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Isha Lahar - August 2019
Isha Lahar - August 2019
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ishalahar@ishafoundation.org
Isha Lahar, Isha Yoga Center, Velliangiri Foothills, Ishana Vihar, Coimbatore, Tamil Nadu - 641114, India
www.ishalahar.com | ishalahar@ishafoundation.org | Landline: 0422 2515676 | Mobile: +91 944 212 6000
2 ईशा लहर | अगस्त 2019 ishalahar.com
जीवन सूत्र
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¿ð‹Ù§ü-{®®®v| सं पादकीय 06
ȤæðÙ Ñ ®yy-yz®vvvx| आपकी बात 07
âÎSØÌæ ¥æñÚU çß™ææÂÙ ·ð¤ çÜ° â¢Â·ü ·¤Úð´UÑ ज्यामितिय रूप से महतवपूर्ण ये तस्वीरें 29
ç´·¤Ü +~v-~yywv-w{®®® चक्रों का अं तराल बढ़ ाइए 30
×ÙæðãUÚU +~v-~yywv-~x|x{
तकलीफ ़ के बिना तरक़्क़ी सं भव नहीं? 32
RNI No.: Delhi N/2012/46538 ईशा लहर प्रतियोगिता 46
©copyright reserved: Isha Foundation
़ े सबुक से
फ 47
समझ सकते हैं पक्षियों की भाषा? 50
कंुदरु की सब्ज़ी 55
CUSTOMER CARE
+91-9442126000
4 ईशा लहर | अगस्त 2019
IshaLahar@IshaFoundation.org ishalahar.com
़ रिया
अनूठा नज
पुनर्जन्म के विचारों में कैद था मेरा मन 40
अध्यात्म के आकाश में एक पायलट की उड़ ान 42
क्या बुद्ध उस इं सान को बचायेंगे? 52
ईशामृतम
आध्यात्मिक यात्रा: मन की नहीं, अनुभव की यात्रा 14
अध्यात्म की राह पर इतना काम क्यों? 16
रीलिजन टू रीस्पान्सबिलिटी 18
भक्ति: मूर्खता है या मुक्ति का रास्ता 20
आं तरिक ज्यामिती से कै से जुड़ा है अध्यात्म? 22
ज्योतिर्गमय
बं धन 09
अपनी रफ़्तार मत होने दीजिए धीमी 10
तो अब इं तज़ार किसलिए? 12
मेरे से कम स्मार्ट पर अधिक सफल, ऐसा कैसे? 24
कैसे होता है पहली नज़र में प्यार? 48
उनका क्षोभ यह था कि एक व्यक्ति जो सं न्यासी है, वो भला वातानुकूलित ट्रे न में कैसे यात्रा कर सकता
है? उनकी बातों से उनका पूर्वाग्रह स्पष्ट हो रहा था, जो उनके मन में सं न्यासियों के लिए था। उनका
विचार यह था कि अगर किसी व्यक्ति ने अध्यात्म-मार्ग पर चलने का निर्णय कर लिया है, तो उसे जीवन
में सुख या आराम को स्पर्श करने का कोई हक ़ नहीं है।
सालों पहले की उस घटना को आज जब मैं याद करती हूँ तो लगता है कि आध्यात्मिकता को लेकर
आज भी लोगों के विचारों में बहुत बदलाव नहीं आया है। अभी भी तथाकथित शिक्षित समुदाय भक्ति
को अं धविश्वास और मूर्खता के सिवाय कुछ और नहीं समझता है। कुछ लोगों के लिए आध्यात्मिकता
और नैतिकता में कोई अं तर ही नहीं। एक बहुत बड़ े बुद्धिजीवी वर्ग को यह विश्वास है कि दूसरों के लिए
नेकनीयत रखना और यथासं भव उनकी मदद करना ही जीवन को सार्थक बनाने के लिए काफ ़ ी है।
़
एक बहुत बड़ ा वर्ग खुद को आध्यात्मिकता से सिर्फ इसलिए दूर रखना चाहता है क्योंकि उन्हें यह पूरा
विश्वास है इस राह पर केवल कष्ट ही कष्ट है, और इसलिए ये लोग अपने बुढ़ापे के लिए आध्यात्मिकता
को बचाकर रखना चाहते हैं।
़ ई
तो आख़ि र आध्यात्मिकता का अर्थ क्या है? क्या अं तर है भक्ति और अं धविश्वास में? क्या भक्ति वाक
मूर्खता है? अगर नहीं तो कोई भक्त किसी तर्क को क्यों नहीं समझता? हमने आध्यात्मिकता से जुड़े ऐसे
ही अनेक सवालों का जवाब इस अं क में समेटने की कोशिश की है। आशा है कि आप अपने मन की
हर शं का दूर कर आध्यात्मिकता को सही सं दर्भ में समझ पाएँ गे और जीवन में परम आनं द का अनुभव
कर पाएँ गे। शुभम् भवेत!
