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नयी गंज-------.
वर्ष 2023
अंक 2
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i
NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE
संपादक मंडल
प्रमख
ु संरक्षक
vishvavishvaaynamah.webs1008@gmail.com
मुख्य संपादक
shuddhi108.webs@gmail.com
संपादक
सशवा ‘स्वयं’
sarvavidhyamagazines@gmail.com
शाखा प्रमख
ु
ब्रजेश कुमार
aryabrijeshsahu24@gmail.com
सीमा धमेजा
डायिे क्टि
Praggyainstitutejpr@gmail.com
9351177710
परामशषदािा
कमल जयंथ
jayanth1kamalnaath@gmail.com
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सम्पादकीय
सशवा स्वयं
ककिाबों में िम दे श प्रेम पढ़िे िैं, कई बड़ी बड़ी बािें तनबंध में सलखिे िैं और
घरों में एका निीं िोिी |
एक घर क़ो एक करने में सफल निीं िों पािे िैं िो दे श प्रेम कैसे यथाथष िोगा
?
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स्िे िस पर बड़ी बािें सलख दे ने से अगर ववचार बड़े िों जािे िो आज शायद िम
भारि का एक नया िी रूप दे ख रिें िोिे क्जसमें ववशाल ह्रदय िोिे | वसुधैव
कुिुंबकम बन जािा | लेककन सत्य ये िै कक ककिने िी 15 अगस्ि मना सलए
िमने और ककिनी िी बार 26 जनवरी |
ह्रदय वसध
ु ा क़ो घर निीं मन सका | घर क़ो घर बनाना िी जीवन भर लगा
कर भी मुक्श्कल िों गया |
जों िमसे अलग सोचिा िै उसे अस्वीकार करना िो बिुि आसान िै स्वीकार
करना िी िो कहिन िै |
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िम आसानी क़ो चन
ु लेिे िैं और िम में से िर एक के एक एक करके ििने से
भाई भाई निीं िििे बक्कक दे श िििा िै |
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शुभेच्छा
भारिीय सन्दभष में संस्कृति व्यक्टितनर्षि न िोकर समक्र्षितनर्षि िोिी िै। संस्कृति की संरचना एक हदन
में न िोकर शिाक्ब्दयों की साधना का सुपररणाम िोिा िै। अिः संस्कृति सामाससक-सामाक्जक तनधध
िोिी िै। संस्कृति वैचाररक, मानससक व भावनात्मक उपलक्ब्धयों का समुच्चय िोिी िै। इसमें धमष,
दशषन, कला, संगीि आहद का समावेश िोिा िै। इसी की अपररिायषिा की ओर संकेि करिे िुए भिषि
ृ रर ने
सलखा िै कक इसके त्रबना मनुर्षय घास न खाने वाला पशु िी िोिा िै-
‘‘साहित्यसंगीिकला-वविीनः
मुख्य संपादक
उपतनर्द् के शब्दों में किें िो संस्कृति में जीवन के दो आयाम श्रेय व प्रेय का सामंजस्य िोिा िै। इन्िीं
आधार पर आध्याक्त्मक, वैचाररक व मानससक ववकास िोिा िै और इन्िीं के आधार पर जीवन-मकयों व
संस्कारों का तनधाषरण िोिा िै और यिी जीवन के समग्र उत्थान के सचक िोिे िैं। सशक्षा-िंि में इन्िीं
सांस्कृतिक मकयों का सशक्षण-प्रसशक्षण िोिा िै। विषमान में सशक्षा-व्यवस्था संस्कृति की अपेक्षा सम्यिा-
तनर्षि अधधक िै। िात्पयष िै कक विषमान सशक्षा ववचार-प्रधान, धचन्िन-प्रधान व मकयप्रधान की अपेक्षा
ज्ञानाजषन-प्रधान िै। वस्िुिः इसी का पररणाम िै कक सम्प्रति सशक्षा के द्वारा बौद्धधक स्िर में िो
असभवद्
ृ धध िुई िै ककन्िु संवेदनात्मक या भावनात्मक स्िर घिा िै।
संपादक –
िमारी सशक्षा में सांस्कृतिक मकयों के स्थान पर पक्श्चमी सभ्यिा-मलक ित्वों को उपादान के रूप में
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ग्रिण कर सलया गया िै। िभी िो सशक्षा व समृद्धध के पाश्चात्य मानदण्डों को आधार मान सलया िै जो
संस्कृति-ववरोधी िैं, क्जनमें नैतिक व मानवीय मकयों का ववशेर् स्थान निीं िै। इसी का पररणाम िै कक
बुद्धधमान व गरीब नैतिक व्यक्टि सामाक्जक दृक्र्षि से भी िांससये पर िी रििा िै और नैतिकिा-वविीन,
संवेदनिीन, भ्रर्षिाचारी व अपराधी भी सम्पन्न, सभ्य, सम्मान्य व प्रतिक्र्षिि िोिा िै। इसी संस्कृति-
वविीन व्यवस्था के कारण शोर्ण-प्रधान पज
ं ीवादी व्यवस्था िी ग्राह्य िो गई िै, क्जसने रिन-सिन के
स्िर को िो उिाया िै, पर इस भोगवादी बाजारवादी व्यवस्था के कारण अथषशास्ि व िकनीककववज्ञान के
सामने नैतिकिा व मानवीयिा गौण िो गई िै। जबकक राधाकृर्षणन व कोिारी आयोग की मान्यिा थी कक
सशक्षा ऐसी िोनी चाहिये जो सामाक्जक, आधथषक व सांस्कृतिक पररविषन का प्रभावी माध्यम बन सके।
इस दृक्र्षि से भारिीय प्रकृति और संस्कृति के अनुरूप सशक्षा से िी मकयपरक उदात्त-गुणों का संप्रेर्ण और
समग्र व्यक्टित्व का तनमाषण सम्भव िै। इसमें पुराने व नये का त्रबना ववचार ककये जो दे श की अक्स्मिा व
समाज के हििकर िै, उसी को प्रमुखिा देनी चाहिए।
संस्थान की पत्रिका नयी गंज के पिले अंक का लोकापषण एक आंिररक सुख की अनुभति करा रिा िै।
मुझे प्रसन्निा िै कक शाखा प्रमुख के रूप में कायषभार संभालने के बाद मुझे आप सभी से नयी गंज के
इस अंक के माध्यम से रूबरू िोने का मौका समल रिा िै।
वस्िुिः अपने कमों से िम अपने भाग्य को बनािे और त्रबगाड़िे िैं। यहद गंभीरिा से धचंिन-मनन ककया
जाय िो िमारा कायष-व्यापार िमारे व्यक्टित्व के अनुसार िी आकार ग्रिण करिा िै और िमें अपने कमष
के आधार पर िी उसका फल प्राप्ि िोिा िै। कमष ससफष शरीर की कियाओं से िी संपन्न निीं िोिा अवपिु
मनुर्षय के ववचारों से एवं भावनाओं से भी कमष संपन्न िोिा िै। वस्िुिः जीवन-भरण के सलए िी ककया
गया कमष िी कमष निीं िै िम जो आचार-व्यविार अपने मािा-वपिा बंधु समि और ररश्िेदार के साथ करिे
िैं वि भी कमष की श्रेणी में आिा िै। मसलन िम अपने वािावरण सामाक्जक व्यवस्था, पाररवाररक
आज के जहिल और अति संचारी जीवन-ववृ त्त के सफल संचालन िे िु सभी का व्यक्टित्त्व उच्च आदशों
पर आधाररि िो ऐसी मेरी असभलार्ा िै।
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यि ज़रूरी निीं िै कक िर कोई िर ककसी कायष मे पररपणष िो, परन्िु अपना दातयत्व अपनी परी कोसशश से
तनभाना भी दे श की सेवा करने के समान िी िै। संपणष किषव्यतनर्षिा से ककया िुआ कायष आपको अवश्य िी
कायष-समाक्प्ि की संिुक्र्षि दे गा। कोई भी ककया गया कायष िमारी छाप उस पर अवश्य छोड़ दे िा िै अिएव
सदै व अपनी श्रेर्षििम प्रतिभा से कायष संपन्न करें । िर छोिी चयाष को और छोिे -से-छोिे से कायष के िर अंग
का आनंद लेकर बढ़िे रिना िी एक अच्छे व्यक्टित्व का उदािरण िै।
यि सवषववहदि िथ्य िै कक नयी गंज एक उच्च स्िरीय पत्रिका िै क्जसमें ववसभन्न ववधाओं में
उच्चस्िरीय लेखों का अनिा संग्रि िै
आप सभी पत्रिका का आनन्द लें एवं अपनी प्रतिकियायें ऑनलाइन या ऑफलाइन भेजें।
नयी गंज के माध्यम से िमारा आपका संवाद गतिशील रिेगा। आप सभी अपनी सुन्दर व श्रेर्षि रचनाओं
से नयी गंज को तनरन्िर समृद्ध करिे रिें गे इसी ववश्वास के साथ।
अंि में मैं सभी सम्पादक मण्डल के सदस्यों एवं रचनाकारों को नयी गंज पत्रिका के सफल सम्पादन
एवं प्रकाशन के सलए साधुवाद ज्ञावपि करिा िं करिा िाँ।
अथाषि ् पुरानी िी सभी चीजें श्रेर्षि निीं िोिी और न नया सब तनन्दनीय िोिा िै। इससलए बुद्धधमान
व्यक्टि परीक्षा करके जो हििकर िोिा िै उसी को ग्रिण करिे िैं जबकक मखष दसरों का िी अन्धानुकरण
करिे िैं।
अस्िु, तनववषवाद रूप से यि सभी स्वीकार करिे िैं कक रार्षर की रक्षा, का सकारात्मक पक्ष िोिा िै।
ई-मेलःgoonjnayi@gmail.com
शक
ु क दर 40/-
वावर्षक: 400/-
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िैवावर्षक: उपयुषटि शक
ु क-दर का अधग्रम भुगिान 1200/-
तनयम तनदे श
1 रचनाएं यथासंभव िाइप की िुई िों, रचनाकार का परा नाम, पद एवं संपकष वववरण का उकलेख
अपेक्षक्षि िै।
2 लेखों में शासमल छाया-धचि िथा आाँकड़ों से संबंधधि आरे ख स्पर्षि िोने चाहिए। प्रयुटि भार्ा
सरल, स्पर्षि एवं सुवाच्य हिंदी भार्ा िो।
3 अनुहदि लेखों की प्रामाणणकिा अवश्य सुतनक्श्चि करें । अनुवाद में सिायिा िे िु संस्थान संपादक
मंडल प्रकोर्षि से संपकष कर सकिे िैं।
4 प्रकासशि रचनाओं में तनहिि ववचारों के सलए संपादक मंडल प्रकोर्षि उत्तरदायी निीं िोगा और
इसके सलए परी की परी क्जम्मेदारी स्वयं लेखक की िी िोगी।
नई गाँज तनयमावली
रचनाएूं goonjnayi@gmail. Com ई-मेल पते पर भेजी जा सकती हैं। रचनाएूं भेजने के ललए
नई गूँज के साथ लॉग-इन करें , यह वाूंछित है।आप हमारे whatsapp no. 9785837924
पर भी अपनी रचनाएूँ भेज सकते हैँ
वप्रय साधथयों,
नई गाँज िे िु आपके सियोग के सलए आपका िाहदष क धन्यवाद। आशा िै कक ये
संबंध आगे भी प्रगति के पथ पर अग्रसर रिें गे। आगामी अंक िे िु आप सबके
सकिय सियोग की पुनः आकांक्षा िै । आप सभी से एक मित्वपणष अनुरोध िै कक
आप अपने शोध प्रपि तनम्न प्रारूप के ििि िी प्रस्िुि करें क्जससे कक िमें
िकनीकी जहिलिाओं का सामना न करना पड़े -
1.प्रकाशन िे िु आपकी रचना के मौसलक िोने का स्वतः सत्यापन रचना प्रेवर्ि करिे
समय "मौसलकिा प्रमाण पि" पर िस्िाक्षर करना अतनवायष िै । इसके त्रबना
रचना पर ववचार करना संभव निीं िोगा
2. रचना किीं पर भी पवष में प्रकासशि निीं िोनी चाहिए !
