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अगस्त 2019

     

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जीवन सूत्र

अपने मूल की खोज


का नाम है अध्यात्म
य दि आप सिर्फ शां तिपूरक ्व , आनं दपूरक ्व जीना
चाहते हैं, तो यह अलग बात है, यह आध्यात्मिकता
नहीं है। यह बस समझदारी भरा जीवन है, हर इं सान
को इस तरह जीना चाहिए, जीने का कोई दूसरा तरीका
नहीं है। लोग सिर्फ थोड़ े अधिक शां तिपूर्ण और आनं दित
होने से ही रोमां चित हो जाते हैं। दरअसल किसी और
तरह से आपके होने का कोई मतलब नहीं है। हर बच्चा
ऐसा ही होता है। इसके लिए किसी आध्यात्मिकता की
जरूरत नहीं, बस थोड़ ी समझदारी की जरूरत होती है।
आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब शां ति और आनं दपूरक ्व
जीना नहीं है, इसका मकसद अपने अस्तित्व के मूल को
खोजना है।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 3


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August 2019

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×ãUÚUæñÜè, Ù§ü çÎËÜè-vv®®x® कष्टों भरी राह, हो गई आसान 38
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ishalahar@ishafoundation.org
योग दिवस पर भारतीय नौसेना के साथ सद् गुरु 60
मशहूर अभिनेता नैनी ने की सद्‌गरु ु से बातचीत 61
â¢Âæη¤èØ ·¤æØæüÜØÑ ध्यानलिंग के 20 वर्ष पूरे 61
§üàææ ÜãUÚU - §üàææ Øæð» ·ð¢¤Îý
ßðçÜ¢ç»çÚ Èé¤Å çãËSæ, §üàææÙæ çßãæÚU प्रतिमा इन्स्टिटू ट में ‘यूथ एं ड ट्रूथ' 62
·¤ôØ´ÕÌêÚU, Ìç`æÜÙæÇé - {yvvvy दिल्ली में सत्संग का आयोजन 63
ȤæðÙ Ñ ®yww-wzvz{|{
editor@ishalahar.com
यूनाइटे ड नेशन में ‘योग - समावशे की शक्ति’ 64
ईशा योग केंद्र में ‘इन द लैप ऑफ ़ मास्टर’ 65
â·éü¤ÜðàæÙ ¥æòçȤâÑ आश्रम में गुरु पूर्णिमा सत्संग 66
§üàæ °Áð´âèÁ, vv}, ·¤ÅUßæçÚUØæ âÚUæØ
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¿ð‹Ù§ü-{®®®v| सं पादकीय 06
ȤæðÙ Ñ ®yy-yz®vvvx| आपकी बात 07
âÎSØÌæ ¥æñÚU çß™ææÂÙ ·ð¤ çÜ° â¢Â·ü ·¤Úð´UÑ ज्यामितिय रूप से महतवपूर्ण ये तस्वीरें 29
ç´·¤Ü +~v-~yywv-w{®®® चक्रों का अं तराल बढ़ ाइए 30
×ÙæðãUÚU +~v-~yywv-~x|x{
तकलीफ ़ के बिना तरक़्क़ी सं भव नहीं? 32
RNI No.: Delhi N/2012/46538 ईशा लहर प्रतियोगिता 46
©copyright reserved: Isha Foundation
़ े सबुक से
फ 47
समझ सकते हैं पक्षियों की भाषा? 50
कंुदरु की सब्ज़ी 55
CUSTOMER CARE
+91-9442126000
4 ईशा लहर | अगस्त 2019
IshaLahar@IshaFoundation.org ishalahar.com
़ रिया
अनूठा नज
पुनर्जन्म के विचारों में कैद था मेरा मन 40
अध्यात्म के आकाश में एक पायलट की उड़ ान 42
क्या बुद्ध उस इं सान को बचायेंगे? 52

ईशामृतम
आध्यात्मिक यात्रा: मन की नहीं, अनुभव की यात्रा 14
अध्यात्म की राह पर इतना काम क्यों? 16
रीलिजन टू रीस्पान्सबिलिटी 18
भक्ति: मूर्खता है या मुक्ति का रास्ता 20
आं तरिक ज्यामिती से कै से जुड़ा है अध्यात्म? 22

ज्योतिर्गमय
बं धन 09
अपनी रफ़्तार मत होने दीजिए धीमी 10
तो अब इं तज़ार किसलिए? 12
मेरे से कम स्मार्ट पर अधिक सफल, ऐसा कैसे? 24
कैसे होता है पहली नज़र में प्यार? 48

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 5


संपादकीय

हमने कितना समझा है आध्यात्मिकता को?


काफ ़ ी सालों पहले की बात है, मैं ट्रे न से यात्रा कर रही थी। मेरे सामने वाली बर्थ पर जो सज्जन यात्रा
कर रहे थे, वो किसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के प्रोफ ़ े सर थे। अगले ही स्टेशन पर उनके ठीक ऊपर वाली
बर्थ के यात्री आ गए। वे साफ ़ -सुथरी नई चमकती हुई गेरुआ धोती और कुर्ता पहने हुए थे। सिर पर
बड़ ी सी चोटी और पैरों में खड़ ाऊँ थीं। वेश-भूषा से स्पष्ट था कि वो किसी आध्यात्मिक पं थ के पथिक
़ े सर साहब ने थोड़ ी ही दे र बाद उनसे बातचीत शुरू कर दी थी। प्रोफ
हैं। प्रोफ ़ े सर साहब का पहला सवाल
आज भी मुझे याद है, जो उन्होंने बड़ े ही व्यं ग्य के साथ उस सं न्यासी से पूछा था, ‘बाबाजी, आप जैसे
़ क
फ ़ ीर लोग भी राजधानी के एसी टू -टीयर में यात्रा करते हैं? मैं तो समझता था कि सं न्यासियों को
केवल पैदल यात्रा करनी होती है। आख़ि र आपके अनुसार अध्यात्म का मतलब क्या है?’

उनका क्षोभ यह था कि एक व्यक्ति जो सं न्यासी है, वो भला वातानुकूलित ट्रे न में कैसे यात्रा कर सकता
है? उनकी बातों से उनका पूर्वाग्रह स्पष्ट हो रहा था, जो उनके मन में सं न्यासियों के लिए था। उनका
विचार यह था कि अगर किसी व्यक्ति ने अध्यात्म-मार्ग पर चलने का निर्णय कर लिया है, तो उसे जीवन
में सुख या आराम को स्पर्श करने का कोई हक ़ नहीं है।

सालों पहले की उस घटना को आज जब मैं याद करती हूँ तो लगता है कि आध्यात्मिकता को लेकर
आज भी लोगों के विचारों में बहुत बदलाव नहीं आया है। अभी भी तथाकथित शिक्षित समुदाय भक्ति
को अं धविश्वास और मूर्खता के सिवाय कुछ और नहीं समझता है। कुछ लोगों के लिए आध्यात्मिकता
और नैतिकता में कोई अं तर ही नहीं। एक बहुत बड़ े बुद्धिजीवी वर्ग को यह विश्वास है कि दूसरों के लिए
नेकनीयत रखना और यथासं भव उनकी मदद करना ही जीवन को सार्थक बनाने के लिए काफ ़ ी है।

एक बहुत बड़ ा वर्ग खुद को आध्यात्मिकता से सिर्फ इसलिए दूर रखना चाहता है क्योंकि उन्हें यह पूरा
विश्वास है इस राह पर केवल कष्ट ही कष्ट है, और इसलिए ये लोग अपने बुढ़ापे के लिए आध्यात्मिकता
को बचाकर रखना चाहते हैं।

़ ई
तो आख़ि र आध्यात्मिकता का अर्थ क्या है? क्या अं तर है भक्ति और अं धविश्वास में? क्या भक्ति वाक
मूर्खता है? अगर नहीं तो कोई भक्त किसी तर्क को क्यों नहीं समझता? हमने आध्यात्मिकता से जुड़े ऐसे
ही अनेक सवालों का जवाब इस अं क में समेटने की कोशिश की है। आशा है कि आप अपने मन की
हर शं का दूर कर आध्यात्मिकता को सही सं दर्भ में समझ पाएँ गे और जीवन में परम आनं द का अनुभव
कर पाएँ गे। शुभम् भवेत!

6 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


आपकी बात

़ ुद को एक महायज्ञ
सद्‌गुरु ने ख
की तरह प्रज्ज्वलित किया हुआ है
गुरु कौन हैं? आपके दुखी और विचलित मन को सां त्वना देने वाले, आपके कष्टों और बाधाओ ं को
दूर करने वाले, आपके लिए भविष्य की अनदे खी गलियों में तां क-झां क कर आपको एक आसान
राह सुझाने वाले या कोई ताबीज या माला देकर सर्व कष्ट निवारण मन्त्र देने वाले? जी हां ! गुरु के
रूप में ऐसी ही कुछ छवि हमारे मन में बनी होती है। इसलिए ऐसी कुछ सुविधाएँ देने वाले लोग गुरु
के रूप में जगह-जगह पूजे जाते हैं।

जुलाई का अं क सद् ‌गुरु के एक मूलभूत आयाम, उनके गुरु होने को समर्पित मिला। जैसा सद् ‌गुरु
/SadhguruHindi
कहते हैं, गुरु होना एक फ्रस्टे शन से भरा काम है। ऐसे लोग जो गुरु की ऐसी व्याख्याओ ं के साथ
उन्हें परखते हों, उन्हें उनके अज्ञान से परिचित कराना, फिर उन्हें आत्म-ज्ञान की एक दुरूह, लम्बी
और अनिश्चितता से भरी राह पर ले जाना, निश्चित तौर पर एक मुश्किल काम है। सद् ‌गुरु अथक like us on facebook
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रूप से मानवता के हर रूप की भलाई के लिए काम कर रहे हैं, स्वयं को उन्होंने अनं त सं भावनाओ ं /SadhguruHindi
वाले एक महायज्ञ की तरह प्रज्ज्वलित किया हुआ है। वे हर उस जिज्ञासु के लिए उपलब्ध हैं जो
अन्तरतम की यात्रा पर एक कदम भी बढ़ ाना चाहता है। अब हर पल यही एक प्रार्थना है कि ऐसे Follow us on Twitter
गुरु के लिए हम खुद को योग्य बना सकें। twitter.com/IshaHindi
शलभ सूर, जयपुर
editor@ishalahar.com

आख़ि र ‘रविवार’ ही क्यों? Download


Sadhguru App

हम बचपन से रविवार की छु ट्टी मनाते आ रहे हैं, लेकिन कभी सोचा भी नहीं कि आख़ि र ‘रविवार’
ही क्यों? ईशा लहर के जुलाई अं क ने पहली बार यह अहसास दिलाया कि रविवार की छु ट्टी भी
एक सुनियोजित सां स्कृतिक बदलाव का परिणाम है। हमने कभी सोचा ही नहीं कि यह साप्ताहिक
छु ट्टी किसी और दिन भी हो सकती है जो हमारे आं तरिक विकास के काम आ सकती है। विदे शी
शासकों ने सचमुच इतनी बुरी तरह से हमारे सां स्कृतिक मूल्यों को नष्ट किया है कि हम आज तक
पूरी तरह से यह नहीं समझ पाए हैं कि हमारा सकल नुक ़ सान कितना हुआ है। ऐसे में सद् ‌गुरु जैसे
आत्म-ज्ञानी ही हमें फिर से हमारी सां स्कृतिक जड़ ों से जोड़ सकते हैं।

गुरु पूर्णिमा जैसे अवसरों पर होने वाली छु ट्टियों का आज की युवा पीढ़ ी अक्सर मज़ाक
़ उड़ ाती है।
कदाचित समस्या समझ की है – वस्तुतः हम कभी खद ़ ु समझ ही नहीं पाए और इसलिए अपनी
अगली पीढ़ ी को समझा भी नहीं पाए कि ये चीज़ें हमारे लिए क्या महत्व रखती हैं। आज ज़रूरत
है कि सद् ‌गुरु जैसे ज्ञानी और प्रभावशाली व्यक्ति इस तरह के बदलाव की पहल करें और एक बार
फिर इस दे श में हमें रविवार की जगह पूर्णिमा और अमावस्या की छु ट्टियाँ दिलाने की
कोशिश करें।
पूनम महाजन, हाथरस

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काव्यांश

बं धन
काटना पड़ ता है
उस जीवनदायी नली को भी
जो जुड़ी होती है
शिशु की नाभि से
ताकि फल-फ ़ ू ल सके जीवन
लेकिन उसके बाद इं सान
बनाता रहता है अनेक बं धन
और तोड़ ता है
उनमें से सिर्फ़ कुछ को।

जैसे अं कुरित होता बीज


तोड़ दे ता है अपना बं धन
खोल के साथ,
जो था उसका सुरक्षा कवच,
ताकि बना सके वो
एक बड़ ा बं धन
धरती और आकाश के साथ।

बं धन प्रेम का, बं धन साहचर्य का


बं धन पोषण और खून का
ये सभी होंगे तोड़ ने,
हर उस इं सान को
जिसमें है एक गहरी ललक
आध्यात्मिकता की राह पर
आगे बढ़ ने की और छू ने की
परम तत्व को।
-सद्‌गुरु

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दर्शन

अपनी रफ़्तार मत होने दीजिए धीमी


कुछ गैरजरूरी डर हैं , आप दूसरों के मामलों में टां ग अड़ ाते हैं , गप्प मारने की थोड़ ी सी
इच्छा आपके भीतर है । आप इन छोटी-छोटी चीजों को साथ लेकर धीमी गति से चल
रहे हैं ।

कि सी समय शं करन पिल्लै की एक फ़ ्र ें च


पत्नी हुआ करती थी। वे दोनों फ़्रांस
चीजों को साथ लेकर धीमी गति से चल रहे हैं।
एक दिन ये चीजें मं जिल तक पहुं च जाएं गी और
में ही रहा करते थे। उस दिन उनकी शादी की सब ठीक हो जाएगा। लेकिन घोंघों को चलाकर
सालगिरह थी। उनकी पत्नी ने बहुत सारे दोस्तों लाना बुद्धिमानी का काम नहीं है। आपको उन्हें
को घर पर बुलाया। रात के भोजन में वह हर उठाकर बाल्टी में डालना होगा और फिर बाल्टी
चीज ताजा परोसना चाहती थीं, इसलिए शं करन को लेकर चलना होगा। यही तरीका है।
से कहा कि जाओ और कुछ ताजे घोंघे ले आओ।
आपको शायद पता होगा कि फ्रें च भोजन में घोंघे आप मुझे बताएं कि आप असुरक्षित महसूस न
का अहम स्थान होता है और उन्हें भूख बढ़ ाने करें, इसके लिए हमें क्या करना होगा? मैं आपकी
वाला भोजन माना जाता है। खैर, शं करन समुद्र शादी पहाड़ से करा सकता हूं । फिर तो आप
तट पर गए और एक बाल्टी में घोंघे इकठ्ठे करने काफी सुरक्षित महसूस करेंगे। अगर आप किसी
शुरू कर दिए। तभी शं करन को एक पुराना दोस्त पुरुष या महिला से शादी करते हैं तो आप हमेशा
मिल गया। उन दोनों ने बातचीत शुरू कर दी। असुरक्षित महसूस करेंगे। इसलिए मैं आपकी
शं करन दोस्त के साथ बात करते-करते एक शादी वैलिंगिरि पर्वत से करा दे ता हूं , जो लाखों
मान लीजिए किसी कारण
शराबखाने में चले गए और यह भूल गए कि सालों से ऐसे ही खड़ ा है। अगर आपको अब भी
से आज आप ठीक नहीं उनकी शादी की सालगिरह है। अचानक उन्हें सुरक्षित महसूस नहीं होता तो बताइए क्या किया
महसूस कर रहे हैं । ऐसे में अहसास हुआ कि काफी दे र हो चुकी है। वह जाए? आपको घोंघे को टहलाना पसं द है। अगर
आपके चेहरे पर एक बड़ ी भागे-भागे घर पहुँ चे और घोंघों से भरी बाल्टी आप भी घोंघा होते तो अच्छा था, लेकिन आप
दरवाजे पर पलट दी और बाल्टी फेंक दी। उनकी इं सान हैं। अगर आप घोंघे के साथ चलेंगे तो धीरे-
सी मुस्कराहट होनी चाहिए
पत्नी ने दरवाजा खोला। तभी शं करन ने घोंघों की धीरे आप भी घोंघा बन जाएं गे।
और आपकी चाल इठलाती ओर दे खते हुए आवाज़ दी - ‘चलो, चलो, बस हम
हुई होनी चाहिए। इसका पहुं च ही गए।’ समय आ गया है कि अब आप अपने सभी घोंघों
मतलब है कि आप जीवन के को बाल्टी में डालकर उसे साथ लेकर चलिए। मैं
तो अगर आप शं करन की तरह घोंघे को टहलाते यह नहीं कहता कि आप उन्हें छोड़ दें , उन्हें अपने
बारे में कुछ जानते हैं । अगर
हुए चलना चाहते हैं तो आध्यात्मिक प्रक्रिया साथ लेकर चलिए, लेकिन उनकी रफ़्तार से नहीं,
ऐसा नहीं है तो आप सिर्फ आपका बहुत सारा समय लेगी। वैसे आपके पास हम अपनी गति से चलें। अगर घोंघे बाल्टी में हैं
एक मनोवैज्ञानिक समस्या से बहुत ज्यादा घोंघे नहीं हैं, बस थोड़ ी सी असुरक्षा तो भरोसा रखिए, अगले उत्तरायण कुछ न कुछ
ज्यादा कुछ नहीं है । की भावना है, चाहे आप कहीं भी, किसी भी ज़रूर होगा। ऐसा होना चाहिए कि लोग आपकी
स्थिति में हों। कुछ गैरजरूरी डर हैं, आप दूसरों ओर दे खें और कहें कि ‘अरे वाह, क्या बात है!’
के मामलों में टां ग अड़ ाते हैं, गप्प मारने की थोड़ ी आपको नहीं पता, उन्हें भी नहीं पता कि हुआ
सी इच्छा आपके भीतर है। आप इन छोटी-छोटी क्या, लेकिन कुछ होगा जरूर। कोई ऐसी चीज जो

10 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


ऐसा नहीं है तो आप सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक
समस्या से ज्यादा कुछ नहीं है। आपको जीवन की
कोई जानकारी नहीं है।

आप एक बात समझने की कोशिश कीजिए।


आपका प्रेम, आपका गुस्सा, आपका डर, आपके
कष्ट, ये सारी चीजें मनोवैज्ञानिक कूड़ ा हैं। ये
सब बातें आप अपने दिमाग में खुद बना रहे
़ ास अधिकार मिले हुए हैं, हमारी
हैं। हमें कुछ ख
कुछ दिमागी क्षमताएं हैं, जिनकी वजह से हम
कुछ चीजों को गढ़ लेते हैं, लेकिन सिर्फ ये चीजें
ही आपके जीवन का एकमात्र पहलू नहीं होनी
चाहिएँ । यहां एक सृष्टि है, और उस सृष्टि का स्रोत
भी और यह सब आपके भीतर है। आपके भीतर
जीवन की पूँ जी लगी है। मैं पूछना चाहता हूं कि
क्या आपके बेवकूफी भरे विचार और भावनाएं
इस पूँ जी से बड़ े हैं?

तो आपको करना क्या है? सभी घोंघों को उठाना


कोई नहीं जानता, वह आपके साथ जरूर होगी। है, जिन्हें आपने रचा है। आपके अं दर इतनी
अभी यह आपके साथ क्यों नहीं हो रही है, क्योंकि क्षमता होनी चाहिए कि आप जब चाहें, उन्हें उठा
आपने उन छोटी-छोटी चीजों की खुद के साथ सकें। अगर आपको थोड़ ी परेशानी पसं द है, तो
एक शक्तिशाली पहचान स्थापित की हुई है, जो थोड़ ी दे र के लिए उसमें रम जाइए। इन परेशानियों
आप जानते हैं। ऐसे में जो आप नहीं जानते हैं, वह को थोड़ ी दे र के लिए महसूस कर लीजिए लेकिन
आपके साथ कभी होता ही नहीं है। आपमें इतनी क्षमता होनी चाहिए कि जब आप
चाहें, इन्हें इकठ्ठा कर सकें और फेंक दें । अगर
मान लीजिए किसी कारण से आज आप ठीक आप इनका त्याग नहीं करना चाहते हैं, तो कम
महसूस नहीं कर रहे हैं। ऐसे में आपके चेहरे पर से कम इन्हें एक बाल्टी में भरकर अपने साथ,
एक बड़ ी सी मुस्कराहट होनी चाहिए और आपकी अपनी रफ़्तार से लेकर चलें। उनके साथ-साथ न
चाल इठलाती हुई होनी चाहिए। इसका मतलब चलें, क्योंकि ये घोंघे इतनी धीमी गति से चलेंगे
है कि आप जीवन के बारे में कुछ जानते हैं। अगर कि इनका सफ ़ र कभी ख़ त्म नहीं होने वाला।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 11


¥æÙ´Î ÜãÚU

़ ार किसलिए?
तो अब इं तज
़ म्मेदारी को पूरे मन से स्वीकार करके आनं दपूर्वक काम करने
हर इं सान यदि अपनी जि
लगे, तो हम इस दे श को ही क्यों, सं पूर्ण धरती को अपनी इच्छानुसार बदल सकते हैं ।
़ ार कर रहे हैं ?
तो हम अब किसलिए इं तज

आ पसे एक आसान सा सवाल पूछते हैं।


़ रीबी मित्र कौन हैं?
आपके सबसे क
लेकिन चाहे कितने ही नज़दीकी क्यों न हो, उनसे
भी एकाध रहस्य आपने अपने मन में छिपा रखा
है। उस रहस्य को भी जानने की हद तक आपसे
‘मेरी पत्नी, मेरे पति, मेरा बच्चा। नहीं नहीं, मेरा निकटता रखने वाला व्यक्ति केवल एक ही है।
मित्र। ना -ना, मेरी माँ । ना, पिता।’ इसमें से आप जो
भी उत्तर दें - वह सब झूठ होगा। कौन है वह?