़ ुद को एक महायज्ञ
सद्गुरु ने ख
की तरह प्रज्ज्वलित किया हुआ है
गुरु कौन हैं? आपके दुखी और विचलित मन को सां त्वना देने वाले, आपके कष्टों और बाधाओ ं को
दूर करने वाले, आपके लिए भविष्य की अनदे खी गलियों में तां क-झां क कर आपको एक आसान
राह सुझाने वाले या कोई ताबीज या माला देकर सर्व कष्ट निवारण मन्त्र देने वाले? जी हां ! गुरु के
रूप में ऐसी ही कुछ छवि हमारे मन में बनी होती है। इसलिए ऐसी कुछ सुविधाएँ देने वाले लोग गुरु
के रूप में जगह-जगह पूजे जाते हैं।
जुलाई का अं क सद् गुरु के एक मूलभूत आयाम, उनके गुरु होने को समर्पित मिला। जैसा सद् गुरु
/SadhguruHindi
कहते हैं, गुरु होना एक फ्रस्टे शन से भरा काम है। ऐसे लोग जो गुरु की ऐसी व्याख्याओ ं के साथ
उन्हें परखते हों, उन्हें उनके अज्ञान से परिचित कराना, फिर उन्हें आत्म-ज्ञान की एक दुरूह, लम्बी
और अनिश्चितता से भरी राह पर ले जाना, निश्चित तौर पर एक मुश्किल काम है। सद् गुरु अथक like us on facebook
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रूप से मानवता के हर रूप की भलाई के लिए काम कर रहे हैं, स्वयं को उन्होंने अनं त सं भावनाओ ं /SadhguruHindi
वाले एक महायज्ञ की तरह प्रज्ज्वलित किया हुआ है। वे हर उस जिज्ञासु के लिए उपलब्ध हैं जो
अन्तरतम की यात्रा पर एक कदम भी बढ़ ाना चाहता है। अब हर पल यही एक प्रार्थना है कि ऐसे Follow us on Twitter
गुरु के लिए हम खुद को योग्य बना सकें। twitter.com/IshaHindi
शलभ सूर, जयपुर
editor@ishalahar.com
हम बचपन से रविवार की छु ट्टी मनाते आ रहे हैं, लेकिन कभी सोचा भी नहीं कि आख़ि र ‘रविवार’
ही क्यों? ईशा लहर के जुलाई अं क ने पहली बार यह अहसास दिलाया कि रविवार की छु ट्टी भी
एक सुनियोजित सां स्कृतिक बदलाव का परिणाम है। हमने कभी सोचा ही नहीं कि यह साप्ताहिक
छु ट्टी किसी और दिन भी हो सकती है जो हमारे आं तरिक विकास के काम आ सकती है। विदे शी
शासकों ने सचमुच इतनी बुरी तरह से हमारे सां स्कृतिक मूल्यों को नष्ट किया है कि हम आज तक
पूरी तरह से यह नहीं समझ पाए हैं कि हमारा सकल नुक ़ सान कितना हुआ है। ऐसे में सद् गुरु जैसे
आत्म-ज्ञानी ही हमें फिर से हमारी सां स्कृतिक जड़ ों से जोड़ सकते हैं।
गुरु पूर्णिमा जैसे अवसरों पर होने वाली छु ट्टियों का आज की युवा पीढ़ ी अक्सर मज़ाक
़ उड़ ाती है।
कदाचित समस्या समझ की है – वस्तुतः हम कभी खद ़ ु समझ ही नहीं पाए और इसलिए अपनी
अगली पीढ़ ी को समझा भी नहीं पाए कि ये चीज़ें हमारे लिए क्या महत्व रखती हैं। आज ज़रूरत
है कि सद् गुरु जैसे ज्ञानी और प्रभावशाली व्यक्ति इस तरह के बदलाव की पहल करें और एक बार
फिर इस दे श में हमें रविवार की जगह पूर्णिमा और अमावस्या की छु ट्टियाँ दिलाने की
कोशिश करें।
पूनम महाजन, हाथरस
बं धन
काटना पड़ ता है
उस जीवनदायी नली को भी
जो जुड़ी होती है
शिशु की नाभि से
ताकि फल-फ ़ ू ल सके जीवन
लेकिन उसके बाद इं सान
बनाता रहता है अनेक बं धन
और तोड़ ता है
उनमें से सिर्फ़ कुछ को।
़ ार किसलिए?
तो अब इं तज
़ म्मेदारी को पूरे मन से स्वीकार करके आनं दपूर्वक काम करने
हर इं सान यदि अपनी जि
लगे, तो हम इस दे श को ही क्यों, सं पूर्ण धरती को अपनी इच्छानुसार बदल सकते हैं ।
़ ार कर रहे हैं ?
तो हम अब किसलिए इं तज
आध्यात्मिक यात्रा
मन की नहीं,
अनुभव की यात्रा
एक आध्यात्मिक प्रक्रिया क्या है ? इसे एक
बहुत ही तकनीकी परिभाषा दें तो हम कह
सकते हैं - यदि आपके जीवन का अनुभव
भौतिक सीमाओ ं को पार कर जाता है , तो
आप आध्यात्मिक हैं ।
थी। लोगों ने जाना कि भक्ति एक व्यक्ति के विकास मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि भक्ति बुद्धि
के लिए एक जबरदस्त साधन है। यूरोपीय सं स्कृति का एक और आयाम है। बुद्धि की तुलना में भक्ति
में, पिछले पं द्रह सौ वर्षों में कट्टरता भरे जीवन के के ज़रिए अस्तित्व को जानना एक बहुत आसान
तरीकों को थोपा गया। जब विज्ञान और कला तरीका है। बुद्धि बहुत भ्रामक है, यह आपको दूसरे
का नया दौर शुरू हुआ, तो सबसे पहले उन्होंने की तुलना में अधिक स्मार्ट दिखाती है लेकिन
कट्टरता भरे जीवन के तरीकों का विरोध किया। जीवन के सं दर्भ में आपको मूर्ख और अधिक मूर्ख
यह विरोध उन्हें वहाँ ले गया जहाँ बुद्धिजीवी होने बनाती है। जीवन के अनुभव के मामले में आप
का मतलब है, कट्टरता का विरोध करना। लेकिन अधिक से अधिक विवश बन रहे हैं, लेकिन किसी
यदि आप वास्तव में जीवन
उन्होंने इस कट्टरता में भक्ति को भी शामिल कर दूसरे व्यक्ति की तुलना में आप उससे अधिक स्मार्ट
को जानना चाहते हैं ,
