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काशक : नमोS तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”.

अंक : 10 माह : जनवर 2019


Web site: www.vishuddhasagar.com

-: मंगलाचरण :-

( : )

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काशक : नमोS तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 10 माह : जनवर 2019
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कहाँ पर या है ? उ धत
ृ : आचाय ी १०८ वशु सागरजी

भि तरस से अ भ सं चत क व क भगवान ् से 21
मु य आवरण :
सीधी बात : मणाचाय ी १०८ वभवसागर
मानव क मानवता : परम धम
जी

मंगलाचरण 1 धममय िजयो और जीने दो : वचन भा से 24


मंगलाशीष : आचाय ी १०८ वशु सागरजी उ धत
ृ : आचाय ी १०८ वशु सागरजी
3

स पादक य : पी. के. जैन ' द प' वतमान मानव म मानवता : 25


4
:बा. . अ भन दन भैयाजी
आचाय ी वशु सागर जी अ य :
सबसे बड़ा धम: मानव और मानवता 26
: मणाचाय सार वत क व ी वभवसागर जी 6
: ीमती कत जैन, द ल
नमो तु शासन सेवा स म त (पंजीकृत) 7
मानव एवं मानवता 27
सव धम स मलेन एवं अ हंसा रै ल : 8 : ीमती अनु अजय जैन, औरं गाबाद
व-संवेद मण, आचाय ी १०८ वशु सागरजी
ओ मानवता के सौदागर ! 28
श ा द घटना : शम नह ं आती : 10 : ीमती सुषमा जैन, डूग
ं रपुर (राज.)
व-संवेद मण, आचाय ी १०८ वशु सागरजी
मानव और मानवीय मू य 29
मानव हो मानवता को पहचानो : 11 : ीमती ब बता वण जैन, सरसागंज (उ. .)
व-संवेद मण, आचाय ी १०८ वशु सागरजी
जैन दशन म मानव, मानवतावाद 30
: पं डत . ी नहालचं जी जैन 'चं े श'
: पी. के. जैन " द प"
समाधी भि त शतक : सार वत क व नय 12
बधाईयाँ, ब च को और आप माता- पता को
च वत मणाचाय ी वभवसागर जी
भी 34
महाराज
आगामी अंक का वषय : 36
पु षाथ दे शना : आचाय अमत
ृ च वामी
कृत 16
दे शनाकार : आचाय ी १०८ वशु सागरजी

नजा म सख
ु ह नजानंद : वचन भा से 20

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मंगलाशीष

,
सव वाणी व व क याणी है . जो क
या वाद, अनेकांत त व से मं डत है . ऐसी वीतराग
वाणी सव व व के क याण का कारण बने, इस
उ दे य को लेकर “नमो तु चंतन” प का प रवार
जो उप म कर रहा है , वह अनुकरणीय है . ी
जो है सो है िजन वा वा दनी, ी िजन शासन, नमो तु शासन
क भावना हे तु मंगलाशीष.
नमो तु शासन जयवंत हो
आचाय ी 108 वशु सागरजी महाराज
जयवंत हो वीतराग मण परभणी, महारा .
11 जल
ु ाई 2018.
सं कृ त

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जय िजने .

अहो ! अ त दल
ु भ मानव जीवन मला, अ त भा य
से जैन कुल मला और आज इस पंचमकाल म
भी न थ मु नराज के दशन मल रहे ह. और
या चा हए ? कुछ वष पहले तक तो मु नराज
के दशन भी दल
ु भ थे. पं डत बनारसीदासजी ने
अपनी एक रचना म अपने मन क यथा को
य त भी कया ह. इस सबसे हम लगता ह क
हम सभी बहुत ह भा यशाल ह जो हम धरती के
दे वता, तपोधन, न थ मु नराज के ससंघ दशन
का लाभ मल रहा ह.

हमारे आचाय भगव तो ने हम बताया है क


मनज
ु का ज म ह तो यह संसार असार ह, तो फर, इस संसार म सार
ाणी होने का उपहार है व तु या ह ? आचाय भगवन आगे बताते है क
इस अनमोल उपहार का यह मानव ज म मला, यह सबसे बड़ा उपहार है .
न कया उपयोग तो ? ाणी मा पर दया, क णा, ेम और संवेदना से
मनुज ज म बेकार है हम भी भगवान ् बन सकते है . तो यह या कम
तीथकर ने दया माग सुलभ उपलि ध होगी मानव के लए ?
मानव जीवन ह अ त दल
ु भ
आचाय भगवंत ने अपनी क णा से हम
मानवता के माग पर
बहुत ह सरल कृत करके मो माग बताया. समय
परोपकार के माग पर
से समय के वारा समय के लए समय पर समय
प च पाप म हो न वृ
को समझ कर समय को पाना ह समयसार ह.
ज म मरण से हो नव ृ
अहा ! यह तो है िजसके बल पर अन त जीव
त व पर जो हो धान
का क याण हो गया ह. आचाय भगवंत क शरण
र न य तो है सुख क खान
म ह रहकर समय अथात ् मो अथात ् ज म-
व-पर भेद कर क याण
मरण के दख
ु से र हत, न वक प, अकमपना और
तो य न हम बने भगवान ् ?
अ याबा धत सुख को पाने का माग श त होगा.
य न हम बने भगवान ् ?

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शायद ह ऐसा कोई मानव होगा जो यह सब नह ं
चाहता होगा.

हम सभी िजनदे व णत िजनधम, नमो तु शासन


और िजनवाणी को अपने जीवन से भी अ धक
चाहते है . हमारे ंथ अथात ् माँ िजनवाणी के हम
पर बहुत उपकार ह जो हम मानवता के र ते
चलकर मो को ा त करने का माग श त
करते है .

मम ् गु परम पू य आगम उपदे टा चया


शरोम ण समयसारोपासक त
ु संवधक, वा याय
भावक आचाय ी 108 वशु सागरजी महाराज
कहते ह क –
 राग हटाओ क ट मटाओ.
 जलने से पहले जलना छोड़ो.
 जो है सो है .
 हम वीतरागी बनना है व रागी
नह ं.
 जगत क माँ संसार म पटक दे ती
ह पर तु यह िजनवानी माँ संसार
के दख
ु से छुटकारा दलाती ह.

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आचाय ी अ य

सार वत ् क व नय च वत मणाचाय
ी 108 वभवसागरजी महाराज

नोट : सभी आचाय ी वभव सागरजी महाराज


को सार वत ् क व नय च वत के प म जानते
ह ह. आपक बहु च चत कृ त “समाधी भि त
शतक” – ‘तेर छ छाया भगवन ् ! मेरे शर पर
हो, मेरा अि तम-मरण-समा ध, तेरे दर पर हो.’
शायद ह कसी जैन ावक ने इस अनुपम रचना
को न पढ़ा हो या न सुना हो. ऐसे मणाचाय ी
वभवसागर जी महाराज वारा आचाय ी वशु
सागर जी महाराज के बहुमान म मनोभाव को
श द म य त करते करते पूजा क रचना हो
गयी.

