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Presentation 8
Presentation 8
1. आजीविका प्रश्न
1.1 बहुधा पृच्छक का प्रश्न होता है—मेरी नौकरी कब लगेगी, मेरी पदोन्नति कब होगी अथवा क्या मेरे लिए नौकरी बदलना लाभ प्रद रहेगा। विज्ञ ज्योतिषी इन सब प्रश्नों में दशमभाव को कार्य तथा
दशमेश को कार्येश मानने की सम्मति देते हैं।
(2)(i) यदि द्वितीयेश (धनेश) अथवा लाभेश उच्चराशिस्थ, स्वक्षेत्री या मित्र क्षेत्री होकर दशम भाव में स्थित हों अथवा
(ii) दशमेश का दृष्टि युति संबंध लाभ या धन भाव से हो अथवा
(ii) दशमेश का संबंध लग्न के साथ लाभ या धन भाव से भी हो अथवा
(iv) लाभेश या धनेश का दृष्टि युति संबंध लग्न तथा दशम भाव से हो तो इनमें से प्रश्न कुं डली का कोई भी योग जातक को आजीविका क्षेत्र में उन्नति,
लाभ व पद-प्रतिष्ठा दिया करता है।
(3) पुरुषार्थ से अधिकार प्राप्ति
(i) यदि दशमेश उच्चराशिस्थ, स्वक्षेत्री, मित्रक्षेत्री या अन्य प्रकार से बली होकर तृतीय (पराक्रम) अथवा पंचम (बुद्धि विद्या) भाव में शुभ ग्रह से दृष्टि युति करे अथवा
(ii) दशमेश की पराक्रमेश से युति तथा लग्नेश से इत्थशाल हो या
(iii) दशम भाव या दशमेश का संबंध पंचमेश, पराक्रमेश तथा लग्नेश से हो तो ऐसा जातक प्रतियोगिता अथवा साक्षात्कार में अपने पराक्रम तथा बुद्धि बल से सफलता प्राप्त कर श्रेष्ठ आजीविका वन
अधिकार पाता।
(4) भाग्य या अनुग्रह से पद लाभ
(i) यदि दशमेश तथा नवमेश की युति नवम या दशम भाव में हो अथवा
(ii) दशमेश तथा नवमेश का परस्पर राशि परिवर्तन हो अथवा
(ii) दशमेश नवमस्थ होकर नवमेश से दृष्ट हो अथवा
(iv) दशमस्थ भाग्येश पर दशमेश की दृष्टि हो अथवा
(v) दशमेश व नवमेश का परस्पर दृष्टि विनिमय हो तो इनमें से कोई भी योग बनने पर पृच्छक उच्च अधिकारियों का कृ पापात्र बनकर उच्च पद, अधिकार अथवा वेतन वृद्धि पाता है।
(5) बलवान वशमेश से पद प्राप्ति
(i) प्रश्न कुं डली में यदि दशमेश बलवान (उच्चस्थ, स्वगृही, मित्रक्षेत्री, दृष्ट-युक्त) होकर बली लग्नेश से दृष्टि युति संबंध करे अथवा
(ii) बलवान दशमेश भाग्येशं व लाभेश से दृष्टि युति करे अथवा
(ii) द्वितीयेश या पंचमेश का संबंध दशम भाव या दशमेश से हो अथवा
(iv) भाग्येश का दृष्टि युति संबंध पंचमेश से तथा लग्नेश का संबंध दशमेश से शुभ हो अथवा
(v) किसी भी प्रकार से द्वितीयेश, पंचमेश, लाभेश या लग्नेश का संबंध दशमेश या भाग्येश से हो तो ऐसा जातक निश्चय ही श्रेष्ठ नौकरी व अधिकार पाता है।
(i) दशम भाव आजीविका (नौकरी) का कारक है तो द्वितीय भाव (वाणी स्थान) साक्षात्कार या मौखिक परीक्षा को दर्शाता है।
(ii) यदि लग्नेश का संबंध दशम भाव या दशमेश से हो।
(iii) लग्नेश यदि लग्न को देखे अथवा लग्न में हो तथा दशम भाव पर दशमेश की दृष्टि या स्थिति हो अर्थात् दोनों लग्नेश व कार्येश पूर्ण बली हों।
(iv) दशमेश का संबंध (दृष्टि-युति) लग्न या लग्नेश से हो तो इनमें से किसी भी योग का संबंध वाणी भाव या वाणी पति से हो तो जातक साक्षात्कार में सफलता पाता है।
(v) यदि दशमेश व लग्नेश की युति लग्न या दशम भाव में हो तथा इस पर द्वितीयेश की दृष्टि हो तो जातक अवश्य ही साक्षात्कार में सफलता प्राप्त कर धन, मान, पद व प्रतिष्ठा पाता है।
