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उदाहरण से इस बात को समझते हैं। संयोगवशात् मई 6, 2005 को 13:17 बजे हमसे सन्तान सम्बन्धी प्रश्न किया गया था।
इन्होंने आज मई 2, 2006 को पुत्र जन्म की सूचना अभी अभी दी है। पति पत्नी की कु ण्डली में पुत्र के योग अनुकू ल थे।
तत्कालीन कु ण्डली प्रस्तुत है। 

लग्नेश सूर्य नवम भाव में मेष राशि में और पंचमेश गुरु द्वितीय में कन्या राशि में है। दोनों एक दूसरे से छठे आठवें हैं। चन्द्रमा अष्टम
में बुध व राहु के अत्यन्त निकट है। अत: सफलता नहीं दिखती है। यह एक पक्ष है। 

उदाहरण कु ण्डली 5 

गुरु के तु / 
08°14 
3 शनि 
8X2 शुक्र 
मंगल 
XI सूर्य 
12 
राहु चन्द्र बुध 

लग्नेश सूर्य उच्चगत होकर पंचम से त्रिकोण में है। पंचम से दसवें स्थान में बृहस्पति है। 

पंचम से सातवें शनि वर्गोत्तम नवांश में है। पंचम से नवमेश सूर्य स्वयं प्रश्नलग्नेश ही है। इस तरह लग्नेश, कार्येश व चन्द्रमा का योग
न होने पर भी सूर्य, शनि, बृहस्पति और नवमेश मंगल सीधे ही पंचमभाव पर अपना शुभ प्रभाव दे रहे हैं। यह सफलता का योग है।
लेकिन कब? लग्न में बुध का तीसरा नवांश है। बुध ऋतु का स्वामी होने से 6 मास में सफलता व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि अभी
गर्भधारण हुआ ही नहीं है। उक्त सफलता दिखाने वाले ग्रहों में शनि बलवान् है, लग्न से लाभस्थान में बैठा है। यह वर्षभर का समय
बताता है। अतः एक साल के भीतर, तुला (पंचम से लाभस्थान) में गुरु आने पर गर्भाधान व सफल प्रसव बताया गया था। 

के न्द्रों से विशेष विचारणीय 

लाभालाभजयाजयच्युतिहतिप्रावीण्यमायुर्यशो
दुःखादीन् गुणदेहरूपविनयारोग्याकृ ती: कामनाम्।
वृत्तिं सम्पदमापदं च शयनं कार्यस्य सिद्धिं नयं 
द्यूतं जन्मभुवो गमागममतीन् संचिन्तयेल्लग्नतः ॥ 3 ॥
इन प्रश्नों में लग्नभाव का विशेषतया विचार करना चाहिए 
1. लाभ हानि, 2. हार जीत, 3. पदावनति, अपमान, नीचा देखना, स्थान परिवर्तन, तबादला आदि, 4. कष्ट, आंशिक लाभ,
दुर्घटना, चोट, 5. कार्यकु शलता, चतुराई, विशेषज्ञता, 6. आयु, 7. यश, 8. प्रश्नकर्ता को किसी भी तरह का दु:ख, 9.
प्रश्नकर्ता के गुण अवगुण, 10. शरीर, 11. रूप, आकृ ति, 12. नम्रता, सज्जनता, 13. स्वास्थ्य, 14. मनोरथ, आकांक्षाएं,
15. रोजगार की स्थिति, 16. सब तरह का सुख व दु:ख, सम्पत्ति, विपत्ति, 17. नींद सम्बन्धी बातें, बिस्तर, शयनकक्ष के
क्रियाकलाप, 18. काम की सफलता, 19. नीति व सिद्धान्त से प्रेम, 20. जुए में लाभ हानि, 21. जन्मस्थान, 22. यात्रा की
सम्भावना, 23. बुद्धि का स्तर, कार्यप्रणाली तय करना। 

लग्न का विचार सर्वत्र अनिवार्य होते हुए भी जिन प्रश्नों में व्यक्ति लाभ की स्थिति में रहना चाहता है, लग्नभाव का विचार व्यापक
तरीके से करना चाहिए। ऐसे प्रश्न आपके सामने अलग अलग ढंग से पेश किए जा सकते हैं। किसी भी प्रश्न का विचार करने के
लिए प्रश्न का अन्तिम व चरम लक्ष्य, अर्थात् प्रश्न कर्ता का मनोरथ क्या है, उसका हित किस बात में निहित है, यह अपने
मस्तिष्क में निश्चय कर लेना चाहिए। हमारा सीधा दायित्त्व प्रश्नकर्ता के प्रति ही है। कई बार एक ही निहितार्थ की ओर संके त
करने वाले प्रश्न को अलग अलग शब्दों में भी पूछा जा सकता है। जैसे, व्यवसाय करूं या नहीं, लिया गया ऑफिस या दुकान मेरे
लिए कै सी है, काम में कु छ बदलाव करना चाहता हूं, आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए पार्टनर बनाना चाहता हूं, क्या मुकदमा
दायर करूं , क्या जगह बदल लूं, इत्यादि प्रश्नों में पृच्छक वर्तमान तंगहाली से उबर कर लाभ या सुगमता की स्थिीत में जाना
चाहता है। इन सब प्रश्नों में मुख्यतया लग्न को ही देखेगें। प्रश्न से फल बताते समय अपने दिमाग की सारी खिड़कियों को रोशन व
खुला रखना पढ़ता है। इसीलिए शास्त्रकारों ने कहा है कि प्राश्निक दैवज्ञ को ऊहापोह में कु शलता प्राप्त होनी चाहिए। लग्न से विशेष
विचारणीय बातों की उक्त सूची में से कोई भी प्रश्न सामने हो तो निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रश्नकर्ता को लाभ, सुख सुगमता,
सन्तोष, तसल्ली आदि होती है। स्पष्टता के लिए समझिए, प्रश्नकर्ता यदि पूछे, क्या मुझे लाभ होगा? मुझे यश या शाबासी मिलेगी,
कोई दुर्घटना, शोक या रोग तो नहीं सताएगा? मेरी आयु ठीक है? क्या वास्तव में मेरी ही गलती है? क्या यात्रा, तबादला,
रोगशान्ति, कष्टनिवारण होगा? इत्यादि सभी प्रश्नों में दिए जा रहे योगों में से कोई एक या अधिक योग बने तो प्रश्नकर्ता की
मनोकामना पूरी होगी। यदि योग बनने के साथ किसी विपरीत तत्त्व का भी मिश्रण हो तो शुभ फल में तदनुसार कमी होगी। 

लग्न के योग 

कोणे के न्द्रे रन्ध्रे सौम्याः। नो पापा: स्युः सर्वां सिद्धिम्। 


सुस्थास्तेषां नाथा: कु र्युः। पापः कश्चित् कृ न्तेल्लाभम् ॥ 4 ॥

उक्त तेईस प्रश्नों में से कोई भी प्रश्न उपस्थित हो और इन स्थितियों में कोई एक या अधिक बने तो प्रश्न का फल प्रश्नकर्ता के
पक्ष में होता है 
• के न्द्र (1, 4, 7, 10 भाव), त्रिकोण और अष्टम में अच्छी अवस्था के  ग्रह बैठे हों, 
• उक्त भावों के स्वामी स्वराशि, मूलत्रिकोण, उच्च, वक्री आदि शुभ अवस्थाओं में हों, 
• उक्त दो स्थितियों में कोई एक बने और कोई खराब अवस्था वाला ग्रह इन भावों में न हो,
•खराब अवस्था वाले ग्रहों की संख्या के अनुसार शुभ फल की मात्रा में कमी या हास होता है। यदि दोनों प्रकार के ग्रहों का वज़न
बराबर हो तो साधारण सफलता ही मिल पाती है। अन्यथा जिस श्रेणी के ग्रहों का बहुमत हो उस तरह के फल की मात्रा
अपेक्षाकृ त ज्यादा रहती है। यहां शुभ भावेशों को शुभ और 6, 8, 12 के स्वामियों को पाप समझें। 
सहजपंचमसप्तमलाभगाः
शुभफलाः शुभदा मदकर्मगाः।
स्वसुतलग्नगताश्च तथा मता 
अशुभदे व्ययलाभगते न हि ॥5॥ 

 शुभ भावेश 3, 5, 7, 11 स्थानों में हों, 


 शुभ भावपति 7, 10 में हों,
 अथवा 1, 2, 5 स्थानों में हों,
 उक्त तीनों स्थितियों में 11, 12 भाव में पापीग्रह होने पर शुभ फल में कमी या बाधा होती है। अतः पूर्ण आनन्ददायक
फल के लिए 11, 12 भाव में पापी ग्रह नहीं होना चाहिए। शुभ फलदायी ग्रह हों तो कोई हानि ही नहीं है। 

स्वल्पश्चन्द्रो लग्ने हेयः। कर्मस्थाने सिद्धिं ब्रूते।


नाथे सुस्थे लग्ने माः। रन्ध्रे शुद्ध सिद्धिं ब्रूयात् ॥ 6 ॥ 

 लग्न में क्षीण चन्द्रमा कार्यसिद्धि में सदा रुकावटें पैदा करता है, लेकिन दशम में क्षीण चन्द्र हो तो सफलतादायक है।
 लग्नेश बली हो और लग्न में मिथुन, कन्या, तुला, धनु का पूर्वार्ध या कु म्भ राशि हो, अष्टम में कोई पापग्रह न हो तो भी
सफलता का एक समर्थ योग है। 

गुरुदृष्टो विधुर्वित्ते त्रिषडाये मदे शुभम्। 


शुभेनान्येन संयोगे फलं रम्यं विनिर्दिशेत् ॥ 7 ॥

प्रश्न लग्न में 2, 3, 6, 7, 11 भावों में बृहस्पति से दृष्ट चन्द्रमा हो तो कार्यसिद्धि का स्वतन्त्र योग है। यदि इस स्थिति में गुरु या
चन्द्रमा का किसी अन्य शुभ ग्रह से भी सम्बन्ध बन जाए तो फल अधिक रमणीय हो जाता है। 

हिबुके पूर्णे चन्द्रे मदे च शुभे वा लग्नगे सूर्ये। 


सद्यः सिद्धिं तनुते सत्यमतेन वित्तलाभश्च ॥ 8 ॥

चतुर्थ स्थान में पूर्ण चन्द्रमा हो और सप्तम में कोई निसर्ग शुभग्रह बैठे। अथवा चतुर्थ में चन्द्र के रहते हुए लग्न में सूर्य हो तो
सत्याचार्य के मत से इन दोनों योगों में सफलता व धनलाभ होता है। 

लग्नाद् रन्ध्राज्जन्मराशिं बलिष्ठो


सौम्यः कश्चित् पृच्छकस्योदयं वा।
पश्येच्छान्तिं देहसौख्यं विलोमे 
कष्टं तद्वत् स्वेशितुश्चिन्तनीयम् ॥ 9 ॥
प्रश्नकर्ता की जन्मराशि, जन्मलग्न या आत्मकारक को कोई बलवान् शुभग्रह लग्न या अष्टम में बैठकर देखता हो तो स्वास्थ्य लाभ,
रोगशान्ति, कष्ट का निवारण, शरीरसुख आदि पूर्वोक्त सब प्रश्नों में शुभ फल होता है। 

यदि इसी तरह से पापग्रह देखे तो रोग या कष्ट बढ़ता है। यदि रोगादि न हों तो आने की सम्भावना बन जाती है। 

सौम्याः पुत्रे मृत्यौ कामे। पापाः सर्वे सौम्यैर्दृष्टाः। 


वृद्धौ चन्द्रे वा तस्माच्च। सौम्या याता सौख्यं देहे ॥ 10 ॥

पंचम, सप्तम और अष्टम में शुभग्रह हों। अक्षीण चन्द्रमा 3, 6, 10, 11 में हो। सभी पापग्रहों पर शुभ दृष्टि या योग हो। चन्द्रमा से
उपचय स्थानों में बली शुभग्रह हों। इन चारों योगों में अच्छा स्वास्थ्य, रोगशान्ति, 

