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Kamsutra 3
Kamsutra 3
भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक
श्लोक-1. सवणाायामनन्यपव
ू ाायां शा्त्रतोऽधधगतायां धमोऽर्ाः पुत्राः संबंधः पक्षवद्
ृ धधरनुप्कृता
रततश्च।।1।।
अर्ा- कन्या की शादी का विधान बताते हुए िात्स्यायन कहते हैं- कक जो यि ु क अपनी ही
जातत की यि ु ती के साथ शा्रों के तनयम के अनस ु ार वििाह करता है , उसे बबना ककसी कष्ट
के धमम, धन और पर
ु की प्राप्तत होती है । ऐसे परू
ु ष को पत्सनी से बेहद तयार ममलता है , उसकी
सेक्स पॉिर बढ़ती है और सेक्स का भरपूर आनन्द ममलता है ।
अर्ा- शा्रों में कहा गया है कक युिक को ऐसी लड़की से शादी करनी चाहहए जो उसकी
जातत की हो और उसमें उस जातत के सभी गुण मौजूद हों, माता-वपता का साथ हो, लड़की
उससे तीन साल छोटी हो, सुशील-शलीन बतामि करने िाली हो, अमीर घर की हो, प्जसका
पररिार प्रततप्ष्ित और लोकवप्रय हो, प्जसके ररश्तेदार भी ऐसे ही हो, माता-वपता के अलािा घर
में अन्य सद्य भी हो और उनमें गहरा प्रेम हो, जो लड़की ्ियं शील ि सन्
ु दरता संपन्न हो
प्जसके दांत, नाखन
ू , कान, बाल, आंखे, ्तन न बहुत बड़े हो और न ही बहुत छोटे ।
श्लोक-3. यां गि
ृ ीत्सवा कृततनमात्समानं मन्येत न च समानैतनान्द्येत त्यां रववृ िररतत
घोटकमुखः।।3।।
अर्ा- आचायम घोटकमुख कहते हैं कक प्जस कन्या से शादी करके पुरूष अपने को धन्य समझे
और प्जससे शादी करने पर सदाचारी ममरगण तारीफ करें , बुराई न करें , ऐसे ही लड़की से
शादी करनी चाहहए।
श्लोक-4. त्या वरणे मातावपतरौ संबंधधनश्र्च रयतेरन ्। भमत्सत्राणण च
गि
ृ ीतवाक्यान्यभयसंबद्धातन।।4।।
अर्ा- इस तरह के गुणों से सम्पन्न कन्या को वििाह के मलए माता-वपता तथा सगे-संबंधधयों
को कोमशश करनी चाहहए। दोनों तरफ के दो्तों को भी इस संबंध को बनाने के मलए कोमशश
करनी चाहहए।
अर्ा- ज्यादातर दो्तों की यही प्रिवृ ि होती है कक िे अपने दो्त की कुलीनता, उसके पौरूष,
शील आहद की तारीफ करते हैं और लड़की के घर िालों से उसके कायम और गण
ु ों के बारे में
बताते हैं। िे अपने दो्त से उन्हीं के प्रत्सयक्ष तथा आगामी गण
ु ों का बखान करते हैं प्जन्हें
लड़की की मां और घर िाले पसंद करते हैं।
अर्ा- मां के पास भेजे जाने िाले व्यप्क्त को चाहहए कक लड़की की मां को लड़के के बारे में
बढ़ा-चढ़ा कर कहें । उसे कहें कक आप अपनी लड़की की शादी प्जस लड़के से करना चाहते हैं
िह लड़का आपकी लड़की के मलए बबल्कुल िीक है । उसकी मां को समझाते हुए कहे कक
आपको अपनी लड़की की शादी उसी लड़के से करना चाहहए क्योंकक िही लड़का आपकी लड़की
के मलए अच्छा जीिन साथी बन सकता है।
श्लोक-8. दै वतनभमिशकुनोपश्रुत नामानुलोम्प्येन कन्यां वरयेद्दद्याच्चा।।8।।
अर्ा- लड़के को ऐसी लड़की से शादी नहीं करनी चाहहए जो अधधक सोती है , झगड़ालू हो,
जल्दी रोने िाली हो, अधधक घूमने िाली हो और पररिार में झगड़ा कराने िाली हो।
अर्ा- ऐसी लड़की के साथ शादी नहीं करनी चाहहए प्जसके नाम भद्दे ि अटपटे हो। ऐसी
लड़की प्जसे लोगों के बीच बैिना अच्छा नहीं लगता, अकेली रहना पसंद करती है , भरू े बाल
हो, सफेद दाग हो, बड़ी तनतम्ब (हीतस) हों, गदम न झुकी हो, प्जसका शरीर परू
ु ष के समान तगड़ा
एिं हष्ट-पष्ु ट हो, मसर में कम बाल हो, प्जसमें लज्जा ि शमम का भाि न हो, गंग
ू ी हो, प्जसे
बचपन से जानते हो, परू ी तरह यि
ु ती नहीं हुई हो, प्जसके हाथ-पैर पसीजते हो आहद। इस
तरह के अिगुणों िाली लड़की के साथ शादी नहीं करनी चाहहए।
अर्ा- ऐसी लड़की से भी शादी नहीं करनी चाहहए प्जसका नाम नक्षर, नदी या पेड़ के नाम पर
हो। प्जसके नाम के अंत में ‘ल’ या ‘र’ अक्षर हो उससे भी शादी नहीं करनी चाहहए।
श्लोक-13. य्यां मनश्र्चक्षुर्ोतनाबन्ध्त्यामद्
ृ धधः। नेतरामाहियेत। इत्सयेके।।13।।
अर्ा- कुछ ज्योततष शा्रों का कहना है कक प्जस लड़की से लड़के की आंखे और मन ममल
जाए उससे वििाह करने में सुख और आनन्द की िद्
ृ धध होती है । यहद शादी करने िाली
लड़की से मन और आंखें न ममलती हो तो उस लड़की से शादी नहीं करनी चाहहए।
अर्ा- माता-वपता को चाहहए कक िह अपनी लड़की को अच्छे ि्र पहनाकर, आभूषण पहना
कर और साज-सिांर कर लड़के और उसके पररिार िाले को हदखाएं।
श्लोक-17. दै वं परीक्षणं चावधधं ्र्ापयेयुः। आ रदानतनश्र्चयात ्।।17।।
अर्ा- लड़की के माता-वपता को चाहहए कक लड़के से शादी तय करने से पहले अपने ररश्तेदार,
दो्तों से सलाह लेने के मलए लड़के के माता-वपता से समय मांगे। इसके बाद लड़के के
पररिार के बार में जब सब कुछ पता लग जाए और अपने बराबर का लगे तो ही उससे
अपनी लड़की की शादी तय करनी चाहहए।
अर्ा- अगर ्नान आहद के मलए िरण करने िाले अनरु ोध करें तो उसी रोज ्िीकार न करें ।
उनसे मसफम इतना कह दें कक दे खखए सब कुछ सही समय पर हो जाएगा।
अर्ा- भारतीय सं्कृतत के मुताबबक चार प्रकार की शाहदयां होती हैं- ब्राह्म, प्राजापत्सय, आषम
तथा दै ि। इन चारों में से ककसी भी एक के द्िारा शा्रों के अनुसार लड़की के साथ शादी
कर लेनी चाहहए।
अर्ा- लड़की को अपने समान उम्र के लड़के के साथ खेलना चाहहए, समान उम्र के लड़के के
साथ दो्ती करनी चाहहए और यि
ु ती होने पर योग्य ि समान उम्र िाले के साथ ही वििाह
करना चाहहए। अधधक उम्र के लड़कों के साथ दो्ती और अधधक उम्र के पुरूष के साथ
वििाह नहीं करना चाहहए।
श्लोक-21. कन्यां गि
ृ ीत्सवा वतेत रेष्यवद्यत्र नायकः। तं ववद्यादच्
ु चसंबंधं पररत्सयक्तं
मनह््वभभः।।21।।
अर्ा- लड़के को अपने समान हैमसयत िाले लड़की के साथ ही शादी करनी चाहहए क्योंकक जो
पैसे या अन्य लालच िश अपने से अधधक अमीर लड़की से शादी करता है उसके साथ नौकर
के समान व्यिहार ककया जाता है। ककसी छोटे घर के लड़के को बड़े घर की लड़की या ककसी
छोटे घर की लड़की को अधधक बड़े घर के लड़के के साथ शादी नहीं करनी चाहहए। इस तरह
के संबंधों को उच्च संबंध कहा जाता है । अक्सर बद्
ु धधमान लोग इस तरह का संबंध कभी
नहीं करते।
अर्ा- अपने से ऊंचा संबंध ्थावपत करने पर अपने ररश्तेदारों से दबना पड़ता है , उनके सामने
झुकना पड़ता है। हीन संबंध को भी सज्जन लोग बुरा मानते हैं।
िात्स्यायन वििाहहक जीिन को तरजीह दे ता है । उसने उन्मुक्त सहिास ि उच्छृंखल
कामुकिवृ ियों तथा व्यमभचार का तनरोध करने के मलए कन्यािरण का विधान शा्र विधध से
तथा सजातीय में धमम, अथम की िद्
ृ धध के मलए शादी करने के मलए बताया है ।
कामना से प्रिि
ृ ब्राह्मण के चारों िणम, क्षबरय के ब्राह्माण के अलािा तीन िणम, िैश्य के
दो िणम तथा शद्र
ू के एक िणम की कन्या से वििाह करना चाहहए। लेककन मनु के इस तनयम
का खण्डन करते हुए याज्ञिल्क्य कहते हैं कक नैतन्मम मतम यह विधान मझ ु े ्िीकार नहीं
है, क्योंकक श्रतु त का कहना है कक तज्जाया जाया भितत यदन्यां जायते पन
ु ः जाया िहीं कही
जा सकती है प्जसमें पतत पर
ु रूप से पन
