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NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE

शोध , साहित्य और संस्कृति की माससक वैब पत्रिका

नयी गज
ं -------.

वर्ष 2022

अंक 2

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NAYI GOONJ – SHODH , SAHITYA EVAM SANSKRITI (MONTHLY) MAGAZINE

संपादक मंडल

प्रमुख संरक्षक

प्रो. दे व माथरु

vishvavishvaaynamah.webs1008@gmail.com

मुख्य संपादक

रीमा मािे श्वरी

shuddhi108.webs@gmail.com

संपादक

सशवा ‘स्वयं’

sarvavidhyamagazines@gmail.com

शाखा प्रमुख

ब्रजेश कुमार

aryabrijeshsahu24@gmail.com

परामशषदािा

कमल जयंथ

jayanth1kamalnaath@gmail.com

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संपादकीय
सशवा ‘स्वयं’

अपनी जन्मभसम को नमन करने,

िम शब्दों की भें ट लाये िैं !

पपरो हदया िै स्यािी में अंिमषन की ज्वाला को,

िम पावन अपनी धरिी मााँ का

वंदन करने आये िैं

अपने आप को पाने के सलए िी िो सारी जद्दोजिद िै ! जीवन का सदप


ु योग
िो सके, िम वो बन सके जैसा बन कर लगे कक िााँ, अब अंदर सक
ु न िै ! पर
ऐसा िो कुछ भी करके िोिा निीं ! मग
ृ िष्ृ णा िै भीिर, बस केवल बढ़िी िी
जािी िै !

समट्टी से अब खुश्ब आिी निीं िै, घरों में माबषल सजा कर उसमें से खुश्ब
अनभ
ु व करने की कोसशश कर रिे िैं िम सब !

ऐसा भी किीं िोिा िै ?

क्योंकक िम वस्िओ
ु से खुद को भर कर, वास्िव में खाली कर रिे िैं ! भरना िै
िो पवचारों को भरो, जो िमें एक हदन परा िो करें गे ! निीं िो संभविः िमारी
पंजी में िीरे मोिी निीं कंकड़ पत्थर िी रि जायेंगे !

एक पपवि प्रेरणा का िाथ पकड़ कर चलो जो इस िरि साथ िोिी िै जैसे मााँ
की ऊाँगली थाम कर चलना, वो जो िमेशा कोमल रास्िो पर चलना निीं
ससखािी, वो िो उबड़ खाबड़ रास्िों का तनमाषण खद
ु िी करिी िै कक उसके बच्चे
को उन रास्िों पर

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चलना आ जाये ! वो ससखािी िै कक िज़ार बार भी गगरो िो कोई बाि निीं


मगर िौसला एक बार भी गगरने मि दे ना !

वो भरोसा ससखािी िै,

अवगण
ु ों से भरे िम, यहद जीवन में गण
ु जोड़ लें िो यि गचरस्थाई संपपि िोगी,
जजससे सच्चा श्ग
ं ृ ार सम्भव िो जािा िै !

िम बिुि मेिनि से कमािे िैँ, अपने जीवन कों सजािे िैँ अच्छे कपड़ो से, बड़ी
गाड़ी से, मिं गे समानों औऱ आलीशान घरों से ! कमाई एक िो बािर के सलए
िोिी िै जो जीवन का बािरी रं ग सन्
ु दर कर दे िी िै लेककन इस बािर कों सजाने
की दौड़ में अंदर से संद
ु रिा िो दर की बाि िै अंदर की िो गन्दगी िक साफ
निीं िो पािी –

ककसी गायक की किी पंजक्ियााँ िैँ कक -

क्यों पानी में मल मल नहाये


मन की मैल उतार ओ प्राणी..
हदन राि पररश्म करके िम चमकने वाली चीज़े िो खरीद लेिे िैँ लेककन
व्यजक्ित्व के रं ग को िो काला िी कर दे िे िैँ - घण
ृ ा, प्रतिस्पधाष, जलन, लोभ
इिने पवकार भर जािे िैँ िम में औऱ िम उनको अपने अंदर की कुरूपिा निीं
मानिे बजकक िम इन पवकारों के साथ जीने के इिने आहद िो जािे िैँ कक
व्यजक्ित्व में इन सब बािों को िम सिज़ मानने लगिे िैँ !

समझना िो इस बाि को पड़ेगा कक जजस िरि ऊपर से चमकने के सलए कुछ


दे र के सलए मेकअप ककया जा सकिा िै लेककन स्थाई चमक के सलए अच्छा
स्वास््य चाहिए उसी िरि अपने भीिर स्वस्थ पवचारों को रख कर िी िम स्वयं
अपने

पवस्िार को पा सकिे िैँ, अन्यथा निीं !’इसी उद्दे श्य की प्राजति की ओर यि


पिला कदम....

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शभ
ु ेच्छा

नयी गज
ूं ------. पररवार
परामशषदािा-
प्रश्न िै कक संस्कृति क्या िै । यं संस्कृति शब्द सम+् कृति से बना िै, जजसका अथष िै अच्छी कृति। अथाषि ्
संस्कृति वस्िुिः राष्रीय अजस्मिा के पररचायक उदाि ित्वों का नाम िै ।

भारिीय सन्दभष में संस्कृति व्यजक्ितनष्ठ न िोकर समजष्टतनष्ठ िोिी िै । संस्कृति की संरचना एक हदन
में न िोकर शिाजब्दयों की साधना का सुपररणाम िोिा िै । अिः संस्कृति सामाससक-सामाजजक तनगध
िोिी िै । संस्कृति वैचाररक, मानससक व भावनात्मक उपलजब्धयों का समुच्चय िोिी िै । इसमें धमष,
दशषन, कला, संगीि आहद का समावेश िोिा िै । इसी की अपररिायषिा की ओर संकेि करिे िुए भिि
ृष रर ने
सलखा िै कक इसके त्रबना मनुष्य घास न खाने वाला पशु िी िोिा िै -

‘‘साहित्यसंगीिकला-पविीनः

साक्षाि ् पशुः पुच्छपवर्ाणिीनः।।

मुख्य संपादक
उपतनर्द् के शब्दों में किें िो संस्कृति में जीवन के दो आयाम श्ेय व प्रेय का सामंजस्य िोिा िै । इन्िीं
आधार पर आध्याजत्मक, वैचाररक व मानससक पवकास िोिा िै और इन्िीं के आधार पर जीवन-मकयों व
संस्कारों का तनधाषरण िोिा िै और यिी जीवन के समग्र उत्थान के सचक िोिे िैं। सशक्षा-िंि में इन्िीं
सांस्कृतिक मकयों का सशक्षण-प्रसशक्षण िोिा िै । विषमान में सशक्षा-व्यवस्था संस्कृति की अपेक्षा
सम्यिा-तनष्ठ अगधक िै । िात्पयष िै कक विषमान सशक्षा पवचार-प्रधान, गचन्िन-प्रधान व मकयप्रधान की
अपेक्षा ज्ञानाजषन-प्रधान िै । वस्िुिः इसी का पररणाम िै कक सम्प्रति सशक्षा के द्वारा बौद्गधक स्िर में
िो असभवद्
ृ गध िुई िै ककन्िु संवेदनात्मक या भावनात्मक स्िर घटा िै ।

संपादक –

िमारी सशक्षा में सांस्कृतिक मकयों के स्थान पर पजश्चमी सभ्यिा-मलक ित्वों को उपादान के रूप में

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ग्रिण कर सलया गया िै । िभी िो सशक्षा व समृद्गध के पाश्चात्य मानदण्डों को आधार मान सलया िै जो
संस्कृति-पवरोधी िैं, जजनमें नैतिक व मानवीय मकयों का पवशेर् स्थान निीं िै । इसी का पररणाम िै कक
बुद्गधमान व गरीब नैतिक व्यजक्ि सामाजजक दृजष्ट से भी िांससये पर िी रििा िै और नैतिकिा-पविीन,
संवेदनिीन, भ्रष्टाचारी व अपराधी भी सम्पन्न, सभ्य, सम्मान्य व प्रतिजष्ठि िोिा िै । इसी संस्कृति-
पविीन व्यवस्था के कारण शोर्ण-प्रधान पंजीवादी व्यवस्था िी ग्राह्य िो गई िै, जजसने रिन-सिन के
स्िर को िो उठाया िै , पर इस भोगवादी बाजारवादी व्यवस्था के कारण अथषशास्ि व िकनीककपवज्ञान के
सामने नैतिकिा व मानवीयिा गौण िो गई िै । जबकक राधाकृष्णन व कोठारी आयोग की मान्यिा थी
कक सशक्षा ऐसी िोनी चाहिये जो सामाजजक, आगथषक व सांस्कृतिक पररविषन का प्रभावी माध्यम बन
सके। इस दृजष्ट से भारिीय प्रकृति और संस्कृति के अनुरूप सशक्षा से िी मकयपरक उदाि-गुणों का
संप्रेर्ण और समग्र व्यजक्ित्व का तनमाषण सम्भव िै । इसमें पुराने व नये का त्रबना पवचार ककये जो दे श
की अजस्मिा व समाज के हििकर िै , उसी को प्रमुखिा दे नी चाहिए।

शाखा प्रमुख की कलम से--


पप्रय पाठकों

संस्थान की पत्रिका नयी गज


ं के पिले अंक का लोकापषण एक आंिररक सुख की अनुभति करा रिा िै ।

मुझे प्रसन्निा िै कक शाखा प्रमख


ु के रूप में कायषभार संभालने के बाद मुझे आप सभी से नयी गंज के
इस अंक के माध्यम से रूबरू िोने का मौका समल रिा िै ।

िम ककिना भी पवकास कर लें ककन्िु यहद समाज में संवेदना िी मर गई िो सब व्यथष िै । इस


संवेदनिीनिा के चलिे समाज में नकारात्मक ऊजाष हदन प्रति-हदन बढ़िी जा रिी िै जो तनन्दनीय भी िै
और पवचारणीय भी। आवश्यकिा िै कक िम अपवलम्ब इस हदशा में अपने प्रयास आरम्भ कर दें ।

वस्िुिः अपने कमों से िम अपने भाग्य को बनािे और त्रबगाड़िे िैं। यहद गंभीरिा से गचंिन-मनन ककया
जाय िो िमारा कायष-व्यापार िमारे व्यजक्ित्व के अनुसार िी आकार ग्रिण करिा िै और िमें अपने कमष
के आधार पर िी उसका फल प्राति िोिा िै । कमष ससफष शरीर की कियाओं से िी संपन्न निीं िोिा अपपिु
मनुष्य के पवचारों से एवं भावनाओं से भी कमष संपन्न िोिा िै । वस्िुिः जीवन-भरण के सलए िी ककया
गया कमष िी कमष निीं िै िम जो आचार-व्यविार अपने मािा-पपिा बंधु समि और ररश्िेदार के साथ
करिे िैं वि भी कमष की श्ेणी में आिा िै । मसलन िम अपने वािावरण सामाजजक व्यवस्था, पाररवाररक

समीकरणों आहद के प्रति जजिना िी संवेदनशील िोंगे िमारा व्यजक्ित्व उिनी िी उच्चकोहट की श्ेणी में
आयेगा।

आज के जहटल और अति संचारी जीवन-वपृ ि के सफल संचालन िे िु सभी का व्यजक्ित्त्व उच्च आदशों
पर आधाररि िो ऐसी मेरी असभलार्ा िै ।

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यि ज़रूरी निीं िै कक िर कोई िर ककसी कायष मे पररपणष िो, परन्िु अपना दातयत्व अपनी परी कोसशश से
तनभाना भी दे श की सेवा करने के समान िी िै । संपणष किषव्यतनष्ठा से ककया िुआ कायष आपको अवश्य
िी कायष-समाजति की संिुजष्ट दे गा। कोई भी ककया गया कायष िमारी छाप उस पर अवश्य छोड़ दे िा िै
अिएव सदै व अपनी श्ेष्ठिम प्रतिभा से कायष संपन्न करें । िर छोटी चयाष को और छोटे -से-छोटे से कायष
के िर अंग का आनंद लेकर बढ़िे रिना िी एक अच्छे व्यजक्ित्व का उदािरण िै ।

यि सवषपवहदि ि्य िै कक नयी गंज एक उच्च स्िरीय पत्रिका िै जजसमें पवसभन्न पवधाओं में
उच्चस्िरीय लेखों का अनठा संग्रि िै

आप सभी पत्रिका का आनन्द लें एवं अपनी प्रतिकियायें ऑनलाइन या ऑफलाइन भेजें।

नयी गंज के माध्यम से िमारा आपका संवाद गतिशील रिे गा। आप सभी अपनी सुन्दर व श्ेष्ठ रचनाओं
से नयी गंज को तनरन्िर समृद्ध करिे रिें गे इसी पवश्वास के साथ।

अंि में मैं सभी सम्पादक मण्डल के सदस्यों एवं रचनाकारों को नयी गंज पत्रिका के सफल सम्पादन
एवं प्रकाशन के सलए साधुवाद ज्ञापपि करिा िं करिा िाँ ।

आप सभी को िाहदष क बधाई के साथ बिुि-बिुि धन्यवाद!!

कासलदास ने काव्य के माध्यम से किा िै -

पुराणसमत्येव न साधु सवं


न चापप काव्यं नवसमत्यवद्यम ्।
सन्िः परीक्ष्यान्यिरद् भजन्िे
मढः परप्रत्ययनेय बुद्गधः।।

अथाषि ् पुरानी िी सभी चीजें श्ेष्ठ निीं िोिी और न नया सब तनन्दनीय िोिा िै । इससलए बुद्गधमान
व्यजक्ि परीक्षा करके जो हििकर िोिा िै उसी को ग्रिण करिे िैं जबकक मखष दसरों का िी अन्धानुकरण
करिे िैं।
अस्िु, तनपवषवाद रूप से यि सभी स्वीकार करिे िैं कक राष्र की रक्षा, का सकारात्मक पक्ष िोिा िै ।

प्रकाशन सामग्री भेजने का पिा

ई-मेलःgoonjnayi@gmail.com

नयी गंज इंटरनेट पर उपलब्ध िै । www.nayigoonj.com पर जक्लक करें ।

नयी गंज में प्रकासशि लेखाहद पर प्रकाशक का कॉपीराइट िै

शुकक दर 40/-

वापर्षक: 400/-
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िैवापर्षक: उपयक्
ुष ि शुकक-दर का अगग्रम भुगिान 1200/-

को -----------------------------------------द्वारा ककया जाना श्ेयस्कर िै ।

तनयम तनदे श
1 रचनाएं यथासंभव टाइप की िुई िों, रचनाकार का परा नाम, पद एवं संपकष पववरण का उकलेख
अपेक्षक्षि िै ।

2 लेखों में शासमल छाया-गचि िथा आाँकड़ों से संबंगधि आरे ख स्पष्ट िोने चाहिए। प्रयुक्ि भार्ा
सरल, स्पष्ट एवं सुवाच्य हिंदी भार्ा िो।

3 अनुहदि लेखों की प्रामाणणकिा अवश्य सुतनजश्चि करें । अनुवाद में सिायिा िे िु संस्थान संपादक
मंडल प्रकोष्ठ से संपकष कर सकिे िैं।

4 प्रकासशि रचनाओं में तनहिि पवचारों के सलए संपादक मंडल प्रकोष्ठ उिरदायी निीं िोगा और
इसके सलए परी की परी जजम्मेदारी स्वयं लेखक की िी िोगी।

नई गाँज तनयमावली

रचनाएूं goonjnayi@gmail. Com ई-मेल पते पर भेजी जा सकती हैं। रचनाएूं भेजने के ललए
नई गूँज के साथ लॉग-इन करें , यह वाूंछित है ।आप हमारे whatsapp no. 9785837924
पर भी अपनी रचनाएूँ भेज सकते हैँ

पप्रय सागथयों,
नई गाँज िे िु आपके सियोग के सलए आपका िाहदषक धन्यवाद। आशा िै कक ये
संबंध आगे भी प्रगति के पथ पर अग्रसर रिें गे। आगामी अंक िे िु आप सबके
सकिय सियोग की पन
ु ः आकांक्षा िै। आप सभी से एक मित्वपणष अनरु ोध िै
कक आप अपने शोध प्रपि तनम्न प्रारूप के ििि िी प्रस्िि
ु करें जजससे कक िमें
िकनीकी जहटलिाओं का सामना न करना पड़े -
1.प्रकाशन िे िु आपकी रचना के मौसलक िोने का स्वतः सत्यापन रचना प्रेपर्ि
करिे समय "मौसलकिा प्रमाण पि" पर िस्िाक्षर करना अतनवायष िै । इसके
त्रबना रचना पर पवचार करना संभव निीं िोगा

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2. रचना किीं पर भी पवष में प्रकासशि निीं िोनी चाहिए !


3. आपकी रचनाएूँ एम.एस. ऑकफस में टाइप होना चाहहए
4. फोंट - कृछतदे व 10, मूंगल यछनकोड
5. रचनाओूं के साथ अपना पणण पता, मोबाइल नूंबर, ईमेल तथा पासपोटण साइज की
फोटो लगाना अपेक्षित है !
6. आप लेख, कववता, कहानी, ककसी भी ववधा में रचनाएूँ भेज सकते हैँ !

नई गाँज रचनाओं के प्रेर्ण सम्बंगधि तनयम व शिे :


एक से अधधक रचनायें एक ही वडण-डॉक्यमेंट में भेजें।
रचनायें अपने पूंजीकृत पेज पर हदए गए ललूंक इस्तेमाल कर प्रेवित करें ।
यहद आप हहूंदी में टाइप करना नहीूं जानते हैं, आप गगल द्वारा उपलब्ध
करवायी गयी ललप्यान्तरण सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके ललए Google
इनपट
ु उपकरण ललूंक पर जाएूँ।
स-आभार

संपादक मंडल

Note:- प्रत्येक रचना लेखक की स्वयं मौसलक िथा सलणखि


िै ! इसमें लेखक के स्वयं के पवचार िैं िथा कोई िहु ट िोने
पर लेखक स्वयं जजम्मेदार िोगा!
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ix
अनुक्रमाणिका
क्रम णििरणिका पृष्ठ संख्या
संख्या

लेख – लेखक पृष्ठ संख्या

1 मैं हार से भी सीख लेता हं! ब्रजेश कु मार 1–4


2 िो रामगढ़ था ये लालगढ़ तारके श 5–6
कु मार
ओझा
3 पैसा बोलता है! डॉ णशिा धमेजा 7 – 11
कणिता

4 कदम णमलाकर चलना होगा अटल णिहारी 12 – 14


िाजपेयी
5 चचता अमरें द्र सुमन 15 – 17

6 उदास ककताबें ऋणि चसह 18 – 19


7 णशि प्राथथना देि दीपक 20 - 21

8 प्यासी प्रिीि भंडारी 22-24

कहानी

9 अधूरे सपने बृजश


े कु मार 25-31
10 स्माटथ फोन डॉ णिजय कु मार 32 – 43
पुरी

गीत

11 पैराडी गीत – छात्र बेचारे इं जी. 44 - 46


पशुपणतनाथ
लोक कथा –
12 छत्रपणत महाराज णशिाजी की उदारता 47 – 49

नारी तुम अबला नहीं सबला हो

13 कल्पना चािला 50 – 53
आलेख –

14 क्या अणनिायथ णमणलट्री सेिा में सेना का डॉ चंद्रकांत 54 - 65


णहत होगा? पक्ष / णिपक्ष णतिारी

15 ऐणतहाणसक स्थल एक नजर – कु म्भलगढ़ 66 - 71


(राज.)

साणहत्य पुरस्कार के बारे में जाणनए


16 ज्ञानपीठ पुरस्कार 72 – 74

17 आयुिेद – जीिन अमृत 75 – 77


साक्षात्कार

18 साक्षात्कार – साणहत्य 78 – 85
19 साक्षात्कार - आर. जे. एस. 86 - 91
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मैं हार से भी सीख लेता हूँ !

ठोकरें खाऊूँगा पर शान से चलूंगा,

खुले आसमान के नीचे रहता हूं

सीना तान के चलूंगा,

मश्ु ककलें तो आती रहें गी श् ूंदगी में,

लडग
ूं ा हर मुसीबत से

मैं ये ही ठान के चलूंगा!

(अज्ञात)

यह कविता की पंक्ततयां इस बात की ओर संकेत करती है कक प्रत्येक मनष्ु य


के जीिन में कुछ ना कुछ संघर्ष होते हैं! हो सकता है ककसी के यहां ज्यादा हो
और ककसी के यहां कम! लेककन इसका मतलब यह तो नह ं कक हम संघर्ष से
घबराकर, हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाये! श् ूंदगी सूंघर्ष का नाम है ! इसमें जीत
भी ममलती है और हार भी! यदद आप जीत जाते हो तो विजेता कहलाते हो तथा
हार जाते हो तो अपने साथ अनभ
ु िों तथा कामयाबी के रास्तों से पररचित हो
जाते हो! क्जससे आप थोडी और मेहनत करके अपनी मंक्जल को प्राप्त कर
लोगे!

क्जस व्यक्तत ने अपने जीिन काल में कभी हार ना दे खी हो, उस व्यक्तत को
तया पता हार तया होती है अथाषत संघर्षपर्
ू ष जीिन तया होता है! उस व्यक्तत
के जीिन में थोडी मस
ु ीबत आने पर ह टूट जाता है और अपने जीिन को
बबखेरने में ज्यादा समय नह ं लगाता! इसका कारर् यह है कक उसने अपनी
क्जंदगी में कभी मस
ु ीबतों का सामना ककया ह नह ं! क्जसके कारर् ना ह िह

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उनसे लड पाता है ! तथा क्जस व्यक्तत का जीिन संघर्ष में पला बडा हो, िह
व्यक्तत पहाडों के समान मस
ु ीबत आने पर भी आसानी से झेल लेता है और
उनका अपनी बद्
ु चिमता से समािान ननकाल लेता है !

