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उदाहरण से इस बात को समझते हैं। संयोगवशात् मई 6, 2005 को 13:17 बजे हमसे सन्तान सम्बन्धी प्रश्न किया गया था।
इन्होंने आज मई 2, 2006 को पुत्र जन्म की सूचना अभी अभी दी है। पति पत्नी की कु ण्डली में पुत्र के योग अनुकू ल थे।
तत्कालीन कु ण्डली प्रस्तुत है।
लग्नेश सूर्य नवम भाव में मेष राशि में और पंचमेश गुरु द्वितीय में कन्या राशि में है। दोनों एक दूसरे से छठे आठवें हैं। चन्द्रमा अष्टम
में बुध व राहु के अत्यन्त निकट है। अत: सफलता नहीं दिखती है। यह एक पक्ष है।
उदाहरण कु ण्डली 5
गुरु के तु /
08°14
3 शनि
8X2 शुक्र
मंगल
XI सूर्य
12
राहु चन्द्र बुध
लग्नेश सूर्य उच्चगत होकर पंचम से त्रिकोण में है। पंचम से दसवें स्थान में बृहस्पति है।
पंचम से सातवें शनि वर्गोत्तम नवांश में है। पंचम से नवमेश सूर्य स्वयं प्रश्नलग्नेश ही है। इस तरह लग्नेश, कार्येश व चन्द्रमा का योग
न होने पर भी सूर्य, शनि, बृहस्पति और नवमेश मंगल सीधे ही पंचमभाव पर अपना शुभ प्रभाव दे रहे हैं। यह सफलता का योग है।
लेकिन कब? लग्न में बुध का तीसरा नवांश है। बुध ऋतु का स्वामी होने से 6 मास में सफलता व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि अभी
गर्भधारण हुआ ही नहीं है। उक्त सफलता दिखाने वाले ग्रहों में शनि बलवान् है, लग्न से लाभस्थान में बैठा है। यह वर्षभर का समय
बताता है। अतः एक साल के भीतर, तुला (पंचम से लाभस्थान) में गुरु आने पर गर्भाधान व सफल प्रसव बताया गया था।
लाभालाभजयाजयच्युतिहतिप्रावीण्यमायुर्यशो
दुःखादीन् गुणदेहरूपविनयारोग्याकृ ती: कामनाम्।
वृत्तिं सम्पदमापदं च शयनं कार्यस्य सिद्धिं नयं
द्यूतं जन्मभुवो गमागममतीन् संचिन्तयेल्लग्नतः ॥ 3 ॥
इन प्रश्नों में लग्नभाव का विशेषतया विचार करना चाहिए
1. लाभ हानि, 2. हार जीत, 3. पदावनति, अपमान, नीचा देखना, स्थान परिवर्तन, तबादला आदि, 4. कष्ट, आंशिक लाभ,
दुर्घटना, चोट, 5. कार्यकु शलता, चतुराई, विशेषज्ञता, 6. आयु, 7. यश, 8. प्रश्नकर्ता को किसी भी तरह का दु:ख, 9.
प्रश्नकर्ता के गुण अवगुण, 10. शरीर, 11. रूप, आकृ ति, 12. नम्रता, सज्जनता, 13. स्वास्थ्य, 14. मनोरथ, आकांक्षाएं,
15. रोजगार की स्थिति, 16. सब तरह का सुख व दु:ख, सम्पत्ति, विपत्ति, 17. नींद सम्बन्धी बातें, बिस्तर, शयनकक्ष के
क्रियाकलाप, 18. काम की सफलता, 19. नीति व सिद्धान्त से प्रेम, 20. जुए में लाभ हानि, 21. जन्मस्थान, 22. यात्रा की
सम्भावना, 23. बुद्धि का स्तर, कार्यप्रणाली तय करना।
लग्न का विचार सर्वत्र अनिवार्य होते हुए भी जिन प्रश्नों में व्यक्ति लाभ की स्थिति में रहना चाहता है, लग्नभाव का विचार व्यापक
तरीके से करना चाहिए। ऐसे प्रश्न आपके सामने अलग अलग ढंग से पेश किए जा सकते हैं। किसी भी प्रश्न का विचार करने के
लिए प्रश्न का अन्तिम व चरम लक्ष्य, अर्थात् प्रश्न कर्ता का मनोरथ क्या है, उसका हित किस बात में निहित है, यह अपने
मस्तिष्क में निश्चय कर लेना चाहिए। हमारा सीधा दायित्त्व प्रश्नकर्ता के प्रति ही है। कई बार एक ही निहितार्थ की ओर संके त
करने वाले प्रश्न को अलग अलग शब्दों में भी पूछा जा सकता है। जैसे, व्यवसाय करूं या नहीं, लिया गया ऑफिस या दुकान मेरे
लिए कै सी है, काम में कु छ बदलाव करना चाहता हूं, आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए पार्टनर बनाना चाहता हूं, क्या मुकदमा
दायर करूं , क्या जगह बदल लूं, इत्यादि प्रश्नों में पृच्छक वर्तमान तंगहाली से उबर कर लाभ या सुगमता की स्थिीत में जाना
चाहता है। इन सब प्रश्नों में मुख्यतया लग्न को ही देखेगें। प्रश्न से फल बताते समय अपने दिमाग की सारी खिड़कियों को रोशन व
खुला रखना पढ़ता है। इसीलिए शास्त्रकारों ने कहा है कि प्राश्निक दैवज्ञ को ऊहापोह में कु शलता प्राप्त होनी चाहिए। लग्न से विशेष
विचारणीय बातों की उक्त सूची में से कोई भी प्रश्न सामने हो तो निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रश्नकर्ता को लाभ, सुख सुगमता,
