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[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: शादी के सम्बंध में पहले कई पोस्ट लिखी है जैसे

शादी कब होगी, कै सी रहेगी, पहली शादी टूट गई है तब दूसरी होगी या नही आदि और आज बात करते
है जीवनसाथी कै सा मिलेगा और कै से घर मे होगी शादी ,कै सा ससुराल मिलेगा और कब तक हो जाएगी
शादी आदि।।

कुं डली का 7वा घर शादी, जीवनसाथी का है तो 8वा भाव ससुराल का है तो शुक्र गुरु जीवनसाथी के
ग्रह है अब 7वा भाव और 7वे भाव का स्वामी ग्रह जितना शुभ और बलवान होगा, अच्छे योगो में होगा,
खासकर शुभ ग्रहों गुरु शुक्र ,बुध चन्द्र इन ग्रहो के प्रभाव में 7वा भाव और इस भाव का स्वामी होगा
और 7वा भाव और 7वे भाव स्वामी कुं डली के अच्छे भावों से जैसे 1,4,5,7,9,10,11 भाव से संबध
बनाकर बैठा है तब जीवनसाथी बहुत अच्छा होगा, प्रेम करने वाला और साथ देने वाला भी होगा जिस
तरह के स्वभाव वाले ग्रहो का ज्यादा प्रभाव 7वे भाव, 7वे भाव स्वामी पर होगा वैसा ही स्वभाव
जीवनसाथी का होगा।शनि मंगल राहु के तु सूर्य 7वे भाव या 7वे भाव स्वामी से ज्यादा मात्रा में सम्बन्ध
न किये है तब ही अच्छी स्थिति होगी विवाह के लिए।बाकी 7वे भाव सहित 8वा भाव भी उपरोक्त
स्थिति अनुसार जितना शुभ शक्तिशाली होगा ससुराल उतनी अचसहि मिलेंगी।अब कु छ उदाहरणो से
समझते है की कै सा जीवनसाथी और ससुराल मिलने के ग्रहयोग बने हुए है आदि।।

कुं डली_उदाहरण_अनुसार_कन्या_लग्न1:-
कन्या लग्न में 7वे भाव स्वामी गुरु बलवान होकर बलवान 11वे भाव स्वामी चन्द्रमा से सम्बन्ध बनाकर
बैठा है शुक्र का भी सम्बन्ध है तब जीवनसाथी बहुत प्रेम करने वाला, अच्छी सुंदरता वाला, अच्छे
सम्पन्न परिवार में शादी होगी बाकी 8वा भाव और 8वे भाव स्वामी मंगल भी अच्छे है तब ससुराल भी
अच्छी मिलेंगी।।

कुं डली_उदाहरण_अनुसार_कुं भ_लग्न2:-


कु म्भ लग्न में 7वे भाव स्वामी सूर्य बलवान होकर यहाँ दूसरे और ग्यारहवें भाव स्वामी बलवान गुरु से
कुं डली के अच्छे भाव में बैठकर सम्बन्ध किया है तब बहुत देखभाल करने वाला, अच्छी सोच समझ
वाला, सौम्य स्वभाव का जीवनसाथी मिलेगा और गुरु यहाँ धन और लाभ भाव स्वामी है इस वजह से
बहुत धनी परिवार में शादी होगी,ससुराल भाव 8वे भाव और 8वे भाव स्वामी बुध भी बलवान है तब
ससुराल वाले लोग भी बहुत अच्छे होंगे।।
#अब कब जीवनसाथी और ससुराल अच्छा नही होगा और क्या करे अगर खराब
स्थिति है तो उदाहरण से ही समझते है

उदाहरण_अनुसार_मीन_लग्न3:-
मीन लग्न में 7वे भाव स्वामी बुध और 8वे भाव स्वामी शुक्र दोनो ही यहाँ शनि मंगल राहु से पीड़ित है या
इन्ही ग्रहो के साथ सम्बन्ध में है तब जीवनसाथी और ससुराल दोनो ही उद्दंड होंगे, न सहयोग करेंगे और
न साथ निभाएंगे।हालांकि ऐसी स्थिति में यहाँ 7वे भाव और 7वे भाव स्वामी बुध पर गुरू चन्द्र जैसे से
शुभ ग्रहों से सम्बन्ध में है तब जीवनसाथी से सबन्ध जरूर उपाय करने से सुधर जाएंगे।।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: अपने जन्म नक्षत्र के अनुसार जानिए किस क्षेत्र में
होंगे आप सफल

1. अश्विनी नक्षत्र

अश्विनी नक्षत्र में जन्मे लोग अगर यातायात से जुड़ा कोई कार्य करेंगे तो उन्हें सफलता मिलेगी। इसके
अलावा खेल, दवाइयां, कृ षि, जिम, जौहरी, सुनार आदि से संबंधित क्षेत्र भी फायदा पहुंचाएंगे।

2. भरणी नक्षत्र

भरणी नक्षत्र में जन्मे जातकों को जन्म देने वाली दाई, गृह सेवक, शवगृह अधिकारी, दाह-संस्कार से
संबंधित कार्य करने चाहिए। वे बच्चों का ध्यान रखने वाले या नर्सरी स्कू ल के अध्यापक के तौर पर भी
कार्य कर सकते हैं। तम्बाकू , कॉफी, चाय से जुड़े क्षेत्र भी लाभ पहुंचाएंगे।

3. कृ त्तिका नक्षत्र

कृ त्तिका नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग ऐसे क्षेत्र में सफल हो सकते हैं, जो नुकीली चीज या तेज धार से
जुड़े हों। आप चाकू , तलवार के निर्माण से जुड़ सकते हैं या फिर अच्छे लोहार या वकील भी साबित हो
सकते हैं। अगर आप ऐसे किसी कार्य से जुड़ते हैं जिसके अनुसार नशे के आदी लोगों को सुधारा जाता
है तो अवश्य सफलता मिलेगी।

4. रोहिणी नक्षत्र

रोहिणी नक्षत्र से संबंधित लोग खानपान के कार्य से जुड़ेंगे तो सफलता मिलेगी। खाना बनाना हो या
फिर बांटना, ये कार्य आपके लिए उत्तम हैं। इसके अलावा कला का क्षेत्र भी आपके लिए है। आप अच्छे
कलाकार, गायक, संगीतकार भी हो सकते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे लोग रचनात्मक होते हैं।

5. मृगशिरा नक्षत्र

यात्रा से जुड़े कार्य में अगर आप संलग्न हैं तो आपको अवश्य ही सफलता मिलेगी। इसके अलावा
शिक्षा, खगोलशास्त्र, पैसे का हिसाब-किताब रखना, ये सभी क्षेत्र भी आपको लाभ दिलवाएंगे। कपड़े के
काम में लिप्त लोगों को भी लाभ मिलेगा।

6. आर्द्रा नक्षत्र

बिजली के उपकरण या बिजली से संबंधित कोई अन्य कार्य करना आपके लिए फायदेमंद रहेगा।
कम्प्यूटर, तकनीक, गणित, वैज्ञानिक, गैमिंग आदि से संबंधित क्षेत्र आपके लिए हैं। इसके अलावा
डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ का काम भी आपको सूट करेगा। अगर आप जासूस हैं या रहस्य सुलझाने जैसे
कार्य कर रहे हैं तो भी आपको सफलता मिलेगी।

7. पुनर्वसु नक्षत्र

काल्पनिक कहानियां लिखने या खरीदने-बेचने से संबंधित कोई कार्य करना, ये आपके लिए फायदेमंद
साबित होंगे। यात्रा और रखरखाव से संबंधित कार्य भी आप कर सकते हैं। अगर आप होटल मैनेजमेंट
में कार्यरत हैं या फिर दीक्षा देने का काम करते हैं तो आपको फायदा मिलेगा। इतिहासकार या भेड़-
बकरियों को पालने वाले लोग भी सफलता प्राप्त करेंगे।

8. पुष्य नक्षत्र

दूध से संबंधित व्यापार करने वाले लोग सफलता प्राप्त करेंगे। कै टरिंग करने वाले और होटल चलाने
वाले लोग भी अच्छे व्यवसाय में हैं। नेता, शासक, धार्मिक कार्य करने वाले लोग, शिक्षक और अध्यापक
आदि लोग लाभ प्राप्त करते हैं।

9. आश्लेषा नक्षत्र

पेट्रोलियम, सिगरेट, कानूनी, दवाइयों से संबंधित इंडस्ट्री से जुड़े लोग अवश्य लाभ प्राप्त करेंगे। इस
नक्षत्र में जन्मे लोग तांत्रिक, सांप का जहर, बिल्ली पालने वाले, सीक्रे ट सर्विस करने वाले, मनोवैज्ञानिक
होते हैं। ये पोंगे पंडित और आत्माओं को बुलाने वाले भी होते हैं।

10. मघा नक्षत्र

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग शाही तो नहीं होते लेकिन उनका शाही घरानों से सीधा संपर्क रहता
है। वे उनके मैनेजर भी हो सकते हैं और महत्वपूर्ण कर्मचारी भी। इसके अलावा सरकार के अधीन बड़े
पदों में काम करने वाले, बड़े वकील, जज, नेता, वक्ता, ज्योतिष, पुरातत्व वैज्ञानिक भी इसी नक्षत्र में
जन्म लेने वाले होते हैं।
11. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र

इस नक्षत्र में जन्मे लोग अगर महिलाओं से संबंधित सामान या बहुमूल्य रत्नों का व्यापार करते हैं तो
उन्हें अवश्य ही सफलता मिलती है। ब्यूटीशियन, गायक, घर की साज-सज्जा या अन्य रचनात्मक क्षेत्र से
जुड़े लोग अवश्य ही सफलता प्राप्त करते हैं। विवाह से संबंधित हर करियर भी आप ही के लिए हैं।

12. उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र

मनोरंजन, खेल और कला से संबंधित क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोग अवश्य ही सफलता प्राप्त करते हैं।
इस नक्षत्र में जन्मे धार्मिक संस्थानों के मुखिया या पुजारी, परोपकार करने वाले, दान-पुण्य के कार्य से
जुड़े, शादी-विवाह से संबंधित सलाह देने वाले या अंतरराष्ट्रीय मसलों से संबंधित लोग भी सफलता
प्राप्त करते हैं।

13. हस्त नक्षत्र

गहने बनाने वाले लोग, सेहत से संबंधित कार्य करने वाले, हास्य कलाकार, काल्पनिक कहानियां लिखने
वाले, उपन्यासकार, रेडियो या टेलीविजन इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का संबंध अगर हस्त नक्षत्र से है तो उन्हें
अवश्य ही सफलता मिलती है।

14. चित्रा नक्षत्र

अपना बिजनेस चलाने वाले, घर की साज-सज्जा, गहने बनाने, फै शन डिजाइनर, मॉडल्स, कॉस्मेटिक,
वास्तु-फें गशुई, ग्राफिक आर्टिस्ट, सर्जन, प्लास्टिक सर्जन, स्टेज आर्टिस्ट, गायक, इन क्षेत्रों में कार्यरत
लोग सफलता प्राप्त अवश्य करते हैं।

15. स्वाति नक्षत्र

व्यवसाय चलाने वाले, गायक, वाद्य यंत्र बजाने वाले, अध्ययन कार्य में संलिप्त, स्वतंत्र कार्य करने वाले,
सामाजिक सेवा में लिप्त लोग सफल होते हैं। इसके अलावा न्यूज रीडर, कम्प्यूटर्स और सॉफ्टवेयर
इंडस्ट्री में काम करने वाले लोग सफलता पाते हैं।

16. विशाखा नक्षत्र

शराब, फै शन, कला और साथ ही बोलने संबंधित क्षेत्रों में कार्य करने वाले ओग सफलता हासिल करते
हैं। इसके अलावा सफल राजनेता, खिलाड़ी, धार्मिक नेता, नर्तक, सैनिक, आलोचक, अपराधियों का
संबंध भी इसी नक्षत्र से है।

17. अनुराधा नक्षत्र

सम्मोहन क्रिया में लिप्त, ज्योतिष शास्त्री, सिनेमा संबंधित क्षेत्र, फोटोग्राफर, फै क्टरी में काम करने वाले
मजदूर, औद्योगिक क्षेत्र से संबंधित, वैज्ञानिक, गणितज्ञ, डेटा एक्सपर्ट , अंकशास्त्र विशेषज्ञ, खदानों में
काम करने वाले, विदेश व्यापार से संबंधित लोग सफलता प्राप्त करते हैं।

18. ज्येष्ठा नक्षत्र

नीति निर्माण से संबंधित क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोग, सरकारी अधिकारी, रिपोर्टर्स, रेडियो जॉकी,
न्यूज रीडर, टॉक शो होस्ट, वक्ता, काला जादू करने वाले, जासूस, माफिया, सर्जन, हस्त कारीगर,
एथलीट्स आदि क्षेत्रों से संबंधित लोग सफलता प्राप्त करते हैं।

19. मूल नक्षत्र

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोगों के लिए दवाइयों से संबंधित क्षेत्र, न्याय, जासूसी, रक्षा, अध्ययन जैसे
कार्य सफलता दिलवाएंगे। इसके अलावा वक्ता, सार्वजनिक नेता, सब्जियों के व्यापारी, अंगरक्षक,
मल्लयुद्ध करने वाले, गणितज्ञ, सोने की खदान में काम करने वाले, घुड़सवार भी सफल होते हैं।

20. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र

शिप संबंधी उद्योग में काम करने वाले प्रेरण, अध्यापक, भाषण देने वाले, फै शन एक्सपर्ट्स, कच्चे
सामान का विक्रय करने वाले, बालों की सजावट देखने वाले, तरल पदार्थों का कार्य करने वाले लोग
सफलता प्राप्त करते हैं।

21. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र

ज्योतिष, वकील, सरकारी अधिकारी, सेना में कार्यरत, अध्ययनकर्ता, सुरक्षा कार्य, व्यापारी, प्रबंधक,
क्रिके ट खिलाड़ी, राजनेता और उत्तरदायित्व निभाने वाले कार्यों को करने वाले लोग सफल होते हैं।

22. श्रवण नक्षत्र

किसी भी क्षेत्र में काम करने वाले अध्यापक, वक्ता, बौद्धिक, छात्र, भाषाविद, कहानीकार, हास्य
अभिनेता, गायन से संबंधित क्षेत्र से जुड़े लोग, टेलीफोन ऑपरेटर्स, मनोवैज्ञानिक, यातायात से संबंधित
क्षेत्र में कार्यरत लोग सफलतम होते हैं।

23. धनिष्ठा नक्षत्र

गायन, वादन, नृत्य, म्यूजिक बैंड इन सबसे संबंधित क्षेत्र के लोग सफलता पाते हैं। इसके अलावा
मनोरंजन उद्योग, रचनात्मक क्षेत्र, कवि, ज्योतिष शास्त्री, प्रेत आत्माओं को बुलाने वाले लोग सफलता
हासिल करते हैं।

24. शतभिषा नक्षत्र

ड्रग्स या दवाइयों से संबंधित क्षेत्र में काम करने वाले लोग सफलता प्राप्त करते हैं। सर्जन, मदिरा से जुड़े
क्षेत्रों में कार्यरत लोग भी सफलता पाते हैं।

25. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र

मृत्यु से संबंधित किसी भी व्यवसाय से जुड़े लोग सफल होते हैं। कॉफिन बनाने वाले, कब्र खोदने वाले,
अंतिम संस्कार से संबंधित सामान का व्यापार करने वाले सफलता पाते हैं। इसके साथ-साथ
आतंकवादी, हथियार बनाने वाले, काला जादू करने वाले लोग भी सफलता पाते हैं।

26. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र

योग और ध्यान से संबंधित क्षेत्रों में कार्यरत लोग सफलता प्राप्त करते हैं। तंत्र-मंत्र करने वाले और
रूहानी ताकतों से संपर्क स्थापित करने वाले लोगों को सफलता अवश्य मिलती है। इसके अलावा दान-
पुण्य करने वाले लोग भी सफल होते हैं।

27. रेवती नक्षत्र

सम्मोहन क्रिया करने वाले लोग, जादूगर, गायक, कलाकार, आर्टिस्ट, हास्य कलाकार, मनोरंजन करने
वाले, कं स्ट्रक्शन बिजनेस से जुड़े लोग सफलता पाते हैं। धार्मिक संस्थानों में कार्यरत लोग भी सफल
होते हैं।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: ज्योतिष शास्त्र में, धन योग वह योग है जो किसी
व्यक्ति को धनवान होने के लिए सक्षम बनाता है। यह कुं डली के दूसरे घर, जो धन का कारक है, से जुड़ा
हुआ है। दूसरे घर में शुभ ग्रहों की उपस्थिति या दूसरे घर के स्वामी की शुभ स्थिति से धन योग बनता है।

कु छ प्रमुख धन योगों में शामिल हैं:


धनयोग: यह योग लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम और दशम भावों के स्वामी के एक
साथ होने से बनता है।
शंख योग: यह योग चंद्रमा और गुरु के एक साथ होने से बनता है।
महालक्ष्मी योग: यह योग चंद्रमा, मंगल, गुरु और शुक्र के एक साथ होने से बनता है।
पंचकोटि धन योग: यह योग सूर्य, चंद्रमा, मंगल, गुरु और शुक्र के एक साथ होने से बनता है।
इन योगों के अलावा, अन्य कई योग भी धन योग के रूप में माने जाते हैं। इन योगों के प्रभाव से जातक
को धन, संपत्ति, प्रसिद्धि और सफलता प्राप्त होती है।

धन योग के प्रभाव से जातक को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

धनवान होना: धन योग के प्रभाव से जातक को धन की कमी नहीं होती है। वह अपने जीवन में धन
कमाने में सक्षम होता है।
संपत्ति प्राप्ति: धन योग के प्रभाव से जातक को संपत्ति प्राप्त होती है। वह घर, वाहन, जमीन आदि की
खरीदारी करता है।
प्रसिद्धि प्राप्ति: धन योग के प्रभाव से जातक को प्रसिद्धि प्राप्त होती है। वह अपने क्षेत्र में सफलता
प्राप्त करता है।
सफलता प्राप्ति: धन योग के प्रभाव से जातक को सफलता प्राप्त होती है। वह अपने जीवन में सभी
लक्ष्यों को प्राप्त करता है।
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि धन योग के वल एक कारक है जो धन प्राप्ति में योगदान देता
है। अन्य कारकों, जैसे कि व्यक्ति की मेहनत, लगन और भाग्य, भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: जादूटोना_शिकार है तो इससे मुक्ति कब मिलेगी।
कभी-कभी जीवन मे ऐसी स्थिति आ जाती है जब जादू टोना, ऊपरी बाधा, किये कराये, चौराहा लग
जाना आदि से ऊपरी बाधा के कारण दिक्कते होती है जिससे जीवन कष्टकारक बन जाता है, करोबार
बंद हो जाना आदि की स्थिति बन जाती है।कुं डली में ग्रहो की स्थिति के कारण ही हम ऊपरी बाधा,
जादू टोना, किया किराये से पीड़ित हो जाते है जिससे जीवन में काफी दिक्कतों का सामना करना
पड़ता है।आज इसी पर बात करते है यदि इस तरह से ऊपरी बाधा, जादू टोना, किये कराये से पीड़ित
होते है तो क्यों और क्या ठीक हो पाएंगे और कब तक ठीक हो पायेंगे।। -

जब लग्न-लग्नेश और चन्द्रमा आदि पर अशुभ शनि राहु के तु और छठे या आठवे भाव का प्रभाव
पड़ता है और ग्रहदश जब अशुभ जीवन में चलती है या आती है तब जादू टोना, किया कराया, ऊपरी
बाधा आदि जैसी परेशानी से पीड़ित होने पड़ जाता है जिससे जीवन में असीमित दिक्कते जैसे
शारीरिक कष्ट, रोजगार में गिरावट, मानसिक संतुलन ठीक न रहना, मानसिक पागलपन, आदि समस्या
से दिक्कते होने लगती है।लेकिन ऐसी स्थिति ऊपरी बाधा से जातक या जातिका पीड़ित है और शुभ
बलवान बृहस्पति की दृष्टि लग्न पर है या लग्नेश से सम्बन्ध है या अन्य शुभ ग्रहों शुक्र बुध ,शुभ बली
चन्द्र का प्रभाव तब इस तरह की ऊपरी बाधा से उपाय करके मुक्ति मिल जाती है और व्यक्ति ठीक हो
जाता है जबकि शुभ स्थिति में लग्न-लग्नेश नही है इनपर शुभ ग्रहों का असर नही है तब ठीक होने
असम्भव होता है जातक/जातिका ऊपरी बाधा, जादू टोना, किये कराये की बाधा सेदुखी रहता है।

अब कु छ उदाहरणों से समझते है कब इस तरह से किये कराये, जादू टोना से पीड़ित होते है और कब


इससे कै से मुक्ति मिलेगी या नही मिलेगी।।

उदाहरण_अनुसार_मेष_लग्न1:-
मेष लग्न में लग्नेश मंगल होता है अब मंगल और लग्न यहाँ छठे भाव में छठे भाव स्वामी बुध से सम्बन्ध
बनाकर बैठा हो और राहु भी मंगल के साथ अशुभ होकर बैठे साथ ही चन्द्रमा भी कमजोर होगा तब
इस तरह की बाधाओं से जातक यहाँ पीड़ित होगा और जीवन कष्टकारी हो जायेगा, जबकि यही लग्न
पर शुभ और बलवान बृहस्पति की दृष्टि पड़ जाएगी तब शुभ ग्रहदश समय शुरू होते ही कु छ उपाय
करके ऊपरी बाधा, जादू टोना, किये कराये आदि से पूरी तरह मुक्ति मिल जायेगी।।

उदाहरण_अनुसार_कन्या_लग्न2:-
कन्या लग्न कुं डली में लग्नेश बुध होता है अब बुध के साथ यहां छठे भाव स्वामी शनि साथ हो और राहु
भी और मंगल भी यहां लग्न या लग्नेश को पीड़ित करे तब भयंकर ऊपरी बाधा, जादू टोना, किया कराये
से दिक्कते होगी जब बुध, शनि राहु मंगल की दशाएं आयेगी लेकिन यही बुध बलवान हो और बुध पर
शुक्र और गुरु का पूर्ण प्रभाव दृष्टि या सम्बन्ध से बने तब शुभ दशा शुरू होते ही इस तरह की ऊपरी
बाधा, किये कराये, जादू टोने आदि से मुक्ति मिल जायेगी उपचार करने से।।

अब एक उदाहरण से समझते है कब मुक्ति ऊपरी बाधा, जादू टोना, किये कराये, आदि से नही मिलती
है।।