लिया। परमात्मा या भक्ति से जुड़ी चीज़ों का विरोध लग रहे हैं। दरअसल जीवन की पूरी प्रक्रिया में
अनुभव करना चाहते हैं - होने लगा। हमने इसे बस किसी और से बेहतर बनाने तक ही
़ रूरत
तो आपको भक्ति की ज सीमित कर दिया है।
यदि आप तीव्र बुद्धि वाले हैं, तो आप भक्ति नहीं
है । भक्ति एक ऐसी अवस्था
कर सकते। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि भक्ति यदि आपकी रुचि जीवन का अनुभव करने, जीवन
़ ाली
है जहाँ आप खुद से ख
अस्तित्व का मूर्खतापूर्ण तरीका नहीं है, भक्ति बुद्धि की खोज करने, जीवन को जानने, उन आयामों में
होते हैं । जब आप खुद से का एक और आयाम है। ये वो चीज़ें करती है जो प्रवेश करने में है जिन्हें आपने अभी तक नहीं छु आ
़ ाली होते हैं , तो आप
ख साधारण बुद्धि कभी नहीं कर सकती। इसके कई है, तो आपको भक्ति की ज़रूरत है। बुद्धि बहुत
महान उदाहरण रहे हैं। एक महान उदाहरण जिसे दूर नहीं जाएगी। यदि आप वास्तव में जीवन को
भक्ति में हैं । यदि आप खुद
दुनिया आज बड़ े पैमाने पर पहचानती है, वह है जानना चाहते हैं, गले लगाना चाहते हैं, अनुभव
़ ाली हैं , तो कुछ आपसे
से ख
रामानुजम। आपने रामानुजम के बारे में सुना होगा, करना चाहते हैं - तो आपको भक्ति की ज़रूरत है।
़ रिए
बहुत बड़ ा, आपके ज एक गणितज्ञ। उन्होंने गणित के सूत्र बताए, जिसे भक्ति एक ऐसी अवस्था है जहाँ आप खुद से ख ़ ाली
काम करता है । समझने में लोगों को सौ साल लग गए, यह लोग होते हैं। जब आप खुद से ख ़ ाली होते हैं, तो आप
शीर्ष गणितज्ञ और वैज्ञानिक थे। आखिरी सूत्र जो भक्ति में हैं। यदि आप खुद से ख ़ ाली हैं, तो कुछ
उन्होंने लिखा था, वह उन्होंने अपनी मृत्यु शैय्या पर आपसे बहुत बड़ ा, आपके ज़रिए काम करता है।
लिखा था। वे एक दे वी के भक्त थे। उन्होंने यह सूत्र जब आप नहीं होते हैं, तो वह जो असीम है, वह
लिखा है और उन्हें यह भी नहीं पता कि यह किस मौजूद होता है।
बारे में है। उन्होंने कहा, ‘मेरी दे वी ने मुझे यह दिया
है।’ इसे सौ साल से अधिक हो गए - साल 2010 इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति चाहे वह जो भी काम
में जाकर लोग यह समझ पाए कि यह गणित का करता हो, चाहे वह कारोबार हो, विज्ञान हो, कला,
डॉक्टर राजशेखरन: मान लीजिए एक व्यक्ति बस योगी हैं, तो लोग उनका आशीर्वाद लेने लगते हैं।
में जा रहा है और आगे से पां चवीं सीट पर बैठा है। उन्हें लगता है कि उनके जीवन में अगर चिकनाहट
बस का एक्सिडेंट हो जाता है। आगे की चार सीटों यानी लुब्रीकेशन नहीं होगी, तो टू ट-फूट ज़्यादा
पर बैठे लोगों को कुछ नहीं होता और पीछे की होगी। आपको पता ही है जोड़ ों के बारे में। अगर
सीटों पर बैठे लोग भी बच जाते हैं, लेकिन पां चवीं कोई चिकनाहट नहीं होगी तो कोई भी मशीन जल्द
सीट पर बैठा यह व्यक्ति बुरी तरह घायल हो जाता ही बेकार हो जाएगी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
है। इसी तरह कई बार अस्पताल में कुछ लोगों को कि मशीन कितनी अच्छी है, इसका भी कोई महत्व
इलाज के दौरान कई तरह की जटिलताओ ं का नहीं कि मशीन को कितनी अच्छी तरह से डिजाइन
सामना करना पड़ता है, जबकि किसी बड़ ी दुर्घटना किया गया है, अगर चिकनाहट नहीं है तो वह बेकार
इससे कोई फर्क नहीं पड़ ता का शिकार हुए लोगों की बीमारी जल्दी ठीक हो हो जाएगी। सं स्कृत में इसके लिए कई शब्द हैं
कि मशीन कितनी अच्छी जाती है। सद् गुरु, एक डॉक्टर के रूप में मैं इस लेकिन अं ग्रेजी में इसे ‘ग्रेस’ यानी ‘कृपा’ कहा जाता
रहस्य को समझ नहीं पाता। आप इसकी व्याख्या है। अगर आपने कृपा हासिल कर ली है, अगर आप
है , इसका भी कोई महत्व
कैसे करेंगे? कृपा के प्रति ग्रहणशील हैं तो इसका मतलब है
नहीं कि मशीन को कितनी कि चिकनाहट मौजूद है और जहां चिकनाहट है,
अच्छी तरह से डिजाइन सद् गुरु: जिसे आप जीवन का शारीरिक पहलू कहते वहां कोई रगड़ नहीं होगी। ऐसे में टक्कर भी ऐसे
किया गया है , अगर हैं, वह एक मेकैनिकल प्रक्रिया है। दुर्घटना का व्यक्ति को ज्यादा नुकसान नहीं पहुं चाएगी। लेकिन
मतलब है कुछ ऐसा होना जिसकी उम्मीद न थी। हमें इन बातों को हर चीज से जोड़ कर नहीं दे खना
चिकनाहट नहीं है तो वह
जब दो मेकैनिकल चीजें आपस में टकराती हैं, तो चाहिए, क्योंकि मेकैनिकल प्रक्रिया कई तरीकों से
बेकार हो जाएगी। सं स्कृत हमें पता नहीं होता कि क्या-क्या टू टे गा। भौतिक हो सकती है। उसे हमेशा आध्यात्मिकता से जोड़ कर
में इसके लिए कई शब्द हैं अस्तित्व की प्रकृति यही है। ऐसे में एक सामान्य नहीं दे खना चाहिए। जिन लोगों के पास कृपा है,
लेकिन अंग्रेजी में इसे ‘ग्रेस’ सी मेकैनिकल घटना में हमें कोई रहस्य ढूं ढने की हो सकता है वे उस बस में ही नहीं चढ़ ें। इसका
कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह इस बात का एक मतलब यह नहीं है कि अगर आपके पास कृपा है तो
यानी ‘कृपा’ कहा जाता है ।
पहलू है। लेकिन चूं कि गुरुत्वबल काम कर रहा आपको कभी कोई चोट ही नहीं लगेगी, या आपकी
है, चूं कि कमजोर और ताकतवर नाभिकीय बल मौत ही नहीं होगी। हो सकता है कि किसी व्यक्ति
मौजूद हैं, चूं कि ऐसी बहुत सारी भौतिक ताकतें हैं, के लिए आज मर जाना ही अच्छी बात हो। माफ
जो जीवन के मेकैनिकल पहलुओ ं को चलाती हैं कीजिए, मैं ऐसी बात कह रहा हूं । लोग तार्किक
इसलिए दूसरे पहलुओ ं को भी दे खना होगा। रूप से जिन बातों को गलत समझते हैं, अगर वे उसे
अपने जीवन में सही तरीके से परखें, तो हो सकता
हमारे यहां परंपरा है कि जब भी लोग किसी से है कि लगे कि वो तो उनके जीवन में एक बहुत बड़ े
मिलते हैं और कोई कहता है कि वह सं त हैं या आशीर्वाद की तरह हैं।
आपने पढ़ ा: पां डव लाक्षागृह से बच निकले और आसानी से उन्हें मार सकता था और किसी को शक
एक जं गल में पहुं चे। वहां एक आदमखोर राक्षस भी नहीं होता, इसलिए उन्हें बहुत सावधानी से वापसी
और भीम के बीच एक भयं कर लड़ ाई हुई और भीम की योजना बनानी थी।
ने उसे मार गिराया। उस राक्षस की बहन हिडिम्बा
भीम के प्रेम में पड़ गयी और उनके पुत्र घटोत्कच एक बार जब वे जं गल में थे, तो वे एक झील के
का आगमन हुआ। इसके बाद वे एकचक्र नाम के निकट गए। वे झील से पानी पीना चाहते थे मगर उस
नगर में रहने चले गए। अब आगे: झील पर अं कारपर्ण नामक एक गं धर्व का अधिकार
था । यह जानकर कि अर्जुन एक महान तीरंदाज है,
पां डवों को यह कहानी सुनाने जब पां डव और कंु ती एकचक्र नगर में रह रहे थे, उन्हीं उसने अर्जुन को चुनौती दे ते हुए कहा, ‘मेरी झील
दिनों बकासुर नाम का एक नरभक्षी राक्षस भी उस से पानी पीने से पहले तुम्हें मेरे साथ मल्लयुद्ध करना
के बाद अंकारपर्ण ने उन्हें
नगर के पास आकर रह रहा था। उसने इस नगर का होगा।’ एक भयं कर मल्ल्युद्ध के बाद गं धर्व हारकर
सलाह दी, ‘प्रतिशोध पर अपना विनाश करना शुरू कर दिया था। अचेत हो गया। एक योद्धा के धर्म का पालन करते
समय और ऊर्जा नष्ट मत हुए अर्जुन को उसे मारना था क्योंकि किसी को
कीजिए। आप राजा बन सकते वह लोगों, पशुओ ं और अपने रास्ते में आने वाली हराकर छोड़ देना उसे शर्मिंदा करना माना जाता था।
हर चीज को उठा लेता और खा जाता। फिर नगर
हैं । इसलिए पहले एक पुरोहित
परिषद ने उससे एक समझौता किया, कि वे सप्ताह एक क्षत्रिय आम तौर पर हार जाने के बाद जीवित
खोजिए, फिर शादी कीजिए, में एक बार उसे गाड़ ी भरकर भोजन, दो बैल और नहीं रहना चाहता था, वह मरना पसं द करता था।
जमीन हासिल कीजिए, खुद एक आदमी भेजग ें े। बदले में वह नरभक्षी नगर पर अर्जुन उसका सिर काटने ही वाला था कि तभी
अपना राज्य बनाइए और राजा आक्रमण नहीं करेगा और बाकी लोगों को छोड़ दे गा। अं कारपर्ण की पत्नी कंु भनाशी आकर उसके आगे
शहर के अं दर उन्होंने यह व्यवस्था की, कि हर सप्ताह गिड़ गिड़ ाने लगी, ‘वह क्षत्रिय नहीं हैं। उन्हें हारने
बन जाइए। बदला लेने की
कोई एक परिवार गाड़ ी भरकर भोजन पकाएगा के बाद जीवित रहने में कोई आपत्ति नहीं होगी।
कोशिश मत कीजिए।’ और उसे दो बैल तथा अपने परिवार का एक सदस्य उनकी पत्नी के रूप में मैं आपसे उनके प्राणों की
भेजना होगा। भीम ने खुद वहां जाने की इच्छा प्रकट भीख मां गती हूं। आप दोनों के धर्म अलग-अलग
की। एक भयं कर लड़ ाई में उसने बकासुर को हराकर हैं। इसलिए उन्हें मारने की जरूरत नहीं है।’ अर्जुन
मार डाला। ने उसकी जान बख्श दी। जब गं धर्व होश में आया,
तो उसने कृतज्ञ होकर अर्जुन को बहुत से उपहार
बकासुर के मरने और लाक्षागृह के जल जाने के दिए जिनमें सौ घोड़ े और क्षत्रियों के काम आने वाली
करीब-करीब एक साल बाद पां डवों को लगा कि बाकी चीजें थीं। साथ ही उसने चतुराई और बुद्धिमत्ता
उन्हें अपने अज्ञातवास से बाहर आना चाहिए। चूं कि की एक सौ कहानियां सुनाईं। इनमें से हम एक
उन्हें मरा हुआ मान लिया गया था, इसलिए कोई भी कहानी चुनग ें े जो खास तौर पर पां डवों और उनके
अगम: सद् गुरु, हम सभी के जीवन में एक खास कहने का अर्थ यह है कि हमारा भौतिक अस्तित्व
तरह की स्थितियां बार-बार आती रहती हैं। स्थितियों यहां सिर्फ चक्रों की वजह से ही है। हमारे भीतर
का यह दोहराव अच्छा भी हो सकता है और बुरा बहुत सारे चक्र काम कर रहे हैं। अगर आप अपनी
भी। इसमें खराब रिश्ते हो सकते हैं, सफलताएं हो मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओ ं को अपनी भौतिकता से
