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5 Kam Bhag 5
5 Kam Bhag 5
ू हिन्दी में
भाग 5 पारदाररक
अथथ- पराई स्त्री के साथ संभोग करने की इच्छा रखने से पहले यह सोच लेना चाहहए कक वह
स्त्री मिल सकती है या नह ं, उसको पाने िें कह ं ककसी तरह का संकट तो नह ं आ सकता, वह
स्त्री संभोग करने के लायक है भी या नह ,ं उसे अपने वश िें करने के बाद उस पर िेरा असर
कैसा पडेगा और िुझे उससे क्या फायदा होगा।
अथथ- जब परू
ु ष ककसी पराई स्त्री को दे खकर उत्तेजना िें भर जाता है तो उसे उस सिय
सोचना चाहहए कक िै क्या कर रहा हं । जब उसे िहसस हो कक अब िैं उससे संभोग करे बबना
नह ं रह सकता तब जाकर उस स्त्री के साथ संभोग करना चाहहए।
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अथथ- स्त्री को दे खकर आंखों िें प्यार छलक जाना, िन का भटक जाना, उसे हामसल करने की
कसि लेना, रात िें नींद न आना, शर र से किजोर होते जाना, सब चीजों से िन हट जाना,
शिम न करना, पागलपन पैदा हो जाना, बेहोशी छाना और ित्ृ यु हो जाना उत्तेजना के 10 स्त्थान
हैं।
अथथ- आचायम गोणिकापुर के अनुसार जजस तरह से स्त्री ककसी बहुत ह सुंदर, गुिी, सभ्य और
धनवान पुरूष को दे खकर उस पर िोहहत हो जाती है उसी तरह से पुरूष भी ककसी सुंदर स्त्री
को दे खकर उस पर अपने हदलो-जान नछडकने लगता है ।
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अथथ- वैसे तो स्त्री और पुरूष की यह प्रववृ त्त एक जैसी है लेककन जस्त्रयों िें दसरे पुरूषों की
तरफ आकवषमत होने की यह प्रववृ त्त ज्यादा होती है ।
अथथ- स्त्री धिम तथा अधिम की कोई परवाह नह ं करती वह मसफम कािना ह करती है लेककन
मिलने पर अपने अंदर कोई दोष दे ख लेती है तो कफर नह ं मिलती क्योंकक दे खे हुए दोष को
दे खने का स्त्री का शील होता है ।
अथथ- जब पुरूष उस स्त्री से बार-बार मिलने की कोमशश करता है तभी जाकर वह उससे संबंध
स्त्थावपत करती है ।
अथथ- बहुत से पुरूष ऐसे होते हैं जो पराई स्त्री के साथ संभोग करना तो चाहते है लेककन
सिाज आहद के डर के कारि ऐसा नह ं कर पाते।
अथथ- जस्त्रयां मसफम अपने शर र की आग को मिटाने के मलए ह दसरे पुरूष के साथ संबंध
बनाती है लेककन पुरूष स्त्री के साथ संभोग करने के बाद कफर से गिगीन हो जाता है ।
श्लोक (15)- सल
ु भामवमन्यते। दल
ु भ
थ ामाकांगत इतत प्रायोवादुः।
अथथ- अगर पुरूष ककसी स्त्री को आसानी से पा लेता है तो वह उसको आदर नह ं दे ता लेककन
अगर कोई स्त्री उसको नह ं मिलती तो वह उसको पाने के मलए कोमशश करता रहता है ।
अथथ- अगर कोई स्त्री ककसी दसरे पुरूष को चाहती भी है तो भी उसके पनत का प्यार उसको
उसके पास जाने से रोक लेता है ।
अथथ- जब स्त्री जवानी को पार कर लेती है तो वह भी दसरे पुरूष के पास जाने से रुक जाती
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है ।
अथथ- वह जजस पुरूष के पास जाना चाहती है अगर उसे यह लगता है कक िैं उसे हामसल नह ं
कर सकं गी तो भी वह उस पुरूष के पास जाने का ख्याल छोड दे ती है ।
अथथ- वह आदिी ककसी और स्त्री से प्रेि कर रहा है या ककसी और स्त्री के पास जा सकता
है । यह सोचकर भी स्त्री उसके पास जाने का ख्याल अपने िन से हटा दे ती है । उसे लगता है
कक वह परू
ु ष तो अपने दोस्त्तों की ह बरु ाई करता है , उनको अपनी सार बात बता दे ता है ।
इसमलए वह उससे दर जाने िें ह अपनी भलाई सिझती है ।
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अथथ- िग
ृ ी जानत अथामत छोट योनन वाल स्त्री परू
ु ष को ज्यादा उत्तेजक सिझकर या उसके
मलंग को बहुत ज्यादा सिझकर डर के कारि उसके साथ संभोग करने से हट जाती है ।
अथथ- हजस्त्तनी स्त्री अथामत ज्यादा गहर योनन वाल स्त्री को जब यह पता चलता है कक इस
पुरूष का मलंग छोटा है अथामत वह शश जानत का है तो वह उसके साथ संभोग करने का इरादा
त्याग दे ती है ।
अथथ- उसे लगता है कक िेरे इस पुरूष के साथ संबंध बनाने से उस पर कुछ ववपवत्त न आ
जाए। यह सोचकर वह उस पुरूष से दर हो जाती है ।
अथथ- अगर िेरे पनत को या िौहल्ले वालों को इस बात का पता चल गया कक िैं ककसी दसरे
पुरूष के साथ नाजायज संबंध बना रह हं तो िैं घर से ननकाल जा सकती हं । इस डर से भी
स्त्री दसरे पुरूष के साथ संबंध बनाने का इरादा त्याग दे ती है ।
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अथथ- उसे लगता है कक इस पुरूष को िेरे पनत ने ह िेरे बारे िें पता करने के मलए नह ं
भेजा है ।
अथथ- उसके िन िें धामिमक भावना आ जाने के कारि भी वह दसरे पुरूष का ख्याल अपने
िन से हटा दे ती है ।
अथथ- स्त्री के अपने से दर जाने के कारिों के अपने अंदर रहते हुए भी उनको हामसल करने
के मलए क्या करना चाहहए- यह ननम्नमलणखत है -
अपनी चालाकी के द्वारा स्त्री पर अपनी किजोररयों और दोषों को प्रकट नह ं होने दे ना
चाहहए।
अथथ- परू
ु ष की जजस असिथमता के कारि स्त्री उसे न मिल रह हो उसे उसकी असिथमता को
दर करने का तर का बता दे ना चाहहए।
अथथ- परू
ु ष के प्रनत स्त्री िें जो अववश्वास की भावना है उन्हें अपनी नम्रता दर कर दे ना
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चाहहए।
