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धनायविक्रमसन्दर्शनम्
धनायविक्रमसन्दर्शनम्
धनायविक्रमसन्दर्शनम्
भग प्रणेतर्भग सत्यराधो भगेमां धियमुदवा ददन्नः।
भग प्रणो जनय गोभिरश्वैर्भग प्र नृभिर्नुवन्तः स्याम ॥
अथर्ववेद
सब ऐश्वर्यों व भोगों का मूल कारण और श्री, धन, कोष और महत्त्वाकांक्षाओं का उत्पत्तिस्थान भग देवता ही स्वयं हमारा प्रेरक,
कर्णधार व उन्नायक है। यही हमारे भाग्य के उत्तम स्वास्थ्य का हेतु है। इसी की कृ पा से सच्ची धनाढ्यता आती है। वह हमारी बुद्धि व
विचारों को समयानुसार कल्याणकारक मंगलमार्ग पर चलाए। वह हमारे लिए अनुकू ल रहते हुए, धन, सम्पदा, वाहन आदि सुख हमें
देता है। उसी की महिमा से हम विशाल परिवार वाले बनें।
द्वितीय भाव के विचारणीय विषय
• स्नातक, स्नातकोत्तर डिग्री कोर्सी के अतिरिक्त कोई, हुनर, व्यावसायिक शिक्षा, विशेषज्ञता हेतु शिक्षा आदि;
• जुबान, जीभ, बोलने की शक्ति, भाषण कला, प्रस्तुतिकरण, व्याख्यान,वाणी के विभिन्न व्यावसायिक प्रयोग यथा गायन आदि;
• मुंह और इसकी भीतरी संरचना;
• भाग्य से प्राप्त समस्त फलों के उपभोग के अवसर व क्षमता;
• वेशभूषा, पहनने ओढ़ने की अभिरुचि:
• सजने संवरने के शौक, लोगों से अलग दिखने वाला वेश;
• वाहन से होने वाला सुख और वाहन का लाभ;
• भोजन की इच्छा, खाने पीने की मात्रा, खान पान में पसन्दगी;
• वाणी व मन पर नियन्त्रण;
• पड़ौसियों के साथ सम्बन्ध व उनसे सुख;
• वैराग्य व त्याग की भावना का उदय;
• अपना कु ल, खानदान, वंश, कु टुम्ब;
• नाक (कान) की सुघड़ता, बनावट व शक्ति;
• झूठ बोलने की आदत;
• कं जूसी का व्यवहार;
• साख या नाम बिगड़ने के अवसर;
• किसी चीज के खरीदने बेचने की कु शलता।
कु ण्डली के छठे भाव की शुभ स्थिति जिस तरह से व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य की प्रतिनिधि है, उसी प्रकार से हमारे भाग्य या नवें
स्थान के स्वास्थ्य की शुभाशुभता दूसरे स्थान (नवें से छठा) में निहित है।
संस्कृ त शब्द 'भग' का अर्थ ही श्री, शोभा, धन, ऐश्वर्य, वैभव, विलास, प्रतिष्ठा आदि है। भग से उत्पन्न होने वाला पदार्थ या भाव
ही भाग्य है। भाग्य के भोग की क्षमता का निवास दूसरे स्थान में है। प्रश्न के सन्दर्भ में द्वितीय स्थान का अपना खास महत्त्व है।
धनसंग्रह, बचत, खानदान की परम्परा से प्राप्त होने वाली सम्पदा, मान, पारिवारिक परिवेश, सभ्य वाणी, विषय को प्रिय ढंग से
पेश कर पाना, उच्च शिक्षा, विशेषज्ञता, कु लीनता, सुखों का भोग, अर्थात् भाग्य से प्राप्त होने वाले समस्त सांसारिक सुखों की
उपभोग क्षमता का आधार दूसरा स्थान है।
तृतीय भाव से विचारणीय
अशनधनविभागौ युद्धकण्ठस्वभृत्यान्
करणगुणविनोदान् स्थैर्यधैर्ये प्रयत्नान्।
रुचिबलकु लजन्मश्रेष्ठसिद्धीः समृद्धि
सुहृदनुजकृ तं च वाददोषास्तृतीयात् ॥ 2 ॥
तृतीय भाव से मुख्यतया इन बातों को देखना चाहिए-
• अपनी राशि या उच्च राशि का शुक्र पंचम में हो और शनि ग्यारहवें स्थान में हो;
• लाभ में बृहस्पति और सिंह में सूर्य पंचम में हो;
• स्वराशि में गुरु कहीं हो और चन्द्रमा पंचम में गया हो;
• लाभ स्थान में शनि और कर्क राशि में बुध हो;
• धनु या मीन लग्न में चन्द्र, मंगल व बृहस्पति का योग या परस्पर दृष्टि सम्बन्ध बने;
• मिथुन कन्या लग्न में बुध, शुक्र व शनि आपस में दृग्योग करें;
• सिंह लग्न में सूर्य, मंगल, बृहस्पति का दृग्योग बनता हो;
• कर्क लग्न में चन्द्र, मंगल, बृहस्पति का दृग्योग बने;
• मेष या वृश्चिक लग्न में मंगल, बुध, शुक्र या मंगल, बुध, शनि का दृग्योग बने;
• वृष या तुला लग्न में बुध, शुक्र व शनि का दृग्योग हो;
• मंगल, शुक्र, शनि या राहु का कन्या राशि में कहीं भी योग बने;
• धन स्थान में शनि को बुध देखता हो;
• धन स्थान में शुभदृष्ट बृहस्पति हो और चन्द्रमा बली हो।
उसका खानदान कै सा है ?
