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ब टया वशेषांक

132वां अंक

जनवर -माच 2023

रे ल भवन, रायसीना रोड, नई द ल


स पादक य

धान स पादक क कलम से......

‘रे ल राजभाषा’ का 131 वां अंक ’ ब टया वशेषांक’ के प म आपके सम तुत है ।

आशा है पाठक को यह अंक रोचक एवं ानवधक स ध होगा‫׀‬

हंद प का का शत करने का उ दे य, रे ल क मय क हंद म लेखन तभा को

उजागर करना है । इससे हंद के योग- सार को भी बढ़ावा मलता है ।


रे ल राजभाषा के इस ’ ब टया वशेषांक’ म पु ी/ ी संबंधी कई साम ी संक लत ह, जैसे
कहा नयां, क वताएं, लेख आ द। इनम बे टय के साथ र त का अहसास कराती क वताएं/
कहा नयां, बेट के साथ एक अनूठ रे ल या ा, म हला दवस पर लेख आ द शा मल ह। इसके
अ त र त, रोचकता एवं वै वध य के लए अ य वषय पर भी रचनाएं शा मल क गई ह, जैसे
सुर ा क बढ़ती आव यकता म टे नोलॉजी का योग, बसंत ऋतु पर लेख, फजी म आयोिजत
12 वां व व हंद स मेलन और राजभाषा संबंधी व भ न ग त व धय क झल कयां आ द।
इस अंक पर आपक त या एवं बहुमू य सुझाव क हम ती ा रहे गी।

होल क शुभकामनाओं के साथ...

(डॉ.ब ण कुमार)
नदे शक, राजभाषा, रे लवे बोड

ै ा सक प का

वष: 2023 अंक: 132 जनवर -माच, 2023


संर क इस अंक म
ी अ नल कुमार लाहोट
अ य एवं मु य कायपालक . सं. शीषक लेखक/क व पृ ठ
अ धकार , रे लवे बोड
1. सरु ा क बढ़ती आव यकता डॉ. ब ण कुमार 2
मागदशक म टे नोलॉजी का योग
द पक पीटर गे यल 2. बोलने वाल औरत ममता का लया (संकलन) 6
धान कायपालक नदे शक 3. सीख डॉ. दमयंती सैनी 12
(औ यो गक संबंध)
4. मेर ब टया अ का संह प रहार 13
धान संपादक 5. व व हंद स मेलन यती नाथ चतव
ु द 14
डॉ. ब ण कुमार
6. मोबाइल म खोई ब टया र वबाला गु ता 17
नदे शक, राजभाषा, रे लवे बोड
7. धूल या फूल िजते धान 18
संपादक
8. आ मबल जलज कुमार गु ता 19
रसाल संह
संयु त नदे शक, राजभाषा 9. आकाश म उ मु त ममता जैन 23
होके उड़ान भरने दो
सहायक संपादक
10. बनन म बागन म डॉ. राजेश हजेला 28
श श बाला
बगरयो बसंत
सहायक नदे शक,
राजभाषा (प का) 11. रे लवे बोड राजभाषा काया वयन 32
स म त क 145वीं बैठक क झल कयाँ
संपादन सहयोग 12. संसद य राजभाषा स म त क दस
ू र 33
िजते धान उप-स म त क नर ण क झल कयां
क न ठ अनव
ु ाद अ धकार
13. राजभाषा वभाग म आयोिजत 34
पता:- हंद कायशाला क झल कयां
राजभाषा नदे शालय 14. राजभाषा वभाग म आयोिजत 35
रे ल मं ालय (रे लवे बोड) अंतरा य म हला दवस क झल कयां
नई द ल -110001 15. जास ाक भारत क बे टयां संतोष कुमार 36
ई-मेल:
16. डर कस बात का? शैले क पल 37
patrikahindi@gmail.com
17. गजल: बेट सल म खान 37
18. होल सभु ा कुमार चौहान 38
19. रा य बा लका दवस संकलन 40
20. थम भारतीय म हला संकलन 41
21. काश! मेर भी ब टया होती नीतेश कुमार सोने 42
22. बजट और म यम वग शंकर कुमार 43
23. वो खुशनसीब ह डॉ. अनरु ाग माथुर 45
24. बेट का वदा माखन लाल चतव ु द 46
25. मेर लाडल मोद कुमार भ ट नीलांचल 47
26. न या ब टया क पहल नरो म नामदे व 48
रे ल या ा
आवरण का च 27. श ा और रा य पन
ु थान डॉ. च कांत तवार 50
च बाजपेयी शमा
रे ल राजभाषा
लेख

सरु ा क बढ़ती आव यकता


म टे नोलॉजी का योग

पछले कुछ वष से राजनै तक या खरु ाफात करने जा रहा है , यह कैसे


जाना जा सकता है । ले कन तकनीक िजस
मु द पर दे श भर म हो रहे हंसक उप व
तेजी से वक सत हो रह है उसे दे खते हुए
ने सुर ा क चंताएं बढ़ा द ह। चाहे वह
यह चीज भी मुि कल नह ं रह जाएगी। य
शाह न बाग का आंदोलन हो या द ल के
तो तकनीक क बदौलत आज कर ब कर ब
दल दहला दे नेवाले दं गे- इनके बाद इस
हर यि त कसी न कसी कार क
बात क ती ता से आव यकता महसस
ू क
नगरानी के दायरे म है । उदाहरण के लए,
जा रह है क दं गाइय , अपरा धय ,
लोग के बक खात , उसम लेन-दे न, उस
आतंकवा दय और अवैध घस
ु पै ठय पर
यि त क खर द-फरो त क वृ य से
कड़ी नज़र रखी जाए।
संबं धत जानकार , िजसे वैध-अवैध तर क
हंसा और अपराध को रोकने के
से हा सल कर वपणन (माक टंग) एज सयाँ
लए सरकार और शासन क एज सयाँ,
उसका इ तेमाल करती ह; मोबाइल म
जैस,े सेना, पु लस, गु तचर, वभ न
कससे, कहाँ, कब,
या बातचीत हुई इसक
नगरानी व जाँच एज सयाँ आ द लगातार
टै पंग। ले कन इसम नाग रक वतं ता और
स य रहती ह। उनक सहायताथ सुर ा
नजता के मामले आड़े आते ह। वै ा नक
संबंधी वभ न तकनीक भी तेजी से
और तकनीक गत के उपयोग को
वक सत हो रह ह। जो बड़े पैमाने के
सामािजक-शासक य-नै तक मू य और
उप व होते ह उनके तो कुछ संकेत या
ावधान के साथ संतुलन बठाना पड़ता है ।
ल ण पहले से दखने लगते ह, और य द
इस लए रा य सुर ा के लए ौ यो गक
पया त सतकता और त परता बरती गई तो
का वैध उपयोग आव यक है ।
उनक रोकथाम के उपाय कर पाना संभव
अपराध नयं ण के लए नगरानी
होता है । ले कन छोटे तर के उप व के
उपकरण के म म
पहले से कसी कार के ल ण दखाई नह ं
सबसे पहला
पड़ते। या उ ह भी तकनीक क मदद से
थान सीसीट वी
रोका जा सकता है ? यादातर लोग इसका
का है जो सबसे
जवाब ना म दगे य क कसी अपराधी या
छोटा और अभी भी सबसे
षड़यं कार के मन म या चल रहा है , वह

132 वां अंक 2 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

असरदार है । यह अपने दायरे म हो रह च लए मान लेते ह क अपराधी ने


घटनाओं क वी डयो रकॉड कर लेता है । लोकेशन ऑफ करके रखा या अपराध के
ले कन अपराधी उसको चकमा दे ने के लए दौरान फोन का उपयोग नह ं कया, या
चेहरा छुपा लेते ह या वी डयो कैमरे को फोन को ह न ट कर दया। तब अपराधी
दस
ू र तरफ मोड़ दे ते ह या तोड़ ह दे ते ह। को कैसे पकड़ा जा सकेगा? अमे रका क
जैस,े जेएनयू म हुई घटनाओं म उप वय पटागन सं था एक ऐसा उपकरण वक सत
ने नकाब पहन लए थे, बंगलोर म दं गाइय कर रह है जो दल क धड़कन से यि त
ने वी डयो कैमर को खाल द वार क ओर क पहचान कर सकेगा। हर यि त के दल
मोड़ दया और अ त र त सावधानी के लए क धड़कन का पैटन अ वतीय होता है ,
उ ह ने नकाब भी पहन रखे थे। अब तो वैसे ह
सम या आगे बढ़ गई है क वी डयो ह जैसे हरे क
उतने व वसनीय नह ं रह पा रहे ह। ‘डीप क उं गल
फेक’ टे नोलॉजी नकल वी डयो के धंधे म क छाप
ां तकार प रवतन लेकर आई है। इस अलग
टे कनोलॉजी से ऐसे नकल वी डयो बनने होती है ।
लगे ह िजनको वा त वक से फक कर पाना पटागन
असंभव सा हो चला है । का यह
तकनीक और अपराधी लगातार एक उपकरण
तयो गता म चलते ह- तू डाल-डाल म इ ारे ड लेजर क मदद से 200 मीटर क
पात-पात। सीसीट वी से बचने के लए दरू से ह दल क धड़कन को रकॉड कर
अपराधी ने नकाब लेगा, कपड़ के ऊपर से ह । उसके साथ
पहन लये या कैमरे को उसक लोकेशन, समय आद सबकुछ
दस
ू र तरफ मोड़ डेटाबेस म सरु त रख लेगा। अपराधी के
दया, या सीसीट वी लए छुपना मिु कल होगा।
के वी डयो क ह आजकल सोशल मी डया का जमाना
व वसनीयता सं द ध हो गई है । हर कोई
तो सहायता के लए अगला कसी न कसी
सोशल मी डया
फेसबुक, गूगल,
उपकरण मौजूद है - माटफोन। माटफोन यू यूब, वटर
का गूगल मै स डेटा सं द ध क एक-एक आद लैटफॉम
ग त व ध, कब-कहाँ- कस थान पर था का उपयोग करता
वगैरह क चग
ु ल कर दे गा। बस उसे है । वहाँ यि त क ग त व धयाँ उसके बारे
अपराधी से ज त करने क दे र होगी। म बहुत कुछ जा हर करती ह। ग त व धय