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संपादक मंडल
Note:- प्रत्येक रचना लेखक की स्वयं मौसलक िथा सलणखि िै! इसमें लेखक के स्वयं
के ववचार िैं िथा कोई िुहि िोने पर लेखक स्वयं क्जम्मेदार िोगा!
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फ़रवरी 2023 -अनुक्रमाणिका
क्रम णववरणिका लेखक पृष्ठ संख्या
संख्या
लेख –
1 युग बोध वाले हो नये णववेकानंद डॉ घनश्याम 1-3
बादल
कहानी
णनबंध
10 ककिोर अपचाररता 26-29
यग
ु बोध वाले हों नए वववेकानंद
डा.घनश्याम बादल
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तकनीकी पर हो पकड़
िकिीकी पर पकड़ और अिि
ु ािि यानि अल्रामांििम और एिवांस टे तिालोजी को प्रयोग
करिा ज़रुरी है । कम्पयट
ू र अब छोटी बाि हो गई है िैिो िकिीकी और डिक्जटलाइजेशि को
अपिाए ब्रबिा कामयाबी की बाि सोचिा महज कल्पिा मार ही होगा । अिः ब्रबिा दहचक
िई से िई िकिीकी का उपयोग करिा होगा आज की युवा पीढ़ी को, िभी ग्लोबल गांव हो
चले ववश्व में आप दटक पाएंगें ।
बुजुगों का दातयत्व
बुजुगों का भी दानयत्व है कक युवा को उसके मि की भी करिे दें , उसकी ऊजाम को सम्माि व
सही ददशा दें और अपिे अिुभव को उसके सामिे इस िरह रखें कक वह हस्िक्षेप िहीं वरि ्
एक सलाह लगे।
वववेकानंद का मतलब
आज वववेकािंद का मिलब है उिकी ही िरह की रचिात्मकिा, योग ववज्ञाि, संस्कृनि व
संस्कारों िथा दे श भक्ति को आज की यव
ु ा पीढ़ी में संचाररि करिा होिा चादहए । अब कुछ
भी कहें आिे वाले समय में परु ािी सोच काम िहीं आएगी । दे श को िई ददशा दे िे काम
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एक अवसर होता है ।
डॉ शिवा धमेजा
रवींद्रनाथ टै गोर का कथन है - हर बच्चा इस संदेि के साथ पैदा होता है कक भगवान अभी भी
मनुष्य से तनराि नहीं हुआ है ।
वह इनसानों को बनाकर अभी थका नहीं है , सही है । इनसानों ने भगवान की बनाई हुई
इस सुंदर दतु नया का रूप ही बबगाड़कर रख हदया । उसे जो करना था वे चीजें तो उसने बहुत
कम कीं , लेककन उन चीजों को बहुत ककया जो उसे नहीं करनी चाहहए थी ।
जैसे हम सब व्यस्त हैँ, खुद क़ो कुछ न कुछ बनाने में कक कोई कहे तो सही कक क्या रुतबा
है, क्या सैलरी है, बहुत नाम कमाया, बड़ा घर बना शलया वगैरह – वगैरह |
अगर आपकी बनाई हुई कृतत अपना रूप बदल लेती है तो आप बहुत नाराज होंगे । आप
कागज पर कुछ शलखना चाह रहे हैं और वैसा नहीं बन पा रहा जैसा आप चाहते हैं , तो आप
गुस्से में कागज को ही फाड़कर फेंक दे ते हैं । चचत्रकार गुस्से में अपनी पेंहटंग पर ढे र सारा
रं ग ढोल दे ता है , पर भगवान वैसा नहीं करता ।
हमने तो भगवान के हदए मनुष्य िरीर और हदमाग़ का कोई इस्तेमाल ही नहीं ककया... मानव
तक ना बन पाये लेककन भगवान
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वह इनसानों के तमाम गुनाहों , असफलताओं के बाद भी तनराि नहीं होता । उसमें उम्मीद
की सबसे लंबी ककरण है , जजसका कोई अंत नहीं । आम आदमी पचास साल की सकिय
जजंदगी जीता है और उसी में शमलने वाली असफलताओं से परे िान हो जाता है । खुद को
तनराि मान लेता है , जबकक ऐसा होना नहीं चाहहए ।
वह केवल पररणाम होता है । सफर तो हमेिा चलने वाला है । कोई भी पररणाम अंततम
पररणाम नहीं होता । एक पररणाम खराब हो सकता है , लेककन इसका मतलब यह तो नहीं
कक हम सफर पर ही चलना बंद कर दें । ट्रे न कैं शसल हो गई तो क्या हम गंतव्य तक पहुंचने
की इच्छा ही त्याग दे ते हैं ? हो सकता है एक हदन के शलए अपना सफर टाल दें , लेककन
कफर नई ट्रे न अपना ररजवेिन कराते हैं । एक और सीख शमलती है कक जजंदगी में कोई भी
पररणाम तनरी ट्रे जेडी नहीं होता , वह शसफफ एक सबक होता है । उससे सीखने की जरूरत
होती है ।
अपने आप क़ो साबबत करने का अवसर । याद रखखए , जजस इनसान ने दतु नया में सबसे
ज्यादा समस्याएं झेलीं , वह इनसान सबसे ज्यादा सफल साबबत हुआ । अगर आपके सामने
कोई रास्ता नहीं तो आप ईश्वर के बारे में सोचें । आप जरूर ववजयी होंगे ।
ईश्वर ने गहराइयों तक जीवन क़ो समझ पाने के शलए बुद्चध प्रदान की और सागर जैसे
जीवन क़ो हमने नाले के पानी की तरह बहा हदया |
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जलालुदीन रूमी एक सूफी फकीर हुए। जब वो जवान थे तो खुदा से कहा मुझे इतनी ताकत
दे कक दतु नया को बदल दूँ ।ू खुदा ने कोई जवाब नहीं हदया। कफर समय बीता। रूमी ने कहा
खुदा इतनी ताकत दे कक मैं अपने बच्चों को बदल सकंु । कफर कोई जवाब नहीं शमला। रूमी
जब बढ
ू ा हो गया उसने कहा कक खद
ु ा इतनी ताकत दे कक मैं खद
ु को बदल सकंु । तब खद
ु ा
ने कहा कक रूमी ये बात तो जवानी में पूछता तो कभी की िांतत घट जाती । दतु नया में
सबसे ज्यादा कलेि यही है, पत्नी अपने पतत को बदलना चाहती है, पतत अपनी पत्नी को,
माूँ बाप अपने बच्चों को,, बस इसी जद्दोजहद में जीवन बीत जाता है। पर कोई अपने आप
बदलना नहीं चाहता ।
हम हर हार पर ऐसे थके कक कई बार तो कफर से संभलने में समय की लम्बी अवचध नष्ट
कर दी हमने |
जब आप अपनी बरु ी आदतों का त्याग कर दे ते हैं, केवल तभी आप सही अथों में स्वतन्त्र
व्यजक्त हैं। जब तक आप एक शसद्ध परु
ु ष न बन जायें, और स्वयं को उन कायों को करने
का आदे ि देने के योग्य न हो जायें जजन्हें आपको करना चाहहये, भले ही आप उन्हें करना न
चाहते हों तब तक आप एक मुक्त आत्मा नहीं हैं। आत्म-संयम की उस िजक्त में ही िाश्वत
मजु क्त का बीज तनहहत है।
आप ईश्वर से समवपफत भाव से हमेिा ये कहहये कक "प्रभु! मेरे हाथ और पैर आपके शलये
कायफ कर रहे हैं। आपने मझ
ु े इस संसार में एक ववशिष्ट भशू मका तनभाने के शलये दी है, और
मैं इस जगत ् में जो कुछ भी कर रहा हूूँ वह केवल आपके शलये है। " स्वयं को ईश्वर के
प्रतत समवपफत कर दीजजये और आप दे खेंगे कक आपका जीवन की हर समस्या क़ो अवसर के
रूप में दे खने लगें गे |
याद रखखयेगा कक हम में से हर कोई आज समस्या पर ही बात करता नज़र आता है अवसर
या समाधान की नहीं,
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ब्रह्माण्ड में एक तनयम कायफ करता रहता है आपके ववचार ही प्रसाररत होकर पररणाम लेकर
आते हैँ अतः जजतनी ज्यादा बात हम समस्या की करते हैँ उतनी अगर समाधान की करें तो
नजररया तो बदलेगा ही पररणाम भी बदलेगा |
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यग
ु ों बाद मां भारिी की आरिी उिारिे वाले ऐसे व्यक्तित्व कला और सादहत्य के क्षेर में
अविररि हुआ करिे हैं कक क्जिका जीवि ही एक चचरन्िर आरिी का गीि बि जाया करिा
है। क्राक्न्िदृष्ट्टा और यग
