You are on page 1of 67

वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 6 वैशिकं

अध्याय 1 सिायगम्यागम्यगमन कारणचिन्ता प्रकरण

श्लोक-1. वेश्यानां पुरूषाचिगमे रततवत्तृव िश्ि सगाृत ्।।1।।

अर्ृ- वेश्याओं में धन के प्रति आकर्षण िथा संभोग की प्रकृति जन्मजाि होिी है ।

श्लोक-2. रतततः प्रवतृनं ्वाभात्तवकं कवत्रत्रममर्ाृर्म


ृ ्।।2।।

अर्ृ- वेश्याओं का धन के प्रति आकर्षण कृत्रिम होिा है और सेक्स की प्रवत्तृ ि स्वाभात्तवक होिी
है ।

श्लोक-3. तदत्तप ्वाभात्तवकवद्रप


ू येत ्।।3।।

44books.com
अर्ृ- वेश्या जहां पर बनावटी प्रेम दिखािी हैं, वह स्वाभात्तवक ही प्रिीि होिा है ।

श्लोक-4. कामपरासु हि पुंसां त्तवश्वासयोगात ्।।4।।

अर्ृ- सेक्स करने की इच्छा जजस स्िी में होिी है , आमिौर पर पुरूर् उसी स्िी के प्रति अधधक
आकत्तर्षि होिे हैं।

श्लोक-5. अलुब्ितां ि ख्यापयेि्य तनदिृनार्ृम ्।।5।।

अर्ृ- वेश्याएं पुरूर् को आकत्तर्षि करने के लिए तनिोभी बनने का दिखावा करिी हैं।
श्लोक-6. न िानुपायेनार्ाृन ् साियेदायततसंरक्षणार्ृम ्।।6।।

अर्ृ- अपना प्रभाव बनाये रखने के लिए वेश्याओं को अधधक से अधधक धन कमाने के लिए
प्रयास करना चादहए।

श्लोक-7. तनत्सयमलंकारयोचगनी राजमागाृवलोककनी दृश्यमाना न िाततत्तववत


व ा ततष्ठे त ्।
पण्यसिमृत्सवात ्।।7।।

अर्ृ- वेश्या स्िी हर समय श्ग


ंृ ार ककये रहे िथा सड़क पर आने-जाने वािे िोगों को िे खिी रहे ।
उसे ऐसी जगह पर बैठना चादहए कक िोग आसानी से िे ख सके, िेककन उसे त्रबल्कुि तनवषस्ि होकर
नहीं बैठना चादहए क्योंकक वेश्यावत्तृ ि भी बाजार में त्रबकने वािी वस्िुओं के समान है ।

श्लोक-8.यैनाृयकमावजृयेदन्याभ्याश्िावच्छिन््यादात्समनश्िानर्ं प्रततकुयाृदर्ं ि साियेत्र ि गम्यैः


पररभूयेत तान ् सिायान ् कुयाृत ्।।8।।
44books.com
अर्ृ- वेश्या को उसी व्यजक्ि को अपनी सहायिा करने वािा बनाना चादहए, जो उसके प्रेमी को
उसकी ओर आकत्तर्षि कर सके िथा उस पर आये हुए संकट को िरू कर सके। यदि वेश्या के साथ
सेक्स करने वािा व्यजक्ि उसका शोर्ण करना चाहे िो सहायिा करने वािा व्यजक्ि उसकी मिि
कर सके जजससे उसका शोर्ण न हो।

श्लोक-9. ते त्सवारक्षकपुरूषा िमाृचिकरण्र्ा दै वज्ञा त्तवक्रान्ताः िूराः समानत्तव्याः कलाग्राहिणः


पीठमदृ त्तवटत्तवदष
ू कमालाकारगाच्न्िक-िौच्ण्िकरजकनात्तपतशभक्षका्ते ि ते ि कायृयोगात ्।।9।।।

अर्ृ- शासनाधधकारी, वकीि, ज्योतिर्ी, साहसी, मािाकार, गन्धी, शराब के त्तवक्रेिा, नाई, धोबी, लभखारी
और अन्य ऐसे ही िोग वेश्या के मििगार हो सकिे हैं।
श्लोक-10. गम्यचिन्तामाि- केवलार्ाृ्त्सवमी गम्याः- ्वतंत्रः पूवे वयशस वतृमानों
त्तविवानपरोक्षवत्तव िरचिकरणवानकवछराचिगतत्तविः। संघषृवान ् सन्ततायः सुभगमातन श्लाघनकः
पण्िकश्ि पुंिब्दार्ी। समान्पिी ्वभावत्तागी। राजतन मिामात्रे वा शस्िो दै वप्रमाणो
त्तविावमानी गुरुणां िासनाततगः सजाताम ् लक्ष्यभूतः सत्तवि एक पुत्रो शलंगी प्रछिन्नकामः िूरो
वै्यश्िेतत।।10।।

अर्ृ- अधधकिर वेश्याएं उन्हीं िोगों से िेन-िे न करिी हैं, जो सामाजजक पाररवाररक बन्धनों से
मुक्ि स्विंि होिे हैं। एक बंधी हुई आमिनी वािे वरुण होिे हैं और जो व्यजक्ि अधधक धन खचष
करिे हैं, जजनके पास पैिक ृ संपत्ति हो जो स्वयं न कमाकर िस
ू रों की कमाई खचष करिे हो। इसी
िरह जजस व्यजक्ि को अपने रूप, यौवन िथा धन पर गवष हो, जो नपुंसक होकर भी अपने को
अधधक सेक्स क्षमिा से युक्ि मानिा हो, जजसकी धन िे ने की स्वाभात्तवक प्रवत्तृ ि हो, राजा और
मंिी पर जजसका प्रभाव हो, ज्योतिर्ी, आवारा मािा-त्तपिा का जो इकिौिा संिान हो। संयासी जो
वेश्या से संबंध बनाकर तछपाना चाहिा हो और शारीररक रूप से शजक्िशािी व्यजक्ियों से वेश्याएं
धन प्राप्ि करने के लिए संबंध बनािी हैं।

44books.com
श्लोक-11. प्रीततयिोऽर्ाृ ्तु गण
ु तोऽचिगम्याः।।11।।

अर्ृ- जो वेश्याएं त्तवशुद्ध प्रेम िथा यश की ख्वादहश रखिी हैं, वे वेश्याएं गण


ु ी किाकार व्यजक्ियों
से ही संबंध बनाने को महत्व िे िी हैं।

श्लोक-12. मिाकुलीनो त्तव्वान्सवृसमयज्ञः कत्तवराख्यानकुिलो वाग्मी प्रगल्भो त्तवत्तविशिल्पज्ञो


व्
व िदिी ्र्ल
ू लक्षो मिोत्ससािो दृढभच्ततरनसूयक्त्सयागी शमत्रवत्ससलो घटागोष्ठीप्रेक्षकसमाजसम्या
क्रीिनिीलो नीरुजोऽव्यंगिरीरः प्राणवानम्यपो वष
व ो मैत्रः ्त्रीणां प्रणेता लालतयता ि। न िासां
विगः ्वतंत्रवत्तव िरतनष्ठुरोऽनीष्याृलुरनविंकी िेतत नायक- गुणाः।।12।।

अर्ृ- वेश्याएं जजन गुणों के अनुसार िोगों की िरफ आकत्तर्षि होिी हैं वे गुण हैं- अधधक त्तवद्वान
होना, संकेिों को समझना, कत्तव, कहानीकार, बाि करने में चिुर, हस्िलशल्प का त्तवशेर्ज्ञ, त्तवनम्र, ऊंचे
त्तवचारों वािा, उत्साही सम्पन्निा, दृढ़ प्रतिज्ञ, िस
ू रों की तनंिा न करने वािा, त्यागी, शारीररक और
मानलसक रूप से स्वस्थ, इकहरा बिन, नशीिी वस्िुओं से नफरि करने वािा, प्रचंड वेग, ियावान,
जस्ियों के सिाचार के समथषक िथा पािक जस्ियों के वशीभूि न होना, स्विंि वत्तृ ि, ईर्षयाषरदहि
िथा तनभषयिा आदि।

श्लोक-13. नातयकायाः पुना रूपयौवनलक्षणमािय


ु य
ृ ोचगनी गुणेष्वनुरतता न तर्ार्ेषु प्रीततसंयोगिीला
च््र्रमततरे कजातीया त्तविेषाचर्ृनी तनत्सयमकदयृवत्तव िगोष्ठीकलात्तप्रया िेतत नातयकागुणाः।।13।।

अर्ृ- इस श्िोक के अंिगषि सुंिर िड़ककयों के बारे में जानकारी िी गयी है जो तनम्न हैं- सुंिर
चेहरा, त्तप्रय, रूप, यौवन, माधय
ु स
ष ंपन्निा, प्रेमी के गुणों पर मोदहि होना न कक धन पर, सेक्स की
इच्छा करने वािी, जस्थर बुद्धध, गुणों पर आकत्तर्षि होने वािी, पतिव्रिा और त्तवलभन्न सम्मेिनों
िथा किाओं से प्यार करने वािी हो।

श्लोक-14. नातयका पुनर््


ुृ चििीलािार आजृवं कवतज्ञता दीघृदरू दशिृत्सवं अत्तवसंवाहदता दे िकालज्ञता
नागरकता दै न्याततिासपैिन्
ु यपररवादक्रोिलोभ ्तम्भ िापल वजृनं पूवाृशभभात्तषता कामसूत्र कौिलं
तदं गत्तव्यासु िेतत सािारणगुणाः।।14।।
44books.com
अर्ृ- इस श्िोक के अंिगषि प्रेमी िथा प्रेलमका िोनों के सामान्य गुणों के बारे में जानकारी िी
गयी है जो तनम्न हैं- बुद्धधशीििा, आचरण, त्तवनम्रिा, कृिज्ञिा, िरू िलशषिा, वाि-त्तववाि से िरू रहना,
सही समय और सही जगह को पहचानना, लशर्षटाचार गण
ु यक्
ु ि िथा याचना, तनर्षप्रयोजन हास्य,
चग
ु िखोरी, तनन्िा, क्रोध, िािच, अलभमान िथा चंचििा आदि बरु ाइयों से िरू रहना और जब िक
कोई कुछ न पछ
ू े िब िक चप
ु रहना, कामशास्ि के कौशिों और कामसि
ू की अंगभि
ू त्तवद्याओं के
बारे परू ी जानकारी होना। ये सभी गण
ु प्रेमी और प्रेलमकाओं के हैं।

श्लोक-15. गण
ु ात्तवपयृये दोषाः।।15।।

अर्ृ- उपयक्
ुष ि गुणों से रदहि होने पर वही प्रेमी और प्रेलमका के िोर् हो जािे हैं।
श्लोक-16. क्षयी रोगी कवशमिकव्वायसा्यः त्तप्रयकलत्रः परुषवातकदयो तनघण
ृ व ो गुरुजनपररत्सयततः
्तेनो दम्भिीलो मूलकमृणण प्रसततो मानापमानयोरनपेक्षी ्वेष्यैरप्यर्ृिायो तनलृज्ज
इत्सयगम्याः।।16।।

अर्ृ- टी.बी. के रोगी, कुर्षठ रोगी, पेट के कीड़े का रोगी जजसके मुख से बिबू आिी हो, पत्नीवि
ृ ,
कड़वे वचन बोिने वािा, िरु ाचारी, तनिष यी, मािा-त्तपिा के द्वारा घर से तनकािे हुए, चोर, िम्भी
(कपटी), जािग
ू र, मान-अपमान की परवाह न करने वािा, िािच में िश्ु मनों से लमि जाने वािा
िथा शमष-संकोच न करने वािा आदि गुणों वािे िोगों से वेश्या को सेक्स संबंध नहीं बनाने
चादहए।

श्लोक-17. रागो भयमर्ृः संघषों वैरतनयाृतनं च्जज्ञासा पक्षः खेदो िमोयिोऽनुकंपा सुहृ्वातयं िीः
त्तप्रयसा्दश्यं िन्यता रागापनयः साजात्सयं सािवेश्यं सातत्सयमायततश्ि गमनकारणातन
भवन्तीत्सयािायाृः।।17।।

अर्ृ- भय, प्रेम, अथष, िड़ाई-झगड़ा िथा बििे की भावना, पक्षपाि, िुःु ख, धमष, प्रलसद्ध, अनक
ु म्पा,
शमष-संकोच, प्रेमी के अनुरूप होना, धनी, तनस्िे ज रदहि, सजािीयिा, साथ रहना िथा प्रभाव- आदि
44books.com
सभी गण
ु समागम के कारण होिे हैं।

श्लोक-18. अर्ोंऽनर्ृप्रतीघातः प्रीततश्िेतत वात्स्यायनः।।18।।

अर्ृ- आचायष वात्स्यायन के अनुसार- धमष िथा अनथष की हातन व प्रेम ही समागम के कारण
होिे हैं।

श्लोक-19. अर्ृ्तु प्रीत्सया न र्ाचितः। अ्य प्रािान्यात ्।।19।।

अर्ृ- जहां पर प्रेम िथा धन िोनों हों वहां प्रेम को छोड़कर धन के बारे में सोचना चादहए।
श्लोक-20. भयाहदषु तु गुरुलाघवं परीतक्ष्यशमतत सिागम्यागम्य (गमन) कारणचिन्ता।।20।।

अर्ृ- डर आदि के जो गमन के कारण पहिे सूि के अंिगषि बिाएं गये हैं, उसमें से गुरुिा
(महत्व) िथा िाघव (तनरािर) परीक्षा कर िेनी चादहए। सहाय, गम्य, अगम्य िथा गमन के कारणों
पर त्तवचार पर समाप्ि हुआ।

श्लोक-21. उपमच्न्त्रतात्तप गम्येन सिसा न प्रततजातनत ्। पुरूषाणां सुलभावमातनत्सवात ्।।21।।

अर्ृ- सेक्स करने की इच्छा के वशीभूि होकर पुरूर् यदि सेक्स करने के लिए बुिाए िो ऐसी
जस्थति में वेश्या को िुरन्ि ही सेक्स करने के लिए नहीं जाना चादहए क्योंकक पुरुर्ों की आिि
होिी है कक जो वस्िु उन्हें आसानी से प्राप्ि हो जािी है उसकी ओर उनका ध्यान नहीं जािा है
और जो वस्िु िि
ु भ
ष होिी है , उसे वे प्राप्ि करने की कोलशश करिे हैं।

श्लोक-22. भावच्जज्ञासार्ृ पररिारकमुखान्समवािकगायन वैिाशसकान्गम्ये तद्रततान्वा


प्रणणदध्यात ्।।22।।
44books.com

अर्ृ- वेश्या को यदि अपने प्रेमी के भावों की परीक्षा करनी हो िो वेश्या को अपने पैर िबाने के
लिए नौकर, गाना सुनने के लिए गायक िथा त्तविर्
ू क आदि प्रमुख सेवकों की तनयुजक्ि करनी
चादहए।

श्लोक-23. तदभावे पीठमदाृदीन ्। तेभ्यो नायक्य िोिािौिं रागापरागौ सततासततातां दानादाने ि


त्तव्यात ्।।23।।

अर्ृ- यदि उपयक्


ुष ि त्तवश्वस्ि सेवक ककसी कारणवश न लमि पायें िो उसके अभाव में वेश्या
पीठमिष (वेश्या का सहायक) की तनयजु क्ि करे , उसके द्वारा अपने प्रति प्रेमी की सोच, राग-त्तवराग,
शजक्ि और कमजोरी, िान-कंजस
ू ी आदि बािों की जानकारी प्राप्ि कर िेनी चादहए।
श्लोक-24. संभात्तवतेन ि सि त्तवटपुरोगां योजयेत ्।।24।।

अर्ृ- जजसमें अपनी चाहि की बािों की संभावना हो, उसके साथ त्तवटं (त्तविर्
ू क) को तनयुक्ि कर
िे ना चादहए।

श्लोक-25. लावककुतकुटमेषयु्ििुकिाररकाप्रलापनप्रेक्षणककलाव्यपदे िन
े पीठमदो नायकं त्यां
उदवशसतमानयेत ्।।25।।

अर्ृ- वेश्या के द्वारा तनयुक्ि ककये गये पीठमिष (वेश्या का सहायक) को चादहए कक वह िवा,
मु ु्गाष, मेढा की िड़ाई दिखाने के बहाने या िोिा-मैना की बािें सुनने के लिए, कोई खेि-िमाशा
आदि िे खने के लिए और नत्ृ य-संगीि आदि िे खने के बहाने वेश्या के प्रेमी को उसके घर िाये।

श्लोक-26. तां वा त्य ्।।26।।

अर्ृ- अथवा वेश्या को ही44books.com


उसके प्रेमी के घर पर िे जाना चादहए।

श्लोक-27. आगत्य प्रीततकौतुकजननं ककंचि्दव्यजातं ्वयशमदमसािारणो-प्रभोग्यशमतत प्रीततदायं


द्यात ्।।27।।

अर्ृ- यहद पुरूर् वेश्या के घर आये िो उसे वेश्या को ऐसी वस्िुएं िे नी चादहए जो िे खने में
आश्चयषजनक और उत्सुकिा बढ़ाने वािी हों।

श्लोक-28. यत्र ि रमते तया गोष्ठयैनमुपिारै श्ि रञ्जयेत ्।।28।।

अर्ृ- और जजस स्थान पर पुरूर् का मन बहििा हो उसी स्थान पर वेश्या उधचि साधनों, उपायों
द्वारा उसका मनोरं जन करें ।
श्लोक-29. गते ि न सपररिासप्रलापां सोपायनां पररिाररकामभीक्ष्णं प्रेषयेत ्।।29।।

अर्ृ- वेश्या के घर से जब उसका प्रेमी चिा जाए िो वह वेश्या मुस्कराकर बोिने वािी िासी के
हाथ कुछ प्रेमोपहार िे कर नायक के पास भेजे। इस प्रकार उपहार भेजिे रहने का क्रम िब िक
जारी रखना चादहए जब िक कक प्रेमी उसके घर न आ जाए।

श्लोक-30. सपीठमदाृयाश्ि कारणापदे िन


े ्वयं गमनशमतत गम्योपावतृनम ्।।3।।

अर्ृ- यदि आवश्यकिा हो िो वेश्या को पीठमिष (वेश्या का सहायक) के साथ स्वयं ही प्रेमी के घर
पर जाना चादहए। वेश्या के द्वारा प्रेमी को अपनी ओर झुकाने का प्रकरण यही समाप्ि होिा है ।

श्लोक-31. भवच्न्त िात्र श्लोकाः- ताम्र्ूलातन ्त्रजश्िैव सं्कवतं िानुलेपनम ्। आग्त्यािरे त्सप्रीत्सया
कलागोष्ठीश्ि योजयोत ्।।31।।

अर्ृ- इसके संबंध में प्राचीन श्िोक है - सुस ंस्कृि पान, सुसंस्कृि मािा, सुसंस्कृि चंिन, सुसंस्कृि
44books.com
परफ्यूम आदि आये हुए प्रेमी को प्रेमपूवक ष िे ना चादहए िथा किा और अन्य कायषक्रमों का
आयोजन करें ।

श्लोक-32. द्रव्याणण प्रणये द्यात्सकुयाृछि पररवतृनम ् संप्रयोग्य िाकूतं तनजेनैव प्रयोजयेत ्।।32।।

अर्ृ- प्यार को बढ़ाने के लिए धन का आिान-प्रिान करें िथा सेक्स के गुप्ि संकेिों को वेश्या
स्वयं ही प्रकट करे ।

श्लोक-33. प्रीततदायैरुपन्यासैरुपिारै श्ि केवलैः। गम्येन सि संसप्व टा रञ्जयेिं ततःपरम ्।।33।।