ु ः उत्सपन्न हो।
लेककन िात्स्यायन यहां पर काम्य वििाह का समथमन नहीं करते हैं। िह रक्त-शद्
ु धध
का पूरा ख्याल रखते हुए शा्र और धमम सम्मत वििाह का ही समथमन करता है। यहां पर
िह रतत की तप्ृ तत धामममक बुद्धध से करने का पक्षपात करता है ।
वििाह के संबंध में सािधान करते हुए कहते हैं कक ‘कान्याभमभ जनोपेता’ अपनी जातत
के गुणों से सम्पन्न लड़की से शादी करनी चाहहए। इसके अततररक्त लड़की अनाथ न हो और
दरू -दरू तक उसके िंश के ररश्तेदार फैले हों। इस तरह के पररिार िालों में शादी करने से
कभी धोखा नहीं हो सकता है। िात्स्यायन के मत से समान जातत की कन्या के साथ वििाह
कर लेना चाहहए जो उम्र में छोटी हो और मन, िचन, कमम से उसका कौमायम भंग न हुआ हो।
इस विषय में िात्स्यायन तकम प्र्तुत करते हुए कहते हैं कक जैसे बाजार में लोग
खरीदने योग्य ि्तु को अच्छी तरह दे खे बबना नहीं खरीदते हैं, उसी तरह लड़की के साथ
वििाह भी बबना सही प्रकार से दे खे बबना नहीं ककया जा सकता।
आचायम िात्स्यायन के इस कथन से उसके समय के समाज तथा वििाह प्रथा पर
प्रकाश पड़ता है । ऐसा अनुभि होता है कक िात्स्यायन के समय में ्ियंिर की प्रथा बन्द सी
हो गयी थी, लड़ककयों की शादी ककसी बहाने से उन्हें हदखाकर करने की प्रथा चल पड़ी थी।
हमारे दे श में प्राचीन समय से ही लड़ककयों की शाहदयां काफी अतनयंबरत माहौल में होती रही
हैं। ्ियंिर की प्रथा काफी पुरानी है । ऋग्िेद के अनुसार पहले युिततयां ितनतामभलाषा युिकों
की प्राथमना पर उन्हें पतत के रूप में ्िीकार कर मलया करती थी।
इस बात से साबबत होता है कक इससे पहले ककसी समय में लड़ककयां भी एकर हुआ
करती रही होंगी। िहां अनेक तरह के खेल तमाशे होते थे। इसी मौके पर आपस में प्रेम
संबंध, वििाह संबंध प््थर होता हैं। िह मानता है कक खेल, वििाह तथा ममरता बराबर िालों से
ही करनी चाहहए। न तो अपने से ऊंचे और न अपने से नीचे लोगों से।
इस प्रकार िैिाहहक जीिन सख
ु ी नहीं बन पाता है । इसमलए लड़के-लड़की की शादी
विद्या, विि और कुल दे खकर करनी चाहहए।
इतत श्रीिात्स्यायनीये कामसर
ू े सांप्रयोधगके तत
ृ ीयेऽधधकरणे िरणविधानं संबंधतनश्र्चयश्र्च
प्रथमोऽध्यायः।।
वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में
भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक
अर्ा- यि
ु क-यि
ु ती की शादी हो जाने के बाद पतत-पत्सनी को शादी के तीन रात तक जमीन पर
साधारण वि्तर पर सोना चाहहए और पतत-पत्सनी दोनों को ब्रह्मचयम व्रत का पालन करना
चाहहए। भोजन में रसयक्
ु त पदाथम तथा नमकीन चीजों का सेिन नहीं करना चाहहए। पतत-पत्सनी
दोनों को एक सतताह तक मंगल ्नान करना चाहहए और उसे ि्र आभूषणों से सज-सिंर
कर रहना चाहहए। दोनों को भोजन आहद में साथ रहना चाहहए। अपनों से बड़ों का आदर और
सम्मान करना चाहहए। शादी के बाद पतत-पत्सनी के मलए बनाए गए यह तनयम चारों िणम के
मलए हैः- ब्राह्मण, क्षबरय, िैश्य तथा शूद्र।
अर्ा- शादी के बाद पतत को चाहहए कक िह अपनी पत्सनी को रात के एकांत ्थान पर कोमल
उपहारों द्िारा अपनी ओर आकवषमत करें ।
अर्ा- बाभ्रिीय आचायों का कहना है कक शादी के पहले तीन रातों में अगर पतत यहद पत्सनी से
बाते न करें , उसे ्पशम न करें , उसे प्रेम भरी तनगाहों से न दे खें और चुप-चाप कमरे में पड़ा रहे
तो इससे पत्सनी दख
ु ी हो जाती है और पतत को नपुंसक मानने लगती है। उसके मन में अपने
पतत के प्रतत सम्मान की भािना भी कम होने लगती है।
श्लोक-4. उपरमेत वव्त्रम्प्भयेच्च, न तु ब्रणमचयामततवतेत। इतत वात्स्यायनः।।4।।
अर्ा- िात्स्यायन अपने कामसूर में मलखते हैं कक शादी के पहले तीन रातों में पतत यहद पत्सनी
के प्रतत तयार का प्रदशमन करता है तो पत्सनी के मन में सम्मान और विश्िास बढ़ता है। लेककन
पतत को अपने पत्सनी के बीच ब्रह्मचयम का तीन रातों तक पालन करते रहना चाहहए।
अर्ा- शादी के तीन रात पत्सनी के साथ प्रेम प्रदशमन करने के क्रम में पत्सनी को जबरद्ती
चुंबन और आमलंगन नहीं करना चाहहए।
श्लोक-6. कुसम
ु सधमााणण हि योवर्तः सक
ु ु मारोपरमाः। ता्त्सवनधधगतववश्वासैः
रसभमप
ु रम्प्यमाणाः संरयागद्वेवर्णयो भवह्न्त। त्मात्ससाम्प्नैवोपचरे त ्।।6।।
अर्ा- ्री फूल के समान कोमल और नाजुक होती है। इसमलए उसके साथ बड़े तयार और
कोमलता से व्यिहार करना चाहहए। पतत को तब तक अपनी पत्सनी के साथ जबरद्ती चुंबन
या आमलंगन नहीं करना चाहहए जब तक उसके हदल में पूणम विश्िास न बन जाए। शादी के
बाद पतत-पत्सनी दोनों को एक-दस
ू रे को समझना चाहहए क्योंकक जब तक पत्सनी को अपने पतत
पर यकीन न हो जाए तब उसके साथ कोई भी काम करना बलात्सकार ही होता है और इससे
पत्सनी सेक्स से धचढ़ जाती है। अतः पतत को पत्सनी के सहमतत और इच्छा होने पर ही
अमलंगन, चुंबन और सेक्स संबंध बनाना चाहहए।
अर्ा- सेक्स संबंध के मलए पत्सनी से तयार से बाते करें , धीरे -धीरे उसके अंगों को ्पशम करके
उसे इसके मलए तैयार करना चाहहए और जैसे ही मौका ममले या उसकी सहमती ममले िैसे ही
उसके अंगों को मशधथल करके आमलंगन करना चाहहए।
श्लोक-8. तह्त्सरयेणाभलंगनेनाचररतेन नाततकाल्वात ्।।8।।
अर्ा- इस तरह मौका ममलने पर बड़े तयार के साथ ्री को आमलंगन करना चाहहए और सेक्स
संिंध बनाना चाहहए लेककन ज्यादा दे र तक आमलंगन नहीं करना चाहहए।
श्लोक-9. पव
ू क
ा ायेण चोपरमेत ्। ववर्णयत्सवात ्।।9।।
अर्ा- शुरुआत में पत्सनी से ज्यादा पररचय न होने की िजह से आमलंगन छाती से ऊपरी अंगों
का करना चाहहए, नामभ आहद नीचे के अंगों का नहीं।
अर्ा- आमलंगन करने के बाद जब दोनों के मन से लाज और संकोच दरू हो जाए तो पतत को
चाहहए कक िह अपने मुंह में एक पान रखें और एक पान पत्सनी को खाने को दें । यहद िह पान
लेने से इंकार करे तो उसे बड़े तयार से अनुरोध करें और पान लेने के मलए कहें । यहद इससे
भी िह पान लेने से मना करे तो उसके पैर में धगरकर उसे पान खाने का अनुरोध करें ।
श्लोक-12. तद्दानरसंगेण मद
ृ ु ववशदमकािलम्याश्चुम्प्बनम ्।।12।।
अर्ा- जब पत्सनी पान लेने के मलए तैयार हो जाए तो तयार से उसे पान दे ते हुए चुंबन करें ।
श्लोक-13. तत्र भसद्धामालापयेत ्।।13।।
अर्ा- यहद चुंबन लेने पर चेहरा खखल उिे और होिों पर मु्कुराहट फैल जाए तो समझना
चाहहए कक उसे अच्छा लगा है। इसके बाद उससे बाते करें ।
अर्ा- पत्सनी से बाते करते हुए यहद ऐसा महसूस हो कक पत्सनी उसकी बातों में हदलच्पी ले रही
है तो बीच में ककसी अन्जान की तरह थोड़े से शब्दों में कुछ पछ
ू े।
अर्ा- यहद पत्सनी उस सिालों के अथम न बता पाए या जिाब न दे तो उससे तयार के साथ
यह बार-बार पूछे।
श्लोक-17. सवाा एवं कक कन्याः पुरुर्ेन रयुज्यमानं वचनं ववपिन्ते। न तु लघुभमश्रामवप वाचं
वदह्न्द। इतत घोटकमुखः।।17।।
अर्ा- आचायम घोटकमुख के अनुसार सभी निवििाहहत लड़ककयां पुरूष की हर बात को खामोशी
से सुनती जाती है लेककन ककसी भी प्रकार का कोई जिाब नहीं दे ती।
