाती है।
• इसका रंग गहरा भरू ा होता है।
• इसमें ह्यमू स की मात्रा कम पायी जाती है।
• यह सिाना प्रकार की घास के मैदानों में पायी जाती है।
viii. सायरोजम / सरोजेमस मृदा:
• इसमें ह्यूमस की मात्रा कम वकन्द्तु पोषक तत्िों की मात्रा पयावप्त होती है।
• यह क्षारीय मृदा है इसमें चनू ा सतह पर जमा रहता है।
• यह उष्ण कवटबंिीय शष्ु क मरुस्थलीय प्रदेशों में पायी जाती है।
ix. मरुस्थलीय मृदा:
• यह मृदा कम िषाव, अविक तापमान एिं अविक िाष्पीकरण िाले शष्ु क मरुस्थलीय प्रदेशों में
पायी जाती है।
• इस मृदा में उपजाऊ तत्िों का जल द्वारा ररसाि (Leaching) वबल्कुल नहीं होता।
• यह क्षारीय मृदा होती है इसमें ह्यमू स का अभाि होता है।
• इस मृदा क्षेत्र पर िनस्पवतयों का अभाि पाया जाता है।
• यह मृदा उपजाऊ होती है वकन्द्तु वसंचाई आिश्यक होती है।

2. अक्षेत्रीय मदृ ा (Azonal Soil):


• यह वमट्टी स्थानीय उत्पवि नहीं रखती। यह अपरदन के कारकों द्वारा बहा कर लायी जाती है।
• इसमें आिारी चट्टान से पणू वतः वभन्द्न पावश्ववका वमलती है।
• इस वमट्टी में सस्ं तरों का विकास ठीक से नहीं वमलता।
A. जलोढ़ मृदा:
• विश्व की सभी बड़ी नवदयों की घावटयों में यह मृदा पायी जाती है।
• आिश्यक खवनज तत्िों की दृवि से यह िनी मृदा है।
• यह विश्व की सिावविक उपजाऊ मृदाओ ं में से एक है।
• यह मृदा चािल, जटू , गेह,ाँ गन्द्ना, कपास की कृ वष के वलए उपयोगी है।

112
विश्व भगू ोल राज होल्कर
B. लोएश मृदा:
• इसका सिावविक विस्तार उिर-पवश्चम चीन में है। मध्यिती यरू ोप एिं वमसीवसपी प्रदेश में भी यह मृदा
पायी जाती है। इस मृदा में अपक्षालन (Leaching) की वक्रया नहीं होती। यह एक उपजाक मृदा है।
इसके वलए वसंचाई की आिश्यकता होती है।
मदृ ा का निीन िगीकरण:
A. अविकवसत मृदा सस्ं तरों िाली वमरट्टयााँ:
1. एटं ीसॉल (Entisol):
स्थान: सहारा, अलास्का, साइबेररया, वतब्बत
विशेषता: यह अविकवसत मृदा है। इसमें संस्तरों का अभाि पाया जाता है।
2. इसं ेप्टीसॉल (Inceptisol):
स्थान: अमेररका, वचली, कोलंवबया, स्पेन, रांस, साइबेररया, पिू ी चीन एिं गंगा घाटी (बाढ क्षेत्र),
टुण्ड्रा एिं अल्पाइन क्षेत्र
विशेषता: यह नतू न वमट्टी है। इसमें संस्तर अल्पविकवसत अिस्था में होते हैं। इसमें अपक्षालन एिं
अपक्षयन की तीव्रता कम होती है।
3. वहस्टोसॉल (Histosol):
स्थान: शीत प्रदेशों में
विशेषता: यह अमलीय एिं कुप्रिावहत वमट्टी है। यह दलदली वमट्टी है। यह जैविक परतों से सपं न्द्न
वमट्टी है। इसमें पौिों के वियोवजत अिशेष अविक एिं मृविका की मात्रा कम होती है। इसमें पोषक
तत्िों की कमी होती है। चनू े एिं उिवरकों द्वारा इसे उपजाऊ बनाया जा सकता है।
B. विकवसत मृदा/संस्तरों िाली मृदाएं:
1. ऑक्सीसॉल:
स्थान: उिरी ब्राजील, अरीका, द. प.ू एवशया
विशेषता: इस मृदा में Fe एिं Al ऑक्साइडों की प्रचरु ता होती है। यह उष्ण कवटबंिीय भागों की
वमट्टी है जो वनक्षालन प्रवक्रया से वनवमवत होती है। यह गहन अपक्षावलत मृदा है। इसमें वसवलके ट
उपवस्थत नहीं होते। यहााँ झवू मंग कृ वष की जाती है।
2. अल्टीसॉल:

113
विश्व भगू ोल राज होल्कर
स्थान: द. प.ू अमेररका, उ.प.ू ऑस्ट्रेवलया, द.प.ू एवशया, द. ब्राजील, परानिे
विशेषता: यह उष्ण एिं उपोषण प्रदेश की वमरट्टयां हैं जो उपजाऊ तथा लाल, पीली एिं भरू ी होती
हैं। ये अमलीय वमरट्टयााँ हैं। ये ऑक्सीकरण के कारण लाल रंग की होती हैं।
3. िटीसॉल / इनिटीसॉल:
स्थान: पिू ी अमेररका, द. अमेररका, सडू ान, भारत एिं ऑस्ट्रेवलया
विशेषता: यह रे गरु या रें डवजना वमट्टी के समान है। सख
ू ने पर इसमें दरारें पड़ जाती हैं। गीली होने
पर यह वचपवचपी हो जाती है। इस मृदा की जलिारण क्षमता अविक होती है।
4. अल्फीसॉल:
स्थान: अमेररका, प.ू ब्राजील, भारत, द. प.ू एवशया के पणवपाती िन प्रांतों में
विशेषता: ये आरव एिं उप आरव प्रदेशों की मृदाएं हैं। वनक्षालन के कारण इसमें Al एिं Fe की
अविकता होती है। ये अमलीय मृदाएं होती हैं। इनमें ह्यमू स की कमी होती है। ये कम उिवर मृदा
होती हैं। इनकी सतह का रंग सलेटी एिं मृदा का रंग भरू ा होता है।
5. स्पोडोसॉल:
स्थान: उिरी अमेररका, उिरी यरू ोप, द. अमेररका एिं ऑस्ट्रेवलया
विशेषता: यह पॉडजॉल समहू की वमरट्टयों के समान होती है। यह वमट्टी टैगा क्षेत्रों में पायी जाती
है। यह अमलीय वमवटयााँ होती हैं। इस प्रकार की वमरट्टयों में वनक्षालन वक्रया तीव्र एिं जैविक वक्रयाएं
कम होती हैं। इनकी जलिारण क्षमता कम होती है।
6. मोलीसॉल:
स्थान: अमेररका, चीन, मंगोवलया, परानिे, उरुनिे, ऑस्ट्रेवलया, अजेंटीना आवद
विशेषता: यह विश्व की सिावविक उपजाऊ वमट्टी है एिं चरनोजम के समान होती है। प्रेयरी एिं
चेस्टनट वमरट्टयों को भी इसी समहू में रखा जा सकता है। ये वमरट्टयााँ गहरी भरू ी या काले रंग की
होती हैं। इसमें ह्यमू स की पयावप्त मात्रा होती हैं। इन वमरट्टयों में घास के मैदानों का विकास होता है।
7. एररडोसॉल:
स्थान: द.प. अमेररका, मध्य मैवक्सको, सहारा, ऑस्ट्रेवलया, गोबी क्षेत्र, द. अमेररका का पवश्चमी
क्षेत्र।
विशेषता: ये रे वगस्तानी प्रदेशों की लिणीय ि क्षारीय वमट्टी है। इस वमट्टी की सतह पर सोवडयम
अथिा कै वल्सयम की परत होती है। इनमें वनक्षालन नहीं होता, जैविक पदाथव का अभाि पाया
जाता है। यह मल ू तः मरुस्थलीय मृदाएं है।

114
विश्व भगू ोल राज होल्कर
कृवष (Agriculture)
विश्व में कृवष के विशेष प्रकार
• विटीकल्चर: अंगरू ों की खेती सेरीकल्चर: रे शम उत्पादन
• ओवलिीकल्चर: जैतनू की खेती हॉटीकल्चर: फलों का उत्पादन
• एपीकल्चर: मिमु क्खी पालन फ्लोरीकल्चर: फूलों की खेती
• ओलेरीकल्चर: सवब्जयों की खेती मेरीकल्चर: समरु ी जीिों का उत्पादन
• िमीकल्चर: कें चआ
ु पालन मोरीकल्चर: शहततू की कृ वष
• एरीपोवनक: पौिों को हिा में उगाना पोमोलॉजी: फल विज्ञान
• वपसीकल्चर / एक्िाकल्चर: व्यापाररक स्तर पर मछली पालन
• आरबरीकल्चर: विशेष प्रकार के िृक्ष एिं झावडयों की खेती एिं सरं क्षण
• वसल्िीकल्चर: िनों का संरक्षण एिं संिद्वन
िनस्पवतयों का िगीकरण
• हाइड्रोफाइट: जल की ऊपरी सतह पर उगने िाली िनस्पवत
• हाइग्रोफाइट: अविक आरवता िाले क्षेत्रों में पायी जाने िाली िनस्पवत
• जेरोफाइट (Xerophyte): मरुस्थल में उगने िाली िनस्पवत
• मेसोफाइल (Mesophyte): शीतोष्ण कवटबंिीय टैगा िनस्पवत
• क्रायोफाइट (Cryophyte): शीत कवटबंिीय टुण्ड्रा िनस्पवत
• हैलोफाइट (Halophyte): नमकीन वमट्टी की िनस्पवत
• वलथोफाइट (Lithophyte): कठोर चट्टानों पर उगने िाली िनस्पवत
• पायरोफाइट (Pyrophyte): अवनन प्रवतरोिी िनस्पवत
• ट्रोपोफाइट (Tropophyte): उष्ण कवटबिं ीय क्षेत्र में िन एिं घास िाली िनस्पवत
कृ वष से संबंवित विवभन्द्न क्रांवतयााँ:
• हररत क्रांवत: कृ वष उत्पादन श्वेत क्रांवत: दनु ि उत्पादन
• नीली क्रांवत: मत्स्य उत्पादन गल
ु ाबी क्रांवत: झींगा मछली उत्पादन
• लाल क्रांवत: मााँस / टमाटर उत्पादन गोल क्रांवत: आलू उत्पादन
• रजत क्रांवत: अण्डा उत्पादन सनु हरी क्रांवत: फल उत्पादन

