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वात्स्यायन का कामसूत्र हिन्दी में

भाग 7 औपननषहदक

अध्याय 1 शुभंगकरण प्रकरण

श्लोक-1. व्याख्यातं च कामसूत्रम ्।।1।।

अर्थ- कामसूत्र के बारे में की गयी व्याख्या अब समाप्त होती है

श्लोक-2. तत्रोक्त्तु ववधिभभरभमप्रेतमर्थमनधिगच्छत्रोननषहदकमाचरे त ्।।2।।

अर्थ- कामसूत्र में बतायी गयी गयी विधियों से जिस ककसी को इजछित िस्तु की प्राजप्त न हो, िह
औपननषदिक अधिकरण में दिये गये उपायों का प्रयोग करें ।

श्लोक-3. रूपं गुणो 44books.com


वय्त्सयाग इनत सुभंगकरणम ्।।3।।

अर्थ- रूप, गुण, उम्र तथा त्याग- ये चार चीिें ऐसी होती हैं िो मनुष्य को सौभाग्यशाली बना िे ती
हैं।

श्लोक-4. तगरकुष्ठतालीसपत्रकांनलेपनं सुभगंकरणम ्।।4।।

अर्थ- तगर, कूट, तीलीश पत्र का लेप लगाने से सौभाग्य और शारीररक सौन्िययता में िद्
ृ धि होती
है ।

श्लोक-5. एतैरेव सुवपष्टै वनथ तथमाभलप्याक्षतैलेन नरकपाले साधितमञ्जनं च।।5।।

अर्थ- उपयक्
ुय त िी गयी औषधियों को कूट-पीसकर, रूई की बत्ती में उस चण
ू य को लपेटकर बहे डे के
तेल में िलाकर मनुष्य की खोपडी में कािल पार कर लें।
श्लोक-6. पन
ु नथवासिदे वीसाररवाकुरण्टोत्सपलपत्रैश्च भसद्िं तैलमभ्यञजनम ्।।6।।

अर्थ- पुननयिा (पथरचटा-गिहपुरैना), सहिे ई, साररिा (नितिन), अनंतमूल, कुरं ट (लाल फूल का वपया
बासां) तथा उत्पल (नीलकमल) इन सभी का तेल बनाकर लगाने से सौभाग्य और सुंिरता में
िद्
ृ धि होती है ।

श्लोक-7. तद्युक्ता एव ्त्रजश्च।।7।।

अर्थ- उपरोक्त िस्तओ


ु ं की माला बनाकर पहनना।

श्लोक-8. पद्योत्सपलनागकेराणां शोवषतानां चण


ू थ मिघ
ु त
ृ ाम्यामवभलह्य सभ
ु गो भवनत।।8।।

अर्थ- सूखे कमल, नीलकमल के फूल के तथा नागकेसर के चण ू य को शहि तथा घी के साथ
ममलाकर सेिन करने से सौभाग्य और सुंि44books.com
रता में िद्
ृ धि होती है ।

श्लोक-9. तान्येव तगरतालीसतमालपत्रयुक्तान्यनुभलप्य।।9।।

अर्थ- इन िस्तओ
ु ं में तगर, तालीसपत्र, तमालपत्र ममलाकर सौभाग्य और संि
ु रतािियक लेप भी
तैयार ककया िाता है ।

श्लोक-10. मयरू ्याक्षक्ष तरक्षोवाथ सव


ु णेनावभलप्य दक्षक्षणि्तेन िारयेहदनत सभ
ु गंकरणम ्।।10।।

अर्थ- मोर तथा चीते की आंखे सोने के ताबीि में भरकर िादहने हाथ में बांिने से सुंिरता तथा
सौभाग्य में िद्
ृ धि होती है ।
श्लोक-11. तर्ा बादरमणणं शंखमणणं च तर्ैव तेषु चार्वथणान्योगान ् गमयेत ्।।11।।

अर्थ- इसी तरह बािरमणण तथा शंखमणण भी हैं , अथिेि में मलखे हुए इनके प्रयोग को समझ
लेना चादहए।

श्लोक-12. ववद्यातंत्रच्च ववद्यायोगात्सप्राप्तयौवनां पररचाररकां ्वामी संवत्ससरमात्रमन्यतो वारयेत ्।


ततो वाररतां बालां वामात्सवाललालसीभूतेषु गम्येषु योऽ्यै संघषेण बिु दद्यात्त्मै ववसज
ृ ेहदनत
सौभाग्यविथनम ्।।12।।

अर्थ- विद्यातंत्र तथा विद्यायोग से यौिन प्राप्त नौकरानी को उसका मामलक साल भर तक िस
ू रे
यौन संबंि बनाने से रक्षा करें । इस प्रकार से रक्षक्षत पररचाररका को िस
ू रे लोग बाला समझकर
उससे सेक्स करने तथा शािी करने की इछिा प्रकट करें गे। इस तरह की प्रनतयोधगता में िो
व्यजक्त सबसे अधिक िन िे , मामलक को उसी के साथ पररचाररका की शािी करनी चादहए।

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श्लोक-13. गणणका प्राप्तयौवनां ्वां दहु ितरं त्यां ववज्ञानशीलरूपानुरूप्येण तानभभननमन्त्रय सारे ण
योऽ्या प्राप्तयौवनां ्वां दहु ितरं त्या ववज्ञानशीलरूपानुरूप्येण तानभभननमन््य सारे ण योऽ्या
इदभमदं च दद्यात्सय पाणणथगि
ृ णीयाहदनत संभाष्य रक्षयेहदत।।13।।

अर्थ- गणणका की पुत्री िब युिा हो िाए तो उसकी मां को अपनी तरुणी पुत्री के समान सुंिर, रूप,
गुण, शील तथा यौिन संपन्न युिकों को आमंत्रत्रत करके यह घोषणा करे कक िो व्यजक्त कक िो
युिक उसकी पुत्री को िरूरत की सभी िस्तुएं उपलब्ि करायेगा उसके साथ मैं अपनी पुत्री की
शािी कर िं ग
ू ी। इस तरह अपनी लडकी की शािी करके गणणका उसके चररत्र को बचा सकती है ।

श्लोक-14. सा च मातुरववहदता नाम नागररकपुत्रि


ै नथ नभभरत्सयर्थ प्रीतेत।।14।।

अर्थ- उस यि
ु ा िेश्या पत्र
ु ी को आये हुए प्रेममयों के साथ इस तरीके का प्रेम-व्यिहार प्रिमशयत करे
मानो उसकी मां को इसके बारे में कुि भी मालम ू नहीं है ।
श्लोक-15. तेषां कलाग्रिणे गंिवथशालायां भभक्षुकीभवने तत्र तत्र च संदशथनयोगााः।।15।।

