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NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE

शोध , साहित्य और संस्कृति की माससक वैब पत्रिका

नयी गज
ं -------.

वर्ष 2022

अंक 1

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NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE

संपादक मंडल

प्रमुख संरक्षक

प्रो. दे व माथरु

vishvavishvaaynamah.webs1008@gmail.com

मुख्य संपादक

रीमा मािे श्वरी

shuddhi108.webs@gmail.com

संपादक

सशवा ‘स्वयं’

sarvavidhyamagazines@gmail.com

शाखा प्रमुख

ब्रजेश कुमार

aryabrijeshsahu24@gmail.com

परामशषदािा

कमल जयंथ

jayanth1kamalnaath@gmail.com

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संपादकीय
सशवा ‘स्वयं’

अपनी जन्मभसम को नमन करने,

िम शब्दों की भें ट लाये िैं !

पपरो हदया िै स्यािी में अंिमषन की ज्वाला को,

िम पावन अपनी धरिी मााँ का

वंदन करने आये िैं

अपने आप को पाने के सलए िी िो सारी जद्दोजिद िै ! जीवन का सदप


ु योग िो
सके, िम वो बन सके जैसा बन कर लगे कक िााँ, अब अंदर सक
ु न िै ! पर ऐसा िो
कुछ भी करके िोिा निीं ! मग
ृ िष्ृ णा िै भीिर, बस केवल बढ़िी िी जािी िै !

समट्टी से अब खुश्ब आिी निीं िै, घरों में माबषल सजा कर उसमें से खुश्ब अनभ
ु व
करने की कोसशश कर रिे िैं िम सब !

ऐसा भी किीं िोिा िै ?

क्योंकक िम वस्िओ
ु से खुद को भर कर, वास्िव में खाली कर रिे िैं ! भरना िै िो
पवचारों को भरो, जो िमें एक हदन परा िो करें गे ! निीं िो संभविः िमारी पंजी में
िीरे मोिी निीं कंकड़ पत्थर िी रि जायेंगे !

एक पपवि प्रेरणा का िाथ पकड़ कर चलो जो इस िरि साथ िोिी िै जैसे मााँ की
ऊाँगली थाम कर चलना, वो जो िमेशा कोमल रास्िो पर चलना निीं ससखािी, वो िो
उबड़ खाबड़ रास्िों का तनमाषण खद
ु िी करिी िै कक उसके बच्चे को उन रास्िों पर

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चलना आ जाये ! वो ससखािी िै कक िज़ार बार भी गगरो िो कोई बाि निीं मगर
िौसला एक बार भी गगरने मि दे ना !

वो भरोसा ससखािी िै,

अवगण
ु ों से भरे िम, यहद जीवन में गण
ु जोड़ लें िो यि गचरस्थाई संपपि िोगी,
जजससे सच्चा श्ग
ं ृ ार सम्भव िो जािा िै !

िम बिुि मेिनि से कमािे िैँ, अपने जीवन कों सजािे िैँ अच्छे कपड़ो से, बड़ी
गाड़ी से, मिं गे समानों औऱ आलीशान घरों से ! कमाई एक िो बािर के सलए िोिी
िै जो जीवन का बािरी रं ग सन्
ु दर कर दे िी िै लेककन इस बािर कों सजाने की
दौड़ में अंदर से संद
ु रिा िो दर की बाि िै अंदर की िो गन्दगी िक साफ निीं िो
पािी –

ककसी गायक की किी पंजक्ियााँ िैँ कक -

क्यों पानी में मल मल नहाये


मन की मैल उतार ओ प्राणी..
हदन राि पररश्म करके िम चमकने वाली चीज़े िो खरीद लेिे िैँ लेककन व्यजक्ित्व
के रं ग को िो काला िी कर दे िे िैँ - घण
ृ ा, प्रतिस्पधाष, जलन, लोभ इिने पवकार भर
जािे िैँ िम में औऱ िम उनको अपने अंदर की कुरूपिा निीं मानिे बजकक िम इन
पवकारों के साथ जीने के इिने आहद िो जािे िैँ कक व्यजक्ित्व में इन सब बािों
को िम सिज़ मानने लगिे िैँ !

समझना िो इस बाि को पड़ेगा कक जजस िरि ऊपर से चमकने के सलए कुछ दे र


के सलए मेकअप ककया जा सकिा िै लेककन स्थाई चमक के सलए अच्छा स्वास््य
चाहिए उसी िरि अपने भीिर स्वस्थ पवचारों को रख कर िी िम स्वयं अपने

पवस्िार को पा सकिे िैँ, अन्यथा निीं !’इसी उद्दे श्य की प्राजति की ओर यि पिला
कदम....
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शभ
ु ेच्छा

नयी गज
ूं ------. पररवार
परामशषदािा-
प्रश्न िै कक संस्कृति क्या िै । यं संस्कृति शब्द सम+् कृति से बना िै, जजसका अथष िै अच्छी कृति। अथाषि ्
संस्कृति वस्िुिः राष्रीय अजस्मिा के पररचायक उदाि ित्वों का नाम िै ।

भारिीय सन्दभष में संस्कृति व्यजक्ितनष्ठ न िोकर समजष्टतनष्ठ िोिी िै । संस्कृति की संरचना एक हदन में
न िोकर शिाजब्दयों की साधना का सुपररणाम िोिा िै । अिः संस्कृति सामाससक-सामाजजक तनगध िोिी िै ।
संस्कृति वैचाररक, मानससक व भावनात्मक उपलजब्धयों का समुच्चय िोिी िै । इसमें धमष, दशषन, कला,
संगीि आहद का समावेश िोिा िै । इसी की अपररिायषिा की ओर संकेि करिे िुए भिि
ृष रर ने सलखा िै कक
इसके त्रबना मनुष्य घास न खाने वाला पशु िी िोिा िै -

‘‘साहित्यसंगीिकला-पविीनः

साक्षाि ् पशुः पुच्छपवर्ाणिीनः।।

मुख्य संपादक
उपतनर्द् के शब्दों में किें िो संस्कृति में जीवन के दो आयाम श्ेय व प्रेय का सामंजस्य िोिा िै । इन्िीं
आधार पर आध्याजत्मक, वैचाररक व मानससक पवकास िोिा िै और इन्िीं के आधार पर जीवन-मकयों व
संस्कारों का तनधाषरण िोिा िै और यिी जीवन के समग्र उत्थान के सचक िोिे िैं। सशक्षा-िंि में इन्िीं
सांस्कृतिक मकयों का सशक्षण-प्रसशक्षण िोिा िै । विषमान में सशक्षा-व्यवस्था संस्कृति की अपेक्षा सम्यिा-
तनष्ठ अगधक िै । िात्पयष िै कक विषमान सशक्षा पवचार-प्रधान, गचन्िन-प्रधान व मकयप्रधान की अपेक्षा
ज्ञानाजषन-प्रधान िै । वस्िुिः इसी का पररणाम िै कक सम्प्रति सशक्षा के द्वारा बौद्गधक स्िर में िो
असभवद्
ृ गध िुई िै ककन्िु संवेदनात्मक या भावनात्मक स्िर घटा िै ।

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संपादक –

िमारी सशक्षा में सांस्कृतिक मकयों के स्थान पर पजश्चमी सभ्यिा-मलक ित्वों को उपादान के रूप में ग्रिण
कर सलया गया िै । िभी िो सशक्षा व समृद्गध के पाश्चात्य मानदण्डों को आधार मान सलया िै जो संस्कृति-
पवरोधी िैं, जजनमें नैतिक व मानवीय मकयों का पवशेर् स्थान निीं िै । इसी का पररणाम िै कक बुद्गधमान व
गरीब नैतिक व्यजक्ि सामाजजक दृजष्ट से भी िांससये पर िी रििा िै और नैतिकिा-पविीन, संवेदनिीन,
भ्रष्टाचारी व अपराधी भी सम्पन्न, सभ्य, सम्मान्य व प्रतिजष्ठि िोिा िै । इसी संस्कृति-पविीन व्यवस्था के
कारण शोर्ण-प्रधान पंजीवादी व्यवस्था िी ग्राह्य िो गई िै , जजसने रिन-सिन के स्िर को िो उठाया िै , पर
इस भोगवादी बाजारवादी व्यवस्था के कारण अथषशास्ि व िकनीककपवज्ञान के सामने नैतिकिा व
मानवीयिा गौण िो गई िै । जबकक राधाकृष्णन व कोठारी आयोग की मान्यिा थी कक सशक्षा ऐसी िोनी
चाहिये जो सामाजजक, आगथषक व सांस्कृतिक पररविषन का प्रभावी माध्यम बन सके। इस दृजष्ट से भारिीय
प्रकृति और संस्कृति के अनुरूप सशक्षा से िी मकयपरक उदाि-गुणों का संप्रेर्ण और समग्र व्यजक्ित्व का
तनमाषण सम्भव िै । इसमें पुराने व नये का त्रबना पवचार ककये जो दे श की अजस्मिा व समाज के हििकर िै ,
उसी को प्रमुखिा दे नी चाहिए।

शाखा प्रमख
ु की कलम से--
पप्रय पाठकों

संस्थान की पत्रिका नयी गज


ं के पिले अंक का लोकापषण एक आंिररक सुख की अनुभति करा रिा िै ।

मुझे प्रसन्निा िै कक शाखा प्रमुख के रूप में कायषभार संभालने के बाद मुझे आप सभी से नयी गंज के इस
अंक के माध्यम से रूबरू िोने का मौका समल रिा िै ।

िम ककिना भी पवकास कर लें ककन्िु यहद समाज में संवेदना िी मर गई िो सब व्यथष िै । इस संवेदनिीनिा
के चलिे समाज में नकारात्मक ऊजाष हदन प्रति-हदन बढ़िी जा रिी िै जो तनन्दनीय भी िै और पवचारणीय
भी। आवश्यकिा िै कक िम अपवलम्ब इस हदशा में अपने प्रयास आरम्भ कर दें ।

वस्िुिः अपने कमों से िम अपने भाग्य को बनािे और त्रबगाड़िे िैं। यहद गंभीरिा से गचंिन-मनन ककया
जाय िो िमारा कायष-व्यापार िमारे व्यजक्ित्व के अनुसार िी आकार ग्रिण करिा िै और िमें अपने कमष के
आधार पर िी उसका फल प्राति िोिा िै । कमष ससफष शरीर की कियाओं से िी संपन्न निीं िोिा अपपिु मनुष्य
के पवचारों से एवं भावनाओं से भी कमष संपन्न िोिा िै । वस्िुिः जीवन-भरण के सलए िी ककया गया कमष िी

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कमष निीं िै िम जो आचार-व्यविार अपने मािा-पपिा बंधु समि और ररश्िेदार के साथ करिे िैं वि भी कमष
की श्ेणी में आिा िै । मसलन िम अपने वािावरण सामाजजक व्यवस्था, पाररवाररक

समीकरणों आहद के प्रति जजिना िी संवेदनशील िोंगे िमारा व्यजक्ित्व उिनी िी उच्चकोहट की श्ेणी में
आयेगा।

आज के जहटल और अति संचारी जीवन-वपृ ि के सफल संचालन िे िु सभी का व्यजक्ित्त्व उच्च आदशों पर
आधाररि िो ऐसी मेरी असभलार्ा िै ।

यि ज़रूरी निीं िै कक िर कोई िर ककसी कायष मे पररपणष िो, परन्िु अपना दातयत्व अपनी परी कोसशश से
तनभाना भी दे श की सेवा करने के समान िी िै । संपणष किषव्यतनष्ठा से ककया िुआ कायष आपको अवश्य िी
कायष-समाजति की संिुजष्ट दे गा। कोई भी ककया गया कायष िमारी छाप उस पर अवश्य छोड़ दे िा िै अिएव
सदै व अपनी श्ेष्ठिम प्रतिभा से कायष संपन्न करें । िर छोटी चयाष को और छोटे -से-छोटे से कायष के िर अंग
का आनंद लेकर बढ़िे रिना िी एक अच्छे व्यजक्ित्व का उदािरण िै ।

यि सवषपवहदि ि्य िै कक नयी गंज एक उच्च स्िरीय पत्रिका िै जजसमें पवसभन्न पवधाओं में उच्चस्िरीय
लेखों का अनठा संग्रि िै

आप सभी पत्रिका का आनन्द लें एवं अपनी प्रतिकियायें ऑनलाइन या ऑफलाइन भेजें।

नयी गंज के माध्यम से िमारा आपका संवाद गतिशील रिे गा। आप सभी अपनी सुन्दर व श्ेष्ठ रचनाओं से
नयी गंज को तनरन्िर समृद्ध करिे रिें गे इसी पवश्वास के साथ।

अंि में मैं सभी सम्पादक मण्डल के सदस्यों एवं रचनाकारों को नयी गंज पत्रिका के सफल सम्पादन एवं
प्रकाशन के सलए साधुवाद ज्ञापपि करिा िं करिा िाँ ।

आप सभी को िाहदष क बधाई के साथ बिुि-बिुि धन्यवाद!!

कासलदास ने काव्य के माध्यम से किा िै -

पुराणसमत्येव न साधु सवं


न चापप काव्यं नवसमत्यवद्यम ्।
सन्िः परीक्ष्यान्यिरद् भजन्िे
मढः परप्रत्ययनेय बुद्गधः।।

अथाषि ् पुरानी िी सभी चीजें श्ेष्ठ निीं िोिी और न नया सब तनन्दनीय िोिा िै । इससलए बुद्गधमान व्यजक्ि
परीक्षा करके जो हििकर िोिा िै उसी को ग्रिण करिे िैं जबकक मखष दसरों का िी अन्धानुकरण करिे िैं।
अस्िु, तनपवषवाद रूप से यि सभी स्वीकार करिे िैं कक राष्र की रक्षा, का सकारात्मक पक्ष िोिा िै ।
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प्रकाशन सामग्री भेजने का पिा

ई-मेलःgoonjnayi@gmail.com

नयी गंज इंटरनेट पर उपलब्ध िै । www.nayigoonj.com पर जक्लक करें ।

नयी गंज.में प्रकासशि लेखाहद पर प्रकाशक का कॉपीराइट िै

शक
ु क दर 40/-

वापर्षक: 400/-

िैवापर्षक: उपयक्
ु ष ि शक
ु क-दर का अगग्रम भग
ु िान 1200/-

को -----------------------------------------द्वारा ककया जाना श्ेयस्कर िै ।

तनयम तनदे श
1 रचनाएं यथासंभव टाइप की िुई िों, रचनाकार का परा नाम, पद एवं संपकष पववरण का उकलेख
अपेक्षक्षि िै ।

2 लेखों में शासमल छाया-गचि िथा आाँकड़ों से संबंगधि आरे ख स्पष्ट िोने चाहिए। प्रयुक्ि भार्ा सरल,
स्पष्ट एवं सुवाच्य हिंदी भार्ा िो।

3 अनहु दि लेखों की प्रामाणणकिा अवश्य सतु नजश्चि करें । अनव


ु ाद में सिायिा िे िु संस्थान संपादक
मंडल प्रकोष्ठ से संपकष कर सकिे िैं।

4 प्रकासशि रचनाओं में तनहिि पवचारों के सलए संपादक मंडल प्रकोष्ठ उिरदायी निीं िोगा और इसके
सलए परी की परी जजम्मेदारी स्वयं लेखक की िी िोगी।

नई गाँज तनयमावली

रचनाएं goonjnayi@gmail. Com ई-मेल पिे पर भेजी जा सकिी िैं। रचनाएं भेजने
के सलए नई गाँज के साथ लॉग-इन करें , यि वांतछि िै ।

आप िमारे whatsapp no. 9785837924 पर भी अपनी रचनाएाँ भेज सकिे िैँ

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पप्रय सागथयों,

नई गाँज िेिु आपके सियोग के सलए आपका िाहदष क धन्यवाद। आशा िै कक ये संबंध आगे भी
प्रगति के पथ पर अग्रसर रिें गे। आगामी अंक िे िु आप सबके सकिय सियोग की पुनः आकांक्षा
िै । आप सभी से एक मित्वपणष अनुरोध िै कक आप अपने शोध प्रपि तनम्न प्रारूप के ििि िी
प्रस्िुि करें जजससे कक िमें िकनीकी जहटलिाओं का सामना न करना पड़े -

1.प्रकाशन िे िु आपकी रचना के मौसलक िोने का स्विः सत्यापन रचना प्रेपर्ि करिे समय
"मौसलकिा प्रमाण पि" पर िस्िाक्षर करना अतनवायष िै । इसके त्रबना रचना पर पवचार करना
संभव निीं िोगा

2. रचना किीं पर भी पवष में प्रकासशि निीं िोनी चाहिए !

3. आपकी रचनाएाँ एम.एस. ऑकफस में टाइप िोना चाहिए

4. फोंट - कृतिदे व 10, मंगल यतनकोड

5. रचनाओं के साथ अपना पणष पिा, मोबाइल नंबर, ईमेल िथा पासपोटष साइज की फोटो लगाना
अपेक्षक्षि िै !

6. आप लेख, कपविा, किानी, ककसी भी पवधा में रचनाएाँ भेज सकिे िैँ !

नई गाँज रचनाओं के प्रेर्ण सम्बंगधि तनयम व शिे :


 एक से अगधक रचनायें एक िी वडष-डॉक्यमेंट में भेजें।
 रचनायें अपने पंजीकृि पेज पर हदए गए सलंक इस्िेमाल कर प्रेपर्ि
करें ।
 यहद आप हिंदी में टाइप करना निीं जानिे िैं, आप गगल द्वारा
उपलब्ध करवायी गयी सलतयान्िरण सेवा का इस्िेमाल कर सकिे िैं।
इसके सलए Google इनपट
ु उपकरण सलंक पर जाएाँ।
स-आभार

संपादक मंडल

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ix
अनुक्रमाविका
क्रम वििरविका पृष्ठ संख्या
संख्या

लेख – लेखक पृष्ठ संख्या

1 मानि जीिन में विक्षक का महत्ि बृजि


े कु मार 1-5
2 भारत मेरा भारत दुर्ाा माहेश्वरी 6 -10
3 मुखौटे के पीछे कौन डॉ वििा धमेजा 11 -14
कविता

4 नीड़ का वनमााि फिर फिर हररिंि राय 15 -17


बच्चन
5 ितामान व्यिस्था की सच्चाई विनोद मानिी 18 - 21
6 कृ ष्ि अजुन
ा संिाद बृजि
े कु मार 22 - 26
7 मेरी प्यारी मााँ ( नन्ही कलम से ) अंजली साहू 27
कहानी

8 सुनिाई अलका प्रमोद 28 – 32


9 सौ बरस के वलए ईश्वर डॉ वििा धमेजा 33 – 36
10 पहचान आिा िैली 37 – 48
11 र्ीत – लाि कं धे पर वलए कब तक अिोक रक्ताले 49 – 50
12 लोक कथा – मााँ पन्ना धाय का त्यार् 51 – 56
13 आलेख – वहन्दू ह्रदय सम्राट – महाराजा बृजि
े कु मार 57 – 66
सूरजमल
14 ऐवतहावसक स्थल एक नजर – वचत्तौडर्ढ़ 67– 72
(राजस्थान )
15 सावहत्य अकादमी पुरस्कार के बारे में 73 - 76
जावनए
साक्षात्कार

16 साक्षात्कार – सावहत्य (बोहती ढांडा ) 77 - 84


17 साक्षात्कार – आर. जे. एस. 85 - 90
(पुलफकत िमाा )
मानव जीवन में
शिक्षक का महत्व

1
दीपक की भाांति होिा है शिक्षक,

स्वयां जलकर प्रकाि फैलािा है शिक्षक,

उन्नति का मार्ग ददखािा है शिक्षक,

ज्ञान की र्ांर्ा में नहलािा है शिक्षक,

इसशलए िो शिक्षक साधारण नहीां होिा,

शमट्टी को सोना बनािा है शिक्षक!

