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भागवत रािशफल

िववेचन इकाई 4 �ादशभावगत धनु आिद चाररािशयों का


फल
इकाई क� �परेखा
4.0 उद्देश्य
4.1 प्रस्तावना
4.2 द्वादशभाव के फल िनणर्य
4.2.1 द्वादशभाव िस्थतधनु रािश फल
4.2.2 द्वादशभाव में धनरु ािश में व्ययेश क� िस्थित - यिु त -�ि� फल
4.2.3 द्वादशभावस्थ धनरु ािश में सयू ार्िद ग्रहों क� िस्थित - यिु त -�ि� फल
4.3 द्वादशभावस्थ मकररािश फल
4.3.1 द्वादशभावस्थ मकररािश में व्ययेश क� िस्थित - यिु त - �ि� फल
4.3.2 द्वादशभावस्थ मकररािश में सयू ार्िद ग्रहों क� िस्थित - यिु त - �ि� फल
4.4 द्वादशभावस्थ कुम्भरािश फल
4.4.1 द्वादशभावस्थ कुम्भरािश में व्ययेश क� िस्थित - यिु त - �ि� फल
4.4.2 द्वादशभावस्थ कुम्भरािश में सयू ार्िद ग्रहों क� िस्थित - यिु त - �ि� फल
4.5 द्वादशभावस्थ मीनरािश फल
4.5.1 द्वादशभावस्थ मीनरािश में व्ययेश क� िस्थित - यिु त - �ि� फल
4.5.2 द्वादशभावस्थ मीनरािश में सयू ार्िद ग्रहों क� िस्थित - यिु त - �ि� फल
4.6 सारांश
4.7 शव्दावली
4.8 सन्दभर् ग्रन्थ
4.9 बोध प्र� ।

4.0 उ�े�य
इस इकाई के अध्ययन से आप -
• द्वादश भाव के फल का िनणर्य करें गे ।
• द्वादश भावस्थ धन-ु मकर- कुम्भ - मीन रािशयों के फल क� व्याख्या करें गे।
• द्वादश भावस्थ व्ययेश के फल िवचार कर सकें गे ।
• द्वादश भावस्थ धनु आिद 4 रािशयों में सयू ार्िद ग्रहों के िस्थित क� समी�ा करें गे।
• द्वादश भावस्थ धनु आिद 4 रािशयों में सयू ार्िद ग्रहों के यिु त फल का िवचार कर सकें गे।
• द्वादश भावस्थ धनु आिद 4 रािशयों में सयू ार्िद ग्रहों के �ि� फल करें गे तथा पणू तर् या
फलादेश करें गे।
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�ादशभावगत धनु
4.1 ��तावना आिद चाररािशयों का
फल
पवू र् के पाठ के अध्ययन से आप अब भली-भािं त जान गये होंगे िक यिद बारहवें भाव के
स्वामी अशभु ग्रहों के साथ हो तो जातक के उपर तमाम तरह के अशुभ संकेत िदखाई देने
लगते हैं जैसे- न्यायालय सम्बिन्धत समस्या इत्यािद चंिू क व्यय भाव से कारागार इत्यािद का
भी योग बनता है । व्ययेश का सम्बन्ध शत्रु भाव तथा लग्नेश पर अशभु कारक हो तो इस
िस्थित में जातक के उपर िकसी अपराध सम्बिन्धत समस्या का सामना करना पड़ता है िजसमें
धन का व्यय अिधक होता है । ठीक इसके िवप�रत िस्थित में यिद बारहवें भाव का स्वामी
उच्च का हो, िमत्र रािश िस्थत हो, मलू ित्रकोण रािश िस्थत हो तो जातक मनस्वी एवं अच्छे
स्वभाव का होगा । व्ययेश का सम्बन्ध भाग्येश के साथ शभु कारक हो तो इस िस्थित में जातक
अत्यिधक भाग्यशाली होता है । द्वादश भाव िस्थत शभु कर व्ययेश िक अविध में जातक अपने
धन क� र�ा स्वयं करता है तथा खचर् कम मात्रा में करता है और धन के प्रित हमेशा चौकन्ना
रहता है । इन सभी िवषयों को आप गहन अध्ययन करते ह�ए व्ययभावस्थ धन-ु मकर-कुम्भ-मीन
रािशयों के फलादेश को बताएगं े तथा सयू ार्िद ग्रहों के िस्थत-यिु त-�ि� फल क� व्याख्या
करें गे।

4.2 �ादशभाव के फल िनण�य


आप भलीभांित जानते हैं िक 6, 8, 12 भाव को ित्रक एवं द�ु स्थान क� सं�ा दी गयी है । इन
भावों में ग्रह िवशेष �प से अशभु फल ही प्रदान करते हैं । साथ ही जो ग्रह उच्च का होता है या
अपने िमत्र के रािश में िस्थत हो तो शुभ फल प्रदान करता है इसके िवप�रत जो ग्रह नीच रािश
में या शत्रु ग्रह क� रािश में िस्थत हों तो अशभु फल देता है । जो ग्रह अपनी रािश पर �ि� प्रदान
करता है उस भाव के िलए शुभ फल देता िजस भाव को वह देख रहा होता है । जो ग्रह अपने
िमत्र ग्रह या शभु ग्रह के साथ या मध्य में िस्थत हो तो भी शभु फल प्रदाता होता है । यहां पर
मध्य का आशय है अगली,पीछली रािश में िस्थत ग्रह से है । जो ग्रह अपनी नीच रािश से उच्च
रािश क� ओर गमन करे और वक्र� न हो, एवं जो लग्नेश का िमत्र हो तो इस िस्थित में भी शभु
फल प्रा� होता है । ित्रकोण के स्वामी हमेशा शभु फल प्रदाता होते हैं ।
द्वादश भाव का सभी भावों से अित िविश� सम्बन्ध है क्योंिक सभी भावों का यह व्ययभाव
कहलाता है । इस भाव के फल िनणर्य के िलए सभी भावों का अध्ययन करना अित आवश्यक
है । जन्म कुण्डली के प्रथम भाव से शरीर का िवचार िकया जाता है अगर यिद बारहवें भाव के
स्वामी अशभु िस्थित में प्रथम भाव में िस्थत होंगे तो जातक को शारी�रक कमजोरी िकसी के
बात का अमल न करना िफर भी बात करने क� शैली अच्छी होती है । ठीक इसी भाव में
बारहवें भाव के स्वामी और शत्रु भाव के स्वामी क� यिु त फल से जातक दीघार्यु होता है । परन्तु
अ�मेश पीिड़त हो तथा कमजोर हो तो आयु कम प्रा� होती है । इस िस्थित में जातक का
िनवास िवदेश में हों सकता है तथा कारागार में भी जा सकता है । साथ ही लग्नेश और द्वादशेश
क� िस्थित ऐसी हो िक लग्नेश बारहवें भाव में िस्थत हों तथा व्ययेश लग्न भाव में िस्थत हों तो
जातक मन्दबिु ध्द का होता है तथा समाज में िनन्दनीय होता है ।
बारहवें भाव के स्वामी धन भाव में शभु िस्थित में हों तो जातक के जीवन में समस्याएं कम
होती है तथा धन क� कमी नहीं होती है और जातक आिथर्क िस्थित से कभी कमजोर नहीं
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भागवत रािशफल होता है । धनभावस्थ व्ययेश क� िस्थित में जातक स्प� व�ा होता है ठीक इसी के िवप�रत
िववेचन प�रिस्थित में अगर यिद द्वादशेश अशभु कारक हो तो इसी भाव से सम्बिन्धत अशुभ फल प्रा�
होता िजसके कारण जातक को आिथर्क मदद कम िमलती है उसके मन में बरु े कम� के प्रित
चेतना जागृत होती रहती है, जो कजर् िमलता भी है उसको दे नहीं पाने के ऋणी रहता है तथा
उसके आख ं ों में समस्या होती है , �धु ा क� तृि� नहीं हो पाती है प�रवार के लोगों से भी मधरु
सम्बन्ध स्थािपत नहीं हो पाता है । और आवश्यकता से अिधक बोलने के कारण िववािदत हो
जाता है ।
व्ययेश तृतीय भाव में अशभु िस्थित में हों तो भ्रातृ शोक होता है तथा यह जातक भयय� ु और
शान्त होता है । पाप ग्रहों के प्रभाव के कारण जीणर् व� धारण करता है और कणर् रोग से
पीिड़त रहता है तथा अपने अनजु पर अिधक खचर् करता है िलखने-पढ़ने में उसक� �िच कम
होती है िफर सामािजक कायर् करने के कारण आिथर्क िस्थित से मजबतू नहीं हो पाता है इसी
पराक्रम भाव में िद्वतीय भाव के स्वामी बारहवें भाव के स्वामी के साथ बैठें हों और ग�ु तथा
भाग्येश से �� हों तो जातक क� दो पत्नी हो सकती है ।
बारहवें भाव के स्वामी सख ु भाव में िस्थत हों तो जातक को िवदेश में रहने के योग बनतें हैं।
अशभु कारक व्ययेश का इस भाव में िस्थत होना जातक के िलए मानिसक पीड़ा, माता से सख ु
न प्रा� होना, एवं व्यथर् क� िचंता इत्यािद फल प्रदान करते हैं । शुभ कारक व्ययेश के फल शभु
समझना चािहए तथा इस िस्थित में समस्याएं तो होती परन्तु उसका समाधान हो जाता है ।
व्ययेश पत्रु भाव में िस्थत हो तो सन्तान प्रा� नहीं हो पाता है परन्तु उपाय करने से सम्भव हो
सकता है । तथा सन्तान आ�ाकारी नहीं होता है क्योंिक स्वयं जातक तीथर् �ेत्र में भ्रमणशील
रहता है तथा प�रश्रम का कायर् इनसे नहीं हो पाता है िजसके कारण खेती- बारी में रोग होने
कारण अन्न क� प्राि� नहीं हो पाती है ।
बारहवें भाव के स्वामी रोगभाव में िस्थत हों और उन पर पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक
च�रत्र से उ�म नहीं होता है एवं पाप कमर् करने वाला स्वयं के माता से मनमटु ाव रखनेवाला,
अपने सं�ित के सख ु से हीन एवं अन्य ि�यों से द:ु खी होता है । शभु कारक व्ययेश जातक को
सख ु ी और सम्पन्नता प्रदान करते हैं फलत: जातक दीघार्यु होता है एवं अपने शत्रओ
ु ं पर िवजय
प्रा� करने वाला होता है ।
व्ययेश पत्नी भाव में िस्थत हों तो पा�रवा�रक िस्थित ठीक नहीं होती है कमजोर प�रवार में
िववाह होता है तथा गृह कलह के कारण सम्बन्ध िवच्छे द भी सम्भव हो जाता है तथा इस
िस्थित में जातक धमर् के प्रित प्रे�रत होकर सन्त बनकर रहने लगता है िफर स्वास्थ्य अनक
ु ूल
नहीं रहता एवं अभाव में अपना जीवन यापन करता है परन्तु व्ययेश शभु िस्थित में इसी भाव में
िस्थत हों तो समस्याओ ं में कमी आती है एवं पा�रवा�रक जीवन सख ु द होता है ।
बारहवें भाव के स्वामी शभु िस्थित में अ�मभाव में िस्थत हों तो जातक सम्पन्न होता है तथा
अपना जीवन सख ु मय व्यतीत करता है एवं अचानक कहीं से सम्पि� प्राि� भी होती है ।
चमत्कारी काय� में िवशेष ध्यान देता है तथा सृि� के र�क भगवान िवष्णु क� आराधना करता
है साित्वकता एवं सहज स्वभाव तथा गणु ों के कारण समाज में प्रिति�त होता है परन्तु अशभु
कारक व्ययेश का फल अशुभ एवं समस्याओ ं से प्रभािवत होकर जातक व्यथर् भ्रमणशील
रहता है ऐसा जानना चािहए ।
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व्ययेश धमर्भाव में िस्थत हों तो जातक का अच्छे लोगों से सम्बन्ध मधरु नहीं हो पाता है एवं �ादशभावगत धनु
स्वयं को अलंकृत करने में लगा रहता है । बचपन में ही िपता क� मृत्यु हो जाती है िफर अपने आिद चाररािशयों का
फल
प्रभाव से िवदेश यात्रा करके सम्पि� बनाता है एवं सामािजक कायर् करके लोकिप्रय बन जाता
है ।
दशमभास्थ व्ययेश शभु िस्थित में हों तो जातक अत्यिधक प�रश्रम करके काफ� धन कमा लेता
है तथा डाक्टर, जेलर, एवं अच्छे कृ षक बनकर अपनी जीिवका को चलाने में सफलता प्रा�
कर सकता है अशभु कारक व्ययेश जातक को पा�रवा�रक सख ु क� हािन करते हैं तथा
शारी�रक सख ु भी कम प्रा� होता है ।
लाभ भावस्थ व्ययेश जातक को प�रश्रम के अन� ु प फल नहीं देते हैं, इस िस्थित में जातक के
सहयोगी कम होते हैं तथा िवरोिधयों क� संख्या अिधक होती है । अपने सगे भाइयों के िलए
खचर् अिधक करने के कारण जातक परे शान रहता है इस प्रकार धन का अपव्यय होता है परन्तु
शभु कारक व्ययेश क� िस्थित में यह जातक बह�मल्ू य वस्तुओ ं का व्यवसाय करके अत्यिधक
धनाजर्न कर लेता है ।
व्यय भाव में िस्थत व्ययेश जातक को अच्छे काय� में धन खचर् करवाते हैं एवं जातक क� �ि�
अच्छी होती है, शैया सख ु भी प्रा� होता तथा कृ िष कमर् से िवशेष लाभ प्रा� करता है परन्तु
अशभु कारक व्ययेश क� िस्थित में जातक हमेशा परे शान रहता है एवं इधर-उधर भटकता
रहता है ।
उपरो� फल सामान्य िस्थित का है परन्तु इन सभी िवषयों को उदाहरण के अनसु ार आगे
चलकर ग्रहों के िस्थित-यिु त-�ि� फल को स्प� िकया जायेगा । िजससे और स्प� समझ में आ
जायेगा ।
(1)- लघु पाराशरी (2)- जातक िनणर्य
4.2.1 �ादशभाव ि�थत धनुरािश फल
बारहवें भाव में कुछ ही िवषयों को छोड़कर यह जानना चािहए िक यह स्थान एक अशभु स्थान
है यहां पर शक्र
ु ही ऐसे ग्रह है जो िक शभु फल प्रदान करते हैं इसके अित�र� बृहस्पित और
के तु इस भाव में य�
ु हों तो जातक को धमर् मागर् से प्रिसिद्ध प्रा� होती हैं ।
"भृगु ऋिष " के अनसु ार बारहवें भाव में धनु रािश िस्थत हो, तथा देव ग�ु बृहस्पित भी इसी
भाव में बैठे हो तो जातक अत्यिधक मात्रा में धन खचर् करनेवाला, तथा परतन्त्रता का अनभु व
करने वाला, मातृ प� तथा स्वयं के प�ु षाथर् में अपने आप को अ�म समझने वाला, होता है ।
परन्तु सख
ु क� इच्छा इस जातक को हमेशा बनी रहती है, साथ ही अपने बल-प्रभाव में वृिद्ध
करने वाला, दसू रे क� सहायता प्रा� करने वाला, एवं स्वयं के सख ु प्राि� के िलए धन खचर्
करनेवाला होता है िफर इस जातक के मन में शािन्त नहीं होती है तथा इधर-उधर भ्रमणशील
होता है । यहां पर िवशेष �प से धनु रािश बारहवें भाव में िस्थत हो तो जातक में तत्काल िनणर्य
लेने क� �मता होती है, साथ ही अपने प�रिस्थितयों को समझने वाला, गम्भीरता पवू क र् िवचार
करनेवाला और समय के अनसु ार चलने वाला होता है । वातावरण को समझने क� इसमें
अद्भुत �मता होती है एवं अपने जीवन शैली को उसी प्रकार बना लेता है,जैसा क� िस्थित
होती है अनेकों प्रकार के व्यसन क� लत इस जातक को लग जाती है । इसके िमत्र अिधक होते
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भागवत रािशफल हैं तथा आमदनी क� अपे�ा खचर् अिधक करता है । यद्यिप अपने खच� को कम करने में
िववेचन प्रयासरत रहता है िफर भी कम नहीं कर पाता है, िकसके फलस्व�प समाज में लोकिप्रय बना
रहता है । सामिू हक खचर् करने के कारण भी आिथर्क िस्थित कमजोर हो पाना सम्भव है िफर
साहसी होने कारण अपने कायर् में सफल रहता है । तथा अपने आप को िनयंित्रत करके अपने
जीवन के समस्त इच्छाओ ं को पणू र् करने में सफलता प्रा� कर लेता है ।
अन्य ग्रन्थकारों के अनसु ार बारहवें भाव में धनु रािश में ग�ु िस्थत हों तो जातक को िवशेष �प
से िकसी कायर् को लेकर मानिसक िचंता बनी रहती है एवं माता का स्वास्थ्य भी बह�त अच्छा
नहीं रहता, स्वयं अके लापन का अनभु व करता है भिू म -भवन-वाहन का सख ु नहीं प्रा� होता है
तथा िचिकत्सालय और कचहरी में धन का व्यय अिधक होता है एवं अिधकतर काय� में
�कावट आती रहती है । परन्तु बारहवें भाव में शभु य� ु बृहस्पित धनु रािश में िस्थत हों तो
जातक का समय व्यथर् में व्यितत होता है एवं दसू रों को उपदेश देने वाला, अच्छे काय� में धन
खचर् करनेवाला, भ्रमणशील, देश त्यागी, एकान्तवासी, धमार्त्मा,उदार योगाभ्यासी,एवं मो�
प्रा� करने वाला होता है अगर ग� ु पापग्रह से य� ु हों तो जातक दरु ाचारी और भ्र� होता है ।
4.2.2 �ादशभाव में धनुरािश में �ययेश क� ि�थित-युित-�ि� फल
बृहस्पित स्वयं बारहवें भाव में अपने रािश में िस्थत हों तो उनक� पंचम �ि� सख
ु भाव में होगी
िजसके फलस्व�प जातक को भिू म,भवन एवं माता का सामान्य फल प्रा� होगा । स�म �ि�
ष� भाव पर होगी अतः अपने शत्रओ ु ं पर जातक िबजय प्रा� करता है । नवम �ि� अ�म भाव
पर होगी िजसके कारण जातक के आयष्ु य क� वृिद्ध होती है परन्तु ऐसा जातक खच�ला तथा
प्रभावशाली होता है ।
चंिू क िद्वतीय तथा द्वादश भाव दोनों ही आख ं ों के स्थान है यिद सयू र् द्वादश भाव अथवा िद्वतीय
भाव में िस्थत हों तो आख ं ों �ि� में बह�त ही कमजोरी प्रदान करते हैं अथवा नेत्रहीन भी कर देते
है । यहां पर जो उदाहरण कुण्डली िदया जा रहा है इसमें बारहवें भाव में धनु रािश िस्थत है
तथा लग्न में मकर रािश है, तथा व्ययेश सख ु भाव में मेष रािश में िस्थत है।
उदाहरण कुण्डली संख्या 1