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नमो तु शासन सेवा स म त बरायठा : ीतेश जैन


छंदवाड़ा : ीमती मीनू आशीष जैन,
(पंजीकृत सं था) द ल : ीमती रतु जैन

ट मंडल : दग
ु : सजल जैन, गड
ु गाँव : पं.मक
ु े श शा ी
हैदराबाद : डॉ. द प जैन
अ य ी पी. के. जैन ‘ द प’
इंदौर : दनेशजी गोधा, ीमती रि म गंगवाल
उपा य ा ीमती त ठा जैन जयपरु : डॉ. रं जना जैन
महामं ी बा. .अ यकुमार जैन कोलकाता : सरु े गंगवाल, राजेश काला,
सह मं ी ी अिजत जैन ीमती कुसम
ु छाबड़ा,

कोषा य : ी वीन जैन कोटा : नवीन लह


ु ा डया, ीमती मला जैन
मब
ुं ई : द पक जैन, गौरव जैन, काश संघवी,
सद य ीमती मंजू पी.के. जैन
भरथराज,
सद य ी सुशांत कुमार जैन
मौरे ना : गौरव, िज मी जैन;
-: कायका रणी मंडल :- पण
ु े : ाज ता चौगल
ु े
चार सार मं ी : रायपरु : मतेश बाकल वाल,
ी राहुल जैन, व दशा, ी अनरु ाग पटे ल, व दशा रािजम (छ.ग.) : संजय जैन
दे शा य : रानीपरु : सौरभ जैन ाची जैन;
ी गौरव कुमार जैन, बंगलु , कनाटक. रतलाम : मांगीलाल जैन
ीमती क त पवनजी जैन, द ल . सांगल : राजकुमार चौगुले, राहुल नां े
ी नंदन कुमार जैन, छंदवाडा, म य दे श. सकंदराबाद (उ. .): वपल
ु जैन, ऋषभ जैन
नै तक ान को ठ : सोलापरु : कुमार धा यवहारे
मं ी ी राजेश जैन, झाँसी, उ र दे श ट कमगढ़ : अशोक ाि तकार
वशेष सद य : महेश, है दराबाद; उ जैन : राजकुमार बाकल वाल नवीन जैन
पाठशाला संचा लका: उमर : अभय जैन
ीमती क त जैन, द ल , ऑ े लया, पथ : ीमती भि त हुले यवहारे
सह-संचा लका: एवं अ य सभी कायक ागण.
ीमती करण जैन, हांसी, ह रयाणा.
हा सएप ु स : कुल 50 ु स के सभी !!जो है सो है !!
एड मन/संचालक !!नमो तु शासन जयवंत हो!!
आगरा : शभ
ु म जैन, अतल
ु जैन,
!जयवंत हो वीतराग मण सं कृित!
बड़ा मलहरा; अ य पाटनी, ीमती रजनी जैन
बैतल
ू : अ वनाश जैन बानपरु : नवीन जैन
भोपाल : पं. राजेश “राज’

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बताया गया ह वह वहार के समय क घटना है .
बना कुछ कहे भी अपनी चया से बहुत कुछ कहना
जैन मु नय के लए ह संभव ह. पर तु यहाँ तो
जो भाव से घ टत हो गया उसे सभी चम कार
कहते ह और यह मानवता भी ह. स य को कुछ
दे र के लए तो छुपाया जा सकता ह पर तु उसका
वभाव नह ं कया जा सकता ह. यह बात को पं.
. ी नहाल च जी जैन “चं े श” ल लतपुर
नवासी सभी के सम इस अ तशयकार अ भुत
घटना को तुत कर रहे ह -

नोट: मानव और मानवता : जैन धम कोई धम


नह ं ह, यह तो स यता का दशन ह. कई लाख
वष पहले वा तव म जा ारा जीवन यापन क
सम याओं के समाधान के लए दे वा धदे व
ऋषभदे व के पास गए और उ ह ने जो माग बताया
वह माग जैन दशन का माग ह. यह धम नह ं
अ पतु जीवन जीने क कला ह. इसी माग को
आगे बढ़ाते हुए शेष २३ तीथकर ने भी यह मानव
जीवन क सफलता का माग श त कया. इस
पंचम काल म भी “ व-संवेद मण”, इस
महाका य के नायक परम पू य आगम उपदे टा
चया शरोम ण समयसारोपासक त
ु संवधक,
वा याय भावक आचाय ी 108 वशु सागरजी
महाराज अपनी चया से चतथ
ु काल को दशा रहे
ह. जैसे स रता बहती रहती है और लोग का
क याण करती रहती है ठ क उसी तरह मु नगण
संघ म एक थान पर नह ं रहते ह. आगे जो भी

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“ व-संवेद मण” महाका य के महानायक प. प.ू


आचाय ी 108 वशु सागरजी महाराज के जीवन
व ृ ा त पर आधा रत, महाका य से साभार :-

थमानुयोग का महाका य “ व-संवेद मण”, के


र चयता और “नमो तु चंतन” के सलाहकार
आदरणीय : पं. . ी नहालच जी जैन “चं े श”
ल लतपुर.
पं. . ी नहालचं जी
जैन “चं े श” ल लतपरु
महाका य रचनाकार :
“ व-संवद
े मण”
थमानय
ु ोग का थ

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नय च वत ी 108 वभवसागरजी महाराज क
अमर अनमोल रचना को पढ़कर अपने उदगार ारा
य कये.

समा ध भि त शतक
दादा गु दे व परम पू य गणाचाय ी वराग
अथात ् मानव जीवन क मानवता और उसक
सागर जी महाराज कहते ह – “पावन पुनीता बो ध
सफल साधना का फल ह समाधी ह”. इस
( ान) के फल व प र न य मि डत, वीतराग
कालजयी अमर-भ -का य रचना शायद ह कोई
न वक प धम यान ह समाधी है िजसे साधू जन
ऐसा ावक होगा िजसने इसे पढ़ा न हो या सुना
अह नश करते है और अपनी आ मा क शु चत ्
न हो. वैसे तो इसके थम अ धकार तो कई ावक
चम कार प शु ा म क अनुभू त को ा त करते
को कंठ थ ह है .
हुए जीवन के अं तम दन म एवं ण म काय
कषाय का लेखन करते हुए मरण को ह महा
महो सव बनाते ह.” यह आशीवचन दादा गु दे व

यह समा ध भि त शतक ऐसी अनठ


ू रचना
है िजसको भि त से पढ़ने के साथ पाठक भी वयं
मानो स शला पर वरािजत वीतरागी भगवन ् से,
परम पू य गणाचाय ी वराग सागर जी महाराज
िज ह ने अपने सभी आठ कम का नाश कर मो
ने अपने सय
ु ो य श य सार वत क व मणाचाय

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को ा त कर लया है , ऐसे भगवान से सीधे सीधे थी, चंतन भी कया था. तुत है – पंचम
सार वत ् क व मणाचाय ी 108 वभवसागर जी अ धकार. शेष अगले अंक म आयगे और आपको
महाराज क अनुपम रचना के ारा वतः ह अपनी इस अनुपम रचना के बारे म बहुत कुछ बताएँगे.
भावनाओं को य त कर रहे है . चलो ! अब हम सभी चल आगे स शला पर
वरािजत भु से
वयं बात करते हुए चंतन कर
पंचम अ धकार का.........

तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |


मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
त मण से आ मशु हो, त
ु से बु बड़े |
सामा यक से बड़े वशु , तप से ऋ बड़े ||
आ म-साधना बढ़ती जाये, मन प व तर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||45||

सार वत ् क व मणाचाय ी तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |


मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
108 वभव सागरजी महाराज
अहो ! कतना अ भुत अलौ कक आ चय
ह! कतने सुखद संग ह ! हम सभी जानते है क
आचाय मानतुंग, िज ह जेल के अ दर 48 जंजीर
से जकड दया था और 48 कोठो म बंद कर दया
था, तब उ ह ने दे वा धदे व ऋषभदे व या आ दनाथ
वामी से सीधे-सीधे मनोभाव के ारा बातचीत
क थी. उनक इस अमर सव दख
ु हरण बातचीत
से सभी जंजीर और ताले टूट गए, इस लए ऐसी
रचना, जो भ त को अमर कर दे , कालजयी बना
दे , को हम भ तामर तो के नाम से जानते ह. पापा व कारक भाव को, नह ं उपजने दँ ू |

अ तरं ग से तो ऐसी रचना वयमेव र चत हो जाती गु नंदा के बीज दय म, नह ं पनपने दँ ू ||

है िजससे िजनदे व क आराधना और गु ओं क मानस- वनायाचार हमारे , अंतमन भर दो |

भि त से अनमोल अमर पद, शवपद ा त होता मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||46||

है . पछले अंक म आपने चतथ तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |


ु अ धकार के कुल
44 का य का वा याय कया था, भावना भायी मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

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शुभ-भाव म नत- न म ह, िजनवर तमाएँ |


गु को य गु को हतकर हो,वह भाव भाऊँ |
अतः उ ह का आलंबन ले, िजन म हमा गाएँ ||
ी गु के अनुकूल चलँ ू म, गु पद ह याऊँ ||
अंत समय तक मेरे स मुख, तमा िजनवर हो |
गु कृपा का पा बनँू म, वनय गुणो र हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||50||
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||47||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

य चलनी म नह ं ठहरता, भरा हुआ पानी | चंचल मन है पवन वेग सा, कौन दशा जाये ?

चंचल-मन म नह ं ठहरता, यम संयम ानी || चंचल मन है द ु ट अ व सा, कहाँ गरा आये ?

ा त चंचल मन के वशीकरण को, नत भ तामर हो |


ु , ढ़ संक प से, यह मन सुि थर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||48|| मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||51||

तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो | तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |

मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो || मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

कमोदय क पराधीनता, हत कैसे साधूँ | दे ख न पाया, सुन ना पाया, बोल नह ं पाया |

चार आराधन भी नमल, कैसे आराधूँ || त ृ णा-स रता म डूबा मन, हत ना कर पाया ||

म ृ यु प इस व पात पर, वजय अनु र हो | मन संयम का महामं गु , कान म भर दो |

मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||49|| मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||52||

तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो | तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |

मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो || मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

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स य दशन म न म है , पावन िजनवाणी |


सरू , पाठक, साधु संग वा, गु स य ानी ||
स य दशन लेकर जाऊँ, यह धरोहर हो | राग े षमय अशुभ भाव कर, जग ह मत हारा |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||53|| मन के रोके क जाता है , राग- े ष सारा ||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो | न चल मन से महामं का, जाप िजने वर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो || मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||55||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो |
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

मनोवती सी दश- त ा, नाथ अटल कर लँ ू |


प मरथी सम उपसग को, सह आगे बढ़ लँ ू |
बाहुबल भगवान आप सी, मू त मनोहर हो ||
मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||54||
तेर छ छाया भगवन ् !, मेरे सर पर हो | मशः –अगले अंक म...

मेरा अं तम मरण समा ध, तेरे दर पर हो ||

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नोट:- महान त व व लेषक आचाय ी अमत ृ च
वामी क महान रचना “पु षाथ स यप
आधा रत तपल मरणीय, चया शरोम ण, अ या म
ु ाय” पर xzaFkkjaHk
योगी, आगम उपदे टा, वा याय भावक, त

संवधक, आचायर न ी 108 वशु सागरजी O;ogkjfu'p;kS ;% izcq/;rRosu Hkofr e/;LFk%A
महाराज क दे शना “पु षाथ दे शना” का मश: काशन izkIuksfr ns'kuk;k% l ,o Qyefodya f'k";% AA 8AA
का शभ ु ार भ कया गया है . अब तक आपने इस

ं राज क पांच गाथाओं / लोक का पठन कया
है . इस थ ं राज के मंगलाचरण म ान यो त को ह vUo;kFkZ %& ;% ¾ tks ¼ tho½A O;ogkj fu'p;kS
नम कार कया गया है . यह जैन दशन क वशेषता ¾ O;ogkju; vkSj fu'p;u; dksA rRosu
है . इसम यि त को नह ं गण ु का ह वणन और पू य ¾oLrqLo:i lsA izcq/; ¾ ;FkkFkZ :i ls
वताया गया है . पछल गाथा म-नय यव था को tkudjA e/;LFk% ¾ e/;LFkA Hkofr ¾ gksrk gS
समझते हुए अपनी ट को कैसे नमल कर, भत ु ाथ
और अभत ु ाथ को जानकर अपने मो माग को कैसे
¼ vFkkZr fu'p;u; vkSj O;ogkju; d¢ i{kikr
श त करे यह बताया गया था. अब आगे बढ़ते है jfgr gksrk gS ½A l% ¾ ogA ,o ¾ ghA f'k";%
जानते ह नय यव था से आ मा क स कैसे हो ¾ f'k";A ns'kuk;k% ¾ mins'k dkA vfodya
आठवीं और नौवीं गाथा से ... मशः...... Qye~ ¾ lEiw.kZ Qy dksA izkIuksfr ¾ izkIr gksrk
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नजा म सख
ु ह नजानंद
lRrk dk ifj.keu gh i;kZ; gSA lRrk vlRrk :i
ugha gksrh gSA lRrk esa tks ifj.keu py jgk gS] mldk
uke i;kZ; gSA xq.kksa d¢ fodkj dk uke i;kZ; gSA ( आचाय ी १०८ वशु सागर जी क अनप
ु म
vkpk;Z mekLokeh us rÙokFkZ lw= esa ik¡posa v;k; esa
रचना वचन भा से साभार उ धत
ृ )
;gh ckr dgh gS&
ln~ nzO;y{k.ke~ AA29AA
mRiknO;;/kzkSO;;qDra lr~AA30AA
xq.ki;Z;or~ nzO;e~ AA38AA

म ! पानी के मथने से कभी घत


ृ ा त
नह ं होता है , बालु को पीसने से तेल नह ं
नकलता है , वैसे ह पर म एवं पर व तुओं म
सुख नह ं है , सुख तो व-व तु म ह है . सुख
आ मा का वभाव है .

जैसे बालू से तेल नह ं नकलता है , वैसे ह


ve`rpanzkpk;Z fojfpr iq#"kkFkZfl);qik; xzFa k dh
कतना भी इं य भोग-भोगलो, परं तु कं चत भी
Hkwfedk lekIr शेष अगले अंक म....
आि मक सख
ु ा त नह ं हो सकता है . आि मक
सख
ु नज व तु है , नज का सख
ु नजा म सख

ह नजानंद है .

िजनमाग न थ भेष भखा रय का भेष


नह ं है , वका रय का भेष नह ं है , यह तो वैरा गय

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का भेष है , वीतरागीय का माग है . न थ भेष
भि तरस से अ भ सं चत
न कलंक होने का माग है , वीतरागी तपोधन का
भेष ह मो माग का उपदे श दे ता है . क व क भगवन ् से सीधी बात

म ! जब भी भगवान के दशन करने जाओ


तो मा इस लए जाना क हे भु म आपके जैसा
बन जाऊँ. म ! तुम अपने जीवन म ऐसा काय
करना िजससे तुम अपने आपको अ छा मानते
रहो, तु हारा प रवार तु ह अ छा मानता रहे .
जीवन म कसी का अ छा कर पाओ तो अ छ
बात है परं तु जीवन म उ न त चाहते हो तो कसी
का अ हत नह ं करना.
यह दल
ु भ मनु य भव ा त हुआ है तो इसे
ा त करके यथ नह ं जाने दे ना. ऐसा पु षाथ
करना क शा वत सख
ु क ाि त हो. भैया !
कषाय प रणाम तो दख
ु दायी ह है , क टकार ह
है . कषाय क एक क णका पूरे जीवन क साधना
को समा त कर दे ती है .