“शिक्षक”
2
भा
रतीय संस्कृतत में शिक्षक के शिए गुरु िब्द का प्रयोग ककया
गया है ! जिसका अर्थ होता है - ज्ञान दे ने वािा अर्ाथत अंधकार
से प्रकाि की ओर िे िाने वािा! बच्चों की जिंदगी में मां के
बाद शिक्षक की बहुत बडी भशू मका होती है! वह बच्चे को ककस
तरह ढ़ािता है, यह तनभथर करता है उसकी योग्यता पर! अगर शिक्षक का िाजब्दक
अर्थ दे खे तो पता चिता है कक शिक्षण का कायथ करने वािा अर्ाथत अध्ययन-
अध्यापन कराने वािा!

“जजस प्रकार एक कुम्भकार शमट्टी को िरह-िरह की


आकृति में ढ़ाल दे िा है उसी प्रकार बच्चे के भववष्य का
तनमागिा उसका शिक्षक ही है !”
अनेक िेखकों ने शिक्षक िब्द की अिग-अिग व्याख्या की है –

“शिष्य के मन में सीखने की इच्छा जार्ि


ृ करने वाला – शिक्षक!”

“कमजोरी को दरू कर शिखर िक ले जाने वाला – शिक्षक!”

यह सब का अपना एक मत है िेककन सच यह है कक शिक्षक ही बच्चे का


भववष्य तनमाथता होता है ! प्राचीन काि हो या वतथमान, भारतीय संस्कृतत में शिक्षक/
गुरु का पद ईश्वर के समकक्ष बताया गया है! िैसे ईश्वर सवथिजततमान होने पर
भी कभी गित नहीं करता है , वैसे ही शिक्षक अपने शिष्य का कभी बरु ा नहीं सोच
सकता! शिक्षक ही है िो बच्चे के मन में प्रगतत, उन्नतत तर्ा सपनों को साकार
करने की भावना पैदा करता है ! शिक्षक की शिक्षा ही है िो हमारे िीवन को सही
ददिा तनदे ि दे ती है और हमें सफिता के मागथ पर आगे िे िाती है ! यदद शिक्षक
ने होते तो िायद हमारा समाि या यह कहे परू ा ववश्व इतना आगे नहीं बढ़ा होता!
सीखना एक अिग प्रकिया है िेककन सीख कर सीखना एक अिग चीि है ! िरूरी
नहीं कक सीखने वािा वही चीि दस
ू रे को शसखा सके! माता-वपता तर्ा भगवान के
बाद शिक्षक की होता है िो बच्चे का भववष्य तय करता है !
3
स्वामी ववरिानंद सरस्वती िैसे आचायथ ने इस समाि का राष्र को िो अमल्
ू य
शिष्य दयानन्द सरस्वती ददया है ! जिसने अपने राष्र की धरोहर वेद ज्ञान तर्ा
गरु
ु कुि शिक्षा को पन
ु स्र्ावपत करने का प्रयास ककया! समाि में फैिी कुरीततयों
तर्ा आडंबरो का परु िोर ववरोध ककया! अपना परू ा िीवन राष्र तर्ा समाि की
सेवा के शिए तनछावर कर ददया! यह अपने आप में एक अद्भत
ु कायथ है !

आचायग चाणक्य ने घनानांद को चन ु ौिी दे िे हुए कहा क्रक –


“घनानांद शिक्षक साधारण नहीां होिा, तनमागण और प्रलय उसकी र्ोद में पलिे
हैं! अर्र मझ
ु में सामर्थयग है, िो मैं अपने पोषण करने वाले सम्राटों का
तनमागण कर लांर्
ू ा!”

यह प्रततज्ञा आचायथ चाणतय ने अपनी शिष्य चंद्रगप्ु त का तनमाथण कर परू ी की और


अपनी योग्यता के बि पर चंद्रगुप्त िैसे तनधथन और गरीब बािक को चिवती
सम्राट बना ददया! यह होती है शिक्षक की भशू मका!

शिक्षक के ववषय में महापुरुषों के ववचार –


“अच्छा शिक्षक वह है जो जीवन पयंि ववद्यार्थी बना रहिा है और इस प्रक्रिया में
वह केवल क्रकिाबों से नहीां अवपिु ववद्यार्र्थगयों से भी सीखिा है!”
- डॉक्टर सवगपल्ली राधाकृष्णन
“मैं शिक्षक हूां, यदद मेरी शिक्षा में सामर्थयग है, िो अपना पोषण करने वाले सम्राटों
का तनमागण मैं स्वयां कर लांर्
ू ा” – चाणक्य
“एक सभ्य घर जैसा कोई स्कूल नहीां है और एक भद्र अशभभावक जैसा कोई
शिक्षक नहीां है ” - महात्मा र्ाांधी
“केवल एक चीज जो मझ
ु े सीखने में हस्िक्षेप करिी है, वो है मेरी शिक्षा”
– अल्बटग आइांस्टीन
“मैंने जो कुछ भी सीखा है, क्रकिाबों से सीखा है ”
– अब्राहन शलांकन
“शिक्षा की जडे कडवी होिी हैं, मर्र फल मीठा होिा है ”
- अरस्िु
4
“शिक्षक समाज के दपगण को स्वच्छ रखने का वह कायग करिा है जजस में आने
वाली पीदढ़याां अपने अच्छे एवां र्लि ववचार रूपी मांह
ु को दे खने में भली भाांति
सक्षम हो पािी है ! हम जैसे हैं उसमें हमारे पव
ू ग शिक्षकों का अिुल्य योर्दान है,
भववष्य में जो व्यजक्ि होंर्े उसमें हमारी भशू मका भी प्रमख
ु िा से शलखी जाएर्ी,
अिः सावधान होकर अपने किगव्य का पालन करें ”
– अज्ञात

िेककन प्राचीन काि और वतथमान के शिक्षक मैं उनकी कर्नी और करनी में बहुत
अंतर आ गया है ! अब शिक्षा व्यापार बन कर रह गई है ! आि शिक्षक की जस्र्तत
वेतन भोगी के शसवाय कुछ नहीं है ! इसशिए आि की जस्र्तत को दे खकर ककसी
ने कहा है –

र्रु
ु लोभी चेला लालची, दोनों खेल दाव!

भवसार्र में डूबिे, बैठ पत्र्थर की नाव!!

िबकक शिक्षक इस राष्र तर्ा समाि की िडे हैं! जिस प्रकार िड के दहि िाने पर
पेड गगर िाता है, उसी प्रकार एक उत्तम शिक्षक के बबना शिष्य का तनमाथण नहीं हो
सकता है! अतः शिक्षक को अपने कतथव्य को समझ कर, बच्चों को िारीररक
मानशसक बौद्गधक रूप से तैयार करना चादहए! तयोंकक छोटे बच्चे शमट्टी की तरह
है , िैसा शिक्षक डािेगा, बस वैसे ही ढि िाएंगे! आि शिक्षक और शिष्य के बीच
दरू ी बनती िा रही है, वे भी समाप्त होगी! तभी हम सही अर्थ में कह सकेंगे कक
शिक्षक ही अपने शिष्य का सच्चा सही पर् प्रदिथक है !

बज
ृ ेि कुमार

5
भारत मेरा भारत

यह एक अप्रिय तथ्य है कक सन ् 1947 में भारत द्वारा स्वतन्त्रता िाप्तत के


अवसर पर भारत का प्रवभाजन धमम के आधार पर ककया गया | पथ
ृ क राष्ट्र इस
मान्त्यता के आधार पर हहन्त्द ू और इस्लाममक दो राष्ट्रों की पररकल्पना को मौन
स्वीकृतत िदान करते हुए भारतमाता का अंग – भंग ककया गया था उसी क्षण
हमारे कणमधारों के मन में यह बात बैठ गई कक धमम को राजनीतत से पथ
ृ क रखना
चाहहए ! अपने इस संकल्प को साकार करने के प्रवचार से उन्त्होंने भारत के
संप्रवधान में भारत को एक धममतनरपेक्ष राज्य ( Secular State ) घोप्रित ककया!

धमम का अथम
धमम को सामान्त्यतः अंग्रेजी के शब्द Religion के अथम में ियोग ककया जाता है और
उसको मत, पंथ, मजहब आहद के रूप में ग्रहण ककया जाता है | ररलीजन (
Religion ) की अवधारणा अलौककक प्रवश्वासों तथा अतत िाकृततक शप्ततयों से
सम्बद्ध है , जबकक धमम भावना में ककसी िकार के अलौककक के ितत प्रवश्वास के
मलए कोई स्थान नहीं है हमको यह जानकर आश्चयम नहीं करना चाहहए कक धमम
ग्रन्त्थों एवं आचार संहहताओं में जहााँ धमम के लक्षण बताए गए हैं | वहााँ आत्मा ,
परमात्मा अथवा ककसी अतत िाकृत एवं अधध - िाकृत की चचाम नहीं की गई है |

6
यथा- धारण करने के कारण ही धमम कहलाता है , धमम िजा को धारण करता है -
(महाभारत )

धैयम , क्षमा , दम , अस्तेय , शौच , इप्न्त्िय - तनग्रह , तत्वज्ञान ,


आत्मज्ञान , सत्य और आक्रोध ये दस धमम के लक्षण हैं | ( मनस्
ु मतृ त )

डॉ . राधाकृष्ट्णन ने धमम की भारतीय अवधारा को स्पष्ट्ट करते हुए मलखा है कक


"प्जन मसद्धान्त्तों के अनस
ु ार हम अपना दै तनक जीवन व्यतीत करते हैं तथा
प्जनके द्वारा हमारे सामाप्जक सम्बन्त्धों की स्थापना होती है , वे सब धमम है धमम
जीवन का सत्य है और हमारी िकृतत को तनधामररत करने वाली शप्तत है " इस
दृप्ष्ट्ट से धमम कर्त्मव्य भावना का वाचक ठहरता है ।

महाभारतकार ने सामाप्जक स्वास्थ्य को दृप्ष्ट्टगत करके नागररकों को आदे श हदया


है । कक "सावधान होकर धमम का वास्तप्रवक अथम सन
ु ो और उसी के अनस
ु ार
आचरण करो जो कुछ तम
ु अपने मलए हातनिद और दःु खदायी समझते हो , वह
दस
ू रे के साथ मत करो” |

पाश्चात्य धचन्त्तन में भी हमको कर्त्मव्यपरक धमम की अवधारणा ममल जाती है |


जममनी के दाशमतनक कप्रव गेटे का कथन है कक

"सच्चा धमम हमें आधितों का सम्मान करना मसखाता है और मानवता, तनधमनता,


मस
ु ीबत , पीडा एवं मत्ृ यु को ईश्वरीय दे न मानता है !

प्रवश्ववन्त्य पज्
ू य महात्मा गांधी िायः यह कहा करते थे " मेरा प्रवश्वास है कक बबना
धमम का जीवन बबना मसद्धान्त्त का जीवन होता है और बबना मसद्धान्त्त का जीवन
वैसा ही है जैसा कक बबना पतवार का जहाज | प्जस तरह बबना पतवार का जहाज

7
मारा - मारा किरे गा , उसी तरह धममहीन मनष्ट्ु य भी संसार - सागर में इधर -
उधर मारा - मारा किरे गा और अपने अभीष्ट्ट स्थान तक नहीं पहुाँचग
े ा !

चाँ कू क राजनीतत हमारे जीवन का अमभन्त्न अंग है | अतः उसका भी धमम होना
चाहहए अथामत ् वह भी कततपय मान्त्यताओं पर आधाररत होनी चाहहए | धममप्रवहीन
राजनीतत असामाप्जक होगी और वह हमारे मलए हहतकर नहीं है |

धमम और राजनीतत का सम्बन्त्ध


भारत में धमम को राजनीतत का मागमदशमक माना गया है और इसी दृप्ष्ट्ट से राजा
के धमम का राजा के कर्त्मव्य का स्वरूप - तनधामरण ककया गया है - " राजा यहद
आलस्य छोडकर दण्ड दे ने लायक अपराधी को दण्ड न दे तो बलवान दब
ु ल
म ों को
लोहे के कॉटें में पकडी हुई मछमलयों की तरह खा डालें " तथा " राजा शास्र के
अनस
ु ार मंबरयों द्वारा िजा से वाप्रिमक कर वसल
ू करे और अपनी िजा के साथ
प्रपता के समान व्यवहार करे | " ( मनस्
ु मतृ त )

इस आदशम का पालन करने वाले राजा के ितत ककसी को प्रवरोध नहीं होता है
आधतु नक संदभम में यहद कोई राजनेता उतत आदशम का अनस
ु रण करता तो – “न
राजनेता से प्रवरोध हो सकता है और न ही राजनेताओं का तनमामण करने वाली
राजनीतत से |” तो ककसी को ककसी से भी मशकायत नहीं होगी |

कालान्त्तर में धमम के मनमाने अथम लगाकर शासक धमम के नाम पर िजा पर
अत्याचार करने लगे अथवा जनता का शोिण करने लगे | तब से राजनीतत के क्षेर
में 'ररलीजन' को अछूत समझा जाने लगा | लोग धमम के मल
ू अथम को भल
ू गए
और ररलीजन के समकक्ष धमम को मानकर धमम से परहे ज करने लगे | राजनीतत के
संदभम में धमम और ररलीजन का एक ही अथम में ियोग ककया जाने लगा है |

8
राजनीतत का धमम हो
धमम के नाम पर राजनीतत के अमभशतत बन जाने का मख्
ु य कारण यह है कक
स्वाथमपरता के कारण हम लोगों ने धमम के वास्तप्रवक अथम को भल
ु ा हदया है तथा
गांधीवादी जीवनदशमन को अस्वीकार कर हदया है |

धमम वस्तुतः मानवता एवं नैततकता का पयायम है | इस दृप्ष्ट्ट से मानवमार का धमम


केवल एक धमम , मानव धमम ठहरता है | संप्रवधान में यहद भारत का धमम मानव
धमम मान मलया गया होता , अथवा मान मलया जाए , तो धमम के नाम पर उत्पन्त्न
उन्त्माद एवं आतंक को सहज ही तनयंबरत कर मलया जाए , तयोंकक तब हम
मजहवी कट्टरता को बरु ा - भला कहें गे , न कक धमम से उत्पन्त्न काल्पतनक
संकीणमता पर आाँसू बहाना चाहें गे |

महात्मा गांधी धमम और ररलीजन के भेद को समझते थे | उन्त्होंने राजनीतत में धमम
भावना अथवा नैततकता का समावेश करके प्रवश्व को सत्य एवं अहहंसा का संदेश
हदया था | सत्य का व्यावहाररक रूप अहहंसा है और धमम नैततकता का पयामय है |
राजनीतत में नैततकता का समावेश करके गांधीजी ने राजनीतत का शद्
ु धधकरण
ककया और धमम क पर राजनीतत करने वालों को अलग - थलग करने का ियास
ककया | उनका मत सवमथा स्पष्ट्ट था कक "जो चीज प्रवकार को ममटा सके , राग -
द्वेि को कम कर सके, प्जस चीज के उपयोग में मन सल
ू ी पर चढ़ते समय भी
सत्य पर डटा रहे , वही धमम की मशक्षा है , मैं इस बात से सहमत नहीं हूाँ कक धमम
का राजनीतत से कोई सम्बन्त्ध नहीं है , धमम से प्रवलय राजनीतत मत
ृ शरीर के तुल्य
है , जो केवल जला दे ने योग्य है "

दे श की जो राजनीततक मान्त्यताएं हैं , उनका अनस


ु रण करना और दे श के
संप्रवधान के अनस
ु ार दे श के जो राजनीततक उद्दे श्य हैं | उनकी पतू तम करना , यही

9
राजनीतत का धमम होना चाहहए भारत जैसे प्रवशाल दे श में अपने संप्रवधान की
सीमाओं में कायम करना राजनीतत का धमम होना चाहहए | इसके बाहर जाने का अथम
होगा राजनीतत के धमम का उल्लंघन, इस दृप्ष्ट्ट से संप्रवधान में संशोधन करने के
पव
ू म खूब सोच - समझ लेना चाहहए | जहााँ तक सम्भव हो यथाप्स्थतत वाली नीतत
अपनाई जानी चाहहए , तयोंकक एक बार छूट हो जाने पर छूट का अन्त्त नहीं होता
है | भारत इसका ज्वलन्त्त उदाहरण है | िततविम औसतन दो संशोधन करके
संप्रवधान को अपना अनग
ु ामी बनाकर तया हम राजनीतत में धमम को अलग नहीं
बता रहे हैं |

दग
ु ाम माहे श्वरी

10
मख
ु ौटे के पीछे
कौन ?

11
मैं
ही तो हूँ, वो ! जो कभी ककस रं ग में तो कभी ककस रं ग में ! वो
कौनसा रं ग है जो मेरा है, इन सब में से ! कोई नहीं !

इंसान ककतनी बखबी छछपा लेता है असललयत को, ऐसी कमाल की


प्रछतभा केवल हम मनष्ु यों में ही तो होती है !

शेर, शेर ही दिखता है , वो कभी दहरन जैसा दिखने या होने का प्रयास नहीं करता !

सांप, सांप ही दिखता है, हम उससे संभल कर चल सकते हैँ ! अगर सांप में खुि
पर चींटी का मख
ु ौटा लगाने की क्षमता आ जाती तो सोचचये ककतने डंक जीवन में
हमें लग जाते! लेककन सांप ककतना भी जहरीला क्यों न हो वो अपने जहर को ढक
कर याछन छछपा कर नहीं रखता! इसललये उसकी यह सबसे बड़ी ख़बसरती है कक
वो सांप है पर सच्चा है, बबना मख
ु ौटे के है ! बबल्ली शेर बनकर डराती नहीं ! औऱ
शेर बबल्ली का रूप बनाकर हमारे आस पास रह सकता नहीं !

ककतना सच्चा है सब जानवरों के जंगलों में , हम इंसानों के जंगलों में ककस चेहरे
के पीछे कौनसा चेहरा छछपा है – ये सच कभी कोई नहीं जान सकता !

सबको पता होता है शेर दहंसक जानवर है , इससे बच कर रहना है, नहीं तो खा
जायेगा !

मगर ये इंसान ? जजसको कोई नहीं जानता कक कब यह ककस रूप में होगा?

जो दहंसक भी हो तो हम बेखबर होते हैँ औऱ वो कब हमें खा जाता है, पता ही नहीं


चलता ! औऱ कोई दहंसक ना हो, बहुत स्नेदहल भी हो तो हम उससे डरने लगते हैँ,
उस पर शक करने लगते हैँ ! सोचते हैँ कक बनता तो अच्छा है ऊपर से, असली में
ऐसा नहीं होगा !

12
“सच्चे पर शक औऱ झठे पर ववश्वास ! तभी तो यहाूँ
इंसानों के जंगलों में कोई ककसी का नहीं, ककतनी भी
सावधानी बरतो, हम लशकार हो ही जाते हैँ – धोखे लमल ही
जाते हैँ औऱ जानवरों के जंगलो में सावधानी बरत कर
खुले शेर से भी बच कर हम सही सलामत आ जाते हैँ !”

क्यों ? क्योंकक शेर ने मख


ु ौटे तो नहीं लगाए औऱ हम बड़े कुशल हैँ –‘तरह -

तरह के मख
ु ौटे लगा लेते हैँ !

इसललये लसनेमा जगत में भी एक गाना बहुत प्रचललत हुआ –

“एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैँ लोग !”


इस कायय में इतने पारं गत होते हैँ हम कक एक ही समय में कई भलमकाओं को
छनभा लेते हैँ !

इंसानी बजु दि का बड़ा गैर काननी प्रयोग है ये ! जजसकी कोई सजा नहीं ! सजा तो
क्योंकक तब हो सकती है ज़ब अपराध साबबत हो !

मख
ु ौटे लगाकर जीने को कोई अपराध ही नहीं मानता ! इंसान ने डडचियों से बद्
ु चध
को इतना ववकलसत कर ललया है कक ककतने भी खबसरत ढं ग से अपनी बिसरती
को छछपाने में सफल हो जाता है !