अर्थ- िनी लोगों, रािाओं या उछच पररिार के युिक िब कला की मशक्षा लेने के मलए िेश्या के
घर आये तो उनसे ममलने का अिसर अपनी तरुणी पुत्री को िे तथा िह लडकी अपने घर में
ममलने के बाि गंििय शाला, मभक्षुकों के घर िहां कहीं अिसर प्राप्त हो, उनसे भें ट प्रेम करती है ।

श्लोक-16. तेषां यर्ोक्तदानयनां माता पाणणं ग्राियेत ्।।16।।

अर्थ- तरुणी िेश्या पत्र


ु ी का मां जिन चीिों की मांग करती है तथा जिससे िे िस्तए
ु ं प्राप्त हों, उसी
के साथ अपनी पत्र
ु ी की शािी करें ।

श्लोक-17. तावदर्थमलभमाना तु ्वेनाप्येकदे शन


े दहु ित्र एतद्दत्तमनेनेनत ख्यापयेत ्।।17।।

अर्थ- घोवषत चीिें यदि ननजश्चत मात्रा में 44books.com


कोई न िे सके तो अपने ही िन को दिखाकर िेश्यापुत्री
की मां कहे कक यह पूरा िन मेरी बेटी को इसी व्यजक्त ने दिया है ।

श्लोक-18. ऊढाया वा कन्याभावं ववमोचयेत ्।।18।।

अर्थ- िेश्या को चादहए कक िब उसकी कन्या बडी हो िाए तब उपयक्


ुय त विधि से यि
ु कों को
फंसाकर उनसे अपनी तरुणी कन्या को सेक्स कराकर उसका कौमायय भंग कराना चादहए।

श्लोक-19. प्रच्छन्न वा तैाः संयोज्य ्वयमजानती भत्सू वा ततो ववहदतेष्वेतं िमथ्र्ेषु


ननवेदयेत ्।।19।।

अर्थ- प्रछिन्न रूप से उन तरुणों से ममलकर उनके प्रेम की खबर राज्याधिकारी तक पहुंचा िे तथा
कफर िह मां उन प्रेममयों के णखलाफ अिालत में फररयाि भी करती है ।
श्लोक-20. सख्यैव तु दा्या वा मोधचतकन्याभावां सग
ु ि
ृ ातकामसत्र
ू ामाभ्याभसकेषु योगेषु प्रनतष्ष्ठतां
प्रनतष्ठते वयभस सौभाग्ये च दहु ितरमवसज
ृ ंनत गणणका इनत प्राच्योपचारााः।।20।।

अर्थ- सबसे पहले प्रिे श की कन्याएं अपनी लडकी की सहे ली तथा िासी के द्िारा लडकी का
कौमायय भंग कराकर सेक्स किया के रहस्यों तथा योगों का अभ्यास कराती हैं। उन अभ्यासों,
कलाओं में पूरी कुशलता प्राप्त कर लेने पर िेश्या की लडकी का भाग्य युिािस्था के साथ ही
चमक िाता है । तब िे अपनी पुत्री को िेश्याचररत्र में ननपुण िानकर आिाि कर िे ती हैं।

श्लोक-21. पाणणग्रिश्च संवत्ससरमव्यभभचायथ्ततो यर्ा काभमनी ्यात ्।।21।।

अर्थ- जिस व्यजक्त ने िेश्या की पुत्री के साथ शािी की है , उसके साथ िेश्या-पुत्री को एक साल
तक रहना चादहए। इसके बाि िहां िह चाहे या िो उससे सेक्स करने की इछिा करे िहां उसके
साथ िह स्िेछिा से सेक्स करे ।

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श्लोक-22. ऊध्वथमवप संवत्ससरात्सपररणीतेन ननमन््यमाणा लाभामप्युत्ससज्


ृ य तां रात्त्रं त्यागच्छे हदनत
वेश्यायााः पाणणग्रिणववधिाः सौभाग्यविथनं।।22।।

अर्थ- एक साल के बाि िब वििादहत िेश्या-पुत्री का पनत बुलाए तो िह अथयलाभ को िोडकर उस


रात उसके साथ सेक्स करने के मलए िाए। िेश्या की शािी तथा सौभाग्यिियन के बारे में ककया
गया उल्लेख यही समाप्त होता है ।

श्लोक-23. एतेन रं गोपजीववनां कन्या व्याख्यातााः।।23।।

अर्थ- धथयेटर पर डांस और नाटकों में काम करने िाली लडककयों की शािी इसी प्रकार से होती
है ।
श्लोक-24. त्मै तु तां दद्युयथ एषां तूये ववभशष्टमुपकुयाथत ्। इनत सुभंगकरणम ्।।24।।

अर्थ- लेककन अमभनय करने िाली तथा नाचने िाली की पत्र


ु ी की शािी उसी के साथ की िानी
चादहए जिसकी रुधच उसके कैररयर को आगे ले िाने में हो।

श्लोक-25. ित्ररू कमररचवपप्पलीचण


ू ैमि
थ भु मश्रैभलथप्तभलंग्य सम्प्रयोगो वशीकरणम ्।।25।।

अर्थ- ितूरा, कालीममचय तथा िोटी पीपल के चण


ू य में शहि ममलाकर मलंग पर लेप करके जिस स्त्री
से सेक्स ककया िाए, िह िशीभूत हो िाती है ।

श्लोक-26. वतोद्भान्तपत्रं मत
ृ कननमाथल्यं मयूराष््र्चू ्णाथवचण
ू थ वशीकरणम ्।।26।।

अर्थ- हिा में उडे हुए पत्ते, शि पर चढाया गया चंिन, मोर की हड्डी के चणू य का लेप बनाकर मलंग
पर लेप करें तथा सेक्स44books.com
करें तो िह स्त्री िशीभत
ू हो िाती है ।

श्लोक-27. ्वयं मत
ृ ाया मण्डलकाररकायाश्चण
ू ं मिस
ु ंयक्
ु तं सिामलकैाः ्त्रान वशीकरणम ्।।27।।

अर्थ- अपने आप मरे हुए धगद्ि के चूणय में शहि ममलाकर आंिले के रस के साथ लेप लगाकर
स्नान करें । इसके बाि सेक्स करने से स्त्री िश में हो िाती है ।

श्लोक-28. वज्र्नुिीगण्डकानन खण्डशाः कृतानन मनाःभशलागंिपाषाणचण


ू न
थ ाभ्यज्य सप्तकृत्सवाः
शोवषतानन चण
ू नथ यत्सवा मिुना भलप्त भलंग्य संप्रोयोगो वशीकरणम ्।।28।।

अर्थ- थह
ू र की गांठे टुकडे-टुकडे करके उसमें मैनमसल तथा गंिक को लपेटकर सात बार सख
ु ा लें।
कफर उसका चूणय बनाकर शहि के साथ मलंग पर लेप करके जिस स्त्री के साथ सेक्स करें गे। िह
िशीभूत हो िाती है ।
श्लोक-29. एतेनैव रात्रौ िम
ू ं कृत्सवा तद्िमनतर्कृतं सौवणं चन्रमसं दशथयनत।।29।।

