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मवनम्र श्रद्धांिमल
देश मवदेश के सभी कायषकताष एवं सदस्य पररवार
“ ”
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
पुनः पुनः ईमानदारी पूवषक सच्ची मनष्ठा से कायष करने के कारण
यह पंचांग मदल्ली के भारतीय स्टैं डडष समय के अनुसार ही मदया गया हैं इस पंचांग के कृमतकार हैं :
प्रमतष्ठाचायष पं. मुकेश िैन शास्त्री “मवनम्र”
संपकष सूत्र सवाषथषमसमद्ध ज्योमतर्-वास्तु कें र, गुरुर्ग्ाम, हररयाणा.
09868600290, 0999744151, 08368002419.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
सम्पादकीय
पी. के . िैन ‘प्रदीप’
ठाणे, मुंबई
िय मिनेन्र.
आप सभी को अमर्ग्म बधाईयााँ. अभी मपछले माह ही हम सभी ने ममलकर आमदनाथ भगवान्
का िन्म कल्याणक मनाया था, और अब पुनः एक बार मफर से आमदनाथ भगवान् का प्रथम आहार
मदवस, मिसे अक्षय तृतीय भी कहते हैं, मनाने िा रहे हैं.
इस युग के प्रथम तीथंकर आमदनाथ / ऋर्भदेव के सम्पूणष मानव िाती पर बहुत ही उपकार
हैं. उनके प्रथम आहार से ही लोगो को स्व-कल्याण के मलए दान की परंपरा के बारे में मालूम हुआ.
इतना ही नहीं बमल्क यमद हम नहीं भी कर पा रहें हैं तो मात्र अनमु ोदन से भी मकतना पण्ु य कमाया िा
सकता हैं इसकी कोई पराकाष्ठा नहीं हैं. हम यहााँ अमधक नहीं मलख रहें हैं आप स्वयं पढ़े, मचंतन करें
और मफर उसी अनुसार अपनी मियाएं एवं भावनाएं भायें मिससे हम स्वयं अपना भी कल्याण कर
सकें .
इसी मवशेर्ांक में यह भी समझाने का प्रयास मकया हैं मक हमारे दान की परंपरा कै से प्रारंभ
हुई और हमारी मियायों का पण ू ष पररणमन कै से होता हैं ? एक मतयंच िीव भी दान तो नहीं कर सकता
हैं परन्तु मसफष भावना भाने से अथाषत् दान की अनुमोदन करने से चिवती बन सकता हैं और न मसफष
चिवती बमल्क सबसे उच्च पद अथाषत् मोक्ष को प्राप्त करके मसद्धालय में मवरािमान हो सकता हैं.
और यही सब कुछ तो मानव पाना चाहता हैं.
हमारे मनोमवचार मकतने मवकृत हो रहे हैं. अभी हाल ही में कोरोना वैमश्वक महामारी से मवश्व
िूझता रहा हैं और अभी तक इसका खतरा पूणष रूप से टला भी नहीं हैं, मफर लौट कर भी लॉक
डाउन का खतरा मंडरा रहा हैं परन्तु इसके बाविूद भी मकसी को भी अपनी स्वयं की मचन्ता नहीं हैं.
बस अहम् की पुमष्ट येन-के न प्रकारेण कै से भी हो. आि मवश्व बारूद के ढेर पर बैठा हैं परन्तु यही
मवचार मन में चल रहे है की उसके साथ ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे परन्तु हम िो करने िा रहे हैं उसका
पररणमन और पररणाम क्या होगा ? मकसी को भी यह मचंता नहीं हैं. िब भी बारूद फटता है तो वह
यह नहीं देखता मक मेरे सामने कौन हैं ? उसका काम तो मवनाश का ही हैं, मवध्वंस का ही हैं तो वह
तो अपना काम वैसे ही करेगा मिसके मलए वह बना हैं. यहााँ हमारा मचंतन यह होना चामहए मक हम
डॉ. श्री मनमषल िैन शास्त्री, श्रीमती कीमतष पवन िैन, पमं डताचायष मुकेश ‘मवनम्र’,
टीकमगढ़, मध्य प्रदेश. (टंकलेखन) मदल्ली, प्रमतष्ठाचायष,वास्तुमवद,गुरुर्ग्ाम.
इस मवशेर्ांक से श्रीमती कीमतष पवन िैन, मदल्ली सह सपं ामदका के नवीन पदभार
के साथ कायषरत होकर अपनी सेवाएं मााँ मिनवाणी को सादर सममपषत करेंगी
अतः उनके इस नए पद के मलए नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.)पररवार की
ओर से ढेरों शुभकामनायें.
यमद आप भी स्व-कल्याण के साथ साथ
मााँ मिनवाणी की सेवा, धमष प्रभावना,
प्रचार और प्रसार हेतु िडु ना चाहते हैं तो
हमसे शीघ्र ही संपकष कीमिये.
प्रधान संपादक : पी. के . िैन ‘प्रदीप’.
व्हात्सप नंबर : +91 9324358035.
E-mail. ID: PKJAINWATER@GMAIL.COM
िो है सो है
नमोस्तु शासन ियवतं हो
ियवंत हो वीतराग श्रमण संस्कृमत
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवर ! अत्र अवतर-अवतर संवौर्ट्
आह्वाननम ! अत्र मतष्ठ-मतष्ठ ठः ठः स्थापनम् |
अत्र मम समन्नमहतो भव भव वर्ट् समन्नमधकरणम् |
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
चाररत्र महमालय से मनझषर, यह सम्यग्ज्ञान सगु गं ा है |
िो शीतल मनमषल वाणी दे, करती रहती मन चंगा है ||
मैं िन्म िरा का रोगी हू,ाँ तुम उिम वैद्य कहाते हो |
मनि ज्ञानमयी और्मधयााँ दे, सब िग के रोग ममटाते हो ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो िन्म िरा मृत्यु
मवनाशनाय िलं मनवषपामीमत स्वाहा।
मलयामगरर चंदन सम शीतल, है आप सुगंमधत भूतल पर|
गुरू भक्त भ्रमर मंडराते हैं, तेरी चयाष पर झुक-झुक कर ||
उपसगों के मवर्धर मलपटे , मवर्पान मकया, अमृत सींचा|
ऐसे अमृत वरर्ायी की, करता है िग चन्दन पूिा ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशद्ध ु सागर ममु नवरेभ्यो सस ं ार ताप मवनाशनाय
चन्दनं मनवषपामीमत स्वाहा।
ख्यामत पूिा से क्या लेना, क्या नाम मचत्र संरचना से |
िो समयसारमें मनत रमते, क्या काम करें िग रचना के ||
है भक्त कामना एक आप, अक्षय ख्याती भंडार बनो |
अररहंत बनो या मसद्ध बनो, मेरे मशवपथ आधार बनो ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान्
मनवषपामीमत स्वाहा ।
चैतन्य वामटकामें सरु मभत, चुनकर अध्यात्म प्रसनू मलए |
तब महकउठी प्रवचन बमगया,अध्यात्मरमसक रसपान मकये||
मिनधमष का सौरभ फै ल रहा, सब मदग-् मदगन्त धरती अम्बर |
अमपषत करता सुमनावमलयााँ, हे परम पूज्य मेरे गुरुवर ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो कामबाण मवनाशनाय पुष्ट्पं
मनवषपामीमत स्वाहा।
मनिज्ञान ध्यान वैराग्य सहि, अरु स्वानुभूमत में रचे-पचे |
मनत मनिानद चैतन्यमयी, अध्यात्म रसों में रसे-रचे ||
चैतन्य रसों का ममश्रण कर, मनि मन नैवेद्य बनाया है |
भव-भव की क्षुधा ममटाने को, गुरु पद नैवेद्य चढ़ाया है ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशद्ध ु सागर ममु नवरेभ्यो क्षध
ु ा रोग मवनाशनाय
नैवेद्यं मनवषपामीमत स्वाहा।
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
मेरा मप्रय सम्यग्दशषन यह, मैं चेतन दीप िलाता हूाँ |
कमों की काली रिनी को, सममकत से दूर भगाता हूाँ ||
सम्यक श्रद्धा से आलोमकत, गुरु गुण आरमतयााँ गाता हूाँ |
मनर्ग्ंथों की आरमतयााँ कर, मनर्ग्षन्थ भावना भाता हूाँ ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो मोहान्धकार मवनाशनाय
दीपं मनवषपामीमत स्वाहा ।
शुद्धात्म ध्यान की ज्वाला में, कमों की धूम िलाते हो |
पल-पल मछन-मछन मनशमदन सम्यक्, शुद्धोपयोग ही ध्याते हो||
तमु महारथी यह महायज्ञ! मनि कमों को स्वाहा कर लाँू |
मैं अशरीरी अमवनाशी सुख, मनि मसद्ध अवस्था को वर लूाँ ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशद्ध ु सागर ममु नवरेभ्यो अष्ट कमष दहनाय धपू ं
मनवषपामीमत स्वाहा ।
यह नर तन का फल रत्नत्रय, हो धन्य भाग्य तुमने पाया |
रत्नत्रय का फल मशवफल है, यह बीि ह्दय में उग आया ||
मेरा श्रावक कुल धन्य हुआ, अरू धन्य, हुई यह नर काया |
पूिा कर रत्नत्रय पाऊाँ , मशवफल पाने मन ललचाया ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं
मनवषपामीमत स्वाहा।
चैतन्य तीथष के मनमाषता, तमु भगविा बतलाते हो |
मेरा भगवन् ही मुझमें हैं, शाश्वत सिा बतलाते हो ||
आ गया काल मफर से चौथा, या मफर बसंत लहराया है |
मनर्ग्षन्थ मदगम्बर मुरा में, यह शुद्ध श्रमण अब पाया है ||1||
तन से मवशुद्ध मन से मवशुद्ध, चेतन मवशद्ध ु करने वाले |
मन के मवशुद्ध सच ं ारों से, िग मवपदाएाँ हरने वाले ||
तुम हो अनर्ष, चयाष अनर्ष, चचाष अनर्ष मंगलकारी |
मैं अर्घयष चढ़ाता हूाँ तुमको, तमु तीथंकर सम उपकारी ||2||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो अनर्घयष पद प्राप्तये अर्घयषम्
मनवषपामीमत स्वाहा।
ियमाला
(छंद-दोहा)
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
तमु को पाकर हो गया, भारतवर्ष मनहाल |
रत्नत्रय मचंतामणी, गाऊाँ मैं ियमाल ||
(छंद ज्ञानोदय)
चैतन्य धातु से मनममषत हो, क्या मात-मपता का नाम कहूाँ |
शुद्धात्म प्रदेशों में िन्मे, क्या नगर-शहर क्या गाम कहूाँ |
दशलक्षण धमष सहोदर है, रत्नत्रय ममत्र मनराला है |
समता बमहना राखी बांधे, अनप्रु ेक्षा मााँ ने पाला है ||1||
यौवन की देहली पर आते, दीक्षा कन्या से ब्याह रचा |
मनर्ग्षन्थ मदगम्बर मुराधर, अपनाया मुमक्त पथ सच्चा ||
हो भाव शमु द्ध के मवमल कें र, हो स्वानभ ु मू त के मनिाधार |
हे संस्कृमत के अलंकार ! चैतन्य कल्पतरू सुखाधार ||2||
तुम पंच-समममतयााँ त्रय-गुमप्त शुद्धात्मलीन हो पाल रहे |
श्रुतज्ञान और वैराग्य प्रबल, सब संर् इसी में ढाल रहे ||
िो महापुरुर् द्वारा धाररत, उन महाव्रतों को धारा है |
मनि भेदज्ञान पौरुर् बल से, खोला ममु क्त का द्वारा है ||3||
चयाष के मनमषल स्रोतों से, सज्ञं ान के मनझषर फूट पडे |
िन्मों के ज्ञान मपपासु िन, इसमलए एक दम टूट पडे ||
व्रतशील शुद्ध आचरण मबना,शुद्धात्म तत्त्व ना ममलता है |
मदनकर के मबना मदवस क्या हो,सर में पंकि क्या मखलता है|4|
िो चलते पर भी नहीं चलें, िो और बोलते ना बोलें |
िो सदा देखते ना देखें, मनि में इतने मनश्चल होलें ||
है स्विातीय सम्बन्ध मधुर, शुद्धात्म का शुद्धात्म से |
एकार्ग्मचि हो िहााँ कहीं, बाते कर ले मसद्धातम से ||5||
पुरुर्ाथष परायण परमवीर, हो मुमक्त राज्य के अमधकारी |
मैत्री प्रमोद करुणाधारी, हो उभय लोक मगलकारी ||
हे मनमवषकार ! मनद्वंद ! नमन, हे मनरालम्ब ! मनर्ग्षन्थ नमन |
मनभषय ! मनराग! मनलेप ! नमन, मनदोर् मदगम्बर श्रमण नमन ||6||
तमु पच ं ाचार परायण हो, तमु पच ं ेमन्रय गि के िेता |
गंभीर धीर हे शूरवीर ! चाररत्र दक्ष मशवपथ नेता !