ु कवव निराला का एक ऐसा ही व्यक्तित्व था, क्जसके मलए मां
भारिी भूमम युगों िक आंसू बहािी रहें गी।
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िीसरी।’ (1) इस प्रकार निराला िे कथािक िो रामचररि पर ही मलया है ककं िु उसको अपिे
पररवेश की प्रकृनि में ढाला है। यह कथािक अपरोक्ष रूप से अपिे समय के ववश्व युद्ि पर
दृक्ष्ट्टपाि करािा है, जहां घिघोर निराशा में कवव सािारणजि के हृदय मेंआशा की लौ
ददखािे की कोमशश की है, जो राम-रावण के यद्
ु ि के वत्त
ृ ांि से संभव थी। निराला िे राम
िाम को ही इस कवविा में प्रनिपाददि तयों ककया? जबकक यह शधद िो अपिे संबोिि से ही
अविार का संबंि स्पष्ट्ट करिा है, तयोंकक मध्यकालीि सादहत्यकारों िे इस िाम को अविार
के रूप में मुख्यिरू दशामया है और वह उसी रूप में बंिा हुआ है। राम िाम के सम्बंि में
रामदल
ु ारे वाजपेयी का कथि है---‘उिके सम्मुख कोई बिे बिाए आदशम या िपे-िुले प्रनिमाि
ि थे इसमलए िो कुछ भी उन्हें उदाहरणों में अच्छा और उपयोग ददखाई ददया उसी को वे
िये सांचे में ढालिे लगे। राम और कृष्ट्ण अिके सवामचिक समीपी और पररचचि िाम थे,
अिएव इन्हीं चरररों को उन्होंिे अपिे िये सामाक्जक आदशों की अिरू
ु पिा देिे की ठािी।
’(2)
निराला के सम्मख
ु प्राचीि आदशम प्रनिमाि िहीं आया था, इसमलए उन्होंिे यहां राम-िाम को
ही उद्िि
ृ ककया है, ककं िु िवीि रूप में, तयोंकक ये राम अवरिारी राम िहीं बक्ल्क संशय
युति मािव अपिे समय का सािारण मािव है जो अपिे समय की पररक्स्थनियों से
अवसादग्रस्ि भी है।–
‘ जब सभा रही निस्िधिरू राम के क्स्िममि ियि छोड़िे हुए शीिल प्रकाश रविे ववमि
निराला के राम अपिी उदात्तिा के कारण क्जििे प्रभावी और स्वर लगिे हैं उििे ही अपिी
मािव सुलभ दब
ु मलिाओं के कारण मिोद्वंदों से नघरे हुए मामममक सहि एवं हृदयस्पशी भी
प्रिीि होिे हैं। अिेक स्थािों पर िो निराला जी िे राम के रूप में अपिे को ही प्रनिक्ष्ट्ठि
करिे का सफल प्रयास ककया है। यथा---
‘ नघक जीवि जो सहिी ही आया ववरोि’ यह कथि क्जििा राम के जीवि पर सटीक बैठिा
है, उििा ही स्वयं निराला जी के जीवि पर भी । निराला की जीवट, जीवि और मल्
ू यों के
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प्रनि निष्ट्ठा, ववरोि वविोह और कभी ि हारिे वाला व्यक्तित्व निराला में भी राम के ही
समाि है।
इस कवविा में युद्ि के मध्य उत्पन्ि मािमसक प्रकक्रया है क्जसमें राम के चररर के रूप में
केवल मािवीय रूप उभारकर पग-पग पर सामिे आया है, जो प्राचीि रामकथा की रुदढ़यों को
िोड़ िवीि दृक्ष्ट्टकोण को पररऽंांावषि कर रहा है -----
‘ क्स्थर राघवेंि को दहला रहा कफर-कफर संशय, रह-रह उठिा जग जीवि मं रावण-जय-भय’
(4)
स्पष्ट्ट है कक निराला िे अपिी कवविा में मिोवैज्ञानिक भमू म का समावेश कर उसे एक िवीि
दृक्ष्ट्टकोण ददया है। बंगला कृनि ‘कृनिवास’ की कथा शुद्ि पौराणणकिा से युति अथम की भूमम
पर सपाटिा रखिी है, लेककि निराला िे यहां अथम की कई भूममयों का स्पशम ककया और
उसमें युगीि चेििा आत्मसंघषम का भी बड़ा प्रभावशाली चचर प्रस्िुि ककया है।
िाटकीयिा के संदमम में यदद दे खा जाय िो निराला िे उसका भी प्रभाव उति कवविा में
ववखेरा है, जो पूवम में ककसी अन्य कवव िे अपिे काव्य में वणणमि िहीं ककया। सम्पूणम हिुमाि
का पररदृश्य आिुनिक िाटकीय दृक्ष्ट्टकोण का िमि
ू ा है जो ववकरालिा और प्रचंििा का रूप
िारण कर सामिे आया है। निराला िे प्रकृनि को रीनिकालीि कववयों की भांनि कामिीय रूप
में ि चचब्ररि कर उसे शक्तिरूपा दग
ु ाम के रूप में ढाला है। िवीि प्रयोग के रूप निराला िे
भि
ू र को परु
ु ष का प्रिीक ि ददखाकर पावमिी के रूप में चचब्ररि कर िवीि दृक्ष्ट्टकोण ददया
है।---‘सामिे क्स्थर जो यह भूिर शोमभि-शर-शि हररि-गुल्म-िण
ृ से श्यामल सद
ुं र पावमिी
कल्पिा है इसकी मकदंद-ब्रबद
ं ,ु गरजिा चरण-प्रान्ि पर मसंह वह िहीं मसंिु दशददक-समस्ि है
हस्ि’(9)
इस प्रकार हम दे खिे हैं कक ‘राम की शक्ति पूजा’ में निराला िे अपिी मौमलक क्षमिा का
समावेश ककया है। इसमें कवव िे पौराणणि प्रसंग के द्वारा िमम और अिमम के शाश्वि संघषम
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का चचरण आिुनिक पररवेश की पररक्स्थनियों से संबद्ि होकर ककया है। कवव िे मौमलक
कल्पिा के बल पर प्राचीि सांस्कृनिक आदशों का यग
ु ािुरूप संशोिि अनिवायम मािा है। यही
कारण है कक निराला की यह कवविा कालजयी बि गयी है।
सन्दभम सच
ू ी------
3. रामववलास शमाम, रामववराग, लोक भारिी प्रकाशि 15ए, महात्मा गांिी मागम, इलाहाबाद-
1, ग्यारहवां संस्करण 1986 प.ृ सं. 98
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मद्चिम कुहरे की छटा चीर पूरब से आिे रक्श्मरथी उिके स्वागि में भर उड़ाि आकाश भेदिे
कलरव से खग वंश बेमल के उच्चारण जब अथम बदलिे लगें और बहुरंग नििमलयााँ चटक
मटक आ फूल फूल पर माँिराएाँ जब मौि िोड़ कोयलें गीि अमराई में गा उठें और मिक
ु र के
गुंक्जि राग उठें पड़कुमलया गमकाए ढोलक जब झााँझ बजाएाँ मैिाएंंाँ बज उठें माँजीरों सी
फसलें लग उठे िबलची सा बैठा कर उठे गट
ु ु र गाँू हर कपोि मोरिी मोर का िाच दे ख इिरािे
लगे बगीचे में महुआ मदमािा हुआ कहे टे सू का लाल सुखम चेहरा पी रहा िरा की हररयाली
सवमथा िवीिा कली कली सुषमा ब्रबखेरिी हो कदली वपयराई सरसों फूल ब्रबछा खेिों में
अाँगिाई लेिी ववटपों से मलपटीं लनिकाएाँ आमलंगि करिीं लगिीं हों, चुम्बि पर चुम्बि जड़िीं
हों। समझो द्वारे पर है बसन्ि।।
जब सघि विों के बीच बीच गायों के गोबर से लीपे आश्रम के आाँगि आाँगि में घी सिी
बिी हवव सममिा से हो उठे हवि में सन्िों की आहुनियों से उठ रहा िआ
ु ाँ जब मन्द मन्द ले
उड़े पवि ब्रबखरािा जाए ददक्ग्दगन्ि उल्लासभरी िरुणाई पर छा उठे जोश िव यौवि का
खश
ु बू ब्रबखेरिी ममलकाएाँ मस्
ु कािीं आिीं लगिीं हों, जब रं ग ब्रबरं गे फूलों की मदमािी झम
ू ा
झटकी में मचलीं हों कमलयााँ णखलिे को णखलणखला उठे सौन्दयम स्वयं हो उठें मिोहारी पी पल
हर दृक्ष्ट्ट सुहािी सक्ृ ष्ट्ट दे ख जागे वववेक हर लेख लेख कर उठे समीक्षा सौरभ की िरिी मािा
के गौरव की पिझड़ से उजड़े वि वि में सममिाएाँ आिे लगिीं हों शुचचिाएाँ छािे लगिीं हों,
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अमराई की शाखाओं सी बदहयााँ बौराईं लगिीं हों, िददयााँ कृशकायी लगिीं हों, समझो द्वारे
पर है बसन्ि।।
कह उठे गगि हा रसा रसा हर वसि लगे जब कसा कसा हो ददशा ददशा की एक दशा िि
पर मादकिा भरा िशा वाणी अवाक् रह जािी हो ब्रबि कहे अदा कह जािी हो संकेि मुखर
