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Kam Bhag 6 PDF
Kam Bhag 6 PDF
भाग 6 वैशिकं
अर्ृ- वेश्याओं में धन के प्रति आकर्षण िथा संभोग की प्रकृति जन्मजाि होिी है ।
अर्ृ- वेश्याओं का धन के प्रति आकर्षण कृत्रिम होिा है और सेक्स की प्रवत्तृ ि स्वाभात्तवक होिी
है ।
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अर्ृ- वेश्या जहां पर बनावटी प्रेम दिखािी हैं, वह स्वाभात्तवक ही प्रिीि होिा है ।
अर्ृ- सेक्स करने की इच्छा जजस स्िी में होिी है , आमिौर पर पुरूर् उसी स्िी के प्रति अधधक
आकत्तर्षि होिे हैं।
अर्ृ- वेश्याएं पुरूर् को आकत्तर्षि करने के लिए तनिोभी बनने का दिखावा करिी हैं।
श्लोक-6. न िानुपायेनार्ाृन ् साियेदायततसंरक्षणार्ृम ्।।6।।
अर्ृ- अपना प्रभाव बनाये रखने के लिए वेश्याओं को अधधक से अधधक धन कमाने के लिए
प्रयास करना चादहए।
अर्ृ- शासनाधधकारी, वकीि, ज्योतिर्ी, साहसी, मािाकार, गन्धी, शराब के त्तवक्रेिा, नाई, धोबी, लभखारी
और अन्य ऐसे ही िोग वेश्या के मििगार हो सकिे हैं।
श्लोक-10. गम्यचिन्तामाि- केवलार्ाृ्त्सवमी गम्याः- ्वतंत्रः पूवे वयशस वतृमानों
त्तविवानपरोक्षवत्तव िरचिकरणवानकवछराचिगतत्तविः। संघषृवान ् सन्ततायः सुभगमातन श्लाघनकः
पण्िकश्ि पुंिब्दार्ी। समान्पिी ्वभावत्तागी। राजतन मिामात्रे वा शस्िो दै वप्रमाणो
त्तविावमानी गुरुणां िासनाततगः सजाताम ् लक्ष्यभूतः सत्तवि एक पुत्रो शलंगी प्रछिन्नकामः िूरो
वै्यश्िेतत।।10।।
अर्ृ- अधधकिर वेश्याएं उन्हीं िोगों से िेन-िे न करिी हैं, जो सामाजजक पाररवाररक बन्धनों से
मुक्ि स्विंि होिे हैं। एक बंधी हुई आमिनी वािे वरुण होिे हैं और जो व्यजक्ि अधधक धन खचष
करिे हैं, जजनके पास पैिक ृ संपत्ति हो जो स्वयं न कमाकर िस
ू रों की कमाई खचष करिे हो। इसी
िरह जजस व्यजक्ि को अपने रूप, यौवन िथा धन पर गवष हो, जो नपुंसक होकर भी अपने को
अधधक सेक्स क्षमिा से युक्ि मानिा हो, जजसकी धन िे ने की स्वाभात्तवक प्रवत्तृ ि हो, राजा और
मंिी पर जजसका प्रभाव हो, ज्योतिर्ी, आवारा मािा-त्तपिा का जो इकिौिा संिान हो। संयासी जो
वेश्या से संबंध बनाकर तछपाना चाहिा हो और शारीररक रूप से शजक्िशािी व्यजक्ियों से वेश्याएं
धन प्राप्ि करने के लिए संबंध बनािी हैं।
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श्लोक-11. प्रीततयिोऽर्ाृ ्तु गण
ु तोऽचिगम्याः।।11।।
अर्ृ- वेश्याएं जजन गुणों के अनुसार िोगों की िरफ आकत्तर्षि होिी हैं वे गुण हैं- अधधक त्तवद्वान
होना, संकेिों को समझना, कत्तव, कहानीकार, बाि करने में चिुर, हस्िलशल्प का त्तवशेर्ज्ञ, त्तवनम्र, ऊंचे
त्तवचारों वािा, उत्साही सम्पन्निा, दृढ़ प्रतिज्ञ, िस
ू रों की तनंिा न करने वािा, त्यागी, शारीररक और
मानलसक रूप से स्वस्थ, इकहरा बिन, नशीिी वस्िुओं से नफरि करने वािा, प्रचंड वेग, ियावान,
जस्ियों के सिाचार के समथषक िथा पािक जस्ियों के वशीभूि न होना, स्विंि वत्तृ ि, ईर्षयाषरदहि
िथा तनभषयिा आदि।
अर्ृ- इस श्िोक के अंिगषि सुंिर िड़ककयों के बारे में जानकारी िी गयी है जो तनम्न हैं- सुंिर
चेहरा, त्तप्रय, रूप, यौवन, माधय
ु स
ष ंपन्निा, प्रेमी के गुणों पर मोदहि होना न कक धन पर, सेक्स की
इच्छा करने वािी, जस्थर बुद्धध, गुणों पर आकत्तर्षि होने वािी, पतिव्रिा और त्तवलभन्न सम्मेिनों
िथा किाओं से प्यार करने वािी हो।
श्लोक-15. गण
ु ात्तवपयृये दोषाः।।15।।
अर्ृ- उपयक्
ुष ि गुणों से रदहि होने पर वही प्रेमी और प्रेलमका के िोर् हो जािे हैं।
श्लोक-16. क्षयी रोगी कवशमिकव्वायसा्यः त्तप्रयकलत्रः परुषवातकदयो तनघण
ृ व ो गुरुजनपररत्सयततः
्तेनो दम्भिीलो मूलकमृणण प्रसततो मानापमानयोरनपेक्षी ्वेष्यैरप्यर्ृिायो तनलृज्ज
इत्सयगम्याः।।16।।
अर्ृ- टी.बी. के रोगी, कुर्षठ रोगी, पेट के कीड़े का रोगी जजसके मुख से बिबू आिी हो, पत्नीवि
ृ ,
कड़वे वचन बोिने वािा, िरु ाचारी, तनिष यी, मािा-त्तपिा के द्वारा घर से तनकािे हुए, चोर, िम्भी
(कपटी), जािग
ू र, मान-अपमान की परवाह न करने वािा, िािच में िश्ु मनों से लमि जाने वािा
िथा शमष-संकोच न करने वािा आदि गुणों वािे िोगों से वेश्या को सेक्स संबंध नहीं बनाने
चादहए।
श्लोक-17. रागो भयमर्ृः संघषों वैरतनयाृतनं च्जज्ञासा पक्षः खेदो िमोयिोऽनुकंपा सुहृ्वातयं िीः
त्तप्रयसा्दश्यं िन्यता रागापनयः साजात्सयं सािवेश्यं सातत्सयमायततश्ि गमनकारणातन
भवन्तीत्सयािायाृः।।17।।
अर्ृ- भय, प्रेम, अथष, िड़ाई-झगड़ा िथा बििे की भावना, पक्षपाि, िुःु ख, धमष, प्रलसद्ध, अनक
ु म्पा,
शमष-संकोच, प्रेमी के अनुरूप होना, धनी, तनस्िे ज रदहि, सजािीयिा, साथ रहना िथा प्रभाव- आदि
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सभी गण
ु समागम के कारण होिे हैं।
अर्ृ- आचायष वात्स्यायन के अनुसार- धमष िथा अनथष की हातन व प्रेम ही समागम के कारण
होिे हैं।
अर्ृ- जहां पर प्रेम िथा धन िोनों हों वहां प्रेम को छोड़कर धन के बारे में सोचना चादहए।
श्लोक-20. भयाहदषु तु गुरुलाघवं परीतक्ष्यशमतत सिागम्यागम्य (गमन) कारणचिन्ता।।20।।
अर्ृ- डर आदि के जो गमन के कारण पहिे सूि के अंिगषि बिाएं गये हैं, उसमें से गुरुिा
(महत्व) िथा िाघव (तनरािर) परीक्षा कर िेनी चादहए। सहाय, गम्य, अगम्य िथा गमन के कारणों
पर त्तवचार पर समाप्ि हुआ।
अर्ृ- सेक्स करने की इच्छा के वशीभूि होकर पुरूर् यदि सेक्स करने के लिए बुिाए िो ऐसी
जस्थति में वेश्या को िुरन्ि ही सेक्स करने के लिए नहीं जाना चादहए क्योंकक पुरुर्ों की आिि
होिी है कक जो वस्िु उन्हें आसानी से प्राप्ि हो जािी है उसकी ओर उनका ध्यान नहीं जािा है
और जो वस्िु िि
ु भ
ष होिी है , उसे वे प्राप्ि करने की कोलशश करिे हैं।
अर्ृ- वेश्या को यदि अपने प्रेमी के भावों की परीक्षा करनी हो िो वेश्या को अपने पैर िबाने के
लिए नौकर, गाना सुनने के लिए गायक िथा त्तविर्
ू क आदि प्रमुख सेवकों की तनयुजक्ि करनी
चादहए।
अर्ृ- जजसमें अपनी चाहि की बािों की संभावना हो, उसके साथ त्तवटं (त्तविर्
ू क) को तनयुक्ि कर
िे ना चादहए।
श्लोक-25. लावककुतकुटमेषयु्ििुकिाररकाप्रलापनप्रेक्षणककलाव्यपदे िन
े पीठमदो नायकं त्यां
उदवशसतमानयेत ्।।25।।
अर्ृ- वेश्या के द्वारा तनयुक्ि ककये गये पीठमिष (वेश्या का सहायक) को चादहए कक वह िवा,
मु ु्गाष, मेढा की िड़ाई दिखाने के बहाने या िोिा-मैना की बािें सुनने के लिए, कोई खेि-िमाशा
आदि िे खने के लिए और नत्ृ य-संगीि आदि िे खने के बहाने वेश्या के प्रेमी को उसके घर िाये।
अर्ृ- यहद पुरूर् वेश्या के घर आये िो उसे वेश्या को ऐसी वस्िुएं िे नी चादहए जो िे खने में
आश्चयषजनक और उत्सुकिा बढ़ाने वािी हों।
अर्ृ- और जजस स्थान पर पुरूर् का मन बहििा हो उसी स्थान पर वेश्या उधचि साधनों, उपायों
द्वारा उसका मनोरं जन करें ।
श्लोक-29. गते ि न सपररिासप्रलापां सोपायनां पररिाररकामभीक्ष्णं प्रेषयेत ्।।29।।
अर्ृ- वेश्या के घर से जब उसका प्रेमी चिा जाए िो वह वेश्या मुस्कराकर बोिने वािी िासी के
हाथ कुछ प्रेमोपहार िे कर नायक के पास भेजे। इस प्रकार उपहार भेजिे रहने का क्रम िब िक
जारी रखना चादहए जब िक कक प्रेमी उसके घर न आ जाए।
अर्ृ- यदि आवश्यकिा हो िो वेश्या को पीठमिष (वेश्या का सहायक) के साथ स्वयं ही प्रेमी के घर
पर जाना चादहए। वेश्या के द्वारा प्रेमी को अपनी ओर झुकाने का प्रकरण यही समाप्ि होिा है ।
श्लोक-31. भवच्न्त िात्र श्लोकाः- ताम्र्ूलातन ्त्रजश्िैव सं्कवतं िानुलेपनम ्। आग्त्यािरे त्सप्रीत्सया
कलागोष्ठीश्ि योजयोत ्।।31।।
अर्ृ- इसके संबंध में प्राचीन श्िोक है - सुस ंस्कृि पान, सुसंस्कृि मािा, सुसंस्कृि चंिन, सुसंस्कृि
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परफ्यूम आदि आये हुए प्रेमी को प्रेमपूवक ष िे ना चादहए िथा किा और अन्य कायषक्रमों का
आयोजन करें ।
श्लोक-32. द्रव्याणण प्रणये द्यात्सकुयाृछि पररवतृनम ् संप्रयोग्य िाकूतं तनजेनैव प्रयोजयेत ्।।32।।
अर्ृ- प्यार को बढ़ाने के लिए धन का आिान-प्रिान करें िथा सेक्स के गुप्ि संकेिों को वेश्या
स्वयं ही प्रकट करे ।
अर्ृ- वेश्या को प्रेम-उपहार से पीठमिष (वेश्या का सहायक) आदि की बािों को आराम से सुनकर
िथा प्रेमसूचक भावों से प्रेमी को भाव-त्तवभोर करके ही उसके साथ सेक्स करना चादहए।
इससे पहिे के प्रकरणों में पत्नी, पराई स्िी िथा पुनभू-ष इन िीनों की िरह ही प्रेलमकाओं के
साथ सेक्स करने के बारे में जानकारी िी गयी है । इसके अंिगषि वेश्याओं के साथ सेक्स करने के
उपाय त्तवस्िार से दिये जा रहे हैं।