सन्तोष, तसल्ली आदि होती है। स्पष्टता के लिए समझिए, प्रश्नकर्ता यदि पूछे, क्या मुझे लाभ होगा? मुझे यश या शाबासी मिलेगी,
कोई दुर्घटना, शोक या रोग तो नहीं सताएगा? मेरी आयु ठीक है? क्या वास्तव में मेरी ही गलती है? क्या यात्रा, तबादला,
रोगशान्ति, कष्टनिवारण होगा? इत्यादि सभी प्रश्नों में दिए जा रहे योगों में से कोई एक या अधिक योग बने तो प्रश्नकर्ता की
मनोकामना पूरी होगी। यदि योग बनने के साथ किसी विपरीत तत्त्व का भी मिश्रण हो तो शुभ फल में तदनुसार कमी होगी।
लग्न के योग
उक्त तेईस प्रश्नों में से कोई भी प्रश्न उपस्थित हो और इन स्थितियों में कोई एक या अधिक बने तो प्रश्न का फल प्रश्नकर्ता के
पक्ष में होता है
• के न्द्र (1, 4, 7, 10 भाव), त्रिकोण और अष्टम में अच्छी अवस्था के ग्रह बैठे हों,
• उक्त भावों के स्वामी स्वराशि, मूलत्रिकोण, उच्च, वक्री आदि शुभ अवस्थाओं में हों,
• उक्त दो स्थितियों में कोई एक बने और कोई खराब अवस्था वाला ग्रह इन भावों में न हो,
•खराब अवस्था वाले ग्रहों की संख्या के अनुसार शुभ फल की मात्रा में कमी या हास होता है। यदि दोनों प्रकार के ग्रहों का वज़न
बराबर हो तो साधारण सफलता ही मिल पाती है। अन्यथा जिस श्रेणी के ग्रहों का बहुमत हो उस तरह के फल की मात्रा
अपेक्षाकृ त ज्यादा रहती है। यहां शुभ भावेशों को शुभ और 6, 8, 12 के स्वामियों को पाप समझें।
सहजपंचमसप्तमलाभगाः
शुभफलाः शुभदा मदकर्मगाः।
स्वसुतलग्नगताश्च तथा मता
अशुभदे व्ययलाभगते न हि ॥5॥
लग्न में क्षीण चन्द्रमा कार्यसिद्धि में सदा रुकावटें पैदा करता है, लेकिन दशम में क्षीण चन्द्र हो तो सफलतादायक है।
लग्नेश बली हो और लग्न में मिथुन, कन्या, तुला, धनु का पूर्वार्ध या कु म्भ राशि हो, अष्टम में कोई पापग्रह न हो तो भी
सफलता का एक समर्थ योग है।
प्रश्न लग्न में 2, 3, 6, 7, 11 भावों में बृहस्पति से दृष्ट चन्द्रमा हो तो कार्यसिद्धि का स्वतन्त्र योग है। यदि इस स्थिति में गुरु या
चन्द्रमा का किसी अन्य शुभ ग्रह से भी सम्बन्ध बन जाए तो फल अधिक रमणीय हो जाता है।
चतुर्थ स्थान में पूर्ण चन्द्रमा हो और सप्तम में कोई निसर्ग शुभग्रह बैठे। अथवा चतुर्थ में चन्द्र के रहते हुए लग्न में सूर्य हो तो
सत्याचार्य के मत से इन दोनों योगों में सफलता व धनलाभ होता है।
यदि इसी तरह से पापग्रह देखे तो रोग या कष्ट बढ़ता है। यदि रोगादि न हों तो आने की सम्भावना बन जाती है।
पंचम, सप्तम और अष्टम में शुभग्रह हों। अक्षीण चन्द्रमा 3, 6, 10, 11 में हो। सभी पापग्रहों पर शुभ दृष्टि या योग हो। चन्द्रमा से
उपचय स्थानों में बली शुभग्रह हों। इन चारों योगों में अच्छा स्वास्थ्य, रोगशान्ति,
आयु की रक्षा होती है और लग्न सम्बन्धी पूर्वोक्त प्रश्नों का फल भी पृच्छक के लिए हितकारी होता है।
लग्न में शीर्षोदय राशि हो और लग्न में शुभग्रहों के अधिक वर्ग हों,
लग्नेश शुभयुक्त या शुभग्रहों से दृष्ट हो और पापफलदायी किसी भी ग्रह का लग्न या लग्नेश पर दृग्योग न हो, इन स्थितियों
में लग्न बली होता है। अत: लग्न सम्बन्धी सभी प्रश्नों में प्रश्नकर्ता को सुख व लाभ मिलता है।
यदि लग्नेश, बृहस्पति व शुभ बुध में से कोई एक भी लग्न से के न्द्र में हो या शुक्र 4, 7, 10 भावों में हो तो प्रश्नकर्ता सफलता व
लाभ की स्थिति में रहता है। यदि इनमें से कई ग्रह के न्द्र में हों तो बहुत उत्तम है।
प्रश्नलग्न से के न्द्र, त्रिकोण व द्वितीय स्थान में स्वाभाविक शुभग्रह और तृतीय, षष्ठ, एकादश में स्वाभाविक पापग्रह हों तो
प्रश्नकर्ता फायदे में रहता है।
इन्हीं स्थानों में कोई बलवान् ग्रह, चाहे वह पापी ही क्यों न हो, यदि उच्च, मूलत्रिकोण या स्वराशि में हो तो प्रश्नकर्ता की
सफलता व मनोरथपूर्ति को प्रकट करता है।
इन चार स्थितियों में मुसीबत, रोग, शारीरिक कष्ट, हार, दुर्घटना आदि की प्रबल सम्भावना होती है –
के न्द्र में क्रू र ग्रह हों, लग्न में पृष्ठोदय राशि (1, 2, 4, 9, 10) या चर राशि हो और अष्टम में चन्द्रमा हो,
