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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.

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कहााँ पर क्या हैं?

मगं लाचरण 01 भगवान् आमदनाथ का प्रथम आहार


49
मंगलाशीर् 02 मदवस अक्षय तृतीया : डॉ. सुनील संचय
दान के महापवष अक्षय तृतीया पर शुभकामनाएं 03 दान की अनुमोदना : श्रमण श्री १०८
कहााँ पर क्या हैं? 04 मनोज्ञ सागरिी की प्रेरणा : प्रस्तुमत 53
समामध : मानव िीवन की सफलता का सफ ु ल 06 :श्रीमती मंिू पी. के . िैन, मुंबई
नमोस्तु शासन सेवा समममत-सम्मान पत्र भारत 08 अक्षय ततृ ीया क्या हैं ? :श्रीमती कीमतष िैन 56
मई 2022 माह के पवष और त्यौहार 09 वैशाख शुक्ल तृतीया का महत्व :
58
सम्पादकीय:पी. के . िैन ‘प्रदीप’ 11 अक्षय ततृ ीया :श्रीमती स्वामत िैन
अंतराषष्ट्रीय िैन शोध मवद्वत पररर्द् के अध्यक्ष 14 अक्षय ततृ ीय और िैन धमष :
60
नमोस्तु मचंतन के सहयोगी 17 श्रीमती सौम्या गौतम िैन,
नमोस्तु शासन सेवा समममत रस्ट 18 उत्कृष्ट मचत्रकारी-धमष के नए उदहारण :
आचायष श्री मनर्ग्षन्थ गुरु मवशद्ध ु सागर महाराि मवदेशों से मधबु नी आटष : 62
21
की पूिा : आचायष श्री(डॉ.) मवभव सागरिी श्रीमती मप्रयक ं ा महतेश िैन USA
आ. श्री मवशद्ध ु सागरिी महाराि की आरती 27 मॉडनष आटष की इम्प्रेशामनस्ट पेंमटंग :
63
शब्द अध्यात्म पंथी का: मचंतनकार: श्री योगेन्र सेठी, इदं ौर
28
मदगम्बराचायष श्री मवशुद्ध सागर िी महाराि अक्षय अनंत सुखदायक : अक्षय ततृ ीया :
64
परुु र्ाथष देशना: आ. श्री मवशद्ध ु सागर िी का डॉ. वंदना अमभर्ेक िैन, आगरा
महाराि की देशना: आचायष अमतृ चंर स्वामी 29 गुरु शरण : सि ं य िैन सराषफ, कामां 66
मल ू र्ग्न्थ परुु र्ाथष मसद्ध्यपु ाय अक्षय ततृ ीय का पवष आया:डॉ. मनमध िैन 67
बोध : श्रमण ममु न प्रणुत सागर िी महाराि 37 अक्षय ततृ ीय और िैन धमष: उदयभान िैन 69
अक्षय ततृ ीया महात्म्य : गमणनी प्रमुख मवशुद्ध स्वाध्याय दीर्ाष 72
38
आमयषका १०५ श्री ज्ञानमती मातािी से िाने बच्चों के मलए मवशेर् : बाल मवभाग 73
मगं लमय पवष – अक्षय तृतीया : डॉ. श्रीमती हमारे प्रेरणा स्रोत 73
43
अल्पना अशोक िैन, ग्वामलयर :Source of Inspiration 73
आमदनाथ के प्रथम आहार की स्मृमत स्वरुप मेरी पाठशाला : कु. अवनी िैन 74
इस्ट इमं डया कं. ने िारी मकया रू.१ का मसक्का 47 On-Line Pathshala : 75
: डॉ. महेंर कुमार िैन ‘मनुि’ Intellectual Power 75
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A letter to Friends : P. K. JAIN 76 आपके अपने मवचार 85
Activities by Champion of Champions 77 छपते-छपते 87
हमारे बाल कलाकार : 77 आगामी मवशेर्ांक : श्रतु पच ं मी 89
भगवान् महावीर िन्म कल्याणक महोत्सव : आपकी सेवा में सदैव िारी : 90
79
कु. सानवी मालगावे धमष प्रभावना हो सदैव भारी
मिनवाणी पढ़ने का सौभाग्य िागा हैं : गुरु आचायष श्री के सभी र्ग्ंथो को प्राप्त करें : 91
81
पाती से साभार : श्रमाणाचायष मवभव सागरिी नमोस्तु शासन सेवा समममत, (रमि.) मुंबई
मवशुद्ध देशना चेनेल 82 आप सभी का मवशेर् आभार : 92
िन िन की शक ं ा का “सम्यक् समाधान” नमोस्तु शासन सेवा समममत पररवार
83
श्रमण ममु न श्री १०८ सप्रु भ सागर िी महाराि मुख्य पृष्ठ मडज़ाइन (मडमिटल मिएशन)
मपयूर् अमतृ वाणी चेनेल 84 : पी. के . िैन ‘प्रदीप’

“स्वाध्याय परम तप है”

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श्रमण श्री १०८ सदय सागर िी मुमन महाराि का संमक्षप्त पररचय :
पूवष नाम : बा.ब्र. श्री राके श िी िैन
माता श्री : श्रीमती मोतीरानी िी िैन
मपता श्री : श्री अशोक चन्र िी िैन
िन्म स्थान : मभण्ड (मध्य प्रदेश)
िन्म मदनांक : 30 अगस्त 1986
लौमकक मशक्षा : बी.कॉम.
ब्रह्मचयष व्रत : 6 अक्तूबर 2013 नागपुर (महाराष्ट्र)
दीक्षा स्थल : भीलवाडा (रािस्थान)
दीक्षा गुरु : प.पू. मदगम्बराचायष श्री मवशद्ध
ु सागर िी महाराि
मातृभार्ा : महंदी
अन्य भार्ा : संस्कृत, प्राकृत
मवशेर् : अध्ययन / वैयावमृ ि
समामध : 21 अप्रैल 2022

मवनम्र श्रद्धांिमल
देश मवदेश के सभी कायषकताष एवं सदस्य पररवार

“ ”
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पुनः पुनः ईमानदारी पूवषक सच्ची मनष्ठा से कायष करने के कारण

आपकी अपनी संस्था, को


भारत सरकार के द्वारा सम्मामनत मकया गया हैं.

अभी हाल में ही प्राप्त यह तीसरा प्रमाणपत्र (समटषमफके ट) मदखाई दे रहा


हैं. आयकर अमधमनयम की धारा 80 G के अंतगषत दातार को ममलने
वाली छुट का प्रमाण पत्र. इससे अब कायों में तेिी भी आएगी.
यह सब आचायष श्री मवशुद्ध सागर िी महाराि की प्रेरणा,
कृपा दृमष्ट एवं उनके द्वारा दी िाने वाली मशक्षाएं
और आपके सभी के मवश्वास और संस्था के
सभी कायषकताषओ ं द्वारा अथक लगन
और सत्यता के कारण सभ ं व
एवं संपन्न हुआ हैं. आप सभी
नमोस्तु शासन सेवा समममत
को इसी तरह अपना
सहयोग प्रदान
करते रहें.
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मई 2022 माह के पवष और त्यौहार

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यह पंचांग मदल्ली के भारतीय स्टैं डडष समय के अनुसार ही मदया गया हैं इस पंचांग के कृमतकार हैं :
प्रमतष्ठाचायष पं. मुकेश िैन शास्त्री “मवनम्र”
संपकष सूत्र सवाषथषमसमद्ध ज्योमतर्-वास्तु कें र, गुरुर्ग्ाम, हररयाणा.
09868600290, 0999744151, 08368002419.
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सम्पादकीय
पी. के . िैन ‘प्रदीप’
ठाणे, मुंबई
िय मिनेन्र.
आप सभी को अमर्ग्म बधाईयााँ. अभी मपछले माह ही हम सभी ने ममलकर आमदनाथ भगवान्
का िन्म कल्याणक मनाया था, और अब पुनः एक बार मफर से आमदनाथ भगवान् का प्रथम आहार
मदवस, मिसे अक्षय तृतीय भी कहते हैं, मनाने िा रहे हैं.
इस युग के प्रथम तीथंकर आमदनाथ / ऋर्भदेव के सम्पूणष मानव िाती पर बहुत ही उपकार
हैं. उनके प्रथम आहार से ही लोगो को स्व-कल्याण के मलए दान की परंपरा के बारे में मालूम हुआ.
इतना ही नहीं बमल्क यमद हम नहीं भी कर पा रहें हैं तो मात्र अनमु ोदन से भी मकतना पण्ु य कमाया िा
सकता हैं इसकी कोई पराकाष्ठा नहीं हैं. हम यहााँ अमधक नहीं मलख रहें हैं आप स्वयं पढ़े, मचंतन करें
और मफर उसी अनुसार अपनी मियाएं एवं भावनाएं भायें मिससे हम स्वयं अपना भी कल्याण कर
सकें .
इसी मवशेर्ांक में यह भी समझाने का प्रयास मकया हैं मक हमारे दान की परंपरा कै से प्रारंभ
हुई और हमारी मियायों का पण ू ष पररणमन कै से होता हैं ? एक मतयंच िीव भी दान तो नहीं कर सकता
हैं परन्तु मसफष भावना भाने से अथाषत् दान की अनुमोदन करने से चिवती बन सकता हैं और न मसफष
चिवती बमल्क सबसे उच्च पद अथाषत् मोक्ष को प्राप्त करके मसद्धालय में मवरािमान हो सकता हैं.
और यही सब कुछ तो मानव पाना चाहता हैं.
हमारे मनोमवचार मकतने मवकृत हो रहे हैं. अभी हाल ही में कोरोना वैमश्वक महामारी से मवश्व
िूझता रहा हैं और अभी तक इसका खतरा पूणष रूप से टला भी नहीं हैं, मफर लौट कर भी लॉक
डाउन का खतरा मंडरा रहा हैं परन्तु इसके बाविूद भी मकसी को भी अपनी स्वयं की मचन्ता नहीं हैं.
बस अहम् की पुमष्ट येन-के न प्रकारेण कै से भी हो. आि मवश्व बारूद के ढेर पर बैठा हैं परन्तु यही
मवचार मन में चल रहे है की उसके साथ ऐसा करेंगे, वैसा करेंगे परन्तु हम िो करने िा रहे हैं उसका
पररणमन और पररणाम क्या होगा ? मकसी को भी यह मचंता नहीं हैं. िब भी बारूद फटता है तो वह
यह नहीं देखता मक मेरे सामने कौन हैं ? उसका काम तो मवनाश का ही हैं, मवध्वंस का ही हैं तो वह
तो अपना काम वैसे ही करेगा मिसके मलए वह बना हैं. यहााँ हमारा मचंतन यह होना चामहए मक हम

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ऐसा क्या करें मिससे समर्ग् मानव िामत पर, प्राणी मात्र पर सख
ु का सच ं ार हो और सभी िीव आपस
में ममलकर शांमतपूणष सहि हो कर सादगी का िीवन यापन करें.
हमारा िन्म भी तो मदगंबर अवस्था में ही हुआ और वही वस्तु स्वरुप हैं. प्रकृमत भी मदगंबर हैं
अथाषत् मबना मदखावे के , सहि िीवन िीना ही आदशष हैं िैसा मक हमारे पञ्च परमेष्ठी रहते हैं. वे
सहि होकर पञ्च परमेष्ठी पद को प्राप्त कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं ? अररहंत भगवान् यही तो
अपनी मरु ा से हमें बता रहे हैं और उनके इसी कथन को आत्मसात करके हमारे गरुु देव पनु ः सरल
और सहि शब्दों में अपने प्रवचनों में यही सब तो कहते हैं . अथाषत् वे सदैव हमें मगनती बताते रहते हैं
१ से १० तक मिसमे मवश्व का सभी कुछ समामहत हो िाता हैं. इस पर चचाष आगे के अंकों में करेंगे.
आप हम सब यही समझे मक हमारे गरुु देव भी चाहते हैं मक हम सब भी भगवान् बनें. अथाषत अब तक
िो प्रकरण चल रहा था यह मवशेर्ांक भी उसका ही, “आओ बनें भगवान् !” का मवशुद्ध रूप से
मवस्तारीकरण ही हैं.
सरस्वती के भडं ार की बडी अपरू ब बात |
ज्यों-ज्यों खचे त्यों-त्यों बढ़े मबना खचे र्ट िात||
ओ हो ! िगत की क्या दशा है ? अध्यात्म िो सख ु शामं त का मागष हैं उसको छोडकर सभी
भौमतक संसाधनों के पीछे भाग रहे हैं. इस अनसुलझी अंधी दौड में सभी भाग रहे हैं परन्तु क्या मकसी
को खबर हैं मक वे क्यों भाग रहे हैं ? वक्त ही नहीं हैं मचंतन का ! िैन दशषन तो सफल मानव िीवन
िीने की मवशद्ध ु कला को उद्घामटत करता हैं. मनमवषकल्प मचंता रमहत होकर सख ु से मिओ. मवशद्धु
िीवन, मवशुद्धता के साथ कै से मवशुद्ध अवस्था को प्राप्त मकया िाय ? यही सब तो परम पूज्य
मदगम्बराचायष अध्यात्म योगी, चयाष मशरोममण, आगम उपदेष्टा, समयसारोपासक, स्वाध्याय
प्रभावक, श्रुत संवधषक, अध्यात्म रसायन के मनपुण वैज्ञामनक, अध्यात्म भौमतकी के आदशष तंत्रज्ञ
आचायष रत्न श्री मवशुद्ध सागर िी महाराि समय समय पर हम सभी को बताते रहते हैं, याद मदलाते
रहते हैं. मवशेर्ांक अंको से हमने िाना था मक कै से हमारे भगवतं ों पर, श्रमणों पर मवमवध समय में
होने वाले उपसगों के समय समता धारण करके मबना अस्त्र और शस्त्र से मविय प्राप्त की. रत्नत्रय के
साथ कै से मोक्ष लक्ष्मी का वरण कै से करें यही बता रहा हैं. लक्ष्य तो भगवान् बनना ही हैं. इस मवमध
को हम गुरुवर के पाद मूल में रहकर गुरु से िानने का प्रयास करेंगे और यह भी कोमशश करेंगे मक
हम भी भगवान् बनकर अव्याबामधत सुख का अनुभवन करें. आपके अपने नमोस्तु मचंतन का सूत्र
वाक्य है –
मचंता कभी न करना भाई, मचंता तो दुखदाई हैं ;
आत्म शांमत न कभी ममलेगी, मचंतन ही सुखदाई है.
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गरुु देव अथाषत् चलते मफरते धरती के देवता का मचंतन मकतना मवशद्ध ु हैं िो अलग अलग
पंथ, मसद्धांत/समझ के कारण, होने पर भी सभी को एक सूत्र में रहने का, अखंड िैन समाि का
अनमोल, अनुपम सूत्र देते हैं. िैन दशषन में, मवश्व में कै से वस्तु व्यवस्था होती है इसको आचायष श्री
बहुत बारीकी से समझाते हैं. हमारा िैसा मचंतन होता हैं उसी अनुसार हमको फल प्राप्त होता हैं. अशुभ
कायष, अशुभ मचंतन से अशुभ फल और शुभ कायष, शुभ मचंतन से शुभ फल. अतः हमारे भाव,कायष,
मचंतन सदैव शभ ु रखना चामहए.
गुरु मनर्ग्षन्थ महान है, गुरु अररहंत समान |
गुरुवर ही भगवान है, गुरुवर क्षमा मनधान ||2||
गरुु देव आचायष मवभव सागरिी महाराि ने गरुु की महिा का मकतना सटीक वणषन मकया
हैं. अगले कुछ मदनों में हम श्रुत पंचमी का महान पवष महोत्सव मनाने वाले हैं. आप सभी को बहुत
बहुत शभ ु कामनायें.
अभी 21 अप्रैल 2022 को श्रमण मुमन १०८ श्री सदय सागर िी महाराि की सामामयक करते
हुए संर् के मध्य ही समामध हो गयी. मानव िीवन की सफल साधना का सुफल समामध मरण ही हैं.
परम पज्ू य श्री सदय सागरिी के बारे में हम अगले मवशेर्ांक में मवस्तार से बताएाँगे. हम सब भी ऐसी
ही भावना भाते हैं मक हे प्रभु ! हमारे िीवन में भी ऐसा शुभ मदवस िल्द आये की हम मनर्ग्षन्थ होकर
आपके पादमूल में सल्लेखना समहत समामध मरण को प्राप्त करें. इन्हीं प्रदीप्त भावों के साथ मसद्ध पद
की प्रामप्त हेतु मनरंतर मोक्ष मागष पर रत्नत्रय समहत अपने मानव िीवन को सफल बनायें मिससे हम
भगवान् बनें.

परम पूज्य गरुु देव,


धरती के देवता,
चलते मफरते मसद्ध भगवन्
के चरणों में मत्रकाल
अनंतबार
नमोस्तु,नमोस्तु,नमोस्तु.
पी. के . िैन ‘प्रदीप’
नमोऽस्तु शासन ियवंत हो.
ियवंत हो वीतराग श्रमण संस्कृमत.
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नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.) की उपसस्ं था
“ ”
के कायषकारी अध्यक्ष
डॉ . नरेन्रकुमार िैन
का िन्म 01 माचष , 1953 में
र्ग्ाम बूदौर, मिला छतरपुर
(म0प्र0) में हुआ था. आपके
मपता िी का नाम श्री मसर्ं ई
बन्दूलाल िैन और माता िी
का नाम श्रीमती राधाबाई था,
िो सरल स्वभावी और धाममषक
प्रकृमत के थे. माता और मपता
के धाममषक संस्कारों का आप
पर पण ू ष प्रभाव पडा. यही
कारण है मक आप प्रमुख रूपसे
धाममषक मशक्षा का आलम्बन
लेकर अपने िीवन के पथ पर
अर्ग्सर हुए.
आपने प्रारमम्भक मशक्षा र्ग्ाम बदू ौर और र्वु ारा में र्ग्हण की. इन स्थानों पर धाममषक मशक्षण
की व्यव्स्था न होने के कारण रोणमगरर चले गये. वहााँ क्षुल्लक श्री मचदानन्द िी महाराि से
तत्त्वाथषसूत्र का अध्ययन मकया और िैन पाठशाला में पढ़कर प्रवेमशका की परीक्षा पास की.
क्षल्ु लक िी की प्रेरणा पाकर रोणमगरर से श्री महावीर मदगम्बर िैन मवद्यालय, साढूमल, लमलतपरु
पढ़ने आ गये. वहां से प्रथमा परीक्षा प्रथम श्रेणी में उिीणष कर सन् 1966 में स्याद्वाद महामवद्यालय,
वाराणसी में अध्ययन करने आये . वहााँ पं. श्री कै लाशचन्र शास्त्री से मसद्धान्तशास्त्री तक िैनधमष
और दशषन का गहन अध्ययन मकया साथ ही वाराणसेय संस्कृत मवश्वमवद्यालय की शास्त्री और
आचायष की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उिीणष की. क्वीन्स कालेि से कन्नड मडप्लोमा मकया. काशी
महन्दू मवश्वमवद्यालय से एम. ए. सस्ं कृत और सस्ं कृत-दशषन मवर्य में पी. एच. डी. की. उपामधयां प्राप्त
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की. बाद में सम्पण ू ाषनन्द सस्ं कृत मवश्वमवद्यालय से िैनदशषन और प्राकृत में आचायष द्वय की उपामधयां
प्राप्त की, मिसमें मवश्वमवद्यालय में सवाषमधक अंक प्राप्त करने के कारण आपको स्वणषपदकों से
सम्मामनत मकया गया. मवद्याथी िीवन में िैसे आपने पररश्रमपूवषक अध्ययन कर अनेक उपामधयां
प्राप्त की उसी तरह मशक्षणेतर गमतमवमधयों में भी आपकी समान सहभामगता बनी रही. प्रदेशीय मशक्षा
दल, राष्ट्रीय सेवा योिना, अमग्न शमन सेवा और 3 और 4 यू.पी. एयर स्क्वाड्रन, एन. सी. सी. िैसे
मिया कलापों का भी आपने सफलतापवू षक सम्पादन मकया. काशी महन्दू मवश्वमवद्यालय की
कबड्डी टीम के आप कै प्टन रहे तथा इसमें मवशेर् दक्षता के कारण आपको ब्लू, ब्लेिर और पदकों
से सम्मामनत मकया गया। बास्के टबाल, बालीबाल आमद के भी आप दक्ष मखलाडी रहे हैं.
सन् 1979 में उच्च मशक्षा मवभाग, उिर प्रदेश में आपका चयन सस्ं कृत मवर्य के अध्यापन
हेतु प्रवक्ता संस्कृत के पद पर हो गया. रािकीय सेवा होने के कारण आपके स्थानान्तरण उिर प्रदेश
के रायबरेली, वाराणसी, चरखारी, श्रावस्ती, सहारनपरु , गामियाबाद और गौतमबद्ध ु नगर आमद
मवमभन्न नगरों में हुए मफर भी आप अध्यापन कायष कराने के साथ मनरन्तर श्रतु ाराधना में संलग्न रहे
और िैन मवद्या की मवमभन्न मवधाओ ं पर शतामधक शोधालेख मलखे, मिनमें अमधकांश प्रकामशत हो
चुके हैं. समन्तभर अवदान, क्षमणकवाद समीक्षा और यक्ु त्यनश ु ासनालक ं ार-अनवु ाद प्रभृमत र्ग्न्थों
का स्वतंत्र प्रणयन मकया तथा बीस र्ग्न्थों का सम्पादन भी मकया है. सम्प्रमत ‘दमक्षण पूवष एमशया की
मवलुप्त आहषत् संस्कृमत’ और ‘बुन्देलखण्ड की िैन िामतयों का इमतहास’ ये दो पुस्तकें प्रकाशनाधीन
हैं. कानपुर, गोरखपुर, िौनपुर, वाराणसी, ियपुर, झांसी, फै िाबाद, मदल्ली आमद नगरों में मस्थत
मवश्वमवद्यालयों के परीक्षक का कायष मकया. अनेक शोध र्ग्न्थों का परीक्षण मकया. आपके मनदेशन
में अनेक छात्र-छात्राओ ं ने शोधकायष मकये. अन्तराषष्ट्रीय और राष्ट्रीय अनेक सगं ोमष्ठयों में सहभामगता
की. 13 फरवरी 2013 में आप के . एम. रािकीय स्नातकोिर ममहला महामवद्यालय, बादलपुर,
गौतमबुद्ध नगर, उिर प्रदेश के प्राचायष पद से सेवामनवृि होकर पुनः सन् 2020 तक मुल्तानीमल पी.
िी. कालेि, मोदीनगर, गामियाबाद में शोधमनदेशन और अध्यापन का कायष सम्पामदत करने लगे.
आपके द्वारा की गई समाि सेवा और श्रतु सेवा के मलए ऋर्भांचल पुरुस्कार, मवद्वत् पररर्द् पुरुस्कार,
शास्त्री पररर्द् परुु स्कार, अम्बेडकर परुु स्कार और आचायष मवद्यासागर परुु स्कार आमद परुु स्कारों से
सम्मामनत मकया गया है.
आपने दुबई, श्रीलंका, वमाष, नेपाल, र्ग्ीस, कनाडा, थाईलैण्ड, कम्बोमडया, लाओस,
मवयतनाम, इण्डोनेमशया, इथोमपया, कीमनया, मसगं ापुर, चीन आमद देशों का भ्रमण कर श्रमण
संस्कृमत मवर्यक पुरातामत्त्वक सामर्ग्ी के अन्वेर्ण के प्रयत्न मकये तथा इन देशों के अनेक
मवश्वमवद्यालयों और शैक्षमणक सस्ं थाओ ं में श्रमणसस्ं कृमत पर व्याख्यान देकर िैनधमष की प्रभावना
की. पयषर्ू ण पवष तथा अन्य धाममषक, सामामिक अवसरों पर व्याख्यान देकर समाि में िागरूकता
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लाने के साथ सामामिक सौहादष और धाममषक वातावरण बनाने का प्रयत्न मकया. सेिेटरी,
मफलोसोमफकल सोसायटी, दशषन मवभाग, काशी महन्दु मवश्वमवद्यालय, वाराणसी, मंत्री, मद. िैन
ममन्दर, नररया, वाराणसी, प्रबन्धक, रामानन्द संस्कृत महामवद्यालय, वाराणसी, उपाध्यक्ष, अ. भा.
मद. िैन मवद्वत् पररर्द्, मनदेशक, दमक्षण पूवष एमशया िैन स्टडीि,् महासभा, नई मदल्ली, मनदेशक,
आचायष कुन्दकुन्द िैन मवद्याके न्र, गामियाबाद आमद संस्थाओ ं में मवमभन्न पदों को सुशोमभत कर
अपनी महत्वपण ू ष सेवाएं प्रदान कीं.
सम्प्रमत आप मनदेशक, िैन गुरुकुल, नवागढ़ (लमलतपुर), अमधष्ठाता, िैन मवद्यालय,
अमतशय क्षेत्र, अहार, टीकमगढ, अध्यक्ष समयांकन संस्थान, टीकमगढ़ और अध्यक्ष अन्तराषष्ट्रीय िैन
शोध मवद्वत् पररर्द् को अपनी महनीय सेवाएं प्रदान कर रहे हैं. आप दीर्ाषवमध तक गामियाबाद में
रहकर समािसेवा और श्रुताराधना करते रहे. वतषमान में आप टीकमगढ़ में रहकर अपनी सेवाएं
समाि को प्रदान करते हुए मिनवाणी की सेवा में सतत सल ं ग्न हैं. उनका वतषमान पता अर्ग्मलमखत
है:-

