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वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में
पिले दोनों भागों के ललए 44 books दे खें

भाग 3 कन्यासम्प्रयक्
ु तक
अध्याय 1 वरण संववधान प्रकारण
अध्याय 2 कन्याववस्रम्भणम ् प्रकरण
अध्याय 3 बालोपक्रमााः प्रकरण
अध्याय 4 एक परू
ु षाभभयोग प्रकरण
अध्याय 5 वववाह योग प्रकरण

अध्याय 1 वरण संववधान रकारण

श्लोक-1. सवणाायामनन्यपव
ू ाायां शा्त्रतोऽधधगतायां धमोऽर्ाः पुत्राः संबंधः पक्षवद्
44books.com ृ धधरनुप्कृता
रततश्च।।1।।

अर्ा- कन्या की शादी का ववधान बताते हुए वात्स्यायन कहते हैं- कक जो युवक अपनी ही
जातत की युवती के साथ शा्रों के तनयम के अनुसार वववाह करता है , उसे बबना ककसी कष्ट
के धमम, धन और पुर की प्राप्तत होती है । ऐसे पुरूष को पत्सनी से बेहद तयार भमलता है , उसकी
सेक्स पॉवर बढ़ती है और सेक्स का भरपूर आनन्द भमलता है ।

श्लोक-2. त्मात्सकन्यामलभजनोपेतां मातावपतम


ृ त ं त्रत्रवर्ात्सरभतृ त न्यूनवयसं श्र्लघ्याचारे धनवतत
पक्षवतत कुले संवंधधवरये संबंधधलभराकुले
रसत
ू ांरभत
ू मातवृ पतप
ृ क्षांरूपश ललक्षणसंपन्यनाधधकाववनष्टदन्तखकणाकेशाक्षक्ष-
्तन
ृ मारोधगरकृततशरीरां तर्ाववध एवं श्रत
ु वाञ्श लयेता।।2।।

अर्ा- शा्रों में कहा गया है कक युवक को ऐसी लड़की से शादी करनी चाहहए जो उसकी
जातत की हो और उसमें उस जातत के सभी गुण मौजूद हों, माता-वपता का साथ हो, लड़की
उससे तीन साल छोटी हो, सुशील-शलीन बतामव करने वाली हो, अमीर घर की हो, प्जसका
पररवार प्रततप्ष्ित और लोकवप्रय हो, प्जसके ररश्तेदार भी ऐसे ही हो, माता-वपता के अलावा घर
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में अन्य सद्य भी हो और उनमें गहरा प्रेम हो, जो लड़की ्वयं शील व सुन्दरता संपन्न हो
प्जसके दांत, नाखन
ू , कान, बाल, आंखे, ्तन न बहुत बड़े हो और न ही बहुत छोटे ।

श्लोक-3. यां गि
ृ ीत्सवा कृततनमात्समानं मन्येत न च समानैतनान्द्येत त्यां रववृ िररतत
घोटकमुखः।।3।।

अर्ा- आचायम घोटकमुख कहते हैं कक प्जस कन्या से शादी करके पुरूष अपने को धन्य समझे
और प्जससे शादी करने पर सदाचारी भमरगण तारीफ करें , बुराई न करें , ऐसे ही लड़की से
शादी करनी चाहहए।

श्लोक-4. त्या वरणे मातावपतरौ संबंधधनश्र्च रयतेरन ्। लमत्सत्राणण च


गि
ृ ीतवाक्यान्यभयसंबद्धातन।।4।।

अर्ा- इस तरह के गुणों से सम्पन्न कन्या को वववाह के भलए माता-वपता तथा सगे-संबंधधयों
को कोभशश करनी चाहहए। दोनों तरफ के दो्तों को भी इस संबंध को बनाने के भलए कोभशश
करनी चाहहए। 44books.com

श्लोक-5. तान्यन्येर्ां वरतयतण


ृ ां दोर्ान्रत्सयक्षानागलमकांश्र्च श्रावयेयुः।
कौलान्पौरुर्ेयानश्र्चलभरायसंवधाकांश्र्चः।।5।।

अर्ा- ज्यादातर दो्तों की यही प्रववृ ि होती है कक वे अपने दो्त की कुलीनता, उसके पौरूष,
शील आहद की तारीफ करते हैं और लड़की के घर वालों से उसके कायम और गुणों के बारे में
बताते हैं। वे अपने दो्त से उन्हीं के प्रत्सयक्ष तथा आगामी गुणों का बखान करते हैं प्जन्हें
लड़की की मां और घर वाले पसंद करते हैं।

श्लोक-6. दै वधचन्तकरुपश्र्च शकुनतनलमिग्रिलग्नबललक्षेणदशानेन नायक्य भववष्यन्तमर्ासंयोगं


कल्याणमनुवणायेत ्।।6।।

अर्ा- लड़के के घर से भसखाकर भेजा गए व्यप्क्त को लड़की के घर जाकर लड़का का


जन्मकुण्डली, ग्रहों तथा लग्न ्थान के अनस
ु ार उसकी लड़की के भलए शादी के योग्य बताएं।
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लड़के की मां को लड़के की शादी से होने वाले महान आधथमक लाभ और उसके कल्याण का
अनुभवाभसद्ध वणमन करें ।

श्लोक-7. अपरे पुनार्यान्यतो ववलशष्टे न कन्यालाभेल कन्यामातरमुन्मादयेयुः।।7।।

अर्ा- मां के पास भेजे जाने वाले व्यप्क्त को चाहहए कक लड़की की मां को लड़के के बारे में
बढ़ा-चढ़ा कर कहें । उसे कहें कक आप अपनी लड़की की शादी प्जस लड़के से करना चाहते हैं
वह लड़का आपकी लड़की के भलए बबल्कुल िीक है । उसकी मां को समझाते हुए कहे कक
आपको अपनी लड़की की शादी उसी लड़के से करना चाहहए क्योंकक वही लड़का आपकी लड़की
के भलए अच्छा जीवन साथी बन सकता है ।

श्लोक-8. दै वतनलमिशकुनोपश्रत
ु नामानुलोम्प्येन कन्यां वरयेद्दद्याच्चा।।8।।

अर्ा- लड़का-लड़की के माता-वपता को चाहहए कक वे लड़का-लड़की को दै व तथा ग्रह नक्षर की


अनुकूलता दे खकर षष्ि और अष्ट योगों को बचाकर और तनतनि तथा शकुन पूछकर आधी
रात के वक्त की उपश्रतु त ग्रहण कर लड़का-लड़की की शादी कराएं।
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श्लोक-9. न यद्दच्छया केवलमानुर्ायेतत घोटकमुखः।।9।

अर्ा- आचायम घोटकमुख का मानना है कक केवल लड़का-लड़की के माता-वपता को ही अपनी


इच्छा से वववाह तय नहीं करना चाहहए बप्ल्क पररवार और संबंधधयों की सलाह लेकर ही
शादी तय करनी चाहहए।

श्लोक-10. सुपतां रूदत ं तनष्रान्तां परणे पररवजायेत ्।।10।।

अर्ा- लड़के को ऐसी लड़की से शादी नहीं करनी चाहहए जो अधधक सोती है , झगड़ालू हो,
जल्दी रोने वाली हो, अधधक घूमने वाली हो और पररवार में झगड़ा कराने वाली हो।

श्लोक-11. अरश्तनामधेयां च गुपतां दिां घोनां पर्


ृ तामर्
ृ भां ववनतां ववकटां ववमुण्ां
शुधचदवू र्तां सांकररक ं राकां फललन ं लमत्सत्रां ्वनुजां वर्ाकरीं च वजायेत ्।।11।।
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अर्ा- ऐसी लड़की के साथ शादी नहीं करनी चाहहए प्जसके नाम भद्दे व अटपटे हो। ऐसी
लड़की प्जसे लोगों के बीच बैिना अच्छा नहीं लगता, अकेली रहना पसंद करती है , भूरे बाल
हो, सफेद दाग हो, बड़ी तनतम्ब (हीतस) हों, गदम न झुकी हो, प्जसका शरीर पुरूष के समान तगड़ा
एवं हष्ट-पुष्ट हो, भसर में कम बाल हो, प्जसमें लज्जा व शमम का भाव न हो, गूंगी हो, प्जसे
बचपन से जानते हो, पूरी तरह युवती नहीं हुई हो, प्जसके हाथ-पैर पसीजते हो आहद। इस
तरह के अवगुणों वाली लड़की के साथ शादी नहीं करनी चाहहए।

श्लोक-12. नक्षत्राखयां नदीनाम्प्न ं च गहिाताम ्। लकाररे फोपान्तां च वरणे पररवजायेत ्।।12।।

अर्ा- ऐसी लड़की से भी शादी नहीं करनी चाहहए प्जसका नाम नक्षर, नदी या पेड़ के नाम पर
हो। प्जसके नाम के अंत में ‘ल’ या ‘र’ अक्षर हो उससे भी शादी नहीं करनी चाहहए।

श्लोक-13. य्यां मनश्र्चक्षुर्ोतनाबन्ध्त्यामद्


ृ धधः। नेतरामाहियेत। इत्सयेके।।13।।

अर्ा- कुछ ज्योततष शा्रों का कहना है कक प्जस लड़की से लड़के की आंखे और मन भमल
जाए उससे वववाह करने में सुख और आनन्द की वद्
ृ धध होती है । यहद शादी करने वाली
लड़की से मन और आंखें न भमलती हो तो उस लड़की से शादी नहीं करनी चाहहए।
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श्लोक-14. त्मात्सरदानसमये कन्यामुदारवेर्ां्र्ापयेयुः। अपराह्णणकंच। तनत्सयंरासाधधतायाः


सख लभः सि र ्ा। यज्ञवववािाहदर्ु जनसंिावेर्ु रायह्त्सनकं दशानम ्। तर्ोत्ससवेर्ु च।
पणयसधमात्सवात ्।।14।।

अर्ा- यहद लड़की यव


ु ती हो जाए और शादी के योग्य हो गई हो तो उसके मां-बाप को चाहहए
कक उसे सन्
ु दर व्र पहनाये और सजने सवंरने दें । यव
ु ती होने पर लड़की को सज-संवरकर
शाम के समय अपनी सहे भलयों के साथ बागों में खेलने जाना चाहहए। मां-बाप का कतमव्य है
कक जब लड़की यव
ु ती हो जाए तो उसे शादी, पाटी, उत्ससवों और यज्ञों में अच्छे कपड़े पहनाकर
और साज-सवार कर ले जाएं। इस तरह सजने-संवरने से लड़की की ओर लड़के का आकषमण
बढ़े गा। प्जस तरह सजावट को दे खकर लोग उस ओर आकवषमत होते हैं उसी तरह लड़की
युवती होने पर जब सजती-संवरती है तो लड़के उसकी ओर आकवषमत होते हैं।

श्लोक-15. वरणार्ामुपगतांश्र्च भिदशानान रदक्षक्षणवाचश्र्च तत्ससंबह्न्धसंगतान ् पुरूर्ान्मंगलैः


रततगण
ृ न युः।।15।।
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अर्ा- लड़की के माता-वपता को चाहहए कक जब लड़के के घर वाले लड़की को दे खने आए तो


उसे अच्छे -अच्छे पदाथों से उनका ्वागत करना चाहहए।

श्लोक-16. कन्यां चैर्ामलंकृतामन्यापदे शन


े दशायेयुः।।16।।

अर्ा- माता-वपता को चाहहए कक वह अपनी लड़की को अच्छे व्र पहनाकर, आभूषण पहना
कर और साज-सवांर कर लड़के और उसके पररवार वाले को हदखाएं।

श्लोक-17. दै वं परीक्षणं चावधधं ्र्ापयेयःु । आ रदानतनश्र्चयात ्।।17।।

अर्ा- लड़की के माता-वपता को चाहहए कक लड़के से शादी तय करने से पहले अपने ररश्तेदार,
दो्तों से सलाह लेने के भलए लड़के के माता-वपता से समय मांगे। इसके बाद लड़के के
पररवार के बार में जब सब कुछ पता लग जाए और अपने बराबर का लगे तो ही उससे
अपनी लड़की की शादी तय करनी चाहहए।
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श्लोक-18. ्नानाहदर्ु तनयुज्यमाना वरतयतारः सवा भववष्यत त्सयुक्त्सवा न


तदिरे वाभ्युपगच्छे युः।।18।।

अर्ा- अगर ्नान आहद के भलए वरण करने वाले अनुरोध करें तो उसी रोज ्वीकार न करें ।
उनसे भसफम इतना कह दें कक दे खखए सब कुछ सही समय पर हो जाएगा।

श्लोक-19. दे शरववृ िसात्सम्प्याद्वा ब्राणमराजापत्सयार्ादैवानामन्यतमेन वववािे न शा्त्रतः पररणयेत ्।


इतत वरण ववधानम ्।।19।।

अर्ा- भारतीय सं्कृतत के मुताबबक चार प्रकार की शाहदयां होती हैं- ब्राह्म, प्राजापत्सय, आषम
तथा दै व। इन चारों में से ककसी भी एक के द्वारा शा्रों के अनुसार लड़की के साथ शादी
कर लेनी चाहहए।
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श्लोक-20. भवह्न्त चात्र श्र्लोकाः सम्याद्याः सिर ्ा वववािाः संगतातन च। समानैरेव


कायााणण नोिमैनवा प वाधमः।।20।।

अर्ा- लड़की को अपने समान उम्र के लड़के के साथ खेलना चाहहए, समान उम्र के लड़के के
साथ दो्ती करनी चाहहए और युवती होने पर योग्य व समान उम्र वाले के साथ ही वववाह
करना चाहहए। अधधक उम्र के लड़कों के साथ दो्ती और अधधक उम्र के पुरूष के साथ
वववाह नहीं करना चाहहए।

श्लोक-21. कन्यां गि
ृ ीत्सवा वतेत रेष्यवद्यत्र नायकः। तं ववद्यादच्ु चसंबंधं पररत्सयक्तं
मनह््वलभः।।21।।

अर्ा- लड़के को अपने समान है भसयत वाले लड़की के साथ ही शादी करनी चाहहए क्योंकक जो
पैसे या अन्य लालच वश अपने से अधधक अमीर लड़की से शादी करता है उसके साथ नौकर
के समान व्यवहार ककया जाता है । ककसी छोटे घर के लड़के को बड़े घर की लड़की या ककसी
छोटे घर की लड़की को अधधक बड़े घर के लड़के के साथ शादी नहीं करनी चाहहए। इस तरह
के संबंधों को उच्च संबंध कहा जाता है । अक्सर बद्
ु धधमान लोग इस तरह का संबंध कभी
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नहीं करते।

श्लोक-22. ्वालमवद्ववचरे द्यत्र बांधवैः ्वैः परु ्कृतः। अश्र्लाघ्यो िीनसंबंधः सोऽवप
सद्धधववातनन्द्यते।।22।।

अर्ा- अक्सर कुछ पुरूष तनधमन घर की लड़की के साथ शादी करके उस पर माभलक की तरह
शासन करता है । ऐसे घरों में तनधमन घर की लड़की नौकरानी बनकर रहती है । इस तरह का
वैवाहहक संबंध हीन संबंध कहलाता है । जो लोग बद्
ु धधमान होते हैं वे इस तरह के संबंधों से
बचते हैं।

श्लोक-23. पर्परसुखा्वादा र ्ा यत्र रयुज्यते। ववशेर्यन्त चान्योन्यं संबंधः स


ववध यते।।23।।

अर्ा- प्जस शादी से पतत-पत्सनी को समान आनन्द की अनभ


ु तू त हो और दोनों एक-दस
ू रे से
तयार करते हों वही शादी करने लायक होते हैं।
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श्लोक-24. कृत्सवावप चोच्चसंबंधं पश्चाज्ज्ञैततर्ु संनमेत ्। न त्सवेव िीनसंबंधं