दे खिए, इनमें से हरेक को आपने एक हद तक ही वह ईश्वर है – ऐसा मूर्खतापूर्ण उत्तर मत दीजिएगा।


छू ट दी है। किसी को घर के दरवाज़े तक, किसी आपके रहस्यों को जानने के बजाय उनके पास दूसरे
को अपने हाथ की पहुँच तक, किसी को अपने महत्वपूर्ण काम हैं।
बिस्तर तक।

12 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


़ रीबी इं सान कौन है?
तो, वह क मज़बूत सैनिक बल रखना ताकत नहीं है। सही राह
दिखाने के लिए लोग आपकी तरफ ताकते हैं, वही
़ रीब आपके
वह इं सान आप खुद हैं। आपसे भी क है ज्यादा बड़ ी शक्ति।
लिए और कौन हो सकता है?
यदि ये शक्ति रहे तो हम करोड़ ों लोगों को आज,
जीवन के बारे में आप जो भी जानना चाहते हैं, अभी ऐसी ऊँ चाई तक ले जा सकते हैं, जिसकी
उसके लिए आपको उसी क ़ रीबी इं सान के बारे में कल्पना भी नहीं की जा सकती।
जानना होगा।
इस परिवर्तन को कानून बनाकर नहीं लाया जा
हर पल को अपनी इच्छानुसार बना लेने के लिए सकता है। ना ही नेताओ ं द्वारा लोगों पर जबरन
आपको दिया गया अवसर ही है यह जीवन। थोपा जा सकता है। हर इं सान यदि अपनी जि़म्मेदारी
को पूरे मन से स्वीकार करके आनं दपूरक ्व काम
इस धरती के भाग्य को बदलकर लिखने वाले सभी करने लगे, तो हम इस दे श को ही क्यों, सं पूर्ण धरती
ज्ञानी, उस पल के लिए जो ज़रूरी था, उसी पर ध्यान को अपनी इच्छानुसार बदल सकते हैं।
केंद्रित करते हुए पूरी इच्छा के साथ लग गए। वे यह
सोचकर इं तज़ार नहीं करते रहे कि पचास, पाँ च सौ तो अब आप किसलिए इं तज़ार कर रहे हैं?
या पाँ च हज़ार साल बाद कोई उस काम को करेगा।
मानव जाति के लिए अगले बीस-तीस वर्ष अत्यंत मानव जाति के लिए अगले
लेकिन इस दे श के सारे ‘लाउडस्पीकर’ उन्हीं लोगों महत्वपूर्ण हैं। मानव समाज ने गैर-जि़म्मेदाराना ढं ग
बीस-तीस वर्ष अत्यंत
की थोथी बातों का शोर मचा रहे हैं, जो किसी से पागलपन से भरी जो हरकतें की हैं, धरती को
तिनके को उठाकर रखने के लिए भी तैयार नहीं हैं। इससे जो क्षति पहुँची है, उसके बारे में अब कई लोग महत्वपूर्ण हैं । मानव समाज
चिंता जाहिर करने लगे हैं । लेकिन अभी भी कोई ़ म्मेदाराना ढं ग से
ने गैर-जि
आज का माहौल हम सबके लिए इतना अनुकूल है महत्वपूर्ण और कारगर कदम नहीं उठाया गया है। पागलपन से भरी जो हरकतें
जितना पहले कभी नहीं रहा। विज्ञान ने हमारे लिए फिर भी चारों ओर हो रही तबाही के बारे में विश्व में
की हैं , धरती को इससे जो
इतनी सुविधाएँ जुटा दी हैं कि एक साथ मिलकर जहाँ -तहाँ चिंता और उत्तरदायित्व की भावना जग
काम करने में भाषा, सं स्कृति, दूरी आदि कुछ भी रही है, इससे मेरे मन में आशा जगी है। क्षति पहुँ ची है , उसके बारे में
बाधा नहीं रह गई है। अब कई लोग चिंता जाहिर
हम किस चीज़ को पाने के लिए तड़ प रहे हैं, किन- करने लगे हैं । लेकिन अभी
अगर आप जागरूकता से, आनं द से, लगन से और किन चीज़ों के पीछे भाग रहे हैं, उसे ठीक से समझने
भी कोई महत्वपूर्ण और
एकाग्रतापूरक
्व काम करने लग जाएँ तो आपके में ही हम चूक गए हैं। भले ही आज की हालत कुछ
चारों ओर सौ लोग काम करेंगे। उनके चारों ओर दस भी हो, जल्दी ही एक नया मोड़ आने वाला है। मेरा कारगर कदम नहीं उठाया
हज़ार लोग सशक्त हो जाएँ गे। यह सं ख्या थोड़ े ही विश्वास है कि कुछ ही समय के अं दर यह बदलाव गया है ।
समय में दस लाख बन सकती है। होकर रहेगा। हाँ , लेकिन उसके लिए दुनिया के
इतिहास को बदलने की शक्ति रखने वाले दे शों के
अगर दस लाख लोग जि़म्मेदारी की भावना से पूरी शीर्ष नेताओ ं के मन में परिपक्वता आनी चाहिए।
लगन के साथ काम करेंगे तो उसके टक्कर की
मज़बूत ताकत विश्व में और कोई नहीं हो सकती।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 13


ईशामृतम

आध्यात्मिक यात्रा
मन की नहीं,
अनुभव की यात्रा
एक आध्यात्मिक प्रक्रिया क्या है ? इसे एक
बहुत ही तकनीकी परिभाषा दें तो हम कह
सकते हैं - यदि आपके जीवन का अनुभव
भौतिक सीमाओ ं को पार कर जाता है , तो
आप आध्यात्मिक हैं ।

ज ब आप ‘आध्यात्मिकता’ कहते हैं, तो लोगों के


मन में तुरंत जो ख़्याल आता है – वह है ‘मन की
शां ति।’ लेकिन मन की शां ति अध्यात्म नहीं है। यदि
आपके घर पर कोई पालतू जानवर है, मान लीजिए कि
आपके घर पर कोई कुत्ता है, तो जाइए और दे खिए,
वह काफी शां ति से बैठा होगा। क्या आपने दिल्ली की
सड़ कों पर खड़ े बैल दे खे हैं? वे काफी शां तिपूर्वक खड़ े
रहते हैं। पेट भरा है, वे सभी शां तिपूर्ण हैं। लेकिन क्या
से सब जानवर आध्यात्मिक भी हैं? यह आध्यात्मिकता
नहीं है, यह सिर्फ मानसिक सुख है जो हर किसी के
पास होना चाहिए, जिसे पाने के तरीके हैं। लेकिन जब
आप एक विज्ञान के रूप में आध्यात्मिकता की बात
करते हैं, तो आप केवल मानसिक सुख के बारे में बात
नहीं कर रहे हैं।

तो एक आध्यात्मिक प्रक्रिया क्या है? इसे एक प्रकार


की तकनीकी परिभाषा दें तो हम कह सकते हैं - यदि
आपके जीवन का अनुभव भौतिक सीमाओ ं को पार
कर जाता है, तो आप आध्यात्मिक हैं। मानसिक
अनुभव अभी भी भौतिक है। उदाहरण के लिए
माइक्रोफोन भौतिक है और इसे चलाने वाली बिजली
भी भौतिक है। लेकिन शायद दे खने के लिहाज़ से
बिजली, माइक्रोफ ़ ोन जितनी भौतिक नहीं है। लेकिन
तार में जो चीज बह रही है, वह भौतिक ही है। और
ध्वनि तरंगों के रूप में स्पीकर से जो निकल रहा है वह

14 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


भी भौतिक है। इसलिए जिसे आप विचार कहते भावना पैदा कर सकते हैं। अभी आप अपनी आँ खें
हैं, वह भौतिक है। जिसे आप भावना कहते हैं, वह बं द कर सकते हैं या शायद अपनी आँ खें खुली
भी भौतिक है। तो मानसिक भी, भौतिक दायरे से रखकर, यहाँ किसी को दे ख सकते हैं और किसी
सं बं धित है, लेकिन यह एक सूक्ष्म स्तर पर है। तो के प्रति घृणा की गहरी भावना पैदा कर सकते हैं।
जिसे हम आध्यात्मिकता के रूप में दे ख रहे हैं वह आप अपने मन में जो चाहें बना सकते हैं और जैसा
एक आयाम है जो भौतिक से परे है, जो भौतिक का आप सोचते हैं, वैसा आप महसूस करते हैं।
स्रोत है। तो आपके जीवन के मानसिक दायरे में जो हो
रहा है उसका आध्यात्मिकता से कोई लेना-देना
अध्यात्म कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे आप रचते नहीं है। आज दुर्भाग्य से मानसिक सां त्वना को
हैं, यह एक ऐसी चीज है जिसे आप तलाशते हैं। आध्यात्मिकता बताया जा रहा है। मानसिक रूप
यदि आप इन आयामों का पता लगाना चाहते हैं, से सुखद स्थिति में होना आध्यात्मिकता के मामूली
तो सिर्फ एक और एकमात्र तरीका अपने बोध को प्रभावों में से एक है, लेकिन यह आध्यात्मिकता
बढ़ ाना है। अपने बोध को बढ़ ाने के ज़रूरी तरीकों नहीं है। यदि आपकी भीतरी स्थिति एक ख ़ ास अध्यात्म कोई ऐसी चीज
के बिना यदि आप इसके क ़ रीब आएँ गे, हालत में हैं, तो मन का सुखद स्थिति में होना बहुत नहीं है जिसे आप रचते हैं ,
तो निश्चित रूप से यह एक बं द रास्ते जैसा दिखेगा। स्वाभाविक है, लेकिन मन की सुखद स्थिति में
यह एक ऐसी चीज है जिसे
अब जब आप ‘आध्यात्मिकता’ की बात करते हैं, होना आध्यात्मिकता नहीं है। यदि आप शाम को
तो आप एक ऐसी चीज के बारे में बात कर रहे हैं, सूर्यास्त दे खने जाएं , तो शायद आप अपने भीतर आप तलाशते हैं । यदि आप
जिसे आप पां च इं द्रियों के माध्यम से महसूस नहीं अद्भुत महसूस करेंग।े यदि आप एक आइसक्रीम इन आयामों का पता लगाना
कर सकते। और ये पां च इं द्रियां , जिस तरह से बनी खाते हैं या जाकर सिनेमा दे खते हैं तो आपको चाहते हैं , तो सिर्फ एक और
हैं, वे केवल वही अनुभव कर सकती हैं, जो भौतिक मानसिक रूप से सुखद लग सकता है। लेकिन क्या
एकमात्र तरीका अपने बोध
है। जो कुछ भी भौतिक नहीं है, आप उसे दे ख नहीं यह आध्यात्मिकता है? नहीं। आप सिर्फ एक सुखद
सकते, आप उसे सूं घ नहीं सकते, आप उसका मानसिक स्थिति पैदा कर रहे हैं। को बढ़ ाना है । अपने बोध
स्वाद नहीं ले सकते, आप उसे सुन नहीं सकते और को बढ़ ाए बिना यदि आप
न ही आप उसे छू सकते हैं। इसलिए यदि आपका मानसिक स्थिति, चाहे वह विचार के रूप में सामने ़ रीब आएँ गे, तो
इसके क
बोध पां च इं द्रियों तक ही सीमित है, तो स्वाभाविक आ रही हो या भावना के रूप में, बुनियादी रूप
निश्चित रूप से यह एक बं द
रूप से आपके जीवन का खेल और आपके जीवन से आपकी रची हुई है। आप इसे कैसा भी बना
का दायरा केवल भौतिक ही होगा। सकते हैं। जिसे आप भौतिक कहते हैं, उस पर कई रास्ते जैसा दिखेगा।
शक्तियां काम कर रही हैं।
लेकिन मैं तो हर दिन भगवान से बात करता हूं ’ -
वह भी भौतिक है, क्योंकि भगवान ज्यादातर लोगों जिसे आप आध्यात्मिक कहते हैं, वह आपका
के लिए एक विचार है, एक जीवं त हक ़ ीक़ त नहीं। रचा हुआ बिल्कु ल नहीं है। यह आप हैं, लेकिन
कोई कहेगा, ‘नहीं, नहीं, मैं भगवान को अपने यह आपकी रचना नहीं है। लेकिन जिसे आप
दिल में महसूस करता हूं ।’ जो आप अपने दिल में मानसिक कहते हैं, वह पूरी तरह आपका रचा है,
महसूस करते हैं वह आपकी भावना है जो आपके आप इसे जैसा चाहें वैसा बना सकते हैं। लेकिन
द्वारा ही बनाई गई है। मानसिक और भावनात्मक अभी, क्योंकि लोगों का अपनी मानसिक गतिविधि
स्थिति में जो भी होता है वह आपके द्वारा अभी पर कोई नियं त्रण नहीं है, इसलिए यह सबसे बड़ ी
बनाया जा सकता है। अभी आप अपनी आँ खें बं द समस्या बन गई है।
कर सकते हैं और किसी के प्रति प्रेम की गहरी

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 15


ईशामृतम

अध्यात्म की राह पर इतना काम क्यों?


आपने कल्पना की थी कि योगी या आत्मज्ञानी होने का मतलब है कि वह आपको घूरकर
दे खेंगे और आप उन्हें घूरकर दे खेंगे और बस काम हो जाएगा। लेकिन, ईशा में तो हर
समय काम, काम और काम।

ज ब हम एक निश्चित स्तर और एक खास प्रभाव


के लिए कुछ बनाने की कोशिश करते हैं, तो
इसे करने की प्रक्रिया में, कई बलिदान देने पड़ते हैं।
कुछ आपका एक हिस्सा है। तो बस यहां बैठकर
इसे जानने में आप कई जीवनकाल भी ले सकते हैं।
अधिकां श लोग इसे हासिल नहीं कर सकते, वे बस
शायद यह आपसे आपके जीवन का बलिदान नहीं एक विचार हासिल कर सकते हैं और कल सुबह
मां गे, लेकिन कई दूसरी तरह के बलिदान देने पड़ते उसे भूल जाएं गे। लेकिन, अगर आप अपना समय,
हैं। हो सकता है कि आपको समय पर खाने को न ऊर्जा और जीवन कुछ ऐसा बनाने में लगाते हैं, जो
मिले, समय पर सोने को न मिले, हो सकता है कि आपके बारे में बिल्कु ल नहीं है, तो धीरे-धीरे यह
लोग आपसे कई बातें कहें। आपके भीतर उतर जाता है, शरीर की हर कोशिका,
हर परमाणु इसे सोख लेगा और आपको समझ में
ईशा में वर्षभर कई विशाल आयोजन होते रहते हैं, आ जाएगा कि आपका जीवन असल में पूरी तरह
तो यहाँ लगातार काम, काम और काम है। आप समावेशी है, सबको समाहित करने वाला है। नहीं
आश्चर्यचकित होने लगेंगे कि ‘मैं इस तरह के गुरु तो यह सिर्फ एक बात है। मैं यह सुनता रहता हूं ,
के पास क्यों आया?’ क्योंकि आपने कल्पना की विशेष रूप से अमेरिका में लोग कहते हैं, ‘हम ब्रह्मां ड
थी कि योगी या आत्मज्ञानी होने का मतलब है कि से प्यार करते हैं।’ वाह! यह सबसे आसान काम है
वह आपको घूरकर दे खग ें े और आप उन्हें घूरकर क्योंकि वह यहाँ नहीं है। अगर आपको किसी ऐसे
दे खगें े और बस काम हो जाएगा। लेकिन नहीं, हर व्यक्ति से प्यार करना है जो आपके पास है, तो उसमें
समय काम, काम और काम। आप सां स लेने के पूरा जीवन लग जाता है। आपको कुछ देना पड़
लिए भी रुक नहीं सकते। क्योंकि हमें यह समझने सकता है। अगर आपके हाथ में आम है, अगर आप
की ज़रूरत है कि बस यहाँ बैठना और यह अनुभव किसी से प्यार करते हैं, तो आपको उसे देना पड़
करना कि यह पूरा ब्रह्मां ड वास्तव में मेरा एक हिस्सा सकता है। लेकिन अगर आप ब्रह्मां ड से प्यार करते
है, ज्यादातर लोगों के साथ ऐसा नहीं होगा। हो हैं, तो आप आम खा सकते हैं और ब्रह्मां ड को प्यार
सकता है कि वे कुछ क्षणों के लिए मतिभ्रम में रहें, कर सकते हैं।
और उसके बाद वे किसी ना किसी चीज़ से विचलित
हो जाएं गे। यह एक बेहतरीन चाल है। यह भगवान को
जलेबी, लड्डू, ये.., वो.., हर तरह की चीज़ चढ़ ाने
यदि आप कुछ ऐसा बनाने के लिए अपना जीवन की तरह है, कि भगवान तो वैसे भी यह सब कुछ
लगा दे ते हैं, जिसका आपसे कोई लेना-देना नहीं नहीं खाएं गे, आप ही हैं जिसे अं त में यह खाने को
है, लेकिन बाक ़ ी हर चीज के साथ कुछ न कुछ मिलेगा। तो, यह एक लं बे समय से चल रहा है -
सं बं ध है, तो धीरे-धीरे यह आपमें, आपके शरीर की चालाकी और चालाकी। इसी वजह से जब आपको
हरेक कोशिका में फैल जाएगा कि वास्तव में सब कुछ पैदा करना है, तो आपको अपनी चालाकियों

16 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


को एक तरफ रखना होगा और वही करना होगा सोचिए कि जब हम आदियोगी निर्माण कार्य या
जो ज़रूरी है। चालाकी की कोई जगह नहीं है, यदि महाशिवरात्रि या नदी अभियान की बात करते हैं,
आप चालाकी करते हैं, तो जो आप कर रहे हैं वह तब हम केवल पर्यावरण या एक घटना के बारे में
आपके सिर पर ही गिर जाएगा। जब आप भौतिक बात कर रहे हैं - नहीं, यह एक आध्यात्मिक प्रक्रिया
़ द
दुनिया में काम करते हैं, तो आप ख ु को धोखा है। मैं यह दे खना चाहता हूं कि वास्तव में कौन खुद
नहीं दे सकते। को पूरी तरह समर्पित कर सकता है, किसी भी चीज
बं धन का आधार सिर्फ यही
के बारे में शिकायत किए बिना, क्योंकि कई चीजें
इसलिए यदि आप अपने करीबी व्यक्ति से प्यार होंगी। जब हम कुछ बनाना चाहते हैं, तो कई चीजें है – ‘मुझे यह पसं द है , मुझे
करते हैं, तो यह समस्या है कि आपको कम से वैसे नहीं होंगी जैसा हमने सोचा था। यह नापसं द है , मुझे इससे
कम आधा आम देना होगा। और आम, आप इसे प्यार है , मुझे इससे नफरत
आधे में नहीं काट सकते हैं, एक तरफ ज्यादा वह करना जो मुझे पसं द है और वह करना जो ज़रूरी
है ।’ एक बार जब आप
होगा, एक तरफ कम होगा। अब वह व्यक्ति कहता है इसमें बहुत बड़ ा अं तर है। जब आप वह करना
है, ‘नहीं, आप भी खाइए।’ फिर आपने उसे काट शुरू करते हैं जो ज़रूरी है, तो पसं द और नापसं द सृष्टि को इस तरह बाँ ट दे ते
दिया - एक बड़ ा टु कड़ ा, एक छोटा टु कड़ ा। क्योंकि ़ त्म हो जाती है। मुझे कुछ पसं द है और मुझे कुछ
ख हैं , तो उस आयाम को छू ने
आपने एक अनावश्यक बयान दिया है, ‘आई लव नापसं द है - यदि आप सिर्फ इस एक चीज को पार की आपकी क्षमता, जिसे
यू,’ तो आपको बड़ ा टु कड़ ा उन्हें देना होगा। जब कर लेते हैं, तो आपका नब्बे प्रतिशत आध्यात्मिक
हम सृष्टि का स्रोत कहते हैं ,
आप कहते हैं ‘मुझे ब्रह्मां ड से प्यार है’, तो आप बड़ ा काम हो गया। बस इतना ही। क्योंकि, कर्म पैदा
टु कड़ ा और छोटा टु कड़ ा – दोनों खा सकते हैं। आप करने वाली मशीन यानी बं धन का आधार सिर्फ यही आपकी पहुँ च से बाहर हो
भगवान से प्यार करते हैं, तो छोटा टु कड़ ा आप दे है – ‘मुझे यह पसं द है, मुझे यह नापसं द है, मुझे जाती है ।
सकते हैं, बड़ ा टु कड़ ा आप खा सकते हैं। लेकिन, इससे प्यार है, मुझे इससे नफरत है।’ एक बार जब
यदि आप अपने करीबी व्यक्ति को प्यार करते हैं, तो आप सृष्टि को इस तरह बाँ ट दे ते हैं, तो उस आयाम
आपको उन्हें बड़ ा टु कड़ ा देना होगा। को छू ने की आपकी क्षमता, जिसे हम सृष्टि का स्रोत
कहते हैं, आपकी पहुँच से बाहर हो जाती है।
तो, इसी वजह से काम, काम और काम। ऐसा मत

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 17


ईशामृतम

रीलिजन टू रिस्पों सिबिलिटी:


बढ़ ें धर्म से ज़ि म्मेदारी की ओर
हमें मानवता को अधिक जिम्मेदारी से चलने की ओर ले जाना होगा। नहीं तो हम
ऊपर वाले को दोष दे ते रहें गे और एक दूसरे के लिए और खुद के लिए सभी प्रकार की
भयानक चीजें करते रहें गे।

लो गों ने ईशा योग पर अध्ययन किया है।


कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में वे कह रहे हैं
पूरी तरह से जाना जा सकेगा। वरना हर किसी के
पास अपने उल्टे कामों के लिए एक बहाना है, और
कि सिर्फ तीन महीने के अभ्यास से आपके दिमाग़ आमतौर पर हर बेवकूफी भरी चीज़ जो वे करते हैं,
में फिर से पैदा हुए न्यूरोन की सं ख्या दो-सौ- उसके लिए उनके पास ईश्वर की इजाज़त होती है।
इकतालीस प्रतिशत बढ़ जाती है। मुझे लगता है
यह मानव बुद्धि का स्वभाव कि हम सब थोड़ े ज्यादा दिमाग के साथ काम कर दे खिए, यह मानव बुद्धि का स्वभाव है कि अगर
है कि अगर आप आज कुछ सकते हैं। आपको क्या लगता है? आपको लगता आप आज कुछ मूर्खतापूर्ण करते हैं, तो आज रात
है कि आप चरम पर पहुं च गए हैं या थोड़ ी और आपकी बुद्धि आपको परेशान करेगी - मैंने ऐसा
मूर्खतापूर्ण करते हैं , तो आज
गुं जाइश है? हम और अधिक कर सकते हैं। यह क्यों किया? लेकिन अगर इसे भगवान या धर्मग्रन्थ
रात आपकी बुद्धि आपको सिर्फ इतना है कि जैसे हम बाहरी दुनिया में फायदे का समर्थन मिल गया, तो आप पूरे आत्मविश्वास के
परेशान करेगी - मैंने ऐसा के लिए निवेश करते हैं, भीतरी दुनिया में भी अगर साथ मूर्खतापूर्ण काम कर सकते हैं। आपको पीछे
क्यों किया? लेकिन अगर आप चाहते हैं कि कुछ फायदा हो, तो आपको कुछ मुड़कर नहीं दे खना पड़ता। इसे बदलना होगा। हमें
निवेश करने की ज़रूरत है, नहीं तो कोई फायदा मानवता को अधिक जिम्मेदारी से चलने की ओर ले
इसे भगवान या धर्मग्रन्थ का
नहीं होगा। जाना होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हम ऊपर वाले
समर्थन मिल गया, तो आप को दोष दे ते रहेंगे और एक दूसरे के लिए और खुद
पूरे आत्मविश्वास के साथ असल में इसका मतलब यह है कि हमारा पूरा के लिए सभी प्रकार की भयानक चीजें करते रहेंगे।
मूर्खतापूर्ण काम कर सकते अभियान ही जिसका मैं नेतृत्व कर रहा हूँ , वह हर समय यही हो रहा है।
मानवता को धर्म से जिम्मेदारी की ओर ले जाने की
हैं । आपको पीछे मुड़कर नहीं
दिशा मैं है। अगर कुछ सही हो रहा है, तो आप आज मानव बुद्धि बहुत विकसित हो चुकी है, ऐसा
दे खना पड़ ता। इसे कहते हैं ‘यह मैंने किया,’ और जब कुछ गलत हो पहले कभी नहीं हुआ। इस धरती पर मानवता के
बदलना होगा। रहा है, तो हम ऊपर दे खते हैं। हम बहुत समय तक इतिहास में पहले से कहीं ज्यादा लोग अपने लिए
ऐसे ही जी रहे थे। इसे बदलने का समय आ गया सोच सकते हैं। यह वह समय है जब लोगों के
है। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि हमारी सभी दिमाग में स्वर्ग ढह रहे हैं। वे सभी जिन्होंने खुद
समस्याओ ं का स्रोत हमारे अन्दर है और यदि हम को नरक बना लिया है, वे स्वर्ग जाना चाहते हैं।
समाधान चाहते हैं तो वो भी हमारे अन्दर ही है, कहीं एलाबामा में ऐसा हुआ कि रविवारीय स्कू ल का
और नहीं। तो, दुनिया को धर्म से जिम्मेदारी की एक शिक्षक पूरे जोश में था। लेकिन दुर्भाग्य से,
ओर ले जाना होगा, सिर्फ तभी मानव क्षमता को दर्शक आपके जैसे नहीं थे। वे छोटे बच्चे थे। वह पूरे