उदाहरण_अनुसार_कर्क _लग्न3:-
कर्क लग्न में लग्नेश स्वयम चन्द्रमा बनता है अब चन्द्रमा यहाँ अस्त होकर शनि के साथ छठे , आठवे, या
बारहवे भाव में जाकर बैठ जाए और अशुभ राहु या के तु से लग्न भी दूषित हो और चन्द्रमा भी साथ ही
लग्न पर ,लग्नेश चन्द्रमा पर किसी भी शुभ ग्रह जैसे शुक्र गुरु बुध का खासकर यहाँ शुक्र गुरु का प्रभाव
नही होगा तब कभी भी ऊपरी बाधा, किये कराये, जादू टोने आदि से मुक्ति नही मिलेगी।सिर्फ यदि ऐसी
स्थिति में शुभ ग्रहदश शीघ्र जातक/जातिका पर आने वाली हो या चल रही हो तब जरूर दिक्कतो के
बाद मुक्ति ऊपरी बाधा, जादू टोना, किया कराया आदि से मिल सकती है वरना नही।।

इस तरह से यदि कोई भी जातक/जातिका उपरोक्त इस तरह से ऊपरी बाधाओं से पीड़ित है जिस
कारण जीवन में दिक्कते हो रही है आदि तब

कुं डली में शुभ प्रभाव होने से ,समय अनुकू ल होने या आने से इस समस्या स्व समाधान मिल जायेगा
वरना यदि बचाब के योग नही है टाब मिलना मुश्किल होगा।।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: नक्षत्र के आधार पर पंचमहापुरुष राजयोग का
फल

स्वाति नक्षत्र में स्थित शश योग सर्वश्रेष्ठ फलकारक होता है। ऐसे योग में उत्पन्न जातक को इस योग के
सभी शास्त्रोक्त शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक राजनेता, उच्च अधिकारी, निर्जन स्थान पर
रहने वाले, कु शाग्र बुद्धि वाले तथा प्रत्येक कार्य को सोच-विचार कर करने वाले होते हैं।

मंगल आदि पंचतारा ग्रहों की के न्द्र भावों में स्व-उच्च या मूलत्रिकोण राशि में स्थिति होने पर क्रमशः
रुचक, भद्र, हंस, मालव्य, एवं शश नामक पंचमहापुरुष योगों का निर्माण होता है, परन्तु कई बार उनके
अपेक्षानुरूप फल प्राप्त नहीं होते। ऐसा उनकी नक्षत्रीय स्थिति के आधार पर होता है। इसलिए नक्षत्रीय
स्थिति के कारण भी इनका फल जानना आवश्यक है, क्योंकि नक्षत्रीय आधार पर फलादेश कथन ही
भारतीय ज्योतिष का मूल सिद्धान्त रहा है, अत: सर्वप्रथम पंचमहापुरुष योग निर्मित करने वाले पंचतारा
ग्रहों की उन नक्षत्रीय स्थिति को जानते हैं, जिनमें होने पर वे रुचकादि योगों का निर्माण करते हैं। यह
नक्षत्रीय स्थिति के न्द्रभावों में होने पर ही पंचमहापुरुष योग निर्मित होते हैं।

1. रुचक योग

जब मंगल अश्विनी, भरणी, कृ त्तिका-प्रथम चरण (मेष राशि), विशाखा-चतुर्थ चरण, अनुराधा, ज्येष्ठा
(वृश्चिक), उत्तराषाढ़ा द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ चरण, श्रवण एवं धनिष्ठा-प्रथम, द्वितीय चरण (मकर) नक्षत्रों
में होकर के न्द्र भावों में स्थित हो, तो रुचक योग का निर्माण होता है।

2. भद्र योग

जब बुध मृगशिरा-प्रथम, द्वितीय चरण, आर्द्रा, पुनर्वसुप्रथम से तृतीय चरण (मिथुन राशि),
उत्तराफाल्गुनी-द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ चरण, हस्त, चित्रा-प्रथम, द्वितीय, चरण (कन्या राशि) में होकर
के न्द्र भावों में हो, तो योग तो भद्र होता है।
3. हंस योग

जब गुरु पुनर्वसु-4 चरण, पुष्य, अश्लेषा (कर्क राशि), मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा-प्रथम चरण (धनु
राशि), पूर्वाभाद्रपद-चतुर्थ चरण, उत्तराभाद्रपद, रेवती (मीन) नक्षत्रों में होकर के न्द्र भावों में स्थित हो
जाए, तो हंस नामक पंचमहापुरुष योग होगा।

4. मालव्य योग

जब शुक्र कृ त्तिका-द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ चरण, रोहिणी, मृगशिरा-प्रथम, द्वितीय चरण (वृषभ), चित्रा-
तृतीय, चतुर्थ चरण, स्वाती, विशाखा-प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ चरण (तुला राशि) नक्षत्रों में होकर के न्द्र भावों
में स्थित हो जाए, तो मालव्य नामक योग होगा।

5. शश योग

शनि यदि चित्रा-तृतीय, चतुर्थ चरण, स्वाती, विशाखा प्रथम, द्वितीय, तृतीय चरण (तुला राशि),
उत्तराषाढ़ा-द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ चरण, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद-प्रथम, द्वितीय, तृतीय
चरण (मकर एवं कुं भ राशि) नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र में स्थित होकर के न्द्र भावों में हो, तो शश
नामक पंचमहापुरुष योग होता है।
एस्ट्रो अनन्या

1.रुचक योग का फल

अश्विनी नक्षत्र में मंगल होने पर रुचक योग का शुभ फल प्राप्त होता है। मुख्य रूप से मंगल के नैसर्गिक
फल ही अधिक रूप से प्राप्त होते हैं, जैसे बलिष्ठ शरीर, पराक्रमी, रक्तवर्ण, साहस के कार्यों में सफलता,
सफल प्रबन्धक, मंगल से संबंधित कार्यक्षेत्र आदि।

भरणी नक्षत्र में मंगल होने पर रुचक योग अधिक शुभ फलप्रद नहीं होता है। ऐसे योग में जातक अपनी
शक्ति का उपयोग सही कार्यों में नहीं लगा पाता।

कृ त्तिका नक्षत्र में मंगल होने पर कार्यसिद्धि की सम्भावनाएँ अधिक बनती हैं, जातक अपने जीवन में
उच्चता को प्राप्त भी करता है, परन्तु उस सफलता को हमेशा कायम नहीं रख पाता है। विशाखा नक्षत्र
में यदि मंगल हो, तो रुचक योग के श्रेष्ठ फल प्राप्त नहीं होते। रुचक योग का होना न होना बराबर है।

अनुराधा नक्षत्र में मंगल होने पर जातक की रुचि तकनीकी कार्यों में अधिक होती है। स्वभाव से वह
गुस्से वाला होता है। विद्या श्रेष्ठ होती है। कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए थोड़ा परिश्रम करना पड़ता है।
ज्येष्ठा नक्षत्र में मंगल के होने पर जातक की वाणी बहुत ही श्रेष्ठ होती है। वाणी से संबंधित कार्यों में उसे
अपार सफलताएँ प्राप्त होती हैं। तकनीकी कार्यों में भी वह दक्ष होता है।

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में मंगल होने पर जातक की विद्या श्रेष्ठ होती है, लेकिन सफलता के लिए बहुत अधिक
प्रयास करने होते हैं। जातक कू टनीतिज्ञ होता है। उसका मस्तिष्क हमेशा रचनात्मक कार्यों में अधिक
लगता है।

श्रवण नक्षत्र में मंगल होने पर जातक की कल्पनाशक्ति श्रेष्ठ होती है, अत: ऐसे जातक लेखक,
सम्पादक, स्क्रिप्ट राइटर, निर्देशक अथवा इसी प्रकार के अन्य कार्यों को करने वाले होते हैं।

यदि मंगल धनिष्ठा नक्षत्र में स्थित हो, तो यह रुचक योग की सबसे श्रेष्ठ स्थिति है। उपर्युक्त वर्णित सभी
शुभ फल इसी स्थिति में प्राप्त हो सकते हैं। जातक अपने पराक्रम से श्रेष्ठ उन्नति प्राप्त करता है।

2. भद्र योग का फल

बुध यदि मृगशिरा नक्षत्र में हो, तो जातक अपनी वाणी से धनार्जन करने वाला तथा बलिष्ठ शरीर वाला
होता है। आर्द्रा नक्षत्र में बुध होने पर जातक की वाणी उसके कार्यक्षेत्र में सहायक होती है। वह अपनी
वाणी से सभी का दिल जीत लेता है। स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ अधिक होती हैं।

पुनर्वसु नक्षत्र में स्थित बुध जातक को कामुकता देता है। ऐसे जातक की शिक्षा श्रेष्ठ होती है, लेकिन
कार्यक्षेत्र की सफलता के लिए उसे संघर्ष करना पड़ता है। बुध यदि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में स्थित हो, तो
जातक लेखक एवं विद्वान् होता है। उसके लेखन को जगप्रसिद्धि प्राप्त होती है। धनार्जन के लिए संघर्ष
करना पड़ता है।

हस्त नक्षत्र में बुध होने पर शास्त्र कथित भद्र योग के शुभफल प्राप्त होते हैं। ऐसा जातक सुन्दर एवं
बलिष्ठ शरीर वाला एवं विद्वान् होता है। कलात्मक कार्यों में उसकी रुचि अधिक होती है।

बुध यदि चित्रा नक्षत्र में स्थित हो, तो भद्र योग का शुभफल प्राप्त नहीं होता है। इस स्थिति में भद्र योग
के सामान्य फल ही प्राप्त होते हैं।

3. हंस योग का फल

यदि गुरु पुनर्वसु नक्षत्र में स्थित हो, तो शुभ फल प्राप्त होते हैं। ऐसे जातक की विद्या श्रेष्ठ होती है एवं
वह स्वभाव से धीर-गम्भीर होता है।
गुरु पुष्य नक्षत्र में स्थित हो, तो हंस योग का सर्वश्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। ऐसे जातक का शरीर बलिष्ठ
एवं सुन्दर होता है। वह जिस भी कार्य को करे, उसमें सफलता शीघ्र ही प्राप्त हो जाती है। ऐसे जातक
की विद्या भी श्रेष्ठ होती है।

गुरु यदि अश्लेषा नक्षत्र में स्थित हो, तो जातक श्रेष्ठ उपदेशक, अध्यापक, अधिवक्ता, ज्योतिषी,
सलाहकार आदि हो सकता है। यह स्थिति राजयोग को भी इंगित करती है।

मूल नक्षत्र में गुरु होने पर जातक की रुचि अध्यात्म एवं ईश्वर में पूर्ण रूप से होती है। जातक संघर्षमय
जीवन जीता है। आयु का पूर्वार्द्ध अधिक सुखमय नहीं होता है। जातक की रुचि अन्य कार्यों में भी होती
है तथा विद्या मध्यम श्रेणी की होती है। उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में स्थित गुरु न के बराबर हंस योग के फल
प्रदान करता है, परन्तु ऐसे जातक में आत्मविश्वास अच्छा होता है।

पूर्वाभाद्रपद में गुरु होने पर जातक की विद्या एवं कार्यक्षेत्र श्रेष्ठ होते हैं। ऐसा जातक कर्मशील होता है।
वह अपनी मेहनत से ही श्रेष्ठ मुकाम को प्राप्त करता है। पठन-पाठन में पर जातक उसकी रुचि अधिक
होती है।

उत्तराभाद्रपद में यदि गुरु स्थित हो, तो जातक एकांत में रहने वाले, दार्शनिक, अध्यात्म में रुचि रखने
वाले, विद्वान्, श्रेष्ठ विद्या प्राप्त करने वाले होते हैं। इनकी धैर्य क्षमता भी अच्छी होती है। कार्यक्षेत्र में
सफलता भी अवश्य प्राप्त होती है।

गुरु यदि रेवती नक्षत्र में स्थित हो, तो श्रेष्ठ फलकारक होता है। जातक की रुचि धनार्जन में अधिक होती
है। वह गुरु से संबंधित कार्यों में अधिक रुचि लेता है। दिखने में सुन्दर होता है। पारिवारिक सुख मध्यम
होता है।

4. मालव्य योग का फल

शुक्र यदि कृ त्तिका नक्षत्र में स्थित हो, तो जातक स्वभाव से कामुक प्रवृत्ति वाला एवं क्रोधी होता है।
दिखने में सुन्दर, आस्तिक, अपने कार्य क्षेत्र में सफल होता है।

रोहिणी नक्षत्र में शुक्र होने की कल्पनाशक्ति श्रेष्ठ होती है। ऐसा जातक कलात्मक कार्यों में रुचि रखने
वाला, कलाकार, मनोरंजन जैसे कार्यक्षेत्रों से आय प्राप्त करने वाला एवं स्क्रिप्ट राइटर हो सकता है।

मृगशिरा नक्षत्र में होने पर जातक की कामुक प्रवृत्ति होती है। ऐसे योग में शिक्षा अल्प ही रहती है,
लेकिन ऐसे किसी व्यावसायिक विषय में विद्या ग्रहण कर सकते हैं। होटल मैनेजमेंट या इसी तरह के
अन्य कार्यों में इन्हें शीघ्र सफलता प्राप्त होती है। ऐसा शुक्र इन्हें कू टनीतिज्ञ भी बनाता है।

शुक्र के चित्रा नक्षत्र में होने पर भी लगभग यही फल प्राप्त होते हैं, लेकिन यह स्थिति पहले वाले योग से
अधिक सुदृढ़ है। ऐसे जातक अपने कार्यक्षेत्र में शीघ्र ही सफलता प्राप्त कर लेते हैं।

शुक्र के स्वाती नक्षत्र में स्थित होने पर जातक अपने कार्यक्षेत्र में उच्चता को प्राप्त करता है। स्वास्थ्य की
दृष्टि से यह योग अधिक शुभफलप्रद नहीं है। ऐसे जातकों में शुक्र जातक कामुक प्रवृत्ति अधिक होती
है। विवाह पश्चात् जीवन श्रेष्ठ होता है। जीवन की मध्य एवं उत्तर अवस्था अधिक रूप से सुखी होती है।

शुक्र के विशाखा नक्षत्र में स्थित होने पर जातक की रुचि विद्या ग्रहण करने में अधिक होती है। अगर वे
अधिक पढ़े लिखे भी न हों, तो भी स्वभाव से विद्वता ही झलकती है। ज्यूलरी एवं गारमेन्ट्स से संबंधित
व्यवसाय में अधिक सफलता प्राप्त होती है।

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शुक्र होने पर इन्हीं फलों की प्राप्ति होती है, लेकिन इन फलों में न्यूनता आ जाती
है। फिर भी जातक अपने कार्यक्षेत्र में सफल ही होता है।

शुक्र यदि उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में स्थित हो, तो जातक की प्रवृत्ति अनेक कार्यों में होती है। ऐसे जातक
अध्यात्म के साथ सांसारिकता में भी पूर्ण रुचि रखते हैं। दिखने में सुन्दर होते हैं। वे स्वभाव से संकोची
नहीं होते हैं, व्यावहारिक होते हैं। सभी से उनका व्यवहार बहुत ही श्रेष्ठ होता है।

रेवती नक्षत्र में यदि शुक्र स्थित हो, तो मालव्य योग की यह सबसे श्रेष्ठ स्थिति होती है। ऐसा जातक
कलात्मक कार्यों में रुचि रखने वाला, कलाकार, बलिष्ठ एवं सुन्दर शरीर से युक्त, कामी, अपने कार्यक्षेत्र
में सफल होता है। ऐसे जातकों में शुक्र कारक फलों का पूर्ण रूप से प्रभाव होता है।

5. शश योग का फल

शनि यदि चित्रा नक्षत्र में स्थित हो, तो जातक तकनीकी कार्यों में रुचि लेने वाला, कू टनीतिज्ञ, राजनीति
में उच्च पद को प्राप्त करने वाला, क्रोधी तथा शारीरिक रूप से पीड़ित होता है।

स्वाती नक्षत्र में स्थित शश योग सर्वश्रेष्ठ फलकारक होता है। ऐसे योग में उत्पन्न जातक को इस योग के
सभी शास्त्रोक्त शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ऐसा जातक राजनेता, उच्च अधिकारी, निर्जन स्थान पर
रहने वाले, कु शाग्र बुद्धि वाले तथा प्रत्येक कार्य को सोचविचार कर करने वाले होते हैं।

विशाखा नक्षत्र में शनि होने पर जातक एकांत में रहने वाला, विद्वान्, परम्परागत शास्त्रों का ज्ञाता,
दार्शनिक, स्वभाव वाला होता है। इनकी रुचि अध्ययन-अध्यापन में अधिक होती है।
उत्तराषाढ़ा में शनि होने पर शश योग का शुभ फल प्राप्त नहीं होता पाता है। ऐसे जातक को शश योग
के नकारात्मक फल ही अधिक रूप से प्राप्त होते हैं। ऐसे जातक स्वभाव से आलसी एवं क्रू र होते हैं।

शनि यदि श्रवण नक्षत्र में स्थित हो, तो जातक की कल्पना शक्ति एवं आध्यात्मिक शक्ति श्रेष्ठ होती है।
वह प्रत्येक विषय को गम्भीरता के साथ सोचता है। स्वभाव से ऐसा जातक एकान्त में रहने वाला एवं
पर्वतीय स्थानों को चाहने वाला होता है।

धनिष्ठा नक्षत्र में स्थित होने पर शनि कार्यक्षेत्र में शुभ फलदायक होता है। जातक को शारीरिक कष्ट हो
सकते हैं। ऐसे जातक जिस भी कार्य में हाथ डालेंगे, सफलता उन्हें कड़ी मेहनत के पश्चात् ही प्राप्त
होगी। तकनीक क्षेत्र में इनकी रुचि अधिक होती है।

शनि यदि शतभिषा नक्षत्र में स्थित हो, तो श्रेष्ठ फल प्राप्त होता है। ऐसे जातक अपने कार्यक्षेत्र में नई
ऊँ चाइयों को छू ते हैं। स्वभाव से क्रोधी होने के कारण इनका सामाजिक व्यवहार सीमित होता है। इनमें
अहंकार की भावना भी हो सकती है।

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में शनि होने पर जातक की विद्या श्रेष्ठ होती है। कानून, इतिहास एवं परम्परावादी
विषयों में उसकी रुचि अधिक होती है। परिवार का पूरा सुख प्राप्त नहीं होता है। ऐसे जातक कार्यक्षेत्र
के लिए अपने निवास स्थान से भी जा सकते हैं। यह योग उच्च सफलता को दर्शाता है, लेकिन सफलता
30 वर्ष के पश्चात् ही प्राप्त हो पाती है।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: राहु दोष कलयुग में अधिकतर लोगो को समय
आने पर अपना प्रभाव दिखाता है।
राहु जितना कोई नही दे सकता है ये सच है पर लेने पर उतर जाए तो राहु से बेशर्म भी दूसरा कोई ग्रह
नही है,
सब कु छ छीन लेता है राहु,पहनने के कपड़े भी दुश्मन बन जाते है जब राहु जीवन में तबाही मचाता है।
राहु कब खेल कर जायेगा कोई नही कह सकता है,राहु की महादशा अंतर्दशा जब जीवन में आती है या
राहु गोचर में राशि परिवर्तन करता है तब पहले कोई अनुमान नहीं लगा सकता है की राहु देने आ रहा है
या जो कु छ पास में है उसको भी छीनने वाला है।
अनुमानों और उम्मीदों की धज्जियां उड़ाने का दूसरा नाम है राहु।
जो कोई सोच भी नही सकता जो कोई कर नही सकता उस काम को कर देता है राहु।
राहु की दशाएं अधिकतर लोगो की जिंदगी में भूचाल ही लेकर आती है,
गिने चुने लोगो को ही राहु राजा बनाता है या उन्हे तेजी से ऊपर उठाता है
अधिकतर लोगो को तो राहु उठा उठा कर पटकता है और जो कु छ भी उन्होंने अपनी मेहनत से बरसो
तक कमाया होता है उसको एक झटके में क्षण भर में पलक झपकते ही खत्म कर देता है
राहु की मार जिसके काम कारोबार या के रियर पर एक बार पड़ जाए तो उस इंसान का वापस ऊपर उठ
पाना नामुमकिन कर देता है राहु।
कर्ज इतना बढ़ा देता है खराब राहु सिर के ऊपर की लोगो को मैदान छोड़ कर भाग जाने के अलावा
कोई रास्ता ही नही मिलता है।
राहु बड़े बड़े कारखानों फै क्ट्रियों,बड़ी बड़ी दुकानों और बड़े बड़े कारोबार पर एक दिन में ही ताले लटका
देता है,
राहु से बुरा,राहु से निर्दई और राहु से निर्मम तीनों लोक में दूसरा कोई नही है।
राहु से बच पाना मुश्किल ही नही नामुमकिन हो जाता है जब राहु जन्म कुं डली में पहले से ही बुरे प्रभाव
में बैठा हो।
वैसे तो राहु को समझना असंभव है,पर राहु की कुं डली में स्थिति से अनुमान लगाया जा सकता है की
राहु कै सा फल देगा।
खराब राहु सबसे पहले इंसान की बुद्धि पर प्रहार करता है,खराब राहु वाले का दिमाग उल्टा सीधा
भागने लगता है, राहु दिमाग पर हमला कर इंसान को भ्रम में डाल देता है,
उसकी सोचने समझने की शक्ति का नाश कर देता है।
खराब राहु वाला हमेशा उल्टे सीधे काम करते हुए ही पाया जाता है
उसकी बुद्धि दिमाग को गंदा कर देती है और उसके दिमाग में गंदी भावनाएं और गंदे विचार अधिक
और बार बार आने लगते है,
खराब राहु वाला अगर शादीशुदा है तो अपने जीवनसाथी की जिंदगी को नरक बना देता है,
ऐसा इंसान रोज अपनी पत्नी से झगड़ा करता है,उसको गंदी गंदी गालियां देता है,पत्नी पर बार बार हाथ
उठाने में भी उसको शर्म नही आती है,
ऐसे लोग अपनी पत्नी से महीनो सालो तक अलग सोते है।इनसे होता कु छ भी नही है,पर घर में हमेशा
पत्नी के पीछे पड़े रहते है,उसकी कमियां निकालते है,उसको दोष देते है और पत्नी के ऊपर वहम करते
है शक करते है।
खराब राहु का शिकार इंसान बहुत अधिक झूठ बोलता है,गुप्त प्रेम संबध बनाता है,नशे की लत का
शिकार होता है और अस्त व्यस्त जिंदगी जीने को मजबूर हो जाता है,
न इनके सोने का कोई समय होता है और न ही इनके सुबह उठने का कोई टाइम टेबल होता है,
सुबह उठकर लड़ाई झगड़े करने के अलावा इनका कोई दूसरा काम घर में नही रहता है।
ये लोग बहुत बड़े बड़े सपने देखने लगते है करते कु छ भी नही है पर करोड़पति बनने के सपने आते है
इनको।
ये लोग का दिमाग में हमेशा शॉर्ट कट से पैसा कमाने के आइडिया आते है और अधिकतर खराब राहु
वाले शॉर्ट कट से पैसा कमाने के चक्कर में खुद तो बर्बाद होते ही है अपने परिवार को भी खतरे में डाल
देते है।
राहु बहुत ज्यादा बिगड़ जाए तो 15 20 साल पुराना वैवाहिक भी टूट जाता है या कोई एक अकाल
घटना का शिकार हो जाता है या जीवनसाथी को बहुत ज्यादा बीमार कर देता है।
तत्काल प्रभाव से राहु से बचने के लिए बात बात पर झूठ बोलना बंद कर देना चाहिए और अपने मुंह से
कभी भी गाली गलौज नही करना चाहिए न ही किसी की बुराई करनी चाहिए और न ही किसी के साथ
बहस बाजी करनी चाहिए
राहु से निजात पाने के लिए सुबह सूर्योदय से पहले उठे और रात को समय पर सो जाए,
जितना आप जीवन को नियमों से बांधेंगे उतना राहु आप का अच्छा होगा,अस्त व्यस्त जीवनशैली
मतलब राहु खराब है।
कलयुग में अमीर और बहुत अमीर होना है तो राहु को मजबूत बनाना ही होगा
अपने ससुराल से संबंध बेहतर बना कर रखने से राहु अच्छे फल देते है,
शरीर पर चांदी धारण करने से और प्रतिदिन शिवलिंग पर मंदिर में जाकर जल चढ़ाने से राहु शांत होते
है
मां सरस्वती की पूजा से ,पवनपुत्र हनुमान जी की पूजा अर्चना से ,दुर्गा माता की पूजा से भी राहु शांत
होकर शुभ फल देते है।
मंत्र जाप करने से भी राहु शांत होते है और दान पुण्य से भी राहु शुभ फल देते है,
राहु को मजबूत करने के लिए अपनी सोच अपनी भाषा और अपनी वाणी में सुधार लाना जरूरी है।
दूसरो को गाली देना,बुराई करना,झूठ बोलना,चीखने चिल्लाने से बात बात पर दूसरो को भला बुरा
कहने से राहु खराब हो जाता है।
जब तक आप की भाषा और वाणी मधुर और प्यारी नही बनेगी राहु का कोई भी उपाय काम नहीं
करेगा।
अगर आप के मजबूत परिवारिक रिश्ते खराब हो रहे है,जैसे भाई भाई में दुश्मनी हो जाना,वैवाहिक
जीवन खराब हो जाना , अपने ही बच्चो के साथ दुश्मनी हो जाना,मित्रो के साथ नाता टूट
जाना,अचानक लोगो से दुश्मनी बढ़ने लगना,बीमारियां घर से नही जाना और कु छ भी कर लेने के
बावजूद घर में धन की हमेशा कमी लगे रहना राहु के खराब होने के लक्षण है
आप ऊपर बताए उपाय करे लाभ होगा,