115
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• काली / कृ ष्ण क्रांवत: खवनज तेल में आत्मवनभवरता अमृत क्रावं त: नदी जोड़ो योजना
• पीली क्रावं त: सयू वमखु ी एिं अन्द्य वतलहनों का उत्पादन
• इरं िनषु ी क्रावं त: फसल उत्पादन में विवभन्द्नता (कृ वष सबं िं ी समग्र क्रावं त)
• भरू ी क्रांवत: गैर परंपरागत ऊजाव उत्पादन एिं उिवरक उत्पादन

कृवष के विवभन्द्न प्रकार एिं पध्दवतयााँ


झमू कृ वष: [स्थानान्द्तररत कृ वष]
इस कृ वष में पहले िनों में आग लगाकर उसे साफ वकया जाता है तथा कुछ िषव तक उस भवू म पर कृ वष की
जाती है। भवू म की उत्पादकता समाप्त होने या कम होने पर उसे छोड़ वदया जाता है वफर वकसी अन्द्य स्थान
पर इसी प्रकार कृ वष की जाती है।
वनिावहक कृ वष:
इस प्रकार की कृ वष में खाद्य फसलों की प्रिानता होती है। इसमें एक िषव में दो या तीन फसलें सघन रूप में
उगायी जाती हैं। इस कृ वष में वसंचाई सवु ििाओ ं की कमी, सूखा तथा बाढ़ की क्षवत, उन्द्नत बीज उिवरकों
एिं कीटनाशकों का न्द्यनू प्रयोग होता है।
िावणवज्यक कृ वष:
यह पणू वत: व्यापाररक उद्देश्य से की जाने िाली कृ वष है, वजसमें नकदी फसलों का उत्पादन वकया जाता है।
इस कृ वष में वसचं ाई, उन्द्नत वकस्म के अविक उपज िाले बीज, रासायवनक उिवरक, कीटनाशी, फामव मशीनरी
पर विशेष ध्यान वदया जाता है। यह एक पाँजू ी सघन कृ वष है, वजसमें फसलों का अविशेष उत्पादन बाजार
में लाभ कमाने के वलए वकया जाता है।
रें वचंग खेती:
इस प्रकार की कृ वष में फसल का उत्पादन नहीं वकया जाता बवल्क प्राकृ वतक िनस्पवत पर विवभन्द्न प्रकार
के पशओु ं जैसे – गाय, भेड, बकरी आवद को चराया जाता है।
सहकारी खेती:
यह कृ वष खेती के छोटे तथा वबखरे होने की समस्या के समािान तथा भवू म का सामाजीकरण कर भवू महीनों,
छोटे वकसानों तथा कृ वष श्रवमकों के साथ न्द्याय करने के उद्देश्य से की जाती है। कृ वष की इस पद्वत में
वकसान परस्पर लाभ के उद्देश्य से स्िेच्छापिू वक अपनी भवू म, श्रम और पाँजू ी को एकत्र करके सामवू हक रूप
से खेती करते हैं।

116
विश्व भगू ोल राज होल्कर
गहन कृ वष:
यह कृ वष अविक जनसंख्या घनत्ि तथा कम भवू म उपलब्िता िाले क्षेत्रों में की जाती है। इसमें भवू म की
प्रत्येक इकाई पर अविक मात्रा में पाँजू ी एिं श्रम का उपयोग कर एक वनवश्चत समयािवि में फसलों का
अविकतम संभि उत्पादन वकया जाता है। इसमें रासायवनक उिवरकों, उन्द्नत बीजों, कीटनाशक दिाइयों,
वसंचाई, फसल चक्रण आवद का अविकतम प्रयोग वकया जाता है।
वमवश्रत कृ वष: इस प्रकार की कृ वष में कृ वष कायों के साथ पशपु ालन भी वकया जाता है।
रोपण/बागानी कृ वष: यह पणू वत: व्यापाररक उद्देश्य से की जाती है। इसमें नगदी फसलों का उत्पादन वकया जाता है।
डेयरी फावमिंग: इस प्रकार की कृ वष में दिू देने िाले पशओ
ु ं को पाला जाता है।
ट्रक फावमिंग: यह व्यापाररक स्तर पर की जाने िाली कृ वष है इसमें सवब्जयों एिं फलों की खेती की जाती है। इनके
पररिहन के वलए बड़े-बड़े ट्रकों का प्रयोग वकया जाता है।
ररले कृ वष: इसमें खड़ी फसल के नीचे दसू री अन्द्य फसल को बोया जाता है।
चक्रीय कृ वष: इसमें फसलें चक्रीय रूप में बोयी जाती हैं तावक खेतों की उिवरता बनी रहे। इसमें मुख्य रूप से फलीदार
पौिों को उगाया जाता है।
विश्व की प्रमख
ु फसलें
1. चािल:
• चािल एवशया की प्रमख
ु िान्द्य फसल है। यह मुख्यतः एवशया के मानसनू ी प्रदेशों में बोयी जाती है।
• विश्व का लगभग 90% चािल दवक्षण पिू ी एवशया में पैदा वकया जाता है।
• चीन, भारत, इडं ोनेवशया, बानं लादेश एिं वियतनाम प्रमख
ु चािल उत्पादक देश हैं।
• आिश्यक भौगोवलक दशाए:ं
o तापमान: 20° - 27° C
o िषाव: 150 – 200 CM
o वमट्टी: वचकनी, गहरी वचकनी एिं वचकनी दोमट
• अंतरावष्ट्रीय चािल अनसु ंिान संस्थान मनीला (वफलीपींस) में वस्थत है।
• विश्व में सिावविक िान उत्पादकता ऑस्ट्रेवलया की है।
• भारत, चािल की फसल के अन्द्तगवत विश्व में सिावविक क्षेत्रफल रखता है।
• भारत का चािल के उत्पादन में चीन के बाद वद्वतीय स्थान है।
• शीषव चािल उत्पादक देश [FAO, िषव 2019]: 1. चीन 2. भारत 3. इडं ोनेवशया

117
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• शीषव चािल वनयावतक देश: 1. भारत 2. थाईलैंड 3. वियतनाम 4. पावकस्तान
2. गेहाँ (Wheat)
• गेहाँ की जन्द्मभवू म वफवलस्तीन मानी जाती है। यह विश्व की दसू री सबसे बड़ी खाद्यान्द्न फसल है।
• आिश्यक भौगोवलक दशाएं:
o बसतं कालीन तापमान: 20°-26° C
o शीत कालीन तापमान: 10°-15°C
o िषाव: 50-75 CM
o वमट्टी: दोमट, भारी दोमट, हल्की वचकनी काली वमट्टी
• शीषव गेहाँ उत्पादक देश [FAO, िषव 2019]: 1. चीन 2. भारत 3. रूस 4.USA
• शीषव गेहं वनयावतक देश: 1. USA 2. कनाड 3. अजेंटीना 4. ऑस्ट्रेवलया
• यरू ोपीय देशों में रांस ही एकमात्र ऐसा देश है जो स्थानीय मांग की पवू तव के साथ-साथ गेहं का वनयावत भी
करता है।
3. मक्का (Maize):
• इसका जन्द्म स्थान मैवक्सको माना जाता है। यह एक उभयवलंगी पौिा होता है। यह उपोष्ण कवटबिं (मख्ु य
रूप से 50°N एिं 40°S के बीच) का पौिा है। मक्के के प्रोटीन को जेन (Zein) कहा जाता है।
• आिश्यक भौगोवलक दशाए:ं
o तापमान: 25° C - 30° C
o िषाव: 60-120 CM
o वमट्टी: वचकनी, दोमट, कांप
• शीषव मक्का उत्पादक देश [FAO, िषव 2019]: 1. USA 2. चीन 3. ब्राजील 4. अजेंटीना
4. कपास
• भारत को कपास का जन्द्मदाता माना जाता है।
• आिश्यक भौगोवलक दशाए:ं
o तापमान: 20° - 30° C
o िषाव: 75-100 CM
o वमट्टी: चीका प्रिान दोमट, काली वमट्टी एिं चनू ा प्रिान वमरट्टयााँ
• शीषव कपास उत्पादक देश (FAO, 2019): 1 चीन 2. भारत 3. USA. 4. ब्राजील