नीचादि पापराशियों में स्थित अशुभ ग्रह एक साथ लग्न व चन्द्रमा को देखें या योग करें,
लग्न में चन्द्रमा या बुध से कोई नीच, शत्रुक्षेत्री, अस्त पापीग्रह दृग्योग करे,
शनि 6, 8, 9 स्थानों में हो और उसे एक से अधिक पापग्रहों का दृग्योग प्राप्त हो।
लग्न, लग्नेश, लग्न नवांश व उसका स्वामी, इनमें से अधिकांश तत्त्व चर राशि में हों,
लग्नेश के न्द्र में बैठकर 7, 9, 10 भावेशों में से किसी एक से सम्बन्ध करे,
लग्नेश व नवमेश का आपस में के न्द्र या त्रिकोण सम्बन्ध बने,
लग्नेश से तृतीय में कोई निसर्ग शुभग्रह हो,
इन सब पर किसी भी तरह से पापग्रह का योग या दृष्टि न हो,
अष्टम स्थान में कोई ग्रह न हो तो बहुत उत्तम या के वल शुभग्रह हों।
सप्तम या दशम में पापग्रह हो तो किसी प्रकार की राजकीय बाधा, वरिष्ठ व्यक्ति की आज्ञा न मिलना या किसी
पारिवारिक कारण से यात्रा में बाधा होती है,
लग्नेश व नवमेश पर पापग्रहों का प्रभाव हो तो यात्रा का अन्त सुखद नहीं होता है,
लग्नेश व नवमेश 7.8 भावों में अंशों में पास पास स्थित हों या कोई एक यहीं बैठ कर दूसरे से सम्बन्ध करे तो यात्रा का
उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता है।
लग्न पर शुभप्रभाव हो तो यात्रा में सुख, चैन, आराम होगा। दशम पर शुभ प्रभाव हो तो व्यक्ति अपने काम से सम्बन्धित जिन लोगों
से मिलेगा, वे अनुकू ल होगें। सप्तम में शुभ प्रभाव हो तो मंजिल पर जाकर तसल्ली होगी। चतुर्थ पर शुभ प्रभाव हो तो यात्रा का
परिणाम सुखदायक होगा।
यात्रा सम्बन्धी प्रश्न में लग्न, लग्नेश या चन्द्रमा को कोई क्रू र ग्रह पीड़ित कर रहा हो तो उस पीड़ाकारक ग्रह की अधिष्ठित राशि को
देखें। वह राशि मनुष्याकार हो तो किसी व्यक्ति के कारण रास्ते में परेशानी, बेचैनी, विवाद, यात्रा में रुकावट आदि हो सकती है।
यदि जलराशि हो तो पानी की कमी, पानी से पैदा होने वाले रोग या वर्षा, बाढ़ आदि से बाधा होती है।
यदि चौपाया राशि हो तो किसी जानवर, पक्षी के कारण भय, दुर्घटना या किसी अन्य वाहन से कष्ट होता है।
इन योगों में धन सम्पत्ति प्राप्त होती है और पहले से विद्यमान सम्पदा बढ़ती है
• लग्न में बुध को चन्द्रमा देखता हो,
लग्नेश, चन्द्रमा व धनेश तीनों ही किसी प्रकार से के न्द्र, त्रिकोण व द्वितीय में आपस में दृष्टयुक्त हों या बलवान् हों,
लग्न में बलवान् शुभग्रहों के अधिकांश वर्ग पड़ते हों और लग्नेश अच्छी स्थिति में हो,
सप्तम या चतुर्थ में चन्द्रमा, दशम में सूर्य और लग्न में बलवान् शुभग्रह हो,
बलवान् होकर शुभफलदायक ग्रह एक साथ 4, 10 या 2, 11 भावों में हों।
उत्पादन कै सा होगा?
ऐसे प्रश्नों में लग्न स्वयं उत्पादक या उद्योगपति है। चतुर्थ स्थान में फै क्ट्री, सप्तम स्थान में उत्पादन और दशम में उत्पादक का
लाभ निहित है।
जिन जिन स्थानों में नीचादिगत, निर्बल ग्रह हो, वहां हानि, बाधा, रुकावट या उत्पादन में कमी का कारण विद्यमान रहता है।
यदि उच्चादिगत ग्रह हों तो सब तरह से सुख, शान्ति व अच्छा उत्पादन होता रहता है।
इन स्थानों में स्थित ग्रह की आश्रित राशि के अनुसार उच्च, मूलत्रिकोण, स्वक्षेत्र, अधिमित्र, मित्र राशियों के आधार उत्पादन व
लाभ की मात्रा या वर्तमान स्तर में वृद्धि का निश्चय करना चाहिए।
प्रसंग को और स्पष्ट किया जाता है। लग्न पर पाप प्रभाव हो तो प्रायः भीतर के ही आदमी के कारण माल में कमी, चोरी आदि होती
है। माल ले जाते समय रास्ते में नुकसान का डर रहता है।
यदि ऐसा पाप ग्रह मार्गी हो तो नुकसान होने पर भी उत्पादक को खास घाटा नहीं होता है। स्वयं स्पष्ट है कि शुभ प्रभाव होने पर
लाभ बढ़ता है।
चतुर्थ पर पाप प्रभाव हो तो मिल या उत्पादन स्थान से सम्बन्धित कोई अड़चन, विवाद होने की सम्भावना होती है।
सप्तम पर पाप प्रभाव हो तो माल के उत्पादन में ही कोई त्रुटि रह जाने के कारण घाटा रहता है। या उत्पादन कम होता है।
दशम पर पाप प्रभाव हो तो किन्हीं अन्य कारणों से लाभ की मात्रा गिरती है।
यदि लग्नेश, चन्द्रमा, द्वादशेश, पंचमेश, अच्छी स्थिति में हों तो गर्भ सकु शल रहता है, ऐसा समझें।
बेटा या बेटी ?