श्लोक (41)- पुरूषा्त्सवमी प्रायेण मसद्धाुः- कामसूत्रज्ञुः कथाख्यानकुशलो िाल्यात्सप्रभतृ त संसष्ृ टुः
प्रवद्
ृ वयौवनुः क्रीडनकमाथहदनागतत्तवश्वासुः प्रेषण्य कतोचचतसंभाषणुः त्तप्रय्त कताथन्य्य
भूतपूवो दत
ू ो ममथज्ञ उिमया प्राचथथतुः संख्या प्रच्छत्रुः संसष्ृ टुः सुभगामभख्यातुः सिसंवद्धुः
प्राततवेश्युः कामशील्तथाभूतश्च पररचारको मात्रेतयकापररग्रिो नववरकुः प्रेक्षोद्यानत्सयागशीलो वष
ृ
इतत मसद्धप्रतापुः सािमसकुः शूरो त्तवद्यारूपगुणोपभोगैुः पत्सयुरततशतयता मिािथवेषोपचारश्चतत।।
अथथ- जो स्त्री हर ककसी स्त्री के साथ दोस्त्ती कर लेती हो, जो अपने िायके िें ज्यादातर रहती
हो, बचपन िें ववधवा होने वाल , जजसके बच्चे पैदा होकर ह िर जाते हों, नौटं की, डांस आहद
करने वालों की पजत्नयां, जजसके बहुत सारे दे वर हो, गर ब होते हुए भी जो बडी-बडी चीजों का
शौक रखती हो, जो अपनी खबसरती के आगे अपने पनत को भी कुछ न सिझती हो, जो अपने
पर बहुत ज्यादा घिंड करती हो, अपने पनत को छोडकर पराए परू
ु ष को चाहती हो।
श्लोक (46)- श्लोकावत्र भवतुः- इच्छा ्वभावतो र्ाता कक्रयया पररवंहृ िता। वुद्धया
संशोचधतोद्वेगा श््थरा ्यादनपातयनी।
अथथ- इस ववषय के अंदर 2 बहुत ह पुराने और िशहर श्लोक हैं- यह बात तो स्त्वाभाववक ह
है कक ककसी भी सुन्दर स्त्री को पुरूष चाहता है और ककसी भी खबसरत पुरूष को स्त्री चाहती
है । ऐसी इच्छाएं पररचय और उपायों द्वारा बढाई जा सकती हैं और बुद्चध से उद्वेगों का
संशोधन करके इस तरह की ख्वाहहश स्त्थायी बनाई जा सकती है ।
अथथ- खद
ु को मिलने वाल सफलताओं को सिझकर स्त्री के हाव-भाव, कटाक्ष का अंदाजा
करके िजु श्कलों को दर करने का उपाय करके परू
ु ष दसर जस्त्रयों से संभोग करने िें सफल हो
सकता है ।
पराई जस्त्रयों से साथ ककस तरह जान-पहचान बनाई जा सकती है उसके बारे िें इस
अचधकरि िें बताया गया है लेककन पहले अध्याय िें पहले स्त्री और परू
ु ष के शील-स्त्वभाव की
व्यवस्त्था बताई गई है । कफर उन कारिों के बारे िें पता ककया जाए जजनसे चाहने वाल स्त्री
भी परू
ु ष से दर रहती है । इसके बाद यह बताया जा रहा है कक ऐसी कौन सी स्त्री है जो बबना
ककसी कोमशश के पराए पुरूष से सहवास कराने के मलए तैयार हो जाती है ।
इस प्रसंग िें वात्स्त्यायन ने संभोग की 10 दशाएं बताई हैं। यह 10 दशाएं जुदाई के
सिय होती हैं। यह जरूर नह ं है कक काि की ये 10 दशाएं मसफम पराई स्त्री से लेकर ह
प्रवत्त
ृ हुआ करती हैं। जहां कह ं भी इच्छा होती है वह ं संभोग की 10 दशाएं भी उत्पन्न हो
जाती हैं।
आचायम वात्स्त्यायन द्वारा बताई गई असल बात यह है कक युवक, युवती, अपना, पराया
कोई भी हो, िनचाह चीज के न मिलने पर कािसर का यह अचधकरि सवम-साधारि दशाओं
िें लेकर प्रवत्त
ृ हुआ है । इस अचधकरि का िकसद मसफम पराई स्त्री ह नह ं है लेककन चाहत
की सवमसाधारि चीजों को सिझना चाहहए।
आचायम वात्स्त्यायन ने संभोग की जजन 10 दशाओं के बारे िें बताया है वह मसफम पुरुषों
को ह नह ं परे शान करती बजल्क जस्त्रयों को भी परे शान करती हैं क्योंकक जजस तरह से पुरूष
दसर जस्त्रयों के साथ संबंध बनाने के मलए उत्सुक रहते हैं उसी तरह जस्त्रयां भी दसरे पुरुषों के
साथ संबंध बनाने की इच्छा रखती हैं।
इनत श्रीवात्स्त्यायनीये कािसरे पारदाररके पश्चिेऽचधकरिे स्त्री-पुरूषशीलावस्त्थापनं
व्यावत्तमनकारिानन स्त्रीषु मसद्धााः पुरूषा अयत्नसाध्या योवषताः प्रथिोऽध्यायाः।।
भाग 5 पारदाररक
श्लोक (1)- यथा कन्या ्वयममभयोगसाध्या न तथा दत्सू या। परश््त्रय्तु सक्ष्
ू मभावा दत
ू ीसाध्या
न तथात्समनेतयाचायाथुः।
अथथ- कािशास्त्र के पुराने आचायों के िुताबबक जजस तरह से कंु वार युवती को अपने उपायों
आहद से पाया जा सकता है उसी तरह पराई जस्त्रयों को बबना दती की सहायता से स्त्वयं पाना
िुिककन नह ं है ।
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अथथ- आचायम वात्स्त्यायन के िुताबबक स्त्वयं अपने बल पर स्त्री को पाना दती की िदद लेने से
ज्यादा अच्छा है । अगर स्त्वयं की कोमशश काियाब नह ं हो पाती तो दती की िदद ल जा
सकती है ।
अथथ- जजस स्त्री का चररर पहल बार खराब हुआ हो उसे पाने िें परू
ु ष ह सिथम होता है दती
नह ं। कभी हामसल करने वाल स्त्री से बात न हुई हो, उससे मिलना ककसी भी तरह से परू
ु ष
के वश िें न हो तो कफर दती का ह सहारा लेना पडता है ।
श्लोक (4)- ्वयममभयोक्ष्यमाण्त्सवादावेव पररचयं कुयाथत ्।।
अथथ- अगर बबना ककसी कोमशश के स्त्री को दे खा जाए तो उसे स्त्वभाववक कहते हैं और अगर
उसे ककसी उपाय आहद से दे खा जाए तो उसे प्रायजत्नक कहते हैं।
अथथ- स्त्री को अपने घर के पास आते-जाते दे खना और स्त्वाभाववक और दोस्त्त, िंरी या डाक्टर
के घर के पास या वववाह, यज्ञ, उत्सव, ववपवत्त, के िौके पर दे खना प्रायजत्नक दशमन है ।
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अथथ- स्त्री का भावदशमन इस तरह करना चाहहए- जब वह अपने बालों को खोलकर सुखा रह
हो, नाखनों से खज
ु ला रह हो, अपने गहनों को ठीक कर रह हो, अपने नीचे वाले होंठों को
चबा रह हो, तब अपने दोस्त्तों के साथ स्त्री के उन भावों की नकल करने का नाटक करना
चाहहए। दसरे लोगों के बहाने उसकी बातें करनी चाहहए, अपने त्याग तथा भोग-ववलासों के बारे
