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अप्रैल 2020

    
जीवन सूत्र

मृत्यु में परफ़े क्शन है, जीवन में नही ं


     

आ पमें से जो लोग ‘परफे क्शन’ चाहते हैं, अनजाने में आप मृत‍य् ु की खोज में हैं क्यूंकि एकमात्र यही
एक चीज़ है, जो आप परफे क्शन से करते हैं। जीवन के साथ आप चाहे जो भी करें, हम उसमें दोष
ढूंढ सकते हैं। जीवन की प्रकृ ति ऐसी है कि चाहे आप कु छ भी करें, आप हमेशा उसमें चूक खोज सकते हैं।
आप जो भी करें, कितनी भी अच्छी तरह से करें, निश्चित रूप से उसमें कोई न कोई दोष मिल जाएगा, क्यूंकि
उसे करने का कोई परफे क्ट तरीका नहीं है। मृत्यु की सुं दरता यह है कि हम उसे परफे क्शन से करते हैं, कोई
उसे अपूर्ण तरीके से नहीं करता। यही इसकी अच्छी बात है।

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ईशामृतम

जीवन और मृत्यु : क्या अलग-अलग हैं ? 14


मृत्यु को नकारना नहीं, स्वीकारना है 16
हर साँस में बसा है - जीवन भी, मृत्यु भी 18
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ßcæü } - ¥¢·¤ 10 क्या नींद भी मृत्यु समान है? 20
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April 2020
जीवन और मृत्यु दोनों को गले लगाएं 24

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कै से जानें जीवन में क्या करना है ? 40 प्रणाम 09
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ßðçÜ¢ç»çÚ Èé¤Å çãËSæ, §üàææÙæ çßãæÚU ईशा योग कार्यक्रम 56 फू लों को देखिए, उनकी जड़ में पड़ी गं दगी को नहीं 12
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स्वाद और सेहत 52

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§üàææ ÜãUÚU मौन क्रांति


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38 ईशार्पण
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¿ð‹Ù§ü-{®®®v| लेबनान की धरती पर उपजे कु छ अनुभव 3858
ȤæðÙ Ñ ®yy-yz®vvvx| शेर बनें या लोमड़ी 5860 मृत्यु से भला अप्रीति क्यों? 06
âÎSØÌæ ¥æñÚU çß™ææÂÙ ·ð¤ çÜ° â¢Â·ü ·¤Úð´UÑ ईशा योग कें द्र में यक्ष उत्सव 6062 आपकी बात 07
ç´·¤Ü +~v-~yywv-w{®®® ईशा में महाशिवरात्रि महोत्सव 6264 सं भावनाओं को गँ वाइए मत! 30
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आठ दिन के मौन कार्यक्रम सम्यमा का आयोजन 6466 क्या सब कु छ ईश्वर की इच्छा से होता है 32
RNI No.: Delhi N/2012/46538 सदर्न नेवल कमांड कोची में सद् गुरु 6567 ईशा लहर प्रतियोगिता 54
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जल्लीकट्टू में सदग् रुु 6666
ईशा योग कें द्र में सद‌ग् रुु दर्शन 67
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संपादकीय आपकी बात

भला मृत्यु से अप्रीति क्यों? आपकी बात


फिर क्या होगा उसके बाद? स्कू ली जीवन में पढ़ी बालकृ ष्ण राव की इस कविता ने पहली बार
उत्सुक होकर शिशु ने पूछा मुझे अहसास दिलाया था कि एक दिन मेरी माँ भी मुझे छोड़कर
मिला एक शांत और शीतल किनारा
चली जाएगी। और उसी पल हठात् मैं दौड़ी और जाकर अपनी माँ से
माँ, क्या होगा उसके बाद? लिपट गई थी। पिछले कु छ महीनों से मैं गहरे भावनात्मक उतार-चढ़ाव से जूझ रही थी। लोगों के अपने प्रति व्यवहार, चाहे वो
... परिवार के सदस्य हों या सहकर्मी, दोस्त हों या परिचित, मैं बस हर चीज से आहत थी। उन सारी परिस्तिथियों में मैं
... दरअसल हम अपने जीवन से या अपनों के जीवन से इतना प्यार खुद को पीड़ित या कहें शहीद की तरह मानने लगी थी। हर वक्त भावनाओं के एक उफान को दबाए हुए, किसी
इसीलिए करते हैं, क्योंकि हमारा जीवन हमेशा के लिए नहीं है, यह तरह दिन कट रहे थे। इस कारण, मेरा व्यवहार और सामान्य परिस्थितियों में होने वाली मेरी प्रतिक्रियाएं भी कई
अब माँ का जी ऊब चुका था, एक एक्स्पाइरी डेट के साथ आता है। एक बालक ही नहीं, बल्कि बार अवसाद या उन्माद की तरह थीं। मैं खुद को उस भं वर में फं सा हुआ देख तो पा रही थी, पर निकलने की कोई
हर्ष-श्रान्ति में डू ब चुका था, वयस्क इं सान, यहाँ तक कि जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुँचे एक विधि नहीं समझ आ रही थी। खुद से प्रश्न करती थी कि मेरी भावनाएं , मेरा प्रेम, समर्पण, भक्ति और गुस्सा, और
बोली, "फ़िर मैं बूढ़ी होकर, वृद्ध इं सान के मन में भी ‘मृत्यु’ शब्द को लेकर कोई प्रीति नहीं है, कु छ हद तक मेरी बेपरवाही, क्या मेरी कमजोरियां हैं? क्या इन्ही में डू बते-उतराते जीवन बीतेगा या जीवन के प्रिय पाठक गण,
उनके अन्दर एक भय होता है। मृत्यु को बहुत ही नकारात्मकता के परमानन्द और उत्साह का मैं कभी अनुभव कर पाऊँ गी?
मर जाऊँ गी उसके बाद। साथ देखा जाता है, लेकिन हम यह असलियत भूल जाते हैं, कि मृत्यु आपके पत्र हमेशा से हमारे लिए प्रेरणा
ही हमें जीवन की क़ीमत समझाती है। ज़रा कल्पना कीजिए... अगर का ही नहीं मार्गदर्शन का काम भी
ऐसा हो जाए कि हममें से कोई कभी मरेगा ही नहीं, तो क्या हम तब करते रहे हैं। इसलिए आपसे अनुरोध
यह सुनकर भर आए लोचन, 
भी अपना जीवन इसी तीव्रता के साथ, इसी सं लग्नता के साथ जी इन्ही भावनाओं के समं दर में गोते खा रही थी कि एक शांत और शीतल किनारे की तरह ईशा लहर का मार्च अंक है कि अपनी बेबाक़ राय व इस पत्रिका
किन्तु पोंछकर उन्हें उसी क्षण,  पाएँ गे? जीवन में एक अजीब सा ठहराव आ जाएगा, जो शायद मिला। सच में ऐसा लगा कि जैसे सद‌ग् ुरु ने मेरी पुकार सुन ली और वो, अपने अनोखे परंतु कारगर मार्गदर्शन से अपनी अपेक्षाएँ हमें बेहिचक बताते
सहज कु तूहल से फिर शिशु ने  समय के साथ मृत्यु से भी बदतर लगने लगे। तो फिर जनमानस में के साथ मेरे साथ हैं। अपनी भावनाओं के ज्वार में बह जाने की जगह अब मैं अपने नए, ज्यादा जागरूक और रहें। आपकी अपेक्षाओ ं पर खरा उतरने
छा, "माँ, क्या होगा उसके बाद? मृत्यु को लेकर एक भय, एक अप्रीति क्यों है?
पू ज्यादा प्रेममय जीवन की नींव रख रही हूँ । की हम हर सं भव कोशिश करेंगे। अपनी
राय आप हमें ईमेल भी कर सकते हैं।
कदाचित् हमने कभी मृत्यु को स्वीकारा ही नहीं, हमने उसे हमेशा मई अंक में हमारी चर्चा का मुख्य विषय
महिमा सक्सेना, इं दौर
नकारने की कोशिश की है। यह जानते हुए भी कि यह अवश्यं भा- होगा तीर्थ यात्रा और हिमालय यात्रा का
वी है, इसे हम कभी अपने मन में स्वीकार नहीं पाते। अगर कभी आध्यात्मिक महत्व।
किसी ने ‘मृत्यु’ की चर्चा भी कर दी तो लोग बरबस यह बोल उठते भावनाओं का मार्गदर्शन करना होगा, दमन नहीं
हैं – ‘अरे शुभ-शुभ बोलो!’ यानी हमने मृत्यु को अशुभ मान
/SadhguruHindi
रखा है। लेकिन कभी सोचकर देखिए कि जिस मृत्यु ने कभी किसी बचपन में मुझसे अक्सर यह कहा जाता था कि मैं बहुत ऊँ ची आवाज़ में हँ सती हूँ । बस मेरे पापा को मेरी हँ सी
के साथ कोई भेदभाव नहीं किया, बिना जाति, वर्ग, धर्म, लिंग, बहुत प्यारी लगती थी, बाक़ी सबको मेरी हँ सी से बहुत शिकायत थी। धीरे-धीरे मेरे मन में यह बात बैठती चली गई like us on facebook
प्रजाति, सं स्कृ ति आदि का भेद क़िए जिसने सबको समभाव के साथ कि मुझे हँ सने का अपना तरीक़ा बदलना चाहिए और नया सलीक़ा सीखना चाहिए। यह तो पता नहीं कि हँ सने का facebook.com
अपनाया, वह अभेदकारी मृत्यु अशुभ कै से हो सकती है? वह मृत्यु सही सलीक़ा क्या होता है पर इतना ज़रूर पता है कि मैं बढ़ती उम्र के साथ खुलकर हँ सना भूल गई। मुझे लगता /SadhguruHindi
अशुभ कै से है जिसने जीवन का मोल समझाया? मृत्यु ने कभी किसी है यह मेरी इकलौती दास्ताँ नहीं है, मुझ जैसे कितने ही बच्चे, बड़े होते-होते अपनी भावनाओं का दमन करना
को फे ल नहीं किया, इसमें सभी पास हो जाते हैं। बख़ूबी सीख जाते हैं, या कहें कि हमें सभ्य बनाने के नाम पर यह दमन की तकनीक सिखा दी जाती है। और Follow us on Twitter
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यह प्रक्रिया पीढ़ी दर पीढ़ी जारी रहती है। ईशा लहर का मार्च अंक पढ़कर पहली बार अहसास हुआ कि अपनी
हर साँस में, जीवन और मृत्यु सं ग-सं ग हैं। अभी मृत्यु हमारे लिए भावनाओं को सं भालने के लिए उनका दमन ज़रूरी नहीं है। ज़रूरत है हमें अपनी अगली पीढ़ी को सजगता के
एक पहेली है, उसको लेकर हमारे भीतर एक अनजान भय व्याप्त साथ यह सिखाने की कि उन्हें अपनी भावनाओं को कै से सं भालना है। हमें उनकी भावनाओं का मार्गदर्शन करना editor@ishalahar.com
है। आइए सद‌ग् ुरु से मृत्यु को जानें, समझें और उसे स्वीकार करना होगा, दमन नहीं।
सीखें। इसी कोशिश में हम आपको भेंट करते हैं यह अंक।
नियति गर्ग, कोटा Download
Sadhguru App
- डॉ सरस

ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 7


काव्यांश

प्रणाम
मेरी जागरूकता जानती है,
गुज़रे कल और आने वाले कल को
लेकिन मेरा प्रेम जानता है – सिर्फ़ आज।

जानता हूं आदि और अंत को,


फिर भी खेलना है मुझे
इन दोनों के बीच का खेल।

मिला प्रेम का आनं द


प्राण-घातक विष के साथ,
गुरु की अद्तभु कृ पा हुई
हृदय-विदारक साधना के साथ।
आत्मज्ञान की अग्नि प्रज्ज्वलित हुई
उपहास और विफलता के साथ,
अस्तित्व का आनं द, परिपूर्णता का परमानन्द
मिला शारीरिक पीड़ा के साथ।

क्या यह कोई मजाक है?


क्या यह शिव की इच्छा है?
क्या वे करुणामय हैं?
या हैं वे क्रू र व निष्ठुर?
हे शम्भो! मैं यह बता दूं सबको:
मैं नहीं चाहता, इसे किसी दूसरी तरह से
मैं नहीं चाहता, इसे किसी भी दूसरी तरह!

- सद‌ग् रुु
दर्शन

शरीर आपकी सेवा के लिए है या आप उसकी?


सवाल है कि शरीर और मन यहां आपकी सेवा के लिए हैं, या आप उनकी सेवा के लिए?
दरअसल उन्हें हमारी सेवा करनी चाहिए। लेकिन ज़्यादातर लोग जीवन भर उनकी सेवा में
लगे रहते हैं।

अ गर आप साधना करना चाहते हैं, अगर आप


अपने जीवन में अपने तीन बुनियादी उपकरणों
- शरीर, मन और ऊर्जा, का प्रभावी रूप से इस्‍तेमाल
इं सान सिर्फ एक सं भावना है- अब आप उसे एक
ऊँ ची सं भावना बना सकते हैं या उससे नीची सं भावना
की ओर धके ल सकते हैं। यह आपके ऊपर निर्भर
करना सीखना चाहते हैं, तो यह हमेशा ध्यान रखिए है, कि आप अपने शरीर, मन और ऊर्जा का कितने
कि मेरे अंदर या मेरे बाहर चाहे जो कु छ भी हो – प्रभावशाली ढंग से इस्‍तेमाल करते हैं। सवाल बस
अच्‍छा हो, बुरा हो, सुं दर चीज़ें हों, खराब चीज़ें हों – ये है कि आप उनका इस्‍तेमाल करेंगे या वे आपका
वह मैं ही हूं। यही बात हम इनर इं जीनियरिंग में पहले इस्‍तेमाल करेंगे?
दिन से आपको याद दिलाते रहते हैं।
जब मैं कहता हूं कि क्‍या वे आपका इस्‍तेमाल
सूर्य की किरणों को सबसे
जीवन की शुरुआत में ही व्‍यक्ति को यह तय कर करेंगे, तो आख़िर इसका मतलब क्या है? बिना
पहले आपको पकड़ना लेना चाहिए, कि अपने जीवन में वह कभी ख़ुद एक किसी पूर्वाग्रह के सिर्फ गौर से देखिए कि लोगों का
चाहिए, कीड़े-मकोड़ों या समस्‍या नहीं होगा। आपका शरीर, मन, या ऊर्जा जीवन किस चीज़ के लिए समर्पित है? इस धरती
पक्षियों को नहीं। एक काम कभी समस्‍या नहीं होगी। बाहरी तौर पर कु छ सम- के अधिकांश लोगों का जीवन सिर्फ अपने शरीर की
स्‍याएं होंगी, लेकिन हम उन्‍हें सं भाल सकते हैं, अगर सेवा, अपनी मनोवैज्ञानिक, भावनात्‍मक जरूरतों को
कीजिए - अगले दो सप्‍ताह आप ख़ुद एक समस्‍या न हों। अगर आपके जीवन की पूरा करने के लिए समर्पित है। आप इसे बिजनेस कह
तक हर दिन अपने शरीर हर चुनौतीपूर्ण स्थिति एक समस्‍या बन जाए, तो फिर सकते हैं, कै रियर कह सकते हैं, परिवार कह सकते हैं, ऐसा करने के लिए, हमें अपने उपकरणों को थोड़ा अगर आप कहते हैं, ‘मैं जो भी चाहता हूं, जब चाहता
पर सूर्य की पहली किरणों आप चुनौतियों से बचने लगेंगे। अगर आप चुनौतियों मगर जीवन की सारी व्‍यवस्‍थाएं सिर्फ शारीरिक और पैना बनाना होगा। वरना सुबह 5 बजे शरीर कहेगा, हूं, खाता हूं और दस से बारह घं टे सोता हूं, मेरा
से बचने लगे तो आप जीवन की सभी सं भावनाओं से मनोवैज्ञानिक जरूरतों को पूरा करने के लिए रची गई ‘चुप करो और सो जाओ।’ मैं समझता हूँ कि जो लोग जीवन बहुत अच्‍छा है!’ तो आप ख़ुद को मौत के लिए
को पड़ने दीजिए और फिर
चूक जाएँ गे, आप सिर्फ ‘थाइर-सादम’ (दही-भात) हैं। तो सवाल यही है कि शरीर और मन यहां आपकी मरना चाहते हैं, वे अपनी आंखें बं दकर फिर से लेट तैयार कर रहे हैं। आप निराश न हों, वह जल्‍द ही आ
देखिए कि आपके साथ क्‍या बन जाएं गे। तमिलनाडु के स्‍कू लों में अगर कोई बच्चा सेवा के लिए हैं, या आप उनकी सेवा के लिए? जाएँ गे और जो लोग जीना चाहते हैं, उन्‍हें चाहिए कि जाएगी। वैसे तो वह हम सब के पास आएगी, सवाल
होता है। आप बिल्‍कु ल अलग बहुत सुस्‍त दिखता है तो शिक्षक कहते हैं, ‘क्‍या तुम सूर्य की पहली किरण को धरती पर पहुंचने से पहले सिर्फ यह है कि क्‍या उसके आने से पहले हमने जीवन
तरह का जीवन जिएं गे। दही-भात खाकर आए हो?’ ये माना जाता है कि दरअसल उन्‍हें हमारी सेवा करनी चाहिए। लेकिन लपक लें। सूर्य की किरणों को सबसे पहले आपको जिया? आप जो करते हैं – वह जीवन नहीं है, आप
उससे सुस्‍ती फै लती है। लेकिन सिर्फ विद्यार्थी ही नहीं, ज्‍यादातर लोग जीवन भर उनकी सेवा में लगे रहते पकड़ना चाहिए, कीड़े-मकोड़ों या पक्षियों को नहीं। कै से हैं – वह जीवन है। आप सिर्फ एक जगह बैठे
शिक्षक भी दही-भात खाकर आते हैं। हैं। जब वे नाश्‍ता करते हैं, तो अपने लं च की योजना एक काम कीजिए - अगले दो सप्‍ताह तक हर दिन रहकर भी बहुत तीव्र जीवन जी सकते हैं। कोई व्‍यक्ति
बनाते हैं; जब वे लं च करते हैं, तो अपने डिनर की अपने शरीर पर सूर्य की पहली किरणों को पड़ने हज़ारों चीज़ें करते हुए भी नहीं जान पाता कि उसके
सुस्‍ती कई समस्‍याओं को टालती है, क्‍योंकि आपको योजना बनाते हैं। इसी तरह यह सिर्फ भोजन, घर, दीजिए और फिर देखिए कि आपके साथ क्‍या होता साथ क्‍या घटित हो रहा है। तो बस अपने उपकरणों
पता ही नहीं चलता कि कोई समस्‍या है भी। क्‍या सुरक्षा, एक दू सरे के लिए भावनाओं, जैसी चीज़ों पर है। आप बिल्‍कु ल अलग तरह का जीवन जिएं गे। को पैना करना और जब चाहें उन्‍हें एक तरफ रख देने
गलत है, यह जानने में थोड़ी बुद्धि लगती है। मुझे याद ही टिका होता है। मुख्‍य रूप से सारा जीवन शारीरिक के क़ाबिल होना बहुत महत्‍वपूर्ण है।
नहीं किसने, पर किसी ने कहा था, ‘फरिश्‍ते समस्‍याओं और मनोवैज्ञानिक जरूरतों के आस-पास कें द्रित होता दर्भा
ु ग्य से समाज ने खुद को गलत दिशा में मोड़ लिया
से अछू ते हैं क्‍योंकि उनमें प्रतिभा है। पशु भी समस्‍या- है। इसे सामान्‍य जीवन कहा जाता है। तो मेरा इरादा है, इसलिए लोगों को लगता है कि दिन में बारह घं टे
ओं से अछू ते हैं क्‍योंकि उनमें इसकी समझ नहीं है।’ यह है कि आप असामान्‍य बनें। आप अपने शरीर सोने वाले, पांच बार खाने वाले लोग अच्‍छा जीवन जी
मगर इं सान बीच में लटकता है और सं घर्ष करता है और मन का इस्‍तेमाल इस जीवन की बेहतरी के लिए रहे हैं।
क्‍योंकि वह अब भी एक सं भावना है, हकीकत नहीं। करें, इस जीवन की गुलामी के लिए नहीं।