- डॉ. नरेन्रकुमार िैन, सेवा मनवृि प्राचायष,


‘समयांकन’ 1308, लवकुश कालोनी,
एच.डी.एफ.सी. बैंक के पीछे ,
मसमवल लाईन रोड, टीकमगढ.
पररचयात्मक लेख के लेखक :
डॉ. श्री मनमषल िैन शास्त्री,
टीकमगढ़, मध्य प्रदेश.
महा मंत्री : अंतराषष्ट्रीय िैन शोध मवद्वत पररर्द्
अनन्य मुमन भक्त एवं
िैन दशषन के मूधषन्य मवद्वान,् कमव एवं
दाशषमनक लेखक व मचन्तक.
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
नमोस्तु मचंतन के प्रकाशन के सहयोग में मनरंतर कायषरत:-

डॉ. श्री मनमषल िैन शास्त्री, श्रीमती कीमतष पवन िैन, पमं डताचायष मुकेश ‘मवनम्र’,
टीकमगढ़, मध्य प्रदेश. (टंकलेखन) मदल्ली, प्रमतष्ठाचायष,वास्तुमवद,गुरुर्ग्ाम.

पं. श्री लोके श िी िैन शास्त्री, श्रीमती प्रमतष्ठा सौरभ िैन,


गनोडा, रािस्थान. (कलाकृमत) बगं लरू ू . श्री अंकुश िैन,
शाहगढ़ (सागर)

इस मवशेर्ांक से श्रीमती कीमतष पवन िैन, मदल्ली सह सपं ामदका के नवीन पदभार
के साथ कायषरत होकर अपनी सेवाएं मााँ मिनवाणी को सादर सममपषत करेंगी
अतः उनके इस नए पद के मलए नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.)पररवार की
ओर से ढेरों शुभकामनायें.
यमद आप भी स्व-कल्याण के साथ साथ
मााँ मिनवाणी की सेवा, धमष प्रभावना,
प्रचार और प्रसार हेतु िडु ना चाहते हैं तो
हमसे शीघ्र ही संपकष कीमिये.
प्रधान संपादक : पी. के . िैन ‘प्रदीप’.
व्हात्सप नंबर : +91 9324358035.
E-mail. ID: PKJAINWATER@GMAIL.COM

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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.

नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.)


रस्ट मंडल :
रामष्ट्रय/अंतराषष्ट्रीय
श्री पी. के . िैन ‘प्रदीप’ उपाध्यक्षा: श्रीमती प्रमतष्ठा िैन
अध्यक्ष:
महामंत्री : बा.ब्र.अक्षयकुमार िैन सह मंत्री : श्री अमित िैन
कोर्ाध्यक्ष : श्री प्रवीन िैन
सदस्य : श्रीमती मंिू पी.के . िैन सदस्य : श्री सुशांत कुमार िैन
-: कायषकाररणी मंडल:-
प्रदेश प्रदेशाध्यक्ष/ :
मदल्ली. श्रीमती कीती पवनिी िैन, मदल्ली.
मध्य प्रदेश. श्री नदं न कुमार िैन, मछंदवाडा,
छिीसगढ़ श्री संिय रािु िैन, रामिम,
कनाषटक मवदुर्ी तेिमस्वनी डी, मैसूर,
रािस्थान पंमडत लोके श िैन शास्त्री, गनोडा, बांसवाडा
हररयाणा पमं डताचायष मक ु े श ‘मवनम्र’, प्रमत., वास्तमु वद, गरुु र्ग्ाम
कनाषटक प्रदेश समचव श्री प्रवीण चन्र िैन, मुडमबरी,
मध्य प्रदेश प्रदेश समचव श्री तरुण िैन, मशवनी,
छिीसगढ़ प्रदेश समचव श्री सिल िैन, दुगष,
प्रचार प्रसार मंत्री श्री रमवन्र बाकलीवाल, मालेगांव, महाराष्ट्र.
(बाह्य) :
प्रचार प्रसार मंत्री श्री राहुल िैन, मवमदशा, श्री अनुराग पटेल, मवमदशा
(अंतरंग) :
नैमतक ज्ञान प्रकोष्ठ श्री रािेश िैन, झााँसी, उिर प्रदेश
मंत्री:
मवशेर् सदस्य : महेश िैन, हैदराबाद;
पाठशाला सच ं ामलका: श्रीमती कीती िैन, मदल्ली,
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पाठशाला सह- श्रीमती मकरण िैन, हांसी, हररयाणा.
संचामलका:
बाल-पाठशाला सह- श्रीमती आरती िैन, श्रीमती रूबी िैन, बंगलुरु.
संचामलका
व्हाट्सएप/टेलीर्ग्ाम र्ग्ुप्स :
कुल 50 र्ग्ुप्स के सभी एडममन/संचालक
आगरा : शभ ु म िैन, अलदगं डी : ममत्रसेन िैन
आगरा : अतुल िैन, अशोक नगर : अतुल िैन,
अशोक नगर : श्रीमती अनीता िैन बडामलहरा : अक्षय पाटनी,
बडामलहरा : श्रीमती रिनी िैन बिगुली: वधषमान िैन
बैतूल : अमवनाश िैन बानपुर: नमवन िैन
बंगलुरु : श्री गौरव िैन बंगलुरु : श्री सन्देश िैन
बंगलुरु : मनमषल कुमार िैन बंगलुरु : श्रीमती आरती िैन
बंगलुरु : श्रीमती प्रमतष्ठा िैन बेलगााँव : धरणेन्र कुमार SJ
भोपाल: पं. रािेश िी ‘राि’ बरायठा: प्रीतेश िैन
चामराि नगर श्रीमती वमनता मछंदवाडा: श्रीमती मीनू िैन
हासन: प्रवीन HR हैदराबाद : डॉ. प्रदीप िैन
होसदुगाष : समु मतकुमार िैन हुबली : श्रीमती नंदारानी पामटल
इदं ौर: श्री मदनेशिी गोधा इदं ौर: श्रीमती रममम गंगवाल
इदं ौर: श्री टी. के . वेद इदं ौर: श्री नमवन िैन
िबलपुर: मचराग िैन ियपुर : डॉ. रंिना िैन
कलबुगी : मकशोर कुमार कारकल: भारती मवश्वकांथ
कोलकाता : सुरेन्र गंगवाल कोलकाता : रािेश काला
कोलकाता : कुसुम छाबडा कोटा : नमवन लुहामडया
कोटा : श्रीमती प्रममला िैन मेंगलौर : संतोर् मप. िैन
मुडमबरी : सुहास िैन मुडमबरी : श्रीमती लक्ष्मी िैन
मडु मबरी : कृष्ट्णराि हेगडे मचकमगलोर कलस
मचकमगलोर बी, मिनरािया दावनगेरे : भरथ पंमडत
मदल्ली : श्रीमती ररतु िैन धमषस्थल : डॉ. ियकीमतष िैन
मुंबई : दीपक िैन मुंबई : गौरव िैन
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मबुं ई : प्रकाश मसर्ं वी मदुरै : िी. भरथराि
मौरेना : गौरव िैन मौरेना : मिम्मी िैन
मैसूर : ियलक्ष्मी पुणे : प्रािक्ता चौगुले
मशवनी : श्री चन्दन िैन मशवनी : पवन मदवाकर िैन
रायपरु : ममतेश बाकलीवाल मसरसी : श्री महावीर िैन
रानीपरु : सौरभ िैन रानीपरु : प्राची िैन
रतलाम : मांगीलाल िैन टूमकुर : पद्मा प्रकाश
सांगली : रािकुमार चौगल ु े सांगली : राहुल नांरे
मसकंदराबाद (उ.प्र.) ऋर्भ िैन सोलापुर : कुमारी श्रद्धा व्यवहारे
मशवमोगा : प्रदीप बी. कूट मविापरु : मवियकुमार
उज्िैन : रािकुमार नमवन िैन
बाकलीवाल
उमरी : अभय िैन ियपुर,मानसरोवर श्री प्रमोद िैन
ऑस्रे मलया, पथष श्रीमती भमक्त हूले व्यवहारे एवं सभी कायषकिाष
अमेररका: श्री डॉ प्रेमचंद िी गडा एवं सभी कायषकिाष

िो है सो है
नमोस्तु शासन ियवतं हो
ियवंत हो वीतराग श्रमण संस्कृमत
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ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवर ! अत्र अवतर-अवतर संवौर्ट्
आह्वाननम ! अत्र मतष्ठ-मतष्ठ ठः ठः स्थापनम् |
अत्र मम समन्नमहतो भव भव वर्ट् समन्नमधकरणम् |
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चाररत्र महमालय से मनझषर, यह सम्यग्ज्ञान सगु गं ा है |
िो शीतल मनमषल वाणी दे, करती रहती मन चंगा है ||
मैं िन्म िरा का रोगी हू,ाँ तुम उिम वैद्य कहाते हो |
मनि ज्ञानमयी और्मधयााँ दे, सब िग के रोग ममटाते हो ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो िन्म िरा मृत्यु
मवनाशनाय िलं मनवषपामीमत स्वाहा।
मलयामगरर चंदन सम शीतल, है आप सुगंमधत भूतल पर|
गुरू भक्त भ्रमर मंडराते हैं, तेरी चयाष पर झुक-झुक कर ||
उपसगों के मवर्धर मलपटे , मवर्पान मकया, अमृत सींचा|
ऐसे अमृत वरर्ायी की, करता है िग चन्दन पूिा ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशद्ध ु सागर ममु नवरेभ्यो सस ं ार ताप मवनाशनाय
चन्दनं मनवषपामीमत स्वाहा।
ख्यामत पूिा से क्या लेना, क्या नाम मचत्र संरचना से |
िो समयसारमें मनत रमते, क्या काम करें िग रचना के ||
है भक्त कामना एक आप, अक्षय ख्याती भंडार बनो |
अररहंत बनो या मसद्ध बनो, मेरे मशवपथ आधार बनो ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान्
मनवषपामीमत स्वाहा ।
चैतन्य वामटकामें सरु मभत, चुनकर अध्यात्म प्रसनू मलए |
तब महकउठी प्रवचन बमगया,अध्यात्मरमसक रसपान मकये||
मिनधमष का सौरभ फै ल रहा, सब मदग-् मदगन्त धरती अम्बर |
अमपषत करता सुमनावमलयााँ, हे परम पूज्य मेरे गुरुवर ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो कामबाण मवनाशनाय पुष्ट्पं
मनवषपामीमत स्वाहा।
मनिज्ञान ध्यान वैराग्य सहि, अरु स्वानुभूमत में रचे-पचे |
मनत मनिानद चैतन्यमयी, अध्यात्म रसों में रसे-रचे ||
चैतन्य रसों का ममश्रण कर, मनि मन नैवेद्य बनाया है |
भव-भव की क्षुधा ममटाने को, गुरु पद नैवेद्य चढ़ाया है ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशद्ध ु सागर ममु नवरेभ्यो क्षध
ु ा रोग मवनाशनाय
नैवेद्यं मनवषपामीमत स्वाहा।
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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
मेरा मप्रय सम्यग्दशषन यह, मैं चेतन दीप िलाता हूाँ |
कमों की काली रिनी को, सममकत से दूर भगाता हूाँ ||
सम्यक श्रद्धा से आलोमकत, गुरु गुण आरमतयााँ गाता हूाँ |
मनर्ग्ंथों की आरमतयााँ कर, मनर्ग्षन्थ भावना भाता हूाँ ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो मोहान्धकार मवनाशनाय
दीपं मनवषपामीमत स्वाहा ।
शुद्धात्म ध्यान की ज्वाला में, कमों की धूम िलाते हो |
पल-पल मछन-मछन मनशमदन सम्यक्, शुद्धोपयोग ही ध्याते हो||
तमु महारथी यह महायज्ञ! मनि कमों को स्वाहा कर लाँू |
मैं अशरीरी अमवनाशी सुख, मनि मसद्ध अवस्था को वर लूाँ ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशद्ध ु सागर ममु नवरेभ्यो अष्ट कमष दहनाय धपू ं
मनवषपामीमत स्वाहा ।
यह नर तन का फल रत्नत्रय, हो धन्य भाग्य तुमने पाया |
रत्नत्रय का फल मशवफल है, यह बीि ह्दय में उग आया ||
मेरा श्रावक कुल धन्य हुआ, अरू धन्य, हुई यह नर काया |
पूिा कर रत्नत्रय पाऊाँ , मशवफल पाने मन ललचाया ||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं
मनवषपामीमत स्वाहा।
चैतन्य तीथष के मनमाषता, तमु भगविा बतलाते हो |
मेरा भगवन् ही मुझमें हैं, शाश्वत सिा बतलाते हो ||
आ गया काल मफर से चौथा, या मफर बसंत लहराया है |
मनर्ग्षन्थ मदगम्बर मुरा में, यह शुद्ध श्रमण अब पाया है ||1||
तन से मवशुद्ध मन से मवशुद्ध, चेतन मवशद्ध ु करने वाले |
मन के मवशुद्ध सच ं ारों से, िग मवपदाएाँ हरने वाले ||
तुम हो अनर्ष, चयाष अनर्ष, चचाष अनर्ष मंगलकारी |
मैं अर्घयष चढ़ाता हूाँ तुमको, तमु तीथंकर सम उपकारी ||2||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो अनर्घयष पद प्राप्तये अर्घयषम्
मनवषपामीमत स्वाहा।
ियमाला
(छंद-दोहा)
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तमु को पाकर हो गया, भारतवर्ष मनहाल |
रत्नत्रय मचंतामणी, गाऊाँ मैं ियमाल ||
(छंद ज्ञानोदय)
चैतन्य धातु से मनममषत हो, क्या मात-मपता का नाम कहूाँ |
शुद्धात्म प्रदेशों में िन्मे, क्या नगर-शहर क्या गाम कहूाँ |
दशलक्षण धमष सहोदर है, रत्नत्रय ममत्र मनराला है |
समता बमहना राखी बांधे, अनप्रु ेक्षा मााँ ने पाला है ||1||
यौवन की देहली पर आते, दीक्षा कन्या से ब्याह रचा |
मनर्ग्षन्थ मदगम्बर मुराधर, अपनाया मुमक्त पथ सच्चा ||
हो भाव शमु द्ध के मवमल कें र, हो स्वानभ ु मू त के मनिाधार |
हे संस्कृमत के अलंकार ! चैतन्य कल्पतरू सुखाधार ||2||
तुम पंच-समममतयााँ त्रय-गुमप्त शुद्धात्मलीन हो पाल रहे |
श्रुतज्ञान और वैराग्य प्रबल, सब संर् इसी में ढाल रहे ||
िो महापुरुर् द्वारा धाररत, उन महाव्रतों को धारा है |
मनि भेदज्ञान पौरुर् बल से, खोला ममु क्त का द्वारा है ||3||
चयाष के मनमषल स्रोतों से, सज्ञं ान के मनझषर फूट पडे |
िन्मों के ज्ञान मपपासु िन, इसमलए एक दम टूट पडे ||
व्रतशील शुद्ध आचरण मबना,शुद्धात्म तत्त्व ना ममलता है |
मदनकर के मबना मदवस क्या हो,सर में पंकि क्या मखलता है|4|
िो चलते पर भी नहीं चलें, िो और बोलते ना बोलें |
िो सदा देखते ना देखें, मनि में इतने मनश्चल होलें ||
है स्विातीय सम्बन्ध मधुर, शुद्धात्म का शुद्धात्म से |
एकार्ग्मचि हो िहााँ कहीं, बाते कर ले मसद्धातम से ||5||
पुरुर्ाथष परायण परमवीर, हो मुमक्त राज्य के अमधकारी |
मैत्री प्रमोद करुणाधारी, हो उभय लोक मगलकारी ||
हे मनमवषकार ! मनद्वंद ! नमन, हे मनरालम्ब ! मनर्ग्षन्थ नमन |
मनभषय ! मनराग! मनलेप ! नमन, मनदोर् मदगम्बर श्रमण नमन ||6||
तमु पच ं ाचार परायण हो, तमु पच ं ेमन्रय गि के िेता |
गंभीर धीर हे शूरवीर ! चाररत्र दक्ष मशवपथ नेता !
चाररत्र मबना दृगबोध मवफल, कोठे में बीि रखे सम है |
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िो मितनी उज्िवलता पाले, उतना मनवाषण मनकटतम है ||7||
शम दम यम मनयम मनके तन हैं, अमवचल अखंड अद्वैत रूप |
हो रत्नत्रय से आभूमर्त, आचायष श्रेष्ठ आचार भूप ||
मैं भमक्तत्रय योगत्रय से, त्रयकालों तीन मवधानों से |
भव भेदक ! साधक सुरर प्रवर, नमता सममकत श्रद्धानों से ||8||
गरुु यमी! यत्न करते रहते, मनि समय मनयम प्रकाशक हो |
िो हमें यातनाएाँ देता, उस यम के आप मवनाशक हो |
हो कमष वृक्ष के उच्छे दक, तुम कमषलोंच करते रहते |
मफर भी इस भोली िनता को, के वल कचलोच मदखा करते ||9||
गुरु अहो ! अयाचक धन्य तुम्हें, तुम कुछ भी मााँग नहीं करते |
मनवाषण सन्ु दरी की सन्ु दर, भावों से मांग भरा करते ||
यह ब्रह्मचयष की मनमषलता, लौकांमतक देव नमन करते |
वैराग्य मदवस पर कब आये, बस इतनी चाह मकया करते ||10||
यह धन्य आपकी मिनमरु ा, यह धन्य-धन्य मनर्ग्षन्थ दशा |
मुमन नाम आलौमकक मिनचयाष, िो प्रकटाती अररहंत दशा ||
तुम चलते-मफरते मोक्षमागष, गन्तव्य ओर बढ़ते िाते |
तुम कदम िहााँ पर रख देते, चैतन्य तीथष गढ़ते िाते ||11||
मनर्ग्षन्थ साधु की यह पूिा, सच में रत्नत्रय पूिा है |
ना ख्यामत नाम की यह पि ू ा, ना ख्यामत नाम को पि ू ा है ||
है तीन ऊन नव कोमट मुमन, मिनके समान ना दूिा है |
अररहंत प्रभु के बीि रूप, मशवपथ पंथी की पूिा हैं ||12||
(छंद-दोहा)
गुरु पूिा में आ गये, िग के सब मुमनराि |कोमट-कोमट पूिा करूाँ, पाऊाँ मुमनपद आि ||1||
गरुु मनर्ग्षन्थ महान है, गरुु अररहतं समान |गरुु वर ही भगवान है, गुरुवर क्षमा मनधान ||2||
ॐ ह्ुं णमो आइररयाणं श्रीमद् आचायष परमेष्ठी मवशुद्धसागर मुमनवरेभ्यो ियमाला पूणाषर्घयषम्
मनवषपामीमत स्वाहा।
गुरुवर सम्यग्दशष दो, गुरुवर सम्यग्ज्ञान |
गुरुवर सम्यक् चाररत्र दो, गरुु वर दो मनवाषण ||3||
इत्यामशवाषदं पष्ट्ु पांिमलम् मक्षपेत् |

