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प्रस्तावना

द्वितीय द्ववश्वयुद्धके पश्च्यात हालके युगमें स्वस्तस्तक प्रद्वतकको अयोग्य अनुचीत रुपसे द्वहटलर और नाझीके
द्वचन्ह बतलाकर नई धृणात्मक पहचान बनानेकी एक अक्षम्य घोर भूल और चेष्ठा हो रही हैं। दु सरे द्ववश्वयुद्धके
युगमें ये सच है की जममनीमें द्वहटलर और नाझी पक्षने स्वस्तस्तक प्रद्वतकको अपने पक्षके द्वचन्हके रुपमें
अंगीकार करके स्वस्तस्तक प्रद्वतकका दु रोपयोग द्वकया था मगर वास्तवमें स्वस्तस्तक प्रद्वतक तो हजारों वर्म
पहले आदी या प्राद्वचन कालसे आयम, वेदीक या सनातन धममका अत्यंत प्राचीन, पद्ववत्र , आदरणीय, पुजनीय,
पावन और द्ववश्वका सवम प्रथम प्रद्वतक रहा हैं जैसे ॐकार सवम प्रथम नाद रहा हैं। आयम, वेदीक या सनातन
धमममें स्वस्तस्तक को शुभ, मंगल, लाभ, कल्याण, दया, करुणा, शुद्धी,, शांद्वत, शस्ति, भस्ति, मुस्ति और द्ववश्वके
द्वनमामणका मांगद्वलक प्रद्वतक भी माना जाता हैं। आयमवतममें उत्पन्न होनेवाला ये आयम प्रद्वतक स्वस्तस्तक सारे
द्ववश्वमें हजारों साल पहले से ही द्ववश्वके हर धमों, जातीओं, संस्कृद्वतओं, परांपराओं कलाकारीगीरी, द्वशल्प
ईत्यादीमें एक माननीय, आदरद्वणय, स्थान प्राप्त करके सवमत्र प्रचलीत हो चुका था। ये एक महा द्ववडं बना हैं
द्वक हजारों साल से हर दे श, धमम और प्रजामें प्रद्वतष्ठीत प्रद्वतकको द्वितीय द्ववश्वयुद्ध पयंत द्वबना जाने, सोचे
और समझे पद्विमके युद्ध द्वपडीत लोगों और दे शोंने ने हीटलर और नाझीओंके कुकमों और अत्याचारोंके
लीए स्वस्तस्तक प्रद्वतकको ही द्वजम्मेवार और द्रोही ठहराकर उसे धृणा, बबमरता, िे र्, क्रुरता,द्वविं श द्ववनाशके
द्वचन्हमें रुपांतरीत द्वचत्रण करके स्वस्तस्तक प्रद्वतकको बदनाम और द्वतरस्कार करनेका बौद्वधक और शैक्षणीक
शडयंत्र चलाया और एक सन्माननीय प्रद्वतष्ठा पात्र प्रद्वतकको कलंकीत करके अपमानीत करनेकी चेष्ठाका
द्ववश्वव्यापी अद्वभयान दु र्प्रचारके माध्यमसे आज भी चला रहे हैं । पद्विमके कई दे श स्वस्तस्तकके प्रद्वतकके
उपयोग और सावमजद्वनक प्रदशमन पर वैद्वश्वक प्रद्वतबंध लानेकी मांग करते रहे हैं। ऐसी द्ववपरीत पररस्तस्थद्वतमें
आयम, सनातन या वेदीक धमम और उनके बौध,जैन और सीख संप्रदायोंने तथा पुवमके दे शोंके अन्य धमों जो
स्वस्तस्तक प्रद्वतकका सन्मान करके पुजनीय मानते है ऊन्होंने स्वद्वतक पर प्रद्वतबंधका द्ववरोध प्रदशीत करते रहे
हैं और प्राचीन स्वस्तस्तक प्रद्वतकको पुनः मान, सन्मान,, प्रद्वतष्ठा, आदर, प्रद्वतभा और दजाम प्रप्त करानेके लीए
अथाग पररश्रम कर रहे हैं। द्ववश्वके उन लाखों करोडों स्वस्तस्तक प्रेमी लोगोंके अथाग प्रयत्ों और प्रयासोंको