हो जािे हों अरमाि मशखर हो जािे हों हर ओर छोर िक पोर पोर बासन्िी राँग में बोर बोर
सौन्दयमलोक की वही दृक्ष्ट्ट रचिे को आिुर िई सक्ृ ष्ट्ट गािे हों ककन्िर ककन्िररयााँ हर िरह
अिूठी अलसािीं आिन्द लट
ु ािीं इठलािीं सम्मोदहि करिीं बल्लररयााँ, कल्पिािीि िरुणाई में
लटका ललिाएाँ झल्लररयााँ जब दबा दबा कर ओठों से सकुचाईं सीं बौराईं सीं मददराईं सीं
भरमाईं सीं घर में आईं सीं लगिी हों, गमलयााँ गदराईं लगिीं हों रक्तिमाहररि कोपलें उमग
ववटपों पर कौिह
ू ल करिीं कुछ मस्िािीं कुछ सस्
ु िािीं उल्लास जगािीं बलखािीं सकुचािीं
आईँ लगिीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्ि।।
गुिगुिी िूप शीिल समीर मि मुददि ककन्िु आिा अिीर सुखदाई कुछ कुछ दख
ु दाई पीिाभ
पल्लवों की लडड़यााँ िरिी पर चगरिीं झूम झूम लावण्यमयी ममष्ट्ठास प्रबल होिी हो कड़वी पर
हलचल आकषमण और ववकषमण की बेलाएाँ सजिीं लगिीं हों, खारीं लहराईं लगिी हों आलाप
दटटहरी का सि
ु कर गा उठे पपीही वपया वपया ब्रबरदहनि के मि में उठे हूक हो उठे कलेजा
टूक टूक गािी हो कोयल कूक कूक चािक जािा हो चूक चूक वविवा सिवा की नछड़े जंग
उड़ चले कहीं चढ़ उठे रं ग चचकिी चचकिी हर दे ह एक बदलाव मलए जब मटक मटक
चटकीले मटके सी फूली फूलों की िाली से बोले रं गीि ममजाजी मंजररयााँ मरुथल में जैसे जल
पररयााँ ओढ़े बासन्िी चि
ू ररयााँ मदमािी आिी किमररयांंाँ ब्रबि धयाहीं यव
ु िी सुन्दररयााँ
सामाक्जक भय से िरीं िरीं प्रेमी से जाकर दरू खड़ीं उन्मि अलसाईं लगिीं हों हारीं हरजाई
लगिीं हों ििमुख शरमाईं लगिीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्ि।।
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स्वणणमम यग
ु की आभा बिकर, आसमाि छू जािा है।।
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खाि अधदल
ु गफ्फार खाि
समीर उपाध्याय
हााँ
िेिा
महाि
पाककस्िाि
बलचू चस्िाि
भारि ममलाि
स्विंरिा आह्वाि।
हााँ
शक्ति
प्रपाि
सीमा प्रांि
वतिा निष्ट्णाि
अंग्रेज आघाि
प्रखर झंझावाि।
हााँ
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स्राव
प्रभाव
भाि ृ भाव
दहंद झक
ु ाव
लिाकू स्वभाव
अद्भि
ु स्थायीभाव।
हााँ
आि
सम्माि
दहन्दस्
ु िाि
गांिी ममलाि
सेिािी कीनिममाि।
हााँ
भव्य
हुंकार
ललकार
लीग प्रहार
वास कारागार
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हााँ
शाही
सवारी
चमत्कारी
रथ ववहारी
आभा दरबारी
सारथी निववमकारी
स्वणम सरसों भष
ू ण आबकारी
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गुजरिा वति
बज
ृ ेश कुमार
सररिा भी अपिी सास की हर बाि माििी | लेककि कुछ ही ददिों बाद सुजाि राि को दारू
पीकर घर आिा है और घर में सभी को गाली गलौज करिा है | सररिा कहिी है कक आप
दारू पीिे हैं?
सररिा- सज
ु ाि को समझािी है |
सररिा राि भर रोिी है और अपिे भाग्य को कोसिी है | िीरे -िीरे समय गुजरिा गया |
लेककि सुजाि की आदिें और भी बढ़िी गई |
सररिा िे भी अब सोच मलया था कक मैं इस घर में िहीं रहूंगी, उसिे एक पर अपिे वपिा
को मलखा और सारी बािों से अवगि करा ददया |
सररिा के वपिा जगजीवि को अभी-अभी स्टे में बहुि बड़ा िुकसाि हुआ था िो उसकी
क्स्थनि भी इस समय खराब थी | उसिे अपिी बेटी को पर में मलखा कक बेटा वही िम्
ु हारा
घर है, जैसा भी है िुम्हारा पनि है | इसमें हम कुछ िहीं कर सकिे |
एक ददि जब सररिा ववद्यालय जा रही थी िो उसिे दे खा कक रास्िे में भीड़ लगी पड़ी है
| जैसे ही उसिे दे खा कक सज
ु ाि बेहोश अवस्था में पड़ा है | वह उसे एंबुलेंस बुलाकर
अस्पिाल ले जािी है और उसका इलाज करािी है | जैसे ही सुजाि िे सररिा को दे खा िो
उसकी आंखों में आंसू थे, लेककि कहिे को कुछ िहीं|
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मशवदे वी िोमर
भारिीय इनिहास को उठाकर दे खें िो यह वीर और वीरागणाओ के अिचगिि त्याग और
बमलदाि से भरा पड़ा है | इसमें कोई दो राय िहीं है | यहां की पावि भूमम की रक्षा में मिुष्ट्य
जानि के साथ-साथ पशु- पक्षक्षयों िे भी अपिे प्राणों को न्योछावर ककया है | इस पावि भूमम
के प्रनि यहां के लोगों का समपमण अिल
ु िीय है | इसमलए भारि के लोग अपिी मािभ
ृ मू म की
मम्टी को उठाकर अपिे मसर पर लगािे हैं |
कुछ समय ऐसा भी आया कक यह दे श ववदे शी आक्रन्िाओं के अिीि हो गया | लेककि यहां
के लोगों िे अपिी मािभ
ृ ूमम की स्वािीििा के मलए निरं िर प्रयास जारी रखा िथा इसके
मलए उन्हें जो भी कुबामिी दे िी पड़ी, उसके मलए हर समय िैयार रहें | उिमें से एक िाम है
– अंग्रेज फौज के दमि का बदला लेिे वाली बिोि की बेटी मशवदे वी िोमर िथा उसकी
छोटी बहि जय दे वी िोमर |
इि क्षराणी वीरांगिाओं िे अंग्रेजी सेिा के छतके छुड़ा ददये और क्रांनि की प्रचंि ज्वाला को
प्रज्वमलि कर अपिे प्राणों को न्यौछावर कर ददया|
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पकड़कर, पेड़ पर लटका कर फांसी दे दी | इसके साथ-साथ उन्होंिे गांव का रशद पािी बंद
कर ददया| िथा उिकी संपवत्त और पशुओं पर भी कधजा कर मलया |
मशव दे वी िोमर िे अपिे साचथयों के साथ बड़ौि में िैिाि अंग्रेजी टुकड़ी पर अचािक बहुि
भीषण आक्रमण ककया | क्जससे अंग्रेज सैनिक भयभीि हो गए, बहुिों को मौि के घाट उिार
ददया गया | क्जसे अंग्रेजी टुकड़ी बड़ौि से भाग गई | जबकक अंग्रेजी सेिा के पास आिुनिक
हचथयारों से पररपूणम थी लेककि इस भीषण संग्राम में मशवदे वी िोमर घायल हो गई थी |
जब घायल अवस्था में मशवदे वी िोमर का उपचार ककया जा रहा था िब अचािक अंग्रेजी
फौज िे आकर के गोमलयां दागिा प्रारं भ कर ददया, क्जससे मशवदेवी िोमर वीरगनि को प्रापि
हो गई | यह दृश्य उिकी छोटी बहि जय दे वी िोमर दे ख रही थी | उसिे अपिी बहि
मशवदे वी िोमर की मत्ृ यु का बदला लेिे का प्रण ककया | उसे 14 वषीय बामलका िे गांव -गांव
जाकर लोगों को ललकारा और उिका दल बिाकर अंग्रेजी सेिा का पीछा प्रारं भ कर ददया |
आणखरकार यह दल उत्तर प्रदे श के ववमभन्ि क्षेरों से होकर लखिऊ पहुंच गया |
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नई गूंज
ववचध वविेष
साक्षात्कार
नमस्कार सर,
नई गूूँज के साक्षात्कार मंच पर हम आपका नई गूूँज ( िोध, साहहत्य एवं संस्कृतत की उत्कृष्ट
ऑनलाइन माशसक पबत्रका ) के समस्त सम्पादक मण्डल की ओर से हाहदफक अशभनन्दन
करते हैँ |
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• आपकी यात्रा से मंजज़ल तक पहुंचने के इस रास्ते में आपके सबसे अहम प्रेरणा स्त्रोत
कौन हैँ, जजन्हें आज आप अपनी सफलता का श्रेय देना चाहें गे ?