िें बातें करनी चाहहए, दोस्त्त की गोद िें लेटकर अंगडाई लेनी चाहहए, जम्भाई लेते हुए उसकी
तरफ भौंहों को िटकाना चाहहए, धीरे से बोलना चाहहए तथा उसकी बातें सन ु ना चाहहए।
श्लोक (8)- त्याश्चागंत्य िाल्य लालनं िालक्रीडनकानां चा्य दानं ग्रिणं तेन
सतनकृष्टत्सवात्सकथायोर्नं तत्ससंभाषणक्षमेण र्नेन च प्रीततमासाद्य कायं तदनुिन्धं च
गमनागमन्य योर्नं संश्रये चा्या्तामपश्यतो नाम कामसूत्रसंकथा।।
अथथ- स्त्री के गोद िें मलए हुए बच्चे को प्यार करना चाहहए तथा उसे खेलने के मलए णखलौने
दे ने चाहहए। उसके पास जाकर उससे बात करनी चाहहए। जो आदिी उससे बात करता हो
उससे दोस्त्ती कर लेनी चाहहए तथा उसके द्वारा अपना िकसद हल कर लेना चाहहए। ककसी
भी काि के बहाने उसके घर पर आना-जाना शुरू कर दे ना चाहहए। उसको ऐसे स्त्थान पर
कािसर के बारे िें बातें करनी चाहहए कक जहां से स्त्री उसकी बातों को सुन तो सके लेककन
यह न जान सके कक वह उसको दे खकर ऐसी बाते बोल रहा है ।
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अथथ- उससे अच्छी तरह से जान-पहचान होने के बाद उसे ऐसी चीजें दे नी चाहहए जो उसके
पास कुछ हदन तक रखी रहें । इसके बाद उससे वह चीज लेकर उसको दब
ु ारा ऐसी चीजें रखने
के मलए दें जो कक उसके पास ज्यादा हदनों तक रखी रहे । उससे प्यार, भरोसा और जान-
पहचान बढाने के मलए रोजाना सािान को लेन-े दे ने का िि जार रखें जैसे इर, सुपार , बाल
बनाने के मलए कंघा आहद। ऐसी चीजों को उपयोग करने के मलए रोजाना िांगा जा सकता है ।
अथथ- उसे अपने घर की जस्त्रयों के साथ बातचीत या भोजन आहद करने िें लगा दे ना चाहहए।
अथथ- इस प्रकार की कोमशशों को करते रहना चाहहए जजससे वह रोजाना हदखती रहे और
उसका प्रेि और भरोसा भी बढते जाए।
श्लोक (12)- सुवणथकारमणणकारवैकहटकनीलीकुसुम्भरञ्ञकाहदषु च कामाचथथन्यां सिात्समनो
वश्यैश्चैषां तत्ससम्पादने ्वयं प्रयतेत।।
अथथ- सन
ु ार, जडडया, न्याररया, नीलगर, रं गरे ज, बढई आहद से अगर स्त्री कोई काि कराने जाती
है तो पुरूष को उससे कहकर कक िै आपका यह काि करवा दं गा कहकर उसे घर पर भेज
दे ना चाहहए।
अथथ- इस तरह से स्त्री का काि करते हुए पुरूष को लोग-बाग बहुत ह दे र से सिझ पाते हैं।
अथथ- स्त्री को जजन-जजन कािों की जरूरत हो, जजन चीजों को वह पसंद करती हो, जजस काि
आहद को वह सीखना चाहती हो, उनको परा करने, जानने तथा जानकार रखने और कोमशश
करने की अपनी योग्यता उससे जाहहर कर दे ना चाहहए।
श्लोक (16)- पव
ू प्र
थ विृ ेषु लोकचररतेषु द्रव्यगण
ु परीक्षासु च तया तत्सपररर्नेन च सि त्तववादुः।।
अथथ- पुराने र नत-ररवाजों, वस्त्तुओं के गुिों की पहचान िें उससे और उसके नौकरों से बहस
करने से संकोच दर होता है ।
श्लोक (17)- कृतपररचयां दमशथतेचगंताकारां कन्याममवोपायतोऽमभयुञ्ञीतेतत। प्रायेण तत्र सूक्ष्मा
अमभयोगाुः। कन्यानामसंप्रयुक्तत्सवात ्। इतरासु तानेव ्फुटमुपदध्यात ्। संप्रयुक्तत्सवात ्।।
अथथ- जजस स्त्री ने अपने शर र के अंगों को हदखा हदया हो, जजसने सदभाव जाहहर कर मलया
हो, उसकी चीजों को उसके प्रेिी को भोगना चाहहए तथा प्रेिी की चीजों को स्त्री को उपभोग
करना चाहहए।
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अथथ- एक-दसरे को चीजे लेने-दे ने की शुरुआत होने पर अगर स्त्री पुरूष को ज्यादा सुगंचधत
चीजें, अंगठी, दप
ु ट्टा और फल दे ती है तथा जब वह अपने हाथ िें रखा हुआ पान खा ले तो
घिने जाने की तैयार करते सिय उसके जडे िें लगे हुए सुगंचधत फल िांगे।
अथथ- इसके बदले िें स्त्री अगर कोई सुगंचधत या िनचाह चीज पुरूष को दे ती है तो उसे
नाखन से उस पर ननशान बना दे ना चाहहए।
श्लोक (22)- क्रमेण च त्तवत्तवक्तदे शे गमनमामलंगनं चि
ुं न ताम्िूल्य ग्रािणं दानान्ते द्रव्याणां
पररवतथनं गुह्यदे शामभमशथनं चेत्सयमभयोगाुः।।
अथथ- पुरूष और स्त्री को धीरे -धीरे एकांत िें मिलना-जुलना चाहहए, आमलंगन और चब
ुं न आहद
करना चाहहए, उसके गुप्त अंगों को छना चाहहए। इसी को अमभयोग कहते हैं।
श्लोक (24)- श्लोवत्र भवतुः- अन्यत्र दृष्टसंचार्तद्धताथ यत्र नायकुः। न तत्र योत्तषतं
कांचचत्ससप्र
ु ापामणण लंगयेत ्।।
अथथ- इस ववषय के बारे िें 2 पुराने श्लोक हैं- जजस घर िें स्त्री के पनत को उसके नाजायज
संबंधों के बारे िें पता हो, वहां पर आसानी से मिलने वाल स्त्री से मिलना भी ठीक नह ं है ।
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अथथ- िजबत हदल वाल , डरपोक, भरे -परे घर वाल जस्त्रयों को आत्िववश्वास लोगों को भलकर
भी नह ं पटाना चाहहए।
जजन जस्त्रयों से संभोग किया करने की इच्छा करती है वह 2 प्रकार की होती है एक तो
वह कन्या जजसने पहले कभी ककसी पुरूष के साथ संबंध बनाए हो। उसको पाने के मलए पुरूष
को दती की िदद न लेकर स्त्वयं ह अपने उपायों को आजिाना चाहहए। ऐसा इसमलए कक उस
लडकी को कोई तजुबाम नह ं होता। उसको आसानी से अपने जाल िें फंसाया जा सकता है ।
लेककन जजन युवनतयों को अनुभव होता है उनको दती के जररये से अपनी ओर आकवषमत ककया
जा सकता है । वह सब इशारों को आसानी से सिझ जाती है ।
स्त्री को आकवषमत करने के मलए सबसे पहले उससे जान-पहचान और प्यार-िोहब्बत