पुरुषराशिगतौ विधुलग्नपौ तनयपे च सुतं कु रुतो मतम्।
विषमराशिलवे विषमर्भगे सुतजनिश्च शनावुदयं विना ॥ 32 ॥
यदि लग्न व लग्नेश की स्थिति अशुभ, पीड़ित हो, उनमें से किसी एक पर भी अशुभ फल देने वाले ग्रह का दृग्योग हो तो
जायदाद किराए पर देने में सुख व सन्तोष नहीं रहता है। किराएदार के कारण मानसिक परेशानी हुआ करती है।
यदि सप्तम व सप्तमेश के साथ उक्त स्थिति बने तो किराएदार से मिलने वाले किराए का शुभ उपयोग नहीं हो पाता है।
अथवा समय पर भुगतान न होना, बार बार याद कराने पर ही किराया मिलना, समयानुसार किराया न बढ़ाना,
किराएदार के मन में खोट होना, समय से पूर्व ही मकान खाली करना आदि फल होते हैं।
दशम या दशमेश पर पाप प्रभाव हो तो मालिक को कोई वास्तविक धनलाभ नहीं होगा। मिलने वाले किराए या उससे भी
ज्यादा धन, सम्पत्ति के रखरखाव आदि में ही लग जाएगा। आयकर, सम्पत्तिकर आदि बढ़ जाने से किराए से कु छ
खास बचत न हो सके गी।
चतुर्थ स्थान या चतुर्थेश पर पाप प्रभाव हो तो एग्रीमेंट की समाप्ति पर असन्तोष, समय पर मकान खाली न करना,
कु शलता से मकान खाली न होना आदि स्थिति बन जाती हैं।
उक्त भावों पर शुभ प्रभाव होने पर सब तरह से कु शलता, लाभ व सन्तोष रहता है।
जब किराएदार ही स्वयं प्रश्न पूछे तो लग्न को किराएदार मानें। सप्तम को मकान मालिक मानें। शेष दोनों के न्द्र यथावत् रहेगें।
के न्द्र में बलवान् लग्नेश शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो। द्वादश में बड़े बिम्ब वाला चन्द्रमा शुभयुक्तदृष्ट हो। लग्न से 1, 5, 7, 8 में शुभ
ग्रहों का योग हो। चन्द्रमा 3, 6, 10, 11 भावों में हो। इन चारों योगों में रोगी या नवजात शिशु का शुभ ही होता है।
रोगी की जन्म राशि या जन्मलग्न की राशि, प्रश्न के समय 6, 8, 12 भावों में न हो और बली शुभफलदायक ग्रहों से युक्त या दृष्ट
हो तो रोगी या संकटग्रस्त नवजात शिशु बच जाता है।
लग्न में स्थिर या शीर्षोदय राशि या उसका नवांश पड़े। अथवा चन्द्रमा राशिचक्र में सूर्य से दूर हो तो भी शरीर व आयु सुरक्षित
रहता है।
ईदृक्प्रश्नविधौ चाद्ये भिषग्रुग् मदे पीडितो नभसि।
औषधिः स्याच्चतुर्थे क्रू रैस्तस्माद् भवेद् दोषः ॥ 37 ॥
उक्त स्थितियों में जिस जिस के न्द्र में पाप प्रभाव बनाने वाला ग्रह वक्रगति से चल रहा हो उसी भाव से सम्बन्धित दोष बार बार
पैदा होता है। जैसे, डॉक्टर दवा बदलने को तैयार न हो, रोग में ही जटिलता आ जाए, रोगी पूरी सावधानी न बरते, दवा गलत या
नकली हो, इत्यादि।
रोगी के प्रश्न में चन्द्रमा 1, 4, 7 स्थानों में किसी पाप ग्रह से अंशात्मक युति करने ही वाला हो तो रोग अचानक बढ़ जाता है
और जीवन का भय उपस्थित हो सकता है।
प्रसव कब सम्भावित है ?
यावन्तोऽशाः लग्नेऽवशिष्यन्ते स्युर्मासदिवसास्ते।
यत्संख्ये स्याच्छु क्रो ते वा धर्मात्परे सुततः ॥ 40 ॥
गर्भवती स्त्री को प्रसव कब सम्भावित है, ऐसा प्रश्न उपस्थित होने पर लग्न में जितने नवांश बीतने बाकी हों उतने ही मास या
यथासम्भव दिन बाकी होते हैं।
अथवा शुक्र जितनी संख्या वाले भाव में स्थित हो, उतने ही मास या दिन बाकी होते हैं। यदि शुक्र नवें भाव से आगे स्थित हो तो
शुक्र की स्थिति को पंचम भाव से गिनें।
ऐसा प्रश्न उपस्थित होने पर सबसे पहले आगे त्रिकोण भावों से सम्बन्धित अध्याय में कहे जाने वाले नियमों के अनुसार सन्तान
जन्म की सम्भावना न दीखने पर दत्तक सन्तान के इन योगों को परखें।
चन्द्रमा या सप्तमेश का अस्तंगत या पापग्रहों से भी सम्बन्ध बनता हो तो लम्बे समय तक बात आगे बढ़ने पर भी
आखिर में बात बिगड़ जाया करती है,
बात बिगड़ने की स्थिति में अष्टमेश का पापग्रह से सम्बन्ध हो तो लड़की पक्ष की ओर से, तृतीयेश वैसा हो तो वरपक्ष
की ओर से और चतुर्थेश पापग्रहों से सम्बन्ध करे तो लड़के या लड़की के माता पिता की ओर से असहमति बनने का
योग है।
पति पत्नी के मनमुटाव, वादविवाद आदि प्रश्नों में लग्नेश व सप्तमेश का आपसी सम्बन्ध इस तरह देखें
लग्नेश व सप्तमेश आपस में 5, 9, 3, 11 में हों तो परस्पर गाढ़ा प्यार रहेगा,
दोनों साथ साथ या एक दूसरे से सातवें हों तो सम्बन्धों में कभी उतार चढ़ाव, कलह और कभी प्रीति होगी। चन्द्रमा
इनमें से किसी एक के साथ भी सम्बन्ध बनाए तो कु छ बिगाड़ नहीं आता है। घर की कलह बाहर नहीं जाती है,
कलह की स्थिति में सप्तमेश बलवान् हो तो साथी और लग्नेश बली हो तो प्रश्नकर्ता मजबूत होता है,
यदि सूर्य कमजोर हो तो पुरुष और शुक्र कमजोर हो तो स्त्री कु छ पीछे हटती है। यदि दोनों ही कमजोर हों तो विवाद में
दोनों ही पक्ष थोड़ा थोड़ा पीछे हटते हैं,
क्या रूठी पत्नी लौटेगी?
