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वात्स्यायन का कामसत्र

ू हिन्दी में
भाग 5 पारदाररक

अध्याय 1 ्त्री-पुरूष शीलाव्थापन प्रकरण

श्लोक (1)- तेषु साध्यत्सवमनत्सययं गम्यत्सवमायततं वत्तृ ि चाहदत एवं परीक्षेत।।

अथथ- पराई स्त्री के साथ संभोग करने की इच्छा रखने से पहले यह सोच लेना चाहहए कक वह
स्त्री मिल सकती है या नह ं, उसको पाने िें कह ं ककसी तरह का संकट तो नह ं आ सकता, वह
स्त्री संभोग करने के लायक है भी या नह ,ं उसे अपने वश िें करने के बाद उस पर िेरा असर
कैसा पडेगा और िुझे उससे क्या फायदा होगा।

श्लोक (2)- यदा तु ्थानात्स्थानान्तरं कामं प्रततपद्यमानं षश्येिदात्समशरीरोपघातत्राणाथं


परपररग्रिनभ्युपगच्छे त ्।।

अथथ- जब परू
ु ष ककसी पराई स्त्री को दे खकर उत्तेजना िें भर जाता है तो उसे उस सिय
सोचना चाहहए कक िै क्या कर रहा हं । जब उसे िहसस हो कक अब िैं उससे संभोग करे बबना
नह ं रह सकता तब जाकर उस स्त्री के साथ संभोग करना चाहहए।

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श्लोक (3)- दश तु काम्य ्थानातन।।

अथथ- व्यवहार के मलए उत्तेजना के 10 स्त्थान है ।

श्लोक (4)- चक्षुुःप्रीततमथनुःसंगुः संकल्पोत्ससापत्तितनथद्राच्छे द्तनत


ु ा त्तवषयेभ्यो व्यावत्तृ िर्थञ्ञप्रणाश
उन्मादो मूच्छाथ मरणममतत तेषां मलंगातन।

अथथ- स्त्री को दे खकर आंखों िें प्यार छलक जाना, िन का भटक जाना, उसे हामसल करने की
कसि लेना, रात िें नींद न आना, शर र से किजोर होते जाना, सब चीजों से िन हट जाना,
शिम न करना, पागलपन पैदा हो जाना, बेहोशी छाना और ित्ृ यु हो जाना उत्तेजना के 10 स्त्थान
हैं।

श्लोक (5)- तत्राकृतततो लक्षणत्सश्च युवत्सयाुः शीलं शौचं साध्यतां चण्डवेगतां च


लक्षयेहदत्सपाचायाथुः।।
अथथ- जो पुरूष पराई स्त्री से संभोग करते है वह पहले ह स्त्री की सरत और उसके हाव-भावों
को दे खकर पता कर लेते हैं कक वह पववर स्त्री है या पराए पुरुषों िें हदलचस्त्पी रखने वाल स्त्री
है ।

श्लोक (6)- व्यबिचारादाकृततलक्षणयोगानाममंगताकाराभ्यामेव प्रवत्तृ ििोद्धव्या योत्तषत इतत


वात्स्यायनुः।।

अथथ- आचायम वात्स्त्यायन के िुताबबक स्त्री के शर र और शर र पर पडे हुए ननशानों को दे खकर


ह पता ककया जा सकता है कक वह ककस ककस्त्ि की स्त्री है ।

श्लोक (7)- यं कश्श्चदज्ज


ु ज्जवलं पुरुषं दृष्टा ्त्री कामयते। तथा पुरुषोऽत्तपर योत्तषतम ्। अपेक्षया तु
न प्रवतथते इतत गोणणकापुत्रुः।।

अथथ- आचायम गोणिकापुर के अनुसार जजस तरह से स्त्री ककसी बहुत ह सुंदर, गुिी, सभ्य और
धनवान पुरूष को दे खकर उस पर िोहहत हो जाती है उसी तरह से पुरूष भी ककसी सुंदर स्त्री
को दे खकर उस पर अपने हदलो-जान नछडकने लगता है ।
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श्लोक (8)- तत्र श््त्रयां प्रतत त्तवशेषाुः।।

अथथ- वैसे तो स्त्री और पुरूष की यह प्रववृ त्त एक जैसी है लेककन जस्त्रयों िें दसरे पुरूषों की
तरफ आकवषमत होने की यह प्रववृ त्त ज्यादा होती है ।

श्लोक (9)- न ्त्री धमथमधमथ चापेक्षते कामयत एव। कायथपेक्षया तु नामभयुंगेुः।।

अथथ- स्त्री धिम तथा अधिम की कोई परवाह नह ं करती वह मसफम कािना ह करती है लेककन
मिलने पर अपने अंदर कोई दोष दे ख लेती है तो कफर नह ं मिलती क्योंकक दे खे हुए दोष को
दे खने का स्त्री का शील होता है ।

श्लोक (10)- ्वभावश्च पुरुषेणाबियुज्जयमाना चचकीषथन्त्सयत्तप व्यावतथते।।


अथथ- जब कोई पुरूष स्त्री से मिलने की कोमशश करता है तो वह चाहते हुए भी खद
ु ह पीछे
हट जाती है ।

श्लोक (11)- पुनुःपुनरमभयुक्ता मसद्धयतत।।

अथथ- जब पुरूष उस स्त्री से बार-बार मिलने की कोमशश करता है तभी जाकर वह उससे संबंध
स्त्थावपत करती है ।

श्लोक (12)- पुरूष्तु धमथश््थततमायथसमयं चापेक्ष्य कामयमानोऽत्तप व्यावतथते।।

अथथ- बहुत से पुरूष ऐसे होते हैं जो पराई स्त्री के साथ संभोग करना तो चाहते है लेककन
सिाज आहद के डर के कारि ऐसा नह ं कर पाते।

श्लोक (13)- तथािुद्चधश्चामभयुज्जयमानोऽत्तप न मसद्धयतत।।


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अथथ- ऐसे पुरूष को अगर कोई स्त्री खद
ु ह संभोग के मलए कहती है तो भी वह उसके साथ
ऐसा कुछ नह ं करता।

श्लोक (14)- तनष्कारणममभयंग


ु े। अमभयज्ज
ु यात्तप पन
ु नाथबियंग
ु े। मसद्धायां च माध्य््यं गच्छतत।।

अथथ- जस्त्रयां मसफम अपने शर र की आग को मिटाने के मलए ह दसरे पुरूष के साथ संबंध
बनाती है लेककन पुरूष स्त्री के साथ संभोग करने के बाद कफर से गिगीन हो जाता है ।

श्लोक (15)- सल
ु भामवमन्यते। दल
ु भ
थ ामाकांगत इतत प्रायोवादुः।

अथथ- अगर पुरूष ककसी स्त्री को आसानी से पा लेता है तो वह उसको आदर नह ं दे ता लेककन
अगर कोई स्त्री उसको नह ं मिलती तो वह उसको पाने के मलए कोमशश करता रहता है ।

श्लोक (16)- तत्र व्यावतथनकारणातन।।


अथथ- व्यावतमन कारि प्रकरि
ननम्नमलणखत कारिों से जस्त्रयां दसरे पुरूषों को पाने की इच्छा नह ं करती है -

श्लोक (17)- प्रत्सयावनुराग।।

अथथ- अगर कोई स्त्री ककसी दसरे पुरूष को चाहती भी है तो भी उसके पनत का प्यार उसको
उसके पास जाने से रोक लेता है ।

श्लोक (18)- अपत्सयापेक्षा।।

अथथ- दध पीने वाले बच्चे का प्यार भी उसे रोक दे ता है ।

श्लोक (19)- अततक्रान्तवय्त्सवम ्।।

अथथ- जब स्त्री जवानी को पार कर लेती है तो वह भी दसरे पुरूष के पास जाने से रुक जाती
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है ।

श्लोक (20)- दुःु खामभभनुः।।

अथथ- अगर स्त्री दख


ु ी है तो भी वह दसरे परू
ु ष के पास नह ं जाती।

श्लोक (21)- त्तवरिानुपलम्युः।।

अथथ- जजस स्त्री का पनत उसे अपने से कभी जद


ु ा नह ं करता वह स्त्री भी दसरे परू
ु ष के पास
नह ं जाती।

श्लोक (22)- अवज्ञयोपमन्त्रयत इतत क्रोधुः।।


अथथ- कह ं अपिान करने के मलए तो नह ं बुलाया है , इस तरह का गुस्त्सा करके भी दर हो
जाती है ।

श्लोक (23)- अप्रतक्यथ इतत संकल्पवर्थनम ्।।

अथथ- वह जजस पुरूष के पास जाना चाहती है अगर उसे यह लगता है कक िैं उसे हामसल नह ं
कर सकं गी तो भी वह उस पुरूष के पास जाने का ख्याल छोड दे ती है ।

श्लोक (24)- गममष्यतीत्सयनायततरन्यत्र प्रसक्तमततररतत च।। ममत्रेषु तनसष्ृ टभाव इतत


तेष्वपेक्षा।।

अथथ- वह आदिी ककसी और स्त्री से प्रेि कर रहा है या ककसी और स्त्री के पास जा सकता
है । यह सोचकर भी स्त्री उसके पास जाने का ख्याल अपने िन से हटा दे ती है । उसे लगता है
कक वह परू
ु ष तो अपने दोस्त्तों की ह बरु ाई करता है , उनको अपनी सार बात बता दे ता है ।
इसमलए वह उससे दर जाने िें ह अपनी भलाई सिझती है ।

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श्लोक (25)- चण्डवेगुः समथो वेतत भयं मगृ याुः।।

अथथ- िग
ृ ी जानत अथामत छोट योनन वाल स्त्री परू
ु ष को ज्यादा उत्तेजक सिझकर या उसके
मलंग को बहुत ज्यादा सिझकर डर के कारि उसके साथ संभोग करने से हट जाती है ।

श्लोक (26)- नागरकुः कलासु त्तवचक्षण इतत क्रीडा।।

अथथ- उसे लगता है वह परू


ु ष तो संभोग की हर कला िें ननपि
ु है । इसी वजह से शिम के
कारि वह उसके साथ संभोग नह ं करती है ।

श्लोक (27)- सणखत्सवेनोपचररत इतत च।।

अथथ- उसको परू


ु ष और अपनी दोस्त्ती याद आ जाती है इसमलए वह पीछे हट जाती है ।

श्लोक (28)- पररभव्थानममत्सयििुमानुः।।


अथथ- उस पुरूष को नीची जानत का सिझकर वह उससे दर होना ह सह सिझती है ।

श्लोक (29)- चशो मन्दवेग इतत च िश््तन्याुः।।

अथथ- हजस्त्तनी स्त्री अथामत ज्यादा गहर योनन वाल स्त्री को जब यह पता चलता है कक इस
पुरूष का मलंग छोटा है अथामत वह शश जानत का है तो वह उसके साथ संभोग करने का इरादा
त्याग दे ती है ।

श्लोक (30)- मिोऽ्य मा भूदतनष्टममत्सयनुकम्पा।।

अथथ- उसे लगता है कक िेरे इस पुरूष के साथ संबंध बनाने से उस पर कुछ ववपवत्त न आ
जाए। यह सोचकर वह उस पुरूष से दर हो जाती है ।

श्लोक (31)- त्तवहदता सती ्वर्निहिष्कृता भत्तवष्यामीतत भयम ्।।

अथथ- अगर िेरे पनत को या िौहल्ले वालों को इस बात का पता चल गया कक िैं ककसी दसरे
पुरूष के साथ नाजायज संबंध बना रह हं तो िैं घर से ननकाल जा सकती हं । इस डर से भी
स्त्री दसरे पुरूष के साथ संबंध बनाने का इरादा त्याग दे ती है ।
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श्लोक (32)- पत्सया प्रयुक्तुः परीक्षत इतत त्तवमशथुः।

अथथ- उसे लगता है कक इस पुरूष को िेरे पनत ने ह िेरे बारे िें पता करने के मलए नह ं
भेजा है ।

श्लोक (33)- धमाथपेक्षा चेतत।।

अथथ- उसके िन िें धामिमक भावना आ जाने के कारि भी वह दसरे पुरूष का ख्याल अपने
िन से हटा दे ती है ।

श्लोक (34)- तेषु यदात्समतन लक्षेयेिदाहदत एवं पररश्च्छन्द्यात ्।।

अथथ- स्त्री के अपने से दर जाने के कारिों के अपने अंदर रहते हुए भी उनको हामसल करने
के मलए क्या करना चाहहए- यह ननम्नमलणखत है -
अपनी चालाकी के द्वारा स्त्री पर अपनी किजोररयों और दोषों को प्रकट नह ं होने दे ना
चाहहए।

श्लोक (35)- आयथत्सवयुक्तातन रागवधथनात ्।।


अथथ- जजन कारिों से पुरूष को अपने पास आती हुई स्त्री भी नह मिलती। उसे सबसे पहले
अपने अंदर के उन कारिों को दर करना चाहहए।

श्लोक (36)- अशश्क्तर्ान्युपायप्रदशथनात ्।।

अथथ- परू
ु ष की जजस असिथमता के कारि स्त्री उसे न मिल रह हो उसे उसकी असिथमता को
दर करने का तर का बता दे ना चाहहए।

श्लोक (37)- ििुमानकृतान्यततपररचयात ्।।

अथथ- ज्यादातर आत्िसम्िान की रुकावट को स्त्री से ज्यादा पररचय बढाकर दर कर दे ना


चाहहए।

श्लोक (38)- पररभनकृतान्यततशौण्डीयाथद्वैचक्षण्याश्च।।

अथथ- पररभव की भावना से पैदा हुई रुकावट को सिझदार से दर कर दे ना चाहहए।

श्लोक (39)- तत्सपररभवर्ातन प्रणत्सया।।

अथथ- परू
ु ष के प्रनत स्त्री िें जो अववश्वास की भावना है उन्हें अपनी नम्रता दर कर दे ना
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चाहहए।

