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Kam Bhag3 PDF
Kam Bhag3 PDF
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वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में
पिले दोनों भागों के ललए 44 books दे खें
भाग 3 कन्यासम्प्रयक्
ु तक
अध्याय 1 वरण संववधान प्रकारण
अध्याय 2 कन्याववस्रम्भणम ् प्रकरण
अध्याय 3 बालोपक्रमााः प्रकरण
अध्याय 4 एक परू
ु षाभभयोग प्रकरण
अध्याय 5 वववाह योग प्रकरण
श्लोक-1. सवणाायामनन्यपव
ू ाायां शा्त्रतोऽधधगतायां धमोऽर्ाः पुत्राः संबंधः पक्षवद्
44books.com ृ धधरनुप्कृता
रततश्च।।1।।
अर्ा- कन्या की शादी का ववधान बताते हुए वात्स्यायन कहते हैं- कक जो युवक अपनी ही
जातत की युवती के साथ शा्रों के तनयम के अनुसार वववाह करता है , उसे बबना ककसी कष्ट
के धमम, धन और पुर की प्राप्तत होती है । ऐसे पुरूष को पत्सनी से बेहद तयार भमलता है , उसकी
सेक्स पॉवर बढ़ती है और सेक्स का भरपूर आनन्द भमलता है ।
अर्ा- शा्रों में कहा गया है कक युवक को ऐसी लड़की से शादी करनी चाहहए जो उसकी
जातत की हो और उसमें उस जातत के सभी गुण मौजूद हों, माता-वपता का साथ हो, लड़की
उससे तीन साल छोटी हो, सुशील-शलीन बतामव करने वाली हो, अमीर घर की हो, प्जसका
पररवार प्रततप्ष्ित और लोकवप्रय हो, प्जसके ररश्तेदार भी ऐसे ही हो, माता-वपता के अलावा घर
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में अन्य सद्य भी हो और उनमें गहरा प्रेम हो, जो लड़की ्वयं शील व सुन्दरता संपन्न हो
प्जसके दांत, नाखन
ू , कान, बाल, आंखे, ्तन न बहुत बड़े हो और न ही बहुत छोटे ।
श्लोक-3. यां गि
ृ ीत्सवा कृततनमात्समानं मन्येत न च समानैतनान्द्येत त्यां रववृ िररतत
घोटकमुखः।।3।।
अर्ा- आचायम घोटकमुख कहते हैं कक प्जस कन्या से शादी करके पुरूष अपने को धन्य समझे
और प्जससे शादी करने पर सदाचारी भमरगण तारीफ करें , बुराई न करें , ऐसे ही लड़की से
शादी करनी चाहहए।
अर्ा- इस तरह के गुणों से सम्पन्न कन्या को वववाह के भलए माता-वपता तथा सगे-संबंधधयों
को कोभशश करनी चाहहए। दोनों तरफ के दो्तों को भी इस संबंध को बनाने के भलए कोभशश
करनी चाहहए। 44books.com
अर्ा- ज्यादातर दो्तों की यही प्रववृ ि होती है कक वे अपने दो्त की कुलीनता, उसके पौरूष,
शील आहद की तारीफ करते हैं और लड़की के घर वालों से उसके कायम और गुणों के बारे में
बताते हैं। वे अपने दो्त से उन्हीं के प्रत्सयक्ष तथा आगामी गुणों का बखान करते हैं प्जन्हें
लड़की की मां और घर वाले पसंद करते हैं।
लड़के की मां को लड़के की शादी से होने वाले महान आधथमक लाभ और उसके कल्याण का
अनुभवाभसद्ध वणमन करें ।
अर्ा- मां के पास भेजे जाने वाले व्यप्क्त को चाहहए कक लड़की की मां को लड़के के बारे में
बढ़ा-चढ़ा कर कहें । उसे कहें कक आप अपनी लड़की की शादी प्जस लड़के से करना चाहते हैं
वह लड़का आपकी लड़की के भलए बबल्कुल िीक है । उसकी मां को समझाते हुए कहे कक
आपको अपनी लड़की की शादी उसी लड़के से करना चाहहए क्योंकक वही लड़का आपकी लड़की
के भलए अच्छा जीवन साथी बन सकता है ।
श्लोक-8. दै वतनलमिशकुनोपश्रत
ु नामानुलोम्प्येन कन्यां वरयेद्दद्याच्चा।।8।।
अर्ा- लड़के को ऐसी लड़की से शादी नहीं करनी चाहहए जो अधधक सोती है , झगड़ालू हो,
जल्दी रोने वाली हो, अधधक घूमने वाली हो और पररवार में झगड़ा कराने वाली हो।
अर्ा- ऐसी लड़की के साथ शादी नहीं करनी चाहहए प्जसके नाम भद्दे व अटपटे हो। ऐसी
लड़की प्जसे लोगों के बीच बैिना अच्छा नहीं लगता, अकेली रहना पसंद करती है , भूरे बाल
हो, सफेद दाग हो, बड़ी तनतम्ब (हीतस) हों, गदम न झुकी हो, प्जसका शरीर पुरूष के समान तगड़ा
एवं हष्ट-पुष्ट हो, भसर में कम बाल हो, प्जसमें लज्जा व शमम का भाव न हो, गूंगी हो, प्जसे
बचपन से जानते हो, पूरी तरह युवती नहीं हुई हो, प्जसके हाथ-पैर पसीजते हो आहद। इस
तरह के अवगुणों वाली लड़की के साथ शादी नहीं करनी चाहहए।
अर्ा- ऐसी लड़की से भी शादी नहीं करनी चाहहए प्जसका नाम नक्षर, नदी या पेड़ के नाम पर
हो। प्जसके नाम के अंत में ‘ल’ या ‘र’ अक्षर हो उससे भी शादी नहीं करनी चाहहए।
अर्ा- कुछ ज्योततष शा्रों का कहना है कक प्जस लड़की से लड़के की आंखे और मन भमल
जाए उससे वववाह करने में सुख और आनन्द की वद्
ृ धध होती है । यहद शादी करने वाली
लड़की से मन और आंखें न भमलती हो तो उस लड़की से शादी नहीं करनी चाहहए।
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अर्ा- माता-वपता को चाहहए कक वह अपनी लड़की को अच्छे व्र पहनाकर, आभूषण पहना
कर और साज-सवांर कर लड़के और उसके पररवार वाले को हदखाएं।
अर्ा- लड़की के माता-वपता को चाहहए कक लड़के से शादी तय करने से पहले अपने ररश्तेदार,
दो्तों से सलाह लेने के भलए लड़के के माता-वपता से समय मांगे। इसके बाद लड़के के
पररवार के बार में जब सब कुछ पता लग जाए और अपने बराबर का लगे तो ही उससे
अपनी लड़की की शादी तय करनी चाहहए।
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अर्ा- अगर ्नान आहद के भलए वरण करने वाले अनुरोध करें तो उसी रोज ्वीकार न करें ।
उनसे भसफम इतना कह दें कक दे खखए सब कुछ सही समय पर हो जाएगा।
अर्ा- भारतीय सं्कृतत के मुताबबक चार प्रकार की शाहदयां होती हैं- ब्राह्म, प्राजापत्सय, आषम
तथा दै व। इन चारों में से ककसी भी एक के द्वारा शा्रों के अनुसार लड़की के साथ शादी
कर लेनी चाहहए।
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अर्ा- लड़की को अपने समान उम्र के लड़के के साथ खेलना चाहहए, समान उम्र के लड़के के
साथ दो्ती करनी चाहहए और युवती होने पर योग्य व समान उम्र वाले के साथ ही वववाह
करना चाहहए। अधधक उम्र के लड़कों के साथ दो्ती और अधधक उम्र के पुरूष के साथ
वववाह नहीं करना चाहहए।
श्लोक-21. कन्यां गि
ृ ीत्सवा वतेत रेष्यवद्यत्र नायकः। तं ववद्यादच्ु चसंबंधं पररत्सयक्तं
मनह््वलभः।।21।।
अर्ा- लड़के को अपने समान है भसयत वाले लड़की के साथ ही शादी करनी चाहहए क्योंकक जो
पैसे या अन्य लालच वश अपने से अधधक अमीर लड़की से शादी करता है उसके साथ नौकर
के समान व्यवहार ककया जाता है । ककसी छोटे घर के लड़के को बड़े घर की लड़की या ककसी