7.3. लिखित प्रतियोगिता का परिणाम
(i) यदि लग्नेश अथवा चंद्रमा शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट होने से बली हो तथा पंचम भाव या पंचमेश से दृष्टि युति संबंध करे।
(ii) लग्नेश व पंचमेश की युति लग्न या पंचम भाव में हो।
(iii) लग्नेश व पंचमेश परस्पर राशि परिवर्तन अथवा दृष्टि संबंध करें।
(iv) पंचम भाव पर लग्नेश तथा पंचमेश की दृष्टि हो तो इनमें से कोई भी योग होने पर जातक श्रेष्ठ सफलता पाता है।
(v) लग्नेश व पंचमेश पर मिश्रित (शुभ व अशुभ) प्रभाव जातक को द्वितीय या तृतीय श्रेणी देकर साक्षात्कार से वंचित कर सकता है।
4. नौकरी पाने के योग
(i) दशम भाव में (लग्नेश-शुभ चंद्रमा) की युति पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो
(ii) लग्नस्थ दशमेश पर लग्नेश या चंद्रमा की दृष्टि हो।
(iii) लग्नेश, दशमेश व चंद्रमा का परस्पर दृष्टि-युति-इत्थशाल योग हो।
(iv) गुरु उच्चस्थ या स्वक्षेत्री होकर द्वितीय या दशम भाव में स्थित हो।
(v) मीन लग्न में (गुरु-शुक्र) पर बुध की दृष्टि हो तथा उच्चस्थ मंगल लाभ स्थान में हो।
(vi) लग्न में (दशमेश चंद्रमा) की युति पर शुभ दृष्टि हो।
(vii) बली दशमेश का संबंध दशम भाव तथा लग्न या लग्नेश से हो।
(viii) प्रश्न कुं डली में सभी शुभ ग्रह अपने उच्च, स्व या मित्र राशि में के न्द्र, त्रिकोण या धन भाव में हों।
(ix) वृष लग्न में (चंद्रमा बुध-शुक्र) की युति हो तथा पराक्रम भाव से उच्चस्थ गुरु निष्कलुष लाभ स्थान को देखे।
(x) लग्न में शीर्षोदय राशि (5,6,7, 8, 3, 11वीं राशि) बली चंद्रमा का संबंध लग्नेश या दशमेश से हो। दशम भाव भी शुभ युक्त या शुभ दृष्ट हो।
इनमें से कोई भी योग होने पर पृच्छक को अच्छी नौकरी मिलती है।
4.1. नौकरी नहीं बदलें
(i) यदि शुभ ग्रहों का दृष्टि युति संबंध द्वितीय, सप्तम तथा अष्टम भाव से हो तो इसे धन, स्वास्थ्य व सुख का कारक मानें।
(ii) लग्न व सप्तम भाव का संबंध चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र आदि शुभ ग्रहों से होना दया, प्रेम, प्रसन्नता व सहयोग को दर्शाता है।
(iii) यदि लग्नेश उच्चस्थ, स्वक्षेत्री, शुभ युक्त या के न्द्रस्थ होकर चंद्रमा से इत्थशाल करे तो मालिक बदलने का औचित्य नहीं।
(iv) शीर्षोदय स्थिर राशि लग्न में हो तथा दशमेश का संबंध द्वितीय या एकादश भाव से हो।
इनमें से कोई भी योग होने पर जातक उसी नौकरी में रहकर लाभ व यश पाता है। ध्यान रहे शीर्षादय राशि (3,5,6,7,8, 11वीं राशि) लग्न में
शुभ दृष्ट या युक्त हो, त्रिषडाय भाव पाप ग्रह से युक्त तथा धन, सप्तम व मृत्यु भाव शुभ युक्त होने से जातक उच्च अधिकारियों का स्नेह भाजन, लाभ, यश व सुख पाने वाला होता है।
5. पद व अधिकार प्राप्ति
(i) दशम भाव में (दशमेश लग्नेश चंद्रमा) की युति पर शुभ ग्रहों की दृष्टि राजसम्मान या उच्च अधिकार दिलाती है।
(ii) लग्नेश यदि उच्चस्थ होकर दशम भाव में स्थित हो।
(iii) वृष राशिस्थ चंद्रमा दशम भाव में दशमेश या लग्नेश से दृष्ट हो।