अगर घर का मुख्य द्वार खराब है,टूटा फू टा है या घर के टॉयलेट में बार बार खराबी आता है तो राहु को
सुधारना होगा ,इन खराबियों को दूर करना होगा
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: उम्र_ज्यादा हो गई कब तक होगी शादी।
कु छ जातक/जातिकाओ की उम्र 40 तक के पार पहुँच जाती है फिर भी शादी होने का
नाम नही लेता, तो आज इसी बारे में बात करते हैं उम्र ज्यादा हो गई हैं या उम्र निकलती जा रही हैं और
बहुत उम्र शादी की निकल चुकी हैं तब शादी होगी या नही और अब कब तक हो जाएगी और क्या
उपाय करने से शादी हो जाएगी आदि।।
शनि मंगल राहु के तु शादी न होने देने के लिए जिम्मेदार बने रहते है।कुं डली के 7वे भाव स्वामी औऱ 7वे
भाव अगर

कमजोर है और शनि राहु के तु या शनि मंगल से बहुत ज्यादा पीड़ित हैं पुरूष कुं डली है तब शुक्र और
स्त्री कुं डली हैं तब गुरु बहुत कमजोर है कुं डली मे तब शादी होने का नाम नही लेती और उम्र निकलती
जाती है अब ऐसी स्थिति होने पर 7वे भाव से और 7वे भाव स्वामी से कही न कही शादी के ग्रहो गुरु या
चन्द्र शुक्र का संबध बना है तब शादी होगी।ऐसी स्थिति में 7वे भाव संबधि दशा का समय आने पर
शादी जरूर हो जाएगी चाहे देर से शादी होगी, उपाय करने से जल्दी शादी के रास्ते बन जाते है।बाकी
गुरु शुक्र चन्द्र 7वे भाव से सम्बन्ध नही कर रहे हैं के वल 7वे भाव से शनि मंगल या शनि राहु के तु संबध
है तब शादी होना मुश्किल होगा...

अब कु छ उदाहरणो से समझते है शादी कब तक हो जाएगी अगर उम्र ज्यादा हो गई हैं और शादी की


उम्र निकलती जा रही हैं तो।।

उदाहरण_अनुसार_वृष_लग्न1:-
वृष लग्न 7वे भाव स्वामी मंगल है राहु के तु और 7वा भाव शनि से पीड़ित है तब शादी बहुत देर से ही
होगी और शादी भी यहाँ तब होगी अगर 7वे भाव या 7वे भाव स्वामी मंगल से कही न कही गुरु या शुक्र
चन्द्र या कुं डली के अच्छे भाव स्वामियों के सम्बन्ध होगा तब शादी होगी देर से होगी उपाय करने से हो
जाएगी।।

उदाहरण_अनुसार_मकर_लग्न2:-
मकर लग्न में 7वे भाव स्वामी चन्द्र शनि मंगल से सम्बन्ध बनाकर बैठे है शुक्र और गुरु कुं डली मे थोडा
कमजोर है तब शादी की उम्र निकलती जाएगी यहाँ देर से ही शादी होगी, शादी भी तब होगी देर से जब
7वे भाव से या चन्द्र से गुरु या शुक्र का संबध होगा तब देर से 7वे भाव स्वामी या 7वे भाव संबधि दशा
आने पर शादी होगी, उपाय करने से जल्दी शादी होने के रास्ते बन जाएंगे।।

उदाहरण_अनुसार_मीन_लग्न3:-
मीन लग्न में 7वे भाव स्वामी बुध 8वे या 6वे भाव मे जाकर शनि राहु से संबध में है तब शादी यहाँ 35-
40 की उम्र तक आते-आते ही हो पाएगी, जल्दी शादी ऐसी स्थिति में उपाय करने से ही हो पाएगी।।

नोट:-
देर से शादी और शादी की उम्र निकलती जा रही हैं शादी के योग होने जरूरी है तब ही देर से शादी
अगर लिखी है तब हो पाएगी शादी योग होना जरूरी है।।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: ॥12-राशि और शरीर के अंग व उपाय ॥

हर इंसान की अपनी एक राशि और प्रकार होता है, यह तो आप जानते होंगे। लेकिन यह बात आपको
शायद ही पता हो, कि न के वल मनोभाव एवं आध्यात्म के स्तर पर, बल्कि आपके स्वास्थ्य के स्तर पर
भी आप अपनी राशि का प्रतिनिधित्व करते हैं। ज्योतिष के अनुसार हर राशि का शरीर के कु छ विशेष
अंगों पर अधिकार होता है और जब शरीर के वे अंग बीमार या समस्याग्रस्त होते हैं, तब उन अंगों से
संबंधित राशि की ऊर्जा उन्हें स्वस्थ्य करने में कारगर साबित होती है।

कालपुरुष की परिकल्पना भारतीय ज्योतिष में मिलती है जिसमें समस्त राशिचक्र को मनुष्य के शरीर
के समतुल्य वर्णित किया जाता है।

सारावली ग्रंथ में कहा गया है कि :


शीर्षास्यबाहुह्रदयं जठरं कटिबस्तिमेहनोरुयुगम।
जानू जंघे चरणौ कालस्यागांनि राशयोअजाद्या: ॥
१२ राशियां के रूप में कालपुरुष के शरीर के अवयव इस प्रकार से हैं:
मेष - मस्तक, वृष - मुख, मिथुन - हाथ,
कर्क - हृदय, सिंह - पेट, कन्या - कमर,
तुला - नाभि से जननांग तक, वृश्चिक - जननांग,
धनु - जांघ, मकर - घुटना, कुं भ - पिण्डली, मीन - पैर II
भदावरी ज्योतिष के अनुसार समय पर जो सामने है वही कालपुरुष की छवि कही गई I ब्रहमा, विष्णु
और महेश, यह तीनों कालपुरुष के धनात्मक, रूप तथा महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली
कालपुरुष का ॠणात्मक रूप माने जाते हैं।

इस रूप में कालपुरुष के शरीर के अवयव मानव शरीर के अवयवों के समान्तर माने गये हैं। राशियों के
अनुसार ही जातक के जीवन का फ़लादेश किया जाता है, जो फ़लित ज्योतिष कहलाती है। उदाहरण के
लिए - लग्न में जो भी राशि होती है, उसी के अनुसार जातक की प्रकॄ ति और बनावट होती है, कद काठी
और हाव भाव आदि लग्न के अनुरूप ही बखान किये जाते हैं।

ऐसे में सेहत से जुड़ी समस्याओं का सही समाधान चाहते हैं, तो अपनी राशि के अनुसार चिकित्सा
करना विशेष रूप से फायदेमंद उपाय साबित हो सकता है। जानिए ज्योतिष के अनुसार कै से कर सकते
हैं इलाज : -
[1] मेष - मेष राशि शरीर में सिर, बाल और चेहरे का प्रतिनिधित्व करती है। इस राशि के लोगों में
प्रतिनिधित्व करने, खुद के हक के लिए लड़ने और जो वे चाहते हैं वहां तक पहुंचने के लिए ऊर्जा का
भंडार होता है। इस तरह के लोग मनोभाव, उत्साह, आत्मविश्वास और गुस्से का नियंत्रण भी इन्हीं के
पास होता है। मेष राशि वालों में ऊर्जा का असंतुलन होने पर प्रमुख रूप से माइग्रेन, आत्मविश्वास की
कमी, नाक बहना, साइनस, त्वचा समस्याएं, एग्जिमा, रेशेस और बालों के झड़ने की समस्याएं हो सकती
हैं।

उपाय : इनसे निपटने के लिए जरूरी है कि आप खुद को सही मायने में पहचानें और जीवन में अपने
दिल की सुनें और उसके अनुसार ही आगे बढ़ें। अगर आप खुद को दबाए हुए हैं या अंधेरे में रखें हुए हैं
और आपका अहं आपके लिए सबसे ऊपर है, तो आपको खुद में बदलाव कर अपनी ऊर्जा को संतुलि‍त
करने की जरूरत है। आपको अपने अत्यधिक सक्रिय दिमाग को थोड़ा आराम देना चाहिए और छोटी-
मोटी चीजों को अनदेखा करने की कला आनी चाहिए। अपने आसपास की दुनिया और लोगों पर ध्यान
दीजिए और खुश रहिए।

[2] वृषभ - वृषभ राशि वालों का विशेष संबंध गले, गर्दन, एवं उससे जुड़ी समस्याओं जैसे थायरॉइड,
टॉन्सिल्स, कं धे आदि से होता है। इसकी ऊर्जा असंतुलित होने पर कं धे के ऊपरी भाग में दर्द एवं गले
की समस्याएं हो सकती हैं और कई बार बदलाव से डर से आप चीजों को छोड़ने का साहस नहीं जुटा
पाते और पुरानी चीजों से ही चिपके रहते हैं।

उपाय : इन समस्याओं से बचने के लिए आपको जरूरत है जीवन प्रति प्रायो‍गिक, व्यवस्थित और कर्म
प्रधान रूख अपनाने की। अगर आप अपना आधार खो रहे हैं या फिर किसी ऐसी चीज में उलझे है
जिसके समाप्त होने की संभावना नजर नहीं आती, तो इस समय आपको अपनी ऊर्जा को गले पर
कें द्रित कर इसे संतुलित करने की जरूरत है। ऐसा आप नीले क्रिस्टल की सहायता से कर सकते हैं।
आप चाहें तो गायन में रुचि लें या फिर अपने बाहरी वातावरण में कु छ बदलाव भी कर सकते हैं।

[3] मिथुन - इस राशि का शासन आपके दिमाग, विचार, खुद को अभिव्यक्ति करने की क्षमता, बांहें और
हाथों पर विशेष रूप से होता है। अपनी ऊर्जा के जरिए इस राशि के लोग विचारों की सुव्यवस्थ‍ित
अभिव्यक्ति की कला में माहिर होते हैं। इस तरह के लोग प्रमुखत: लेखक, वक्ता और संवादक होते हैं।
लेकिन ऊर्जा का असंतुलन होने पर इस राशि के लोगों में विचारों में बिखराव, कं फ्यूज होना, हाथों या
बाहों में दर्द , अभिव्यक्ति देने में भय, बिना सोचे समझे बोल देना या इधर-उधर की बातें करने एवं सुनने
में दिलचस्पी होना जैसी समस्याएं हो सकती है।
उपाय : इनसे बचने के लिए मेडिटेशन करना या डेली डायरी लिखना बेहतर उपाय हो सकता है। ऐसा
करने से आपको शांत चित्त होने में मदद मिलेगी, साथ ही दिमाग में बार-बार आने वाले विचारों से भी
छु टकारा मिलेगा।

[4] कर्क - सेहत के लि‍हाज से कर्क राशि का स्वामित्व सीने, वक्षस्थल, और हृदय पर होता है। इस राशि
के लोगों में अपने मनोभावों को सच्चाई के साथ बयां करने का सामर्थ्य होता है। इस तरह के लोग दूसरों
की मदद के लिए हमेशा खुशी-खुशी तैयार होते हैं। इन लोगों में ऊर्जा का असंतुलन होने पर मनोभावों
का अनियंत्रित होना, अतिसंवेदनशीलता, अके लापन पसंद करना, श्वसन संबंधी समस्याएं, कफ आदि
समस्याएं होती हैं।

उपाय : ऐसा होने पर आपके लिए खुली हवा में प्राणायाम एवं हल्का फु ल्का व्यायाम करना बेहद
फायदेमंद हो सकता है। इसके अलावा लोगों के साथ घुलना-मिलना, बातचीत करना, खुद से प्यार
करना भी आपको सीखना होगा।

[5] सिंह - दि‍ल यानि हृदय पर इस राशि का राज चलता है साथ ही पीठ व कं धों से भी इसका संबंध है।
सिंह राशि के लोग खूद पर विश्वास रखते हुए
सीखना और आगे बढ़ना पसंद करते हैं। इस राशि के लोग गर्व, आत्मविश्वास ,निडरता से भरे होते हैं।
सिंह राशि वालों में ऊर्जा का असंतुलन होने पर हृदय से जुड़ी समस्याएं, मन की भावनाएं व्यक्त करने में
कठिनाई, आत्मविश्वास की कमी, शर्मीलापन और डर होने की संभावनाएं बनती हैं।

उपाय : इससे बचने के लिए किसी प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति जैसे डांस, कविता करना, अभिनय
आदि, आपकी ऊर्जा को संतुलित करने में सहायक हो सकती है। हृदय क्षेत्र के लिए योगा करना
लाभकारी होगा और अपनी भावनाओं को किसी करीबी से बांटना भी जरूरी है।

[6] कन्या - कन्या राशि पेट और पाचन तंत्र पर शासन करती है। इस राशि के लोग जमीनी, जीवन के
प्रति प्रोत्साहित करने वाले होते हैं। कई बार ये लोग बारीकियों पर नजर रखने वाले और जिद्दी या हठी
भी होते हैं।

उपाय : इन लोगों को अपनी ऊर्जा को संतुलित करने के लिए कई बार कु छ चीजों या बातों एवं खुद से
की गई अपेक्षाओं को अनदेखा करना जरूरी है। दिमाग को शांत रखें एवं ताने या चिड़चिड़पन से
किनारा करें। मेडिटेशन, कलात्मक गतिविधियां और व्यायाम करें। सेहतमंद चीजें, सब्जियां एवं फल
खाएं और स्वस्थ रहें।
[7] तुला - तुला राशि प्रमुख रूप से किडनी, गॉल ब्लेडर, और शरीर का निचले हिस्से का प्रतिनिधित्व
करती है। इस राशि के लोग दूसरों से जुड़ना, स्वस्थ सहभागिता एवं संबंधों को बेहतरी से निभाने वाले
होते हैं। इन लोगों में ऊर्जा असंतुलन होने पर या तो ये पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होते हैं, या फिर दूसरों
पर। ब्लेडर इंफे क्शन, बार-बार पेशब आना या कमर में दर्द की समस्या हो सकती है।

उपाय : इससे बचने के लिए जीवन में समझौता करना और कभी-कभी दूसरों के बारे में सोचना आपको
जरूर सीखना होगा। इसके अलावा अगर आप दूसरों पर कु छ ज्यादा ही निर्भर करते हैं, तो यही सही
समय है खुद की ताकत और आत्मनिर्भरता को पहचानने का।

[8] वृश्चिक - वृश्चिक राशि प्रमुख रूप से जननेंद्रिय अंगों पर शासन करती है। इस राशि के लोग
परिवर्तनीय और जीवन में सीखना और अनुभवों के आधार पर आगे बढ़ने को महत्व देते हैं। ऊर्जा का
असंतुलन होने पर इनमें परिवर्तन के प्रति डर, चीजों, स्थानों या बातों से जुड़े रहना अर्थात छोड़ नहीं
पाना, अत्यधिक तनाव, संबंध बनाने में अरूचि या फिर इस तरह की इच्छाओं में अत्यधिक वृद्धि हो
सकती है।

उपाय : इसके लिए आपको अपने जीवन में होने वाले परिवर्तनों को अपनाना होगा और पुरानी चीजों से
भी कु छ दूरी बनानी होगी। मेडिटेशन करना आपके लिए लाभदायक हो सकता है। पानी एवं पानी वाले
स्थानों के पास समय व्यतीत करना भी आपको ताजगी देने एवं भावनात्मक सहयोग देने में सहायक
होगा।

[9] धनु - धनु राशि हिप्स यानि नितंब और कू ल्हों का प्रतिनिधित्व करती है। इसके अलाव लिवर का
संबंध भी इसी राशि से है। धनु राशि वाले सीखने, समझने, पढ़ाने और जो सीखा है उसे आगे बढ़ाने में
हमेशा आगे होते हैं। इसके अलाव ये लोग रोमांचक चीजों में भी बेहद रूचि रखते हैं। इन्हें जीवन को
समझना और दुनिया को जानना पसंद होता है।

उपाय : ऊर्जा असंतुलन होने पर इन्हें लिवर संबंधी समस्याएं, कू ल्हे और हिप्स की समस्याएं हो सकती
है। इन्हें आराम न करने या अधिक समय तक एक स्थान पर बैठक रहने से भी समस्या हो सकती है।
निष्क्रियता, कु छ करने या सीखने का मन न होना भी इसमें शामिल है।

[10] मकर - आपकी हड्ड‍ियों, घुटनों एवं दांतों पर इस राशि का पूर्ण साम्राज्य होता है। मकर राशि वाले
लक्ष्य के प्रति समर्पित, अतिप्रोत्साहित होते हैं। ये जो सोचते हैं उसके प्रति क्रियाशील रहते हैं और
फै शन के प्रति भी सजग होते हैं। इनमें काम को लेकर अत्यधिक समर्पण या यूं कहें कि लत हो सकती
है। इनकी ऊर्जा असंतुलित होने पर इन्हें घुटनों या जोड़ों से संबंधित समस्या, दांतों में दर्द , के विटी हो
सकती है।
उपाय : ऊर्जा को संतुलित करने के लिए इन्हें खुद के लिए ब्रेक लेना चाहिए और विचार करना चाहिए
कि आपको अपने लक्ष्यपूर्ति के लिए क्या चाहिए। काम को दोबारा जब शुरु करें, तो काम पहले की
अपेक्षा कम और हल्की फु ल्की चीजों या खेल को भी महत्व दें। मेडिटेशन करना फायदेमंद हो सकता
है। योगा और लेखन भी मददगार हो सकता है।

[11] कुं भ - कुं भ राशि का स्वामित्व एड़ियों एवं नर्वस सिस्टम पर होता है। इस राशि के
लोग मानवता के
पक्ष में होते हैं और किसी भी विषय पर व्यापक स्तर पर सोचते हैं। इनकी ऊर्जा बेहद आविष्कारक और
बदलाव लाने वाली होती है। ऊर्जा का असंतुलन होने पर यह आपको पागल वैज्ञानिक भी प्रतीत हो
सकते हैं या ऐसा लग सकता है कि इनकी सोच सच्चाई से कोसों दूर है। ये हड़बड़ी वाले हो सकते हैं
और इन्हें एड़ियों की समस्या हो सकती है।

उपाय : इनके लिए कलात्मक होना एवं जीवन को नई युक्तियों के साथ जीना, ऊर्जा संतुलन के लिए
आवश्यक है। बड़ी सोच रखें और अपनी युक्तियों के साथ उस पर काम करें। हर दिन कु छ ऐसा करें जो
आपको प्रेरणा दे और अच्छे लोगों के साथ रहकर उनसे सीखते और बढ़ते रहें।

[12] मीन - इस राशि का शासन पाइनियल ग्रंथि पर होता है। मीन राशि वाले अपनी स्वयं की सोच एवं
आत्मिकता को पंक्तिबद्ध करके आगे बढ़ते हैं और बेहद कलात्मक या कला के माध्यम से अभिव्यक्ति
देने वाले होते हैं। ऊर्जा असंतुलन होने पर ये लोग जमीनी नहीं रह जाते। दूसरों की जरूरतों को भी नहीं
समझ पाते और पहुंच से दूर हो जाते हैं। इनमें अहं की भावना हो सकती है और कभी-कभी डर भी।

उपाय : ऊर्जा संतुलन के लिए आवश्यक है कि ये लोग आध्यात्मिक व आत्मिक रूप से खुद से जुड़े रहें।
मेडिटेशन इसके लिए बेहद प्रभावी तरीका है। इसके लिए कलात्मक होना एवं अपनी ऊर्जा को किसी
उत्पादकता में लगाना भी कारगर होगा। पैरों की मसाज लाभकारी होगी और जमीन से जुड़े रहना
आपके लिए फायदेमंद रहेगा।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: ज्योतिष में, भवन योग उन योगों को कहा जाता है
जो जातक को भवन या घर प्राप्ति का संके त देते हैं। ये योग ग्रहों की स्थिति और राशि परिवर्तन के
कारण बनते हैं।

कु छ प्रमुख भवन योगों में शामिल हैं:

