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ILP20 IshaLahar-Apr PDF
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जीवन सूत्र
आ पमें से जो लोग ‘परफे क्शन’ चाहते हैं, अनजाने में आप मृतय् ु की खोज में हैं क्यूंकि एकमात्र यही
एक चीज़ है, जो आप परफे क्शन से करते हैं। जीवन के साथ आप चाहे जो भी करें, हम उसमें दोष
ढूंढ सकते हैं। जीवन की प्रकृ ति ऐसी है कि चाहे आप कु छ भी करें, आप हमेशा उसमें चूक खोज सकते हैं।
आप जो भी करें, कितनी भी अच्छी तरह से करें, निश्चित रूप से उसमें कोई न कोई दोष मिल जाएगा, क्यूंकि
उसे करने का कोई परफे क्ट तरीका नहीं है। मृत्यु की सुं दरता यह है कि हम उसे परफे क्शन से करते हैं, कोई
उसे अपूर्ण तरीके से नहीं करता। यही इसकी अच्छी बात है।
Isha Lahar, Isha Yoga Center, Velliangiri Foothills, Ishana Vihar, Coimbatore, Tamil Nadu - 641114, India
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ईशामृतम
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प्रणाम
मेरी जागरूकता जानती है,
गुज़रे कल और आने वाले कल को
लेकिन मेरा प्रेम जानता है – सिर्फ़ आज।
- सदग् रुु
दर्शन
14 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 15
ईशामृतम
आप सर्क स के जोकर की तरह थोड़ी बहुत कलाबाज़ी जगह बिखेर देते हैं और उन्हें लगता है कि उनका जीवन
जानते हैं। जोकर को फिर कभी नकारात्मक शब्द के विफल हो गया। लेकिन पहली बात यह है कि आप उसे
मृत्यु को नकारना नही,ं स्वीकारना है रूप में मत लीजिएगा। सर्क स के सभी कलाबाज़ों में,
जोकर सबसे बेहतर होता है, क्योंकि वह बिना किसी
टुकड़ों में काट ही क्यों कर रहे हैं?
कई बार हम सोचते हैं कि हम मृत्यु को नकारकर जीवन जी सकते हैं। अगर आप भी ऐसे ही नाटक के आराम से ऐसा करता है। बाकी सब लोग वहां दरअसल जीवन के सभी स्तरों पर, चाहे वह पुरुष तत्व
कु छ न कु छ करने के लिए पूरा ध्यान लगाए रहते हैं। हो या स्त्री तत्व, जीवन हो या मृत्यु, अंधकार या रोशनी,
सोचते हैं, तो आप एक मनोवैज्ञानिक मरीज़ यानी पागल हैं।
यह शख्स बस आता है और बहुत आसानी से सब कु छ ध्वनि या मौन – चाहे आप कोई भी चीज़ ले लें, एक का
कर जाता है। जोकर सर्क स का सबसे बड़ा कलाबाज़ दू सरे के बिना अस्तित्व नहीं है। वे एक-दू सरे के पूरक
होता है। हैं, विरोधी नहीं।
20 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 21
ईशामृतम
अगर आप सिर्फ इस चिंगारी को स्वीकार करते हैं अभी, आपका भौतिक अस्तित्व, इस अनं त अस्तित्व
और उसे स्वीकार नहीं करते, जिसने आपको बनाया में सिर्फ एक छोटा सा उभार भर है। उस छोटी सी
है, जो आपके अंदर बुनियाद है, तो फिर आपके पास चीज़ के साथ, आप जीवन को पकड़ने और सं भालने
चुनाव नहीं होगा। आप एक बाध्यकारी शक्ति बन की कोशिश कर रहे हैं और वह हर समय फिसलता
जाएं गे। आप जीवन को भी मृत्यु की तरह अटल रहता है। यह एक बड़ा सर्क स है। आप भले ही सोचें
मानकर जिएं गे, सचेतन तरीके से नहीं, अपनी पसं द कि आप एक बढ़िया कलाबाज़ हैं, लेकिन अगर
से नहीं। अगर आप वास्तव में पूरी तरह जीवित और कोई निष्पक्ष होकर, आपको देखे, तो आप सिर्फ एक आपके
जीवं त रहना चाहते हैं, इस मायने में जीवित कि आप जोकर दिखेंगे। जिस तरह आप इस सीमित समय
बारे में जो चीज़ हमेशा से
अपने अस्तित्व की प्रकृ ति को तय कर सकें , तो यह को चला रहे हैं, जिसे आप जीवन कहते हैं, यह एक
महत्वपूर्ण है कि आप एक जीवित मृत्यु बनें। आपको बड़ा मज़ाक है। हालांकि आपको मृत्यु का जबर्दस्त मौजूद थी, वह है मृत्यु।
जीवन को सं पूर्ण रूप में लेना होगा। आप हिस्से नहीं अनुभव है। जन्म लेने से पहले आप लं बे समय के जीवन अभी घटित हुआ है।
हैं क्योंकि हिस्से कभी पूरे नहीं होते। पूरा बस मौजूद लिए मृत थे और आप फिर बहुत, बहुत लं बे समय के आपने इसे अच्छे से गले
होता है। चाहे आप शारीरिक रूप से यहां हों या नहीं, लिए मृत हो जाएं गे। अगर जीवन को घटित होना है,
चाहे हम सब यहां शारीरिक रूप से हों या नहीं, फिर तो ये दोनों चीज़ें गुँथी हुई हैं। एक, दू सरे के खिलाफ लगाया है,
भी अस्तित्व है। चाहे ये सारे ग्रह नष्ट हो जाएं , तारे नहीं हैं, वे एक-दू सरे के पूरक हैं। मगर उसे गले नहीं लगाया,
नष्ट हो जाएं , फिर भी खाली जगह तो रहेगी न? जोआप हमेशा से थे –
आपके बारे में जो चीज़ हमेशा से मौजूद थी, वह है
आप हमेशा मृत थे।
तो जीवन और मृत्यु ऐसे हैं – जिसे आप सृष्टि के रूप मृत्यु। जीवन अभी घटित हुआ है। आपने इसे अच्छे
में देखते हैं। एक छोटा पिंड है, मिट्टी की एक छोटी से गले लगाया है, मगर उसे गले नहीं लगाया, जो अभी सिर्फ थोड़ी देर के
जीवन को चुन सकते हैं, पर मृत्यु को नही ं सी गेंद को हम पृथ्वी कहते हैं। और दू सरी उससे भी
छोटी - मिट्टी की बहुत ही छोटी सी गेंद को अभी हम
आप हमेशा से थे – आप हमेशा मृत थे। अभी सिर्फ
थोड़ी देर के लिए जीवित हैं। मगर आप सिर्फ इस
लिए जीवित हैं।
मगर आप सिर्फ
मृत्यु कोई हमारा चुनाव नहीं है, हाँ, जीवन हमारा चुनाव है। जीवित रहना और जीवं त ‘आप’ बुलाते हैं। आपको इसी क्षण जीवन और मृत्यु थोड़े से समय को गले लगाना चाहते हैं, बाकी को
के लिए तैयार होना चाहिए, किसी और समय नहीं। नहीं। ऐसे काम नहीं चलता क्योंकि ये सब एक ही है। इस थोड़े से समय को
रहना एक चुनाव है। कै से जीवित रहना है, यह भी आपका चुनाव है। कै से मरना है – गले लगाना
आप जब मृत्यु के लिए सौ प्रतिशत तैयार होंगे, तभी
आपके पास ऐसा कोई चुनाव नहीं है। आप वास्तव में जीवित हो सकते हैं, तभी यह जीवन अगर आप अपने शरीर और मन के ढेर के साथ चाहते हैं,
आपके लिए खुलता है। वरना, आप जीवन के एक लगातार जुड़े हों मगर उलझे हुए नहीं, अगर ऐसा हो
मृ
बाकी को नहीं।
त्यु कोई हमारा चुनाव नहीं है, वह होनी ही है। तरह प्रयोग करना चाहते हैं, तो यह बहुत महत्वपूर्ण टुकड़े को पकड़कर लगातार उसके साथ जूझते रहते जाए, तो आप एक जीवित मृत्यु बन जाते हैं। मृत का
हाँ, जीवन हमारा चुनाव है। जीवित रहना और है कि आप जीवन के सभी आयामों को एक समझें। हैं, उसके साथ सर्क स करते रहते हैं। अधिकांश इं सानों अर्थ है कि वे यहां नहीं हैं। वे कौन से लोग हैं, जिन्हें
जीवं त रहना एक चुनाव है। कै से जीवित रहना है, यह अगर आप उन्हें अलग-अलग करेंगे, तो आपके पास के लिए हर दिन एक सं घर्ष है। क्योंकि यह एक आप मृत बुलाते हैं? जो यहां नहीं हैं। यहां नहीं का