यदि:
द्वितीय में शुभग्रह होते हुए भी, 1, 7, 12 भावों में पापग्रह हों। लग्न में बृहस्पति, द्वितीय में शनि और सप्तम में पापग्रह
हो। व्यक्ति के परिवार में विवाद, वियोग, बिखराव होता है।
क्या आंखों में विकार सम्भव है ?
• नेत्रपति अर्थात् 2, 12 भावों के स्वामी शुक्र से त्रिक (6, 8, 12) में गए हों;
• द्वितीयेश शुक्र के साथ हो;
• लग्नेश मेष, मिथुन, कन्या, वृश्चिक में हो और मंगल या बुध उसे देखे;
• द्वादश या द्वितीय में सूर्य या चन्द्रमा हो; (इन पर मंगल या बुध की दृष्टि होने से विशेष विकार होता है)
• कर्क लग्न को सूर्य देखे या योग करे;
• सिंह लग्न को चन्द्रमा देखे या योग करे;
• चन्द्रमा त्रिक में हो और सूर्य 7, 8 भावों में हो;
• त्रिकोण में शनि के साथ सूर्य 7, 8 में हो।
क्या भाषण कला या वाक् सिद्धि हो सके गी?
• द्वितीय में कई शुभ पाप ग्रह हों तो व्यक्ति अधिक बोलकर ही बात का खुलासा कर सकता है। अर्थात् उसे थोड़े वचनों से सन्तोष
नहीं होता है।
• प्रश्न समय में बुध, चन्द्रमा व मंगल बलवान् व सुस्थित हों तो व्यक्ति की भाषण कला की प्रशंसा होती है।
• द्वितीय में शुभग्रहों के अधिक वर्ग हों, धन स्थान में शुभग्रह शुभदृष्ट भी हो तो मनुष्य को वाक् सिद्धि होती है। अर्थात् उसकी कही
हुई बातें सच्ची हो जाती हैं। साथ ही वह भाषा व शब्दों का प्रभावशाली इस्तेमाल करता है।
क्या मुंह में बड़ा रोग सम्भव है?
इन योगों में मुंह, तालु, जीभ आदि में कोई जटिल रोग सम्भव होता है-
जिस तरह तीसरे स्थान से भाईयों के साथ सम्बन्धों का विचार करना बताया गया है, वैसे ही दूसरे, सातवें व बारहवें स्थानों से
पड़ौसी घरों का विचार करें। अर्थात् इन स्थानों में सूर्य, चन्द्र या पापग्रह हों तो साधारण सम्बन्ध और उनपर पाप दृष्टि भी हो तो
खराब सम्बन्ध कहें।
सातवां स्थान बिल्कु ल सामने वाले घर का, दूसरा दांयी ओर वाले का और बारहवां बांयी ओर वाले घर का होता है। अधिक सूक्ष्म
विचार के लिए इन स्थानों के स्वामियों की स्थिति से के न्द्रों में उसी दिशा में थोड़ी दूर के , पणफर में थोड़ा और दूर के और
आपोक्लिम में स्थित ग्रहों से काफी दूर लेकिन मुहल्ले में स्थित घरों और उनमें रहने वालों के साथ सम्बन्धों का विचार करना चाहिए।
क्या नौकर मिलेगा?