श्लोक (40)- भवयुक्तान्याश्चासनाहदतत।।

अथथ- भययुक्त रुकावटों को आश्वासनों को दर कर दे ना चाहहए।

श्लोक (41)- पुरूषा्त्सवमी प्रायेण मसद्धाुः- कामसूत्रज्ञुः कथाख्यानकुशलो िाल्यात्सप्रभतृ त संसष्ृ टुः
प्रवद्
ृ वयौवनुः क्रीडनकमाथहदनागतत्तवश्वासुः प्रेषण्य कतोचचतसंभाषणुः त्तप्रय्त कताथन्य्य
भूतपूवो दत
ू ो ममथज्ञ उिमया प्राचथथतुः संख्या प्रच्छत्रुः संसष्ृ टुः सुभगामभख्यातुः सिसंवद्धुः
प्राततवेश्युः कामशील्तथाभूतश्च पररचारको मात्रेतयकापररग्रिो नववरकुः प्रेक्षोद्यानत्सयागशीलो वष

इतत मसद्धप्रतापुः सािमसकुः शूरो त्तवद्यारूपगुणोपभोगैुः पत्सयुरततशतयता मिािथवेषोपचारश्चतत।।

अथथ- पराई जस्त्रयों को अपने वश िें करने वाले लोग-


कािसर को जानने वाले, कहानी सन
ु ाने िें चालाक, अच्छा खासा जवान, बचपन को
दोस्त्त, सह बोलने वाला, खेल-खेलने िें ववश्वासी, जो स्त्री कहे वह कहे , िनचाह चीजों को
लाकर दे ने वाला, सौभाग्याशाल हो, पहले दत का काि कर चक
ु ा हो, जजसे चाहता हो उससे
गप
ु चप
ु तर के से मिल चक
ु ा हो, ककसी अच्छी स्त्री का प्यार पा चक
ु ा हो, स्त्री के साथ उसका
पालन-पोषि भी हुआ हो, पडोसी, कियाशील नौकर, नया दािाद, धाय की पुरी का पनत, नाच,
नौटं की दे खने िें रुचच रखने वाला, जस्त्रयों को उपहार दे ने वाला, हट्टा-कट्टा, बहादरु , अपनी
प्रेमिका के मलए जान की बाजी लगाने वाला, ववद्या, गुि, रूप और भोग िें स्त्री से बढकर हो,
जजसका अच्छा वेश हो, संभोग कलाओं िें ननपुि हो और ििमज्ञ हो।

श्लोक (42)- यथात्समनुः मसद्धतां पश्येदेवं योत्तषयोऽत्तप।।

अथथ- जजस प्रकार परू


ु ष अपने उपायों की काियाबी के बारे िें सोचता है , उसी तरह उसे यह भी
सोच लेना चाहहए कक जजस स्त्री को वह चाहता है उसे वह मिल सकेगी भी या नह ं।

श्लोक (43)- अयन्तसाध्या योत्तषतश््तवमाुः- अमभयोगमात्रसाध्याुः द्वारदे शाव्थानी।


प्रासादाद्रार्मागाथवलोककनी। तरुणप्रातत वेश्यगि
ृ े गोष्ठीयोश्र्नी। सततप्रेक्षक्षणी। प्रेक्षक्षता
पाश्चथत्तवलोककनी। तनष्कारणं सपत्सन्याचधत्तवत्रा। भतद्
थ ृ वेत्तषणी त्तवद्त्तवष्टा च। पररिारिीना।
तनरपत्सया।

अथथ- अयवसाध्य योवषत प्रकरि 44books.com


हर सिय घर के दरवाजे पर खडी रहने वाल स्त्री, आसानी से वश िें आने वाल स्त्री, छत से
सडक की ओर दे खने वाल , आने-जाने वालों को दे खने वाल , अपने युवा पडोसी के यहां पर
जाकर गप्पे हांकने वाल , ककसी के द्वारा दे खने पर टे ढ नजर से दे खने वाल , अपने पनत को
पसंद न करने वाल , पनत से नफरत करने वाल , बच्चा पैदा न करने वाल ।

श्लोक (44)- ज्ञाततकुलतनत्सया। त्तवपत्रापत्सया। गोष्ठीयोश्र्नी। प्रीततयोश्र्नी। कुशीलवभायाथ।


मत
ृ पततका िाला। दररद्रा ििूपभोगा। ज्जयेष्ठभायाथ ििूदेवरका। ििुमातननी न्यूनभतक
थ ृ ा।
कौशलामभमातननी भतुम थ ौख्येणोद्वगना। अत्तवशेषतया लोभेन।।

अथथ- जो स्त्री हर ककसी स्त्री के साथ दोस्त्ती कर लेती हो, जो अपने िायके िें ज्यादातर रहती
हो, बचपन िें ववधवा होने वाल , जजसके बच्चे पैदा होकर ह िर जाते हों, नौटं की, डांस आहद
करने वालों की पजत्नयां, जजसके बहुत सारे दे वर हो, गर ब होते हुए भी जो बडी-बडी चीजों का
शौक रखती हो, जो अपनी खबसरती के आगे अपने पनत को भी कुछ न सिझती हो, जो अपने
पर बहुत ज्यादा घिंड करती हो, अपने पनत को छोडकर पराए परू
ु ष को चाहती हो।

श्लोक (45)- कन्याकाले यत्सनेन वाररता कथाथचचदलब्धामभयक्


ु ता च सा तदानीम ्
समानिद्
ु चधशीलमेधाप्रततपत्तिसात्सम्या। प्रकृत्सया पक्षपाततनी। अनपराधे त्तवमातनता।
तुल्यरूपामभश्चाधुः कृता। प्रोत्तषतपततकेतत। ईष्याथलुपूततचोक्षल्कीिदीघथसूत्रकापुरूषकुब्र्वाम
नत्तवरूपमणणकारग्राम्यदग
ु श्थ न्ध- रोचगवद्
ृ धभायाथश्चेतत।।
अथथ- जो स्त्री बद्
ु चध, वववेक और शील िें परू
ु ष की बराबर रखती हो, जजसे अपनी पसंद का
पनत न मिला हो, जो बबना ककसी कारि के अपिान सहती हो, जजसका पनत उससे कह ं दर
रहता हो, झगडाल स्त्वभाव का हो, नपंस
ु क हो, डरपोक हो, कद िें छोटा हो, बदसरत हो, दसर
जस्त्रयों की तरफ आकवषमत हो जाता हो, पढा-मलखा न हो, लंबे सिय से बीिार हो, ऐसी जस्त्रयां
दसरे परु
ु षों की तरफ आकवषमत हो जाती हैं।

श्लोक (46)- श्लोकावत्र भवतुः- इच्छा ्वभावतो र्ाता कक्रयया पररवंहृ िता। वुद्धया
संशोचधतोद्वेगा श््थरा ्यादनपातयनी।

अथथ- इस ववषय के अंदर 2 बहुत ह पुराने और िशहर श्लोक हैं- यह बात तो स्त्वाभाववक ह
है कक ककसी भी सुन्दर स्त्री को पुरूष चाहता है और ककसी भी खबसरत पुरूष को स्त्री चाहती
है । ऐसी इच्छाएं पररचय और उपायों द्वारा बढाई जा सकती हैं और बुद्चध से उद्वेगों का
संशोधन करके इस तरह की ख्वाहहश स्त्थायी बनाई जा सकती है ।

श्लोक (47)- मसद्धतामात्समनो ज्ञात्सवा मलंगान्युत्रीय योत्तषताम ्। व्यावत्तृ िकारणोच्छे दी नरोयोत्तषत्ससु


मसध्यतत।।
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अथथ- खद
ु को मिलने वाल सफलताओं को सिझकर स्त्री के हाव-भाव, कटाक्ष का अंदाजा
करके िजु श्कलों को दर करने का उपाय करके परू
ु ष दसर जस्त्रयों से संभोग करने िें सफल हो
सकता है ।
पराई जस्त्रयों से साथ ककस तरह जान-पहचान बनाई जा सकती है उसके बारे िें इस
अचधकरि िें बताया गया है लेककन पहले अध्याय िें पहले स्त्री और परू
ु ष के शील-स्त्वभाव की
व्यवस्त्था बताई गई है । कफर उन कारिों के बारे िें पता ककया जाए जजनसे चाहने वाल स्त्री
भी परू
ु ष से दर रहती है । इसके बाद यह बताया जा रहा है कक ऐसी कौन सी स्त्री है जो बबना
ककसी कोमशश के पराए पुरूष से सहवास कराने के मलए तैयार हो जाती है ।
इस प्रसंग िें वात्स्त्यायन ने संभोग की 10 दशाएं बताई हैं। यह 10 दशाएं जुदाई के
सिय होती हैं। यह जरूर नह ं है कक काि की ये 10 दशाएं मसफम पराई स्त्री से लेकर ह
प्रवत्त
ृ हुआ करती हैं। जहां कह ं भी इच्छा होती है वह ं संभोग की 10 दशाएं भी उत्पन्न हो
जाती हैं।
आचायम वात्स्त्यायन द्वारा बताई गई असल बात यह है कक युवक, युवती, अपना, पराया
कोई भी हो, िनचाह चीज के न मिलने पर कािसर का यह अचधकरि सवम-साधारि दशाओं
िें लेकर प्रवत्त
ृ हुआ है । इस अचधकरि का िकसद मसफम पराई स्त्री ह नह ं है लेककन चाहत
की सवमसाधारि चीजों को सिझना चाहहए।
आचायम वात्स्त्यायन ने संभोग की जजन 10 दशाओं के बारे िें बताया है वह मसफम पुरुषों
को ह नह ं परे शान करती बजल्क जस्त्रयों को भी परे शान करती हैं क्योंकक जजस तरह से पुरूष
दसर जस्त्रयों के साथ संबंध बनाने के मलए उत्सुक रहते हैं उसी तरह जस्त्रयां भी दसरे पुरुषों के
साथ संबंध बनाने की इच्छा रखती हैं।
इनत श्रीवात्स्त्यायनीये कािसरे पारदाररके पश्चिेऽचधकरिे स्त्री-पुरूषशीलावस्त्थापनं
व्यावत्तमनकारिानन स्त्रीषु मसद्धााः पुरूषा अयत्नसाध्या योवषताः प्रथिोऽध्यायाः।।

वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 5 पारदाररक

अध्याय 2 पररचयकारण प्रकरण

श्लोक (1)- यथा कन्या ्वयममभयोगसाध्या न तथा दत्सू या। परश््त्रय्तु सक्ष्
ू मभावा दत
ू ीसाध्या
न तथात्समनेतयाचायाथुः।

अथथ- कािशास्त्र के पुराने आचायों के िुताबबक जजस तरह से कंु वार युवती को अपने उपायों
आहद से पाया जा सकता है उसी तरह पराई जस्त्रयों को बबना दती की सहायता से स्त्वयं पाना
िुिककन नह ं है ।
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श्लोक (2)- सवथत्र शश्क्तत्तवषये ्वयं साधनमुपपत्रतरकं दरु


ु पपादत्सवाि्य दत
ू ीप्रयोग इतत
वात्स्यायनुः।।

अथथ- आचायम वात्स्त्यायन के िुताबबक स्त्वयं अपने बल पर स्त्री को पाना दती की िदद लेने से
ज्यादा अच्छा है । अगर स्त्वयं की कोमशश काियाब नह ं हो पाती तो दती की िदद ल जा
सकती है ।

श्लोक (3)- प्रथमसािसा अतनयन्त्रणसंभाषाश्च ्वयं प्रतायाथुः। तद्त्तवपरीताश्च दत्सू येतत


प्रायोवादुः।।

अथथ- जजस स्त्री का चररर पहल बार खराब हुआ हो उसे पाने िें परू
ु ष ह सिथम होता है दती
नह ं। कभी हामसल करने वाल स्त्री से बात न हुई हो, उससे मिलना ककसी भी तरह से परू
ु ष
के वश िें न हो तो कफर दती का ह सहारा लेना पडता है ।
श्लोक (4)- ्वयममभयोक्ष्यमाण्त्सवादावेव पररचयं कुयाथत ्।।

अथथ- अगर पुरूष खद


ु स्त्री को पाने के उपाय करना चाहता है तो उसे पहले उससे िेलजोल
और दोस्त्ती आहद बढाना चाहहए।

श्लोक (5)- त्याुः ्वाभात्तवकं दशथनं प्रायश्त्सनकं च।।

अथथ- अगर बबना ककसी कोमशश के स्त्री को दे खा जाए तो उसे स्त्वभाववक कहते हैं और अगर
उसे ककसी उपाय आहद से दे खा जाए तो उसे प्रायजत्नक कहते हैं।

श्लोक (6)- ्वािात्तवकमात्समनो भवनसंतनकषे प्रायश्त्सनकं ममत्रज्ञाततमिामात्रवैद्यभवनसंतनकषे


त्तववाियज्ञोत्ससवव्यसनोद्यानगमनाहदष।ु ।

अथथ- स्त्री को अपने घर के पास आते-जाते दे खना और स्त्वाभाववक और दोस्त्त, िंरी या डाक्टर
के घर के पास या वववाह, यज्ञ, उत्सव, ववपवत्त, के िौके पर दे खना प्रायजत्नक दशमन है ।

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श्लोक (7)- दशथने चा्याुः सततं साकारं प्रेक्षणं केशसंयमनं


नखाच्छुरमणमाभरणप्रह्लादनमधरौष्ठत्तवमदथ नं ता्ताश्च लीला वय्यैुः सि
प्रेक्षमाणाया्तत्ससंिद्धाुः परापदे मशन्यश्च कथा्त्सयागोपभोगप्रकाशनं सख्यरु
ु त्ससंगतनषण्ण्य
सागंभंगर्म्
ु भणमेकभ्रक्ष
ू ेपणं मन्दवाक्यता तद्वाक्यश्रवणं तामद्
ु हदश्य िालेनान्यर्नेन वा
सिान्योपहदष्टा द्वयथाथ कथा त्यां ्वयं मनोरथावेदनमन्यापदे शन
े तामेवोद्हदश्य
िालचम्
ु िनमामलंगनंचश्र्ह्वया चा्य ताम्िूदानं प्रदे मशन्या िनुदेशगट्टनं तिद्यथायोगं
यथावकाशं च प्रयोक्तव्यम ्।।