समथमन और स्वस्तस्तक प्रद्वतकका द्ववरोध करने वालों, पद्विमके अज्ञानी लोगोंको और द्ववश्वके भ्रद्वमत लोगोंको
प्रद्वशक्षीत करनेके आशयसे ये पुस्तक इं ग्लीश भार्ामें हमने द्ववश्व भरमें प्राचीन कालसे उपयोग होते रहे
स्वस्तस्तक प्रद्वतकके द्वचत्रोंके संग्रह स्वरुप पुस्तक प्रकाशीत करके सत्यको उजागर करनेका प्रयास द्वकया था।
भारतमें पािात्य द्रद्विसे प्रभावीत द्वशक्षण पद्धद्वतके प्रभावमें कई भारतीय युवा पेठी भी स्वस्तस्तक द्वचन्हके
बारे में भ्रद्वमत और अज्ञानी हो चुकी हैं और वो भी स्वस्तस्तक प्रद्वतकको पद्विमकी नयी पररभार्ामे उलझ रहे हैं
ऐसी ऊलझन भरी पररस्तस्थद्वतको संवारने और उन्हें प्रद्वशद्वक्षत करनेके लीए हम वो ही ईंग्लीश पुस्तकका
द्वहन्दी संस्करण भारतकी नव युवा पेढीके लीए रािरीयभार्ांमें प्रकाशीक करनेका प्रयासन द्वकया हैं।हम
अपेक्षा रखते हैं द्वक ये पुस्तक भारतीय नवयुवाओंको स्वस्तस्तक प्रद्वतकके सछे गअनवधमन्में लाभदायी बने और
हमारे धममके ये प्रद्वतकको पुनः प्रद्वतष्ठा प्रास्तप्त करानेके अद्वभयानमें अपना योगदान अपमण करनेके लीए
प्रोत्साद्वहत करें ।
आयम धममकी जय हो। आयम प्रद्वतककी जय हो। स्वस्तस्तककी जय हो।
विश्वका सिवमहान और विश्वव्यवि प्रविक स्वस्तिक
- हेमंिकुमार गजानन िाध्या (यु.के.)
द्ववश्वमें स्वस्तस्तक का प्रद्वतक ही एक ऐसा प्रद्वतक हैं जो अद्वतप्राद्वचन, पौराद्वणक, द्ववश्वव्यापी, सवमत्र और
सवममान्य हैं । द्ववश्वके हर खंडोमे स्वस्तस्तकके प्रद्वतकका अस्तस्तत्व पौराद्वणक समयसे पाया गया हैं. मानव
जातीका सवमप्रथम प्रद्वतक स्वस्तस्तक दश हजार वर्ोंसे भी पुराना हैं । पुरातन युगसे ही स्वस्तस्तकका
प्रयोग हर संस्कृद्वत, सभ्यता और धमममें होता आया हैं । द्ववश्वकी हर मानवजातीने स्वस्तस्तक द्वचन्हको
पुरातन कालसे ही एक आध्यास्तत्मक, शुभकारी, लाभकारी और पुण्यकारी प्रद्वतकके रूपमें उसे
आदरणीय, सन्माननीय और पूजनीय माना हैं । स्वस्तस्तकका उपयोग एक शुभ प्रद्वतकके रूपमें हजारों
वर्ोसें होता आया हैं । द्ववश्वकी सवमप्रथम मानव संस्कृद्वत आयमसस्क ं ृ द्वत है और आयमधमम या सनातनधममसे
लेकर मायन, यहुदी, अमरीकाके रे द ईस्तियन्स, एझटे क, इन्का, मायन, पेगन, ताओ, शी ंतो, द्वक्रद्वियन,
डु ईड, कोप्टेक, इस्लाम जैसे अन्य धमों और द्ववद्ववध संस्कृद्वतओंने स्वस्तस्तक प्रद्वतकको अपनाके उनका
प्रयोग धाद्वममक द्वचन्ह, शुभकामना द्वचन्ह, सौभाग्यदायी, लाभकारक द्वचन्ह, रक्षाप्रद्वतक या तो कलात्मक
द्वचन्हके रूपमें सारे जगतमें अपने धममस्थानों पर द्वकया गया हैं। रोमन, ईजीप्शीयन और ग्रीक
संस्कृद्वतओंमें भी स्वस्तस्तक प्रद्वतकका द्ववशेर् प्रभाव रहा हैं। आज भी द्ववश्वके अद्वधकांश लोग स्वस्तस्तक