श्लोक-18. तनबाध्यमाना तु भशरःकम्प्पेन रततवचनातन योजयेत ्। कलिे तु न भशरः
कम्प्पयेत ्।।18।।
अर्ा- पतत के पूछने पर निवििाहहत लड़ककयां अक्सर हां या न में जिाब दे ती हैं। यहद पूछने
पर िह कोई जिाब न दें तो उस पर क्रोधधत नहीं होना चाहहए क्योंकक उसके बाद िह कोई
जबाि भी नहीं दे ती।
श्लोक-19. इच्छभस मां नेच्छभस वा ककं तेऽिं रुधचतो न न रुधचतो वेतत पष्ृ टा धचरं ह््र्त्सवा
तनबाध्यमाना तदानक
ु ू ल्येन भशराः कम्प्पयेय ्। रपञ्च्यमाना तु वववदे त ्।।19।।
अर्ा- तुम मुझे चाहती हो या नहीं, मैं तुम्हें पसन्द हूं या नहीं। इस तरह पूछे जाने पर पत्सनी
दे र तक चुप रहकर कफर मसर हहलाकर अनुकूल जिाब दे ती है तथा यहद क्रोधधत हुई तो झगड़
पड़ती है।
अर्ा- पतत-पत्सनी से बाते करने के मलए पत्सनी को सहे ली का सहारा लेना चाहहए। पतत जब कुछ
कहता है तो उसे सुनकर पत्सनी नीचे मुंह करके हंसती है। पतत की बात सुनकर पत्सनी अपनी
सहे ली को धमकायेगी कक तू िहुत िकिास करने लगी है , इस तरह से उसके साथ वििाद
करे गी। सहे ली भी उसका मजाक उड़ाने के मलए उसके पतत से झि
ू -मि
ू बोलेगी कक मेरी सहे ली
आप से यह कह रही है। इधर अपनी सहे ली से कहे गी कक तम्
ु हारा पतत यह कह रहा है , तू क्यों
नहीं बोलती। इस तरह पतत तथा सहे ली से तंग आकर पत्सनी दबे शब्दों में कहती है कक तम
ु
मझ ु े तंग करोगी तो मैं नहीं बोलंग
ू ी। साथ ही पतत की तरफ म्
ु कुराती हुई ततरछी नजरों से
दे खती है। इस तरह दोनों के बीच जो बातचीत शुरू होती है िह पतत-पत्सनी की पहली बातचीत
होती है।
श्लोक-21. एवं जातपररचय चातनवादन्त तत्ससम पे याधचतं ताम्प्बूलं ववलेपनं ्त्रजं तनदध्यात।
उिरीये वा्य तनबध्य यात ्।।21।।
अर्ा- इस तरह आपस में पतत-पत्सनी के बीच पररचय हो जाने पर पत्सनी को चाहहए कक िह
बबना कुछ बोले पतत के पास खामोश से पान, चन्दन तथा माला रख दें ।
श्लोक-22. तर्ायक्
ु तामाच्छुररतकेन ्तनमक
ु ु लयोरुपरर ्पश
ृ ेत ्।।22।।
अर्ा- जब पत्सनी आपके पास पान, चन्दन तथा माला रख रही हो तो पतत को चाहहए कक िह
पत्सनी के ्तनों की घुप्ण्डयों को तयार से ्पशम करें ।
अर्ा- यहद पत्सनी ्तनों को ्पशम करने से रोकती है तो उससे बोलना चाहहए कक तुम मेरे
शरीर को ्पशम या आमलंगन करो मैं कुछ नहीं कहूंगा। इसके बाद पत्सनी का आमलंगन करें और
अपने हाथ को ्तनों से सहलाते हुए नामभ के नीचे तक फैलाएं और कफर हटा लें। इसके बाद
पत्सनी को अपनी गोद में बैिने को कहें और कफर धीरे -धीरे आगे की कक्रया करें । यहद पत्सनी
गोद में बैिने या यह सब करने से मना करे तो उसे बातों से भयभीत भी करा दे ना चाहहए।
अर्ा- पत्सनी जब छोड़छाड़ या अंगों को ्पशम करने से मना करे तो उससे कहे कक मैं तम्
ु हारे
होिों पर दांतों के तनशान कर दं ग
ू ा, ्तनों पर नाखन
ू गड़ा दं ग
ू ा, अपने अंगों में ्ियं नाखन
ू
लगाकर तेरी सहे मलयों से कहूंगा कक तम्
ु हारी सहे ली ने ये घाि कर हदए हैं। तब बता तू क्या
करे गी? इस तरह बच्चों की तरह डरा-धमकाकर धीरे -धीरे पत्सनी को मनचाहे काम में लगा ले।
श्लोक-25. द्ववत य्यां तत
ृ य्यां च रात्रौ ककञ्चदधधकं वव्त्रह्म्प्भतां ि्तेन योजयेत ्।।25।।
अर्ा- इस तरह पहली रात में पतत को अपने पत्सनी के मन में विश्िास बनाना चाहहए और कफर
दस
ू री-तीसरी रात उसकी जांघों पर हाथ फेरना शुरू कर दे ना चाहहए।
अर्ा- जांघों आहद पर हाथ फेरने पर जब ्री कुछ न बोले तो धीरे -धीरे सभी अंगों को
सहलाना चाहहए और चुंबन करना चाहहए।
अर्ा- जब पत्सनी ्पशम से आनन्द महसूस करने लगे तो धीरे -धीरे जांघों के ऊपर हाथ रखकर
हाथ फेरना आरम्भ कर दें । जांघों के ऊपर हाथ रखकर ऊपर नीचे हाथों से सहलाने के बाद
जांघों के जोड़ में हाथ ले आए। कभी पत्सनी ऐसा करने से रोके तो कहे कक ऐसा करने में क्या
जाता है । जांघों को सहलाने के साथ ही आमलंगन तथा चुम्बन करते हुए उसे बेचैन बनाना
चाहहए। बीच-बीच में सहलाना बन्द कर दे ना चाहहए। जब जांघों को सहलाते हुए ्री ककसी
तरह का तनषेध न करके उसमें रुधच लेने लगे तब आहह्ता से उसके गुततांग तक हाथ पहुंचा
दे ना चाहहए।
अर्ा- कफर कमर की करधनी सरकाकर साड़ी की गांि को ढीली कर दे और साड़ी को उलट दे
और जांघों को सहलाते रहें । ये सब कक्रयाएं पत्सनी पर अपना प्रेम तथा विश्िास जमाने के मलए
की जानी चाहहए न कक उच्छूंखल कामातरु बनकर संभोग के समय में ्री की खश
ु ी का
ख्याल करते हुए असमय में ब्रह्मचयम भंग करने के मलए।
श्लोक-29. अनुभशष्याच्च। आत्समानुरागं दशायेत ्। मनोर्ांश्च पूवक
ा ाभलकाननुवणायेत ्। आयत्सयां च
तदानक
ु ू ल्येन रववृ िं रततजान यात ्। सपत्सन भ्यश्च साध्वसमवह्च्छन्द्यात ्। कालेन च रमेण
ववमक्
ु तकन्याभावा- मनद्
ु वेजयननप
ु रमेत। इतत कन्यावव्त्रम्प्भणम ्।।29।।
अर्ा- पतत को चाहहए कक सुहागरात से पहले तीन रातों में अपनी पत्सनी को सेक्स की भी
मशक्षा दें ।
पतत को चाहहए कक सुहागरात के पहले तीन रातों में पत्सनी पर प्रेम जाहहर करते हुए
वपछले मनोरथों, मनसूबों की बातें भी करनी चाहहए। उसे चाहहए कक पत्सनी के मन में विश्िास
हदलाना चाहहए कक मैं जीिन भर तुम्हारा साथ दं ग
ू ा, मैं तुम्हारे अलािा ककसी और ्री की ओर
कभी नहीं दे खूंगा। इस तरह का विश्िास हदलाना चाहहए।
श्लोक-30. भवह्न्त चात्र श्लोकाः- एवं धचिानुगो बालामुपायेन रसाधयेत ्। तर्ा्य सानुरक्ता च
सुवव्त्रबधा रजायते।।30।।
अर्ा- इस विषय पर प्राचीन आचायों का कहना है कक जो व्यप्क्त वििाह के पहले तीन रातों में
अपनी पत्सनी के मन को जानकर अपने प्रेम बंधन में बांध लेता है और अपना पूरा विश्िास
बना लेता है तो शुरू से ही पत्सनी अनुगाममनी िनकर उसकी सेिा करती रहती है।
अर्ा- पुरुषों को हमेशा एक बात याद रखनी चाहहए कक ्री को न तो अधधक क्रीतदास बनाकर
और न ही अधधक प्रततकूल होकर ्री को अपने िश में करना चाहहए क्योंकक अधधक तनममल
व्यिहार करने से ्री अपने को उच्च समझ बैिती है और अधधक सख्त व्यिहार करने से िह
जीिन भर डरी सी रहती है । अतः जो समझदार परू
ु ष होते हैं िह इन दोनों में से बीच का
रा्ता अपनाते हैं।
श्लोक-32. आत्समनः र ततजननं योवर्तां मानवधानम ्। कन्यावव्त्रम्प्भणं वेवि यः स तासां वरयो
भवेत ्।।32।।
अर्ा- पत्सनी के मन में अपना तयार बनाना, पत्सनी का सम्मान करना तथा नई वििाहहत ्री में
अपना यकीन बनाना। इन तीनों बातों को जो पुरूष जानता है और समझता है िह प््रयों का
वप्रय होता है।
अर्ा- निवििाहहत पुरूष यहद अपनी ्री को शमीली समझने की भूल करता है िह ्री के
द्िारा सम्मान प्रातत करने योग्य नहीं होता।
अर्ा- निवििाहहत पतत-पत्सनी के बीच विश्िास एिं तयार का संबंध बनाए बबना या मनोभािों
को समझे बबना ही यहद संभोग करने की कोमशश करता है , िह ्री के भय, क्रोध तथा ईष्याम
द्िेष का पार बन जाता है।
भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक
श्लोक-1. वरणसंववधानपूवक
ा मधधगतायां वव्त्रम्प्भणमुक्तम ्।।1।।