अर्ृ- वेश्या को प्रेम-उपहार से पीठमिष (वेश्या का सहायक) आदि की बािों को आराम से सुनकर
िथा प्रेमसूचक भावों से प्रेमी को भाव-त्तवभोर करके ही उसके साथ सेक्स करना चादहए।
इससे पहिे के प्रकरणों में पत्नी, पराई स्िी िथा पुनभू-ष इन िीनों की िरह ही प्रेलमकाओं के
साथ सेक्स करने के बारे में जानकारी िी गयी है । इसके अंिगषि वेश्याओं के साथ सेक्स करने के
उपाय त्तवस्िार से दिये जा रहे हैं।
आचायष वात्स्यान ने स्पर्षट ककया है कक जब ककसी पुरूर् पर वेश्याएं प्रेम प्रकट करिी हैं िो
उनके उस प्रेम में धन का िािच तछपा हुआ होिा है । वेश्याएं धन के िािच में आकर पुरूर् को
अपने हाव-भाव से इिना अधधक सम्मोदहि कर िेिी हैं कक वह समझ नहीं पािा है कक उसका
उस पर जो प्रेम है वह कोरा और बनावटी है । जब ककसी पुरूर् को वेश्या अपने जाि में फंसाना
चाहिी है िो सबसे पहिे वह अपने ििािों से सहायिा मांगिी है। वेश्या के ये सहायक ििाि
वेश्या के गण
ु ों की िारीफ करके परु
ु र्ों को आकत्तर्षि करने की कोलशश करिे हैं।
वात्स्यायन के अनस
ु ार वेश्या को ऐसे िोगों से िरू रहना चादहए जो रोगी होिे हैं क्योंकक रोगी
का शरीर सेक्स करने िायक नहीं होिा है । इसके अिावा वेश्या को उन िोगों से िरू रहना चादहए
जोकक पत्नीवि
ृ होिे हैं। इसका कारण यह है कक ऐसा व्यजक्ि िस
ू री जस्ियों की िि
ु ना मां-बहनों
से करिा है । यदि वेश्या उसे फंसाने की कोलशश करिी है िो यह धमष के त्तवरुद्ध होिा है । इसके
साथ ही जो कटुभार्ी, तनिष यी, अपने नौकरों को िुःु खी करके धन एकि करिा हो अथवा िांत्रिक
हो। ऐसे िोगों से भी वेश्या को िरू रहना चादहए क्योंकक ऐसे िोगों पर वेश्या का कोई भी चक्कर
नहीं चि सकिा है । ऐसे िोगों से वेश्या को धन की उम्मीि भी नहीं रखनी चादहए।
सेक्स की िीव्र इच्छा को ही मुख्य वासना माना गया है । वात्स्यायन के अनुसार अथष, अनथष की
हातन िथा प्रेम यही िीन कारण होिे हैं जजनके वशीभूि होकर पुरूर् वेश्याओं के पास जािा है ।
44books.com
कुछ आचायों के अनुसार वासनाएं अनेक हैं िथा वे मन की ऐसी रीतियां हैं जो जानवरों िथा
व्यजक्ियों में एक िरह से प्रकट होिी हैं। जजसका प्रतिवेिन सभी प्राणी अनजाने में ही करिे रहिे
हैं।
वात्यस्यान की िस
ू री बाि यह है कक वेश्याएं धन के िािच से पुरुर्ों को सेक्स के लिए
आकत्तर्षि करिी हैं। वासनाएं अिग-अिग प्रकार की होिी हैं और प्रत्येक वासना का अध्ययन भी
अिग-अिग दृजर्षटकोण से ककया जािा है , क्योंकक सभी वासना में कुछ त्तवशेर् अंश पाये जािे हैं।
वासना की मूि प्रवत्तृ ि की अवस्थाएं होिी हैं- 1. वेग 2. उद्िे श्य 3. त्तवर्य 4. आश्य स्थान। सभी
वासनाओं का सार ही वेग कहिािा है । इस वेग की िीव्रिा िथा कोमििा की पहचान सावधानी
से करनी चादहए।
जजस वस्िु के द्वारा वासना अपनी िजृ प्ि पूरी करिी है । उसे त्तवर्य कहिे हैं। कभी-कभी ऐसा
भी होिा है कक वासना अपनी िजृ प्ि के रास्िे को छोड़कर अन्य त्तवर्यों को भी ग्रहण कर िेिी है ,
िेककन जजस संबंध को बनाने से िजृ प्ि लमििी है । उसे वासना त्तवर्य कहा जािा है । वेश्याएं सज-
संवरकर जब शीशे के सामने खड़ी होकर अपने जजस अंग को त्तवशेर् रुधच िथा सिषकिा के िे खिी
और संवारिी हैं। वही अंग उनकी वासना का त्तवर्य होिा है ।
इति श्ीवात्स्यायनीये कामसूिे वैलशके र्र्षठे ऽधधकरणे सहायगम्यागम्यधचंिा गमनकारणं
गम्योपाविषनं नाम प्रथमोऽध्याय।

वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 6 वैशिकं

अध्याय 2 कान्तानुवुत प्रकरण

श्लोक-1. संयुतता नायकेन तद्रञ्जनार्ृमेकिाररणीवि


व मनुततष्ठे त ्।।1।।

अर्ृ- वेश्या जब भी ककसी पुरूर् के साथ सेक्स संबंध बनाये िो वेश्या को उसी पुरूर् की पत्नी
बनकर रहना चादहए।

श्लोक-2. रञ्जयेन्न तु सञ्जेज सततवछि त्तविेष्टे तेतत संक्षेपोच्ततः।।12।।


44books.com
अर्ृ- वेश्या का संक्षक्षप्ि चररि यह है कक उसे अपने प्रेमी पर मोदहि न होकर उसे आसक्ि के
समान व्यवहार करना चादहए।

श्लोक-3. मातरर ि क्रूरिीलायामर्ृपरायां िायिा ्यात ्।।3।।

अर्ृ- अधधक िोभी िथा क्रूर आचरण वािी मां के अधीन वेश्या को रहना चादहए।

श्लोक-4. तदभावे मातक


व ायाम ्।।4।।

अर्ृ- यदि वेश्या की सगी मां न हो िो जजसे उसने अपनी मां मान रखा है उसके अधीन ही उसे
रहना चादहए।
श्लोक-5. सा तु गम्येन नाततप्रीयेत।।5।।

अर्ृ- चाहे वेश्या की सगी मां हो अथवा मानी गयी मां हो- िोनों वेश्यापुिी पर मोदहि व्यजक्ि के
साथ अधधक प्रेम प्रिलशषि नहीं करिी हैं क्योंकक अधधक प्रेम प्रिलशषि से नुकसान भी हो सकिा है ।

श्लोक-6. प्रसह्य ि दहु ितरमानयेत ्।।6।।

अर्ृ- मां को चादहए कक लमिने वािे के साथ अपनी पुिी को अधधक िे र िक न बैठने िे ।

श्लोक-7. तत्र तु नातयकायाः संततमरतततनृवेदो व्रीिा भयं ि।।7।।

अर्ृ- यदि वेश्या की मां उपरोक्ि व्यवहार करे िो वेश्या को अपने प्रेमी के सामने जाने में
अरुधच, डर िथा शमष प्रिलशषि करना चादहए।

44books.com
श्लोक-8. न त्सवेव िासनाततवत्तव िः।।8।।

अर्ृ- वेश्यापुिी को अरुधच, डर िथा संकोच को प्रिलशषि करिे हुए भी मां के आिे श का पािन
करना चादहए।

श्लोक-9. व्याचिृ िैकमतनशमिमजुगुच्प्सतमतिक्षुग्राृमतनत्सयं ि ख्यापयेत ्।।9।।

अर्ृ- वेश्यापि
ु ी को जब प्रेमी के पास से उठकर जाना हो िो उसे चादहए कक वह कोई ऐसी बीमारी
का बहाना बनाये जोकक तनजन्िि न हो िथा अचानक हो जाने वािी और अधधक दिनों िक
िगािार न रहने वािी हो।
श्लोक-10. सतत कारणे तदपदे िं ि नायकानशभगनम ्।।10।।

अर्ृ- जजस समय प्रेमी आया हो िथा उसके लमिने का कारण भी मौजूि हो कफर भी यदि वेश्या
उससे न लमिना चाहे िो उसे कोई न कोई बहाना कर िे ना चादहए।

श्लोक-11. सतत कारणे तदपदे िं ि नायकानशभगनम ्।।10।।

अर्ृ- वेश्यापुिी को अपने प्रेमी से न लमिने का िस


ू रा बहाना यह है कक प्रेमी के आ जाने पर
वेश्या को उसके पास स्वयं न जाकर नौकरानी से पान, इिायची आदि भेज िे ना चादहए।

श्लोक-12. व्यवाये तदप


ु िारे षु त्तव्मयः।।12।।

अर्ृ- सेक्स के समय में प्रेमी जो भी चीज वेश्या को खाने के लिए िे । िो वेश्या को उसे िेकर
खा िेना चादहए, कफर कहना चादहए कक इससे अच्छी चीज उसने कभी भी नहीं खायी थी।

44books.com

श्लोक-13. ितुःषष्टयां शिष्यत्सवम ्।।13।।

अर्ृ- वेश्या को सेक्स करने के समय सेक्स किाओं से अंजान बनकर रहना चादहए। इसके साथ
ही उसे प्रेमी से कहना चादहए कक मुझे सेक्स के बारे में कुछ भी नहीं मािूम है जैसा आप कहें गे,
मैं वैसा ही करुं गी।

श्लोक-14. ितुःषष्टयां शिष्यत्सवम ्।।14।।

अर्ृ- वेश्या को सेक्स के िौरान प्रेमी के द्वारा बिाये गये आसनों का ही प्रयोग करना चादहए।

श्लोक-15. तत्ससात्सम्यद्रिशस वत्तव िः।।15।।

अर्ृ- अकेिे में प्रेमी के अनुकूि ही व्यवहार करना चादहए।


श्लोक-16. मनोरर्ानामाख्यानम ्।।16।।

अर्ृ- वेश्या को अकेिे में अपने प्रेमी से यह भी कह िे ना चादहए कक मेरी िो इच्छा है कक आप


राि भर मेरे साथ सेक्स करिे रहें ।

श्लोक-17. गुह्यानां वैकवतवछ


व िादनम ्।।17।।

अर्ृ- वेश्या के प्रजनन अंगों में यदि ककसी भी प्रकार का त्तवकार हो िो उसे तछपाकर रखना
चादहए।

श्लोक-18. ियने परावि


व ्यानुपेक्षणम ्।।18।।

अर्ृ- वेश्या से लमिने आया हुआ प्रेमी जजस करवट की ओर सो रहा हो, उसके मुंह की िरफ
अपना मुंह करके वेश्या को िेटना चादहए। जजससे आसजक्ि प्रकट हो सके।

44books.com

श्लोक-19. आनुलोम्यं गुह्य्पिृने।।19।।

अर्ृ- यदि प्रेमी सेक्स के समय गुप्िांगों को स्पशष करे िो वेश्या को उसका त्तवरोध नहीं करना
चादहए। बजल्क उसे उत्सादहि करना चादहए।

श्लोक-20. सुप्त्य िम्


ु र्नमाशलंगनं ि ।।20।।

अर्ृ- वेश्या को चादहए कक वह सोये हुए प्रेमी का चब


ंु न और आलिंगन करे ।
श्लोक-21. प्रेक्षणमन्यमन्क्य। राजमागे ि प्रासाद्र्ाया्तत्र त्तवहदताया व्रीिा िाठयनािः।।21।।

अर्ृ- वेश्या को चादहए कक वह अपने प्रेमी को जािे हुए िे खे। जब वह अधधक िरू िक चिा जाए
िो उसे छि पर जाकर िे खे। यदि प्रेमी की नजर उस पर पड़ जाए िो उसे शमष से नजरें झुका
िेनी चादहए। यदि वह शमाषिी है िो इससे बनावटी प्रेम प्रकट होगा।

श्लोक-22. त््वेष्ये ्वेष्यता। तच्त्सप्रये। तद्रम्ये रततः। तमनु िषृिोकौ। ्त्रीषु च्जज्ञासा।
कोपश्िादीघृः।।22।।

अर्ृ- अपने प्रेमी के िश्ु मनों से िश्ु मनी रखें । उसके प्रेमी से प्रेम से करें , जब उसकी सेक्स की
इच्छा हो िो सेक्स करें । जब वह प्रसन्न हो िो प्रसन्न हो जाएं और जब वह िख
ु ी हो िो उसे भी
िुःु खी हो जाना चादहए। जस्ियों के बारे में जानने की कोलशश करें िथा गुस्सा करे िो थोड़ी िे र
िक हो।

श्लोक-23. ्वकवतेष्वत्तप नखदिृनचिन्िे ष्वन्यािंका।।23।।


44books.com

अर्ृ- प्रेमी के अंगों पर स्वयं अपने िांिों िथा नाखन


ू ों से काटकर तनशान बना िें और िस
ू रे दिन
ककसी और के तनशान होने की शंका करें ।

श्लोक-24. अनुराग्याविनम ्।।24।।

अर्ृ- वेश्या को अपने मुंह से अनुराग प्रकट नहीं करना चादहए।

श्लोक-25. आकारत्तु दिृयेत ्।।25।।

अर्ृ- भाव-भंधगमाओं से अनुराग व्यक्ि करें ।


श्लोक-26. मद्वप्नव्याचिषु तु तनवाृिनम ्।।26।।

अर्ृ- प्रेमी के आने पर उसे सोने का अथवा बेहोशी का बहाना करके यह प्रकट करने की कोलशश
करनी चादहए कक िुम्हारे न लमिने से हमारी यह जस्थति हुई है ।

श्लोक-27. श्लाघ्यानां नायककमृणां ि।।27।।

अर्ृ- इसी प्रकार के बहानों से प्रेमी के अच्छे कायों को भी कहे ।

श्लोक-28. तच््मन्रुवाणे वातयार्ृग्रिणम ्। तदविायृ प्रिंसात्तवषये भाषणम ्। त्वविायृ प्रसंसात्तवषये


भाषणम ्। त्वातय्य िोिरे ण योजनम ्। भच्ततमांश्िेत ्।।28।।

अर्ृ- वेश्या को अपने प्रेमी की बािों का अथष समझना चादहए िथा उसका तनश्चय करके उसकी
प्रसंसा करें । प्रसंगाि त्तवर्यों पर बहस करें । उसकी बाि का जवाब उस जस्थति में िें कक जब कक
जान जाये कक यह स्नेहशीि है । 44books.com

श्लोक-29. कर्ा्वनुवत्तव िरन्यत्र सपत्सन्याः।।29।।

अर्ृ- केवि सौिनों की ही बाि छोड़कर प्रेमी की हर बाि पर हां पर हां करनी चादहए।

श्लोक-30. तनःश्वासे जच्व म्भते ्खशलते पततते वा त्य िाततृमािंसीत ्।।30।।

अर्ृ- प्रेमी के उसांसे भरने पर, पैसा-रुपया भि


ू जाने पर या कहीं पर भी धगरने पर िुःु ख प्रकट
करना चादहए।
श्लोक-31. क्षुतव्याह्वतत्तवच््मतेषु जीवेत्सयुदािरणम ्।।31।।

अर्ृ- प्रेमी के छींकने पर, कोई आश्चयषजनक बाि कहने पर िथा आश्चयष प्रकट करने पर जीिे
रहो कहना चादहए।

श्लोक-32. दौमृ्ये व्याचिदौहृृदापदे िः।।32।।

अर्ृ- प्रेमी के मन को िुःु खी िे खकर उसके िुःु ख का कारण पूछना चादहए। जब प्रेमी कुछ बिाये
िो उससे िुरंि ही कहे कक यह बीमारी िो मुझे बहुि दिनों से है ।

श्लोक-33. गुणतः पर्याकीतृनम ्।।33।।

अर्ृ- प्रेमी के सामने ककसी भी िस


ू रे व्यजक्ियों के गुणों की िारीफ न करें ।

44books.com
श्लोक-34. न तनंदा समानदोष्य।।34।।

अर्ृ- और जजसमें प्रेमी के समान िोर् हो उसकी तनंिा भी नहीं करनी चादहए।

श्लोक-35. दत्य िारणम ्।।35।।

अर्ृ- यदि प्रेमी ने वेश्या को कोई चीज उपहार में िी है िो उसके द्वारा उपहार िी गयी चीज का
उपयोग वेश्या को उसके सामने ही करना चादहए।

श्लोक-36. वर्
व ापरािे त्यसने वालंकार्याग्रिणमभोजनं ि।।36।।

अर्ृ- प्रेमी के द्वारा झूठा इल्जाम िगाने पर या प्रेमी पर ककसी भी प्रकार की कोई मुसीबि आ
जाने पर उसे भोजन िथा श्ग
ं ृ ार का त्याग कर िे ना चादहए।
श्लोक-37. त्युतताश्ि त्तवलापाः।।37।।

अर्ृ- उसे जोर-जोर से त्तविाप करके रोना चादहए।

श्लोक-38. तेन सि दे िमोक्षं रोियेद्राजतन तनच्ष्क्रयं ि।।38।।

अर्ृ- प्रेमी से कहना चादहए कक मुझे अपने साथ िेकर िस


ू रे िे श चिो, राज्य शासन को जुमाषना
िे कर मुझे रख िो अथवा चप
ु चाप भगा िे चिो।

श्लोक-39. सामर्थयृमायुष्तदवाप्तौ।।39।।

अर्ृ- उसे प्रेमी से यह कहना चादहए कक िम्


ु हारे लमिने से ही मेरा जीवन सफि हो गया।

श्लोक-40. त्यार्ाृगमेऽशभप्रेतशस्िौ44books.com
िरीरोपिये वा पव
ू स
ृ ंभात्तषत इष्टदे वतोपिारः।।40।।

अर्ृ- प्रेमी को धन की प्राजप्ि होने पर, इजच्छि वस्िु की प्राजप्ि होने पर और शारीररक रोग के
नर्षट हो जाने पर िे वी-िे विाओं की पूजा-अचषना करनी चादहए।

श्लोक-41. तनत्सयमलंकारयोगः। पररशमतोऽभ्यविारः।।41।।

अर्ृ- वेश्या को हमेशा साज-श्ग


ंृ ार ककये रहना चादहए िथा संिलु िि भोजन करना चादहए।

श्लोक-42. गीते ि नामगोत्रयोग्रृिणम ्। ग्लान्यामरु शस ललाटे ि करं कुवीत ्। तत्ससख


ु मप
ु लम्य
तनद्रालाभः।।42।।

अर्ृ- एकचाररणी वेश्या जब भी गाना गाये िो गाने में प्रेमी का नाम िथा गोि रखना चादहए।
यदि ित्रबयि खराब हो िो प्रेमी के हाथों को अपने माथे िथा दिि पर रख िे। उसके हाथ के
स्पशष के बहाने सो जाया करे ।
श्लोक-43. उत्ससंगे िा्योपवेिनं ्वपनं ि। गमनं त्तवयोगे।।43।।

अर्ृ- वेश्या को प्रेमी की गोि पर बैठ जाना चादहए और कभी-कभी सो भी जाना चादहए, यदि कहीं
एक साथ जा रहे हो िो उसे प्रेमी के पीछे -पीछे चिना चादहए।

श्लोक-44. त्मात्सपुत्राचर्ृनी ्यात ्। आयुषो नाचितयशमछिे त ्।।44।।

अर्ृ- उसे अपने प्रेमी से पुि िाभ की इच्छा करे िथा उससे पहिे मर जाने की इच्छा करें ।