118
विश्व भगू ोल राज होल्कर
5. जटू / पटसन
• आिश्यक भौगोवलक दराएं:
o तापमान: 27°C से 37°C तक
o िषाव : 125-250 CM
o वमट्टी: कछारी, डेल्टाई कांप, गहरी उपजाऊ वमट्टी
• शीषव जटू उत्पादक देश (FAO, 2019): 1. भारत 2. बांनलादेश 3. चीन
6. गन्द्ना
• आिश्यक भौगोवलक दशाएं:
o िषाव: 75-150 CM (िावषवक)
o तापमान: 20° - 25°C
o वमट्टी: दोमट, चीका, काली वमट्टी, लाल वमटट्टी एिं लैटराइट वमट्टी
• नोट: एक बार फसल को जड़ के ऊपर से काटने के बाद पनु ः पैदािार लेना रतवू नंग कहलाता है।
• शीषव गन्द्ना उत्पादक देश (2019): 1. ब्राजील 2. भारत 3. थाईलैंड 4. चीन
7. कहिा (Coffee)
• उत्पवि स्थल – इवथयोवपया
• कहिा रोपण कृ वष की फसल है। कहिा की तीन मुख्य वकस्में –
o कॉवफया रोबस्टा
o कॉवफया लाइबेररया
o कॉवफया अरे वबका
• यमन के लाल सागर तटीय भाग में उत्पन्द्न होने िाला मोका (Mocca) एक उच्च कोवट का कहिा है।
• आिश्यक भौगोवलक दशाएाँ:
o तापमान: 14°C – 26°C तक
o िषाव: 150 – 300 CM
o वमट्टी: पोटाश यक्त
ु उपजाऊ वमट्टी, लैटराइट वमट्टी
• शीषव कहिा उत्पादक देश (2019): 1. ब्राजील 2. वियतनाम 3. कोलंवबया
• नोट: यह एक छायावप्रय पौिा है। अतः अन्द्य पेड़ों की छाया में लगाया जाता है। जड़ों में पानी नहीं रुकना
चावहए अत: ढलान िाली भवू म पर लगाया जाता है।

119
विश्व भगू ोल राज होल्कर
8. चाय (Tea)
• जन्द्म स्थान – चीन
• आिश्यक भौगोवलक दशाएं:
o तापमान: 20°- 30°C
o िषाव: 150-300 CM (सवु ितररत िषाव)
o वमट्टी: गहरी भरु भरु ी दोमट, हयूमस एिं लोहांश यक्त
ु , लैटराइट वमट्टी
• शीषव चाय उत्पादक देश (2019): 1 चीन 2. भारत 3. के न्द्या 4. श्री लंका
9. रबड़ (Rubber)
• जन्द्म स्थान – द. अमेररका की अमेजन घाटी
• आिश्यक भौगोवलक दशाएं:
o तापमान: 20°C-25°C
o िषाव: 25 CM (सवु ितररत िषाव)
o वमट्टी: गहरी दोमट
• शीषव रबड उत्पादक देश (2019): 1. थाईलैंड 2. इडं ोनेवशया 3. वियतनाम
10. कोकोआ (Cocoa)
• उपयोग: चॉकलेट बनाने में
• आिश्यक भौगोवलक दशाएं:
o तापमान: 16°-24° C
o िषाव: 125 CM
o वमट्टी: उपजाऊ दोमट
• शीषव कोकोआ उत्पादक देश (2019): 1. कोटे डी आइिरी 2. घाना 3. इडं ोनेवशया

120
विश्व भगू ोल राज होल्कर
विश्व के खवनज
खवनजों के प्रकार: खवनज दो प्रकार के होते हैं –
1. िावत्िक खवनज (Metallic Minerals) 2. अिावत्िक खवनज (Non-Metallic Minerals)
1. िावत्िक खवनज: इन खवनजों से िातएु ं प्राप्त की जाती हैं। िातओ
ु ं के उपिगव वनमनवलवखत हैं –
a) बहुमल्ू य िातएु :ं सोना, चांदी, प्लेवटनम, पैलेवथयम, इररवडयम
b) हल्की िातएु :ं एल्यवु मवनयम, टाइटेवनयम, मैननीवशयम
c) लौह यक्तु िातएु :ं क्रोवमयम, कोबाल्ट, मैंगनीज, वनके ल, टंगस्टन, मॉवलब्डेनम, बैनेवडयम, वजरकोवनयम,
बोरॉन राइटेवनयम आवद।
2. अिावत्िक खवनज: ये खवनज प्रकृ वत में अपने मल
ू रूप में पाए जाते हैं। इन खवनजों के उपिगव:
a) शवक्त के सािन: कोयला, खवनज तेल, पेट्रोवलयम, प्राकृ वतक गैस
b) उिवरक खवनज: नाइट्रेट, फास्फे ट, पोटाश, गन्द्िक, सल्फ्यरू रक अमल
c) रत्न एिं मावणक: हीरा, पन्द्ना, नीलम, ओपेल आवद

प्रमख
ु खवनज
1. लौह अयस्क (Iron Ore): लौह अयस्क के प्रकार –
• मैननेटाइट (Fe2O4): सिोिम वकस्म का लौह अयस्क है। इसमें लोहे का अश
ं 72% होता है।
• हेमटे ाइट (Fe2O3): इसमें लोहे का अंश 60-70% तक होता है।
• वलमोनाइट (2FeO3): इसमें लोहे का अंश 40-50% तक होता है।
• वसडेराइट: इसे लोहा काबोनेट कहते हैं। इसमें लोहे का अंश 40-45% तक होता है।
सिावविक लौह अयस्क भण्डारण (2021): 1. ऑस्ट्रेवलया 2. ब्राजील 3. रूस 4. चीन 5. भारत
लौह अयस्क उत्पादन में शीषव (2019): 1. ऑस्ट्रेवलया 2. चीन 3. ब्राजील 4. भारत 5. रूस
विश्व के लौह अयस्क उत्पादक प्रमख
ु क्षेत्र:
• चीन: मंचरू रया, शांतंगु , शान्द्सी, शेन यांग ब्राजील: इटावबरा पहाडी
• स्िीडन: वकरुना, गैलीबरा क्षेत्र यूक्रेन: वक्रिॉय रॉग
• द. अरीका: पोस्टमास िगव क्षेत्र, ट्रांसिाल, नेटाल रूस: मैवननटोगोसव पिवत, कुजबास, टुला क्षेत्र
• USA: सपु ीररयर झील प्रदेश (मेसाबी रें ज), अलबामा, पेंवसलिेवनया
• ऑस्ट्रेवलया: वपलबारा क्षेत्र, हैमस्ले खदान क्षेत्र, न्द्यू साउथ िेल्स

121
विश्व भगू ोल राज होल्कर
2. मैंगनीज (Manganese): यह लौह-इस्पात उद्योग का प्रमखु कच्चा माल है।
उपयोग: शष्ु क बैटररयों का वनमावण, फोटोग्राफी में प्रयक्त
ु लिण, चमड़ा तथा मावचस उद्योग, कााँच को रंगने में, पॉटरी,
पेन्द्ट, रंगीन ईटं आवद बनाने में।
अयस्क: पायरोलसु ाइट, मैंगेटाइट एिं रोडोक्रोसाइट
शीषव मैंगनीज भण्डारक देश (2021): 1. द. अरीका 2. ब्राजील 3. ऑस्ट्रेवलया
शीषव मैंगनीज उत्पादक देश (2019): 1. द. अरीका 2. गैबॉन 3. ऑस्ट्रेवलया
विश्व के मैंगनीज उत्पादक प्रमख
ु क्षेत्र:
• गैबॉन: माओड खान यूक्रेन: वनकोपोल
• ब्राजील: अमापा क्षेत्र, ऑरो ग्रेटो क्षेत्र जावजवया: चायतरु ा
• द. अरीका: पीटरमाररत्जबगव क्षेत्र, वकमबरले, क्रुनस ड्रॉप, संरैस
• चीन: अश
ं न-चागं वलंग, पेंकी क्षेत्र (द. मच
ं रू रया), हुनान, हुपे, तागं शगंु एिं बटु ान क्षेत्र, वकयांनसी

3. तााँबा (Copper)
तााँबे की प्रमख
ु वमश्रिातएु :ं
• तााँबा + वटन = कााँसा तााँबा + जस्ता = पीतल
तााँबे के अयस्क / खवनज:

• सल्फाइड: चेल्कोपायराइट, चेल्कोसाइट, बोनावइट ऑक्साइड: क्यप्रू ाइट


• काबोनेट: मैचेलाइट, एजरु ाइट
तााँबा भण्डारण िाले शीषव देश (2021): 1. वचली 2. पेरु 3. ऑस्ट्रेवलया
तााँबा उत्पादन में शीषव देश (2019): 1. वचली 2. पेरु 3: चीन 4. कांगो
विश्व के तााँबा उत्पादक क्षेत्र:
• वचली: चक्ु िीकमाटा पिवत USA: एररजोना प्रांत, मोंटाना प्रांत का बटू े क्षेत्र
• जायरे (कागं ो): कटंगा क्षेत्र कनाडा: सैडबरी (ओटं ाररयो)
• ऑस्ट्रेवलया : माउन्द्ट मॉगवन, माउन्द्ट ईसा, माउन्द्ट लायल
• द. अरीका: ट्रासं िाल, के पटाउन, नाबादीप, मेवसना