132 वां अंक 3 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

के आधार पर अपराधी क पहचान कर और पैन नंबर के ज रए यि त या समह



लेना, उसक त वीर बना लेना या कोई के व ीय लेन-दे न को ै क करना आसान
अनजानी त वीर का सरा पकड़कर उस हो गया है । व ीय लेन-दे न के आँकड़ के
यि त का सारा आगा-पीछा पता लगा लेना भंडार म डेटा एना ल ट स क मदद से
इसके लए जाँच एज सयाँ ल बे समय से पैटन क तलाश कर मनी लॉि ग
ं और
यासरत रह ह। अब अमे रका के ह एक वदे शो से अवैध धन क आवक को पकड़ा
टाटअप वारा वक सत ि लयर यू नामक जा रहा है । इसी से जुड़ी चीज है
एक एि लकेशन सॉ टवेयर यह ‘ फनटे क’ (फाइन शयल टे नोलॉजी) यानी
सब करने म समथ है । व ीय तकनीक। आज अ धकांश व ीय
त वीर के बल पर यि त क काय तकनीक पर आ त हो गए ह। बक
पहचान क सु वधा एक म कोर ब कंग सॉ यूशन फनटे क का ह
सी मत हद तक गूगल सच म उदाहरण है । नगदर हत भुगतान के लए
भी सच भीम, गूगल पे, पेट एम आ द इसी े णी म
बाई आते ह। भारत इसको अपनाने म बहुत
इमेज वारा उपल ध है । ि लयर यू का आगे है । यह वमु करण के अनसुने लाभ
उ त सॉ टवेयर फेसबुक, यू यूब, वेनमो म से एक है । थानीय स जी व े ता भी
और अ य लाख वेबसाइट को खंगालता है BHIM या पेट एम या गूगल पे से भुगतान
और उस त वीर या यो ता से संबं धत लेते ह और इसका मतलब है क हर जगह
सार साम ी को एक सचबल डेटाबेस म ले अपने डिजटल पद च न छोड़ते जाना। एक
आता है । इसके लए वह कृ म मेधा बार लेन-दे न के बाद म उन पद च न को
(आ ट फ शयल इंटे लजस) क मदद लेता मटाना लगभग असंभव है । इन पद च न
है । अमे रका म व भ न पु लस बल वारा के सहारे हर आ थक गैरकानन
ू ी कारोबार को
इसका बड़े पैमाने पर उपयोग कया जा रहा पकड़ा जा सकता है । बेनामी प रसंप य ,
है ।
आँकड़ा व लेषण शा (डेटा
एना ल ट स) आज एक वतं शा का
प का प ले चक
ु ा है और ान और
यवहार के अनेकानेक े म इसका
उपयोग होता है । अपराध क द ु नयाँ म,
खासकर आ थक अपराध और आतंकवाद
ग त व धय म लगे यि तय और समूह
से संबं धत त तीश और रोक-थाम म इस
शा का उपयोग बेहद सफलतापूवक कया पैस क हे रा-फेर , काले धन को सफेद
जा रहा है । आज आधार व श ट आईडी करने के दन लद जाएंगे।

132 वां अंक 4 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

सड़क पर टोल क वसूल के लए ज रए सरु ा अ धका रय के पास एक एक


फा टै ग का एक लाभ यह मला है क नाग रक के एक एक या-कलाप क
इससे वाहन क ै कंग आसान हो गयी है। जानकार होगी। क पना क िजए य द कोई
टोल भुगतान के लए लप पो ट म लगा सरकार बुरे इराद से अपने नाग रक पर
ससर आपक ग त व ध को भी दज कर इन तकनीक का उपयोग करने लगे तो?
लेता है । सं द ध वाहन का छुपकर नकल इस लए गोपनीयता क चंताएँ भी
जाना बहुत मुि कल है । जैसे अपरा धय को मह वपूण ह।
उनके मोबाइल फोन के मा यम से ै क ऐसा लगता है क जाज ऑरवेल के
कया जाता है , वैसे ह उनके वाहन को स ध उप यास ‘1984’ क उि त
फा टै ग वारा नगरानी म रखा जा सकता
च रताथ होनेवाल है - “Big brother is
है ।
watching you.” ले कन उसके पीछे
अब तो तकनीक को उपयोग कसी
राजनै तक वचारधारा का दरु ा ह या
इलाके या समुदाय क नगरानी म भी
कया जाना संभव होनेवाला है । एक पूरे राजनै तक नयं ण क मह वाकां ा न
इलाके या शहर के वशाल डेटाबेस पर एक होकर जनता क सुर ा का उ दे य होगा--
ए गॉ रदम म मशीन ल नग का उपयोग दं गाइय , अपरा धय , आतंकवा दय और
करके उन इलाक
या थान क
भ व यवाणी क जा
सकेगी जहाँ अपराध
होने क संभावना
है । (इस वषय पर
अं ेजी म एक
फ म आई थी
‘माइनॉ रट रपोट’,
िजसम ी- ाइम
तकनीक के साथ
मनो व ान का इ तेमाल करके पूवानुमान अवैध लोग पर कड़ी नजर। और वह नजर
लगाया जाता था क कहाँ कोई आतंकवाद
गे टापो या सी े ट पु लस क नह ं, खु फया
वारदात होनेवाल है ।) धीरे धीरे हम
टे नोलॉजी क होगी।
सव यापी कनेि ट वट वाले माट शहर क
ओर बढ़ते जा रहे ह जहाँ इ टरनेट ऑफ डॉ. ब ण कुमार
थं स (IoT) कायरत होगा और सव
नदे शक/राजभाषा, रे लवे बोड
ए बेडड
े संवेदक (ससस) के नेटवक के

132 वां अंक 5 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
कहानी

“यह झाडू सीधी


“आज तो मने माफ़ कर दया, फर
कसने खड़ी क ?
भी कभी झाडू खड़ी न मले, समझी!”
बीजी ने योर चढ़ाकर वकट मु ा म पूछा।
इस बात म कोई तुक नह ं है बीजी,
जवाब न मलने पर उ ह ने मीरा को
झाडू कैसे भी रखी जा सकती है ।
धमकाया, इस तरह फर कभी झाडू क
बीजी झंझ
ु ला गई। कैसी जा हल और
तो...”
िज़ द लड़क ले आया है काका। लाख बार
वे कहना चाहती थीं क मीरा को
कहा था इस कुदे सन से याह न कर, पर
काम से नकाल दगी पर उ ह पता था
नह ं, उसके सर पर तो भूत सवार था।
नौकरानी कतनी मिु कल से मलती है ।
शखा को हँसी आ गई। बीजी अपने
फर मीरा तो वैसे भी हमेशा छोडू-छोडूँ मु ा
को बहुत सह और समझदार मानती ह,
म रहती थी।
जब क अकसर उनक बात म कोई तक
'मने नह ं रखी, मीरा ने ऐंठकर जवाब
नह ं होता।
दया।
उसे हँसते दे खकर बीजी का ख़न

' य रखी थी! तझ
ु े इतना नह ं मालम

खौला गया।
क झाडू खड़ी रखने से घर म द ल दर
इसे तो बलकुल अक़ल नह ं, उ ह ने
आता है , क़ज़ बढ़ता है , रोग जड़ पकड़ लेता
मीरा से कहा।
है ।
बीजी चाय पएँगी? शखा ने पूछा।
“यह तो मने कभी नह ं सुना।
बीजी उसक तरफ़ पीठ करके बैठ
“जाने कौन गाँव क है तू। माँ के घर
रह ं। शखा क बात का जवाब दे ना वे
से कुछ भी तो सीखकर नह ं आई। काके का
ज़ र नह ं समझतीं। वैसे भी उनका ख़याल
काम वैसे ह ढ ला चल रहा है , तू और झाडू
था क शखा के वर म ख़श
ु ामद क कमी
खड़ी रख, यह सीख है तेर !
रहती है ।
मेरा ख़याल है झाडू ग़स
ु लख़ाने के
शखा ने चाय का गलास उनके आगे
बीचोबीच भीगती हुई, पसर हुई छोड़ दे ने से
रखा तो वे भड़क ग , वैसे ह मेरा क़ ज़ के
द ल दर आ सकता है । ती लयाँ गल जाती
मारे बरु ा हाल है , तू चाय पला- पलाकर
ह, र सी ढ ल पड़ जाती है और गंद भी
मझ
ु े मार डालना चाहती है ।
कतनी लगती है ।

132 वां अंक 6 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

एक सादे समारोह म वे
ववाह-सू म बंध गए।
शखा उसक
आ म नभरता, ख़ब
ू सूरती
और वतं सोच से
भा वत हुई। तब उसे यह
नह ं पता था क म े और
ववाह दो अलग-अलग
शखा ने और बहस करना थ गत कया संसार ह। एक म भावना और दस
ू रे म
और चाय का गलास लेकर कमरे म चल यवहार क ज़ रत होती है । द ु नया भर म
गई। ववा हत औरत का केवल एक व प होता
शखा का शौहर, क पल अपने है । उ ह सहम त- धान जीवन जीना होता
घरवाल से इन अथ से भ न था क है । अपने घर क कारा म वे क़ैद रहती ह।
आमतौर पर उसका सोचने का एक मौ लक हर एक क दनचया म अपनी-अपनी तरह
तर क़ा था। शाद के ख़याल से जब उसने का समरसता रहती है । हरे क के चेहरे पर
अपने आस-पास दे खा, तो कॉलेज म उसे अपने-अपनी तरह क ऊब। हर घर का एक
अपने से दो साल जू नयर बीएससी म पढ़ती ढरा है िजसम आपको फट होना है । कुछ
शखा अ छ लगी थी। सबसे पहल बात औरत इस ऊब पर ग
ंृ ार का मुल मा चढ़ा
यह थी क वह उन सब औरत से एकदम लेती ह पर उनके ग
ंृ ार म भी एकरसता
अलग थी जो उसने प रवार और अपने होती है। शखा अंदाज़ लगाती, सामने वाले
प रवेश म दे खी थीं। शखा का परू ा नाम घर क नीता ने आज कौन-सी साड़ी पहनी
द प शखा था ले कन कोई नाम पछ
ू ता तो होगी और ायः उसका अंदाज़ ठक
वह महज नाम नह ं बताती, मेरे माता- पता नकलता। यह हाल ल प टक के रं ग और
ने मेरा नाम ग़लत रखा है । म द प शखा बाल के टाइल का था। दःु ख क बात यह
नह ं, अि न शखा हूँ। वह कहती। थी क अ धकांश औरत को इस ऊब और
अि न शखा क तरह ह वह हमेशा क़ैद क कोई चेतना नह ं थी। वे रोज़ सब
ु ह
व लत रहती, कभी कसी बात पर, कभी साढ़े नौ बजे सास , नौकर , नौकरा नय ,
कसी सवाल पर। तब उसक तेज़ी दे खने ब च , माल और कु के साथ घर म छोड़
लायक़ होती। उसक व तत
ृ ा से भा वत द जातीं, अपना दन तमाम करने के लए।
होकर क पल ने सोचा वह शखा को पाकर वह लंच पर प त का इंतज़ार, ट .वी. पर
रहे गा। पढ़ाई के साथ-साथ वह पता के बेमतलब काय म का दे खना और घर -भर
यवसाय म भी लगा था, इस लए शाद से के ना ते, खाने— नखर क नोक पलक
पहले नौकर ढूँढ़ने क उसे कोई ज़ रत नह ं सँवारना। चकनी म हला प काओं के प ने
थी। बना कसी आडंबर, दहे ज या नख़रे के पलटना, दोपहर को सोना, सजे हुए घर को