11 च . सू . 9
12 शु . 10 बु .
रा . 8
1 7
बृह . म.श.
2 4 6
के .
3 5

आप को यहां पर द्वादशेश पर �ि� सम्बन्ध पर िवशेष ध्यान देना होगा क्योंिक व्ययेश पर शिन
और मगं ल दोनों पाप ग्रहों क� �ि� बन रही है । तथा व्यय भाव िस्थत सयू र् पर भी उच्च रािश
िस्थत शिन क� पणू र् �ि� बन रही है एवं के तु का भी प्रभाव िवद्यमान है, सयू र् का इस भाव में
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िस्थत होने का आशय यह होगा िक सयू र् स्वयं यहां पीिड़त हैं तथा द्वादश भाव भी पीिड़त हो �ादशभावगत धनु
रहा है इस प्रकार व्ययेश तथा सयू र् दोनों ही पीिड़त होकर िनबर्ल हो रहे हैं । यहां पर सयू र् दो शभु आिद चाररािशयों का
फल
ग्रहों के मध्य में िस्थत होने से शभु फल क� आशक ं ा बनती है लेिकन शक्र ु तथा बधु दोनों ही
पाप ग्रह के घर में िस्थत है, एवं बुध के घर में स्वयं के तु भाग्यभाव में िस्थत है अतः बुध पाप
फल प्रदान करें गे अब रही बात शक्र ु क� तो शक्र
ु तुला रािश के स्वामी हैं िजसमें कमर् भाव में
स्वयं मगं ल और शिन िस्थत है फलत: सयू र् पर शभु फल क� प्राि� न होकर अशुभ होने के
कारण इस जातक के आख ं ों क� ज्योित बचपन में चली गयी । यिु त -�ि� और िस्थित का फल
और भी आप समझ सकते हैं इस उदाहरण कुण्डली के अनसु ार भी इस जातक क� आख ं ों क�
�ि� बचपन में ही चली गयी ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 2
11 के . सू . 9
12 बु . 10 बृ .
शु . म .8
1 7 श.

2 4 6
च.
3 रा . 5

यहां पर व्ययेश मगं ल के साथ यिु त बना रहे हैं । एवं सयू र् शत्रु रािश में के तु के साथ यिु त बना
रहे हैं तथा इन पर क्रूर ग्रह एवं अपने बल से य�
ु मगं ल क� पणू र् �ि� बन रही है इस क्रूर �ि� के
कारण िद्वतीय भाव तथा सयू र् दोनों क� िस्थित कमजोर हो रही है िजसके फलस्व�प नेत्र हीनता
सम्भव है । (सारावली)
चंिू क बारहवें भाव से भोग सम्बिन्धत िवषयों का भी िवचार िकया जाता है इसिलए द्वादशेश
उ�म िस्थित में हों अथवा बारहवां भाव भी पीिड़त न हो तो भोग प्राि� अवश्य होता है । चंिू क
भोग के अनेकों प्रकार है िजसमें पित-पत्नी के सामजं स्य से दान या भोग होना उ�म माना गया
है िजसका िवचार हम स�म भाव से करते हैं �ी - प�ु ष को अच्छा होना तथा इनके आपस के
सम्बन्ध के बारे में भी इसी भाव से िवचार िकया जाता है । यिद स�म भाव में सम रािश हो और
उसके स्वामी तथा शक्र ु दोनों ही सम रािश में िस्थत हों और अ�मेश पर शिन का प्रभाव न हो
तो इस योग वाले जातक को अत्यिधक सन्ु दर �ी क� प्राि� होती है । जब लग्न या चन्द्र सम
रािश में हों तथा शभु ग्रहों के द्वारा �ि� हो तो �ी शभु गणु ों से य�
ु तथा सन्ु दर प्रा� होती है ।
चंिू क यहां पर आप के सम� एक उदाहरण कुण्डली प्रस्ततु है िजसमें व्ययेश बृहस्पित सख ु
भाव में िस्थत हैं तथा बारहवें भाव में धनु रािश िस्थत है िजसमें शिन िस्थत है इस प्रकार
स�मेश प�ु ष रािश में िस्थत होकर बृहस्पित आिद शभु ग्रहों से देखा जाता हो तो भी जातक को
सन्ु दर पत्नी क� प्राि� होती है ।

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भागवत रािशफल उदाहरण कुण्डली संख्या 3
िववेचन
11 श. 9
12 10
8
बृ . 1 रा . 7
के .
2 4 6
च . शु . सू . बु .
3 म.5
यहां पर स�म भाव में सयू र् िस्थत है तथा लग्न और स�म दोनों ही भावों में सम रािश िस्थत है
स�मेश चन्द्रमा भी �ी कारक है एवं शक्र ु के साथ पंचमभावस्थ वृषभ रािश भी �ी रािश है
अतः इन प�रिस्थितयों में सन्ु दर �ी इस जातक को प्रा� होना स्वाभािवक है ।
इस प्रकार पत्नी का एक सन्ु दर पित होना अथार्त पित के �प में तब होगा जब िक पत्नी के
कुण्डली में स�म भाव में प�ु ष रािश हो और स�मेश भी प�ु ष रािश में िस्थत हों तथा ग�ु आिद
प�ु ष शभु ग्रहों क� �ि� होने पर सन्ु दर पित प्रा� होता है ।
आप के सम्मख ु एक ऐसा उदाहरण कुण्डली प्रस्तुत है िजसमें जातक के िववाह के बाद उसके
पत्नी का देहान्त हो गया, तथा पनु ः िववाह नहीं िकये और वह अपने जीवन को एक अच्छे
दाशर्िनक और अध्याित्मक के �प में रहकर व्यतीत िकये तथा इनके सम्पणू र् जीवन में शैया
सखु का अभाव रहा ।
"जातकाभरण" के अनसु ार दो पाप ग्रहों के मध्य में शक्र
ु हो और 4 , 8 भावों में पाप ग्रह हो या
शक्र
ु पर शभु ग्रह क� �ि� नहीं हो तो उस जातक क� �ी का मरण फाँसी या अिग्न दाह से होता
है ।
जातक पा�रजात के अनसु ार आध्याित्मक कारक ग्रह यिद सयू र्,शिन और मगं ल से सयं �
ु हो तो
जातक धन,�ी, पत्रु इत्यािद से हीन होकर संन्यास ग्रहण करता है । शभु नवांशस्थ सयू र् यिद
अपनी उच्च रािश के अिन्तम भाग में िस्थत ग्रह को देखता हो तो जातक बाल्यावस्था में
अथवा यवु ा अवस्था में सन्ं यास ग्रहण करता है ।
यहां पर उदाहरण कुण्डली में बारहवें भाव में धनु रािश िस्थत है तथा व्ययेश धन भाव में शिन
के घर में िस्थत हैं । उदाहरण कुण्डली संख्या 4
सू शबु ु च 11बृ . म. 9
12 रा . 10
श. 8
1 7