18 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


जोश में अपना भाषण दे रहा था फिर वह रुक गया वापस मिट्टी में मिला दें गे। यह एक अच्छी बात है
और पूछा, ‘आपको स्वर्ग जाने के लिए क्या करना जो हर कोई आखिर में करेगा। कोई भी अपने शरीर
होगा?’ छोटी सी मैरी ने खड़ े होकर कहा, ‘अगर मैं के साथ नहीं मरता। तो आप अपना शरीर यहाँ
हर रविवार सुबह इस चर्च के फर्श को साफ ़ करूं छोड़ कर स्वर्ग चले गए। आपको पता है कि स्वर्ग में
तो मैं स्वर्ग में जाउं गी।’ ‘बिल्कु ल!’ एक और छोटी क्या है?
लड़ की खड़ ी हुई और बोली, ‘अगर मैं अपने जेब
खर्च में से आधे पैसे अपने गरीब दोस्त को दे दूँ , हिंदू स्वर्ग में, भोजन अच्छा है। यदि आप खाने के
तो मैं स्वर्ग जाऊँ गी।’ ‘ठीक कहा!’ पीछे की बेंच शौकीन हैं, तो आप वहाँ जाएं । दूसरी जगह पर
पर बैठा टॉमी खड़ ा हुआ और कहा, ‘आपको पहले बादलों पर उड़ती हुई सफ ़ े द गाऊन पहने महिलाएँ
मरना होगा।’ जी हाँ , आपको पहले मरना होगा, हैं। यदि आप उस तरह का माहौल पसं द करते हैं,
यही स्वर्ग जाने की पहली शर्त है। तो आप वहां जाएं । तीसरी जगह आपको कंु वारी
लड़ कियाँ मिलेंगी। यदि आप यह खोज रहे हैं, तो
अगर आपने पर्यावरण की भलाई के लिए कुछ भी आप वहाँ जाएं । लेकिन आप तो अपने शरीर को
नहीं किया है, तो एक अच्छी बात यह है कि जब यहाँ छोड़ कर स्वर्ग चले गए! जब आपके पास
आप मरेंगे, तब करेंगे। हम या तो आपके शरीर को शरीर ही नहीं है, तो आप अच्छे भोजन और कंु वारी
दफनाएं गे, या जलाएं गे, या इसे काटकर पक्षियों को लड़ कियों के साथ क्या करेंगे? तो यह समय है
डाल दें गे - निर्भर करता है कि आप किस सं स्कृति जब हम इस मानवता को धर्म से जिम्मेदारी की
से आए हैं। एक बात पक्की है कि हम मिट्टी को ओर ले जाएं ।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 19


ईशामृतम

भक्ति: मूर्खता है या मुक्ति का रास्ता


़ ें करता है जो साधारण बुद्धि कभी नहीं
भक्ति बुद्धि का एक और आयाम है । ये वो चीज
कर सकती। इसके कई महान उदाहरण रहे हैं ।

इ स सं स्कृति के भक्तिपूर्ण अभियान इतने मजबूत


थे कि भक्ति लोगों के जीवन का केंद्र बन गई
सूत्र ब्लैक होल का वर्ण न कर रहा है।

थी। लोगों ने जाना कि भक्ति एक व्यक्ति के विकास मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि भक्ति बुद्धि
के लिए एक जबरदस्त साधन है। यूरोपीय सं स्कृति का एक और आयाम है। बुद्धि की तुलना में भक्ति
में, पिछले पं द्रह सौ वर्षों में कट्टरता भरे जीवन के के ज़रिए अस्तित्व को जानना एक बहुत आसान
तरीकों को थोपा गया। जब विज्ञान और कला तरीका है। बुद्धि बहुत भ्रामक है, यह आपको दूसरे
का नया दौर शुरू हुआ, तो सबसे पहले उन्होंने की तुलना में अधिक स्मार्ट दिखाती है लेकिन
कट्टरता भरे जीवन के तरीकों का विरोध किया। जीवन के सं दर्भ में आपको मूर्ख और अधिक मूर्ख
यह विरोध उन्हें वहाँ ले गया जहाँ बुद्धिजीवी होने बनाती है। जीवन के अनुभव के मामले में आप
का मतलब है, कट्टरता का विरोध करना। लेकिन अधिक से अधिक विवश बन रहे हैं, लेकिन किसी
यदि आप वास्तव में जीवन
उन्होंने इस कट्टरता में भक्ति को भी शामिल कर दूसरे व्यक्ति की तुलना में आप उससे अधिक स्मार्ट
को जानना चाहते हैं ,
लिया। परमात्मा या भक्ति से जुड़ी चीज़ों का विरोध लग रहे हैं। दरअसल जीवन की पूरी प्रक्रिया में
अनुभव करना चाहते हैं - होने लगा। हमने इसे बस किसी और से बेहतर बनाने तक ही
़ रूरत
तो आपको भक्ति की ज सीमित कर दिया है।
यदि आप तीव्र बुद्धि वाले हैं, तो आप भक्ति नहीं
है । भक्ति एक ऐसी अवस्था
कर सकते। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि भक्ति यदि आपकी रुचि जीवन का अनुभव करने, जीवन
़ ाली
है जहाँ आप खुद से ख
अस्तित्व का मूर्खतापूर्ण तरीका नहीं है, भक्ति बुद्धि की खोज करने, जीवन को जानने, उन आयामों में
होते हैं । जब आप खुद से का एक और आयाम है। ये वो चीज़ें करती है जो प्रवेश करने में है जिन्हें आपने अभी तक नहीं छु आ
़ ाली होते हैं , तो आप
ख साधारण बुद्धि कभी नहीं कर सकती। इसके कई है, तो आपको भक्ति की ज़रूरत है। बुद्धि बहुत
महान उदाहरण रहे हैं। एक महान उदाहरण जिसे दूर नहीं जाएगी। यदि आप वास्तव में जीवन को
भक्ति में हैं । यदि आप खुद
दुनिया आज बड़ े पैमाने पर पहचानती है, वह है जानना चाहते हैं, गले लगाना चाहते हैं, अनुभव
़ ाली हैं , तो कुछ आपसे
से ख
रामानुजम। आपने रामानुजम के बारे में सुना होगा, करना चाहते हैं - तो आपको भक्ति की ज़रूरत है।
़ रिए
बहुत बड़ ा, आपके ज एक गणितज्ञ। उन्होंने गणित के सूत्र बताए, जिसे भक्ति एक ऐसी अवस्था है जहाँ आप खुद से ख ़ ाली
काम करता है । समझने में लोगों को सौ साल लग गए, यह लोग होते हैं। जब आप खुद से ख ़ ाली होते हैं, तो आप
शीर्ष गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे। आखिरी सूत्र जो भक्ति में हैं। यदि आप खुद से ख ़ ाली हैं, तो कुछ
उन्होंने लिखा था, वह उन्होंने अपनी मृत्यु शैय्या पर आपसे बहुत बड़ ा, आपके ज़रिए काम करता है।
लिखा था। वे एक दे वी के भक्त थे। उन्होंने यह सूत्र जब आप नहीं होते हैं, तो वह जो असीम है, वह
लिखा है और उन्हें यह भी नहीं पता कि यह किस मौजूद होता है।
बारे में है। उन्होंने कहा, ‘मेरी दे वी ने मुझे यह दिया
है।’ इसे सौ साल से अधिक हो गए - साल 2010 इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति चाहे वह जो भी काम
में जाकर लोग यह समझ पाए कि यह गणित का करता हो, चाहे वह कारोबार हो, विज्ञान हो, कला,

20 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


सं गीत या खेल हो, या जो भी हो, क्या किसी ने भी बिना पूरी तरह भावना के दूसरे पहलुओ ं की तुलना में भक्ति की सुं दरता अलग
समर्पित हुए वास्तव में कुछ महत्वपूर्ण किया है? केवल वही जो अपने है। भावना के दूसरे पहलू अनुमान और कुछ वास्तविकताओ ं पर
काम के लिए पूरी तरह समर्पित हुए, अपने काम में असाधारण स्तर आधारित होते हैं। ‘मैं तुमसे प्यार करता हूँ , तुम मुझसे प्यार करते हो’
तक पहुँचे हैं। तो भक्ति किसी भगवान के बारे में नहीं है, भक्ति इस यह भावना तब तक मधुर है, जब तक सब कुछ आपके मुताबिक हो
बारे में है कि आप कैसे हैं, कैसे आपसे जुड़ी हर चीज़ एक ख ़ ास दिशा रहा है। यदि वे कुछ ऐसा करते हैं, जो आपकी उम्मीद से उल्टा हो,
में जा रही है। यदि आप ध्यान से अपने भीतर दे खेंगे तो पाएँ गे कि तो यह सब खत्म। भक्ति ऐसी नहीं है, यह हमेशा है। एक मूर्ख जो इसे
आपकी भावना में आपके विचार से बहुत अधिक शक्ति है। यदि आप तोड़ -मरोड़ कर दे खता है, सोचता है कि यह मूर्खतापूर्ण है लेकिन वह
इसे पूरी तरह से सकारात्मक बनाते हैं और एक निश्चित सं भावना की यह नहीं समझता कि मेरे होने का तरीका किसी दूसरे से पूरी तरह
ओर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो यह भक्ति है। आपकी बुद्धि सभी जगह स्वतं त्र है। वे कैसे हैं और क्या कर रहे हैं – यह मेरे होने के तरीके
घूमती रहती है, लेकिन एक बार जब आपकी भावना किसी चीज के को निर्धारित नहीं करेगा। मैं भक्ति की अवस्था में हूँ , इसका मतलब
साथ जुड़ जाती है, तो वह बस हमेशा ऑन रहती है। आपको इस पर है कि भगवान या जिसके प्रति भी मैं समर्पित हूँ वे जो भी कर रहे हैं
ध्यान दे ने की ज़रूरत भी नहीं है, यह ‘ऑटो-कंट्रोल्ड’ है। बुद्धि कभी उससे मेरा कोई लेना-दे ना नहीं है। क्योंकि मैं भक्ति की अवस्था में
भी ‘ऑटो-कंट्रोल्ड’ नहीं होती - हर समय, आपको इसके साथ काम हूँ । अब मेरे होने का तरीका किसी और की बकवास से सौ प्रतिशत
करना होता है, फिर भी यह सभी जगह घूमती रहती है। भावना ऐसी मुक्त है। यही मेरा तरीका है। यदि आप मुक्ति की ओर बढ़ ना चाहते
नहीं है। यदि आप अपनी भावना को किसी चीज़ से जोड़ ते हैं, तो यह हैं, तो भक्ति सबसे तेज तरीका है।
केवल उसी के साथ है। आराम से, बिना किसी कोशिश के।
यदि आप वास्तव में जीवन को जानना चाहते हैं, अनुभव करना
चूँ कि लोगों में भयानक भावनाएँ हैं, इसलिए उन्हें लगता है कि चाहते हैं - तो आपको भक्ति की ज़रूरत है। भक्ति एक ऐसी अवस्था
भावना एक बुरी चीज है लेकिन भावनाएं अद्भुत भी होती हैं। आपके है जहाँ आप खुद से ख ़ ाली होते हैं। जब आप खुद से ख ़ ाली होते हैं,
जीवन में सबसे बेहतरीन चीज तब होती है जब आपकी भावनाएं तो आप भक्ति में हैं। यदि आप खुद से ख ़ ाली हैं, तो कुछ आपसे बहुत
मधुर होती हैं। तो भक्ति का अर्थ है कि आपकी भावनाएं सबसे मधुर ़
बड़ ा, आपके जरिए काम करता है।
सं भावना तक पहुँच गई हैं और बिल्कु ल समा जाने की स्थिति में है।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 21


ईशामृतम

आं तरिक ज्यामिती से कैसे जुड़ा है अध्यात्म?


अगर आप अपनी भीतरी ज्यामिति को ठीक से व्यवस्थित कर लेते हैं , तो आप लम्बा
रास्ता तय करने वाली मशीन बन जाते हैं । हम अपने अन्दर कितनी दूर जाएँ गे, ये बस
ज्यामिति को व्यवस्थित करने, और समझने की बात है ।

ह म जिसे विश्व या ब्रह्मां ड कहते हैं, वह असल में


कई रूपों का एक जटिल मिश्रण है। ये सभी
आपको इस बारे में कई भ्रम हो सकते हैं कि आप
कौन हैं, लेकिन असल में आप भी एक रूप हैं।
रूप, ग्रह, तारे, आदि, ये सभी अलग-अलग रूप क्योंकि आपने यह रूप लिया है, इसलिए आपको
ही हैं। वे ज्यामिति की ऐसी पूर्णता तक आ गए हैं मनुष्य का लेबल दिया गया है। यदि आपके पास
शरीर की ज्यामिति को फिर कि लगता है वे हमेशा से हैं। ऐसा कुछ नहीं है जो कोई दूसरा रूप होता, तो आपको कुछ और लेबल
से व्यवस्थित करना, एक अचानक हुआ हो, इनमें से हरेक रूप समय के साथ किया जाता। तो मानव रूप इसलिए बेहतर माना
विकसित हुआ है। यदि कोई ऐसा रूप विकसित जाता है, दुर्भाग्य से, कि एक केंचुआ या एक टिड्डा
साधारण मां स और हड्डियों
होता है जो वह काम करने में सक्षम है जिसे करने में या एक चींटी या जो भी हो, उससे हममें ऊँ चे स्तर
के सिस्टम को एक ईश्वरीय इं सान सक्षम नहीं हैं, तो हम उन्हें ईश्वर कह दे ते हैं की क्षमता है। इसी तरह जब हम ऐसे रूपों की
स्वरुप में बदल दे ना है । क्योंकि जो कुछ भी हमारी क ़ ाबिलियत और क्षमता पहचान करते हैं या उनका निर्माण करते हैं जो
क्या मां स और हड्डियों में से ऊपर है वह हमारे अनुभव में दिव्य बन जाता है। मानव रूप से कहीं अधिक सक्षम हैं, तो हम उन
रूपों को ईश्वरीय रूपों की तरह पहचानते हैं क्योंकि
कुछ गलत है ? गलत कुछ
एकेश्वरवादी (एक ईश्वर को मानने वाले) धर्मों में यह उनकी क्षमता का स्तर हमसे बहुत ऊपर है।
भी नहीं है , अगर आप मुक्त गलतफहमी है कि जिनके पास कई रूप हैं वे अपना
होने को बेहतर नहीं मानते, रास्ता खो चुके हैं। उन्हें लगता है कि वे नहीं जानते इस पर ध्यान देने के कई जटिल तरीके हैं। इस ग्रह
तो मजबूरियों में घिरकर कि दिव्यता क्या है, इसलिए उन्होंने बहुत सारी पर प्राकृतिक रूप हैं जो मानव रूप से ज्यादा तीव्रता
छवियां बना ली हैं। इन रूपों को बनाया नहीं गया है, से कार्य कर सकते हैं। हम रूपों को मिला सकते हैं
जीने में कुछ भी गलत
वे ब्रह्मां ड की प्रकृति पर ध्यान देने से पैदा हुए हैं। ये या हम रूपों को बना सकते हैं, रूपों का एक ऐसा
नहीं है । ऐसे रूप हैं जिनका इस्तेमाल करना हमें सीखना है, मेल जो अभी हम जिस तरह से हैं उससे बेहतर
कि हम इन रूपों तक कैसे पहुं चें, जो हमसे अधिक तरीके से कार्य करेगा।
सक्षम हैं।

22 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


वास्तव में योग की पूरी प्रणाली सिर्फ अपने रूप को व्यवस्थित या फिर
से व्यवस्थित करने के बारे में है। ये एक सौ चौदह चक्र, जो ख़ द
ु एक
तरह से ऊर्जा के रूप हैं, अगर हम उन्हें एक निश्चित तरीके से व्यवस्थित की तीव्रता को दे खकर मुझे लग रहा है कि ये शायद एक महान सं त
करते हैं, तो यही इं सान जिसके पास सिर्फ मां स और रक्त है, अचानक बनेंगे।’ उनकी भविष्यवाणी गलत नहीं थी।
एक ऊँ ची सं भावना में बदल सकता है। जिन्होंने खुद को या अपने
अस्तित्व की ज्यामिति को एक ऊँ चे स्तर में रूपां तरित कर लिया है, या तो शरीर की ज्यामिति को फिर से व्यवस्थित करना, एक साधारण मां स
तो अहसास से, या समझ से, या फिर ऊर्जा या भावना की तीव्रता से, और हड्डियों के सिस्टम को एक ईश्वरीय स्वरुप में बदल देना है। क्या
उनकी उपस्थिति ही ऊर्जा के एक बिलकुल अलग आयाम का अनुभव मां स और हड्डियों में कुछ गलत है? कुछ भी गलत नहीं है, पर इसकी
कराती है। उन रूपों के चारों ओर एक पूरी तरह से अलग सं भावना अपनी सीमाएं हैं, ये मजबूरियों से भरा रूप है। गलत कुछ भी नहीं है,
मौजूद होती है, फिर हम उन रूपों को दिव्य रूप कहते हैं। अगर आप मुक्त होने को बेहतर नहीं मानते, तो मजबूरियों में घिरकर
जीने में कुछ भी गलत नहीं है। बात बस ये है कि अगर आप कुछ
मानव शरीर की प्रकृति एक निश्चित तरीके से व्यवस्थित है। शायद ज़्यादा बनने की सं भावना की खोज किए बिना मर जाते हैं, तो मानव
आपमें से कई लोगों ने सुना होगा कि कैसे एक व्यक्ति ने गौतम बुद्ध जीवन तृप्त नहीं होता।
के बारे में भविष्यवाणी की थी। उन्होंने कहा था – ‘या तो ये एक बहुत
बड़ े सम्राट बनेंगे या फिर एक महान सं त।’ ज्यामिति की तीव्रता को अगर आप अपनी भीतरी ज्यामिति को ठीक से व्यवस्थित कर लेते हैं,
दे खते हुए उन्होंने कहा कि या तो ये भौतिक जगत में महान चीज़ें तो आप लम्बा रास्ता तय करने वाली मशीन बन जाते हैं। आप दुनिया
हासिल करेंगे। क्योंकि गौतम, एक राजा के बेटे थे, तो वो बोले शायद में कितनी दूर जाएं गे, ये समय, समाज, सामाजिक ढां चों और कई सारी
ये सम्राट बनेंगे। या फिर अगर एक बच्चे में इतनी तीव्रता है, तो वो चीज़ों पर निर्भर करता है। हम अपने अन्दर कितनी दूर जाएँ गे, ये बस
अपना समय लोगों पर शासन करके क्यों गँ वाएगा, बल्कि वो उन्हें ज्यामिति को व्यवस्थित करने, और समझने की बात है, आपमें इसे
गले लगाएगा और रूपां तरित करेगा जो कि एक ज़्यादा समझदारी भरा व्यवस्थित करने की काबिलियत होनी चाहिए। पूरी यौगिक प्रणाली
काम है। - आसनों के भौतिक चरण से लेकर हर चीज़ का सार यही है। अपनी
ज्यामिति को इस तरह फिर से व्यवस्थित करना कि ये ऐसे तरीकों से
तो उन्होंने कहा – ‘ये तीव्रता तो सम्राट होने से भी परे की है। ये राजा काम करने लगे, जिनके सं भव होने की आपने अब तक कल्पना न
के बेटे हैं इसलिए शायद सम्राट बन जाएं , लेकिन इनकी ज्यामिति की हो।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 23


संवाद

मेरे से कम स्मार्ट पर अधिक सफल, ऐसा कैसे ?