सकती हैं, असफलताएं हो सकती हैं। मेरा सवाल बहुत ज्यादा जोड़ दे ते हैं तो आपकी मनोवैज्ञानिक
यह है कि नकारात्मक परिस्थितियों का दोहराव प्रकियाएं भी चक्रीय हो जाती हैं और इस तरह से
तोड़ कर सकारात्मक दोहराव को अपने जीवन में आपकी कार्मिक प्रक्रियाएं भी चक्रीय हो जाती हैं।
किस तरह आकर्षित किया जाए? आपका जीवन चक्रों में घूमना शुरू कर दे ता है।
चक्रीयता से आप पूरी तरह से छु टकारा नहीं पा
सद् गुरु: हर चीज में एक चक्रीय गति होती है। सकते। जीवन में सबसे लं बा चक्र सवा बारह साल
करीब 3200 साल पहले हमारी मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक गतिविधि का होता है, क्योंकि यह सूर्य का चक्र होता है। सूर्य
की गई एक गणना के भी चक्रीय है। इसकी सबसे बड़ ी वजह भौतिक का चक्र सवा बारह साल का होता है। चं द्रमा का
प्रक्रियाओ ं से हमारा लगाव और जुड़ाव है। भौतिक चक्र 28 दिनों का होता है। हमारा भौतिक अस्तित्व
मुताबिक हर साल चं द्रमा
प्रक्रियाएं तो चक्रीय होती ही हैं। इनके चक्रीय होने चं द्रमा के चक्र पर आधारित होता है, क्योंकि अगर
धरती से करीब 32
की वजह से ही हमारा अस्तित्व है। चक्रीय गति न हमारी मां का शरीर चं द्रमा के चक्र के साथ ताल-
मिलीमीटर दूर हो जाता है । हो तो कोई भौतिक अस्तित्व ही नहीं होगा। मेल में न होता तो हम पैदा ही नहीं होते। इस तरह
28000 सालों में चं द्रमा हमारा भौतिक अस्तित्व एक छोटा चक्र है, लेकिन
योग में करीब 3200 साल पहले एक गणना की हमारे अस्तित्व के दूसरे पहलुओ ं के लं बे चक्र होते
धरती से इतनी दूर चला
गई, जिसके मुताबिक हर साल चं द्रमा धरती से हैं। मान लेते हैं आपके जीवन की चक्रीय गति छह
जाएगा कि यहां उसका ़ रीब करीब डेढ़ इं च
करीब 32 मिलीमीटर यानी क साल की हो गई तो भी आप ठीक-ठाक रहेंगे,
प्रभाव बेहद कम हो दूर हो जाता है। चं द्रमा की कक्षा धरती से दूर होती लेकिन कभी कभार आप दूसरों के प्रति सनक दिखा
जाएगा । तब औरतों के जा रही है। इसी गणना के आधार पर कहा गया कि सकते हैं।
कुछ हजार सालों में चं द्रमा धरती से दूर चला जाएगा
मासिक चक्र खत्म हो
और उसका प्रभाव बेहद कम हो जाएगा, और जब अब मान लीजिए आपके लिए यह चक्र तीन साल
जाएं गे। इसका नतीजा यह
ऐसा होगा तो औरतों के मासिक चक्र खत्म हो का हो गया। आप पाएं गे कि आप काम तो ठीक-
होगा कि मानव प्रजाति जाएं गे। इसका नतीजा यह होगा कि मानव प्रजाति ठाक तरीके से ही कर रहे हैं, लेकिन आप जरा
खत्म होने लगेगी। खत्म होने लगेगी। मानवता के नष्ट होने के लिए चं चल हो गए हैं। आप जिस काम में अच्छे हैं, उस
किसी बम, बाढ़ या आपदा की जरूरत नहीं होगी। दिशा में तो आप ठीक रहेंगे, लेकिन बाकी जीवन
हमारी प्रजनन की क्षमता अपने आप खत्म होती उलझकर रह जाएगा। अब अगर चक्र 18 महीने का
जाएगी और धीरे-धीरे हम खत्म हो जाएं गे। हो जाए तो आप पाएं गे कि हर दिन सुबह उठना
तो सवाल है कि इन चक्रों को कैसे दे खा जाए? अगर आप पैटर्न अगर चक्र तीन साल से नीचे चला गया तो आप अच्छा जीवन जी ही
दे खना चाहते हैं तो इस तरह मत दे खिए कि आपके आस-पास क्या नहीं सकते। आपके जीवन में झटके लगते रहेंगे। कभी-कभार आपके
हो रहा है। आपको सिस्टम पर गौर करना सीखना होगा। चक्रीय जीवन में अच्छा होगा, लेकिन सामान्य तौर पर आपका जीवन सं घर्ष
गति साफ-साफ हो रही है। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि आप इन चक्रों ही बन जाएगा। तो इन बाहरी सं घर्षों से जूझने की कोशिश करने के
को लं बे से लं बा बनाने के लिए ज़रूरी साधना करें। इं सान के शरीर बजाय आपको यह करना चाहिए कि आप अपने चक्र को सही स्थिति
के भीतर सबसे लं बा चक्र सवा बारह साल का हो सकता है। अगर में ले आएं । फिर हर चीज अपने-आप ठीक होने लगेगी। जो भी
आप अपने चक्र को इस स्तर पर ला सकते हैं तो आप खुद को बेहद होगा, आपके लिए अच्छा होगा। आपके बारे में लोगों का इरादा कुछ
सं तुलित पाएं गे। आप जीवन में कामयाब होंगे, आपका जीवन सहज भी हो, वह आपका भला ही करेगा। इसकी वजह यही है कि आप
रूप से चलता रहेगा। आपके इर्द-गिर्द चाहे जो हो रहा हो, वह आपके अपने अस्तित्व की मूल प्रकृति के साथ ताल-मेल में हैं, जो कि बेहद
लिए अच्छा ही होगा, क्योंकि आप प्रकृति के साथ ताल-मेल में हैं। महत्वपूर्ण है।
निरख: सद् गुरु, बिना तकलीफ़ सहे हम आगे कैसे आपको यह बात समझनी चाहिए कि आपके विचार
बढ़ सकते हैं? क्या तकलीफ ़ आध्यात्मिक तरक़्क़ी चाहे कैसे भी हों, आप कुछ भी सोच रहे हों, यह
का हिस्सा है? सोचने की प्रक्रिया उस सीमित जानकारी के बल पर
हो रही है, जो आपने इकठ्ठी की हुई है। तो अपने
सद् गुरु: बहुत सारे समाजों में तकलीफ ़ को जरूरी विचारों को आप कई तरीक ़ े से जोड़ -तोड़ सकते हैं