(iv) लग्नेश लग्न में स्वगृही हो कर किसी अन्य उच्च राशिस्थ या स्वक्षेत्री ग्रह से दृष्ट हो तथा दशम भाव व दशमेश भी बली हो।
(v) मीन लग्न में (गुरु शुक्र) की युति हो तथा उच्चस्थ मंगल लाभ स्थान में बैठे।
(vi) के न्द्र भाव में गुरु हो तथा वृषलग्न में बुध, चंद्रमा व शुक्र की स्थिति हो।
(vii) दशमेश लग्न में उच्चस्थ हो। (ये योग कन्या लग्न में घटेगा।)
(viii) लग्न में उच्चस्थ मंगल तथा दशमेश दशमस्थ हो अथवा दशम भाव को देखे।
इन योगों में से कोई भी योग उच्च पद, प्रतिष्ठा व अधिकार प्राप्ति का संके त देता है।
6. क्या नौकरी बदलना उचित है
(i) लग्न से द्वितीय, सप्तम व अष्टम भाव में पाप ग्रह की स्थिति होने पर नौकरी बदलना उचित है। कारण लग्न से 2.7, 8वें भाव में पाप ग्रह स्वामी व
सेवक दोनों के लिए अनिष्टप्रद हैं।
(ii) यदि लग्नेश के न्द्र स्थान में बैठकर षष्ठेश या व्ययेश से इत्थशाल (दृष्टि-युति) संबंध करे तो अन्य मालिक से धन लाभ जानें।
(iii) उच्चराशिस्थ, स्वक्षेत्री, शुभ युक्त अथवा शुभ दृष्ट होकर सप्तमेश यदि चंद्रमा से इत्थशाल करे तो दूसरे मालिक से धन प्राप्ति होती है।
(iv) लग्न में शीर्षोदय व चर राशि तथा लग्नेश का बली होना बहुधा दूसरी नौकरी से धन या पदोन्नति का संके त देता है।
(1) ज्योतिषी दिव्य ज्ञान का प्रकाश फै लाकर आशा, उत्साह साहस व सुख को बढ़ाने का काम करता है। शायद इसी कारणवश प्राच्य ग्रंथों में राज योगों पर अधिक साहित्य उपलब्ध है तथा यदि कहीं
अरिष्ट योग की चर्चा की गई तो वहाँ अरिष्ट भंग योग व अरिष्ट शांति उपायों पर भी विचार हुआ है।
(2) मित्र व प्रशंसकों के आग्रह से इस प्रसंग को लिखने का साहस जुटा रहा हूँ। विज्ञ पाठकों से अनुरोध है कि जब कभी अनिष्ट कारक या अशुभ बात कही जाए तो उसके साथ जुड़ी हताशा से बचने के
लिए उपाय भी अवश्य बताएं-बड़ी कृ पा होगी।
(3) प्रश्न कुं डली में लग्नेश व दशमेश का संबंध 6, 8, 12वें भाव या इनके स्वामियों से होना विघ्न बाधा या कार्य हानि को दर्शाता है।
(4) दशम भाव का मंद गति ग्रह (शनि, राहु) से संबंध तथा लग्नेश व चंद्रमा का हीन बली होना आजीविका प्राप्ति में बाधा देता है।
(5) लग्नेश व दशमेश का पापग्रस्त होकर परस्पर षडाष्टक (6, 8वें भाव में) होना भी नौकरी का निषेध दर्शाता है।
(6) लग्नेश व दशमेश चतुर्थ भाव में स्थित वक्री ग्रह या मंदगति ग्रह (शनि, राहु, अरुण, वरुण, यम) से संबंध करें तो लगी हुई नौकरी छू टने का भय होता है।
12. नौकरी छू टने का भय
(i) प्रश्न कुं डली में दशमेश यदि पापाक्रान्त अथवा नीच राशिस्थ हो तथा लग्न भी हीन बली या अशुभ प्रभाव में हो तो नौकरी छू ट सकती है।
(ii) यदि लग्नेश अपनी नीच राशि के स्वामी से दृष्टि-युति या इत्थशाल करे तो नौकरी छू टती है। गुरु के लिए मकर नीच राशि है। दशमेश गुरु यदि अपनी नीच राशि के स्वामी शनि से दृष्टि-युति या
इत्थशाल करे तो नौकरी से निलंबन की संभावना होती है।
(iii) दशमेश हीन बली व पापाक्रान्त होकर यदि धनेश अथवा लाभेश से संबंध करता हो तो धन संबंधी भ्रष्टाचार (आर्थिक अनियमितता) के कारण निलंबन होता है।
(iv) लग्नेश व दशमेश की युति त्रिक भाव (6, 8, 12वें भाव) में हो या त्रिकभाव के स्वामी दशम भाव या दशमेश तथा लग्नेश से संबंध करें तो
