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नयी गज
ं -------.
वर्ष 2022
अंक 1
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i
NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE
संपादक मंडल
प्रमुख संरक्षक
प्रो. दे व माथरु
vishvavishvaaynamah.webs1008@gmail.com
मुख्य संपादक
shuddhi108.webs@gmail.com
संपादक
सशवा ‘स्वयं’
sarvavidhyamagazines@gmail.com
शाखा प्रमुख
ब्रजेश कुमार
aryabrijeshsahu24@gmail.com
परामशषदािा
कमल जयंथ
jayanth1kamalnaath@gmail.com
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ii
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संपादकीय
सशवा ‘स्वयं’
समट्टी से अब खुश्ब आिी निीं िै, घरों में माबषल सजा कर उसमें से खुश्ब अनभ
ु व
करने की कोसशश कर रिे िैं िम सब !
क्योंकक िम वस्िओ
ु से खुद को भर कर, वास्िव में खाली कर रिे िैं ! भरना िै िो
पवचारों को भरो, जो िमें एक हदन परा िो करें गे ! निीं िो संभविः िमारी पंजी में
िीरे मोिी निीं कंकड़ पत्थर िी रि जायेंगे !
एक पपवि प्रेरणा का िाथ पकड़ कर चलो जो इस िरि साथ िोिी िै जैसे मााँ की
ऊाँगली थाम कर चलना, वो जो िमेशा कोमल रास्िो पर चलना निीं ससखािी, वो िो
उबड़ खाबड़ रास्िों का तनमाषण खद
ु िी करिी िै कक उसके बच्चे को उन रास्िों पर
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चलना आ जाये ! वो ससखािी िै कक िज़ार बार भी गगरो िो कोई बाि निीं मगर
िौसला एक बार भी गगरने मि दे ना !
अवगण
ु ों से भरे िम, यहद जीवन में गण
ु जोड़ लें िो यि गचरस्थाई संपपि िोगी,
जजससे सच्चा श्ग
ं ृ ार सम्भव िो जािा िै !
िम बिुि मेिनि से कमािे िैँ, अपने जीवन कों सजािे िैँ अच्छे कपड़ो से, बड़ी
गाड़ी से, मिं गे समानों औऱ आलीशान घरों से ! कमाई एक िो बािर के सलए िोिी
िै जो जीवन का बािरी रं ग सन्
ु दर कर दे िी िै लेककन इस बािर कों सजाने की
दौड़ में अंदर से संद
ु रिा िो दर की बाि िै अंदर की िो गन्दगी िक साफ निीं िो
पािी –
पवस्िार को पा सकिे िैँ, अन्यथा निीं !’इसी उद्दे श्य की प्राजति की ओर यि पिला
कदम....
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शभ
ु ेच्छा
नयी गज
ूं ------. पररवार
परामशषदािा-
प्रश्न िै कक संस्कृति क्या िै । यं संस्कृति शब्द सम+् कृति से बना िै, जजसका अथष िै अच्छी कृति। अथाषि ्
संस्कृति वस्िुिः राष्रीय अजस्मिा के पररचायक उदाि ित्वों का नाम िै ।
भारिीय सन्दभष में संस्कृति व्यजक्ितनष्ठ न िोकर समजष्टतनष्ठ िोिी िै । संस्कृति की संरचना एक हदन में
न िोकर शिाजब्दयों की साधना का सुपररणाम िोिा िै । अिः संस्कृति सामाससक-सामाजजक तनगध िोिी िै ।
संस्कृति वैचाररक, मानससक व भावनात्मक उपलजब्धयों का समुच्चय िोिी िै । इसमें धमष, दशषन, कला,
संगीि आहद का समावेश िोिा िै । इसी की अपररिायषिा की ओर संकेि करिे िुए भिि
ृष रर ने सलखा िै कक
इसके त्रबना मनुष्य घास न खाने वाला पशु िी िोिा िै -
‘‘साहित्यसंगीिकला-पविीनः
मुख्य संपादक
उपतनर्द् के शब्दों में किें िो संस्कृति में जीवन के दो आयाम श्ेय व प्रेय का सामंजस्य िोिा िै । इन्िीं
आधार पर आध्याजत्मक, वैचाररक व मानससक पवकास िोिा िै और इन्िीं के आधार पर जीवन-मकयों व
संस्कारों का तनधाषरण िोिा िै और यिी जीवन के समग्र उत्थान के सचक िोिे िैं। सशक्षा-िंि में इन्िीं
सांस्कृतिक मकयों का सशक्षण-प्रसशक्षण िोिा िै । विषमान में सशक्षा-व्यवस्था संस्कृति की अपेक्षा सम्यिा-
तनष्ठ अगधक िै । िात्पयष िै कक विषमान सशक्षा पवचार-प्रधान, गचन्िन-प्रधान व मकयप्रधान की अपेक्षा
ज्ञानाजषन-प्रधान िै । वस्िुिः इसी का पररणाम िै कक सम्प्रति सशक्षा के द्वारा बौद्गधक स्िर में िो
असभवद्
ृ गध िुई िै ककन्िु संवेदनात्मक या भावनात्मक स्िर घटा िै ।
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संपादक –
िमारी सशक्षा में सांस्कृतिक मकयों के स्थान पर पजश्चमी सभ्यिा-मलक ित्वों को उपादान के रूप में ग्रिण
कर सलया गया िै । िभी िो सशक्षा व समृद्गध के पाश्चात्य मानदण्डों को आधार मान सलया िै जो संस्कृति-
पवरोधी िैं, जजनमें नैतिक व मानवीय मकयों का पवशेर् स्थान निीं िै । इसी का पररणाम िै कक बुद्गधमान व
गरीब नैतिक व्यजक्ि सामाजजक दृजष्ट से भी िांससये पर िी रििा िै और नैतिकिा-पविीन, संवेदनिीन,
भ्रष्टाचारी व अपराधी भी सम्पन्न, सभ्य, सम्मान्य व प्रतिजष्ठि िोिा िै । इसी संस्कृति-पविीन व्यवस्था के
कारण शोर्ण-प्रधान पंजीवादी व्यवस्था िी ग्राह्य िो गई िै , जजसने रिन-सिन के स्िर को िो उठाया िै , पर
इस भोगवादी बाजारवादी व्यवस्था के कारण अथषशास्ि व िकनीककपवज्ञान के सामने नैतिकिा व
मानवीयिा गौण िो गई िै । जबकक राधाकृष्णन व कोठारी आयोग की मान्यिा थी कक सशक्षा ऐसी िोनी
चाहिये जो सामाजजक, आगथषक व सांस्कृतिक पररविषन का प्रभावी माध्यम बन सके। इस दृजष्ट से भारिीय
प्रकृति और संस्कृति के अनुरूप सशक्षा से िी मकयपरक उदाि-गुणों का संप्रेर्ण और समग्र व्यजक्ित्व का
तनमाषण सम्भव िै । इसमें पुराने व नये का त्रबना पवचार ककये जो दे श की अजस्मिा व समाज के हििकर िै ,
उसी को प्रमुखिा दे नी चाहिए।
शाखा प्रमख
ु की कलम से--
पप्रय पाठकों
मुझे प्रसन्निा िै कक शाखा प्रमुख के रूप में कायषभार संभालने के बाद मुझे आप सभी से नयी गंज के इस
अंक के माध्यम से रूबरू िोने का मौका समल रिा िै ।
िम ककिना भी पवकास कर लें ककन्िु यहद समाज में संवेदना िी मर गई िो सब व्यथष िै । इस संवेदनिीनिा
के चलिे समाज में नकारात्मक ऊजाष हदन प्रति-हदन बढ़िी जा रिी िै जो तनन्दनीय भी िै और पवचारणीय
भी। आवश्यकिा िै कक िम अपवलम्ब इस हदशा में अपने प्रयास आरम्भ कर दें ।
वस्िुिः अपने कमों से िम अपने भाग्य को बनािे और त्रबगाड़िे िैं। यहद गंभीरिा से गचंिन-मनन ककया
जाय िो िमारा कायष-व्यापार िमारे व्यजक्ित्व के अनुसार िी आकार ग्रिण करिा िै और िमें अपने कमष के
आधार पर िी उसका फल प्राति िोिा िै । कमष ससफष शरीर की कियाओं से िी संपन्न निीं िोिा अपपिु मनुष्य
के पवचारों से एवं भावनाओं से भी कमष संपन्न िोिा िै । वस्िुिः जीवन-भरण के सलए िी ककया गया कमष िी
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कमष निीं िै िम जो आचार-व्यविार अपने मािा-पपिा बंधु समि और ररश्िेदार के साथ करिे िैं वि भी कमष
की श्ेणी में आिा िै । मसलन िम अपने वािावरण सामाजजक व्यवस्था, पाररवाररक
समीकरणों आहद के प्रति जजिना िी संवेदनशील िोंगे िमारा व्यजक्ित्व उिनी िी उच्चकोहट की श्ेणी में
आयेगा।
आज के जहटल और अति संचारी जीवन-वपृ ि के सफल संचालन िे िु सभी का व्यजक्ित्त्व उच्च आदशों पर
आधाररि िो ऐसी मेरी असभलार्ा िै ।
यि ज़रूरी निीं िै कक िर कोई िर ककसी कायष मे पररपणष िो, परन्िु अपना दातयत्व अपनी परी कोसशश से
तनभाना भी दे श की सेवा करने के समान िी िै । संपणष किषव्यतनष्ठा से ककया िुआ कायष आपको अवश्य िी
कायष-समाजति की संिुजष्ट दे गा। कोई भी ककया गया कायष िमारी छाप उस पर अवश्य छोड़ दे िा िै अिएव
सदै व अपनी श्ेष्ठिम प्रतिभा से कायष संपन्न करें । िर छोटी चयाष को और छोटे -से-छोटे से कायष के िर अंग
का आनंद लेकर बढ़िे रिना िी एक अच्छे व्यजक्ित्व का उदािरण िै ।
यि सवषपवहदि ि्य िै कक नयी गंज एक उच्च स्िरीय पत्रिका िै जजसमें पवसभन्न पवधाओं में उच्चस्िरीय
लेखों का अनठा संग्रि िै
आप सभी पत्रिका का आनन्द लें एवं अपनी प्रतिकियायें ऑनलाइन या ऑफलाइन भेजें।
नयी गंज के माध्यम से िमारा आपका संवाद गतिशील रिे गा। आप सभी अपनी सुन्दर व श्ेष्ठ रचनाओं से
नयी गंज को तनरन्िर समृद्ध करिे रिें गे इसी पवश्वास के साथ।
अंि में मैं सभी सम्पादक मण्डल के सदस्यों एवं रचनाकारों को नयी गंज पत्रिका के सफल सम्पादन एवं
प्रकाशन के सलए साधुवाद ज्ञापपि करिा िं करिा िाँ ।
अथाषि ् पुरानी िी सभी चीजें श्ेष्ठ निीं िोिी और न नया सब तनन्दनीय िोिा िै । इससलए बुद्गधमान व्यजक्ि
परीक्षा करके जो हििकर िोिा िै उसी को ग्रिण करिे िैं जबकक मखष दसरों का िी अन्धानुकरण करिे िैं।
अस्िु, तनपवषवाद रूप से यि सभी स्वीकार करिे िैं कक राष्र की रक्षा, का सकारात्मक पक्ष िोिा िै ।
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ई-मेलःgoonjnayi@gmail.com
शक
ु क दर 40/-
वापर्षक: 400/-
िैवापर्षक: उपयक्
ु ष ि शक
ु क-दर का अगग्रम भग
ु िान 1200/-
तनयम तनदे श
1 रचनाएं यथासंभव टाइप की िुई िों, रचनाकार का परा नाम, पद एवं संपकष पववरण का उकलेख
अपेक्षक्षि िै ।
2 लेखों में शासमल छाया-गचि िथा आाँकड़ों से संबंगधि आरे ख स्पष्ट िोने चाहिए। प्रयुक्ि भार्ा सरल,
स्पष्ट एवं सुवाच्य हिंदी भार्ा िो।
4 प्रकासशि रचनाओं में तनहिि पवचारों के सलए संपादक मंडल प्रकोष्ठ उिरदायी निीं िोगा और इसके
सलए परी की परी जजम्मेदारी स्वयं लेखक की िी िोगी।
नई गाँज तनयमावली
रचनाएं goonjnayi@gmail. Com ई-मेल पिे पर भेजी जा सकिी िैं। रचनाएं भेजने
के सलए नई गाँज के साथ लॉग-इन करें , यि वांतछि िै ।
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पप्रय सागथयों,
नई गाँज िेिु आपके सियोग के सलए आपका िाहदष क धन्यवाद। आशा िै कक ये संबंध आगे भी
प्रगति के पथ पर अग्रसर रिें गे। आगामी अंक िे िु आप सबके सकिय सियोग की पुनः आकांक्षा
िै । आप सभी से एक मित्वपणष अनुरोध िै कक आप अपने शोध प्रपि तनम्न प्रारूप के ििि िी
प्रस्िुि करें जजससे कक िमें िकनीकी जहटलिाओं का सामना न करना पड़े -
1.प्रकाशन िे िु आपकी रचना के मौसलक िोने का स्विः सत्यापन रचना प्रेपर्ि करिे समय
"मौसलकिा प्रमाण पि" पर िस्िाक्षर करना अतनवायष िै । इसके त्रबना रचना पर पवचार करना
संभव निीं िोगा
5. रचनाओं के साथ अपना पणष पिा, मोबाइल नंबर, ईमेल िथा पासपोटष साइज की फोटो लगाना
अपेक्षक्षि िै !