132 वां अंक 7 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

कुछ और सजाना, सास क जी-हुज़रू करना म एक शांत और सु चपण


ू जीवन
और अंत म रात को एक जड़ नींद म लुढ़क जीना चाहता हूँ।
जाना। शखा अंदर तक जल गई इस उ र
क पल के घर आते ह बीजी ने उसके से य क यह उ र हज़ार नए न को
सामने शकायत दज क , “तेर बीवी तो ज म दे रहा था। उसने न को होठ के
अपने को बड़ी चतुर समझती है । अपने आगे ि लप से दबाया और सोचा, अब वह
कसी क चलने नह ं दे ती। खड़ी-खड़ी जबाब बलकुल नह ं बोलेगी, यहाँ तक क ये सब
टकाती है ।” उसक आवाज़ को तरस जाएँगे।
क पल को ग़ ु सा आया। शखा को ले कन यह न चय उससे नभ न
एक अ छ प नी क तरह चप
ु रहना पाता। बहुत ज द कोई-न-कोई ऐसा संग
चा हए, ख़ासतौर पर माँ के आगे। इसने घर उपि थत हो जाता क वालामख ु ी क तरह
को कॉलेज का डबे टंग मंच समझ रखा है फट पड़ती और एक बार फर बदतमीज़
और माँ को तप का व ता। उसने कहा, और बदजुबान कहलाई जाती। तब शखा
म उसे समझा दँ ग
ू ा, आगे से बहस नह ं बेहद तनाव म आ जाती। उसे लगता घर म
करे गी। जैसे टॉयलेट होता है ऐसे एक टॉकलेट भी
उलट खोपड़ी क है बलकुल। वह होना चा हए जहाँ खड़े होकर वह अपना
समझ ह नह ं सकती'' माँ ने मँह
ु ग़ब
ु ार नकला ले, जंजीर खींचकर बात बहा
बचकाया।
रात, उसने कमरे म शखा से कहा,
तुम माँ से य उलझती रहती हो दन-भर!
“इस बात का वलोम भी उतना ह सच है ।
“हम वलोम-अनल
ु ोम म बात नह ं कर रहे
ह, एक संबंध है िजसक इ ज़त तु ह
करनी होगी।
ग़लत बात क भी!
माँ क कोई बात ग़लत नह ं होती।
“कोई भी इंसान परफे ट नह ं हो
सकता।”
क पल तैश म आ गया, तुमने माँ को
इ परफ़े ट कहा। तु ह शम आनी चा हए।
तुम हमेशा यादा बोल जाती हो और ग़लत
कलाकृ त: शां तलाल जोशी
भी।
तुम मेर आवाज़ बंद करना चाहते दे और एक स य शांत मु ा से बाहर आ
हो। जाए। उसे यह भी बड़ा अजीब लगता है क

132 वां अंक 8 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

वह लगातार ऐसे लोग से मख़


ु ा तब है ख़ब
ू सरू ती को द मक क तरह चाट रहा था।
िज ह इसके इस भार -भरकम श दकोश क क पल चाहता था क शखा एक अनुकूल
ज़ रत ह नह ं है । घर को सुचा प से प नी क तरह ट न का बड़ा ह सा अपने
चलाने के लए सफ़ दो श द क दरकार ऊपर ओढ़ ले और उसे अपने मौ लक सोच-
थी-जी और हाँजी। वचार के लए वतं छोड़ दे । शखा क
“कल छोले बनगे? भी यह उ मीद थी। उनक िज़ंदगी का
जी छोले बनगे। ट न या ढरा उनसे कह ं यादा शि तशाल
पाजाम के नाड़ बदले जाने चा हए।” था। हर सुबह वह कॉलबेल क पहल ककश
हाँ जी, पाजाम के नाड़े बदले जाने व न के साथ जग जाता और रात बारह के
चा हए। टन-टन घंटे के साथ सोता। बीजी घर म
उसने अपने जैसी कई ि य से बात इस ट न क चौक दार भी तैनात थीं। घर
करके दे खा, सबम अपने घरबार के लए क दनचया म ज़रा-सी भी दे र-सबेर उ ह
बेहद संतोष और गव था। बदा त नह ं थी। शखा जैसे-तैसे रोज़ के
हमारे तो ये ऐसे ह। हमारे तो ये वैसे काम नपटाती और जब सम त घर सो
ह जैसा कोई नह ं हो सकता। जाता, हाथ-मँह
ु धो, कपड़े बदल एक बार
हमारे ब चे तो बलकुल लव-कुश क फर अपना दन शु करने क को शश
जोड़ी है । हमारा बेटा तो पढ़ने म इतना तेज़ करती। उसे सोने म काफ़ दे र हो जाती और
है क पूछो ह मत। शखा को लगता उसी अगल सुबह उठने म भी। उसके सभी
म शायद कोई कमी है जो वह इस तरह आगामी काम थोड़े पछड़ जाते। बीजी का
संतोष म लबालब भरकर मेरा प रवार हदायतनामा शु हो जाता, यह आधी-आधी
महान के राग नह ं अलाप सकती। रात तक ब ी जलाकर या करती रहती है
रात को ब तर म पड़े-पड़े वह दे र त।ू ऐसे कह ं घर चलता है ! ससरु 1940 म
तक सोती नह ं, सोचती रहती, उसक सीखा हुआ मह
ु ावरा टका दे ते, “अल टु बेड
नय त या है । न जाने कब कैसे एक एंड अल टु राइज़ वग़ैरह-वग़ैरह। हदायत
फुलटाइम ग ृ हणी बनती गई जब क उसने सह होती पर शखा को बरु लगतीं। वह
िज़ंदगी क एक बलकुल अगल त वीर दे खी बेमन से झाडू-झाड़न पोचे का रोज़नामचा
थी। कतना अजीब होता है क दो लोग हाथ म उठा लेती जब क उसका दमाग़
बलकुल अनोखे, अकेले अंदाज़ म इस लए कताब, काग़ज़ और कलम क माँग करता
नज़द क आएँ क वे एक-दस
ू रे क मौ लकता रहता। कभी-कभी छु ट के दन क पल घर
क क़ करते ह , महज़ इस लए टकराएँ के काम म उसक मदद करता। बीजी उसे
य क अब उ ह मौ लकता बरदा त नह ं। टोक दे तीं, ये औरत वाले काम करता तू
दरअसल वे दोन अपने-अपने अ छा लगता है । तू तो बलकुल जो का
खलनायक के हाथ मार खा रहे थे। यह ग़ल
ु ाम हो गया है ।'
खलनायक था टन जो जीवन क घर म एक सहज और सघन संबंध

132 वां अंक 9 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

को लगातार ठ क-पीठकर यां क बनाया जा “कहाँ?


रहा था। एकांत म जो भी तंमयता प त- “कह ं भी। जैसे जयपुर या आगरा।”
प नी के बीच ज म लेती, दन के उजाले म वहाँ हम कौन जानता है । फ़ज़ूल म
उसक गदन मरोड़ द जाती। बीजी को एक नई जगह जाकर फँसना।
संतोष था क वे प रवार का संचालन ब ढ़या “वहाँ दे खने को बहुत कुछ है । हम
कर रह ह। वे बेटे से कहतीं, “तू फ़कर घूमगे, कुछ नई और नायाब चीज़ ख़र दगे,
मत कर। थोड़े दन म म इसे ऐन पटर दे खना, एकदम े श हो जाएँगे।”
पर ले आऊँगी।” ऐसी सब चीज़ यहाँ भी मलती ह,
पटर पर शखा तब भी नह ं आई अब सार द ु नया का दशन जब ट .वी. पर हो
दो ब ची क माँ हो गई। बस इतना भर जाता है तो वहाँ जाने म या तुक है ?
हुआ क उसने अपने सभी सवाल का ख़ “तुक के सहारे दन कब तक
अ य लोग से हटाकर क पल और ब च बताएँगे?
क तरफ़ कर लया। ब चे अभी कई सवाल ब च ने इस बात का मज़ाक बना
के जवाब दे ने लायक़ समझदार नह ं हुए थे, लया “कल को तुम कहोगी, अंडमान चलो,
बि क लाड- यार म दोन के अंदर एक घूमगे।”
तकातीत तुनक मजाज़ी आ बैठ थी। कूल “इसका मतलब अब हम कह ं नह ं
से आकर वे दन-भर वी डयो दे खते, गाने- जाएँगे, यह ं पड़े-पड़े एक दन दर त बन
सुनते, आपस म मार-पीट करते और जैसे- जाएँगे।
तैसे अपना होमवक पार लगाकर सो जाते। तुम अपने दमाग़ का इलाज कराओ,
क पल अपने यवसाय से बचा हुआ समय मुझे लगता है तु हारे हॉरमोन बदल रहे ह।
अख़बार , प काओं और दो त म बताता। मझ
ु े लगता है , तु हारे भी हॉरमोन बदल रहे
अकेल शखा घर क कारा म क़ैद ह।
घटनाह न दन बताती रहती। वह जीवन के तु हारे अंदर बराबर का बोलना एक
पछले दस साल और अगले बीस साल पर रोग बनता जा रहा है । इन ऊलजलल
ू बात
नज़र डालती और घबरा जाती। या उसे म या रखा है ?
वापस अि न शखा क बजाय द प शखा शखा याद करती वे यार के दन
बनकर ह रहना होगा, म धम और मधरु - जब उसक कोई बात बेतुक नह ं थी। एक
मधरु जलना होगा। वह या करे अगर इंसान को ेमी क तरह जानना और प त
उसके अंदर तेल क जगह लावा भरा पड़ा क तरह पाना कतना अलग था। िजसे
है । उसने नराला समझा वह ं कतना औसत
उसे रोज़ लगता क उ ह अपना नकला। वह नह ं चाहता जीवन के ढर म
जीवन नए सरे से शु करना चा हए। इसी कोई नयापन या योग। उसे एक परं परा
उ दे य से उसने क पल से कहा, य नह ं चा हए जी-हुज़ूर क । उसे एक गाँधार
हम दो-चार दन को कह ं घूमने चल। चा हए जो जानबूझकर न सफ़ अंधी हो

132 वां अंक 10 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

बि क गँग
ू ी और बहर भी। भी नह ं उठाए, वे दोपहर तक कमरे म पड़े
ब च ने बात दाद तक पहुँचा द । रहे । घर भर म कसी ने बेटे को ग़लत नह ं
बीजी एकदम भड़क ग , “अपना काम-धंधा कहा।
छोड़ कर काका जयपुर जाएगा, य , बीवी बीजी एक दशक क तरह वारदात
को सैर कराने। एक हम थे, कभी घर से दे खती रह ं। उ ह ने कहा, हमेशा ग़लत बात
बाहर पैर नह ं रखा। बोलती हो, इसी से दस
ू रे का ख़न
ू खौलता
“और अब जो आप तीथ के बहाने है । शु से जैसी तूने े नंग द , वैसा वह
घूमने जाती ह वह? शखा से नह ं रहा गया बना है । ये तो बचपन से सखानेवाल बात
तीरथ को तू घूमना कहती है ! इतनी ख़राब ह। फर तू बतन उठा दे ती तो या घस
जुबान पाई है तून,े कैसे गुज़ारा होगा तेर जाता।
गह
ृ थी का! उ ह ं के श द शखा के मँह
ु से नकल
“काश गोदरे ज क पनी का कोई ताला गए, “अगर ये रख दे ता तो इसका या
होता मँह
ु पर लगानेवाला, तो ये लोग उसे घस जाता।”
मेरे मँह
ु पर जड़कर चाबी सेफ़ म डाल दे ते, “बदतमीज़ कह ं क , बड़ से बात
शखा ने सोचा, “सच ऐसे कब तक चलेगा करने क अक़ल नह ं है । बीजी ने कहा।”
जीवन। ससुर ने सार घटना सुनकर फर
ब चे शहजाद क तरह बताव करते। 1940 का एक मह
ु ावरा टका दया, “एज यू
ना ता करने के बाद जूठ लेट कमरे म सो, सो शैल यू र प
पड़ी रहतीं मेज़ पर। शखा च लाती, यहाँ क पल ने कहा, पहले सफ़ मुझे
कोई म स वस नह ं चल रह है , जाओ, सताती थीं, अब ब च का भी शकार कर
अपने जठ
ू े बतन रसोई म रखकर आओ। रह हो।
“नह ं रखगे, या
कर लोगी”, बड़ा बेटा शकार तो म हूँ!
हमाक़त से कहता।
न चाहते हुए भी
शखा मार बैठती उसे।
एक दन बेटे ने
पलटकर उसे मार
दया। ह के हाथ से
नह ं, भरपूर घूँसा मँह