श्लोक-45. एत्यात्तवज्ञातमर्ृ रिशस न रूयात ्।।45।।

अर्ृ- प्रेमी को जजस धन के बारे में जानकारी हो उसका रहस्य अकेिे में नहीं बिाना चादहए।

श्लोक-46. व्रतमप
ु वासं िा्य तनवृतेयेत 44books.com
् मतय दोष इतत। अितये ्वयमत्तप तद्रप
ू ा ्यात ्।।46।।

अर्ृ- इसका िोर्ी मुझे माना जाएगा यह कहकर उसे उपवास करने की सिाह िें । यदि वह न
माने िो उसके साथ स्वयं भी उपवास करें ।

श्लोक-47. त्तववादे तेनाप्यितयशमत्सयर्ृतनदे िः।।47।।

अर्ृ- ककसी िस
ू रे के साथ झगड़ा होने पर उसे यह कहना चादहए कक इसे िो उसका प्रेमी ही परू ा
कर सकिा है ।

श्लोक-48. तदीयमात्सयमीयं वा ्वयमत्तविेषेण पश्येत ्।।48।।

अर्ृ- अपने प्रेमी की धन संपत्ति को अपने धन के समान ही समझना चादहए।


श्लोक-49. तेन त्तवना गोष्ठयादीनामगमनशमतत।।49।।

अर्ृ- ककसी भी गोर्षठी (कायषक्रम, सम्मेिन) में जाना हो िो प्रेमी के साथ ही जाएं।

श्लोक-50. तनमाृल्यिारणे श्लाघा उच्छिष्टभोजने ि।।50।।

अर्ृ- उसे प्रेमी की उिारी गयी वस्िुओं को पहनने िथा उसका झूठा खाना खाने में अपना गौरव
महसूस करना चादहए।

श्लोक-51. कुलिीलशिल्पजाततत्तव्यावणृत्तविदे िशमत्रगुणवयोमािर्य


ु प ृ ूजा।।51।।

अर्ृ- अपने प्रेमी के वंश, शीि, लशल्प, जाति, त्तवद्या, रं ग, रूप, धन, तनवास स्थान, लमि, गरू
ु , अवस्था
िथा मधरु िा की प्रशंसा करनी चादहए।

44books.com
श्लोक-52. गीताहदषु िोदनमशभज्ञ्य।।52।।

अर्ृ- यदि प्रेमी को गाना गाना आिा हो िो उसे गाना सुनाने के लिए कहना चादहए।

श्लोक-53. भयिीतोष्णवषाृण्यनपेक्ष्य तदशभगमनम ्।।53।।

अर्ृ- प्रेमी के यहां अलभसार (लमिन) के लिए जाना हो िो गमी, जाड़ा िथा वर्ाष की परवाह नहीं
करनी चादहए।

श्लोक-54. स एवं ि मे ्याहदत्सयौध्नृदेहिकेषु विनम ्।।54।।

अर्ृ- उसे प्रेमी से यह कहना चादहए कक अगिे जन्म में भी मुझे िुम पति के रूप में लमिो।
श्लोक-55. त्त्तवष्टरसभाविीलानुवतृनम ्।।55।।

अर्ृ- प्रेमी को जो रस, भाव िथा शीि रुधचकारी हो, उसी का उसे अनुसरण करना चादहए।

श्लोक-56. मूलकमाृशभिंका।।56।।

अर्ृ- प्रेमी के ऊपर जाि-ू टोने का शक करें ।

श्लोक-57. तदशभगमने ि जनन्या सि तनत्सयो त्तववादः।।57।।

अर्ृ- प्रेमी से लमिने के लिए मां से रोजाना झगड़ा करना चादहए।

श्लोक-58. र्लात्सकारे ण ि य्यन्यत्र तर्ा नीयेत तदा त्तवषमनिमनं ि्त्रं रज्जशु मतत
कामयेत ्।।58।।
44books.com

अर्ृ- यदि मां जबिष स्िी ककसी से सेक्स करने के लिए कहे िो उसे कहना चादहए कक मैं जहर खा
िूंगी, फांसी िगा िूंगी या चाकू मार िूंगी।

श्लोक-59. प्रत्सयायनं ि प्रणणचिशभनाृयक्य। ्वयं वात्समनो वत्तव िग्रिणम ्।।59।।

अर्ृ- एकचाररणी वेश्या के बारे में यदि प्रेमी को पिा चि जाए कक वह िस


ू रे िोगों से भी संबंध
बनािी है िो वेश्या को उसे यह बिा िे ना चादहए कक यह कायष वह अपनी मां के कारण करिी है ।
यदि उनके समझाने पर उसे यकीन न हो िो स्वयं उसके सामने वेश्यावत्तृ ि की तनंिा करनी
चादहए।
श्लोक-60. न त्सवेवार्ेषु त्तववादः।।60।।

अर्ृ- त्तवशेर् प्रेमी को छोड़कर अन्य िस


ू रे से सहवास कराने में मां से भिे ही त्तववाि हो, िेककन
उससे धन के बारे में कभी-भी बहस न करें । मां उसे जजस ककसी के पास भी सेक्स करने के लिए
भेजे। उसे वहां जा करके उस व्यजक्ि को खश
ु करके अधधक से अधधक धन प्राप्ि करने की
कोलशश करनी चादहए।

श्लोक-61. मात्रा त्तवना ककंचित्र िेष्टे त।।61।।

अर्ृ- वेश्या को अपनी मां से आज्ञा लिए बगैर कोई भी कायष नहीं करना चादहए।

श्लोक-62. प्रवासे िीघ्रागमनाय िापदानम ्।।62।।

अर्ृ- एकचाररणी वेश्या का प्रेमी यदि ककसी कारणवश िस


ू रे प्रिे श जाने िगे िो वेश्या को उससे
कहना चादहए कक- िुम्हे मेरी सौगंध, िुम शीघ्र ही घर िौटकर आना।
44books.com

श्लोक-63. प्रोत्तषते मज
व ातनयमश्िालंकार्य प्रततषेिः। मंगलं त्सवपेक्ष्यम ्। िारयेत ्।।63।।

अर्ृ- प्रेमी के परिे श जाने के बाि प्रेलमका को साबुन, िेि आदि चीजों का इस्िेमाि नहीं करना
चादहए। अन्य आभूर्णों को धारण नहीं करना चादहए। केवि मांगलिक तनशान शंख की चडू ड़यां न
उिारे ।

श्लोक-64. ्मरणमतीतानाम ्। गमनमीक्षणणकोपश्रत


ु ीनाम ्। नक्षत्रिंद्रसूयत
ृ ाराभ्यः ्पि
व णम ्।।64

अर्ृ- प्रेमी को गुजरी बािों को याि करके शीघ्र ही वापस िौट आने के लिए सगुन घर वािी
जस्ियों के पास जाना चादहए। राि का सगुन िे खे िथा राि को चांि-िारों की रोशनी से ईर्षयाष प्रकट
करें ।
श्लोक-65. इष्ट ्वप्रदिृने तत्ससंगो ममाच््त्सवतत वि।।65।।

अर्ृ- खब
ू सूरि सपनों को िे खकर प्रेमी से समागम हो- इस प्रकार की बािें करें ।

श्लोक-66. उ्वेगोऽतनष्टे िाच्न्तकमृ ि।।66।।

अर्ृ- बुरे सपनों को िे खने पर अतनर्षट की शांति कराएं।

श्लोक-67. प्रत्सयागते कामपूजा।।67।।

अर्ृ- प्रेमी के सकुशि िौट आने पर प्रेलमका को कामिे व की पज


ू ा करनी चादहए।

श्लोक-68. दे वतोपिाराणां करणम ्।।68।।


44books.com
अर्ृ- प्रेमी के सकुशि िौटने के बाि प्रेलमका ने जजन-जजन िे विाओं से मान्यिा मांगी हो उन्हें
जाकर भें ट आदि चढाना
ा़ चादहए।

श्लोक-69. सखीशभः पूणप


ृ ात्र्यािरणम ्।।69।।

अर्ृ- इर्षटकामना रखकर स्वजनों से पण


ू प
ष ाि (उिरीय) सखखयों के साथ झपटकर िे िे।

श्लोक-70. वायसपज
ू ा ि।।70।।

अर्ृ- काक बलि प्रिान करे ।


श्लोक-71. प्रर्मसमागमानन्तरं िैतदे व वायसपूजावजृम ्।।71।।

अर्ृ- कौवे की बलि को छोड़कर बाकी सभी काम जैसे पूजा, िे विाओं को भें ट चढ़ाना आदि कायों
को प्रवास से िौटे हुए प्रेमी से संभोग करने के बाि ही करें ।

श्लोक-72. सतत्य िानुमरणं रूयात ्।।72।।

अर्ृ- प्रेमी के साथ सिी हो जाने की बाि कहा करे ।

श्लोक-73. तनसष्व टभावः समानवत्तव िः प्रयोजनकारी तनरािंकों तनरपेक्षोऽर्ेच्ष्वतत सततलक्षणातन।।73।।

अर्ृ- आसक्ि प्रेमी वही होिा है जो प्रेलमका पर परू ा त्तवश्वास रखे। उसके समान अपना आचरण
बना िें। प्रेलमका के कहने के साथ ही उसके कायष कर िें , उसके प्रति संिेहशीि न हो िथा धन की
परवाह नहीं करनी चादहए।

44books.com

श्लोक-74. तदे तच्न्नदिृनार्ृ दिकिासनादत


ु तम ्। अनुततं ि लोकलः िीलयेत्सपुरुषप्रकवतततश्ि।।74।।

अर्ृ- आचायष ििक के द्वारा लिखे गये शास्ि को िे खकर संक्षेप में यह वेश्यावि
ृ लिखा गया है
जो बाि यहां नहीं कही गयी है , उसे पराई औरिों, वेश्याओं की आराधना करने में कुशि िोगों के
आचरणों को िे खकर ही समझ िेना चादहए।

श्लोक-75. भवतश्िात्र श्लोकों- सूक्ष्मत्सवादततलोभाछि प्रकवत्सयाज्ञानत्तर्ा। कामलतक्ष्म तु दज्ञ


ु ाृनं
्त्रीणां तद्रात्तवतैरत्तप।।75।।

अर्ृ- इस त्तवर्य के िो श्िोक हैं- वेश्याओं को समझ पाना बहुि ही कदठन होिा है । इसलिए कक
मन में क्या चि रहा है, इसे हम अपनी इजन्ियों से नहीं िे ख सकिे हैं। क्योंकक वेश्याओं में धन
की िािच अधधक होिी है । इसके अिावा उसके पास आने वािे व्यजक्ि भी कम बुद्धध वािे होिे
हैं।
श्लोक-76. कामयंते त्तवरज्यन्ते त्सयजच्न्त ि। कषृयन्त्सयोऽत्तप सवाृर्ाृञ्ज्ञायन्ते नैव योत्तषतः।।76।।

अर्ृ- अपने प्रेमी को वेश्याएं प्रेम करिी हैं। उन्हें अधधक प्रेम करिी है िथा त्याग भी िे िी हैं। वे
अपने प्रेलमयों से धन ऐंठ िेिी हैं और उन्हें महसूस भी नहीं होिा है ।
वेश्या अपने प्रेमी से ककस प्रकार का व्यवहार करें । उस प्रेम के बंधन को ककस प्रकार मजबूि
बनाये। इसके बारे में प्रथम प्रकरण में उल्िेख ककया गया है । इसके अंिगषि यह बिाया गया है
कक प्रेलमका को अपने प्रेमी के साथ ककस प्रकार का आचरण करना चादहए। आचायष वात्यास्यन
वेश्या को उसका खोया हुआ गौरव वापस दििाने के लिए सबसे पहिे उसे एकचाररणी स्िी बनने
की सिाह िे िे हैं। यानी जो वेश्या नाचने-गाने के कायष करिी है उसे ककसी एक आिमी की बनकर
रहना चादहए।
यदि वेश्या अपना धंधा छोड़ िे िी है िो उसके प्रेमी का त्तवश्वास उस पर हो जािा है । इसके
अिावा आचायष वात्स्यायन वेश्या को सावधान करिे हुए कहिे हैं कक जजस िरह पत्नी एकचाररणी
होकर अपने पति को अपना सब कुछ न्यौछावर कर िे िी है । वैसा आचरण वेश्या के लिए उधचि
नहीं होिा है क्योंकक वेश्या एक पेशव
े र औरि होिी है िथा िस
ू रों को अपनी िरफ आकत्तर्षि करके
उनसे पैसा कमाना ही उसके प्रेम का िक्ष्य होिा है । इसलिए वेश्या को लसफष प्रेम का प्रिशषन करना
चादहए। उसे केवि अपना िन सौंपना चादहए मन नहीं। अन्यथा उसका धंधा धीरे -धीरे करके नर्षट
हो जायेगा। 44books.com
सभी कामशाजस्ियों का मि है कक यौन आवेग की ककसी अलभव्यजक्ि की जब अधधक प्रशंसा की
जािी है िो वही प्रेम कहिािा है । पूरे शरीर में यौन त्तवकरण होने से प्रेम का त्तवकास होिा है ।
जब प्रेम अपनी चरम सीमा पर पहुंच जािा है िो वह भावावेग बन जािा है। भारिीय
कामशाजस्ियों ने प्रेम का त्तवश्िेर्ण नौ उपािानों द्वारा ककया है । इसी प्रणािी पर यरू ोपीय
वैज्ञातनक हरबटष स्पेन्सर ने अपनी पस्
ु िक "मनोत्तवज्ञान के लसद्धांि" पर त्तववेचन ककया है । काम
का शारीररक आवेश, सौन्ियष, िगाव, प्रशंसा, भाव, वाहवाही की इच्छा, आत्म-मयाषिा, सपजत्नक भावना
िथा सहानभ
ु तू ियों को उभारना- यही प्रेम के नौ उपािान हैं। वात्स्यायन ने वेश्यावत्तृ ि को इन्हीं
उपािानों के माध्यम से त्तवस्िि
ृ बनाया है ।

इति श्ीवात्स्यायनाये कामसूिे वैलशके पर्षठे ऽधधकरणे कान्िानुवि


ृ ं द्त्तविीयोऽध्यायुः।।
वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 6 वैशिकं

अध्याय 3 अर्ाृगमोपाय प्रकरण

श्लोक-1. सतता्त्तविादानं ्वाभात्तवकमुपायतश्ि।।1।।

अर्ृ- जो व्यजक्ि वेश्या के प्रति आकत्तर्ि


ष होिे हैं। वेश्या उनसे िो िरीके से धन प्राप्ि कर सकिी
है । पहिा िो स्वाभात्तवक ढं ग से और िस
ू रा कोलशश करने पर।

श्लोक-2. तत्र ्वाभात्तवकं संकल्पात्ससमचिकं वा लभमाना नोपायान ् प्रयुज्जीतेत्सयािायाृः।।2।।

अर्ृ- आचायों का कहना है कक यदि वेश्या को अपने से लमिने वािे से जजिना धन चादहए होिा
है उिना अगर उसे आसानी से लमि जािा है िो वेश्या को अधधक धन ऐंठने के उपाय नहीं करने
चादहए।
44books.com

श्लोक-3. त्तवहदतमप्युपायैः पररष्कवतं ्त्तवगुणं दा्यतीतत वात्स्यायनः।।3।।

अर्ृ- आचायष वात्स्यायन कहिे हैं कक यदि वेश्या अपने ग्राहक से िय हुए धन से अधधक धन
िेना चाहिी है िो उसे इसके लिए उपाय करना चादहए जजससे वह िोगुने पैसे िक प्राप्ि कर िेिी
है ।

श्लोक-4. अलंकार भक्ष्यभोज्यपेयमाल्यव्त्रगंिद्रव्यातनदीनां व्यविाररक


काशलकम्
ु िारार्ृमर्ृप्रततनयनेन।।4।।

अर्ृ- अिंकार भक्ष्य (िड्डू, जिेबी आदि), भोज्य (अन्न आदि), पेय (शराब, जूि आदि), वस्ि
(रे शमी, ऊनी, सूिी आदि), गंध (कंु कुम आदि) फूिों के हार, पान, सुपारी आदि चीजें जब वेश्या
ककसी तनजश्चि समय पर पैसे िे ने के वायिे पर खरीिे या चीजों के बििे में गहने आदि अमानि
में रख दिये हों िो तनजश्चि समय पर िाम चक
ु िा करने या िाम िे कर गहने छुड़ाने के बहाने वह
प्रेमी या लमिने वािों से रुपया िे िे, िेककन केवि अमानि पर रखे हुए गहने छुड़ाने के लिए
रुपये न िे।

श्लोक-5. तत्ससमक्षं त्त्तविप्रिंसा।।5।।

अर्ृ- प्रेमी अथवा लमिने वािे के सामने वेश्या को उसके धन-िौिि की प्रसंसा करनी चादहए।

श्लोक-6. वत
व वक्ष
व ारामदे वकुलतिागो्यानोत्ससवप्रीततदायव्यपदे िः।।6।।

अर्ृ- उपवास के बहाने, पूजा और आराधना की चीजें खरीिने के लिए, बाग-बगीचा िगाने के
बहाने, मंदिर आदि की स्थापना कराने के बहाने, कंु आ-िािाब बनवाने, उत्सव के बहाने िथा अपने
ककसी प्रेमी या मेहमान को उपहार िे ने के बहाने वेश्या अपने लमिने वािों से रुपया प्राप्ि कर
सकिी है ।

44books.com

श्लोक-7. तदशभगमनतनशमिो रक्षक्षशभश्िौरै वाृलंकारपररमोषः।।7।।

अर्ृ- या कफर वेश्या को प्रेमी से यह बहाना करना चादहए कक वह आपसे लमिने जा रही है और
रास्िे में पुलिस या चोरों ने गहने छीन लिए।

श्लोक-8. दािात्सकुिय्चछिे दात्सप्रमादाभ्द्रवने िार्ृनािः।।8।।

अर्ृ- या कफर घर में आग िग जाने पर, नकब हो जाने से असावधानी के कारण धन समाप्ि हो
जाने का बहाना प्रेमी से करना चादहए।
श्लोक-9. तर्ा याचितालंकाराणां नायकालंकाराणां ि तदशभगमनार्ृ्य व्यय्य
प्रणणचिशभृतनृवेदनम ्।।9।।

अर्ृ- मांगे गये गहनों और प्रेमी के द्वारा दिये गये गहनों को इस िरीके से नर्षट हुआ बिाने से
प्रेमी अपने दिये हुए गहनों को मांगिा नहीं है । इसके बाि वेश्या को अपने त्तवश्वास के नौकरों से
प्रेमी के पास के संिेश भेजकर उससे जो लमिने के समय खचष हुआ हो उसे भी मांग िेना चादहए।

श्लोक-10. तदर्ृमण
व ग्रिणम ्। जनन्या सि तद्
ु भव्य व्यय्य त्तववादः।।10।।

अर्ृ- वेश्या को प्रेमी का स्वागि सत्कार कजष िेकर करना चादहए। कफर उस कजष के त्तवर्य में मां
से झगड़ा करें ।

श्लोक-11. सुहृत्सकायेष्वनशभगमनशभिारिे तोः।।11।।

अर्ृ- प्रेमी के िोस्ि के यहां ककसी उत्सव के होने पर प्रेमी जब वेश्या से भी वहां भी चिने के
44books.com
लिए बोिे िो उसे यह कहकर मना कर िे ना चादहए कक वहां जाकर उपहार िे ने के लिए मेरे पास
कुछ भी नहीं है ।