10 ईशा लहर | मार्च 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org


नई सोच नई राह

फू लों को देखिए, उनकी जड़ में पड़ी गं दगी को नही ं


आप फू लों का एक पौधा देख रहे हैं। उस पौधे की जड़ें मैल और गं दगी में सनी हुई हैं, इस
पर गौर करते हैं। इससे क्या फू ल भी गं दे हो जाएँ गे? अमृत की तलाश में जाते हुए विष पर
क्यों ध्यान देना?
लतिका: अपने कालेज की एक प्राध्यापिका को मैं प्राध्यापिका जो हैं वो आपकी समस्याओं का सही हल
अपनी दीदी की तरह मानती थी। मैंने अपने जीवन निकालती हैं। ऐसे में वे अपने घर के अंदर शराब पिएं
में जो भी अहम् फै सले लिए थे, उनके लिए वही या मर्दों के साथ मित्रता में रहें, रस्सी में लटकें या हवा
मार्गदर्शिका रहीं। एक दिन बिना पूर्व सूचना दिए, मैं में चलें, इससे आपका क्या बिगड़ता है?
उनसे मिलने चली गई। दस्तक देने पर उन्होंने आकर
दरवाज़ा खोला। उस समय उन्हें नशे में डगमगाते सिर्फ़ इसी बात पर गौर करें, क्या वे अपने द्वारा ली
देखकर मैं चकित रह गई। अंदर से दो-तीन मर्दों गई ज़िम्मेदारी को पूरा करती हैं या नहीं।
की आवाज़ें सुनाई दीं। ‘चाहे कोई भी बात हो, कल लतिका: कै से सद‌ग् ुरु? आचरण में फिसला कोई
आना’ ये कहकर उन्होंने मुझे दरवाज़े से ही विदा कर व्यक्ति मुझे सही ज्ञान कै से दे सकता है?
फिल्मी सितारे हों या खिलाड़ी दिया। उसी क्षण उनके प्रति मेरे मन में जो आदर-
या मं त्री या अध्यापक या सम्मान था, वह चूर-चूर हो गया। उसके बाद मैं उन्हें सद‌ग् ुरु: क्या उन्होंने आपको भी अपने साथ बैठकर
कोई और – ऐसे सभी लोगों टालने लग गई। लेकिन मन जैसे खोया-खोया रहता पीने के लिए ज़ोर डाला था? या शराब पीने के बाद जब उन्होंने पहला आम तोड़ा कहीं से आवाज़ आई, यह बात अहमियत नहीं रखती कि वहाँ शं करन पिल्लै
है। ऐसा क्यों सद‌ग् ुरु? आपसे गलत व्यवहार करने की कोशिश की? ऐसी ‘ईश्वर तुम्हें देख रहा है’। के साथ क्या गुजरा। लेकिन देवता या ईश्वर के नाम से
को अपनी-अपनी ज़िंदगी कोई चीज़ हुई हो तो वह अलग बात है।
सद‌ग् ुरु: आपके साथ ही नहीं, हमारे देश के कई लोगों शं करन पिल्लै ने अगर कु छ उम्मीदें रखीं तो वह किसका
जीने का हक है। वे अपने घर सहमकर उन्होंने अगल-बगल में देखा। कोई नहीं दिखा।
के साथ मैं यही समस्या देख रहा हूँ । खुद जब नशे में थीं, उस समय आपको धर्मसं कट में दोष है?
के अंदर शराब पिएं या रस्सी इसे भ्रम मानकर वे फलों को तोड़ते गए।
डालना उचित नहीं है, यही मानकर आपको अगले प्राध्यापिका बहन बिल्कु ल नहीं बदलीं। मगर उनके बारे
में लटकें या हवा में चलें, कई बार क्रिके ट के किसी खिलाड़ी को आप अपना दिन आने को कहकर भेजा था न? इससे ज़्यादा उनसे ‘चार फलों के आगे ईश्वर चुप नहीं रहेंगे’ - फिर से वही
आदर्श मान लेते हैं। उनसे आप क्या-क्या उम्मीद कर आप किस सदाचार की अपेक्षा करती हैं? में आपने अपने मन में जो छवि बना रखी थी, वह बदल
इससे आपका क्या बिगड़ता आवाज़। गई थी। आईने के सामने कोई खड़ा है। झट आईना टू ट
सकते हैं? वे कितने रन बनाते हैं? कितने विके टों पर
है? सिर्फ़ इसी बात पर गौर कब्जा करते हैं? कितने ‘कै च’ पकड़ते हैं? दू सरों के मामले में जरूरत से ज़्यादा नाक घुसेड़ना शं करन पिल्लै ने झट से मुड़कर देखा। जहाँ से आवाज़ गया। उसमें दिख रही उनकी छवि चूर-चूर हो गई, मगर
करें , क्या वे अपने द्वारा ली किस आचरण में शामिल है? आई, देखा कि वहाँ पर एक तोता बैठा हुआ है। मुस्कुराते यह कै से कह सकते हैं कि वही चूर-चूर हो गए?
लेकिन उनके परिवार के बारे में, उनके पहले प्रेम के हुए पूछा, ‘ईश्वर देख रहे हैं, ये कहकर धमकी देने वाला
गई ज़िम्मेदारी को पूरा करते विषय में, उनके द्वारा बटोरी जायदाद के सं बं ध में, लतिका: तो उन्होंने जो किया वह सही था? आप फू लों का एक पौधा देख रहे हैं। उसमें खिलकर
तू ही था?’ महकते फू लों को रोज़ तोड़कर उनकी ख़ुशबू का आनं द
हैं या नहीं। उनके और उनकी पत्नी के बीच में लड़ाई-झगड़े के
बारे में आपको चिंता करने की क्या ज़रूरत है? सद‌ग् ुरु: वह दू सरी बात है। उनकी ज़िंदगी को लेकर तोते ने कहा, ‘हाँ’ लेते हैं। एक दिन सं योग से नीचे झक ु कर देखते हैं। उस
उसे सही या गलत ठहराने के लिए मैं तैयार नहीं हूँ । मैं पौधे की जड़ें मैल और गं दगी में सनी हुई हैं, इस पर गौर
वे तो के वल क्रिके ट के मैदान में आपकी उम्मीदों के कहता हूँ , आपके लिए भी वह ज़रूरी नहीं है। ‘मेरे लाडले तोते ! तुम्हारा क्या नाम है?’ करते हैं। इससे क्या फू ल भी गं दे हो जाएँ गे?
लिए ज़िम्मेदार हैं। मैदान के बाहर जो होता है वह
उनका निजी जीवन है। उसमें दखल देने का आपका कोई व्यक्ति आपकी उम्मीदों के अनुरूप काम नहीं ‘देवता।’ पौधे को सजा देने के लिए, आप सुगंध भरे फू लों को
कोई अधिकार नहीं बनता। कर रहा है, इसी वजह से उन्हें दोषी ठहराने का हक नकार देंगे तो इससे नुकसान किसका होगा?
आपको नहीं है। ‘तोते का नाम देवता! अजीब लग रहा है!’ शं करन
फिल्मी सितारे हों या खिलाड़ी, या मंत्री या अध्यापक पिल्लै ने कहा। अमृत की तलाश में जाते हुए विष पर क्यों ध्यान देना?
या कोई और – ऐसे सभी लोगों को अपनी-अपनी शं करन पिल्लै के पड़ोस के बाग में पेड़ की डालों पर
पके -पके आम लटक रहे थे। जब वहाँ कोई नही था, ‘डाबरमैन कु त्ते को ईश्वर नाम दिया गया है, क्या यह
ज़िंदगी जीने का हक है। उससे बदतर है?’ तोते ने पलटकर पूछा।
शं करन पिल्लै चुपके से वहाँ दाखिल हो गए।
12 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 13
ईशामृतम

जीवन और मृत्यु : क्या अलग-अलग हैं ?


हम जिसे जीवन और मृत्‍यु मानते हैं, उसे लेकर बहुत बड़ा भ्रम है। आपके मन में मृत्‍यु को
लेकर जो भी कल्‍पनाएं हैं, उन्‍हें छोड़ दीजिए। मृत्‍यु को लेकर लोगों के मन में अजीब-अजीब
से ख़्याल भरे हुए हैं।

जी वन और मृत्‍यु ही वे दो चीज़ें हैं, जिनकी आप


परवाह करते हैं। बाकी सब बेकार चीज़ें हैं। सिर्फ
जीवित ही नहीं हैं। कोई चट्टान है - वह न तो जीती है,
न मरती है। जो मरते हैं, वही जीते भी हैं। जो लोग मरने
जीवन और मृत्‍यु महत्‍वपूर्ण हैं। अगर आप जीवन को के इच्छु क होते हैं, वे उल्‍लास से जीते हैं। जो लोग मरना मनाना है तो आप सबसे पहले अपने दिमाग को शराब कोई मर रहा है, चाहे मैं वहां हूँ या नहीं। ख़ैर, तो जब
अच्‍छी तरह जीते हैं, तो शायद हम मृत्‍यु को थोड़ा टाल नहीं चाहते, हालाँकि वे भी बेशक मरेंगे, वे लोग नीरस में डुबाएँ गे, ताकि जीवन आपको कष्ट न दे। जश्न मनाने आपको मौका मिले, आप मृतक के करीब जाइए, एक
सकते हैं। वरना, वह हमें खोजती हुई आ जाएगी। जीवन जीते हैं। क्योंकि आप कभी इन दोनों को अलग वाले लोग भी शायद अनजाने में ही मृत्यु चाहते हैं। मृत्यु पिन लीजिए और उसको चुभाकर देखिए। उसके कान पहले तो अपने मन से मृत्‍यु
नहीं कर सकते। यह कु छ ऐसे ही है जैसे आप तय करें कष्ट नहीं देती, सिर्फ जीवन कष्ट दे सकता है। अगर में जाकर गालियां देकर भी देख सकते हैं । आप पाएँ गे
कि आप अपनी मां से जन्म लेंगे या पिता से। आप यहां
शब्‍द की नकारात्‍मकता को
‘मृत्‍यु’ शब्‍द कहते ही लोगों के मन में मृत्‍यु को लेकर अगले छह महीने, एक साल में, आपको किसी के अंतिम कि वह किसी योगी की तरह है। एक तरह से एक योगी
बहुत बचकाने ख्‍याल आने लगते हैं। आपके मन में मृत्‍यु उन दोनों के कारण हैं। इन दिनों समाज में इस तरह के निकाल दीजिए। आपके
सं स्कार में जाने का मौका मिले, तो जरूर जाइए, और होने का मतलब यही है, जीवित रहते हुए मृतक के समान
को लेकर जो भी कल्‍पनाएं हैं, उन्‍हें छोड़ दीजिए। मैं शब्द हैं – ‘सिंगल पेरेंट’। ‘सिंगल पेरेंट’ शब्द से ऐसा देखिए कि उस मरे हुए इं सान को क्या कोई समस्या है? होना। जीवन में जो चमक है वह
देखता हूं कि मृत्‍यु को लेकर लोगों के मन में अजीब- लगता है मानो आपने एक से छु टकारा पा लिया। मगर इसीलिए है क्‍योंकि एक दिन
अजीब से ख़्याल भरे हुए हैं। अमेरिका में खोपड़ी और दू सरा मौजूद तो था न? हमारा जन्म दोनों के कारण होता भारत में ऐसी परंपरा है – जब किसी शव को अंतिम पहले तो अपने मन से मृत्‍यु शब्‍द की नकारात्‍मकता को
हड्डियां मृत्‍यु का प्रतीक हैं। जहां तक मैं समझता हूं, है। आपको मरना है। अगर आप
सं स्‍कार के लिए ले जाया जाता है, तो सम्‍मान दिखाने का निकाल दीजिए। आप जीवित हैं और आपके जीवन में
खोपड़ी और हड्डियां तो जीवित लोगों के पास होती हैं, एक आम तरीका है कि आप शव के साथ कम से कम जो चमक है वह इसीलिए है क्‍योंकि एक दिन आपको कभी नहीं मरने वाले होते, तो
मरे हुए के पास तो कभी नहीं होतीं। सभी जीवित लोगों तो यह ‘एक बनाम दू सरा’ - एक मूर्खतापूर्ण विचार है, तीन कदम चलते हैं। अगर आपके सामने शवयात्रा जा मरना है। अगर आप कभी नहीं मरने वाले होते, तो आप आप किसी चट्टान की तरह
के पास खोपड़ी होती है। मगर खोपड़ी और हड्डियों का जो बुद्धि नाम के उपकरण के दरुु पयोग से आता है। जब रही है, तो आप अपने रास्‍ते नहीं चले जाते, आप रुककर किसी चट्टान की तरह होते। जीवन तो फू ल की तरह होते। जीवन तो फू ल की तरह
मतलब मरा हुआ समझा जाता है – यह जीवन को देखने लोग नहीं जानते कि बुद्धि का इस्तेमाल कै से करें, तो वे कम से कम तीन कदम उसके साथ चलते हैं। आप शहर नाजुक है, आप एक गलत चीज़ करेंगे और वह ग़ायब हो
का बहुत बचकाना तरीका है। हर चीज़ को काटते हैं। यही वजह है कि बुद्धि की धार नाजक ु है, आप एक गलत
में मरने वाले हर किसी के साथ श्मशान तक नहीं जा जाएगा। इसी वजह से जीवन में चमक है। अगर आप
अधिकांश लोगों के जीवन में सबसे कष्टदायक चीज़ रही सकते, मगर कम से कम तीन कदम तो चल ही सकते हैं। कभी नहीं मरने वाले होते, तो क्‍या आप इस जीवन पर चीज़ करें गे और वह ग़ायब
हम जिसे जीवन और मृत्‍यु मानते हैं, उसे लेकर बहुत है। अगर आप उनका आधा दिमाग ले लें, तो वे कष्ट यह मृत व्‍यक्ति के लिए सम्‍मान और उसके करीबी लोगों ध्‍यान देत?े नहीं। तो आपका जीवन इसीलिए कीमती है हो जाएगा।
बड़ा भ्रम है। किसी ने कहा, ‘सद‌ग् ुरु, नए साल की नहीं झेलेंगे। इसी वजह से बहुत से लोगों के लिए जश्न के लिए सं वेदना दिखाने का तरीका है। क्‍योंकि आपको मरना है।
शुरुआत में, आप मृत्‍यु की बात क्‍यों कर रहे हैं?’ क्‍योंकि का मतलब है, अपने दिमाग को शराब में डुबा देना। यह
जो मरेंगे, वही जीवित होंगे। जिन्हें मरना नहीं है, वे दनि
ु या में लगभग हर कहीं एक परंपरा बन गई है – जश्न आप किसी के अंतिम सं स्‍कार में शामिल हुए होंगे।
देखिए, यह मृत्‍यु मैंने नहीं बनाई है। हर मिनट कोई न

14 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 15
ईशामृतम

आप सर्क स के जोकर की तरह थोड़ी बहुत कलाबाज़ी जगह बिखेर देते हैं और उन्हें लगता है कि उनका जीवन
जानते हैं। जोकर को फिर कभी नकारात्मक शब्द के विफल हो गया। लेकिन पहली बात यह है कि आप उसे
मृत्यु को नकारना नही,ं स्वीकारना है रूप में मत लीजिएगा। सर्क स के सभी कलाबाज़ों में,
जोकर सबसे बेहतर होता है, क्योंकि वह बिना किसी
टुकड़ों में काट ही क्यों कर रहे हैं?

कई बार हम सोचते हैं कि हम मृत्यु को नकारकर जीवन जी सकते हैं। अगर आप भी ऐसे ही नाटक के आराम से ऐसा करता है। बाकी सब लोग वहां दरअसल जीवन के सभी स्तरों पर, चाहे वह पुरुष तत्व
कु छ न कु छ करने के लिए पूरा ध्यान लगाए रहते हैं। हो या स्त्री तत्व, जीवन हो या मृत्यु, अंधकार या रोशनी,
सोचते हैं, तो आप एक मनोवैज्ञानिक मरीज़ यानी पागल हैं।
यह शख्स बस आता है और बहुत आसानी से सब कु छ ध्वनि या मौन – चाहे आप कोई भी चीज़ ले लें, एक का
कर जाता है। जोकर सर्क स का सबसे बड़ा कलाबाज़ दू सरे के बिना अस्तित्व नहीं है। वे एक-दू सरे के पूरक
होता है। हैं, विरोधी नहीं।

अ भी, हम एक ऐसी विचित्र प्रजाति बनते जा रहे


हैं, जो सोचती है कि हम धरती को दू र रखकर
भी जी सकते हैं। कई बार हम सोचते हैं कि हम मृत्यु
कि क्या ये लोग इं सान भी थे! लेकिन काफी हद
तक, भले ही उस पैमाने पर नहीं, मगर हम भी वही
चीज़ें कर रहे हैं। इसीलिए मैंने कहा, ‘उनके मुकाबले
अगर आप हर चीज़ के टुकड़े कर देते हैं, और कु छ
लोग इन टुकड़ों को सं भालने में अच्छे होते हैं तो उन्हें
को नकारकर जीवन जी सकते हैं। अगर आप भी ऐसे हम थोड़े कम पागल हैं।’ अब देशों से युद्ध छे ड़ने के लगता है कि वे सफल हैं। कु छ लोग इन टुकड़ों को हर
ही सोचते हैं, तो आप एक मनोवैज्ञानिक मरीज़ यानी बजाय, हम धरती के खिलाफ युद्ध छे ड़ रहे हैं। हम
पागल हैं। जब मैं ‘पागल’ कहता हूं, तो लोग कहेंगे, थोड़े आगे बढ़ गए हैं। उस समय, वे धरती के किसी
‘नहीं, सद‌ग् ुरु! मैंने जाँच कराई है, किसी बीमारी टुकड़े के खिलाफ युद्ध छे ड़ रहे थे। अब हमने पूरी
जीवन के सभी स्तरों पर, का पता नहीं चला है, मैं बिलकु ल ठीक हूं।’ इसका पृथ्वी के खिलाफ लड़ाई छे ड़ने का फै सला कर लिया
चाहे वह पुरुष तत्व हो या मतलब है कि आप ठीक नहीं हैं। है, हम कितने समावेशी हो गए हैं!
स्त्री तत्व, जीवन हो या
‘पागल’ से मेरा मतलब है, आपके अपने विचार और अगली पीढ़ी पीछे मुड़कर देखेगी तो कहेगी, ‘क्या
मृत्यु, अंधकार या रोशनी, भावनाएं आपके जीवन में समस्या हैं। यह पागलपन ये मूर्ख लोग इं सान भी थे?’ अगर वे हमसे अधिक
ध्वनि या मौन – चाहे आप है। लेकिन आप सोच सकते हैं कि आप सामान्य हैं, पागल नहीं होंगे, और मुड़कर देखेंगे तो यही कहेंगे, ‘ये
कोई भी चीज़ ले लें, एक क्योंकि आपके दफ्तर में हर कोई ऐसा है, घर में भी आख़िर किस तरह के लोग थे?’ यह सब इसलिए हो
सबका यही हाल है, इसलिए आपको लगता है कि रहा है क्योंकि हम वास्तविकता के साथ नहीं चल रहे,
का दू सरे के बिना अस्तित्व
ऐसा होना सामान्य है। नहीं, आपको एक संस्थान में हम अपने मन में अपनी ही वास्तविकता बनाने की
नहीं है। वे एक-दू सरे के होना चाहिए। समाज भी एक संस्थान है। थोड़ी सी कोशिश कर रहे हैं। समस्या यह है कि हर कोई अपनी
पूरक हैं, विरोधी नहीं। मेहनत से एक पीढ़ी इस संस्थान को थोड़ा पागल या ही दनि
ु या में जी रहा है। हम इस दनि ु या में नहीं जी
पूरा पागल बना सकती है। समय-समय पर समाज की रहे। क्योंकि बुनियादी तौर पर आपका मनोवैज्ञानिक
हालत ऐसी ही होती रही है - कई बार वे थोड़े समझ- ढांचा इस चीज़ से तय होता है कि आप अपनी बुद्धि
दार होते हैं, कु छ खास चीज़ें करते हैं, कई बार वे पूरे का इस्तेमाल कै से करते हैं। जैसा कि मैंने बार-बार
पागल होते हैं और कु छ दू सरी तरह की चीज़ें करते हैं। कहा है, और आप भी मानते हैं, कि आप अपनी बुद्धि
को तेज़ देखना चाहते हैं। अगर आप नहीं चाहते कि
मुझे नहीं पता कि आप कितना जानते हैं, लेकिन मुझे वह तेज़ हो, तो आप बेशक उसे शराब में डुबो दीजिए
यकीन है कि आपमें से कई सारे लोग कम से कम या आजकल और भी ज्यादा असरदार चीज़ें हैं, जो
फिल्मों के जरिए या किताबों के जरिए इन चीजों के आपको पूरी तरह सुस्त बना देंगी। किसी धारदार चीज़
बारे में जानते होंगे। अगर आपने पूरी 20वीं सदी का का जब गैरजिम्मेदाराना तरीके से इस्तेमाल किया
इतिहास न भी पढ़ा हो – अगर आप बस 20वीं सदी जाता है, तो उसका नतीज़ा यह होता है कि सब कु छ
के शुरुआती पचास सालों को ही ले लें, जिनमें दो विश्व टुकड़े-टुकड़े हो जाता है। ये टुकडे कभी भी एक सं पूर्ण
युद्ध और ऐसी कई चीज़ें हुईं, तो हम कल्पना नहीं जीवन नहीं बना पाएं गे, चाहे आप उन्हें जिस तरह से
कर सकते कि वे किस तरह के लोग थे। आप सोचेंगे भी सं भालें। आप उन्हें तभी सं भाल सकते हैं, अगर

16 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com


ईशामृतम

हर साँस में बसा है - जीवन भी, मृत्यु भी


सांस अंदर लेना – जीवन, सांस छोड़ना - मृत्यु है। हर सांस में, हर समय एक ही सांस में
जीवन और मृत्यु घटित हो रहे हैं। ऐसा हर समय हो रहा है। दिल की हर धड़कन के साथ,
आप मृत्यु को गले लगा रहे हैं। जब आप एक जीवित मृत्यु
होते हैं, तभी आप जीवन