अथथ- स्त्री का भावदशमन इस तरह करना चाहहए- जब वह अपने बालों को खोलकर सुखा रह
हो, नाखनों से खज
ु ला रह हो, अपने गहनों को ठीक कर रह हो, अपने नीचे वाले होंठों को
चबा रह हो, तब अपने दोस्त्तों के साथ स्त्री के उन भावों की नकल करने का नाटक करना
चाहहए। दसरे लोगों के बहाने उसकी बातें करनी चाहहए, अपने त्याग तथा भोग-ववलासों के बारे
िें बातें करनी चाहहए, दोस्त्त की गोद िें लेटकर अंगडाई लेनी चाहहए, जम्भाई लेते हुए उसकी
तरफ भौंहों को िटकाना चाहहए, धीरे से बोलना चाहहए तथा उसकी बातें सन ु ना चाहहए।
श्लोक (8)- त्याश्चागंत्य िाल्य लालनं िालक्रीडनकानां चा्य दानं ग्रिणं तेन
सतनकृष्टत्सवात्सकथायोर्नं तत्ससंभाषणक्षमेण र्नेन च प्रीततमासाद्य कायं तदनुिन्धं च
गमनागमन्य योर्नं संश्रये चा्या्तामपश्यतो नाम कामसूत्रसंकथा।।

अथथ- स्त्री के गोद िें मलए हुए बच्चे को प्यार करना चाहहए तथा उसे खेलने के मलए णखलौने
दे ने चाहहए। उसके पास जाकर उससे बात करनी चाहहए। जो आदिी उससे बात करता हो
उससे दोस्त्ती कर लेनी चाहहए तथा उसके द्वारा अपना िकसद हल कर लेना चाहहए। ककसी
भी काि के बहाने उसके घर पर आना-जाना शुरू कर दे ना चाहहए। उसको ऐसे स्त्थान पर
कािसर के बारे िें बातें करनी चाहहए कक जहां से स्त्री उसकी बातों को सुन तो सके लेककन
यह न जान सके कक वह उसको दे खकर ऐसी बाते बोल रहा है ।

श्लोक (9)- प्रसत


ृ े तु पररचये त्या ि्ते न्यासं ररक्षेपं च तनदध्यात ्। तत्सप्रततहदनं प्रततक्षणं
चैकदे शतो गह्
ृ वीयात ्। सौगश्न्धक पल
ू फलातन च।।

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अथथ- उससे अच्छी तरह से जान-पहचान होने के बाद उसे ऐसी चीजें दे नी चाहहए जो उसके
पास कुछ हदन तक रखी रहें । इसके बाद उससे वह चीज लेकर उसको दब
ु ारा ऐसी चीजें रखने
के मलए दें जो कक उसके पास ज्यादा हदनों तक रखी रहे । उससे प्यार, भरोसा और जान-
पहचान बढाने के मलए रोजाना सािान को लेन-े दे ने का िि जार रखें जैसे इर, सुपार , बाल
बनाने के मलए कंघा आहद। ऐसी चीजों को उपयोग करने के मलए रोजाना िांगा जा सकता है ।

श्लोक (10)- तामात्समनो दारै ुः सि त्तव्त्रम्भगोष्ठयां त्तवत्तवक्तासने च योर्येत ्।।

अथथ- उसे अपने घर की जस्त्रयों के साथ बातचीत या भोजन आहद करने िें लगा दे ना चाहहए।

श्लोक (11)- तनत्सयदशथनाथथ त्तवश्वासनाथथ च।।

अथथ- इस प्रकार की कोमशशों को करते रहना चाहहए जजससे वह रोजाना हदखती रहे और
उसका प्रेि और भरोसा भी बढते जाए।
श्लोक (12)- सुवणथकारमणणकारवैकहटकनीलीकुसुम्भरञ्ञकाहदषु च कामाचथथन्यां सिात्समनो
वश्यैश्चैषां तत्ससम्पादने ्वयं प्रयतेत।।

अथथ- सन
ु ार, जडडया, न्याररया, नीलगर, रं गरे ज, बढई आहद से अगर स्त्री कोई काि कराने जाती
है तो पुरूष को उससे कहकर कक िै आपका यह काि करवा दं गा कहकर उसे घर पर भेज
दे ना चाहहए।

श्लोक (13)- तदनुष्ठानतनरत्य लोकत्तवहदतो दीघथकालं संदशथनयोगुः।।

अथथ- इस तरह से स्त्री का काि करते हुए पुरूष को लोग-बाग बहुत ह दे र से सिझ पाते हैं।

श्लोक (14)- तश््मश्चान्येषामत्तप कमथणामनुसन्धानम ्।।

अथथ- एक काि को सिाप्त ककए बबना 44books.com


ह पुरूष को दसरा काि शुरु कर दे ना चाहहए।

श्लोक (15)- येनकमथणा द्रव्येण कौशलेन चाचथथनी ्याि्य प्रयोगमुत्सपत्तिमागममुपायं त्तवज्ञानं


चात्समायिं दशथयेत ्।।

अथथ- स्त्री को जजन-जजन कािों की जरूरत हो, जजन चीजों को वह पसंद करती हो, जजस काि
आहद को वह सीखना चाहती हो, उनको परा करने, जानने तथा जानकार रखने और कोमशश
करने की अपनी योग्यता उससे जाहहर कर दे ना चाहहए।

श्लोक (16)- पव
ू प्र
थ विृ ेषु लोकचररतेषु द्रव्यगण
ु परीक्षासु च तया तत्सपररर्नेन च सि त्तववादुः।।

अथथ- पुराने र नत-ररवाजों, वस्त्तुओं के गुिों की पहचान िें उससे और उसके नौकरों से बहस
करने से संकोच दर होता है ।
श्लोक (17)- कृतपररचयां दमशथतेचगंताकारां कन्याममवोपायतोऽमभयुञ्ञीतेतत। प्रायेण तत्र सूक्ष्मा
अमभयोगाुः। कन्यानामसंप्रयुक्तत्सवात ्। इतरासु तानेव ्फुटमुपदध्यात ्। संप्रयुक्तत्सवात ्।।

अथथ- अमभयोग प्रकरि-


जजस स्त्री से जान-पहचान कर ल हो, जजसने संकेत तथा हाव-भाव हदखा हदए हो उसको उसी
तरह से अपनाना चाहहए जैसा कक कन्या को पाने के अध्याय िें बताया गया था।

तया तु त्तववदमानो +अत्सयन्ताद् भत


ु म ् इतत ब्रय
ू ाद् इतत पररचयकारणातन||

श्लोक (19)- संदमशथताकारायां तनमभथन्नसद्धावायां समप


ु भोगव्यततकरे तदीयान्यप
ु यञ्
ु ञीत।।

अथथ- जजस स्त्री ने अपने शर र के अंगों को हदखा हदया हो, जजसने सदभाव जाहहर कर मलया
हो, उसकी चीजों को उसके प्रेिी को भोगना चाहहए तथा प्रेिी की चीजों को स्त्री को उपभोग
करना चाहहए।
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श्लोक (20)- तत्र मिािथ गंधमि


ु रीयं कुसम
ु ं ्यादं गलीयकं च। तद्ध्ताद-गि
ृ ीतताम्िल
ू या
गोष्ठीगमनोद्यत्य केशि्तपष्ु पयाचनम ्।।

अथथ- एक-दसरे को चीजे लेने-दे ने की शुरुआत होने पर अगर स्त्री पुरूष को ज्यादा सुगंचधत
चीजें, अंगठी, दप
ु ट्टा और फल दे ती है तथा जब वह अपने हाथ िें रखा हुआ पान खा ले तो
घिने जाने की तैयार करते सिय उसके जडे िें लगे हुए सुगंचधत फल िांगे।

श्लोक (21)- तत्र मिािथगंध ्पण


ृ ीयं ्वनखदशनपदचचश्ह्नतं साकारं दद्यात ्।।

अथथ- इसके बदले िें स्त्री अगर कोई सुगंचधत या िनचाह चीज पुरूष को दे ती है तो उसे
नाखन से उस पर ननशान बना दे ना चाहहए।
श्लोक (22)- क्रमेण च त्तवत्तवक्तदे शे गमनमामलंगनं चि
ुं न ताम्िूल्य ग्रािणं दानान्ते द्रव्याणां
पररवतथनं गुह्यदे शामभमशथनं चेत्सयमभयोगाुः।।

अथथ- पुरूष और स्त्री को धीरे -धीरे एकांत िें मिलना-जुलना चाहहए, आमलंगन और चब
ुं न आहद
करना चाहहए, उसके गुप्त अंगों को छना चाहहए। इसी को अमभयोग कहते हैं।

श्लोक (23)- यत्र चैकामभयुक्ता न तत्रापराममभयुञ्ञीत।।

अथथ- जहां पहले ककसी और स्त्री से मिल चक


ु े हो वहााँ उस स्त्री को मिलने के मलए नह ं
बुलाना चाहहए।

श्लोक (24)- श्लोवत्र भवतुः- अन्यत्र दृष्टसंचार्तद्धताथ यत्र नायकुः। न तत्र योत्तषतं
कांचचत्ससप्र
ु ापामणण लंगयेत ्।।

अथथ- इस ववषय के बारे िें 2 पुराने श्लोक हैं- जजस घर िें स्त्री के पनत को उसके नाजायज
संबंधों के बारे िें पता हो, वहां पर आसानी से मिलने वाल स्त्री से मिलना भी ठीक नह ं है ।
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श्लोक (25)- शंचगतां रक्षक्षतां भीतां सश्वश्रक


ू ां च योत्तषतम ्। न तकथयेत मेधावी
र्ानन्प्रययमात्समनुः।।

अथथ- िजबत हदल वाल , डरपोक, भरे -परे घर वाल जस्त्रयों को आत्िववश्वास लोगों को भलकर
भी नह ं पटाना चाहहए।
जजन जस्त्रयों से संभोग किया करने की इच्छा करती है वह 2 प्रकार की होती है एक तो
वह कन्या जजसने पहले कभी ककसी पुरूष के साथ संबंध बनाए हो। उसको पाने के मलए पुरूष
को दती की िदद न लेकर स्त्वयं ह अपने उपायों को आजिाना चाहहए। ऐसा इसमलए कक उस
लडकी को कोई तजुबाम नह ं होता। उसको आसानी से अपने जाल िें फंसाया जा सकता है ।
लेककन जजन युवनतयों को अनुभव होता है उनको दती के जररये से अपनी ओर आकवषमत ककया
जा सकता है । वह सब इशारों को आसानी से सिझ जाती है ।
स्त्री को आकवषमत करने के मलए सबसे पहले उससे जान-पहचान और प्यार-िोहब्बत
बढाना चाहहए। उसको दे खने और अपने आपको हदखाने की कोमशश करनी चाहहए। स्त्री को
इधर-उधर जाते हुए दे खना स्त्वाभाववक दशमन है । जजस स्त्री से मिलने की ख्वाहहश हो, उसके
हाव-भाव, अंग संचालन को दे खकर अनक ु रि करना चाहहए, उसको लक्ष्य िानकर ककसी बच्चे
को चिना, आमलंगन करना आहद बाध्य पररचय कहे जाते हैं। इस तरह के बाध्य पररचय
द्वारा धीरे -धीरे बाते करना अथवा मसलमसला जोडना चाहहए।
जब स्त्री से बाहर पररचय हो जाता है तो उससे मिलने-जुलने के िौके ढं ढने चाहहए,
उसके घर आने-जाने का मसलमसला चाल करना चाहहए, उसके बाद पान, सुपार , इर जैसी चीजों
के उसे रखने के मलए दे ना चाहहए क्योंकक इन चीजों का रोजाना लेन-दे न चलता रहना चाहहए।
इससे दोनों को एक-दसरे से रोजाना मिलने का िौका मिलता रहता है ।
आचायम वात्स्त्यायन ने दसर जस्त्रयों को पाने के मलए संकेतों और इशारों को बढावा
हदया है । काि-शाजस्त्रयों ने इस संबंध के संकेत शब्द भी बनाएं है जैसे परू
ु ष का नाि न लेकर
उसे ककसी फल या स्त्री को ककसी फल के नाि से बल
ु ाना। जैसे अगर वह ब्राह्िि जानत का
है तो दाडडि, क्षबरय है तो कटहल, वैश्य है तो केला, शद्र
ु है तो आि। ब्राह्िि स्त्री के मलए
कुन्दपष्ु प, राजकुिार हो तो िालती, वैश्य हो तो िजल्लका, शद्र
ु कन्या हो तो कुिहु दनी, व्यापार
की लडकी हो तो सरोज और िंरी की लडकी हो तो उसे उत्पल कहकर पक
ु ारना चाहहए।
इन्हें भाषा संकेत कहते हैं। इन संकेतों का प्रयोग अपने िकसद को नछपाने तथा स्त्री
पर प्रकट करने के मलए उस सिय करना चाहहए जब कई लोग हो। चचट्ठी मलखने िें भी इन
भाषा संकेतों का प्रयोग करना चाहहए।
भाषा संकेतों के अलावा अंग संकेत, पुष्प िाला संकेत, ताम्बुल संकेत, वस्त्र संकेत तथा
पोटल संकेत जैसे 5 और भी संकेत बताए गए हैं।
अंग सकेत- अगर स्त्री और पुरूष को एक-दसरे के हाल-चाल पछने हो तो कान को छना
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चाहहए। अपने प्यार को जाहहर करने के मलए उसके बालों िें उं गल घुिानी चाहहए। प्रेिी की
बेचन
ै ी बताने के मलए छाती पर हाथ रखना चाहहए। सम्िान प्रकट करने के मलए िाथे पर हाथ
रखना चाहहए। मिलने के मलए अपने हाथ की िध्यिा उं गल को तजमनी उं गल पर चढा दे ना
चाहहए। यहद बुलाना हो तो िुट्ठी बांधकर हाथों को जोडना चाहहए।
ककसी रोज के मलए हां करने के मलए तार खों का संकेत करना चाहहए। कननष्का उं गल
(हाथ की सबसे छोट उं गल ) के पहले पोर से लेकर अंगठे के आणखर पोर तक 15 पोर होते
हैं। प्रनतपदा (अिावस) से लेकर पिमिासी तक इनको 15 हदन िाना जाता है । यह तार ख
संकेत होते हैं। जब ककसी तार ख को संकेत के जररये बताना हो तो उसके मलए उं गमलयों के
पोरों की िदद लेनी चाहहए। हदशाओं का संकेत भी उं गमलयों से ककया जाता है । अंगठा हदखाने
से पहले हदशा का तजमनी उं गल से दक्षक्षि, िध्यिा से पजश्चि, कननष्का तथा उसके पास की
उं गल से उत्तर हदशा का बोध होता है । शुक्लपक्ष (पणिमिा) तथा कृष्िपक्ष (अिावस) का संकेत
हाथों से करना चाहहए। बाएं हाथ को हदखाने से शुक्लपक्ष (पणिमिा) तथा दाएं हाथ को हदखाने
से कृष्िपक्ष (अिावस्त्या) होता है ।
इन अंग संकेतों को तब ककया जाता है जब परू
ु ष स्त्री के पीछे पागल होकर उसकी
गल के चक्कर काटता रहता है और स्त्री णखडकी से संकेत करती है ।
पष्ु पिाला संकेत- अनरु ाग प्रकट करने के मलए लाल रं ग के फलों की िाला, स्त्री से
वैराग्य प्रकट करने के मलए गेरुए रं ग के फलों की िाला, प्यार न मिलने पर काले धागे िें
वपरोए हुए फलों की िाला का आचरि करना। जब पुरूष इस तरह की िाला को गले िें
डालकर स्त्री के सािने से ननकलता है तो िाला के संकेत से स्त्री पुरूष के िनोभावों को सिझ
जाती है । िाला को खद
ु पहनने के अलावा अपने िन के भावों को प्रकट करने के मलए दनतयों
द्वारा स्त्री और पुरूष एक-दसरे के पास फल या फलों की िाला भेजते हैं।
स्त्री और पुरूष के बीच जो एक-दसरे को पान दे ने का आदान-प्रदान होता है उस बीडे
के 5 प्रकार होते हैं। पान की नसें ननकालकर जो बीडा तैयार होता है उसे कौशल कहा जाता है ।
अंकुश के आकार के बीडे को कंदपम, चौरस बीडे को पयमक तथा चौकोर बीडे को चतरु त्न कहते
हैं।
प्यार को जाहहर करने के मलए कौशल पान, आपस िें दोस्त्ती प्रकट करने के मलए
अंकुश, कािपीडा प्रकट करने के मलए कंदपम तथा संभोग करने के मलए पयमक पान का बीडा
हदया जाता है ।
अभी िौका नह ं है का इशारा चौकोना का पान बीडा, िनोिामलन्य प्रकट करने के मलए
बबना सुपार का पान तथा प्यार को प्रकट करने के मलए सुपार और इलायची मिलाकर पान
दे ते हैं। ररश्ता तोडने के मलए पान को तोडकर काले धागे िें बांधा जाता है । संयोग का भाव
प्रकट करने के मलए 2 पानों की नोकों को जोडकर लाल धागे िें बांध हदया जाता है । बहुत
ज्यादा प्यार प्रकट करने के मलए पान के टुकडों को जोडकर हदया जाता है , उसके अंदर केसर
डाल जाती है और बाहर चंदन का लेप44books.com
ककया जाता है ।
वस्त्र संकेत- जब पुरूष अपनी कािपीडडत जस्त्थनत स्त्री को बताना चाहता है तो इसके
मलए कपडों िें छे द करके संकेत हदया जाता है । लाल रं ग के कपडे अनुराग का संकेत और
गेरुए रं ग के कपडे द्वारा वैराग्य का संकेत करना चाहहए। बबछुडने की हालत का संकेत फटे
े़
कपडे पहनकर, मिलन का संकेत कपडे िें गांठ बांधकर अपने िन के भाव प्रकट करने चाहहए।
वस्त्र संकेत को उस सिय ककया जाता है जब स्त्री और पुरूष अपने घर की छत पर
खडे होकर एक-दसरे से मिलने के मलए बेचन
ै रहते हैं।
पोटल संकेत- अपने प्यार को जाहहर करने के मलए खश
ु ब वाल चीजें सुपार , िेवा
आहद की पोटल बांधकर द जाती है । सुहागरात के हदन आज भी यह प्रथा प्रचमलत है । ज्यादा
प्यार को प्रकट करने के मलए छोट इलायची, जाववरी और लौंग की पोटल बनाई जाती है ,
प्रेि के भंग हो जाने पर िंगों की पोटल बनाई जाती है , बहुत ज्यादा पुरानी दोस्त्ती को जाहहर
करने के मलए 2 िंगों को पोटल िें बांधा जाता है । जब काि-ज्वर की पीडा प्रकट करनी हो
तो कडवी चीजों की पोटल बनाई जाती है ।
संभोग किया करने का संकेत दे ने के मलए िुनक्का की पोटल तैयार की जाती है ।
अपने शर र को सिवपमत करने के भाव िें कपास की पोटल , जान लट
ु ाने के मलए जीरे की
पोटल , डर हदखाने के मलए मभलावा की पोटल , डर दर होने की खबर दे ने के मलए हरे की
पोटल का संकेत करना चाहहए।
पोटल संकेत के मलए िोि की हटककया बनाकर उसके ऊपर अपने हाथ की पांचों
उं गमलयों के नाखनों से ननशान बनाकर लाल धागे से बांध दे ने को पोटल कहा जाता है ।

वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 5 पारदाररक

अध्याय 3 भावपरीक्षा प्रकरण

श्लोक (1)- अमभयञ्


ु ञानो योषीतुः प्रवत्तृ िं परीक्षेत। तया भावुः परीक्षतो भवतत अमभयोगांश्च
प्रततगह्
ृ वीयात ्।।

अथथ- पुरूष जब ककसी स्त्री से मिलता-जुलता है तो उसे स्त्री के स्त्वभाव की और उसके भावों
की जानकार ले लेनी चाहहए क्योंकक भाव ह चेष्टा का काि है ।

श्लोक (2)- मन्त्रमवण्ृ वानां दृत्सयैनां साधयेत ्।।


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अथथ- स्त्री और पुरूष के बीच की सलाह न प्रकट करने वाल चालाक दती को साधना चाहहए।

श्लोक (3)- अप्रततगह्


ृ यामभयोगं पन
ु रत्तप संसज्ज
ृ यमानां द्त्तवधाभत
ू मानसां त्तवद्यात ्। तां क्रमेण
साधयेत ्।।

अथथ- जो स्त्री पुरूष के साथ बबना िन के संभोग करती है तो उसे िुजश्कल िें फंसा हुआ
सिझना चाहहए और उसको धीरे -धीरे इस िुजश्कल से बाहर ननकालना चाहहए।

श्लोक (4)- अप्रततगह्


ृ यामभयोगं सत्तवशेषमलंकृता च पुनद्थदश्येत तथैव तममभगच्छे श्च त्तवत्तवक्ते
िलादग्रिणीयां त्तवद्यात ्।।

अथथ- जो स्त्री पुरूष से नह ं मिलती लेककन कफर भी पहले से ज्यादा सजती-संवरती है तो पुरूष
को उसे उसी तरह से मिलाने की कोमशश करनी चाहहए। पुरूष को उसके इस भाव को जान
लेना चाहहए कक उस स्त्री िें जबरदस्त्ती संभोग कराने की प्रववृ त्त है ।
श्लोक (5)- ििूनत्तप त्तवषितेऽमभयोगात्र च चचरे णात्तप प्रयच्छत्सयात्समानं सा शुष्कप्रततग्राहिणी
पररमयत्तवघटनसाध्या।।

अथथ- जो स्त्री पुरूष से कई बार मिल चक


ु ी हो लेककन कफर भी संभोग किया करने से िना
करती हो पुरूष को उसे नीरस मिलन वाल स्त्री सिझना चाहहए। उस स्त्री से संभोग करने के
मलए िेलजोल बढाना चाहहए।

श्लोक (6)- मनष्ु यर्ातेश्श्चिातनत्सयत्सवात ्।।

अथथ- पुरूष के िन की ववृ त्तयां बदलती रहती हैं इसमलए एक बार पररचय टट जाने पर कफर
दब
ु ारा से जोडा जा सकता है ।

श्लोक (7)- अमभयक्


ु तात्तप पररिरतत, न च संसज्ज
ृ यते। न च प्रत्सयाचष्टे । तश््मत्रात्समतन च
गौरवामभमानात ्। साततपररचयात्सकृच्रसाध्या। ममथज्ञया दत्सू या तां साधयेत ्।।

अथथ- बहुत सी जस्त्रयों की आदत होती है कक वह पुरूष से कई बार मिलने के बाद अचानक
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मिलना छोड दे ती हैं। वह न तो परू
ु ष से संभोग कराती हैं और न ह उसे िना ह करती हैं।
वह ऐसा करती हैं तो सिझती है कक िैने ककतना बडा काि ककया है । ऐसी स्त्री को या तो
ज्यादा िेलजोल के जररये संभोग करने के मलए तैयार करना चाहहए या कफर चालाक दती से
साधना पडता है ।

श्लोक (8)- सा चेदमभयुज्जयमाना पारुष्येण प्रत्सयाहदशत्सयुपेक्ष्या।।

अथथ- जो स्त्री पुरूष से मिलने पर उसे नजरअंदाज करती है या ककसी भी बात के पछने पर
उसका सह तरह से जवाब नह ं दे ती है तो पुरूष को ऐसी स्त्री से मिलना छोड दे ना चाहहए।

श्लोक (9)- परुषतयत्सवात्तप तु प्रीततयोश्र्नीं साधयेत ्।।

अथथ- कुछ जस्त्रयां अपनी आदतानुसार पहले गुस्त्से िें बात करती हैं लेककन बाद िें प्यार भी
बहुत करती हैं। पुरूष को ऐसी जस्त्रयों से संभोग करने के मलए कोमशश करते रहना चाहहए।
श्लोक (10)- कारणात्ससं्पशथनं सिते नाववुध्यते नाम द्त्तवधाभूतमानसा सातत्सयेन क्षान्तया वा
साध्या।।

अथथ- यहद स्त्री के साथ पुरूष प्राक-िीडा े़ जैसे आमलंगन या चब


ुं न आहद करता है लेककन स्त्री
उसके साथ ऐसा बतामव करती है जैसे कक वह कोई अंजान व्यजक्त है तो पुरूष को उसे
िुजश्कल िें सिझकर सब्र रखकर उसके संभोग करने की प्रतीक्षा करनी चाहहए।

श्लोक (11)- समीपे शयानायाुः सप्ु तो नाम करमप


ु रर त्तवन्यसेत ्। सात्तप सप्ु तेवोपेक्षेते। र्ागत
ृ ी
त्सवपनद
ु े द्धयोऽमभयोगाकांक्षक्षणी।।

अथथ- पुरूष को अपने पास लेट हुई स्त्री के ऊपर हाथ रख दे ना चाहहए अगर वह संभोग करने
की इच्छा रखती होगी तो वह पुरूष के हाथों को तरु ं त ह हटा दे ती है नह ं तो वह ऐसी पडी
रहे गी जैसी कक कुछ पता ह न हो।

श्लोक (12)- एतेन पाद्योपरर, पादन्यासो व्याख्यातुः।।

अथथ- सोती हुई स्त्री के ऊपर हाथ रखने44books.com


के बाद पैर को भी रख दे ना चाहहए।

श्लोक (13)- तश््मन्प्रसत


ृ े भूयुः सुप्तसंश्लेषणमुपक्रमेत ्।।
अथथ- इसके बाद पुरूष को धीरे -धीरे लेटे-लेटे ह हाथ-पैर रखने के बाद स्त्री के साथ आमलंगन
भी करना शुरू कर दे ना चाहहए।

श्लोक (14)- तदसिमानामुश्त्सथतां द्त्तवतीयेऽितन प्रकृततवततथनीममभयोगाचथथनीं त्तवद्यात ्।


अदृश्यमानां तु दत
ू ीसाध्याम ्।।
अथथ- यहद स्त्री परू
ु ष के द्वारा आमलंगन करते ह तरु ं त खडी हो जाती है तथा दसरे हदन
नाराज सी न लगे तो परू
ु ष को सिझ लेना चाहहए कक वह अब मिलना पसंद करती है ।
इसमलए परू
ु ष को उससे मिलते रहना चाहहए। अगर स्त्री संभोग से दर भागती है तो दती के
द्वारा उसे साधना चाहहए।

श्लोक (15)- चचरमदृष्टात्तप प्रकृतत्थैन संसज्ज


ृ यते कृतलक्षणां तां दमशथताकारामुपक्रमेत ्।।
अथथ- अगर बहुत हदनों के बाद मिलने भी स्त्री दब ु ारा मिलना चाहती हो, इशारे करती हो,
हावभाव प्रकट करती हो तो ऐसी स्त्री से दब
ु ारा मिलना-जुलना शरूु कर दे ना चाहहए।
श्लोक (16)- अनमभयुक्ताप्याकारयतत। त्तवत्तवक्ते चात्समानं दशथयतत। सवेपथग
ु द्रदं वदतत।
श््वन्नकरचरणाङमलुः श््वन्नमुखी च भवतत। मशरुः पीडने संवािने चोवोरात्समानं नायके
तनयोर्यतत।।

अथथ- जो स्त्री बबना मिले हुए ह अपने हाव-भाव हदखाती हो, एकांत िें अपने शर र के अंगों को
हदखाती हो, बोलते सिय जजसकी आवाज िें कंपकंपी प्रतीत हो, जजसकी बोल िीठी हो, चेहरा
पसीने से भीग जाता हो, पुरूष के हाथ-पैर और मसर को दबाने लगे तो पुरूष को सिझ जाना
चाहहए कक वह उससे प्रेि करती है ।

श्लोक (17)- आतरु ासंवाहिका चैकेन ि्तेन संवाियन्तीद्त्तवतीयेन िािुना ्पशथमावेदयतत


श्लेषपतत च। त्तव्मतभावा।।

अथथ- जजस सिय स्त्री के अंदर काि-उत्तेजना पैदा होती है तो उस सिय वह अपने पैर को
दबाने लगती है, दसरे हाथ से पुरूष को अपने शर र को छने का इशारा करती है तथा पुरूष के
स्त्पशम के बबना ह आश्चमचककत होती हुई दसरे हाथ से भी पैर को दबाने लगती है ।

श्लोक (18)- तनद्रान्धा वा परर्पश्ृ योरुभ्यां िािुभ्यामत्तप ततष्ठतत। अलकैकदे शमूवेरुपरर पातयतत।
ऊरुमूलसंवािने तनयुक्ता न प्रततलोमयतत। तत्रैव ि्तमेकमत्तवचलं व्य्पतत। अंगसंदंशन
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पीडडतं चचरादपन-यतत।।

अथथ- स्त्री नींद आने का बहाना करके दोनों हाथों से पुरूष का स्त्पशम करके दोनों घुटनों के बल
बैठती है और िाथे को घट
ु नों पर रखती है । पुरूष के पैर को दबाती हुई अपने हाथों को पुरूष
की जांघों की ओर बढाती है , नीचे की तरफ लेकर नह ं आती तथा एक हाथ को उसकी जांघ के
जोड िें रखे रहती है । जजस सिय पुरूष अपनी जांघों पर रखे हुए उसके हाथ को जोर से
दबाती है तभी वह अपने हाथ को हटाती है ।