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मवशुद्ध वचन:
“राग हटाओ कष्ट ममटाओ”
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आचायष श्री मवशुद्धसागर िी की आरती

हे गरुु वर तेरे चरणों में हम वदं न करने आये हैं ।


हम वंदन करने आये हैं, हम आरती करने आये हैं ।।
काम िोध मद लोभ छोड, मनि आत्म को पमहचाना है ।
र्र कुटुम्ब छोडकर मनकल पडे, धर मलया मदगम्बर बाना है ।हे गुरुवर... ||1।।
छोटी सी आयु में स्वामी, मवर्यों से मन अकुलाया है ।
तप, सयं म, शील साधना में, दृढ़ अपने मन को पाया है ।।हे गरुु वर... ।।2।।
मकतना भीर्ण संताप पडे, हो क्षुदा तृर्ा की बाधाएाँ।
मस्थर मन से सब सहते हो, बाधाएं मकतनी आ िाये ।।हे गुरुवर...।।3।।
नहीं ब्याह मकया र्र बार तिा, समता के दीप िलाये है ।
हे महाव्रती संयमधारी, चरणों में शीश झक ु ाये हैं ।।हे गुरुवर... ।।4।।
तुम िैन धमष के सरू ि हो, तप त्याग की अद्भुत मरू त हो।
धन्य धन्य ममहमा तेरी, तम हरने वाली सूरत हो।।हे गुरुवर... ।।5।।
तुम चरणों का दास में करता हूाँ अरदास।
नाश पास भव का करो दीिे चरण मनवास ।।हे गरुु वर... ।।6।।

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नोट: अब तक आपने 54 काररकाएाँ पढ़ ली हैं और समझ भी ली हैं अथाषत् आपने आप के ज्ञान में
आपसे ही आपके द्वारा मनरंतर आपके मलए ही सम्यक् दशषन सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चाररत्र की
वृमद्ध को प्राप्त कर मलया हैं, अंगीकार कर मलया हैं. आठ अंगों के बारे में आपने तीस काररकाओ ं को
आत्मसात करते हुए पढ़ा और उनको समझ भी मलया, तदनंतर सम्यग्ज्ञान अमधकार अंग के प्रारंभ
इकतीस से छिीसवीं काररका तक आपने िाना मक सम्यग्दशषन के साथ साथ मोक्ष मागष पर आगे
बढ़ने के मलए सम्यग्ज्ञान भी बहुत िरुरी है. आपको याद होगा मक सभी िीवों के कल्याण के मलए
यह मागष, देशना के माध्यम से बता रहे हैं परम पूज्य प्रमतपल स्मरणीय, ज्ञान मदवाकर, चयाष मशरोमणी,
अध्यात्म योगी, आगम उपदेष्टा, स्वाध्याय प्रभावक, श्रुत संवधषक, आचायष रत्न श्री १०८ मवशुद्ध
सागरिी महाराि. यह देशना, पुरुर्ाथष देशना िो मक महान तत्त्व मवश्ले र्क आचायष श्री अमृतचन्र
स्वामी की महान रचना “पुरुर्ाथष मसद्ध्युपाय” आधाररत हैं. सभी इस देशना का रसपान करते हुए,
भलीभााँमत समझकर मोक्षमागष पर अबाध गमत से अर्ग्सर हो रहे हैं.
हम सभी ने अब तक मपछली 54 काररकाओ ं में िैन दशषन के मवमवध आयामों के बारे में नय
व्यवस्था, सम्यग्दशषन के आठों अंग, और युगपत रूप से ज्ञान का सम्यग्ज्ञान में पररवतषन, भावों का
पररणमन और सबसे महत्वपण ू ष मनर्ग्षन्थ आलौमकक वृमि को रत्नत्रय समहत िाना और समझा मक
मनर्ग्षन्थ अवस्था ही बध ं से छूटने में उपकारी हैं. और अब तक यह भी िाना मक सम्यक् चररत्र के साथ
मकस प्रकार हम आगे मोक्ष पथ पर बढ़ सकते हैं. सवषज्ञ की वाणी के अनुसार बताये गए रव्य और
तत्त्व के श्रद्धान से मनन मचंतन करते हुए िाना मक सहिता से भव सागर को पार करने के मलए थोडा
सा िागरूक रहना ही मनतांत सरल और आवमयक हैं. इसके सरल सहि मवस्तारीकरण से यह भी
ज्ञान हो गया मक कै से हमारे भावों का पररणमन अमहस ं ा या महस
ं ा स्वरुप हो िाता हैं. इस परू ी प्रमिया
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को और सरल बना मदया हैं परम पज्ू य आचायष रत्न श्री १०८ मवशद्ध ु सागरिी महाराि के आगम
चक्षुओ ं द्वारा रोि-मराष के उदाहरणों से, सुगम और सरल भार्ा, लोक मप्रय शैली के माध्यम से. मिनेन्र
देव द्वारा बताये गए सात तत्त्वों का श्रद्धान करते हुए सम्यगच ् ाररत्र को भलीभांमत िानने का प्रयास
कर रहें हैं.
मिनवाणी िगत कल्याणी और महावीर स्वामी की पावन मपयूर् देशना का रसपान, आचायष
श्री के मखु ारमवदं से कणाषन्िल ु ी द्वारा करते हुए आगे बढ़ाते हैं और प्रस्ततु काररका 55 एवं 56 में हमारे
भावों का पररणमन हमें कुछ न करते हुए भी िीवन में परेशामनयााँ/कमठनाईयााँ और मवशुमद्ध को कै से
प्राप्त मकया िाय यह बता रहें हैं. आचायष भगवन अमृत चन्र स्वामी हमें अपने िीवन को कै से सफल
बनायें और कै से आचरण में लायें मिससे मसद्धमशला पर आरोहण कर िन्म मरण के अनन्त दु:खो से
रमहत होकर मनमवषकल्प अव्याबामधत सुख का वेदन कर सकें . मकतनी मनमषल और करुणामयी दृष्टी
है आचायष भगवन्तो की. वे हमारे दुःख से रमवत होकर सख ु ी होने का मागष बता रहे हैं.
इस र्ग्ंथराि का मंगलाचरण तो आपको कंठस्थ हो ही गया होगा. इस र्ग्ंथराि के मंगलाचरण
मिसमे आचायष भगवन श्री अमृत चन्र स्वामी ने ज्ञान ज्योमत को ही नमस्कार मकया गया हैं. इसमें
व्यमक्त को नहीं, गण ु ों का ही वणषन हैं और पज्ू य बताया गया हैं. और यही हमारे िैन दशषन का मल ू
मसद्धांत हैं.

िमशःगतांक से आगे .......


अब तक पढ़ा था: राग द्वेर् आमद से रमहत िीव के द्वारा बुमद्धपूवषक मकये गए योग्य आचरण
से भी कदामचत महंसा हो भी िाती हैं तो भी िीव को महंसा का दोर् नहीं लगता हैं और ठीक इसके
मवपरीत प्रमाद आमद भावों के कारण अयत्नाचार पवू षक मिया से कोई िीव मरे या न मरे परन्तु महस ं ा
का दोर् तो लगता ही हैं. इसी प्रकार सम्यग्दशषन को धारण करनेवाले उन पुरुर्ों को िो सदा आत्मा
का महत चाहते हैं, उन्हें कर्ाय से रमहत मिनधमष की पद्धमत और युमक्तयों के द्वारा भले प्रकार मवचार
करके मोक्ष मागष पर सतत आगे बढ़ते रहना चामहए. और सम्यक् चाररत्र के बारे में और अमधक ज्ञान
तथा िोर देते हुए आचायष श्री अमतृ चन्र स्वामी के अभूतपूवष सूत्रों को समझाते हुए आचायष श्री
मवशुद्ध सागर िी महाराि सरल शब्दों में समझा रहे हैं मक चाररत्र में मकस तरह मबना मिया मकये हुए

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भी मात्र भावों के पररणमन से िीवन में कै सी कै सी आपदाओ ं का सामना करना पड सकता हैं.
...चमलए िानते हैं आगे ....

“बहुिनों की महस
ं ा का फल एक को
एवं एक की महंसा का फल अनेक को”
एकः करोमत महंसा भवमन्त फलभामगनो बहवः
बहवो मवद्धमत महंसा महंसाफलभुग भवत्येक ।।55।।
अन्वयाथष:एकः महंसा करोमत = एक पुरुर् महंसा को करता है | फल भामगनः = फल भोगने
के भागी | बहवः भवमन्त =बहुत होते हैं | महंसा बहवः मवद्धमत = महंसा को बहुत िन करते
हैं | महंसाफलभुक = महंसा के फल का भोक्ता | एकः भवमत = एक पुरुर् होता है |

कस्यामप मदशमत महस ं ा महस


ं ाफलमेकमेव फलकाले ।
अन्यस्य सैव महस
ं ा मदशत्यमहसं ाफलं मवपल
ु म् ।।56।।
अन्वयाथष : कस्यामप महसं ा = मकसी को महंसा । फलकाले= उदयकाल में । एकमेव महंसा
फलम् मदशमत = एक ही महंसा के फल को देते हैं । अन्यस्य = मकसी को। सैव महंसा
मवपलु म् = वही महस
ं ा बहुत से ।अमहस
ं ाफलं मदशमत = अमहस
ं ा के फल को देती है {अन्यत्
न = अन्य फल को नहीं } |
भो ज्ञानी आत्मा ! रव्य (सम्पमि) को अमिषत कर लेना कोई बडी बात नहीं उसकी प्रामप्त पुण्य
से होती हैं मिस समय चिवती के पुण्य का योग आता है तो उसकी आयुधशाला में स्वयमेव चिरत्न
प्रगट हो िाता है, 32,000 मक ु ु टबद्ध सम्राट उसके चरणों में शीश झक
ु ाते हैं । मनीमर्यो! वैभव को
महान् वही मानता है, मिसने धमष को नहीं िाना. परंतु मिसने धमष को समझ मलया है, उसकी दृमष्ट में
वैभव कुछ नहीं होता. वह तो वैभव को आते हुए व िाते हुए देखकर मुस्कराता हैं यह ज्ञानी की दशा
हैं अहो! अनुभव करना मक अल्प पुरुर्ाथष से भी बहुत मवभूमत ममल िाती है तथा बहुत पुरुर्ाथष करने

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पर भी पेट-भर नहीं ममलता, क्योंमक अल्प महस ं ा से भी महान् महस ं ा कर रहा था और महान् महस ं ा के
होने पर भी उससे अल्प महंसा भी नहीं हुई.
अमृतचंर स्वामी कह रहे हैं मक मचन्तन से गहराई में देखना कहीं मदगम्बर योगी बनकर ऐसा
मचन्तवन कर मलया होता. तो आि तुझे मुमक्तश्री का वरण हो गया होता. अहो ! मकतना मववेक
लगाते हो मक अमुक रव्य को यहााँ से खरीदूगाँ ा, वहााँ बेचूाँगा, मफर ऐसा करूाँगा तू ऐसा क्यों नहीं
सोचता मक ऐसे भाव होंगे तो ऐसे भाव करूाँगा ?
भो ज्ञानी आत्माओ ! तुम क्यों कमा रहे हो ? मिन लोगों को देना है उन लोगों को दे कर चले
िाओगे ? तुम व्यथष में महंसा का बंध करके नरक मनगोद की वंदना करोगे, पुत्र के मनममि से स्त्री के
मनममि में. स्वयं का पेट भरने के मलए बहुत कुछ नहीं चामहए अपने िीने के मलए बहुत महस ं ा भी नहीं
करनी होती है, परंतु पता नहीं मकतने पेटो की मचंता है? िबमक वे पेट भी िब बने थे तो पहले से
अपने पेटों की व्यवस्था करके आये हैं.
भो ज्ञानी ! यमद मपता ने पुत्र को िन्म मदया है तो पुत्र ने मपता की संज्ञा को िन्म मदया है,
इसमलए मकसी अहम् में मत डूबे रहना आप तो पुण्य की पररणमत देखो, पाप की पररणमत को देखो.
अहो ! मिस समय अहम् के सताये हुए को कुछ नहीं मदखा तो अपनी कन्या का कुष्ठरोगी के साथ
संबंध कर मदयां स्वयं मपता की आाँख से आाँसू टपक गए, बेटी! मैंने तेरे साथ क्या कर मदया ? आप
होते तो छोडकर के भाग िाते या तलाक दे देते हो ! तुमने भोगों के पीछे , इमन्रय -सुख के पीछे
संस्कृमत व धमष का नाश कर डाला. भो ज्ञानी ! मिसकी दृमष्ट में मिनवाणी छा गई है, उसे दूसरे की
छाया की कोई आवमयकता नहीं है. मिसके शीश पर मिनेंर की वाणी का आशीर् है, उसको दुमनयााँ
के आशीर् की कोई आवमयकता नहीं. मपता ने सबं ध ं तो कर मदया, पर बेटी समझाती है-मपताश्री !
शोक मत करो, आपका दोर् नहीं हैं होनहार को कौन टाल सकता है ? आप तो मेरे िनक हैं, आपने
तो मुझे पालन-पोर्ण करके इतना बडा मकया. आप मेरा बुरा सोच ही कै से सकते थे ? यह तो कमष
की मवमचत्रता है, इसीमलए ऐसा हो गया अब तो आप शीघ्रता करो, मेरी मवदा कर दो पमतदेव
(कुष्ठरोगी) के साथ मैं अपना भाग्य सराहूाँगी मक मुझे सेवा करने का मौका तो ममलेगा. दुमखयों के
मध्य रहूाँगी, तो प्रभु की याद आयेगी. मपताश्री ! यमद पण्ु य का योग होगा तो यह कुष्ठी भी स्वणषमयी
काया से युक्त ममलेगा इतनी दृढ़ आस्था के साथ िनक-िननी को मबलखते छोड, सात-सौ कुमष्ठयों
की सेवा में लीन हो गयी. पहुाँच गयी मनर्ग्षन्थ योगी के चरणों में, हे प्रभु ! यह नहीं पछ
ू रही हूाँ मक मैंने
कौन-से कमष मकये थे, वह तो सामने मदख रहे हैं लेमकन, नाथ ! इन कमों के शमन का उपाय क्या है ?
“बेटी ! असाता को साता में संिममत करने का कोई उपाय है तो मात्र पंचपरमेष्ठी की भमक्त-आराधना
है. यमद अररहतं -मसद्धों की भमक्त मनदोर् करोगी और गध ं ोदक को शीश पर लगाओगी तो कुष्ठ भी
साफ हो िायेगा.” अतः मवकल्प मत करो. वही मसद्धचि-मवधान आि भी है.
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भो ज्ञानी ! उनका कुष्ठ ठीक हो गया, तम्ु हारे फोडे-फुन्सी तक ठीक नहीं हो पा रहे हैं. बात यह
है मक मसद्धचि वही है, लेमकन पररणमत तुम्हारी वैसी नहीं है. मनीमर्यो ! कुंदकुंदाचायष महाराि ने
अष्टपाहुड र्ग्ंथ में मलखा है-