माना गया है। वे मानते हैं कि तकलीफ नहीं होगी ़ और हर तरह के सर्कस कर सकते हैं, लेकिन इनसे
तो कुछ भी प्रभावशाली घटित नहीं होगा। मेरे नया कुछ भी नहीं निकलेगा। आप दे खग ें े – हालाँ कि
हिसाब से यह आपका चुनाव है। अगर आप कुछ ये अभी भी हो रहा है, लेकिन अगले 10 या 15
रोते हुए करना चाहते हैं तो कर सकते हैं। अगर सालों में आप कृत्रिम बुद्धि यानी ‘आर्टिफिशियल
आप कुछ हं सते हुए करना चाहते हैं तो वह भी इं टेलिजेंस’ का कमाल दे खग ें े। किसी चीज को लेकर
कर सकते हैं। यह आपको तय करना है। ‘अगर जानकारी इकट्ठी करना, उसका विश्लेषण करना,
कुछ महत्वपूर्ण घटित होना है तो उसके लिए कष्ट उस पर काम करना - ये सब काम एक छोटी सी
तो सहने ही पड़ ेंगे’ - यह विचार यूरोपीय साहित्य मशीन आपसे बेहतर तरीक ़ े से करने लगेगी। आपमें
और दर्शन से आया है। कभी न ख ़ त्म होने वाली से जो लोग सोचते हैं कि आपके विचार जबर्दस्त हैं,
तकलीफ ़ ें , तकलीफ ़ ों का उत्सव मनाना और वे पाएं गे कि एक साधारण सी मशीन आपसे बेहतर
़
तकलीफों को शानदार तरीके से पेश करना यूरोपीय सोच रही है।
दर्शन है। तकलीफ ़ ें भला शानदार कैसे हो सकती
हैं? साहित्य में हो सकता है कि आप दूसरों की तो आप जो सोचते हैं और महसूस करते हैं, वह सब
तकलीफ ़ ों के बारे में पढ़ें और सोचें कि कितनी कुछ आपका बनाया हुआ है, लेकिन आपको लगता
शानदार बात है, लेकिन अगर वही तकलीफ ़ है कि यह सब कुछ आपके साथ हो रहा है। ये सब
आपके जीवन में आए तो ये शानदार बात कभी नहीं बातें आपके साथ घटित नहीं हो रही हैं, सिर्फ जीवन
लगेगी। घटित हो रहा है। जीवन आपने नहीं बनाया है,
यह आपके साथ घटित हो रहा है। बाकी सब कुछ
अफसोस की बात है कि कष्टों का महिमा-मं डन आपका गढ़ ा हुआ है। आपने जो भी गढ़ ा है, वह
करने वाली बातें गढ़ ी गई हैं, खासकर पश्चिमी तो आपके नियं त्रण में होना चाहिए। आपने जो भी
दुनिया में जहां साहित्य बेहद बीमार है। मैं आपसे बनाया, उसका रूप-आकार वैसा ही होना चाहिए,
एक सीधा सा सवाल पूछता हूं , अगर आप बुद्धिमान जैसा आप चाहते हैं।
हैं तो आप ख ़ द
ु को आनं दित रखना चाहेंगे या
परेशान? दुर्भाग्य से हमने सोचने की प्रक्रिया को ही आपने कहना शुरू कर दिया कि रूपां तरण निश्चित
बुद्धिमानी समझ लिया है। रूप से कष्टपूर्ण ही होगा। ऐसा नहीं है। रूपां तरण
2009 में यात्रा के दौरान मेरे साथ कुछ बहुत अलग हुआ। कैलाश
जाते समय, मैं एक दुर्घटना का शिकार हो गई और मेरी कलाई की
हड्डियां बुरी तरह टू ट गईं। असहनीय दर्द था। मुझे बहुत से इं जके ्शन
और पेनकिलर दिए गए मगर सब बेअसर था। एक समय पर, मैंने
अपने अं दर खुद को ‘शं भो’ जपता पाया और तुरंत उसी तरह मैं
‘सद् गुरु’ भी जप रही थी। धीरे-धीरे, मैंने महसूस किया कि दर्द और मेरे
बीच एक दूरी आ गई है। भयानक पीड़ ा अब भी मौजूद थी, फिर भी मैं
हम उन्हें बाहर एक गाड़ ी तक और फिर घर लेकर गए, उसके बाद दर्द में नहीं थी।
तीन दिनों तक हमने उन्हें नहीं दे खा, सिर्फ स्वयं सेवकों के एक समूह
के सामने वे थोड़ ी दे र के लिए आए। तब भी उन्हें ब्रह्मचारियों का सहारा उस साल जब मैं कैलाश से लौटी, तो मैं जानती थी कि मेरे अं दर कोई
लेना पड़ ा। मैं बेचन
ै थी और उनके स्वास्थ्य के बारे में अच्छी सूचना मूलभूत चीज़ बदल चुकी है। जब से मैंने होश सं भाला, चाहे मैं कितनी
की उम्मीद कर रही थी। तीन दिन बाद मुझे सद् गुरु से जाकर मिलने भी आनं दित रही होऊँ , मेरे अं दर एक अनजानी सी पीड़ ा हमेशा रहती
का सं दे श मिला। वहां वह अपनी आरामकुर्सी पर बैठे हुए मुस्कु रा रहे थी – मैंने पाया कि वह पीड़ ा गायब हो गई थी।
थे और भव्य लग रहे थे। मैं उन्हें पकड़ कर रोने लगी। उस क्षण में सब
कुछ परफेक्ट लग रहा था। वह हमारे साथ मौजूद शुरुआती सालों में, एक छोटी सी जमीन पर साधारण शुरुआत के
थे... जीवित। बाद हम उस समय का सपना दे खते थे, जब दुनिया सद् गुरु को उनके
असली रूप में पहचानेगी। आखिरकार उसे सं भव होता दे खना दिल को
बाद के सालों में जब ‘ईशा यात्रा’ मेरी प्रमुख जिम्मेदारी बन गई, सद् गुरु छू ने वाली बात है। इस आश्रम की खोज में सद् गुरु के साथ रहने से
ने मुझसे यह पता करने को कहा कि क्या हम साधकों को तिब्बत में लेकर आज तक, इस सफर में शुरू से आखिर तक होना मेरे लिए एक
मानसरोवर ले जा सकते हैं। 2006 में हम पहली बार 160 साधकों को सौभाग्य की बात है।
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अं तिम तारीख है 31 अगस्त 2019.
पिछले छः अंकों से लगातार सही उत्तर दे ने वाले विजेता हैं : पुनीत मित्तल, लखनऊ
़ र में प्यार?