पर। होठ के अंदर एक तरफ़ का माँस शकार तो म हूँ, तुम सब शकार हो,
बलकुल चथड़ा हो गया। शखा स न रह शखा कहना चाहती थी पर जबड़ा एकदम
गई। न केवल उसके श द बंद हो गए, जाम था। ह ठ अब तक सूज गया था।
जबड़ा भी जाम हो गया। बतन बेटे ने फर शखा ने पाया, प रवार म प रवार क शत

132 वां अंक 11 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

पर रहते-रहते न सफ़ वह अपनी श ल खो क वता


बैठ है वरन अ भ यि त भी। उसे लगा वह सीख
ठूस ले अपने मँह
ु म कपड़ा या सी डाले इसे “बेट ” तुम मेरे आँगन क शोभा हो,
लोहे के तार से। उसके शर र से कह ं कोई मेर हं सी मेर ख़श
ु ी हो |
आवाज़ न नकले। बस, उसके मोहनी मूरत म सजी बसी,
स ृ टा क मान मरू त हो |
मधरु वर म गूंजती ह
जब तु हार कलका रयां,
बज उठती है घर म वीणा के
सात वर क लो रयां |
छम –छम न ह कदम से
चलती हो जब घर म,
थाप मद
ृ ं ग सी बजती धरती
डम-डम के कंपन म |
खल खलाती हो जब कसी बात म,
हाथ-पाँव प रवार के काम आते रह। न धप
ू उतर आती है
घर क छत से आँगन म |
नकल इस व त मँह
ु से बोल ले कन श द
तु हारे नखरे रं ग क उजास,
उसके अंदर खलबलाते रहगे। घर के लोग
शीतल चाँदनी सी ठं डक
उसके सम त रं बंद कर द फर भी ये
बन फैलाती काश |
श द अंदर पड़े रहगे, खौलते और खदकते। मन को शीतल झरने क
जब म ृ यु के बाद उसक चीर-फाड़ होगी, तो नकटता दे ती है ,
ये श द नकल भागगे शर र से और जीती- तु हार उपि थ त मझ ु े
जागती इबारत बन जाएँगे। उसके फेफड़ से, जीवंत बना दे ती है |
गले क नल से, अंत ड़य से चपके हुए ये कृ त क तब ब
श द बाहर आकर तीखे, नक सिृ ट क अनुपम कृ त हो l
ु ले, कँट ले,
बेट तमु मेर हं सी,
ज़हर ले असहम त के अ लेख बनकर छा
मेरा गौरव, मेर ख़श
ु ी हो|
जाएँगे घर भर पर। अगर वह इ ह लख दे
मत भटकना पा चा य क राह म,
तो एक बहुत तेज़ ए सड का आ व कार हो
रखना शील संयम, औदाय चाह म|
जाए। फलहाल उसका मँह ु सूजा हुआ है , तुम ल मी हो, तुम सर वती हो,
पर मँह
ु बंद रखना चप
ु रहने क शत नह ं तुम क त हो,
है । ये श द उसक लड़ाई लड़ते रहगे। तुम ह कृ त हो।

ममता का लया डॉ. दमयंती सैनी


(संकलन) व र ठ अनुवादक/राजभाषा
व युत लोको शेड, इटारसी

132 वां अंक 12 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा क वता

“मेर ब टया”

अ छा हुआ ब टया
जो तुमने जनम लया! वो घड़ी फर से मेरे जीवन म आएगी!
मेर ब टया क पीड़ा अब मुझे लाएगी!
बहुत मनाने पर तो,
तुम मेर ‘कोख’ म आई। पर एक समय आता है ,
तुम आई तब मैने जाना, जब ब टया ‘सखी’ बन जाती है ।
कमी तु हार मुझे कतनी थी। माँ का सुख-दख
ु बाँटती है
उसके आँसुओं म खद ु रोती है
अ छा हुआ ब टया, उसक गुनगुनाहट म वयं गाती है ।
तुमने जो जनम लया!
कतना अ छा हुआ! कोई होगा मेरा अंतमन पढ़ने को!
अब मेरा आंगन सूना न रहे गा तु हारे बन! कतना अ छा हुआ!
गँज जो, उस ‘सखी’ से वं चत नह रहूँगी म!
ू ेगी कलका रयाँ तु हार रात- दन।
अ छा हुआ ब टया,
दो चो टय म गँथ ू ा,
जो तुमने जनम लया!
तु हारा भोला चेहरा छाया रहे गा
नकल क पना से बाहर,
मेरे घर संसार म।
बस गई मेरे दल म, मेरे संसार म।
और बेट क कलाइयाँ
इसी तरह तमु आना
नह ं सनू ी रहगी राखी के योहार म!
जब भी आऊ म इस संसार म!

अ छा हुआ ब टया, तुम मेर क पना से उतर पर हो,


जो तम
ु ने जनम लया! तु हार दो चो टयाँ बनाऊँगी,
जो पल बताए मने, तु हे गुदगुदाकर खदु भी खल खलाऊँगी,
अपनी माँ के संग लो रयाँ सुनाकर तु ह रात म सुलाऊँगी,
वह पल बताउँ गी, अब तु हारे संग। भोर होने पर तु हे चमू कर जगाऊँगी।

अ छा हुआ ब टया, तु हे पाकर मने िजंदगी क हर


जो तुमने जनम लया! कमी को भल ु ा दया।
अ छा हुआ ब टया,
मेरे दःु ख से दःु खी होकर, जो तम ु ने जनम लया!
मेर आँख म आँसू दे खकर
छुप-छुपकर कतनी ह बार, अ का संह प रहार,
रोई है मेर माँ असहाय होकर! मे ो रे लवे, कोलकाता

132 वां अंक 13 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
लेख

द ण शा त महासागर के बोल जाती है ।


फजी और भारत
मेलाने शया मे एक वीप दे श फ़जी िजसे
फजी म 322 वीप (िजनम से
आ धका रक प से फ़जी वीप समह

106 बसे हुए) और 522 ु वीप ह। वीप
गणरा य के नाम से जाना जाता है । यह
समूह के दो सबसे मह वपूण वीप वती
यज़
ू ीलै ड के नॉथ आईलड से लगभग
लेवु और वनुआ लेवु ह। ये वीप
2000 कमी उ र-पव
ू मे ि थत है । इसके
उ णक टबंधीय वन से आ छा दत पहाड़ी
समीपवत पड़ोसी रा म पि चम क ओर
ह, िजनम 1300 मीटर (4250 फुट) तक
वनआ
ु तु , प व
ू म ट गा और उ र मे तुवालु
क चो टयां ह। उ णक टबंधीय जलवायु के
ह। डच एवं अं ेजी खोजकतओं ने 17वीं
कारण वष भर मौसम गम बना रहता है।
और 18वीं शता द के दौरान फ़जी क
वीप वती लेवु म राजधानी सुवा ि थत है
खोज क थी। 1970 तक फ़जी एक अं ेजी
और यहाँ दे श क लगभग तीन चौथाई
उप नवेश था।
आबाद का नवास है ।
चरु मा ा मे
अ य मह वपूण शहर
वन, ख नज एवं
म शा मल ह ना द
जल य ोत के
(अंतररा य हवाई
कारण फ़जी
अ डा यहाँ ि थत है )
शा त
और लौतोका (एक
महासागर के
बड़ी चीनी मल और
वीप मे सबसे
समु -प न यहाँ
उ नत रा है ।
ि थत ह)। वीप
वतमान मे
वनआ
ु लेवु के मु य
पयटन एवं
शहर म लाबासा और सावस
ु ावु मख
ु ह।
चीनी का नयात इसके वदे शी मु ा के
अ य वीप समह
ू म तावेउनी और क दावु
सबसे बड़े ोत ह। यहाँ क मु ा फ़जी
जो मशः तीसरा और चौथा सबसे बड़ा
डॉलर है । यहाँ चार आ धका रक भाषाओ म
वीप ह। मामानक
ु ा वीप समह
ू (ना द से
से एक हंद है । नदरोगा भाषा भी यहाँ

132 वां अंक 14 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

थोड़ा बाहर) और यसावा वीप समह


ू पास रहते ह। वदे शी मूल के लगभग सभी
लोक य पयटन थल मे ह। लोमाई वती ईसाई ह, िजनमे दो तहाई मेथो ड ट है ।
वीप समूह, सुवा से बाहर है और दरू थ भारतीय फ़ िजय म 77 तशत हंद ू ह,
लाउ वीप समूह। रोटुमा, वीपसमूह के 16 तशत मुि लम, 6 तशत ईसाई के
उ र म कुछ 500 कलोमीटर (310 मील) साथ कुछ सख भी ह।
क दरू पर ि थत है और इसे फजी मे फजी क सं कृ त वदे शी, भारतीय,
एक वशेष शास नक दजा हा सल है । चीनी और यूरोपीय परं परा का चरु म ण
फजी के नकटतम पड़ोसी ट गा है । है । यहाँ क सं कृ त अनेक पहलुओं से
मलकर बनी है , िजनम सामािजक
फजी : सं कृ त और भाषा यव था, परं परा, भाषा, भोजन, वेशभूषा,
फजी के मूल नवासी पो लने शयाई व वास णाल , वा तुकला, कला, श प,
और मेला शयाई लोग का म ण ह, जो संगीत, न ृ य और खेल आ द शा मल ह।
स दय पहले द ण शांत के मूल थान गर म टया के प म पहुंचे भारतीय
से यहाँ आये थे। 1879 से 1916 के बीच अवध े के थे। इनके पूवज फैज़ाबाद,
यहाँ ग ने के खेत मे काम करने के लये सु तानपुर, जौनपुर आ द जनपद से गए
तानी 61000 मजदरू को भारत से यहाँ थे। इसी कारण यहाँ क भाषा अवधी के प
लाये थे इसके बाद 1920 और 1930 के म वक सत हुई है और आज थानीय
दशक मे हजार भारतीय वे छा से यहां भाव के कारण फजी हंद के प म
आये। आज यह गर म टया भारतीय फजी च लत है । फ़जी क आ धका रक भाषाओं
क अथ यव था क र ढ़ ह। फजी के मूल म से एक फ़िजयन हंद या फ़िजयन
नवासी परू े दे श म रहते ह, जब क भारतीय ह द ु तानी है । उ र- दे श तथा बहार क
मल
ू के फजी नाग रक दोन मख
ु वीप दे शज भाषाओं पर आधा रत भोजपुर , जो
के शहर े और ग ना उ पादक े के लगभग 39.3% उ र भारतीय वासी जब
ु ान
थी, को बहार और
अवधी, जो लगभग
32.9% वासी
जब
ु ान थी, को पव

