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Rahul Maheshwari -7566722730

TOPIC – SUCHAK (KP)

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Ex chart - 16-03-1989,18:45,Mandsour (MP)

भाव ववस्तार गणना -

प्रथम- कन्या 04:31°-तूला03:09°

वितीय- तुला03:09°-वृविक03:35°

तृतीय- वृविक03:35°-धनु04:30°

चतुथ-थ धनु04:30°-मकर05:23°

पंचम- मकर05:23°-कुं भ05:46°

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षष्ठ- कुं भ05:46°-मींन04:31°

सप्तम- मींन04:31°-मेष03:09°

अष्टम- मेष03:09°-वषथभ03:35°

नवम- वषथभ03:35°-वमथुन04:30°

दशम- वमथुन04:30°-ककथ 05:23°

एकादश- ककथ 05:23°-ससंह05:46°

िादश- ससंह05:46°-कन्या04:31°

यह गणना भाव ववस्तार की है इसका आशय यह है कक कोनसे भाव मे कोनसी


रावश ककतने अंश तक आ रही है , यह मात्र इसवलये देखा जाता है कक जन्मकुं डली
में बैठा ग्रह वजस रावश में एक वनवित अंश पर होता है वास्तव में वह ग्रह भाव
ववस्तार से कोनसे भाव मे आ रहा यही देखने के वलए इसकी गणना करते है ।

जैसे मन्दसौर जातक के चार्थ में ककसी भी ग्रह ने जगह नही बदली cusp चार्थ में
वसर्थ सूयथ को छोड़कर क्योकक सूयथ मींन रावश मे 2° का है , ओर मींन रावश की
4° तक भाव 6 मे ही आ रही है इसवलए सूयथ भाव ववस्तार से 6 में आ गया ।

Cusp चार्थ की गणना भाव आरम्भ से की जाती है कवह बार वहााँ रावश लुप्त या
ररपीर् हो जाती है इसका कारण यह होता है जो भाव आरं भ से रावश शुरू होती
है अगर वह अंत तक भी खत्म न हो और अगले भाव मे भी उसके कु छ अंश रह
जाते हो तो वह भाव की शुरवात भी वही रावश कर लेती है ऐसे सेमी arc
वसस्र्म कहते है ।

वैकदक में रावश गायब इसवलए नही होती क्योंकक इसकी गणना भाव मध्य से की
जाती है जो रावश को लुप्त पर गायब नही होने देती है ।

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हमने अधथ चाप पद्धवत से ग्रह का भाव ववस्तार देखा है वही श्री पवत पद्धवत से
रावश स्थावपत करर है ।

कुं डली मे हम वसर्थ 4 बाते देखते है:-

(A) भाव की रावश।

(B) ग्रह की रावश ।

(C) ग्रह का नक्षत्र।

(D) ग्रह ककस भाव मे है ।

हमे वसर्थ यह 4 बातें कुं डली मे देखना होता है इसके अलावा पांचवी बात पूरे
ज्योवतष में कु छ भी नही है ।इन्ही चार बातों को हम दो कुं डवलयों से समझते है :-

(1) लग्न कुं डली हमारी मुख्य कुं डली होती है, लग्न कुं डली से ही हम *भाव की
रावश*, लग्न कुं डली से ही हम *ग्रह की रावश*, लग्न कुं डली से ही हम *ग्रह ककस
नक्षत्र में वस्थत है* हम देखते है...

मतलब वसर्थ एक लग्न चार्थ हमको A, B, C तीन पॉइं र् वक्लयर करता


है...........����

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(2) जबकक कस्प चार्थ से हमको वसर्थ यह देखना है कक *ग्रह वावस्तवकता में
ककस भाव मे बैठा है ।*

कस्प चार्थ से हम वसर्थ D वाला पॉइंर् वक्लयर कर रहे है, इसके अलावा कस्प
चार्थ में कु छ भी वलखा हो वो हमारे वबल्कु ल काम का नही है ������

बस वसर्थ इतना सा ससंपल funda है आप सभी इसको कदमाग मे उतार लीवजये


जैसा कक हम जानते है कक एक रावश या एक से ज्यादा रावश के अनुमावनत अंश


ही भाव को भरती है, *रावशया की वडग्री 30° होती है यह सभी रावश के वलए
कर्क्स्ड है*,लेककन भाव कक वडग्री कम ज्यादा हो जाती है *भाव कभी भी 30° के
कर्क्स नही रहते, यह कम ज्यादा होते रहते है* लेककन एक 12 भाव वमलकर
360° के ही होते है ।

12 भाव = 360/ 12 रावश

1 भाव = 30° का.....