“ ो मनष्ु य अपनी हर कोशशश से, अपने हर प्रयास से कुछ ना कुछ


सीखता है , वही सकारात्मक होता है ! और अपनी मूंश् ल की ओर ते ी
से बढ़ता है , लेककन ो अपनी हर असफल कोशशश को नकारात्मक
तरीके से दे खता है , उसके कारण ननराश होता है – वह अपने लक्ष्य
की ओर कभी नहीूं बढ़ पाता!”

अनेक महापरु
ु र्ों के जीिन काल को दे खें तो उन्हें सािारर् मनष्ु य से महापरु
ु र्
बनने में ककतनी बार अपने जीिन में हार का सामना करना पडा होगा! लेककन
उन्होंने अपने जीिन काल में हार से समझौता नह ं ककया! बक्कक उसे अपने
जीिन का हार अथाषत (आभर्ण) मानकर पहन मलया! और अपने रास्ते पर
ननरं तर बढ़ते ह िले गए! आज उनका जीिन ह हमारे मलए प्रेरर्ा का स्रोत
बन गया! आज क्जसे हम भगिान राम कहते हैं उनके जीिन में पल पल पर
असफलताएं ममलने पर भी कभी समझौता नह ं ककया बक्कक िे हर बार एक नई
उम्मीद के साथ आगे बढ़ते गए! उनके जीिन में अनेक घटनाएं घट ! जब सीता
का हरर् हुआ तब िह यह सोि कर घर िापस नह ं आए! कक इतने शक्ततशाल
रािर् से कौन यद्
ु ि करे गा? और िह यह भी जानते थे कक बाल ने रािर् को
कई बार यद्
ु ि में परास्त कर रखा है कफर भी ना ह उन्होंने बाल से सहायता
मांगी! बक्कक उन्होंने अपनी शक्तत को संजोया और लंकापनत रािर् को सदा
के मलए समाप्त कर ददया! उनका संपर्
ू ष जीिन संघर्ष और िन
ु ौनतयों से भरा
रहा कफर भी उनके िेहरे पर एक मसकन मात्र भी नह ं थी! यह कारर् है कक
आज भी लोगों उन्हें मयाषदा परु
ु र्ोत्तम राम के नाम से जानते हैं!

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ऐसे महापरु
ु र् श् न्होंने अपने ीवन काल में परा य को ही वव य
का मागष बनाया –

 मैं हर कदम पर हारा हूं , न्मा केवल ीत के शलए हूँ ! - एमरसन


 इतने कम ोर मत बनो कक कोई आप को तोड़ सके बश्कक इतना म बत
बनो की आप को तोड़ने वाला खुद ही टट ाए – आचायष चाणक्य
 ववफलता का मौसम सफलता के बी बोने का सवषश्रेष्ठ समय है -
परमहूं स योगानूंद
 प्रयत्न करने से कभी ना चके, हहम्मत नहीूं तो पहचान नहीूं, ववरोधी नहीूं
तो प्रगनत नहीूं – अज्ञात
विद्िान व्यक्तत यह मानते हैं कक विजय के बीज हार की खाद ममट्ट में ह
पलते बढ़ते हैं! इन बीजों को पनपने में समय लग सकता है , लेककन क्जतना
समय इन बीजों को हार की खाद ममट्ट से जझ
ू ते हुए पनपने में लगता है,
उतने ह ये मजबत
ू होते हैं और क्जतना कम समय इन बीजों को पनपने में
लगता है, उतने ह ये कमजोर होते हैं!
इसमलए ककसी कवि ने अपनी कविता के माध्यम से हार से भी ना घबराकर
उससे सीखने तथा अनभ
ु ि प्राप्त करने के मलए ननरं तर प्रयासरत रहना िादहए
अथाषत ् इन पंक्ततयों के माध्यम से यह संकेत ददया है कक -

कोई भी कोशशश कभी नाकाम यूँ होती नहीूं !


मूंश्िले न भी शमली, तो फासले घट ायेंगे !

व्यक्तत जीिन में अचिक संघर्ष करता हुआ, पराजय को सहता हुआ, उसके द्िारा
उत्पन्न अनभ
ु िों से आखखर विजय तक पहुुँि ह जाता है ! औऱ उसकी यह
पराजय अंत में विजय में बदल जाती है !

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मैं हारा नहीूं अब भी, मैं हारा नहीूं तब भी

बहुत शमले झूंझावात मझ


ु ,े

मैं श् तना लड़ा उनसे, श् तना भी आहत हुआ,

उतना ही मिबत हुआ, कोई हरा नहीूं पाया,

हर हार ने, अगली ीत दी मुझे

मैं हारा नहीूं अब भी, मैं हारा नहीूं तब भी!

ब ृ ेश कुमार

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िो रामगढ़ था ये लालगढ़ ....!!

यादों के जनरल स्टोर में कुछ स्मनृ तयां स्पैम फोकडर में पडे रह कर समय के
साथ अपने – आप डडल ट हो जाती है , लेककन कुछ यादें बेताल की तरह हमेशा
मसर पर सिार रहती है , मानो िीख – िीख कर कह रह हो मेरा क्जक्र ककए
बगैर तुम्हार क्जंदगी की ककताब परू नह ं हो सकती। ककस्सा 2008 के मध्य
का है ! तब मेरे ह क्जले पश्कचम मेहदनीपरु के जंगल महल के दग
ु म
ष लालगढ़
में माओिाददयों का दस्
ु साहस िरम पर था! अपने शीर्ष कमांडर ककशनजी की
तमाम विध्िंसात्मक कारगज
ु ाररयों के बीि माओिादयों ने स्थानीय थाने पर
ताला जड रखा था! भार उहापोह के बीि िहां पमु लस और अिष सैननक बलों
की संयत
ु त फोसष ने लालगढ़ मे आपरे शन शरू
ु ककया! कर ब छह ककमी लंबे
खझटका जंगल में कोबरा िादहनी के प्रिेश के साथ अमभयान शरू
ु हुआ! इसके
बाद सैकडों की संख्या में सरु क्षा जिानों के साथ हम शहर को लौटने लगे!
दजषनों गाडडयों में सिार सरु क्षा जिान लैंडमाइंस से बिते हुए आगे बढ़ रहे थे !
दो बाइकों में सिार हम िार पत्रकार कुछ ज्यादा ह जोश में शहर की ओर बढ़
रहे थे! स्टोर फाइल करने की हडबडी में हमें अंदाजा भी नह ं था कक आगे भार
विपवत्त हमारे इंतजार में खडी है ! वपंडराकुल के नजद क अिानक जोर के
िमाके के साथ सबसे आगे िल रहा पमु लस महकमे का सफेद रं ग का टाटा
सम
ू ो खड्ड में जा िंसा और बबककुल कफकमी अंदाज में गोमलयों की तडतडाहट
के साथ यंू भगदड मिी कक शोले कफकम का रामगढ़ याद आ गया! िैसे एक
रामगढ़ लालगढ़ में भी है , जो घटनास्थल से कुछ ह दरू पर था ! अिानक हुई
गोमलयाुँ की बरसात से सरु क्षा जिानों ने तो पोजीशन लेकर जिाबी फायररंग
शरू
ु कर द ! लेककन हम कलमकार तया करें समझ में नह ं आ रहा था....
अिानक कह ं से आिाज आई खेतों में लेट जाइए! हमने ऐसा ह ककया! दोनों
ओर से बराबर गोमलयाुँ िलती रह ! मौत हमारे मसर पर खडी थी कक तयोंकक

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शाम होने को था! अपनी मांद में लाशें बबछाना माओिाददयों के मलए कोई
बडी बात नह ं थी! कफर अिानक जाने तया हुआ....गोशलयों की आिाजें थम गई!
शाम के हकके अंचियारे के बीि फोसष का काक़िला कफर मख्
ु यालय लौटने की
तैयाररयों में जुटा! अपडेट के मलए हम अमभयान का नेतत्ृ ि कर रहे िर य
पमु लस अचिकार के पास पहुंि!े हमें दे खते ह अचिकार िीखा... प्रेस िाले
पमु लस की गाडडयों से दरू रहें .... आप लोग बबलकुल पीछे जाइए ..... घने
जंगल में अंिेरे में रास्ता तलाशते हुए जैसे – तैसे शहर लौटे और ड्यटी परी
की ! दस
ू रे ददन अखबारों में मठ
ु भेड की खबर छपी थी , क्जसमें राज्य सरकार
के आला अचिकार का बयान भी था क्जसमें माओिाद प्रभावित इलाकों में
मीडडया कममषयों से पमु लस की गाडी के पीछे नह ं िलने की अपील की गई
थी, बाद के दौरों में हमने साििानी बरतने की भरसक कोमशश की.... इस
तरह कभी न भल
ू ने िाला यह िाकया जीिन का सबक बन गया!

तारकेश कुमार ओझा

ीवन की हर समस्या ट्रै कफक की लाल बत्ती की तरह होती है ,


यहद हम थोड़ी दे र प्रतीक्षा कर लें ,
तो वह हरी हो ाती है ,
धैयष रखें समय बदलता ही है स ,प्रयास करें ,

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ये पैसा बोलता है

ककतनी अच्छी और ककतनी सच्िी बातें करते हैँ हम, लेककन इनकी
ताकत के आगे सब कुछ ढे र हो जाता है !

ये पैसा बोलता है .... ये पैसा बोलता है .....

अब तो बहुत आदद है जीिन, ऐसे जीिन का ! खुद आप 2 जोडी


कपडों में खुश हो तब भी दनु नया आप की इस खुशी से खुश नह ं
होगी,

िो तो आप की अलमार में सौ जोडी महं गे कपडे भरिा ह दे गी.. िाहे


आपका पसषनल विर्य है ये, जीिन तो आखखर आपका है , आपकी मर्ज़ी
कक आप कैसे जीकर संतुष्ट हैँ ! लेककन हम में से अस्सी फीसद
जीिन, िो जीिन जी रह है , जैसा दनु नया ने अपेक्षा की है उनसे ’!

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गाडी और घर खद
ु के सख
ु से ज्यादा दनु नया के दे खें जाने के मलए
बनाये जाते हैँ तयोंकक दे खने िाला तो आपका घर, गाडी, कपडे, रहन
सहन दे ख कर अंदार्ज़ लगा लेगा ककतना कमाया आपने... िो ददखाने
का सरल सािन......

सबसे पहले पैसा आया तो घर िनाएंगे कफर कुछ साल में गाडी.... कफर
बच्िों के मलए अच्छे स्कूल, कॉलेज.... आदद आदद...

ये ददखािा कमाते कमाते उम्र की कीमत खिष हो जाती है लेककन


ददखािे का पेट भरता ह नह ं, क्जतना खखलाओ िो खाल ह रहता है
’!

हम सच्िी बातें करते हैँ, बडी बातें करते हैँ, लेककन उन पर अमल नह ं
कर पाते ऐसी ताकत होती हम में तो सबके बच्िों को इंक्ललश
मीडडयम स्कूलों में जाते दे ख कर भी अपने बच्िे को िैददक स्कूल में
डालने की दहम्मत करते..... लेककन हकीकत का िरातल हमसे िो ह
करिाता है जो र नत िल आ रह है ..... ये पैसा बोलता है ...........

तभी तो भीड है इंक्ललश मेडडयम स्कूलों में , इसमलये नह ं कक अच्छा


पढ़ायेंगे... इसमलये कक बच्िे ने िहाुँ से पढ़ाई की... इस बात की मोहर
लग जाएगी !

आदमी िमष कम कमा ले तो उसे याद भी नह ं रहता लेककन िन कम


कमा ले तो िलता नह ं! , पैसा अब रोट , कपडा, मकान के मलए नह ं
कमाना होता, पैसा अब िाह िाह पाने के मलए ज़्यादा कमाना पडता है
!,

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कल शोरूम से नई गाड़ी ननकलवाई, पड़ोसी, ररकतेरदार सबने दे खी बहुत


खुश होकर बधाई दी.... थोड़ा समय बीता... थोड़ा और

अरे ! भाई कब तक इस खटारा से काम चलाओगे, अब तो गाड़ी बदल


लो, नई ले लो.... इतना पैसा तो होगा बैंक में ... नहीूं तो लोन पर ले
लो...

साूँसों को बेच कर कागिो के ढे र पर बैठ ाते हैँ हम, और हर कोई


ये कागिो की सीट सामने वाले से ऊूँची ही वनाना चाहता है वो भी
वो, ो सीट भी स्थाई नहीूं, हमेशा ही टे म्पररी रहतीूं है , वो तो ट्राूंसफर
होती रहतीूं है !

लगातार चलती इस प्रनतयोगगता के हम सब भागीदार हैँ, हमें उस


बैलेंस को बनाना है , ो अपना कभी हो नहीूं पाता और उस बैलेंस को
खो दे ते हैँ, ो अपना होता है ! लेककन ये पैसा बोलता है .........

मैं बाहर ही कागि छापती रही, कलेक्टर बन कर दे श सेवा के साथ


कुसी का रुतबा भी शमलता रहा, इसके पीछे क्या रह गया, कभी पता
नहीूं चल पाया... ो बीतती गई वो साूँसे थीूं, ो स्थाई नहीूं कफर भी
कोई बात नहीूं........ बढ़े हो गए वो... और हम बड़े... बड़े आदमी !

हम दे ख न पाए कोई सख
ु दुःु ख उनका....! हम बड़े आदमी हो गए !

हर चीि कीमती है मगर वो मकय से आूँकी ाती है अब उपयोगगता


से नहीूं ! अब कीमती वो है श् सका मकय अगधक है वो नहीूं ो गण
ु ी
अगधक !

आ कल सम्मान व्यश्क्त का नहीूं होता कोई ककसी का सम्मान


उसकी प्रनतभाओूं के शलए नहीूं करता, वो ककतना धनी है इसशलये

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करता है ! आप बड़ी आशलशान गाड़ी में ककसी, दोस्त या ररकतेदार से


शमलने ाइये कफर दे खखये........ ये पैसा कैसे बोलता है ! तब ना
आपके शलए नसीहते होंगी, ना आपमें कोई बुराई होगी ! हमारी गाड़ी,
हमारे सारे अवगुण नछपा लेगी और लोग अनायास ही हमारी प्रशूंसा
करने लगें गे !

धन हमारी अवकयकताओूं को परा करने और कुछ भववष्य के शलए


ोड़ने श् तना होना चाहहए! उतना श् तना हमारे आ और कल दोनों
को सूंवार सकें !

इसके बल पर ो भी हमें शमल रहा है अगर वो मान सम्मान भी है


तो उसे अपना ना समझो क्योंकक वो तो उस पैसे का है ,

कल अगर हम बड़ी गाड़ी की गह बस में उन्हीूं सबसे शमलने चले


ाएूं तो कई नसीहते और हमारी कशमयाूँ सब अच्छी तरह बोलने
लगें गे ! सम्मान कहीूं छ – मूंतर हो ाता है !

आप कैसे है , ये आ कोई महत्व नहीूं रखता ! आप ककतने पैसे वाले


हैँ ये महत्व रखता है !

इस कड़वे सच को हम सब ानते हैँ और कफर भी समा या पररवार


के अच्छे बरु े व्यवहार से प्रभाववत होते हैँ ! अपना मकयाूंकन, उनके
अनुसार करने लगते हैँ’!

उनका मकयाूंकन केवल तब तक ऐसा है िब तक हम ने पैसा नहीूं


कमाया ! यानन वे हमें अगर सम्मान भी दें गे वो भी वास्तव में हमारा
नहीूं होगा ! तो कफर खद
ु पर प्रभाव क्यों आने हदया ाये ?

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पैसा इसशलये कमाएूं कक हम आत्मननभषर हों, अपनी और पररवार क़ी


हर आवकयकता परी कर सकें! इसके कम या ज्यादा होने से लोगों
की प्रनतकिया पर ध्यान ना दें ! क्योंकक

ये पैसा बोलता है ...............

शशवा धमे ा

यूँ िमीन पर बैठकर क्यों आसमान


दे खता है !
पूँखों को खोलकर दे ख, माना उड़ान
दे खता है !

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कदम शमलाकर चलना होगा

अटल बबहारी वा पेई

क़दम शमला कर चलना होगा

बािाएुँ आती हैं आएुँ

नघरें प्रलय की घोर घटाएूँ,

पािों के नीिे अंगारे ,

शसर पर बरसें यहद ज्वालाएूँ,

ननज हाथों में हुँसते-हुँसते,

आग लगाकर लना होगास

क़दम ममलाकर िलना होगा।

हास्य-रूदन में , तफानों में ,

अगर असंख्यक बमलदानों में ,

उद्यानों में , वीरानों में ,

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अपमानों में , सम्मानों में ,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,

पीड़ाओूं में पलना होगास

क़दम ममलाकर िलना होगा।

उश् यारे में , अूंधकार में ,

कल कहार में , बीि िार में ,

घोर घण
ृ ा में , पत प्यार में ,

क्षखर्क जीत में , द घष हार में ,

ीवन के शत-शत आकर्षक,

अरमानों को ढलना होगा।

क़दम शमलाकर चलना होगास

सम्मख
ु फैला अगर ध्येय पथ,

प्रगनत चिरं तन कैसा इनत अब,

सश्ु स्मत हवर्षत कैसा श्रम कलथ,

असफल, सफल समान मनोरथ,

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सब कुछ दे कर कुछ न माूंगते,

पािस बनकर ढलना होगा।

क़दम शमलाकर चलना होगास

कुछ काूँटों से सश्ज् त ीवन,

प्रखर प्यार से िंचित यौिन,

नीरवता से मुखररत मधुबन,

परदहत अवपषत अपना तन-मन,

ीवन को शत-शत आहुनत में ,

जलना होगा, गलना होगा।

क़दम शमलाकर चलना होगास

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गचन्ता

ीवन में और भी कई रास्ते हैं

सहुशलयत के साथ सूंघर्ष करते हुए रोटी कमाने के

दो मरे , चार घायल में ही कफर परी श् द


ूं गी मग मारी क्यों ?

ढूं ढ़ क्यों नहीूं लेते कोई दसरी नौकरी ?

खुद का ही खुद से कोई

रो गार खड़ा क्यों नहीूं कर लेते ?

ककतना कहठन है

टुकड़े-टुकड़े की कमाई से

घर-पररवार चलाना ानते हुए भी....... ?

बीच-बीच में

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बबना मौसम के बाररस की तरह

टपक पड़ने वाले लोगों की सेवा अलग से ?

ऑन लाईन ऑडषर पर

सुईगी से वपज् ा, बगषर

कफलपकाटष से लेगगन्स, सरारा

और चेतन भगत की पस्


ु तकें अमे न से

दसरों की नकल करते इन बच्चों को भला कौन समझाए !

इन गहनों की खुशशयाूँ तो दे खो

वर्ों से आलमारी की दरा में पड़े

हूँसे ा रहे तुम्हारी बेवककफयों पर ो बड़े इश्त्मनान से !

सुना है बड़ी ठाकुरबाड़ी में बडी भीड़ रहती है इन हदनों

कुण्डली दे ख समाधान बताया करते हैं ज्योवर् ी ी महारा !

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दीदी कह रही थीूं

यहीूं क्यों नहीूं आ ाती

कोई तो व्यवस्था बनेगी हीस

नया वर्ष

शायद शभ
ु हो !

सुन रहे हो न

तुम्हें ही कह रही हूँ ?

सुबह से दे र शाम तक काम की थकान के बाद

नरम – नरम हाथों से बबस्तर मेरा सर सहलाती पत्नी

खामोशशयों के रे गगस्तान में बेसध


ु हो कब सो गई मझ
ु े भी
पता नहीूं स

(अमरें द्र सुमन)

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उदास ककताबें
िब
ु ाूँ खामोश थी, श् स्म पे कई राि समेटे थी,

िक़्त का हर अक़िार्ज़, िो पन्नो में लपेटे थी,

बीती सहदयाूं श् कद उसपे चढ़ा गयीूं कुछ ऐसे,

और मसखा गयीं हर ककसी को अनेकों ़िलस़िे,

उसमे प्रेम है , ज़्बा है , ककस्से हैं बहादरु ी के,

मसयासत है ,मतकार है और ररश्ते है मजबूर के,

वो गखणत की ादगर है , ववग्यान की पहे शलयाूँ,

भार्ाओं की ज्ञाता, है कृष्र् की अठखेमलयां,

गीता के वचन वही और कुरान की आयतें हैं,

नानी की कहानी और क्र्ज़न्दगी की कक़िायतें हैं,

पर ना ाने ये दौर कौन सा आया है ,

खुद में मसमटे हैं और मोबाइल हाथ आया है ,

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ये मशीन के गुलाम आखखर कब तक बने रहें गे,

कंप्यूटर के पदे पर, ददन कब तलक गुर्ज़रें गे,

निर उठा कर दे ख लेना कभी फुरसत में आकर,

िो खर्ज़ाना जो रखा है तुमने अलमार में दबाकर,

अरे एक बार त उसको अपना शलबाि बना दे ,

बस तेर एक नर्ज़र को तरसती िो, उदास ककताबें .....