अर्थ- उपयक्
ुय त चीिों के चण
ू य को रात के समय िुंआ कर िे ने पर िए
ुं ं से ढका हुआ चांि सोने के
समान दिखाई िे ता है ।

श्लोक-30. एतेरैव चणू णथतैवाथनरपुरीषभमधश्रतैयाथ कन्यामककरत्ससाऽन्य्मै न दीयते।।30।।

अर्थ- अथिा इन्हीं िस्तुओं के चण


ू य में मनष्ु य या बंिर की विष्ठा (मल) ममलाकर जिस लडकी के
ऊपर निडक िें गे। िह लडकी िशीभत
ू हो िाती है ।

ं पावक्ष
श्लोक-31. वचागण्डकानन सिकारतैलभलप्तानन भशश ृ ्कन्िमत्सु कीयथ षण्मासं ननदध्यात ् तताः
षडभभमाथसैरपनीतानन दे वकांतमनल
ु ेपनं वशीकरणं चेत्सयाचक्षते।।31।।

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अर्थ- िच की गांठों को आम के तेल से गीला करके, शीशम के तने खोिकर उसमें 6 महीने तक
बंि रखें। 6 महीने बाि कफर उसका लेप शरीर में लगायें तो स्त्री िशीभूत हो िाती है । इस लेप
को िे िकांत कहा िाता है । इस लेप को लगाने से उसके शरीर की चमक बढ िाती है ।

श्लोक-32. तर्ा खहदरसारजानन शकलानन तनूनन यं वक्ष


ृ मुत्सकीयथ षण्मासं ननदघ्यात्तत्सपुष्पगंिानन
भवष्न्त गंिवथकान्तमनुलेपनं वशीकरणं चेत्सयाचक्षते।।32।।

अर्थ- इसी प्रकार खादिरसार (कत्था) की लकडी के टुकडों को पतला करके आम के तेल से
मभगोकर जिस पेड के तने में 6 महीने तक गाडे रखें तथा कफर उसका लेप करें तो उसी पेड के
समान सुगंि शरीर में व्याप्त रहती है । इस िशीकरण अिलेप को गंिियकांत अनुलेप के नाम से
िाना िाता है ।
श्लोक-33. वप्रयंगव्तगरभमश्रााः सिकारतैलहदग्िा नागवक्ष
ृ मुत्सकीयथ षण्मासं ननहिता नागकांतमनुलेपनं
वशीकरणभमत्सयाचक्षते।।33।।

अर्थ- तगर तथा काकुन (कांगुनी) को एक में ममलाकर आम के तेल से मभगोकर उपरोक्त तरीके
से नागकेसर के तने में गाडकर, 6 महीने बाि उसका लेप करने से स्त्री िशीभूत हो िाती है । इस
लेप को नागकांत लेप के नाम से िाना िाता है ।

श्लोक-34. उष्राष््र् भंग


ृ राजरसेन भाववतं दग्िमञ्जनं नभलकायां ननहितमुष्राष््र्शलाकयैव
्त्रोतोऽञ्जनसहितं पुण्यं चक्षुष्यं वशीकरणं चेत्सयाचक्षते।।34।।

अर्थ- ऊंट की हड्डडयां भंग


ृ राि के रस में उबालकर सुरमा के साथ पुटष्पाक द्िारा िलाकर ऊंट
की हड्डी से बनी हुई सुरमेिानी में उस सुरमा को रखें , तथा ऊंट की सलाई से ही आंखों में
लगाएं। यह सरु मा आंखों के मलए बहुत लाभकारी होता है । इसके प्रयोग से जस्त्रयां िश में हो िाती
हैं।

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श्लोक-35. एतेन श्येनभासमयरू ाष््र्मयान्यञ्जनानन व्याख्यातानन।।35।।

अर्थ- इसी प्रकार श्येन, भास, मयूर, पक्षक्षयों की हड्डडयों से भी सुरमा बनाया िा सकता है ।

श्लोक-36. उश्चटाकंदश्चव्या यष्टीमिक


ु ं च सशकथरे ण पयसा पीत्सवा वष
ृ ीभवनत।।36।।

अर्थ- बीिबंि, सफेि मूसली, मुलहठी के चण


ू य में शहि ि शक्कर ममलाकर िि
ू के साथ पीने से
शजक्त प्राप्त होती है तथा बल और िीयय की िद्
ृ धि होती है ।

श्लोक-37. मेषव्तुमुष्कभसद्ि्य पयसाः सशकथर्य पानं वष


ृ त्सवयोग।।37।।

अर्थ- भेड या बकरा के अंडकोषों को िि


ू में पकाकर, चीनी डालकर पीने से बल-िीयय की िद्
ृ धि
होती है ।
श्लोक-38. तर्ा ववदाराथाः क्षीरकायााः ्वयगुप्तायाश्च क्षीरे ण पानम ्।।38।।

अर्थ- वििारीकंि, िंशलोचन तथा केिांच के बीिों का चण


ू य बनाकर िि
ू के साथ पीने से बल-िीयय
की िद्
ृ धि होती है ।

श्लोक-39. तर्ा वप्रयालबीजानां मोरटाववदायोश्च क्षीरणैव।।39।।

अर्थ- धचरौंिी, मुरहरी, िधु िया, त्रबिारीकंि का चण


ू य िि
ू के साथ पीने से बलिीयय की िद्
ृ धि होती है
और शरीर शजक्तशाली होता है ।

श्लोक-40. श्रंगाटककसेरुकामिभू लकानन क्षीरकाकोल्या सि वपष्टानन सशकथरे ण पयसा घत


ृ ेन
मंदाष्ग्ननोत्सकररकां पक्तवा यावदर्ं भक्षक्षतवानन्तााः ष््त्रयो गच्छीतीत्सयाचायाथाः प्रचक्षते।।40।।

अर्थ- आचायों का मानना है कक मसंघाडा, कसेरू तथा महुआ के फूलों को क्षीरकाकोली के साथ
पीसकर उसमें ििू तथा शक्कर ममला िें । 44books.com
कफर घी में िीमी आंच से हलिा बनाकर प्रनतदिन सेिन
करने से शरीर में इतनी अधिक ताकत बढती है कक िह व्यजक्त सैकडों स्त्री के साथ सेक्स कर
सकता है ।

श्लोक-41. माषकमभलनीं पयसा िौतामुष्णेन घत


ृ ेन मद
ृ कृत्सयोदितां वद्
ृ िवत्ससायााः गोाः पयाः पायसं
मिस
ु वपथभ्याथमभशत्सवाऽनन्तााः ष््त्रयो गच्छतीत्सयाचायाथाः प्रचक्षते।।41।।