चाररत्र मबना दृगबोध मवफल, कोठे में बीि रखे सम है |
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
िो मितनी उज्िवलता पाले, उतना मनवाषण मनकटतम है ||7||
शम दम यम मनयम मनके तन हैं, अमवचल अखंड अद्वैत रूप |
हो रत्नत्रय से आभूमर्त, आचायष श्रेष्ठ आचार भूप ||
मैं भमक्तत्रय योगत्रय से, त्रयकालों तीन मवधानों से |
भव भेदक ! साधक सुरर प्रवर, नमता सममकत श्रद्धानों से ||8||
गरुु यमी! यत्न करते रहते, मनि समय मनयम प्रकाशक हो |
िो हमें यातनाएाँ देता, उस यम के आप मवनाशक हो |
हो कमष वृक्ष के उच्छे दक, तुम कमषलोंच करते रहते |
मफर भी इस भोली िनता को, के वल कचलोच मदखा करते ||9||
गुरु अहो ! अयाचक धन्य तुम्हें, तुम कुछ भी मााँग नहीं करते |
मनवाषण सन्ु दरी की सन्ु दर, भावों से मांग भरा करते ||
यह ब्रह्मचयष की मनमषलता, लौकांमतक देव नमन करते |
वैराग्य मदवस पर कब आये, बस इतनी चाह मकया करते ||10||
यह धन्य आपकी मिनमरु ा, यह धन्य-धन्य मनर्ग्षन्थ दशा |
मुमन नाम आलौमकक मिनचयाष, िो प्रकटाती अररहंत दशा ||
तुम चलते-मफरते मोक्षमागष, गन्तव्य ओर बढ़ते िाते |
तुम कदम िहााँ पर रख देते, चैतन्य तीथष गढ़ते िाते ||11||
मनर्ग्षन्थ साधु की यह पूिा, सच में रत्नत्रय पूिा है |
ना ख्यामत नाम की यह पि ू ा, ना ख्यामत नाम को पि ू ा है ||
है तीन ऊन नव कोमट मुमन, मिनके समान ना दूिा है |
अररहंत प्रभु के बीि रूप, मशवपथ पंथी की पूिा हैं ||12||
(छंद-दोहा)
गुरु पूिा में आ गये, िग के सब मुमनराि |कोमट-कोमट पूिा करूाँ, पाऊाँ मुमनपद आि ||1||
गरुु मनर्ग्षन्थ महान है, गरुु अररहतं समान |गरुु वर ही भगवान है, गुरुवर क्षमा मनधान ||2||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो ियमाला पूणाषर्घयषम्
मनवषपामीमत स्वाहा।
गुरुवर सम्यग्दशष दो, गुरुवर सम्यग्ज्ञान |
गुरुवर सम्यक् चाररत्र दो, गरुु वर दो मनवाषण ||3||
इत्यामशवाषदं पष्ट्ु पांिमलम् मक्षपेत् |
मवशुद्ध वचन:
“राग हटाओ कष्ट ममटाओ”
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आचायष श्री मवशुद्धसागर िी की आरती
नोट: अब तक आपने 54 काररकाएाँ पढ़ ली हैं और समझ भी ली हैं अथाषत् आपने आप के ज्ञान में
आपसे ही आपके द्वारा मनरंतर आपके मलए ही सम्यक् दशषन सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चाररत्र की
वृमद्ध को प्राप्त कर मलया हैं, अंगीकार कर मलया हैं. आठ अंगों के बारे में आपने तीस काररकाओ ं को
आत्मसात करते हुए पढ़ा और उनको समझ भी मलया, तदनंतर सम्यग्ज्ञान अमधकार अंग के प्रारंभ
इकतीस से छिीसवीं काररका तक आपने िाना मक सम्यग्दशषन के साथ साथ मोक्ष मागष पर आगे
बढ़ने के मलए सम्यग्ज्ञान भी बहुत िरुरी है. आपको याद होगा मक सभी िीवों के कल्याण के मलए
यह मागष, देशना के माध्यम से बता रहे हैं परम पूज्य प्रमतपल स्मरणीय, ज्ञान मदवाकर, चयाष मशरोमणी,
अध्यात्म योगी, आगम उपदेष्टा, स्वाध्याय प्रभावक, श्रुत संवधषक, आचायष रत्न श्री १०८ मवशुद्ध
सागरिी महाराि. यह देशना, पुरुर्ाथष देशना िो मक महान तत्त्व मवश्ले र्क आचायष श्री अमृतचन्र
स्वामी की महान रचना “पुरुर्ाथष मसद्ध्युपाय” आधाररत हैं. सभी इस देशना का रसपान करते हुए,
भलीभााँमत समझकर मोक्षमागष पर अबाध गमत से अर्ग्सर हो रहे हैं.
हम सभी ने अब तक मपछली 54 काररकाओ ं में िैन दशषन के मवमवध आयामों के बारे में नय
व्यवस्था, सम्यग्दशषन के आठों अंग, और युगपत रूप से ज्ञान का सम्यग्ज्ञान में पररवतषन, भावों का
पररणमन और सबसे महत्वपण ू ष मनर्ग्षन्थ आलौमकक वृमि को रत्नत्रय समहत िाना और समझा मक
मनर्ग्षन्थ अवस्था ही बध ं से छूटने में उपकारी हैं. और अब तक यह भी िाना मक सम्यक् चररत्र के साथ
मकस प्रकार हम आगे मोक्ष पथ पर बढ़ सकते हैं. सवषज्ञ की वाणी के अनुसार बताये गए रव्य और
तत्त्व के श्रद्धान से मनन मचंतन करते हुए िाना मक सहिता से भव सागर को पार करने के मलए थोडा
सा िागरूक रहना ही मनतांत सरल और आवमयक हैं. इसके सरल सहि मवस्तारीकरण से यह भी
ज्ञान हो गया मक कै से हमारे भावों का पररणमन अमहस ं ा या महस
ं ा स्वरुप हो िाता हैं. इस परू ी प्रमिया
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को और सरल बना मदया हैं परम पज्ू य आचायष रत्न श्री १०८ मवशद्ध ु सागरिी महाराि के आगम
चक्षुओ ं द्वारा रोि-मराष के उदाहरणों से, सुगम और सरल भार्ा, लोक मप्रय शैली के माध्यम से. मिनेन्र
देव द्वारा बताये गए सात तत्त्वों का श्रद्धान करते हुए सम्यगच ् ाररत्र को भलीभांमत िानने का प्रयास
कर रहें हैं.
मिनवाणी िगत कल्याणी और महावीर स्वामी की पावन मपयूर् देशना का रसपान, आचायष
श्री के मखु ारमवदं से कणाषन्िल ु ी द्वारा करते हुए आगे बढ़ाते हैं और प्रस्ततु काररका 55 एवं 56 में हमारे
भावों का पररणमन हमें कुछ न करते हुए भी िीवन में परेशामनयााँ/कमठनाईयााँ और मवशुमद्ध को कै से
प्राप्त मकया िाय यह बता रहें हैं. आचायष भगवन अमृत चन्र स्वामी हमें अपने िीवन को कै से सफल
बनायें और कै से आचरण में लायें मिससे मसद्धमशला पर आरोहण कर िन्म मरण के अनन्त दु:खो से
रमहत होकर मनमवषकल्प अव्याबामधत सुख का वेदन कर सकें . मकतनी मनमषल और करुणामयी दृष्टी
है आचायष भगवन्तो की. वे हमारे दुःख से रमवत होकर सख ु ी होने का मागष बता रहे हैं.