कुयाात्ससद्लभववातनह्न्दतम ्।।24।।

अर्ा- अपने से ऊंचा संबंध ्थावपत करने पर अपने ररश्तेदारों से दबना पड़ता है , उनके सामने
झक
ु ना पड़ता है । हीन संबंध को भी सज्जन लोग बरु ा मानते हैं।
वात्स्यायन वववाहहक जीवन को तरजीह दे ता है । उसने उन्मक्
ु त सहवास व उच्छृंखल
कामुकववृ ियों तथा व्यभभचार का तनरोध करने के भलए कन्यावरण का ववधान शा्र ववधध से
तथा सजातीय में धमम, अथम की वद्
ृ धध के भलए शादी करने के भलए बताया है ।
कामना से प्रवि
ृ ब्राह्मण के चारों वणम, क्षबरय के ब्राह्माण के अलावा तीन वणम, वैश्य के
दो वणम तथा शूद्र के एक वणम की कन्या से वववाह करना चाहहए। लेककन मनु के इस तनयम
का खण्डन करते हुए याज्ञवल्क्य कहते हैं कक नैतन्मम मतम यह ववधान मुझे ्वीकार नहीं
है , क्योंकक श्रतु त का कहना है कक तज्जाया जाया भवतत यदन्यां जायते पुनाः जाया वहीं कही
जा सकती है प्जसमें पतत पुररूप से पुनाः उत्सपन्न हो।
लेककन वात्स्यायन यहां पर काम्य वववाह का समथमन नहीं करते हैं। वह रक्त-शुद्धध
का पूरा ख्याल रखते हुए शा्र और धमम सम्मत वववाह का ही समथमन करता है । यहां पर
वह रतत की तप्ृ तत धाभममक बुद्धध से करने44books.com
का पक्षपात करता है ।
वववाह के संबंध में सावधान करते हुए कहते हैं कक ‘कान्याभभभ जनोपेता’ अपनी जातत
के गुणों से सम्पन्न लड़की से शादी करनी चाहहए। इसके अततररक्त लड़की अनाथ न हो और
दरू -दरू तक उसके वंश के ररश्तेदार फैले हों। इस तरह के पररवार वालों में शादी करने से
कभी धोखा नहीं हो सकता है । वात्स्यायन के मत से समान जातत की कन्या के साथ वववाह
कर लेना चाहहए जो उम्र में छोटी हो और मन, वचन, कमम से उसका कौमायम भंग न हुआ हो।
इस ववषय में वात्स्यायन तकम प्र्तुत करते हुए कहते हैं कक जैसे बाजार में लोग
खरीदने योग्य व्तु को अच्छी तरह दे खे बबना नहीं खरीदते हैं, उसी तरह लड़की के साथ
वववाह भी बबना सही प्रकार से दे खे बबना नहीं ककया जा सकता।
आचायम वात्स्यायन के इस कथन से उसके समय के समाज तथा वववाह प्रथा पर
प्रकाश पड़ता है । ऐसा अनभ
ु व होता है कक वात्स्यायन के समय में ्वयंवर की प्रथा बन्द सी
हो गयी थी, लड़ककयों की शादी ककसी बहाने से उन्हें हदखाकर करने की प्रथा चल पड़ी थी।
हमारे दे श में प्राचीन समय से ही लड़ककयों की शाहदयां काफी अतनयंबरत माहौल में होती रही
हैं। ्वयंवर की प्रथा काफी परु ानी है । गग्वेद के अनस
ु ार पहले यव
ु ततयां वतनताभभलाषा यव
ु कों
की प्राथमना पर उन्हें पतत के रूप में ्वीकार कर भलया करती थी।
इस बात से साबबत होता है कक इससे पहले ककसी समय में लड़ककयां भी एकर हुआ
करती रही होंगी। वहां अनेक तरह के खेल तमाशे होते थे। इसी मौके पर आपस में प्रेम
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संबंध, वववाह संबंध प््थर होता हैं। वह मानता है कक खेल, वववाह तथा भमरता बराबर वालों से
ही करनी चाहहए। न तो अपने से ऊंचे और न अपने से नीचे लोगों से।
इस प्रकार वैवाहहक जीवन सुखी नहीं बन पाता है । इसभलए लड़के-लड़की की शादी
ववद्या, ववि और कुल दे खकर करनी चाहहए।
इतत श्रीवात्स्यायनीये कामसूरे सांप्रयोधगके तत
ृ ीयेऽधधकरणे वरणववधानं संबंधतनश्र्चयश्र्च
प्रथमोऽध्यायाः।।

वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक

अध्याय 2 कन्याववस्रम्प्भणम ् रकरण

श्लोक-1. संगतयोह््त्ररात्रमध शय्या ब्रणमचया क्षारलवण जामािार्तर्ा सपतािं सतूयम


ा ंगल्त्रानं
रसाधनं सिभोजनं च रेक्षा संबंधधनां च पूजनम ्। इततसावावणाकम ्।।1।।
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अर्ा- यव
ु क-यव
ु ती की शादी हो जाने केबादपतत-पत्सनी को शादी के तीन रात तक जमीन पर
साधारण वव्तर पर सोना चाहहएऔरपतत-पत्सनी दोनों को ब्रह्मचयम व्रत का पालन करना
चाहहए। भोजन में रसयुक्त पदाथम तथानमकीन चीजों का सेवन नहीं करना चाहहए। पतत-पत्सनी
दोनोंको एक सतताह तक मंगल ्नान करनाचाहहए और उसे व्र आभूषणों से सज-सवंरकर
रहना चाहहए। दोनों को भोजन आहद में साथ रहना चाहहए। अपनों से बड़ों काआदर और
सम्मान करना चाहहए। शादी के बाद पतत-पत्सनीके भलए बनाए गए यह तनयमचारों वणम के
भलए है ाः- ब्राह्मण, क्षबरय, वैश्य तथा शूद्र।

श्लोक-2. तह््मत्रेतां तनश ववजने मद


ृ लु भरुरचारै रुररमेता।।2।।

अर्ा- शादी के बाद पतत को चाहहए कक वहअपनी पत्सनी को रात के एकांत ्थान पर कोमल
उपहारों द्वारा अपनी ओर आकवषमत करें ।

श्लोक-3. त्रत्ररात्रमवचनं हि ्तम्प्भलभव नायकं पश्यन्त कन्या तनववद्येत पररभवेच्च तत


ृ यालमव
रकृततम ्। इतत बाभ्रव याः।।3।।
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अर्ा- बाभ्रवीय आचायों का कहना है कक शादी के पहले तीन रातों में अगरपतत यहद पत्सनी से
बाते न करें , उसे्पशम न करें , उसे प्रेम भरी तनगाहों से न दे खें और चप
ु -चापकमरे में पड़ा रहे तो
इससे पत्सनी दख
ु ी हो जाती है और पतत को नपुंसकमानने लगती है ।उसके मन में अपने पतत
के प्रतत सम्मान की भावना भी कम होने लगती है ।

श्लोक-4. उपरमेत वव्त्रम्प्भयेच्च, न तु ब्रणमचयामततवतेत। इतत वात्स्यायनः।।4।।

अर्ा- वात्स्यायन अपने कामसर


ू में भलखते हैं ककशादी के पहले तीन रातों में पतत यहद पत्सनी
के प्रतत तयार काप्रदशमनकरता है तो पत्सनी के मन में सम्मान और ववश्वास बढ़ता है ।
लेककनपतत को अपने पत्सनीके बीच ब्रह्मचयम का तीन रातों तक पालन करते रहनाचाहहए।

श्लोक-5. उपरममाणश्च न रसणय ककंधचदाचरे त ्।।5।।


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अर्ा- शादी के तीन रातपत्सनी के साथ प्रेम प्रदशमन करने के क्रम में पत्सनी को जबरद्तीचब
ुं न
और आभलंगन नहीं करना चाहहए।

श्लोक-6. कुसुमसधमााणणहि योवर्तः सुकुमारोपरमाः। ता्त्सवनधधगतववश्वासैः


रसभमप
ु रम्प्यमाणाःसंरयागद्वेवर्णयो भवह्न्त। त्मात्ससाम्प्नैवोपचरे त ्।।6।।

अर्ा- ्री फूल के समान कोमल औरनाजुकहोती है । इसभलए उसके साथ बड़े तयार और
कोमलता से व्यवहार करनाचाहहए। पतत कोतब तक अपनी पत्सनी के साथ जबरद्ती चब
ुं न
या आभलंगन नहींकरना चाहहए जब तक उसके हदलमें पूणम ववश्वास न बन जाए। शादी के
बादपतत-पत्सनी दोनों को एक-दस
ू रे कोसमझना चाहहए क्योंकक जब तक पत्सनी को अपनेपतत पर
यकीन न हो जाए तब उसके साथ कोई भी कामकरना बलात्सकार ही होता है औरइससे पत्सनी
सेक्स से धचढ़ जाती है । अताः पतत को पत्सनी केसहमतत और इच्छाहोने पर ही अभलंगन, चब
ुं न
और सेक्स संबंध बनाना चाहहए।

श्लोक-7. युक्त्सयावप तु यतः रसरमुपलभेिेनैवानु रववशेत ्।।7।।


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अर्ा- सेक्स संबंध के भलए पत्सनी सेतयारसे बाते करें , धीरे -धीरे उसके अंगों को ्पशम करके उसे
इसके भलएतैयार करनाचाहहए और जैसे ही मौका भमले या उसकी सहमती भमले वैसे ही
उसकेअंगों को भशधथल करकेआभलंगन करना चाहहए।

श्लोक-8. तह्त्सरयेणाललंगनेनाचररतेन नाततकाल्वात ्।।8।।

अर्ा- इस तरह मौका भमलने पर बड़ेतयारके साथ ्री को आभलंगन करना चाहहए और सेक्स
संवंध बनाना चाहहएलेककन ज्यादादे र तक आभलंगन नहीं करना चाहहए।

श्लोक-9. पूवक
ा ायेण चोपरमेत ्। ववर्णयत्सवात ्।।9।।

अर्ा- शुरुआत में पत्सनी से ज्यादापररचयन होने की वजह से आभलंगन छाती से ऊपरी अंगों
का करना चाहहए, नाभभआहद नीचे के अंगों का नहीं।
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श्लोक-10. दीपालोके ववगाढयौवनायाः पूवस


ा ं्तुतायाः। बालाया अपूवाायाश्चन्धकारे ।।10।।

अर्ा- यहद वववाह से पहले पत्सनी सेजान-पहचान हो और वह उन्मियौवना होतो दीपक के


प्रकाश में आभलंगन करनाचाहहए। यहद पतत-पत्सनी के बीच वववाह से पहले जान-पहचानन हो
और उसकाअप्रातत यौवन हो तो अंधेरे में आभलंगन करना चाहहए।

श्लोक-11. अंग कृतपररष्वंगायाश्च वदनेन ताम्प्बूलदानम ्। तदरवपपद्यमानांसान्त्सवनैवााक्यैः शपर्ैः


रततयाधचतैः पादपतनैश्च ग्राियेत ्।व्र ्ायुक्तावप योवर्दत्सयन्तरुद्धावप न पादपतनममततवाते
इततसावात्रत्रकम ्।।11।।

अर्ा- आभलंगन करने के बाद जब दोनों केमन से लाज और संकोच दरू हो जाए तोपतत को
चाहहए कक वह अपने मंह
ु में एकपान रखें और एक पान पत्सनी को खाने को दें । यहदवह पान
लेने से इंकार करे तो उसे बड़े तयार से अनरु ोध करें और पान लेने के भलएकहें । यहद इससे
भीवह पान लेने से मना करे तो उसके पैर में धगरकर उसे पान खाने काअनरु ोधकरें ।
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श्लोक-12. तद्दानरसंगेण मद
ृ ु ववशदमकािलम्याश्चम्प्
ु बनम ्।।12।।

अर्ा- जब पत्सनी पान लेने के भलए तैयार हो जाए तो तयार से उसे पान दे तेहुए चब
ंु न करें ।

श्लोक-13. तत्र लसद्धामालापयेत ्।।13।।

अर्ा- यहद चब
ंु न लेने पर चेहरा खखलउिे और होिों पर म्
ु कुराहट फैल जाएतो समझना
चाहहए कक उसे अच्छा लगा है ।इसके बाद उससे बाते करें ।

श्लोक-14. तच्छुवणार्ा यह्त्सकंधचदल्पाक्षरालभधेयमजानह्ननव पच्


ृ छे त ्।।14।।

अर्ा- पत्सनी से बाते करते हुए यहद ऐसामहसूस हो कक पत्सनी उसकी बातों में हदलच्पी ले रही
है तो बीच में ककसीअन्जान की तरह थोड़े से शब्दों में कुछ पूछे।
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श्लोक-15. तत्र तनष्रततपविमनुद्वेजयन्सान्त्सवनायुक्तं बिुश एवं पच्


ृ छे त ्।।15।।

अर्ा- यहद पत्सनी उस सवालों के अथम न बता पाए या जवाब न दे तो उससे तयार के साथ
यह बार-बार पूछे।

श्लोक-16. यत्रापयवदन्त ं तनबाध्न यात ्।।16।।

अर्ा-तयार के साथ बार-बार अनुरोधकरने पर भी जब वह कोई जवाब न दे तो उस जवाब के


भलए अधधक जोर नदें । अक्सरपहली रात में लड़ककयां अधधकतर उन्हीं सवालों का जवाब दे ना
पसंद करती हैंप्जसमें केवल ‘हां’ या ‘नां’ बोल सकें।

श्लोक-17. सवाा एवं कक कन्याः परु


ु र्ेन रयज्
ु यमानं वचनं ववपिन्ते। न तु लघलु मश्रामवप वाचं
वदह्न्द। इतत घोटकमख
ु ः।।17।।
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अर्ा- आचायम घोटकमुख के अनुसार सभीनववववाहहत लड़ककयां पुरूष की हर बातको खामोशी


से सुनती जाती है लेककनककसी भी प्रकार का कोई जवाब नहीं दे ती।

श्लोक-18. तनबाध्यमाना तु लशरःकम्प्पेन रततवचनातन योजयेत ्। कलिे तु न लशरः


कम्प्पयेत ्।।18।।

अर्ा-पतत के पूछने पर नववववाहहतलड़ककयां अक्सर हां या न में जवाबदे ती हैं। यहद पूछने पर
वह कोई जवाब नदें तो उस पर क्रोधधत नहीं होना चाहहए क्योंककउसके बाद वह कोई जबाव
भीनहीं दे ती।

श्लोक-19. इच्छलस मांनेच्छलस वा ककं तेऽिं रुधचतो न न रुधचतो वेतत पष्ृ टा धचरं
ह््र्त्सवातनबाध्यमाना तदानुकूल्येन लशराः कम्प्पयेय ्। रपञ्च्यमाना तु वववदे त ्।।19।।
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अर्ा- तुम मुझे चाहती हो या नहीं, मैंतुम्हें पसन्द हूं या नहीं। इस तरह पूछेजाने पर पत्सनी दे र
तक चप ु रहकरकफर भसर हहलाकर अनुकूल जवाब दे ती है तथायहद क्रोधधत हुई तो झगड़
पड़तीहै ।

श्लोक-20. सं्तुताचेत्ससख मनुकूलामुभयतोऽवप वव्त्रबधां तामन्तरा कृत्सवा कर्ां


योजयेत ्।तह््मननधोमुख वविसेत ्। तां चाततवाहदन मधधक्षक्षपेद्वववदे च्च। सा
तुपररिासार्ालमदमनयोक्तलमतत चानुक्तमवप ब्रूयात ्। तत्र तामपनुद्यरततवचनार्ामभ्यर्थयामाना
तूष्ण मास त। तनवाध्यमाना तु नािमेवंब्रव म त्सयव्यगक्ताक्षरमनवलसतार्ा वचनं ब्रूयात ्। नायकं च
वविसन्त कदाधचत्सकटाक्षैः रेक्षेत। इत्सयालापयोजनम ्।।20।।

अर्ा- पतत-पत्सनी से बाते करने के भलएपत्सनी को सहे ली का सहारा लेनाचाहहए। पतत जब कुछ
कहता है तो उसे सन
ु करपत्सनी नीचे मंह
ु करके हं सती है । पतत की बातसन
ु कर पत्सनी अपनी
सहे ली कोधमकायेगी कक तू वहुत वकवास करने लगी है , इस तरह से उसके साथ वववाद
करे गी।सहे ली भी उसका मजाक उड़ाने के भलएउसके पतत से झूि-मूि बोलेगी कक मेरीसहे ली
आप से यह कह रही है । इधर अपनी सहे ली सेकहे गी कक तुम्हारा पतत यह कहरहा है , तू क्यों
नहीं बोलती। इस तरह पतत तथा सहे लीसे तंग आकर पत्सनी दबेशब्दों में कहती है कक तुम
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मुझे तंग करोगी तो मैं नहींबोलूंगी। साथ हीपतत की तरफ मु्कुराती हुई ततरछी नजरों से
दे खती है । इस तरह दोनों केबीचजो बातचीत शुरू होती है वह पतत-पत्सनी की पहली बातचीत
होती है ।