भी आपका चुनाव है। कै से मरना है – आपके पास यह चुनाव करने की क्षमता नहीं होगी। क्योंकि आपके विशाल चीज़ की तरह है, जिससे एक छोटा टुकड़ा मतलब वे इस दनि ु या में नहीं हैं, तो वे मर चुके हैं। तो
ऐसा कोई चुनाव नहीं है। तो हम जानते हैं कि मृत्यु पास खड़े होने के लिए कोई आधार ही नहीं होगा। बाहर निकला हुआ है। उस छोटे से टुकड़े के सहारे अगर आप यहां नहीं है, आपको मृत माना जाएगा।
एक विकल्प नहीं है, यह अटल नतीजा है। मृत्यु सृष्टि अगर शाश्वत मृत्यु का आधार न हो, तो आपके अंदर आप पूरी चीज़ को उठाने की कोशिश कर रहे हैं, जो और जो यहां नहीं है, यानी वह जो नहीं है, वह शिव
की इच्छा से होती है। जीवन मेरा चुनाव है, तो यह मेरी जीवन की वह चिंगारी, जो अभी है, वह सं भव नहीं आप कभी नहीं कर पाएं गे। है। शि-व का अर्थ है, वह जो नहीं है। जिसे हम शिव
इच्छा के अनुसार है। अगर आप इस इच्छा का अच्छी होगी। कहते हैं, वह एक जीवित मृत्यु है।
22 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 23
ईशामृतम
26 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 27
संवाद
रस्किन बॉन्ड: जिन दिनों मैं देहरादू न में बड़ा हो रहा रहते थे और कितना भी खाने के बाद भी दबु ले पतले
था, उस समय साइकिल का दौर था। सभी बच्चे और ही रहते थे। बढ़ती उम्र के किसी लड़के या लड़की के
जवान साइकिल पर घूमते थे। तब कारें बहुत कम मोटे होने का सवाल ही नहीं था, क्योंकि हम हमेशा
होती थीं और मोटरसाइकिलें भी ज्यादा नहीं थीं। हम किसी न किसी गतिविधि में लगे रहते थे।
सभी साइकिलों पर घूमते थे। मैं साइकल से अक्सर
गिर जाता था, इसलिए मैंने पैदल चलना शुरू कर एक समय मैं पूरे दक्षिण भारत में साइकिल से घूमा
दिया और मैं पैदल ही शहर भर में घूमता था। मुझे था। फिर मैं धीरे-धीरे मोटरसाइकिल पर आ गया।
मुझे लगता है कि आज के
हर सड़क, हर गली का पता मालूम था। इस कारण मुझे लगता है कि आज के बच्चों के विकास में जो जुगनू की उड़ान
मेरा नाम ‘रोड इं स्पेक्टर’ पड़ गया। तो वे साइकिल एक बड़ी कमी है, वह है - उनका आसपास के दू सरे आज के बच्चों का किसी दू सरे जीवन से कोई सं पर्क
बच्चों के विकास में जो एक वाले दिन थे, आजकल आपको साइकिलें ज़्यादा जीव, पेड़-पौधे, कीड़े, पशु-पक्षी, रेंगने वाले जीव नहीं है, प्रकृ ति से कोई सं पर्क नहीं है। मेरे ख्याल
से यह ऐसी चीज़ है जिसका ध्यान सभी स्कू लों को
अमावस की अंधियारी रात में और पूछती है सवाल,
बड़ी कमी है, वह है - उनका नहीं दिखतीं। मगर आजकल के बच्चों के बारे में क्या और तमाम दू सरी तरह के जीवन से कोई सं बं ध नहीं
होना। एक इं सान के लिए यह कोई अच्छी बात नहीं रखना चाहिए और पक्का करना चाहिए कि बच्चों का लेता है जुगनू , क्या एक जुगनू से होगा
आसपास के दू सरे जीव, कहें? आप कह रहे थे कि वे एक तकनीकी युग में
बहुत सारी ध्यान बं टाने वाली चीजों के साथ बड़े हो है कि आप यह सोचते हुए बड़े हों कि सब कु छ सिर्फ प्रकृ ति से सं पर्क हो। क्योंकि यह पर्यावरण को लेकर सं कल्प उड़ने का। ये जहान रोशन?
पेड़-पौधे, कीड़े, पशु-पक्षी,
रहे हैं। लोग कहते हैं कि वे पढ़ते नहीं हैं, लेकिन मैं आप के बारे में है। जागरूकता की बात नहीं है। आपकी इं सानियत का और विचारमग्न अन्धकार,
रें गने वाले जीव और तमाम विकास हो, इसके लिए यह महत्वपूर्ण है कि आप हर
अभी भी बहुत सारे ऐसे युवाओं से मिलता हूँ जो पढ़ते उड़ाता है मज़ाक़ हाँ, हूँ मैं एक जुगनू ,
दू सरी तरह के जीवन से कोई हैं और बहुत तो ऐसे हैं जो लिखते भी हैं। तो शायद दर्भा
ु ग्यवश लोगों के दिमाग में धार्मिक मतों के जरिए जीवन को ऐसे जीवन के रूप में देखें, जिसे इस धरती
सं बं ध नहीं होना। ऐसे विचार भर दिए गए हैं कि मनुष्य को भगवान पर जीने का हक है। वे यहां हमसे पहले से हैं। जोशीले जुगनू की उड़ान का। अगर जीवन के ताप ने,
आप उन्हें कु छ सलाह दे सकते हैं। देखिए ज्ञान की
बातों की उम्मीद सदग् ुरु से है, मुझसे नहीं। ने अपनी छवि के रूप में बनाया है। बाकी जीव यहां पैदा की है कु छ गरमी आपमें।
रस्किन बॉन्ड: हां, यह सच है। इससे मुझे एक
सिर्फ हमारी सेवा के लिए हैं। मनुष्य के मन में यह अथाह, अनं त अंधकार और आपके भीतरी आयाम ने,
ु ग्य- सबसे विनाशकारी विचार है कि हम हर दू सरे जीवन
सदग् ुरु: टेक्नोलॉजी कोई बुरी चीज़ नहीं है। दर्भा कविता याद आती है, जो आपकी लिखी हुई है।
मैं जानता हूं कि आपकी किताबें काफी पढ़ी जाती निगल सकता था किया है मोहित आपको,
वश लोग ऐसी बातें करते रहते हैं, जिससे लगता है कि को अपनी सेवा के लिए समझते हैं। उनका अपना
टेक्नोलॉजी हमारे जीवन को बर्बाद कर रही है। नहीं, भी जीवन है। मैंने जं गलों में काफी समय बिताया हैं, लेकिन मेरे ख्याल से बहुत कम लोग यह जानते प्रकाश की तो कर सकता हूँ प्रज्वलित मैं
उसका गैर जिम्मेदाराना इस्तेमाल हमारे जीवन को है, कई बार तो हफ्तों अके ले रहा हूं, बिना किसी होंगे कि आप गुपचुप कविताएं भी लिखते हैं! तो इस नन्हीं कोशिश को, आपको, और इस पूरी दनि ु या
बर्बाद कर रहा है। किसी भी चीज़ का गैर जिम्मेदा- बाहरी मदद के जं गल में गुज़ारा किया है। हर जीव – मैं आपकी एक छोटी सी कविता पढ़ता हूं, जो मैं
लेकर आया हूं। इस छोटी सी कविता का शीर्षक है को भी।
राना इस्तेमाल हमारे जीवन को बर्बाद कर सकता है, चींटियों, कीड़े-मकोड़ों, पशु-पक्षियों सभी का जीवन शं कालुओ ं की कलहप्रिय हँ सी
जरूरी नहीं है कि वह टेक्नोलॉजी ही हो। जब हम ख़ुद में पूर्ण है। मैं नहीं जानता कि वे हमारे बारे में ‘द फायरफ्लाई’ – ये रस्किन बॉन्ड की नहीं, सदग् ुरु
लोग बच्चे थे, तो हम शारीरिक रूप से बहुत सक्रिय क्या सोचते हैं। की है: फै ल जाती है मेरे भीतर,
- सदग् रुु
28 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 29
जिज्ञासु का असमं जस
देना चाहूंगा – ‘सिकं दर महामूर्ख’। क्योंकि वह ऐसा तक के लिए उसे टाल दिया। अगले जन्म में, कौन
शख्स था जिसने जीवन को बर्बाद किया - अपना भी जानता है कि वह क्या बना – हो सकता है वह
और दू सरे लोगों का भी। उसने सोलह साल की उम्र कॉकरोच बन गया हो। आप इं सान के रूप में एक
में लड़ना शुरू कर दिया था। अगले सोलह साल वह सं भावना के साथ आए हैं। अगर आप उसे गँ वा दें
लगातार लड़ता रहा, रास्ते में आने वाले हज़ारों लोगों और सोचें कि आप अगली बार उसे कर लेंग,े तो
का कत्ल किया। वह बत्तीस साल की उम्र में बहुत अगली बार किसने देखा है?