इस र्ग्ंथराि का मंगलाचरण तो आपको कंठस्थ हो ही गया होगा. इस र्ग्ंथराि के मंगलाचरण
मिसमे आचायष भगवन श्री अमृत चन्र स्वामी ने ज्ञान ज्योमत को ही नमस्कार मकया गया हैं. इसमें
व्यमक्त को नहीं, गण ु ों का ही वणषन हैं और पज्ू य बताया गया हैं. और यही हमारे िैन दशषन का मल ू
मसद्धांत हैं.
“बहुिनों की महस
ं ा का फल एक को
एवं एक की महंसा का फल अनेक को”
एकः करोमत महंसा भवमन्त फलभामगनो बहवः
बहवो मवद्धमत महंसा महंसाफलभुग भवत्येक ।।55।।
अन्वयाथष:एकः महंसा करोमत = एक पुरुर् महंसा को करता है | फल भामगनः = फल भोगने
के भागी | बहवः भवमन्त =बहुत होते हैं | महंसा बहवः मवद्धमत = महंसा को बहुत िन करते
हैं | महंसाफलभुक = महंसा के फल का भोक्ता | एकः भवमत = एक पुरुर् होता है |
द्ध
ु च :
“ हस ह”
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क्ष ृ मह त्म्
गमणनी प्रमुख आमयषका १०५ श्री ज्ञानमती मातािी के श्री मुखारमवंद से - िाने
भव्यात्माओ ं ! भगवान आमदनाथ के दीक्षा कल्याणक के बाद बहुत सा समय मनकल गया
तब वे मनदोर् आहार हेतु मनकल गए. भगवान आमदनाथ ईयाषपथ से गमन कर अनेकों शहर आमद में
मवहार कर रहे थे. उन्हें देखकर ममु नयों की आहार चयाष को न िानने वाली प्रिा अमतउत्साह के साथ
सन्मुख आकर उन्हें प्रणाम करती है, उनमें से मकतने ही लोग कहने लगते हैं मक हे देव! प्रसन्न होइये
और हमें बताइए क्या काम है ? हम सब आपके मकंकर हैं. बहुत से प्रिािन भगवान के पीछे -पीछे
चल देते हैं. बहुत से लोग बहुमूल्य रत्न लाकर भगवान् के सामने रखकर कहते हैं मक हे नाथ! प्रसन्न
होइये, तुच्छ भेंट स्वीकार कीमिये मकतने ही सुन्दरी और तरुणी कन्याओ ं को सामने करके कहते हैं
प्रभो! आप इन्हें स्वीकार कीमिये , मकतने ही लोग वस्त्र, भोिन, माला आमद अलक ं ार ले-लेकर
उपमस्थत हो िाते हैं, मकतने ही लोग प्राथषना करते हैं मक प्रभो! आप आसन पर मवरामिये , भोिन
कीमिये इत्यामद इन सभी मनममिों से प्रभु की चयाष में क्षण भर के मलए मवर्घन पड िाता है पुनः वे
आगे बढ़ िाते हैं। इस प्रकार से िगत को आश्चयष में डालने वाली गढ़ू चयाष से मवहार करते हुए भगवान
के छह माह व्यतीत हो गए. एक मदन रामत्र के अंमतम प्रहर में हमस्तनापुर के युवराि श्रेयांस कुमार सात
स्वप्न देखते हैं। प्रसन्नमचि होते हुए प्रात: रािा श्री सोमप्रभ के पास पहुंचकर मनवेदन करते हैं मक हे
भारतीय संस्कृमत में पवों की एक श्रृंखलाबद्ध परम्परा चली आ रही है। कुछ पवष सांस्कृमतक होते हैं,
कुछ सामामिक और कुछ पवष धाममषक पवष भी होते हैं। िैन संस्कृमत में पवष िीवन के अमृत उत्सव हैं।
िैन िीवन-पद्धमत पवों और त्योहारों से इस प्रकार गथ ूं ी हुई है, िैसे वर्ाष के मौसम में धरा नन्हें-नन्हें
अंकुरों से गुंथ िाती है। िैन धमष एक पुरोधा धमष और दशषन है। इसमें अनेक पवों और त्योहारों का
समावेश है। आत्म प्रबोधक पवों के द्वारा िीवन में पमवत्रता का अवतरण होता है। वर्ष के प्रमुख पवष
मकसी र्टना पर अवलमम्बत होते हैं, वे अतीत की मकसी क्षण की स्मृमत के रूप में मनाये िाते हैं,
इनके साथ कुछ प्रसंग िुडे होते हैं, िो प्राचीन होते हुए भी मचरन्तन हैं। ऐसा ही एक पवष है अक्षय
ततृ ीया का, िैन धमष में अक्षय ततृ ीया मदवस मगं ल मदवस के रूप में मान्य है। इस पवष में तप और दान
की भावना िुडी है, इसमलए यह एक आध्यामत्मक भावना या संस्कार िागृत करने वाला पवष है।
आगम र्ग्न्थों के अनुशीलन से मवमदत होता है मक अक्षय तृतीया पवष के साथ िैन संस्कृमत में एक
अत्यंत आदशष प्रेरणादायी गौरवपूणष र्टना के दो प्रसगं तप की सम्पूमतष और दान की पररणमत के
तीथों के तीथष हमस्तनापुर नगरी से िुडे हुए हैं।
प्रथम प्रसगं है - तप। महापरुु र् के वल मसद्धान्तों से ही नहीं, अपने आचरण से भी मशक्षा देते हैं। इसमलए
कहा िाता है मक - ‘यद्यदाचररत श्रेष्ठ: लोकस्तदनु वतषते।’ श्रेष्ठ पुरुर् िैसा आचरण करते हैं, लोक
उनका अनुकरण करते हैं। वह क्षण अत्यंत मवस्मयकारी रहे होंगे, िब रािा ऋर्भदेव ने संसार, शरीर
और भोगों से मवरक्त होकर सवषप्रथम दीक्षा धारण की और वतषमान चौबीसी के तथा मदगम्बर मुमनयों
के प्रथम मुमन बने। श्री ऋर्भदेव के पूवष मकसी ने उस समय श्रमण-वृमि स्वीकार ही नहीं की थी।
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इसमलए प्रिािन श्रमण चयाष से सवषथा अनमभज्ञ थे। तत्कालीन प्रिािन ने अपने प्रिापमत को
मदगम्बर रूप में देखकर महावैराग्य का दशषन कर संसार की असारता की अनुभूमत का वेदन भी मकया
होगा। आनन्द मममश्रत मवस्मयामन्वत नयन समलल से अपने प्रिापमत के मदगम्बरत्व का अमभर्ेक कर
अपने को धन्य अवमय मकया होगा। स्वामी ने दीक्षा ली है , अतः उनका अनुकरण करना चामहए,
क्योंमक अपने मलए भी यही श्रेयस्कर है, यह मवचार कर इक्ष्वाकु, कुरु, उर्ग् और भोिवंशी चार हिार
रािाओ ं ने भी दीक्षा ले ली। ये लोग भी ऋर्भदेव के उच्च आदशष और उद्देमय से अनमभज्ञ थे। उस
समय इनमें त्याग, वैराग्य व संयम साधना की कोई मवशेर् अमभरुमच या ज्ञान हो ऐसा प्रतीत नहीं
होता। मकन्तु स्वामी के प्रमत भमक्त, प्रेम, दृढ़ मवश्वास और समपषण की उत्कट भावना ने उन्हें संप्रेररत
मकया और राज्य त्याग कर दीमक्षत हो गये। उस काल के मानवीय मन में मकतनी सहिता, सरलता
और आस्था थी मक के वल अपने रािा के प्रमत अनुराग, स्नेह व मवश्वास की भावना मक वे मिस पथ
पर बढ़ रहे हैं, वह मनश्चय ही कल्याणकारी पथ है। शरीर, सख ु , राज्यसिा पररवार की ममता आमद
को त्यागकर कठोर मदगम्बर िीवन चयाष स्वीकार कर लेना एक प्रेरणादायी र्टना है।
मद्वतीय प्रसंग है - दान। श्री मिनसेनाचायष ने महापुराण में बतलाया है मक - भगवान ने छह मास का
अनशन तप धारण कर मलया था। छह मास पयषन्त तप, ध्यान अनशन के उपरान्त िो साथ में चार
हिार रािा मुमन व्रत धारण मकये हुए थे, उनके कल्याण व परम्परा के मनवाषहन हेतु मुमन वृर्भदेव नगर
की ओर आहार चयाष हेतु मवहार करते हैं, वह कमषभूमम रूप युग का प्रारमम्भक समय था, प्रिािन
आहार-दान मवमध एवं पडगाहन मवमध से अनमभज्ञ थी। मुमनराि वृर्भदेव का आहार नहीं हुआ, वे
वन की ओर वामपस चले गये। उनके मलए तो िंगल में ही मंगल था। उनमें संहनन की अपार शमक्त
थी, िो सर्ं के ममु नयों में नहीं थी, वे र्ोर सयं म, तप के ताप को सहन नहीं कर सके । ममु नराि वर्ृ भदेव
उसी अंतराल के पश्चात आहार चयाष हेतु उठे ।
कुरुदेश के हमस्तनापुर नगर के पुण्य िागे मुमनराि वृर्भदेव र्ग्ामानुर्ग्ाम मवहार करते हुए हमस्तनापुर
नगर पधारे। उस समय वहााँ के रािा सोमप्रभ एवं रािा श्रेयांसकुमार थे। रािा श्रेयांसकुमार ने उसी
मदन रामत्र के मपछले प्रहर में पूवष सूचना रूप सात उिम स्वप्न देखे। ऊाँ चा सुमेरु पवषत, सुशोमभत
कल्पवक्षृ , के सरी मसहं , वर्ृ भ (बैल), सयू ष-चन्र, रत्नों से भरा समरु और अष्ट मगं ल समहत देव। मिनका
पुरोमहत ने कल्याणप्रद फल बतलाया। मंगल सूचक स्वप्न देखकर रािा श्रेयांसकुमार का मचि अमत
प्रसन्न हुआ।
मुमनराि वृर्भदेव ने हमस्तनापुर नगरी में प्रवेश मकया। ममु नराि के आगमन से आनमन्दत होकर चारों
ओर से नगरवामसयों के समहू दशषनाथष उमड पडे। उस समय प्रभु दशषन की उत्कण्ठा से अह मह ममका
