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Kam Bhag 7
Kam Bhag 7
भाग 7 औपननषहदक
अर्थ- कामसूत्र में बतायी गयी गयी विधियों से जिस ककसी को इजछित िस्तु की प्राजप्त न हो, िह
औपननषदिक अधिकरण में दिये गये उपायों का प्रयोग करें ।
अर्थ- रूप, गुण, उम्र तथा त्याग- ये चार चीिें ऐसी होती हैं िो मनुष्य को सौभाग्यशाली बना िे ती
हैं।
अर्थ- तगर, कूट, तीलीश पत्र का लेप लगाने से सौभाग्य और शारीररक सौन्िययता में िद्
ृ धि होती
है ।
अर्थ- उपयक्
ुय त िी गयी औषधियों को कूट-पीसकर, रूई की बत्ती में उस चण
ू य को लपेटकर बहे डे के
तेल में िलाकर मनुष्य की खोपडी में कािल पार कर लें।
श्लोक-6. पन
ु नथवासिदे वीसाररवाकुरण्टोत्सपलपत्रैश्च भसद्िं तैलमभ्यञजनम ्।।6।।
अर्थ- पुननयिा (पथरचटा-गिहपुरैना), सहिे ई, साररिा (नितिन), अनंतमूल, कुरं ट (लाल फूल का वपया
बासां) तथा उत्पल (नीलकमल) इन सभी का तेल बनाकर लगाने से सौभाग्य और सुंिरता में
िद्
ृ धि होती है ।
अर्थ- सूखे कमल, नीलकमल के फूल के तथा नागकेसर के चण ू य को शहि तथा घी के साथ
ममलाकर सेिन करने से सौभाग्य और सुंि44books.com
रता में िद्
ृ धि होती है ।
अर्थ- इन िस्तओ
ु ं में तगर, तालीसपत्र, तमालपत्र ममलाकर सौभाग्य और संि
ु रतािियक लेप भी
तैयार ककया िाता है ।
अर्थ- मोर तथा चीते की आंखे सोने के ताबीि में भरकर िादहने हाथ में बांिने से सुंिरता तथा
सौभाग्य में िद्
ृ धि होती है ।
श्लोक-11. तर्ा बादरमणणं शंखमणणं च तर्ैव तेषु चार्वथणान्योगान ् गमयेत ्।।11।।
अर्थ- इसी तरह बािरमणण तथा शंखमणण भी हैं , अथिेि में मलखे हुए इनके प्रयोग को समझ
लेना चादहए।
अर्थ- विद्यातंत्र तथा विद्यायोग से यौिन प्राप्त नौकरानी को उसका मामलक साल भर तक िस
ू रे
यौन संबंि बनाने से रक्षा करें । इस प्रकार से रक्षक्षत पररचाररका को िस
ू रे लोग बाला समझकर
उससे सेक्स करने तथा शािी करने की इछिा प्रकट करें गे। इस तरह की प्रनतयोधगता में िो
व्यजक्त सबसे अधिक िन िे , मामलक को उसी के साथ पररचाररका की शािी करनी चादहए।
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श्लोक-13. गणणका प्राप्तयौवनां ्वां दहु ितरं त्यां ववज्ञानशीलरूपानुरूप्येण तानभभननमन्त्रय सारे ण
योऽ्या प्राप्तयौवनां ्वां दहु ितरं त्या ववज्ञानशीलरूपानुरूप्येण तानभभननमन््य सारे ण योऽ्या
इदभमदं च दद्यात्सय पाणणथगि
ृ णीयाहदनत संभाष्य रक्षयेहदत।।13।।
अर्थ- गणणका की पुत्री िब युिा हो िाए तो उसकी मां को अपनी तरुणी पुत्री के समान सुंिर, रूप,
गुण, शील तथा यौिन संपन्न युिकों को आमंत्रत्रत करके यह घोषणा करे कक िो व्यजक्त कक िो
युिक उसकी पुत्री को िरूरत की सभी िस्तुएं उपलब्ि करायेगा उसके साथ मैं अपनी पुत्री की