आचायष वात्स्यान ने स्पर्षट ककया है कक जब ककसी पुरूर् पर वेश्याएं प्रेम प्रकट करिी हैं िो
उनके उस प्रेम में धन का िािच तछपा हुआ होिा है । वेश्याएं धन के िािच में आकर पुरूर् को
अपने हाव-भाव से इिना अधधक सम्मोदहि कर िेिी हैं कक वह समझ नहीं पािा है कक उसका
उस पर जो प्रेम है वह कोरा और बनावटी है । जब ककसी पुरूर् को वेश्या अपने जाि में फंसाना
चाहिी है िो सबसे पहिे वह अपने ििािों से सहायिा मांगिी है। वेश्या के ये सहायक ििाि
वेश्या के गण
ु ों की िारीफ करके परु
ु र्ों को आकत्तर्षि करने की कोलशश करिे हैं।
वात्स्यायन के अनस
ु ार वेश्या को ऐसे िोगों से िरू रहना चादहए जो रोगी होिे हैं क्योंकक रोगी
का शरीर सेक्स करने िायक नहीं होिा है । इसके अिावा वेश्या को उन िोगों से िरू रहना चादहए
जोकक पत्नीवि
ृ होिे हैं। इसका कारण यह है कक ऐसा व्यजक्ि िस
ू री जस्ियों की िि
ु ना मां-बहनों
से करिा है । यदि वेश्या उसे फंसाने की कोलशश करिी है िो यह धमष के त्तवरुद्ध होिा है । इसके
साथ ही जो कटुभार्ी, तनिष यी, अपने नौकरों को िुःु खी करके धन एकि करिा हो अथवा िांत्रिक
हो। ऐसे िोगों से भी वेश्या को िरू रहना चादहए क्योंकक ऐसे िोगों पर वेश्या का कोई भी चक्कर
नहीं चि सकिा है । ऐसे िोगों से वेश्या को धन की उम्मीि भी नहीं रखनी चादहए।
सेक्स की िीव्र इच्छा को ही मुख्य वासना माना गया है । वात्स्यायन के अनुसार अथष, अनथष की
हातन िथा प्रेम यही िीन कारण होिे हैं जजनके वशीभूि होकर पुरूर् वेश्याओं के पास जािा है ।
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कुछ आचायों के अनुसार वासनाएं अनेक हैं िथा वे मन की ऐसी रीतियां हैं जो जानवरों िथा
व्यजक्ियों में एक िरह से प्रकट होिी हैं। जजसका प्रतिवेिन सभी प्राणी अनजाने में ही करिे रहिे
हैं।
वात्यस्यान की िस
ू री बाि यह है कक वेश्याएं धन के िािच से पुरुर्ों को सेक्स के लिए
आकत्तर्षि करिी हैं। वासनाएं अिग-अिग प्रकार की होिी हैं और प्रत्येक वासना का अध्ययन भी
अिग-अिग दृजर्षटकोण से ककया जािा है , क्योंकक सभी वासना में कुछ त्तवशेर् अंश पाये जािे हैं।
वासना की मूि प्रवत्तृ ि की अवस्थाएं होिी हैं- 1. वेग 2. उद्िे श्य 3. त्तवर्य 4. आश्य स्थान। सभी
वासनाओं का सार ही वेग कहिािा है । इस वेग की िीव्रिा िथा कोमििा की पहचान सावधानी
से करनी चादहए।
जजस वस्िु के द्वारा वासना अपनी िजृ प्ि पूरी करिी है । उसे त्तवर्य कहिे हैं। कभी-कभी ऐसा
भी होिा है कक वासना अपनी िजृ प्ि के रास्िे को छोड़कर अन्य त्तवर्यों को भी ग्रहण कर िेिी है ,
िेककन जजस संबंध को बनाने से िजृ प्ि लमििी है । उसे वासना त्तवर्य कहा जािा है । वेश्याएं सज-
संवरकर जब शीशे के सामने खड़ी होकर अपने जजस अंग को त्तवशेर् रुधच िथा सिषकिा के िे खिी
और संवारिी हैं। वही अंग उनकी वासना का त्तवर्य होिा है ।
इति श्ीवात्स्यायनीये कामसूिे वैलशके र्र्षठे ऽधधकरणे सहायगम्यागम्यधचंिा गमनकारणं
गम्योपाविषनं नाम प्रथमोऽध्याय।
भाग 6 वैशिकं
अर्ृ- वेश्या जब भी ककसी पुरूर् के साथ सेक्स संबंध बनाये िो वेश्या को उसी पुरूर् की पत्नी
बनकर रहना चादहए।
अर्ृ- अधधक िोभी िथा क्रूर आचरण वािी मां के अधीन वेश्या को रहना चादहए।
अर्ृ- यदि वेश्या की सगी मां न हो िो जजसे उसने अपनी मां मान रखा है उसके अधीन ही उसे
रहना चादहए।
श्लोक-5. सा तु गम्येन नाततप्रीयेत।।5।।
अर्ृ- चाहे वेश्या की सगी मां हो अथवा मानी गयी मां हो- िोनों वेश्यापुिी पर मोदहि व्यजक्ि के
साथ अधधक प्रेम प्रिलशषि नहीं करिी हैं क्योंकक अधधक प्रेम प्रिलशषि से नुकसान भी हो सकिा है ।
अर्ृ- मां को चादहए कक लमिने वािे के साथ अपनी पुिी को अधधक िे र िक न बैठने िे ।
अर्ृ- यदि वेश्या की मां उपरोक्ि व्यवहार करे िो वेश्या को अपने प्रेमी के सामने जाने में
अरुधच, डर िथा शमष प्रिलशषि करना चादहए।
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श्लोक-8. न त्सवेव िासनाततवत्तव िः।।8।।
अर्ृ- वेश्यापुिी को अरुधच, डर िथा संकोच को प्रिलशषि करिे हुए भी मां के आिे श का पािन
करना चादहए।
अर्ृ- वेश्यापि
ु ी को जब प्रेमी के पास से उठकर जाना हो िो उसे चादहए कक वह कोई ऐसी बीमारी
का बहाना बनाये जोकक तनजन्िि न हो िथा अचानक हो जाने वािी और अधधक दिनों िक
िगािार न रहने वािी हो।
श्लोक-10. सतत कारणे तदपदे िं ि नायकानशभगनम ्।।10।।
अर्ृ- जजस समय प्रेमी आया हो िथा उसके लमिने का कारण भी मौजूि हो कफर भी यदि वेश्या
उससे न लमिना चाहे िो उसे कोई न कोई बहाना कर िे ना चादहए।
अर्ृ- सेक्स के समय में प्रेमी जो भी चीज वेश्या को खाने के लिए िे । िो वेश्या को उसे िेकर
खा िेना चादहए, कफर कहना चादहए कक इससे अच्छी चीज उसने कभी भी नहीं खायी थी।
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अर्ृ- वेश्या को सेक्स करने के समय सेक्स किाओं से अंजान बनकर रहना चादहए। इसके साथ
ही उसे प्रेमी से कहना चादहए कक मुझे सेक्स के बारे में कुछ भी नहीं मािूम है जैसा आप कहें गे,
मैं वैसा ही करुं गी।
अर्ृ- वेश्या को सेक्स के िौरान प्रेमी के द्वारा बिाये गये आसनों का ही प्रयोग करना चादहए।
अर्ृ- वेश्या के प्रजनन अंगों में यदि ककसी भी प्रकार का त्तवकार हो िो उसे तछपाकर रखना
चादहए।
अर्ृ- वेश्या से लमिने आया हुआ प्रेमी जजस करवट की ओर सो रहा हो, उसके मुंह की िरफ
अपना मुंह करके वेश्या को िेटना चादहए। जजससे आसजक्ि प्रकट हो सके।
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अर्ृ- यदि प्रेमी सेक्स के समय गुप्िांगों को स्पशष करे िो वेश्या को उसका त्तवरोध नहीं करना
चादहए। बजल्क उसे उत्सादहि करना चादहए।
अर्ृ- वेश्या को चादहए कक वह अपने प्रेमी को जािे हुए िे खे। जब वह अधधक िरू िक चिा जाए
िो उसे छि पर जाकर िे खे। यदि प्रेमी की नजर उस पर पड़ जाए िो उसे शमष से नजरें झुका
िेनी चादहए। यदि वह शमाषिी है िो इससे बनावटी प्रेम प्रकट होगा।
श्लोक-22. त््वेष्ये ्वेष्यता। तच्त्सप्रये। तद्रम्ये रततः। तमनु िषृिोकौ। ्त्रीषु च्जज्ञासा।
कोपश्िादीघृः।।22।।
अर्ृ- अपने प्रेमी के िश्ु मनों से िश्ु मनी रखें । उसके प्रेमी से प्रेम से करें , जब उसकी सेक्स की
इच्छा हो िो सेक्स करें । जब वह प्रसन्न हो िो प्रसन्न हो जाएं और जब वह िख
ु ी हो िो उसे भी
िुःु खी हो जाना चादहए। जस्ियों के बारे में जानने की कोलशश करें िथा गुस्सा करे िो थोड़ी िे र
िक हो।
अर्ृ- प्रेमी के आने पर उसे सोने का अथवा बेहोशी का बहाना करके यह प्रकट करने की कोलशश
करनी चादहए कक िुम्हारे न लमिने से हमारी यह जस्थति हुई है ।
अर्ृ- वेश्या को अपने प्रेमी की बािों का अथष समझना चादहए िथा उसका तनश्चय करके उसकी
प्रसंसा करें । प्रसंगाि त्तवर्यों पर बहस करें । उसकी बाि का जवाब उस जस्थति में िें कक जब कक
जान जाये कक यह स्नेहशीि है । 44books.com
अर्ृ- केवि सौिनों की ही बाि छोड़कर प्रेमी की हर बाि पर हां पर हां करनी चादहए।
अर्ृ- प्रेमी के छींकने पर, कोई आश्चयषजनक बाि कहने पर िथा आश्चयष प्रकट करने पर जीिे
रहो कहना चादहए।
अर्ृ- प्रेमी के मन को िुःु खी िे खकर उसके िुःु ख का कारण पूछना चादहए। जब प्रेमी कुछ बिाये
िो उससे िुरंि ही कहे कक यह बीमारी िो मुझे बहुि दिनों से है ।
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श्लोक-34. न तनंदा समानदोष्य।।34।।
अर्ृ- और जजसमें प्रेमी के समान िोर् हो उसकी तनंिा भी नहीं करनी चादहए।
अर्ृ- यदि प्रेमी ने वेश्या को कोई चीज उपहार में िी है िो उसके द्वारा उपहार िी गयी चीज का
उपयोग वेश्या को उसके सामने ही करना चादहए।
श्लोक-36. वर्
व ापरािे त्यसने वालंकार्याग्रिणमभोजनं ि।।36।।
अर्ृ- प्रेमी के द्वारा झूठा इल्जाम िगाने पर या प्रेमी पर ककसी भी प्रकार की कोई मुसीबि आ
जाने पर उसे भोजन िथा श्ग
ं ृ ार का त्याग कर िे ना चादहए।
श्लोक-37. त्युतताश्ि त्तवलापाः।।37।।
श्लोक-39. सामर्थयृमायुष्तदवाप्तौ।।39।।
श्लोक-40. त्यार्ाृगमेऽशभप्रेतशस्िौ44books.com
िरीरोपिये वा पव
ू स
ृ ंभात्तषत इष्टदे वतोपिारः।।40।।
अर्ृ- प्रेमी को धन की प्राजप्ि होने पर, इजच्छि वस्िु की प्राजप्ि होने पर और शारीररक रोग के
नर्षट हो जाने पर िे वी-िे विाओं की पूजा-अचषना करनी चादहए।
अर्ृ- एकचाररणी वेश्या जब भी गाना गाये िो गाने में प्रेमी का नाम िथा गोि रखना चादहए।
यदि ित्रबयि खराब हो िो प्रेमी के हाथों को अपने माथे िथा दिि पर रख िे। उसके हाथ के
स्पशष के बहाने सो जाया करे ।
श्लोक-43. उत्ससंगे िा्योपवेिनं ्वपनं ि। गमनं त्तवयोगे।।43।।