नाराज़ होकर गई पत्नी लौटेगी या नहीं, ऐसा प्रश्न सामने आने पर देखिए
सूर्य लग्न से लेकर चतुर्थ भावमध्य से पीछे हो और मार्गी व अस्तंगत शुक्र चतुर्थ भावमध्य से सप्तम तक कहीं हो तो
लौटने की सम्भावना कम है।
यदि इसकी उल्टी स्थिति हो, अर्थात् सूर्य की जगह शुक्र व शुक्र के स्थान पर सूर्य हो तो शीघ्र लौटती है।
प्रश्न के समय शुक्र उदित या वक्री हो तो लौटती है। अथवा पूर्वोक्त प्रकार से 4, 5, 6, 7 स्थानों में स्थित शुक्र जब
उदित या वक्री होगा, तब लौटेगी।
उक्त योगों में लग्न से सप्तम तक क्षीण चन्द्रमा भी हो तो काफी देर से लौटती है।
यदि चन्द्रमा बढ़ता हुआ हो तो जल्दी ही वापस आ जाती है। साथ ही ठीक पीछे कहे गए आपसी स्नेह योगों को भी परख लेना
चाहिए।
इन स्थितियों में विवाहजनित सुख कम होता है। अथवा विवाह भंग होने के योग बनते हैं
• सप्तमेश 6, 8, 12 में हो;
• सप्तमेश कहीं भी नीच में हो;
• प्रश्नसमय नीचगत बृहस्पति हो;
• पापग्रह 7, 8 या 1, 2 भावों में एक साथ हों;
• शुक्र व मंगल साथ में हों और उनमें से कोई एक नीच में हो;
• शुक्र व मंगल एक समय में 6, 8, 12 में साथ हों;
• शुक्र व मंगल क्रमश: 1, 2 या 7, 8 भावों में हों;
• इन्हीं योगों को यथावत् नवांश कु ण्डली पर भी लागू करें।
प्रश्न के समय लग्नेश व चन्द्रमा का आपस में कोई अच्छा सम्बन्ध कायम हो तो वर्तमान कम्पनी, बॉस या स्थान, कॉलोनी आदि
प्रश्नकर्ता के अनुकू ल होती है।
इन योगों में अन्यत्र किस्मत आजमानी चाहिए
• सप्तमेश व चन्द्रमा का सम्बन्ध बनता हो,
• वक्री लग्नेश 3, 9 भाव में बैठे किसी ग्रह के साथ सम्बन्ध करे, ।
•के न्द्र में स्थित लग्नेश 6, 8, 12 भावेशों में से किसी के साथ सम्बन्ध करे,
इन तीनों के विपरीत स्थिति हो तो अच्छा बुरा जैसा भी है, वही स्थान व मालिक रहता है, बदलाव नहीं हो पाता है।
इन्हीं नियमों के आधार पर वर्तमान निवास स्थान, कार्यस्थान, पड़ौसी, जगह, संस्था आदि के शुभाशुभ और बदले जाने की
सम्भावना देखनी चाहिए।
ऐसे प्रश्नों में लग्न व लग्नेश सहायता चाहने वाला और सप्तम व सप्तमेश सहायता देने वाला होता है। इन दोनों के आपसी सम्बन्ध
बनने पर सहायता मिलती है। कोई सम्बन्ध न बने तो सहायता नहीं मिलती है। इनकी राशि आदि की स्थिति और सम्बन्ध की
प्रगाढ़ता के आधार पर सहायता की मात्रा, शुभाशुभता और सहायता का सही मौका तय किया जाता है।
उदाहरणार्थ, पिछले सप्ताह मई 10, 2006 को सायं 18:05 पर किसी ने ऐसा ही प्रश्न हमसे पूछा था। वे किसी अनजान
व्यक्ति से मिलने जाने वाले थे। प्रश्न लग्न में तुला राशि होने से शुक्र व लग्न स्थान स्वयं सहायता चाहने वाला प्रश्नकर्ता ही है।
सप्तमेश मंगल व सप्तम स्थान वह अनजान व्यक्ति है।
कु ण्डली 6
चन्द्र के तु
14°32
10X4 शनि
___11X
सूर्य बुध
मंगल
1/ राहु शुक्र
लग्न में बृहस्पति व सप्तम में उच्च का सूर्य व बुध है। लग्नेश शुक्र व सप्तमेश मंगल आपस में के न्द्र में हैं। नवम में स्थित मंगल सप्तम
स्थान व वहां बैठे ग्रहों से तीसरा ग्यारहवां और लग्नेश से के न्द्र सम्बन्ध बना रहा है। शुक्र स्वयं उच्च में है। नवांश में भी सूर्य शुक्र व
गुरु सम्बन्ध बना रहे हैं। अतः समुचित मान सम्मान के साथ सहायता मिलेगी, ऐसा फल बताया गया था। कल मई 13 को
प्रश्नकर्ता ने फोन पर प्रश्न का निर्दिष्ट फल ठीक रहने की सूचना दी थी।
उक्त रीति से ही व्यापार में साझेदारी, आपसी दोस्ती, अनुकू ल स्टॉफ, टीम तय करना, सलाहकार नियुक्त करना आदि का भी
विचार करना चाहिए। लग्नेश प्रश्नकर्ता व सप्तमेश साझेदार है। लाभेश या लाभ भाव का इनसे युति, आदि सम्बन्ध बनने पर
व्यापार आदि में लाभ रहता है।
लग्न या लग्नेश के साथ किसी बलवान् ग्रह का और चन्द्रमा का सम्बन्ध हो तो प्रश्नकर्ता को सफलता मिलती है। यदि चन्द्रमा बली
सप्तम भाव, सप्तमेश और सप्तम स्थित ग्रहों से सम्बद्ध हो तो शत्रु या विरोधी पक्ष को लाभ मिलता है।
प्रश्न के समय शनि, बृहस्पति (मंगल भी) आदि ग्रह, बुध, शुक्र, चन्द्रमा से (किसी भी राशि में) अधिक अंशों पर हों तो पृच्छक
लाभ में रहता है। अन्यथा विपक्षी को लाभ मिलता है।
लग्न में पापग्रह पृच्छक को, सप्तम में पापग्रह शत्रु को कष्ट देते हैं। दोनों जगह पापग्रह हों तो कटुता, शस्त्र प्रयोग व हीन
आचरण के साथ विवाद लम्बे समय तक चलता है।
लग्नेश, सप्तमेश या दोनों ही द्वितीय स्थान में द्विस्वभाव राशि में हों तो भी विवाद लम्बा चलता है।
के न्द्र में लग्नेश किसी भी राशि में सब ग्रहों से कम अंशों पर हो तो प्रश्नकर्ता लाभ में रहता है। यदि ऐसी ही स्थिति में
सप्तमेश हो तो विपक्षी लाभ में रहता है।
लग्नेश अस्त या नीचगत हो, अथवा लग्न व सप्तम में एक साथ पापग्रह हों तो विवाद शान्त नहीं होता है। सप्तम या लग्न में
से जो बली हो, उसके पक्ष में काफी समय के बाद फसला होता है।
लग्नेश, षष्ठेश व सप्तमेश में आपस में शत्रुता हो या एक दूसरे से वे सातवें हों तो भी विवाद चलता रहता है।
लग्नेश, पंचमेश दोनों ही के न्द्र में शुभयुक्त या दृष्ट हों तो आपस में आखिरकार समझौता हो जाता है। पापयुक्त हों या
के न्द्र से बाहर हों तो सन्धि नहीं हो पाती है।
सूर्य, बुध के साथ दशमेश का सम्बन्ध हो तो स्वीकृ ति के साथ जबाबी पत्र आता है।
बुध चन्द्र में सम्बन्ध हो, अथवा लग्नेश, सप्तमेश में से किसी के साथ चन्द्रमा का सम्बन्ध हो तो पत्र के अनुकू ल उत्तर
पर अभी विचार किया जा रहा है और कु छ समय के बाद उनकी प्रतिक्रिया आपको पता चलेगी, ऐसा कहें।
सन्देशहारक कब लौटेगा ?