6. आप लेख, कपविा, किानी, ककसी भी पवधा में रचनाएाँ भेज सकिे िैँ !
संपादक मंडल
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अनुक्रमाविका
क्रम वििरविका पृष्ठ संख्या
संख्या
1
दीपक की भाांति होिा है शिक्षक,
“शिक्षक”
2
भा
रतीय संस्कृतत में शिक्षक के शिए गुरु िब्द का प्रयोग ककया
गया है ! जिसका अर्थ होता है - ज्ञान दे ने वािा अर्ाथत अंधकार
से प्रकाि की ओर िे िाने वािा! बच्चों की जिंदगी में मां के
बाद शिक्षक की बहुत बडी भशू मका होती है! वह बच्चे को ककस
तरह ढ़ािता है, यह तनभथर करता है उसकी योग्यता पर! अगर शिक्षक का िाजब्दक
अर्थ दे खे तो पता चिता है कक शिक्षण का कायथ करने वािा अर्ाथत अध्ययन-
अध्यापन कराने वािा!
िेककन प्राचीन काि और वतथमान के शिक्षक मैं उनकी कर्नी और करनी में बहुत
अंतर आ गया है ! अब शिक्षा व्यापार बन कर रह गई है ! आि शिक्षक की जस्र्तत
वेतन भोगी के शसवाय कुछ नहीं है ! इसशिए आि की जस्र्तत को दे खकर ककसी
ने कहा है –
र्रु
ु लोभी चेला लालची, दोनों खेल दाव!
िबकक शिक्षक इस राष्र तर्ा समाि की िडे हैं! जिस प्रकार िड के दहि िाने पर
पेड गगर िाता है, उसी प्रकार एक उत्तम शिक्षक के बबना शिष्य का तनमाथण नहीं हो
सकता है! अतः शिक्षक को अपने कतथव्य को समझ कर, बच्चों को िारीररक
मानशसक बौद्गधक रूप से तैयार करना चादहए! तयोंकक छोटे बच्चे शमट्टी की तरह
है , िैसा शिक्षक डािेगा, बस वैसे ही ढि िाएंगे! आि शिक्षक और शिष्य के बीच
दरू ी बनती िा रही है, वे भी समाप्त होगी! तभी हम सही अर्थ में कह सकेंगे कक
शिक्षक ही अपने शिष्य का सच्चा सही पर् प्रदिथक है !
बज
ृ ेि कुमार
5
भारत मेरा भारत
धमम का अथम
धमम को सामान्त्यतः अंग्रेजी के शब्द Religion के अथम में ियोग ककया जाता है और
उसको मत, पंथ, मजहब आहद के रूप में ग्रहण ककया जाता है | ररलीजन (
Religion ) की अवधारणा अलौककक प्रवश्वासों तथा अतत िाकृततक शप्ततयों से
सम्बद्ध है , जबकक धमम भावना में ककसी िकार के अलौककक के ितत प्रवश्वास के
मलए कोई स्थान नहीं है हमको यह जानकर आश्चयम नहीं करना चाहहए कक धमम
ग्रन्त्थों एवं आचार संहहताओं में जहााँ धमम के लक्षण बताए गए हैं | वहााँ आत्मा ,
परमात्मा अथवा ककसी अतत िाकृत एवं अधध - िाकृत की चचाम नहीं की गई है |
6
यथा- धारण करने के कारण ही धमम कहलाता है , धमम िजा को धारण करता है -
(महाभारत )
प्रवश्ववन्त्य पज्
ू य महात्मा गांधी िायः यह कहा करते थे " मेरा प्रवश्वास है कक बबना
धमम का जीवन बबना मसद्धान्त्त का जीवन होता है और बबना मसद्धान्त्त का जीवन
वैसा ही है जैसा कक बबना पतवार का जहाज | प्जस तरह बबना पतवार का जहाज
7
मारा - मारा किरे गा , उसी तरह धममहीन मनष्ट्ु य भी संसार - सागर में इधर -
उधर मारा - मारा किरे गा और अपने अभीष्ट्ट स्थान तक नहीं पहुाँचग
े ा !
चाँ कू क राजनीतत हमारे जीवन का अमभन्त्न अंग है | अतः उसका भी धमम होना
चाहहए अथामत ् वह भी कततपय मान्त्यताओं पर आधाररत होनी चाहहए | धममप्रवहीन
राजनीतत असामाप्जक होगी और वह हमारे मलए हहतकर नहीं है |
इस आदशम का पालन करने वाले राजा के ितत ककसी को प्रवरोध नहीं होता है
आधतु नक संदभम में यहद कोई राजनेता उतत आदशम का अनस
ु रण करता तो – “न
राजनेता से प्रवरोध हो सकता है और न ही राजनेताओं का तनमामण करने वाली
राजनीतत से |” तो ककसी को ककसी से भी मशकायत नहीं होगी |
कालान्त्तर में धमम के मनमाने अथम लगाकर शासक धमम के नाम पर िजा पर
अत्याचार करने लगे अथवा जनता का शोिण करने लगे | तब से राजनीतत के क्षेर
में 'ररलीजन' को अछूत समझा जाने लगा | लोग धमम के मल
ू अथम को भल
ू गए
और ररलीजन के समकक्ष धमम को मानकर धमम से परहे ज करने लगे | राजनीतत के
संदभम में धमम और ररलीजन का एक ही अथम में ियोग ककया जाने लगा है |
8
राजनीतत का धमम हो
धमम के नाम पर राजनीतत के अमभशतत बन जाने का मख्
ु य कारण यह है कक
स्वाथमपरता के कारण हम लोगों ने धमम के वास्तप्रवक अथम को भल
ु ा हदया है तथा
गांधीवादी जीवनदशमन को अस्वीकार कर हदया है |
महात्मा गांधी धमम और ररलीजन के भेद को समझते थे | उन्त्होंने राजनीतत में धमम
भावना अथवा नैततकता का समावेश करके प्रवश्व को सत्य एवं अहहंसा का संदेश
हदया था | सत्य का व्यावहाररक रूप अहहंसा है और धमम नैततकता का पयामय है |
राजनीतत में नैततकता का समावेश करके गांधीजी ने राजनीतत का शद्
ु धधकरण
ककया और धमम क पर राजनीतत करने वालों को अलग - थलग करने का ियास
ककया | उनका मत सवमथा स्पष्ट्ट था कक "जो चीज प्रवकार को ममटा सके , राग -
द्वेि को कम कर सके, प्जस चीज के उपयोग में मन सल
ू ी पर चढ़ते समय भी
सत्य पर डटा रहे , वही धमम की मशक्षा है , मैं इस बात से सहमत नहीं हूाँ कक धमम
का राजनीतत से कोई सम्बन्त्ध नहीं है , धमम से प्रवलय राजनीतत मत
ृ शरीर के तुल्य
है , जो केवल जला दे ने योग्य है "
9
राजनीतत का धमम होना चाहहए भारत जैसे प्रवशाल दे श में अपने संप्रवधान की
सीमाओं में कायम करना राजनीतत का धमम होना चाहहए | इसके बाहर जाने का अथम
होगा राजनीतत के धमम का उल्लंघन, इस दृप्ष्ट्ट से संप्रवधान में संशोधन करने के
पव
ू म खूब सोच - समझ लेना चाहहए | जहााँ तक सम्भव हो यथाप्स्थतत वाली नीतत
अपनाई जानी चाहहए , तयोंकक एक बार छूट हो जाने पर छूट का अन्त्त नहीं होता
है | भारत इसका ज्वलन्त्त उदाहरण है | िततविम औसतन दो संशोधन करके
संप्रवधान को अपना अनग
ु ामी बनाकर तया हम राजनीतत में धमम को अलग नहीं
बता रहे हैं |
दग
ु ाम माहे श्वरी
10
मख
ु ौटे के पीछे
कौन ?
11
मैं
ही तो हूँ, वो ! जो कभी ककस रं ग में तो कभी ककस रं ग में ! वो
कौनसा रं ग है जो मेरा है, इन सब में से ! कोई नहीं !
शेर, शेर ही दिखता है , वो कभी दहरन जैसा दिखने या होने का प्रयास नहीं करता !
सांप, सांप ही दिखता है, हम उससे संभल कर चल सकते हैँ ! अगर सांप में खुि
पर चींटी का मख
ु ौटा लगाने की क्षमता आ जाती तो सोचचये ककतने डंक जीवन में
हमें लग जाते! लेककन सांप ककतना भी जहरीला क्यों न हो वो अपने जहर को ढक
कर याछन छछपा कर नहीं रखता! इसललये उसकी यह सबसे बड़ी ख़बसरती है कक
वो सांप है पर सच्चा है, बबना मख
ु ौटे के है ! बबल्ली शेर बनकर डराती नहीं ! औऱ
शेर बबल्ली का रूप बनाकर हमारे आस पास रह सकता नहीं !
ककतना सच्चा है सब जानवरों के जंगलों में , हम इंसानों के जंगलों में ककस चेहरे
के पीछे कौनसा चेहरा छछपा है – ये सच कभी कोई नहीं जान सकता !
सबको पता होता है शेर दहंसक जानवर है , इससे बच कर रहना है, नहीं तो खा
जायेगा !
मगर ये इंसान ? जजसको कोई नहीं जानता कक कब यह ककस रूप में होगा?
12
“सच्चे पर शक औऱ झठे पर ववश्वास ! तभी तो यहाूँ
इंसानों के जंगलों में कोई ककसी का नहीं, ककतनी भी
सावधानी बरतो, हम लशकार हो ही जाते हैँ – धोखे लमल ही
जाते हैँ औऱ जानवरों के जंगलो में सावधानी बरत कर
खुले शेर से भी बच कर हम सही सलामत आ जाते हैँ !”
तरह के मख
ु ौटे लगा लेते हैँ !
इंसानी बजु दि का बड़ा गैर काननी प्रयोग है ये ! जजसकी कोई सजा नहीं ! सजा तो
क्योंकक तब हो सकती है ज़ब अपराध साबबत हो !
मख
ु ौटे लगाकर जीने को कोई अपराध ही नहीं मानता ! इंसान ने डडचियों से बद्
ु चध
को इतना ववकलसत कर ललया है कक ककतने भी खबसरत ढं ग से अपनी बिसरती
को छछपाने में सफल हो जाता है !
13
आजस्तक होता या नाजस्तक ! जैसा होता बस वैसा होता ! सबसे सन्
ु िर उसका
असली रूप होता ! तब वो कुरूप होकर भी आकर्यक लगता !