चतुर्थेश के न्द्रस्थ योग: जब चतुर्थ भाव का स्वामी कें द्र में स्थित हो, तो यह योग बनता है। यह योग
जातक को अपने घर में रहने का सुख प्राप्त कराता है।
चतुर्थेश उच्चस्थ योग: जब चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च राशि में स्थित हो, तो यह योग बनता है। यह योग
जातक को सुंदर और आलीशान घर प्राप्त कराता है।

चतुर्थेश स्वगृही योग: जब चतुर्थ भाव का स्वामी अपनी स्वराशि में स्थित हो, तो यह योग बनता है। यह
योग जातक को सुखमय और आनंदमय घर प्राप्त कराता है।

चतुर्थेश शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट योग: जब चतुर्थ भाव का स्वामी शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो, तो यह योग
बनता है। यह योग जातक को सुखमय और समृद्ध घर प्राप्त कराता है।
इन योगों के अतिरिक्त, ज्योतिष में कई अन्य भवन योग भी हैं। इन योगों के प्रभाव जातक की कुं डली में
अन्य ग्रहों की स्थिति और राशि परिवर्तन के आधार पर भी भिन्न हो सकते हैं।

भवन योगों का जातक के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ये योग जातक को अपने घर में रहने
का सुख, सुखमय और आनंदमय जीवन प्रदान करते हैं।

भवन योगों के निर्माण के लिए चतुर्थ भाव का स्वामी महत्वपूर्ण होता है। चतुर्थ भाव को घर, भूमि,
वाहन और सुख का भाव माना जाता है। इसलिए, चतुर्थ भाव का स्वामी जब शुभ स्थिति में होता है, तो
जातक को अपने घर में रहने का सुख प्राप्त होता है।

चतुर्थेश के न्द्रस्थ योग में, चतुर्थ भाव का स्वामी कें द्र में स्थित होता है। कें द्र में स्थित ग्रहों का प्रभाव
अधिक होता है। इसलिए, इस योग में जातक को अपने घर में रहने का सुख प्राप्त होता है।

चतुर्थेश उच्चस्थ योग में, चतुर्थ भाव का स्वामी उच्च राशि में स्थित होता है। उच्च राशि में स्थित ग्रहों का
प्रभाव भी अधिक होता है। इसलिए, इस योग में जातक को सुंदर और आलीशान घर प्राप्त होता है।

चतुर्थेश स्वगृही योग में, चतुर्थ भाव का स्वामी अपनी स्वराशि में स्थित होता है। स्वराशि में स्थित ग्रहों
का प्रभाव भी अधिक होता है। इसलिए, इस योग में जातक को सुखमय और आनंदमय घर प्राप्त होता
है।

चतुर्थेश शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट योग में, चतुर्थ भाव का स्वामी शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट होता है। शुभ
ग्रहों का प्रभाव भी अधिक होता है। इसलिए, इस योग में जातक को सुखमय और समृद्ध घर प्राप्त होता
है।

मंगलवार का व्रत रखें और 21 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें और हनुमान जी को सिंदूर अर्पित
करें. और हनुमान जी से प्रार्थना करें कि बहुत जल्द आपको मकान की प्राप्ति हो जाए.
भूखण्ड प्राप्ति के उपाय :- यदि आपको भूमि – भवन से सम्बन्धित सौदें में कोई रूकावट आ रही हो तो
उस बाधा को दूर करने के लिये वराह भगवान का ध्यान करें । स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर
शुक्लपक्ष के शुक्रवार के दिन पूर्व की ओर मुख करके ईशान कोण में आसन लगाकर बैठ जायें । फिर
भगवान वराह के द्वारा समुद्र से पृथ्वी के उद्धार करने के चित्र को ले या मन में उसका ध्यान करके धूप
– दीप से पूजा करें और इस मंत्र के चार लाख जप करें । मंत्र है ‘ ॐ नमः श्री वाराहाय धरण्युद्धारणाय
स्वाहा जप के बाद शहद और घी मिश्रित खीर से दशांश हवन करें । हवन के बाद श्री वराह भगवान से
सुख , समृद्धि , प्रगति प्रदान करने वाले उत्तम भवन के लिये उत्तम भू – खण्ड की कामना करें । ऐसा
करने पर आपकी मनोकामना पूर्ण होगी और भू – खण्ड प्राप्ति में आने वाली समस्त बाधाएँ दूर हो
जायेंगी । . भूखण्ड़ प्राप्ति के एक और सरल उपाय है स्कन्द पुराण में वर्णित भगवान वराह की स्तुति ।
इस स्तुति को करने से आपकी भूखण्ड पाने की इच्छा शीघ्र पूर्ण होगी ।
स्कन्दपुराण के वैष्णवखण्ड में आया है कि भूमि प्राप्त करने के इच्छु क मनुष्य को सदा ही इस मन्त्र का
जप करना चाहिये ॐ नमः श्रीवराहाय धरण्युद्धारणाय स्वाहा ।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: जेलयात्रा योगः

यूं तो आज सरकार ने इतने सरल सरल नियम और व्यवस्थायें बना दी हैं, की कब कौन किस सच्चे/झूठे
"अपराध" में जेल चला जाय पता ही नहीं..।
फिर भी ज्योतिष के हिसाब से कुं डली में ग्रहों की कु छ स्थितियाँ भी बता देती हैं कि जेल यात्रा के योग है
या नहीं ?
जी हाँ, कुं डली में सूर्य, शनि, मंगल और राहु-के तु जैसे पाप ग्रह बता देते हैं कि आपकी कुं डली में जेल
जाने के योग है या नहीं।

अगर किसी की कुं डली के छठें आठवें या बारहवें भाव में पाप ग्रह होते हैं तो ऐसे लोगों को जीवन में
एक न एक बार जेल यात्रा करनी पड़ती है। (जेल की अवधि ग्रहों के अंशों और बलों के आधार पर तय
होती है।)
कुं डली के छठे आठवें और बारहवें भाव से जेल जाने के कु छ योग निम्नवत हैं-

- कुं डली केबारहवें भाव से भी कारावास का विचार किया जाता है। कुं डली के इस घर में वृश्चिक या धनु
राशी का राहु हो तो उसके अशुभ प्रभाव के कारण
व्यक्ति को किसी बड़े अपराध के कारण जेल जाना पड़ता है।

- कुं डली केबारहवें घर में वृश्चिक राशी होने के साथ अगर राहु और शनि होते है तो कोर्ट कचहरी के
मामलों में हारने के बाद जेल जाना पड़ता है।

- कर्क राशी स्थित मंगल कुं डली के छठे घर में होने से जेल यात्रा के योग बनाता है।
- अगर कुं डली में मंगल और शनि एक दूसरे को देख
रहें हो तो लड़ाई झगड़े के कारण व्यक्ति को जेल जाना पड़ेगा।

- अगर कुं डली में नीच का मंगल हो और मेष राशि का शनि, मंगल को देखता भी हो तो भी जेल जाने के
योग बनते हैं।

- पराक्रम भाव एवं अष्टम भाव का स्थान परिवर्तन, भावेश द्वारा दृष्टि सम्बन्ध, भावेश की दशा-प्रत्यंतर,
ग्रह गोचर द्वारा दुर्भाग्य उद्दीपन होने पर जेल जाने की स्थिति प्रबलता से बनती है।

- लग्नेश या लग्न पर मारके श या वक्री ग्रह की दृष्टि के प्रभाव वश भी ऐसी स्थिति बनती है।

जन्म कुं डली में उपर्युक्त किसी भी स्थिति का निर्माण होने पर जातक परिस्थितियोंवश कोर्ट कचहरी,
मुक़दमे, फौजदारी या सामाजिक अपयश वश जेलयात्रा (कारावास) को प्राप्त होता है। ऐसी किसी भी
स्थिति के बनने पर व्यक्ति को सावधान हो जाना चाहिये। ..और अपने कर्मों में उचित सुधार कर लेना
चाहिये। क्योंकी दवा कराने से बेहतर है, परहेज।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: किराये के मकान में रह रहे है या किसी के मकान
में रह रहे है तो क्या किराये के मकान से छु टकारा मिलकर अपना मकान हो पायेगा, अपना मकान
बनेगा या खरीदना जाएगा और कब तक या किराए पर ही रहने के योग है तो क्या उपाय करके अपने
मकान बन जायेगा आदि??.... किराये के मकान से
मुक्ति मिलने का मतकब है खुद का मकान बन जाना या खुद का मकान खरीद लेना।

जब कुं डली का चौथा भाव, भाव स्वामी कमजोर या पाप ग्रहों के प्रभाव में होने से या अशुभ ग्रहयोगों के
प्रभाव में होने से किराये के मकान में ही रहना पड़ता है, लेकिन चौथा भाव, चौथे भाव स्वामी और
मकान सुख ग्रह मंगल बलवान है तब खुद का मकान बनेगा, मकान खरीदना जाएगा, कब तक मकान
बन पाएगा या खरीदना जा सकता है यह चौथे भाव सम्बन्धी ग्रहो का समय आने पर मकान बन पाएगा
या खरीद पाएंगे, शनि का या राहु के तु का अशुभ प्रभाव चौथे भाव पर है लेकिन मकान के योग है अपने
तब मकान देर से बनेगा/खरीदना जाएगा, बाकी अशुभ योगो के कारण मकान बनाने या खरीदने में
दिक्कतें आएगी जो कि उपाय करने से मकान का काम हो पायेगा।

अब कु छ उदाहरणों से समझते है अगर किराये मकान में या किसी के मकान में रह रहे है तो अपने
मकान बनने या खरीदने के योग है या नही और है तो कब तक है और मकान क्या खरीदना जाएगा बना
बनाया या बनेगा नया आदि।।

उदाहरण_अनुसार_मेष_लग्न1:-
मेष लग्न में चौथे भाव और चौथे भाव स्वामी चन्द्र है अब चौथे भाव और चौथे भाव स्वामी चन्द्रमा पर
शनि की दृष्टि है तब किराये के मकान में रहेंगे पहले, लेकिन चन्द्रमा और चौथे भाव के साथ बलवान गुरु
या शुक्र मंगल का यहाँ सम्बन्ध भी है तब अपना मकान कु छ देर से जब चंद्रमा या चंद्रमा/चौथे भाव से
सम्बंधित दशा समय ग्रहो का आएगा तब मकान हो जाएगा।चौथा भाव ,भाव स्वामी चन्द्र ज्यादा
बलवान और शुभ है तब मकान बनेगा नया जबकि कमजोर है ज्यादा बलवान नही है तब पुराना मकान
खरीदा जाएगा तब ही मकान हो पायेगा।।

उदाहरण_अनुसार_कर्क _लग्न2:-
कर्क लग्न में यहाँ चौथे भाव स्वामी शुक्र है अब शुक्र और चौथा भाव यहाँ अशुभ योग बनाकर बैठा है,
या 6,8,12 भाव मे जाकर राहु के तु या शनि से पीड़ित है तब किराये मकान में ही रहना पड़ेगा जीवन मे,
जबकि चौथे भाव स्वामी शुक्र, चौथा भाव से बलवान कर्क लग्न के यहाँ शुभ ग्रहों मंगल गुरु जैसे ग्रहो
का सम्बन्ध भी है तब अपना मकान बन जायेगा, शुक्र और चौथा भाव दोनो शनि राहु के प्रभाव में है तब
मकान ख़रीदा जायेगा,और शनि राहु दोनो का प्रभाव नही है अशुभ योगो का ज्यादा असर नही है तब
नया मकान बनेगा।।

उदाहरण_अनुसार_मकर_लग्न3:-
मकर लग्न में चौथे भाव स्वामी जो कि मकान सुख ग्रह भी है मंगल है अब मंगल और चौथा भाव यहाँ
कुं डली मे 1,4,5,7,9,10,11 भाव मे बलवान होकर बैठा है और शुक्र बुध या अच्छे योग राजयोग
बनाकर बैठा है तब किराये के मकान स मुक्ति मिलकर अपना मकान हो जाएगा।

मंगल और चौथा भाव ज्यादा शनि रह के तु के अशुभ प्रभाव से पीड़ित नही है, अशुभ योगो में नही है
तब मकान बनेगा यहाँ जबकि शनि राहु के तु के साथ है मकान योग बनाकर तब मकान खरीदा जाएगा
तब हो पायेगा।।

चौथा_भाव, भाव स्वामी और मकान सुख ग्रह मंगल अच्छी स्थिति में नही है,कमजोर है ,अन्य ग्रहो का
सहयोग इन्हें नही मिल रहाहै तब मकान नही हो पायेगा बाकी मकान योग है दूषित है तब उपाय कर
लेने से मकान बनने में हो रही बाधा खत्म होकर मकान हो जाएगा
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: शादी से सम्बंधित कई शादी सम्बन्धित पहलुओं
पर पहले लिख चुके है।आज बात करते है कै सा घर परिवार मिलेगा, कै से घर-परिवार में होगी शादी.।।

कुं डली का 7वां भाव और उसका स्वामी और विवाह कारक लड़को के लिए शुक्र तो लड़कियों के लिए
गुरु ही बताएगा कै से घर-परिवार में शादी होगी?...अब 7वे भाव के साथ या सातवें भाव स्वामी के साथ
कोई भी शुभ राजयोग, विशेष शुभ योग बने होने पर शादी अच्छे घर में और अच्छे परिवार में होती है
इसके अलावा 7वे भाव या 7वे भाव स्वामी का सम्बन्ध दूसरे भाव या दूसरे भाव स्वामी(धन भाव) के
साथ शुभ स्थिति में है या 11वे भाव या 12वे भाव स्वामी के साथ शुभ और बलवान स्थिति में है तब
बहुत संपन्न घर-परिवार में शादी होगी क्योंकि 11वां भाव सम्पन्न का है, साथ ही ऐसी स्थिति में शुभ ग्रहों
का भी संबंध या प्रभाव 7वे भाव पर है या 7वे भाव स्वामी पर है तब हर तरह से शादी का घर परिवार
अपने भी घर परिवार से कई गुना समृद्ध, संपन्न ,अच्छा होगा,बाकि अन्य स्थितियों में सामान्य या कुं डली
अनुसार जैसी स्थिति शादी के लिए घर-परिवार की होगी वैसा ही होगा।

अब कु छ उदाहरणों से समझते है कै से उपरोक्त अनुसार घर परिवार मिलेगा

उदाहरण_अनुसार_सिंह_लग्न1:-
सिंह लग्न में सातवें भाव स्वामी शनि यहॉ बलवान और शुभ होकर होकर 11वे+दूसरे भाव स्वामी शुभ
बलवान बुध के साथ है सम्बन्ध में तब संपन्न घर-परिवार में शादी होने तय है, इसके अलावा सातवे भाव
स्वामी शनि यहाँ किसी तरह के राजयोग में है तब भी बहुत अच्छे ,समृद्ध,संपन्न घर-परिवार शादी के
लिए मिलेगा।।

उदाहरण_अनुसार_धनु_लग्न2:-
धनु लग्न में सातवें भाव स्वामी बुध यहॉ कोई विशेष शुभ स्थिति में बैठे ,जैसे बुध यहाँ राजयोग बनाकर
बैठा हो साथ ही दूसरे या ग्यारहवे भाव स्वामी शनि या शुक्र के साथ सम्बन्ध में भी है या बुध राजयोग
बनाकर बलवान और शुभ स्थिति में दूसरे/ग्यारहवे भाव में बैठा है तब शादी भी बहुत अच्छी होगी और
घर-परिवार भी बहुत अच्छस, संपन्न, होगा ,सातवे भाव या सातवे भाव स्वामी बुध पर शुभ ग्रह या ग्रहो
का प्रभाव भी हुआ तब परिवारिक लोग भी ससुराल के बहुत ही अच्छे मिलेंगे।।

इस तरह सातवे भाव या सातवे भाव की अत्यंत शुभ या राजयोग स्थिति या संपन्न ग्रहो से सम्बन्ध 7वे
भाव या 7वे भाव स्वामी का अच्छा संपन्न घर परिवार, अच्छे ससुराल पक्ष लोग दिलायेगा जो की
जातक/जातिका की कुं डली के सातवें भाव और इसके स्वामी की स्थिति पर निर्भर करेगा की ऐसी या
कै सी स्थिति घर-परिवार ससुराल पक्ष सम्बन्धी मिलने की है साथ ही लड़के की कुं डली में शुक्र और
लड़की की कुं डली है तब बृहस्पति जितना ज्यादा शुभ और अच्छा होगा उतना ही ज्यादा ससुराल वाला
घर, परिवार, ससुराल के सदस्य अच्छे होंगे।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: लक्ष्मी योग
१. धनेशे के न्द्रराशिस्थे, लाभेशे तत्त्रिकोणगे। ।
गुरुशुक्रयुते दृष्टे, लक्ष्मीवन्तमुदीरयेत् ।।
-बृहत्पाराशर होराशास्त्र अ. १३/५
परिणाम : धनेश के न्द्र में हो, उससे त्रिकोण (५,९) में लाभेश हो अथवा धनेश गुरु, शुक्र से युत किंवा दृष्ट
हो, तो जातक पूर्ण लक्ष्मीवान होता है। इस योग के कारण मनुष्य धन-धान्य, रत्न-भूषण से परिपूर्ण एवं
सुखी जातक होता है। यद्यपि धन के लिये इन्हें निरन्तर परिश्रम करना पड़ता है। तथापि समाज में
इनकी भारी प्रतिष्ठा होती है।

२. यदि भाग्येश अपनी उच्च राशि, मूल त्रिकोण अथवा स्वराशि का होकर के न्द्र में हो तो लक्ष्मी योग
बनता है।

परिणाम : ऐसे व्यक्ति भाग्यशाली होते हैं। इनको अल्प प्रयत्न से ही धन की प्राप्ति हो जाती है। लक्ष्मी
इन पर प्रसन्न रहती हैं। इस योग के कारण आप धनवान सुखी एवं सम्पन्न व्यक्तियों की श्रेणी में माने
जायेंगे।

३. लाभाच्च लाभगे जीवे, बुधचन्द्रसमन्विते ।


धन-धान्याधिपः श्रीमान् रत्नाद्याभरणैर्युतः ।।
-बृ.पा. होराशास्त्र अ.२२/७

परिणाम : लाभ भाव से ग्यारहवें स्थान अर्थात् नवम भाव में बुध, चन्द्र गुरु हो तो व्यक्ति धन-धान्य, रत्नं
आभूषण से युत लक्ष्मीवान होता है।
नवम भाव ज्योतिष में लक्ष्मी का स्थान माना गया है। नवम भाव में इन तीन ग्रहों के होने से लक्ष्मी उस
जातक पर सदैव प्रसन्न रहती है। इस योग के कारण आप धनवान, सुखी एव सम्पन्न व्यक्तियों की श्रेणी
में गिने जायेंगे।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: सामुद्रिक शास्त्रानुसार मुख मण्डल से संबंधित
कु छ रोचक तथ्य ।
(1)नाक और दाहिने गाल का काला तिल पहली सन्तान के नष्ट होने को दर्शाता है।
(2) अधिकतर देखा गया है कि उक्त लिखित स्थानो पर तिल होने पर कन्या सन्तान होने की संभावना
अत्यधिक होती है ।
(3) पहली सन्तान नष्ट होने पर दूसरी सन्तान के रूप पुत्र सन्तान होने की सम्भावना बढ जाती है।
(4)यही तिल अगर fore head के ठीक बीच मे होता है,तो भूलने की पवृति होती है।
(5)तिल अगर होठ पर हो तो कामुकता को बढा देता है।
(6) उपर के दाँतो के ठीक बीच के दाँत मे एक GAP का होना विपरीत लिग॔ के प्रति का आकृ ष्ट का
लक्षण है।
(7) किसी जातक के हंसते समय अगर मुँह ज्यादा बडा हो जाता हो तो ये आथिर्क अवनति का सूचक
है।
(8)खड़े खड़े बाल होने पर जातक जिदी होताहै।
(9)बाल अगर कड़े और straight होते है, तो जातक का confidence level high होता है ।
(10)बाल अगर घुघंराले हो तो,ऐसे जातक Creative line जैसे singing, acting, music, मे
रूचि लेते है।
(11)अगर बाल ज्यादा घुघंराले हो तो जातक कं जूस होगा।
(12) अगर किसी जातक के गाल भरे हुए, कान बढे , और बाल पूरी तरह पीछे को तरफ जाते हो तो,
उसे आथिर्क कष्ट नही होता, वह commitment का पक्का, और दूसरे के पैसे पर नजर न रखने वाला
होता है।ऐसे जातक को समय पर पैसा न दे पाने पर अपने आप मे शर्मिंदा महसूस करते है।
(13)सामुद्रिक शास्त्रानुसार नाक का अपना विशेष महत्व है,मोटी और भोडी नाक वाले जातक के भाग्य
मे सबकु छ होने के बावजूद भोग करना नही मिलता ।
(14)तोते जैसी तीखी और अति सुन्दर दिखने वाली नाक वाले बहुत भाग्यशाली, और ख्याति प्राप्त
करते है ।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: नपुंसकता - योन शक्ति मे कमी

जन्म कुं ड्ली के सप्तम भाव से काम-कला, मुत्राशय स्थान (लिंग योनि) एवँ कुं डली अ‍ष्ट्म स्थान से गुप्त
रोग को जाना जाता हैँ।
नाडी ज्योतिष के अनुसार 3 नक्षत्र नपुसंक नक्षत्र कहे गये हैँ- मुल, शतभिषा ओर मृगशिरा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बुध ओर शनि को भी नपुंसक ग्रह माना गया हैँ।

योन सम्बंधो मे विकार को सामान्य तरीके से समझे

1. सप्तम या अष्टॅम स्थान मे मुल, शतभिषा या मृगशिरा नक्षत्र मे बुध या शनि विराजमान हो तो योन
सम्बंध ख्रराब होगे या गुप्त रोग होने के प्रबल सम्भावन बनेगी।
2. स्त्री की कुं ड्ली मे बुध ओर शनि अगर सप्तम या अष्टम स्थान मे हो तो स्त्री का पति नपुसंकता की
ओर अग्रसित होगा मतलब योन शक्ति कम होगी।
3. शुक्र का सप्तम या अष्टॅम स्थान मेँ नीचस्थ राशि का होना योन शक्ति को प्रभावित करता हैँ।
4. कुं डली के सप्तम या अष्टॅम स्थान मेँ बुध शनि के नक्षत्र मे हो या शनि बुध के नक्षत्र मे हो तो जातक
मध्यावस्था मे ही अपनी योन शक्ति खो देता हैँ।
5. कुं डली मे बुध ओर शनि का लग्न ओर सप्तम भाव मे स्थित होना भी योन शक्ति मे कमी करवाता हैँ।
6. रोग भाव के स्वामी होकर बुध या शनि अष्टम भाव मे मुल, शतभिषा ओर मृगशिर नक्षत्र मे स्थित ह
तो भी गुप्त रोग होने के प्रबल सम्भावन होती हैँ।
7. जातक का जन्म नक्षत्र मूल, शतभिषा, मृगशिरा किसी एक में हुआ हो साथ ही अगर किसी जातक
की कुं डली में लग्न विषम राशि का हो और चंद्रमा भी विषम राशि में मौजूद हो तथा शुक्र भी विषम राशि
में हो तो योन शक्ति क्षीण हो जाती हैँ।
कुं डली मे अगर सूर्य लग्न का अधिपति ह ओर लग्न भाव मे ही स्थित ह तो नपुंसक योग घटित नही होते
हैँ।