आयु की रक्षा होती है और लग्न सम्बन्धी पूर्वोक्त प्रश्नों का फल भी पृच्छक के लिए हितकारी होता है। 

शीर्षोदये च लग्ने शुभवर्गे तत्पे च शुभयुतदृष्टे। 


नो पापैरिह योज्याः पूर्वोक्ता ये शुभा योगाः ॥ 11 ॥

 लग्न में शीर्षोदय राशि हो और लग्न में शुभग्रहों के अधिक वर्ग हों, 
 लग्नेश शुभयुक्त या शुभग्रहों से दृष्ट हो और पापफलदायी किसी भी ग्रह का लग्न या लग्नेश पर दृग्योग न हो, इन स्थितियों
में लग्न बली होता है। अत: लग्न सम्बन्धी सभी प्रश्नों में प्रश्नकर्ता को सुख व लाभ मिलता है। 

लग्नाधिपगुरुसौम्या सप्तमवर्जश्च भार्गवः के न्द्र। 


एकः शंसति सिद्धिं किं भूयः के न्द्रसंस्थाः स्युः ॥ 12 ॥

यदि लग्नेश, बृहस्पति व शुभ बुध में से कोई एक भी लग्न से के न्द्र में हो या शुक्र 4, 7, 10 भावों में हो तो प्रश्नकर्ता सफलता व
लाभ की स्थिति में रहता है। यदि इनमें से कई ग्रह के न्द्र में हों तो बहुत उत्तम है। 

अन्योन्यके न्द्रगेष्वेषु सिद्धिं शंसन्ति पण्डिताः। 


सूर्यचन्द्रकृ ता योगा अपि साफल्यदा मताः ॥ 13 ॥
लग्न के शुभ भावेश यदि कहीं भी आपस में एक दूसरे से के न्द्र में हों तो विद्वानों ने प्रश्नकर्ता के लिए लाभदायक कहे हैं। 
सूर्य व चन्द्रमा से सुनफा, अनफा, दुरुधरा, वेशि, वाशी, उभयचरी योग बने तो भी प्रश्नकर्ता का मनोरथ सफल होता है। 

सौम्या: खेटा: के न्द्रकोणाष्टमस्वे


पापा भ्रातृशत्रुलाभे च लाभः।
शक्तः खेटः कोऽपि पापः शुभो वा 
सिद्धिं ब्रूयात् पृच्छकः पूर्णकामः ॥ 14 ॥

प्रश्नलग्न से के न्द्र, त्रिकोण व द्वितीय स्थान में स्वाभाविक शुभग्रह और तृतीय, षष्ठ, एकादश में स्वाभाविक पापग्रह हों तो
प्रश्नकर्ता फायदे में रहता है। 
इन्हीं स्थानों में कोई बलवान् ग्रह, चाहे वह पापी ही क्यों न हो, यदि उच्च, मूलत्रिकोण या स्वराशि में हो तो प्रश्नकर्ता की
सफलता व मनोरथपूर्ति को प्रकट करता है। 

लग्न के अशुभ योग 

क्रू राः के न्द्रगता विलग्नभवने पृष्ठोदये वा चरे


रन्ध्रे चेन्दुरथोदयाहिमकरौ दृष्टौ खलैर्दुस्थितैः।
चन्द्रश्चन्द्रसुतोऽथवोदयगतः पापेन दृष्टो भवेत् 
मन्दो रोगविनाशपुण्यभवने पापैश्च कष्टागमः ॥ 15 ॥

इन चार स्थितियों में मुसीबत, रोग, शारीरिक कष्ट, हार, दुर्घटना आदि की प्रबल सम्भावना होती है –

 के न्द्र में क्रू र ग्रह हों, लग्न में पृष्ठोदय राशि (1, 2, 4, 9, 10) या चर राशि हो और अष्टम में चन्द्रमा हो,
 नीचादि पापराशियों में स्थित अशुभ ग्रह एक साथ लग्न व चन्द्रमा को देखें या योग करें,
 लग्न में चन्द्रमा या बुध से कोई नीच, शत्रुक्षेत्री, अस्त पापीग्रह दृग्योग करे,
 शनि 6, 8, 9 स्थानों में हो और उसे एक से अधिक पापग्रहों का दृग्योग प्राप्त हो। 

सद्गुणाढ्ये विलग्नेऽपि मान्दिर्लग्नाष्टमव्यये।


सन्ध्यायां चन्द्रहोरायां पापाः के न्द्रेऽथवोदये ॥ 16 ॥
पापश्चन्द्रो लग्नेऽथवा सपापोऽस्तनिधनरि:फे षु। 
सौम्याः के न्द्राद् बाह्या ब्रुवते कृ शतां फले प्रश्ने ॥ 17 ॥
लग्न में पूर्वोक्त गुण होने पर भी इन स्थितियों में शुभ फल में कटौती होती है-

 गुलिक 1, 8, 12 भाव में हो; 


 शाम के समय प्रश्नलग्न में चन्द्रमा की होरा हो;
 पापग्रह के न्द्र में हों;
 प्रश्नलग्न में पापग्रह भी हो;
 लग्न में चन्द्रमा क्षीण हो;
 चन्द्रमा पापयुक्त हो कर 7, 8, 12 भाव में हो और के न्द्र में काई भी निसर्ग शुभग्रह न हो। 
इन्हीं नियमों को लागू करते हुए आप अन्य भावों से सम्बन्धित सामान्य प्रश्नों का भी विचार कर सकते हैं। जिस भाव से
सम्बन्धित प्रश्न हो, उसे ही लग्न की तरह समझकर नियम लागू करें। ध्यान रखें, सभी प्रकार के अन्य प्रश्नों में भी लग्न का विचार
अनिवार्य है। 

चतुर्थभाव के मुख्य विषय 

जलस्थानं पेयं सुसुखयशसी वाहनपशु


गृहादिं विश्वासं श्रुतिमतिनिवेशांश्च खननम्।
प्रतिस्पर्धाशेष कृ षिधननिवेशं नृपतिता 
निदानं पातालादपि सुजनता बन्धुसुहृदाम् ॥ 18 ॥

चतुर्थस्थान से इन बातों का विशेष विचार किया जाता है 


 पानी का स्थान, बोरिंग करना, पानी की कमी, पानी से होने वाले सुख व दुःख,
 पेयजल की उपलब्धता, पेय जल का वितरण, 
 सब प्रकार के सांसारिक सुख, आकांक्षाएं, 
 यश, प्रसिद्धि, कार्यक्षेत्र में मान्यता, जनसमर्थन,
 सभी प्रकार के वाहनों का सुख, पशुधन, 
 घर, जमीन, जायदाद, 
 लोगों व सहायकों की विश्वसनीयता, 
 सांसारिक विषयों का ज्ञान, व्यावहारिक बुद्धि, कार्यप्रणाली, 
 सभी प्रकार के व्यापारिक पूंजी निवेश, गृहप्रवेश, कार्यक्षेत्र बदलना, 
 खुदाई, ज़मीन के नीचे के विषय, 
 दो प्रतिद्वन्द्वियों में विजेता, 
 कृ षि व धन जमा करने के क्षेत्र, . राजकीय या प्रशासकीय पद की प्राप्ति, 
 रोग के इलाज की विश्वसनीयता, 
 बन्धुओं, मित्रों, साझेदारों का सहयोग। 

सप्तम के मुख्य विषय 

विवाहव्यभिचारौ च प्रणयं कलहं रतिम्।


यात्राभंगं च व्यापार चौर्यवृत्तिं सुभोजनम् ॥ 19 ॥
मदं विपक्षं नारी च मार्गभ्रंशं जितं प्रियम्।
दत्तपुत्रान्यनिक्षिप्त धन गन्धप्रसाधनम् ॥ 20 ॥
परदेशमनाचारं व्यापारे क्रयविक्रयम्। 
विवादं विनिवृत्तिं च सप्तमाच्चिन्तयेद् बुधः ॥ 21 ॥

सप्तम भाव से मुख्यतया इन बातों को देखें 


 विवाह होना, विवाह का सुख, विवाह में बाधा, 
 विवाहेतर सम्बन्ध, विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण, 
 प्रेम सम्बन्ध, दम्पती का आपसी स्नेह, रोमांस, 
 किसी भी प्रकार के विवाद में प्रतिपक्षी या खिलाफत करने वाला पक्ष,
 काम शक्ति, कामवासना, रतिक्रिया के प्रकार,
 यात्रा का स्थगन, टल जाना,
 दैनिक व्यापार, किसी भी प्रकार से जी चुराना, सब तरह की चोरी, बात छु पाना,
 खाने पीने का स्तर,
 विपक्ष या विरोधी, 
 स्त्रीपक्ष, 
 रास्ता भटकना, अपने मत को छोड़ना, 
 खुद से पराजित व्यक्ति,
 प्रिय व्यक्ति, 
 दत्तक सन्तान, 
 दूसरे को दिया धन या वस्तु, 
 इत्र खुशबू का शौक, . 
 परदेश में कु शलता व सुख, 
 व्यापार में सिद्धान्तप्रियता, ईमानदारी, 
 खरीद बेच, 
 विवाद व उसकी निवृत्ति, घर लौटना।

दशम के मुख्य विषय 

क्रीडाकौशलराज्यवृत्तिविभुता: ख्यातिं च सस्यास्पदे


मानं राज्यकृ तं नभोभवपदार्थाप्तिं च मेषूरणात्।
मुद्राप्राभवनिग्रहौ सफलतोच्चस्थानयानादिकं  
वाणिज्यं च विशिष्टशिक्षणविधिं तातं च दिष्टं तथा ॥ 22 ॥

दशम स्थान के मुख्य विषय इस प्रकार हैं 

 खेल कू द में सफलता, क्रीड़ा आदि में कौशल, 


 राज्य का सुख, राजकीय पद, अधिकार प्राप्ति, 
 प्रसिद्धि, नाम, कीर्ति,
 उत्पादन से लाभ, पदवी, सम्मान आदि पाना, राजकीय सम्मान,
 आकाश से सम्बन्धित या आकाश से पैदा होने वाली बातें, हवाई दुर्घटना, वर्षा, ओले, तूफान आदि,
 सरकारी मुद्रा, नोट, स्टाम्प पेपर, इन सबका प्रसार प्रचार, गिरफ्तारी, सजा, अदालत द्वारा आरोप निर्धारण,
 श्रेष्ठ सफलता, ऊं चे स्थान, ऊं ची उड़ान, हवाई जहाज़ आदि,
 व्यापार में स्थायी सफलता,
 विशेषज्ञता पाने का प्रशिक्षण, 
 पिता व पिता समान लोग, 
 भाग्य का फलीभूत होना। 

के न्द्र स्थानों के विशेष प्रश्न


अब के न्द्र से विचारणीय विशेष प्रश्नों का विचार करेंगे, जिनके उपस्थित होने पर दैवज्ञ को अक्सर कार्यस्थान का निश्चय करने
में संदेह हो जाता है। स्वबुद्धि से अन्य समान प्रकृ ति व स्वरूप वाले प्रश्नों को भी इसी तरह देख सकते हैं। 

क्या यात्रा होगी? 

चरे लग्ननाथे च के न्द्रे त्रिकोणे


तप:स्थानबन्धे मिथ: स्यात् प्रवास:।
ततः सोदरे सौम्यखेटे च पाप 
प्रभावाद् विना रन्ध्रशुद्धे सुखं स्यात् ॥ 23 ॥

इन योगों में यात्रा या प्रवास होता है .