सुहेण भामवदं णाणं दुहे िादे मवणस्समद


तम्हा िहाबलं िोई अप्पा दुक्खेमह भावाए ।।62।।
सख ु में भामवत मकया ज्ञान दुःख के आने पर मवनाश को प्राप्त हो िाता है और मिसने दुःख
से ही अपने आप को भामवत मकया है , उसका ज्ञान पावन-पमवत्र-शास्वत हो िाता है. भो ज्ञानी
आत्माओ ! तेरा चेतन्य ना सुखमय है, ना दुःखमय है, वह शुद्ध मचन्मय चैतन्यभूत है. धन्य है ! उस
नारी के मलए, मिसको बाल्यावस्था में वैधव्य को देखना पडा, मफर भी मपता से कहा – अहो ! यह
तो मेरे पुण्य का योग है मक अब मैं पराधीन पयाषय से मुक्त होकर स्वाधीन पयाषय की ओर आमयषका
दीक्षा लेने िाऊाँ गी. आि भी देखो प्रकाण्ड आमयषका मवदुर्ी मवशुद्धममत मातािी मिनकी सल्लेखना
हो गई, बाल-मवधवा थी. पहले छोटी अवस्था में शादी हो िाती थी, चौथी क्लास पढ़ी है,
मत्रलोकसार-िैसे र्ग्न्थों की टीका मलखी है. उनके माता-मपता आप-िैसे नहीं थे मक ऐसे संस्कार देते
मक चलो तम्ु हारी दूसरी शादी मकये देता हूाँ.
मानतुंग स्वामी की भमक्त से 48 ताले टूट गये. वामदराि स्वामी का कुष्ठ दूर हो गया. आस्था
से आप भी भगवान् की भमक्त करोगे तो आपके भी पाप दूर हो िाएगं े. तो ज्ञानी आत्माओ !
वीतरागता की दृमष्ट अलग है व राग की दृमष्ट, मवकार की दृमष्ट अलग है. मिसकी दृमष्ट खोटी है, तमु
उसके सामने सत्य को कहकर भूल मत कर देना. िब उसकी खोटी दृमष्ट फूट िायेगी, तो अपने आप
उसे सत्य निर आने लगेगा. अहो ! िीवन में आप मनदोर् हो, तो कभी मकसी को सफाई मत देना,
तुम्हारी दृमष्ट तुम्हारे पास है. शुद्ध र्ी को ही यमद कोई व्यमक्त डालडा कह रहा है तो मत बताओ उसे
शुद्ध र्ी. श्रीपाल कहते हैं – मपताश्री ! मैं वही कुष्ठी हूाँ. आप अपनी बेटी पर शंका तो मत करो. उसके
शील, तपस्या के प्रभाव से मसद्धों की साधना से हम अके ले ही नहीं अन्य सात-सौ कुष्ठी भी आि
मनरोग हो गये भो ज्ञानी! 'अमृतचंर स्वामी' कह रहे हैं- श्रीपाल के तन में कुष्ठ हुआ था, तन का कुष्ठी
मोक्ष िा सकता है, लेमकन मिसके मन में कोड है, वह मुमक्त प्राप्त नहीं कर सकता. एक मनर्ग्षन्थ योगी
के ऊपर श्रीपाल ने कचरा मफकवा मदया था, क्योंमक मवभूमत का वेग बडा खतरनाक होता है. मिसको
हों, (आज्ञा चलाना, वैभव का ममलना और युवावस्था) तीनों ममल गये मफर देखना क्या हालत होती
है ? उस समय सात-सौ व्यमक्तयों ने कुछ नहीं मकया था, बेचारों ने मात्र ताली ही बिाई थी. उसका
पररणाम मक श्रीपाल कोमढ़यों के सरदार हो गये और वे कोढ़ी प्रिा हो गये . इसीमलए, िीवन में ध्यान
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रखना, मिसकी पररणमत िैसी है वह िाने, लेमकन मनिपररणमत में मवकार करके हम अपनी आत्मा
में कमों के कुष्ठरोग को उत्पन्न न करें।
भो ज्ञानी ! देखो पररणामों की दशा मितने पापी हुये हैं, वे सब प्रायमश्चि करके मसद्ध बनकर
चले गये, लेमकन उन पामपयों की बातें कर - करके हम पापी क्यों बनें. हम उनकी परमात्म - दशा की
ही बात करें. मारीमच से बडा पाप कौन कर सकता है ? मिसने 363 ममथ्यामत चला मदये. ममथ्यात्व
से बडा क्या पाप है ? पर आि वे हमारे मिनालय में मवरािमान हैं. उनके शासन को हम ियवतं कर
रहे हैं. अब तुम देखो मारीमच की पयाषय को और करो पररणाम खराब. भो ज्ञानी ! मुमुक्षु की आाँख
पाप-पयाषय के मलए तो बंद होती है, पर पुण्य-पयाषय के मलए चौबीस र्ंटे खुली होती है. मुमुक्षु अपनी
आाँख से पाप-पयाषय को देखना ही नहीं चाहता है. इसमलए अमृतचंर स्वामी कह रहे हैं मक भाव-
अमहंसा ही पूणष अमहंसा है और मिसके पास भाव अमहस ं ा हो, परंतु रव्य-अमहंसा न हो, कै से संभव है
? अरे ! मिसका भाव होगा उसके पास रव्य भी होगा. इसीमलए, धमष तो वास्तव में बचपन में ही
होता है, पचपन में तो मसर महलने लगता है बचपन में साँभल गये होते तो हम यहााँ नहीं ममलते.
इसीमलए, अब भी कोई बात नहीं. तुम पररणमत बचपन ही की बनाकर चलना मिनवाणी में मलखा
है मक सयं म के मलए हर समय वृद्ध बनकर रहना और ज्ञान के मलए बालक बनकर रहना.
भो चेतन ! आगम में उल्लेख आया है मक एक अस्सी वर्ष के मुमनराि याद कर रहे थे “एक्को
करेमद कम्म”, कोई मवद्वान पहुाँचें प्रभु! अब तो आप सल्लेखना करो, आप याद करने में लगे हो, यह
तो बचपन के काम था. वे योगी कहते हैं - भो ज्ञानी ! यह बचपन ही तो चल रहा है . अभी मेरी
सल्लेखना का बचपन ही तो चल रहा है. मैंने बारह वर्ष की समामध कल ही तो ली हैं . अतः मैं इस
कारण याद नहीं कर रहा हूाँ मक तम्ु हें सनु ाऊाँ गा, बमल्क मैं इसमलए याद कर रहा हूाँ मक इस आत्मा में
डाल दूगं ा, िो आगे चलकर के वलज्ञान के संस्कार बन िाएाँगे. इसमलए, िब भी तमु को समय ममले,
तो आप श्लोक याद करने बैठ िाया करें . याद नहीं हो रहा, इसकी मचंता नहीं करें. मितनी देर से याद
होगा, उतना अच्छा होगा. देखो, ज्ञानी हमेशा हर बात को अपनी पररणमत की मनमषलता में सोचता है
मक मितनी देर तक हम याद करेंगे, उतनी देर तक अशुभ से बचेंगे. िो मवचार तम्ु हारे अन्यथा िा रहे
थे. वे आपके श्रतु -चचाष में िाने लगे. मशवभमू त महाराि, मिनको बारह वर्ष में 'णमोकार मत्रं ' याद
नहीं हुआ था, पहुाँच गये गुरुदेव के चरणों में, प्रभु! क्या करूाँ ? गुरुदेव बोले-कोई बात नहीं, तुम इतना
याद कर लो “तुष्ट्मास् मभन्नम”् अरे ! वह भी भूल गये. देखो कमष की मवमचत्रता िा रहे थे चयाष को.
एक मााँ दाल धो रही थी तो “तुष्ट्मास् मभन्नम”् याद आ गया, अहो ! यही तो कहा था महाराििी नें.
मास यानी दाल से, तर्ु याने मछलका मभन्न है, ऐसे ही देही से देह मभन्न हैं अब नहीं िा रहा हूाँ आहार
करने, कहीं चला गया तो मफर भल ू िाऊाँ गा अतः एक मशला पर बैठ गये. “तर्ु मासं र्ोर्न्तों” भावों
की मवशुमद्धपूवषक मशवभूमत महामुमन अंतमषहु ूतष में के वलज्ञानी बन गये. मिन गुरुओ ं ने पाठ मसखाया
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था, वे गरुु आकर शीश झक ु ा रहे हैं. मत्रलोकीनाथ, के वली प्रभु ! आपके चरणों में मैं तो मचल्लाता
रहा और आप के वली बन गए. इसमलए, इस क्षयोपशम ज्ञान का अहम् मत करना. यह कब आ िाये,
कब चला िाए. कोई पता नहीं है प्राप्त करना, तो क्षामयक ज्ञान को इसमलए तुम सब िानना भूल
िाओ, एक ही िान लो, तो सब िान लोगे मक एक मेरी मनि-आत्मा हैं.
ममनमर्यों ! आचायष भगवान् कह रहे हैं “एक:करोमत महंसा' महंसा एक कर रहा है. कचरा एक
ने फें का था, शेर् ने तो कुछ नहीं मकया, लेमकन सात सौ कुष्ठी हो गये. ज्ञामनयो ! ध्यान रखना,
अनुमोदना करने के भाव भी आते हैं तो अच्छाई की अनुमोदना करना, बुराई की अनुमोदना नहीं कर
लेना. कभी-कभी मकतना व्यथष में बंध हो िाता है? बहुत गहराई से समझना, टेलीवीिन के सामने
आप कै से मनबषन्ध रहते होंगे ? मैच देख रहे हैं, झगडे देख रहे हैं, कहीं कुछ भी देख रहे हो, भाव तो आ
गये. दैमनक समाचार-पत्र से भी तुम बच नहीं सकते. चोरी, छल-कपट, बलात्कार, महंसा आमद की
र्टनाएाँ उसमें मलखी है. अनामद से सस्ं कार हैं. राग प्रचुर होता है. आप सम्मेद-मशखर की वदं ना करने
गये थे. अचानक कोई र्टना मवमदशा की मलखी ममल गयी. उसको पुनः देखते हो. अरे ! मवमदशा
की, कहााँ बैठे थे आप ? अहो ! मसद्धक्षेत्र में मवरािी आत्माओ ! आप यहााँ की याद कर रहे हो. बध ं
कहााँ का होगा ? अब देखना, साधक को मसद्धक्षेत्र में अखबार पढ़ने से मन में कोई मवकल्प आ गया,
तो बंध कहााँ का होगा? उसमें स्त्रीकथा, चोरकथा, राज्यकथा, एवं भोिन कथा, इन चार कथाओ ं के
अलावा कौन सी वीतराग-कथा मलखी होती है ? सोचो, उस समय भाव तुम्हारे कहां िा रहे है. प्रमाद
तो आयेगा और मनयम से बंध होगा, क्योंमक मकतने ही आप िैन हो, धमाषत्मा हो, भाव तो आते हैं.
राग िहााँ हुआ, वहााँ तेरे में एक क्षण भी नहीं लगेगा, प्रवेश कर गये कमषशत्रु. महंसा को एक ने मकया,
फल को बहुत भोग रहे हैं र्र में एक सदस्य अनाचार से कमा कर ला रहा है, तमु सब भल ू नहीं िाना.
भोिन मकसके र्र में कर रहे हो, मकसके कपडे पहन रहे हो और मकसकी अनुमोदना में लीन हो ? भो
ज्ञानी ! मितना राग है, उतना बंध तो होगा उिम वंश वाले उिम काम करते थे. आटे की चक्की नहीं
लगाते थे, कोल्हू नहीं लगाते थे. यह मत सोचना मक मपतािी कर रहे हैं, तो पाप हमें नहीं लगेगा;
क्योंमक एक कर रहा है और फल बहुत भोग रहे हैं. एक सम्राट ने सेना को आदेश कर मदया मक िाओ,
उस देश पर चढाई कर दों इतनी बडी सेना महस ं ा कर रही है, पर भोग एक रहा हैं प्रधानता मकसकी है
? आदेश मिसने मदया था वह तो मसंहासन पर बैठा है, लेमकन रक्त की इतनी र्ाराएाँ बह रहीं हैं इन सब
का दोर् उसको तो लगना ही लगना है. मकसी को महंसा उदय-काल में एक ही महंसा के फल को देती
है. और कोई एक िीव को महस ं ा होने पर महस ं ा का फल ममल रहा है और एक िीव से महस ं ा होने पर
भी अमहंसा का फल ममल रहा है. भटक नहीं िाना. िैसे आपको कोई िीव आाँखें मदखाने आया.
सो आपने उसकी आाँखों में ड्राप डाल मदया लेमकन वह ररयेक्शन कर गया, उसकी आाँखें फूट गई,ं
परंतु पुमलस आपको नहीं पकडेगी. क्योंमक आपका उद्देमय उसकी आाँखें फोडना नहीं था. उसको
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ठीक करना था. इस प्रकार शल्यमिया करते समय डॉक्टर के यहााँ मकसी मरीि की मत्ृ यु हो िाती
है, मफर भी वहााँ बचाने का ही उद्देमय था. अतः उसको अमहंसा का फल ही ममलेगा अहो! एक िीव
यह सोच कर चला था मक हम स्वयं मारेंगे तो लोग हमें पकड लेंगे. सो ऐसा कर लो. भैया ! तमु लो
पचास हिार, हमारा पता नहीं चलना चामहए. अहो ! उनको पता नहीं चल पाए और तुमने िहर
मखलवाकर उसको खत्म करा मदया. भो ज्ञानी ! महस ं ा तो आपने नहीं की, पर ध्यान रखना, तुम
अमहस ं क नहीं हो और मचंता नहीं करों बन्ु देलखण्ड के लोग एक बहुत अच्छी कहावत कहते हैं- “िब
पाप उदय में आता है तो मगरे पर मचल्लाता है ” अरे! इतने गहरे-गहरे एकांत में मकये गये पाप पेपर में
कै से छप गये ? सब पता चल िाता हैं इसमलए, िीवन में ध्यान रखना, मकसी को प्रेररत मत करना,
मकसी की प्रेरणा में सयं ोगी मत बनना ध्यान रखना, बहेमलयों का काम भी नहीं करना उसका काम
झाडी में छुपकर मारना है अथाषत् दूसरे के द्वारा दूसरे का र्ात करा मदया, बोले- मैं तो धमाषत्मा हूाँ और
ज्यादा हुआ तो चलो हम श्रीिी का अमभर्ेक कर लेते हैं, पमवत्र हो िायेंगें ऊपर की मिया पमवत्र
नहीं कराती, पररणमत पमवत्र कराती हैं पररणमत के साथ मिया है , तो पमवत्र हो िाओगे.

“भगवान् महावीर स्वामी की िय”

ॐ ञ्च मेष्ठ क प्र क ब क्ष


( + + आ + उ + म = ओम )

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द्ध
ु च :

“ हस ह”
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क्ष ृ मह त्म्
गमणनी प्रमुख आमयषका १०५ श्री ज्ञानमती मातािी के श्री मुखारमवंद से - िाने

भव्यात्माओ ं ! भगवान आमदनाथ के दीक्षा कल्याणक के बाद बहुत सा समय मनकल गया
तब वे मनदोर् आहार हेतु मनकल गए. भगवान आमदनाथ ईयाषपथ से गमन कर अनेकों शहर आमद में
मवहार कर रहे थे. उन्हें देखकर ममु नयों की आहार चयाष को न िानने वाली प्रिा अमतउत्साह के साथ
सन्मुख आकर उन्हें प्रणाम करती है, उनमें से मकतने ही लोग कहने लगते हैं मक हे देव! प्रसन्न होइये
और हमें बताइए क्या काम है ? हम सब आपके मकंकर हैं. बहुत से प्रिािन भगवान के पीछे -पीछे
चल देते हैं. बहुत से लोग बहुमूल्य रत्न लाकर भगवान् के सामने रखकर कहते हैं मक हे नाथ! प्रसन्न
होइये, तुच्छ भेंट स्वीकार कीमिये मकतने ही सुन्दरी और तरुणी कन्याओ ं को सामने करके कहते हैं
प्रभो! आप इन्हें स्वीकार कीमिये , मकतने ही लोग वस्त्र, भोिन, माला आमद अलक ं ार ले-लेकर
उपमस्थत हो िाते हैं, मकतने ही लोग प्राथषना करते हैं मक प्रभो! आप आसन पर मवरामिये , भोिन
कीमिये इत्यामद इन सभी मनममिों से प्रभु की चयाष में क्षण भर के मलए मवर्घन पड िाता है पुनः वे
आगे बढ़ िाते हैं। इस प्रकार से िगत को आश्चयष में डालने वाली गढ़ू चयाष से मवहार करते हुए भगवान
के छह माह व्यतीत हो गए. एक मदन रामत्र के अंमतम प्रहर में हमस्तनापुर के युवराि श्रेयांस कुमार सात
स्वप्न देखते हैं। प्रसन्नमचि होते हुए प्रात: रािा श्री सोमप्रभ के पास पहुंचकर मनवेदन करते हैं मक हे

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भाई! आि मैंने उिम-उिम सात स्वप्न देखे हैं सो आप सनु ें- (१) सवु णषमय समु ेरूपवषत देखा है. (२)
मिनकी शाखाओ ं पर आभूर्ण लटक रहे हैं, ऐसा कल्पवृक्ष देखा (३) र्ग्ीवा को उत्पन्न करता
हुआ मसंह देखा. (४)अपने सींग से मकनारे को उखाडता हुआ बैल देखा. (५) सूयष और चंरमा देखे.
(६)लहरों से लहराता हुआ और रत्नों से शोभायमान समुर देखा. (७) अष्ट मंगल रव्य को हाथ में
लेकर खडी हुई ऐसी व्यंतर देवों की मूमतषयां देखी.सो इनका फल िानने की मुझे अमतशय उत्कंठा हो
रही है।
भाई के स्वप्नों को सुनते हुए रािा सोमप्रभ कुछ अकमल्पत ही श्रेष्ठ फलों की कल्पना करते हुए
पुरोमहत की तरफ देखते हैं मक पुरोमहत मनवेदन करता है - हे रािकुमार ! स्वप्न में मेरूपवषत के देखने
से यह स्पष्ट ही प्रकट हो रहा है मक मिसका मेरूपवषत पर अमभर्ेक हुआ है ऐसा कोई देव आि अवमय
ही अपने र्र आयेगा और ये अन्य स्वप्न भी उन्हीं के गण ु ों की उन्नमत को समू चत कर रहे हैं. आि उन
भगवान के प्रमत की गई मवनय के द्वारा हम लोग अमतशय पुण्य को प्राप्त करेंगे. आि हम लोग िगत
में बडी भारी प्रशंसा, प्रमसमद्ध और संपदा के लाभ को प्राप्त करेंगे इस मवर्य में कुछ भी संदेह नहीं है
और कुमार श्रेयांस तो स्वयं ही इन स्वप्नों के रहस्य को िानने वाले हैं. इस तरह से पुरोमहत के वचनों
से प्रसन्न हुए दोनों भाई स्वप्न की और भगवान की कथा कर ही रहे थे मक इतने में योमगराि भगवान
ऋर्भदेव ने हमस्तनापरु नगर में प्रवेश मकया.
उस समय भगवान के दशषनों की इच्छा से चारों तरफ अती भीड इकट्ठी हो गई. कोई कहने लगे -
देखो-देखो, आमदकताष भगवान ऋर्भदेव हम लोगों का पालन करने के मलए यहां आए हैं, चलो
िल्दी चलकर उनके दशषन करें और भमक्तपूवषक उनकी पूिा करें. कोई कह रहे थे मक संसार का कोई
एक मपतामह है ऐसा हम लोग मात्र कानों से सनु ते थे सो आि प्रत्यक्ष में उनके दशषन हो रहे हैं. अहो!
इन भगवान के दशषन करने से नेत्र सफल हो िाते हैं , इनका नाम सुनने से कान सफल हो िाते हैं और
इनका स्मरण करने से अज्ञानी िीवों के भी अन्तःकरण पमवत्र हो िाते हैं. कोई कहने लगे ओहो! ये
भगवान् तीन लोक के स्वामी होकर भी सब कुछ छोड कर इस तरह अके ले ही क्यों मवहार कर रहे
हैं ? कोई स्त्री बच्चे को दूध मपलाते हुए भी अपने से अलग कर धाय की गोद में छोडकर भगवान के
दशषन के मलए दौड पडी, कोई स्त्री कहने लगी सखी! भोिन करना बन्द कर, िल्दी उठ और यह अर्घयष
हाथ में ले, अपन चलकर िगतगुरु भगवान की पूिा करेंगे. इत्यामद कोलाहल के बीच से मनकलते
हुए भगवान मनुष्ट्यों से भरे हुए नगर को सूने वन के समान िानते हुए मनराकुल मवहार कर रहे हैं. इसी
बीच मसद्धाथष नाम का द्वारपाल आकर गदगद् वाणी से बोलता है- ‘महाराि! तीन िगत् के
गुरू भगवान ऋर्भदेव स्वयं ही अके ले इधर आ रहे हैं.’ इतना सुनते ही रािा सोमप्रभ और
रािकुमार श्रेयास ं दोनों ही भाई सेनापमत और ममं त्रयों के साथ तत्क्षण ही उठ पडे और रािमहल के
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आगं न तक बाहर आ गए. दोनो भाइयों ने दूर से ही भगवान को नमस्कार मकया। उनके चरणों में अर्घयष
समहत िल सममपषत मकया। भगवान के मुखकमल को देखते ही कुमार श्रेयांसको अपने कई भवों का
िामतस्मरण हो आया, उनको रोमांच हो गया. ऐसा प्रतीत हुआ मक मानो मेरे र्र में तीन लोक की
सम्पदा ही आ गई है-उन्हें आहार देने की सारी मवमध याद आ गई. शीघ्र ही पडगाहन मवमध को करते
हुए भगवान की तीन प्रदमक्षणायें दीं. अन्दर ले गये, उन्हें उच्च आसन पर बैठने के मलए मनवेदन मकया-
‘भगवान! उच्च आसन पर मवरािमान होइये.’ पनु : प्रभु के चरणों का प्रक्षालन करके मस्तक पर
गंधोदक चढ़ाकर अपना िीवन धन्य माना और अष्ट रव्य से पूिा की. पुन: पुन: प्रणाम करके मन,
वचन, काय की शुमद्ध का मनवेदन मकया, पुनः आहार िल की शुमद्ध का मनवेदन करके भमक्त से हाथ
िोडकर बोले-‘नाथ! यह प्रासक ु इक्षरु स है इसे र्ग्हण कर मझ ु े कृताथष कीमिए।’ भगवान् ने उस समय
खडे होकर अपने दोनों हाथों की अंिुली बनाई और आहार लेना शुरू मकया.
रािकुमार श्रेयास
ं भगवान के हाथ की अंिल ु ी में इक्षरु स दे रहे हैं. रािा सोमप्रभ और रानी लक्ष्मीमती
भी प्रभु के करपात्र में इक्षरु स देते हुए अपने आप को धन्य समझ रहे हैं. इसी बीच गगनांगण में देवों
का समूह एकमत्रत हो गया और रत्नों की वर्ाष करने लगा, मंदार पुष्ट्पों को बरसाने लगा, मंद सुगंध
पवन चलने लगी, दुदं मभ बािे-बिने लगे और ‘अहोदान, महादान’, आमद ध्वमन से आकाशमडं ल
शब्दायमान हो गया.
इस समय दोनों भाइयों ने अपने आपको बहुत ही कृतकृत्य माना क्योंमक कृतकृत्य हुए भगवान
ऋर्भदेव स्वयं ही उनके र्र को पमवत्र करने वाले हैं. उस समय दान की अनुमोदना करने वाले बहुत
से लोगों ने भी परम पुण्य को प्राप्त मकया था. भगवान ऋर्भदेव आहार र्ग्हण कर वन की ओर
प्रस्थान कर गये. रािा सोमप्रभ और श्रेयांस भी कुछ दूर तक भगवान् के पीछे -पीछे गये पुन: भगवान्
को हृदय में धारण मकये हुए ही वापस लौटते समय उन्हीं के गण ु ों की चचाष करते हुए और प्रभु के पद
से मचमन्हत पृथ्वी को भी नमस्कार करते हुए आ गये. उस समय पूरे हमस्तनापुर में एक ही चचाष थी मक
रािकुमार श्रेयांस को प्रभु को आहार देने की मवमध कै से मालूम हुई. यह आश्चयषमयी दृमय देवों के
हृदय को भी आश्चयषचमकत कर रहा था. देवों ने भी ममलकर रािा श्रेयांस की बडे आदर से पि ू ा
की. भरत महाराि भी वहााँ आ गये और आदर समहत रािकुमार श्रेयांस से बोले-‘हे महादानपते!
कहो तो सही तुमने भगवान के अमभप्राय को कै से िाना ? हे कुरुराि! आि तुम हमारे मलए भगवान
के समान ही पूज्य हुए हो, तुम दानतीथष की प्रवृमि करने वाले हो और महापुण्यवान हो, इसमलये मैं
तुमसे यह सब पूछ रहा हूाँ मक िो सत्य हो वह अब मुझसे कहो. इस प्रकार सम्राट के पूछने
पर श्रेयांस कुमार बोलते हैं- रािन!् मिस प्रकार प्यासा मनष्ट्ु य सगु मं धत स्वच्छ शीतल िल के सरोवर
को देखकर प्रसन्न हो उठता है वैसे ही भगवान् के अमतशय रूप को देखकर मेरी प्रसन्नता का पार
नहीं रहा मक मुझे उसी मनममि से िामतस्मरण हो आया मिससे मैंने भगवान् का अमभप्राय िान मलया.’
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‘वह क्या ? मझ ु े भी सनु ाओ.’ ‘महाराि! आि से आठवें भव पवू ष मवदेह क्षेत्र की पडुं रीमकणी नगरी
के रािा वज्रिंर् और रानी श्रीमती ने बडे ही प्रेम से वन में चारणऋमद्धधारी युगल मुमनयों
को आहारदान मदया था. उस समय रािा के मंत्री, सेनापमत, पुरोमहत और सेठ भी आहारदान की
अनुमोदना कर रहे थे और पास में कुछ ही दूर से देखते हुए नेवला, वानर, व्याघ्र और सूकर ये चार पशु
भी आहार देखकर प्रसन्नमन होते हुए उसकी अनुमोदना कर रहे थे. आहार होने के अनंतर कंचुकी ने
कहा- रािन् ! ये दोनो ही ममु न आपके ही यगु मलया पत्रु हैं. महाराि वज्रिर्ं को अतीव हर्ष हुआ. वे
उनके चरणों के मनकट बैठकर अपनी रानी श्रीमती के , अपने मंत्री आमद चारों के तथा नेवला आमद
चारों के भी पूवष भव पूछने लगे.
मुमनराि ने भी अपने मदव्य अवमधज्ञान के द्वारा िम-िम से सभी के पूवष भव सुना मदये; अनंतर
बतलाया मक-आप इस भव से आठवें भव में िम्बद्वू ीप के भरतक्षेत्र की अयोध्या नगरी में
रािा नामभराय की महारानी मरूदेवी की कुमक्ष से प्रथम तीथंकर ऋर्भदेव के रूप में अवतार लेंगे.
आपकी रानी श्रीमती का िीव हमस्तनापुर के रािा सोमप्रभ का भाई श्रेयांस कुमार होगा. आपके ये
मंत्री आमद आठों िीव भी अब से लेकर आठ भव तक आपके साथ सम्बन्ध स्थामपत करते हुए
आपके तीथंकर के भव में आपके ही पुत्र होवेंगे और उसी भव से मोक्ष की प्रामप्त करेंगे. हे चिवमतषन!्
आप उस समय रािा वज्रिर्ं के ममतवर नाम के महामत्रं ी थे, सो इस भव में भगवान् के ही पत्रु
होकर चिवती हुए हो. उस समय के रािा वज्रिंर् के िो आनंद नाम के पुरोमहत थे; उन्हीं का ही
िीव आि आपके भाई बाहुबली हुए हैं िो मक कामदेव हैं. अकंपन सेनापमत का िीव ही आपका
भाई ऋर्भसेन हुआ है िो मक आि पुररमतालपुर नगर का अधीश्वर है, धनममत्र सेठ का िीव आपका
अनंतमविय नाम का भाई है. दान की अनुमोदना से ही उन्नमत करने वाले व्याघ्र का िीव आपका
अनतं वीयष नाम का भाई है, शक ू र का िीव अच्यतु नाम का भाई है, वानर का िीव वीर नाम का भाई
है और नेवला का िीव वरवीर नाम का भाई है अथाषत् रािा वज्रिंर् के आहारदान के समय िो
ममतवर मत्रं ी आमद चार लोग दान की अनुमोदना कर रहे थे और िो व्याघ्र आमद चारों िीव अनुमोदना
कर रहे थे वे दान की अनमु ोदना के पण्ु य से ही िम -िम से मनष्ट्ु य के और देवों के सख
ु ों का अनभु व
करके अब इस भव में तीथंकर के पुत्र होकर महापुरूर् के रूप में अवतीणष हुए हैं और सब इसी भव
से प्रभु के तीथष से ही मोक्षधाम को प्राप्त करेंगे. मैं भी भगवान का गणधर होकर अंत में मोक्षधाम को
प्राप्त करूंगा।
सम्राट भरत ! यह दान की ममहमा अमचन्त्य है, अद्भुत है और अवणषनीय है. देव भी इसकी ममहमा
को नहीं कह सकते हैं पुनः साधारण मनुष्ट्यों की तो बात ही क्या है? रािन! िो दाता, दान, देय और
पात्र इनके लक्षणों को समझकर सत्पात्र में दान देता है वह मनमश्चत ही मोक्ष का अमधकारी हो िाता
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है. देखो! इस आहारदान के मबना मोक्षमागष चल नहीं सकता है . अतः आहार, और्मध, शास्त्र और
अभय इन चारों दानों में भी आहारदान ही सवषश्रेष्ठ है और वही शेर् दानों की भी पूमतष कर सकता है।’
इस प्रकार से मवस्तृत भवावली और अपना या भगवान ऋर्भदेव का व रािकुमार श्रेयांस के कई
भवों तक पारस्पररक सम्बन्ध सुनकर भरत चिवती अत्यमधक प्रसन्न हुए और बोले-
‘कुरूवंशमशरोमणे ! भगवान ऋर्भदेव िैसा ना तो कोई उिम सत्पात्र होगा और न आप िैसा महान
दातार होगा, न आप िैसी नवधाभमक्त की मवमध ही होगी, न आपके िैसा उिम फल को प्राप्त करने
का अमधकारी ही हर कोई बन सके गा. आप इस युग में ‘दानतीथष के प्रथम प्रवषतक’ कहलाओगे. युग-
युग तक आपकी अमर कीमतष यह भारत वसुन्धरा गाती ही रहेगी.’ ‘इत्यामद प्रकार से
रािकुमार श्रेयास
ं का सत्कार करके रािा भरत अयोध्या नगरी की तरफ प्रस्थान कर गये.
मिस मदन भगवान का आहार हुआ था उस मदन वैशाख सदु ी ततृ ीया थी. अतः उस दान के प्रभाव
से ही वह अक्षय तृतीया इस नाम से आि तक इस भारत भूमम में प्रचमलत है क्योंमक िहां पर भगवान
का आहार होता है वहां पर उस मदन भोिनशाला में सभी वस्तु ‘अक्षय’ हो िाती है अत: इसका यह
नाम साथषक हो गया है तथा वह मदन इतना पमवत्र हो गया मक आि तक भी मबना मुहूतष देखे शोधे
भी बडे से बडे मांगमलक कायष इस अक्षय तृतीया के मदन प्रारम्भ कर मदये िाते हैं. सभी सम्प्रदाय के
लोग भी इस मदन को सवोिम महु ूतष मानते हैं. इसमें मकसी प्रकार का सदं ेह नहीं है. यह है आहार
दान का माहात्म्य िो मक सभी की श्रद्धा करने योग्य है.
(नोट:इस प्रसंग को और समझने के मलए इस नमोस्तु मचंतन पमत्रका के मुख्य पृष्ठ की थीम को देखे
और समझें )

