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Rahul Maheshwari - 7566722730

TOPIC – VEDIK SIDDHANT

युति :- जब दो या दो से ज्यादा ग्रह एक ही राति और एक ही नक्षत्र में बने हुए होिे है िो उसे युति कहिे
है.....मुख्यिः युति तजिनी करीबी होगी फल ग्रह आपस मे एक दूसरे से उिना ही करीबी सम्बब्ध रखिे
है......

(1) ककसी भी ग्रह की 6° (+)(-) िक बनी हुई युति सबसे मजबूि कहलािी है ।

(2) सूयय चंद्र ककसी ग्रह से 8°(+)(-) िक मजबूि युति में रहिा है ।

(3) राहु के िु अपनी राति मे बने सभी ग्रहो से युति करने कक िाकि रखिा है ।

Note - # एक ही नक्षत्र में बनी युति 6° िक करीब न हो िो वह कमजोर युति कहलािी है ।

# अगर एक ही राति मे कोई ग्रह दो अलग अलग नक्षत्र में युति करिे है और चाहे वो 6° के अंदर ही क्यो
न हो वह युति नही कहलािी है ।

*दृष्ट्री :-* सभी ग्रह अपनी सप्तम दृष्ट्री से ठीक 180° पर मिलब सामने वाले भाव को देखिा ही है.........

जैसे चंद्र अगर भाव-7 मे बैठा है िो वह अपने से सप्तम भाव अर्ायि 180° से भाव-1 को पूर्य दृष्ट्री से
देखग
े ा ।

ितन - 3&10
गुरु - 5&9
मङ्गल - 4&8

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यह इनकी अतिररक्त दृष्ट्रीया होिी है ।

Note:- राहु के िु की 5,7&9 दृष्ट्री िास्त्रों में बिाई गई है, लेककन राहु के िु को जो ग्रह देखिा है उससे वह
ज्यादा प्रभातवि होिा देखा गया है बजाय राहु-के िु की दृष्ट्री का इसतलए यहां राहु और के िु पर कोनसा ग्रह
दृष्ट्री डाल रहा है यह देखनस बेहद जरूरी है ।

*दृतष्ट्रयो के प्रकार:-*

(1)समसप्तक दृष्ट्री:- ऐसे ग्रह जो एक दूसरे के आमने सामने हो जैसे कोई एक ग्रह मेष राति मे ओर दूसरा
ठीक सामने िुला राति मे ऐसे ग्रहो की समसप्तक दृतष्ट्रया होिी है दोनो ग्रह एक दूसरे पर प्रभाव रखे होिे है।

(2) मंगल-ितन की (4-10) दृष्ट्री , जैसे ितन मेष राति में हो और मङ्गल मकर राति मे हो िो मङ्गल
अपनी चिुर्य दृष्ट्री से ितन को देखग
े ा वही ितन अपनी दिम दृष्ट्री से मङ्गल को देखग
े ा।

(3) राहु के िु से युति वाले ग्रह भी अपने सामने वाले भाव को देखिा है उनकी भी सप्तम दृष्ट्री होगी लेककन
वह राहु के िु को नही देख सकिा है भाव को देखग
े ा ।

*ितन की दृष्ट्री खराब मानी जािी है वही गुरु की दृष्ट्री को महान कहा गया है ।*

दृष्ट्री का अर्य होिा है प्रभाव में होना , ककसी भी ग्रह दृष्ट्री ककसी भी भाव या ग्रह पर होिी है िो वह भाव
और ग्रह प्रभातवि जरूर होगा , जैसे ग्रह की दृष्ट्री होगी वैसा प्रभाव वहां छोड़ेगा.........!!

सूय(य क्रूर), ितन, मङ्गल - नैसर्गयक पाप ग्रह

गुरु, िुक्र ,बुध, चंद्र - नैसर्गयक िुभ ग्रह

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*उपचय (3-6-10-11) भाव:-* 3,6,10&11 भाव पर क्रूर और पाप ग्रहों की दृष्ट्री अच्छे पररर्ामो
वाला होिा है ।

*िुभ (1-5-9) भाव:-* 1,5,9 भाव पर िुभ ग्रहों की दृष्ट्री बहुि अच्छे पररर्ामो वाली होिी है ।
(Note:- िुभ ग्रहों की दृष्ट्री सभी जगह िुभिा का ही घोिक है, 1-5-9 पर तविेष िुभ हो जािी है ।)