प्रद्वतकको धाद्वममक, भाग्यशाली, लाभदायी, सदभावनाकारी, कल्याणकारी, मौक्षदायी, शुभ एवं मंगल
प्रद्वतक मानते हैं और उनकी आदर, सन्मान और भस्तिभावसे पूजा, अचमना, साधना और करते हैं ।
आयमधमम या वेदीकधममका स्वस्तस्तक प्रद्वतक ही एक ऐसा सवम महान और प्रमुख प्रद्वतक हैं जीसको द्ववश्वके
हर धमों और संस्कृद्वतओंने सहृदय स्तस्वकार द्वकया हैं। स्वस्तस्तक प्रद्वतक द्ववश्वका एक आकर्मक,
अलौकीक, अदभूत. अद्वितीय और चमत्कारीक आकार हैं। स्वद्वतक प्रद्वतक अत्यंत सुंदरभव्य, ,
मनमोहक, नयनरम्य और मनोरम्य प्रद्वतक हैं। जीसे दे खते ही सुख शांद्वत, द्वदव्यता और परमानंदकी
अनुभूद्वत प्राप्त होती हई। आयम या वेदीकधमम और उन्के द्ववभीन्न संप्रदायों और द्ववचारधारांओक ं े अनुयायी
स्वस्तस्तकको पावन, पद्ववत्र,आध्यास्तत्मक और दै वी प्रद्वतक मानते हैं। आयम संस्कृद्वत, धमम और तत्वज्ञानसे
उदभवीत वेदीक, झोरोस्तररयन, द्वहंदु, बौध, जैन और शीख संप्रदायो स्वस्तस्तक प्रद्वतकको अपना धाद्वममक
द्वचन्ह मानते है और उनकी उपासना करते हैं। जापान, चीन, काम्पुचीया, कोरीया और अन्य पूवीय
दे शोके बौध धमीओंके अतीररि स्थाद्वनक धमों और सम्प्रदायोंमें भी स्वस्तस्तक प्रद्वतक का एक द्ववशेर्
स्थान हैं और सभी लोग स्वस्तस्तकको शुभ एवम मंगल मानकर पूजा करते है और उसे मंदीर, पूजास्थान
और अपने घरोपें अंकीत करते हैं। स्वस्तस्तक शब्दका मूल द्ववश्वकी अद्वत प्राचीन और अन्य भार्ाओंकी
जननी संस्कृतभार्ाके पूवामचीन धममशास्त्रके वेदोंके श्लोकोंमें पाया जाता हैं। ऋगवेदके श्लोक ‘’
स्वस्तस्त न इं द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्तस्त नः पूर्ा द्ववश्ववेदा:। स्वस्तस्त नस्तार्क्ष्यो अररिनेद्वमः स्वस्तस्त नो
बृहस्पद्वतदम धातु।।‘’ में स्वस्तस्त शब्दका प्रयोग कल्याण और मंगल शब्दाथमके रुपमें द्वकया गया हैं। स्वस्तस्त
शब्द ‘सु’ उपसगम तथा ‘अस्तस्त’ अव्ययके संयोगसे (सु+अस्तस्त=स्वस्तस्त) उत्पन्न हुआ हैं। यहां ‘सु’ का
शब्दाथम घटन शुभ, कल्याण या मंगल होता हैं और ‘अस्तस्त’का का शब्दाथम घटन ‘होना’ होता हैं और
संयुि शब्द स्वस्तस्तका अथम शुभहो, कल्याण हो या मंगल हो होता हैं । संस्कृतभार्ाके महान व्याकरण
शास्त्री पाद्वणनीके अनुसार ‘स्वस्तस्तक’ शब्दको व्याकरण कौमुदीमें अव्यय पदोंमें समावेश कीया गया हैं।
स्वस्तस्तक शब्दकी उत्पद्वि ‘सु’ उपसगम, ‘अस्तस्त’ अव्यय तथा ‘क’ प्रत्ययके संयोजनसे होती हैं । ‘क’ प्रत्यय
नामवाचक होनेसे ‘स्वस्तस्त’ द्वक्रयायापदका ‘स्वस्तस्तक’ नाममें पररवतमन हो जाता हैं मगर उनके शब्दाथममें
कॉई द्ववशेर् भेद नद्वह होता हैं । स्वस्तस्तकका अथम कल्याण मंगल या शुभ करनेवाला प्रद्वतक हो जाता हैं।