भाव पवू षक नगरवामसयों का समदु ाय रािा श्रेयांस के महल तक एकमत्रत हो गया। ममु नराि वर्ृ भदेव
रािमहल के सामने पधार रहे हैं , यह िानकर ‘मसद्धाथष’ नामक द्वारपाल ने तत्काल ही िाकर रािा
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सोमप्रभ तथा रािा श्रेयांसकुमार को ममु नराि के आगमन का समाचार मनवेदन मकया। यह समाचार
सुनते ही रािा सोमप्रभ, श्रेयांसकुमार, लक्ष्मीमती तथा मंत्री आमद समहत रािमहल के प्रांगण में
आकर खडे हुए। मिस प्रकार मनशध और नील पवषतों के मध्य उन्नत सुमेरु पवषत शोभता है, उसी
प्रकार मुमनराि वृर्भदेव के िब रािा श्रेयांस ने दशषन मकये, तब उन्हें िामत स्मरण, िन्मान्तर की
स्मृमत प्राप्त हो गई। अतः पुरातन संस्कार के प्रभाव से आहार दान देने में बुमद्ध उत्पन्न हुई। उनको यह
स्मरण हो गया मक हमने चारण ऋमद्धधारी ममु न यगु ल को श्रीमती और वज्रिर्ं के रूप में आहार दान
मदया था। अतएव मदगम्बर मुमन की आहार मवमध एवं पडगाहन मवमध का स्मरण हो आया। मुमनराि
को आहार दान देने का उिम समय है। इस पुण्य स्मृमत की सहायता से श्रद्धा, शमक्त, भमक्त, मवज्ञान,
अक्षब्ु धता, क्षमा और त्याग इन सात गण ु ों समहत नवधाभमक्त पवू षक मवमधवत् पडगाहन कर पमवत्र
बुमद्धमान श्रेयांसकुमार ने इक्षुरस के कलशों को र्ग्हण कर मुमनराि वृर्भदेव के कर कमलों में इसका
आहार दान मदया।
कमषभूमम में एक ममु न को मदया गया यह प्रथम आहार था। कुमार श्रेयांस प्रथम दाता थे और भगवान
इस दान के प्रथम पात्र थे। हमस्तनापुर नगर भगवान को मदये आहार दान का प्रथम स्थान था, िहााँ 13
मास 9 मदन तप के बाद आहार हुआ। देवों ने उस समय आकाश में देव दुदं ु मभ बिाई। अहोदानं।
अहोदानं की र्ोर्णा कर भगवान की स्तुमत की। आचायष श्री हेमचंर ने कहा है – रार्शुक्ल तृतीयायां
दानमासीत् तदक्षयम।् वैशाख शुक्ल तृतीया को इस दान धमष की प्रवृमि हुई। यह दान अक्षय पद
प्रदाता तथा अक्षयकीमतष का मनममि बना। इस कारण वैशाख शुक्ल तृतीया के साथ अक्षय पद लग
गया। यह तृतीया असाधारण, अपूवष, अदृष्टपूवष तथा अश्रुतपूवष थी। प्रिा ने इसे पवष एवं मंगल मदवस
माना क्योंमक यह पवष सस ं ार में तप की ममहमा का प्रवतषक होने के साथ ही दान परम्परा का प्रवाह
प्रवमतषत करने वाला है। उिम दाता और उिम पात्र का अनुपम संयोग वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ।
दोनों ने अक्षय पद मुमक्त की प्रामप्त की। पात्र को मवमध पवू षक योग्य वस्तु उमचत काल में देने से महाफल
की प्रामप्त होती है। तत्त्वाथषसूत्रकार आचायष उमास्वामी मुमनराि ने कहा है मक - ‘मवमध रव्य दातृ पात्र
मवशेर्ात् तमद्धशेर्:। मवमध, रव्य, दाता तथा पात्र की मवशेर्ता से दान में मवशेर्ता होती है। पात्र
वर्ृ भदेव से भी पहले, दाता श्रेयांस सयं म की आराधना कर मक्त ु हुए। दाता और पात्र दोनों ही धमष के
रक्षक थे। दोनों ने मोक्षमागष की दो धाराओ ं को अिस्र बहने का मागष खोल मदया। मुमन धमष का रक्षक
श्रावक और श्रावक धमष का रक्षक मुमन है। श्री वृर्भदेव िी ने धमषतीथष की प्रमतस्थापना की तो रािा
श्रेयांस ने दान परम्परा का प्रवतषन मकया। अतएव कहा है मक -
तप के प्रथम प्रवतषक भगवान वर्ृ भदेव।
दान के प्रथम प्रवतषक श्रेयास
ं कुमार।।
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साधु और समाि दोनों एक गाडी के पमहये हैं। न धमों धाममषकै मबना। धमाषत्माओ ं के मबना धमष की
रक्षा नहीं हो सकती। तप और दान की आराधना करने वाला अक्षय पद प्राप्त कर सके गा। यही इस
पवष का संदेश है। इस र्टना को बीते बहुत काल हो गया, मकन्तु प्रमतवर्ष अक्षय ततृ ीया का मंगल
मदवस साधक की आत्मा को पुनः-पुनः प्रकाश प्रदान करता हुआ, सत्पात्र दान की ओर प्रेररत करता
है। प्रथम आहार का मंगल मदवस इतना पमवत्र शुभ माना िाता है मक मबना मुहूतष शोधे समस्त शुभ
कायष सम्पन्न मकये िाते हैं। इस मदन का प्रत्येक क्षण पावन, पमवत्र, शभ ु माना िाता है। इसे बोलचाल
की भार्ा में अखतीि भी कहते हैं। इस मदन मकया गया कायष कभी खमण्डत नहीं होता और मलया
गया व्रत कभी टूटता नहीं। इस मदन मवचार मकया गया प्रत्येक शुभ कायष पूणष होता है। यह एक
सवषमसद्ध योग है। इसमलए र्ग्ह प्रवेश, मववाह, व्यापार, व्रत आमद का शभ ु ारम्भ आि के मदन बहुत
होता है।
वैमदक सस्ं कृमत में िमदमग्न पत्रु परशरु ाम िी का िन्म अक्षय ततृ ीया के मदन हुआ, इसमलए यह मतमथ
पमवत्र पुण्य मतमथ मानी िाती है। सत्युग का प्रारम्भ कुछ लोग इसी मदन हुआ मानते हैं। अतएव यह
युगामद मतमथ है। भागवत् में अक्षय तृतीया के माहात्म्य के मवर्य में कहा है – वैशाखस्य तृतीयाश्च
पवू ष मवद्धां करोमत यः .... वैशाख शक्ु ल तृतीया के पवू ाषह्न में िो यज्ञ, दान, तप आमद पण्ु य कायष मकये
िाते हैं, उनका फल अक्षय होता है। ज्योमतर्ानुसार भी वैशाख शुक्ल तृतीया की मतमथ हिारों वर्ष में
आि तक क्षय मतमथ नहीं बनी। इसे अक्षय मतमथ कहा गया है।
िैन दशषन के 24 तीथंकरों में से प्रथम तीथंकर आमदनाथ को प्रथम आहार दान वैशाख सुदी
तीि को हुआ था. िैन मान्यतानस ु ार उसी मदन से अक्षय तृतीया पवष प्रमसद्ध हआ ु . इसके स्मरण
स्वरूप ईस्ट इमं डया कंपनी ने आहार दान कथानक के मचत्र के साथ 1616 में ₹1 का मसक्का िारी
मकया था.
िैन पुराणों के अनुसार आमदनाथ मिन्हें ऋर्भ भी कहा िाता है, ने ही अपने राज्य काल में
लोगों को १. अमस-शस्त्र मवद्या, २. ममस-पशुपालन, ३. कृमर्-खेती, वक्ष ृ , लता-बेल, आयुवेद, ४.
मवद्या-पढ़ना, मलखना, 5. वामणज्य-व्यापार, वामणज्य, ६. मशल्प-सभी प्रकार के कलाकारी कायष
मसखाये.
बाद में अपने पुत्र भरत को राज्य सौंप कर उन्होंने मनर्ग्षन्थ दीक्षा धारण कर ली. उस समय
उनके साथ अनेक रािाओ ं ने भी दीक्षा ली थी. आमदनाथ ने प्रारंभ में छह मास तप मकया मफर आहार
दान मवमध कै सी हो ? इसके उपदेश हेतु वे स्वयं आहार लेने को नगरों, र्ग्ामों में गए. मकन्तु लोगों को
िैन श्रमण को आहार देने की मवमध ज्ञात नहीं थी इस कारण भगवान को धन, कन्या, पैसा, सवारी
आमद अनेक वस्तुएं भेंट की. आमदनाथ मुमनराि ने यह सब अंतराय का कारण िानकर पुनः वन में
िाकर तपश्चरण धारण कर मलया.
अवमध पूणष होने के बाद पारणा करने के मलए इयाष पथ शुमद्ध करते हुए हमस्तनापुर नगर में
पधारे. उन्हें आहार के मलए आते हुए देखकर सोम रािा के भाई श्रेयांस को पूवष भव में मदए मुमनराि
को आहार दान का स्मरण हो आया. अतः आहार दान की समस्त मवमध िानकर श्री ऋर्भदेव
भगवान को तीन प्रदमक्षणा देकर पडगाहन मकया व भोिन गृह में ले गए. ऐसा दाता श्रेयांस रािा
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और उनकी धमषपत्नी समु मत देवी व ज्येष्ठ बध
ं ु सौम प्रभ रािा अपनी लक्ष्मीपमत आमद ने ममलकर श्री
भगवान ऋर्भदेव को स्वणष कलशों द्वारा इक्षुरस (गन्ना के रस) का आहार मदया. इस प्रकार भगवान
ऋर्भदेव की आहार चयाष मनरंतराय सपं न्न हुई. इस कारण उसी वक्त स्वगष के देवों ने अत्यतं हमर्षत
होकर पंचाश्चयष १. रत्नवृमष्ट, २. गंदोधक वृमष्ट ३. देवदुदं ु भी ४. बािों का बिना व ५. िय-ियकार
शब्द मकये. सभी ने ममलकर अत्यंत प्रसन्नता मनाई.