अर्ा- लड़का-लड़की को न ममलने की िजह के बारे में िात्स्यायन बताते हुए कहते हैं कक जो
युिक गुणिान होते हुए भी हीन कुल का है अथिा धनिान होते हुए भी यि ु ती के घर का
पड़ोसी है अथिा अपने माता-वपता के अधीन है अथिा प्जसमें ्री का भाि है तो ऐसे युिक
को चाहहए कक िह ककसी कुलशील सम्पन्न लड़की से वििाह करने की कोमशश न करें ।
अर्ा- इस तरह से जो प्रेमी-प्रेममका बचपन से आपस में तयार करते हों और ककसी कारण से
उनका वििाह होना संभि न हो तो लड़के के ककशोराि्था से ही लड़की के साथ अपना तयार
बढ़ाते रहना चाहहए।
श्लोक-4. तर्ायुक्तश्च मातुलकुलानुवती दक्षक्षणापर्े बाल एवं मात्रा च वपत्रा च ववयुक्तः
पररभत
ू कल्पो धनोत्सकर्ाादलभ्यां मातल
ु दहु ितरमन्य्मै वा पव
ू द
ा िां साधयेत ्।।4।।
अर्ा- जहां युिक प्रायः इसी तरह से लड़की को अनुरक्त बनाकर कफर उससे शादी करते हैं।
िह अनुरक्त तनम्न है-
दक्षक्षण दे श में प्जन बातों की िजह से लोग अपनी लड़ककयां नहीं दे ते उन्हीं हीनताओं से
युक्त माता-वपता रहहत गरीब लड़का अपने मामा के घर रहकर अमीर मामा की पुरी को चाहे
उसकी सगाई कहीं हो भी गई हो, उससे तयार बढ़ाकर शादी कर ले।
अर्ा- यहद लड़की लड़के के मामा के गोर का न हो तथा अपने गोर की न होकर ककसी दस
ू री
जातत की हो तब भी उसे अनुरक्त करके उसके साथ गन्धिम वििाह कर सकता है।
अर्ा- आचायम घोटकमुख कहते हैं कक यहद कोई लड़का ककशोराि्था से ही ककसी लड़की के
साथ तयार करता हो तो उसे िश में करके शादी कर लेना गलत नहीं है।
अर्ा- यहद यि
ु क ककसी लड़की को पसंद करता है और उससे तयार करना चाहता है तो उसे
चाहहए कक लड़की की सबसे अच्छी सहे ली से जान-पहचान बढ़ाए और उसके द्िारा अपनी
प्रेममका के मन में तयार बढ़ाने की कोमशश करें ।
अर्ा- लड़के को चाहहए कक िह प्जस लड़की से तयार करता है उसके घर में काम करने िाली
लड़की से मेलजोल बढ़ाए। इस तरह काम करने िाली लड़की को अपने बातों के जाल में
फंसाने और अपने िश में करने से उसके बबना कुछ कहे ही िह लड़के के हाि-भािों को
जानकर उसके प्रेममका से लड़के को ममला दे ती है।
अर्ा- इस तरह कामिाली लड़की या उसकी सहे ली को अपने िश में करने से िह प्रेममका के
सामने लड़के के गुणों को इस तरह से बताती है कक लड़की उसकी ओर आकवषमत होने लगती
है।
अर्ा- प्रेमी को चाहहए कक िह प्रेममका की इच्छाओं को पूरी करे । प्रेममका को जो चीज अच्छी
लगे िह लाकर दे और प्जस चीजों को दे खने की इच्छा करे उस चीजों को हदखाने ले जाएं।
श्लोक-14. र ्नकिव्याणण यान्यपूवााणण यान्यन्यासां ववरलशो ववद्येरं्तान्य्या अयत्सनेन
संपादयेत ्।।14।।
अर्ा- अगर प्रेमी-प्रेममका छोटी उम्र के हों तो प्रेमी को चाहहए कक िह अपनी प्रेममका को ऐसे
खखलौने खरीद कर दे जो कीमती ि दल
ु भ
म होने के साथ ऐसी हो प्जन्हें प्रेममका ने पहले कभी
न दे खी हो।
अर्ा- प्रेमी को चाहहए कक अपनी प्रेममका को खुश करने के मलए रं ग-बबरं गी गें दे हदखाए। ऐसी
गें द हदखाए प्जस पर धचर बने हों और िह रं ग बदलती हो। इसके अततररक्त फुंकनी से साबुन
जैसे फेतनल तरल पदाथों के फुलक्ता बनाकर उड़ाना चाहहए। प्रेमी को अपनी प्रेममका को िोरा,
सींग, हाथीदांत, मोम और ममट्टी की पुतमलयां एिं गुडड़यां दे नी चाहहए।
अर्ा- प्रेमी को चाहहए कक िह खाना बनाने के मलए अपनी प्रेममका को रसोईघर हदखाए या
कफर खाना पकाने की विधध मसखाए।
अर्ा- प्रेमी को चाहहए कक अपनी प्रेममका को तछपकर ममलने का अनुरोध करे और उसके साथ
ऐसी बाते करें प्जससे उसके मन में विश्िास और तयार बढ़े ।
अर्ा- यहद प्रेममका तछपाकर ि्तु दे ने का कारण पूछे तो मुझे मां-बाप का डर बताए या दी
जाने िाली चीजें लेने के बहाने बनाए तो उसे अपने तयार का विश्िास हदलाएं।
अर्ा- प्रेमी-प्रेममका का आपसी तयार बढ़ने लगे और प्रेममका बाते सुनने की रुधच प्रकट करे तो
प्रेमी को मौके के अनुसार खूबसूरत कहातनयां सुनाकर उसका मनोरं जन करना चाहहए।
अर्ा- यहद प्रेममका जाद ू के खेल दे खने की इच्छा करती है तो उसे इन्द्रजाल के आश्चयमजनक
खेल हदखाना चाहहए। यहद कलाओं का कौशल दे खना चाहती हो तो उसे कलात्समक कौशल
हदखाकर खुश करना चाहहए। यहद िह संगीत सुनना चाहती हो तो मधुर संगीत सुनाकर उसका
हदल बहलाएं। प्रेमी को चाहहए कक कोजागरी व्रत, बहुला अष्टमी, कौमुदी महोत्ससि या ग्रहण के
हदन प्रेममका जब प्रेमी के घर आए तो उसे आपीड, कणमपर भंग, छाप, छल्ला, ि्र आहद दे कर
उसे प्रसन्न करें । लेककन प्रेमी को ये भी ध्यान रखना चाहहए कक इन ि्तओ
ु ं को दे ने से
उसकी ककसी प्रकार की गलतफहमी या बदनामी न हो।
श्लोक-22. अन्यपुरूर्ववशेर्ाभभज्ञतया धात्रेतयका्याः पुरूर्रवि
ृ ौ चातुः
र्ह्ष्टकान्योगान्ग्राियेत ्।।22।।
अर्ा- प्रेममका की सहे ली को चाहहए कक िह उसके प्रेमी की तारीफ करे । उससे कहे कक िह
युिक बहुत सुन्दर है और गुणिान है । इस प्रकार प्रेममका के मन से प्रेमी से ममलने के डर
और संकोच को दरू करें और प्रेमी से ममलने के मलए उसे तैयार करें , साथ ही काम संबंधी
कलाओं की मशक्षा भी दे ।
श्लोक-24. युवतयो हि संसष्ृ टमभ क्ष्णदशानं च पुरुर्ं रछमं कामयन्ते। कामयमाना अवप तु
नाभभयुञ्जत इतत रायोवादः। इतत बालायामुपरमाः।।24।।
अर्ा- यह तनप्श्चत है कक ज्यादातर युिततयां अपने पररधचतों तथा आसपास रहने िाले युिकों
को ज्यादा चाहती हैं लेककन िे उसे चाहते हुए भी लज्जािश उससे समागम नहीं करती क्योंकक
इससे उसके पकड़े जाने का डर रहता है।
अर्ा- िात्स्यायन प्रेमी-प्रेममका के बारे में बताने के बाद अब प्रेममका के शारीररक संकेतों के
बारे में बताते हैं।
श्लोक-26. संमुखं तं तु न व क्षते। व क्षक्षता व्र ्ां दशायतत। रुच्यमात्समनोऽङ्गमपदे शेन
रकाशयतत। रमिं रच्छननं नायकमततरान्तं च व क्षते।।26।।
अर्ा- प्रेममका अक्सर अपने प्रेमी को अपना मुख लज्जा और शमम के कारण नहीं हदखाती है
लेककन हल्की ततरछी नजरों से ही अपने प्रेमी को दे ख मलया करती है। प्रेममका अक्सर अपने
प्रेमी को ककसी न ककसी बहाने से अपनी खूबसूरती हदखाती है और ऐसा िह तब करती जब
प्रेमी उसकी तरफ ध्यान न दे या उससे दरू हो।
अर्ा- प्रेममका प्रेमी को हदखाने के मलए प्जस जगह प्रेमी खड़ा होता है उसी जगह जाकर खड़ी
होती है। प्रेममका अपने प्रेमी को तयार का एहसास कराने के मलए उसके पास खड़ी होकर कुछ
भी दे खकर हंसने लगती है। उसके पास खड़े रहने के मलए िे अपने सहे ली के साथ ऐसी बाते
करे गी जो जल्दी समातत न हो। प्रेमी को दे खकर िह बच्चे को गोद में लेकर चंब
ु न करने
लगती है , उससे बाते करने लगती है। अपनी सहेली का सहारा लेकर हाि-भाि तथा नाज-नखरे
हदखाने लगती है।
श्लोक-29. तह्न्मत्सत्रेर्ु ववश्वाभसतत। वचनं चैर्ां बिु मन्यते करोतत च। तत्सपररचारकैः सि र ततं
संकर्ां द्यत ू भमतत च करोतत। ्वकमासु च रभववष्णरु ु वैताह्ननयङ्
ु क्ते। तेर्ु च
नायकसंकर्ामन्य्य कर्यत्स्ववहिाता तां श्रण
ृ ोतत।।29।।