बढाना चाहहए। उसको दे खने और अपने आपको हदखाने की कोमशश करनी चाहहए। स्त्री को
इधर-उधर जाते हुए दे खना स्त्वाभाववक दशमन है । जजस स्त्री से मिलने की ख्वाहहश हो, उसके
हाव-भाव, अंग संचालन को दे खकर अनक ु रि करना चाहहए, उसको लक्ष्य िानकर ककसी बच्चे
को चिना, आमलंगन करना आहद बाध्य पररचय कहे जाते हैं। इस तरह के बाध्य पररचय
द्वारा धीरे -धीरे बाते करना अथवा मसलमसला जोडना चाहहए।
जब स्त्री से बाहर पररचय हो जाता है तो उससे मिलने-जुलने के िौके ढं ढने चाहहए,
उसके घर आने-जाने का मसलमसला चाल करना चाहहए, उसके बाद पान, सुपार , इर जैसी चीजों
के उसे रखने के मलए दे ना चाहहए क्योंकक इन चीजों का रोजाना लेन-दे न चलता रहना चाहहए।
इससे दोनों को एक-दसरे से रोजाना मिलने का िौका मिलता रहता है ।
आचायम वात्स्त्यायन ने दसर जस्त्रयों को पाने के मलए संकेतों और इशारों को बढावा
हदया है । काि-शाजस्त्रयों ने इस संबंध के संकेत शब्द भी बनाएं है जैसे परू
ु ष का नाि न लेकर
उसे ककसी फल या स्त्री को ककसी फल के नाि से बल
ु ाना। जैसे अगर वह ब्राह्िि जानत का
है तो दाडडि, क्षबरय है तो कटहल, वैश्य है तो केला, शद्र
ु है तो आि। ब्राह्िि स्त्री के मलए
कुन्दपष्ु प, राजकुिार हो तो िालती, वैश्य हो तो िजल्लका, शद्र
ु कन्या हो तो कुिहु दनी, व्यापार
की लडकी हो तो सरोज और िंरी की लडकी हो तो उसे उत्पल कहकर पक
ु ारना चाहहए।
इन्हें भाषा संकेत कहते हैं। इन संकेतों का प्रयोग अपने िकसद को नछपाने तथा स्त्री
पर प्रकट करने के मलए उस सिय करना चाहहए जब कई लोग हो। चचट्ठी मलखने िें भी इन
भाषा संकेतों का प्रयोग करना चाहहए।
भाषा संकेतों के अलावा अंग संकेत, पुष्प िाला संकेत, ताम्बुल संकेत, वस्त्र संकेत तथा
पोटल संकेत जैसे 5 और भी संकेत बताए गए हैं।
अंग सकेत- अगर स्त्री और पुरूष को एक-दसरे के हाल-चाल पछने हो तो कान को छना
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चाहहए। अपने प्यार को जाहहर करने के मलए उसके बालों िें उं गल घुिानी चाहहए। प्रेिी की
बेचन
ै ी बताने के मलए छाती पर हाथ रखना चाहहए। सम्िान प्रकट करने के मलए िाथे पर हाथ
रखना चाहहए। मिलने के मलए अपने हाथ की िध्यिा उं गल को तजमनी उं गल पर चढा दे ना
चाहहए। यहद बुलाना हो तो िुट्ठी बांधकर हाथों को जोडना चाहहए।
ककसी रोज के मलए हां करने के मलए तार खों का संकेत करना चाहहए। कननष्का उं गल
(हाथ की सबसे छोट उं गल ) के पहले पोर से लेकर अंगठे के आणखर पोर तक 15 पोर होते
हैं। प्रनतपदा (अिावस) से लेकर पिमिासी तक इनको 15 हदन िाना जाता है । यह तार ख
संकेत होते हैं। जब ककसी तार ख को संकेत के जररये बताना हो तो उसके मलए उं गमलयों के
पोरों की िदद लेनी चाहहए। हदशाओं का संकेत भी उं गमलयों से ककया जाता है । अंगठा हदखाने
से पहले हदशा का तजमनी उं गल से दक्षक्षि, िध्यिा से पजश्चि, कननष्का तथा उसके पास की
उं गल से उत्तर हदशा का बोध होता है । शुक्लपक्ष (पणिमिा) तथा कृष्िपक्ष (अिावस) का संकेत
हाथों से करना चाहहए। बाएं हाथ को हदखाने से शुक्लपक्ष (पणिमिा) तथा दाएं हाथ को हदखाने
से कृष्िपक्ष (अिावस्त्या) होता है ।
इन अंग संकेतों को तब ककया जाता है जब परू
ु ष स्त्री के पीछे पागल होकर उसकी
गल के चक्कर काटता रहता है और स्त्री णखडकी से संकेत करती है ।
पष्ु पिाला संकेत- अनरु ाग प्रकट करने के मलए लाल रं ग के फलों की िाला, स्त्री से
वैराग्य प्रकट करने के मलए गेरुए रं ग के फलों की िाला, प्यार न मिलने पर काले धागे िें
वपरोए हुए फलों की िाला का आचरि करना। जब पुरूष इस तरह की िाला को गले िें
डालकर स्त्री के सािने से ननकलता है तो िाला के संकेत से स्त्री पुरूष के िनोभावों को सिझ
जाती है । िाला को खद
ु पहनने के अलावा अपने िन के भावों को प्रकट करने के मलए दनतयों
द्वारा स्त्री और पुरूष एक-दसरे के पास फल या फलों की िाला भेजते हैं।
स्त्री और पुरूष के बीच जो एक-दसरे को पान दे ने का आदान-प्रदान होता है उस बीडे
के 5 प्रकार होते हैं। पान की नसें ननकालकर जो बीडा तैयार होता है उसे कौशल कहा जाता है ।
अंकुश के आकार के बीडे को कंदपम, चौरस बीडे को पयमक तथा चौकोर बीडे को चतरु त्न कहते
हैं।
प्यार को जाहहर करने के मलए कौशल पान, आपस िें दोस्त्ती प्रकट करने के मलए
अंकुश, कािपीडा प्रकट करने के मलए कंदपम तथा संभोग करने के मलए पयमक पान का बीडा
हदया जाता है ।
अभी िौका नह ं है का इशारा चौकोना का पान बीडा, िनोिामलन्य प्रकट करने के मलए
बबना सुपार का पान तथा प्यार को प्रकट करने के मलए सुपार और इलायची मिलाकर पान
दे ते हैं। ररश्ता तोडने के मलए पान को तोडकर काले धागे िें बांधा जाता है । संयोग का भाव
प्रकट करने के मलए 2 पानों की नोकों को जोडकर लाल धागे िें बांध हदया जाता है । बहुत
ज्यादा प्यार प्रकट करने के मलए पान के टुकडों को जोडकर हदया जाता है , उसके अंदर केसर
डाल जाती है और बाहर चंदन का लेप44books.com
ककया जाता है ।
वस्त्र संकेत- जब पुरूष अपनी कािपीडडत जस्त्थनत स्त्री को बताना चाहता है तो इसके
मलए कपडों िें छे द करके संकेत हदया जाता है । लाल रं ग के कपडे अनुराग का संकेत और