दयनीय हालत में मरा, क्योंकि वह सिर्फ आधी दनि ु या
को जीत पाया था, बाकी आधी दनि ु या अब भी बची एक क्षण के लिए सिकं दर इस सं भावना के करीब
थी। सिर्फ एक महामूर्ख ही इस तरह सोलह साल तक आया था, मगर फिर उसने इसे टाल दिया। इस घटना
लड़ सकता है। के कारण, उसके अंदर एक तरह की उदासीनता आ जब आपकी क्षमताएं आपके
गई। वह अपने जीवन के अंत में युद्ध के लिए जुननू
सिकं दर सम्राट के कपड़ों में अपने घोड़े पर था और खो बैठा, मगर फिर भी आदतन वह लड़ता रहा। जुननू पास होती हैं और जब
उसने नीचे डायोजीनस को देखा, जो आँखें बं द किए खत्म हो जाने के बाद उसकी ताक़त कम हो गई और जीवन अच्छा होता है, तभी
असीम आनं द में रेत में लोट रहे थे। सिकं दर ऊंची वह मर गया। अपनी मौत से ठीक पहले, उसने अपने जीवन को गहराई में देखने
आवाज़ में लगभग चिल्लाया, ‘नीच जानवर! तुम्हारे सैनिकों को एक अजीब हिदायत दी। उसने कहा, ‘जब
का समय होता है, तब नहीं
शरीर पर कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं है। तुम मेरे लिए ताबूत बनाया जाए, तो उसके दोनों ओर दो
जानवर की तरह हो। तुम आख़िर किस चीज़ को लेकर छे द होने चाहिए ताकि मेरे दोनों हाथ ताबूत के बाहर जब चीज़ें बिगड़ जाती हैं।
इतने खुश हो?’ डायोजीनस ने ऊपर उसकी ओर देखा हों, और सबको यह पता चले कि सिकं दर महान भी अधिकांश लोग अपने जीवन
सं भावनाओं को गँ वाइए मत! और उससे एक सवाल पूछा जो कोई आम आदमी
किसी सम्राट से पूछने की हिम्मत नहीं कर सकता था।
इस दनि ु या से खाली हाथ ही गया।’ उसने अपने जीवन
में यह एक समझदारी का काम किया।
को गहराई से तभी देखते हैं,
जब स्थितियां बिगड़ जाती हैं
आप इंसान के रूप में एक सं भावना के साथ आए हैं। अगर आप उसे गँ वा दें और सोचें कि उन्होंने पूछा, ‘क्या तुम मेरी तरह बनना चाहोगे?’
आप अगली बार उसे कर लेंगे, तो अगली बार किसने देखा है? इस सवाल ने सिकं दर को बहुत गहराई तक प्रभावित आप अपने जीवन में समझदारी का एक काम करने या उनके साथ कोई हादसा
किया, वह बोला, ‘हां, मुझे क्या करना होगा?’ डायो- के लिए आखिरी क्षण का इं तज़ार मत कीजिए। कु छ होता है।
जीनस बोले, ‘उस बेवकू फ घोड़े से उतरो, ये सम्राट के ज्यादा देर हो सकती है। अभी समय है, जब सब कु छ
सध ु ी: सदग् रुु , हम भारत के योगियो ं के बारे में काफी यह देखा और सोचने लगे, ‘हे भगवान! मेरी ज़िन्दगी कपड़े उतारो और उन्हें नदी में फें क दो। यह नदी का आपके हाथ में है। जब आपकी क्षमताएं आपके पास
कु छ सुनते हैं, लेकिन क्या पश्चिम में भी ऐसे लोग थे? तो कु त्ते से भी बदतर है!’ वे पहले ही आनंदित थे, किनारा हम दोनों के लिए काफी है। मैं इस पर कब्जा होती हैं और जब जीवन अच्छा होता है, तभी जीवन
मगर वे कह रहे थे कि उनका जीवन कु त्ते से भी बदतर नहीं कर रहा हूं। तुम भी लेटकर आनंदित हो सकते को गहराई में देखने का समय होता है, तब नहीं जब
सदग् रुु : ग्रीस में एक भिक्क षु थे, जो नदी किनारे है क्योंकि कई बार उन्हें लगता था कि वे बस नदी में हो। कौन तुम्हें रोक रहा है?’ सिकं दर बोला, ‘हां, तुम चीज़ें बिगड़ जाती हैं। अधिकांश लोग अपने जीवन
रहते थे – डायोजीनस। वे एक अद्तभु और आनंद में कूद जाएं पर उन्हें अपने लंगोट के भीग जाने और जैसा होकर मुझे बहुत अच्छा लगेगा, लेकिन मेरे पास को गहराई से तभी देखते हैं, जब स्थितियां बिगड़
मतवाले भिक्क षु थे। किसी ने उन्हें एक सुंदर भिक्षापात्र भिक्षापात्र के खो जाने की चिंता होती थी। उस दिन वह करने का साहस नहीं है जो तुम कर रहे हो।’ जाती हैं या उनके साथ कोई हादसा होता है। जब
दिया था और वे सिर्फ एक लंगोट पहनते थे। वे मंदिरो ं उन्होंने अपना भिक्षापात्र और लंगोट फें क दिया और स्थितियां बिगड़ती हैं, तो आप भले ही इच्छु क हों,
के द्वारो ं पर भिक्षा मागं ते थे और जो भोजन उन्हें परू ी तरह नग्न अवस्था में रहने लगे। इतिहास की किताबों ने हमेशा बताया है कि सिकं दर मगर आप जरूरी ऊर्जा और ध्यान कें द्रित करने में
मिलता था, वही खाते थे। एक दिन, वे अपना भोजन बहुत साहसी था। फिर भी सिकं दर ने स्वीकार किया असमर्थ हो जाते हैं। जब सब कु छ ठीक हो, तब
खत्म करके नदी की ओर जा रहे थे, तभी एक कु त्ता एक दिन, वे आनंदित अवस्था में नदी किनारे लेटे हुए कि उसमें वह करने का साहस नहीं था जो डायोजीनस आपको इस जीवन को जितना हो सके , उतनी गहराई
उनसे आगे निकला, दौड़कर नदी में गया, थोड़ा तैरा, थे, जब सिकंदर उधर से गुज़रा। सिकंदर को ‘सिकंदर कर रहे थे। तो सिकं दर ने जवाब दिया, ‘मैं अगले जन्म में देखना चाहिए।
फिर रेत पर आया और खुशी से लोटने लगा। उन्होंने महान’ कहा जाता है। मैं उसको एक तीसरा नाम में तुम्हारे साथ आऊंगा।’ उसने अगले जन्म
30 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 31
जिज्ञासु का असमं जस
क्या सब कु छ ईश्वर की इच्छा से होता है? कमाना चाहते हैं, शायद आपको थोड़ी इच्छा-शक्ति
की जरूरत होगी। उसे किसी दू सरे तरीके से भी किया
बोध होगा, न कोई समस्या, न कु छ, आप खुशी से हत्या
कर सकते हैं क्योंकि आपके पास ईश्वर की इच्छा है।
ईश्वर निश्चित रूप से इच्छाओं से परे है। इच्छा तो आपके मन का एक मूर्खतापूर्ण उपक- जा सकता है, लेकिन आपको पता है कि इच्छा-शक्ति
रण है, जिससे आप जीवन में तुच्छ चीज़ें पा सकते हैं। एक बुनियादी साधन है, लेकिन यह बस इतना ही है। तो इस तरह की गलतफहमियां पैदा हो गई हैं कि यह
आपके ईश्वर की इच्छा है कि हर कोई आपके धर्म इस तरह की गलतफहमियां
शीला: कहा जाता है कि ‘स्वतं त्र इच्छा’ के कारण रूप से वह इच्छा से परे है। इच्छा तो आपके मन का ईश्वर और इच्छा को जोड़ना - एक बहुत गलत धारणा को मानने वाला हो, कोई दू सरा धर्म अच्छा नहीं है। ये पैदा हो गई हैं कि यह आपके
इं सान पशुओ ं से अलग होता है। सदग् ुरु ‘स्वेच्छा’, एक मूर्खतापूर्ण उपकरण है, जिससे आप जीवन में है। अज्ञानी लोग ही हर समय ‘ईश्वर की इच्छा’ की सब मूर्खतापूर्ण चीज़ें आपने की हैं। यह आपको किसी
बात करते हैं। ईश्वर की कोई इच्छा नहीं होती। उसने आत्मज्ञानी व्यक्ति ने नहीं सिखाया है, यह आपको उन ईश्वर की इच्छा है कि हर