122
विश्व भगू ोल राज होल्कर
4. बॉक्साइट: यह एल्यवु मवनयम िातु का अयस्क है। बॉक्साइट में एल्यवु मना की मात्रा 55 से 65 प्रवतशत होती
है। एल्यवु मवनयम एक हल्की, मजबतू , आघातििवनीय, तन्द्य, ऊष्मा एिं विद्यतु की सच
ं ालक तथा िायमु ण्डलीय
सक्ष
ं ारण की प्रवतरोिी िातु है।
उपयोग: विद्यतु , िातक
ु मी, िैमावनकी, स्िचावलत िाहनों में, रसायन, रररे क्टरी अपघषी एिं ितवन बनाने में
बॉक्साइट भण्डारण िाले शीषव देश (2021): 1. वगनी 2. ऑस्ट्रेवलया 3. वियतनाम
बॉक्साइट उत्पादन िाले शीषव देश (2019): 1. ऑस्ट्रेवलया 2. वगनी 3. चीन
विश्व के बॉक्साइट उत्पादक क्षेत्र:
1. ऑस्ट्रेवलया: के पयाडव प्रायद्वीप, िाइपा, अनावहमलैंड 2. USA: सेलाइन काउंटी क्षेत्र
3. जमैका: सेंट एवलजाबेथ, सैंटमैरी क्षेत्र 4. वगनी: िोको द्वीप, बरुका द्वीप, कस्सा द्वीप
5. द. अरीका: उ. नेटाल प्रांत

5. वटन (Sn): वटन की प्रावप्त कै सीटेराइटं अयस्क से होती है।


वटन भण्डारण िाले शीषव देश (2018): 1. चीन 2. इण्डोनेवशया 3. ब्राजील
विश्व में वटन उत्पादक प्रमख
ु क्षेत्र:
1. चीन: यन्द्ु नान, हुनान, क्िांगसी 2. मलेवशया: पेनांग, सेलांगोर, साँगु ी, लेवमबंग
3. इण्डोनेवशया: बाँका, वबवलटन 4. थाईलैंड: यक
ू ेट
5. ऑस्ट्रेवलया: हरबटवन, तस्मावनया

6. स्िणव (Gold):
स्िणव भण्डारण िाले शीषव देश (2021): 1. ऑस्ट्रेवलया 2. रूस 3. USA
स्िणव उत्पादन िाले शीषव देश (2019): 1. चीन 2. ऑस्ट्रेवलया 3. रूस
विश्व में स्िणव उत्पादक प्रमख
ु क्षेत्र:
1. द. अरीका: वबटिाट्सरैं ड, जोहान्द्सबगव, बोक्सिगव, ऑरें ज री स्टेट, वकंबरले
2. USA: साल्ट लेक रें ज, अलास्का 3. ऑस्ट्रेवलया: माउन्द्ट मॉगवन, कालगल
ू ी, कूलगाडी

123
विश्व भगू ोल राज होल्कर
7. चााँदी (Silver): चााँदी का मख्ु य अयस्क अजेंटाइट है। चााँदी अविकतर जस्ता, तााँबा, सीसा के साथ वमवश्रत
रूप में पाया जाता है।
चााँदी भण्डारण िाले शीषव देश (2021): 1. पेरू 2. ऑस्ट्रेवलया 3. पोलैंड
चााँदी उत्पादन शीषव देश (2019): 1. मेवक्सको 2. पेरू 3.चीन
विश्व में चााँदी उत्पादक प्रमख
ु क्षेत्र:
1. मैवक्सको: वचहुआहुआ, वहण्डाहो 2. ऑस्ट्रेवलया: माउन्द्ट ईसा, ब्रोके न वहल, कालगल
ू ी
3. बोवलविया: पोटेसी 4. USA: यटू ाह, मोंटाना, एररजोना, कोलैरैडो
5. कनाडा: ओटं ाररयो, वब्रवटश कोलंवबया, क्यबू ेक 6. द. अरीका: ट्रांसिाल क्षेत्र, नेटाल क्षेत्र

8. सीसा एिं जस्ता (Lead and Zinc):


A. सीसा (Lead): सीसा का प्रमख
ु अयस्क गैलेना है।
उपयोग: लोहे की चादरों की कोवटंग, अमलीय टैंकों की लाइवनंग, स्टोरे ज बैटरी, एमयवु नशन वनमावण, प्लंवबंग का
सामान, िाययु ानों में इलेक्ट्रॉवनक मशीनों में
सीसा भण्डारण में विश्व में शीषव देश: 1. ऑस्ट्रेवलया 2. चीन 3. पेरू
सीसा उत्पादन में शीषव देश (2019): 1. चीन 2. ऑस्ट्रेवलया 3. पेरू
विश्व के प्रमख
ु सीसा उत्पादक क्षेत्र:
1. ऑस्ट्रेवलया: ब्रोकन वहल, माउन्द्ट ईसा 2. कनाडा: सैडबरी
3. पेरू: सरो-द-पास्को
B. जस्ता (Zinc): जस्ता का प्रमख
ु अयस्क स्फे लेराइट है।
उपयोग: लोहे को जंगरोिी बनाने में, वमश्र िात,ु शष्ु क बैटरी, इलेक्ट्रोड, पेंट, वसरावमक, स्याही, मावचस आवद में।
जस्ता भण्डारण में शीषव देश (2021): 1. ऑस्ट्रेवलया 2. चीन 3. मैवक्सको / रूस
जस्ता उत्पादन में शीषव देश (2019): 1. चीन 2. पेरू 3. ऑस्ट्रेवलया
विश्व के प्रमख
ु जस्ता उत्पादक क्षेत्र:
1. ऑस्ट्रेवलया: ब्रोके न वहल, माउन्द्ट ईसा 2. कनाडा: वब्रवटश कोलवं बया

124
विश्व भगू ोल राज होल्कर
9. हीरा (Diamond):
हीरा भण्डारण में शीषव देश (2021): 1. रूस 2. बोत्सिाना 3. कागं ो
हीरा उत्पादन में शीषव देश (2019): 1. रूस 2. बोत्सिाना 3. कनाडा
विश्व के प्रमख
ु हीरा उत्पादक क्षेत्र:
1. द. अरीका: वकमबरले, जोहान्द्सबगव, के पटाउन 2. कांगो: कटंगा पठार

10. कोयला (Coal): कोयला काबोवनफे रस काल की परतदार चट्टानों में पाया जाता है। इसे उद्योगों की जननी
भी कहा जाता है।
कोयला के प्रकार:
1. एथ्रं ेसाइट कोयला: यह सिोिम प्रकार का कोयला है। इसमें काबवन की मात्रा 80-95 प्रवतशत होती है। यह
जलते समय िआ ु ं नहीं देता।
2. वबटुवमनस कोयला: यह वद्वतीय श्रेणी का कोयला है। इसमें काबवन की मात्रा 55-65 प्रवतशत होती है।
गोंडिाना काल का कोयला इसी प्रकार का है।
3. वलननाइट कोयला: यह घवटया वकस्म का भरू ा कोयला है। इसमें काबवन की मात्रा 45-55 प्रवतशत होती है।
4. पीट कोयला: यह सबसे वनमन कोवट का कोयला है इसमें काबवन की मात्रा 45 प्रवतशत से कम होती है।
कोयला भण्डार में शीषव देश (2018): 1. USA 2. चीन 3. ऑस्ट्रेवलया
कोयला उत्पादन में शीषव देश (2019): 1. चीन 2. भारत 3. USA
विश्व के प्रमख
ु कोयला उत्पादक क्षेत्र:
1. USA: अप्लेवशयन क्षेत्र, वमसौरी, कन्द्सास, ओक्लोहामा, वमशीगन, टेक्सास
2. रूस: टुला- मास्को, कुजबास, कुजनेत्स्क, सखावलन, बैकाल झील क्षेत्र
3. यक्र
ू े न: डोनेट्ज/ डोनाबास क्षेत्र
4. चीन: हुपे-बीवजंग, शान्द्शी- सेन्द्शी, मॅन्द्चरू रया, शांटुंग, जेचिान, रे ड बेवसन
5. वब्रटेन: यॉकव शायर-नावटंघम-डबीशायर, वब्रस्टल 6. जमवनी: रूर घाटी, सार क्षेत्र
7. द. अरीका: ट्रासं िाल, नेटाल
8. ऑस्ट्रेवलया: न्द्यक
ू ै वसल, वलथगो, न्द्यू साउथ िेल्स, क्िींसलैंड, विक्टोररया प्रान्द्त

125
विश्व भगू ोल राज होल्कर
11. खवनज तेल एिं पेट्रोवलयम: पेट्रोवलयम टवशवयरी यगु की चट्टानों में पाया जाता है। पेट्रोवलयम
हाइड्रोकाबवन यौवगकों का वमश्रण है।
पेट्रोवलयम भण्डार िाले शीषव देश (2019): 1. िेनेजएु ला 2. सऊदी अरब 3. कनाडा 4. ईरान
पेट्रोवलयम (कच्चा तेल) उत्पादक शीषव देश (2019): 1. अमेररका 2. रूस 3. सऊदी अरब 4. इराक
विश्व के प्रमख
ु मेट्रोवलयम उत्पादक क्षेत्र:
1. USA: अप्लेवशयन क्षेत्र, गल्फ तटीय क्षेत्र, कै वलफॉवनवया
2. सऊदी अरब: अममान, िािर, आइनेदार, कावतफ 3. कुिैत: बरु हान पहाडी
4. ईरान: लाली, करमशाह, नफ्तसवदफ, हफ्तके ल, गच सारन
5. इराक: वकरकुक, मोसल, बसरा, वतकररक
6. िेनेजएु ला: मरकै बो सील, ओररवनको बेवसन, अपरू े बेवसन