अर्थ- आचायों का मानना है कक ििू में मभगोई हुई उडि की िाल की भूसी को पानी से िोकर
साफ कर लें , कफर उसे पीसकर घी में भून लें । िब यह भूनकर लाल हो िाए तो बकायन, गाय या
बकरी का िि
ू ममलाकर हलिा बना लें । इसके बाि विषम मात्रा में शहि तथा घी िोडकर रोिाना
खाने से असंख्य औरतों से सेक्स करने की शजक्त प्राप्त होती है ।
श्लोक-42. ववदारी ्वयंगुप्ता शकथरामिस
ु वपथभ्यां गोिम
ू चण
ू ेन पोभलकां कृत्सवा यावद् अर्ं भक्षक्षतवान ्
अनन्तााः ष््त्रयो गच्छनतइत्सय ् ||42||

अर्थ- आचायों के अनुसार वििारीकंि, कौंच के बीि के चण


ू य में गेहूं का आटा, शहि तथा शक्कर
ममलाकर घी में डालकर पकौडडयां बना लें। इन पकौडडयों को प्रनतदिन खाने से इतना अधिक बल-
िीयय बढता है कक एक व्यजक्त सैकडों जस्त्रयों के साथ सेक्स कर सकता है ।

श्लोक-43. चटकाण्डरसभाववतै्तणडुलैाः पायसं भसद्िं मिस


ु वपथभ्या पाववतं यावदर्थभमनत समानं
पूवेण।।43।।

अर्थ- गोरै या धचडडया के अंडों के रस को चािलों के साथ उबालकर उसकी खीर िि


ू के साथ
बनायें। इस खीर को घी तथा शहि के साथ खाने से सेक्स क्षमता में बहुत अधिक िद्
ृ धि होती है ।

श्लोक-44. चटकाण्डरसभाववतानपगतत्सवच्तलाञ ् श्रंग


ृ ाटककसेरु्वयंगुप्ताफलानन गोिमू माषचण
ू ैाः
सशकथरे ण पायसा सवपथया च पक्कं44books.com
संयावं यावदर्थ प्राभशतवानननत समानं पूवेण।।44।।

अर्थ- काले नतलों को मभगोकर उनका निलका ननकाल लें। इसके बाि इन निलकों को गोरै या के
अंडों के रस में उबाल लें , कफर मसंघाडा, कसेरू तथा केिांच के बीि का चण
ू य कर लें , और उडि की
पीठी, गेहूं का आटा इन सभी को एक में ममलाकर घी में भूनकर िि
ू -शक्कर ममलाकर लस्सी बना
लें। इस लस्सी को प्रनतदिन खाने से सेक्स क्षमता में बहुत अधिक िद्
ृ धि होती है ।

श्लोक-45. सवपथषो मिन


ु ाः शकथराया मिक
ु ्य च द्वे द्वे पले मिरु सायााः कषथाः प्र्र्ं पयसं इनत
षडंगम्मत
ृ ं मेध्यं वश्ृ यमायष्ु यं युक्तरसभमत्सयाचायाथाः प्रचक्षते।।45।।

अर्थ- आचायों का मानना है कक शहि, शक्कर तथा महुआ के िो फूल, मलु हठी, कषय, िि
ू इन सभी
को एक साथ ममलाकर रख लें। इस ममश्रण के सेिन से आयु में िद्
ृ धि होती है । यह बािीकारण
तथा आयि
ु ियक है । इस ममश्रण को यक्
ु तरस के नाम से िाना िाता है ।
श्लोक-46. शतावरीश्चदं ष्रागुडकषाये वपप्पलीमिक
ु ल्के गोक्षीरच्छागघत
ृ े पक्के त्य पुष्यारम्भेणान्विं
प्राशनं मेध्यं वष्ृ यमायुष्यं युक्तरसभमत्सयाचायथाः प्रचक्षते।।46।।

अर्थ- सतािर, पहाडी गोखरू इन िोनों िस्तुओं के बारीक चण


ू य में िोटी पीपल और शहि की लुगिी
ममला लें। कफर इसे गाय के घी में भूनकर िि
ू में पका लें । इसे पुष्यनक्षत्र से शुरू करके ननयममत
रूप से चाटने से बुद्धि तथा आयु में िद्
ृ धि होती है । यह बािीकारण भी होता है । इसे घी यक्
ु त
रस के नाम से िाना िाता है ।

श्लोक-47. शतावयाथाःश्र्वगद
ृ ं षरायााः श्रीपणीफलानां च क्षुण्णानां चतुगणुथ णतजलेन पाक
आप्रकृत्सयव्र्ानात ् त्य पुष्यारम्भेण प्राताः प्राशनं मेध्यं वष्ृ ण्मायुष्यं युक्तरसभमत्सयाचायाथाः
प्रचछते।।47।।

अर्थ- शतािर, पहाडी गोखरू, श्रीपणी (कसेरू) के फल इनको यिकूट करके जितनी ििा हो उससे
चौगन
ु े पानी में इन ििाओं को िोडकर आग पर चढा िें । िब पानी परू ी तरह से िल िाए तो
उसे आग पर से उतार कर रख लें। इसे पष्ु यनक्षत्र से शरू
ु करके ननयममत रूप से चाटने से बद्
ु धि
तथा आयु में िद्
ृ धि होती है । यह बािीकारण भी होता है । इसे यक्
44books.com ु तरस के नाम से िाना िाता
है ।

श्लोक-48. श्र्वदं ष्राचण


ू स
थ मष्न्वतं तत्ससमेव यवचण
ू ं प्रातरुत्सर्ाय द्ववपलकमनहु दनं प्राश्रीयान्मेध्यं वष्ृ यं
यक्
ु तरसभमत्सयाचायाथाः प्रचक्षते।।48।।

अर्थ- पहाडी गोखरू का चण


ू य तथा िौ का आटा बराबर मात्रा में लेकर िोनों को ममला लें। इसे
सुबह-शाम िोनों समय सेिन करने से मेिाशजक्त बढती है , शारीररक शजक्त, चमक तथा आयु में
भी िद्
ृ धि होती है । इसे भी यक्तरस कहा िाता है।

श्लोक-49. आयुवेदाच्च ववद्यातंत्रभ्


े य एव च। आप्तेभ्यश्रावबोद्िव्या योगा ये प्रीनतकारकाः।।49।।
अर्थ- उपयक्
ुय त बािीकरण योगों से बताकर िात्स्यायन कहते हैं कक इन योगों के अनतररक्त
आयुिेि, िेि तथा अन्य शास्त्र, अधिकारी, विद्िानों, अनुभिी िैद्यों से रागरनत बढाने िाले भोगों को
सीखना चादहए।

श्लोक-50. न प्रयुञ्जीत संहदग्िात्र शरीरात्सययाविान ्। न जीवघातसंबद्िात्राशुधचरव्यसंयुतान ्।।50

अर्थ- संदिग्ि शरीर को नुकसान पहुंचाने िाले, िीिों को मारकर बनाये िाने िाले योग या जिनमें
अपवित्र चीिें ममलायी िाएं- ऐसे बािीकारक योगों का भी प्रयोग नहीं करना चादहए।