 लग्न, लग्नेश, लग्न नवांश व उसका स्वामी, इनमें से अधिकांश तत्त्व चर राशि में हों,
 लग्नेश के न्द्र में बैठकर 7, 9, 10 भावेशों में से किसी एक से सम्बन्ध करे,
 लग्नेश व नवमेश का आपस में के न्द्र या त्रिकोण सम्बन्ध बने, 
 लग्नेश से तृतीय में कोई निसर्ग शुभग्रह हो, 
 इन सब पर किसी भी तरह से पापग्रह का योग या दृष्टि न हो, 
 अष्टम स्थान में कोई ग्रह न हो तो बहुत उत्तम या के वल शुभग्रह हों। 

क्या वहां जाने से फायदा होगा? 

क्रू रेऽस्तगे विघ्नमथो नभःस्थे


राज्याच्च ज्येष्ठाच्च विलग्ननाथे।
भाग्याधिपे वा खलपीडिते च 
कामे मृतौ बन्धवतोर्न सिद्धिः ॥ 24 ॥

 सप्तम या दशम में पापग्रह हो तो किसी प्रकार की राजकीय बाधा, वरिष्ठ व्यक्ति की आज्ञा न मिलना या किसी
पारिवारिक कारण से यात्रा में बाधा होती है, 
 लग्नेश व नवमेश पर पापग्रहों का प्रभाव हो तो यात्रा का अन्त सुखद नहीं होता है,
 लग्नेश व नवमेश 7.8 भावों में अंशों में पास पास स्थित हों या कोई एक यहीं बैठ कर दूसरे से सम्बन्ध करे तो यात्रा का
उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता है। 

लग्ने सुखं मार्गभवं च व्योम्नो


कार्यं मदाद् गम्यपदं चतुर्थात्।
सिद्धिं च कार्ये पुनरेव लग्नाद्
देहे तु देहोत्थसुखं विचार्यम् ॥ 25 ॥
लग्न की शुभाशुभता से रास्ते के सुख व सुविधाओं का विचार करें। दशम स्थान से यात्रा का उद्देश्य या कार्य देखें। सप्तम स्थान से
मंजिल का विचार करें। चतुर्थ से यात्रा का परिणाम, सुख, सफलता आदि देखें। अपि च, लग्न से यात्री की कु शलता व शरीर सुख
भी देखें। 

लग्न पर शुभप्रभाव हो तो यात्रा में सुख, चैन, आराम होगा। दशम पर शुभ प्रभाव हो तो व्यक्ति अपने काम से सम्बन्धित जिन लोगों
से मिलेगा, वे अनुकू ल होगें। सप्तम में शुभ प्रभाव हो तो मंजिल पर जाकर तसल्ली होगी। चतुर्थ पर शुभ प्रभाव हो तो यात्रा का
परिणाम सुखदायक होगा। 

लग्नेशं वा शशिनं क्रू रस्तुदति तद्राशिरूपोत्थात्। 


जन्तो(तिर्वेद्या यात्रायां बाधनं वापि ॥ 26 ॥

यात्रा सम्बन्धी प्रश्न में लग्न, लग्नेश या चन्द्रमा को कोई क्रू र ग्रह पीड़ित कर रहा हो तो उस पीड़ाकारक ग्रह की अधिष्ठित राशि को
देखें। वह राशि मनुष्याकार हो तो किसी व्यक्ति के कारण रास्ते में परेशानी, बेचैनी, विवाद, यात्रा में रुकावट आदि हो सकती है।
यदि जलराशि हो तो पानी की कमी, पानी से पैदा होने वाले रोग या वर्षा, बाढ़ आदि से बाधा होती है। 

यदि चौपाया राशि हो तो किसी जानवर, पक्षी के कारण भय, दुर्घटना या किसी अन्य वाहन से कष्ट होता है। 

क्या धन सम्पदा बन सके गी? 

लग्ने सोमनिरीक्षितो विधुभवो लग्नेन्दुवित्ताधिपाः


कोणे के न्द्रधनेषु वर्गशुभदे लग्ने च संसिद्धयः।
अक्षीणेन्दुयुतौ चतुर्थमदनौ लग्ने शुभे खे रवौ 
पातालाम्बरभेऽथवा स्वलभने श्रेष्ठग्रहे लभ्यते ॥ 27 ॥

इन योगों में धन सम्पत्ति प्राप्त होती है और पहले से विद्यमान सम्पदा बढ़ती है 
• लग्न में बुध को चन्द्रमा देखता हो, 

 लग्नेश, चन्द्रमा व धनेश तीनों ही किसी प्रकार से के न्द्र, त्रिकोण व द्वितीय में आपस में दृष्टयुक्त हों या बलवान् हों,
 लग्न में बलवान् शुभग्रहों के अधिकांश वर्ग पड़ते हों और लग्नेश अच्छी स्थिति में हो,
 सप्तम या चतुर्थ में चन्द्रमा, दशम में सूर्य और लग्न में बलवान् शुभग्रह हो,
 बलवान् होकर शुभफलदायक ग्रह एक साथ 4, 10 या 2, 11 भावों में हों। 

धनायपौ धनायगौ विलग्नपेन वा युतौ।


निजोच्चगश्च पंचमे तथाप्तिभे खलैर्विना ॥ 28 ॥
कलायुतश्च चन्द्रमाः शुभैर्युतोऽवलोकितः। 
अवाप्तिभे शुभेडंगपे सुसम्पदो भवन्ति हि ॥ 29 ॥
 धनेश व लाभेश किसी भी प्रकार से धन व लाभ स्थान में हों,
 धनेश लाभेश का लग्नेश से कोई सम्बन्ध बने,
 पंचम या लाभ स्थान में कोई उच्चगत ग्रह हो,
 अधिक कलाओं वाला चन्द्रमा एकादश में हो और उसे बुध, गुरु, शुक्र में से कोई देखे या योग करे,
 इन सब में योग बनाने वाले ग्रहों पर पापफलदायी ग्रहों का दृश्योग न हो और लग्नेश अच्छी राशि या भाव में स्थित होना
चाहिए। 

उत्पादन कै सा होगा? 

अम्बुस्थाने जनिपदमथो तस्य नाथो विलग्ने


सम्भूतिं वै मदनभवने खे फलं श्रेष्ठयोगात्।
पापा हानि शुभदविहगास्तद्गतं लाभमाहुः 
सुस्थे खेटे निजबलवशात् लाभमात्रां वदेच्च ॥ 30 ॥

ऐसे प्रश्नों में लग्न स्वयं उत्पादक या उद्योगपति है। चतुर्थ स्थान में फै क्ट्री, सप्तम स्थान में उत्पादन और दशम में उत्पादक का
लाभ निहित है। 

जिन जिन स्थानों में नीचादिगत, निर्बल ग्रह हो, वहां हानि, बाधा, रुकावट या उत्पादन में कमी का कारण विद्यमान रहता है। 

यदि उच्चादिगत ग्रह हों तो सब तरह से सुख, शान्ति व अच्छा उत्पादन होता रहता है। 

इन स्थानों में स्थित ग्रह की आश्रित राशि के अनुसार उच्च, मूलत्रिकोण, स्वक्षेत्र, अधिमित्र, मित्र राशियों के आधार उत्पादन व
लाभ की मात्रा या वर्तमान स्तर में वृद्धि का निश्चय करना चाहिए। 

प्रसंग को और स्पष्ट किया जाता है। लग्न पर पाप प्रभाव हो तो प्रायः भीतर के ही आदमी के कारण माल में कमी, चोरी आदि होती
है। माल ले जाते समय रास्ते में नुकसान का डर रहता है। 

यदि ऐसा पाप ग्रह मार्गी हो तो नुकसान होने पर भी उत्पादक को खास घाटा नहीं होता है। स्वयं स्पष्ट है कि शुभ प्रभाव होने पर
लाभ बढ़ता है। 

चतुर्थ पर पाप प्रभाव हो तो मिल या उत्पादन स्थान से सम्बन्धित कोई अड़चन, विवाद होने की सम्भावना होती है। 

सप्तम पर पाप प्रभाव हो तो माल के उत्पादन में ही कोई त्रुटि रह जाने के कारण घाटा रहता है। या उत्पादन कम होता है। 

दशम पर पाप प्रभाव हो तो किन्हीं अन्य कारणों से लाभ की मात्रा गिरती है। 

क्या गर्भ सही सलामत रहेगा ? 

लग्ने चरे खलखगेन हते तदेन्दौ


वा लग्नपेऽथ खलराशिगते विलग्ने।
आपोक्लिमे रविकरास्तगते तदीशे 
के न्द्रात्परे व्ययपतौ सखले प्रपातः ॥ 31 ॥

इन योगों में सकु शल प्रसव नहीं होता है


 चर राशि प्रश्नलग्न में चन्द्र या लग्नेश का किसी पापग्रह से बहुत निकट का सम्बन्ध बने,
 लग्न में निसर्ग पापग्रह की राशि हो और लग्नेश आपोक्लिम स्थानों (3, 6, 9, 12) में अस्त हो,
 द्वादशेश पापयुक्त दृष्ट होकर के न्द्र के अलावा किसी स्थान में हो। 

यदि लग्नेश, चन्द्रमा, द्वादशेश, पंचमेश, अच्छी स्थिति में हों तो गर्भ सकु शल रहता है, ऐसा समझें। 

बेटा या बेटी ? 
पुरुषराशिगतौ विधुलग्नपौ तनयपे च सुतं कु रुतो मतम्।
विषमराशिलवे विषमर्भगे सुतजनिश्च शनावुदयं विना ॥ 32 ॥

पुरुषराशिलवस्थविलोकनादपि तथाऽथ सुता च विपर्यये।


विधुरनग्रगतो रवितः परे दिनदलेऽपि सुतोऽथ तदन्यथा ॥ 33 ॥ 

इन योगों में पुत्र का जन्म होता है 


 लग्नेश, पंचमेश व चन्द्रमा में से कोई दो या तीनों ही विषम राशि (1, 3, 5, 7, 9, 11) में या इन्हीं राशियों के नवांश
में हों,
 शनि विषम राशि या नवांश में बैठकर लग्नरहित किसी विषम भाव में हो,
 उक्त योग बनने पर ग्रह सम राशि या नवांश में हों, लेकिन योग बनाने वाले ग्रहों से कोई बलवान् और विषम राशि या
नवांश में स्थित ग्रह सम्बन्ध कायम करता हो,
 दिन के पूर्वार्ध में प्रश्न हो और चन्द्रमा सूर्य से आगे की राशियों में हो। अर्थात् शुक्लपक्ष में प्रश्न हो। इन स्थितियों में
कन्या का जन्म होता है
 लग्नेश, पंचमेश, चन्द्रमा में से कम से कम दो समराशि या नवांश में हों, 
 शनि समराशि या समसंख्यक भाव में हो, 
 कोई विषमराशिगत बलवान् ग्रह इनसे सम्बन्ध न करे, 
 दिन के उत्तरार्ध में प्रश्न हो और चन्द्रमा सूर्य से पीछे हो।

क्या किराएदारी में लाभ है ? 