*1-2-4-7-8-12 भाव:-* इन भाव मे क्रूर ओर पाप ग्रह की दृष्ट्री अच्छा पररर्ाम नही देिी है, इन्ही
भाव मे मङ्गल होने से मांगतलक दोष भी बनिा है, यहां यह भाव सीधे िौर पर पाररवाररक सुखों से जुड़े
हुए होिे है जहां क्रूर और पाप ग्रहों का काम नही होिा है ।

दृष्ट्री तविेष गुरु - (1) गुरु अगर सूयय और चंद्र दोनो को एक सार् देखिा है िो जािक को सरकार से लाभ
तमलिा है।

(2) गुरु अगर मंगल,िुक्र को देखिा है िो तववातहक जीवन मधुर रहिा है ।

(3) गुरु अगर ितन को देखे िो कै ररयर में जािक को मजबूि उन्नति तमलिी जािी है ।

(4) गुरु अगर के िु को देखे िो जािक दाियतनक होिा है।

दृति तविेष ितन - (1) ितन अगर सूय/य चंद्र दोनो को देखिा है िो व्यतक्त का बचपन का जीवन संघषय मय
रहिा है ।

(2) ितन अगर बुध/मंगल दोनो को देखिा है िो भाई-बहन-तमत्र से जािक को संघषय तमलिा है ।

(3) ितन अगर िुक्र-मंगल-गुरु िीनो को एक सार् देखे िो वैवातहक जीवन नीरस रहिा है ।

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(4) ितन अगर के िु को देखे िो जािक एकान्ि पसन्द करिा है।

Note - 8&12 में इस िरह की दृति सबसे नेगरे िव हो जािी है ।

उपचय भाव :- 3,6,10&11 भाव को हम ज्योतिष में उपचय भाव बोलिे है.......

उपचय का िातब्दक अर्य होिा है वृति भाव , यह वो भाव है तजनसे हम लगािार वृति करिे है......

वृति मिलब अपने मेहनि, पराक्रम ,बाहुबल, जोि, होि , लगन, साहस ,इच्छा ितक्त , के सार् ककया गया
काम ही वृति भाव होिा है..........ककसी भी संकि को फे स करने वाला, तहम्मि नही हारने वाला , लगािार
पराक्रम करिे रहना ही उपचय भाव है...........!!

ऋतष पारािर जी के सूत्र के अनुसार 3,6,10&11 भाव मे क्रूर ग्रह अच्छे फल देिे है यहां उनके कहने का
सीधा मिलब ये र्ा कक व्यतक्त को साहस, पराक्रम, प्रतियोतगिा, तहम्मि नही छोड़ना, ककसी भी काम ओर
घिनाओ को फे स करने में हमेिा क्रूर और पाप ग्रह ही िाकि देिे है *ितन, मङ्गल राहु ,के िु, सूय*य ये ग्रह
इन उपचय भाव से सम्बन्ध रखिे है िो डेकफनेिली बकिया फल देगा,क्योकक ये सभी तहम्मि जोि, क्रूर और
पाप प्रकृ ति के है ओर भाव 3,6,10&11 भाव भी इसी िरह के जो डिकर तथर्तियों का सामना करवाने
में मातहर है.............इसीतलए उपचय भाव मे क्रूर ओर पाप ग्रह िुभ फल दायक हो गया................!!

*राति पररवियन योग:-* राति पररवियन योग का सीधा मिलब होिा है कमय का पररवियन होना , जब कोई
दो ग्रह आपस मे अपनी अपनी राति बदल लेिे है या ऐसा कहे दो परथपर ग्रह आपस मे एक दूसरे की राति
मे होिे है उसे ही राति पररवियन या कमय का पररवियन योग कहा जािा है.............यह योग तजस भाव से
आपस मे कनेतक्ितविी बनािा है उन भाव का आपस मे एक िरह से एक अनुबध ं हो जािा है....…...वहां
मजबूिी प्रदान करिा है राति पररवियन योग एक थ्ांग योग वैकदक ज्योतिष में माना गया है............