©ऋवर् शसूंह ‘गूं ’

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शशव प्राथषना

हे महादे व शूंभो हे केदार

आ पहुूंचा हूं तेरे द्वार

शरणागत हूं इन चरणों में

अब तो कर दो मेरा उद्धार

हे नीलकूंठ तुम स्वामी मेरे

तम
ु ही हो छाया तम
ु ही सूंसार

मैं अज्ञानी हूं अब तेरे भरोसे

अब तो कर दो मेरा उद्धार

हे पशप
ु नतनाथ हे कैलाशी

आपकी महहमा है अपरम्पार

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मैं चिव्यह में फसा हुआ हूं

अब तो कर दो मेरा उद्धार

हे मूंगलकारी हे बिनेिधारी

तुम सब गुणों के हो भूंडार

मेरे सब अवगुण नाश करो

अब तो कर दो मेरा उद्धार

हे त्र्यूंबकेकवर हे महाकाल

हे ववकवनाथ हे पालनहार

नष्ट करो सूंताप ीव का

अब तो कर दो मेरा उद्धार

दे व दीपक

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प्यासी

आूँखों में आूंस, चेहरे में हूं सी लेकर

खड़ी वो दरवािे में रोि

उसे खोि ननकले ह ारोंा़ लोग रोि

दबोचने के शलए परी करने लगे कसर

बे-असर सी हो गई है अब

बैठी मरत-सी वो कफर तैयार हुई उसके ाने के बाद

न शशकायत ककसी से, न है कोई फररयाद

अपनी लालसा बचा के करती है लोगों की कसर परी

कोई समझे इसे चाहत तो कोई मिबरी

बेबुननयादी बातों से खा ाती है अपना ही सर

अकेले ही ीती है अकेले ही ाना है मर

ना कर सकती सपने परे , इस समाि में रह कर

आूँखों में आूंस, चेहरे में हूं सी लेकर

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खड़ी वो दरवािे में रोि

उसे खोि ननकले ह ारोंा़ लोग रोि

कफर भी वो पागल-सी सध
ु -बध
ु खोए बैठी है उसी समा रूपी
काूंच में

क्योंकक लता है चकहा उसका उसी समा की आूंच में

रोती आूँखों में उसके एक खुशनुमा बचपन हदखाई दे ता है

छोटी-सी गुडड़या को सपने में रा कुमार हदखाई दे ता है

दौड़ के ो आता था घोड़ो में अक्सर

वो अब उसे रोि नन्गे बदन हदखाई दे ता है

छोटे -से कमरें में श्िन्दगी ी गई

समाि के खानतर वो हर पी गई

इज्ित दे कर भी ना शमलती इज्ित इधर

बबना हदए ही बरन लेली ाती है

हुस्न के बािार में , पैसों से कीमत लगाई ाती है

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स ती है श् सके शलए वहीूं उसे रौंद आता है

हवस के नन्गे नाच में उसे अकेला ढकेल ाता है

वो बरु ी है तो बरु ा है वो हर एक आदमी भी

ो उसके हुस्न का लवा बबखेर-कर खा ाता है

प्रवीण भूंडारी

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अधरे सपने

शीतकालीन सूंध्या काल का समय था! पशु पक्षी अपने घरों की ओर लौट रहे
थे! साय-साय करती ठूं डी ठूं डी हवाएूं चल रही थी! कपकपाती सदी में नतवारी ी
कूंबल ओढ़ कर आूंच के पास बैठक में बैठे हुए थे! तभी अचानक नतवारी ी का
बेटा रा ेश गचकलाता है कक वपता ी कमला को अस्पताल ले ाना पड़ेगा!
कमला को प्रसव पीड़ा अगधक बढ़ती ही ा रही है !

नतवारी ी परु ाने ववचारों की व्यश्क्त थे, उन्होंने कहा कक अस्पताल नहीूं चलेंगे!
रा ेश ाओ -

अपने घर की अगली गली से दाईमाूँ को बल


ु ा कर लाओ!

रा ेश वपता ी की बात सन
ु कर भागकर ाता है और दाई माूं को बल
ु ा कर
लाता है! राबि के 10:00 ब े कमला के घर तीसरी सूंतान का न्म होता है !
कमला के पहले दो लड़के थे- ध्रव
ु और नूंदन!

बस एक ही कमी थी कक उनके घर में पि


ु ी नहीूं थी!

कमला दाईमाूं से पछती है!

दाई माूँ हमारे घर पि


ु ी का ही न्म हुआ है ना!

दाई माूं स्तब्ध हो ाती है और कोई वाब नहीूं दे ती है !

कमला कफर से पछती है दाई माूँ, आपने मेरे प्रकन का उत्तर नहीूं हदया!

इतना सन
ु कर दाई माूँ ने मौन स्वीकृनत दे ते हुए अपने सर को हहलाया और
कहा हाूं!

दाई माूं बच्चे को कपड़े में लपेटकर कमला के पास शलटा दे ती है और कमरे से
बाहर आ ाती है !

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बाहर इूंत ार कर रहे नतवारी ी और उनका बेटा रा ेश दाई माूँ से पछता है


कक हमारे घर पि
ु ी का ही न्म हुआ है ना!

दाई माूं अशाूंत और मरु झाए चेहरे से कहती है कक आपके यहाूं पि


ु ी का ही
न्म हुआ है !

लेककन-----?

नतवारी ी लेककन---

लेककन वह पि
ु ी ककन्नर है !

इतना सन
ु ते ही नतवारी ी को एक सदमा सा लगता है ! रा ेश तुरूंत नतवारी
ी को पकड़ता है और उन्हें खहटया पर लेटा दे ता है !

नतवारी ी के चेहरे पर समा का भय साफ हदखाई दे रहा था उन्हें अपने


ब्राह्मण समा में ो प्रनतष्ठा बना रखी थी वह धशमल होती हदखाई दे रही थी!

उन्होंने तुरूंत दाई माूं से कहा!

यह लो दस ह ार रूपये ! ककसी को भी नहीूं बताना कक हमारे घर के अूंदर


ककन्नर लड़की का न्म हुआ है !

इधर कमला के मन में अपनी बच्ची के प्रनत ममता के भाव हदन पर हदन
बढ़ते ही ा रहे थे! दसरी तरफ रा ेश और नतवारी ी का कूंठ का थक सखे
ही ा रहा था! प्यार से कमला अपनी बेटी को वूंदना कहकर पक
ु ारती है ! यही
उसका नाम पड़ ाता है ! अब घर के सब लोग भी वूंदना ही कहते हैं!

ब बूंदना 5 वर्ष की हुई तो कमला ने रा ेश से कहा-

कक बूंदना का नाम ववद्यालय में दाखखल करा दीश् ए!

रा ेश ने नतवारी ी से वूंदना को ववद्यालय में दाखखल कराने की बात कही


तो नतवारी ी ने भी हाूं कह कर स्वीकृनत दे दी!

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बूंदना का ववद्यालय में दाखखला हो ाता है ! इस तरह बूंदना भी सभी बच्चों


की तरह ववद्यालय ाती और पढ़ाई करती!

ैस-े ैसे समय गु रता गया और बूंदना बड़ी होती गयी तो उसके हाव-भाव,
चाल -ढाल में पररवतषन होने लगा!

क्लास के बच्चे बूंदना को अभद्र शब्दों से सूंबोगधत करते! श् ससे बूंदना बड़ी
दख
ु ी होती!

वूंदना ने ननकचय कर शलया कक वह ववद्यालय के बच्चों की तरह तरह की


हटप्पणी को अपनी माूं कमला को बतायेगी!

बूंदना ववद्यालय से घर आते ही, माूं कहाूं पर हो गचकलाती है –

हाूं बूंदना! मैं यही हूं , अूंदर वाले कमरे में कमला ने कहा!

माूं मझ
ु े ववद्यालय में बच्चे छक्का, हह ड़ा आहद शब्द कहते हैं!

ैसे ही बूंदना ने यह शब्द कहे , कमला अपने अूंदर आूंसओ


ु ूं की सागर को
दबाती हुई बोली बेटा वे गूंदे बच्चे हैं ो इस तरह से बोलते हैं! तुम उनकी
बातों पर ध्यान मत हदया करो! और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो! पता है ना
तुम्हें ! तुमने मझ
ु से कहा है कक तुम डॉक्टर बनोगी!

कमला ने अपनी बेटी बूंदना को समझाते हुए कहा कक बेटी समा में सभी
तरह के लोग होते हैं श् न का कायष बच्चों पर टीका- हटप्पणी करना होता है !
अगर तुम इन लोगों से परे शान होगी तो अपनी पढ़ाई कैसे करोगी!

बूंदना रोते हुए बोली, माूं क्या यह बात सच है कक मैं ककन्नर, हह ड़ा, छक्का
हूं !

कमला नहीूं बेटा! यह ककसने कह हदया तुझसे! तुम मेरी बेटी हो! कमला,
बूंदना को अपने सीने से लगा लेती है !

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और कहती है कक आ के बाद यह सोचना भी मत कक लोग क्या कह रहे हैं!


तुम एक साधारण हम ैसे इूंसान हो! लोग कुछ भी कहें , क्या तुम उसे सच
मान कर बैठ ाओगी!

कुछ वर्ष बाद वूंदना ने माध्यशमक परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीणष की! और बूंदना
की आूंखों में केवल एक ही सपना था कक मझ
ु े डॉक्टर बनना है!

और इधर नतवारी ी और रा ेश को बूंदना की गचूंता हदन पर हदन सताने


लगी!

नतवारी ी चाहते थे कक बूंदना की अब पढाई बूंद करा दे नी चाहहए, क्योंकक


अब तो मोहकले और पड़ोस के लोग भी तरह तरह की बात बनाने लगे थे!

लेककन रा ेश के ववचारों से मेल नहीूं खाते थे! रा ेश चाहता था कक अगर


बूंदना आगे पढ ाएगी तो अपने पैरों पर खड़ी हो ाएगी!

दसरी तरफ रा ेश और कमला को बूंदना के भववष्य की गचूंता में लते ही


रहते थे!

कमला रात रात भर रो रोकर रात गु ार दे ती थी कक ववधाता मेरी बेटी ने


ऐसा क्या ककया कक उसे आपने उसे ऐसी स ा दी है ! ो कक खत्म होने का
नाम ही नहीूं ले रही है !

नतवारी ी ब समा में बूंदना के ववर्य में टीका हटप्पणी सन


ु ते तो उन्हें
लगता कक बूंदना को इस घर से ननकल ाना ही चाहहए!

लेककन बूंदना पढ़ाई में होशशयार होने के कारण, उसकी आूंखों में पल रहे सपने
को परा करने के शलए हदन रात पढ़ाई करती कक उसे डॉक्टरी कॉले में दाखखला
शमल सके!

एक हदन रात को रा ेश और कमला आपस में बूंदना के वववाह के बारे में


बातें कर रहे थे! कक बूंदना से वववाह कौन करे गा, और यह बात हम समा से

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कब तक छुपा पाएूंगे कक बूंदना एक ककन्नर है ! इतना कहते ही कमला के आूंस


ननकल आते हैं!

इधर बूंदना सोई हुई नहीूं थी! उसने अपने माता-वपता की बातों को सन
ु शलया!
मन ही मन शससक-शससक कर रोने लगी कक माूं ने मझ
ु से झठ कहा था कक मैं
ककन्नर नहीूं हूं !

सब
ु ह उठते ही बूंदना अपनी माूं कमला से शलपट ाती है और उनसे सच्चाई
ानने का साहस करती है ! लेककन वह पछ नहीूं पा रही थी!

बूंदना के हाव भावों को दे खकर कमला ने कहा-

बूंदना क्या बात है बेटा! तम


ु इस तरह परे शान क्यों हो रही हो!

वूंदना, माूं मैं ----

कमला क्या मैं, मैं......लगा रखा है !

बूंदना बोलो कमला ने कहा –

माूं मैं ककन्नर हूं ना! बूंदना फट-फट कर रोने लगती है! आ आप मझ
ु से झठ
नहीूं बोल सकते, मैंने आपकी और पापा की सारी बातों को सन
ु शलया है और
ो समा में लोग मझ
ु से छक्का, हह ड़ा, ककन्नर कहते हैं वह सही है ना!

कमला, बूंदना को अपने गले से लगा लेती है और दोनों फट-फट कर रोने


लगती है!

बेटा बूंदना ऐसा मत सोच! तुम मेरी बेटी हो, मैंने तुम्हें न्म हदया है ! तुम
मेरे कले े का टुकड़ा हो!

हाूं बेटा अगर तम


ु ककन्नर हो तो क्या हुआ! हो तो इूंसान ही ना!

इधर नतवारी ी और रा ेश समा के भय के कारण समा में यह भी नहीूं


कह पा रहे थे कक उनकी बेटी बूंदना ककन्नर है !

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नतवारी ी ने रा ेश से हठ पकड़ ली! अब बूंदना को आगे नहीूं पढ़ाएूंगे! और


उसे अब घर की बूंहदशों के अूंदर ही रहना होगा!

अब रा ेश ने भी नतवारी ी की बातों का अनस


ु रण करना प्रारूं भ कर हदया
था! क्योंकक उसे वूंदना को लेकर कुछ समझ ही नहीूं आ रहा था!

लेककन बूंदना का ो डॉक्टर बनने का सपना था वह अब दर हदखाई दे ने लग


रहा था!

क्योंकक पररवार के सभी सदस्य बूंदना को लेकर गचूंता में डबे रहते थे! अब घर
के लोगों ने सामाश् क रीनत कायषिमों में भी ाना बूंद कर हदया था!

क्योंकक वह हाूं भी ाते वहाूं बूंदना के ववर्य में तरह-तरह की बातें सन


ु ते!

यह सारा दृकय होते दे ख बूंदना अब घर के लोगों के शलए बूंधन बनना शरू


ु हो
गई थी! अब घर के प्रत्येक सदस्य को बूंदना न र नहीूं आती थी केवल और
केवल बूंधन ही हदखाई दे ते थे!

बस एक कमला ही थी ो बूंदना को अपने से दर नहीूं होने दे ना चाहती थी!

इधर बूंदना का सपना अब सपना ही प्रतीत होने लगा! वूंदना को अपने आप


से ही नफरत होने लगी! वह घर के एक कोने में बैठी रहती और अपने ीवन
के शलए ववधाता को कोसती रहती!

उसके शलए ककन्नर हो ना अशभशाप सा बन गया था! श् समें उसका कोई दोर्
नहीूं था! यह उसी की स ा पा रही थी!

आखखर कार बूंदना रात के अूंधेरे में एक पि शलखकर हमेशा के शलए घर


छोड़कर ननकल गई! उसे इस सभ्य समा के ववचारों मे गूंदगी की ब आ रही
थी!

वप्रय माूँ,

मैं पररवार के सभी सदस्यों को दख


ु ी नहीूं दे ख सकती! इसशलए मैं इस
समा को छोड़कर अपने ककन्नर समा में ा रही हूं ! माूं पापा मझ
ु े माफ

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करना! मैं इस समा के तानों से थक चक


ु ी हूं और अपने सपने को अधरा छोड़
कर ा रही हूं ! मझ
ु े माफ करना! ये समा मझ
ु े वहीीँ ीने दे गा, हाूँ के शलए
बनी हूँ मैं ! मेरा सपना मेरे भीतर ही रहे गा ! लेककन इस समा से मैं यही
गु ाररश करुूँ गी हमें भी सामान्य इूंसानों की तरह ीने का हक शमलना चाहहए !
शरीर की कमी इूंसान की योग्यता से कोई सम्बन्ध नहीूं रखती !

आपकी बूंदना

इस तरह समा के ताने-बाने ने बूंदना के ीवन को बूंधन समझकर उसके


ीवन के सपनों को बीच में छोड़कर ाने के शलए वववश कर हदया!

ब ृ ेश कुमार

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स्माटष फोन”

ववभागीय आदे शानस


ु ार शमड डे मील यो ना के चावल ववतररत करने थेस राकेश
ने सभी पेरेंट्स को दो हदन पहले ही मैसे भे हदया थास साथ ही उसने श् न
बच्चों का होमवकष चैक करना था उन्हें भी घर पर ही रुकने को कहा था ताकक
वह समय ननकालकर बच्चों की प्रोग्रेस भी ान सकेस अशभभावकों को चावल
ववतररत ककए, लेखा ोखा बनाकर अलमारी में रख हदयास स्कल बूंद ककया और
चल पड़ा बच्चों के पास उनके घरस दआ
ु सलाम हुईस बाूंके लाल के घर तीन
चार बच्चे आए हुए थेस उनके बच्चों से वपछले हदनों हदए हुए काम को चैक
करते हुए दे खा कक रमेश का लड़का आयषन चप
ु चाप उदास सा खड़ा थास

“आयषन! क्या बात है बेटास“ राकेश ने पछास

“गुरु ी कुछ नहीूं, कुछ भी तो नहीूंस“ धीमे स्वर में आयषन बोलास

“कुछ न कुछ बात तो अवकय हैस डरो मत, साफ साफ बताओस“ शसर पर हाथ
फेरते हुए राकेश बोलास

गुरु ी के इस स्नेहहल व्यवहार से आयषन में थोड़ी सी हहम्मत आई और


हकलाते हुए बोला “वो ....वो न सर ी, कल ो आपने हैं.... है न.... आपने
काम.....घर का काम हदया था न..... मैं नहीूं कर पायास“

“पर क्यों? क्यों नहीूं कर पाए?”

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“सर ी ये आयषन है न कल से कुछ उदास हो गया थास शगुन बीच में बोल
पड़ीस

“अरे ! इसमें उदास होने वाली क्या बात है? केवल गाय पर ही तो ननबूंध
शलखना थास“ राकेश ने पच
ु कारते हुए कहास

“पर गुरु ी इन्होंने तो अपनी गाय ही बेच दी नस“ शगुन बोलीस

“सर ी, आपको पता है स“ थोड़ी दे र खामोशी छा ाती हैस

“ है न सर ी, आयषन के घर दो हदन से खाना भी नहीूं बनास रक्षा चाची बस


रोए ही ा रही थीूंस“

“ओह!” राकेश ने आयषन को गोदी में उठाकर शसर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए
कहा “कोई बात नहीूं, नहीूं ककया काम तो यहाूं कर लेंगेस पर यह तो बताओ
गाय क्यों बेची?”

“आूं... आूं ..... क्योंकक पैसे नहीूं थे न इसशलएस“ और आयषन फफक फफक कर
रो पड़ा और रोते रोते बताने लगास “....पापा मम्मी से कह..कह रहे थे... लाला
का वपछला... परु ाना उधार भी न... नहीूं ... चक
ु ा पाए हैं....स उन्होंने ...न
...सौदा सक
ु फा दे ने से मना कर हदया है और बच्चों को कुछ और कावपयाूँ भी
तो लेनी हैंस“ बात करते करते आयषन वहाूं से बाहर चला गयास

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राकेश बाूंके लाल ी की तरफ मख


ु ानतब हुएस बाूंके लाल ने बच्चों को खाना
खाने भे हदयास बच्चों के ाते ही उसने कथा का सि पकड़ शलयास

“बहुत ददष भरी कहानी है गरु


ु ीस अब क्या बताएूं? बस इतना ही कक परे
पररवार की हालत बड़ी खराबस“ चाय की प्याली टे बल पर रखी और कहने लगे
“न खाणे खाण न मूं े बाणस क्या बणगा?”

“हैं....!” राकेश हक्का बक्का रह गयास

 * * * * * * * *

रक्षा की आूँखों से आूंस बह रहे थेस वहीूं टटी दीवार से पीठ सटा दी और बोली
“हे भगवान! अब क्या होंगा? बड़ा माड़ा वक्त है ीस दो हदन से बच्चों को
थोड़ा बहुत ो कुछ बचा था, बनाकर खखला हदया और रात को दध पीकर
गु ारा हो रहा है स है न... पर बच्चों को भरपेट भो न चाहहए ही चाहहए, नहीूं
तो ताकत कहाूं से आएगीस“

रक्षा की बात सन
ु कर रमेश भी कराह उठा – “सही बोल रही है रक्षा तस भखे
भ न न होय गोपालास“ कुछ अूंतराल के बाद रमेश ने चप्ु पी तोड़ी – “क्यों न
हम गौरी को बेच दें स चार पैसे आ ाएूंगेस“

इतना सन
ु ना था कक बच्चे ोर से चीख पड़े – “नहीूं बेचनी हमने गौरी गाय,
नहीूं बेचनी बस.....स“

बच्चों की चीखो पक
ु ार व रक्षा की शससककयों के पकचात वातावरण में मरघटी
सन्नाटा पसर गयास उदाशसयों से नघरे रमेश की आूँखों के सामने सारा दृकय
शसनेमा रील के माकफक घमने लगास गौरी ो छुः वर्ष पहले हमारी घरपण गाय
मोराूं ने नी थीस सारा पररवार खुशी से झम उठा थास दोनों भाई-बहनों का वही

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खखलौना थीस उन्हीूं के साथ उछलती कदती थीस उसे ब वे छुपकर आवा
लगाते तो दोनों कान खड़े कर सन
ु तीस न शमलने पर रूं भाती, गुस्सा करती और
वे दोनों सामने आते तो गौरी भी झठ मठ रूठ ातीस वे पच
ु कारते तो मूंड
ु ी
हहला कर बात करने से मना कर दे तीस उनके तो प्राण बसते थे उस परस बच्चे
रो उसे एक एक टुकड़ा रोटी का दे तसे अगर ककसी हदन भल ाएूं तो याद
हदलाने के शलए आवा लगाती, अपना शसर हहलाती और गले में बूंधी घूंटी ब
उठतीस बच्चों को याद आतास वे दौड़ ाते उसके पासस वहाूं दे खते तो उसने चारे
को छुआ नहीूं होतास यह बच्चों और बनछया का मक स्नेह थास धीरे -धीरे समय
गु रता गयास बच्चे बड़े हो स्कल ाने लगे और गौरी भी बनछया से गाय बन
गईस दध दे ने लगीस घर की आई-चलाई में सहयोग करने लगीस

 * * * * *

रक्षा और रमेश बहुत मेहनती थेस सब


ु ह-शाम दोनों खेतों में काम करते, कफर
हाूं काम शमलता रमेश वहाूँ हदहाड़ी लगा लेता और रक्षा मनरे गा मेंस अच्छा
गु र बसर हो रहा थास मतलब दो वक्त की रोटी और पररवार में खशु शयाूं ही
खशु शयाूंस बच्चे अपनी दनु नया में मस्त हो ाते और अपनी गौरी के साथ
चरागाह में चले ातेस खेलते-कदते, उछलते-गाते और कभी मन करता तो पढ़
भी लेतसे

सब कुछ सही चल रहा था कक चीन के बह


ु ान शहर से वायरस
ननकलास वायरस से परे ववकव में महामारी फैलना शरू
ु हो गईस शरू
ु शरू
ु में तो
लगा कक यह बीमारी अभी बाहर के दे शों में ही रहे गी पर सब को धत्ता बताते
हुए धीरे -धीरे अपने दे श के बड़े शहरों में उसने पाूंव पसारना शरू
ु कर हदएस वहाूं
से छोटे छोटे नगरों, कस्बों और गाूँवों की ओर रफ़्तार पकड़ने लगीस अब

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महामारी की भयावहता से हर ककसी के मन में खौफ भरने लगा क्योंकक कोरोना