अर्ा- प्रेममका अपने प्रेमी के दो्तों की बातों पर विश्िास करती है और उसके बातों को
मानती है। उसके घर के नौकरों के साथ अक्सर बाते करती रहती है , प्रेम भरा व्यिहार बतामि
करती है तथा उनके साथ शतरं ज, ताश आहद भी खेलती है। प्रेममका अपने प्रेमी के नौकरों को
मामलक की तरह भी आदे श दे ती है। अगर िह नौकर उसके प्रेमी की बातें करता है तो प्रेममका
उसकी बातों को ध्यान से सुनती है।
अर्ा- प्रेममका अपनी सहे ली के कहने पर अपने प्रेमी के घर चली जाती है। सहे ली को जररया
बनाकर प्रेमी के साथ शतरं ज आहद खेलती है तथा प्रेमालाप करती है। प्रेमी के सामने बबना
श्रंग
ृ ार के नहीं आती। यहद प्रेमी कणमफूल, अंगूिी या माला मांगता है तो बड़े धीरज के साथ
उतारकर सहे ली के हाथ में रख दे ती है । प्रेमी की दी हुई चीजों को हमेशा पहनती है । दस
ू रे
यि
ु कों की बातों से उदास हो जाती है तथा उस सहे ली का साथ छोड़ दे ती है ।
अर्ा- इस तरह प्रेममका अपने हाि-भाि, नाज-नखरों तथा इशारों को दे खकर उसके समागम के
मलए कोमशश करनी चाहहए।
अर्ा- आचायम िात्स्यायन ने तीन प्रकार की लड़की के बारे में बताया हैः- पहला बालक्रीडा करने
िाली बाला कहलाती है। दस
ू रा कामाकालाओं से मनुराग रखने िाली तरुणी (युिती) कहलती
है। तीसरा िात्ससल्य भाि रखने िाली प्रौढ़ कहलाती है। इसमलए बुद्धधमान व्यप्क्त को चाहहए
कक िे खेल-खखलौनों से बाल लडकी को िश में करें , कामकला के द्िारा यि
ु ती को अपने िश
में करें और प्रौढ़ा को उसके विश्िासी व्यप्क्तयों के द्िारा अपने िश में करके अपनी ओर
आकवषमत करें ।
यहां पर यह जानना बेहद आिश्यक है कक प्रेमी ककसी तरह प्रेममका को अपनी ओर
आकवषमत करें और इसके मलए उसे क्या करना चाहहए। प्रेममका को अपनी ओर आकवषमत करने
के तरीके को दो भागों में बांटा गया है - पहला प्रेमी अपनी प्रेममका की सहे मलयों से जान-
पहचान बढ़ाकर उससे बाते करें या अच्छे कपड़े, आभूषण एिं अन्य चीजों के द्िारा प्रेममका को
अपनी ओर आकवषमत करने की कोमशश करें और मौका ममलने पर तयार का इजहार करें । दस
ू रा
प्रेमी को अपने प्रेममका को मनभोिक ि्तु उपहार के रूप में दे ना चाहहए प्जससे प्रेममका प्रेमी
के मन की इच्छा को समझ सकें। ये दोनों ही तरीके मनोिैज्ञातनक हैं और इसके द्िारा प्रेमी-
प्रेममका को एक-दस
ू रे की भािनाओं को समझने में मदद ममलती है।
प्रेमी को अपनी प्रेममका से बात करने और अपने तयार का इजहार करने के रा्तों का
चुनाि बड़ी बुद्धधमानी से करना चाहहए। प्रेममका की जो सहे मलयां हो उनसे बाते करते हुए
अपनी प्रेममका के प्रतत अधधक प्रेम और विश्िास हदखाएं। प्रेममका की सहे ली को अपना माध्यम
बनाते हुए यह तनप्श्चत कर लेना चाहहए कक क्या उसकी सहे ली उनके बीच के तयार को एक
करने में उसकी मदद करे गी।
तयार के संदेशों को एक-दस
ू रे के पास पहुंचाने के मलए ऐसी सहे ली चुनना चाहहए जो
प्रेममका के अधधक पास हो और उसके मन में दोनों के तयार के प्रतत सम्मान हो। प्रेमी-प्रेममका
को अपने बीच ऐसी सहे ली को रखना चाहहए जो दोनों को ममलाने के साथ प्रेममका को
रततभािों की तरफ प्रोत्ससाहहत करता रहे और मौका ममलने पर ममलन भी करा सके। लड़की की
सहे ली ऐसी होती हैं जो प्रेममका के मनोभािों को अच्छी तरह समझकर उसकी इच्छाओं की
पूततम करने का काम कर सकती हैं और उसे ममलाने के रा्ते बना सकती हैं। इस तरह सहे ली
के द्िारा प्रेममका जब अपने प्रेमी से ममलती है तो िह बबना ककसी शील-संकोच के अपने मन
की बात उसे बताती है।
प्रेमी को चाहहए कक प्रेममका को जो भी ि्तु उपहार के मलए दे िह उसकी पसंद की
होने के साथ-साथ ऐसी भी होनी चाहहए जो उसे तयार की भी याद हदलाएं। प्रेममका को उपहार
दे ते समय इस बात का ध्यान रखना चाहहए कक उपहार प्रेममका की रुधच के अनक
ु ू ल होने के
साथ ही िैिाहहक जीिन रतत भािनाओं, कामकलाओं के भािों का बोध कराने िाली हो प्जसे
दे खते ही प्रेममका अपने भािी जीिन की सन्
ु दर कल्पनाएं करने लगे। प्रेमी के साथ रततक्रीड़ा के
मलए व्याकुल हो जाए उसकी रुधच तथा उसके चन
ु ाि की प्रशंसा करें । इस तरह का उपहार
पाकर प्रेममका खश
ु ी होकर प्रेमी पर गिम करने लगती है। िे अपने प्रेमी के द्िारा हदए गए
उपहार को अपनी सहे मलयों को हदखाकर खश
ु होती है । इससे प्रेममका की मानमसक ग्रंधथयां
अनायास खुल जाती हैं तथा िह मन ही मन अपने को प्रेमी के समक्ष आत्सम समपमण कर दे ती
है।
ककसी जगह पर प्रेममका से मुलाकात हो जाने पर प्रेमी जब उससे कुछ बाते करता है
तो िह हल्की म् ु कुराहट के साथ इिलाती हुई अ्पष्ट जिाब दे ती है। कभी सहे मलयों के बीच
में प्रेममका हो और बनाकर बात करती पास ही प्रेमी भी हो तो प्रेममका अपनी सहे मलयों से मंह
ु
है ताकक प्रेमी उसे दे खने लगे। उसकी यह ख्िाहहश बलिती बनी रहती है कक जब तक प्रेमी
खड़ा रहे , िह भी उसी जगह पर प््थर बनी हुई खड़ी रहे ।
प्रेमी को दे खकर प्रेममका अजीब सी नाज-नखरे हदखाने लगती है। िह अपने सहे ली से
अपने कपड़े संिारने को कहती है और यहद बच्चा गोद में हो तो उसे चूमने लगती है । प्रेममका
द्िारा आकवषमत करने के इस व्यिहार को प्रेमी तयार से दे खता है और उसकी ओर आकवषमत
हो जाता है। इस तरह प्रेमी और प्रेममका दोनों एक-दस ू रे से अपने तयार का संदेश पहुंचाते हैं।
इतत श्रीिात्स्यायनीये कामसूरे कन्यासम्प्रयुक्त के तत
ृ ीयेऽधधकरणे बालोपक्रमा इप्ग्िताकारसूचनं
च तत
ृ ीयोऽध्यायः।।3।
भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक
अर्ा- प्रेमी अपने तयार की बाते अपनी प्रेममका से करता है और जब प्रेममका उसके तयार को
्िीकार कर लेती हैं तब दोनों में तयार का संबंध बन जाता है।
अर्ा- इसके बाद दोनों मौका ममलने पर एक साथ खेलते हैं। प्रेममका और प्रेमी जब एक साथ
कोई खेल खेल रहे हों तो प्रेमी को चाहहए कक प्रेममका का हाथ इस तरह तयार से पकड़े कक
उसके मन में तयार का अनभ
ु ि होने लग जाए।
श्लोक-3. यर्ोक्तं च ्पष्ृ टकाहदकमाभलग्िनववधध ववदध्यात ्।।3।।
अर्ा- िात्स्यायन ने आमलंगन करने के चार प्रकार बताये हैं- ्पष्ृ टक, विद्धक, उदृष्टक तथा
पीडड़तक। प्रेममका का हाथ पकड़ने के बाद यहद िह प्रेमी के मनोभािों को समझ जाए तो प्रेमी
को चाहहए कक इन चार प्रकार के आमलंगनों में से जो सही लगे उसी रूप में प्रेममका को
आमलंगन करें ।
अर्ा- अपनी इच्छा को व्यक्त करने के मलए प्रेमी को चाहहए कक प्रेममका को धचर बनाकर
अपनी इच्छाओं को बताएं।
अर्ा- प्रेमी को चाहहए कक अपनी प्रेममका को कभी-कभी ममथुन धचर द्िारा भी अपनी बाते
समझाएं।
श्लोक-6. जलर ्ायां तददरू तोऽपसु तनमग्नः सम पम्या गत्सव ्पष्ृ टवा चैनां
तत्रैवोन्मञ्जेत ्।।6।।
अर्ा- यहद नदी, तालाब या ्िममंगपूल में आप नहा रहे हैं और आपकी प्रेममका भी िहां नहां
रही हो तो प्रेमी को चाहहए कक िह प्रेममका से दरू डुबकी लगाकर प्रेममका के पास आकर उसका
्पशम करे और अपना मसर पानी से बाहर तनकालकर प्रेममका को चौका दें ।