काश कक बहुरुवपया इंसान, जानवरों की तरह उसी रं ग का होता, जो उसका अपना


व्यजक्तत्व होता, चाहे अच्छा होता या बरु ा ! चाहे काला होता या सफ़ेि ! चाहे वो

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आजस्तक होता या नाजस्तक ! जैसा होता बस वैसा होता ! सबसे सन्
ु िर उसका
असली रूप होता ! तब वो कुरूप होकर भी आकर्यक लगता !

वो परु ाने जमाने जैसा होता कक सीधा, सच्चा ! चाहे उसकी अलमाररयों में जीत के
प्रमाण कई मैडल ना होते लेककन कई अबोले, अव्यक्त, पण्
ु य कमों से उसके खाते
भरे होते !

अपने चेहरे पर से िसरे चेहरे को उतार फेंके तो हम वो पाक – पववत्र – साफ चेहरा
पा लेंगें, जो ईश्वर की भें ट है – हम स्वयं !

हम स्वयं, स्वयं के पास औऱ सबके साथ एक जैस,े सच्चे रूप में !

डॉ. शिवा धमेजा


लेखक

14
नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,
हररवंश राय बच्चन

नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,

नेह का आह्वान फिर-फिर!

वह उठी आँधी फक नभ र्ें

छा गया सहसा अँधरे ा,

धलू ि धस
ू र बादिों ने

भलू र् को इस भाँनि घेरा,

राि-सा ददन हो गया, फिर

राि आई और कािी,

िग रहा था अब न होगा

इस ननशा का फिर सवेरा,

राि के उत्पाि-भय से

भीि जन-जन, भीि कण-कण

फकंिु प्राची से उषा की

र्ोदहनी र्स्
ु कान फिर-फिर!

15
नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,

नेह का आह्वान फिर-फिर!

वह चिे झोंके फक काँपे

भीर् कायावान भध
ू र,

जड़ सर्ेि उखड़-पख


ु ड़कर

गगर पड़े, टूटे ववटप वर,

हाय, निनकों से ववननलर्ाि

घोंसिो पर क्या न बीिी,

डगर्गाए जबफक कंकड़,

ईंट, पत्थर के र्हि-घर;

बोि आशा के ववहं गर्,

फकस जगह पर िू नछपा था,

जो गगन पर चढ़ उठािा

गवा से ननज िान फिर-फिर!

16
नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,

नेह का आह्वान फिर-फिर!

क्रुद्ध नभ के वज्र दं िों

र्ें उषा है र्स


ु करािी,

घोर गजानर्य गगन के

कंठ र्ें खग पंक्क्ि गािी;

एक गचडड़या चोंच र्ें निनका

लिए जो जा रही है ,

वह सहज र्ें ही पवन

उं चास को नीचा ददखािी!

नाश के दख
ु से कभी

दबिा नहीं ननर्ााण का सख


प्रिय की ननस्िब्धिा से

सक्ृ टट का नव गान फिर-फिर!

नीड़ का ननर्ााण फिर-फिर,

नेह का आह्वान फिर-फिर!

17
वर्तमान व्यवस्था की सच्चाई
आज करें हम बार् दे श की

दे श हमारा बबगडा है ।

नेर्ाओं ने मंत्री बंन कर

दे श हमारा ररगडा है ॥

पलु िस हमारी अत्याचारी

चारधाम हैं थाने जी ।

बबन पैसे के काम करे ना

थानेदार ना माने जी ॥

स्कूिों की हािर् दे खो

टीचर मस्र्ी मार रहे

बच्चे गुटखा -जदात खावे

बच्चों को ना डांट रहे ,

18
कहा बर्ाऊ बार् दे श की

गंदगी हम फैिार्े हैं।

कुत्ता -बबल्िी मरे सडक पर

उनको ना दफनार्े हैं ॥

कहे मानवी सुन मेरे भाई

बार् समझ में ना आई

बेटा हमने 4 करें हैं ।

बेटी हमने मरवाई

बेटी बचाओ , बेटी पढाओ

यही हमारा नारा है ॥

दे श के सैननक वीर बहादरु

दश्ु मन को ििकारा है ।

19
भगर् लसंह की र्रह दे श में

र्ुम भी ऐसा काम करो

गांधीजी के सपनों की खानर्र

भारर् मां से प्यार करो

वर्तमान की बार् करें हम

हम र्ो वह सल्
ु र्ान हैं ॥

भारर् मां को अमरीका में

लमिर्ा अब सम्मान हैं ।

िेककन बच्चों सुनो कहानी

भक्र् दे श का बनना है ॥

अब्दि
ु ( किाम ) के सपनों को

साकार र्ुम्ही को करना है ।

20
अमेररका -जापान ,चीन हो

अब ना र्ुम को डरना है ॥

िाि ककिे की प्राचीर से

भारर् मां की गररमा है ।

वंदे मार्रम ् -वंदे मार्रम ् ,जय हहंद!

ववनोद मानवी

21
कृष्ण-अर्न
जु यद्
ज ध संवाद

कर्ुण्येवाधधकारस्ते र्ा फलेषज कदाचन ।

र्ा कर्ुफलहे तजर्जर्


ु ाु ते संगोऽस््वकर्ुणण ॥

22
र्ब श्री कृष्ण ने शांतत प्रस्ताव र्ें पांडवों के ललए पांच गााँव दे ने की बात कही, तब दय
ज ोधन ने एक
इंच र्र्ीन दे ने से र्ना कर ददया! तब र्हार्ारत के यजद्ध का द्वार खजल गया और कजरु सेना ,
पांडवों की सेना कजरुक्षेत्र र्ें आ गई । यजद्ध की दोनों ओर से शंख तथा दं द
ज र्ी बर्ने लगी ! तब
अर्जन
ु अपना गाण्डीव हाथ से धगरा दे ता है । तब श्री कृष्ण पाथु को र्ो कहते हैं , उससे आगे
कववता शजरू होती है -

हे पाथु उठो! अब यद्


ज ध करो ,

कायरता नपजंसक का गहना है ,

गाण्डीव उठा गर्ुन कर डालो ,

सर्र र्ूलर् र्ें हलचल कर डालो ,

पााँचर्न्य को फंू का रण र्ें ,

इसकी अब तर्
ज लार् बचा लो ।

शोक तजम्हें न शोर्ा दे ता ,

रण र्ें केवल योद्धा होता ,

ररश्ते - नाते ना होते रण र्ें ,

वीरों को ना रोते दे खा ,

केवल रक्त पात होता है ,

ववर्यश्री का लक्ष्य होता है ।

23
जर्नको तजर् अब दे ख रहे हो ,

केवल यह अधर्ी योद्धा हैं ,

र्ो चप
ज बैठे थे रार्सर्ा र्ें ,

चौसर होते दे ख रहे थे ,

आयों की र्याुदाओं को खंड-खंड करके ,

सब पर पानी फेर रहे थे !

लसंह नाद की र्गह ,

श्रगाली आवाज़ सजनाई दे ती है ,

पत्र
ज र्ोह के आगे रार्न

र्र्बूर ददखाई दे ते हैं ,

नारी का चीर हरण होने पर ,

शस्त्र ना जर्नके उठते हैं ,

र्ानो अब खून नहीं वीरों का ,

बजर्ददल बनकर बैठे हैं !

ऐसे इन अधर्ी लोगों का ,

लर्ट र्ाना ही अच्छा है ,

24
हे पाथु सजनो , इस धर्ु यजद्ध र्ें ,

शस्त्र उठाना अच्छा है ,

जर्ससे वीरों की शोर्ा हो ,

धर्ु ध्वर्ा आगे को बढे ।

इतना सन
ज कर पाथु बोला ,

हे केशव! कैसे बाण चला दाँ ू र्ैं ,

ववर्यश्री के ललए

अपनों को र्ार धगरा दाँ ू र्ैं ,

इन्हीं हाथों ने बचपन र्ें ,

सबके ही पैर दबाये हैं ,

र्ीष्र् वपतार्ह ने लसर को ,

चूर् चूर् कर

हर्को र्ी लाड लडाए हैं ,

अगर बाण की नॉक करूाँ र्ैं ,

25
लज्र्ा र्झ
ज को आती है ,

है केशव! अब र््ृ यज दे दो ,

यही सीख सह
ज ाती है ।

यह सन
ज कर केशव र्स्
ज काये ,

र्गत गरु
ज ने उपदे श सन
ज ाये ,

र्न्र् र््ृ यज के बंधन का ,

गीता ज्ञान सन
ज ाते हैं ,

सजख- दुःज ख से आगे बढने का ,

स्य र्ागु बतलाते हैं ,

इतना सन
ज कर पाथु ने

गाण्डीव हाथ र्ें उठा ललया ,

कौरव सेना पर टूट पडे ,

हाहाकार र्चा ददया ।

- बर्
ृ ेश कजर्ार

26
मेरी प्यारी मााँ
मााँ हमको लगती प्यारी है ,

मााँ की ममता ही न्यारी है !

पहले तो मााँ दल
ु ारती है ,

दल
ु ार कर हमें जगाती है !

विद्यालय के ललए फिर मााँ ही,

करती सारी तैयारी है !

विद्यालय से िापस आते,

मााँ को मस्
ु कुराते ही पाते!

हमको मस्
ु कुराते दे खती तो,

मााँ जाती बारी-बारी है!

मााँ ही गंगा की धारा है ,

मााँ ही मेरी िुलिारी है !

मेरी मााँ सबसे प्यारी है !!

अंजली साहू
कक्षा-7th
बाल भारती विद्यालय (अलिर)
अलवर

27
सनु वाई

कनिका िे घड़ी देखी रात के ग्यारह बज गये थे पर निनति अभी तक िही आया था ,कनिका को निन्ता होिे लगी
।निनति उसकी आँखों का तारा था क्षण भर भी उसे उदास देखिा उन्हे गवारा ि था।तभी द्वार की घंटी बजी ,कनिका
दौड़ कर दरवाजा खेालिे गई ।उसिे सोि नलया था नक आज निनति से कह देगी नक कल से वह उसके नलये दरवाजा
खोलिे के नलये इतिी रात तक िही जागेगी। अगर दस बजे के बाद घर में पांव रखा तो ि तो खािा नमलेगा ि मैं बात
करंगी ।

द्वार खोलते ही सामिे खाकी वदी वाले को देख कर कनिका का हदय काँप उटा। कहीं निनति के साथ तो कुछ िही हुआ
इस आशंका िे उसकी सध ु नबसरा दी। इसके पूवव नक वह कुछ पूछती पुनलस वाले िे कहा ‘‘ यह निनति का घर है
ु बध
’’?

“जी हां बताइये मैं उसकी माँ हँ वह ठीक तो है ि ’’?

“पहले आप उसे बुलाइये तब में बताऊँगा नक वह ठीक है नक िहीं ’’।

“मतलब ?’’

“आपके बेटे के नवरुद्ध अरेस्ट वारेंट है ’’।

कनिका मािो आसमाि से नगरी हो उसिे कहा ‘‘ देनखये आपको कोई गलतफहमी हुई है यह निनति गुलाटी का
घर है निनति मेरा बेटा यूनिवसवटी में बी एस सी का छात्र है, कोई िोर उिक्का िहीं है ’’।

“जी हाँ मैं उसी निनति गुलाटी की बात कर रहा हँ जो यूनिवसवल कालेज में बी एस सी कर रहा है और इसी घर में रहता
है ’’।

“ क्यों क्या नकया है मेरे बेटे िे ?’’कनिका को अभी भी नवश्वास था नक पनु लस वाले को धोखा हुआ है ,वह नकसी
और निनति के भ्रम में उसे बेटे को पूछ रहा है।

उस पुनलस वाले िे कहा ‘‘ आपके बेटे पर बलात्कार का आरोप है” ।

कनिका के पाँव तले जमीि नखसक गई। ‘‘ िहीं िहीं मेरा बेटा ऐसा िहीं कर सकता वह शरीफ घर का बेटा है ।”

“देनखये वो कै से घर का बेटा है मुझे उससे कुछ लेिा देिा िहीं है पर नजस लड़की के साथ उसिे नखलवाड़ नकया है
उसिे उसी का िाम नलया है ’’ दरोगा िे घर का िप्पा िप्पा छाि डाला नफर निनति को ि पा कर नफर आिे की धमकी दे

28
कर िला गया । वो तो घर में सब कुछ उलट पलट कर िला गया पर कनिका के मि में जो झंझावत उत्पन्ि कर गया
उसके समक्ष उलट पलट कुछ ि थी।

कनिका को नवश्वास था नक नकसी दुश्मिी में उस लड़की िे ऐसा कहा होगा ।उसिे उस लड़की से नमलिा तय नकया। रात
नकसी तरह कटी पर सबु ह ही वह थािे पहुँि गई । वहाँ वह लड़की और उसके घर के लोग ,नमत्र और कुछ तमाशा देखिे
वाली भीड़ उपनस्थत थी। कनिका को देखते ही नकसी िे कहा ‘‘ अरे यह ही तो है उस बलात्कारी की माँ ’’ सब उसे घूर
घूर कर देखिे लगे , ।

लोगों िे उसे घेर नलया कोई बोला‘‘ इसी को अगवा कर लो तब तो बच्िू हाथ आएगं े।’’कुछ लोग तो उसे
अपशब्द भी कहिे से बाज ि आये, नजन्हें सिु कर कनिका लज्जा से गड़ गई ,अपमाि से उसका िेहरा लाल हो गया। वो
तो पनु लस के नसपाही िे उसके अन्दर जािे का रास्ता बिाया अन्यथा पता िही कनिका उसके साथ भीड़ क्या करती।
अन्दर वह लड़की बैठी थी उसकी सज ू ी आँखें ,िेहरे का आक्रोश और अस्त व्यस्त नस्थनत उसकी सच्िाई के साक्षी थे
ं वतः पूरी रात वह और उसका पररवार कोतवाली में ही रहे थे, नफर भी कनिका का मि ि मािा ,उसिे उस लड़की
।सभ
से पूछा ‘‘ क्या जो बयाि तुमिे नदया है वह सि है ’’?

मािवी नबफर पड़ी ‘‘ आप क्या समझती हैं मुझे अपिा तमाशा बिािे का शौक है जो मैं यह कोतवाली ,लोगों के उल्टे
सीधे प्रश्नों और मेडकल िेकअप की यातिा सह रही हँ”!

कनिका सकपका गई, अपिे को सयं त करते हुए शान्त स्वर में उसिे पूछा ‘‘ िहीं मेरा मतलब है नक क्या तुम श्योर हो नक
तुम्हारे साथ अिािार करिे वाला निनति गुलाटी ही था ’’?

“जी हाँ वि हन्रेड वि परसेंट श्योर हँ ’’ उसिे कनिका को घूरते हुए कहा।

तभी मािवी की माँ ि उसे उपेक्षा से देखते हुए कहा ‘‘ आपको क्या पता एक बेटी की इज्जत क्या होती है ,आपके बेटा
है ि ,तो दे दी उसे खुली छूट नक जाओ बेटा जो मि में आये करो आनखर मदव हो। ’’

पीछे से मािवी के नपता श्री रंजि बोले ‘‘ आप अपिे बेटे को िाहे लाख नछपा लें, नजतिे िाहें जोर लगा लें पर वह
बिेगा िही काििू के हाथ बहुत लम्बे हैं”!

कनिका पर व्यंग्य के वार पे वार हो रहे थे कोई माििे को तैयार िहीं था नक उसे िहीं पता नक निनति कहाँ है। उसे
िेताविी दे दी गई थी नक वह कहीं बाहर िही जाएगी।

नकसी प्रकार आघातों से क्षत नवक्षत वह घर आकर कटे पेड़ के समाि ढह गई । कालेज में नशनक्षका कनिका का
इतिा अपमाि तो जीवि में कभी ि हुआ था। कनिका मनहला कालेज में पढ़ाती है और स्त्री वादी बातों में बढ़ िढ़ कर
नहस्सा लेती रही है, पर आज उसकी बड़ी-बड़ी बातों की धनज्जयाँ उड़ गई थीं, वह भी उसके अपिे बेटे के कारण और

29
वह प्रश्नों के कटघरे में खड़ी थी। अिािक उसे ध्याि आया नक निनति होगा कहाँ ,हो सकता है बेटा अपराधी ही हो पर है
तो उसके हदय का टुकड़ा।उसके बारे में सोिते ही वह काँप उठी ‘ हे भगवाि मेरे बेटे को बिा लो’

तभी उसके अन्तमवि िे उसे टकोहा मारा ‘‘ अच्छा अगर मािवी तेरी बेटी होती तो भी क्या तू यही कहती?’’

उसिे स्वयं से तकव नकया ‘‘ क्या पता मािवी झठू बोल रही हो ’’ उसकी हालत देखिे के बाद ऐसा माििे को मि िहीं
कर रहा था।पर अपिे बेटे पर ऐसे आरोप पर भी उसे नवश्वास िहीं हो रहा था। उसे याद है नक उसिे निनति के पापा िवीि
के जािे के बाद अके ले ही नकतिे लाड़ प्यार से उसे पाला है। जीवि में आये सघं र्षों की तनिक भी आँि उसिे निनति पर
िहीं पड़िे दी। स्वयं सारे दुख झेल कर उसे अपिे आि ं ल की ओट में सख ु के साये में नछपाए रखा।
निनति लगभग दस वर्षव का रहा होगा जब उसिे हठ ठाि नलया था नक उसके सारे दोस्त कार से स्कूल आते हैं वह बस से
िहीं जाएगा, तब कनिका िे अपिे आनफस से अनिम धि ले कर एक सेकेंड हैंड कार खरीद ली थी। जब कार घर पर
आई तो निनति मारे खुशी के उसके गले लग गया था और उसको ढेर सारी नकस्सी दे डाली थी। निनति की प्रसन्िता देख
कर कनिका भूल गई थी नक इस अनिम की कटौती के नलये उसे कहाँ-कहाँ अपिी आवश्यकताओ ं में कटौती करिी
पड़ेगी। एक निनति ही तो उसके जीिे का सहारा था, उसकी हर इच्छा परू ी करके मािो वह अपिी इच्छाएं परू ी करती थी।
निनति बड़ा होता गया साथ ही उसकी फरमाइशें भी । कभी कभी कनिका उसकी इच्छाएं परू ी करते-करते हाँफ जाती थी
पर निनति उसकी कमजोरी था उसके मुख पर उदासी वह देख ि पाती।

पर आज जो हुआ उसकी तो उसिे कल्पिा भी िहीं की थी। उसके मि अभी भी िहीं माि रहा था नक उसका बेटा,
अपिा खूि ऐसा कर सकता है।क्या उससे कहीं सस्ं कार देिे में िूक हुई है ,पर वह तो सदा उसे बिपि में अच्छी बातें ही
बताती थी । उसके मि िे उसे आश्वासि देिा िाहा , क्या पता नकसी के दबाव में या निनति से शत्रतु ा में नकसी और का
दोर्ष निनति पर मढ़ रही हो? उसका बेटा ऐसा िहीं कर सकता ।इस तकव में उसे एक आस की नकरण नदखाई दी, वह व्यि
हो गई निनति से नमलिे को। निनति का फोि नमल िहीं रहा था उसके सभी दोस्तों को वह काल कर िक ु ी थी। उसे समझ
िहीं आ रहा था नक उसे कै से ढूँढे।वह तो पुनलस का सहारा भी िही ले सकती थी पुनलस तो उसे स्वयं ही ढूँढ रही है और
भगवाि करे वह पनु लस को ि नमले ,िहीं तो भले वह अपराधी हो या ि हो पनु लस उसका पता िहीं क्या हाल करेगी।