का कहर एक छोर से दसरे छोर तक मौत का ताूंडव बन टट पड़ास मीडडया के
माध्यम से इस महामारी से होने वाले, हदल दहलाने वाले ददषनाक दृकय सामने
आ रहे थेस खबरों से यह ानकारी लगी कक यह सूंिामक रोग है स एक दसरे के
साथ सम्पकष में आने से बड़ी ते ी से फैल रहा है स ववशेर्ज्ञों ने सरकार को कई
सझ
ु ाव हदएस उनमें से एक था, बाहर नहीूं ननकलने का और कफर एक हदन
सरकार ने इस श्रख
ूं ृ ला को तोड़ने के शलए पहले कर्फयष कफर लॉकडाउन लगा
हदयास ो हाूं था वहीूं रह गयास ीवन की इस सूंकट घड़ी में सभी अपने घरों
व क्वाटष रों में बूंद हो गएस कुछ हदन इसी ववकवास में काट हदए कक हालात
कदी सध
ु रें गेस पर न लहर थमी न हालात ठीक हुएस सात हदनों का कर्फयष और
लॉकडॉउन हदनों से हर्फतों और कफर महीनों बढ़ने लगा तथा बढ़ने लगी लोगों
की गचूंताएूंस ो घरों से, अपनों से दर पर हालात से म बर, ऐ कुदरत कैसा
तेरा दस्तर और बीमारी फैलाने वालों को कोसते रहतेस ग्रामीण क्षेिों में भी ो
घरों में कैद हो गए थे, वे भी अब घट
ु न महसस कर धीरे -धीरे टटने लगे क्योंकक
अना के कनस्तर, झने के अस्ि और पहनने के वस्ि वाब दे रहे थेस

 * * * * *

रमेश द्वारा गाय बेचने की बात से क्षुब्ध और आत्मीय पीड़ा से कराहते बच्चे
रोते-बबलखते ही माूँ की गोदी में सो गएस रक्षा भी बहुत दख
ु ी थी क्योंकक गौरी
से उसे भी बहुत ममता थीस दध ननकालने से लेकर चारा-पानी तक, गोबर
उठाने से लेकर झाड़ बह
ु ारी तक अगधकतर समय गौरी से ही बात होती थीस
दसरी तरफ रमेश इसी उधेड़बन
ु में कोई फैसला नहीूं कर पा रहा थास उसे
पररवार की गचूंता अूंदर ही अूंदर खाए ा रही थीस ठन ठन गोपाल रमेश करवटें
बदल रहा थास नीूंद आूँखों से कोसों दर थी और ऐसी श्स्थनत में नीूंद आएगी भी
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कैसे? पररवार भखा सो गयास खाने के लाले पड़ गए थेस उस पर एक और


गचूंता, बच्चों की पढ़ाईस कैसे करें प्रबूंध? ैसे तैसे करके स्कल का होमवकष
करने के शलए कावपयाूं खरीद ली थीूंस बच्चों को बड़ा आदमी बनते दे खना चाहते
थे, वे दोनोंस सपनों पर हौसलों की उड़ान थी, पर अब इस महामारी ने सब
महटयामेट कर हदयास दसरे लोगों के बच्चे ऑनलाइन क्लासे लगा रहे हैंस
स्माटष फोन में स्कल का काम आता थास कुछ हदन तक बच्चे बाूंकेलाल के घर
ाते रहे स उनके पास फोन की सवु वधा थीस बच्चे पढ़ते, होमवकष उतारते तो
कभी-कभी आपस में उलझ पड़तेस खब हो हकला होतास छीना-झपटी में एक हदन
फोन नछटक गयास शि
ु है कक टटा नहीूं, पर बाूंके लाल के सब्र का बाूंध टट
गयास आखखर बाूंके लाल ने उनको अपने घर आने से मना कर हदयास म बर
होकर बच्चों को डाूंट हदयास मायसी और गस्
ु से से भरे आयषन और शबनम अपने
घर पहुूंचते ही फट पड़े – “हमने नहीूं ाना ताऊ ी के घरस“

“पर क्यों? हुआ क्या, बताओ तोस“ वपता ी ने पछास

“होना क्या था? शब्ब काम उतार रही थी कक फोन नछटक गयास उसने
ानबझकर नहीूं गगराया थास बस राधा के पापा गस्
ु सा हो गएस गस्
ु से में ही
बोले – चले ाओ यहाूं सेस दोबारा मत आना यहाूंस आए तो दे ख लेना, टाूंगे तोड़
दूं गास“ आयषन गुस्से से लाल पीला हो बोलता गयास थोड़ी दे र बाद गुस्से का
उबाल ठण्डा हो गयास कफर बच्चों ने पापा की ओर दे खते हुए कहास

“पापा हम फोन लें गे नस“ शबनम ने याचक ननगाहों से पछास

“हाूं ...हाूं पापा, ले लो नस“ आयषन ने भी उचकते हुए कहास

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“लैणा ही पोणा अड़योस लोकाूं दे घरे ान्दे बच्चे खरे नीूं लगदे स क्या बोलदे
तह
ु ाूंस“ रक्षा ने भी अपनी बात रखीस

“आ... नतज् ो ता पता ही है अपनी माड़ी हालतस पर करदा कोस्तस कुछ गाड़
करना ही पोणास“ रमेश ने कह तो हदया पर उसके शलए यह सब आसान नहीूं
थास मतलब स्माटष फोन खरीदना उनके शलए पहाड़ खोदने माकफक थास गहरी
साूंस लेने के बाद रमेश कहने लगा – “लॉक डाउन की व ह से ध्याड़ी लग नहीूं
रही है स पैसा-धेला हाई नीूंस भाूंड-े टीूंडे खाली-खालीस श् ूंदा रहणे के शलए भो न
तो चाहहए नस मदद माूंगे भी तो ककससेस यहाूं सब अकलोयो-वकलोयो हैं, डरे
ा़
हुए हैं, सहमें से हैंस औणे वाले टै म में क्या होणा, कुछ पता नहीूंस गाई बेचणे ते
अलावा कोई चारा नीूं सज्
ु झा दास आपको क्या लगता, शमूं ो क्या दख
ु नीूंस
अपणे हाथों पाली गौरी को ववदा करने कास काल ा फट रहा है मेरास पर सौदा-
पत्ता भी खरीदना है स माना कक राशन-पाणी गाूंव वाली दक
ु ान से शमल शमल
ाएगा पर थोड़े-बहुत पैसे तो दे ने पड़ेंगे..... और फोने के शलए तो नगद
नारायण चाहहए न, कक नहीूंस अब आप ही बोकला ..... सारे बोकला नास“ रमेश
ने भारी मन से कहास

“हदक्खी लेया अड़योस तुहाूं यो ेह्ड़ा ठीक लग्गा दा, करी लेयास“ उदासी भरे
शब्दों में हालात को समझते हुए रक्षा बोलीस

“........?” आयषन और शबनम कुछ बोल न पाए, पर मौन स्वीकृनत के अलावा


कोई चारा भी नहीूं थास

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ग्राहक ढूं ढने का शसलशसला शरू


ु हो गयास हर कोई अपने-अपने हहसाब से
मोलभाव कर रहा थास मौके का फायदा ान सभी िेता कम से कम दर में
गाय खरीदने को आतरु थेस कुछ भाव ज्यादा दे ने की बात कर रहे थे, पर
ककस्तों में स लेककन रमेश को इस वक्त नगद नारायण की रूरत थीस आखखर
मूंग महारा ने तीस ह ार की गाय दस ह ार में रमेश से खरीद लीस मरता
क्या न करतास बड़े भारी और बोखझल मन से गौरी की रस्सी रमेश ने मूंग
महारा के हाथों सौंप दीस गाय को मूंग महारा के साथ ाते दे ख सभी की
अश्रध
ु ार झर झर बहने लगीस गौरी भी मड़
ु मड़
ु दे खती, उसकी आूँखों में भी
आूँस बह रहे थेस यह दे ख बच्चे और रक्षा तो फट फट कर रोने लगेस दस ह ार
रुपये रमेश की बेबसी को दे ख रहे थे, गचढ़ा रहे थेस गौरी के ाने के बाद सब
सना सना हो गयास रमेश कभी खाली गौशाला को दे खता तो कभी खाली टीन
कनस्तरों कोस बच्चों की मख
ु मशलनता दे खता तो हदल में छुररयाूं चभ
ु ातीूंस
इस असहनीय एवूं हृदय ववदारक दृकय से वह दर ाना चाहता थास अकेला
होकर दहाड़ें मार रोना चाहता थास

 * * * *

अगले हदन रमेश ने पैसे उठाए और बा ार की तरफ चल पड़ास कदम उठाता,


शससकता, चलते चलते कुछ दे र बाद उस हटयाले पर पहुूंच गया, हाूँ वह गौरी
के शलए चारा लाते हुए बैठता थास ये सब याद आते ही फट-फट कर रो शलयास
ी हकका होने पर पन
ु ुः चल हदया और पहुूंच गया बा ारस यहाूं वहाूं घमते उसे
मोबाइल की दक
ु ान हदख गईस कुछ दे र सोचा और कफर अनायास ही कदम उसे
दक
ु ान के अूंदर ले आएस

“शाह ी! मोबाइल लैणा है स“ हहचकते हुए रमेश ने कहास

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“कौन सा? ककस कूंपनी का?” बबना न रें उठाए लैपटॉप पर काम करते हुए
दक
ु ानदार ने पछास

“अब मैं क्या ान कूंपनी-शम्पनीस पर बच्चों ताूंईं लैणा है स पढ़ा दे हन्न स्कल
में स कम्म आता है नाूं फोन चस उनके वास्तेस“ रमेश बोलास

“ककतनी रें तक?” अपना काम करते हुए लाला कफर बोलास

“रें ....?”

ा़
“ओ भोलेया! ककतणे कक पैसेयाूं वालास“ लाला ने न र उठाकर रमेश की तरफ
दे खते हुए पछास

“अच्छा-अच्छा, ज़्यादा पढ़े या नीूं है ना मैंस पर बच्चे रूर पढ़ाणे, काबल


बणाणेस तुहाूं दस्सा कोई चौं-पूं ाूं ज्हाराूं वालास“

“ओ छोट! अूंकल को फोन बतानास चार-पाूंच ह ार रें वालास“ लाला ने अपने


कमी को आवा दे ते हुए कहास

“ ी सर!” छोट एकदम रमेश के पास आ गयास

“यहाूँ आ ाओ अूंकल ीस“

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काउूं टर पर रमेश को एक-एक करके चार-पाूंच प्रकार के फोन हदखाए और हर


फोन के फीचर बताने लगा – “अूंकल इसका बैटरी बैकअप ज्यादा हैस यह ो
काले वाला है न इससे फोटो बड़ी अच्छी आती हैस लाल वाले में बबना लीड से
रे डडयो भी ब ता है स सभी एकदम मस्त हैं और सस्ते भीस आप यह नीला वाला
ले लो, रे ट लग ाएगास इसमें भी बहुत ज्यादा फीचर हैंस“ छोट हर फोन के बारे
में समझा रहा था, ो उसके बबिी कौशल के हुनर को दशाष रहा थास सेकसमैन
का यही तो कमाल हैस

सहमें हाथों से रमेश ने नीला वाला फोन उठा शलयास उसे आगे-पीछे से दे खने
लगास उसे क्या लेना फोन के फीचर से, श् सकी उसे ानकारी ही नहीूंस बस
दे खने में अच्छा लगा तो अपनी इच्छा िाहहर कर दीस

“ये वाला दे ई दे यास मझ


ु े बाूंका लग रहे या है स“

“ठीक है अूंकलस“ छोट ने फोन पैक ककया और रमेश को लाला के पास कैश
काउूं टर पर भे हदयास

“ककतणे पैहे लाला ीस“

“चार ह ार दे दो नाबस“ रमेश ने पैसे हदए और दक


ु ान से बाहर आ गयास

 * * *

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सभी लोग कदी में थेस रमेश समझ गया कक बा ार बूंद होने वाला है
और पशु लस गकत पर आ ाएगीस इसशलए उसने भी कदी- कदी घर ाने के
शलए कदम बढ़ा हदएस गाूंव में पहुूंचकर कुछ रुपए दीन बननए के चक
ु ाएस गु ारे
लायक कुछ दालें, तेल, हकदी, नमक, चावल, आटा शलया और घर आ गयास
लम्बा सफर, शसर पर भारी बोझा, भयूंकर गमी के कारण रमेश पसीने से
तरबतर हो चक
ु ा थास रक्षा उनकी बाट ोह रही थीस उनको दे ख उसकी साूँसों में
साूंस आईस उनको आते दे ख बोल पड़ी –

“आई गै तह
ु ाूंस शमूं ो ताूं कफकर होईयो थीस बड़ा टै म लगा हदयास“ रक्षा ने शसर
से गठरी उतारते हुए पछास

“हाूं..... आई गेयास दर बा ार तक गेया थास सण


ु भला, मैं बच्चेयाूं दे पढ़ने
ताूंईं इक्क फोन भी लेई आन्दास अब नीूं ाएूंगे म्हारे बच्चे पड़ोशसयों के घरस“
रमेश ने चारपाई पर बैठते हुए कहास

रक्षा लाए हुए सामान को समेटने लगीस थके-हारे रमेश ने पानी वपया और कफर
चारपाई पर लेट कर सस्
ु ताने लगास बच्चे ो ककताबों से उलझ रहे थे, फोन की
बात सन
ु रमेश के पास आ गएस लगभग एक घूंटे बाद रक्षा ने भो न करने के
शलए सब को बल
ु ायास सभी ने भो न ककयास रक्षा भी रसोई का काम करके
चारपाई पर आ गई, हाूं बच्चे और उनके वपता मोबाइल में मग मारी कर रहे
थेस धीरे -धीरे बच्चों को फोन ऑपरे ट करने आ रहा थास आ स्कल द्वारा भे ा
होमवकष वे घर पर ही करने लगेस

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 * * * * * *

गाूँव में सग
ु बग
ु ाहट शरू
ु हो गई कक रमेश ने गाय बेचकर फोन खरीदा है स बात
इतनी फैली कक मीडडया में हाईलाइट हो गईस वप्रूंट, इलेक्ट्रॉननक और सोशल
मीडडया वाले धड़ाधड़ उनके घर आने लगेस पहले-पहल तो अच्छा लगा कक
उनकी वेदना सावष ननक हुईस पीड़ा कम हुई पर कुछ हदनों बाद खबर का
ध्रव
ु ीकरण हो गयास कभी इस एूंगल से तो कभी उस एूंगल से उनकी स्टोरी
चलने लगीस कई बार तमाशा बना परे पररवार कास मीडडया वाले सवाल नहीूं
पछ रहे थे बश्कक उनके गहरे ख्मों को हरा कर रहे थेस कुरे द-कुरे द कर नमक-
शमचष लगा रहे थेस उनकी बातों से, उनके व्यूंग्य बाणों से बच्चों के कोमल और
नािक
ु मन ववदीणष हो गएस नघन्न सी आ रही थी अब उन्हें सामने आतेस
मीडडया में सब कुछ हदखाया गयास कुछ पक्ष में तो कुछ ववरोध में भीस पर
अच्छी बात यह कक खबर चली और खब चलीस बात स्थानीय प्रशासन से होते
हुए श् ला प्रशासन और कफर प्रदे श सरकार तक पहुूंचीस कई समा सेवी और
सूंस्थाएूं सहयोग के शलए आगे आईंस सरकार के दरबार में यह बबूंद ु चचाष का
ववर्य बन गयास आनन-फानन में सरकारी नम
ु ाइूंदे भी पहुूंचसे मदद शमली,
हठकाना बनास है रान-परे शान रमेश को कुछ भी नहीूं सझ रहा थास मन में
द्वन्द्व मचा हुआ था, कभी स्वयूं को कोस रहा था तो कभी प्रफुश्कलत भी हो
रहा थास एक कोने से आवाि आ रही थी, पछ रही थी कक सरकार द्वारा चलाई
गई गरीबों के शलए ककयाणकारी यो नाएूं धरातल पर पहुूंची हैं या नहीूंस कौन
उनका हक मार ाता है ? मानवीय सूंवेदनाएूं कहाूं खो ाती हैं स्थानीय नेताओूं
की, श् नको ककसी पाि व्यश्क्त की दद
ु ष शा हदखती नहीूंस माि वोट प्राप्त करना
ही उनका ध्येय है स यह प्रकनगचन्ह आ भी मूंह
ु बाए खड़ा है .......स

रमेश लम्बी साूंस छोड़ते हुए आसमान की तरफ ताकते हुए कहता है कक
काश.......यह सब...........

डॉ. वव य कुमार पुरी

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पैरोडी गीत
** छाि बेचारे **
रचनाकार – इूं ीननयर पशप
ु नतनाथ प्रसाद

( पैरोडी , कफकम – ववक्टोररया न. २०३ , गीत –

दो बेचारे , बबना सहारे ..... पर )

छाि बेचारे ,

बबना सहारे ,

दे खो पछ पछ कर हारे ,

बबन गचट की कॉपी शलए ,

कफरते हैं मारे मारे ,

मैं हूं चेला , आप हैं गरु


ु ,

यहद कहे तो गचट शरू


ु ,

ओ गुरु ! रा सुनो ना सस छाि बेचारे बबना सहारे ...

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ओ शशक्षक ! तने कैसा ककया रे घोटाला ,

दे दी कॉपी पर हदया ना तने मसाला ,

यहद अूंक आएगा ज्यादा ,

तो माल शमलेगा ता ा ,

ये है वादा ,

कोई काम नहीूं है ज्यादा ,

ओ शशक्षक ! गचट छोड़ो नासस छाि ववचारे बबना सहारे .

ए v. c. तने दे दी करीबे परीक्षा,

घमने की अब मर ाएगी इच्छा ,

यहद डेट नहीूं बढ़ पाया ,

प्रोसेशन ननश्कचत आया ,

डरवाया , धमकाया ,

कुछ हकला मचाया ,

साहब वी सी ! अब डर ानासस छाि बेचारे बबना..

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ओ प्रोफेसर ! मेरे खानतर त सोसष लगाओ ,

कुछ हदन पहले कुछ क्वेकचन आउट कराओ ,

इसे काम बनेगा मेरा ,

और ट्यशन होगा तेरा ,

यह है फेरा ,

अब अूंक बढ़ा दो मेरा ,

प्रोफेसर ! रा समझो ना सस छाि बेचारे बबना

...

ओ नेता ! त ने बूंद कराई परीक्षा ,

छािों की अब खुश हुई है इच्छा ,

अब छट चला दो काफी ,

तब चौड़ी हो ाए छाती ,

कुछ करो करमाती ,

शलखा ‘ पशप
ु नत ‘ साथी ,

ओ नेता ! बात मानो ना सस छाि बेचारे , बबना सहारे

...

***++***

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क बार रात में छिपनत शशवा ी महारा सो रहे थे! तभी एक
13-14 वर्ष का बालक ककसी प्रकार उनके सोने के कमरे में छुपकर

पहुूंच गया! उसने शशवा ी को मार डालने के शलए तलवार ननकाली ; ककूंतु ैसे
ही तलवार चलाने के शलए उसने हाथ उठाया, ताना ी ने पीछे से उसका हाथ
पकड़ शलया! छिपनत के ववकवासी सेनापनत ताना ी ने उस लड़के को पहले ही
दे ख शलया था और वें यह दे खने उसके पीछे छुप छुप के आए थे कक वह क्या
करना चाहता है !

शशवा ी की नीूंद टट गयी! उन्होंने बालक से पछा –‘ तम


ु कौन हो? यहाूं क्यों
आये?’

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बालक ने कहा –‘ मेरा नाम मालो ी है ! मैं आप की हत्या करने आया था!’

शशवा ी –‘ तुम मझ
ु े क्यों मारना चाहते हो? मैंने तुम्हारा क्या बबगाड़ा है ?’

बालक –‘ आपने मेरी कोई हानन नहीूं की है ! लेककन मेरी माता के हदनों से
भखी है ! हम बहुत गरीब हैं! आपके शिु सभ
ु ाग राय ने मझ
ु से कहा था कक यहद
मैं आपको मार डालूं तो वें मझ
ु े बहुत धन दें गे!’

इतने में ताना ी बोले –‘ दष्ु ट लडके! धन के लोग से त मराठा साम्राज्य के


उद्धारक का वध करना चाहता था? अब मरने को तैयार हो ा!’

बालक तननक भी डरा नहीूं! उसने ताना ी के बदले शशवा ी से कहा –

‘महारा ! मैं मरने से डरता नहीूं हूं ! मझ


ु े अपने मरने की गचूंता भी नहीूं है !
लेककन मेरी माूं बीमार है और कई हदनों से भखी है! वह मरने को पड़ी है ! आप
मझ
ु े एक बार घर ाने दीश् ए! माता के चरणों में प्रणाम करके मैं कफर आपके
पास लौट आऊूंगा! मैंने आप को मारने का यत्न ककया! अब आप मझ
ु े मार
डाले, यह तो ठीक ही है ; परूं तु मझ
ु े थोड़ा सा समय दीश् ए!’

ताना ी ने कहा –

‘त हमें बातों से धोखा दे कर भाग नहीूं सकता!’

बालक बोला –

‘मैं भागूँगा नहीूं! मैं मराठा हूं , मराठा झठ नहीूं बोलता!’

शशवा ी ने उसे घर ाने की आज्ञा दे दी! बालक घर गया! दसरे हदन सवेरे ब
छिपनत महारा शशवा ी रा दरबार में शसूंहासन पर बैठे थे, द्वारपाल ने
आकर सचना दी कक एक बालक महारा के दशषन करना चाहता है ! बालक
बल
ु ाया गया! वह वही मालो ी था

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मालो ी ने दरबार में आकर छिपनत को प्रणाम ककया और बोला –‘ महारा !


मैं आपकी उदारता का आभारी हूं ! माता का दशषन कर आया! अब आप मझ
ु े
मत्ृ यद
ु ूं ड दें !’