कं डीिन:-

(1) कें द्र(1-4-7-10)तत्रकोर्(1-5-9) का पररवियन राजयोग कारी होिा है ।


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(2) बुरे भाव का आपस मे पररवियन काफी सँघषय के बाद सफलिा देिा है ।

(3) अन्य भाव का राति पररवियन योग योग अच्छे या बुरे दोनो हो सकिे है उनका तनष्कषय सूचक द्वारा ही
तनकलिा है ।

उदाहरर् :-

जैसे मेष लग्न में सूयय ितन का पररवियन(5&10) राजयोगकारी होिा है। (जबकक दोनो ित्रु है )

उसी प्रकार मङ्गल ओर चंद्र का भाव (4&8) का पररवियन िनाव वाला रहेगा । (जबकक दोनो तमत्र है)

*नक्षत्र पररवियन योग:-* नक्षत्र पररवियन योग व्यतक्त को इंिनयल िाकि व्यतक्त को देिा है, आंिररक रूप से
मजबूि बनािा है हम सभी जानिे है व्यतक्त अगर कु छ भी कमय में कन्विय कर रहा है िो उसके नक्षत्र(मन) कक
िाकि ही है बस यही नक्षत्र का आपस मे पररवियन आंिररक मन को बहुि बल देिा है ।

वही कं डीिन नक्षत्र पररवियन में भी है जो राति पररवियन में होिी है , तजस ग्रह ओर भाव के सार् पररवियन
हुआ उसके गुर्ों में बिोिरी होिी जाएगी ।

नीच भंग राजयोग:-

(A) जब कोई भी ग्रह नीच राति मे होिा है और उस राति का थवामी उच्च या थवराति में होकर कें द्र में
होिा है िो नीच भंग राजयोग बनिा है।

(B) जब दो नीच ग्रह आपस मे एक दूसरे को समसप्तक होकर देखिे हो उसे भी नीच भंग कहा जािा है ।

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(C) जब कोई नीच ग्रह उसके राति थवामी या उच्च ग्रह के सार् बैठा होगा ओर तजिना करीबी युति में
होगा िो उिना मजबूि नीचभंग राजयोग बनेगा।

यह िीन कं डीिन मुख्य है ������

कें द्र तत्रकोर् का सम्बंध :- जब कोई दो ग्रह आपस मे कें द्र ओर तत्रकोर् के थवामी होकर अगर कें द्र या तत्रकोर्
में ही युति दृष्ट्री नक्षत्र या कै से भी समंध बनाये वो राजयोग कारी होिा है ।

यह योग वैकदक ज्योतिष में काफी योगकारक माना जािा है *कें द्र और तत्रकोर् का आपसी सम्बन्ध सदैव
उत्कृ ि ररजल्ि वाला होिा है इसमे भी कमय भाव दिम का भाव 5&9 से सम्बि होना सबसे योगकारक
तथर्ति का घोिक है अगर यह सम्बि युति में कें द्र और तत्रकोर् में होिा है िो इससे बड़ा राजयोग ओर कु छ
नही होिा है उच्च थिरीय योग में से एक होिा है ।

*चंद्र ओर सूयय* से बनने वाले अनके योग वैकदक ज्योिष में है इन दोनों से ग्रहो के सबसे ज्यादा योग वैकदक
ज्योतिष में इसतलए ही रहा होगा क्योंकक मन और कमय के तमक्सअप ही घिना या जीवन है ।

(1) जब चंद्र के आसपास िुभ ग्रहों का जमावड़ा हो या िुभ ग्रहों की युति दृष्ट्री में चंद्र हो िो िुभ योग
बन जािे है सुनफा योग, अनफा योग, गजके िरी योग (गुरु का चंद्र की युति का आपसी दृष्ट्री सबसे
योगकारक होिी है ।)

उसी प्रकार चंद्र पर पाप ग्रह या क्रूर ग्रहो का इफ़े क्ि रहेगा िो अिुभ दोष बन जािे है (जैसे के मुद्रम योग यह
जब बनेगा जब चंद्र पर कोई भी िुभ ग्रह से कनेक्िन न हो और चंद्र के आसपास वाले भाव खाली हो , यह
योग बुरे पररर्ामो वाला होिा है ।)

(2) पापकियरी योग भी चन्द्र से ही बनिा है जब चंद्र के आस पास वाले भाव मे दो पाप ग्रह हो जाये िब ,
उसी प्रकार िुभ कियरी योग भी बन जािा है जब चंद्र के आसपास भाव मे िुभ ग्रह होिे है िब.......…

