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॥ॐ॥

॥श्री परमात्मने नम: ॥


॥श्री गणेशाय नमः ॥

॥ श्री गोविन्दाष्टकम् ॥

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विषय सूची

॥ श्री गोविन्दाष्टकम् ॥ ...................................................................... 3

भवदीय :

श्री मनीष त्यागी

संस्थापक एवं अध्यक्ष


श्री ह ं दू धमम वैहदक एजुकेशन फाउं डेशन

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॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय: ॥

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॥ श्री हरर ॥
॥ श्री गणेशाय नम: ॥

॥ श्री गोविन्दाष्टकम् ॥

श्रीमद भगित पूज्यपाद आद्य शङ्कराचायय प्रणीतम्

सत्यं ज्ञानमनन्तं वनत्यमनाकाशं परमाकाशं


गोष्ठप्राङ्गणररङ्गणलोलमनायासं परमायासम् ।
मायाकल्पितनानाकारमनाकारं भुिनाकार
क्ष्मामानाथमनाथं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥१॥

परम सत्य, स्वयंप्रकाश, अन्तरवहत, अविनाशी, परमाकाश, परम


प्रकाश रूप, ब्रजकी गोशालाओं के आङ्गण में “गोित्ों के पीछे
दौड़ने में चपल, पररश्रमसे रवहत, कताय भोक्ता, सुखी दु खी होने से
श्रमयुक्त, माया के सम्बन्ध से माने गये अनेक शरीरिाले , आकार से
रवहत, ब्रह्मलोक से लेकर पाताल पययन्त समस्त भुिनमय
आकारिाले, पृथ्वी और लक्ष्मी दोनों के नाथ, और स्वतन्त्र श्रीकृष्ण
परमात्मा को नमस्कार करो ॥ १॥ ॐ ॥

मृत्स्नामसीहेवत यशोदाताडनशैशिसंत्रास
व्यावदतिक्त्रालोवकतलोकालोकचतुदयशलोकावलम् ।

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लोकत्रयपुरमूलस्तम्भं लोकालोकमनालोकम्
लोकेशं परमेशं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥२॥

दू ध दही मक्खनावद समस्त खाद्यपदाथययुक्त घर में वमट्टीको तुम


खाते हो इस प्रकार यशोदा माता द्वारा की गई ताड़ना से बालोवचत
भययुक्त होकर अपना मुख खोलकर यशोदाको चौदहों लोकों के
दशयन करानेिाले त्रयलोकरूपी पुर के आधाररूप समस्त जगत को
प्रकाशमय करनेिाले दू सरे के प्रकाश से प्रकावशत न होनेिाले
सम्पूणय लोकों को प्रेरणा करनेिाले जगत के ईश्वर और ब्रह्मावद दे िता
ओं के विवनयन्ता परमेश्वर श्रीकृष्ण परमात्मा को नमस्कार करो ॥ २
॥ॐ॥

त्रैविष्टपररपुिीरघ्नं विवतभारघ्नं भिरोगप्नं


कैिल्यं निनीताहारमनाहारं भुिनाहारम् ।
िैमल्यस्फुटचेतोिृविविशेषाभासमनाभास शैिं
केिलशान्तं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ ३॥

स्वगय के शत्रु रािणावद िीरों को मारनेिाले पृथ्वी के भार को


हटानेिाले सद् गुरुरूप से सं सारके जन्ममरणरूप रोग को
वमटानेिाले मोिरूप मक्खन का भोजन करनेिाले वतसपरभी
आहार से रवहत स्वरूपसािात्कार से सम्पूणय जगत को
वचन्मात्रािशेष करनेिाले रागावद मलरवहत शुद्ध वचििृवि की
अिस्था में प्रगट होनेिाले कल्याणरूप (केिलशान्तम् ) और दृश्य

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प्रपञ्च के संसगय से रवहत आनन्दकन्द श्री कृष्ण परमात्मा को, हे जीि,
तुम नमस्कार करो ॥ ३ ॥ ॐ ॥

गोपालं प्रभुलीलाविग्रहगोपालं कुलगोपालं


गोपीखेलनगोिधयनधृवतलीलालावलतगोपालम् ।
गोवभवनयगवदतगोविन्दस्फुटनामानं बहुनामानं
गोधीगोचरदू रं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥४॥

गौओं का पालन करनेिाले, सिय सामर्थ्यिान होने से लीलाथय शरीर


धारण करके िेद का पालन करनेिाले पृथ्वी में लीन होनेिाले शरीर
और इल्पियों का पालन करनेिाले गोवपयों के साथ खेल करने के
वलये गोिधयनपियत को अंगुलीपर धारण कर अहीरों को प्यार
करनेिाले िेदिाक्यद्वारा कहे गये गोविन्दावद अनेक नामोंिाले तथा
इल्पिय और बुल्पद्ध की शल्पक्त से परे अथायत् अगम्य श्रीकृष्णपरमात्मा
को, हे जीि, नमस्कार करो ॥ ४ ॥ ॐ ॥

गोपीमण्डलगोष्ठीभेदं भेदाऽिस्थमभेदाभं
शश्वद्गोखुरवनधृतोद् धृतधूलीधूसरसौभाग्यम् ।
श्रद्धाभल्पक्तगृहीतानन्दमवचन्त्यं वचल्पन्ततसद्भािम्
वचन्तामवणमवणमानं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥५॥