श्लोक-12. तैश्ि पूवम


ृ ाहृता गुरवोऽशभिाराः पूवम
ृ ुपनीताः पूवं श्रात्तवताः ्यूः।।12।।

अर्ृ- जब प्रेमी िोस्ि के जिसे में उपहार िे ने के लिए राजी हो जाए िो उपहार िे आने से पहिे
उसे यह सुनाकर कहे कक िुम्हारे यहां उन्होंने कीमिी उपहार दिये हैं और िम
ु ने रख लिए हैं।

श्लोक-13. उचितानां कक्रयाणां त्तवच्छित्तिः।।13।।

अर्ृ- वेश्या को अपने शरीर का िै तनक श्ग


ं ृ ार इसलिए बंि कर िे ना चादहए िाकक प्रेमी को यह
महसूस हो कक पैसों की कमी के कारण उसकी यह हािि हुई है । इससे प्रेमी उसे श्ग
ं ृ ार करने के
लिए पैसे िे गा।
श्लोक-14. नायकार्ृ ि शिच्ल्पषु कायृम ्।।14।।

अर्ृ- वेश्या को लशजल्पयों से ऐसी वस्िुओं को बनवा िेना चादहए कक जजससे कक प्रेमी को पैसे
खचष करने पड़ जाएं।

श्लोक-15. वै्यमिामात्रयोरुपकारकक्रया कायृिेतोः।।15।।

अर्ृ- वेश्या राजपुरुर्ों िथा वैद्यों को अपने कायों से इस प्रकार से प्रसन्न कर िे कक वह उसके
मनचाहे प्रेमी से लमिने या कफर प्रेमी को उस पर खचष करने में उसे उसकी सहायिा कर सके।

श्लोक-16. शमत्राणां िोपकाररणां व्यसनेष्वभ्युपपत्तिः।।

अर्ृ- प्रेमी के िोस्िों और उसका उपकार करने वािों पर यदि ककसी प्रकार की मुसीबि आ जाए
िो वेश्या को उनकी सहायिा करनी चादहए।

44books.com

श्लोक-17. गि
व कमृ संख्याः पुत्र्योत्ससञ्जनम ् दोिदो व्याचिशमृत्र्य दःु खापनयनशमतत।।17।।

अर्ृ- प्रेमी से धन प्राप्ि करने के लिए वेश्या को घर बनवाने का, सहे िी के पुि के ककसी संस्कार
का, गभाषवस्था की उत्कट इच्छा का अथवा ककसी रोग का िुःु ख िरू करना के बहाना करें । इसके
पररणामस्वरूप उसे प्रेमी से धन प्राप्ि हो जाएगा।

श्लोक-18. अलंकरै कदे ित्तवक्रयो नायक्यार्े।।18।।

अर्ृ- यदि प्रेमी के ककसी कायष के लिए धन की आवश्यकिा हो िो वेश्या को अपने कुछ गहनों
को बेचकर उसे धन िे ना चादहए।
श्लोक-19. तया िीशलत्य िालंकार्य भाण्िोप्यकरस वा-वणणजो त्तवक्रयार्ृ दिृनम ्।।19।।

अर्ृ- उसे अपने त्तप्रय गहनों को, घर के बिषन िथा सजावट की चीजों को प्रेमी के सामने ही
व्यापारी को बेचने के लिए दिखाने का बहाना करें ।

श्लोक-20. प्रततगणणकानां ि सदृि्य भाण्ि्य व्यततकरे प्रततत्तवशिष्ट्य ग्रिणम ्।।20।।

अर्ृ- या उसी के समान िस


ू री अन्य गखणकाओं के बिषनों से अपने बिषन बिि जाने के कारण से
अपने बिषनों को बड़े कराने का बहाना करें ।

श्लोक-21. पूवोपकाराणामत्तव्मरणमनुकीतृनं ि।।21।।

अर्ृ- प्रेमी द्वारा ककए गये उपकारों को न भूिकर उसका वणषन करें ।

44books.com
श्लोक-22. प्रणणचिशभः प्रततगणणकानां लाभाततियं श्रावयेत ्।।22।।

अर्ृ- अपने त्तवश्वास के नौकरों द्वारा िस


ू री गखणकाओं को होने वािे अधधक िाभ प्रेमी को
सुनवायें।

श्लोक-23. तासु नायक समक्षमात्समनोऽभ्यचिकं लाभं भूतमभूतं वा व्रीडिता नाम वणृयेत ्।।23।।

अर्ृ- यदि िस
ू री गखणकाएं उस वेश्या के यहां आई हो िो प्रेमी के सामने िाभ को बढ़ा-चढ़ाकर
उनसे बिाएं। यदि कफर भी कुछ िाभ न हो िो प्रेमी की ओर शमष से िे खकर कहे ।

श्लोक-24. पव
ू य
ृ ोचगनां ि लाभाततियेन पन
ु ः सन्िाने यतमानानामात्तवष्कवतः प्रततषेिः।।24।।

अर्ृ- वेश्या के वे प्रेमी जो उनका साथ छोड़ चक


ु े हैं िथा अधधक धन िे कर कफर से वह वेश्या से
संभोग करना चाहिे हों, िो प्रेमी के सामने ही उसे साफ मना कर िे ना चादहए।
श्लोक-25. तत्स्पचिृनां त्सयागयोचगनां तनदिृनम ्।।25।।

अर्ृ- प्रेमी से स्पधाष करने वािे उन िोगों को प्रेमी को दिखाये जो अधधक पैसे िे कर वेश्या से
सेक्स करने की इच्छा करिे हो।

श्लोक-26. न पुनरे ष्यतीत र्ालयाचितकशमत्सयर्ाृगमोपायाः।।26।।

अर्ृ- यदि यह जानकारी प्राप्ि हो जाए कक अब यह िोबारा नहीं आएगा िो बच्चों की भांति हठ
करके उससे धन मांगे।

श्लोक-27. त्तवरततं ि तनत्सयमेव प्रकवततत्तवकक्रयातो त्तव्यात ् मख


ु वणाृश्ि।।27।।

अर्ृ- वेश्या अनुराग न रखने वािे िोगों को उसके पररवतिषि स्वभाव िथा चेहरे के बनिे- त्रबगड़िे
भावों को िे खकर जानकारी प्राप्ि कर िें।

44books.com

श्लोक-28. ऊनमततरततं वा ददातत।।28।।

अर्ृ- जब प्रेमी के मन में वेश्या के प्रति िगाव कम होने िगिा है िो वह कभी कम िो कभी
अधधक धन वेश्या को िे िे िा है ।

श्लोक-29. प्रततलोमैः सम्र्ध्यते।।29।।

अर्ृ- प्रेमी के त्तवरोधधयों से संबंध बनाने िगिा है ।

श्लोक-30. व्यपहदश्यान्यत्सकरोतत।।30।।

अर्ृ- जजस कायष को कहे उसे न करके िस


ू रा करने िगिा है ।
श्लोक-31. उचितमाच्छिनत्ति।।31।।

अर्ृ- जो सही काम होिा है उसे भी वह रोक िे िा है ।

श्लोक-32. प्रततज्ञातं त्तव्मरतत। अन्यर्ा वा योजयतत।।32।।

अर्ृ- केवि प्रेमी िे ने का वायिा करके भी मना कर िे िा है । या कफर कहिा है कक मैने िो ऐसा
वायिा ही नहीं ककया है ।

श्लोक-33. ्वपक्षैः संज्ञया भाषते।।33।।

अर्ृ- अपने तनजी व्यजक्ियों से संकेिों के द्वारा बािें करनी चादहए।

श्लोक-34. शमत्रकायृ
मपहदश्यान्यत्र िेते।।34।।
44books.com

अर्ृ- ककसी िोस्ि के काम का बहाना करके िस


ू रे स्थान पर जाकर सो जािा है ।

श्लोक-35. पव
ू स
ृ ंसष्व टायाश्ि पररजनेन शमर्ः कर्यतत।।35।।

अर्ृ- पहिी प्रेलमका के नौकरों से इस प्रेलमका की सभी गुप्ि बािों को बिा िे ना चादहए।

श्लोक-36. त्य सारद्रव्याणण प्रागवर्ोिादन्यापदे िन


े ि्ते कुवीत ्।।36।।

अर्ृ- जब उसे यह बाि मािूम हो जाए कक उसके प्रेमी का िगाव धीरे -धीरे करके खत्म हो रहा
िो जजिना शीघ्र हो सके उसे प्रेमी से अधधक से अधधक धन प्राप्ि करने की कोलशश करनी
चादहए।
श्लोक-37. तातन िा्या ि्तादि
ु मणृः प्रसह्य गह्
व वीयात ्।।37।।

अर्ृ- या कफर प्रेलमका का लसखाया हुआ साहूकार जजसने उसे कजष दिया हो उसे चादहए कक उसके
प्रेमी द्वारा एकि ककये गये धन को वह अपने कब्जे में कर िें।

श्लोक-38. त्तववदमानेन सििमृ्र्ेषु व्यविरे हदतत त्तवरततप्रततपत्ति।

अर्ृ- यदि प्रेमी साहूकार से झगड़ा कर िे िो उसे अिािि िक जाना चादहए। त्तवरजक्िपात्ति
समाप्ि होिा है ।

श्लोक-39. सततं तु पव
ू ाृकाररणमप्यफलं व्यलीकेनानुपात ्।।39।।

अर्ृ- वेश्या को चादहए कक थोड़ा िे ने वािे के पहिे परोपकारी प्रेमी के अपराध करने पर भी उसे
धक्का िे कर न तनकािे।

44books.com

श्लोक-40. असारं तु तनष्प्रततपत्तिकमप


ु ायतोऽपवाियेत ्। अन्यमवष्टभ्य।।40।।

अर्ृ- धनहीन िेककन खािी प्रेमी को ककसी धनवान, अनुरक्ि व्यजक्ि को प्रतिपक्षी बनाकर
तनकािना चादहए। स्वयं नहीं।

श्लोक-41. तदतनष्टसेवा। तनच्न्दताभ्यासः। ओष्ठतनभोगः। पादे न भम


ू ेरशभघातः। अत्तवज्ञातत्तवष्य
संकर्ा। तहदज्ञातेष्वत्तव्मयः समानदोषाणां तनंदा। रिशस िाव्र्ानम ्।।41।।

अर्ृ- प्रेमी को एकांि या प्रकट में तनकािने के लिए प्रेलमका को ये उपाय करने चादहए- जजसे प्रेमी
नहीं चाहिा। उसकी सेवा करना, तनन्िनीय कायों को जान-बूझकर बार-बार करना, होंठों को
चबाना, धरिी पर पैर पटकना, जजन बािों को नहीं जानिा हो उन बािों की बार-बार चचाष करना,
जजन त्तवर्यों के बारे में प्रेमी को जानकारी न हो उन पर आश्चयष प्रकट करना िथा उसकी तनंिा
करना, उसके अलभमान पर चोट करना, उसके गुरुजनों के साथ रहना, उसकी हर िरफ उपेक्षा
रखना, प्रेमी में जो िोर् हों उन्हीं के समान िोर्ों की बुराई करना िथा एकांि में बैठना।
श्लोक-42. रतोपिारे षू्वेगः। मुख्यादानम ्। जघन्य रक्षणम ्। नखदिनक्षतेभ्यो जुगुप्सा। पररष्वंगे
भुजमय्चया सूछिा व्यविानम ्। ्तब्िता गात्राणाम ् सतरोव्यृत्सयासः। तनद्रापरत्सवं ि। श्रान्तमुपलभ्य
िोदना। अिततौ िासः। िततावनशभनन्दनम ् हदवात्तप। भावमुपलभ्य मिाजनाशभगमनम ्।।42।।

अर्ृ- जजस व्यजक्ि को वेश्या अपने पास से भगाना चाहिी हो िो सेक्स के समय में उसके साथ
यह आचरण करे - सेक्स के लिए दिये जाने वािे पान, सुगंधध आदि को स्वीकार न करें । चब
ुं न न
करने िें । जांघों पर हाथ न फेरने िें । यदि उसने पहिे कभी सेक्स के समय िांिों अथवा नाखन
ू ों
से काटा हो िो उसकी तनंिा करें । बांहों में भरिे समय हाथों को सीने से ढक िें। शरीर के अंगों
को िन कर िें। जजससे प्रेमी खींच न सके। िोनों जांघों को एक-िस
ू रे के ऊपर चढ़ा िे। सेक्स के
समय नींि आने का बहाना करें । यदि सेक्स के समय प्रेमी शीघ्र ही स्खलिि हो िो उसकी
आिोचना करें । यदि प्रेमी की संभोग शजक्ि क्षीण पड़ रही हो िो उसकी हं सी उड़ाये िथा अधधक
उिेजना हो िो उसका कोई भी महत्व न िें । दिन में सेक्स करने पर उसे गधा कहकर पुकारें ।
यदि प्रेमी की इच्छा सेक्स करने की हो िो उसे बेडरूम से बाहर तनकािकर ककसी बड़े आिमी से
लमिने जाएं।

44books.com
श्लोक-43. वातयेषु छिलग्रिणम ्। अनमृणण िासः। नमृणण िान्यमपहदश्य िसतत वदतत
तच््तमन्कटाक्षेण पररजन्य प्रेक्षणं तािनं ि। आित्सय िा्य कर्ामन्र्ाः कर्ा। त्वलीकानां
व्यसनानां िापाररिायाृणामनुकीतृनम ्। ममृणां ि िेहटकयोपक्षेपणम ्।।43।।

अर्ृ- प्रेमी को अपने ऊपर से हटाने के लिए तनम्न बािें प्रेलमका को छे ड़नी चादहए। छि-कपट भरी
बािें , त्रबना खेि के उपहास, खेि में िस
ू रे के बहाने उपहास करना, उसके कुछ कहने पर उसी को
िक्ष्य करके अपने पररजनों की ओर कनखखयों से िे खना या िाड़ना। उसकी बाि को बीच में
काटकर िस
ू री बाि कह िे ना। प्रेमी की उन आििों की बुराई करे जो उसकी कमजोरी हो। उसकी
गप्ु ि बािों को अपनी सेत्तवका से बिाना।

श्लोक-44. आगते िादिृनम ्। अयाछययािनम ्। अंते ्वयं मोक्षश्िेतत पररग्रि्येतत दिक्य।।44।।

अर्ृ- प्रेलमका उपयक्


ुष ि बािें कहकर प्रेमी को मानलसक रूप से प्रिाडड़ि करे । इसके बाि तनम्न
कायष करें - जब भी प्रेमी उससे लमिने आये िो उसे लमिने से इंकार कर िे ना चादहए। उससे ककसी
भी चीज की मांग न करें और उसे नौकरी से तनकाि िें । ये सभी बािें आचायष ििक ने कही हैं।
श्लोक-45. परीक्ष्य गम्यैः संयोगः संयुतत्यानुरञ्जनम ्। रततादर्ृ्य िादानमंत मोक्षश्ि
वैशिकक।।45।।

अर्ृ- इस त्तवर्य के िो श्िोक हैं- वेश्या अपने लमिने वािों की परीक्षा करके उससे सेक्स करे ।
सेक्स करने के बाि उससे सेक्सी बािें करके अधधक से अधधक धन प्राप्ि करे । जब उसे धन प्राप्ि
हो जाए िो प्रेमी को घर से बाहर तनकाि िें ।

श्लोक-46. एवमेतेन कल्पेन च््र्ता वेश्या पररग्रिे । नाततसंिीयते गम्यैः करोत्सयर्ांश्ि


पष्ु कलान ्।।46।।

अर्ृ- उपयक्
ुष ि त्तवधध से यदि वेश्या चाहे िो वह अपने प्रेलमयों से अधधक से अधधक धन प्राप्ि कर
सकिी है ।
यह वैलशक अधधकरण वीरसेना नामक वेश्या के त्तवशेर् आग्रह करने पर आचायष ििक ने लिखा
था जजसे वात्स्यायन ने कामसूि में शालमि ककया है । आचायष ििक वेश्या को िे खकर उसके शीि,
स्वभाव िथा आचरण के बारे में समझ जािे थे। उन्होंने इस अधधकरण के अंिगषि वेश्याओं के
बारे में जो जानकारी िी है । वह संक्षक्षप्ि होिे हुए भी अपने आप में पररपूणष है ।
44books.com
इस अधधकरण के सभी वेश्यावि ृ का सार हमें िशकुमार चररि के उपहार वमाष के चररि में मुतन
मरीच िथा काममंजरी वेश्या के सवाि में लमििा है ।
वेश्याओं की मनोवत्तृ ि, उसके रहस्यमय चररि िथा िभ
ु ेध व्यवहार के बारे सधचि जानकारी युक्ि
काममंजरी में कहा गया है - वेश्याओं की पैिायशी प्रवत्तृ ि यह होिी है कक जैसे ही घर में िड़की का
जन्म होिा है । उसे बचपन से सबसे अधधक सुंिर बनाने की कोलशश करिे हैं। उसके एक-एक अंग
को सुंिर िथा आकर्षक बनाने के लिए त्तवलभन्न प्रयोग ककये जािे हैं। बचपन से ही िड़ककयों को
संिुलिि भोजन दिया जािा है । जजससे उसका सही िरीके से त्तवकास हो सके।
यह प्रवत्तृ ि केवि वेश्या की ही जाति में नहीं दिखाई िे िी है । बजल्क साध्वी जस्ियों को छोड़कर
िगभग सभी औरिों की यही प्रवत्तृ ि होिी है । अधधकिर जस्ियां ककसी परू
ु र् पर उसकी त्तवशेर्िा के
कारण आकत्तर्षि होिी हैं। चाहे धन की त्तवशेर्िा हो या रूप और यौवन की।
वेश्या हो या कुिवधू हो चकंू क स्िी होने से िोनों एक ही जाति की हैं। सेक्स, वािावरण िथा
पररजस्थतियों के प्रभाव के कारण कोई स्िी वेश्या बनिी है िो कोई कुिवध।ू िेककन स्वभाव से
रदहि िोनों नहीं हो सकिी। इसीलिए नीतिकार ने समीक्षक िरीके से कहा है कक केवि स्िनों को
छोड़कर िथा न कहीं त्तवर् है िथा न कहीं अमि
ृ है । अनुरक्ि होने पर वही स्िी अमि
ृ के समान
बनिी है िथा त्तवरजक्ि होने पर वही स्िी त्तवर् के समान बन जािी है ।
नामि
ृ ं न त्तवर्ं ककञ्जिे कां मुक्िवा तनिजम्बनीम ु्। सेवामि
ृ ििा रक्िा त्तवरक्िा त्तवर्वल्िरी।।

इति श्ीवात्स्यायनीये कामसूिे वैलशके र्र्षठे धधकरणेऽथाषगमोपाया त्तवरलिंगातन


धचरक्िप्रतिपत्तितनषर्षकासनक्रमास्िि
ृ ीयोऽध्यायुः।।

वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 6 वैशिकं

अध्याय 4 त्तविीणृप्रततसंिान प्रकरण

श्लोक-1. वतृमानं तनष्पीडितार्ृमुत्ससज


व न्ती पूवस
ृ ंसष्व टे न सि सन्दध्यात ्।।1।।

अर्ृ- वेश्या जजिना अधधक धन प्राप्ि कर चक


ु ी हो, उसे छोड़िी हुई वह अपने पहिे प्रेमी से
झगड़ा समाप्ि कर सि ु ह कर िे।

44books.com
श्लोक-2. स िेदवशसतार्ो त्तविवान्सानुरागश्ि ततः सन्िेयः।।2।।

अर्ृ- यदि प्रेमी धनवान हो िो उससे वेश्या को धन की प्राजप्ि होगी। इसके साथ ही वेश्या से प्रेम
करिा हो िो वेश्या को शीघ्र ही उसके पास जाना चादहए।