वो परु ाने जमाने जैसा होता कक सीधा, सच्चा ! चाहे उसकी अलमाररयों में जीत के
प्रमाण कई मैडल ना होते लेककन कई अबोले, अव्यक्त, पण्
ु य कमों से उसके खाते
भरे होते !
अपने चेहरे पर से िसरे चेहरे को उतार फेंके तो हम वो पाक – पववत्र – साफ चेहरा
पा लेंगें, जो ईश्वर की भें ट है – हम स्वयं !
14
नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,
हररवंश राय बच्चन
धलू ि धस
ू र बादिों ने
राि आई और कािी,
िग रहा था अब न होगा
राि के उत्पाि-भय से
र्ोदहनी र्स्
ु कान फिर-फिर!
15
नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,
भीर् कायावान भध
ू र,
16
नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,
लिए जो जा रही है ,
नाश के दख
ु से कभी
प्रिय की ननस्िब्धिा से
17
वर्तमान व्यवस्था की सच्चाई
आज करें हम बार् दे श की
दे श हमारा बबगडा है ।
दे श हमारा ररगडा है ॥
थानेदार ना माने जी ॥
स्कूिों की हािर् दे खो
18
कहा बर्ाऊ बार् दे श की
दश्ु मन को ििकारा है ।
19
भगर् लसंह की र्रह दे श में
हम र्ो वह सल्
ु र्ान हैं ॥
भक्र् दे श का बनना है ॥
अब्दि
ु ( किाम ) के सपनों को
20
अमेररका -जापान ,चीन हो
अब ना र्ुम को डरना है ॥
ववनोद मानवी
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कृष्ण-अर्न
जु यद्
ज ध संवाद
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र्ब श्री कृष्ण ने शांतत प्रस्ताव र्ें पांडवों के ललए पांच गााँव दे ने की बात कही, तब दय
ज ोधन ने एक
इंच र्र्ीन दे ने से र्ना कर ददया! तब र्हार्ारत के यजद्ध का द्वार खजल गया और कजरु सेना ,
पांडवों की सेना कजरुक्षेत्र र्ें आ गई । यजद्ध की दोनों ओर से शंख तथा दं द
ज र्ी बर्ने लगी ! तब
अर्जन
ु अपना गाण्डीव हाथ से धगरा दे ता है । तब श्री कृष्ण पाथु को र्ो कहते हैं , उससे आगे
कववता शजरू होती है -
इसकी अब तर्
ज लार् बचा लो ।
वीरों को ना रोते दे खा ,
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जर्नको तजर् अब दे ख रहे हो ,
र्ो चप
ज बैठे थे रार्सर्ा र्ें ,
पत्र
ज र्ोह के आगे रार्न
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हे पाथु सजनो , इस धर्ु यजद्ध र्ें ,
इतना सन
ज कर पाथु बोला ,
ववर्यश्री के ललए
चूर् चूर् कर
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लज्र्ा र्झ
ज को आती है ,
है केशव! अब र््ृ यज दे दो ,
यही सीख सह
ज ाती है ।
यह सन
ज कर केशव र्स्
ज काये ,
र्गत गरु
ज ने उपदे श सन
ज ाये ,
गीता ज्ञान सन
ज ाते हैं ,
इतना सन
ज कर पाथु ने
- बर्
ृ ेश कजर्ार
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मेरी प्यारी मााँ
मााँ हमको लगती प्यारी है ,
पहले तो मााँ दल
ु ारती है ,
दल
ु ार कर हमें जगाती है !
मााँ को मस्
ु कुराते ही पाते!
हमको मस्
ु कुराते दे खती तो,
अंजली साहू
कक्षा-7th
बाल भारती विद्यालय (अलिर)
अलवर
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सनु वाई
कनिका िे घड़ी देखी रात के ग्यारह बज गये थे पर निनति अभी तक िही आया था ,कनिका को निन्ता होिे लगी
।निनति उसकी आँखों का तारा था क्षण भर भी उसे उदास देखिा उन्हे गवारा ि था।तभी द्वार की घंटी बजी ,कनिका
दौड़ कर दरवाजा खेालिे गई ।उसिे सोि नलया था नक आज निनति से कह देगी नक कल से वह उसके नलये दरवाजा
खोलिे के नलये इतिी रात तक िही जागेगी। अगर दस बजे के बाद घर में पांव रखा तो ि तो खािा नमलेगा ि मैं बात
करंगी ।
द्वार खोलते ही सामिे खाकी वदी वाले को देख कर कनिका का हदय काँप उटा। कहीं निनति के साथ तो कुछ िही हुआ
इस आशंका िे उसकी सध ु नबसरा दी। इसके पूवव नक वह कुछ पूछती पुनलस वाले िे कहा ‘‘ यह निनति का घर है
ु बध
’’?
“मतलब ?’’
कनिका मािो आसमाि से नगरी हो उसिे कहा ‘‘ देनखये आपको कोई गलतफहमी हुई है यह निनति गुलाटी का
घर है निनति मेरा बेटा यूनिवसवटी में बी एस सी का छात्र है, कोई िोर उिक्का िहीं है ’’।
“जी हाँ मैं उसी निनति गुलाटी की बात कर रहा हँ जो यूनिवसवल कालेज में बी एस सी कर रहा है और इसी घर में रहता
है ’’।
“ क्यों क्या नकया है मेरे बेटे िे ?’’कनिका को अभी भी नवश्वास था नक पनु लस वाले को धोखा हुआ है ,वह नकसी
और निनति के भ्रम में उसे बेटे को पूछ रहा है।
कनिका के पाँव तले जमीि नखसक गई। ‘‘ िहीं िहीं मेरा बेटा ऐसा िहीं कर सकता वह शरीफ घर का बेटा है ।”
“देनखये वो कै से घर का बेटा है मुझे उससे कुछ लेिा देिा िहीं है पर नजस लड़की के साथ उसिे नखलवाड़ नकया है
उसिे उसी का िाम नलया है ’’ दरोगा िे घर का िप्पा िप्पा छाि डाला नफर निनति को ि पा कर नफर आिे की धमकी दे
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कर िला गया । वो तो घर में सब कुछ उलट पलट कर िला गया पर कनिका के मि में जो झंझावत उत्पन्ि कर गया
उसके समक्ष उलट पलट कुछ ि थी।
कनिका को नवश्वास था नक नकसी दुश्मिी में उस लड़की िे ऐसा कहा होगा ।उसिे उस लड़की से नमलिा तय नकया। रात
नकसी तरह कटी पर सबु ह ही वह थािे पहुँि गई । वहाँ वह लड़की और उसके घर के लोग ,नमत्र और कुछ तमाशा देखिे
वाली भीड़ उपनस्थत थी। कनिका को देखते ही नकसी िे कहा ‘‘ अरे यह ही तो है उस बलात्कारी की माँ ’’ सब उसे घूर
घूर कर देखिे लगे , ।
लोगों िे उसे घेर नलया कोई बोला‘‘ इसी को अगवा कर लो तब तो बच्िू हाथ आएगं े।’’कुछ लोग तो उसे
अपशब्द भी कहिे से बाज ि आये, नजन्हें सिु कर कनिका लज्जा से गड़ गई ,अपमाि से उसका िेहरा लाल हो गया। वो
तो पनु लस के नसपाही िे उसके अन्दर जािे का रास्ता बिाया अन्यथा पता िही कनिका उसके साथ भीड़ क्या करती।
अन्दर वह लड़की बैठी थी उसकी सज ू ी आँखें ,िेहरे का आक्रोश और अस्त व्यस्त नस्थनत उसकी सच्िाई के साक्षी थे
ं वतः पूरी रात वह और उसका पररवार कोतवाली में ही रहे थे, नफर भी कनिका का मि ि मािा ,उसिे उस लड़की
।सभ
से पूछा ‘‘ क्या जो बयाि तुमिे नदया है वह सि है ’’?
मािवी नबफर पड़ी ‘‘ आप क्या समझती हैं मुझे अपिा तमाशा बिािे का शौक है जो मैं यह कोतवाली ,लोगों के उल्टे
सीधे प्रश्नों और मेडकल िेकअप की यातिा सह रही हँ”!
कनिका सकपका गई, अपिे को सयं त करते हुए शान्त स्वर में उसिे पूछा ‘‘ िहीं मेरा मतलब है नक क्या तुम श्योर हो नक
तुम्हारे साथ अिािार करिे वाला निनति गुलाटी ही था ’’?
“जी हाँ वि हन्रेड वि परसेंट श्योर हँ ’’ उसिे कनिका को घूरते हुए कहा।
तभी मािवी की माँ ि उसे उपेक्षा से देखते हुए कहा ‘‘ आपको क्या पता एक बेटी की इज्जत क्या होती है ,आपके बेटा
है ि ,तो दे दी उसे खुली छूट नक जाओ बेटा जो मि में आये करो आनखर मदव हो। ’’
पीछे से मािवी के नपता श्री रंजि बोले ‘‘ आप अपिे बेटे को िाहे लाख नछपा लें, नजतिे िाहें जोर लगा लें पर वह
बिेगा िही काििू के हाथ बहुत लम्बे हैं”!
कनिका पर व्यंग्य के वार पे वार हो रहे थे कोई माििे को तैयार िहीं था नक उसे िहीं पता नक निनति कहाँ है। उसे
िेताविी दे दी गई थी नक वह कहीं बाहर िही जाएगी।
नकसी प्रकार आघातों से क्षत नवक्षत वह घर आकर कटे पेड़ के समाि ढह गई । कालेज में नशनक्षका कनिका का
इतिा अपमाि तो जीवि में कभी ि हुआ था। कनिका मनहला कालेज में पढ़ाती है और स्त्री वादी बातों में बढ़ िढ़ कर
नहस्सा लेती रही है, पर आज उसकी बड़ी-बड़ी बातों की धनज्जयाँ उड़ गई थीं, वह भी उसके अपिे बेटे के कारण और
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वह प्रश्नों के कटघरे में खड़ी थी। अिािक उसे ध्याि आया नक निनति होगा कहाँ ,हो सकता है बेटा अपराधी ही हो पर है
तो उसके हदय का टुकड़ा।उसके बारे में सोिते ही वह काँप उठी ‘ हे भगवाि मेरे बेटे को बिा लो’
तभी उसके अन्तमवि िे उसे टकोहा मारा ‘‘ अच्छा अगर मािवी तेरी बेटी होती तो भी क्या तू यही कहती?’’