लग्नं स्वामी सप्तमो भाटकार्थी


तस्माल्लाभो खं चतुर्थं समाप्तिः।
पापैर्योगादर्दनाद् दर्शनाच्च 
वाच्या बाधा वा मनस्तोषहानिः ॥ 34 ॥
ऐसे प्रश्नों में लग्न स्वयं मकान मालिक है। सप्तम स्थान किराएदार है। दशम स्थान किराए से होने वाला लाभ व सुख है। चतुर्थ
स्थान किराएनामे, लीज आदि की समाप्ति है। 

 यदि लग्न व लग्नेश की स्थिति अशुभ, पीड़ित हो, उनमें से किसी एक पर भी अशुभ फल देने वाले ग्रह का दृग्योग हो तो
जायदाद किराए पर देने में सुख व सन्तोष नहीं रहता है। किराएदार के कारण मानसिक परेशानी हुआ करती है।
 यदि सप्तम व सप्तमेश के साथ उक्त स्थिति बने तो किराएदार से मिलने वाले किराए का शुभ उपयोग नहीं हो पाता है।
अथवा समय पर भुगतान न होना, बार बार याद कराने पर ही किराया मिलना, समयानुसार किराया न बढ़ाना,
किराएदार के मन में खोट होना, समय से पूर्व ही मकान खाली करना आदि फल होते हैं।
 दशम या दशमेश पर पाप प्रभाव हो तो मालिक को कोई वास्तविक धनलाभ नहीं होगा। मिलने वाले किराए या उससे भी
ज्यादा धन, सम्पत्ति के रखरखाव आदि में ही लग जाएगा। आयकर, सम्पत्तिकर आदि बढ़ जाने से किराए से कु छ
खास बचत न हो सके गी।
 चतुर्थ स्थान या चतुर्थेश पर पाप प्रभाव हो तो एग्रीमेंट की समाप्ति पर असन्तोष, समय पर मकान खाली न करना,
कु शलता से मकान खाली न होना आदि स्थिति बन जाती हैं।
 उक्त भावों पर शुभ प्रभाव होने पर सब तरह से कु शलता, लाभ व सन्तोष रहता है।

जब किराएदार ही स्वयं प्रश्न पूछे तो लग्न को किराएदार मानें। सप्तम को मकान मालिक मानें। शेष दोनों के न्द्र यथावत् रहेगें। 

नवजात या रोगी बच पाएगा? 

के न्द्रे बली लग्नपतिः प्रवृद्धश


चन्द्रोव्यये वा शुभदैः समेतः।
शुभा विलग्नाष्टमदात्मजेषु 
त्रिषड्दशाये च विधौ शुभं स्यात् ॥ 35 ॥

के न्द्र में बलवान् लग्नेश शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो। द्वादश में बड़े बिम्ब वाला चन्द्रमा शुभयुक्तदृष्ट हो। लग्न से 1, 5, 7, 8 में शुभ
ग्रहों का योग हो। चन्द्रमा 3, 6, 10, 11 भावों में हो। इन चारों योगों में रोगी या नवजात शिशु का शुभ ही होता है। 

बली जन्मराशिस्त्रिकं वर्जयित्वा


शुभैर्दृष्टयुक्तः स्थितः शं करोति।
अगे कोदयेऽरिष्टभंगे च योगे 
रवेर्दूरतो रात्रिनाथे तथैव ॥ 36 ॥

रोगी की जन्म राशि या जन्मलग्न की राशि, प्रश्न के समय 6, 8, 12 भावों में न हो और बली शुभफलदायक ग्रहों से युक्त या दृष्ट
हो तो रोगी या संकटग्रस्त नवजात शिशु बच जाता है। 

लग्न में स्थिर या शीर्षोदय राशि या उसका नवांश पड़े। अथवा चन्द्रमा राशिचक्र में सूर्य से दूर हो तो भी शरीर व आयु सुरक्षित
रहता है। 
ईदृक्प्रश्नविधौ चाद्ये भिषग्रुग् मदे पीडितो नभसि। 
औषधिः स्याच्चतुर्थे क्रू रैस्तस्माद् भवेद् दोषः ॥ 37 ॥

जब भी रोगी व्यक्ति के विषय में प्रश्न हो तो .


 लग्न डॉक्टर है। लग्न पर पापप्रभाव होने से शायद डॉक्टर रोग को 
ठीक से नहीं समझ पा रहा है। अतः डॉक्टर बदलने या किसी दूसरे डॉक्टर से भी मशवरा करने की सलाह दें।
सप्तम रोग का प्रतिनिधि है। यहां क्रू र प्रभाव होने से रोग जटिल होने के कारण समय पर ही ठीक होगा। अतः इलाज के दौरान
कोताही न बरतें, अन्यथा अन्य जटिलताएं भी पैदा हो सकती हैं।
 दशम स्थान खुद रोगी का है। यदि यहां क्रू र प्रभाव हो तो रोगी की अपनी लापरवाही, दवा खाने से बचना, डॉक्टर के
साथ पूरा सहयोग न करना, रोगी में मनोबल की कमी, आदि कारणों से रोग बढ़ने की सम्भावना प्रबल हो जाती है।
अत: रोगी को धीरज के साथ नियमित इलाज कराने की सलाह दें।
 चौथा स्थान दवा का है। यदि यहां क्रू र प्रभाव हो तो दी जा रही दवा से आनुषंगिक दोष पैदा होने के कारण दवा को
बदलने की सलाह दें। स्पष्ट है कि उक्त स्थानों पर शुभप्रभाव होने से सब शुभ ही रहता है। 

के न्द्रे वक्रिणि खेटे तद्दोषः पुन:पुनर्नवो भवति।


चन्द्रे च दशमवर्जे पापग्रहगे च जातुचिन्मरणम् ॥ 38 ॥

उक्त स्थितियों में जिस जिस के न्द्र में पाप प्रभाव बनाने वाला ग्रह वक्रगति से चल रहा हो उसी भाव से सम्बन्धित दोष बार बार
पैदा होता है। जैसे, डॉक्टर दवा बदलने को तैयार न हो, रोग में ही जटिलता आ जाए, रोगी पूरी सावधानी न बरते, दवा गलत या
नकली हो, इत्यादि। 
रोगी के प्रश्न में चन्द्रमा 1, 4, 7 स्थानों में किसी पाप ग्रह से अंशात्मक युति करने ही वाला हो तो रोग अचानक बढ़ जाता है
और जीवन का भय उपस्थित हो सकता है।

क्या रोग शान्त होगा ? 

द्विदेहगेऽथवा चरे विधुर्विलग्नपः शुभैः। 


स्वराशिगो बली जले गदो विनाशमेति खे ॥ 39 ॥

इन स्थितियों में रोग नष्ट हो जाता है 


• लग्न में चर या द्विस्वभाव राशि हो और लग्नेश या चन्द्रमा शुभस्थानों में शुभग्रहों से युक्त या दृष्ट हो, 
• लग्नेश या चन्द्रमा अपनी उच्चादि राशियों में हो, 
• अथवा उक्त में से किसी एक स्थिति में चन्द्रमा चतुर्थ या दशम स्थान में हो। 

प्रसव कब सम्भावित है ? 
यावन्तोऽशाः लग्नेऽवशिष्यन्ते स्युर्मासदिवसास्ते। 
यत्संख्ये स्याच्छु क्रो ते वा धर्मात्परे सुततः ॥ 40 ॥

गर्भवती स्त्री को प्रसव कब सम्भावित है, ऐसा प्रश्न उपस्थित होने पर लग्न में जितने नवांश बीतने बाकी हों उतने ही मास या
यथासम्भव दिन बाकी होते हैं। 

अथवा शुक्र जितनी संख्या वाले भाव में स्थित हो, उतने ही मास या दिन बाकी होते हैं। यदि शुक्र नवें भाव से आगे स्थित हो तो
शुक्र की स्थिति को पंचम भाव से गिनें। 

क्या बालक गोद लें? 


ईदृक् प्रश्ने जाते पूर्वं ज्ञात्वात्यन्तिकतां सूतेः। 
वक्ष्यमाणेन विधिना दत्तकयोगान् विचिन्तयेत् प्राज्ञः ॥ 41 ॥

ऐसा प्रश्न उपस्थित होने पर सबसे पहले आगे त्रिकोण भावों से सम्बन्धित अध्याय में कहे जाने वाले नियमों के अनुसार सन्तान
जन्म की सम्भावना न दीखने पर दत्तक सन्तान के इन योगों को परखें। 

आर्यात् पुत्रे शनिबुधगृहे वा तयोर्दृष्टियोगे


इन्दोर्वापि ज्ञविधुसहिते मन्दभागे सुतेशे।
मन्दस्य: सति तनयपे स्वर्खगेऽच्छे गुरौ वा 
सौम्ये सूतौ तनयपतिना हीनगे दत्तपुत्रः ॥ 42 ॥

इन योगों में दत्तक सन्तान की सम्भावना होती है 


 बृहस्पति से पंचम स्थान में शनि या बुध की राशि, नवांश हों या वे खुद वहां दृग्योग करें, 
 बृहस्पति से पंचम में चन्द्रमा का दृष्टियोग या उसकी राशि नवांश पड़ें,
 लग्न से पंचमेश, बुध या चन्द्रमा के साथ, शनि की राशि, नवांश में हो, 
 लग्न से पंचमेश शनि की राशि नवांश में हो और गुरु या शुक्र या दोनों ही स्वोच्चगत या स्वराशि में हों,
 लग्न से पंचम में बलवान् शुभ ग्रह के साथ पंचमेश का कोई भी योग, दृष्टि आदि न बने। 

प्रेम या सम्बन्ध की बात सफल है ? 

साकं लग्नेशचन्द्राभ्यां सम्बन्धे मदनेशितुः।


सप्तमेनाथवा सद्यो मनोवाञ्छितमाप्नुयात् ॥ 43 ॥
लग्नेशादग्रगे चन्द्रे युगपन्मदपानुगे।
अयत्नसिद्धिरस्तेन पापैर्विमतिता चिरात् ॥ 44 ॥
रन्ध्रपे च सपापे स्त्रीकृ तं तादृशि भ्रातृपे। 
वरपक्षात् कार्यहानिर्जलेशे पितृकारणात् ॥ 45 ॥
हमारी मुहब्बत बनी रहेगी और सफल होगी? सम्बन्ध की बात सफल होगी या नहीं? इत्यादि प्रश्नों में इस प्रकार देखें 
 लग्नेश या चन्द्रमा का सप्तमेश से कोई सम्बन्ध बने या इनमें से कोई सप्तम में ही हो तो सुगमता से मनचाही बात बन
जाती है,
 चन्द्रमा का लग्नेश व सप्तमेश से दृष्टिसम्बन्ध बने और चन्द्रमा लग्नेश से अंशों में आगे और सप्तमेश से पीछे हो तो
संयोगवशात् बात सिरे चढ़ जाती है, 

 चन्द्रमा या सप्तमेश का अस्तंगत या पापग्रहों से भी सम्बन्ध बनता हो तो लम्बे समय तक बात आगे बढ़ने पर भी
आखिर में बात बिगड़ जाया करती है,
 बात बिगड़ने की स्थिति में अष्टमेश का पापग्रह से सम्बन्ध हो तो लड़की पक्ष की ओर से, तृतीयेश वैसा हो तो वरपक्ष
की ओर से और चतुर्थेश पापग्रहों से सम्बन्ध करे तो लड़के या लड़की के माता पिता की ओर से असहमति बनने का
योग है। 

स्मरार्थवृद्धिभावगं शुभर्भगं विधुं रविः।


बुधो गुरुः समीक्षते व्ययोदयोपयोरथ ॥ 46 ॥
मदेशलग्ननाथयोर्मिथोऽन्वये स्वतुंगगः। 
भृगर्विधुश्च कामिनीमभीप्सितां ब्रुवन्ति ते ॥ 47 ॥

इन योगों में मनचाही लड़की या लड़के से विवाह हो जाता है 


 शुभग्रह की राशि में, सूर्य बुध या गुरु से दृष्टयुत चन्द्रमा 2, 3, 6, 7, 10, 11 भावों में हो,
 लग्नेश व व्ययेश या लग्नेश और सप्तमेश का आपस में गहरा सम्बन्ध बने,
 चन्द्रमा या शुक्र अपने उच्च, मूलत्रिकोण, स्वराशि या अधिमित्र की राशि में हो। 

क्या विवाह के बाद भी प्रेम बना रहेगा ? 