लोगों को हमेशा लगता है कि अरे वह शख्स मेरे जितना स्मार्ट नहीं है , फिर वह मुझ से
ज्यादा कामयाब कैसे हो गया? बहुत सारे लोगों के दिमाग में यह बात चलती रहती है ।
़ ाबिलियत काम नहीं कर रही है ।
जाहिर है आपकी क

डॉक्टर राजशेखरन: मान लीजिए एक व्यक्ति बस योगी हैं, तो लोग उनका आशीर्वाद लेने लगते हैं।
में जा रहा है और आगे से पां चवीं सीट पर बैठा है। उन्हें लगता है कि उनके जीवन में अगर चिकनाहट
बस का एक्सिडेंट हो जाता है। आगे की चार सीटों यानी लुब्रीकेशन नहीं होगी, तो टू ट-फूट ज़्यादा
पर बैठे लोगों को कुछ नहीं होता और पीछे की होगी। आपको पता ही है जोड़ ों के बारे में। अगर
सीटों पर बैठे लोग भी बच जाते हैं, लेकिन पां चवीं कोई चिकनाहट नहीं होगी तो कोई भी मशीन जल्द
सीट पर बैठा यह व्यक्ति बुरी तरह घायल हो जाता ही बेकार हो जाएगी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
है। इसी तरह कई बार अस्पताल में कुछ लोगों को कि मशीन कितनी अच्छी है, इसका भी कोई महत्व
इलाज के दौरान कई तरह की जटिलताओ ं का नहीं कि मशीन को कितनी अच्छी तरह से डिजाइन
सामना करना पड़ता है, जबकि किसी बड़ ी दुर्घटना किया गया है, अगर चिकनाहट नहीं है तो वह बेकार
इससे कोई फर्क नहीं पड़ ता का शिकार हुए लोगों की बीमारी जल्दी ठीक हो हो जाएगी। सं स्कृत में इसके लिए कई शब्द हैं
कि मशीन कितनी अच्छी जाती है। सद् ‌गुरु, एक डॉक्टर के रूप में मैं इस लेकिन अं ग्रेजी में इसे ‘ग्रेस’ यानी ‘कृपा’ कहा जाता
रहस्य को समझ नहीं पाता। आप इसकी व्याख्या है। अगर आपने कृपा हासिल कर ली है, अगर आप
है , इसका भी कोई महत्व
कैसे करेंगे? कृपा के प्रति ग्रहणशील हैं तो इसका मतलब है
नहीं कि मशीन को कितनी कि चिकनाहट मौजूद है और जहां चिकनाहट है,
अच्छी तरह से डिजाइन सद् ‌गुरु: जिसे आप जीवन का शारीरिक पहलू कहते वहां कोई रगड़ नहीं होगी। ऐसे में टक्कर भी ऐसे
किया गया है , अगर हैं, वह एक मेकैनिकल प्रक्रिया है। दुर्घटना का व्यक्ति को ज्यादा नुकसान नहीं पहुं चाएगी। लेकिन
मतलब है कुछ ऐसा होना जिसकी उम्मीद न थी। हमें इन बातों को हर चीज से जोड़ कर नहीं दे खना
चिकनाहट नहीं है तो वह
जब दो मेकैनिकल चीजें आपस में टकराती हैं, तो चाहिए, क्योंकि मेकैनिकल प्रक्रिया कई तरीकों से
बेकार हो जाएगी। सं स्कृत हमें पता नहीं होता कि क्या-क्या टू टे गा। भौतिक हो सकती है। उसे हमेशा आध्यात्मिकता से जोड़ कर
में इसके लिए कई शब्द हैं अस्तित्व की प्रकृति यही है। ऐसे में एक सामान्य नहीं दे खना चाहिए। जिन लोगों के पास कृपा है,
लेकिन अंग्रेजी में इसे ‘ग्रेस’ सी मेकैनिकल घटना में हमें कोई रहस्य ढूं ढने की हो सकता है वे उस बस में ही नहीं चढ़ ें। इसका
कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह इस बात का एक मतलब यह नहीं है कि अगर आपके पास कृपा है तो
यानी ‘कृपा’ कहा जाता है ।
पहलू है। लेकिन चूं कि गुरुत्वबल काम कर रहा आपको कभी कोई चोट ही नहीं लगेगी, या आपकी
है, चूं कि कमजोर और ताकतवर नाभिकीय बल मौत ही नहीं होगी। हो सकता है कि किसी व्यक्ति
मौजूद हैं, चूं कि ऐसी बहुत सारी भौतिक ताकतें हैं, के लिए आज मर जाना ही अच्छी बात हो। माफ
जो जीवन के मेकैनिकल पहलुओ ं को चलाती हैं कीजिए, मैं ऐसी बात कह रहा हूं । लोग तार्किक
इसलिए दूसरे पहलुओ ं को भी दे खना होगा। रूप से जिन बातों को गलत समझते हैं, अगर वे उसे
अपने जीवन में सही तरीके से परखें, तो हो सकता
हमारे यहां परंपरा है कि जब भी लोग किसी से है कि लगे कि वो तो उनके जीवन में एक बहुत बड़ े
मिलते हैं और कोई कहता है कि वह सं त हैं या आशीर्वाद की तरह हैं।

24 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


तो क्या यह माना जाए कि कृपा कुछ ही लोगों के मन है। ये दोनों भी कभी एक नहीं होंगे। कुछ
लिए उपलब्ध है? नहीं, कृपा सभी के लिए उपलब्ध मसलों पर वे एक-दूसरे के साथ हो सकते हैं और
है। यह सूर्य की रोशनी की तरह है। सूर्य की रोशनी हमें ऐसा महसूस होगा कि हम एक-दूसरे के साथ
सभी के लिए है, लेकिन उसे वे ही लोग दे ख पाएं गे मिलकर एक हो गए हैं, लेकिन मेरा मन, मेरा मन है
जो अपनी आं खें खोलेंगे। और आपका मन, आपका। लेकिन मेरा जीवन और
आपका जीवन जैसी कोई चीज नहीं है। योग में एक
योग की पूरी प्रक्रिया को दे ख।ें योग का मतलब है सुनियोजित प्रक्रिया है, जो बताती है कि जीवन के
मिलन। मिलन का क्या मतलब है? अभी ज्यादातर उस स्तर पर कैसे पहुँचा जाए।
लोगों के अनुभव में यहां ‘मैं’ बनाम ‘सृष्टि’ चल रहा
है। अगर ऐसा न होता तो भला लगातार इतनी लोगों को हमेशा लगता है कि अरे वह शख्स मेरे
बेचन ै ी, इतना डर क्यों होता? उन्हें लगता है कि वे जितना स्मार्ट नहीं है, फिर वह मुझ से ज्यादा
हमेशा अपने जीवन के लिए ही सं घर्ष करते रहते कामयाब कैसे हो गया? बहुत सारे लोगों के दिमाग
हैं। आख़ि र क्यों वे पूरी सृष्टि के साथ सं घर्ष कर रहे में यह बात चलती रहती है। जाहिर है आपकी
हैं? इस जगत के साथ कॉम्पीटिशन करना तो बेहद क़ ाबिलियत काम नहीं कर रही है इसलिए दूसरा
बेवकूफी भरी बात है। शख्स आपसे ज्यादा सफल है। सिर्फ एक पहलू से
जीवन काम नहीं करता। सबसे अहम बात यह है
योग का मतलब है पूरी जागरूकता के साथ अपने कि आपके जीवन की प्रकृति कितनी उत्साहपूर्ण
अस्तित्व की सीमाओ ं को नष्ट कर देना। यानी अगर और शानदार है। आपको बता दें कि इस चीज के
आप यहां बैठें तो आपके और इस सृष्टि के बीच प्रति हम सभी की पहुं च असीमित है। हम इसमें से
कोई फर्क न रह जाए। एक और स्तर पर जाकर कितना लेंगे, यह इस पर निर्भर करता है कि हम
दे खते हैं। हम यहां बैठे हैं, तो यह मेरा शरीर है, अपना जीवन कितनी जागरूकता के साथ जी
यह आपका शरीर है। आप चाहे जो कर लीजिए, ये रहे हैं।
दोनों एक नहीं होंगे। यह मेरा मन है, यह आपका

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 25


26 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com
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द्रोण के दिल में क्यों भड़की प्रतिशोध की आग?


़ रीबी मित्र
द्रुपद और द्रोण दोनों ने साथ-साथ अध्ययन किया था। तभी द्रुपद और द्रोण क
बन गए थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि द्रुपद के दरबार से द्रोण गुस्से से उबलते हुए चले गए
और बदला लेने का प्रण किया?

आपने पढ़ ा: पां डव लाक्षागृह से बच निकले और आसानी से उन्हें मार सकता था और किसी को शक
एक जं गल में पहुं चे। वहां एक आदमखोर राक्षस भी नहीं होता, इसलिए उन्हें बहुत सावधानी से वापसी
और भीम के बीच एक भयं कर लड़ ाई हुई और भीम की योजना बनानी थी।
ने उसे मार गिराया। उस राक्षस की बहन हिडिम्बा
भीम के प्रेम में पड़ गयी और उनके पुत्र घटोत्कच एक बार जब वे जं गल में थे, तो वे एक झील के
का आगमन हुआ। इसके बाद वे एकचक्र नाम के निकट गए। वे झील से पानी पीना चाहते थे मगर उस
नगर में रहने चले गए। अब आगे: झील पर अं कारपर्ण नामक एक गं धर्व का अधिकार
था । यह जानकर कि अर्जुन एक महान तीरंदाज है,
पां डवों को यह कहानी सुनाने जब पां डव और कंु ती एकचक्र नगर में रह रहे थे, उन्हीं उसने अर्जुन को चुनौती दे ते हुए कहा, ‘मेरी झील
दिनों बकासुर नाम का एक नरभक्षी राक्षस भी उस से पानी पीने से पहले तुम्हें मेरे साथ मल्लयुद्ध करना
के बाद अंकारपर्ण ने उन्हें
नगर के पास आकर रह रहा था। उसने इस नगर का होगा।’ एक भयं कर मल्ल्युद्ध के बाद गं धर्व हारकर
सलाह दी, ‘प्रतिशोध पर अपना विनाश करना शुरू कर दिया था। अचेत हो गया। एक योद्धा के धर्म का पालन करते
समय और ऊर्जा नष्ट मत हुए अर्जुन को उसे मारना था क्योंकि किसी को
कीजिए। आप राजा बन सकते वह लोगों, पशुओ ं और अपने रास्ते में आने वाली हराकर छोड़ देना उसे शर्मिंदा करना माना जाता था।
हर चीज को उठा लेता और खा जाता। फिर नगर
हैं । इसलिए पहले एक पुरोहित
परिषद ने उससे एक समझौता किया, कि वे सप्ताह एक क्षत्रिय आम तौर पर हार जाने के बाद जीवित
खोजिए, फिर शादी कीजिए, में एक बार उसे गाड़ ी भरकर भोजन, दो बैल और नहीं रहना चाहता था, वह मरना पसं द करता था।
जमीन हासिल कीजिए, खुद एक आदमी भेजग ें े। बदले में वह नरभक्षी नगर पर अर्जुन उसका सिर काटने ही वाला था कि तभी
अपना राज्य बनाइए और राजा आक्रमण नहीं करेगा और बाकी लोगों को छोड़ दे गा। अं कारपर्ण की पत्नी कंु भनाशी आकर उसके आगे
शहर के अं दर उन्होंने यह व्यवस्था की, कि हर सप्ताह गिड़ गिड़ ाने लगी, ‘वह क्षत्रिय नहीं हैं। उन्हें हारने
बन जाइए। बदला लेने की
कोई एक परिवार गाड़ ी भरकर भोजन पकाएगा के बाद जीवित रहने में कोई आपत्ति नहीं होगी।
कोशिश मत कीजिए।’ और उसे दो बैल तथा अपने परिवार का एक सदस्य उनकी पत्नी के रूप में मैं आपसे उनके प्राणों की
भेजना होगा। भीम ने खुद वहां जाने की इच्छा प्रकट भीख मां गती हूं। आप दोनों के धर्म अलग-अलग
की। एक भयं कर लड़ ाई में उसने बकासुर को हराकर हैं। इसलिए उन्हें मारने की जरूरत नहीं है।’ अर्जुन
मार डाला। ने उसकी जान बख्श दी। जब गं धर्व होश में आया,
तो उसने कृतज्ञ होकर अर्जुन को बहुत से उपहार
बकासुर के मरने और लाक्षागृह के जल जाने के दिए जिनमें सौ घोड़ े और क्षत्रियों के काम आने वाली
करीब-करीब एक साल बाद पां डवों को लगा कि बाकी चीजें थीं। साथ ही उसने चतुराई और बुद्धिमत्ता
उन्हें अपने अज्ञातवास से बाहर आना चाहिए। चूं कि की एक सौ कहानियां सुनाईं। इनमें से हम एक
उन्हें मरा हुआ मान लिया गया था, इसलिए कोई भी कहानी चुनग ें े जो खास तौर पर पां डवों और उनके

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 27


भविष्य के लिए महत्वपूर्ण थी।अं कारपर्ण ने प्रसिद्ध ऋषि वशिष्ठ के पुत्र होते थे। उन्हें धौम्य के रूप में एक काबिल पुरोहित मिल गया जो हमेशा
‘शक्ति’ की कथा सुनाई। ऋषि वशिष्ठ की रामायण में महत्वपूर्ण भूमिका उनके पक्ष में खड़ ा रहता था। फिर पां डवों ने सुना कि पां चाल दे श के
थी। एक बार शक्ति वन से गुजर रहे थे और वे एक झरने के पास पहुंचे, राजा द्रुपद ने अपनी पुत्री के लिए स्वयं वर आयोजित किया है, जिसका
जिस पर एक पतला सा पुल था। वे पुल पर चढ़ ने ही वाले थे कि उन्होंने मतलब था कि राजकुमारी अपना होने वाला पति चुनने वाली थी। द्रोण
राजा कल्माषपाद को पुल की दूसरी ओर से उस पर चढ़ ते दे खा। उनमें के पिता भारद्वाज ऋषि के पास द्रुपद और द्रोण दोनों ने साथ-साथ
से एक को पीछे हटना पड़ ता। राजा ने शक्ति से कहा, ‘मैं यहां पहले अध्ययन किया था। तभी द्रुपद और द्रोण क ़ रीबी मित्र बन गए थे। तेरह
आया हूं । मुझे रास्ता दो।’ अपने पिता की प्रतिष्ठा से अहं कार में चूर शक्ति वर्ष की उम्र में द्रुपद और द्रोण ने एक-दूसरे से वादा किया था, ‘चाहे हम
ने कहा, ‘तुम रास्ता दो। मैं ब्राह्मण हूं और तुमसे ऊंचा हूं ।’ और ऐसा कितनी भी सं पत्ति जमा कर लें, अपने जीवन में जो भी उपलब्धि हासिल
कहकर उसने राजा कल्माषपाद को श्राप दिया कि वह राक्षस बन जाए। कर लें, हम उसे एक-दूसरे के साथ बां टें गे।’
राजा नरभक्षी राक्षस बन गया और वहीं पर शक्ति को खा गया।वशिष्ठ
अपने पुत्र को खोकर निराश थे, खास तौर पर इसलिए क्योंकि उन्होंने शिक्षा पूरी होने के बाद द्रुपद पां चाल लौट गए और राजा बन गए। द्रोण
ही उसे वरदान और श्राप देने की शक्ति दी थी। शक्ति ने गलत व्यक्ति अपने अलग जीवन में चले गए और कृपाचार्य की बहन कृपी से विवाह
को गलत श्राप दिया और खुद ही उसके शिकार हो गए। शक्ति का पुत्र कर लिया। उनका अश्वत्थामा नाम का एक पुत्र था। जन्म के समय
पराशर अपने दादा वशिष्ठ के सं रक्षण में बड़ ा होने लगा। जब उसे पता किसी अश्व यानी घोड़ े की तरह हं सने के कारण उसका नाम अश्वत्थामा
चला कि उसके पिता के साथ क्या हुआ था, तो उस युवक ने प्रतिशोध पड़ गया था। उस समय के कृषि-प्रधान समाज में दूध मुख्य भोजन
लेने की ठानी। होता था। मगर अश्वत्थामा का परिवार बहुत गरीब था जिसके पास न तो
जमीन थी, न ही गायें, इसलिए इस बालक ने कभी दूध दे खा ही नहीं
उसने एक यज्ञ करने की योजना बनाई जिसके बाद वहां के सभी था। एक बार शहर जाने पर उसने दूसरे लड़ कों को दूध पीते दे खा और
नरभक्षी आदिवासी नष्ट हो जाते। वशिष्ठ ने उसे ऐसा करने से मना करते उनसे पूछा कि वह क्या है। उन्हें एहसास हुआ कि अश्वत्थामा ने पहले
हुए कहा ‘तुम्हारे पिता ने किसी को श्राप दिया और उस श्राप ने ही कभी दूध नहीं दे खा है। इसलिए उन्होंने थोड़ ा चावल का आटा पानी में
उसको मारा। अगर अब तुम प्रतिशोध लेना चाहते हो, तो यह प्रतिशोध मिलाकर अश्वत्थामा को दे दिया। वह उसे दूध समझकर खुशी-खुशी
का कभी खत्म नहीं होने वाला चक्र बन जाएगा। तुम राक्षस के बारे में पी गया।
नहीं, उनके बारे में सोचो जो तुम्हारे लिए बहुमूल्य हैं।’ पराशर ने उनकी
बात मान ली और आगे चलकर एक महान ऋषि तथा व्यास के पिता दूसरे लड़ के उसका मजाक उड़ ाने लगे क्योंकि वह दूध के बारे में जानता
बने जिन्होंने महाभारत की कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तक नहीं था। जब द्रोण को इस घटना के बारे में पता चला तो वह बहुत
अं कारपर्ण ने पां डवों को यह कथा इसलिए सुनाई क्योंकि उसने उनके क्रोधित और बेचन ै हो गए। फिर उन्हें याद आया कि उनके मित्र द्रुपद ने,
दिलों में गुस्से और नफरत की भावना को दे ख लिया था। जो अब एक बड़ े राजा बन चुके थे, उनसे वादा किया था कि वह अपनी
हर चीज द्रोण के साथ बां टें गे। वह द्रुपद के दरबार में पहुंचे और कहा,
उन्हें कई बार कई अलग-अलग तरीकों से धोखा दिया गया था। इससे ‘तुम्हें वह वादा याद है, जो हमने एक-दूसरे से किया था? तुम्हें अपना
भी बढ़ कर उनके प्राण लेने की कई कोशिशें की गई थीं। इस बार तो आधा राज्य मुझे देना चाहिए।’ उस वादे को कई साल हो चुके थे।
उनकी मां समेत पां चों को खत्म करने की खुल्लम-खुल्ला साजिश की
गई थी। वे बदला लेने के लिए तड़ प रहे थे। उन्हें यह कहानी सुनाने के द्रुपद ने द्रोण को दे खकर कहा, ‘तुम एक गरीब ब्राह्मण हो। तुम इसलिए
बाद अं कारपर्ण ने उन्हें सलाह दी, ‘प्रतिशोध पर अपना समय और ऊर्जा क्रोधित हुए क्योंकि तुम्हारे पुत्र का अपमान किया गया। मैं तुम्हें एक
नष्ट मत कीजिए। आप राजा बन सकते हैं। इसलिए पहले एक पुरोहित गाय दे ता हूं, उसे लेकर चले जाओ। अगर तुम्हें और चाहिए, तो मैं तुम्हें
खोजिए, फिर शादी कीजिए, जमीन हासिल कीजिए, खुद अपना राज्य दो गायें दे ता हूं। मगर एक ब्राह्मण के तौर पर तुम कैसे मेरा आधा राज्य
बनाइए और राजा बन जाइए। बदला लेने की कोशिश मत कीजिए।’ मां ग सकते हो?’ द्रोण ने कहा, ‘मैं तुमसे एक गाय नहीं आधा राज्य
इस कहानी को सुनने के बाद वे प्रतिशोध लेने के बारे में थोड़ ा और मां गने आया हूं। मुझे तुम्हारी खैरात की जरूरत नहीं है। मैं यहां मित्रता
सतर्क हो गए, मगर उनके दिल से वह निकला नहीं था। उन्होंने पहले के नाते आया था।’ फिर द्रुपद ने कहा, ‘मित्रता बराबरी वाले लोगों में
एक पुजारी की तलाश की। वे देवला मुनि के छोटे भाई धौम्य के पास होती है। एक राजा और एक भिखारी मित्र नहीं हो सकते। तुम सिर्फ
गए, जो करीब के एक आश्रम में रहते थे और उनसे अपना पारिवारिक दान ले सकते हो। अगर तुम चाहो तो गाय ले लो, वरना यहां से जाओ।’
पुरोहित बनने का अनुरोध किया।द्वापर युग में एक पारिवारिक पुरोहित गुस्से से उबलते हुए द्रोण वहां से चले गए और इस अपमान का बदला
होना बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि हर अवसर पर शक्तिशाली यज्ञ जरूरी लेने का प्रण किया।

28 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


ज्यामितिय रूप से महतवपूर्ण हैं ये तस्वीरें
़ है । मैं इन तस्वीरों को
मैंने इन तस्वीरों को बार-बार दे खा, जो मेरे स्वभाव के ख़ि लाफ
बार-बार सिर्फ इसलिए दे खता रहा क्यों कि उन्होंने ज्यामिति के कुछ पहलुओ ं को तस्वीरों
़ ै द किया है ।
में क

मैं वाकई नहीं जानता कि लोगों ने मेरी कितनी


तस्वीरें ली हैं। उनकी सं ख्या लाखों में होंगी।
वह है कि पेड़ किस ज्यामितीय रूप में खड़ ा है।
कोई भी आकार मुझे अपनी ज्यामिति की वजह से
ये तस्वीरें इसलिए महत्वपूर्ण नहीं हैं क्योंकि आकर्षित करता है, अपने रं ग और ऊपरी सौंदर्य के
ये आश्रम की या मेरी या आदियोगी की हैं। ये अन्य पहलुओ ं के कारण नहीं। किसी भी भौतिक
तस्वीरें महत्वपूर्ण हैं क्योंकि कुछ तस्वीरों में रघु रूप की असली सुं दरता उसकी ज्यामिति में है।
ने कुछ ऐसा पकड़ ा है, जो पहले कभी किसी जब लोग आपकी या दूसरी चीजों की तस्वीरें लेते
ने नहीं पकड़ ा, ऐसी चीज़ जिसे लेकर मैं हमेशा हैं, तो वे ये दे खते हैं कि वह इं सान या चीज़ दे खने
सजग रहता हूं। इस अर्थ में, योग का पूरा सिस्टम में अच्छी, ठीक-ठाक, मुस्कु राती हुई हो, एक खास
मुख्य रूप से भौतिक आयाम से जुड़ा है। अस्तित्व दिशा में मुँ ह करके खड़ ी हो। लेकिन कुछ दूसरे
ज्यामिति से जुड़ा है। यौगिक प्रक्रिया को इस पहलू भी हैं, जिन्हें जागरूकता के साथ नहीं
रूप में दे खा जाता है कि यह आपकी व्यक्तिगत दे खा जाता।
ज्यामिति को ब्रह्मां डीय ज्यामिति के तालमेल में
कर दे ती है। अगर दो चीजें ज्यामितीय दृष्टि से एक एक योगी की प्रकृति यह है कि वह ज्यामितीय रूप
जैसी हो जाएं , तो कई दूसरे स्तरों पर भी एक हो से सचेतन हो जाता है। सचेतन से मेरा अर्थ इस बारे
जाती हैं। पूरी योग प्रणाली इसी के बारे में है। में सेल्फ-कॉन्शियस होना नहीं है कि मैं कैसे खड़ ा
होता और बैठता हूं । यह इस बारे में नहीं है। बस
बचपन से ही मेरी आदत रही है कि अगर मैं किसी इस चीज़ को आप अपने सिस्‍टम में गहराई से बैठा
पेड़ को सिर्फ दे खूं, तो मेरे लिए पहली चीज़ पेड़ की लेते हैं, जिससे आपका शरीर सहज रूप से एक
पूरी ज्यामिति होती है। मुझे रं ग नहीं दिखते, शेड्स ़ ास तरीक
ख ़ े से व्यवस्थित हो जाता है। अगर आप
नहीं दिखते – पहली चीज़ जो मुझे नज़र आती है इसे समझना चाहते हैं तो आपको दे खना चाहिए