2 4 6
के .
3 5
84
इस कुण्डली में व्ययेश क� िस्थित -यिु त-�ि� फल का िवचार करें तो मल ू तः बृहस्पित हो रहे हैं �ादशभावगत धनु
जो िक िद्वतीय भाव में िस्थत हैं वह भी कुम्भ रािश में हैं इस रािश को आध्याित्मक रािश के आिद चाररािशयों का
फल
�प में जानते हैं साथ ही यह िस्थित अत्यन्त योग कारक वैराग्य का कें द्र है चिंू क व्ययेश पाप
ग्रहों के मध्य में है िजसके कारण इस जातक के जीवन में शैया सख ु का अभाव रहा तथा
अध्यात्म क� ओर अग्रसर ह�ए ।
4.2.3 �ादशभाव�थ धनुरािश में सूया�िद �हों क� ि�थित -युित-�ि�
फल
1. बारहवें भाव में धनु रािश में यिद सयू र् िस्थत हों तो यह नौकरी अथवा व्यापार में �कावट
अथवा हािन का संकेत करते हैं । जातक के िपता से अच्छे सम्बन्ध नहीं बन पाते, िजसके
कारण व्यि� सक ं ु िचत मानिसकता का हो जाता है इस िस्थित में जातक को नेत्र रोगी,
माइग्रेन या कब्ज क� िशकायत रहती है , शैया सख ु में भी कमी आती है परन्तु उच्च रािश
या स्वयं क� रािश में िस्थत सयू र् के फल कुछ शभु प्रद होते हैं ।
2. इसी भाव में बल य� ु चन्द्रमा िस्थत हों तो जातक िवदेश में िनवास करता है । इस िस्थित
में जातक अपने घर से दरू रहकर अच्छी सम्पि� बना लेता है, एवं हमेशा प्रसन्निचत रहने
वाला होता है । परन्तु इसी भाव में िनबर्ल चन्द्रमा नीच रािश का िस्थत हो तो जातक को
आख ं ों में रोग, कमजोर मानिसकता तथा तनावग्रस्त होकर खचर् अिधक मात्रा में करवाते
है ।
3. इसी भाव में मगं ल नीच या शत्रु के िस्थत हों तो जातक को कजर्दार बना देते हैं जातक
को मानिसक पीड़ा होती है । अल्पिनद्रा एवं बुरे स्वप्न भी आते रहते हैं द्वादशभावस्थ
मगं ल मगं ली योग भी बनाते हैं िजसके फल स्व�प जातक को पा�रवा�रक समस्या आती
है लेिकन एक बह�त अच्छा सन्तान भी जातक को प्रा� होता है। अपनी रािश या उच्च
रािश के मगं ल इस में िस्थत हों तो जातक को अिधक मात्रा में धन प्रदान करते हैं । कृ िष
इत्यािद से भी लाभ होता है तथा जातक भौितकवादी होता हैं तथा औषधीय उपाय से
सन्तान क� प्राि� होती है।
4. व्यय भाव में अस्तगत या पीिड़त बुध जातक को अच्छे फल नहीं देते हैं । िश�ा
व्यवधान, मानिसक समस्या,अिनद्रा, एवं मनोरोग प्रदान करते हैं, यह जातक कठोर �दय
वाला होता है । शभु ग्रहों से �� होने पर जातक धािमर्क, पण्ु य कमर् करनेवाला, और मीठा
बचन बोलने वाला, एवं अच्छे काय� में धन खचर् करनेवाला होता है ।
5. बारहवें भाव में बृहस्पित धनु रािश में िस्थत हों तो जातक धन संचयी होता है तथा धमर् के
कायर् में �िच रखने वाला धमार्त्मा होता है परन्तु द्वादश भावस्थ बृहस्पित जातक को
आसि� से उदासीन बनाते हैं वाक्चातयु र् नहीं होता, सन्तान से सखु भी नहीं प्रा� होता है,
पाप ग्रह क� रािश में हो तो जातक हमेशा संसय में बना रहता है तथा कपटी प्रवृि� का हो
जाता है ।
6. बारहवें भाव में शक्र
ु अत्यन्त शभु फल प्रदान करते हैं जातक धनी होने के साथ अपव्यय
नहीं करता है इसी भाव में मीन रािश के शक्र ु जातक को सभी प्रकार के सख ु प्रदान करते हैं
परन्तु नीच रािश का या शत्रु गृही शक्र
ु आख ं ों में रोग प्रदान करते हैं, व्यवसाय के िलए शभु
प्रद नहीं है तथा इसी भाव में मगं ल का योग कामवासना क� वृिद्ध करनेवाला होता है।
85
भागवत रािशफल 7. बारहवें भाव में िस्थत शिन भी बह�त अच्छे फलों को नहीं देते हैं जीिवका अथवा
िववेचन व्यवसाय में तरक्क� नहीं हो पाता, खचर् अिधक होता है तथा आय कम होता है नेत्र
क�,चमर्रोग, तेज बख ु ार होना, अिनद्रा, से पीिड़त अल्पायु होता है इसी भाव में मगं ल भी
िस्थत हो तो जातक कटुता पणू र् व्यवहार करता है िजससे अन्य लोगों को क� होता है ।
8. बारहवें भाव में राह� स्वास्थ्य समस्या देते हैं साथ ही �दय िवकार से भी सम्बन्ध रखते हैं,
जातक ग�ु गितिविधयों में िल� रहता है, अनैितक �प से धन संग्रह करता है तथा धनु
रािश का राह� अशभु कारक कम होता है।
9. बारहवें भाव में के तु मो� दायक होता है परन्तु के तु जातक को दष्ु कमर् क� ओर प्रे�रत
करता है, जातक िववािदत तथा भयग्रस्त रहता है तथा धन का नाश करने वाला होता है ।
अब यहां पर एक उदाहरण कुण्डली प्रस्तुत है जो िक एक वक�ल साहब क� है िजन्होंने तीन
िववाह िकये ।
आप को इस बात को समझना होगा स�मभाव से प्रथम पत्नी का िवचार करते हैं, द्वादश भाव
से िद्वतीय पत्नी का, तथा पचं म भाव से तृतीय पत्नी का िवचार िकया जाता है ।
स�म भाव में िजतने पापग्रह हों जातक क� उतनी शािदयां हो सकती है साथ ही िजतने पापी
ग्रह लग्न में िस्थत होकर स�मभाव को देखें उतनी ि�यों से जातक के सम्बन्ध बन सकते हैं ।
स�म भाव में पाप ग्रह हो, लग्नेश स�म भाव में हो, पचं मभाव, द्वादशेश एवं शक्र
ु पचं म एवं
एकादश स्थान में िस्थत हों तो तीन िववाह होते हैं इस प्रकार आपको पंचमेश, लग्नेश, और
द्वादशेश के यिु त-�ि� और िस्थित का फल समझना चािहए ।
उदाहरण कुण्डली सख्ं या 5
11 9
12 के . 10 बृह .
8
1 7

2 4 6
शु . रा .श . च . म.
बु . 3 सू . 5
इस उदाहरण कुण्डली में भी व्ययेश बृहस्पित बन रहे हैं एवं द्वादश भाव में धनु रािश िस्थत है ,
तथा बारहवें भाव के स्वामी बृहस्पित लाभ स्थान में िस्थत होकर पचं म एवं स�मभाव को पणू र्
�ि� से देख रहे हैं । स�म भाव में तीन पाप ग्रह �ीण चन्द्रमा, शिन, राह� िस्थत हैं । लग्नेश शिन
भी स�म भाव में िस्थत है, पंचमभाव में शक्र ु अपनी रािश में िस्थत है और द्वादशेश बृहस्पित
क� उन पर पणू र् �ि� है फलत: इन्होंने तीन िववाह िकया ।
आप को समझना चािहए िक ष� भाव से रोगों का िवचार िकया जाता है परन्तु लग्नेश क� शिन
के साथ यिु त ित्रक भाव में हो तो जातक दमा रोगी होता है ।
शिन एवं बृहस्पित का योग सातवें अथवा आठवें भाव में हो तो जातक �य रोगी होता है ।
अगर इसके साथ सयू र् भी हों तो और घातक हो जाता है । लग्नेश बारहवें भाव में हों और राह�
86
छठें भाव में हों तो भी जातक रोगी होता है । �ादशभावगत धनु
आिद चाररािशयों का
लग्नेश और बुध का योग ित्रक भाव में हों तो िप� रोगी, ग�ु और लग्नेश का योग ित्रक भाव में फल
हो तो वातरोगी तथा शक्र ु और लग्नेश का योग ित्रक भाव में हो तो जातक �य रोगी होता है ।
परन्तु यहां पर ध्यान देने क� बात है िक इन योगों पर क्रूर ग्रहों क� �ि� होना आवश्यक है, क्रूर
ग्रह क� �ि� के अभाव में यह योग पणू र् फल प्रदान नहीं करता है ।
यहां पर उदाहरण कुण्डली प्रस्तुत है िजसमें जातक दमा रोग का मरीज हैं ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 6
1 9
12 10
8
1 7
के . रा . च .
2 4 6
शु . सू
म .बु . 3 बृह .श . 5

1. प्रस्तुत कुण्डली में बारहवें भाव में धनु रािश िस्थत है तथा द्वादशेश शिन के द्वारा पीिड़त
हैं।
2. लग्न में जलत�व क� रािश मकर िस्थत है तथा लग्नेश आठवें भाव में िस्थत है । चतथु �श
और ष�ेश का छठें भाव में योग है । ककर् रािश में सयू र् िस्थत होकर लग्न को देख रहे हैं ।
3. तृतीयेश बृहस्पित अ�म भाव में शिन से पीिड़त हैं और उनपर के तु क� भी �ि� है ।
4. लग्नेश शिन स्वयं अ�म भाव में के तु से पीिड़त हैं । फलत: जातक दमा रोग ग्रस्त रहा ।
चंिू क बारहवें भाव में शभु ग्रह क� रािश हो तो अथवा बारहवां भाव शभु ग्रह से य� ु हो तो
जातक को मरते समय क� नहीं होता है ठीक इसी प्रकार बारहवें भाव में क्रूर ग्रह बैठा हो
अथवा बारहवें भाव को पाप ग्रह देखता हो तो क� पीड़ा के साथ मृत्यु होती है । आपके
सम� एक उदाहरण कुण्डली प्रस्ततु है िजसमें जातक का जल में डूबने से मृत्यु ह�ई ।
उदाहरण कुण्डली सख्ं या 7
11 9
12 10
रा . 8
1 श. 7
च.
2 4 6
बु .म . शु .सू . के .
3 बृह . 5
87
भागवत रािशफल इस कंु डली में व्ययेश बृहस्पित पाप ग्रह के घर में अ�म भाव में िस्थत है तथा अ�मेश सयू र्
िववेचन जलरािश ककर् में हैं अतः पानी में डूबने से जातक क� मृत्यु ह�ई । और िवचार यिु त -��-िस्थित
का फल इस प्रकार समझना चािहए िक लग्नेश शिन चतथु र् भाव में अपनी नीच रािश में िस्थत
है और उसको जलीय ग्रह चन्द्रमा अपनी �ि� से पीिड़त कर रहे हैं । यहां पर चन्द्रमा स्वयं सयू र्,
मगं ल, ष�ेश बुध के प्रभाव से कायर् कर रहे हैं क्योंिक ये सभी ग्रह चन्द्रमा क� रािश में िस्थत है
तथा ककर् रािश जलीय रािश है, साथ ही लग्न को भी पीिड़त कर रहे हैं अ�मेश सयू र् भी जल
रािश ककर् में हैं अतः जल में डूबने मृत्यु प्रा� ह�आ ।
यह बात तो अब स्प� हो गया है िक व्ययेश अथवा बारहवां भाव शभु िस्थित में नहीं हो तो
शैया सख ु या पा�रवा�रक सख
ु क� हािन होती है कभी- कभी तो सम्बन्ध िवच्छे द भी हो जाता
प्रस्तुत उदाहरण कुण्डली एक ऐसी मिहला क� है िजसने शादी के एक वषर् बाद अपने पित से
अलग रहने लगी जब िक वह गभर्वती भी थी । पनु ः बाद में दसू री शादी भी ह�ई ।
उदाहरण कुण्डली सख्ं या 8
11 सू .म . च .9
12 10 बु .
8 के .
1 7
शु . बृह .
2 4 6
रा . श.
3 5

1. इस कंु डली में बारहवें भाव में धनु रािश में मगं ल, सयू र्, चन्द्रमा िस्थत है ।
2. स�मभाव में शिन शत्रु रािश ककर् में िस्थत है । तथा इस पर द्वादश भाव िस्थत मगं ल क�
पणू र् �ि� है
3. के तु भी बुध के साथ ग्यारहवें भाव में वृि�क रािश में िस्थत होकर अपनी पणू र् नवम �ि�
से स�मभाव को देख रहे हैं ।
4. चंिू क के तु का प्रभाव भी मगं ल के जैसा ही होता है । अतः प्रथम िववाह इस जाितका के
टुटने के बाद इस जाितका क� दसू री शादी ह�ई क्योंिक िक शिन लग्नेश है तथा उनको
स�म भाव का फल तो देना ही है
5. क्यों िक लग्नेश पाप ग्रह ही क्यों न हो जहां बैठता है उस भाव का फल अवश्य देता है
अतः एक शादी टुटने के बाद पनु ः िववाह हो गया । 1-(जातक िनणर्य) 2- (बृहज्जातकम)्
3- (जातकालंकार)

4.3 �ादशभाव�थ मकररािश फल


"भृगु संिहता" के अनसु ार बारहवें भाव में मकर रािश में शिन के िस्थत होने के फल स्व�प
जातक व्यय अिधक करता है एवं बाहरी सम्बन्धों से लाभ प्रा� करता है । यात्रा भी अिधक
करता है चिंू क शिन िजस भाव में िस्थत हों वहां से तीसरे , स्थान को, सातवें स्थान को , दसवें
88
स्थान को पणू र् �ि� से देखते हैं अतः व्ययभावस्थ शिन क� �ि� धन भाव पर बन रही है िजसके �ादशभावगत धनु
फलस्व�प जातक को धन और प�रवार के सख आिद चाररािशयों का
ु के िलए जातक को अिधक प�रश्रम करने से
फल
लाभ िमलता है ।
व्ययभावस्थ मकर रािश के जातक सामान्य िस्थित में अपनी उपिस्थित एवं प�रचय बनाने में
आगे होते हैं तथा िवपरीत प�रिस्थितयों में भी स्वयं के कायर् साधने में पीछे नहीं रहते , परन्तु
इनक� इच्छाओ ं के अन� ु प कायर् िसिद्ध नहीं हो पाती है खचर् क� अिधकता के कारण पैसे बचा
नहीं पाते हैं क्योंिक िक इसक� आवश्यकता अिधक होती है । शिन अशभु िस्थित में हों तो
जातक में प्रितिक्रया क� भावना अिधक होती है । कभी-कभी तो इसका कारण स्वयं ही बन
जाता है क्योंिक इनमें उद्यम करने क� �मता अिधक होती है । पा�रवा�रक जीवन जीने क�
कला भी इनमें अच्छी होती है परन्तु कभी-कभी पित-पत्नी में नोक-झोक होता रहता है िजसके
कारण गृहस्थी प्रभािवत होती है । परन्तु पनु ः प्रयास करने पर सब कुछ ठीक हो जाता है । इसी
िस्थित में मगं ल िकसी अन्य ग्रह के घर में िस्थत हों तो जातक को स्वयं के आत्मिव�ास में
कमी होती है तथा तुरन्त क्रोिधत भी हो जाता है एवं दीमागी कमजोरी भी रहती है । चंिू क
दसू रों को अिधक �ान बांटने के कारण ये लोग बातुनी क� श्रेणी आते हैं । जहां तक शिन क�
बात है तो शिन क� �ि� जहां कहीं भी हो तो वहां पर समस्या ही पैदा करती है , अगर िकसी
ग्रह पर हो तो वह कमजोर हो जाता है, लेिकन शिन क� �ि� ग� ु पर पड़े तो ग�
ु कभी पीिड़त
नहीं होते हैं । अिपतु यह जातक बह�त आध्याित्मक, धािमर्क, स्वािभमानी, परोपकारी, दयालु ,
सेवा भाव रखने वाला, अच्छे कमर् करके अपने जीवन को साथर्क बनाता है । साथ ही दान
पण्ु य करने वाला होता है ।
4.3.1 �ादशभाव�थ मकररािश में ि�थत �ययेश क� ि�थित- युित -
�ि� फल
अगर बारहवें भाव पर अन्य ग्रहों का बुरा प्रभाव हो तो जातक दसू रे के सहायता से जीवन
यापन करता है । और उसके मन में क� रहता है तथा बारहवें भाव के स्वामी अच्छे िस्थित में
हों तो अशभु फल कम होता है तथा शभु फल अिधक होता है ।
उदाहरण के अनसु ार देखा जाए तो द्वादशेश क� यिु त -�ि� और िस्थित ठीक हो तो जातक या
जाितका काफ� लोकिप्रय तथा धन सम्पदा से य� ु हो जाते है । अब आप के सम� एक ऐसी
कुण्डली प्रस्ततु है िजसमें बारहवें भाव में मकर रािश िस्थत है तथा व्ययेश शिन नवमभाव में
बुध के साथ यिु त सम्बन्ध बना रहे हैं । तथा यह कुण्डली कुम्भ लग्न क� है । और आपको एक
बात और भी बता दें िक यह कुण्डली िफल्म स्टार रे खा जी क� है ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 9
12 रा .10
1 11
9
2 8