जामित्रांगपयोर्मिथो विपुलता त्र्याये त्रिकोणे तथा


योगे सप्तमराशिगे झकटकश्चन्द्रान्विते स्नेहिलौ।
एषामेव बलाबलेन कलहे वादे बलं भास्करे 
हीने नास्ति शुभं वरस्य भृगुजे वध्वाईयोस्तुल्यता ॥ 48 ॥

पति पत्नी के मनमुटाव, वादविवाद आदि प्रश्नों में लग्नेश व सप्तमेश का आपसी सम्बन्ध इस तरह देखें 
 लग्नेश व सप्तमेश आपस में 5, 9, 3, 11 में हों तो परस्पर गाढ़ा प्यार रहेगा,
 दोनों साथ साथ या एक दूसरे से सातवें हों तो सम्बन्धों में कभी उतार चढ़ाव, कलह और कभी प्रीति होगी। चन्द्रमा
इनमें से किसी एक के  साथ भी सम्बन्ध बनाए तो कु छ बिगाड़ नहीं आता है। घर की कलह बाहर नहीं जाती है,
 कलह की स्थिति में सप्तमेश बलवान् हो तो साथी और लग्नेश बली हो तो प्रश्नकर्ता मजबूत होता है,
 यदि सूर्य कमजोर हो तो पुरुष और शुक्र कमजोर हो तो स्त्री कु छ पीछे हटती है। यदि दोनों ही कमजोर हों तो विवाद में
दोनों ही पक्ष थोड़ा थोड़ा पीछे हटते हैं, 
क्या रूठी पत्नी लौटेगी? 

सुखान्निम्नगे भास्करेऽधः प्रयाते


कवौ नैति तस्मिन् विलोमे निवृत्तिः।
अमूढे भृगौ शीघ्रमायाति पूर्णे 
विधौ हीनबिम्बे विलम्बेन बाला ॥ 49 ॥

नाराज़ होकर गई पत्नी लौटेगी या नहीं, ऐसा प्रश्न सामने आने पर देखिए 
 सूर्य लग्न से लेकर चतुर्थ भावमध्य से पीछे हो और मार्गी व अस्तंगत शुक्र चतुर्थ भावमध्य से सप्तम तक कहीं हो तो
लौटने की सम्भावना कम है। 
 यदि इसकी उल्टी स्थिति हो, अर्थात् सूर्य की जगह शुक्र व शुक्र के  स्थान पर सूर्य हो तो शीघ्र लौटती है।
 प्रश्न के समय शुक्र उदित या वक्री हो तो लौटती है। अथवा पूर्वोक्त प्रकार से 4, 5, 6, 7 स्थानों में स्थित शुक्र जब
उदित या वक्री होगा, तब लौटेगी। 
 उक्त योगों में लग्न से सप्तम तक क्षीण चन्द्रमा भी हो तो काफी देर से लौटती है।

यदि चन्द्रमा बढ़ता हुआ हो तो जल्दी ही वापस आ जाती है। साथ ही ठीक पीछे कहे गए आपसी स्नेह योगों को भी परख लेना
चाहिए। 

क्या अलगाव होगा? 

मदेशे त्रिके नीचगे वा गुरौ च


खलाः सप्तमे वाष्टमे लग्नवित्ते। 
सुखं नो विवाहाच्च शुक्रे सभौमे 
तथा चिन्तनीया नवांशेऽपि चामी ॥ 50 ॥

इन स्थितियों में विवाहजनित सुख कम होता है। अथवा विवाह भंग होने के योग बनते हैं 
• सप्तमेश 6, 8, 12 में हो; 
• सप्तमेश कहीं भी नीच में हो; 
• प्रश्नसमय नीचगत बृहस्पति हो; 
• पापग्रह 7, 8 या 1, 2 भावों में एक साथ हों; 
• शुक्र व मंगल साथ में हों और उनमें से कोई एक नीच में हो; 
• शुक्र व मंगल एक समय में 6, 8, 12 में साथ हों; 
• शुक्र व मंगल क्रमश: 1, 2 या 7, 8 भावों में हों; 
• इन्हीं योगों को यथावत् नवांश कु ण्डली पर भी लागू करें।

क्या यह कम्पनी, बॉस, स्थान मेरे अनुकू ल है? 

लग्नेशचन्द्रयोगे सैव शुभो मदपचन्द्रयोरपरः।


वक्रिणि विलग्ननाथे वा त्रिनवस्थत्रिके शबन्धस्थे ॥ 51 ॥
के न्द्रे तद् विपरीते सैव तिष्ठति शुभो वाप्यशुभः सन्। 
अयमेव विधि: कार्यस्थानालयभूमिपृच्छासु ॥ 52 ॥

प्रश्न के समय लग्नेश व चन्द्रमा का आपस में कोई अच्छा सम्बन्ध कायम हो तो वर्तमान कम्पनी, बॉस या स्थान, कॉलोनी आदि
प्रश्नकर्ता के अनुकू ल होती है। 
इन योगों में अन्यत्र किस्मत आजमानी चाहिए 
• सप्तमेश व चन्द्रमा का सम्बन्ध बनता हो, 
• वक्री लग्नेश 3, 9 भाव में बैठे किसी ग्रह के साथ सम्बन्ध करे, ।
•के न्द्र में स्थित लग्नेश 6, 8, 12 भावेशों में से किसी के साथ सम्बन्ध करे, 

इन तीनों के विपरीत स्थिति हो तो अच्छा बुरा जैसा भी है, वही स्थान व मालिक रहता है, बदलाव नहीं हो पाता है। 
इन्हीं नियमों के आधार पर वर्तमान निवास स्थान, कार्यस्थान, पड़ौसी, जगह, संस्था आदि के शुभाशुभ और बदले जाने की
सम्भावना देखनी चाहिए। 

क्या कोई सहायता करेगा ? 

लग्नलग्नेश्वरावर्थी दाता सप्तमतत्पती। 


द्वयोः सम्बन्धतः प्राप्तिस्तद् विलोमे फलं न हि ॥ 53 ॥

ऐसे प्रश्नों में लग्न व लग्नेश सहायता चाहने वाला और सप्तम व सप्तमेश सहायता देने वाला होता है। इन दोनों के आपसी सम्बन्ध
बनने पर सहायता मिलती है। कोई सम्बन्ध न बने तो सहायता नहीं मिलती है। इनकी राशि आदि की स्थिति और सम्बन्ध की
प्रगाढ़ता के आधार पर सहायता की मात्रा, शुभाशुभता और सहायता का सही मौका तय किया जाता है।

उदाहरणार्थ, पिछले सप्ताह मई 10, 2006 को सायं 18:05 पर किसी ने ऐसा ही प्रश्न हमसे पूछा था। वे किसी अनजान
व्यक्ति से मिलने जाने वाले थे। प्रश्न लग्न में तुला राशि होने से शुक्र व लग्न स्थान स्वयं सहायता चाहने वाला प्रश्नकर्ता ही है।
सप्तमेश मंगल व सप्तम स्थान वह अनजान व्यक्ति है। 
कु ण्डली 6 
चन्द्र के तु 
14°32 
10X4 शनि 
___11X 
सूर्य बुध 
मंगल 
1/ राहु शुक्र

लग्न में बृहस्पति व सप्तम में उच्च का सूर्य व बुध है। लग्नेश शुक्र व सप्तमेश मंगल आपस में के न्द्र में हैं। नवम में स्थित मंगल सप्तम
स्थान व वहां बैठे ग्रहों से तीसरा ग्यारहवां और लग्नेश से के न्द्र सम्बन्ध बना रहा है। शुक्र स्वयं उच्च में है। नवांश में भी सूर्य शुक्र व
गुरु सम्बन्ध बना रहे हैं। अतः समुचित मान सम्मान के साथ सहायता मिलेगी, ऐसा फल बताया गया था। कल मई 13 को
प्रश्नकर्ता ने फोन पर प्रश्न का निर्दिष्ट फल ठीक रहने की सूचना दी थी। 

एवं मित्रादि वाणिज्ये युक्तयत्नाधिके षु च।


मिथः प्रीतिं च लाभेशाल्लाभयोगं विनिर्दिशेत् ॥ 54 ॥

उक्त रीति से ही व्यापार में साझेदारी, आपसी दोस्ती, अनुकू ल स्टॉफ, टीम तय करना, सलाहकार नियुक्त करना आदि का भी
विचार करना चाहिए। लग्नेश प्रश्नकर्ता व सप्तमेश साझेदार है। लाभेश या लाभ भाव का इनसे युति, आदि सम्बन्ध बनने पर
व्यापार आदि में लाभ रहता है। 

मुकदमा अपील आदि पक्ष में जाएगी? 

लग्नेशलग्नस्थितपुष्टखेटैः सम्बन्धगोऽभीष्टद इन्दुरत्र।


तथा स्मरेशस्मरगैश्च शत्रोर्जयः शनीज्यादधरस्थितेषु ॥ 55॥ 

लग्न या लग्नेश के साथ किसी बलवान् ग्रह का और चन्द्रमा का सम्बन्ध हो तो प्रश्नकर्ता को सफलता मिलती है। यदि चन्द्रमा बली
सप्तम भाव, सप्तमेश और सप्तम स्थित ग्रहों से सम्बद्ध हो तो शत्रु या विरोधी पक्ष को लाभ मिलता है। 
प्रश्न के समय शनि, बृहस्पति (मंगल भी) आदि ग्रह, बुध, शुक्र, चन्द्रमा से (किसी भी राशि में) अधिक अंशों पर हों तो पृच्छक
लाभ में रहता है। अन्यथा विपक्षी को लाभ मिलता है। 

लग्ने मदे पापयुते तदीशे धने द्विदेहे सुचिरेण शान्तिः।


अल्पांशगो लग्नपतिश्च के न्द्रे जयाय प्रष्टु र्मदपश्च शत्रोः ॥56 ॥

 लग्न में पापग्रह पृच्छक को, सप्तम में पापग्रह शत्रु को कष्ट देते हैं। दोनों जगह पापग्रह हों तो कटुता, शस्त्र प्रयोग व हीन
आचरण के साथ विवाद लम्बे समय तक चलता है।
 लग्नेश, सप्तमेश या दोनों ही द्वितीय स्थान में द्विस्वभाव राशि में हों तो भी विवाद लम्बा चलता है।
 के न्द्र में लग्नेश किसी भी राशि में सब ग्रहों से कम अंशों पर हो तो प्रश्नकर्ता लाभ में रहता है। यदि ऐसी ही स्थिति में
सप्तमेश हो तो विपक्षी लाभ में रहता है। 

लग्नेशे चास्तनीचे मदनभवनगे लग्नगे चातिपापे


वादो नायाति शान्तिं ग्रहबलवशतश्चेतयेतैकपक्षे।
नो शान्तिः शत्रुतायामुदयरिपुमदाधीश्वराणां च लग्न
पुत्रेशौ सौम्ययुक्तौ कथमपि वदतः के न्द्रभावेषु सन्धिम् ॥ 57 ॥

 लग्नेश अस्त या नीचगत हो, अथवा लग्न व सप्तम में एक साथ पापग्रह हों तो विवाद शान्त नहीं होता है। सप्तम या लग्न में
से जो बली हो, उसके पक्ष में काफी समय के बाद फसला होता है।
 लग्नेश, षष्ठेश व सप्तमेश में आपस में शत्रुता हो या एक दूसरे से वे सातवें हों तो भी विवाद चलता रहता है।
 लग्नेश, पंचमेश दोनों ही के न्द्र में शुभयुक्त या दृष्ट हों तो आपस में आखिरकार समझौता हो जाता है। पापयुक्त हों या
के न्द्र से बाहर हों तो सन्धि नहीं हो पाती है।

जवाबी पत्र कब? 