वेदीकधमम या द्वहंदु धमममें ‘ॐ’ स्वरकी भांती स्वस्तस्तक आकार, प्रद्वतक या द्वचन्हकी भी द्ववशेर् महिा और
महत्व हैं। स्वस्तस्तक दै वी शस्ति और मनुष्यकी उनपर अपार आस्थाका माध्यम हैं ईसीलीए स्वस्तस्तकको
द्वत्रदे व ब्रह्मा, द्ववष्णु और महेश अवं द्वत्रदे वी सरस्वद्वत, लक्ष्मी और पावमती तथा शीवशस्ति और उनके पुत्र
श्री गणेशके प्रद्वतक स्वरूपमें उसकी पूजा, साधना और आराधनाकी जाती हैं। जैसे श्री गणेशजीकी पूजा
सवम प्रथम करनेका शास्त्रोिक द्ववधान हैं वैसे ही स्वस्तस्तक प्रद्वतक या द्वचन्हकी श्री गणेशके प्रद्वतकात्मक
स्वरूप आयमधमम या द्वहंदुधमममें सवम प्रथम पूजा करनेकी परं परा हैं। स्वस्तस्तककी आराधना, साधना या
पूजा धनवृद्धी, समृस्तद्ध, ग्रुहशांद्वत, रोगद्वनवारण, वस्तुदोश द्वनवारण, भौद्वतक कामनाओंकी पूद्वत,म
मनोकामनाकी पूद्वतम, आध्यस्तत्मक और भौद्वतक सुख और शांद्वतकी प्रास्तप्त और द्वनवामण एवम मुस्तिकी
प्रास्तप्तके लीए की जाती हैं। स्वस्तस्तकका प्रद्वतक दानवी या पैशाचीक शस्तिका प्रद्वतकार करके शाधक
को संरक्षण कवच प्रदान करता हैं और शत्रुओक ं ा शमन करता हैं ईसीलीए हम अपने घरके आं गन और
िार पर स्वस्तस्तक द्वचन्ह अंद्वकत करते हैं। सच्चे और समद्वपत
म भि या साधकको स्वस्तस्तक प्रद्वतक द्ववघ्न,
अकस्मात, द्ववपद्वि, आपद्वि, भय, बाधा, अडचण, अवरोध, किसे और अमंगल घटनांसे मूस्ति द्वदलाता हैं।

स्वस्तस्तक द्ववश्वका एक ऐसा अलौकीक और अद्वितीय द्वचन्ह या आकार हैं जीसे द्ववश्वके हर धमों नें और
संस्कृद्वतओंने अपने धममस्थानों पर और कलाकृद्वतमें सवममान्य और सवम सन्माननीय प्रद्वतकके रुपमें
स्तस्वकार द्वकया हैं। दु सरे द्ववश्वयुद्धके पहले पिीमके दे शोंमें स्वस्तस्तक प्रद्वतकको आदर और सन्मान
द्वकया जाता था और उसे शुभेच्छा और शुभकामनाका प्रद्वतक मानके स्वस्तस्तक प्रद्वतकको द्वक्ररमस ,
जन्मदीन, नुतन वर्म, लग्नदीन जैसे प्रसंगो पर दीये जाते अद्वभनंदन काडम पर और चचों और मकानों पर
स्वस्तस्तक प्रद्वतकको अंकीत करनेकी सामान्य प्रथा अस्तस्तत्वमें थी।उसके अद्वतरीि ‘’लकी चामम’’के रूपमें
स्वस्तस्तक प्रद्वतक वाले गहने पहननेकी प्रथा सवमसामन्य थी। स्वस्तस्तक प्रद्वतक द्ववश्वका सवमप्रथम सवोिम,
धाद्वममक और सवममाननीय प्रद्वतक होते हुऍ भी द्वितीय द्ववश्वयुद्ध के पयंत ईस पद्ववत्र, पावन और
द्वनष्कलंद्वकत प्रद्वतकको कलंद्वकत और दोशी ठहराया गया. स्वस्तस्तक प्रद्वतकका दोश द्वसर्म यही था द्वक
जममनीके सिाधारी शाशक माईनफ्युह्रर एडॉल्फ द्वहटलरनॅ अपने शाशक नाझी पक्ष और अपनी सेनामें
स्वस्तस्तक प्रद्वतकका प्रयोग द्वकया था और ईस प्रद्वतककी छत्रछायामें उन्होंने यहुदी [ज्यु] और अन्य