श्लोक (19)- प्रततगह्


ृ यौवं नायकामभयोगान्पुनद्थत्तवतीयेऽितन संवािनायोपगच्छतत।।
अथथ- इस तरह पहले हदन वह स्त्री परू
ु ष से मिलकर दसरे हदन कफर से उसका पैर दबाने के
मलए आ जाती है ।

श्लोक (20)- नात्सयथथ संसज्ज


ृ यते। न च पररिररत।।
अथथ- स्त्री के बहुत ज्यादा संजीदा होने की वजह से वह अपने भावों को छुपाकर ह अपनी
प्रववृ त्त को हदखाती है । वह न तो स्त्वयं ह ज्यादा सम्पकम स्त्थावपत करती है और न ह पुरूष
का ध्यान करती है ।
श्लोक (21)- त्तवत्तवक्ते भावं दशथयतत तनष्कारणं चागूढमन्यत्र प्रच्छन्नप्रदे शात ्।।

अथथ- स्त्री यह सिझती है कक दसरा कोई व्यजक्त दे ख तो रहा ह नह ं है इसमलए वह एकांत


िें अपने भावों को प्रदशमन करती है तथा बाकी सार जगह प्रच्छन्न भाव प्रकट करती है ।

श्लोक (22)- संतनकृष्टपररचारकोपभोगया सा चेदाकाररतात्तप तथैव ्यात ् सा ममथज्ञया प्र्या


साध्वा।।

अथथ- जो स्त्री परू


ु ष के पास रहकर, सेवा करके भोग करने लायक हो उसको अगर इशारे भी
ककये जाए वह कफर भी वैसी ह रहे गी। उसे दती की िदद से ह साधी जा सकती है ।

श्लोक (23)- व्यावतथमाना तु तकथणीयेतत भावपरीक्षा।।

अथथ- जो स्त्री इशारे भी करे लेककन कफर भी संभोग करने से पीछे हटे तो सोचना चाहहए कक
वह अपने िन से यह बात कह रह है या मसफम नखरे हदखाने के मलए ह बोल रह है ।

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श्लोक (24)- भवश्न्त चात्र श्लोकाुः- आदौ पररचयं कुयोित्सश्च पररभाषणम ्। पररभाषणसंममश्रं
ममथश्चाकार-वेदनम ्।।

अथथ- सबसे पहले स्त्री से जान-पहचान कर लेनी चाहहए। उसके बाद बातों को आगे बढाना
चाहहए। इस बातचीत िें ह एक-दसरे के भावों का आदान-प्रदान कर लेना चाहहए।

श्लोक (25)- प्रत्सयुिरे ण पश्येच्चेदाकार्य पररग्रिम ्। ततोऽमभयुञ्ञीत नरुः श््त्रयं


त्तवगतसाध्वसुः।।

अथथ- स्त्री के इशारा करने पर अगर उसका जवाब पुरूष को मिल जाता है तो उसे बबना ककसी
डर के स्त्री के साथ संभोग किया करने िें ल न हो जाना चाहहए।

श्लोक (26)- आकारे णात्समनो भावं या नारी प्राक्प्रयोर्येत ्। क्षक्षप्रमेवामभयोज्जया सा प्रथमे त्सवेव
दशथने।।

अथथ- जो स्त्री पुरूष को इशारे करने के साथ ह अपने िन के भावों को भी जोड दे ती है ऐसी
जस्त्रयां पहल बार की िुलाकात िें ह संभोग करने के मलए तैयार हो जाती है ।

श्लोक (27)- श्लक्ष्णमाकाररता या तु दशथयेत्स्फुटमि


ु रम ्। सात्तप तत्सक्षणमसद्धेतत त्तवज्ञेया
रततलालसा।।

अथथ- ककसी स्त्री को गप्ु त संकेत हदए जाए और वह साफ जवाब दें तो सिझ लेना चाहहए कक
वह स्त्री संभोग करना चाहती है ।

श्लोक (28)- धीरायामप्रगल्भायां परीक्षक्षण्यां च योत्तषतत। एष सक्ष्


ू मो त्तवचध प्रोक्तुः मसद्धा एवं
्फुटं श््त्रयुः।।

अथथ- जो स्त्री स्त्वभाव से ह शिील हो, उसके अंदर ककसी ककस्त्ि की चालाकी न हो और
पुरूष की पर क्षा करती हो तो ऐसी जस्त्रयों के मलए सक्ष्ि ववचध बताई गई है क्योंकक यह तो
साफ है कक ऐसी स्त्री कभी न कभी संभोग जरूर करवाएगी।
जानकार -
िहावषम वातस्त्यायन ने इस प्रकरि िें ऐसी जस्त्रयों के िन के भावों की पर क्षा करने के
बारे िें बताया है जजससे कक पुरूष संभोग करना चाहता है , उसे अपनी तरफ आकवषमत करने की
कोमशश करता है , उससे दोस्त्ती बढाना चाहता है लेककन शिीले स्त्वभाव के कारि वह अपने
िन के ववचारों को जल्द पुरूष पर प्रकट नह ं करती, उसे अपने साथ संभोग कराने का अवसर
भी नह ं दे ती।
इसिें यह बताया गया है कक बहुत सी जस्त्रयां कुछ ज्यादा ह शिीले स्त्वभाव की होती
हैं। वह पुरूष से मिलती है , उसके साथ 44books.com
चबुं न और आमलंगन भी करती हैं लेककन पुरूष द्वारा
संभोग करने के मलए कहने पर टाल-िटोल करती रहती हैं। िहवषम वात्स्त्यायन के िुताबबक
ऐसी जस्त्रयों को पहले जान-पहचान बढाकर मिलना-जुलना चाहहए। अच्छी तरह से जान-पहचान
होने के बाद वह स्त्वयं ह पुरूष के साथ संभोग करने के मलए तैयार हो जाती है ।
श्लोक- इनत श्रीवात्स्त्यायनीये कािसरे पारदाररके पञ्ञिेऽचधरिे भावपर क्षा तत
ृ ीयोऽध्यायाः।

वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में

भाग 5 पारदाररक

अध्याय 4 दत
ू ीकमथ प्रकरण

श्लोक (1)- दमशतेचगंताकारां तु प्रत्तवरलदशथनामपूवां च दत्सू योपसपथयेत ्।।

अथथ- जो स्त्री परू


ु ष पर अपने भाव संकेतों को तो प्रकट कर चक
ु ी हो लेककन कफर भी मिलने-
जल
ु ने से डरती हो तो उसे दती द्वारा प्राप्त करना ह सह रहता है ।

श्लोक (2)- सैनां शीलतोऽनप्र


ु त्तवश्याख्यानकपटै ुः सभ
ु ंगकरणयोगैलोकवि
ृ ान्तैुः कत्तवकथामभुः
पारदाररककथाममश्च त्याश्च रूपत्तवज्ञानदाक्षक्षण्यशीलानुप्रशंसामभश्च तां रञ्ञयेत ्।।

अथथ- दती जजस स्त्री को पुरूष के मलए पटा रह हो उसके घर के अंदर अच्छे बतामव का
पररचय दे कर प्रवेश करना चाहहए। इसके अलावा कहाननयों से, सुंदरता को बढाने वाले तर कों
से, बातचीत से उसको खुश करना चाहहए।

श्लोक (3)- कथमेवंत्तवधाया्तवायममत्सथंफभूतुः पततररतत चानुशयं ग्राियेत ्।।

अथथ- दती को स्त्री के हदल िें उसके पनत के मलए बुर बातें बोलकर नफरत आहद पैदा करनी
चाहहए जैसे कक तुि तो रूप का खजाना हो तुिने क्या सोचकर ऐसे पनत से वववाह कर मलया।

श्लोक (4)- न तव सुभगे दा्यमत्तप कतुं युक्त इतत ब्रूयात ्।।

अथथ- तुम्हारा पनत तो तुि जैसी खबसरत स्त्री का नौकर बनने लायक भी नह ं है ।

श्लोक (5)- मन्दवेगतामीष्याथलुतां। शठतामकृतज्ञतां चासंभोगशीलतां कदयथतां चपलतामन्यातन च


यातन तश््मन ् गुप्तान्य्या अभ्याशे सतत सद्धावेऽततशयेन भाषेत ्।।

अथथ- दती को स्त्री से उसके पनत के बारे िें जजतनी भी बरु से बरु बातें है कहनी चाहहए कक
तम्
ु हारा पनत ककतना ठं डा है , वह सबसे जलता है , धतम है , वह सारे गंदे काि करता है आहद।
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श्लोक (6)- येन च दोषेणोद्त्तवगां लक्षचेिनैवानप्र


ु त्तवशेत ्।।
अथथ- अपने पनत के जजस दोष को सुनकर स्त्री को बेचन
ै ी होती नजर आए उसी दोष को
ज्यादा बढा-चढाकर बताना चाहहए।

श्लोक (7)- िदासौ मग


ृ ी तदा नैव शशतादोषुः।।
अथथ- यहद वह स्त्री हो तो उसके पनत पर शक होने का इल्जाि न लगाएं।

श्लोक (8)- एतेनैव वाडवािश््तनीत्तवषयश्चोक्तुः।।

अथथ- अगर स्त्री की योनन कि गहराई वाल होती है तो उसके पनत पर छोटे मलंग होने का
दोष नह ं लगाना चाहहए। उस सिय पनत के मलंग को बडा बताना ह दोष होगा। इस तरह
अगर स्त्री बडवा या हजस्त्तनी हो तो उसके पनत को अश्व या वष
ृ न बोलकर शश कहना ह
सह होगा।

श्लोक (9)- नातयकाया एव तु त्तवश्वा्यतामुपलभ्य दत


ू ीत्सवेनोपसपथयेत्सप्रथमसािसायां सूक्ष्मभावायां
चेतत गोणणकापुत्रुः।।
अथथ- गोणिकापुर के ितानुसार दती को स्त्री का ववश्वासपार बनकर अपने दतकायम से उसे
अपने घर पर बुलाना चाहहए लेककन उसी स्त्री को जो पहल बार ककसी पराए पुरूष से मिलने
की हहम्ित करती हो या अपनी गढ भाषा को जाहहर न करती हो।

श्लोक (10)- सा नायक्य चररतमनुलोमतां काममतातन च कथयेत ्।।

अथथ- स्त्री को अपने घर पर बल


ु ाकर परू
ु ष के अच्छे स्त्वभाव और गि
ु ों के बारे िें बताना
चाहहए। उसके िन के भावों को बताना चाहहए और संभोग के आहद िें क्या भाव होता है , बीच
िें कैसा होता है और आणखर िें कैसा होता है ।

श्लोक (11)- प्रसत


ृ सद्धावायां च युक्तया कायथशरीरममत्सथं वदे त ्।।
अथथ- अगर स्त्री को अपने पनत धिम से हटता हुआ सा प्रतीत हो तो उससे इसी तरह से बात
करनी चाहहए।

श्लोक (12)- श्रण


ृ ु त्तवचचममदं सुभगे, त्सवां ककल दृष्दवामुत्रासात्तवत्सथं गोत्रपुत्रो
नायकश्श्चिोन्मादमनुभवतत। प्रकृत्सया सुकुमारुः कदाचचदन्यत्रापररश्क्लष्टपूवथ्तप्वी। ततोऽधन
ु ा
शक्यमनेन मरणमप्यनुभत्तवतुममतत वणथयेत ्।।
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अथथ- दती को स्त्री से कहना चाहहए कक तुम्हार खबसरती पर एक पुरूष बहुत ह ज्यादा कफदा
हो चक
ु ा है । वह बहुत ह अच्छे स्त्वभाव का है और अगर उसने तुझे हामसल नह ं ककया तो वह
तडप-तडप कर अपनी जान दे दे गा।

श्लोक (13)- तत्र मसद्धा द्त्तवतीयेऽितन वाचच वक्रे दृष्टयां च प्रसादमुपलक्ष्य पुनरत्तप कथां
प्रवतथयेत ्।।

अथथ- अगर दती की ऐसी बातों को सुनकर स्त्री रोिांचचत हो जाती है तो दती को दसरे हदन
कफर से उसके िड के अनुसार बातचीत करनी चाहहए।

श्लोक (14)- श्रण्ृ वत्सयां चािल्यात्तवमारकशाकुन्तलादीन्यन्यान्यत्तप लौकककातन च


कथयेिद्युक्तातन।।

अथथ- जब स्त्री दती की बातों को सुनने िें पर तरह से िशरूफ हो जाए तो उसी सिय उसे
परु ाने सिय की ऐसी जस्त्रयों के ककस्त्से-कहाननयां सन
ु ाने चाहहए जो पराए परू
ु ष के साथ संबंध
रखती हो।
श्लोक (15)- वप
ृ तां चतुुःषश्ष्टत्तवज्ञतां सौभागयं च नायक्य। श्र्लाघनीयतां (या) चा्य प्रच्छन्नं
संप्रयोगं भूतमभूतपूवथ वा वणथयेत ्।।।

अथथ- स्त्री के संभोग करने की जोरदार शजक्त, संभोग कलाओं िें उसकी कुशलता, उसकी
सौभाग्यशीलता तथा अच्छाईयों के बारे िें बताकर ऐसी खबसरत स्त्री नाि लेकर बताना
चाहहए कक वह उससे संभोग करा चक
ु ी है ।

श्लोक (16)- आकारं चा्या लक्षयेत ्।।

अथथ- स्त्री को इतना बताकर कफर उसकी भाव आहद को भी परखना चाहहए।

श्लोक (17)- सत्तविमसतं दृष्ट्वा संभाषते।।

अथथ- अपनी जजन कोमशशों के बल पर दती स्त्री के भावों को पता कर लेती है उन्हे बताते हैं।

दे खकर हं सती हुई बोलती है ।


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श्लोक (18)- आसने चोपतनमन्त्रयते।।