‘मनमानी’ और ‘स्वतं त्र इच्छा’ में क्या अंतर है? कै से तुच्छ चीज़ें पा सकते हैं। आप पैसा कमा सकते हैं,
कोई वसीयत नहीं लिखी। कभी मत सोचिए कि वह मार्के टिंग एजेंटों ने सिखाया है जो धर्म को बेचते हैं। कोई आपके धर्म को मानने
जानें कि मैं जो कर रही हूं, वह ईश्वर की इच्छा है, प्रसिद्धि पा सकते हैं, आप इच्छा-शक्ति से इस तरह
मेरी नहीं? की चीज़ें हासिल कर सकते हैं। आपको बताया गया, एक वसीयत लिखने वाला है कि स्वर्ग आपके नाम हो ईश्वर की कोई इच्छा नहीं है। यह आपको समझना वाला हो, कोई दू सरा धर्म
‘जहां चाह, वहां राह।’ हां, कु छ हद तक, यह सही जाएगा। ईश्वर इच्छा से परे है। उसकी अपनी कोई होगा। इच्छा आपकी है। बस आप अपनी इच्छा में
अच्छा नहीं है। ये सब मूर्ख-
सदग् ुरु: मैं इस अकादमिक चर्चा में पड़ना नहीं है, लेकिन इसकी अपनी सीमाएं हैं। आपको यह इच्छा नहीं है। यहां का सारा खेल आपका अपना है। भगवान का नाम जोड़ना चाहते हैं क्योंकि उससे आपके
आपके भीतर के वल सबसे मूलभूत चीज़ उसकी है - काम को पूरी स्वीकृति मिल जाती है। फिर आप जो भी तापूर्ण चीज़ें आपने की हैं।
चाहता कि ‘स्वतं त्र इच्छा’, ‘स्वेच्छा’, ‘मनमानी’ क्या समझना होगा – अगर आप एक छोटी सी नदी पार
हैं। क्योंकि हर कोई इन चीज़ों को अपने तरीके से करना चाहते हैं, एक छोटी डोंगी से काम चल जाएगा, आपके भीतर की जीवन शक्ति। बाकी सब आपका बकवास करेंगे, वह स्वीकार्य होगा। यह आपको किसी आत्मज्ञानी
परिभाषित कर सकता है। बात करते हैं प्रश्न के दू सरे आप पार हो सकते हैं। अब, कल अगर आप हिंद है। अब इसे देखने का एक तरीका यह हो सकता व्यक्ति ने नहीं सिखाया है,
हिस्से की, ‘मैं कै से जान सकता हूं कि मैं जो कर रहा महासागर पार करना चाहते हैं, और आप उस डोंगी है - क्योंकि हमें हर चीज़ को उस रूप में देखना होता ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि आप जागरूक नहीं हैं,
है, जैसे हम उसे समझते हैं - कि ईश्वर की इच्छा यह है आप अपना जीवन जागरूकता और कोमलता से नहीं
यह आपको उन मार्के टिंग
हूं वह ईश्वर की इच्छा है, मेरी नहीं?’ को लेकर चले जाएं , तो मृत्यु तो निश्चित है। इसी
कि आपके अंदर कोई प्रतिरोध न हो। जब आप पूर्ण जीना चाहते, इसलिए आपको ईश्वर की इच्छा की एजेंटों ने सिखाया है जो धर्म
तरह, इच्छा-शक्ति एक छोटी डोंगी है, जो आपको
आपको यह समझना चाहिए कि अगर आप अपने छोटी-छोटी धाराओं के पार ले जा सकती है। जीवन स्वीकार की स्थिति में होते हैं, तो आप ईश्वर की इच्छा जरूरत होती है। आप ईश्वर की इच्छा पूरी नहीं कर को बेचते हैं।
भीतर किसी अवस्था तक पहुंचना चाहते हैं, तो में, आप छोटी चीजें करना चाहते हैं – आप सुबह का पालन कर रहे हैं। कु छ धार्मिक समूह युगों से सोचते सकते। आप अपनी इच्छा को भी त्याग दीजिए। जब
आपको अपनी इच्छा छोड़नी होगी। जब आपकी खुद उठकर पढ़ना चाहते हैं, आपको थोड़ी सी इच्छा- रहे हैं कि उनके धर्म में विश्वास न करने वाले लोगों को आप जीवन के साथ पूरी तरह तालमेल में होंगे, तब हम
की कोई इच्छा नहीं होती, तभी आप समाधि को जान शक्ति चाहिए। आप सुबह कसरत करना चाहते हैं, मारना ईश्वर की इच्छा है। जब लोगों को मारने के लिए कह सकते हैं, ‘आप ईश्वर की इच्छा में हैं,’ वास्तव में
सकते हैं। ईश्वर की इच्छा कै से हो सकती है? निश्चित आपको थोड़ी इच्छा-शक्ति चाहिए। आप थोड़ा पैसा आपके पास ईश्वरीय इच्छा होगी, तो न कोई अपराध- वह फिर भी ईश्वर की ‘इच्छा’ नहीं होगी।
32 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 33
यह हमारे ऊपर है कि हम दीवारों और छतों को बस अवरोध बना देते हैं या
फिर उनको अपने सौ ंदर्यबोध की अभिव्यक्ति का माध्यम बनाते हैं।
यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने उपयोग की हर चीज में, जीवन के हर क्षेत्र में
सौ ंदर्यबोध को वापस लाएं । इस धरती पर समझदारी से रहने के लिए इसे
वापस लाने की जरूरत है।
-सदग
् ुरु
महाभारत
गए और बोले, ‘आप सभी को इसमें दखल देना मल्ल का अर्थ है पहलवान। उन दिनों पहलवान बहुत
चाहिए, वरना देश के दो हिस्से हो जाएं गे।’ बुजुर्गों ने महत्वपूर्ण होते थे। किसी सेना को प्रशिक्षण देने के
कहा, ‘जब आपने आजीवन ब्रह्मचर्य की शपथ ली लिए ऐसे लोगों की जरूरत होती थी, जो अखाड़ों में
थी, तब तो आपने हमारी सलाह नहीं ली थी? अब उनके साथ मेहनत कर सकें । यह कौरवों के लिए एक
आप हमारी ओर क्यों रुख कर रहे हैं?’ वे सब जानते अप्रत्याशित घटनाक्रम था कि कृ ष्ण ने कहा कि ये हो गए। कृ ष्ण ने ऐसे स्वर में, जो उनके स्वभाव में था, तो उन्होंने अपने दिव्य शरीर को किसी रजाई की
थे कि बं टवारा वैसे भी होना ही है इसलिए भीष्म ही लोग पांडवों के साथ जाने के लिए आज़ाद हैं। धृतराष्ट्र नहीं था, कहा, ‘भीष्म इसकी मं जूरी कै से दे सकते हैं, तरह शहर पर फै ला दिया और उसकी दीवारें, उसकी
उसे अंजाम देने के दर्द को सहें। और कौरव उसे एक न्यायपूर्ण बं टवारे की तरह दिखाने और तुम्हारे गुरु द्रोण और कृ पाचार्य ऐसा कै से होने दे मीनारें, उसके महल, उसके दरबार और मकान – सब
इंद्रप्रस्थ सबसे सुंदर नगर की कोशिश कर रहे थे, लेकिन हकीकत में उन्होंने सकते हैं? जिन लोगों ने तुम्हारे साथ ऐसा किया है, वे कु छ बनकर तैयार हो गए। यह चमत्कार सिर्फ इंद्र
बन गया। आज भी इंद्रप्रस्थ उस भूमि को बांटने का दारोमदार भीष्म पर था, राज्य का सबसे अच्छा हिस्सा अपने लिए रखा और खुली बाहों से मौत को न्यौता दे रहे हैं। वह दिन दू र और कृ ष्ण देख रहे थे। सुबह जब लोग सोकर उठे ,
जिससे वह बेहद प्यार करते थे। आखिरकार उन्होंने एक उजाड़, बं जर हिस्सा पांडवों को दे दिया। नहीं है।’ पहली बार उन्होंने भीष्म, द्रोण, कृ पाचार्य, तो उन्होंने खुद को एक खूबसूरत शहर में पाया। यह
भारत की राजधानी है – यह धृतराष्ट्र से कहा, ‘ठीक है, राज्य को बांट दो। पांडवों धृतराष्ट्र, हर किसी को इस श्राप में समेट लिया। खबर जं गल की आग की तरह फै ल गई कि पांडवों ने
नई दिल्ली का एक हिस्सा को एक हिस्सा दे दो और कौरवों को हस्तिनापुर में दर्ु योधन कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था – उसके रातोरात एक नगर बसा दिया।