श्लोक-3. अन्यत्र गत्तकृतयतव्यः। स कायृयुततया षड्त्तविः।।3।।

अर्ृ- अपने पास से गया हुआ प्रेमी िस


ू री स्िी के पास गया होगा। इसकी जानकारी प्राप्ि करने
के 6 उपाय हैं।

श्लोक-4. इतः ्वयमपसत


व ्ततोऽत्तप ्वयमेवापसत
व ः।।4।।

अर्ृ- पहिी स्िी के पास से स्वयं हटा िथा िस


ू री स्िी के पास जाने के बाि स्वयं हटा।
श्लोक-5. इत्ततश्ि तनष्काशसतापसत
व ः।।5।।

अर्ृ- पहिी और िस
ू री िोनों जस्ियों से पास से धक्का खाकर ही हटा है ।

श्लोक-6. इतः ्वयमपसत


व ्ततो तनष्काशसतापसत
व ः।।6।

अर्ृ- पहिी स्िी के पास से स्वयं हटा और िस


ू री स्िी के पास से तनकािा गया।

श्लोक-7. इतो तनष्काशसतापसत


व ्ततः ्वयमपसत
व ः।।7।।

अर्ृ- पहिी स्िी के पास से स्वयं हटकर िस


ू री स्िी के पास जस्थि हो गया।

श्लोक-8. इतो ्वयमपसत


व ्तत्र च््र्तः।।8।।

44books.com
अर्ृ- पहिी स्िी के पास से धक्के खाकर हटा, और िस
ू री स्िी के पास से स्वयं हटा।

श्लोक-9. इतो तनष्काशसतापसत


व ्तत्र च््र्तः।।9।।

अर्ृ- पहिी स्िी के पास से तनकािे जाने के बाि िस


ू री स्िी के पास चिा गया।

श्लोक-10. इत्ततश्ि ्वयमेवापसत्सव योपजपतत िेदभ


ु योगण
ुृ ानपेक्षी िलव्
ु चिरसंिेयः।।10।।

अर्ृ- यदि प्रेमी यहां िथा वहां िोनों स्थानों से स्वयं हटकर कफर आने की कहे िो वह िोनों
नातयकाओं के गुणों की परवाह न करने वािा चंचि बुद्धध का होिा है । उससे कफर से सेक्स न
ककया जाए।
श्लोक-11. इत्ततश्ि तनष्काशसतापसत व ः च््र्रर्ु्चिः। स िेदन्यतो र्िु लभमानया तनष्काशसतः
्यात्सससारोऽत्तप तया रोत्तषतो ममामषाृब्दिु दा्यतीतत संिेयः।।11।।

अर्ृ- जो व्यजक्ि यहां िथा वहां िोनों स्थानों से तनकािे जाने पर त्रबल्कुि ही संबंध समाप्ि कर
िेिा है िो वह जस्थर बुद्धध का आिमी होिा है । यदि वेश्या ने िस
ू रे िोगों की अपेक्षा उस हटे
हुए जस्थर बुद्धध के प्रेमी से अधधक िाभ प्राप्ि ककया हो, धनी हो, िेककन नाराज कर दिया गया
हो िथा वेश्या को इस बाि पर यकीन हो कक िस ू री पर गुस्सा होने के कारण से मुझे अधधक धन
िे गा िो उससे अवश्य ही संधध कर िेनी चादहए।

श्लोक-12. तनःसारतया कदतृया वा त्सयततो न श्रेयान ्।।12।।

अर्ृ- यदि प्रेमी गरीबी अथवा िर्षु टिा के कारण से हटाया गया हो िो उससे लमिना अच्छा नहीं
होिा है ।

श्लोक-13. इतः ्वयमपसत


व ्तो तनष्काशसतापस त
व ो य्यततररततमादौ द्याितः प्रततग्रािाः।।13।।
44books.com

अर्ृ- एक वेश्या के यहां से स्वयं अिग हुआ िथा ककसी अन्य वेश्या के घर से तनकािा गया प्रेमी
पेशगी धन िे िो वेश्या उसके साथ सेक्स संबंध बना सकिी है ।

श्लोक-14. इतः ्वयपसत्सव य तत्र च््र्त उपजपं्तकृतयतव्यः।।14।।

अर्ृ- एक स्थान से हटा हुआ िथा िस


ू री जगह जाकर जम गया कफर कुछ कहिािा है िो उसके
कहने पर भिी प्रकार कर िेना चादहए
श्लोक-15. त्तविेषार्ी िागत्ततो त्तविेषमपश्यन्नगन्तुकामो मतय मां च्जज्ञाशसतुकामः स आगत्सय
सानुरागात्सवा्दा्यतत।। त्यां वा दोषान्दष््वा मतय भूतयष्ठान्गुणानिन
ु ा पश्यतत स गुणदिी
भूयष्ठं दा्यतत।।15।।

अर्ृ- यह प्रेमी त्तवशेर्िा को पसंि करिा है इसीलिए मुझे छोड़कर चिा गया था, िेककन मुझसे
ज्यािा त्तवशेर्िा उसमें न पाकर कफर वापस आना चाहिा है िथा मेरे पास रहकर मेरी त्तवशेर्िाओं
को जानना चाहिा है । मुझ पर आकत्तर्षि है इस कारण से यहां आकर जरूर धन िे गा। या िस
ू रों
की अपेक्षा मुझमें खास गुणों को िे खकर यह गुणग्राही प्रेमी त्तवपुि धन िे गा।

श्लोक-16. र्ालो वा नैकत्र्दच्ष्टरततसंिानप्रिानो वा िररद्रारागो वा यच्त्सकंिनकारी वेत्सयवेत्सय


संदध्यात्र वा।।16।।

अर्ृ- यह िो बुद्धध का प्रेमी है , जस्थरधचि एवं त्तवचारशीि नहीं है । हल्िी के समान ही इसका
अस्थायी रं ग है , जो दिि में आिा है कर बैठिा है - इन सभी बािों पर त्तवचार करके प्रेलमका उसे
िे खे। यदि कफर सेक्स करने िायक हो िो सेक्स करे नहीं िो नहीं।
44books.com

श्लोक-17. इतो तनष्काशसतापसत


व ्ततः ्वयमपसत
व उपजपं्तकृतयतव्यः।।17।।

अर्ृ- एक वेश्या के द्वारा तनकािा गया प्रेमी िस


ू री वेश्या के पास जाकर वहां से स्वयं चिा जाए
िथा यदि कफर से लमिने के लिए संिेश भेजे िो उस पर त्तवचार करना चादहए।

श्लोक-18. अनुरागादागन्तक
ु ामः स र्िुदा्यतत। मम गुणैभाृत्तवतो योऽन्य्यां न रमते।

अर्ृ- वेश्या सोचिी है कक उसका प्रेमी उसके प्रति आकत्तर्ि


ष होने के कारण आने की इच्छा कर
रहा है । इसलिए उससे अधधक धन प्राप्ि होगा। वह मेरे गुणों से वह प्रभात्तवि है , इसलिए िस
ू री
वेश्या में उसका मन नहीं िग रहा है ।
श्लोक-19. पूवम
ृ योगेन वा मया तनष्काशसतः स मां िीलतयत्सवा वैरं तनयाृततयतुकामो
िनमशभयोगा्वा मया्यापहृतं त्त्तवश्िा्य प्रतीपमादातुकामो तनवेष्टुकामो वा मां
वतृमाना्भदतयत्सवा त्सयुततुकाम इत्सयकल्याणर्ु्चिररसंिेयः।।19।।

अर्ृ- सबसे पहिे इसको मैने अन्यायपूवक


ष तनकािा था इस कारण से अब यह मुझसे लमिकर
अपनी िश्ु मनी तनकािना चाहिा है । मैने इधर-उधर करके इसका सारा धन प्राप्ि कर लिया है ।
इस कारण से अब यह मुझे यकीन दििाकर उस धन को हड़पना चाहिा है । या कफर मेरे विषमान
प्रेमी को मुझसे िोड़कर अिग करना चाहिा है । इस प्रकार से यह अशुभ संकेि हुआ। इसलिए ऐसे
प्रेमी से त्रबल्कुि भी संधध न करें ।

श्लोक-20. अन्यर्ार््
ु चिः कालेन लम्भतयतव्यः।।20।।

अर्ृ- यदि वह केवि उसके वशीभूि होकर आना चाहिा हो िो उसे कुछ समय बाि लमिना
चादहए। उससे लमिने में ककसी भी प्रकार की जल्िबाजी नहीं करनी चादहए।

44books.com
श्लोक-21. इतो तनष्काशसत्तत्र च््र्र उपजपत्रेतेन व्याख्यातः।।21।।

अर्ृ- जो प्रेमी अपने यहां से तनकाि दिये जाने पर िस


ू री वेश्या के पास चिा गया हो िथा िब
ु ारा
लमिने के लिए ककसी से कहिवा रहा हो िो, वह यदि लमिने िायक हो िो लमिे नहीं िो न
लमिें।

श्लोक-22. तेषूपजपत्स्वन्यत्र च््र्तः ्वयमुपजपेत ्।।22।।

अर्ृ- जो प्रेमी अपने यहां से जा करके िस


ू री स्िी के पास रहने िगे और संिेश भेजने पर वापस
न आये िो उससे स्वयं बािें करनी चादहए।
श्लोक-23. व्यलाकार्ं तनष्काशसतो मयासावन्यत्र गतो यत्सनादानेतव्य।।23।।

अर्ृ- मैने िो अपने इसी प्रेमी को उसकी गििी के कारण तनकािा था। मेरे यहां से जाने के बाि
वह िस
ू री स्िी के पास जाकर रहने िगा। इसलिए यदि वह िब
ु ारा आने की कोलशश कर रहा है िो
उसे बुिा िेना चादहए।

श्लोक-24. इतः प्रवि


व संभाषो वा ततो भेदमवाप््यतत।।24।।

अर्ृ- यदि वेश्या बाि करने की पहि करिी है िो वह वहां से अिग होकर भी आ सकिा है ।

श्लोक-25. तदर्ाृशभघातं कररष्यतत।।25।।

अर्ृ- मेरे यहां से आ जाने के बाि वह उसको आधथषक रूप से हातन भी पहुंचा सकिा है ।

44books.com
श्लोक-26. अर्ाृगमकालो वा्य। ्र्ानव्
व चिर्य जाता। लब्िमनेनाचिकरणम ्। दारै त्तवृयत
ु तः।
पारतंत्र्याह्यावि
व ः। त्तपत्रा भ्रात्रा वा त्तवभततः।।26।।

अर्ृ- उसको त्रबजनेस अथवा नौकरी से अधधक आमिनी हुई है । जर जमीन आदि से भी त्तवकास
हुआ। अिािि आदि से भी रुपया लमि गया। अपनी पत्नी से त्तपिा िथा भाइयों से अिग हो
जाने से वह पूणि
ष ा स्विंि हो गया। ऐसे समय में ही वह अधधक से अधधक धन प्राप्ि कर सकिा
है ।

श्लोक-27. अनेन वा प्रततर््िमनेन संचिं कवत्सवा नायकं ितननमवाप््याशम।।27।।

अर्ृ- मेरा प्रेमी उससे लमिा हुआ है और मैं उससे लमिकर उस धनवान को हालसि कर िूंगी।
श्लोक-28. त्तवमातनता वा भायृता तमेव त्यां त्तवक्रयमतयष्याशम।।28।।

अर्ृ- उसने मेरी बेइज्जिी की है या कफर अपनी पत्नी से जाकर लमि गया है , अब मैं उसे उसकी
पत्नी से अिग करके िोनों को आपस में िड़वा िें ।

श्लोक-30. िलचिितया वा लाघवमेनमापादतयष्यामीतत।।30।।

अर्ृ- इसको चंचिधचि लसद्ध करके िस


ू री वेश्याओं की नजर से एकिम धगरा िं ग
ू ी।

श्लोक-31. त्य पीठमदाृदयो मातुददःिील्येन नातयकायाः सत्सयप्यनुरागे त्तवविायाः पूवःृ तनष्कासनं


वणृयेयःु ।।13।।

अर्ृ- आदि त्तवश्वस्ि नौकर जाकर प्रेमी से कहें कक वह िुम पर आकत्तर्षि है िेककन मां की
कुदटििा के कारण त्तववश होकर उसने अपने आपको तनकाि दिया है ।

44books.com

श्लोक-32. वतृमानेन िाकामायाः संसगं त्तव्षं ि।।32।।

अर्ृ- जो इस वक्ि इसका प्रेमी है उसके साथ िगाव से सेक्स नहीं करिी है , बजल्क उसके मन में
नफरि बनी रहिी है ।

श्लोक-33. त्याश्ि साशभज्ञानैः पव


ू ाृनरु ागैरनं प्रत्सयापयेयःु ।।33।।

अर्ृ- वे पीठमिष (वेश्या के सहायक) आदि सेवक तनकािे गये प्रेमी से तनकिने से पहिे का प्रेलमका
का अनुराग बिाकर उसे यकीन दििाने की कोलशश करें ।
श्लोक-34. अशभज्ञानं ि तत्सकवतोपकारसंर्ं्िं ्याहदतत त्तविीणृप्रतत सिानम ्।।34।।

अर्ृ- उसके प्यार की पहचान उसके द्वारा ककये गये उपकारों से संबंध कराना चादहए। यह
त्तवयुक्ि नायक का प्रेम होिा है ।

श्लोक-35. अपूवप
ृ ूवस
ृ ंसष्व टयोः पूवस
ृ ंसष्व टः श्रेयान ्। स हि त्तवहदतिीलो दृष्टरागश्ि सूपिारो
भवतीत्सयािायाृः।।35।।

अर्ृ- वेश्या से पहिे लमिे हुए अथवा कभी न लमिे हुए िोगों में से पहिे लमिा हुआ व्यजक्ि
श्ेर्षठ होिा है क्योंकक उसके शीि स्वभाव से पररचय बना रहिा है। उसका प्रेम जाना-पहचाना हुआ
है । आचायों का मानना है कक उससे सरििा से अपनी प्रसंसा करायी जा सकिी है ।

श्लोक-36. पव
ू स
ृ ंसष्व टः सवृतो तनष्पीडितार्ृत्सवात्रात्सयर्ृमर्ृदो दःु खं ि पन
ु त्तवृश्वासतयतम
ु । अपव
ू ्
ृ तु
सख
ु ेनानरु ज्यत इतत वात्स्यायनः।।36।।
44books.com
अर्ृ- आचायष वात्स्यान का मानना है कक धन प्राप्ि करने के लिए ही लमिा जािा है । यदि पहिा
प्रेमी धनहीन हो गया हो िो उससे लमिना बेकार होिा है । इसके अिावा उसे अपना त्तवश्वास प्राप्ि
करना भी कदठन होिा है िथा िस
ू रा नया प्रेमी िो सरििा से आकत्तर्षि ककया जा सकिा है ।

श्लोक-37. तर्ात्तप परू


ु षप्रकतततो त्तविेषः।।37।।

अर्ृ- यद्यत्तप स्वभाव के आधार पर पुरुर्ों में भी त्तवशेर्िाएं होिी हैं। कोई नया आिमी ऐसा होिा
है जो आिि से कृपण होिा है । कुछ भी नहीं िे िा है अथवा खश
ु ामि करने पर भी अनुरक्ि नहीं
होिा है । कुछ आिमी ऐसे होिे हैं जो चस
ू लिए जाने पर भी, तनकाि दिये जाने पर भी, प्रेलमका पर
अपना त्तवश्वास बनाये रखिे हैं।
श्लोक-38. भवच्न्त िात्र श्लोकः- अन्यां भेदतयतुं गम्यादन्यतो गम्यमेव वा। च््र्त्य िोपघातार्ं
पुनः संिानशमष्यते।।38।।

अर्ृ- इस त्तवर्य के श्िोक हैं- 19वें, 28वें िथा 25वें सूि में बिाई गयी बािों को यहां बिाया जा
रहा है कक िस
ू री प्रेलमका से त्रबछड़ा हुआ लमिने वािा प्रेमी अथवा िस
ू री से अिग करने के लिए
प्रेमी को लमिाया जा सकिा है ।

श्लोक-39. त्तवभेत्सयन्य्य संयोगा्यलीकानी ि नेक्षते अततसततः पम


ु ान्यत्र भया्यिु ददातत
ि।।39।।

अर्ृ- अत्याधधक आसक्ि प्रेमी जो िस


ू रे से सेक्स करने से डरिा है और प्रेलमका के अपराधों को
भी नहीं िे खिा है - ऐसा आिमी डर के कारण बहुि अधधक धन िे जािा है ।

श्लोक-40. असततमशभन्नदे त सततं पररभवेिर्ा। अन्य दत


ू ानप
ु ाते ि यः ्यादततत्तविारदः।।40।।
44books.com
अर्ृ- जो प्रेमी बहुि अधधक चािाक हो। उसे चादहए कक ककसी िस ू रे का िि
ू आ जाने पर उसके
सम्मख
ु असमथष की प्रशंसा करें और समथष की बुराई करें ।

श्लोक-41. तत्रोपयातयनं पव
ू ं नारी कालेन योजयेत ् भवेछिाच्छित्रसंिाना न ि सततं पररत्सयजेत ्।।4।।

अर्ृ- स्िी को चादहए कक कभी यदि नया धनवान प्रेमी िथा लमिने वािा त्रबछड़ा हुआ प्रेमी िोनों
आ रहे हों िो जो अधधक धनी हो उसी से ही सेक्स करें क्योंकक त्रबछड़ा हुआ प्रेमी प्रिीक्षा भी कर
सकिा है । त्रबछड़े हुए से सेक्स करने में न िो दहचककचाहट करें िथा न धनवान प्रेमी का त्याग
करें ।
श्लोक-42. सततं तु वशिनं नारी संभाप्याप्यन्यतो व्रजेत ् ततश्िार्ृमुपादाय
सततमेवानुरञ्जयेत ्।।42।।

अर्ृ- नारी (वेश्या) वशीभूि प्रेमी से बिाकर िस


ू रे स्थान पर चिी जाए और वहां से धन िाकर
वशीभूि प्रेमी को प्रसन्न करे ।

श्लोक-43. आयततं प्रसमीक्ष्यादौ लाभं प्रीततं ि पुष्कलाम ्। सौहृदं प्रततसंदध्या्त्तविीणृ ्त्री


