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रेल राजभाषा 132 R
रेल राजभाषा 132 R
132वां अंक
(डॉ.ब ण कुमार)
नदे शक, राजभाषा, रे लवे बोड
म
ै ा सक प का
एक सादे समारोह म वे
ववाह-सू म बंध गए।
शखा उसक
आ म नभरता, ख़ब
ू सूरती
और वतं सोच से
भा वत हुई। तब उसे यह
नह ं पता था क म े और
ववाह दो अलग-अलग
शखा ने और बहस करना थ गत कया संसार ह। एक म भावना और दस
ू रे म
और चाय का गलास लेकर कमरे म चल यवहार क ज़ रत होती है । द ु नया भर म
गई। ववा हत औरत का केवल एक व प होता
शखा का शौहर, क पल अपने है । उ ह सहम त- धान जीवन जीना होता
घरवाल से इन अथ से भ न था क है । अपने घर क कारा म वे क़ैद रहती ह।
आमतौर पर उसका सोचने का एक मौ लक हर एक क दनचया म अपनी-अपनी तरह
तर क़ा था। शाद के ख़याल से जब उसने का समरसता रहती है । हरे क के चेहरे पर
अपने आस-पास दे खा, तो कॉलेज म उसे अपने-अपनी तरह क ऊब। हर घर का एक
अपने से दो साल जू नयर बीएससी म पढ़ती ढरा है िजसम आपको फट होना है । कुछ
शखा अ छ लगी थी। सबसे पहल बात औरत इस ऊब पर ग
ंृ ार का मुल मा चढ़ा
यह थी क वह उन सब औरत से एकदम लेती ह पर उनके ग
ंृ ार म भी एकरसता
अलग थी जो उसने प रवार और अपने होती है। शखा अंदाज़ लगाती, सामने वाले
प रवेश म दे खी थीं। शखा का परू ा नाम घर क नीता ने आज कौन-सी साड़ी पहनी
द प शखा था ले कन कोई नाम पछ
ू ता तो होगी और ायः उसका अंदाज़ ठक
वह महज नाम नह ं बताती, मेरे माता- पता नकलता। यह हाल ल प टक के रं ग और
ने मेरा नाम ग़लत रखा है । म द प शखा बाल के टाइल का था। दःु ख क बात यह
नह ं, अि न शखा हूँ। वह कहती। थी क अ धकांश औरत को इस ऊब और
अि न शखा क तरह ह वह हमेशा क़ैद क कोई चेतना नह ं थी। वे रोज़ सब
ु ह
व लत रहती, कभी कसी बात पर, कभी साढ़े नौ बजे सास , नौकर , नौकरा नय ,
कसी सवाल पर। तब उसक तेज़ी दे खने ब च , माल और कु के साथ घर म छोड़
लायक़ होती। उसक व तत
ृ ा से भा वत द जातीं, अपना दन तमाम करने के लए।
होकर क पल ने सोचा वह शखा को पाकर वह लंच पर प त का इंतज़ार, ट .वी. पर
रहे गा। पढ़ाई के साथ-साथ वह पता के बेमतलब काय म का दे खना और घर -भर
यवसाय म भी लगा था, इस लए शाद से के ना ते, खाने— नखर क नोक पलक
पहले नौकर ढूँढ़ने क उसे कोई ज़ रत नह ं सँवारना। चकनी म हला प काओं के प ने
थी। बना कसी आडंबर, दहे ज या नख़रे के पलटना, दोपहर को सोना, सजे हुए घर को
बि क गँग
ू ी और बहर भी। भी नह ं उठाए, वे दोपहर तक कमरे म पड़े
ब च ने बात दाद तक पहुँचा द । रहे । घर भर म कसी ने बेटे को ग़लत नह ं
बीजी एकदम भड़क ग , “अपना काम-धंधा कहा।
छोड़ कर काका जयपुर जाएगा, य , बीवी बीजी एक दशक क तरह वारदात