3 6 शु . 7
मं . श .बु .
बृह . 5 के . च . सू . 6
89
भागवत रािशफल 1. इस कंु डली में दशमेश मगं ल के साथ शक्र
ु स�म भाव अथार्त् के न्द्र में यिु त बना रहे हैं ।
िववेचन
2. शिन यहां पर लग्नेश और द्वादशेश होकर पचं मेश बधु के साथ भाग्य भाव में तल
ु ा रािश में
यिु त बना रहे हैं एवं शिन अपनी उच्च रािश में भी है ।
3. यहां पर नवमेश शक्र
ु तथा दशमेश मगं ल क� यिु त के न्द्र –ित्रकोण से सम्बिन्धत राजयोग
बनाती है ।
4. शिन बुध क� यिु त भी के न्द्र -ित्रकोण योग बना रही है ।
अतः इनको सामािजक लोक िप्रयता के साथ धनागमन भी ह�आ । यद्यिप यहां पर शा�ो�
बात यह है िक लग्नेश को शक्र
ु , बुध और पंचमेश प्रभािवत करें तो इस िस्थित में सफलता प्रा�
होती है ।
कुछ और िवशेष बातों को जानना आवश्यक है क्योंिक प्रथम भाव में अपने रािश में िस्थत
शिन जातक के शरीर क� सन्ु दरता को एवं प्रभाव को बढ़ाने में वृिद्ध करते हैं । तीसरी �ि�
तृतीय भाव पर होने से बल पराक्रम तथा भाई, बहनों के सख
ु में कमी प्रदान करती है । सातवीं
�ि� से स�मभाव को शिन देखते हैं जो िक अशभु कारक ही होती है पा�रवा�रक समस्याओ ं
को देने वाली होती है । हालांिक दशम �ि� भी अशभु कारक ही होता है । अब आपके सम�
एक उदाहरण कुण्डली प्रस्तुत है िजसमें जातक अिववािहत रहकर परु ा जीवन िबताया तथा
इसका िववाह ह�आ ही नहीं जब िक यह जातक क्लास वन का आिफसर था ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 10
12 रा .10
1 श . 11
9
2 8
च . बृह .
3 5 7
म.
के . 4 स.ू ब.ु श.ु 6
इस कुण्डली में भी बारहवें भाव के स्वामी लग्न भाव में िस्थत है तथा स�मभाव में मगं ल िस्थत
है सयू र् के घर में एवं राह� भी व्यय भाव में है ।
1. अ�म भाव में सयू र्, बुध, शक्र
ु क� यिु त है ।
2. यहां पर स�मभाव पर शिन क� पणू र् �ि� है जो क� िववाह के िलए बाधाय�
ु है । फलत:
इस जातक का िववाह नहीं हो पाया तथा आजीवन अिववािहत रहकर जीवन यापन करने
को मजबरु ह�ए ।
कभी - कभी द्वादशेश, लग्नेश और दशमेश का सम्बन्ध बह�त ही अच्छे फलों को प्रदान करता है
। प्रस्तुत उदाहरण में ये व्यि� सेना में िचिकत्सक थे । और यह कुण्डली भी कुम्भ लग्न क� है।
उदाहरण कुण्डली सख्ं या 11
90
12 सू .ब.ु के .10 �ादशभावगत धनु
2 श . 11 शु . आिद चाररािशयों का
फल
9
3 8
म.
3 5 7
बृह. च.
रा. 4 6

1. इस कुण्डली में बारहवें भाव के स्वामी लग्न में िस्थत हैं ।


2. ग्रहों के सेनापित मगं ल दशमभावस्थ स्वरािश है । तथा इनका कमर्�ेत्र यद्ध
ु सम्बिन्धत
कमर् को दशार्ता हैं ।
3. साथ ही दसवें भाव में वृि�क रािश है जो िक िचिकत्सा से सम्बिन्धत है तथा शिन क�
दशम �ि� अच्छे फलों को देती है । चिंू क बारहवां भाव भी िचिकत्सा से सम्बिन्धत है ।
4. अतः कुण्डली िवचार के अनसु ार यह कहा जा सकता है िक लग्न के स्वामी शिन तथा
मगं ल दोनों का सम्बन्ध दशमभाव में बन रहा है अतः िववेचन के आधार पर यह कहा जा
सकता है िक उपरो� ग्रहों के यिु त –��ी के फल स्व�प यह जातक जल सेना में एक
कुशल िचिकत्सक के �प में अपना योगदान िदये तथा सफल भी रहे ।
अब तो आप भलीभांित समझ गये होंगे िक बारहवां भाव भोग एवं मो� का साधन है, चंिू क
जब भी कुम्भ लग्न जन्मकुंडली में होगा तो लग्नेश एवं द्वादशेश शिन ही होंगे । द्वादशेश एवं
लग्नेश शिन का सम्बन्ध कम�श या कमर् भाव पर हो, तथा चन्द्रमा शक्र
ु क� रािश में नवम भाव
में िस्थत हों तो जीिवका स्वयं क� इच्छा से प्रा� होती है ।
"जातक पा�रजात के अनसु ार" दशमभाव का ग्रहण लग्न, चन्द्रमा और सयू र् से करना चािहए
लग्न से दशमभाव का स्वामी, और सयू र् से दशमभाव का स्वामी इन तीनों ग्रहों में जो सवार्िधक
बलवान हो उसके नवांश के स्वामी के अनसु ार जातक या जाितका को जीिवका प्रा� होती है ।
अब आपके समझ एक उदाहरण कुण्डली प्रस्तुत है िजसमें जाितका स्वयं के कला से अपना
जीिवकोपाजर्न िकया
उदाहरण कुण्डली संख्या 12
12 के . 10
1 11
9
2 8

3 बृह . 7
शु 5 च.
बु .सू .म. 4 शु .रा . 6
91
भागवत रािशफल 1. इस जन्म कुण्डली में कुम्भ लग्न है तथा द्वादशेश शिन हो रहे है, यह कुण्डली एक
िववेचन नृत्यांगना क� है िजन्होंने नृत्य कला से धनाजर्न एवं जीिवकोपाजर्न िकया तथा इनका
साधन यह कला बना ।
2. यहां पर शक्र ु और शिन के सम्बन्ध से ऐसी िवद्या प्राि� करके समाज में नम्रता पवू क
र्
प्रस्तुत क� ।
3. दशमभाव पर शिन क� �ि� है तथा दशमभाव के स्वामी मगं ल स�मेश सयू र् और बुध के
साथ चन्द्रमा क� रािश में ष�भाव में िस्थत है ।
4. चंिू क इस कला को इन्होंने अपने पित से ही �ानाजर्न िकया । इस कंु डली में दशम भाव के
स्वामी और स�मभाव के स्वामी एक ही साथ यिु त बना रहे हैं । फलत: इन्होंने नृत्य कला
से जीिवका चलाया ।
4.3.2 �ादशभाव�थ मकररािश में सयू ा�िद �हों क� ि�थित -यिु त-
�ि� फल
चंिू क यिु त -�ि� और िस्थित का फल तो पणू तर् या उदाहरण कुण्डली से ही प्रदिशर्त हो पायेगा
अतः यहां पर उदाहरण कुण्डली प्रस्ततु है जो स्वामी िववेकानन्द जी क� है । इस कंु डली में
बारहवें भाव में मकर रािश िस्थत है तथा लग्न में कुम्भ रािश है लग्नेश और द्वादशेश शिन ही
है।
जातक के कुण्डली में िद्वतीय भाव कुटुम्ब का होता है तथा चतथु र् भाव सख
ु ोपभोग का तथा
बारहवां भाव खचर्, दान,भोग एवं इन सभी से हटकर वैराग्य का भी होता है । साथ ही भोग-
िवलास से अलग एवं स्वयं के मन में वैराग्य का होना संन्यास कहलाता है ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 13
12 10
1 श.ु 11 स.ू रा.
म बु . 9

2 8
के . च.
3 5 श. 7
गु .
4 6
यह कुण्डली भी इस बात क� पिु � करती है िक इसमें संन्यास योग प्रचरु मात्रा में है ।
1. इस कंु डली में िद्वतीय भाव दोपाप ग्रहों के मध्य में है एक तरफ सयू र् है और दसू री तरफ
मगं ल है ।
2. ठीक चतथु र्भाव के साथ भी यही िस्थित है, यह भाव भी के तु और मगं ल से पाप मध्यत्व
है ।
92
3. बारहवां भाव भी पाप मध्यत्व ही है क्योंिक एक तरफ राह� है तथा दसू रे तरफ सयू र् है इन �ादशभावगत धनु
दोनों ग्रहों के मध्य में द्वादश भाव िस्थत है । आिद चाररािशयों का
फल
4. और भी चतथु र् भाव के स्वामी शक्रु , सयू र् क� यिु त और उनपर के तु क� �ि�, तथा के तु
िजस रािश में िस्थत है उनके स्वामी बुध का योग भी इसी प्रथम भाव में है । और ये सभी
योग स्वयं के घर से अलगाव योग का द्योतक है , अथार्त् घर से बाहर िनकलने का योग है

5. नवमभाव िस्थत बृहस्पित क� लग्निस्थत शक्र
ु पर �ि� अवश्य है परन्तु बृहस्पित पर मगं ल
क� �ि� होने के कारण तथा नवम भाव में शिन बृहस्पित चन्द्रमा क� यिु त होने के कारण
एवं नवमभाव पर के तु क� �ि� होने के कारण बृहस्पित अपने शत्रु शक्र
ु को कोई िवशेष
लाभ नहीं दे पा रहें है ।
6. पनु ः बारहवें भाव के स्वामी शिन तथा िद्वतीयेश बृहस्पित इन दोनों पर मगं ल एवं के तु क�
�ि� है, फलत: प�रवार से एवं भोग से अलगाव िसद्ध होता है । चंिू क चन्द्रमा पर शिन का
प्रभाव भी मन में वैराग्य उत्पन्न करता है इस प्रकार संन्यास योग िसद्ध ह�आ । िजसके
फलस्व�प ये महान संन्यासी बने ।
कुछ और बातों को जानने के िलए कुछ अन्य योगों को जानना आवश्यक है िजसमें िद्वतीय
तथा द्वादश भाव से सम्बिन्धत एक योग बनता िजसका नाम है "कतर्�र योग"
इस योग के दो भेद हैं ।
1. शभु कतर्�र :- यिद लग्न से िद्वतीय तथा द्वादश भाव में शुभ ग्रहों क� िस्थित है तो यह
िस्थित शभु कतर्�र होगा ।
2. पाप कतर्�र:- यिद इन्हीं स्थानों में पाप ग्रहों क� िस्थित हो तो यह योग पाप कतर्�र के नाम
से जाना जाता है ।
इन दोनों योगों का फल इस प्रकार समझना चािहए,शुभ कतर्�र में जन्म लेने वाला जातक तेज,
धन तथा बल से प�रपणू र् होता है और पापकतर्�र में जन्म लेने वाला जातक िभ�ा मांगने वाला
िनधर्न एवं कमजोर होता है । (जातक पा�रजात)
अब इस िवषय को उदाहरण के अनसु ार देखते हैं उदाहरण कुण्डली संख्या 14
12 श.ु बृह .10
1 रा. 11 बु .
सू 9
श. 2 8

म .3 के . 5 7

4 च.6
इस कंु डली में भी कुम्भ लग्न है तथा बारहवें भाव में मकर रािश िस्थत है िजसके स्वामी शिन
बन रहे हैं और वह सख ु भाव में वृषभ रािश में िस्थत हैं । चंिू क यह कुण्डली एक मन्ं त्री जी क�
93
भागवत रािशफल है इस कंु डली में शभु कतर्�र योग का िनमार्ण हो रहा है िजसके फल स्व�प इनको मन्ं त्री पद
िववेचन प्रा� ह�आ ।
1. यहां पर लग्न से िद्वतीय तथा द्वादश भाव में शभु ग्रह िस्थत हैं जैसे बारहवें भाव में
बृहस्पित है तथा िद्वतीय भाव में बृहस्पित के घर में शक्र
ु िस्थत हैं ।
2. इस िस्थित से यह तो स्प� होता है िक इस शभु प्रभाव के फल स्व�प लग्न तथा सयू र् लग्न
दोनों ही बल पा रहे हैं ।
3. बस यही नहीं चन्द्र लग्न भी बल क� प्राि� कर रहा है, क्योंिक बुध इन दोनों शभु ग्रहों शक्र

और बृहस्पित क� शभु कतर्�र में िस्थत है वह भी चन्द्रमा िजस रािश में िस्थत है उस रािश
का स्वामी बनकर अतः स्वाभािवक है िक इतना उच्च पद क� प्राि� ह�ई ।
अन्य िवषयों को जानने के िलए और योग देखते हैं जो िक वह भी बारहवें भाव से सम्बिन्धत
है।
यिद तुला, मकर या कुम्भ रािश में शिन के न्द्र में बैठा हो तो "शश" योग होता है । यह योग
व्यि� को धन तथा उच्च पदवी िदलाता है । यिद एक भी ग्रह उच्च रािश का हो अथवा स्व
रािश का हो और उस पर िमत्र ग्रह क� �ि� बनती हो तो वह व्यि� उच्चािधकारी एवं धनवान
होता है । मकर रािश के अलावा अन्य िकसी रािश में िस्थत होकर बृहस्पित लग्न में हों तो यह
उ�म राजयोग है । लग्निस्थत बृहस्पित क� पणू र् �ि� पंचमभाव (संन्तान) , स�मभाव (पत्नी),
तथा नवम भाव (भाग्य) पर पड़ती है अतः तीनों ही भावों को वृिद्ध करते हैं, िजससे जीवन
सख ु मय व्यतीत होता है । लग्न में तथा लग्न से दसू रे और बारहवें भाव में शभु ग्रह हों तो
राजयोग बनाते हैं । इसी प्रकार लग्न से छठे , सातवें, और आठवें भाव में शभु ग्रह हों तो
राजयोग बनाते हैं िजसे लग्नािधयोग भी कहते हैं ।
अब यहां पर एक उदाहरण कुण्डली प्रस्तुत है िजसमें कंु भ लग्न है तथा बारहवें भाव के स्वामी
शिन है, शिन बृहस्पित के घर में लाभ स्थान में िस्थत हैं। यह कुण्डली महाराजा सबल िसहं
जैसलमेर क� है ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 15
12 म. के .11
बृ. 1 11 श.
9
2 8

