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NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE

शोध , साहित्य और संस्कृति की माससक वैब पत्रिका

नयी गज
ं -------.

वर्ष 2023

अंक 1

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NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE

संपादक मंडल

प्रमुख संरक्षक

प्रो. दे व माथरु

vishvavishvaaynamah.webs1008@gmail.com

मुख्य संपादक

रीमा मािे श्वरी

shuddhi108.webs@gmail.com

संपादक

सशवा ‘स्वयं’

sarvavidhyamagazines@gmail.com

शाखा प्रमुख

ब्रजेश कुमार

aryabrijeshsahu24@gmail.com

परामशषदािा

कमल जयंथ

jayanth1kamalnaath@gmail.com

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सम्पादकीय

फलों की िरि बनो

सशवा स्वयं

िँ सो, खखलखखलाओ, जैसे फल िोिे िैँ | मश्ु श्कलों से क्या घबरािे िो?

श्जंदगी में दो बािों की गगनिी करना छोड़ दो, खद


ु का दुःु ख और दसरों का
सख
ु | श्जंदगी आसान िो जाएगी...

ककसके जीवन में मश्ु श्कलें निीं.... िर ककसी के जीवन में िैँ | लेककन उनिीं से
जीि जाना िी िो जीवन िै |

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िम
ु ज़ब उदास िोिे िो, अपने अंदर नकारात्मक भाव ले आिे िो, ये वैसे िी िै
जैसे मरु झाया िुआ फल... क्या आपको पसंद िै मरु झाया िुआ फल... निीं ना |
और कोई निीं पछिा कक क्यों मरु झाया ?

िँ सने वाले के साथ परा जिाँ िोिा िै , रोने वाले क़ो कुछ दे र की सिानभ
ु ति भी
मश्ु श्कल िी समल पािी िै | क्या िम इिने िार गए िैँ कक सिानभ
ु ति से जीवन
श्जयें |

जीवन का नाम िी िोिा िै िर हदन का नया संघर्ष.. िमारे िाथ में जो िै


उसकी, उस पल की कीमि िै बिुि..

ये पल सशकवों – सशकायिों में भी बीि सकिे िैँ लेककन आप अगर मश्ु श्कलों
में भी खद
ु क़ो अंदर से अपने सकारात्मक ववचारों की शश्क्ि दे िे रिें िो पिझड़
में भी फलों क़ो ला सकिे िैँ आप |

फलों क़ो दे खा िै , अपने सन
ु दर रं गों से, ऐसे मस्
ु कुरा कर खखलने से वो ककिनी
ख़ुशी त्रबखेरिे िैँ िम सब के सलए और िम इंसान.... इिना सब कुछ िोिा िै
िमारे पास लेककन ज्यादा पाने की इच्छा िमें खुश िोने दे िी िी निीं... मस्
ु कुराने
दे िी िी निीं...

ये फल.. पत्ते.. पेड़ इनके पास जो ख़ुशी िै पिा िै वो क्यों िै ? क्योंकक ये कभी
अपने बारे में निीं सोचिे.. ये केवल सबके बारे में सोचिे िैँ.. लेिे कुछ निीं
केवल दे िे िैँ.. त्रबना पाने की इच्छा के |
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और इससलये ये िप्ृ ि िोिे िैँ क्योंकक ये पर्ष िोिे िैँ |

िम इंसानों की रचना भी उसी ईश्वर ने की श्जसने इन िँ सिे मस्


ु कुरािे फलों
क़ो बनाया |

िम अगर अपने चेिरे पर मस्


ु कान रखें िो िम बिुि खुशी दे सकिे िैँ अपने
अपनों क़ो | फलों की िरि खद
ु क़ो रख कर िम अपने अपनों क़ो उससे किीं
ज्यादा ख़ुशी दे सकिे िैँ |

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शभ
ु ेच्छा

नयी गज
ूं ------. पररवार
परामशषदािा-
प्रश्न िै कक संस्कृति क्या िै । यं संस्कृति शब्द सम+् कृति से बना िै, श्जसका अथष िै अच्छी कृति। अथाषि ्
संस्कृति वस्िुिुः राष्ट्रीय अश्स्मिा के पररचायक उदात्त ित्वों का नाम िै ।

भारिीय सनदभष में संस्कृति व्यश्क्ितनष्ट्ठ न िोकर समश्ष्ट्ितनष्ट्ठ िोिी िै । संस्कृति की संरचना एक हदन
में न िोकर शिाश्ब्दयों की साधना का सुपररर्ाम िोिा िै । अिुः संस्कृति सामाससक-सामाश्जक तनगध
िोिी िै । संस्कृति वैचाररक, मानससक व भावनात्मक उपलश्ब्धयों का समुच्चय िोिी िै । इसमें धमष,
दशषन, कला, संगीि आहद का समावेश िोिा िै । इसी की अपररिायषिा की ओर संकेि करिे िुए भिि
ृष रर ने
सलखा िै कक इसके त्रबना मनुष्ट्य घास न खाने वाला पशु िी िोिा िै -

‘‘साहित्यसंगीिकला-वविीनुः

साक्षाि ् पशुुः पुच्छववर्ार्िीनुः।।

मख्
ु य संपादक
उपतनर्द् के शब्दों में किें िो संस्कृति में जीवन के दो आयाम श्रेय व प्रेय का सामंजस्य िोिा िै । इनिीं
आधार पर आध्याश्त्मक, वैचाररक व मानससक ववकास िोिा िै और इनिीं के आधार पर जीवन-मल्यों व
संस्कारों का तनधाषरर् िोिा िै और यिी जीवन के समग्र उत्थान के सचक िोिे िैं। सशक्षा-िंि में इनिीं
सांस्कृतिक मल्यों का सशक्षर्-प्रसशक्षर् िोिा िै । विषमान में सशक्षा-व्यवस्था संस्कृति की अपेक्षा
सम्यिा-तनष्ट्ठ अगधक िै । िात्पयष िै कक विषमान सशक्षा ववचार-प्रधान, गचनिन-प्रधान व मल्यप्रधान की
अपेक्षा ज्ञानाजषन-प्रधान िै । वस्िुिुः इसी का पररर्ाम िै कक सम्प्रति सशक्षा के द्वारा बौद्गधक स्िर में
िो असभवद्
ृ गध िुई िै ककनिु संवेदनात्मक या भावनात्मक स्िर घिा िै ।

संपादक –

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िमारी सशक्षा में सांस्कृतिक मल्यों के स्थान पर पश्श्चमी सभ्यिा-मलक ित्वों को उपादान के रूप में
ग्रिर् कर सलया गया िै । िभी िो सशक्षा व समृद्गध के पाश्चात्य मानदण्डों को आधार मान सलया िै जो
संस्कृति-ववरोधी िैं, श्जनमें नैतिक व मानवीय मल्यों का ववशेर् स्थान निीं िै । इसी का पररर्ाम िै कक
बुद्गधमान व गरीब नैतिक व्यश्क्ि सामाश्जक दृश्ष्ट्ि से भी िांससये पर िी रििा िै और नैतिकिा-वविीन,
संवेदनिीन, भ्रष्ट्िाचारी व अपराधी भी सम्पनन, सभ्य, सम्मानय व प्रतिश्ष्ट्ठि िोिा िै । इसी संस्कृति-
वविीन व्यवस्था के कारर् शोर्र्-प्रधान पंजीवादी व्यवस्था िी ग्राह्य िो गई िै, श्जसने रिन-सिन के
स्िर को िो उठाया िै , पर इस भोगवादी बाजारवादी व्यवस्था के कारर् अथषशास्ि व िकनीककववज्ञान के
सामने नैतिकिा व मानवीयिा गौर् िो गई िै । जबकक राधाकृष्ट्र्न व कोठारी आयोग की मानयिा थी
कक सशक्षा ऐसी िोनी चाहिये जो सामाश्जक, आगथषक व सांस्कृतिक पररविषन का प्रभावी माध्यम बन
सके। इस दृश्ष्ट्ि से भारिीय प्रकृति और संस्कृति के अनुरूप सशक्षा से िी मल्यपरक उदात्त-गुर्ों का
संप्रेर्र् और समग्र व्यश्क्ित्व का तनमाषर् सम्भव िै । इसमें पुराने व नये का त्रबना ववचार ककये जो दे श
की अश्स्मिा व समाज के हििकर िै , उसी को प्रमुखिा दे नी चाहिए।

शाखा प्रमुख की कलम से--


वप्रय पाठकों

संस्थान की पत्रिका नयी गज


ं के पिले अंक का लोकापषर् एक आंिररक सुख की अनुभति करा रिा िै ।

मुझे प्रसननिा िै कक शाखा प्रमख


ु के रूप में कायषभार संभालने के बाद मुझे आप सभी से नयी गंज के
इस अंक के माध्यम से रूबरू िोने का मौका समल रिा िै ।

िम ककिना भी ववकास कर लें ककनिु यहद समाज में संवेदना िी मर गई िो सब व्यथष िै । इस


संवेदनिीनिा के चलिे समाज में नकारात्मक ऊजाष हदन प्रति-हदन बढ़िी जा रिी िै जो तननदनीय भी िै
और ववचारर्ीय भी। आवश्यकिा िै कक िम अववलम्ब इस हदशा में अपने प्रयास आरम्भ कर दें ।

वस्िुिुः अपने कमों से िम अपने भाग्य को बनािे और त्रबगाड़िे िैं। यहद गंभीरिा से गचंिन-मनन ककया
जाय िो िमारा कायष-व्यापार िमारे व्यश्क्ित्व के अनुसार िी आकार ग्रिर् करिा िै और िमें अपने कमष
के आधार पर िी उसका फल प्राप्ि िोिा िै । कमष ससफष शरीर की कियाओं से िी संपनन निीं िोिा अवपिु
मनुष्ट्य के ववचारों से एवं भावनाओं से भी कमष संपनन िोिा िै । वस्िुिुः जीवन-भरर् के सलए िी ककया
गया कमष िी कमष निीं िै िम जो आचार-व्यविार अपने मािा-वपिा बंधु समि और ररश्िेदार के साथ
करिे िैं वि भी कमष की श्रेर्ी में आिा िै । मसलन िम अपने वािावरर् सामाश्जक व्यवस्था, पाररवाररक

समीकरर्ों आहद के प्रति श्जिना िी संवेदनशील िोंगे िमारा व्यश्क्ित्व उिनी िी उच्चकोहि की श्रेर्ी में
आयेगा।

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आज के जहिल और अति संचारी जीवन-ववृ त्त के सफल संचालन िे िु सभी का व्यश्क्ित्त्व उच्च आदशों
पर आधाररि िो ऐसी मेरी असभलार्ा िै ।

यि ज़रूरी निीं िै कक िर कोई िर ककसी कायष मे पररपर्ष िो, परनिु अपना दातयत्व अपनी परी कोसशश से
तनभाना भी दे श की सेवा करने के समान िी िै । संपर्ष किषव्यतनष्ट्ठा से ककया िुआ कायष आपको अवश्य
िी कायष-समाश्प्ि की संिुश्ष्ट्ि दे गा। कोई भी ककया गया कायष िमारी छाप उस पर अवश्य छोड़ दे िा िै
अिएव सदै व अपनी श्रेष्ट्ठिम प्रतिभा से कायष संपनन करें । िर छोिी चयाष को और छोिे -से-छोिे से कायष
के िर अंग का आनंद लेकर बढ़िे रिना िी एक अच्छे व्यश्क्ित्व का उदािरर् िै ।

यि सवषववहदि िथ्य िै कक नयी गंज एक उच्च स्िरीय पत्रिका िै श्जसमें ववसभनन ववधाओं में
उच्चस्िरीय लेखों का अनठा संग्रि िै

आप सभी पत्रिका का आननद लें एवं अपनी प्रतिकियायें ऑनलाइन या ऑफलाइन भेजें।

नयी गंज के माध्यम से िमारा आपका संवाद गतिशील रिे गा। आप सभी अपनी सुनदर व श्रेष्ट्ठ रचनाओं
से नयी गंज को तनरनिर समृद्ध करिे रिें गे इसी ववश्वास के साथ।

अंि में मैं सभी सम्पादक मण्डल के सदस्यों एवं रचनाकारों को नयी गंज पत्रिका के सफल सम्पादन
एवं प्रकाशन के सलए साधुवाद ज्ञावपि करिा िं करिा िँ ।

आप सभी को िाहदष क बधाई के साथ बिुि-बिुि धनयवाद!!