श्लोक-21. एवं जातपररचय चातनवादन्त तत्ससम पे याधचतं ताम्प्बूलंववलेपनं ्त्रजं तनदध्यात।


उिरीये वा्य तनबध्य यात ्।।21।।

अर्ा-इस तरह आपस में पतत-पत्सनी केबीच पररचय हो जाने पर पत्सनी कोचाहहए कक वह बबना
कुछ बोले पतत के पासखामोश से पान, चन्दन तथा माला रख दें ।

श्लोक-22. तर्ायुक्तामाच्छुररतकेन ्तनमुकुलयोरुपरर ्पश


ृ त
े ्।।22।।

अर्ा- जब पत्सनी आपके पास पान, चन्दनतथा माला रख रही हो तो पतत को चाहहए कक वह
पत्सनी के ्तनों की घुप्ण्डयों कोतयार से्पशम करें ।
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श्लोक-23. वायामाणश्चत्सवमवप मां पररष्वज्व ततो नैवमाचररष्याम तत ह््र्त्सया पररष्वञ्जयेत ्।


्वं चि्तमानालभदे शात्सरलसाया तनवतायेत ्। रमेण चैनामुत्ससंगमारोपयाधधकमधधकमुरमेत ्।
अरततपद्यमानां च भ र्येत ्।।23।।

अर्ा- यहद पत्सनी ्तनों को ्पशमकरने से रोकती है तो उससे बोलनाचाहहए कक तम


ु मेरे शरीर
को ्पशम याआभलंगन करो मैं कुछ नहीं कहूंगा। इसके बादपत्सनी का आभलंगन करें और
अपनेहाथ को ्तनों से सहलाते हुए नाभभ के नीचे तक फैलाएंऔर कफर हटा लें । इसकेबाद
पत्सनी को अपनी गोद में बैिने को कहें और कफर धीरे -धीरे आगे की कक्रयाकरें । यहद पत्सनी गोद
में बैिने या यह सब करने से मना करे तो उसेबातों सेभयभीत भी करा दे ना चाहहए।

श्लोक-24. अिं खलु तवदन्तपदान्यधरे कररष्यालम, ्तनपष्ृ ठे च नखपदम ्। आत्समनश्च ्वयं


कृत्सवात्सवया कृतलमतत ते सख जन्य पुरतः कर्तयष्यालम। सा त्सवं ककमत्र
वक्ष्यस ततवालत्रबभ वर्कैबाालरत्सयायनैश्च शनैरेनां रतारयेत ्।।24।।
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अर्ा- पत्सनी जब छोड़छाड़ या अंगों को्पशम करने से मना करे तो उससेकहे कक मैं तुम्हारे
होिों पर दांतों केतनशान कर दं ग
ू ा, ्तनों पर नाखन
ू गड़ा दं ग
ू ा, अपने अंगों में ्वयं
नाखनू लगाकर तेरी सहे भलयोंसे कहूंगा कक तुम्हारी सहे ली ने ये घाव कर हदए हैं।तब बता तू
क्या करे गी? इस तरह बच्चों की तरह डरा-धमकाकर धीरे -धीरे पत्सनी कोमनचाहे काम में लगा
ले।

श्लोक-25. द्ववत य्यां तत


ृ य्यां च रात्रौ ककञ्चदधधकं वव्त्रह्म्प्भतां ि्तेन योजयेत ्।।25।।

अर्ा- इस तरह पहली रात में पतत कोअपने पत्सनी के मन में ववश्वास बनानाचाहहए और कफर
दस
ू री-तीसरी रात उसकीजांघों पर हाथ फेरना शुरू कर दे ना चाहहए।

श्लोक-26. सवाांधगकं चब
ुं नमुपरमेत।।26।।

अर्ा- जांघों आहद पर हाथ फेरने पर जब ्री कुछ न बोले तो धीरे -धीरे सभी अंगों को
सहलाना चाहहए और चब
ंु न करना चाहहए।44books.com

श्लोक-27. ऊवोश्चोपररववन्य्ति्तः संवािनकरयायां लसद्धायां रमेणोरुमूलमवप


संवाियेत ्।तनवाररते संवािने को दोर् इत्सयाकुलयेदेनाम ्। तच्च ह््र्रीकुयाात ्। तत्रलसद्धाया
गुणयदे शालभमशानम ्।।27।।

अर्ा- जब पत्सनी ्पशम से आनन्द महसस


ू करने लगे तो धीरे -धीरे जांघों केऊपर हाथ रखकर
हाथ फेरना आरम्भ कर दें ।जांघों के ऊपर हाथ रखकर ऊपर नीचे हाथों सेसहलाने के बाद
जांघों के जोड़में हाथ ले आए। कभी पत्सनी ऐसा करने से रोके तो कहे कक ऐसाकरने में
क्याजाता है । जांघों को सहलाने के साथ ही आभलंगन तथा चम्
ु बन करते हुएउसेबेचन
ै बनाना
चाहहए। बीच-बीच में सहलाना बन्द कर दे ना चाहहए। जब जांघों कोसहलाते हुए ्री ककसी
तरह का तनषेध न करके उसमें रुधच लेने लगे तबआहह्ता से उसकेगुततांग तक हाथ पहुंचा
दे ना चाहहए।
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श्लोक-28. रशनाववयोजनंन व वव्त्रंसनं वसनपररवतान मूरुमूलसंवािनं च। एते


चा्यान्यापदे शाः।युक्तयन्त्रां रञ्जयेत ्। न त्सवकाले व्रतखण्नम ्।।28।।

अर्ा- कफर कमर की करधनी सरकाकर साड़ीकी गांि को ढीली कर दे और साड़ीको उलट दे
और जांघों को सहलाते रहें । येसब कक्रयाएं पत्सनी पर अपना प्रेम तथाववश्वास जमाने के भलए
की जानी चाहहए नकक उच्छूंखल कामातुर बनकर संभोग के समय में ्रीकी खश
ु ी का ख्याल
करतेहुए असमय में ब्रह्मचयम भंग करने के भलए।

श्लोक-29. अनलु शष्याच्च।आत्समानरु ागं दशायेत ्। मनोर्ांश्च पव


ू क
ा ाललकाननव
ु णायेत ्। आयत्सयां
चतदानक
ु ू ल्येन रववृ िं रततजान यात ्। सपत्सन भ्यश्चसाध्वसमवह्च्छन्द्यात ्। कालेन च रमेण
ववमक्
ु तकन्याभावा-मनद्
ु वेजयननप
ु रमेत। इतत कन्यावव्त्रम्प्भणम ्।।29।।

अर्ा- पतत को चाहहए कक सुहागरात से पहले तीन रातों में अपनी पत्सनी कोसेक्स की भी
भशक्षा दें ।
पतत को चाहहए ककसुहागरात के पहले तीन रातों में पत्सनी परप्रेम जाहहर करते हुए
वपछलेमनोरथों, मनसूबों की बातें भी करनी चाहहए। उसेचाहहए कक पत्सनी के मन में
ववश्वासहदलाना चाहहए कक मैं जीवन भर तुम्हारासाथ दं ग
ू ा, मैं तुम्हारे अलावा ककसी और
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्रीकी ओर कभी नहीं दे खग
ूं ा। इसतरह का ववश्वास हदलाना चाहहए।

श्लोक-30. भवह्न्त चात्र श्लोकाः- एवं धचिानुगो बालामुपायेन रसाधयेत ्। तर्ा्य सानुरक्ता च
सुवव्त्रबधा रजायते।।30।।

अर्ा- इस ववषय पर प्राचीन आचायों काकहना है कक जो व्यप्क्त वववाह केपहले तीन रातों में
अपनी पत्सनी के मन कोजानकर अपने प्रेम बंधन में बांध लेता है औरअपना पूरा ववश्वास बना
लेता है तो शुरू से ही पत्सनी अनुगाभमनी वनकर उसकी सेवाकरती रहती है ।

श्लोक-31. नात्सयन्तमानुलोम्प्येन न चाततराततलोभ्यतः। लसद्धधं गच्छतत कन्यासु त्मान्मध्येन


साधयेत ्।।31।।

अर्ा- परु
ु षों को हमेशा एक बात यादरखनी चाहहए कक ्री को न तो अधधकक्रीतदास बनाकर
और न ही अधधक प्रततकूलहोकर ्री को अपने वश में करनाचाहहए क्योंकक अधधक तनममल
व्यवहार करनेसे ्री अपने को उच्च समझ बैिती है और अधधकसख्त व्यवहार करने से
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वहजीवन भर डरी सी रहती है । अताः जो समझदार पुरूष होते हैं वहइन दोनों में सेबीच का
रा्ता अपनाते हैं।

श्लोक-32. आत्समनः र ततजननं योवर्तां मानवधानम ्। कन्यावव्त्रम्प्भणं वेवि यः स तासां वरयो


भवेत ्।।32।।

अर्ा- पत्सनी के मन में अपना तयारबनाना, पत्सनी का सम्मान करना तथा नई वववाहहत ्री में
अपना यकीन बनाना।इन तीनोंबातों को जो पुरूष जानता है और समझता है वह प््रयों का
वप्रयहोता है ।

श्लोक-33. अततलञ्जाह्न्वतेत्सयेवं कन्यामुपेक्षते। सोऽनलभरायवेदीतत पशुवत्सपररभूयते।।33।।


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अर्ा- नववववाहहत पुरूष यहद अपनी ्री को शमीली समझने की भूल करताहै वह ्री के
द्वारा सम्मान प्रातत करने योग्य नहीं होता।

श्लोक-34. सिसा वापयुपरान्ता कन्याधचिमववन्दता। भयं ववत्रासमुद्वेगं सद्यो द्वेर्ां च


गच्छतत।।34।।

अर्ा-नववववाहहत पतत-पत्सनी के बीचववश्वास एवं तयार का संबंध बनाए बबना या मनोभावों को


समझेबबना ही यहदसंभोग करने की कोभशश करता है , वह ्री के भय, क्रोध तथा ईष्याम द्वेष
कापार बन जाताहै ।

श्लोक-35. सा र ततयोगमरापता तेनोद्वेगेन दवू र्ता। पुरूर्द्वेवर्ण वा ्याद्ववद्ववष्टा वा


ततोऽन्यगा।।35।।

अर्ा-पतत का प्रेम न पाकर पत्सनी जलनऔर घण


ृ ा से भर जाती है । कफर तोवह या तो अपने
पतत की ववद्रोहहणी बन जातीहै या पराये परू
ु ष से फंस जाती है ।
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आचायमवात्स्यायन का मानना है कक मनोववज्ञान सम्मत है ककशादी के बाद नईदल्


ु हन
को जब तक भली प्रकार आश्व्त तथा ववश्वा्त न करभलया जाए तब तक वह संभोगकरने
के लायक नहीं होती, इसीभलए आचायम ने कन्यावव्रम्भण प्रकरण भलखकर अपने बुतनयादी
ववचारों को धममशा्र, तकमशा्र, मानसशा्र तथा लोकशा्र का आधार लेकर पल्लववत ककया
है ।
पर्पर संदेश, ईष्याम तथा आशंका नफरत की वैतररणी में वहडूबने उतरने लगता है ।
भारतीय वैवाहहक जीवन केववषय में प्रारप्म्भक ववधानमें जीवन तत्सव, जीवन ववज्ञान तथा
मनोववज्ञान तनहहत है । जब से इस व्यव्थाकीउपेक्षा होने लगी है उसे भसफम र्म अदायगी
माना जाने लगा है । तब सेदाम्पत्सय जीवनमें यह रस नहीं रह गया जो पहले कभी था। यह
भी सच है कक यहदपत्सनी के बीच दीवार खड़ीहो जाने या उनके संबंध में दरार पड़ जाने का
एकअन्यतम प्रमखु वजह ऐसी प्रारप्म्भकउपेक्षा अथवा भल
ू भी अपना बहुत कुछ्थान रखती
है प्जस पर हम ध्यान भी नहीं दे ते।
तीन हदनों तकब्रह्मचयम पालन करने का अथम यह नहीं है ककसुहागरात में पतत-पत्सनी
एक-दस
ू रे से बबल्कुल अछूतेरहे । ऐसा करने परपतत-पत्सनी के बीच नई परे शानी उत्सपन्न हो
सकती है । पत्सनी के मन में प्रतत केप्रततगलत भावना आ सकती है और वह पतत को कायर
समझ सकती है । ऐसी प््थततमें पतत कोमीिी-मीिी बातों के जररये उसका हदल बहलाना
चाहहए।
पत्सनी की इच्छाके खखलाफ ऐसा कोई44books.com
कायम न करें , ऐसी कोई बात नकरें जो उद्ववग्न
बनाने वाली हो। पत्सनी को यकीन हदलाने के भलए, उसकी शममदरू करने के भलए साथ खेलना
चाहहए, ऐसे समय में पतत न बनकर पत्सनी की सहे लीबनकर उनको आश्व्त करना चाहहए।
साथ ही पत्सनी के मनोभावों को भी भांपते रहनाचाहहए।
आभलंगन करने, ताम्बूल (पान) दे ने, चम्
ु बन करने तथा बात करनेसे पत्सनी जब पररधचत
हो कक वह ववना कुछ बोले मु्कुराती हुईवह व्तु उसकेपास रख दें । जब वह पान या पानी
रख रही हो तो उसके झुकते ही पततउसके्तनों का ्पशम कर लें। इस प्रकार धीरे -धीरे उसकी
नाभभ तक हाथ फेरने काबहानाकर लेना चाहहए।
तीन रोज तक खाना, सोना आहद तनयमों के साथ ब्रह्मचयम का पालनकरता हुआ पतत
आभलंगन, चब
ुं न, वातामलाप तथा अन्य रसमयी कक्रयाओं से पत्सनीसे इस तरह समीपता डरया
शक नहीं होना चाहहए। जब उसे पूरा यकीन हो जाए तबपतत को समागम करना चाहहए।
पत्सनीजब हदल से पतत पर यकीन करने लगेगी तो उसेसंभोग के समय का दख
ु भी आनन्द
सा महसूसहोने लगेगा।
आचायमवात्स्यायन ने कन्यावव्रम्भण जैसे इस उपयोगीप्रकरण में जो कुछ कहा है
उसका सार यही है कक परू
ु ष को ्री मनोववज्ञानका ववशेषज्ञ होना चाहहए। ्री के मानभसक
भावोंको जाने बबना शादी औरवैवाहहक जीवन को तनष्फल तथा तनरथमक बनाना है ।
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इतत श्रीवात्स्यायनीये कामसूरे कन्यासम्प्रयुक्त के तत


ृ ीयेधधकरणे कन्यावव्रम्भणं
द्ववतीयोऽध्यायाः।

वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में

भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक

अध्याय 3 बालोपरमाः रकरण

श्लोक-1. वरणसंववधानपव
ू क
ा मधधगतायां वव्त्रम्प्भणमक्
ु तम ्।।1।।

अर्ा-या तु वव्रयमाण न लभ्यते तरगान्रवाम44books.com


दयश्वत्सवारो वववाहााः।
कामसूर में बताया गया है कक शा्रों के अनुसार चारप्रकार से शादी की जा सकती है
और इनमें से ककसी भीववधध से शादी कर लेनीचाहहए। जब लड़की शादी करके ससुराल जाती
है तो उसे ववश्व्ततथा आश्व्तबनाने के भलए प्रेम भरे शब्दों का सहारा लेना चाहहए।
शा्रों केअनुसार शादी के चार प्रकारों के अततररक्त चारऔर प्रकारों का वणमन ककया
गया है प्जसेगन्धवम वववाह कहते हैं- ब्राह्य, अप्ग्न, दै व, प्रजायत्सय। यहद ऊपर के चार प्रकार के
वववाहोंमें से ककसी केद्वारा लड़की हाभसल न हो तो उसे गन्धवम के चारों में से ककसी एक
प्रकारसे वववाह कर लेना चाहहए। यहद लड़का-लड़की आपस में शादी के भलएतैयार होंऔर
उनके मां-बाप शादी के भलए तैयार न हों तो लड़का-लड़की को गन्धवम वववाहके द्वारा शादी
कर लेनी चाहहए।