अल्पसंख्यक जीप्सी लोगों पर अमानवीय अत्याचार द्वकये थे । ईस अत्याचारोंसे स्वस्तस्तकका कॉइ लेना
दे ना या संबंध नही था । शुभ, शांद्वत और सदाचारका परतंत्र बना ये प्रद्वतक स्वस्तस्तक स्वयं ही जममन
अत्याचारी नाझीओके ध्वजो पर स्थान प्रास्तप्तसे अत्यंत व्यद्वथत, द्वपडीत और त्रस्त होगा ! द्ववश्वयुद्ध के
पयंत द्ववजयी अमेरीका, द्वब्रटन, यहुदी जन्समुदाय और कुछ अन्य युरोपके दे शोंने व्यवस्तस्थत और
सुद्वनयोजीत रूपसे स्वस्तस्तक प्रद्वतकको ही जवाबदार और कलंद्वकत ठहराकर स्वस्तस्तक प्रद्वतकके द्ववरुद्ध
धृणा, द्वतरस्कार र्ैलानेके द्वलऍ एक अयोग्य, अव्यवहाररक और अवाद्वहयात अद्वभयान छे ड द्वदया था।
हजारों सालोंसे पुरे द्ववश्वमें माना और पूजा गया ये शुभ, लाभ और शांद्वतके दू त स्वस्तस्तक प्रद्वतकको
उन्होंने एक भयंकर, अत्याचारी, घातकी, खुनी और अमानवीय प्रद्वतकमें प्रदद्वशमत करके लोगोंका मानस
पररवतमन करनेका महाभ्यान शरू द्वकया था। मानवता, दया, करूणा और अनुकंपाके स्वस्तस्तक
प्रद्वतकको गलत मतप्रचार और द्वशक्षाके माध्यमसे एक भयंकर, दु ि, आतंकी, द्ववनाशी, अत्याचारी और
धृणात्मक प्रद्वतक ठहारानेके र्ड्यंत्रमें वो महद अंश सर्ल भी रहे । अमेरीकाने स्वस्तस्तक प्रद्वतकको
सावमजद्वनक स्थलों पर प्रदशीत करने और उपयोग करने पर रोक लगादी. अमेरीकन प्रशाशनने धाक
धमकी और प्रलोभनसे अमरीकाके स्थायी रे ड ईंस्तियनों जो स्वस्तस्तकको शुभ मानते हैं उन्हें अपनी
हस्तकला और कारीगीरीओंमें स्वस्तस्तक प्रद्वतकका उपयोग बंध करने पर लाचार द्वकया गया और
जममनीको स्वस्तस्तकाके प्रद्वतक पर संपुणम प्रबंध लादने पर दबाव कीया गया था। जान्युआरी २००५में
द्वब्रटनके राजकुंवर हेरीने एक समारं भमें नाझी स्वस्तस्तकाका बाजुबंध पहनने के बाद सारे युरोपमें
स्वस्तस्तका पर प्रद्वतबंध लादनेका प्रयत् हुआ जो अंतमें असर्ल रहा था ! जब दो वर्मके बाद जान्युआरी
२००७ में जममनीको युरोपीयन धारासभाका प्रमुख पद प्राप्त हुआ तो उन्होने द्वर्र स्वस्तस्तक पर संपूणम
प्रद्वतबंध लादनेके लीए तजवीज की द्वजसका खास करके युरोपके और द्ववश्वके द्वहंदु और चीनी, जापान,
कोरीया, थायलेि जैसे पुवीय बौध धमीओंन,े ताओ, कन्फ्फ्युसीयस, र्ालुन डार्ा, डू इड और सीन्टो
धममके धमामचारीओंने और स्वस्तस्तक के चाहक युरोपके लोगोंने उसका सख्त द्ववरोध द्वकया था । यही
प्रसंग मुझॅ हमारे परम पद्ववत्र पावन और पूजनीय धाद्वममक आयम प्रद्वतकको बचानेके लीए और ये
पौराणीक प्रद्वतकके सन्मानीय स्थान और उनकी गरीमाको उजागर करनेके लीए मेरे हृदयमें द्वदव्य
भावनां उदभद्ववत हुई । इसके र्लस्वरूप मैंने युरोपमें स्वस्तस्तकके प्रद्वतबंध करानेकी ईस चालके