ह द कहा गया।
भोजपुर और अवधी
से मु य प से
यु प न, िजसम
अ य भारतीय
भाषाओं ह द , उद,ू
गुजराती, त मल,

132 वां अंक 15 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

तेलग
ु ु, पंजाबी और मलयालम आ द के साथ को लंदन, यू.के. म, सातवाँ व व हंद
फ़जी और अं ेज़ी से बड़ी सं या म श द स मेलन, दनांक 06-09 जून, सन ् 2003
भी समा हत ह। फ़िजयन हंद दे वनागर ईसवी को पारामा रबो, सूर नाम म, आठवाँ
और रोमन दोन ल प म लखी जाती है । व व हंद स मेलन, दनांक 13-15 जुलाई,
फ़िजयन भारतीय क पहल पीढ , ़ िजसने सन ् 2007 ईसवी को यूयाक, अमर का म,
इस भाषा को बोलचाल के प म अपनाया नौवाँ व व हंद स मेलन, दनांक 22-24
इसे ' फ़जी बात' कहते थे। लगभग 70% सतंबर, सन ् 2012 ईसवी को जोहांसबग,
लोग यह भाषा बोलते ह। द ण अ का म, दसवाँ व व हंद
स मेलन, दनांक 10-12 सतंबर, सन ्
सारांश 2015 ईसवी को भोपाल, भारत म, यारहवाँ
थम व व हंद स मेलन, दनांक व व हंद स मेलन, दनांक 18-20
10-12 जनवर , सन ् 1975 ईसवी को अग त, सन ् 2018 ईसवी को पोट लुई,
नागपुर, भारत म, वतीय व व हंद मॉर शस म संप न हुआ। मॉर शस म
स मेलन, दनांक 28-30 अग त, सन ् आयोिजत 11व व व हंद स मेलन म
1976 ईसवी को पोट लुई, मॉर शस म, 12व व व हंद स मेलन को फजी म
तत
ृ ीय व व हंद स मेलन, दनांक 28-30 आयोिजत करने का नणय लया गया था।
अ तूबर, सन ् 1983 ईसवी को नई द ल , उसी अनु म म 12वाँ व व हंद स मेलन
भारत म, चतुथ व व हंद स मेलन, वदे श मं ालय वारा फजी सरकार के
दनांक 02-04 दसंबर, सन ् 1993 ईसवी सहयोग से 15 से 17 फरवर , 2023 तक
को पोट लुई, मॉर शस म, पाँचवाँ व व हंद फजी म आयोिजत कया गया।
स मेलन, दनांक 04-08 अ ैल, सन ् 1996
ईसवी को पोट ऑफ पेन, नडाड एंड यती नाथ चतव
ु द
टोबैगो म, छठा व व हंद स मेलन, सद य हंद सलाहकार स म त,
दनांक 14-18 सतंबर, सन ् 1999 ईसवी सं कृ त मं ालय

132 वां अंक 16 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

मोबाइल म खोई ब टया

माँ क आँख क यार


पापा क दल
ु ार मेर ब टया
वो चहकती थी ऐसे जैसे
मेरे आँगन क सोन चरै या
िजससे महकती थी मेरे जीवन क ब गया
िजससे मलती थी सुबह-शाम खु शयां
जो सारा दन धमा चौकड़ी मचाए रखती थी
और बात-बात पर खल खलाती और हँसती थी
अब वह दे खते-दे खते चप
ु हो गई है
न जाने अपनी कस द ु नया म खो गई है
समझ तो मुझे भी आ गया है
क उसके हाथ म मोबाइल फोन आ गया है
जब दे खो मोबाइल पर खोई रहती है ,
कभी पढ़ाई करती है
तो कभी नेटि ल स पर वय त रहती है
कभी दो त से ग प लड़ाती है
तो कभी फेसबुक चलाती है
अपना आधे से यादा समय
मोबाइल पर ह बताती है
जो माँ के बनाए हर यंजन को चाव से खाती थी
मेर माँ जैसा कोई कुक नह ं
सार द ु नया को बताती थी
अब हर चीज को दे खकर नाक-भ सकोड़ती है
यू- यूब से दे खकर कुछ नया बनाओ
अपनी माँ को ह यह हदायत दे ती है
म अब इसी उधेड़बुन म लगी रहती हूं क
इस मोबाइल से ब टया का पीछा कैसे छुड़ाऊँ
िजसने मेर घर क रौनक को हण लगा दया
वो खु शयाँ कैसे वापस लौटाऊं?
र वबाला गु ता
उप नदे शक/राजभाषा, रे लवे बोड

132 वां अंक 17 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
क वता

धूल या फूल

ये कौन सी जगह है जहां म आ पड़ी हूँ


ये कौन सा मोड़ है जहां म आज खड़ी हूँ।
कहां गए वो त और कहां गई वो डाल ,
जाकर दरू तक नज़र लौट आती ह खाल ।

सोचती हूं यूं त ने जमीन पर दया पटक,


सोचती हूं यूं डाल ने मझ
ु को यूं दया झटक।
अ छ भल म भी तो उस ब गया म गल ु जार थी,
कर दया मुझको यू दरू या म इतनी बेकार थी।

कहाँ गए दन-रात हसाँने और लाने वाले


कहाँ गए चरकर छाती दखाने वाले।
कहते थे गम न कर हम तु हारे साथ ह,
ढ़ूढ़ती हूं मगर अब कहाँ वो हाथ ह।

मेरे आँसुओं म िजनके नैन थे रोते,


जगाकर मुझे सुना है वो चैन से ह सोते।
अब मेरे आँसुओं को पोछने वाला कौन है ?
रोने क खा तर अपना कंधा दे ने वाला कौन है ?

वाह रे वधाता तन
ू े खब
ू है र त बनाई,
कसी से दया मलन तो कसी से दे द जुदाई।
सोचती हूं जाने कैसा द ु नया का द तरू है ,
एक अजनबी है पास और सारे अपने दरू ह।

ए अजनबी या कहूं? अब तेरा ह साथ है ,


छुड़ाकर उं गल अपन ने थमा दया तेरा हाथ है ।
टूट आ गरा है दामन म तेरे फूल,
बनाले हार गले का अपने या मार दे ठोकर, समझ कर मुझको धल
ू ।

िजते धान
क न ठ अनुवाद अ धकार , रे लवे बोड

132 वां अंक 18 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
कहानी

आ मबल

न ता नाम था उसका तीखे नैन को पढ़ाना चाहते ह ता क उसे नौकर मल


सके और तो और आस-पड़ोस और र तेदार
न श वाल यह कोई उ नीस वष क
भी हमारा मजाक बनाएंगे ! माता जी क
अव था रह होगी, पताजी ने बेट को
बात म पताजी भी हां म हां मलाते हुए
ामीण प रवेश क वजह से यादा नह ं
नजर आए, अब तो संजय असमंजस म पड़
पढ़ाया और बेट के हाथ पीले करने के लए
गया था क वह न ता को या जवाब
यास करने आरं भ कर दए, पताजी क
दे गा? ले कन उसने मन ह मन कुछ
छोट सी कराने क दक
ु ान थी उ ह ने
नणय कर दया था इसके बाद माता- पता
न ता को बारहवीं तक क श ा जैसे तैसे
क बात सुनकर वह शां त से उठकर न ता
दलाई थी हालां क न ता भी बला क
के पास आ गया।
खब
ू सूरत थी इस लए उसके शाद के अनेक
संबंध आने लगे थे पताजी ने न ता का
संजय ने माता- पता के नणय के बारे
ववाह पास के गांव म ह अ छे खाते-पीते
म न ता को बताया तब न ता को काफ
प रवार म कर दया कंतु न ता तो और
नराशा महसूस हुई ले कन वह या करती
अ धक पढ़ना चाहती थी।
ई वर इ छा मानकर शांत रह गई। संजय
ने न ता को बताया क वे दोन अभी गांव
शाद के बाद न ता ने अपने प त को
को छोड़कर अ य कसी शहर म जाकर
अपनी इ छा के बारे म बताया क वह और
रहगे ता क तुम अपनी श ा ा त कर
अ धक पढ़ना- लखना चाहती है , प त ने
सको, न ता ने जब यह सन
ु ा तो वह
न ता क इ छा म सहम त दान क ,
आ चयच कत हो गई तब उसने प त से
साथ ह कहा क वह माता- पता से पूछ
न कया क हम लोग वहां अपना खचा-
कर उसका वेश उ च श ा के लए
पानी कैसे उठाएंगे! संजय ने कहा क तम

कॉलेज म करा दे गा।
इसक चंता मत करो, मेरे पास कुछ जमा
रा श है जो क पताजी ने मझ
ु े द थी
अगले दन सुबह सभी प रवार के
िजससे म अपना छोटा-मोटा यवसाय कर
लोग चाय पी रहे थे, न ता कचन म थी,
लूंगा ता क घर का मा सक खच नकल
न ता के प त संजय ने अपने माता- पता
सके।
से न ता क उ च श ा के बारे म पछ
ू ा !
तो माताजी ने त काल ह कहा क बेटा
अगले दन सुबह संजय ने अपने माता- पता
लोग या कहगे ? क हम लोग अपनी बहू
को बताया क आप लोग सह कह रहे ह
का खचा नह ं उठा पा रहे ह, इसी लए बहू