श्लोक-51. तपोयक्
ु ताः प्रयञ्
ु जीत भशष्टै रनग
ु तान ् वविीन ्। ब्राह्मणैश्च सहृ
ु द्भभश्च
मंगलैरभभनंहदतान ्।।51।।

अर्थ- मसफय उन्हीं औषधियों को सेिन साििानीपूिक


य ककया िाना चादहए िो मशष्ट लोगों के प्रयोग
में आती हों, तथा शुभधचंतक ब्राह्मण, विद्िान तथा िोस्त लोग उसकी तारीफ मलखें। िशीकरण
योग 61िां प्रकरण समाप्त होता है ।
कामसूत्र की दृजष्ट से तंत्र तथा आिाप इन िो भागों में बांटा गया है। िात्स्यायन ने पहले
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अधिकरण में यह िानकारी िी है कक यदि आप तंत्र संप्रयोग तथा अंग सम्प्प्रयोग को प्राप्त करने
में और रोगोत्पािक उपाय आमलंगन चब
ुं न से स्त्री में रनत भाि उत्पन्न करने में असफल हों. तो
इस मौके पर औपननषदिक प्रकरण में बताई गयी विधियों का उपयोग ककया िाए।
इस सातिें अधिकरण में िो अध्याय दिये गये हैं। पहले अध्याय में सौन्ियय िद्
ृ धि के
उपाय, िशीकरण के उपयोग तथा बािीकरण के प्रयोगों की िानकारी िी गयी है । िमय, अथय तथा
काम- इस त्रत्रिगय की मसद्धि ही मानि िीिन का लक्ष्य है । इनकी िब तक तक प्राप्त नहीं होती,
तब तक चरम लक्ष्य-मोक्ष कभी भी प्राप्त नहीं ककया िा सकता है । कामसूत्र की रचना का मूल
उद्िे श्य इसी लक्ष्य पर आिाररत है ।
इस अध्याय में सौभाग्यिद्
ृ धि, आयुिद्
ृ धि, स्त्री-िशीकरण तथा बािीकरण के िो प्रयोग दिये
गये हैं िे आयुिेदिक तथा तांत्रत्रक प्रयोग हैं। शास्त्र का विषय होने के कारण से िात्स्यायन ने इन
प्रयोगों को स्थान दिया है । न कक काममयों की सेक्स शजक्त अधिक बढाने, घोडा बनने अथिा
िस
ू रों की बहू-बेदटयों को िशीभत
ू करने के मलए। कभी िमय-संकट आ िाए, आत्मसम्प्मान की रक्षा
का प्रश्न उपजस्थत हो िाए तो इन प्रयोगों को व्यिहार में लाना आिश्यक होता है । लेककन
विशेषज्ञों, अनभ
ु िी लोगों से पि
ू कर, उनसे समझकर ही प्रयोग करना सही रहता है । िात्स्यायन ने
इसी कारण से अंत में स्पष्ट उपिे श करते हुए कहा है कक आयि
ु ेदिक ग्रंथों से, िैदिक ग्रंथों से,
अन्य शास्त्रों से, तंत्रग्रंथों से तथा अनुभिी और योग्य विद्िानों से समझकर ही इन योगों का
प्रयोग करना चादहए। अन्यथा इसका बुरा पररणाम भी हो सकता है िैस-े एक बािीकारक प्रयोग
के अंतगयत कामसूत्रकार ने मलखा है कक-
सवपयषो मिन
ु ा शकयराया मिक
ू स्य च द्िे द्िे पले।
यहां पर घी तथा शहि िोनों को समान मात्रा में खाने को बताया गया है । आयुिेि का
मसद्िांत है कक घी तथा शहि को यदि त्रबल्कुल समान मात्रा में ले तो यह विष बन िाती है ।
ककताबों में मलखे गये मंत्रों तथा उनकी विधियों को पढकर उन्हें मसद्ि करना अज्ञानता होती है ।
ककसी िानकार से समझकर ही प्रयोग करना चादहए।
इनत श्री िात्स्यायनीये कामसत्र
ू े औपननषदिके सप्तमेऽधिकरणे सभ
ु ंगकरणं िशीकरणं िष्ृ ययोगााः
प्रथमोऽध्यायाः।

वात्स्यायन का कामसत्र
ू हिन्दी में

भाग 7 औपननषहदक

अध्याय 2 44books.com
नष्टरागप्रत्सयानयन प्रकरण

श्लोक-1. चण्डवेगां रञ्जनयतुमशक्नुवन्योगानाचरे त ्।।1।।

अर्थ- प्रचंड िेग िाली स्त्री को अनरु क्त तथा खश


ु करने में असमथय परु
ु षों की योगों (औषधि-
सािन) का प्रयोग करना चादहए।

श्लोक-2. रत्योपक्रमे संबाि्य करे णोपमदथ नं त्या रसप्राष्प्तकाले च रतयोजनभमनत


रागप्रत्सयानयनम ्।।2।।

अर्थ- सेक्स के िौरान स्त्री से पहले स्खमलत हो िाने िाला पुरूष यदि स्त्री से खोए हुए अनुराग
को कफर से प्राप्त करना चाहता है तो सेक्स करने से पहले उसे स्त्री की योनन में अंगुली डालना
चादहए। कफर सेक्स करना चादहए ऐसा करने के बाि ही संभोग करें ।

श्लोक-3. औपररष्टकं मंदवेग्य गतवयसो व्यायत्य रतश्रान्त्य च रागप्रत्सयानयनम ्।।3।।


अर्थ- यदि ककसी व्यजक्त की सेक्स इजन्िय त्रबल्कुल ही मशधथल पड गयी हो, िद्
ृ िािस्था अथिा
अधिक मोटापन आ गया हो। या सेक्स करते-करते िह थक गया हो, तो उसे चादहए कक
साम्प्प्रयोधगक अधिकरण में बताई गयी औपररष्टक विधि से िह उत्तेिना प्राप्त करे ।

श्लोक-4. अपरव्याणण वा योजयेत ्।।4।।

अर्थ- या िह रबड, लकडी आदि के बने हुए कृत्रत्रम सािनों का प्रयोग करे ।

श्लोक-5. तानन सुवणाथरजतताम्रकलायसगजदं तगवरव्यमयाणण।।5।।

अर्थ- इस तरह के कृत्रत्रम सािन सोना, चांिी, तांबा, लोहा, हाथीिांत तथा सींग से बनाये िाते हैं।

श्लोक-6. त्रापुषाणण सैसकानन च मद


ृ न
ू शीतवीयाथणण कमथणण च िष्ृ णूनन भवन्तीत बाभ्रवीया
योगााः।।6।।
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अर्थ- िाभ्रिीय आचायों का कहना है कक सीसा और रांग से बने हुए कृत्रत्रम सािन (मलंग), कोमल,
ठं डे तथा संघषयशील होते हैं।