उसिे टीवी खोला उस पर भी यही समािार आ रहा था। वह नकससे कहे क्या कहे। उसिे एक दो अपिे पररनितों को
सहायता के नलये कॉल नकया, पर सबिे उसकी सहायता तो दूर सहािुभूनत नदखािा भी उनित िहीं समझा। अगले नदि
समािारों में भी इसी काले समािार से पन्िे रंगे थे। उसमें अपिे कालेज जािे का साहस ि था। उसिे फोि पर अपिी
अस्वस्थता को बहािा करिे हेतु फोि नकया पर उधर से सिु िे को नमला उसिे उसके पैरों तले जमीि नहला दी। उसकी
प्रधािािायाव िे कहा ‘‘ देनखये नमसेज कनिका गुलाटी आपके बेटे की इस हरकत के बाद हम आपको अपिे गल्सव
कालेज में रख कर अपिी बदिामी िहीं करवा सकते ।”

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‘‘ पर इसमें मेरा क्या दोर्ष?’’ कनिका िे कहा तो उधर से आवाज आई ‘‘ सतं ाि को सस्ं कार मां बाप ही देते
हैं।’’

मािवी िे बताया था नक काफी नदिों से निनति उसके पीछे पड़ा था पर मािवी टालती रही । उस नदि वह पीछे पड़ गया
उसके साथ काफी पीिे िलिे के नलये । निनति के अनधक हठ करिे पर मािवी िे उसे नझड़क नदया निनति को यह रास ि
आया । मािवी प्रायः कक्षा के बाद लायब्रेरी में बैठ कर पढ़ती थी।दूसरे नदि जब मािवी की सहेनलयाँ िली गई ं और वह
लायब्रेरी में पढ़ रही थी ,तो निनति िे उसे नकसी से झूठा सदं ेश नभजवाया नक मािवी को के नमस्री की रंजिा मैडम लैब में
बुला रही हैं। यद्यनप कालेज समाप्त हो िुका था पर मािवी िे सोिा, होगा कोई काम अतः वह िली गई।लैब में जब
मािवी पहुँिी तो वहाँ कोई ि था ,वह इसे नकसी का मजाक समझ कर लौटिे को हुई नक वहाँ नछपे निनति िे दरवाजा
बन्द कर नलया और उसके साथ व्यनभिार नकया। लैब थोड़ा दूर था और कालेज का समय समाप्त हो िुका था अतः
मािवी की िीख कोई सिु िहीं पाया। कनिका मि ही मि नवश्ले र्षण कर रही थी नक ऐसा क्यों हुआ । भले उसिे बेटे को
गलत बातें िहीं नसखायीं पर शायद उसकी हर इच्छा को परू ी करके उसे निरंकुश बिा नदया। उसिे जो िाहा वो पाया इसी
नलये तो वह मािवी की ‘ि’ को सह िहीं पाया।मािवी का अभी तक घर ि आिा उसे दोर्षी नसद्ध कर रहा था।

काश! वह बेटे के प्यार में अंधी ि होती ,उसके नक्रया कलापों ,उसकी हठी प्रकृनत को देख पाती ,काश! वह थोड़ी सी
कठोर बि करे निनति को सयं म का पाठ भी पढ़ा पाती।अब बहुत देर हो िक ु ी थी कनिका फफक-फफक कर रो पड़ी
।उसे मािवी के बारे में सोि कर ही स्वयं से घृणा होिे लगी। भले ही मािवी तथा अन्य लोग उसे िफरत से देख रहे थे पर
वह भी एक स्त्री होिे के िाते मािवी की पीड़ा को अिुभव कर पा रही थी और कोई समय होता तो वह अब तक िारी
वाद का झडं ा उठा कर निकल िक ु ी होती पर यहाँ तो दुश्मि उसका अपिा बेटा था ।
तभी बाहर घंटी बजी वह बाहर गई तो पुनलस के नसपाही िे बताया नक निनति पकड़ा गया और उसे थािे बुलाया गया है
कनिका उसी हालत में थािे की ओर िल दी।

पुिः भीड़ के आक्रोश और व्यंग्य का तीर सहते कोतवाली पहुँिी। निनति िे उसे देख कर िैि की साँस ली बोला ‘‘
मम्मा मैं आपका ही इन्तजार कर रहा था। देखो मुझे बिाओ कोई बड़ा वकील करके मेरी जमाित कराओ”!

“बेटा जो आरोप तुझ पर लगा है क्या वह सि है ?’’ कनिका िे पछ


ू ा।

‘‘मम्मी अब कम से कम आप मेरी इन्क्वायरी ि करो, नकसी तरह मुझे बाहर निकालो।’’

निनति के इस उत्तर िे उसकी रही सही आशा भी समाप्त कर दी। कनिका के ति बदि में आग लग गई वह भूल गई नक
निनति उसका बेटा है उसिे निनति को कई झापड़ जड़ नदये और कहा ‘‘तूिे ऐसा िीि काम क्यों नकया?’’

निनति िे निढ़ कर कहा ‘‘ मम्मी आप मेरी मम्मी हैं नक उस लड़की की?’’

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कनिका िे कहा ‘‘यही तो दुख है नक मैं तेरी माँ हँ, तूिे दुष्कमव भले मािवी के साथ नकया है पर इज्जत मेरी लुट गई है
कोई अन्तर िहीं है मेरी और उसकी पीड़ा में । उसकी कम से कम सिु वाई तो है पर मेरी तो कोई सिु वाई भी िहीं है”!यह
कह कर कनिका वहीं धरती पर नगरकर मुँह ढाप कर नबलख पड़ी।

अलका प्रमोद

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सौ बरस िे मलए ईश्वर

डॉ. मशवा िमेिा


कितने मंदिर, मस्जिि, गरू
ु द्वारे , कितनी पि
ू ाएँ, ववधि-वविान, सबिा एि लक्ष्य, ईश्वर
ममल िाये तो िीवन िन्य हो !

िीवन तो िन्य ही है, हम ही आँखों पर पट्टी लगाये हुए हैं ! िभी- िभी हम उस
चीि िी तलाश िर रहें होते हैं, िो हमारे ही पास होती है ! ईश्वर िी तलाश भी
िुछ ऐसी ही है ! वो शक्ल सरू त िारण िरिे हमारे साथ उठते बैठते हैं, बात िरते
हैं, यहाँ ति कि हमारे मलए बहुत प्यार से खाना बनाते हैं, किर प्यार से अपने हाथों
से हमें खखला ते भी हैं !

33
ईश्वर सब बच्चों िे पास होते हैं 100 बरस िे मलए औऱ उतने ही बरस हम उनसे
भागने, उनसे िरू िाने में लगा िे ते हैं ! िो ईश्वर 100 बरस साथ रहते हैं! वो घर
में अिेले होते हैं, औऱ हम उन्हीं िो ढूंढ़ने मंदिर िी लाइनों में िािर लग िाते हैं !

कितनी ववधचत्र है प्रभु िी माया !

िरअसल िीवन िा सबसे बड़ा सत्य है कि िो वजतु स्ितनी सहि आपिो ममल
िाती है, उतनी ही उसिी िीमत धगर िाती है ! माता- वपता भी ऐसे ही हैँ, उनिे
प्रेम पर इतना अटूट भरोसा होता है हमें कि हम सौ प्रततशत िानते हैं कि अपमान
िी िोई भी सीमा, उनिे मन से हमारे मलए बरु े भावों िो िन्म ति िे ने में सिल
नहीं हो पायेगी ! वो किर भी हज़ारों हज़ार आशीवााि ही िें गे !”

मैं बस यँू ही मन में भावों िो आिार िे ती हूँ, हाथों में िभी सिाई िे मलए झाड़ू,
िभी बतानों में गीले हाथ, िलम हाथ में लें सिँू ऐसा वक़्त ममलता नहीं! इन सब
दिनचयाा िे िामों में लेकिंन मन िे अंिर जयाही से शब्ि बनते – बबखरते ही रहते
हैं !

अभी अभी आँख खल


ु ी औऱ मैं रोज़ िी तरह सबसे पहले किचन िी तरि गई, िहीं मम्मी
मझ
ु से पहले िग िर िाम में तो नहीं लग गई !

अपने सपनों िो िबािर, छुपािर मज


ु िुराते हुए, मैं िाम में लग गई बबल्िुल यँत्रवत !

किचन िी जलैप साि िी, झठ


ू े बतान इिठ्ठा किये ! िचरे िी थैली बनाई ! गाय िे खाने
िो अलग थैली में डाला, बाहर रखने गई तो रोज़ िी तरह इंतज़ार िरते िरवािे िे बाहर
खड़े गली िे तीन िुत्ते, उनिो तोष डाले, धचड़ड़यों िा पानी बिला ! बाहर रखी िि
ू िी
थेमलयां लेिर मैं अंिर आ गई !

मम्मी अभी िगिर किचन िे बाहर ति आई थी ! चाय बनाई सब


ु ह िे 7 बिे थे ¡ िुछ
बबस्जिट्स, नमिीन स्िसिे बबना चाय पीने िी आित ही नहीं मझ
ु े!

”दिमाग़ में िववता, लेखन औऱ चाय पीते – पीते मम्मी हर सब


ु ह िी तरह ऐसे बोलती ही
चली िा रहीं थी मझ
ु से िैसे ितु नया भर िी सब बातें एि साथ ही मझ
ु पर उडेल िें !”
धचराग आया था, ऐसा हुआ.... वैसा हुआ !

34
मानमसि रूप से िुछ ममनटों िे बाि , “मैं सप्ु त हों िाती हूँ, उनिे बोलने में िोई िुल
जटॉप नहीं होता ! मैं िेवल हाँ या ना में सर दहला पाती हूँ !”

चाय िी िो – तीन मसप ही ली थी ! कि बेल बि गई िरवािे िी !

धचराग आया होगा, अंशी गेट खोल िे ! िीिी चाय बना लो, वो अंिर आते ही बोला औऱ मैं
अपनी बाकि बची चाय िों मम्मी िे पास से किचन में ही ले आई !

धचराग िी चाय बनाते- बनाते खडे- खडे ही चाय िा आनंि ले मलया !

इस वपंिरे में तोते िी तरह रोज़ िी मेरी दिनचयाा एि िैसी ही होती है !

खैर ये क्या बड़ी बात है ? सब मदहलाये िरती हैँ, ! सब


ु ह सर में इतना ििा िी हो रहा था
कि िोई आि तो मझ
ु े एि िप चाय हाथ में िे तब मैं बबजतर से उठती! मगर ऐसा इस
िीवन में एि दिन भी नहीं हुआ !

पता नहीं िौनसी किजमत है , मझ


ु े िुछ भी क्यों न हों, किसी िों िोई अथा नहीं यहाँ मसवाय
मम्मी िे !’

िल्िी से िाम िरिे इस शोर से अिेले िमरे में चली िाऊँ, बस एि ही इच्छा होती है
औऱ मझ
ु े अपने मलए इन सबसे िुछ नहीं चादहए होता, मसवाय आज़ािी िे ! िो िुछ िे र िे
मलए भी इस तरह िी िाती है िैसे ततिोरी में से तनिाल िर हज़ारों अशरकियाँ िे िी हों
मझ
ु े !”

इस िीवन िों ऐसा मैंने ही बनाया, प्यार हो या निरत सब हि से ज्यािा हो तो िुछ नहीं
संभल सिता किर ! थोड़ी तो प्रोिेशनल हो िाती मगर नहीं हो पाई ! अब तो सब पीछे छूट
गया, सपने, शस्क्त !’

िाम िरते िरते बस ये ही चलता रहता है मन में ! मशीन िी तरह िल्िी िल्िी िाम
किये, िैसे तैसे िुछ िे र िे मलए ऊपर वाले िमरे ति पहुँच गई ! इतने शोर से ज़ब यहाँ
पहुँच िाती हूँ तो आस पास कितना भी समान िैला हो अच्छा ही लगता है ! िैसे िख ु ते
घाव पर मरहम हो िोई !

इस ितु नया में दिखते हुए घावों पर मरहम लगाने िे मलए िई डॉ हैँ मगर लहूलह
ु ान मन
पर, मरहम ईश्वर िे मसवाय िोई नहीं लगाता ! मै औऱ मेरे ईश्वर किर इस िमरे में !

35
ये शांतत भी िुछ ही ममनटों में छीन िाती है ! घर में संजथा चलती है ! पैसा िमाने िे मलए
भी शोर ही होता है, शांतत से िुछ नहीं हो सिता !

परू े घर में अब एि भी िोना नहीं िहाँ िो घड़ी पैर सीिे िर बैठ सिँू , सब
ु ह 6 बिे से
चलता शरीर िेवल एि िोने में शांतत से िुछ िे र बैठने िो तरसता है !

सब अपनी अपनी िगह सही हैँ, मगर िोई िांटे िी चभ


ु न पर तलवार िे वार लगने िैसी,
धचल्ला धचल्ला िर प्रततकिया िे ता है औऱ िोई तलवार िे वार िो भी िांटे िे चभ
ु ने िी
तरह , मानिर चप
ु रह िाता है !

ज़ब चलते किरते िीवन िो ही नहीं पढ़ता िोई.......... तो इस िहानी िो िौन पढ़े गा भला
! इतना िालतू समय िहाँ होता है ?

अपनी स्िंिगी पर किताब भी मलख िँ ू तो रद्िी से ज्यािा िुछ नहीं होगी ! िैसे िीवन भी
तोल िे भाव...... वैसे ही वो भी िाएगी !

िई सालों से मैं इस खल
ु े वपंिरे से उड़ िाना चाहती हूँ, चाहे बाहर मझ
ु े िोई....

इस वपंिरे िी अदृश्य सलाखें बड़ी ववधचत्र हैँ, मैं िुछ बाहर ति पहुँच भी िाती हूँ तो
जवयंमेव ही अंिर आ िाती हूँ, िैसे इस िैि िे मलए हर सांस िी जवीिायाता हो गई है मेरी
! अभी इतने पर भी िाफ़ी नहीं है वार – मेरे पँखों िो िाटने वाले ही सब
ु ह शाम उड़ते
पक्षियों िी उड़ान िा उिाहरण भी िे ते हैं ! िे ख उसिी उड़ान...............

बहुत सारी पढ़ाई िी मैंने, थोड़ा बहुत क़ानन


ू भी पढ़ा, असली वाला नहीं, किताबों वाला !

ये समझ नहीं आया कि शारीररि दहंसा िे मलए िाराएं भी बनी औऱ सिाऐं भी !

लेकिन ज़ब किसी िो मानमसि रूप से मारा िाता है , रोज़ मारा िाता है उसिी सिा क्यों
नहीं, उस पर िोई भी िारा लागू क्यों नहीं...........किर एििम से आवाि आयी!
अंशी िहा हो?
मैं किर से वहीीँ पहुँच गई!ओर अपने आप िो किर से व्यजत िर दिया!
प्रभु िी वंिना, उनिे सम्मख
ु हाथ िोड़िर जतब्ि ख़डी हो गई!

36
पहचान

आशा शैली

न्यायालय के बाहरी बरामदे में भीड़ थी। सीढ़ियााँ चि कर उर्मिला हााँफने लगी थी,
लेककन अभी अन्दर से आवाजें आनी शरू
ु भी नहीीं हुई थीीं। इींतज़ार तो करना ही
था। उसके साथ आज और भी बहुत से लोग थे। आज उर्मिला के पक्ष में कुछ
गवाह पेश होने थे।

एक बेंच पर थोड़ी सी जगह दे खकर कान्ता ने कहा, ‘‘दीदी! तम


ु यहााँ बैठ जाओ,

खड़े-खड़े थक जाओगी।’’

उर्मिला बबना कुछ कहे चप


ु चाप बैठ गई। तभी सीढ़ियााँ चिते हुए भानु पर उसकी

नज़र पड़ी। भानु उसे खा जाने वाली नज़रों से दे ख रहा था। कफर वह अपने वकील

के साथ बात करता हुआ एक तरफ खड़ा हो गया। वकील भी एक-दो र्मनट बाद
भीतर जज के कक्ष में चला गया। तभी उर्मिला का वकील आ गया, ‘‘उर्मिला जी,
सभी गवाह आ गए हैं?’’ उसने पछ
ू ा।

‘‘जी हााँ, ठाकुर साहब, सब आ गए हैं आप चचन्ता न करें ।’’ जवाब उर्मिला के

पास खड़ी कान्ता ने ढ़दया।

‘‘सब पक्के हैं न?’’

‘‘जी हााँ, हमने ककसी को भी झठ


ू बोलने के र्लए नहीीं कहा। जो सच है वही तो

बोलना है और गााँव में अभी सच्चे लोगों की कमी नहीीं हुई है ।’’

37
‘‘ठीक है, आप लोगों का केस 12 नम्बर पर है लेककन पहले के सारे केस शराब

आढ़द के हैं, जल्दी ननपट जायेंगे। आप लोग तैयार रढ़हए।’’ कह कर वकील अन्दर

जाने लगा तो भानु उसके पास आकर बोला,

‘‘ठाकुर साहब, आप जजतनी भी कोर्शश कर लें , हारे हुए तो आप हैं ही। बस अब

फैसले तक इींतज़ार कर लीजजए।’’

‘‘हााँ बेटा! मक
ु द्दमा लड़ना अब मझ
ु े तम
ु से सीखना पड़ेगा। जाओ अपना काम

करो, जा कर।’’ कह कर बि
ू े वकील ‘ठाकुर’ साहब, जज के कक्ष में चले गए तो

भानु ने बड़े व्यींग्य और उपहास की दृजटट से उर्मिला की ओर दे खा। एक अनकही

पीड़ा, ववतटृ णा और ववरजक्त से माँह


ु घम
ु ा कर वह खखड़की से बाहर दे खने लगी।

‘‘भान,ु दफ़ा हो जा यहााँ से, वरना मैं अभी पर्ु लस को बल


ु ा लाँ ग
ू ी। तू ऐसे

दीदी को परे शान नहीीं कर सकता।’’

‘‘मैं तो जा रहा हूाँ, अभी तो तम


ु हो यहााँ। पर एक बात बताओ मासी! अन्दर

कोटि में इन्हें मझ


ु से कौन बचाएगा?’’