अथथ- आसन आहद पर आदरपवमक बैठने के मलए कहती है ।

श्लोक (19)- क्वामसतं क्व शतयतं भुक्तं क्व चेश्ष्टतं ककं वा कृताममतत पच्
ृ छतत।।

अथथ- कहां भोजन ककया, कहां पर क्या ककया, कहां बैठी, कहां पर सोई आहद पछती है ।

श्लोक (20)- त्तववक्ते दशथयत्सयात्समानम ्।।

अथथ- एकांत िें अपने आप को हदखाती है ।

श्लोक (21)- चचन्तयन्ती तनुःश्वमसतत त्तवर्म्


ृ भते च।।

अथथ- कुछ सोचते हुए लंबी-लंबी सांसे लेती हुई, जंभाई लेती है ।
श्लोक (22)- प्रीततदायं च ददातत।।

अथथ- प्यार का तोहफा दे ती है ।

श्लोक (23)- इष्टे पूत्ससवेषु च ्मरतत।।

अथथ- अपने घर के खास कािों और पाटी आहद िें उसे बुलाती है ।

श्लोक (24)- पुनदथ शन


थ ानुिन्धं त्तवसूर्तत।।

अथथ- दब
ु ारा से आने के वादे पर वह उसे ववदा करती है ।

श्लोक (25)- नायक्य शाठ्यचापल्यसंवद्धान्दोपान्ददातत।।


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अथथ- पुरूष की चंचलताओं तथा धतमता को दोष कहती हुई दती बताती है कक वह एक स्त्री पर
तो कभी हटकता ह नह ं है ।

श्लोक (26)- पूवप्र


थ विृ ं च तत्ससंदशेन कथामभयोगं च ्वयमकथयन्ती तयोच्यामानमाकाक्षतत।।

अथथ- स्त्री िन ह िन िें यह सोचती है कक पुरूष के दे खने-वेखने की बात दती स्त्वयं ह छे ड।े

श्लोक (27)- नायकमनोरथेपु च क्यमानेपु सपररभवं नाम िसतत। न च तनिथदतीतत।।

अथथ- दती जब पुरूष के िन की बात बताती है तो धत कहकर हं स दे ती है लेककन यह नह ं


कहती कक तुम्हार चाहत पर हो जाएगी।

श्लोक (28)- दत्सू येनां दमशथताकारां नायकामभज्ञानैरुपवंि


ृ येत ्।।
अथथ- इस तरह की भाव-भंचगिाओं को दे खकर दती को स्त्री को पुरूष की उन्ह ं पुरानी
ववशेषताओं को बताना चाहहए।

श्लोक (29)- असं्तुतां तु गुणकथनैरनुरागकथामभश्चावर्थयेत।।

अथथ- जो स्त्री पुरूष के बारे िें जानती न हो उसे प्रेिी के गुि बताकर और उसकी प्रेि
कहाननयां सुनाकर अपनी बातों के जाल िें फंसाना चाहहए।

श्लोक (30)- नासं्तुतादृष्टाकारयोदथ त्सू यम्तीतयौद्दालककुः।।

अथथ- श्वेतकेतु औद्यामलक के ितानुसार जो स्त्री पुरूष से पर तरह से पररचचत न हो उसके


साथ दतीकायम नह ं हो सकता है ।

श्लोक (31)- असं्तुतयोरत्तप संसष्ृ टाकारयोर्तीतत िाभ्रवीयाुः।।

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अथथ- बाभ्रवीय आचायों के ित
ु ाबबक एक-दसरे को न जानने पर भी अगर भाव-भंचगिा, संकेत
मिल चक
ु े हो तो दतीकायम हो सकता है ।

श्लोक (32)- सं्तुतयोरप्यसंसष्ृ टाकारयोर्तीतत गोणणकापुत्रुः।।

अथथ- गोणिकापर
ु के ितानस
ु ार बबना जान-पहचान और संकेत के भी दतीकायम हो सकता है ।

श्लोक (33)- असं्ततयोरदृष्याकारयोरत्तप दत


ू ीप्रत्सययाहदतत वात्स्यायनुः।।

अथथ- आचायम वात्स्त्यायन के ितानस


ु ार बबना जान-पहचान और संकेत के भी दतीकायम हो
सकता है ।

श्लोक (34)- तासां मनोिराण्युपायनातन ताम्िूलमनुलेपनं ्त्रर्मगंलीयकं वासो वा तेन प्रहितं


दशथयेत ्।।

अथथ- बबना जान-पहचान के पुरूष स्त्री के मलए िनपसंद चीजें, पान, केशर, िाला, अंगठी और
े़
अच्छे कपडे भेजने चाहहए।

श्लोक (35)- वासमस च कुगंमागंमञ्ञमलं तनदध्यात ्।।

अथथ- उपहार िें हदए जाने वाले कपडो पर केसर के थापे और छाप िारनी चाहहए।

श्लोक (36)- पत्रच्छे द्यातन नानामभप्रायाकृतीतन दशथयेत ्। लेखपत्रगभाथणण कणथपत्राण्यापीगंश्च।।

अथथ- िुलायि पत्तों पर कई तरह के अमभप्रायों की शक्लें बनाकर, रनत, िोध, शोक आहद प्रकट
करना चाहहए।

श्लोक (37)- तेषु ्वमनोरथाख्यापनम ्। प्रततप्राभत


ृ दाने चैनां तनयोर्येत ्।।
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अथथ- उन लेखों के अंतगमत अपना िकसद और अपनी िनोकािना जाहहर करनी चाहहए।

श्लोक (38)- स तु दे वतामभगमने यात्रायामद्


ु यानक्रीडायां र्लावतरणे त्तववािे
यज्ञव्यसनोत्ससवेष्वगनय
ु त्सु पाते चौरत्तवभ्रमे र्नपद्य चक्रारोिणे प्रेक्षाव्यापारे षु तेषु तेषु च
कायेष्वतत िाभ्रवीयाुः।।

अथथ- वाभ्रवीय आचायों के िुताबबक संभोग तो दे वपजन, दे वयारा िें जाते सिय, जंगल िें
घिते सिय, पानी िें तैरते सिय, वववाह के िौके पर, यज्ञ, जश्न तथा ित्ृ यु के िौके पर, आग
लग जाने पर, खेल तिाशों िें करना संभव होता है ।

श्लोक (39)- सखीमभक्षुकीक्षपणणकातापसीभवनेषु सुखोपाय इतत गोणणकापुत्रुः।।

अथथ- गोणिकापुर के ितानुसार सहे ल , सधव


ु ाइन, मभखाररन, तपजस्त्वनी आहद के घर िें पुरूष
और स्त्री का मिलना-जुलना आसानी से हो सकता है ।

श्लोक (40)- त्या एव तु गेिे त्तवहदततनष्क्रमप्रवेशे चचश्न्ततात्सययप्रतीकारे प्रवेशनसुपपन्न


तनष्क्रमणमत्तवज्ञातकालं च तश्न्नयं सुखोपायं चेतत वात्स्यायनुः।।

अथथ- आचायम वात्स्त्यायन के ितानस


ु ार अगर स्त्री के घर िें घिने का रास्त्ता परू
ु ष को पता
हो तो उसके घर िें ह संभोग हो सकता है ।

श्लोक (41)- तनसष्ृ टाथाथ पररममताथाथ पत्रिारी ्वयंदत


ू ी मूढदत
ू ी भायाथदत
ू ी मूकदत
ू ी वातदत
ू ी चेतत
दत
ू ीत्तवशेषाुः।।
अथथ- ननसष्ृ टाथम पररमिताथम, परहार , स्त्वयंदती, िढदती, भायामदती, िकदती और बातदती 6 प्रकार
की दती होती है ।

श्लोक (42)- नायक्य नातयकायाश्च यथामनीत्तषतमथथमुपलभ्य ्विुद्धया कायथसम्पाहदनी


तनसष्ृ टाथाथ।।

अथथ- ननसष्ृ टाथम दती- जो पुरूष तथा स्त्री के अमभलवषत िकसद को जानकर अपने हदिाग से
काि करती है उसे ननसष्ृ टाथम दती कहते हैं।

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श्लोक (43)- सा प्रायेण सं्तुतसंभाषणयोुः।।

अथथ- जजन स्त्री और पुरुषों िें जान-पहचान और िेल-मिलाप रहता है उन्ह ं का काि करती
हैं।

श्लोक (44)- नातयकया प्रयुक्ता असं्तुतसंभाषणयोरत्तप।।

अथथ- स्त्री को भेजने पर बबना जान-पहचान तथा मिलन के भी काि करती है ।

श्लोक (45)- कौतुकाच्चानुरूपौ युक्तात्तवमौ पर्पर्येत्सयसं्तुतयोरत्तप।।

अथथ- यहद यह दती रूप, गुि, शील, उम्र िें बराबर वाले स्त्री और पुरूष को अपनी तरफ से
मिलाना चाहे तो मिला सकती हैं।

श्लोक (46)- कायैंकदे शममभयोगैकदे शं चोपलभ्य शेषं संपादयतीतत पररममताथाथ।।

अथथ- पररमिताथाम दती- स्त्री और परू


ु ष से मिलन के ककसी भी भाग को जानकर बाकी से
उपाय खद
ु ह कर लेने चाहहए तो वह दती पररमिताथाम कहलाती है ।
श्लोक (47)- सा दृष्टपर्पाकारयोुः प्रत्तवरलदशथनयोुः।।

अथथ- जहां पर स्त्री और पुरूष एक-दसरे के संकेत दे ख चक


ु े हो लेककन उनका प्रेि कभी-कभी
हदखाई पडे तो उनको संभोग किया कराने िें पररमिताथाम दती काि करती है ।

श्लोक (48)- संदेशमात्रं प्रापयतीतत पत्रिारी।।

अथथ- परहार दती- स्त्री और पुरूष के संदेश तथा पर आहद ले जाने का काि करती हो तो
उसे परहार दती कहते हैं।

श्लोक (49)- सा प्रगाढसद्धावयोुः संसष्ृ टयोश्च दे शकालसंिोधनाथथम ्।।

अथथ- यह दती उन स्त्री और पुरुषों के मिलने-जुलने या संभोग करने की जगह तय करती है


जो आपस िें प्रेि के जाल िें बंध चक
ु े हो या ककतनी बार मिले चक
ु े हो।

श्लोक (50)- दौत्सयेन प्रहितान्यया ्वयमे44books.com


व नायकममभगच्छे दर्ानती नाम तेन सिोपभोगं ्वप्ने
वा कथयेत ्। गोत्र्खमलतं भाया चा्य तनन्दे त ्। तद्वयपदे शन
े ्वयमीष्याथ दशथयेत ्।
नखदशनचचश्ह्नतं वा ककंचचद्दद्यात ्। भवतेऽिमादौ दातंु संकश्ल्पतेतत चामभदधीत। मम भायाथया
का रमणीयेतत त्तवत्तवक्ते पयथनय
ु ञ्
ु ञत सा ्वयंदत
ू ी।।
अथथ- स्त्वयंदती- जब कोई प्रेमिका अपने प्रेिी के पास ककसी दती को भेजती है तथा वह दती
स्त्वयं ह उस प्रेिी पर िोहहत हो जाती है तो उसे स्त्वयंदती कहते हैं। उससे ज्यादा पररचय न
होने के बावजद भी वह सपने िें उससे संभोग करने की इच्छा रखती है तथा इस बात की
ननन्दा करती है कक िेर तो ककस्त्ित ह खराब है अब तो आप िुझे कभी याद ह नह ं करते
और अपनी पत्नी के पास ह भागते रहते हैं। अगर वह खबसरत होती तो उसे बुलाना भी सह
था। वह इस वह कहती हुई प्रेिी की पत्नी से जलन प्रकट करती है । भाव-भंचगिा जाहहर करने
के मलए नाखन और दांतों के ननशान बनाकर ककसी चीज को पुरूष को दे ना चाहहए। रात िें
पान दे ते सिय अपने प्यार का प्रतीक रागात्िक चीजों के द्वारा प्रदान कर दें तथा उससे कहे
कक िेरे वपता ने पहले आपके साथ ह िेर शाद करने का फैसला ककया था। वैसे भी िै
आपकी पत्नी से कह ं ज्यादा खबसरत हं । वह अकेले िें पुरूष से इस प्रकार का अनुयोग
करती है ।
श्लोक (51)- त्या त्तवत्तवक्ते दशथनं प्रततग्रिश्च।।

अथथ- खद
ु दती को दे खने और उससे संदेश लेन-े दे ने िें एकांत होना जरूर है ।

श्लोक (52)- प्रततग्रिच्छे लनान्याममभसंधाया्याुः संदेशश्रावणद्वारे ण नायकं साधयेत ् तां


चोपिन्यात्ससात्तप ्वयंदत
ू ी।।
अथथ- जो प्रेमिका संदेश प्रेिी से लाने के बहाने अमभसंचध करके प्रेमिका का संदेश सुनाने का
उपिि करके प्रेिी को अपने ऊपर िोहहत कर लेती है, प्रेमिका को अपने प्रेिी से मिलने नह ं
दे ती उसको भी स्त्वयंदती कहा जाता है ।

श्लोक (53)- एतया नायकोऽप्यन्यदत


ू श्च व्याख्यातुः।।
अथथ- स्त्वयंदत- ऐसे ह पुरूष ककसी पुरूष का संदेश ले जाने के बहाने स्त्री के पास जाता है
और संदेश दे ने वाले पुरूष के बजाय खद
ु ह उसे अपने जाल िें फंसा लेता है । इसे ह स्त्वयंदत
कहा जाता है ।
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श्लोक (54)- नायकभायाथ मगु धां त्तवश्वा्यायन्त्रणयानप्र


ु त्तवश्य नायक्य चेश्ष्टतातन पच्
ृ छे त ्।
योगाश्ञ्शक्षयेत ्। साकारं मंण्डयेत ्। कोपमेनां ग्राियेत ्। एवं च प्रततपद्य्वेतत श्रावयेत ्। ्वयं
चा्यां नखदशनपदातन तनवथतय
थ ेत ्। तेन द्वारे ण नायकमाकारयेत्ससा मढ
ू दत
ू ी।।
अथथ- िढदती- प्रेिी की िुग्धा प्रेमिका को भरोसा हदलाकर, बबना ककसी कोमशश के उसके हदल
िें छुपी हुई प्रेिी की बातें पछकर, संभोग की कियाएं मसखाए। िकसद जाहहर करने वाल श्रंगार
रचना कराएं। पनत से उसका झगडा करा दें , खद ु ह उसे शर र के अंगों िें दांतों और नाखनों
से ननशान बना दें इसके बाद उस पर अपने िकसद को जाहहर करें । ऐसी स्त्री को िढदती
कहा जाता है ।