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मंगलमय पवष - अक्षय तृतीया

भारतीय संस्कृमत में पवों की एक श्रृंखलाबद्ध परम्परा चली आ रही है। कुछ पवष सांस्कृमतक होते हैं,
कुछ सामामिक और कुछ पवष धाममषक पवष भी होते हैं। िैन संस्कृमत में पवष िीवन के अमृत उत्सव हैं।
िैन िीवन-पद्धमत पवों और त्योहारों से इस प्रकार गथ ूं ी हुई है, िैसे वर्ाष के मौसम में धरा नन्हें-नन्हें
अंकुरों से गुंथ िाती है। िैन धमष एक पुरोधा धमष और दशषन है। इसमें अनेक पवों और त्योहारों का
समावेश है। आत्म प्रबोधक पवों के द्वारा िीवन में पमवत्रता का अवतरण होता है। वर्ष के प्रमुख पवष
मकसी र्टना पर अवलमम्बत होते हैं, वे अतीत की मकसी क्षण की स्मृमत के रूप में मनाये िाते हैं,
इनके साथ कुछ प्रसंग िुडे होते हैं, िो प्राचीन होते हुए भी मचरन्तन हैं। ऐसा ही एक पवष है अक्षय
ततृ ीया का, िैन धमष में अक्षय ततृ ीया मदवस मगं ल मदवस के रूप में मान्य है। इस पवष में तप और दान
की भावना िुडी है, इसमलए यह एक आध्यामत्मक भावना या संस्कार िागृत करने वाला पवष है।
आगम र्ग्न्थों के अनुशीलन से मवमदत होता है मक अक्षय तृतीया पवष के साथ िैन संस्कृमत में एक
अत्यंत आदशष प्रेरणादायी गौरवपूणष र्टना के दो प्रसगं तप की सम्पूमतष और दान की पररणमत के
तीथों के तीथष हमस्तनापुर नगरी से िुडे हुए हैं।
प्रथम प्रसगं है - तप। महापरुु र् के वल मसद्धान्तों से ही नहीं, अपने आचरण से भी मशक्षा देते हैं। इसमलए
कहा िाता है मक - ‘यद्यदाचररत श्रेष्ठ: लोकस्तदनु वतषते।’ श्रेष्ठ पुरुर् िैसा आचरण करते हैं, लोक
उनका अनुकरण करते हैं। वह क्षण अत्यंत मवस्मयकारी रहे होंगे, िब रािा ऋर्भदेव ने संसार, शरीर
और भोगों से मवरक्त होकर सवषप्रथम दीक्षा धारण की और वतषमान चौबीसी के तथा मदगम्बर मुमनयों
के प्रथम मुमन बने। श्री ऋर्भदेव के पूवष मकसी ने उस समय श्रमण-वृमि स्वीकार ही नहीं की थी।
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इसमलए प्रिािन श्रमण चयाष से सवषथा अनमभज्ञ थे। तत्कालीन प्रिािन ने अपने प्रिापमत को
मदगम्बर रूप में देखकर महावैराग्य का दशषन कर संसार की असारता की अनुभूमत का वेदन भी मकया
होगा। आनन्द मममश्रत मवस्मयामन्वत नयन समलल से अपने प्रिापमत के मदगम्बरत्व का अमभर्ेक कर
अपने को धन्य अवमय मकया होगा। स्वामी ने दीक्षा ली है , अतः उनका अनुकरण करना चामहए,
क्योंमक अपने मलए भी यही श्रेयस्कर है, यह मवचार कर इक्ष्वाकु, कुरु, उर्ग् और भोिवंशी चार हिार
रािाओ ं ने भी दीक्षा ले ली। ये लोग भी ऋर्भदेव के उच्च आदशष और उद्देमय से अनमभज्ञ थे। उस
समय इनमें त्याग, वैराग्य व संयम साधना की कोई मवशेर् अमभरुमच या ज्ञान हो ऐसा प्रतीत नहीं
होता। मकन्तु स्वामी के प्रमत भमक्त, प्रेम, दृढ़ मवश्वास और समपषण की उत्कट भावना ने उन्हें संप्रेररत
मकया और राज्य त्याग कर दीमक्षत हो गये। उस काल के मानवीय मन में मकतनी सहिता, सरलता
और आस्था थी मक के वल अपने रािा के प्रमत अनुराग, स्नेह व मवश्वास की भावना मक वे मिस पथ
पर बढ़ रहे हैं, वह मनश्चय ही कल्याणकारी पथ है। शरीर, सख ु , राज्यसिा पररवार की ममता आमद
को त्यागकर कठोर मदगम्बर िीवन चयाष स्वीकार कर लेना एक प्रेरणादायी र्टना है।
मद्वतीय प्रसंग है - दान। श्री मिनसेनाचायष ने महापुराण में बतलाया है मक - भगवान ने छह मास का
अनशन तप धारण कर मलया था। छह मास पयषन्त तप, ध्यान अनशन के उपरान्त िो साथ में चार
हिार रािा मुमन व्रत धारण मकये हुए थे, उनके कल्याण व परम्परा के मनवाषहन हेतु मुमन वृर्भदेव नगर
की ओर आहार चयाष हेतु मवहार करते हैं, वह कमषभूमम रूप युग का प्रारमम्भक समय था, प्रिािन
आहार-दान मवमध एवं पडगाहन मवमध से अनमभज्ञ थी। मुमनराि वृर्भदेव का आहार नहीं हुआ, वे
वन की ओर वामपस चले गये। उनके मलए तो िंगल में ही मंगल था। उनमें संहनन की अपार शमक्त
थी, िो सर्ं के ममु नयों में नहीं थी, वे र्ोर सयं म, तप के ताप को सहन नहीं कर सके । ममु नराि वर्ृ भदेव
उसी अंतराल के पश्चात आहार चयाष हेतु उठे ।
कुरुदेश के हमस्तनापुर नगर के पुण्य िागे मुमनराि वृर्भदेव र्ग्ामानुर्ग्ाम मवहार करते हुए हमस्तनापुर
नगर पधारे। उस समय वहााँ के रािा सोमप्रभ एवं रािा श्रेयांसकुमार थे। रािा श्रेयांसकुमार ने उसी
मदन रामत्र के मपछले प्रहर में पूवष सूचना रूप सात उिम स्वप्न देखे। ऊाँ चा सुमेरु पवषत, सुशोमभत
कल्पवक्षृ , के सरी मसहं , वर्ृ भ (बैल), सयू ष-चन्र, रत्नों से भरा समरु और अष्ट मगं ल समहत देव। मिनका
पुरोमहत ने कल्याणप्रद फल बतलाया। मंगल सूचक स्वप्न देखकर रािा श्रेयांसकुमार का मचि अमत
प्रसन्न हुआ।
मुमनराि वृर्भदेव ने हमस्तनापुर नगरी में प्रवेश मकया। ममु नराि के आगमन से आनमन्दत होकर चारों
ओर से नगरवामसयों के समहू दशषनाथष उमड पडे। उस समय प्रभु दशषन की उत्कण्ठा से अह मह ममका
भाव पवू षक नगरवामसयों का समदु ाय रािा श्रेयांस के महल तक एकमत्रत हो गया। ममु नराि वर्ृ भदेव
रािमहल के सामने पधार रहे हैं , यह िानकर ‘मसद्धाथष’ नामक द्वारपाल ने तत्काल ही िाकर रािा
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सोमप्रभ तथा रािा श्रेयांसकुमार को ममु नराि के आगमन का समाचार मनवेदन मकया। यह समाचार
सुनते ही रािा सोमप्रभ, श्रेयांसकुमार, लक्ष्मीमती तथा मंत्री आमद समहत रािमहल के प्रांगण में
आकर खडे हुए। मिस प्रकार मनशध और नील पवषतों के मध्य उन्नत सुमेरु पवषत शोभता है, उसी
प्रकार मुमनराि वृर्भदेव के िब रािा श्रेयांस ने दशषन मकये, तब उन्हें िामत स्मरण, िन्मान्तर की
स्मृमत प्राप्त हो गई। अतः पुरातन संस्कार के प्रभाव से आहार दान देने में बुमद्ध उत्पन्न हुई। उनको यह
स्मरण हो गया मक हमने चारण ऋमद्धधारी ममु न यगु ल को श्रीमती और वज्रिर्ं के रूप में आहार दान
मदया था। अतएव मदगम्बर मुमन की आहार मवमध एवं पडगाहन मवमध का स्मरण हो आया। मुमनराि
को आहार दान देने का उिम समय है। इस पुण्य स्मृमत की सहायता से श्रद्धा, शमक्त, भमक्त, मवज्ञान,
अक्षब्ु धता, क्षमा और त्याग इन सात गण ु ों समहत नवधाभमक्त पवू षक मवमधवत् पडगाहन कर पमवत्र
बुमद्धमान श्रेयांसकुमार ने इक्षुरस के कलशों को र्ग्हण कर मुमनराि वृर्भदेव के कर कमलों में इसका
आहार दान मदया।
कमषभूमम में एक ममु न को मदया गया यह प्रथम आहार था। कुमार श्रेयांस प्रथम दाता थे और भगवान
इस दान के प्रथम पात्र थे। हमस्तनापुर नगर भगवान को मदये आहार दान का प्रथम स्थान था, िहााँ 13
मास 9 मदन तप के बाद आहार हुआ। देवों ने उस समय आकाश में देव दुदं ु मभ बिाई। अहोदानं।
अहोदानं की र्ोर्णा कर भगवान की स्तुमत की। आचायष श्री हेमचंर ने कहा है – रार्शुक्ल तृतीयायां
दानमासीत् तदक्षयम।् वैशाख शुक्ल तृतीया को इस दान धमष की प्रवृमि हुई। यह दान अक्षय पद
प्रदाता तथा अक्षयकीमतष का मनममि बना। इस कारण वैशाख शुक्ल तृतीया के साथ अक्षय पद लग
गया। यह तृतीया असाधारण, अपूवष, अदृष्टपूवष तथा अश्रुतपूवष थी। प्रिा ने इसे पवष एवं मंगल मदवस
माना क्योंमक यह पवष सस ं ार में तप की ममहमा का प्रवतषक होने के साथ ही दान परम्परा का प्रवाह
प्रवमतषत करने वाला है। उिम दाता और उिम पात्र का अनुपम संयोग वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ।
दोनों ने अक्षय पद मुमक्त की प्रामप्त की। पात्र को मवमध पवू षक योग्य वस्तु उमचत काल में देने से महाफल
की प्रामप्त होती है। तत्त्वाथषसूत्रकार आचायष उमास्वामी मुमनराि ने कहा है मक - ‘मवमध रव्य दातृ पात्र
मवशेर्ात् तमद्धशेर्:। मवमध, रव्य, दाता तथा पात्र की मवशेर्ता से दान में मवशेर्ता होती है। पात्र
वर्ृ भदेव से भी पहले, दाता श्रेयांस सयं म की आराधना कर मक्त ु हुए। दाता और पात्र दोनों ही धमष के
रक्षक थे। दोनों ने मोक्षमागष की दो धाराओ ं को अिस्र बहने का मागष खोल मदया। मुमन धमष का रक्षक
श्रावक और श्रावक धमष का रक्षक मुमन है। श्री वृर्भदेव िी ने धमषतीथष की प्रमतस्थापना की तो रािा
श्रेयांस ने दान परम्परा का प्रवतषन मकया। अतएव कहा है मक -
तप के प्रथम प्रवतषक भगवान वर्ृ भदेव।
दान के प्रथम प्रवतषक श्रेयास
ं कुमार।।
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साधु और समाि दोनों एक गाडी के पमहये हैं। न धमों धाममषकै मबना। धमाषत्माओ ं के मबना धमष की
रक्षा नहीं हो सकती। तप और दान की आराधना करने वाला अक्षय पद प्राप्त कर सके गा। यही इस
पवष का संदेश है। इस र्टना को बीते बहुत काल हो गया, मकन्तु प्रमतवर्ष अक्षय ततृ ीया का मंगल
मदवस साधक की आत्मा को पुनः-पुनः प्रकाश प्रदान करता हुआ, सत्पात्र दान की ओर प्रेररत करता
है। प्रथम आहार का मंगल मदवस इतना पमवत्र शुभ माना िाता है मक मबना मुहूतष शोधे समस्त शुभ
कायष सम्पन्न मकये िाते हैं। इस मदन का प्रत्येक क्षण पावन, पमवत्र, शभ ु माना िाता है। इसे बोलचाल
की भार्ा में अखतीि भी कहते हैं। इस मदन मकया गया कायष कभी खमण्डत नहीं होता और मलया
गया व्रत कभी टूटता नहीं। इस मदन मवचार मकया गया प्रत्येक शुभ कायष पूणष होता है। यह एक
सवषमसद्ध योग है। इसमलए र्ग्ह प्रवेश, मववाह, व्यापार, व्रत आमद का शभ ु ारम्भ आि के मदन बहुत
होता है।
वैमदक सस्ं कृमत में िमदमग्न पत्रु परशरु ाम िी का िन्म अक्षय ततृ ीया के मदन हुआ, इसमलए यह मतमथ
पमवत्र पुण्य मतमथ मानी िाती है। सत्युग का प्रारम्भ कुछ लोग इसी मदन हुआ मानते हैं। अतएव यह
युगामद मतमथ है। भागवत् में अक्षय तृतीया के माहात्म्य के मवर्य में कहा है – वैशाखस्य तृतीयाश्च
पवू ष मवद्धां करोमत यः .... वैशाख शक्ु ल तृतीया के पवू ाषह्न में िो यज्ञ, दान, तप आमद पण्ु य कायष मकये
िाते हैं, उनका फल अक्षय होता है। ज्योमतर्ानुसार भी वैशाख शुक्ल तृतीया की मतमथ हिारों वर्ष में
आि तक क्षय मतमथ नहीं बनी। इसे अक्षय मतमथ कहा गया है।

वैशाख मासे रािेन्र। शक्ु ल पक्षे ततृ ीया का।


अक्षय सा मनमध प्रोक्ता कृमतका रोमहणी यतु ा।।
वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया अक्षय मतमथ है, इस पावन मतमथ को धमाषराधन समहत सानन्द मनाकर
िीवन को सफल बनायें, यही मंगल भावना है।
डााँ. श्रीमती अल्पना अशोक िैन
लमकर
ग्वामलयर (म.प्र.)

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िैन दशषन के 24 तीथंकरों में से प्रथम तीथंकर आमदनाथ को प्रथम आहार दान वैशाख सुदी
तीि को हुआ था. िैन मान्यतानस ु ार उसी मदन से अक्षय तृतीया पवष प्रमसद्ध हआ ु . इसके स्मरण
स्वरूप ईस्ट इमं डया कंपनी ने आहार दान कथानक के मचत्र के साथ 1616 में ₹1 का मसक्का िारी
मकया था.
िैन पुराणों के अनुसार आमदनाथ मिन्हें ऋर्भ भी कहा िाता है, ने ही अपने राज्य काल में
लोगों को १. अमस-शस्त्र मवद्या, २. ममस-पशुपालन, ३. कृमर्-खेती, वक्ष ृ , लता-बेल, आयुवेद, ४.
मवद्या-पढ़ना, मलखना, 5. वामणज्य-व्यापार, वामणज्य, ६. मशल्प-सभी प्रकार के कलाकारी कायष
मसखाये.
बाद में अपने पुत्र भरत को राज्य सौंप कर उन्होंने मनर्ग्षन्थ दीक्षा धारण कर ली. उस समय
उनके साथ अनेक रािाओ ं ने भी दीक्षा ली थी. आमदनाथ ने प्रारंभ में छह मास तप मकया मफर आहार
दान मवमध कै सी हो ? इसके उपदेश हेतु वे स्वयं आहार लेने को नगरों, र्ग्ामों में गए. मकन्तु लोगों को
िैन श्रमण को आहार देने की मवमध ज्ञात नहीं थी इस कारण भगवान को धन, कन्या, पैसा, सवारी
आमद अनेक वस्तुएं भेंट की. आमदनाथ मुमनराि ने यह सब अंतराय का कारण िानकर पुनः वन में
िाकर तपश्चरण धारण कर मलया.
अवमध पूणष होने के बाद पारणा करने के मलए इयाष पथ शुमद्ध करते हुए हमस्तनापुर नगर में
पधारे. उन्हें आहार के मलए आते हुए देखकर सोम रािा के भाई श्रेयांस को पूवष भव में मदए मुमनराि
को आहार दान का स्मरण हो आया. अतः आहार दान की समस्त मवमध िानकर श्री ऋर्भदेव
भगवान को तीन प्रदमक्षणा देकर पडगाहन मकया व भोिन गृह में ले गए. ऐसा दाता श्रेयांस रािा
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और उनकी धमषपत्नी समु मत देवी व ज्येष्ठ बध
ं ु सौम प्रभ रािा अपनी लक्ष्मीपमत आमद ने ममलकर श्री
भगवान ऋर्भदेव को स्वणष कलशों द्वारा इक्षुरस (गन्ना के रस) का आहार मदया. इस प्रकार भगवान

ऋर्भदेव की आहार चयाष मनरंतराय सपं न्न हुई. इस कारण उसी वक्त स्वगष के देवों ने अत्यतं हमर्षत
होकर पंचाश्चयष १. रत्नवृमष्ट, २. गंदोधक वृमष्ट ३. देवदुदं ु भी ४. बािों का बिना व ५. िय-ियकार
शब्द मकये. सभी ने ममलकर अत्यंत प्रसन्नता मनाई.
आहार चयाष करके वापस िाते हुए ऋर्भदेव भगवान ने सब दाताओ ं को अक्षय दानस्तू
अथाषत् दान इसी प्रकार कायम रहे, इस आशय का आशीवाषद मदया. यह वैशाख सुदी तीि को संपन्न
हुआ था. उसी समय से अक्षय तीि नाम का पुण्य मदवस (िैन धमष के अनुसार) का शुभारंभ हुआ.
इस को आखा तीि भी कहते हैं. यह मदन महंदू धमष महंदू धमष में भी बहुत पमवत्र माना िाता है. भारत
के मवमभन्न प्रांतों में अक्षय तृतीया पवष अलग-अलग तरह से मनाया िाता है.

डॉ. महेंर कुमार िैन ‘मनुि’


इदं ौर
मध्य प्रदेश.