*पंच महापुरुष योग :-*

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पँच महापुरुष योग में – रूचक, भद्र, हंस, मालव्य और िि योग आिे हैं मंगल (Mars) से “रूचक” योग
बनिा है, बुध (Mercury) से “भद्र” , बृहथपति (jupiter) से “हंस “, िुक्र (venus) से “मालव्य ”
और ितन (saturn) से “िि” योग बनिा है इन पांच योगो का ककसी कुं डली में एक सार् बनना िो
दुलभय है परन्िु यकद पँच महापुरुष योग में से कोई एक या एक से अतधक भी कुं डली में बने िो एक खूबसूरि
ऊजायवान व्यतक्तत्व का तनमायर् करिा है , हलाकक पौरातर्क ज्योतिषीय ग्रंर्ो में इन्हे महापुरुष योग कहा
गया है परन्िु अगर ये ककसी स्त्री जािक की कुं डली में भी है िो उन्हें भी इसका पूर्य फल प्राप्त होिा है और
वे अपनी ऊजाय और प्रतिभा से समाज के उत्र्ान के तलए कोई तविेष कायय करिी है।

रूचक-योग – कुं डली में मंगल (mars) यकद थवयं के थवातमत्व की राति (मेष (Aries), वृतिक
(Scorpio)) या उच्च राति (मकर (Capricorn)) में होकर कें द्र (1 , 4 , 7 , 10 ) भाव में बैठा हो
िो इसे रूचक महापुरुष योग कहिे हैं। यकद कुं डली में रूचक योग बना हो िो ऐसा व्यतक्त तहम्मिवाला
(courageous) , ितक्तिाली (powerful), पराक्रमी, तनडर (fearless) व्यतक्त और अत्यतधक
ऊजायवान होिा है , जो अपनी ऊजाय को सकारात्मक कायय में लगािा है । प्रतिथपिाय और साहसी कायों में
हमेिा आगे रहिा है ऐसे सार् ही ित्रु भय से मुक्त रहिा है ।

रूचक योग वालो दृि तनितयिा रहिा है और जो तजस बाि को ठान ले उसे अवश्य पूरा करिे है। इस
योग के बनने पर व्यतक्त थवाथ्य उत्तम रहिा है और प्रतिरोधक क्षमिा मजबूि होिी है , अतधक आयु में भी
िरुर् अवथर्ा का प्रिीि होिी है। रूचक योग वाला व्यतक्त कमयप्रधान और मेहनिी होिा है।

भद्र-योग –

यकद बुतिमत्ता का ग्रह बुध (mercury) थवयं की या उच्च राति (तमर्ुन (gemini) औार कन्या
(virgo)) में होकर कें द्र (1 ,4 ,7,10 ) भाव में बैठा हो िो इसे भद्र महापुरुष योग कहिे हैं। जब कुं डली
में ये योग तनर्मयि होिा हो िो ऐसा व्यतक्त बहुि बुतिमान (intelligent), िकय िील, दूरद्रिा और
भाषर् कला में तनपुर् होिा है, बुतिमत्ता (intelligence) से सम्बंतधि सभी कायो में इनकी दक्षिा
रहिी है जैसे वाकपिुिा , लेखन ,िुरंि तनर्यय लेना , हाथय तवनोद करना या ककसी भी प्रकार की
रचनात्मकिा (creativity) । भद्र योग वाला व्यतक्त बहुि व्यवहार कु िल होिा है और ककसी को भी
अपनी िरफ आकर्षयि करने में मातहर होिे है।

आज के समय में ऐसे लोग बड़े तमत्र वगय वाले और सबसे सिि संपकय में रहने वाले होिे है, इन्हे आधुतनक
दूर संचार के संसाधनों (communication gadgets ) का बहुि िौक होिा है।