आहार चयाष करके वापस िाते हुए ऋर्भदेव भगवान ने सब दाताओ ं को अक्षय दानस्तू
अथाषत् दान इसी प्रकार कायम रहे, इस आशय का आशीवाषद मदया. यह वैशाख सुदी तीि को संपन्न
हुआ था. उसी समय से अक्षय तीि नाम का पुण्य मदवस (िैन धमष के अनुसार) का शुभारंभ हुआ.
इस को आखा तीि भी कहते हैं. यह मदन महंदू धमष महंदू धमष में भी बहुत पमवत्र माना िाता है. भारत
के मवमभन्न प्रांतों में अक्षय तृतीया पवष अलग-अलग तरह से मनाया िाता है.
भारतीय संस्कृमत में पवष, त्याहारों और व्रतों का अपना एक अलग महत्व है। ये हमें हमारी
सांस्कृमतक परंपरा से िहां िोडते हैं वहीं हमारे आत्मकल्याण में भी कायषकारी होते हैं। वैशाख शुक्ला
ततृ ीया को अक्षय ततृ ीया पवष मनाया िाता है। इस मदन िैनधमष के प्रथम तीथंकर ऋर्भदेव
(आमदनाथ ) ने रािा श्रेयांस के यहां इक्षु रस का आहार मलया था, मिस मदन तीथंकर ऋर्भदेव का
आहार हुआ था, उस मदन वैशाख शुक्ला तृतीया थी। उस मदन रािा श्रेयांस के यहां भोिन, अक्षीण
(कभी खत्म न होने वाला ) हो गया था। अतः आि भी लोग इसे अक्षय तृतीया कहते हैं।
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िैनधमष के अनस ु ार भरत क्षेत्र में इसी मदन से आहार दान की परम्परा शरू
ु हुई। ऐसी मान्यता
है मक मुमन का आहार देने वाला इसी पयाषय से या तीसरी पयाषय से मोक्ष प्राप्त करता है। रािा श्रेयांस
ने भगवान आमदनाथ को आहारदान देकर अक्षय पुण्य प्राप्त मकया था, अतः यह मतमथ अक्षय तृतीया
के रूप में मानी िाती है। यह मदन बहुत ही शुभ होता है, इस मदन मबना मुहषूत मनकाले शुभ कायष संपन्न
होते हैं।
िम्बद्वू ीप के भरतक्षेत्र में मवियाधष पवषत से दमक्षण की ओर मध्य आयषखण्ड में कुलकरों में
अंमतम कुलकर नामभराि हुए। उनके मरूदेवी नाम की पट्टरानी थी। रानी के गभष में िब िैनधमष के
प्रथम तीथंकर ऋर्भदेव आये तब गभषकल्याणक उत्सव देवों ने बडेे़ ठाठ से मनाया और िन्म होने
पर िन्म कल्याणक मनाया। मफर दीक्षा कल्याणक होने के बाद ऋर्भदेव ने छःमाह तक र्ोर तपस्या
की। छः माह के बाद चयाष (आहार) मवमध के मलए ऋर्भदेव भगवान ने अनेक र्ग्ाम नगर शहर में
मवहार मकया, मकन्तु िनता व रािा लोगों को आहार की मवमध मालमू न होने के कारण भगवान को
धन, कन्या, पैसा, सवारी आमद अनेक वस्तु भेंट की। भगवान ने यह सब अंतराय का कारण िानकर
पुनः वन में पहुंच छःमाह की तपश्चरण योग धारण कर मलया।
अवमध पण ू ष होने के बाद पारणा करने के मलए चयाष मागष से ईयाषपथ शमु द्ध करते हुए र्ग्ाम, नगर
में भ्रमण करते-करते कुरूिांगल नामक देश में पधारे। वहां हमस्तनापुर में कुरूवंश के मशरोममण
महाराि सोम राज्य करते थे। उनके श्रेयांस नाम का एक भाई था उसने सवाषथषमसमद्ध नामक स्थान से
चयकर यहां िन्म मलया था।
एक मदन रामत्र के समय सोते हुए उसे रामत्र के आमखरी भाग में कुछ स्वप्न आये। उन स्वप्नों
में
1.मंमदर,
2.कल्पवृक्ष,
3.मसंह,
4.वृर्भ,
5.चंर,
6.सूयष,
7.समुर,
8.आग,
9.मंगल रव्य.
यह अपने रािमहल के समक्ष मस्थत हैं ऐसा उस स्वप्न में देखा तदनतं र प्रभात बेला में उठकर
उक्त स्वप्न अपने िेष्ठ भ्राता से कहे, तब ज्येष्ठ भ्राता सोमप्रभ ने अपने मवद्वान पुरोमहत को बुलाकर
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स्वप्नों का फल पछ ू ा। परु ोमहत ने िबाव मदया- हे रािन ! आपके र्र श्री ऋर्भदेव भगवान पारणा
के मलए पधारेंगे, इससे सबको आनंद हुआ।
इधर भगवान ऋर्भदेव आहार (भोिन) हेतु ईयाष समममतपूवषक भ्रमण करते हुए उस नगर के
रािमहल के सामने पधारे तब मसद्धाथष नाम का कल्पवृक्ष की मानो अपने सामने आया है, ऐसा
सबको भास हुआ। रािा श्रेयांस को भगवान ऋर्भदेव का श्रीमुख देखते ही उसी क्षण अपने पूवषभव
में श्रीमती वज्रसर्ं की अवस्था में एक सरोवर के मकनारे दो चारण ऋमद्धधारी ममु नयों को आहार मदया
था-उसका िामत स्मरण हो गया। अतः आहारदान की समस्त मवमध िानकर श्री ऋर्भदेव भगवान
को तीन प्रदमक्षणा देकर पडगाहन मकया व भोिन गृह में ले गये।
‘प्रथम दान मवमध कताष’ ऐसा वह दाता श्रेयांस रािा और उनकी धमषपत्नी समु तीदेवी व ज्येष्ठ
बंधु सोमप्रभ रािा अपनी लक्ष्मीपती आमद ने ममलकर श्री भगवान ऋर्भदेव को सवु णष कलशों द्वारा
तीन खण्डी (बगं ाली तोल) इक्षरु स (गन्ना का रस) तो अि ं ल
ु में होकर मनकल गया और दो खण्डी रस
पेट में गया।
इस प्रकार भगवान ऋर्भदेव की आहारचयाष मनरन्तराय संपन्न हुई। इस कारण उसी वक्त स्वगष
के देवों ने अत्यतं हमर्षत होकर पच ं ाश्चयष हुए
१. रत्नवृमष्ट,
२. गंधोदक वृमष्ट,
३. देव दुदमभ,
४. बािों का बिना व
५. िय-ियकार शब्द होना और सभी ने ममलकर अत्यतं प्रसन्नता मनाई।
आहारचयाष करके वापस िाते हुए ऋर्भदेव भगवान ने सब दाताओ ं को ‘ दानस्तु’ अथाषत्
दान इसी प्रकार कायम रहे, इस आशय का आशीवाषद मदया, यह आहार वैशाख सुदी तीि को सम्पन्न
हुआ था।
िब ऋर्भदेव मनरंतराय आहार करके वापस मवहार कर गए उसी समय से अक्षय तीि नाम
का पण्ु य मदवस (िैनधमष के अनस ु ार) का शभ ु ारभ
ं हुआ। इसको आखा तीि भी कहते हैं। यह मदन
महन्दू धमष में भी बहुत पमवत्र माना िाता है। इस मदन अनबूझा मुहषूत मानकर शादी, मववाह एवं
मंगलकायष प्रचुर मात्रा में होते हैं।
िैनधमष में दान का प्रवतषन इसी मतमथ से माना िाता है , क्योंमक इससे पूवष दान की मवमध
मकसी को मालूम नहीं थी। अतः अक्षय तृतीया के इस पावन पवष को देश भर के िैन श्रद्धालु
हर्ोल्लास व अपवू ष श्रद्धा भमक्त से मनाते हैं। इस मदन हमस्तनापरु में भी मवशाल आयोिन मकया िाता
है। इस मदन व्रत, उपवास रखकर इस पवष के प्रमत अपनी प्रगाढ आस्था मदखाते हैं।
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अक्षय ततृ ीया व्रत, मवमध एवं मंत्र:-
यह व्रत िैन परम्परा के अनुसार वैशाख सुदी तीि से प्रारम्भ होता है। उस मदन शुद्धतापूवषक
एकाशन करें या 2 उपवास या 3 एकाशन करें। इसकी मवमध यह है मक व्रत की अवमध में प्रातः नैमत्यक
मिया से मनवृि होकर ममं दर िी को िावें। मंमदर िी में िाकर शुद्ध भावों से भगवान की दशषन स्तुमत
करें। पश्चात् भगवान ऋर्भदेव की प्रमतमा को मसंहासन पर मवरािमान कर कलशामभर्ेक करें। मनत्य
मनयम पूिा भगवान आमद तीथंकर (ऋर्भदेव) की पूिा एवं पंचकल्याणक का मण्डल िी मंडवाकर
मण्डल िी की पूिा करें। तीनों काल (प्रातः, मध्यान्ह, सांय) मनम्नमलमखत मत्रं िाप्य करें एवं
सामामयक करें-
मंत्र – ओम् ह्ीं श्रीं क्लीं अहं श्री आमदनाथतीथंकराय नमः स्वाहा।
प्रातः सांय णमोकार मत्रं का शद्धु ोच्चारण करते हुए िाप्य करें।
व्रत के समय में गृहामद समस्त मियाओ ं से दूर रहकर स्वाध्याय, भिन, कीतषन आमद में समय
यापन करें। मदन भर मिन चैत्यालय में ही रहें। व्रत अवमध में ब्रह्ाचयष से रहें। महंसा, झूठ, चोरी, कुशील
और पररर्ग्ह इन पांच पापों का अणुव्रत रूप से त्याग करें। िोध, मान, माया, लोभ कर्ायों को शमन
करें।
व्रत पणू ष होने पर यथाशमक्त उद्यापन करें । भगवान ऋर्भदेव की प्रमतमा ममं दरिी में भेंट करें
तथा ममु न, आमयषका, श्रावक, श्रामवका चतुमवषध संर् को चार प्रकार का दान देवें। इस प्रकार
शुद्धतापूवषक मवमधवत रूप से व्रत करने से सवष सुख की प्रामप्त होती है तथा साथ ही िम से अक्षय
सुख अथाषत् मोक्ष की प्रामप्त होती है।
मसहं , सअ
ु र, बदं र और नेवला के पवू षभव और अनमु ोदना का फल
रािा बज्र िंर् और रानी श्री ममत ने अपने ही 48 युगल (96) पुत्रों में से अंमतम युगल पुत्रों
को मिन्हें चारण ऋमद्ध प्राप्त हुई थी, िंगल में आहार मदया और पंचाश्चयष प्राप्त मकये । आहार के पश्चात
रािा को उनके कंचुकी ने बताया मक यह आपके ही सबसे छोटे युगल पुत्र हैं। रािा बज्रिर्ं ने बडे
आश्चयष से उन मुमनराि से पूछा मक ये नकुल (नेवला) मसंह, बानर और शूकर चारों िीव आपके मुख
कमल की और एकटक दृमष्ट क्यो लगाये हुए हैं ? और मनभषय होकर बैठे हुए हैं। तब वह चारण ऋमद्ध
धारक ऋमर्राि बोले हे रािन सुनो –
दान की अनुमोदना का फल
मसंह की पयाषय का िीव : भरतेश बनें
सुकर की पयाषय का िीव : बाहुबली बनें
वानर की पयाषय का िीव : वृर्भसेन बनें
नेवला की पयाषय का िीव : अनन्तवीयष बनें
मदगम्बराचायष श्रमण श्री १०८ मवशुद्ध सागरिी
महाराि के धमष प्रभावक सुयोग्य मशष्ट्य श्रमण
श्री १०८ मनोज्ञ सागर िी मुमन महाराि के
आशीवाषद समहत ज्ञान से प्रेरणा पाकर लेखन.