आ पने एक शरीर इकट्ठा कर लिया, आपने


अपने मन के अंदर कु छ कल्पनाएं इकट्ठी
कर लीं कि क्या आपका है, क्या आपका नहीं है।
एक जीवित मृत्यु होते हैं, तभी आप जीवन का एक
उल्लासमय अंश हो सकते हैं। वरना, आप भले ही
जीवित हों, मगर आपको हंसाने के लिए किसी को
का एक उल्लासमय अंश हो
सकते हैं। वरना, आप भले
सिर्फ कल्पनाएं , अगर आप उन्हें मिटा दें , तो वह खत्म आपको गुदगुदी करनी होगी। क्योंकि आपने ऐसी ही जीवित हों, मगर आपको
हो जाती हैं। लोग लं बा जीवन जी रहे हैं और साथ ही चीज़ों को अलग कर दिया है, जिन्हें अलग नहीं किया हंसाने के लिए किसी को
जिन चीज़ों के सं पर्क में उन्हें नहीं आना चाहिए, उनके जा सकता। ऐसा नहीं है कि आपने वास्तव में उन्हें
सं पर्क में आने के कारण, आजकल यह देखने में आ अलग कर दिया है, आपको लगता है कि वे अलग हैं। आपको गुदगुदी करनी होगी।
रहा है कि बहुत से लोग जीवन के एक मोड़ पर अपनी उन्हें अलग मानते हुए आप पूरी तरह जी नहीं सकते क्योंकि आपने ऐसी चीज़ों
याद्दाश्त खो रहे हैं। अपनी याद्दाश्त खो देने के बाद क्योंकि आप मरना नहीं चाहते। को अलग कर दिया है, जिन्हें
वे नहीं जानते कि वे कौन हैं, वे अपनी जाति, धर्म,
अलग नहीं किया जा सकता।
देश, परिवार, सब कु छ भूल जाते हैं। लेकिन फिर भी, योग में इसे इस तरह देखा जाता है, सांस अंदर लेना
उनके अपने गुण मौजूद होते हैं, क्योंकि याद्दाश्त पूरी – जीवन, सांस छोड़ना - मृत्यु है। हर सांस में, हर
तरह नहीं गई है। आप चेतना में वहां तक नहीं पहुंच समय एक ही सांस में जीवन और मृत्यु घटित हो रहे
पा रहे, मगर वह अपना खेल, खेल रही है। हैं। ऐसा हर समय हो रहा है। दिल की हर धड़कन
के साथ, आप मृत्यु को गले लगा रहे हैं। लेकिन जब
आप समय के साथ जैसे याद्दाश्त इकट्ठी करते हैं, आपका दिल नहीं धड़कता, तभी आपको लगता है
उसी तरह आप शरीर का यह ढेर भी इकट्ठा करते कि यह मृत्यु है। नहीं, जब वह धड़कता है, तो वह
हैं – दोनों ढेर ही हैं। मगर आप जीवन पहले से हैं। मृत्यु का ढोल पीट रहा होता है – ढम ढम, ढम। अगर
एक शरीर इकट्ठा करने से पहले भी आप एक जीवन आप बहुत जीवं त हो जाते हैं, तो आप मृत्यु समान हो
थे। अभी आप क्या हैं, इस याद्दाश्त को जमा करने से जाएं गे। इस अर्थ में आप एक तरह से शाश्वत हैं। किसी चीज़ की कमी है। फिर बाकी नाड़ियां क्या अगर आपके पास शरीर नहीं हो, तो फिर अगर मैं
पहले भी, आप एक जीवन थे। तो इस शरीर के जाने करती हैं? अगर बाकी नाड़ियां सक्रिय हो जाएं , फिर 10,000 साल भी आपको यहां बैठा दूँ , तो क्या
के बाद भी, आप एक जीवन होते हैं। उस रूप में नहीं योग का एक महत्वपूर्ण आयाम है, आपको पूरी तरह शरीर आपके हैंडबैग की तरह हो जाएगा, वह बस समस्या है?
जिस तरह आप अभी अपने अस्तित्व को समझते हैं, जीवं त बनाना। बहुत जीवं त होने का अर्थ क्या है? आपके साथ होगा, आप जब चाहें, उसे अलग रख
मगर जीवन मौजूद होता है। अगर यहां कोई जीवन आपके शरीर में मौजूद 72,000 नाड़ियां – शरीर सकते हैं, आंखें बं द करते ही उससे अलग होकर बैठ लेकिन अभी यहां बैठे हुए शरीर दख ु रहा है। मान
शरीर के बिना हो, तो आप कहेंगे कि वह मर गया। की सभी प्राण-नाड़ियां अगर आपके अंदर ज्वलं त हो सकते हैं। आपमें से कई लोगों ने कभी इसे महसूस लीजिए, आपको शरीर का बोध नहीं हो,‍फिर यहां
जब कोई शरीर और याद्दाश्त का बोझ ढो रहा हो, जाएं , फिर अगर आप यहां आंख बं द करके बैठते हैं किया होगा, हो सकता है थोड़ी देर के लिए। कभी बैठने में क्या समस्या है? इसलिए, अगर आपकी
सिर्फ तभी आप कहते हैं कि वे ज़िंदा है। अगर वे थोड़े तो आपको शरीर का कोई अहसास नहीं होगा। वह ‘शून्य-ध्यान’ के लिए बैठने पर, आपने महसूस सारी जीवन ऊर्जा पूरी तरह सक्रिय हो, सारी नाड़ियां
बोझ मुक्त हों, तो क्या इसका मतलब है कि उनका यहां होगा भी नहीं। जिस क्षण आपके पास शरीर नहीं किया होगा कि शरीर के अंग मौजूद नहीं हैं। कु छ सक्रिय हों, आपके सभी सिलेंडर जल रहे हों, फिर
अस्तित्व नहीं है? होगा, लोग कहेंगे कि आप मर गए। लोग ‘सम्यमा’ के लिए बैठते हैं, शुरू में काफी आपको शरीर का बिलकु ल भी बोध नहीं होगा।
कोशिश करनी पड़ती है, फिर एक दिन आप वहां अगर आपको शरीर का बोध नहीं होगा, तो दनि ु या
जिसे आप जीवन कहते है, जिसे आप मृत्यु कहते हैं, बैठे, और एक पूरा दिन बस ऐसे ही निकल गया। के अधिकांश लोग आपको मरा हुआ मान लेंगे। एक
अभी, 72,000 नाड़ियों में से अगर 21,000 भी
वे आपस में जुड़े हुए हैं। अगर आप उन्हें अलग कर क्योंकि समय सिर्फ भौतिक के लिए एक समस्या तरह से आप हैं भी - आप मृत्यु को जी रहे हैं।
जीवं त यानी ज्वलं त हैं, तो आप एक सं पूर्ण जीवन
देंगे, तो आपका जीवन नहीं रह जाएगा। जब आप है। भौतिक की समय-सीमा होती है। भौतिक से
जीते हैं। आपको नहीं लगेगा कि आपके जीवन में
थोड़ी दू री हो जाए, फिर कोई समय नहीं रह जाता।
18 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 19
ईशामृतम

क्या नीदं भी मृत्यु समान है?


सुषुप्ति, मतलब आप गैरमौजूद हैं पूरी तरह। जब आप सुषुप्ति के इस मृत्यु जैसे आयाम को
छू लेते हैं, तब आप पूरी तरह दनि
ु या के लिए मृत होते हैं। तभी चेतना की अगली अवस्था
की सं भावना बनती है।

नी ं द का मतलब है - बोध का नहीं होना। आपका


शरीर मौजूद नहीं हो, आपका मन मौजूद नहीं
व्यक्ति से प्यार करता हूं , उस व्यक्ति को प्यार नहीं
करता। नींद में भी यही होता है। आप पसं द करते
हो, आप मौजूद नहीं हों, इसे सुषुप्ति कहते हैं – हैं, नापसं द करते हैं, आप प्रेम करते हैं, प्रेम से बाहर
मतलब आप मौजूद नहीं हैं। अगर आप सपना देख निकलते हैं – सब कु छ सपने में होता है। लेकिन जब
रहे हैं, तो वह नींद नहीं है। अभी धरती के अधिकतर आप सोते हैं, तो सब कु छ सुस्त हो जाता है क्योंकि
इं सानों को शायद ही नींद या सुषुप्ति के कु छ पल आप वहां नहीं होते। बड़े लोग इस तरह नहीं सोते।
मिल पाते हैं। वे ज्यादातर समय सपने देखते रहते एक बच्चा इस तरह सोता है। बड़े लोग इस तरह तभी
हैं। शरीर बिस्तर पर स्थिर पड़ा है, लेकिन वे अपनी सो सकते हैं, अगर वे नशे में हों। यह दर्भा ु ग्यपूर्ण है।
बकवास के साथ व्यस्त हैं। यह ऐसा ही है जैसे क्योंकि उन्हें नींद जैसी एक सरल चीज़ का आनं द
जब आप सोते हैं, तो आपका फोन साइलेंट मोड पर है, बं द नहीं है। लेने के लिए भी किसी रूप में खुद को अशक्त बनाना
सब कुछ सुस्त हो जाता पड़ता है।
है क्योंकि आप वहां नहीं बं द होना अच्छा है, क्योंकि साइलेंट मोड पर वह
कु छ न कु छ कर रहा है। वह लगातार कु छ कर रहा अगर वे वास्तव में सोते, तो ऐसा हो ही नहीं सकता
होते। एक बच्चा ऐसे ही
है। योग में हम कहते हैं कि चेतना के चार चरण कि वे दिन में आठ घं टे सोएं । ऐसा हो ही नहीं
सोता है, बड़े लोग इस तरह हैं। एक है, जाग्रत अवस्था – यानी आप जगे हुए सकता। अभी वे शायद बीस से चालीस मिनट की
तभी सो सकते हैं, अगर वे हैं। भले ही आप जागरूक न हों, मगर आप जगे नींद से गुज़ारा कर रहे हैं। अधिकांश लोगों के साथ
नशे में हों। यह दर्भा
ु ग्यपूर्ण हुए हैं। कम से कम हम मान सकते हैं कि आपमें से ऐसा ही है। बाकी समय सपना देख रहे होते हैं। कु छ
अधिकांश लोग अभी जगे हुए हैं। अगला चरण है, हद तक आराम हो रहा है, शरीर आराम कर रहा है,
है। क्योंकि उन्हें नींद जैसी स्वप्न – यानी आप जगे हुए नहीं हैं, आप सपने की मगर गतिविधि चल रही है। असल मायने में स्विच कहा जाता है, उसकी संभावना बनती है। तुरिया का वह एक असहाय बच्चे की तरह है। एक छोटे से बच्चे
एक सरल चीज़ का आनं द अवस्था में हैं। जगे होने का अर्थ सिर्फ यह है – कि ऑफ शायद सिर्फ बीस से चालीस मिनट के लिए ही अर्थ है, शुद्ध चेतना। एक बार इसे छूने के बाद, आप या शिशु की तरह होने का अर्थ है कि आप अभी-अभी
लेने के लिए भी किसी रूप पांचों इंद्रियां काम कर रही हैं, आप देख सकते हैं, हो पा रहा है। कई लोग तो एक मिनट की नींद भी बिल्कु ल नही ं सोते क्योंकि तब आप जगे होने की स्थिति मृत्यु से बाहर निकले हैं। आपको यह अच्छा नही ं लगा?
सुन सकते हैं, सूंघ सकते हैं, चख सकते हैं, छू सकते नहीं ले पा रहे। जो लोग उठने के बाद उससे भी बुरी में भी आप सो रहे होते हैं। मेरी आख ं ो ं को देखिए, वे जब आपका शरीर नष्ट हो जाता है, तो हम कहते हैं
में खुद को अशक्त बनाना
हैं। आप सपने में भी, देख सकते हैं, सुन सकते हैं, हालत में होते हैं, जब वे सोने गए थे, तो साफ है कि हमेशा नशे में डूबी लगती हैं, क्योंकि वे एक साथ सोई कि आप मृत हैं – इसका अर्थ है कि एक तरह से आप
पड़ता है। चख सकते हैं, सूंघ सकते हैं, छू सकते हैं। तो स्वप्न वे नींद या सुषुप्ति का एक पल भी नहीं जान पाए और जगी होती हैं। नीदं का अर्थ है कि आप जब किसी वापस स्रोत में चले गए। तो अगर आप स्रोत में वापस
को नींद नहीं माना गया है। स्वप्न की अवस्था में पांचों हैं। हमें नींद शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, को सोते देखें, तो वह किसी बच्चे की तरह मासूम दिखे। जा रहे हैं और उसके बाद फिर निकलते हैं, तो इसे आप
इंद्रियां सक्रिय होती हैं, मगर वह बिना इनपुट के काम क्योंकि उससे गलतफहमी पैदा होगी। सुषुप्ति, वह आदमी भले ही हिटलर जैसा हो, लेकिन सोते समय जन्म कहते हैं। तो मैं कह रहा हूं कि आप मृत्यु से निकले
कर रही हैं, या कह सकते हैं कि हल्का इनपुट ले रही मतलब आप गैरमौजूद हैं पूरी तरह। जब आप वह किसी बच्चे की तरह होगा। जब वह जगा हुआ हो, हैं। इसमें क्या गलत है? एक शिशु का मतलब है कि वह
हैं, मगर काफी हद तक वह इनपुट के बिना भी वही सुषुप्ति के इस मृत्यु जैसे आयाम को छू लेते हैं, तब तो हो सकता है कि वह भयावह चीज़ें करता हो, मगर अभी मृत्यु से बाहर आया है। आप देखिए, जब लोग
गतिविधियां कर रही हैं। आप पूरी तरह दनि ु या के लिए मृत होते हैं। जब वह सोए, तो वह मासूम दिखेगा। बहुत बूढ़े हो जाते हैं, तो वे कु छ हद तक किसी शिशु
की तरह हो जाते हैं, भले ही उनकी याद्दाश्त कायम हो।
अभी, अगर मैं देखता हूं कि क्या हो रहा है, तो जब आप पूरी तरह दनि
ु या के लिए मृत होंगे, तो तभी लोग कहते हैं, ‘ओह! उसे नीदं में ही मार दिया क्योंकि वे मृत्यु के क़रीब होते हैं।
मैं इसे पसं द करता हूं , उसे पसं द नहीं करता, इस चेतना की अगली अवस्था, जिसे ‘तुरिया’ अवस्था गया।’ यह सबसे बुरी चीज़ है, क्योंकि सोई हालत में

20 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 21
ईशामृतम

अगर आप सिर्फ इस चिंगारी को स्‍वीकार करते हैं अभी, आपका भौतिक अस्तित्‍व, इस अनं त अस्तित्‍व
और उसे स्‍वीकार नहीं करते, जिसने आपको बनाया में सिर्फ एक छोटा सा उभार भर है। उस छोटी सी
है, जो आपके अंदर बुनियाद है, तो फिर आपके पास चीज़ के साथ, आप जीवन को पकड़ने और सं भालने
चुनाव नहीं होगा। आप एक बाध्‍यकारी शक्ति बन की कोशिश कर रहे हैं और वह हर समय फिसलता
जाएं गे। आप जीवन को भी मृत्‍यु की तरह अटल रहता है। यह एक बड़ा सर्क स है। आप भले ही सोचें
मानकर जिएं गे, सचेतन तरीके से नहीं, अपनी पसं द कि आप एक बढ़िया कलाबाज़ हैं, लेकिन अगर
से नहीं। अगर आप वास्‍तव में पूरी तरह जीवित और कोई निष्पक्ष होकर, आपको देखे, तो आप सिर्फ एक आपके
जीवं त रहना चाहते हैं, इस मायने में जीवित कि आप जोकर दिखेंगे। जिस तरह आप इस सीमित समय
बारे में जो चीज़ हमेशा से
अपने अस्तित्‍व की प्रकृ ति को तय कर सकें , तो यह को चला रहे हैं, जिसे आप जीवन कहते हैं, यह एक
महत्‍वपूर्ण है कि आप एक जीवित मृत्‍यु बनें। आपको बड़ा मज़ाक है। हालांकि आपको मृत्यु का जबर्दस्त मौजूद थी, वह है मृत्यु।
जीवन को सं पूर्ण रूप में लेना होगा। आप हिस्‍से नहीं अनुभव है। जन्म लेने से पहले आप लं बे समय के जीवन अभी घटित हुआ है।
हैं क्‍योंकि हिस्‍से कभी पूरे नहीं होते। पूरा बस मौजूद लिए मृत थे और आप फिर बहुत, बहुत लं बे समय के आपने इसे अच्छे से गले
होता है। चाहे आप शारीरिक रूप से यहां हों या नहीं, लिए मृत हो जाएं गे। अगर जीवन को घटित होना है,
चाहे हम सब यहां शारीरिक रूप से हों या नहीं, फिर तो ये दोनों चीज़ें गुँथी हुई हैं। एक, दू सरे के खिलाफ लगाया है,
भी अस्तित्‍व है। चाहे ये सारे ग्रह नष्‍ट हो जाएं , तारे नहीं हैं, वे एक-दू सरे के पूरक हैं। मगर उसे गले नहीं लगाया,
नष्‍ट हो जाएं , फिर भी खाली जगह तो रहेगी न? जोआप हमेशा से थे –
आपके बारे में जो चीज़ हमेशा से मौजूद थी, वह है
आप हमेशा मृत थे।
तो जीवन और मृत्‍यु ऐसे हैं – जिसे आप सृष्टि के रूप मृत्यु। जीवन अभी घटित हुआ है। आपने इसे अच्छे
में देखते हैं। एक छोटा पिंड है, मिट्टी की एक छोटी से गले लगाया है, मगर उसे गले नहीं लगाया, जो अभी सिर्फ थोड़ी देर के

जीवन को चुन सकते हैं, पर मृत्यु को नही ं सी गेंद को हम पृथ्‍वी कहते हैं। और दू सरी उससे भी
छोटी - मिट्टी की बहुत ही छोटी सी गेंद को अभी हम
आप हमेशा से थे – आप हमेशा मृत थे। अभी सिर्फ
थोड़ी देर के लिए जीवित हैं। मगर आप सिर्फ इस
लिए जीवित हैं।
मगर आप सिर्फ
मृत्यु कोई हमारा चुनाव नहीं है, हाँ, जीवन हमारा चुनाव है। जीवित रहना और जीवं त ‘आप’ बुलाते हैं। आपको इसी क्षण जीवन और मृत्‍यु थोड़े से समय को गले लगाना चाहते हैं, बाकी को
के लिए तैयार होना चाहिए, किसी और समय नहीं। नहीं। ऐसे काम नहीं चलता क्योंकि ये सब एक ही है। इस थोड़े से समय को
रहना एक चुनाव है। कै से जीवित रहना है, यह भी आपका चुनाव है। कै से मरना है – गले लगाना
आप जब मृत्‍यु के लिए सौ प्रतिशत तैयार होंगे, तभी
आपके पास ऐसा कोई चुनाव नहीं है। आप वास्‍तव में जीवित हो सकते हैं, तभी यह जीवन अगर आप अपने शरीर और मन के ढेर के साथ चाहते हैं,
आपके लिए खुलता है। वरना, आप जीवन के एक लगातार जुड़े हों मगर उलझे हुए नहीं, अगर ऐसा हो
मृ
बाकी को नहीं।
त्‍यु कोई हमारा चुनाव नहीं है, वह होनी ही है। तरह प्रयोग करना चाहते हैं, तो यह बहुत महत्‍वपूर्ण टुकड़े को पकड़कर लगातार उसके साथ जूझते रहते जाए, तो आप एक जीवित मृत्यु बन जाते हैं। मृत का
हाँ, जीवन हमारा चुनाव है। जीवित रहना और है कि आप जीवन के सभी आयामों को एक समझें। हैं, उसके साथ सर्क स करते रहते हैं। अधिकांश इं सानों अर्थ है कि वे यहां नहीं हैं। वे कौन से लोग हैं, जिन्हें
जीवं त रहना एक चुनाव है। कै से जीवित रहना है, यह अगर आप उन्हें अलग-अलग करेंगे, तो आपके पास के लिए हर दिन एक सं घर्ष है। क्‍योंकि यह एक आप मृत बुलाते हैं? जो यहां नहीं हैं। यहां नहीं का
भी आपका चुनाव है। कै से मरना है – आपके पास यह चुनाव करने की क्षमता नहीं होगी। क्‍योंकि आपके विशाल चीज़ की तरह है, जिससे एक छोटा टुकड़ा मतलब वे इस दनि ु या में नहीं हैं, तो वे मर चुके हैं। तो
ऐसा कोई चुनाव नहीं है। तो हम जानते हैं कि मृत्‍यु पास खड़े होने के लिए कोई आधार ही नहीं होगा। बाहर निकला हुआ है। उस छोटे से टुकड़े के सहारे अगर आप यहां नहीं है, आपको मृत माना जाएगा।
एक विकल्‍प नहीं है, यह अटल नतीजा है। मृत्‍यु सृष्टि अगर शाश्‍वत मृत्‍यु का आधार न हो, तो आपके अंदर आप पूरी चीज़ को उठाने की कोशिश कर रहे हैं, जो और जो यहां नहीं है, यानी वह जो नहीं है, वह शिव
की इच्‍छा से होती है। जीवन मेरा चुनाव है, तो यह मेरी जीवन की वह चिंगारी, जो अभी है, वह सं भव नहीं आप कभी नहीं कर पाएं गे। है। शि-व का अर्थ है, वह जो नहीं है। जिसे हम शिव
इच्‍छा के अनुसार है। अगर आप इस इच्‍छा का अच्‍छी होगी। कहते हैं, वह एक जीवित मृत्यु है।