श्लोक-7. दारुमयानन साभ्यतश्रेनत वात्स्यायनाः।।7।।

अर्थ- आचायय िात्स्यायन कहते हैं कक ककसी लकडी के बने हुए कृत्रत्रम सािन (कृत्रत्रम मलंग) का
भी प्रयोग ककया िा सकता है ।

श्लोक-8. भलंगप्रमाणान्तरं त्बन्दभु भाः ककथशपयंत बिुलं ्यात ्।।8।।

अर्थ- पुरूष के मलंग के नाप का ही कृत्रत्रम सािन (कृत्रत्रम मलंग) होना चादहए। स्त्री की योनन की
खि
ु लाहट ममटाने के मलए उस कृत्रत्रम सािन का आगे िाला खब
ू गोििा लेना चादहए।
श्लोक-9. एते एव द्वे संघाटी।।9।।

अर्थ- कृत्रत्रम सािनों में िोड या कफर उतार-चढाि होना आिश्यक होता है।

श्लोक-10. त्त्रप्रभनृ त यावत्सप्रमाणं वा चड


ू काः।।10।।

अर्थ- पुरूष को मलंग के आयाम खरगोश से लेकर घोडे तक के बताये गये हैं। उसी के समान
कृत्रत्रम सािन ,चड
ू क, कहा िाता है ।

श्लोक-11. एकामेव लनतकां प्रमाणवशेन वेष्टयेहदत्सयेकचड


ू काः।।11।।

अर्थ- िो अपने आयाम के अनुसार शीशा आदि की बनी हुई एक ही लता को लपेट सके। िह
कृत्रत्रम सािन, एकचड
ू क, कहलाता है ।

श्लोक-12. उभयतोमुखष्च्छराः ्र्ल


ू ककथशवष
ृ मगुहटकायुक्ताः प्रमाणवशयोगी कटययां बद्िं कञ्जको
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जालकं वा।।12।।

अर्थ- जिस कृत्रत्रम सािन (कृत्रत्रम मलंग) में अंडकोष भी लगे हो, जिसमें िोनों ओर िे ि ककये गये
हों िो कमर से बांिा िा सके तथा जिसकी लंबाई और मोटाई अनुपात के अनुसार हो उसे कंचक

अथिा िालक कहते हैं।

श्लोक-13. तदभावेऽलाबूनालकं वेणुश्च तैलकषायैाः सुभाववताः सूत्रण


े कटयां बद्घाः लक्षणा काष्ठमाला
वा ग्रधर्ता बिुभभरामलकाष््र्भभाः संयुक्तेत्सयपववद्ियोगााः।।13।।

अर्थ- यदि इस तरह के कृत्रत्रम सािन (कृत्रत्रम मलंग) न ममल सके तो

श्लोक-14. न त्सवववद्ि्य क्यधचद्वयवहृनतर्तीनत।।14।।


अर्थ- इस प्रकार कृत्रत्रम मलंगों का संबंि ककसी सेक्स से नहीं है । ये सभी नपुंसकों के मलए योग
हैं।

श्लोक-15. दाणखणात्सयानां भलंग्य कणथयोररव व्यिनं बाल्य।।15।।

अर्थ- िक्षक्षण भारतीय लोगों में बचपन में ही कान की तरह मलंग का भी िे ि होता है ।

श्लोक-16. यव
ु ा तु श्त्रेण च्छे दनयत्सवा यावरधु िकर्यागमनं तावदद
ु के नतष्ठे त ्।।16।।

अर्थ- युिा व्यजक्त यदि अपने मलंग में िे ि करना हो तो उसे मलंग के ऊपर का चमडा सरकाकर
नसों को बचाकर ककसी तेि हधथयार से कुशलतापूिक
य नतरिा िे ि करें तथा िब तक खन
ू बहे तब
तक मलंग को पानी में डुबोयें रखें ।

श्लोक-17. वैशद्यार्थ च44books.com


त्यां रात्रौ ननबथन्िाद्वयवायाः।।17।।

अर्थ- यदि मलंग के िे ि को अधिक बडा बनाना हो तो उसी रात कई बार सेक्स करना चादहए।

श्लोक-18. तताः कषायैरेकहदनाररतं शोिनम ्।।18।।

अर्थ- इसके बाि पंचकषायों (अमलतास, ब्राह्मी, कनेर, मालिी, शंखपुष्पी) के रस से एक-एक दिन
करके मलंग को िोना चादहए।

श्लोक-19. वेतसकुटजसंकभभाः क्रमेण विथमान्य विथनैबन्


थ िनम ्।।19।।

अर्थ- िेष तथा केसरया के कीलों द्िारा िीरे -िीरे करके मलंग के िे ि के आकार को बढाना
चादहए।
श्लोक-20. यष्टीमिक
ु े न मिय
ु ुक्तेन शोिनम ्।।20।।

अर्थ- घािों को भरने के मलए मुलहठी के चण


ू य में शहि ममलाकर लेप करें ।

श्लोक-21. तताः सीसकपत्रकणणथकया विथयेत ्।।21।।

अर्थ- कफर शीशम की पवत्तयां मलंग के िे ि पर बांिनी चादहए। इससे िे ि का आकार बडा हो
िाता है ।

श्लोक-22. म्रक्षेयद्भल्लातकतैलेनेनत व्यिनयोगा।।22।।

अर्थ- शीशम की पवत्तयां बांिने के बाि इसे मभलािां के तेल से मभगोते रहने से मलंग के िे ि का
आकार बडा हो िाता है । व्यििन योग पूरे होते हैं।

श्लोक-23. तष््मन्ननेकाकृनतववकल्पान्यपरव्याणण योजयेत ्।।23।।


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अर्थ- िब मलंग का आकार बडा हो िाए तो, घाि भी भर िाए, पीडा भी बाकी न रहे तब उसमें
हड्डी, लकडी ममट्टी पत्थर आदि के लम्प्बे अभिा गोल अपिव्य पहना िे ना चादहए।

श्लोक-24. वत्त
ृ मेकतो वत्त
ृ मुद्खलकं कुसुमके कण्टककतं कंकाष््र् गजकरमष्टमणडलकं भ्रमरकं
शंग
ृ ाटकमन्यानन वोपायताः कमथतश्च बिुकमथसिता चैषां मद ृ कु कथशता यर्ासात्सयभमत
नष्टरागप्रत्सयानयनं द्ववषष्ष्टतमं प्रकरणम ्।।24।।

अर्थ- जिस प्रकरा का अपिव्य जिसे अनुकूल पडे, उस तरह का गोल, चपटा, ओखली िैसा, कमल,
करे ला िैसा कांटेिार, हौि के समान, हाथी की सूंड की तरह चक्करिार मसंघाडें के आकार का
कोमल अथिा कठोर बनाया िा सकता है । नष्ट हुए रोग को मसर से लाने की विधियां 62िां
प्रकरण समाप्त हुआ।
श्लोक-25. एवं वक्ष
ृ जानां जन्तूनां शूकेरुपहितं भलंगं दशरात्रं तैलेन महृ दतं पुनरुपतहृ ितं पुनाः
प्रमहृ दतभमनत जातशोफं खट्वायामिोमुख्तदं ते लम्बयेत।।25।।