अर्ृ- वेश्या को प्रेमी की गोि पर बैठ जाना चादहए और कभी-कभी सो भी जाना चादहए, यदि कहीं
एक साथ जा रहे हो िो उसे प्रेमी के पीछे -पीछे चिना चादहए।
अर्ृ- उसे अपने प्रेमी से पुि िाभ की इच्छा करे िथा उससे पहिे मर जाने की इच्छा करें ।
अर्ृ- प्रेमी को जजस धन के बारे में जानकारी हो उसका रहस्य अकेिे में नहीं बिाना चादहए।
श्लोक-46. व्रतमप
ु वासं िा्य तनवृतेयेत 44books.com
् मतय दोष इतत। अितये ्वयमत्तप तद्रप
ू ा ्यात ्।।46।।
अर्ृ- इसका िोर्ी मुझे माना जाएगा यह कहकर उसे उपवास करने की सिाह िें । यदि वह न
माने िो उसके साथ स्वयं भी उपवास करें ।
अर्ृ- ककसी िस
ू रे के साथ झगड़ा होने पर उसे यह कहना चादहए कक इसे िो उसका प्रेमी ही परू ा
कर सकिा है ।
अर्ृ- ककसी भी गोर्षठी (कायषक्रम, सम्मेिन) में जाना हो िो प्रेमी के साथ ही जाएं।
अर्ृ- उसे प्रेमी की उिारी गयी वस्िुओं को पहनने िथा उसका झूठा खाना खाने में अपना गौरव
महसूस करना चादहए।
अर्ृ- अपने प्रेमी के वंश, शीि, लशल्प, जाति, त्तवद्या, रं ग, रूप, धन, तनवास स्थान, लमि, गरू
ु , अवस्था
िथा मधरु िा की प्रशंसा करनी चादहए।
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श्लोक-52. गीताहदषु िोदनमशभज्ञ्य।।52।।
अर्ृ- यदि प्रेमी को गाना गाना आिा हो िो उसे गाना सुनाने के लिए कहना चादहए।
अर्ृ- प्रेमी के यहां अलभसार (लमिन) के लिए जाना हो िो गमी, जाड़ा िथा वर्ाष की परवाह नहीं
करनी चादहए।
अर्ृ- उसे प्रेमी से यह कहना चादहए कक अगिे जन्म में भी मुझे िुम पति के रूप में लमिो।
श्लोक-55. त्त्तवष्टरसभाविीलानुवतृनम ्।।55।।
अर्ृ- प्रेमी को जो रस, भाव िथा शीि रुधचकारी हो, उसी का उसे अनुसरण करना चादहए।
श्लोक-56. मूलकमाृशभिंका।।56।।
श्लोक-58. र्लात्सकारे ण ि य्यन्यत्र तर्ा नीयेत तदा त्तवषमनिमनं ि्त्रं रज्जशु मतत
कामयेत ्।।58।।
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अर्ृ- यदि मां जबिष स्िी ककसी से सेक्स करने के लिए कहे िो उसे कहना चादहए कक मैं जहर खा
िूंगी, फांसी िगा िूंगी या चाकू मार िूंगी।
अर्ृ- वेश्या को अपनी मां से आज्ञा लिए बगैर कोई भी कायष नहीं करना चादहए।
श्लोक-63. प्रोत्तषते मज
व ातनयमश्िालंकार्य प्रततषेिः। मंगलं त्सवपेक्ष्यम ्। िारयेत ्।।63।।
अर्ृ- प्रेमी के परिे श जाने के बाि प्रेलमका को साबुन, िेि आदि चीजों का इस्िेमाि नहीं करना
चादहए। अन्य आभूर्णों को धारण नहीं करना चादहए। केवि मांगलिक तनशान शंख की चडू ड़यां न
उिारे ।
अर्ृ- प्रेमी को गुजरी बािों को याि करके शीघ्र ही वापस िौट आने के लिए सगुन घर वािी
जस्ियों के पास जाना चादहए। राि का सगुन िे खे िथा राि को चांि-िारों की रोशनी से ईर्षयाष प्रकट
करें ।
श्लोक-65. इष्ट ्वप्रदिृने तत्ससंगो ममाच््त्सवतत वि।।65।।
अर्ृ- खब
ू सूरि सपनों को िे खकर प्रेमी से समागम हो- इस प्रकार की बािें करें ।
श्लोक-70. वायसपज
ू ा ि।।70।।
अर्ृ- कौवे की बलि को छोड़कर बाकी सभी काम जैसे पूजा, िे विाओं को भें ट चढ़ाना आदि कायों
को प्रवास से िौटे हुए प्रेमी से संभोग करने के बाि ही करें ।
अर्ृ- आसक्ि प्रेमी वही होिा है जो प्रेलमका पर परू ा त्तवश्वास रखे। उसके समान अपना आचरण
बना िें। प्रेलमका के कहने के साथ ही उसके कायष कर िें , उसके प्रति संिेहशीि न हो िथा धन की
परवाह नहीं करनी चादहए।
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अर्ृ- आचायष ििक के द्वारा लिखे गये शास्ि को िे खकर संक्षेप में यह वेश्यावि
ृ लिखा गया है
जो बाि यहां नहीं कही गयी है , उसे पराई औरिों, वेश्याओं की आराधना करने में कुशि िोगों के
आचरणों को िे खकर ही समझ िेना चादहए।
अर्ृ- इस त्तवर्य के िो श्िोक हैं- वेश्याओं को समझ पाना बहुि ही कदठन होिा है । इसलिए कक
मन में क्या चि रहा है, इसे हम अपनी इजन्ियों से नहीं िे ख सकिे हैं। क्योंकक वेश्याओं में धन
की िािच अधधक होिी है । इसके अिावा उसके पास आने वािे व्यजक्ि भी कम बुद्धध वािे होिे
हैं।
श्लोक-76. कामयंते त्तवरज्यन्ते त्सयजच्न्त ि। कषृयन्त्सयोऽत्तप सवाृर्ाृञ्ज्ञायन्ते नैव योत्तषतः।।76।।
अर्ृ- अपने प्रेमी को वेश्याएं प्रेम करिी हैं। उन्हें अधधक प्रेम करिी है िथा त्याग भी िे िी हैं। वे
अपने प्रेलमयों से धन ऐंठ िेिी हैं और उन्हें महसूस भी नहीं होिा है ।
वेश्या अपने प्रेमी से ककस प्रकार का व्यवहार करें । उस प्रेम के बंधन को ककस प्रकार मजबूि
बनाये। इसके बारे में प्रथम प्रकरण में उल्िेख ककया गया है । इसके अंिगषि यह बिाया गया है
कक प्रेलमका को अपने प्रेमी के साथ ककस प्रकार का आचरण करना चादहए। आचायष वात्यास्यन
वेश्या को उसका खोया हुआ गौरव वापस दििाने के लिए सबसे पहिे उसे एकचाररणी स्िी बनने
की सिाह िे िे हैं। यानी जो वेश्या नाचने-गाने के कायष करिी है उसे ककसी एक आिमी की बनकर
रहना चादहए।
यदि वेश्या अपना धंधा छोड़ िे िी है िो उसके प्रेमी का त्तवश्वास उस पर हो जािा है । इसके
अिावा आचायष वात्स्यायन वेश्या को सावधान करिे हुए कहिे हैं कक जजस िरह पत्नी एकचाररणी
होकर अपने पति को अपना सब कुछ न्यौछावर कर िे िी है । वैसा आचरण वेश्या के लिए उधचि
नहीं होिा है क्योंकक वेश्या एक पेशव
े र औरि होिी है िथा िस
ू रों को अपनी िरफ आकत्तर्षि करके
उनसे पैसा कमाना ही उसके प्रेम का िक्ष्य होिा है । इसलिए वेश्या को लसफष प्रेम का प्रिशषन करना
चादहए। उसे केवि अपना िन सौंपना चादहए मन नहीं। अन्यथा उसका धंधा धीरे -धीरे करके नर्षट
हो जायेगा। 44books.com
सभी कामशाजस्ियों का मि है कक यौन आवेग की ककसी अलभव्यजक्ि की जब अधधक प्रशंसा की
जािी है िो वही प्रेम कहिािा है । पूरे शरीर में यौन त्तवकरण होने से प्रेम का त्तवकास होिा है ।
जब प्रेम अपनी चरम सीमा पर पहुंच जािा है िो वह भावावेग बन जािा है। भारिीय
कामशाजस्ियों ने प्रेम का त्तवश्िेर्ण नौ उपािानों द्वारा ककया है । इसी प्रणािी पर यरू ोपीय
वैज्ञातनक हरबटष स्पेन्सर ने अपनी पस्
ु िक "मनोत्तवज्ञान के लसद्धांि" पर त्तववेचन ककया है । काम
का शारीररक आवेश, सौन्ियष, िगाव, प्रशंसा, भाव, वाहवाही की इच्छा, आत्म-मयाषिा, सपजत्नक भावना
िथा सहानभ
ु तू ियों को उभारना- यही प्रेम के नौ उपािान हैं। वात्स्यायन ने वेश्यावत्तृ ि को इन्हीं
उपािानों के माध्यम से त्तवस्िि
ृ बनाया है ।
भाग 6 वैशिकं
अर्ृ- आचायों का कहना है कक यदि वेश्या को अपने से लमिने वािे से जजिना धन चादहए होिा
है उिना अगर उसे आसानी से लमि जािा है िो वेश्या को अधधक धन ऐंठने के उपाय नहीं करने
चादहए।
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अर्ृ- आचायष वात्स्यायन कहिे हैं कक यदि वेश्या अपने ग्राहक से िय हुए धन से अधधक धन
िेना चाहिी है िो उसे इसके लिए उपाय करना चादहए जजससे वह िोगुने पैसे िक प्राप्ि कर िेिी
है ।
अर्ृ- अिंकार भक्ष्य (िड्डू, जिेबी आदि), भोज्य (अन्न आदि), पेय (शराब, जूि आदि), वस्ि
(रे शमी, ऊनी, सूिी आदि), गंध (कंु कुम आदि) फूिों के हार, पान, सुपारी आदि चीजें जब वेश्या
ककसी तनजश्चि समय पर पैसे िे ने के वायिे पर खरीिे या चीजों के बििे में गहने आदि अमानि
में रख दिये हों िो तनजश्चि समय पर िाम चक
ु िा करने या िाम िे कर गहने छुड़ाने के बहाने वह
प्रेमी या लमिने वािों से रुपया िे िे, िेककन केवि अमानि पर रखे हुए गहने छुड़ाने के लिए
रुपये न िे।
अर्ृ- प्रेमी अथवा लमिने वािे के सामने वेश्या को उसके धन-िौिि की प्रसंसा करनी चादहए।
श्लोक-6. वत
व वक्ष
व ारामदे वकुलतिागो्यानोत्ससवप्रीततदायव्यपदे िः।।6।।
अर्ृ- उपवास के बहाने, पूजा और आराधना की चीजें खरीिने के लिए, बाग-बगीचा िगाने के
बहाने, मंदिर आदि की स्थापना कराने के बहाने, कंु आ-िािाब बनवाने, उत्सव के बहाने िथा अपने
ककसी प्रेमी या मेहमान को उपहार िे ने के बहाने वेश्या अपने लमिने वािों से रुपया प्राप्ि कर
सकिी है ।
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अर्ृ- या कफर वेश्या को प्रेमी से यह बहाना करना चादहए कक वह आपसे लमिने जा रही है और
रास्िे में पुलिस या चोरों ने गहने छीन लिए।
अर्ृ- या कफर घर में आग िग जाने पर, नकब हो जाने से असावधानी के कारण धन समाप्ि हो
जाने का बहाना प्रेमी से करना चादहए।
श्लोक-9. तर्ा याचितालंकाराणां नायकालंकाराणां ि तदशभगमनार्ृ्य व्यय्य
प्रणणचिशभृतनृवेदनम ्।।9।।
अर्ृ- मांगे गये गहनों और प्रेमी के द्वारा दिये गये गहनों को इस िरीके से नर्षट हुआ बिाने से
प्रेमी अपने दिये हुए गहनों को मांगिा नहीं है । इसके बाि वेश्या को अपने त्तवश्वास के नौकरों से