12. प्राकृवतक गैस: प्राकृ वतक गैस अविकांशतः खवनज तेल के साथ पायी जाती है।
प्राकृ वतक गैस भण्डार िाले शीषव देश (2019): 1. रूस 2. ईरान 3 कतर
प्राकृ वतक गैस उत्पादन िाले शीषव देश (2019): 1.USA 2. रूस 3. ईरान
विश्व के प्राकृ वतक गैस उत्पादक प्रमख
ु क्षेत्र:
1. USA: टेक्सास, लवु सयाना, ओक्लोहामा, न्द्यमू ैवक्सको, कै वलफॉवनवया
2. कनाडा: अल्बटाव, वब्रवटश कोलंवबया 3. रूस: स्टाबरपल
ू , क्रास्नेदार, ओरे नबगव, िक
ु वटल, याकूवतया
4. यक्र
ू े न: शिेवलका 5. उज्बेवकस्तान: गजनी

13. यरू े वनयम: यरू ेवनयम के प्रमखु अयस्क वपचब्लेंड, सॉमर स्काइट एिं थोररयानाइट हैं। इसकी प्रावप्त मोनोजाइट,
पेनमेटाइट, चेरालाइट चट्टानों से होती है।
शीषव भण्डार िाले देश: ऑस्ट्रेवलया शीषव उत्पादक देश: 1. कजाखस्तान 2. कनाडा 3. ऑस्ट्रेवलया
विश्व के प्रमख
ु उत्पादक क्षेत्र:
1. कनाडा: अथािास्का झील (यरू े वनयम वसटी), ग्रेट वबयर झील (पोटव रे वडयम) 2. U.SA: कोलेरेडो पठार
3. कागं ो: कटंगा पठार

126
विश्व भगू ोल राज होल्कर
विश्व के प्रमख
ु उद्योग
जापान:
• नगोया को जापान का डेट्रायट कहते हैं।
• ओसाका को जापान का मानचेस्टर कहते हैं।
• कोबे एिं कािासाकी को जापान का पीट्सबगव कहा जाता है।
• क्िान्द्टा का मैदान: मोटरिाहन उद्योग, इलेक्ट्रॉवनक्स, इजं ीवनयररंग िस्तु एिं िाययु ान वनमावण
• वकंकी प्रदेश: सतू ी िस्त्र, लौह इस्पात एिं मोटर िाहन
• क्यूशू प्रदेश: लौह इस्पात, इजं ीवनयररंग एिं जहाज वनमावण
सं. रा. अमेररका:
• पीट्सबगव को विश्व की इस्पात राजिानी कहा जाता है।
• वशकागो: मासं प्रसस्ं करण डेट्रॉयट: मोटर कार उद्योग
• लॉस एवं जल्स: हॉलीिडु एिं एयरक्राफ्ट उद्योग बवमिंघम एिं आवलवयसं : इस्पात उद्योग
• कन्द्सास: वडब्बा बन्द्द मााँस प्लाइमाथ: जलयान वनमावण
• वसएटल: िाययु ान उद्योग सानरावं सस्को: वसवलकॉन िैली
• न्द्यू इनं लैंड: इजं ीवनयररंग, इलेक्ट्रॉवनक्स, ऊनी िस्त्र उद्योग, मत्स्य पालन
रूस:
• लेवननग्राड को रूस का वपट्सबगव कहा जाता है।
• मास्को इबानोि को रूस का मानचेस्टर कहा जाता है।
• टूला, वनजनीतावगल, मैननीटोगोस्कव , चेवलयावबन्द्स्क: लौह इस्पात के न्द्र
• ब्लाडीिोस्टक: जलयान वनमावण गोकी: इजं ीवनयररंग उद्योग
कनाडा:
• हैवमल्टन को कनाडा का बवमिंघम कहा जाता है।
• क्यबू ेक: जलपोत वनमावण ओटािा एिं मााँवट्रयल: कागज उद्योग

127
विश्व भगू ोल राज होल्कर
इनं लैंड:
• मानचेस्टर एिं वलिरपूल: सतू ी िस्त्र एिं जलपोत वनमावण
• ब्रेडफोडव एिं डबीशायर: ऊनी िस्त्र उद्योग
• बवकिं घम: लौह-इस्पात उत्पादन के न्द्र
जमवनी:
• रूर-बेस्टफावलया: लौह इस्पात के न्द्र मयवू नख एिं आनसबगव: रसायन उद्योग
• रें कफटव एिं हेमबगव: मोटरगाडी ि जलयान उद्योग डोटवमडं : लौह इस्पात एिं रसायन उद्योग
• राइन घाटी क्षेत्र जमवनी का सिावविक औद्योगीकृ त क्षेत्र है।
रांस:
• शैमपेन एिं बोडो: शराब उद्योग वलयॉनविलेज एिं लॉरे नसार क्षेत्र: लौह-इस्पात के न्द्र
• वलयॉन: रे शम िस्त्र उत्पादन टुलजु : लडाकू विमान वनमावण
चीन:
• शघं ाई: सतू ी िस्त्र उद्योग शघं ाई एिं क्िांगचाऊ: रे शम उत्पादन के न्द्र
• चांगचनु : ऑटो मोबाइल्स एिं मशीनरी वकयामजु े एिं क्िांग चाऊ: कागज उद्योग
• शघं ाई, िहु ान एिं क्िॉगऊ: जलपोत वनमावण के न्द्र
सॉफ्टिेयर उद्योग के न्द्र:
• माइक्रोसॉफ्ट: रे डमाण्ट (USA) एप्पल: कै वलफॉवनवया (USA)
• IBM: न्द्ययू ॉकव (USA) फे सबक
ु : कै वलफॉवनवया (USA)
• कॉमपैक: ह्यस्ू टन (USA) गगू ल: कै वलफॉवनवया (USA)
मोटर िाहन वनमावण के न्द्र:
• जापान: टोवकयो, नगोया USA: डेट्रॉयट, स्टुटगाडव, मेनहेम
• रूस: मास्को, गोकी ग्रेट वब्रटेन: बवकिं घम, ऑक्सफोडव
• कनाडा: विंडसर रांस: पेररस, वलयांशरे न्द्स

128
विश्व भगू ोल राज होल्कर
हिाई जहाज वनमावण के न्द्र:
• USA: वमशीगन, न्द्ययू ॉकव , ओवहयो, कनेक्टीकट रांस: टुलजु
• ग्रेट वब्रटेन: डबी, वक्रस्टल रूस: मास्को, गोकी, क्यबू ीसेि
जलयान वनमावण के न्द्र:
• जापान: टोवकयो, याकोहामा, कोबे जमवनी: हैमबगव, कील
• USA: डेलाबेयर, िाल्टीमोर, प्लाइमाथ रूस: लेवननग्राड, ब्लाडीिोस्टक
• स्पेन: बावसवलोना नीदरलैंड्स: एमसटडवम, रोटरडम

विश्व के प्रमख
ु औद्योवगक नगर
नगोया (जापान): सतू ी िस्त्र, जलयान, इजं ीवनयररंग कािासाकी (जापान): लौह इस्पात
कोबे एिं क्योटो (जापान): लौह इस्पात, जलयान ओसाका (जापान): िस्त्र उद्योग
मांवट्रयल (कनाडा): जलपोत एिं एयरक्राफ्ट क्यूबेक (कनाडा): जलपोत, मरीन इजं ीवनयररंग
टोवकयो एिं नागासाकी (जापान): जलपोत, इजं ीवनयररंग ओटािा (कनाडा): कागज उद्योग
हैवमल्टन (कनाडा): लौह-इस्पात टोरंटो (कनाडा): इजं ीवनयररंग, ऑटोमोबाइल
वशकागो (USA): मांस उद्योग, लौह-इस्पात वसएटल (USA): िाययु ान
सानरांवसस्को (USA): तेल शोिन, जलपोत, कंप्यटू र डेट्रॉयट (USA): ऑटोमोबाइल्स
कन्द्सास (USA): वडब्बा बंद मांस लॉस एवं जल्स (USA): वफल्म, तेल शोिन
न्द्य-ू आवलवयन्द्स (USA): लौह-इस्पात, कोयला वफलाडेवल्फया (USA): लोकोमोवटि
वपट्सबगव (USA): लौह-इस्पात प्लाइमाइथ (USA): जलयान वनमावण
ह्यस्ू टन (USA): तेल एिं प्राकृ वतक गैस ड्रेस्डन (जमवनी): ऑप्टीकल फोटो
डुसलडफव (जमवनी): लौह-इस्पात एसेन (जमवनी): लौह-इस्पात, इजं ीवनयररंग
हैमबगव (जमवनी): जलयान मयवू नख (जमवनी): लेंस वनमावण
डोटवमन्द्ड (जमवनी): लौह-इस्पात, रसायन शघं ाई (चीन): िस्त्र, मशीन
अंशन (चीन): लौह-इस्पात चांगचनु (चीन): ऑटोमोबाइल, मशीनी औजार