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भारतीय संस्कृमत में पवष, त्याहारों और व्रतों का अपना एक अलग महत्व है। ये हमें हमारी
सांस्कृमतक परंपरा से िहां िोडते हैं वहीं हमारे आत्मकल्याण में भी कायषकारी होते हैं। वैशाख शुक्ला
ततृ ीया को अक्षय ततृ ीया पवष मनाया िाता है। इस मदन िैनधमष के प्रथम तीथंकर ऋर्भदेव
(आमदनाथ ) ने रािा श्रेयांस के यहां इक्षु रस का आहार मलया था, मिस मदन तीथंकर ऋर्भदेव का
आहार हुआ था, उस मदन वैशाख शुक्ला तृतीया थी। उस मदन रािा श्रेयांस के यहां भोिन, अक्षीण
(कभी खत्म न होने वाला ) हो गया था। अतः आि भी लोग इसे अक्षय तृतीया कहते हैं।
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िैनधमष के अनस ु ार भरत क्षेत्र में इसी मदन से आहार दान की परम्परा शरू
ु हुई। ऐसी मान्यता
है मक मुमन का आहार देने वाला इसी पयाषय से या तीसरी पयाषय से मोक्ष प्राप्त करता है। रािा श्रेयांस
ने भगवान आमदनाथ को आहारदान देकर अक्षय पुण्य प्राप्त मकया था, अतः यह मतमथ अक्षय तृतीया
के रूप में मानी िाती है। यह मदन बहुत ही शुभ होता है, इस मदन मबना मुहषूत मनकाले शुभ कायष संपन्न
होते हैं।
िम्बद्वू ीप के भरतक्षेत्र में मवियाधष पवषत से दमक्षण की ओर मध्य आयषखण्ड में कुलकरों में
अंमतम कुलकर नामभराि हुए। उनके मरूदेवी नाम की पट्टरानी थी। रानी के गभष में िब िैनधमष के
प्रथम तीथंकर ऋर्भदेव आये तब गभषकल्याणक उत्सव देवों ने बडेे़ ठाठ से मनाया और िन्म होने
पर िन्म कल्याणक मनाया। मफर दीक्षा कल्याणक होने के बाद ऋर्भदेव ने छःमाह तक र्ोर तपस्या
की। छः माह के बाद चयाष (आहार) मवमध के मलए ऋर्भदेव भगवान ने अनेक र्ग्ाम नगर शहर में
मवहार मकया, मकन्तु िनता व रािा लोगों को आहार की मवमध मालमू न होने के कारण भगवान को
धन, कन्या, पैसा, सवारी आमद अनेक वस्तु भेंट की। भगवान ने यह सब अंतराय का कारण िानकर
पुनः वन में पहुंच छःमाह की तपश्चरण योग धारण कर मलया।
अवमध पण ू ष होने के बाद पारणा करने के मलए चयाष मागष से ईयाषपथ शमु द्ध करते हुए र्ग्ाम, नगर
में भ्रमण करते-करते कुरूिांगल नामक देश में पधारे। वहां हमस्तनापुर में कुरूवंश के मशरोममण
महाराि सोम राज्य करते थे। उनके श्रेयांस नाम का एक भाई था उसने सवाषथषमसमद्ध नामक स्थान से
चयकर यहां िन्म मलया था।
एक मदन रामत्र के समय सोते हुए उसे रामत्र के आमखरी भाग में कुछ स्वप्न आये। उन स्वप्नों
में
1.मंमदर,
2.कल्पवृक्ष,
3.मसंह,
4.वृर्भ,
5.चंर,
6.सूयष,
7.समुर,
8.आग,
9.मंगल रव्य.
यह अपने रािमहल के समक्ष मस्थत हैं ऐसा उस स्वप्न में देखा तदनतं र प्रभात बेला में उठकर
उक्त स्वप्न अपने िेष्ठ भ्राता से कहे, तब ज्येष्ठ भ्राता सोमप्रभ ने अपने मवद्वान पुरोमहत को बुलाकर
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स्वप्नों का फल पछ ू ा। परु ोमहत ने िबाव मदया- हे रािन ! आपके र्र श्री ऋर्भदेव भगवान पारणा
के मलए पधारेंगे, इससे सबको आनंद हुआ।
इधर भगवान ऋर्भदेव आहार (भोिन) हेतु ईयाष समममतपूवषक भ्रमण करते हुए उस नगर के
रािमहल के सामने पधारे तब मसद्धाथष नाम का कल्पवृक्ष की मानो अपने सामने आया है, ऐसा
सबको भास हुआ। रािा श्रेयांस को भगवान ऋर्भदेव का श्रीमुख देखते ही उसी क्षण अपने पूवषभव
में श्रीमती वज्रसर्ं की अवस्था में एक सरोवर के मकनारे दो चारण ऋमद्धधारी ममु नयों को आहार मदया
था-उसका िामत स्मरण हो गया। अतः आहारदान की समस्त मवमध िानकर श्री ऋर्भदेव भगवान
को तीन प्रदमक्षणा देकर पडगाहन मकया व भोिन गृह में ले गये।
‘प्रथम दान मवमध कताष’ ऐसा वह दाता श्रेयांस रािा और उनकी धमषपत्नी समु तीदेवी व ज्येष्ठ
बंधु सोमप्रभ रािा अपनी लक्ष्मीपती आमद ने ममलकर श्री भगवान ऋर्भदेव को सवु णष कलशों द्वारा
तीन खण्डी (बगं ाली तोल) इक्षरु स (गन्ना का रस) तो अि ं ल
ु में होकर मनकल गया और दो खण्डी रस
पेट में गया।
इस प्रकार भगवान ऋर्भदेव की आहारचयाष मनरन्तराय संपन्न हुई। इस कारण उसी वक्त स्वगष
के देवों ने अत्यतं हमर्षत होकर पच ं ाश्चयष हुए
१. रत्नवृमष्ट,
२. गंधोदक वृमष्ट,
३. देव दुदमभ,
४. बािों का बिना व
५. िय-ियकार शब्द होना और सभी ने ममलकर अत्यतं प्रसन्नता मनाई।
आहारचयाष करके वापस िाते हुए ऋर्भदेव भगवान ने सब दाताओ ं को ‘ दानस्तु’ अथाषत्
दान इसी प्रकार कायम रहे, इस आशय का आशीवाषद मदया, यह आहार वैशाख सुदी तीि को सम्पन्न
हुआ था।
िब ऋर्भदेव मनरंतराय आहार करके वापस मवहार कर गए उसी समय से अक्षय तीि नाम
का पण्ु य मदवस (िैनधमष के अनस ु ार) का शभ ु ारभ
ं हुआ। इसको आखा तीि भी कहते हैं। यह मदन
महन्दू धमष में भी बहुत पमवत्र माना िाता है। इस मदन अनबूझा मुहषूत मानकर शादी, मववाह एवं
मंगलकायष प्रचुर मात्रा में होते हैं।
िैनधमष में दान का प्रवतषन इसी मतमथ से माना िाता है , क्योंमक इससे पूवष दान की मवमध
मकसी को मालूम नहीं थी। अतः अक्षय तृतीया के इस पावन पवष को देश भर के िैन श्रद्धालु
हर्ोल्लास व अपवू ष श्रद्धा भमक्त से मनाते हैं। इस मदन हमस्तनापरु में भी मवशाल आयोिन मकया िाता
है। इस मदन व्रत, उपवास रखकर इस पवष के प्रमत अपनी प्रगाढ आस्था मदखाते हैं।
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अक्षय ततृ ीया व्रत, मवमध एवं मंत्र:-
यह व्रत िैन परम्परा के अनुसार वैशाख सुदी तीि से प्रारम्भ होता है। उस मदन शुद्धतापूवषक
एकाशन करें या 2 उपवास या 3 एकाशन करें। इसकी मवमध यह है मक व्रत की अवमध में प्रातः नैमत्यक
मिया से मनवृि होकर ममं दर िी को िावें। मंमदर िी में िाकर शुद्ध भावों से भगवान की दशषन स्तुमत
करें। पश्चात् भगवान ऋर्भदेव की प्रमतमा को मसंहासन पर मवरािमान कर कलशामभर्ेक करें। मनत्य
मनयम पूिा भगवान आमद तीथंकर (ऋर्भदेव) की पूिा एवं पंचकल्याणक का मण्डल िी मंडवाकर
मण्डल िी की पूिा करें। तीनों काल (प्रातः, मध्यान्ह, सांय) मनम्नमलमखत मत्रं िाप्य करें एवं
सामामयक करें-
मंत्र – ओम् ह्ीं श्रीं क्लीं अहं श्री आमदनाथतीथंकराय नमः स्वाहा।
प्रातः सांय णमोकार मत्रं का शद्धु ोच्चारण करते हुए िाप्य करें।
व्रत के समय में गृहामद समस्त मियाओ ं से दूर रहकर स्वाध्याय, भिन, कीतषन आमद में समय
यापन करें। मदन भर मिन चैत्यालय में ही रहें। व्रत अवमध में ब्रह्ाचयष से रहें। महंसा, झूठ, चोरी, कुशील
और पररर्ग्ह इन पांच पापों का अणुव्रत रूप से त्याग करें। िोध, मान, माया, लोभ कर्ायों को शमन
करें।
व्रत पणू ष होने पर यथाशमक्त उद्यापन करें । भगवान ऋर्भदेव की प्रमतमा ममं दरिी में भेंट करें
तथा ममु न, आमयषका, श्रावक, श्रामवका चतुमवषध संर् को चार प्रकार का दान देवें। इस प्रकार
शुद्धतापूवषक मवमधवत रूप से व्रत करने से सवष सुख की प्रामप्त होती है तथा साथ ही िम से अक्षय
सुख अथाषत् मोक्ष की प्रामप्त होती है।

डॉ. सुनील िैन ‘सचं य’


मुमन भक्त एवं िैन मवद्वान्
लमलतपुर 284403
(उ. प्र.)

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मसहं , सअ
ु र, बदं र और नेवला के पवू षभव और अनमु ोदना का फल

रािा बज्र िंर् और रानी श्री ममत ने अपने ही 48 युगल (96) पुत्रों में से अंमतम युगल पुत्रों
को मिन्हें चारण ऋमद्ध प्राप्त हुई थी, िंगल में आहार मदया और पंचाश्चयष प्राप्त मकये । आहार के पश्चात
रािा को उनके कंचुकी ने बताया मक यह आपके ही सबसे छोटे युगल पुत्र हैं। रािा बज्रिर्ं ने बडे
आश्चयष से उन मुमनराि से पूछा मक ये नकुल (नेवला) मसंह, बानर और शूकर चारों िीव आपके मुख
कमल की और एकटक दृमष्ट क्यो लगाये हुए हैं ? और मनभषय होकर बैठे हुए हैं। तब वह चारण ऋमद्ध
धारक ऋमर्राि बोले हे रािन सुनो –

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वैमयपुत्र मसंह कै से बना ?
यह मसहं का िीव पूवषभव में इसी देश में हमस्तनापुर नगर में उर्ग्सेन नाम का वैमय पुत्र था ।
यह स्वभाव से अत्यतं िोधी था । इस अज्ञानी ने पृथ्वी भेद के समान अप्रत्याख्यानावरण िोध
(कर्ाय) के मनममि से मतयषन्च आयु का बध ं कर मलया। एक मदन इस दुष्ट वैमय ने रािा के भन्डार-
रक्षकों को र्ुडकाकर वहााँ से बलपूवषक बहुत सा र्ी एवं चावल आमद सामर्ग्ी मनकालकर वेमयाओ ं
को दे मदया | रािा ने िब यह समाचार सुना तो रािा ने इस उर्ग्सेन वैमय को बंधवाकर बहुत मार
लगवाई, मिससे वह तीव्र वेदना से मरकर व्याघ्र हुआ |
राि पत्रु सक
ु र कै से बना ?
हे रािन् ! यह सूकर पूवषभव में मविय नामक नगर में हरी वाहन नाम का राि पुत्र था। वह
अप्रत्याख्यानावरण मान के उदय से हड्डी के समान मान (कर्ाय) को धारण करता था इसमलए वह
माता-मपता आमद, गुरुिनो को भी अपमामनत करता था, उनकी मवनय नहीं करता था। एक मदन वह
माता-मपता का अनुशासन नहीं मानता हुआ दौडा िा रहा था मक पत्थर से टकराकर उसका मसर फूट
गया और मरकर सअ ु र हुआ !
वमणक पत्रु वानर कै से बना ?
हे रािन! यह वानर पूवष भव में धन्यपुर नगर में नागदत नाम का वमणक पुत्र था | वह मेडे के
सींग के समान अप्रत्याख्यानावरण माया कर्ाय धारण करता था। एक मदन इसकी माता नागदि की
छोटी बमहन के मववाह के मलए अपनी ही (यानी पुत्र की) दुकान से सामान ले रही थी । नागदत उसे
(मााँ को) सामर्ग्ी का मूल्य लेकर ठगना चाहता था, परन्तु मकस प्रकार ठगना चामहए ? इसका उपाय
वह नहीं िानता था, इसी उधेबनु में अचानक आतष ध्यान से मरा और मतयषन्च आयु का बध ं कर बानर
पयाषय को प्राप्त हुआ है.
एक हलवाई नेवला कै से बना ?
हे रािन ! यह नकुल (नेवला) इसी सप्रु मतमष्ठत नगर में लोलप नाम का हलवाई था । वह धन
का बडा लोभी था। मकसी समय वहााँ का रािा मिन ममं दर बनवा रहा था उसके मलए वह मिदुरों से
ईटेंं बुलवाता था । परन्तु वह हलवाई मिदुरों को कुछ खाने की वस्तु देकर मछपकर कुछ ईटें अपने
र्र डलवा लेता था । ईटोंं को फोडने पर उनमें से कुछ में स्वणष मनकला तो उसका लोभ और बढ़ गया।
एक मदन उसे अपनी पुत्री के गााँव िाना पडा । सो वह अपने पुत्र को यह कहकर मक मिदुरों को कुछ
भोिन देकर ईटोंं को डलवा लेना लेमकन पत्रु ने रािा की चोरी िानकर पत्रु ने नहीं डलवाई | िब वह
लौटकर र्र आया तो पुत्र द्वारा ईटें न डलवाने पर बहुत कुमपत हुआ ! उस मूखष ने लकडी तथा पत्थरों
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से पत्रु का मसर फोड मदया और उस दुख से दुखी होकर अपने पैर कुल्हाडी से काट डालें मक मैं क्यो
बाहर गााँव गया। िब रािा को यह समाचार ममला तो रािा ने उसे मृत्यु-दण्ड मदया और वह
अप्रत्याख्यानावरण कर्ाय लोभ के उदय से मरकर नेवला की पयाषय को प्राप्त हुआ ।
हे रािन् | आपके दान को देखकर ये चारों परम हर्ष को प्राप्त हुए हैं और चारों को िामतस्मरण
हो गया है। इस प्रकार प्रीमतंकर आचायष के वचनों को प्रमाण मानते हुए आयष ब्रििर्ं और श्रीममत ने
सम्यक् दशषन धारण मकया तथा मसहं , सक ु र, वानर और नेवले के िीव भी सम्यक दशषन रूपी अमतृ
को प्राप्त हुए। मिन्होंने हर्ष पूवषक अपने मनोरथ की मसमद्ध को प्रकट मकया है, ऐसे दोनों दम्पमत को
आशीवाषद देते हुए दोनों मुमनराि धमष प्रेम से बार २ स्पशष कर रहे थे । मुमनराि प्रीमतंकर के क्षणभर के
स्पशष से ब्रििर्ं का िीव िन्मान्तर के प्रेम से बहुत सतं ष्टु हो गया ।

दान की अनुमोदना का फल
मसंह की पयाषय का िीव : भरतेश बनें
सुकर की पयाषय का िीव : बाहुबली बनें
वानर की पयाषय का िीव : वृर्भसेन बनें
नेवला की पयाषय का िीव : अनन्तवीयष बनें
मदगम्बराचायष श्रमण श्री १०८ मवशुद्ध सागरिी
महाराि के धमष प्रभावक सुयोग्य मशष्ट्य श्रमण
श्री १०८ मनोज्ञ सागर िी मुमन महाराि के
आशीवाषद समहत ज्ञान से प्रेरणा पाकर लेखन.

प्रस्तुमत :
श्रीमती मंिू पी. के . िैन
न्यास सदस्य ( रस्टी )
नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.) मुंबई.
ठाणे, मबुं ई, भारत.
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िैन धमष अनामद काल से चला आ रहा है और अनन्त काल तक प्रवमतषत रहेगा । यह िरूर है
मक समय के उतार-चढ़ाव के कारण िैन धमष भी प्रभामवत होता रहा है, मकन्तु ऐसा भी काल रहा िब
िैन धमष का डंका बिा करता था । कै सा भी समय रहा हो, कै सी भी पररमस्थमतयााँ रही हों मकन्तु िैन
धमष की तथा िैनाचायों की यह मवशेर्ता रही है मक उन्होंने कभी भी अपने मूल-मसद्धान्तों तथा
शद्धु ाचरण के साथ समझौता नहीं मकया । मवश्वशामन्त मलए कै सा िीवन िीना चामहए इसका साक्षात्
उदाहरण िैन समुदाय है ।िैन धमष की नीमत पूरे मवश्व के मलए प्रेरणास्रोत रही है । देश में आि भी कई
महन्दू तीथष ऐसे हैं िो मूलतः िैनों के थे । आि भी मकतने ही स्थानों पर अमधकारों लेख का हनन हो
िाता है; मकन्तु िैन उसके मलए अमहस ं क आन्दोलन ही करते हैं । मौन िुलूस, कहीं कोई उपवास
करतें है,िैन धमष एक मवशुद्ध महान् आध्यामत्मक धमष है ।
आि भी मदगम्बर िैन ममु न परू े भारत में नगं े पैर पैदल भ्रमण करते हैं तथा अमहस
ं ा, दया, मैत्री,
करुणा, शाकाहार, शामन्त का सन्देश समझाने गााँव-गााँव में, नगर-नगर में फै लाते हैं । इन सभी सद्-
संस्कारों के पीछे िैन धमष के सभी तीथंकरों की वे महान् मशक्षायें हैं िो आि भी मकसी न मकसी रूप
में पालन की िा रही हैं । तीथंकरों ने िीवों को कोरा उपदेश नहीं मदया बमल्क आचरण में लाकर
प्रेरणा दी , िैन धमष अमहंसा प्रधान धमष है । प्राय: यह सबको मवमदत ही है मक रागामदक भावों का
होना महंसा है और इन रागामदक भावों का न होना अमहंसा है ।
भारतीय वसुंधरा पर सदा से भोग की नहीं योग की, सर्ग्ं ह की नहीं त्याग की पूिा हुई है ।
भारत भूमम वह भूमम है िहााँ रत्न तो मनकलते ही हैं पर इस भूमम पर साधु भी िन्म लेते हैं, शायद
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इसीमलए मनीमर्यों ने भारतीय वसन्ु धरा को रत्नगभाष के साथ-साथ साधगु भाष भी कहा है । यगु के
आमद में िहााँ भगवान् आमदनाथ ने तीन लोक की श्रेष्ठ सम्पदा को तृण के समान त्याग मदया था, तो
महावीर ने भी रािमतलक को अस्वीकार कर त्याग के ही मागष को श्रे ष्ठ समझा था । आइयेहोता अब
िानने का प्रयास करते हैं मक अक्षय तृतीया क्या हैं और िैन धमष में इसका क्या महत्व है . उसके
पालन से, भावना भाने से उसका फल क्या होता हैं ?
िैनदशषन में पहला पवष अक्षय ततृ ीया माना िाता है, मिस मदन ममु न वर्ृ भसागर िी ने 1 वर्ष
1 माह 9 मदन बाद रािा श्रेयांस के यहााँ इक्षुरस का आहार मलया था । रस का मूल्य कुछ नही, यह
नवधा भमक्तका प्रभाव था । इसमलए वैशाख शुक्ल तृतीया के मदन हम सब 'अक्षयततृ ीया' पवष मनाते
है । रािा श्रेयांस और सोमप्रभ दान मशरोममण पण्ु यवान नर-रत्न कहलाने लगे। उन्होंने महान आत्मा
के संपकष से अवणषनीय फलदान के पात्र बन गये । इस दान की अनुमोदना द्वारा बहुत लोगोंने पुण्यका
भण्डार भर मलया था । िैसे स्फमटक मणी उत्कृष्ट रत्नके सपं कष को प्राप्त करके उस रत्नकी कांमत को
प्राप्त करता है । सत्पात्र को दान देनेसे अपने पूवोपामिषत पाप को नष्ट कर सकते है । िैसे श्री समतं भर
आचायष श्रावकाचारमें मलखते हैं ।

'अमतथीनां प्रमतपि
ू ा रुमधरमलं धावते वारर ॥'
गहृ स्थ श्रेष्ठ तप नही कर सकता लेमकन रत्नत्रय पररपालनमें शरीर रक्षणाथष आहारदान देकर
महाव्रतीका सहायक बनता है । र्टकमों से अमिषत पाप धुल िाता है, अक्षय का अथष होता है “िो
कभी खत्म ना हो” और इसीमलए ऐसा कहा िाता है, मक अक्षय तृतीया वह मतमथ है मिसमें सौभाग्य
और शभ ु फल का कभी क्षय नहीं होता, अक्षय तृतीया या आखा तीि वैशाख मास में शक्ु ल पक्ष
की तृतीया मतमथ को कहते हैं ।

श्रीमती कीमतष पवन िैन


मदल्ली प्रदेशाध्यक्षा
नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.)
संचामलका नमोस्तु शासन सेवा समममत संचामलत पाठशाला

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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.