कैसे होता है पहली नज
इस तरह की बात पुराने जमाने से आई है , जब लड़ के-लड़ कियाँ साथ नहीं हुआ करते थे।
पहली लड़ की दे खते ही – बस हो गया प्यार। अभी लड़ कियां आपके साथ घूम रही हैं , बात
कर रही हैं , पढ़ रही हैं - अब इसमें समय लगेगा।
धीर: सद् गुरु, अगर कोई व्यक्ति अपने चक्रों पर अपने घोंसले कितनी ऊंचाई पर बनाए हैं, कई लोग
महारत हासिल कर ले तो क्या वह पक्षियों की भाषा यह जान लेते हैं कि इस साल बाढ़ आएगी या नहीं।
समझ सकता है? आमतौर पर ये पक्षी बारिश का मौसम आने से
लगभग चार महीने पहले अपने घोसले बना लेते हैं।
सद् गुरु: हालां कि स्तनधारी जीवों में दूसरे जीवों अगर बहुत भारी बारिश होने का अनुमान नहीं होता
की अपेक्षा कहीं ज्यादा विकसित ‘न्यूरोलॉजिकल तो ये पक्षी पानी के काफी नजदीक अपना घोंसला
सिस्टम’ (तं त्रिका तं त्र) होता है, फिर भी आप एक बनाते हैं, क्योंकि तब बाढ़ आने का खतरा नहीं
सूअर या एक बं दर को बोलने की ट्रे निंग नहीं दे रहता। लेकिन अगर बाढ़ आने का अं दे शा हो तो वे
सकते। लेकिन आप चाहें तो कुछ पक्षियों को यह लोग अपना घोंसला अधिक ऊंचाई पर बनाते हैं।
ट्रे निंग दे सकते हैं। कुछ ऐसे पक्षी हैं, जो काफी
अच्छी तरह से बोल सकते हैं। खासकर अमेरिकी जब मैं छोटा था और मैंने हैंग ग्लाइडर चलाने की
‘मकाऊ’ पक्षी न सिर्फ इं सानों के कहे शब्दों को शुरुआत की थी, तो उन दिनों मैं कई दिनों तक
दोहराता है, बल्कि आप जो कहते हैं, उसे अच्छी लगातार हवा पर गौर करता रहता था। मैं जानता हूं
तरह से समझता भी है और हालात के अनुसार वह कि इसके लिए हवा कितनी महत्वपूर्ण है। विमान
कमेंट (टिप्पणी) भी करता है। यह अपने आप में चालकों के अलावा बहुत ही कम लोग ऐसे होते हैं,
अविश्वसनीय है। क्रमिक विकास के क्रम को दे खें जो हवा के महत्व को समझते हैं कि कैसे हवा में
तो पक्षी मानव से बहुत दूर हैं, लेकिन ध्वनियों को जरा सा भी बदलाव यह तय करेगा कि आपके साथ
समझने की उनकी शक्ति और ध्वनियों को पैदा क्या घटित होगा। खासकर, अगर आप बिना इं जन
करने की उनकी क्षमता धरती पर मौजूद दूसरे वाला वायुयान चला रहे हैं तो आप समझ सकते हैं
प्राणियों से बेहतर नजर आती है। कि हवा कितनी महत्वपूर्ण है।
अगर कुछ खास तरह के पक्षियों को छोड़ दिया तो अगर कोई इं सान मौसम के बारे में जानना
जाए, तो बाकी दूसरे पक्षी क्या बातें करते होंगे? चाहता है तो इस लिहाज से पक्षियों को सुनना
खाने के बारे में और थोड़ ा बहुत मौसम के बारे महत्वपूर्ण होगा, भले ही सारे पक्षियों को नहीं,
में। मौसम एक ऐसी चीज है, जिसके बारे में हम लेकिन जो पक्षी आसमान में ऊँ ची उड़ ान भरते
शायद मौसम विभाग के किसी भी यं त्र की तुलना हैं, कम से कम उन पर गौर करना जरूरी है। ऐसे
में पक्षियों से ज्यादा बेहतर तरीके से जान व समझ पक्षी जो आकाश में काफी ऊंचाई पर बिना अपने
सकते हैं। कई अध्ययनों से यह बात निकलकर पं खों को फड़ फड़ ाए उड़ते हैं, इन सभी पक्षियों में
आई है कि गं गा और नर्मदा नदी के किनारे कई मौसम के लक्षणों और हवा के रुख को पहचानने
पक्षी अपने घोंसले पानी के काफी नजदीक बनाते और समझने की जबरदस्त क्षमता होती है। लेकिन
हैं। उनके घोंसलों पर गौर करके कि पक्षियों ने आमतौर ये पक्षी ज्यादा बोलते नहीं। चील जैसे पक्षी
"एक बार बुद्ध अपनी आं ख बं द किये बैठे हुए थे, उन्हें किसी की
आवाज़ सुनाई दी, 'बचाओ, बचाओ'। उन्हें समझ आ गया कि ये
आवाज़ किसी मनुष्य की थी जो नर्क के किसी गड्ढे में था और पीड़ ा
भोग रहा था। बुद्ध को ये भी समझ में आया कि उसे ये दं ड इसलिये
दिया जा रहा था क्योंकि जब वो ज़िंदा था तब उसने बहुत सी हत्यायें
और चोरियां की थीं। उन्हें सहानुभतू ि का एहसास हुआ और वे उसकी
मदद करना चाहते थे।
एक शिष्य बोला, "मकड़ ी का धागा इतना मजबूत ज़ने गुरु ने अपने शिष्यों को जो कहानी सुनाई वह
नहीं होता कि एक व्यक्ति को ऊपर ला सके"। नैतिक मूल्यों पर आधारित बात थी जो किसी ने
गढ़ ी होगी। कहानी की नैतिक शिक्षा ये है कि एक
दूसरे ने कहा, "स्वर्ग और नर्क जैसी कोई चीज़ नहीं स्वार्थी व्यक्ति को, जिसे दूसरों की परवाह नहीं है, ़ ेन गुरु ने अपने शिष्यों
ज
होती"। बुद्ध भी नहीं बचायेंगे। यह कहानी किसी ने समाज
को शिक्षा देने के लिये, लोगों पर प्रभाव डालने के को जो कहानी सुनाई वह
एक अन्य बोला, "जब बुद्ध आं ख बं द कर के बैठे लिये गढ़ ी है। नैतिक मूल्यों पर आधारित
और ध्यान कर रहे थे, तब उन्हें ज़रूर ही कोई और बात थी जो किसी ने गढ़ ी
आवाज़ सुनाई दे रही होगी"। जहाँ भी आवश्यकता एवं सं भावना हो, एक सच्चा
होगी। कहानी की नैतिक
आत्मज्ञानी गुरु कभी भी अपनी करुणा बरसाने में
गुरु मुस्कु राये और बोले, "तुम सबने एक महत्वपूर्ण हिचकिचायेगा नहीं। बुद्ध वही हो सकता है जिसने शिक्षा ये है कि एक स्वार्थी
मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया"। फिर वे उठे और चले गये। अपने अं दर पूरी स्वतं त्रता प्राप्त कर ली हो और जो व्यक्ति को, जिसे दूसरों की