लग्नेश व चन्द्रमा में कोई एक भी सप्तमेश से अंशों में आगे हो या इन तीनों में से कोई दो चर राशि या चर नवांश में हों तो सन्देश
वाहक सफल होकर लौट रहा होता है। लग्न से 2, 3 में शुभग्रह हों तो भी सफल होकर लौट रहा है।
लग्नेश, चन्द्रमा व सप्तमेश स्थिर राशि या नवांश में हों तो अभी काम पूरा नहीं हुआ है।
अतः वह कु छ समय के बाद चलेगा। इस स्थिति में सफलता सुनिश्चित नहीं होती है।
इन योगों में घर से रूठकर गया हुआ, खोया या भटका व्यक्ति शीघ्र लौट आता है या उसका कु शल समाचार मिलता है
• लग्नेश लग्न या चतुर्थगत ग्रह से सम्बन्ध करे या वक्री लग्नेश के न्द्र में हो,
• लग्न, द्वितीय, तृतीय भावों में लगातार शुभ पाप मिश्रित गह हों। इन ग्रहों में शुक्र, गुरु भी हों तो तुरन्त लौटता है,
• के न्द्र में गुरु और 6, 7 भावों में शुभग्रह हों,
• नवम व पंचम में एक साथ शुभग्रह हों,
• अथवा 2, 8 या 3, 9 में एक साथ शुभग्रह हों।
लग्नपेन्दू व्यये लग्ने नवांशे संयुतौ यदा।
चन्द्रभ्रातृगतौ वाथ चन्द्रः स्वाम्बुमदाष्टमे ॥ 61 ॥
चरे चरांशे विधुलग्ननाथौ के न्द्रत्रिकोणाप्तिषु सौम्यखेटाः।
विलोमगा वैषु विलग्नसंस्थः पृष्ठोदयेन्द्वन्वित आगमाय ॥ 62 ॥
लग्न सप्तम, लग्न अष्टम, लग्न द्वादश में एक साथ पापग्रह हों तो व्यक्ति अवरुद्ध, नष्ट, मृत, आपत्तिग्रस्त, अपहृत आदि अवस्था में
होता है।
के वल, 1, 7, 8, 12 में से किसी एक में ही पापग्रह हों तो किसी अन्य कारण से व्यक्ति को आने में देर होती है।
लग्न, लग्नेश व चन्द्रमा में से कोई एक पाप पीड़ित हो तो उस पीड़ा कारक पापग्रह की आश्रित राशि से रुकावट या कष्ट का
अनुमान करें।
पीड़ा कारक पापग्रह यदि 3, 6, 7, 11 राशियों में हो तो किसी व्यक्ति से विवाद, पीड़ा, रुकावट, के कारण लौटने में देर हो
रही है।
यदि वह ग्रह 4, 10, 12 राशियों में हो तो वर्षा, बाढ़, पानी या जलचर प्राणी के कारण, 1, 2, 5, 9 राशियों में हो तो चीपाए
जानवर, वाहन दुघटना, वाहन में खराबी, कील कांटा, पेड़ आदि गिरने के कारण देरी होती है।
लग्न और षष्ठ स्थान में पापग्रह की दृष्टि, योग हो और बुध, लग्न या दोनों किसी भी शुभ फलदायक ग्रह के दृग्योग रहित पापयुक्त
दृष्ट हों तो गाढ़ से गाढ़तर कष्ट या मृत्यु भी हो सकती है। अधिक पाप प्रभाव से क्रमश: कष्ट भी घनीभूत व असहनीय होता जाता
है।
इन योगों में पहले से प्राप्त पद, अधिकार, राज्य आदि स्थिर व पूरी अवधि वाला होता है और पद, अधिकार, राज्य प्राप्ति होगी या
नहीं? इत्यादि प्रश्नों में राजयोग भी बनता है
• स्थिर लग्न में लग्नेश व दशमेश बलवान् हों अथवा इन दोनों में से बली और अपेक्षाकृ त धीमा चलने वाला ग्रह के न्द्र में हो,
• पाराशर होराशास्त्र में बताए गए राजयोगों में से कोई योग बनता हो,
• दशम में दशमेश बलवान् शुभग्रहों से सम्बन्ध बनाता हो,
• दशमेश पूर्ण चन्द्रमा के साथ युक्त हो,
• के न्द्र में बृहस्पति अपनी उच्चादि राशियों में गया हो,
• लग्नेश, दशमेश, नवमेश व बृहस्पति में किन्हीं तीन का के न्द्र, विशेषतया दशम में सम्बन्ध बने।
इन योगों में भी नौकरी, पदोन्नति, पदवी, धन, सम्मान, राज्य, यश, अधिकार आदि जैसा प्रश्न हो, तदनुसार सफलता मिलती
है
यदि उक्त स्थानों पर शुभ प्रभाव हो तो सब तरह से सुख शान्ति रहती है, यह बात स्वयं ही स्पष्ट है। उत्तराधिकार, पैतृक
सम्पत्ति, खानदानी हक आदि मिलेगा या नहीं? ऐसे प्रश्नों पर भी पद, यश, धन के इन सब योगों को लागू कर सकते हैं।
यदि प्रतियोगी, विपक्षी या विरोधी का नाम ज्ञात न हो तो षष्ठ भाव प्रतियोगी और द्वादश भाव पृच्छक का है। नाम ज्ञात हो तो लग्न
पृच्छक और सप्तम स्थान प्रतियोगी का है।
सप्तमेश के न्द्र में हो तो अपराधी, ठग, अपहर्ता, चोर या अभी शहर से दूर नहीं गया है। यदि वह के न्द्र से बाहर हो तो शहर से दूर
निकल चुका है।
लग्नेश व दशमेश का सम्बन्ध बने तो शहर के भीतर ही है और जल्दी पकड़ा जाता है। यदि 3, 7, 9 भावेशों का सम्बन्ध हो तो
शहर से दूर है और देर से पकड़ में आता है।
प्रश्न के समय जहां चन्द्र हो, उसी दिशा में अपराधी उस समय होता है। दूरी जानने के लिए पीछे बताया गया लग्न नवांश का