छिपनत महारा शशवा ी शसूंहासन से उठे ! उन्होंने बालक को हृदय से लगा


शलया और कहा –

‘ यहद तुम्हारे ैसे वीर एवूं सच्चे लोगों को प्राण दूं ड दे हदया
ाएगा तो दे श में रहे गा कौन? तम्
ु हारे ैसे बालक ही तो

महाराष्ट्र के भर्ण है !’

बालक मालो ी शशवा ी महारा के सेना में ननयक्


ु त हो गया! छिपनत ने उसकी
माता ी की गचककत्सा के शलए रा वैद्य को भे ा और बहुत सा धन उसे उपहार
में हदया!

मनुष्य में द्रढ़ता होनी चाहहए श् द नहीूं,


बहादरु ी होनी चाहहए कदबा ी नहीूं,
दया होनी चाहहए कम ोरी नहीूं,
ज्ञान होना चाहहए अहूं कार नहीूंस

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नारी तम
ु अबला नहीूं सबला हो

ककपना चावला

“ मैं अूं त ररक्ष के शलए ही बनी हूँ स

प्रत्ये क पल अूं त ररक्ष के शलए ही बबताया है

और इसी के शलए ही मरूूँ गीस“


कपना ककसी बाधा से कभी न ववचशलत होने वाली, ध्येय
ननष्ट और कतषव्यपारायण व्यश्क्तत्व की धनी, भारत की
बेटी है श् सने अपने वीरता से दे श के झूंडे का ववकव
अूंतररक्ष में परचम फहरा हदया!

एक नार अपनी दृढ़ इच्छाशक्तत, तीक्ष्र् बद्


ु चि और कठोर पररश्रम से इनतहास
रि सकती है ! नार क्जसने हर्ज़ारों संकटो को पार कर, जर्ज़षर पाररिाररक
क्स्थनतयों के बािर्ज़द
ू भी यश और सम्मान के िरमोत्कर्ष को प्राप्त करने िाल
अटूट आत्मविश्िासी, कमषिीर ककपना िािला दो बार अंतररक्ष में यात्रा करने
िाल प्रथम भारतीय मदहला बनी ! ककपना बाकयािस्था से ह एरोनादटक

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इंजीननयर बनना िाहती थीं ! अपनी दृढ़ इच्छा शक्तत से उन्होंने इसी क्षेत्र में
उडान भरने के मलए अपने पंख आकाश की ओर फैला ददए ! और कफर उनकी
उडान की ऊंिाई इस दनु नया ने दे खी |

ककपना िािला का जन्म 17 मािष 1962 को हररयार्ा के छोटे से नगर करनाल


के मध्यम िगीय पररिार में हुआ ! ककपना अपने पररिार में िार भाई-बहनो मे
सबसे छोट थीं। उनके वपता का नाम बनारसी लाल िािला और माता का नाम
संजयोती है । ककपना का वििाह 1983 में उडान प्रमशक्षक जीन वपएरष हैररसन से
सम्पन्न हुआ ।

ककपना िािला (Kalpana chawala) की पहल अंतररक्ष यात्रा एस. ट . एस.-87


कोलंबबया स्पेस शटल से संपन्न हुई ! इसकी अिचि 19 निंबर 1997 से लेकर
5 ददसंबर, 1997 तक रह ! ककपना िािला की दस ू र और अंनतम उडान 16
जनिर ए 2003 को कोलंबबया स्पेस शटल से ह आरं भ हुई | यह 16 ददन का
ममशन थार् ् इस ममशन पर उन्होंने अपने सहयोचगयों के साथ ममलकर लगभग
80 पर क्षर् और प्रयोग ककएर् ् िापसी के समय 1 फरिर 2003, को शटल
दघ
ु ट
ष ना ग्रस्त हो गई तथा ककपना समेत 6 अंतररक्ष याबत्रयों की मत्ृ यु हो गई |

भारत की बेट ककपना िािला से प्रेरर्ा पा कर इसी क्षेत्र में भविष्य के सपने
संजो रहें हर यि
ु ा को उनके जीिन की महत्िपर्
ू ष पहलओ
ु ं से अिश्य अिगत
होना िादहए !

ककपना चावला – महत्वपणष बबूंद ु


ककपना िािला ने 1988 में नासा अमेस ररसिष सेंटर (NASA Ames Research
Centre) में काम करना शरू
ु ककया और िदटष कल / शॉटष टे कऑफ और लैंडडंग
कॉन्सेप्ट पर कम्प्यट
ू े शनल फ्लइ
ु ड डायनाममतस (CFD) ररसिष ककया।
ककपना िािला एक एस्रोनॉट होने के साथ ह बहुत ह कक्रएदटि भी थीं उन्हें
कविता, नत्ृ य, साइककल िलाना और दौडना भी पसंद था।

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िर्ष 1991 में ककपना िािला ने अमेररका की नागररकता हामसल कर ल


थी।उन्होंने 1995 में नासा एस्रोनॉट कोपष ज्िाइन ककया। उन्हें 1996 में पहल
अंतररक्ष उडान के मलए िन
ु ा गया।
ककपना िािला ने एक ममशन स्पेशमलस्ट और प्राइमर रोबोदटक आमष ऑपरे टर
के रूप में पहल बार 1997 में आउटर स्पेश के मलए उडान भर थी।

उन्होंने पथ्
ृ िी की 252 कक्षाओं (orbits) में 10.4 मममलयन मील से अचिक की
यात्रा की। उन्होंने कुल 372 घंटे अंतररक्ष में बबताये थे।
िर्ष 2000 में ककपना िािला को एसट एस-107 के िालक दल (crew) के दहस्से
के रूप में अपनी दस
ू र उडान के मलए िन
ु ा गया था। ममशन में बार-बार दे र
हुई और िह 16 जनिर , 2003 को अंतररक्ष में लौट आई।उसी िर्ष 1 फरिर
को, अंतररक्ष शटल कोलंबबया में िालक दल के सभी छह अन्य सदस्यों के साथ,
दभ
ु ाषलयपर्
ू ष एसट एस-107 ममशन पर ककपना िािला की मत्ृ यु हो गई।

अपने 28िें ममशन, एसट एस-107 को समाप्त करने के कुछ समय पहले,
अंतररक्ष यान पथ्
ृ िी के िायम
ु ंडल में पन
ु : प्रिेश करने के दौरान टे तसास के ऊपर
बबखर गया, क्जससे िालक दल के सभी सात सदस्यों की मौत हो गई।

मरर्ोपरांत ककपना िािला को भारत सरकार द्िारा इन परु स्कारों से सम्माननत


ककया गया –

1. काूँग्रेशनल अूंतररक्ष पदक

2. नासा अूंतररक्ष उड़ान पदक

3. नासा ववशशष्ट सेवा पदक

ककपना चावला एक ज्बा-


ककपना िािला (Kalpana Chawala) आज अमर हो िक
ु ी हैं. मरकर भी िह आज
हमारे मलए प्रेरर्ा का काम कर रह है . मदहला सशक्ततकरर् की राह में ककपना
िािला ने नई कहानी मलखी है . आशा है उनसे प्रेररत होकर कई लडककयां अपने

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सपनों को नई उडान दें गी. िािला भारतीय अमर की अंतररक्ष यात्री और अंतररक्ष
शटल ममशन विशेर्ज्ञ थी !

डॉ.शशवा धमे ा

ीवन की सबसे बड़ी खश


ु ी,
उस काम को करने में हैं,
श् से लोग कहते हैं.
“ तम
ु नहीूं कर सकते”

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आलेख

क्या अननवायष शमशलट्री सेवा से सेना का हहत होगा ?

पक्ष और ववपक्ष:-

पक्ष
मुझे तोड़ लेना बनमाली,

उस पथ पर दे ना तुम फेंक!

मात-ृ भशम पर शीश- चढ़ाने,

श् स पथ पर ावें वीर अनेक!

दे श सेवा के भाव क्या होते हैं कवव माखनलाल चतुवेदी ी की उपयक्


ुष त कववता
पष्ु प की अशभलार्ा से प्रकट होता हैस

भारतवर्ष की गौरव गाथा, यहाूं की सेना के वानों की कायषकुशलता वीरता से


भरी पड़ी है स दे श सेवा, राष्ट्रवाद और अनश
ु ासन भारतीय सेना का मल मूंि है स
ववर्म पररश्स्थनतयों में भी भारतीय सैननकों की कायषकुशलता, साहस और
मनोबल का ववकव स्तर पर सम्मान होता आया है स अगर हमें कुशल नेतत्ृ व
शमल ाए तो हम ववकववव य की हदशा में होंगे और यह सब हमारे दे श के
यव
ु ाओूं की बदौलत सूंभव है स

गाूंव की सड़कों से दौड़ता हुआ भारत का यव


ु ा सेना में आकर अपने आप
को गौरवाश्न्वत महसस करता है कक वह सेना का अशभन्न अूंग है स उसकी वदी

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के शसतारे उसकी ककस्मत के शसतारों से भी बढ़कर होते हैंस वह उनकी चमक


कभी कम नहीूं होने दे ता हैस साूंसे थम ाएूं तो क्या? रक्त म ाए तो क्या?
कफर भी सेना का वान कतषव्य पथ पर अपने प्राणों की बा ी लगा दे गास ऐसे
रणबाूंकुरे , धरु ूं धर योद्धाओूं की ीत हमेशा पथ चमती है स बरु ा वक्त भी ऐसे
ाूंबा योद्धाओूं के ीवन में यश लेकर आता है स वीरता की कुछ ऐसी
पररभार्ा भारतीय सेना के ाूंबा योद्धा रणक्षेि में दे ते हैंस

“ ो भरा नहीूं है भावों से

बहती श् समें रसधार नहीूं

वह हृदय नहीूं, वह पत्थर है

श् समें स्वदे श का प्यार नहीूंस“

कवव गया प्रसाद शक्


ु ल ‘स्नेही’ ी की यह पूंश्क्त स्वदे श प्रेम और राष्ट्रप्रेम को
दशाषती हैस राष्ट्रवाद की इससे सच्ची पररभार्ा और क्या हो सकती है कक सेना
स्वयूं राष्ट्रभश्क्त का स्वखणषम मौका दे रही है स

आ दे श का हर कोई यव
ु ा भारतीय सेना का अूंग बनना चाहता है और
इस वदी की चाह को पणष करना चाहता हैस दे श सेवा के शलए भारतीय सेना में
आकर तन-मन से राष्ट्र को समवपषत होता है स आ हमारी सरकार यव
ु ाओूं के
सपनों को परा करने के शलए और सेना को यव
ु ा सैन्य बल प्रदान करने के शलए
प्रयासरत है स इसी व्यवस्था के तहत ‘टर ट ड्यटी’ का ववककप लेकर दे श की
सरकार रक्षा मूंिालय के साथ शमलकर भारतीय सेना में नए ोशीले रणबाूंकुरों
की फौ को कतषव्य की नई हदशा और राष्ट्रवाद की पररभार्ा शसखाने के शलए
वचनबद्ध है और एक म बत आधार प्रदान करना चाहती है स

दे श की हर मां अपने बेटे के बदन पर सेना की िदी दे खना िाहती है।


जब एक बढ़
ू मां अपने बेटे को दे श की रक्षा के मलए घर से विदा करती है तो िह

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कहती है ! जा बेटे.. कतषव्य पथ पर.. भारत मां की रक्षा के मलए अगर प्रार्ों का भी उत्सगष करना पडे
तो कभी पीछे मत हटना बेटा.. हमेशा आगे बढ़ते जाना। मां से ककए िादे को पर्
ू ष करने के मलए
अपनी मातभ
ृ मू म की रक्षा के मलए दे श का यि
ु ा, सेना में आने के मलए, सेना के
तौर तर के सीखने के मलए, अपना खून पसीना एक कर दे ता है और भारतीय
सेना का अमभन्न अंग बन कर अपने आप को गौरिाक्न्ित महसस
ू करता है
कुछ इस प्रकार का है हमारे दे श का यि
ु ा रतत। क्जसकी िमननयों में रतत का
तफ
ू ान एक सैलाब बनकर उमड रहा है । सेना का कुशल नेतत्ृ ि और अनश
ु ामसत
िातािरर् ऐसे सैलाब को नई ददशा और गनत दे गा। यह सेना के मलए भी गौरि
की बात है ।
परूं तु कुछ लोगों को इस बात से आपवत्त है कक अगर अननवायष
सैन्य सेवा ववककप को भारत की सेना का अूंग बना शलया ाएगा तो इससे
हमारी सेना कम ोर पड़ ाएगीस क्योंकक 3 वर्ष का समय (शॉटष सववषस) काफी
कम हैस परूं तु महोदय ऐसे लोगों को मैं यह बता दे ना चाहता हूं कक भारतीय
सेना में कायष करने के शलए 1 हदन भी अपने आप में बहुत बड़ी अवगध है स
भारत ैसे दे श हाूं बेरो गारी का ग्राफ हदन प्रनतहदन बढ़ता ा रहा है ,
योग्यता और काबबशलयत सड़कों पर बेरो गार घम रही हैस ऐसे में कम से कम
तीन वर्ष के शलए भारतीय सेना में यव
ु ाओूं को नौकरी दे ना और उनको सैननक
गनतववगधयों का प्रशशक्षण दे कर दे श को वैश्कवक स्तर पर एक नई हदशा दे ना
अपने आप में प्रभावी, कारगर, सटीक एवूं प्रभावपणष शभ
ु सूंकेत हैंस श् स पर
तुरूंत कायष होना चाहहएस इससे हमारे दे श को और हमारी सेना को फायदा ही
होगास कोई नक
ु सान नहीूं होगास

प्रशशक्षण ककसी भी साधारण व्यश्क्त को असाधारण बना सकता है स


मैं यह मानता हूं कक पेशव
े र सैननक ज्यादा कारगर एवूं प्रभावी, सटीक एवूं
कुशल नेतत्ृ व, रणकौशल में पणष होता हैस परूं तु ‘अननवायष शमशलट्री सेवा’ के
अूंतगषत भी प्रवेश लेने वाला अगधकारी या वान प्रशशक्षक्षत, अनश
ु ाशसत वीरता
और वववेक को धारण करने वाला ही होगास क्योंकक दे श के यव
ु ाओूं को आमी से
ोड़ने का यह सन
ु हरा अवसर हैस अभी यह व्यवस्था प्रारूं शभक चरण में ही है स
इस व्यवस्था से धीरे -धीरे सूंपणष राष्ट्र में दे शभक्त, दे शभश्क्त और राष्ट्रवाद का

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उदय होगास यह व्यवस्था नए वॉशलूंहटयसष को न्म दे गीस श् ससे भववष्य का


राष्ट्र, हमारा भारतवर्ष अपनी प्राचीन गौरवमयी परूं परा का अनस
ु रण करे गास वदी
की इच्छा रखने वाले यव
ु ाओूं के शलए भी यह क्षेि नए ववककपों को लेकर
आएगा ‘अननवायष शमशलट्री सेवा’ के अूंतगषत 3 वर्ष के कायषकाल में 9 महीने की
शमशलट्री ट्रे ननूंग के साथ-साथ प्रवेश परीक्षा और मानशसक एवूं शारीररक मापदूं ड
पहले ैसे ही रहें गे इस बात से तो कोई समझौता नहीूं ककया गया हैस

इसका सकारात्मक पहल यह रहे गा कक सेना का पैसा बच ाएगास ैसे ग्रेच्यट


ु ी
पें शन नहीूं शमलेगीस अभी वतषमान में 10 साल में अगधकारी पर कम से कम 5
करोड़ रूपये खचष आता हैस और 14 वर्ष तक ो अगधकारी सेना में कायष करता
है एक अनम
ु ान के तहत 7 करोड़ रूपये उस पर खचष होते हैंस परूं तु अब यह
माि 3 वर्ष में अगर ‘अननवायष शमशलट्री सेवा’ के अूंतगषत ‘टर आफ ड्यटी’ ‘शॉटष
सववषस’ ववककप को अपनाया ाता है तो केवल 85 लाख में 3 साल के शलए
सेवा ली ा सकती हैस इसका एक लाभ यह होगा कक अगर पैसा बचेगा तो वह
सेना के अन्य सूंसाधनों में प्रयोग ककया ाएगास अभी व्यवस्था प्राथशमक चरण
में ही है स श् समें 100 अगधकारी और 1000 वान प्रारूं शभक व्यवस्था को स्थाई
धरातल प्रदान करें गेस

हमें इ राइल, रूस, उत्तर कोररया, दक्षक्षण कोररया, ग्रीस,


श्स्व रलैंड, तक
ु ी, ईरान, क्यबा, नावे आहद दे शों से सीखना चाहहएस यहाूं परु
ु र्
ही नहीूं बश्कक महहला भी अननवायष रूप से सैन्य सेवा के शलए समवपषत हैंस यहाूं
भी माि ननश्कचत समय के शलए ही श् समें 1 वर्ष या कफर 2 वर्ष तक ‘अननवायष
शमशलट्री सेवा’ दी ाती हैस महोदय प्रत्येक दे श की भौगोशलक, सामाश् क और
रा नीनतक व्यवस्था उस दे श की साूंस्कृनतक मकयों के अनरू
ु प ही होती है स परूं तु
हम ववकशसत राष्ट्र का चोला पहनकर वास्तववकता से तो मूंह
ु नहीूं मोड़ सकते
और वास्तववकता यही है कक हमें समय के साथ चलना चाहहएस वैसे भी महोदय
यद्
ु ध हमेशा ही नहीूं होतेस कफर भी हमें हमेशा यद्
ु ध की तैयाररयों के अनरू
ु प
व्यवस्था और अभ्यास को बनाए रखना चाहहएस यह भी एक कटु सत्य है कक

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यद्
ु ध से बढ़कर भी दे श की व्यवस्था को बनाना और सामाश् क एवूं मानवीय
प्रबूंधन स्थावपत करना हैस दे श को चलाना यह बात भी अपने आप में महत्वपणष
है स

कुछ आलोचक धाशमषक, वैचाररक वह रा नीनतक रूप से ‘अननवायष शमशलट्री


सेवा’ ववककप को लेकर परे शान न र आ रहे हैंस ऐसे लोगों को मैं यह कहना
चाहता हूं कक भारतवर्ष की साूंस्कृनतक ववरासत के मल में राष्ट्रवाद ननहहत है स
यहाूं सब धमों से बढ़कर राष्ट्रवाद का सर चमकता है स यहाूं सयष की पहली
ककरण ब हहमालय पवषत पर पड़ती है तो उसके प्रकाश से सूंपणष भारतवर्ष
उज् वल शसतारे की तरह चमकता है स ऐसे में भारत के प्रत्येक नागररक का यह
कतषव्य बन ाता है कक दे श की सरु क्षा वह इस प्रकार करे स
ै े वह अपने घर
की सरु क्षा करता होस

यह दे श भारत के प्रत्येक यव
ु ा के सपनों का दे श हैस इसशलए इस दे श के
ववकास और प्रगनत के शलए और रक्षा सरु क्षा के शलए सभी की सहभागगता
अत्यावकयक हैस दे श के यव
ु ाओूं से अपेक्षा अगधक है स इनतहास इस बात का
गवाह है कक कई ववदे शी आिाूंता हमारे दे श में आतूंक के मकसद से आए और
हमें नक
ु सान पहुूंचायास हमारी सूंपवत्त को नक
ु सान पहुूंचायास अगर हमारी सरु क्षा
व्यवस्था और एकता बनी रहती तो हम अूंग्रे ों के गल
ु ाम न होतेस हम भारतीयों
ने उपननवेशवाद की लूंबी यािा के बाद अपनी नन ी ववकास की यािा स्थावपत
की है स इसशलए हम सब का परम कतषव्य बनता है कक समा और दे श के
ववकास में , मानवता के ववकास के शलए कोई भी छोटा या बड़ा कायष हो, उसमें
प्रत्येक नागररक का अूंशदान होना चाहहएस भारत सभी धमों का दे श है और
राष्ट्र की प्रगनत, उन्ननत, सरु क्षा के शलए मानवता सबसे बड़ा धमष हैस मानवता
की रक्षा के शलए ‘अननवायष शमशलट्री सेवा’ ववककप बहुत रूरी है स भारत का
प्रत्येक नागररक प्रशशक्षक्षत और सैन्य क्षमताओूं से पणष प्रशशक्षक्षत हो ऐसी
व्यवस्था को मीनी स्तर पर उतारने की यो ना का स्वागत करना चाहहएस

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कुछ आलोचकों द्वारा यह कहा ा रहा है कक अननवायष शमशलट्री सेवा के शलए


‘समय बहुत कम हैस‘ परूं तु यह उतना महत्वपणष नहीूं कम समय में भी दे श का
यव
ु ा सेना को शत प्रनतशत योगदान दे सकता हैस यह तो कायषशल
ै ी पर ननभषर
करता है कक ककस तरह कम समय में सटीक एवूं प्रभावपणष नेतत्ृ व द्वारा
दे शहहत के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए कायष को पणष ककया ा सकता है स
कम समय में अगधक से अगधक यव
ु ाओूं को प्रशशक्षक्षत करके दे श सेवा के प्रनत
समपषण का भाव ागत
ृ हो सके यह ज्यादा महत्वपणष हैस यह भववष्य का शभ

सूंकेत है स इससे सेना का तो हहत होगा ही साथ ही दे श का, दे शवाशसयों का भी
हहत सूंभव है स

हम भारतीयों ने उपननवेशवाद की लूंबी यािा के बाद अपनी नन ी ववकास


यािा प्रारूं भ की हैस भारत ववववधता में एकता, वसध
ु व
ै कुटुूंबकम, सवषधमष
समभाव की नीनत अपनाने वाला राष्ट्र है , यहाूं मानवता श्रेष्ठ धमष है स

दकु मन राष्ट्र हमारी सरहद पर बैठा हैस अननवायष शमशलट्री सेवा के ववककप
पर अगर अभी भी कोई तटस्थ रहता है तो वह अपराधी हैस

‘क्योंकक समर शेर् है नहीूं पाप का भागी केवल व्याध

ो तटस्थ हैं समय शलखेगा उनके भी अपराधस‘

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क्या अननवायष शमशलट्री सेवा से सेना का हहत होगा ?