‘‘ईश्वर है ! वह सदा ही सच के साथ होता है , यह बात तुम भल


ू रहे हो। जाओ

यहााँ से।’’ कान्ता खीज गई थी।

भानु बेशमी से हाँ सता हुआ वहााँ से एक ओर को हट गया। उर्मिला की आाँखों

में आाँसू भर आए पर वह उन्हें पी गई। उसे अपना स्वयीं से ककया वादा याद आ

गया कक उसे कमज़ोर नहीीं पड़ना है। कान्ता ने उसके कींधे पर हाथ रखा तो उसने

आश्वासन की मरा
ु ा में र्सर ढ़हला कर उसे दे खा और कफर से बाहर दे खने लगी।

38
न्यायालय का यह कक्ष, भवन की तीसरी मींजज़ल पर बना हुआ था। खखड़की से
ढ़दखाई दे ते नीचे सड़क पर चलने वाले वाहन अपने ननयम से भागे चले जा रहे थे।

उर्मिला को याद आया,

एक ढ़दन जब भानु अड़ गया तो उसे अपनी तीन लाख की एफ. डी. तोड़कर भानु
को ट्रक खरीदने के र्लए पैसे दे ने पड़े थे। क्या करती, जवान और इकलौते बेटे को

कैसे मना करती? पनत के बाद यही तो उसका आसरा, भरोसा और ववश्वास था।
कफर

ट्रक उनकी ज़रूरत भी तो था। सेब का बड़ा सा बाग़ था। भानु ने उसे ववश्वास

ढ़दलाया था कक वह अपने काम के अनतररक्त भी उस ट्रक से कमा ही लेगा। भानु

तो भान,ु उसकी पत्नी सरोज ने भी सास की हर तरह से खुशामद करनी शरू कर


दी।

वैसे भी घर में सब कुछ ठीक ही चल रहा था। उर्मिला उन के आगे झक


ु गई।
आखखर

उसका और था ही कौन? ले-दे कर यही बेटा-बहू और एक मासम


ू सा पोता। कुल

र्मलाकर एक सख
ु ी सींसार।

भानु ने कुछ पैसा जमा करके बाकी बैंक से ट्रक फाइनेंस करवा र्लया था। गााँव

के ही एक लड़के को ट्रक पर ड्राइवर रख र्लया गया था। सब कुछ ठीक चल रहा


था

परन्तु उर्मिला को भानु का ट्रक के साथ जाना अच्छा नहीीं लगता था। एक तो

वह रात-बबरात घर लौटता और दस
ू रा पहाड़ की सड़कें। उर्मिला को बहुत डर लगता

था पर चचन्ता का बड़ा कारण यह भी था कक अब दे र से आने के साथ ही भानु मााँ

39
से नज़रें भी चरु ाने लगा था।

एक ढ़दन बहू ने रोते-रोते उर्मिला को बताया कक भानु ने शराब पीनी शरू


ु कर

दी है। मााँ-बेटे में खब


ू कहा-सन
ु ी हुई लेककन भानु का रवैया वही रहा। बात

खुलने के बाद उसकी खझझक भी खुल गई और अब तो वह घर में भी पीने लगा


था।

शरू
ु -शरू
ु में वह मााँ से नछपाता रहा। कफर खल
ु कर पीने लगा। उर्मिला कुछ न

कर सकी और एक ढ़दन वही हुआ जजसका उसे डर था।

……

सह
ु ानी धप
ू खखली हुई थी। हल्की सदी पड़नी शरू
ु हो चक
ु ी थी। र्सतम्बर का

आखखरी सप्ताह चल रहा था। सेब की फसल का सारा काम ननबट गया था। भानु
आखखरी

खेप लेकर ढ़दल्ली ट्रक के साथ चला गया था।

उर्मिला बाहर बरामदे में कुसी डाल कर बैठी सामने की पहाड़ड़यों की

सन्
ु दरता ननहार रही थी कक सरोज चाय ले आई। स्टूल घसीटकर उसने चाय उस
पर रख दी और कफर अपने र्लए कुसी खीींच कर उस पर बैठ गई।

‘‘मम्मी, चाय।’’

‘‘हााँ, लेती हूाँ। दे ख सरोज, सामने श्रीखण्ड की पहाड़ी बाररश से धल


ु कर

ककतनी सन्
ु दर लग रही है।’’

‘‘हााँ मम्मी! आप ठीक ही कह रहे हैं। हमारे इलाके की खूबसरू ती को तो

40
दनु नया मानती है । सच में पापा ने ककतना सोच-समझकर यह घर बनाया होगा
न?’’

‘‘हााँ, वे तो सन्
ु दरता के पज
ु ारी थे।’’ उर्मिला उदास हो गई। कफर उसने

स्वयीं को तुरन्त ही साँभाल र्लया और बात बदलकर बोली, ‘‘भानु कब आने को कह

गया है ?’’

‘‘आज आ जाना चाढ़हए, अब ककस वक्त आते हैं यह तो नहीीं कहा जा सकता।
सड़कें बहुत खराब हैं और कहीीं रास्ते में ही पीना शरू
ु कर ढ़दया तो बस.....।’’

‘‘अरे राम का नाम ले बहू! अब इतना लापरवाह भी तो नहीीं है मेरा बेटा।’’

कहने को उसने कह तो ढ़दया लेककन भीतर ही भीतर वह स्वयीं भी डर रही थी।


भानु

के पीने से तो अचधक परे शानी नहीीं थी, लेककन कहीीं ड्राइवर ने पी ली तो?

कफर उसने र्सर को झटक ढ़दया, नहीीं! भानू इतना बेवकूफ तो नहीीं है....।

सरोज चाय के बतिन अन्दर रखकर लौटी ही थी कक भीतर टै लीफोन घनघनाने


लगा।

वह उल्टे पैरों वापस लौट गई।

‘‘हलो....’’

‘‘आप तुरन्त रामपरु अस्पताल आ जाएाँ।’’ दस


ू री ओर से ककसी ने कहा, भानु की

गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया है ।’’

‘‘क्या....?’’ सरोज की चीख सन


ु कर उर्मिला दौड़ी, उसने ररसीवर सरोज के हाथ

से छीन र्लया। ‘‘आप कौन बोल रहे हैं, क्या हुआ, मझ


ु े बताइए। मैं उर्मिला

41
बोल रही हूाँ।’’

‘‘आण्टी मैं वीरें रा बोल रहा हूाँ। भानु की गाड़ी का ननरथ में एक्सीडेंट

हो गया है। आप लोग रामपरु आ जाइए। भानु अस्पताल में है ।’’ वह थोड़ा रुका

कफर कहने लगा, ‘‘परे शान न हों, ज्यादा चोटें नहीीं हैं लेककन अभी उसे वहााँ

रहना पड़ेगा। टााँग की हड्डी टूट गई है प्लास्टर चिे गा।’’

‘‘और ड्राइवर....?’’

‘‘ड्राइवर? हााँ, अब उसकी हालत तो गम्भीर है आण्टी।’’ वीरें रा का स्वर

म(म हो गया था।

सरोज रोए जा रही थी। उर्मिला ने उसे डााँटते हुए कहा, ‘‘खद
ु को काबू में

रखो बहू। हमें अभी गाड़ी की व्यवस्था करनी होगी। मैं जा रही हूाँ गाड़ी के

इींतज़ाम के र्लए तुम बच्चे को उठाओ और एक-एक जोड़ी कपड़ा सब का रख लो।


पैसे ननकाल लो और चैकबक
ु भी ले लो। पता नहीीं वहााँ क्या जस्थनत हो। जल्दी
तैयार

हो जाओ। उठो।’’ कहकर उर्मिला बाहर ननकल गई।

एक घण्टे बाद ही वे लोग अस्पताल में थे। भानु के अचधक चोटें नहीीं थीीं

लेककन ड्राईवर को बचाया नहीीं जा सका। गाड़ी बरु ी तरह टूट-फूट गई थी। बीमा

की रकम नहीीं र्मल सकती थी क्योंकक ड्राइवर और भान,ु दोनों ने शराब पी रखी

थी। उर्मिला सोच रही थी कक इस दघ


ु टि ना से शायद भानु सध
ु र जाए, परन्तु

भानु के रीं गढीं ग में कोई बदलाव नहीीं आया।

ड्राईवर के घर वालों ने क्लेम कर ढ़दया और भानु के पास र्सवाय पैसा दे ने के

42
और कोई रास्ता नहीीं था। परू ा दो लाख रुपया ड्राइवर के पररवार को दे कर

छुटकारा हुआ। इससे उनके घर की आचथिक जस्थनत पर प्रभाव तो पड़ना ही था। रह

गया बैंक? तो उर्मिला ने सोचा कक सेब की फसल में से थोड़ा-थोड़ा दे कर

ननपटा र्लया जाएगा।

……..

दस
ू रे साल की फसल बेचकर जब भानु सरोज के र्लए सोने का भारी सा हार खरीद

लाया तो उर्मिला ने र्सर पीट र्लया, लेककन अब तो यह ननत्य का कायिक्रम बन

गया था।

कुछ समय बाद बैंक से भग


ु तान के र्लए नोढ़टस ननकला लेककन भानु ने उसे
ककसी

चगनती में ही नहीीं र्लया और कफर एक ढ़दन पटवारी ने उर्मिला को बताया कक

भानु के ववरु( बैंक को नीलामी के अचधकार र्मल गए हैं। एक महीने बाद नीलामी

होगी।

अब भानु के पास मााँ की खुशामद करने के अलावा और कोई उपाय नहीीं था।

जैस-े तैसे भागदौड़ कर उर्मिला ने औने-पौने में अपने ढ़हस्से की ज़मीन का एक

टुकड़ा बेच कर बैंक का भग


ु तान करने के र्लए छः लाख रुपए कफर से भानु के
हाथ

पर रख ढ़दए। नीलामी की तारीख से पहले रकम बैंक में जमा कर दी गई और


कुकी

के आडिर ननरस्त हो गए।

43
अब उर्मिला के पास अपने ढ़हस्से की थोड़ी सी ज़मीन बची थी जो भानु उससे

मााँग रहा था, जजसे दे ने से उर्मिला ने साफ इनकार कर ढ़दया था। सरोज के

मायके वाले भी सरोज को ज़मीन अपने नाम र्लखवा लेने के र्लए उकसा रहे थे।
इस

बीच भानु ने शहर में दक


ु ान खोल ली और अपने पररवार के साथ वहीीं रहने लगा।

शहर जाकर सरोज का रवैया भी बदल गया। उसे पता था कक उसकी दनु नया उसके
पनत

के साथ है , सास का क्या? आज है कल नहीीं। रोज़-रोज़ के लड़ाई-झगड़े से तींग


आकर

उर्मिला ने भी उनसे बोलचाल बींद कर दी थी।

अब उसी ज़मीन के र्लए भानु ने मााँ पर कोटि में केस लगाया था जजसे बेचकर

उर्मिला ने कुकी होने से बचाई थी। भानु ने मााँ पर आरोप लगाया था कक,

मााँ ने मेरे ढ़हस्से की ज़मीन बेच खाई है। जबकक ज़मीन उर्मिला ने अपने

ढ़हस्से में से बेची थी। उस पर भी तुराि यह कक ज़मीन उर्मिला के पनत की

खरीदी हुई थी कोई पश्ु तैनी नहीीं थी और उनके दे हान्त के बाद दोनों

मााँ-बेटों के नाम उर्मिला के कहने से ही चिाई गई थी। उर्मिला के माँह


ु से

एक ठीं डी सााँस ननकल गई। तभी आवाज़ आई,

‘‘भानु बनाम उर्मिला....भानु बनाम उर्मिला हाजज़र हों।’’

उर्मिला चौंक कर उठ खड़ी हुई। भानु उसे धकेलता हुआ अन्दर घस


ु ा तो वह एक
ओर

44
हट गई और उसके पीछे -पीछे चलने लगी। गवाहों के बयान के बाद उर्मिला और

भानु को कटघरे में बल


ु ाया गया।

उर्मिला के वकील ने ही पहले प्रश्न ककया, ‘‘हााँ तो र्मस्टर भान,ु आपका

कहना है कक आपकी मााँ उर्मिला ने आपके ढ़हस्से की ज़मीन बेच खाई है ?’’

‘‘इसमें कोई शक लगता है आपको?’’ भानु तुनक गया।

फाइल पर झक
ु े जज ने र्सर उठाकर भानु की ओर दे खा। ‘‘आपसे जजतना पछ
ू ा
जाए

उसका जवाब दीजजए।’’ भानु के वकील ने उसे टोका और ववरोधी वकील ने सवाल

दोहराया तो भानु ने र्सर झक


ु ा कर कहा, ‘‘जी हााँ।’’

‘‘क्या ककया इन्होंने सािे छः लाख रुपयों का?’’ अब की बार जज ने सवाल

ककया। वह बड़े ग़ौर से उर्मिला को दे ख रहा था। गम्भीर चेहरे वाली उर्मिला

ने बबल्कुल साधारण से कपड़े पहन रखे थे। गले में एक पतली सी चेन और कानों

में छोटे -छोटे टॉप्स थे।

‘‘अपनी ककताबें छपवाती हैं और सेर्मनारों में जाती हैं। घम


ू ने-कफरने पर

खचि कर दे ती हैं और क्या करें गी।’’

‘‘आर यू ऑथर?’’ अब की बार जज ने उर्मिला से सवाल ककया था।

‘‘जी हााँ। यह अपराध तो मझ


ु से हुआ है।’’

‘‘क्या र्लखती हैं आप?’’

‘‘कहानी, कववता सभी कुछ।’’ उर्मिला है रान थी कक मेरे लेखन से केस का क्या

45
सम्बींध है ?

‘‘आपके गवाह परू े हो गए र्मस्टर ठाकुर?’’ जज ने मड़


ु कर उर्मिला के वकील से

प्रश्न ककया।

‘‘जी नहीीं, अभी चार हुए हैं।’’

‘‘और ककतने हैं.....?’’

‘‘चार और हैं सर।’’ वकील ने उत्तर ढ़दया।

‘‘बस काफी हैं।’’ कहकर जज ने फाइल बींद कर दी।

बाहर कान्ता इींतज़ार में खड़ी थी। ररश्तेदार होने के नाते वह अन्दर नहीीं आ

सकती थी। बाहर आने पर वकील ने कहा, ‘‘मैं डेट लेकर आप को बता दाँ ग
ू ा। आप

घर जाइए।’’

000000

कुछ ढ़दन बाद केस का फैसला भी हो गया। उर्मिला को ननदोष कहा गया और
भानु

का दावा खाररज कर ढ़दया गया। जज ने अपने फैसले में यह भी र्लखा था कक

उर्मिला चाहे तो भानु पर मानहानन का दावा कर सकती है, परन्तु उर्मिला ने

वह सब नहीीं ककया और मक
ु द्दमा समाप्त होने पर सख
ु की सााँस ली। अब वह

चचन्तामक्
ु त होकर कफर से अपने लेखन को जारी रख सकती थी।

46
00000

उर्मिला के सेर्मनार, कवव-सम्मेलन चालू ही थे। वह र्शमला बस अड्डे पर खड़ी

अपनी बस के आने की प्रतीक्षा कर रही थी कक एक लम्बी-सी लग्ज़री गाड़ी उसके

पास आकर रुकी और एक सौम्य सा स्वर उसकी ओर उछला, ‘‘नमस्ते उर्मिला


जी।’’

उर्मिला ने चौंक कर दे खा तो, कार की वपछली सीट से एक चेहरा बाहर झााँक रहा

था।

वह एक बार कफर चौंक गई, ‘इस व्यजक्त को कहीीं दे खा तो है ।’ प्रकट में उसने

बड़ी शालीनता से दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार का उत्तर ढ़दया और है रान सी उस

मनू ति को दे खने लगी।

‘‘कहााँ जा रही हैं आप? आइए मैं छोड़ दाँ ।ू ’’

‘‘जी नहीीं, धन्यवाद! मेरी बस आने वाली है , मझ


ु े चण्डीगि जाना है।’’

‘‘सेर्मनार है क्या?’’

‘‘जी हााँ मश
ु ायरा है।’’

‘‘तो आइए न, मैं भी चण्डीगि जा रहा हूाँ।’’ इतनी दे र तक भी उर्मिला उस

सौम्य मनू ति को पहचान नहीीं पाई।

‘‘लगता है आप मझ
ु े पहचान नहीीं रही हैं।’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं।’’ उर्मिला थोड़ा लजज्जत हो रही थी।

‘‘तब आप मझ
ु े यह बताइए कक आपने अपने बेटे भानु पर मानहानन का दावा
ककया या नहीीं?’’

47
‘‘अरे आप? जज साहब?’’ उर्मिला की आाँखें नम हो आईं।

‘‘उर्मिला जी, मैं वास्तव में ही जज हूाँ। मााँ-बाप ने बहुत सारा पैसा मेरी

पिाई पर लगाया है । आदमी को दे खते ही पहचान जाता हूाँ कक सच्चाई क्या है।

इससे मझ
ु े न्याय करने में सवु वधा होती है और यही मैंने आपके केस में ककया

है , अब तो आ जाइए।’’ उसने दस
ू री ओर का दरवाजा खोल ढ़दया।

48
गीत

चलोगे’
आज आँखें मँद ली,

कल कर मलोगे ।

लाश काँधे पर ललए,

कब तक चलोगे ।

है नहीीं कुछ शेष

इस बेजान तन में

व्यर्थ है अब दे र

करना भी दफ़न में

जब्त कर गम रात ददन,

खुद को छलोगे ।

49
बझ
ु गया वह दीप

जजससे रौशनी र्ी

आस की जगमग

दमकती चाँदनी र्ी

तम घिरा है अब, कहाँ

तक तुम जलोगे ।

भोर आयेगा नया

सरज उठाए,

आज चाहे िेर ले

तम या सताए ।

बैठ फिर आराम से,

पींखा झलोगे ।

रचनाकार

अशोक रक्ताले ‘िणीन्द्र’

50
म ां पन्न ध य क
त्य ग

51
चि
त्तौड़ के महाराणा संग्राम ससंह की वीरता प्रससद्ध थी! उनके
स्वर्गवासी होने पर चित्तौड़ की र्द्दी पर राणा ववक्रमाददत्य
बैठे, ककंतु वे शासन करने की योग्यता नहीं रखते थे! उनमें
न बद्
ु चध थी और न हीं वीरता! इससिए चित्तौड़ के सामंतो और मंत्रियों ने
सिाह करके उनको र्द्दी से उतार ददया तथा महाराणा संग्राम ससंह के
छोटे कुमार उदय ससंह को र्द्दी पर त्रबठाया!

उस समय उदय ससंह की अवस्था केवि 6 वर्ग की थी! उनकी माता रानी
कणागवती का स्वर्गवास हो िक
ु ा था! जिसके कारण पन्ना नाम की एक
धाय उनका िािन -पािन करती थी! राज्य का संिािन दासी पि
ु बनवीर
करता था! उसे सभी की सिाह से उदय ससंह का संरक्षक ननयुक्त ककया
र्या था!

बनवीर के मन में राज्य कर िोभ आया! उसने सोिा कक यदद


ववक्रमाददत्य और उदय ससंह को मार ददया िाए तो सदा के सिए वह रािा
बन सकेर्ा! सेना और राज्य का संिािन उसके हाथ में था ही! एक ददन
रात में बनवीर नंर्ी तिवार िेकर रािभवन में र्या और उसने सोते हुए
रािकुमार ववक्रमाददत्य का ससर काट ददया!

झूठी पत्तल उठ ने व ले एक ब री ने बनवीर को


ववक्रम दित्य की हत्य करते िे ख ललय ! वह ईम नि र

52
और स्व लिम न िक्त बडी शीघ्रत से पन्न के प स
आय और उसने कह –

“ध यम ाँ बनवीर र ण उिय लसांह की हत्य


करने शीघ्र ही यह ां आएग ! कोई उप य करके
ब लक र ण के प्र ण बच ओ!”

पन्नाधाय अकेिी बनवीर को कैसे रोक सकती थी! उसके पास कोई उपाय
सोिने का भी समय नहीं था! िेककन उसने एक उपाय सोि ननकािा! उदय
ससंह उस समय सो रहे थे! उनको उठाकर पन्ना ने एक टोकरी में रख ददया

और टोकरी पत्ति से ढक कर उस बारी को दे कर


कहा –

“इसे िेकर तुम यहां से


ििे िाओ! वीरा नदी के
ककनारे मेरा रास्ता
दे खना!”
3

53
उदय ससंह को नछपाकर हटा दे ने से भी काम ििता नहीं था! बनवीर को
पता िर् िाए कक उदय ससंह को छुपा कर भेिा र्या है तो वह घड़
ु सवार

भेिकर उन्हें अवश्य पकड़ िेर्ा! पन्न ने एक िस


ू र उप य खोज
ननक ल ! उसको भी एक पुि था! जिसका नाम िंदन था िोकक अभी 6

वर्ग का था! उसने अपने पुि को उदय ससंह के पिंर् पर सुिाकर रे शमी
िद्दर उड़ा दी! और स्वयं एक और बैठ र्ई! िब बनवीर रक्त से सनी
तिवार सिए वहां आया और पछ
ू ने िर्ा –

उदय ससंह
कहां है ?

ये
रहा !

54
उदय ससंह कहां है ?

तब ध य म ाँ ने बबन एक शब्ि बोले उां गली से अपने छोटे


लडके की ओर सांकेत कर दिय ! हत्य री बनवीर ने उसके
ननरपर ध ब लक के तलव र के एक ह थ से िो टुकडे कर
दिए और वह ां से चल गय !

अपने स्वामी की रक्षा के सिए अपने पि


ु का बसिदान करके वविारी पन्ना
रो भी नहीं सकती थी! उसे झटपट वहााँ से नदी ककनारे िाना था, िहां बारी
उदय ससंह को सिए उसका रास्ता दे ख रहा था! पन्ना ने अपने पुि की िाश
िे िाकर नदी में डाि दी और उदय ससंह को िेकर मेवाड़ से ििी र्ई!
उसे अनेक स्थानो पर भटकना पड़ा! अंत में दे वरा के सामंत आकाशाह ने
उसे अपने यहां आश्रय ददया!