गेरुए रं ग के कपडे द्वारा वैराग्य का संकेत करना चाहहए। बबछुडने की हालत का संकेत फटे
े़
कपडे पहनकर, मिलन का संकेत कपडे िें गांठ बांधकर अपने िन के भाव प्रकट करने चाहहए।
वस्त्र संकेत को उस सिय ककया जाता है जब स्त्री और पुरूष अपने घर की छत पर
खडे होकर एक-दसरे से मिलने के मलए बेचन
ै रहते हैं।
पोटल संकेत- अपने प्यार को जाहहर करने के मलए खश
ु ब वाल चीजें सुपार , िेवा
आहद की पोटल बांधकर द जाती है । सुहागरात के हदन आज भी यह प्रथा प्रचमलत है । ज्यादा
प्यार को प्रकट करने के मलए छोट इलायची, जाववरी और लौंग की पोटल बनाई जाती है ,
प्रेि के भंग हो जाने पर िंगों की पोटल बनाई जाती है , बहुत ज्यादा पुरानी दोस्त्ती को जाहहर
करने के मलए 2 िंगों को पोटल िें बांधा जाता है । जब काि-ज्वर की पीडा प्रकट करनी हो
तो कडवी चीजों की पोटल बनाई जाती है ।
संभोग किया करने का संकेत दे ने के मलए िुनक्का की पोटल तैयार की जाती है ।
अपने शर र को सिवपमत करने के भाव िें कपास की पोटल , जान लट
ु ाने के मलए जीरे की
पोटल , डर हदखाने के मलए मभलावा की पोटल , डर दर होने की खबर दे ने के मलए हरे की
पोटल का संकेत करना चाहहए।
पोटल संकेत के मलए िोि की हटककया बनाकर उसके ऊपर अपने हाथ की पांचों
उं गमलयों के नाखनों से ननशान बनाकर लाल धागे से बांध दे ने को पोटल कहा जाता है ।
भाग 5 पारदाररक
अथथ- पुरूष जब ककसी स्त्री से मिलता-जुलता है तो उसे स्त्री के स्त्वभाव की और उसके भावों
की जानकार ले लेनी चाहहए क्योंकक भाव ह चेष्टा का काि है ।
अथथ- जो स्त्री पुरूष के साथ बबना िन के संभोग करती है तो उसे िुजश्कल िें फंसा हुआ
सिझना चाहहए और उसको धीरे -धीरे इस िुजश्कल से बाहर ननकालना चाहहए।
अथथ- जो स्त्री पुरूष से नह ं मिलती लेककन कफर भी पहले से ज्यादा सजती-संवरती है तो पुरूष
को उसे उसी तरह से मिलाने की कोमशश करनी चाहहए। पुरूष को उसके इस भाव को जान
लेना चाहहए कक उस स्त्री िें जबरदस्त्ती संभोग कराने की प्रववृ त्त है ।
श्लोक (5)- ििूनत्तप त्तवषितेऽमभयोगात्र च चचरे णात्तप प्रयच्छत्सयात्समानं सा शुष्कप्रततग्राहिणी
पररमयत्तवघटनसाध्या।।
अथथ- पुरूष के िन की ववृ त्तयां बदलती रहती हैं इसमलए एक बार पररचय टट जाने पर कफर
दब
ु ारा से जोडा जा सकता है ।
अथथ- बहुत सी जस्त्रयों की आदत होती है कक वह पुरूष से कई बार मिलने के बाद अचानक
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मिलना छोड दे ती हैं। वह न तो परू
ु ष से संभोग कराती हैं और न ह उसे िना ह करती हैं।
वह ऐसा करती हैं तो सिझती है कक िैने ककतना बडा काि ककया है । ऐसी स्त्री को या तो
ज्यादा िेलजोल के जररये संभोग करने के मलए तैयार करना चाहहए या कफर चालाक दती से
साधना पडता है ।
अथथ- जो स्त्री पुरूष से मिलने पर उसे नजरअंदाज करती है या ककसी भी बात के पछने पर
उसका सह तरह से जवाब नह ं दे ती है तो पुरूष को ऐसी स्त्री से मिलना छोड दे ना चाहहए।
अथथ- कुछ जस्त्रयां अपनी आदतानुसार पहले गुस्त्से िें बात करती हैं लेककन बाद िें प्यार भी
बहुत करती हैं। पुरूष को ऐसी जस्त्रयों से संभोग करने के मलए कोमशश करते रहना चाहहए।
श्लोक (10)- कारणात्ससं्पशथनं सिते नाववुध्यते नाम द्त्तवधाभूतमानसा सातत्सयेन क्षान्तया वा
साध्या।।
अथथ- पुरूष को अपने पास लेट हुई स्त्री के ऊपर हाथ रख दे ना चाहहए अगर वह संभोग करने
की इच्छा रखती होगी तो वह पुरूष के हाथों को तरु ं त ह हटा दे ती है नह ं तो वह ऐसी पडी
रहे गी जैसी कक कुछ पता ह न हो।
अथथ- जो स्त्री बबना मिले हुए ह अपने हाव-भाव हदखाती हो, एकांत िें अपने शर र के अंगों को
हदखाती हो, बोलते सिय जजसकी आवाज िें कंपकंपी प्रतीत हो, जजसकी बोल िीठी हो, चेहरा
पसीने से भीग जाता हो, पुरूष के हाथ-पैर और मसर को दबाने लगे तो पुरूष को सिझ जाना
चाहहए कक वह उससे प्रेि करती है ।
अथथ- जजस सिय स्त्री के अंदर काि-उत्तेजना पैदा होती है तो उस सिय वह अपने पैर को
दबाने लगती है, दसरे हाथ से पुरूष को अपने शर र को छने का इशारा करती है तथा पुरूष के
स्त्पशम के बबना ह आश्चमचककत होती हुई दसरे हाथ से भी पैर को दबाने लगती है ।
श्लोक (18)- तनद्रान्धा वा परर्पश्ृ योरुभ्यां िािुभ्यामत्तप ततष्ठतत। अलकैकदे शमूवेरुपरर पातयतत।
ऊरुमूलसंवािने तनयुक्ता न प्रततलोमयतत। तत्रैव ि्तमेकमत्तवचलं व्य्पतत। अंगसंदंशन
44books.com े च
पीडडतं चचरादपन-यतत।।
अथथ- स्त्री नींद आने का बहाना करके दोनों हाथों से पुरूष का स्त्पशम करके दोनों घुटनों के बल
बैठती है और िाथे को घट
ु नों पर रखती है । पुरूष के पैर को दबाती हुई अपने हाथों को पुरूष
की जांघों की ओर बढाती है , नीचे की तरफ लेकर नह ं आती तथा एक हाथ को उसकी जांघ के
जोड िें रखे रहती है । जजस सिय पुरूष अपनी जांघों पर रखे हुए उसके हाथ को जोर से
दबाती है तभी वह अपने हाथ को हटाती है ।
अथथ- जो स्त्री इशारे भी करे लेककन कफर भी संभोग करने से पीछे हटे तो सोचना चाहहए कक
वह अपने िन से यह बात कह रह है या मसफम नखरे हदखाने के मलए ह बोल रह है ।
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श्लोक (24)- भवश्न्त चात्र श्लोकाुः- आदौ पररचयं कुयोित्सश्च पररभाषणम ्। पररभाषणसंममश्रं
ममथश्चाकार-वेदनम ्।।