सूर्यसोमजयुतो दशमेशः स्वीकृ तिं बुधविधू यदि बन्धे।
लग्ननाथरजनीशमदेशा पत्रलब्धिमथ मन्त्रगतं तत् ॥ 58 ॥

 सूर्य, बुध के साथ दशमेश का सम्बन्ध हो तो स्वीकृ ति के साथ जबाबी पत्र आता है।
 बुध चन्द्र में सम्बन्ध हो, अथवा लग्नेश, सप्तमेश में से किसी के साथ चन्द्रमा का सम्बन्ध हो तो पत्र के अनुकू ल उत्तर
पर अभी विचार किया जा रहा है और कु छ समय के बाद उनकी प्रतिक्रिया आपको पता चलेगी, ऐसा कहें।

सन्देशहारक कब लौटेगा ? 

के न्द्रतरे यदि विधूदयपौ मदेशा


दग्रेसरावथ चरे स निवर्तमानः।
सौम्या धनोद्यमगताश्च तथैव पश्चात् 
दूतश्चलिष्यति यदि स्थिरगौ न सिद्धिः ॥ 59 ॥

लग्नेश व चन्द्रमा में कोई एक भी सप्तमेश से अंशों में आगे हो या इन तीनों में से कोई दो चर राशि या चर नवांश में हों तो सन्देश
वाहक सफल होकर लौट रहा होता है। लग्न से 2, 3 में शुभग्रह हों तो भी सफल होकर लौट रहा है। 

लग्नेश, चन्द्रमा व सप्तमेश स्थिर राशि या नवांश में हों तो अभी काम पूरा नहीं हुआ है। 

अतः वह कु छ समय के बाद चलेगा। इस स्थिति में सफलता सुनिश्चित नहीं होती है। 

गया व्यक्ति कब लौटेगा ? 

सम्बन्धे लग्नपस्योदयजलगखगेनापि वक्रः स के न्द्रे


मिश्रा: खेटा विलग्नात् त्रितयभनिहिताः शुक्रदेवेज्ययुक्ताः।
के न्द्र देवेन्द्रपूज्ये सति मदरिपुगे सौम्यखेटे त्रिकोणे 
वित्ते रन्धेऽथ भाग्ये सहजभवनगे सौम्यखेटे निवृत्तिः ॥ 60 ॥

इन योगों में घर से रूठकर गया हुआ, खोया या भटका व्यक्ति शीघ्र लौट आता है या उसका कु शल समाचार मिलता है 
• लग्नेश लग्न या चतुर्थगत ग्रह से सम्बन्ध करे या वक्री लग्नेश के न्द्र में हो, 
• लग्न, द्वितीय, तृतीय भावों में लगातार शुभ पाप मिश्रित गह हों। इन ग्रहों में शुक्र, गुरु भी हों तो तुरन्त लौटता है, 
• के न्द्र में गुरु और 6, 7 भावों में शुभग्रह हों, 
• नवम व पंचम में एक साथ शुभग्रह हों,
• अथवा 2, 8 या 3, 9 में एक साथ शुभग्रह हों।
लग्नपेन्दू व्यये लग्ने नवांशे संयुतौ यदा।
चन्द्रभ्रातृगतौ वाथ चन्द्रः स्वाम्बुमदाष्टमे ॥ 61 ॥
चरे चरांशे विधुलग्ननाथौ के न्द्रत्रिकोणाप्तिषु सौम्यखेटाः।
विलोमगा वैषु विलग्नसंस्थः पृष्ठोदयेन्द्वन्वित आगमाय ॥ 62 ॥ 

इन योगों में भी शीघ्र लौटता है .


 लग्नेश व चन्द्रमा 1, 12 भावों में स्थित होकर एक ही नवांश में हों, 
 तृतीयस्थ ग्रह व चन्द्रमा एक ही नवांश में हों, 
 चन्द्रमा 2,4,7,8 भावों में हो,
 चन्द्रमा व लग्नेश चर राशि या चर नवांश में हों और के न्द्र, त्रिकोण, लाभ स्थानों में शुभग्रह हों, 
 के न्द्र त्रिकोण, लाभ में एक से अधिक वक्री ग्रह हों, 
 पृष्ठोदय राशि में स्थित चन्द्रमा के साथ लग्नगत ग्रह का सम्बन्ध बने। 

क्या अपहरण हुआ है ? 

लग्ने रन्ध्रे वा कामांगे। लग्नान्त्ये वै रुद्धो नष्टः ॥ 63 ॥


लग्नेन्द्वोर्वा वा पापाक्रान्ते। राशेः शीलात् कष्टं वेद्यम् ॥ 64 ॥ 

लग्न सप्तम, लग्न अष्टम, लग्न द्वादश में एक साथ पापग्रह हों तो व्यक्ति अवरुद्ध, नष्ट, मृत, आपत्तिग्रस्त, अपहृत आदि अवस्था में
होता है। 

के वल, 1, 7, 8, 12 में से किसी एक में ही पापग्रह हों तो किसी अन्य कारण से व्यक्ति को आने में देर होती है। 

लग्न, लग्नेश व चन्द्रमा में से कोई एक पाप पीड़ित हो तो उस पीड़ा कारक पापग्रह की आश्रित राशि से रुकावट या कष्ट का
अनुमान करें। 
पीड़ा कारक पापग्रह यदि 3, 6, 7, 11 राशियों में हो तो किसी व्यक्ति से विवाद, पीड़ा, रुकावट, के कारण लौटने में देर हो
रही है। 

यदि वह ग्रह 4, 10, 12 राशियों में हो तो वर्षा, बाढ़, पानी या जलचर प्राणी के कारण, 1, 2, 5, 9 राशियों में हो तो चीपाए
जानवर, वाहन दुघटना, वाहन में खराबी, कील कांटा, पेड़ आदि गिरने के कारण देरी होती है। 

अपहरण का निश्चय होने पर 

तुर्ये रन्ध्रे कोणे मन्दः। पापः ब्रूते तद्बन्धम्।


पापः सोत्थे स्थानान्नीतः। के न्द्रे पापाः कष्टं भूरि ॥ 65 ॥
अवधिलग्नागोभयचरराशेः शुभान्विताच्छीघ्रम्। 
ब्रूयात् के न्द्रे कोणे त्रिषडाये च बलान्विते सौम्ये ॥ 66 ॥
 पापराशि में शनि 4, 5, 8, 9 स्थानों में हो तो अपहरण, गिरफ्तारी, पकड़ हुई है,
 तृतीय में पापग्रह हो तो अपहृत या रुद्ध व्यक्ति की जगह बदल दी गई है,
 के न्द्र में कई पापग्रह हों तो उसे शारीरिक कष्ट भी होता है,
 शुभयुक्तदृष्ट लग्न में चर राशि हो तो जल्दी, स्थिर राशि हो तो देर से और द्विस्वभाव राशि हो तो औसत समय में
छु टकारा हो जाता है। 

लग्ने रिपौ सपापे विमलदृग्योगविवर्जिते ज्ञेउंगे। 


कष्टं घोरं विद्धि क्रमेण मरणं च पापबाहुल्ये ॥ 67 ॥

लग्न और षष्ठ स्थान में पापग्रह की दृष्टि, योग हो और बुध, लग्न या दोनों किसी भी शुभ फलदायक ग्रह के दृग्योग रहित पापयुक्त
दृष्ट हों तो गाढ़ से गाढ़तर कष्ट या मृत्यु भी हो सकती है। अधिक पाप प्रभाव से क्रमश: कष्ट भी घनीभूत व असहनीय होता जाता
है। 

क्या पद छोड़ना पड़ेगा? 

स्थिरलग्ने लग्नाम्बरनाथौ बलिनावेकतरस्मिन् के न्द्र।


मन्दचरे नृपयोगविधौ वा गगने शुभदृग्योगे तत्पे ॥ 68 ॥
अम्बरपे पृथुचन्द्रयुते च के न्द्र देवगुरौ सुस्थे वा। 
सुरनुतभाग्यपलग्नपबन्धे राज्यं राज्येशे स्थिरलक्ष्म ॥ 69 ॥

पद, यश, धन मिलेगा? 

व्यत्ययेन यदि लग्नपदेशौ लग्नस्वामीन्दू दशमे वा।


लग्नचन्द्रपदभेशाः सुस्थैर्दछु र्दृष्टयुता वा राज्यम् ॥ 70 ॥

लग्नप उच्चे स्वोच्चपदृष्टो मीने बुधगुरुशुक्रा युक्ताः।


शीर्षोत्थे बुधभार्गवचन्द्रा वित्तं राज्यं कीर्तिं कु र्युः ॥ 71 ॥ 

इन योगों में पहले से प्राप्त पद, अधिकार, राज्य आदि स्थिर व पूरी अवधि वाला होता है और पद, अधिकार, राज्य प्राप्ति होगी या
नहीं? इत्यादि प्रश्नों में राजयोग भी बनता है 
• स्थिर लग्न में लग्नेश व दशमेश बलवान् हों अथवा इन दोनों में से बली और अपेक्षाकृ त धीमा चलने वाला ग्रह के न्द्र में हो, 
• पाराशर होराशास्त्र में बताए गए राजयोगों में से कोई योग बनता हो, 
• दशम में दशमेश बलवान् शुभग्रहों से सम्बन्ध बनाता हो, 
• दशमेश पूर्ण चन्द्रमा के साथ युक्त हो, 
• के न्द्र में बृहस्पति अपनी उच्चादि राशियों में गया हो,
• लग्नेश, दशमेश, नवमेश व बृहस्पति में किन्हीं तीन का के न्द्र, विशेषतया दशम में सम्बन्ध बने। 
इन योगों में भी नौकरी, पदोन्नति, पदवी, धन, सम्मान, राज्य, यश, अधिकार आदि जैसा प्रश्न हो, तदनुसार सफलता मिलती
है 

• लग्नेश दशम में व दशमेश लग्न में हो,


• लग्नेश व चन्द्रमा दशम में हों, 
• लग्नेश, चन्द्रमा व दशमेश स्वयं उत्तम राशियों में हों या उत्तम राशियों में स्थित ग्रहों से सम्बन्ध करें,
•लग्नेश अपनी उच्च राशि में हो और उसका उच्चपति उसे देखे, 
• बुध, गुरु व शुक्र मीन राशि में हों, 
• बुध, शुक्र व चन्द्रमा शीर्षोदय राशियों में हों। 

भौमे स्वोच्चे स्वः लग्नेट राज्यमथो बलवच्छु भदृष्टे।


पाताले शुभकीर्तिः पापैरपकीर्तिस्तेषां बलयोगात् ॥ 72 ॥
लग्नेशाश्रितराशिपतौ चेत् पापे भावे वा तद्योगे।
भूरि सुखं नो लग्नाद् देहमस्तात्स्वजनं खाद् राज्यार्थम् ॥ 73 ॥

 उच्चगत मंगल व स्वक्षेत्री लग्नेश हो तो भी अधिकार, राज्यादि मिलता है


 चतुर्थ पर बली शुभ ग्रहों की दृष्टि या योग हो तो राज्य मिलने पर यश और पापदृग्योग होने पर बदनामी, विरोध या
भीतर से ही घात होता रहता है। यश व अपयश की मात्रा का निश्चय ग्रह के बल से करें,
 लग्नेश जिस राशि में हो, उसका स्वामी यदि अशुभ भाव में, पापदृष्टयुक्त या स्वयं निर्बल हो तो राज्य मिलने पर भी खास
शान्ति नहीं मिल पाती है,
 ऐसी स्थिति में लग्न पर पाप प्रभाव हो तो अधिकारी के शरीर में, सप्तम पर पाप प्रभाव हो तो उसके स्टॉफ पार्टी आदि
में, दशम पर वैसा प्रभाव हो तो राजकीय उलझनों में उस बाधा का कारण छु पा होता है।

यदि उक्त स्थानों पर शुभ प्रभाव हो तो सब तरह से सुख शान्ति रहती है, यह बात स्वयं ही स्पष्ट है। उत्तराधिकार, पैतृक
सम्पत्ति, खानदानी हक आदि मिलेगा या नहीं? ऐसे प्रश्नों पर भी पद, यश, धन के इन सब योगों को लागू कर सकते हैं। 

प्रतियोगियों में कौन प्रबल है? 