हंस-योग –

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जब बृहथपति (jupiter) थवयं की राति या उच्च राति (धनु (Sagittarius), मीन (Pisces), ककय
(Cancer)) में होकर कें द्र (1 ,4 ,7 ,10 ) भाव में बैठा हो िो इसे हंस महापुरुष योग कहिे है, इस
योग के लोगो पर ईश्वर की तविेष कृ पा होिी है , ये लोग तववेकिील , सामातजक प्रतिष्ठा वाले , ज्ञानाजयन
के लोलुप और सूझ-बूझ से युक्त होिे है, ऐसे लोगो को समाज में तविेष मान सम्मान प्राप्त होिा है।
इनका थवभाव बड़ा संयतमि और पररपक्व (matured) होिा है, ऐसे व्यतक्त समथयाओं का समाधान
बड़ी सरलिा से ढू ंढ लेिे हैं और इनमे प्रबंधन अर्ायि मैनज
े मेंि की बहुि अच्छी कला तछपी होिी है और ऐसे
व्यतक्त बहुि अच्छे िीचर के गुर् भी रखिे हैं और अपने ज्ञान से बहुि नाम कमािे हैं।

मालव्य-योग –

जब िुक्र थव या उच्च राति (वृषभ (Taurus), िुला (Libra), मीन (Pisces) ) में होकर कें द्र (1, 4,
7 , 10 ) भाव में बैठा हो िो इसे मालव्य महापुरुष योग कहिे हैं यकद कुं डली में ये योग हो िो ऐसे व्यतक्त
को लक्ष्मी की तविेष कृ पा से धन ,संपतत्त , ऐश्वयय और वैभव की प्रातप्त होिी है भौतिक सुख- सुतवधाएँ प्राप्त
होिी हैं, ये सम्पतत्तवान और तविेष वाहनों का उपभोग करने वाले होिे है , प्रायः इनका वैवातहक जीवन
सुखद होिा है और स्त्री पक्ष से तविेष सहायिा प्राप्त होिी है । ऐसा व्यतक्त बहुि महत्वकांक्षी होिा है और
हमेिा बड़ी योजनाओं के बारे में ही सोचिा है। मालव्य योग वाले व्यतक्त का व्यतक्तत्व बहुि आकषयक होिा
है, ऐसे व्यतक्त में बहुि से कलात्मक गुर् होिे हैं और रचनात्मक चीजों में उसकी बहुि रुतच होिी है। मालव्य
योग वाले व्यतक्त को अच्छा संपतत्त और वाहन सुख प्राप्त होिा है।

िि-योग –

जब ितन थव या उच्च राति (मकर Capricorn), कु म्भ, िुला) में होकर कें द्र (१,४,७,१०) भाव में हो िो
इसे िि योग कहिे हैं। यकद कुं डली में िि योग बना हो ऐसा व्यतक्त ऊँचे पदों पर काययरि होिा है यह योग
आजीतवका की दृति से बहुि िुभ होिा है ऐसा व्यतक्त अपने कायय क्षेत्र में बहुि उन्नति करिा है, ये लोग बहुि
गहरी सोच रखने वाले होिे है , ऐसे व्यतक्त को आम जनिा के बीच जबरदथि प्रतसति तमलिी है और
जीवन में सभी सुखों को प्राप्त करिा है, ितन के िुभ प्रभाव से सभी प्रकार की दुःख , िकलीफों और
रुकाविों का नाि होिा है , िि योग वाला व्यतक्त अनुिासन तप्रय होिा है और अपने कियव्यों का पूरी िरह
तनवायह करिा है।
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इसके अलावा और भी बहुि सारे योग वैकदक ज्योतिष में होिे है जैसे *श्रातपि दोष* (ितन+राहु), *अंगारक
योग* (ितन+मङ्गल), (राहु+मङ्गल), *चांडाल योग* (राहु+गुरु), (राहु+िुक्र) *तपत्र दोष/ग्रहर् दोष*
(राहु+सूय)य , (राहु+चंद्र).......ओर भी ऐसे अनतगनि योग वैकदक ज्योतिष में होिे है लेककन यह योग हर
समय बुरे नही होिे है तजस प्रकार इनका नाम है, इसतलए हम इन योग को फ़तलि में समझेगे ओर पायंगे
कब यह योगकारक भूतमका में आिा है और कब नेगरे िव रोल प्ले करिा है ।

कु छ तविेष तसिान्ि :-

(1) कोई भी ग्रह भाव 11 मे जाकर िुभ पररर्ाम वाला हो जािा है ।

(2) ककसी भी भाव से 12 वाला भाव बुरा उस भाव का अतहि करिा है या हातन करिा है ।

(3) जन्मकुं डली में अगर पुरुष का चािय हो िो उसका आकलन गुरु से ककया जाए , जबकक मतहलाओ के
चािय में िुक्र को जीव माना जाए......