जातक अपने दुष्कर्म का दंड पाता है।
(v) चंद्रमा व लग्नेश यदि बली हों तथा दशम भाव या दशमेश का संबंध गुरु से हो तो नौकरी नहीं छू टती व जातक मात्र चेतावनी पाकर छू ट जाता है।
(vi) विद्वानों ने चतुर्थ भाव को कु शल क्षेम व मानसिक सुख का भाव माना है। चौथे भाव में पाप ग्रह की स्थिति या दृष्टि मान भंग कर मानसिक क्ले श देती है। इसके विपरीत चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह
(चंद्र, बुध, गुरु, शुक्र) को दृष्टि युति मान-सम्मान की रक्षा कर जातक को सुख संतोष देती है।
13. स्थानान्तरण (Transfer)
(i) चर लग्न का शुभ ग्रहों से दृष्टि युति संबंध बहुधा मनचाहा स्थानान्तरण देता है। कारण लग्न व दशम भाव में चर राशि का होना परिवर्तन का संके तक है।
(ii) लग्नेश का तृतीयेश से दृष्टि-युति-इत्थशाल संबंध थोड़ी दूरी की छोटी यात्रा वाला स्थानान्तरण दिया करता है।
(iii) इसके विपरीत नवमेश का लग्न या लग्नेश से संबंध सुदूर स्थान पर लंबी दूरी की यात्रा वाला स्थानान्तरण देता है।
(iv) यदि लग्नेश व चतुर्थेश अथवा चतुर्थ भाव हीन बली या पापाक्रान्त हो तो वर्तमान स्थान पर कु छ समस्या या कठिनाई के कारण स्थानान्तरण पाता है।
(v) यदि लग्नेश व दशमेश बली होकर चंद्रमा या गुरु से संबंध करें तो स्थानान्तरण से सुख व लाभ मिलता है।
(vi) लग्न या दशम भाव में दशमेश की स्थिति कभी उसी नगर में (स्थानीय) स्थानान्तरण को दर्शाती है।
(vii) यदि चंद्रमा अथवा दशमेश की वक्री ग्रह के साथ दृष्टि युति हो तो अवांछित स्थानान्तरण का आदेश निरस्त हो जाता है।
14. अरिष्ट शान्ति के उपाय
(i) स्थानाभाव के कारण अधिक लिख पाना संभव नहीं। जिज्ञासु पाठक "आजीविका विचार ज्योतिष के झरोखे से” नामक पुस्तक में विभिन्न उपाय पा सकते हैं।
(ii) गणपति को विघ्नहर्ता माना गया है। विज्ञ ज्योतिषी कार्य में विघ्न बाधा का संके त मिलने पर “ॐ गं गणपतये नमः” का 21 हजार बार जाप कराएँ।
(
iii) कार्य क्षेत्र में चिंता परेशानी होने पर निम्नांकित मंत्र का 11 हजार जप कराएं।
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।
स्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
पदोन्नति पाने के लिए या मनपसंद आजीविका प्राप्ति हेतु विज्ञ ज्योतिषी निम्न मंत्र का जप कराएं
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।
देवी के सम्मुख दीप जलाकर विधिवत 3 माला प्रति दिन जप करने से 6 माह में कार्य सिद्धि होती है। यदि पृच्छक धार्मिक आस्था से युक्त व सात्विक संस्कारों का हो तो उसे
देवी का नवाक्षर मंत्र भी बताया जा सकता है। “ॐ ऐं ही क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इस मंत्र का ग्यारह हजार जप करने से सुख व सफलता सुनिश्चित
होती है।
(iv) ॐ जयन्ती, मंगला काली,
भद्रकाली, कपालिनी।
दुर्गा क्षमा स्वधा धात्री
स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते।
इस यंत्र को 28 बार पढ़ कर, पेय जल को अभिमंत्रित कर उसे जातक को पिलाएं। ये प्रयोग 3 या 6 सप्ताह तक करना है। इससे धन, आरोग्य, सुख और सम्मान की प्राप्ति होती है।