कासलदास ने काव्य के माध्यम से किा िै -

पुरार्समत्येव न साधु सवं


न चावप काव्यं नवसमत्यवद्यम ्।
सनिुः परीक्ष्यानयिरद् भजनिे
मढुः परप्रत्ययनेय बुद्गधुः।।

अथाषि ् पुरानी िी सभी चीजें श्रेष्ट्ठ निीं िोिी और न नया सब तननदनीय िोिा िै । इससलए बुद्गधमान
व्यश्क्ि परीक्षा करके जो हििकर िोिा िै उसी को ग्रिर् करिे िैं जबकक मखष दसरों का िी अनधानुकरर्
करिे िैं।
अस्िु, तनववषवाद रूप से यि सभी स्वीकार करिे िैं कक राष्ट्र की रक्षा, का सकारात्मक पक्ष िोिा िै ।

प्रकाशन सामग्री भेजने का पिा

ई-मेलुःgoonjnayi@gmail.com

नयी गंज इंिरनेि पर उपलब्ध िै । www.nayigoonj.com पर श्क्लक करें ।

नयी गंज में प्रकासशि लेखाहद पर प्रकाशक का कॉपीराइि िै

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शुल्क दर 40/-

वावर्षक: 400/-

िैवावर्षक: उपयक्
ुष ि शुल्क-दर का अगग्रम भुगिान 1200/-

को -----------------------------------------द्वारा ककया जाना श्रेयस्कर िै ।

तनयम तनदे श
1 रचनाएं यथासंभव िाइप की िुई िों, रचनाकार का परा नाम, पद एवं संपकष वववरर् का उल्लेख
अपेक्षक्षि िै ।

2 लेखों में शासमल छाया-गचि िथा आँकड़ों से संबंगधि आरे ख स्पष्ट्ि िोने चाहिए। प्रयुक्ि भार्ा
सरल, स्पष्ट्ि एवं सुवाच्य हिंदी भार्ा िो।

3 अनुहदि लेखों की प्रामाखर्किा अवश्य सुतनश्श्चि करें । अनुवाद में सिायिा िे िु संस्थान संपादक
मंडल प्रकोष्ट्ठ से संपकष कर सकिे िैं।

4 प्रकासशि रचनाओं में तनहिि ववचारों के सलए संपादक मंडल प्रकोष्ट्ठ उत्तरदायी निीं िोगा और
इसके सलए परी की परी श्जम्मेदारी स्वयं लेखक की िी िोगी।

नई गँज तनयमावली

रचनाएूं goonjnayi@gmail. Com ई-मेल पते पर भेजी जा सकती हैं। रचनाएूं भेजने के ललए
नई गूँज के साथ लॉग-इन करें , यह वाूंछित है ।आप हमारे whatsapp no. 9785837924
पर भी अपनी रचनाएूँ भेज सकते हैँ

वप्रय सागथयों,
नई गँज िे िु आपके सियोग के सलए आपका िाहदषक धनयवाद। आशा िै कक ये
संबंध आगे भी प्रगति के पथ पर अग्रसर रिें गे। आगामी अंक िे िु आप सबके
सकिय सियोग की पन
ु ुः आकांक्षा िै। आप सभी से एक मित्वपर्ष अनरु ोध िै
कक आप अपने शोध प्रपि तनम्न प्रारूप के ििि िी प्रस्िि
ु करें श्जससे कक िमें
िकनीकी जहिलिाओं का सामना न करना पड़े -

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1.प्रकाशन िे िु आपकी रचना के मौसलक िोने का स्वतः सत्यापन रचना प्रेवर्ि


करिे समय "मौसलकिा प्रमार् पि" पर िस्िाक्षर करना अतनवायष िै । इसके
त्रबना रचना पर ववचार करना संभव निीं िोगा
2. रचना किीं पर भी पवष में प्रकासशि निीं िोनी चाहिए !
3. आपकी रचनाएूँ एम.एस. ऑकफस में टाइप होना चाहहए
4. फोंि - कृछतदे व 10, मूंगल यछनकोड
5. रचनाओूं के साथ अपना पर्ण पता, मोबाइल नूंबर, ईमेल तथा पासपोटण साइज की
फोटो लगाना अपेक्षित है !
6. आप लेख, कववता, कहानी, ककसी भी ववधा में रचनाएूँ भेज सकते हैँ !

नई गँज रचनाओं के प्रेर्र् सम्बंगधि तनयम व शिे :


एक से अधधक रचनायें एक ही वडण-डॉक्यमेंट में भेजें।
रचनायें अपने पूंजीकृत पेज पर हदए गए ललूंक इस्तेमाल कर प्रेवित करें ।
यहद आप हहूंदी में टाइप करना नहीूं जानते हैं, आप गगल द्वारा उपलब्ध
करवायी गयी ललप्यान्तरर् सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके ललए Google
इनपट
ु उपकरर् ललूंक पर जाएूँ।
स-आभार

संपादक मंडल

Note:- प्रत्येक रचना लेखक की स्वयं मौसलक िथा सलखखि िै ! इसमें लेखक के स्वयं
के ववचार िैं िथा कोई िहु ि िोने पर लेखक स्वयं श्जम्मेदार िोगा!

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अनुक्रमाणिका

क्रम णििरणिका लेखक पृष्ठ संख्या


संख्या

लेख –
1 बदले पररिेश में गांधी और गांधीिाद डॉ घनश्याम 1–3
बादल

2 प्रणिकू ल पररणथिणि और दृढ़ बृजश


े कु मार 4–7
इच्छाशणि
3 जो कभी संभि न हो सका डॉ णशिा 8 - 10
धमेजा
कणििा
4 बढ़िी ठं ड णप्रया देिांगन 11
5 रौदनाद णगरें द्र 12 – 17
भदौररया

6 प्रकृ णि डॉक्टर अददिी 18 – 19


भारद्वाज

कहानी

7 कानून का डंडा और िदी रमेश मनोहरा 20 - 21

दोहे
8 हमीद के दोहे हमीदकानपुरी 22

लघु किा
9 स्नेहा की जीि णप्रया देिांगन 23 - 24
नारी िुम अबला नहीं सबला हो

10 धाय मााँ गोरा टाक 26 – 27


णनबंध

11 समान नागररक संणहिा 28 - 31


12 ऐणिहाणसक थिल एक नजर 32 - 34
गागरोन का दुगग (राज.)

13 साक्षात्कार- 2022 में आरजेएस 35 - 38


बनी -दाणमनी
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डॉ घनश्याम बादल

मोहनदास
करमचंद ग ंधी, ब पू, र ष्ट्रपपत और आम आदमी के लिए
लिर्फ ग ंधी ज ने व िे 21 वी िदी के चमत्क र पुरुष म ने
गए ग ंधीआज भी बहुत म यने रखते हैं । म यने तो वह
दे श के लिए भी रखते हैं मगर बदिे हुए पररवेश में अब ग ंधी श यद वह ज्योततपंज
ु य नहीं रहे
जजनिे भ रत न म क यह दे श म गफदशफन एवं रोशनी प कर चित थ ।

70 ि ि तक इि दे श को चि ने व िे ग ंधीव दी दि की जैिी दग
ु तफ त हो रही है उिक अिर
ग ंधी की छपव पर भी हुआ है । ह ि ंकक ग ंधी ने आज दी के तुरंत ब द ही कह ददय थ कक
अब क ंग्रेि क स्वतंत्र भ रत में कोई ख ि रोि नहीं होन च दहए और उन्होंने क ंग्रेि के
पविजफन की इच्छ व्यक्त की थी । िेककन त त्क लिक पररजस्थततयों में िंभवतः है न तो यह
व्यवह ररक थ और नहीं उि िमय के क ंग्रेिी नेत ऐि होने दे ने में अपन कोई ि भ दे ख रहे
थे इिलिए क ंग्रेि बनी रही । क ंग्रेिबनी ही नहीं रही अपपतु दृढ़त के ि थ स्व धीनत आंदोिन
में ककए गए बलिद नों क श्रेय िेते हुए िंबे िमय तक ित्त रूढ़ रही । जब तक नेहरू दे श के
प्रध नमंत्री रहे तब तक क ंग्रेि क कोई पवकल्प दे श को न ददख , न िूझ । श स्त्री जी के
छोटे िे क यफक ि में भी कॉन्ग्रेि दे श के लिए अपररह यफ रही ।

इिके ब द पररवतफन क दौर शुरू हुआ और नेहरु की पुत्री इंददर ग ंधी ने कम न िंभ िी ।
ह ि ंकक तब वह क ंग्रेि की वररष्ट्ठतम नेत नहीं थीं और उनिे ऊपर के प यद न पर क मत और
मोर रजी दे ि ई जैिे कई नेत थे िेककन नेहरू ग ंधी पररव र के प्रतत तनष्ट्ठ के चिते हुए इंददर
ग ंधी प्रध नमंत्री बनीं । बि, यही िे ग ंधीव दी दशफन भी मनम ने ढं ग िे अपन य एवं प्रस्तत

ककय ज ने िग ।

इंददर ग ंधी गजब की वक्त थी, उनके व्यजक्तत्व में भी जबरदस्त आकषफण थ , उनकी भ षण
शैिी और आम आदमी में उनके प्रतत आकषफण के चिते हुए 1971 में उन्होंने ग ंधीव दी

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अदहंिक िोच िे हटते हुए अपने र जनीततक र् यदे के लिए प ककस्त न क पवभ जन करव य
और उिके िह रे 1972 में चन
ु व जीतकर पन
ु ः ित्त रूढ़ हुई । 1975 में आप तक ि िग य
और 1977 में ित्त िे ब हर होकर 1980 में कर्र व पि आईं िेककन जजि तरह इंददर ने
अदहंि एवं िोकतंत्र क मज क उड य थ श यद उिी के चिते 1984 में उन्हें अपनी ज न भी
गंव नी पडी । तब िे िेकर आज तक गंग -जमुन में जजतन प नी बह है श यद उििे भी
ज्य द पररवतफन ग ंधी दशफन, ग ंधीव दी पवच र ग ंधी की र ष्ट्र की अवध रण ग ंधीव दी र जनीतत,
ित्त िे पवतष्ट्ृ ण के भ व, ि द जीवन उच्च पवच र की आदशफव दी परं पर भी क ि के ि थ
ज ती ददख ई दी य नी ि र्गोई के ि थ कहें तो अब ग ंधी केवि मुखौट म त्र रह गए थे ।