पुरुष = गुरु जीवकरक

मतहला = िुक्र जीवकरक

(4) राहु के िु के तविेष तनयम वैकदक ज्योतिष के अनुसार

तसिाि:- (A)कोई भी ग्रह जब कें द्र या तत्रकोर् का थवामी होकर, थवराति या उच्च राति में होकर कें द्र या
तत्रकोर् में ही राहु या के िु से युति बनािा है िब राहु-के िु योगकारक हो जािा है ।

(B)अगर राहु तसफय ऐसे ग्रह से युति कर लेिा है जो तसफय कें द्र और तत्रकोर् का ही मातलक है और वह युति
भी कें द्र और तत्रकोर् में ही बन जाये िो यह सबसे बड़ा राजयोग होिा है ।

(C) राहु के िु की इस युति में (6-8-12) भाव के थवामी भी युति में हो जािे है िब राजयोगभंग हो जािा
है ।

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ग्रहो के ित्व

अतग्न ित्व -

मेष ,ससंह और धनु राति अतग्न ित्व की रातियाँ है | ये रातियाँ एक दूसरे को ककसी भी अन्य रातियों की
अपेक्षा बेहिर समझ सकिी है ,और इनमे परथपर आकषयर् भी देखा जािा है | अतग्न ित्व की रातियाँ अपने
नाम के समान क्रोधी होिी है | परन्िु उिने ही तविाल ह्रदय के सार् क्षमा का गुर् भी रखिे है ये बहुि ही
साहसी होिे है जोतखम उठाने को हरदम िैयार रहिे है इनकी ऊजाय ककसी भी अन्य राति से अतधक होिी है
| ये उत्तम थवाथ्य के थवामी होिे है | ये आदियवादी होिे है | ये समाज में सदैव एक जागरूक व्यतक्त की
भूतमका तनभािे है | ये ककसी भी कीमि पर गलि बदायश्ि नहीं करिे और ककसी के भी तखलाफ उठ खड़े
होिे है |

पृ्वी ित्व -

बृष , कन्या और मकर पृ्वी ित्व की रातियाँ है | इनका आपसी िालमेल अन्य ककसी भी राति की अपेक्षा
अतधक अच्छा होिा है | ये रूकिवादी होिे है और भौतिकिा और प्रकृ ति प्रेमी होिे है | हर िरह की
पररतथर्ति में तथर्र तचत्त रहिे है | और अपनों का सार् तनभाने में कभी पीछे नहीं हििे |

जल ित्व -

ककय ,वृतिक और मीन राति जल ित्व की रातियाँ है , और इनका आपसी िालमेल सबसे बेहिर होिा है |
ये बहुि अतधक संवद े निील होिे है और भावुक होिे है | ये अच्छी थमरर्ितक्त के थवामी होिे है ये दूसरे
व्यतक्तयों को सहज वािावरर् देने में तनपुर् होिे है | ये कई रहथयों को अपने ह्रदय में समेिे रहिे है | ये
अपनी कतमयों को आसानी से थवीकार कर लेिे है | ये ककसी घिना या बाि का तवथिृि वर्यन करिे और

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समझिे है | ये जड़ो से अतधक जुड़े रहिे है और ककसी अन्य की अपेक्षा अपने पररवार को अतधक महत्व देिे
है ।

वायु ित्व -

तमर्ुन ,िुला और कु म्भ वायु ित्व की रातियाँ है और इनका भी आपसी िालमेल अन्य ककसी राति की
अपेक्षा बेहिर होिा है | ये लोगो के अनुसार थवयं को ढालने में तनपुर् होिे है ककन्िु इनका अपना थवभाव
और पहचान कभी नहीं बदलिी | ये िरीर की अपेक्षा मानतसक रूप से अतधक मजबूि होिे है | ये
कल्पनािील होिे है | ये कलात्मक एवं िार्कय क होिे है | ये सदा प्रयत्निील रहिे है अच्छे सचंिक एवं
े मेंि की अच्छी समझ रखिे है | ये कई प्रतिभाओं के थवामी होिे है | ये अच्छे सलाहकार भी होिे है |
मैनज