प्रेमी के पास के संिेश भेजकर उससे जो लमिने के समय खचष हुआ हो उसे भी मांग िेना चादहए।
श्लोक-10. तदर्ृमण
व ग्रिणम ्। जनन्या सि तद्
ु भव्य व्यय्य त्तववादः।।10।।
अर्ृ- वेश्या को प्रेमी का स्वागि सत्कार कजष िेकर करना चादहए। कफर उस कजष के त्तवर्य में मां
से झगड़ा करें ।
अर्ृ- प्रेमी के िोस्ि के यहां ककसी उत्सव के होने पर प्रेमी जब वेश्या से भी वहां भी चिने के
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लिए बोिे िो उसे यह कहकर मना कर िे ना चादहए कक वहां जाकर उपहार िे ने के लिए मेरे पास
कुछ भी नहीं है ।
अर्ृ- जब प्रेमी िोस्ि के जिसे में उपहार िे ने के लिए राजी हो जाए िो उपहार िे आने से पहिे
उसे यह सुनाकर कहे कक िुम्हारे यहां उन्होंने कीमिी उपहार दिये हैं और िम
ु ने रख लिए हैं।
अर्ृ- वेश्या को लशजल्पयों से ऐसी वस्िुओं को बनवा िेना चादहए कक जजससे कक प्रेमी को पैसे
खचष करने पड़ जाएं।
अर्ृ- वेश्या राजपुरुर्ों िथा वैद्यों को अपने कायों से इस प्रकार से प्रसन्न कर िे कक वह उसके
मनचाहे प्रेमी से लमिने या कफर प्रेमी को उस पर खचष करने में उसे उसकी सहायिा कर सके।
अर्ृ- प्रेमी के िोस्िों और उसका उपकार करने वािों पर यदि ककसी प्रकार की मुसीबि आ जाए
िो वेश्या को उनकी सहायिा करनी चादहए।
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श्लोक-17. गि
व कमृ संख्याः पुत्र्योत्ससञ्जनम ् दोिदो व्याचिशमृत्र्य दःु खापनयनशमतत।।17।।
अर्ृ- प्रेमी से धन प्राप्ि करने के लिए वेश्या को घर बनवाने का, सहे िी के पुि के ककसी संस्कार
का, गभाषवस्था की उत्कट इच्छा का अथवा ककसी रोग का िुःु ख िरू करना के बहाना करें । इसके
पररणामस्वरूप उसे प्रेमी से धन प्राप्ि हो जाएगा।
अर्ृ- यदि प्रेमी के ककसी कायष के लिए धन की आवश्यकिा हो िो वेश्या को अपने कुछ गहनों
को बेचकर उसे धन िे ना चादहए।
श्लोक-19. तया िीशलत्य िालंकार्य भाण्िोप्यकरस वा-वणणजो त्तवक्रयार्ृ दिृनम ्।।19।।
अर्ृ- उसे अपने त्तप्रय गहनों को, घर के बिषन िथा सजावट की चीजों को प्रेमी के सामने ही
व्यापारी को बेचने के लिए दिखाने का बहाना करें ।
अर्ृ- प्रेमी द्वारा ककए गये उपकारों को न भूिकर उसका वणषन करें ।
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श्लोक-22. प्रणणचिशभः प्रततगणणकानां लाभाततियं श्रावयेत ्।।22।।
श्लोक-23. तासु नायक समक्षमात्समनोऽभ्यचिकं लाभं भूतमभूतं वा व्रीडिता नाम वणृयेत ्।।23।।
अर्ृ- यदि िस
ू री गखणकाएं उस वेश्या के यहां आई हो िो प्रेमी के सामने िाभ को बढ़ा-चढ़ाकर
उनसे बिाएं। यदि कफर भी कुछ िाभ न हो िो प्रेमी की ओर शमष से िे खकर कहे ।
श्लोक-24. पव
ू य
ृ ोचगनां ि लाभाततियेन पन
ु ः सन्िाने यतमानानामात्तवष्कवतः प्रततषेिः।।24।।
अर्ृ- प्रेमी से स्पधाष करने वािे उन िोगों को प्रेमी को दिखाये जो अधधक पैसे िे कर वेश्या से
सेक्स करने की इच्छा करिे हो।
अर्ृ- यदि यह जानकारी प्राप्ि हो जाए कक अब यह िोबारा नहीं आएगा िो बच्चों की भांति हठ
करके उससे धन मांगे।
अर्ृ- वेश्या अनुराग न रखने वािे िोगों को उसके पररवतिषि स्वभाव िथा चेहरे के बनिे- त्रबगड़िे
भावों को िे खकर जानकारी प्राप्ि कर िें।
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अर्ृ- जब प्रेमी के मन में वेश्या के प्रति िगाव कम होने िगिा है िो वह कभी कम िो कभी
अधधक धन वेश्या को िे िे िा है ।
श्लोक-30. व्यपहदश्यान्यत्सकरोतत।।30।।
अर्ृ- केवि प्रेमी िे ने का वायिा करके भी मना कर िे िा है । या कफर कहिा है कक मैने िो ऐसा
वायिा ही नहीं ककया है ।
श्लोक-34. शमत्रकायृ
मपहदश्यान्यत्र िेते।।34।।
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श्लोक-35. पव
ू स
ृ ंसष्व टायाश्ि पररजनेन शमर्ः कर्यतत।।35।।
अर्ृ- पहिी प्रेलमका के नौकरों से इस प्रेलमका की सभी गुप्ि बािों को बिा िे ना चादहए।
अर्ृ- जब उसे यह बाि मािूम हो जाए कक उसके प्रेमी का िगाव धीरे -धीरे करके खत्म हो रहा
िो जजिना शीघ्र हो सके उसे प्रेमी से अधधक से अधधक धन प्राप्ि करने की कोलशश करनी
चादहए।
श्लोक-37. तातन िा्या ि्तादि
ु मणृः प्रसह्य गह्
व वीयात ्।।37।।
अर्ृ- या कफर प्रेलमका का लसखाया हुआ साहूकार जजसने उसे कजष दिया हो उसे चादहए कक उसके
प्रेमी द्वारा एकि ककये गये धन को वह अपने कब्जे में कर िें।
अर्ृ- यदि प्रेमी साहूकार से झगड़ा कर िे िो उसे अिािि िक जाना चादहए। त्तवरजक्िपात्ति
समाप्ि होिा है ।
श्लोक-39. सततं तु पव
ू ाृकाररणमप्यफलं व्यलीकेनानुपात ्।।39।।
अर्ृ- वेश्या को चादहए कक थोड़ा िे ने वािे के पहिे परोपकारी प्रेमी के अपराध करने पर भी उसे
धक्का िे कर न तनकािे।
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अर्ृ- धनहीन िेककन खािी प्रेमी को ककसी धनवान, अनुरक्ि व्यजक्ि को प्रतिपक्षी बनाकर
तनकािना चादहए। स्वयं नहीं।
अर्ृ- प्रेमी को एकांि या प्रकट में तनकािने के लिए प्रेलमका को ये उपाय करने चादहए- जजसे प्रेमी
नहीं चाहिा। उसकी सेवा करना, तनन्िनीय कायों को जान-बूझकर बार-बार करना, होंठों को
चबाना, धरिी पर पैर पटकना, जजन बािों को नहीं जानिा हो उन बािों की बार-बार चचाष करना,
जजन त्तवर्यों के बारे में प्रेमी को जानकारी न हो उन पर आश्चयष प्रकट करना िथा उसकी तनंिा
करना, उसके अलभमान पर चोट करना, उसके गुरुजनों के साथ रहना, उसकी हर िरफ उपेक्षा
रखना, प्रेमी में जो िोर् हों उन्हीं के समान िोर्ों की बुराई करना िथा एकांि में बैठना।
श्लोक-42. रतोपिारे षू्वेगः। मुख्यादानम ्। जघन्य रक्षणम ्। नखदिनक्षतेभ्यो जुगुप्सा। पररष्वंगे
भुजमय्चया सूछिा व्यविानम ्। ्तब्िता गात्राणाम ् सतरोव्यृत्सयासः। तनद्रापरत्सवं ि। श्रान्तमुपलभ्य
िोदना। अिततौ िासः। िततावनशभनन्दनम ् हदवात्तप। भावमुपलभ्य मिाजनाशभगमनम ्।।42।।
अर्ृ- जजस व्यजक्ि को वेश्या अपने पास से भगाना चाहिी हो िो सेक्स के समय में उसके साथ
यह आचरण करे - सेक्स के लिए दिये जाने वािे पान, सुगंधध आदि को स्वीकार न करें । चब
ुं न न
करने िें । जांघों पर हाथ न फेरने िें । यदि उसने पहिे कभी सेक्स के समय िांिों अथवा नाखन
ू ों
से काटा हो िो उसकी तनंिा करें । बांहों में भरिे समय हाथों को सीने से ढक िें। शरीर के अंगों
को िन कर िें। जजससे प्रेमी खींच न सके। िोनों जांघों को एक-िस
ू रे के ऊपर चढ़ा िे। सेक्स के
समय नींि आने का बहाना करें । यदि सेक्स के समय प्रेमी शीघ्र ही स्खलिि हो िो उसकी
आिोचना करें । यदि प्रेमी की संभोग शजक्ि क्षीण पड़ रही हो िो उसकी हं सी उड़ाये िथा अधधक
उिेजना हो िो उसका कोई भी महत्व न िें । दिन में सेक्स करने पर उसे गधा कहकर पुकारें ।
यदि प्रेमी की इच्छा सेक्स करने की हो िो उसे बेडरूम से बाहर तनकािकर ककसी बड़े आिमी से
लमिने जाएं।
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श्लोक-43. वातयेषु छिलग्रिणम ्। अनमृणण िासः। नमृणण िान्यमपहदश्य िसतत वदतत
तच््तमन्कटाक्षेण पररजन्य प्रेक्षणं तािनं ि। आित्सय िा्य कर्ामन्र्ाः कर्ा। त्वलीकानां
व्यसनानां िापाररिायाृणामनुकीतृनम ्। ममृणां ि िेहटकयोपक्षेपणम ्।।43।।
अर्ृ- प्रेमी को अपने ऊपर से हटाने के लिए तनम्न बािें प्रेलमका को छे ड़नी चादहए। छि-कपट भरी
बािें , त्रबना खेि के उपहास, खेि में िस
ू रे के बहाने उपहास करना, उसके कुछ कहने पर उसी को
िक्ष्य करके अपने पररजनों की ओर कनखखयों से िे खना या िाड़ना। उसकी बाि को बीच में
काटकर िस
ू री बाि कह िे ना। प्रेमी की उन आििों की बुराई करे जो उसकी कमजोरी हो। उसकी
गप्ु ि बािों को अपनी सेत्तवका से बिाना।
अर्ृ- इस त्तवर्य के िो श्िोक हैं- वेश्या अपने लमिने वािों की परीक्षा करके उससे सेक्स करे ।
सेक्स करने के बाि उससे सेक्सी बािें करके अधधक से अधधक धन प्राप्ि करे । जब उसे धन प्राप्ि
हो जाए िो प्रेमी को घर से बाहर तनकाि िें ।
अर्ृ- उपयक्
ुष ि त्तवधध से यदि वेश्या चाहे िो वह अपने प्रेलमयों से अधधक से अधधक धन प्राप्ि कर
सकिी है ।
यह वैलशक अधधकरण वीरसेना नामक वेश्या के त्तवशेर् आग्रह करने पर आचायष ििक ने लिखा
था जजसे वात्स्यायन ने कामसूि में शालमि ककया है । आचायष ििक वेश्या को िे खकर उसके शीि,
स्वभाव िथा आचरण के बारे में समझ जािे थे। उन्होंने इस अधधकरण के अंिगषि वेश्याओं के
बारे में जो जानकारी िी है । वह संक्षक्षप्ि होिे हुए भी अपने आप में पररपूणष है ।
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इस अधधकरण के सभी वेश्यावि ृ का सार हमें िशकुमार चररि के उपहार वमाष के चररि में मुतन