त्तविक्षणा।।43।।

अर्ृ- चिुर िथा चािाक स्िी को चादहए कक सबसे पहिे प्रभाव, िाभ, अधधक प्रेम िथा सौहािष िे ख
िें, िभी त्रबछड़े हुए को लमिाएं।
अनेक उपायों से वेश्याएं अपने प्रेमी का धन ऐंठकर उसे त्रबल्कुि बबाषि कर िे िी हैं। उसके बाि
उसे अपने पास से तनकाि िे िी हैं। इसके बारे में त्तपछिे प्रकरण में भी बिाया गया है । इस
प्रकरण में उन प्रेलमयों के मानलसक वि
ृ का उल्िेख ककया गया है । जो वेश्या के द्वारा तनकािे
जाने पर उस पर मोदहि रहिा है । इस प्रकार के त्तववेकशून्य प्रेलमयों को वेश्या कफर से ककस हािि
में स्वीकार करे - इसके बारे में त्तवस्िार 44books.com
से वणषन ककया गया है ।
उन्होंने वेश्याओं िथा उनके प्रेलमयों का मनोत्तवश्िेर्ण करिे हुए कहा है कक त्तवयोग िथा लमिन
की जस्थति में वेश्या को सबसे पहिे पुरूर् की अंिुःप्रकृति का अध्ययन करके उसे लमिाएं अथवा
हटाएं। कोई आिमी ऐसा होिा है कक पुराने प्रेमी के हट जाने पर वह वेश्या का साथी उसके
सिाचार िथा िीनिा के सामने फेि हो जाया करिा है । इसके अिावा कुछ िोग ऐसे स्वभाव के
होिे हैं जो वेश्या के द्वारा अपमातनि होकर तनकािे जाने िथा सारी संपत्ति और प्रतिर्षठा गंवा िे ने
के बावजूि उसी के प्रति आकत्तर्षि रहिे हैं।
इस प्रकरण के अंिगषि वेश्याओं की चंचििा, अजस्थर बुद्धध िथा स्वाथष के बारे में वणषन ककया
गया है । वास्िव में िे खा जाये िो यह पिा चििा है कक वेश्याओं की मानलसकिा समि
ु की िहरों
की िरह चंचि होिी है । शाम के समय से सब
ु ह िक आकाश की क्षखणक िालिमा की िरह
वेश्याओं के यहां उनके प्रेलमयों की अवजस्थति क्षणभंगरु होिी है । जजस प्रकार पैर में अििा िगाने
के लिए में हिी की पत्तियों का रस तनचोड़ करके उन्हें फेंक दिया जािा है, उसी प्रकार वेश्याएं भी
अपने प्रेमी की धनशजक्ि, परू
ु र्ाथष-शजक्ि तनचोड़कर उन्हें अिग फेंक िे िी हैं।
इस सहजबोध को स्िी अच्छी प्रकार से जानिी है कक जीव िथा जड़ एक-िस
ू रे के त्रबना कोई
भी पररणाम तनकािने में सफि नहीं हो सकिे हैं। इसलिए उसके प्रेम में शरीर और आत्मा िोनों
का िगाव रहिा है । िेककन युवक जब उसे इस िरह का प्रेम करने िें । पुरूर् की इसी गििी का
अंजाम है कक अधधकिर िाम्पत्य जीवन, अधधकिर वेश्या भोग, जीवन, तनराशा िथा अशांति के
माहौि में िड़प रहे हैं।

इति श्ीवात्स्यायनीये कामसूिे वैलशके र्र्षठे ऽधधकरणे त्तवशीणषप्रतिसंधानं चिुथोऽध्यायुः।।

वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 6 वैशिकं

अध्याय 5 लाभ-त्तविेष प्रकरण

श्लोक-1. गम्यर्ािुल्ये र्िु प्रततहदनं ि लभमाना नैकं प्रततगह्


व वीयात ्।।1।।

अर्ृ- वेश्या के पास सेक्स करने के लिए आने वािों की संख्या अधधक होने से उनमें परस्पर
प्रतिस्पधाष बढ़ जािी है । इस कारण से वेश्या की आमिनी बढ़ जािी है । इसलिए वेश्या को ककसी
एक व्यजक्ि त्तवशेर् से सेक्स न करके प्रतिदिन नये ग्राहकों से सेक्स करना चादहए।
44books.com

श्लोक-2. दे िकालं च््र्ततमात्समनो गुणान्सौभाग्यं िान्याभ्यो न्यूनाततररततं िावेक्ष्य रजन्यामर्ृ


्र्ापयेत ्।।2।।

अर्ृ- ककसी भी वेश्या को एक राि की फीस का तनधाषरण िे श िथा समय, विषमान जस्थति, गण
ु ,
सौभाग्य िथा वेश्याओं से अपने रूप, रं ग, गण
ु आदि की िि
ु ना करने के बाि तनधाषरण करना
चादहए।

श्लोक-3. गम्ये दत
ू ांश्ि प्रयोजयेत ्। तत्सप्रततर््िाश्ि ्वयं प्रहिणुयात ्।।3।।

अर्ृ- सेक्स करने िायक व्यजक्ि का उद्िे श्य जानने के लिए अपने िि
ू ों को िगा िें िथा स्वयं
को उसके संपकष के िोगों के द्वारा अपने अलभप्राय भेजें।
श्लोक-4. ्त्तवच््त्रश्िररतत लाभाततियग्रिार्ंमेक्यात्तप गछिे त ्। पररग्रिं ि िरे त ्।।4।।

अर्ृ- उससे अधधक धन प्राप्ि करने के लिए 3-4 दिनों िक िगािार एक तनयि फीस पर ही
सेक्स करायें। िथा उसकी सेवा उसकी पत्नी के समान बनकर स्वयं ही करना चादहए।

श्लोक-5. गम्ययौगप्ये तु लाभसाम्ये य्द्रव्याचर्ृनी ्याि्दातयतन त्तविेषः प्रत्सयक्ष इत्सयािायृः।।5।।

अर्ृ- आचायों के अनुसार यदि ककसी वेश्या के पास एक साथ कई िोग सेक्स करने के लिए आ
जाएं िथा सभी सेक्स करने के लिए एक समान ही फीस िे ने को िैयार हो िो ऐसी जस्थति में
वेश्या को जजससे फीस िे िेगी िो िस
ू रा उससे ज्यािा िे गा।

श्लोक-6. अप्रत्सयादे यत्सवात्ससवृकायाृणां तन्मल


ू त्सवा्चिरण्यद इतत वात्स्यायनः।।6।।

अर्ृ- आचायष वात्स्यायन का मानना है कक अत्तवश्वास की जस्थति में भी न िौटाया जाने वािा
पैसा ही सभी कायों का मूि होिा है अथवा आभूर्ण और गहने आदि वस्िुएं पैसों से ही खरीिी
44books.com
जा सकिी हैं। इसलिए वेश्या को जहां िक हो सके अपने प्रेमी से पैसे ही प्राप्ि करने चादहए।

श्लोक-7. सव
ु णृरजतताम्रकां्यलोिभाण्िोप्करा्तरणप्रावरण
वासोत्तविेषगंिद्रव्यकटुकभाण्िघत
व लैलिान्यपिज
ु ातीनां पव
ू प
ृ व
ू त
ृ ो त्तविेषः।।7।।

अर्ृ- सोना, चांिी, िांबा, िोहा, बिषन, सामान, त्रबस्िर, लिहाफ, कम्बि, रे शमी, कपड़े, चंिन आदि गंध
वािे पिाथष, कािीलमचष घड़े आदि, घी िेि अनाज, पशु इन वस्िुओं में अंि में पहिे की िरह एक-
एक चीजें उिम होिी हैं। इसलिए वेश्या को ऐसी ही चीजें िानी चादहए।

श्लोक-8. यित्र साम्या्वा द्रव्यसाम्ये शमत्रवातयदततपाततत्सवादायतततो गम्यगुणतः प्रीतततश्ि।।8।।

अर्ृ- यदि िो समान प्रेमी हो िो शुभधचन्िक िोग जजसे पसंि करें या जजसको अधधक गुणी, सुंिर
िथा प्रभावशािी समझें, उसी की िी गयी चीजों को ग्रहण करें ।
श्लोक-9. राचगत्सयाचगनो्त्सयाचगनी त्तविेषः प्रत्सयक्ष इत्सयािायाृः।।9।।

अर्ृ- आचायों का कहना है कक अधधक अनुराग रखने वािे की अपेक्षा िानशीि त्यागी से अधधक
िाभ लमिना तनजश्चि होिा है ।

श्लोक-10. ितयो हि राचगणी त्सयाग आिातुम ्।।10।।

अर्ृ- न िे ने वािे व्यजक्ि से भी उपायों द्वारा त्याग कराया जा सकिा है ।

श्लोक-11. लुब्िोऽत्तप हि रतत्त्सयजतत न तु त्सयागी तनर्ृन्िाद्रज्यत इतत वात्स्यायनः।।।11।।

अर्ृ- आचायष वात्स्यायन का कहना है कक अनुरक्ि िािची होिे हुए भी धन िे सकिा है िेककन
त्यागी को अनुरक्ि बनना काफी कदठन होिा है ।

44books.com
श्लोक-12. तत्रात्तप िनवदिनवतोिृनवतत त्तविेषः। त्सयाचगप्रयोजनकत्रोः प्रयोजनकतृरर त्तविेषः प्रत्सयक्ष
इत्सयािायाृः।।12।।

अर्ृ- आचायों का मानना है कक यहां पर भी अमीर िथा तनधषन िोगों में धनवान त्तवशेर् होिा है
िथा त्यागी और नातयका का स्वाथष लसद्ध करने वािा प्रेमी त्तवशेर् होिा है ।

श्लोक-13. प्रयोजनकताृ सकवत्सकवत्सवा कवततनमात्समानं मन्यते त्सयागी पन


ु रतीतं नापेक्षत इतत
वात्स्यायनः।।13।।

अर्ृ- आचायष वात्स्यायन का कहना है कक वेश्या का प्रयोजन लसद्ध करने वािा एक बार प्रयोजन
लसद्ध करके यह सोचिा है कक एक बार काम कर दिया है . अब क्यों करूं। क्योंकक िानशीि
त्यागी प्रेमी िो जो धन िे चक
ु ा होिा है उसके बारे में सोचिा िक भी नहीं है ।
श्लोक-14. तत्राप्यात्सयतयकतो त्तविेषः।।14।।

अर्ृ- आवश्यकिा के अनुसार इन िोनों में भी त्तवशेर्िाएं होिी हैं।

श्लोक-15. कवतज्ञत्सयाचगनो्त्सयाचगतन त्तविेषः प्रत्सयक्ष इत्सयािायाृः।।15।।

अर्ृ- पहिे के आचायों का कहना है कक कृिज्ञ िथा त्यागी इन िोनों प्रकार के व्यजक्ियों में
त्यागी व्यजक्ि से अधधक िाभ प्राप्ि ककया जा सकिा है ।

श्लोक-16. चिरमाराचितोऽत्तप त्सयागी व्यलीकमेकमुपलभ्य प्रततगणणकया वा शमर्थयादत्तू षतः श्रममतीतं


नापेक्षते।।16।।

अर्ृ- बहुि दिनों िक उपायों द्वारा सात्रबि ककया गया त्यागी वेश्या के एक अपराध को िे खकर
या िसू री सामने की वेश्याओं से बहकाया जाकर वेश्या के ककये गये पररश्म के िख ु ों की परवाह
नहीं करिा है ।
44books.com

श्लोक-17. प्रायेण हि तेजच््वन ऋजव


ु ोऽना्दताश्ि त्सयाचगतो भवच्न्त।।17।।

अर्ृ- और त्यागी प्रायुः िेजस्वी व्यजक्ि सरि स्वभाव के नहीं होिे हैं। यदि कहीं पर उनका
अनािर होिा है िो वे उसे बिाषश्ि नहीं करिे हैं।

श्लोक-18. कवतज्ञ्तु पव
ू श्र
ृ मापेक्षी न सिसा त्तवरज्यते। परीक्षक्षतिीलत्सवाश्ि न शमर्थया दष्ू यत इतत
वात्स्यायनः।।18।।

अर्ृ- आचायष वात्स्यायन का कहना है कक कृिज्ञ व्यजक्ि पररश्म को समझिा है । इसीलिए वह


एकाएक त्तवरक्ि नहीं होिा है , वह प्रेलमका के स्वभाव से पररधचि रहिा है इसलिए िस
ू री वेश्याओं
के बहकाने में नहीं आिा है ।
श्लोक-19. तत्राप्यापतततो त्तविेषः।।19।।

अर्ृ- अनुरक्ि, त्यागी िथा कृिज्ञ इन िीनों में से वेश्या को जजससे सबसे अधधक धन प्राप्ि उसी
के साथ सेक्स करना चादहए।

श्लोक-20. शमत्रविनार्ाृगमयोरर्ाृगमे त्तविेषः प्रत्सयक्ष इत्सयािायाृः।।20।।

अर्ृ- पहिे आचायों के अनुसार िोस्िों के सुझाव िथा धन की प्राजप्ि इन िोनों में से धन का
िाभ प्रत्यक्ष त्तवशेर्िा रखिा है ।

श्लोक-21. सोऽत्तप ह्यर्ाृगमो भवतत। शमत्रं तु सकव्वातये प्रततिते कलत्तु षतं ्याहदतत
वात्स्यायनः।।21।।

अर्ृ- आचायष वात्स्यायन के अनुसार िोस्िों की बािें न मानने पर भी धन िो प्राप्ि होगा ही


िेककन बाि न मानी जाने पर िोस्ि नाराज हो जाएं िो उनसे बनने वािे सभी कायष त्रबगड़ जािे
44books.com
हैं।

श्लोक-22. तत्राप्यततपाततो त्तविेषः।।22।।

अर्ृ- इस धन संचय में भी कफर न लमिने वािे को अवश्य वािे के जरूर प्राप्ि कर िेना
चादहए।

श्लोक-23. तत्र कायृसंदिृनेन शमत्रमनन


ु ीय श्िोभत
ू े विनमच््त्सवतत ततोऽततपाततनमर्ं
प्रततगि
व णीयात ्।।23।।

अर्ृ- काम के बहाने िोस्ि से अनुनय त्तवनय करके शीघ्र ही िाभ प्राप्ि कर िें और उससे कहे
कक मैं िुम्हारी बाि अवश्य ही पूरी कर िं ग
ू ी।
श्लोक-24. अर्ाृगमानर्ृप्रतीघातयोरर्ाृगमे त्तविेषः प्रत्सयक्ष इत्सयािायाृः।।24।।

अर्ृ- अथषिाभ िथा अनथष का तनवारण- इन िोनों में धनागम त्तवशेर् माना जािा है - ऐसा पहिे
के आचायों का मानना है ।

श्लोक-25. अर्ृ- पररशमतावछिे दः, अनर्ृः पुनः सकवत्सप्रसत


व ो न ज्ञायते तकावततष्ठत इतत
वात्स्यायनः।।25।।

अर्ृ- आचायष वात्स्यायन का कहना है कक धन हमेशा ही प्राप्ि होिा रहिा है िेककन यदि अनथष
होना शुरू हो जािा है िो उसके अंि का कोई दठकाना नहीं होिा है।

श्लोक-26. तत्रात्तप गुरुलाघवकवतो त्तविेषः।।26।।

अर्ृ- इसके अंिगषि भी न्यूनाधधक्य समझकर त्तवशेर् को ग्रहण कर िेना आवश्यक होिा है ।
44books.com

श्लोक-27. एतेनार्ृसंिायदनर्ृप्रतीकारे त्तविेषो व्याख्यातः।।27।।

अर्ृ- इस बाि से यह स्पर्षट होिा है कक अथष के संशय में अनथष की रोकथाम करने में ही त्तवशेर्
िाभ प्राप्ि होिा है ।

श्लोक-28. दे वकुलतिारामाणां करणम ्, ्र्लीनामच्ग्निैत्सयानां तनर्ंिन, गोसि्त्राणां पात्रान्तररतं


राह्मणेभ्यो दानम ्, दे वतानां पज
ू ोपिारप्रवतृनम ्, त्ययसहिष्णोवाृ िन्य पररग्रिणशमत्सयि
ु गणणकानां
लाभाततियः।।28।।

अर्ृ- जो उिम वगष की नारी होिी हैं उन्हें चादहए कक वह अधधक िाभ प्राप्ि करने के लिए मंदिर
बनवायें। िािाब का तनमाषण बनायें। बाग-बगीचे िगवायें। नीची जगहों में िोगों को आने-जाने की
सुत्तवधा के पुि का तनमाषण करायें। अपने तनवास स्थान से बाहर लमट्टी का घर बनाकर उसमें
अजग्नहोि का सारा सामान रखकर रोजाना अजग्नहोि करायें। ककसी सुपाि व्यजक्ि को जररया
बनाकर उसके द्वारा ब्राह्मणों को हजार गायें िान में िें । िे विाओं के भोग प्रसाि की व्यवस्था
करें । इस प्रकार के ऐसे ही िोकोपकारी िथा धालमषक कायों को अच्छी िरह करने का खचष बिाषश्ि
करें िो उनके अधधक िाभ का उपयोग भी हो जाएगा।

श्लोक-29. सावांचगकोऽलंकारयोगो गि
व ्योदार्य करणम ्। मिािै भाृण्िैः पररिारकैश्ि
गि
व पररछिद्योज्जवलततेतत रूपाजीवानां लाभाततियः।।29।।

अर्ृ- मध्यम वगष वािी रे खाएं त्तवशेर् िाभ करने के लिए संपूणष शरीर पर गहने धारण करें ,
तनवास स्थान को किात्मक िरीके से सजाकर रखें िथा उसमें कीमिी बिषन रखें हो, नौकर-चाकर,
कमरों की खखड़ककयों, िरवाजों, पिों को साफ करने में िगे रहें । घर के सभी कपड़े, पिे अच्छी िरह
से साफ रखने चादहए।

श्लोक-30. तनत्सयं िुतलामाछिादनमपक्षुिमत्रपानं तनत्सयं सौगच्न्िकेन ताम्र्ूलेन ि योगः


सहिरण्यभागलंकरणशमतत कुम्भदासीनां लाभाततियः।।30।।
44books.com
अर्ृ- अधम वगष की कुम्भिासी वेश्याओं को अधधक िाभ प्राप्ि करने के लिए प्रतिदिन साफ
कपड़े पहनने चादहए। भरपेट भोजन करना चादहए। परफ्यम
ू , िेि और पान का भी उपयोग करना
चादहए िथा चांिी के गहनों के साथ कुछ सोने के गहने भी पहनने चादहए।

श्लोक-31. एतेन प्रदे िन


े मध्यामाध्यमानामत्तप लाभाततियान ् सवाृसामेव योजयेहदत्सयािायाृः।।31।।

अर्ृ- पहिे के आचायों का मानना है कक उिमा, मध्यमा, अधमा, गखणका के साथ ही अधधक िाभ
को भी उिम, मध्यम िथा अधम ही समझना चादहए।

श्लोक-32. दे िकालत्तवभवसामर्थयाृनुरागलोकप्रवत्तव िविादतनयतलाभाहदयमवत्तव िररतत वात्स्यायनः।।32।।

अर्ृ- आचायष वात्स्यायन के अनुसार िे श, समय, वैभव, सामर्थयष, अनुराग िथा िोकव्यवहार के
कारण से िाभ हमेशा नहीं होिा रह सकिा है । इसलिए धन-प्रधान वेश्याओं की जजस वत्तृ ि के बारे
में बिाया गया है वह कभी भी समान नहीं रह सकिी है ।
श्लोक-33. गम्यमन्यतो तनवारतयतुकामा सततमन्य्यामपितक
ुृ ामा वा अन्यां वा लाभतो
त्तवयुयुक्षमाणागम्यंसंसगाृदात्समनः ्र्ानं व्
व चिमायततमशभगम्यतां त मन्यमाना अनर्ृ प्रतीकारे वा
सािाय्चयमेनं कारतयतुकामा सतत्य वान्यम ् व्यलीकाचर्ृनी पूवोपकारमकवतशमव पश्यंती
केवलप्रीत्सयचर्ृनी वा कल्याणर्ु्िेरल्पमत्तप लाभं प्रततगि
व णीयात ्।।33।।

अर्ृ- मौके और आवश्यकिा के अनुसार कभी थोड़ा फायिा भी ग्रहण कर िेना चादहए। ककस
हािि िथा स्थान में वेश्या को थोड़ा िाभ ग्रहण करना चादहए, कह रहे हैं-

प्रेमी को ककसी िस
ू री गखणका के पास सेक्स के लिए जाने से रोकने में , या उसको फायिे से
वंधचि करने में , प्रेमी से संसगष से घर, मंदिर आदि कोई स्थान बनाने में , अपनी वद्
ृ धध करने में ,
अपना प्रभाव स्थात्तपि करने में , िस
ू रे प्रेलमयों को आकत्तर्षि करने के लिए, अपनी पसंि की कोई
वस्िु बनवाने में , या पहिे ककये गये उपकारी को भि
ू कर गरीब प्रेमी को अपराधी ठहराकर उसे
छोड़ने में िथा ककसी शभ
ु धचंिक आिमी को अपना प्रेमी बनाने में गखणका थोड़ा-बहुि िाभ भी
प्राप्ि कर सकिी है ।