ग ंधी के प्रतत आम आदमी की श्रद्ध को चन


ु वों के िमय जमकर भुन य ज त रह िेककन
व्यवह ररक एवं र जनीततक जीवन में ग ंधी कहीं नहीं थे । जजिके पररण म स्वरूप दे श में भ ई
भतीज व द, पक्षप त, ज ततव द, िंप्रद यव द, िंकीणफ पवच रध र , क्षेत्रीयत व द जैिे अनेक ऐिे
तत्व घुि आए जजन्होंने एक तरह िे ग ंधी एवं ग ंधीव द क गि घोटने में कोई किर ब की
नहीं छोडी । कह िकते हैं कक 1948 में ग ंधी जी की मत्ृ यु के महज 20 - 22 ि ि ब द ही
दहंदस्
ु त न न म क यह दे श केवि ददख वे के लिए ग ंधीव दी दे श थ । यथ थफ में यह ं पर
पूंजीव द ह वी हो चक
ु थ और पूंजीव द के पीछे भ्रष्ट्ट च र क द नव िर्ेदपोश बनकर खड हुआ
थ ।

यह क ि भिे ही भौततक प्रगतत के दहि ब िे खर ब न रह हो मगर यदद एक पुनर विोकन


ककय ज ए तो स्पष्ट्ट ददखेग की नैततक पतन क दौर यहीं िे शुरू हुआ और एक ऐिी ब ढ़ यह ं
पर आई जजिमें िच, न्य य, अदहंि , दय , करुण आदद के लिए कोई ख ि जगह नहीं बची ।
पवदे शों िे वस्तुओं क प्रव ह भ रत में जबरदस्त बढ़ य नी ग ंधी के स्वदे शी के िपने को खंड
खंड कर ददय गय ।

ह ि ंकक औद्योगगक क् ंतत, हररतक् ंतत एवं श्वेतक् ंतत दे श की जरूरत थी मगर कुटीर उद्योगों
के नीचे की ज़मीन बहुत ही तरीके के ि थ पजश्चमी दे शों के इश रे पर खींच िी गई । क मग र
मज़दरू , छोटे कमफच री िब अब बडे-बडे क रख नों और उद्योगपततयों के गुि म बनकर रह गए ।
ग ंधी क कुटीर उद्योग क िपन िगभग परू ी तरह धर श ई हो गय । रही िही कमी लशक्ष
में हुए अन प-शन प पररवतफनों ने पूरी कर दी।

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चररत्र तनम फण व नैततक मूल्य तथ भ रत की ि ंस्कृततक धरोहर एवं परं पर एं तथ बुतनय दी


लशक्ष क लिद्ध ंत एकदम त्य ग ददय गय । अब ऐि भी नहीं है कक यह ि री ब तें इंददर
क ि में ही हुई यें आज भी ज री हैं ।

भिे ही र ष्ट्रव द एवं र ष्ट्रव दी िरक र क मि


ु म्म चढ़ ए नय दि ित्त में आय और पपछिे
िगभग एक दशक िे िग त र ित्त में है इििे पहिे भी टुकडों में करीब 7 ि ि र ष्ट्रव दी
िरक र रही मगर ग ंधीव दी मल्
ू य व पि नहीं आए । न ही अब उनके व पि िौटने की कोई
उम्मीद भी है ।

ग ंधी अब एक प्रक र िे करीब-करीब क िप र अथ फत एक्िप यर होने की कग र पर हैं । हर


ग ंधी जयंती पर ग ंधी के बुतों पर म ल्य पफण होत है चखे चि ए ज ते हैं र जघ ट और ब पू की
िम गध पर िवफ धमफ प्र थफन एं की ज ती हैं िेककन आज हम जजि दौर में जी रहे हैं वह ं िवफ धमफ
िमभ व खतरे में ददख ई दे रह है ।

आज इि दे श के दोनों प्रमख
ु िमद
ु यों के िोग िग त र कठोर एवं कट्टर होते ददख इ पड रहे हैं
य नी दहंदस्
ु त न की आत्म अब बदि रही है । अब ग ंधी के म यने क्य हैं इिे िमझन और
भी मुजश्कि हो गय है और िगत है कक आने व िे िमय में पररवतफन आंधी में ग ंधी को और
भी भुि ददय ज ए तो अचरज न करें ।

र जनीततक पवश्िेषकों म नन है यदद क ंग्रेि ने धर ति िे जुड कर जनत क िमथफन ह लिि


नहीं ककय तो आने व िे िमय में ग ंधी ने जो क ंग्रेि की पविजफन की ब त कही थी वह आज
क ंग्रेि की पीठ पर िव र पररव र के द्व र पूरी की ज ती ददख ई दे रही है ।

अस्तु कॉन्ग्रेि रहे , न रहे यह अिग ब त है मगर बदिते हुए पररवेश में ग ंधी और भी ज्य द
िमीचीन और जरुरी हो ज एंगे इिमें दो र य नहीं है । ह ,ं उनकी नीततयों एवं दशफनों की
व्य ख्य नए तरीके िे की ज िकती है जो श यद िमय की जरूरत भी है । ग ंधी व ददयों को भी
यह गचंतन करन होग कक ग ंधी के ककन पवच रों को क ि की किौटी पर कि कर आगे
बढ़ न है और ककन नीततयों को छोडकर आगे बढ़न है ।

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बज
ृ ेश कुमार

इस संसार में मनष्ु य जीवन में सख


ु दुःु ख का आना
स्वाभाववक है | सुख दुःु ख का जोड़ा है | व्यक्ति के जीतन में सुख भी आिा है औऱ दुःु ख भी |
इस संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नह ं है क्जसने खशु शयों के साथ मािम ना दे खा हो|

यह सुख दुःु ख की पररभाषा केवल मनुष्य जीवन के शलए नह ं है |

अवपिु इस संसार में प्रत्येक जीव क्जसने जन्म शलया है , के जीवन में सुख दुःु ख का आना
ननक्श्िि है | ज़ब यह बाि है कक जीवन में सुख औऱ दुःु ख दोनों का ह भोग करना है िो
दुःु ख से अधिक दुःु खी तयों हुआ जाये|

दुःु ख सुख मनष्ु य जीवन के साथ, ज़ब िक प्राण हैं िब िक दख


ु सुःु ख है |

क्जस मनुष्य में दख


ु ो को सहन करने की शक्ति आ जािी है | वह ववपर ि से ववपर ि
पररक्स्थनि में भी घबरािा नह ं है औऱ अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से मक
ु ाबला करिा है |

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वह मनुष्य संसार में सख


ु ी समझा जािा है | रववन्र नाथ टै गोर अपनी कवविा वरदान में कहिे
हैं :-

हे प्रभु ! ि मुझे दख
ु ों से छुड़ा, ये प्राथथना लेकर मैं, िेरे दर पर नह ं आया, ि मुझे दख
ु ों को
सहन करने की शक्ति दे दे , किर िाहे ककिने भी दुःु ख मझ
ु े दें दे |

मलक दास ने बहुि अच्छा कहा है –

जै दुःु खखया संसार में ,

खोदो निनका दुःु ख,

दशलदार सौंप मलक को,

लोगन द जे सुख|

हे प्रभु !सारे संसार का दुःु ख मुझे दे दो,

औऱ मेरे जीवन के सारे सख


ु संसार पर वार दो |

यदद हम अपने जीवन में छोटा सा काम करना िाहिे हैं िो अनेकों आपनियों का सामना करना
पड़िा है | यदद हम आपनियों का सामना करने में सक्षम हैं िो जीि ननक्श्िि है |

आपने दे खा होगा कक बहुि मनुष्य अपने जीवन में कोई काम करने के शलए िैयार ह नह ं होिे
|वह सोििे हैँ कक इस से दख
ु ों से बि जायेंगे|

ऐसे मनुष्य जीवन में कभी भी प्रगनि औऱ उन्ननि नह ं कर सकिे|

उनका जीवन कीड़े मकोड़े के समान है औऱ कुछ भी नह |ं

मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति की पर क्षा िो प्रनिकल पररक्स्थनि में ह होिी है |

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ववपर ि पररक्स्थनि को दे खकर वविशलि होने का स्वभाव मनुष्य का है , लेककन जो िैयथ से


इनका सामना करिे हैँ औऱ ववपर ि पररक्स्थनि को अपने अनुकल बना लेिे हैं | ऐसे व्यक्तियों
को महापुरुष की संज्ञा द जािी हैं |

अगर हम इनिहास को उठा कर दे खिे हैं कक महापुरुषों ने ककिनी- ककिनी ववपर ि पररक्स्थनियों
में अपने िैयथ को नह ं त्यागा औऱ प्रसंिा पवथक उनको स्वीकार ककया औऱ अपने जीवन का
दहस्सा मानकर प्रारब्ि ककया |

ऐसे कुछ उदाहरण आपके सामने रखिे हैं

1. महाराणा प्रिाप घास की रोट खा कर मािभ


ृ शम के शलए लड़िे रहें लेककन उन्होंने मुगलों की
दास्िां स्वीकार नह ं की |

2. महाभारि में पांडवो ने वनवास को स्वीकार ककया जबकक वे िाहिे िो कौरवों के दास बनकर
अपना जीवन व्यिीि कर सकिे थे | ककन्िु उन्होंने ऐसा ना करके वनवास स्वीकार ककया, यह
उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति का ह पररणाम था |

3. राजा हररश्िन्र राज्य लोभ से अपने विनों से नह ं किरे | बक्कक डोम के घर जाकर पानी
भरने का काम करने लगे | औऱ अपनी पक्त्न को भी बच्िे का दाह संस्कार करने से रोक ददया
|

4. राजा शशवव ने यदद शर र के कटने के दुःु ख से दुःु खी होकर कबिर को बाज़ के शलए दे ददया
होिा िो उनका नाम आज कौन जानिा |

5. वन में सीिा का हरण होने पर, राम ननराश नह ं हुए बक्कक वानर जानि के लोगों को इकठ्ठा
कर रावण के राज्य में ईंट से ईंट बजा द |

6. गुरु गोववन्द शसंह ने अपने िारों बेटों का बशलदान दे ददया लेककन अपने पथ से िननक भी
वविशलि नह ं हुए|

ऐसे अनेकों उदहारण से इनिहास भरे पड़े हैं, ये भी असंख्य मनुष्यों की भांनि काल के गाल में
समा जािे लेककन आज भी इनका नाम ज्यों का त्यों जीववि है | इसका एक मात्र कारण है
उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति|