स्वीकार या अस्वीकार करने की मजबूरी से परे चला परवाह नहीं है , बुद्ध भी
सद् गुरु: जो सच्ची करुणा होती है, वो चयन नहीं गया हो। केवल वही करुणामय हो सकता है जो पूरी
नहीं बचायेंगे।
करती। किसी क्षण कोई ये विचार करे कि मुझे इस तरह से आनं दमय हो। 'बुद्ध' उसी को कहते हैं जो
व्यक्ति के लिये करुणामय होना चाहिये और फिर बुद्धि से परे, पूर्ण आनं द की अवस्था में हो।
ऐसा सोचे कि वह दूसरा व्यक्ति मेरी करुणा का पात्र
नहीं है, तो फिर ये करुणा नहीं है। किसी की मदद कुछ धार्मिक कट्टरवादियों ने, अन्य धर्मों की
करने में चयन हो सकता है पर करुणा में चयन नहीं तरह, बौद्ध धर्म का प्रचार करने के उद्देश्य से ऐसी
होता। यदि बुद्ध की इच्छा किसी ऐसे व्यक्ति को नैतिकतावादी कहानियां गढ़ ी हैं। यही कारण है कि
बचाने की होती जो नर्क में यातना भोग रहा है तो ज़ने गुरु यह कह रहे हैं कि इस कहानी में दोष है।
सामग्री:
कंु दरु : 200 ग्राम
टमाटर :3
नारियल : 10 ग्राम (कद्दूकस किया हुआ)
हल्दी : ¼ छोटा चम्मच
सां बर पाउडर : ¼ छोटा चम्मच
नमक : ½ चम्मच
तिल का तेल : 1 बड़ ा चम्मच
तड़ के के लिए
राई : ½ चम्मच
कड़ ी पत्ते : 3 से 6 (कटे हुए)
विधि :
कंु दरु को धोकर ऊपर और नीचे से काट लें। फिर उन्हें चार लम्बे टु कड़ ों में काटें । टमाटरों को
धोकर छोटे टु कड़ ों में काट लें। तेल को गहरी कड़ ाही में गर्म करें। तेल के गर्म हो जाने पर उसमें
राई डालकर तड़ काएं और कड़ ी पत्तों को हल्का तल लें। अब इसमें कटी हुई सब्ज़ियों को मिलाएं ।
हल्दी और सां बर पाउडर डालकर मिलाएँ । अब इसमें नमक डालें। एक बड़ ा चम्मच पानी छिड़ क
कर ढं क दें । कुछ दे र तक पकने दें । आखिर में कद्दूकस किया नारियल मिलाएं और गर्मा-गर्म
परोसें।
स्वाद बढ़ ाने के लिए: परोसने से पहले सब्ज़ी के ऊपर धनिया की कटी हुई पत्तियाँ डाल सकते हैं।
इसे रोटी या चावल के साथ खाया जा सकता है।
नोट: सां बर पाउडर की जगह ¼ चम्मच मिर्च और ½ चम्मच धनिया पाउडर डाला जा सकता है।
इस सब्ज़ी पर थोड़ ा सा जीरा पाउडर डालने से इसका स्वाद और बेहतर हो जाएगा।
राजा एक बार अपने राज्य के भ्रमण के लिए वेश वृद्ध ने गं भीर होकर कहा, ‘आप बिलकुल ठीक
बदलकर अपने महल से बाहर निकले। अभी निकले कह रहे हैं, मेरी उम्र 80 वर्ष ही है, किन्तु मैंने अपनी
ही थे कि उन्हें महल के बाहर ही एक बूढ़ा किसान ज़िन्दगी के 76 वर्ष धन कमाने, शादी-ब्याह करने
मिल गया। किसान के बाल पक गए थे लेकिन और बच्चे पैदा करने में गं वा दिए। ऐसा जीवन तो
शरीर में अभी भी जवानों जैसी चेतना थी। किसान कोई पशु भी जी सकता है, तो आप ही बताइए कि
की चेतना का रहस्य जानने की इच्छा से राजा मैं जीवन की उस अवधि को जीवन कैसे मानूँ?
ने किसान से पूछा, ‘महानुभाव, आपकी आयु
कितनी होगी?’ यह बात मुझे महज़ चार साल पहले ही समझ आई
कि जीवन को जागरूकता में कैसे जिया जाए। जब
वृद्ध ने राजा को मुस्कान भरी दृष्टि से दे खा और चार साल पहले मुझे गुरु मिले तब मुझे यह समझ
बोला, ‘कुल चार वर्ष’। राजा किसान की बात आया कि इस मानव जीवन में कितनी सं भावनाएँ हैं।
सुनकर मुस्कु रा दिए। राजा ने सोचा वृद्ध शायद तभी मैं जान पाया कि यह जीवन क्या है और कैसे
मजाक कर रहे हैं, इसलिए राजा ने दोबारा किसान इसे असीम तक जाने का साधन बनाया जा सकता
से वही सवाल पूछा। लेकिन इस बार भी किसान ने है। जबसे मैंने जीवन को जागरूकता में जीना शुरू
वही जवाब दिया। किसान का ज़वाब सुनकर राजा किया है, तब से ही मैंने सही मायने में जीवन जीना
को ग़ुस्सा आ गया। एक बार तो राजा के मन में शुरू किया है। बस इसीलिए मैं अपने आप को महज
विचार आया कि वृद्ध किसान को बता दिया जाए 4 वर्ष का ही मानता हूँ ।’
कि वह कोई आम आदमी नहीं बल्कि वेश बदलकर
आए हुए इस राज्य के राजा हैं। लेकिन फिर राजा राजा को समझ आ गया कि उस वृद्ध किसान की
को अपने गुरु की कही एक बात याद आई कि बातों में मज़ाक
़ नहीं बल्कि जीवन की बहुत बड़ ी
‘क्रोधित और उत्तेजित हो जाने वाला व्यक्ति कभी भी सीख थी।
ज्ञान हासिल नहीं कर सकता’। यह सोचकर राजा
का क्रोध वहीं शां त हो गया।
साभार: इं टरनेट
- रवीन्द्रनाथ
टै गोर (गीतां जलि)
"योग सिर्फ अच्छे से जीने सूर्य क्रिया इं टेंसिव पूर्वी दिल्ली 22 - 25 अगस्त 9650092103
के बारे में नहीं है । योग भूत शुद्धि 25 अगस्त 9650092103
इस बारे में है कि हम वाराणसी
अपनी पूं जी को शरीर,
अं गमर्दन 18 - 22 अगस्त 8469521795
दिमाग, और भावनाओ ं से
भूत शुद्धि वाराणसी 18 अगस्त 8469521795
हटाकर अपनी अन्तरात्मा
सूर्य क्रिया 19 - 22 अगस्त 8469521795
में लगाएं । इसका सं बं ध
जीवन के मूल स्रोत को जयपुर
़ मास्टर’ कार्यक्रम
ईशा योग केंद्र में ‘इन द लैप ऑफ
14 जुलाई, कोयं बतूर, ईशा योग केंद्र में ‘इन द लैप ऑफ़ मास्टर’ कार्यक्रम में दुनिया भर से आए लोग शामिल हुए। दो दिन
के इस कार्यक्रम में लगभग दस हज ़ ार ईशा साधकों ने सद् गुरु के सान्निध्य में योग, ध्यान और सत्सं ग का आनंद लिया।