उसिे स्वयं से तकव नकया ‘‘ क्या पता मािवी झठू बोल रही हो ’’ उसकी हालत देखिे के बाद ऐसा माििे को मि िहीं
कर रहा था।पर अपिे बेटे पर ऐसे आरोप पर भी उसे नवश्वास िहीं हो रहा था। उसे याद है नक उसिे निनति के पापा िवीि
के जािे के बाद अके ले ही नकतिे लाड़ प्यार से उसे पाला है। जीवि में आये सघं र्षों की तनिक भी आँि उसिे निनति पर
िहीं पड़िे दी। स्वयं सारे दुख झेल कर उसे अपिे आि ं ल की ओट में सख ु के साये में नछपाए रखा।
निनति लगभग दस वर्षव का रहा होगा जब उसिे हठ ठाि नलया था नक उसके सारे दोस्त कार से स्कूल आते हैं वह बस से
िहीं जाएगा, तब कनिका िे अपिे आनफस से अनिम धि ले कर एक सेकेंड हैंड कार खरीद ली थी। जब कार घर पर
आई तो निनति मारे खुशी के उसके गले लग गया था और उसको ढेर सारी नकस्सी दे डाली थी। निनति की प्रसन्िता देख
कर कनिका भूल गई थी नक इस अनिम की कटौती के नलये उसे कहाँ-कहाँ अपिी आवश्यकताओ ं में कटौती करिी
पड़ेगी। एक निनति ही तो उसके जीिे का सहारा था, उसकी हर इच्छा परू ी करके मािो वह अपिी इच्छाएं परू ी करती थी।
निनति बड़ा होता गया साथ ही उसकी फरमाइशें भी । कभी कभी कनिका उसकी इच्छाएं परू ी करते-करते हाँफ जाती थी
पर निनति उसकी कमजोरी था उसके मुख पर उदासी वह देख ि पाती।
पर आज जो हुआ उसकी तो उसिे कल्पिा भी िहीं की थी। उसके मि अभी भी िहीं माि रहा था नक उसका बेटा,
अपिा खूि ऐसा कर सकता है।क्या उससे कहीं सस्ं कार देिे में िूक हुई है ,पर वह तो सदा उसे बिपि में अच्छी बातें ही
बताती थी । उसके मि िे उसे आश्वासि देिा िाहा , क्या पता नकसी के दबाव में या निनति से शत्रतु ा में नकसी और का
दोर्ष निनति पर मढ़ रही हो? उसका बेटा ऐसा िहीं कर सकता ।इस तकव में उसे एक आस की नकरण नदखाई दी, वह व्यि
हो गई निनति से नमलिे को। निनति का फोि नमल िहीं रहा था उसके सभी दोस्तों को वह काल कर िक ु ी थी। उसे समझ
िहीं आ रहा था नक उसे कै से ढूँढे।वह तो पुनलस का सहारा भी िही ले सकती थी पुनलस तो उसे स्वयं ही ढूँढ रही है और
भगवाि करे वह पनु लस को ि नमले ,िहीं तो भले वह अपराधी हो या ि हो पनु लस उसका पता िहीं क्या हाल करेगी।
उसिे टीवी खोला उस पर भी यही समािार आ रहा था। वह नकससे कहे क्या कहे। उसिे एक दो अपिे पररनितों को
सहायता के नलये कॉल नकया, पर सबिे उसकी सहायता तो दूर सहािुभूनत नदखािा भी उनित िहीं समझा। अगले नदि
समािारों में भी इसी काले समािार से पन्िे रंगे थे। उसमें अपिे कालेज जािे का साहस ि था। उसिे फोि पर अपिी
अस्वस्थता को बहािा करिे हेतु फोि नकया पर उधर से सिु िे को नमला उसिे उसके पैरों तले जमीि नहला दी। उसकी
प्रधािािायाव िे कहा ‘‘ देनखये नमसेज कनिका गुलाटी आपके बेटे की इस हरकत के बाद हम आपको अपिे गल्सव
कालेज में रख कर अपिी बदिामी िहीं करवा सकते ।”
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‘‘ पर इसमें मेरा क्या दोर्ष?’’ कनिका िे कहा तो उधर से आवाज आई ‘‘ सतं ाि को सस्ं कार मां बाप ही देते
हैं।’’
मािवी िे बताया था नक काफी नदिों से निनति उसके पीछे पड़ा था पर मािवी टालती रही । उस नदि वह पीछे पड़ गया
उसके साथ काफी पीिे िलिे के नलये । निनति के अनधक हठ करिे पर मािवी िे उसे नझड़क नदया निनति को यह रास ि
आया । मािवी प्रायः कक्षा के बाद लायब्रेरी में बैठ कर पढ़ती थी।दूसरे नदि जब मािवी की सहेनलयाँ िली गई ं और वह
लायब्रेरी में पढ़ रही थी ,तो निनति िे उसे नकसी से झूठा सदं ेश नभजवाया नक मािवी को के नमस्री की रंजिा मैडम लैब में
बुला रही हैं। यद्यनप कालेज समाप्त हो िुका था पर मािवी िे सोिा, होगा कोई काम अतः वह िली गई।लैब में जब
मािवी पहुँिी तो वहाँ कोई ि था ,वह इसे नकसी का मजाक समझ कर लौटिे को हुई नक वहाँ नछपे निनति िे दरवाजा
बन्द कर नलया और उसके साथ व्यनभिार नकया। लैब थोड़ा दूर था और कालेज का समय समाप्त हो िुका था अतः
मािवी की िीख कोई सिु िहीं पाया। कनिका मि ही मि नवश्ले र्षण कर रही थी नक ऐसा क्यों हुआ । भले उसिे बेटे को
गलत बातें िहीं नसखायीं पर शायद उसकी हर इच्छा को परू ी करके उसे निरंकुश बिा नदया। उसिे जो िाहा वो पाया इसी
नलये तो वह मािवी की ‘ि’ को सह िहीं पाया।मािवी का अभी तक घर ि आिा उसे दोर्षी नसद्ध कर रहा था।
काश! वह बेटे के प्यार में अंधी ि होती ,उसके नक्रया कलापों ,उसकी हठी प्रकृनत को देख पाती ,काश! वह थोड़ी सी
कठोर बि करे निनति को सयं म का पाठ भी पढ़ा पाती।अब बहुत देर हो िक ु ी थी कनिका फफक-फफक कर रो पड़ी
।उसे मािवी के बारे में सोि कर ही स्वयं से घृणा होिे लगी। भले ही मािवी तथा अन्य लोग उसे िफरत से देख रहे थे पर
वह भी एक स्त्री होिे के िाते मािवी की पीड़ा को अिुभव कर पा रही थी और कोई समय होता तो वह अब तक िारी
वाद का झडं ा उठा कर निकल िक ु ी होती पर यहाँ तो दुश्मि उसका अपिा बेटा था ।
तभी बाहर घंटी बजी वह बाहर गई तो पुनलस के नसपाही िे बताया नक निनति पकड़ा गया और उसे थािे बुलाया गया है
कनिका उसी हालत में थािे की ओर िल दी।
पुिः भीड़ के आक्रोश और व्यंग्य का तीर सहते कोतवाली पहुँिी। निनति िे उसे देख कर िैि की साँस ली बोला ‘‘
मम्मा मैं आपका ही इन्तजार कर रहा था। देखो मुझे बिाओ कोई बड़ा वकील करके मेरी जमाित कराओ”!
निनति के इस उत्तर िे उसकी रही सही आशा भी समाप्त कर दी। कनिका के ति बदि में आग लग गई वह भूल गई नक
निनति उसका बेटा है उसिे निनति को कई झापड़ जड़ नदये और कहा ‘‘तूिे ऐसा िीि काम क्यों नकया?’’
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कनिका िे कहा ‘‘यही तो दुख है नक मैं तेरी माँ हँ, तूिे दुष्कमव भले मािवी के साथ नकया है पर इज्जत मेरी लुट गई है
कोई अन्तर िहीं है मेरी और उसकी पीड़ा में । उसकी कम से कम सिु वाई तो है पर मेरी तो कोई सिु वाई भी िहीं है”!यह
कह कर कनिका वहीं धरती पर नगरकर मुँह ढाप कर नबलख पड़ी।
अलका प्रमोद
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सौ बरस िे मलए ईश्वर
िीवन तो िन्य ही है, हम ही आँखों पर पट्टी लगाये हुए हैं ! िभी- िभी हम उस
चीि िी तलाश िर रहें होते हैं, िो हमारे ही पास होती है ! ईश्वर िी तलाश भी
िुछ ऐसी ही है ! वो शक्ल सरू त िारण िरिे हमारे साथ उठते बैठते हैं, बात िरते
हैं, यहाँ ति कि हमारे मलए बहुत प्यार से खाना बनाते हैं, किर प्यार से अपने हाथों
से हमें खखला ते भी हैं !
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ईश्वर सब बच्चों िे पास होते हैं 100 बरस िे मलए औऱ उतने ही बरस हम उनसे
भागने, उनसे िरू िाने में लगा िे ते हैं ! िो ईश्वर 100 बरस साथ रहते हैं! वो घर
में अिेले होते हैं, औऱ हम उन्हीं िो ढूंढ़ने मंदिर िी लाइनों में िािर लग िाते हैं !
िरअसल िीवन िा सबसे बड़ा सत्य है कि िो वजतु स्ितनी सहि आपिो ममल
िाती है, उतनी ही उसिी िीमत धगर िाती है ! माता- वपता भी ऐसे ही हैँ, उनिे
प्रेम पर इतना अटूट भरोसा होता है हमें कि हम सौ प्रततशत िानते हैं कि अपमान
िी िोई भी सीमा, उनिे मन से हमारे मलए बरु े भावों िो िन्म ति िे ने में सिल
नहीं हो पायेगी ! वो किर भी हज़ारों हज़ार आशीवााि ही िें गे !”
मैं बस यँू ही मन में भावों िो आिार िे ती हूँ, हाथों में िभी सिाई िे मलए झाड़ू,
िभी बतानों में गीले हाथ, िलम हाथ में लें सिँू ऐसा वक़्त ममलता नहीं! इन सब
दिनचयाा िे िामों में लेकिंन मन िे अंिर जयाही से शब्ि बनते – बबखरते ही रहते
हैं !
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मानमसि रूप से िुछ ममनटों िे बाि , “मैं सप्ु त हों िाती हूँ, उनिे बोलने में िोई िुल
जटॉप नहीं होता ! मैं िेवल हाँ या ना में सर दहला पाती हूँ !”
धचराग आया होगा, अंशी गेट खोल िे ! िीिी चाय बना लो, वो अंिर आते ही बोला औऱ मैं
अपनी बाकि बची चाय िों मम्मी िे पास से किचन में ही ले आई !
िल्िी से िाम िरिे इस शोर से अिेले िमरे में चली िाऊँ, बस एि ही इच्छा होती है
औऱ मझ
ु े अपने मलए इन सबसे िुछ नहीं चादहए होता, मसवाय आज़ािी िे ! िो िुछ िे र िे
मलए भी इस तरह िी िाती है िैसे ततिोरी में से तनिाल िर हज़ारों अशरकियाँ िे िी हों
मझ
ु े !”
इस िीवन िों ऐसा मैंने ही बनाया, प्यार हो या निरत सब हि से ज्यािा हो तो िुछ नहीं
संभल सिता किर ! थोड़ी तो प्रोिेशनल हो िाती मगर नहीं हो पाई ! अब तो सब पीछे छूट
गया, सपने, शस्क्त !’
िाम िरते िरते बस ये ही चलता रहता है मन में ! मशीन िी तरह िल्िी िल्िी िाम
किये, िैसे तैसे िुछ िे र िे मलए ऊपर वाले िमरे ति पहुँच गई ! इतने शोर से ज़ब यहाँ
पहुँच िाती हूँ तो आस पास कितना भी समान िैला हो अच्छा ही लगता है ! िैसे िख ु ते
घाव पर मरहम हो िोई !
इस ितु नया में दिखते हुए घावों पर मरहम लगाने िे मलए िई डॉ हैँ मगर लहूलह
ु ान मन
पर, मरहम ईश्वर िे मसवाय िोई नहीं लगाता ! मै औऱ मेरे ईश्वर किर इस िमरे में !
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ये शांतत भी िुछ ही ममनटों में छीन िाती है ! घर में संजथा चलती है ! पैसा िमाने िे मलए
भी शोर ही होता है, शांतत से िुछ नहीं हो सिता !
परू े घर में अब एि भी िोना नहीं िहाँ िो घड़ी पैर सीिे िर बैठ सिँू , सब
ु ह 6 बिे से
चलता शरीर िेवल एि िोने में शांतत से िुछ िे र बैठने िो तरसता है !
ज़ब चलते किरते िीवन िो ही नहीं पढ़ता िोई.......... तो इस िहानी िो िौन पढ़े गा भला
! इतना िालतू समय िहाँ होता है ?
अपनी स्िंिगी पर किताब भी मलख िँ ू तो रद्िी से ज्यािा िुछ नहीं होगी ! िैसे िीवन भी
तोल िे भाव...... वैसे ही वो भी िाएगी !
िई सालों से मैं इस खल
ु े वपंिरे से उड़ िाना चाहती हूँ, चाहे बाहर मझ
ु े िोई....
इस वपंिरे िी अदृश्य सलाखें बड़ी ववधचत्र हैँ, मैं िुछ बाहर ति पहुँच भी िाती हूँ तो
जवयंमेव ही अंिर आ िाती हूँ, िैसे इस िैि िे मलए हर सांस िी जवीिायाता हो गई है मेरी
! अभी इतने पर भी िाफ़ी नहीं है वार – मेरे पँखों िो िाटने वाले ही सब
ु ह शाम उड़ते
पक्षियों िी उड़ान िा उिाहरण भी िे ते हैं ! िे ख उसिी उड़ान...............