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आज हम दे खिे हैँ कक मनुष्य छोट छोट मुक्श्कलें सामने आने पर अपना मानशसक संिुलन खो
बैठिा है, आज क्स्थनि यह है कक व्यक्ति मस
ु ीबि का सामना िथा मस
ु ीबि से बाहर ननकलने के
रास्िे खोजने की अपेक्षा अपना अमकय समय िथा शक्ति को घबराने में खिथ करिा है | अब
तया होगा ? तया करुूँ ?कहाूँ जाऊं ? ऐसा सोि कर रोने के शसवाय अपनी मानशसक क्स्थनि
को ख़राब कर लेिा है | औऱ छोट छोट मुसीबि का पहाड़ बना दे िा है||

अगर व्यक्ति में िैयथ है िो वह बड़ी बड़ी मस


ु ीबि को आसानी से पार कर जािा है | ऐसा इस
संसार में कोई भी जीव नह ं है | क्जस पर मुसीबि नह ं आिी है ||

उनमें से कुछ िो मुसीबिों से घबरा कर हार मान लेिे हैँ | औऱ कुछ लोग उन मुसीबिों से
जीवन में नयी उजाथ का संिार करिे हैं औऱ उनकी िरतकी का रास्िा मुसीबिों से ननकलिा है |

औऱ दृढ़ इच्छा शक्ति के कारण मंक्ज़ल को पा लेिे हैँ

वववेकी औऱ अवववेकी की दोनों को ज़रा, मत्ृ यु औऱ व्यधियां होिीं हैँ परन्िु ज्ञानवान व्यक्ति
अपने कमथ का भोग समझकर दृढ़िा के साथ सहन करिा है, औऱ मखथ वविल होकर ववपनियों
को औऱ बढ़ा लेिा है |

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जो कभी संभव नह ं
डॉ शशवा िमेजा

तया है वो ? परु
ु षाथथ से, मेहनि से, इच्छाशक्ति से, दृढ़ ननश्िय से ऐसा तया है जो संभव
नह ं.....ऐसा तया है जो पाया नह ं जा सकिा ?

तया उत्तर है आपका ? सब संभव है !अगर शशद्दि से मेहनि की जाये िो आप अपनी िकद र
बदल सकिे हैँ लेककन ऐसा एक कायथ है क्जस पर कभी कोई ववजय ना पा सका|

वो कायथ है बीिे समय क़ो वावपस लें आना...समय बीिा मिलब बीि गया | एक बार क्जस
समय क़ो घड़ी बीिा िक
ु ी ठीक उसी समय, ददन, वार क़ो कभी कोई वावपस न ला सका | िो
तया कोई संशय है आपको कक इस िरिी पर जन्म लेने के बाद जो सबसे अमकय शमला है ..
मािा – वपिा के बाद वो समय के शसवाय कुछ नह ं|

क्जन्होंने इन अमकय का मकय समझ शलया ये पर दनु नया किर उनका मकय समझ लेिी हैँ |
समय क़ो अमकय मानने वाले खद
ु अनमोल बन जािे हैँ तयोंकक ऐसा व्यक्ति क्जसे इस सत्य का

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बोि है वह समय की एक -एक बूँद क़ो खिथ करिे समय बहुि सोि वविार करे गा और समय
क़ो व्यथथ कभी जाने नह ं दे गा|

समय के रूप में क्जसे आप खिथ कर रहें होिे हैँ उसे जीवन कहिे हैँ.... बीि जाने वाला समय
जीवन क़ो घटािा जा रहा है .... और हम िरह -िरह से खद
ु क़ो िक्ृ ति दे ने के उद्दे श्य से
खेलना, बािें करना, मवीज दे खना ,ननंदा करना.... आदद आदद करिे रहिे हैँ|

काम के काम पर हमार प्रनिकिया ऐसी होिी है – करिे हैँ अभी थोड़ी दे र में ,

कल पतका , ये कर लेंगे | अभी जकद तया है , टाइम पड़ा है |

टाइम केवल िल रहा है , सरज की िरह | उसने पीछे मुड़कर दे खना नह ं सीखा | समय का
महत्व हम बिपन से इसे पढ़िे आ रहें हैँ – छोटे होिे हैँ िो एक बार िो इस ववषय पर ननबंि
जरूर शलखा होगा हम सबने ,लेककन बिपन का वो पाठ बड़े होिे -होिे हम भल जािे हैँ|

ऐसा तयों ?

स्कल में हम समय क़ो इिना नह ं गवांिे ,क्जिना बड़े होकर गवािे हैँ| लेककन िब िक हमार
बद्
ु धि इिनी पररपतव नह ं होिी, क्जिनी हम जैस-े जैसे बड़े होिे हैँ िो होिी िल जािी है |

िो किर ऐसा तयों कक बड़े होने पर हम समय का मोल उिना नह ं समझ पािे....

तयोंकक बिपन में हमें स्कल का काम समय पर ना करने पर डांट पड़िी थी, ट िर की मज़ी
सज़ा भी दे सकिी थीं|

बड़े हो गए िो हम खद
ु के माशलक खद
ु बन गए | हम अपनी मज़ी से सब कुछ करने क़ो हमार
आज़ाद कहने लगे | हमें हमार गलनियों पर ना ट िर कुछ बोल सकिी है , ना मािा वपिा|

िो समय क़ो नष्ट करके, हमने खद


ु के साथ जो ककया वो न्याय नह ं, अन्याय होिा है | खद

क़ो काब में ऱखना गलि नह ं, सह होिा है | सह कायथ मज़बर से नह ं, ख़श
ु ी से ककये जािे हैँ
|

अब िकं क हमें ककसी की डांट नह ं शमलनी िो हम ककसी भी कायथ क़ो कभी िक भी टालने लगे
और समय का महत्व भलने लगे|

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कई- कई महापरु
ु षों ने हमें िेिाया है , समय के महत्व क़ो सन्
ु दर शब्दों में िो कभी कड़े शब्दों
में समझाया है |

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वप्रया दे वांगन

कैसा ये मौसम है आया, कभी िप सूँग होिी छाूँव।

बैठे बबस्िर में है सारे , नह ं िरा पर रखिे पाूँव।।

दठठुर रहे हैं लोग यहाूँ पर, ककटककट करिे सब के दाूँि।

इक दजे को करे इशारे , नह ं ननकलिी मूँह


ु से बाि।।

िेज सयथ की ककरणें आिीं, शमलिी है ऊजाथ भरपर।।

िौराहे पर बैठे बैठे, ठं डी को करिे हैं दर।।

स्वेटर मिलर िन को भाये, स्पशथ नह ं करिे हैं नीर।

छोटे बच्िे रोिे रहिे, तया ठं डी में होिी पीर।।

बादल में छुप जािा सरज, और पवन की बहिी िार।

दब
ु के मानव घर के अंदर, काम काज से माने हार।।

बहुि बढ़ है ठं ड िरा पर, थोड़ा कम कर दो भगवान।

दे ह बिथ सी जमिी जािी, कह ं ननकल ना जाये प्राण।।

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धगरें र शसंह भदौररया

हे
पाखण्ड खक्ण्डनी कवविे ! िावपक राग जगा दे ि।

सारा कलष
ु सोख ले सरज, ऐसी आग लगा दे ि।।

कवविा सन
ु ने आने वाले, हर श्रोिा का वन्दन है ।

लेककन उससे पहले सबसे, मेरा एक ननवेदन है ।।

आज मािरु घोल शब्द के, रस में न िो डुबोऊूँगा।

न मैं नाज नखरों से उपजी, मीठी कथा वपरोऊूँगा।।

न िो निमख
ु ी अशभवादन की, भाषा आज अिर पर है ।

न ह अलंकारों से सक्ज्जि, माला मेरे स्वर पर है ।।

न मैं शशष्टिावश जीवन की, जीि भन


ु ाने वाला हूँ ।

न मैं भशमका बाूँि बाूँि कर, गीि सन


ु ाने वाला हूँ ।।

आज िह
ु लबाक्ज़याूँ नह ं, दन्ु दभ
ु ी बजाऊूँगा सन
ु लो।।

मत्ृ यु राज की गाज काल भैरवी सन


ु ाऊूँगा सन
ु लो।।

आज हृदय की िति बीधथयों, में भीषण गमाथहट है।

तयोंकक दे श पर दृक्ष्ट गड़ाए, अरर की आगि आहट है ।।

इसीशलए ककथश कठोर वाणी का यह ननष्पादन है ।

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सतु ि रति को खौलाने का, आज ववकट सम्पादन है ।।

कटे पंख सा वववश पररन्दा, मन के भीिर क्जन्दा है ।

कुछ लोगों के कारण भारि, बरु िरह शशमथन्दा है।।

क्जिना खिरा नह ं दे श को, दश्ु मन के हधथयारों से।

उससे ज्यादा भय लगिा है , नछपे हुए गद्दारों से।।

ये इिने मिलब परस्ि हैं, िर लें िन की पेट को।

बदले में धगरबी रख सकिे, हैं माूँ बीवी बेट को।

दाूँव लगे िो िरा िाम, पररवेश बेि सकिे हैं ये।

क्षखणक स्वाथथ के शलए स्वगथ सा, दे श बेि सकिे हैं ये।।

जाससों की ठण्ड घटाने को, शसगड़ी रख दे िे ये।

गस्
ु िाखों की भख शमटाने को, रबड़ी रख दे िे ये।।

दे शरोदहयों के मख
ु में मग
ु ी िगड़ी रख दे िे ये।

जयिन्दों के अशभनन्दन में , झट पगड़ी रख दे िे ये।।

क्जनकी सोि समझ पर कुण्ठा, के जाले पड़ जािे हों।

राष्र गीि गािे ह अिरों पर िाले पड़ जािे हों।।

क्जनकी शतल दे खिे रोट , के लाले पड़ जािे हों ।

कौओं की तया कहूँ कबिर, िक काले पड़ जािे हों।।

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क्जनको अन्िर नह ं सझिा, पापड़ और पहाड़ों में ।