3 सू . 5 7

रा . 4 शु . बु . 6 च .
1. इस कंु डली में लग्नेश शिन लाभ भाव में िस्थत होकर लग्न को तृतीय �ि� से देख रहे हैं ।
िजससे लग्न बली हो रहा है और शिन पर बृहस्पित क� नवम �ि� भी बन रही है । अथार्त्
शिन को ग� ु भी अपना बल प्रदान कर रहे हैं ।
2. दो ग्रह मगं ल और बुध अपने उच्च रािश में िस्थत है तथा सयू र् स्वगृही हैं ।
94
3. दशमेश मगं ल और नवमेश शक्र ु में आपस में �ि� सम्बन्ध बन रहा है िजसके कारण श्री �ादशभावगत धनु
सबल िसंह एक बीर साहसी और �ढ़ िन�य वाले महान व्यि� थे । उन्होंने सम्पणू र् जीवन आिद चाररािशयों का
फल
में अपने प्रबल पराक्रम से किठनाइयों का सामना िकया ।
ठीक इसी िस्थित में महाराजा महाद जी िसन्धे क� है िजसमें अनेकों राजयोग दशार्ती हैं इस
कंु डली में भी कुम्भ लग्न है तथा लग्नेश एवं द्वादशेश शिन भाग्य भाव में उच्च रािश के होकर
िस्थत हैं ।
उदाहरण कुण्डली सख्ं या 16
12 10 के .
स.ू 1 11 बृ .
म. 9
बु . शु . 2 च. 8

3 5 7
श.
रा . 4 6
1. इस कंु डली में दो ग्रह सयू र् और शिन अपने उच्च रािश में है ।
2. तीन ग्रह अपने स्व रािश के हैं । मगं ल, बृहस्पित, और शक्र
ु ।
3. तीन शभु ग्रह के न्द्र में है तथा के न्द्र में कोई पाप ग्रह नहीं है ।
4. पचं मेश बधु और नवमेश शक्र ु का योग दोनों ित्रकोण योग बना रहा है ।
5. दशमेश अथार्त् , राज्येश मगं ल पराक्रम स्थान में स्वरािश का होकर उच्च रािशस्थ सयू र् के
साथ है । जो महान पराक्रमी और महान बलशाली बनाता है ।
6. लाभभाव में बृहस्पित स्व रािश में िस्थत होकर सयू र् और मगं ल को अपनी पांचवीं �ि� से
देख रहे है । अथार्त् बल प्रदान कर रहे हैं ।
7. लग्नेश शिन भाग्य भाव में उच्च रािश में है ।
अतः महाद जी महापराक्रमी, तेजस्वी, िवशाल भिू म, अिधपित, आदशर्वादी और उदार �दय
वाले सािबत ह�ए ।

4.4 �ादश भाव�थ कु�भरािश फल


बारहवें भाव में कुम्भ रािश िस्थत हो तो उसके स्वामी शिन होते हैं जो खचर् अिधक करवाते हैं
तथा अन्य बाहर के व्यवसाय से इस जातक को लाभ होता है । अगर यिद शिन इसी भाव में
कुम्भ रािश में िस्थत हों तो इनक� �ि� धन भाव पर होगी िजससे जातक को पा�रवा�रक िचंता
रहती है स�म �ि� से शत्रु भाव को शिन देखते हैं िजसके फलस्व�प जातक प्रयास करके
अपने शत्रओु ं पर िवजय प्रा� कर लेता है । दशवीं शत्रु �ि� से शिन शिन नवमभाव को देखते हैं
िजसके फलस्व�प जातक के भाग्योन्नित में समस्या आती है किठन प�रश्रम के बाद जातक का
भाग्योदय होता है तथा यश एवं कृ ित में भी किठनाई का सामना करना पड़ता है । वैसे तो
95
भागवत रािशफल द्वादशभावस्थ कुम्भ रािश का सामान्य फल इस प्रकार समझना चािहए ।
िववेचन
बारहवें भाव में कुम्भ रािश िस्थत हो तो जातक को क्रोध अिधक आता है तथा सहयोग प्रा� होने
के बाद और अिधक तुल पकड़ लेता है परन्तु उसका क्रोध तुरन्त ही शान्त भी हो जाता है
,िजसके कारण वह दसू रों को प्रभािवत करके िमत्र बना लेता है । द्वादशेश शभु िस्थित में हों तो
जातक के बाच-िचत करने क� शैली अच्छी होती है तथा लेखन इत्यािद कायर् करने से लाभ होता
है । परन्तु ऐसे जातकों में शमर् तथा भय अिधक होने के कारण समाज के सामने अपनी कला को
अच्छी तरह न रख पाने के कारण नक ु सान भी होता है । परन्तु अन्तमखर्ु ी होने के साथ शा�ों का
�ाता होता है । अशभु िस्थित का शिन एवं अशुभकारक योग होने पर जातक को आन्त�रक
समस्याएं होती हैं िजसके कारण परे शान रहता है तथा अपना सम्मान खो बैठता है क्योंिक उसके
िसद्धान्तों के कारण ही उसको लोग गलत समझ लेते हैं जबिक वह गलत नहीं होता है, ऐसे
जातक को पा�रवा�रक सख ु भी पणू तर् या नहीं िमल पाता है । परन्तु िफर भी आपसी तालमेल ठीक
होता है, साथ ही इनके पैरों में ददर् रहती है िजसके कारण परे शान रहते हैं ।
4.4.1 �ादशभाव�थ कु�भरािश में �ययेश क� ि�थित-युित-�ि� फल
िमत्रों बारहवें भाव से मरणोपरांत व्यि� के मो� का �ान भी िकया जा सकता है जन्मकुंडली
के ग्रह िस्थत अनसु ार व्यि� स्वगर् प्रा� करेगा या नरकगामी होगा इन सभी िवषयों को �ात कर
आप बता सकते हैं िक मरने के बाद यह जातक कहां गया । चंिू क यहां पर िसफर् नरक
लोकगामी योग को कहे हैं ।
िजस व्यि� क� कुण्डली में राह� आठवें भाव में कमजोर िस्थित में हो और छठें अथवा आठवें
घर का स्वामी राह� को देख रहा हो तो नरक प्राि� योग बनता है । बृहद् पराशर होराशा� के
अनसु ार िजनक� कुण्डली में पाप ग्रह यानी सयू र्, मगं ल, शिन, राह� बारहवें घर में हो अथवा
बारहवें घर का स्वामी सयू र् के साथ हो वह मृत्यु के बाद नरकगामी होता है । बारहवें घर में राह�
अथवा शिन के साथ आठवें घर का स्वामी िस्थत हो तब भी नरक प्राि� योग बनता है ।
बारहवें भाव में िमत्र शिन क� रािश में िस्थत राह� के फल अशभु कारक ही है । जातक को
अपना खचर् चलाने में किठनाइयां होती है परन्तु अपने िहम्मत और बल पराक्रम से सभी
समस्याओ ं पर िवजय प्रा� करने का प्रयास करता है । परन्तु कहीं से भी इसको लाभ नहीं
िमलता बह�त कम ही लोग इसक� सहायता करते हैं । के तु के फल भी राह� के समान समझना
चािहए ।
वस्तुत: व्ययेश क� िस्थित -यिु त-�ि� का फल तो आप को उदाहरण कुण्डली के अनसु ार ही
समझने आसानी होगी । अतः यहां पर एक कुण्डली प्रस्ततु है जो िक एक महान सन्त क� है।
उदाहरण कुण्डली संख्या 17
रा . 1 11
2 12 श .10

3 म.9

4 बृह .शु .6 8

5 सू .च .बु .के .7
96
1. इस कंु डली में मीन लग्न है तथा बारहवें भाव में कुम्भ रािश िस्थत है । इस प्रकार बारहवें �ादशभावगत धनु
भाव पर के तु क� पंचम �ि� है, जो िक अ�म भाव में िस्थत है । और इस �ि� में सयू ार्िद आिद चाररािशयों का
फल
पापी ग्रह तथा पृथकता जनक ग्रहों का प्रभाव भी सिम्मिलत हैं ।
2. द्वादशेश शिन पर भी सयू र् आिद पृथकता जनक ग्रहों का के न्द्रीय प्रभाव है । इस प्रकार
द्वादश स्थान तथा उसके स्वामी का पृथकताजनक ग्रहों के प्रभाव में आना भोगों से
पृथकता िदलाता है ।
3. अब रही मानिसक वैराग्य क� बात तो देिखए बिु ध्द के द्योतक जो मन का चतथु र् भाव का
स्वामी होते ह�ए भी मन के कारक चन्द्र के साथ हैं और दोनों पर शिन क� पणू र् �ि� है इसी
�ि� के फलस्व�प स्वामी जी के मन में उ�म वैराग्य क� िस्थित बनी इस प्रकार इस
कंु डली में त्याग और वैराग्य योग दोनों क� उपिस्थित िसद्ध ह�आ । और भी कुटुम्ब से
पृथक् स्वामी जी के होने का कारण यह है िक िद्वतीय भाव में पृथकताजनक राह� िवद्यमान
है । तथा शिन क� िद्वतीय भाव से के न्द्र में िस्थित भी वही कुटुम्ब से पृथकता का कायर् कर
रही है । िद्वतीय भाव के स्वामी मगं ल पर भी राह� क� नवम �ि� है । चतथु र् भाव पर राह�
अिधि�त रािश के स्वामी मगं ल क� पणू र् �ि� है और चतथु �श बुध, के त,ु सयू र् तथा पापी
चन्द्र से य�ु पृथकता जनक शिन से पणू र् �� है । इस प्रकार प�रवार, गृह जायजात से
पृथकता ह� ई। अतः पज्ू य मिु नवर श्री स्वामी रामतीथर् जी महाराज परम सन्त बनें ।
और भी कुछ बातों को जानना आवश्यक है इसिलए बारहवें भाव से सम्बिन्धत जो भी भाव
होगा उस भाव के ग्रहों से यिु त-�ि� और िस्थित का फल अलग-अलग होगा ।
अब यहां पर एक उदाहरण कुण्डली प्रस्तुत है िजसमें बारहवें भाव में कुम्भ रािश िस्थत है तथा
मीन लग्न क� एक मिहला डाक्टर क� कुण्डली है जो प्रसिू त शा� िवशारद थी ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 18
1 बृह. सू .के .श .11
च.2 श.ु 12 बु .
10
3 9

4 6 8

रा . 5 म.7
इस कंु डली में लाभेश और व्ययेश शिन है जो िक स्वयं के घर में बारहवें भाव में िस्थत हैं ।
कुण्डली में दशमेश बृहस्पित पर शिन क� �ि� है तथा एकादशेश शिन क� सयू र् के साथ यिु त है
। लग्न में अ�मेश शक्र
ु उच्च रािश में िस्थत है । दशमेश और लग्नेश बृहस्पित िजस रािश में
बैठे है उस रािश का स्वामी मंगल अ�म भाव में िस्थत है फलत: यह प्रसिू त रोग िवशेष� बनी।
कभी-कभी द्वादशेश के साथ यिु त -�ि�- और िस्थित का फल बह�त ही अलग देखने को
िमलता है । प्रस्तुत कुण्डली एक डाक्टर क� है िजन्होंने दो िववाह िकया ।
उदाहरण कुण्डली सख्ं या 19
97
भागवत रािशफल
1 के . 11
िववेचन
2 बृह .12 10 श .
शु .
3 सू .बु . 9

4 म. च. 8 6
5 रा . 7

यह कुण्डली भी मीन लग्न क� है लग्नेश स्वयं के घर में िस्थत है । तथा द्वादश भाव में कुम्भ
रािश िस्थत है िजसके स्वामी शिन है ।
स�मभाव में दो ग्रह है चन्द्रमा एवं मगं ल, स�मेश बुध िद्वस्वभाव रािश धनु में क्रूरग्रह से य� ु
होकर दशमभाव में हैं । तथा उसपर मगं ल क� पणू र् �ि� है ।
शक्रु द्वादशेश पापी ग्रह शिन क� रािश में लाभ स्थान में िस्थत है । द्वादश भाव कुण्डली में दसू री
पत्नी का भाव समझा जाता है फलत: इस डाक्टर साहब का दो िववाह ह�आ ।
चंिू क बारहवें भाव से नेत्र िवकार, एलज�, पोिलयो, पेट में चोट, पैर हड्डी टूटना इत्यािद बातों
पर भी िवचार करना चािहए परन्तु द्वादशेश शिन का सम्बन्ध िद्वतीय भाव पर हो तो जातक
हकलाकर बोलने वाला होता है यहां पर एक उदाहरण कुण्डली प्रस्ततु है िजसमें यह जातक
अपनी बातों को पणू तर् या रख नहीं पाता है तथा बोलने में हकलाता है ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 20
1 श . 11
2 रा . सू .म . बु .12 शु .
10
बृ. 3 च . 9

4 6 के .
8
5 7

इस कंु डली में भी बारहवें भाव के स्वामी शिन स्वयं के घर में इसी भाव में िस्थत हैं ।
तथा प्रथम भाव में सयू र्, मगं ल, बुध िस्थत हैं एवं लग्न को के तु देख रहे हैं । चन्द्रमा से राह�
बारहवें भाव में िस्थत है । अतः यह लड़का बोलने में हकलाता है ।
यहां पर शिन क� �ि� िद्वतीय भाव पर हो रही है और वाणी का कारक बुध, सयू र् यहां पर मंगल
के द्वारा पीिड़त हैं ।