129
विश्व भगू ोल राज होल्कर
िहु ान (चीन): िस्त्र, जलपोत, लौह-इस्पात, मशीन गोकी (रूस): इजं ीवनयररंग
चेवलयावबस्ं क (रूस): लौह-इस्पात, मशीनी औजार लेवननग्राड (रूस): जलयान, ऑटोमोबाइल
मैननीटोगोस्कव (रूस): लौह इस्पात टुला (रूस): लौह इस्पात
ब्लाडीिोस्टक (रूस): जलयान वनमावण मास्को (रूस): रसायन, िात,ु मशीनरी उद्योग
शेफील्ड (वब्रटेन): कटलरी उद्योग बवकिं घम (ग्रेट वब्रटेन): लौह-इस्पात
लीड्स (ग्रेट वब्रटेन): ऊनी िस्त्र ब्रेडफोडव (वब्रटेन): ऊनी िस्त्र
मानचेस्टर (ग्रेट वब्रटेन): सतू ी िस्त्र मोसल
ु (ईराक): खवनज तेल
अबादान (नाइजीररया): तेल शोिन हिाना (क्यूबा): वसगार उद्योग
टुलुज (रांस): लडाकू विमान वनमावण वलयॉन (रांस): रे शमी िस्त्र
एटं िपव (बेवल्जयम): हीरा उद्योग बाकू (अजरबैजान): तेल शोिन
डूंडी (स्कॉटलैंड): जटू वनमावण वियना (ऑवस्ट्रया): कांच उद्योग
िेवलंनटन (न्द्यजू ीलैंड): डेयरी उद्योग नलासगो (स्कॉटलैंड): जलयान वनमावण
बैंकॉक (थाईलैंड): जलयान वनमावण जोहान्द्सबगव (द. अरीका): सोना खनन
वकमबरले (द. अरीका): हीरा खनन वक्रिॉय रॉग (यूक्रेन): लौह-इस्पात
एमस्टडवम (नीदरलैंड): हीरा पॉवलश कोपेनहेगने (डेनमाकव ): डेयरी उद्योग
वमलान (इटली): रे शमी िस्त्र तूररन (इटली): मोटरकार उद्योग
स्टॉकहोम (स्िीडन): जलपोत वनमावण साओ पोलो (ब्राजील): कॉफी उद्योग
ररयो वड जेनेररयो (ब्राजील): िस्त्र उद्योग, कॉफी लाप्लाटा (अजेंटीना): एयरक्राफ्ट, रसायन, िस्त्र
बालपरे जो (वचली): तेलशोिन सेंवटयागो (वचली): शराब उद्योग
मरकै बो (िेनेजएु ला): तेलशोिन कासाब्लांका (मोरक्को): रसायन उद्योग
कावहरा (वमस्त्र): सतू ी िस्त्र उद्योग वसकन्द्दररया (वमस्त्र): सतू ी िस्त्र उद्योग
मल्ु तान (पावकस्तान): वमट्टी के बतवन ज्यरू रख (वस्िटजरलैंड): इजं ीवनयररंग
वसंगापरु : व्यापाररक पिन लंदन (वब्रटेन): इजं ीवनयररंग एिं पररिहन
यिाटा (जापान): लौह इस्पात बीवजगं (चीन): िस्त्र, मशीन, लौह-इस्पात

130
विश्व भगू ोल राज होल्कर
विश्व पररिहन
1. स्थल पररिहन:
विश्व में सड़कों की सिावविक लंबाई िाले देश: 1. सं.रा. अमेररका 2. भारत 3. चीन
प्रमख
ु सडक महामागव:
A. ट्रासं कनावडयन महामागव:

• यह महामागव सैंट जॉन नगर (न्द्यफ


ू ाउंडलैंड) को िैंकूिर नगर से जोड़ता है।
• इसकी कुल लबं ाई 9600 वकमी. है।
• यह प्रशातं महासागर तथा अिं महासागर के तट को जोड़ने में सेतु का कायव करता है।
• यह महामागव सेंटजॉन → क्यबू ेक → मााँवट्रयल →ओटािा → सडिरी → थंडर → विवनपेग →
रे वजना → कलगरी → िैंकुिर तक जाता है।
B. अलास्का महामागव: यह एडमान्द्टन (कनाडा) को ऐकं रे ज नगर (अलास्का) से जोड़ता है।
C. स्टुअटव महामागव: यह ऑस्ट्रेवलया महाद्वीप का सबसे लबं ा महामागव है। यह विरंडुम नगर (उ. ऑस्ट्रेवलया) को
उडनादिा नगर (द. ऑस्ट्रेवलया) से जोड़ता है।
D. अतं रमहाद्वीपीय महामागव: यह कावहरा (वमस्त्र) को के पटाउन (द.अरीका) से जोड़ता है।
E. पैन अमेररकन महामागव: यह सं.रा. अमेररका, मध्य अमेररका तथा द. अमेररका के नगरों को जोड़ेगा।
2. रे लमागव:
• प्रथम रे लमागव का वनमावण 1885 ई. में इनं लैंड में हुआ।
• पहली रे लगाडी मैनचेस्टर से वलिरपल
ू के वलए रिाना हुई।
• विश्व में सिावविक रे लमागव सयं क्त
ु राज्य अमेररका में पाया जाता है।
A. ट्रासं साइबेररयन रे लमागव:

• इसका वनमावण 1891 ई. में शरू


ु हुआ तथा 1916 में बनकर तैयार हुआ।
• यह विश्व का सबसे लंबा रे लमागव हैं। इसकी लंबाई 9322 वकमी. है।
• यह रे लमागव सेंटपीट्सबगव से ब्लाडीिोस्टक तक है।
प्रमख
ु स्टेशन: सेंटपीट्सबगव, मास्को, कजान, उफ़ा, चेवलयावबंस्क, येकाटेररनबगव, ट्यवू मन, ओमस्क,
नोबोवसवब्रन्द्क, क्रासनोयास्कव , अन्द्गास्कव , इकवू टस्क, चीता, खबािोरस्क एिं ब्लाडीिोस्टक

131
विश्व भगू ोल राज होल्कर

B. कनावडयन पैवसवफक रे लमागव:

• यह हैवलफै क्स (सेंटजॉन) को िेंकूबर से जोड़ता है।


• इस रे लमागव की कुल लंबाई 7050 वकमी. है।
• प्रमख
ु स्टेशन: हैलीफै क्स, वसडनी, क्यिू ेक, मााँवट्रयल, ओटािा, सडबरी, विवनपेग, रे वजना, िेंकूबर

C. कनेवडयन नेशनल रे लिे:


• यह पणू वतः कनाडा में वस्थत है।
• यह हैवलफै क्स नगर को वप्रंस रूपटव नगर से वमलाता है।
• मागव के प्रमख
ु स्टेशन: हैवलफै क्स, क्यबू ेक, क्रोके न, वहयस्टव, विवनपेग, सस्के टून, वप्रंस रूपटव
D. सेन्द्ट्रल पैवसवफक रे लमागव:
• यह सं. रा. अमेररका का सबसे लमबा तथा महत्िपणू व रे लमागव है।
• यह न्द्ययू ॉकव शहर को सैनरांवसस्को से जोड़ता है।
• प्रमख
ु स्टेशन: न्द्ययू ॉकव , वपट्सबगव, वशकागो, ओमाहा, चेनी, ओण्डेन, साल्ट लेक वसटी एिं सैनरांवसस्को

132
विश्व भगू ोल राज होल्कर
E. ओररयण्टल एक्सप्रेस रे लमागव
• यह यरू ोप के 8 बड़े देशों से होकर गजु रता है वजनमें से 6 देशों की राजिानी इसी मागव पर पड़ती हैं। यह
रे लमागव ली हािरे एिं पेररस को इस्तांबल
ु (तकु ी) से जोड़ता है।
• शावमल देश (8): रांस, जमवनी, ऑवस्ट्रया, हगं री, यगू ोस्लाविया, बल्ु गाररया, तक
ु ी एिं रोमावनया
• प्रमख
ु स्टेशन: पेररस, नेन्द्सी वसटी, स्ट्रॉसबगव, काल्सवरूहे, स्टुटगाटव, आनसबगव, मयवू नख, साल्जबगव, वलंज
वसटी, वियना, बडु ापेस्ट, बेडग्रेड, सोवफया, प्लेिवडि एिं इस्तांबल ु
• मागव में पड़ने िाले राजिानी नगर (6): 1. पेररस (रांस) 2. वियना (ऑवस्ट्रया) 3. बडु ापेस्ट (हगं री) 4.
बेलग्रेड (यूगोस्लाविया) 5. सोवफया (बल्ु गाररया) 6. इस्तांबुल (तक
ु ी)