22 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 23
ईशामृतम

जीवन और मृत्यु दोनों को गले लगाएं


मृत्‍यु बहुत नकारात्मक शब्‍द बन गया है। लोग सोचते हैं कि मृत्‍यु एक भयावह चीज़ है।
आपको अपने दिमाग में यह सं दर्भ बदलना होगा। अगर आप सही सं दर्भ समझ लें, लो ग मुझसे पछ ू ते हैं, ‘सद‌ग् रुु , शिव कितने समय
पहले थे?’ मैं कहता हूं, ‘मेरे लिए, वह अभी
तो आप जीवन को एक मशीन में बदल देते हैं। फिर
आप जीवित होने के मकसद से ही चक ू रहे हैं। जीवित
फिर आप दोनों को गले लगाएं गे। जीवित हैं।’ क्योंकि वह मर कै से सकते हैं? जो नही ं होना कोई कार्यकु शलता नही ं है, यह उससे कही ं बड़ा
है, वह मर नही ं सकता। जो अस्थिपंजर है, वह मर है। इसमें मृत्यु शामिल है। इसलिए यह अनंत है। अगर
जाएगा। लेकिन जो वैसा नही ं है, वह कै से मर सकता इसमें मृत्यु नही ं होती, तो यह एक सीमित कार्यकु शलता
है? अगर आप जानते हैं कि किस तरह शारीरिक और होती। आप उठते हैं, चलते हैं, नाचते हैं और एक दिन
मनोवैज्ञानिक ढाचं े के बिना भी एक व्यक्ति हुआ जा मर जाते हैं। हो सकता है आप बिना नाचे ही, बस मर
सकता है, तो आप एक जीवित मृत्यु हैं। अगर आप जाएँ । तो आप या तो किसी चीज़ के लिए मर सकते
एक जीवित मृत्यु हैं, तो आपका अस्तित्व अनंत है। हैं, या आप वैसे ही मर सकते हैं। यही विकल्प है।
अब समय है कि आप जीवित मृत्यु बन जाइए ताकि मरना है या नही,ं यह विकल्प नही ं है। वह अटल है।
आप अनंत काल तक जी सकें । यह महत्वपर ू ्ण है। मगर जीना है या नही,ं इसमें चुनाव है। उस चुनाव को
अनंत काल का मतलब यह नही ं है कि आप कभी करने के लिए, उस चुनाव को करने का एकमात्र तरीका
अपनी जगह नही ं छोड़ेंग।े जब आपका समय परू ा हो यह है कि आप परू ी तरह समावेशी हो।ं समावेशी होने
जाएगा, तो आपको यह शरीर तुरंत वापस धरती में का मतलब सिर्फ अपने आस-पास बैठे लोगो ं के साथ योग का अर्थ है कि आप
डालना होगा। थोड़ा सा मेलजोल नही ं है – वह तो बुनियादी सभ्यता समावेशी हो गए। यानी
है। समावेश का अर्थ है कि आप जिस तरह जीवन को
आपके अंदर जीवन और
हालाकं ि आपने इसे धीरे-धीरे इकट्ठा किया है, इसका अपनाते हैं, उसी तरह मृत्यु को भी अपनाएं। आप हर
यह अर्थ नही ं है कि इसे धीरे-धीरे वापस जाना है – चीज़ को अपनाते हैं। यह शिव है। मृत्यु एक हो गए। वे आपके
यानी आपको एक-एक करके अपने अगं छोड़ने होगं े लिए दो अलग-अलग चीज़ें
- ऐसा मत कीजिए। आप किसी ऐसी चीज़ को खुद शिव का अर्थ है, वह जो नही ं है। अगर आप अभी नहीं हैं, आप एक जीवित
से काटने की कोशिश न करें जो आपका एक हिस्सा यहां बैठकर ‘वह जो नही ं है’ हो जाते हैं, क्योंकि वह
है। अभी मृत्यु भी उतना ही आपका हिस्सा है, जितना जो अभी यहां है, वह शरीर है, अगर आप यहां ‘वह
मृत्यु हैं। जब आप एक
कि जीवन। अगर आप उसे काटकर सिर्फ एक हिस्सा जो नही ं है’ की तरह बैठते हैं, तो आप एक ही समय जीवित मृत्यु होते हैं, तो
अपने पास रखने की कोशिश करते हैं, फिर आप हर मरते और जीते हैं। आप एक जीवित मृत्यु हो जाते हैं। इसका परिणाम होता है, एक
ू जाएंगे और नही ं जान पाएंगे कि आपके
चीज़ से चक इस जीवन को बोध के उस स्तर पर लाना योग है। योग शानदार जीवन। क्योंकि
साथ क्या हो रहा है, आप क्या कर रहे हैं। सिर्फ शरीर को तोड़ना-मरोड़ना नही ं है। योग जीवन की
चिंगारी को सिर्फ थोड़ा और बढ़ाने के बारे में भी नही ं क्या मिट्टी को नकारकर या
अभी धरती पर हर कोई उस एक औरत के प्यार में है। योग सिर्फ स्वस्थ रहने के बारे में भी नही ं है। योग नज़रंदाज़ करके कोई पेड़ बढ़
डूब रहा है, जिसे एलेक्सा कहते हैं। क्योंकि वह स्मार्ट का अर्थ है कि आप समावेशी हो गए। योग का अर्थ सकता है?
है, आज्ञाकारी है, आप उसे स्विच ऑफ कर सकते हैं। है मेल – इसका अर्थ है कि आपके अदं र जीवन और
हर जगह लोग सिर्फ उसे बुला रहे हैं, क्योंकि अब आप मृत्यु एक हो गए। वे आपके लिए दो अलग-अलग
उससे यह भी कह सकते हैं, ‘जब मेरी बीवी आएगी, तो चीज़ें नही ं हैं, आप एक जीवित मृत्यु हैं। जब आप
उसे यह बता देना।’ वह बता देगी। ‘कु छ अच्छी बात एक जीवित मृत्यु होते हैं, तो इसका परिणाम होता है,
कहो’ मतलब वह कु छ अच्छा सा सोचेगी और बोलेगी। एक शानदार जीवन। क्योंकि क्या मिट्टी को नकारकर
या नज़रंदाज़ करके कोई पेड़ बढ़ सकता है? तो क्या
तो आपको यह समझना चाहिए। जैसे ही आप सोचते शन्य
ू ता, जिसे आप मृत्यु कहते हैं, उसकी उपेक्षा करके
हैं कि काम करने की एक खास कु शलता ही जीवन है, वास्तव में कु छ किया जा सकता है?

isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 25


दोनो ं को सचेतन तौर पर गले लगाने पर ही आप हम बिना आधार के चमकना चाहते हैं। फिर, आप
असाधारण तरीक़े से जीवित हो सकते हैं, जो इस जीवन बहुत चिंतित जुगनू होगं ।े आपके जीवन में चाहे जो हो
को एक शानदार अस्तित्व बना सकता है। इसलिए नही ं जाए, मगर चिंता नही ं जाती। आदिमानव इसलिए चिंता
कि आप दनि ु या में क्या करते हैं, बस आपके होने के में रहता था क्‍योंकि उनका रोज का भोजन हिरण हुआ
तरीके के कारण आप शानदार होगं ।े शानदार का अर्थ करता था, जिसके पीछे उन्हें भागना पड़ता था। हिरण
यह नही ं है कि पटाखो ं को फूटना चाहिए। देखिए, आप खद़ु आकर आपकी थाली में तो नही ं कूद जाएगा। आज
ऊपर आकाश में देखकर सोच सकते हैं कि तारे शानदार सारा भोजन भंडार में मौजदू होता है। आप उसके पीछे
हैं। वे पटाखो ं की तरह हैं। लेकिन अगर आप आकाश नही ं दौड़ते। देखिए कितना आराम है। फिर भी चिंता
में देख,ें तो तारो ं ने बहुत कम जगह ले रखी है। बाकी खत्‍म नही ं हुई है। आपमें से अधिकाशं लोगो ं को अगले
सब शानदार शन्य ू ता है। आपकी समस्या सिर्फ यह है कि भोजन की चिंता नही ं करनी होती। अगला भोजन
आप उसे देख नही ं सकते। डाइनिंग हॉल में तैयार है, आपको चिंता करने की जरूरत
नही ं है। मगर फिर भी चिंता नही ं गई। ऐसा दरअसल
अभी आप ऐसी चीज़ ही देख सकते हैं, जो रोशनी को इसलिए है क्‍योंकि आप जीवन की एक छोटी चिंगारी को
रोककर परावर्तित कर सके यानी लौटा सके । इसका कसकर पकड़े हुए हैं और बड़े दृश्‍य से चक
ू रहे हैं।
अर्थ है कि आपको ऐसी चीज़ चाहिए जो आपके
अनुभव के लिए रोशनी को रोकती है। ऐसा इसलिए मृत्‍यु बहुत नकारात्मक शब्‍द बन गया है। लोग सोचते हैं
क्योंकि आप इन दो आख ं ो ं के अनुसार चलते हैं, जिन्हें कि मृत्‍यु एक भयावह चीज़ है। आपको अपने दिमाग
गुजर-बसर के मकसद से बनाया गया है, ताकि आप में यह संदर्भ बदलना होगा। मृत्यु जीवन विरोधी नही ं है,
जाकर किसी चीज़ को टक्कर न मारें। देखिए, अगर जीवन सिर्फ मृत्‍यु के कारण घटित हो रहा है। आप लंबे
आप बेखबरी में जाकर किसी चीज़ से टकराते हैं, तो समय से मृत हैं, इसलिए अभी चमक रहे हैं और यह
लोग कहते हैं, ‘क्या तुम्हारे पास आख ं ें नही ं हैं?’ तो चमक सिर्फ इसलिए संभव है क्‍योंकि आप एक बार फिर
यह गुजर-बसर की प्रक्रिया है। आप जाकर दीवार से से बहुत लंबे समय तक मृत होगं ।े
न टकरा जाएं, आप दरवाज़े से होकर जाएं, इसीलिए
आपके पास ये आख ं ें हैं। मगर ये आख ं ें जीवन के साथ अगर आप सही संदर्भ समझ लें, फिर आप दोनो ं को
समावेशी होने में आपकी मदद नही ं करती,ं क्योंकि ये गले लगाएंग।े आप किसी ऐसी चीज़ को गले नही ं लगा
पक्षपाती हैं। ये आपको बताती हैं कि दीवार क्या है, सकते जिसे आप भयावह समझते हैं। ‘ओह, अगर
दरवाज़ा क्या है। ये आपको अस्तित्व की विशालता नही ं मैं मृत्‍यु को गले लगा लूं , तो क्‍या कल सुबह मैं मर
दिखाती।ं मगर इस अस्तित्व की विशालता के कारण जाऊंगा?’ ऐसा हो भी सकता है, वैसे यह आपके हाथ
ही ये तारे हैं, ये ग्रह हैं, आपके और मेरे जैसे टिमटिमाते में नही ं है। हमारा चुनाव सिर्फ चमकने की कोशिश करने
नन्हें जुगनू हैं। तक है।

26 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 27
संवाद

ज़रूरी है बच्चों का प्रकृ ति के सं पर्क में रहना


मेरे ख्‍याल से यह ऐसी चीज़ है जिसका ध्‍यान सभी स्‍कू लों को रखना चाहिए और पक्‍का
करना चाहिए कि बच्चों का प्रकृ ति से सं पर्क हो. . . ब्रिटिश मूल के एक प्रसिद्ध भारतीय
लेखक रस्किन बॉन्ड ने सद‌ग् ुरु से बातचीत की। पेश है उस सं वाद के सं पादित अंश की
अंतिम कड़ी:

रस्किन बॉन्‍ड: जिन दिनों मैं देहरादू न में बड़ा हो रहा रहते थे और कितना भी खाने के बाद भी दबु ले पतले
था, उस समय साइकिल का दौर था। सभी बच्चे और ही रहते थे। बढ़ती उम्र के किसी लड़के या लड़की के
जवान साइकिल पर घूमते थे। तब कारें बहुत कम मोटे होने का सवाल ही नहीं था, क्योंकि हम हमेशा
होती थीं और मोटरसाइकिलें भी ज्यादा नहीं थीं। हम किसी न किसी गतिविधि में लगे रहते थे।
सभी साइकिलों पर घूमते थे। मैं साइकल से अक्‍सर
गिर जाता था, इसलिए मैंने पैदल चलना शुरू कर एक समय मैं पूरे दक्षिण भारत में साइकिल से घूमा
दिया और मैं पैदल ही शहर भर में घूमता था। मुझे था। फिर मैं धीरे-धीरे मोटरसाइकिल पर आ गया।
मुझे लगता है कि आज के
हर सड़क, हर गली का पता मालूम था। इस कारण मुझे लगता है कि आज के बच्चों के विकास में जो जुगनू की उड़ान
मेरा नाम ‘रोड इं स्‍पेक्‍टर’ पड़ गया। तो वे साइकिल एक बड़ी कमी है, वह है - उनका आसपास के दू सरे आज के बच्चों का किसी दू सरे जीवन से कोई सं पर्क
बच्चों के विकास में जो एक वाले दिन थे, आजकल आपको साइकिलें ज़्यादा जीव, पेड़-पौधे, कीड़े, पशु-पक्षी, रेंगने वाले जीव नहीं है, प्रकृ ति से कोई सं पर्क नहीं है। मेरे ख्‍याल
से यह ऐसी चीज़ है जिसका ध्‍यान सभी स्‍कू लों को
अमावस की अंधियारी रात में और पूछती है सवाल,
बड़ी कमी है, वह है - उनका नहीं दिखतीं। मगर आजकल के बच्‍चों के बारे में क्‍या और तमाम दू सरी तरह के जीवन से कोई सं बं ध नहीं
होना। एक इं सान के लिए यह कोई अच्‍छी बात नहीं रखना चाहिए और पक्‍का करना चाहिए कि बच्चों का लेता है जुगनू , क्या एक जुगनू से होगा
आसपास के दू सरे जीव, कहें? आप कह रहे थे कि वे एक तकनीकी युग में
बहुत सारी ध्यान बं टाने वाली चीजों के साथ बड़े हो है कि आप यह सोचते हुए बड़े हों कि सब कु छ सिर्फ प्रकृ ति से सं पर्क हो। क्‍योंकि यह पर्यावरण को लेकर सं कल्प उड़ने का। ये जहान रोशन?
पेड़-पौधे, कीड़े, पशु-पक्षी,
रहे हैं। लोग कहते हैं कि वे पढ़ते नहीं हैं, लेकिन मैं आप के बारे में है। जागरूकता की बात नहीं है। आपकी इं सानियत का और विचारमग्न अन्धकार,
रें गने वाले जीव और तमाम विकास हो, इसके लिए यह महत्‍वपूर्ण है कि आप हर
अभी भी बहुत सारे ऐसे युवाओं से मिलता हूँ जो पढ़ते उड़ाता है मज़ाक़ हाँ, हूँ मैं एक जुगनू ,
दू सरी तरह के जीवन से कोई हैं और बहुत तो ऐसे हैं जो लिखते भी हैं। तो शायद दर्भा
ु ग्‍यवश लोगों के दिमाग में धार्मिक मतों के जरिए जीवन को ऐसे जीवन के रूप में देखें, जिसे इस धरती
सं बं ध नहीं होना। ऐसे विचार भर दिए गए हैं कि मनुष्‍य को भगवान पर जीने का हक है। वे यहां हमसे पहले से हैं। जोशीले जुगनू की उड़ान का। अगर जीवन के ताप ने,
आप उन्‍हें कु छ सलाह दे सकते हैं। देखिए ज्ञान की
बातों की उम्‍मीद सद‌ग् ुरु से है, मुझसे नहीं। ने अपनी छवि के रूप में बनाया है। बाकी जीव यहां पैदा की है कु छ गरमी आपमें।
रस्किन बॉन्‍ड: हां, यह सच है। इससे मुझे एक
सिर्फ हमारी सेवा के लिए हैं। मनुष्‍य के मन में यह अथाह, अनं त अंधकार और आपके भीतरी आयाम ने,
ु ग्य- सबसे विनाशकारी विचार है कि हम हर दू सरे जीवन
सद‌ग् ुरु: टेक्नोलॉजी कोई बुरी चीज़ नहीं है। दर्भा कविता याद आती है, जो आपकी लिखी हुई है।
मैं जानता हूं कि आपकी किताबें काफी पढ़ी जाती निगल सकता था किया है मोहित आपको,
वश लोग ऐसी बातें करते रहते हैं, जिससे लगता है कि को अपनी सेवा के लिए समझते हैं। उनका अपना
टेक्नोलॉजी हमारे जीवन को बर्बाद कर रही है। नहीं, भी जीवन है। मैंने जं गलों में काफी समय बिताया हैं, लेकिन मेरे ख्‍याल से बहुत कम लोग यह जानते प्रकाश की तो कर सकता हूँ प्रज्वलित मैं
उसका गैर जिम्मेदाराना इस्तेमाल हमारे जीवन को है, कई बार तो हफ्तों अके ले रहा हूं, बिना किसी होंगे कि आप गुपचुप कविताएं भी लिखते हैं! तो इस नन्हीं कोशिश को, आपको, और इस पूरी दनि ु या
बर्बाद कर रहा है। किसी भी चीज़ का गैर जिम्‍मेदा- बाहरी मदद के जं गल में गुज़ारा किया है। हर जीव – मैं आपकी एक छोटी सी कविता पढ़ता हूं, जो मैं
लेकर आया हूं। इस छोटी सी कविता का शीर्षक है को भी।
राना इस्तेमाल हमारे जीवन को बर्बाद कर सकता है, चींटियों, कीड़े-मकोड़ों, पशु-पक्षियों सभी का जीवन शं कालुओ ं की कलहप्रिय हँ सी
जरूरी नहीं है कि वह टेक्‍नोलॉजी ही हो। जब हम ख़ुद में पूर्ण है। मैं नहीं जानता कि वे हमारे बारे में ‘द फायरफ्लाई’ – ये रस्किन बॉन्‍ड की नहीं, सद‌ग् ुरु
लोग बच्चे थे, तो हम शारीरिक रूप से बहुत सक्रिय क्‍या सोचते हैं। की है: फै ल जाती है मेरे भीतर,
- सद‌ग् रुु
28 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 29
जिज्ञासु का असमं जस