अथथ- सबसे पहले स्त्री से जान-पहचान कर लेनी चाहहए। उसके बाद बातों को आगे बढाना
चाहहए। इस बातचीत िें ह एक-दसरे के भावों का आदान-प्रदान कर लेना चाहहए।
अथथ- स्त्री के इशारा करने पर अगर उसका जवाब पुरूष को मिल जाता है तो उसे बबना ककसी
डर के स्त्री के साथ संभोग किया करने िें ल न हो जाना चाहहए।
श्लोक (26)- आकारे णात्समनो भावं या नारी प्राक्प्रयोर्येत ्। क्षक्षप्रमेवामभयोज्जया सा प्रथमे त्सवेव
दशथने।।
अथथ- जो स्त्री पुरूष को इशारे करने के साथ ह अपने िन के भावों को भी जोड दे ती है ऐसी
जस्त्रयां पहल बार की िुलाकात िें ह संभोग करने के मलए तैयार हो जाती है ।
अथथ- ककसी स्त्री को गप्ु त संकेत हदए जाए और वह साफ जवाब दें तो सिझ लेना चाहहए कक
वह स्त्री संभोग करना चाहती है ।
अथथ- जो स्त्री स्त्वभाव से ह शिील हो, उसके अंदर ककसी ककस्त्ि की चालाकी न हो और
पुरूष की पर क्षा करती हो तो ऐसी जस्त्रयों के मलए सक्ष्ि ववचध बताई गई है क्योंकक यह तो
साफ है कक ऐसी स्त्री कभी न कभी संभोग जरूर करवाएगी।
जानकार -
िहावषम वातस्त्यायन ने इस प्रकरि िें ऐसी जस्त्रयों के िन के भावों की पर क्षा करने के
बारे िें बताया है जजससे कक पुरूष संभोग करना चाहता है , उसे अपनी तरफ आकवषमत करने की
कोमशश करता है , उससे दोस्त्ती बढाना चाहता है लेककन शिीले स्त्वभाव के कारि वह अपने
िन के ववचारों को जल्द पुरूष पर प्रकट नह ं करती, उसे अपने साथ संभोग कराने का अवसर
भी नह ं दे ती।
इसिें यह बताया गया है कक बहुत सी जस्त्रयां कुछ ज्यादा ह शिीले स्त्वभाव की होती
हैं। वह पुरूष से मिलती है , उसके साथ 44books.com
चबुं न और आमलंगन भी करती हैं लेककन पुरूष द्वारा
संभोग करने के मलए कहने पर टाल-िटोल करती रहती हैं। िहवषम वात्स्त्यायन के िुताबबक
ऐसी जस्त्रयों को पहले जान-पहचान बढाकर मिलना-जुलना चाहहए। अच्छी तरह से जान-पहचान
होने के बाद वह स्त्वयं ह पुरूष के साथ संभोग करने के मलए तैयार हो जाती है ।
श्लोक- इनत श्रीवात्स्त्यायनीये कािसरे पारदाररके पञ्ञिेऽचधरिे भावपर क्षा तत
ृ ीयोऽध्यायाः।
वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में
भाग 5 पारदाररक
अध्याय 4 दत
ू ीकमथ प्रकरण
अथथ- दती जजस स्त्री को पुरूष के मलए पटा रह हो उसके घर के अंदर अच्छे बतामव का
पररचय दे कर प्रवेश करना चाहहए। इसके अलावा कहाननयों से, सुंदरता को बढाने वाले तर कों
से, बातचीत से उसको खुश करना चाहहए।
अथथ- दती को स्त्री के हदल िें उसके पनत के मलए बुर बातें बोलकर नफरत आहद पैदा करनी
चाहहए जैसे कक तुि तो रूप का खजाना हो तुिने क्या सोचकर ऐसे पनत से वववाह कर मलया।
अथथ- तुम्हारा पनत तो तुि जैसी खबसरत स्त्री का नौकर बनने लायक भी नह ं है ।
अथथ- दती को स्त्री से उसके पनत के बारे िें जजतनी भी बरु से बरु बातें है कहनी चाहहए कक
तम्
ु हारा पनत ककतना ठं डा है , वह सबसे जलता है , धतम है , वह सारे गंदे काि करता है आहद।
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अथथ- अगर स्त्री की योनन कि गहराई वाल होती है तो उसके पनत पर छोटे मलंग होने का
दोष नह ं लगाना चाहहए। उस सिय पनत के मलंग को बडा बताना ह दोष होगा। इस तरह
अगर स्त्री बडवा या हजस्त्तनी हो तो उसके पनत को अश्व या वष
ृ न बोलकर शश कहना ह
सह होगा।
श्लोक (13)- तत्र मसद्धा द्त्तवतीयेऽितन वाचच वक्रे दृष्टयां च प्रसादमुपलक्ष्य पुनरत्तप कथां
प्रवतथयेत ्।।
अथथ- अगर दती की ऐसी बातों को सुनकर स्त्री रोिांचचत हो जाती है तो दती को दसरे हदन
कफर से उसके िड के अनुसार बातचीत करनी चाहहए।
अथथ- जब स्त्री दती की बातों को सुनने िें पर तरह से िशरूफ हो जाए तो उसी सिय उसे
परु ाने सिय की ऐसी जस्त्रयों के ककस्त्से-कहाननयां सन
ु ाने चाहहए जो पराए परू
ु ष के साथ संबंध
रखती हो।
श्लोक (15)- वप
ृ तां चतुुःषश्ष्टत्तवज्ञतां सौभागयं च नायक्य। श्र्लाघनीयतां (या) चा्य प्रच्छन्नं
संप्रयोगं भूतमभूतपूवथ वा वणथयेत ्।।।
अथथ- स्त्री के संभोग करने की जोरदार शजक्त, संभोग कलाओं िें उसकी कुशलता, उसकी
सौभाग्यशीलता तथा अच्छाईयों के बारे िें बताकर ऐसी खबसरत स्त्री नाि लेकर बताना
चाहहए कक वह उससे संभोग करा चक
ु ी है ।
अथथ- स्त्री को इतना बताकर कफर उसकी भाव आहद को भी परखना चाहहए।
अथथ- अपनी जजन कोमशशों के बल पर दती स्त्री के भावों को पता कर लेती है उन्हे बताते हैं।
श्लोक (19)- क्वामसतं क्व शतयतं भुक्तं क्व चेश्ष्टतं ककं वा कृताममतत पच्
ृ छतत।।
अथथ- कहां भोजन ककया, कहां पर क्या ककया, कहां बैठी, कहां पर सोई आहद पछती है ।
अथथ- कुछ सोचते हुए लंबी-लंबी सांसे लेती हुई, जंभाई लेती है ।
श्लोक (22)- प्रीततदायं च ददातत।।
अथथ- दब
ु ारा से आने के वादे पर वह उसे ववदा करती है ।
अथथ- स्त्री िन ह िन िें यह सोचती है कक पुरूष के दे खने-वेखने की बात दती स्त्वयं ह छे ड।े
अथथ- जो स्त्री पुरूष के बारे िें जानती न हो उसे प्रेिी के गुि बताकर और उसकी प्रेि
कहाननयां सुनाकर अपनी बातों के जाल िें फंसाना चाहहए।
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अथथ- बाभ्रवीय आचायों के ित
ु ाबबक एक-दसरे को न जानने पर भी अगर भाव-भंचगिा, संकेत
मिल चक
ु े हो तो दतीकायम हो सकता है ।