प्रस्तुमत :
श्रीमती मंिू पी. के . िैन
न्यास सदस्य ( रस्टी )
नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.) मुंबई.
ठाणे, मबुं ई, भारत.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
िैन धमष अनामद काल से चला आ रहा है और अनन्त काल तक प्रवमतषत रहेगा । यह िरूर है
मक समय के उतार-चढ़ाव के कारण िैन धमष भी प्रभामवत होता रहा है, मकन्तु ऐसा भी काल रहा िब
िैन धमष का डंका बिा करता था । कै सा भी समय रहा हो, कै सी भी पररमस्थमतयााँ रही हों मकन्तु िैन
धमष की तथा िैनाचायों की यह मवशेर्ता रही है मक उन्होंने कभी भी अपने मूल-मसद्धान्तों तथा
शद्धु ाचरण के साथ समझौता नहीं मकया । मवश्वशामन्त मलए कै सा िीवन िीना चामहए इसका साक्षात्
उदाहरण िैन समुदाय है ।िैन धमष की नीमत पूरे मवश्व के मलए प्रेरणास्रोत रही है । देश में आि भी कई
महन्दू तीथष ऐसे हैं िो मूलतः िैनों के थे । आि भी मकतने ही स्थानों पर अमधकारों लेख का हनन हो
िाता है; मकन्तु िैन उसके मलए अमहस ं क आन्दोलन ही करते हैं । मौन िुलूस, कहीं कोई उपवास
करतें है,िैन धमष एक मवशुद्ध महान् आध्यामत्मक धमष है ।
आि भी मदगम्बर िैन ममु न परू े भारत में नगं े पैर पैदल भ्रमण करते हैं तथा अमहस
ं ा, दया, मैत्री,
करुणा, शाकाहार, शामन्त का सन्देश समझाने गााँव-गााँव में, नगर-नगर में फै लाते हैं । इन सभी सद्-
संस्कारों के पीछे िैन धमष के सभी तीथंकरों की वे महान् मशक्षायें हैं िो आि भी मकसी न मकसी रूप
में पालन की िा रही हैं । तीथंकरों ने िीवों को कोरा उपदेश नहीं मदया बमल्क आचरण में लाकर
प्रेरणा दी , िैन धमष अमहंसा प्रधान धमष है । प्राय: यह सबको मवमदत ही है मक रागामदक भावों का
होना महंसा है और इन रागामदक भावों का न होना अमहंसा है ।
भारतीय वसुंधरा पर सदा से भोग की नहीं योग की, सर्ग्ं ह की नहीं त्याग की पूिा हुई है ।
भारत भूमम वह भूमम है िहााँ रत्न तो मनकलते ही हैं पर इस भूमम पर साधु भी िन्म लेते हैं, शायद
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इसीमलए मनीमर्यों ने भारतीय वसन्ु धरा को रत्नगभाष के साथ-साथ साधगु भाष भी कहा है । यगु के
आमद में िहााँ भगवान् आमदनाथ ने तीन लोक की श्रेष्ठ सम्पदा को तृण के समान त्याग मदया था, तो
महावीर ने भी रािमतलक को अस्वीकार कर त्याग के ही मागष को श्रे ष्ठ समझा था । आइयेहोता अब
िानने का प्रयास करते हैं मक अक्षय तृतीया क्या हैं और िैन धमष में इसका क्या महत्व है . उसके
पालन से, भावना भाने से उसका फल क्या होता हैं ?
िैनदशषन में पहला पवष अक्षय ततृ ीया माना िाता है, मिस मदन ममु न वर्ृ भसागर िी ने 1 वर्ष
1 माह 9 मदन बाद रािा श्रेयांस के यहााँ इक्षुरस का आहार मलया था । रस का मूल्य कुछ नही, यह
नवधा भमक्तका प्रभाव था । इसमलए वैशाख शुक्ल तृतीया के मदन हम सब 'अक्षयततृ ीया' पवष मनाते
है । रािा श्रेयांस और सोमप्रभ दान मशरोममण पण्ु यवान नर-रत्न कहलाने लगे। उन्होंने महान आत्मा
के संपकष से अवणषनीय फलदान के पात्र बन गये । इस दान की अनुमोदना द्वारा बहुत लोगोंने पुण्यका
भण्डार भर मलया था । िैसे स्फमटक मणी उत्कृष्ट रत्नके सपं कष को प्राप्त करके उस रत्नकी कांमत को
प्राप्त करता है । सत्पात्र को दान देनेसे अपने पूवोपामिषत पाप को नष्ट कर सकते है । िैसे श्री समतं भर
आचायष श्रावकाचारमें मलखते हैं ।
'अमतथीनां प्रमतपि
ू ा रुमधरमलं धावते वारर ॥'
गहृ स्थ श्रेष्ठ तप नही कर सकता लेमकन रत्नत्रय पररपालनमें शरीर रक्षणाथष आहारदान देकर
महाव्रतीका सहायक बनता है । र्टकमों से अमिषत पाप धुल िाता है, अक्षय का अथष होता है “िो
कभी खत्म ना हो” और इसीमलए ऐसा कहा िाता है, मक अक्षय तृतीया वह मतमथ है मिसमें सौभाग्य
और शभ ु फल का कभी क्षय नहीं होता, अक्षय तृतीया या आखा तीि वैशाख मास में शक्ु ल पक्ष
की तृतीया मतमथ को कहते हैं ।
अक्षय ततृ ीया भारतीय सस्ं कृमत का एक ऐसा पवष है मिसे महदं ू और िैन धमष के लोग मकसी
भी शुभ कायष करने के मलये बहुत ही खास मानते हैं।
वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया मतमथ को ही अक्षय तृतीया कहा िाता है। माना िाता
है मक िैन संस्कृमत में श्रमण युग का प्रारंभ इसी मदन हुआ था और इसी मदन से ही लोगों में पहली
बार दान करने और आहार देने की परम्परा मवकमसत हुई इसमलये इस मदन मकये गये दान का पुण्य
हमें अनेक भवों तक फल देता है।
इस मदन से ही पहली बार लोगों ने अच्छे और बुरे कमों के महत्व को समझा और कमष बंध
के क्या पररणाम होते हैं यह भी िानने को ममला। कमष बंध तीथंकर मुमनयों पर भी समय आने पर
अपना प्रभाव डालते हैं यह भी हमें भगवान आमदनाथ से िुडी इस र्टना से पता चलता है।
कहा िाता है मक भगवान आमदनाथ िब छह महीने की कठोर तपस्या के बाद मवहार करते
हुए हमस्तनापरु आये तब उन्हें छह महीने तक आहार मवमध नहीं ममली और ऐसा इसमलये हुआ क्योंमक
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उनके मकसी पवू षकृत कमष के कारण बैल को लबं े समय तक भख ू ा रहना पडा था और भगवान का
वही कमष अब उनके आडे आ गया और वो छह महीने तक आहार से वंमचत रहे।
एक मदन अचानक हमस्तनापुर के रािा श्रेयांस को रामत्र को एक स्वप्न मदखा मिसमें उन्हें
अपने मपछले भव के मुमन को आहार देने की चयाष का स्मरण हो गया और उन्होंने अगले मदन इक्षु रस
से प्रथम तीथंकर मुमन भगवान आमदनाथ को आहार मदया। इस कारण ही यह मदन इमतहास में इक्षु
ततृ ीया व अक्षय ततृ ीया के नाम से मवख्यात हो गया। तीथंकर ममु न को आहार देने से रािा श्रेयास ं
की रसोई में भोिन अक्षीण/अक्षय हो गया था और उन्हें अक्षय पुण्य प्राप्त हुआ था। इस कारण भी
यह मदन अक्षय तृतीया के नाम से िाना िाता है। इसी के साथ रािा भरत ने संपूणष भारत में भोिन
के दान की अनमु ोदना की व रािा श्रेयांस को दानतीथष प्रवतषक की सज्ञं ा ममली।
यह मदन इस मायने में भी मवशेर् है मक श्वेताम्बर परंपरा में इस मदन पारायण कर एक वर्ष का
व्रत समाप्त करते हैं। यह व्रत कामतषक मास के कृष्ट्ण पक्ष की अष्टमी मतमथ से शरू