ववपक्ष-
‘यह गहन प्रकन है कैसे रहस्य बताऊूं

पेशेवर सेना के गीत कैसे-कैसे बतलाऊूं

यहाूं सरहद पर खन की होली होती है

आूंसुओूं से भीगा दामन और चोली होती है स‘

यह कैसी ववडूंबना है ? अननवायषता का कैसा यक्ष प्रकन है ? क्या यह बैठी हुई


डाल को काटने के सामान न होगा? यह तो स्वयूं के पैर को कुकहाड़ी पर मारने
के समान हैस स्वरगचत पूंश्क्तयों के माध्यम से मैं अपनी बात कहना चाहता हूं
कक बालक अगर अूंगारों से खेलना चाहे तो उसे यह करने नहीूं हदया ातास हाथ
बढ़ाकर आसमान के तारे नहीूं तोड़े ाते हैंस हर लक्ष्य तक वव य प्राप्त करने
के शलए एक कुशल रणनीनत का होना अनत आवकयक हैस और कुशल रणनीनत
के शलए अभ्यास के साथ-साथ समय की भी रूरत होती है स कम समय में पेड़
की ड़े भी म बत नहीूं होती और ना ही उसकी शाखाएूं उतनी पररपक्व हो
पाती हैंस श् तनी कक हम उस पेड़ से अपेक्षाएूं रखते हैंस कच्ची शमट्टी का घड़ा
भी अगधक दे र तक ल को सूंगचत नहीूं रख सकता है स श् न पत्थरों का एक
ननश्कचत आकार नहीूं होता वह नदी के बहाव की हदशा में बह ाते हैंस ऊूंची
इमारत बनाने में नीूंव के पत्थरों को भी समय दे कर तराशा ाता हैस छै नी और
हथौड़े की एक-एक चोट से उसके आकार को साकार ककया ाता है स तब ाकर
एक म बत इमारत खड़ी होती हैस

ठीक उसी प्रकार मनष्ु य भी है उसको भी वस्तओ


ु ूं को सीखने में समय
लगता है स कदबा ी में ककया गया कायष हमेशा गलत पररणाम ही दे ता है स

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िोध में मीठी बात भी बरु ी लगती है महोदयस कायष की सफलता उसके उद्दे कयों
में ही ननहहत होती हैस

ननश्कचत अवगध के शलए सेना के द्वार नहीूं खोले ा सकतेस यहाूं


इनकशमूंग समपषण, दे श सेवा, राष्ट्रभश्क्त, अनश
ु ासन और भारत माता की य
से प्रारूं भ होती है और ब एक सैननक की आउटगोइूंग होती है तो वह नतरूं गे
का दामन लपेट कर, परम वव यी होकर परमवीर चि वव ेता कहलाता है स

आ अननवायष शमशलट्री सेवा की ो बातें चल रही हैं इसमें सेना


का ववशेर् हहत नहीूं हदखतास यह एक बबना उद्दे कय की यो ना हैस क्या पैसा
बचाना उद्दे कय है ? या एक कुशल सेना का गठन करना पहली प्राथशमकता होनी
चाहहए? यह सोचने की बात है महोदय हम दे श की सरु क्षा व्यवस्था से कोई
समझौता नहीूं कर सकते सरकार ो ‘टर आफ ड्यटी’ के ववककप के साथ
‘अननवायष सैन्य सेवा’ को लेकर प्रस्ताव रख रही है यह अकुशल लोगों को सेना
में प्रवेश हदलाकर सेना को कम ोर करने वाली बात होगीस

अननवायष शमशलट्री सेवा के नाम पर दे श के यव


ु ाओूं को माि 3 वर्ष सेना
में प्रवेश हदला कर क्या हम एक म बत सेना का गठन कर पाएूंगे?

‘टर आफ ड्यटी’ के ववककप को अपनाकर हम क्या पणष रूप


से प्रशशक्षक्षत सेना का ननमाषण कर पाएूंगे?

मैं यह स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कक भारतीय सेना कोई


टररस्ट प्लेस नहीूं है कक यहाूं तीन वर्ष आओ और ाओ..! सेना की रणनीनत
को समझने के शलए 3 वर्ष का समय ऊूंट के मूंह
ु में ीरे के समान है स

यननट में आकर ऑकफससष और सेना के वान को कई कोसष करने होते हैंस ैसे
‘यूंग ऑकफससष कोसष’ समय-समय पर कराए ाते हैंस केवल अकादमी में ही

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ट्रे ननूंग नहीूं होती हैस अकुशल व्यश्क्त को सेना में कम समय के शलए रखना
एकदम खतरे का काम है स अननवायष शमशलट्री सेवा से तो बेहतर यह होगा कक
वतषमान में ो अगधकारी हैं उनसे ही काम शलया ाए या कफर नए पदों को
भरने के शलए अगधक से अगधक ववज्ञश्प्तयाूं ननकाली ाएूंस

वतषमान सेना की सूंख्या बढ़ाने के शलए राज्य स्तर, श् ला स्तर, तहसील स्तर,
ब्लॉक स्तर, ववकवववद्यालय, महाववद्यालय या कफर ववद्यालय स्तर पर भती
रै ली का आयो न ककया ाएस साथ ही ववद्यालयी शशक्षा से लेकर
ववकवववद्यालय शशक्षा तक रक्षा- सरु क्षा, डडफेंस स्टडी एवूं मेकैननज्म अननवायष
ववर्य को पाठ्यिम के केंद्र में लाया ाएस मानशसक और शारीररक रूप से
यव
ु ाओूं को म बत बनाने के शलए योगाभ्यास को अननवायष ककया ाएस NCC
और NSS से सहयोग शलया ाएस शशक्षा, गचककत्सा और कृवर् के क्षेि में
आत्मननभषरता के भाव पैदा ककए ाएूंस राष्ट्र सेवा के शलए उपयक्
ुष त तीनों ववर्यों
में कई क्षेि खुले हैंस यव
ु ाओूं को बस हदशा दे ने की दे र हैस दे श में NCC और
NSS की इतनी शाखाएूं हैं कक यहाूं काम करने वाले वॉशलूंहटयसष को सेना की
मख्
ु य धारा से ोड़ा ा सकता है स अगर दे शभश्क्त, राष्ट्रवाद, दे श सेवा की बात
है तो माि 3 वर्ष के शलए ही क्यों ? या कम समय के शलए ही क्यों ? कम से
कम 10 वर्ष या उससे अगधक क्यों नहीूं?

अगर हम इ राइल, रूस, उत्तर कोररया, दक्षक्षण कोररया, नावे, श्स्व रलैंड, तक
ु ी,
ग्रीस, ईरान या क्यबा ैसे दे शों से अगर हम अपनी तुलना करने की सोच रहे
हैं तो अननवायष सेना के ववककप वाली बात समझ से परे है स भारत एक
ववकशसत राष्ट्र नहीूं है स हमारा दे श अभी ववकास कर रहा हैस हमारा सामाश् क,
रा नीनतक और भौगोशलक पररवेश हमें इस बात की इ ाित नहीूं दे ता कक हम
सैन्य सूंसाधनों एवूं सरु क्षा चिों की गोपनीयता को समा के समक्ष लाकर
अननवायष सैन्य ववककप को प्रस्तत
ु करते हुए रक्षा सिों को साूंझा कर दें स

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हमारे पड़ोसी दे श पाककस्तान और चीन के साथ हमारे हालात नहीूं बदले,


आए हदन टकराव होता रहता है क्या ऐसे समय में सेना के ढाूंचे में बदलाव
करना ठीक रहे गा? क्या यह रक्षा ब ट बचाने के शलए दे श की सरु क्षा व्यवस्था
से समझौता तो नहीूं? सरकार का कुछ ब ट बचाने के शलए शाटष सववषस
व्यवस्था, अननवायष शमशलट्री सेवा का ववककप घातक साबबत हो सकता हैस
क्योंकक अकुशल नेतत्ृ व से सरु क्षा व्यवस्था के साथ कोई समझौता नहीूं ककया
ा सकतास

आमी की सववषस 3 साल दे कर क्या हम यव


ु ाओूं को प्राइवेट
इूंडस्ट्री के शलए छोड़ दें ? यह तो प्राइवेटाइ ेशन को बढ़ावा दे ने वाली बात हुईस
कम से कम हमें सेना को प्राइवेटाइ ेशन से दर रखना चाहहएस एक पररपक्व
यव
ु ा को प्रशशक्षक्षत अगधकारी बनने में बहुत लूंबा समय लगता है और कफर
शारीररक और मानशसक स्वास््य भी बहुत रूरी हैस क्या इन बातों से
समझौता ककया ा सकता है ?

हम कैसे भल गए कक हमने सन ् 1962, सन ् 1971, सन ् 1999


और प्रत्येक हदन LOC/LAC पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से यद्
ु ध के माहौल से
गु र रहे हैं? क्या ऐसे में यह सही रहे गा कक हम कम प्रशशक्षक्षत लोगों को सेना
की मख्
ु यधारा से ोड़ दें ?

‘अननवायष शमशलट्री सेवा’ ववककप के तहत इस फामल


ष े को
दे श की आूंतररक व्यवस्था सध
ु ारने के शलए कुछ क्षेि में अपनाया ा सकता हैस
ैसे भस्खलन प्रभाववत क्षेि, बाढ़ प्रभाववत क्षेि, भारत के तटवती क्षेिों में,
आपदा प्रबूंधन, पयाषवरण सूंरक्षण, केंद्र तथा राज्य स्तर की पशु लस फोसष के
अकादशमक तथा कायाषलयी कायों में, राज्य लोक सेवा आयोग से सूंबूंगधत क्षेिों
में , दे श की बहुचगचषत इमारतों, मूंहदरों की सरु क्षा आहद क्षेिों में इस फामल
ष े को
अपनाकर प्रभावी बनाया ा सकता है स उपयक्
ुष त इन सभी क्षेिों में दे श का यव
ु ा
वगष अपनी शत-प्रनतशत सहभागगता ननभाएगास

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आ हमें सेना में सचना तकनीकी को और अगधक सकिय एवूं म बत


करने की महत्वपणष आवकयकता है स इस हदशा में कुछ वर्ों की शॉटष सववषस या
‘अननवायष सैन्य सेवा’ फामल
ष े को नहीूं अपनाया ा सकता हैस क्योंकक सचना
एवूं तकनीकी तूंि दे श की सरु क्षा का मामला है यहाूं समझौता करना ठीक नहीूंस
सचना और तकनीकी के क्षेि में सेना को तो स्थाई रूप से म बत बनाना
समय की माूंग है स हमें ‘अननवायष सैन्य सेवा’ फामल
ष े को वतषमान की ‘प्रादे शशक
सेना’ के ववककप के रूप में अपनाना चाहहएस

वैसे भी दे श के यव
ु ाओूं को अगर राष्ट्र सेवा करनी है तो अन्य
बहुत सी ऐसी सूंस्थाएूं हैं, अन्य बहुत से ऐसे कायष हैं, कई क्षेि हैं हाूं 3 वर्ष
क्या उससे भी अगधक वर्ों तक सेवा दी ा सकती हैंस दे श का यव
ु ा मश्स्तष्क
अन्य कई क्षेिों में स
ै े शशक्षा, गचककत्सा, कृवर् में प्रयोग में लाया ा सकता हैस
श् ससे ब्रेन ड्रेन ैसी समस्या का ननवारण भी हो ाएगास परूं तु क्या मह 3
वर्ष दे श के यव
ु ा को अननवायष सैननक सेवा हदलाकर हम अपनी ही राष्ट्रीय
सरु क्षा और आूंतररक व्यवस्था को कम ोर न कर दें गेस कम समय के शलए
आने वाले यव
ु ा वतषमान सैन्य अगधकाररयों से कैसा समायो न रख पाएूंगे यह
भी अपने आप में ववचारणीय प्रकन है स इस प्रकार से तो हम एक कम ोर
व्यवस्था बना रहे हैंस ो दे खने में तो अच्छी होगी परूं तु कायषकुशलता और
नेतत्ृ व में दीमक खाई हुई लकड़ी की तरह होगीस ो ना म बत आधार दे
पाएगी और ना ही एक म बत सरु क्षा चि स्थावपत कर पाएगीस हमें एक
म बत राष्ट्रीय सरु क्षा चि स्थावपत करना है तो हमें कम से कम 10 से 15
वर्ष तक ‘अननवायष शमशलट्री सेवा’ के शलए दे श के यव
ु ाओूं का चयन करना होगा
और शारीररक, मानशसक मापदूं डों में कोई समझौता नहीूं करना होगास

हमारे सामने अतीत की कई कड़वी यादें हैंस हम अतीत और आ वतषमान में


प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से आतूंकवाद, नक्सलवाद से झ रहे हैंस क्या तीन वर्ष
की सेवा लेकर इन यव
ु ाओूं को प्राइवेट इूंडस्ट्री के शलए छोड़ दें ? क्या सरु क्षा

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चिों की गोपनीयता को साझा कर दें ? क्या दे श की सरु क्षा व्यवस्था के साथ


यह उगचत होगा?

क्या सरकार अपनी कलम से वीरों का भाग्य इस तरह शलखेगी? श् न वीर


सैननकों ने दे श पर सवषस्व लट
ु ा हदया उनकी गह अनभ
ु वहीनों का चयन कहाूं
तक न्याय सूंगत है ? राष्ट्रकवव रामधारी शसूंह हदनकर की यह पूंश्क्तयाूं ऐसे ही
वीर भारतीय सैननकों की य बोलेगी श् नकी बदौलत हम आ यहाूं हैं-

‘ ला अश्स्थयाूं बारी-बारी

गचटकाई श् नमें गचूंगारी

ो चढ़ गए पुण्यवेदी पर

शलए बबना गदष न का मोल

कलम आ उनकी य बोलस‘

©डॉ.चूंद्रकाूंत नतवारी

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ऐनतहाशसक स्थल एक न र-

कूंु भलगढ़

*इनतहास में चित्तौडगढ़ के बाद सबसे बडा दग


ु ष कूंु भलगढ़ का ह है!

* मेिाड के इनतहास िीर विनोद के अनस


ु ार महारार्ा कंु भा ने विक्रम संित 1505
(1448ई.) में कंु भलगढ़ या कंु भलमेरु दग
ु ष की नींि रखी!

कूंु भलगढ़ दग
ु ष
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* इसका ननमाषर् कंु भा के प्रमख


ु मशकपी और िास्तु शास्त्र के प्रमसद्ि विद्िान
मंडन की योजना और दे खरे ख में ककया गया!

* कंु भलगढ़ दग
ु ष संकटकाल में मेिाड के राजपररिार का आश्रय स्थल कहां है !

* इस ककले की ऊंिाई के बारे में अबल


ु फजल ने मलखा है –

“कक है इतनी बल
ु ूंदी पर बना है कक नीचे से

ऊपर की ओर दे खने पर शसर से पगड़ी गगर ाती है !”

* कंु भलगढ़ दग
ु ष में िीर मशरोमखर् महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था!

* कंु भलगढ़ प्रशक्स्त के रिनयता भी कवि महे श ह था!

* कंु भा के काल में रर्कपरु के जैन मंददर का ननमाषर् 1439 ईस्वी में एक जैन
श्रेष्ठी िरनक ने करिाया था!

* संगीत राज, संगीत मीमांसा, संड


ू प्रबंि, कामराज रनतसार, िंडी शतक की
व्याख्या, गीत गोविंद पर रमसक वप्रया नाम की ट का तथा संगीत रत्नाकर की
ट का महारार्ा कंु भा द्िारा रचित ग्रन्थ है!

* कंु भलगढ़ पररसर के अंदर 360 मंददर हैं क्जनमें 300 जैन मंददर तथा बाकी
के दहंद ू मंददर हैं!

* कनषल जेम्स टॉड ने इस दग


ु ष की तुलना ( सदृ
ु ढ़, प्रािीर, बज
ु ो एिं कंगूरो के
कारर् ) ‘ एट्रुस्कन ’ से की है!

* कंु भा स्िामी विष्र्ु मंददर, कटार गढ़, झाल िा ि बािडी, मामादे ि का कंु ड,
हाचथया गढ
ु ा की नाल दशषनीय है !

* ककले की तलहट में महारार्ा रायमल के कुिर पथ्


ृ िीराज की छतर बनी हुई
है जो ‘उडना राजकुमार’ के नाम से प्रमसद्ि था!

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* महारार्ा कंु भा को हाल गुरु ( चगरर, दग


ु ो का स्िामी ), रार्ो रासो ( विद्िानों
का आश्रय दाता ), अमभनि भरतािायष ( संगीत के क्षेत्र में ज्ञान ) तथा दहंद ू
सरु तान आदद उपनामो से होता है

इनतहास से सूंबूंगधत कुछ घटनाएूं :-


 गुजरात के सक
ु तान कुतुबद्
ु द न ने 1457ई. में एक विशाल सेना के साथ
कंु भलगढ़ दग
ु ष पर आक्रमर् ककया, परं तु िह भी असफल रहा!
 मांडू मालिा के सक
ु तान महमद
ू खखलजी ने कंु भा से पराजय का प्रनतशोि
लेने के मलए कंु भलगढ़ पर आक्रमर् ककया, परं तु असफल रहा!
 रार्ा सांगा की मत्ृ यु के दांत मेिाड राजपररिार की आंतररक कलह के
घटनाक्रम में स्िामी भतत पन्नािाय ने अपने पत्र
ु की बमल दे कर उदय
मसंह को बनिीर के कोप से बिाया! तथा कंु भलगढ़ में उसका लालन-
पालन ककया गया! आगे िलकर इसी दग
ु ष में उदय मसंह का मेिाड के
महारार्ा के रूप में राज्यामभर्ेक हुआ!
 9 मई 1540 को कंु भलगढ़ दग
ु ष में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ!
 महाराणा उदय शसूंह ने पि
ु गमाल को अपना उत्तरागधकारी ननयक्
ु त
ककया था बकक सबसे बड़े पि
ु में योग्य उत्तरागधकारी प्रताप थे, लेककन
सब सरदारों ने ममलकर प्रताप का राज्यामभर्ेक गोगंद
ु ा में कर ददया!
 बादशाह अकबर ने सवषप्रथम लाल खान को नवूंबर 1572 में , आमेर के
रा कुमार मान शसूंह कछवाहा को माचष 1573 में , आशमर शासक भगवूंत
दास मान शसूंह के वपता को शसतूंबर 1573 में , तथा अूंत में रा ा
टोडरमल को हदसूंबर 1573 में महाराणा प्रताप के पास अपनी अधीनता
स्वीकार करने हे तु भे ा! लेककन सभी प्रयत्न ननष्फल रहे !

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 हकद घाट का यद्


ु ि – यह यद्
ु ि सेनापनत मानमसंह कछुआ के नेतत्ृ ि में
अकबर की सेना के महारार्ा प्रताप की सेना के मध्य हकद घाट में 18
जून 1576 को हुआ ! इस यद्
ु ि में अकबर का आचश्रत इनतहासकार अल
बदायन
ू ी उपक्स्थत था! प्रताप के घोडे िेतक का दे हांत हुआ! बाद में प्रताप
ने िािंड को अपनी राजिानी बनाया!
 कनषल टॉड ने हकद घाट को मेिाड का थमोपोल तथा ददिेर को मेिाड
का मैराथन कहां है

कूंु भलगढ़ के न दीक रमणीक पयषटन स्थल:-

 अरावली श्रेखणयों का दसरा सबसे ऊूंचा हहस्सा भोरट का पठार उदयपरु श् ले


के गोगूंद
ु ा से लेकर रा समूंद के कूंु भलगढ़ के बीच श्स्थत है!
 वपछोला झील :-
इस झील का ननमाषर् रार्ा लाखा के शासनकाल में
एक बंजारे ने करिाया था! इस झील के अंदर जग ननिास महल एिं जग
मंददर महल बने हुए हैं, क्जनमें आजकल होटल लेक पैलेस संिामलत है !

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 सहे शलयों की बाड़ी :- फतेहसागर झील की पालकी तलहट में बना


एक रमर्ीक बगीिा है ! इसका ननमाषर् महारार्ा संग्राम मसंह -2 ने
कराया था!

 मोती नगरी :-
फतेहसागर के ननकट क्स्थत पहाडी, जसपाल रार्ा
प्रताप की कांस्य प्रनतमा एिं स्मारक बडा ह अनोखा है ! जहां जापानी
रॉक गाडषन भी है !

 यसमूंद:-
ताजे मीठे पानी की दस
ू र सबसे बडी कृबत्रम झील है!
क्जसका ननमाषर् महारार्ा जय मसंह द्िारा ककया गया!

 गोगूंद
ु ा :-
हकद घाट के ननकट स्थान, जहां 1572 ईस्िी में महारार्ा
प्रताप का राज्यामभर्ेक ककया गया था! महारार्ा उदयमसंह की मत्ृ यु की
गोगंद
ु ा में हुई थी! प्रताप की प्रारं मभक राजिानी गोगंद
ु ा ह थी क्जसे बाद
में यहां से स्थानांतररत कर ददया गया था!

 गुलाब बाग :-
इसका ननमाषर् 18 से 81 ईसिी में महारार्ा सज्जन
मसंह ने करिाया! महारार्ा फतह मसंह ने इसमें गल
ु ाब बाडी का ननमाषर्
करिाया!

 फतेहसागर :-
वपछोला झील के उत्तर में इसे फतेहसागर झील का
ननमाषर् महारार्ा जय मसंह ने करिाया था! इस झील में आहड नद से

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लगभग 6 ककलोमीटर लंबी एक नहर द्िारा जल लाया जाता है ! इसके


बीि में एक टापू िह नेहरू गाडषन क्स्थत है !

अन्य महत्वपणष बबूंद ु :-

* भारत की महान द िार ‘दी ग्रेट वॉल ऑफ इूंडडया’ राजस्थान के


कंु भलगढ़ में क्स्थत है!

* यह दीवार इतनी चौड़ी है कक इस पर एक साथ आठ घोड़े ननकल सकते


हैं!

* इस ककले की खामसयत इसकी 36 ककलोमीटर लूंबी दीवार है !