छोटे घर की लड़की को अधधक बड़े घर के लड़के के साथ शादी नहीं करनी चाहहए। इस तरह
के संबंधों को उच्च संबंध कहा जाता है । अक्सर बद्
ु धधमान लोग इस तरह का संबंध कभी
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नहीं करते।
श्लोक-22. ्वालमवद्ववचरे द्यत्र बांधवैः ्वैः परु ्कृतः। अश्र्लाघ्यो िीनसंबंधः सोऽवप
सद्धधववातनन्द्यते।।22।।
अर्ा- अक्सर कुछ पुरूष तनधमन घर की लड़की के साथ शादी करके उस पर माभलक की तरह
शासन करता है । ऐसे घरों में तनधमन घर की लड़की नौकरानी बनकर रहती है । इस तरह का
वैवाहहक संबंध हीन संबंध कहलाता है । जो लोग बद्
ु धधमान होते हैं वे इस तरह के संबंधों से
बचते हैं।
अर्ा- अपने से ऊंचा संबंध ्थावपत करने पर अपने ररश्तेदारों से दबना पड़ता है , उनके सामने
झक
ु ना पड़ता है । हीन संबंध को भी सज्जन लोग बरु ा मानते हैं।
वात्स्यायन वववाहहक जीवन को तरजीह दे ता है । उसने उन्मक्
ु त सहवास व उच्छृंखल
कामुकववृ ियों तथा व्यभभचार का तनरोध करने के भलए कन्यावरण का ववधान शा्र ववधध से
तथा सजातीय में धमम, अथम की वद्
ृ धध के भलए शादी करने के भलए बताया है ।
कामना से प्रवि
ृ ब्राह्मण के चारों वणम, क्षबरय के ब्राह्माण के अलावा तीन वणम, वैश्य के
दो वणम तथा शूद्र के एक वणम की कन्या से वववाह करना चाहहए। लेककन मनु के इस तनयम
का खण्डन करते हुए याज्ञवल्क्य कहते हैं कक नैतन्मम मतम यह ववधान मुझे ्वीकार नहीं
है , क्योंकक श्रतु त का कहना है कक तज्जाया जाया भवतत यदन्यां जायते पुनाः जाया वहीं कही
जा सकती है प्जसमें पतत पुररूप से पुनाः उत्सपन्न हो।
लेककन वात्स्यायन यहां पर काम्य वववाह का समथमन नहीं करते हैं। वह रक्त-शुद्धध
का पूरा ख्याल रखते हुए शा्र और धमम सम्मत वववाह का ही समथमन करता है । यहां पर
वह रतत की तप्ृ तत धाभममक बुद्धध से करने44books.com
का पक्षपात करता है ।
वववाह के संबंध में सावधान करते हुए कहते हैं कक ‘कान्याभभभ जनोपेता’ अपनी जातत
के गुणों से सम्पन्न लड़की से शादी करनी चाहहए। इसके अततररक्त लड़की अनाथ न हो और
दरू -दरू तक उसके वंश के ररश्तेदार फैले हों। इस तरह के पररवार वालों में शादी करने से
कभी धोखा नहीं हो सकता है । वात्स्यायन के मत से समान जातत की कन्या के साथ वववाह
कर लेना चाहहए जो उम्र में छोटी हो और मन, वचन, कमम से उसका कौमायम भंग न हुआ हो।
इस ववषय में वात्स्यायन तकम प्र्तुत करते हुए कहते हैं कक जैसे बाजार में लोग
खरीदने योग्य व्तु को अच्छी तरह दे खे बबना नहीं खरीदते हैं, उसी तरह लड़की के साथ
वववाह भी बबना सही प्रकार से दे खे बबना नहीं ककया जा सकता।
आचायम वात्स्यायन के इस कथन से उसके समय के समाज तथा वववाह प्रथा पर
प्रकाश पड़ता है । ऐसा अनभ
ु व होता है कक वात्स्यायन के समय में ्वयंवर की प्रथा बन्द सी
हो गयी थी, लड़ककयों की शादी ककसी बहाने से उन्हें हदखाकर करने की प्रथा चल पड़ी थी।
हमारे दे श में प्राचीन समय से ही लड़ककयों की शाहदयां काफी अतनयंबरत माहौल में होती रही
हैं। ्वयंवर की प्रथा काफी परु ानी है । गग्वेद के अनस
ु ार पहले यव
ु ततयां वतनताभभलाषा यव
ु कों
की प्राथमना पर उन्हें पतत के रूप में ्वीकार कर भलया करती थी।
इस बात से साबबत होता है कक इससे पहले ककसी समय में लड़ककयां भी एकर हुआ
करती रही होंगी। वहां अनेक तरह के खेल तमाशे होते थे। इसी मौके पर आपस में प्रेम
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संबंध, वववाह संबंध प््थर होता हैं। वह मानता है कक खेल, वववाह तथा भमरता बराबर वालों से
ही करनी चाहहए। न तो अपने से ऊंचे और न अपने से नीचे लोगों से।
इस प्रकार वैवाहहक जीवन सुखी नहीं बन पाता है । इसभलए लड़के-लड़की की शादी
ववद्या, ववि और कुल दे खकर करनी चाहहए।
इतत श्रीवात्स्यायनीये कामसूरे सांप्रयोधगके तत
ृ ीयेऽधधकरणे वरणववधानं संबंधतनश्र्चयश्र्च
प्रथमोऽध्यायाः।।
भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक
अर्ा- यव
ु क-यव
ु ती की शादी हो जाने केबादपतत-पत्सनी को शादी के तीन रात तक जमीन पर
साधारण वव्तर पर सोना चाहहएऔरपतत-पत्सनी दोनों को ब्रह्मचयम व्रत का पालन करना
चाहहए। भोजन में रसयुक्त पदाथम तथानमकीन चीजों का सेवन नहीं करना चाहहए। पतत-पत्सनी
दोनोंको एक सतताह तक मंगल ्नान करनाचाहहए और उसे व्र आभूषणों से सज-सवंरकर
रहना चाहहए। दोनों को भोजन आहद में साथ रहना चाहहए। अपनों से बड़ों काआदर और
सम्मान करना चाहहए। शादी के बाद पतत-पत्सनीके भलए बनाए गए यह तनयमचारों वणम के
भलए है ाः- ब्राह्मण, क्षबरय, वैश्य तथा शूद्र।
अर्ा- शादी के बाद पतत को चाहहए कक वहअपनी पत्सनी को रात के एकांत ्थान पर कोमल
उपहारों द्वारा अपनी ओर आकवषमत करें ।
अर्ा- बाभ्रवीय आचायों का कहना है कक शादी के पहले तीन रातों में अगरपतत यहद पत्सनी से
बाते न करें , उसे्पशम न करें , उसे प्रेम भरी तनगाहों से न दे खें और चप
ु -चापकमरे में पड़ा रहे तो
इससे पत्सनी दख
ु ी हो जाती है और पतत को नपुंसकमानने लगती है ।उसके मन में अपने पतत
के प्रतत सम्मान की भावना भी कम होने लगती है ।
अर्ा- ्री फूल के समान कोमल औरनाजुकहोती है । इसभलए उसके साथ बड़े तयार और
कोमलता से व्यवहार करनाचाहहए। पतत कोतब तक अपनी पत्सनी के साथ जबरद्ती चब
ुं न
या आभलंगन नहींकरना चाहहए जब तक उसके हदलमें पूणम ववश्वास न बन जाए। शादी के
बादपतत-पत्सनी दोनों को एक-दस
ू रे कोसमझना चाहहए क्योंकक जब तक पत्सनी को अपनेपतत पर
यकीन न हो जाए तब उसके साथ कोई भी कामकरना बलात्सकार ही होता है औरइससे पत्सनी
सेक्स से धचढ़ जाती है । अताः पतत को पत्सनी केसहमतत और इच्छाहोने पर ही अभलंगन, चब
ुं न
और सेक्स संबंध बनाना चाहहए।
अर्ा- सेक्स संबंध के भलए पत्सनी सेतयारसे बाते करें , धीरे -धीरे उसके अंगों को ्पशम करके उसे
इसके भलएतैयार करनाचाहहए और जैसे ही मौका भमले या उसकी सहमती भमले वैसे ही
उसकेअंगों को भशधथल करकेआभलंगन करना चाहहए।
अर्ा- इस तरह मौका भमलने पर बड़ेतयारके साथ ्री को आभलंगन करना चाहहए और सेक्स
संवंध बनाना चाहहएलेककन ज्यादादे र तक आभलंगन नहीं करना चाहहए।
श्लोक-9. पूवक
ा ायेण चोपरमेत ्। ववर्णयत्सवात ्।।9।।