29 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


कि जं गली जानवर कैसे बैठते हैं, जैसे एक सां प तक उन्हें दे खें, तो वे चलती हुई लगती हैं। क्योंकि
अलग-अलग मकसद से कैसे व्यवस्थित होता है। ज्यामितीय रूप से आपने ऐसे समय पर मेरी तस्वीर
ज्यामितीय रूप से वह इस तरह से बैठता है जिससे खींची, जब मैं एक निश्चित अवस्था में था। मैं हमेशा
कम से कम हरकत से अधिक से अधिक लाभ हो अपने भीतर इसे लेकर सचेत रहता हूं । इसे अपने
सके। वे हमेशा खुद को व्यवस्थित करना जानते हैं। सिस्टम में स्थापित करने में कई जीवनकाल की
सिर्फ इं सानों में कई तरह के ज्यामितीय विकार होते मेहनत लगती है ताकि आप हमेशा अपने आस-पास
हैं। अधिकां श जानवरों, खासकर मां साहारी जानवरों की हर चीज़ के साथ तालमेल में हों।
में ज्यामितीय की ज़बरदस्त समझ होती है – वे
कैसे खड़ े होते हैं, कैसे दुबकते हैं, और बाकी भौतिक अस्तित्व की प्रकृति की जड़ ें उसकी
चीज़ें करते हैं। ज्यामिति में समाई हुई है। यहाँ ज्यामिति से मतलब
एक विषय नहीं, बल्कि भौतिक रूपों की एक ख ़ ास
योगी ऐसा ही होता है - वह एक खास तरह से व्यवस्था है। कुछ तस्वीरों में एक ज्यामितीय सुं दरता
बैठता, खड़ ा होता और सां स लेता है, क्योंकि थोड़ ा है। कम से कम पं द्रह प्रतिशत तस्वीरों में चीज़ों की
भी इधर-उधर होने का मतलब है कि आप कोई गति को क ़ ै द किया गया है। जब मैंने पहली बार
चीज़ खो रहे हैं। अगर आप ज्यामितीय रूप से काफी उनकी तस्वीरों दे खीं तो इसी बात ने मुझे रोमां चित
सटीक या लगभग परफेक्ट हैं, तो आप बहुत कम किया। रघु हमेशा कहते थे, ‘सद् ‌गुरु, आप मुझसे
रगड़ के साथ काम करेंगे। ऐसा हर मशीन के साथ एक फोटोग्राफर की तरह बर्ताव मत कीजिए – मैं
ये वैसे तो तस्वीरें हैं , लेकिन
है। मशीन कुशलता से तब काम करती है जब वह एक फोटोग्राफर नहीं हूं ।’ जब मैंने उनकी कुछ
कुछ तस्‍वीरों में कहीं न कहीं
ज्यामितीय तौर पर सही हो। अगर उसकी ज्यामिति तस्वीरों दे खीं, तो मैं उनकी बात समझ गया।
एक वीडियो का इफेक्‍ट ठीक न हो, तो रगड़ होगी। यही एक इं सान के
है । अगर आप दे र तक साथ भी है, आप कैसे बैठते, खड़ े होते, सां स लेते फिर जो काम मैंने अब तक कभी नहीं किया था,
और चलते हैं, इससे तय होता है कि आप जीवन मैंने किसी फोटोग्राफर को अपने घर के अं दर आकर
उन्‍हें दे खें, तो वे चलती
के साधारण कार्यकलापों में कितनी उर्जा खर्च करते तस्वीरों खींचने की इज़ाजत कभी नहीं दी थी, वह
हुई लगती हैं । क्‍योंकि
हैं। ज्यामितीय रूप से बेमल
े लोगों में बहुत जल्दी काम मैंने अब कर दिया। रघु मेरे घर आकर तस्वीरें
ज्यामितीय रूप से आपने ऊर्जा की कमी हो जाएगी। ज्यामितीय तालमेल वाले खींचने वाले पहले फोटोग्राफर थे। मैं चाहता हूं
ऐसे समय पर मेरी तस्‍वीर लोगों की ऊर्जा लं बे समय तक चलती है। कि आप तस्वीरों में सिर्फ सद् ‌गुरु को न दे खें, पीछे
़ ास की कला का आनं द लें। मैं चाहता हूं कि आप इसे
खींची, जब मैं एक ख
शुरू में मैंने सोचा कि खुद की तस्वीरों की किताब समझें, क्योंकि आपको अपने जीवन में इस चीज़ को
अवस्था में था।
बनवाना बहुत सं कोच की बात है। मगर फिर मैंने लाना होगा कि आपके जीवन को, किसी न किसी
इन तस्वीरों को बार-बार दे खा, जो मेरे स्वभाव के रूप में ज्यामितीय दृष्टि से तालमेल में होना चाहिए,
ख़ि लाफ ़ है। मैं अपनी तस्वीरें नहीं दे खता, न ही तभी आपका जीवन सहज हो पाएगा। वरना कहीं न
अपनी वार्ताएँ सुनता हूं। मैं इन तस्वीरों को बार-बार कहीं रगड़ होती रहेगी।
सिर्फ इसलिए दे खता रहा क्योंकि उन्होंने ज्‍यामिति
के कुछ पहलुओ ं को तस्वीरों में क ़ ै द किया है, जिन्हें संपादक की टिपण्णी: आप रघु राय की ‘सद् ‌गुरु’
अगर आप ग़ौर से दे खें तो चलते हुए से लगते हैं। नामक पुस्तक खरीद सकते हैं। इस लेख का मूल
ये वैसे तो तस्वीरें हैं, लेकिन कुछ तस्वीरों में कहीं सं स्करण ईशा की अं ग्रेज़ी पत्रिका ‘फारेस्ट फ्लावर’
न कहीं एक वीडियो का इफ ़ े क्ट है। अगर आप दे र के जुलाई 2019 अं क में प्रकाशित हुआ था।

30 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


जिज्ञासु का असमं जस

चक्रों का अं तराल बढ़ ाइए,


कष्टों को घटाइए
इं सान के शरीर के भीतर सबसे लं बा चक्र सवा बारह साल का हो सकता है । अगर आप
अपने चक्र को इस स्तर पर ला सकते हैं तो आप खुद को बेहद सं तुलित पाएं गे।

अगम: सद् ‌गुरु, हम सभी के जीवन में एक खास कहने का अर्थ यह है कि हमारा भौतिक अस्तित्व
तरह की स्थितियां बार-बार आती रहती हैं। स्थितियों यहां सिर्फ चक्रों की वजह से ही है। हमारे भीतर
का यह दोहराव अच्छा भी हो सकता है और बुरा बहुत सारे चक्र काम कर रहे हैं। अगर आप अपनी
भी। इसमें खराब रिश्ते हो सकते हैं, सफलताएं हो मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओ ं को अपनी भौतिकता से
सकती हैं, असफलताएं हो सकती हैं। मेरा सवाल बहुत ज्यादा जोड़ दे ते हैं तो आपकी मनोवैज्ञानिक
यह है कि नकारात्मक परिस्थितियों का दोहराव प्रकियाएं भी चक्रीय हो जाती हैं और इस तरह से
तोड़ कर सकारात्मक दोहराव को अपने जीवन में आपकी कार्मिक प्रक्रियाएं भी चक्रीय हो जाती हैं।
किस तरह आकर्षित किया जाए? आपका जीवन चक्रों में घूमना शुरू कर दे ता है।
चक्रीयता से आप पूरी तरह से छु टकारा नहीं पा
सद् ‌गुरु: हर चीज में एक चक्रीय गति होती है। सकते। जीवन में सबसे लं बा चक्र सवा बारह साल
करीब 3200 साल पहले हमारी मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक गतिविधि का होता है, क्योंकि यह सूर्य का चक्र होता है। सूर्य
की गई एक गणना के भी चक्रीय है। इसकी सबसे बड़ ी वजह भौतिक का चक्र सवा बारह साल का होता है। चं द्रमा का
प्रक्रियाओ ं से हमारा लगाव और जुड़ाव है। भौतिक चक्र 28 दिनों का होता है। हमारा भौतिक अस्तित्व
मुताबिक हर साल चं द्रमा
प्रक्रियाएं तो चक्रीय होती ही हैं। इनके चक्रीय होने चं द्रमा के चक्र पर आधारित होता है, क्योंकि अगर
धरती से करीब 32
की वजह से ही हमारा अस्तित्व है। चक्रीय गति न हमारी मां का शरीर चं द्रमा के चक्र के साथ ताल-
मिलीमीटर दूर हो जाता है । हो तो कोई भौतिक अस्तित्व ही नहीं होगा। मेल में न होता तो हम पैदा ही नहीं होते। इस तरह
28000 सालों में चं द्रमा हमारा भौतिक अस्तित्व एक छोटा चक्र है, लेकिन
योग में करीब 3200 साल पहले एक गणना की हमारे अस्तित्व के दूसरे पहलुओ ं के लं बे चक्र होते
धरती से इतनी दूर चला
गई, जिसके मुताबिक हर साल चं द्रमा धरती से हैं। मान लेते हैं आपके जीवन की चक्रीय गति छह
जाएगा कि यहां उसका ़ रीब करीब डेढ़ इं च
करीब 32 मिलीमीटर यानी क साल की हो गई तो भी आप ठीक-ठाक रहेंगे,
प्रभाव बेहद कम हो दूर हो जाता है। चं द्रमा की कक्षा धरती से दूर होती लेकिन कभी कभार आप दूसरों के प्रति सनक दिखा
जाएगा । तब औरतों के जा रही है। इसी गणना के आधार पर कहा गया कि सकते हैं।
कुछ हजार सालों में चं द्रमा धरती से दूर चला जाएगा
मासिक चक्र खत्म हो
और उसका प्रभाव बेहद कम हो जाएगा, और जब अब मान लीजिए आपके लिए यह चक्र तीन साल
जाएं गे। इसका नतीजा यह
ऐसा होगा तो औरतों के मासिक चक्र खत्म हो का हो गया। आप पाएं गे कि आप काम तो ठीक-
होगा कि मानव प्रजाति जाएं गे। इसका नतीजा यह होगा कि मानव प्रजाति ठाक तरीके से ही कर रहे हैं, लेकिन आप जरा
खत्म होने लगेगी। खत्म होने लगेगी। मानवता के नष्ट होने के लिए चं चल हो गए हैं। आप जिस काम में अच्छे हैं, उस
किसी बम, बाढ़ या आपदा की जरूरत नहीं होगी। दिशा में तो आप ठीक रहेंगे, लेकिन बाकी जीवन
हमारी प्रजनन की क्षमता अपने आप खत्म होती उलझकर रह जाएगा। अब अगर चक्र 18 महीने का
जाएगी और धीरे-धीरे हम खत्म हो जाएं गे। हो जाए तो आप पाएं गे कि हर दिन सुबह उठना

32 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


तक आपके लिए मुश्किल काम हो गया है। दूसरे आपसे कुछ नहीं
कहेंगे, आपको अकेला छोड़ दें गे, लेकिन आप खुद ही अपने आपको आपको यह समझना होगा कि आपका अस्तित्व उस सृष्टिकर्ता से
कई तरीकों से परेशान करने लगेंगे। अगर आपका चक्र नौ महीने का अलग नहीं है, जिसने आपको बनाया है। यहां आपके जीवन का हर
हो गया - एक बार अगर आप नौ महीने से नीचे के चक्र पर आ गए तो पल, आप जो भी करते हैं, पौधों का जीवन, जानवरों का जीवन सब
समझ लें आप गं भीर सं कट में फंस गए हैं। अगर यही चक्र तीन महीने कुछ सूर्य की शक्ति से चल रहा है। अगर आप उस मूल शक्ति के साथ
का हो जाए तो आपको पागलखाने ले जाने की नौबत आ सकती है। ताल-मेल में हैं तो आपका जीवन बेहद सहज तरीके से चलता रहेगा।
तीन महीने से कम के चक्र में तो आपके भौतिक अस्तित्व के लिए ही जैस-े जैसे आप इस चक्र से दूर होंगे, वैस-े वैसे जीवन आपके लिए
खतरा पैदा हो जाएगा। सं घर्ष बनता जाएगा।

तो सवाल है कि इन चक्रों को कैसे दे खा जाए? अगर आप पैटर्न अगर चक्र तीन साल से नीचे चला गया तो आप अच्छा जीवन जी ही
दे खना चाहते हैं तो इस तरह मत दे खिए कि आपके आस-पास क्या नहीं सकते। आपके जीवन में झटके लगते रहेंगे। कभी-कभार आपके
हो रहा है। आपको सिस्टम पर गौर करना सीखना होगा। चक्रीय जीवन में अच्छा होगा, लेकिन सामान्य तौर पर आपका जीवन सं घर्ष
गति साफ-साफ हो रही है। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि आप इन चक्रों ही बन जाएगा। तो इन बाहरी सं घर्षों से जूझने की कोशिश करने के
को लं बे से लं बा बनाने के लिए ज़रूरी साधना करें। इं सान के शरीर बजाय आपको यह करना चाहिए कि आप अपने चक्र को सही स्थिति
के भीतर सबसे लं बा चक्र सवा बारह साल का हो सकता है। अगर में ले आएं । फिर हर चीज अपने-आप ठीक होने लगेगी। जो भी
आप अपने चक्र को इस स्तर पर ला सकते हैं तो आप खुद को बेहद होगा, आपके लिए अच्छा होगा। आपके बारे में लोगों का इरादा कुछ
सं तुलित पाएं गे। आप जीवन में कामयाब होंगे, आपका जीवन सहज भी हो, वह आपका भला ही करेगा। इसकी वजह यही है कि आप
रूप से चलता रहेगा। आपके इर्द-गिर्द चाहे जो हो रहा हो, वह आपके अपने अस्तित्व की मूल प्रकृति के साथ ताल-मेल में हैं, जो कि बेहद
लिए अच्छा ही होगा, क्योंकि आप प्रकृति के साथ ताल-मेल में हैं। महत्वपूर्ण है।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 33


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़ के बिना तरक़्क़ी सं भव नहीं?


क्या तकलीफ
आपने कहना शुरू कर दिया कि रूपां तरण निश्चित रूप से कष्टपूर्ण ही होगा। जरा सोचिए,
जब भी आप अपनी सीमाओ ं को तोड़ ते हैं तो आपको कैसा महसू स होता है , शानदार
या दुखदाई?

निरख: सद् ‌गुरु, बिना तकलीफ़ सहे हम आगे कैसे आपको यह बात समझनी चाहिए कि आपके विचार
बढ़ सकते हैं? क्या तकलीफ ़ आध्यात्मिक तरक़्क़ी चाहे कैसे भी हों, आप कुछ भी सोच रहे हों, यह
का हिस्सा है? सोचने की प्रक्रिया उस सीमित जानकारी के बल पर
हो रही है, जो आपने इकठ्ठी की हुई है। तो अपने
सद् ‌गुरु: बहुत सारे समाजों में तकलीफ ़ को जरूरी विचारों को आप कई तरीक ़ े से जोड़ -तोड़ सकते हैं
माना गया है। वे मानते हैं कि तकलीफ नहीं होगी ़ और हर तरह के सर्कस कर सकते हैं, लेकिन इनसे
तो कुछ भी प्रभावशाली घटित नहीं होगा। मेरे नया कुछ भी नहीं निकलेगा। आप दे खग ें े – हालाँ कि
हिसाब से यह आपका चुनाव है। अगर आप कुछ ये अभी भी हो रहा है, लेकिन अगले 10 या 15
रोते हुए करना चाहते हैं तो कर सकते हैं। अगर सालों में आप कृत्रिम बुद्धि यानी ‘आर्टिफिशियल
आप कुछ हं सते हुए करना चाहते हैं तो वह भी इं टेलिजेंस’ का कमाल दे खग ें े। किसी चीज को लेकर
कर सकते हैं। यह आपको तय करना है। ‘अगर जानकारी इकट्ठी करना, उसका विश्लेषण करना,
कुछ महत्वपूर्ण घटित होना है तो उसके लिए कष्ट उस पर काम करना - ये सब काम एक छोटी सी
तो सहने ही पड़ ेंगे’ - यह विचार यूरोपीय साहित्य मशीन आपसे बेहतर तरीक ़ े से करने लगेगी। आपमें
और दर्शन से आया है। कभी न ख ़ त्म होने वाली से जो लोग सोचते हैं कि आपके विचार जबर्दस्त हैं,
तकलीफ ़ ें , तकलीफ ़ ों का उत्सव मनाना और वे पाएं गे कि एक साधारण सी मशीन आपसे बेहतर

तकलीफों को शानदार तरीके से पेश करना यूरोपीय सोच रही है।
दर्शन है। तकलीफ ़ ें भला शानदार कैसे हो सकती
हैं? साहित्य में हो सकता है कि आप दूसरों की तो आप जो सोचते हैं और महसूस करते हैं, वह सब
तकलीफ ़ ों के बारे में पढ़ें और सोचें कि कितनी कुछ आपका बनाया हुआ है, लेकिन आपको लगता
शानदार बात है, लेकिन अगर वही तकलीफ ़ है कि यह सब कुछ आपके साथ हो रहा है। ये सब
आपके जीवन में आए तो ये शानदार बात कभी नहीं बातें आपके साथ घटित नहीं हो रही हैं, सिर्फ जीवन
लगेगी। घटित हो रहा है। जीवन आपने नहीं बनाया है,
यह आपके साथ घटित हो रहा है। बाकी सब कुछ
अफसोस की बात है कि कष्टों का महिमा-मं डन आपका गढ़ ा हुआ है। आपने जो भी गढ़ ा है, वह
करने वाली बातें गढ़ ी गई हैं, खासकर पश्चिमी तो आपके नियं त्रण में होना चाहिए। आपने जो भी
दुनिया में जहां साहित्य बेहद बीमार है। मैं आपसे बनाया, उसका रूप-आकार वैसा ही होना चाहिए,
एक सीधा सा सवाल पूछता हूं , अगर आप बुद्धिमान जैसा आप चाहते हैं।
हैं तो आप ख ़ द
ु को आनं दित रखना चाहेंगे या
परेशान? दुर्भाग्य से हमने सोचने की प्रक्रिया को ही आपने कहना शुरू कर दिया कि रूपां तरण निश्चित
बुद्धिमानी समझ लिया है। रूप से कष्टपूर्ण ही होगा। ऐसा नहीं है। रूपां तरण

34 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


आनं ददायक होता है। जरा सोचिए, जब भी आप हैं। इसके अलावा बाकी सभी परेशानियाँ आप खुद
अपनी सीमाओ ं को तोड़ ते हैं तो आपको कैसा पैदा कर रहे हैं। आपके जो भी मानसिक कष्ट हैं, वे अगले 10 या 15 सालों
महसूस होता है, शानदार या दुखदाई? किसी न पूरी तरह आपके खुद के पैदा किए हुए हैं। अगर में आप दे खेंगे कि किसी
किसी समय ऐसा हर किसी के साथ हुआ है। जब आप सोचते हैं कि आपकी तकलीफ ़ ों का कोई एक
चीज को लेकर डे टा इकट्ठा
आपने अपनी कोई सीमा तोड़ ी तो आपको शानदार मकसद है तब तो आपको अं तहीन कष्टों का सामना
ही महसूस हुआ होगा। रूपां तरण की प्रकृति यही करना ही होगा। आपके कष्टों का कोई मकसद करना, उसका विश्लेषण
है, लेकिन मानसिक रूप से आप हर चीज को नहीं है। इस बात के भरपूर वैज्ञानिक और मेडिकल करना, उस पर काम करना
कष्टदायक बना सकते हैं। प्रमाण हैं कि जब आप खुशनुमा मनोदशा में होते - ये सारे काम एक छोटी
हैं, तो यह शरीर और मन दोनों शानदार तरीके से
सी मशीन आपसे बेहतर
आपको समझना चाहिए कि कष्ट सिर्फ दो प्रकार के काम करते हैं, और आपको हर क्षेत्र में कामयाबी
़ े से करने लगेगी।
तरीक
हैं, शारीरिक कष्ट और मानसिक कष्ट। शारीरिक कष्ट मिलती है, चाहे वह आध्यात्मिक सफलता हो या
हमें कभी-कभार होते हैं। याद कीजिए कि पिछली सां सारिक सफलता। कुल मिलाकर कह सकते हैं आपमें से जो लोग सोचते हैं
बार आपको किसी ने चाकू कब मारा था? कभी नहीं कि इस दुनिया में आपकी सफलता इस बात पर कि आपके विचार जबर्दस्त
न? हो सकता है आपको किसी मच्छर ने काटा हो, निर्भर करती है कि आप इस शरीर और मन की
हैं , वे पाएं गे कि एक
हो सकता है कि किसी ने पिन चुभाई हो, या ऐसी ही किस तरह से दे खभाल करते हैं, उसकी साज-सज्जा
कोई हल्की चोट लगी हो। बस यही शारीरिक कष्ट करते हैं, उनको खुशनुमा हाल में रखते हैं। साधारण सी मशीन आपसे
आपने झेले हैं, लेकिन ये सब भी रोजाना नहीं हो रहे बेहतर सोच रही है ।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 35


अगर आप मानव होने की भव्यता को समझते,
फिर आप ईश्वर या स्वर्ग की बातें नहीं करते। अब
जब कि आप एक मनुष्य के रूप में आए हैं और
आप अपने स्वरूप की असीमता को अनुभव नहीं
करते, फिर तो यह मानव रूप आप पर
व्यर्थ चला जाएगा।
- सद्‌गुरु

36 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 37
मौन क्रांति

कष्टों भरी राह, हो गई आसान


सद्‌गुरु को दे खते ही मं गाई की आं खों से आं सु ओ ं की धारा निकल पड़ ी। अब उसे अपने
ऑपरेशन की कोई चिंता न थी। उसका कहना है कि उस दिन उसके भीतर कुछ घटित
हुआ था।