देना चाहूंगा – ‘सिकं दर महामूर्ख’। क्योंकि वह ऐसा तक के लिए उसे टाल दिया। अगले जन्म में, कौन
शख्स था जिसने जीवन को बर्बाद किया - अपना भी जानता है कि वह क्या बना – हो सकता है वह
और दू सरे लोगों का भी। उसने सोलह साल की उम्र कॉकरोच बन गया हो। आप इं सान के रूप में एक
में लड़ना शुरू कर दिया था। अगले सोलह साल वह सं भावना के साथ आए हैं। अगर आप उसे गँ वा दें
लगातार लड़ता रहा, रास्ते में आने वाले हज़ारों लोगों और सोचें कि आप अगली बार उसे कर लेंग,े तो
का कत्ल किया। वह बत्तीस साल की उम्र में बहुत अगली बार किसने देखा है?
दयनीय हालत में मरा, क्योंकि वह सिर्फ आधी दनि ु या
को जीत पाया था, बाकी आधी दनि ु या अब भी बची एक क्षण के लिए सिकं दर इस सं भावना के करीब
थी। सिर्फ एक महामूर्ख ही इस तरह सोलह साल तक आया था, मगर फिर उसने इसे टाल दिया। इस घटना
लड़ सकता है। के कारण, उसके अंदर एक तरह की उदासीनता आ जब आपकी क्षमताएं आपके
गई। वह अपने जीवन के अंत में युद्ध के लिए जुननू
सिकं दर सम्राट के कपड़ों में अपने घोड़े पर था और खो बैठा, मगर फिर भी आदतन वह लड़ता रहा। जुननू पास होती हैं और जब
उसने नीचे डायोजीनस को देखा, जो आँखें बं द किए खत्‍म हो जाने के बाद उसकी ताक़त कम हो गई और जीवन अच्‍छा होता है, तभी
असीम आनं द में रेत में लोट रहे थे। सिकं दर ऊंची वह मर गया। अपनी मौत से ठीक पहले, उसने अपने जीवन को गहराई में देखने
आवाज़ में लगभग चिल्लाया, ‘नीच जानवर! तुम्हारे सैनिकों को एक अजीब हिदायत दी। उसने कहा, ‘जब
का समय होता है, तब नहीं
शरीर पर कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं है। तुम मेरे लिए ताबूत बनाया जाए, तो उसके दोनों ओर दो
जानवर की तरह हो। तुम आख़िर किस चीज़ को लेकर छे द होने चाहिए ताकि मेरे दोनों हाथ ताबूत के बाहर जब चीज़ें बिगड़ जाती हैं।
इतने खुश हो?’ डायोजीनस ने ऊपर उसकी ओर देखा हों, और सबको यह पता चले कि सिकं दर महान भी अधिकांश लोग अपने जीवन
सं भावनाओं को गँ वाइए मत! और उससे एक सवाल पूछा जो कोई आम आदमी
किसी सम्राट से पूछने की हिम्मत नहीं कर सकता था।
इस दनि ु या से खाली हाथ ही गया।’ उसने अपने जीवन
में यह एक समझदारी का काम किया।
को गहराई से तभी देखते हैं,
जब स्थितियां बिगड़ जाती हैं
आप इंसान के रूप में एक सं भावना के साथ आए हैं। अगर आप उसे गँ वा दें और सोचें कि उन्होंने पूछा, ‘क्या तुम मेरी तरह बनना चाहोगे?’
आप अगली बार उसे कर लेंगे, तो अगली बार किसने देखा है? इस सवाल ने सिकं दर को बहुत गहराई तक प्रभावित आप अपने जीवन में समझदारी का एक काम करने या उनके साथ कोई हादसा
किया, वह बोला, ‘हां, मुझे क्या करना होगा?’ डायो- के लिए आखिरी क्षण का इं तज़ार मत कीजिए। कु छ होता है।
जीनस बोले, ‘उस बेवकू फ घोड़े से उतरो, ये सम्राट के ज्‍यादा देर हो सकती है। अभी समय है, जब सब कु छ
सध ु ी: सद‌ग् रुु , हम भारत के योगियो ं के बारे में काफी यह देखा और सोचने लगे, ‘हे भगवान! मेरी ज़िन्दगी कपड़े उतारो और उन्हें नदी में फें क दो। यह नदी का आपके हाथ में है। जब आपकी क्षमताएं आपके पास
कु छ सुनते हैं, लेकिन क्या पश्चिम में भी ऐसे लोग थे? तो कु त्ते से भी बदतर है!’ वे पहले ही आनंदित थे, किनारा हम दोनों के लिए काफी है। मैं इस पर कब्जा होती हैं और जब जीवन अच्‍छा होता है, तभी जीवन
मगर वे कह रहे थे कि उनका जीवन कु त्ते से भी बदतर नहीं कर रहा हूं। तुम भी लेटकर आनंदित हो सकते को गहराई में देखने का समय होता है, तब नहीं जब
सद‌ग् रुु : ग्रीस में एक भिक्क षु थे, जो नदी किनारे है क्योंकि कई बार उन्हें लगता था कि वे बस नदी में हो। कौन तुम्हें रोक रहा है?’ सिकं दर बोला, ‘हां, तुम चीज़ें बिगड़ जाती हैं। अधिकांश लोग अपने जीवन
रहते थे – डायोजीनस। वे एक अद्तभु और आनंद में कूद जाएं पर उन्हें अपने लंगोट के भीग जाने और जैसा होकर मुझे बहुत अच्छा लगेगा, लेकिन मेरे पास को गहराई से तभी देखते हैं, जब स्थितियां बिगड़
मतवाले भिक्क षु थे। किसी ने उन्हें एक सुंदर भिक्षापात्र भिक्षापात्र के खो जाने की चिंता होती थी। उस दिन वह करने का साहस नहीं है जो तुम कर रहे हो।’ जाती हैं या उनके साथ कोई हादसा होता है। जब
दिया था और वे सिर्फ एक लंगोट पहनते थे। वे मंदिरो ं उन्होंने अपना भिक्षापात्र और लंगोट फें क दिया और स्थितियां बिगड़ती हैं, तो आप भले ही इच्‍छु क हों,
के द्वारो ं पर भिक्षा मागं ते थे और जो भोजन उन्हें परू ी तरह नग्न अवस्था में रहने लगे। इतिहास की किताबों ने हमेशा बताया है कि सिकं दर मगर आप जरूरी ऊर्जा और ध्‍यान कें द्रित करने में
मिलता था, वही खाते थे। एक दिन, वे अपना भोजन बहुत साहसी था। फिर भी सिकं दर ने स्वीकार किया असमर्थ हो जाते हैं। जब सब कु छ ठीक हो, तब
खत्म करके नदी की ओर जा रहे थे, तभी एक कु त्ता एक दिन, वे आनंदित अवस्था में नदी किनारे लेटे हुए कि उसमें वह करने का साहस नहीं था जो डायोजीनस आपको इस जीवन को जितना हो सके , उतनी गहराई
उनसे आगे निकला, दौड़कर नदी में गया, थोड़ा तैरा, थे, जब सिकंदर उधर से गुज़रा। सिकंदर को ‘सिकंदर कर रहे थे। तो सिकं दर ने जवाब दिया, ‘मैं अगले जन्म में देखना चाहिए।
फिर रेत पर आया और खुशी से लोटने लगा। उन्होंने महान’ कहा जाता है। मैं उसको एक तीसरा नाम में तुम्हारे साथ आऊंगा।’ उसने अगले जन्म

30 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 31
जिज्ञासु का असमं जस

क्या सब कु छ ईश्वर की इच्छा से होता है? कमाना चाहते हैं, शायद आपको थोड़ी इच्छा-शक्ति
की जरूरत होगी। उसे किसी दू सरे तरीके से भी किया
बोध होगा, न कोई समस्या, न कु छ, आप खुशी से हत्या
कर सकते हैं क्योंकि आपके पास ईश्वर की इच्छा है।
ईश्वर निश्चित रूप से इच्छाओं से परे है। इच्छा तो आपके मन का एक मूर्खतापूर्ण उपक- जा सकता है, लेकिन आपको पता है कि इच्छा-शक्ति
रण है, जिससे आप जीवन में तुच्छ चीज़ें पा सकते हैं। एक बुनियादी साधन है, लेकिन यह बस इतना ही है। तो इस तरह की गलतफहमियां पैदा हो गई हैं कि यह
आपके ईश्वर की इच्छा है कि हर कोई आपके धर्म इस तरह की गलतफहमियां
शीला: कहा जाता है कि ‘स्‍वतं त्र इच्‍छा’ के कारण रूप से वह इच्छा से परे है। इच्छा तो आपके मन का ईश्वर और इच्छा को जोड़ना - एक बहुत गलत धारणा को मानने वाला हो, कोई दू सरा धर्म अच्छा नहीं है। ये पैदा हो गई हैं कि यह आपके
इं सान पशुओ ं से अलग होता है। सद‌ग् ुरु ‘स्‍वेच्‍छा’, एक मूर्खतापूर्ण उपकरण है, जिससे आप जीवन में है। अज्ञानी लोग ही हर समय ‘ईश्वर की इच्छा’ की सब मूर्खतापूर्ण चीज़ें आपने की हैं। यह आपको किसी
बात करते हैं। ईश्वर की कोई इच्छा नहीं होती। उसने आत्मज्ञानी व्यक्ति ने नहीं सिखाया है, यह आपको उन ईश्वर की इच्छा है कि हर
‘मनमानी’ और ‘स्‍वतं त्र इच्‍छा’ में क्‍या अंतर है? कै से तुच्छ चीज़ें पा सकते हैं। आप पैसा कमा सकते हैं,
कोई वसीयत नहीं लिखी। कभी मत सोचिए कि वह मार्के टिंग एजेंटों ने सिखाया है जो धर्म को बेचते हैं। कोई आपके धर्म को मानने
जानें कि मैं जो कर रही हूं, वह ईश्‍वर की इच्‍छा है, प्रसिद्धि पा सकते हैं, आप इच्छा-शक्ति से इस तरह
मेरी नहीं? की चीज़ें हासिल कर सकते हैं। आपको बताया गया, एक वसीयत लिखने वाला है कि स्वर्ग आपके नाम हो ईश्वर की कोई इच्छा नहीं है। यह आपको समझना वाला हो, कोई दू सरा धर्म
‘जहां चाह, वहां राह।’ हां, कु छ हद तक, यह सही जाएगा। ईश्वर इच्छा से परे है। उसकी अपनी कोई होगा। इच्छा आपकी है। बस आप अपनी इच्छा में
अच्छा नहीं है। ये सब मूर्ख-
सद‌ग् ुरु: मैं इस अकादमिक चर्चा में पड़ना नहीं है, लेकिन इसकी अपनी सीमाएं हैं। आपको यह इच्छा नहीं है। यहां का सारा खेल आपका अपना है। भगवान का नाम जोड़ना चाहते हैं क्योंकि उससे आपके
आपके भीतर के वल सबसे मूलभूत चीज़ उसकी है - काम को पूरी स्वीकृति मिल जाती है। फिर आप जो भी तापूर्ण चीज़ें आपने की हैं।
चाहता कि ‘स्वतं त्र इच्छा’, ‘स्वेच्छा’, ‘मनमानी’ क्या समझना होगा – अगर आप एक छोटी सी नदी पार
हैं। क्योंकि हर कोई इन चीज़ों को अपने तरीके से करना चाहते हैं, एक छोटी डोंगी से काम चल जाएगा, आपके भीतर की जीवन शक्ति। बाकी सब आपका बकवास करेंगे, वह स्वीकार्य होगा। यह आपको किसी आत्मज्ञानी
परिभाषित कर सकता है। बात करते हैं प्रश्न के दू सरे आप पार हो सकते हैं। अब, कल अगर आप हिंद है। अब इसे देखने का एक तरीका यह हो सकता व्यक्ति ने नहीं सिखाया है,
हिस्से की, ‘मैं कै से जान सकता हूं कि मैं जो कर रहा महासागर पार करना चाहते हैं, और आप उस डोंगी है - क्योंकि हमें हर चीज़ को उस रूप में देखना होता ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि आप जागरूक नहीं हैं,
है, जैसे हम उसे समझते हैं - कि ईश्वर की इच्छा यह है आप अपना जीवन जागरूकता और कोमलता से नहीं
यह आपको उन मार्के टिंग
हूं वह ईश्वर की इच्छा है, मेरी नहीं?’ को लेकर चले जाएं , तो मृत्यु तो निश्चित है। इसी
कि आपके अंदर कोई प्रतिरोध न हो। जब आप पूर्ण जीना चाहते, इसलिए आपको ईश्वर की इच्छा की एजेंटों ने सिखाया है जो धर्म
तरह, इच्छा-शक्ति एक छोटी डोंगी है, जो आपको
आपको यह समझना चाहिए कि अगर आप अपने छोटी-छोटी धाराओं के पार ले जा सकती है। जीवन स्वीकार की स्थिति में होते हैं, तो आप ईश्वर की इच्छा जरूरत होती है। आप ईश्वर की इच्छा पूरी नहीं कर को बेचते हैं।
भीतर किसी अवस्था तक पहुंचना चाहते हैं, तो में, आप छोटी चीजें करना चाहते हैं – आप सुबह का पालन कर रहे हैं। कु छ धार्मिक समूह युगों से सोचते सकते। आप अपनी इच्छा को भी त्याग दीजिए। जब
आपको अपनी इच्छा छोड़नी होगी। जब आपकी खुद उठकर पढ़ना चाहते हैं, आपको थोड़ी सी इच्छा- रहे हैं कि उनके धर्म में विश्वास न करने वाले लोगों को आप जीवन के साथ पूरी तरह तालमेल में होंगे, तब हम
की कोई इच्छा नहीं होती, तभी आप समाधि को जान शक्ति चाहिए। आप सुबह कसरत करना चाहते हैं, मारना ईश्वर की इच्छा है। जब लोगों को मारने के लिए कह सकते हैं, ‘आप ईश्वर की इच्छा में हैं,’ वास्तव में
सकते हैं। ईश्वर की इच्छा कै से हो सकती है? निश्चित आपको थोड़ी इच्छा-शक्ति चाहिए। आप थोड़ा पैसा आपके पास ईश्वरीय इच्छा होगी, तो न कोई अपराध- वह फिर भी ईश्वर की ‘इच्छा’ नहीं होगी।

32 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 33
यह हमारे ऊपर है कि हम दीवारों और छतों को बस अवरोध बना देते हैं या
फिर उनको अपने सौ ंदर्यबोध की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाते हैं।
यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने उपयोग की हर चीज में, जीवन के हर क्षेत्र में
सौ ंदर्यबोध को वापस लाएं । इस धरती पर समझदारी से रहने के लिए इसे
वापस लाने की जरूरत है।
-सद‌ग
् ुरु
महाभारत

इंद्रप्रस्थ से हुई पांडवों की एक नई शुरुआत


आपने पढ़ा: कौरवों और पांडवों के बीच लं बे समय तक सत्ता सं घर्ष के बाद, जब दर्ु योधन
बार-बार अपने पांचों चचेरे भाइयों को मारने के षड़यं त्र रच रहा था, कृ ष्ण ने आखिरकार
दोनों पक्षों के बीच शांति बहाल करने के लिए राज्य को दो भागों में बांटने की सलाह दी।
अब आगे . . .

रा ज्य के प्रति अपनी गहन निष्ठा के कारण भीष्म


किसी भी कीमत पर उसे टुकड़ों में बं टने से
बचाना चाहते थे। वे हस्तिनापुर के श्रेष्ठजनों के पास
बाकी लोग उनके साथ जाना चाहें, उन्हें जाने दिया
जाए। न तो रुकने की बाध्यता हो, न जाने की।’

गए और बोले, ‘आप सभी को इसमें दखल देना मल्ल का अर्थ है पहलवान। उन दिनों पहलवान बहुत
चाहिए, वरना देश के दो हिस्से हो जाएं गे।’ बुजुर्गों ने महत्वपूर्ण होते थे। किसी सेना को प्रशिक्षण देने के
कहा, ‘जब आपने आजीवन ब्रह्मचर्य की शपथ ली लिए ऐसे लोगों की जरूरत होती थी, जो अखाड़ों में
थी, तब तो आपने हमारी सलाह नहीं ली थी? अब उनके साथ मेहनत कर सकें । यह कौरवों के लिए एक
आप हमारी ओर क्यों रुख कर रहे हैं?’ वे सब जानते अप्रत्याशित घटनाक्रम था कि कृ ष्ण ने कहा कि ये हो गए। कृ ष्ण ने ऐसे स्वर में, जो उनके स्वभाव में था, तो उन्होंने अपने दिव्य शरीर को किसी रजाई की
थे कि बं टवारा वैसे भी होना ही है इसलिए भीष्म ही लोग पांडवों के साथ जाने के लिए आज़ाद हैं। धृतराष्ट्र नहीं था, कहा, ‘भीष्म इसकी मं जूरी कै से दे सकते हैं, तरह शहर पर फै ला दिया और उसकी दीवारें, उसकी
उसे अंजाम देने के दर्द को सहें। और कौरव उसे एक न्यायपूर्ण बं टवारे की तरह दिखाने और तुम्हारे गुरु द्रोण और कृ पाचार्य ऐसा कै से होने दे मीनारें, उसके महल, उसके दरबार और मकान – सब
इंद्रप्रस्थ सबसे सुंदर नगर की कोशिश कर रहे थे, लेकिन हकीकत में उन्होंने सकते हैं? जिन लोगों ने तुम्हारे साथ ऐसा किया है, वे कु छ बनकर तैयार हो गए। यह चमत्कार सिर्फ इंद्र
बन गया। आज भी इंद्रप्रस्थ उस भूमि को बांटने का दारोमदार भीष्म पर था, राज्य का सबसे अच्छा हिस्सा अपने लिए रखा और खुली बाहों से मौत को न्यौता दे रहे हैं। वह दिन दू र और कृ ष्ण देख रहे थे। सुबह जब लोग सोकर उठे ,
जिससे वह बेहद प्यार करते थे। आखिरकार उन्होंने एक उजाड़, बं जर हिस्सा पांडवों को दे दिया। नहीं है।’ पहली बार उन्होंने भीष्म, द्रोण, कृ पाचार्य, तो उन्होंने खुद को एक खूबसूरत शहर में पाया। यह
भारत की राजधानी है – यह धृतराष्ट्र से कहा, ‘ठीक है, राज्य को बांट दो। पांडवों धृतराष्ट्र, हर किसी को इस श्राप में समेट लिया। खबर जं गल की आग की तरह फै ल गई कि पांडवों ने
नई दिल्ली का एक हिस्सा को एक हिस्सा दे दो और कौरवों को हस्तिनापुर में दर्ु योधन कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था – उसके रातोरात एक नगर बसा दिया।
है। इंद्रप्रस्थ कई राजवं शों की राज करने दो।’ धृतराष्ट्र ने पांचों पांडव भाइयों को पास उन्हें मारने की योजनाएं थीं। मगर पहले, यात्रा की थकान से, पांडव और उनके साथ आए लोग
बुलाया और भरे दरबार में घोषणा की, कि वह उन्हें कौरवों को अपना आधा सोना, घोड़े और पशु छोड़ने खुले मरुस्थल में सोने के लिए लेट गए। कृ ष्ण ने हर उसी क्षण से, जनता पांडवों को भगवान की तरह
राजधानी रहा। बाहर से आने
खांडवप्रस्थ दे देंगे, जो कभी कु रुवं श की राजधानी पड़े। और ढेर सारे लोगों ने पांडवों के साथ जाने का किसी के सो जाने का इं तज़ार किया, फिर वह जगह देखने लगी। पहले ही उनके मरकर वापस आने की
वाले हमलावरों ने भी इंद्रप्रस्थ रही थी। कई पीढ़ियों पहले, बुध के पुत्र और चंद्रवं श फै सला किया। काफिला चल पड़ा। कई दिन तक का जायज़ा लेने इधर-उधर टहलने लगे। उन्होंने कहानियां फै ली हुई थीं। लोग कहने लगे, ‘पांडव
से ही शासन करना चुना। के पहले राजा पुरुरवा को ऋषियों ने श्राप दिया था, चलने और रास्ते में ढेर सारे लोगों की मृत्यु हो जाने अपना सिर आकाश की ओर उठाया और एक ऐसी मरकर देवलोक गए और वे भगवान बन गए। फिर
आज तक सत्ता का कें द्र वहीं जिसके बाद खांडवप्रस्थ बर्बाद हो गया था और उजड़ा के बाद आखिरकार वे खांडवप्रस्थ पहुंचे। पांचों भाई बोली में उन्होंने इंद्र का आह्वान किया जो सूर्य से भी वे वापस धरती पर आए और अब उन्होंने रातोरात
रेगिस्तान हो गया था। धृतराष्ट्र ने ऐसा उपहार पांडवों तब तक उत्साहित थे, मगर जब उन्होंने देखा कि वह पुरानी थी। बिजली की गरज और चमक के साथ इंद्र एक नगर बसा दिया।’ इंद्रप्रस्थ सबसे सुं दर नगर बन
हैं- वह चमत्कारी है या नहीं, को दिया। जगह कितनी निर्जन है, तो उनका दिल डू बने लगा। आ पहुंचे। कृ ष्ण बोले, ‘आपको अपने चमत्कार से गया। आज भी इंद्रप्रस्थ भारत की राजधानी है – यह
यह एक अलग प्रश्न है। भीम गुस्से से उफनकर बोले, ‘मैं दर्ु योधन और उसके इस नगर को बसाना है। फिर हम इसका नामकरण नई दिल्ली का एक हिस्सा है। इंद्रप्रस्थ कई राजवं शों
युधिष्ठिर ने अपने स्वभाव के मुताबिक़ विनम्रता से भाइयों की जान ले लूंगा। वे हमें ऐसी जगह कै से दे इंद्रप्रस्थ कर देंगे। यह आपका शहर होगा। इसे की राजधानी रहा। बाहर से आने वाले हमलावरों ने
इसे स्वीकार कर लिया और अपने भाइयों तथा पत्नी सकते हैं?’ दनि
ु या का सबसे सुं दर नगर होना चाहिए।’ और फिर भी इंद्रप्रस्थ से ही शासन करना चुना। आज तक सत्ता
के साथ जाने की तैयारी करने लगे। कृ ष्ण ने हस्तक्षेप चमत्कार हो गया। का कें द्र वहीं हैं और इंद्रप्रस्थ आज भी कायम है। वह
करते हुए कहा, ‘इस बँ टवारे को न्यायसं गत बनाने के भीम वायु पुत्र था – वह आगबबूला हो गया। बाकी चमत्कारी है या नहीं, यह एक अलग प्रश्न है।
लिए सोना, पशु, घोड़े और रथों में से भी आधे पांडवों भाइयों को जब एहसास हुआ कि वे एक श्रापग्रस्त इंद्र के वास्तुशिल्पी विश्वकर्मा को बुलाकर नगर को आगे जरी...
को दिए जाएं । और जो भी मल्ल, लोहार, सोनार और नगर के खं डहरों में, वीराने के बीच आ हैं, तो वे मौन बनाने का आदेश दिया गया। जब हर कोई सो रहा