ग्रहो के थवभाव

चर राति:- चलायमान, एक जगह रिकना पसन्द नही, गतिमान रहना, लम्बी अवतध वाले कायय पसन्द नही,
धैयय की कमी, बदलाव लाने वाली, हर ककसी से प्रभातवि हो जािी है , नए तवचारों look इनमे जल्द
आिा है, यह लोग िेयर, ्ेसडंग, जल्दबाज़ी वाले काम पसन्द करिे है तजसमे गति अतधक हो ररजल्ि फ़ाथि
आये वो सब चर ही है ।

तथर्र राति:- रिकाऊ, तथर्रिा, एक ही काम मे लम्बे समय िक जुड़े हुए,एक ही जगह पर रहना पसंद करिे
है , बदलाव बार बार पसन्द नही है, धीर गम्भीर, fixed decision, ररथक नही लेि,े जवाबदारी वाले
लोग होिे है ।

तद्वथवभाव:- यह राति दोहरी मानतसकिा वाली, जल्द तनर्यय बदलने वाली, ककसी भी काम को बीच में
छोड़ने वाली, इसमे चर ओर तथर्र राति दोनो के गुर् मौजूद रहिे है ।

ग्रहो के गुर्/थवभाव

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सूय:य - ऊजाय, अहंकार, आत्मा थवतभमान, यि प्रातप्त की इच्छा, पराक्रमी, दानी, उच्च तवचारो वाला, बड़ी
सौच वाला,रोबीली आवाज़ सत्त्वगुर्ी ओर राजतसक...........

चंद्र:-मनमोहक, यात्रा, िीिल, मन की गति से काम करने वाला, सुद


ं र, cash, सत्वगुर्ी, राजतसक हर
कोई मोतहि हो जाये, मीठी भाषा बोलनें वाला.......

मंगल:-ितक्त, पराक्रम, ओज, साहस, क्रोध, उत्तेजना, युवा ग्रह, चापलूस, जल्द आवेि में आना, सत्वगुर्ी ,
राजतसक यह सब मंगल के गुर् है........

बुध:- बुति, िकय , चिुर, कम्युतनके िन, दोहरी बािे करने वाला, कदमागी श्रमिाये, सुद
ं र, रजोगुर्ी, बच्चो
जैसा थवभाव, निखि............

गुरु:-देव गुरु,तिक्षा, नीति पर चलने वाला, गुर्ी, ज्ञानी , समझदार, पररपक्विा, सबसे तवश्वसनीय, हमेिा
सत्य कहने वाला, दानी, परोपकारी, सत्वगुर्ी...........

िुक्र:-दैत्य गुरु, सबसे व्यहाररक, कलात्मक, मनमोहक, सुद


ं र, रोमांस, प्रेम, युवा ग्रह, सभी भौतिक
सांसाररक, मॉडनय ग्रह,हाई प्रोफाइल, फै िनबल, सुख सुतवधा , रजोगुर्ी धनी ग्रह............

ितन:-मन्दगति, न्यायिील, आलसी, िमोगुर्ी, दुख, रोग, देरी, गन्दगी, नीची जाति , मजदूर वगय, सेवक,
तजसको भी देखिा है उसको कि, िकलीफ, संघषय, कठोर मेहनि, पुराने रीति ररवाज से बंधा ग्रह.............

राहु:-चालाक, कू िनीति, राजनीति, लोगो को ठगने वाल, लूिमार करने वाला, फै लाव करने वाला,
तवथिारवादी तनिीयों वाला, पापी, चाल बाज़, खोजबीन, तजसके संगि में रहेगा उसके पूरे गुर् ले लेगा,
षड्यन्त्र कारी, रहथयमय, एकदम थवभाव में बदलाव करना , पलिू ग्रह, खोज अनुसन्धान में सबसे अग्रर्ी,
राजतसक ओर िामतसक.........

के िु:- मोक्ष, अलगाव, तलतमिेिन, तवच्छेद करना, अचानक से झिके देना , दुतनयादारी से तबल्कु ल उल्िा ,
सांसाररक सुख से त्याग, बेहद धार्मयक,सातत्वक ग्रह.......

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Rahul Maheshwari - 7566722730

Rahul Maheshwari, MANASA Dist - Neemuch (MP) Falit Jyotish -


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