इं जीनियरिंग की पढ़ ाई करने वाली ‘मं गाई’ की


जिदं गी तब पूरी तरह से बदल गई, जब वह
लेकिन अभी उसकी किस्मत में और दर्द व पीड़ ा
झेलना लिखा था। ऑपरेशन के एक साल के
अपने होस्टल की दूसरी मं जिल से फिसलकर भीतर ही रीढ़ की हड्डी के साथ लगी रॉड ने उसकी
नीचे जा गिरी। उसे तुरंत शहर के सबसे बेहतरीन महाधमनी को छे दना शुरू कर दिया। इसकी वजह
अस्पतालों में से एक में ले जाया गया। डॉक्टर ने से उसके पेट में भयानक दर्द होने लगा। तब
उसकी पूरी जां च की और कहा, ‘इसकी रीढ़ की उसे मदुरई के सरकारी अस्पताल ले जाया गया।
हड्डी में फ़्रै क्चर है, इसके दोनों पैर लकवाग्रस्त हैं चूं कि उस अस्पताल में कोई वस्कु लर सर्जन नहीं
और अब यह जीवन-भर बिस्तर पर ही रहेगी।’ था, इसलिए उन लोगों ने उसे चेन्नई के सरकारी
अस्पताल में भेज दिया। मं गाई का केस काफी
अपनी इं जीनियरिंग की पढ़ ाई बीच में छोड़ कर अपने
जोखिम भरा था, इसलिए डॉक्टर उसके ऑपरेशन
दोनों टू टे हुए पां वों और कां पते हुए हाथों को लेकर
की सफलता को लेकर आशं कित थे। बहरहाल,
मं गाई वापस अपने घर शिवगं गा चली गई। उसकी
मं गाई साढ़ े नौ घं टे का ऑपरेशन झेलने के बाद
मां अपनी बेटी की यह हालत दे खकर काफी टू ट
जिंदा बचने में सफल रही। लेकिन सारी कवायद
गई थीं। इस हालत में मं गाई के पिता अथिनामिलगी
और दवाइयों ने उसे वापस उसी स्थिति में पहुं चा
उसका सबसे बड़ ा सहारा थे। वह धैर्य-पूरक ्व उसकी
दिया, जहां वह अपने दोनों पैरों की सं वेदनशीलता
पूरी दे खभाल करते। उन्होंने मं गाई को ठीक करने
फिर से खो बैठी।
के लिए हर तरह के इलाज का सहारा लिया।
मं गाई जब अपनी इस शारीरिक व मानसिक पीड़ ा से
वह अपने इलाज के लिए केरल जाती थी। एक
उबरने की कोशिश कर रही थी, तभी दिल का दौरा
बार जब वह केरल जा रही थी तो उसने कोयं बटू र
पड़ ने से उसकी मां की मृत्यु हो गई। परिवार के लिए
के ध्यानलिंग मं दिर में जाने की इच्छा अपने पिता
यह एक बहुत बड़ ा सदमा था। इस स्थिति में पिता
के सामने जाहिर की। घरवाले उसे ईशा केंद्र लेकर
को अपनी नौकरी छोड़ नी पड़ ी और उसकी दे खभाल
आए, जहां वह कुछ स्वयं सेवकों की मदद से
के लिए उन्हें घर पर रुकना पड़ ा। मां की मौत के दो
ध्यानलिंग मं दिर के भीतर गई।
महीने के भीतर चेन्नई में नौकरी करने वाला उसका
उसके अगले दिन से मं गाई ने अपना ज्यादातर भाई भी एक दुर्घटना में मारा गया। उसका परिवार
समय शक्ति चलन क्रिया, ओम मं त्र के जाप और पूरी तरह से टू ट गया।
शून्य ध्यान में लगाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसे
लेकिन मं गाई ने कभी हिम्मत नहीं हारी। उसने अपने
अपने पैरों में थोड़ ी सं वेदना का अहसास होने लगा,
पिता से कहा कि वह उसे ईशा योग केंद्र ले चलें।
इतना ही नहीं अपने हाथों पर उसका नियं त्रण भी
मं गाई ईशा केंद्र आ गई। कुछ ही सालों में उसने
पहले से बेहतर होने लगा।
व्हील चेयर की मदद से केंद्र में घूमना शुरू कर दिया

38 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


और उसके हाथों में दोबारा ताकत आने लगी। जाहिर की कि वह ऑपरेशन से पहले लिंग भैरवी
मं दिर के दर्शन करना चाहती है। वे लोग लिंग भैरवी
धीरे-धीरे वह बैसाखियों के सहारे चलने लगी।
मं दिर पहुं चे, उनके आश्चर्य का उस समय ठिकाना
इससे उसका आत्मविश्वास जागा और उसने दोबारा
न रहा, जब उन्होंने दे खा कि सद् ‌गुरु वहां मौजूद हैं।
से अपने कॉलेज जाकर अपनी पढ़ ाई शुरू कर दी।
सद् ‌गुरु को दे खते ही मं गाई की आं खों से आं सुओ ं
लेकिन किस्मत उसके साथ नहीं थी। उसके पेट में मं गाई जब अपनी इस
की धारा निकल पड़ ी। अब उसे अपने ऑपरेशन
मवाद बनने और बाहरी चीजों के रहने से सं क्रमण
की कोई चिंता न थी। उसका कहना है कि उस दिन शारीरिक व मानसिक पीड़ ा
हो गया, इसके चलते पेट में भयानक दर्द रहने
उसके भीतर कुछ घटित हुआ था। से उबरने की कोशिश कर
लगा। आखिरकार नौबत ऑपरेशन की आ गई।
फिर से ऑपरेशन, दवाइयां और बिस्तर पर पड़ े-पड़ े गं गा हॉस्पिटल के मुख्य डॉक्टर, डॉ. राजशेखर ने रही थी, तभी दिल का दौरा
मं गाई अपनी पुरानी स्थिति में लौट आई। कुछ समय मं गाई के केस का अध्ययन किया और कहा कि पड़ ने से उसकी मां की मृत्यु
बाद उसने फिर से अपना योगाभ्यास, प्राणायाम वे मं गाई को दर्द से तो निजात दिला सकते हैं, हो गई। परिवार के लिए
और ध्यान शुरू किया। इसके बाद वह दोबारा अपने लेकिन यह निश्चित नहीं कि वह वापस उसे उसके
यह एक बहुत बड़ ा सदमा
कॉलेज गई, जहां उसने अपनी इं जीनियरिंग की पाँ वों पर खड़ ा कर सकेंगे। डॉक्टर का कहना था
था। इस स्थिति में पिता को
पढ़ ाई पूरी की और यहां तक कि उसे एक अच्छी कि ऑपरेशन से पहले वे सीटी स्कै न के जरिए
नौकरी भी मिल गई। एक बार और जां च करके यह दे खग ें े कि क्या अपनी नौकरी छोड़ नी पड़ ी
ऑपरेशन की जरूरत अब भी है या उससे बचा जा और उसकी दे खभाल के
मानो जिंदगी उसके अभी और इम्तहान लेना चाहती
सकता है। दूसरी ओर बेंगुलरुु में उसी एक हफ्ते लिए उन्हें घर पर
थी। कुछ समय बाद उसकी कमर के पिछले हिस्से
के दौरान मं गाई के पेट के दर्द में काफी कमी आ
में दर्द रहने लगा, धीरे-धीरे वह फिर से न हिलने- रुकना पड़ ा।
गई और धीरे-धीरे उसने चलना शुरू कर दिया। अब
डु लने वाली स्थिति में पहुं च गई। इलाज को महीनों
ऑपरेशन की जरूरत ही नहीं थी।
गुजर गए लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। अं त
में डॉक्टर ने मं गाई को कोयं बटू र के गं गा अस्पताल जब मं गाई से इस बारे में पूछा गया तो उसका जवाब
के लिए रेफर कर दिया। उसी दौरान सेलम में लिंग था - ‘यह सब सद् ‌गुरु और देवी की कृपा से सं भव
भैरवी मं दिर की प्रतिष्ठा हुई थी। बेंगलुरु से कोयं बटू र हुआ है।’
आते समय मं गाई ने अपने पति के सामने इच्छा

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 39


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पुनर्जन्म के विचारों में कैद था मेरा मन


सद्‌गुरु के सामने मैं मानो शां ति के एक गहरे कंु ड में बैठी हुई थी पर मेरा मन पुनर्जन्म के
विचारों में कैद था. . .’ पढ़ ें शेरिल सिमोन की पुस्तक ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ के हिंदी
अनुवाद की अगली कड़ ी :

उ स जीवनकाल में बिल्वा का सर्पज्ञान उनके


निजी गुणों में से एक था जिन्होंने उनको
आध्यात्मिकता के ऊंचे स्तरों की ओर आगे बढ़ ाया।
सद् ‌गुरु ने बताया कि बिल्वा का यह श्वास-निरीक्षण
ईश्वर की करुणा थी। उनकी मृत्यु सचेतन अवस्था
में होने के कारण एक नई आध्यात्मिक प्रक्रिया शुरू
वे बीस से अधिक की उम्र के विद्रोही प्रकृति के हुई, उसने उनके अं दर जड़ ें जमाईं और उनके अं दर
ढीठ युवा थे, और विद्रोह की उनकी एक करतूत अनेक प्रकार के बदलाव आए। उनकी आध्यात्मिक
से नाराज कुछ लोगों ने उनको छोटी उम्र में ही साधना शुरू हो चुकी थी। यह उनके बाद के जीवन
मरवा दिया था। उन्हें एक पेड़ से बां धकर नाग से में भी जारी रही जिसके कारण वे योग के मार्ग पर
डसवाकर मौत के घाट उतार दिया गया था। नाग आगे बढ़ े । और फिर वे शिवयोगी नामक योगी
के तेज विष में शक्तिशाली पाचक तत्व होते हैं जो बन गए।
अत्यधिक पीड़ ा और शीघ्रता से ऊतकों को नष्ट कर
डालते हैं। इससे शरीर के अं दर भारी रक्तस्राव होता शिवयोगी ने अनेक स्थानों पर जाकर अनेक प्रकार
है और मल-द्वार फट जाता है। की चीजों को आज़माया और तेज भूख और भौतिक
कठिनाइयों तक का सामना किया। वे योग की
बिल्वा सां पों के बारे में सब-कुछ जानते थे और विविध कलाओ ं और गूढ़ विशेषताओ ं में निपुण हो
उनको मालूम था कि सर्पदं श से उनका क्या होगा। गए लेकिन इस सबके बावजूद उनको आत्मबोध
जैसे ही विष उनके शरीर में फैला और वे मृत्यु के नहीं हो पाया।
करीब पहुँचे, उन्होंने अपने मल-द्वार को बं द कर
लिया – योग की भाषा में इसे मूलाधार बं द करना सद् ‌गुरु की कहानी के इस मुकाम पर मैंने उनसे फिर
कहते हैं - और अपनी सां स पर ध्यान देने लगे। सवाल किया। मैंने उनसे उस योग की विशेषताओ ं
बिल्वा ने सां स के अं दर-बाहर आने-जाने पर ध्यान के बारे में पूछा जिसका अभ्यास उन्होंने शिवयोगी
केंद्रित करने वाले आन-पान-सती योग नामक इस के रूप में किया था, क्योंकि आजकल वे आत्म-
क्रियायोग को सचेतन मन से शुरू नहीं किया। वे रूपां तरण के माध्यम के रूप में योग को इतना
सहज ही अपनी सां स पर ध्यान देने लगे थे, क्योंकि अधिक महत्व दे ते हैं। उन्होंने उत्तर दिया कि उस
वे यथासं भव सम्मान के साथ मृत्यु को प्राप्त होना समय हुई किसी भी चीज का अब कोई अर्थ नहीं
चाहते थे और केवल उनकी सां स ही काम कर रही रहा क्योंकि उस सबके द्वारा वे सारे बं धनों से मुक्ति
थी। भयं कर पीड़ ा होने पर भी उन्होंने अपनी सां स पर प्राप्त नहीं कर पाए थे। वैसे क्रियायोग के कुछ
ध्यान बनाए रखा जिसके चलते उन्होंने अपने जीवन पहलुओ ं में प्रवीण होकर उन्होंने कुछ ऐसी क्षमताएं
की अं तिम घड़ि यां तीव्र अनुभव के साथ बिताईं। पाईं जिनसे उनको लं बे समय तक भोजन और जल
मृत्यु के समय उन्होंने अपने शरीर को सचेतन के बिना जीवित रहने और दीवारों जैसे ठोस-से
अवस्था में त्यागा। लगने वाले पदार्थों के पार जा सकने की क्षमता

40 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


मिली। इन सबसे अधिक उन्होंने एक ऊँ चे स्तर का के सान्निध्य में घने कोहरे में फंसी हुई थी इसलिए मैं
बोध हासिल किया जिसके चलते वे किसी भी व्यक्ति जानना चाह रही थी कि वे इतने प्रकां ड दिव्यदर्शी
के भूत, भविष्य और वर्तमान को पूरी तरह जान कैसे बन पाए और इसमें उनके अतीत की क्या
सकते थे। फिर भी आत्मबोध न मिल पाने के कारण भूमिका थी।
उनके अं दर एक प्रकार का रोष बना रह गया था एवं
अनं त के ज्ञान की गहरी ललक बाकी रह गई थी। ‘पुनर्जन्म कुछ और नहीं विकास की एक प्रक्रिया
है,’ सद् ‌गुरु ने पूछने से पहले ही मेरे प्रश्न का उत्तर
जब सद् ‌गुरु बिल्वा और शिवयोगी के बारे में बता दे दिया। ‘जानवर भी विकास की सीढ़ि यां चढ़ रहे
रहे थे तब मुझे उनके अं दर की शां त गहरी नीरवता हैं लेकिन मानव रूप में जन्म लेने पर आप अपना सद् ‌गुरु की कहानी के इस
और उनके पीछे घुमड़ते कोहरे का आभास हो रहा विकास अपने अनुसार कर सकती हैं।
मुकाम पर मैंने उनसे फिर
था। वे कां से की एक पुरानी मूर्ति जैसे लग रह रहे
सवाल किया। मैंने उनसे
थे, जिसकी आं खें हमारे इस वर्तमान क्षण में विद्यमान ‘और अब योग,’ उन्होंने कहा। ‘आप योग के
तत्वों के पार कहीं दूर बहुत-कुछ दे खती-सी लग माध्यम से अपने विकास में तेजी ला सकती हैं। उस योग की विशेषताओ ं
रही थीं। आप चारदीवारियों से निकलकर एक ऐसा व्यक्ति के बारे में पूछा जिसका
बन सकती हैं जो सारे बं धनों से पूरी तरह मुक्त है।
अभ्यास उन्होंने शिवयोगी
सद् ‌गुरु के सामने मैं मानो शां ति के एक गहरे कंु ड योग केवल शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य एवं
के रूप में किया था, क्योंकि
में बैठी हुई थी पर मेरा मन पुनर्जन्म के विचारों में शां ति के लिए ही नहीं है, हालां कि योग के द्वारा ये
कैद था। जब मैंने अपने प्रथम ध्यान-गुरु से सबसे आसानी से पाए जा सकते हैं। हमारे इस आयाम की आजकल वे आत्म-
पहले पुनर्जन्म के बारे में सुना था तो यह मुझे केवल सारी चारदीवारियों को तोड़ कर यह जीवन के एक रूपांतरण के साधन के रूप
एक जीवन की अपेक्षा अधिक अर्थपूर्ण लगा था। नये क्षेत्र में प्रवेश का माध्यम है - भौतिक सं सार से
में योग को इतना अधिक
फिर मैंने उसके बारे में बहुत-कुछ पढ़ ा लेकिन एक निकलकर एक बिलकुल दूसरे अस्तित्व के दायरे में
महत्व दे ते हैं ।
से अधिक जन्मों के प्रति मेरा शुरुआती आकर्षण प्रवेश का। यह दूसरा आयाम भी यहीं है और कहीं
धीरे-धीरे कम होता गया। मेरे लिए अतीत केवल नहीं। लेकिन व्यक्ति के अपनी भौतिक प्रकृति में
इतने तक ही सं गत था कि इससे मुझे अपने वर्तमान गहराई तक डू बे होने पर यह नहीं मिल पाता।
तक पहुं चने के बारे में पता चला और इससे मुझे
कुछ सीखने का मौका मिला। लेकिन अब चूं कि मैं आगे जारी . . .
अपने पूरज ्व न्मों का ज्ञान रखने वाले एक आत्मज्ञानी

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 41


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अध्यात्म के आकाश में एक


पायलट की उड़ान
़ ुबानी। इस अं क
इस स्तं भ में हम साझा करते हैं एक ईशा ब्रह्मचारी की कहानी, उन्हीं की ज
में मां गं भीरी, जो ईशा के शुरुआती दिनों से ही सद्‌गरु
ु से जुड़ीं, हमें बता रही हैं कि कैसे
वे पायलट की ट्रेनिंग से सीधे अध्यात्म के रास्ते पर पहुँ च गईं।

अ भी-अभी किशोरावस्था से निकलकर पायलट


बनने की ट्रे निंग ले रही थी। योग की कक्षा
निश्चित रूप से मेरी कल्पनाओ ं में नहीं थी। अपनी
इस मुलाकात के बाद सद् ‌गुरु ने मुझे सुझाव दिया
कि मैं तीन महीने का ब्रेक लेकर दे खूं कि क्या मैं
वास्तव में यही चाहती हूं । मेरे माता-पिता ने मुझे
बहन के कारण मैं योग की एक कक्षा में पहुंची। मैं यूके भेज दिया। मगर मेरी स्पष्टता असली थी और
उम्मीद कर रही थी कि किसी जिम ट्रेनर की तरह मैं 90 दिनों के ‘होलनेस प्रोग्राम’ के लिए समय पर
जब एक जगह जाकर कोई आएगा और हमें कुछ योगासन सिखाएगा। मैं वापस आ गई। मैं अपने माता-पिता की आभारी हूं
सद् ‌गुरु की जीप रुकी और बिल्कु ल निराश हो गई जब कुछ मिनट बाद, एक जिन्होंने मेरे फैसले का सम्मान किया और आगे के
दाढ़ ी वाला व्यक्ति अपने सफेद कुर्ते और धोती में सफर के लिए अपना आशीर्वाद दिया।
मैंने उन्हें बाहर निकलते
बहुत आराम से चलते हुए कक्षा में आया। हालां कि
दे खा, तो मैं भी अपनी
शुरू में मैंने बहुत ध्यान नहीं दिया, मगर तीसरे दिन 90 दिनों के ‘होलनेस प्रोग्राम’ के दौरान मैंने सद् ‌गुरु
गाड़ ी से बाहर निकली। तक मैं बहुत ध्यानपूरक ्व उनका हरेक शब्द सुनने को जैसा दे खा, उसने कई रूपों में उनके साथ मेरे
ठीक सामने कुछ दूरी पर लगी थी। फिर एक दिन मुझे हैरान करते हुए वे सं बं ध को मजबूत किया। हर दिन वे बहुत अलग
कक्षा के बाद मेरे पास आए और अनौपचारिक तरीके दिखते थे और उनकी ऊर्जा बिल्कु ल अलग होती
एक विशाल झील थी। जब
से विमान उड़ ाने के मेरे अनुभव के बारे में बातचीत थी। पहले 30 दिनों तक वे रोज़ एक नया मगर
मैंने उसे दे खा तो मेरे अं दर
की। उस रात मैं सोई नहीं। विस्फोटक ध्यान करवाते थे। हममें से कई लोगों
कुछ हलचल हुई। मेरी को अपने सामान्य बोध से परे के जीवन का बोध
आं खें भर आईं। मैं सद् ‌गुरु मुझे कोई अं दाजा नहीं था कि आध्यात्मिक मार्ग हुआ। 90 दिनों के अं त में मैंने महसूस किया
क्या है, आत्मज्ञान क्या है या गुरु क्या होता है। और कि हम मित्र से शिष्य और शिष्य से भक्त हो गए
की ओर मुड़ी, उनकी आं खों
मैं नहीं जानती थी कि सद्‌गरु ु कौन हैं, मगर मुझे हैं। सद् ‌गुरु की शख्सियत एक योग गुरु से एक
में भी आंसू थे।
महसूस हुआ कि मैं उन्हें हमेशा से जानती थी। उस रहस्यवादी और फिर एक गुरु में बदल गई थी।
दिन मेरे अं दर पूरी स्पष्टता थी कि यही मार्ग, चाहे
जैसा भी हो, मेरा जीवन होगा। लेकिन मुझे कुछ पता होलनेस के बाद, मेरी ऊर्जा इस तरह खुल गई थी
नहीं था कि कैसे। तब से मैंने सक्रिय रूप से स्वयं सेवा कि मैं रोज अपने भीतर खुशी और नर्क के चरम का
करनी शुरू कर दी। चूं कि मैं बहुत कम उम्र की थी, सामना कर रही थी। एक 20 साल की लड़ की के
इसलिए मेरे मां -बाप चिंतित थे कि क्या मैं वास्तव लिए इसे झेलना कई बार बहुत ज्यादा मुश्किल हो
में इस मार्ग पर चलने का मतलब समझती हूं। तो वे जाता था। एक दिन आया जब मैंने महसूस किया
यह समझने के लिए सद्‌गरु ु से मिले कि आख़ि र हो कि मैं अं दर किसी गहरे गड्ढे में पहुं च गई हूं और मैंने
क्या रहा है। मदद के लिए सद् ‌गुरु को पुकारा।

42 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


‘मैंने वे सारे उपकरण दिए हैं जो आपको इससे बाहर
ला सकते हैं,’ उन्होंने बस इतना कहा और फोन रख
दिया। मैंने इसके बारे में सोचा और फिर खुद अपनी
साधना की दिनचर्या बनाई। अगले 48 दिनों तक सुबह
10:30 से शाम 5:30 तक मैं एक नीम के पेड़ के नीचे
एक पत्थर पर बैठती और तीन घं टे ‘ऊँ ’ का जाप, फिर
तीन घं टे की सुख-क्रिया और उसके बाद सम्यमा ध्यान
करती। इसने मुझे एक भीतरी सं तुलन दिया जो आज
तक कई रूपों में मुझे मुश्किल हालात से उबारता है।
यह जीवन का एक अहम मोड़ था, जिसने मुझे इस मार्ग
पर स्थापित कर दिया। फिर 1996 में मुझे ब्रह्मचर्य की
दीक्षा दी गई।

सद् ‌गुरु ने ध्यानलिंग प्राण-प्रतिष्ठा से जुड़ी ऊर्जा-प्रक्रिया


पर काम करना शुरू कर दिया था और हमें कोई अं दाज़ा
नहीं था कि उसका क्या अर्थ है। सद् ‌गुरु हमें इस स्थिति
के लिए तैयार कर रहे थे कि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद वह
अपना शरीर छोड़ सकते हैं – यहाँ तक कि उन्होंने पहले
ही अपनी समाधि भी तैयार कर ली थी। हमारे भीतर
उथल-पुथल मची हुई थी। हम ध्यानलिंग की प्राण-
प्रतिष्ठा तो चाहते थे, मगर सद् ‌गुरु का जीवन हमारे लिए
बहुत कीमती था।

इस प्रक्रिया के दौरान, हमने साधकों को आमं त्रित किया


था जो लिंग की ओर पीठ करके बैठे थे और ब्रह्मचारी
लिंग की ओर मुख करके बैठे थे। सद् ‌गुरु ‘अवुदैयार’
पर थे। एक प्रक्रिया की समाप्ति के बाद उन्होंने कहा
‘आज्ञा।’ हमने उन निर्देशों का पालन किया जो उन्होंने
हमें पहले दे दिए थे और प्रक्रिया जारी रही। फिर उन्होंने
कहा ‘विशुद्धि,’ फिर ‘अनाहत।’ जब उन्होंने ‘मणिपूरक’
कहा, वह आगे की ओर झुके मानो पीड़ ा में हों। फिर
उन्होंने कहा ‘स्वाधिष्ठान’ और उनके पैर लड़ खड़ ा गए।
आखिरकार, हमने उन्हें ‘मूलाधार’ कहते सुना और फिर
उन्हें गिरते हुए दे खा। मैंने भागकर अपना हाथ उनके
सिर के नीचे लगा दिया, इससे पहले कि वह अवुदैयार
के पत्थर से टकराता। तब तक बाकी ब्रह्मचारी भी
आकर चारों ओर इकट्ठा हो गए।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 43