अंत में बनवीर को अपने पाप का दं ड समिा! बड़े होने पर राणा उदय ससंह
चित्तौड़ र्द्दी पर बैठे! पन्नाधाय उस समय िीववत थी! राणा उदयससंह
माता के समान उसका सम्मान करते थे! स्वामी के सिए अपने पि
ु तक
का बसिदान करने वािी पन्ना माई धन्य है !आि इनतहास में स्वामी भजक्त
के कारण मााँ पन्ना धाय का नाम स्वणग अक्षरों में अंककत है !
5

55
ममत क गल घोंट कर,स्व मी िक्क्त को क्जसने क्जन्ि रख ,

बेटे से िी पहले लसांह सन को सुरक्षित रख ,

मेव डी श न में च र च ाँि लग ने व ली,

ऐसी त्य गमयी, स्व लमिक्क्त म ाँ

पन्न को प्रण म है !

56
हिन्द ू ह्रदय सम्राट
मिाराजा सरू जमल
'नहीीं जाटनी ने सही व्यर्थ प्रसव की पीर,

जन्मा उसके गर्थ से सरू जमल सा वीर”!

झुके जजसके आगे नवाब, मुगललया सल्तनत सारी,


जजसके आगे नतमस्तक र्ी रजपत
ू ी तलवारी,
जजससे रण में र्य खाती र्ी दश्ु मन की दमदारी,
ऐसा ननर्ीक अजय योद्धा र्ा, हहन्द ू ह्रदय सम्राट
सरू जमल रणधारी!

57
राजा सरू जमल
सय
ु ोग्य शासक र्ा। उसने ब्रज में
एक स्वतींत्र हहन्द ू राज्य को बना
इनतहास में गौरव प्राप्त त यकया।
इनतहास के एकमात्र जाट महाराजा
सरू जमल ऐसे शासक र्े जजन्होंने जजस दौर में राजपत
ू राजा मग
ु लों से अपनी
जागीरें बचा नहीीं पा रहे र्े! उस दौर में वे बाहुबली के समान अकेले मग
ु लों से
लोहा ले रहे र्े,सरू जमल को स्वतींत्र हहन्द ू राज्य बनाने के ललए र्ी जाना जाता है !

सरू जमल की बद्


ु धध जस्र्र र्ी, और उनका दृजटट क्षेत्र सस्
ु पटट र्ा, वे एक यकसान
की पोशाक पहनते र्े और केवल बज
ृ र्ाषा ही बोलते र्े, तर्ापप वे जाट जानत के
प्त लेटो कहा जाता है !

मिाराजा सरू जमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में िुआ! यि इतििास की विी
िारीख िै , जजस हदन मग़
ु ल शाषक औरं गजेब की मत्ृ यु िुई थी! मग
ु लों के आक्रमण
का मंि
ु िोड़ जवाब दे ने में उत्तर भारि में जजन राजाओं का ववशेष स्थान रिा िै ,
उनमें राजा सरू जमल का नाम बड़े िी गौरव के साथ ललया जािा िै ! उनके जन्म
को लेकर यि लोकगीि काफ़ी प्रचललि िै !

'आखा' गढ गोमुखी बाजी,


मााँ र्ई दे ख मख
ु राजी.
धन्य धन्य गींधगया माजी,
जजन जायो सूरज मल गाजी.
र्इयन को राख्यो राजी,

चाकी चहुीं हदस नौबत बाजी

58
उनके पपता का नाम राजा बदनलसींह तर्ा माता का नाम महारानी दे वकी र्ा!

उन्होंने छोटी सी उम्र में ही महाराजा बदन लसींह से यद्


ु ध के गुर सीखे!

राजा सूरज मल में वीरता, धीरता, गम्र्ीरता, उदारता, सतकथता,


दरू दलशथता, सूझबूझ, चातुयथ और राजममथज्ञता जैसे पवरोधचत गुण
पवद्यमान र्े । मेल-लमलाप और सह-अजस्तत्व तर्ा समावेशी
सोच को वे महत्व दे ते र्े ! उनका व्यजततत्व सच्ची र्ारतीयता
से ओतप्रोत र्ा । एक आधुननक इनतहासकार ने उनकी तुलना
ओडिसस से की है ।

राजा सरू जमल एक ऐसे राजा थे जजन्िोंने बिुि कम सेना िोिे िुए भी तनरं िर जंग
लड़ लड़ के एक ववशाल साम्राज्य बसा ललया था।

मिाराजा सरू जमल का जीवन अनेकानेक ववजयों का धनी िै ! उनके जीवन की कुछ
मख्
ु य ववजयों के ववषय में यिााँ प्रकाश डाला गया िै !

1. मुगलों औऱ जाटों में दश्ु मनी का कारण –

साल 1659 में हदल्ली की राजगद्दी पर आसीन मग


ु ल शासक औरं गजेब थे जो कक
एक कट्टर मग
ु ल शासक था ! उसने ककसानों पर कर का ऐलान ककया ! एक
ववशेष प्रकार का कर िाकक उसकी संपवत्त बढ़ सके। उसके आदे श के बाद मग
ु लों के
अधीन समस्ि इलाकों के ककसानों से जबरन कर वसल
ू ा जाने लगा !

चािे ककसान खेि बोए या ना बोए उन्िें एक िय कर दे ना पड़ेगा ! उसके इस


जल्
ु म से िंग आकर ककसानों ने ववद्रोि कर हदया। कुछ इलाकों में ककसान मग
ु ल

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फौज के खौफ से डर कर पीछे िट गए और कुछ इलाकों के द्वारा ककसानों के
ववद्रोि को दबा हदया गया !

लेककन इन सब के अलावा भारि के ब्रज इलाके में एक ऐसी वीर जाट जाति थी
जजसने ना केवल कर दे ने से इंकार ककया बजल्क कर वसल
ू ने आए मग
ु लों को मौि
के घाट उिार हदया। इस वीर जाट जाति का सरदार था तिलपि का जमींदार
गोकुला जाट।

औरं गजेब ने ववद्रोि को कुचलने के ललए एक सेना की ववशेष टुकड़ी भेजी मगर वो
भी गोकुला जाट को कैद निीं कर पाए। इस घटना के बाद भी औरं गजेब ने एक
के बाद एक िीन बार ब्रज में इस जाट समद
ु ाय पर िमला ककया। लेककन िर बार
वो नाकाम रिे ।

जाटों की वीरिा दे ख हदल्ली के शािी िख्ि पर बैठा औरं गजेब रुक निीं पाया और
उसने एक ववशाल सेना के साथ तिलपि के मैदानों में वीर समद
ु ाय को घेर ललया।
इसके पश्चाि ् 1669 में ववशाल सेना को सामने दे ख कर भी जाट पीछे िटने के
बजाय यद्
ु ध के ललए कूद पड़े।

यि यद्
ु ध कुछ दे र चला और ववशाल सेना ने जाटों के ववद्रोि को कुचल हदया !
गोकुला जाट यद्
ु ध में मारे गए और उनके कुछ साथी कैद करके आगरा भेज हदए
गए। आगरा में औरं गजेब ने अपनी क्रूरिा की िदे पार करिे िुए सभी कैहदयों को
चौरािे पर टुकड़ों में काट हदया।

उसके इस घहटया काम से समस्ि ब्रज और उसके आसपास के इलाकों के ककसान


आग बबल
ू ा िो गए ! उन्िोंने तिलपि में िी सामहू िक बैठक की और गोकुला जाट
के बेटे राजा लसनलसनवार को तिल्पि का नया सरदार घोवषि कर हदया। सरदार
पद प्राप्ि करिे िी राजा ने पिली कसम मग
ु लों से बदले की खाई।कुछ समय में
नए सरदार ने एक दमदार सेना िैयार कर ली और सेना िैयार िोिे िी उन्िोंने

60
आगरा के पास बने लसकंदरा पर आक्रमण कर हदया। लसकंदरा में मौजूद अकबर के
मकबरे में िोड़फोड़ करके और आगरा से कुछ धन लट
ू उन्िोंने अपने सरदार की
मौि का बदला ललया। यिी से जाट और मग
ु लों के बीच दश्ु मनी की शरु
ु वाि िुई
जो कभी ख़त्म निीं िुई।

मग
ु लों को मंि
ु िोड़ जवाब दे ने के बाद ब्रज के इलाके में जाटों का नाम प्रलसद्ध
िो गया, उनके ककस्से लोगो की दै तनक वािाालाप के हिस्से बन गए। कुछ समय
बाद लसनलसनवार के बेटे बदन लसंि ने वीर जाति के सरदार का पद संभाला और
अपने पव
ू ज
ा ों कक िरि मग
ु लों से जंग जारी रखने का आदे श हदया।

इस प्रकार आगरा के आसपास बने कुछ मग


ु लखानो पर आक्रमण ककया और उस
इलाके को अपने कब्जे में ले कर एक पथ
ृ क नगर की नींव रख दी जजसे बाद में
भरिपरु के नाम से जाना जाने लगा।

2. र्रतपुर यकले का ननमाथण

1755 िक राजा बदन लसंि का राज ब्रज के भरिपरु में रिा ! अपने शासन के
दौरान उन्िोंने जाट साम्राज्य की सीमा ववस्िार के ललए मग
ु लों से कई लड़ाइयां
लड़ी। मगर किीं ना किीं उनकी राजनीति में वो बाि निीं थी के वो जीिे िुए
इलाकों को मग
ु लों से बचा के रख सकिे।

61
वो यद्
ु ध लड़िे और कुछ समय िक इलाके पर कब्जा रखिे और कफर मग
ु ल
वापस जीि लेिे कयकंू क उनकी सेना अभी भी कमजोर थी ! मग
ु लों को उनकी
असली िै लसयि हदखाई बदन लसंि ने बेटे मिाराजा सरू जमल ने।

उनका बचपन भी मग
ु लों से लडने में गज
ु रा था। लेककन उनको फैसले लेने का
अधधकार निीं था ।

बदन लसंि की मत्ृ यु के बाद मिाराजा सरू जमल ने भरिपरु की गद्दी संभाली और
सबसे पिला काम अपने ललए एक मजबि
ू सरु क्षिि हठकाना बनाने का ककया।
मिाराजा सरू जमल बचपन से िी गुस्सैल प्रवतृ ि के थे ! कम उम्र में िी उन्िोंने
अपने वपिा के आदे श के बाद मेवाि के मेवो पर आक्रमण कर कुछ समय के ललए
उनसे मेवाि छीन ललया था।

मेवाि के अलावा सरू जमल ने राजकुमार रििे िुए डीग के सोंगररयो पे िमला करके डीग के
एक बड़े हिस्से को अपने कब्जे में ले ललया था। ये यद्
ु ध उन्िोंने 1732 में लड़ा गया यि
यद्
ु ध एक ववशाल यद्
ु ध था जजसमें काफी जान माल का नक़
ु सान िुआ था। इसी यद्
ु ध के
बाद सरू जमल ने भरिपरु में लोिागढ़ ककले का तनमााण करवाया।

भरिपरु में जस्थि यि ककला लोहागढ़ यकला ( Iron fort ) के नाम से जाना

जािा िै । यि दे श का एकमात्र ककला िै , जो


ववलभन्न आक्रमणों के बावजूद िमेशा अजेय व
अभेद्य रिा।

62
जजसे अंग्रेज 13 बार आक्रमण करके भी भेद निीं पाए ! लमट्टी के बने इस ककले
की दीवारें इिनी मोटी बनाई गयी थी कक िोप के मोटे -मोटे गोले भी इन्िें कभी
पार निीं कर पाए, यि दे श का एकमात्र ककला िै , जो िमेशा अभेद रिा !

र्रतपरु का लोहागढ़ यकला

अजेय व अर्ेद्य

3. जयपुर ररयासत से सम्बन्ध

राजा सरू जमल का जयपरु ररयासि के मिाराजा जयलसंि से अच्छा ररश्िा


थ ! जयलसंि की मत्ृ यु के बाद उसके बेटों ईश्वरी लसंि और माधोलसंि में ररयासि
के वाररश बनने को लेकर झगड़ा शरु
ु िो गया ! सरू जमल बड़े पत्र
ु ईश्वरी लसंि को
ररयासि का अगला वाररस बनाना चाििे थे, जबकक उदयपरु ररयासि के मिाराणा
जगिलसंि छोटे पत्र
ु माधोलसंि को राजा बनाने के पि में थे ! इस मिभेद की
जस्थति में गद्दी को लेकर लड़ाई शरु
ु िो गई, माचा 1747 में िुए संघषा में ईश्वरी
लसंि की जीि िुई ! लड़ाई यिां परू ी िरि खत्म निीं िुई ! माधोलसंि मराठों,
राठोड़ों और उदयपरु के लससोहदया राजाओं के साथ लमलकर वापस रणभलू म में आ

63
गया ! ऐसे मािौल में राजा सरू जमल अपने 10,000 सैतनकों को लेकर रणभलू म में
ईश्वरी लसंि का साथ दे ने पिुंच गये!

इस यद्
ु ध में ईश्वरी लसंि को ववजय प्राप्ि िुई और उन्िें जयपरु का राजपाठ लमल
गया ! इस घटना के बाद मिाराजा सरू जमल का डंका परू े भारि दे श में बजने
लगा !

4. मराठी और जाट ररयासत के बीच कुम्हे र का युद्ध

हदल्ली मे जाटो से िार कर गयासद्


ु दीन मराठी सेना की मदद से, सरू जमल से िार
का बदला लेने के ललए भरिपरु की िरफ पिुंच गया। भरिपरु की सेना से उसका
मक
ु ाबला िुआ कुम्िे र के ककले में ! उन्िोंने कुम्िे र के ककले को घेर ललया।

मिाराजा सरू जमल उस समय भरिपरु से बािर थे ककसी महु िम पर ! जब उन्िें


गयासद्
ु दीन और मराठो की इस िरकि का पिा चला वो िरु ं ि कुम्िे र की और
लौट गए। उधर कुम्िे र में दग
ु ा को तघरा दे ख विां के सेनापति ने योजना बनाई के
इनको जवाब हदया जाए अगर उन्िें पिा चल गया कक दग
ु ा में सेना कम िै िो दग
ु ा
को कोई निीं बचा पाएगा। राजा सरू जमल जब िक कुम्िे र पिुंचिे िब िक उनकी
रानी िं लसया ने मल्िार राओ की पत्नी रानी जयाजी को पत्र ललख उनके द्वारा
उनके पत्र
ु को मारे जाने के िादसे की माफी मांग ली और िुरंि शांति वािाा के
ललए मना ललया।

ये सब घटना उत्तर भारि में िो रिी थी विीं दक्षिण भारि में मराठे अपना एक
ववशाल साम्राज्य बसा चक
ु े थे। उनके द्वारा चलाई गई स्वराज की आंधी अटक से
कटक िक भगवा लिरा चक
ु ी थी ! परू े दकखन पर उनका राज था। हदल्ली में उस
वकि आलमगीर द्वविीय गद्दी पर बैठा था ! हदल्ली अब वो हदल्ली निीं रिी
जजसके दीवाने िर सल्
ु िान िोिे थे।

64
हदल्ली एक जजार ररयासि थी लेककन कफर भी उनको अपना बचा खुचा नाम
लमटने का डर था ! सबसे बड़ा डर था मराठो का, इसललए वो समय पर मराठो को
कर दे िे थे अपनी सरु िा के ललए।

5. हदल्ली पर आक्रमण

सराय में िार के बाद अिमद शाि ने अपने वजीर सैफुहदन को पद से िटा हदया
और उसे दे श तनकाला दे हदया ! अपने बादशाि के इस धोखे से वजीर उसका
दश्ु मन बन गया और उसे सबक सीखाने के ललए भरिपरु कूच कर गया। मिाराजा
सरू जमल और वजीर में पिले से अच्छे संबंध थे।

उन संबंधों का वास्िा दे कर वजीर ने मिाराजा सरू जमल को हदल्ली पर िमला


करने के ललए राजी कर ललया ! मई 1553 में मिाराजा सरू जमल ने हदल्ली पर
िमला कर हदया। हदल्ली में मिाराजा के सामने था विां नवाब गयासद्
ु दीन जजसे
जाटों ने ऐसा घेरा के वो चंद घंटो में यद्
ु ध से भाग गया।

हमले में क्षनतग्रस्त हदल्ली


लाल यकले का द्वार

65
हदल्ली में जाट घस
ु चक
ु े थे ! सल्िनि से मग
ु ललया जजार िालि में ककले के एक
कमरे में कैद िो गई यानी बादशाि जाटों के हदल्ली में घस
ु ने से डर कर एक कमरे
में कैद िो गया। जाटों ने परु ानी हदल्ली में मई से लेकर जून िक हदल्ली में डेरा
डाले रखा और भयंकर लट
ू पाट की। लट
ू पाट केवल मग
ु लों के खजाने की िुई ।

कमजोर और भयभीि अिमद शाि आखखर में मिाराजा सरू जमल के सामने झक

गया और शांति संधध का प्रस्िाव रख हदया। मिाराजा सरू जमल ने शिा रखी कक
उसके लमत्र सैफुद्दीन की वापस से उसकी जागीर लौटाई जाए ! अिमदशाि ने शिा
मान ली और उसे जजंदा छोड़ हदया गया।

जाटों से िार कर ग्यासद्


ु दीन मराठी सरिद में घस
ु गया और मल्िारराव िोलकर
को उकसा कर मिाराजा सरू जमल के साथ यद्
ु ध करने तनकल पड़ा।

लेककन मिाराजा सरू जमल किीं ना किीं नजीब की िरकि से बिुि ज्यादा गस्
ु से में
थे ! चारो िरफ से बंद चारदीवारी में कैद हदल्ली में वो केवल 30 घड
ु स्वारो के
साथ दरवाजा िोड़ कर घस
ु गए। विां मौजूद ववशाल सेना मिज 30 सैतनकों के
साथ आए मिाराजा सरू जमल पर टूट पड़ी।

उसी जगि यद्


ु ध करिे िुए मिाराजा सरू जमल की मौि िो गई ! इतििासकार
उनकी मौि से जुड़े अलग अलग मि दे िे िै मगर जो भी था उस हदन भारि के
एक वीर िमेशा के ललए चला गया। भरिपरु ररयासि को अब मिराजा जवािर लसंि
ने संभाला और अपने वपिा के तनयमो को आगे िक चलाया।

मिाराजा सरू जमल की शौया गाथा के वणान से आज िमें अपने पव


ू ज
ा ों की सिे जी
गई ररयासि का बोध िोिा िै ! उनके जीवन का प्रति िण लशिा प्रद िै जो िमारे
ललए एक सीख दे िा िै !

66
ऐतिहासिक स्थल एक नजि
‘चित्तौड़गढ़ दग
ु ’ग

चित्तौड़गढ़ दग
ु ग का परििय: -

चि
त्तौड़गढ़ का दग
ु ग उत्तर भारत के ऐततहासिक स्थलों में िबिे महत्वपर्
ू ग
ककलो में िे एक है ! जो आज भी अपनी वीरता और बसलदान की
कहातनयाां िांिार को बयाां कर रहा है !

चित्तौड़गढ़ ककले का तनमागर् मौयग शािकों द्वारा िातवीां शताब्दी ई. में ककया गया!

अपनी आकर्गर् और भव्य िांद


ु रता के िाथ- िाथ, यह आज भी राजपत
ू ी िांस्कृतत
एवां मल्
ू यों को प्रदसशगत करता है !

यह दग
ु ग लगभग 700 एकड़ भसू म में फैला हुआ है !

67
ब्रिटिश परु ातत्व दत
ू िि ह्यज
ू केशि ने चित्तौड़गढ़ दग
ु ग के ववर्य में कहा है कक –

“चित्तौड़ के िुनिान ककले में विििण कििे िमय मुझे ऐिा लगा मानो
ककिी भीमकाय जहाज की छि पि िल िहा हूूं!”