मांड म िजतने भी युहुए ह, कटु-भाषा


से ह हुए ह. भाषा हतकार मधरु और गंभीर होना
नोट: मणाचाय नय च वत ी 108
चा हए. वाणी मं बने, वाणी बांसुर बने, परं तु
वभवसागरजी महाराज क रचनाओं को यान से
वाणी बाण न बने.
पढने पर एक बार तो हम उनके भि तभाव से
प रपूण भीगकर / अ भ सं चत हो जाते ह. मानो
ऐसा लगता है क हम वयं स शीला पर
वरािजत भगवन ् से सीधी बात कर रहे ह. उस
समय हम ऐसा अहसास होता है क हम इस भू म
पर न रहकर स शीला पर ह ह और भु के
दशन से आनं दत होकर अलौ कक द ु नया म भु
के चरण म ह ह. अब कह ं नह ं जाना ह, यह

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भाव इस सीधी बात म मणाचाय नय च वत
ी 108 वभवसागरजी महाराज कह रहे ह :-
(“भि त भारती” से उ धत
ृ .)

तु ह छोड़कर कसको दे ख,ूं


कसको पाऊं द ु नया म |
चरण आऊँ, शीश झक
ु ाऊँ,
आप अलौ कक द ु नया म || वीतरागता झर-झर झरती,
या तुमको झरना कह दँ ू |
वा स य क धारा बहती,
या तुमको स रता कह दँ ू ||
तेरे पद आनंद सरोवर,
और कहाँ इस द ु नया म |
चरण आऊँ, शीश झुकाऊँ,
आप अलौ कक द ु नया म ||2||

तु ह छोड़कर कसको दे ख,ूं


िजस पल तम
ु को दे खा भगवन ्, कसको पाऊं द ु नया म |
उस पल जो आनंद मला |
चरण आऊँ, शीश झुकाऊँ,
मझ
ु को ऐसा लगा क भगवन ्, आप अलौ कक द ु नया म ||
स शला म ज म मला ||
तु ह छोड़कर कस दर जाऊँ ?
तु ह सहारे द ु नया म |
चरण आऊँ, शीश झुकाऊँ,
आप अलौ कक द ु नया म ||1||

तु ह छोड़कर कसको दे ख,ूं


कसको पाऊं द ु नया म |
चरण आऊँ, शीश झुकाऊँ,
आप अलौ कक द ु नया म ||

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या तुम को उपहार चढ़ाऊँ, वीतराग सव दे व तुम,
भव-भव से म हार गया | बैठे हो िजन मं दर म |
दय हार म तु ह बनाऊँ, भ त तु हारा तु ह पुकारे ,
तुमने भव से तार दया || आन बसो मन मं दर म ||
जब जब मझ
ु को ज म मले नव, मन मं दर म आन बसो तो,
आप मले इस द ु नया म | कह ं ना भटकँू द ु नया म |
चरण आऊँ, शीश झक
ु ाऊँ, चरण आऊँ, शीश झक
ु ाऊँ,
आप अलौ कक द ु नया म ||3|| आप अलौ कक द ु नया म ||4||

तु ह छोड़कर कसको दे ख,ंू तु ह छोड़कर कसको दे ख,ंू


कसको पाऊं द ु नया म | कसको पाऊं द ु नया म |
चरण आऊँ, शीश झक
ु ाऊँ, चरण आऊँ, शीश झक
ु ाऊँ,
आप अलौ कक द ु नया म || आप अलौ कक द ु नया म ||

मणाचाय नय च वत ी 108 वभवसागरजी


महाराज क अनुपम कृ त
रचाना थल :
नेम गर , महारा . 2003

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धममय िजयो और जीने दो मनु य ज म उ ह का े ठ है जो मनु य बनकर


धम-माग म वृ है . धम से शू य मनु य का
( आचाय ी १०८ वशु सागर जी क अनप
ु म ज म यथ है . िजनके भाव अ छे होते ह वह
रचना वचन भा से साभार उ धत
ृ ) संकट-काल म भी अपने धम को नह ं छोड़ता है .
धम भाव- धान है .
म ो ! आयु पण
ू होने पर मं -तं भी काम
नह ं आएंगे, फर तो मरना ह पड़ेगा. िजसका
ज म हुआ है उसका मरण भी नि चत है . डॉ टर-
वै उसे ह बचा सकता है िजसक आयु शेष है .
धम पदे श से वह साधु बन सकता है िजसके भाव
पव ह, जैसे पानी के छ ंटे मारने पर वह होश
म आ सकता है जो मू छत है , परं तु जो मरण को
ा त हो चक
ु ा है उस पर कतने ह पानी के छ ंटे
डालो वह होश म नह ं आ सकता है . व तु त व
को समझो, म दरू करो.
मानवता के राग म पशुओं को क ट मत
दो. व व के दशन मानव क याण क चचा करते
चं मा क कला व ृ मान होती है तो समु ह, परं तु जैन दशन ाणी मा के क याण का
म भी हलचल होती है. जब आप का च चंचल आचरण करता है . अपनी को वशाल करो,
होता है तो आंख क टमकार यादा होती है . प रणाम को वशु करो. जैसे मनु य सुख चाहता
िजसका वा म-क याण के त येय होता है , है , वैसे ह येक जीव सुख चाहता है . अपने सुख
उसका च ि थर हो जाता है . िजसका च -मन के लए ा णय के ाण का हरण मत करो.
चंचल है , इं य-भोग के त ती लालसा है , वह भगवान महावीर का सू है िजयो और जीने दो.
वा म-साधना से अ यंत दरू है .
िजनै नग दतं धम, सवसौ य महा न धम ् |
जो-जो दखाई दे रहा है , जो-जो चा ुस है ,
ये न तं तप ते, तेषां ज म नरथकम ् ||
वह सभी पु गल है . अचा ुस जो है वह आ मा है .
जो जीता था, जी रहा है और िजयेगा वह जीव है . भावाथ:- िजन भगवान ने धम को सव सुख क
जैन दशन म तीथकर भगवान ्, गणधर दे व और महा न ध कहा है . सव - णत इस धम को जो
आचाय परमे ठ को मा णत व ा माना गया है . धारण नह ं करते ह, उनका ज म नरथक अथात
जो कृ ट वचन है , े ठ वचन है , वह वचन है . न फल है | ( सार समु चय )

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वतमान मानव म मानवता


व य चंतन
व य मनन
व य वचार
आज के इस भो तक यग
ु म मानव से मानवता
व य आचार
ऐसी दरू होती जा रह है जैसे सय
ू के आने पर
व य मन
अ धकार पलायन कर जाता है .
व य लेखन
पर तु य द शा म दे खा जाये तो आचाय एवं पन
ु ः
ी कहते ह :- व य चंतन