इस पवित्र यात्रा पर ले गए। मैं काम के प्रबं ध में व्यस्त थी और एक बार
भी कैलाश और मानसरोवर के बारे में आध्यात्मिक सं दर्भ में नहीं सोचा।
मेरे लिए वह बस एक काम था, जिसे अच्छी तरह किया जाना था।

जब एक जगह जाकर सद् ‌गुरु की जीप रुकी और मैंने उन्हें बाहर


निकलते दे खा, तो मैं भी अपनी गाड़ ी से बाहर निकली। ठीक सामने
कुछ दूरी पर एक विशाल झील थी। जब मैंने उसे दे खा तो मेरे अं दर
कुछ हलचल हुई। मेरी आं खें भर आईं। मैं सद् ‌गुरु की ओर मुड़ी, उनकी
आं खों में भी आं सू थे। तब से, हर साल कैलाश मानसरोवर यात्रा
का आयोजन मेरे जीवन का एक अभिन्न अं ग बन गया है और यह
जिम्मेदारी दिए जाने पर मैं भाग्यशाली और धन्य महसूस
करती हूं ।

2009 में यात्रा के दौरान मेरे साथ कुछ बहुत अलग हुआ। कैलाश
जाते समय, मैं एक दुर्घटना का शिकार हो गई और मेरी कलाई की
हड्डियां बुरी तरह टू ट गईं। असहनीय दर्द था। मुझे बहुत से इं जके ्शन
और पेनकिलर दिए गए मगर सब बेअसर था। एक समय पर, मैंने
अपने अं दर खुद को ‘शं भो’ जपता पाया और तुरंत उसी तरह मैं
‘सद् ‌गुरु’ भी जप रही थी। धीरे-धीरे, मैंने महसूस किया कि दर्द और मेरे
बीच एक दूरी आ गई है। भयानक पीड़ ा अब भी मौजूद थी, फिर भी मैं
हम उन्हें बाहर एक गाड़ ी तक और फिर घर लेकर गए, उसके बाद दर्द में नहीं थी।
तीन दिनों तक हमने उन्हें नहीं दे खा, सिर्फ स्वयं सेवकों के एक समूह
के सामने वे थोड़ ी दे र के लिए आए। तब भी उन्हें ब्रह्मचारियों का सहारा उस साल जब मैं कैलाश से लौटी, तो मैं जानती थी कि मेरे अं दर कोई
लेना पड़ ा। मैं बेचन
ै थी और उनके स्वास्थ्य के बारे में अच्छी सूचना मूलभूत चीज़ बदल चुकी है। जब से मैंने होश सं भाला, चाहे मैं कितनी
की उम्मीद कर रही थी। तीन दिन बाद मुझे सद् ‌गुरु से जाकर मिलने भी आनं दित रही होऊँ , मेरे अं दर एक अनजानी सी पीड़ ा हमेशा रहती
का सं दे श मिला। वहां वह अपनी आरामकुर्सी पर बैठे हुए मुस्कु रा रहे थी – मैंने पाया कि वह पीड़ ा गायब हो गई थी।
थे और भव्य लग रहे थे। मैं उन्हें पकड़ कर रोने लगी। उस क्षण में सब
कुछ परफेक्ट लग रहा था। वह हमारे साथ मौजूद शुरुआती सालों में, एक छोटी सी जमीन पर साधारण शुरुआत के
थे... जीवित। बाद हम उस समय का सपना दे खते थे, जब दुनिया सद् ‌गुरु को उनके
असली रूप में पहचानेगी। आखिरकार उसे सं भव होता दे खना दिल को
बाद के सालों में जब ‘ईशा यात्रा’ मेरी प्रमुख जिम्मेदारी बन गई, सद् ‌गुरु छू ने वाली बात है। इस आश्रम की खोज में सद् ‌गुरु के साथ रहने से
ने मुझसे यह पता करने को कहा कि क्या हम साधकों को तिब्बत में लेकर आज तक, इस सफर में शुरू से आखिर तक होना मेरे लिए एक
मानसरोवर ले जा सकते हैं। 2006 में हम पहली बार 160 साधकों को सौभाग्य की बात है।

44 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


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नि:शुल्क पाएं ईशा लहर की सदस्यता

ह म आपके लिए एक ऐसा अवसर लेकर आए हैं जिससे आप ईशा लहर अगले एक वर्ष तक निःशुल्क प्राप्त
कर सकते हैं। साथ ही आपको मिल सकता है एक आकर्षक इनाम भी। इसके लिए आपको नीचे दिए
गए तीन सवालों के जवाब हमें भेजने हैं। आपको यह भी बता दें कि इन सवालों के जवाब इसी अं क में छिपे
हैं। बस पढ़ि ए, ढूं ढ़ि ए और जीतिए इनाम।

प्रश्न 1) रामानुजम कौन थे?


A) एक गणितज्ञ B) एक अर्थशास्त्री C) एक व्यापारी

प्रश्न 2) बकासुर का वध किसने किया?


A) भीम ने B) कृष्ण ने C) अर्जुन ने

प्रश्न 3) जीवन में सबसे लं बे चक्र की अवधि कितनी होती है?


A) सवा बारह साल B) बारह साल C) छः साल

सही जवाब देने वालों में से दो भाग्यशाली विजेताओ ं को मिलेगी एक वर्ष तक ईशा लहर मुफ्त और सही
जवाब देने वाले पहले दस लोगों का नाम हम अक्टू बर 2019 अं क में प्रकाशित करेंगे। इतना ही नहीं अगर
आपने लगातार छः महीनों तक सही जवाब दिया तो आपको मिल सकता है एक आकर्षक इनाम भी।

उत्तर देने के लिए टाइप करें ILP-AUG-19 और फिर स्पेस देकर क्रम से प्रश्न सं ख्या और उसके साथ ही
अपने उत्तर का क्रम टाइप करें। जैसे अगर आपके पहले प्रश्न का उत्तर A दूसरे का B और तीसरे का C है तो
आप टाइप करें ILP-AUG-19-1A 2B 3C और फिर अं त में अपना नाम और शहर का नाम लिखना न भूल,ें
और एस.एम.एस. करें 8005149226 पर या editor@ishalahar.com पर ई-मेल कर दें । उत्तर भेजने की
अं तिम तारीख है 31 अगस्त 2019.

जून 2019 अं क के प्रश्नों के सही उत्तर हैं: 1-C, 2-A, 3-A


सही उत्तर देने वाले पहले दस लोगों के नाम हैं:
रजनीश कुमार, मुजफ्फरनगर विनय कुमार मौर्य, नई दिल्ली डा. मनोज चतुर्दवे ी, जयपुर
दीपक धवले, भोपाल विकास मिश्रा, मुं बई डा. आभा चतुर्द
वे ी, जयपुर
निरं जन अग्रवाला, सं भलपुर नीलम पां डे , मुं बई
प्रदीप कुमार अग्रवाल, सं भलपुर के डी परमार, जूनागढ़

लकी ड्रॉ से निकाले गए दो भाग्यशाली विजेता हैं :


दीपक धवले, भोपाल और विनय कुमार मौर्य, नई दिल्ली। आपको हार्दिक बधाई।

पिछले छः अंकों से लगातार सही उत्तर दे ने वाले विजेता हैं : पुनीत मित्तल, लखनऊ

46 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


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आपकी बातें सुनना ऊर्जा लोड करने जैसा है


़ े सबुक के मं च
यहाँ हम उन विचारों को आपसे साझा करते हैं जिसे लोगों ने फ
पर शब्दों में सहे जा है । पेश हैं कुछ सं कलित विचार : SadhguruHindi
आपमें प्रेरणा का सबसे बड़ ा स्रोत मिला है - पल्लवी जायसवाल
सद् ‌गुरु, मैं हर रोज़ आपसे कुछ सीखती हूं , जो मेरे भीतर ही कहीं मौजूद तो था, लेकिन कभी भी मैं उसे
इतने सरल तरीके से नहीं समझ सकी थी। मुझे आपमें प्रेरणा का सबसे बड़ ा स्रोत मिला है। धन्यवाद
सद् ‌गुरु।

सद् ‌गुरु ने तं त्र के रहस्यों का खुलासा कर दिया है - तपन पुजारा


तं त्र विद्या के बारे में लोगों की सोच बहुत नकारात्मक होती है। लेकिन अब सद् ‌गुरु ने इसके रहस्यों का
खुलासा कर बहुत महान काम किया है। तं त्र सिर्फ एक टेक्नोलॉजी है, जिसे कोई भी इस्तेमाल कर सकता
है। यदि आप इसका सकारात्मक इस्तेमाल करते हैं तो यह मानवता के लिए एक वरदान होगा।

आपकी बातें सुनना ऊर्जा लोड करने जैसा है - सरस्वती भं डारी


आपकी बातें सुनना ताज़ी सां स लेने और जीवं त ऊर्जा को फिर से लोड करने जैसा है।

किशोर वर्ग पर आपका बहुत बड़ ा प्रभाव है - कविता शर्मा


मेरा 16 साल का बेटा आपका बहुत बड़ ा अनुयायी है। वह आपकी बातें बहुत उत्साह से सुनता है और उन
पर चर्चा करता है। वह अक्सर हमें कोयं बटू र चलने को कहता है और आपसे मिलना चाहता है। पता नहीं
हम इतनी आसानी से आपसे मिल सकते हैं या नहीं। लेकिन मुझे इस बात की ख ़ श
ु ी है कि आज के किशोर
वर्ग पर आपका बहुत बड़ ा प्रभाव है।

प्रेम और स्नेह पाती हूँ और बाँ टती हूँ - अं जना दत्त


जब मैं ईशा फाउं डेशन कोलकाता के लिए सेवा करती हूँ , मुझे बहुत ज़्यादा प्रेम और स्नेह मिलता है और मैं
उसे सबसे बां टती भी हूँ । हमें ‘शाम्भवी महामुद्रा’ का बेहतरीन अनुभव देने के लिए सद् ‌गुरु का धन्यवाद।

सलाह मानें तनाव मुक्त रहें - नील प्रसाद शर्मा


आपने तनाव को एक वैज्ञानिक परिभाषा दी है। आपके अनुसार तनाव घर्षण की तरह है जो किसी भी
मशीन के काम करने की क्षमता को कम करता है। इसी तरह तनाव इं सान की क्षमता कम कर दे ता है और
वह अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन नहीं कर पाता है। जिस तरह लुब्रिकेंट मशीन का घर्षण घटा दे ती है, उसी तरह
योग के ज़रिए तनाव को कम किया जा सकता है। तो चलिए हम सब भी सद् ‌गुरु की सलाह मान कर तनाव
मुक्त रहना शुरू करते हैं।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 47


युवा और सत्य

़ र में प्यार?
कैसे होता है पहली नज
इस तरह की बात पुराने जमाने से आई है , जब लड़ के-लड़ कियाँ साथ नहीं हुआ करते थे।
पहली लड़ की दे खते ही – बस हो गया प्यार। अभी लड़ कियां आपके साथ घूम रही हैं , बात
कर रही हैं , पढ़ रही हैं - अब इसमें समय लगेगा।

़ र्स्ट साइट’ जैसी


अविचल: सद् ‌गुरु, क्या ‘लव ऐट फ अभी लड़ कियां आपके साथ घूम रही हैं, बात कर
चीज़ वाक
़ ई होती है? रही हैं, पढ़ रही हैं - अब इसमें समय लगेगा। और
समय लगना अच्छी बात है।
सद् ‌गुरु: इसका मतलब है कि आप बहुत जल्दबाजी
अगर पर्याप्त एक्सपोजर में हैं। खैर, आपको समझना चाहिए कि इसके कई तो इस तरह की बात पुराने जमाने से आई है, जब
हो, तो आप ध्यान से किसी पहलू हैं, मगर ये बात किसी और जमाने से आई है। लड़ के-लड़ कियाँ साथ नहीं हुआ करते थे। पहली
लड़ की दे खते ही – बस हो गया प्यार।
को परखेंगे और यूँ ही किसी
पहली नज़र में प्यार होना – आप इसी की बात करे
पर फिदा नहीं हो जाएं गे, ़ ास व्यक्ति के प्रति आकर्षित हो
रहे हैं न? तो, आप किसी ख
आप अपना समय लेंगे। सकते हैं, वो एक अलग बात है। मगर ये चीजें मूल
और यह अच्छी बात है कि पहली नजर का प्रेम उस समय बहुत आम था, जब रूप से एक्सपोजर की कमी के कारण हैं। अगर
लड़ के-लड़ कियां रोज़-रोज़ एक-दूसरे को नहीं दे ख पर्याप्त एक्सपोजर हो, तो आप ध्यान से किसी
आप मजबूत रिश्ते बनाने
पाते थे। आप किसी लड़ की को तभी दे ख पाते थे, को परखेंगे और बस यूँ ही किसी पर फिदा नहीं हो
के लिए समय लेते हैं , जो
जब वो – मैं इं ग्लिश सीन की बात कर रहा हूं - जब जाएं गे, आप अपना समय लेंगे। और यह अच्छी बात
लम्बे समय तक चलें। लड़ की अपने मां -बाप के साथ घोड़ ागाड़ ी में चढ़ ती है कि आप मजबूत रिश्ते बनाने के लिए समय लेते
थी - आप बस यूं दे ख रहे थे और उसने आपको हैं, जो लम्बे समय तक चलें।
दे खा – बस बिजली गिर गई!

48 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


दे खिए, आप जीवन में कोई रिश्ता इसलिए बनाते हैं क्योंकि कहीं न तो, बढ़ ने का एक समय होता है, और जीने का एक समय होता है।
कहीं आपको लगता है कि एक से बेहतर दो हैं। आपके लिए एक अगर आप बहुत जल्दी जीने की कोशिश करेंगे, तो आप दे खग
ें े कि
से बेहतर दो हो सकता है, मगर आप उस रिश्ते में दुख का करण हो विकास नहीं होगा, क्योंकि विकास एक खास समय पर बहुत आसानी
सकते हैं। तो इससे पहले कि आप अपने जीवन में कोई गं भीर रिश्ता से होता है।
बनाएं , सबसे पहले बस यह दे खें कि क्या यह रिश्ता दुनिया में हर चीज
के लिए ठीक है? क्योंकि युवावस्था समय है विकास करने का, जीने बाद में... ऐसा नहीं है कि यह हो नहीं सकता, मगर यह अधिक
की जल्दबाजी में मत रहिए। अभी बढ़ ने का समय है। मुश्किल होगा क्योंकि जीवन आपको कई अलग-अलग रूपों में उलझा
दे गा। इसलिए जब आप जवान हैं और पढ़ रहे हैं, यह हर स्तर पर
दक्षिण भारत में, ख ़ ास तौर पर तमिलनाडु में, किसानों के पास एक बढ़ ने का समय है – शरीर, मन, भावना, ऊर्जा – हर स्तर पर आपको
तरह की समझ होती है, खासकर आम के किसानों के पास। अगर आप अपना अधिकतम विकास करना चाहिए, उसके बाद जीने की कोशिश
आम का पौधा लगाते हैं, तो बारह, चौदह महीने के अं दर मौसम आने कीजिए। अगर आप बहुत जल्दी जीने की कोशिश करेंगे, तो आपके
पर उसमें बौर आ जाएगा। मगर आप दे खग ें े कि किसान सभी फूलों को पास ज़्यादा कुछ नहीं होगा। अगर आपके पास ज़्यादा कुछ नहीं है, तो
तोड़ दे ता है, क्योंकि अगर आप उसमें फल आने दें गे तो पहले मौसम वह व्यक्ति जिसके साथ आपका रिश्ता है, अगर उसने अच्छा विकास
में ही उसमें एक या दो फल आ जाएं गे। लेकिन अगर आपने ऐसा कर लिया, तो वो आपकी ओर दे ख कर सोचेगी कि मैं इसके साथ क्यों
किया, तो वह पेड़ कभी पूरी तरह से विकसित नहीं होगा। इसलिए फंस गई?
पहले तीन साल सभी फूल तोड़ दिए जाते हैं। जब वह पेड़ काफी
मजबूत हो जाता है, तभी उसमें फल आने दिए जाते हैं।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 49


ãÆ Øô»-¿·ý¤

क्या हम समझ सकते हैं पक्षियों की भाषा?


़ पर
अगर आप पक्षियों या किसी और की भाषा जानना चाहते हैं तो आप उनकी आवाज
गौर मत कीजिए, बल्कि अपनी आवाज पर ध्यान दे ने की कोशिश कीजिए।

धीर: सद् ‌गुरु, अगर कोई व्यक्ति अपने चक्रों पर अपने घोंसले कितनी ऊंचाई पर बनाए हैं, कई लोग
महारत हासिल कर ले तो क्या वह पक्षियों की भाषा यह जान लेते हैं कि इस साल बाढ़ आएगी या नहीं।
समझ सकता है? आमतौर पर ये पक्षी बारिश का मौसम आने से
लगभग चार महीने पहले अपने घोसले बना लेते हैं।
सद् ‌गुरु: हालां कि स्तनधारी जीवों में दूसरे जीवों अगर बहुत भारी बारिश होने का अनुमान नहीं होता
की अपेक्षा कहीं ज्यादा विकसित ‘न्यूरोलॉजिकल तो ये पक्षी पानी के काफी नजदीक अपना घोंसला
सिस्टम’ (तं त्रिका तं त्र) होता है, फिर भी आप एक बनाते हैं, क्योंकि तब बाढ़ आने का खतरा नहीं
सूअर या एक बं दर को बोलने की ट्रे निंग नहीं दे रहता। लेकिन अगर बाढ़ आने का अं दे शा हो तो वे
सकते। लेकिन आप चाहें तो कुछ पक्षियों को यह लोग अपना घोंसला अधिक ऊंचाई पर बनाते हैं।
ट्रे निंग दे सकते हैं। कुछ ऐसे पक्षी हैं, जो काफी
अच्छी तरह से बोल सकते हैं। खासकर अमेरिकी जब मैं छोटा था और मैंने हैंग ग्लाइडर चलाने की
‘मकाऊ’ पक्षी न सिर्फ इं सानों के कहे शब्दों को शुरुआत की थी, तो उन दिनों मैं कई दिनों तक
दोहराता है, बल्कि आप जो कहते हैं, उसे अच्छी लगातार हवा पर गौर करता रहता था। मैं जानता हूं
तरह से समझता भी है और हालात के अनुसार वह कि इसके लिए हवा कितनी महत्वपूर्ण है। विमान
कमेंट (टिप्पणी) भी करता है। यह अपने आप में चालकों के अलावा बहुत ही कम लोग ऐसे होते हैं,
अविश्वसनीय है। क्रमिक विकास के क्रम को दे खें जो हवा के महत्व को समझते हैं कि कैसे हवा में
तो पक्षी मानव से बहुत दूर हैं, लेकिन ध्वनियों को जरा सा भी बदलाव यह तय करेगा कि आपके साथ
समझने की उनकी शक्ति और ध्वनियों को पैदा क्या घटित होगा। खासकर, अगर आप बिना इं जन
करने की उनकी क्षमता धरती पर मौजूद दूसरे वाला वायुयान चला रहे हैं तो आप समझ सकते हैं
प्राणियों से बेहतर नजर आती है। कि हवा कितनी महत्वपूर्ण है।

अगर कुछ खास तरह के पक्षियों को छोड़ दिया तो अगर कोई इं सान मौसम के बारे में जानना
जाए, तो बाकी दूसरे पक्षी क्या बातें करते होंगे? चाहता है तो इस लिहाज से पक्षियों को सुनना
खाने के बारे में और थोड़ ा बहुत मौसम के बारे महत्वपूर्ण होगा, भले ही सारे पक्षियों को नहीं,
में। मौसम एक ऐसी चीज है, जिसके बारे में हम लेकिन जो पक्षी आसमान में ऊँ ची उड़ ान भरते
शायद मौसम विभाग के किसी भी यं त्र की तुलना हैं, कम से कम उन पर गौर करना जरूरी है। ऐसे
में पक्षियों से ज्यादा बेहतर तरीके से जान व समझ पक्षी जो आकाश में काफी ऊंचाई पर बिना अपने
सकते हैं। कई अध्ययनों से यह बात निकलकर पं खों को फड़ फड़ ाए उड़ते हैं, इन सभी पक्षियों में
आई है कि गं गा और नर्मदा नदी के किनारे कई मौसम के लक्षणों और हवा के रुख को पहचानने
पक्षी अपने घोंसले पानी के काफी नजदीक बनाते और समझने की जबरदस्त क्षमता होती है। लेकिन
हैं। उनके घोंसलों पर गौर करके कि पक्षियों ने आमतौर ये पक्षी ज्यादा बोलते नहीं। चील जैसे पक्षी

50 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


बहुत ज्यादा आवाज नहीं करते, वे कभी-कभार दोनों की प्रकृति में बहुत अं तर होता है। हड्डियों के
बोलते हैं। छोटी चिड़ि याएं ही बहुत बातूनी होती हैं। ज़रिए ध्वनि, हवा के मुक ़ ाबले ज़्यादा बेहतर तरीक ़े
ये एक खास स्तर से चीजों का निरीक्षण करती हैं। से चलती है। इसलिए किसी दूसरी आवाज की
इन सबके अलावा, योग का एक आयाम है, इसमें अपेक्षा अपनी खुद की आवाज का प्रभाव आप पर
आप अपने ‘उदान प्राण’ को बढ़ ाकर, आप इस तरह सबसे बड़ ा होता है।
की ध्वनि निकालने की क्षमता पा लेते हैं, जो बेहद
गं गा और नर्मदा नदी के
प्रभावशाली होती हैं। अपने यहां ध्वनि के माध्यम से अथवा किसी एक
मं त्र या किसी बीज मं त्र के द्वारा दीक्षित करने की किनारे कई पक्षी अपने
अगर आप पक्षियों या किसी और की भाषा जानना पुरानी व लं बी परंपरा रही है। इसका एक महत्वपूर्ण घोंसले पानी के काफी
चाहते हैं तो आप उनकी आवाज़ पर गौर मत आयाम यह है कि गुरु द्वारा दी गई ध्वनि आपके नजदीक बनाते हैं । उनके
कीजिए, बल्कि अपनी आवाज पर ध्यान देने की भीतर इस तरह से छप जाती है कि आपको लगातार
घोंसलों पर गौर करके कि
कोशिश कीजिए। आप यह ध्यान देने की कोशिश गुरु की आवाज सुनाई दे ती है और इस तरह से वह
कीजिए कि जब आप बोलते हैं, उस समय ध्वनि का आवाज आपकी आवाज पर हावी हो जाती है। जैसा पक्षियों ने अपने घोंसले
निकलना आपको किस तरह से प्रभावित कर रहा कि मैंने कहा कि आपकी अपनी आवाज आपको कितनी ऊंचाई पर बनाए हैं ,
है। अगर आप यह जान लें कि इन सारी चीजों पर दुनिया की किसी भी दूसरी आवाज़ से कहीं ज्यादा कई लोग यह जान लेते हैं
कैसे गौर किया जाए तो भाषा की समझ, आपके प्रभावित करती है, इसलिए ध्वनि द्वारा दीक्षित करने
कि इस साल बाढ़ आएगी
आसपास होने वाली आवाजों या ध्वनियों की प्रकृति के पीछे सोच यही है कि आपके गुरु की आवाज
स्वाभाविक तौर पर आपको समझ में आने लगेगी। आपकी अपनी आवाज को प्रभावित करे। लेकिन या नहीं।
क्योंकि आपके कान में या आपके तं त्रिका तं त्र में इसके लिए अपनी खुद की आवाज को एक तरफ
पहुँचने वाली सबसे धीमी ध्वनि आपकी खुद की रख पाने में बहुत मेहनत लगती है। इसके कई
होती है, क्योंकि जो कुछ हवा के माध्यम से आपके आयाम हैं, इसमें भक्ति काम करती है, इसमें भीतरी
कानों तक पहुं च रहा है और जो कुछ हड्डियों के अनुभव काम करता है।
जरिए आपके भीतरी कान तक पहुं च रहा है, उन

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 51


क्या बुद्ध उस इं सान को
बचायेंगे?
यहाँ सद्‌गुरु एक कहानी के बारे में बता रहे हैं , जो
एक जेन गुरु ने अपने शिष्यों को सु नाई थी। ये कहानी
सु नाकर उन्होंने अपने शिष्यों से पूछा था “बताओ, इस
कहानी में गलत क्या है ?” उनके शिष्य तो नहीं बता पाए
थे, क्या आप बता पाएं गे?