गोवपयों के समूह के साथ क्रीडा करनेिाले , गोप, गोपी, गोित्ावद


बहुभेदों से ल्पस्थत वकन्तु िास्ति में अभेदान्वय से एकरस प्रकाशमान,
वनरन्तर गौओं के खुरों से उड़ी हुई धूली से पाण्डु िणय होने को अपना

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सौभाग्य माननेिाले, श्रद्धा और भल्पक्त से ग्रहण वकये जानेिाले
विचारशल्पक्तसे परे , श्रुवतयों द्वारा वनवित सिािाले वचन्तामवण' के
समान भक्तों के मन की अवभलाषा को पूणय करनेिाले अत्यन्त सूक्ष्म
और परम आनन्द दे नेिाले श्रीकृष्ण परमात्माको नमस्कार करो ॥ ५
॥ॐ॥

स्नानव्याकुलयोवषद्वस्वमुपादायागमुपारूढं
व्यावदत्न्तीरथ वदग्वस्रा छु पादातुमुपकषयन्तम् ।
वनधेतद्वयशोकविमोहं बुद्धं बुद्धेरन्तस्थे ।
सिामात्रशरीरं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥ ६ ॥

स्नानमें व्याकुल ल्पियों के ििों को लेकर के कदम्ब िृि के ऊपर


चढ़नेिाले , नग्न होने के कारण ििग्रहण करने की इच्छािाली
गोवपयोंको, िि दे नेके वलये अपने समीप बुलानेिाले शोक और
मोह दोनों का वतरस्कार करनेिाले ज्ञानिान् बुल्पद्ध में ल्पस्थत
रहनेिाले और तीनों काल में एकरस स्वरूपिाले श्रीकृष्ण परमात्मा
को नमस्कार करो ॥ ६ ॥ ॐ ॥

कान्तं कारणकारणमावदमनावद कालघनाभास


कावलन्दीगतकावलयवशरवस नृत्यन्तं बहुनृत्यन्तम् ।
कालं कालकलातीतं कवलताशेषं कवलदोषघ्नम्
कालत्रयगवतहेतुं प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥७॥

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परम सुन्दर प्रकृवत का भी अवधष्ठान सबका कारण अन्य
कारणरवहत प्रलयकाल के मेघ के समान मनोहर, कावलन्दी में
रहनेिाले नाग के फनपर बारबार नृत्य करनेिाले , जगत् के
संहारकताय , काल से अतीत, सम्पूणय जगत् को बनानेिाले , कवलयुग
के दोषों का नाश करनेिाले , प्रातः मध्यान्ह और सायं इन तीनों
संध्याओं के अथिा भूत भविष्यत् ितयमान इन तीनों कालों के
कारणभूत कृष्णचि को नमस्कार करो ॥ ७ ॥ ॐ ॥

िृन्दािनभुवि िृन्दारकगणिृन्दारावधतिन्दे ऽहं


कुन्दाभामलमन्दमेरसुधानन्दं सुहृदानन्दम् ।
िन्द्द्याशेषमहामुवनमानसिन्द्द्यानन्दपदद्वन्द्द्वं
िन्द्द्याशेषगुणाल्पि प्रणमत गोविन्दं परमानन्दम् ॥९॥

िृन्दािनकी भूवम में रासक्रीड़ा के समय दे िता ओं द्वारा पूवजत और


प्रशंवसत सुमेरुप नाम क्रीड़ािाले कुन्द (चमेली) के पुष्प के समान
प्रकावशत मन्द हास्य से अमृततुल्य आनन्द दे नेिाले भक्त जनों को
सुखरूप जगद्वन्दनीय नारदावद महामुवनयों द्वारा आनन्दपूियक मन
में ध्येयचरणकमलिाले शान्त्यावद समस्त सद् गुणों के आधारस्थान
श्रीकृष्णचि को नमस्कार करो ॥ ८ ॥ ॐ ॥

गोविन्दाष्टकमेतदधीते गोविन्दावपयतचेता यो
गोविन्दाच्युत माधि विष्णो गोकुलनायक कृष्णेवत ।
गोविन्दाविसरोजध्यानसुधाजलधौतसमस्ताघो - गोविन्दं
परमानन्दामृतमन्तस्थं स समभ्येवत ॥ ९ ॥

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श्रीकृष्णचि में वचिको अपयण करके गोविन्द के चरणकमल के
ध्यानरूप अमृत द्वारा समस्त पापों को नष्ट करके जो व्यल्पक्त हे
गोविन्द, हे अच्युत, हे माधि, हे विष्णो, हे गोकुलनायक, हे कृष्ण इन
नामों से पुकार कर इस गोविन्दाष्टक का प्रेमपूियक पाठ करता है
िह भक्त परम आनन्दस्वरूप अमृतरूप, मोिरूप, तथा सियदा
हृदय में ल्पस्थत गोविन्द को प्राप्त होता है ॥ ९ ॥ ॐ ॥

हररः ॐ तत्त्-ॐ शाल्पन्तः ! शाल्पन्तः !! शाल्पन्तः !!!

॥ इवत श्री गोविन्दाष्टकम् संपूणयम् ॥

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