इन योगों में नया या गया हुआ पुराना नौकर मिल जाता है-
इन स्थितियों में पूर्वोक्त योग निष्फल हो जाते हैं। अर्थात् नौकर नहीं मिलता है-
पृच्छक अपने सभी परिवारजनों में अधिक भाग्यवान्, अनुकरणीय व माननीय होगा, यदिः
• कोई बलवान् ग्रह 3, 5, 1 स्थानों में कहीं हो और वह नवम स्थान
को देखे;
• तृतीयेश तृतीय में एवं नवमेश नवम में हो;
• कोई भी शुभ या अशुभ ग्रह उच्चगत, मूलत्रिकोणी, स्वराशिगत (कारक
ग्रहों से युक्त दृष्ट होकर) 3, 5, 9, 11 भावों में कहीं हो;
• प्रश्न लग्न में स्पष्ट राजयोग बनता हो।
क्या अचानक लाभ या पदोन्नति होगी?
• प्रश्न लग्न में स्थित बुध को यदि चन्द्रमा या कोई क्रू र ग्रह देखे तो व्यक्ति को अचानक ही कोई अधिकार या धन मिल जाता है।
लेकिन इस प्राप्ति से कु छ तनाव भी होता है।
• किसी प्रकार से प्रश्न में सफलता न दिखे तो नवम एवं लाभ स्थान देखें। इनमें से कोई एक भी भाव यदि शुभ या बली ग्रह से
युक्त या दृष्ट हो तो पृच्छक को कभी मनचाहा और कभी कोई अन्य शुभ फल मिल जाया करता है।
क्या फर्नीचर या पत्थर का काम अनुकू ल है ?
तृतीय भाव में बलवान् षष्ठेश हो तो पृच्छक को इमारती लकड़ी, फर्नीचर, शिला, पत्थर, टायल आदि का काम शुभ होता है।
तब तृतीय भाव पर बली शनि की दृष्टि भी हो तो इस काम में पृच्छक का नाम विश्वसनीय व प्रसिद्ध भी हो जाता है।
क्या ससुराल से सम्पदा मिलेगी?
त्रिके श के अतिरिक्त किसी ग्रह की राशि में बृहस्पति हो और नवम में कोई शुभ ग्रह चतुर्थेश होकर स्थित हो तो मनुष्य को ड्राइवर
सहित गाड़ी
का सुख मिलता है।
क्या अमानत संभाल सकूँ गा ?
सशुभे वित्तभावेऽम्बुनाथयोगेक्षणाज्जनः।
परन्यासस्य भोगाद् वै विरतो गीयते व्रती ॥ 39 ॥
धन स्थान में शुभ ग्रह, खास तौर से बृहस्पति हो। धनस्थान पर चतुर्थेश का योग या दृष्टि हो। इन दो स्थिीतयों में मनुष्य दूसरों की
अमानत को संभाल कर रखता है। दोनों स्थितियां साथ बन जाएं तो लोग उसकी ईमानदारी की मिसाल देते हैं।
क्या मेरा लेखन पसन्द आएगा?
भाग्येशसौख्याधिपयोगदृष्टी
लाभेशभाग्येशसमन्वयश्च।
गुरोस्त्रिकोणे सुतपे युते वा
प्रसिद्धलेखः प्रभवेन्मनुष्यः ॥ 40 ॥
चतुर्थेश व नवमेश का आपस में योग या दृष्टि सम्बन्ध बने। लाभेश व भाग्येश का परस्पर योग या दृष्टि हो। बृहस्पति से त्रिकोण में
पंचमेश हो। बृहस्पति व पंचमेश का परस्पर दृग्योग बने। इन चार स्थितियों में लेखन के कारण व्यक्ति को यश मिलता है।
क्या प्रेमी अच्छी भेंट देगा?