अर्ा- शुरुआत में पत्सनी से ज्यादापररचयन होने की वजह से आभलंगन छाती से ऊपरी अंगों
का करना चाहहए, नाभभआहद नीचे के अंगों का नहीं।
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अर्ा- आभलंगन करने के बाद जब दोनों केमन से लाज और संकोच दरू हो जाए तोपतत को
चाहहए कक वह अपने मंह
ु में एकपान रखें और एक पान पत्सनी को खाने को दें । यहदवह पान
लेने से इंकार करे तो उसे बड़े तयार से अनरु ोध करें और पान लेने के भलएकहें । यहद इससे
भीवह पान लेने से मना करे तो उसके पैर में धगरकर उसे पान खाने काअनरु ोधकरें ।
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श्लोक-12. तद्दानरसंगेण मद
ृ ु ववशदमकािलम्याश्चम्प्
ु बनम ्।।12।।
अर्ा- जब पत्सनी पान लेने के भलए तैयार हो जाए तो तयार से उसे पान दे तेहुए चब
ंु न करें ।
अर्ा- यहद चब
ंु न लेने पर चेहरा खखलउिे और होिों पर म्
ु कुराहट फैल जाएतो समझना
चाहहए कक उसे अच्छा लगा है ।इसके बाद उससे बाते करें ।
अर्ा- पत्सनी से बाते करते हुए यहद ऐसामहसूस हो कक पत्सनी उसकी बातों में हदलच्पी ले रही
है तो बीच में ककसीअन्जान की तरह थोड़े से शब्दों में कुछ पूछे।
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अर्ा- यहद पत्सनी उस सवालों के अथम न बता पाए या जवाब न दे तो उससे तयार के साथ
यह बार-बार पूछे।
अर्ा-पतत के पूछने पर नववववाहहतलड़ककयां अक्सर हां या न में जवाबदे ती हैं। यहद पूछने पर
वह कोई जवाब नदें तो उस पर क्रोधधत नहीं होना चाहहए क्योंककउसके बाद वह कोई जबाव
भीनहीं दे ती।
श्लोक-19. इच्छलस मांनेच्छलस वा ककं तेऽिं रुधचतो न न रुधचतो वेतत पष्ृ टा धचरं
ह््र्त्सवातनबाध्यमाना तदानुकूल्येन लशराः कम्प्पयेय ्। रपञ्च्यमाना तु वववदे त ्।।19।।
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अर्ा- तुम मुझे चाहती हो या नहीं, मैंतुम्हें पसन्द हूं या नहीं। इस तरह पूछेजाने पर पत्सनी दे र
तक चप ु रहकरकफर भसर हहलाकर अनुकूल जवाब दे ती है तथायहद क्रोधधत हुई तो झगड़
पड़तीहै ।
अर्ा- पतत-पत्सनी से बाते करने के भलएपत्सनी को सहे ली का सहारा लेनाचाहहए। पतत जब कुछ
कहता है तो उसे सन
ु करपत्सनी नीचे मंह
ु करके हं सती है । पतत की बातसन
ु कर पत्सनी अपनी
सहे ली कोधमकायेगी कक तू वहुत वकवास करने लगी है , इस तरह से उसके साथ वववाद
करे गी।सहे ली भी उसका मजाक उड़ाने के भलएउसके पतत से झूि-मूि बोलेगी कक मेरीसहे ली
आप से यह कह रही है । इधर अपनी सहे ली सेकहे गी कक तुम्हारा पतत यह कहरहा है , तू क्यों
नहीं बोलती। इस तरह पतत तथा सहे लीसे तंग आकर पत्सनी दबेशब्दों में कहती है कक तुम
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मुझे तंग करोगी तो मैं नहींबोलूंगी। साथ हीपतत की तरफ मु्कुराती हुई ततरछी नजरों से
दे खती है । इस तरह दोनों केबीचजो बातचीत शुरू होती है वह पतत-पत्सनी की पहली बातचीत
होती है ।
अर्ा-इस तरह आपस में पतत-पत्सनी केबीच पररचय हो जाने पर पत्सनी कोचाहहए कक वह बबना
कुछ बोले पतत के पासखामोश से पान, चन्दन तथा माला रख दें ।
अर्ा- जब पत्सनी आपके पास पान, चन्दनतथा माला रख रही हो तो पतत को चाहहए कक वह
पत्सनी के ्तनों की घुप्ण्डयों कोतयार से्पशम करें ।
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अर्ा- पत्सनी जब छोड़छाड़ या अंगों को्पशम करने से मना करे तो उससेकहे कक मैं तुम्हारे
होिों पर दांतों केतनशान कर दं ग
ू ा, ्तनों पर नाखन
ू गड़ा दं ग
ू ा, अपने अंगों में ्वयं
नाखनू लगाकर तेरी सहे भलयोंसे कहूंगा कक तुम्हारी सहे ली ने ये घाव कर हदए हैं।तब बता तू
क्या करे गी? इस तरह बच्चों की तरह डरा-धमकाकर धीरे -धीरे पत्सनी कोमनचाहे काम में लगा
ले।
अर्ा- इस तरह पहली रात में पतत कोअपने पत्सनी के मन में ववश्वास बनानाचाहहए और कफर
दस
ू री-तीसरी रात उसकीजांघों पर हाथ फेरना शुरू कर दे ना चाहहए।
श्लोक-26. सवाांधगकं चब
ुं नमुपरमेत।।26।।
अर्ा- जांघों आहद पर हाथ फेरने पर जब ्री कुछ न बोले तो धीरे -धीरे सभी अंगों को
सहलाना चाहहए और चब
ंु न करना चाहहए।44books.com
अर्ा- कफर कमर की करधनी सरकाकर साड़ीकी गांि को ढीली कर दे और साड़ीको उलट दे
और जांघों को सहलाते रहें । येसब कक्रयाएं पत्सनी पर अपना प्रेम तथाववश्वास जमाने के भलए
की जानी चाहहए नकक उच्छूंखल कामातुर बनकर संभोग के समय में ्रीकी खश
ु ी का ख्याल
करतेहुए असमय में ब्रह्मचयम भंग करने के भलए।
अर्ा- पतत को चाहहए कक सुहागरात से पहले तीन रातों में अपनी पत्सनी कोसेक्स की भी
भशक्षा दें ।
पतत को चाहहए ककसुहागरात के पहले तीन रातों में पत्सनी परप्रेम जाहहर करते हुए
वपछलेमनोरथों, मनसूबों की बातें भी करनी चाहहए। उसेचाहहए कक पत्सनी के मन में
ववश्वासहदलाना चाहहए कक मैं जीवन भर तुम्हारासाथ दं ग
ू ा, मैं तुम्हारे अलावा ककसी और
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्रीकी ओर कभी नहीं दे खग
ूं ा। इसतरह का ववश्वास हदलाना चाहहए।
श्लोक-30. भवह्न्त चात्र श्लोकाः- एवं धचिानुगो बालामुपायेन रसाधयेत ्। तर्ा्य सानुरक्ता च
सुवव्त्रबधा रजायते।।30।।
अर्ा- इस ववषय पर प्राचीन आचायों काकहना है कक जो व्यप्क्त वववाह केपहले तीन रातों में
अपनी पत्सनी के मन कोजानकर अपने प्रेम बंधन में बांध लेता है औरअपना पूरा ववश्वास बना
लेता है तो शुरू से ही पत्सनी अनुगाभमनी वनकर उसकी सेवाकरती रहती है ।
अर्ा- परु
ु षों को हमेशा एक बात यादरखनी चाहहए कक ्री को न तो अधधकक्रीतदास बनाकर
और न ही अधधक प्रततकूलहोकर ्री को अपने वश में करनाचाहहए क्योंकक अधधक तनममल
व्यवहार करनेसे ्री अपने को उच्च समझ बैिती है और अधधकसख्त व्यवहार करने से
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वहजीवन भर डरी सी रहती है । अताः जो समझदार पुरूष होते हैं वहइन दोनों में सेबीच का
रा्ता अपनाते हैं।
अर्ा- पत्सनी के मन में अपना तयारबनाना, पत्सनी का सम्मान करना तथा नई वववाहहत ्री में
अपना यकीन बनाना।इन तीनोंबातों को जो पुरूष जानता है और समझता है वह प््रयों का
वप्रयहोता है ।
अर्ा- नववववाहहत पुरूष यहद अपनी ्री को शमीली समझने की भूल करताहै वह ्री के
द्वारा सम्मान प्रातत करने योग्य नहीं होता।
वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में
भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक
श्लोक-1. वरणसंववधानपव
ू क
ा मधधगतायां वव्त्रम्प्भणमक्
ु तम ्।।1।।
श्लोक-2. धनिीन्तुगुणयक्
ु तोऽवप, मध्य्र्गुणो िीनापदे शो वा, साधनो वा
राततवेश्यःमातवृ पतभ्र
ृ ातर्
ृ ु च परतन्त्रः, बालववृ िरुधचतरवेशो वाकन्यामलभ्यत्सवानन वरयेत ्।।2।।
अर्ा- लड़का-लड़की को न भमलने की वजहके बारे में वात्स्यायन बताते हुएकहते हैं कक जो
युवक गुणवान होते हुए भीहीन कुल का है अथवा धनवान होते हुए भी यव ु तीके घर का
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पड़ोसी है अथवाअपने माता-वपता के अधीन है अथवा प्जसमें ्री काभाव है तो ऐसे युवक
कोचाहहए कक वह ककसी कुलशील सम्पन्न लड़की से वववाह करने कीकोभशश न करें ।
अर्ा- इस तरह से जो प्रेमी-प्रेभमकाबचपन से आपस में तयार करते हों और ककसी कारण से
उनका वववाहहोना संभव नहो तो लड़के के ककशोराव्था से ही लड़की के साथ अपना तयार
बढ़ाते रहनाचाहहए।
अर्ा- जहां यव
ु क प्रायाः इसी तरह से लड़की को अनरु क्त बनाकर कफर उससेशादी करते हैं। वह
अनरु क्त तनम्न है-
दक्षक्षण दे श में प्जन बातों की वजह से लोग अपनीलड़ककयां नहीं दे तेउन्हीं हीनताओं से
यक्
ु त माता-वपता रहहत गरीब लड़काअपने 44books.com
मामा के घर रहकरअमीर मामा की पर
ु ी को चाहे
उसकी सगाई कहीं हो भी गई हो, उससे तयारबढ़ाकर शादी कर ले।
अर्ा-यहद लड़की लड़के के मामा केगोर का न हो तथा अपने गोर की नहोकर ककसी दस
ू री
जातत की हो तब भी उसेअनरु क्त करके उसके साथ गन्धवम वववाह कर सकताहै ।
अर्ा-आचायम घोटकमख
ु कहते हैं कक यहदकोई लड़का ककशोराव्था से हीककसी लड़की के साथ
तयार करता हो तो उसे वशमें करके शादी कर लेना गलत नहीं है ।
अर्ा- वात्स्यायन के अनुसार लड़की कोअनुरक्त करने वाला बच्चा भी हो सकता है और युवक
भी। बचपन सेही लड़काद्वारा ककसी लड़की को अनुरक्त करने के ववषय में वात्स्यायन का
कहना है ककबचपन से ही लड़का लड़की के साथ अनेक प्रकार के खेल खेलता है , जैस-े
फूलचन
ु ना, फूलों की माला गूंथना, घरौंदा बनाना, गुडड़यों का खेल खेलना, भमट्टी, धल
ू , भात
आहद खाने पीने की व्तुएं तैयार करना तथा अपनी उम्र औरजानकारी के मुताववक अन्य
क्रीड़ाएं करनेके साथ लड़की को अपने वश में करनेकी कोभशश करना।
बुध्येत।।10।।
अर्ा-यहद युवक ककसी लड़की को पसंदकरता है और उससे तयार करना चाहता है तो उसे
चाहहए कक लड़की कीसबसे अच्छीसहे ली से जान-पहचान बढ़ाए और उसके द्वारा अपनी
प्रेभमका के मन में तयारबढ़ाने की कोभशशकरें ।
अर्ा- लड़के को चाहहए कक वह प्जस लड़कीसेतयार करता है उसके घर में काम करने वाली
लड़की से मेलजोल बढ़ाए। इसतरह काम करनेवाली लड़की को अपने बातों के जाल में फंसाने
और अपने वश में करने से उसके बबनाकुछ कहे ही वह लड़के के हाव-भावों को जानकर
उसकेप्रेभमका से लड़के को भमला दे ती है ।
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अर्ा-प्रेमी को चाहहए कक वह प्रेभमकाकी इच्छाओं को पूरी करे । प्रेभमकाको जो चीज अच्छी लगे
वह लाकर दे और प्जसचीजों को दे खने की इच्छा करे उस चीजों कोहदखाने ले जाएं।
अर्ा- अगर प्रेमी-प्रेभमका छोटी उम्रके हों तो प्रेमी को चाहहए कक वह अपनी प्रेभमका कोऐसे
खखलौने खरीद कर दे जो कीमती व दल
ु भ
म होने के साथ ऐसी हो प्जन्हें प्रेभमका नेपहले कभी
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नदे खी हो।
श्लोक-15. तत्रकन्दक
ु मनेकभह्क्तधचत्रमल्पकालान्तररतमन्यदन्यच्च संदशायेत ्।
तर्ासत्र
ू दारुगवलगजदन्तमय दा हु ितक
ृ ा मधह्ू च्छष्टमन्
ृ मय श्च।।14।।
अर्ा-प्रेमी को चाहहए कक वह खाना बनाने के भलए अपनी प्रेभमका को रसोईघर हदखाएया कफर
खाना पकाने की ववधध भसखाए।
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अर्ा- यहद प्रेभमका तछपाकर व्तुदेने का कारण पूछे तो मुझे मां-बाप का डर बताए या दी
जाने वाली चीजें लेनेके बहानेबनाए तो उसे अपने तयार का ववश्वास हदलाएं।
अर्ा- प्रेमी-प्रेभमका का आपसी तयारबढ़ने लगे और प्रेभमका बाते सुननेकी रुधच प्रकट करे तो
प्रेमी को मौके केअनुसार खब
ू सूरत कहातनयां सुनाकर उसकामनोरं जन करना चाहहए।
गि
ृ ाचारे वा ववधचत्रैराप ्ैः कणापत्रभंगैःलसक्र्करधानैव्
ा त्राङ्ऴलीयकभूर्णदानैश्च। नो
चेद्दे र्कराणण मन्येत।।21।।
अर्ा- यहद प्रेभमका जाद ू के खेल दे खनेकीइच्छा करती है तो उसे इन्द्रजाल के आश्चयमजनक
खेल हदखाना चाहहए। यहदकलाओं काकौशल दे खना चाहती हो तो उसे कलात्समक कौशल
हदखाकर खश
ु करना चाहहए।यहद वह संगीत सुननाचाहती हो तो मधरु संगीत सुनाकर उसका
हदल बहलाएं।प्रेमी को चाहहए कक कोजागरी व्रत, बहुला अष्टमी, कौमुदी महोत्ससव या ग्रहणके
हदन प्रेभमका जब प्रेमी के घर आए तो उसेआपीड, कणमपर भंग, छाप, छल्ला, व्र आहद दे कर
उसे प्रसन्न करें । लेककन प्रेमी को ये भी ध्यानरखना चाहहए कक इनव्तुओं को दे ने से उसकी
ककसी प्रकार की गलतफहमी याबदनामी न हो।
श्लोक-22. अन्यपरू
ु र्ववशेर्ालभज्ञतया धात्रेतयका्याः परू
ु र्रवि
ृ ौ चातःु
र्ह्ष्टकान्योगान्ग्राियेत ्।।22।।
अर्ा-प्रेभमका की सहे ली को चाहहए ककवहउसके प्रेमी की तारीफ करे । उससे कहे कक वह युवक
बहुत सुन्दर है औरगुणवान है । इसप्रकार प्रे भमका के मन से प्रेमी से भमलने के डर और
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संकोचको दरू करें और प्रेमीसे भमलने के भलए उसे तैयार करें , साथ ही काम संबध ं ीकलाओं की
भशक्षा भी दे ।
श्लोक-24. युवतयो हिसंसष्ृ टमभ क्ष्णदशानं च पुरुर्ं रछमं कामयन्ते। कामयमाना अवप
तुनालभयुञ्जत इतत रायोवादः। इतत बालायामुपरमाः।।24।।
अर्ा-वात्स्यायन प्रेमी-प्रेभमका के बारे में बताने के बाद अब प्रेभमका के शारीररक संकेतों केबारे
में बताते हैं।
अर्ा-प्रेभमका प्रेमी को हदखाने केभलए प्जस जगह प्रेमी खड़ा होता है उसीजगह जाकर खड़ी
होती है । प्रेभमकाअपने प्रेमी को तयार का एहसास कराने के भलएउसके पास खड़ी होकर कुछ
भीदे खकर हं सने लगती है । उसके पास खड़े रहने के भलए वे अपनेसहे ली के साथ ऐसीबाते
करे गी जो जल्दी समातत न हो। प्रेमी को दे खकर वह बच्चे को गोदमें लेकर चब
ुं न करने लगती