श्लोक-34. आयत्सयचर्ृनी तु तमाचश्रत्सय िानर्ृ प्रततचिकीषृन्ती नैव प्रततगि


44books.com व णीयात ्।।34।।

अर्ृ- यदि भत्तवर्षय में वेश्या बड़ा फायिा िे खिी है और ऐसा करने में कोई त्तवशेर् परे शानी हो िो
प्रेमी से िुरंि ही कुछ नहीं िेना चादहए।

श्लोक-35. त्सयक्षाम्येनमन्यतः प्रततसंिा्याशम, गशमष्यतत दारै योक्ष्यते नाितयष्यत्सयनर्ाृन ्, अंकुिभूत


उिराध्यक्षोऽ्यागशमष्यतत ्वामी त्तपता वा, ्र्ानभ्रंिो वा्य भत्तवष्यतत िलचििश्िेतत मन्यमाना
तदात्सवेत्यमाल्लाभशमत्सिे त ्।।35।।

अर्ृ- इस प्रेमी को छोड़कर िस


ू रे से संबंध जोडूग
ं ी, यह स्वयं ही चिा जाएगा, अपनी पत्नी से कफर
लमि जाएगा। या, यह अड़चनों, रुकावटों को िरू कर िे गा, इसके ऊपर त्तपिा आदि का तनयंिण है ,
या यह अपने पि अथवा अधधकार से भ्रर्षट हो जाएगा अथवा चंचि मन का है । यदि वेश्या ऐसा
समझिी है िो ऐसे नायक से शीघ्र लमिे, उसी समय िे िे।
श्लोक-36. प्रततज्ञातमीश्िरे ण प्रततग्रिं लप््यते अचिकरणं ्र्ानं वा प्राप्यशस वत्तव िकालोऽ्य वा
आसन्नः वािनम्यागशमष्यतत ्र्लपत्रं वा स्यम्य पक्ष्यते कवतमच््मत्र नश्यतत
तनत्सयमत्तवसंवादको वेत्सयायत्सयाशमछिे त ्। पररग्रिकल्पं वािरे त ्।।36।।

अर्ृ- राजा अथवा शासन से इसे धन की प्राजप्ि तनजश्चि होगी, या यह न्यायािय अथवा
अक्षपटि में कोई ऊंचे पि को प्राप्ि करे गा। इसे जीत्तवका समीप भत्तवर्षय में लमिेगी, व्यापाररक
चीजें बेचकर इसके जहाज अथवा िस
ू रे व्यापाररक वाहन शीघ्र ही वापस आने वािे हैं, उनकी
जमींिारी या जागीर की जमीन उपजाऊ हैं। इसकी खेिी पककर िैयार होने वािी है । यह कृिज्ञ
है , इससे संसगष करना हातनकारक होगा, यह गप्पी या धि
ू ष नहीं है , यह जो भी कहे गा, उसको पूरा
भी करे गा, इसी िरह अन्य प्रेलमयों में से ककसी एक से भत्तवर्षय में पूरा फायिा उठाने की इच्छा
िथा आशा रखकर गखणका उसकी सेवा उसकी पत्नी के समान करें ।

श्लोक-37. भवच्न्त िात्र श्लोकाः- कवछिाचिगतत्तविांश्ि राजवल्लभतनष्ठुरान ्। आयत्सयां ि तदात्सवे ि


दरू ादे व त्तववजृयेत ्।।37।।

अर्ृ- इस त्तवर्य में प्राचीन श्िोक हैं- जजसको बड़ी कदठनाई से धन प्राप्ि हो, जो राजा को खश
44books.com ु
रखने के लिए क्रूर करिे हों, उनसे विषमान में अथवा भत्तवर्षय में ककिना भी धन प्राप्ि होने की
होने की आशा हो। िब भी वेश्या को ऐसे िोगों से िरू रखना चादहए।

श्लोक-38. अनर्ों वजृने येषां गमनेऽभ्युदय्तर्ा। प्रयत्सनोनात्तप तान ् गह्


व व सापदे िमुपक्रमेत ्।।38।।

अर्ृ- जजनको त्याग िे ने से िस ू रे अनथष की संभावना होिे हुए भी अपने अभ्युिय का उम्मीि हो
िो ऐसे प्रेलमयों से प्रयत्नपूवक
ष सेक्स करना चादहए।

श्लोक-39. प्रसन्ना ये प्रयछिच्न्त ्वल्पेऽपगणणतं वसु। ्र्ल


ू लक्षान्मिोत्ससािां्तान्गछिे त्स्वैरत्तप
व्ययैः।।39।।

अर्ृ- जो थोड़ी सी खश
ु ी प्राप्ि हो जाने पर अपना पूरा धन िे ने को िैयार रहिे हैं। वेश्या को इस
प्रकार के पुरुर्ों को अपना धन खचष करके लमिाना चादहए।
इस प्रकरण के अंिगषि वेश्याओं के उस त्तवशेर् धनिाभ की चचाष की गई है जजसे वे अनेक उपायों
से प्रेलमयों को फंसाकर प्राप्ि करिी हैं। शुरू में िीन प्रकार की वेश्याओं का उल्िेख ककया गया है -
1. एकपररग्रह 2. अनेकपररग्रह 3. अपररग्रह। जो स्िी एकचाररणी बनकर एक ही प्रेमी के पास रहने
िगिी है । वह एक पररग्रह, जो अनेक प्रेलमयों से सेक्स करके धन की प्राजप्ि करिी है । वह
अनेकपररग्रह, और जो ककसी से सम्बद्ध न होकर जो भी आिा है , उसी से सेक्स करके धन प्राप्ि
करिी है वह अपररग्रह वेश्या कहिािी है ।

कामशास्ि के अंिगषि वेश्याओं का शासन पर कोई भी तनयंिण प्रिीि नहीं होिा। वैलशक
अधधकरण में प्रेलमयों, वेश्यागालमयों को हर प्रकार से ठगने उन्हें मुड़ने की िथा तनुःसत्व हो जाने
पर धक्का िे कर तनकाि िे ने की, अपराध िांछन िगाकर उनकी सामाजजक बिनामी फैिाने की
पूरी छूट थी। राजा िथा अन्य राजपुरूर् भी कुछ त्तवशेर् वेश्याओं की दहमायि ककया करिे थे।
ककसी व्यजक्ि से उधचि धन प्राप्ि न होने पर अिािि में िावा करके प्राप्ि कर िेिी थी।
कौदटल्य अथषशास्ि के गखणकाध्यक्ष प्रकरण िथा कामसूि के वैलशक अधधकरण का िुिनात्मक
अध्ययन करने पर कुछ त्तवद्वानों की यह मान्यिा खत्म हो जािी है कक कौदटल्य िथा
वात्स्यायन एक ही थे। यह बाि सही है कक िोनों शास्िों की रचना पद्धति में साम्य है , िेककन
एक ही समय में एक ही आचायष द्वारा लिखे गये ग्रंथों में तनयम िथा त्तवधान िथा सामाजजक
िथा राजनीतिक परं पराओं में इिना वैर्म्य कथात्तप नहीं हो सकिा है ।
44books.com

आचायष कौदटल्य के समान ही कामसूिकारों ने भी उिम, मध्यम िथा अधमष िीन प्रकार की
वेश्याओं मानी है । िेककन लसद्धांि िथा उद्िे श्य अिग हैं। कौदटल्य के भेि राजाओं की पररचयाष
के लिए हैं। उनकी योग्यिा के अनुसार उन्हें अधधक और कम वेिन दिये जाने के हैं। िेककन
कामसूि के भेि अथोपाजषन िथा प्रेलमयों के साथ व्यवहार पर आधाररि है ।

आचायष वात्स्यायन ने अनेक िरह की वेश्याओं का समच्


ु चय कर गखणका, रूपाजीवा िथा
कुम्भिासी- ये िीन प्रकार की वेश्याएं तनधाषररि की हैं। उन्होंने गखणका को उिमा, रूपाजीवा को
मध्यमा िथा कंु भिासी को अधमा माना है ।

कामसूिकार ने यहां पर "समानप्रसवा जाति" लसद्धांि को स्वीकार कर वेश्या को स्िी जाति के


अंिगषि मानकर अपनी सिाशयिा का पररचय दिया है । वेश्या नारी का एक त्तवकृि रूप है या
नारी वगष का त्तवकृि रूप वेश्या वगष है ।

ऐसा कहा जािा है कक जजस प्रकार मनुर्षय से उच्च िे विा व मनुर्षय से तनम्न यक्ष, गंधवष योतनयां
होिी हैं, उसी िरह मानवी स्िी से उच्च अप्सरा भी स्िी हो सकिी है , िेककन गखणका वेश्या को
स्िी योतन (जाति) से अिग एक योतन मान िेना िकष, बुद्धध िथा मानव त्तवज्ञान के खखिाफ है ।
ऐसा महसूस होिा है कक जजस प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य िथा शूि इन चार मुख्य वणों के
अंिगषि अनेक वणष माने जाने िगे हैं। उसी प्रकार नारी जाति के अंिगषि वेश्याओं को भी
जन्मना जाति स्वीकार ककया गया है । िेककन इसे सैधांतिक न मानकर व्यवहाररक माना जािा
है ।

इति श्ीवात्स्यायनीये कामसूिे वैलशके र्र्षठे ऽधधकरणे िाभत्तवशेर्ुः पश्चमोऽध्यायुः।।

वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में

भाग 6 वैशिकं

अध्याय 6 अर्ाृहदत्तविार प्रकरण

श्लोक-1. अर्ाृनाियृमाणाननर्ाृ अप्यन्भवन्त्सयनुर्ंिाः संियाश्ि।।1।।

अर्ृ- धनोपाजषन के लिए कोलशश करिी ह44books.com


ु ई वेश्याओं को कई प्रकार के अनथष अनभ
ु व और संशयों
का सामना करना पड़िा है ।

श्लोक-2. ते र्ु्चिदौर्ृल्यादततरागादत्सयशभमानादततदम्भादत्सयाजृवा-दततत्तवश्िासादतत-
क्रोिात्सप्रमादात्ससािमा्दै वयोगाश्ि ्युः।।2।।

अर्ृ- वे अनथष उनके अनुबंध िथा संशय, बेवकूफी से अधधक प्रेम करने से, अधधक गवष करने से,
तनहायि आसानी से, अधधक यकीन करने से, अधधक गुस्सा करने से, प्रमाि से, त्रबना सोचे-समझे
काम करने से िथा िे वयोग से वेश्याओं पर टूट पड़िे हैं।

श्लोक-3. तेषां फलं कवत्य व्यय्य तनष्फलत्सवमनायततरागशमष्यतोऽर्ृ्य तनवतृन माप्त्य


तनष्क्रमणं पारुष्य्य प्राच्प्तगृम्यता िरीर्य प्रघातः केिानां िे दनं पातनमंगवैकल्यापत्तिः।।3।।

अर्ृ- इनके बुरे पररणाम ये तनकििे हैं- धचककत्सा आदि में खचष ककया धन बेकार हो जािा है ।
नायक पर प्रभाव भी नहीं रह जािा है । िो धन प्राप्ि होिा है वह भी नहीं लमििा िथा संक्षक्षप्ि
धन भी तनकि जािा है । अक्सर आपस में किह के कारण मत्ृ यु भी हो जािी है । या गुस्से में
आया हुआ प्रेमी बािों को पकड़कर वेश्या को नीचे धगराकर मारिा है और हाथ-पैरों को िोड़ िे िा
है ।

श्लोक-4. त्मािानाहदत एव पररच्जिीषेदर्ृभूतयष्ठांश्िोपेक्षेत ्।।4।।

अर्ृ- इस कारण से वेश्या को चादहए कक आरम्भ से ही बेवकूफी आदि को िरू करने की कोलशश
करें ।

श्लोक-5. अर्ो िमृः काम इत्सयर्ृत्रत्रवगृः।।5।।

अर्ृ- अथष, धमष िथा काम यह अथष त्रिवगष है ।

श्लोक-6. अनर्ोऽिमो ्वेष इत्सयनर्ृत्रत्रवणृः।।6।।


44books.com

अर्ृ- अनथष, अधमष िथा ईर्षयाष- यह अनथष त्रिवगष है ।

श्लोक-7. तेष्वाियृमाणेष्वन्य्यात्तप तनष्पत्तिरनुर्ंिः।।7।।

अर्ृ- अथष आदि छहो को लसद्ध हो जाने पर उसके साथ िस


ू रा भी स्विुः सात्रबि हो जािा है वह
अनब
ु ंध है ।

श्लोक-8. संहदग्िायां तु फलप्राप्तौ ्या्वा न वेतत िु्िसंियः।।8।।

अर्ृ- यह होगा या नहीं इस िरह के फि नें संिेह होना शद्


ु ध संशय है ।
श्लोक-9. इदृ वा ्याहददं वेतत संकीणृः।।9।।

अर्ृ- यह फि होगा या वह फि होगा- यह संकीणष संिेह है ।

श्लोक-10. एकच््मन ् कक्रयमाणे काये कायृ्वय्योत्सपत्तिरुभयतोयोगः।।10।।

अर्ृ- यह कायष करिे हुए िस


ू रे कायष की उत्पत्ति हो जाए िो वह उभय योग कहिािा है ।

श्लोक-11. समन्तादत्सु पत्तिः समन्ततोयोग इतत तानदािररष्याशमः।।11।।

अर्ृ- चारों ओर से उत्पत्ति हो िो यह समन्वि योग है । इन सभी के उिाहरण आगे दिये जाएंगे।

श्लोक-12. त्तविाररतरूपोऽर्ृत्रत्रवणृः। त्त्तवपरीत एवानर्ृत्रत्रवगृः।।12।।

44books.com
अर्ृ- जजसके स्वरूप का त्तवचार ककया जा चक
ु ा है वह अथष त्रिवगष है , उसी के त्तवपरीि अनथष त्रिवगष
है ।

श्लोक-13. य्योिम्याशभगमने प्रत्सयक्षतोऽर्ृलाभो ग्रिणीयत्सवमायततरागमः प्रार्ृनीयत्सवं िान्येषां


्यात्ससोऽर्ोऽर्ाृनर्
ु ंिः।।13।।

अर्ृ- प्रेमी के सभी गुणों से युक्ि उिम नायक के साथ सेक्स करने से वेश्या को शीघ्र ही उससे
धन की प्राजप्ि होिी है । इस कारण से वह वेश्या िस
ू रों के लिए आकर्षक चीज बन जािी है ।
इससे उसका प्रभाव बढ़ जािा है । उससे सेक्स करने के लिए िोग प्राथषना करिे हैं। इस िरह का
अथष िस
ू रे िरह के अथों से संबंधधि होने से अथाषनुबंध होिा है ।
श्लोक-14. लाभमात्रे क्यचिदन्य्य गमनं सोऽर्ो तनरनुर्ंिः14।।

अर्ृ- िाभ की दृजर्षट से ककसी भी सेक्स करना अनुबंध रदहि अथाषि ु् तनरनुबन्ध है ।

श्लोक-15. अन्यार्ृपररग्रिे सततादायततछिे दनमर्ृ्य तनष्क्रमणं लोकत्तव्त्तवष्ट्य वा नीि्य


गमनमायततघ्न मर्ोऽनर्ाृनुर्ंिः।।15।।

अर्ृ- जो तनधषन प्रेमी िस


ू रे का धन अपहरण करके वेश्या को िे िे िा है । िो ऐसा धन िेने से
वेश्या का प्रभाव घटिा है िथा वह धन तनकि भी जािा है । अथवा िोकिोही या नीच के साथ
सेक्स करने से भी प्रभाव घट जािा है । ऐसा अथष-अनथष उत्पन्न करिा है । इसीलिए इसे
अथोऽनथाषनुबंध कहिे हैं।

श्लोक-16. ्वेन व्ययेन िरू ्य मिामात्र्य प्रभवतो वा लब्ु ि्य गमनं तनष्फलमत्तप ।।16।।

अर्ृ- ककसी शूर-वीर अथवा प्रभावशािी, िोभी या राजमंिी के लिए स्वयं खचष करने पर भी
44books.com
प्रयोजन लसद्ध न हो िो िब भी मौके पर संकटों, अनथों के प्रतिकार के लिए और िोगों में प्रभाव
जमाने के लिए वह लमिना िाभिायक होिा है । एक प्रयोजन के न लसद्ध होने पर भी िस
ू रा
प्रयोजन िो लसद्ध हो ही जािा है ।

श्लोक-17. कदयृ्य सभ
ु गमातननः कवतघ्न्य वाततसंिानिील्य ्वैरत्तप व्ययै्तर्ारािनमंते
तनष्फलं सोऽनर्ों तनरनुर्ंिः।।17।।

अर्ृ- स्वयं को खब
ू सूरि समझने वािे िरु ाचारी, कृिघ्न प्रेमी से जब वेश्या अपना धन खचष कर
काफी खश
ु ामि करके सेक्स करािी है िो उसका धन िथा अनुराग तनर्षफि हो जािा है । ऐसा धन
अनथोतनरनुबंध होिा है ।
श्लोक-18. त्यैव राजवल्लभ्य क्रौयृप्रभावाचिक्य तर्ैवारािनमंते तनष्फलं तनष्कासनं ि दोषकरं
सोऽनर्ाृनुर्ंिः।।18।।

अर्ृ- उसी प्रकार क्रूर राजपुरूर् अथवा राज्याधधकारी के साथ सेक्स करना भी तनर्षफि होिा है
िथा उसे तनकाि िे ना भी काफी बड़ी गििी है । इसलिए िस
ू रे अनथों को साथ लिए यह
अनथोऽनुबंध है ।

श्लोक-19. एवं िमृकामयो्प्यन


ु र्ंिान्योजयेत ्।।19।।

अर्ृ- इस िरह धमष िथा काम के अनुबंधों की योजना बना िेनी चादहए।

श्लोक-20. पर्परे ण ि यत
ु तया संककरे देत्सयनर्
ु ंिाः।।20।।

अर्ृ- इन्हें आपस में युजक्िपूवक


ष लमिना चादहए। ये अनुबंध पूरे होिे हैं।

44books.com

श्लोक-21. पररतोत्तषतोऽत्तप दा्यतत न वेत्सयर्ृसंियः।।21।।

अर्ृ- राजी हो जाने के बाि भी िे गा अथवा नहीं, इस िरह के संिेश को अथषसंशय के नाम से
जाना जािा है ।

श्लोक-22. तनष्पीडितार्ृमफलमत्सु सज
व न्त्सया अर्ृमलभमानाया िमृः ्यात्र वेतत िमृसंियः।।22।।

अर्ृ- वेश्या ने जजस प्रेमी को अपने जाि में फंसाकर सारा धन िे लिया हो और उससे धन न
लमिने से उसे त्याग िे ने को उद्यि हो िो उसका इस प्रकार त्याग करना वेश्या का धमष होगा
अथवा नहीं।
श्लोक-23. अशभप्रेतमुपलभ्य पररिारकमन्यं वा क्षुद्रं गत्सवा कामः ्यात्र वेतत कामसंियः।।23।।

अर्ृ- इजच्छि प्रेमी को पाकर वेश्या जब आत्मीय सेवक अथवा ककसी तनम्न व्यजक्ि के पास
जाकर यह शक करिी है कक काम होगा अथवा नहीं, वेश्या का यही सोचना काम-संशय है ।