प्रश्न लग्न में ये स्थितियां बनने पर अपने प्रियतम या चाहने वाले से कीमती
भेंट मिलती है-
इन योगों में आसानी से बिना अधिक मेहनत किए या सट्टा, लॉटरी आदि
से लाभ होता है-
• दशमेश का नवांशेश यदि लाभेश के साथ हो या उससे दृष्ट हो;
• चन्द्रमा से 3, 6, 10, 11 स्थानों में के वल बलवान् शुभग्रह हों;
• धनेश के न्द्र में हो और लाभेश बलवान् हो;
• धन स्थान में बुध को चन्द्रमा के बिना किसी अन्य शुभग्रह का योग या दृष्टि प्राप्त हो।
लाभ स्थान में कोई भी बलवान् ग्रह अपनी उच्चादि अच्छी राशि, नवांश में हो या लाभ स्थान को ऐसे ग्रह देखें।
अथवा लाभेश के साथ धनेश, पंचमेश और नवमेश में से किसी का सम्बन्ध बनता हो।
अथवा 2, 5, 9 भावेशों में से काई लाभ स्थान में हो।
उक्त चारों स्थितियों में प्रश्नलग्न की अन्य कमजोरियां या प्रश्न की सफलता के विषय में दिखने वाला सन्देह दूर होता है। तब प्रश्न के
सन्दर्भ में पृच्छक को मनोनुकू ल सफलता का योग बनता है।
धनायविक्रम का अन्योन्य सम्बन्ध
किसी भी काम में सफलता, सिद्धि, उपलब्धि या प्राप्ति का सीधा सम्बन्ध हमारे पराक्रम, परिश्रम और प्रयत्न से ही होता है। अत: प्रश्न
के सन्दर्भ में:
• एकादश स्थान की सबलता का सौन्दर्य और अधिक निखर जाता है,यदि तृतीय स्थान (विक्रम) भी सबल हो।
• यदि इनके साथ ही धन स्थान (बचत) भी बली हो तो सफलता की मात्रा वक्त और तात्कालिक जरूरत से कु छ अधिक हो जाया
करती है।
• पंचम (बुद्धि) और नवम (भाग्य) स्थानों की बलवत्ता तो सदैव अतुल
आनन्द ही देती है।
• प्रश्न में 2, 3, 11, 5, 9 स्थान सफलता के स्तम्भ और धुरी हैं। इन स्थानों को लग्न से और विचारणीय भाव से भी देखें। इनमें
से अधिकाधिक तत्त्वों की सबलता और आपसी सम्बन्ध पृच्छक के मनोरथ पूर्ण होने की अधिकाधिक गारंटी जैसे ही हैं।
क्या भाईयों की उन्नति होगी?
चतुर्थेश और तृतीयेश चतुर्थ में हों। या सुखेश व तृतीयेश मंगल के बिना किसी अन्य ग्रह से युक्त हों। इनमें से कोई योग बने तो
प्रश्नकर्ता के भाई तरक्की नहीं कर पाते हैं।
क्या कानों में कोई कमी होगी?
तृतीय व एकादश स्थान शुभपंचक में स्थित ग्रहों से युक्त हों और इनके स्वामी ग्रह भी शुभपंचक में ही हों। इन स्थानों पर कोई पाप
प्रभाव न हो तो व्यक्ति को कानों का सुख, समुचित श्रवण शक्ति बनी रहती है।
इसके विपरीत, अशुभपंचक में स्थित ग्रहों का दृग्योग इन स्थानों में हो और इनके स्वामी भी अशुभपंचक में गए हों तो श्रवण शक्ति की
कमी, कानों में रोग, कर्णेन्द्रिय की हानि होती है।
क्या मेरा कोई सौतेला भाई है?