को सैर कराने। एक हम थे, कभी घर से दे खती रह ं। उ ह ने कहा, हमेशा ग़लत बात
बाहर पैर नह ं रखा। बोलती हो, इसी से दस
ू रे का ख़न
ू खौलता
“और अब जो आप तीथ के बहाने है । शु से जैसी तूने े नंग द , वैसा वह
घूमने जाती ह वह? शखा से नह ं रहा गया बना है । ये तो बचपन से सखानेवाल बात
तीरथ को तू घूमना कहती है ! इतनी ख़राब ह। फर तू बतन उठा दे ती तो या घस
जुबान पाई है तून,े कैसे गुज़ारा होगा तेर जाता।
गह
ृ थी का! उ ह ं के श द शखा के मँह
ु से नकल
“काश गोदरे ज क पनी का कोई ताला गए, “अगर ये रख दे ता तो इसका या
होता मँह
ु पर लगानेवाला, तो ये लोग उसे घस जाता।”
मेरे मँह
ु पर जड़कर चाबी सेफ़ म डाल दे ते, “बदतमीज़ कह ं क , बड़ से बात
शखा ने सोचा, “सच ऐसे कब तक चलेगा करने क अक़ल नह ं है । बीजी ने कहा।”
जीवन। ससुर ने सार घटना सुनकर फर
ब चे शहजाद क तरह बताव करते। 1940 का एक मह
ु ावरा टका दया, “एज यू
ना ता करने के बाद जूठ लेट कमरे म सो, सो शैल यू र प
पड़ी रहतीं मेज़ पर। शखा च लाती, यहाँ क पल ने कहा, पहले सफ़ मुझे
कोई म स वस नह ं चल रह है , जाओ, सताती थीं, अब ब च का भी शकार कर
अपने जठ
ू े बतन रसोई म रखकर आओ। रह हो।
“नह ं रखगे, या
कर लोगी”, बड़ा बेटा शकार तो म हूँ!
हमाक़त से कहता।
न चाहते हुए भी
शखा मार बैठती उसे।
एक दन बेटे ने
पलटकर उसे मार
दया। ह के हाथ से
नह ं, भरपूर घूँसा मँह
ु
पर। होठ के अंदर एक तरफ़ का माँस शकार तो म हूँ, तुम सब शकार हो,
बलकुल चथड़ा हो गया। शखा स न रह शखा कहना चाहती थी पर जबड़ा एकदम
गई। न केवल उसके श द बंद हो गए, जाम था। ह ठ अब तक सूज गया था।
जबड़ा भी जाम हो गया। बतन बेटे ने फर शखा ने पाया, प रवार म प रवार क शत
“मेर ब टया”
अ छा हुआ ब टया
जो तुमने जनम लया! वो घड़ी फर से मेरे जीवन म आएगी!
मेर ब टया क पीड़ा अब मुझे लाएगी!
बहुत मनाने पर तो,
तुम मेर ‘कोख’ म आई। पर एक समय आता है ,
तुम आई तब मैने जाना, जब ब टया ‘सखी’ बन जाती है ।
कमी तु हार मुझे कतनी थी। माँ का सुख-दख
ु बाँटती है
उसके आँसुओं म खद ु रोती है
अ छा हुआ ब टया, उसक गुनगुनाहट म वयं गाती है ।
तुमने जो जनम लया!
कतना अ छा हुआ! कोई होगा मेरा अंतमन पढ़ने को!
अब मेरा आंगन सूना न रहे गा तु हारे बन! कतना अ छा हुआ!
गँज जो, उस ‘सखी’ से वं चत नह रहूँगी म!
ू ेगी कलका रयाँ तु हार रात- दन।
अ छा हुआ ब टया,
दो चो टय म गँथ ू ा,
जो तुमने जनम लया!
तु हारा भोला चेहरा छाया रहे गा
नकल क पना से बाहर,
मेरे घर संसार म।
बस गई मेरे दल म, मेरे संसार म।
और बेट क कलाइयाँ
इसी तरह तमु आना
नह ं सनू ी रहगी राखी के योहार म!
जब भी आऊ म इस संसार म!