श्लोक-24. प्रभावान ् क्षुद्रोऽनशभगतोऽनर्ं कररष्यतत न वेत्सयनर्ृसंियः।।24।।

अर्ृ- प्रभावशािी नीच-संभोग न होने पर अनथष करे गा अथवा नहीं। यह अनथषसंशय है ।

श्लोक-25. अत्सयंततनष्फलः सततः पररत्सयततः त्तपतल


व ोकं याताित्रािमृः ्यात्र वेत्सयिमृसंियः।।25।।

अर्ृ- सेक्स करने के लिए इच्छुक धनहीन प्रेमी को सारहीन समझकर छोड़ िे ना चादहए। कफर यह
न सोचना कक कभी वह त्तवयोगी मर जाएगा िो अधमष होगा। अथवा नहीं- इस प्रकार सोचना
अधमषसंशय है ।

44books.com

श्लोक-26. राग्यात्तप त्तववक्षायामशभप्रेतमनप


ु लभ्य त्तवरागः ्यात्र वेतत ्वेषसंियः। इतत
ि्
ु िसंियाः।।26।।

अर्ृ- सेक्स कक्रया से िुःु खी वेश्या अपने मनचाहे प्रेमी को न पाकर अपनी काम-व्यथा की शजक्ि
के लिए जब िड़पिी है िो उस समय उसे त्तवरोग होना अथवा नहीं यही द्वेर् का संशय है । शुद्ध
संशय समाप्ि होिे हैं।

श्लोक-27. अर्ृ संकीणृः।।27।।

अर्ृ- इसके अंिगषि संकीणष संशय कहिे जािे हैं।


श्लोक-28. आगंतोरत्तवहदतिल्य वल्लभसंश्रय्य प्रभत्तवष्णोवाृ समुपररच््र्त्यारािनमर्ोऽनर्ृ इतत
संियः।।28।।

अर्ृ- आधश्ि प्रेमी अथवा प्रभावशािी प्रेमी की उपजस्थति में यदि अपररधचि व्यजक्ि लमिने के
लिए आिा है िो वेश्या के सामने संशय की जस्थति होिी है कक वह उस व्यजक्ि से सेक्स करे
अथवा न करे ।

श्लोक-29. श्रोत्रत्रय्य रह्मिाररणो दीक्षक्षत्य व्रततनो शलंचगनो वा मां दृष्टा जाताराग्य


मम
ु ष
ू ोशमृत्रवातयादाननि
व ं्याश्ि गमनं िमोंऽिमृ इतत संियः।।29।।

अर्ृ- प्रेलमका को िे खकर श्ेतयि, ब्रह्मचारी, िीक्षक्षि, व्रिी, साध-ु संयासी अथवा मरने की इच्छा रखने
वािे िोगों के साथ िोस्िों के कहने पर अथवा अपनी ियािुिा के कारण से सेक्स करना धमष
होगा अथवा अधमष- यह संिेह धमाषधमष संकीणष है ।

श्लोक-30. लोकादे वाकवतप्रत्सययादगण


ु ो ग44books.com

ु वान्वेत्सयनवेक्ष्य गमनं कामो्वेष इतत संियः।।30।।

अर्ृ- प्रेमी के गुण, अवगुण पर खि


ु कोई त्तवचार न करके लसफष िोगों से सुनकर कक यह गुणवान
है - प्रेलमका उससे जब संभोग करिी है िो उसे शक उत्पन्न होिा है कक इस िरह का समागम
कायष होगा अथवा द्वेर्- इस शक को कामद्वेर् संकीणष संशय कहिे हैं।

श्लोक-31. संककरे छि पर्परे णेतत संकीणृसंियाः।।31।।

अर्ृ- जो आपस में लमििे समय संशय हो वह संकीणष है । संकीणष संशय पूरे होिे हैं।

श्लोक-32. यत्र पर्याशभगमनेऽर्ृः सतताछि संघषृतः उभयतोऽर्ृः।।32।।

अर्ृ- ककसी िस
ू रे प्रेमी के साथ धन िेकर सेक्स करने से वेश्या पर आकत्तर्षि प्रेमी भी िस
ू रे नायक
का संबंध त्तवच्छे ि करने के लिए धन िे िे िा है िो िोनों ओर से धन का योग होने से यह
उभयिोऽथषयोग कहिािा है ।
श्लोक-33. यत्र ्वेन व्ययेन तनष्फलमशभगमनं सतताछिमत्तषृता्त्तविप्रत्सयादानं स
उभयतोऽनर्ृः।।33।।

अर्ृ- अपना धन खचष करके भी वेश्या जजस प्रेमी से सेक्स करिी है िथा उसे कुछ भी नहीं
लमििा है और रुर्षट प्रेमी से उसके दिये गये धन के तछन जाने का डर भी बना रहिा है िो उसे
उभयिोऽनथष कहिे हैं।

श्लोक-34. यत्राशभगमनेऽर्ो भत्तवष्यतत न वेत्सयािंका सततोऽत्तप संघषाृ्दा्यतत न वेतत स


उभयतोऽर्ृसंियः।।34।।

अर्ृ- जजसके साथ सेक्स करने से वेश्या को धन की प्राजप्ि होिी है या नहीं यह संिेह हो, धनहीन
आसक्ि संघर्ष में पड़कर धन िे गा अथवा नहीं- िोनों ओर से ऐसा शक होने पर उभयोिोथषसंशय
होिा है ।

श्लोक-35. यत्र पर्याशभगमने ऽर्ृः सतताछि संघषृतः उभयतोऽर्ृः।।35।।


44books.com

अर्ृ- ककसी िस
ू रे प्रेमी के साथ धन िेकर सेक्स करने से वेश्या पर मोदहि प्रेमी भी िस
ू रे नायक
का संबंध त्तवच्छे ि करने के लिए धन िे िा है िो िोनों ओर से धन का योग होने से यह
उभ्यिोऽथष कहिािा है ।

श्लोक-36. र्ाभ्रवीया्तु।।36।।

अर्ृ- और बाभ्रवीयास्िु सम्प्रिाय के आचायष िो इन संशयों को जजस प्रकार का कहिे हैं। वैसा
सुनिे भी हैं।
श्लोक-37. यत्राशभगमनेऽर्ोनशभगमने ि सततादर्ृः स उभयतोऽर्ृः।।37।।

अर्ृ- जजस उभयिोयोग में वेश्या अपने पहिे के प्रेमी से त्रबना सेक्स ककये ही िस
ू रे के साथ सेक्स
करके धन प्राप्ि कर िे िथा बाि में पुराने प्रेमी को खश
ु करके उससे भी धन प्राप्ि कर िे िो
यह उभयिोऽथष कहिािा है ।

श्लोक-38. यत्राशभगमने तनष्फलो व्ययोऽनशभगमने ि तनष्प्रतीकारोऽनर्ृः।।38।।

अर्ृ- जजस सेक्स में बेकार ही खचष हो और सेक्स न करने से अतनवायष संकट उपजस्थि होने का
डर हो और सेक्स करने पर पुराना प्रेमी गुस्से में आकर कुछ अनथष कर बैठे िो यह उभयिोऽनथष
होिा है ।

श्लोक-39. यत्राशभगमने तनव्यृयो दा्यतत न वेतत संियोऽनशभगमने सततो दा्यतत वेतत स


उभयतोऽर्ृसंियः।।39।।
44books.com
अर्ृ- जजसके सेक्स से कुछ अपना खचष नहीं िेककम वह कुछ िे गा या नहीं िे गा। यह संशय बना
हो और अपना आसक्ि प्रेमी भी त्रबना लमिे िे गा अथवा नहीं, यह भी संिेह हो िो यह उभयिोऽथष
संिेह है ।

श्लोक-40. यत्राशभगमने व्ययवतत पव


ू ो त्तवरु्िः प्रभाववान ् प्राप््यते न वेततसंियोऽनशभगमने ि
क्रोिादनर्ृ कररष्यतत न वेतत स उभयतोऽनर्ृ संियः।।40।।

अर्ृ- अपना धन खचष कर िे ने पर भी जजससे सेक्स करने में यह संिेह हो कक पहिा प्रेमी जो
प्रभावशािी है इसके साथ सेक्स करने पर गुस्से में आकर कहीं लमिना बंि न कर िे और न
लमिने पर यह गुस्से से कुछ अनथष करे गा अथवा नहीं इस प्रकार का संिेह उभयिोऽनथष संशय है ।
श्लोक-41. एतेषामेव व्यततकरे ऽन्तोर्ोऽन्यतोऽनर्ृः, अन्यतोऽर्ोऽन्योतोऽर्ृसंियः
अन्यतोऽर्ोऽन्यतोऽनर्ृसंियः इतत ष्सकीणृयोगाः।।41।।

अर्ृ- संयोग से इन्हीं के बारे में एक-एक के 6 संकीणष योग बनिे हैं। एक से अथष एक से अनथष,
एक से अथष एक से अथषसंशय औऱ एक से अथष एक से अनथष संशय- ये िीन श्वेिकेिु के मि से
और िीन ही बाभ्रवीय मि से िोनों लमिाकर 6 हो जािे हैं। र्टं संकीणष योग समाप्ि होिा है ।

श्लोक-42. तेषु सिायैः सि त्तवमश्व य यतोऽर्ृभतू यष्ठोऽर्ृसंियो गरु


ु रनर्ृप्रिमो वा ततः प्रवतेत।।42।।

अर्ृ- इनमें से इनके सहायिाकारों के साथ त्तवचार करके इससे अधधक अथष वािा संशय हो या
जजसमें महान अनथष की शजक्ि हो, उसी के साथ प्रवि
ृ होना चादहए।

श्लोक-43. एवं िमृकामावप्यनयैव यततयोदािरे त ्। संककरे छि पर्परे ण


व्यततषञ्जयेछिेत्सयभ
ु यतोयोगाः।।43।।
44books.com
अर्ृ- अथष शुद्ध उभयिोयोग के ढं ग पर ही धमष िथा काम के लिए शु ु्द्ध उभयिोयोग बना िेना
चादहए। जजस प्रकार अथष के संकीणष योग हैं। उसी िरह परस्पर संकीणष योग बना लिया जाए िो
िथा कफर उनके त्तवरोधी भाव हटाकर आपस में संजश्िर्षट कर िें ।

श्लोक-44. संभय
ू ि त्तवटाः पररगि
व णन्त्सयेकामसौ गोष्ठीपररग्रिः।।44।।

अर्ृ- ककसी एक वेश्या के साथ जब एक से अधधक त्तवट लमिकर सेक्स करिे हैं िो उसे गोर्षठी
पररग्रह कहिे हैं।

श्लोक-45. सा तेषाशमत्यतः संसज्


व यमाना प्रत्सयेकं संघषृदर्ं तनवृतय
ृ ेत ्।।45।।

अर्ृ- गोर्षठी पररग्रह करने वािी वेश्या इधर-उधर लमिकर अपने लमिने-जुिने वािों से संघर्ष
कराकर उनसे धन प्राप्ि कर िे।
श्लोक-46. सुवसंतकाहदषु ि योगे यो मे इमममुं ि संपादतयष्यतत त्या्य गशमष्यतत मे दहु ितेतत
मात्रा वाियेत ्।।46।।

अर्ृ- वेश्या की मां उसके प्रेलमयों के पास संिेश भेज िे कक सुवसंिक, कौमुिी महोत्सव, महन
महोत्सव आदि तनकट आने वािे उत्सव में मेरी पुिी उसी के साथ सेक्स करे गी, जो इन चीजों को
सबसे पहिे उसे िे गा।

श्लोक-47. तेषां ि संघषृजेऽशभगमने कायाृणण लक्षयेत ्।।47।।

अर्ृ- उस मौके पर वहां जब प्रेमी िोग प्रेलमका से लमिने के लिए आपस में संघर्ष करने िगें उस
समय वह अपना िक्ष्य अधधक िाभ पर ही रखे।

श्लोक-48. एकतोऽर्ृः सवृतोऽर्ृः एकतोऽनर्ृः। अिृतोऽर्ृः सवृतोऽर्ृः अिृतोऽनर्ृः सवृतोऽनर्ृ। इतत


समन्ततो योगाः।।48।।
44books.com
अर्ृ- एक से अथष सबसे अथष, एक से अनथष सबसे अनथष, आधे से अथष पूरे से अथष, आधे से अनथष-
चारों िरह के योग हैं।

श्लोक-49. अर्ृसंियमनर्ृसंियं ि पव
ू व
ृ ्योजयेत ्। संककरे छि तर्ा िमृकामावत्तप।
इत्सयर्ाृनर्ाृनर्
ु ंिसंियत्तविाराः।।49।।

अर्ृ- सबसे पहिे अथष संशय िथा अनथष संशय की योजना बनानी चादहए। इसके साथ ही संकीणष
को भी जान िेना चादहए। इसी िरह धमष िथा काम के समन्िोयोग समझने चादहए।

श्लोक-50. कुम्भदासी पररिाररका कुल्टा ्वैररणी नटी शिल्पकाररका प्रकाित्तवनष्टा रूपाजीवा


गणणका िेतत वेश्यात्तविेषः।।50

अर्ृ- वेश्याएं कुम्भिासी, पररचाररका, कुल्टा, स्वैररणी, नटी, लशल्पकाररका, प्रकाश, त्तवनर्षटा, रूपाजीवा
िथा गखणका आदि प्रकार की होिी हैं।
श्लोक-51. सवाृसां िानुरूपेण गम्याः सिाया्तुदप
ु रञ्जनमर्ाृगमोपाया तनष्कासनं पुनः संिानं
लाभत्तविेषानुर्ंिा अर्ाृनर्ाृनुर्ंिसंियत्तविाराश्िेतत वैशिकम ्।।51।।

अर्ृ- उपयक्
ुष ि सूि में जजिनी प्रकार की वेश्याओं के बारे में बिाया गया है उिने ही प्रकार के
उनसे सेक्स करने के लिए आने वािे भी होिे हैं। इस वैलशक अधधकरण में वेश्याएं, वेश्याओं के
प्रेमी, उनके सहायक अनुरुक्ि करने के उपाय, धन खींचने के उपाय, प्रेमी को तनकािने का िरीका
िथा तनकािकर कफर लमिाने का िरीका, िाभ त्तवशेर् अथष, अनथष, अनुबंध िथा संशय त्तवचार
मुख्यिया इन्हीं के बारे में वणषन ककया गया है ।

श्लोक-52. भवतश्िात्र श्लोकौ- रत्सयर्ाृः परू


ु षा येन रत्सयर्ाृश्िैव योत्तषतः। िा्त्र्यार्ृप्रिानत्सवािेन
योगोऽत्र योत्तषताम ्।।52।।

अर्ृ- इसके संबंध में िो श्िोक हैं-

स्िी िथा परु


ु र्ों के लमिन का प्रमख
ु उद्िे श्य सेक्स सख
ु की प्राजप्ि होिा है । स्िी िथा परु
ु र्ों के
सेक्स सख ु का उद्िे श्य ही इस शास्ि का प्रतिपाद्य त्तवर्य है , इसलिए वैलशक अधधकरण में जस्ियों
44books.com
के रतिप्रयोजन पर त्तवस्िार से त्तवचार ककया गया है ।

श्लोक-53 संतत रागपरा नायृः संतत िार्ृपरा अत्तप। प्राततत्र वणणृतो रागो वेश्यायोगाश्ि
वैशिके।।53।।

अर्ृ- अनेक औरिें त्तवशुद्ध अनुराधगणी होिी हैं, बहुि सी औरिें सेक्स के साथ धन की भी इच्छा
रखिी हैं। त्तवशुद्ध अनुराधगणी जस्ियों का वणषन प्रारम्भ में ही ककया जा चुका है और जो औरिे
रति राग के साथ अथष की भी कामना करिी हैं। उनका उल्िेख इस प्रकरण में ककया जा रहा है ।

स्िी हो या पुरूर्, सिी हो या वेश्या, गह


ृ स्थ हो या त्तवरक्ि, संवेग के कारण सभी की कक्रयाएं
पररवतिषि होिी हैं। एक ही जस्थति पर हमेशा रहने से सुंिरिा नर्षट होने िगिी है । इस प्रकार यह
िय है कक एक त्तवर्य से उत्पन्न संवेग में पररविषन अवश्य ही होिे हैं। त्तवर्षणुपुराण के अंिगषि एक
ही त्तवर्य पर िो भाव या संवेग एक साथ ही उत्पन्न हो सकिे हैं क्योंकक जब एक ही वस्िु से
िुःु ख, सुख, ईर्षयाष आदि उत्पन्न होिे हैं िब वह वस्िु िख
ु िे िी है । यही एक समय प्रेम को उत्पन्न
करिा है , िख
ु , क्रोध िथा प्रसन्निा को उत्पन्न करिा है ।
ठीक यह प्रवत्तृ ि, यही वेश्याओं िथा उनके प्रेलमयों की भी होिी है । जजसे कामसूि से व्यवहाररक
मनोवैज्ञातनक आधार पर समझाया गया है । वेश्याओं की सुंिरिा पर अपनी जान िे ने को िैयार
रहने वािे प्रेमी उससे अपमातनि होकर, उसकी ठोकरें खाकर, उससे िुट जाने पर भी पीछा नहीं
छोड़िे। उन्हें अपने प्रेलमका की जुिाई पि भर के लिए भी बिाषश्ि नहीं होिी है । धमषशास्ि भी
इसका समथषन करिा है ।
शास्िकार ने अधधकरण समाप्ि करिे हुए वेश्याओं के त्तवलभन्न प्रकार बिायें हैं- कुम्भिासी,
पररचाररका, कुल्टा, स्वैररणी, नटी, लशल्पकाररका, प्रकाशत्तवनर्षटा, रूपाजीवा, गखणका आदि। प्रलसद्ध
टीकाकार यशोधर ने अपनी जयमंगिा टीका में इनके िक्षणों को बिािे हुए लिखा है कक तनकृर्षट
कायष करने वािी स्िी कुम्भिासी, जो अपने स्वामी की सेवा करिी है , ऐसी सेत्तवका, पररचाररका,
वेश्या जो पति के डर से िस
ू रों के घर में जा करके व्यलभचार करािी है , अपने पति का अनािर
करके जो अपने घर पर ही अथवा कहीं अन्य जगह पर व्यलभचार करिी है । वे स्वैररणी वेश्या
कहिािी हैं।
सावषजतनक समारोहों में नाचने वािी, वेश्या, धोबी अथवा िजी की पत्नी लशल्पकाररका वेश्या, जो
पति के जजंिा रहने पर या मर जाने पर ककसी िस
ू रे के साथ शािी कर िेिी है । प्रकाश त्तवनर्षटा,
पररचाररका, वेश्या से िेकर प्रकाश त्तवनर्षटा िक की जस्ियां रूपाजीवा वेश्या कहिािी हैं।
इस अधधकरण के छठे अध्याय में वात्स्यायन ने वेश्या के अथष-अनथष िथा संशय संबंधी
44books.com
आपत्तियां और उनके प्रतिकार के जो उपाय बिाये हैं। वह त्तवशुद्ध राजनीति के हैं। आचायष
कौदटल्य ने कौटिीय अथषशास्ि के नवें अधधकरण के सािवें अध्याय में राजा के लिए यहीं उपाय
बिायें हैं। शिु की वद्
ृ धध के त्तवर्य में कौदटल्य ने राजा के लिए 1. आपिशष, 2. अनथष, िथा 3.
संशय जो िीन बािें बिाई गयी हैं वही वात्स्यायन िश्ु मन के पैिा होने पर भी वेश्या के लिए
बिािे हैं।
इति श्ीवात्स्यायनीये कामसूिे वैलशके र्र्षठे ऽधधकरणे अथाषनथाषनुबंधसंशयत्तवचारा वेश्यात्तवशेर्ाश्च
र्र्षठोऽध्यायुः. समाप्िं चाधधकरणम ु्।

You might also like