132 वां अंक 19 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

इस ामीण प रवेश म द कयानस


ू ी सोच के इसके बाद ह कुछ काम पर नकलगे, इस
कारण न ता का कॉलेज म वेश कराने क तरह संजय ने न ता का वेश कॉलेज म
वजह से सभी नातेदार- र तेदार एवं आस- करा दया और वयं छोटा सा यवसाय
पड़ोस वाले लोग हमारे बारे म अनाप-शनाप आरं भ कर दया िजसम वह शहर के
बात बनाएंगे, मजाक बनाएंगे इस लए हम दक
ु ानदार से आडर लेता और बड़े शहर म
लोग इस घर को छोड़कर जा रहे ह ,जब जाकर माल लाकर दक
ु ानदार को स लाई
न ता क श ा पूर हो जाएगी तब हम करता इस वजह से संजय को माह म तीन-
वापस आ जाएंगे, ऐसा सुनकर माता- पता चार बार द ल -मुंबई जाना पड़ता, इस
अवाक रह गए ले कन बना कुछ कहे संजय कार उसक आमदनी ठ क-ठाक होने लगी
को वीकृ त म सर हला कर सहम त दे और घर का खच आसानी से नकलने लगा।
द। समय अपनी ग त से चलता रहा अब
न ता ने प त के सहयोग से अपनी पढ़ाई
संजय एवं न ता ने अपना सामान पैक कर जार रखी इस वष न ता का नातक क
लया और े न पकड़ कर दस
ू रे शहर म पढ़ाई का अं तम वष था उसने अपने प त
चले गए, संजय ने वहां जाकर एक छोटा सा से कहा क वह रा य लोक सेवा आयोग
मकान कराए पर लया, अब सबसे बड़ा क पर ा म शा मल होना चाहती है ,
न था क घर का खच कैसे चले? न ता इस लए वह को चंग करना चाहती है ले कन
को पढ़ाने के लए या कया जाए? न ता फर उसने को चंग क भार -भरकम फ स
ने जब संजय के माथे पर चंता क लक र के बारे म सोचा तब उसने अपने प त से
दे खी तो ह मत बनाते हुए बोल आप चंता कहा क वह जब भी द ल जाए तब कुछ
ना कर, मेरे पास कुछ जेवर ह इ ह बेच तयोगी पर ा क कताब लाकर दे और
कर कुछ रा श मल जाएगी, िजससे हम न ता ने कताब क सच
ू ी संजय को स प
लोग छोटा-मोटा काम करगे, साथ ह पढ़ाई द साथ ह कहा वह वयं ह वा याय
भी करगे, संजय ने जब न ता क यह बात करे गी, संजय ने कहा क वह अगले ह ते
सन
ु ी तो उसने मन ह मन सोचा, ई वर ने म माल लेने द ल जाएगा तब वह सभी
मेरे भा य म जो भी लखा हो ले कन अब कताब ले आएगा, संजय समझ गया था
म अपनी परू मेहनत से अपनी प नी को क पैस क कमी के कारण न ता ने
ज र पढ़ाऊंगा, इसके बदले मुझे कतनी भी को चंग जाने का वचार याग दया था तब
कुबानी य न दे नी पड़े ऐसा सोचकर संजय संजय ने मन ह मन सोचा क वह कुछ
गहर न ा म चला गया। अ धक मेहनत करे गा, इससे कुछ धनरा श
अगले दन सुबह न ता ज द जाग गई एवं एक त कर लेगा तब वह न ता को
संजय के लए ना ता एवं खाना तैयार कर तयोगी पर ा क को चंग भी करवा दे गा,
दया तो संजय ने कहा आज हम सबसे इसी भाग-दौड़ म संजय ने और अ धक
पहले तु हारा वेश कॉलेज म करा दगे, मेहनत शु कर द ले कन एक दन संजय

132 वां अंक 20 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

ज द माल स लाई करने के च कर म एक नातक अं तम वष क पर ा आने वाल


कार से टकरा गया िजससे उसे काफ चोट थी साथ ह प त क दे खभाल एवं इन सब
आ गई, बाजार सम याओं से तालमेल बठाते
के दक
ु ानदार ने हुए न ता ने अपनी पर ाएं
संजय को द और अपने प त क
त काल ह दे खभाल भी काफ अ छ
सरकार तरह से क , धीरे -धीरे संजय
अ पताल म क त बयत म भी काफ
पहुंचा दया सुधार हो रहा था कंतु अभी
जैसे ह यह वह पूव क भां त अपना काय
खबर न ता को मल वह बेसुध हो गई करने म असमथ थे।
और दौड़ती- भागती अ पताल म पहुंची, न ता ने एक दन को चंग संचालक
संजय के पैर म फै चर हुआ था डॉ टर ने जी को बताया क वह रा य लोक सेवा
ला टर लगा दया था एवं दो माह तक आयोग क पर ा दे ना चाहती है इस हे तु
कसी भी कार का काय करने से मना उसे कुछ तयोगी पर ाओं क कताब
कया था जब न ता ने यह सुना तो उसके क ज रत है तो संचालक महोदय जी ने
पैर तले जमीन खसक गई वह बहुत कहा! अरे ! मेरे पास तो कताब और नो स
यादा द:ु खी हो गई कंतु ई वर के नणय का भंडार है , मने अनेक वष रा य लोक
को बेमन से वीकार कर, सरकार एंबुलस सेवा आयोग क पर ा क तैयार क है
से प त को लेकर अपने घर पर आ गई। कंतु मेरा अं तम प से चयन नह ं हो
अब न ता ने सोचा क वह या करे ? पाया था अब म तु हारा मागदशन भी
कस से मदद ले? उसने सोचा य द सास क ं गा तथा तु ह सभी कार के मैटे रयल
ससरु को बताएंगे तो वह भी बहुत नाराज एवं नो स उपल ध करा दं ग
ू ा, आज न ता
ह गे तब उसने नणय लया क वह वयं समझ गई थी ई वर का नणय सदै व हमारे
कुछ काम करे गी एवं अपने पत क लए हतकार होता है और उसने मन ह
दे खभाल करे गी तथा बचे हुए समय म मन ई वर को ध यवाद दया य क
अपनी पढ़ाई करे गी। तकूल प रि थ तयां मानव को मजबत

न ता ने एक को चंग सटर म जाकर बनाने के लए होती ह।
बात क , और बताया क वह पढ़ाना चाहती आज न ता का नातक अं तम वष
है , इसके बाद संचालक महोदय ने न ता क पर ा का प रणाम आ गया था जो क
के ान क पर ा ल तब को चंग उसने थम ेणी से उ ीण कर ल थी अब
संचालक महोदय न ता क बु धमता से न ता ेजुएट हो गई थी एवं प त का
बहुत भा वत हुए और उ ह ने न ता को वा य भी काफ अ छा हो गया था वह
अपनी को चंग म नौकर दे द , न ता क अपने काम पर जाने लगे थे इस कार घर

132 वां अंक 21 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

क प रि थ तयां अनक
ु ू ल होने लगी थी। संजय ने न ता को गले से लगा लया और
न ता ने रा य लोक सेवा आयोग क वह भी काफ भावुक हो गया!
पर ा क तैयार म अपना दन-रात एक अगले दन के समाचार प म न ता
कर दया था उसने आयोग क ल खत एवं संजय के ेम तथा याग क कहानी
पर ा को पास कर लया था एवं छपी हुई थी इस घटना ने स ध कर दया
सा ा कार क तैयार के लए उसके प त था क कतनी भी परे शा नयां हो! कतनी
संजय ने उसे एक को चंग म वेश दला भी सम याएं ह ! आप अपने ल य के लए
दया था नि चत त थ को न ता का न ठा एवं लगन से लगे रहगे तो
सा ा कार हो गया और अब पर ा "आ मबल" क वजह से आपको सफलता
प रणाम आने वाला था न ता के मन म अव य मलेगी।
काफ उथल-पुथल मची हुई थी। संजय जब संजय के माता- पता तथा अ य
न ता से बार-बार कहता क
तु हार मेहनत बेकार नह ं
जाएगी ई वर " म का फल"
अव य दगे, ऐसा कहकर वह
न ता को ढांढस बनाता, इसी
कार क बात चल रह थी
तभी संजय के मोबाइल पर
घंट बजी, यह फोन न ता के
को चंग संचालक जी का था
उ ह ने कहा क संजय जी!
या न ता मैडम से मेर
बात हो सकेगी? बात म गजब उ साह था! र तेदार को यह बात पता चल तब सभी
संजय ने कहा हां! य नह ं! और फोन लोग न ता एवं संजय से मलने शहर आए
न ता को दे दया, तब संचालक महोदय ने आज वे सभी समझ गए थे क ' श ा क
कहा! मैडम आपने 'इ तहास' पढ़ाते-पढ़ाते ताकत या है ! इसके बाद संजय के गांव म
"इ तहास" बना दया है ! आपने रा य लोक जो भी बहू-बे टयां कूल कॉलेज म अपनी
सेवा आयोग क पर ा म दे श क इ छा के बावजद ू वेश नह ं ले पा रह थी
ावी य सूची म सातवां थान ा त कया अब सभी अ भभावक अपनी बहू-बे टय को
है ! जब न ता ने यह सन
ु ा! तो उसका गला श त करने के लए जाग क हो गये थे,
अव ध हो गया ने से अ ु क अ वरल अब वे सभी श ा के मह व को समझ गये
धार बह नकल ! और उसने भावुक होते हुए थे।
अपने प त संजय के चरण पश कए और जलज कुमार गु ता
संजय को अपनी सफलता क बात बताई! नयं क/प रचालन/पि चम म य रे लवे

132 वां अंक 22 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
लेख

आकाश म उ मु त होके उड़ान भरने दो !!

मात ृ व क क पल प ल वत होने से नार न दा ना करो, नार रतन क खान।


नार से नर होत है, ुव नाद समान।
फुि लत माता के गभ म द तक दे चक

बा लका का जीव आनं दत है , उ सा हत है,
कबीर दास जी के मतानुसार नार क नंदा
जीवन क आशाओं से। कं चत आशं कत
नह ं करनी चा हए। नार अनेक र न क
भी है अपने ज म से। ये संशय क ि थ त
खान है । इतना ह नह ं नार से ह पु ष
बा लका ण
ू के साथ ह उपज आती है ,
का ज म होता है । ऐसे म व
ु और लाद
वमेव ह , अमरबेल ह पसरती जाती है ।
नार क ह दे न है ।
फर भी अंग-उपांग के वधन के साथ
अबोध जीव स यता से परे , क पनाओं क बेटा और बे टयां
रचना म संकु चत थल म स नता से समाज के ह अ भ न अंग
अठखे लयां कर रह है । एक न ठुर हार इन दोन के बना ह
घात बन अि त व क संभावनाओं को कब हर समाज है अपंग
नकार दे , समा त कर दे , नयत नह ं है ।
इसके बाद भी आराधना सी नमल, इबादत भारत के गौरवशाल इ तहास और वकास
सी पाक एक न हं मासूम अपनी क गाथा म कदम से कदम मलाते हुए
कलका रय से आंगन म खल खलाने को ना रय के अभत
ू पव
ू योगदान इस त य के
आतुर है । गभ से आकाश तक का सफर प रचायक ह क उ ह खलने दया गया है ,
उसके लए आसान य नह ं है ? स दय , बढ़ने दया गया िजसक स धी संग
ु ंध, आज
शताि दय से एकप ीय इि तहान जार भी फज़ा म बखर हुई है और भारत क

य है ? इसके समापन क आ खर तथ ये धरा उनके ओज से आज भी आलौ कक


हो रह है । कुछ ऐसी ह ना रय का वणन
कब है ? काल कव लत होने के सल सले
कया जा रहा है जो आज भी ेरणा दे रह
का खा मा आ खर कब? बे टय को जीवन
ह -
अमत
ृ दान कर ज म दे के धरा पर
फु टत होने द फर दे खए अपनी अद य
दग
ु ा बाई दे शमुख- भारत क ‘‘आयरन लेडी’’
द ता से व व के आकाशपटल पर गौरव
भारत के वतं ता सेनानी और वतं
का परचम कस तरह लहराती ह।