लेकिन ज़ब किसी िो मानमसि रूप से मारा िाता है , रोज़ मारा िाता है उसिी सिा क्यों
नहीं, उस पर िोई भी िारा लागू क्यों नहीं...........किर एििम से आवाि आयी!
अंशी िहा हो?
मैं किर से वहीीँ पहुँच गई!ओर अपने आप िो किर से व्यजत िर दिया!
प्रभु िी वंिना, उनिे सम्मख
ु हाथ िोड़िर जतब्ि ख़डी हो गई!
36
पहचान
आशा शैली
न्यायालय के बाहरी बरामदे में भीड़ थी। सीढ़ियााँ चि कर उर्मिला हााँफने लगी थी,
लेककन अभी अन्दर से आवाजें आनी शरू
ु भी नहीीं हुई थीीं। इींतज़ार तो करना ही
था। उसके साथ आज और भी बहुत से लोग थे। आज उर्मिला के पक्ष में कुछ
गवाह पेश होने थे।
खड़े-खड़े थक जाओगी।’’
नज़र पड़ी। भानु उसे खा जाने वाली नज़रों से दे ख रहा था। कफर वह अपने वकील
के साथ बात करता हुआ एक तरफ खड़ा हो गया। वकील भी एक-दो र्मनट बाद
भीतर जज के कक्ष में चला गया। तभी उर्मिला का वकील आ गया, ‘‘उर्मिला जी,
सभी गवाह आ गए हैं?’’ उसने पछ
ू ा।
‘‘जी हााँ, ठाकुर साहब, सब आ गए हैं आप चचन्ता न करें ।’’ जवाब उर्मिला के
बोलना है और गााँव में अभी सच्चे लोगों की कमी नहीीं हुई है ।’’
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‘‘ठीक है, आप लोगों का केस 12 नम्बर पर है लेककन पहले के सारे केस शराब
आढ़द के हैं, जल्दी ननपट जायेंगे। आप लोग तैयार रढ़हए।’’ कह कर वकील अन्दर
‘‘हााँ बेटा! मक
ु द्दमा लड़ना अब मझ
ु े तम
ु से सीखना पड़ेगा। जाओ अपना काम
करो, जा कर।’’ कह कर बि
ू े वकील ‘ठाकुर’ साहब, जज के कक्ष में चले गए तो
में आाँसू भर आए पर वह उन्हें पी गई। उसे अपना स्वयीं से ककया वादा याद आ
गया कक उसे कमज़ोर नहीीं पड़ना है। कान्ता ने उसके कींधे पर हाथ रखा तो उसने
आश्वासन की मरा
ु ा में र्सर ढ़हला कर उसे दे खा और कफर से बाहर दे खने लगी।
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न्यायालय का यह कक्ष, भवन की तीसरी मींजज़ल पर बना हुआ था। खखड़की से
ढ़दखाई दे ते नीचे सड़क पर चलने वाले वाहन अपने ननयम से भागे चले जा रहे थे।
एक ढ़दन जब भानु अड़ गया तो उसे अपनी तीन लाख की एफ. डी. तोड़कर भानु
को ट्रक खरीदने के र्लए पैसे दे ने पड़े थे। क्या करती, जवान और इकलौते बेटे को
कैसे मना करती? पनत के बाद यही तो उसका आसरा, भरोसा और ववश्वास था।
कफर
ट्रक उनकी ज़रूरत भी तो था। सेब का बड़ा सा बाग़ था। भानु ने उसे ववश्वास
र्मलाकर एक सख
ु ी सींसार।
भानु ने कुछ पैसा जमा करके बाकी बैंक से ट्रक फाइनेंस करवा र्लया था। गााँव
परन्तु उर्मिला को भानु का ट्रक के साथ जाना अच्छा नहीीं लगता था। एक तो
वह रात-बबरात घर लौटता और दस
ू रा पहाड़ की सड़कें। उर्मिला को बहुत डर लगता
39
से नज़रें भी चरु ाने लगा था।
शरू
ु -शरू
ु में वह मााँ से नछपाता रहा। कफर खल
ु कर पीने लगा। उर्मिला कुछ न
……
सह
ु ानी धप
ू खखली हुई थी। हल्की सदी पड़नी शरू
ु हो चक
ु ी थी। र्सतम्बर का
आखखरी सप्ताह चल रहा था। सेब की फसल का सारा काम ननबट गया था। भानु
आखखरी
सन्
ु दरता ननहार रही थी कक सरोज चाय ले आई। स्टूल घसीटकर उसने चाय उस
पर रख दी और कफर अपने र्लए कुसी खीींच कर उस पर बैठ गई।
‘‘मम्मी, चाय।’’
ककतनी सन्
ु दर लग रही है।’’
40
दनु नया मानती है । सच में पापा ने ककतना सोच-समझकर यह घर बनाया होगा
न?’’
‘‘हााँ, वे तो सन्
ु दरता के पज
ु ारी थे।’’ उर्मिला उदास हो गई। कफर उसने
गया है ?’’
‘‘आज आ जाना चाढ़हए, अब ककस वक्त आते हैं यह तो नहीीं कहा जा सकता।
सड़कें बहुत खराब हैं और कहीीं रास्ते में ही पीना शरू
ु कर ढ़दया तो बस.....।’’
के पीने से तो अचधक परे शानी नहीीं थी, लेककन कहीीं ड्राइवर ने पी ली तो?
कफर उसने र्सर को झटक ढ़दया, नहीीं! भानू इतना बेवकूफ तो नहीीं है....।
‘‘हलो....’’
41
बोल रही हूाँ।’’
‘‘आण्टी मैं वीरें रा बोल रहा हूाँ। भानु की गाड़ी का ननरथ में एक्सीडेंट
हो गया है। आप लोग रामपरु आ जाइए। भानु अस्पताल में है ।’’ वह थोड़ा रुका
कफर कहने लगा, ‘‘परे शान न हों, ज्यादा चोटें नहीीं हैं लेककन अभी उसे वहााँ
‘‘और ड्राइवर....?’’
सरोज रोए जा रही थी। उर्मिला ने उसे डााँटते हुए कहा, ‘‘खद
ु को काबू में
रखो बहू। हमें अभी गाड़ी की व्यवस्था करनी होगी। मैं जा रही हूाँ गाड़ी के
एक घण्टे बाद ही वे लोग अस्पताल में थे। भानु के अचधक चोटें नहीीं थीीं
लेककन ड्राईवर को बचाया नहीीं जा सका। गाड़ी बरु ी तरह टूट-फूट गई थी। बीमा
की रकम नहीीं र्मल सकती थी क्योंकक ड्राइवर और भान,ु दोनों ने शराब पी रखी
42
और कोई रास्ता नहीीं था। परू ा दो लाख रुपया ड्राइवर के पररवार को दे कर
……..
दस
ू रे साल की फसल बेचकर जब भानु सरोज के र्लए सोने का भारी सा हार खरीद
गया था।
भानु के ववरु( बैंक को नीलामी के अचधकार र्मल गए हैं। एक महीने बाद नीलामी
होगी।
अब भानु के पास मााँ की खुशामद करने के अलावा और कोई उपाय नहीीं था।
43
अब उर्मिला के पास अपने ढ़हस्से की थोड़ी सी ज़मीन बची थी जो भानु उससे
मााँग रहा था, जजसे दे ने से उर्मिला ने साफ इनकार कर ढ़दया था। सरोज के
मायके वाले भी सरोज को ज़मीन अपने नाम र्लखवा लेने के र्लए उकसा रहे थे।
इस
शहर जाकर सरोज का रवैया भी बदल गया। उसे पता था कक उसकी दनु नया उसके
पनत
अब उसी ज़मीन के र्लए भानु ने मााँ पर कोटि में केस लगाया था जजसे बेचकर
उर्मिला ने कुकी होने से बचाई थी। भानु ने मााँ पर आरोप लगाया था कक,
मााँ ने मेरे ढ़हस्से की ज़मीन बेच खाई है। जबकक ज़मीन उर्मिला ने अपने
खरीदी हुई थी कोई पश्ु तैनी नहीीं थी और उनके दे हान्त के बाद दोनों
44
हट गई और उसके पीछे -पीछे चलने लगी। गवाहों के बयान के बाद उर्मिला और
कहना है कक आपकी मााँ उर्मिला ने आपके ढ़हस्से की ज़मीन बेच खाई है ?’’
फाइल पर झक
ु े जज ने र्सर उठाकर भानु की ओर दे खा। ‘‘आपसे जजतना पछ
ू ा
जाए
उसका जवाब दीजजए।’’ भानु के वकील ने उसे टोका और ववरोधी वकील ने सवाल
ककया। वह बड़े ग़ौर से उर्मिला को दे ख रहा था। गम्भीर चेहरे वाली उर्मिला
ने बबल्कुल साधारण से कपड़े पहन रखे थे। गले में एक पतली सी चेन और कानों
‘‘कहानी, कववता सभी कुछ।’’ उर्मिला है रान थी कक मेरे लेखन से केस का क्या
45
सम्बींध है ?
प्रश्न ककया।
बाहर कान्ता इींतज़ार में खड़ी थी। ररश्तेदार होने के नाते वह अन्दर नहीीं आ
सकती थी। बाहर आने पर वकील ने कहा, ‘‘मैं डेट लेकर आप को बता दाँ ग
ू ा। आप
घर जाइए।’’
000000
कुछ ढ़दन बाद केस का फैसला भी हो गया। उर्मिला को ननदोष कहा गया और
भानु
वह सब नहीीं ककया और मक
ु द्दमा समाप्त होने पर सख
ु की सााँस ली। अब वह
चचन्तामक्
ु त होकर कफर से अपने लेखन को जारी रख सकती थी।
46
00000
उर्मिला ने चौंक कर दे खा तो, कार की वपछली सीट से एक चेहरा बाहर झााँक रहा
था।
वह एक बार कफर चौंक गई, ‘इस व्यजक्त को कहीीं दे खा तो है ।’ प्रकट में उसने
‘‘सेर्मनार है क्या?’’
‘‘जी हााँ मश
ु ायरा है।’’
‘‘लगता है आप मझ
ु े पहचान नहीीं रही हैं।’’
‘‘तब आप मझ
ु े यह बताइए कक आपने अपने बेटे भानु पर मानहानन का दावा
ककया या नहीीं?’’
47
‘‘अरे आप? जज साहब?’’ उर्मिला की आाँखें नम हो आईं।
‘‘उर्मिला जी, मैं वास्तव में ही जज हूाँ। मााँ-बाप ने बहुत सारा पैसा मेरी
पिाई पर लगाया है । आदमी को दे खते ही पहचान जाता हूाँ कक सच्चाई क्या है।
इससे मझ
ु े न्याय करने में सवु वधा होती है और यही मैंने आपके केस में ककया
है , अब तो आ जाइए।’’ उसने दस
ू री ओर का दरवाजा खोल ढ़दया।
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गीत
चलोगे’
आज आँखें मँद ली,
कल कर मलोगे ।
कब तक चलोगे ।
इस बेजान तन में
व्यर्थ है अब दे र
खुद को छलोगे ।
49
बझ
ु गया वह दीप
आस की जगमग
तक तुम जलोगे ।
सरज उठाए,
आज चाहे िेर ले
तम या सताए ।
पींखा झलोगे ।
रचनाकार
50
म ां पन्न ध य क
त्य ग
51
चि
त्तौड़ के महाराणा संग्राम ससंह की वीरता प्रससद्ध थी! उनके
स्वर्गवासी होने पर चित्तौड़ की र्द्दी पर राणा ववक्रमाददत्य
बैठे, ककंतु वे शासन करने की योग्यता नहीं रखते थे! उनमें
न बद्
ु चध थी और न हीं वीरता! इससिए चित्तौड़ के सामंतो और मंत्रियों ने
सिाह करके उनको र्द्दी से उतार ददया तथा महाराणा संग्राम ससंह के
छोटे कुमार उदय ससंह को र्द्दी पर त्रबठाया!