श्लोक-2. धनिीन्तुगुणयक्
ु तोऽवप, मध्य्र्गुणो िीनापदे शो वा, साधनो वा
राततवेश्यःमातवृ पतभ्र
ृ ातर्
ृ ु च परतन्त्रः, बालववृ िरुधचतरवेशो वाकन्यामलभ्यत्सवानन वरयेत ्।।2।।

अर्ा- लड़का-लड़की को न भमलने की वजहके बारे में वात्स्यायन बताते हुएकहते हैं कक जो
युवक गुणवान होते हुए भीहीन कुल का है अथवा धनवान होते हुए भी यव ु तीके घर का
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पड़ोसी है अथवाअपने माता-वपता के अधीन है अथवा प्जसमें ्री काभाव है तो ऐसे युवक
कोचाहहए कक वह ककसी कुलशील सम्पन्न लड़की से वववाह करने कीकोभशश न करें ।

श्लोक-3. बाल्यात्सरभतृ त चैनां ्वयमेवानुरञ्जयेत ्।।3।।

अर्ा- इस तरह से जो प्रेमी-प्रेभमकाबचपन से आपस में तयार करते हों और ककसी कारण से
उनका वववाहहोना संभव नहो तो लड़के के ककशोराव्था से ही लड़की के साथ अपना तयार
बढ़ाते रहनाचाहहए।

श्लोक-4. तर्ायुक्तश्चमातुलकुलानुवती दक्षक्षणापर्े बाल एवं मात्रा च वपत्रा च


ववयुक्तःपररभूतकल्पो धनोत्सकर्ाादलभ्यां मातुलदहु ितरमन्य्मै वा पूवद
ा िांसाधयेत ्।।4।।

अर्ा- जहां यव
ु क प्रायाः इसी तरह से लड़की को अनरु क्त बनाकर कफर उससेशादी करते हैं। वह
अनरु क्त तनम्न है-
दक्षक्षण दे श में प्जन बातों की वजह से लोग अपनीलड़ककयां नहीं दे तेउन्हीं हीनताओं से
यक्
ु त माता-वपता रहहत गरीब लड़काअपने 44books.com
मामा के घर रहकरअमीर मामा की पर
ु ी को चाहे
उसकी सगाई कहीं हो भी गई हो, उससे तयारबढ़ाकर शादी कर ले।

श्लोक-5. अन्यामवप बाणयां ्पि


ृ येत ्।।5।।

अर्ा-यहद लड़की लड़के के मामा केगोर का न हो तथा अपने गोर की नहोकर ककसी दस
ू री
जातत की हो तब भी उसेअनरु क्त करके उसके साथ गन्धवम वववाह कर सकताहै ।

श्लोक-6. बालायामेवं सतत धमााधधगमे संबंननं श्लाघ्यलमतत घोटकमुखः।।6।।

अर्ा-आचायम घोटकमख
ु कहते हैं कक यहदकोई लड़का ककशोराव्था से हीककसी लड़की के साथ
तयार करता हो तो उसे वशमें करके शादी कर लेना गलत नहीं है ।

श्लोक-7. तया सिपुष्पावचयं ग्रर्नं गि


ृ कं दहु ितक
ृ ार ्ायोजनं भक्तपानकरणलमतत कुवीत।
पररचय्य वयसश्चानुरूपयात ्।।7।।
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अर्ा- वात्स्यायन के अनुसार लड़की कोअनुरक्त करने वाला बच्चा भी हो सकता है और युवक
भी। बचपन सेही लड़काद्वारा ककसी लड़की को अनुरक्त करने के ववषय में वात्स्यायन का
कहना है ककबचपन से ही लड़का लड़की के साथ अनेक प्रकार के खेल खेलता है , जैस-े
फूलचन
ु ना, फूलों की माला गूंथना, घरौंदा बनाना, गुडड़यों का खेल खेलना, भमट्टी, धल
ू , भात
आहद खाने पीने की व्तुएं तैयार करना तथा अपनी उम्र औरजानकारी के मुताववक अन्य
क्रीड़ाएं करनेके साथ लड़की को अपने वश में करनेकी कोभशश करना।

श्लोक-8. आकर्ार ्ापट्टट्टकार ्ा मुह्ष्टद्यूतक्षुल्लकाहदद्यूतातन


मध्यमाङ्ऴललग्रिणंर्ट्टपार्ाणकादीतन च दे श्यातन तत्ससात्सम्प्यािदापतदासचेहटकालभ्तया
चसिानुर ्ेत।।8।।

अर्ा- बचपन से लड़का लड़की को खश


ु करने के भलए र्साकशी, एक-दस
ू रे के हाथ की
अंगभु लयों को फंसा पट्टा बांधकरचक्करलगाना, कोई शतम लगाकर मट्
ु िी बांधकर पछ
ू ना कक
इसमें क्या है ? बीचकी बड़ी अंगल
ु ी को तछपाकर बुझाना तथा छह कंकडड़यों से खेल, इन दे शी
खेलोंको बचपन में लड़की के साथ खेलता है । बचपन में खेले जानेवाले ये खेल बचपनसे ही
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लड़का द्वारा लड़की को अनरु क्त करने में सहायता करता है ।

श्लोक-9. क्ष्वेड्तकातन सुतनम ललतकामारह्बधकां लवणव धर्कामतनलताड्तकां


गोधम
ू पुह्ञ्जकामङ्ऴललताड्तकां सख लभन्यातन च दे श्यातन।।9।।

अर्ा-कृष्णफल, आंख भमचौली, क्रीड़ा, नमक की दक


ु ान, दोनों हाथ फैलाकर चारों तरफ घम
ू ना,
गेहूं के ढे र में सभीबालकपैसे छोड़कर एक में भमला दें कफर बराबर-बराबर बांट लें , अंगुली
सेखोटका मारना और अपने-अपने आहद खेल खेलते हैं।
वात्स्यायन नेसामाप्जक रीतत से अवववाहहत लड़की से प्रेमसंबंध बनाने के भलए बताया
है । वात्स्यायन का कहनाहै कक यहद युवक और युवतीएक-दस
ू रे से तयार करते हैं और वववाह
करना चाहते हैं लेककन कुलीनता, ववद्वता अथवा सम्पवि की कमी होने से पुरूष, ्री से
शा्रों में वखणमत उिमववधध से शादी करने में असमथम हो तो उसे चाहहए कक वहगान्धवम, राक्षस
आहद तनकृष्ट पद्धतत से वववाह कर लें । अथम यह है कक वहअपनी प्रेभमका को लेकरभागकर
शादी कर लें।
वात्स्यायन इसप्रकार के प्रेभमयों के भलए कहते हैं, जोलड़का लड़की के पररवार से नीच
हो, धनहीन हो, ववजातीय हो, उसके पड़ोस में बसता हो और पररवार वालों के तनयंरण में हो।
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इस तरह की लड़की से संबंधनहींबनाना चाहहए। कफर भी यहद कोई लड़का इस तरह कक


लड़की से तयार करबैिता है औरउससे शादी करना चाहता है तो उस लड़के के भलए आवश्यक
है कक वहउस लड़की से ककशोराव्थासे ही प्रेम संबंध बनाकर रखें।
वात्स्यायन कीइस बात से पता चलता है कक प्रेम वववाह कीपरम्परा भारत में काफी
प्राचीनकाल से चली आ रही है । ्मतृ तयों में भीगान्धवम, राक्षस, पैशाच वववाह के बारे में बताया
गया है ।
लड़की-लड़कों में बाल्याव्था सेही पर्पर प्रेम तथाआकषमण उत्सपन्न करने के भलए
प्जन बाल क्रीड़ाओं का वणमन ककयाहैं उनकीदीघमकालीन परम्परा का पररचय भमलता है । माला
गंथ
ू ना, फूल तोड़ना, घरोंदाबनाना आहद क्रीड़ाएं सावमदेभशक हैं लेककन आकषम क्रीड़ा, पट्हटका
क्रीड़ा, मप्ु ष्टद्यत
ू आहद क्षुल्लकद्यत
ू और अंगभु ल ग्रहण तथा षटपाषणक खेल ऐसे होतेहैं
प्जन्हें ववशद्
ु ध जनपदीय कहा जा सकता है । अक्सर यह क्रीड़ाएं गांव केबच्चे करते हैं।
ऐसी प््थतत में शा्रकार का यह मानना अग्राह्या ही नहींअसामाप्जक व अव्यवाहाररक
सा प्रतीत होता है कककोई बच्चा ककसी बाभलका सेयुवाव्था आने पर वववाह करने के भलए
बचपन से ही उसके साथ खेलना शुरुकरें ।हां युवक ऐसी कोभशश कर सकते हैं।
युवकों केप्रयत्सनों का वववरण सूरकार इस तरह करते हैं-

श्लोक-10. यां च ववश्वा्याम्यां मन्येत तया सि तनरं तरां र तत कुयाात ्। पररचयांश्च


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बुध्येत।।10।।

अर्ा-यहद युवक ककसी लड़की को पसंदकरता है और उससे तयार करना चाहता है तो उसे
चाहहए कक लड़की कीसबसे अच्छीसहे ली से जान-पहचान बढ़ाए और उसके द्वारा अपनी
प्रेभमका के मन में तयारबढ़ाने की कोभशशकरें ।

श्लोक-11. धात्रेतयकांचा्याः वरयहिताभ्यामधधकमप


ु गण
ृ ण यात ्। सा हि
र यमाणाववहदताकारापयरत्सयाहदशन्त तं तां च योजतयतंु शक्नय
ु ात ्।
अनलभहितावपरत्सयाचायाकम ्।।11।।

अर्ा- लड़के को चाहहए कक वह प्जस लड़कीसेतयार करता है उसके घर में काम करने वाली
लड़की से मेलजोल बढ़ाए। इसतरह काम करनेवाली लड़की को अपने बातों के जाल में फंसाने
और अपने वश में करने से उसके बबनाकुछ कहे ही वह लड़के के हाव-भावों को जानकर
उसकेप्रेभमका से लड़के को भमला दे ती है ।
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श्लोक-12. अववहदताकारावप हि गुणानेवानुरागात्सरकाशयेत ्। यर्ा रयोज्यानुरज्येत।।12।।

अर्ा- इस तरह कामवाली लड़की या उसकीसहे ली को अपने वश में करने से वहप्रेभमका के


सामने लड़के के गुणों को इसतरह से बताती है कक लड़की उसकी ओरआकवषमत होने लगती
है ।

श्लोक-13. यत्र यत्र च कौतुकं रयोज्याया्तदनु रववश्य साधयेत ्।।13।।

अर्ा-प्रेमी को चाहहए कक वह प्रेभमकाकी इच्छाओं को पूरी करे । प्रेभमकाको जो चीज अच्छी लगे
वह लाकर दे और प्जसचीजों को दे खने की इच्छा करे उस चीजों कोहदखाने ले जाएं।

श्लोक-14. र ्नकिव्याणण यान्यपव


ू ााणण यान्यन्यासां ववरलशो ववद्येरं्तान्य्या अयत्सनेन
संपादयेत ्।।14।।

अर्ा- अगर प्रेमी-प्रेभमका छोटी उम्रके हों तो प्रेमी को चाहहए कक वह अपनी प्रेभमका कोऐसे
खखलौने खरीद कर दे जो कीमती व दल
ु भ
म होने के साथ ऐसी हो प्जन्हें प्रेभमका नेपहले कभी
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नदे खी हो।

श्लोक-15. तत्रकन्दक
ु मनेकभह्क्तधचत्रमल्पकालान्तररतमन्यदन्यच्च संदशायेत ्।
तर्ासत्र
ू दारुगवलगजदन्तमय दा हु ितक
ृ ा मधह्ू च्छष्टमन्
ृ मय श्च।।14।।

अर्ा- प्रेमी को चाहहए कक अपनीप्रेभमका को खश


ु करने के भलए रं ग-बबरं गीगें दे हदखाए। ऐसी
गें द हदखाए प्जसपर धचर बने हों और वह रं ग बदलती हो। इसकेअततररक्त फुंकनी से साबुन
जैसेफेतनल तरल पदाथों के फुलक्ता बनाकर उड़ाना चाहहए।प्रेमी को अपनीप्रेभमका को िोरा,
सींग, हाथीदांत, मोम और भमट्टी की पुतभलयां एवं गुडड़यांदेनीचाहहए।

श्लोक-16. भक्तपाकार्ाम्या मिानलसक्य च दशानम ्।।16।।

अर्ा-प्रेमी को चाहहए कक वह खाना बनाने के भलए अपनी प्रेभमका को रसोईघर हदखाएया कफर
खाना पकाने की ववधध भसखाए।
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श्लोक-17. काष्ठमेढकयोश्चसंयुक्तयोश्च ्त्र पुंसयोरजै्कानां


दे वकुलगि
ृ काणांमद्
ृ ववदलकाष्ठववतनलमातानां शुकपरभत
ृ मदसाररकालावकुक्कुटततविररपञ्जरकाणां
चववधचत्राकृततसंयुक्तानां जलभाजनानां च यह्न्त्रकाणां व णणकानांपटोललकानामलक्तकमनः
लशलािररतालहिङ्ळकश्यामवणाकादीनां तर्ा चन्दनकुङ्कमयोःपूगफलानां पत्राणां कालयुक्तानां च
शह्क्तववर्ये रच्छन्नं दानंरकाशिव्याणां च रकाशम ्। यर्ा च सवाालभरायसंबधाकमेनं मन्येत
तर्ारयतततव्यम ्।।17।।

अर्ा- प्रेमी को अपनी प्रेभमका के घरवालों को हदखाकर या तछपाकरववभभन्न उपहार दे ना


चाहहए, जैस-े भमट्टी, लकड़ी, कांच तथा मोम आहद के मप्न्दर दे ना चाहहए। तोता, मैना, तीतर,
वपंजरे , शंख, सीप, कौडड़या, वीणा, श्रग
ंृ ार रखने का समान और त्वीर लाकर दे नाचाहहए। रं ग,
चन्दन, सुपारी, पान, इर आहद को अवसर दे खकर अपनी प्रेभमका कोदे ना चाहहए।

श्लोक-18. व क्षणे च रच्छननमर्ायेत ् तर्ा कर्ायोजनम ्।।18।।

अर्ा-प्रेमी को चाहहए कक अपनीप्रेभमका को तछपकर भमलने का अनुरोध करे औरउसके साथ


ऐसी बाते करें प्जससेउसके मन में ववश्वास और तयार बढ़े ।

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श्लोक-19. रच्छननदान्य तु कारणमात्समनो गुरुजनाद्भयं खयापयेत ्। दे य्य चान्येन


्पि
ृ ण यत्सवलमतत।।19।।

अर्ा- यहद प्रेभमका तछपाकर व्तुदेने का कारण पूछे तो मुझे मां-बाप का डर बताए या दी
जाने वाली चीजें लेनेके बहानेबनाए तो उसे अपने तयार का ववश्वास हदलाएं।

श्लोक-20. वधामानानुरागं चाखयानके मनः कुवात मन्वर्ाालभः कर्ालभह्श्चििाररण लभश्च


रञ्जयेत ्।।20।।

अर्ा- प्रेमी-प्रेभमका का आपसी तयारबढ़ने लगे और प्रेभमका बाते सुननेकी रुधच प्रकट करे तो
प्रेमी को मौके केअनुसार खब
ू सूरत कहातनयां सुनाकर उसकामनोरं जन करना चाहहए।

श्लोक-21. वव्मयेर्ुरसणयामानालमन्िजालैः रयोगैववा्मापयेत ्। कलासुकौतुककन ं


तत्सकौशलेनग तवरयां श्रतु तिरै गीतैः। आश्वयुज्यामष्टम चन्िके कौमुद्यामुत्ससवेर्ुयात्रायां ग्रिणे
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गि
ृ ाचारे वा ववधचत्रैराप ्ैः कणापत्रभंगैःलसक्र्करधानैव्
ा त्राङ्ऴलीयकभूर्णदानैश्च। नो
चेद्दे र्कराणण मन्येत।।21।।