तेलग
ु ु, पंजाबी और मलयालम आ द के साथ को लंदन, यू.के. म, सातवाँ व व हंद
फ़जी और अं ेज़ी से बड़ी सं या म श द स मेलन, दनांक 06-09 जून, सन ् 2003
भी समा हत ह। फ़िजयन हंद दे वनागर ईसवी को पारामा रबो, सूर नाम म, आठवाँ
और रोमन दोन ल प म लखी जाती है । व व हंद स मेलन, दनांक 13-15 जुलाई,
फ़िजयन भारतीय क पहल पीढ , ़ िजसने सन ् 2007 ईसवी को यूयाक, अमर का म,
इस भाषा को बोलचाल के प म अपनाया नौवाँ व व हंद स मेलन, दनांक 22-24
इसे ' फ़जी बात' कहते थे। लगभग 70% सतंबर, सन ् 2012 ईसवी को जोहांसबग,
लोग यह भाषा बोलते ह। द ण अ का म, दसवाँ व व हंद
स मेलन, दनांक 10-12 सतंबर, सन ्
सारांश 2015 ईसवी को भोपाल, भारत म, यारहवाँ
थम व व हंद स मेलन, दनांक व व हंद स मेलन, दनांक 18-20
10-12 जनवर , सन ् 1975 ईसवी को अग त, सन ् 2018 ईसवी को पोट लुई,
नागपुर, भारत म, वतीय व व हंद मॉर शस म संप न हुआ। मॉर शस म
स मेलन, दनांक 28-30 अग त, सन ् आयोिजत 11व व व हंद स मेलन म
1976 ईसवी को पोट लुई, मॉर शस म, 12व व व हंद स मेलन को फजी म
तत
ृ ीय व व हंद स मेलन, दनांक 28-30 आयोिजत करने का नणय लया गया था।
अ तूबर, सन ् 1983 ईसवी को नई द ल , उसी अनु म म 12वाँ व व हंद स मेलन
भारत म, चतुथ व व हंद स मेलन, वदे श मं ालय वारा फजी सरकार के
दनांक 02-04 दसंबर, सन ् 1993 ईसवी सहयोग से 15 से 17 फरवर , 2023 तक
को पोट लुई, मॉर शस म, पाँचवाँ व व हंद फजी म आयोिजत कया गया।
स मेलन, दनांक 04-08 अ ैल, सन ् 1996
ईसवी को पोट ऑफ पेन, नडाड एंड यती नाथ चतव
ु द
टोबैगो म, छठा व व हंद स मेलन, सद य हंद सलाहकार स म त,
दनांक 14-18 सतंबर, सन ् 1999 ईसवी सं कृ त मं ालय
धूल या फूल
वाह रे वधाता तन
ू े खब
ू है र त बनाई,
कसी से दया मलन तो कसी से दे द जुदाई।
सोचती हूं जाने कैसा द ु नया का द तरू है ,
एक अजनबी है पास और सारे अपने दरू ह।
िजते धान
क न ठ अनुवाद अ धकार , रे लवे बोड
आ मबल
क प रि थ तयां अनक
ु ू ल होने लगी थी। संजय ने न ता को गले से लगा लया और
न ता ने रा य लोक सेवा आयोग क वह भी काफ भावुक हो गया!
पर ा क तैयार म अपना दन-रात एक अगले दन के समाचार प म न ता
कर दया था उसने आयोग क ल खत एवं संजय के ेम तथा याग क कहानी
पर ा को पास कर लया था एवं छपी हुई थी इस घटना ने स ध कर दया
सा ा कार क तैयार के लए उसके प त था क कतनी भी परे शा नयां हो! कतनी
संजय ने उसे एक को चंग म वेश दला भी सम याएं ह ! आप अपने ल य के लए
दया था नि चत त थ को न ता का न ठा एवं लगन से लगे रहगे तो
सा ा कार हो गया और अब पर ा "आ मबल" क वजह से आपको सफलता
प रणाम आने वाला था न ता के मन म अव य मलेगी।
काफ उथल-पुथल मची हुई थी। संजय जब संजय के माता- पता तथा अ य
न ता से बार-बार कहता क
तु हार मेहनत बेकार नह ं
जाएगी ई वर " म का फल"
अव य दगे, ऐसा कहकर वह
न ता को ढांढस बनाता, इसी
कार क बात चल रह थी
तभी संजय के मोबाइल पर
घंट बजी, यह फोन न ता के
को चंग संचालक जी का था
उ ह ने कहा क संजय जी!
