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सरोज स्मृति
सरोज स्मृति
ए पार्ट-2
पेपर- 3 (आधुनिक ह द
िं ी काव्य)
'सरोज-स्मनृ ि'
लेक्चर सिंख्या- 14
जािा िो अथाथगमोपाय,
निराला का व्यक्तित्ि क्ांनिकारी था। यह क्ांनि केिल साहहत्य के क्षेत्र में िहीं थी। साहहत्य
और जीिि-दोिों क्षेत्रों में उिकी क्ांनिकाररिा मौजूद थी। कवििाओं में ही िहीं अपिे िैयक्तिक
जीिि में भी उन्होंिे भाग्य को ठुकराया, कमथ को प्राधान्य हदया। ज्योनिष की भविष्यिाणणयों
को भ्रामक लसद्ध ककया। जन्मकंु डली फििा दी। पत्र
ु ी के वििाह में स्ियं मंत्रोच्चारण ककया। मााँ
की कुल लशक्षा स्ियं उन्होंिे दी। कण्ि ऋवष की भूलमका निभाई। सरोज शकंु िला िो थी परंिु
'िह शकंु िला, पर पाठ अन्य यह, अन्य कला।'
मलयज के शब्दों में - 'सरोज स्मनृ ि दःु ख को लेकर उििे या उसमें खोिे के ललए िहीं, बक्ल्क
दःु ख को याद करिे, उससे भीिर ही भीिर ममाथहि होिे और बीच-बीच में बाहर कभी व्यंग्य-
विद्रप
ू में िो कभी आत्म चधतकार में चीख पििे के ललए है। यह चीख छायािादी दख
ु की
स्िनिभथर दनु िया से बाहर आिे की चीख है।'
कवि का स्िािभ
ु ि
ू दःु ख सामान्य व्यक्ति के दःु ख का अहसास करािा है। कवि-कमथ के दस्
ु िर
मागथ से पररचचि करािा है। वपिा के दःु ख कष्ट खासकर असामर्थयथ वपिा की दःु ख यंत्रणा का
पररचायक बि जािा है। 'सरोज-स्मनृ ि' िैयक्तिकिा से भरपूर होकर भी नििैयक्तिक बि जािी
है, ठोस यथाथथ पर रची गई उति कवििा में आदशथ -यथाथथ, हास्य-रोदि, सुख-दःु ख, उिार-
चढ़ाि, ककशोर-यौिि आहद जािे ककििी विपरीि क्स्थनियों का सामंजस्य विद्यमाि है। इसमें
चुिौिी हैं िो आिथिाद भी और है वपिा की प्रबल चीख। वपिा के ललए पुत्री ही िहीं कवि के
ललए रचिा या उससे भी बढ़कर कुछ और थी सरोज। इसललए 'सरोज स्मनृ ि' कवि निराला के
हृदय की गहराई से उत्पन्ि कवििा है। इसमें कवि के िैयक्तिक जीिि के साथ-साथ उसके
पररिेश की सहज अलभव्यक्ति है। उति कवििा के अंनिम पद में कवि िे अपिे दृढ़-संकल्प को
रूपानयि ककया है। आशा एिं विश्िास से भरा कवि-मि कहिा है -
'कन्ये, गि कमों का अपथण
अंनिम पंक्तियााँ हैं 'सरोज-स्मनृ ि' की। अपिे अभािग्रस्ि जीिि के पथ पर ककए गए सभी कायथ
भले ही उसी प्रकार िष्ट हो जाएाँ जैसे कक शरद ऋिु में िुषारपाि से पुष्पों का समूचा सौंदयथ
िष्ट हो जािा है। पर कवि-कमथ से विरि होिा निराला को स्िीकार िहीं। िे इसमें अविचललि
रहिा चाहिे हैं। ऐसी अपराजेय शक्ति बहुि कम कवियों की होगी। अपराजेय शक्तिसंपन्ि
व्यक्ति का स्िर निराशा का िहीं होिा है। भले ही अपिी पस्
ु िक 'निराला' में रामविलास शमाथ
िे 'सरोज स्मनृ ि' की अंनिम पंक्तियों के आधार पर कहा है - 'सरोज स्मनृ ि' का अंि 'राम की
शक्ति-पूजा' के आशािाद से िहीं होिा। निराला मस्िक झुकाकर अपिे कमथ पर िज्रपाि सहिे
के ललए ित्पर होिे हैं। यथाथथ जीिि की यह एक िई और कटु अिभ
ु नू ि थी जो निराला हहंदी
को दे रहे थे।