अर्ा- यहद प्रेभमका जाद ू के खेल दे खनेकीइच्छा करती है तो उसे इन्द्रजाल के आश्चयमजनक
खेल हदखाना चाहहए। यहदकलाओं काकौशल दे खना चाहती हो तो उसे कलात्समक कौशल
हदखाकर खश
ु करना चाहहए।यहद वह संगीत सुननाचाहती हो तो मधरु संगीत सुनाकर उसका
हदल बहलाएं।प्रेमी को चाहहए कक कोजागरी व्रत, बहुला अष्टमी, कौमुदी महोत्ससव या ग्रहणके
हदन प्रेभमका जब प्रेमी के घर आए तो उसेआपीड, कणमपर भंग, छाप, छल्ला, व्र आहद दे कर
उसे प्रसन्न करें । लेककन प्रेमी को ये भी ध्यानरखना चाहहए कक इनव्तुओं को दे ने से उसकी
ककसी प्रकार की गलतफहमी याबदनामी न हो।

श्लोक-22. अन्यपरू
ु र्ववशेर्ालभज्ञतया धात्रेतयका्याः परू
ु र्रवि
ृ ौ चातःु
र्ह्ष्टकान्योगान्ग्राियेत ्।।22।।

अर्ा-प्रेभमका की सहे ली को चाहहए ककवहउसके प्रेमी की तारीफ करे । उससे कहे कक वह युवक
बहुत सुन्दर है औरगुणवान है । इसप्रकार प्रे भमका के मन से प्रेमी से भमलने के डर और
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संकोचको दरू करें और प्रेमीसे भमलने के भलए उसे तैयार करें , साथ ही काम संबध ं ीकलाओं की
भशक्षा भी दे ।

श्लोक-23. उदारवेपश्च ्वयमुपिनदशानश्च ्यात ्। भावं च कुवात लमंधगताकारै ः सूचयेत ्।।23।।

अर्ा- प्रेमी को चाहहए कक वह प्रेभमकाके सामने सजधज कर और सुगंधधतपरफ्यूम लगाकर


जाए। प्रेमी जब अपनी प्रेभमकाकी नजरों के सामने बार-बार जाता है तोउसके हाव-भाव से यह
समझ में आ जाताहै कक वह मुझसे तयार करती है या नहीं।

श्लोक-24. युवतयो हिसंसष्ृ टमभ क्ष्णदशानं च पुरुर्ं रछमं कामयन्ते। कामयमाना अवप
तुनालभयुञ्जत इतत रायोवादः। इतत बालायामुपरमाः।।24।।

अर्ा- यह तनप्श्चत है कक ज्यादातरयुवततयां अपने पररधचतों तथा आसपासरहने वाले युवकों को


ज्यादा चाहती हैंलेककन वे उसे चाहते हुए भी लज्जावश उससे समागमनहीं करती क्योंकक
इससेउसके पकड़े जाने का डर रहता है ।
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श्लोक-25. तातनङ्धगताकारान ् वक्ष्यामः।।25।।

अर्ा-वात्स्यायन प्रेमी-प्रेभमका के बारे में बताने के बाद अब प्रेभमका के शारीररक संकेतों केबारे
में बताते हैं।

श्लोक-26. संमुखं तं तु नव क्षते। व क्षक्षता व्र ्ां दशायतत। रुच्यमात्समनोऽङ्गमपदे शन



रकाशयतत।रमिं रच्छननं नायकमततरान्तं च व क्षते।।26।।

अर्ा-प्रेभमका अक्सर अपने प्रेमी कोअपना मख


ु लज्जा और शमम के कारणनहीं हदखाती है
लेककन हल्की ततरछी नजरोंसे ही अपने प्रेमी को दे ख भलया करती है ।प्रेभमका अक्सर अपने
प्रेमी कोककसी न ककसी बहाने से अपनी खब
ू सूरती हदखाती है औरऐसा वह तब करती जबप्रेमी
उसकी तरफ ध्यान न दे या उससे दरू हो।44books.com

श्लोक-27. पष्ृ टा चककंधचत्ससह््मतमव्यक्ताक्षरमनवलसतार्ां च मन्दं मन्दमधोमुख कर्ायतत।


तत्ससम पेधचरं ्र्ानमलभनन्दतत। दरू े ह््खता पश्यतु मालमतत मन्यमाना
पररजनंसवदनववकारमाभापते। तं दे शं न मञ्
ु जतत।।27।।

अर्ा- प्रेमी जब प्रेभमका से आकवषमतहोता है और उससे कुछ पूछता है तो वहहल्की सी


मु्कुराती हुई भसर व पलकेझुकाएं हुए धीमी ्वर में इस तरह जवाब दे ती है प्जसका अथम
समझना मुप्श्कलहोता है । प्रेभमका अक्सर अपने प्रेमी के साथ अधधक बैिेरहना चाहती
है ।कभी-कभी प्रेभमका अपने प्रेमी को आकवषमत करने तथा हदखाने के भलए अपनेछोटी बहन की
बाते सुनाने लगती हैं, मुंह बनाकर बाते करने लगती हैं।

श्लोक-28. यह्त्सकंधचद्ृष्टवा वविलसतं करोतत। तत्र


कर्ामव्र्ानार्ामनब
ु घ्नातत।बाल्याकंगत्याललंगनं चब
ंु नं च करोतत। पररचाररकायाह््तलकं च
रचयतत।पररजनानवष्टभ्य ता्ताश्च लीला दशायतत।।28।।
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अर्ा-प्रेभमका प्रेमी को हदखाने केभलए प्जस जगह प्रेमी खड़ा होता है उसीजगह जाकर खड़ी
होती है । प्रेभमकाअपने प्रेमी को तयार का एहसास कराने के भलएउसके पास खड़ी होकर कुछ
भीदे खकर हं सने लगती है । उसके पास खड़े रहने के भलए वे अपनेसहे ली के साथ ऐसीबाते
करे गी जो जल्दी समातत न हो। प्रेमी को दे खकर वह बच्चे को गोदमें लेकर चब
ुं न करने लगती
है , उससे बाते करने लगती है । अपनी सहे ली का सहारालेकरहाव-भाव तथा नाज-नखरे हदखाने
लगती है ।

श्लोक-29. तह्न्मत्सत्रेर्ुववश्वालसतत। वचनं चैर्ां बिु मन्यते करोतत च। तत्सपररचारकैः सि


र ततंसंकर्ां द्यूतलमतत च करोतत। ्वकमासु च रभववष्णुरुवैताह्ननयुङ्क्ते।तेर्ु च
नायकसंकर्ामन्य्य कर्यत्स्ववहिाता तां श्रण
ृ ोतत।।29।।

अर्ा- प्रेभमका अपने प्रेमी केदो्तों की बातों पर ववश्वास करती है और उसके बातों को मानती
है ।उसके घरके नौकरों के साथ अक्सर बाते करती रहती है , प्रेम भरा व्यवहार बतामव करतीहै
तथा उनके साथ शतरं ज, ताश आहद भी खे44books.com
लती है । प्रेभमका अपने प्रेमी केनौकरों को माभलक
की तरह भी आदे श दे तीहै । अगर वह नौकर उसके प्रेमी कीबातें करता है तो प्रेभमका उसकी
बातों को ध्यानसे सन
ु ती है ।

श्लोक-30. धात्रेतयकयाचोहदता नायक्योदवलसतं रववशतत। तामन्तरा कृत्सवा तेन सि


द्यूतंर ्ामालापं चायोजतयतुलमच्छतत। अनलंकृता दशानपर्ं पररिरतत।कणापत्सत्रमङ्गलीयकं ्त्रजं
वा तेन याधचता सध रमेव गात्रादवताया सखयाि्ते ददातत। तेन च दिं तनत्सयं धारयतत।
अन्यवरसंकर्ासु ववपणणा भवतत।तत्सपक्षकैक्ष्च सि न संसज्
ृ यत इतत।।30।।

अर्ा- प्रेभमका अपनी सहे ली के कहने परअपने प्रेमी के घर चली जाती है । सहे ली को जररया
बनाकर प्रेमीके साथशतरं ज आहद खेलती है तथा प्रेमालाप करती है । प्रेमी के सामने बबना
श्रग
ंृ ारके नहीं आती। यहद प्रेमी कणमफूल, अंगूिी या माला मांगता है तो बड़े धीरजके साथ
उतारकर सहे ली केहाथ में रख दे ती है । प्रेमी की दी हुई चीजों कोहमेशा पहनती है । दस
ू रे
युवकों कीबातों से उदास हो जाती है तथा उस सहे लीका साथ छोड़ दे ती है ।
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श्लोक-31. भवतश्चात्रश्लोक (इस ववर्य में पुराना श्लोक)-


ृष्ट्टवैतान्भावसंयुक्तानाकारातनंधगतातनच। कन्यायाः संरयोगार्ां तां्तान्योगाह्न्वधचन्तयेत ्।।31।।

अर्ा-इस तरह प्रेभमका अपने हाव-भाव, नाज-नखरों तथा इशारों को दे खकर उसके समागम
केभलए कोभशश करनी चाहहए।

श्लोक-32. बालर ्नकैबााला कलालभयौवने ह््र्ता। वत्ससत्सना चावप संग्राणया


ववश्वा्यजनसंग्रिात ्।।32।।

अर्ा- आचायम वात्स्यायन ने तीनप्रकार की लड़की के बारे में बताया है ाः-पहला बालक्रीडा करने
वाली बालाकहलाती है । दस
ू रा कामाकालाओं से मनुराग रखनेवाली तरुणी (युवती) कहलती
है ।तीसरा वात्ससल्य भाव रखने वाली प्रौढ़ कहलाती है ।इसभलए बुद्धधमान व्यप्क्तको चाहहए कक
वे खेल-खखलौनों से बाल लडकी को वश में करें , कामकला के द्वारायुवती को अपने वश में
करें और प्रौढ़ा को उसके ववश्वासी व्यप्क्तयोंकेद्वारा अपने वश में करके अपनी ओर आकवषमत
करें ।
यहां पर यहजानना बेहद आवश्यक है कक प्रेमी ककसी तरहप्रेभमका को अपनी ओर
आकवषमत करें और इसके भलएउसे क्या करना चाहहए।प्रेभमका को अपनी ओर आकवषमत करने
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के तरीके को दो भागों में बांटा गया है -पहला प्रेमी अपनी प्रेभमका की सहे भलयों से जान-पहचान
बढ़ाकर उससे बातेकरें या अच्छे कपड़े, आभूषण एवं अन्य चीजों के द्वारा प्रेभमका को अपनी
ओरआकवषमत करने की कोभशश करें और मौका भमलने पर तयार का इजहार करें । दस
ू राप्रेमी को
अपने प्रेभमका को मनभोवकव्तु उपहार के रूप में दे ना चाहहएप्जससे प्रेभमका प्रेमी के मन
की इच्छा को समझसकें। ये दोनों ही तरीकेमनोवैज्ञातनक हैं और इसके द्वारा प्रेमी-प्रेभमकाको
एक-दस
ू रे की भावनाओंको समझने में मदद भमलती है ।
प्रेमी को अपनीप्रेभमका से बात करने और अपने तयार काइजहार करने के रा्तों का
चन
ु ाव बड़ी बद्
ु धधमानी से करना चाहहए। प्रेभमकाकी जो सहे भलयां हो उनसे बाते करते हुए
अपनी प्रेभमका के प्रतत अधधक प्रेमऔरववश्वास हदखाएं। प्रेभमका की सहे ली को अपना माध्यम
बनाते हुए यहतनप्श्चत कर लेना चाहहएकक क्या उसकी सहे ली उनके बीच के तयार को एक
करनेमें उसकी मदद करे गी।
तयार केसंदेशों को एक-दस
ू रे के पास पहुंचाने के भलए ऐसीसहे ली चन
ु ना चाहहए जो
प्रेभमका के अधधकपास हो और उसके मन में दोनों केतयार के प्रतत सम्मान हो। प्रेमी-प्रेभमका
को अपनेबीच ऐसी सहे ली को रखनाचाहहए जो दोनों को भमलाने के साथ प्रेभमका को रततभावों
कीतरफप्रोत्ससाहहत करता रहे और मौका भमलने पर भमलन भी करा सके। लड़की की
सहे लीऐसीहोती हैं जो प्रेभमका के मनोभावों को अच्छी तरह समझकर उसकी इच्छाओं कीपूततम
करनेका काम कर सकती हैं और उसे भमलाने के रा्ते बना सकती हैं।इस तरह सहे ली
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केद्वारा प्रेभमका जब अपने प्रेमी से भमलती है तो वह बबनाककसी शील-संकोच के अपने मन


कीबात उसे बताती है ।
प्रेमी को चाहहएकक प्रेभमका को जो भी व्तु उपहार के भलएदे वह उसकी पसंद की होने
के साथ-साथ ऐसी भी होनीचाहहए जो उसे तयार की भीयाद हदलाएं। प्रेभमका को उपहार दे ते
समय इस बात का ध्यानरखना चाहहए ककउपहार प्रेभमका की रुधच के अनुकूल होने के साथ
ही वैवाहहक जीवन रततभावनाओं, कामकलाओं के भावों का बोध कराने वाली हो प्जसे दे खते
ही प्रेभमकाअपने भावी जीवन की सन्
ु दरकल्पनाएं करने लगे। प्रेमी के साथ रततक्रीड़ा केभलए
व्याकुल हो जाए उसकी रुधच तथाउसके चन
ु ाव की प्रशंसा करें । इस तरह काउपहार पाकर
प्रेभमका खश
ु ी होकर प्रेमी परगवम करने लगती है । वे अपनेप्रेमी के द्वारा हदए गए उपहार को
अपनी सहे भलयों कोहदखाकर खश
ु होती है ।इससे प्रेभमका की मानभसक ग्रंधथयां अनायास खल

जाती हैं तथा वहमन ही मनअपने को प्रेमी के समक्ष आत्सम समपमण कर दे ती है ।
ककसी जगह परप्रेभमका से मल
ु ाकात हो जाने पर प्रेमी जब उससेकुछ बाते करता है तो
वह हल्की मु्कुराहटके साथ इिलाती हुई अ्पष्ट जवाबदे ती है । कभी सहे भलयों के बीच में
प्रेभमका हो औरबनाकर बात करती पास हीप्रेमी भी हो तो प्रेभमका अपनी सहे भलयों से मुंह है
ताककप्रेमी उसे दे खनेलगे। उसकी यह ख्वाहहश बलवती बनी रहती है कक जब तक प्रेमी खड़ा
रहे , वह भीउसी जगह पर प््थर बनी हुई खड़ी रहे ।
प्रेमी को दे खकर प्रेभमका अजीबसी नाज-नखरे हदखाने लगती है ।वह अपने सहे ली से
अपने कपड़े संवारने को कहती है और यहदबच्चा गोद में होतो उसे चम
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ू ने लगती है । प्रेभमका
द्वारा आकवषमत करने के इसव्यवहार कोप्रेमी तयार से दे खता है और उसकी ओर आकवषमत हो
जाता है । इस तरह प्रेमी औरप्रेभमका दोनों एक-दस ू रे से अपने तयार का संदेश पहुंचाते हैं।
इतत श्रीवात्स्यायनीये कामसूरक
े न्यासम्प्रयुक्त के तत ृ ीयेऽधधकरणे बालोपक्रमा इप्ग्िताकारसूचनं
च तत
ृ ीयोऽध्यायाः।।3।

वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में

भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक

अध्याय 4 एक पुरूर्ालभयोग रकरण

श्लोक-1. दलशातेह्ग्िताकारां कन्यामप


ु ायोऽलमयञ्
ु ज त।।1।।

अर्ा- प्रेमी अपने तयार की बातेअपनी प्रेभमका से करता है औरजब प्रेभमका उसके तयार को
्वीकार कर लेतीहैं तब दोनों में तयार का संबंध बनजाता है ।
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श्लोक-2. ते र ्नकेर्ु च वववदमानः साकारम्याः पाणणमवलम्प्बेत।।2।।

अर्ा-इसके बाद दोनों मौका भमलने परएक साथ खेलतेहैं। प्रेभमका और प्रेमी जब एक साथ
कोई खेल खेल रहे हों तोप्रेमी को चाहहए ककप्रेभमका का हाथ इस तरह तयार से पकड़े कक
उसके मन में तयार का अनुभव होने लगजाए।

श्लोक-3. यर्ोक्तं च ्पष्ृ टकाहदकमाललग्िनववधध ववदध्यात ्।।3।।

अर्ा-वात्स्यायन ने आभलंगन करने केचार प्रकार बताये हैं- ्पष्ृ टक, ववद्धक, उदृष्टक तथा
पीडड़तक। प्रेभमका काहाथपकड़ने के बाद यहद वह प्रेमी के मनोभावों को समझ जाए तो प्रेमी
कोचाहहए कक इन चारप्रकार के आभलंगनों में से जो सही लगे उसी रूप में प्रेभमका को आभलंगन
करें ।