यह दग
ु ग इततहाि की खन
ू ी यद्
ु धों का आज भी गवाही दे रहा है , जो कहानी
रक्तरां जजत सलखी गई है !

चित्तौड़ के दग
ु ग को 2013 में यन
ू ेस्को ववश्व ववराित स्थल घोवर्त ककया गया!

चित्तौड़गढ़ दग
ु ग को राजस्थान का गौरव, गढ़ों का सिरमौर , चित्तौड़ आटद नामों िे
ववख्यात है!

यह भारत के िबिे बड़े ककलो में िे एक हैं!

चित्तौड़गढ़ दग
ु ग िाज्य का िबिे प्रािीनिम दग
ु ग है इि दग
ु ग के बािे में कहािि है –

चित्तौड़गढ़ ककले में दे खने योग्य स्थल: -

चित्तौड़गढ़ दग
ु ग में पयगिकों के मन को लभ
ु ाने वाले ववजय स्तांभ, पद्समनी महल,
कांु भा महल, गोरा -बादल महल, जयमल –फत्ता (पता) हबेसलया, कासलका माता
मांटदर, िरू जकांु ड, नवलखा भांडार, श्रांगार िवरी जैन मांटदर, भामाशाह हवेली, फतेह
प्रकाश महल, जो कक अब एक िांग्रहालय है तथा चित्तौड़गढ़ ककले का िाउां ड एवां
लाइि शो प्रमख
ु हैं!

68
विजय स्िूंभ: -

ववजय स्तांभ का तनमागर् महारार्ा


कांु भा द्वारा 1440 ई. िे 1448 ई.
में मालवा ववजय के उपलक्ष में
करवाया! इिे दग
ु ग के भीतर 9
मांजजला भव्य इमारत के रूप में
बनाया गया है! ववजय स्तांभ को
कनगल जेम्ि िॉड ने ‘िोम के
टाजगन’ की उपमा दी है ! तथा इिे
भारतीय मतू िगकला का विश्िकोश
भी कहा गया है !

िानी पद्समनी महल:-

यह महल चित्तौड़गढ़ दग
ु ग में दक्षक्षर् भाग
में जस्थत है इिको िफेद िांगमरमर
पत्थर िे तनसमगत ककया गया है तथा यह
तीन मांजजला इमारत है! यहीां पर ही
अलाउद्दीन खखलजी ने रानी पद्समनी को
एक झलक दे खा ! यह मेल एक िांद
ु र
जलाशय के मध्य जस्थत हैं! इिके दक्षक्षर्
पव
ू ग में गोरा बादल महल है !

69
भामाशाह की हिेली: -

यह हवेली प्रसिद्ध दानिीि भामाशाह की याद टदलाती है जजन्होंने मेवाड़ के रक्षक


महारार्ा प्रताप को मातभ
ृ सू म की रक्षा के सलए धन की आवश्यकता पड़ी! तब
भामाशाह ने अपनी मातभ
ृ सू म की रक्षा के सलए अपना िबकुछ महारार्ा प्रताप को
दान कर टदया!

कूंु भा महल: -

यह चित्तौड़गढ़ दग
ु ग का िबिे परु ाना स्मारक है आज खांडार अवस्था में ववजय स्तांभ
के प्रवेश द्वार की ओर जस्थत है ! इि महल का प्रवेश द्वार िरू जपोल है ! कृष्र्
भक्त मीरा बाई भी इिी महल में रहती थी! तथा यह वही स्थान हैं जहाां रानी
पद्समनी तथा अन्य मटहलाओां ने समलकर िामटू हक जोहर ककया था!

चित्तौड़गढ़ दग
ु ग का िाउूं ड एिूं लाइट शो: -

चित्तौड़गढ़ दग
ु ग के इततहाि एवां घटित घिनाओां को रूबरू कराने का एक तरीका है!
जजििे पयगिक को इततहाि िे पररचित हो िकें! तथा यह शो शाम को 7:00 बजे
प्रारां भ होता हैं! िबिे ज्यादा पयगिक इिी शो िे आकवर्गत होते हैं!

चित्तौड़गढ़ दग
ु ग में िीन जोहि ि िाके हुऐ है :-

पहला िाका:-1303 ईस्वी में अलाउद्दीन खखलजी ने िांद


ु री रानी पद्समनी को पाने
के सलये चित्तौड़ पर आक्रमर् कर टदया उि िमय रार्ा रतन सिांह यहाां के शािक
थे! इि यद्
ु ध में अलाउद्दीन खखलजी ववजयी हुआ! इि दग
ु ग को जीतकर
अलाउद्दीन खखलजी ने इिे अपने पत्र
ु खखज्र खाां को िौंप टदया! खखज्र खा ने
वापिी पर चित्तौड़ का राजकाज कान्हा दे व के भाई मालदे व को िौंप टदया! यह
िारा वत
ृ ाांत अमीर खि
ु रो ने अपनी कृतत ‘तारीख अलाई’ में सलखा है ! क्योंकक उि

70
िमय अलाउद्दीन का दरबारी कवव और लेखक अमीर खुिरो चित्तौड़गढ़ के इि
असभयान में अलाउद्दीन खखलजी के िाथ था!

इि प्रथम िाके में रार्ा रतन सिांह के िाथ- िाथ िेनानायक गोरा- बादल भी
शहीद हुए! तथा महारानी पद्समनी ने िभी मटहलाओां के िाथ जोहर ककया!

दि
ू रा िाका :- बप्पा रावल के वांशज राजा हमीर ने पन
ु : मालदे व िे दग
ु ग

जीत सलया! िल्


ु तान बहादरु शाह ने चित्तौड़ पर 2 बार आक्रमर् ककए! िन 1534ई.
मे उिने एक ववशाल िेना के िाथ चित्तौड़ पर आक्रमर् कर टदया उि िमय यहाां
की राजमाता कमागवती ने राखी भेज कर मग़
ु ल शािक हुमायांू िे िहायता माांगी
थी! यद्
ु ध में मेवाड़ की ववजय की कोई आशा न दे ख अल्पवय महारार्ा
ववक्रमाटदत्य को छोिे भाई उदय सिांह के िाथ उिके नतनहाल बांद
ू ी भेज टदया गया
तथा दे वसलया प्रतापगढ़ के रावत बाघसिांह के नेतत्ृ व में मेवाड़ के वीर योद्धाओां ने
आक्राांताओ िे लोहा सलया! अांत में राजमाता कमागवती तथा अन्य वीराांगनाओां ने
जौहर की ज्वाला प्रज्वसलत कर अपने प्रार्ों की आहुतत दे दी! इततहाि में यह
दि
ू रा िाका कहलाया!

तीिरा िाका :- िन 1567 में मेवाड़ का तीिरा िाका हुआ जजिमें मग


ु ल शािक
अकबर ने एक ववशाल िेना के िाथ चित्तौड़ पर आक्रमर् कर टदया उि िमय
महारार्ा उदय सिांह यहाां के शािक थे! यह िाका जयमल राठौड़ और पता
सििोटदया के पराक्रम और बसलदान के सलए प्रसिद्ध है !

चित्तौड़गढ़ दग
ु ग के बारे में कुछ खाि बातें :-

 इि दग
ु ग के अांदर कृवर् की जाती है !
 पौराखर्क मान्यता के अनि
ु ार महाभारत काल के भीम ने अपने घि
ु ने के
बल िे यहााँ पानी तनकाला था! जजिे आज भीमकाय िरोवर के नाम िे
जानते है!

71
 यह दग
ु ग िबिे बड़ा सलववांग फोिग है!
 इि दग
ु ग को प्रािीन ककलो का सिरमोर कहााँ जाता है!
 िरू जपोल दग
ु ग का िबिे प्रािीन दरवाजा है !
 कीततग स्तांभ को पौराखर्क टहांद ू मतू तगकला का अनमोल खजाना कहा जाता
है !

72
साहित्य सम्बत्धधत पुरस्कार

साहित्य अकादमी का उदघाटन करते िुए एस.


राधाकृष्णन

साहित्य
अकादमी का उदघाटन करते िुए एस. राधाकृष्णन

साहित्य अकादमी का
प्रश्न 1. साहित्य अकादमी उदघाटन
परु स्कार
करतेकी शरु आतृ ष्णन
ु राधाक
िुए एस. कब से िुई ?

उत्तर - साहित्य अकादमी परु स्कार भारत सरकार द्वारा हदया जाने वाला ज्ञान पीठ
परु स्कार के बाद दस
ू रे स्थान पर साहित्त्यक सम्मान िै ! त्जसकी स्थापना 12
मार्च 1954 में की गई ! 1955 से प्रततवर्च भारतीय भार्ाओं की श्रेष्ठ कृततयों को
नई हदल्ली द्वारा नेशनल अकादमी ऑफ़ लेटसच अथाचत साहित्य अकादमी परु स्कार
हदया जाता िै !

प्रश्न 2. साहित्य अकादमी परु स्कार कौनसी भार्ाओं की रर्नाओं पर हदया जाता िै
?

उत्तर – यि परु स्कार संववधान की आँठवीं अनस


ु र्
ू ी में उत्ल्लखित 22 भार्ाओं के
अलावा अंग्रेजी एवं राजस्थानी भार्ा की रर्नाओं पर भी हदया जाता िै !

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प्रश्न 3 पिली बार साहित्य अकादमी परु स्कार पिली बार कब हदया गया एवं उस
समय इसकी परु स्कार राशश ककतनी थी ?

उत्तर – यि परु स्कार पिली बार 1955 में हदया गया व उस समय परु स्कार राशश
5000/- रूपये थी !

प्रश्न 4 वतचमान में साहित्य अकादमी परु स्कार ववजेता को ककतनी राशश परु स्कार
स्वरूप दी जाती िै ?

उत्तर – परु स्कार राशश अब 1 लाि िै साथ िी एक प्रशत्स्त पत्र व शाल हदया जाता
िै !

प्रश्न 5 साहित्य अकादमी परु स्कार के शलए ववजेता र्यन के क्या मानदं ड
तनधाचररत ककये गए िैं ?

उत्तर – 1. लेिक की राष्रीयता भारतीय मल


ू की िोनी र्ाहिए !

2. परु स्कार के शलए पात्र रर्ना / पस्


ु तक का सम्बंधधत भार्ा औऱ साहित्य के क्षेत्र
में उत्कृष्ट योगदान िोना र्ाहिए !

3. ज़ब दो या दो से अधधक पस्
ु तकों के शलए समान योग्यता पाई जाती िै तो
परु स्कार की घोर्णा के शलए कुछ तनत्श्र्त मानदं डो जैसे साहित्य के क्षेत्र में
योगदान, समाज में त्स्थतत औऱ प्रततष्ठा को ध्यान में रिा जाता िै !

प्रश्न 6 हिंदी भार्ा में पिला साहित्य अकादमी परु स्कार प्राप्त करने वाले रर्नाकार
कौन िैं ?

उत्तर – 1955 में यि परु स्कार मािन लाल र्तुवेदी को उनकी रर्ना हिम तरीगनी
काव्य के शलए प्रदान ककया गया !

74
प्रश्न 7 हिंदी साहित्य अकादमी का 2020 का परु स्कार ककसे प्रदान ककया गया ?

उत्तर – हिंदी साहित्य अकादमी 2920 लेखिका अनाशमका को प्रदान ककया गया िै !
यि परु स्कार उधिें टोकरी में हदंगत नामक काव्य संग्रि के शलए प्राप्त िुआ!

प्रश्न 8. साहित्य अकादमी के यव


ु ा परु स्कार के ववर्य में आप क्या जानते िैं ?

यि परु स्कार 35 वर्च से कम आयु के लेिकों को उनकी प्रकाशशत पस्


ु तक के र्यन
पर हदया जाता िै !, परु स्कार राशश व स्मतृ त धर्धि भें ट स्वरुप हदए जाते िैं !

साहित्य अकादमी द्वारा इस वर्च के साहित्य अकादमी यव


ु ा परु स्कार 2020
ववतररत ककए गए. इस बार यव
ु ा परु स्कारों के शलए ववशभधन भार्ाओं के 23 यव
ु ा
साहित्यकारों को प्रदान ककया गया. बेंगलरु
ु के भारतीय ववद्या भवन में ये परु स्कार
प्रदान ककए गए |

साहित्य अकादमी के अध्यक्ष तथा प्रशसद्ध साहित्यकार डॉ. र्ंद्रशेिर कांबर ने


र्यतनत यव
ु ा साहित्यकारों को सम्मातनत ककयाण ् इस मौके पर उधिोंने किा कक ये
परु स्कार ववशभधन भारतीय भार्ाओं में शलिे जा रिे साहित्य और साहित्यकारों को
प्रोत्साहित करने का काम करते िैं |

हिंदी साहित्य के शलए यव


ु ा लेिक अंककत नरवाल (Ankit Narwal) को उनकी

पस्
ु तक ”यू आर अनधतमतू तच प्रततरोध का ववकल्प” के शलए साहित्य अकादमी यव
ु ा
परु स्कार 2020 प्रदान ककया गया. अंककत पंजाब यतू नवशसचटी में अशसस्टें ट प्रोफेसर
िैं |

75
प्रश्न 9 साहित्य अकादमी के पिले एवं वतचमान में अध्यक्ष के बारे में बताइये ?

उत्तर – साहित्य अकादमी के पिले अध्यक्ष जवािर लाल नेिरू थे ! वतचमान में प्रो.
र्धद्र शेिर कंबार को 2018-22 तक साहित्य अकादमी का अध्यक्ष र्न
ु ा गया िै !’

76
साक्षात्कार

ह द
िं ी साह त्य के क्षेत्र में – विशेष

डॉ. बो ती ढ़ािंडा

सम्पादक

अिंतरााष्ट्रीय ह द
िं ी एििं सामाजिक विज्ञान

शोध पत्रत्रका

आि म आपका पररचय करिा र ें ैं अिंतरााष्ट्रीय ह द


िं ी एििं सामाजिक
विज्ञान शोध पत्रत्रका की सम्पादक डॉ बो ती डािंडा िी से ! साधारण
ह न्द ू पररिार में , पूणत
ा ः ग्रामीण मा ौल में इनका बचपन बीता ! पररिार
में सभी खेती के काया से िुड़े थे ! इनका गािंि ररयाणा में जथथत ै –
त ारी ! इनकी प्रारिं भभक भशक्षा भी गािंि से ी ु ई ! अपने गािंि में
इन् ोने सबसे अधधक भशक्षा प्राप्त की ै सिंघषों के चलते इनकी भशक्षा
की यात्रा ककस प्रकार पीएचडी करने तक प ु ुँ ची औऱ कैसे ये अिंतरााष्ट्रीय
िनाल के सम्पादन काया द्िारा साह त्य िगत को अपनी सेिाएिं दे र ीिं
ैं -

आइये इनसे ी िानते ैं -

प्रश्न 1. मैडम, ग्रामीण इलाकों में लड़ककयों की भशक्षा को लेकर लोगों के


नकारात्मक विचार ोते ैं?

77
ाुँ बी ए में मेरे को एडभमशन न ीिं हदलिाते थे ! ाुँ िी क्योंकक घर ब ु त दरू था,
30-35 ककलोमीटर तो घर िाले allowed न ीिं कर र ें थे कक ऐसे अकेले कैसे िाओगे
! ब ु त मैंने लड़ाई की घर िालों से झगड़ा ककया, उसके बाद घर िालों ने एडभमशन
हदलिाया क्योंकक मेरा sports में ब ु त interest था, मैं sports में ब ु त ज्यादा आगे
र ी ूुँ !’

कॉलेि के भलए ब ु त धक्के से एडभमशन भमला, किर कॉलेि िाने लगी !’ अपने
गािंि में मैं अकेली लड़की िाती थी, आस पास से भी ! ग्रेिुएशन ककया !
ग्रेिुएशन करने के बाद घर िालों ने मना कर हदया कक आपको एम ए न ीिं कराया
िायेगा !” तब किर एम ए के भलए मैंने प्राइिेट apply कर हदया !’तब किर
इिंगेिमें ट ो गई ! ससरु ाल िालों ने बोल हदया कक थपोर्टास लाइन में न ीिं िाने
हदया िायेगा !” एक साल एम ए का ो गया किर घर िालों ने बोला बी एड में
एडभमशन ले लो ! मैंने test हदया मेरा बी एड में एडभमशन ो गया ! एम ए मैंने
एक साल प्राइिेट कर भलया. उसके बाद बी एड ककया !

किर एम किल के िॉमा ननकलें ु ए थे correspondence से ! एडभमशन ले भलया !


एम ए एिक
ु े शन से भी ककया ! अिंकल ने तब पी एच डी करने के भलए प्रेरणा दी
! पी एच डी में एडभमशन ले भलया !

शरू
ु ोते टाइम हदक्कत आती थी !, कोई co-operate न ीिं करता था उस समय
घर िालों ने मेरे मम्मी पापा ने मझ
ु े ब ु त co-operate ककया !

प्रश्न 2. आपका पी एच डी का विषय कौनसा था मैडम ?

मेरा पी एच डी का विषय था - नरे श मे ता के उपन्यासों में सामाजिक चेतना !

प्रश्न 3. पी एच डी आपने क ाुँ से की तथा क्या अनभ


ु ि र े आपके ?

मैंने दक्षक्षण भारतीय ह द


िं ी प्रचार सभा चेन्नई से पीएचडी रजिथरे शन ककया ै !,

78
एडभमशन ि ाुँ भलया, काम य ी से ककया ! तब गाइड ले सकते थे जिनको 14 साल
का गाइड का एक्सपीररयिंस ो !

य ाुँ सबने ब ु त cooperate ककया ! लेककन भलखने का काम खद


ु ककया !

मैं अपना पी एच डी का काम ररयाणा में ी करती थी, रजिथरे शन तो चेन्नई का


था लेककन घर पर सिंयक्
ु त पररिार ोता था ब ु त काम ोता था !

प्रश्न 4. आप अपने िीिन के सिंघषो के बारे में बताइये ?

ाुँ िी, कौन खुश ु आ ? कौन दःु खी ये सब चीज़ेँ ब ु त matter करती ैँ औऱ उस


िक़्त तो मझ
ु े सभी की तरि से पता न ीिं ककतना कुछ सन
ु ना पड़ता था ! लेककन
मैं मेशा य सोचती कक िो पेड़ ैँ ना... पेड़ को दे ख कर चलती थी मैं क्योंकक
पेड़ की चोटी तक प ुिं चने के भलए में ककतनी शाखाओिं को पार करना पड़ता ै !
ककतना struggle करना पड़ता ै !”

पेड़ पर चढ़ें गे तो दे खें कक राथते में ककतनी बाधाएिं आती ैँ, ये तो न ीिं ै कक म
सीधे ी पेड़ पर चढ़ िायेंगे उसके भलए भी सोचना पड़ता ै कैसे चढ़ना ै, कैसे
काम ोगा ? तो मैं ये सोच कर माइिंड को उधर लगा लेती थी कक ये ी मेरे काम
आएगा िो मैं कर र ी ूुँ अभी !

प्रश्न 5. इिंटरनेशनल िनाल के भलए आपका सिंपादक के पद को कब सिंभाला औऱ


कैसे शरु
ु आत ु ई ?

पी एच डी करने के बाद िॉब के भलए apply ककया तो उसके क्राइटे ररया दे खें !
इसमें पेपर पजललश की िरूरत ोती ै, book पजललश ो तो उसके भी marks
भमलते ैँ ! सेभमनार attend करने के भी marks भमलते ैँ ! उस समय मेरे अिंकल
जिन् ोंने मेरा एडभमशन करिाया था पी एच डी मेँ, उन् ोंने ी मझ
ु े इिंटरनेशनल
िनाल का सम्पादक बनाया ! उन् ोंने ी मेरे नाम से य िनाल शरू
ु करिाया !