अथथ- गोणिकापर
ु के ितानस
ु ार बबना जान-पहचान और संकेत के भी दतीकायम हो सकता है ।
अथथ- बबना जान-पहचान के पुरूष स्त्री के मलए िनपसंद चीजें, पान, केशर, िाला, अंगठी और
े़
अच्छे कपडे भेजने चाहहए।
अथथ- उपहार िें हदए जाने वाले कपडो पर केसर के थापे और छाप िारनी चाहहए।
अथथ- िुलायि पत्तों पर कई तरह के अमभप्रायों की शक्लें बनाकर, रनत, िोध, शोक आहद प्रकट
करना चाहहए।
अथथ- वाभ्रवीय आचायों के िुताबबक संभोग तो दे वपजन, दे वयारा िें जाते सिय, जंगल िें
घिते सिय, पानी िें तैरते सिय, वववाह के िौके पर, यज्ञ, जश्न तथा ित्ृ यु के िौके पर, आग
लग जाने पर, खेल तिाशों िें करना संभव होता है ।
अथथ- ननसष्ृ टाथम दती- जो पुरूष तथा स्त्री के अमभलवषत िकसद को जानकर अपने हदिाग से
काि करती है उसे ननसष्ृ टाथम दती कहते हैं।
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श्लोक (43)- सा प्रायेण सं्तुतसंभाषणयोुः।।
अथथ- जजन स्त्री और पुरुषों िें जान-पहचान और िेल-मिलाप रहता है उन्ह ं का काि करती
हैं।
अथथ- यहद यह दती रूप, गुि, शील, उम्र िें बराबर वाले स्त्री और पुरूष को अपनी तरफ से
मिलाना चाहे तो मिला सकती हैं।
अथथ- परहार दती- स्त्री और पुरूष के संदेश तथा पर आहद ले जाने का काि करती हो तो
उसे परहार दती कहते हैं।
अथथ- खद
ु दती को दे खने और उससे संदेश लेन-े दे ने िें एकांत होना जरूर है ।
अथथ- अगर कोई स्त्री ऐसी िढदती से काि करा रह हो तो पुरूष को उसे बदल दे ने के मलए
उसी के साथ संभोग किया करनी चाहहए।
श्लोक (58)- पव
ू प्र
थ ्तत
ु ाथथमलगंसंिद्धमन्यर्नाग्रिणीयं लौकककाथथ द्वयथथ वा वचनमद
ु ासीना या
श्रावयेत्ससा वातदत
ू ी। त्या अत्तप तयैव प्रत्सयि
ु रप्राथथनममतत तासां त्तवशेषाुः।।
अथथ- वातदती- प्रेमिका की सांकेनतक भाषा, श्लेषभाषा को जो उदासीन रहकर प्रेमिका को
सुऩाएं तथा उससे उसी भाषा िें जवाब भी िांगें तो उसे वातदती कहते हैं।
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श्लोक (59)- भवश्न्त चात्र श्लोकाुः- त्तवधनेक्षणणका दासी मभक्षुकी मशल्पकाररका। प्रत्तवशत्सयाशु
त्तवश्वासं दत
ू ीकायथ च त्तवन्दतत।।
अथथ- इस ववषय के श्लोक हैं-
ववधवा, घराने वाल , मभखाररन, सगुन, नायन आहद जस्त्रयां ककसी के साथ भी जल्द घुल-मिल
जाती हैं और ववश्वासपार बन जाती हैं और कफर दती का काि करती हैं।
अथथ- दती पनत से पत्नी को झगडा करा दें , प्रेमिका को उससे मिलाना चाहें , उसकी तार फ करें ,
दसर जस्त्रयों के सािने भी अश्ल ल चचर आहद हदखाएं।
अथथ- प्रेिी के संभोग तथा प्यार आहद का विमन करें , प्रेमिका से भी बढकर संद
ु र तथा अिीर
जस्त्रयों का विमन सन
ु ाएं कक वह प्रेिी पर िोहहत है। इसके साथ ह प्रेमिका के कठोर ननश्चय
को भी जाहहर करें ।
भाग 5 पारदाररक
अध्याय 5 ईश्वरकाममतम प्रकरण
अथथ- राजा, िंरी और ववद्वान लोग दसरों के घरों िें आसानी से प्रवेश नह ं कर सकते क्योंकक
प्रजा इनके चरररों को दे खकर ह आचरि करती है ।
ृ ा ककंचचंदाचरे युुः।।
श्लोक (3)- त्मादशक्यत्सवाद्रिथणीयत्सवाच्चेतत न ते वथ
अथथ- राजाओं, िंबरयों और ववद्वानों को पराई जस्त्रयों के चक्कर िें पडने जैसे बरु े कािों को
नह ं करना चाहहए।
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अथथ- गांव के युवा िुणखया, युवा अचधकार या पटवार का युवा पुर अगर गांव की ककसी स्त्री
को संभोग करने के मलए कहते हैं तो वह तुरंत ह तैयार हो जाती है । ववद्वानों के िुताबबक
ऐसी जस्त्रयों को चपमिी कहा जाता है ।
अथथ- जब चपमिी स्त्री कटने, पीसने, पकाने के सािान को रखने, उठाने, घर की सफाई करने के
मलए घर िें प्रवेश करे , ऊन, रुई, अलसी, सत लेने के मलए आए या जजस वक्त उनसे सार चीजें
रखवाई जा रह हो तो इन कािों को करते सिय छोटे अचधकार उनके साथ संभोग कर
सकते हैं।
अथथ- जजस सिय ग्वामलन दह बबलो रह हो तब गवाध्यक्ष उसके साथ संभोग कर सकता है ।
अथथ- अनाथ, संन्यामसन या ववधवा जस्त्रयों से साथ सराध्यर संभोग किया कर सकता है ।
अथथ- रात के सिय नगर िें क्या चल रहा है यह पता करने के मलए पहरा दे ता हुआ
नगराध्यक्ष घिने वाल जस्त्रयों से साथ संभोग कर सकता है ।
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अथथ- िाल को खर दते या बेचते सिय बाजार का पण्याध्यक्ष बाजारू जस्त्रयों के साथ संभोग
किया कर सकता है ।
अथथ- बहुला अष्टिी, कौिुद िहोत्सव, सुवसन्तक आहद त्यौहारों के हदन जजला, तहसील या
राजधानी की रहने वाल और िहलों िें रहने वाल जस्त्रयों के साथ अक्सर संभोग कियाएं होती
रहती हैं।
अथथ- वहां पर राजा के द्वारा भेजी गई दासी उस स्त्री से बात करे जजसे िहल िें खासतौर पर
राजा के साथ संभोग किया करने के मलए जश्न के बहाने बुलाया गया हो।
अथथ- दासी को चाहहए कक उस स्त्री को िहल की सुंदर चीजों को दे खने िें लगा दें ।
अथथ- दासी को चाहहए कक उस स्त्री के घर जाकर (जो राजा के साथ संभोग किया करने के
मलए आई हो) पहले ह बता आएं कक आप जब अगल बार िहल िें आएंगी तो आपको िहल
की सुंदर और सबसे कीिती चीजें हदखाई जाएंगी।
अर्थ- िब रािा उस स्त्री के सार् संभोग नक्रया कर ले तो उसके बाद दासी को उसे यह बात समझा देनी
चाटहए नक वह इस बात को नकसी और को न कहे।