ु होता है और वैशाख
मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तक चलता है। इस मदन तीथंकर मुमन ने एक वर्ष से भी ज्यादा समय
तक मनराहार कठोर तप कर प्रथम बार आहार मकया इसमलये इसे िैन धमष में वर्ी तप की संज्ञा भी
दी गयी है।
अक्षय ततृ ीया एक ऐसा पवष है मिस मदन हम अपने अच्छे कायों के द्वारा हमारी आत्मा को शुद्ध
और पमवत्र बना कर मोक्ष की ओर अर्ग्सर हो सकते हैं।
अक्षय तृतीया िैन शासन की तीथष परंपरा का ममु नराि आमदनाथ की आहार मिया का प्रथम
पडे़गाहन मदवस है ।िैन शासन के वतषमान चौबीसी के प्रथम तीथंकर भगवान आमदनाथ को भगवान
ऋर्भदेव भी कहते हैं ।इस भरत क्षेत्र के तीसरे काल खडं के मपछले भाग में िब भोग भूमम का लोप
और कमषभूमम का सृिन हो रहा था तब इस मवमध मवधान में मवदेह क्षेत्र से मनुष्ट्य की आयु कमष
बांधकर चौदह कुलकरों में एक, क्षामयक सम्यत्व प्राप्त करके यहां भोग भमू म में अवतररत हुए, रािा
नामभ राय एवं माता मरु देवी के गभष से बालक ऋर्भदेव का िन्म हुआ । िन्म से 6 माह पूवष से ही
आकाश से रत्न वृमष्ट एवं देवों ने मंगल गान कर अयोध्या नगरी में िन्मोत्सव के महा उत्सव की
तैयारी की और मतथी चैत कृष्ट्णा नवमी के सप्रु भात में माता मरु देवी के बालक ऋर्भदेव का िन्म
हुआ । भगवान के िन्म के बाद अयोध्या नगरी में अनेक चमत्कारी र्टनाएं हुई ,मंगल गान हुए ,रत्न
वर्ाष हुई। ऐरावत हाथी पर बैठे सौधमष इरं ने बालक तीथंकर को गोद में मलया और पांडुक वन में
स्फमटक ममण की पांडुक मशला पर िहां पर तीथंकरों का िन्म अमभर्ेक होता है , इरं ने स्वणष कलशों
से अमभर्ेक मकया।
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बालक ऋर्भ कुमार अनेक प्रमतभाओ ं के धनी, महा प्रतापी, मनोहर दृमष्ट, आकर्षक
मुखाकृमत की साक्षात प्रमतमूमतष थे और िन्म से ही ममत, श्रुमत एवं अवमध ज्ञान के धारी थे । युवावस्था
में प्रवेश करते ही बालक ऋर्भ कुमार का मववाह हुआ और भरत समहत 100 पुत्र हुए । भगवान
आमदनाथ की आयु 84 लाख पूवष की थी । चतुथष काल की प्रारंमभक बेला में उन्होंने िन-िन को
अवमध ज्ञान का एवं कमषभूमम (अमस-ममस-कृमर्) का ज्ञान मदया । इस प्रकार िब समय आया तब
इरं को भगवान के वैराग्य की मचंता हुई और भगवान ऋर्भदेव की सभा में नीलाि ं ना के नत्ृ य का
आयोिन मकया मिसकी मृत्यु का समय पूवष से मनयोमित था लेमकन भरी सभा में नीलांिना का
नृत्य करते हुए आकमस्मक मत्ृ यु हो गई और भगवान ऋर्भदेव को वैराग्य हो गया । मवरागी ऋर्भदेव
रािपाट छोडकर समस्त वैभव को त्याग कर मदगबं र ममु न हुए और वीतराग स्वरूप धारण मकया ।
तप कल्याणक की भूममका में िन-िन को उपदेश मदया । दीक्षा धारण कर 6 माह का उपवास की
प्रमतज्ञा लेकर मौन पवू षक मस्थर हुए और र्ोर तपस्या करके चार ज्ञान का असाधारण सपं ण ू ष ज्ञान प्राप्त
मकया । ध्यान योग समाप्त हुआ और मुमनराि ने आहार चयाष हेतु नगर-नगर भ्रमण मकया परंतु िन-
िन भमक्त भाव से नमन तो करते परंतु आहार मिया का ज्ञानाभाव एवं मुमनराि के मौन व्रत के कारण
आहार मिया योग दूर-दूर तक न था । िब ममु नराि हमस्तनापरु नगर में पहुच ं े तब वहां के रािा श्रेयास ं
कुमार को (उनके पूवष संस्कार के प्रताप से श्रीमती के रूप में आहार मदया था) ममु नराि को आहार
देने की बुमद्ध प्रकट हुई और उन्होंने मुमनराि का अपने महल में प्रथम पडे़गाहन मकया । मुमनराि ने
छह माह के उपवास के बाद हमस्तनापुर नगर के रािा श्रेयांस कुमार के पुण्य उदय से इक्षरु स अथाषत्
गन्ने के रस से प्रथम आहार र्ग्हण मकया । उस समय देवो ने प्रसन्न होकर आकाश से रत्न वृमष्ट की
। यही आमदनाथ ममु नराि को आगे चलकर मोक्ष की प्रामप्त हुई और वतषमान चौबीसी के प्रथम
तीथंकर आमदनाथ भगवान बने । इस प्रकार मोक्षमागी मुमनराि को आहार दान देने और इस तीथष
चौबीसी में दान की परंपरा का आरंभ हुआ । रािा श्रेयांस ने नवधा भमक्त, श्रद्धा भमक्त और 7 गुणों
समहत दान मकया । अतः िो मोक्ष के साधक धमष गुरुओ ं के प्रमत आदर पूवषक नवधा भमक्त एवं श्रद्धा
समहत दान देता है उसका मोक्ष का मागष प्रशस्त होता है ।ऐसे आहार दान की परंपरा को प्रारंभ करने
वाले पावन पवष अक्षय ततृ ीया को श्रद्धा भाव से मेरा शत शत नमन।
अक्षय तृतीया महत्वपूणष पवष िैन धमष और महन्दू धमष का भी है। धाममषक अनुसार अक्षय
तृतीया के मदन नदी में मान्यता पमवत्र स्नान करने से पि
ू ा और दान - पण्ु य के कायष करने से की प्रामप्त
भी अक्षय फल होती है। िैन समुदाय मैं अक्षय तृतीया पवष मवशेर् महत्व रखता है। इस मदन िैन
उपवास रखते है । आइए िानते है अक्षय पवष का समदु ाय के लोग खत िैन पथ ं में क्या महत्व
िैन धमष की मान्यता की अनुसार, भगवान ऋर्भ नाथ प्रथम तीथंकर) ने एक वर्ष की तपस्या
करने के बाद वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया मतमथ अथाषत अक्षय तृतीया के मदन इक्षु रस
(गन्ने का रस) से अपनी तपस्या का पारणा मकया था ।
िैन धमष के प्रथम तीथंकर भगवान ऋर्भ नाथ का िन्म चैत्र कृष्ट्ण की नवमी मतमथ के मदन
हुआ था | उन्हें भगवान आमदनाथ के नाम से भी िाना िाता है । उन्होंने अपने सांसाररक िीवन में
वर्ों तक सुखपूवषक राज्य मकया | मफर अपने पााँच पुत्रों के बीच राज्य का बटवारा कर सांसाररक
िीवन त्यागकर मदगम्बर तपस्वी बन गए ।
सि
ं य िैन सराषफ
कामां,
भरतपुर, (राि.)
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
क्ष ृ औ म
िैन धमष अनामदमनधन धमष है । िैन धमष में सबसे अमधक पवष आते हैं, िैन धमाषवलम्बी इन
पवो को अपनी-अपनी शमक्त अनस ु ार व्रत उपवास सामामिक धाममषक कायष कर मनाता है । हम
सबको उन पवों के बारे में िानना अमत आवमयक है और इसी श्रृंखला में अक्षय तृतीया पवष भी
आता है ।
िैन धमष के इमतहास में अक्षय तृतीया का मवशेर् महत्व है | भारतीय संस्कृमत में वेशाख शुक्ल
तृतीया का मवशेर् बहुत बडा महत्व है । इस मदन को अक्षय तृतीया भी कहा िाता है, िैन दशषन में
इसे श्रमण सस्ं कृमत के साथ यगु का प्रारम्भ माना िाता है.