132 वां अंक 23 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

भारत के पहले व मं ी चंतम ण दे शमुख उनके पता डॉ. एस वामीनाथन हाईकोट


क धमप नी कसी प रचय क मोहताज के वक ल थे और मां एवी अ मुकु ट
नह ं। वल ण तभा क धनी 15 जुलाई वतं ता सेनानी थीं, ले कन उ ह ने सुभाष
1909 को आं दे श के राजमुंदर िजले के चं बोस क
काक नाडा म ज मी दग
ु ाबाई दे शमुख ने 14 आज़ाद हंद
वष क उ म फौज का
ह आज़ाद के ह सा बनना
समर म वीकार कया।
शा मल हो रानी झांसी
ग । बचपन म रे िजमट म
ह पता ी ल मी सहगल
रामाराव का को कनल क िज मेदार स पी गई। ले कन
साया सर से उठने के बाद अपनी माता लोग उ ह कै टन ल मी सहगल के नाम से
कृ णवेन मा क परव रश म वह पल बढ़ ं। जानते ह। एमबीबीएस होने के कारण
नमक स या ह म बढ़चढ़कर भाग लया, दसबंर 1984 म हुए भोपाल गैस कांड के
उ ह 1 वष क जेल भी हुई, ले कन उ ह ने मर ज़ और पी ड़त को च क सीय सहायता
हार न मानी। आं दे श म ना रय के दान क । रा पता महा मा गांधी के
उ थान के लए कई सं थाओं और श ण वदे शी व तुओं के ब ह कार आंदोलन म भी
क क थापना इ ह ने करवा । आज़ाद इ ह ने बढ़ चढ़कर भाग लया। इनक याद
के बाद योजना आयोग वारा का शत म कानपुर म ल मी सहगल इंटरनेशनल
भारत म समाज सेवा का व वकोश भी एयरपोट बनाया गया।
इ ह ं के नदशन म तैयार हुआ। साथ ह
इ ह ने कानून क पढ़ाई कर म हलाओं के सरोिजनी नायडू - भारत क को कला
हक के लए काफ लड़ाई लड़ीं। तो वह ं भारत क को कला के नाम से स ध
सा रता के े म उ कृ ट काय करने के सरोिजनी नायडू का ज म 13 फरवर
लए इ ह यूने को पुर कार से भी 1879 को है दराबाद म
स मा नत कया गया। इनके वारा हुआ। इनके पता
था पत कए गए पा रवा रक यायालय अघोरनाथ च टोपा याय
आज भी ना रय , ब च और प रवार के एक वै ा नक थे। भारत क
हक के लए काय कर रहे ह। वतं ता के लए
वभ न
कै टन ल मी सहगल- भारतीय रा य आंदोलन म
सेना म म हला रे जीमट कमांडर इ ह ने भाग लया। ज लयांवाला बाग
24 अ टूबर 1914 को म ास म ज मी ह याकांड से दख
ु ी होकर इ ह ने कैसर ए
ल मी सहगल, राजनी त म कसी भी बड़े हंद का स मान लौटा दया था। भारतीय
पद पर रहकर काय कर सकती थीं य क समाज म फैल कुर तय के खलाफ

132 वां अंक 24 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

भारतीय म हलाओं को इ ह ने हमेशा जागत


ृ गौरव ा त है । तो वह ं इ ह ने कोयला
कया। िजसके चलते भारतीय रा य खदान म काम करने वाल म हलाओं के
कां ेस के कानपुर अ धवेशन क थम हत म भी आवाज उठाई। दे श के त
भारतीय म हला अ य बनीं। वे आगे उनका लगाव हर भारतीय के लए एक
चलकर एक सफल क वय ी के प म ेरणा है ।
जानी ग । वे एक कुशल राजनेता होने के
साथ-साथ एक अ छ ले खका भी थीं। मा भीखाजी कामा - जमनी म भारतीय झंडा
13 वष क आयु म इ ह ने 1300 पंि तय लहराने वाल थम म हला
क क वता द लेडी आफ लेक लख डाल ’भारत म टश शासन जार रहना
थी। मानवता के नाम पर कलंक है । एक महान
दे श भारत के
कादि बनी गांगुल - साउथ ए शया क पहल हत को इससे
म हला च क सक तपहुंच रह
18 जुलाई 1961 को बहार के है । आगे बढ़ो हम
भागलपुर म ज मीं कादि बनी गांगुल हंद ु तानी ह और
च क सा शा क ड ी लेने वाल थम हंद ु तान
म हला थीं। इनके पता बज
ृ कशोर बासु ने हंद ु ता नय का
अपनी पु ी क श ा पर हमेशा यान है ।’ ऐसे वचार
दया। टश से ओत- ोत
समय म भारतीय मूल क पारसी नाग रक भीखाजी
म हलाओं के कामा का ज म 24 सतंबर 1861 को मुंबई
लए उ च श ा म हुआ। इ ह जमनी के टटगाट नगर म
भले ह मुि कल सातवीं अंतररा य कां ेस के दौरान
भर रह हो भारतीय झंडा लहराने का ेय दया जाता
ले कन उसी है । एक धनी प रवार म ज म लेने के
समय कादि बनी बावजूद इ ह ने सुखी जीवन क इ छाओं
ने भारत ह नह ं का याग कर दे श को अं ेजी शासन से
अ पतु साउथ ए शया क पहल च क सा आजाद करने म अपना जीवन बता दया।
ड ी धारक म हला के प म व व इस लए इ ह भारतीय रा यता क महान
स धहु । इतना ह नह ं रा पता पुजा रन कहा जाता है । ये जहां ग , इ ह ने
महा मा गांधी के स या ह आंदोलन और वहां जाकर भारतीय वाधीनता क अलख
बं कम चं चटज क रचनाओं से भा वत जलाई और वराज के लए लोग को
होकर कादि बनी ने सामािजक काय म एकजट
ु कया। ले कन असीम सेवाभाव के
स यता दखाई, िजसके चलते इ ह चलते लेग रो गय क सेवा करते हुए 73
भारतीय रा य कां ेस के अ धवेशन म वष क आयु म हमने इस महान वतं ता
सबसे पहले भाषण दे ने वाल म हला का सेनानी को खो दया।

132 वां अंक 25 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

से पहले ह अं ेज के दांत ख टे कर दए
सुचत
े ा कृपलानी - भारत क पहल म हला थे। घुड़सवार , तलवारबाजी और तीरं दाजी म
मु यमं ी पारं गत रानी चेन मा ने अकेले ह अं ेजी
जून 1908 म पंजाब के अंबाला शहर शासक के त व ोह क घोषणा कर द
म ज मी सुचते ा कृपलानी भारत क पहल थी। ले कन वह अ धक समय तक अं ेज
म हला मु यमं ी बनी थीं। उनके राजनी तक से लोहा नह ं संभाल पा और 21 फरवर
जीवन का सफर आसान न था, य क 1829 को अं ेज से लड़ाई के दौरान
पता क मृ यु के बाद वीरग त को ा त हु ।
उन पर घर प रवार क
िज मेदार आ गई रानी अ ह याबाई हो कर - बहादरु रानी,
थी। ले कन भारत क कुशल शासक
वतं ता के बाद म वह ’’ई वर ने मझ
ु े जो िज मेदार स पी
राजनी त म स य है , उसे मुझे नभाना है । साथ ह हर उस
हो ग । उ ह ने काय के लए म िज मेदार हूं। मुझे उसका
बनारस हंद ू जवाब ई वर को
व व व यालय म इ तहास क व ता के दे ना है ।’’ अपने
तौर पर भी काय कया। कां ेस से अलग प रवार के 27
होने के बाद उ ह ने अपनी कसान मजदरू लोग को खोने
पाट बनाई और 1962 म वधानसभा का के बाद भी इस
चन
ु ाव लड़ा और वह उ र दे श क नार शा सका ने
मु यमं ी बन ग । सुचत
े ा उन म हलाओं म जा और स ा
से ह जो गांधी जी के काफ कर ब रह ं और क बागडोर को
कई आंदोलन ने उ ह ने भाग लया और बखब
ू ी संभाला।
कई बार जेल क सजा भी काट । शव भ त अ ह याबाई हो कर का ज म
31 मई 1725 म हुआ था। हालां क इनके
रानी क रू चेन मा - टश ई ट इं डया ं े एक साधारण यि त
पता मानकोजी शद
कंपनी के खलाफ सश व ोह का नेत ृ व थे, ले कन इनका ववाह इंदौर के सं थापक
भारत के कनाटक रा य म रानी म हार राव हो कर के पु खंडरे ाव के साथ
चेन मा का नाम बड़े ह अदब से लया हुआ था। ऐसे म अ ह याबाई अपने ससुर
जाता है । कनाटक से राजकाज क श ा लया करती थीं।
के बेलगाम के िजसने उ ह आगे चलकर एक शा सका के
पास ककती प म स ध कर दया। इ ह ने अपने
नामक गांव म शासनकाल म जा के हत के लए हमेशा
ज मीं रानी काय कया। तो वह ं अ ह याबाई हो कर ने
चेन मा ने झांसी सदै व अपने शासन क र ा के लए सेना
क रानी ल मीबाई को अ -श से सुसि जत रखा। ब च

132 वां अंक 26 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

और म हलाओं क ि थ त को लेकर हमेशा फूले का ज म 3 जनवर 1831 को हुआ।


चंतन करने वाल महारानी अ ह याबाई ने िज ह ने अपने प त यो तराव गो वंदराव
दे श के वभ न थान और नगर म फूले के साथ
मं दर , धमशालाओं और अ नस का म हला अ धकार
नमाण करवाया। साथ ह यातायात के के त आवाज
वकास के लए कई जगह पर सड़क और बल
ु ंद क । साथ ह
रा त का नमाण कराया। इतना ह नह ं इ ह ने बा लकाओं
1777 म व व स ध काशी व वनाथ के लए अलग
मं दर क थापना का ेय भी महारानी व यालय क
अ ह याबाई हो कर को दया जाता है । थापना को ेय दया जाता है । अपने गु
ले कन रा य का भार और अपन से महा मा यो तबा के सा न य म सा व ी
बछड़ने का दख
ु उनसे सहन नह ं हो पाया, बाई ने वधवा ववाह कराना, छुआछूत
िजसके चलते 13 अग त 1795 को उनक मटाना, द लत म हलाओं को श त करना
म ृ यु हो गई। अपने जीवन का एकमा उ दे य बना लया
था। इतना ह नह ं कूल जाते व त जब
रिजया सु तान - मुि लम समाज क पहल लोग उन पर क चड़ और प थर फका करते
म हला शा सका थे तो वह कूल पहुंचने के बाद अपनी साड़ी
इ तुत मश क पु ी रिजया सु तान बदल लया करती थीं। ऐसे म हम उनके
मुि लम समाज क पहल म हला चर से नरं तर यासरत रहने क ेरणा
शा सका थीं। िज ह भी मलती है तो वह ं एक आदश क वय ी
पदा था का याग के प म भी जानी जाती है । मानवता का
कर पु ष क तरह संदेश दे ने वाल सा व ी बाई फुले का नधन
खल
ु े मुंह राजदरबार लेग मर ज क दे खभाल के दौरान 10
म जाना पसंद था। माच 1897 को हो गया था, ले कन उनके
पता क म ृ यु के काय और वचार आज भी म हलाओं को
बाद रिजया को द ल उनके हक और अ धकार के लए े रत
स तनत का सल
ु तान बनाया गया। रिजया करते है । इस कार हमारे इ तहास म कई
ारं भ से ह नी त और शासन व या म ऐसी बे टय के उदाहरण ह, िज ह ने सफ
पारं गत थीं, िजसके चलते उ ह ने जन नार वग के लए ह नह ं अ पतु संपूण
क याण से जुड़े कई काय को अंजाम व व को अपने जीवनकाल से एक
दया। मह वपूण संदेश और रे णा द ।