कौन शक्ति बलबिी सोििे,भों भों और दहाड़ों में ।।

उनकी धिन्िा नह ं मझ
ु े वे, सन
ु ें या कक अनसन
ु ा करें ।

बैठें या किर िले जाूँय, घर पर जाकर शसर िन


ु ा करें ।।

वह रहे नर नाहर क्जसमें , सन


ु ने का दम गुदाथ हो।

वरना िला जाय मजमें से, क्जन्दा हो या मद


ु ाथ हो।।

मैं आया हूँ वीरों की रग रग में रोश जगाने को।

कायर में ह नह ं नपस


ंु क, िक में जोश जगाने को।

इिना है ववश्वास कापरु


ु ष, सन
ु लें मेर वाणी को।

ननश्िय ह िलवार उठा लेंगे कर में ककयाणी को।।

मेर आग भर वाणी से, दहक उठे गी यह दनु नया।

ज्वालाएूँ बरसेंगी मख
ु से, ििक उठे गी यह दनु नया।।

क्जन लपटों की लपक दे ख, थराथिी लोहे की छािी।

वपघल वपघल कर मोम सर खी, पानी पानी हो जािी।।

उसी आग की धिनगार को, बबछा रहा हूँ डग डग में ।

कोशशश है भर दूँ गा बाूँके, वीरों की मैं रग रग में ।।

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मैं छन्दों में ढाल िक


ु ा हूँ, लावा ज्वालामखु खयों का।

जबरदस्ि आह्वान ककया है , योद्िा सरजमखु खयों का।।

दहम्मि हो िो ह िम
ु सन
ु ना, वरना जाना भाग कह ं।

कवविा सन
ु ने के ितकर में , लगा न लेना आग कह ं।।

छोटे मंँ
ु ह
ूँ से बड़ी बाि बेशक िम
ु को िट
ु कुला लगे।

या आए इस सतु ि काल में , प्रलयंकर ज़लज़ला लगे।।

मेर कवविा िुम को िाहे , कला लगे या बला लगे।

यह भारि का रौर नाद है , बरु ा लगे या भला लगे।।

कपट मन के पेट ददथ की, जड़ी हमारे पास नह ।ं

छमन्िर कर दे ने वाल , छड़ी हमारे पास नह ं।।

िलिा समय रोक ले ऐसी, घड़ी हमारे पास नह ।ं

िाल भर छल ववद्या छोट बड़ी, हमारे पास नह ं।।

इसीशलए इस शेष सभा को, काज बिाने आया हूँ ।

मैं यौवन के स्वणथ काल का, राज बिाने आया हूँ ।।

िुम तया हो िुम तयों आये हो ? तया करना मालम नह ं।

कैसे जीना िुम्हें और कैसे मरना मालम नह ं।।

इसीशलए इस ज्ञान खण्ड की शशक्षा, बहुि जरूर है।

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जन्म शलया क्जस भ पर उसकी, रक्षा बहुि जरूर है ।।

हे बशलवीरो! उठो सन
ु ो िुम जो िाहो कर सकिे हो।

मात्र आत्म बल के बल पर िन में पौरुष भर सकिे हो।।

िुम्हें ककसी अदृश्य शक्ति ने जो सामर्थयथ परोसा है ।

क्जस के बल पर मािभ
ृ शम को िम
ु पर अटल भरोसा है।।

जब िक िुम हो िब िक िय है , दश्ु मन सिल नह ं होगा।

जीव जन्िु तया जड़ िेिन का, जीवन ववकल नह ं होगा।।

िुम िाहो िो कण कथीर के, कंिन कोदहनर कर दो।

िट्टानों को दबा दबा कर, कर से िर- िर कर दो।।

पलक खोलिे ह पल में , पाषाण वपघलने लग जाएूँ।

एक िूँ क में आूँिी तया, ििान मिलने लग जाएूँ।।

पाूँव पटकिे ह पानी की, िार िरा से िट पड़े।

िुम िाहो िो इन्र बज्र सा, साहस अरर पर टट पड़े।।

आत्मबल वीरों को ककंधिि, भय न ककसी खाूँ का होिा।

बीि बैररयों के लड़िे हैं, बाल नह ं बाूँका होिा।।

शसर पर किन बाूँि कर िलना, व्रि होिा रणिीरों का।

िभी साथ शमलिा ििानी, आंँूँिी और समीरों का।।

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राष्र यज्ञ में प्राणाहुनि से, बड़ा और बशलदान नह ं।

इससे बढ़कर कीनिथकाम का, कोई भी सम्मान नह ं।।

राबत्र घनी है जंग ठनी है , द पक बनकर जलना है ।

अूँधियारों के बीि बैठकर, मख


ु से आग उगलना है ।।

सन
ु लो राष्् प्रेम के धिन्िन, का मन्िव्य समझिे जो।

मािभ
ृ शम की सेवा को, पहला किथव्य समझिे जो।।

उनसे ह कह सकिा हूँ मैं, मरने शमटने जीने की।

दश्ु मन से लोहा लेने की, छक कर पीयष पीने की।।

वीरों को मन से प्रणाम है , मेरा बस इिना कहना।

दश्ु मन घाि लगाकर बैठे हैं, िुम िौकन्ने रहना।।

आज नह ं िो कल इन हालािों से पाला पड़ना है।

हमें यद्
ु ि दोगलों और, दश्ु मन दोनों से लड़ना है।।

इसीशलए हर प्रहर कमर पर काल बाूँि कदटबद्ि रहो।

तया जाने कब बैर कर दे , हमला िम


ु सन्नद्ि रहो।।

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अब भी वति है …

ए मानुष। गुनाह िो कुछ हुए जरूर हैं

प्रकृनि मां जो आज रूठी सी है

यं ह नह ं रूठिी जननी अपनी जान से

कुछ िो अपेक्षाएं टट सी हैं ।

िरिी से जन्मा इंसान शमट्ट ह बन जािा है

भकंप हो या ििवाि उसके पाप याद ददलािा है

जहां ऋिुएं कहिी थीं खुदा यह ं कह ं आसपास है

वह आसमां आज जिािा उसके िोि का एहसास है

ि-ि कर जल रहे सब वन यह बिािे हैं

प्रकृनि की नैमिों को हम कैसे जारा़ जारा़ कर जािे हैं

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जो शीिल करिी थी वह पवन ििान बन िुकी है

थपेड़े हो या शीिलहर हर रूप में िन उठी है

वसि
ु ा अश्रु िारा को ननजथल है मखथ करिा रहा

सखने लगे जब आंस िरा के तयासा तयासा किरिा रहा

पंिित्व ननशमथि ए दे ह अब त्रादहमाम तयों कहिी है

पांिों ित्व हैं रुष्ट िझ


ु से पररक्स्थनि यह कहिी है

अक्षम्य है जरूर अपराि यह िेरे

िहं ओर मौि की िादर बबखर सी है

हे मानष
ु गन
ु ाह िो कुछ हुए जरूर है िझ
ु से

प्रकृनि मां जो आज रूठी सी है ।

अददनि भारद्वाज

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कानन का डंडा और वदी


रमेश मनोहरा
हे ड साहब इस िौराहे पर अपनी सेवाये दे रहे थे. मुंह में बीडी ठं स रखी है . कोई वाहन
गलि साइड से जािा है . सीट बजाकर सिेि करिे है . इिने पर भी यदद वाहन वाला नह ं
समझिा है . िब अपने हाथ में शलए कानन के डंडे का जमकर इस्िेमाल करिे है . और उस पर
अपनी खाकी वदी का रौब भी ददखािे है . जनिा भी उनसे नह ं, उनकी खाकी वदी से भयभीि
रहिी है . तयों कक खाकी वदी में कई कानन नछपे है . बक्कक य कहें कुछ कानन िो इन्ह ं के
द्वारा बनाए गये है . हे डसाब का डंडा भले ह छोटा था. मगर इसमें कानन की कई ध र एं
समादहि थी. ककसको ककस िारा में केस बनाना है . कानन का ये डंडा और वदी अच्छी िरह
जानिी है. अिुः जो भी वाहन उस िौराहे से गुजरिा है . अधिकांश उनसे नज़र बिाकर िप
ु िाप
ननकल जािे थे. जो उनकी नज़र में पकड़ा जािा था. पहले िो वह उस पर डंडा पेल दे िा था.
किर िालान बना दे िा था.

अब आप उनका काम जानेंगे. नाम उनका शेर शसंह है . अिुः शेर जैसी बड़ी - बड़ी मुछे है उनकी
जब ककसी वाहन वाले पर वे गस्
ु सा करिे, िब मंह
ु के साथ उनकी मछे भी बोलिी थी. जब
जनिा को मालम है . आज शेरशसंह की ड्यट िलाने िौराहे पर लगी है . िब वे इस िौराहे पर
आिे ह नह ं तयोंकक कई वाहन का उन्होंने यािायाि का पालन करिे हुए भी िालान काट ददये.
हॉ कोई िधिथि नेिा अथवा गुंडा उिर से गुजरिा है , उनके सम्मान में साविान की मुरा में खड़ा
होकर सम्मान दे िे है . जब पशु लस अधिकार उिर से गज
ु रिे है . िब उनको सलाम ठोंकिा है िब
वह अधिकार गाड़ी रोककर कहिा है . शेरशसंह ड्यट बराबर दे रहे हो ?

“हॉ साहब, आपका आशीवाद है . आपका आशीवाद बना रहे . ड्यट के मामले में मैं कंजसी नह ं
करिा ह साहब, ईमानदार से नौकर करिा ह.”

“ठीक है --- ठीक है.” अनसुना करिा हुआ, वो अधिकार बोला-

“साहब, इस बार मेरा प्रमोशन हो जायेगा.” आखखर अपने लालि की बाि शेर शसंह ने जब कह
द . िब गुस्से से पुशलस अधिकार बोला - िुम्हार बहुि शशकायिे आ रह है . आम जनिा को
बहुि परे शान करिे हो. बेवजह िालान काट दे िे हो ?

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“नह ं साहब ये सब झठी शशकायिें है . जो यािायाि का पालन नह ं करिे है न उनका ह िालान


बनािा ह. हे डसाब शेर शसंह ने अपनी सिाई में जब यह कहॉ िब पुशलस अधिकार कहॉ - ड्यट
दो प्रमोशन जब होगा िब हो जायेगा. और पुशलस अधिकार ने अपनी गाड़ी स्टाटथ कर द .”

शेरशसह अपने अधिकार की यह बाि सन


ु कर भीिर गस्
ु सा आिा है . प्रमोशन की आशा में
वो ड्यट दे कर अधिकार का मन जीिना िाहिा है . मगर हर बार उसकी ड्यट को नकार दे िा
है . िब आम जनिा पर उसका डंडा और वदी का रौप और िलने लगिा है . जब एक गाड़ी वाला
गलि रास्िें से ननकल गया. िब उन्होंने सीट बजाकर रोकने का प्रयास ककया. िब िक वह वह
िेज रफ्िार से भाग गया. उन्हें उस पर बहुि गुस्सा आया. जैसे ह हे ड साहब पीछे मुड़.े एक
िेज रफ्िार युवक जो गाड़ी िेज िला रहा था. हे ड साहब के पास आकर ब्रेक लगाकर गाड़ी
रोकी, िब उस युवक पर गुस्से से अपना डंडा बरसािे हुए कहॉ - अंिे कह ं के गलि साइड से
गाड़ी िला रहा है . अभी िालान बनािा ह िेरा ?

“मगर साहब, मैं िो सह साइड से िल रहा था.” उस युवक ने कहॉ - किर भी आपने मुझे डंडा
तयो मारा ?

“िप
ु बे साले, जुबान लड़ािा है, वो भी वदी से. एक िो गलि साइड से िेज रफ्िार से गाड़ी
िला रहा था. अंिा कह ं का.”

“अंिा मैं नह ं आप है . जो दाये - बाये भी आपको नह ं ददख रहा है .”

“तया कहॉ मुझे अंिा कहॉ ?--- िल िालान काटिा ह. िल थाने.”

“क्यों िल थाने, मैं यािायाि के ननयम का पालन करिे हुए जा रहा था ?”

“सीिे माजने से िलिा है की नह ं ?” अभी हे ड साहब यह बाि कह रहे थे कक युवक गाड़ी स्टाटथ
कर िक
ु ा, िलिी गाड़ी से कहॉ - िले मेर जिी.

और क्षणभर में ह वो युवक हवा हो गया. शेरशसंह अपना िोि ददखािे रहे .