श्लोक (55)- त्या्तेयैव प्रत्सयुिराणण योर्येत ्।।

अथथ- अगर कोई स्त्री ऐसी िढदती से काि करा रह हो तो पुरूष को उसे बदल दे ने के मलए
उसी के साथ संभोग किया करनी चाहहए।

श्लोक (56)- ्वभायाथ वा मूढां प्रयोज्जय तया सि त्तवश्वासेन योर्तयत्सवा तयैवाकारयेत ्।


आत्समनश्च वैचक्षण्यं प्रकाशयेत ्। सा भायाथ दत
ू ी त्या्तयैवाकाग्रिणम ्।।
अथथ- भायामदती- पुरूष जजस स्त्री से संभोग करना चाहता हो उसके साथ अपनी पत्नी की जान-
पहचान कराके उसकी सबसे प्यार सहे ल बना दे ना चाहहए। कफर उसी से अपने भावों को
पररचचत कराएं। ऐसे िौके पर अगर वह स्त्री अपनी कुशलता का पररचय दे ती है तो उसे
भायामदती कहा जाता है । स्त्री का भाव उसी के द्वारा जाना जाता है ।

श्लोक (57)- िालां वा पररचाररकामदोषज्ञामदष्ु टे नोपायेन प्रहिणुयात ्। तत्र ्त्रश्र् कणथपत्रे वा


गूढ़लेखतनधानं नखदशनपदं वा सा मूकदत
ू ी। त्या्तयैव प्रत्सयुिरप्राथथनाम ्।।
अथथ- िकदती- जजसे अच्छाई और बुराई के बारे िें ज्ञान न हो, ऐसी दासी आहद को अपनी
प्रेमिका के घर खेलने के मलए भेज दे ना चाहहए। उस दासी के साथ प्रेमिका की जान-पहचान
हो जाने पर किमपर अथवा िाला िें प्रेिपर रखकर नाखन तथा दांत के ननशान बना दें । इस
प्रकार काि करने वाल दासी को िकदती कहा जाता है ।

श्लोक (58)- पव
ू प्र
थ ्तत
ु ाथथमलगंसंिद्धमन्यर्नाग्रिणीयं लौकककाथथ द्वयथथ वा वचनमद
ु ासीना या
श्रावयेत्ससा वातदत
ू ी। त्या अत्तप तयैव प्रत्सयि
ु रप्राथथनममतत तासां त्तवशेषाुः।।
अथथ- वातदती- प्रेमिका की सांकेनतक भाषा, श्लेषभाषा को जो उदासीन रहकर प्रेमिका को
सुऩाएं तथा उससे उसी भाषा िें जवाब भी िांगें तो उसे वातदती कहते हैं।
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श्लोक (59)- भवश्न्त चात्र श्लोकाुः- त्तवधनेक्षणणका दासी मभक्षुकी मशल्पकाररका। प्रत्तवशत्सयाशु
त्तवश्वासं दत
ू ीकायथ च त्तवन्दतत।।
अथथ- इस ववषय के श्लोक हैं-
ववधवा, घराने वाल , मभखाररन, सगुन, नायन आहद जस्त्रयां ककसी के साथ भी जल्द घुल-मिल
जाती हैं और ववश्वासपार बन जाती हैं और कफर दती का काि करती हैं।

श्लोक (60)- संक्षेपेण दत


ू ीकमाथण्याि- त्तवद्वेषं ग्राियेत्सपत्सयौ रमणीयातन वणथयेत ्।
चचत्रान्सुरतसंभोगा- नन्यासामत्तप दशथयेत ्।।

अथथ- दती पनत से पत्नी को झगडा करा दें , प्रेमिका को उससे मिलाना चाहें , उसकी तार फ करें ,
दसर जस्त्रयों के सािने भी अश्ल ल चचर आहद हदखाएं।

श्लोक (61)- नायक्यानरु ागं च पन


ु श्च रततकौशलम ्। प्राथथनां चाचधक्त्रीमभरवष्टम्भं च
वणथयेत ्।।

अथथ- प्रेिी के संभोग तथा प्यार आहद का विमन करें , प्रेमिका से भी बढकर संद
ु र तथा अिीर
जस्त्रयों का विमन सन
ु ाएं कक वह प्रेिी पर िोहहत है। इसके साथ ह प्रेमिका के कठोर ननश्चय
को भी जाहहर करें ।

श्लोक (62)- असंकश्ल्पत्समप्यथथमुत्ससष्ृ टं दोषकारणात ्। पुनरावतथयत्सयेव दत


ू ी वचनकौशलात ्।।
अथथ- दती अपनी बातों के द्वारा ननजन्दत, हे य, पररत्यक्त तथा अनाहत प्रेिी को भी कफर से
प्रेमिकाओं का प्रेिी बना दे ने िें िाहहर बना दे ती है ।
जानकार - इस अध्याय के पहले और दसरे अध्याय िें यह बताया जा चक
ु ा है कक परू
ु ष द्वारा
जजस पराई स्त्री को वश िें करने िें अडचने आती हो वहां पर उसे दनतयों का सहारा लेना
चाहहए।
कािसर के रचनाकार आचायम वात्स्त्यायन 2 प्रकार की दनतयां बताई हैं- साधारि और
खास। ननसष्ृ टाथाम, पररमिताथाम, परहार , स्त्वयंदती, िढदती, भायामदती, िकदती और वातदती सिेत
8 तरह की साधारि ककस्त्ि की दनतयां होती है ।
दती को चाहहए कक वह पहले प्रेमिका से बहुत गहर दोस्त्ती कर ले, उसकी ज्यादा से
ज्यादा तार फ करे और इसके बाद प्रेिी44books.com
से बात करनी शुरु करे ।
कािसर िें 8 प्रकार की दनतयों के बारे िें बताया गया है । इन दनतयों का चन
ु ाव कायम,
जरूरत और िौके की उपयोचगता को ध्यान िें रखकर ककया गया है । उनके लक्षि इस प्रकार
से हैं-
ननसष्ृ टाथाम-
प्रेिी के इरादों को जानकर अपनी ह बुद्चध से जो कायम को परा करती है वह ननसष्ृ टाथाम
दती होती हैं। जब प्रेिी और प्रेमिका िें आपस िें दे खा-दे खी, बातचीत हो चक
ु ी हो, तब इस प्रेिी
की उपयोचगता है ।
पररमिताथाम-
जजसको कुछ उपाय बताए जा रहे हो, कफर जो कुछ बाकी रह जाता है उसे वह अपने
तजुबे से सिझकर प्रेिी और प्रेमिका का नजररया बनाती है उसे पररमिताथाम कहते हैं।
जब प्रेिी और प्रेमिका एक दसरे को दे ख तो लेते हैं लेककन रोजाना नह ं और आपस िें
मिल भी नह ं पाते हैं तो उस सिय पररमिताथाम दती उनको मिलाने की कोमशश करती हैं।
परहार दती-
जो दती प्रेिी और प्रेमिका के प्रेि परों को एक-दसरे पहुंचाने का काि करती है उसे
परहार दती कहते हैं।
जो प्रेिी और प्रेमिका एक-दसरे के साथ बहुत ह ज्यादा गहरे प्रेि िें बंध चक
ु े हो और
आपस िें संभोग भी कर चक ु े हो तो उनके बीच परहार दती यह काि करती है कक जजस
सिय प्रेिी या प्रेमिका की तरफ से संभोग करने का ननश्चय ककया जाता है वह उसकी सचना
प्रेिी या प्रेमिका को दे दे ती है ।
स्त्वयंदती-
जो स्त्री ककसी संदेश आहद का बहाना करके पुरूष के पास िें जाती है तथा वहां उससे
अपनी तार फ करके या दसरे तर कों से प्रेिी को िोहहत करके उससे संभोग करती है उसे
स्त्वयंदती कहा जाता है । स्त्वयंदती का अथम है अपने मलए स्त्वयं दती बन जाना।
िढदती-
स्त्री जब ककसी परू
ु ष को चाहती है तो उसको अपने ऊपर आकवषमत करने के मलए वह
चालाक स्त्री प्रेिी की सीधी-साद पत्नी से प्रेि संबंध बनाकर प्रेिी की पसंद, उसका संभोग का
राज आहद जानकर कफर उसी के अनस
ु ार भाव-भंचगिाएं, कटाक्ष-ववलास करके अपने िकसद को
परा कर लेती है । तब प्रेिी की सीधी-साद पत्नी िढदती कहलाती है ।
भायामदती-
जब कोई प्रेिी अपनी प्रेमिका को फंसाने के मलए उसके पीछे अपनी पत्नी को लगा दे ता
है और कफर अपने िकसद को परा करता है तो उस प्रेिी की पत्नी को भायामदती कहा जाता
है । भायामदती िढदती ह बना करती है ।
िकदती-
ककसी नादान, अंजान नौकरानी या बामलका से िाला या कान के फल के भीतर नछपाकर
प्रेि-पबरका भेजी जाए तो उसे िकदती 44books.com
कहा जाता है ।
वातदती-
जो प्रेिी और प्रेमिका अपने बीच की बातों को इशारों या ककसी ऐसी भाषा िें कहें कक
जजसे दसरे लोग न सिझ पाए। इसके साथ ह अपनी बात भी उदासीनों की तरह सुना दें तो
उसे वातदती कहा जाता है ।
दसरे अचधकरि िें आचायम वात्स्त्यायन ने ग्राि ब्रज प्रत्यन्त योवषद्ववश्च नागरकस्त्य
मलखकर दे हाती, ग्वामलन और भीलनी वगम की स्त्री के साथ संभोग करने वाले, कािकला िें
ननपुि, नागरक को खलरत करने वाला बताया है । आचायम वात्स्त्यायन की इस बात को मसरे से
नकारते हुए एक भील युवक अपनी भील प्रेमिका से व्यंजनापिम शब्दों िें कहता है कक िुझ
गर ब की यह प्राथमना है कक कुचयुग्िों को पत्तों से न ढको।

श्लोक- इनत श्रीवात्स्त्यायनीये कािसरे पारदाररके पञ्ञिेऽचधकरिे दतीकिामणि चतथ


ु ोऽध्यायाः।

वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 5 पारदाररक
अध्याय 5 ईश्वरकाममतम प्रकरण

श्लोक (1)- न राज्ञां मिामात्राणां वा परभवनप्रवेशो त्तवद्यते। मिार्नेन हि चररतमेषां


दृश्येतऽनत्तु वधथगयते च।।

अथथ- राजा, िंरी और ववद्वान लोग दसरों के घरों िें आसानी से प्रवेश नह ं कर सकते क्योंकक
प्रजा इनके चरररों को दे खकर ह आचरि करती है ।

श्लोक (2)- सत्तवतारमद्


ु यन्तंत्रयो लोकाुः पश्यश्न्त अनद्
ू यन्ते च। गच्छन्तमत्तप
पश्यन्त्सयनप्र
ु ततष्ठन्ते च।।
अथथ- एक सािान्य ननयि को तो सभी लोग जानते हैं कक तीनों लोक उगते सरज को ह
दे खकर उठते हैं और सरज के डबने पर सो जाते हैं।

ृ ा ककंचचंदाचरे युुः।।
श्लोक (3)- त्मादशक्यत्सवाद्रिथणीयत्सवाच्चेतत न ते वथ

अथथ- राजाओं, िंबरयों और ववद्वानों को पराई जस्त्रयों के चक्कर िें पडने जैसे बरु े कािों को
नह ं करना चाहहए।
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श्लोक (4)- अवश्यं त्सवार्ररतव्ये योगान्प्रयञ्


ु ञारन ्।।
अथथ- उत्तेजना के कारि या ककसी दसरे कारि से अगर पराई स्त्री के चक्कर िें पड जाएं तो
सह तर कों को अपनाना चाहहए।

श्लोक (5)- ग्रामाचधपतेरायुक्तक्य िलोत्सथवत्तृ िपुत्र्य यूनो ग्रामीणयोत्तषतो वचनमात्रसाध्याुः।


ताश्चषथण्य इत्सयाचक्षते त्तवटाुः।।

अथथ- गांव के युवा िुणखया, युवा अचधकार या पटवार का युवा पुर अगर गांव की ककसी स्त्री
को संभोग करने के मलए कहते हैं तो वह तुरंत ह तैयार हो जाती है । ववद्वानों के िुताबबक
ऐसी जस्त्रयों को चपमिी कहा जाता है ।

श्लोक (6)- तामभुः सि त्तवश्ष्टकमथसु कोष्ठागारप्रवेशे द्रव्याणां तनष्क्रमणप्रवेस-


नयोभथवनप्रततसं्कारे क्षेत्रकमथणण कपाथसोणाथतसीशणवल्कलादाने सत्र
ू प्रततग्रिे द्रव्याणां
क्रयत्तवक्रयत्तवतनमयेषु तेषु तेषु च कमथसु संप्रयोगुः।।

अथथ- जब चपमिी स्त्री कटने, पीसने, पकाने के सािान को रखने, उठाने, घर की सफाई करने के
मलए घर िें प्रवेश करे , ऊन, रुई, अलसी, सत लेने के मलए आए या जजस वक्त उनसे सार चीजें
रखवाई जा रह हो तो इन कािों को करते सिय छोटे अचधकार उनके साथ संभोग कर
सकते हैं।

श्लोक (7)- तथा व्रर्योत्तषद्चधुः सि गवाध्यक्ष्य।।

अथथ- जजस सिय ग्वामलन दह बबलो रह हो तब गवाध्यक्ष उसके साथ संभोग कर सकता है ।

श्लोक (8)- त्तवधवानाथाप्रव्रश्र्तामभुः सि सूत्राध्यक्ष्य।।

अथथ- अनाथ, संन्यामसन या ववधवा जस्त्रयों से साथ सराध्यर संभोग किया कर सकता है ।

श्लोक (9)- ममथज्ञत्सवाद्रात्रावटने चाटन्तीमभनाथगर्य।।

अथथ- रात के सिय नगर िें क्या चल रहा है यह पता करने के मलए पहरा दे ता हुआ
नगराध्यक्ष घिने वाल जस्त्रयों से साथ संभोग कर सकता है ।

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श्लोक (10)- क्रयत्तवक्रये पण्याध्यक्ष्य।।

अथथ- िाल को खर दते या बेचते सिय बाजार का पण्याध्यक्ष बाजारू जस्त्रयों के साथ संभोग
किया कर सकता है ।