अक्षय ततृ ीया भारतीय सस्ं कृमत का एक ऐसा पवष है मिसे महदं ू और िैन धमष के लोग मकसी
भी शुभ कायष करने के मलये बहुत ही खास मानते हैं।
वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया मतमथ को ही अक्षय तृतीया कहा िाता है। माना िाता
है मक िैन संस्कृमत में श्रमण युग का प्रारंभ इसी मदन हुआ था और इसी मदन से ही लोगों में पहली
बार दान करने और आहार देने की परम्परा मवकमसत हुई इसमलये इस मदन मकये गये दान का पुण्य
हमें अनेक भवों तक फल देता है।
इस मदन से ही पहली बार लोगों ने अच्छे और बुरे कमों के महत्व को समझा और कमष बंध
के क्या पररणाम होते हैं यह भी िानने को ममला। कमष बंध तीथंकर मुमनयों पर भी समय आने पर
अपना प्रभाव डालते हैं यह भी हमें भगवान आमदनाथ से िुडी इस र्टना से पता चलता है।
कहा िाता है मक भगवान आमदनाथ िब छह महीने की कठोर तपस्या के बाद मवहार करते
हुए हमस्तनापरु आये तब उन्हें छह महीने तक आहार मवमध नहीं ममली और ऐसा इसमलये हुआ क्योंमक
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उनके मकसी पवू षकृत कमष के कारण बैल को लबं े समय तक भख ू ा रहना पडा था और भगवान का
वही कमष अब उनके आडे आ गया और वो छह महीने तक आहार से वंमचत रहे।
एक मदन अचानक हमस्तनापुर के रािा श्रेयांस को रामत्र को एक स्वप्न मदखा मिसमें उन्हें
अपने मपछले भव के मुमन को आहार देने की चयाष का स्मरण हो गया और उन्होंने अगले मदन इक्षु रस
से प्रथम तीथंकर मुमन भगवान आमदनाथ को आहार मदया। इस कारण ही यह मदन इमतहास में इक्षु
ततृ ीया व अक्षय ततृ ीया के नाम से मवख्यात हो गया। तीथंकर ममु न को आहार देने से रािा श्रेयास ं
की रसोई में भोिन अक्षीण/अक्षय हो गया था और उन्हें अक्षय पुण्य प्राप्त हुआ था। इस कारण भी
यह मदन अक्षय तृतीया के नाम से िाना िाता है। इसी के साथ रािा भरत ने संपूणष भारत में भोिन
के दान की अनमु ोदना की व रािा श्रेयांस को दानतीथष प्रवतषक की सज्ञं ा ममली।
यह मदन इस मायने में भी मवशेर् है मक श्वेताम्बर परंपरा में इस मदन पारायण कर एक वर्ष का
व्रत समाप्त करते हैं। यह व्रत कामतषक मास के कृष्ट्ण पक्ष की अष्टमी मतमथ से शरू
ु होता है और वैशाख
मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तक चलता है। इस मदन तीथंकर मुमन ने एक वर्ष से भी ज्यादा समय
तक मनराहार कठोर तप कर प्रथम बार आहार मकया इसमलये इसे िैन धमष में वर्ी तप की संज्ञा भी
दी गयी है।
अक्षय ततृ ीया एक ऐसा पवष है मिस मदन हम अपने अच्छे कायों के द्वारा हमारी आत्मा को शुद्ध
और पमवत्र बना कर मोक्ष की ओर अर्ग्सर हो सकते हैं।

श्रीमती स्वाती िैन


हैदराबाद,
तेलंगाना.

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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
नोट : इस लेख की लेमखका श्रीमती सौम्या गौतम िैन, मबुं ई से ही हैं और मवशेर्ता यह है मक इस
लेख के साथ प्रकामशत मनम्न मचत्रकला भी उन्ही के द्वारा बनाई गयी हैं. इससे मचत्र के माध्यम से भी
उनके मनोभावों को िाना िा सकता हैं. यह उनका प्रथम प्रयास हैं नमोस्तु मचंतन में. नमोस्तु मचंतन
एवं नमोस्तु शासन सेवा समममत पररवार उनका स्वागत करता हैं और वे आगे भी अपने लेख को
भेिते रहेंगे मचत्र के साथ यही शुभ कामनाएं प्रेमर्त करता हैं. : पी. के . िैन ‘प्रदीप’, प्रधान संपादक.

अक्षय तृतीया िैन शासन की तीथष परंपरा का ममु नराि आमदनाथ की आहार मिया का प्रथम
पडे़गाहन मदवस है ।िैन शासन के वतषमान चौबीसी के प्रथम तीथंकर भगवान आमदनाथ को भगवान
ऋर्भदेव भी कहते हैं ।इस भरत क्षेत्र के तीसरे काल खडं के मपछले भाग में िब भोग भूमम का लोप
और कमषभूमम का सृिन हो रहा था तब इस मवमध मवधान में मवदेह क्षेत्र से मनुष्ट्य की आयु कमष
बांधकर चौदह कुलकरों में एक, क्षामयक सम्यत्व प्राप्त करके यहां भोग भमू म में अवतररत हुए, रािा
नामभ राय एवं माता मरु देवी के गभष से बालक ऋर्भदेव का िन्म हुआ । िन्म से 6 माह पूवष से ही
आकाश से रत्न वृमष्ट एवं देवों ने मंगल गान कर अयोध्या नगरी में िन्मोत्सव के महा उत्सव की
तैयारी की और मतथी चैत कृष्ट्णा नवमी के सप्रु भात में माता मरु देवी के बालक ऋर्भदेव का िन्म
हुआ । भगवान के िन्म के बाद अयोध्या नगरी में अनेक चमत्कारी र्टनाएं हुई ,मंगल गान हुए ,रत्न
वर्ाष हुई। ऐरावत हाथी पर बैठे सौधमष इरं ने बालक तीथंकर को गोद में मलया और पांडुक वन में
स्फमटक ममण की पांडुक मशला पर िहां पर तीथंकरों का िन्म अमभर्ेक होता है , इरं ने स्वणष कलशों
से अमभर्ेक मकया।
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बालक ऋर्भ कुमार अनेक प्रमतभाओ ं के धनी, महा प्रतापी, मनोहर दृमष्ट, आकर्षक
मुखाकृमत की साक्षात प्रमतमूमतष थे और िन्म से ही ममत, श्रुमत एवं अवमध ज्ञान के धारी थे । युवावस्था
में प्रवेश करते ही बालक ऋर्भ कुमार का मववाह हुआ और भरत समहत 100 पुत्र हुए । भगवान
आमदनाथ की आयु 84 लाख पूवष की थी । चतुथष काल की प्रारंमभक बेला में उन्होंने िन-िन को
अवमध ज्ञान का एवं कमषभूमम (अमस-ममस-कृमर्) का ज्ञान मदया । इस प्रकार िब समय आया तब
इरं को भगवान के वैराग्य की मचंता हुई और भगवान ऋर्भदेव की सभा में नीलाि ं ना के नत्ृ य का
आयोिन मकया मिसकी मृत्यु का समय पूवष से मनयोमित था लेमकन भरी सभा में नीलांिना का
नृत्य करते हुए आकमस्मक मत्ृ यु हो गई और भगवान ऋर्भदेव को वैराग्य हो गया । मवरागी ऋर्भदेव
रािपाट छोडकर समस्त वैभव को त्याग कर मदगबं र ममु न हुए और वीतराग स्वरूप धारण मकया ।
तप कल्याणक की भूममका में िन-िन को उपदेश मदया । दीक्षा धारण कर 6 माह का उपवास की
प्रमतज्ञा लेकर मौन पवू षक मस्थर हुए और र्ोर तपस्या करके चार ज्ञान का असाधारण सपं ण ू ष ज्ञान प्राप्त
मकया । ध्यान योग समाप्त हुआ और मुमनराि ने आहार चयाष हेतु नगर-नगर भ्रमण मकया परंतु िन-
िन भमक्त भाव से नमन तो करते परंतु आहार मिया का ज्ञानाभाव एवं मुमनराि के मौन व्रत के कारण
आहार मिया योग दूर-दूर तक न था । िब ममु नराि हमस्तनापरु नगर में पहुच ं े तब वहां के रािा श्रेयास ं
कुमार को (उनके पूवष संस्कार के प्रताप से श्रीमती के रूप में आहार मदया था) ममु नराि को आहार
देने की बुमद्ध प्रकट हुई और उन्होंने मुमनराि का अपने महल में प्रथम पडे़गाहन मकया । मुमनराि ने
छह माह के उपवास के बाद हमस्तनापुर नगर के रािा श्रेयांस कुमार के पुण्य उदय से इक्षरु स अथाषत्
गन्ने के रस से प्रथम आहार र्ग्हण मकया । उस समय देवो ने प्रसन्न होकर आकाश से रत्न वृमष्ट की
। यही आमदनाथ ममु नराि को आगे चलकर मोक्ष की प्रामप्त हुई और वतषमान चौबीसी के प्रथम
तीथंकर आमदनाथ भगवान बने । इस प्रकार मोक्षमागी मुमनराि को आहार दान देने और इस तीथष
चौबीसी में दान की परंपरा का आरंभ हुआ । रािा श्रेयांस ने नवधा भमक्त, श्रद्धा भमक्त और 7 गुणों
समहत दान मकया । अतः िो मोक्ष के साधक धमष गुरुओ ं के प्रमत आदर पूवषक नवधा भमक्त एवं श्रद्धा
समहत दान देता है उसका मोक्ष का मागष प्रशस्त होता है ।ऐसे आहार दान की परंपरा को प्रारंभ करने
वाले पावन पवष अक्षय ततृ ीया को श्रद्धा भाव से मेरा शत शत नमन।

श्रीमती सौम्या गौतम िैन,


मुंबई.

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Madhubani Art (or Mithila painting) is


a style of Indian painting, practiced in
the Mithila region of India and Nepal.
It was named after Madhubani District
of Bihar, India which is where it is
originated. This painting is done with
various tools, such as fingers, twigs,
brushes, nib-pens, and matchsticks
and using natural dyes and pigments.
It is characterised by its eye-catching
geometrical patterns.
This time I have made the
symbol of 18th tirthankar -
ARAHNATH JI - Meen (fish)

बच्चों में संस्कार बचपन से ही मदए िाते हैं. इसका एक


और उदहारण इदं ौर के अनन्य गरुु भक्त पररवार श्री टी.के .वेद एवं
श्रीमती मंिू वेद की सुपत्रु ी श्रीमती मप्रयंका महतेश िैन ने
फ्लोररडा, अमेररका से मदया हैं.
आप पूज्य गुरुदेव की अनन्य भक्त है. अमेररका में
साफ्टवेयर इि ं ीमनयर हैं एवं िैन सेंटर ऑफ़ साउथ फ्लोररडा में
धाममषक मशक्षा टीम की सदस्य हैं. आपने गुरुदेव के अनेकों देशना
र्ग्थ
ं ों के प्रकाशन में सहभामगता की है | हम सभी को ऐसे यवु ाओ ं
एवं युवमतयों पर गवष हैं और यही मवश्वास है मक वे नमोस्तु शासन
को सदैव ियवंत करते रहेंगे.
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मॉडनष आटष की इम्प्रे शमनस्ट पें मटंग
Passion
Our Four passion can
be culminated by
religious thoughtfulness
of the mind.
कर्ाय
धमष प्रभावना से व्यमक्तत्व
मचि को हीरे के समान
उज्िवमलत कर सकता है
और चारों कर्ायों – िोध,
मान, माया, लोभ का नाश
कर सकता है.

िैन धमष के मसद्धांत आि पण ू ष मवश्व की अनेक


समस्याओ ं का समाधान करने में सहायक हो सकते हैं,
भारत-अमेररका मनवासी िाने माने मचत्रकार श्री योगेन्र
िी सेठी, इदं ौर ने िैन दशषन एवं मसद्धांतो को मॉडनष आटष
की इम्प्रेशमनस्ट पेंमटंग मवधा में खूबसूरती के साथ
प्रस्ततु मकया हैं. िैन र्ग्थ
ं ों में मनमहत िीवन के सन्देश
इस पेंमटंग शृंखला में मानव आकृमत, पवषतो-वामदयों के
सौंदयष एवं हीरे की फलकों से अमभव्यक्त मकये गए हैं.

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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.

अक्षय तृतीया महत्वपूणष पवष िैन धमष और महन्दू धमष का भी है। धाममषक अनुसार अक्षय
तृतीया के मदन नदी में मान्यता पमवत्र स्नान करने से पि
ू ा और दान - पण्ु य के कायष करने से की प्रामप्त
भी अक्षय फल होती है। िैन समुदाय मैं अक्षय तृतीया पवष मवशेर् महत्व रखता है। इस मदन िैन
उपवास रखते है । आइए िानते है अक्षय पवष का समदु ाय के लोग खत िैन पथ ं में क्या महत्व
िैन धमष की मान्यता की अनुसार, भगवान ऋर्भ नाथ प्रथम तीथंकर) ने एक वर्ष की तपस्या
करने के बाद वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया मतमथ अथाषत अक्षय तृतीया के मदन इक्षु रस
(गन्ने का रस) से अपनी तपस्या का पारणा मकया था ।
िैन धमष के प्रथम तीथंकर भगवान ऋर्भ नाथ का िन्म चैत्र कृष्ट्ण की नवमी मतमथ के मदन
हुआ था | उन्हें भगवान आमदनाथ के नाम से भी िाना िाता है । उन्होंने अपने सांसाररक िीवन में
वर्ों तक सुखपूवषक राज्य मकया | मफर अपने पााँच पुत्रों के बीच राज्य का बटवारा कर सांसाररक
िीवन त्यागकर मदगम्बर तपस्वी बन गए ।

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उन्होंने कै वल्य ज्ञान प्राप्त करने के मलए एक वर्ष तक भखू े रहकर तपस्या की | इस तपस्या के
पश्चात हमस्तनापुर में रािा श्रेयांस ने उन्हें नवधा भमक्त के साथ गन्ने का रस आहार में मदया और इसे
र्ग्हण कर उन्होंने अपना पारणा मकया | कै वल्य प्राप्त करने के बाद वे मिनेंर बन गए | यही मान्यता
को लेकर आि भी हमस्तनापुर मैं अक्षय तृतीया का उपवास गन्ने के रस से तोडा िाता है । यहााँ इस
बात को भी बताना उमचत होगा मक महन्दू धमाषवलंबी भगवान ऋर्भ नाथ को मवष्ट्णु का अवतार
मानते हैं |
अक्षय ततृ ीया पर दान का महत्व :
अक्षय तृतीया को दान और पण्ू य के मलये सबसे शभ ु मतमथ मानी गई है । मान्यता है मक इस
मतमथ पर इस युग में प्रथम बार आहार-दान मकया गया और प्रथम बार ही भोिनशाला का अन्न
अक्षय होने के कारण ही इस मतमथ को अक्षय ततृ ीया का नाम मवशेर् प्राप्त हुआ | इस मदन सभी शभ ु
कायष मबना मुहूतष देखे मकये िाते हैं और शुभ फल की प्रामप्त होती है ।
िलफलामद समस्त ममलायके ,
िित हौं पद मगं ल गायके |
भगत वत्सल दीन दयालिी,
करहु मोमह सुखी लमख हालिी ||
ॐ ह्ीं श्रीवृर्भदेव मिनेन्राय अनर्घयषपदप्राप्तये अर्घयं मनवषपामीमत स्वाहा ||

डॉ. वन्दना अमभर्ेक िैन


आगरा
उिर प्रदेश.

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गरुु शरण में आए हम,गुरु पार लगाएगं े


गुरुवर की चयाष का,ियर्ोर् लगाएगं े।
वात्सल्य धारी हैं,मस्ु कान मधरु अदभदु ।
सामनध्य ममला िबसे, हम भूले हैं सुधबुध।।
कुमटया में अपनी हम आहार कराएगं े।
गुरु शरण में आए हम,गुरु पार लगाएगं े
मुरा यह वैरागी,मोह माया के त्यागी
सहते पररर्ह सारे,मशवपरु के हैं राही।।
गुरुवर की राहें हम, भावों से सिाएगं े
गुरु शरण में आए हम गुरु पार लगाएगं े
गुरुवर के चरणों में िहां सारा पाया है।
ओ करुणाकारी यह क्या िादू छाया है
भमक्त की अनपु म हम अलख िगाएगं े।
गुरु शरण में आए हम गुरु पार लगाएगं े
गुरु की चयाष का हम ियर्ोर् लगाएगं े

सि
ं य िैन सराषफ
कामां,
भरतपुर, (राि.)
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पवष आया, पवष आया


अक्षय तृतीय का पवष आया,
अभयदान का महत्व बताने
अक्षय तृतीया पवष है आया।
एक समय की बात बताएं
आमदनाथ मुमन तप में लीन कहाए,
6 महीनों तक ध्यान में मगन हुए ।
आत्म साधना में ध्यान लगाये
मफर आये आहार को नगरी में
पर कोई न समझे आहार मवमध में ,
कोई ममला न िो आहार ममु न को करा पाये,
बीत चला साल एक पूरा
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ना ममु न का मन हुआ बरु ा
आमदनाथ ने संयम व्रत पाला
समता भाव रख सम्यक्त्व अपनाया,
तब पहुंचे मुमन िी हमस्तनापुर में
रािा सोमप्रभ और रािा श्रेयांस के महल,
रािा को मपछला भव याद आया
नवधाभमक्त से रािा ने इक्षुरस का पान कराया,
मुमन श्री ने 1 साल में आहार पाया
आए तभी सब देवता नगरी में
फै ली खुमशयों की लहर नगरी में
ढोल नगाडे और दुदं ु भी बिवायें
सभी के मन अमत हशाषये
तब-से पवष रूप में सभी मनाए
अक्षय तृतीया का पवष,िब आए
अभय दान का महत्व बताए।ं
आहार दान है महादान ।
हम भी करें यह कायष महान,
देकर दान पूण्य कमाए ।
आओ ममलकर अक्षय ततृ ीया पवष मनाए।।।

डॉ. मनमध िैन (मफमसओ थेरामपस्ट)


प्रतापगढ़ ,
रािस्थान.

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क्ष ृ औ म

िैन धमष अनामदमनधन धमष है । िैन धमष में सबसे अमधक पवष आते हैं, िैन धमाषवलम्बी इन
पवो को अपनी-अपनी शमक्त अनस ु ार व्रत उपवास सामामिक धाममषक कायष कर मनाता है । हम
सबको उन पवों के बारे में िानना अमत आवमयक है और इसी श्रृंखला में अक्षय तृतीया पवष भी
आता है ।
िैन धमष के इमतहास में अक्षय तृतीया का मवशेर् महत्व है | भारतीय संस्कृमत में वेशाख शुक्ल
तृतीया का मवशेर् बहुत बडा महत्व है । इस मदन को अक्षय तृतीया भी कहा िाता है, िैन दशषन में
इसे श्रमण सस्ं कृमत के साथ यगु का प्रारम्भ माना िाता है.
भगवान आमदनाथ इस युग में प्रथम िैन तीथंकर हुए । उस समय भरत क्षेत्र में युग का पररवतषन
भोग भूमम व कमषभूमम के रूप हुआ । हम यहााँ बतौर िानकारी स्वरूप कहना चाहते हैं मक भोग भूमम
में कृमर् व कमो की कोई भी आवमयकता नहीं होती थी । उस समय कल्प वृक्ष होते थे मिसमे प्राणी
को मनवांमछत पदाथों की प्रामप्त हो िाती थी । कमष भमू म में कल्प वृक्ष धीरे समाप्त हो िाते हैं और
िीव को कृमर् कायष आमद पर मनभषर रहकर कायष करना पडता है ।
प्रथम तीथषकर भगवान ऋर्भदेव ने कमष भूमम में कृमर् और र्ट कमष के बारे में बताया और
बाह्मण, क्षत्रीय, वैमय की सामामिक व्यवस्थायें प्रदान की । रािा आमदनाथ को राज्य भोगते हुए िब
िीवन से वैराग्य हो गया तो उन्होंने िैन धमष की दीक्षा ली तथा 6 महीने तपस्या की, 6 माह बाद िब
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तपस्या पण ू ष हुई तो आहार के मलए मनकले उस समय मकसी को भी आहार चयाष के बारे में ज्ञान नहीं
था | मिसके कारण भगवान ऋर्भदेव को 6 माह और मनराहार रहना पडा |
वैशाख शुक्ल तीि [अक्षय तृतीया] के मदन भगवान मवहार करते हुए ममु न अवस्था में
हमस्तनापुर पहुाँचे | रािा श्रेयांस व रािा सोम को रामत्र में स्वप्न मदखा और पूवष भव में मुमन को आहार
देने की चयाष का स्मरण (ज्ञान) हो गया | तत्पश्चात रािा श्रेयांस ने नवधा भमक्त से भगवान का मवमध
पवू षक पड्गाहन मकया | उच्चासन कर बैठा कर भगवान की पि ू ा भमक्त की | तपश्चात इक्षु रस यानी
गन्ने के रस से भगवान का आहार कराया | अक्षय तृतीया िैन धमाषवलमम्बयों का महान धाममषक
पवष है | गन्ने के रस को इक्षु रस भी कहते है | इसी कारण यह मदन इक्षु तृतीया यामन अक्षय तृतीया के
नाम से मवख्यात हो गयी ।
अक्षय तृतीया प्रमतवर्ष हर्ोल्लास के साथ मनाते हैं | िैन धमष में तीथषकर क्षुधा वदेना को
शांत करने के मलए आहार को नहीं मनकलते है अमपतु लोक को आहार दान अथाषत दान तीथष परंपरा
का उपदेश देने के मनममि से आहारचयाष हेतु मनकलते हैं | तभी से दान की परम्परा प्रारंभ हुई िो बहुत
ही महत्वपूणष परम्परा है |
आगम प्रमाण है मक आहार-दान प्रभाव से रािा श्रेयांस के महल में देवों ने मनम्न मलमखत पच ं ाश्चयष
प्रकट मकये :-
1- रत्न वृमष्ट
2- पुष्ट्प वृमष्ट
3- दुदं ु मभ बािो का बिना
4- शीतल सुगमन्धत मन्दमन्द पवन चलना
5- अहोदानम,् अहोदानम् प्रशंसा वाक्य की ध्वमन होना ।