अर्ा- प्रेमी को अपने मन की बाते अपनी प्रेममका को ककसी कहानी या सपने के द्िारा भी
बतानी चाहहए।
अर्ा- प्रेमी को चाहहए कक खेल-तमाशे दे खते समय या पररिारों के बीच कोई कायमक्रम हो तो
प्रेममका पास ही बैिे। इसके बाद मौका ममलने या ककसी बहाने से प्रेममका के अंगों को ्पशम
करने की कोमशश करें ।
अर्ा- इसके साथ ही प्रेममका के शरीर के अंगों को अपने अंगों पर रखने के मलए उसके पैरों
को अपने पैरों से दबाना चाहहए।
अर्ा- इसके बाद प्रेमी को चाहहए कक प्रेममका को धीरे -धीरे एक-एक अंगुली से छुएं।
अर्ा- इसके बाद पैर के अंगूिे के नाखून की नोक से प्रेममका के पैर पर भी चुभाना चाहहए।
श्लोक-14. तत्र भसद्धः पदात्सपदमधधकमाकािक्षेत ्।।14।।
अर्ा- यहद प्रेममका के पास बैिकर उसके अंगों को ्पशम करने पर िह कोई ऐतराज नहीं
करती हो तो कफर अपने पैर को उसके पैर के ऊपर रखकर दबाना चाहहए।
अर्ा- प्रेममका के अंगों के ्पशम करने और अपने पैरों से उसके पैरों पर घषमण करने और अंगों
को दबाने की कक्रया बार-बार करनी चाहहए।
अर्ा- प्रेममका के पैरों को अपने पैर से दबाने के बाद पैर की अंगुमलयों में उसके पैर की
अंगुमलयां फंसाकर दबाना चाहहए।
अर्ा- प्रेमी को पानी पीते समय अपनी प्रेममका पर थोड़ा सा पानी तछड़कना चाहहए।
अर्ा- प्रेमी को अपनी प्रेममका को बबना उिेप्जत ककए ही अपने मन की बाते बता दे नी चाहहए।
अर्ा- इस तरह प्रेममका से बात करने पर उस बात का क्या प्रभाि पड़ता है इसके बारे में आगे
बताते हैं।
अर्ा- घर आ जाने के बाद प्रेममका से अपना मसर दबिाएं और उसका हाथ पकड़कर अपनी
दोनों आंखों तथा मसर पर फेरे ।
अर्ा- इसके बाद प्रेममका से तयार से बाते करते हुए प्रेमी को कहना चाहहए कक दिा से अधधक
शप्क्त तुम्हारे हाथों में हैं। तुम्हारे हाथों के छूने से ही मसर का ददम अच्छा हो जाता है ।
अर्ा- प्रेममका को अपना बनाने के मलए प्रेमी को यह तरकीब तीन हदन तथा तीन रात
अपनाना चाहहए।
अर्ा- घर आई प्रेममका को बार-बार दे खने के मलए प्रेमी को चाहहए कक उससे बातें करने की
योजना बनाएं और बहाने करके उसे बार-बार घर बल
ु ाएं।
अर्ा- प्रेममका को अपने पर विश्िास हदलाने और तयार जताने के मलए प्रेमी को चाहहए कक
अन्यायन्य गतपे करें लेककन अपने मुख से मतलब की बात न करें ।
अर्ा- या कफर प्रेमी को चाहहए कक िह अपने विश्िासपार लड़की या लड़के को उसके पास छोड़
दें ।
अर्ा- यज्ञ, शादी, यारा, उत्ससि, मुसीबत आहद में लोग प्रायः व्यग्र हो जाते हैं। इस तरह के
मौकों पर प्रेमी अपनी प्रेममका से उस प््थतत में गान्धिम वििाह कर सकता है लेककन ऐसा
तभी करना चाहहए कक जब प्रेममका को अपने बारे में सब कुछ बता हदया हो और िह भी आप
पर विश्िास करती हो।
श्लोक-35. नहि दृष्टभावा योवर्तो दे शो काले च रत्सयुज्यमाना व्यावतान्त इतत वात्स्यायनः।
इत्सयेकपरू
ु र्ाभभयोगाः।।35।।
अर्ा- आचायम िात्स्यायन के अनुसार यहद प्रेममका के भािों की परीक्षा अनेक बार हो चुकी हो।
ऐसी प्रेममका यज्ञ आहद के समय संकेत पाकर भी उस पर ध्यान नहीं दे ती हैं। िात्स्यायन
द्िारा प्रेमी-प्रेममका के ममलन का यह उपाय बताया है। इन उपयों द्िारा एक प्रेमी अपनी
प्रेममका से अपने तयार की बाते कर सकता है और उसे पा सकता है।
श्लोक-36. मन्दापदे शा गण
ु वत्सयवप कन्या धनिीना कुलीनावप समानैरयाच्यमाना
मातावपतवृ वयक्ता वा ज्ञाततकुलवततान वा रापत-यौवनापाणणग्रिणं ्वयमभ त्ससेत।।36।।
अर्ा- लड़की नीचकुल में जन्म लेने के बाद भी गुणिती हो लेककन उसके घर िाले कुल न
ममलने के कारण उसकी शादी उस लड़के से नहीं करना चाहते हों प्जसे िह पसंद करती है या
लड़का-लड़की एक कुल का होने के बाद भी गरीबी के कारण लड़के की शादी उससे न हो रही
हो या अन्य कुल में जन्म होते हुए भी उसके माता-वपता न हो और िह युिती हो तो ऐसी
लड़ककयों को ्ियं ही अपने पसंद के लड़के से शादी कर लेनी चाहहए।
अर्ा- इस तरह की युिती ककसी ऐसे गुणिान, शप्क्तशाली सुन्दर युिक के साथ शादी कर
सकती है जो उसके बचपन का साथी हो।
अर्ा- यि
ु ती को िैसे यि
ु क पर विश्िास करना चाहहए जो अपने माता-वपता की परिाह ककए
बबना उसकी ओर आकवषमत हो गया हो और उस पर विश्िास करता हो। ऐसे यि
ु क को यि
ु ती
अपने हाि-भाि हदखाकर तथा अन्य उपायों से अपनी तरफ आकवषमत कर उससे शादी कर
सकती हैं।
अर्ा- प्जस ्री को धन का लोभ हो उसे चाहहए कक रूप और गुण को न दे खकर ककसी भी
पैसे िाले पुरूष के साथ वििाह कर लें।
अर्ा- ्री को ऐसे पुरूष को अपना पतत बनाने की इच्छा रखनी चाहहए जो गुणिान हो,
िशिती हो, सामर्थयमिान हो और जो आपकी ओर आकवषमत हो।
अर्ा- प्जस युिक में गुण की कमी हो, गरीब हो, आत्समतनभमर हो और िश में रहने िाला हो
उससे युिती को शादी कर लेनी चाहहए। लेककन जो व्यप्क्त गुणिान होते हुए भी व्यमभचारी हो
उससे शादी कभी नहीं करनी चाहहए।
श्लोक-44. रायेण धतननां दारा बिवो तनरवग्रिाः। बािो सत्सयुपभोगेऽवप तनववा्त्रम्प्भा
बहिःसुखाः।।44।।
अर्ा- अमीर लोगों के घरों में काफी सारी प््रयां रहती हैं लेककन प्रायः िे तनरं कुश हुआ करती
हैं क्योंकक उन्हें बाहरी सुख ममलते हुए भी भीतरी सुख नहीं ममल पाता है।
श्लोक-45. न चो य्त्सवभभयञ्
ु ज त परु
ु र्ः पह्त्सनतोऽवप ् वा। ववदे शगततश लश्च न स
संयोगमिाततः।।45।।
अर्ा- जो छोटे िगम के लोग होते हैं या बूढ़े या परदे श में रहने िाले लोग होते हैं उनसे शादी
नहीं करनी चाहहए।
अर्ा- ्री को ऐसे पुरूष से कभी भी शादी नहीं करनी चाहहए जो ्री के इच्छा के खखलाफ
सेक्स संबंध बनाता हो। ऐसे पुरूष जो तयार करता हो लेककन शादी के मलए कहने पर बहाने
बनाते हो तथा कपटी और जुआरी पुरूष से भी शादी नहीं करनी चाहहए। वििाहहत पुरूष
प्जसके बच्चे हो उससे भी शादी नहीं करनी चाहहए।
श्लोक-47. गण
ु साम्प्येऽभभयोक्तण
ृ ामेको वरतयता वरः। तत्राभमयोक्तरर श्रैष्ठम्प्यमनरु ागात्समको हि
सः।।47।।
अर्ा- यहद युिती की शादी करने िाले पुरुषों में सभी गुणिान हो तो युिती को उसी से वििाह
करनी चाहहए प्जससे िह ज्यादा तयार करती हो।
आचायम िात्स्यायन ने प्रेमी-प्रेममका को एक होने के मलए दो प्रकार बताया है - बाह्य तथा
आभ्यांतर। बाहरी उपायों के द्िारा प्रेमी-प्रेममका आपस में शतरं ज या पिे खेलते हैं और प्रेमी
खेल के बीच में ही िह बातों का ऐसा वििाद तछड़ दे ता है प्जसमें दोनों ही अपनी मन की बाते
कह दे ते हैं। इसके बाद जब प्रेममका जाने लगती है तो प्रेमी उसका हाथ इस तरह पकड़ता है
प्जसे वििाह के समय यि
ु क-यि
ु ती का हाथ पकड़ता है । इस तरह हाथ पकड़ने से प्रेममका को
यह अहसास हो जाता है कक यह मेरे साथ गन्धिम वििाह करना चाहता है। इसके अततररक्त
प्रेमी, प्रेममका को अपने मन की बाते बताने के मलए विमभन्न प्रकार का धचर हदखाता है , कभी
मौका ममलते ही उसे आमलंगन करता है , जलक्रीड़ा करते समय उसके अंगों को छूटा है , कभी
अपने हदल के ददम बहाने उसे अपने पास बल