है , उससे बाते करने लगती है । अपनी सहे ली का सहारालेकरहाव-भाव तथा नाज-नखरे हदखाने
लगती है ।
अर्ा- प्रेभमका अपने प्रेमी केदो्तों की बातों पर ववश्वास करती है और उसके बातों को मानती
है ।उसके घरके नौकरों के साथ अक्सर बाते करती रहती है , प्रेम भरा व्यवहार बतामव करतीहै
तथा उनके साथ शतरं ज, ताश आहद भी खे44books.com
लती है । प्रेभमका अपने प्रेमी केनौकरों को माभलक
की तरह भी आदे श दे तीहै । अगर वह नौकर उसके प्रेमी कीबातें करता है तो प्रेभमका उसकी
बातों को ध्यानसे सन
ु ती है ।
अर्ा- प्रेभमका अपनी सहे ली के कहने परअपने प्रेमी के घर चली जाती है । सहे ली को जररया
बनाकर प्रेमीके साथशतरं ज आहद खेलती है तथा प्रेमालाप करती है । प्रेमी के सामने बबना
श्रग
ंृ ारके नहीं आती। यहद प्रेमी कणमफूल, अंगूिी या माला मांगता है तो बड़े धीरजके साथ
उतारकर सहे ली केहाथ में रख दे ती है । प्रेमी की दी हुई चीजों कोहमेशा पहनती है । दस
ू रे
युवकों कीबातों से उदास हो जाती है तथा उस सहे लीका साथ छोड़ दे ती है ।
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अर्ा-इस तरह प्रेभमका अपने हाव-भाव, नाज-नखरों तथा इशारों को दे खकर उसके समागम
केभलए कोभशश करनी चाहहए।
अर्ा- आचायम वात्स्यायन ने तीनप्रकार की लड़की के बारे में बताया है ाः-पहला बालक्रीडा करने
वाली बालाकहलाती है । दस
ू रा कामाकालाओं से मनुराग रखनेवाली तरुणी (युवती) कहलती
है ।तीसरा वात्ससल्य भाव रखने वाली प्रौढ़ कहलाती है ।इसभलए बुद्धधमान व्यप्क्तको चाहहए कक
वे खेल-खखलौनों से बाल लडकी को वश में करें , कामकला के द्वारायुवती को अपने वश में
करें और प्रौढ़ा को उसके ववश्वासी व्यप्क्तयोंकेद्वारा अपने वश में करके अपनी ओर आकवषमत
करें ।
यहां पर यहजानना बेहद आवश्यक है कक प्रेमी ककसी तरहप्रेभमका को अपनी ओर
आकवषमत करें और इसके भलएउसे क्या करना चाहहए।प्रेभमका को अपनी ओर आकवषमत करने
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के तरीके को दो भागों में बांटा गया है -पहला प्रेमी अपनी प्रेभमका की सहे भलयों से जान-पहचान
बढ़ाकर उससे बातेकरें या अच्छे कपड़े, आभूषण एवं अन्य चीजों के द्वारा प्रेभमका को अपनी
ओरआकवषमत करने की कोभशश करें और मौका भमलने पर तयार का इजहार करें । दस
ू राप्रेमी को
अपने प्रेभमका को मनभोवकव्तु उपहार के रूप में दे ना चाहहएप्जससे प्रेभमका प्रेमी के मन
की इच्छा को समझसकें। ये दोनों ही तरीकेमनोवैज्ञातनक हैं और इसके द्वारा प्रेमी-प्रेभमकाको
एक-दस
ू रे की भावनाओंको समझने में मदद भमलती है ।
प्रेमी को अपनीप्रेभमका से बात करने और अपने तयार काइजहार करने के रा्तों का
चन
ु ाव बड़ी बद्
ु धधमानी से करना चाहहए। प्रेभमकाकी जो सहे भलयां हो उनसे बाते करते हुए
अपनी प्रेभमका के प्रतत अधधक प्रेमऔरववश्वास हदखाएं। प्रेभमका की सहे ली को अपना माध्यम
बनाते हुए यहतनप्श्चत कर लेना चाहहएकक क्या उसकी सहे ली उनके बीच के तयार को एक
करनेमें उसकी मदद करे गी।
तयार केसंदेशों को एक-दस
ू रे के पास पहुंचाने के भलए ऐसीसहे ली चन
ु ना चाहहए जो
प्रेभमका के अधधकपास हो और उसके मन में दोनों केतयार के प्रतत सम्मान हो। प्रेमी-प्रेभमका
को अपनेबीच ऐसी सहे ली को रखनाचाहहए जो दोनों को भमलाने के साथ प्रेभमका को रततभावों
कीतरफप्रोत्ससाहहत करता रहे और मौका भमलने पर भमलन भी करा सके। लड़की की
सहे लीऐसीहोती हैं जो प्रेभमका के मनोभावों को अच्छी तरह समझकर उसकी इच्छाओं कीपूततम
करनेका काम कर सकती हैं और उसे भमलाने के रा्ते बना सकती हैं।इस तरह सहे ली
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वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में
भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक
अर्ा- प्रेमी अपने तयार की बातेअपनी प्रेभमका से करता है औरजब प्रेभमका उसके तयार को
्वीकार कर लेतीहैं तब दोनों में तयार का संबंध बनजाता है ।
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अर्ा-इसके बाद दोनों मौका भमलने परएक साथ खेलतेहैं। प्रेभमका और प्रेमी जब एक साथ
कोई खेल खेल रहे हों तोप्रेमी को चाहहए ककप्रेभमका का हाथ इस तरह तयार से पकड़े कक
उसके मन में तयार का अनुभव होने लगजाए।
अर्ा-वात्स्यायन ने आभलंगन करने केचार प्रकार बताये हैं- ्पष्ृ टक, ववद्धक, उदृष्टक तथा
पीडड़तक। प्रेभमका काहाथपकड़ने के बाद यहद वह प्रेमी के मनोभावों को समझ जाए तो प्रेमी
कोचाहहए कक इन चारप्रकार के आभलंगनों में से जो सही लगे उसी रूप में प्रेभमका को आभलंगन
करें ।
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श्लोक-4. पत्रच्छे द्यकरयां च ्वालभरायसच
ू कं लमर्न
ु म्या दशायेत ्।।4।।
अर्ा- अपनी इच्छा को व्यक्त करने केभलए प्रेमी को चाहहए कक प्रेभमका को धचर बनाकर
अपनी इच्छाओं को बताएं।
श्लोक-6. जलर ्ायां तददरू तोऽपसु तनमग्नः सम पम्या गत्सव ्पष्ृ टवा चैनां
तत्रैवोन्मञ्जेत ्।।6।।
अर्ा-यहद नदी, तालाब या ्वभमंगपूलमें आप नहा रहे हैं और आपकी प्रेभमका भी वहां नहां रही
हो तो प्रेमी कोचाहहए कक वहप्रेभमका से दरू डुबकी लगाकर प्रेभमका के पास आकर उसका
्पशमकरे और अपना भसर पानीसे बाहर तनकालकर प्रेभमका को चौका दें ।
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अर्ा-इसके साथ ही प्रेभमका केशरीर के अंगों को अपने अंगों पर रखने के भलए उसके पैरों को
अपने पैरों से दबाना चाहहए।
अर्ा- इसके बाद प्रेमी को चाहहए ककप्रेभमका को धीरे -धीरे एक-एक अंगुली से छुएं।
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अर्ा- यहद प्रेभमका के पास बैिकर उसकेअंगों को ्पशम करने पर वह कोई ऐतराज नहीं करती
हो तो कफर अपने पैर कोउसके पैर केऊपर रखकर दबाना चाहहए।
अर्ा-प्रेभमका के अंगों के ्पशमकरने और अपने पैरों से उसके पैरों परघषमण करने और अंगों को
दबाने कीकक्रया बार-बार करनी चाहहए।
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अर्ा-प्रेभमका के पैरों को अपने पैर सेदबाने के बाद पैर की अंगुभलयों में उसके पैर की
अंगुभलयां फंसाकर दबाना चाहहए।
अर्ा- प्रेमी को पानी पीते समय अपनी प्रेभमका परथोड़ा सा पानी तछड़कना चाहहए।