दे वागम नभोयान, चामरा द वभूतयः | इन सभी काय के लए आव यक है , एक ऐसे


माया व व प य ते, नात वम स नो महान || मानव क जो मानव म मानवता न हत ह उसका
बोध करते रह.
पू य आचाय दे व वयं भगवान से कहते है
– हे भगवान ! दे व का आगमन, आकाश म ठ क ऐसी ह चेतना दान करने का काय
गमनाद और चामर आ द वभू तयाँ आप म पायी कर रह ह ीमान पी. के. जैन ‘ द प’ साहब. वे
जाती ह. इस कारण आप हमारे तु त करने यो य िजनवाणी के चार- सार के मा यम से जन-जन
नह ं हो, य क यह वभू तयाँ तो मायावी म भी तक मानवता दायी अ हंसा धम और
पायी जाती है . आज के युग म मानव म मानवता पर परोप हो जीवानां सू को पहुँचाने का स काय
केवल अ प और वाथ के कारण ह दखाई दे ती कर रहे है . उनके इस काय के लए उनको, उनके
ह. सभी य और अ य सहयो गय को आचाय
भगवन का आशीवाद तो है ह और इस मानवीय
उस दखावट दया, क णा या वा स य को
काय को नरं तर गत दान करे यह
स ची मानवता नह ं कह सकते है . य क कहा
शुभकामनाय .
भी है - मानव म मानवता के यो य स काय
व मान नह ं ह तो वह मानव के प म अ य बा. . अ भन दन
कोई है . य द वह स चा मानव होता तो उसमे भैयाजी
दया, क णा, परोपकार आ द वभाव वमेव संघ थ:
दखाई दे ते. और ऐसे वभाव के कारण, ऐसे मणाचाय नय
न हत धम के कारण मानव मानवता से पूण होता च वत ी 108
ह. पर तु वतमान म यह बहुत ह कम ह पाया वभवसागरजी
जाता ह. महाराज

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सबसे बड़ा धम
साथ दे गा या नह . फर ओर क तो बात ह या
? मानवता खोती जा रह है , ऐसा नह है क

मानव और मानवता जीवन म सभी लोग बुरे ह. अ छे सं कार अभी


भी जी वत है . हमारा दय सरल नह हो पा रहा

आज मानवता के कारण ह इस संसार म है , शायद इस लए ह आज लोग का एक दस


ू रे

जीवन है . पूव म कये सत ् कम क वजह से पर से व वास उठता जा रहा है .

मनु य पयाय मल . मनु य ज म 84 लाख


बड़ा आ य है ! लोग भाग रहे ह पर दशा
यो नय म चारो ग तय म सव े माना जाता है .
नह ं ह इस लए कह ं पहुंच भी नह ं पा रहे ह.
हम परम सौभा यशाल जीव है . हम मानव ज म,
व न म भी भला कोई पहुचता है ? हम सोए ह,
उ च कुल और जैन धम ा
हुआ है . य द यह
आ मा के त जागना होगा, आज नह ं तो कल.
मानव जीवन यूं ह गवां दया तो पुनः ा होना
इस भव म ना सह पर अगले भव म भी, सुख
अ यंत दल
ु भ है . जैसे समु म अनमोल म ण फक मलेगा तो सफ जागने पर ह मलेगा.
दे ने से उसका मलना अ यंत दल
ु भ है , वैसे ह
हमारा मानव जीवन है . मनु य के पतन क कोई सीमा नह ं है ,
य क वह सोया हुआ है . गहर मूछा म है ? इस
इस युग क बड़ी आव यक़ता है क मानव
मूछा को तोड़ना होगा. मानवता खो गई है . मानव
मन को नमल बनाया जाये. यह तभी संभव होगा
मा तन का मानव रह गया है . मानवता मर गई
जब क मानव क आँख से क णा का जल टपके.
है , उसे जी वत करना होगा. तभी मानव ज म
उसका च दयामय हो, उसके जीवन म धम क
और मानव जीवन सफल होगा.
सब
ु ह हो, ाणी मा से यार हो.
हम अपने अमू य मानव जीवन के क य
पर आज मानव क मानवता भी खोती जा
अथात ् मानवता के त जो कत य है , पूण कर
रह है . आज मानव अपनी मानवता को भल
ू कर यथा श उस पर आचरण भी करना आव यक
लोभी, लालची, नदयी, कपट , मायावी बनकर
है . जो समय हमने गवां दया है , अब उस पर
ोध क पतवार थाम, अहं कार क नाव म असंयमी
प ाताप करने से कोई लाभ नह ं होगा. बु मान
म ो के साथ प र ह का भार साथ म लेकर
य वह है जो बीती ता ह बसार दे , आगे क
समु को पार करने का यास कर रहा है , और
सु ध लेय, कहावत पर आचरण कर कसी भी
े मानव जीवन को न कर रहा है . वचार क
अ छे काय को करने म कभी दे र नह ं होती जब
कु टलता आज सबसे बड़ी बीमार है . इसी कारण
भी हम सहयोग मले तभी उस पर और यासरत
भाई, भाई का द ु मन है . पता भी अपने खन
ू पर रहना चा हए. आव यकता इस बात क है क जो
व वास नह कर पा रहा है , पता नह बुढ़ापे म

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मानव एवं मानवता


मनु य पयाय शेष है उसे राग- े ष मोह आ द म
नह ं गवां कर स चे सुख ा करने म लगाव.
ऐसी ह भावना हो हमार .

हम मानवता के नाम को साथक कर, दस


ु र के मेर भावना म बताया गया ह :-
त दया भाव, धम, सं कार. इसे जीवन म
अपनाकर संसार सागर को सफल बनाये. मै ीभाव जगत म मेरा सभी जीव से न य रहे ,
द न दख
ु ी जीवो पर मेर क णा ोत बहे ||
हो सब सख
ु ी, मेर ऐसी भावना है |
हो न दःु ख कसी को, मेर ाथना है || और सामा यक पाठ म भी आया है :-

स वेषु मै ी गु णषु मोदं ,


ि ल ष
े ु जीवेषु कृपा पर वं |
मा य थ भावं वपर त व ृ ोः,
ीमती क त जैन
सदा ममा मा वदधातु दे वं ||
द ल दे शा य ा
नमो तु शासन सेवा
ई वर क सव म रचना है मानव. मानव
स म त (रिज.)
इस लए सव े ठ है य क वह एक ऐसा ाणी है ,
संचा लका
िजसम संवेदना होती है और वह उसे कट भी कर
नमो तु शासन सेवा
सकता है . य द यह संवेदना ह मानव म नह ं
स म त पाठशाला
होगी, तो वह एक तयच के समान ह है .

सभी जीवो के त मै ी भाव, दख


ु ी जन के
त क णा भाव एवं गुणीजन के त मोद भाव
तथा वपर त वृ वाले जीवो के त सा य भाव
या समताभाव येक मनु य म होना चा हए और
यह मानवता है , जो हम तीथकर कृ त का बंध
कराकर अ याबा धत सुख ा त करा सकती ह.

आज का यग
ु व- वनाश क दशा म जा
रहा है . अपनी भत
ु ा स करने के लए येक
रा दस
ू रे रा म हंसा और आतंकवाद जैसी
बरु ाइयां फैला रहा है जो सवथा अनु चत है . ऐसे-

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ओ मानवता के सौदागर !
ऐसे घातक ह थयार बना लए गये ह क संपूण
मानव जा त ह नह ं संपूण सिृ ट आज खतरे म
है .
मानव ह मानवताका सौदागर,
इस वनाशकार होड़ को केवल मानव ह मानवता य छोड़ी तुमने ?
लगाम लगा सकता है , य क सफ और सफ हर मानव से यार करो,
ेम के ारा ह सार द ु नया को वश म कया जा नफ़रत ह य पाल तम
ु ने ?
सकता है . हर मानव का स मान करो |

आज मानव को मानवता क आव यकता है मानव थे य "बम" बन बैठे ?