अर्थ- इस प्रकार पेडों में उत्पन्न होने िाले िन्तुओं का रोम मलंग पर लेप करें तथा तेल की
मामलश करें । यही प्रकिया लगातार 10 रात तक करने के बाि िब मलंग में सूिन आ िाए तो
चारपाई के िे ि में मलंग को डालकर पेट के बल सो िाएं।

श्लोक-26. तत्र शीतैाः कषायैाः कृतवेदनाननग्रिं सोपक्रमेण ननष्पादयेत ्।।26।।

अर्थ- इसके बाि उन्हें लेप लगाकर पीडा तथा िलन ममटाना चादहए।

श्लोक-27. स यावज्जीवं शूकजो नाम शोफो ववटानाम ्।।27।।

ु विलामसयों के मलं44books.com
अर्थ- इस प्रकार कामक ग की मोटाई उनके परू े िीिन भर बनी रहती है ।

श्लोक-28. अश्वगंिाशबरकंदजलशू कब ृ ितीफलमाहिष नवनीतिष््तकणथवज्रवल्लीरसैरेकैकेन


पररमदथ नं माभसक विथनम ्।।28।।

अर्थ- असगंि, बडे लोि की िड िलशंकु (एक िंतु), बडी भटकटै या (कटे री) के पके हुए फल,
मक्खन, निउल (ढाक) के पत्ते तथा हरिोर का रस- इनमें से ककसी एक को लगाने से एक महीने
तक मलंग मोटा बना रहता है ।

श्लोक-29. एतैरेव कषायैाः पक्वेन तैलेन पररमदथ नं पाषाणमा्यम ्।।29।।

अर्थ- असगंि आदि की लुगिी से सात्रबत हुए तेल की मामलश करने से 6 महीने तक मलंग के
आकार में िद्
ृ धि रहती है ।
श्लोक-30. दाड़िमत्रापुषवीजानन बालुका बि
ृ तीफलर्त्रेनत मद्
ृ वष्ग्नना पक्वेन तैलेन पररमदथ नं
पररषेको वा।।30।।

अर्थ- अनार बालमखीरा के बीि, एडबालुक (एलिा) तथा भटकटै या के फलों के रस का िीमी आंच
से तेल ननकालकर मलंग में मामलश करने से 6 महाने तक मलंग के आकार में िद्
ृ धि होती रहती
है ।

श्लोक-31. ता्तांत्र योगानाप्तेभ्यो बुध्येतेनत विथनयोगााः।।31।।

अर्थ- इनके अलािा मलंग िद्


ृ धि के अन्य योग िो हैं, उन्हें इस विषय में प्रामाणणक व्यजक्तयों को
समझना चादहए। िद्यिन योग नाम का 63िां प्रकरण समाप्त।

श्लोक-32. अर््नूिीकण्टकचण
ू ेाः पुननथवावानरपूरीषलांगभलका-मूलाभमश्रैयाथमवककरे त्ससा नान्यं
कामयेत ्।।32।।
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अर्थ- थह
ू र के कांटों का चण
ू य, पुननयिा (पथरचटा या गिापुन्ना), बंिर की बीट, कररहारी (इन्िायन)
की िड- सभी को पीसकर चण
ू य बना लें तथा कफर उस चण
ू य को जिस भी स्त्री के मसर पर डाल िें ।
िह स्त्री िशीभूत हो िाती है ।

श्लोक-33. तर्ा सेमलताऽवल्गुजाभंग


ृ लोिोपष्जह्वकाचूणैव्याथधिघातक जम्बूफलरसननयाथसेन घनीकृतेन
च भलप्तसंबािां गच्छतो रागो नश्यनत।।33।।

अर्थ- उसी तरह सोमलता बकुची, भंगरै या, लौह भस्म, उपजिह्िका (गराि- िो बरसात में बाबी के
आस-पास उत्पन्न होती है ) का चण
ू य और अमलतास तथा िामन
ु के फल की गठ
ु ली खरल करके
योनन में लेप करने से भी िो परू
ु ष उस स्त्री से सेक्स करता है । उसकी आसजक्त समाप्त हो
िाती है या उस परू
ु ष की इजन्िय की उत्तेिना समाप्त हो िाती है ।
श्लोक-34. गोपाभलका बिू पाहदकाष्जह्वकाचण
ू ैमाथहिषतक्रयुक्तैाः ्त्रातां गच्छतो रागो नश्यनत।।34।।

अर्थ- गोपामलका, बहुपामलका तथा जिजह्िका का चण


ू य भैंस के मट्ठे में ममलाकर स्नान करने िाली
स्त्री से िो पुरूष सेक्स करता है । िह राग हो िाता है ।

श्लोक-35. नीपाम्रातकजम्बूकूसुमयुक्तमनुलेपनं दौभाथग्यकरं ्त्रजश्च।।35।।

अर्थ- किम्प्ब, आंिडा तथा िामुन के फूलों को नघसकर चंिन लगाना अथिा इन फूलों की माला
पहनना िभ
ु ायग्य का िियक होता है ।

श्लोक-36. कोककलाक्षप्रलेपो िष््तन्यााः संितमेकरात्रे करोनत।।36।।

अर्थ- तालमखाना को पानी में पीसकर योनन में लेप करने से हजस्तनी स्त्री की योनन मसकुडकर
मग 44books.com
ृ ी स्त्री की तरह िोटे आकार की बन िाती है ।

श्लोक-37. पद्योत्सपलकदम्बसजथकसग
ु ंिचण
ू ाथनन मिन
ु ा वपष्टानन लेपो मग
ृ या ववशालीकरणम ्।।37।।

अर्थ- कमलगट्टा, नीलोफल, किम्प्ब, विियसार तथा नेत्रबाला का चण


ू य शहि के साथ घोटकर
उसका लेप बनाया िाए तो, कफर उस लेप को योनन में लगायें, इससे िोटी सी िोटी आकार की
योनन गहरी तथा विशाल बन िाती है ।

श्लोक-38. ्नूिीसोमाकथक्षारवल्गुजाफलैभाथववतान्यामलकानन केशानां श्र्तीकरणम ्।।38।।

अर्थ- थह
ू र, पत
ु ली तथा मिार के पत्तों को िलाकर राख बना लें । कफर उस राख के साथ गरु
ु ची के
बीि तथा आंिलों को उबालकर उसे बालों में लगाने से काले से काले बाल सफेि हो िाते हैं।
श्लोक-39. मदयष्न्तकाकुटजकाञ्जननकाधगररकणणथकालक्ष्यपणीमूलैाः ्नानं केशानां
प्रत्सयानयनम ्।।39।।