उस समय उदय ससंह की अवस्था केवि 6 वर्ग की थी! उनकी माता रानी
कणागवती का स्वर्गवास हो िक
ु ा था! जिसके कारण पन्ना नाम की एक
धाय उनका िािन -पािन करती थी! राज्य का संिािन दासी पि
ु बनवीर
करता था! उसे सभी की सिाह से उदय ससंह का संरक्षक ननयुक्त ककया
र्या था!
52
और स्व लिम न िक्त बडी शीघ्रत से पन्न के प स
आय और उसने कह –
पन्नाधाय अकेिी बनवीर को कैसे रोक सकती थी! उसके पास कोई उपाय
सोिने का भी समय नहीं था! िेककन उसने एक उपाय सोि ननकािा! उदय
ससंह उस समय सो रहे थे! उनको उठाकर पन्ना ने एक टोकरी में रख ददया
53
उदय ससंह को नछपाकर हटा दे ने से भी काम ििता नहीं था! बनवीर को
पता िर् िाए कक उदय ससंह को छुपा कर भेिा र्या है तो वह घड़
ु सवार
वर्ग का था! उसने अपने पुि को उदय ससंह के पिंर् पर सुिाकर रे शमी
िद्दर उड़ा दी! और स्वयं एक और बैठ र्ई! िब बनवीर रक्त से सनी
तिवार सिए वहां आया और पछ
ू ने िर्ा –
उदय ससंह
कहां है ?
ये
रहा !
54
उदय ससंह कहां है ?
अंत में बनवीर को अपने पाप का दं ड समिा! बड़े होने पर राणा उदय ससंह
चित्तौड़ र्द्दी पर बैठे! पन्नाधाय उस समय िीववत थी! राणा उदयससंह
माता के समान उसका सम्मान करते थे! स्वामी के सिए अपने पि
ु तक
का बसिदान करने वािी पन्ना माई धन्य है !आि इनतहास में स्वामी भजक्त
के कारण मााँ पन्ना धाय का नाम स्वणग अक्षरों में अंककत है !
5
55
ममत क गल घोंट कर,स्व मी िक्क्त को क्जसने क्जन्ि रख ,
पन्न को प्रण म है !
56
हिन्द ू ह्रदय सम्राट
मिाराजा सरू जमल
'नहीीं जाटनी ने सही व्यर्थ प्रसव की पीर,
57
राजा सरू जमल
सय
ु ोग्य शासक र्ा। उसने ब्रज में
एक स्वतींत्र हहन्द ू राज्य को बना
इनतहास में गौरव प्राप्त त यकया।
इनतहास के एकमात्र जाट महाराजा
सरू जमल ऐसे शासक र्े जजन्होंने जजस दौर में राजपत
ू राजा मग
ु लों से अपनी
जागीरें बचा नहीीं पा रहे र्े! उस दौर में वे बाहुबली के समान अकेले मग
ु लों से
लोहा ले रहे र्े,सरू जमल को स्वतींत्र हहन्द ू राज्य बनाने के ललए र्ी जाना जाता है !
मिाराजा सरू जमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में िुआ! यि इतििास की विी
िारीख िै , जजस हदन मग़
ु ल शाषक औरं गजेब की मत्ृ यु िुई थी! मग
ु लों के आक्रमण
का मंि
ु िोड़ जवाब दे ने में उत्तर भारि में जजन राजाओं का ववशेष स्थान रिा िै ,
उनमें राजा सरू जमल का नाम बड़े िी गौरव के साथ ललया जािा िै ! उनके जन्म
को लेकर यि लोकगीि काफ़ी प्रचललि िै !
58
उनके पपता का नाम राजा बदनलसींह तर्ा माता का नाम महारानी दे वकी र्ा!
राजा सरू जमल एक ऐसे राजा थे जजन्िोंने बिुि कम सेना िोिे िुए भी तनरं िर जंग
लड़ लड़ के एक ववशाल साम्राज्य बसा ललया था।
मिाराजा सरू जमल का जीवन अनेकानेक ववजयों का धनी िै ! उनके जीवन की कुछ
मख्
ु य ववजयों के ववषय में यिााँ प्रकाश डाला गया िै !
59
फौज के खौफ से डर कर पीछे िट गए और कुछ इलाकों के द्वारा ककसानों के
ववद्रोि को दबा हदया गया !
लेककन इन सब के अलावा भारि के ब्रज इलाके में एक ऐसी वीर जाट जाति थी
जजसने ना केवल कर दे ने से इंकार ककया बजल्क कर वसल
ू ने आए मग
ु लों को मौि
के घाट उिार हदया। इस वीर जाट जाति का सरदार था तिलपि का जमींदार
गोकुला जाट।
औरं गजेब ने ववद्रोि को कुचलने के ललए एक सेना की ववशेष टुकड़ी भेजी मगर वो
भी गोकुला जाट को कैद निीं कर पाए। इस घटना के बाद भी औरं गजेब ने एक
के बाद एक िीन बार ब्रज में इस जाट समद
ु ाय पर िमला ककया। लेककन िर बार
वो नाकाम रिे ।
जाटों की वीरिा दे ख हदल्ली के शािी िख्ि पर बैठा औरं गजेब रुक निीं पाया और
उसने एक ववशाल सेना के साथ तिलपि के मैदानों में वीर समद
ु ाय को घेर ललया।
इसके पश्चाि ् 1669 में ववशाल सेना को सामने दे ख कर भी जाट पीछे िटने के
बजाय यद्
ु ध के ललए कूद पड़े।
यि यद्
ु ध कुछ दे र चला और ववशाल सेना ने जाटों के ववद्रोि को कुचल हदया !
गोकुला जाट यद्
ु ध में मारे गए और उनके कुछ साथी कैद करके आगरा भेज हदए
गए। आगरा में औरं गजेब ने अपनी क्रूरिा की िदे पार करिे िुए सभी कैहदयों को
चौरािे पर टुकड़ों में काट हदया।
60
आगरा के पास बने लसकंदरा पर आक्रमण कर हदया। लसकंदरा में मौजूद अकबर के
मकबरे में िोड़फोड़ करके और आगरा से कुछ धन लट
ू उन्िोंने अपने सरदार की
मौि का बदला ललया। यिी से जाट और मग
ु लों के बीच दश्ु मनी की शरु
ु वाि िुई
जो कभी ख़त्म निीं िुई।
मग
ु लों को मंि
ु िोड़ जवाब दे ने के बाद ब्रज के इलाके में जाटों का नाम प्रलसद्ध
िो गया, उनके ककस्से लोगो की दै तनक वािाालाप के हिस्से बन गए। कुछ समय
बाद लसनलसनवार के बेटे बदन लसंि ने वीर जाति के सरदार का पद संभाला और
अपने पव
ू ज
ा ों कक िरि मग
ु लों से जंग जारी रखने का आदे श हदया।
1755 िक राजा बदन लसंि का राज ब्रज के भरिपरु में रिा ! अपने शासन के
दौरान उन्िोंने जाट साम्राज्य की सीमा ववस्िार के ललए मग
ु लों से कई लड़ाइयां
लड़ी। मगर किीं ना किीं उनकी राजनीति में वो बाि निीं थी के वो जीिे िुए
इलाकों को मग
ु लों से बचा के रख सकिे।
61
वो यद्
ु ध लड़िे और कुछ समय िक इलाके पर कब्जा रखिे और कफर मग
ु ल
वापस जीि लेिे कयकंू क उनकी सेना अभी भी कमजोर थी ! मग
ु लों को उनकी
असली िै लसयि हदखाई बदन लसंि ने बेटे मिाराजा सरू जमल ने।
उनका बचपन भी मग
ु लों से लडने में गज
ु रा था। लेककन उनको फैसले लेने का
अधधकार निीं था ।
बदन लसंि की मत्ृ यु के बाद मिाराजा सरू जमल ने भरिपरु की गद्दी संभाली और
सबसे पिला काम अपने ललए एक मजबि
ू सरु क्षिि हठकाना बनाने का ककया।
मिाराजा सरू जमल बचपन से िी गुस्सैल प्रवतृ ि के थे ! कम उम्र में िी उन्िोंने
अपने वपिा के आदे श के बाद मेवाि के मेवो पर आक्रमण कर कुछ समय के ललए
उनसे मेवाि छीन ललया था।
मेवाि के अलावा सरू जमल ने राजकुमार रििे िुए डीग के सोंगररयो पे िमला करके डीग के
एक बड़े हिस्से को अपने कब्जे में ले ललया था। ये यद्
ु ध उन्िोंने 1732 में लड़ा गया यि
यद्
ु ध एक ववशाल यद्
ु ध था जजसमें काफी जान माल का नक़
ु सान िुआ था। इसी यद्
ु ध के
बाद सरू जमल ने भरिपरु में लोिागढ़ ककले का तनमााण करवाया।
भरिपरु में जस्थि यि ककला लोहागढ़ यकला ( Iron fort ) के नाम से जाना
62
जजसे अंग्रेज 13 बार आक्रमण करके भी भेद निीं पाए ! लमट्टी के बने इस ककले
की दीवारें इिनी मोटी बनाई गयी थी कक िोप के मोटे -मोटे गोले भी इन्िें कभी
पार निीं कर पाए, यि दे श का एकमात्र ककला िै , जो िमेशा अभेद रिा !
अजेय व अर्ेद्य
63
गया ! ऐसे मािौल में राजा सरू जमल अपने 10,000 सैतनकों को लेकर रणभलू म में
ईश्वरी लसंि का साथ दे ने पिुंच गये!
इस यद्
ु ध में ईश्वरी लसंि को ववजय प्राप्ि िुई और उन्िें जयपरु का राजपाठ लमल
गया ! इस घटना के बाद मिाराजा सरू जमल का डंका परू े भारि दे श में बजने
लगा !
ये सब घटना उत्तर भारि में िो रिी थी विीं दक्षिण भारि में मराठे अपना एक
ववशाल साम्राज्य बसा चक
ु े थे। उनके द्वारा चलाई गई स्वराज की आंधी अटक से
कटक िक भगवा लिरा चक
ु ी थी ! परू े दकखन पर उनका राज था। हदल्ली में उस
वकि आलमगीर द्वविीय गद्दी पर बैठा था ! हदल्ली अब वो हदल्ली निीं रिी
जजसके दीवाने िर सल्
ु िान िोिे थे।
64
हदल्ली एक जजार ररयासि थी लेककन कफर भी उनको अपना बचा खुचा नाम
लमटने का डर था ! सबसे बड़ा डर था मराठो का, इसललए वो समय पर मराठो को
कर दे िे थे अपनी सरु िा के ललए।
5. हदल्ली पर आक्रमण
सराय में िार के बाद अिमद शाि ने अपने वजीर सैफुहदन को पद से िटा हदया
और उसे दे श तनकाला दे हदया ! अपने बादशाि के इस धोखे से वजीर उसका
दश्ु मन बन गया और उसे सबक सीखाने के ललए भरिपरु कूच कर गया। मिाराजा
सरू जमल और वजीर में पिले से अच्छे संबंध थे।
65
हदल्ली में जाट घस
ु चक
ु े थे ! सल्िनि से मग
ु ललया जजार िालि में ककले के एक
कमरे में कैद िो गई यानी बादशाि जाटों के हदल्ली में घस
ु ने से डर कर एक कमरे
में कैद िो गया। जाटों ने परु ानी हदल्ली में मई से लेकर जून िक हदल्ली में डेरा
डाले रखा और भयंकर लट
ू पाट की। लट
ू पाट केवल मग
ु लों के खजाने की िुई ।
कमजोर और भयभीि अिमद शाि आखखर में मिाराजा सरू जमल के सामने झक
ु
गया और शांति संधध का प्रस्िाव रख हदया। मिाराजा सरू जमल ने शिा रखी कक
उसके लमत्र सैफुद्दीन की वापस से उसकी जागीर लौटाई जाए ! अिमदशाि ने शिा
मान ली और उसे जजंदा छोड़ हदया गया।
लेककन मिाराजा सरू जमल किीं ना किीं नजीब की िरकि से बिुि ज्यादा गस्
ु से में
थे ! चारो िरफ से बंद चारदीवारी में कैद हदल्ली में वो केवल 30 घड
ु स्वारो के
साथ दरवाजा िोड़ कर घस
ु गए। विां मौजूद ववशाल सेना मिज 30 सैतनकों के
साथ आए मिाराजा सरू जमल पर टूट पड़ी।
66
ऐतिहासिक स्थल एक नजि
‘चित्तौड़गढ़ दग
ु ’ग
चित्तौड़गढ़ दग
ु ग का परििय: -
चि
त्तौड़गढ़ का दग
ु ग उत्तर भारत के ऐततहासिक स्थलों में िबिे महत्वपर्
ू ग
ककलो में िे एक है ! जो आज भी अपनी वीरता और बसलदान की
कहातनयाां िांिार को बयाां कर रहा है !