F. के प कावहरा रे लमागव:
• यह अरीका महाद्वीप का महत्त्िपणू व रे लमागव है। अभी पणू व नहीं है। यह के पटाउन को कावहरा से जोड़ने का
एकमात्र सािन है।
• प्रमख
ु स्टेशन: के पटाउन, वकमबरले, जोहान्द्सबगव, वलविंगस्टोन, एवलजाबेथ विले, खातरतूम एिं कावहरा
G. ट्रासं इवं डयन रे लमागव: यह द. अमेररका का महत्िपणू व रे लमागव है। यह बालपराइजो पिन (वचली) को ब्यनू स
आयसव (अजेंटीना) से जोड़ता है।
H. ऑस्ट्रेवलयाई ट्रांस-कॉन्द्टीनेंटल रे लमागव:
• यह ऑस्ट्रेवलया का सबसे महत्िपणू व रे लमागव है। यह ऑस्ट्रेवलया के पिू ी तट को पवश्चमी तट से वमलाता है।
िह पथव (पवश्चमी तट) को वसडनी (पिू ी तट) से जोड़ता है।
• प्रमख
ु स्टेशन: वसडनी, पाक्सव, रोटो, ब्रोके न वहल, पोटव वप्रसं , एडीलेड, पोटव अगस्ता, कालगल
ू ी एिं पथव

133
विश्व भगू ोल राज होल्कर
I. बीवजंग-के ण्टन रे लमागव:
• यह चीन का सबसे लंबा रे लमागव है।
• यह बीवजंग से के ण्टन को जोड़ता है।
• इसकी लंबाई 2,350 वकमी. है।

2. जल पररिहन
जल पररिहन के दो भाग हैं –
1. आतं ररक जलमागव
2. सामवु रक जलमागव
आतं ररक जलमागव:
1. यरू ोप के आंतररक जलमागव:
A. राइन नदी जलमागव:

• राइन नदी को यरू ोपीय व्यापार की जीिन रे खा कहा जाता है।


• यह विश्व की सिावविक व्यस्त आन्द्तररक जलमागव िाली नदी है।
• इसे कोयला नदी के नाम से भी जाना जाता है।
• राइन का बेवसन: रासं , जमवनी, वस्िटजरलैंड, ऑवस्ट्रया, नीदरलैंड, इटली, वलच
ं टेंस्टाइन, लक्जमबगव एिं
बेवल्जयम
B. यरू ोप की प्रमख
ु नहरें :
• गोटा नहर: स्िीडन में स्टॉकहोम एिं गोटेबगव के बीच
• मैनचेस्टर नहर: इनं लैंड में मैनचेस्टर एिं वलिरपल
ू के बीच
• कील नहर: जमवनी में उिरी सागर एिं बावल्टक सागर को जोड़ती है।
• उिरी सागर नहर: उिरी सागर एिं एमसटडवम को वमलाती है।
• न्द्यू िाटर िे: उिरी सागर एिं रॉटरडम के मध्य
• िोल्गा-डॉन नहर: रूस में रोस्तोि एिं िोल्गाग्राड को जोड़ती है।
• स्टावलन नहर: बावल्टक सागर एिं आकव वटक सागर के बीच
• राइन-मेन-डेन्द्यबू नहर: उिरी सागर को काला सागर से जोड़ती है।

134
विश्व भगू ोल राज होल्कर
2. उिरी अमेररका का आंतररक जलमागवः
A. वमसीवसपी जलमागव: न्द्यू आवलवयंस बन्द्दरगाह को सेंट पॉल से जोड़ता है।
B. उिरी अमेररका की प्रमख
ु नहरें :
• सू नहर: सपु ीररयर झील को ह्यरू ोन झील से जोड़ती है।
• िैलेण्ड नहर: ईरी झील को ओण्टेररयो झील से जोड़ती है। इसी नहर के मध्य भाग में वनयाग्रा जलप्रपात
वस्थत है।
• ईरी नहर: यह ईरी झील को ह्यरू ोन झील से जोड़ती है।

विश्व के प्रमख
ु सामवु रक जलमागव:
1. उिरी अटलांवटक मागव:
• यह उिरी अमेररका के विकवसत पिू ी भागों तथा पवश्चमी यरू ोप के औद्योवगक देशों को जोड़ता है।
• यह विश्व का सिावविक व्यस्त एिं महत्िपूणव समरु ी जलमागव है। इसे िृहद ट्रंक मागव भी कहा जाता है।
• पवश्चमी यरू ोप के बन्द्दरगाह: नलासगो, वलिरपल ू , साउथ हैमपटन, लन्द्दन, रॉटरडम, हैमबगव, एण्टिपव, ला
हािरे एिं वलस्बन
• उिरी अमेररका के पिू ी वकनारे के बन्द्दरगाह: क्यबू ेक, मााँवट्रयल, हैलीफै क्स, बोस्टन, सेंट जॉन, न्द्ययू ॉकव एिं
वफलाडेवल्फया

2. भमू ध्य सागरीय मागव:


• यह पिू ी अरीका, ईरान, इराक, अरब, भारतीय उपमहाद्वीप एिं द. प.ू एवशया के देशों, ऑस्ट्रेवलया,
न्द्यजू ीलैंड और सदु रू पिू व के बाजारों को जोड़ता है।
• लन्द्दन से वलिरपल ू , साउथ हैमपटन, हैमबगव, रॉटरडम, मासेलीज, वलस्बन, जेनेिा को और नेपल्स से जहाज
वसकन्द्दररया ि स्िेज होकर अदन, मंबु ई, कोलकाता, कोलमबो, रंगनू , वपनॉग, वसंगापरु , मनीला, हांगकांग,
पथव, वसडनी, एडीलेड, मेलबनव तथा पिू ी अरीकी तट पर वस्थत मोमबासा, जजं ीबार, बैरा एिं डरबन को
जाते हैं।

135
विश्व भगू ोल राज होल्कर
स्िेज नहर:
• यह नहर विश्व की सबसे बड़ी जहाजी नहर है। इसका वनमावण रांसीसी इजं ीवनयर फडीनेण्ड लैसेप्स की
देखरे ख में 1869 ई. में पणू व हुआ।
• यह नहर लाल सागर को भमू ध्य सागर से जोड़ती है। इसकी लंबाई 165 वकमी. एिं न्द्यनू तम चौडाई 60
मीटर है। गहराई 10 मी. है।
• इसके उिरी द्वार पर पोटव सईद एिं दवक्षणी द्वार पर स्िेज पिन वस्थत है। इस नहर के उिरी भाग में मैजाला
झील, मध्य भाग में वतमसा झील एिं दवक्षणी भाग में िृहत वबटर झील वस्थत है।
• इस नहर पर वमस्त्र का अविकार है। लाल सागर के तट पर नहर के पवश्चमी भाग पर स्िेज पिन एिं पिू ी
भाग पर तौवफक पिन वस्थत है।

3. प्रशांत महासागरीय मागव:


• इसका मख्ु य मागव संयक्त ु राज्य अमेररका के पवश्चमी वकनारों को पिू ी एवशया (मख्ु यतः चीन और जापान)
से जोड़ता है। यह न्द्यजू ीलैंड तथा ऑस्ट्रेवलया को भी अमेररका से जोड़ता है।
• मागव में एवशया के मख्ु य बंदरगाह: याकोहामा, पसु ान, शंघाई, हांगकांग और मनीला।
• मागव में अमेररका के बंदरगाह: पोटवलैंड, सैनरांवसस्को, िैंकूिर, लॉस एंवजल्स एिं वप्रंस रूपटव
पनामा नहर:
• यह प्रशातं महासागर और कै ररवबयन सागर को जोड़ता है।
• इस नहर में प्रशातं तट पर पनामा तथा कै ररवबयन तट पर कोलोन पिन हैं।
• इसका वनमावण 1914 ई. में पणू व हुआ। इस नहर पर पनामा का वनयत्रं ण है।
• यह सागर तल से 25 मी. ऊंची है। इसकी लबं ाई 82 वकमी. एिं चौडाई 16 मी. तथा गहराई 12 मी. है।
• इसमें तीन झील- गाटून, ट्रैलोडोवमनिल और वमराफ्लोमव वस्थत हैं।
• यह नहर जल पाश (Water Lock) तकनीक का उपयोग कर बनायी गयी है।

136
विश्व भगू ोल राज होल्कर
4. दवक्षणी अटलांवटक मागव:
• यह जलमागव पवश्चमी यरू ोपीय देशों को पवश्चमी द्वीप समहू , ब्राजील, उरुनिे और अजेंटीना से जोड़ता है।
• मागव के प्रमख
ु बन्द्दरगाह: वकंगस्टन, हिाना, िैराकूज, टैमपको, िावहया, ररयो वड-जेनेररयो, मोंटेविवडयो,
ब्यनू स आयसव एिं रोसेररयो
5. के प ऑफ गडु होप जलमागव:
• इस जलमागव द्वारा पवश्चमी यरू ोप एिं पिू ी अरीका, पवश्चमी तथा दवक्षणी अरीका, ऑस्ट्रेवलया, न्द्यजू ीलैंड
तथा इडं ोनेवशया के मध्य संबंि स्थावपत वकया जाता है।
• ितवमान में इस जलमागव द्वारा पवश्चम अरीकी देशों, दवक्षण अरीका, ऑस्ट्रेवलया एिं न्द्यजू ीलैंड के मध्य
व्यापार वकया जाता है।
• जलमागव के प्रमख
ु पिन: के प टाउन, पोटव एवलजाबेथ, एवडलेड, मेलबनव एिं वसडनी हैं।
विश्व के प्रमख
ु पिन / बन्द्दरगाह
• रॉटरडम: राइन की सहायक नदी न्द्यमू ास नदी पर लन्द्दन: टेमस नदी के महु ाने पर
• वलिरपल
ू : मसी नदी के महु ाने पर नलासगो: क्लाइड नदी के महु ाने पर
• एमसटडवम: ज्िीडरजी नदी के बाएं वकनारे पर सेण्टपीटसवबगव: वफनलैंड की खाड़ी पर
• न्द्ययू ॉकव : हडसन नदी के महु ाने पर न्द्यू आवलवयांस: वमसीवसपी नदी के महु ाने पर
• िेंकूबर: रे जर नदी के महु ाने पर ब्यनू स आयसव: लाप्लाटा नदी के महु ाने पर
• मरकै बो: मरकै बो झील पर वसडनी: ऑस्ट्रेवलया के दवक्षणी तट पर
• मेलबनव: वफवलप की खाड़ी के पवश्चमी तट पर हागं कागं : वसक्यागं नदी के महु ाने पर
• हैमबगव: एल्ि नदी के महु ाने पर रैं कफटव: ओडर नदी पर
• मसेलीज: सीन नदी के महु ाने पर मनाओस: अमेजन नदी पर
• बोकी: मरे -डावलिंग नदी पर इस्तांबल
ु : बास्पोरस जलसंवि पर
• मॉवण्ट्रयल: सेंट लॉरें स एिं ओटािा नदी संगम पर सैनरांवसस्को: USA के पवश्चमी तट पर
• शघं ाई: ह्वांग हो नदी के महु ाने पर वस्थत। लदान मात्रा एिं कंटेनर क्षमता के आिार पर विश्व का सबसे बड़ा
पिन।