36 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 37
मौन क्रांति

स्वयं सेवा का अनूठा अनुभव हरेक के अंदर चैतन्य को देख सकती थी। मैंने पाया
कि मैं दू सरे लोगों को नहीं देख रही, बल्कि उनके
जब हम यादें इकट्ठा और साझा करने की कोशिश जरिये किसी अधिक गहन चीज़ को देख पा रही
कर रहे थे, हमने ध्यान दिया कि भाव स्पं दन की गूंज हूँ । उस क्षण मैंने महसूस किया कि मैं सद‌ग् ुरु द्वारा
हमारे अंदर अब भी जीवं त थी, सूक्ष्म मगर फिर भी प्राण-प्रतिष्ठित किसी स्थान में जीवन भर रह सकती
बहुत स्पष्ट। कु छ ही देर में, वह नीरस परिसर एक हूं। मैं अपने भीतर और बाहर इस स्थान के लिए
जीवं त स्थान में रूपांतरित हो गया। हम नं गे पांव बहुत कृ तज्ञ हूं और हमेशा रहूंगी।’
चलते हुए, जाप करते हुए और शालीनता से घूमते
हुए तैयारियां करते रहे। हम सब अपने एकमेव लक्ष्य ‘मैंने सद‌ग् ुरु की तस्वीर में अनन्य कृ पा, अद्तभु शक्ति
की दिशा में बढ़ते हुए एक बड़ी शक्ति बन गए। और करुणा महसूस की है। मेरा ध्यान कु दरती रूप
हमने हॉल की व्यवस्था, करेक्शन का अभ्यास, रसोई से और सचेतन तौर पर कई बार वहां जाता था। इस
और भोजन की तैयारियों, स्वागत और कमरों की तस्वीर ने कई रूपों में बेहद कोमलता से मेरी यात्रा
साफ-सफाई से जुड़े तमाम कामों में मिलकर हाथ के हर कदम में मेरा मार्गदर्शन किया है। यह तस्वीर
बं टाया। कोने-कोने में सुं दर फू ल और हरियाली दिख बहुत असली और वास्तविक महसूस हुई।’ आंसुओ ं का सैलाब मेरी आंखों
रही थी और इच्छु क लोगों ने खुद प्रतियोगियों के लिए
कै बिनेट तैयार किए, कार्यक्रम स्थल का हर हिस्सा
को धो रहा था, तो प्रेम और
एवो: भाव स्पं दन बेहद तीव्र और आनं दपूर्ण था।
हमारी आंखों के ठीक सामने साकार होने लगा। कु छ मुझे पता ही नहीं था कि हमारे अंदर इतनी शक्ति है। करुणा का सागर मेरे अस्तित्व
ही दिनों में यहां आश्रम सा माहौल बन गया और यह मेरी कल्पना से परे था कि वास्तव में मनुष्य होने को धो रहा था। अब भी ऐसा
ऐसा लग रहा था कि वह महाद्वीपों और भौगोलिक का क्या मतलब है। वह परम आनं द था। मेरे अंदर होता है। मैं उस पल में हरेक
लेबनान की धरती पर उपजे कु छ अनुभव सीमाओं के परे विस्तृत हो गया है। हर किसी के
भीतर सद‌ग् ुरु के बोए बीज बहुत जोश में भरकर
समय जैसा कु छ नहीं था, मैं खुद को जो समझती थी,
वह भावनाओं और ऊर्जा के एक विस्फोट में गायब के अंदर चैतन्य को देख सकती
लेबनान में हुए एक भाव स्पं दन कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोगों में से कु छ ने अपने खिल रहे थे। हो गया। शरीर और मन के परे, परमानं द के आंसू थी। मैंने पाया कि मैं दू सरे
लगातार बह रहे थे। मैं सद‌ग् ुरु की बहुत आभारी हूं लोगों को नहीं देख रही, बल्कि
अनुभवों को शब्दों में पिरोया है। उनके हृदय के उद्गार और आभार को हम यहाँ आपसे
अस्तित्व की भावना – कु छ व्यक्तिगत अनुभव कि वे इसमें अपना जीवन डालते हैं। मेरे जीवन में
साझा कर रहे हैं: उनकी मौजूदगी - मेरा सौभाग्य है। काश हर इं सान
उनके जरिये किसी अधिक
जीवन को रूपांतरित कर देने वाला अनुभव, भाव इसका अनुभव कर पाए! गहन चीज़ को देख पा रही हूँ।
तीन साल की तैयारी उल्लास और स्थिरता स्पं दन अंतर्मन के दरवाज़े खोल देता है। ये अनुभव
अक्सर हमारी कल्पना से परे होते हैं। कई लोगों के नेदिन: ‘भाव स्पं दन जीवन का सबसे बुनियादी कोर्स
हमें बताया गया कि लेबनान में भाव स्पं दन कार्यक्रम हम एक दिन पहले अपने गं तव्य पर पहुंच गए थे। लिए आनं द के आंसू एकमात्र सहारा होते हैं, कम ही है जो बताता है कि कै से धड़कें और कै से जिएं । बड़े
पिछली बार तीन साल पहले हुआ था। दनि ु या के इस जगह बहुत सुं दर थी और छत से एक ओर हरे-भरे लोग भावनाओं के इस कु दरती हिलोर को शब्दों में होने के बाद अपने जीवन में गुजर-बसर की प्रक्रिया
हिस्से में अब तक के सबसे बड़े कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहाड़ों और दू सरी ओर भूमध्य सागर का अद्तभु ढाल पाते हैं। में लीन, कर्तव्यों और बाध्यताओं में डू बकर मैं भूल
के लिए हम काफी आशा से जुटे हुए थे। आख़िरकार नज़ारा दिखता था। एक तरफ़ हरे-भरे पेड़ों के घने गई थी कि सिर्फ एक इं सान कै से बने रहना है।
यह कार्यक्रम 12 से 15 सितं बर, 2019 के बीच जं गल जीवन से भरपूर थे और दू सरी तरफ़ उससे ग्रेटा: ‘भाव स्पं दन में स्वयं सेवा करने या ख़ुद उसमें एक ज्योति जल उठी है और लगातार बढ़ रही है।
सं पन्न हुआ जिसमें 89 प्रतिभागियों और लगभग 40 एकदम अलग तस्वीर थी, जहाँ समुद्र का विशाल हिस्सा लेने का मेरा पिछला अनुभव करीब पांच खासकर जब सारा ग्रुप सोशल मीडिया पर इकट्ठा
स्वयं सेवकों ने भाग लिया। कई लोग दू सरे अरब देशों खालीपन पसरा हुआ था। दोनों मिलकर सं पूर्ण साल पहले का था, जब मैं सैंकड़ों दू सरे प्रतिभागियों हुआ, सकारात्मक ऊर्जा कई गुना बढ़ गई। चमत्कार
और विदेशों से माउं ट लेबनान के के सरवान जिले स्थिरता की एक ख़ूबसूरत तस्वीर बना रहे थे। भाव के साथ भारत के ईशा योग कें द्र में शामिल हुई थी। की एक लहर मुझे छू रही थी। लेबनान में हमारे
के एक गांव ज़ोमार में इस चार दिवसीय आवासीय स्पं दन के लिए एकदम सटीक माहौल – जिसमें बाहर भावनाएं और ऊर्जा कई अलग-अलग रूपों में सामने आस-पास सारी नकारात्मकता के बावजूद हर चीज़
कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए आए थे। तीन सालों विस्फोटक उल्लास के साथ भीतर अद्तभु स्थिरता के आ रही थीं। आंसुओ ं का सैलाब मेरी आंखों को धो मुझे यह यक़ीन दिला रही थी कि अपने जीवन में
की तैयारी के बाद, चार दिनों का यह आनं द उत्सव क्षण होते हैं। रहा था, तो प्रेम और करुणा का सागर मेरे अस्तित्व पहली बार मैं एक बेहतर भविष्य के लिए काम कर
जीवनकाल के लिए उपहार था! को धो रहा था। अब भी ऐसा होता है। मैं उस पल में रही हूँ ।’

38 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 39
आधी रात सद‌ग् ुरु के साथ

कै से जानें जीवन में क्या करना है ?


जीवन आपको कोई निश्चित काम करने को नहीं कह रहा है, वह आपको पुकार रहा है। जब
आप सच्चे मन से जीवन की इस पुकार को सुनेंगी तभी आप जीवन को उसकी सं पूर्णता में
जान सकें गी. . . पढ़ें शेरिल सिमोन की पुस्तक ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ के हिदं ी अनुवाद
की अगली कड़ी :

ह म थोड़ी देर शांत चलते रहे और फिर सूर्य की


रोशनी में शांत दमकती हुई झील के किनारे बने
लगन के साथ करेंगी तो यही आपको अनुभव के एक
नए आयाम तक पहुंचा देंगी। समस्याएं तब खड़ी होती
अंतरीप पर रुक गए। छोरों के चारों ओर वृक्षों की हैं जब लोग के वल एक ही चीज की धुन में रहते हैं या
प्रतिच्छाया से झील के तट का सुं दर प्रतिबिंब बन रहा अपने विशेष तरीके से उसमें अके ले ही लगे रहते हैं।
था। लेकिन मेरा मन झील की तरह शांत और स्थिर इससे वे अक्सर अलग-थलग हो जाते हैं। अलग-
नहीं रह पा रहा था। मैं अपना अगला सवाल पूछना थलग जीने और परिसीमित लगन से के वल निराशा
जीवन की प्रक्रिया की एक चाह रही थी, इसलिए मैंने कहा, ‘ठीक है, एक और और पीड़ा ही हाथ लगेगी। मैं पूर्ण समावेशी लगन
प्रश्न - क्या लोगों का जीवन उनको किसी निश्चित और धुन की बात कर रहा हूं।
पद्धति है - सबसे पहले कार्य के लिए बुलाता है?’
होना, फिर करना और अंत ‘किसी क्षण हमारी पांचों इंद्रियां जो कु छ भी जान-
में पाना। लेकिन फिलहाल सद‌ग् ुरु हंस पड़े। ‘यदि जीवन आपको बुला रहा समझ सकती हैं, उन सबके साथ जुड़े रहकर हमें पूरी
अपने मन का कै दी होने के है,’ उन्होंने कहा, ‘तो फिर पूरी धुन और लगाव के धुन के साथ उनमें लगे रहना होगा। यही वास्तविक
साथ चल पड़िए उसके पास, हिसाब-किताब और जुड़ाव और सद्भावना है। सद्भावना दया की प्रवृत्ति
कारण लोग सबसे पहले पाने सं कोच की कोई जरूरत नहीं। चूंकि जीवित रह पाना नहीं बल्कि पूर्वाग्रह रहित लगाव का साधन है।
के बारे में सोचते हैं। वे अपने ही जीवन का आधार है, इसलिए जब हम उसकी
जीवन के ऐसे मुकाम पर देखभाल करेंगे तभी तो जीवन के सूक्ष्म आयामों को ‘जीवन की प्रक्रिया की एक पद्धति है - सबसे पहले
समाज में स्थान मिलेगा। यह कु छ अलग करने की होना, फिर करना और अंत में पाना। लेकिन फिलहाल
पहुंच जाते हैं जब उनको एक
इच्छा से जुड़ी अहम् की समस्या के बारे में नहीं है, यह अपने मन का कै दी होने के कारण लोग सबसे पहले
विशिष्ट जीवन साथी, घर, सबसे पहले आपको अपने होने का तरीका निश्चित करना से भी। जब आप सच्चे मन से जीवन की इस पुकार को
आपकी अपनी पूरी क्षमता तक जीने के बारे में है। पाने के बारे में सोचते हैं। वे अपने जीवन के ऐसे होगा। फिर आप जिस चीज की चाह करती हैं वह मिले सुनेंगी तभी आप जीवन को उसकी सं पूरत्ण ा में जान
कार या एक विशेष प्रकार की यदि आपमें अपने जीवन के हर पहलू को निखारने मुकाम पर पहुंच जाते हैं जब उनको एक विशिष्ट न मिले आप खुश ही रहेंगी। आपके जीवन की गुणवत्ता सकें गी। जब आप ब्रह्मांड और उसके प्रत्येक परमाणु
जीवनशैली चाहिए। की धुन और लगन है तो आप बड़ी आसानी से समझ जीवन साथी, घर, कार या और एक विशेष प्रकार की आपके होने के तरीके पर आधारित होती है और आपको के साथ पूर्वाग्रह-रहित सं पूर्ण लगन से जुड़ पाएं गी तभी
जाएं गी कि आप किस पहलू में कु शल हैं। हो सकता जीवनशैली चाहिए। यह सब कै से पाएं ? अब वे सोचते क्या मिल पाता है यह के वल आपकी क्षमता और सही आप स्वयं को समझ-बूझकर, अनुभव करके अपने होने
है आप एप्पुमे इल्लदादी में निपुण हों!’ हैं कि क्या करें। यह सोचना शुरू करते ही क़रीबी लोग परिस्थितियों का मुद्दा है। यदि आप होने, करने और पाने के सारे आयाम जान पाएं गी। और इस सं पूर्ण जुड़ाव
उनको सलाह देने लगते हैं। डॉक्टर, वकील, निर्यात की सरल प्रक्रिया के क्रम को अपना लेती हैं तो आपकी में आपको अपने पहले के अनुभवों और क्षमताओं की
‘यह क्या है?’ मैंने पूछा। का कारोबार या ऐसा ही कु छ। इनमें से कोई व्यवसाय नियति का एक बड़ा अंश आपकी इच्छा के अनुरूप सीमाओं में बं धे रहने की जरूरत नहीं है, आप ब्रह्मांड की
कु छ समय तक कर लेने के बाद वे सोचने लगते हैं कि चलेगा। मूल प्रकृ ति, ज्ञान के अथाह भं डार से नाता जोड़कर उसे
‘इसका अर्थ है कि हो सकता है आप किसी ऐसी चीज हम्म....कु छ बन गए। और बस तभी जीवन के विरुद्ध अपना सकती हैं। इस अपनाने के जरिए ही हम आत्मन्
में निपुण हों जो अब तक कभी न की गई हो, एकदम उनकी यात्रा शुरू हो जाती है। वे पाने-करने-होने वाले की वास्तविक प्रकृ ति को जान सकते हैं जो सीमारहित
‘अब मैं चाहता हूं कि आप यह बात ठीक से समझ लें।
मौलिक हो। लेकिन भले ही आप कोई मौलिक काम रास्ते पर निकल जाते हैं और फिर इससे पा लेने की और सबका आधार है, जो परम नियति है जिसकी ओर
जीवन आपको कोई निश्चित काम करने को नहीं कह
न करती हों, भले ही आप वही सदियों पुरानी सरल- कभी न समाप्त होने वाली एक दौड़ शुरू हो जाती है, सब-कु छ चाहने वाली प्रक्रिया आपको ले जा रही है।’
रहा है, वह आपको पुकार रहा है – अंदर से और बाहर
सी चीजें कर रही हों, लेकिन यदि आप उनको पूरी जो जीवन में एक अतृप्ति पैदा करती है। आगे जारी...

40 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 41
अंतर्पथ के राही

भटकते राही को मिली मं ज़िल


भाग-दो
एक युवक की आध्यात्मिक चाहत जब कु छ अन्य योग कार्यक्रमों से तृप्त नहीं हुई तो वह
हर तरह के योग कार्यक्रमों को आलोचक की दृष्टि से देखने लगा। फिर कु छ ऐसा हुआ
जिसने इस आलोचक को एक प्रशं सक बना दिया . . . पढ़िए स्वामी सुयग्ना की जीवन-
यात्रा का वर्णन उन्हीं के शब्दों में :

स्वामी सुयग्ना
स्‍वामी सुयग्ना
सिखाने का आनं द और विस्‍तार वर्ष 2000 में, शिक्षको ं की एक बैठक में मैंने सद‌ग् रुु
से एक सवाल पछ ू ा, ‘आपमें और गौतम बुद्ध में क्‍या
मई 1997 में, मैंने टीचर्स ट्रेनिंग की। एक चीज़ अतं र है?’ वह बोले, ‘हमारे बीच कई समानताएं हैं,
जिससे मैं हमेशा आश्‍चर्यचकित होता हूं, वह है जिस मगर उनके और मेरे बीच एक बड़ा अतं र है।’ ‘वह
तरह सद‌ग् रुु ने ईशा योग कार्यक्रम को तैयार किया क्‍या, सद‌ग् रुु ?’ मैंने आगे पछ
ू ा। ‘अशोक!’ वे बोले। या किसी दू सरे निजी मुद्दे की वजह से कैं सल नहीं किया। हुए उनका ध्यान सूखे हुए पौधों पर जाता था और कई
शिक्षकों की एक बैठक में मैंने है – यह वाकई शानदार है। बाकी सभी ईशा शिक्षको ं ‘उनके पास अशोक था, और मेरे पास सिर्फ ...’ मुझे एक बार मैं गोवा में एक कांफ्रेंस के लिए उनके साथ जा बार वह रुककर उनमें पानी देते थे। छोटी-छोटी बातों पर
सद‌ग् ुरु से एक सवाल पूछा, की तरह मुझे भी अपने सामने बहुत से लोगो ं को सिर्फ समझ में आया कि सद‌ग् रुु उस एक बड़ी शक्ति की रहा था, और मैं जानता था कि उन्होंने पिछले दिन खाना उनका ध्यान, उनकी करुणा और समावेश अद्तभु है।
‘आपमें और गौतम बुद्ध में 13 दिन के भीतर रूपातं रित होते देखने का सौभाग्‍य बात कर रहे हैं, जो सद‌ग् रुु में निहित संभावना को नहीं खाया है। तो जब हम कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे, मैं
मिला। मुझे अब भी याद है, वर्ष 2000 की शुरुआत लाखो ं लोगो ं तक ले जा सकती है। चाहता था कि वे पहले खाना खा लें क्योंकि उनके सत्र प्रशासनिक कार्य के उतार-चढ़ाव
क्‍या अंतर है?’ वह बोले, में इरोड में आयोजित मेरी एक कक्षा में एक विधवा की अब तक घोषणा नहीं हुई थी। मेरे आग्रह पर वे खाने
‘हमारे बीच कई समानताएं युवती थी, जिसने एक सप्‍ताह पहले ही अपने पति को यह सद‌ग् रुु का एक बड़ा कथन था और इसने वास्तव बैठे, मगर 10 मिनट के अंदर उनके सत्र की घोषणा हो 2007 में सद‌ग् रुु ने मुझे आश्रम वापस आकर आश्रम
हैं, मगर उनके और मेरे बीच खोया था। वह अवसाद में डूबी हुई लगती थी और में उनके कार्य को हर किसी तक पहुंचाने की मेरी गई और मं च पर उनका इं तज़ार हो रहा था। इसे सुनकर, का प्रशासन सं भालने के लिए कहा। लोगों को सशक्त
सबसे अलग-थलग रहती थी। 3-4 दिन के अदं र तीव्रता और ललक को बढ़ा दिया। उस बैठक के सद‌ग् रुु तुरंत खड़े हुए, बीच में ही हाथ धोया और बिना बनाने में सद‌ग् रुु का कोई सानी नहीं है – वह जिस तरह
एक बड़ा अंतर है।’ ‘वह
मैंने उसे खुलते देखा और 13वाँ दिन आते-आते वह बाद, मैंने बैठकर विचार किया – आज की दनि ु या में किसी हिचकिचाहट के प्रोग्राम हॉल की तरफ लगभग से हमें सक्षम बनाते हैं, वह अद्तभु है। अगले चार सालों
क्‍या, सद‌ग् ुरु?’ मैंने आगे उत्‍साहित और खुश रहने लगी। मैंने कै दियो ं में भी ऐसा ‘अशोक’ कौन है? मैंने महससू किया कि इन दिनो ं दौड़ पड़े। में मुझे काफी जिम्मेदारियाँ दी गईं। उनके सहयोग और
पूछा। ‘अशोक!’ वे बोले। रूपातं रण होते देखा है। वास्‍तव में, कै दी आम तौर पर किसी संदेश को दनि ु या भर में पहुंचाने की ताकत प्रोत्साहन के कारण कई अच्छी चीज़ें हुईं, मगर कई बार
‘उनके पास अशोक था, और शुरुआत में योग कक्षाओ ं का विरोध करते थे, मगर मीडिया के पास है। तो मैंने इसके लिए मेहनत करनी मैंने उन्हें कभी किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की तरह बर्ताव मैंने गलतियां भी कीं।
एक बार उससे जुड़ने के बाद, उनका रूपातं रण भी शुरू कर दी। कई तरह से, उन दिनो ं तमिलनाडु मीडिया करते नहीं देखा। मैं इस एक घटना को कभी नहीं भूल
मेरे पास सिर्फ ...’ बहुत स्‍पष्‍ट होता था। में पैठ बनाने और प्रभावशाली लोगो ं तक पहुंच बनाने सकता, जो शायद 1998 की है, जब सद‌ग् रुु ट्रैंगल ब्लॉक वास्तव में मैं प्रशासनिक कार्यों से उतना जुड़ नहीं पाता
के रास्ते खोजने की मेरी कोशिशो ं के पीछे की आग के में हमारे साथ डिनर कर रहे थे। भोजन समाप्त करने के था, जितना शिक्षण के साथ जुड़ाव महसूस करता था।
काम के मामले में, 13 दिन की कक्षाओ ं में पढ़ाना मेरे पीछे उनका यही कथन था। बाद, वह सिंक में अपनी प्लेट धोने गए। सिंक पानी से इसलिए उस भूमिका में सौ प्रतिशत शामिल न हो पाने के
जीवन का सबसे अच्‍छा समय था। पढ़ाने के उन दस भरा था क्योंकि बचे हुए खाने के अवशेषों से नाली ब्लॉक कारण सब कु छ मेरे लिए एक चुनौती बन गया। हालांकि
सालो ं में मैंने एक बार भी बीमारी या किसी और वजह सद‌ग् रुु का जीवन ही एक शिक्षा है हो गई थी। फिर मैंने देखा कि सद‌ग् रुु ने उसमें अपने हाथ मैं लगातार अपना बेहतरीन देने की कोशिश करता था,
से अपनी दिनचर्या नही ं छोड़ी। उन सालो ं में मैंने अपने डाले, नाली को साफ किया और चुपचाप चले गए। एक मगर किसी न किसी कारण मुझे इस भूमिका में सफलता
अदं र काफी खुशी, संतोष और विस्तार महससू किया। सद‌ग् रुु जिस लगन से काम करते हैं, वह अविश्वसनीय गुरु को इन छोटे-मोटे कामों को करते देखना मेरे लिए नहीं मिली। इस पूरी प्रक्रिया में मेरा एक बड़ा पछतावा यह
है। वह किसी बैठक के लिए कभी लेट नही ं होते, अकल्पनीय था। वे हमेशा झक ु ते हैं और मिसाल पेश है कि कई बार मैंने सद‌ग् रुु को निराश भी किया।
अशोक की तलाश उन्होंने कभी अपना कोई अप्वाइंटमेंट अपनी सेहत करते हैं। कई बार मैंने ध्यान दिया कि आश्रम में टहलते