अज्ञाताख्यविपक्षप्रश्ने बलवति शुभयुतदृष्टे षष्ठे।


प्रतियोगी प्रबलो व्ययराशौ प्रष्टोदयमदयोर्विज्ञाते ॥ 74 ॥

यदि प्रतियोगी, विपक्षी या विरोधी का नाम ज्ञात न हो तो षष्ठ भाव प्रतियोगी और द्वादश भाव पृच्छक का है। नाम ज्ञात हो तो लग्न
पृच्छक और सप्तम स्थान प्रतियोगी का है। 

जो भाव व भावेश बलवान्, शुभयुतदृष्ट हो वही ताकतवर सिद्ध होता है।

अपहर्ता और उसकी गिरफ्तारी 


के न्द्रे सप्तमपे नगरस्थो यातस्तस्मादन्यक्षस्थे। 
लग्नखेशयोर्बन्धः सद्यो यूननवत्रिपतौ दूरस्थे ॥ 75 ॥

सप्तमेश के न्द्र में हो तो अपराधी, ठग, अपहर्ता, चोर या अभी शहर से दूर नहीं गया है। यदि वह के न्द्र से बाहर हो तो शहर से दूर
निकल चुका है। 

लग्नेश व दशमेश का सम्बन्ध बने तो शहर के भीतर ही है और जल्दी पकड़ा जाता है। यदि 3, 7, 9 भावेशों का सम्बन्ध हो तो
शहर से दूर है और देर से पकड़ में आता है। 

लग्नात्सुखाच्च मदनान्नभसो विलोमात्


प्रागुत्तरास्तयमदिक् क्रमशस्त्रिके षु।
चन्द्राश्रयेण हतनष्टपलायितानां 
दिक् चेतयेत लवतः खलु योजनानि ॥ 76 ॥
चोरी का माल या अपराधी कितनी दूर है? इसका विचार करने के लिए के न्द्र स्थानों को मुख्य दिशा और शेष मध्यवर्ती भावों को
गौण दिशा इस प्रकार समझें 
पूर्व- लग्न, ईशान- 2, 3, उत्तर- चतुर्थ, वायव्य- 5, 6, पश्चिम सप्तम, नैर्ऋ त्य-8, 9, दक्षिण- दशम, अग्निकोण- 11, 12 

प्रश्न के समय जहां चन्द्र हो, उसी दिशा में अपराधी उस समय होता है। दूरी जानने के लिए पीछे बताया गया लग्न नवांश का
नियम लागू करें। लग्न में पहले साढ़े चार नवांश हों तो घटना स्थल से 18-20 किलोमीटर के भीतर ही समझें। इसके बाद प्रत्येक
नवांश से 18 किलोमीटर क्रमश: जोड़ते जाएं। अन्तिम नवांश में 108 किलोमीटर या उससे भी अधिक दूरी अपनी बुद्धि से
समझें। 

लग्नेन्दू च हृतस्वो हिबुकं द्रव्यं च सप्तमं चौरः। 


दशमं निग्रहकर्ता नष्टवीतद्रव्यलाभश्च ॥ 77 ॥

ऐसे प्रश्नों में लग्न व चन्द्रमा से नुकसान उठाने वाले का, चतुर्थ से अपहत माल का, सप्तम से चोर की स्थिति का और दशम से
चोर के पकड़े जाने और माल की बरामदगी का विचार करें। 

द्रेष्काणैस्तद्रूपं ग्रहवयोरूपशीलवशाच्चापि।
अन्ये च लाभयोगा अथ मदे लग्नमदपौ युक्तौ ॥ 78 ॥
निधनेशो लग्नस्थः सुखपोऽस्तो वा सूर्ययुतो बन्धम्। 
ब्रूते लग्नखपौ वा कथमपि योगे च के न्द्रपतयः स्युः ॥ 79 ॥

लग्न के द्रेष्काण से और के न्द्र में स्थित बली ग्रह के शील से पीछे बताए गए तरीके से चोर की आकृ ति, स्वरूप, पहचान आदि का
विचार किया जाता है। ठगे या चुराए हुए माल असबाव की प्राप्ति के कु छ अन्य योग ये हैं 
 लग्नेश व सप्तमेश सप्तम में हों, 
 अष्टमेश लग्न में हो, चतुर्थेश अस्त या सूर्य के साथ हो, 
 लग्नेश व दशमेश का आपस में कोई सम्बन्ध बनता हो, 
 के न्द्रेशों का आपस में कोई अच्छा सम्बन्ध बने। 
यह अफवाह है या सच ? 

उदयेन्दू च ग्रहाढ्यौ के न्द्रे सत्या वार्तान्यथान्यत्वम्। 


वक्रे च लग्ननाथे शुभा शुभैरन्यथा पापैः ॥ 80 ॥

लग्न, लग्नेश व चन्द्रमा में से कोई दो तत्त्व ग्रह युक्त होकर के न्द्र में हों या लग्नेश वक्री हो तो बात सत्य होती है। यदि इनके साथ शुभ
ग्रह हों तो वह बात अन्त में शुभता पैदा करती है। यदि पापयुक्त हों तो उसका परिणाम प्राय: सुखद नहीं होता। ग्रहरहित या के न्द्र
से बाहर हों तो बात सिर्फ अफवाह ही होती है। 

क्या नौकरी जारी रखू ? 

लग्ने शुभेक्षितयुते शिरसोदये वा


सौम्येषु वित्तनिधनास्तगतेषु नूनम्। 
पापेषु वृद्धिभवनेषु च वृद्धिलाभौ
सौम्येन्दुनेक्षितयुते मदने विलग्ने ॥ 81 ॥
लग्ननाथे निजोच्चादौ चन्द्रस्येक्षणयोगतः। 
वा शुभस्य च सेवा सा सौख्यवृद्धिधनावहा ॥ 82 ॥

इन योगों में वर्तमान नौकरी में ही आगे सुख, समृद्धि व उन्नति की सम्भावना होती है 

 शीर्षोदय राशि लग्न में हो या लग्न पर बलवान् शुभफलदायी ग्रहों की 


दृष्टि या योग हो,
लग्न से 2, 7, 8 भावों में बलवान् शुभग्रह हों,
पापग्रह 3, 6, 10, 11 में स्थित हों,
लग्नेश व सप्तम पर एक साथ शुभग्रहों या चन्द्रमा की दृष्टि या योग हो, 

सप्तमेशे तथाभूते वा प्रोक्तस्य विपर्यये। 


निवृत्तिर्भिन्नसेवा वा तुष्टिदा सेवकस्य च ॥ 83 ॥

यदि के वल सप्तमेश पर ही शुभदृग्योग हो या उक्त योगों से विपरीत स्थिति हो तो सेवानिवृत्ति लेना अथवा अन्यत्र नौकरी करने से
सन्तोष होता हैं। 

क्या वह व्यक्ति झूठा है? 

चन्द्रे क्रू रोपेते वा लग्नपविधौ न सत्यवादीति। 


अस्तपरहितैश्च शुभैः सर्वं व्यस्तं भवेत् प्रश्ने ॥ 84 ॥
प्रश्न समय लग्न, लग्नेश या चन्द्रमा का सप्तमेश या पापग्रहों से दृग्योग या सम्बन्ध हो तो व्यक्ति विश्वसनीय नहीं है। वह झूठ बोलने
व चालाकी करने से नहीं डरेगा।

इसके विपरीत सप्तमेश रहित शुभग्रहों के साथ इनका योग आदि बने तो वह व्यक्ति विश्वास के योग्य व ईमानदार है। 

आज धन्धा कै सा होगा ? 
लग्नपमदपतिबन्धे विजलखगराशौ भूरि धनदं स्यात्।
सबलयोर्बुधकु जयोश्च वोदयास्तभवनयोरनयोः ॥ 85 ॥ 

लग्नास्तेशावस्तौ वास्तांशे च्युतिर्हस्तगतस्यापि। 


उदयविध्वन्तराले ग्रहाश्रयवशाद् ग्राहकोन्मानम् ॥ 86 ॥

लग्नेश व सप्तमेश का सम्बन्ध बनता हो और वे 4, 10 भावों में न हों। बुध व मंगल बलवान् हों। बुध मंगल की राशि 1, 7 में पड़े
या वे स्वयं इन स्थानों में हों। अच्छा धन्धा होने के ये तीन योग हैं। 

लग्नेश व सप्तमेश अस्त हों या सप्तम भाव में पड़ने वाली नवांश राशि में हों तो आया ग्राहक भी लाभदायक नहीं होता है। 

लग्न व चन्द्रमा के बीच में जितने ग्रह हों, उतने ही ग्राहक मिलते हैं। उनमें जितने ग्रह उच्च या स्वराशि में हों तो उनकी संख्या को
क्रमश: तिगुना व दुगुना समझें। 

जितने ग्रह अस्त हों, उतने ग्राहकों से असन्तोष, जितने शत्रुक्षेत्री हों उनसे साधारण सन्तोष होता है। 

क्या सवारी या मालवाहक गाड़ी बना लूं? 

शुभाश्चतुष्टयस्थिताः खलास्तदन्यगा यदा।


बलोज्झिताः खला धनं सुखं न वक्रितेउंगपे ॥ 87 ॥
विलग्नरन्ध्रपौ निजोच्चगौ शुभे च रन्ध्रगे।
अथो हतेश्च लग्नपे हते तदाश्रितर्भपे ॥ 88 ॥
विधौ तथैव सप्तमे विलग्नरन्ध्रनाथयोः। 
न लग्नपे विलग्नभं लयं न पश्यतीश्वरे ॥ 89 ॥

के न्द्र में शुभ ग्रह हों और पापग्रह के न्द्र से बाहर हों। पापग्रह शुभग्रहों की अपेक्षा निर्बल हों और लग्नेश वक्री न हो। लग्नेश व अष्टमेश
अपनी उच्चादि राशियों में हों। अष्टम में शुभग्रह हो। इन चारों योगों में व्यावसायिक वाहन बनाना लाभदायक व दुर्घटनामुक्त रहता
है। 

इन योगों में वाहन के साथ हादसा होने की प्रबल सम्भावना रहती है .

 लग्नेश कमजोर राशियों में किसी भी बलवान् ग्रह की दृष्टि या युति से रहित हो,
 लग्नेश जिस राशि में बैठे, उसका स्वामी निर्बल हो,
 अथवा चन्द्रमा व उसका राशिपति दोनों ही खराब स्थानों में या कमजोर राशियों में हों,
 लग्नेश व अष्टमेश दोनों ही सप्तम में हों, 
 लग्न पर लग्नेश की और साथ ही अष्टम पर अष्टमेश की कोई दृष्टि या युति न हो। 

स्टॉक बेच दूं या बढ़ा लूं ? 