मरीच िथा काममंजरी वेश्या के सवाि में लमििा है ।
वेश्याओं की मनोवत्तृ ि, उसके रहस्यमय चररि िथा िभ
ु ेध व्यवहार के बारे सधचि जानकारी युक्ि
काममंजरी में कहा गया है - वेश्याओं की पैिायशी प्रवत्तृ ि यह होिी है कक जैसे ही घर में िड़की का
जन्म होिा है । उसे बचपन से सबसे अधधक सुंिर बनाने की कोलशश करिे हैं। उसके एक-एक अंग
को सुंिर िथा आकर्षक बनाने के लिए त्तवलभन्न प्रयोग ककये जािे हैं। बचपन से ही िड़ककयों को
संिुलिि भोजन दिया जािा है । जजससे उसका सही िरीके से त्तवकास हो सके।
यह प्रवत्तृ ि केवि वेश्या की ही जाति में नहीं दिखाई िे िी है । बजल्क साध्वी जस्ियों को छोड़कर
िगभग सभी औरिों की यही प्रवत्तृ ि होिी है । अधधकिर जस्ियां ककसी परू
ु र् पर उसकी त्तवशेर्िा के
कारण आकत्तर्षि होिी हैं। चाहे धन की त्तवशेर्िा हो या रूप और यौवन की।
वेश्या हो या कुिवधू हो चकंू क स्िी होने से िोनों एक ही जाति की हैं। सेक्स, वािावरण िथा
पररजस्थतियों के प्रभाव के कारण कोई स्िी वेश्या बनिी है िो कोई कुिवध।ू िेककन स्वभाव से
रदहि िोनों नहीं हो सकिी। इसीलिए नीतिकार ने समीक्षक िरीके से कहा है कक केवि स्िनों को
छोड़कर िथा न कहीं त्तवर् है िथा न कहीं अमि
ृ है । अनुरक्ि होने पर वही स्िी अमि
ृ के समान
बनिी है िथा त्तवरजक्ि होने पर वही स्िी त्तवर् के समान बन जािी है ।
नामि
ृ ं न त्तवर्ं ककञ्जिे कां मुक्िवा तनिजम्बनीम ु्। सेवामि
ृ ििा रक्िा त्तवरक्िा त्तवर्वल्िरी।।
भाग 6 वैशिकं
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श्लोक-2. स िेदवशसतार्ो त्तविवान्सानुरागश्ि ततः सन्िेयः।।2।।
अर्ृ- यदि प्रेमी धनवान हो िो उससे वेश्या को धन की प्राजप्ि होगी। इसके साथ ही वेश्या से प्रेम
करिा हो िो वेश्या को शीघ्र ही उसके पास जाना चादहए।
अर्ृ- पहिी और िस
ू री िोनों जस्ियों से पास से धक्का खाकर ही हटा है ।
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अर्ृ- पहिी स्िी के पास से धक्के खाकर हटा, और िस
ू री स्िी के पास से स्वयं हटा।
अर्ृ- यदि प्रेमी यहां िथा वहां िोनों स्थानों से स्वयं हटकर कफर आने की कहे िो वह िोनों
नातयकाओं के गुणों की परवाह न करने वािा चंचि बुद्धध का होिा है । उससे कफर से सेक्स न
ककया जाए।
श्लोक-11. इत्ततश्ि तनष्काशसतापसत व ः च््र्रर्ु्चिः। स िेदन्यतो र्िु लभमानया तनष्काशसतः
्यात्सससारोऽत्तप तया रोत्तषतो ममामषाृब्दिु दा्यतीतत संिेयः।।11।।
अर्ृ- जो व्यजक्ि यहां िथा वहां िोनों स्थानों से तनकािे जाने पर त्रबल्कुि ही संबंध समाप्ि कर
िेिा है िो वह जस्थर बुद्धध का आिमी होिा है । यदि वेश्या ने िस
ू रे िोगों की अपेक्षा उस हटे
हुए जस्थर बुद्धध के प्रेमी से अधधक िाभ प्राप्ि ककया हो, धनी हो, िेककन नाराज कर दिया गया
हो िथा वेश्या को इस बाि पर यकीन हो कक िस ू री पर गुस्सा होने के कारण से मुझे अधधक धन
िे गा िो उससे अवश्य ही संधध कर िेनी चादहए।
अर्ृ- यदि प्रेमी गरीबी अथवा िर्षु टिा के कारण से हटाया गया हो िो उससे लमिना अच्छा नहीं
होिा है ।
अर्ृ- एक वेश्या के यहां से स्वयं अिग हुआ िथा ककसी अन्य वेश्या के घर से तनकािा गया प्रेमी
पेशगी धन िे िो वेश्या उसके साथ सेक्स संबंध बना सकिी है ।
अर्ृ- यह प्रेमी त्तवशेर्िा को पसंि करिा है इसीलिए मुझे छोड़कर चिा गया था, िेककन मुझसे
ज्यािा त्तवशेर्िा उसमें न पाकर कफर वापस आना चाहिा है िथा मेरे पास रहकर मेरी त्तवशेर्िाओं
को जानना चाहिा है । मुझ पर आकत्तर्षि है इस कारण से यहां आकर जरूर धन िे गा। या िस
ू रों
की अपेक्षा मुझमें खास गुणों को िे खकर यह गुणग्राही प्रेमी त्तवपुि धन िे गा।
अर्ृ- यह िो बुद्धध का प्रेमी है , जस्थरधचि एवं त्तवचारशीि नहीं है । हल्िी के समान ही इसका
अस्थायी रं ग है , जो दिि में आिा है कर बैठिा है - इन सभी बािों पर त्तवचार करके प्रेलमका उसे
िे खे। यदि कफर सेक्स करने िायक हो िो सेक्स करे नहीं िो नहीं।
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श्लोक-18. अनुरागादागन्तक
ु ामः स र्िुदा्यतत। मम गुणैभाृत्तवतो योऽन्य्यां न रमते।
श्लोक-20. अन्यर्ार््
ु चिः कालेन लम्भतयतव्यः।।20।।
अर्ृ- यदि वह केवि उसके वशीभूि होकर आना चाहिा हो िो उसे कुछ समय बाि लमिना
चादहए। उससे लमिने में ककसी भी प्रकार की जल्िबाजी नहीं करनी चादहए।
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श्लोक-21. इतो तनष्काशसत्तत्र च््र्र उपजपत्रेतेन व्याख्यातः।।21।।
अर्ृ- मैने िो अपने इसी प्रेमी को उसकी गििी के कारण तनकािा था। मेरे यहां से जाने के बाि
वह िस
ू री स्िी के पास जाकर रहने िगा। इसलिए यदि वह िब
ु ारा आने की कोलशश कर रहा है िो
उसे बुिा िेना चादहए।
अर्ृ- यदि वेश्या बाि करने की पहि करिी है िो वह वहां से अिग होकर भी आ सकिा है ।
अर्ृ- मेरे यहां से आ जाने के बाि वह उसको आधथषक रूप से हातन भी पहुंचा सकिा है ।
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श्लोक-26. अर्ाृगमकालो वा्य। ्र्ानव्
व चिर्य जाता। लब्िमनेनाचिकरणम ्। दारै त्तवृयत
ु तः।
पारतंत्र्याह्यावि
व ः। त्तपत्रा भ्रात्रा वा त्तवभततः।।26।।
अर्ृ- उसको त्रबजनेस अथवा नौकरी से अधधक आमिनी हुई है । जर जमीन आदि से भी त्तवकास
हुआ। अिािि आदि से भी रुपया लमि गया। अपनी पत्नी से त्तपिा िथा भाइयों से अिग हो
जाने से वह पूणि
ष ा स्विंि हो गया। ऐसे समय में ही वह अधधक से अधधक धन प्राप्ि कर सकिा
है ।
अर्ृ- मेरा प्रेमी उससे लमिा हुआ है और मैं उससे लमिकर उस धनवान को हालसि कर िूंगी।
श्लोक-28. त्तवमातनता वा भायृता तमेव त्यां त्तवक्रयमतयष्याशम।।28।।
अर्ृ- उसने मेरी बेइज्जिी की है या कफर अपनी पत्नी से जाकर लमि गया है , अब मैं उसे उसकी
पत्नी से अिग करके िोनों को आपस में िड़वा िें ।
अर्ृ- आदि त्तवश्वस्ि नौकर जाकर प्रेमी से कहें कक वह िुम पर आकत्तर्षि है िेककन मां की
कुदटििा के कारण त्तववश होकर उसने अपने आपको तनकाि दिया है ।
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अर्ृ- जो इस वक्ि इसका प्रेमी है उसके साथ िगाव से सेक्स नहीं करिी है , बजल्क उसके मन में
नफरि बनी रहिी है ।
अर्ृ- वे पीठमिष (वेश्या के सहायक) आदि सेवक तनकािे गये प्रेमी से तनकिने से पहिे का प्रेलमका
का अनुराग बिाकर उसे यकीन दििाने की कोलशश करें ।
श्लोक-34. अशभज्ञानं ि तत्सकवतोपकारसंर्ं्िं ्याहदतत त्तविीणृप्रतत सिानम ्।।34।।
अर्ृ- उसके प्यार की पहचान उसके द्वारा ककये गये उपकारों से संबंध कराना चादहए। यह
त्तवयुक्ि नायक का प्रेम होिा है ।
श्लोक-35. अपूवप
ृ ूवस
ृ ंसष्व टयोः पूवस
ृ ंसष्व टः श्रेयान ्। स हि त्तवहदतिीलो दृष्टरागश्ि सूपिारो
भवतीत्सयािायाृः।।35।।
अर्ृ- वेश्या से पहिे लमिे हुए अथवा कभी न लमिे हुए िोगों में से पहिे लमिा हुआ व्यजक्ि
श्ेर्षठ होिा है क्योंकक उसके शीि स्वभाव से पररचय बना रहिा है। उसका प्रेम जाना-पहचाना हुआ
है । आचायों का मानना है कक उससे सरििा से अपनी प्रसंसा करायी जा सकिी है ।
श्लोक-36. पव
ू स
ृ ंसष्व टः सवृतो तनष्पीडितार्ृत्सवात्रात्सयर्ृमर्ृदो दःु खं ि पन
ु त्तवृश्वासतयतम
ु । अपव
ू ्
ृ तु
सख
ु ेनानरु ज्यत इतत वात्स्यायनः।।36।।
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अर्ृ- आचायष वात्स्यान का मानना है कक धन प्राप्ि करने के लिए ही लमिा जािा है । यदि पहिा
प्रेमी धनहीन हो गया हो िो उससे लमिना बेकार होिा है । इसके अिावा उसे अपना त्तवश्वास प्राप्ि
करना भी कदठन होिा है िथा िस
ू रा नया प्रेमी िो सरििा से आकत्तर्षि ककया जा सकिा है ।
अर्ृ- यद्यत्तप स्वभाव के आधार पर पुरुर्ों में भी त्तवशेर्िाएं होिी हैं। कोई नया आिमी ऐसा होिा
है जो आिि से कृपण होिा है । कुछ भी नहीं िे िा है अथवा खश
ु ामि करने पर भी अनुरक्ि नहीं
होिा है । कुछ आिमी ऐसे होिे हैं जो चस
ू लिए जाने पर भी, तनकाि दिये जाने पर भी, प्रेलमका पर
अपना त्तवश्वास बनाये रखिे हैं।
श्लोक-38. भवच्न्त िात्र श्लोकः- अन्यां भेदतयतुं गम्यादन्यतो गम्यमेव वा। च््र्त्य िोपघातार्ं
पुनः संिानशमष्यते।।38।।
अर्ृ- इस त्तवर्य के श्िोक हैं- 19वें, 28वें िथा 25वें सूि में बिाई गयी बािों को यहां बिाया जा
रहा है कक िस
ू री प्रेलमका से त्रबछड़ा हुआ लमिने वािा प्रेमी अथवा िस
ू री से अिग करने के लिए
प्रेमी को लमिाया जा सकिा है ।
श्लोक-41. तत्रोपयातयनं पव
ू ं नारी कालेन योजयेत ् भवेछिाच्छित्रसंिाना न ि सततं पररत्सयजेत ्।।4।।
अर्ृ- स्िी को चादहए कक कभी यदि नया धनवान प्रेमी िथा लमिने वािा त्रबछड़ा हुआ प्रेमी िोनों