है। इंद्रप्रस्थ कई राजवं शों की राज करने दो।’ धृतराष्ट्र ने पांचों पांडव भाइयों को पास उन्हें मारने की योजनाएं थीं। मगर पहले, यात्रा की थकान से, पांडव और उनके साथ आए लोग
बुलाया और भरे दरबार में घोषणा की, कि वह उन्हें कौरवों को अपना आधा सोना, घोड़े और पशु छोड़ने खुले मरुस्थल में सोने के लिए लेट गए। कृ ष्ण ने हर उसी क्षण से, जनता पांडवों को भगवान की तरह
राजधानी रहा। बाहर से आने
खांडवप्रस्थ दे देंगे, जो कभी कु रुवं श की राजधानी पड़े। और ढेर सारे लोगों ने पांडवों के साथ जाने का किसी के सो जाने का इं तज़ार किया, फिर वह जगह देखने लगी। पहले ही उनके मरकर वापस आने की
वाले हमलावरों ने भी इंद्रप्रस्थ रही थी। कई पीढ़ियों पहले, बुध के पुत्र और चंद्रवं श फै सला किया। काफिला चल पड़ा। कई दिन तक का जायज़ा लेने इधर-उधर टहलने लगे। उन्होंने कहानियां फै ली हुई थीं। लोग कहने लगे, ‘पांडव
से ही शासन करना चुना। के पहले राजा पुरुरवा को ऋषियों ने श्राप दिया था, चलने और रास्ते में ढेर सारे लोगों की मृत्यु हो जाने अपना सिर आकाश की ओर उठाया और एक ऐसी मरकर देवलोक गए और वे भगवान बन गए। फिर
आज तक सत्ता का कें द्र वहीं जिसके बाद खांडवप्रस्थ बर्बाद हो गया था और उजड़ा के बाद आखिरकार वे खांडवप्रस्थ पहुंचे। पांचों भाई बोली में उन्होंने इंद्र का आह्वान किया जो सूर्य से भी वे वापस धरती पर आए और अब उन्होंने रातोरात
रेगिस्तान हो गया था। धृतराष्ट्र ने ऐसा उपहार पांडवों तब तक उत्साहित थे, मगर जब उन्होंने देखा कि वह पुरानी थी। बिजली की गरज और चमक के साथ इंद्र एक नगर बसा दिया।’ इंद्रप्रस्थ सबसे सुं दर नगर बन
हैं- वह चमत्कारी है या नहीं, को दिया। जगह कितनी निर्जन है, तो उनका दिल डू बने लगा। आ पहुंचे। कृ ष्ण बोले, ‘आपको अपने चमत्कार से गया। आज भी इंद्रप्रस्थ भारत की राजधानी है – यह
यह एक अलग प्रश्न है। भीम गुस्से से उफनकर बोले, ‘मैं दर्ु योधन और उसके इस नगर को बसाना है। फिर हम इसका नामकरण नई दिल्ली का एक हिस्सा है। इंद्रप्रस्थ कई राजवं शों
युधिष्ठिर ने अपने स्वभाव के मुताबिक़ विनम्रता से भाइयों की जान ले लूंगा। वे हमें ऐसी जगह कै से दे इंद्रप्रस्थ कर देंगे। यह आपका शहर होगा। इसे की राजधानी रहा। बाहर से आने वाले हमलावरों ने
इसे स्वीकार कर लिया और अपने भाइयों तथा पत्नी सकते हैं?’ दनि
ु या का सबसे सुं दर नगर होना चाहिए।’ और फिर भी इंद्रप्रस्थ से ही शासन करना चुना। आज तक सत्ता
के साथ जाने की तैयारी करने लगे। कृ ष्ण ने हस्तक्षेप चमत्कार हो गया। का कें द्र वहीं हैं और इंद्रप्रस्थ आज भी कायम है। वह
करते हुए कहा, ‘इस बँ टवारे को न्यायसं गत बनाने के भीम वायु पुत्र था – वह आगबबूला हो गया। बाकी चमत्कारी है या नहीं, यह एक अलग प्रश्न है।
लिए सोना, पशु, घोड़े और रथों में से भी आधे पांडवों भाइयों को जब एहसास हुआ कि वे एक श्रापग्रस्त इंद्र के वास्तुशिल्पी विश्वकर्मा को बुलाकर नगर को आगे जरी...
को दिए जाएं । और जो भी मल्ल, लोहार, सोनार और नगर के खं डहरों में, वीराने के बीच आ हैं, तो वे मौन बनाने का आदेश दिया गया। जब हर कोई सो रहा
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मौन क्रांति
स्वयं सेवा का अनूठा अनुभव हरेक के अंदर चैतन्य को देख सकती थी। मैंने पाया
कि मैं दू सरे लोगों को नहीं देख रही, बल्कि उनके
जब हम यादें इकट्ठा और साझा करने की कोशिश जरिये किसी अधिक गहन चीज़ को देख पा रही
कर रहे थे, हमने ध्यान दिया कि भाव स्पं दन की गूंज हूँ । उस क्षण मैंने महसूस किया कि मैं सदग् ुरु द्वारा
हमारे अंदर अब भी जीवं त थी, सूक्ष्म मगर फिर भी प्राण-प्रतिष्ठित किसी स्थान में जीवन भर रह सकती
बहुत स्पष्ट। कु छ ही देर में, वह नीरस परिसर एक हूं। मैं अपने भीतर और बाहर इस स्थान के लिए
जीवं त स्थान में रूपांतरित हो गया। हम नं गे पांव बहुत कृ तज्ञ हूं और हमेशा रहूंगी।’
चलते हुए, जाप करते हुए और शालीनता से घूमते
हुए तैयारियां करते रहे। हम सब अपने एकमेव लक्ष्य ‘मैंने सदग् ुरु की तस्वीर में अनन्य कृ पा, अद्तभु शक्ति
की दिशा में बढ़ते हुए एक बड़ी शक्ति बन गए। और करुणा महसूस की है। मेरा ध्यान कु दरती रूप
हमने हॉल की व्यवस्था, करेक्शन का अभ्यास, रसोई से और सचेतन तौर पर कई बार वहां जाता था। इस
और भोजन की तैयारियों, स्वागत और कमरों की तस्वीर ने कई रूपों में बेहद कोमलता से मेरी यात्रा
साफ-सफाई से जुड़े तमाम कामों में मिलकर हाथ के हर कदम में मेरा मार्गदर्शन किया है। यह तस्वीर
बं टाया। कोने-कोने में सुं दर फू ल और हरियाली दिख बहुत असली और वास्तविक महसूस हुई।’ आंसुओ ं का सैलाब मेरी आंखों
रही थी और इच्छु क लोगों ने खुद प्रतियोगियों के लिए
कै बिनेट तैयार किए, कार्यक्रम स्थल का हर हिस्सा
को धो रहा था, तो प्रेम और
एवो: भाव स्पं दन बेहद तीव्र और आनं दपूर्ण था।
हमारी आंखों के ठीक सामने साकार होने लगा। कु छ मुझे पता ही नहीं था कि हमारे अंदर इतनी शक्ति है। करुणा का सागर मेरे अस्तित्व
ही दिनों में यहां आश्रम सा माहौल बन गया और यह मेरी कल्पना से परे था कि वास्तव में मनुष्य होने को धो रहा था। अब भी ऐसा
ऐसा लग रहा था कि वह महाद्वीपों और भौगोलिक का क्या मतलब है। वह परम आनं द था। मेरे अंदर होता है। मैं उस पल में हरेक
लेबनान की धरती पर उपजे कु छ अनुभव सीमाओं के परे विस्तृत हो गया है। हर किसी के
भीतर सदग् ुरु के बोए बीज बहुत जोश में भरकर
समय जैसा कु छ नहीं था, मैं खुद को जो समझती थी,
वह भावनाओं और ऊर्जा के एक विस्फोट में गायब के अंदर चैतन्य को देख सकती
लेबनान में हुए एक भाव स्पं दन कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोगों में से कु छ ने अपने खिल रहे थे। हो गया। शरीर और मन के परे, परमानं द के आंसू थी। मैंने पाया कि मैं दू सरे
लगातार बह रहे थे। मैं सदग् ुरु की बहुत आभारी हूं लोगों को नहीं देख रही, बल्कि
अनुभवों को शब्दों में पिरोया है। उनके हृदय के उद्गार और आभार को हम यहाँ आपसे
अस्तित्व की भावना – कु छ व्यक्तिगत अनुभव कि वे इसमें अपना जीवन डालते हैं। मेरे जीवन में
साझा कर रहे हैं: उनकी मौजूदगी - मेरा सौभाग्य है। काश हर इं सान