राजस्थान के दहल फाउं टे न में शाममल एक विश्ि िरोहर स्थल है!

* कंु भलगढ़ की द िार को एमशया की दस


ू र सबसे बडी द िार का दजाष
प्राप्त है !

* 2013 में विश्ि विरासत सममनत के 37 िें सत्र में ककले को यन


ू ेस्को की
विश्ि िरोहर स्थल घोवर्त ककया गया!

ब ृ ेश कुमार

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ज्ञान पीठ पुरस्कार के बारे मे ाननए

भा
रतीय साहहत्य के क्षेि का प्राचीन एवूं सवोत्तम पुरस्कार
ज्ञानपीठ पुरस्कार है ! साहहत्य एवूं साूंस्कृनतक क्षेि मे
महत्वपणष ऐसा कायष करने के उद्दे कय से भारतीय
ज्ञान पीठ की स्थापना की गई ो लेखकों एवूं उनकी लेखनी को
राष्ट्रीय गौरव तथा अूंतराषष्ट्रीय प्रनतमानों के अनुरूप प्रनतश्ष्टत कर
दे ता है 61 ! शसतम्बर 6616 को भारतीय ज्ञान पीठ की सूंस्थापक
अध्यक्ष श्रीमती रमा न
ै ने इस पुरस्कार का प्रस्ताव रखा !

ज्ञान पीठ परु स्कार कौनसी भार्ाओूं को परु स्कार के योग्य मानता है ?

भारत दे श की नागररकता इस प्रनतयोगगता के नामाूंकन का सवष प्रमख


ु बबूंद ु है !
सूंववधान की आठवीूं अनस
ु ची मे बताई गई भार्ाओूं मे से ककसी भी भार्ा के
लेखक इस परु स्कार के योग्य हैं !

ज्ञानपीठ पुरस्कार की धनराशश ककतनी है ?

ज्ञान पीठ परु स्कार के वव ेता को ग्यारह लाख रूपए की धनराशश, प्रशश्स्त पि
और वाग्दे वी की प्रनतमा दी ाती है !

1965 मे इस पुरस्कार की राशश ककतनी थी ?

1965 मे इस परु स्कार राशश 6 लाख थी 5002 ! मे इसे बढ़ाकर सीधे 7 लाख
कर हदया गया ! वतषमान मे यह 66 लाख है !

प्रथम ज्ञानपीठ परु स्कार के वव ेता कौन थे ?

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प्रथम ज्ञानपीठ परु स्कार 6612 मे मलयालम लेखक श्री शूंकर कुरूप को प्रदान
ककया गया ! इनकी कृनत वूंशी के शलए यह परु स्कार हदया गया श् से मलयालम
भार्ा मे ओटक्कुर्ल कहते हैँ !

ज्ञान पीठ परु स्कार की चयन प्रकिया बताइये

6. इस परु स्कार की प्रकिया हटल होने के कारण कई महीनों तक चलती है !

5. ववशभन्न भार्ाओूं के साहहत्यकारों, अध्यापकों, समलोचको, पाठकों,


ववकवववद्यालयों, साहहश्त्यक व भार्ायी सूंस्थाओूं के प्रस्ताव होने के साथ
चयनप्रकिया का प्रारम्भ होता है !

3.चयन सशमनत हर भार्ा की होतीूं है ! श् नका गठन तीन तीन वर्ष के शलए
होता है !

4. भार्ा परामशष सशमनत अपनी शसफाररशें प्रवर पररर्द के सम्मख


ु प्रस्तुत करती
है ! श् समें 7 से 66 तक सदस्य होते हैँ ! श् नकी ख्यानत और ववकवासनीयता
उच्च कोहट की होतीूं है !

5. प्रवर पररर्द गवनषर गहन गचूंतन और पयाषवलोचन के बाद साहहत्यकार का


चयन करती है !

भार्ा सशमनत के मकयाूंकन के बबूंदओ


ु ूं के बारे मे बताइये ?

1. सम्बद्ध भार्ा का कोई भी परु स्कार योग्य साहहत्यकार ववचार पररगध से


बाहर न रह ाये !
2. सम्पणष कृनतत्व का मकयाूंकन
3. समसामनयक भारतीय साहहत्य की पष्ृ ठ भशम मे उसे परखना
4. परु स्कार वर्ष को छोड़कर वपछले 50 वर्ो की अवगध मे प्रकाशशत कृनतयों
के आधार पर लेखक का मकयाूंकन ककया ाता है! ,

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परु स्कार मे दी ाने वाली वाग्दे वी की काूँस्या प्रनतमा के बारे में


बताइये !

ज्ञानपीठ परु स्कार में प्रतीक स्वरुप दी ाने वाली यह प्रनतमा मलतुः धार,
मालवा के सरस्वती मूंहदर में श्स्थत प्रनतमा की अनक
ु ृ नत है ! वाग्दे वी के हाथ में
कमूंडल, पस्
ु तक,कमल और अक्ष माला ज्ञान, व आध्याश्त्मक अूंतरदृश्ष्ट के प्रतीक
हैँ !

हाल ही में कौनसे ज्ञान पीठ परु स्कारों की घोर्णा की गई है ?

56 वें और 27 वें ज्ञान पीठ परु स्कारों की घोर्णा िमशुः वर्ष 5050 और 5056
के शलए की गई है !

वर्ष 5050 व 5056 के ज्ञान पीठ पुरस्कार वव ेताओूं के नाम बताएूं

आसशमया कवव नीलमखण फकान एवूं कोंकणी लेखक दामोदर मो ो !

कोहरे से एक अच्छी बात सीखने को शमलती है ,


कक ब ीवन में रास्ता न हदखाई दे रहा हो,
तो बहुत दर तक दे खने की कोशशश व्यथष है ,
एक एक कदम चलते चलोरास्ता खुलता ाएगास ,

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साक्षात्कार – आयव
ु ेद – ीवन अमत

डॉ मनो शमाष

वररष्ठ आयुवेद गचककत्सक,

पतूं शल गचककत्सालय,मेगा स्टोर यपरु

आ हम अपने ीवन की भागती दौड़ती


ीवन शैली ने हमें सख सुववधाओूं से तो अवकय सम्पन्न ककया है
ककन्तु स्वास््य की दृश्ष्ट से हम ववपन्न ही हुए हैं !

नई गूँ , का प्रयास है कक हम रा सा, कुछ पल तो ठहरें और उस


ठहराव में वो भी सुनें ो हमें हमारी सूंस्कृनत ने हमें हदया !

आयुवेद वही एक कीमती ववरासत है श् से हमारे पुरखो ने गहन


अध्ययन एवूं तपस्या के पकचात ् प्राप्त ककया !

हमारी हर छोटी बड़ी समस्याओूं का हल दादी – नानी के नुस्खे कर


हदया करते थे ! आयुवेद ीवन में ऐसा ही है – हमारे बड़ो की दी गई
अमकय भें ट की तरह...

हमारा प्रयास है कक आयव


ु ेद – ीवन अमत
ृ पे के माध्यम से हम
अपने स्वास््य के प्रनत कुछ स ग हों और ये बात समझें कक एक
स्वस्थ हदमाग़, स्वस्थ शरीर में ननवास करता है !

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हम आ आपकी मल
ु ाक़ात करवाने ा रहें हैं - मनो ी सर से ो
कक पतूं शल गचककत्सालय में वररष्ठ आयुवेद गचककत्सक के पद पर
अपनी सेवाएूं प्रदान कर रहें हैं !

नमस्कार सर,

सर, सबसे पहले आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आपने हमें समय हदया,
आपके सहयोग से हम पाठकों की स्वास््य सम्बश्न्धत समस्याओूं को
आयुवेद ो कक हमारी प्राचीनतम गचककत्सा प्रणाली है , के माध्यम से
कर पाएूंगे !

प्रकन6 . सर, आ कल पैरों और घुटनों में ददष की समस्या बहुत आम


हों गई है , यह समस्या अब केवल बु ुगो में ही नहीूं युवाओूं में भी
बहुत होने लगी है ! सर, इसका क्या कारण है ?

आ के समय में घुटनों और पैरों में ददष की शशकायत बहुत आम


समस्या है ! इसका प्रमख
ु कारण आ की ीवन शैली तथा आहार
ववहार है ! आ के दौर में लोगों का अगधक मािा में फास्ट फड तथा
तला हुआ भो न, रात में स्पाइसी फड का प्रयोग अगधक मािा में
ककया ाता है ! श् ससे मोटापा बढ़ ाता है ! तथा व न पैरों व
घट
ु नों पर आ ाता है ! ,

2. व्यायाम का न होना भी एक समस्या है !

3. एक ही स्थान पर लम्बे समय तक बैठे रहना !

4. भो न में ववटाशमन, एूंटीॉॉश्क्सूंट एवूं फाइबर न होना

5. डडब्बाबूंद फड ( फैक्ट्री मेड फड ) का अनत प्रचलन होना

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6. कैश्कशयम तथा ववटाशमन की कमी होना !

मुख्यतुः यहीूं कारण हैं श् ससे कक पैरों एवूं घुटने में ददष की समस्या
आ लोगों में अगधक होतीूं है !

ी धन्यवाद सर, बहुत ही सरल शब्दों में आपने हमें बताया कक इस


समस्या का कारण हमारी ही ीवन शैली में नछपा है !

कभी कभी समस्या का कारण हम स्वयूं होते है और हल बाहर ढूं ढ


रहें होते हैँ !

सर, कृप्या हमें इसके ननदान के क्या तरीके हैं, उनसे अवगत करवाइये

ननदान –

1. ननदान में प्रमुख रूप से आहार में ऋतु अनुसार शाक, सब्िी, दाल
व फलों को शाशमल करें !
2. ननयशमत व्यायाम, योग को हदनचयाष में शाशमल करें !
3. स्नान से पवष शरीर का अभ्यूंग) -------) नतल का तेल, या सरसों
के तेल से करें ! धप से स्नान भी करें !
4. एक स्थान पर लगातार ना बैठें रहें !
5. परी नीूंद लें !
6. डडब्बा बूंद भो न तथा ररफाइूंड carbohydrate का परहे ि करें !

धन्यवाद सर
आपके बताए सुझावों से ननश्कचत ही पाठकों को लाभ शमलेगा !

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साहहत्य साक्षात्कार

आ हम आपकी मल
ु ाकात करा रहे हैं वररष्ठ
पिकार एवूं साहहत्यकार सववता चड्डा से! श् न्होंने
अपनी उत्कृष्ट लेखनी से साहहत्य के क्षेि में
उन्ननत की है वह बहुत सराहनीय है
सववता चड्डा

वररष्ठ पिकार एवूं साहहत्यकार

श्री हदनेश शमाष ी के प्रकन और श्रीमती सववता चड्ढा के उत्तर-

1. आपके साहहश्त्यक ीवन की शरु


ु आत कहाूं से हुई?
उत्तर:- 28 अगस्त 1953 को मेरा न्म ऐनतहाशसक पानीपत में हुआ स मेरी नानी
ी पानीपत में रहती थीस ब मेरे वपता की सरकारी नौकरी पशु लस में लगी और
उनकी तैनाती हदकली में हो गयी तब हम लोग हदकली में रहने आ गयेस ये
1955-56 की बात हैस मेरी स्कली शशक्षा गाूंधीनगर के ही शमडडल सरकारी स्कल
में हुयीस हायर सैकेण्डरी की परीक्षा मैने 1970 में झीलकुरूं ा के सरकारी स्कल
से उतीणष कीस

अक्तबर 1972 में मेरी सरकारी नौकरी पयषटन ववभाग में लग गयी थीस ये
कायाषलय रे ल भवन में थास रे ल भवन की पाूंचवी मूंश् ल की खखड़की के पास
मेरी सीट थीस वहाूं से सूंसद भवन पररसर में हरे भरे पेड़ पौधे हदखते थेस
हदसम्बर- नवरी का महीना था, पतझड़ के मौसम में पत्ते ववहीन पेड़ों को
दे खकर मैने कुछ पूंश्क्तया शलखी थीस उसी कमरे में कवव और आलोचक श्री
रा कुमार सैनी बैठते थेस वह हहन्दी ऑकफसर थे ! उन्होंने मझ
ु से वह काग
शलया और उसे दे खकर बोले ‘’ये तो कववता है , तुम कबसे शलखती हो स’’ मैने
कहा ऐसी पूंश्क्तयाूं तो मैने बहुत शलखी है स बाद में ब उन्होंने मेरी डायरी दे खी
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तो मझ
ु से कहा ‘’तुम कहाननयाूं भी शलख सकती होस‘’ गुरू का काम परा हो चक
ु ा
था स लेखन की शरु
ु आत कववताओूं से हुई पर मेरा कहानी सूंग्रह “आ का
िहर” 1984 में पहले प्रकाशशत हुआ स

2. कौन सी ऐसी घटना थी श् सने आपके लेखन को नई हदशा प्रदान की?


उत्तर: बहुत सारी घटनाओूं ने धीरे धीरे बचपन में ही मेरे भीतर कुछ ऐसा
एकि कर हदया था ो मझ
ु े अनायास लेखन की तरफ ले गयास 1960 से
ही अपने घर में ही मैंने पाया की महहलाएूं आत्मननभषर नहीूं हैंस उन्हें हर
छोटी छोटी ची के शलए अपने पनत पर ननभषर रहना पड़ता है स

शशक्षा के आभाव ने महहलाओूं की श्स्थनत को समा में कम ोर तो ककया ही


हुआ था उभरने भी नहीूं हदया ा रहा था स स्कल से घर लौटते समय धोबी
बस्ती रास्ते में पड़ती थीस वहाूं भी महहलाओूं की दशा दयनीय भी थी, झगड़े भी
होते थेस हमारे ही घर में एक ककरायेदार रहता था ो खास वगष का था, उसने
गाूंव में भी शादी की हुई थी और शहर में हमारे घर में उसकी दसरी बीवी थीस
उस दसरी बीवी की दशा भी बहुत असहनीय थी मानो पनत के भो न और
अन्य रुरी व्यवस्था के शलए ही उसे साथ रखा गया थास महहलाओूं की खराब
अवस्था ही मेरे लेखन का मख्
ु य कारण रही और बाद में तो समा की
ववशभन पररश्स्तगथयों ने समय समय पर मझ
ु े और मेरे लेखन को गनत दी है स

एक घटना का उकलेख मैं खास तौर पर करना चाहती हूँ , ब मेरे कहानी
सूंग्रह “एक और भगवान ” को हहूंदी अकादमी हदकली का साहहश्त्यक कृनत
अवाडष की घोर्णा हुई तो मझ
ु े अपने भीतर ननरन्तर समा ोपयोगी स ृ नात्मक
शलखते रहने का मानो नया उत्साह शमल गयास ब ककसी लेखक की कृनत
सम्माननत होती है तो वह ीवन का सबसे सवोत्तम अहसास होता है , दसरी
तरफ ये भी सच है , लेखक सम्मान के शलए ही नहीूं शलखतास मैं कह
सकती हूँ कक परु स्कृत और सम्माननत होना लेखक के लेखन को नई हदशा
और गनत दे ने में सक्षम होता है स

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3. आप अपने लेखन पर समा और साहहत्य का का ककतना प्रभाव मानती हैं?

उत्तर : मेरे लेखन पर आस पास की घटनाओूं ने मझ


ु े बचपन में इतना द्रववत
कर हदया था कक मैंने छुट – पट
ु शलखना शरू
ु कर हदया था श् से में अपने
वपता को हदखाया करती थीस 1960 -65 के दौरान समा में ववधवाओूं को
असहाय और घर घर माूंगने के शलए म बर होते दे खा था मैंनेस उनका दुःु ख
और पररश्स्थनतयों का लावा ो मेरे भीतर रह गया था वह मेरी कई कहाननयों
में आता रहा है स यहद मैं साहहत्य के प्रभाव की बात करूूँ तो साहहत्य का
मेरे लेखन पर सबसे अगधक प्रभाव तल
ु सीदास ी की रामायण और गीता
का रहा हैस ये दोनों ग्रन्थ मेरे घर में थे श् न्हें नानी ी ननयशमत पढ़ा करती
थीस मैंने भी कई बार दसवीूं और ग्यारवीूं के दो महीने की छुट्हटयों में बचपन
में इन ग्रन्धों को पढ़ा है स मैं स्वीकार करती हूँ की इन ग्रन्धों की ववर्यवस्तु ने
मेरे अूंतमषन को प्रकाशशत ककया और सम्भवत: लेखन की ओर मागषननदे शशत
भी ककयास

4. आपके पसूंदीदा साहहत्यकार कौन-कौन हैं श् न्हें पढ़कर आप अच्छा महसस


करती हैं अथवा लेखन के शलए प्रेररत होती हैं?

उत्तर : मैंने सबसे अगधक ववष्णु प्रभाकर, अमत


ृ ा प्रीतम , हदनेश नूंहदनी
डालशमया , आशा रानी व्होरा , शरत चन्द्र को पढ़ा हैंस इनका साहहत्य
तत्कालीन सामाश् क पररवेश को समझने में और कुछ सोचने के शलए हदल
हदमाग को प्रभाववत करता हैस

5. वतषमान में हहन्दी साहहत्य की क्या श्स्थनत और स्थान आप दे खती हैं?

उत्तर : समा तो साहहत्य की आत्मा है और साहहत्य समा की ान है , आन


बान और शान भीस साहहत्य का भववष्य हमेशा ही प्रकाशशत है ,उज् वल है और
रहे गास यहद साहहत्य का भववष्य नहीूं होता तो आ रामायण, गीता ,महाभारत
और ऐसी अनेक सप्र
ु शसद्ध ऐनतहाशसक कथाएूं समा के प्रत्येक वगष के वतषमान
और भववष्य का ननमाषण नहीूं करती होतीस हहूंदी साहहत्य का योगदान भी
समा के उत्थान में महती भशमका रखता है और उसका उच्च स्थान भी है स
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मैं एक बात की ओर ववशेर् ध्यान हदलाना चाहती हूँ , स्वच्छता


अशभयान केवल घरों और सड़कों पर ही नहीूं साहहत्य में भी अननवायष हैस
साहहत्य के बबना समा की मैं ककपना नहीूं करतीस साहहत्य के आ कई रूप
हैंस साहहत्य आ केवल पस्
ु तकों में ही नहीूं रह गयास साहहत्य के बदलते रूप
आ घर घर सोशल मीडडया के रास्ते पहुूँच गए हैंस अच्छे साहहत्य ने हमेशा
ही समा को नई हदशा भी दी है और मैं हमेशा कहती हूँ “श्रेष्ठ साहहत्य
गूंगा में स्नान करने ैसा हैस “हहूंदी साहहत्य को श्रेष्ठ और साफ सथ
ु रा रखने
के शलए लेखकों को भी ागरूक होना चाहहएस

6. कृपया अपनी रचनाधशमषता और उसकी ववशेर्ताओूं से हमें पररगचत कराइएस

उत्तर: ो घटनाएूं मेरे हदल पर असर कर मझ


ु े इतना परे शाूं कर दे ती है की मेरी
नीूंद में खलल पड़ने लगेस वह सब मेरी रचनाओूं के ववर्य बन ाते हैंस
आपको एक दो घटनाएूं बताती हूँ, उन हदनों मैं सूंसद मागष पर बैंक में हहूंदी
अगधकारी के रूप में काम करती थीस एक बार शाम को बस से घर लौटते हुए
मेरे साथ वाली सीट पर एक अ नबी महहला को मैंने लगातार रोते हुए दे खा तो
उससे पछ बैठीस मेरे साूंत्वना के शब्दों की शश्क्त ही थी कक उसने ो रोने का
कारण बताया था वह बहुत चभ
ु ने वाला थास कोई ानकार महहला होती तो
शायद अपने मन की बात नहीूं कह पातीस बस वही मेरी कहानी “टटा हुआ
भ्रम” की ववर्य बनास ये कहानी पहले हदकली रे डडयो पर प्रसाररत हुई कफर
शशमला रे डडयो पर भीस

एक बार ऐसी एक दघ
ु ट
ष ना घहटत हुई की पररवार के सारे लोग एक दसरे पर
शक ककये बबना नहीूं रह सकेस मैं इस घटना की चकमदीद थीस कई हदनों तक
नीूंद खराब करने के बाद मेरी कहानी बनी “शक की मौत रुरी हैस“ मेरी ये
कहाननयाूं “द्वार पर दस्तक” कहानी सूंग्रह में हैंस इस सूंग्रह में मेरी 51
कहाननयाूं हैंस मेरी 60 से अगधक कहाननयाूं पूं ाबी और हहूंदी में आकाशवाणी पर
प्रसाररत हो चक
ु ी हैंस

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अब तक प्रकाशशत 13 कहानी सूंग्रहों में सामाश् क सरोकार और समस्याओूं


को शलया गया है - स्िी परू
ु र् सूंबूंध, प्रेम, मनोववज्ञान, व्यवहार रा नीनत आहद स
3 बाल कहानी सूंग्रह में भी बाल मानशसक ववकास के ववर्य हैंस 10 पिकाररता
पर शलखी पस्
ु तकें है श् न्हें ववकवववद्यालयों में सहायक ग्रूंथ के रूप में स्वीकृत
ककया गया है स 9 लेख सूंग्रह हैं, श् ससें ववभन्न ववर्यों पर लेख, ननबूंध और
इनतहास को शाशमल ककया है स 2 उपन्यास हैं एक तो महाभारत के बाद की
कथा को लेकर शलखा है ‘’18 हदन के बाद’’ और दसरा उपन्यास है ‘’ भगतशसूंह
की ीवनी परस 9 काव्य सूंग्रह प्रकाशशत हैं श् समें ीवन के सारे रूं ग शाशमल
हैंस मेरी रचनाओूं को लोग पसूंद करते हैं, उनपर शोध हुए है, अनव
ु ाद हुए हैं,
नाटक मूंचन हुए हैं, टे लेकफकमें बनी, सम्मान भी शमले हैं एक लेखक को भगवन
की असीम कृपा से पाठकों का इतना प्यार शमल ाए और क्या चाहहएस मझ
ु े
ो शमला है मैं उससे सूंतष्ु ट हूँ स