उपाय
1. नित्य योग करे व्यायाम करेँ।
2. सुपाचय भोजन करे ओर एक फल का सेवन नित्य करेँ।
3. नित्य सुर्य उपासना करेँ।
4. सेक्स की समस्या एक मानसिक बिमारी के रुप मे उभरति अत: सँयम बनाये रखे ओर आत्मविश्वास
बनाये रखेँ।
5. नित्य शिवलिंग की उपासना करेँ।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: जीवन मे कै रियर/रोजगार सबसे ज्यादा जरूरी
होता है क्योंकि कै रियर/रोजगार से ही जीवन के सब सुख मिलते है तो आज इसी बारे में बात करते है
कै रियर सेटलमेंट कब तक होगा।।

कुं डली का 10वा भाव कै रियर के होता है अब कै रियर सेटल के लिए 10वा भाव/10वे भाव स्वामी
दोनों का कुं डली मे बलवान होना जरूरी है।अब 10वे भाव स्वामी और 10वा भाव बलवान है तब जब
10वे भाव/10वे भाव स्वामी से संबधित ग्रहों की दशाएँ आएगी तब कै रियर सेटल हो पाएगा अब
कै रियर सेटल किस क्षेत्र में हो पाएगा यह कुं डली के 10वे भाव और 10वे भाव स्वामी की स्थिति पर
निर्भर करेगा,10वा भाव स्वामी जिस भी तरह के योग बनाकर बैठा होगा उसी क्षेत्र में कै रियर सेटल हो
पायेगा, अगर ऐसे क्षेत्र में कै रियर के लिए सेटल हो रहे है जो कुं डली मे नही है तब बार बार असफलता
मिलेगी।।

अब कु छ उदाहरणों से समझते है कब तक कै रियर सेटल हो पाएगा।।

उदाहरण_अनुसार_मेष_लग्न1:-
मेष लग्न में 10वे भाव स्वामी शनि बलवान होकर अगर बैठे है और राजयोग में भी है राजयोग में शनि
तब ही होंगे जब मंगल, सूर्य या गुरु इनमें से किसी से सम्बंध बनाकर बैठे होंगे तब कै रियर अच्छा सेटल
होगा, जब शनि/10वे भाव या शनि से जो भी ग्रह सम्बन्ध बनाकर बैठे होंगे उन ग्रहो की महादशा
अंतरदशा शुरू होते ही कै रियर सेटल हो जाएगा, अब माना 10वे भाव स्वामी शनि 5वे भाव मे बैठे है
तब टीचिंग में कै रियर अच्छा सेटल होगा आदि।।

उदाहरण_अनुसार_कर्क _लग्न2:-
कर्क लग्न में 10वे भाव स्वामी मंगल बलवान होकर सूर्य के साथ सम्बन्ध में है तब कै रियर सेटल
सरकारी नौकरी में होगा अब जब मंगल या सूर्य या 10वे भाव स्वामी मंगल से संबंध बनाए ग्रहो की
महादशा दशाएँ आएगी उन ग्रहो की दशाओ के आने पर कै रियर सेटल हो जाएगा।उदाहरण के लिए
शनि यहाँ छठे +नवे भाव स्वामी गुरु के साथ संबंध में होंगे तब ज्यूडिशियल(Judicial) में कै रियर
सेटल होगा क्योंकि छठा+नवा भाव ज्यूडिशियल(Judicial)का है।।

उदाहरण_अनुसार_कन्या_लग्न3:-
कन्या लग्न में 10वे भाव स्वामी बुध बलवान होकर सरकारी नौकरी या सरकार के कारक सूर्य के साथ
सम्बन्ध में है और 10वे भाव मे राहु बैठा हो या बैठा है तब राजनीति में कै रियर सेटल हो पायेगा, क्योंकी
सूर्य राहु राजनीति के कारक ग्रह है।।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: वशिष्ठ संहिता में कहा गया है

रामस्य नाम रूपं च लीला धाम परात्परम् ।


एतच्चतुष्टयं नित्यं सच्चिदानन्दविग्रहम् ।।

भगवान श्रीराम का नाम, राम रूप, राम लीला और राम का धाम ये चारों नित्य सच्चिदानन्द-स्वरूप हैं ।
इनके गुण, प्रभाव, तत्त्व तथा रहस्य – इन चारों को विशेष रूप में समझना चाहिये । बिना चारों के ज्ञान
हुए सफलता नहीं मिलती । ये चारों अभिन्न तो हैं ही संग्राह्य, संकीर्तनीय, अनुष्ठेय एवं ज्ञातव्य भी हैं ।

अयोध्या नगरी नित्या सच्चिदानन्दरूपिणी।


यस्यांशेन वैकुं ठो गोलोकादि प्रतिष्ठित:।।

श्री अयोध्या जी के अंश मात्र से वैकु ण्ठ और गोलोक भी प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं ऐसा वशिष्ठ संहिता में
बताया है।

जय श्रीराम
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: जीवन मे कै रियर/रोजगार सबसे ज्यादा जरूरी
होता है क्योंकि कै रियर/रोजगार से ही जीवन के सब सुख मिलते है तो आज इसी बारे में बात करते है
कै रियर सेटलमेंट कब तक होगा।।

कुं डली का 10वा भाव कै रियर के होता है अब कै रियर सेटल के लिए 10वा भाव/10वे भाव स्वामी
दोनों का कुं डली मे बलवान होना जरूरी है।अब 10वे भाव स्वामी और 10वा भाव बलवान है तब जब
10वे भाव/10वे भाव स्वामी से संबधित ग्रहों की दशाएँ आएगी तब कै रियर सेटल हो पाएगा अब
कै रियर सेटल किस क्षेत्र में हो पाएगा यह कुं डली के 10वे भाव और 10वे भाव स्वामी की स्थिति पर
निर्भर करेगा,10वा भाव स्वामी जिस भी तरह के योग बनाकर बैठा होगा उसी क्षेत्र में कै रियर सेटल हो
पायेगा, अगर ऐसे क्षेत्र में कै रियर के लिए सेटल हो रहे है जो कुं डली मे नही है तब बार बार असफलता
मिलेगी।।

अब कु छ उदाहरणों से समझते है कब तक कै रियर सेटल हो पाएगा।।

उदाहरण_अनुसार_मेष_लग्न1:-
मेष लग्न में 10वे भाव स्वामी शनि बलवान होकर अगर बैठे है और राजयोग में भी है राजयोग में शनि
तब ही होंगे जब मंगल, सूर्य या गुरु इनमें से किसी से सम्बंध बनाकर बैठे होंगे तब कै रियर अच्छा सेटल
होगा, जब शनि/10वे भाव या शनि से जो भी ग्रह सम्बन्ध बनाकर बैठे होंगे उन ग्रहो की महादशा
अंतरदशा शुरू होते ही कै रियर सेटल हो जाएगा, अब माना 10वे भाव स्वामी शनि 5वे भाव मे बैठे है
तब टीचिंग में कै रियर अच्छा सेटल होगा आदि।।

उदाहरण_अनुसार_कर्क _लग्न2:-
कर्क लग्न में 10वे भाव स्वामी मंगल बलवान होकर सूर्य के साथ सम्बन्ध में है तब कै रियर सेटल
सरकारी नौकरी में होगा अब जब मंगल या सूर्य या 10वे भाव स्वामी मंगल से संबंध बनाए ग्रहो की
महादशा दशाएँ आएगी उन ग्रहो की दशाओ के आने पर कै रियर सेटल हो जाएगा।उदाहरण के लिए
शनि यहाँ छठे +नवे भाव स्वामी गुरु के साथ संबंध में होंगे तब ज्यूडिशियल(Judicial) में कै रियर
सेटल होगा क्योंकि छठा+नवा भाव ज्यूडिशियल(Judicial)का है।।

उदाहरण_अनुसार_कन्या_लग्न3:-
कन्या लग्न में 10वे भाव स्वामी बुध बलवान होकर सरकारी नौकरी या सरकार के कारक सूर्य के साथ
सम्बन्ध में है और 10वे भाव मे राहु बैठा हो या बैठा है तब राजनीति में कै रियर सेटल हो पायेगा, क्योंकी
सूर्य राहु राजनीति के कारक ग्रह है।।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: द्वादश भावों मे शनि का सामान्य फल

जन्म कुं डली के बारह भावों मे जन्म के समय शनि अपनी गति और जातक को दिये जाने वाले फ़लों के
प्रति भावानुसार जातक के जीवन के अन्दर क्या उतार और चढाव मिलेंगे, सबका वृतांत कह देता है।

प्रथम भाव मे शनि


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शनि मन्द है और शनि ही ठं डक देने वाला है,सूर्य नाम उजाला तो शनि नाम अन्धेरा, पहले भाव मे
अपना स्थान बनाने का कारण है कि शनि अपने गोचर की गति और अपनी दशा मे शोक पैदा
करेगा,जीव के अन्दर शोक का दुखमिलते ही वह आगे पीछे सब कु छ भूल कर के वल अन्धेरे मे ही खोया
रहता है।शनि जादू टोने का कारक तब बन जाता है, जब शनि पहले भाव मे अपनी गति देता है, पहला
भाव हीऔकात होती है, अन्धेरे मे जब औकात छु पने लगे, रोशनी से ही पहिचान होती है और जब
औकात छु पी हुई हो तो शनि का स्याह अन्धेरा ही माना जा सकता है। अन्धेरे के कई रूप होते हैं, एक
अन्धेरा वह होता है जिसके कारण कु छ भी दिखाई नही देता है, यह आंखों का अन्धेरा माना जाता है,
एक अन्धेरा समझने का भी होता है, सामने कु छ होता है, और समझा कु छ जाता है, एक अन्धेरा
बुराइयों का होता है, व्यक्ति या जीव की सभी अच्छाइयां बुराइयों के अन्दर छु पने का कारण भी शनि का
दिया गया अन्धेरा ही माना जाता है, नाम का अन्धेरा भे होता है, किसी को पता ही नही होता है, कि
कौन है और कहां से आया है, कौन माँ है और कौन बापहै, आदि के द्वारा किसी भी रूप मे छु पाव भी
शनि के कारण ही माना जाता है, व्यक्ति चालाकी का पुतला बन जाता है प्रथम भाव के शनि के
द्वारा.शनि अपने स्थान से प्रथम भाव के अन्दर स्थिति रख कर तीसरे भाव को देखता है, तीसरा भाव
अपने से छोटे भाई बहिनो का भी होता है, अपनी अन्दरूनी ताकत का भी होता है, पराक्रम का भी होता
है, जो कु छ भी हम दूसरों से कहते है, किसी भी साधन से, किसी भी तरह से शनि के कारण अपनी बात
को संप्रेषित करने मे कठिनाई आती है, जो कहा जाता है वह सामने वाले को या तो समझ मे नही आता
है, और आता भी है तो एक भयानक अन्धेरा होने के कारण वह कही गयी बात को न समझने के कारण
कु छ का कु छ समझ लेता है, परिणाम के अन्दर फ़ल भी जो चाहिये वह नही मिलता है, अक्सर देखा
जाता है कि जिसके प्रथम भाव मे शनि होता है, उसका जीवन साथी जोर जोर से बोलना चालू कर देता
है, उसका कारण उसके द्वारा जोर जोर से बोलने की आदत नही, प्रथम भाव का शनिसुनने के अन्दर
कमी कर देता है, और सामने वाले को जोर से बोलने पर ही या तो सुनायी देता है, या वह कु छ का कु छ
समझ लेता है, इसी लिये जीवन साथी के साथ कु छ सुनने और कु छ समझने के कारण मानसिक ना
समझी का परिणाम सम्बन्धों मे कडुवाहट घुल जाती है, और सम्बन्ध टूट जाते हैं। इसकी प्रथम भाव से
दसवी नजर सीधी कर्म भाव पर पडती है, यही कर्म भाव ही पिता का भाव भी होता है।जातक को कर्म
करने और कर्म को समझने मे काफ़ी कठिनाई का सामना करना पडता है, जब किसी प्रकार सेकर्म को
नही समझा जाता है तो जो भी किया जाता है वहकर्म न होकर एक भार स्वरूप ही समझा जाता है,
यही बातपिता के प्रति मान ली जाती है,पिता के प्रति शनि अपनी सिफ़्त के अनुसार अंधेरा देता है, और
उस अन्धेरे के कारणपिता ने पुत्र के प्रति क्या किया है, समझ नही होने के कारणपिता पुत्र में अनबन
भी बनी रहती है,पुत्र का लगन या प्रथम भाव का शनि माता के चौथे भाव मे चला जाता है, और माता
को जो काम नही करने चाहिये वे उसको करने पडते हैं, कठिन और एक सीमा मे रहकर माता के द्वारा
काम करने के कारण उसका जीवन एक घेरे में बंधा सा रह जाता है, और वह अपनी शरीरी सिफ़्त को
उस प्रकार से प्रयोग नही कर पाती है जिस प्रकार से एक साधारण आदमी अपनी जिन्दगीको जीना
चाहता है।

दूसरे भाव में शनि


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दूसराभाव भौतिक धन का भाव है,भौतिक धन से मतलब है, रुपया, पैसा, सोना, चाँदी, हीरा, मोती,
जेवरात आदि, जब शनि देव दूसरे भाव मे होते है तो अपने ही परिवार वालो के प्रति अन्धेरा भी रखते है,
अपने ही परिवार वालों से लडाई झगडाआदि करवा कर अपने को अपने ही परिवार से दूर कर देते
हैं,धन के मामले मै पता नही चलता है कितना आया और कितना खर्च किया, कितना कहां से
आया,दूसरा भाव ही बोलने का भाव है, जो भी बात की जाती है, उसका अन्दाज नही होता है कि क्या
कहा गया है, गाली भी हो सकती है और ठं डी बात भी, ठं डी बात से मतलब है नकारात्मक बात, किसी
भी बात को करने के लिये कहा जाय, उत्तर में न ही निकले.दूसरा शनि चौथे भाव को भी देखता है,
चौथा भाव माता, मकान, और वाहन का भी होता है, अपने सुखों के प्रति भी चौथे भाव से पता किया
जाता है, दूसरा शनि होने परयात्रा वाले कार्य और घर मे सोने के अलावा और कु छ नही दिखाई देता है।
दूसरा शनि सीधे रूप मे आठवें भाव को देखता है, आठवा भाव शमशानी ताकतों की तरफ़ रुझान बढा
देता है, व्यक्ति भूत,प्रेत,जिन्न और पिशाची शक्तियों को अपनाने में अपना मन लगा देता है, शमशानी
साधना के कारण उसका खान पान भी शमशानी हो जाता है,शराब,कबाब और भूत के भोजन में उसकी
रुचि बढ जाती है। दूसरा शनि ग्यारहवें भाव को भी देखता है, ग्यारहवां भावअचल सम्पत्ति के प्रति
अपनी आस्था को अन्धेरे मे रखता है, मित्रों और बडे भाई बहिनो के प्रति दिमाग में अन्धेरा रखता है। वे
कु छ करना चाहते हैं लेकिन व्यक्ति के दिमाग में कु छ और ही समझ मे आता है।

तीसरे भाव में शनि


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तीसरा भाव पराक्रम का है, व्यक्ति के साहस और हिम्मत का है, जहां भी व्यक्ति रहता है, उसके
पडौसियों का है। इन सबके कारणों के अन्दर तीसरे भाव से शनि पंचम भाव को भी देखता है, जिनमे
शिक्षा,संतान और तुरत आने वाले धनो को भी जाना जाता है, मित्रों की सहभागिता और भाभी का भाव
भी पांचवा भाव माना जाता है, पिता की मृत्यु का औरदादा के बडे भाई का भाव भी पांचवा है। इसके
अलावा नवें भाव को भी तीसरा शनि आहत करता है, जिसमे धर्म, सामाजिक व्यव्हारिकता, पुराने रीति
रिवाज और पारिवारिक चलन आदि का ज्ञान भी मिलता है, को तीसरा शनि आहतकरता है। मकान
और आराम करने वाले स्थानो के प्रति यह शनि अपनी अन्धेरे वाली नीति को प्रतिपादित करता है।
ननिहाल खानदान को यह शनि प्रताडित करता है।

चौथे भाव मे शनि


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चौथे भाव का मुख्य प्रभाव व्यक्ति के लिये काफ़ी कष्ट देने वाला होता है, माता, मन, मकान, और पानी
वाले साधन, तथा शरीर का पानी इस शनि के प्रभाव से गंदला जाता है, आजीवन कष्टदेने वाला होने से
पुराणो मे इस शनि वाले व्यक्ति का जीवन नर्क मय ही बताया जाता है। अगर यह शनि तुला,मकर,कु म्भ
या मीन का होता है, तो इस के फ़ल में कष्टों मे कु छ कमी आ जाती है।
पंचम भाव का शनि
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इस भाव मे शनि के होने के कारण व्यक्ति को मन्त्र वेत्ता बना देता है, वह कितने ही गूढ मन्त्रों के द्वारा
लोगो का भला करने वाला तो बन जाता है, लेकिन अपने लिये जीवन साथी के प्रति,जायदाद के प्रति,
और नगद धन के साथ जमा पूंजी के लिये दुख ही उठाया करता है।संतान मे शनि की सिफ़्त स्त्री होने
और ठं डी होने के कारण से संतति मे विलंब होता है,कन्या संतान की अधिकता होती है, जीवन साथी के
साथ मन मुटाव होने से वह अधिक तर अपने जीवन के प्रति उदासीन ही रहता है।

षष्ठ भाव में शनि


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इस भाव मे शनि कितने ही दैहिक दैविक और भौतिक रोगों का दाता बन जाता है, लेकिन इस भाव का
शनि पारिवारिक शत्रुता को समाप्त कर देता है,मामा खानदान को समाप्त करने वाला होता है,चाचा
खान्दान से कभी बनती नही है। व्यक्ति अगर किसी प्रकार से नौकरी वाले कामों को करता रहता है तो
सफ़ल होता रहता है, अगर किसी प्रकार से वह मालिकी वाले कामो को करता है तो वह असफ़ल हो
जाता है। अपनी तीसरी नजर से आठवें भाव को देखने के कारण से व्यक्ति दूर द्रिष्टि से किसी भी काम
या समस्या को नही समझ पाता है, कार्यों से किसी न किसी प्रकार से अपने प्रतिजोखिम को नही समझ
पाने से जो भी कमाता है, या जो भी किया जाता है, उसके प्रति अन्धेरा ही रहता है, और अक्स्मात
समस्या आने से परेशान होकर जो भी पास मे होता है गंवा देता है। बारहवे भाव मे अन्धेरा होने के
कारण से बाहरी आफ़तों के प्रति भी अन्जान रहता है, जो भी कारण बाहरी बनते हैं उनके द्वारा या तो
ठगा जाता है या बाहरी लोगों की शनि वाली चालाकियों के कारण अपने को आहत ही पाता है। खुद के
छोटे भाई बहिन क्या कर रहे हैं और उनकी कार्य प्रणाली खुद के प्रति क्या है उसके प्रति अन्जान रहता
है। अक्सर इस भाव का शनि कही आने जाने पर रास्तों मे भटकाव भी देता है, और अक्सर ऐसे लोग
जानी हुई जगह पर भी भूल जाते है।

सप्तम भाव मे शनि


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सातवां भाव पत्नी और मन्त्रणा करने वाले लोगो से अपना सम्बन्ध रखता है।जीवन साथी के प्रति
अन्धेरा और दिमाग मे नकारात्मक विचारो के लगातार बने रहने से व्यक्ति अपने को हमेशा हर बात में
छु द्र ही समझता रहता है,जीवन साथी थोडे से समय के बाद ही नकारा समझ कर अपना पल्ला जातक
से झाड कर दूर होने लगता है, अगर जातक किसी प्रकार से अपने प्रति सकारात्मक विचार नही बना
पाये तो अधिकतर मामलो मे गृह्स्थियों को बरबाद ही होता देखा गया है, और दो शादियों के परिणाम
सप्तम शनि के कारण ही मिलते देखे गये हैं,सप्तम शनि पुरानी रिवाजों के प्रति और अपने पूर्वजों के
प्रति उदासीन ही रहता है, उसे के वल अपने ही प्रति सोचते रहने के कारण और मै कु छ नही कर सकता
हूँ, यह विचार बना रहने के कारण वह अपनी पुरानी मर्यादाओं को अक्सर भूल ही जाता है, पिता और
पुत्र मे कार्य और अकार्य की स्थिति बनी रहने के कारण अनबन ही बनी रहती है। व्यक्ति अपने रहने
वाले स्थान पर अपने कारण बनाकर अशांति उत्पन्न करता रहता है, अपनी माता या माता जैसी महिला
के मन मे विरोध भी पैदा करता रहता है, उसे लगता है कि जो भे उसके प्रति किया जा रहा है, वह गलत
ही किया जा रहा है और इसी कारण से वह अपने ही लोगों से विरोध पैदा करने मे नही हिचकता है।
शरीर के पानी पर इस शनि का प्रभाव पडने से दिमागी विचार गंदे हो जाते हैं, व्यक्ति अपने शरीर में पेट
और जनन अंगो मे सूजन और महिला जातकों कीबच्चादानी आदि की बीमारियां इसी शनि के कारण से
मिलती है।

अष्टम भाव में शनि


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इस भाव का शनि खाने पीने और मौज मस्ती करने के चक्कर में जेब हमेशा खाली रखता है। किस
काम को कब करना है इसका अन्दाज नही होने के कारण से व्यक्ति के अन्दर आवारागीरी का उदय
होता देखा गया है।