चित्तौड़गढ़ ककले का तनमागर् मौयग शािकों द्वारा िातवीां शताब्दी ई. में ककया गया!
यह दग
ु ग लगभग 700 एकड़ भसू म में फैला हुआ है !
67
ब्रिटिश परु ातत्व दत
ू िि ह्यज
ू केशि ने चित्तौड़गढ़ दग
ु ग के ववर्य में कहा है कक –
“चित्तौड़ के िुनिान ककले में विििण कििे िमय मुझे ऐिा लगा मानो
ककिी भीमकाय जहाज की छि पि िल िहा हूूं!”
यह दग
ु ग इततहाि की खन
ू ी यद्
ु धों का आज भी गवाही दे रहा है , जो कहानी
रक्तरां जजत सलखी गई है !
चित्तौड़ के दग
ु ग को 2013 में यन
ू ेस्को ववश्व ववराित स्थल घोवर्त ककया गया!
चित्तौड़गढ़ दग
ु ग को राजस्थान का गौरव, गढ़ों का सिरमौर , चित्तौड़ आटद नामों िे
ववख्यात है!
चित्तौड़गढ़ दग
ु ग िाज्य का िबिे प्रािीनिम दग
ु ग है इि दग
ु ग के बािे में कहािि है –
चित्तौड़गढ़ दग
ु ग में पयगिकों के मन को लभ
ु ाने वाले ववजय स्तांभ, पद्समनी महल,
कांु भा महल, गोरा -बादल महल, जयमल –फत्ता (पता) हबेसलया, कासलका माता
मांटदर, िरू जकांु ड, नवलखा भांडार, श्रांगार िवरी जैन मांटदर, भामाशाह हवेली, फतेह
प्रकाश महल, जो कक अब एक िांग्रहालय है तथा चित्तौड़गढ़ ककले का िाउां ड एवां
लाइि शो प्रमख
ु हैं!
68
विजय स्िूंभ: -
यह महल चित्तौड़गढ़ दग
ु ग में दक्षक्षर् भाग
में जस्थत है इिको िफेद िांगमरमर
पत्थर िे तनसमगत ककया गया है तथा यह
तीन मांजजला इमारत है! यहीां पर ही
अलाउद्दीन खखलजी ने रानी पद्समनी को
एक झलक दे खा ! यह मेल एक िांद
ु र
जलाशय के मध्य जस्थत हैं! इिके दक्षक्षर्
पव
ू ग में गोरा बादल महल है !
69
भामाशाह की हिेली: -
कूंु भा महल: -
यह चित्तौड़गढ़ दग
ु ग का िबिे परु ाना स्मारक है आज खांडार अवस्था में ववजय स्तांभ
के प्रवेश द्वार की ओर जस्थत है ! इि महल का प्रवेश द्वार िरू जपोल है ! कृष्र्
भक्त मीरा बाई भी इिी महल में रहती थी! तथा यह वही स्थान हैं जहाां रानी
पद्समनी तथा अन्य मटहलाओां ने समलकर िामटू हक जोहर ककया था!
चित्तौड़गढ़ दग
ु ग का िाउूं ड एिूं लाइट शो: -
चित्तौड़गढ़ दग
ु ग के इततहाि एवां घटित घिनाओां को रूबरू कराने का एक तरीका है!
जजििे पयगिक को इततहाि िे पररचित हो िकें! तथा यह शो शाम को 7:00 बजे
प्रारां भ होता हैं! िबिे ज्यादा पयगिक इिी शो िे आकवर्गत होते हैं!
चित्तौड़गढ़ दग
ु ग में िीन जोहि ि िाके हुऐ है :-
70
िमय अलाउद्दीन का दरबारी कवव और लेखक अमीर खुिरो चित्तौड़गढ़ के इि
असभयान में अलाउद्दीन खखलजी के िाथ था!
इि प्रथम िाके में रार्ा रतन सिांह के िाथ- िाथ िेनानायक गोरा- बादल भी
शहीद हुए! तथा महारानी पद्समनी ने िभी मटहलाओां के िाथ जोहर ककया!
दि
ू रा िाका :- बप्पा रावल के वांशज राजा हमीर ने पन
ु : मालदे व िे दग
ु ग
चित्तौड़गढ़ दग
ु ग के बारे में कुछ खाि बातें :-
इि दग
ु ग के अांदर कृवर् की जाती है !
पौराखर्क मान्यता के अनि
ु ार महाभारत काल के भीम ने अपने घि
ु ने के
बल िे यहााँ पानी तनकाला था! जजिे आज भीमकाय िरोवर के नाम िे
जानते है!
71
यह दग
ु ग िबिे बड़ा सलववांग फोिग है!
इि दग
ु ग को प्रािीन ककलो का सिरमोर कहााँ जाता है!
िरू जपोल दग
ु ग का िबिे प्रािीन दरवाजा है !
कीततग स्तांभ को पौराखर्क टहांद ू मतू तगकला का अनमोल खजाना कहा जाता
है !
72
साहित्य सम्बत्धधत पुरस्कार
साहित्य
अकादमी का उदघाटन करते िुए एस. राधाकृष्णन
साहित्य अकादमी का
प्रश्न 1. साहित्य अकादमी उदघाटन
परु स्कार
करतेकी शरु आतृ ष्णन
ु राधाक
िुए एस. कब से िुई ?
उत्तर - साहित्य अकादमी परु स्कार भारत सरकार द्वारा हदया जाने वाला ज्ञान पीठ
परु स्कार के बाद दस
ू रे स्थान पर साहित्त्यक सम्मान िै ! त्जसकी स्थापना 12
मार्च 1954 में की गई ! 1955 से प्रततवर्च भारतीय भार्ाओं की श्रेष्ठ कृततयों को
नई हदल्ली द्वारा नेशनल अकादमी ऑफ़ लेटसच अथाचत साहित्य अकादमी परु स्कार
हदया जाता िै !
प्रश्न 2. साहित्य अकादमी परु स्कार कौनसी भार्ाओं की रर्नाओं पर हदया जाता िै
?
73
प्रश्न 3 पिली बार साहित्य अकादमी परु स्कार पिली बार कब हदया गया एवं उस
समय इसकी परु स्कार राशश ककतनी थी ?
उत्तर – यि परु स्कार पिली बार 1955 में हदया गया व उस समय परु स्कार राशश
5000/- रूपये थी !
प्रश्न 4 वतचमान में साहित्य अकादमी परु स्कार ववजेता को ककतनी राशश परु स्कार
स्वरूप दी जाती िै ?
उत्तर – परु स्कार राशश अब 1 लाि िै साथ िी एक प्रशत्स्त पत्र व शाल हदया जाता
िै !
प्रश्न 5 साहित्य अकादमी परु स्कार के शलए ववजेता र्यन के क्या मानदं ड
तनधाचररत ककये गए िैं ?
3. ज़ब दो या दो से अधधक पस्
ु तकों के शलए समान योग्यता पाई जाती िै तो
परु स्कार की घोर्णा के शलए कुछ तनत्श्र्त मानदं डो जैसे साहित्य के क्षेत्र में
योगदान, समाज में त्स्थतत औऱ प्रततष्ठा को ध्यान में रिा जाता िै !
प्रश्न 6 हिंदी भार्ा में पिला साहित्य अकादमी परु स्कार प्राप्त करने वाले रर्नाकार
कौन िैं ?
उत्तर – 1955 में यि परु स्कार मािन लाल र्तुवेदी को उनकी रर्ना हिम तरीगनी
काव्य के शलए प्रदान ककया गया !
74
प्रश्न 7 हिंदी साहित्य अकादमी का 2020 का परु स्कार ककसे प्रदान ककया गया ?
उत्तर – हिंदी साहित्य अकादमी 2920 लेखिका अनाशमका को प्रदान ककया गया िै !
यि परु स्कार उधिें टोकरी में हदंगत नामक काव्य संग्रि के शलए प्राप्त िुआ!
पस्
ु तक ”यू आर अनधतमतू तच प्रततरोध का ववकल्प” के शलए साहित्य अकादमी यव
ु ा
परु स्कार 2020 प्रदान ककया गया. अंककत पंजाब यतू नवशसचटी में अशसस्टें ट प्रोफेसर
िैं |
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प्रश्न 9 साहित्य अकादमी के पिले एवं वतचमान में अध्यक्ष के बारे में बताइये ?
उत्तर – साहित्य अकादमी के पिले अध्यक्ष जवािर लाल नेिरू थे ! वतचमान में प्रो.
र्धद्र शेिर कंबार को 2018-22 तक साहित्य अकादमी का अध्यक्ष र्न
ु ा गया िै !’
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साक्षात्कार
ह द
िं ी साह त्य के क्षेत्र में – विशेष
डॉ. बो ती ढ़ािंडा
सम्पादक
अिंतरााष्ट्रीय ह द
िं ी एििं सामाजिक विज्ञान
शोध पत्रत्रका
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ाुँ बी ए में मेरे को एडभमशन न ीिं हदलिाते थे ! ाुँ िी क्योंकक घर ब ु त दरू था,
30-35 ककलोमीटर तो घर िाले allowed न ीिं कर र ें थे कक ऐसे अकेले कैसे िाओगे
! ब ु त मैंने लड़ाई की घर िालों से झगड़ा ककया, उसके बाद घर िालों ने एडभमशन
हदलिाया क्योंकक मेरा sports में ब ु त interest था, मैं sports में ब ु त ज्यादा आगे
र ी ूुँ !’
कॉलेि के भलए ब ु त धक्के से एडभमशन भमला, किर कॉलेि िाने लगी !’ अपने
गािंि में मैं अकेली लड़की िाती थी, आस पास से भी ! ग्रेिुएशन ककया !
ग्रेिुएशन करने के बाद घर िालों ने मना कर हदया कक आपको एम ए न ीिं कराया
िायेगा !” तब किर एम ए के भलए मैंने प्राइिेट apply कर हदया !’तब किर
इिंगेिमें ट ो गई ! ससरु ाल िालों ने बोल हदया कक थपोर्टास लाइन में न ीिं िाने
हदया िायेगा !” एक साल एम ए का ो गया किर घर िालों ने बोला बी एड में
एडभमशन ले लो ! मैंने test हदया मेरा बी एड में एडभमशन ो गया ! एम ए मैंने
एक साल प्राइिेट कर भलया. उसके बाद बी एड ककया !
शरू
ु ोते टाइम हदक्कत आती थी !, कोई co-operate न ीिं करता था उस समय
घर िालों ने मेरे मम्मी पापा ने मझ
ु े ब ु त co-operate ककया !
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एडभमशन ि ाुँ भलया, काम य ी से ककया ! तब गाइड ले सकते थे जिनको 14 साल
का गाइड का एक्सपीररयिंस ो !
पेड़ पर चढ़ें गे तो दे खें कक राथते में ककतनी बाधाएिं आती ैँ, ये तो न ीिं ै कक म
सीधे ी पेड़ पर चढ़ िायेंगे उसके भलए भी सोचना पड़ता ै कैसे चढ़ना ै, कैसे
काम ोगा ? तो मैं ये सोच कर माइिंड को उधर लगा लेती थी कक ये ी मेरे काम
आएगा िो मैं कर र ी ूुँ अभी !
पी एच डी करने के बाद िॉब के भलए apply ककया तो उसके क्राइटे ररया दे खें !