िजसे हम सभी भगवान महावीर वामी के संदेश यै कैसा सौदा कर बैठे ?
– “िजओ और जीने दो” तथा “अ हंसा परमो धम:” मंिजल अपनी पाओगे कैसे ?
को जन-जन तक पहुंचाने का काय कर सकते ह. लौट कर घर आओगे कैसे ?
य द हम इस आदश को केवल स ा त ह नह ं अपनी राह आसान करलो
यवहा रक प से व व म चा रत कर पाएं तभी मत अपन से खलवाड़ करो
हम सफल ह गे. जैन होने म और वयं को नफ़रत ह य पाल तुमने ?
भगवान महावीर का वंशज कहलाने म. हर मानव का स मान करो

नमो तु शासन जयवंत हो


भगवान महावीर वामी क जय बने तो हो इंसान जैसे
पर करते काम शैतानो जैसे
अनु अजय जैन औरं गाबाद कौन तु ह अपना समझेगा ?
कौन तु ह कोई र ता दे गा ?
ीमती अनु अजय मत दौड़ो, थक जाओगे
जैन बैठ कर आराम करो
औरं गाबाद मानवता को मत छोडो
(महारा ) हर मानव से यार कर
सद य: नफ़रत ह य पाल तुमने ?
नमो तु शासन सेवा हर मानव का स मान करो
स म त पाठशाला
सोचो, या खोया है मानव ने ?
बदले म या पाया है मानव ने ?

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मानव और मानवीय मू य
रोट छनकर भी ओर क
नह ं पेट भर खाया तुमने
काँटे ह काँटे िजस पथ पर
मानववाद या मनु यवाद दशनशा म उस
खद
ु को मत बरबाद करो
वचारधारा को कहते ह जो मनु य के मू य और
नफ़रत ह य पाल तम
ु ने
उनसे स बं धत मसल पर यान दे ती है .
हर मानव का स मान करो
अ सर मानववाद म धा मक ि टकोण और
इधर-उधर सब भाग रहे हो
अलौ कक वचार-प तय को ह न समझा जाता
कतनी रात से जाग रहे हो
है और तकशि त, या यक स ा त और
कहाँ तु ह आराम मलेगा ?
आचारनी त पर ज़ोर होता है .
कहाँ तु हारा दद बंटेगा ?
ओरो से चाहे करो ना करो आज के इस भौ तक युग म य द मानव या
खद
ु से तो तुम यार कर मनु य, मनु य के साथ स यवहार करना नह ं
मानवता य छोड़ी तुमने सीखेगा, तो भ व य म वह एक-दस
ू रे का घोर
हर मानव से यार कर वरोधी ह होगा. यह कारण है क वतमान म
नफ़रत ह य पाल तम
ु ने ? धा मकता से र हत आज क यह श ा मनु य को
हर मानव का स मान करो | मानवता क ओर न ले जाकर दानवता क ओर
लए जा रह है . जहाँ एक ओर मनु य, आण वक
ीमती सुषमा जैन
श का नमाण कर मानव धम को समा त
डूग
ं रपुर
करने के लए क टब हो रहा है , तो वह ं दस
ू र
(राज थान)
ओर अ य घातक बम का नमाण कर अपने
दानव धम का दशन करने पर आमादा हो रहा
है . ऐसी ि थ त म वचार क िजए क वसुधव

ीमती सष
ु मा जैन
कुटु बकम ् वाला हमारा नेहमय मल
ू मं कहाँ चला
डूग
ं रपरु
गया ? हम कस दशा म जा रहे ह. सफ एक
(राज थान)
दस
ु रे से आगे बढ़ने क होड़ म ववेकह न होकर
सद य:
अंधी दौड़ लगा रहे ह.
नमो तु शासन सेवा
स म त पाठशाला व व के सभी मनु य जब एक ह वधाता
के पु ह और इसी कारण यह संपूण वशाल व व
एक वशाल प रवार के समान है , तो पुन: पर पर

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जैन दशन म
संघष य ? आपस म ह एक दस
ु रे को नीचा
दखाने वाल तयो गता य ? इस पर रोक
लगनी ह चा हए.

यह वचार केवल आज का ह नह ं है .
मानव, मानवतावाद,
समय-समय पर संसार म व तत अनेक मुख मानव और मानवतावाद क नेभर से जैन
धम म इस यापक और परम उदार वचारकण दशन कट हो जाता ह. इस दशन को बहुत ह
का सामंज य पुंजीभूत है . मानवता मनु य का वशाल सोच या ि टकोण वाला धम कहा गया
थम और अनमोल धम है . ह. इसके मूल स ा त वशेष प से अनेकांत,
यादवाद, कम स ा त और व तु वाभाव ह ह.
सभी मनु य म नेह करने का मूल पाठ
इस वशेषांक को मानव और मानवतावाद पर ह
मानव धम ह सखाता है . जा त, सं दाय, वण,
केि त कया गया ह इस लए हम इसम सफ
धम, दे श आ द के व भ न भेदभाव के लए यहां
मानव और मानवतावाद पर ह चचा करगे.
कोई थान नह ं है . मानव धम का आदश और
इसक मनोभू म अ यंत ऊंची है और इसके पालन मानवतावाद मानव का वशेषण ह. मू य
म मानव जीवन क वा त वकता न हत है . मानव और चंताओं पर यान क त करने वाला
धम स यता और सं कृ त क एक कार क र ढ़ अ ययन, दशन या अ यास का एक ि टकोण
क ह डी है । इसके बना स यता व सं कृ त का है , िजसे जैन दशन म बहुत ह सु दर तर के से
वकास क पना मा ह है . तपा दत और स कया गया ह. मानव, इस
श द के कई मायने हो सकते ह पर तु जैन
ीमती बबीता वण जैन रावत स ा त के अनुसार येक जीव क चार ग तयाँ
सरसागंज होती ह जैस-े मनु य ग त, तयच ग त, नरक
ग त और दे व ग त. मनु य ग त वाला जीव मानव
ीमती बबीता
भी कहलाता ह.
वण जैन
सरसागंज दशन और सामािजक व ान के े म कई
(उ. .) तरह के ि टकोण जो 'मानव वभाव' के कुछ
सद य : नमो तु भाव क पुि ट करता है वह ह मानवतावाद ह.
शासन सेवा स म त जैन दशन के अनुसार “व तु वभावो ध मो”
(रिज.) पाठशाला अथात कसी भी व तु का गुण ह उसका धम ह.
यह ह एक धम नरपे वचारधारा ह

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जो नै तकता और नणय लेने क मता के एक ाणी मा क भलाई और तदनुसार ान
आधार के प म वशेष प से अलौ कक और के सार के लए तीथकर वारा अनेक
धा मक हठध मता को अ वीकार करते हुए हत, "परोपकार " और उदार यव थाओं का नमाण
नै तकता और याय का प लेता है और यह से कया गया िजसे हम “पर परोप हो जीवानाम”
अ हंसा का ारं भ भी होता है . सू के प से जानते ह. मानव सदाचार परं परागत
धा मक सं थान के साथ साथ ाणी मा के हत
के लए है . ान के चार सार और स ा त
क र ा के लए उ ह ल पब भी कया गया.
समय समय पर ानमू त के प म माने और
जाने वाले मु नय पर कई भावशाल क टर
राजनी तक परं परावा दय वारा हंसक हमले कये
गए. मानवतावाद के लए कुछ लोग का मानना
है क यह एके वरवाद और कृ तवाद ह पर तु

व व शां त के लए धम नरपे मानवतावाद को ऐसा नह ं ह. "इसम मेर गहर आ था है क

एक व श ट मानववाद जीवन के उ दे य के प वशु ध मानवतावाद भ व य का धम होगा जो

म िज मेदार ठहराया जा सकता है . इस लए इस मनु य के जीवन भर म, प व कृत और नै तक

श द के आधु नक अथ को अलौ कक या कसी मू य के तर तक उ नत क गयी हर चीज का

उ च तर य स ा के त आ ह क अ वीकृ त एक अनमोल पुर कार होगा.