नवम भाव का शनि


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नवां भाव भाग्य का माना गया है, इस भाव में शनि होने के कारण से कठिन और दुख दायी यात्रायें करने
को मिलती हैं, लगातार घूम कर सेल्स आदि के कामो मे काफ़ी परेशानी करनी पडती है, अगर यह भाव
सही होता है, तो व्यक्तिमजाकिया होता है, और हर बात को चुटकु लों के द्वारा कहा करता है, मगर जब
इस भाव मे शनि होता है तो व्यक्ति सीरियस हो जाता है, और एकान्त में अपने को रखने अपनी भलाई
सोचता है, नवें भाव बाले शनि के के कारण व्यक्ति अपनी पहिचान एकान्त वासा झगडा न झासा वाली
कहावत से पूर्ण रखता है। खेती वाले कामो, घर बनाने वाले कामोंजायदाद से जुडे कामों की तरफ़
अपना मन लगाता है। अगर कोई अच्छा ग्रह इस शनि पर अपनी नजर रखता है तो व्यक्तिजज वाले
कामो की तरफ़ और कोर्ट कचहरी वाले कामों की तरफ़ अपना रुझान रखता है। जानवरों की डाक्टरी
और जानवरों को सिखाने वाले काम भी करता है, अधिकतर नवें शनि वाले लोगों को जानवर पालना
बहुत अच्छा लगता है। किताबों को छापकर बेचने वाले भी नवें शनि से कही न कही जुडे होते हैं।

दशम भाव का शनि


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दसवां शनि कठिन कामो की तरफ़ मन ले जाता है, जो भीमेहनत वाले काम,लकडी,पत्थर, लोहे आदि
के होते हैंवे सब दसवे शनि के क्षेत्र मे आते हैं, व्यक्ति अपने जीवन मे काम के प्रति एक क्षेत्र बना लेता है
और उस क्षेत्र से निकलना नही चाहता है।राहु का असर होने से या किसी भी प्रकार से मंगलका प्रभाव
बन जाने से इस प्रकार का व्यक्ति यातायात का सिपाही बन जाता है, उसे जिन्दगी के कितने ही काम
और कितने ही लोगों को बारी बारी से पास करना पडता है, दसवें शनि वाले की नजर बहुत ही तेज
होती है वह किसी भी रखी चीज को नही भूलता है, मेहनत की कमाकर खाना जानता है, अपने रहने के
लिये जब भी मकान आदि बनाता है तो के वल स्ट्रक्चर ही बनाकर खडा कर पाता है, उसके रहने के
लिये कभी भी बढिया आलीशान मकान नही बन पाता है।गुरु सही तरीके से काम कर रहा हो तो व्यक्ति
एक्ज्यूटिव इन्जीनियर की पोस्ट पर काम करने वाला बनजाता है।

ग्यारहवे भाव मे शनि


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शनि दवाइयों का कारक भी है, और इस घर मे जातक को साइंटिस्ट भी बना देता है, अगर जरा सी भी
बुध साथ देता हो तो व्यक्ति गणित के फ़ार्मूले और नई खोज करने मे माहिर हो जाता है। चैरिटी वाले
काम करने मे मन लगता है, मकान के स्ट्रक्चर खडा करने और वापस बिगाड कर बनाने मे माहिर होता
है, व्यक्ति के पास जीवन मे दो मकान तो होते ही है। दोस्तों से हमेशा चालकियां ही मिलती है, बडा भाई
या बहिन के प्रति व्यक्ति का रुझान कम ही होता है। कारण वह न तोकु छ शो करता है और न ही किसी
प्रकार की मदद करने मे अपनी योग्यता दिखाता है, अधिकतर लोगो के इस प्रकार के भाई या बहिन
अपने को जातक से दूर ही रखने म अपनी भलाई समझते हैं।

बारहवे भाव मे शनि


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नवां घर भाग्य या धर्म का होता है तो बारहवा घर धर्म का घर होता है, व्यक्ति को बारहवा शनि पैदा
करने के बाद अपने जन्म स्थान से दूर ही कर देता है, वह दूरी शनि के अंशों पर निर्भर करती है, व्यक्ति
के दिमाग मे काफ़ी वजन हर समय महसूस होता है वह अपने को संसार के लिये वजन मानकर ही
चलता है, उसकी रुझान हमेशा के लिये धन के प्रति होती है और जातक धन के लिये हमेशा ही भटकता
रहता है, कर्जा दुश्मनी बीमारियो से उसे नफ़रत तो होती है मगर उसके जीवन साथी के द्वारा इस प्रकार
के कार्य कर दिये जाते हैं जिनसे जातक को इन सब बातों के अन्दर जाना ही पडता है।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: क्या पुर्नविवाह हो पायेगा जाने अपने जन्म
कु ण्डली से

पुर्नविवाह मतलब दूसरा विवाह, पहली शादी किसी कारण खरब हो जाने के बाद दूसरी शादी ही
पुनर्विवाह कहलाती है।।
पुनर्विवाह होने के
लिए कुं डली का सातवाँ घर, सातवे घर का स्वामी और लड़की लड़के के अनुसार विवाह सुख का कारक
गुरु(लड़कियों के लिए) शुक्र(लड़को के लिए)बलवान होने से दूसरी शादी बहुत आसानी से हो जाती है

इसके अलावा सातवे घर पर शुभ प्रभाव हो ग्रहों का तब भी दूसरी शादी हो जाती है, दूसरी शादी जब
ही व्यक्ति करता है जब पहली शादी किसी तरह से खंडित हो जाये
और शादी खंडित पाप या अशुभ ग्रह ही करते है तो जब अशुभ ग्रहों के प्रभाव सहित शुभ ग्रहों का
प्रभाव भी होगा औऱ सातवाँ घर बलवान होगा तब दूसरी शादी भी हो जाती है

पहली शादी खंडित होने के बाद, पहली शादी खंडित होने के कई कारण हो सकते है जैसे तलाक,
जीवनसाथी की मृत्यु हो जाना,

आपसी सहमति से अलग हो जान बिना तलाक आदि।अब कु छ उदाहरणों से बात करते है कब दूसरा
विवाह(पुर्नविवाह)हो पाता है?

मेष लग्न में जैसे कि सातवे घर का स्वामी शुक्र बनता है अब शुक्र यहाँ पीड़ित हो जैसे कमजोर शुक्र के
ऊपर शनि की दृष्टि पड़े, साथ ही सातवे घर पर किसी अन्य क्रू र ग्रह कै से

रह के तु या मंगल की दृष्टि हो तब ऐसी स्थिति में पहली शादी खंडित हो जाएगी, लेकिन अब यही सातवें
घर के स्वामी पर भाग्य के स्वामी गुरु साथ बैठा हो,

जैसे कि सातवे घर स्वामी शुक्र की युति मेष लग्न में भाग्य के स्वामी गुरु ग्रह से होगी जैसे गुरु शुक्र एक
साथ चौथे घर मे बैठ जाये या किसी भी शुभ घर मे और पीड़ित होंगे तब दूसरा विवाह हो

जाएगा क्योंकि पीड़ित होने से पहली शादी खंडित हुई और सातवें घर के स्वामी पर शुभ ग्रह
भाग्यधिपति ग्रह गुरु का साथ होने से भाग्य दूसरी शादी करा देगा।।
नोट:- लड़की या लड़के की कुं डली के अनुसार विवाह
सुख कारक गुरु या शुक्र बलवान होना चाहिए।।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: कै से ग्रहों के द्वारा देने वाली बीमारियों से बचें

हम सभी जानते हैं कि कुं डली का छठा भाव रोग का स्थान होता हैं। हम अपनी सतर्क ता से इन भावों
मे स्थित ग्रहों की बीमारियों से बच सकते हैं।

१. छठे भाव में चंद्रमा : कफ रोग, नेत्र रोग होता है। ठं डी चीजें खाने से बचें। कही भी तुरंत किसी भी
पार्टी मे बिना सोचे समझे पीना शुरू न कर दें। फ्रिज की रखी हुई चीज़े जिसमे के ला आता है ,चावल
आता है ,दही आता है ऐसी वस्तुओ का प्रयोग आपको एकदम बंद कर देना चाहिए ,या वो चीज़े खाना
बंद कर दीजियेगा जिसमें पिपरमिंट होता है मेंथोल होता है ,नहीं तो आप काफी परेशानी में आते है,
खास तौर पे एकादशी को चावल छु ए भी नहीं॥
२.छठे भाव में मंगल : रक्त और पेट संबंधी बीमारी, नासूर, जिगर, पित्त आमाशय, भगंदर और फोड़े
होना। तेज़ मसाले तेज़ चीनी तेज़ नमक, घातक सिद्ध हो सकता है ,मंगल सीधे सीधे हड्डी या ब्लड से
रिलेटेड समस्या दे सकता है ,खास तौर से ब्लड प्रेशर और circulation की और इन चीजों का ज्यादा
प्रयोग होगा तो obviously समस्या आयेगी । मदिरा मांस आदि का सेवन करते है तो संपत्ति और
शरीर दोनों की बहुत हानी होती है । बहुत मसालों का प्रयोग करते है तो भी शरीर की बहुत जादा हानी
उसमें होती है ।

३. छठे भाव में बुध: चेचक, नाड़ियों की कमजोरी, जीभ और दाँत का रोग।तनाव में या जल्दी बाजी में
भोजन न करिये । बहुत जादा दाले ऐसे लोगो को नहीं खानी चाहिये । कच्ची सब्जिया न खाये ।शीशे के
बर्तन में भोजन न करे और न जल पिये। देर रात का भोजन कतई नहीं करना है । नमकीन चीजों का
सेवन भी आपको बहुत कम करना है । के चप सिरका अचार वगैरह का सेवन बहुत कम करना चाहिये ।
जमीन के निचे निकलने वाली सब्जिया और फल बहुत कम ले । न ही ले तो जादा अच्छा है । जितना
जादा आप लेंगे उतना ही ये आपके भाग्य को कम करता चला जाएगा । वाणी पर इसका बहुत बुरा
प्रभाव पड़ेगा ।

४. छठे भाव में गुरु:पेट की गैस और फे फड़े की बीमारियाँ। गुड का सेवन चाहे थोडा सा या जादा जरूर
करे । हल्दी का सेवन जरूर करे । जाड़ो में अंजीर जरूर खाया करिये।

५. छठे भाव में शुक्र: त्वचा, दाद, खुजली का रोग। तनाव या जल्दी बाजी में भोजन नहीं करना चाहिये ।
ये बहुत नुकसान देता है होर्मोनल disturbance देता है । बहुत जादा मीठा या ठं डा आप लेंगे तो कोई
असाध्य रोग भी शुक्र आपको दे देगा ।और समस्या ऐसे में बहुत जादा हो जाती है । ऐसे लोगो को जौ
का सेवन जरूर करना चाहिये । और ईश्वर न करे बीमार हो तो गोमूत्र का सेवन जरूर करे. ठं डा मीठा
बहुत खा रहे है शराब वगैरह पी रहे है तो कु पित शुक्र संतान उत्पत्ति की क्षमता ख़त्म कर देगा।

६. छठे भाव में शनि: कं ठ व श्वांस रोग होता है. छठे भाव में शनि हो तो नशा व मांस नहीं ले वरना घर
बार द्वार स्वास्थ्य में घोर कष्ट होगा ।

७. छठे भाव में सूर्य: नेत्र रोग, खाँसी,शारीरिक कमजोरी और रक्त चाप। नमक कम खाना चाहिए, गुड़
जरूर खाए ,विटामिन डी जरूर ले। मांस मदिरा का सेवन नहीं करें। जाड़ो में अधिक तली हुई वस्तुए
नहीं खानी चाहिये वरना नुकसान होगा।

८. छठे भाव में के तु : वात विकार,रीढ़, जोड़ों का दर्द , शुगर, कान, स्वप्न दोष, हार्निया, गुप्तांग संबंधी
रोग। उड़द और बीजवाले फल या बेल पर लगने वाले फल के तु को कु पित करते है इन चीजों से बचना
होगा। जमीन के निचे उगने वाली सब्जियों को यदि आप खाते है तो आपको बहुत अच्छे परिणाम मिलें
मिलेंगे । यदि आप बेहद सादा भोजन करते है और अपने भोजन का कु छ हिस्सा कु त्ते के लिये निकाल
के रखते है तो के तु कभी भी आपको बुरे परिणाम नहीं देगा ।

९. छठे भाव में राहु:कमर दर्द ,बुखार, दिमागी की खराबियाँ, अचानक चोट, दुर्घटना। मछली या मछली
से सम्बंधित कोई भी वास्तु खायी तो महा संकट आता है. राई खटाई मिठाई इन तीनो चीजों से बहुत दूर
रहे ।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: क्या पुर्नविवाह हो पायेगा जाने अपने जन्म
कु ण्डली से

पुर्नविवाह मतलब दूसरा विवाह, पहली शादी किसी कारण खरब हो जाने के बाद दूसरी शादी ही
पुनर्विवाह कहलाती है।।
पुनर्विवाह होने के
लिए कुं डली का सातवाँ घर, सातवे घर का स्वामी और लड़की लड़के के अनुसार विवाह सुख का कारक
गुरु(लड़कियों के लिए) शुक्र(लड़को के लिए)बलवान होने से दूसरी शादी बहुत आसानी से हो जाती है

इसके अलावा सातवे घर पर शुभ प्रभाव हो ग्रहों का तब भी दूसरी शादी हो जाती है, दूसरी शादी जब
ही व्यक्ति करता है जब पहली शादी किसी तरह से खंडित हो जाये

और शादी खंडित पाप या अशुभ ग्रह ही करते है तो जब अशुभ ग्रहों के प्रभाव सहित शुभ ग्रहों का
प्रभाव भी होगा औऱ सातवाँ घर बलवान होगा तब दूसरी शादी भी हो जाती है

पहली शादी खंडित होने के बाद, पहली शादी खंडित होने के कई कारण हो सकते है जैसे तलाक,
जीवनसाथी की मृत्यु हो जाना,

आपसी सहमति से अलग हो जान बिना तलाक आदि।अब कु छ उदाहरणों से बात करते है कब दूसरा
विवाह(पुर्नविवाह)हो पाता है?

मेष लग्न में जैसे कि सातवे घर का स्वामी शुक्र बनता है अब शुक्र यहाँ पीड़ित हो जैसे कमजोर शुक्र के
ऊपर शनि की दृष्टि पड़े, साथ ही सातवे घर पर किसी अन्य क्रू र ग्रह कै से

रह के तु या मंगल की दृष्टि हो तब ऐसी स्थिति में पहली शादी खंडित हो जाएगी, लेकिन अब यही सातवें
घर के स्वामी पर भाग्य के स्वामी गुरु साथ बैठा हो,

जैसे कि सातवे घर स्वामी शुक्र की युति मेष लग्न में भाग्य के स्वामी गुरु ग्रह से होगी जैसे गुरु शुक्र एक
साथ चौथे घर मे बैठ जाये या किसी भी शुभ घर मे और पीड़ित होंगे तब दूसरा विवाह हो
जाएगा क्योंकि पीड़ित होने से पहली शादी खंडित हुई और सातवें घर के स्वामी पर शुभ ग्रह
भाग्यधिपति ग्रह गुरु का साथ होने से भाग्य दूसरी शादी करा देगा।।
नोट:- लड़की या लड़के की कुं डली के अनुसार विवाह
सुख कारक गुरु या शुक्र बलवान होना चाहिए।।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: द्वादश भावों मे शनि का सामान्य फल

जन्म कुं डली के बारह भावों मे जन्म के समय शनि अपनी गति और जातक को दिये जाने वाले फ़लों के
प्रति भावानुसार जातक के जीवन के अन्दर क्या उतार और चढाव मिलेंगे, सबका वृतांत कह देता है।

प्रथम भाव मे शनि


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शनि मन्द है और शनि ही ठं डक देने वाला है,सूर्य नाम उजाला तो शनि नाम अन्धेरा, पहले भाव मे
अपना स्थान बनाने का कारण है कि शनि अपने गोचर की गति और अपनी दशा मे शोक पैदा
करेगा,जीव के अन्दर शोक का दुखमिलते ही वह आगे पीछे सब कु छ भूल कर के वल अन्धेरे मे ही खोया
रहता है।शनि जादू टोने का कारक तब बन जाता है, जब शनि पहले भाव मे अपनी गति देता है, पहला
भाव हीऔकात होती है, अन्धेरे मे जब औकात छु पने लगे, रोशनी से ही पहिचान होती है और जब
औकात छु पी हुई हो तो शनि का स्याह अन्धेरा ही माना जा सकता है। अन्धेरे के कई रूप होते हैं, एक
अन्धेरा वह होता है जिसके कारण कु छ भी दिखाई नही देता है, यह आंखों का अन्धेरा माना जाता है,
एक अन्धेरा समझने का भी होता है, सामने कु छ होता है, और समझा कु छ जाता है, एक अन्धेरा
बुराइयों का होता है, व्यक्ति या जीव की सभी अच्छाइयां बुराइयों के अन्दर छु पने का कारण भी शनि का
दिया गया अन्धेरा ही माना जाता है, नाम का अन्धेरा भे होता है, किसी को पता ही नही होता है, कि
कौन है और कहां से आया है, कौन माँ है और कौन बापहै, आदि के द्वारा किसी भी रूप मे छु पाव भी
शनि के कारण ही माना जाता है, व्यक्ति चालाकी का पुतला बन जाता है प्रथम भाव के शनि के
द्वारा.शनि अपने स्थान से प्रथम भाव के अन्दर स्थिति रख कर तीसरे भाव को देखता है, तीसरा भाव
अपने से छोटे भाई बहिनो का भी होता है, अपनी अन्दरूनी ताकत का भी होता है, पराक्रम का भी होता
है, जो कु छ भी हम दूसरों से कहते है, किसी भी साधन से, किसी भी तरह से शनि के कारण अपनी बात
को संप्रेषित करने मे कठिनाई आती है, जो कहा जाता है वह सामने वाले को या तो समझ मे नही आता
है, और आता भी है तो एक भयानक अन्धेरा होने के कारण वह कही गयी बात को न समझने के कारण
कु छ का कु छ समझ लेता है, परिणाम के अन्दर फ़ल भी जो चाहिये वह नही मिलता है, अक्सर देखा
जाता है कि जिसके प्रथम भाव मे शनि होता है, उसका जीवन साथी जोर जोर से बोलना चालू कर देता
है, उसका कारण उसके द्वारा जोर जोर से बोलने की आदत नही, प्रथम भाव का शनिसुनने के अन्दर
कमी कर देता है, और सामने वाले को जोर से बोलने पर ही या तो सुनायी देता है, या वह कु छ का कु छ
समझ लेता है, इसी लिये जीवन साथी के साथ कु छ सुनने और कु छ समझने के कारण मानसिक ना
समझी का परिणाम सम्बन्धों मे कडुवाहट घुल जाती है, और सम्बन्ध टूट जाते हैं। इसकी प्रथम भाव से
दसवी नजर सीधी कर्म भाव पर पडती है, यही कर्म भाव ही पिता का भाव भी होता है।जातक को कर्म
करने और कर्म को समझने मे काफ़ी कठिनाई का सामना करना पडता है, जब किसी प्रकार सेकर्म को
नही समझा जाता है तो जो भी किया जाता है वहकर्म न होकर एक भार स्वरूप ही समझा जाता है,
यही बातपिता के प्रति मान ली जाती है,पिता के प्रति शनि अपनी सिफ़्त के अनुसार अंधेरा देता है, और
उस अन्धेरे के कारणपिता ने पुत्र के प्रति क्या किया है, समझ नही होने के कारणपिता पुत्र में अनबन
भी बनी रहती है,पुत्र का लगन या प्रथम भाव का शनि माता के चौथे भाव मे चला जाता है, और माता
को जो काम नही करने चाहिये वे उसको करने पडते हैं, कठिन और एक सीमा मे रहकर माता के द्वारा
काम करने के कारण उसका जीवन एक घेरे में बंधा सा रह जाता है, और वह अपनी शरीरी सिफ़्त को
उस प्रकार से प्रयोग नही कर पाती है जिस प्रकार से एक साधारण आदमी अपनी जिन्दगीको जीना
चाहता है।

दूसरे भाव में शनि


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दूसराभाव भौतिक धन का भाव है,भौतिक धन से मतलब है, रुपया, पैसा, सोना, चाँदी, हीरा, मोती,
जेवरात आदि, जब शनि देव दूसरे भाव मे होते है तो अपने ही परिवार वालो के प्रति अन्धेरा भी रखते है,
अपने ही परिवार वालों से लडाई झगडाआदि करवा कर अपने को अपने ही परिवार से दूर कर देते
हैं,धन के मामले मै पता नही चलता है कितना आया और कितना खर्च किया, कितना कहां से
आया,दूसरा भाव ही बोलने का भाव है, जो भी बात की जाती है, उसका अन्दाज नही होता है कि क्या
कहा गया है, गाली भी हो सकती है और ठं डी बात भी, ठं डी बात से मतलब है नकारात्मक बात, किसी
भी बात को करने के लिये कहा जाय, उत्तर में न ही निकले.दूसरा शनि चौथे भाव को भी देखता है,
चौथा भाव माता, मकान, और वाहन का भी होता है, अपने सुखों के प्रति भी चौथे भाव से पता किया
जाता है, दूसरा शनि होने परयात्रा वाले कार्य और घर मे सोने के अलावा और कु छ नही दिखाई देता है।
दूसरा शनि सीधे रूप मे आठवें भाव को देखता है, आठवा भाव शमशानी ताकतों की तरफ़ रुझान बढा
देता है, व्यक्ति भूत,प्रेत,जिन्न और पिशाची शक्तियों को अपनाने में अपना मन लगा देता है, शमशानी
साधना के कारण उसका खान पान भी शमशानी हो जाता है,शराब,कबाब और भूत के भोजन में उसकी
रुचि बढ जाती है। दूसरा शनि ग्यारहवें भाव को भी देखता है, ग्यारहवां भावअचल सम्पत्ति के प्रति
अपनी आस्था को अन्धेरे मे रखता है, मित्रों और बडे भाई बहिनो के प्रति दिमाग में अन्धेरा रखता है। वे
कु छ करना चाहते हैं लेकिन व्यक्ति के दिमाग में कु छ और ही समझ मे आता है।

तीसरे भाव में शनि


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तीसरा भाव पराक्रम का है, व्यक्ति के साहस और हिम्मत का है, जहां भी व्यक्ति रहता है, उसके
पडौसियों का है। इन सबके कारणों के अन्दर तीसरे भाव से शनि पंचम भाव को भी देखता है, जिनमे
शिक्षा,संतान और तुरत आने वाले धनो को भी जाना जाता है, मित्रों की सहभागिता और भाभी का भाव
भी पांचवा भाव माना जाता है, पिता की मृत्यु का औरदादा के बडे भाई का भाव भी पांचवा है। इसके
अलावा नवें भाव को भी तीसरा शनि आहत करता है, जिसमे धर्म, सामाजिक व्यव्हारिकता, पुराने रीति
रिवाज और पारिवारिक चलन आदि का ज्ञान भी मिलता है, को तीसरा शनि आहतकरता है। मकान
और आराम करने वाले स्थानो के प्रति यह शनि अपनी अन्धेरे वाली नीति को प्रतिपादित करता है।
ननिहाल खानदान को यह शनि प्रताडित करता है।