क्रयप्रश्ने लग्नं क्रे ता विक्रये च तद् विक्रे ता। 


बलवति लग्ने क्रयणं लाभे च विक्रयो फलदः ॥ 90 ॥

अपने संग्रह का व्यावसायिक स्टॉक, शेयर आदि बेचूं या और खरीदूं? ऐसे प्रश्नों में लग्न, लग्नेश व चन्द्रमा क्रय के प्रश्न में खरीदने
वाले और विक्रय के प्रश्न में बेचने वाले हैं। 

ये तीनों बलवान् व अच्छी स्थिति में हों और खरीदने की इच्छा से प्रश्न किया जाए तो क्रय में लाभ होता है। 
यदि विक्रय की इच्छा वाला प्रश्न हो तो लग्न व लाभ स्थान दोनों बली होने पर बेचने में लाभ होता है। यदि लग्न व लाभ स्थान या
इनके स्वामियों से चन्द्रमा का सम्बन्ध बन रहा हो तो क्रय विक्रय तुरन्त कर लेना चाहिए। 

लग्नाल्लाभे बलवति प्रष्टा बली मदाच्च प्रतिपक्षी। 


पृच्छकदृष्ट्या ब्रूयाल्लाभं हानिं च तत्पक्षे ॥ 91 ॥

लग्न से ग्यारहवां स्थान बली हो तो पूछने वाला (क्रे ता या विक्रे ता जो भी हो) लाभ में रहता है। पंचम स्थान बलवान् हो तो दूसरी
पार्टी लाभ में रहती है। 
क्या मेरा काम बनेगा ? 

लग्नेशाद् वा लग्नाच्चतुर्थभवने शुभा बलिनः। 


के न्द्रे च लग्ननाथे शुभयोगेषु वा सर्वसंसिद्धिः ॥ 92 ॥

बिना काम का खुलासा किए ही पृच्छक अपने चिन्तित काम की सफलता का प्रश्न करे तो लग्नेश या लग्न से चतुर्थ में बली शुभग्रह
हो या लग्नेश बलवान् होकर के न्द्र में हो या पूर्वोक्त शुभ योगों में से कोई योग बने तो कार्य में सुगमता से सफलता मिलती है। 

क्या कभी मैथुन सुख हो चुका है ? 

लग्नेशे शत्रुराशौ मदनभवनगे लग्नपाल्लग्नतश्च


वित्ते भौमेऽथ तेनोदयपसितभपैर्बन्धमाप्ते विजीवैः। 
भौमेन्दू तुल्यराशावनगभवनगौ सौरिचन्द्रौ विलग्ने 
शुक्रे चन्द्रेक्षितेऽलौ कु जशनिसहिते के न्द्रभावेषु भोगः ॥ 93 ॥
क्या प्रश्नगत व्यक्ति पहले कभी काम व्यभिचार में लिप्त रहा है? ऐसा प्रश्न हो तो इन योगों में से कोई योग बनने पर, लड़का या
लड़की मैथुन का सुख प्राप्त कर चुका होता है .
 लग्नेश सप्तम में शत्रु राशि में हो और लग्न या लग्नेश से द्वितीय में मंगल हो,
 लग्नेश, शुक्र व शुक्र की आश्रित राशि के स्वामी के साथ मंगल का कोई सम्बन्ध बने और इन्हीं के साथ बृहस्पति का
कोई सम्बन्ध न हो,
 मंगल व चन्द्रमा, चर या द्विस्वभाव राशि में हों और इनकी आपस में दृष्टि हो,
 शनि, चन्द्रमा दोनों ही लग्न में पास के अंशों में हों,
 वृश्चिक राशि या द्रेष्काण या नवांश में शुक्र पर चन्द्रमा का दृग्योग हो और के न्द्र में किसी भी तरह से शनि व मंगल हों। 

उक्ताभावे शुभेज्ये च पापशुद्धे धने न हि। 


लग्नलग्नेशचन्द्राणामीज्ययोगे न दोषता ॥ 94 ॥ .

 उक्त योगों में से कोई योग पूरा न बनता हो या बनने पर बृहस्पति का सम्बन्ध, लग्न, लग्नेश, चन्द्रमा आदि से हो जाए,
 अथवा बृहस्पति अच्छी राशियों में के न्द्र, त्रिकोण में हो और धन स्थान में कोई भी पापग्रह न हो तो लड़का या लड़की
व्यभिचार सम्बन्धों से रहित है। 

क्या के वल आकर्षण ही था ? 

लग्नतन्नाथचन्द्रेषु स्थिरेतरगतेषु च। 


गाढमिन्दौ द्विभे लग्ने चरे साधारणं मतम् ॥ 95 ॥

लग्न, लग्नेश व चन्द्रमा तीनों ही स्थिर राशियों में न हों तो गहरा आकर्षण, इश्क, मुहब्बत रही है। 
लग्न और चन्द्रमा चर या द्विस्वभाव में हों तो उम्र के अनुसार औसत आकर्षण था। इसी योग में यदि सम्भोग का पूर्वोक्त योग पुष्ट
दिखे तो किसी भय, दबाव, जरूरत आदि के कारण सम्बन्ध बना था। 

वह व्यक्ति कै सा था ? 

मदे शनौ विवर्णको बुधे विधौ विटो मतः। 


रवौ भृगौ विवाहितः कु जेऽपि चन्द्रतो वयः ॥ 96 ॥

प्रश्न लग्न में सप्तम स्थान में स्थित या उस पर अधिक प्रभाव रखने वाले ग्रह को देखें। शनि से अपने से हीन जाति, बुध या
चन्द्रमा से बाजारू या चालू, सूर्य मंगल शुक्र से विवाहित के साथ वैसा सम्बन्ध बना था। 
चन्द्रमा प्रश्न के समय शुक्ल द्वितीया से दशमी तक हो तो कमसिन, शुक्ल दशमी से कृ ष्ण पंचमी तक प्रौढ़ और शेष दिनों में ढ़लती
उम्र वाला समझना चाहिए। अथवा सप्तम में स्थित और सप्तममेश ग्रह की उम्र के अनुसार उसकी उम्र समझनी चाहिए।

हनीमून पर कै सा माहौल रहेगा ? 


के न्द्रे चन्द्रे शुभयुतिबले हासविव्वोकपूर्वं
लग्ने वार्ये मदगभृगुजे चाम्बुसंस्थे निशेशे।
सुस्थे चन्द्रे गहनरतिजं सौख्यमन्यद् विलोमे 
मन्दात् के न्द्र सहजनवगात् कालमाहुर्विशेषात् ॥ 97 ॥

मनोरंजन या हनीमून (मधुचन्द्रिका) के लिए पति पत्नी बाहर जा रहे हों तो वहां कै सा माहौल रहेगा? ऐसा प्रश्न होने पर इन योगों
में हंसी, खुशी, नाज़, अदा, अन्दाजों के साथ समय व्यतीत होता है 
 के न्द्र में चन्द्रमा शुभयुतदृष्ट हो, 
 लग्न में बृहस्पति, चतुर्थ में चन्द्रमा और सप्तम में शुक्र हो,
 चन्द्रमा का जितना अधिक पक्षबल होगा, उतना ही गहन व आनन्ददायक आमोद-प्रमोद, रति आदि होगी।
 यदि चन्द्रमा कमजोर या क्रू र ग्रहों से दृष्ट हो तो रोष, क्षोभ, ना नुकर के कारण वातावरण कु छ कसैला हो जाता है,
 मिश्रित ग्रहों का योग चन्द्रमा से हो तो मिलाजुला वातावरण रहता है,
 के न्द्र में शनि हो या 3, 9 भावों में दिनबली ग्रहों (सूर्य, गुरु, शुक्र) का प्रभाव हो तो दिन में, रात्रिबली ग्रहों (चन्द्र,
मंगल, शनि) का प्रभाव हो तो रात में और बुध का प्रभाव हो तो दिन रात में कभी भी संगम होता है। 

क्या समुचित हिस्सा मिलेगा ? 

चरे लग्नेन्दू नो द्वितनुभगते मध्यमपण:


खला लग्ने कामे कपटविधिना भागहननम्।
शुभा लाभे के न्द्रे सुजनचरितं वा धनलये 
विवादं पापाश्चेद् व्यवहृतिविभागे विदधते ॥ 98 ॥

घर परिवार की सम्पत्ति या व्यापारिक बंटवारे में हमारा उचित हिस्सा मिलेगा? ऐसा प्रश्न आने पर इन बातों को देखिए .
 लग्न व चन्द्रमा दोनों चर राशि में हों तो हिस्सा मिलने में परेशानी और ये पापयुक्तदृष्ट भी हों तो विवाद होना सम्भावित
है,
 यदि ये दोनों द्विस्वभाव राशि में हों तो अपने वास्तविक हिस्से से कम भाग मिलता है,
 लग्न व सप्तम में एक साथ पापग्रह हों तो बेईमानी से हिस्सा दबा लिया जाता है और झगड़ा सम्भावित होता है,
 के न्द्र, लाभ व द्वितीय स्थानों में शुभग्रह हों तो ईमानदारी से पूरा हिस्सा मिल जाता है,
 अष्टम व द्वितीय में पापग्रह हों तो वादविवाद, मुकदमा, मारपिटाई की नौबत आ जाती है। 

खोया वाहन या पशु मिलेगा? 

लग्नेश्वरेन्दू रिपुपेन युक्तौ षष्ठेश्वरो वोदयपो विलग्ने।


शुभान्वितो लग्नमदौ बलाढ्यौ 
हठात्तदीयाप्तिकरा: प्रदिष्टाः ॥ 99 ॥

खोया वाहन या पशु मिलेगा? इत्यादि प्रश्नों में निम्नलिखित योग बने तो वह चीज मिल जाती है 
• षष्ठेश के साथ लग्नेश व चन्द्रमा का योग या दृष्टि हो, 
• लग्न में बलवान् और शुभयुक्तदृष्ट लग्नेश या षष्ठेश या दोनों ही हों,
• लग्न व सप्तम स्थान और इनके स्वामी बलवान् होकर अच्छे भावों में गए हों। 

क्या विवाह होगा? 

समे शनिर्वधूप्रदोऽसमे वरं विलग्नभात्।


सुतात् पदाद् द्विके विधुः पदेशसूर्ययोगतः ॥ 100 ॥
शुभास्त्रिकोणके न्द्रगाः स्त्रिषष्ठसप्तमे विधुः।
रवीज्यसौम्यवीक्षितो मदे चरे सभार्गवः ॥ 101 ॥
सुरासुरैर्नुतौ युतौ शुभे निशेश्वरेण वा। 
सलाभके न्द्रगाः शुभा वधूवरप्रदा मताः ॥ 102 ॥

हमें दूल्हा या दुल्हन कब मिलेगी? इत्यादि प्रश्नों में अधोनिर्दिष्ट कोई योग बनने पर जल्दी ही रिश्ता होता है 
 लग्न से समसंख्यक भावों में अके ला शनि दुल्हन और विषम भावों में दूल्हा शीघ्र मिलने का सूचक है।
 चन्द्रमा 5, 6, 10, 11 स्थानों में दशमेश व सूर्य से दृष्ट हो, 
 के न्द्र व त्रिकोण में के वल शुभग्रह हों, 
 सूर्य, बुध या गुरु से दृष्ट चन्द्रमा 3, 6, 7 भावों में हो,
 सप्तम में चर राशि का चन्द्रमा शुक्र से सम्बन्ध करे, 
 के न्द्र त्रिकोण में गुरु व शुक्र आपस में सम्बन्ध करें, 
 चन्द्रमा का गुरु या शुक्र से शुभभावों में सम्बन्ध हो, 
 के न्द्र, लाभ या व्ययस्थान में बलवान् शुभग्रह बैठा हो तो शीघ्र रिश्ता होने का योग है। 

प्रश्नसन्दर्शनाख्ये ग्रन्थे दिल्ल्यां सुरेशमिश्रोक्ते । 


के न्द्रसन्दर्शनमिदं तृतीयं प्रश्नगवेषणं चैति ॥ 103 ॥
दिल्लीवासी डॉ. सुरेश चन्द्र मिश्र द्वारा कहे जा रहे इस प्रश्नसन्दर्शन नामक ग्रन्थ में, के न्द्र स्थानों से विचार करने योग्य विविध
प्रश्नों का विवेचन वाला, यह के न्द्रसन्दर्शन नामक तीसरा अध्याय सम्पन्न होता है। 

॥ एवमादितः श्लोका: 206 ॥ 

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