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हमीद कानपरु

नफ़रि को शमलिा नह ं, एक भी खर दार।

किर तयूँ िलिा िलिा,नफ़रि कारोबार।

इससे रहकर बेख़बर, कहिा तया संसार।

क्षमिाओं को हर घड़ी, दे ना है ववस्िार।

ननजी क्ज़न्दगी में कभी, डालो मि व्यविान।

सब को दो सम्मान यदद, पाना है सम्मान।

पर क्षमिा से सदा, कररये हर इक काम।

थकान जब आने लगे, कररये िब आराम।

कुदरि ने सबको ददया, इक ववशशष्ट उपहार।

दनु नया में है ह नह ं, कोई भी बेकार।

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वप्रया दे वांगन

बतफन म ाँजती हुई स्नेह को जब पत चि कक उिकी ि ि उिे न केवि घूर रही है ,


बजल्क तंज किते कुछ िख्त शब्द छोड रही है ; स्नेह िे नहीं रह गय । ह थ धोकर तुरंत उठी।
बोिी- “म ाँ जी आपको हमेश मेरी ही गिती नजर आती है क्य ? जब दे खो गैरों की तरह हर
ब त पर मुझे त ने म रती रहती हो।“ स्नेह आग बबूि हो गयी। कह ही रही थी-

“वैिे भी आपके बेटे क व्यवह र मेरे प्रतत ठीक नहीं है ; अब आप भी....!” कहते हुए स्नेह अपने
कमरे में चिी गयी।

स्नेह अपनी ककस्मत को कोिने िगी। उिकी लिर्फ इतनी ही गिती थी कक वो एक


गरीब घर की बेटी थी, जो हमेश िच्च ई क ि थ दे ती थी। जब उिे कुछ गित िगत तो बोि
दे ती थी।

कुछ दे र ब द िुलमत घर आय । तभी स्नेह की ि ि श्य म िुलमत के ि मने


मगरमच्छ के आाँिू बह ने िगी। िलु मत िे रह नहीं गय । पछ
ू - “म ाँ आप रो क्यों रही हैं। क्य
हुआ म ,ाँ बत इये तो ?” श्य म ने अपनी गिती पर पद फ ड िते हुए स्नेह को ही दोषी ठहर य ।
िुलमत की त्यौरी चढ़ गयी। बोि - “स्नेह , तुम्ह री इतनी दहम्मत कक तम
ु ने मेरी म ाँ को रूि
ददय ।“ जोर-जोर िे आव ज िग ई- “स्नेह ... स्नेह ... तू कह ाँ मर गयी। ब हर तनकि। जर इधर
तो आ।“

स्नेह दौडते हुए कमरे िे ब हर आयी। िुलमत ने आव दे ख न त व। उिने स्नेह के


ग ि पर एक तम च जड ददय । स्नेह की आाँखों के ि मने अाँधेर छ गय । इधर श्य म पीछे
िे मुस्कुर रही थी। उिके किेजे को थोडी ठं डक लमिी। उिे िग कक स्नेह एक अबि न री की

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तरह है ; कुछ नहीं कर प येगी। िब बद फश्त कर िेगी। िेककन अब बहुत हो चक


ु थ । स्नेह भी
ह र म नने व िों में िे नहीं थी। उिने अपने आिप ि के िोगों को बि
ु य । िबके ि मने चीख-
चीख कर बोिी- “क्य यही है एक न री क अििी जीवन। क्य पुरुषों के शोषण में कमी आ
गयी कक अब न री ही न री क शोषण कर रही है । कभी दहे ज के लिए तो, कभी म ाँ-ब प पर
ऊाँगिी उठ कर। अरे आज एक न री दि
ू री न री क ददफ नहीं िमझ प रही है , ऐिे न री जीवन
को गधक्क र है । बहू और बेटी में भेद करते हैं। नौकर नी की तरह रखते हैं। क्य वह कभी ककिी
की बहू नहीं थी ? क्य उनकी अपनी बेटी नहीं होती ? आज मेरे ि थ ऐि व्यवह र ककय ज
रह है ; जजिे दे ख कर कि कोई और ककिी के ि थ करें गे।“

िब के ि मने स्नेह अपनी ि ि िे पूछने िगी- “म ाँ जी, क्य िच्च ई क ि थ


दे न गित ब त है ? मेरे म ाँ-ब प को कोिने िे क्य लमित है आपको ? अगर कोई आपकी
बेटी के ि थ ऐि करें गे तो आपको अच्छ िगेग ? आपके ह ाँ में ह ाँ बोिू तभी मैं अच्छी बहू
बनाँग
ू ी ?

इकट्ठे हुए िोग भी स्नेह क ि थ दे ने िगे। वे िुलमत और श्य म को िमझ ने


िगे। उन्हें अपनी गिती क एहि ि होने िग । दोनों ने बैठक में एकत्रत्रत िोगों के िमक्ष स्नेह
िे म र्ी म ाँगे। स्नेह की आत्म को ठे ि तो पहुाँची थी; कर्र भी उिने दोनों म -ाँ बेटे को म र् कर
ददय ।

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िाय माूँ गोरा टांक


जस्थान की बशलदानी भशम को अगखणि वीर- वीरांगनाओ ने इस शमट्ट को अपने
खन से सींिा है , इसमें कोई दो राय नह ं है | अगर इनिहास की बाि करें िो अपने
बच्िे को मािभ
ृ शम की रक्षा के शलए बशलदान करने वाल मां पन्ना िाय का नाम
सवथप्रथम शलया जािा है | लेककन इसी ह मरुभशम में एक और िाय माूँ ‘गोरा टांक’ भी हुई है |
क्जसने मां पन्ना की िरह अपने पुत्र को राजगद्द के शलए न्योछावर कर ददया |

सन 1678 ई. में मारवाड़ पर महाराजा जसवंिशसंह का शासन था | उस समय ददकल के िख्ि


पर औरं गजेब का शासन था | महाराज जसवंि शसंह औरं गजेब की ओर से काबुल गए हुए थे|
उनके साथ मारवाड़ी वीर दग
ु ाथदास, अन्य सहयोगी, ववश्वसनीय िाय माूँ गोरा टांक िथा उनकी
राननयां भी थी |

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लेककन एक दख
ु द घटना ऐसी घट कक 28 नवंबर 1678 ई. को महाराजा जसवंि शसंह का
दे हांि हो गया | इस घटना के बाद मारवाड़ी वीर िथा उनके साथी और गभथविी राननयां सदहि
लाहौर आ गये |

कुछ समय पश्िाि महाराज जसवंि शसंह की राननयां जादम जी िथा रानी नरूकी ने 19 िरवर
1679 को पुत्रों को जन्म ददया | रानी जादम जी के पुत्र का नाम अजीि शसंह िथा रानी नरुकी
के पत्र
ु का नाम थूँबन था | इनकी दे खभाल करने के शलए ‘ गोरा टांक’ को ननयत
ु ि ककया गया |
इसके बाद औरं गजेब के द्वारा इन्हें लाहौर से मारवाड़ी वीरो सदहि राननयों को ददकल बुला शलया
गया | कुछ सतिाह पश्िाि दल थंबन की मत्ृ यु हो गई | और मारवाड़ी वीरों ने महाराजा अजीि
शसंह को मारवाड़ का उत्तराधिकार घोवषि करने के शलए औरं गजेब से आग्रह ककया | लेककन
औरं गजेब की ननयि में खोट होने के कारण उन्होंने अपने सैननकों को आदे श दे कर पर हवेल
को घेर शलया, जहां पर मारवाड़ी वीर िथा अजीि शसंह थे |

मारवाड़ी वीर दग
ु ाथ दास िथा उसके सहयोगी की सझबझ से महाराजा अजीि शसंह को ददकल
से मारवाड़ ले जाने की योजना बनाई गई | क्जसके शलए गोरा टांक को महाराजा अजीि शसंह
को सकुशल ददकल की हवेल से बाहर ननकालने का कायथ ददया गया| गोरा टाक ने सिाई वाल
का भेष बनाकर, शसर पर टोकरे में महाराजा अजीि शसंह को शलटाकर हवेल से बहार ले आई |
बाहर सपेरे के भेष में खड़े मुकंु ददास खींिी को महाराजा अजीि शसंह को दे ददया | और
मुकंु ददास महाराजा अजीि शसंह को ददकल से मारवाड़ ले आया | इिर गोरा टांक ने अपने पुत्र
को महाराजा अजीि शसंह के कपड़े पहना कर लेटा ददया |

महाराजा अजीि शसंह का लालन-पालन गोरा टांक के द्वारा ककया गया | उिर औरं गजेब के
सामने गोरा टांक के बेटे को ददखाया गया जोकक 1688 ईस्वी में तलेग महामार की िपेट में
आकर मत्ृ यु को प्राति हो गया |

इनिहास में मां पन्ना के बशलदान को पन


ु ुः गोरा टाक ने दोहराया | उसका यह बशलदान मारवाड़
की राजगद्द के प्रनि किथव्य ननष्ठा व स्वाशभमान को दशाथिा है कक क्जसने अपने दि मुहे बच्िे
को काल के गाल में समादहि कर ददया | 20 मई 1704 को गोरा टांक के पनि की मत्ृ यु होने
पर, गोरा टाक ने अपने पनि के साथ अक्नन स्नान कर शलया | उनकी याद में महाराजा
अजीिशसंह ने 6 खंभों की छिर बनवाई | गोरा टांक का यह बशलदान मारवाड़ के इनिहास में
स्वणथ अक्षरों से शलखा गया |

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समान नागररक संदहिा

समान नागररक संदहिा अथाथि ् - एक दे श एक ननयम -

ये ऐसे ननयम है क्जसे सभी िाशमथक समुदायों पर लाग ककया जाना िादहए |

संवविान के अनुच्छे द | में को वखणथि ककया गया है 4 के भाग 44

भारिीय संवविान का अनुच्छे द शलए एक राज्य भारि के परे क्षेत्र में नागररकों के - कहिा है 44
समान नागररक संदहिा सुरहक्षि करने का प्रयास करे गा यानी संवविान द्वारा सरकार को यह
ननदे श ददया गया है कक वह सभी समुदायों को उन मामलों पर एक साथ लाने का ननदे श दे रहा
है , उनके संबंधिि व्यक्तिगि काननों द्वारा शाशसि है |

हालांकक संवविान का अनुच्छे द यह स्पष्ट करिा है कक राज्य के नीनि ननदे शक 77ित्व ककसी
भी अदालि के द्वारा लाग करने योनय नह ं होंगे |

किर भी वे दे श के शासन में मौशलक हैं |

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इस बाि से यह पिा िलिा है कक यद्यवप हमारा संवविान स्वयं मानिा है कक एक समान


नागररक संदहिा को ककसी िरह से लाग ककया जाना िादहए लेककन वह इसके कायाथन्वयन को |
अननवायथ नह ं बनािा है |

समान नागररक संदहिा भारि को एकीकृि कर सकिी है भारि में कई िमथ र नि ररवाज और |
िमथ अलग अलग होने के बावजद ,हर भारिीय को उसकी जानि | प्रथाओं क़ो माना जािा है
| एक राष्र य नागररक नागररक संदहिा के अंिगथि लाने में मदद कर सकिी है