द्ववरोधमें अपना योगदान प्रदान करते हुए ‘‘ हेि्झ ओर् आवर सेक्रेड स्वस्तस्तका ‘’ द्वशर्ीत स्वस्तस्तकके
द्ववर्य पर एक द्ववस्तृत ले्ख प्रकाशीत करके अपना जोरदार द्ववरोध प्रगट करके दु सरोंको सख्त द्ववरोध
करनेकी प्रेरणा प्रदानकी ! ये लेख आईवाताम.कोम,’ सभा वाताम’ समाचारपत्र और द्ववश्वके अन्य
समाचरपत्रो और वेब्साईटों पर प्रकाशीत हुआ और उसे अत्यंत प्रशंशा और प्रद्वतसाद प्राप्त हुआ था।
स्वस्तस्तकको द्ववश्वमें पुनः सन्माननीय स्थान प्राप्त करवानेके लीए, स्वस्तस्तकके प्रद्वत पद्विमके दे शोंमें र्ैलाई
गई द्वतरास्कारात्मक भावनांए और दु शप्रचारको द्वमटानेके लीए और स्वस्तस्तक प्रद्वतककी प्रद्वतभा, भव्यता,
द्वदव्यता और आध्यास्तत्मिाको पुनः स्थाद्वपत करानेके लीए आरं भ कीए हुए संघर्म अद्वभयानमें अपना
उद्वचत योगदान प्रदान करनेके लीए हर आयमजनको और स्वस्तस्तक प्रेमीओंको हमेशा तत्पर रहना
चाहीये और अन्य संस्थाओ जो स्वस्तस्तकको एक द्ववश्वके अदभूत, मानवीय, आध्यास्तत्मक, प्रेम, बंधुत्व और
शांद्वतके प्रद्वतकरूप मानती है ऐसी संस्थाएं स्वस्तस्तका क्लब ओर् अमेररका, र्लुन डार्ा, प्रो-स्वस्तस्तका,
रे लीयन मुवमेन्ट, रीक्लेईम स्वस्तस्तका और अन्य जैन और बौध संस्थाओंके संपकममें रहकर द्ववचारोंका
आदानप्रदान करना चाहीये और स्वस्तस्तककी प्रद्वतष्ठाको पुनः प्रस्थाद्वपत करनेके महा अद्वभयानमें अपना
सहयोग और योगदान अपमण करके अपने कतमव्यका पालन करना चाहीये । पािात्य दे शोमें स्वस्तस्तक
प्रद्वतकके मूलभूत द्वसद्धांतो का प्रचार और प्रसार करनेके लीए और उनके सत्य स्वरुपको उजागर करके
जागृद्वत लानेके लीए हर वर्म ‘’ईन्टनेशल स्वस्तस्तक रे हद्वबलीटेशन डे ’’ याने ‘’आंतररािरीय स्वस्तस्तक पुनवामस
द्वदन’’ मनाया जाता हैं। स्वस्तस्तक प्रद्वतकके जन्मस्थान भारत दे शमें भी स्वस्तस्तक प्रद्वतकके मतप्रचारके
लीये , स्वस्तस्तक प्रद्वतकके प्रद्वत र्ैले हुए भ्रमको दू र करनेके लीए और द्ववश्वमें स्वस्तस्तकके संदभममें
जनजागृद्वत लानेके लीए ऐसे कायमक्रमोंका द्वनमामण और आयोजन आवश्यक हैं।

२३मी ओगर २०१५के भारतके समाचार पत्र ‘नई दु द्वनया’में एक आवकारदायक शुभ समाचार प्रकाशीत
द्वकया गया था द्वक महाकालकी महानगरी उज्जैनमें आगंतक ु वर्म २०१६मे होनेवाले द्वसंहस्थ महाकुंभमें
द्ववश्वमें पहलीबार स्वस्तस्तक महायज्ञका आयोजन द्वकया जा रहा हैं। जो उज्जैन नगरी और महाकुंभके
ईद्वतहासमें अदभूत और अत्यंत महत्वपूणम प्रसंग होगा। ये शुभ समाचार द्ववश्वमें बसनेवाले आयम या
द्वहंदुजनों एवं स्वस्तस्तकको सकारात्मक भावसे चाहनेवाले और उनकी साधना करनेवाले लोगोंके लीए ये
अत्यंत आनंददायी समाचार हैं क्ुंकी ये योजना स्वस्तस्तक प्रद्वतकको द्ववश्वके सामने एक सकारात्मक