अर्ा- प्रेमी को अपनी प्रेभमका कोबबना उिेप्जत ककए ही अपने मन की बाते बता दे नी चाहहए।
अर्ा- प्रेभमका जब कभी एकांत में भमलेतो उससे प्रेमी को इतना ही कहना चाहहए कक मैं
तुमसे कुछ कहना चाहता हूूँ।जबप्रेभमका पूछे कक क्या कहना चाहते हो तो प्रेमी को अपने मन
की बाते बतादे नी चाहहए औरयह भी अनभ ु व करना चाहहए कक उसकी बातों का क्या
प्रभावपड़ता है ।
अर्ा- घर आ जाने के बाद प्रेभमका से अपना भसर दबवाएं और उसका हाथपकड़कर अपनी
दोनों आंखों तथा भसर पर फेरे ।
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अर्ा-इसके बाद प्रेभमका से तयार सेबाते करते हुए प्रेमी को कहना चाहहए कक दवा से अधधक
शप्क्त तुम्हारे हाथोंमें हैं।तुम्हारे हाथों के छूने से ही भसर का ददम अच्छा हो जाता है ।
अर्ा-इस कायम को तुम्हें ही्वयंकरना चाहहए। इस तरह की बाते कुवारी ्री को छोड़कर
ककसी और से नहीं करनीचाहहए। जब प्रेभमका घर से जाने लगे तो उसे दोबारा आने का
आग्रह करनाचाहहए।
अर्ा- घर आई प्रेभमका को बार-बारदे खनेके भलए प्रेमी को चाहहए कक उससे बातें करने की
योजना बनाएं और बहानेकरके उसेबार-बार घर बुलाएं।
अर्ा- प्रेभमका कोअपने पर ववश्वास हदलाने और तयार जताने के भलए प्रेमी कोचाहहए
ककअन्यायन्य गतपे करें लेककन अपने मुख से मतलब की बात न करें ।
अर्ा- प्रेभमका के ऊपर ककए गए सभीप्रयोग जब सफल हो जाएं तभी उसके साथ सम्भोग के
भलए तैयारी करनी चाहहए।
अर्ा- या कफर प्रेमी को चाहहए कक वह अपने ववश्वासपार लड़की या लड़के कोउसके पास छोड़
दें ।
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अर्ा- यज्ञ, शादी, यारा, उत्ससव, मुसीबत आहद में लोग प्रायाः व्यग्र हो जाते हैं।इस तरह के मौकों
पर प्रेमीअपनी प्रेभमका से उस प््थतत में गान्धवमवववाह कर सकता है लेककन ऐसा तभीकरना
चाहहए कक जब प्रेभमका को अपने बारे में सबकुछ बता हदया हो और वह भीआप पर ववश्वास
करती हो।
अर्ा- लड़की नीचकुल में जन्म लेने केबाद भी गुणवती हो लेककन उसके घर वाले कुल न
भमलने के कारण उसकी शादी उसलड़के सेनहीं करना चाहते हों प्जसे वह पसंद करती है या
लड़का-लड़की एक कुलका होने के बाद भीगरीबी के कारण लड़के की शादी उससे न हो रही हो
या अन्यकुल में जन्म होते हुए भीउसके माता-वपता न हो और वह युवती हो तो ऐसीलड़ककयों
को ्वयं ही अपने पसंद के लड़केसे शादी कर लेनी चाहहए।
अर्ा- इस तरह की युवती ककसी ऐसे गुणवान, शप्क्तशाली सुन्दर युवक के साथ शादी कर
सकती है जोउसके बचपन का साथी हो।
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अर्ा- युवती को वैसे युवक पर ववश्वासकरना चाहहए जो अपने माता-वपता कीपरवाह ककए
बबना उसकी ओर आकवषमत हो गयाहो और उस पर ववश्वास करता हो। ऐसे युवक कोयुवती
अपने हाव-भाव हदखाकर तथाअन्य उपायों से अपनी तरफ आकवषमत कर उससे शादी
करसकती हैं।
श्लोक-39. ववमक्
ु तकन्याभावा च ववश्वा्येर्ु रकाशयेत ्। इतत रयोज्य्योपावतानम ्।।39।।
अर्ा- इस तरह प्रेमी-प्रेभमका केभमलने के बाद जब दोनों सेक्स संबंध बना लेते हैं तोप्रेभमका
को चाहहए ककवह अपने ववश्व्त सहे भलयों को यह बात बता दें कक उसने अपने प्रेमी
केसाथपहला सेक्स संबंध बनाया है ।
भवप्न्त चार श्लोकााः-
इस संबंध में कुछ श्लोक है ाः-
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श्लोक-40. कन्यालभयज्
ु यमाना तु यं मन्येताश्रयं सख
ु म ्। अनक
ु ू लं च वश्यं च त्य
कुयाात्सपररग्रिम ्।।40।।
अर्ा- इस श्लोक के अनुसार वात्स्यायन कहते हैं कक लड़की अपनी इच्छा केअनुसार अपनी
जीवन साथी चन
ु ने के भलए ्वतंर होती है ।
अर्ा- ्री को ऐसे पुरूष को अपनापतत बनाने की इच्छा रखनी चाहहए जो गुणवान हो,
वशवती हो, सामर्थयमवान होऔर जो आपकी ओर आकवषमत हो।
अर्ा- प्जस युवक में गुण की कमी हो, गरीब हो, आत्समतनभमर हो और वश में रहने वाला हो
उससेयुवती को शादी करलेनी चाहहए। लेककन जो व्यप्क्त गुणवान होते हुए भी व्यभभचारी हो
उससे शादीकभीनहीं करनी चाहहए।
अर्ा- अमीर लोगों के घरों में काफीसारी प््रयां रहती हैं लेककन प्रायाःवे तनरं कुश हुआ करती हैं
क्योंककउन्हें बाहरी सख
ु भमलते हुए भी भीतरी सख ु नहींभमल पाता है ।
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श्लोक-47. गुणसाम्प्येऽलभयोक्तण
ृ ामेको वरतयता वरः। तत्रालमयोक्तरर श्रैष्ठम्प्यमनुरागात्समको हि
सः।।47।।
अर्ा- यहद यव
ु ती की शादी करने वाले परु
ु षों में सभी गण
ु वान हो तो यव
ु तीको उसी से वववाह
करनी चाहहए प्जससे वह ज्यादा तयार करती हो।
आचायम वात्स्यायनने प्रेमी-प्रेभमका को एक होने के भलए दोप्रकार बताया है - बाह्यतथा
आभ्यांतर। बाहरी उपायों के द्वाराप्रेमी-प्रेभमका आपस में शतरं ज या पिेखेलते हैं और प्रेमी
खेल के बीचमें ही वह बातों का ऐसा वववाद तछड़ दे ता है प्जसमें दोनों ही अपनी मन कीबाते
कह दे ते हैं। इसके बाद जब प्रेभमका जाने लगती है तोप्रेमी उसका हाथइस तरह पकड़ता है
प्जसे वववाह के समय युवक-युवती का हाथ पकड़ता है । इसतरहहाथ पकड़ने से प्रेभमका को
यह अहसास हो जाता है कक यह मेरे साथ गन्धवमवववाहकरना चाहता है । इसके अततररक्त
प्रेमी, प्रेभमका को अपने मन की बातेबताने के भलएववभभन्न प्रकार का धचर हदखाता है , कभी
मौका भमलते ही उसेआभलंगन करता है , जलक्रीड़ा करते समय उसके अंगों को छूटा है , कभी
अपने हदलके ददम बहाने उसे अपने पासबुल44books.com
ाता है । उत्ससव आहद में प्रेमी-प्रेभमका एकसाथ बैिते
हैं, अपने पैर से उसके पैर को छूता है , पैरों को पैर से दबाताहै । अंधेरे में जब कोई नदे ख रहा
हो तो उस समय प्रेमी-प्रेभमका के पैरोंके ऊपर हाथ फेरता है , कफर उसके जांघों, तनतम्बों, पेट,
पीि तथा ्तनों परहाथ फेरता है और नाखन
ू ों को गड़ाता है । जब प्रेमी के द्वारा ककएगए
हरकतोंको प्रेभमका चप
ु चाप सहन करती है तो कफर प्रेमी नीचे, ऊपर शरीर के अंग-अंगपर हाथ
फेरता है ।
जब प्रेमी इनबाहरी ्पशों द्वारा प्रेभमका को अपने तयारके बंधन में बांध लेता है तो
बाहरी और भीतरीदोनों उपायों का प्रयोग करताहै । बाहरी और भीतरी उपायों में प्रेभमका प्जस
जगह भी भमलजाती है प्रेमीउससे छे ड़छाड़ शुरू करने लगता है । प्रेमी जब भमलने पर कोई
चीज उसेदेता है तो वह उस पर शमम व लज्जा भाव पैदा करने वाले तनशान लगा दे ता है ।प्रेमी-