आ रहे हों िो जो अधधक धनी हो उसी से ही सेक्स करें क्योंकक त्रबछड़ा हुआ प्रेमी प्रिीक्षा भी कर
सकिा है । त्रबछड़े हुए से सेक्स करने में न िो दहचककचाहट करें िथा न धनवान प्रेमी का त्याग
करें ।
श्लोक-42. सततं तु वशिनं नारी संभाप्याप्यन्यतो व्रजेत ् ततश्िार्ृमुपादाय
सततमेवानुरञ्जयेत ्।।42।।
अर्ृ- चिुर िथा चािाक स्िी को चादहए कक सबसे पहिे प्रभाव, िाभ, अधधक प्रेम िथा सौहािष िे ख
िें, िभी त्रबछड़े हुए को लमिाएं।
अनेक उपायों से वेश्याएं अपने प्रेमी का धन ऐंठकर उसे त्रबल्कुि बबाषि कर िे िी हैं। उसके बाि
उसे अपने पास से तनकाि िे िी हैं। इसके बारे में त्तपछिे प्रकरण में भी बिाया गया है । इस
प्रकरण में उन प्रेलमयों के मानलसक वि
ृ का उल्िेख ककया गया है । जो वेश्या के द्वारा तनकािे
जाने पर उस पर मोदहि रहिा है । इस प्रकार के त्तववेकशून्य प्रेलमयों को वेश्या कफर से ककस हािि
में स्वीकार करे - इसके बारे में त्तवस्िार 44books.com
से वणषन ककया गया है ।
उन्होंने वेश्याओं िथा उनके प्रेलमयों का मनोत्तवश्िेर्ण करिे हुए कहा है कक त्तवयोग िथा लमिन
की जस्थति में वेश्या को सबसे पहिे पुरूर् की अंिुःप्रकृति का अध्ययन करके उसे लमिाएं अथवा
हटाएं। कोई आिमी ऐसा होिा है कक पुराने प्रेमी के हट जाने पर वह वेश्या का साथी उसके
सिाचार िथा िीनिा के सामने फेि हो जाया करिा है । इसके अिावा कुछ िोग ऐसे स्वभाव के
होिे हैं जो वेश्या के द्वारा अपमातनि होकर तनकािे जाने िथा सारी संपत्ति और प्रतिर्षठा गंवा िे ने
के बावजूि उसी के प्रति आकत्तर्षि रहिे हैं।
इस प्रकरण के अंिगषि वेश्याओं की चंचििा, अजस्थर बुद्धध िथा स्वाथष के बारे में वणषन ककया
गया है । वास्िव में िे खा जाये िो यह पिा चििा है कक वेश्याओं की मानलसकिा समि
ु की िहरों
की िरह चंचि होिी है । शाम के समय से सब
ु ह िक आकाश की क्षखणक िालिमा की िरह
वेश्याओं के यहां उनके प्रेलमयों की अवजस्थति क्षणभंगरु होिी है । जजस प्रकार पैर में अििा िगाने
के लिए में हिी की पत्तियों का रस तनचोड़ करके उन्हें फेंक दिया जािा है, उसी प्रकार वेश्याएं भी
अपने प्रेमी की धनशजक्ि, परू
ु र्ाथष-शजक्ि तनचोड़कर उन्हें अिग फेंक िे िी हैं।
इस सहजबोध को स्िी अच्छी प्रकार से जानिी है कक जीव िथा जड़ एक-िस
ू रे के त्रबना कोई
भी पररणाम तनकािने में सफि नहीं हो सकिे हैं। इसलिए उसके प्रेम में शरीर और आत्मा िोनों
का िगाव रहिा है । िेककन युवक जब उसे इस िरह का प्रेम करने िें । पुरूर् की इसी गििी का
अंजाम है कक अधधकिर िाम्पत्य जीवन, अधधकिर वेश्या भोग, जीवन, तनराशा िथा अशांति के
माहौि में िड़प रहे हैं।
भाग 6 वैशिकं
अर्ृ- वेश्या के पास सेक्स करने के लिए आने वािों की संख्या अधधक होने से उनमें परस्पर
प्रतिस्पधाष बढ़ जािी है । इस कारण से वेश्या की आमिनी बढ़ जािी है । इसलिए वेश्या को ककसी
एक व्यजक्ि त्तवशेर् से सेक्स न करके प्रतिदिन नये ग्राहकों से सेक्स करना चादहए।
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अर्ृ- ककसी भी वेश्या को एक राि की फीस का तनधाषरण िे श िथा समय, विषमान जस्थति, गण
ु ,
सौभाग्य िथा वेश्याओं से अपने रूप, रं ग, गण
ु आदि की िि
ु ना करने के बाि तनधाषरण करना
चादहए।
श्लोक-3. गम्ये दत
ू ांश्ि प्रयोजयेत ्। तत्सप्रततर््िाश्ि ्वयं प्रहिणुयात ्।।3।।
अर्ृ- सेक्स करने िायक व्यजक्ि का उद्िे श्य जानने के लिए अपने िि
ू ों को िगा िें िथा स्वयं
को उसके संपकष के िोगों के द्वारा अपने अलभप्राय भेजें।
श्लोक-4. ्त्तवच््त्रश्िररतत लाभाततियग्रिार्ंमेक्यात्तप गछिे त ्। पररग्रिं ि िरे त ्।।4।।
अर्ृ- उससे अधधक धन प्राप्ि करने के लिए 3-4 दिनों िक िगािार एक तनयि फीस पर ही
सेक्स करायें। िथा उसकी सेवा उसकी पत्नी के समान बनकर स्वयं ही करना चादहए।
अर्ृ- आचायों के अनुसार यदि ककसी वेश्या के पास एक साथ कई िोग सेक्स करने के लिए आ
जाएं िथा सभी सेक्स करने के लिए एक समान ही फीस िे ने को िैयार हो िो ऐसी जस्थति में
वेश्या को जजससे फीस िे िेगी िो िस
ू रा उससे ज्यािा िे गा।
अर्ृ- आचायष वात्स्यायन का मानना है कक अत्तवश्वास की जस्थति में भी न िौटाया जाने वािा
पैसा ही सभी कायों का मूि होिा है अथवा आभूर्ण और गहने आदि वस्िुएं पैसों से ही खरीिी
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जा सकिी हैं। इसलिए वेश्या को जहां िक हो सके अपने प्रेमी से पैसे ही प्राप्ि करने चादहए।
श्लोक-7. सव
ु णृरजतताम्रकां्यलोिभाण्िोप्करा्तरणप्रावरण
वासोत्तविेषगंिद्रव्यकटुकभाण्िघत
व लैलिान्यपिज
ु ातीनां पव
ू प
ृ व
ू त
ृ ो त्तविेषः।।7।।
अर्ृ- सोना, चांिी, िांबा, िोहा, बिषन, सामान, त्रबस्िर, लिहाफ, कम्बि, रे शमी, कपड़े, चंिन आदि गंध
वािे पिाथष, कािीलमचष घड़े आदि, घी िेि अनाज, पशु इन वस्िुओं में अंि में पहिे की िरह एक-
एक चीजें उिम होिी हैं। इसलिए वेश्या को ऐसी ही चीजें िानी चादहए।
अर्ृ- यदि िो समान प्रेमी हो िो शुभधचन्िक िोग जजसे पसंि करें या जजसको अधधक गुणी, सुंिर
िथा प्रभावशािी समझें, उसी की िी गयी चीजों को ग्रहण करें ।
श्लोक-9. राचगत्सयाचगनो्त्सयाचगनी त्तविेषः प्रत्सयक्ष इत्सयािायाृः।।9।।
अर्ृ- आचायों का कहना है कक अधधक अनुराग रखने वािे की अपेक्षा िानशीि त्यागी से अधधक
िाभ लमिना तनजश्चि होिा है ।
अर्ृ- आचायष वात्स्यायन का कहना है कक अनुरक्ि िािची होिे हुए भी धन िे सकिा है िेककन
त्यागी को अनुरक्ि बनना काफी कदठन होिा है ।
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श्लोक-12. तत्रात्तप िनवदिनवतोिृनवतत त्तविेषः। त्सयाचगप्रयोजनकत्रोः प्रयोजनकतृरर त्तविेषः प्रत्सयक्ष
इत्सयािायाृः।।12।।
अर्ृ- आचायों का मानना है कक यहां पर भी अमीर िथा तनधषन िोगों में धनवान त्तवशेर् होिा है
िथा त्यागी और नातयका का स्वाथष लसद्ध करने वािा प्रेमी त्तवशेर् होिा है ।
अर्ृ- आचायष वात्स्यायन का कहना है कक वेश्या का प्रयोजन लसद्ध करने वािा एक बार प्रयोजन
लसद्ध करके यह सोचिा है कक एक बार काम कर दिया है . अब क्यों करूं। क्योंकक िानशीि
त्यागी प्रेमी िो जो धन िे चक
ु ा होिा है उसके बारे में सोचिा िक भी नहीं है ।
श्लोक-14. तत्राप्यात्सयतयकतो त्तविेषः।।14।।
अर्ृ- पहिे के आचायों का कहना है कक कृिज्ञ िथा त्यागी इन िोनों प्रकार के व्यजक्ियों में
त्यागी व्यजक्ि से अधधक िाभ प्राप्ि ककया जा सकिा है ।
अर्ृ- बहुि दिनों िक उपायों द्वारा सात्रबि ककया गया त्यागी वेश्या के एक अपराध को िे खकर
या िसू री सामने की वेश्याओं से बहकाया जाकर वेश्या के ककये गये पररश्म के िख ु ों की परवाह
नहीं करिा है ।
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अर्ृ- और त्यागी प्रायुः िेजस्वी व्यजक्ि सरि स्वभाव के नहीं होिे हैं। यदि कहीं पर उनका
अनािर होिा है िो वे उसे बिाषश्ि नहीं करिे हैं।
श्लोक-18. कवतज्ञ्तु पव
ू श्र
ृ मापेक्षी न सिसा त्तवरज्यते। परीक्षक्षतिीलत्सवाश्ि न शमर्थया दष्ू यत इतत
वात्स्यायनः।।18।।
अर्ृ- अनुरक्ि, त्यागी िथा कृिज्ञ इन िीनों में से वेश्या को जजससे सबसे अधधक धन प्राप्ि उसी
के साथ सेक्स करना चादहए।
अर्ृ- पहिे आचायों के अनुसार िोस्िों के सुझाव िथा धन की प्राजप्ि इन िोनों में से धन का
िाभ प्रत्यक्ष त्तवशेर्िा रखिा है ।
श्लोक-21. सोऽत्तप ह्यर्ाृगमो भवतत। शमत्रं तु सकव्वातये प्रततिते कलत्तु षतं ्याहदतत
वात्स्यायनः।।21।।
अर्ृ- इस धन संचय में भी कफर न लमिने वािे को अवश्य वािे के जरूर प्राप्ि कर िेना
चादहए।
अर्ृ- काम के बहाने िोस्ि से अनुनय त्तवनय करके शीघ्र ही िाभ प्राप्ि कर िें और उससे कहे
कक मैं िुम्हारी बाि अवश्य ही पूरी कर िं ग
ू ी।
श्लोक-24. अर्ाृगमानर्ृप्रतीघातयोरर्ाृगमे त्तविेषः प्रत्सयक्ष इत्सयािायाृः।।24।।
अर्ृ- अथषिाभ िथा अनथष का तनवारण- इन िोनों में धनागम त्तवशेर् माना जािा है - ऐसा पहिे
के आचायों का मानना है ।
अर्ृ- आचायष वात्स्यायन का कहना है कक धन हमेशा ही प्राप्ि होिा रहिा है िेककन यदि अनथष
होना शुरू हो जािा है िो उसके अंि का कोई दठकाना नहीं होिा है।
अर्ृ- इसके अंिगषि भी न्यूनाधधक्य समझकर त्तवशेर् को ग्रहण कर िेना आवश्यक होिा है ।
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अर्ृ- इस बाि से यह स्पर्षट होिा है कक अथष के संशय में अनथष की रोकथाम करने में ही त्तवशेर्
िाभ प्राप्ि होिा है ।
अर्ृ- जो उिम वगष की नारी होिी हैं उन्हें चादहए कक वह अधधक िाभ प्राप्ि करने के लिए मंदिर
बनवायें। िािाब का तनमाषण बनायें। बाग-बगीचे िगवायें। नीची जगहों में िोगों को आने-जाने की