शािी कर िं ग
ू ी। इस तरह अपनी लडकी की शािी करके गणणका उसके चररत्र को बचा सकती है ।
अर्थ- उस यि
ु ा िेश्या पत्र
ु ी को आये हुए प्रेममयों के साथ इस तरीके का प्रेम-व्यिहार प्रिमशयत करे
मानो उसकी मां को इसके बारे में कुि भी मालम ू नहीं है ।
श्लोक-15. तेषां कलाग्रिणे गंिवथशालायां भभक्षुकीभवने तत्र तत्र च संदशथनयोगााः।।15।।
अर्थ- िनी लोगों, रािाओं या उछच पररिार के युिक िब कला की मशक्षा लेने के मलए िेश्या के
घर आये तो उनसे ममलने का अिसर अपनी तरुणी पुत्री को िे तथा िह लडकी अपने घर में
ममलने के बाि गंििय शाला, मभक्षुकों के घर िहां कहीं अिसर प्राप्त हो, उनसे भें ट प्रेम करती है ।
अर्थ- प्रछिन्न रूप से उन तरुणों से ममलकर उनके प्रेम की खबर राज्याधिकारी तक पहुंचा िे तथा
कफर िह मां उन प्रेममयों के णखलाफ अिालत में फररयाि भी करती है ।
श्लोक-20. सख्यैव तु दा्या वा मोधचतकन्याभावां सग
ु ि
ृ ातकामसत्र
ू ामाभ्याभसकेषु योगेषु प्रनतष्ष्ठतां
प्रनतष्ठते वयभस सौभाग्ये च दहु ितरमवसज
ृ ंनत गणणका इनत प्राच्योपचारााः।।20।।
अर्थ- सबसे पहले प्रिे श की कन्याएं अपनी लडकी की सहे ली तथा िासी के द्िारा लडकी का
कौमायय भंग कराकर सेक्स किया के रहस्यों तथा योगों का अभ्यास कराती हैं। उन अभ्यासों,
कलाओं में पूरी कुशलता प्राप्त कर लेने पर िेश्या की लडकी का भाग्य युिािस्था के साथ ही
चमक िाता है । तब िे अपनी पुत्री को िेश्याचररत्र में ननपुण िानकर आिाि कर िे ती हैं।
अर्थ- जिस व्यजक्त ने िेश्या की पुत्री के साथ शािी की है , उसके साथ िेश्या-पुत्री को एक साल
तक रहना चादहए। इसके बाि िहां िह चाहे या िो उससे सेक्स करने की इछिा करे िहां उसके
साथ िह स्िेछिा से सेक्स करे ।
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अर्थ- धथयेटर पर डांस और नाटकों में काम करने िाली लडककयों की शािी इसी प्रकार से होती
है ।
श्लोक-24. त्मै तु तां दद्युयथ एषां तूये ववभशष्टमुपकुयाथत ्। इनत सुभंगकरणम ्।।24।।
श्लोक-26. वतोद्भान्तपत्रं मत
ृ कननमाथल्यं मयूराष््र्चू ्णाथवचण
ू थ वशीकरणम ्।।26।।
अर्थ- हिा में उडे हुए पत्ते, शि पर चढाया गया चंिन, मोर की हड्डी के चणू य का लेप बनाकर मलंग
पर लेप करें तथा सेक्स44books.com
करें तो िह स्त्री िशीभत
ू हो िाती है ।
श्लोक-27. ्वयं मत
ृ ाया मण्डलकाररकायाश्चण
ू ं मिस
ु ंयक्
ु तं सिामलकैाः ्त्रान वशीकरणम ्।।27।।
अर्थ- अपने आप मरे हुए धगद्ि के चूणय में शहि ममलाकर आंिले के रस के साथ लेप लगाकर
स्नान करें । इसके बाि सेक्स करने से स्त्री िश में हो िाती है ।
अर्थ- थह
ू र की गांठे टुकडे-टुकडे करके उसमें मैनमसल तथा गंिक को लपेटकर सात बार सख