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श्लोक-4. पत्रच्छे द्यकरयां च ्वालभरायसच
ू कं लमर्न
ु म्या दशायेत ्।।4।।

अर्ा- अपनी इच्छा को व्यक्त करने केभलए प्रेमी को चाहहए कक प्रेभमका को धचर बनाकर
अपनी इच्छाओं को बताएं।

श्लोक-5. एबमन्यद्ववरलशो दशायेत ्।।5।।

अर्ा-प्रेमी को चाहहए कक अपनी प्रेभमकाको कभी-कभी भमथन


ु धचर द्वारा भी अपनी बाते
समझाएं।

श्लोक-6. जलर ्ायां तददरू तोऽपसु तनमग्नः सम पम्या गत्सव ्पष्ृ टवा चैनां
तत्रैवोन्मञ्जेत ्।।6।।

अर्ा-यहद नदी, तालाब या ्वभमंगपूलमें आप नहा रहे हैं और आपकी प्रेभमका भी वहां नहां रही
हो तो प्रेमी कोचाहहए कक वहप्रेभमका से दरू डुबकी लगाकर प्रेभमका के पास आकर उसका
्पशमकरे और अपना भसर पानीसे बाहर तनकालकर प्रेभमका को चौका दें ।
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श्लोक-7. नबपत्रत्रकाहदर्ु च सववशेर्भावतनवेदनम ्।।7।।

अर्ा- प्रेमी को चाहहए कक अपनी प्रेभमकाको नए कोमल पिों पर अपने मन की इच्छा और


भाव भलखकर दें ।

श्लोक-8. आत्समदःु ख्यातनवेदेन कर्नम ्।।8।।

अर्ा-प्रेमी को चाहहए कक वह अपनी बातोंको बबना ककसी दख


ु भाव से अपनी प्रेभमका से कहे ।

श्लोक-9. ्वपन्य च भावयुक्त्यान्यापदे शन


े ।।9।।

अर्ा-प्रेमी को अपने मन की बाते अपनीप्रेभमका को ककसी कहानी या सपने के द्वारा भी


बतानी चाहहए।
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श्लोक-10. रेक्षणके ्वजनसमाजे वा सम पोपवेशनम ्। तत्रान्यापहदष्टं ्पशानम ्।।10।।

अर्ा-प्रेमी को चाहहए कक खेल-तमाशेदेखते समय या पररवारों के बीच कोईकायमक्रम हो तो


प्रेभमका पास ही बैिे।इसके बाद मौका भमलने या ककसी बहाने से प्रेभमकाके अंगों को ्पशम
करनेकी कोभशश करें ।

श्लोक-11. पाश्रयार्ां च चरणेन चरण्य प ्नम ्।।11।।

अर्ा-इसके साथ ही प्रेभमका केशरीर के अंगों को अपने अंगों पर रखने के भलए उसके पैरों को
अपने पैरों से दबाना चाहहए।

श्लोक-12. ततः शनकैरे कैकामग्िललमलभ्पश


ृ त
े ्।।12।।

अर्ा- इसके बाद प्रेमी को चाहहए ककप्रेभमका को धीरे -धीरे एक-एक अंगुली से छुएं।
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श्लोक-13. पादाग्िष्ठे न च नखाग्राणण घट्टटयेत ्।।13।।

अर्ा- इसके बाद पैर के अंगि


ू े के नाखन
ू की नोक से प्रेभमका के पैर पर भी चभ
ु ाना चाहहए।

श्लोक-14. तत्र लसद्धः पदात्सपदमधधकमाकािक्षेत ्।।14।।

अर्ा- यहद प्रेभमका के पास बैिकर उसकेअंगों को ्पशम करने पर वह कोई ऐतराज नहीं करती
हो तो कफर अपने पैर कोउसके पैर केऊपर रखकर दबाना चाहहए।

श्लोक-15. क्षान्त्सयर्ा च तदे वाभ्यसेत ्।।15।।

अर्ा-प्रेभमका के अंगों के ्पशमकरने और अपने पैरों से उसके पैरों परघषमण करने और अंगों को
दबाने कीकक्रया बार-बार करनी चाहहए।
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श्लोक-16. पादशौचे पादाग्िललसंदेशम


े तदङ्गुललप ्नम ्।।16।।

अर्ा-प्रेभमका के पैरों को अपने पैर सेदबाने के बाद पैर की अंगुभलयों में उसके पैर की
अंगुभलयां फंसाकर दबाना चाहहए।

श्लोक-17. आचमनान्ते चोदकेनासेकः।।17।।

अर्ा- प्रेमी को पानी पीते समय अपनी प्रेभमका परथोड़ा सा पानी तछड़कना चाहहए।

श्लोक-18. ववजने तमलस च द्वन्द्वमास नः क्षाह्न्ता कुवीत। समानदे शशय्यायां च।।18।।

अर्ा- यहद अकेले में अथवा अन्धेरे में एक-दस


ू रे से सटकर बैिे हुए हों तो प्रेभमका के अंगों को
धीरे -धीरे इसप्रकार दबाएं ककवह सहन कर सके और साथ ही उससे आनन्द भी भमले सके।
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यहद एकही चारपाई पर दोनों बैिेअथवा लेटे हों तो भी उसे नाखन


ू ों से धीरे -धीरे उसके पैर पर
चभ
ु ाते रहें ।

श्लोक-19. तत्र यर्ार्ामुद्वेजयतो भावतनवेदनम ्।।19।।

अर्ा- प्रेमी को अपनी प्रेभमका कोबबना उिेप्जत ककए ही अपने मन की बाते बता दे नी चाहहए।

श्लोक-20. ववववक्ते च ककंधचदह््त कर्तयतव्यलमत्सयुक्तवा वववाचनं भावं च तत्रोपलक्षयेत ्।।20।।

अर्ा- प्रेभमका जब कभी एकांत में भमलेतो उससे प्रेमी को इतना ही कहना चाहहए कक मैं
तुमसे कुछ कहना चाहता हूूँ।जबप्रेभमका पूछे कक क्या कहना चाहते हो तो प्रेमी को अपने मन
की बाते बतादे नी चाहहए औरयह भी अनभ ु व करना चाहहए कक उसकी बातों का क्या
प्रभावपड़ता है ।

श्लोक-21. यर्ा पारदाररक वक्ष्यामः।।21।।

अर्ा- इस तरह प्रेभमका से बात करने पर 44books.com


उसबात का क्या प्रभाव पड़ता है इसके बारे में आगे
बताते हैं।

श्लोक-22. ववहदतभाव्तु व्याधधमपहदश्यैनां वातााग्रिणार्ा ्वमुदवलसतमानयेत ्।।22।।

अर्ा- जब आप प्रेभमका को अपनी मन कीबातेबता दें और उस बातों की प्रततकक्रया अपने


अनक
ु ू ल हो तो भसर ददम आहदके बहाने अपनेतयार भरी बातों को बताने और उससे तयार की
बाते सन
ु ने केभलए अपने घर बल
ु ाएं।

श्लोक-23. आगतायाश्चलशरःप ्नेतनयोगः। पाणणमवलम्प्बय चा्याः साकारं नयनयोलालाटे च


तनदध्यात ्।।23।।

अर्ा- घर आ जाने के बाद प्रेभमका से अपना भसर दबवाएं और उसका हाथपकड़कर अपनी
दोनों आंखों तथा भसर पर फेरे ।
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श्लोक-24. और्ध्यापदे शार्ां चा्याः कमा ववतनहदा शत


े ्।।24।।

अर्ा-इसके बाद प्रेभमका से तयार सेबाते करते हुए प्रेमी को कहना चाहहए कक दवा से अधधक
शप्क्त तुम्हारे हाथोंमें हैं।तुम्हारे हाथों के छूने से ही भसर का ददम अच्छा हो जाता है ।

श्लोक-25. इदं त्सवया किाव्यम ्। नणयेतदत


ू े कन्याया अन्येन कायालमतत गच्छन्त ं
पुनरागमनानुबन्धमेनां ववसज
ृ ेत ्।।25।।

अर्ा-इस कायम को तुम्हें ही्वयंकरना चाहहए। इस तरह की बाते कुवारी ्री को छोड़कर
ककसी और से नहीं करनीचाहहए। जब प्रेभमका घर से जाने लगे तो उसे दोबारा आने का
आग्रह करनाचाहहए।

श्लोक-26. अ्य च योग्य त्रत्ररात्रं त्रत्रसंध्यं च रयह्ु क्तः।।26।।

अर्ा-प्रेभमका को अपना बनाने के भलएप्रेमी44books.com


को यह तरकीब तीन हदन तथा तीन रात अपनाना
चाहहए।

श्लोक-27. अभ क्ष्णदशानार्ामागतायाश्च गोष्ठठं वधायेत ्।।27।।

अर्ा- घर आई प्रेभमका को बार-बारदे खनेके भलए प्रेमी को चाहहए कक उससे बातें करने की
योजना बनाएं और बहानेकरके उसेबार-बार घर बुलाएं।

श्लोक-28. अन्यालभरवप सि ववश्वासनार्ामधधकमधधकं चालभयञ्


ु ज त। न तु वाचा तनवादेत ्।।28।।

अर्ा- प्रेभमका कोअपने पर ववश्वास हदलाने और तयार जताने के भलए प्रेमी कोचाहहए
ककअन्यायन्य गतपे करें लेककन अपने मुख से मतलब की बात न करें ।

श्लोक-29. दरू गतभावोऽवप हि कन्यासु न तनवेदेन लसद्धम्प्यत ततघोटकमख


ु ः।।29।।
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अर्ा- इस अधधकरण के सलाहकार आचायमघोटकमुख का मानना है कक ्री को चाहे प्जतना


भी यकीन हदलायाजाए तथा उनकापूरा यकीन हाभसल कर भलया जाए लेककन उससे दख
ु सहन
करने तथा घर बार कोत्सयाग करने की उम्मीद नहीं की जा सकती है ।

श्लोक-30. यदा तु बिुलसद्धां मन्येत तदै वोपरमेत ्।।30।।

अर्ा- प्रेभमका के ऊपर ककए गए सभीप्रयोग जब सफल हो जाएं तभी उसके साथ सम्भोग के
भलए तैयारी करनी चाहहए।

श्लोक-31. तत्र कालमािःरदोर्े तनलश तमलस च योवर्तो मन्दसाध्वसाः सुरतव्यवसातयन्यो


रागवत्सयश्चभवह्न्त। न च पुरुर्ं रत्सयाचक्षते। त्माित्सकालं रयोजतयतव्य इततरायोवादः।.31।।

अर्ा- प्रदोषकाल, रात के समय तथाअंधेरे में जब कोई दस


ू रा नहीं हदखाई पड़ता हो ऐसे समय
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में प्रेभमकाअपनेप्रेमी से भमलने और संभोग करने की ख्वाहहश करती है । ऐसे समयों में
युवतीमें सेक्स की उिेजना बढ़ती है प्जसका पररणाम यह होता है कक वह सेक्स केभलए मना
नहीं कर पाती।

श्लोक-32. एकपुरूर्ालभयोगानां त्सवसंभवे गि


ृ ीतार्ाया धात्रेतयकया संखया वात्यामन्तभत
ूा या
तमर्ामतनवादन्त्सया सिै नामङ्कमानाययेत ्। ततोयर्ोक्तमलभयुञ्ज त ्।।32।।

अर्ा- यहदप्रेमी-प्रेभमका एक-दस


ू रे से दरू हो और प्रेभमका कोअपने प्रेमी के पासअकेले जाना
मम
ु ककन न हो तो उसे अपनी सहे ली के साथ प्रेमी के घरजानाचाहहए। इसके बाद प्रेमी-प्रेभमका
को भमलन करना चाहहए।

श्लोक-33. ्वां वा पररचाररकामादावेव सखात्सवेना्याः रणणदध्यात ्।।33।।

अर्ा- या कफर प्रेमी को चाहहए कक वह अपने ववश्वासपार लड़की या लड़के कोउसके पास छोड़
दें ।
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श्लोक-34. यज्ञे वववािे यात्रायामुत्ससवे व्यसने रेक्षणकव्यापत


ृ े जने तत्र तख च
ृष्टे ह्ग्िताकारांपरीक्षक्षतभावामेकाककन मुपरमेत।।34।।

अर्ा- यज्ञ, शादी, यारा, उत्ससव, मुसीबत आहद में लोग प्रायाः व्यग्र हो जाते हैं।इस तरह के मौकों
पर प्रेमीअपनी प्रेभमका से उस प््थतत में गान्धवमवववाह कर सकता है लेककन ऐसा तभीकरना
चाहहए कक जब प्रेभमका को अपने बारे में सबकुछ बता हदया हो और वह भीआप पर ववश्वास
करती हो।

श्लोक-35. नहि ृष्टभावा योवर्तो दे शो काले च रत्सयज्


ु यमाना व्यावतान्त इतत वात्स्यायनः।
इत्सयेकपरू
ु र्ालभयोगाः।।35।।

अर्ा- आचायम वात्स्यायन के अनुसारयहदप्रेभमका के भावों की परीक्षा अनेक बार हो चक


ु ी हो।
ऐसी प्रेभमका यज्ञआहद के समयसंकेत पाकर भी उस पर ध्यान नहीं दे ती हैं। वात्स्यायन
द्वाराप्रेमी-प्रेभमकाके भमलन का यह उपाय बताया है । इन उपयों द्वारा एक प्रेमीअपनी प्रेभमका
सेअपने तयार की बाते कर सकता है और उसे पा सकता है ।
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श्लोक-36. मन्दापदे शागण


ु वत्सयवप कन्या धनिीना कुलीनावप समानैरयाच्यमाना मातावपतवृ वयक्ता
वाज्ञाततकुलवततान वा रापत-यौवनापाणणग्रिणं ्वयमभ त्ससेत।।36।।

अर्ा- लड़की नीचकुल में जन्म लेने केबाद भी गुणवती हो लेककन उसके घर वाले कुल न
भमलने के कारण उसकी शादी उसलड़के सेनहीं करना चाहते हों प्जसे वह पसंद करती है या
लड़का-लड़की एक कुलका होने के बाद भीगरीबी के कारण लड़के की शादी उससे न हो रही हो
या अन्यकुल में जन्म होते हुए भीउसके माता-वपता न हो और वह युवती हो तो ऐसीलड़ककयों
को ्वयं ही अपने पसंद के लड़केसे शादी कर लेनी चाहहए।

श्लोक-37. सा तु गुणवन्तं शक्तं सुदशान बालर त्सयालभयोजयेत ्।।37।।

अर्ा- इस तरह की युवती ककसी ऐसे गुणवान, शप्क्तशाली सुन्दर युवक के साथ शादी कर
सकती है जोउसके बचपन का साथी हो।
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श्लोक-38. यं वा मन्येतमातावपत्रोरसम क्षया ्वयमपययलमह्न्ियदौबाल्यान्मतय रवतताष्यत


इततवरयहितोपचारै रभ क्ष्णस्रंदशानेन च तमावजायेत ्।।38।।

अर्ा- युवती को वैसे युवक पर ववश्वासकरना चाहहए जो अपने माता-वपता कीपरवाह ककए
बबना उसकी ओर आकवषमत हो गयाहो और उस पर ववश्वास करता हो। ऐसे युवक कोयुवती
अपने हाव-भाव हदखाकर तथाअन्य उपायों से अपनी तरफ आकवषमत कर उससे शादी
करसकती हैं।

श्लोक-39. ववमक्
ु तकन्याभावा च ववश्वा्येर्ु रकाशयेत ्। इतत रयोज्य्योपावतानम ्।।39।।

अर्ा- इस तरह प्रेमी-प्रेभमका केभमलने के बाद जब दोनों सेक्स संबंध बना लेते हैं तोप्रेभमका
को चाहहए ककवह अपने ववश्व्त सहे भलयों को यह बात बता दें कक उसने अपने प्रेमी
केसाथपहला सेक्स संबंध बनाया है ।
भवप्न्त चार श्लोकााः-
इस संबंध में कुछ श्लोक है ाः-