यहां बताए जा रहे योगों में से कोई एक भी बनता हो तो पूछने वाले को इच्छित वस्तु, धन, पद, जमीन, वर (दूल्हा), सफलता आदि,
जहां जैसा प्रश्न हो, मिल जाती है-
• के न्द्र व त्रिकोणों में सब शुभग्रह हों और पापग्रह के न्द्र व अष्टम में न हों;
• लग्न में कोई उच्चगत या स्वराशि आदि में स्थित ग्रह हो और दशम में सूर्य हो;
• शुभग्रह से युक्त लग्न में बुध की राशियों में गुरु व शुक्र हों और दशम में मंगल हो;
• सिंह लग्न में स्थित कोई ग्रह अपने उच्च या स्वक्षेत्र में बैठे शुभग्रह को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो।
विलग्नकार्याधिपती सचन्द्रौ
निजोच्चभस्थौ शुभदृष्टयुक्तौ।
शुभाः सचन्द्रा बलिनो भवेयु
स्त्रयः समस्तार्थफलाश्च योगाः ॥ 54 ॥
• लग्नेश, चन्द्रमा व जिस भाव से सम्बन्धित प्रश्न हो उसका स्वामी (कार्येश), ये तीन यदि आपस में सम्बन्ध, दृष्टि या योग करें;
• लग्नेश व कार्येश में कोई एक या दोनों उच्चादिगत हों और शुभग्रह इनसे दृष्टि या योग करें;
• चन्द्रमा सहित सभी शुभग्रह प्रश्न के समय बलवान् हों।
शुभः स्वोच्चादिग: खेट: शुभदृग्योगसंस्थितः।
लग्नाम्बुपुत्रलाभस्थः सर्वसिद्धिं च शंसति ॥ 55 ॥
कोई एक भी ग्रह अपने उच्चादि शुभपंचक में स्थित होकर शुभग्रह से युक्त या दृष्ट हो और 1, 4, 5, 11 भावों में कहीं हो तो यह भी
वांछित कार्य में सफलता का पुष्ट योग है।
प्रश्न के समय जो भावेश अपनी राशि से 6, 8, 12 में गया हो, वह उस भाव से सम्बन्धित प्रश्नकी असफलता या हीनता को
द्योतित करता है।
विचारणीय भावेश सहित कई ग्रह यदि आपस में पूर्ण दृष्टि रखते हों या एक दूसरे की राशियों में त्रिकरहित भावों में स्थित हों तो पूर्ण
कार्यसिद्धि को बताते हैं।
यदि परस्पर दृष्टि या राशि परिवर्तन वाले ग्रह विचारणीय भाव या प्रश्न लग्न से त्रिक में हों तो भी आंशिक या काफी प्रयत्नों से
सफलता का संके त देते हैं।
विचारणीय भाव या लग्न से एकादश में स्थित ग्रह कार्य में सफलता को ही प्रकट करता है।
त्रिकस्थिति का अपवाद
• लग्नेश द्वादश में, द्वितीयेश लग्न में, तृतीयेश द्वितीय में, चतुर्थेश तृतीय में और लाभेश दशम में स्थित हों तो इन्हें त्रिक में होने का
दोष नहीं लगता है।
• इसी तरह से पंचमेश चतुर्थ में, दशमेश नवम में हो या कोई के न्द्रेश व त्रिकोणेश आपस में अदल बदल करके किसी के न्द्र या
त्रिकोण में ही हों तो भी त्रिक स्थिति का दोष नहीं लगता है।
• यदि कोई एक ही ग्रह लग्नेश या विचारणीय भावेश होकर साथ ही किसी त्रिकभाव का भी पति हो तो भी त्रिकस्थिति का दोष नहीं
लगेगा। उदाहरणार्थ, मेष में मंगल, वृष में शुक्र, मकर में शनि हो तो अपनी दूसरी राशि वाले भावों को नुकसान नहीं पंहुचाएंगे।
ग्रहों के हर्ष स्थान
प्रश्न के समय इन स्थितियों में ग्रह हर्षबली अर्थात् प्रसन्न रहकर अच्छा फल देने वाले कहे गए हैं। कई ग्रह हर्षित हों तो प्रश्न का फल
अनुकू ल और मनभावन होता है।
• अपने उच्च, मूलत्रिकोण राशि, स्वराशि (अधिमित्र या मित्र की राशि अर्थात् शुभपंचक में) स्थित ग्रह;
• इन्हीं राशियों के नवांश में या वर्गोत्तम नवांश में स्थित ग्रह;
• षड्वर्गों में अधिकांश स्थानों में उक्त राशियों में स्थित ग्रह;
• अपनी स्थित राशि के स्वामी के साथ बैठे या उससे दृष्ट ग्रह;
• द्वितीय, तृतीय और दशम में चन्द्रमा;
• नवम स्थान में शनि;
• चतुर्थ में बुध,
• लग्न में सूर्य;
• सप्तम में मंगल;
• लाभ स्थान में सभी ग्रह।
प्रश्नसन्दर्शनाख्ये ग्रन्थे दिल्ल्यां सुरेशमिश्रोक्ते ।
धनायविक्रमपूर्वं सन्दर्शनसंज्ञमवसितं षष्ठम् ॥ 60 ॥
दिल्लीवासी डॉ. सुरेश चन्द्र मिश्र द्वारा कहे जा रहे इस प्रश्नसन्दर्शन नामक ग्रन्थ में, द्वितीय, तृतीय और एकादश स्थानों से विचार करने
योग्य विविध प्रश्नों का विवेचन करने वाला, यह धनायविक्रमसन्दर्शन नामक छठा अध्याय सम्पन्न होता है।