कहानी: एक दिन एक ज़न े मठ में सभी शिष्य अपने गुरु के चारों


ओर इकट्ठे हुए। गुरु बोले, "मैं जो कहानी सुना रहा हूँ , उसे पूरे ध्यान
से सुनो"। फिर उन्होंने कहना शुरू किया...

"एक बार बुद्ध अपनी आं ख बं द किये बैठे हुए थे, उन्हें किसी की
आवाज़ सुनाई दी, 'बचाओ, बचाओ'। उन्हें समझ आ गया कि ये
आवाज़ किसी मनुष्य की थी जो नर्क के किसी गड्ढे में था और पीड़ ा
भोग रहा था। बुद्ध को ये भी समझ में आया कि उसे ये दं ड इसलिये
दिया जा रहा था क्योंकि जब वो ज़िंदा था तब उसने बहुत सी हत्यायें
और चोरियां की थीं। उन्हें सहानुभतू ि का एहसास हुआ और वे उसकी
मदद करना चाहते थे।

उन्होंने यह दे खने का प्रयास किया कि क्या उस व्यक्ति ने अपनी


जीवित अवस्था में कोई अच्छा काम किया था? उन्हें पता लगा कि
उसने एक बार चलते हुए, इसका ध्यान रखा था कि एक मकड़ ी पर
उसका पैर न पड़ जाये। तो बुद्ध ने उस मकड़ ी से उस व्यक्ति की मदद
करने के लिये कहा। मकड़ ी ने एक लं बा, मजबूत धागा नर्क के उस
गड्ढे में भेजा जिससे वो अपना जाला बुनती है। वह व्यक्ति उस धागे
को पकड़ कर ऊपर चढ़ ने लगा। तब बाकी के लोग भी, जो वहां
यातना भोग रहे थे, उसी धागे को पकड़ कर ऊपर चढ़ ने लगे। तो
उस व्यक्ति को चिंता हुई, 'ये धागा मेरे लिये भेजा गया है, अगर इतने
लोग इसे पकड़ कर चढ़ें गे तो धागा टू ट जायेगा'। वो उन पर गुस्से से
चिल्लाया। उसी पल वो धागा टू ट गया और वो उस गड्ढे में फिर से
गिर गया।

52 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


उस व्यक्ति ने फिर चीखना शुरू किया, बचाओ, फिर वे अपना विचार बाद में, उस व्यक्ति के एक
बचाओ, लेकिन इस बार बुद्ध ने उसकी तरफ कोई स्वार्थी कर्म के कारण बदल नहीं दे त।े पुण्य और
ध्यान नहीं दिया"। पाप, अच्छा और बुरा ये सब नैतिकता के आधार पर
लिखे गये हैं। करुणा नैतिकता, कानून और विश्वासों
ज़न
े गुरु ने कहानी पूरी की और अपने शिष्यों से से परे की बात है। ऐसा नहीं हो सकता कि एक
पूछा, " बताओ, इस कहानी में क्या दोष है"? व्यक्ति पर करुणा दिखाई जाये और दूसरे पर नहीं।

एक शिष्य बोला, "मकड़ ी का धागा इतना मजबूत ज़ने गुरु ने अपने शिष्यों को जो कहानी सुनाई वह
नहीं होता कि एक व्यक्ति को ऊपर ला सके"। नैतिक मूल्यों पर आधारित बात थी जो किसी ने
गढ़ ी होगी। कहानी की नैतिक शिक्षा ये है कि एक
दूसरे ने कहा, "स्वर्ग और नर्क जैसी कोई चीज़ नहीं स्वार्थी व्यक्ति को, जिसे दूसरों की परवाह नहीं है, ़ ेन गुरु ने अपने शिष्यों

होती"। बुद्ध भी नहीं बचायेंगे। यह कहानी किसी ने समाज
को शिक्षा देने के लिये, लोगों पर प्रभाव डालने के को जो कहानी सुनाई वह
एक अन्य बोला, "जब बुद्ध आं ख बं द कर के बैठे लिये गढ़ ी है। नैतिक मूल्यों पर आधारित
और ध्यान कर रहे थे, तब उन्हें ज़रूर ही कोई और बात थी जो किसी ने गढ़ ी
आवाज़ सुनाई दे रही होगी"। जहाँ भी आवश्यकता एवं सं भावना हो, एक सच्चा
होगी। कहानी की नैतिक
आत्मज्ञानी गुरु कभी भी अपनी करुणा बरसाने में
गुरु मुस्कु राये और बोले, "तुम सबने एक महत्वपूर्ण हिचकिचायेगा नहीं। बुद्ध वही हो सकता है जिसने शिक्षा ये है कि एक स्वार्थी
मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया"। फिर वे उठे और चले गये। अपने अं दर पूरी स्वतं त्रता प्राप्त कर ली हो और जो व्यक्ति को, जिसे दूसरों की
स्वीकार या अस्वीकार करने की मजबूरी से परे चला परवाह नहीं है , बुद्ध भी
सद् ‌गुरु: जो सच्ची करुणा होती है, वो चयन नहीं गया हो। केवल वही करुणामय हो सकता है जो पूरी
नहीं बचायेंगे।
करती। किसी क्षण कोई ये विचार करे कि मुझे इस तरह से आनं दमय हो। 'बुद्ध' उसी को कहते हैं जो
व्यक्ति के लिये करुणामय होना चाहिये और फिर बुद्धि से परे, पूर्ण आनं द की अवस्था में हो।
ऐसा सोचे कि वह दूसरा व्यक्ति मेरी करुणा का पात्र
नहीं है, तो फिर ये करुणा नहीं है। किसी की मदद कुछ धार्मिक कट्टरवादियों ने, अन्य धर्मों की
करने में चयन हो सकता है पर करुणा में चयन नहीं तरह, बौद्ध धर्म का प्रचार करने के उद्देश्य से ऐसी
होता। यदि बुद्ध की इच्छा किसी ऐसे व्यक्ति को नैतिकतावादी कहानियां गढ़ ी हैं। यही कारण है कि
बचाने की होती जो नर्क में यातना भोग रहा है तो ज़ने गुरु यह कह रहे हैं कि इस कहानी में दोष है।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 53


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54 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


कंु दरु की सब्ज़ी
कंु दरुआतीएकहै तोऐसीहमारेसब्ज़ीतरीकहै़ ेजिसेअक्सरहम रटेबहुत-रटाएकमहोतेबनानाहैं। पसंतो दक्योंकरतेन आज
हैं । हरी सब्ज़ि यों की बारी
़ माएँ इन्हें कुछ अलग
़ े से । तो आइए आज कंु दरु की सब्ज़ी बनाते हैं कुछ अलग अन्दाज़ में।
तरीक

सामग्री:
कंु दरु : 200 ग्राम
टमाटर :3
नारियल : 10 ग्राम (कद्दूकस किया हुआ)
हल्दी : ¼ छोटा चम्मच
सां बर पाउडर : ¼ छोटा चम्मच
नमक : ½ चम्मच
तिल का तेल : 1 बड़ ा चम्मच
तड़ के के लिए
राई : ½ चम्मच
कड़ ी पत्ते : 3 से 6 (कटे हुए)

विधि :
कंु दरु को धोकर ऊपर और नीचे से काट लें। फिर उन्हें चार लम्बे टु कड़ ों में काटें । टमाटरों को
धोकर छोटे टु कड़ ों में काट लें। तेल को गहरी कड़ ाही में गर्म करें। तेल के गर्म हो जाने पर उसमें
राई डालकर तड़ काएं और कड़ ी पत्तों को हल्का तल लें। अब इसमें कटी हुई सब्ज़ियों को मिलाएं ।
हल्दी और सां बर पाउडर डालकर मिलाएँ । अब इसमें नमक डालें। एक बड़ ा चम्मच पानी छिड़ क
कर ढं क दें । कुछ दे र तक पकने दें । आखिर में कद्दूकस किया नारियल मिलाएं और गर्मा-गर्म
परोसें।
स्वाद बढ़ ाने के लिए: परोसने से पहले सब्ज़ी के ऊपर धनिया की कटी हुई पत्तियाँ डाल सकते हैं।
इसे रोटी या चावल के साथ खाया जा सकता है।
नोट: सां बर पाउडर की जगह ¼ चम्मच मिर्च और ½ चम्मच धनिया पाउडर डाला जा सकता है।
इस सब्ज़ी पर थोड़ ा सा जीरा पाउडर डालने से इसका स्वाद और बेहतर हो जाएगा।

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दर्पण

उम्र केवल चार वर्ष

ए क राज्य के राजा को यह आदत थी कि वे हर


किसी से कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते
अब राजा ने नए सिरे से पूछा, ‘पितामह! आपके
बाल पक गए हैं, आप लाठी लेकर चल रहे हैं, शरीर
थे। अपने इस स्वभाव के कारण उस राजा ने काफी में झुर्रियाँ पड़ गई हैं, मेरा अनुमान है कि आप 80
कम उम्र में बहुत ज्यादा ज्ञान हासिल कर लिया वर्ष से कम के तो नहीं होंगे, लेकिन फिर भी आप
था। सीखते रहने के इस स्वभाव के कारण वे हमेशा अपनी उम्र महज 4 साल ही बता रहे हैं। भला यह
किसी से कुछ न कुछ पूछते रहते थे। कैसे सं भव हो सकता है?’

राजा एक बार अपने राज्य के भ्रमण के लिए वेश वृद्ध ने गं भीर होकर कहा, ‘आप बिलकुल ठीक
बदलकर अपने महल से बाहर निकले। अभी निकले कह रहे हैं, मेरी उम्र 80 वर्ष ही है, किन्तु मैंने अपनी
ही थे कि उन्हें महल के बाहर ही एक बूढ़ा किसान ज़िन्दगी के 76 वर्ष धन कमाने, शादी-ब्याह करने
मिल गया। किसान के बाल पक गए थे लेकिन और बच्चे पैदा करने में गं वा दिए। ऐसा जीवन तो
शरीर में अभी भी जवानों जैसी चेतना थी। किसान कोई पशु भी जी सकता है, तो आप ही बताइए कि
की चेतना का रहस्य जानने की इच्छा से राजा मैं जीवन की उस अवधि को जीवन कैसे मानूँ?
ने किसान से पूछा, ‘महानुभाव, आपकी आयु
कितनी होगी?’ यह बात मुझे महज़ चार साल पहले ही समझ आई
कि जीवन को जागरूकता में कैसे जिया जाए। जब
वृद्ध ने राजा को मुस्कान भरी दृष्टि से दे खा और चार साल पहले मुझे गुरु मिले तब मुझे यह समझ
बोला, ‘कुल चार वर्ष’। राजा किसान की बात आया कि इस मानव जीवन में कितनी सं भावनाएँ हैं।
सुनकर मुस्कु रा दिए। राजा ने सोचा वृद्ध शायद तभी मैं जान पाया कि यह जीवन क्या है और कैसे
मजाक कर रहे हैं, इसलिए राजा ने दोबारा किसान इसे असीम तक जाने का साधन बनाया जा सकता
से वही सवाल पूछा। लेकिन इस बार भी किसान ने है। जबसे मैंने जीवन को जागरूकता में जीना शुरू
वही जवाब दिया। किसान का ज़वाब सुनकर राजा किया है, तब से ही मैंने सही मायने में जीवन जीना
को ग़ुस्सा आ गया। एक बार तो राजा के मन में शुरू किया है। बस इसीलिए मैं अपने आप को महज
विचार आया कि वृद्ध किसान को बता दिया जाए 4 वर्ष का ही मानता हूँ ।’
कि वह कोई आम आदमी नहीं बल्कि वेश बदलकर
आए हुए इस राज्य के राजा हैं। लेकिन फिर राजा राजा को समझ आ गया कि उस वृद्ध किसान की
को अपने गुरु की कही एक बात याद आई कि बातों में मज़ाक
़ नहीं बल्कि जीवन की बहुत बड़ ी
‘क्रोधित और उत्तेजित हो जाने वाला व्यक्ति कभी भी सीख थी।
ज्ञान हासिल नहीं कर सकता’। यह सोचकर राजा
का क्रोध वहीं शां त हो गया।

साभार: इं टरनेट

56 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


बाधाएँ हैं
बाधाएँ हैं, उन्हें छु ड़ ाना चाहूँ
पीर पहुँ चती उन्हें छु ड़ ाने में पर,
मुक्ति माँ गने पास तुम्हारे जाऊँ
किंतु माँ गते लज्जा से जाता मर।

जानूँ तुम सा धन ना दूजा


तुम्हीं श्रेयतम जीवन-पूजा
फिर भी किंचित घर जो सं चित
कहाँ उन्हें कर पाता हूँ मैं बाहर।

तुम्हें ढाँ ककर रज से अं तर


मरण अनेक बुलाता
मुझे हृदय से घिन है उनसे
फिर भी वही सुहाता
़ ी इतना फाँ की इतना
बाक
बहुत विकलता लुकछिप कितना
भला इसी से अपना तुम से
हाय, माँ गने में लगता है जो डर।

- रवीन्द्रनाथ
टै गोर (गीतां जलि)

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 57


ईशार्पण

ईशा योग कार्यक्रम


हिंदी कार्यक्रम
दिल्ली
योगासन फरीदाबाद 5 - 9 अगस्त 9650092103
योगासन मध्य दिल्ली 6 - 10 अगस्त 9650092103
अं गमर्दन  21 - 25 अगस्त 9650092103

"योग सिर्फ अच्छे से जीने सूर्य क्रिया इं टेंसिव  पूर्वी दिल्ली 22 - 25 अगस्त 9650092103
के बारे में नहीं है । योग भूत शुद्धि 25 अगस्त 9650092103
इस बारे में है कि हम वाराणसी 
अपनी पूं जी को शरीर,
अं गमर्दन 18  - 22 अगस्त 8469521795
दिमाग, और भावनाओ ं से
भूत शुद्धि वाराणसी 18  अगस्त 8469521795
हटाकर अपनी अन्तरात्मा
सूर्य क्रिया 19 - 22 अगस्त 8469521795
में लगाएं । इसका सं बं ध
जीवन के मूल स्रोत को जयपुर

खोजने से है ।" भूत शुद्धि 2 अगस्त 9829033167


जयपुर
- सद्‌गुरु जल नेति 2 अगस्त 9650092103
महाराष्ट्र
इनर इं जीनियरिंग - 7 दिन यवतमाल 7 - 13 अगस्त 9049458456
मध्य प्रदे श
इनर इं जीनियरिंग- 7 दिन भोपाल 14 - 20 अगस्त 7770906177
रायपुर
गुरु पूजा रायपुर 9 - 11 अगस्त 9340704494
अं ग्रेजी कार्यक्रम
दिल्ली
भूत शुद्धि दक्षिणी दिल्ली 2 अगस्त 9650092103
भूत शुद्धि फरीदाबाद 4 अगस्त 9650092103
जल नेति दक्षिणी दिल्ली 4 अगस्त 9650092103
सूर्य क्रिया 6 - 9 अगस्त 9650092103
सूर्य शक्ति (बच्चों के लिए) 6 - 10  अगस्त 9650092103
मध्य दिल्ली
अं गमर्दन 6 - 10  अगस्त 9650092103
शन्मुखी  10  अगस्त 9650092103

58 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


21 दिन हठ योग दक्षिणी दिल्ली 12  अगस्त - 1 सितम्बर 9650092103
अं गमर्दन 21 - 25  अगस्त 9650092103
द्वारका 
सूर्य क्रिया 22- 25  अगस्त 9650092103
योगासन 26 - 30  अगस्त 9650092103
सूर्य क्रिया उत्तरी दिल्ली 26 - 30  अगस्त 9650092103
भस्त्रिका 30  अगस्त 9650092103
पटना
इनर इं जीनियरिंग- 4 दिन पटना 8 - 11 अगस्त 9608925070
रायपुर 
रायपुर  गुरु पूजा  9 - 11 अगस्त 9340704494
महाराष्ट्र
विले पार्ले 14 - 20 अगस्त 9930624220
मलाड 14 - 20 अगस्त 7045378030
डोम्बिविली 14 - 20 अगस्त 8459025851

इनर इं जीनियरिंग- 7 दिन कोलाबा 21 - 27 अगस्त 9820070091


  पवई 21 - 27 अगस्त 8850996241
वाशी 21 - 27 अगस्त 9833890567
प्रभादेवी 21 - 27 अगस्त 9820424777
ठाणे 21 - 27 अगस्त 9833205939
अं गमर्दन 1 - 5 अगस्त 9769990031
जुहू
सूर्य क्रिया 2 - 4 अगस्त 9821020223
भूत शुद्धि वाशी 4 अगस्त 7620108210
अं गमर्दन 8 - 12 अगस्त 9769990031
जुहू
सूर्य क्रिया 10 - 12 अगस्त 9821020223
योगासन 12 - 16 अगस्त 9022781786
कां दीवली
अं गमर्दन 10 - 12 अगस्त 7045457654
योगासन 15 - 20 अगस्त 9892690121
जुहू
अं गमर्दन 15 - 19 अगस्त 9769990031
सूर्य क्रिया कां दीवली 17 - 18 अगस्त 9833081928

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 59


मौन क्रांति

योग दिवस पर भारतीय नौसे ना के साथ सद्‌गुरु


21 जू न, पोर्ट ब्लेयर, अं डमान निकोबार, सद् ‌गु रु ने अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस भारतीय नौसे न ा के जवानों के
साथ फ्लोटिंग डॉक पर मनाया। अपने सं दे श में सद् ‌गु रु ने कहा कि राष्ट्र के लिए हमारे सशस्त्र बलों
की निष्ठा और लगन प्रेरणादायक और प्रशं सनीय है ।

60 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


मौन क्रांति

मशहूर अभिनेता नैनी ने की सद्‌गुरु से बातचीत


23 जू न, है दराबाद, 4000 से अधिक लोगों की
उपस्थिति में हुई इस बातचीत में सद् ‌गु रु ने
योग और आनं द से जु ड़ी जानकारी दी और सभी लोगों
को कुछ सरल योग अभ्यास भी सिखाए।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 61


मौन क्रांति

ध्यानलिंग के 20 वर्ष पूरे


24 जून, ईशा योग केंद्र में सद् ‌गुरु द्वारा प्राण-प्रतिष्ठित ध्यानलिंग के 20 वर्ष पूरे हुए। इस अवसर पर ध्यानलिंग परिसर
में सभी धर्मों और आध्यात्मिक संस्थाओ ं के प्रतिनिधियों द्वारा भजन, गीत और मन्त्रों की प्रस्तुतियां दी गई।

62 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


मौन क्रांति

प्रतिमा इन्स्टिटू ट में ‘यूथ एं ड ट्रूथ’


24
़ मेडिकल साइयन्सेस, हैदराबाद, में यूथ एं ड ट्रू थ कार्यक्रम में सद् ‌गुरु
जून, प्रतिमा इन्स्टिटू ट ऑफ
ने छात्रों से अलग-अलग विषयों पर बातचीत की।

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अगस्त 2019 63


मौन क्रांति

दिल्ली में सत्सं ग का आयोजन


25 जून, नई दिल्ली, 6000 से अधिक ईशा स्वयं से वकों ने सद् ‌गुरु के साथ सत्सं ग का आनंद लिया।

64 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


मौन क्रांति

यूनाइटे ड नेशन में ‘योग - समावेश की शक्ति’


27 जून, यूनाइटे ड ने शन, जिने वा, वर्ल्ड हे ल्थ
ऑर्गनाइज़ ेशन के डॉ. सौम्य स्वामीनाथन और
़ ेशन के डॉ. फ
वर्ल्ड इं टे लेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गनाइज ़्रैन्सिस गुर्री
ने सद् ‌गुरु के साथ ‘योग - समावेश की शक्ति’विषय पर एक
दिलचस्प बातचीत की।

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मौन क्रांति

़ मास्टर’ कार्यक्रम
ईशा योग केंद्र में ‘इन द लैप ऑफ
14 जुलाई, कोयं बतूर, ईशा योग केंद्र में ‘इन द लैप ऑफ़ मास्टर’ कार्यक्रम में दुनिया भर से आए लोग शामिल हुए। दो दिन
के इस कार्यक्रम में लगभग दस हज ़ ार ईशा साधकों ने सद् ‌गुरु के सान्निध्य में योग, ध्यान और सत्सं ग का आनंद लिया।

66 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com


मौन क्रांति

आश्रम में गुरु पूर्णिमा सत्सं ग


16 जु लाई, ईशा योग केंद्र, अदियोगी के प्रां गण में लगभग 1500 साधकों ने सद् ‌गु रु के सान्निध्य में सत्सं ग का
लाभ उठाया।

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RNI No – Delhi N/2012/46538, Postal registration No-DL-SW-1/4172/13-15
Date of publishing - 1st x posted on 3rd x 4th of every month. Posted at - ND PSO

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