ु ा लें।
कफर उसका चूणय बनाकर शहि के साथ मलंग पर लेप करके जिस स्त्री के साथ सेक्स करें गे। िह
िशीभूत हो िाती है ।
श्लोक-29. एतेनैव रात्रौ िम
ू ं कृत्सवा तद्िमनतर्कृतं सौवणं चन्रमसं दशथयनत।।29।।
अर्थ- उपयक्
ुय त चीिों के चण
ू य को रात के समय िुंआ कर िे ने पर िए
ुं ं से ढका हुआ चांि सोने के
समान दिखाई िे ता है ।
ं पावक्ष
श्लोक-31. वचागण्डकानन सिकारतैलभलप्तानन भशश ृ ्कन्िमत्सु कीयथ षण्मासं ननदध्यात ् तताः
षडभभमाथसैरपनीतानन दे वकांतमनल
ु ेपनं वशीकरणं चेत्सयाचक्षते।।31।।
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अर्थ- िच की गांठों को आम के तेल से गीला करके, शीशम के तने खोिकर उसमें 6 महीने तक
बंि रखें। 6 महीने बाि कफर उसका लेप शरीर में लगायें तो स्त्री िशीभूत हो िाती है । इस लेप
को िे िकांत कहा िाता है । इस लेप को लगाने से उसके शरीर की चमक बढ िाती है ।
अर्थ- इसी प्रकार खादिरसार (कत्था) की लकडी के टुकडों को पतला करके आम के तेल से
मभगोकर जिस पेड के तने में 6 महीने तक गाडे रखें तथा कफर उसका लेप करें तो उसी पेड के
समान सुगंि शरीर में व्याप्त रहती है । इस िशीकरण अिलेप को गंिियकांत अनुलेप के नाम से
िाना िाता है ।
श्लोक-33. वप्रयंगव्तगरभमश्रााः सिकारतैलहदग्िा नागवक्ष
ृ मुत्सकीयथ षण्मासं ननहिता नागकांतमनुलेपनं
वशीकरणभमत्सयाचक्षते।।33।।
अर्थ- तगर तथा काकुन (कांगुनी) को एक में ममलाकर आम के तेल से मभगोकर उपरोक्त तरीके
से नागकेसर के तने में गाडकर, 6 महीने बाि उसका लेप करने से स्त्री िशीभूत हो िाती है । इस
लेप को नागकांत लेप के नाम से िाना िाता है ।
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श्लोक-35. एतेन श्येनभासमयरू ाष््र्मयान्यञ्जनानन व्याख्यातानन।।35।।
अर्थ- इसी प्रकार श्येन, भास, मयूर, पक्षक्षयों की हड्डडयों से भी सुरमा बनाया िा सकता है ।
अर्थ- आचायों का मानना है कक मसंघाडा, कसेरू तथा महुआ के फूलों को क्षीरकाकोली के साथ
पीसकर उसमें ििू तथा शक्कर ममला िें । 44books.com
कफर घी में िीमी आंच से हलिा बनाकर प्रनतदिन सेिन
करने से शरीर में इतनी अधिक ताकत बढती है कक िह व्यजक्त सैकडों स्त्री के साथ सेक्स कर
सकता है ।
अर्थ- आचायों का मानना है कक ििू में मभगोई हुई उडि की िाल की भूसी को पानी से िोकर
साफ कर लें , कफर उसे पीसकर घी में भून लें । िब यह भूनकर लाल हो िाए तो बकायन, गाय या
बकरी का िि
ू ममलाकर हलिा बना लें । इसके बाि विषम मात्रा में शहि तथा घी िोडकर रोिाना
खाने से असंख्य औरतों से सेक्स करने की शजक्त प्राप्त होती है ।
श्लोक-42. ववदारी ्वयंगुप्ता शकथरामिस
ु वपथभ्यां गोिम
ू चण