अर्थ- में हिी, केसररया, पहाडी, चमेली, माषपणी की िड का चण


ू य मसर पर मलकर नहाने से मसर से
सफेि बाल िड से काले हो िाते हैं।

श्लोक-40. एतैरेव सुपक्केन तैलेनाभ्यांगत्सकृष्णीकरणात ् क्रमेणा्य प्रत्सयानयनम ्।।40।।

अर्थ- इन्हीं से बनाये गये तेल से भी उपरोक्त बाल काले हो िाते हैं।

श्लोक-41. श्रेताश्र्य मुषक्वेदैाः सप्तकृत्सवो भाववतेनालक्तकेनरोऽघराः श्र्वेतो भवनत।।41।।

अर्थ- सफेि घोडे के अंडकोष के पसीने की इन्हीं ििाओं के साथ सात बार उबालने पर िो योग
प्राप्त होता है , िह सफेि होंठों को शीघ्र ही लाल बना िे ता है ।

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श्लोक-42. मदयष्न्तकादीन्येव प्रत्सयानयनम ्।।42।।

अर्थ- इन्हीं ििाओं को पीसकर कफर होंठों में लगाने से लाल होंठ सफेि हो िाते हैं।

श्लोक-43. बिुपाहदकाकुष्ठतगरतालीसदे वदारुवज्रकंदकैरुपभलप्तं। वंशं वादयतो या शब्दं श्रण


ृ ोनत या
वश्या भवनत।।43।।

अर्थ- बहुपादिका, कुण्ठ, तगर, लाली शपत्र, िे ििारू तथा िि


ू कंि का लेप बाहों पर करके उस बांस
की बांसुरी बनाकर बिाने से िो स्त्री उसकी ध्िनन सुनती है िह बिाने िाले पर मोदहत हो िाती
है ।
श्लोक-44. ित्तरू फलयुक्तोऽभ्यविार उन्मादकाः।।44।।

अर्थ- पेय पिाथों में ितूरे के बीिों को ममलाकर जिसे भी वपला िें अथिा णखला िें िह पागल हो
िाता है ।

श्लोक-45. गु़िो जीणथतश्च प्रत्सयानयनम ्।।45।।

अर्थ- पुराना गुड णखला िे ने से ितूरे का विष उतर िाता है ।

श्लोक-46. िररतालमनाः भशलाभक्षक्षणो मयूर्य पुरीषेण भलप्ति्तो यद्रव्यं ्पश


ृ नत नत्र
दृश्यते।।46।।

अर्थ- हरताल तथा मैनमसल खाने िाले मोर के बीट को हाथों में लेकर जिस भी चीि को िू लें गे।
िह िस्तु िस
ू रों को नहीं दिखाई िे ती है ।
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श्लोक-47. अंगारतण
ृ भ्कमना तैलेन ववभमश्रमुदकं क्षीरवणथ भवनत।।47।।

अर्थ- खस की राख तेल में ममलाकर पानी में डालने से पानी िि


ू के समान सफेि रं ग का हो
िाता है ।

श्लोक-48. िरीतकाम्रातकयोाः श्रवणवप्रयंगकाभभश्च वपष्टाभभभलथप्तानन लोिभाण्डानन


ताम्रीभवष्न्त।।48।।

अर्थ- हरड तथा आंिला को मालकांगनी के साथ पीसकर लोहे के बतयन पर लेप करने से िह तांबे
के रं ग का हो िाता है ।
श्लोक-48. िरीतकाम्रातकयोाः श्रवणवप्रयंगकाभभश्च वपष्टाभभभलथप्तानन लोिभाण्डानन
ताम्रीभवष्न्त।।48।।

अर्थ- हरड तथा आंिला को मालकांगनी के साथ पीसकर लोहे के बतयन पर लेप करने से िह तांबे
के रं ग का हो िाता है ।

श्लोक-49. श्रवणवप्रयंगुकातैलेन दक
ु ू लसपथननमोकेण वर्त्तयाथ दीपं प्रज्वाल्य पाश्वे दीघीकृतानन काष्ठानन
सपथवद् दृश्यंते।।49।।

अर्थ- सांप की केंचल


ु ी से मालकांगुनी पीसकर लेप करें और उसमें कपडा लपेटकर बत्ती बना लें ,
कफर यदि उसे िलाएं तो आसपास की लकडडया उसकी रोशनी से सांप के समान प्रतीत होती हैं।

श्लोक-50. श्र्वेतायााः श्र्वेतवत्ससायााः गोाः क्षीर्य पानं यश्यमायुष्यम ्।।50।।

अर्थ- सफेि बिडे िाली गाय का िि ू पीने44books.com


से यश तथा आयु की िद्
ृ धि होती है । धचत्रयोग नाम
का 64िां प्रकरण समाप्त होता है ।

श्लोक-51. ब्राह्मणानां प्रश्तानामाभशषाः।।51।।

अर्थ- प्रशस्त ब्राह्मणों के आशीिायि से भी आयु तथा यश में िद्


ृ धि होती है ।

श्लोक-52. पूवश
थ ा्त्राणण संदृश्य प्रयोगाननुसत्सृ य च। कामसूत्रभमदं यत्सनात्ससंक्षेपेण ननवेहदतम ्।।52।।

अर्थ- पूिय आचायों के शास्त्रों को एकत्र करके, उनका अध्ययन और उनके प्रयोगों का परीक्षण
करके बडे प्रयत्न से सारांश में कामसूत्र को कहा गया है ।
श्लोक-53. िमथमर्ं च कामं च प्रत्सययं लोकमेव च। पश्यत्सयेत्य तत्तज्ञो न च रागात्सप्रवतथते।।53।।

अर्थ- कामसूत्र के तत्ि को भली प्रकार समझने िाले लोग िमय, काम, आत्मविश्िास तथा लोकाचार
को िे खते हुए प्रित्त
ृ होते हैं न कक प्रेम अथिा मुक्ता से।

श्लोक-54. अधिकारवशादक्
ु ता ये धचत्रा रागवद्थिनााः। चदन्तरमत्रैव ते यत्सनाद्ववननवाररतााः।।54।।

अर्थ- इस शास्त्र में अछिी तथा सभी बुरी बातें िी गयी हैं तथा अंत में यह बता दिया गया है ,
कौन-सी बात की िाए तथा कौन-सी न की िाए।

श्लोक-55. न शा्त्रम्तीत्सयेतेन प्रयोगो हि समीक्ष्यते। शा्त्रार्ाथन्व्यावपनो


ववद्यात्सप्रयोगां्त्सवैकदे भशकान ्।।55।।

अर्थ- जितनी बातें शास्त्रों में बताई गयी हैं िे सभी प्रयोग के मलए नहीं हैं, शास्त्र का व्यापक
साियभौम होता है लेककन इसके प्रयोग एकिे शी होते हैं।
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इनत श्री िात्स्यायनीये कामसूत्रे औपननषदिके सप्तमेऽधिकरणे नष्टरागप्रत्यानयन द्वितीय अध्याय


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