या न ता मैडम से मेर
बात हो सकेगी? बात म गजब उ साह था! र तेदार को यह बात पता चल तब सभी
संजय ने कहा हां! य नह ं! और फोन लोग न ता एवं संजय से मलने शहर आए
न ता को दे दया, तब संचालक महोदय ने आज वे सभी समझ गए थे क ' श ा क
कहा! मैडम आपने 'इ तहास' पढ़ाते-पढ़ाते ताकत या है ! इसके बाद संजय के गांव म
"इ तहास" बना दया है ! आपने रा य लोक जो भी बहू-बे टयां कूल कॉलेज म अपनी
सेवा आयोग क पर ा म दे श क इ छा के बावजद ू वेश नह ं ले पा रह थी
ावी य सूची म सातवां थान ा त कया अब सभी अ भभावक अपनी बहू-बे टय को
है ! जब न ता ने यह सन
ु ा! तो उसका गला श त करने के लए जाग क हो गये थे,
अव ध हो गया ने से अ ु क अ वरल अब वे सभी श ा के मह व को समझ गये
धार बह नकल ! और उसने भावुक होते हुए थे।
अपने प त संजय के चरण पश कए और जलज कुमार गु ता
संजय को अपनी सफलता क बात बताई! नयं क/प रचालन/पि चम म य रे लवे
से पहले ह अं ेज के दांत ख टे कर दए
सुचत
े ा कृपलानी - भारत क पहल म हला थे। घुड़सवार , तलवारबाजी और तीरं दाजी म
मु यमं ी पारं गत रानी चेन मा ने अकेले ह अं ेजी
जून 1908 म पंजाब के अंबाला शहर शासक के त व ोह क घोषणा कर द
म ज मी सुचते ा कृपलानी भारत क पहल थी। ले कन वह अ धक समय तक अं ेज
म हला मु यमं ी बनी थीं। उनके राजनी तक से लोहा नह ं संभाल पा और 21 फरवर
जीवन का सफर आसान न था, य क 1829 को अं ेज से लड़ाई के दौरान
पता क मृ यु के बाद वीरग त को ा त हु ।
उन पर घर प रवार क
िज मेदार आ गई रानी अ ह याबाई हो कर - बहादरु रानी,
थी। ले कन भारत क कुशल शासक
वतं ता के बाद म वह ’’ई वर ने मझ
ु े जो िज मेदार स पी
राजनी त म स य है , उसे मुझे नभाना है । साथ ह हर उस
हो ग । उ ह ने काय के लए म िज मेदार हूं। मुझे उसका
बनारस हंद ू जवाब ई वर को
व व व यालय म इ तहास क व ता के दे ना है ।’’ अपने
तौर पर भी काय कया। कां ेस से अलग प रवार के 27
होने के बाद उ ह ने अपनी कसान मजदरू लोग को खोने
पाट बनाई और 1962 म वधानसभा का के बाद भी इस
चन
ु ाव लड़ा और वह उ र दे श क नार शा सका ने
मु यमं ी बन ग । सुचत
े ा उन म हलाओं म जा और स ा
से ह जो गांधी जी के काफ कर ब रह ं और क बागडोर को
कई आंदोलन ने उ ह ने भाग लया और बखब
ू ी संभाला।
कई बार जेल क सजा भी काट । शव भ त अ ह याबाई हो कर का ज म
31 मई 1725 म हुआ था। हालां क इनके
रानी क रू चेन मा - टश ई ट इं डया ं े एक साधारण यि त
पता मानकोजी शद
कंपनी के खलाफ सश व ोह का नेत ृ व थे, ले कन इनका ववाह इंदौर के सं थापक
भारत के कनाटक रा य म रानी म हार राव हो कर के पु खंडरे ाव के साथ
चेन मा का नाम बड़े ह अदब से लया हुआ था। ऐसे म अ ह याबाई अपने ससुर
जाता है । कनाटक से राजकाज क श ा लया करती थीं।
के बेलगाम के िजसने उ ह आगे चलकर एक शा सका के
पास ककती प म स ध कर दया। इ ह ने अपने
नामक गांव म शासनकाल म जा के हत के लए हमेशा
ज मीं रानी काय कया। तो वह ं अ ह याबाई हो कर ने
चेन मा ने झांसी सदै व अपने शासन क र ा के लए सेना
क रानी ल मीबाई को अ -श से सुसि जत रखा। ब च
छायावाद और उ र-
छायावाद का य-धारा के