98
4.4.2 �ादशभाव�थ कु�भरािश में सूया�िद �हों क� ि�थित -युित- �ादशभावगत धनु
आिद चाररािशयों का
�ि� फल फल
आपको अब इस बात क� पणू र्तया जानकारी हो गयी होगी िक बारहवां भाव व्यय भाव है इसमें
जो भी िवचार होगा वह खचर् उपभोग एवं मो� का ही होगा इस भाव में अिधकांश ग्रह अशभु
फल ही प्रदान करते हैं ।
1. बारहवें भाव में सयू र् कंु भ रािश में िस्थत हों तो सयू र् के प्रभाव से जातक को अपना खचर्
चलाने में परे शानी उठानी पड़ती है । एवं बाहरी कारोबार से भी परे शानी ही रहती है शत्रु
प� भी समस्या पैदा करता रहता है हालािं क सयू र् क� �ि� इस भाव पर तब होगा िक जब
सयू र् ष�भाव में िस्थत होगा इस �ि� का फल भी बह�त शभु कर नहीं होता है जातक
परे शान ही रहता है । तथा शत्रु प� से पीिड़त रहता है ।
2. द्वादश भाव िस्थत शत्रु क� रािश कंु भ में चन्द्रमा िस्थत हों तो इनके प्रभाव से जातक का
खचर् अिधक तो होता है परन्तु बाहरी समथर्न से लाभ भी िमलता है । अपने सन्तान से
क� तथा यह जातक पढ़ने -िलखने में कमजोर होता है एवं मानिसक कमजोरी भी रहती है
यही चन्द्रमा ष�भाव में िस्थत में होकर बारहवें भाव को पणू र् �ि� से देखते है िजसका फल
िनराशा ही हाथ लगती है तथा जातक परे शान रहता है ।
3. बारहवें भाव में िस्थत मगं ल कुम्भ रािश में शत्रु गृही होंगे िजसका फल जातक के खच�
अिधक होते हैं तथा बाहरी सम्बन्धों से लाभ होता है चिंू क प�रवार में सखु क� कमी तो
रहती ही है साथ ही भाग्योदय तथा उन्नित कम होती है । चौथी शत्रु �ि� से तृतीय भाव
पर �ि� होती है िजसके कारण भाई बहनों का सख ु तो कम िमलता है परन्तु जातक
पराक्रमी अवश्य होता है । सातवीं शत्रु �ि� से ष�भाव पर �ि� का फल अपने शत्रओ ु ं को
जातक कमजोर करके अपना कायर् िसद्ध कर लेता है । आठवीं िमत्र �ि� से स�मभाव
भाव को देखने से �ी तथा स्वयं के व्यवसाय से लाभ प्रा� होता है अगर यिद मगं ल क�
�ि� बारहवें भाव पर हो तो अशभु कारक फल समझना चािहए । परन्तु यह फल तभी प्रा�
होगा जब मगं ल ष�भाव में िस्थत होकर स�म �ि� से बारहवें भाव को देखता हो तो ।
4. द्वादश भाव िस्थत कुम्भ रािश में बधु क� िस्थित िमत्र गृही होने के कारण जातक के िलए
शभु -अशभु दोनों प्रकार के फल प्रा� होते हैं । व्यय क� अिधकता तो रहती है परन्तु आय
भी होती रहती है, िफर भी माता सख ु , भिू म भवन सख ु , घरेलु समस्या , तथा व्यापार में
िदक्कतें आती रहती है । सातवीं िमत्र �ि� से ष�भाव को बुध देखते िजसका फल जातक
शत्रओु ं पर िवजय प्रा� करता है तथा धैयर्वान एवं साहसी होता है । बुध क� �ि� अगर
यिद द्वादश भाव पर हो तो जातक का खचर् तो होगा लेिकन आमदनी भी होगी परन्तु यह
फल तभी होगी जब बुध ष�भाव में िस्थत हों ।
5. बारहवें भाव में शत्रु शिन के घर कुम्भ रािश में िस्थत बृहस्पित का फल अशभु कारक ही
जानना चािहए । शारी�रक सौंदयर्, स्वास्थ्य, िपता, राज्य तथा व्यवसाय के सख ु तथा लाभ
में कमी रहती है । परन्तु पांचवीं िमत्र �ि� से चतथु र् भाव पर �ि� होने से मातासखु ,गृह
भवन वाहन इत्यािद का सख ु प्रा� होता है । सातवीं िमत्र �ि� से ग�ु ष�भाव को देखते हैं
िजसके फलस्व�प जातक अपने शत्रु तथा रोग पर िवजय प्रा� करने वाला होता है । नवीं
शत्रु �ि� से अ�म भाव को देखने से आयष्ु य क� वृिद्ध होती है तथा जीवन प्रभावशाली
99
भागवत रािशफल बना रहता है परन्तु अगर यिद बारहवें भाव को बृहस्पित स�म �ि� से देखते हैं तो फल
िववेचन अशभु कारक समझना चािहए लेिकन यह फल तभी समझना चािहए जबिक बृहस्पित
ष�भाव में िस्थत हों ।
6. व्ययभावस्थ शक्र
ु कुम्भ रािश में िमत्र गृही िस्थत हो तो जातक स्वभावत: अच्छा होता है
आमदनी भी होती रहती है । परन्तु भाई बहन के सख ु में कमी रहती है । सातवीं शत्रु �ि�
से ष�भाव को देखते हैं फलत: रोग एवं शत्रओ ु ं पर िवजय प्रा� कर लेता है। ऐसा व्यि�
झगड़ालू स्वभाव का नहीं होता है तथा इससे दरू रहता है । शक्र ु अगर यिद बारहवें भाव
को स�म �ि� से देखते हैं उसके प�रणाम बह�त अच्छा होता है यह िमत्र �ि� होती है
जातक को बाहरी समथर्न एवं प�रचय से धन लाभ होता रहता है परन्तु यह फल तभी
होगा जब शक्र
ु ष�भाव में िस्थत हों ।
7. द्वादश भाव में अपनी ही रािश कंु भ में िस्थत शिन के फल अच्छे होते हैं, परन्तु तृतीय
नीच �ि� से िद्वतीय भाव को देखते हैं िजसके फलस्व�प जातक धन तथा प�रवार क�
िचंता करता रहता है । स�म शत्रु �ि� से ष�भाव को देखते हैं अतः अपने शत्रओ ु ं पर
किठनाइयों के साथ सफलता प्रा� करता है । दशवीं शत्रु �ि� से नवमभाव को शिन देखते
हैं िजससे भाग्योदय देर से होती है तथा यश और क�ितर् क� हािन सम्भव होता है । शिन
ष�भाव में िस्थत हों तो इनक� स�म �ि� बारहवें भाव पर होगी िजसका फल मध्यम
समझना चािहए ।
8. द्वादश भाव में अपने िमत्र शिन के रािश में िस्थत राह� के फल स्व�प जातक को अपना
खचर् चलाने में काफ� समस्याओ ं का सामना करना पड़ता है। परन्तु अपने िहम्मत से तथा
धैयर् एवं प�रश्रम से सफलता प्रा� करने का प्रयास करता रहता है तथा कभी लाभ होता
तथा कभी हािन होती है
इसी प्रकार द्वादश भाव िस्थत के तु का फल भी समझना चािहए।
आप को कुण्डली देखकर सोच िवचार करके सही फलादेश ही करना चािहए जहां तक शिन
का िवचार है तो जब मनोद्योक, अगं ों , चतथु र्भाव, चतथु �श तथा चन्द्रमा पर शिन का प्रभाव
हो और लग्न तथा लग्नों से नवम भाव के स्वािमयों का परस्पर सम्बन्ध हो तो जातक महान
आध्याित्मक जीवन का स्वामी होता है ।
कुछ और भी बातों को इस प्रकार समझना चािहए िक िकसी ऐसे ग्रह आिद पर, जो िकसी
व्यि� का परू ा प्रितिनिधत्व करता हो, यिद अिग्न द्योतक ग्रहों अथवा लग्नेश, पंचमेश, एवं
नवमेश का प्रभाव हो तो मनष्ु य का शरीर अिग्न से भयय� ु रहता है ।
जन्मकुंडली में लग्न क� िस्थित ठीक हो और दशमभाव तथा दशमेश, पंचमभाव तथा पंचमेश
एवं नवमभाव भाग्येश और द्वादश भाव एवं द्वादशेश भी अच्छी िस्थित में हों तो इस योग वाले
जातक लोकिप्रय तथा अिधक उन्नित करके अच्छे पद को प्रा� कर लेते हैं । यहां पर एक
कुण्डली प्रस्ततु है िजसमें द्वादशेश शिन अपनी ही रािश कंु भ में इसी भाव में िस्थत है तथा मीन
लग्न क� यह कुण्डली है । यह कुण्डली िबहार के भतू पवू र् मख्ु यमत्रं ी डॉ. जगन्नाथ िमश्र जी क�
है ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 21
100
1 श . 11 �ादशभावगत धनु
शु . 2 10 आिद चाररािशयों का
फल
म. 12 रा
सू . 3 9

के .4 8
बु . बृह. 6 च.
5 7
इस कंु डली में दो ग्रह द्वादशेश शिन और पराक्रमेश शक्र
ु अपनी ही रािश में िस्थत हैं ।
लग्न और राज्य स्थान का स्वामी होकर बृहस्पित स�म स्थान के न्द्र में िस्थत होकर लग्न पर
पणू र् �ि� डाल रहे हैं । दशमभाव से प्रिसिद्ध भी देखी जाती है । बृहस्पित ऊंचा पद और प्रिसिद्ध
दोनों प्रदान कर रहे हैं ।
भाग्येश भाग्य भाव को देख रहे हैं िजससे भाग्य भाव को बल प्रदान हो रहा है, भाग्य भाव में
चन्द्रमा का नीचभगं राजयोग है, क्यों िक नीच रािश वृि�क का स्वामी मगं ल चन्द्रमा से के न्द्र में
है । राज्य और प्रिसिद्ध के कारक सयू र् के न्द्र में हैं तथा दशमभाव पर इनक� पणू र् �ि� है ।
पंचमेश चन्द्रमा और नवमेश मंगल में परस्पर पणू र् �ि� है, एवं ित्रकोण योग भी है । मगं ल पर तो
लग्नेश, दशमेश क� शभु �ि� भी है । चन्द्रमा, मगं ल, शक्र ु में सम्बन्ध पचं मेश, भाग्येश और
तृतीयेश के योग क� सृि� हो रही है फलत: जातक अपने पराक्रम (तृतीयेश) से बुिद्ध (पंचम) से
धन (िद्वतीय) और भाग्य (नवम) क� वृिद्ध करता है, ऐसा जानना चािहए । अतः इस िववेचन के
आधार पर यह कहा जा सकता है इनको सामािजक तथा लोकिप्रय उच्च पद क� प्राि� ह�ई ।
अब कुछ अन्य िनयमों के बारे में देखते हैं िजस भाव का िवचार करना है अगर उसका भावेश
अथार्त् उस भाव का स्वामी शभु ग्रहों से य� ु एवं वीि�त हो, तो भाव क� वृिद्ध करता है ।
अगर भावेश पाप ग्रहों से य� ु या उसपर पापा ग्रहों क� �ि� हो तो िवचारणीय भाव क� हािन
होती है । फल कथन में भाव भावेश के अलावा भाव के कारक का भी उतना ही महत्व है
िजतना िक शरीर में प्राण का यिद िवचारणीय भाव, भावेश और भावकारक , पाप ग्रहों से य� ु
एवं �� हों अथवा पाप ग्रहों के मध्य में हों अथवा िवचारणीय भाव से 4 , 5, 9 ,8,12 वें
स्थानों में पाप ग्रह हो तो उस भाव क� हािन करते हैं । उदाहरण के तौर पर कुण्डली में स�म
भाव से पत्नी सख ु के बारे में िवचार करना है तो ,अगर स�मभाव और स�मेश पर शभु प्रभाव
हो परन्तु स�मभाव के कारक शक्र ु पर अशुभ प्रभाव हो तो �ी सख ु में कमी आयेगी । इसी
प्रकार अन्यत्र भी समझना चािहए ।
लग्न में तथा लग्न से दसू रे और बारहवें भाव में शभु ग्रह िस्थत हो तो राज योग बनाते हैं, इसी
प्रकार लग्न से छठें , सातवें, और आठवें भाव में शभु ग्रह हों तो भी राजयोग बनाते हैं िजसे
लग्नािधयोग कहते हैं । अब यहां पर कुण्डली प्रस्तुत है । जो िक महाराजा पिटयाला िद्वतीय क�
है । इस कंु डली में भी बारहवें भाव में कुम्भ लग्न है तथा इसी भाव में शक्र
ु िस्थत है ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 22

101
भागवत रािशफल 1 शु . 11
िववेचन
श. 2 रा . 12 10

3 बृ.च .सू .म .
बु . 9
4 के . 6 8

5 7
इस कंु डली में नवमेश मगं ल और दशमेश बृहस्पित का दशमभाव में योग राजयोग बनाता है ।
कुण्डली में लग्नेश बृहस्पित, पंचमेश चन्द्रमा, और नवमेश मगं ल का दशमभाव में योग अन्य
राज योग बनाता है ।
कुण्डली में चतथु �श बुध का पंचमेश चन्द्रमा के साथ दशमभाव में योग एक और राजयोग
बनाता है । फलत: एक कुशल, िववेकशील,चतरु राज्य कतार् थे ।
परन्तु द्वादश भाव में शक्र
ु और उसके उपर शिन क� दशम �ि� जातक को भोग िवलास का
शौक�न तथा िफजल ु खचर् ज�रत से अिधक दानी बनाती है । अतः महाराजा दानी भी थे।
और भी िवषयों को इस प्रकार समझना चािहए नीच ग्रह िजस रािश में नीच का होकर बैठा है,
यिद उस रािश का स्वामी भी नीच रािश में िस्थत हों तो सवर्प्रथम नीच ग्रह िजस रािश में िस्थत
हों तो उसको बह�त हािन पह�चं ती है ।
उदाहरण के िलए यिद िकसी व्यि� के लग्न में सयू र् नीच का अथार्त् तुला रािश का होकर बैठा
हो तो और नीच रािश तुला का स्वामी शक्र ु पनु ः द्वादश भाव में कन्या रािश में नीच का होकर
िस्थत हों तो प्रथम नीच ग्रह सयू र् िजस भाव में िस्थत हैं उनको अथार्त् लग्न को बह�त हािन
पह�चं ेगी, इस हािन का अथर् व्यि� क� अल्पायु इत्यािद लग्न सम्बिन्धत बातों में िमलेगा ।
एक और उदाहरण प्रस्तुत है िजसमें मीन लग्न क� कुण्डली में िद्वतीय भाव में मेष रािश में
द्वादशेश शिन नीच का होकर बैठा है और उस नीच रािश मेष का स्वामी मगं ल पचं म भाव में
पनु ः नीच का होकर िस्थत है तो ऐसी िस्थित में िद्वतीय स्थान सम्बिन्धत िवषयों क� हािन होगी
। चंिू क िद्वतीय और पंचम में वाणी एक सा�ी ही है अतः इस व्यि� क� वाणी में हकलाना,
अस्प�ता इत्यािद कोई न कोई दोष अवश्य होगा ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 23
च .1 बृ. श . 11
2 12 के . 10