ू ेन पोभलकां कृत्सवा यावद् अर्ं भक्षक्षतवान ्
अनन्तााः ष््त्रयो गच्छनतइत्सय ् ||42||
अर्थ- काले नतलों को मभगोकर उनका निलका ननकाल लें। इसके बाि इन निलकों को गोरै या के
अंडों के रस में उबाल लें , कफर मसंघाडा, कसेरू तथा केिांच के बीि का चण
ू य कर लें , और उडि की
पीठी, गेहूं का आटा इन सभी को एक में ममलाकर घी में भूनकर िि
ू -शक्कर ममलाकर लस्सी बना
लें। इस लस्सी को प्रनतदिन खाने से सेक्स क्षमता में बहुत अधिक िद्
ृ धि होती है ।
अर्थ- आचायों का मानना है कक शहि, शक्कर तथा महुआ के िो फूल, मलु हठी, कषय, िि
ू इन सभी
को एक साथ ममलाकर रख लें। इस ममश्रण के सेिन से आयु में िद्
ृ धि होती है । यह बािीकारण
तथा आयि
ु ियक है । इस ममश्रण को यक्
ु तरस के नाम से िाना िाता है ।
श्लोक-46. शतावरीश्चदं ष्रागुडकषाये वपप्पलीमिक
ु ल्के गोक्षीरच्छागघत
ृ े पक्के त्य पुष्यारम्भेणान्विं
प्राशनं मेध्यं वष्ृ यमायुष्यं युक्तरसभमत्सयाचायथाः प्रचक्षते।।46।।
श्लोक-47. शतावयाथाःश्र्वगद
ृ ं षरायााः श्रीपणीफलानां च क्षुण्णानां चतुगणुथ णतजलेन पाक
आप्रकृत्सयव्र्ानात ् त्य पुष्यारम्भेण प्राताः प्राशनं मेध्यं वष्ृ ण्मायुष्यं युक्तरसभमत्सयाचायाथाः
प्रचछते।।47।।
अर्थ- शतािर, पहाडी गोखरू, श्रीपणी (कसेरू) के फल इनको यिकूट करके जितनी ििा हो उससे
चौगन
ु े पानी में इन ििाओं को िोडकर आग पर चढा िें । िब पानी परू ी तरह से िल िाए तो
उसे आग पर से उतार कर रख लें। इसे पष्ु यनक्षत्र से शरू
ु करके ननयममत रूप से चाटने से बद्
ु धि
तथा आयु में िद्
ृ धि होती है । यह बािीकारण भी होता है । इसे यक्
44books.com ु तरस के नाम से िाना िाता
है ।
अर्थ- संदिग्ि शरीर को नुकसान पहुंचाने िाले, िीिों को मारकर बनाये िाने िाले योग या जिनमें
अपवित्र चीिें ममलायी िाएं- ऐसे बािीकारक योगों का भी प्रयोग नहीं करना चादहए।
श्लोक-51. तपोयक्
ु ताः प्रयञ्
ु जीत भशष्टै रनग
ु तान ् वविीन ्। ब्राह्मणैश्च सहृ
ु द्भभश्च
मंगलैरभभनंहदतान ्।।51।।
वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में
भाग 7 औपननषहदक
अध्याय 2 44books.com
नष्टरागप्रत्सयानयन प्रकरण
अर्थ- सेक्स के िौरान स्त्री से पहले स्खमलत हो िाने िाला पुरूष यदि स्त्री से खोए हुए अनुराग
को कफर से प्राप्त करना चाहता है तो सेक्स करने से पहले उसे स्त्री की योनन में अंगुली डालना
चादहए। कफर सेक्स करना चादहए ऐसा करने के बाि ही संभोग करें ।
अर्थ- या िह रबड, लकडी आदि के बने हुए कृत्रत्रम सािनों का प्रयोग करे ।
अर्थ- इस तरह के कृत्रत्रम सािन सोना, चांिी, तांबा, लोहा, हाथीिांत तथा सींग से बनाये िाते हैं।
अर्थ- आचायय िात्स्यायन कहते हैं कक ककसी लकडी के बने हुए कृत्रत्रम सािन (कृत्रत्रम मलंग) का