िैन दशषन में आहार दान का बहुत ही बडा महत्व है प्रथम तीथंकर की प्रथम आहार चयाष तथा
प्रथम दान तीथष प्रवतषन की सच ू ना ममलते ही देवों ने तथा भरत चिवती समहत समस्त रािाओ ं ने
रािा श्रेयांस का अमतशय सम्मान मकया ।
भरत क्षेत्र में इसी मदन से आहारदान देने की प्रथा का शुभारम्भ हुआ। लोक में रािा श्रेयांस "दान
तीथष प्रवतषक" के रूप में मवख्यात हुए । रािा श्रेयांस की रसोई में भोिन अक्षीण (यामन कभी खत्म
नहीं होने वाला अक्षय) हो गया था ।

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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
वस्ततु दान देने से िो पण्ु य सच
ं य होता है वह दाता के मलए स्वगाषमदक फल देकर अन्त में
मोक्षफल की प्रामप्त कराता है ।
यह मदन शुभ है इस मदन लोग असूझ साया मानते हैं | मबना मुहूतष मववाह, नवीन गृह प्रवेश, नूतन
व्यापार मुहूतष आमद भी करके भी गौरव मानते है ।
इस मदन प्रारम्भ मकया गया नया कायष मनयममत सफल होता है । रािा श्रेयांस ने दान तीथष का
प्रवतषन कर हम सभी पर मकये गये उपकार का स्मरण है कराता है ।
मेरा मानना हैमक अक्षय तृतीया पर भगवान आमदनाथ के उपदेशों को िन िन तक पहुंचाने के
मलए यह मदवस धूम धाम से मनाना चामहए |
वैशाख शक्ु ल तृतीया 3 मई 2022 को पड रही है यह इस मदन सभी धाममषक व सामामिक कायष,
भगवान ऋर्भदेव के मसद्धान्तों का व्यापक प्रचार प्रसार हो और मेरा यह भी मानना है मक िैन साधु
सन्तों को नवधा भमक्त के साथ आहार िरूर िरूर देना चामहए और िैन धमष / समाि की शीर्ष
संस्थाओ ं को इसका प्रचार प्रसार िरूर करना चामहए ।
साधु सन्तों के आहार मवहार व वैय्यावृमि पर मवशेर् मवशेर् ध्यान देकर प्रत्येक ममन्दर समममतयों
को इस कायष को प्राथममकता से करना व कराना चामहए ।
शुभ मंगल कामनाओ ं के साथ,

भवदीय
उदयभान िैन,ियपरु
राष्ट्रीय महामंत्री
िैन पत्रकार महासंर्

मवशद्ध
ु वचन :
“हमें वीतरागी बनना हैं, मवि रागी नहीं”

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हम े प्रे ण स्र :
SOURCE OF
INSPIRATION:
म ज्ू प्र ल स्म ण
ध् त्मम ग, च
मण , स् ध्
प्रभ क, आगम उ ष्ट े ,
सम स सक, आच
त्म , ग्ब च श्र १०८
द्ध
ु सग मह ,
ससघ क आ

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आओ ! चले सब मलक हम ठ ल में |


े हम आ प्रभु के गण ु ों क ठ ल में ||
खेल खेल में कह सु क ज्ञ बढ़ े ठ ल में |
प्र र् से ुरू क े औ मस् से े े ब े में ||
ज्ञ ब े ि े भे ज्ञ के ब े में |
ठ ल से बढ़े आत्मम श्व स े भग के ब े में ||
ू ह श्व स ण के ज्ञ से |
हम ब ,े क े , प्रभु की भ ि ध् से ||
ब सब हमक प् े ,े ख े ठ ल े से |
हम हीं हे , ज्ञ ब े ठ ल े से ||

कु. , उम्र १३
सु त्र
ु श्र म ल क म
बगलरु ू , कण टक.

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Namostu Shasan Seva Samiti (Regd.),


Mumbai,
Conducts
Face to Face
On-line Pathshala
in association with
Jain Shasan Seva Samiti,
Hennur, Bangluru,
From 24-4-2020
every Saturday
& Sunday.
To enhance
the Intellectual Power
of Next Generation.
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A Letter to
Friends
Dear Friends,
Jai Jinendra. Excellent! I am very very
happy to note that you have fulfilled your
commitments towards yourselves. BRAVO!
You all have won my heart and in turn I am feeling proud of you all for the
various Oaths (Niyams) taken by you, my little friends, and your parents along with
other family members too! They had provided the support to fulfil your Oaths. It is still
continued and this resulted in the DAILY NIYAM, as you have developed strong will
power. It is a well defined self control towards the path of liberation viz. MOKSHA.
“Aacharya Bhagwan 108 Shri Vishuddha Sagar ji Maharaj always says that
– “DHARM TO KIYA NAHI JAATA, VAH TO APNE AAP HO JATA
HAIN.” It just happens. So, we should continue and follow the instructions given by
ARIHANT Bhagwaan. by just having a small concentration/focus on our daily
routine work, how the DHARM is fulfilled without doing any extra efforts.
Yours Friend
P. K. JAIN ‘PRADEEP’
You can reach me: - EDITOR-NAMOSTU CHINTAN
+91 9324358035

E-MAIL:
pkjainwater@gmail.com
namostushasangh@gmail.com
WEBSITE : WWW.VISHUDDHASAGAR.COM

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Activites by Champion of
Champions:
Motivation - NSSS,Mumbai with PK Jain ‘Pradeep’ and team
members :-
Likewise, from the past few months this month again,
Kum. Niharika from Tikamgarh, Madhya Pradesh,
India, had send a very beautiful poem on the Theme
Subject ALONG WITH a picture drawn by herself on
Acharya Shri life in short. Very good initiative. We reuest
all of you to try and write down few lines always as I
know you can do. We are proud of such talented Children
in our SAMAJ/Community.

हम े ब ल कल क
नोट : यह हमारी नन्हे कलाकार िो मचत्रकला में भी पारंगत हैं. प्रत्येक अंक में इनकी कला एक
अनठू ी भावना को दशाषती हैं. यह सब उनके माता एवं मपतािी के सस्ं कारों का फल हैं िो भमवष्ट्य
को उज्िवल बना रहा हैं. हम सभी उनके उज्िवल भमवष्ट्य की शुभकामनाएं प्रेमर्त कर रहें हैं. आि
पुनः सभी बच्चे धमष में रूमच मदखा रहे हैं और वह सामने मदखाई भी दे रहा हैं. ऐसे सभी बच्चें िो
अपनी कला-प्रमतभा को भी मदखाना चाहते हैं, उन सभी का हम स्वागत अमभनन्दन करते हैं. आप
भी अपनी कला को हमें भेिे (व्हात्सप्प नंबर +91 9324358035) मिससे आपकी प्रमतभा को भी
प्रकामशत मकया िा सके . आपका ममत्र प्रधान सपं ादक : पी. के . िैन ‘प्रदीप’.

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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.
ट : यह अमत सन्ु दर मचत्रकला हमारे नन्हें पाठकों ने बनाई हैं. इन सदुं र मचत्रकला को बनाते हुए
उनके िो मनोभाव हैं उससे उनकी धमष में रूमच गहरी होती हैं. और वे मनयममत पाठशाला में भी अपनी
उपमस्तमथ दशाषते हैं. हम सभी उनके उज्िवल भमवष्ट्य की शुभकामनायें प्रेमर्त करते हैं .

कु. संमचता
ठोले उम्र १२
वर्ष, बदलापरु
सुपुत्री सौ.
श्रीमती मनमध
योगेश ठोले,

Priyal Anshul
Jain ,
Banglore,
13 yrs.

सौ. श्रीमती मनमध योगेश ठोले, कु. संमचता


ठोले एवं कु. इमशता ठोले, बदलापुर द्वारा
भगवान् महावीर िन्मकल्याणक महोत्सव पर
रंगोली मचत्रण

श्रीमती सौम्या
गौतम िैन,
मुंबई

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नोट: यह प्रस्तमु त कु. सानवी ने बगं लरुु में आयोमित महावीर िन्म कल्याणक के अवसर पर
आयोमित बाल प्रस्तुमत में मंच पर उद्घोमर्त की थी मिसे सभी ने सराहा और उसे प्रथम पुरस्कार भी
प्राप्त हुआ. यह उसके अपने मवचार हैं. यहााँ यह भी िानना िरुरी है मक कु. सानवी, नमोस्तु शासन
सेवा समममत (रमि.), मुंबई और िैन शासन सेवा समममत, हेन्नुर, बंगलुरु द्वारा चलायी िा रही
ऑनलाइन पाठशाला की मनयममत मेर्ावी छात्रा हैं.

मेरा नाम सानवी है. आि मैं महावीर ियंती के बारे में बताने िा रही हूाँ.
महावीर ियंती को भगवान् महावीर के िन्म-उत्सव के तौर पर मनाया िाता हैं. महावीर
भगवान् का िन्म वैशाली में कुण्डलपुर में मपता मसद्धाथष और माता मत्रशला के तीसरी संतान के रूप
में चैत्र मास शुक्ल पक्ष में िन्म हुआ.
महावीर भगवान् को वीर, अमतवीर, सन्ममत, वद्धषमान और कई नामों से बल ु ाया िाता हैं.
महावीर ियंती क्यों और कब मनाई िाती हैं ? महन्दू पच ं ांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल
पक्ष की त्रयोदशी को महावीर ियंती मनाई िाती हैं, सनातन धमष के अनुसार कहा िाता है मक इसी
मदन महावीर िी का िन्म हुआ था. यह पवष साल में माचष या अप्रैल महीने में आता हैं. और इसे
भगवान् महावीर के िन्म मदन के रूप में मनाया िाता हैं.
महावीर भगवान् िैन धमष के २४ वें तीथंकर हैं २४ तीथंकरों में अंमतम मिनेन्र हैं मिन्होंने
तपस्या से आत्म ज्ञान की प्रामप्त की थी. मिनेन्र वह लोग होते हैं िो इमन्रयों और भावनाओ ं पर पूरी
तरह से मविय प्राप्त कर लेते है.

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महावीर भगवान् ने अपनी ३० वर्ष की आयु में वैराग्य मलया. उन्होंने १२ वर्ष के कठोर तप
करने के बाद िम्बक वन में साल वृक्ष के नीचे के वल ज्ञान प्राप्त मकया.
इस मदन महावीर भगवान् के िन्म मदवस पर उनकी पूिा करने के मलए िैन लोग िुलुस
मनकलते हैं और उनका अमभर्ेक कर झांकी भी सिाते हैं.
महावीर स्वामी ने अमहंसा, तप, संयम, पांच महाव्रत, पांच समममत, तीन गुप्ती, अनेकांत,
अपररर्ग्ह का सन्देश मदया. कामतषक मास की अमावस्या को रामत्र के समय में भगवान् महावीर को
मनवाषण प्राप्त हुआ. मनवाषण के समय भगवान् महावीर की आयु ७२ वर्ष थी.
भगवान् महावीर िी के िीओ और िीने दो के मसद्धांत का सभी को आदर करना चामहए.
िय मिनेन्र.
आप सभी को महावीर ियतं ी की बहुत बहुत शुभकामनायें.
अमहस
ं ा परमो धमष की िय
मसद्धांत शास्त्रों की िय
महावीर भगवान् की िय

कु. सानवी मालगावे िैन, उम्र 13 वर्ष


सुपत्रु ी श्रीमती सररता समचन मालगावे िैन
बंगलुरु, कणाषटक.

मवशुद्ध वचन :

हमें मनि र्र में कै से रहना हैं यह


मााँ मिनवाणी हमें बतलाती हैं
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आचायष श्री मवशुद्ध सागरिी महाराि की देशना (मिनवाणी


के मवमवध रंगों की सरल सहि देशना) को प्राप्त करने के
मलए देमखये प्रमतमदन

अमधक िानकारी के मलए सपं कष करें :-


अनरु ाग मसहोरा : +91 96305 55001
वैभव बडामलहरा : +91 99774 34343
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ग ्ब च , आगम उ ष्ट े श्रमण श्र 108 ुद्धस ग मह


के म प्रभ क मु श्र सुप्रभ स ग मह
ह हैं आ के सम च कल् ों क स् क सम .

सम च कल् ों क स् क सम सुप्रभ उ च ूट ूब च ल
ऑ ल इ क क्रम में म क श्रमण १०८ श्र सुप्रभ स ग मु
मह ऑ ल इ प्रश्नों क आगम प्रम ण के स र् स् क सम
प्र क हे हैं । प्रश्नों क मु श्र प्रण स ग ख ह।
े ब्र. स के भ क हे हैं. इस ऑ ल इ क क्रम में भ के
भन् स्र् ों से ऑ ल इ प्रश्न मल हे हैं ।
आ के सम च कल् ों के स् क सम प्र प्त क े के लए इ
ब 87075 48811, 07415306441 े प्रश्न व्ह टसए मेसे ,
ऑ ि मेसे ईमेल के म ध् म samyak.samadhana@gmail.com
से मेल भ क सक े हैं।
अब पारस चेनल पर भी प्रसाररत हो रहा हैं
प्रमतमदन मध्यान्ह 4.00 बिे

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वतषमान के कुछ मलंक


मवद्यासागरिी ने मवशुद्ध सागर िी से क्या पूछ मलया था ? https://youtu.be/c_L3ri3ylYM
िैनधमष का अमस्तत्व खतरे में,कै से रक्षा करोगे मंमदरोंकी ? https://youtu.be/leApQmdYoVw
एक छोटे से बालक की गिब प्रस्तमु त, अद्भुत कला https://youtu.be/7JbOl4j06ko
मवद्या सागरिी ने की सबसे बडी र्ोर्णा : दे मदया संकेत https://youtu.be/GZdFFjb0m-4
खदु ाई में ममली १००० वर्ष प्राचीन प्रमतमा:एक बडी िैन https://youtu.be/oaEBqTwq2Hg
बस्ती उिड गई थी
िमीन खोदने पर मनकल आया मंमदर : मभंड में समामध के https://youtu.be/5zlPKF9PX_o
नीचे तलर्र, हो सकता हैं मिन ममं दर

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आदरणीय पी.के . िैन सा,


प्रधान सम्पादक
नमोस्तु मचंतन

सादर िय मिनेन्र |
महोदय
आप नमोस्तु मचंतन' मामसक िैन पमत्रका के माध्यम से िैन धाममषक सामामिक मवर्यों पर
एक से बढ़कर एक मवर्य पर मवशेर्ांक प्रकामशत करवाकर िैन समाि पर उपकार कर रहे हैं।
आपके प्रत्येक मवशेर्ांक पढ़ने योग्य है। िैन शोध छात्र-छात्राओ ं को भी उपयोगी है
अक्षय तृतीया और िैन धमष पर मवशेर्ांक के मलए लेख सलंग्न कर भेि रहा हूाँ कृपया आप
प्रकामशत कर अगहृ ीत करें, साथ ही मनवेदन है मक मवशद्धु मवशेर्ांक मभिवायें तामक पढ़ सकें .
शुभ मंगल कामनाओ ं के साथ

भवदीय
उदयभान िैन,ियपरु
राष्ट्रीय महामंत्री
िैन पत्रकार महासंर्

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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.

होनरे बल श्रीमान पी. के . जैन "प्रदीप" सर


अतं रााष्ट्रीय अध्यक्ष,
नमोस्तु शासन सेवा समममत,
मख्ु य सम्पादक, नमोस्तु मिन्तन
सादर नमस्कार.
हम सब ठीक हैं और आप सब भी कुशलता से होगें. आपकी आध्यामममक पमिका का
मवशेषाक ं “मवशद्ध
ु मवशेषांक” प्राप्त हुआ. इस बार तो यह बहुत ही मबग है. सायद यह इतना मबग
पहला ही अक ं होगा. बहुत सन्ु दर मवशेषांक मनकला है. इसमें इतने राइट अप आप कै से मेनेज करते
हो ? सभी के साथ डीफे रें ट मपक्स भी.
हमने मांसाहार छोड़ने की बात अपने दोस्त को बताई तो वो सब हम पर हँसने लगे और
मफर जब पाटी में हमने खाना मसफा शाकाहारी ही मलया तो वे सब ताज्जबु करने लगे. जेसी ने भी
जब बताया तो हमारे साथ के मसक्स कपल ने भी मांसाहार को महीने में दस मदन के मलए मयाग कर
मदया. और वे भी आपकी मगमिन को पढ़ना कहते हैं. अब हमारा सका ल भी बढ़ रहा हैं. और जेसी
की पमललमसटी हो रही है. यह सब आपके गरुु और अब हमारे गरुु भी हैं के कारण हो रहा हैं. जैसा
आपने कहा था तो हम अगस्त में इमं डया आने का प्रोगराम बना रहे हैं.
आब तो हमको लगता है की हम जल्दी से इमं डया जाए और आपसे और आपके प्रीिर से
भी जल्दी ममले. परुु षाथा देशना को अब हम 9 -10 फॅ ममली स्टडी करते हैं. आपने सॉफ्ट कोपी दी
है तो सभी को सकाु लेट कर दी गयी हैं. हम सब को लगता है की यह रमसया और उक्रेन का यद्ध ु
गलत हो रहा हैं. मकतनी महसं ा हो रही है. परुु षाथा देशना सही समय पर ममली मजससे महसं ा और
अमहसं ा को जानने का मोका ममला.
अब जेसी तो कुछ भी बात हो तो कहती है PK सर से पछ ू लो. आपके कारण भी हमारा
जीवन अब सही िलता हैं. लड़ाईयां कम हो गयी हैं. इस सब का कारण आपकी पमिका है मजसने
हमारे जीवन की डायरे क्शन ही बदल दी. आपके पास यमद इमं ललश में कोई मकताब हो तो वह भी
भेजने का कष्ट करें . हम सब अमिक से अमिक जानना िाहते है.
आपका दोस्त
फ्रैंक जोसेफ, फ़्रंकफ़टा, जमानी
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समामधस्थ श्रमण श्री सदय सागरिी महाराि


मशष्ट्य मदगम्बराचायष श्रमण श्री १०८ मवशुद्ध सागरिी

सोचता हूं प्रभु समामध मरण करने का


पर महम्मत ना िटु ा पाता हूं
सोचता हूं प्रभु वीतरागी बनने का
पर खुद को कमिोर पाता हूं।

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श्रमण होने की कमठन चयाष को देखकर
मेरे कदम डगमगा िाते हैं
मोक्ष मागष की कमठन साधना से
मेरे पग मठठक िाते हैं।
सोचता हूं अमहंसा की पताका फहराने को
पर बेबस लाचार पाता हूं
सोचता हूं धमष प्रभावना करने को
पर खुद को संभाल नहीं पाता हूं।
डरता हूं यह सोचकर...
कहीं पैदल मवहार न कर पाऊं
कहीं मदगम्बर तन पर मच्छरों के दश ं न झेल पाऊं
डरता हूं यह सोचकर...
कहीं के शलोंच करते आकुलता हुई
तो भगवान के दर पर महुं न मदखा पाऊं।
सोचता हूं प्रभु समामध मरण करने का
पर महम्मत....
मुझे इतनी महम्मत देना प्रभू
वीतरागी मागष पर मनराकुल रह पाऊं
समतापवू षक हर झझ ं ावात को झेल पाऊं
मुझे इतनी महम्मत देना प्रभू
तेरे दर पर समामध मरण कर पाऊं
राग द्वेर् ईष्ट्याष खत्म कर पाऊं
धमष की राह में संयम मदखा पाऊं।

श्रीमती स्वाती िैन


हैदराबाद,
तेलगं ाना.

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प्रकाशक:नमोस्तु शासन सेवा समममत (रमि.), प्रधान संपादक: पी.के . िैन ‘प्रदीप’ अंक:45, वर्ष 5 मई 2022.

आपके लेख/आलेख/कमवताये/ाँ मचत्रकला इत्यामद


हम तक पहुाँचाने की आमखरी तारीख : 15 मई 2022
प्रधान संपादक : पी. के . िैन ‘प्रदीप’
संपकष सूत्र : व्हात्सप +91 9324358035
ई-मेल : pkjainwater@gmail.com
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आपकी सेवा में सदैव िारी


धमष प्रभावना हो सदैव भारी
नमोस्तु शासन सेवा समममत पररवार की एक आश
कभी न छूटे िन्म –िन्म में सभी गरुु वरों का साथ
हे म ! हीं ब ह भग
उसके हले ब े इस ;

ग से कह हम हैं ‘ मह ’
क ें प्र स , ह े म स की ;
चल ! क े कुछ इस के क म
ि भले ह ह इस की म;
ह सबकी रु आ ; खि ह सम .
स् ध् भ म हैं.
यदि आप भी घर बैठें फोन से दनयदित स्वाध्याय करना चाहते हैं तो निोस्तु शासन सेवा सदिदत
पाठशाला से जुड़े. बच्चों के दलए बंगलोर और वयस्कों एवं बुजुगों के दलए दिल्ली से पाठशाला का
संचालन होता हैं. अतः स्वाध्याय से आत्ि कल्याण करे. अदिक जानकारी के दलए संपकक करें :-
हिसे जुड़ने के दलए तथा इस पदिका को अपने फोन पर दनशुल्क प्राप्त करने के दलए संपकक करें.
पी. के . जैन ‘प्रिीप’: +91 9324358035.
बा.ब्र. अक्षय जैन : +91 9892279205.

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2602/J, रुस्तमिी अबाषमनया अिीयानो फेस 2, साके त रोड,


नामसक मुंबई हाईवे, मािीवाडा, ठाणे (पमश्चम)
मुंबई 400 601.
सपं कष सत्रू :-
E-mail : NAMOSTUSHASANGH@GMAIL.COM
: PKJAINWATER@GMAIL.COM
WWW.VISHUDDHASAGAR.COM
मोबाइल : +91 93243 58035
आप सभी का आभार
नमोस्तु शासन सेवा समममत पररवार
“िय मिनेन्र”
मडमिटल धाममषक आध्यामत्मक पमत्रका
मनःशुल्क मवतरण के मलए
(सवष अमधकार संपादक और प्रकाशक के अधीन)
(प्रकामशत लेख, रचनाओ ं के मलए संपादक एवं प्रकाशक मिम्मेदार नहीं हैं.
लेख, रचना आमद लेखक/प्रेर्क के स्वयं के मवचार हैं)
आत्मं स्वभावं पर भाव मभन्न,ं
आत्मं स्वभावं पर भाव मभन्नं.
(प्रकाश

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