प्रेभमकाजब ककसी कायमक्रम के दौरान अंधेरे में एक-दस ू रे से सटकरबैिे हुए होते हैं तोप्रेमी
प्रेभमका के तनतम्ब या ्तनों पर इस तरह सेचट ु की काटता है कक वह उसे सहन करसके तथा
उसे अनभ
ु तू त भी हो। इस तरहअंधेरे के मौके का फायदा उिाकर प्रेभमका के साथछे ड़छाड़ करने
से उसे शममनहीं आती क्योंकक अंधेरे और अकेले में प्रेभमका के मनमें शमम का भावपैदा नहीं
होता बप्ल्क प्रेमी के इस तरह चट
ु की काटने और सहलाने सेउसेआनन्द व सकून भमलता है ।
इसभलए अंधेरे का फायदा उिाकर प्रेमी-प्रेभमकासेक्स संबंध भी बना सकते हैं।
वात्स्यायन नेइस प्रकार के प्रेमी-प्रेभमकाओं के भलए सेक्ससंबंध का उधचत समय और
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मौका बताते हुए कहा है कक उधचत समय, रात और अंधेरेमें यहद प्रेभमका से सेक्स संबंध के
भलए अनरु ोध ककया जाए तो वह इन्कारनहीं करती है क्योंकक प्रेभमका सेक्स के भलए ऐसा
्थान चाहती है कक उसे कोईन दे खसके। इसके अततररक्त प्रेमी के द्वारा सेक्स के भलए
कहने परप्रेभमका मना नहीं करतीजब प्रेभमका के मन में उिेजन का भाव पैदा होताहै , काम
वासनाएं उमड़ पड़ती हैंऔर वह ्वयं सेक्स के भलए लालातयत हो उितीहै । इस तरह की
मनोदशा में प्रेभमका अपनेआप तो कुछ कहती नहीं है लेककन जबप्रेमी उससे सेक्स के भलए
कहता है तो वह मना नहींकरती।
आचायमवात्स्यायन का कहना है कक प्जस तरह गरीब और हीन कुलका यव
ु क अपने
सेऊंचे कुल या समान वगम की लड़की से शादी करना चाहता है लेककन ककसी कारण वश वह
नहींभमल पाती। ऐसी लड़की को पाने के भलए यव
ु क कोचाहहए कक उस लड़की को तयार से
अपनी ओरआकवषमत करके उसे पाने की कोभशशकरें । उसी तरह यहद कोई लड़की गरीब या
अनाथ होऔर उसकी शादी मनोभभलावषतयव
ु क से होना संभव न हो तो लड़की को भी अपने
पसंद के युवक कोअपने तयारसे आकवषमत करके पाने की कोभशश करनी चाहहए। आचायम
वात्स्यायन ने लड़कीऔरलड़के दोनों के भलए ही बाहरी और आंतररक उपायों को बताया है
प्जससे वह अपनीइच्छे के अनुसार लड़की या लड़के से शादी कर सकता है । ऐसी युवती जो
ककसीपुरूष के साथतयार करती है और उससे शादी करना चाहती है और वह उसे एकांतअंधेरे
में भमल जाता है प्जसके साथ लड़की गान्धवम वववाह करना चाहती है , ऐसे युवक का ऐसा
्वागत करना चाहहए प्जसमें कामशा्र के44books.com
64 कलाओं में सेककसी एक कला का कौशल प्रकट
हो।
आकवषमत पुरूषकी तरह ही बातें करे , उसकी हर बात का अनुमोदनकरें । हर काम का
अनुकरण करें लेककन उसे थोड़े कहने पर यासंकेत मार सेही सेक्स के भलए तैयार न हो जाएं।
ज्यादा कामातुर होने पर भी अपने आपसंभोग के भलए कोई कोभशश नहीं करें और न कोई
उतावलापन हदखाएं।
आचायमवात्स्यायन का मत है कक खद
ु संभोग के भलए प्रयत्सनकरने वालीप््रयां का
सौभाग्य नष्ट हो जाता है अथामत पुरूष उसे गलतसमझने लगता है और उसकीअवहे लना करने
लग जाता है । उससे अपना मन बबल्कुल हटालेता है । हां यहद पुरूष सेक्स कीकोई कक्रयाएं
करना चाहता है तो ्रीउन कक्रयाओं को अनुकूलता से ्वीकार कर ले, नहीं-नहीं की ज्यादा
प्जद्द नकरें ।
इस प्रकार युवतीको एक बात का ख्याल रखना चाहहए कक जब उसेयह पूरा यकीन हो
जाए कक प्रेमी हर कीमत पर मेरासाथ तनभाएगा तभी उसके साथसेक्स संबंध बनाएं अन्यथा
न करें ।
इततश्रीवात्स्यायनीये कामसर
ू क
े न्यासम्प्रयक्
ु तकेतत
ृ ीयेऽधधकरणे एकपरू
ु षभभयोगा
अभभयोगतश्च कन्यायााःप्रततपविश्चतथ
ु ोऽध्यायाः।।
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भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक
श्लोक-1. राचय
ु ेण कन्याया ववववक्तदशान्यालाभे धात्रेतयकां वरयहिताभ्यामुपगण
ृ योपसपेत ्।।1।।
अर्ा-यहद कोई लड़का ककसी लड़की सेतयार करता है लेककन अकेले में उससेबाते करने का
मौका नहीं भमलता हो तोउसे चाहहए कक लड़की की सहे ली के साथ दो्तीकरके उससे अपने
मन की बातेबताएं।
अर्ा- लड़की की सहे ली ऐसी हो जो उनअवगुणों की तनन्दा करें प्जन्हें प्रेभमका पसंद न करती
हो। इस तरह सहे ली केद्वारा प्रेमी की अच्छी बाते सुनकर प्रेभमकाउसकी ओर आकवषमत होने
लगतीहैं।
श्लोक-4. मातावपत्रोश्च गण
ु ानलभज्ञतां लबु धतां च चपलतां च बान्धवानाम ्।।4।।
अर्ा- प्रेभमका के मन में प्रेमी केभलए रुधच तेज करने के भलए ्वयं अपना वर चन
ु ने वाली
उसकी जाततकी लड़ककयोंऔर शकुन्तला आहद की प्राचीन कहातनयां सुनाकर उसे अपनी इच्छा
से पततचन
ु नेके भलए उकसाना चाहहए।
अर्ा- सहे ली को चाहहए कक प्रेभमका कोबताए कक अच्छे और अमीर घरों में शादी करने वाली
प््रयां ककतनी दख
ु ी रहतीहैं, दस
ू री शादी करने के बाद ककस तरह पहली पत्सनी कोसताया जाता
है । अमीरघरों में शादी करने से ककस तरह का कलह तथा दख
ु ों कासामना करना पड़ता है ।
अर्ा- प्रेभमका की सहे ली को चाहहए ककवहप्रेमी के उन गुणों के बारे में भी बताए प्जसकी
वजह से शादी के बाद उसकाभववष्यउज्ज्वल होगा।
श्लोक-8. सख
ु मनप
ु ितमेकचाररतायां नायकानरु ागं च वणायेत ्।।8।।
अर्ा- उसे कहे कक अनुरक्त पतत कीअकेली पत्सनी बनने में बड़ा आनन्द भमलताहै इसभलए कक
सौतनों का झमेला नहींरहता है । इसके साथ ही प्रेमी के एक पत्सनीव्रतवाले गुण तथा ्वभाव
भी उससेबताएं।
अर्ा- जब प्रेभमका की सहे ली यह समझ लेकक प्रेभमका उसके बताए हुएप्रेमी की तरफ आकवषमत
हो रही है तो समुधचततनभमिों द्वारा वह प्रेभमका के डर तथालज्जा को दरू करने की कोभशश
करे ।
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श्लोक-10. दत
ू कल्पं च सकलमाचरे त ्।।10।।
अर्ा- उससे कह दें कक प्रेमी तुम्हें अपररधचता की तरह उिाकर ले जाएगातो लोग तुम्हे दोषी
भी नहीं िहराएगा औरतेरा मनोरथ भी पूणम हो जाएगा।
अर्ा- उससे कह दें कक प्रेमी तुम्हें अपररधचता की तरह उिाकर ले जाएगातो लोग तुम्हे दोषी
भी नहीं िहराएगा औरतेरा मनोरथ भी पूणम हो जाएगा।
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अर्ा- आचायों का मत है कक अप्ग्न की साक्षी में ककया गया वववाह अवैधनहीं होता।
अर्ा- इस तरह प्रेमी जब प्रेभमका सेशादी करने के बाद उसके साथसुहागरात मना ले तो कफर
प्रेभमका और अपनेपररवार बालों से सच्ची बात बता दें ।