भी प्रयोग ककया िा सकता है ।
अर्थ- पुरूष के मलंग के नाप का ही कृत्रत्रम सािन (कृत्रत्रम मलंग) होना चादहए। स्त्री की योनन की
खि
ु लाहट ममटाने के मलए उस कृत्रत्रम सािन का आगे िाला खब
ू गोििा लेना चादहए।
श्लोक-9. एते एव द्वे संघाटी।।9।।
अर्थ- कृत्रत्रम सािनों में िोड या कफर उतार-चढाि होना आिश्यक होता है।
अर्थ- पुरूष को मलंग के आयाम खरगोश से लेकर घोडे तक के बताये गये हैं। उसी के समान
कृत्रत्रम सािन ,चड
ू क, कहा िाता है ।
अर्थ- िो अपने आयाम के अनुसार शीशा आदि की बनी हुई एक ही लता को लपेट सके। िह
कृत्रत्रम सािन, एकचड
ू क, कहलाता है ।
अर्थ- जिस कृत्रत्रम सािन (कृत्रत्रम मलंग) में अंडकोष भी लगे हो, जिसमें िोनों ओर िे ि ककये गये
हों िो कमर से बांिा िा सके तथा जिसकी लंबाई और मोटाई अनुपात के अनुसार हो उसे कंचक
ु
अथिा िालक कहते हैं।
अर्थ- िक्षक्षण भारतीय लोगों में बचपन में ही कान की तरह मलंग का भी िे ि होता है ।
श्लोक-16. यव
ु ा तु श्त्रेण च्छे दनयत्सवा यावरधु िकर्यागमनं तावदद
ु के नतष्ठे त ्।।16।।
अर्थ- युिा व्यजक्त यदि अपने मलंग में िे ि करना हो तो उसे मलंग के ऊपर का चमडा सरकाकर
नसों को बचाकर ककसी तेि हधथयार से कुशलतापूिक
य नतरिा िे ि करें तथा िब तक खन
ू बहे तब
तक मलंग को पानी में डुबोयें रखें ।
अर्थ- यदि मलंग के िे ि को अधिक बडा बनाना हो तो उसी रात कई बार सेक्स करना चादहए।
अर्थ- इसके बाि पंचकषायों (अमलतास, ब्राह्मी, कनेर, मालिी, शंखपुष्पी) के रस से एक-एक दिन
करके मलंग को िोना चादहए।
अर्थ- िेष तथा केसरया के कीलों द्िारा िीरे -िीरे करके मलंग के िे ि के आकार को बढाना
चादहए।
श्लोक-20. यष्टीमिक
ु े न मिय
ु ुक्तेन शोिनम ्।।20।।
अर्थ- कफर शीशम की पवत्तयां मलंग के िे ि पर बांिनी चादहए। इससे िे ि का आकार बडा हो
िाता है ।
अर्थ- शीशम की पवत्तयां बांिने के बाि इसे मभलािां के तेल से मभगोते रहने से मलंग के िे ि का
आकार बडा हो िाता है । व्यििन योग पूरे होते हैं।
श्लोक-24. वत्त
ृ मेकतो वत्त
ृ मुद्खलकं कुसुमके कण्टककतं कंकाष््र् गजकरमष्टमणडलकं भ्रमरकं
शंग
ृ ाटकमन्यानन वोपायताः कमथतश्च बिुकमथसिता चैषां मद ृ कु कथशता यर्ासात्सयभमत
नष्टरागप्रत्सयानयनं द्ववषष्ष्टतमं प्रकरणम ्।।24।।
अर्थ- जिस प्रकरा का अपिव्य जिसे अनुकूल पडे, उस तरह का गोल, चपटा, ओखली िैसा, कमल,
करे ला िैसा कांटेिार, हौि के समान, हाथी की सूंड की तरह चक्करिार मसंघाडें के आकार का
कोमल अथिा कठोर बनाया िा सकता है । नष्ट हुए रोग को मसर से लाने की विधियां 62िां
प्रकरण समाप्त हुआ।
श्लोक-25. एवं वक्ष
ृ जानां जन्तूनां शूकेरुपहितं भलंगं दशरात्रं तैलेन महृ दतं पुनरुपतहृ ितं पुनाः