• सर प्रत्येक व्यजक्त जों भी, जजस पद पर पहुूँचे हुए दतु नया क़ो हदखाई दे ते हैँ, उन्होंने
वहाूँ तक पहुंचने के शलए ककतने ही संघषों का सामना ककया होता है | आप अपनी
इस यात्रा में संघषों के बारे में कुछ बताएं |
• यह बात पूणफतया सही है कक जजस पद पर व्यजक्त पहुूँचता है उसके पीछे माता -
वपता का आिीवाफद, उनका स्वयं का संघषफ होता है | मैंने दो बार आर. जे. एस.का
साक्षात्कार , जे. एल.ओ., ए. पी. पी. तथा ई. ओ. का साक्षात्कार भी हदया लेककन
सफल नहीं रहा जजससे मैं ववचशलत था लेककन वपताजी ने हौसला बढाया कक “ लगे
रहो “ | उसी समय आर. पी. एस. सी. से ववचध में सहायक आचायफ की जगह
तनकली और मैं पूणफ तनष्ठा से लग गया और सफलता प्राप्त हुई |
• सर, आर. जे. एस. और अन्य प्रततयोगी परीक्षाओं में भाग लें रहें ववद्याचथफयों क़ो तैयारी
के ववषय में क्या महत्वपूणफ सुझाव दे ना चाहें गे आप ?
• जो मेरे साथी आर. जे. एस. या अन्य ववचध सम्बन्धी परीक्षा की तैयारी कर रहें हैँ,
उनसे इतना ही कहूंगा कक लक्ष्य बड़ा है, मेहनत भी उतनी ही करनी होगी | यहद
प्रथम प्रयास में सफलता ना शमले तो घबरायें नहीं सतत प्रयास करते रहें | आपका
दस
ू रा या तीसरा प्रयास तनणाफयक साबबत होगा |
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• आपने बबल्कुल सही कहा मैम, हम मिीनी मानव बन रहें हैँ, उद्दे श्य नौकरी तक
सीशमत हो गया है, हम पररवार, शमत्र, माता - वपता क़ो समय नहीं दे त,े जजन्होंने
हमारी नींव तैयार की | हम चकाचौंध व हदखावे से अचधक प्रभाववत हो रहे हैँ |
• मैम, मैं ववचध का ववद्याथी रहा हूूँ पर मैं मानता हूूँ कक ववचध और साहहत्य एक दस
ू रे
के पूरक हैँ | पुस्तकें हमारी सच्ची दोस्त व पथ प्रदिफक हैँ | साहहत्य जीवन में रस
भरता है |
• सर, आज परीक्षा में चयन न हो पाने से ववद्याचथफयों में बहुत तनरािाजनक ववचार
आने लगते हैँ| जजनका एक या दो बार में चयन नहीं हो पाता उनका दृजष्टकोण हर
बात के प्रतत, नकारात्मक होने लगता है, आप ऐसे ववद्याचथफयों क़ो क्या सन्दे ि देना
चाहें गे ?
• मैं ऐसे सभी ववद्याचथफयों से यही कहूंगा कक प्रथम प्रयास की असफलता से ततनक
तनराि ना हों | आप अपनी पूणफ तनष्ठा व ईमानदारी से मेहनत करो | आपकी
मेहनत इतनी हो कक आपकी अंतरात्मा से आवाज़ हो कक मैंने मेहनत की | मैम, मैंने
खुद कई असफलताओं के बाद सफलता क़ो प्राप्त ककया है |
सर, हम आपका आभार व्यक्त करते हैँ कक आपने हमारे पाठकों व ववद्याचथफयों का मागफदिफन
ककया | सर, आपने हमेिा ही ववद्याचथफयों क़ो बहुत मेहनत से कमफ करने के शलए प्रोत्साहन
हदया है और स्वयं भी अटल ववश्वास और दृढ तनश्चय से मंजज़ल क़ो प्राप्त ककया है |
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सर, एक बार कफर आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आपने प्रततयोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे
ववद्याचथफयों क़ो प्रेरणा दी | आपके प्रेरणापद िब्दों से सभी पाठकों और ववद्याचथफयों क़ो
तनजश्चत ही मागफदिफन प्राप्त होगा
सम्पादक
नई गूूँज
शिवा स्वयं
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न िंबध µ
निशोर अपचाररता
आज की यव
ु ा पीढी इतनी तीव्र गतत से अपराधों की ओर उन्मख
ु होती जा रही
है कक यह हम सब स शलए एक सोच का ववषय बन चुका है |
भारत के नौ जवान ही दे ि की उन्नतत और ववकास के प्रमख
ु आधार होते हैँ
और वे ही अगर अपराधी बन जाये तो दे ि मज़बूत कैसे बन सकता है यह |
प्रश्न ववचारणीय है कक समाज की स्वयं की इसमें वविेष भशू मका है कक आज
का युवा शिक्षक्षत होने के बाद भी बुरी आदतों का शिकार होते होते कब एक
अभ्यस्त अपराधी बन जाता है पता ही नहीं चलता |
हमारे दे ि की क़ानन
ू व्यवस्था में ककिोर अपचाररयों हे तु कई प्रयास ककये जा
रहे हैँ ककन्तु सवफ श्रेष्ठ यह होगा कक समस्या क़ो जड़ से समाप्त करने की
हदिा में प्रयास ककये जाएं सुधार गह
ृ ो की आवश्यकता ही क्यों होगी कक अगर
हमारे दे ि कीयव
ु ा पीढी को अपने अपने घरों में ही स्वस्थ व उच्च माहौल
शमल सके
ववचध का भववष्य ववषय पर अयोजजत ववचध संगोष्ठी में में पूवफ न्यायधीि कृष्णा 1994
अय्यर ने ककिोर व्यस्को के प्रतत न्याय पर उन्होंने तनम्न ववचार व्यक्त ककये
ककसी भी राष्ट्र का भववष्य उसकी युवा पीढी पर तनभफर करता है। इसशलए बच्चों के प्रतत "
र-दया और सहानुभूतत दिाफई जानी चाहहए और साथ ही साथ उनकी उचचत दे खेेखएवं ,
अतः यहद उनका ,संरक्षा की जानी चाहहए। चूँकू क बालक जन्मतः अबोध और तनववफकार होते हैं
नैततक तथा ,मानशसक ,तो उनकी िारीररक ,पोषण सावधानी पव
ू फक ककया जाए-पालन
आध्याजत्मक िजक्तयों का सवाांगीण ववकास होगा और वे उत्तम नागररक बनेंगे। परन्तु यहद
उनकी उपेक्षा केी गई और उन्हें दवू षत वातावरण में रखा गयातो वे कुसंगतत में पड़कर ,
"आपराचधकता की ओर प्रवत्त
ृ होंगे।
इस संबंध में ववख्यातः नोबेल परु स्कार ववजेता गेबबल शमस्ट्राल )Gabrial Mistral) ने
अशभकथन ककया-
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लेककन हमारा सबसे गंभी ,हम अनेक भूलों और गजल्तयों के दोषी हैं“र अपराध बच्चों को
उपेक्षक्षत छोड़ दे ना है जो कक जीवन के आधार होते हैं। अनेक ऐसी बातें हैं जजनके शलए हम
रुक सकते हैं लेककन बच्चों की दे खरे ख के शलए नहींक्योंकक वे हमारे कल के भववष्य हैं और ,
"उन्हें सद्गुणी तैयार करना हमारा कत्तफव्य है।
यहद हम दं ड ववचध की ऐततहाशसकता से िरु
ु आत करें तो प्राचीन दं ड िास्त्रों मैं अपराचधयों को
दं डडत करने के ववषय पर व्यस्कता या अव्यस्कता के आधार पर कोई ववभेद नहीं ककया
जाता था, कोई उदारता नहीं थी बाल अपचाररयों को | कानन
ू सबको समान दृजष्ट से दे खता
है | ककिोर अपचाररयों के शलए आगे चलकर अपराध तथा न्याय प्रिासन में दं ड पद्धतत का
ववकास हुआ वह थी -सध
ु ारात्मक दं ड प्रणाली |
अपचाररता को अंग्रेजी भाषा में डेशलंनक्वेंन्सी कहते हैं | जजसे लैहटन भाषा के िब्द
डेशलन्कवेर से शलया गया है जजसका अथफ होता है ववलोप करना |
रोमन काल में इस िब्द का प्रयोग उन व्यजक्तयों के शलए ककया जाता था जो सौपे गए
कायफ को करने में या अपने कतफव्य करने में असफल रहते थे |
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कक ककिोर अपचाररता की समस्या बहुत परु ानी नहीं है | दं ड
िाजस्त्रयों के ववचार में ककिोर आयु स्वभाव से ही चंचल और दस्
ु साहसी होती है | इसी
स्वभाव की वजह से वे प्रलोभनो की ओर िीघ्रता से आकवषफत हो जाते हैं और स्वयं को
अपराधी की ओर भी ले जाते हैं |
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अपचारी ककिोरों क़ो उपचारात्मक दं ड पद्चधती के अंतगफत सुधारक संस्थाओं में रखा जाता है
जजनका मुख्य उद्देश्य होता है कक ऐसे अपचाररयों की आपराचधक प्रवतृ त क़ो कम ककया जा
सके ऐसे सुधार गह
ृ जजनमें संप्रेषण गह
ृ |, आश्रय गह
ृ , वविेष गह
ृ , प्रमाखणत ववद्यालय,
borstal institutions स्थावपत ककये गए हैँ |
वतफमान में भारत में अनेक सध
ु ार गह
ृ व संस्थाएं कायफरत हैँ, जजनमें महाराष्ट्र व मद्रास,
गुजरात, उत्तर प्रदे ि व मध्य प्रदे ि में उल्लेखनीय कायफ ककया जा रहा है |
महाराष्ट्र व मद्रास में सुधार गह
ृ ो से छूटने के बाद उनके पन
ु वाफस के शलए पश्चात्वती – दे ख
रे ख संगठन, और बाल सहायता सशमततयां भी गहठत की गयी हैँ |
इस ववषय में हम सबके समझने की बात यह है कक सरकार और प्रिासन का कायफ ककिोर
अपचाररयों के सुधार की दृजष्ट से ककतना भी ककया जाये लेककन समस्या की जड़ हम हैँ तो
इस सब में सुधार, सुधारक संस्थाओं के द्वारा ही नहीं बजल्क हमारे द्वारा अचधक बेहतर
तरीके से ककया जा सकता है |
ये सुधारक संस्थाएं बच्चों क़ो अच्छा वातावरण दे ने का प्रयास करती हैँ, यहद यही अच्छा
व्यवहार उन्हें अपने अपने गह
ृ ो में ही शमल जाये तो आवश्यकता ही क्या हो ऐसे सुधार गह
ृ ो
की ?