यदद हम आिनु नक प्रगनिशील राष्र की बाि करें िो हमारा दे श आधथथक ववकास की दृक्ष्ट से
आगे बढ़ा है लेककन सामाक्जक ववकास की दृक्ष्ट से वपछड़ गया है नागररक संदहिा समाज को |
और भारि वास्िव में ववकशसि राष्र बनने की अपने लरय की | आगे बढ़ाने में मदद शमलेगी
आगे ब िरिढ़ जाएगा |

डॉअंबेडकर ने संवविान को बनािे समय कहा था कक यननिॉमथ शसववल कोड वांछनीय है .आर.बी .
| लेककन किलहाल यह स्वैक्च्छक ह रहना िादहए

दरअसल समान शसववल कोड की आवश्यकिा इसीशलए लगिी है तयोंकक भारि में जानि और
िमथ के आिार पर अलग एतट अलग कानन और मैररज-हैं इसके कारण ह सामाक्जक ढांिा |
| बबगड़ा हुआ है

अलग| अलग काननों के कारण न्याय प्रणाल पर बहुि असर पड़िा है -

आज भी लोग शाद िलाक आदद मुद्दों से ननपटने के शलए पसथनल लॉ ह अपना सकिे हैं |

समान शसववल कोड के आने के बाद उन काननों का रूप सरल हो जाएगा जो आज िाशमथक
मान्यिाओं के अनुसरण में अलग|शर यि कानन आदद ,अलग है जैसे दहंद कोड बबल-

विथमान में गोवा भारि का एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पर समान शसववल संदहिा लाग है |

समान शसववल संदहिा क्जसका ककसी िमथ से कोई संबंि नह ं है |

विथमान में दे श के हर िमथ के लोग वववाह और िलाक़ आदद मामलों का ननपटारा अपने पसथनल
लॉ के अिीन करिे हैं |

इस समय मुक्स्लम ईसाई और पारसी समुदाय का पसथनल लॉ है जबकक दहंद शसववल लॉ के


अंिगथि दहंद शसख जैन और बौद्ि आिे हैं |

सन नागररक संदहिा का समथथन ककया लेककन उन में जवाहरलाल नेहरू ने समान 1970ँ्हें कई
वररष्ठ नेिाओं द्वारा ववरोि का सामना करना पड़ा |

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समान नागररक संदहिा के अंिगथि आने वाल मख्


ु य ववषय ननम्न प्रकार से हैं

1. व्यक्तिगि स्िर

2. संपवत्त के अधिग्रहण

7. संपवत्त का संिालन

4. वववाह

5. िलाक

6. गोद लेनासमान नागररकिा संदहिा वाले दे श -

अधिकांश आिुननक दे शों में ऐसे कानन लाग है |

अमेररकाइक्जतट जैसे , सडान ,इंडोनेशशया ,िुकत ,मलेशशया,बांनलादे श ,पाककस्िान ,आयरलैंड ,


कई दे श है क्जन्होंने समान नागररक संदहिा को लाग ककया है

भारिीय संवविान और समान नागररक संदहिा-

समान नागररक संदहिा पर डॉ- आर अंबड


े कर के वविार .बी .

“मैं व्यक्तिगि रुप से नह ं समझ पा रहा हं कक ककसी िमथ को यह ववशाल व्यापक )मजहब(
?क्षेत्र अधिकार तयों ददया जाना िादहए

ऐसे में िो िमथ जीवन के प्रत्येक पक्ष पर हस्िक्षेप करे गा और वविानयका को क्षेत्र पर अनििमण
से रोकेगा |यह स्विंत्रिा हमें तया करने के शलए शमल है ?

हमार सामाक्जक व्यवस्था समानिा भेदभाव और अन्य िीजों से भर है |

यह स्विंत्रिा हमें इसशलए शमल है कक हम इन सामाक्जक व्यवस्था में जहां हमार मौशलक
अधिकारों के साथ ववरोि है वहां वहां सि
ु ार कर सकें “ |

मल अधिकारों में ववधि के शासन की अविारणा ववद्यमान है

क्जसके अंिगथि सभी नागररकों को एक समान ववधि का संरक्षण प्राति होना िादहए लेककन
स्विंत्रिा की इिने वषों के बाद भी जनसंख्या का एक बड़ा वगथ अपनी मलभि अधिकारों के
शलए ह संघषथ कर रहा है |

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इस प्रकार एक समान नागररक संदहिा कब लाग ना होना एक प्रकार से ववधि के शासन का


उकलंघन है ह साथ ह संवविान की प्रस्िावना का भी उकलंघन है |

समान शसववल संदहिा से संभाववि लाभ

अलग | अलग काननों के कारण न्यायपाशलका पर बहुि बोझ पड़िा है -अलग िमों की अलग-
न्यायपाशलका में वषों से लंबबि मामलों के ववषय में राहि अवश्य शमलेगी |

सभी के शलए एक समान कानन होने से दे श में एकिा की भाव में प्रिार होगा क्जस दे श में
नागररकों में एकिा होिी है कोई वैमनस्य नह ं होिा वह दे श िेजी से ववकास के पथ पर आगे
बढ़िा ह है |

समान नागररक संदहिा के लाग होने से भारि दे श की मदहलाओं की क्स्थनि में सुिार अवश्य
आएगा |विथमान में कुछ िमों के पसथनल लॉ में मदहलाओं के अधिकारों को सीशमि कर ददया
गया है |समान शसववल संदहिा के लाग होने के बाद मदहलाओं को अपने वपिा की संपवत्त पर
अधिकार और कोटथ लेने जैसे मामलों में भी एक समान ननयम से दे खा जाएगा |

यदद ककसी भी िमथ के अंिगथि समाज के ककसी वगथ के अधिकारों का हनन होिा है िो उसे
रोका जाना िादहए |िभी ववधि के समक्ष समिा की अविारणा के िहि सभी के समान सभी के
साथ समानिा का व्यवहार, वास्िववकिा में शसद्ि ककया जा सकेगा |

माननीय सवोच्ि न्यायालय के द्वारा संपवत्त पर समान अधिकार और मंददर प्रवेश के समान
अधिकार जैसे न्यानयक ननणथयों के माध्यम से समाज में क्षमिा के शलए उकलेखनीय प्रयास ककए
गए हैं |

अिुः भारि की सरकार और न्यायालयों को िादहए कक वे समान समान शसववल संदहिा को


लाग कराने के शलए समग्र गंभीर प्रयास करें |

समान शसववल संदहिा लाग होने के पश्िाि आने वाले बदलाव –

1. शर यि के अनुसार मुक्स्लम कुछ भी नह ं कर पाएंगे जैसे मुक्स्लमों का िीन - िार


वववाह करना एवं िलाक लेने के शलए भी उन्हें कोटथ के जररए ह जाना होगा |
2. मुक्स्लम शर यि कानन के अनुसार अपने पररवार को जायदाद का बंटवारा नह ं कर
सकेंगे |
3. समान नागररक संदहिा लाग होने के बाद वववाह, िलाक़ दहे ज़, उत्तराधिकार के मामलों
में दहंद मस
ु लमान और ईसाइयों पर एक समान कानन लाग हो जाएंगे |

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समान शसववल कोटथ कहां लाग है ?

1. भारि में गोवा राज्य में में ह समान नागररक संदहिा लाग 1961
| गाल शासन के समय लाग थीकर द गई थी जो पि
ु थ
2. विथमान में उत्तराखंड की सरकार ने एक कमेट गठन की है जो
समाज समान नागररक संदहिा लाग करने के शलए ड्राफ्ट िैयार करे गी
;|

समान शसववल संदहिा बहस _का प्रमख


ु मद्
ु दा

हाल ह के वषों में समान शसववल संदहिा पर शसयासी और सामाक्जक दोनों ह


माहौल गमथ रहे हैं |

एक और जहां दे श की बहुसंख्यक आबाद समान नागररक संदहिा को लाग करने


की परु जोर मांग उठािी है वह अकपसंख्यक वगथ इसका ववरोि करिे हैं |

समान शसववल संदहिा और ववधि आयोग

1. ववधि आयोग ने अपना पक्ष रखिे हुए कहा है कक जरूर नह ं है कक एक एकीकृि राष्र
को समानिा की आवश्यकिा हो बक्कक हमें मानवाधिकारों पर ननववथवाद िकों के साथ
अपने मिभेदों को भुलाने का प्रयास करना िादहए
2. आयोग का सझ
ु ाव है कक समान नागररक संदहिा को लाग करने की वजह सभी ननजी
काननी प्रकियाओं को संदहिाबद्ि कर दे ना िादहए |

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ग गरोन दग
ु फ क तनम फण डोड इन्हीं के न म पर यह | र जपत
ू ों द्व र करव य गय )परम र(
| डोडगढ़ य धि
ू रगढ़ कहि त है

 आहू और क िीलिंध नददयों क िंगम स्थि जो स्थ नीय भ ष में ि मेि कहि त है -
के तनकट मुकंदर की पह डी पर जस्थत है |
 चौह न कुि कल्पद्रम
ु के अनुि र खींची र जवंश के िंस्थ पक दे वनलिंह ने अपने
बहनोई बीजिदे व डोड श िक को म रकर इि दग
ु फ पर अपन अगधक र कर लिय और
इिक न म ग गरोन रख |
 िन 1303 ई.में ददल्िी के िुल्त न अि उद्दीन खखिजी ने ग गरोन पर आक्मण कर
ददय उि िमय र ज जैतलिंह क श िन क ि थ |
 र ज जैतलिंह ने अि उद्दीन खखिजी क िर्ित पूवक
फ प्रततरोध ककय तथ र ज जैत
लिंह की पवजय हुई|
 र ज जैतलिंह के श िनक ि में खरु ि न िे प्रलिद्ध िूर्ी िंत हमीदद्
ु दीन गचश्ती
ग गरोन आये |उनकी दरग ह मीठे ि हब के न म िे प्रलिद्ध है |

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 र ज जैत लिंह की तीिरी पीढ़ी में भजक्त पर यण नरे श पीप र म क हुये पीप जी |
ने अपन र ज्यवैभव त्य ग कर, िंत र म नंद के लशष्ट्य बन गए |
 इनकी छतरी आहू व क िीलिंध नददयों के िंगम के िमीप जस्थत है , जजिे िंत पीप
की छतरी कहते हैं |