चौथे भाव मे शनि


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चौथे भाव का मुख्य प्रभाव व्यक्ति के लिये काफ़ी कष्ट देने वाला होता है, माता, मन, मकान, और पानी
वाले साधन, तथा शरीर का पानी इस शनि के प्रभाव से गंदला जाता है, आजीवन कष्टदेने वाला होने से
पुराणो मे इस शनि वाले व्यक्ति का जीवन नर्क मय ही बताया जाता है। अगर यह शनि तुला,मकर,कु म्भ
या मीन का होता है, तो इस के फ़ल में कष्टों मे कु छ कमी आ जाती है।

पंचम भाव का शनि


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इस भाव मे शनि के होने के कारण व्यक्ति को मन्त्र वेत्ता बना देता है, वह कितने ही गूढ मन्त्रों के द्वारा
लोगो का भला करने वाला तो बन जाता है, लेकिन अपने लिये जीवन साथी के प्रति,जायदाद के प्रति,
और नगद धन के साथ जमा पूंजी के लिये दुख ही उठाया करता है।संतान मे शनि की सिफ़्त स्त्री होने
और ठं डी होने के कारण से संतति मे विलंब होता है,कन्या संतान की अधिकता होती है, जीवन साथी के
साथ मन मुटाव होने से वह अधिक तर अपने जीवन के प्रति उदासीन ही रहता है।

षष्ठ भाव में शनि


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इस भाव मे शनि कितने ही दैहिक दैविक और भौतिक रोगों का दाता बन जाता है, लेकिन इस भाव का
शनि पारिवारिक शत्रुता को समाप्त कर देता है,मामा खानदान को समाप्त करने वाला होता है,चाचा
खान्दान से कभी बनती नही है। व्यक्ति अगर किसी प्रकार से नौकरी वाले कामों को करता रहता है तो
सफ़ल होता रहता है, अगर किसी प्रकार से वह मालिकी वाले कामो को करता है तो वह असफ़ल हो
जाता है। अपनी तीसरी नजर से आठवें भाव को देखने के कारण से व्यक्ति दूर द्रिष्टि से किसी भी काम
या समस्या को नही समझ पाता है, कार्यों से किसी न किसी प्रकार से अपने प्रतिजोखिम को नही समझ
पाने से जो भी कमाता है, या जो भी किया जाता है, उसके प्रति अन्धेरा ही रहता है, और अक्स्मात
समस्या आने से परेशान होकर जो भी पास मे होता है गंवा देता है। बारहवे भाव मे अन्धेरा होने के
कारण से बाहरी आफ़तों के प्रति भी अन्जान रहता है, जो भी कारण बाहरी बनते हैं उनके द्वारा या तो
ठगा जाता है या बाहरी लोगों की शनि वाली चालाकियों के कारण अपने को आहत ही पाता है। खुद के
छोटे भाई बहिन क्या कर रहे हैं और उनकी कार्य प्रणाली खुद के प्रति क्या है उसके प्रति अन्जान रहता
है। अक्सर इस भाव का शनि कही आने जाने पर रास्तों मे भटकाव भी देता है, और अक्सर ऐसे लोग
जानी हुई जगह पर भी भूल जाते है।

सप्तम भाव मे शनि


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सातवां भाव पत्नी और मन्त्रणा करने वाले लोगो से अपना सम्बन्ध रखता है।जीवन साथी के प्रति
अन्धेरा और दिमाग मे नकारात्मक विचारो के लगातार बने रहने से व्यक्ति अपने को हमेशा हर बात में
छु द्र ही समझता रहता है,जीवन साथी थोडे से समय के बाद ही नकारा समझ कर अपना पल्ला जातक
से झाड कर दूर होने लगता है, अगर जातक किसी प्रकार से अपने प्रति सकारात्मक विचार नही बना
पाये तो अधिकतर मामलो मे गृह्स्थियों को बरबाद ही होता देखा गया है, और दो शादियों के परिणाम
सप्तम शनि के कारण ही मिलते देखे गये हैं,सप्तम शनि पुरानी रिवाजों के प्रति और अपने पूर्वजों के
प्रति उदासीन ही रहता है, उसे के वल अपने ही प्रति सोचते रहने के कारण और मै कु छ नही कर सकता
हूँ, यह विचार बना रहने के कारण वह अपनी पुरानी मर्यादाओं को अक्सर भूल ही जाता है, पिता और
पुत्र मे कार्य और अकार्य की स्थिति बनी रहने के कारण अनबन ही बनी रहती है। व्यक्ति अपने रहने
वाले स्थान पर अपने कारण बनाकर अशांति उत्पन्न करता रहता है, अपनी माता या माता जैसी महिला
के मन मे विरोध भी पैदा करता रहता है, उसे लगता है कि जो भे उसके प्रति किया जा रहा है, वह गलत
ही किया जा रहा है और इसी कारण से वह अपने ही लोगों से विरोध पैदा करने मे नही हिचकता है।
शरीर के पानी पर इस शनि का प्रभाव पडने से दिमागी विचार गंदे हो जाते हैं, व्यक्ति अपने शरीर में पेट
और जनन अंगो मे सूजन और महिला जातकों कीबच्चादानी आदि की बीमारियां इसी शनि के कारण से
मिलती है।

अष्टम भाव में शनि


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इस भाव का शनि खाने पीने और मौज मस्ती करने के चक्कर में जेब हमेशा खाली रखता है। किस
काम को कब करना है इसका अन्दाज नही होने के कारण से व्यक्ति के अन्दर आवारागीरी का उदय
होता देखा गया है।

नवम भाव का शनि


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नवां भाव भाग्य का माना गया है, इस भाव में शनि होने के कारण से कठिन और दुख दायी यात्रायें करने
को मिलती हैं, लगातार घूम कर सेल्स आदि के कामो मे काफ़ी परेशानी करनी पडती है, अगर यह भाव
सही होता है, तो व्यक्तिमजाकिया होता है, और हर बात को चुटकु लों के द्वारा कहा करता है, मगर जब
इस भाव मे शनि होता है तो व्यक्ति सीरियस हो जाता है, और एकान्त में अपने को रखने अपनी भलाई
सोचता है, नवें भाव बाले शनि के के कारण व्यक्ति अपनी पहिचान एकान्त वासा झगडा न झासा वाली
कहावत से पूर्ण रखता है। खेती वाले कामो, घर बनाने वाले कामोंजायदाद से जुडे कामों की तरफ़
अपना मन लगाता है। अगर कोई अच्छा ग्रह इस शनि पर अपनी नजर रखता है तो व्यक्तिजज वाले
कामो की तरफ़ और कोर्ट कचहरी वाले कामों की तरफ़ अपना रुझान रखता है। जानवरों की डाक्टरी
और जानवरों को सिखाने वाले काम भी करता है, अधिकतर नवें शनि वाले लोगों को जानवर पालना
बहुत अच्छा लगता है। किताबों को छापकर बेचने वाले भी नवें शनि से कही न कही जुडे होते हैं।

दशम भाव का शनि


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दसवां शनि कठिन कामो की तरफ़ मन ले जाता है, जो भीमेहनत वाले काम,लकडी,पत्थर, लोहे आदि
के होते हैंवे सब दसवे शनि के क्षेत्र मे आते हैं, व्यक्ति अपने जीवन मे काम के प्रति एक क्षेत्र बना लेता है
और उस क्षेत्र से निकलना नही चाहता है।राहु का असर होने से या किसी भी प्रकार से मंगलका प्रभाव
बन जाने से इस प्रकार का व्यक्ति यातायात का सिपाही बन जाता है, उसे जिन्दगी के कितने ही काम
और कितने ही लोगों को बारी बारी से पास करना पडता है, दसवें शनि वाले की नजर बहुत ही तेज
होती है वह किसी भी रखी चीज को नही भूलता है, मेहनत की कमाकर खाना जानता है, अपने रहने के
लिये जब भी मकान आदि बनाता है तो के वल स्ट्रक्चर ही बनाकर खडा कर पाता है, उसके रहने के
लिये कभी भी बढिया आलीशान मकान नही बन पाता है।गुरु सही तरीके से काम कर रहा हो तो व्यक्ति
एक्ज्यूटिव इन्जीनियर की पोस्ट पर काम करने वाला बनजाता है।

ग्यारहवे भाव मे शनि


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शनि दवाइयों का कारक भी है, और इस घर मे जातक को साइंटिस्ट भी बना देता है, अगर जरा सी भी
बुध साथ देता हो तो व्यक्ति गणित के फ़ार्मूले और नई खोज करने मे माहिर हो जाता है। चैरिटी वाले
काम करने मे मन लगता है, मकान के स्ट्रक्चर खडा करने और वापस बिगाड कर बनाने मे माहिर होता
है, व्यक्ति के पास जीवन मे दो मकान तो होते ही है। दोस्तों से हमेशा चालकियां ही मिलती है, बडा भाई
या बहिन के प्रति व्यक्ति का रुझान कम ही होता है। कारण वह न तोकु छ शो करता है और न ही किसी
प्रकार की मदद करने मे अपनी योग्यता दिखाता है, अधिकतर लोगो के इस प्रकार के भाई या बहिन
अपने को जातक से दूर ही रखने म अपनी भलाई समझते हैं।

बारहवे भाव मे शनि


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नवां घर भाग्य या धर्म का होता है तो बारहवा घर धर्म का घर होता है, व्यक्ति को बारहवा शनि पैदा
करने के बाद अपने जन्म स्थान से दूर ही कर देता है, वह दूरी शनि के अंशों पर निर्भर करती है, व्यक्ति
के दिमाग मे काफ़ी वजन हर समय महसूस होता है वह अपने को संसार के लिये वजन मानकर ही
चलता है, उसकी रुझान हमेशा के लिये धन के प्रति होती है और जातक धन के लिये हमेशा ही भटकता
रहता है, कर्जा दुश्मनी बीमारियो से उसे नफ़रत तो होती है मगर उसके जीवन साथी के द्वारा इस प्रकार
के कार्य कर दिये जाते हैं जिनसे जातक को इन सब बातों के अन्दर जाना ही पडता है।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: लव मैरिज मतलब प्रेम विवाह।आज इसी बारे में
बात करते है लव मैरिज क्या हो पाएगी और कब तक या नही हो पाएगी साथ ही लव मैरिज होने में
प्रॉब्लम आ रही है तो क्या करे और कै सी रहेगी शादी(लव मैरिज)आदि? लव मैरिज करने के लिए या
लव मैरिज हो जाये इसके लिए दोनो लोगो की कुं डली मे लव मैरिज होने की स्थिति होना चाहिए तब ही
जिससे लव मैरिज करना चाहते है या चाहती है तब ही लव मैरिज उसके साथ हो पाएगी या स्वयं की
कुं डली मे अच्छी स्थिति में लव मैरिज योग हैं यो लव मैरिज होगा ही....

कुं डली का 7वा भाव शादी का है तो 5वा भाव लव(प्यार)का है इसी लिए जरूरी है सातवाँ और सातवें
भाव स्वामी बलवान होने के साथ शादी होने के योग होने चाहिए साथ ही अब पांचवा भाव और पांचवा
भाव स्वामी भी बलवान और शुभ स्थिति में होना जरूरी है।

अब 7वे भाव या भाव स्वामी का बलवान और शुभ होकर 5वे भाव स्वामी या 5वे भाव से किसी भी
तरह सम्बंध होने या दृष्टि से देख रहे हो तब प्रेम विवाह/ लव मैरिज हो जाएगी या 5वे और 7वे भाव या
भाव स्वामियों के आपस मे कोई संबध भाव या भाव स्वामी से नही भी है या दोनो भावों का आपस मे
सम्बंध नही है तब 5वा और 7वा दोनो भाव बलवान और शुभ होकर 5वे भाव स्वामी 5वे भाव को और
7वा भाव सातवे भाव को दृष्टि देकर या अपने भावों में बैठकर अपने अपने भावों को बल दे रहे ही तब
भी इस स्थिति में लव मैरिज हो जाएगी।

अब कु छ उदाहरणों से समझते है लोवर मैरिज कै से हो पाएगी और कब नही हो पाएगी और लव मैरिज


योग हैं होने के लेकिन बाधा आ रही है होने में तो क्या उपाय करें।

उदाहरण_अनुसार_मेष_लग्न1:-
मेष लग्न में 7वे भाव स्वामी शुक्र और 5वे भाव स्वामी सूर्य और यह दोनों भाव बलवान होकर आपस
मे सम्बन्ध किये है या सूर्य 7वे भाव को देख रहा है या शुके 5वे भाव को देख रहे है 5वे भाव मे बलवान
होकर बैठा है आदि तब लव मैरिज हो जाएगी और लव मैरिज होंगी।

उदाहरण_अनुसार_मिथुन_लग्न2:-
मिथुन लग्न में 5वे भाव स्वामी शुक्र और 7वे भाव स्वामी गुरु और यह दोनों भाव बलवान और शुभ हो
या है और आपस मे सम्बन्ध किये है या फिर शादी स्वामी गुरु 5वे भाव(लव भाव) से या लव मैरिज
स्वामी शुक्र 7वे भाव(शादी भाव) से सबन्ध किया है या शुक्र 5वे भाव मे ही बैठा है या देख रहा है और
गुरु 7वे भाव मे बैठा या देख रहा है तब लव मैरिज होंगी/लव मैरिज हो जाएंगी।

उदाहरण_अनुसार_कु म्भ_लग्न3:-
कु म्भ लग्न है तब सूर्य बुध का आपसी संबंध या फिर बुध का 7वे भाव(शादी भाव) से सम्बन्ध होने से
या फिर 5वे भाव(लव भाव) से शादी स्वामी ग्रह सूर्य का सम्बन्ध है तब लव मैरिज हो जाएगी/लव
मैरिज होंगी।

अगर 7वा और 5वा भाव और इनके स्वामी बहुत कमजोर या पाप/अशुभ ग्रहों से पीड़ित हैं तब लव
मैरिज होने में दिक्कत आएगी जो कि उपाय करने से जो भी दिक्कतें आ रही है या लव मैरिज होने में हो
रही है दूर हो लव मैरिज हो जाएगी।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: ज्योतिष सूत्र

1 , अगर किसी के अष्टम का स्वामी के साथ राहु हो तो जात्ताक का ससुराल रहस्यमयी होगा और
झगड़ालु परिवार होगा । ओर ऐसे ससुराल से ओर इसकी वजह से जात्ताक परेशान ओर कोर्ट कचहरी
में फं सा रहेगा ।

2, अगर अष्टम के स्वामी के साथ सूर्ये होगा जात्ताक का ससुराल घमण्डी मगर समृद्ध होगा

3, नवम के स्वामी के साथ अगर राहु हो या नवम भाव पर शनि की दृष्टि हो और नवम भाव का स्वामी
पीड़ित हो तो जात्ताक के साला साली से सम्बंद खराब ही होते है ।

4, दशम के
सस्वामी के साथ राहु हो तो जात्ताक को कारोबार में धोखा तो मिलता ही हैं मगर जात्ताक
की सास झगड़ालू होती है ।

5, छटे भाव के स्वामी राहु के साथ है तो जात्ताक का ननिहाल के लोग बहुत झगड़ालु होते है और
हमेशा कोर्ट कचहरी के मसले चलते है ।

6, छटे भाव के भाव या उसके स्वामी पर शनि की दृष्टि हो कई बार ननिहाल से धोखा ओर सम्बंद
खराब ही देखे है

7, जात्ताक के
ग्यारवें भाव के स्वामी या उस भाव मे राहु हो शनि की दृष्टि हो तो जात्ताक को बहू ओर
दामाद झगड़ालु मिलता है ।
8,जात्ताक के
दूसरे भाव मे राहु या दूसरे भाव के स्वामी के साथ राहु हो तो जात्ताक को गंदी गाली देने
की आदत के साथ उसके कटुम्ब रहस्यमयी होता है और लड़ाई झगडे ही रहते है ।

10, दूसरे भाव का स्वामी छटे भाव या उसके स्वामी के साथ हो तो जात्ताक के कटुम्ब मे क्लेश बना
रहता है ।

11, बारवे भाव मे राहु हो तो जीवन मे जेल जाने का योग बनता है अगर गुरु की दृष्टि हो तो सूत्र बदल
सकता है पर कोर्ट कचहरी में जरूर फसता है

12,शीन चन्द्र्मा अगर 6 ,8, 12 भाव मे मंगल राहु और मंगल से युत या दृष्टि हो ऐसे जात्ताक पर प्रेत
बाधा होगी जात्ताक मानसिक रोग से ग्रसित होगा ।

13,शुक्र पर शनि की दृष्टि हो ऐसे जात्ताक धीरे धीरे नपुंसकता की तरफ बढ़ते है ।

14,मेष ,वृषब ओर धनु लग्न में अगर लग्न पर पापी ग्रह की दृष्टि हों जैसे राहु ,शनि ,सूर्ये ,राहु की तो ऐसे
लोग दन्त रोगी होते है ।

15, लग्नेश कें द्र में हो बलवान हो और शुभ ग्रेह से दृष्ट हो जात्ताक अपनी पूर्ण आयु भोगता है ।

16,गुरु सप्तम में हो चाहे लड़की की कुं डली मे चाहे पुरूष की कुं डली मे जात्ताक पुत्र से संबंधित चिंता
मे रहता है । क्योंकि पुत्र और संतान कारक गुरू है और कुं डली का सप्तम भाव और दूसरा भाव भी
मारक है । या तो पुत्र नही होगा होगा तो उसे से संबंधित चिंता रहेगी ।

17, 12 बारवे भाव का स्वामी लगन मे हो ऐसे जक्ताक बोलते बहुत मीठा ओर मदुर है कु छ स्थिति मे हो
सकता है जात्ताक कड़वा बोले जब हालात अनुकू ल न हो मगर ज्यादातर ऐसे जात्ताक अच्छा बोलते है।

18, लगन मे शनि चन्दर की युति ओर उसपर मंगल की दृष्टि हो तो यह जात्ताक को बुद्धिहीन बना देगा
। वो ऐसे एक शनि चन्दर की युति मन को विचलित करती है । दूसरा शनि tym पर कोई कार्य नही होने
देंगे जात्ताक मे चिड़छाडपन आएगा । मंगल का लगन से संम्बद जात्ताक को जल्दबाज उग्र बनाएगा ।
शनि मंगल का दृष्टि सम्बनाद विस्फोटक बनाएगा ।

19, मीन लग्न में सूर्ये 4th हाउस में हो और राहु या शनि के साथ या दृष्ट हो ऐसे जात्ताक ह्र्दय रोगी
होगा ।

20,मंगल चतुर्थ मे हो सूर्ये बुध राहु पँचम मे ओर शनि अष्टम मे हो तो जात्ताक के जीवन मे संघर्ष देगा ।
21, लगन मे चन्द्र की शुक्र की युति हो और शनि की दृष्टि उस पर हो ऐसे लोगो को जीवन मे अपयश
का सामना करना पड़ता है ।

22,शुक्र अगर वृषब ,तुला ओर मिथुन राशि मे हो तो जात्ताक बेहद कामुक होता है और अगर शनि की
दृष्टी हो तो बेहद कामुक होता है और अधिक कमुता के कारण नपुंसकता की तरफ जाता है ।

23 ,दसम का स्वामी लगन मे लगन का स्वामी दसम मे हो तो यह परिवर्तन जात्ताक को बडिया जीवन
देता है और जात्ताक कर्म को अधिक महत्व देतक़ है ।

24, धन भाव का स्वामी ओर बारवे भाव का स्वामी अगर नवम मे हो जात्ताक धन तो बहुत कमाएगा
मगर आने वाली पीढ़ी के लिए कु छ नही छोड़ेगा । ऐसे जात्ताक विदेश में सेटल ओर वहा से धन कमाते
है ।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: ज्योतिष में, कुं डली के छठे , ग्यारहवें और बारहवें
भाव से कर्ज की स्थिति देखी जाती है। इन भावों के स्वामियों के कमजोर होने पर या इन भावों में शुभ
ग्रहों के होने पर कर्जों की स्थिति बन जाती है।

छठे भाव से कर्ज

छठा भाव शत्रु, रोग, कर्ज, ऋण, शस्त्र, बीमारी, पशु, नौकरी, आदि का कारक है। छठे भाव का स्वामी
ग्रह मंगल है। मंगल का कमजोर होना या छठे भाव में मंगल, शनि, राहु या के तु का होना कर्ज के योग
बनाता है।

ग्यारहवें भाव से कर्ज

ग्यारहवां भाव लाभ, आय, धन, भाइयों, मित्रों, आदि का कारक है। ग्यारहवें भाव का स्वामी ग्रह गुरु है।
गुरु का कमजोर होना या ग्यारहवें भाव में गुरु, शनि, राहु या के तु का होना कर्ज के योग बनाता है।

बारहवें भाव से कर्ज

बारहवां भाव व्यय, हानि, ऋण, बंधन, यात्रा, आदि का कारक है। बारहवें भाव का स्वामी ग्रह शनि है।
शनि का कमजोर होना या बारहवें भाव में शनि, राहु या के तु का होना कर्ज के योग बनाता है।

कुं डली में कर्ज के योग बनने के कु छ अन्य कारण भी हैं, जैसे:
कुं डली में अग्नि तत्व की मात्रा मजबूत होने पर भी कर्ज की संभावना बढ़ जाती है।
मंगल का कमजोर होना भी कर्जों के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होता है।
कुं डली में कर्ज के योग बनने से व्यक्ति को कर्ज लेने की आवश्यकता होती है। कर्ज किसी भी प्रकार का
हो सकता है, जैसे कि बैंक से लोन, व्यक्तिगत लोन, या व्यापारिक लोन। कर्ज लेने के बाद व्यक्ति को उसे
चुकाना होता है। अगर व्यक्ति कर्ज चुकाने में असमर्थ होता है, तो उसे आर्थिक परेशानियों का सामना
करना पड़ सकता है।

कुं डली में कर्ज के योग बनने से बचने के लिए व्यक्ति को ज्योतिषीय उपाय कर सकते हैं। इन उपायों में
शामिल हैं:

मंगल ग्रह की शांति के उपाय करना।


शनि ग्रह की शांति के उपाय करना।
अग्नि तत्व को कम करने के उपाय करना।
कुं डली में कर्ज के योग बनने पर व्यक्ति को ज्योतिषी से परामर्श करना चाहिए। ज्योतिषी व्यक्ति की
कुं डली का विश्लेषण करके कर्ज के योगों को दूर करने के लिए उचित उपाय बता सकता है।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: अपने बच्चे का भविष्य सुधारने और अच्छा बनाने
के लिए आप माता-पिता हर दम प्रयास करते है कि बच्चे का भविष्य अच्छा हो सके या भविष्य अच्छा
हो और बच्चा काबिल और एक सफल इंसान बन जाये तो आज इसी बारे में बात करते है कै सा रहेगा
आपके बच्चे का भविष्य आदि।