यह 30° का भाव हम एक भाव के वलए अनुमावनत मानते है.........

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सूचक - ककसी बात की forcaste करना हो , सम्भवना बताई जा रही


है , एक अनुमान लगाना हो उन अलग अलग बातो के वलए जो सूचना
उपलब्ध होनी होती है वही सूचक कहलाता है।

जैसे - (1)आज आसमान में बादल है तो हमने कह कदया आज बरसात हो सकती


है ।

(2) इस बार आर्थथक मंदी है इनकम या अथथव्यवस्था मंदी के चपेर् में है , लोग
मनमाकर्क खचथ नही कर पायंग।े

यह सम्भवना ही सूचक कहलाती है ।

सूचक अगर ककसी पर वडपेंड है तो वसर्थ दो बातों पर:-

(A) सूचना देने वाले पर

(B) सूचना का माध्यम कै सा

*(A) सूचना देने वाले पर:-* सूचना वही देता है जो अवस्तत्त्व में है एक जगह से
दूसरी जगह पहुच जाता है वही सूचना देता है, उसका माध्यम कु छ भी हो सकता
है.......

ज्योवतष में वसर्थ ग्रह ही गवतमान है हम सभी जानते है ग्रह के अलावा रावश और
नक्षत्र तो वस्थर है तो हमे सूचना वसर्थ ओर वसर्थ *ग्रह* ही देता है ।

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*(B) सूचना का माध्यम:-* सूचना देने वाला ग्रह है तो उसका माध्यम जो भी


होगा वही सूचना का प्रकार , मंशा, र्ायदा या नुकसान बताता
है..........…माध्यम हमेशा कर्क्स रहता है अलग अलग जगह पर अलग अलग
माध्यम वमल जाते है वही माध्यम ही *नक्षत्र ओर रावश* कहलाता है ।

हम पड़ रहे है सूचक जो दो तरह के होते है:-

(1)कृ ष्णमूर्तथ पद्धवत ।

(2) वैकदक पद्धवत।

*कृ ष्णमूर्तथ पद्धवत से बनाये जाने वाले सूचक:-*

(A) ग्रह के सूचक

(B) भाव के सूचक

हम वसर्थ ग्रह के सूचक को वसखेंगे , वजसने ग्रह के सूचक अच्छे से वसख वलए
उसको अपने आप भाव के सूचक याद जो जायंगे वो हमको करने की जरूरत ही
नही है।

*(A) ग्रह के सूचक :-* ग्रह के सूचक ही मुख्य होते है ग्रह क्या कहना चाहता है
ककस ककस भाव के र्ल देगा हमको सब ग्रह के बनाये हुए सूचक से मालूम हो

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जाता है.........भाव के सूचक से ग्रहो के सूचक का रोल इसवलये ज्यादा होता है


क्योंकक हम सभी जानते है कोई भी घर्ना होगी तो ककसी न ककसी दशा में ही
होगी, दशा मतलब उस वक़्त ककसी भी ग्रह की महादशा या अंतदथशा चल ही
रही होगी तो जैसा ग्रह कहते है वैसी घर्ना होती है इसवलए हम मुख्य रूप से
ग्रह के सूचक बनाने पर ज्यादा र्ोकस कराँ ग।े

*(B) भाव के सूचक:-* भाव के सूचक का मतलब होता है कक कोनसे कोनसे ग्रह
ककस भाव का र्ल देंगे ।

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एक ही ग्रह एक से ज्यादा भाव का र्ल एक साथ दे सकते है इसमे हमको पता


लगाना हो कक दशम भाव का र्ल कोन कोन से ग्रह दे रहे है तो वहां भाव के
सूचक काम मे आते है।