के साथ जोड़ा जाता है . मानवतावाद , मानव व व क अ य या या मथक और परं परा


और मानवतावाद संबंधी याय का संबंध सीधे- के बजाय मानव हत को बताने वाले पहले
सीधे और सहज प से सा हि यक सं कृ त से है . दाश नक तीथकर थे, इस लए उ ह पहले
मानवतावाद कहा जाता है . कई व वान ने
मानव पी दे वताओं क धारणा था पत क पर
जैन दशन ने सवाल खड़े कर दए. अ यो वारा
बताये गए अ य दे वताओं को मानने से इनकार
कर दया. अ य मत वारा ई वर को मांड म
कता के स ा त के प म आर त कर लया.
पर तु जैन दशन क या या से अकतापना, कम
स ा त और अनेकांत या सया वाद लोग क

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समझ म आ गया. जो है सो ह. स ध को स ध जैन दशन ान,चा र क वाय ा और
करने क ज रत नह ं होती. पूणता, केव य ान क बात करता ह. मानवीय
पूणता और मिु त क कंु जी (र न य) के प म
व छं दता क बजाए समझदार (समता) पर जोर
दे ता है . "मनु य मनु य के लए एक भगवान ् है
या भगवान ् वयं मनु य थे भगवान ् बनने के
पहले. मानव और मानव के बीच का साहचय जो
क सामािजक और नै तक वकास का मूल त व
रहा है . मानव या नह ं है ? भगवान ् का वचार
जो क अभी तक एक उ च आ याि मक भाव
"मनु य द ु नया म एक लंग (भावना, आ मा, ई वर
रहा है , अ छाई का आदश है जो परू तरह से
या नेता) है ।" लोग क जो भी इ छा होती है ,
मानवीय है (या न मनु य का एक उ नयन).
ई वर उसे अव य पूरा करते ह। पर तु ई वर
व वसनीय सोच नह ं है, य द ऐसा होता तो ी
रामजी को वनवास य होता ?, ी कृ णजी का अलौ कक अि त व क मौजूदगी या ग़ैर
ज म जेल म य होता ? यह कम स ा त ह मौजूदगी पर वचार नह ं करता. मानवतावाद जो
है िजसके चलते यह सब भोगना पड़ा. ई वरवाद , कुछ मानवीय है उससे संब है अलौ कक व वास
ेम और समपण पर और मा ड म एक क तरफ झक
ु ाव को नकारता है और नै तकता को
सज
ृ ाना मक ान के अि त व पर व वास करते एक मानवीय उ यम के प म मा यता दे ते हुए
ह, पर तु जैन दशन उनके सम त अि त ववान अं तम ल य मानवीय स प नता है ; जीवन को
धा मक स ा त को वशेषकर उनके चम कार , सभी इंसान के लए बेहतर बनाना है और सबसे
अलौ कक और मिु तदायी याय को नकार दे ता चैत य ाणी होने के कारण दस
ू रे चेतन जीव के
ह. स ा त कभी नह ं बदलते और जो बदलते ह क याण को और स पण
ू ता म परू े मा ड के
वे स ा त ह नह ं होते. हत को बढ़ावा दे ना है . यान भलाई करने और
यहाँ पर और अभी अ छ तरह जीवन बताने पर
केि त है और बाद म आने वाल के लए द ु नया
को एक बेहतर जगह बनाकर छोड़ जाना है .

मानवता एक स पूण जीवन ि ट है जो


मानवीय तक, नै तकता के साथ साथ याय का
समथन करती है और जाद,ू छ म व ान और

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काशक : नमोS तु शासन सेवा स म त (रिज.) संपादक : पी. के. जैन “ द प”. अंक : 10 माह : जनवर 2019
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अंध व वास को अ वीकार करती है . मानवतावाद है . वह हमसे मदद क ज रत पड़ने सभी के लये
एक लोकताि क और नै तक जीवन ि ट है जो आगे बढ़ने और हाथ बढ़ाने क अपे ा रखती है ।
पुि ट करती है क मनु य के पास अपने जीवन
पी. के. जैन ‘ द प’
को अथ और आकार दे ने का अ धकार और
उ रदा य व है . यह तक क भावना म मानवीय
पी. के. जैन ‘ द प’
और दस
ू रे ाकृ तक मू य पर आधा रत नै तकता अ य :
और मानवीय मताओं के मा यम से मु त नमो तु शासन सेवा
अ वेषण के ज़ रये एक अ धक मानवीय समाज स म त (रिज.) मब
ुं ई
के नमाण का समथन करती है . बोलने और
नमो तु शासन सेवा
लखने क आज़ाद और यि तगत या सामू हक
स म त पाठशाला
हत के प म अ भयान, वरोध और अव ा: इन
संपादक :
सभी को मानवतावाद श द म ह साफ़ तौर पर
नमो तु चंतन
अ भ य त कया जा सकता है .

न थ के चरण-रज, करती भवद धपार |


यह शासन णाल क ओर मानवतावा दय
स ऋ सम ृ दे , मो महल का ार ||
क प धरता क भू मका क पूव क पना करता
है और यह यि तगत मानवतावाद से आगे ह.
यह अप र ह, दष
ू ण, सै यवाद, रा वाद,
नधनता और टाचार को हमार जा तय के
हत से असंगत, मानवीय च र के थाई और
यान दे ने यो य मु द के प म पहचान करता
है ।

द य और मानवीय, जो कुछ भी आप दे खते


ह, दोन एक ह है । हम सभी एक ह महान शर र
के ह से ह। कृ त ने हम एक ह ोत से और
एक ह म समा त होने के लये बनाया है । उसने
हमारे दल म आपसी नेह और सुशीलता का भाव
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दया है , उसने हम न प और सच के साथ
रहना, चोट पहुँचाने क बजाय इसे सहना सखाया

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बहुत से ब च के नाम आये ह पर इस अंक म
बधाईयाँ ब च को और सफ 100 नाम ह का शत कर रहे ह.