137
विश्व भगू ोल राज होल्कर
विश्व की जनजावतयााँ
1. बश
ु मैन:
• ये द. अरीका के कालाहारी मरुस्थल, लैसथे ो, नेटाल और वजमबाब्िे में पाये जाते हैं।
• इनकी आाँखें चौड़ी एिं त्िचा काली होती है।
• दीमक को बश
ु मैन का चािल कहा जाता है।
2. वपनमी:

• इनकी चार उपजावतयााँ - मबतू ी, तिा, विंगा, गोसेरा हैं।


• ये कांगो बेवसन के गैबॉन, यगु ांडा, वफलीपींस, अमेटा एिं न्द्यवू गनी के िनों में रहते हैं।
• इनका कद सामान्द्यतः 1 से 1.5 मी. तक होता है। विश्व में इनका कद सबसे कम होता है।
3. बोरा:

• ये पवश्चमी अमेजन-बेवसन, ब्राजील, पेरू एिं कोलंवबया के सीमांत क्षेत्रों में रहते हैं।
• ये अमेररका के रे ड इवं डयन के समान हैं।
• इनकी त्िचा का रंग भरू ा, बाल सीिे एिं कद मध्यम होता है।
4. बद्दू:

• ये अरब के उिरी भाग के हमद और नेफद मरुस्थल में कबीले के रूप में चलिासी जीिन व्यतीत करते हैं।
• ये जनजावत नीग्रटो प्रजावत से सबं वं ित है।
5. मसाई:

• ये तजं ावनया, के न्द्या एिं पिू ी यगु ाडं ा के पठारी क्षेत्रों में घमु क्कडी पशचु ारक के रूप में जीिन वनिावह करते
हैं।
• इनमें भमू ध्य सागरीय और नीग्रायड प्रजावत के वमश्रण की झलक वदखती है।
• इनकी झोपवड़यों को क्राल (Kral) कहा जाता है।
6. वखरगीज:

• ये मध्य एवशया में वकवगवस्तान में पामीर के पठार एिं वतएनशान पिवतमाला के क्षेत्रों में वनिास करते हैं।
• ये मंगोल प्रजावत से संबंवित होते हैं।
• इनकी त्िचा का रंग पीला, बाल काले, कद छोटा, शरीर सगु वठत एिं आाँखें छोटी ि वतरछी होती हैं।

138
विश्व भगू ोल राज होल्कर
• वखरगीज प्रजावत के लोग ऋतु प्रिास करने िाले पशचु ारक चलिासी होते हैं।
• ये लोग दिू को सड़ाकर शराब बनाते हैं। इसे कुवमस कहते हैं।
• इनके तबं ू को यतू व (Yurt) कहा जाता है।
7. एवस्कमो:

• ये अमेररका के अलास्का से ग्रीनलैंड तक के टुन्द्ड्रा प्रदेशीय क्षेत्रों में रहते हैं।


• ये लोग मंगोलॉयड प्रजावत के हैं।
• इनका पालतू पशु रें वडयर है।
• इनका वशकार करने का हवथयार हारपनू है।
• इनके घर बफव के बने होते हैं वजन्द्हें इनलू कहते हैं।
• ये वबना पवहए की गाड़ी का उपयोग करते हैं वजसे स्लेज कहते हैं।
8. सकाई:

• ये मलय प्रायद्वीप ि मलेवशया के िनों में वनिास करते हैं।


• इनका रंग साफ, कद लंबा और शरीर छरहरा होता है।
• इनका वसर लंबा ि पतला एिं बाल काले ि घंघु राले होते हैं।
9. सेमांग:

• ये मलय प्रायद्वीप के पिवतीय भागों, अंडमान, वफलीपींस और मध्य अरीका में रहते हैं।
• से नीग्रेटो प्रजावत के लोग हैं।
• इनका कद नाटा, रंग गहरा भरू ा, नाक छोटी ि चौडी, होठ चपटे एिं मोटे एिं बाल काले ि घंघु राले होते
हैं।
10. कज्जाक:

• ये कजाखस्तान ि सीक्यांग के क्षेत्रों में रहने िाले पशचु ारक चलिासी होते हैं।
• ये मंगोलॉयड प्रजावत के लोग हैं।
• इनका कद छोटा, शरीर सगु वठत, त्िचा पीली एिं बाल काले होते हैं।
11. पापआ
ु न: पापआ
ु न्द्यवू गनी द्वीप में रहने िाली जनजावत
12. सेमोयेड्स: मंगोलॉयड प्रजावत, साइबेररया के टुण्ड्रा प्रदेश के वनिासी
13. यक
ु ागीर: मंगोलॉयड प्रजावत, साइबेररया के बखोयांस्क और स्टैनोिाय पिवत के मध्य रहने िाले लोग

139
विश्व भगू ोल राज होल्कर
14. पनु न: बोवनवयो, मलेवशया एिं इडं ोनेवशया में रहने िाली जनजावत
15. माया: मैवक्सको, निाटेमाला और होंडुरास में रहने िाली जनजावत
16. माओरी: न्द्यजू ीलैंड की जनजावत
17. मनयार: रोमावनया, यगू ोस्लाविया, चेकोस्लोिावकया एिं यक्र
ू े न की जनजावत
18. बोअर: द. अरीका की जनजावत
19. जल
ु :ू द. अरीका के नेटाल क्षेत्र की जनजावत
20. कॉके शस: काला सागर, कै वस्पयन सागर के वनकटिती क्षेत्र, पोलैंड, वलथआ
ु वनया, मस्कोिा एिं रूस में रहने
िाली जनजावत
21. अफरीदी: पावकस्तान में रहने िाली जनजावत
22. हाज्दा: तंजावनया की जनजावत
23. कुन्द्ग: कालाहारी क्षेत्र की जनजावत
24. अपाचे: ओक्लोहामा (USA) की जनजावत
25. चक
ु ची: उ. प.ू साइबेररया एिं उिरी अमेररका की जनजावत
26. ओन्द्ग:े अंडमान एिं वनकोबार द्वीप की जनजावत
27. सेंटीनली: अंडमान एिं वनकोबार द्वीप की जनजावत
28. एक्रा: ब्राजील की जनजावत
29. एमेररंड: अमेररका की जनजावत
30. एटा: वफलीपींस की जनजावत
31. ब्लैक फै लो: ऑस्ट्रेवलया की जनजावत
32. कोसैक्स: यक्र
ू े न की जनजावत
33. फे ल्लाह: वमस्र की खेवतहर जनजावत
34. हैदा: वब्रवटश कोलंवबया की जनजावत
35. हक्का: चीन की जनजावत
36. हान: चीन की जनजावत
37. इन्द्यटू : उिरी अमेररका के एस्कीमो

140
विश्व भगू ोल राज होल्कर
38. कावफर: द. अरीका की जनजावत
39. वकक्य:ू कीवनया की जनजावत
40. कुब:ु समु ात्रा की जनजावत
41. कुदव: ईरान, ईराक, आमीवनया, अजरबैजान के पशपु ालक कृ षक
42. लैप्स: द. स्कैं वडनेविया एिं उिरी रूस की जनजावत
43. जेमी: असम और मयांमार के सीमांत क्षेत्र की जनजावत
44. नॉवडवक: नॉिे, स्िीडन, डेनमाकव , वफनलैंड एिं आइसलैंड की प्रजावत
45. फोनेवशयन: इजराइल एिं तक
ु ी की जनजावत
46. कंु ग: द. अरीका के कालाहारी मरुस्थल की जनजावत
47. शान: द. चीन, असम, मयांमार एिं थाईलैंड की जनजावत
48. िेद्दा: श्री लंका के मल
ू वनिासी
49. उइगर: ताररम बेवसन के नखवलस्तान में रहने िाली जनजावत
50. रे ड इवन्द्डयन: उिरी अमेररका के मल
ू वनिासी

141

You might also like