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श्लोक-40. कन्यालभयज्
ु यमाना तु यं मन्येताश्रयं सख
ु म ्। अनक
ु ू लं च वश्यं च त्य
कुयाात्सपररग्रिम ्।।40।।

अर्ा- इस श्लोक के अनुसार वात्स्यायन कहते हैं कक लड़की अपनी इच्छा केअनुसार अपनी
जीवन साथी चन
ु ने के भलए ्वतंर होती है ।

श्लोक-41. अनपेक्ष्य गुणान्यत्र रूपमौधचत्सयमेव च। कुवीत धनलोभेन पतत सापत्सनकेष्वावप।।41।।

अर्ा- प्जस ्री को धन का लोभ हो उसेचाहहए कक रूप और गुण को न दे खकर ककसी भी


पैसे वाले पुरूष के साथ वववाह कर लें ।

श्लोक-42. तत्र युक्तगुणं वश्यं शक्तं बलवदधर्ानम ्। उपायैरलभयुञ्जानं कन्या न


रततलोभयेत ्।।42।।
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अर्ा- ्री को ऐसे पुरूष को अपनापतत बनाने की इच्छा रखनी चाहहए जो गुणवान हो,
वशवती हो, सामर्थयमवान होऔर जो आपकी ओर आकवषमत हो।

श्लोक-43. वरं वश्यो दररिोऽवप तनगण


ुा ोऽपयात्समधारणः। गुणैयक्
ुा तोऽवप न त्सवेवं बिुसाधारणः
पततः।।43।।

अर्ा- प्जस युवक में गुण की कमी हो, गरीब हो, आत्समतनभमर हो और वश में रहने वाला हो
उससेयुवती को शादी करलेनी चाहहए। लेककन जो व्यप्क्त गुणवान होते हुए भी व्यभभचारी हो
उससे शादीकभीनहीं करनी चाहहए।

श्लोक-44. रायेण धतननां दारा बिवोतनरवग्रिाः। बािो सत्सयुपभोगेऽवप तनववा्त्रम्प्भा


बहिःसुखाः।।44।।

अर्ा- अमीर लोगों के घरों में काफीसारी प््रयां रहती हैं लेककन प्रायाःवे तनरं कुश हुआ करती हैं
क्योंककउन्हें बाहरी सख
ु भमलते हुए भी भीतरी सख ु नहींभमल पाता है ।
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श्लोक-45. न चो य्त्सवलभयुञ्ज त पुरुर्ः पह्त्सनतोऽवप ् वा। ववदे शगततश लश्च न स


संयोगमिाततः।।45।।

अर्ा- जो छोटे वगम के लोग होते हैं या बढ़


ू े या परदे श में रहने वालेलोग होते हैं उनसे शादी
नहीं करनी चाहहए।

श्लोक-46. यद्दच्छयालभयक्तो यो दम्प्भद्यताधधकोऽवप वा। सपत्सन कश्च सापत्सयो न स


संयोगनमिातत।।46।।

अर्ा- ्री को ऐसे परू


ु ष से कभी भीशादी नहीं करनी चाहहए जो ्री के इच्छा के खखलाफ
सेक्ससंबंध बनाता हो।ऐसे परू
ु ष जो तयार करता हो लेककन शादी के भलए कहने पर बहाने
बनातेहो तथाकपटी और जुआरी पुरूष से भी शादी नहीं करनी चाहहए। वववाहहत पुरूष
प्जसकेबच्चे हो उससे भी शादी नहीं करनी चाहहए।
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श्लोक-47. गुणसाम्प्येऽलभयोक्तण
ृ ामेको वरतयता वरः। तत्रालमयोक्तरर श्रैष्ठम्प्यमनुरागात्समको हि
सः।।47।।

अर्ा- यहद यव
ु ती की शादी करने वाले परु
ु षों में सभी गण
ु वान हो तो यव
ु तीको उसी से वववाह
करनी चाहहए प्जससे वह ज्यादा तयार करती हो।
आचायम वात्स्यायनने प्रेमी-प्रेभमका को एक होने के भलए दोप्रकार बताया है - बाह्यतथा
आभ्यांतर। बाहरी उपायों के द्वाराप्रेमी-प्रेभमका आपस में शतरं ज या पिेखेलते हैं और प्रेमी
खेल के बीचमें ही वह बातों का ऐसा वववाद तछड़ दे ता है प्जसमें दोनों ही अपनी मन कीबाते
कह दे ते हैं। इसके बाद जब प्रेभमका जाने लगती है तोप्रेमी उसका हाथइस तरह पकड़ता है
प्जसे वववाह के समय युवक-युवती का हाथ पकड़ता है । इसतरहहाथ पकड़ने से प्रेभमका को
यह अहसास हो जाता है कक यह मेरे साथ गन्धवमवववाहकरना चाहता है । इसके अततररक्त
प्रेमी, प्रेभमका को अपने मन की बातेबताने के भलएववभभन्न प्रकार का धचर हदखाता है , कभी
मौका भमलते ही उसेआभलंगन करता है , जलक्रीड़ा करते समय उसके अंगों को छूटा है , कभी
अपने हदलके ददम बहाने उसे अपने पासबुल44books.com
ाता है । उत्ससव आहद में प्रेमी-प्रेभमका एकसाथ बैिते
हैं, अपने पैर से उसके पैर को छूता है , पैरों को पैर से दबाताहै । अंधेरे में जब कोई नदे ख रहा
हो तो उस समय प्रेमी-प्रेभमका के पैरोंके ऊपर हाथ फेरता है , कफर उसके जांघों, तनतम्बों, पेट,
पीि तथा ्तनों परहाथ फेरता है और नाखन
ू ों को गड़ाता है । जब प्रेमी के द्वारा ककएगए
हरकतोंको प्रेभमका चप
ु चाप सहन करती है तो कफर प्रेमी नीचे, ऊपर शरीर के अंग-अंगपर हाथ
फेरता है ।
जब प्रेमी इनबाहरी ्पशों द्वारा प्रेभमका को अपने तयारके बंधन में बांध लेता है तो
बाहरी और भीतरीदोनों उपायों का प्रयोग करताहै । बाहरी और भीतरी उपायों में प्रेभमका प्जस
जगह भी भमलजाती है प्रेमीउससे छे ड़छाड़ शुरू करने लगता है । प्रेमी जब भमलने पर कोई
चीज उसेदेता है तो वह उस पर शमम व लज्जा भाव पैदा करने वाले तनशान लगा दे ता है ।प्रेमी-
प्रेभमकाजब ककसी कायमक्रम के दौरान अंधेरे में एक-दस ू रे से सटकरबैिे हुए होते हैं तोप्रेमी
प्रेभमका के तनतम्ब या ्तनों पर इस तरह सेचट ु की काटता है कक वह उसे सहन करसके तथा
उसे अनभ
ु तू त भी हो। इस तरहअंधेरे के मौके का फायदा उिाकर प्रेभमका के साथछे ड़छाड़ करने
से उसे शममनहीं आती क्योंकक अंधेरे और अकेले में प्रेभमका के मनमें शमम का भावपैदा नहीं
होता बप्ल्क प्रेमी के इस तरह चट
ु की काटने और सहलाने सेउसेआनन्द व सकून भमलता है ।
इसभलए अंधेरे का फायदा उिाकर प्रेमी-प्रेभमकासेक्स संबंध भी बना सकते हैं।
वात्स्यायन नेइस प्रकार के प्रेमी-प्रेभमकाओं के भलए सेक्ससंबंध का उधचत समय और
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मौका बताते हुए कहा है कक उधचत समय, रात और अंधेरेमें यहद प्रेभमका से सेक्स संबंध के
भलए अनरु ोध ककया जाए तो वह इन्कारनहीं करती है क्योंकक प्रेभमका सेक्स के भलए ऐसा
्थान चाहती है कक उसे कोईन दे खसके। इसके अततररक्त प्रेमी के द्वारा सेक्स के भलए
कहने परप्रेभमका मना नहीं करतीजब प्रेभमका के मन में उिेजन का भाव पैदा होताहै , काम
वासनाएं उमड़ पड़ती हैंऔर वह ्वयं सेक्स के भलए लालातयत हो उितीहै । इस तरह की
मनोदशा में प्रेभमका अपनेआप तो कुछ कहती नहीं है लेककन जबप्रेमी उससे सेक्स के भलए
कहता है तो वह मना नहींकरती।
आचायमवात्स्यायन का कहना है कक प्जस तरह गरीब और हीन कुलका यव
ु क अपने
सेऊंचे कुल या समान वगम की लड़की से शादी करना चाहता है लेककन ककसी कारण वश वह
नहींभमल पाती। ऐसी लड़की को पाने के भलए यव
ु क कोचाहहए कक उस लड़की को तयार से
अपनी ओरआकवषमत करके उसे पाने की कोभशशकरें । उसी तरह यहद कोई लड़की गरीब या
अनाथ होऔर उसकी शादी मनोभभलावषतयव
ु क से होना संभव न हो तो लड़की को भी अपने
पसंद के युवक कोअपने तयारसे आकवषमत करके पाने की कोभशश करनी चाहहए। आचायम
वात्स्यायन ने लड़कीऔरलड़के दोनों के भलए ही बाहरी और आंतररक उपायों को बताया है
प्जससे वह अपनीइच्छे के अनुसार लड़की या लड़के से शादी कर सकता है । ऐसी युवती जो
ककसीपुरूष के साथतयार करती है और उससे शादी करना चाहती है और वह उसे एकांतअंधेरे
में भमल जाता है प्जसके साथ लड़की गान्धवम वववाह करना चाहती है , ऐसे युवक का ऐसा
्वागत करना चाहहए प्जसमें कामशा्र के44books.com
64 कलाओं में सेककसी एक कला का कौशल प्रकट
हो।
आकवषमत पुरूषकी तरह ही बातें करे , उसकी हर बात का अनुमोदनकरें । हर काम का
अनुकरण करें लेककन उसे थोड़े कहने पर यासंकेत मार सेही सेक्स के भलए तैयार न हो जाएं।
ज्यादा कामातुर होने पर भी अपने आपसंभोग के भलए कोई कोभशश नहीं करें और न कोई
उतावलापन हदखाएं।
आचायमवात्स्यायन का मत है कक खद
ु संभोग के भलए प्रयत्सनकरने वालीप््रयां का
सौभाग्य नष्ट हो जाता है अथामत पुरूष उसे गलतसमझने लगता है और उसकीअवहे लना करने
लग जाता है । उससे अपना मन बबल्कुल हटालेता है । हां यहद पुरूष सेक्स कीकोई कक्रयाएं
करना चाहता है तो ्रीउन कक्रयाओं को अनुकूलता से ्वीकार कर ले, नहीं-नहीं की ज्यादा
प्जद्द नकरें ।
इस प्रकार युवतीको एक बात का ख्याल रखना चाहहए कक जब उसेयह पूरा यकीन हो
जाए कक प्रेमी हर कीमत पर मेरासाथ तनभाएगा तभी उसके साथसेक्स संबंध बनाएं अन्यथा
न करें ।
इततश्रीवात्स्यायनीये कामसर
ू क
े न्यासम्प्रयक्
ु तकेतत
ृ ीयेऽधधकरणे एकपरू
ु षभभयोगा
अभभयोगतश्च कन्यायााःप्रततपविश्चतथ
ु ोऽध्यायाः।।
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वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक

अध्याय 5 वववाि योग रकरण

श्लोक-1. राचय
ु ेण कन्याया ववववक्तदशान्यालाभे धात्रेतयकां वरयहिताभ्यामुपगण
ृ योपसपेत ्।।1।।

अर्ा-यहद कोई लड़का ककसी लड़की सेतयार करता है लेककन अकेले में उससेबाते करने का
मौका नहीं भमलता हो तोउसे चाहहए कक लड़की की सहे ली के साथ दो्तीकरके उससे अपने
मन की बातेबताएं।

श्लोक-2. सा चैनामववहदता नाम नायक्य भूत्सवा तद्गुणैरनुरञ्जयेत ्। त्याश्च


रुच्याननयकगुणान्भूतयष्ठमुपवणायेत ्।।2।।
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अर्ा- लड़की की सहे ली ऐसी होनी चाहहएजो लड़के के गण
ु ों के बारे में , उसके अच्छे व्यवहार
के बार में लड़की कोबताएं। उसकेबारे में इस तरह की बातें बनाकर बताएं जो लड़की को
अच्छी लगे।

श्लोक-3. अन्येर्ां वरतयतण


ृ ां दोर्ानलभरायववरुद्धान्रततपादयेत ्।।3।।

अर्ा- लड़की की सहे ली ऐसी हो जो उनअवगुणों की तनन्दा करें प्जन्हें प्रेभमका पसंद न करती
हो। इस तरह सहे ली केद्वारा प्रेमी की अच्छी बाते सुनकर प्रेभमकाउसकी ओर आकवषमत होने
लगतीहैं।

श्लोक-4. मातावपत्रोश्च गण
ु ानलभज्ञतां लबु धतां च चपलतां च बान्धवानाम ्।।4।।

अर्ा- सहे ली को प्रेभमका को यह भीबताना चाहहए कक उसके माता-वपता नासमझीऔर लालच


की वजह से तुम्हारी शादीककसी अमीर लड़के के साथ कर दे गा, कफर तुम क्या करोगी जबकक
वह लड़का तुमसेतयार करता है औरतुम्हें खश
ु रखेगा।
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श्लोक-5. याश्चान्या अवपसमानजात याः कन्याः शकुन्तलाद्याः ्वबुद्धम्प्या भताारं


रापयसंरयुक्ता मोदन्ते्म ताश्चा्या तनदशायेत ्।।5।।

अर्ा- प्रेभमका के मन में प्रेमी केभलए रुधच तेज करने के भलए ्वयं अपना वर चन
ु ने वाली
उसकी जाततकी लड़ककयोंऔर शकुन्तला आहद की प्राचीन कहातनयां सुनाकर उसे अपनी इच्छा
से पततचन
ु नेके भलए उकसाना चाहहए।

श्लोक-6. मिाकुलेर्ु सापत्सनकैबााध्यमाना ववद्ववष्टाः दःु णखताः पररत्सयक्ताश्च ृश्यन्ते।।6।।

अर्ा- सहे ली को चाहहए कक प्रेभमका कोबताए कक अच्छे और अमीर घरों में शादी करने वाली
प््रयां ककतनी दख
ु ी रहतीहैं, दस
ू री शादी करने के बाद ककस तरह पहली पत्सनी कोसताया जाता
है । अमीरघरों में शादी करने से ककस तरह का कलह तथा दख
ु ों कासामना करना पड़ता है ।

श्लोक-7. आयततं चा्य वणायेत ्।।7।।


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अर्ा- प्रेभमका की सहे ली को चाहहए ककवहप्रेमी के उन गुणों के बारे में भी बताए प्जसकी
वजह से शादी के बाद उसकाभववष्यउज्ज्वल होगा।

श्लोक-8. सख
ु मनप
ु ितमेकचाररतायां नायकानरु ागं च वणायेत ्।।8।।

अर्ा- उसे कहे कक अनुरक्त पतत कीअकेली पत्सनी बनने में बड़ा आनन्द भमलताहै इसभलए कक
सौतनों का झमेला नहींरहता है । इसके साथ ही प्रेमी के एक पत्सनीव्रतवाले गुण तथा ्वभाव
भी उससेबताएं।

श्लोक-9. समनोरर्ायाश्चा्या अपायं साध्वसं व्र ्ां च िे तलु भपवह्च्छन्द्यात ्।।9।।

अर्ा- जब प्रेभमका की सहे ली यह समझ लेकक प्रेभमका उसके बताए हुएप्रेमी की तरफ आकवषमत
हो रही है तो समुधचततनभमिों द्वारा वह प्रेभमका के डर तथालज्जा को दरू करने की कोभशश
करे ।
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श्लोक-10. दत
ू कल्पं च सकलमाचरे त ्।।10।।

अर्ा- उस सहे ली को चाहहए कक पारदाररक अधधकरण में बताए गए सभी दत


ू ी (दत
ू )कायम को
उस वक्त काम में लाए।

श्लोक-11. त्सवामजानत लमव नायको वलाद्ग्रिीष्यत तत तर्ा सुपररगि


ृ ीतं ्याहदतत
योजयेत ्।।11।।

अर्ा- उससे कह दें कक प्रेमी तुम्हें अपररधचता की तरह उिाकर ले जाएगातो लोग तुम्हे दोषी
भी नहीं िहराएगा औरतेरा मनोरथ भी पूणम हो जाएगा।