उनके जरिये किसी अधिक
जीवन को रूपांतरित कर देने वाला अनुभव, भाव इसका अनुभव कर पाए! गहन चीज़ को देख पा रही हूँ।
तीन साल की तैयारी उल्लास और स्थिरता स्पं दन अंतर्मन के दरवाज़े खोल देता है। ये अनुभव
अक्सर हमारी कल्पना से परे होते हैं। कई लोगों के नेदिन: ‘भाव स्पं दन जीवन का सबसे बुनियादी कोर्स
हमें बताया गया कि लेबनान में भाव स्पं दन कार्यक्रम हम एक दिन पहले अपने गं तव्य पर पहुंच गए थे। लिए आनं द के आंसू एकमात्र सहारा होते हैं, कम ही है जो बताता है कि कै से धड़कें और कै से जिएं । बड़े
पिछली बार तीन साल पहले हुआ था। दनि ु या के इस जगह बहुत सुं दर थी और छत से एक ओर हरे-भरे लोग भावनाओं के इस कु दरती हिलोर को शब्दों में होने के बाद अपने जीवन में गुजर-बसर की प्रक्रिया
हिस्से में अब तक के सबसे बड़े कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहाड़ों और दू सरी ओर भूमध्य सागर का अद्तभु ढाल पाते हैं। में लीन, कर्तव्यों और बाध्यताओं में डू बकर मैं भूल
के लिए हम काफी आशा से जुटे हुए थे। आख़िरकार नज़ारा दिखता था। एक तरफ़ हरे-भरे पेड़ों के घने गई थी कि सिर्फ एक इं सान कै से बने रहना है।
यह कार्यक्रम 12 से 15 सितं बर, 2019 के बीच जं गल जीवन से भरपूर थे और दू सरी तरफ़ उससे ग्रेटा: ‘भाव स्पं दन में स्वयं सेवा करने या ख़ुद उसमें एक ज्योति जल उठी है और लगातार बढ़ रही है।
सं पन्न हुआ जिसमें 89 प्रतिभागियों और लगभग 40 एकदम अलग तस्वीर थी, जहाँ समुद्र का विशाल हिस्सा लेने का मेरा पिछला अनुभव करीब पांच खासकर जब सारा ग्रुप सोशल मीडिया पर इकट्ठा
स्वयं सेवकों ने भाग लिया। कई लोग दू सरे अरब देशों खालीपन पसरा हुआ था। दोनों मिलकर सं पूर्ण साल पहले का था, जब मैं सैंकड़ों दू सरे प्रतिभागियों हुआ, सकारात्मक ऊर्जा कई गुना बढ़ गई। चमत्कार
और विदेशों से माउं ट लेबनान के के सरवान जिले स्थिरता की एक ख़ूबसूरत तस्वीर बना रहे थे। भाव के साथ भारत के ईशा योग कें द्र में शामिल हुई थी। की एक लहर मुझे छू रही थी। लेबनान में हमारे
के एक गांव ज़ोमार में इस चार दिवसीय आवासीय स्पं दन के लिए एकदम सटीक माहौल – जिसमें बाहर भावनाएं और ऊर्जा कई अलग-अलग रूपों में सामने आस-पास सारी नकारात्मकता के बावजूद हर चीज़
कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए आए थे। तीन सालों विस्फोटक उल्लास के साथ भीतर अद्तभु स्थिरता के आ रही थीं। आंसुओ ं का सैलाब मेरी आंखों को धो मुझे यह यक़ीन दिला रही थी कि अपने जीवन में
की तैयारी के बाद, चार दिनों का यह आनं द उत्सव क्षण होते हैं। रहा था, तो प्रेम और करुणा का सागर मेरे अस्तित्व पहली बार मैं एक बेहतर भविष्य के लिए काम कर
जीवनकाल के लिए उपहार था! को धो रहा था। अब भी ऐसा होता है। मैं उस पल में रही हूँ ।’
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आधी रात सदग् ुरु के साथ
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अंतर्पथ के राही
स्वामी सुयग्ना
स्वामी सुयग्ना
सिखाने का आनं द और विस्तार वर्ष 2000 में, शिक्षको ं की एक बैठक में मैंने सदग् रुु
से एक सवाल पछ ू ा, ‘आपमें और गौतम बुद्ध में क्या
मई 1997 में, मैंने टीचर्स ट्रेनिंग की। एक चीज़ अतं र है?’ वह बोले, ‘हमारे बीच कई समानताएं हैं,
जिससे मैं हमेशा आश्चर्यचकित होता हूं, वह है जिस मगर उनके और मेरे बीच एक बड़ा अतं र है।’ ‘वह
तरह सदग् रुु ने ईशा योग कार्यक्रम को तैयार किया क्या, सदग् रुु ?’ मैंने आगे पछ
ू ा। ‘अशोक!’ वे बोले। या किसी दू सरे निजी मुद्दे की वजह से कैं सल नहीं किया। हुए उनका ध्यान सूखे हुए पौधों पर जाता था और कई
शिक्षकों की एक बैठक में मैंने है – यह वाकई शानदार है। बाकी सभी ईशा शिक्षको ं ‘उनके पास अशोक था, और मेरे पास सिर्फ ...’ मुझे एक बार मैं गोवा में एक कांफ्रेंस के लिए उनके साथ जा बार वह रुककर उनमें पानी देते थे। छोटी-छोटी बातों पर
सदग् ुरु से एक सवाल पूछा, की तरह मुझे भी अपने सामने बहुत से लोगो ं को सिर्फ समझ में आया कि सदग् रुु उस एक बड़ी शक्ति की रहा था, और मैं जानता था कि उन्होंने पिछले दिन खाना उनका ध्यान, उनकी करुणा और समावेश अद्तभु है।
‘आपमें और गौतम बुद्ध में 13 दिन के भीतर रूपातं रित होते देखने का सौभाग्य बात कर रहे हैं, जो सदग् रुु में निहित संभावना को नहीं खाया है। तो जब हम कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे, मैं
मिला। मुझे अब भी याद है, वर्ष 2000 की शुरुआत लाखो ं लोगो ं तक ले जा सकती है। चाहता था कि वे पहले खाना खा लें क्योंकि उनके सत्र प्रशासनिक कार्य के उतार-चढ़ाव
क्या अंतर है?’ वह बोले, में इरोड में आयोजित मेरी एक कक्षा में एक विधवा की अब तक घोषणा नहीं हुई थी। मेरे आग्रह पर वे खाने
‘हमारे बीच कई समानताएं युवती थी, जिसने एक सप्ताह पहले ही अपने पति को यह सदग् रुु का एक बड़ा कथन था और इसने वास्तव बैठे, मगर 10 मिनट के अंदर उनके सत्र की घोषणा हो 2007 में सदग् रुु ने मुझे आश्रम वापस आकर आश्रम
हैं, मगर उनके और मेरे बीच खोया था। वह अवसाद में डूबी हुई लगती थी और में उनके कार्य को हर किसी तक पहुंचाने की मेरी गई और मं च पर उनका इं तज़ार हो रहा था। इसे सुनकर, का प्रशासन सं भालने के लिए कहा। लोगों को सशक्त
सबसे अलग-थलग रहती थी। 3-4 दिन के अदं र तीव्रता और ललक को बढ़ा दिया। उस बैठक के सदग् रुु तुरंत खड़े हुए, बीच में ही हाथ धोया और बिना बनाने में सदग् रुु का कोई सानी नहीं है – वह जिस तरह
एक बड़ा अंतर है।’ ‘वह
मैंने उसे खुलते देखा और 13वाँ दिन आते-आते वह बाद, मैंने बैठकर विचार किया – आज की दनि ु या में किसी हिचकिचाहट के प्रोग्राम हॉल की तरफ लगभग से हमें सक्षम बनाते हैं, वह अद्तभु है। अगले चार सालों
क्या, सदग् ुरु?’ मैंने आगे उत्साहित और खुश रहने लगी। मैंने कै दियो ं में भी ऐसा ‘अशोक’ कौन है? मैंने महससू किया कि इन दिनो ं दौड़ पड़े। में मुझे काफी जिम्मेदारियाँ दी गईं। उनके सहयोग और
पूछा। ‘अशोक!’ वे बोले। रूपातं रण होते देखा है। वास्तव में, कै दी आम तौर पर किसी संदेश को दनि ु या भर में पहुंचाने की ताकत प्रोत्साहन के कारण कई अच्छी चीज़ें हुईं, मगर कई बार