अब सभी ध्यान कदजीये आज हम ग्रह के सूचक पड़ रहे है यह ग्रह के सूचक भी दो


तरह के होते है:-

(a) भाग -1

(b) भाग-2

*भाग -1*

ग्रहो के सूचक :- ग्रह के सूचक के 4 लेवल होते है ।

(A) ग्रह का नक्षत्र स्वामी जहााँ वस्तथ हो वो वाला भाव ।

(B) ग्रह स्वयं जहां वस्तथ हो वो वाला भाव ।

(C) नक्षत्र स्वामी के रावश वाले भाव ।

(D) ग्रहो के रावश वाले भाव ।

A, B, C लेवल के सूचक स््ांग लेवल के सूचक में आते है ।

D लेवल का सूचक कमजोर सूचक माना जाता है ।

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*(A) ग्रह का नक्षत्र स्वामी जहा वस्थत हो वो वाला भाव:-* यह सबसे स््ांग
सूचक होता ककसी भी ग्रह का नक्षत्र ककसी भी भाव मे बैठा होगा, जब जब भी
अमुक ग्रह की दशा चलेगी; वह ग्रह सबसे पहले अपने नक्षत्र स्वामी का र्ल देगा
जहा वह भाव ववस्तार मतलब कस्प चार्थ में बैठा है वहा का र्ल सबसे तेजी से
ओर पहले देगा ।

A लेवल = 100% ररजल्र्

*(B) ग्रह स्वयं जहा वस्थत हो वो वाला भाव:-* यह दूसरे नंबर का मजबूत
सूचक होता है कोई भी ग्रह अपने नक्षत्र स्वामी के बाद सीधा वहां का मजबूती से
र्ल देता है जहां वह कस्प चार्थ में बैठा हुआ है, यह B लेवल का सूचक कहलाता
है ।

B level = 80% ररजल्र्

*(C) नक्षत्र स्वामी के रावश वाले भाव:-* नक्षत्र स्वामी के रावश वाले भाव का
मतलब यह है कक कोई भी xyz ग्रह वजस भी नक्षत्र में होता है और उस नक्षत्र की
जो रावशया होती है वही C लेवल का सूचक कहलाता है ।

C लेवल = 60% ररजल्र्

*(D) ग्रहो के रावश वाले भाव:-* यह होता है लास्र् D लेवल का सबसे कमजोर
सूचक इसमे ग्रह की जो रावश होती है ग्रह उसका भी र्ल देता है लेककन सबसे
कमजोर स्तर पर ।

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D लेवल = 40% ररजल्र्

अभी तक हम सभी A, B, C, D वाले सूचक बना रहे है वजसमे हमने देखा है कक


इनमें लग्न ओर कस्प चार्थ का प्रयोग होता है.....

A&B :- कस्प चार्थ से

C&D:- लग्न चार्थ से

सभी 7 ग्रहो के वलए यह र्ामूलथ ा कर्क्स है......लेककन राहु के तु के वलए एक बात


हमेशा ध्यान रखना है राहु के तु स्वयम या यह ककसी भी ग्रह के नक्षत्र में ही क्यो
न हो जब जब भी राहु और के तु की बात कभी भी ANY TIME आ जाये तो
हमको वसर्थ और वसर्थ लग्न चार्थ देखना होता है ।

*भाग -2*

Tenented/Untenented or tainted/untainted Theory......

(1) ऐसे ग्रह वजनके नक्षत्र में कोई ग्रह नही है वह ग्रह D लेवल का भी स््ांग
सूचक बन जाता है , इसे हम untainted ग्रह कहते है।

(2) ऐसे ग्रह वजनके नक्षत्र में भी कोई ग्रह होता है तो वह ग्रह उस नक्षत्र में बैठे
वाले ग्रह का प्रभाव वलया होता है , उसे tainted ग्रह कहा जाता है यह ग्रह
लेवल D के कमजोर सूचक होते है।

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र्ंर्ेड ग्रह के सूचक सामान्य ही बनते है लेककन इनके र्वलत में उनके नक्षत्र में बैठे
वाले ग्रह का प्रभाव ववशेष तौर पर ध्यान रखना होता है ।

ग्रह A B C D

सूयथ 9 6 4,7 12

चंद्र* 9 10 4,7 11

मंगल* 6 9 12 8,3

बुध* 6 6 - 10,1

गुरु 6 9 12 4,7

शुक्र 9 6 4,7 9,2

शवन* 6 4 9,2 5,6

राहु 6 6 - -

के तु 12 12 - -

सूचक मन्दसौर जातक - वजस ग्रह के आगे स्र्ार माकथ है वह


untenented/untainted है ।

Rahul Maheshwari, MANASA Dist - Neemuch (MP) Falit Jyotish -


Research
rahuljhanwar5@gmail.com
Whatsapp - 9009805569
Contact:-7566722730

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