श्लोक-11. त्सवामजानत लमव नायको वलाद्ग्रिीष्यत तत तर्ा सप


ु ररगि
ृ ीतं ्याहदतत
योजयेत ्।।11।।

अर्ा- उससे कह दें कक प्रेमी तुम्हें अपररधचता की तरह उिाकर ले जाएगातो लोग तुम्हे दोषी
भी नहीं िहराएगा औरतेरा मनोरथ भी पूणम हो जाएगा।
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श्लोक-13. ततोमातरर वपतरर च रकाशयेत ्।।13।।

अर्ा- शादी हो जाने के बाद प्रेमी-प्रेभमका दोनों को अपने-अपनेमाता-वपता को इसकी सूचना दे


दे नी चाहहए।

श्लोक-14. अह्ग्नसाक्षक्षका हि वववािा न तनवतान्त इत्सयाचायासमयः।।14।।

अर्ा- आचायों का मत है कक अप्ग्न की साक्षी में ककया गया वववाह अवैधनहीं होता।

श्लोक-15. ृर्तयत्सवा चैनां शनैः ्वजने रकाशयेत ्।।15।।

अर्ा- इस तरह प्रेमी जब प्रेभमका सेशादी करने के बाद उसके साथसुहागरात मना ले तो कफर
प्रेभमका और अपनेपररवार बालों से सच्ची बात बता दें ।
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श्लोक-16. तद्वान्धवाश्च यर्ा कुल्याघं पररिरन्तो दण्भयाच्च त्मा एवैनां दद्यु्तर्ा


योजयेत ्।।16।।

अर्ा- या कफर कोई ऐसाकाम करना चाहहए कक प्रेभमका के माता-वपता कुल कलंक सेभयभीत
होकर उसी कोअपनी लड़की का वर मान लें । जब इस तरह कूटनीतत से वह लड़की उस
प्रेमीकोभमल जाए तो प्रेमी व्यवहार और सुन्दर उपहारों द्वारा प्रेभमका केबन्ध-ु बान्धवोंको राजी
करें ।

श्लोक-17. गान्धवेण वववािे न वा चेष्टे त।।17।।

अर्ा- यहद इस तरह के उपायों सेप्रेभमका के माता-वपता को शादी के भलए राजी करने में
सफलता भमलना मुमककन नहो तोप्रेमी-प्रेभमका को गन्धवम वववाह कर लेना चाहहए।

श्लोक-18. अरततद्यमानायामन्तश्चाररण मन्यां कुलरमदां पव


ू ा संसष्ृ टार यमाणांचोपगण
ृ य तर्ा
सि ववर्णयमवकाशमेनामन्यकायाापदे शन
े ानाययेत ्।।18।।

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अर्ा- यहद प्रेभमका अपने आप प्रेमवववाह करने में असमथम हो तो दोनों केबीच की बाते बताने
वाले और प्रेभमकाके माता-वपता से घतनष्ि ्नेह संबंध रखने वालीककसी कुलवधु को
मध्य्थबनाकर उसे धन का लालच दे कर ककसी बहाने गुततचरों द्वारा उसलड़की को
अपनेयहां बुलाएं।

श्लोक-19. ततः श्रोत्रत्रयागारादह्ग्नलमतत समानं पूवेण।।19।।

अर्ा- इसके बाद प्रेमी-प्रेभमका को ब्राह्मण के घर से अप्ग्न लाकर दोनों के फेरे लगवाकरशादी
करा दे नी चाहहए।

श्लोक-20. आसनने च वववािे मातरम्या्तदलभमतदोर्ैरनुशयं ग्राियेत ्।।20।।

अर्ा- यहद प्रेभमका के माता-वपता नेककसी और के साथ उसकी शादी तय करदी हो और वववाह
का समय पास आ गया हो तो उसवक्त प्रेभमका की सहे ली या जो भी दोनोंके बारे में सोचने
वाले हो उसेचाहहए कक प्जस लड़के से उसकी शादी होने वाली हो उसकेबारे में प्रेभमका कीमां
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को उलटी-सीधी बाते करके मन और मप््तष्क बबगाड़दें । इस तरह की बातेकरने पर जब यह


पता चल जाए कक उसकी मां प्रेभमका की शादी उस लड़केसे नहींहोने दे गी तो कफर प्रेमी के
गुणों का बखान करना शुरू कर दें । इस तरह कीकूटनीत से प्रेभमका की मां और पररवार वालों
को दोनों की शादी के भलए राजीकरानाचाहहए।

श्लोक-21. तत्तदनुमतेन राततवेश्याभवने तनलश नायकामामाय्य श्रेत्रत्रयागारादह्ग्नलमतत सधानं


पूवेण।।21।।

अर्ा- प्रेभमका की मां पहले से शादीतयहुए लड़के से मन हटाकर जब लड़की की सहे ली के


द्वारा बताए प्रेमी सेअपनी लड़की कीशादी करने के भलए तैयार हो जाए तो उसी के पड़ोभसन
के घर में यज्ञ कंु ड बनाकर आगजलाकर प्रेमी-प्रेभमका की शादी चप
ु चाप करा दें ।

श्लोक-22. भ्रातरम्या वासमानवयसं वेश्यासु पर्त्र र्ु वा रसक्त मसुकरे ण


सािाय्यदानेनवरयोपग्रिै श्च सुदीघाकालमनुरञ्जयेत ्। अन्ते च ्वालभरायंग्राियेत ्।।22।।

अर्ा- यहद कोई परू


ु ष ककसी वेश्या याककसी44books.com
दसू रे ्री से तयार करता है और उसे अपना
बनाकर रखना चाहता है तोप्रेमी को चाहहए कक वह उस ्री के ककसी ऐसेभाई का सहारा ले
जो लगभग उसीके उम्र का हो। प्रेभमका के भाई को कुछ मदद दे कर काफीहदनों तक उसे
अपनीतरफ आकवषमत और अनरु क्त बनाने के बाद उससे अपनी इच्छा बता दें ।

श्लोक-23. रायेण हियुवानः समानश लव्यसनलयसां वय्यानामर्े ज ववतमवप


त्सयजह्न्त।तत्तेनैवान्यकायािामानाययेत ्। ववपणयं सावकाशलमतत समानं पूवेण।।23।।

अर्ा- यह बात तय है कक प्रायाः युवकअपने समान ्वभाव और समान उम्र केदो्तों के भलए
आवश्यकता पड़ने पर जानतक न्यौछावर कर दे ते हैं। इसभलए प्रेभमकाके भाई को ही जररया
बनाकरप्रेभमका को ककसी अकेले ्थान में बुलाकर अप्ग्न को साक्षीमानकर शादी करलेनी
चाहहए।
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श्लोक-24. अष्टम चह्न्िकाहदर्ु च धात्रेतयका मदन यमेनां पायतयत्सवा ककंधचदात्समनःकायामुद्दे श्य


नायक्य ववर्णयं दे शममानयेत ्। तत्रैनांपदात्ससंज्ञामरततपद्यमानां दर्
ू तयत्सवेतत समानं
पूवेण।।24।।

अर्ा- दशहरा, हदवाली आहद उत्ससवों परप्रेभमका की सहे ली को चाहहए कक वह प्रेभमका को मादक
पदाथम वपलाकरअपनेककसी कायम के बहाने उसे ककसी अंधेरे व खाली ्थान पर ले जाएं। इसके
बादप्रेमी-प्रेभमकाका भमलन कराकर उसे दवू षत करा दें अथामत दोनों आपस में संबंध बना लें ।
कफर लड़कीकी सहे ली को चाहहए कक वह इस बात को प्रेभमका केपररवार वाले को बता दें ।

श्लोक-25. सपु तां चैकचाररण ं धात्रेतयकां वारतयत्सवा संज्ञामरततपद्यमानां दर्


ु तयत्सवेतत समानं
पव
ू ेण।।24।।

अर्ा- सोई हुई, अकेले कहीं जाती हुईया नशीली व्तुएं खखलाकर बेहोशकी हुई प्रेभमका को
दवू षत करके, कफर लोगोंसे प्रकट कर दे ना तथा उसे अपनी बना लेनापैशाच वववाह है ।

श्लोक-26. ग्रामान्तरमद्
ु यानं वा गच्छन्त ं 44books.com
ववहदत्सवा सस
ु ंभत
ृ सिायो नायक्तदा रक्षक्षणोववत्रा्य
ित्सवा वा कन्यामपिरे त ्। इतत वववाियोगः।।26।।

अर्ा- जब प्रेमी को यह मालूम हो जाएकक प्रेभमका बगीचे या ककसी दस


ू रे ्थान पर घूमने जा
रही है तो अपनेसहायकों के साथ जाकर उसके साथ जाने वाली सहे लीआहद को डराकर उसका
अपहरणकरके शादी कर लें। इस तरह का वववाह राक्षस वववाह कहलाताहै ।

श्लोक-27. पूवःा पूवःा रधानं ्याद्वववािो धमातः ह््र्तेः। पूवााभावे ततः कायों यो य उिर
उिरः।।27।।

अर्ा- धाभममक दृप्ष्ट से ववचार ववधध की अपेक्षा पश्चात ् के सभी वववाहउिरोिर तनकृष्ट हैं।
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श्लोक-28. व्यूढानां हि वववािानामनुरागः फल यतः। मध्यमोऽवप हि सद्योगो गान्धवा्ते


पूह्जतः।।28।।

अर्ा- वववाह का उद्दे श्य होता है प्रेमी-प्रेभमका के बीच तयार बढ़ाना।यहद प्रेमी-प्रेभमका के बीच
तयार नहो तो उनका वववाह तनष्फल होता है । इसप्रेमी-प्रेभमका के बीच गन्धवमवववाह उपयुक्त
माना जाता है क्योंकक इसमें प्रेम और ववश्वास का सुन्दर योगहोता है ।

श्लोक-29. सख
ु त्सवादबिुरक्लेशादवप चावरणाहदि। अनरु ागात्समकत्सवाच्च गान्धवाः रवरो मतः।।29।।

अर्ा- प्रेमी-प्रेभमका द्वारागान्धवम वववाह करना सुखद, थोड़े से कोभशश से वववाह होने वाले, बबना
ककसीकष्ट या झंझटतथा रीततररवाजों से हटकर प्रेम प्रधान होता है ।
सामाप्जक रूप सेचार हदव्य वववाहों का उल्लेख ककया गया है प्जनमें युवक-युवती
कोवववाह करने के भलए कोभशश नहीं करना पड़ता। लेककन प्जनयुवक या युवततयों कोअपनी
इच्छा के अनुसार युवती या युवक नहीं भमलते हैं, उनके भलए वात्स्यायन नेगान्धवम वववाह
बताया है । आचायम नेप्रेमी-प्रेभमका को सुझाव हदया है कक इस हालतमें उन्हें गान्धवम वववाहकर
लेना चाहहए। जो प्रेमी मनचाही प्रेभमका से वववाह न करसकता हो वे उसकेमाता-वपता को धन
दे कर वववाह कर लें। इस तरह का वववाह असुर वववाहकहलाताहै । यहद प्रेभमका के माता-वपता
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को धन दे ने पर भी वह उसको हाभसल न हो तोप्रेमी कोचाहहए कक प्रेभमका का अपहरण करके
उसके साथ शादी कर ले। इस तरहजो प्रेमी अपनेप्रेभमका से शादी करता है उसे राक्षस तथा
पैशाच वववाह कहतेहैं।
यहद बाह्य आहदहदव्य वववाह ववधध से प्रेमी को अपने मन पसंदप्रेभमका से वववाह
करना संभव न हो तो प्रेभमकाके इच्छा होने पर गान्धवमवववाह कर लेना चाहहए। यहद आसुर,
राक्षस, पैशाच ववधध से शादी करना सवमथावज्यम समझते हैं। गान्धवम वववाहमें सबसे पहले
प्रेभमका को वववाह के भलएराजी करना आवश्यक होता है , बबना उसके राजी हुए गान्धवम वववाह
मम ु ककन नहींहो सकता।
भारत में गान्धवम वववाह का प्रचलन काफी समय से चला आ रहाहै और इस वववाह की
लोकवप्रयता चारों ओर फैली है । राजपत
ू औरक्षबरय जो्वयंवर द्वारा शादी करते थे, वह भी
गान्धवम वववाह ही था। इस ्वयंवर में लड़की प्जसको वरमाला पहना दे ती थी, उसी से उसकी
शादी हो जाती थी। लेककन्वयंवरके बाद ववधधवत गह
ृ सर
ू के आधार पर अप्ग्न को साक्षी
मानकर वववाहसं्कार भी ककयाजाता था। नल दमयन्ती, अज-इन्दम
ु ती, राम-सीता, मालती-
माधवआहद के वववाह इसी प्रकार सम्पन्न हुए थे।
प्रथम कोहट केगान्धवम वववाह- आचायम वात्स्यायन के अनुसारयुवक-युवती का गान्धवम
वववाह हो जाने केबाद जब दोनों सुखीपूवक
म एक साथरहने लग जाए तो यव
ु ती के माता वपता
को इसके बारे में सूधचत कर दे नाचाहहए। इसके अततररक्त उसके माता-वपता को खश
ु करने का
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भी उपायकरना चाहहए।गान्धवम वववाह कर लेने का अथम यह नहीं कक वववाहहता युवती का


संबंध उसकेपररवार वालों सेछूट जाता है । यही कारण है कक वात्स्यायन ने गान्धवमवववाह को
सवमश्रेष्िबताया है ।
मध्यम कोहट केगान्धवम वववाह- प्रथम कोहट के गान्धवमवववाह का वणमन करने के बाद
आचायम वात्स्यायनमध्यम कोहट के गान्धवमवववाह के अंतगमत प्रेभमका के सहे ली के द्वारा प्रेमी
कावणमन करके उसेप्रेमी की ओर आकषमण बढ़ाता है । यहद प्रेमी-प्रेभमका के वववाह के
बीचमें उसके माता-वपता बाधा डालतें हैं तो प्रेभमका की सहे ली या ककसी अन्य कीसहायतालेकर
यव
ु ती की मां को धन आहद दे कर प्रेमी-प्रेभमका के वववाह के भलएतैयार करके उनकी इच्छा के
अनस
ु ारप्रेभमका को ककसी बहाने से घर से बाहरले जाकर प्रेमी के साथ अप्ग्न को साक्षी
मानकरगान्धवम वववाह करा दे नाचाहहए।
तीसरी कोहट केगान्धवम वववाह- इस गान्धवम वववाह के बारे में वात्स्यायन कहते हैं कक
इस गान्धवमवववाह में यव
ु क प्जस यव
ु ती सेतयार करता है , उसके भाई को उपहार आहद दे कर
अपने वश में कर लेता है । इसकेबाद युवक युवती के भाई को साफ-साफ बता दे ता है कक वह
उसकी बहन से तयारकरता है और उससे शादी करना चाहता है । इस तरह भाई का सहारा
लेकर अपनीप्रेभमका तक अपनी बातोंको पहुंचाकर उससे गान्धवम वववाह कर भलया जाता है ।यह
तीसरे प्रकार का गान्धवमवववाह कहलाता है ।
गान्धवम वववाहके इन तीनों प्रकार को बताने के बादवात्स्यायन कुछ अन्य प्रकार के
वववाह के बारे में कहतेहैं कक ककसी लड़कीका अपहरण करके उसके साथ जहरद्ती शादी
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करता है या उसके सतीत्सवको नष्टकरके वववाह करता है उसे राक्षस वववाह कहते हैं। यह भी
धमम के ववरुद्ध है क्योंकक इसमें अप्ग्न का आवाहन तथा हवन आहद कोई धाभममक कायम नहीं
होताहै । आचायम वात्स्यायन नेराक्षस वववाह को पैशाच से अच्छा माना है क्योंककइस वववाह में
साहस कायम प्रधानहै ।
आचायम मध्यमकोहट के गान्धवम वववाह को ही सबसे प्रधान मानहै क्योंकक शादी का
चरम पररणाम वैवाहहकप्रेम ही है जबकक गान्धवम वववाहशुरू से ही प्रेम का माध्यम है ।
इतत श्रीवात्स्यायनीयेकामसूरे कन्यासम्प्रयुक्तके तत
ृ ीयेऽधधकरणे वववाहयोगाः पश्चमोध्यायाः।।

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