पुरोधा महा ाण सूयकांत
पाठ ‘ नराला‘ ने अपनी
क वता म कृ त के नवल
ग
ंृ ार और मादक रमणीयता
को प रल त करके उसे
फूल हुई सरस के रं ग क पील साड़ी पहने वसंत के आगमन क सच
ू ना माना है । जब
हुए और बेला क गंध-सी महकती वसंत के मायामय कृ त के नवल ग
ंृ ार और
वागत हे तु उ सुक तीत होती है ः- मादकर रमणीयता को प रल त करके
उससे वसंत के आगमन क सूचना माना
आया वसंत आया वसंत है । जब मायामय कृ त प रव तत प-
छाई जग म शोभा अन त ग
ंृ ार के साथ वसुधा पर अवत रत होती है
सरस खेत म उठ फूल तब वसंत के आमन का व णम ण होता
बौरे आम म उठ झल
ू है ः-
बेला म फूले नए फूल
पल म पतझड़ का हुआ अंत लता मक
ु ु ल हार गंध भार भर
आया वसंत आया वसंत बह पवन बंद मंद मंदतर
जागी नयन म बन
छायावाद के आधार- तंभ जयशंकर यौवन क माया
साद ने वसंत के प रवतनपरक एवं स ख वसंत आया
सज
ृ ना मक दोन ह प का च ण कया
है । उनके का य म कारांतर से वसंत को ग तवाद का य-धारा के मुख
वषपायी शव क भाँ त जहां एक ओर क व केदारनाथ अ वाल को वसंती बयार से
ी म तु से उ प न होने वाले कालकूट लहलहाता कृ त का कण-कण हास- वलास
वष को पान करते हुए दखाया गया है वह ं म त लन तीत होता है । उनको संपूण
दसू र ओर पादप लताओं म नवंकुर एवं सिृ ट वसंतागमन से मु दत होकर
ग तवाद का य-
धारा के संवाहक यात
क व नागाजुन य य प नई
क वता के व ता ह तथा प
वसंत के आते ह उनका
कृ त- ेम भी जागत
ृ हो
जाता है । वासंती सौ दय क
इस मधरु वेला म कव
आ -मंजर के इठलाते हुए
संसद य राजभाषा स म त क दस
ू र उप-स म त वारा कए गए व भ न
रे ल कायालय एवं सं थान म राजभाषा नर ण के य।
संतोष कुमार
बेट से घर पता का,बसता कहां "सल म"
न सग अधी क
ये कह के िज दगी क , हक़ क़त चल गई।
मंडल रे ल च क सालय भोपाल,
सल म खान,
पि चम म य रे लवे
व र ठ लोको पॉयलट
बजट और म यम वग
सेवा नव ृ यां
वो खश
ु नसीब ह
वो खश
ु नसीब ह क
िजनके घर ह बे टयाँ।
बेट से कसी तरह
न कमतर ह बे टयाँ।
मत कैद कर के रखो
इनको घर के अंदर-
अब द ु नया को बदल रह ं
पढ़कर ह बे टयाँ।
मिु कल वतन पे आए
तो तलवार उठाकर-
आती वो ल मीबाई
सी बढ़कर ह बे टयाँ।
बचे पाल क तरह ी शवनाथ साद एवं ीमती रे खा शमा, सहायक
नदे शक/राजभाषा लगभग 37 साल क रे ल सेवा के
जो मौका मले तो-
प चात ् 28.02.23 को सेवा नव ृ हुए। अपनी सेवा के
चढ़ जातीं अब एवरे ट दौरान उ होन हंद के योग- सार म सराहनीय
के ऊपर ह बे टयाँ। योगदान दया। उनके आगामी जीवन के लए
वो क पना चावला सी राजभाषा नदे शालय क ओर से हा दक शुभकामनाएं।
अ तर म जाती।
ह मत म कई लोग
से बढ़कर ह बे टयाँ।
पर लोग के दःु ख दे खकर
आती ह ले के यार।
म रयम कभी टे रेसा सी
बनकर ह बे टयाँ।
नह ं ह बोझ ये क
इनसे जग हुआ रौशन।
दौलत जहाँ क धरती
का जेवर ह बे टयाँ।
डॉ. अनरु ाग माथरु
च धरपरु , द ण पव
ू रे लवे
बेट का वदा
आज बेट जा रह है , अपने घर झूल चल हो रानी,
मलन और वयोग क
द ु नया नवीन बसा रह है । मेरा गव, समय के चरण
पर कतना बेबस लोटा है ,
मलन यह जीवन काश मेरा वैभव, भु क आ ा पर
वयोग यह युग का अँधेरा, कतना, कतना छोटा है ?