भाग 5 पारदाररक
अध्याय 6 अन्तुः पुररका वृत प्रकरि
श्लोक (1)- नान्तुः पुरािां रक्षियोगात्पुरुिसंदशथन नवद्यते पत्युिक
ै त्वादनेक-कसाधारमत्वाच्चातृप्तुः।
तस्मािानन प्रयोगत एव परस्परं रञ्ञयेयुःु ।।
अर्थ- सुरक्षा को देखते हुए रािाओ िं के महलों में बहुत ज्यादा सख्त पहरा रहता है तानक वहां पर कोई दस
ू रा
पुरूि प्रवेश न कर सके। इन महलों में एक रािा की कई राननयां रहती हैं। इसी कारि से रािा सब राननयों
की काम-उिेिना शांत नहीं कर पाता और वह राननयां आपस में ही समलैंनगकता द्वारा अपनी काम-
वासनाओ िं की पूर्तत करती हैं।
श्लोक (2)- प्रयोगमाह- धात्रेत्तयकां सखीं दासीं वा पुरूिवदलंकृत्याकृमतसंयक्
ु ै ुः कन्दमूलफलावयवैर-
पद्रयैवात्मामभप्रायं ननवतथयय
े ुःु ।।
अर्थ- राननयां धाय की पुत्री, नौकरानी या अपनी सहेली को पुरुिों की तरह कपडे आटद पहनाकर बैंगन,
मूली या गािर आटद को नकली णलग िं के रूप में बनाकर उन्हें ऊपर णलिाकर नकली प्रकार के संभोग से
अपनी काम-उिेिना को शांत करती हैं।
िं
श्लोक (3)- पुरूिप्रमतमा अयक्णलगाित्तधशयीरन्
।।
अर्थ- राननयां ऐसे पुरूिों को सिन्हें दाढी-मूंछ नहीं आई होती, को स्त्रस्त्रयों के कपडे पहनाकर अपने पास
सुलाती हैं।
अर्थ- अगर नकसी पुरूि को संभोग करने के णलए कोई स्त्री नहीं ममलती तो वह िानवरों िैसे बकरी,
कुमतया या घोडी के सार् या हस्तमैर्ुन करके अपनी काम-उिेिना को शांत करते हैं।
अर्थ- नौकराननयों के सार् रािमहल की राननयां नागरकों को भी अक्सर अपने महल में बुला लेती हैं।
अर्थ- वह उन नागरकों को रानी के पास महल में ले िाने के णलए पूरी तरह से नवश्वास टदलाती है नक इस
वक् महल में कोई नहीं है, महल में पहुच
ं ने का एक सुरंग वाला रास्ता है, पहरेदार गहरी नींद में हैं आटद।
अर्थ- अगर महल में आने का या िाने का रास्ता आसान न हो या खतरों वाला हो तो रानी के महल के भीतर
नकसी पुरूि को प्रवेश नहीं कराना चाटहए क्योंनक इससे उस पर नकसी प्रकार की नवपत्ति आ सकती है।
अर्थ- अगर नागरक को रानी के महल में िाना ही हो तो उसे पहले पता कर लेना चाटहए नक उस महल में
भागने का कोई रास्ता है या नहीं, महल के सार् बडा सा िंगल तो है न, रािा महल में तो नहीं है, पहरेदार
गहरी नींद में है या आपस में बात करने में मशरूफ है। इनके अलावा महल में प्रवेश कराने वाली रानी की
सहेली या दासी सार् में ही होनी चाटहए।
अर्थ- अगर नागरक को महल में प्रवेश कराने की सुनवधा ममलती है तो उसे वहां पर रोिाना आना-िाना
चाटहए।
श्लोक (13)- बटहि रणक्षमभरन्यदेव कारिमपटदश्य संसज्य
ृ ते ।।
अर्थ- महल में आने-िाने वाले नागरक को बातों ही बातों में महल के पहरेदारों से दोस्ती कर लेनी चाटहए।
श्लोक (14)- अन्तिाररण्यां च पररचाररकायां नवटदतार्ायां सक् मात्यानं रूपयेत।् तदलाभाच्च शोकमन्तुः
प्रवेणशनीममि दत
ू ीकल्पं सकलामचरेत।् ।
अर्थ- महल में आने-िाने वाली नकसी दासी आटद को देखकर अगर नागरक को यह महसूस होता है नक
यह मुझपर नफदा है तो उसे अपने झांसे में लेने की कोणशश नागरक को करनी चाटहए, उसपर नागरक को
झूठा प्यार िताना चाटहए, अगर वह कुछ समय तक नहीं ममलती हो नागरक को ऐसा टदखाना चाटहए नक
वह उसके गम में नकतना परेशान है। नागरक इसी तरीके को अपनाकर महल की दस
ू री दाससयों आटद को
भी अपने झांसे में लेकर उनसे दत
ू ीपन का काम ले सकता है।
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अर्थ- नागरक को अपनी सुरक्षा के मद्देनिर रािमहल में रह रहे रािा के गुतचरों को पहचान लेना चाटहए।
अर्थ- अगर दत
ू ी िा नहीं सकती तर्ा स्वीकृमत सूचक संकेत कर देती है तो नागरक को ऐसी िगह खडा
होना चाटहए िहां पर दरू से टदखाई पडता हो। अगर उसकी आंखें दत
ू ी के सार् नहीं ममलती तो उसका वहां
पर बेकार में खडा होना यर्थ है।
अर्थ- उसी स्थान पर खडे रहने से सिन पहरेदारों के सार् नागरक की दोस्ती है उन्हें उसी दत
ू ी को देखने का
बहाना कराना चाटहए।
िं
श्लोक (18)- चक्षुरन्धन्त्याममनगताकारननवे
दनम्।।
अर्थ- अगर चाहने वाली दासी आटद नागरक पर बार-बार निर गडाता है तो नागरक को भी अपने भावों
आटद को उसे टदखाना चाटहए।
शशशशश (19)- शशशश शशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशश शशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशशशशशशशश (शशशश) शशशशशशशशशश चशशशशशशशशश
शशशश- जजज जजजज जज जजज जजजजज जजजज जज जजजज जजजज जज नजरजजज जगहपर
जजजज उसजगहपर जजजजज जज जजजजज जजजजज जजजजजज जजज जजज, जजजजज जजज
जजजजज जजजजज जज जजजज जजजजजजजज पर जजजज जजजजजज जज जजजजज जज जजजजज
जजजज जजजज जजजज जजजजज जजजज जजजजज औरजजजज जजज जजज जजजज, जजजजजजज
जजजज जजजजजजज जज जजजज जजज जज जजजजजज जज जजज रखजजजज जजजजजज
शशशश- जजज, जजज जजज जजजजज जजज जजज जजजजज जजज जबजजजजजजजज जजजज-जजज
जज जजज जजज जजज जज तबजजजजजजज44books.com
जजजज जजजजज जजज जज जजज जजजज जज और
जजज जजजजजज जजज वह जजज जजजजज जज जजज जजजज करजजजज जजजज
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शशशशश (38)- शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश शशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशशश-शशशशशशशशशशशशशशशशश
शशशशशशशशशशशश