नियम लागू करें। लग्न में पहले साढ़े चार नवांश हों तो घटना स्थल से 18-20 किलोमीटर के भीतर ही समझें। इसके बाद प्रत्येक
नवांश से 18 किलोमीटर क्रमश: जोड़ते जाएं। अन्तिम नवांश में 108 किलोमीटर या उससे भी अधिक दूरी अपनी बुद्धि से
समझें।
ऐसे प्रश्नों में लग्न व चन्द्रमा से नुकसान उठाने वाले का, चतुर्थ से अपहत माल का, सप्तम से चोर की स्थिति का और दशम से
चोर के पकड़े जाने और माल की बरामदगी का विचार करें।
द्रेष्काणैस्तद्रूपं ग्रहवयोरूपशीलवशाच्चापि।
अन्ये च लाभयोगा अथ मदे लग्नमदपौ युक्तौ ॥ 78 ॥
निधनेशो लग्नस्थः सुखपोऽस्तो वा सूर्ययुतो बन्धम्।
ब्रूते लग्नखपौ वा कथमपि योगे च के न्द्रपतयः स्युः ॥ 79 ॥
लग्न के द्रेष्काण से और के न्द्र में स्थित बली ग्रह के शील से पीछे बताए गए तरीके से चोर की आकृ ति, स्वरूप, पहचान आदि का
विचार किया जाता है। ठगे या चुराए हुए माल असबाव की प्राप्ति के कु छ अन्य योग ये हैं
लग्नेश व सप्तमेश सप्तम में हों,
अष्टमेश लग्न में हो, चतुर्थेश अस्त या सूर्य के साथ हो,
लग्नेश व दशमेश का आपस में कोई सम्बन्ध बनता हो,
के न्द्रेशों का आपस में कोई अच्छा सम्बन्ध बने।
यह अफवाह है या सच ?
लग्न, लग्नेश व चन्द्रमा में से कोई दो तत्त्व ग्रह युक्त होकर के न्द्र में हों या लग्नेश वक्री हो तो बात सत्य होती है। यदि इनके साथ शुभ
ग्रह हों तो वह बात अन्त में शुभता पैदा करती है। यदि पापयुक्त हों तो उसका परिणाम प्राय: सुखद नहीं होता। ग्रहरहित या के न्द्र
से बाहर हों तो बात सिर्फ अफवाह ही होती है।
इन योगों में वर्तमान नौकरी में ही आगे सुख, समृद्धि व उन्नति की सम्भावना होती है
यदि के वल सप्तमेश पर ही शुभदृग्योग हो या उक्त योगों से विपरीत स्थिति हो तो सेवानिवृत्ति लेना अथवा अन्यत्र नौकरी करने से
सन्तोष होता हैं।
इसके विपरीत सप्तमेश रहित शुभग्रहों के साथ इनका योग आदि बने तो वह व्यक्ति विश्वास के योग्य व ईमानदार है।
आज धन्धा कै सा होगा ?
लग्नपमदपतिबन्धे विजलखगराशौ भूरि धनदं स्यात्।
सबलयोर्बुधकु जयोश्च वोदयास्तभवनयोरनयोः ॥ 85 ॥
लग्नेश व सप्तमेश का सम्बन्ध बनता हो और वे 4, 10 भावों में न हों। बुध व मंगल बलवान् हों। बुध मंगल की राशि 1, 7 में पड़े
या वे स्वयं इन स्थानों में हों। अच्छा धन्धा होने के ये तीन योग हैं।
लग्नेश व सप्तमेश अस्त हों या सप्तम भाव में पड़ने वाली नवांश राशि में हों तो आया ग्राहक भी लाभदायक नहीं होता है।
लग्न व चन्द्रमा के बीच में जितने ग्रह हों, उतने ही ग्राहक मिलते हैं। उनमें जितने ग्रह उच्च या स्वराशि में हों तो उनकी संख्या को
क्रमश: तिगुना व दुगुना समझें।
जितने ग्रह अस्त हों, उतने ग्राहकों से असन्तोष, जितने शत्रुक्षेत्री हों उनसे साधारण सन्तोष होता है।
के न्द्र में शुभ ग्रह हों और पापग्रह के न्द्र से बाहर हों। पापग्रह शुभग्रहों की अपेक्षा निर्बल हों और लग्नेश वक्री न हो। लग्नेश व अष्टमेश
अपनी उच्चादि राशियों में हों। अष्टम में शुभग्रह हो। इन चारों योगों में व्यावसायिक वाहन बनाना लाभदायक व दुर्घटनामुक्त रहता
है।
लग्नेश कमजोर राशियों में किसी भी बलवान् ग्रह की दृष्टि या युति से रहित हो,
लग्नेश जिस राशि में बैठे, उसका स्वामी निर्बल हो,
अथवा चन्द्रमा व उसका राशिपति दोनों ही खराब स्थानों में या कमजोर राशियों में हों,
लग्नेश व अष्टमेश दोनों ही सप्तम में हों,
लग्न पर लग्नेश की और साथ ही अष्टम पर अष्टमेश की कोई दृष्टि या युति न हो।
अपने संग्रह का व्यावसायिक स्टॉक, शेयर आदि बेचूं या और खरीदूं? ऐसे प्रश्नों में लग्न, लग्नेश व चन्द्रमा क्रय के प्रश्न में खरीदने
वाले और विक्रय के प्रश्न में बेचने वाले हैं।
ये तीनों बलवान् व अच्छी स्थिति में हों और खरीदने की इच्छा से प्रश्न किया जाए तो क्रय में लाभ होता है।
यदि विक्रय की इच्छा वाला प्रश्न हो तो लग्न व लाभ स्थान दोनों बली होने पर बेचने में लाभ होता है। यदि लग्न व लाभ स्थान या
इनके स्वामियों से चन्द्रमा का सम्बन्ध बन रहा हो तो क्रय विक्रय तुरन्त कर लेना चाहिए।
लग्न से ग्यारहवां स्थान बली हो तो पूछने वाला (क्रे ता या विक्रे ता जो भी हो) लाभ में रहता है। पंचम स्थान बलवान् हो तो दूसरी
पार्टी लाभ में रहती है।
क्या मेरा काम बनेगा ?