इनिहास में गागरोन दग


ु थ के दो साके प्रमुख हैं :-

पहि ि क - ग गरोन के िबिे अगधक प्रलिद्ध कथ पर क्मी श िक र ज भोज के


पुत्र अचिद ि हुए, जजन के श िनक ि में पहि ि क हुआ में म ंडू के 3241 िन |
ने एक पवश ि िेन के ि थ ग गरोन पर )उर्फ होशंग श ह ( िल्
ु त न अिपख ं गोरी
जजिमें ग गरोन के श िक | आक्मण कर ददय तथ ककिे को घेर लिय गय
अचिद ि ने अपने बंधु– ब ंधवो के ि थ योद्ध ओं को एकत्रत्रत कर म ंडू के िुल्त न
क डटकर मुक बि ककय इि भीषण िंग्र म में अचिद ि तथ उिके बंधु |-ब ंधव
वीरगतत को प्र प्त हुए जजिके क रण उनकी र तनयों और दग
ु फ की ििन ओ ने अपने |
इिके पश्च त अिपख ं गोरी ने ग गरोन | को जौहर की ज्व ि में भस्म में कर ददय
के दग
ु फ को अपने बडेशहज दे गजनी ख को िौंप ददय |
इधर खींची वंशज प ल्हणिी अपने खोए हुए पैतक
ृ र ज्य को प ने के लिए िही अर्िर
की प्रतीक्ष कर रह थ उिने अपने म म र ण कंु भ की िैन्य िह यत िे ग गरोन |
पर पुन: पवजय प्र प्त कर िी और अपन आगधपत्य स्थ पपत कर लिय इिे ही |
इततह िमें ग गरोन क प्रथम ि क कह गय है |

दि
ू र ि क :- | ईस्वी में महमूद खखिजी ने ग गरोन पर आक्मण कर ददय 3222
उि िमय ग गरोन के श िक प िहणिी थे प िहणिी ने मेव ड के तत्क िीन मह र ण
एवं अपने म म र ण कंु भ िे िैतनक िह यत की म ंग की, जजि पर उनके म म र ण
कंु भ ने धीर िेन पतत के नेतत्ृ व में एक िैन्य दि उिकी िह यत के लिए भेज ददय |
इि भीषण यद्
ु ध में ि तवें ददन िेन पतत धीर अपने योद्ध ओं के िदहत िडते हुए
जजििे प िहणिी की दहम्मत टूट गई और वह र त के | वीरगतत को प्र प्त हो गय
अंधेरे में अपने पवश्वस्त िैतनकोोों के ि थ दग
ु फ िे पि यन कर गय जंगि में |
भटकते हुए, उनक प ि बबफर भीिों के गगरोह िे पड गय इन बबफर भीिो ने |
इधर ग गरोन के दग
ु फ | प ल्हणिी िदहत िमस्त योद्ध ओं को मौत के घ ट उत र ददय

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में बचे हुए योद्ध ओं ने अपन केिररय ब न पहन कर लिंह की भ ंतत युदोध में टूट
पडे यह घटन इततह ि में ग गरोन के | तथ वीर ंगन ओं ने दग
ु फ के अंदर जोहर ककय |
| दि
ू रे ि के के रूप में प्रलिद्ध हुई

दशथनीय स्थल :-

 ग गरोन दग
ु फ की पवशेषत यह है कक इि दग
ु फ क तनम फण िीधे चट्ट न पर ककय गय
है बजल्क इिमें नींव नहीं है इ |ि ककिे के तीन परकोटे हैं ककिे के अंदर दो प्रवेश |
| द्व र हैं जजनमें एक पह डी की तरर् खि
ु त है तथ दि
ू र द्व र नदी की तरर्
 ग गरोन दग
ु फ िे कुछ दरू ी पर झ िर प टन न मक जगह है जजिमें ि त िहे लियों क
मंददर जस्थत है इि मंददर को कनफि टॉड ने च रभज
ु मंददर भी कह |ो है |
 भव नी न ट्यश ि - मह र ज भव नी लिंह द्व र तनलमफत यह न ट्यश ि प रिी ओपेर
शैिी की है |
 नविख ककि – इि ककिे क तनम फण झ ि र ज पथ्
ृ वी लिंह ने करव य |
 झ िर प टन में शीतिेश्वर मह दे व क मंददर भी दशफनीय है झ िर प टन को घंदटयों |
| ज त है क्योंकक यह ं पर मंददरों में हज रों घंदटय ं िटकी हुई है क शहर भी कह

अन्य महत्वपणथ बबंद ु :-


 झ ि व ड र जस्थ न क िव फगधक आदफ जजि है |
 र जस्थ न क ततगथ युक्त दे व िय शीतिेश्वर मह दे व मंददर है जो की िबिे प्र चीन है
|
 िंत मीठे ि हब की दरग ह ग गरोन में जस्थत है |
 पवद्व नों क अनम
ु न है कक पथ्
ृ वीर ज ने अपन प्रलिद्ध ग्रंथ ’वेलिकक्िन रुक्मणी री ‘
| ग गरोन में रहकर लिख
 िंत पीप क मठ द्व ररक में जस्थत है |

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साक्षात्कार
आरजेएस पर क्षा 2022 में ियननि ववद्याथी

दाशमनी जी,आपका अशभनंदन और स्वागि है |आपने अपनी सिलिा से


अपने पररवार जनों को गौरवाक्न्वि ककया है | हमें आपसे बाि करके
आज अत्यंि हषथ महसस हो रहा है |आपको नई गंज के समस्ि पररवार
एवं संपादक मंडल की ओर से हाददथ क बिाई|

दाशमनी जी अपना जीवन पररिय शशक्षा एवं पररवार के बारे में बिाएं|

मेरा नाम दाशमनी प्रेम िेयरवाल है | मैं अलवर क्जले के राजगढ़ कस्बे के मध्यमवगीय पररवार
से हूँ | मैंने अपनी प्राथशमक शशक्षा अपने कस्बे से ह की है िथा अपनी ll. B. Govt. College
alwar से ककया है िथा ll. M NLSIU, Bangaluru से ककया है |

आपके प्रेरणा स्त्रोि क्जन्हें आप अपनी सिलिा का प्रथम श्रेय दे ना िाहें |

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मेरे िािा जी जो कक वकील हैँ, मेरे प्रेरणा स्त्रोि हैँ, उन्ह ं से इस प्रोिेशन में आने की प्रेरणा
शमल |

दाशमनी जी , आपकी सिलिा के मल मन्त्र तया हैँ जो आप students क़ो बिाना िाहें

एक सािारण परन्िु मल मन्त्र है – मेहनि | इसके साथ ह कॉम्पीदटशन में बने रहने के शलए
स्माटथ हाडथ वकथ की आवश्यकिा है |

आप अगर pre और mains की िैयार के शलए कुछ ववशेष बिाना िाहें |

Pre exam के शलए क्जिना हो सकें concise notes िैयार करें , िाकक revision के समय
आसानी रहें | Main points या शब्द highlight करें या notebook में शलख लें | क्जससे कक
exam time में आपको revision में कुछ problem ना हो |

Mains एनजाम में क्जिना हो सके answer शलखने की प्रैक्तटस करें , खब मेहनि करें , ववश्वास
रखें कक ये मेहनि एक ददन िल लाएगी|

ननबंि में अच्छा कंटें ट शलखने के शलए एक दहंद एवं एक english अख़बार का editorial daily
basis पर पढ़ने की आदि बनाएं | Editorial आप mobile पर भी पढ़ सकिे हैँ |

RJS बनने के बाद तया कुछ ऐसे बदलाव आप समाज में लाने के प्रयास आप करना िाहें गे,
यदद हाूँ िो वो तया हैँ ?

इस पद पर रहिे हुए मझ
ु े क्जिनी opportunity शमलेगी उसमें मैं मदहलाओं के अधिकारों एवं
दहि में कायथ करने का प्रयास करुूँ गी| समाज के साथ मेरे कायाथलय में ईमानदार से कायथ हो,
ककसी के प्रनि अन्याय ना हो, कोई बेवजह प्रिाड़ड़ि नह ं हो, इस ददशा में अवश्य कायथ करुूँ गी |

कुछ important books suggest करना िाहिी हैँ ?

मैंने ननम्नशलखखि books refer की -

Constitution के शलए M. P. Singh, J. N. Pandey,

Contract / SRA के शलए – अविार शसंह

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T. P. Act के शलए R. K. Sinha

IPC – K. D. Gour, Bhattacharya

CPC – Takwani

C.R. P.C – Kelkar

Hindi Essay – Newspapers & Arihant Essay book

Hindi Grammar – व्याकरण रिना RBSE

Previous years - Papers – Universal guide to judicial service examination

Bare Acts

Being a woman तया आज भी आप मानिी हैँ कक जीवन में संघषथ ज्यादा होिे हैँ या इस
बाि में सामाक्जक क्स्थनि में अपेहक्षि बदलाव आ िक
ु े हैँ ?

बबककुल भारि दे श जो कक एक वपि ृ सत्तात्मक पष्ृ ठभशम रखिा है , मैं मानिी हूँ कक मदहलाओं के
जीवन में ज्यादा संघषथ होिा है | समाज में अपेहक्षि बदलाव िो अभी नह ं आये हैँ परन्िु
िल
ु नात्मक बदलाव बबककुल आये हैँ | मदहलाओं की शशक्षा व आधथथक उन्ननि क़ो, दसरों पर
ननभथरिा क़ो कम करे गी, व उनकी ननणथय लेने की क्षमिा क़ो बढ़ायेगी|

आपका मुख्य सन्दे श सभी ववद्याधथथयों के शलए जो िैयार में लगे हैँ|

पढ़े , खब पढ़े | कुछ समय के शलए सगे, सम्बन्िी, त्यौहार आदद क़ो भलकर मेहनि करें |
अपनी हॉबी क़ो समय दें िाकक frustration से बिें रहें | Discussion के शलए एक – दो
friends का group बनाएं | Quality समय इस group क़ो दें |

आपके जीवन का सबसे अधिक यादगार समय कौनसा है |

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ज़ब मेरा selection NLSIU, bangluru में हुआ | NLSIU में बबिाया हुआ समय सबसे
यादगार रहा है |

आपके जीवन की सबसे बड़ी िन


ु ौिी तया रह ?

मैं एक छोटे से कस्बे से हूँ , वहां न्यायिीश बनने का सपना दे खना िथा उसको साकार करना
एक िन
ु ौिीपणथ कायथ रहा है |

िन्यवाद

शशवा स्वयं

सम्पादक

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जनवरी अंक 2023 के लेखक पररचय

 गिरें द्र स हिं भदौररया


prankavi@gmail.com
9424044284
6265196070
पता :- वत्त
ृ ायन 957 स्कीम निंबर 51
इिंदौर मध्य प्रदे श पपन :-452006

 डॉ घनश्याम बादल
215, पष्ु परचना, िोपविंद निर
रुड़की
9412903681
Ghansyambadal54@gmail.com

 बज
ृ ेश कुमार
Aryabrijeshsahu24@gmail.com
9785837924
पता – जुरेहरा भरतपरु राज. (321023)

 पप्रया दे वािंिन “पप्रय”ू


राजजम
जजला -िररयाबिंद
छत्ती िढ़
Priyadewangan1997@gmail.com
 हमीद कानपरु ी
अब्दल
ु हमीद इदरी ी
179, मीरपरु , छावनी कानपरु 208004
Ahidrisi1005@gmail.com

 डा अददतत भारद्वाज
Flat no-3, plot 15
त्यम तनयर H-block,स द्धार्थनिर
जयपरु राज.
8233567797
Email:- Bharadwaj.aditi5@gmail.com

 डॉ सशवा धमेजा 9351904104

Drshivadhameja01@gmail.Com

पता :- 140A िायत्री निर जयपरु

 रमेश मनोहरा
शीतला माता िली,
जावरा जजला रतलाम
मध्य प्रदे श 457226
मो न.- 9479662215
Manoharramesh192@gmail

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