79
मेरे अिंकल का नाम सरु ें द्र गुप्ता ै ! इस िनाल के डायरे क्टर भी ैँ औऱ कई
िनाल्स इनके under चलते ैँ !”िे म ारािा अग्रसेन कॉलेि त्रबरादरी ररयाणा मेँ
associate prof. भी ैँ !

प्रश्न 6. अब तक ककतने पेपर पजललश ो चक


ु े ैं आपके ?

मेरी एक book भी पीएचडी के विषय पर 2014 में आ चक


ु ी ै !

अब तक 5 पेपर पजललश ो चक
ु े ैँ औऱ इसके अलािा पीएचडी करते समय ी
शलद सरोकार नाम के नेशनल िनाल में भी दो पेपर पजललश ो चक
ु े ैँ !

प्रश्न 7. आि यि
ु ाओिं का लेखन के प्रनत रुझान न ीिं ै ? क्या कारण ैं औऱ आप
कौनसे तरीके अपना र ी ैं इसके भलए ?

मैं अभी िैसे बच्चों को कविता पढ़ाती ूुँ final year औऱ second year के बच्चों को
! कविताओिं पर प ले बच्चों के views लेती ूुँ कक तुम् ें इससे क्या सीखने को
भमला किर खुद बताती ूुँ ! मैं मेशा उनसे पछ
ू ती ूुँ कक ये कविता, क ानी सब
आपके पाठ्यक्रम में क्यों शाभमल ककये गए ैं ?

म कोभशश तो करते ैं ऑनलाइन में क्या बताएिं ! बच्चे ऑनलाइन class attend
न ीिं करते ! ब ाना लगाते ैं, माता -वपता से झठ
ू बोलते ैं !

मैं अपनी तरि से ब ु त प्रयास करती ूुँ, मारे कॉलेि में ननबिंध, कविता, क ानी
लेखन की प्रनतयोधगतायें ोती ैं ! कुछ बच्चे िरूर आगे आते ैं !

लेककन बच्चों का झक
ु ाि विदे श िाने की ओर ैं ! मैं कविताओिं के माध्यम से
िैसे लोकतिंत्र पर सिंकट औऱ गुलाम बनाने िाले दे श, इनसे बच्चों पर प्रभाि भी
ब ु त पड़ता ै !,

प्रश्न 8. क्या आप कविताएिं भलखते ैं मैडम ?

न ीिं, केिल सामाजिक तौर पर िागरूकता लाने का प्रयास करती ूुँ !

80
मैं तो य ी मानती ूुँ कक class के 80 बच्चों में से 10 भी िागरूक ों तो य मेरी
ब ु त बड़ी achievement ोगी !

बच्चों को भसखाती ूुँ उनके साथ दोथत की तर र कर, मैं प्रोिेसर ूुँ ऐसा न ीिं
चलती ! मैंने दे खा ै कक ब ु त क्षमता ोने के बाद भी घर की समथयाओिं के
कारण बच्चे आगे न ीिं बढ़ पाते ! मैं य ी सोचती ूुँ कक ककसी एक बच्चे को भी
बा र ननकाल सकुँू और िो एक भी एक को िागरूक कर दे तो म पता न ीिं
ककतनों को िागरूक कर दें गे !

प्रयास तो धीरे धीरे ी ोंगे ! लेखन के भलए भी औऱ िागरूकता के भलए भी !

प्रश्न 9. आि िो िेथटना कल्चर आ चक


ु ा ै, उसी से मारी यि
ु ा पीढ़ी भारतीयता
से दरू ु ई ै, आप क्या क ना चा ें गे इस विषय में मैडम ?

बच्चे बा र िाना चा ते ैं, क ते ैं क्या रखा ै इिंडडया में ? तो मैं क ती ूुँ कक


विदे श िाते ो तो ि ाुँ क़ी सिंथकृनत अच्छी या भारतीय ! तो िो क ते ैं भारत क़ी
! मैं बोलती ूुँ उनको, किर भी भारत को क्यों छोड़ना चा ते ो ?

िाइनल ईयर में एक कविता ै अज्ञेय िी क़ी ग्रामीण िीिन का िणान ै उसमें !


बच्चों पर आि नगरीय िीिन का ब ु त प्रभाि ै ! म बच्चों से पछ
ू ते ैं आपको
गािंि में अच्छा लगता ै कक श र में ? दरअसल मानिीय मल्
ू य तो गािंि में ी ैँ
!

मारा दे श तो ऑटोमेहटकली गुलाम बनने लगा ै, बस अपने खान – पान से, र न


– स न से ! म ब्ािंड दे खते ैँ !” monte carlo, woodland क्या ये भारत की ब्ािंड
ै ?

अपने दे श की चीि को दे शी बोलते ैं, अपने दे श की चीि को तो दे शी ी बोला


िायेगा ! िेथटना culcture आ चक
ु ा ै ! लेककन अगर deeply समझाया िायेगा तो

81
बच्चे आगे िरूर आते ैं किर िो मसे पछ
ू ने लगते ैं कक म पररितान कैसे लाएिं
?

प्रश्न 10. मह ला की र उपलजलध के पीछे ब ु त सिंघषा ोते ैं ये बात ककतनी स ी


ै मैडम ?

मह लाएिं घर औऱ बा र दोनों की जिम्मेदारी ननभा र ी ोती ैं, इतना ोने के


बािज़द
ू भी उन पर अत्याचार ककये िाते ैं ! घर दो ैं उनके लेककन उनके भलए
र थय ै कक कौनसा घर उनका ै ?

मेरे वपतािी ने भाई औऱ मझ


ु े बराबर रखा ! गािंि के लोग उन् ें क ते थे, िं सती ै
,लड़को से बात करती ै क्यों पढ़ा र ा ै किर भी उन् ोंने मझ
ु े पढ़ने हदया !

प्रश्न 11. समथयाओिं को लेकर व्यजक्त का कैसा निररया ोना चाह ए ?

मैं ब ु त ुँ स मख
ु ूुँ ककतनी भी tension में ूुँ , खुद को, उस बात से कैसे भी
separate कर लेती ूुँ, फ्रेंड्स से भमलकर, घम
ू कर, !

गरीब लोगों से भमलती ूुँ, घास काटते र ते ैं, उनका दःु ख मसे बड़ा ोता ै किर
भी िे मसे ज्यादा खुश ोते ैं ! उनकी समथयाओिं को सन
ु कर अपनी समथया
छोटी लगने लगती ै ! ज़ब मझ
ु े tension ोती ै उनको दे ख लेती ूुँ ! एक – एक
हदन का काम करते ैं मैडम िे किर भी मसे ज्यादा खुश र पाते ैं !

मैं बच्चों से बोलती ूुँ इनसे भमले ो कभी आप ? बात की ै आपने इनसे ? ये
दे खो त्रबजल्डिंग बन र ी ै, एक बार उनसे बात करना किर आपको जििंदगी का
अच्छी तर पता चलेगा !

मेरे को tension ोती ै तो मैं इनको दे खती ूुँ, उनके चे रे पर ककतनी ख़ुशी ोती
ै !

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प्रश्न 12. बच्चों को िागरूक करने की हदशा में आपका कैसा प्रयास र ता ै ?

बच्चे कविताएिं भलखते ैं, उन् ें िागरूक करो तो भलख लेंगें अच्छा !

मैं कविताओिं की व्याख्या उन् ीिं को करने के भलए दे ती ूुँ, उनकी सन


ु लेती ूुँ किर
कभमयों को मैं परू ा करती ूुँ ! छोटी छोटी कविताओिं में बड़े बड़े र थय नछपे ोते ,ैं
िो समाि की समथयाओिं के बारे में ैं !

प्रश्न 13. यथाथा में अपने विचारों को उतारना ी असली योगदान ोता ै समाि
को, क्या क ना ै आपका ?

मैं प्रैजक्टकल में ी विश्िास करती ूुँ मैडम !, मैं बच्चों को भी य ी समझाती ूुँ
कबीर दास िी अब न ीिं ै लेककन क्यों पदते ैं म इनको ! ककस कारण से
प्रासिंधगक ैं ये, क्योंकक िो समािऔऱ मानिीय मल्
ू य उस समय थे उन से आप
कैसे पररधचत ोंगे ! उनसे पररधचत न ीिं ोंगे तो आप जियोगे कैसे ? घर में दादा
दादी, पापा ैं आपके ! आपकी कुछ परम्परायें ैं उनको लेकर अभी तक चल र ें ो
! समथयाएिं तब भी थी अब भी ैं प ले म सीधे रूप से अिंग्रेिो के गुलाम थे अब
मारी सिंथकृनत अपने ी दे श में लप्ु त ोने लग र ी ैं ! विदे शों में मारी सिंथकृनत
को ब ु त मान र ें ैं लोग !” म अपनी सिंथकृनत को खुद ी खत्म कर र ें ैं !

प्रश्न 14. आि यि
ु ा पीढ़ी को आप क्या सन्दे श दे ना चा ें गी मैडम ?

मैं प्रैजक्टकल में विश्िास करती ूुँ, भाषण दे ने में न ीिं, िो भी सीखना चा ती ूुँ
मैडम मैं खुद प ले उसी पर अमल करती ूुँ !

प्रश्न 15. लेखन में भविष्ट्य की क्या सिंभािना हदखाई दे ती ै आपको ?

आिकल ह द
िं ी का दे श ी न ीिं विदे शों में भी ब ु त म त्ि ै ! आपके भलखने में
प्रभाि ो तो ककताब बािार में िरूर त्रबकती ै ! म भी मैडम गाइड भलखने की
कोभशश कर र ें ै, अपने भसलेबस की, अच्छी भलखी ै ! िरूर चलेगी !

83
मैं य ी क ना चा ूिं गी कक खुद प्रैजक्टकल करके ककसी के िीिन के भलए प्रेरणा बनो
!

िी ब ु त ब ु त धन्यिाद मैडम, आपबे ब ु त सरल शलदों से ब ु त ग री बातें में


बताई म उम्मीद करते ै कक आपका िीिन की ये सब बातें िानकर पाठकों
को प्रेरणा अिश्य भमलेगी !

- शिवा स्वयं

संपादक

84
आपकी सफलता

साक्षात्कार

पल
ु ककत शर्ाा (आर. जे. एस.-2021)

आज हर् आपकी र्ल


ु ाक़ात करवाने जा रहे हैं – RJS -
पल
ु ककत शर्ाा से !

पल
ु ककत जी ने RJS के exam को clear ककया है ! Judiciary के इस exam को पास
करने के ललए students को तीन चरणों र्ें परीक्षाओं को पास करना होता है ! Pre,
mains औऱ interview

इन सब चरणों से clear होने के ललए एक रणनीतत बनानी होती है !

आज हर् पल
ु ककत सर से जानते हैं कक उन्होंने इस सफलता को प्राप्त करने के
ललए कैसी रण नीतत बनाई ?

सबसे पहले तो सर, हर् नई गूँज पत्रिका की ओर से आपका हार्दाक अलिनन्दन


करते हैं औऱ आपको इस सफलता के ललए बहुत बहुत बधाई दे ते हैँ ! कोई िी
सफलता एक साथ नहीं लर्ल जाती, उसके पीछे अथक औऱ तनरं तर प्रयास जरूर
तछपे रहते है ! ये त्रबल्कुल सागर र्ें से हीरे चन
ु कर लाने जैसा है ! हर्ें बहुत ख़श
ु ी
है कक आपका यह अनि
ु व, आप उन सिी RJS Aspirants s के साथ बाूँट रहें है !
इससे इन्हें तनश्चचत ही प्रेरणा तो लर्लेगी ही साथ ही ये सिी Aspirants अपने ललए
exam को पास करने की एक रण नीतत बना पाएंगे !

तो सर,

प्रचन 1 सर, सबसे पहले हर् सिी जानना चाहें गे कक आप अपने जीवन, पररवार व
लशक्षा के ववषय र्ें बताएं !

85
उत्तर 1 र्ेरा नार् पल
ु ककत शर्ाा है ! र्ैं र्लतः िरतपरु का रहने वाला हूँ औऱ
वपछले 14-18 सालों से जयपरु र्ें तनवास कर रहा हूँ !र्ैंने राजस्थान यतनवलसाटी से
LL. M. ककया है !

र्ैंने एल एल बी होते ही आर जे एस की तैयारी शरू


ु कर दी थी ! औऱ एल एल
एर् िी करता रहा ! कफर र्ेरा 3rd attempt र्ें आर जे एस र्ें चयन हो गया !

प्रचन 2 सर, आपका र्ीडियर् क्या है ?

उत्तर र्ेरा र्ीडियर् throughout ही English रहा !

प्रचन 3 आपका वतार्ान र्ें ककस पद पर चयन हुआ है ?

उत्तर - हाल र्ें र्ेरा पद आर जे एस civil judge and magistrate र्ें है औऱ जोधपरु
र्ें under training र्ें हूँ !

प्रचन 4 सर, आपकी सफलता के रहस्य सिी जानना चाहें गे

उत्तर - तनरं तर पररश्रर्, दृढ़ तनचचय लगन औऱ आत्र् ववचवास औऱ हार न र्ानना
ही व्यश्क्त को लशखर तक ले जाता है !

प्रचन 5. आपका role model कौन हैँ ?

उत्तर - र्ेरा role र्ॉिल र्ेरे दादा जी हैँ, जो खुद िी आर ए एस ररटायिा ऑकफसर
थे ! उन्होंने र्झ
ु े जीवन के र्ल र्न्ि िी लसखाये ! यह कहना अततचयोश्क्त नहीं
होगी कक जो कुछ िी र्ैं आज हूँ उसर्ें उनका हर्ेशा आशीवााद रहा है !

प्रचन 6. आप Message to students क्या दे ना चाहें गे ?

उत्तर - र्ैं आर जे एस aspirants को यहीं कहना चाहं गा कक ज़ब आपने दृढ़ तनचचय


कर ललया है तो आपको आपको आपके लक्ष्य तक पहुंचने र्ें कोई नहीं रोक सकता
!

प्रचन 7 ववद्यार्थायों को तैयारी कैसे करें , यह जानने की बहुत उत्सक


ु ता रहतीं है,
आप इसके बारे र्ें उन्हें क्या कहना चाहें गे ?

86
उत्तर - तैयारी start करने से पहले हर्ें श्जस exam र्ें आप appear हो रहें हैँ, उसके
लसलेबस से go through हो जाएूँ ! उससे सम्बंर्धत study material को पढ़े औऱ
previous years के question papers की practice करें ! Mock test दें ! अपना स्वयं
का एक schedule तैयार करें !

प्रचन 8.प्रथर् प्रयास र्ें सफलता न लर्लने पर तनराशा से बाहर कैसे तनकलें ?

उत्तर - हाूँ, ऐसा हो सकता है कक पहले प्रयास र्ें चयन न हो तो हताश न हों क्योंकक
competitive exam र्ें कोई फेल या पास नहीं होता है !सर्य लग सकता है, यर्द
आप तनरं तर पढ़ाई करते रहें गे तो सफलता अवचय लर्लेगी !

प्रचन 9. सर, परीक्षा की तैयारी पर आपकी रणनीतत क्या रही ?

उत्तर - रण नीतत का प्रचन है तो प्रत्येक की अपनी स्वयं की होती है औऱ जहाूँ तक


र्झ
ु से सम्बंर्धत है तो र्ैं किी िी पढ़ाई र्ें गैप नहीं आने दे ता था !, test
papers प्रैश्क्टस करता था औऱ 10-12 घंटे रोज़ पढ़ता था !

प्रचन 10. सर, आपने Pre, mains, interview – तीनों की तैयारी कैसे करें

उत्तर - pre, mains के ललए same strategy रहनी चार्हए जैसे law

Mains र्ें र्हंदी औऱ इंश्ललश र्ें essay प्रैश्क्टस करें !अलग से औऱ इंटरव्य के वक़्त
g.k. िी पढ़े !

प्रचन 11. क्या वकालत का ज्ञान िी जरूरी है

उत्तर - advocacy का experience as such जरूरी नहीं है !क्योंकक आर जे एस की एक


साल की ट्रे तनंग होती है ! तो उससे आप बहुत कुछ सीखते हैँ औऱ यर्द कर रखी है
तो आपकी law की knowledge enhance ही होगी !

प्रचन 12. सफलता के ललए self study जरूरी है या coaching या दोनों औऱ क्यों ?

उत्तर - र्ेरे ववचार से दोनों ! Self study औऱ coaching both are important क्योंकक
कोर्चंग आपकी र्दद करती है कक आपको क्या पढ़ना है औऱ क्या नहीं !

87
प्रचन 13. राजस्थान र्ें law का weightage ककतना होता है ! Eng वाले र्हन्दी को
कैसे औऱ र्हन्दी वाले English को कैसे तैयार करें इस बारे र्ें र्ागादशान करें !

उत्तर - law का weightage 70 परसेंट होता है औऱ language का around 30 percent


होता है ! Pre exam र्ें language र्ें grammar आती है औऱ mains र्ें essay writing
तो उसकी प्रैश्क्टस अच्छे marks के ललए आवचयक है !

प्रचन 14. pre, mains के बाद इंटरव्य का जो िर रहता है वो बरकरार रहता है


उसके ललए student क्या करें ?

उत्तर - . दे खखए थोड़ा िर होना अच्छी बात है परन्तु इंटरव्य के ललए ज्यादा िरने
की जरूरत नहीं है क्योंकक इंटरव्य एक फॉर्ाल discussion जैसे होता है !

प्रचन 15. आपने RJS कौनसे attempt र्ें clear ककया ?

क्या आपने केवल RJS पर ही फोकस रखा या कोई अन्य कायों र्ें िी आपने
अपना सर्य र्दया !

उत्तर - र्ैं 3rd attempt र्ें select हुआ था ! औऱ र्ैंने दसरा कोई exam नहीं र्दया
परन्तु इसका र्तलब यह नहीं है कक दसरे एलजार् अच्छे नहीं, उनका िी उतना ही
र्हत्व है !

प्रचन 16. सर, जो student 2 या 3 attempt पर िी रह जाते हैँ, उन्हें आप क्या


कहना चाहें गे ?

उत्तर- Attempt से ज्यादा कुछ नहीं होता ! आपको यर्द आपका लक्ष्य हालसल हो
जाता है तो वही आपका best attempt है !

प्रचन 17 सर, ववद्याथी coaching कर लेते हैँ, इसर्ें test series का क्या role है ?

उत्तर - Test series play an important role. क्योंकक इससे हर्ें पता लगता रहता है
कक हर् ककतने पानी र्ें हैँ !

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प्रचन 18. वतार्ान र्ें जो छाि RJS की तैयारी कर रहें हैँ, उनके ललए आप क्या
कहना चाहें गे ?

उत्तर - Regular पर्ढ़ए, अपने सीतनयसा के touch र्ें रर्हये ! अपने teachers से
doubt clear करते रर्हये औऱ अपने आप पर ववचवास रखखये !

प्रचन 19. क्या आपने नोट्स बना कर तैयारी की ?

उत्तर - त्रबल्कुल, र्ैं खद


ु के नोट्स बनाता था !

Signatures

धन्यवाद सर, आपने आर जे एस के aspirants को ही नहीं हर् सिी को अपनी


सफलता की रण नीतत पर बात करके बहुत उत्साह र्दया है !

दरअसल रोशनी तो र्चराग से ही होती है, आग से नहीं औऱ वो र्चराग अपने िीतर


जलाये ऱखना, उसकी लौ को न बझ
ु ने दे ना, ना कर् होने दे ना, जो हर्ें हर्ेशा अपने
लक्ष्य की याद र्दलाता है यही दृश्टटकोण हर्ें इस योलय बना दे ता है कक हर्
रोशनी र्दखा सकें, रोशनी बन सकें ! आप का र्ागादशान उसी रोशनी की तरह है
आपका प्रत्येक शब्द प्रेरणादायक है !

एक बार कफर से र्ैं नई गूँज के सर्स्त सदस्यों की ओर से आपका धन्यवाद


व्यक्त करती हूँ !

धन्यवाद सर !

लशवा स्वयं
सम्पादक

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