बिना काम का खुलासा किए ही पृच्छक अपने चिन्तित काम की सफलता का प्रश्न करे तो लग्नेश या लग्न से चतुर्थ में बली शुभग्रह
हो या लग्नेश बलवान् होकर के न्द्र में हो या पूर्वोक्त शुभ योगों में से कोई योग बने तो कार्य में सुगमता से सफलता मिलती है।
उक्त योगों में से कोई योग पूरा न बनता हो या बनने पर बृहस्पति का सम्बन्ध, लग्न, लग्नेश, चन्द्रमा आदि से हो जाए,
अथवा बृहस्पति अच्छी राशियों में के न्द्र, त्रिकोण में हो और धन स्थान में कोई भी पापग्रह न हो तो लड़का या लड़की
व्यभिचार सम्बन्धों से रहित है।
क्या के वल आकर्षण ही था ?
लग्न, लग्नेश व चन्द्रमा तीनों ही स्थिर राशियों में न हों तो गहरा आकर्षण, इश्क, मुहब्बत रही है।
लग्न और चन्द्रमा चर या द्विस्वभाव में हों तो उम्र के अनुसार औसत आकर्षण था। इसी योग में यदि सम्भोग का पूर्वोक्त योग पुष्ट
दिखे तो किसी भय, दबाव, जरूरत आदि के कारण सम्बन्ध बना था।
वह व्यक्ति कै सा था ?
प्रश्न लग्न में सप्तम स्थान में स्थित या उस पर अधिक प्रभाव रखने वाले ग्रह को देखें। शनि से अपने से हीन जाति, बुध या
चन्द्रमा से बाजारू या चालू, सूर्य मंगल शुक्र से विवाहित के साथ वैसा सम्बन्ध बना था।
चन्द्रमा प्रश्न के समय शुक्ल द्वितीया से दशमी तक हो तो कमसिन, शुक्ल दशमी से कृ ष्ण पंचमी तक प्रौढ़ और शेष दिनों में ढ़लती
उम्र वाला समझना चाहिए। अथवा सप्तम में स्थित और सप्तममेश ग्रह की उम्र के अनुसार उसकी उम्र समझनी चाहिए।
मनोरंजन या हनीमून (मधुचन्द्रिका) के लिए पति पत्नी बाहर जा रहे हों तो वहां कै सा माहौल रहेगा? ऐसा प्रश्न होने पर इन योगों
में हंसी, खुशी, नाज़, अदा, अन्दाजों के साथ समय व्यतीत होता है
के न्द्र में चन्द्रमा शुभयुतदृष्ट हो,
लग्न में बृहस्पति, चतुर्थ में चन्द्रमा और सप्तम में शुक्र हो,
चन्द्रमा का जितना अधिक पक्षबल होगा, उतना ही गहन व आनन्ददायक आमोद-प्रमोद, रति आदि होगी।
यदि चन्द्रमा कमजोर या क्रू र ग्रहों से दृष्ट हो तो रोष, क्षोभ, ना नुकर के कारण वातावरण कु छ कसैला हो जाता है,
मिश्रित ग्रहों का योग चन्द्रमा से हो तो मिलाजुला वातावरण रहता है,
के न्द्र में शनि हो या 3, 9 भावों में दिनबली ग्रहों (सूर्य, गुरु, शुक्र) का प्रभाव हो तो दिन में, रात्रिबली ग्रहों (चन्द्र,
मंगल, शनि) का प्रभाव हो तो रात में और बुध का प्रभाव हो तो दिन रात में कभी भी संगम होता है।
घर परिवार की सम्पत्ति या व्यापारिक बंटवारे में हमारा उचित हिस्सा मिलेगा? ऐसा प्रश्न आने पर इन बातों को देखिए .
लग्न व चन्द्रमा दोनों चर राशि में हों तो हिस्सा मिलने में परेशानी और ये पापयुक्तदृष्ट भी हों तो विवाद होना सम्भावित
है,
यदि ये दोनों द्विस्वभाव राशि में हों तो अपने वास्तविक हिस्से से कम भाग मिलता है,
लग्न व सप्तम में एक साथ पापग्रह हों तो बेईमानी से हिस्सा दबा लिया जाता है और झगड़ा सम्भावित होता है,
के न्द्र, लाभ व द्वितीय स्थानों में शुभग्रह हों तो ईमानदारी से पूरा हिस्सा मिल जाता है,
अष्टम व द्वितीय में पापग्रह हों तो वादविवाद, मुकदमा, मारपिटाई की नौबत आ जाती है।
खोया वाहन या पशु मिलेगा? इत्यादि प्रश्नों में निम्नलिखित योग बने तो वह चीज मिल जाती है
• षष्ठेश के साथ लग्नेश व चन्द्रमा का योग या दृष्टि हो,
• लग्न में बलवान् और शुभयुक्तदृष्ट लग्नेश या षष्ठेश या दोनों ही हों,
• लग्न व सप्तम स्थान और इनके स्वामी बलवान् होकर अच्छे भावों में गए हों।
हमें दूल्हा या दुल्हन कब मिलेगी? इत्यादि प्रश्नों में अधोनिर्दिष्ट कोई योग बनने पर जल्दी ही रिश्ता होता है
लग्न से समसंख्यक भावों में अके ला शनि दुल्हन और विषम भावों में दूल्हा शीघ्र मिलने का सूचक है।
चन्द्रमा 5, 6, 10, 11 स्थानों में दशमेश व सूर्य से दृष्ट हो,
के न्द्र व त्रिकोण में के वल शुभग्रह हों,
सूर्य, बुध या गुरु से दृष्ट चन्द्रमा 3, 6, 7 भावों में हो,
सप्तम में चर राशि का चन्द्रमा शुक्र से सम्बन्ध करे,
के न्द्र त्रिकोण में गुरु व शुक्र आपस में सम्बन्ध करें,
चन्द्रमा का गुरु या शुक्र से शुभभावों में सम्बन्ध हो,
के न्द्र, लाभ या व्ययस्थान में बलवान् शुभग्रह बैठा हो तो शीघ्र रिश्ता होने का योग है।