इसमें पेपर पजललश की िरूरत ोती ै, book पजललश ो तो उसके भी marks
भमलते ैँ ! सेभमनार attend करने के भी marks भमलते ैँ ! उस समय मेरे अिंकल
जिन् ोंने मेरा एडभमशन करिाया था पी एच डी मेँ, उन् ोंने ी मझ
ु े इिंटरनेशनल
िनाल का सम्पादक बनाया ! उन् ोंने ी मेरे नाम से य िनाल शरू
ु करिाया !
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मेरे अिंकल का नाम सरु ें द्र गुप्ता ै ! इस िनाल के डायरे क्टर भी ैँ औऱ कई
िनाल्स इनके under चलते ैँ !”िे म ारािा अग्रसेन कॉलेि त्रबरादरी ररयाणा मेँ
associate prof. भी ैँ !
अब तक 5 पेपर पजललश ो चक
ु े ैँ औऱ इसके अलािा पीएचडी करते समय ी
शलद सरोकार नाम के नेशनल िनाल में भी दो पेपर पजललश ो चक
ु े ैँ !
प्रश्न 7. आि यि
ु ाओिं का लेखन के प्रनत रुझान न ीिं ै ? क्या कारण ैं औऱ आप
कौनसे तरीके अपना र ी ैं इसके भलए ?
मैं अभी िैसे बच्चों को कविता पढ़ाती ूुँ final year औऱ second year के बच्चों को
! कविताओिं पर प ले बच्चों के views लेती ूुँ कक तुम् ें इससे क्या सीखने को
भमला किर खुद बताती ूुँ ! मैं मेशा उनसे पछ
ू ती ूुँ कक ये कविता, क ानी सब
आपके पाठ्यक्रम में क्यों शाभमल ककये गए ैं ?
म कोभशश तो करते ैं ऑनलाइन में क्या बताएिं ! बच्चे ऑनलाइन class attend
न ीिं करते ! ब ाना लगाते ैं, माता -वपता से झठ
ू बोलते ैं !
मैं अपनी तरि से ब ु त प्रयास करती ूुँ, मारे कॉलेि में ननबिंध, कविता, क ानी
लेखन की प्रनतयोधगतायें ोती ैं ! कुछ बच्चे िरूर आगे आते ैं !
लेककन बच्चों का झक
ु ाि विदे श िाने की ओर ैं ! मैं कविताओिं के माध्यम से
िैसे लोकतिंत्र पर सिंकट औऱ गुलाम बनाने िाले दे श, इनसे बच्चों पर प्रभाि भी
ब ु त पड़ता ै !,
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मैं तो य ी मानती ूुँ कक class के 80 बच्चों में से 10 भी िागरूक ों तो य मेरी
ब ु त बड़ी achievement ोगी !
बच्चों को भसखाती ूुँ उनके साथ दोथत की तर र कर, मैं प्रोिेसर ूुँ ऐसा न ीिं
चलती ! मैंने दे खा ै कक ब ु त क्षमता ोने के बाद भी घर की समथयाओिं के
कारण बच्चे आगे न ीिं बढ़ पाते ! मैं य ी सोचती ूुँ कक ककसी एक बच्चे को भी
बा र ननकाल सकुँू और िो एक भी एक को िागरूक कर दे तो म पता न ीिं
ककतनों को िागरूक कर दें गे !
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बच्चे आगे िरूर आते ैं किर िो मसे पछ
ू ने लगते ैं कक म पररितान कैसे लाएिं
?
मैं ब ु त ुँ स मख
ु ूुँ ककतनी भी tension में ूुँ , खुद को, उस बात से कैसे भी
separate कर लेती ूुँ, फ्रेंड्स से भमलकर, घम
ू कर, !
गरीब लोगों से भमलती ूुँ, घास काटते र ते ैं, उनका दःु ख मसे बड़ा ोता ै किर
भी िे मसे ज्यादा खुश ोते ैं ! उनकी समथयाओिं को सन
ु कर अपनी समथया
छोटी लगने लगती ै ! ज़ब मझ
ु े tension ोती ै उनको दे ख लेती ूुँ ! एक – एक
हदन का काम करते ैं मैडम िे किर भी मसे ज्यादा खुश र पाते ैं !
मैं बच्चों से बोलती ूुँ इनसे भमले ो कभी आप ? बात की ै आपने इनसे ? ये
दे खो त्रबजल्डिंग बन र ी ै, एक बार उनसे बात करना किर आपको जििंदगी का
अच्छी तर पता चलेगा !
मेरे को tension ोती ै तो मैं इनको दे खती ूुँ, उनके चे रे पर ककतनी ख़ुशी ोती
ै !
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प्रश्न 12. बच्चों को िागरूक करने की हदशा में आपका कैसा प्रयास र ता ै ?
बच्चे कविताएिं भलखते ैं, उन् ें िागरूक करो तो भलख लेंगें अच्छा !
प्रश्न 13. यथाथा में अपने विचारों को उतारना ी असली योगदान ोता ै समाि
को, क्या क ना ै आपका ?
मैं प्रैजक्टकल में ी विश्िास करती ूुँ मैडम !, मैं बच्चों को भी य ी समझाती ूुँ
कबीर दास िी अब न ीिं ै लेककन क्यों पदते ैं म इनको ! ककस कारण से
प्रासिंधगक ैं ये, क्योंकक िो समािऔऱ मानिीय मल्
ू य उस समय थे उन से आप
कैसे पररधचत ोंगे ! उनसे पररधचत न ीिं ोंगे तो आप जियोगे कैसे ? घर में दादा
दादी, पापा ैं आपके ! आपकी कुछ परम्परायें ैं उनको लेकर अभी तक चल र ें ो
! समथयाएिं तब भी थी अब भी ैं प ले म सीधे रूप से अिंग्रेिो के गुलाम थे अब
मारी सिंथकृनत अपने ी दे श में लप्ु त ोने लग र ी ैं ! विदे शों में मारी सिंथकृनत
को ब ु त मान र ें ैं लोग !” म अपनी सिंथकृनत को खुद ी खत्म कर र ें ैं !
प्रश्न 14. आि यि
ु ा पीढ़ी को आप क्या सन्दे श दे ना चा ें गी मैडम ?
मैं प्रैजक्टकल में विश्िास करती ूुँ, भाषण दे ने में न ीिं, िो भी सीखना चा ती ूुँ
मैडम मैं खुद प ले उसी पर अमल करती ूुँ !
आिकल ह द
िं ी का दे श ी न ीिं विदे शों में भी ब ु त म त्ि ै ! आपके भलखने में
प्रभाि ो तो ककताब बािार में िरूर त्रबकती ै ! म भी मैडम गाइड भलखने की
कोभशश कर र ें ै, अपने भसलेबस की, अच्छी भलखी ै ! िरूर चलेगी !
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मैं य ी क ना चा ूिं गी कक खुद प्रैजक्टकल करके ककसी के िीिन के भलए प्रेरणा बनो
!
- शिवा स्वयं
संपादक
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आपकी सफलता
साक्षात्कार
पल
ु ककत शर्ाा (आर. जे. एस.-2021)
पल
ु ककत जी ने RJS के exam को clear ककया है ! Judiciary के इस exam को पास
करने के ललए students को तीन चरणों र्ें परीक्षाओं को पास करना होता है ! Pre,
mains औऱ interview
आज हर् पल
ु ककत सर से जानते हैं कक उन्होंने इस सफलता को प्राप्त करने के
ललए कैसी रण नीतत बनाई ?
तो सर,
प्रचन 1 सर, सबसे पहले हर् सिी जानना चाहें गे कक आप अपने जीवन, पररवार व
लशक्षा के ववषय र्ें बताएं !
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उत्तर 1 र्ेरा नार् पल
ु ककत शर्ाा है ! र्ैं र्लतः िरतपरु का रहने वाला हूँ औऱ
वपछले 14-18 सालों से जयपरु र्ें तनवास कर रहा हूँ !र्ैंने राजस्थान यतनवलसाटी से
LL. M. ककया है !
उत्तर - हाल र्ें र्ेरा पद आर जे एस civil judge and magistrate र्ें है औऱ जोधपरु
र्ें under training र्ें हूँ !
उत्तर - तनरं तर पररश्रर्, दृढ़ तनचचय लगन औऱ आत्र् ववचवास औऱ हार न र्ानना
ही व्यश्क्त को लशखर तक ले जाता है !
उत्तर - र्ेरा role र्ॉिल र्ेरे दादा जी हैँ, जो खुद िी आर ए एस ररटायिा ऑकफसर
थे ! उन्होंने र्झ
ु े जीवन के र्ल र्न्ि िी लसखाये ! यह कहना अततचयोश्क्त नहीं
होगी कक जो कुछ िी र्ैं आज हूँ उसर्ें उनका हर्ेशा आशीवााद रहा है !
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उत्तर - तैयारी start करने से पहले हर्ें श्जस exam र्ें आप appear हो रहें हैँ, उसके
लसलेबस से go through हो जाएूँ ! उससे सम्बंर्धत study material को पढ़े औऱ
previous years के question papers की practice करें ! Mock test दें ! अपना स्वयं
का एक schedule तैयार करें !
प्रचन 8.प्रथर् प्रयास र्ें सफलता न लर्लने पर तनराशा से बाहर कैसे तनकलें ?
उत्तर - हाूँ, ऐसा हो सकता है कक पहले प्रयास र्ें चयन न हो तो हताश न हों क्योंकक
competitive exam र्ें कोई फेल या पास नहीं होता है !सर्य लग सकता है, यर्द
आप तनरं तर पढ़ाई करते रहें गे तो सफलता अवचय लर्लेगी !
प्रचन 10. सर, आपने Pre, mains, interview – तीनों की तैयारी कैसे करें
उत्तर - pre, mains के ललए same strategy रहनी चार्हए जैसे law
Mains र्ें र्हंदी औऱ इंश्ललश र्ें essay प्रैश्क्टस करें !अलग से औऱ इंटरव्य के वक़्त
g.k. िी पढ़े !
प्रचन 12. सफलता के ललए self study जरूरी है या coaching या दोनों औऱ क्यों ?
उत्तर - र्ेरे ववचार से दोनों ! Self study औऱ coaching both are important क्योंकक
कोर्चंग आपकी र्दद करती है कक आपको क्या पढ़ना है औऱ क्या नहीं !
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प्रचन 13. राजस्थान र्ें law का weightage ककतना होता है ! Eng वाले र्हन्दी को
कैसे औऱ र्हन्दी वाले English को कैसे तैयार करें इस बारे र्ें र्ागादशान करें !
उत्तर - . दे खखए थोड़ा िर होना अच्छी बात है परन्तु इंटरव्य के ललए ज्यादा िरने
की जरूरत नहीं है क्योंकक इंटरव्य एक फॉर्ाल discussion जैसे होता है !
क्या आपने केवल RJS पर ही फोकस रखा या कोई अन्य कायों र्ें िी आपने
अपना सर्य र्दया !
उत्तर - र्ैं 3rd attempt र्ें select हुआ था ! औऱ र्ैंने दसरा कोई exam नहीं र्दया
परन्तु इसका र्तलब यह नहीं है कक दसरे एलजार् अच्छे नहीं, उनका िी उतना ही
र्हत्व है !
उत्तर- Attempt से ज्यादा कुछ नहीं होता ! आपको यर्द आपका लक्ष्य हालसल हो
जाता है तो वही आपका best attempt है !
प्रचन 17 सर, ववद्याथी coaching कर लेते हैँ, इसर्ें test series का क्या role है ?
उत्तर - Test series play an important role. क्योंकक इससे हर्ें पता लगता रहता है
कक हर् ककतने पानी र्ें हैँ !
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प्रचन 18. वतार्ान र्ें जो छाि RJS की तैयारी कर रहें हैँ, उनके ललए आप क्या
कहना चाहें गे ?
उत्तर - Regular पर्ढ़ए, अपने सीतनयसा के touch र्ें रर्हये ! अपने teachers से
doubt clear करते रर्हये औऱ अपने आप पर ववचवास रखखये !
Signatures
धन्यवाद सर !
लशवा स्वयं
सम्पादक
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