रुपसे प्रदद्वशमत करके और पद्विमके दे शोंमे द्वितीय द्ववश्वयुद्धके पयंत स्वस्तस्तकके प्रद्वत र्ैलाई गई धृणा एवं
नकारात्मक और भ्रामक भावनाओंको दू र करनेके अद्वभयानमें लाभदायी और र्लदायी होगा।
समाचारोंके अनुसार संत परमहंस डो. अवधेशदासजी महाराजके नेतत्व ृ में आं तररािरीय मानव सेवाश्रम
लोक न्यास एवं स्वस्तस्तक पररवार अवधेशधाम की ओर से स्वस्तस्तक महायज्ञ का आयोजन द्ववश्वमें सुख,
शांद्वत और कल्याणकी प्रास्तप्तके शुभाशयसे द्वकया जा रहा है। आयोजन स्थल पर स्वस्तस्तक प्रदशमनी भी
लगाई जाएगी। दै द्वनक जीवन में उपयोद्वगता और स्वस्तस्तक की मद्वहमा पर आधाररत प्रदशमनी लगाई
जाएगी। हल्दी, केले, श्रीर्ल आद्वद द्ववद्वभन्न् वस्तुओ ं से स्वस्तस्तक बनाए जाएं गे। इसके अलावा स्वस्तस्तक
महासम्मेलन का भी आयोजन होगा। इसके अलावा संत अवधेशपुरीजी के साद्वनध्य में श्रीराम कथा,
भागवत कथा एवं द्वशव पुराण कथाका भी आयोजन होने वाला हैं । उज्जैन. मक्सीरोड स्तस्थत अवधेश
धामके संत अवधेशदास महाराज के नेतृत्वमें स्वस्तस्तक के उपयोग को सामान्य जनता तक पहुंचाने के
महान आशयसे स्वस्तस्तक पररवार संगठनका भारतमें सवमप्रथम द्वनमामण द्वकया गया है। परमहंस डो.
अवधेशदासजी महाराजने स्वस्तस्तक द्ववर्य पर ‘’स्वस्तस्तक साधना रहस्य’’ और स्वस्तस्तकसे समस्याका
समाधान’’ द्वशर्मकोंवाले दो पुस्तकें भी प्रकाशीत कर चुके हैं। द्वसंहस्थ महाकुंभमें द्ववश्वमें पहलीबार
स्वस्तस्तक महायज्ञका महासमारं भ और स्वस्तस्तकके प्रदशमनका आयोजन उज्जैन नगरी, नगरजनों, मध्य
प्रदे श राज्य और भारतके लीए अत्यंत गौरव और सौभाग्यकी बात हैं। ऐसे ऐद्वतहाद्वसक शुभ अवसर पर जो
भारत सरकार स्वस्तस्तक प्रद्वतकका एक संस्मरणीय टपाल द्वटकट (पोरल रे म्प) और स्वस्तस्तक प्रद्वतकवाले
द्वसक्के और चलनी नोट प्रकाशीत करे गी तो द्ववश्वके ये महान प्रद्वतक स्वस्तस्तकका और द्ववश्वके करोडों
लोगोंकी आस्थाको द्ववश्वस्तर पर सुयोग्य सन्मान प्राप्त होगा !

श्री स्वस्तस्तककी जय हो ।
ॐ श्री स्वस्तस्तकाय नमः ।
स्वस्तिक प्रविकके विषय िर हमारे अन्य प्रकाविि िुिकें
स्वस्तिक प्रविकके भस्तिगीि
[1] सत्यम् वििम् स्वस्तिकम्……..
https://www.youtube.com/watch?v=fXH17U05Axs
[२] जय स्वस्तिक जय स्वस्तिक जय गणेि दे िा….
https://www.youtube.com/watch?v=9374FGcdKOs
[३] प्रथम िंदना हम……..
https://www.youtube.com/watch?v=hnijULq2qnc
उज्जैन वसंहस्थ महाकंु भमें हमारी स्वस्तिक प्रदिवनी – वि.सं.
२०७३ २२/४/२०१६ से २१/५/२०१६
https://www.youtube.com/watch?v=EnX8odRr1CQ

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