42 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 43
अंतर्पथ के राही

मुझे याद है, जब सद‌ग् रुु ने ‘ईशा संस्कृति’ शुरू किया सरल चीज़ जो सद‌ग् रुु बार-बार कहते हैं – ‘आप
था, मैंने उस पर – उसके परू े कासं प्टे पर - काफी इसलिए खुश नही ं हैं क्योंकि जीवन आपके हिसाब
सवाल उठाए थे। 12 साल की शिक्षा के बाद इन बच्चों से नही ं चल रहा’ – यह बात मेरे अदं र एक अनुभव
का क्या होगा?’ मैंने कई बार अपने अदं र तर्क किया। बनकर साकार हो गई। मौन की अवधि का कु छ समय
अब इन बच्चों को इतना होशियार, तेज़ और सक्षम बीतने पर मैं सहज महससू करने लगा और अपने
देखकर मुझे एहसास होता है कि सद‌ग् रुु जैसे व्यक्ति अदं र एक नई किस्म की आज़ादी पाई। इस साधना ने
की बुद्धिमत्ता पर कभी सवाल नही ं उठाना चाहिए। मुझे जीवन के प्रति एक नया नज़रिया दिया, और इस
मार्ग की ओर तीव्रता तथा फोकस के मेरे स्तर को पु-
प्रशासनिक कार्य का एक वरदान यह था कि मुझे नर्जीवित कर दिया। ‘... और अब, योग’ – पतंजलि
सद‌ग् रुु के काफी करीब होकर काम करने और उनके योग सत्रू की यह पहली पंक्ति मेरे लिए एक जीवंत
अदं र के बहुआयामी व्यक्तित्व को देखने का मौका हकीकत बन गई।
मिला। मैं उनकी तीव्रता, उनकी एकाग्रता, उनकी
अथक दृढ़ता और कई स्थितियो ं के प्रति उनके अनोखे वह दिन-वह क्षण
नजरिए पर मुग्ध था।
कु छ दिन पहले ही मुझे एहसास हुआ कि कु छ महीने
मगर मुझे महससू होता है कि उन चार सालो ं के दौरान पहले मैं 50 वर्ष का हो गया – मगर मुझे नही ं लगता
मैं उनके व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हो गया था कि कि मेरी उम्र अधिक हो गई है। वास्तव में मैं अपने
शायद उनके अदं र के गुरु को देखने से चक ू गया। कॉलेज के दिनो ं के मुकाबले अधिक जीवंत और
मगर जल्द ही एक बार फिर हमारे गुरु-शिष्य के बंधन जो‍शीला महससू करता हूं। ईशा और सद‌ग् रुु के साथ
को मजबतू करने का एक मौका मेरे सामने आया। मेरी यात्रा इतनी फलदायक और संतुष्टिदायक रही है
कि सद‌ग् रुु ने साधना और ब्रह्मचर्य के रूप में हमें जो
मौन दिया है, उसे मैं दनि
ु या की किसी चीज़ से बदलना
नही ं चाहूंगा।
ईशा के साथ इतने सालो ं में मैंने कभी यह देखने
की परवाह नही ं की कि मेरे भीतर, मेरे साथ या मेरी मैं अक्सर याद करता हूं कि जब मैं यहां पर ू क ्ण ालिक
साधना के साथ क्या हो रहा है – मेरे लिए बस यही रूप से रहने आया था, तो सद‌ग् रुु ने पहली चीज़
मायने रखता था कि ईशा के लिए चीजो ं को संभव मुझसे यह कही थी, ‘आपको एक पत्थर की तरह होना
कै से बनाया जाए। इसलिए 2011 में जब सद‌ग् रुु ने चाहिए, हम आपको जहां चाहेंग,े वहां फें क देंग।े क्या
मुझे डेढ़ सालो ं तक मौन रहकर कार्य करने के लिए आप इसके लिए तैयार हैं?’ इतने सालो ं में यह बात
कहा, तो मैंने इसे वास्तव में अपने लिए वरदान पाया। मेरी मार्गदर्शक शक्ति रही है – कही ं भी फें के जाने के
इसने मुझे अपने अदं र झाक ं ने और यह स्पष्टता पाने लिए तैयार और परू ी तरह से शामिल।
का मौका दिया कि मैं यहां किसलिए हूं। मैंने महससू
किया कि सचमुच कई बार मेरा व्यवहार नासमझीभरा मैं उस दिन और उस क्षण की प्रतीक्षा में हूं जब मैं
और मूर्खतापर ू ्ण था। इस एहसास और आत्मनिरीक्षण किसी भी कार्य की आवश्यकता से परू ी तरह आज़ाद
ने मुझे उन सभी टकरावो ं और भ्रमो ं से निकाल दिया, हो जाऊं, बस पर ू ्ण आज़ादी में रह पाऊं। तब तक, मैं
जिनका सामना मैं कई वर्षों से कर रहा था। कही ं भी, कभी भी, कितने भी जन्मों तक फें के जाने के
लिए तैयार हूं...।
सद‌ग् रुु ने हमें जो कु छ दिया है, उनके प्रति धीरे-धीरे
मैं अधिक कृ तज्ञ और ग्रहणशील हो गया। जैस,े एक

44 ईशा लहर | मार्च 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अक्टू बर 2019 45
यूथ एं ड ट्रूथ

समलैंगिकता क्या धर्म विरोधी है?


समलैंगिकता को लेकर धार्मिक विरोध पर आते हैं। इसमें कु छ भी धार्मिक नहीं है। हमें
उनके खिलाफ भेदभाव करने की जरूरत नहीं है। मगर साथ ही, इसका प्रचार करने की भी
जरूरत नहीं है।

काजल: मुझे विश्वास है कि हर कोई धारा 377 को पिता इसमें नहीं पड़ते।आप सहमत हैं ना?
अपराध से मुक्त किए जाने के बारे में जानता है।
और मेरे ख्याल से अधिकांश युवा इसे लेकर बहुत काजल: जी हां।
खुश हैं। हमने अपने माता-पिता और पुरानी पीढ़ी
से इस बारे में बात की। जब हम अपनी पुरानी पीढ़ी सद‌ग् ुरु: तो, हमारा वजूद ही इसके कारण है।
से इस तरह की कोई चर्चा करते हैं, तो वे कहते हैं, इसलिए इससे इं कार करने या इसे ढकने-छिपाने का
‘हम वैसे तुम्हारे साथ कोई बहस नहीं करेंगे या अपना कोई मतलब नहीं है। मगर किसी की एक खास तरह
नजरिया तुम पर नहीं लादेंगे, मगर हमारे धर्म में इसे की सेक्सुअल पसं द है, जिसका प्रजनन की प्रक्रिया
स्वीकार नहीं किया जाता।’ सद‌ग् ुरु, मैं ‘एलजीबीटी’ से कोई सं बं ध नहीं है - यह उनका निजी चुनाव है,
समुदाय या समलैंगिकता के धर्म से सं बं ध पर आपका क्योंकि हर व्यक्ति को अपने शरीर के साथ जो वो
नजरिया जानना चाहती हूं। चाहें, वो करने का हक है - क्योंकि वो उनका
हर व्यक्ति को अपने शरीर
शरीर है।
के साथ जो वो चाहें, वो सद‌ग् ुरु: देखिए, अभी तक समाज में, मीडिया में,
सोशल मीडिया में, हर कोई या तो इसके समर्थन में लेकिन अगर वह कोई नुकसानदायक चीज है जैसे
करने का हक है - क्योंकि बोल रहा है या इसके खिलाफ। क्या कु छ देर के लिए आप अपनी नाक काट रहे हों या कु छ और काट रहे
वो उनका शरीर है। लेकिन हम पक्ष-विपक्ष में न जाकर बस इस मुद्दे को उस तरह हों तो शायद हम आपको रोकने की कोशिश करेंगे।
देख सकते हैं, जैसा यह वास्तव में है? लेकिन अगर आप उस तरह से खुद को नुकसान
अगर वह कोई नुकसान-
नहीं पहुंचा रहे तो यह आपका मसला है जब तक
दायक चीज है जैसे आप काजल: जी हां। कि आप निजी रूप से कु छ करते हैं। अभी सुप्रीम
अपनी नाक काट रहे हों या कोर्ट का निर्णय यही है कि एक व्यक्ति निजी तौर पर
सद‌ग् ुरु: देखिए, मैं कोई पाखं डी नहीं हूं, ठीक है? यह क्या करता है, इससे किसी और को कोई लेना-देना
कुछ और काट रहे हों तो बात साफ़ होनी चाहिए। नहीं है। सरकार को लोगों के बेडरूम में नहीं घुसना
शायद हम आपको रोकने चाहिए, यही कानून है।
जब हम ‘सेक्सुअलिटी’ की बात करते हैं, तो हमें
की कोशिश करें गे। यह समझना चाहिए कि यह चीज प्रकृ ति ने हमें अब, धार्मिक विरोध पर आते हैं। इसमें कु छ भी
इसलिए दी है ताकि कोई जाति या प्रजाति कायम धार्मिक नहीं है। हमें उनके खिलाफ भेदभाव करने
रह सके , वरना ऐसा नहीं हो पाता। हाँ, हम इं सानों की जरूरत नहीं है, उन्हें तं ग करने की जरूरत नहीं है,
के पास शरीर से अधिक दिमाग है, या अगर नहीं है उन्हें जेल में डालने की जरूरत नहीं है। मगर साथ ही,
तो होना चाहिए। इसलिए हमने एक तरह से प्रजनन इसका प्रचार करने की भी जरूरत नहीं है।
की भूमिका को ख़त्म कर दिया और सिर्फ उसके
सुख वाली भूमिका का इस्तेमाल कर रहे हैं। अभी तो जब आपके माता-पिता कु छ कहते हैं, वे अपने
दनि
ु या में काफी हद तक यह सुख ही सेक्सुअलिटी धर्म का हवाला दे सकते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि
है। दरअसल यह सुख भी सेक्सुअलिटी की प्रक्रिया में वह एक सत्ता है। आप उसमें से सत्ता निकाल दीजिए,
इसलिए आया है क्योंकि अगर इसमें सुख नहीं होता बस शब्दों को सुनिए। अगर बात जं चती है तो वैसा
तो शायद आप और मैं पैदा ही नहीं हुए होते। अगर कीजिए। अगर बात नहीं जं चती, तो विनम्रता से
इसमें कोई सुख नहीं होता तो शायद हमारे माता- उनसे कहिए कि, ‘मेरे साथ ऐसा नहीं है।’

46 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com


हठ योग चक्र

प्रेम महत्वपूर्ण है, प्रियतम नही ं


इस नई श्रृंखला में हम आपके सामने विकास के कु छ साधन ला रहे हैं, जो सद‌ग् ुरु ने समय- मूर्खतापूर्ण से मेरा मतलब यह नही ं है कि आप इस
समय पर आध्यात्मिक साधकों को सिखाए हैं। एक आत्मज्ञानी गुरु द्वारा दिए गए इन सरल भावना को नष्‍ट कर दें। आप इसे नष्‍ट नही ं कर
किंतु शक्तिशाली साधनों में किसी व्यक्ति को रूपांतरित करने की जबर्दस्त शक्ति है। सकते। आपके अंदर, सबसे सुखद स्थिति तब होती
है, जब आप प्रेम में होते हैं। जब आपके अंदर प्रेम
की भावना होती है, तो यह आपके लिए अस्तित्‍व में
सद‌ग् ुरु: आप जीवन का एक अंश हैं, बाकी सब कु छ ऐसे देख सकते हैं: ‘मेरे विचार मूर्खतापूर्ण हैं, होने का सबसे सुखद तरीका होता है। लेकिन यही
सिर्फ एक कल्पना है। एक कें चुआ पूर्ण विकसित मेरी भावनाएं मूर्खतापूर्ण हैं, मेरे ख्‍याल निरर्थक हैं, सब कु छ नही ं है। लोग हमेशा दिव्‍य प्रेम की बात
कें चुआ बनने की कोशिश कर रहा है, एक टिड्डा पूर्ण मेरी राय बेवक़ूफ़ाना है, मैं मूर्ख हूं।’ यह एक सरल करते हैं। लेकिन देखिए, प्रेम एक मानवीय भावना
विकसित टिड्डा बनने की कोशिश कर रहा है, एक तरीका है। अगर आप सोचते हैं कि आप स्‍मार्ट हैं, तो है। यह बहुत सुखद भावना है – आप जितने रूपो ं में
पेड़ पूर्ण विकसित पेड़ बनने की कोशिश कर रहा आप इन्‍हें अलग नहीं रख सकते। अगर आप सोचते जीवन जी सकते हैं, यह उनमें सबसे सुखद तरीका
है। आप भी एक पूर्ण विकसित इं सान बनना चाहते हैं, ‘मैं होशियार आदमी हूं ,’ तो आप अपने विचारों है। आप कह सकते हैं कि यह आपके लिए अस्तित्‍व
हैं। मगर समस्या यह है कि हम यह तो साफ तौर पर को एक तरफ नहीं रख सकते। अगर आप इस तरह में होने का सबसे अद्तभु तरीका है। मगर क्‍या यह
परिभाषित कर सकते हैं कि पूर्ण विकसित कें चुआ देख सकते हैं, ‘मैं बिल्‍कु ल मूर्ख हूं।’‍ फिर आप सर्वश्रेष् ‍ठ तरीका है? नही।ं प्रेम का मतलब है कि
आप चाहे गुरु से प्रेम करें या या टिड्डा या पेड़ होने का क्या मतलब है, लेकिन आप ग्रहणशील हो जाएं गे। मूल रूप से आप अभी भी किसी चीज़ या किसी
यह नहीं जानते कि पूर्ण विकसित इं सान होना क्या व्‍यक्ति के साथ एक होने की चाह रखते हैं। तो आप
पहाड़ों से, या अपने पति, होता है। अगर आप यह नहीं खोज पाते, तो मेरे निधि: फिर गुरु के लिए प्रेम क्‍यों है? बस चाहते हैं। यह कभी आपको मंजि़ल तक नही ं
बच्‍चों से या किसी और से, ख्याल से जीवन बेकार है। मेरा काम कु छ हद तक पहुंचाता। प्रेम मंजि़ल नही ं है, यह सिर्फ एक वाहन है
यह सिर्फ आपकी बकवास लोगों को यह खोजने के लिए जरूरी साधन प्रदान जो आपको एक खास दिशा में ले जाता है।
करना है कि जीवन का एक पूर्ण विकसित अंश होने, सद‌ग् ुरु: यह बहुत ही मूर्खतापूर्ण है। आपको समझना
है। आप जिससे प्रेम करते हैं, चाहिए, आप चाहे गुरु से प्रेम करें
एक पूर्ण विकसित सं भावना होने का क्या अर्थ है। ज्ञान, ध्‍यान और आनं द की दनि
उससे इसका कोई लेना-देना या पहाड़ों से, या अपने पति, बच्‍चों से या किसी और ु या में डू बने के
से, यह सिर्फ आपकी बकवास है। आप जिससे प्रेम लिए, हिदी में इनर इंजीनियरिंग ऑनलाइन के

नहीं होता। क्या आपके यह एक सरल साधन है जो सद‌ग् ुरु ने हिमालय के लिए रजिस्‍टर कराएं :
करते हैं, उससे इसका कोई लेना-देना नहीं होता।
प्रेम में आपके पति का गुण बद्रीनाथ में हुए एक सत्सं ग के दौरान साधकों के एक क्या आपके प्रेम में आपके पति का गुण झलकता isha.sadhguru.org/in/hi/yoga-
झलकता है? या फिर आपके समूह के साथ साझा किया था: है? या फिर आपके प्रेम में क्या आपके बच्‍चों का meditation/yoga-program-for-
प्रेम में क्या आपके बच्‍चों का गुण झलकता है? आपके प्रेम में क्‍या पहाड़ों का गुण
beginners/inner-engineering/
सद‌ग् ुरु: आपके विचार, आपकी भावनाएं , आपकी या फिर आपके गुरु का गुण झलकता है? यानी यह
गुण झलकता है? राय, आपके सुझाव, आपके विश्वास और आप सिर्फ आपकी भावना है। भावना सही या गलत नही ं inner-engineering-online/
खुद – अगर आप इन चीज़ों को महत्‍वपूर्ण न बनाएं , होती। अभी अगर यह आपके जीवन की सबसे तीव्र course-structure
तो आप पूरी तरह ग्रहणशील हो जाएँ गे। एकमात्र चीज़ है, तो उसे और तीव्रता दीजिए, मगर
अवरोध आप खुद हैं, कु छ और नहीं। आप बस वैसे यह काफी मूर्खतापूर्ण है। आप इससे अपने नजदीकी योग कार्यक्रम को खोजें:
अपने ख्‍यालों, राय, विचारों, भावनाओं को एक तरफ बेहतर कोई चीज़ नहीं जानते इसलिए यही चीज़ ishayoga.org/Schedule/Yoga-
रख दीजिए। बस उन्‍हें मूर्खतापूर्ण मान लीजिए। आप करते हैं।
उन्‍हें अलग तो नहीं रख सकते, लेकिन आप उन्हें Programs