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2 भारिीय संवविाि में िीनि निदे शक ित्त्व कहााँ से मलये गये हैं-
( 1 ) आयरलैंि के संवविाि से
( 2 ) अमरीकी संवविाि से
( 3 ) किािा के संवविाि से
( 4 ) फ्ांस के संवविाि से
Ans .( 1 )
Ans .( 4 )
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( 1 ) समिा का अचिकार
( 2 ) स्विंरिा का अचिकार
( 3 ) शोषण के ववरुद्ि अचिकार
( 4 ) सांस्कृनिक और शैक्षक्षक अचिकार
Ans .( 1 )
Ans .( 2 )
13 ककस वषम में ' जिगणमि ' को भारि के राष्ट्रगाि के रूप में अपिाया गया ?
( 1 ) 1948
( 2 ) 1949
(3 ) 1950
( 4 ) 1951 *
Ans .( 3 )
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Ans .( 3 )
17. भारिीय संवविाि के ककस अिुच्छे द के अन्िगमि पंचायि चुिावों में मदहलाओं को
33 प्रनिशि आरक्षण ददया गया है ?
( 1 ) 51
( 2 ) 61
( 3 ) 73
( 4 ) 243
Ans .( 4 )
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( 2 ) रयामलसवां ( 43 वााँ )
( 3 ) चोमालीसवां ( 44 वााँ )
( 4 ) पेिालीसवां ( 45 वााँ )
Ans .( 1 )
( 1 ) महान्यायवादी
( 2 ) महाचिवतिा
( 3 ) न्यायामभकिाम
( 4 ) ववचि ववभाग का महासचचव
Ans .( 1 )
( 1 ) राजपूत
( 2 ) गुजजर
( 3 ) आदिवासी
( 4 ) जाट
Ans .( 3 )
कूटA B C D
(1) 4, 3, 2, 1
(2) 4, 1, 2, 3
(3) 3, 1, 4, 2
(4) 1,2,3,4
Ans. (1)
( 1 ) बााँकीिास
( 2 ) गौरीशंकर
( 3 ) जानककव
( 4 ) सूयजमल्ल यमश्रण
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Ans .( 4 )
( 2 ) समर्जनिास मनीषी
( 3 ) समयसुन्िर
( 4 ) सीताराम केसररया
Ans .( 3 )
26. राजस्थान में बेटी बिाओ बेटी पढ़ाओ अकियान का ब्ाांड एम्बेसेडर कौन है ?
( 1 ) साररका गुप्ता
( 2 ) अवनी लेखरा
( 3 ) कमताली राज
( 4 ) गुलाबो सपेरा
Ans .( 2 )
27. उदयकसांह के साथ कित्तौड़ छोड़ने के पश्चात् पन्ना को ककस स्थान पर आश्रय प्राप्त हो सका ?
( 1 ) देलवाड़ा
( 2 ) डांगरपुर
( 3 ) कांु िलगढ़
( 4 ) देवकलया
Ans .( 3 )
30. िािंडि िी गिंगा और िामधे ु िे ाम से प्रनसद्ध नियों िे निए सही सुमेनित योग में िौ सा है?
(1) ब ास और िािीनसिंध
(2) िूणी और परव
(3) िोिरी और बाणगिंगा
(4) माही और चिंबि
Ans. (4)
Ans .( 3 )
Ans .( 3 )
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कट : A B C D
(1) 4 1 2 3
(2) 4 2 3 1
(3)4132
(4 ) 1 2 3 4
Ans .( 3 )
( 1 ) अमीबा
( 2 ) हाइड्रा
( 3 ) प्लाज्मोकडयम
( 4 ) लीशमैकनया
Ans .( 2 )
36. कौनसा वर्ि अांतरािष्ट्रीय जैव कवकवधता वर्ि घोकर्त ककया गया था
( 1 ) 2002
( 2 ) 2010
(3) 2016
( 4 ) 1972
Ans .( 2 )
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39.वृक्षों से प्राप्त ककया गया प्राकृ कतक रबड़ का बुकनयादी रासायकनक कनमािण ब्लॉक है
(1) आइसोप्रीन
( 2 ) एसीकटलीन
( 3 ) कवनाइल क्लोराइड
( 4 ) कनओप्रीन
Ans .( 1 )
41. कुम्भलगढ दग
ु फ के प्रमुख शिल्पी कौन थे ?
( 1 ) केषवदत्त
( 2 ) मण्डन
( 3 ) चचत्तवन
( 4 ) हे मचन्द्र
Ans .( 2 )
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( 4 ) कोटा
Ans .( 1 )
44. फतेह प्रकाि महल का तनमाफण तनम्नशलखखत में से ककस ककले में कराया गया था
( 1 ) चचत्तौड़गढ का ककला
( 2 ) मेहरानगढ का ककला
( 3 ) जैसलमेर का ककला
( 4 ) नाहरगढ का ककला
Ans .( 1 )
47. राजस्थान में ' दान चन्द्र चौपड़ा की हवेली ' कहाूँ जस्थत है ?
( 1 ) खेतड़ी
( 2 ) ककिनगढ
( 3 ) बीकानेर
( 4 ) सज
ु ानगढ
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Ans .( 4 )
'49.ब्लूपॉटरी ' की प्रशसद्ध कला इससे पूवफ ककस नाम से जानी जाती थी ?
( 1 ) नीलचगरर
( 2 ) जामदानी
( 3 ) कामचीनी
( 4 ) मण्ृ मय
Ans .( 3 )
( 4 ) प्रणय लीला
Ans .( 1 )
'53. बांधो और रं गों ' कला के शलये राजस्थान में कौन सा स्थान प्रशसद्ध है -
( 1 ) जोधपरु
( 2 ) नाथद्वारा
( 3 ) बाड़मेर
( 4 ) जयपरु
Ans .( 4 )
57. ' चल कफर िाह की दरगाह ' राजस्थान में कहाूँ जस्थत है ?
( 1 ) चचत्तौड़गढ
( 2 ) अजमेर
( 3 ) नागौर
( 4 ) जयपरु
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Ans .( 1 )
60.प्रनतहार विंश िी मण्डौर शािा िे निस शासि े अप ी रािधा ी मण्डौर से मेडता स्था ान्तररत िी थी ?
( 1 ) िक्िुि
( 2 ) रनजिि
( 3 ) ागभट्ट प्रथम
( 4 ) बॉउि
Ans .( 3 )
61.न म् निनित में से निस रािस्था ी ग्रन्थ में अिाउद्दी निििी िी िािौर नविय िा नववरण नमिता है ?
( 1 ) िान्हडिे प्रबन्ध
( 2 ) िुमा रासो
( 3 ) अचििास िीची री वचन िा
( 4 ) नवरूि निहतरी
Ans .( 1 )
63. रािस्था में 1857 िी क्रािंनत िे समय यहााँ िे ए ,िी.िी. ( एिेन्टटूगव ारि रि ) िौ थे
( 1 ) िप्ता ब्िेि
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( 2 ) हे रीिॉरेन्स
( 3 ) िॉिापैनिििॉरेन्स
( 4 ) िप्ता हीथिोट
Ans .( 3 )
(1)A-1,B-4,C-2,D-3
( 2 ) A - 4 , B – 2, C-3, D-1
(3)A-3,B-1,C-2,D-4
( 4 ) A - 1 , B- 2 , C- 3 , D-4
Ans .( 1 )
65. रािस्था िे स्वतिंत्रता आन्िोि िे िौरा नगरफ्तार हो े वािी रािस्था िी पहिी मनहिा थी
( 1 ) गेन्द्र बािा
( 2 ) अन्ि ािेवी चौधरी
( 3 ) रत् शास्त्री
( 4 ) रमािेवीपाण्डे
Ans .( 2 )
Ans .( 4 ) -
67. रािस्था में ' मारवाड सत्याग्रह ' निवस िब म ाया गया ?