श ु . 3 सू . 9

बु .4 म . 6 8

5 रा . 7
102
इस कुण्डली में यहां शिन िद्वतीय भाव में नीच नीच रािश के िस्थत हैं और मेष रािश के स्वामी �ादशभावगत धनु
मगं ल पंचम भाव में नीच के होकर िस्थत हैं अतः यह जातक बह�त ही अस्प� तथा कटु भाषी आिद चाररािशयों का
फल
है। (जातकालकं ार �ोक सख्ं या 37)

4.5 �ादशभाव�थ मीनरािश फल


बारहवें भाव में मीन रािश िस्थत हो तो जातक परु ाण आिद धमर् ग्रथं ों में �िच रखनेवाला होता है
साथ ही धािमर्क प्रथाओ ं एवं परम्परा पर चलने वाला होता है । परन्तु दसू रों पर अिधकार
जताने में भी पीछे नहीं हटते हैं यद्यिप ये परािश्रत होते हैं िफर भी उनके चेहरे पर स्वतन्त्रता का
आभास रहता है । ये अपने व्यवहार में न्याय परायण होते हैं और सत्य का पालन करते हैं,
परन्तु इन सबके बावजदू इनमें आत्मिव�ास का अभाव होता है । "चमत्कार िचन्तामिण" के
अनसु ार यह भाव शभु यतु हो तो इसके प�रणाम अच्छे होते हैं । जातक िवजय प्रा� करता है ।
िकन्तु इसके शत्रु बह�त होते हैं िफर भी शत्रओ ु ं के द्वारा लाभ भी होता है । जीवन का पवू ार्धर्
संघषर् य� ु होता है िकन्तु िजवन के मध्य अवस्था के बाद जातक को लाभ िमलना आरम्भ हो
जाता है । इसी भाव में बृहस्पित िस्थत हों तो जातक वैद्य, धमर्ग�ु , वैिदक, लोकसेवक इत्यािद
पद प्रा� करता है । बारहवें भाव में बृहस्पित पीिड़त हों तो िववाह या वैवािहक जीवन में
समस्या होती है, अपने लोगों से झगड़े होते हैं, द:ु ख होता है । �य रोग होता है, धन व्यय होता
है, प्रवास होता है, राजभय होता है, यह जातक िनधर्न तो होता है परन्तु गिणत िवद्या को जानने
वाला होता है, पत्रु कम होते हैं, मानिसक िवकृ ितयों के कारण गिभर्णी �ी के साथ सहवास
और सगं म करनेवाला होता है । परन्तु इसी भाव में बृहस्पित शभु िस्थित में हों तो धमर् में खचर्
करनेवाला, लोक िहतकारी और देशसेवक होता है इसको मरणोपरांत स्वगर् लोक क� प्राि�
होती है तथा अशुभ बहस्पित इसी भाव में िस्थत हों तो जातक नरकगामी होता है । चंिू क द्वादश
स्थान का सम्बन्ध परोपकार तथा िव� प्रेस से है । अतः यह भाव शभु होने पर जातक
सावर्जिनक संस्थाओ ं में कायर्कतार्, हास्पीटल, धािमर्क संस्थाएं इत्यािद के व्यवस्थापक,
थानाध्य� इत्यािद पद प्रा� करके समाज सेवी बनता है, परन्तु देशत्याग, अ�ातवास तथा
दरू प्रदेशों में िनवास से क�ितर् तथा लाभ प्रा� होता है । ठीक इसी भाव में ग�ु कन्या, मकर तथा
वृि�क रािश में िस्थत हों तो बह�त ही अशुभ फल प्रदान करते हैं । जातक आलसी, िववेक
हीन,िकसी सावर्जिनक सस्ं था में जीवन व्यतीत करनेवाला होता है । िवशेष �प से बृहस्पित
उच्च रािश या स्वगृही होकर प्रथमभाव, ष�भाव, अ�मभाव, दशमभाव, एकादश भाव,और
बारहवें भाव में िस्थत हों तो मनष्ु य ब्र��ानी होता है । और भी िवशेष बात यह है िक
1,2,5,9,12 वें भाव में पाप ग्रह िस्थत हो तो बन्धन योग का िनमार्ण होता है परन्तु इन भावों
पर बृहस्पित क� �ि� हो तो सभी प्रकार के द:ु खों का नाश होता है ।
4.5.1 �ादशभाव�थ मीनरािश में �ययेश क� ि�थित -युित-�ि� फल
यिद चन्द्रमा से बृहस्पित 6, 8, 12 वें भाव में िस्थत हों और चन्द्रमा ित्रकोण या के न्द्र में नीच के
होकर िस्थत हों, या शत्रु वगर् में िस्थत हों तो द�रद्रता होती है । नवम भाव में सयू र् नीच का हो
और मगं ल 8 वें भाव में हों तो अत्यिधक द�रद्रता का कारण होता है । यिद मेष रािश में सयू र्
पाप ग्रह से �� हों और नवाश ं में नीच के हों, अथवा यिद शक्र ु रािश और नवाश ं दोनों ही में
कन्या रािश में हों तो िभखारी का जन्म होता है । जब लग्न में धन,ु मीन, िसंह या वृषभ रािश हो,
बृहस्पित नवमािधपित से बली हों और एकादशेश कमजोर या दाह में हों और के न्द्र से
103
भागवत रािशफल अित�र� िकसी अन्य भाव में हों तो साधारण जातक द�रद्र प�रिस्थितयों में रहने वाला होता है।
िववेचन यिद बृहस्पित से 2, 4, या 5 वें भाव में पाप ग्रह िस्थत हो तो जातक गरीब होगा, यिद लग्न
भाव में सयू र् या चंद्रमा पर िद्वतीयेश या स�मेश क� �ि� हो तो भी यही फल होता है । बारहवें
भाव में नवमािधपित, िद्वतीय भाव में द्वादशेश, और तीसरे भाव में पाप ग्रह िस्थत हो तो जातक
द�रद्र और क� में रहता है ।
द्वादशेश उच्च का हो या िमत्र गृही हो तो जातक उदार होगा, यिद उ�म िस्थित में िस्थत
नवमािधपित के साथ सम्बिन्धत हो तो जातक भाग्यशाली होता है । 12 वें भाव में शभु ग्रह
िस्थत होने पर जातक कंजसू और अपने धन के प्रित सावधान रहता है । बृहस्पित से ��
द्वादशेश, चौथे भाव में हो तो दानशीलता का सक ं े त िमलता है । यिद लग्न और नवमािधपित के
बीच प�रवतर्न योग हो तो जातक धमार्थर् और पिवत्र काय� में िनरत रहता है । यिद
नवमािधपित 12 वें भाव में हों तो जातक धमर्स्थलों क� यात्रा करने दान करने में प्रगितशील
होता है । यिद नवमािधपित नवमांश में शभु ग्रह के साथ य� ु हो अथवा उच्च का बुध के न्द्र या
11वें भाव में िस्थत हों तो जातक मानव प्रेमी होता है ।
द्वादशेश के साथ अन्य भावों के सम्बन्ध से अलग -अलग फल प्रा� होते हैं । चंिू क यिु त -�ि�-
िस्थित का फल तो पणू तर् या उदाहरण कुण्डली से ही समझना आसान होगा । परन्तु भाव से
सम्बिन्धत कुछ िवशेष िनयम भी िनधार्�रत है अतः इसको देखते हैं । िमत्रों यहां पर बात हो रही
है बारहवें भाव क� परन्तु इस भाव का सम्बन्ध पचं म भाव से हो वह भी अशभु िस्थित का हो
तो सन्तान प्राि� में बाधक होता है ।
कुछ अच्छे योग तभी होंगे जब िक द्वादशेश मजबुती से अपने उच्च रािश में िस्थत हों तथा
उनको अन्य ग्रहों से सम्बन्ध अच्छा बन रहा हो तभी अच्छे फल प्रा� होते हैं नहीं तो अशभु
फल ही �ि� गोचर होता है । उपरो� उदाहरण कुण्डली में यही बात देखने को िमलता है ,परन्तु
अगर दशमभास्थ दशमेश पर तथा लग्न लग्नेश पर शिन और मगं ल का प्रभाव हो तो जातक
इजं ीिनयर बनता है । यहां पर एक उदाहरण कुण्डली प्रस्ततु है िजसमें द्वादशेश उच्च रािश में
सख ु भाव में िस्थत हैं तथा द्वादश भाव में शक्रु , सयू र्, बुध क� यिु त है । तथा यह कुण्डली एक
भतू पवू र् चेयरमैन य.ू पी. के िबजली बोडर् क� है ।
उदाहरण कुण्डली सख्ं या 24
2 शु .सू . बु .12
3 के . 1 11

बृह . 4 10

श.5 म . 7 रा . च.
9
6 8

इस कुण्डली में चतथु र् भाव में िस्थत बृहस्पित उच्च रािश में हैं जो िक इस जातक को ऊंचा पद
िदलाये हैं । बृहस्पित क� �ि� भी दशमभाव पर है, अन्य ग्रह क� �ि� का िवचार करें तो स�म
104
भाव िस्थत मगं ल क� �ि� भी दशमभाव पर हो रही है जो िक जातक को उच्च पद प्राि� में �ादशभावगत धनु
सहायक है । और भी दशमभाव के स्वामी शिन पंचम भाव में िस्थत होकर मगं ल को भी देख आिद चाररािशयों का
फल
रहे हैं और स�मभाव िस्थत मगं ल तो स्प� है िक कमर्भाव को देख रहे हैं अतः यह जातक
इजं ीिनयर बनकर समाज का सेवा िकया ।
पा�रवा�रक जीवन के बारे में भी जानना आवश्यक है । अतः कुण्डली में पंचम भाव से प्रणय
सम्बन्धों को देखा जाता है, और यही भाव प्रेयसी भाव भी है । द्वादश भाव दसू री पत्नी का
भाव है अगर द्वादशेश पंचमभाव में िस्थत हों तो जातक क� दसू री शादी लव-मैरेज होती है ।
मख्ु य �प से स�मभाव पत्नी का भाव होता है, इस भाव से सम्बिन्धत ग्रह का सम्बन्ध यिु त -
�ि�- िस्थित द्वादशेश से बनती हो तो भी िद्वभायार् योग देखने को िमला है । यहां पर एक
उदाहरण कुण्डली प्रस्तुत है िजसमें मेष लग्न है तथा द्वादश भाव के स्वामी बृहस्पित धनभाव में
वृषभ रािश में िस्थत है। यह कुण्डली एक ऐसे जातक क� है िजन्होंने दो िववाह िकया ।
उदाहरण कुण्डली सख्ं या 25
बृह .2 12
3 1 च .के .
11
4 10 श.

रा .5 सू . 7
म.9
शु .6 बु . 8
इस कुण्डली में स�मेश शक्रु पर द्वादशेश ( दसू रे पत्नी के भाव के स्वामी) बृहस्पित क� पणू र्
�ि� होने से जातक क� दसु री शादी ह�ई । एक और िवशेषता यह है िक जन्मकुण्डली में यिद
स�म भाव में शक्र
ु हों, लग्नेश द्वादश भाव में पापी ग्रह के साथ हो और उसपर बृहस्पित क�
�ि� हो तो भी जातक को दसू री पत्नी क� प्राि� होती है ।
इस कंु डली में स�म भाव में एक ही ग्रह नीच रािश में सयू र् हैं, और स�मेश शक्रु भी अके ला
छठें भाव में नीच रािश में हैं िजसके फलस्व�प जातक पहली �ी के सख ु से विं चत रहा ।
आप इस बात से भलीभांित प�रिचत हैं िक शक्र ु भोग के कारक ग्रह हैं,साथ ही शक्रु संगीत
और िफल्म इडं स्ट्री के कारक भी हैं । देव ग�ु बृहस्पित �ान के कारक है, पंचम भाव मनोरंजन
स्थान है, कुण्डली में दशम, दशमेश लग्न, लग्नेश को भाग्येश द्वादशेश, बृहस्पित, शक्रु , बुध
प्रभािवत करें तो जातक या जाितका सफल अिभनेत्री या अिभनेता बनता है । यहां पर एक
सप्रु िसद्ध अिभनेत्री स्वग�य िस्मता पाटील जी क� कुण्डली प्रस्ततु है िजसमें द्वादशेश एवं
भाग्येश बृहस्पित है ।

105
भागवत रािशफल उदाहरण कुण्डली संख्या 26
िववेचन
के . 2 12
3 1 11

4 10

बृह .5 सू .7 च . 9
शु .श .
बु .6 म . रा . 8
इस कुण्डली में भाग्येश एवं द्वादशेश बृहस्पित है जो िक लग्न को पणू र् �ि� से देख रहे हैं ।
प्रिसिद्ध के कारक सयू र् तथा िफल्मों के कारक शक्र
ु क� भी लग्नभाव पर पणू र् �ि� है ।
और भी कुण्डली में दशमेश शिन, पचं मेश सयू र्, तथा स्वगृही शक्र
ु के साथ स�मभाव में िस्थत
है, बुध क� लग्नेश मगं ल के साथ यिु त सम्बन्ध बन रही है ष�भाव में, लग्नेश मगं ल क� लग्न
पर पणू र् �ि� है जो िक लग्न को बल प्रा� हो रही है िजसके फलस्व�प एक सफल अिभनेत्री
बनने का अवसर प्रा� ह�आ
4.5.2 �ादशभाव�थ मीनरािश में सयू ा�िद �हों क� ि�थित- यिु त -
�ि� फल ।
अब तो आप इस बात से प�रिचत हो गये होंगे िक बारहवें भाव में चन्द्रमा, शक्रु और बृहस्पित
िस्थत हों तो जातक धनवान होता है । यिद द्वादश भाव में मीन रािश में बृहस्पित िस्थत हों तो
जातक प्रापंिचक, औद्योिगक उन्नित, राज दरबार में यशप्राि�, अिधकार सम्पन्न, ऐ�यर्
भोगनेवाला, स्वछन्द तथा सभी प्रकार के सख ु को भोगनेवाला होता है । अगर यिद बारहवें
भाव में उच्च रािश या अपने रािश में द्वादशेश िस्थत हों तो जातक परोपकारी होता है । सयू र्
मीन रािश में िस्थत हों तो जल से उत्पन्न वस्तुओ ं के क्रय-िवक्रय से प्रा� धन वाला तथा
जातक �ी वगर् से पिू जत होता है । बधु मीन रािश में िस्थत हों तो वह जातक अपने अनभु व से
अपने स्नेहीजनों को वश में कर लेने वाला तथा वृद्धावस्था में िचत्रकारी इत्यािद करने वाला
होता है ।
जो ग्रह अपने िमत्र के रािश में, अथवा अपनी रािश में , अपनी उच्च रािश में, िस्थत होकर
िजस भाव में िस्थत हों उस भाव क� वृिद्ध करता है । तथा अपने शत्रु के रािश में , या नीच
रािश में िस्थत होकर िजस भाव में रहे उस भाव क� हािन करता है । जैसे- उपरो� िनयमानुसार
ग्रहों का दो िवभाग बना शभु और अशभु तो इसका आशय यह है िक लग्नभाव में ग्रह िस्थत
हो तो शारी�रक िस्थित में वृिद्ध तथा हािन होगा । िद्वतीय भाव में धन क�, तृतीय भाव में भाइयों
क� , चतथु र् भाव में माता तथा सख ु आिद क�, पांचवें में पत्रु ािद क�, छठें में शत्रु इत्यािद क�,
सातवें में �ी क�, आठवें में मृत्यु रोग इत्यािद क�, नवम में धमार्िद क�, दशमभाव में िपता कमर्
इत्यािद क�, ग्यारहवें में लाभ आिद क�, तथा बारहवें भाव में खचर् इत्यािद क� वृिद्ध या हािन
फल ग्रहों के अनसु ार प्रा� होती है ।