48 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org


माता, पिता, गुरु, दैवम
संस्कृत की आधी-अधूरी समझ होने के कारण लोग कर रही है। वे जीवन के क्रम का सुझाव दे रहे हैं।
अगर आपका जीवन सांसारिक है तो आपकी यात्रा बस गर्भ से कब्र तक की होगी। अगर हर तरह के अर्थ निकालते रहते हैं। माँ कहती है, ‘ये अगर आपकी जीवन यात्रा जागरूकता की यात्रा है
आप जागरूकता का जीवन जीते हैं तो आपकी यात्रा घर वापसी की यात्रा जैसी होगी। उक्ति बताती है कि माँ ही प्रथम है, तुम्हें पूर्ण रूप से तो पहले माँ, फिर पिता की भूमिका, तब गुरु की
मेरे प्रति ही समर्पित होना चाहिए।’ पिता कहता है, भूमिका और फिर दिव्यता।
माँ आपको पालती है और
विधि: सद‌ग् ुरु, हमारी सं स्कृ ति में बताया जाता है,जब बच्चा चलना शुरू करता है तो पिता महत्वपू- ‘मैं दू सरे नंबर पर हूँ, तुम्हें मेरे प्रति समर्पित होना
चाहिए, गुरु और फिर परमात्मा की तरफ आगे आपका पोषण करती है,
‘माता, पिता, गुरु, दैवम।’ इस उक्ति का वास्तव में र्ण हो जाता है क्योंकि पिता को बाहरी दनिु या की माँ आपको पालती है और आपका पोषण करती
क्या अर्थ है? परिस्थितियों के बारे में जानकारी है, वहाँ उसकी मत बढ़ो, यह आवश्यक नही ं है।’ अगर लोग इस है, पिता आपका मार्गदर्शन करते हैं, गुरु आपको पिता आपका मार्गदर्शन
पहुँच है। इसे आज के सं दर्भ में मत देखिए। अगर तरह की बात करने की कोशिश कर रहे हैं तो ये गूंथते हैं क्योंकि जब तक आप गूंथे न जाएं तब तक करते हैं, गुरु आपको गूंथते हैं
बच्चे को दनि
ु या के बारे में, जीवन के कौशल के बारे ु ग्यपूर्ण है, क्योंकि आपकी माँ सिर्फ माँ नही ं है,
दर्भा कु छ भी अच्छा नही ं कर सकते। जब तक आटे को
सद‌ग् ुरु: जब वे कहते हैं, ‘माता, पिता, गुरु, दैवम’ क्योंकि जब तक आप गूंथे न
में तथा समाज में कै से रहना है, इसके बारे में जानना पिता सिर्फ पिता नही ं हैं, वे भी उसी तरह के जीव हैं अच्छी तरह से गूंथा न जाए, तब तक वैसी रोटी नही ं
तो दरअसल उनका कहना है, ‘माता, पिता, गुरु और जाएं तब तक कुछ भी अच्छा
हो तो उन दिनों पिता की भूमिका महत्वपूर्ण थी। जब जैसे कि आप हैं। उनका भी विकास होना चाहिए। बन पाएगी जिसे कोई भी खाना चाहे। आप को
दिव्यता।’ मैं चाहता हूँ कि आप इसे सही सं दर्भ में
ये सब हो जाता है तो एक उच्चतर सं भावना को प्राप्त उनका विकास तो आपसे पहले होना चाहिए था। वैसी रोटी बनाने के लिए, जिसका परमात्मा उपभोग नहीं कर सकते। जब तक
समझें। जब आपका जन्म होता है तब आपके जीवन
करने के लिए, गुरु आवश्यक हैं। अगर आपको एक अगर माता-पिता विकसित होना भूल गए और बच्चे करना चाहें, गुरु की आवश्यकता है।
में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति कौन होता है? ईश्वर तो आटे को अच्छी तरह से गूंथा
उन्हें राह दिखा रहे हैं, तो ये बड़े सौभाग्य की बात है।
बिलकु ल ही नहीं! न ही गुरु, और न ही पिता! ये माँ उच्चतर सं भावना के बारे में जिज्ञासा है, उसे पाने की न जाए, तब तक वैसी रोटी
माता-पिता को इसका सदपु योग करना चाहिए।
होती है। उस समय, जब आपको स्तनपान की, गले ललक है और आप उसे पाने में सफल हो जाते हैं तो लेकिन, गुरु के वल एक साधन ही है, एक माध्यम
नहीं बन पाएगी जिसे कोई
लगाने और लाड़-प्यार की ज़रूरत होती है, तब माँ ही दिव्यता एक स्वाभाविक वास्तविकता हो जाती है। है, वह परे जाने का द्वार है। जब द्वार खुलता है तभी
महत्वपूर्ण होती है। मुझे नहीं लगता कि इसे कहने की जब वे कहते हैं, ‘माता, पिता, गुरु, दैवम’ तो वे बस अगर आप का जीवन सासं ारिक है तो आपकी आप दू सरी ओर देख सकते हैं। यदि आप कमरे भी खाना चाहे।
भी कोई ज़रूरत है। यह एकदम स्पष्ट है। जीवन स्वयं जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया के बारे में ही कह यात्रा बस गर्भ से कब्र तक की होगी। अगर आप में बंद हैं तो द्वार ही परे की संभावना है। गुरु सिर्फ
यह कह रहा है कि नवजात शिशु के लिए माँ सबसे रहे हैं। जागरूकता और जिज्ञासु का जीवन जीते हैं तो जन्म इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वह आपको बाहर
अधिक महत्वपूर्ण है। से दिव्यता की ओर आपकी यात्रा घर वापसी की पहुँचा देता है।
यात्रा जैसी होगी। तो यह युक्ति इस यात्रा की बात

50 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org 51


स्वाद और सेहत

खजूर डिलाइट
सामग्री:
खजूर : 8 से 10 (बीज रहित)
सेब :2
नारियल का दू ध : 2 कप
बर्फ : आवश्यकतानुसार

विधि:
इसे परोसने से जरा पहले खजूर को काट लें। सेब को छीलकर मोटा-मोटा कद्दूकस कर लें। अब इन्हें मिक्सर के
जार में डालकर बारीक पीस लें। फिर इसमें कु टी हुई बर्फ और नारियल का दू ध डाल दोबारा अच्छी तरह चला
लें। शेक को तुरंत परोसें, क्योंकि रखने पर यह पेय खट्टा हो सकता है।

शेक-शेक, यमी शेक


यूं तो कई तरह के शेक आपने पिया होगा, लेकिन इस बार हम आपको बता रहे हैं कु छ अलग तरह के शेक
के बारे में। आने वाली गर्मियो ं को देखते हुए ये शेक न सिर्फ आपका जायका बदलेंग,े बल्कि आपको ताजगी
और फु र्ती दोनो ं देंग।े इस अक
ं में पेश है, आपके लिए दो जायके दार शेक बनाने की विधि।

खरबूज और के ले का शेक
सामग्री:
खरबूजा : 1 (छोटा)
के ले : 2 (पके हुए)
नारियल का दू ध : 2 कप
शक्कर : 2 कप

विधि:
खरबूज के दो भाग करें और इसके अंदर के सारे बीज निकाल लें। फिर बड़े-बड़े टुकड़ों में काट कर इसका
छिलका उतार लें। अब इसके छोटे-छोटे टुकड़े काटकर उन्हें मिक्सर के जार में डालें; इसी तरह के ले को छील
कर उसके टुकड़े कर जार में डालें। अब इसमें नारियल का दू ध व शक्कर डाल दें। इन सारी चीजों को अच्छी तरह
से मिक्सर में चलाकर पीस लें। अब इसे गिलास में डालकर परोसें।

52 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com


ईशादर्पण

ईशा लहर प्रतियोगिता


निःशुल्क पाएं ईशा लहर की सदस्यता

ह म आपके लिए एक ऐसा अवसर लेकर आए हैं जिससे आप ईशा लहर अगले एक वर्ष तक निःशुल्क प्राप्त
कर सकते हैं। साथ ही आपको मिल सकता है एक आकर्षक इनाम भी। इसके लिए आपको नीचे दिए गए
फेसबुक से

तीन सवालों के जवाब हमें भेजने हैं। आपको यह भी बता दें कि इन सवालों के जवाब इसी अंक में छिपे हैं। बस
पढ़िए, ढूंढ़िए और जीतिए इनाम।

प्रश्न 1)‘थाइर-सादम’ क्या है?


A) एक तरह का खेल B) एक गाँव C) एक भोजन

प्रश्न 2) इंद्रप्रस्थ का पुराना नाम क्या था?


A) हस्तिनापुर B) खांडवप्रस्थ C) पाँचाल

प्रश्न 3) डायोजीनस कहाँ के रहने वाले थे?


A) ग्रीस B) अरब C) इराक़ मुझे इसकी वाक़ई ज़रूरत थी SadhguruHindi
यहाँ हम उन विचारों को आपसे साझा करते हैं जिन्हें लोगों ने फ़े सबुक के मं च पर शब्दों में सहेजा
है। पेश हैं कु छ सं कलित विचार :
सही जवाब देने वालों में से दो भाग्यशाली विजेताओं को मिलेगी एक वर्ष तक ईशा लहर मुफ्त और सही जवाब देने
वाले पहले दस लोगों का नाम हम जून 2020 अंक में प्रकाशित करेंगे। इतना ही नहीं अगर आपने लगातार छः महीनों
तक सही जवाब दिया तो आपको मिल सकता है एक आकर्षक इनाम भी। पूरे ग्रह को बदल देंगे सद‌ग् ुरु - निशित पांचाल
मुझे लगता है कि न जाने कितने लोग इस इं सान के ज्ञान से लाभ उठाएँ गे। सद‌ग् ुरु आप इस ग्रह के सबसे प्रेरक
उत्तर देने के लिए टाइप करें ILP-APR-19 और फिर स्पेस देकर क्रम से प्रश्न संख्या और उसके साथ ही अपने
व्यक्ति हैं। बहुत आभार कि आप हमारे लिए हैं।
उत्तर का क्रम टाइप करें। जैसे अगर आपके पहले प्रश्न का उत्तर A दू सरे का B और तीसरे का C है तो आप टाइप
करें ILP-APR-19-1A 2B 3C और फिर अंत में अपना नाम और शहर का नाम लिखना न भूलें, और एस.एम.
एस. करें 8005149226 पर या editor@ishalahar.com पर ई-मेल कर दें। उत्तर भेजने की अंतिम तारीख मुझे इसकी वाक़ई ज़रूरत थी - लैमी कै री
है 30 अप्रैल 2020. धन्यवाद सद‌ग् ुरु! मुझे इसकी वाक़ई ज़रूरत थी (धूम्रपान कै से छोड़ें वीडियो के बारे में)। मुझे धूम्रपान की बुरी
आदत है और मैं लं बे समय से इसे छोड़ना चाहती थी। शायद इससे मुझे मदद मिले!
फ़रवरी 2020 अंक के प्रश्नों के सही उत्तर हैं: 1-C, 2-A, 3-B
सही उत्तर देने वाले पहले दस लोगों के नाम हैं: आप हमेशा मुझे प्रोत्साहित करते हैं - दीपमाला सुब्बा
डॉ. मनोज चतुर्वेदी, जयपुर, डॉ. आभा चतुर्वेदी, जयपुर, डॉ. चेतन पं चल, अहमदाबाद, के तन परमार, वडोदरा जिस दिन से मुझे सद‌ग् ुरु के बारे में पता चला है, मेरा जीवन पूरी तरह से बदल गया है। धन्यवाद।
रुचिरा देसाई, सूरत, राजकिशोर शर्मा, सं बलपुर, के शव बदोनिया, भोपाल, देबदास, रूपनारायनपुर
दीपक धवले, भोपाल, के डी परमार, जूनागढ़ मेरा जीवन पूरी तरह से बदल गया है - एना बैंजक ै
लकी ड्रॉ से निकाले गए दो भाग्यशाली विजेता हैं: सद‌ग् ुरु, मुझे आश्चर्य होता है कि आपको तरह-तरह के लोगों के इतने तरह के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए प्रचुर
ज्ञान कै से प्राप्त होता है? आप एक अद्तभु व्यक्ति हैं और मैं आपकी प्रशं सक हूं। धन्यवाद।
के शव बदोनिया, भोपाल, नीरज, फरीदाबाद। आपको हार्दिक बधाई।

पिछले छः अंकों से लगातार सही उत्तर देने वालों के नाम हैं: मुझे अपने भीतर देखने में मदद मिलती है - प्रेमलता पुरी
कितनी सुं दर व्याख्या है! सद‌ग् ुरु के वीडियो देखने से मुझे अपने भीतर देखने में मदद मिलती है, और साथ ही
डॉ. आभा चतुर्वेदी, जयपुर, ज्योति मिश्रा, अंगुल, विनय कु मार मौर्य, नई दिल्ली
मुझे बहुत शांति और खुशी मिलती है जिससे मैं अब तक अनजान थी।
आपको भी बहुत-बहुत बधाई।

54 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 55
ईशार्पण

ईशा योग कार्यक्रम


हिदं ी कार्यक्रम
भोपाल गुरुपूजा ट्रेनिंग ईशा फाउं डेशन 24-26 अप्रैल 9560616009
इनर इं जीनियरिंग न्यू ईशा हॉल 15-21 अप्रैल 6264386653, दिल्ली सेंटर
9329573885
रायपुर मुम्बई
इनर इं जीनियरिंग जग्गनाथ मंदिर हॉल 15-21 अप्रैल 7094410543, सूर्य क्रिया जुहु  11-12 अप्रैल 9594031314,
7094410544 9821902836
भिलाई, छत्तीसगढ़ योगासन जुहु  13-18 अप्रैल 9892690121,
इनर इं जीनियरिंग अयप्पा मंदिर 22-28 अप्रैल 7094410545, 9920019156
8305003297 इनर इं जीनियरिंग माटुंगा 15-21 अप्रैल 9820589969,
कर्नल 9167968277
इनर इं जीनियरिंग पं चायत भवन 22-28 अप्रैल 8168595668, इनर इं जीनियरिंग टोरडो 15-21 अप्रैल 9821739111
7015003990 9820090728
डोम्बिवली, मुं बई
योग का अर्थ है - जीवन हैदराबाद
इनर इं जीनियरिंग तिलक नगर स्कू ल 22-28 अप्रैल 7738217127
की चक्रीय प्रक्रिया को गुरुपूजा ट्रेनिंग हिमायथ नगर 12-14 जून 7702638557
9029711487
तोड़कर इसे एक सीधी रेखा
बनाना। अगर आप अपने
अंग्रेजी कार्यक्रम चेन्नई
जीवन में ‘ईशा योग’ के
बैंगलोर इनर इं जीनियरिंग पोरुर 15-21 अप्रैल 8300037000
हर पहलू पर पूरी तरह से
इनर इं जीनियरिंग हेब्बल 15- 21 अप्रैल 080-47103311, अंगमर्दन अद्यार 15-19 अप्रैल 8300037000
अमल करते हैं, तो यह खुद
8095743111 अंगमर्दन मिलापोरे 15-19 अप्रैल 8300037000
में एक सं पूर्ण मार्ग है।
इनर इं जीनियरिंग ईशा प्लेस 15- 21 अप्रैल 080-47103311, योगासन अन्नानगर 15-19 अप्रैल 8300037000
- सद‌ग् रुु विजयनगर 8095693111
हठयोग बच्चों के ईशा प्लेस जयनगर 15- 19 अप्रैल 080-47103311, ईशा योग कें द्र, कोयम्बतूर 
लिए 8095693111 इनर इं जीनियरिंग 23-26 अप्रैल 9489045164
इनर इं जीनियरिंग मराथल्ली 18- 19 अप्रैल 080-47103311, रिट्रीट 8300083111
कम्पलीशन 8095693111 होलिस्टिक कैं सर 3 मई 0422-2515466
क्लिनिक
दिल्ली आयुर सं पूर्ण 19-25 मई 0422-2515647
सूर्य क्रिया ईशा प्लेस द्वारका 11-14 अप्रैल 9650092103
अंगमर्दन ईशा प्लेस द्वारका 10-14 अप्रैल 9650092103
इनर इं जीनियरिंग जनकपुरी 11-12 अप्रैल 8860831002
समापन 9899040090
इनर इं जीनियरिंग गुडगाँव 11-12 अप्रैल 9,810,064,000
समापन
इनर इं जीनियरिंग रेलवे ऑफिसर्स 22-28 अप्रैल 9313459590,
क्लब 9818701036

56 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org


दर्पण

शेर बनें या लोमड़ी तू युद्ध कर


ए क बार एक बौद्ध भिक्षुक भोजन बनाने के लिए
जं गल से लकड़ियाँ चुन रहा था कि तभी उसने कु छ
पहला दिन बीता, पर कोई वहां नहीं आया, दू सरे दिन भी
कु छ लोग उधर से गुजरे पर भिक्षुक की तरफ किसी ने
अनोखा देखा। ‘कितना अजीब है ये!’, उसने बिना पैरों की ध्यान नहीं दिया। इधर बिना कु छ खाए-पिए वह कमजोर
लोमड़ी को देखकर मन ही मन सोचा। होता जा रहा था। इसी तरह कु छ और दिन बीत गए, अब
‘आखिर इस हालत में ये जिंदा कै से है?’ उसे आश्चर्य तो उसकी रही सही ताकत भी खत्म हो गई। वह चलने-
हुआ, ‘और ऊपर से ये बिलकु ल स्वस्थ है!’ फिरने के लायक भी नहीं रहा। उसकी हालत बिलकु ल माना हालात प्रतिकू ल हैं, अपने मन का धीरज, तू कभी न खो
मृत व्यक्ति की तरह हो चुकी थी कि तभी एक महात्मा रास्तों पर बिछे शूल हैं
वह अपने ख़्यालों में खोया हुआ था कि अचानक चारों
उधर से गुजरे और भिक्षुक के पास पहुंचे।
रण छोड़ने वाले होते हैं कायर
तरफ अफरा–तफरी मचने लगी। जं गल का राजा शेर
उसने अपनी सारी कहानी महात्मा जी को सुनाई और रिश्तों पे जम गई धूल है तू तो परमवीर है,
उस तरफ आ रहा था। भिक्षुक भी तेजी दिखाते हुए एक
ऊँ चे पेड़ पर चढ़ गया, और वहीं से सब कु छ देखने लगा। बोला, ‘अब आप ही बताइए कि भगवान इतना निर्दयी पर तू खुद अपना अवरोध न बन तू युद्ध कर –
उसने देखा कि शेर ने एक हिरन का शिकार किया और कै से हो सकते हैं? क्या किसी व्यक्ति को इस हालत में तू युद्ध कर!!
पहुंचाना पाप नहीं है?’
तू उठ, खुद अपनी राह बना।
उसे अपने जबड़े में दबाकर लोमड़ी की तरफ बढ़ने लगा,
पर उसने लोमड़ी पर हमला नहीं किया, बल्कि उसे भी ‘बिल्कु ल है,’ महात्मा जी ने कहा, ‘लेकिन तुम इतना मूर्ख माना सूरज अँधेरे में खो गया है, इस युद्ध भूमि पर,
खाने के लिए मांस के कु छ टुकड़े डाल दिए। कै से हो सकते हो? तुम ये क्यों नहीं समझे कि भगवान पर रात अभी हुई नहीं, तू अपनी विजय-गाथा लिख
‘ये तो घोर आश्चर्य है, शेर लोमड़ी को मारने के बजाय उसे तुम्हें शेर की तरह बनते देखना चाहते थे, लोमड़ी की तरह जीतकर ये जं ग,
यह तो प्रभात की बेला है
भोजन दे रहा है,’ भिक्षुक बुदबुदाया। उसे अपनी आँखों नहीं!’
तेरे सं ग है उम्मीदें , तू बन जा वीर अमिट
पर भरोसा नहीं हो रहा था इसलिए वह अगले दिन फिर हमारे जीवन में भी ऐसा कई बार होता है कि हमें चीजें
वहीं आया और छिपकर शेर का इं तज़ार करने लगा। जिस तरह समझनी चाहिए उसके विपरीत समझ लेते हैं। किसने कहा तू अके ला है तू खुद सर्व समर्थ है,
आज भी वैसा ही हुआ, शेर ने अपने शिकार का कु छ ईश्वर ने हम सभी के अन्दर कु छ न कु छ ऐसी शक्तियां
तू खुद अपना विहान बन, तू खुद अपना वीरता से जीने का ही कु छ अर्थ है
हिस्सा लोमड़ी के सामने डाल दिया। दी हैं जो हमें महान बना सकती हैं, ज़रुरत है कि हम उन्हें
विधान बन। तू युद्ध कर –
‘यह भगवान के होने का प्रमाण है!’ भिक्षुक ने अपने आप पहचानें। उस भिक्षुक का सौभाग्य था कि उसे उसकी
से कहा। ‘वह जिसे पैदा करता है उसकी रोटी का भी गलती का अहसास कराने के लिए महात्मा जी मिल गए सत्य की जीत ही तेरा लक्ष्य हो बस युद्ध कर!!
इं तजाम कर देता है। आज से इस लोमड़ी की तरह मैं भी पर हमें खुद देखना चाहिए कि कहीं हम शेर की जगह
ऊपर वाले की दया पर जियूँगा। ईश्वर मेरे भी भोजन की लोमड़ी तो नहीं बन रहे हैं।
- अभिषेक मिश्र
व्यवस्था करेगा।’ ऐसा सोचते हुए वह एक वीरान जगह साभार: इंटरनेट
पर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया।
साभार: इंटरनेट

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मौन क्रांति मौन क्रांति

ईशा योग कें द्र में यक्ष उत्सव


18-20 फ़रवरी, ईशा फाउं डेशन में हर साल की तरह इस साल भी तीन दिन के यक्ष उत्सव का आयोजन किया गया।
महाशिवरात्रि से तीन दिन पहले शुरू हुए इस उत्सव में मशहूर कलाकारों ने सं स्कृ ति, सं गीत और नृत्य की प्रस्तुतियां दीं।

श्रीमती कला रामनाथ

श्रीमती शर्मीला बिस्वास

हैदराबाद ब्रदर्स

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मौन क्रांति मौन क्रांति

ईशा में महाशिवरात्रि महोत्सव


21 फ़रवरी, शिव की कृ पा और योग परं परा की इस गहरे आध्यात्मिक महोत्सव पर माननीय उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू मुख्य
अतिथि थे।

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मौन क्रांति मौन क्रांति

आठ दिन के मौन कार्यक्रम सम्यमा का आयोजन सदर्न नेवल कमांड कोची में सद‌ग् रुु
सद‌ग् ुरु द्वारा आयोजित सम्यमा कार्यक्रम में कई प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने पूरे मौन में रहते हुए सद‌ग् ुरु के
साथ गहन ध्यान क्रियाएँ कीं। 9 फरवरी, कोची, सदर्न नेवल कमांड कोची ने सद‌ग् रुु का स्वागत किया। वहां सद‌ग् रुु ने नौसैनिकों को सं बोधित किया और उनके कई
प्रश्नों के उत्तर दिए।

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मौन क्रांति मौन क्रांति

जल्लिकट्टु में सद‌ग् रुु ईशा योग कें द में सद‌ग् रुु दर्शन
23 फ़रवरी, कोयं बटू र, सदगुरु ने तमिलनाडु के पारं परिक खेल जल्लीकट्टू में भाग लिया। जल्लीकट्टू तमिल सं स्कृ ति का एक
अभिन्न अंग है।

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