( 1 ) 26 िुिाई , 1942
( 2 ) 11 अगस्त , 1942
( 3 ) 12 िू , 1942
( 4 ) 23 वम्बर , 1942
Ans .( 1 )
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68.वृहि रािस्था िा उद्घाट 30 माचा , 1949 िो निसिे द्वारा निया गया था-
( 1 ) वल्िभभाई पटेि
( 2 ) वी . पी . मे
( 3 ) िवाहर िाि ेहरू
( 4 ) ए . वी . गाडनगि
Ans .( 1 )
69.राजस्थान में ऊूँट की कौनसी नस्ल तेज दौड़ने में सवफश्रेष्ठ मानी जाती है-
( 1 ) बीकानेरी
( 2 ) कच्छी
( 3 ) जैसलमेरी
( 4 ) अलवरी
Ans .( 3 )
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73. दिकों से राजस्थान तामड़ा उत्पादन में अग्रणी रहा है । इसकी खानें प्रमुखतः
जस्थत हैं
( 1 ) टोंक व जोधपरु में
( 2 ) ियपुर व अिवर में
( 3 ) जयपरु व दौसा में
( 4 ) टॉक व अजमेर में
Ans .( 4 )
77. जजला उपभोक्ता न्यायालय ककतने रुपये तक की राशि के मामले सुन सकते है ?
( 1 ) 10 लाख
( 2 ) 50 लाख
( 3 ) 30 लाख
( 4 ) 20 लाख
Ans .( 4 )
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Ans .( 4 )
79. राजस्थान का महहला साक्षरता की दृजष्ट से भारत में कौनसा स्थान है ?
( 1 ) 17 वाूँ
( 2 ) 19 वीं
( 3 ) 28 वाूँ
( 4 ) 21 वाूँ
Ans .( 3 )
80. राजस्थान में सूखा सम्भाव्य क्षेत्र कायफिम ककस वषफ से प्रारम्भ ककया गया था ?
( 1 ) 1974-75
( 2 ) 1979-80
( 3 ) 1984-85
( 4 ) 1989-90
Ans .( 1 )
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( 4 ) पवफतीय कृवष
Ans .( 1 )
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88. राजस्थान में माही कंचन , माही धवल और मेघा ककस्में हैं
( 1 ) मक्का
( 2 ) चना
( 3 ) गेहूूँ
( 4 ) चावल
Ans .( 1 )
89 पण
ू फ डडजीटल बैककं ग वाला भारत का पहला राज्य कौन बना है ?
( 1 ) महाराष्ट्र
( 2 ) केरल
( 3 ) गोवा
( 4 ) कनाफटक
Ans.( 2 )
90 सूखे का सामना करने वाले ककसानों को लाभाजन्वत करने के शलए ककस राज्य
सरकार ने जल संरक्षण योजना िुरू की है ?
( 1 ) झारखण्ड
( 2 ) पंजाब
( 3 ) शमजोरम
( 4 ) मध्यप्रदे ि
Ans. ( 1 )
91 राष्ट्रपतत भवन हदल्ली में बने ऐततहाशसक मुगल गाडफन का नाम क्या कर हदया
गया है ?
( 1 ) गणतन्ञ उद्यान
( 2 )अमत
ृ उद्यान
( 3 ) अटल उद्यान
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( 4 ) राष्ट्रपतत उद्यान
Ans (2)
( 1 ) गणतन्ञ उद्यान
( 2 )अमत
ृ उद्यान
( 3 ) अटल उद्यान
( 4 ) राष्ट्रपतत उद्यान
Ans. (2)
Ans (1)
96.COVID-19 के कखलाफ लड़ाई में योगदान देने के कलए 'पहले डॉ. पतांगराव कदम पुरस्कार 2022' से सम्माकनत ककया गया है ?
(1). अदारपनावाला
(2). रत्न टाटा
(3). गीताजां कल श्रीी
(4).सेथरीके मसांगतम
Ans 1
97. िारतीय सेना ने सैकनकों के कलए अपनी पहली '3-D कप्रांटेड हाउस ड्वेकलांग यकनट का उद्घाटन कहााँ ककया है ?
(1). अहमदाबाद कैं ट (गजु रात)
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(2).पठानकोटकैं ट (पांजाब)
(3). बनारसकैं ट (उत्तरप्रदेश)
(4).अांबालाकैं ट (हररयाणा)
Ans. ( 1 )
Q) 98. इांकडयन ग्रीन कबकल्डांग काउांकसल (IGBC) द्वारा उच्ितम प्लेकटनमरेकटगां के साथ ककस रेलवे स्टेशन को 'ग्रीन रेलवे स्टेशन सकटिकफके ट
से सम्माकनत ककया गया है ?
(1).कवशाखापत्तनम रेलवे स्टेशन
(2). हावड़ा रेलवे स्टेशन
(3).कसकांदराबाद रेलवे स्टेशन
(4). कानपुर सेंरल रेलवे स्टेशन
Ans (1)
Q.99.अत्याधुकनक तकनीक पर आधाररत िारत की सबसे तेज़ िगु तान ऐप को ककस नाम से लॉन्ि ककया गया है ?
(1). PayRup
(2).PayPhone
(3).PayPal
(4).RupPay
Ans ( 1)
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कानन
ू ों का तनवफचन
1. सववचधयों के तनवफचन के सम्बन्ध में “अमान्य से मान्य करना अच्छा है” के शसद्धान्त पर
प्रकाि डाशलये।
उत्तर : अॅट रे स मेजजस बेशलयट क्याम पेररयट (at res megis valeat quam paveat) के अनुसार,
“अमान्य से मान्य करना अच्छा है।“ जब दो अनुकजल्पत तनवफचन सम्भव हो, तब न्यायालय
को ऐसा अथाफन्वयन करना चाहहये जो उस प्रयोजनाथफ अनुकूल हो, जजसके शलये संववचध का
तनमाफण ककया गया है, न कक ऐसा अथफ ग्रहण करना चाहहये जजससे कक संववचध के प्रयोजन
की पूततफ में रास्ते में बाधा आये | दोनों अथाफववयनों में से जजससे ववधातयका के उद्देश्यों को
प्राजप्त न हो, उसे अस्वीकार ककया जाना चाहहये एवं जजससे प्रभावकारी पररणाम प्राप्त हो,
उसे स्वीकार ककया जाना चाहहये।
ककसी कानन
ू की भाषा संहदग्ध होने के पररणामस्वरूप यहद उसके एक से अचधक अथफ
तनकलते है तो उस अथफ को स्वीकार करना चाहहये जो प्रयुक्त िब्दों को प्रभावी बनायें,
जबकक तनषप्रभावी बनाने वाले अथफ को अस्वीकार कर दे ना चाहहये। यथासम्भव, कानून के
समस्त िब्दों का अथफववयन ककया जाना चाहहये और यही अपेक्षक्षत है कक ववधातयका ने
तनरथफक और अनावश्यक िब्दों को प्रयुक्त नहीं ककया है।
मथ
ू ू गौण्डर बम पैररयन्ना गौण्डर ए. आई. आर.1982 में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह
अशभतनखणफत ककया गया है कक ककसी संववचध का तनवफचन करते समय न्यायालय को यह
दृजष्टगत रखना चाहहये कक यह तनवफचन संववचध के उद्दे श्य की पतू तफ के शलये करे, न कक उसे
ववफल करने वाली रीतत को अपनाये।
अवतार शसंह बनाम पंजाब राज्य ए. आई. आर.1965 में उच्चतम न्यायालय ने ववद्यत
ु
अचधतनयम, 1910 की धारा 39 संपहठत धारा 379, भारतीय दं ड संहहता 1860, के संदभफ में,
अशभतनधाफररत ककया गया है कक “अमान्य से मान्य करना अच्छा है।“ अशभयुक्त जजसे धारा
39, ववद्युत अचधतनयम के अधीन चोरी के अपराध का शसद्धदोष घोवषत ककया गया था, को
धारा 379, भारतीय दण्ड संहहता के अन्तगफत दजण्डत ककया जायेगा, क्योंकक धारा 39 में जो
कल्पना सजृ जत की गयी है, उसका यह प्रभाव है। कक धारा 39 के अधीन ककये गये अपराध
को संहहता के अन्तगफत अपराध मान कर दण्डादे ि हदया जाये।
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मै. इचथयोवपयन एयर लाइन्स बनाम मै. जस्टक ट्रे वल्स (प्रा.) शल., ए. आई. आर. 2001 में
उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट ककया कक मध्यस्थम ् कानून का अथाफन्वयन करते समय
अगर दो सम्भाव्य अथफ तनकलते हो तो उस अथफ को स्वीकार ककया जाना चाहहये जो वांतछत
करार को परू ा करने की हदिा में अग्रसर होता हो।
अथवा
उत्तर : न्यायालय ककसी व्यजक्त को दजण्डत तभी कर सकेगा जब कक मामले के त्य एवं
पररजस्थततयां कानन
ू में प्रयुक्त िब्दों के अन्तगफत स्पष्टतः आती हो। दाजण्डक कानून में
अचधकाररता एवं प्रकिया के उपबन्धों का कठोरता से अथाफन्वयन ककया जाता है।
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• अपराध के शलये प्रयुक्त िब्दों में कोई संहदग्धता हो तो उसका लाभ अशभयुक्त के पक्ष
में संकजल्पत ककया जायेगा।
• दाजण्डक ववचधयों का कभी भी भूतलक्षी प्रवतफन नहीं हो सकता — अथाफत इसका प्रभाव
सदै व भववष्यलक्षी होता है ।
रतनलाल बनाम पंजाब राज्य ए. आई. आर. 1965 उच्चतम न्यायलय, 444 में अशभयक्
ु त
की आयु 21 वषफ से कम की थी, जजस पर आपराचधक गह
ृ अततचार करके 7 वषीय बाशलका
की लज्जा भंग करने का आरोप था। उच्चतम न्यायालय ने कठोर तनवफचन के शसद्धान्त को
अपनाते हुए, अशभतनधाफररत ककया कक ‘अशभयक्
ु त अपराधी की आयु 21 वषफ से कम होने के
कारण उसे अपराधी पररवीक्षा अचधतनयम, 1958 का लाभ हदया जा कर पररवीक्षा पर तनमक्
ु त
ककया जाना चाहहये।
सरजू प्रसाद बनाम उत्तर-प्रदे ि राज्य ए. आई. आर. 1961 उच्चतम न्यायलय, 631 में खाद्य
अपशमश्रण तनवारण अचधतनयम, 1954. की धारा 16 व 19 का कठोर तनवफचन करते हुए,
उच्चतम न्यायालय द्वारा अशभतनणीत ककया गया कक अपीलाथी दक
ु ान का कमफचारी (वविेता)
मात्र होने से व उसको खाद्य के अपशमश्रण का ज्ञान नहीं होने की प्रततरक्षा के आधारों पर
वह शसद्धदोषी और दण्डादे ि के आदे ि से नहीं बच सकता है। चूंकक अशभयुक्त के दोषपूणफ
आचरण व कृत्य ववचध उपरोक्त धाराओं की भाषा में प्रयुक्त है, अत: उसका कठोरता से
तनवफचन ककया जाना चाहहये।
अथवा
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मैक्सवेल के अनुसार, यहद कोई संववचध, जजसका उद्दे श्य ककसी ववशिष्ट वगफ के व्यजक्तयों को
फायदा पहुंचाना है, में कोई प्रावधान अस्पष्ट है या जजसके दो अथफ तनकलते हो तो जजनमें से
एक उस हहत की रक्षक हो और दस ू रा नािक हो तो वह अथफ मान्य होगा जो हहत की रक्षा
करें ।
रीजनल एक्जीक्यहू टव केरल कफिरमेन्स वेलफेयर बोडफ बनाम फैं सी फूड ए. आई. आर. 1995