भगवान आमदनाथ इस युग में प्रथम िैन तीथंकर हुए । उस समय भरत क्षेत्र में युग का पररवतषन
भोग भूमम व कमषभूमम के रूप हुआ । हम यहााँ बतौर िानकारी स्वरूप कहना चाहते हैं मक भोग भूमम
में कृमर् व कमो की कोई भी आवमयकता नहीं होती थी । उस समय कल्प वृक्ष होते थे मिसमे प्राणी
को मनवांमछत पदाथों की प्रामप्त हो िाती थी । कमष भमू म में कल्प वृक्ष धीरे समाप्त हो िाते हैं और
िीव को कृमर् कायष आमद पर मनभषर रहकर कायष करना पडता है ।
प्रथम तीथषकर भगवान ऋर्भदेव ने कमष भूमम में कृमर् और र्ट कमष के बारे में बताया और
बाह्मण, क्षत्रीय, वैमय की सामामिक व्यवस्थायें प्रदान की । रािा आमदनाथ को राज्य भोगते हुए िब
िीवन से वैराग्य हो गया तो उन्होंने िैन धमष की दीक्षा ली तथा 6 महीने तपस्या की, 6 माह बाद िब
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तपस्या पण ू ष हुई तो आहार के मलए मनकले उस समय मकसी को भी आहार चयाष के बारे में ज्ञान नहीं
था | मिसके कारण भगवान ऋर्भदेव को 6 माह और मनराहार रहना पडा |
वैशाख शुक्ल तीि [अक्षय तृतीया] के मदन भगवान मवहार करते हुए ममु न अवस्था में
हमस्तनापुर पहुाँचे | रािा श्रेयांस व रािा सोम को रामत्र में स्वप्न मदखा और पूवष भव में मुमन को आहार
देने की चयाष का स्मरण (ज्ञान) हो गया | तत्पश्चात रािा श्रेयांस ने नवधा भमक्त से भगवान का मवमध
पवू षक पड्गाहन मकया | उच्चासन कर बैठा कर भगवान की पि ू ा भमक्त की | तपश्चात इक्षु रस यानी
गन्ने के रस से भगवान का आहार कराया | अक्षय तृतीया िैन धमाषवलमम्बयों का महान धाममषक
पवष है | गन्ने के रस को इक्षु रस भी कहते है | इसी कारण यह मदन इक्षु तृतीया यामन अक्षय तृतीया के
नाम से मवख्यात हो गयी ।
अक्षय तृतीया प्रमतवर्ष हर्ोल्लास के साथ मनाते हैं | िैन धमष में तीथषकर क्षुधा वदेना को
शांत करने के मलए आहार को नहीं मनकलते है अमपतु लोक को आहार दान अथाषत दान तीथष परंपरा
का उपदेश देने के मनममि से आहारचयाष हेतु मनकलते हैं | तभी से दान की परम्परा प्रारंभ हुई िो बहुत
ही महत्वपूणष परम्परा है |
आगम प्रमाण है मक आहार-दान प्रभाव से रािा श्रेयांस के महल में देवों ने मनम्न मलमखत पच ं ाश्चयष
प्रकट मकये :-
1- रत्न वृमष्ट
2- पुष्ट्प वृमष्ट
3- दुदं ु मभ बािो का बिना
4- शीतल सुगमन्धत मन्दमन्द पवन चलना
5- अहोदानम,् अहोदानम् प्रशंसा वाक्य की ध्वमन होना ।
िैन दशषन में आहार दान का बहुत ही बडा महत्व है प्रथम तीथंकर की प्रथम आहार चयाष तथा
प्रथम दान तीथष प्रवतषन की सच ू ना ममलते ही देवों ने तथा भरत चिवती समहत समस्त रािाओ ं ने
रािा श्रेयांस का अमतशय सम्मान मकया ।
भरत क्षेत्र में इसी मदन से आहारदान देने की प्रथा का शुभारम्भ हुआ। लोक में रािा श्रेयांस "दान
तीथष प्रवतषक" के रूप में मवख्यात हुए । रािा श्रेयांस की रसोई में भोिन अक्षीण (यामन कभी खत्म
नहीं होने वाला अक्षय) हो गया था ।
भवदीय
उदयभान िैन,ियपरु
राष्ट्रीय महामंत्री
िैन पत्रकार महासंर्
मवशद्ध
ु वचन :
“हमें वीतरागी बनना हैं, मवि रागी नहीं”
हम े प्रे ण स्र :
SOURCE OF
INSPIRATION:
म ज्ू प्र ल स्म ण
ध् त्मम ग, च
मण , स् ध्
प्रभ क, आगम उ ष्ट े ,
सम स सक, आच
त्म , ग्ब च श्र १०८
द्ध
ु सग मह ,
ससघ क आ
कु. , उम्र १३
सु त्र
ु श्र म ल क म
बगलरु ू , कण टक.
A Letter to
Friends
Dear Friends,
Jai Jinendra. Excellent! I am very very
happy to note that you have fulfilled your
commitments towards yourselves. BRAVO!
You all have won my heart and in turn I am feeling proud of you all for the
various Oaths (Niyams) taken by you, my little friends, and your parents along with
other family members too! They had provided the support to fulfil your Oaths. It is still
continued and this resulted in the DAILY NIYAM, as you have developed strong will
power. It is a well defined self control towards the path of liberation viz. MOKSHA.
“Aacharya Bhagwan 108 Shri Vishuddha Sagar ji Maharaj always says that
– “DHARM TO KIYA NAHI JAATA, VAH TO APNE AAP HO JATA
HAIN.” It just happens. So, we should continue and follow the instructions given by
ARIHANT Bhagwaan. by just having a small concentration/focus on our daily
routine work, how the DHARM is fulfilled without doing any extra efforts.
Yours Friend
P. K. JAIN ‘PRADEEP’
You can reach me: - EDITOR-NAMOSTU CHINTAN
+91 9324358035
E-MAIL:
pkjainwater@gmail.com
namostushasangh@gmail.com
WEBSITE : WWW.VISHUDDHASAGAR.COM
Activites by Champion of
Champions:
Motivation - NSSS,Mumbai with PK Jain ‘Pradeep’ and team
members :-
Likewise, from the past few months this month again,
Kum. Niharika from Tikamgarh, Madhya Pradesh,
India, had send a very beautiful poem on the Theme
Subject ALONG WITH a picture drawn by herself on
Acharya Shri life in short. Very good initiative. We reuest
all of you to try and write down few lines always as I
know you can do. We are proud of such talented Children
in our SAMAJ/Community.
हम े ब ल कल क
नोट : यह हमारी नन्हे कलाकार िो मचत्रकला में भी पारंगत हैं. प्रत्येक अंक में इनकी कला एक
अनठू ी भावना को दशाषती हैं. यह सब उनके माता एवं मपतािी के सस्ं कारों का फल हैं िो भमवष्ट्य
को उज्िवल बना रहा हैं. हम सभी उनके उज्िवल भमवष्ट्य की शुभकामनाएं प्रेमर्त कर रहें हैं. आि
पुनः सभी बच्चे धमष में रूमच मदखा रहे हैं और वह सामने मदखाई भी दे रहा हैं. ऐसे सभी बच्चें िो
अपनी कला-प्रमतभा को भी मदखाना चाहते हैं, उन सभी का हम स्वागत अमभनन्दन करते हैं. आप
भी अपनी कला को हमें भेिे (व्हात्सप्प नंबर +91 9324358035) मिससे आपकी प्रमतभा को भी
प्रकामशत मकया िा सके . आपका ममत्र प्रधान सपं ादक : पी. के . िैन ‘प्रदीप’.
कु. संमचता
ठोले उम्र १२
वर्ष, बदलापरु
सुपुत्री सौ.
श्रीमती मनमध
योगेश ठोले,
Priyal Anshul
Jain ,
Banglore,
13 yrs.
श्रीमती सौम्या
गौतम िैन,
मुंबई
मेरा नाम सानवी है. आि मैं महावीर ियंती के बारे में बताने िा रही हूाँ.
महावीर ियंती को भगवान् महावीर के िन्म-उत्सव के तौर पर मनाया िाता हैं. महावीर
भगवान् का िन्म वैशाली में कुण्डलपुर में मपता मसद्धाथष और माता मत्रशला के तीसरी संतान के रूप
में चैत्र मास शुक्ल पक्ष में िन्म हुआ.
महावीर भगवान् को वीर, अमतवीर, सन्ममत, वद्धषमान और कई नामों से बल ु ाया िाता हैं.
महावीर ियंती क्यों और कब मनाई िाती हैं ? महन्दू पच ं ांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल
पक्ष की त्रयोदशी को महावीर ियंती मनाई िाती हैं, सनातन धमष के अनुसार कहा िाता है मक इसी
मदन महावीर िी का िन्म हुआ था. यह पवष साल में माचष या अप्रैल महीने में आता हैं. और इसे
भगवान् महावीर के िन्म मदन के रूप में मनाया िाता हैं.
महावीर भगवान् िैन धमष के २४ वें तीथंकर हैं २४ तीथंकरों में अंमतम मिनेन्र हैं मिन्होंने
तपस्या से आत्म ज्ञान की प्रामप्त की थी. मिनेन्र वह लोग होते हैं िो इमन्रयों और भावनाओ ं पर पूरी
तरह से मविय प्राप्त कर लेते है.
मवशुद्ध वचन :
सम च कल् ों क स् क सम सुप्रभ उ च ूट ूब च ल
ऑ ल इ क क्रम में म क श्रमण १०८ श्र सुप्रभ स ग मु
मह ऑ ल इ प्रश्नों क आगम प्रम ण के स र् स् क सम
प्र क हे हैं । प्रश्नों क मु श्र प्रण स ग ख ह।
े ब्र. स के भ क हे हैं. इस ऑ ल इ क क्रम में भ के
भन् स्र् ों से ऑ ल इ प्रश्न मल हे हैं ।
आ के सम च कल् ों के स् क सम प्र प्त क े के लए इ
ब 87075 48811, 07415306441 े प्रश्न व्ह टसए मेसे ,
ऑ ि मेसे ईमेल के म ध् म samyak.samadhana@gmail.com
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अब पारस चेनल पर भी प्रसाररत हो रहा हैं
प्रमतमदन मध्यान्ह 4.00 बिे
सादर िय मिनेन्र |
महोदय
आप नमोस्तु मचंतन' मामसक िैन पमत्रका के माध्यम से िैन धाममषक सामामिक मवर्यों पर
एक से बढ़कर एक मवर्य पर मवशेर्ांक प्रकामशत करवाकर िैन समाि पर उपकार कर रहे हैं।
आपके प्रत्येक मवशेर्ांक पढ़ने योग्य है। िैन शोध छात्र-छात्राओ ं को भी उपयोगी है
अक्षय तृतीया और िैन धमष पर मवशेर्ांक के मलए लेख सलंग्न कर भेि रहा हूाँ कृपया आप
प्रकामशत कर अगहृ ीत करें, साथ ही मनवेदन है मक मवशद्धु मवशेर्ांक मभिवायें तामक पढ़ सकें .
शुभ मंगल कामनाओ ं के साथ
भवदीय
उदयभान िैन,ियपरु
राष्ट्रीय महामंत्री
िैन पत्रकार महासंर्