उभय द श कादि बनी, आज उसाँस मधुर लगती है ,
अपना अमत
ृ बरसा रह है । और साँस कटु है , भार है ,
तेरे वदा दवस पर,
यह या, क उस घर म बजे थे, ह मत ने कैसी ह मत हार है ।
वे तु हारे थम पजन,
यह या, क इस आँगन सुने थे, कैसा पागलपन है ,
वे सजीले मद
ृ ल
ु नझुन, म बेट को भी कहता हूँ बेटा,
यह या, क इस वीथी कड़ुवे-मीठे वाद व व के
तु हारे तोतले से बोल फूटे , वागत कर, सहता हूँ बेटा,
यह या, क इस वैभव बने थे, तुझे वदाकर एकाक
च हँसते और ठे , अपमा नत-सा रहता हूँ बेटा,
दो आँसू आ गये, समझता हूँ
आज याद का खजाना, उनम बहता हूँ बेटा,
याद भर रह जायगा या?
यह मधुर य , सपन बेटा आज वदा है तेर ,
के बहाने जायगा या? बेट आ मसमपण है यह,
जो बेबस है , जो ता ड़त है ,
गोद के बरस को धीरे -धीरे उस मानव ह का ण है यह।
भूल चल हो रानी, सावन आवेगा, या बोलँ ग
ू ा
बचपन क मधुर ल कूक के ह रयाल से क याणी?
तकूल चल हो रानी, भाई-ब हन मचल जायगे,
छोड़ जा नवी कूल, ला दो घर क , जीजी रानी,
नेहधारा के कूल चल चल हो रानी, महद और महावर मानो
मने झूला बाँधा है, ससक ससक मनुहार करगी,
भाई के जी म उ ठे गी कसक,
नाचती मेरे आंगन म न ह करण
सखी ससकार उठे गी,
ह क रौशनी मेर लाडल
माँ के जी म वार उठे गी,
ब हन कह ं पुकार उठे गी! दे खो पेि सल से कागज पे कस यान से
लखती बाहर खड़ी है मेर लाड़ल
तब या होगा झम
ू झम
ू
जब बादल बरस उठगे रानी? पापा उठ जाओ अब चाय पी लो गरम
कौन कहे गा उठो अ ण तम
ु सुनो, मझु से फर कह रह मेर लाड़ल
और म कहूँ कहानी,
कैसे चाचाजी बहलाव, या क ं कॉि प टशन क को चंग म अब
चाची कैसे बाट नहार? पढ़ने को जा रह मेर लाड़ल
कैसे अंडे मल लौटकर,
च डयाँ कैसे पंख पसारे ? सन
ु लया रब ने एक कॉलेज म
नौकर पा गई है मेर लाडल
आज वास ती ग
बरसात जैसे छा रह है । रो रहा हूं मगर ख़ुश हूं साजन के घर
मलन और वयोग क डोल म जा रह मेर लाड़ल
श ण काय म
ीमती श शबाला एवं ीमती पु पलता माटा, सहायक नदे शक/राजभाषा नदे शालय/रे लवे बोड ने क य अनुवाद
यूरो, राजभाषा वभाग, गह
ृ मं ालय वारा आयोिजत उ च तर य अनुवाद श ण काय म म भाग लया।
िश ा और रा टीय पु न थान