उच्चतम न्यायलय 1620 में उच्चतम न्यायालय के समक्ष मामला केरल मछुआरा कल्याण
तनचध अचधतनयम, 1985 (सपहठत भारत के संववधान के अनच्
ु छे द 39) से सम्बजन्धत था,
जजसमें अशभनखणफत ककया गया कक यहद ककसी िब्द को पररभावषत नहीं ककया गया हो तो
उसका अथफ उसे प्रयक्
ु त ककये गये संदभफ से तनकाला जाना चाहहये और मछुआरों के
कल्याणकारी हहतों की रक्षा करने का संववचध का उद्दे श्य दृजष्टगत रखा जाना चाहहये।
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िेख गुलफाम बनाम सनत कुमार’ ए. आई. आर.1965, उच्चतम न्यायलय, 1839, में
कलकत्ता ठे का ककरायेदारी अचधतनयम, 1949 की धारा 30 (ग) के अन्तगफत देय छूट के संदभफ
में उच्चतम न्यायालय ने अशभतनधाफररत ककया कक जब संववचध के दो अथफ तनकलते हो तो दो
में से एक अथफ जो संववचध के हहतकर उद्दे श्य को प्राप्त करने में समथफ हो, तब अपवाहदक
पररजस्थततयों को छोड़ कर हहतकारी अथाफन्वयन को ही ग्राह्य करना चाहहये।
मध्य प्रदे ि राज्य बनाम गल्ला ततलहन व्यापारी संघ, ए. आई. आर. 1977, उच्चतम
न्यायलय,2208 में मध्य प्रदे ि कृवष उपज मण्डी अचधतनयम, 1972 की धारा 37(5) के
संदभफ में, उच्चतम न्यायालय द्वारा हदिा-तनदे ि हदया गया कक चूंकक यह अचधतनयम एक
हहतप्रद व सामाजजक ववधान है, जजसका उद्दे श्य बबचौशलयों के लाभ को सीशमत करके मुख्य
उत्पादकों को लाभ पहुंचाना है, अतः इसका हहतप्रद अथाफन्वयन ककया जाना चाहहये।
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Interpretation of statutes
Rjs solved paper
Q.1. What do you understand by interpretation of statutes ?
Need of interpretation-
The statues are written by the legislatures with some objectives in mind,But
sometimes the language or the words used in the statutes may have
different meaning to different people. The languages are very specific and
clear in defining any statute. As Denning L. J.observed ‘it is not within the
human powers to foresee the manifold sets of facts which may arise, even if
it were, it is not possible for them in terms free from all ambiguity’.
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Object of interpretation-
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applied in deciding the case. The rule can be better understood by analysing
the following aspects in the statute;
‘The true way is to take the words as the legislatures have given them and
to take the meaning which the words given naturally imply, unless where the
construction of those words is, either by the preamble or by the context of
the words in question, controlled or altered (Crawford v. Spooner, 1846 4
MIA 179)
(c) Explanation –
(c) Illustration –
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The words are to be understood in their natural and ordinary meaning. The
sentence may give a different concept. To avoid such wrong interpretation,
illustrations are given in the statutes which should be followed to clarify the
meaning of any word.
Q.5. While dealing in any matter in any statutes certain things are
presumed. Discuss.
Or
In all statutes, while dealing in any matter certain things are presumed to be
in the statutes from its languages. Where the meaning of the words and the
statute as a whole are clear, no presumptions are generally considered. In
other cases certain presumptions are made. Some of the major
presumptions are as under
(b) The rights possessed by any person at the time of enactment of the statute
have not been taken away without proper compensation and without express
words in the statutes.
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A statute on criminal law does not intent to attach without guilty intention.
(“actus non facit reum nisi mens sit rea”)
(g) The legislature does not make any alteration in existing laws without
express statute.
(h) The practice of the executives and judiciary are known to the legislatures
(l) Where powers and duties are interrelated and inseparable, powers may
be delegated and duties may be retained or vice versa
(m) The doctrine of natural justice is the real doctrine for interpretation of
statutes.
In many Acts marginal notes are given against the section. The marginal
notes are not supportive in interpreting the provision of the Act. It was
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It was observed in K.P. Varghese vs. ITO 131 ITR 597 (SC that marginal
note to a section cannot be referred to for the purpose of construing the
section but it can certainly be relied upon as indicating the drift of the
section or to show what the section is dealing with.it cannot control the
interpretation of the words of a section, particularly when the language of
the section is clear and unambiguous but, being part of the statute, it prima
facie furnishes some clue as to the meaning and purpose of the section.
Similarly in R.B. Shreeram Religious & Charitable Trust vs. CIT (1988) 172
ITR 373 (Bom) it was observed that marginal notes are not decisive in
interpreting a substantive provision of law, but in case of doubt, they can be
relied upon as one of the aids for construction
Mischief Rule-
In case the material words are capable of being two or more construction,
one most firmly established rule of construction of words is the rule laid
down in Heydon’s case which has attained the status of a classic [Kanailal
v. Paramnidhi, A.I.R. (1957) S.C. 907]. In Heydon’s case it was held “that
for the sure and true interpretation of all statutes penal or beneficial,
restrictive or enlarging of the Common Law) the following four things are to
be considered:
(1) What was the Common Law before the making of the Act?
(2) What was the mischief and defect for which the Common Law did not
provide?
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(3) What remedy has the Parliament resolved and appointed to cure the disease
of the Common Law?
And then the office of all the judges always to make such construction as
shall suppress the mischief and advance the remedy, and to suppress
invention for continuance of the mischief.
In a well-known English case, under the Street Offences Act, 1959 made
soliciting ‘in a street’ by prostitutes an offence. It was held that even if the
prostitutes solicited from the balconies or windows and attracted the attention
of the passersby, they were committing the offence. “It is to be considered
that what is the mischief aimed at by the Act. The Act was intended to
clean up the streets, to enable people to walk along the streets without
being molested. The precise place from which a prostitute addressed her
solicitations became irrelevant” [Smith v. Huges, (1960) Per Lord Parker).
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वसि
ु ैव कुटुंबकम मैगजीि
Coming soon
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फरवरी अंक 2023 के लेखक पररचय
• डॉ घनश्याम बादल
215, पुष्परचना, िोपवंद निर
रुड़की
9412903681
Ghansyambadal54@gmail.com
• बज
ृ ेश कुमार
Aryabrijeshsahu24@gmail.com
9785837924
पता – जुरेहरा भरतपुर राज.
321023
• डॉ. नीलम स हं
अस स्टें ट प्रोफे र हहंदी
डीएवी पीजी कॉलेज वाराण ी
nelulns@gmail.com
9453037735
• मीर उपाध्याय
मनहर पाकक : 96/ए चोहटला
जजला ुरेंद्रनिर
िज
ु रात
भारत
9265717398
S.I.upadhyay1975@gmail.com
• डॉ सशवा धमेजा
Drshivadhameja01@gmail.Com
9351904104