7. आप साहहत्य के क्षेि में स्वयूं के योगदान और उपलश्ब्धयों पर क्या


कहें गीस

उत्तर : 1987 में मेरे कहानी सूंग्रह “एक और भगवान “ को हहूंदी अकादमी,
हदकली का साहहश्त्यक कृनत परु स्कार शमला थास दे शभर के हहूंदी सेवी सूंस्थान
और साहहत्य को प्रोत्साहहत करने के शलए स्थावपत सूंस्थाओूं ने समय-समय पर
मेरी पस्
ु तकों की खरीद की है स उन्हें स्कलों में स्वयूं खरीद कर ननशक
ु क
ववतररत ककया है और समय-समय मेरे लेखन के शलए इतना प्यार और सम्मान
शमला है कक मैं भाव ववभोर हूं स मेरी पस्
ु तकों पर ववकवववद्यालयों में शोध हुए
हैंस मेरे शलए यह बहुत ही सूंतोर् नक है कक मेरी लगभग सभी कहाननयाूं
अनहु दत हो चक
ु ी हैं ,आकाशवाणी से प्रसाररत हो चक
ु ी हैं और कुछ कहाननयों पर
टे लीकफलम भी बनी हैं,नाटक मूंचन भी हुए हैं स 1978 में ब मैं पिकाररता
का डडप्लोमा करने के शलए एक सूंस्थान में गई तो मझ
ु े पता चला की वहाूं
हहूंदी माध्यम से पढ़ाया ही नहीूं ाता और मागषदशषक के रुप में शलखी
पिकाररता की हहूंदी की पस्
ु तकें भी वहाूं नहीूं हैंस मझ
ु े वहाूं दाखखला नहीूं शमला

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क्योकक मैं हहूंदी माध्यम से पढ़ना चाहती थीस खैर कुछ हदन बाद मझ
ु े उस
सूंस्थान से दाखखले का बल
ु ावा आ गया थास तब तक मैं हहूंदी माध्यम का
सूंस्थान ढूं ढ चक
ु ी थीस उस सूंस्थान में पढ़ते समय ो नोट्स मैंने तैयार
ककये थे. मैंने उन्हें ही पस्
ु तक का रूप दे हदया थास मेरी इस पहली पिकाररता
की ककताब का नाम था “नई पिकाररता और समाचार लेखन “ स

मैंने शायद पहली बार पिकाररता में कहानी, लेख, सूंस्मरण, ीवनी, यािा
वत
ृ ाूंत अथाषत अखबार में प्रकाशशत होने वाली सभी ववधाओूं को पिकाररता ही
माना था और इसशलए अपनी ककताब का नाम रखा था “नई पिकाररता और
समाचार लेखन”, आपको ये ानकार अच्छा लगेगा कक मेरी ये पस्
ु तक हदकली
ववकवववद्यालय में 1979 में सहायक ग्रन्थ के रूप में पाठ्यिम में लग गई
थीस बाद में इस पस्
ु तक का अूंग्रे ी अनव
ु ाद तक्षशशला प्रकाशन ने करवाया था
और ववदे शों में भी ये पस्
ु तक पहुूंच गई थीस

मेरी कहाननयों पर टे लीकफकम ननमाषण हुआ है , नाटक मूंचन हुए हैं, अनव
ु ाद हुए
हैं, इन पर शोध कायष भी हुए है स मेरी कववतायेँ और गिलें दे श में और ववदे श
में मूंची पर गाई और पढ़ी ा रही है स मेरी बाल कहाननयों के अूंग्रे ी अनव
ु ाद
हुए हैंस कक्षा 6,7,8 के पाठ्यिम में मेरी बाल कहाननयों को ोड़ा गया हैंस
एनसीआरटी द्वार भी मेरी 8 बाल कहाननयाूं चन
ु ी गई हैंस भगत शसूंह पर
मेरा एक उपन्यास शलयाूंवाला बाग़ में स्थान पा चक
ु ा हैं और दसरा
उपन्यास “18 हदन के बाद” श् सका कथानक महाभारत यद्
ु ध के बाद की कथा
पर है , पेपरबैक छप कर बहुत लोगों तक पहुूँच चक
ु ा हैंस समा और
पाठकवगष ने मेरे लेखन को ो स्वीकृनत प्रदान की हैं मैं उसके शलये उनकी
हृदय से शि
ु गि
ु ार हूँ स

मझ
ु े परा ववकवास है मेरे साहहत्य का, मेरे लेखन का एक
हदन भरपर स्वागत होगास मझ
ु े तब बहुत खुशी होगी ब दे श की सरकारी
और गैर सरकारी सूंस्थाओूं, भारतीय ज्ञानपीठ, साहहत्य अकादमी हदकली और
हहूंदी अकादमी हदकली के माध्यम से मेरी पस्
ु तकें दर दर तक पहुूंचग
े ीस

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8. हहन्दी साहहत्य को उगचत हदशा और गनत प्रदान करने के शलए ककस तरह के
बदलाव अपेक्षक्षत समझती हैं?

उत्तर : हहूंदी साहहत्य को बढ़ाने के शलए काफी प्रयास ककया ा रहें हैंस मेरा
सझ
ु ाव है, सूंस्थाएूँ और व्यश्क्त लेखकों की अच्छी पस्
ु तकों को खरीद, ननशक
ु क
ववतररत करें स ऐसे आयो नों का ववस्तार होना चाहहएस सरकारी ए ेंशसयाूं,
सूंस्थान ,पस्
ु तकालय साहहत्यकारों की पस्
ु तकों की खरीद करें स दसरी ओर
समा का भी उत्तर दानयत्व बनता है कक श् स समा के शलए लेखक लेखन
करता है और समा को प्रनतबबूंबबत करता है स वह समा भी लेखक की श्रेष्ठ
पस्
ु तकों की खरीद करे और पस्
ु तकों का आदान-प्रदान और एक दसरे को भें ट
करने की प्रथा अपनाएूंस

9. आपके साहहश्त्यक ीवन की कोई अववस्मरणीय घटना या सूंस्मरण ो


आप हमारे साथ साझा करना चाहें स

उत्तर : ीवन के सत्तर बदलते मौसमों के दौरान घहटत अनेक अववस्मरणीय


घटनाएूं हैंस मैं बताना चाहती हूँ मझ
ु े पानीपत आ भी बहुत पसूंद हैं हालाूँकक
वहाूं आ भी पररश्स्थतयाूं बहुत अच्छी नहीूं , पानीपत के मस्ताना चौक के वाडष
नूंबर दस (मकान नूंबर 465 ) में मेरा न्म हुआस वहाूं अूंदर में आ भी
सड़कों की हालत वैसे ही है स अब मेरे मासी ी के बच्चे वहाूं रहते हैंस मझ
ु े
उस घर में ाना और पानीपत के पास से भी गु रना बहुत अच्छा लगता है स
हदकली आने के बाद भी ब तक नानी ी की माूं ीववत रही हम लोग
छुट्हटयों में पानीपत में उनके पास रहने ातेस वहाूं की रामलीला दे खना
और छुट्हटयों में वहाूं रहने के दौरान रामायण को पढ़ना मझ
ु े बहुत पसूंद थास स
मैं मानती हूँ अगर बचपन में वहाूं न रहती, आती ाती नहीूं और वहाूं
रामायण को न पढ़ती तो शायद मैं लेखक नहीूं बन पातीस उस दौरान कई
श् ज्ञासाओूं ने न्म ले शलया था, ब उनके उत्तर शमले मेरी लेखनी अपने आप
चलने लगी थी…….. ब कुछ लोग छप्पन भोग का आनूंद ले रहे हों दनु नया में
और कुछ लोग केवल नमक और वपसी लाल शमचष के साथ रोटी खाने को

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म बर हों और आपको उन्हें दे खना पड़े तो उस पीड़ा का अहसास ककतनी चभ


ु न
दे ता है , काश है कोई समझ सकेस गरीबी, असमानता, अशशक्षा , अज्ञानता ने
समा में बहुत खलबली मचाई हुई है बरसों से, पानीपत में बचपन की अनेक
घटनाएूं आ भी झकझोर दे ती हैंस मैं इन्हें कभी नहीूं भल पातीस

10. आप पाठकों के शलए क्या कहना चाहें गी?

उत्तर : पाठक अच्छा साहहत्य खरीद कर पढें ये ववशेर् अनरु ोध है मेरा उनसेस मैं
चाहती हूं सदा सूंस्कार ीववत रहें , मयाषदा और अनश
ु ासन हमारे आधनु नक वगष
के गण
ु बने रहें स ककसी भी पररश्स्थनत में मयाषदाओूं को तोड़कर लक्ष्य पाने की
ओर अग्रसर ना हुआ ाएस मैंने अपने लेखन में सदा ही कोशशश की है समा
में खुशहाली और मेल ोल बना रहे स सहनशीलता और धैयष को अननवायष गण
ु ों
की तरह अपनाया ाएस ईष्याष, द्वेर् और िोध ैसे अवगुण ककस प्रकार हमारा
ववनाश कर सकते हैं ये भी मझ
ु े हमेशा याद रहता हैस मेरे पाठकों और
समकालीन साहहत्यकार शमिों ने मेरे लेखन को सदा ही साफ सथ
ु रा लेखन कहा
है और कुछ कहाननयों में बोकडनेस दे खते हुए भी उन्होंने मेरे लेखन को साफ
सथ
ु रा लेखन स्वीकार ककया है स हर समय मानशसक स्वच्छता हमें कई सूंकटों
से बचा सकती है स

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साक्षात्कार

शैलेन्द्र गोस्वामी (आर. े. एस.-2016)

आपकी सफलता

शैलेन्द्र ी ने RJS के exam को clear ककया है ! Judiciary के इस exam को पास


करने के शलए students को तीन चरणों में परीक्षाओूं को पास करना होता है !
Pre, mains औऱ interview ?

इन सब चरणों से clear होने के शलए एक रणनीनत बनानी होती है !

आ हम शैलेन्द्र सर से ानते हैं कक उन्होंने इस सफलता को प्राप्त करने के


शलए कैसी रण नीनत बनाई ?

सबसे पहले सर, हम नई गूँ पबिका की ओर से आपका हाहदष क अशभनन्दन


करते हैं औऱ आपको इस सफलता के शलए बहुत बहुत बधाई दे ते हैँ ! कोई भी
सफलता एक साथ नहीूं शमल ाती, उसके पीछे अथक औऱ ननरूं तर प्रयास रूर
नछपे रहते है ! ये बबककुल सागर में से हीरे चन
ु कर लाने ैसा है ! हमें बहुत
खुशी है कक आपका यह अनभ
ु व, आप उन सभी RJS Aspirants s के साथ बाूँट रहें
है !इससे इन्हें ननश्कचत ही प्रेरणा तो शमलेगी ही साथ ही ये सभी Aspirants
अपने शलए exam को पास करने की एक रण नीनत बना पाएूंगे !

प्रकन 6 सर, सबसे पहले हम सभी ानना चाहें गे कक आप अपने ीवन, पररवार
ववर्य में बताएूं !

मैं मध्यमवगीय पररवार से सूंबूंध रखता हूं तथा मेरा गह


ृ श् ला यपरु है स मेरा बचपन
ग्रामीण पररवेश में बीता है स

प्रकन 5 आप अपनी शशक्षा के ववर्य में बताएूं !

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मैंने कक्षा 12 तक गाूंव के ही रा कीय ववद्यालय में पढ़ाइष की है स इसके पकचात मैंने डाॉ
राममनोहर लोहहया राष्ट्रीय ववगध ववकवववद्यालय लखनउ से पाूंच वर्ीय बी ए एलएलबी
की है स मेरी स्कली शशक्षा हहूंदी माध्यम से तथा एलएलबी अूंग्रे ी माध्यम से हुइष है स
रा स्थान न्यानयक सेवा परीक्षा में मेरा माध्यम अूंग्रे ी थास

प्रकन 3 सर, आपकी सफलता के रहस्य सभी ानना चाहें गे !

स्वयूं के साथ इषमानदार रहना तथा असफलताओ से ननराश नहीूं होकर उन्हें सबक के रूप
में लेनास

प्रकन 4 आपका चयन ककस वर्ष में हुआ तथा आप अपनी सफलता का श्रेय ककसे दे ना
चाहते हैं ?

ी वर्ष 2015 में मेरा चयन हुआ था तथा हमारा बैच 2016 है स वैसे तो इस चयन में
अनगगनत व्यश्क्तयों का साथ और मागषदशषन रहा है परन्तु ववशेर् रूप से मैं इसका श्रेय
मेरे माता-वपता, मेरे दोनों बड़े भाइष व मेरी पत्नी, मेरे सीननयर प्रकाश ी और अशभर्ेक
ी को दे ना चाहूं गा स

प्रकन 2 सर, आपकी ओर से Message to students क्या है ?

आपकी सफलता आपकी मेहनत और आपके सूंघर्ष की सबसे पररष्कृत गाथा है ो


आपके शलए ीवन में प्रत्येक अवसर पर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दे गीस इसशलए
ननरूं तर मेहनत करते रहहए सफलता अवकय शमलेगीस

प्रकन 1 परीक्षा की तैयारी कैसे करें , इस पर प्रकाश डालें !

तैयारी का आधार आपका माध्यम होता है स अतुः माध्यम का चन


ु ाव सोच-समझकर करें स
इसके पकचात पाठयिम का गहन अध्ययन कर अपने म बत एवूं कम ोर पक्ष की
पहचान करें स परीक्षा के श् स स्तर ( प्री/में स/इूंटरव्य) की तैयारी आप कर रहे हैं अपना
सारा ध्यान उसी स्तर पर रखें स मोबाइल व सोशल मीडडया का अनतआवकयक होने पर ही
प्रयोग करें स

प्रकन 7 क्या आपने नोट्स बना कर तैयारी की ?

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ी, तैयारी के प्रारूं भ से ही मैंने पाठयिम के ववर्यों को पढ़कर उन्हें अपने शब्दों में
शलखकर पढ़ाइष कीस श् ससे न केवल मेरे शलए भववष्य में ररवी न हे तु क्यरे टेड सामग्री
तैयार हो गइषस अवपतु काूँन्सेप्ट क्लीयर करने में भी सहायता शमलीस

प्रकन 8 प्रथम प्रयास में सफलता न शमलने पर ननराशा से बाहर कैसे ननकलें

प्रथम प्रयास सफलता की गारूं टी नहीूं है लेककन उसकी पहली सीढ़ी अवकय है स प्रथम
प्रयास में असफल होने से ननराशा स्वाभाववक होती है परूं तु इसे असफलता नहीूं मानकर
अपनी गलनतयों की पहचान करें और यह सूंककप करें कक इन गलनतयों को भववष्य में
नहीूं दोहरायेंगेस ब आप अपना लक्ष्य ननधाषररत कर लेते है तो एॉेसी ननराशा बहुत कद
पीछे छट ाती है स

प्रकन 9 सर, परीक्षा की तैयारी पर आपकी रणनीनत क्या रही ?

ैसा मैंने पहले कहा कक स्वयूं से इषमानदार रहे स ककसी को हदखाने के शलए तैयारी ना करें
बश्कक अपने लक्ष्य की प्राश्प्त के शलए सतत प्रयास करें स मैंने वकालत के साथ तैयारी की
थीस इस दौरान मैं हदन में न्यायालय में वकालत करता था और रात में अपनी तैयारी
करता थास वकालत के समय मैं न्यायालय कायषवाही के दौरान न्यायाधीश महोदय तथा
सीननयर अगधवक्ताओ द्वारा बताइष ाने वाली व्यवहाररक बातों को सन
ु ता था तथा उन्हें
आत्मसात करने का प्रयास करता थास साथ ही खाली समय में अपने सीननयर
अगधवक्ताओ से सीआरपीसी व सीपीसी के प्रावधानों के बारे में चचाष ककया करता थास

प्रकन 10. ककतने घूंटे पढ़े एवूं कैसे पढ़े

मेरा मानना है कक शरू


ु आत में ककतने घूंटे पढ़ना है इसके बारे में पहले प्रनतहदन समय
ननधाषररत करें इसके बाद साप्ताहहक और बाद में ननयशमत समय ननधाषररत कर लेंस स्वयूं
से इषमानदार रहते हुए आपके द्वारा ननधाषररत समय के शलए ननयशमत तैयारी करें स ककसी
हदन समय उपलब्ध हो तो पहले पढ़े गए ववर्यों का ररवव न कर लेंस आप अपनी क्षमता
के बारे में ब्रहमाूंड में सबसे अगधक ानते हैं इसशलए आप ही अपने बारे में सबसे बेहतर
समय सीमा ननधाषररत कर सकते हैंस

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प्रकन 11. Pre, mains, interview – तीनों की तैयारी कैसे करें

प्रारूं शभक परीक्षा वस्तुननष्ठ प्रकनों पर आधाररत होती है स इसके शलए हमें चाहहए कक
पाठयिम में सश्म्मशलत सभी बबन्दओ
ु को महत्वपणष मानते हुए अध्ययन करें स हमेशा
याद रखें कक हर छोटी-बड़ी ानकारी प्रारूं शभक परीक्षा के प्रयो न से महत्वपणष होती है स
प्रारूं शभक परीक्षा के समय ककया गया अध्ययन व तैयारी ववस्तत
ृ एवूं प्रभावी रूप से
शलखना मख्
ु य परीक्षा का भाग है स अतुः अपनी शलखने की प्रैश्क्टस को हदन-प्रनतहदन
बढ़ाते हुए शब्दचयन पर ववशेर् ध्यान दें स साथ ही अपने हस्तलेख को भी ाूंचते रहें स
साक्षात्कार हे तु अपने हाव-भाव, सामान्य ज्ञान व ताककषक क्षमता तथा ववगध की
ानकारी पर ववशेर् ध्यान दें स

प्रकन 12. वकालत का ज्ञान भी रूरी है

वकालत का ज्ञान अननवायष नहीूं है परूं तु यहद वकालत का ज्ञान होता है तो प्रनतयोगी को
न्यायालय की कायषप्रणाली, न्यायालय अनश
ु ासन तथा कामका की सामान्य ानकारी
हो ाती है स

प्रकन 13. सफलता के शलए self study रूरी है या coaching या दोनों औऱ क्यों ?

तैयारी के शलए प्रत्येक प्रनतयोगी के स्वयूं के आकलन के आधार पर ही यह बताया ा


सकता है कक सेकफ स्टडी आवकयक है अथवा कोगचूंग अथवा दोनोंस मेरा मानना है कक
स्वपाठन बेहतर होता है और यहद इसके उपराूंत आपका कोइष ववर्य अच्छे से तैयार नहीूं
हो पा रहा है तो कोगचूंग ली ा सकती है स

प्रकन 14. रा स्थान में law औऱ language का weightage समान होता है ! Eng वाले
हहन्दी को कैसे औऱ हहन्दी वाले english को कैसे तैयार करें इस बारे में मागषदशषन करें !

मेरा मानना है कक ववद्याथी को अपने माध्यम के ववपरीत भार्ा पर अगधक ध्यान दे ना


चाहहएस इसके शलए समसामनयक ववगधक पबिकाएूं व समाचार पि महत्वपणष हैंस
श् नकी सहायता प्रारूं भ से ही ले लेनी चाहहएस साथ ही व्याकरण तथा ग्रामर पर ववशेर्
ध्यान दे ना चाहहएस

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प्रकन 15. 6pre, mains के बाद इूंटरव्य का ो डर रहता है वो बरकरार रहता है उसके
शलए student क्या करें ?

यहद आपने परीक्षा के पहले दो स्तर पार कर शलए है तो आपको डरना नहीूं चाहहयेस
साक्षात्कार एक भावी अगधकारी हे तु आवकयक व्यश्क्तत्व का परीक्षण है स इसके शलए
आप अपने हाव-भाव, सामान्य ज्ञान व ताककषक क्षमता तथा ववगध की ानकारी पर
ववशेर् ध्यान दें स

प्रकन 16. क्या आपने केवल RJS पर ही फोकस रखा या कोई अन्य कायों में भी आपने
अपना समय हदया !

वकालत एवूं तैयारी से ो समय शमलता था उसमें मैं कृवर् कायष व किकेट खेलता थास

प्रकन 17. लोग coaching कर लेते हैँ इसमें test series का क्या role है ?

मेरा मानना है कक अपनी तैयारी तथा मेहनत की प्रगनत के ननयशमत आकलन हे तु टे स्ट
सीरर अत्यूंत उपयोगी माध्यम है स

प्रकन 18. वतषमान में ो छाि RJS की तैयारी कर रहें हैँ, उनके शलए आप क्या कहना
चाहें गे ?

शसफष इतना ही कहना चाहूं गा कक दै वीय कत्तषव्य से यक्


ु त एक बेहतरीन सेवा आपका
इूंत ार कर रही है स इसशलए आप अपनी परी मेहनत, लगन व इषमानदारी से इसके शलए
प्रयास करें स मेरी शभ
ु कामनाएूंस

धन्यवाद सर,

आपने आर े एस के aspirants को ही नहीूं हम सभी को अपनी सफलता की


रण नीनत पर बात करके बहुत उत्साह हदया है !

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दरअसल रोशनी तो गचराग से ही होती है, आग से नहीूं औऱ वो गचराग अपने


भीतर लाये ऱखना, उसकी लौ को न बझ
ु ने दे ना, ना कम होने दे ना, ो हमें
हमेशा अपने लक्ष्य की याद हदलाता है यही दृश्ष्टकोण हमें इस योग्य बना दे ता
है कक हम रोशनी हदखा सकें, रोशनी बन सकें ! आप का मागषदशषन उसी रोशनी
की तरह है आपका प्रत्येक शब्द प्रेरणादायक है !

एक बार कफर से मैं नई गूँ के समस्त सदस्यों की ओर से आपका धन्यवाद


व्यक्त करती हूँ!

धन्यवाद सर

सम्पादक

शशवा स्वयूं

उ ालो में शमल ही ायेगा कोई ना कोई,


तलाश उसकी रखो,
ो अन्धेरों में भी साथ दे स

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