ु ाता है। उत्ससि आहद में प्रेमी-प्रेममका एक साथ
बैिते हैं, अपने पैर से उसके पैर को छूता है , पैरों को पैर से दबाता है। अंधेरे में जब कोई न
दे ख रहा हो तो उस समय प्रेमी-प्रेममका के पैरों के ऊपर हाथ फेरता है , कफर उसके जांघों,
तनतम्बों, पेट, पीि तथा ्तनों पर हाथ फेरता है और नाखूनों को गड़ाता है । जब प्रेमी के
द्िारा ककए गए हरकतों को प्रेममका चुपचाप सहन करती है तो कफर प्रेमी नीचे, ऊपर शरीर के
अंग-अंग पर हाथ फेरता है।
जब प्रेमी इन बाहरी ्पशों द्िारा प्रेममका को अपने तयार के बंधन में बांध लेता है तो
बाहरी और भीतरी दोनों उपायों का प्रयोग करता है। बाहरी और भीतरी उपायों में प्रेममका प्जस
जगह भी ममल जाती है प्रेमी उससे छे ड़छाड़ शुरू करने लगता है । प्रेमी जब ममलने पर कोई
चीज उसे दे ता है तो िह उस पर शमम ि लज्जा भाि पैदा करने िाले तनशान लगा दे ता है।
प्रेमी-प्रेममका जब ककसी कायमक्रम के दौरान अंधेरे में एक-दस
ू रे से सटकर बैिे हुए होते हैं तो
प्रेमी प्रेममका के तनतम्ब या ्तनों पर इस तरह से चुटकी काटता है कक िह उसे सहन कर
सके तथा उसे अनुभूतत भी हो। इस तरह अंधेरे के मौके का फायदा उिाकर प्रेममका के साथ
छे ड़छाड़ करने से उसे शमम नहीं आती क्योंकक अंधेरे और अकेले में प्रेममका के मन में शमम का
भाि पैदा नहीं होता बप्ल्क प्रेमी के इस तरह चुटकी काटने और सहलाने से उसे आनन्द ि
सकून ममलता है। इसमलए अंधेरे का फायदा उिाकर प्रेमी-प्रेममका सेक्स संबंध भी बना सकते
हैं।
िात्स्यायन ने इस प्रकार के प्रेमी-प्रेममकाओं के मलए सेक्स संबंध का उधचत समय और
मौका बताते हुए कहा है कक उधचत समय, रात और अंधेरे में यहद प्रेममका से सेक्स संबंध के
मलए अनुरोध ककया जाए तो िह इन्कार नहीं करती है क्योंकक प्रेममका सेक्स के मलए ऐसा
्थान चाहती है कक उसे कोई न दे ख सके। इसके अततररक्त प्रेमी के द्िारा सेक्स के मलए
कहने पर प्रेममका मना नहीं करती जब प्रेममका के मन में उिेजन का भाि पैदा होता है , काम
िासनाएं उमड़ पड़ती हैं और िह ्ियं सेक्स के मलए लालातयत हो उिती है। इस तरह की
मनोदशा में प्रेममका अपने आप तो कुछ कहती नहीं है लेककन जब प्रेमी उससे सेक्स के मलए
कहता है तो िह मना नहीं करती।
आचायम िात्स्यायन का कहना है कक प्जस तरह गरीब और हीन कुल का यि
ु क अपने से
ऊंचे कुल या समान िगम की लड़की से शादी करना चाहता है लेककन ककसी कारण िश िह
नहीं ममल पाती। ऐसी लड़की को पाने के मलए यि
ु क को चाहहए कक उस लड़की को तयार से
अपनी ओर आकवषमत करके उसे पाने की कोमशश करें । उसी तरह यहद कोई लड़की गरीब या
अनाथ हो और उसकी शादी मनोमभलावषत युिक से होना संभि न हो तो लड़की को भी अपने
पसंद के यि
ु क को अपने तयार से आकवषमत करके पाने की कोमशश करनी चाहहए। आचायम
िात्स्यायन ने लड़की और लड़के दोनों के मलए ही बाहरी और आंतररक उपायों को बताया है
प्जससे िह अपनी इच्छे के अनस
ु ार लड़की या लड़के से शादी कर सकता है । ऐसी यि
ु ती जो
ककसी परू
ु ष के साथ तयार करती है और उससे शादी करना चाहती है और िह उसे एकांत अंधेरे
में ममल जाता है प्जसके साथ लड़की गान्धिम वििाह करना चाहती है , ऐसे यि
ु क का ऐसा
्िागत करना चाहहए प्जसमें कामशा्र के 64 कलाओं में से ककसी एक कला का कौशल प्रकट
हो।
आकवषमत पुरूष की तरह ही बातें करे , उसकी हर बात का अनुमोदन करें । हर काम का
अनुकरण करें लेककन उसे थोड़े कहने पर या संकेत मार से ही सेक्स के मलए तैयार न हो
जाएं। ज्यादा कामातुर होने पर भी अपने आप संभोग के मलए कोई कोमशश नहीं करें और न
कोई उतािलापन हदखाएं।
आचायम िात्स्यायन का मत है कक खुद संभोग के मलए प्रयत्सन करने िाली प््रयां का
सौभाग्य नष्ट हो जाता है अथामत पुरूष उसे गलत समझने लगता है और उसकी अिहे लना
करने लग जाता है । उससे अपना मन बबल्कुल हटा लेता है। हां यहद पुरूष सेक्स की कोई
कक्रयाएं करना चाहता है तो ्री उन कक्रयाओं को अनुकूलता से ्िीकार कर ले, नहीं-नहीं की
ज्यादा प्जद्द न करें ।
इस प्रकार युिती को एक बात का ख्याल रखना चाहहए कक जब उसे यह पूरा यकीन हो
जाए कक प्रेमी हर कीमत पर मेरा साथ तनभाएगा तभी उसके साथ सेक्स संबंध बनाएं अन्यथा
न करें ।
इतत श्रीिात्स्यायनीये कामसूरे कन्यासम्प्रयुक्तके तत
ृ ीयेऽधधकरणे एकपुरूषमभयोगा
अमभयोगतश्च कन्यायाः प्रततपविश्चतुथोऽध्यायः।।
वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में
भाग 3 कन्यासम्प्रयुक्तक
श्लोक-5. याश्चान्या अवप समानजात याः कन्याः शकुन्तलाद्याः ्वबुद्धम्प्या भताारं रापय
संरयुक्ता मोदन्ते्म ताश्चा्या तनदशायेत ्।।5।।
अर्ा- प्रेममका के मन में प्रेमी के मलए रुधच तेज करने के मलए ्ियं अपना िर चुनने िाली
उसकी जातत की लड़ककयों और शकुन्तला आहद की प्राचीन कहातनयां सुनाकर उसे अपनी
इच्छा से पतत चुनने के मलए उकसाना चाहहए।
श्लोक-6. मिाकुलेर्ु सापत्सनकैबााध्यमाना ववद्ववष्टाः दःु णखताः पररत्सयक्ताश्च दृश्यन्ते।।6।।
अर्ा- सहे ली को चाहहए कक प्रेममका को बताए कक अच्छे और अमीर घरों में शादी करने िाली
प््रयां ककतनी दख
ु ी रहती हैं, दस
ू री शादी करने के बाद ककस तरह पहली पत्सनी को सताया
जाता है। अमीर घरों में शादी करने से ककस तरह का कलह तथा दख
ु ों का सामना करना
पड़ता है।
अर्ा- प्रेममका की सहे ली को चाहहए कक िह प्रेमी के उन गुणों के बारे में भी बताए प्जसकी
िजह से शादी के बाद उसका भविष्य उज्ज्िल होगा।
श्लोक-8. सख
ु मनप
ु ितमेकचाररतायां नायकानरु ागं च वणायेत ्।।8।।
अर्ा- उसे कहे कक अनुरक्त पतत की अकेली पत्सनी बनने में बड़ा आनन्द ममलता है इसमलए
कक सौतनों का झमेला नहीं रहता है। इसके साथ ही प्रेमी के एक पत्सनीव्रत िाले गुण तथा
्िभाि भी उससे बताएं।
अर्ा- जब प्रेममका की सहे ली यह समझ ले कक प्रेममका उसके बताए हुए प्रेमी की तरफ
आकवषमत हो रही है तो समुधचत तनममिों द्िारा िह प्रेममका के डर तथा लज्जा को दरू करने
की कोमशश करे ।
श्लोक-10. दत
ू कल्पं च सकलमाचरे त ्।।10।।
अर्ा- उससे कह दें कक प्रेमी तुम्हें अपररधचता की तरह उिाकर ले जाएगा तो लोग तुम्हे दोषी
भी नहीं िहराएगा और तेरा मनोरथ भी पूणम हो जाएगा।
अर्ा- उससे कह दें कक प्रेमी तुम्हें अपररधचता की तरह उिाकर ले जाएगा तो लोग तुम्हे दोषी
भी नहीं िहराएगा और तेरा मनोरथ भी पूणम हो जाएगा।
अर्ा- शादी हो जाने के बाद प्रेमी-प्रेममका दोनों को अपने-अपने माता-वपता को इसकी सूचना दे
दे नी चाहहए।
अर्ा- आचायों का मत है कक अप्ग्न की साक्षी में ककया गया वििाह अिैध नहीं होता।
अर्ा- इस तरह प्रेमी जब प्रेममका से शादी करने के बाद उसके साथ सुहागरात मना ले तो कफर
प्रेममका और अपने पररिार बालों से सच्ची बात बता दें ।
अर्ा- या कफर कोई ऐसा काम करना चाहहए कक प्रेममका के माता-वपता कुल कलंक से भयभीत
होकर उसी को अपनी लड़की का िर मान लें। जब इस तरह कूटनीतत से िह लड़की उस प्रेमी