‘उनके पास अशोक था, और शुरुआत में योग कक्षाओ ं का विरोध करते थे, मगर मीडिया के पास है। तो मैंने इसके लिए मेहनत करनी मैंने उन्हें कभी किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की तरह बर्ताव मैंने गलतियां भी कीं।
एक बार उससे जुड़ने के बाद, उनका रूपातं रण भी शुरू कर दी। कई तरह से, उन दिनो ं तमिलनाडु मीडिया करते नहीं देखा। मैं इस एक घटना को कभी नहीं भूल
मेरे पास सिर्फ ...’ बहुत स्पष्ट होता था। में पैठ बनाने और प्रभावशाली लोगो ं तक पहुंच बनाने सकता, जो शायद 1998 की है, जब सदग् रुु ट्रैंगल ब्लॉक वास्तव में मैं प्रशासनिक कार्यों से उतना जुड़ नहीं पाता
के रास्ते खोजने की मेरी कोशिशो ं के पीछे की आग के में हमारे साथ डिनर कर रहे थे। भोजन समाप्त करने के था, जितना शिक्षण के साथ जुड़ाव महसूस करता था।
काम के मामले में, 13 दिन की कक्षाओ ं में पढ़ाना मेरे पीछे उनका यही कथन था। बाद, वह सिंक में अपनी प्लेट धोने गए। सिंक पानी से इसलिए उस भूमिका में सौ प्रतिशत शामिल न हो पाने के
जीवन का सबसे अच्छा समय था। पढ़ाने के उन दस भरा था क्योंकि बचे हुए खाने के अवशेषों से नाली ब्लॉक कारण सब कु छ मेरे लिए एक चुनौती बन गया। हालांकि
सालो ं में मैंने एक बार भी बीमारी या किसी और वजह सदग् रुु का जीवन ही एक शिक्षा है हो गई थी। फिर मैंने देखा कि सदग् रुु ने उसमें अपने हाथ मैं लगातार अपना बेहतरीन देने की कोशिश करता था,
से अपनी दिनचर्या नही ं छोड़ी। उन सालो ं में मैंने अपने डाले, नाली को साफ किया और चुपचाप चले गए। एक मगर किसी न किसी कारण मुझे इस भूमिका में सफलता
अदं र काफी खुशी, संतोष और विस्तार महससू किया। सदग् रुु जिस लगन से काम करते हैं, वह अविश्वसनीय गुरु को इन छोटे-मोटे कामों को करते देखना मेरे लिए नहीं मिली। इस पूरी प्रक्रिया में मेरा एक बड़ा पछतावा यह
है। वह किसी बैठक के लिए कभी लेट नही ं होते, अकल्पनीय था। वे हमेशा झक ु ते हैं और मिसाल पेश है कि कई बार मैंने सदग् रुु को निराश भी किया।
अशोक की तलाश उन्होंने कभी अपना कोई अप्वाइंटमेंट अपनी सेहत करते हैं। कई बार मैंने ध्यान दिया कि आश्रम में टहलते
42 ईशा लहर | अप्रैल 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अप्रैल 2020 43
अंतर्पथ के राही
मुझे याद है, जब सदग् रुु ने ‘ईशा संस्कृति’ शुरू किया सरल चीज़ जो सदग् रुु बार-बार कहते हैं – ‘आप
था, मैंने उस पर – उसके परू े कासं प्टे पर - काफी इसलिए खुश नही ं हैं क्योंकि जीवन आपके हिसाब
सवाल उठाए थे। 12 साल की शिक्षा के बाद इन बच्चों से नही ं चल रहा’ – यह बात मेरे अदं र एक अनुभव
का क्या होगा?’ मैंने कई बार अपने अदं र तर्क किया। बनकर साकार हो गई। मौन की अवधि का कु छ समय
अब इन बच्चों को इतना होशियार, तेज़ और सक्षम बीतने पर मैं सहज महससू करने लगा और अपने
देखकर मुझे एहसास होता है कि सदग् रुु जैसे व्यक्ति अदं र एक नई किस्म की आज़ादी पाई। इस साधना ने
की बुद्धिमत्ता पर कभी सवाल नही ं उठाना चाहिए। मुझे जीवन के प्रति एक नया नज़रिया दिया, और इस
मार्ग की ओर तीव्रता तथा फोकस के मेरे स्तर को पु-
प्रशासनिक कार्य का एक वरदान यह था कि मुझे नर्जीवित कर दिया। ‘... और अब, योग’ – पतंजलि
सदग् रुु के काफी करीब होकर काम करने और उनके योग सत्रू की यह पहली पंक्ति मेरे लिए एक जीवंत
अदं र के बहुआयामी व्यक्तित्व को देखने का मौका हकीकत बन गई।
मिला। मैं उनकी तीव्रता, उनकी एकाग्रता, उनकी
अथक दृढ़ता और कई स्थितियो ं के प्रति उनके अनोखे वह दिन-वह क्षण
नजरिए पर मुग्ध था।
कु छ दिन पहले ही मुझे एहसास हुआ कि कु छ महीने
मगर मुझे महससू होता है कि उन चार सालो ं के दौरान पहले मैं 50 वर्ष का हो गया – मगर मुझे नही ं लगता
मैं उनके व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हो गया था कि कि मेरी उम्र अधिक हो गई है। वास्तव में मैं अपने
शायद उनके अदं र के गुरु को देखने से चक ू गया। कॉलेज के दिनो ं के मुकाबले अधिक जीवंत और
मगर जल्द ही एक बार फिर हमारे गुरु-शिष्य के बंधन जोशीला महससू करता हूं। ईशा और सदग् रुु के साथ
को मजबतू करने का एक मौका मेरे सामने आया। मेरी यात्रा इतनी फलदायक और संतुष्टिदायक रही है
कि सदग् रुु ने साधना और ब्रह्मचर्य के रूप में हमें जो
मौन दिया है, उसे मैं दनि
ु या की किसी चीज़ से बदलना
नही ं चाहूंगा।
ईशा के साथ इतने सालो ं में मैंने कभी यह देखने
की परवाह नही ं की कि मेरे भीतर, मेरे साथ या मेरी मैं अक्सर याद करता हूं कि जब मैं यहां पर ू क ्ण ालिक
साधना के साथ क्या हो रहा है – मेरे लिए बस यही रूप से रहने आया था, तो सदग् रुु ने पहली चीज़
मायने रखता था कि ईशा के लिए चीजो ं को संभव मुझसे यह कही थी, ‘आपको एक पत्थर की तरह होना
कै से बनाया जाए। इसलिए 2011 में जब सदग् रुु ने चाहिए, हम आपको जहां चाहेंग,े वहां फें क देंग।े क्या
मुझे डेढ़ सालो ं तक मौन रहकर कार्य करने के लिए आप इसके लिए तैयार हैं?’ इतने सालो ं में यह बात
कहा, तो मैंने इसे वास्तव में अपने लिए वरदान पाया। मेरी मार्गदर्शक शक्ति रही है – कही ं भी फें के जाने के
इसने मुझे अपने अदं र झाक ं ने और यह स्पष्टता पाने लिए तैयार और परू ी तरह से शामिल।
का मौका दिया कि मैं यहां किसलिए हूं। मैंने महससू
किया कि सचमुच कई बार मेरा व्यवहार नासमझीभरा मैं उस दिन और उस क्षण की प्रतीक्षा में हूं जब मैं
और मूर्खतापर ू ्ण था। इस एहसास और आत्मनिरीक्षण किसी भी कार्य की आवश्यकता से परू ी तरह आज़ाद
ने मुझे उन सभी टकरावो ं और भ्रमो ं से निकाल दिया, हो जाऊं, बस पर ू ्ण आज़ादी में रह पाऊं। तब तक, मैं
जिनका सामना मैं कई वर्षों से कर रहा था। कही ं भी, कभी भी, कितने भी जन्मों तक फें के जाने के
लिए तैयार हूं...।
सदग् रुु ने हमें जो कु छ दिया है, उनके प्रति धीरे-धीरे
मैं अधिक कृ तज्ञ और ग्रहणशील हो गया। जैस,े एक
44 ईशा लहर | मार्च 2020 ishalahar.com isha.sadhguru.org ईशा लहर | अक्टू बर 2019 45
यूथ एं ड ट्रूथ
काजल: मुझे विश्वास है कि हर कोई धारा 377 को पिता इसमें नहीं पड़ते।आप सहमत हैं ना?