सुत्तवधा के पुि का तनमाषण करायें। अपने तनवास स्थान से बाहर लमट्टी का घर बनाकर उसमें
अजग्नहोि का सारा सामान रखकर रोजाना अजग्नहोि करायें। ककसी सुपाि व्यजक्ि को जररया
बनाकर उसके द्वारा ब्राह्मणों को हजार गायें िान में िें । िे विाओं के भोग प्रसाि की व्यवस्था
करें । इस प्रकार के ऐसे ही िोकोपकारी िथा धालमषक कायों को अच्छी िरह करने का खचष बिाषश्ि
करें िो उनके अधधक िाभ का उपयोग भी हो जाएगा।
श्लोक-29. सावांचगकोऽलंकारयोगो गि
व ्योदार्य करणम ्। मिािै भाृण्िैः पररिारकैश्ि
गि
व पररछिद्योज्जवलततेतत रूपाजीवानां लाभाततियः।।29।।
अर्ृ- मध्यम वगष वािी रे खाएं त्तवशेर् िाभ करने के लिए संपूणष शरीर पर गहने धारण करें ,
तनवास स्थान को किात्मक िरीके से सजाकर रखें िथा उसमें कीमिी बिषन रखें हो, नौकर-चाकर,
कमरों की खखड़ककयों, िरवाजों, पिों को साफ करने में िगे रहें । घर के सभी कपड़े, पिे अच्छी िरह
से साफ रखने चादहए।
अर्ृ- पहिे के आचायों का मानना है कक उिमा, मध्यमा, अधमा, गखणका के साथ ही अधधक िाभ
को भी उिम, मध्यम िथा अधम ही समझना चादहए।
अर्ृ- आचायष वात्स्यायन के अनुसार िे श, समय, वैभव, सामर्थयष, अनुराग िथा िोकव्यवहार के
कारण से िाभ हमेशा नहीं होिा रह सकिा है । इसलिए धन-प्रधान वेश्याओं की जजस वत्तृ ि के बारे
में बिाया गया है वह कभी भी समान नहीं रह सकिी है ।
श्लोक-33. गम्यमन्यतो तनवारतयतुकामा सततमन्य्यामपितक
ुृ ामा वा अन्यां वा लाभतो
त्तवयुयुक्षमाणागम्यंसंसगाृदात्समनः ्र्ानं व्
व चिमायततमशभगम्यतां त मन्यमाना अनर्ृ प्रतीकारे वा
सािाय्चयमेनं कारतयतुकामा सतत्य वान्यम ् व्यलीकाचर्ृनी पूवोपकारमकवतशमव पश्यंती
केवलप्रीत्सयचर्ृनी वा कल्याणर्ु्िेरल्पमत्तप लाभं प्रततगि
व णीयात ्।।33।।
अर्ृ- मौके और आवश्यकिा के अनुसार कभी थोड़ा फायिा भी ग्रहण कर िेना चादहए। ककस
हािि िथा स्थान में वेश्या को थोड़ा िाभ ग्रहण करना चादहए, कह रहे हैं-
प्रेमी को ककसी िस
ू री गखणका के पास सेक्स के लिए जाने से रोकने में , या उसको फायिे से
वंधचि करने में , प्रेमी से संसगष से घर, मंदिर आदि कोई स्थान बनाने में , अपनी वद्
ृ धध करने में ,
अपना प्रभाव स्थात्तपि करने में , िस
ू रे प्रेलमयों को आकत्तर्षि करने के लिए, अपनी पसंि की कोई
वस्िु बनवाने में , या पहिे ककये गये उपकारी को भि
ू कर गरीब प्रेमी को अपराधी ठहराकर उसे
छोड़ने में िथा ककसी शभ
ु धचंिक आिमी को अपना प्रेमी बनाने में गखणका थोड़ा-बहुि िाभ भी
प्राप्ि कर सकिी है ।
अर्ृ- यदि भत्तवर्षय में वेश्या बड़ा फायिा िे खिी है और ऐसा करने में कोई त्तवशेर् परे शानी हो िो
प्रेमी से िुरंि ही कुछ नहीं िेना चादहए।
अर्ृ- राजा अथवा शासन से इसे धन की प्राजप्ि तनजश्चि होगी, या यह न्यायािय अथवा
अक्षपटि में कोई ऊंचे पि को प्राप्ि करे गा। इसे जीत्तवका समीप भत्तवर्षय में लमिेगी, व्यापाररक
चीजें बेचकर इसके जहाज अथवा िस
ू रे व्यापाररक वाहन शीघ्र ही वापस आने वािे हैं, उनकी
जमींिारी या जागीर की जमीन उपजाऊ हैं। इसकी खेिी पककर िैयार होने वािी है । यह कृिज्ञ
है , इससे संसगष करना हातनकारक होगा, यह गप्पी या धि
ू ष नहीं है , यह जो भी कहे गा, उसको पूरा
भी करे गा, इसी िरह अन्य प्रेलमयों में से ककसी एक से भत्तवर्षय में पूरा फायिा उठाने की इच्छा
िथा आशा रखकर गखणका उसकी सेवा उसकी पत्नी के समान करें ।
अर्ृ- इस त्तवर्य में प्राचीन श्िोक हैं- जजसको बड़ी कदठनाई से धन प्राप्ि हो, जो राजा को खश
44books.com ु
रखने के लिए क्रूर करिे हों, उनसे विषमान में अथवा भत्तवर्षय में ककिना भी धन प्राप्ि होने की
होने की आशा हो। िब भी वेश्या को ऐसे िोगों से िरू रखना चादहए।
अर्ृ- जजनको त्याग िे ने से िस ू रे अनथष की संभावना होिे हुए भी अपने अभ्युिय का उम्मीि हो
िो ऐसे प्रेलमयों से प्रयत्नपूवक
ष सेक्स करना चादहए।
अर्ृ- जो थोड़ी सी खश
ु ी प्राप्ि हो जाने पर अपना पूरा धन िे ने को िैयार रहिे हैं। वेश्या को इस
प्रकार के पुरुर्ों को अपना धन खचष करके लमिाना चादहए।
इस प्रकरण के अंिगषि वेश्याओं के उस त्तवशेर् धनिाभ की चचाष की गई है जजसे वे अनेक उपायों
से प्रेलमयों को फंसाकर प्राप्ि करिी हैं। शुरू में िीन प्रकार की वेश्याओं का उल्िेख ककया गया है -
1. एकपररग्रह 2. अनेकपररग्रह 3. अपररग्रह। जो स्िी एकचाररणी बनकर एक ही प्रेमी के पास रहने
िगिी है । वह एक पररग्रह, जो अनेक प्रेलमयों से सेक्स करके धन की प्राजप्ि करिी है । वह
अनेकपररग्रह, और जो ककसी से सम्बद्ध न होकर जो भी आिा है , उसी से सेक्स करके धन प्राप्ि
करिी है वह अपररग्रह वेश्या कहिािी है ।
कामशास्ि के अंिगषि वेश्याओं का शासन पर कोई भी तनयंिण प्रिीि नहीं होिा। वैलशक
अधधकरण में प्रेलमयों, वेश्यागालमयों को हर प्रकार से ठगने उन्हें मुड़ने की िथा तनुःसत्व हो जाने
पर धक्का िे कर तनकाि िे ने की, अपराध िांछन िगाकर उनकी सामाजजक बिनामी फैिाने की
पूरी छूट थी। राजा िथा अन्य राजपुरूर् भी कुछ त्तवशेर् वेश्याओं की दहमायि ककया करिे थे।
ककसी व्यजक्ि से उधचि धन प्राप्ि न होने पर अिािि में िावा करके प्राप्ि कर िेिी थी।
कौदटल्य अथषशास्ि के गखणकाध्यक्ष प्रकरण िथा कामसूि के वैलशक अधधकरण का िुिनात्मक
अध्ययन करने पर कुछ त्तवद्वानों की यह मान्यिा खत्म हो जािी है कक कौदटल्य िथा
वात्स्यायन एक ही थे। यह बाि सही है कक िोनों शास्िों की रचना पद्धति में साम्य है , िेककन
एक ही समय में एक ही आचायष द्वारा लिखे गये ग्रंथों में तनयम िथा त्तवधान िथा सामाजजक
िथा राजनीतिक परं पराओं में इिना वैर्म्य कथात्तप नहीं हो सकिा है ।
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आचायष कौदटल्य के समान ही कामसूिकारों ने भी उिम, मध्यम िथा अधमष िीन प्रकार की
वेश्याओं मानी है । िेककन लसद्धांि िथा उद्िे श्य अिग हैं। कौदटल्य के भेि राजाओं की पररचयाष
के लिए हैं। उनकी योग्यिा के अनुसार उन्हें अधधक और कम वेिन दिये जाने के हैं। िेककन
कामसूि के भेि अथोपाजषन िथा प्रेलमयों के साथ व्यवहार पर आधाररि है ।
ऐसा कहा जािा है कक जजस प्रकार मनुर्षय से उच्च िे विा व मनुर्षय से तनम्न यक्ष, गंधवष योतनयां
होिी हैं, उसी िरह मानवी स्िी से उच्च अप्सरा भी स्िी हो सकिी है , िेककन गखणका वेश्या को
स्िी योतन (जाति) से अिग एक योतन मान िेना िकष, बुद्धध िथा मानव त्तवज्ञान के खखिाफ है ।
ऐसा महसूस होिा है कक जजस प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य िथा शूि इन चार मुख्य वणों के
अंिगषि अनेक वणष माने जाने िगे हैं। उसी प्रकार नारी जाति के अंिगषि वेश्याओं को भी
जन्मना जाति स्वीकार ककया गया है । िेककन इसे सैधांतिक न मानकर व्यवहाररक माना जािा
है ।
वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में
भाग 6 वैशिकं
श्लोक-2. ते र्ु्चिदौर्ृल्यादततरागादत्सयशभमानादततदम्भादत्सयाजृवा-दततत्तवश्िासादतत-
क्रोिात्सप्रमादात्ससािमा्दै वयोगाश्ि ्युः।।2।।
अर्ृ- वे अनथष उनके अनुबंध िथा संशय, बेवकूफी से अधधक प्रेम करने से, अधधक गवष करने से,
तनहायि आसानी से, अधधक यकीन करने से, अधधक गुस्सा करने से, प्रमाि से, त्रबना सोचे-समझे
काम करने से िथा िे वयोग से वेश्याओं पर टूट पड़िे हैं।
अर्ृ- इनके बुरे पररणाम ये तनकििे हैं- धचककत्सा आदि में खचष ककया धन बेकार हो जािा है ।
नायक पर प्रभाव भी नहीं रह जािा है । िो धन प्राप्ि होिा है वह भी नहीं लमििा िथा संक्षक्षप्ि
धन भी तनकि जािा है । अक्सर आपस में किह के कारण मत्ृ यु भी हो जािी है । या गुस्से में
आया हुआ प्रेमी बािों को पकड़कर वेश्या को नीचे धगराकर मारिा है और हाथ-पैरों को िोड़ िे िा
है ।
अर्ृ- इस कारण से वेश्या को चादहए कक आरम्भ से ही बेवकूफी आदि को िरू करने की कोलशश
करें ।
अर्ृ- चारों ओर से उत्पत्ति हो िो यह समन्वि योग है । इन सभी के उिाहरण आगे दिये जाएंगे।
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अर्ृ- जजसके स्वरूप का त्तवचार ककया जा चक
ु ा है वह अथष त्रिवगष है , उसी के त्तवपरीि अनथष त्रिवगष
है ।
अर्ृ- प्रेमी के सभी गुणों से युक्ि उिम नायक के साथ सेक्स करने से वेश्या को शीघ्र ही उससे
धन की प्राजप्ि होिी है । इस कारण से वह वेश्या िस
ू रों के लिए आकर्षक चीज बन जािी है ।
इससे उसका प्रभाव बढ़ जािा है । उससे सेक्स करने के लिए िोग प्राथषना करिे हैं। इस िरह का
अथष िस
ू रे िरह के अथों से संबंधधि होने से अथाषनुबंध होिा है ।
श्लोक-14. लाभमात्रे क्यचिदन्य्य गमनं सोऽर्ो तनरनुर्ंिः14।।