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अर्ा- या कफर कोई ऐसाकाम करना चाहहए कक प्रेभमका के माता-वपता कुल कलंक सेभयभीत
होकर उसी कोअपनी लड़की का वर मान लें । जब इस तरह कूटनीतत से वह लड़की उस
प्रेमीकोभमल जाए तो प्रेमी व्यवहार और सुन्दर उपहारों द्वारा प्रेभमका केबन्ध-ु बान्धवोंको राजी
करें ।
अर्ा- यहद इस तरह के उपायों सेप्रेभमका के माता-वपता को शादी के भलए राजी करने में
सफलता भमलना मुमककन नहो तोप्रेमी-प्रेभमका को गन्धवम वववाह कर लेना चाहहए।
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अर्ा- यहद प्रेभमका अपने आप प्रेमवववाह करने में असमथम हो तो दोनों केबीच की बाते बताने
वाले और प्रेभमकाके माता-वपता से घतनष्ि ्नेह संबंध रखने वालीककसी कुलवधु को
मध्य्थबनाकर उसे धन का लालच दे कर ककसी बहाने गुततचरों द्वारा उसलड़की को
अपनेयहां बुलाएं।
अर्ा- इसके बाद प्रेमी-प्रेभमका को ब्राह्मण के घर से अप्ग्न लाकर दोनों के फेरे लगवाकरशादी
करा दे नी चाहहए।
अर्ा- यहद प्रेभमका के माता-वपता नेककसी और के साथ उसकी शादी तय करदी हो और वववाह
का समय पास आ गया हो तो उसवक्त प्रेभमका की सहे ली या जो भी दोनोंके बारे में सोचने
वाले हो उसेचाहहए कक प्जस लड़के से उसकी शादी होने वाली हो उसकेबारे में प्रेभमका कीमां
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अर्ा- यह बात तय है कक प्रायाः युवकअपने समान ्वभाव और समान उम्र केदो्तों के भलए
आवश्यकता पड़ने पर जानतक न्यौछावर कर दे ते हैं। इसभलए प्रेभमकाके भाई को ही जररया
बनाकरप्रेभमका को ककसी अकेले ्थान में बुलाकर अप्ग्न को साक्षीमानकर शादी करलेनी
चाहहए।
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अर्ा- दशहरा, हदवाली आहद उत्ससवों परप्रेभमका की सहे ली को चाहहए कक वह प्रेभमका को मादक
पदाथम वपलाकरअपनेककसी कायम के बहाने उसे ककसी अंधेरे व खाली ्थान पर ले जाएं। इसके
बादप्रेमी-प्रेभमकाका भमलन कराकर उसे दवू षत करा दें अथामत दोनों आपस में संबंध बना लें ।
कफर लड़कीकी सहे ली को चाहहए कक वह इस बात को प्रेभमका केपररवार वाले को बता दें ।
अर्ा- सोई हुई, अकेले कहीं जाती हुईया नशीली व्तुएं खखलाकर बेहोशकी हुई प्रेभमका को
दवू षत करके, कफर लोगोंसे प्रकट कर दे ना तथा उसे अपनी बना लेनापैशाच वववाह है ।
श्लोक-26. ग्रामान्तरमद्
ु यानं वा गच्छन्त ं 44books.com
ववहदत्सवा सस
ु ंभत
ृ सिायो नायक्तदा रक्षक्षणोववत्रा्य
ित्सवा वा कन्यामपिरे त ्। इतत वववाियोगः।।26।।
श्लोक-27. पूवःा पूवःा रधानं ्याद्वववािो धमातः ह््र्तेः। पूवााभावे ततः कायों यो य उिर
उिरः।।27।।
अर्ा- धाभममक दृप्ष्ट से ववचार ववधध की अपेक्षा पश्चात ् के सभी वववाहउिरोिर तनकृष्ट हैं।
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अर्ा- वववाह का उद्दे श्य होता है प्रेमी-प्रेभमका के बीच तयार बढ़ाना।यहद प्रेमी-प्रेभमका के बीच
तयार नहो तो उनका वववाह तनष्फल होता है । इसप्रेमी-प्रेभमका के बीच गन्धवमवववाह उपयुक्त
माना जाता है क्योंकक इसमें प्रेम और ववश्वास का सुन्दर योगहोता है ।
श्लोक-29. सख
ु त्सवादबिुरक्लेशादवप चावरणाहदि। अनरु ागात्समकत्सवाच्च गान्धवाः रवरो मतः।।29।।
अर्ा- प्रेमी-प्रेभमका द्वारागान्धवम वववाह करना सुखद, थोड़े से कोभशश से वववाह होने वाले, बबना
ककसीकष्ट या झंझटतथा रीततररवाजों से हटकर प्रेम प्रधान होता है ।
सामाप्जक रूप सेचार हदव्य वववाहों का उल्लेख ककया गया है प्जनमें युवक-युवती
कोवववाह करने के भलए कोभशश नहीं करना पड़ता। लेककन प्जनयुवक या युवततयों कोअपनी
इच्छा के अनुसार युवती या युवक नहीं भमलते हैं, उनके भलए वात्स्यायन नेगान्धवम वववाह
बताया है । आचायम नेप्रेमी-प्रेभमका को सुझाव हदया है कक इस हालतमें उन्हें गान्धवम वववाहकर
लेना चाहहए। जो प्रेमी मनचाही प्रेभमका से वववाह न करसकता हो वे उसकेमाता-वपता को धन
दे कर वववाह कर लें। इस तरह का वववाह असुर वववाहकहलाताहै । यहद प्रेभमका के माता-वपता
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को धन दे ने पर भी वह उसको हाभसल न हो तोप्रेमी कोचाहहए कक प्रेभमका का अपहरण करके
उसके साथ शादी कर ले। इस तरहजो प्रेमी अपनेप्रेभमका से शादी करता है उसे राक्षस तथा
पैशाच वववाह कहतेहैं।
यहद बाह्य आहदहदव्य वववाह ववधध से प्रेमी को अपने मन पसंदप्रेभमका से वववाह
करना संभव न हो तो प्रेभमकाके इच्छा होने पर गान्धवमवववाह कर लेना चाहहए। यहद आसुर,
राक्षस, पैशाच ववधध से शादी करना सवमथावज्यम समझते हैं। गान्धवम वववाहमें सबसे पहले
प्रेभमका को वववाह के भलएराजी करना आवश्यक होता है , बबना उसके राजी हुए गान्धवम वववाह
मम ु ककन नहींहो सकता।
भारत में गान्धवम वववाह का प्रचलन काफी समय से चला आ रहाहै और इस वववाह की
लोकवप्रयता चारों ओर फैली है । राजपत
ू औरक्षबरय जो्वयंवर द्वारा शादी करते थे, वह भी
गान्धवम वववाह ही था। इस ्वयंवर में लड़की प्जसको वरमाला पहना दे ती थी, उसी से उसकी
शादी हो जाती थी। लेककन्वयंवरके बाद ववधधवत गह
ृ सर
ू के आधार पर अप्ग्न को साक्षी
मानकर वववाहसं्कार भी ककयाजाता था। नल दमयन्ती, अज-इन्दम
ु ती, राम-सीता, मालती-
माधवआहद के वववाह इसी प्रकार सम्पन्न हुए थे।
प्रथम कोहट केगान्धवम वववाह- आचायम वात्स्यायन के अनुसारयुवक-युवती का गान्धवम
वववाह हो जाने केबाद जब दोनों सुखीपूवक
म एक साथरहने लग जाए तो यव
ु ती के माता वपता
को इसके बारे में सूधचत कर दे नाचाहहए। इसके अततररक्त उसके माता-वपता को खश
ु करने का
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करता है या उसके सतीत्सवको नष्टकरके वववाह करता है उसे राक्षस वववाह कहते हैं। यह भी
धमम के ववरुद्ध है क्योंकक इसमें अप्ग्न का आवाहन तथा हवन आहद कोई धाभममक कायम नहीं
होताहै । आचायम वात्स्यायन नेराक्षस वववाह को पैशाच से अच्छा माना है क्योंककइस वववाह में
साहस कायम प्रधानहै ।
आचायम मध्यमकोहट के गान्धवम वववाह को ही सबसे प्रधान मानहै क्योंकक शादी का
चरम पररणाम वैवाहहकप्रेम ही है जबकक गान्धवम वववाहशुरू से ही प्रेम का माध्यम है ।
इतत श्रीवात्स्यायनीयेकामसूरे कन्यासम्प्रयुक्तके तत
ृ ीयेऽधधकरणे वववाहयोगाः पश्चमोध्यायाः।।