प्रमहृ दतभमनत जातशोफं खट्वायामिोमुख्तदं ते लम्बयेत।।25।।
अर्थ- इस प्रकार पेडों में उत्पन्न होने िाले िन्तुओं का रोम मलंग पर लेप करें तथा तेल की
मामलश करें । यही प्रकिया लगातार 10 रात तक करने के बाि िब मलंग में सूिन आ िाए तो
चारपाई के िे ि में मलंग को डालकर पेट के बल सो िाएं।
अर्थ- इसके बाि उन्हें लेप लगाकर पीडा तथा िलन ममटाना चादहए।
ु विलामसयों के मलं44books.com
अर्थ- इस प्रकार कामक ग की मोटाई उनके परू े िीिन भर बनी रहती है ।
अर्थ- असगंि, बडे लोि की िड िलशंकु (एक िंतु), बडी भटकटै या (कटे री) के पके हुए फल,
मक्खन, निउल (ढाक) के पत्ते तथा हरिोर का रस- इनमें से ककसी एक को लगाने से एक महीने
तक मलंग मोटा बना रहता है ।
अर्थ- असगंि आदि की लुगिी से सात्रबत हुए तेल की मामलश करने से 6 महीने तक मलंग के
आकार में िद्
ृ धि रहती है ।
श्लोक-30. दाड़िमत्रापुषवीजानन बालुका बि
ृ तीफलर्त्रेनत मद्
ृ वष्ग्नना पक्वेन तैलेन पररमदथ नं
पररषेको वा।।30।।
अर्थ- अनार बालमखीरा के बीि, एडबालुक (एलिा) तथा भटकटै या के फलों के रस का िीमी आंच
से तेल ननकालकर मलंग में मामलश करने से 6 महाने तक मलंग के आकार में िद्
ृ धि होती रहती
है ।
श्लोक-32. अर््नूिीकण्टकचण
ू ेाः पुननथवावानरपूरीषलांगभलका-मूलाभमश्रैयाथमवककरे त्ससा नान्यं
कामयेत ्।।32।।
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अर्थ- थह
ू र के कांटों का चण
ू य, पुननयिा (पथरचटा या गिापुन्ना), बंिर की बीट, कररहारी (इन्िायन)
की िड- सभी को पीसकर चण
ू य बना लें तथा कफर उस चण
ू य को जिस भी स्त्री के मसर पर डाल िें ।
िह स्त्री िशीभूत हो िाती है ।
अर्थ- उसी तरह सोमलता बकुची, भंगरै या, लौह भस्म, उपजिह्िका (गराि- िो बरसात में बाबी के
आस-पास उत्पन्न होती है ) का चण
ू य और अमलतास तथा िामन
ु के फल की गठ
ु ली खरल करके
योनन में लेप करने से भी िो परू
ु ष उस स्त्री से सेक्स करता है । उसकी आसजक्त समाप्त हो
िाती है या उस परू
ु ष की इजन्िय की उत्तेिना समाप्त हो िाती है ।
श्लोक-34. गोपाभलका बिू पाहदकाष्जह्वकाचण
ू ैमाथहिषतक्रयुक्तैाः ्त्रातां गच्छतो रागो नश्यनत।।34।।
अर्थ- किम्प्ब, आंिडा तथा िामुन के फूलों को नघसकर चंिन लगाना अथिा इन फूलों की माला
पहनना िभ
ु ायग्य का िियक होता है ।
अर्थ- तालमखाना को पानी में पीसकर योनन में लेप करने से हजस्तनी स्त्री की योनन मसकुडकर
मग 44books.com
ृ ी स्त्री की तरह िोटे आकार की बन िाती है ।
श्लोक-37. पद्योत्सपलकदम्बसजथकसग
ु ंिचण
ू ाथनन मिन
ु ा वपष्टानन लेपो मग
ृ या ववशालीकरणम ्।।37।।
अर्थ- थह
ू र, पत
ु ली तथा मिार के पत्तों को िलाकर राख बना लें । कफर उस राख के साथ गरु