श्लोक (11)- अष्टमीचन्द्रकौमद


ु ीसव
ु सन्तकाहदषु पिननगरखवथटयोत्तषतामीश्चर- भवने सिान्तुः
परु रकामभुः प्रायेण क्रीडा।

अथथ- बहुला अष्टिी, कौिुद िहोत्सव, सुवसन्तक आहद त्यौहारों के हदन जजला, तहसील या
राजधानी की रहने वाल और िहलों िें रहने वाल जस्त्रयों के साथ अक्सर संभोग कियाएं होती
रहती हैं।

श्लोक (12)- तत्र चापानकान्ते नगरश््त्रयो यथापररचयमन्तुः परु रकाणांपथ


ृ क-
पथ
ृ क्भोगावासकान्प्रत्तवश्य कथामभरामसत्सवा पश्ू र्ताुः प्रपीताश्चोपप्रदोषं तनष्क्रामयेयुःु ।।
अथथ- उन िीडाओं िें शराब आहद पीकर शहर जस्त्रयां अपने पररचय की िहल की जस्त्रयों से
साथ अलग-अलग गुप्त स्त्थानों िें बैठकर सिय बबताती हैं तथा वहां पर स्त्वागत-सत्कार,
खाना-पीना करके शाि को बाहर ननकलती हैं।

श्लोक (13)- तत्र प्रणणहिता रार्दासी प्रयोज्जयायाुः पूवस


थ ंसष्ृ टा तां तत्र संभाषेत।।

अथथ- वहां पर राजा के द्वारा भेजी गई दासी उस स्त्री से बात करे जजसे िहल िें खासतौर पर
राजा के साथ संभोग किया करने के मलए जश्न के बहाने बुलाया गया हो।

श्लोक (14)- रामणीयकदशथनेन योर्येत ्।।

अथथ- दासी को चाहहए कक उस स्त्री को िहल की सुंदर चीजों को दे खने िें लगा दें ।

श्लोक (15)- प्रागेव ्वभवन्थां ब्रय


ू ात ्। अमष्ु यां क्रीडायां तव रार्भवन्थानातन रामणीयकातन
दशथतयष्यामीतत काले च योर्ये 44books.com
त ्। िहिुःप्रवालकुट्हटमं ते दशथतयष्यामम।।

अथथ- दासी को चाहहए कक उस स्त्री के घर जाकर (जो राजा के साथ संभोग किया करने के
मलए आई हो) पहले ह बता आएं कक आप जब अगल बार िहल िें आएंगी तो आपको िहल
की सुंदर और सबसे कीिती चीजें हदखाई जाएंगी।

श्लोक (16)- मणिभूममकां वृक्षवाटिकां मृद्वीकामण्डपं समुद्रगृहप्रासादान्गूढमभत्तिसंचा-रश्चित्रकमाणि


िं
क्रीडामृगान् यन्त्राणि शकुनान्व्याघ्रससहपञ्ञरादीनन च यानन पुरस्ताद्वर्णितानन स्ुुः।।
अर्थ- मोमतयों वाली फशथ, पेडों से भरी हुई वाटिका, अंगूर की लताओ िं का मंडप, समुद्रगृह महल सिसकी
दीवारों पर से पानी बह रहा हो, ऐसे त्तचत्र िो ननिीव होते हुए भी नबल्कुल असली लग रहे हो, हंस, चकोर,
शेर, टहरन आटद पंिरे में बंद िानवरों और पणक्षयों को टदखाएं ।

श्लोक (17)- एकान्ते च तद्वन्तमीिरानुरागं श्रावयेत।् ।


अर्थ- िब कोई न हो तो उसे रािा के बारे में बताना शुरू करें।
श्लोक (18)- संप्रयोगे चातुयथ चामभविथयत
े ।् ।
अर्थ- उसे बातों ही बातों में यह भी बताएं नक रािा संभोग कला में नकतना ननपुि है।

श्लोक (19)- अमन्त्रश्रावं च प्रमतपत्रां योियेत।् ।

अर्थ- िब रािा उस स्त्री के सार् संभोग नक्रया कर ले तो उसके बाद दासी को उसे यह बात समझा देनी
चाटहए नक वह इस बात को नकसी और को न कहे।

श्लोक (20)- अप्रमतपद्यमानां स्वयमेवश्व


े र आगत्योपचारैुः सान्वितां रञ्ञत्तयत्वा संभय
ू च सानुरां नवसृित
े ।् ।
अर्थ- रािा सिस स्त्री के सार् संभोग करना चाहता हो अगर वह दासी के कहने पर रािा के पास नहीं आती
तो रािा को खुद ही उससे ममलकर उसे अपनी ओर आकर्षित करना चाटहए और संभोग करने के बाद प्यार
से उसे नवदा कर देना चाटहए।

श्लोक (21)- प्रयोज्यायाि पत्थरनुग्रहोत्तचतस् दारानत्रत्यमन्तुः पुरमौत्तचत्यात्प्रवेशयेत।् तत्र प्रणिटहता


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रािदाससता समानं पूवि े ।।
अर्थ- रािा सिस स्त्री पर नफदा हो और उसका पमत रािा की कृपा का पात्र बनने लायक हो तो दासी को
उसके घर की दस
ू री स्त्रस्त्रयों को भी प्यार और सम्मान से महल में ले आना चाटहए।

वात्स्यायन का कामसूत्र टहन्दी में

भाग 5 पारदाररक
अध्याय 6 अन्तुः पुररका वृत प्रकरि
श्लोक (1)- नान्तुः पुरािां रक्षियोगात्पुरुिसंदशथन नवद्यते पत्युिक
ै त्वादनेक-कसाधारमत्वाच्चातृप्तुः।
तस्मािानन प्रयोगत एव परस्परं रञ्ञयेयुःु ।।
अर्थ- सुरक्षा को देखते हुए रािाओ िं के महलों में बहुत ज्यादा सख्त पहरा रहता है तानक वहां पर कोई दस
ू रा
पुरूि प्रवेश न कर सके। इन महलों में एक रािा की कई राननयां रहती हैं। इसी कारि से रािा सब राननयों
की काम-उिेिना शांत नहीं कर पाता और वह राननयां आपस में ही समलैंनगकता द्वारा अपनी काम-
वासनाओ िं की पूर्तत करती हैं।
श्लोक (2)- प्रयोगमाह- धात्रेत्तयकां सखीं दासीं वा पुरूिवदलंकृत्याकृमतसंयक्
ु ै ुः कन्दमूलफलावयवैर-
पद्रयैवात्मामभप्रायं ननवतथयय
े ुःु ।।
अर्थ- राननयां धाय की पुत्री, नौकरानी या अपनी सहेली को पुरुिों की तरह कपडे आटद पहनाकर बैंगन,
मूली या गािर आटद को नकली णलग िं के रूप में बनाकर उन्हें ऊपर णलिाकर नकली प्रकार के संभोग से
अपनी काम-उिेिना को शांत करती हैं।

िं
श्लोक (3)- पुरूिप्रमतमा अयक्णलगाित्तधशयीरन्
।।
अर्थ- राननयां ऐसे पुरूिों को सिन्हें दाढी-मूंछ नहीं आई होती, को स्त्रस्त्रयों के कपडे पहनाकर अपने पास
सुलाती हैं।

श्लोक (4)- रािानञ्ञ कृपाशीला नवनानप भावयोगादायोसितापद्रया यावदर्थमक


े या राज्या वह्वीमभरनप
गच्छमत। यस्ां तु प्रीमतवासक ऋतुवा तत्रामभप्रायतुः प्रवतथन्त इमत प्राच्योपचाराुः।।

िं लगाकर एक ही रात में संभोग


अर्थ- रािा अपनी बहुत सी राननयों के सार् नबना इच्छा के ही नकली णलग
नक्रया करता है। लेनकन िो रानी रािा को बहुत ही नप्रय होती है उनके सार् वह पूरे िोश से और प्राकृमतक
संभोग नक्रया करता है। 44books.com

श्लोक (5)- स्त्रीयोगेिव


ै पुरूिािामप्यलब्धवृिीनां नवयोननिुनविामतिु स्त्रीप्रमतमासु
केबलोपमदथनाच्चामभप्रायननवृत्तियाख्याता।।

अर्थ- अगर नकसी पुरूि को संभोग करने के णलए कोई स्त्री नहीं ममलती तो वह िानवरों िैसे बकरी,
कुमतया या घोडी के सार् या हस्तमैर्ुन करके अपनी काम-उिेिना को शांत करते हैं।

श्लोक (6)- योिावेिांि नागरकान्प्रायेिान्तुःपुररकाुः पररचाररकामभुः सह प्रवेशयन्वन्त।।

अर्थ- नौकराननयों के सार् रािमहल की राननयां नागरकों को भी अक्सर अपने महल में बुला लेती हैं।

ृ ा आयमत िं दशथयन्त्युः प्रयतेरन्।।


श्लोक (7)- तेिामुपावतथने धात्रेत्तयकािाभ्यन्तरसंसष्ट
अर्थ- धाय की पुनत्रयां या राननयों के सार् नकली संभोग नक्रया करने वाली उनकी सहेणलयां नागररकों को
लालच देकर महल में ले िाती हैं।

श्लोक (8)- सुखप्रवेणशतामपसारभूमम िं नवशालतां वेश्मनुः प्रमादं रणक्षिामननत्यतां पररिनस् विथयय


े ुःु ।।

अर्थ- वह उन नागरकों को रानी के पास महल में ले िाने के णलए पूरी तरह से नवश्वास टदलाती है नक इस
वक् महल में कोई नहीं है, महल में पहुच
ं ने का एक सुरंग वाला रास्ता है, पहरेदार गहरी नींद में हैं आटद।

श्लोक (9)- न चासुद्धतेनार्ेन प्रवेशत्तयतुं िनमावतथयय


े द
ु ोिात्।।

अर्थ- अगर महल में आने का या िाने का रास्ता आसान न हो या खतरों वाला हो तो रानी के महल के भीतर
नकसी पुरूि को प्रवेश नहीं कराना चाटहए क्योंनक इससे उस पर नकसी प्रकार की नवपत्ति आ सकती है।

श्लोक (10)- नागरकस्तु सुप्रािमप्यन्तुः पुरमपायभूत्तयष्ठत्वात्र प्रनवशेटदमत वात्स्यायनुः।।

अर्थ- आचायथ वात्स्यायन के मुतानबक महल 44books.com


में प्रवेश करनें में चाहे नकसी प्रकार का खतरा न हो या वहां
िाना बहुत आसान हो नफर भी नागरक को वहां पर नबल्कुल नहीं िाना चाटहए क्योंनक यह बहुत ज्यादा
खतरा मोल लेने का काम है।

श्लोक (11)- सापसारं तु प्रमदनावगाढं नवभक्दीघथकक्ष्यमल्पप्रमिरक्षकं प्रोनितरािकं कारिानन समीक्ष्य


बहुश आहूयमानोऽर्थबद्ध
ु या कक्ष्याप्रवेशं च दृष्टवा तामभरेव नवटहतोपायुः प्रनवशेत।् ।

अर्थ- अगर नागरक को रानी के महल में िाना ही हो तो उसे पहले पता कर लेना चाटहए नक उस महल में
भागने का कोई रास्ता है या नहीं, महल के सार् बडा सा िंगल तो है न, रािा महल में तो नहीं है, पहरेदार
गहरी नींद में है या आपस में बात करने में मशरूफ है। इनके अलावा महल में प्रवेश कराने वाली रानी की
सहेली या दासी सार् में ही होनी चाटहए।

श्लोक (12)- शमक्नविये च प्रमतटदनं ननष्क्रामेत।् ।

अर्थ- अगर नागरक को महल में प्रवेश कराने की सुनवधा ममलती है तो उसे वहां पर रोिाना आना-िाना
चाटहए।
श्लोक (13)- बटहि रणक्षमभरन्यदेव कारिमपटदश्य संसज्य
ृ ते ।।

अर्थ- महल में आने-िाने वाले नागरक को बातों ही बातों में महल के पहरेदारों से दोस्ती कर लेनी चाटहए।

श्लोक (14)- अन्तिाररण्यां च पररचाररकायां नवटदतार्ायां सक् मात्यानं रूपयेत।् तदलाभाच्च शोकमन्तुः
प्रवेणशनीममि दत
ू ीकल्पं सकलामचरेत।् ।

अर्थ- महल में आने-िाने वाली नकसी दासी आटद को देखकर अगर नागरक को यह महसूस होता है नक
यह मुझपर नफदा है तो उसे अपने झांसे में लेने की कोणशश नागरक को करनी चाटहए, उसपर नागरक को
झूठा प्यार िताना चाटहए, अगर वह कुछ समय तक नहीं ममलती हो नागरक को ऐसा टदखाना चाटहए नक
वह उसके गम में नकतना परेशान है। नागरक इसी तरीके को अपनाकर महल की दस
ू री दाससयों आटद को
भी अपने झांसे में लेकर उनसे दत
ू ीपन का काम ले सकता है।

श्लोक (15)- रािप्रणिधींि वुध्यत


े ।।

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अर्थ- नागरक को अपनी सुरक्षा के मद्देनिर रािमहल में रह रहे रािा के गुतचरों को पहचान लेना चाटहए।

श्लोक (16)- दत्य


ू ास्त्वसंचारे यत्र गृहीताकारायाुः प्रयोज्याया दशथनयोगस्तत्रावस्थानम्।।

अर्थ- अगर दत
ू ी िा नहीं सकती तर्ा स्वीकृमत सूचक संकेत कर देती है तो नागरक को ऐसी िगह खडा
होना चाटहए िहां पर दरू से टदखाई पडता हो। अगर उसकी आंखें दत
ू ी के सार् नहीं ममलती तो उसका वहां
पर बेकार में खडा होना यर्थ है।

श्लोक (17)- तस्त्रस्मत्रानप तु रणक्षिु पररचाररकायपदेशुः।।

अर्थ- उसी स्थान पर खडे रहने से सिन पहरेदारों के सार् नागरक की दोस्ती है उन्हें उसी दत
ू ी को देखने का
बहाना कराना चाटहए।

िं
श्लोक (18)- चक्षुरन्धन्त्याममनगताकारननवे
दनम्।।

अर्थ- अगर चाहने वाली दासी आटद नागरक पर बार-बार निर गडाता है तो नागरक को भी अपने भावों
आटद को उसे टदखाना चाटहए।
शशशशश (19)- शशशश शशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश
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शशशशश (38)- शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश
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