बच्चे की कुं डली में अब अगर ग्रहो की जो भी महादशा अन्तर्दशाये आ रही है वर्तमान भविष्य में वह
सबसे ज्यादा अनुकू ल होनी चाहिए साथ ही यह महादशा अन्तर्दशाये राजयोग में है किसी तरह के शुभ
योगों में होगी तब भविष्य का समय बच्चे का अच्छा है दूसरी बात अब कुं डली मे राजयोग बन रहा हो
और दसवाँ भाव जो कि कै रियर निर्माण का है और 9वा भाव जो कि भाग्योदय/भाग्य का है अगर यह
दोनों भाव कुं डली मे बच्चे की मजबूत है और राजयोग आदि में भी है तब भविष्य बच्चे का आपके
अच्छा रहने वाला है।

इसके विपरीत ग्रह दशाएं जो कि बच्चे की कुं डली मे आ रही है और 9वा+10वे भाव की स्थिति अच्छी
नही है तब यहाँ चिंता का विषय बच्चे के भविष्य को लेकर है यहाँ भविष्य आपके बच्चे का अच्छा हो
सके इसके लिए जरूरी है अच्छे भविष्य के लिए और अच्छे जींवन के लिए बच्चे को उपाय कराए जाय।

अब कु छ उदाहरणों से समझते है कै सा रहेगा आपके बच्चे का भविष्य।।


उदाहरण_अनुसार_मेष_लग्न1:-
मेष लग्न में दसवे भाव स्वामी शनि और नवे भाव स्वामी गुरु यह दोनों कुं डली मे मजबूत और शुभ
स्थिति में है और जितनी भी महादशाये(महादशाएं ही निर्धारित करती है समय कब कै सा रहेगा?) ग्रहो
की वर्तमान और भविष्य में क्रम से बच्चे की कुं डली मे आ रही है तब आपके बच्चे का भविष्य अच्छा है
और ग्रहदशाये और 9वा भाव+9वे भाव स्वामी गुरु और 10वा भाव+10वे भाव स्वामी शनि राजयोग में
है कुं डली मे तब आपके बच्चे का भविष्य बहुत शानदार है।बाकी अगर ग्रहदशा 9+10वा भाव डिस्टर्ब है
कुं डली मे तब उपाय करके ही बच्चे का जींवन सुधारा जा सकता है।

उदाहरण_अनुसार_कर्क _लग्न2:-
अब कर्क लग्न में 9वे भाव भाग्य भाव स्वामी गुरु और 10वा भाव कर्म भाव स्वामी मंगल दोनों ही
कुं डली मे शुभ स्थिति में है या राजयोग बनाकर बैठे है और साथ ही जिन भी ग्रहो की महादशाये क्रम से
आपके बच्चे की कुं डली मे आ रही है उन सभी ग्रहों की स्थिति कुं डली मे अच्छी है, महादशा वाले ग्रह
राजयोग में है तब आपके बच्चे का भविष्य अच्छा है और आपका बच्चा एक काबिल और सफल इंसान
बनेगा।अगर ग्रहदशाये और 9व 10व भाव डिस्टर्ब है तब उपाय करने होंगे अभी से तब भविष्य अच्छा
बन पाएगा।

उदाहरण_अनुसार_धनु_लग्न3:-
धनु लग्न में 9व और 10व भाव स्वामी सूर्य बुध कुं डली मे बहुत अच्छी स्थिति में या राजयोग की स्थिति
में है और जिन भी ग्रहो की महादशा अन्तर्दशाये आपके बच्चे के जींवन में आ रही है वह सब अनुकू ल है
और शुभ स्थिति में है तब आपके बच्चे का भविष्य अच्छा है।अगर ग्रहदशाये अनुकू ल नही है तब उपाय
करने से बच्चे का भविष्य अच्छा हो पायेगा।

अब इतना यहाँ कुं डली ग्रहदशाये व भविष्य अच्छा बनाने वाले ग्रह अगर कुं डली मे अनुकू ल नही है तब
उपाय करने की जरूरत होगी तब ही बच्चे का भविष्य अच्छा हो पायेगा।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: कौन लोग बन पाएंगे बड़ा आदमी और किस तरह
से बन पाएंगे ,कब तक और बड़े आदमी बनने में कोई दोष या ग्रह बाधा बन रहा है तो उपाय करने के
बाद बन पाएंगे बड़ा आदमी क्या साथ ही किस रोजगार(कै रियर)से बन पाएंगे बड़ा आदमी,किस
रोजगार(कै रियर)को चुनें आदि।।
कुं डली का लग्न लग्नेश(स्वयम जातक/जातिका
है)तो दसवाँ भाव और 9वा भाव बड़ी कामयाबी और भाग्योदय के है इसी कारण इन तीनो भावो की
स्थिति बलवान है और इन तीनो भावों से कोई शक्तिशाली राजयोग और शुभ योग बन रहा है या बन रहे
है तब बड़े आदमी बन जाएंगे।।
अब लग्न लग्नेश या फिर नवे दसवे भाव से बनने वाले राजयोग की दशा जब आएगी तब बड़े आदमी
उसी समय बनने के रास्ते स्वयम बन जाएंगे, स्थितियां अनुकू ल होकर बड़ा आदमी बना देंगी।अब कु छ
उदाहरणों से समझते है उपरोक्त कभी बातों को कि कौन लोग बन सकते है बड़ा आदमी और कब तक
समय है बड़ा आदमी बनने का आदि।।

उदाहरण_अनुसार_कन्या_लग्न1:-
कन्या लग्न में लग्नेश और दसवे भाव स्वामी अके ला बुध है तो 9वे भाव(भाग्य भाव) स्वामी शुक्र है अब
बुध और शुक्र दोनो यहाँ राजयोग बनाकर आपस मे बैठे एक साथ बैठे है या शुक्र बुध दोनो ही राजयोग
में है और लग्न नवम दशमः भाव बलवान है तब बड़े आदमी बन जायेंगे,दशमेष बुध माना दूसरे भाव मे
राजयोग बनाकर बैठा है तब होटल, रेस्टोरेंट आदि काम से बड़े आदमी बनेगे।।

उदाहरण_अनुसार_वृश्चिक_लग्न2:-
वृश्चिक लग्न में लग्न स्वामी मंगल, भाग्य स्वामी चन्द्र और दसवे भाव स्वामी सूर्य यह तीनों ग्रह बलवान
होकर बैठे है किसी राजयोग में भी है सूर्य और दसवाँ भाव ज्यादा शक्तिशाली है तब बड़े आदमी जरूर
बन जाएंगे।जब इन्ही ग्रहो की दशाओ का समय आएगा।।

उदाहरण_अनुसार_मकर_लग्न3:-
मकर लग्न में लग्न स्वामी शनि और भाग्य स्वामी बुध सहित दसवे भाव स्वामी शुक्र यह तीनों यहाँ
अच्छी से अच्छी स्थिति में है ,किसी तरह के राजयोग में है बलवान है तब बड़े आदमी बनना तय है अब
जब इन्ही ग्रहो का समयकाल आएगा उसी समय बड़े आदमी बनने के रास्ते खुलेंगे।।

अब ऐसी स्थिति में दूसरे और ग्यारहवे(धन भाव)जितने ज्यादा बलवान होंगे बड़े आदमी बनने के बाद
उतनी स्थिति मजबूत होती जायेगो दिन प्रतिदिन।।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: आपका मुकादमा कब तक खत्म होगा।

आज 100 में से 65% लोग किसी न किसी मुक़ादमेबाजी के शिकार है या रहते है जिस वजह से कोर्ट -
कचहरी के चक्कर लगाने पडते है और मुकदमेबाजी से पीड़ित हर व्यक्ति यही चाहता है कि वह
मुक़ादमेबाजी से निकल जाए तो आज इसी बारे में बात करते है अगर मुक़ादमेबाजी के शिकार है और
कोर्ट -कचहरी के बार-बार चक्कर लगाने पड़ रहे है तो कब तक मुकादमा खत्म होकर मुक़ादमेबाजी से
छु टकारा पा लेंगें।
कुं डली का छठा भाव मुकादमेबाजी का है तो शनि राहु के तु मंगल यह मुक़ादमो के ग्रह है तो सबसे
पहले आपकी कुं डली मे शनि राहु के तु मन शुभ स्थिति में होने चाहिए अब इसके बाद कुं डली का छठा
भाव स्वामी बलवन होकर शुभ स्थिति में बैठा है और छठा भाव भी शुभ स्थिति में है तब मुक़ादमे में
सफलता मिलकर मुक़ादमेबाजी से छु टकारा मिल जाएगा , अगर हाँ छठा भाव और छठे भाव स्वामी
कुं डली मे किसी तरह से अशुभ या नीच या पूर्ण अस्त हुआ तब तब मुक़ादमेबाजी से पीछा आसानी से
नही छू टेगा।

अब जब छठे भाव में बैठे अनुकू ल ग्रहो की या छठे भाव स्वामी ग्रह की या फिर छठे भाव स्वामी के
साथ सम्बन्ध किये ग्रहो की दशा अन्तर्दशाये आएगी तब मुक़ादमेबाजी से छु टकारा मिलकर सफलता
मिलेगी और मुक़ादमा आपके ऊपर से खत्म होगा।

अब कु छ उदाहरणों से समझते है कब तक मुक़ादमेबाजी से निकलेंगे और कब तक खत्म हो पायेगा


आपके ऊपर से मुक़ादमे या मुक़ादमे आदि।

उदाहरण_अनुसार_मिथुन_लग्न1:-
मिथुन लग्न में छठे भाव स्वामी मंगल है अब मंगल यहाँ शुभ और अच्छी स्थिति में बैठे हो और छठे
भाव पर भी शुभ ग्रहों की दृष्टि हो या शुभ ग्रह बैठे हो या फिर किसी तरह का अशुभ प्रभाव छठे भाव
पर न हो साथ ही मुकदमा जिस सम्बन्ध में भी है उस सम्बंध का कारक ग्रह कुं डली मे शुभ और बलवान
है तब मुक़ादमेबाजी से छु टकारा छठे भाव/छठे भाव स्वामी या इनसे सम्बन्ध बना रहे ग्रहो की दशा
अन्तर्दशाये आने पर मुक़ादमेबाजी से पीछा छू ट जाएगा, मुकदमा खत्म हो जाएगा।

उदाहरण_अनुसार_वृश्चिक_लग्न2:-
वृश्चिक लग्न में छठे भाव स्वामी मंगल ग्रह है तो यहाँ मंगल लग्नेश भी होते है अब मंगल कुं डली मे
राजयोग बनाकर या विपरीत राजयोग बनाकर बैठा हो या ऐसी स्थिति में न भी हो तब कुं डली के कें द्र या
त्रिकोण लाभकारी घरों में बैठकर शुभ स्थिति में रहे या है तब मंगल या मंगल से सम्बन्ध बना रहे ग्रहो
की दशाएँ आने पर मुक़ादमे में सफलता मिलेगी और मुक़ादम खत्म हो जाएगा आपके ऊपर से।

उदाहरण_अनुसार_मकर_लग्न3:-
मकर लग्न में छठे भाव स्वामी बुध है अब बुध यहाँ शुभ स्थिति में हो या राजयोग, विपरीत राजयोग में
कुं डली मे बैठे है या फिर कुं डली के यहाँ अनुकू ल ग्रहो शुक्र शनि मंगल गुरु जैसे ग्रहो से संबध में बुध
और छठा भाव है तब मुकादमा जल्दी खत्म हो जाएगा, छठे भाव-छठे भाव स्वामी की दशा अन्तर्दशाये
आने पर मुकादमा आपके ऊपर स खत्म हो जाएगा।
[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: जन्म कुं डली से जाने हमे नौकरी करना चाहिए या
व्यापार।

अ) किसे नौकरी करना चाहिए

1)जब कुं डली मे सर्वाधिक ग्रह तृतीय भाव से ले कर अष्टम भाव तक सर्वाधिक ग्रह हो तो जातक को
नौकरी से लाभ मिलता है।।
2)जब छठे भाव के आस पास सर्वाधिक ग्रह होतो नौकरी करने में लाभ होता है।।
3)जब 6th भाव मे मजबूत स्थिति में हो तो जातक को नौकरी में सफलता मिलता है।।
4)लाभेष और लाभ भाव बहुत पीड़ित हो तो जातक को नौकरी करना चाहिए।।
5)जब धनेश बहुत 6,8,12 स्थान पर होतो जातक को नौकरी करना उचित रहता है।।

व) किसे व्यापार करना चाहिए या उच्च पद पर नौकरी करेगा।।

1)जब कुं डली मे सर्वाधिक ग्रह 9th भाव से लेकर द्वितीय भाव तक होतो जातक को ब्यापार से विशेस
लाभ होगा।।
2)सप्तमेशः और सप्तम शुभ और बलवान स्थिति में होतो ब्यापार करने से लाभ होगा।
3) धनेश और लाभेष का संबंध बने तो व्यापार करने में लाभ होगा।
4)लाभेष यदि मजबूत और शुभ ग्रहों की स्थिति में होतो जातक को व्यापार से लाभ होगा।।
5)बुध, शुक्र और गुरु का सम्बंध होतो व्यापार से लाभ होगा।।

कुं डली में क्या है नौकरी या व्यापार का भाव


कहते हैं कि दशम भाव से पता चलता है कि व्यक्ति क्या करेगा, ग्यारहवें भाव से पता चलता है कि
व्यक्ति क्या कमाएगा और दूसरे भाव से पता चलता है कि व्यक्ति कितना बचा पाएगा। कुं डली में दशम
भाव से देखा जाता है कि व्यक्ति क्या करेगा।

दशम भाव : दशम भाव के स्वामी को दशमेश या कर्मेश या कार्येश कहते हैं। इस भाव से यह देखा
जाता है कि व्यक्ति सरकारी नौकरी करेगा अथवा प्राइवेट। व्यापार करेगा तो कौन सा और उसे किस
क्षेत्र में अधिक सफलता मिलेगी।

सप्तम भाव साझेदारी का होता है। इसमें मित्र ग्रह हों तो पार्टनरशिप से लाभ होता है। शत्रु ग्रह हो तो
पार्टनरशिप से नुकसान होता है। मित्र ग्रह सूर्य, चंद्र, बुध, गुरु होते हैं। शनि, मंगल, राहु, के तु ये आपस में
मित्र होते हैं।
सूर्य, बुध, गुरु और शनि दशम भाव के कारक ग्रह हैं। दशम भाव में के वल शुभ ग्रह हों तो अमल कीर्ति
नामक योग होता है, किंतु उसके अशुभ भावेश न होने तथा अपनी नीच राशि में न होने की स्थिति में ही
इस योग का फल मिलेगा।

दशमेश के बली होने से जीविका की वृद्धि और निर्बल होने पर हानि होती है। लग्न से द्वितीय और
एकादश भाव में बली एवं शुभ ग्रह हो तो जातक व्यापार से अधिक धन कमाता है। धनेश और लाभेश
का परस्पर संबंध धनयोग का निर्माण करता है।

दशम भाव का कारक यदि उसी भाव में स्थित हो अथवा दशम भाव को देख रहा हो तो जातक को
आजीविका का कोई न कोई साधन अवश्य मिल जाता है।

(यहां व्यापार या उच्च पदस्थ नौकरी हो सकता है)


[24/01, 9:11 pm] पं०तरूण भारद्वाज शास्त्री जी: परम पुण्यदायी और मोक्ष कारक ग्रह : के तु

छाया ग्रह के तु परम पुण्यदायी और मोक्ष कारक है। जिस ग्रह के साथ के तु बैठता है उसी के अनुसार
कार्य करता है। सामान्यतः यह मंगल के समान कार्य करता है। के तु की अच्छी स्थिति के बिना मोक्ष
प्राप्ति संभव नहीं है। कारकांश कुं डली से राजयोग: जिस प्रकार लग्नेश व पंचमेश के संबंध से राजयोग
देखा जाता है, उसी प्रकार आत्मकारक और पुत्र कारक से राजयोग देखना चाहिए। आत्मकारक और
पुत्रकारक दोनों लग्न या पंचम भाव में बैठे हों अथवा परस्पर दृष्ट हों अथवा उनमें किसी प्रकार का
संबंध हो और अपने उच्च नवांश या स्व की राशि में स्थित हो तथा शुभ ग्रहों द्वारा दृष्ट हो तो महाराज
योग होता है।भाग्येश और आत्मकारक लग्न, पंचम या सप्तम में हो तो हाथी घोड़े और धन से युक्त राज्य
देते हैं। कारक से 2, 4, 5 भाव में शुभ ग्रह हो तो निश्चय ही राजयोग प्रदान करते हैं। राजयोगों जन्मलग्नं
पश्यंदुच्चग्रहों यदि। षष्ठाष्टमेगते नीचे लग्नं पश्यति योगकृ त।। अपनी उच्चराशि में स्थित ग्रह लग्न को
देखता हो तो राजयोग होता है। छठे , आठवें भाव में अपनी नीच राशि में बैठा ग्रह यदि लग्न को देखे तो
वह राजयोग कारक होता है। अथवा षष्ठेश या अष्टमेश तीसरे या ग्यारहवें भाव में बैठकर लग्न को देखते
हों तो राजयोग प्रदान करते हैं। सारांश यह है कि जन्मलग्न या कारकांश लग्न को देखने वाले ग्रह भी
राजयोग कारक होते हैं। राहु-के तु के कारकत्व: दो ग्रहों के अंश समान होने पर सूर्य से राहु पर्यंत आठ
ग्रहों में आत्मादि कारकों का विचार करना चाहिए। अतः आत्मादि कारकों में के तु को सम्मिलित नहीं
किया गया है। महर्षि पाराशर जी ने के तु को घाव-फोड़ा आदि रोग, चर्म रोग, अत्यंत शूल (दर्द ), भूख से
कष्ट आदि का कारक बताया है। व्रणरोग चर्मातिशूलस्फु ट क्षुधार्तिकारकः के तुः अंतरिक्ष में के तु की
धर्म- ध्वजा सूर्य से भी अधिक ऊं ची है, जो ब्रह्मलोक को स्पर्श करती है। इसलिए के तु का झण्डा
आध्यात्मिक पराकाष्ठा का प्रतीक है। के तु वेदान्त दर्शन, महान तपस्या, वैराग्य, ब्रह्मज्ञान आदि शक्तियों
के उत्थान का प्रतीक है। ‘के तौ कै वल्यम’ महर्षि जैमिनी ने के तु को मोक्ष का स्थिर कारक माना है। यदि
के तु कारकांश लग्न से द्वाद्वश भाव में स्थित हो तो मनुष्य को मोक्ष प्राप्त हो जाता है। बृहद पाराशर
होराशास्त्रम के अनुसार कारकांश से बारहवें भाव में मेष या धनु राशि में के तु स्थित हो तथा उस पर शुभ
ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति को मोक्षपद की प्राप्ति होती है। यह मत अधिक उपयुक्त है। सद्गति में कौन
देवता सहायक: व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में कौन से देवी-देवता सहायक होंगे। किस देवी-देवता के
सहारे साधक की जीवन नैया भवसागर से पार उतरेगी। अपने अनुकू ल देवी-देवता को पहचान कर
उसकी भक्ति-आराधना करनी चाहिए क्योंकि आपके अनुकू ल देवी-देवता ही आपकी सद्गति में सहायक
होता है तथा वह स्वर्ग लोक और मोक्ष आदि की प्राप्ति कराता है। कारकांश लग्न से बारहवें भाव में के तु
सूर्य से युत हो तो जातक गौरा-पार्वती की भक्ति करने वाला शाक्त होता है। कारकांश लग्न से बारहवें
भाव में के तु चंद्रमा से युत हो तो सूर्य का उपासक होता है। कारकांश लग्न से बारहवें भाव में के तु शुक्र
से युत हो तो लक्ष्मी का उपासक और धनी होता है। कारकांश लग्न से बारहवें भाव में के तु मंगल से युत
हो तो स्कं द (कार्तिके य) का भक्त, बुध या शनि से युत हो तो भगवान विष्णु का उपासक, गुरु से युत हो
तो शिव का उपासक होता है। कारकांश लग्न से बारहवें भाव में राहु हो तो तामसी दुर्गा (कालिका,
चामुण्डा) का और भूत-प्रेतादि का सेवक होता है तथा के तु (अके ला) हो तो गणेश या स्कं द का उपासक
होता है।

राहु-के तु को ज्योतिष में छाया ग्रह की संज्ञा दी जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार राहु को असुर का
ऊपरी धड़ और के तु को पूँछ का हिस्सा माना जाता है।

इस तरह से विचार किया जाए तो के तु ग्रह के पास मस्तिष्क नहीं है अर्थात यह जिस भाव में या जिस
ग्रह के साथ रहता है, उसी के अनुसार फल देने लगता है।

के तु का सीधा प्रभाव मन से है अर्थात के तु की निर्बल या अशुभ स्थिति चंद्रमा अर्थात मन को प्रभावित


करती है और आत्मबल कम करती है। के तु से प्रभावित व्यक्ति अक्सर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं।
भय लगना, बुरे सपने आना, शंकालु वृत्ति हो जाना भी के तु के ही कारण होता है। के तु और चंद्रमा की
युति-प्रतियुति होने से व्यक्ति मानसिक रोगी हो जाता है। व्यसनाधीनता बढ़ती है और मिर्गी, हिस्टीरिया
जैसे रोग होने की आशंका बढ़ जाती है।

के तु प्राय: लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, दशम व व्यय में होने से अच्छा फल नहीं देता। तृतीय,
पंचम, षष्ठ, नवम व एकादश में के तु अच्छा फल देता है। साथ ही मेष, वृषभ, धनु व मीन राशि में के तु
अच्छा फल देता है।
ज्योतिष में राहु-के तु को छाया ग्रह की संज्ञा दी जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार राहु को असुर का
ऊपरी धड़ और के तु को पूँछ का हिस्सा माना जाता है। इस तरह से के तु के पास मस्तिष्क नहीं है अर्थात
जिस ग्रह के साथ रहता है, उसी अनुसार फल देने लगता है।
यदि किसी कुं डली में के तु अशुभ भाव में बैठा हो तो उसका उपाय करना आवश्यक है अन्यथा व्यक्ति
को ताउम्र परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।

शांति के उपाय
1. के तु से बचने का सबसे अच्छा उपाय है हमेशा प्रसन्न रहना, जोर से हँसना... इससे के तु आपके मन
को वश में नहीं कर पाएगा।
2. प्रतिदिन गणेशजी का पूजन-दर्शन करें।
3. मजदूर, अपाहिज व्यक्ति की यथासंभव मदद करें।
4. लहसुनिया पहनने से भी के तु के अशुभ प्रभाव में कमी आती है।
5. काले, सलेटी रंगों का प्रयोग न करें।

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