ु ची के
बीि तथा आंिलों को उबालकर उसे बालों में लगाने से काले से काले बाल सफेि हो िाते हैं।
श्लोक-39. मदयष्न्तकाकुटजकाञ्जननकाधगररकणणथकालक्ष्यपणीमूलैाः ्नानं केशानां
प्रत्सयानयनम ्।।39।।
अर्थ- इन्हीं से बनाये गये तेल से भी उपरोक्त बाल काले हो िाते हैं।
अर्थ- सफेि घोडे के अंडकोष के पसीने की इन्हीं ििाओं के साथ सात बार उबालने पर िो योग
प्राप्त होता है , िह सफेि होंठों को शीघ्र ही लाल बना िे ता है ।
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अर्थ- इन्हीं ििाओं को पीसकर कफर होंठों में लगाने से लाल होंठ सफेि हो िाते हैं।
अर्थ- पेय पिाथों में ितूरे के बीिों को ममलाकर जिसे भी वपला िें अथिा णखला िें िह पागल हो
िाता है ।
अर्थ- हरताल तथा मैनमसल खाने िाले मोर के बीट को हाथों में लेकर जिस भी चीि को िू लें गे।
िह िस्तु िस
ू रों को नहीं दिखाई िे ती है ।
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श्लोक-47. अंगारतण
ृ भ्कमना तैलेन ववभमश्रमुदकं क्षीरवणथ भवनत।।47।।
अर्थ- हरड तथा आंिला को मालकांगनी के साथ पीसकर लोहे के बतयन पर लेप करने से िह तांबे
के रं ग का हो िाता है ।
श्लोक-48. िरीतकाम्रातकयोाः श्रवणवप्रयंगकाभभश्च वपष्टाभभभलथप्तानन लोिभाण्डानन
ताम्रीभवष्न्त।।48।।
अर्थ- हरड तथा आंिला को मालकांगनी के साथ पीसकर लोहे के बतयन पर लेप करने से िह तांबे
के रं ग का हो िाता है ।
श्लोक-49. श्रवणवप्रयंगुकातैलेन दक
ु ू लसपथननमोकेण वर्त्तयाथ दीपं प्रज्वाल्य पाश्वे दीघीकृतानन काष्ठानन
सपथवद् दृश्यंते।।49।।
श्लोक-52. पूवश
थ ा्त्राणण संदृश्य प्रयोगाननुसत्सृ य च। कामसूत्रभमदं यत्सनात्ससंक्षेपेण ननवेहदतम ्।।52।।
अर्थ- पूिय आचायों के शास्त्रों को एकत्र करके, उनका अध्ययन और उनके प्रयोगों का परीक्षण
करके बडे प्रयत्न से सारांश में कामसूत्र को कहा गया है ।
श्लोक-53. िमथमर्ं च कामं च प्रत्सययं लोकमेव च। पश्यत्सयेत्य तत्तज्ञो न च रागात्सप्रवतथते।।53।।
अर्थ- कामसूत्र के तत्ि को भली प्रकार समझने िाले लोग िमय, काम, आत्मविश्िास तथा लोकाचार
को िे खते हुए प्रित्त
ृ होते हैं न कक प्रेम अथिा मुक्ता से।
श्लोक-54. अधिकारवशादक्
ु ता ये धचत्रा रागवद्थिनााः। चदन्तरमत्रैव ते यत्सनाद्ववननवाररतााः।।54।।
अर्थ- इस शास्त्र में अछिी तथा सभी बुरी बातें िी गयी हैं तथा अंत में यह बता दिया गया है ,
कौन-सी बात की िाए तथा कौन-सी न की िाए।
अर्थ- जितनी बातें शास्त्रों में बताई गयी हैं िे सभी प्रयोग के मलए नहीं हैं, शास्त्र का व्यापक
साियभौम होता है लेककन इसके प्रयोग एकिे शी होते हैं।
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