आप माता- पता को भी मांक शहर नाम, माता पता उपनाम


1 अंतर अजय कं जल पयष
ू बडकुल
2 अंदावा आदे श पन
ू म मोहनचंद पांडे जैन
3 अहमदाबाद रतेश मृ त दनेश शाह
4 अहमदाबाद द पका चंचल र व शाह
5 अहमदाबाद र सका मीना क त शाह
6 अहमदाबाद शां तलाल कोमल संजय जैन
7 अहमदाबाद मयरू ममता द पेश जैन
8 अहमदाबाद सोनू सरु े खा न तन मेहता
9 अहमदाबाद राहुल ीती कैलाश जैन
10 अहमदाबाद यंक नीलू नमल कोठार
11 आनंद रजनी राजेश दोशी जैन
12 आ सकेरे प मनाभ गीथा अिजथ हे गड़े जैन
अमीषा आरती सन
ु ील पोरवाल
सभी ब च को बहुत बहुत बधाईयाँ. आपने
13 आसनसोल जैन
मणाचाय नय च वत ी 108 वभव सागर जी
14 इरोड रा गनी अ पना मो हत जैन
महाराज के वा स य भर बात को और अपने
15 इसर नमन राखी बज जैन
अपने माता और पता ी क बात को मानकर
16 इसर तनज
ू ा राखी बज जैन
पटाखे न छोड़ने का नणय लया वह बहुत ह 17 उगापरु रा गनी अ का परे श जैन
सराहनीय है . आगे चलकर भ व य म आपका यह 18 औरं गाबाद रमेश सल
ु ोचना नलेश जैन
अ हंसा मक याग आपको अपने जीवन म बहुत 19 कटक नी लमा संजना नलेश जैन
ह उं चाईय पर ले जायेगा. लाख करोड जीव को 20 क नोज ेयश उमा वशाल जैन

आपने जीवन दान दया, यह कोई छोट बात नह ं 21 क र हर श आशा फूलचंद कोठार जैन

ह. आपको वशेष प से मणाचाय ी 108 22 काशी यो त रे शमा अजय जैन

वभव सागर जी महाराज का आशीवाद भी ा त 23 कुदाल ममता राखी सरु े शाह जैन
24 केलादे वी दे वाशीष रो हणी गौरव जैन
हो गया ह. आपने अपने माता- पता क बात को
25 कौशा बी जगद श कृ तका अ भिजत जैन
ह नह ं माना बि क उनका मान भी बढाया है .
26 खतोल िजते वनीता संयम जैन
सभी जानते भी है क माँ ह पहल पाठशाला ह.
27 गढ़ाकोटा तभा तनज
ू ा आशीष जैन
28 गया मनीषा माया महावीर जैन

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वि नल मनीषा मनोज पोरवाल हतेश तनज
ू ा हत नर संहपरु ा
29 गोधरा जैन 59 दे वलाल जैन
30 गोपीगंज अ ण वंदना भाकर मथ
ु ा 60 दे वलाल भात अं तम दोशी जैन
31 गोवा रमेश कमला संतोष जैन 61 धनबाद द येश ममता कैलाश सोलंक जैन
32 गोवा सन
ु ील सष
ु मा द प जैन 62 धौरा यंक मला ववेक जैन
33 गोवा गीता सन
ु ीता मोद नागपरु े जैन 63 नतावा दनेश द ती पारस जैन
34 गोवा ह षत डॉल अशोक जैन 64 नद परु ा राजेश शा लनी रतेश जैन
35 गोवा मनन करण कौशल जैन 65 नवसार अ भषेक मंजू महावीर मेहता जैन
गो व द 66 नीमच अ पत राशी अ नल जैन
36 नगर वनय सरु भ सरु े श जैन 67 पचगांव अ नल संगीता रो हत जैन
37 घाटोल पवन कांता संजय कोठार 68 पाटन कमल क वता र तभाई शाह जैन
38 चंपारण चांदनी अंकुश जैन 69 पाटन कंचन क वता र तभाई शाह जैन
39 चपलन ू गीता रं जना महावीर उपा ये जैन 70 पारसोला अंकेश तमा अ भषेक जैन
40 चरगांव रं जन आरती वकास जैन 71 याग कशोर मंगला शां तलाल जैन
41 चरगांव ल लता भ या नतेश जैन यांशी सन
ु ीता मनोज अजमेरा
42 छपरा पंक न या येश जैन 72 बड़ोत जैन
43 जाखलोन आ शका मीनू सध
ु ीर पटवार जैन 73 बनारस राकेश अ मता सभ
ु म जैन
44 जैतपरु संद प श पा सज
ृ न जैन 74 बबीना मु ता पलक अमन जैन
45 झ रया सोऽहं रंक गौरव पाटनी 75 बबीना आ शका अचना सरु े श जैन
46 झाँसी वजय अं कता दनेश जैन 76 बलखंडी मक
ु े श रानू द पक जैन
47 झूसी नलेश रे खा र व कुमार जैन 77 बामोर यते मंजूला सभ
ु ाष जैन
48 ट कमगढ़ ज कशोर रे णु वीन जैन 78 बरहानपरु मयंक शारदा व म जैन
49 डुमर ीतेश रे खा ब पन गंगवाल 79 भदावर स ना बमलेश सतीश जैन
50 दमोह मोद नेहा लोके जैन 80 भभआु योगेश संजना राजीव जैन
51 दमोह महावीर रे खा प जैन 81 मऊ सभ
ु ाष वैभवी अभय जैन
52 दमोह नीरज धरती अ मत जैन 82 मऊरानीपरु चंद ू बंद ु च े श जैन
53 दमोह शवम नरे वकास बांझल जैन 83 मदनपरु परे श सरु भी रमेश जैन
54 दमोह थमेश मानवी अ य जैन 84 महुवा सरु े अ मता िजने वर शाह जैन
55 दग
ु ापरु आ मन शखा सभ
ु म जैन 85 मग ु लसराय सब
ु ोध सध
ु ा वीन कासल वाल
56 दे वलाल गज
ुं न न मता चराग शाह 86 मरु ै ना सोनू पायल सौरभ जैन
57 दे वलाल महावीर वनीता क पेश शाह 87 मेरठ मंगेश नीतू द पे जैन
58 दे वलाल वैभव सम
ु न करण शाह 88 मोद नगर द प क वता वपीन जैन
89 रजवारा व ण कोमल अभय जैन.

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आगामी अंक का
चं कांत चंदना िजतेश म लैया
90 राजापरु जैन
91 रानीगंज मु कान सपना रो हत जैन
92 रामनगर
93 रामपरु
त वी ऋतू सरु े श जैन
अनज
ु अमत
ृ ा कशोर जैन
वषय होगा :
94 रायपरु आ द प मनी बसंत जैन
95 वाराणसी
व ालय, दे वालय और
वैभव आनंद राज जैन
96 शंकरगढ़ पाल मला स दे श जैन
सवाई महावीर बरखा हमांशु पहा ड़या
97 माधोपरु जैन औषधालय/ च क सालय
98 सापत
ू ारा सव
ु णा शालू मेहता जैन
सोमनाथ
99 परू ा रमेश स रता सय
ू कुमार जैन
100 हुगल शव कमलेश संजय जैन

आप अपने लेख/आलेख या
क वता उपयु त वषय पर ह
टाईप करके अपने फोटो स हत
१५ जनवर २०१९ तक
हा सप कर :-

अ हंसा परमो धमः पर.

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वा याय भी परम तप है. नशु क ा त करने के लए

य द आप भी घर बैठे फोन से संपक करे :-

नय मत वा याय करना चाहते


ह तो नमो तु शासन सेवा पी. के. जैन ‘ द प’

स म त पाठशाला से जु ड़ये और
बा. . अ यकुमार जैन
क िजये अपना आ म क याण.
संपक कर :-

आचाय ी वशु धसागरजी


महाराज क व भ न ंथराज पर
हुई दे शना के गुजराती, क नड़,
अं ेजी (इंि लश) और हंद भाषा
म थ ा त करने के लए
नमो तु शासन सेवा स म त के
नंबर पर संपक कर :

-: हमसे जुड़ने के लए तथा इस


प का को अपने फोन पर

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(रिज टड सं था)

602/1, लाड शवा पेरेडाईज, बरला कॉलेज रोड,


क याण (पि चम)
मुंबई –

E-mail : namostushasangh@gmail.com
: pkjainwater@gmail.com
WWW.VISHUDDHASAGAR.COM

आप सभी का आभार
नमो तु शासन सेवा
स म त प रवार
“जय िजने ”
Q QQ

धा मक प का नःशु क वतरण के लए

Q QQ

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