अपराध से मुक्त किए जाने के बारे में जानता है।
और मेरे ख्याल से अधिकांश युवा इसे लेकर बहुत काजल: जी हां।
खुश हैं। हमने अपने माता-पिता और पुरानी पीढ़ी
से इस बारे में बात की। जब हम अपनी पुरानी पीढ़ी सदग् ुरु: तो, हमारा वजूद ही इसके कारण है।
से इस तरह की कोई चर्चा करते हैं, तो वे कहते हैं, इसलिए इससे इं कार करने या इसे ढकने-छिपाने का
‘हम वैसे तुम्हारे साथ कोई बहस नहीं करेंगे या अपना कोई मतलब नहीं है। मगर किसी की एक खास तरह
नजरिया तुम पर नहीं लादेंगे, मगर हमारे धर्म में इसे की सेक्सुअल पसं द है, जिसका प्रजनन की प्रक्रिया
स्वीकार नहीं किया जाता।’ सदग् ुरु, मैं ‘एलजीबीटी’ से कोई सं बं ध नहीं है - यह उनका निजी चुनाव है,
समुदाय या समलैंगिकता के धर्म से सं बं ध पर आपका क्योंकि हर व्यक्ति को अपने शरीर के साथ जो वो
नजरिया जानना चाहती हूं। चाहें, वो करने का हक है - क्योंकि वो उनका
हर व्यक्ति को अपने शरीर
शरीर है।
के साथ जो वो चाहें, वो सदग् ुरु: देखिए, अभी तक समाज में, मीडिया में,
सोशल मीडिया में, हर कोई या तो इसके समर्थन में लेकिन अगर वह कोई नुकसानदायक चीज है जैसे
करने का हक है - क्योंकि बोल रहा है या इसके खिलाफ। क्या कु छ देर के लिए आप अपनी नाक काट रहे हों या कु छ और काट रहे
वो उनका शरीर है। लेकिन हम पक्ष-विपक्ष में न जाकर बस इस मुद्दे को उस तरह हों तो शायद हम आपको रोकने की कोशिश करेंगे।
देख सकते हैं, जैसा यह वास्तव में है? लेकिन अगर आप उस तरह से खुद को नुकसान
अगर वह कोई नुकसान-
नहीं पहुंचा रहे तो यह आपका मसला है जब तक
दायक चीज है जैसे आप काजल: जी हां। कि आप निजी रूप से कु छ करते हैं। अभी सुप्रीम
अपनी नाक काट रहे हों या कोर्ट का निर्णय यही है कि एक व्यक्ति निजी तौर पर
सदग् ुरु: देखिए, मैं कोई पाखं डी नहीं हूं, ठीक है? यह क्या करता है, इससे किसी और को कोई लेना-देना
कुछ और काट रहे हों तो बात साफ़ होनी चाहिए। नहीं है। सरकार को लोगों के बेडरूम में नहीं घुसना
शायद हम आपको रोकने चाहिए, यही कानून है।
जब हम ‘सेक्सुअलिटी’ की बात करते हैं, तो हमें
की कोशिश करें गे। यह समझना चाहिए कि यह चीज प्रकृ ति ने हमें अब, धार्मिक विरोध पर आते हैं। इसमें कु छ भी
इसलिए दी है ताकि कोई जाति या प्रजाति कायम धार्मिक नहीं है। हमें उनके खिलाफ भेदभाव करने
रह सके , वरना ऐसा नहीं हो पाता। हाँ, हम इं सानों की जरूरत नहीं है, उन्हें तं ग करने की जरूरत नहीं है,
के पास शरीर से अधिक दिमाग है, या अगर नहीं है उन्हें जेल में डालने की जरूरत नहीं है। मगर साथ ही,
तो होना चाहिए। इसलिए हमने एक तरह से प्रजनन इसका प्रचार करने की भी जरूरत नहीं है।
की भूमिका को ख़त्म कर दिया और सिर्फ उसके
सुख वाली भूमिका का इस्तेमाल कर रहे हैं। अभी तो जब आपके माता-पिता कु छ कहते हैं, वे अपने
दनि
ु या में काफी हद तक यह सुख ही सेक्सुअलिटी धर्म का हवाला दे सकते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि
है। दरअसल यह सुख भी सेक्सुअलिटी की प्रक्रिया में वह एक सत्ता है। आप उसमें से सत्ता निकाल दीजिए,
इसलिए आया है क्योंकि अगर इसमें सुख नहीं होता बस शब्दों को सुनिए। अगर बात जं चती है तो वैसा
तो शायद आप और मैं पैदा ही नहीं हुए होते। अगर कीजिए। अगर बात नहीं जं चती, तो विनम्रता से
इसमें कोई सुख नहीं होता तो शायद हमारे माता- उनसे कहिए कि, ‘मेरे साथ ऐसा नहीं है।’
खजूर डिलाइट
सामग्री:
खजूर : 8 से 10 (बीज रहित)
सेब :2
नारियल का दू ध : 2 कप
बर्फ : आवश्यकतानुसार
विधि:
इसे परोसने से जरा पहले खजूर को काट लें। सेब को छीलकर मोटा-मोटा कद्दूकस कर लें। अब इन्हें मिक्सर के
जार में डालकर बारीक पीस लें। फिर इसमें कु टी हुई बर्फ और नारियल का दू ध डाल दोबारा अच्छी तरह चला
लें। शेक को तुरंत परोसें, क्योंकि रखने पर यह पेय खट्टा हो सकता है।
खरबूज और के ले का शेक
सामग्री:
खरबूजा : 1 (छोटा)
के ले : 2 (पके हुए)
नारियल का दू ध : 2 कप
शक्कर : 2 कप
विधि:
खरबूज के दो भाग करें और इसके अंदर के सारे बीज निकाल लें। फिर बड़े-बड़े टुकड़ों में काट कर इसका
छिलका उतार लें। अब इसके छोटे-छोटे टुकड़े काटकर उन्हें मिक्सर के जार में डालें; इसी तरह के ले को छील
कर उसके टुकड़े कर जार में डालें। अब इसमें नारियल का दू ध व शक्कर डाल दें। इन सारी चीजों को अच्छी तरह
से मिक्सर में चलाकर पीस लें। अब इसे गिलास में डालकर परोसें।
ह म आपके लिए एक ऐसा अवसर लेकर आए हैं जिससे आप ईशा लहर अगले एक वर्ष तक निःशुल्क प्राप्त
कर सकते हैं। साथ ही आपको मिल सकता है एक आकर्षक इनाम भी। इसके लिए आपको नीचे दिए गए
फेसबुक से
तीन सवालों के जवाब हमें भेजने हैं। आपको यह भी बता दें कि इन सवालों के जवाब इसी अंक में छिपे हैं। बस
पढ़िए, ढूंढ़िए और जीतिए इनाम।
पिछले छः अंकों से लगातार सही उत्तर देने वालों के नाम हैं: मुझे अपने भीतर देखने में मदद मिलती है - प्रेमलता पुरी
कितनी सुं दर व्याख्या है! सदग् ुरु के वीडियो देखने से मुझे अपने भीतर देखने में मदद मिलती है, और साथ ही
डॉ. आभा चतुर्वेदी, जयपुर, ज्योति मिश्रा, अंगुल, विनय कु मार मौर्य, नई दिल्ली
मुझे बहुत शांति और खुशी मिलती है जिससे मैं अब तक अनजान थी।
आपको भी बहुत-बहुत बधाई।
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ईशार्पण
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मौन क्रांति मौन क्रांति
हैदराबाद ब्रदर्स
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मौन क्रांति मौन क्रांति
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मौन क्रांति मौन क्रांति
आठ दिन के मौन कार्यक्रम सम्यमा का आयोजन सदर्न नेवल कमांड कोची में सदग् रुु
सदग् ुरु द्वारा आयोजित सम्यमा कार्यक्रम में कई प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों ने पूरे मौन में रहते हुए सदग् ुरु के
साथ गहन ध्यान क्रियाएँ कीं। 9 फरवरी, कोची, सदर्न नेवल कमांड कोची ने सदग् रुु का स्वागत किया। वहां सदग् रुु ने नौसैनिकों को सं बोधित किया और उनके कई
प्रश्नों के उत्तर दिए।
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मौन क्रांति मौन क्रांति
जल्लिकट्टु में सदग् रुु ईशा योग कें द में सदग् रुु दर्शन
23 फ़रवरी, कोयं बटू र, सदगुरु ने तमिलनाडु के पारं परिक खेल जल्लीकट्टू में भाग लिया। जल्लीकट्टू तमिल सं स्कृ ति का एक
अभिन्न अंग है।
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