106
फल भी दो प्रकार के होते हैं शभु और अशभु जो ग्रह अपने उच्च रािश में रहता है वह सम्पणू र् �ादशभावगत धनु
शभु फल प्रदान करता है, जो ग्रह अपने मल आिद चाररािशयों का
ू -ित्रकोण रािश में होता है वह चतथु ा�श कम करके
फल
शभु फल देता है, जो ग्रह अपने स्थान में होता है वह आधा शभु फल देता है, जो ग्रह अपने िमत्र
के रािश में रहता है वह चतथु ा�श ही शभु फल प्रदाता होता है । जो अपने शत्रु के स्थान में होता
है वह अ�मांश शभु फल और जो ग्रह अपनी नीच रािश में रहता है या अस्त होता है वह शन्ू य
शभु फल प्रदान करता है ।
(बृहज्जातकम् भावाध्याय)
अब यहां पर पवर्त योग के बारे में अध्ययन करें गे चंिू क जातक पा�रजात के अनसु ार लग्नेश
और द्वादशेश यिद परस्पर के न्द्र भाव में िस्थत होकर िमत्र ग्रह से �� हो तो पवर्त योग का
िनमार्ण होता है । के न्द्र भाव में यिद शभु ग्रह य�
ु हों तथा ष�भाव, अ�म भाव या तो शद्धु ग्रह
से रिहत हो या शभु ग्रह से य� ु हो, तो भी पवर्त योग बनता है । िजस व्यि� का जन्म पवर्त योग
में होता है, वह भाग्यशाली, िवद्याव्यसनी, दानवीर, पर�ीरमणोत्सक ु , तेजस्वी और यश,कृ ित
से य�ु और राजा के समान होता है । चंिू क पवर्तयोग में ग्रह िस्थित के सम्बन्ध में आचायर् गण
एकमत नहीं हैं । सभी अलग-अलग ग्रहिस्थितयों में पवर्त योग को कहा है ।
1. लग्नेश िजस रािश में िस्थत हों उस रािश के स्वामी िजस रािश में िस्थत हों ,यिद वह रािश
उस ग्रह क� स्वयं क� रािश हो अथवा उच्च रािश हो तथा वह रािश के न्द्र या ित्रकोण में
िस्थत हो तो काहलयोग का िनमार्ण होता है।
2. लग्नेश िस्थत रािश का स्वामी यिद अपने रािश में या उच्च रािश में िस्थत होकर के न्द्र या
ित्रकोण में िस्थत हों तो पवर्त योग का िनमार्ण होता है ।
यहां पर एक उदाहरण कुण्डली प्रस्तुत है िजसमें द्वादशेश बृहस्पित हैं तथा यह कुण्डली एक
धनवान व्यि� क� है
उदाहरण कुण्डली संख्या 27
2 12
3 1 11
म.
के 4 श .10 रा .
शु .
5 7 च .9
स.ू
बृह . 6 बु . 8

इस कुण्डली में लग्नािधपित द्वारा अिधि�त रािश मकर का स्वामी शिन प्रमख ु के न्द्र में अपनी
ही रािश मकर में िस्थत है । बिल्क ग�ु के द्वारा �ि� भी है । अतः पवर्तयोग का िनमार्ण हो रहा
है । िजससे यह व्यि� अिधक धनवान िसध्द ह�आ ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 28
107
भागवत रािशफल शु .म .2 बृह . 12
िववेचन
3 1 11

4 10

5 7 9

6 8
अशभु ग्रह िजस शभु ग्रह के साथ िजस भाव में रहते हैं उस भाव में न्यनू ािधकता आती ही है ।
अथार्त् शभु ग्रह शभु भाव में िस्थत होने का फल उल्टा हो जाता है और धन स्थान में अशभु
ग्रहों का आयेश, व्ययेश,धनेश को एक साथ िस्थत होना आय तथा धन न� करने का कारण है
। तथा जातक भीख मागं कर जीिवका चलाने को मजबरू होता है ।
यिद द्वादशेश का सम्बन्ध दसमेश के साथ अच्छी िस्थित में हों तो जातक शै�िणक �ेत्र या
जेलगृह अथवा वक�ल बनकर ख्याित प्रा� करता है । यहां पर एक उदाहरण कुण्डली प्रस्तुत है
िजसमें द्वादशेश बृहस्पित लाभ स्थान में शिन के घर में िस्थत है,तथा यह कुण्डली मेष लग्न क�
है इस कंु डली में िद्वतीयेश एवं स�मेश शक्र
ु हैं तथा बृहस्पित भाग्येश और द्वादशेश हैं यह
कुण्डली एक प्रिसद्ध वक�ल क� है िजन्होंने अनेकों लोगों को सफलतापवू क र् न्याय िदलाया ।
उदाहरण कुण्डली संख्या 29
रा . 2 12
सू .शु . 11
3 1 बृह.
म . बु . 4 10

च .श . 9
5 7
6 के . 8
1. कुण्डली में दशमेश शिन के साथ चन्द्रमा पंचम भाव में िस्थत है तथा द्वादशेश एवं भाग्येश
बृहस्पित के द्वारा �� है ।
2. शिन नैसिगर्क �प से न्याय के देवता हैं और बृहस्पित भी न्याय संगत काय� को कराते हैं ।
चंिू क प्रथमभाव में अिग्न तत्व प्रधान रािश भी है ।
3. दशवें भाव में मकर रािश है जो िक मगं ल के द्वारा �ि� सम्बन्ध हो रहा है िजसके
फलस्व�प नीच भंग हो रहा है , चंिू क यहां पर बुध तृतीयेश और ष�ेश होकर मगं ल के
साथ ही िस्थत है । ष�भाव न्यायालय और मक ु दमा के िलए होता है । जबिक मगं ल
िववाद एवं झगड़ों को सल ु झाने वाले ग्रह है । अतः यिु त -�ि�- िस्थित के अनसु ार यह
व्यि� प्रभावशाली एवं अपने प�रश्रम के बल पर एक अच्छे वक�ल के �प में ख्याित प्रा�
िकए ।
108
1. (होराशतक ) �ादशभावगत धनु
आिद चाररािशयों का
4.6 सारांश फल

इस पाठ के अध्ययन से आप ने जाना िक द्वादश भाव सभी भावों का व्यय स्थान है इसमें
ग्रहिस्थितयों के अनसु ार ही जातक को फल प्रा� होता है जहां तक यिु त -�ि�-िस्थित के बारे में
अध्ययन करते हैं तो एक ही भाव में दो ग्रहों क� यिु त हो तो उसे िद्वग्रहयोग कहते हैं । सात
ग्रहिस्थितयों में से दो ग्रहों को एक भाव में रहने से सम्पणू र् 21 िद्वग्रह योग बनते हैं इसी प्रकार
ित्रग्रह योग क� संख्या 35 होती है, चतग्रु र्ही योगों क� संख्या भी 35 होती है, तथा पंचग्रहयोग
संख्या 21 प्रकार क� होती है, इसी क्रम में षड्ग्रहयोग और स�ग्रह योग क� संख्या 27 और 1
होती है। इनके फल भी पृथक -पृथक होंगे यिद सयू र् बृहस्पित के साथ द्वादश भाव में िस्थत हों
तो व्यि� कतर्व्य पारायण, श्रद्धाय� ु , तथा राजनीितक और धनवान होता है इसी प्रकार
ित्रग्रहयोग, चतग्रु र्हयोग, पंचग्रहयोग, षड्ग्रहयोग,और स�ग्रह योग का फल अलग -अलग
होता है । ठीक इसी प्रकार जन्मकुण्डली में पाप ग्रहों क� �ि� इसी भाव पर हो तो जातक अपने
कमर् से हीन तथा िनधर्न होता है, अगर पाप ग्रहों से य� ु हो तो दसु रे के धन एवं �ी के प्राि� का
िवचार मन में उठते रहते हैं िकन्तु आलस्य के कारण कुछ भी हाथ नहीं लगता, यही भाव
शभु ग्रहों से यतु या �� हो तो जातक सभी प्रकार के भोगों से य� ु होता है अिधक खच�ला
होता है आचरण व्यवहार से प�रपणू र् और ख्याित प्रा� करता है अन्य िवषयों को जानने के िलए
आप उदाहरण कुण्डली से समझ सकते हैं उसमें यिु त- �ि� और िस्थित के अनसु ार ही
प्रमािणक �प से िदया गया है मझु े आशा है िक इस पाठ का अध्ययन करके आप द्वादश भाव
िस्थत धनु आिद चार रािशयों के फल को बह�त ही सरल िविध से बतायेंगे ।

4.7 श�दावली
द्वादशभावस्थ = बारहवें भाव में िस्थत ।, यिु त = एक ही भाव में एक से अिधक ग्रह िस्थत
होना, िद्वग्रह= दो ग्रहों का योग एक भाव में होना, ित्रग्रह= एक भाव में तीन ग्रह का िस्थत
होना, चतग्रु र्हयोग=एक भाव में चारग्रह िस्थत होना, पंचग्रहयोग= एक भाव में पांच ग्रह
एकित्रत होना, षड्ग्रहयोग= एक ही भाव में 6 ग्रहिस्थत होना, स�ग्रहयोग= एक भाव में सात
ग्रह िस्थत होना, ग्रह �ि�= ग्रह अपने िस्थत स्थान से अन्य स्थान को देखते हैं िजसे �ि� कहते
हैं । , िनधर्न= धन हीन, वाणीहीन= बोलने में अ�म , पंचमेश=पांचवें भाव के स्वामी,
द्वादशेष= बारहवें भाव के मािलक, लग्नेश= लग्न के स्वामी, िद्वतीयेश= दसू रे भाव के स्वामी,
पराक्रमेश=चतथु र् भाव के मािलक, ष�ेश= छठे भाव के स्वामी, स�मेश= सातवें भाव के
स्वामी, अ�मेश = आठवें भाव के मािलक, भाग्येश=नवमभाव के स्वामी, कम�श= दशमभाव
के स्वामी, लाभेश= ग्यारवें भाव के स्वामी, धनु आिद=धन,ु मकर, कुम्भ,मीन, शभु कर=
शभु फल देने वाला, प्रदाता= प्रदान करनेवाला, मन्दबिु ध्द= कमजोर बुिद्ध वाला, िनन्दनीय=
िनन्दा के पात्र, शभु य�ु = शुभग्रहों के साथ, पापय� ु = पापग्रहों के साथ, आयष्ु य= आय,ु
अल्पिनद्रा= नींद कम आना, आसि�= िकसी भी चीज को पाने क� हमेशा इच्छा रखना,
बाधाय� ु = बाधाओ ं के साथ, बाधाम� ु = बाधा रिहत, अिववािहत= िजसका िववाह नहीं
ह�आ हो ।, िजिवकोपाजर्न= जीिवका प्राि� करना ।, �ानाजर्न= �ान प्रा� करना, शत्रगु हृ ी = शत्रु
के घर में, िमत्रगृही= िमत्र के घर में ,पथकता= अलगाव
109
भागवत रािशफल
िववेचन 4.8 स�दभ� ��थ
1. भारतीय ज्योितष ( लेखक) नेिमचन्द्र शा�ी, पैतीसवां सस्ं करण वषर् 2002, प्रकाशक -
भारतीय �ानपीठ
2. बृहत्पाराशरहोराशा�म,् टीकाकार - पं. पद्मनाभ शमार्, प्रकाशक- चौखम्बा सभु ारती
प्रकाशन ( भारतीय सस्ं कृ ित एवं सािहत्य के प्रकाशक तथा िवतरक), के 37/117 गोपाल
मिं दर लेन, पोस्ट बाक्स नं. 1129, वाराणसी-221001,दरू भाष: (0542) 2335263
3. फलदीिपका, टीकाकार- डॉ. ह�रशक ं र पाठक, संस्करण 2018 ई.,प्रकाशक:- चौखम्बा
सस्ं कृ त प्रित�ान, 38 य.ू ए. बगं लो रोड, जवाहर नगर, पो. बा. नं. 2123, िदल्ली
110007
4. जातकालंकार, व्याख्याकार- डॉ. सरु े न्द्रचन्द्र िमश्र,संस्करण- 2019, रंजन पबके शन्स, 16,
असं ारी रोड, द�रयागजं नई िदल्ली-110002
5. जातक पा�रजात, व्याख्याकार- डॉ. ह�रशक ं र पाठक, सस्ं करण- 2015 ई.,चौखम्भा
सरु भारती प्रकाशन वाराणसी
6. चमत्कार िचन्तामिण ( भट्ट नारायण कृ त), टीकाकार: मालवीय- दैव�- धम��र,
सम्पादक : ब्रजिवहारीलाला शमार्, प्रथम सस्ं करण वषर् 1975, मोतीलाल बनारसी दास
वाराणसी
7. जातक िनणर्य, ( डॉ बी. वी. रमन), प्रथम संस्करण वाराणसी 1994,मोतीलाल
बनारसीदास

4.9 बोध ��
1. द्वादशभावस्थ धनु रािश का फल कथन क�िजए?
2. व्ययभावस्थ मकर रािश का फल बताईए ?
3. बारहवें भाव में िस्थत कुम्भ रािश का फल कथन क�िजए?
4. व्ययभावस्थ मीन रािश का फलादेश क�िजए?
5. बारहवें भाव में िस्थत धनु रािश में व्ययेश ग�ु पर सयू ार्िद ग्रहों क� �ि� फल को िलिखए?

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