को ममल जाए तो प्रेमी व्यिहार और सुन्दर उपहारों द्िारा प्रेममका के बन्धु-बान्धिों को राजी
करें ।
अर्ा- यहद इस तरह के उपायों से प्रेममका के माता-वपता को शादी के मलए राजी करने में
सफलता ममलना मम
ु ककन न हो तो प्रेमी-प्रेममका को गन्धिम वििाह कर लेना चाहहए।
अर्ा- यहद प्रेममका अपने आप प्रेम वििाह करने में असमथम हो तो दोनों के बीच की बाते
बताने िाले और प्रेममका के माता-वपता से घतनष्ि ्नेह संबंध रखने िाली ककसी कुलिधु को
मध्य्थ बनाकर उसे धन का लालच दे कर ककसी बहाने गतु तचरों द्िारा उस लड़की को अपने
यहां बुलाएं।
अर्ा- इसके बाद प्रेमी-प्रेममका को ब्राह्मण के घर से अप्ग्न लाकर दोनों के फेरे लगिाकर शादी
करा दे नी चाहहए।
अर्ा- प्रेममका की मां पहले से शादी तय हुए लड़के से मन हटाकर जब लड़की की सहे ली के
द्िारा बताए प्रेमी से अपनी लड़की की शादी करने के मलए तैयार हो जाए तो उसी के पड़ोमसन
के घर में यज्ञ कंु ड बनाकर आग जलाकर प्रेमी-प्रेममका की शादी चुपचाप करा दें ।
अर्ा- यह बात तय है कक प्रायः युिक अपने समान ्िभाि और समान उम्र के दो्तों के मलए
आिश्यकता पड़ने पर जान तक न्यौछािर कर दे ते हैं। इसमलए प्रेममका के भाई को ही जररया
बनाकर प्रेममका को ककसी अकेले ्थान में बुलाकर अप्ग्न को साक्षी मानकर शादी कर लेनी
चाहहए।
श्लोक-24. अष्टम चह्न्िकाहदर्ु च धात्रेतयका मदन यमेनां पायतयत्सवा ककं धचदात्समनः कायामुद्दे श्य
नायक्य ववर्णयं दे शममानयेत ्। तत्रैनां पदात्ससंज्ञामरततपद्यमानां दर्
ू तयत्सवेतत समानं
पूवेण।।24।।
अर्ा- सोई हुई, अकेले कहीं जाती हुई या नशीली ि्तए ु ं खखलाकर बेहोश की हुई प्रेममका को
दवू षत करके, कफर लोगों से प्रकट कर दे ना तथा उसे अपनी बना लेना पैशाच वििाह है।
श्लोक-27. पूवःा पूवःा रधानं ्याद्वववािो धमातः ह््र्तेः। पूवााभावे ततः कायों यो य उिर
उिरः।।27।।
अर्ा- धामममक दृप्ष्ट से विचार विधध की अपेक्षा पश्चात ् के सभी वििाह उिरोिर तनकृष्ट हैं।
अर्ा- वििाह का उद्दे श्य होता है प्रेमी-प्रेममका के बीच तयार बढ़ाना। यहद प्रेमी-प्रेममका के बीच
तयार न हो तो उनका वििाह तनष्फल होता है। इस प्रेमी-प्रेममका के बीच गन्धिम वििाह उपयुक्त
माना जाता है क्योंकक इसमें प्रेम और विश्िास का सुन्दर योग होता है।
श्लोक-29. सुखत्सवादबिुरक्लेशादवप चावरणाहदि। अनुरागात्समकत्सवाच्च गान्धवाः रवरो मतः।।29।।
अर्ा- प्रेमी-प्रेममका द्िारा गान्धिम वििाह करना सुखद, थोड़े से कोमशश से वििाह होने िाले,
बबना ककसी कष्ट या झंझट तथा रीततररिाजों से हटकर प्रेम प्रधान होता है।
सामाप्जक रूप से चार हदव्य वििाहों का उल्लेख ककया गया है प्जनमें युिक-युिती को
वििाह करने के मलए कोमशश नहीं करना पड़ता। लेककन प्जन युिक या युिततयों को अपनी
इच्छा के अनुसार युिती या युिक नहीं ममलते हैं, उनके मलए िात्स्यायन ने गान्धिम वििाह
बताया है। आचायम ने प्रेमी-प्रेममका को सुझाि हदया है कक इस हालत में उन्हें गान्धिम वििाह
कर लेना चाहहए। जो प्रेमी मनचाही प्रेममका से वििाह न कर सकता हो िे उसके माता-वपता
को धन दे कर वििाह कर लें। इस तरह का वििाह असुर वििाह कहलाता है। यहद प्रेममका के
माता-वपता को धन दे ने पर भी िह उसको हामसल न हो तो प्रेमी को चाहहए कक प्रेममका का
अपहरण करके उसके साथ शादी कर ले। इस तरह जो प्रेमी अपने प्रेममका से शादी करता है
उसे राक्षस तथा पैशाच वििाह कहते हैं।
यहद बाह्य आहद हदव्य वििाह विधध से प्रेमी को अपने मन पसंद प्रेममका से वििाह
करना संभि न हो तो प्रेममका के इच्छा होने पर गान्धिम वििाह कर लेना चाहहए। यहद आसुर,
राक्षस, पैशाच विधध से शादी करना सिमथा िज्यम समझते हैं। गान्धिम वििाह में सबसे पहले
प्रेममका को वििाह के मलए राजी करना आिश्यक होता है , बबना उसके राजी हुए गान्धिम वििाह
मम ु ककन नहीं हो सकता।
भारत में गान्धिम वििाह का प्रचलन काफी समय से चला आ रहा है और इस वििाह
की लोकवप्रयता चारों ओर फैली है । राजपत
ू और क्षबरय जो ्ियंिर द्िारा शादी करते थे, िह
भी गान्धिम वििाह ही था। इस ्ियंिर में लड़की प्जसको िरमाला पहना दे ती थी, उसी से
उसकी शादी हो जाती थी। लेककन ्ियंिर के बाद विधधित गह
ृ सूर के आधार पर अप्ग्न को
साक्षी मानकर वििाह सं्कार भी ककया जाता था। नल दमयन्ती, अज-इन्दम
ु ती, राम-सीता,
मालती-माधि आहद के वििाह इसी प्रकार सम्पन्न हुए थे।
प्रथम कोहट के गान्धिम वििाह- आचायम िात्स्यायन के अनुसार युिक-युिती का गान्धिम
वििाह हो जाने के बाद जब दोनों सुखीपूिक
म एक साथ रहने लग जाए तो युिती के माता वपता
को इसके बारे में सूधचत कर दे ना चाहहए। इसके अततररक्त उसके माता-वपता को खुश करने
का भी उपाय करना चाहहए। गान्धिम वििाह कर लेने का अथम यह नहीं कक वििाहहता युिती का
संबंध उसके पररिार िालों से छूट जाता है। यही कारण है कक िात्स्यायन ने गान्धिम वििाह को
सिमश्रेष्ि बताया है।
मध्यम कोहट के गान्धिम वििाह- प्रथम कोहट के गान्धिम वििाह का िणमन करने के बाद
आचायम िात्स्यायन मध्यम कोहट के गान्धिम वििाह के अंतगमत प्रेममका के सहे ली के द्िारा
प्रेमी का िणमन करके उसे प्रेमी की ओर आकषमण बढ़ाता है। यहद प्रेमी-प्रेममका के वििाह के
बीच में उसके माता-वपता बाधा डालतें हैं तो प्रेममका की सहे ली या ककसी अन्य की सहायता
लेकर युिती की मां को धन आहद दे कर प्रेमी-प्रेममका के वििाह के मलए तैयार करके उनकी
इच्छा के अनस
ु ार प्रेममका को ककसी बहाने से घर से बाहर ले जाकर प्रेमी के साथ अप्ग्न को
साक्षी मानकर गान्धिम वििाह करा दे ना चाहहए।
तीसरी कोहट के गान्धिम वििाह- इस गान्धिम वििाह के बारे में िात्स्यायन कहते हैं कक
इस गान्धिम वििाह में यि
ु क प्जस यि
ु ती से तयार करता है , उसके भाई को उपहार आहद दे कर
अपने िश में कर लेता है। इसके बाद यि
ु क यि
ु ती के भाई को साफ-साफ बता दे ता है कक िह
उसकी बहन से तयार करता है और उससे शादी करना चाहता है। इस तरह भाई का सहारा
लेकर अपनी प्रेममका तक अपनी बातों को पहुंचाकर उससे गान्धिम वििाह कर मलया जाता है।
यह तीसरे प्रकार का गान्धिम वििाह कहलाता है।
गान्धिम वििाह के इन तीनों प्रकार को बताने के बाद िात्स्यायन कुछ अन्य प्रकार के
वििाह के बारे में कहते हैं कक ककसी लड़की का अपहरण करके उसके साथ जहरद्ती शादी
करता है या उसके सतीत्सि को नष्ट करके वििाह करता है उसे राक्षस वििाह कहते हैं। यह भी
धमम के विरुद्ध है क्योंकक इसमें अप्ग्न का आिाहन तथा हिन आहद कोई धामममक कायम नहीं
होता है। आचायम िात्स्यायन ने राक्षस वििाह को पैशाच से अच्छा माना है क्योंकक इस वििाह
में साहस कायम प्रधान है।
आचायम मध्यम कोहट के गान्धिम वििाह को ही सबसे प्रधान मान है क्योंकक शादी का
चरम पररणाम िैिाहहक प्रेम ही है जबकक गान्धिम वििाह शुरू से ही प्रेम का माध्यम है ।
इतत श्रीिात्स्यायनीये कामसूरे कन्यासम्प्रयुक्तके तत
ृ ीयेऽधधकरणे वििाहयोगः पश्चमोध्यायः।।