अर्ृ- िाभ की दृजर्षट से ककसी भी सेक्स करना अनुबंध रदहि अथाषि ु् तनरनुबन्ध है ।
श्लोक-16. ्वेन व्ययेन िरू ्य मिामात्र्य प्रभवतो वा लब्ु ि्य गमनं तनष्फलमत्तप ।।16।।
अर्ृ- ककसी शूर-वीर अथवा प्रभावशािी, िोभी या राजमंिी के लिए स्वयं खचष करने पर भी
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प्रयोजन लसद्ध न हो िो िब भी मौके पर संकटों, अनथों के प्रतिकार के लिए और िोगों में प्रभाव
जमाने के लिए वह लमिना िाभिायक होिा है । एक प्रयोजन के न लसद्ध होने पर भी िस
ू रा
प्रयोजन िो लसद्ध हो ही जािा है ।
श्लोक-17. कदयृ्य सभ
ु गमातननः कवतघ्न्य वाततसंिानिील्य ्वैरत्तप व्ययै्तर्ारािनमंते
तनष्फलं सोऽनर्ों तनरनुर्ंिः।।17।।
अर्ृ- स्वयं को खब
ू सूरि समझने वािे िरु ाचारी, कृिघ्न प्रेमी से जब वेश्या अपना धन खचष कर
काफी खश
ु ामि करके सेक्स करािी है िो उसका धन िथा अनुराग तनर्षफि हो जािा है । ऐसा धन
अनथोतनरनुबंध होिा है ।
श्लोक-18. त्यैव राजवल्लभ्य क्रौयृप्रभावाचिक्य तर्ैवारािनमंते तनष्फलं तनष्कासनं ि दोषकरं
सोऽनर्ाृनुर्ंिः।।18।।
अर्ृ- उसी प्रकार क्रूर राजपुरूर् अथवा राज्याधधकारी के साथ सेक्स करना भी तनर्षफि होिा है
िथा उसे तनकाि िे ना भी काफी बड़ी गििी है । इसलिए िस
ू रे अनथों को साथ लिए यह
अनथोऽनुबंध है ।
अर्ृ- इस िरह धमष िथा काम के अनुबंधों की योजना बना िेनी चादहए।
श्लोक-20. पर्परे ण ि यत
ु तया संककरे देत्सयनर्
ु ंिाः।।20।।
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अर्ृ- राजी हो जाने के बाि भी िे गा अथवा नहीं, इस िरह के संिेश को अथषसंशय के नाम से
जाना जािा है ।
श्लोक-22. तनष्पीडितार्ृमफलमत्सु सज
व न्त्सया अर्ृमलभमानाया िमृः ्यात्र वेतत िमृसंियः।।22।।
अर्ृ- वेश्या ने जजस प्रेमी को अपने जाि में फंसाकर सारा धन िे लिया हो और उससे धन न
लमिने से उसे त्याग िे ने को उद्यि हो िो उसका इस प्रकार त्याग करना वेश्या का धमष होगा
अथवा नहीं।
श्लोक-23. अशभप्रेतमुपलभ्य पररिारकमन्यं वा क्षुद्रं गत्सवा कामः ्यात्र वेतत कामसंियः।।23।।
अर्ृ- इजच्छि प्रेमी को पाकर वेश्या जब आत्मीय सेवक अथवा ककसी तनम्न व्यजक्ि के पास
जाकर यह शक करिी है कक काम होगा अथवा नहीं, वेश्या का यही सोचना काम-संशय है ।
अर्ृ- सेक्स करने के लिए इच्छुक धनहीन प्रेमी को सारहीन समझकर छोड़ िे ना चादहए। कफर यह
न सोचना कक कभी वह त्तवयोगी मर जाएगा िो अधमष होगा। अथवा नहीं- इस प्रकार सोचना
अधमषसंशय है ।
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अर्ृ- सेक्स कक्रया से िुःु खी वेश्या अपने मनचाहे प्रेमी को न पाकर अपनी काम-व्यथा की शजक्ि
के लिए जब िड़पिी है िो उस समय उसे त्तवरोग होना अथवा नहीं यही द्वेर् का संशय है । शुद्ध
संशय समाप्ि होिे हैं।
अर्ृ- आधश्ि प्रेमी अथवा प्रभावशािी प्रेमी की उपजस्थति में यदि अपररधचि व्यजक्ि लमिने के
लिए आिा है िो वेश्या के सामने संशय की जस्थति होिी है कक वह उस व्यजक्ि से सेक्स करे
अथवा न करे ।
अर्ृ- प्रेलमका को िे खकर श्ेतयि, ब्रह्मचारी, िीक्षक्षि, व्रिी, साध-ु संयासी अथवा मरने की इच्छा रखने
वािे िोगों के साथ िोस्िों के कहने पर अथवा अपनी ियािुिा के कारण से सेक्स करना धमष
होगा अथवा अधमष- यह संिेह धमाषधमष संकीणष है ।
अर्ृ- जो आपस में लमििे समय संशय हो वह संकीणष है । संकीणष संशय पूरे होिे हैं।
अर्ृ- ककसी िस
ू रे प्रेमी के साथ धन िेकर सेक्स करने से वेश्या पर आकत्तर्षि प्रेमी भी िस
ू रे नायक
का संबंध त्तवच्छे ि करने के लिए धन िे िे िा है िो िोनों ओर से धन का योग होने से यह
उभयिोऽथषयोग कहिािा है ।
श्लोक-33. यत्र ्वेन व्ययेन तनष्फलमशभगमनं सतताछिमत्तषृता्त्तविप्रत्सयादानं स
उभयतोऽनर्ृः।।33।।
अर्ृ- अपना धन खचष करके भी वेश्या जजस प्रेमी से सेक्स करिी है िथा उसे कुछ भी नहीं
लमििा है और रुर्षट प्रेमी से उसके दिये गये धन के तछन जाने का डर भी बना रहिा है िो उसे
उभयिोऽनथष कहिे हैं।
अर्ृ- जजसके साथ सेक्स करने से वेश्या को धन की प्राजप्ि होिी है या नहीं यह संिेह हो, धनहीन
आसक्ि संघर्ष में पड़कर धन िे गा अथवा नहीं- िोनों ओर से ऐसा शक होने पर उभयोिोथषसंशय
होिा है ।
अर्ृ- ककसी िस
ू रे प्रेमी के साथ धन िेकर सेक्स करने से वेश्या पर मोदहि प्रेमी भी िस
ू रे नायक
का संबंध त्तवच्छे ि करने के लिए धन िे िा है िो िोनों ओर से धन का योग होने से यह
उभ्यिोऽथष कहिािा है ।
श्लोक-36. र्ाभ्रवीया्तु।।36।।
अर्ृ- और बाभ्रवीयास्िु सम्प्रिाय के आचायष िो इन संशयों को जजस प्रकार का कहिे हैं। वैसा
सुनिे भी हैं।
श्लोक-37. यत्राशभगमनेऽर्ोनशभगमने ि सततादर्ृः स उभयतोऽर्ृः।।37।।
अर्ृ- जजस उभयिोयोग में वेश्या अपने पहिे के प्रेमी से त्रबना सेक्स ककये ही िस
ू रे के साथ सेक्स
करके धन प्राप्ि कर िे िथा बाि में पुराने प्रेमी को खश
ु करके उससे भी धन प्राप्ि कर िे िो
यह उभयिोऽथष कहिािा है ।
अर्ृ- जजस सेक्स में बेकार ही खचष हो और सेक्स न करने से अतनवायष संकट उपजस्थि होने का
डर हो और सेक्स करने पर पुराना प्रेमी गुस्से में आकर कुछ अनथष कर बैठे िो यह उभयिोऽनथष
होिा है ।
अर्ृ- अपना धन खचष कर िे ने पर भी जजससे सेक्स करने में यह संिेह हो कक पहिा प्रेमी जो
प्रभावशािी है इसके साथ सेक्स करने पर गुस्से में आकर कहीं लमिना बंि न कर िे और न
लमिने पर यह गुस्से से कुछ अनथष करे गा अथवा नहीं इस प्रकार का संिेह उभयिोऽनथष संशय है ।
श्लोक-41. एतेषामेव व्यततकरे ऽन्तोर्ोऽन्यतोऽनर्ृः, अन्यतोऽर्ोऽन्योतोऽर्ृसंियः
अन्यतोऽर्ोऽन्यतोऽनर्ृसंियः इतत ष्सकीणृयोगाः।।41।।
अर्ृ- संयोग से इन्हीं के बारे में एक-एक के 6 संकीणष योग बनिे हैं। एक से अथष एक से अनथष,
एक से अथष एक से अथषसंशय औऱ एक से अथष एक से अनथष संशय- ये िीन श्वेिकेिु के मि से
और िीन ही बाभ्रवीय मि से िोनों लमिाकर 6 हो जािे हैं। र्टं संकीणष योग समाप्ि होिा है ।
अर्ृ- इनमें से इनके सहायिाकारों के साथ त्तवचार करके इससे अधधक अथष वािा संशय हो या
जजसमें महान अनथष की शजक्ि हो, उसी के साथ प्रवि
ृ होना चादहए।
श्लोक-44. संभय
ू ि त्तवटाः पररगि
व णन्त्सयेकामसौ गोष्ठीपररग्रिः।।44।।
अर्ृ- ककसी एक वेश्या के साथ जब एक से अधधक त्तवट लमिकर सेक्स करिे हैं िो उसे गोर्षठी
पररग्रह कहिे हैं।
अर्ृ- गोर्षठी पररग्रह करने वािी वेश्या इधर-उधर लमिकर अपने लमिने-जुिने वािों से संघर्ष
कराकर उनसे धन प्राप्ि कर िे।
श्लोक-46. सुवसंतकाहदषु ि योगे यो मे इमममुं ि संपादतयष्यतत त्या्य गशमष्यतत मे दहु ितेतत
मात्रा वाियेत ्।।46।।
अर्ृ- वेश्या की मां उसके प्रेलमयों के पास संिेश भेज िे कक सुवसंिक, कौमुिी महोत्सव, महन
महोत्सव आदि तनकट आने वािे उत्सव में मेरी पुिी उसी के साथ सेक्स करे गी, जो इन चीजों को
सबसे पहिे उसे िे गा।
अर्ृ- उस मौके पर वहां जब प्रेमी िोग प्रेलमका से लमिने के लिए आपस में संघर्ष करने िगें उस
समय वह अपना िक्ष्य अधधक िाभ पर ही रखे।
श्लोक-49. अर्ृसंियमनर्ृसंियं ि पव
ू व
ृ ्योजयेत ्। संककरे छि तर्ा िमृकामावत्तप।
इत्सयर्ाृनर्ाृनर्
ु ंिसंियत्तविाराः।।49।।
अर्ृ- सबसे पहिे अथष संशय िथा अनथष संशय की योजना बनानी चादहए। इसके साथ ही संकीणष
को भी जान िेना चादहए। इसी िरह धमष िथा काम के समन्िोयोग समझने चादहए।
अर्ृ- वेश्याएं कुम्भिासी, पररचाररका, कुल्टा, स्वैररणी, नटी, लशल्पकाररका, प्रकाश, त्तवनर्षटा, रूपाजीवा
िथा गखणका आदि प्रकार की होिी हैं।
श्लोक-51. सवाृसां िानुरूपेण गम्याः सिाया्तुदप
ु रञ्जनमर्ाृगमोपाया तनष्कासनं पुनः संिानं
लाभत्तविेषानुर्ंिा अर्ाृनर्ाृनुर्ंिसंियत्तविाराश्िेतत वैशिकम ्।।51।।
अर्ृ- उपयक्
ुष ि सूि में जजिनी प्रकार की वेश्याओं के बारे में बिाया गया है उिने ही प्रकार के
उनसे सेक्स करने के लिए आने वािे भी होिे हैं। इस वैलशक अधधकरण में वेश्याएं, वेश्याओं के
प्रेमी, उनके सहायक अनुरुक्ि करने के उपाय, धन खींचने के उपाय, प्रेमी को तनकािने का िरीका
िथा तनकािकर कफर लमिाने का िरीका, िाभ त्तवशेर् अथष, अनथष, अनुबंध िथा संशय त्तवचार
मुख्यिया इन्हीं के बारे में वणषन ककया गया है ।
श्लोक-53 संतत रागपरा नायृः संतत िार्ृपरा अत्तप। प्राततत्र वणणृतो रागो वेश्यायोगाश्ि
वैशिके।।53।।
अर्ृ- अनेक औरिें त्तवशुद्ध अनुराधगणी होिी हैं, बहुि सी औरिें सेक्स के साथ धन की भी इच्छा
रखिी हैं। त्तवशुद्ध अनुराधगणी जस्ियों का वणषन प्रारम्भ में ही ककया जा चुका है और जो औरिे
रति राग के साथ अथष की भी कामना करिी हैं। उनका उल्िेख इस प्रकरण में ककया जा रहा है ।