You are on page 1of 2

सफल डॉक्टर (चिकित्सक) के योग

एक बड़े और नेम, फेम, पोजीशन के साथ विस्तृत कार्यक्षेत्र और अच्छे आय के स्त्रोत एक डॉक्टर
(चिकित्सक) की जन्मकुंडली मे हमेशा उपस्थित होते हैं। क्योंकि एक चिकित्सक को अपने
कार्यक्षेत्र में अनुभव और आयु के साथ नाम, प्रसिद्धि तथा धन भी मिलता है। कुंडली में 2, 6,
10, 11 वें भाव आमदनी के भाव होते हैं जो प्रबलता से अधिकांश ग्रहों के साथ दशा अंतर्दशा में
होने आवश्यक है। सबसे मुख्य बात जो ग्रह बच्चे की कुंडली में शिक्षा, तथा आय के भावों को
बताएंगे। आपका बच्चा उसी क्षेत्र विशेष का स्पेशलिस्ट डॉक्टर बनेगा।
सूर्य- ओर्थपेडीक, हार्ट स्पेशलिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट,
चन्द्रमा- मेडिसिन स्पेशलिस्ट, साइकेट्रिस्ट,
मंगल- सर्जन,
बुध- स्किन स्पेशलिस्ट (डर्मेटोलॉजिस्ट), ईएनटी स्पेशलिस्ट,
गुरु- न्यूट्रल path, आयुर्वेदा, कैंसर स्पेशलिस्ट, एंडोक्रिनोलोजिस्ट,
शुक्र- सेक्सोलॉजिस्ट, नेफ्रोलॉजिस्ट, प्लास्टिक सर्जन,
शनि- डेंटिस्ट,
राहु केतु- अनेस्थेसिओलॉजिस्ट,
MD और MS ( सर्जरी अथवा मेडिसीन) के क्षेत्र में जाने के लिए सूर्य, चन्द्रमा तथा मंगल
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है। सूर्य अथवा चन्द्रमा MD तथा मंगल MS के क्षेत्र में ले जाते हैं।
 लग्नेश बलवान होकर नवम भाव में बैठा हो या नवमेश का दशम भाव व दशमेश के साथ
किसी भी प्रकार अच्छा सम्बन्ध हो तो व्यक्ति डॉक्टर बनकर विदे श में ख्याति प्राप्त करता है।
 कुण्डली में लाभेश व रोगेश की युति लाभ भाव में हो तथा मंगल, चन्द्र, सूर्य भी शुभ होकर
अच्छी स्थिति में हों तो व्यक्ति चिकित्सा क्षेत्र से जुडता है। इन सभी का सम्बन्ध अगर दशम/
दशमेश से आता है तो सोने पे सुहागे वाली बात होती है।
 लग्न में मगंल स्वराशि, उच्च राशि का हो साथ में सूर्य भी अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति एक
अर्थो सर्जन बनता है।
 सूर्य व चन्द्रमा जड़ी-बूटियों का कारक होता है और गुरू एक अच्छा सलाहकार व मार्गदर्शक
होता है। इन तीनों का सम्बन्ध छठें भाव, दशम भाव व दशमेश से होने से व्यक्ति आयुर्वेदिक
चिकित्सक बनता है।
 कुण्डली में गुरू व चन्द्रमा की स्थिति काफी मजबूज हो लेकिन मंगल पीडि़त हो या पाप ग्रहों
द्वारा दृष्ट हो तो सफल फिजीशियन बनता है।
 यदि सूर्य, मंगल, गुरु, शनि एवं राहु कुंडली में बली हों और इनका दशम , एकादश, द्वितीय व
सप्तम भाव से सम्बध हो तो जातक डॉक्टर बनता है। 
 कुण्डली में मंगल की स्थिति मजबूत हो साथ में अपनी राशि या मित्र की राशि में होकर सूर्य
चौथे भाव में बैठा हो और पाप ग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक एक सफल हार्ट सर्जन बनता है।
 दशम भाव में सूर्य-मंगल की युति जातक को शल्य चिकित्सक बनाती है। चतुर्थेश दशमस्थ हो
तो जातक औषधि चिकित्सक होता है।
 पंचम तथा षष्ठ भाव का परस्पर सम्बध भी जातक को रोग दूर करने की बुद्धि प्रदान करता है।
 दशम भाव या दशमेश से मंगल या केतु का दृष्टि या युति राशि गत सम्बध हो तो जातक शल्य
चिकित्सक होता है।
 लग्न में मजबूत चन्द्रमा हो, गुरू बलवान होकर केतु के साथ बैठा हो तथा छठें भाव से किसी
प्रकार अच्छा सम्बन्ध हो तो व्यक्ति होमोपैथिक डॉक्टर बनता है। 
 कुंडली के पंचम भाव में यदि सूर्य-राहू या राहू-बुध की युति हो तथा दशमेश की इन पर दृष्टि
हो, साथ ही मंगल, चंद्र ,गुरु भी अच्छी स्थिति में हो, तो जातक चिकित्सा क्षेत्र में अच्छी
सफलता प्राप्त करता है।
 यदि कर्क लग्न की कुंडली के छठे भाव में गुरु व केतू बैठे हों, तो जातक होम्योपैथिक
चिकित्सक बन सकता है ।
 दशम भाव में शनि तथा सूर्य की युति जातक को दं त चिकित्सक बनाती है।
 यदि सूर्य और मंगल की पंचम भाव से युति हो और शनि अथवा राहू छठे भाव में हो, तो
जातक सर्जन हो सकता है।

You might also like