सा व ी बाई फुले - भारत क थम ीमती ममता जैन,


श का और समाज सुधा रका सहायक श का
भारत क थम श का और समाज जबलपुर(म. .)
सुधा रका के प म जाने वाल सा व ी बाई

132 वां अंक 27 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
लेख

ाकृ तक रमणीयता क ि ट से हूक म एक ऐसी का य-धारा फूटती हुई


प रल त होती है जो संपण
ू मानवता को
भारत ष ऋतुओं क अ भनव ड़ा थल है ।
ेमो माद म सराबोर होकर उसम अवगाहन
येक ऋतु क कमनीय काि त नवोढ़ा
करने हे तु आमं ण दे ती है । र सक जन
ना यका क भाँ त उसका नत नत
ू न नवल
वसंत त
ृ ु म इन मादक वर-लह रय का

ंृ ार करती है । ये सभी ऋतए
ु ँ दे वलोक क
आन द ा त करते ह और ऋतुराज क
अ सराओं क तरह अपनी मादक नझन
ु के
गौरव-ग रमा का गुणगान करते ह।
साथ प ृ वी-लोक म अवत रत होती ह।
सागर (म य दे श) म ज म
अपने मनमोहक हास- वलास और
र तकाल न क वय म मुख क व प माकर
अठखे लय के साथ जनमानस क चेतना
का भावाकाश अ य धक व तत
ृ एवं
को झकझोरती हुई ये ऋतुएं समय के च
न काओं से प रपूण है , जो वसंत ऋतु
को ग त दान करती ह। कृ त के
क सव यापकता औौर उसके मोहक सौ दय
प रवतन के इस च य म म वस त ऋतु
को जन-जन तक पहुंचाता हुआ यमान
को ऋतुराज क संझा से वभू षत कया
होता है ः-
गया है । यह अपने म अनुपम, अ मेय और
अ भनव है । इसम जहां एक और भू म
कुलन म के ल म कछारन म कंु जन म
अपनी उवरा शि त के साथ बीज को
या रन म क लन कल न कलकंत है
नवांकुर दान करती है वह ं दस
ू र ओर
कह प माकर परागन म पौनहू म
पादप, लताएँ और व ृ क डा लयाँ कोमल
पानन म पीक म पलासन पगंत है
कोपल , नई नवेल क लय तथा फूल के
वार म दसान म दन
ु ी म दे स-दे सन म
भार से थोड़ा-सा झुक कर मान ऋतुराज के
दे खौ द प-द पन म द पत दगंत है
चरण म अपनी वन गत नवे दत
बी थन म ज म नवे लन म बे लन म
करती ह िजनका अवलोकन दय म
बनन म बागन म बगय बसंत है
अंकु रत भावनाओ को वर, लय व ताल म
आब ध कर जनमानस को गुनगुनाने एवं
रा क व सोहन लाल ववेद
गाने के लए ववश कर दे ता है । मर के
वभ न तक के मा यम से वसंत के
गुंजन म, कोयल क कूक म और पपीहे क

132 वां अंक 28 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

आगमन का उ घोष करते ह। उनक पु प का सज


ृ न करते हुए उसके रचना मक
क वता म जहां एक हुईओर बौराई व प का द दशन भी कराया गया है ः-
आ -मंजर क गंध वासंती उ माद उ प न चर वसंत का यह उ गम है
करती है वह ं दस
ू र ओर ेमो य ना यका पतझर होता एक ओर है
अमत
ृ , हलाहल यहां मले ह
सुख-दःु ख बंधते एक छोर ह

छायावाद और उ र-
छायावाद का य-धारा के
पुरोधा महा ाण सूयकांत
पाठ ‘ नराला‘ ने अपनी
क वता म कृ त के नवल

ंृ ार और मादक रमणीयता
को प रल त करके उसे
फूल हुई सरस के रं ग क पील साड़ी पहने वसंत के आगमन क सच
ू ना माना है । जब
हुए और बेला क गंध-सी महकती वसंत के मायामय कृ त के नवल ग
ंृ ार और
वागत हे तु उ सुक तीत होती है ः- मादकर रमणीयता को प रल त करके
उससे वसंत के आगमन क सूचना माना
आया वसंत आया वसंत है । जब मायामय कृ त प रव तत प-
छाई जग म शोभा अन त ग
ंृ ार के साथ वसुधा पर अवत रत होती है
सरस खेत म उठ फूल तब वसंत के आमन का व णम ण होता
बौरे आम म उठ झल
ू है ः-
बेला म फूले नए फूल
पल म पतझड़ का हुआ अंत लता मक
ु ु ल हार गंध भार भर
आया वसंत आया वसंत बह पवन बंद मंद मंदतर
जागी नयन म बन
छायावाद के आधार- तंभ जयशंकर यौवन क माया
साद ने वसंत के प रवतनपरक एवं स ख वसंत आया
सज
ृ ना मक दोन ह प का च ण कया
है । उनके का य म कारांतर से वसंत को ग तवाद का य-धारा के मुख
वषपायी शव क भाँ त जहां एक ओर क व केदारनाथ अ वाल को वसंती बयार से
ी म तु से उ प न होने वाले कालकूट लहलहाता कृ त का कण-कण हास- वलास
वष को पान करते हुए दखाया गया है वह ं म त लन तीत होता है । उनको संपूण
दसू र ओर पादप लताओं म नवंकुर एवं सिृ ट वसंतागमन से मु दत होकर

132 वां अंक 29 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

जनमानस को नवचेतना दान करती हूई व प पर मं मु ध होकर नए भाव-जगत


वसंती लहर म उ ल सत होती हुई लगती क सिृ ट करता है ः-
है ः-
हँ सी जोर से म रं ग- बरं गी खल -अध खल
हँ सी सब दशाएं क सम- क सम क
हँ से लहलहाते हरे खेत सारे गंध - वाद वाल
हँ सी चमचमाती भर धप
ू यार ये मंज रयां
वसंती हवा म हँसी सिृ ट सार तरण आम क डाल-डाल
हवा हूं हवा म वसंती हवा हूं टहनी-टहनी पर झूम रह ह

छायावाद के पुरोधाओं म से एक योगवाद के आधार- तंभ और तार


और कृ त के सुकुमार क व कहे जाने वाले स तक के संपादक सि चदानंद ह रानंद
सु म ानंदन पंत ने वसंत को पूणतः नवीन वा यायन ‘अ ेय’ को वसंत ऋतु सोते से
ि ट से दे खा है । क व ने एक रह मय ढं ग जगाती है । मलयज का झोका उनके लए
से ऋतुराज का ाक य मानते हुए इस संदेश वाहक का काय करता है । उनके
प रवतनशील संसार म कुसुमाकर के वरा भीतर का क व भाव-गगन म उड़ते-उड़ते
व प का सवथा मौ लक च ण कया है ः- कुछ पल के लए व ां त का अनुभव
करता है तभी अचनाक वसंत ऋतु के
द त दशाओं के वातायन आलोड़न से अंतर म नवचेतना का उ मेष
ी त सांस-सा मलय समीरण होता है और उनका रोम-रोम पुल कत हो
चंचल नील नवल भू यौवन कह उठता है क जागो वसंत आ गयाः-
फर वसंत क आ मा आयी
आ मौर म गंथ
ू वण कण मलयज का झोका बल
ु ा गया
कंशक
ु को कर वाल वसन तन खेलते से पश से

ग तवाद का य-
धारा के संवाहक यात
क व नागाजुन य य प नई
क वता के व ता ह तथा प
वसंत के आते ह उनका
कृ त- ेम भी जागत
ृ हो
जाता है । वासंती सौ दय क
इस मधरु वेला म कव
आ -मंजर के इठलाते हुए

132 वां अंक 30 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

रोम-रोम को कंपा गया उ घोष के प म कया। कव य ी ने जब


जागो-जागो इस गीत का सज
ृ न कया था इस समय
जागो स ख वसंत दे श म वतं ता ाि त के लए आंदोलन
आ गया जागो चल रहे थे। ऐसी ि थ त म उ ह ने उदा
भाव से प रपूण इस ां तकार गीत क
ऋतुराज वसंत क अनुपम छटा रचना क थी। व तुतः ग
ंृ ार रस क
जहां एक ओर संयोग और वयोग को प रप वता वीर व पर नभर है । इसी को
पो षत करती है वह ं दस
ू र ओर कृ त के साकार करते हुए वसुधा वधू वीर नायक को
कण-कण म स दय का मादक घोल रझाने के लए अपना मादक ग
ंृ ार करती
अ भ सं चत करके एक उ ेजक वातावरण है ः-
को ज म दे ती है िजसम संपण
ू सिृ ट के फूल सरस ने दया रं ग
नर एवं नार कहे जाने वाले दो जीव कह ं मधु लेकर आ पहूँचा अनंग
मलन के आनंद का तो कह ं वयोग क वध-ू वसुधा पुल कत अंग-अंग
यथा दं श झेलते हुए ि टगोचर होते ह। है वीर दे श म कंतु कंत
यह मलन और वयोग ह सिृ ट के म वीर का कैसा हो वसंत?
को ग तशील बनाए रखता है । बुंदेलखंड के
सु स ध लोक क व ईसुर क ना यका वा त वकता तो यह है क
अपनी सहे ल के सम वरहज य यथा का वसंत ऋतु म सुकुमार कृ त एक नव
वणन करते हुए कहती है क य -त -सव यौवना युवती क भां त कट होती है । यह
मादकता बखेरती हुई वसंत ऋतु आ गई है सुकुमार कृ त जहां एक ओर जनमानस
और ऐसे म बरहा (लोक-सा ह य क एक को स दयबोध कराने के साथ उसके रोम-
व या का गायन उसके दय पर आघात रोम म आनंद भर दे ती है वह ं दस
ू र ओर
कर रहा है । ऐसी मनमोहक ऋतु के होते जीवन के शा वत मू य क थापना के
हुए भी मेरे यतम परदे स चले गए ह इस लए संघष करने वाले वीर सपत
ू को नयी
ि थ त म म कसके सहारे जीवन य तत शि त आशा और नवचेतना दान करती
क ं – है । अतः सा ह कार ने वसंत का दोन ह
प म मह वपूण और सफल च ण कया
रत बसंत लागी सखी, बरहा कर रए चोट है जो आज भी उर-वीणा के तार को झंकृत
पया गए परदे स को, करो कौन क ओट करते हुए सज
ृ न क गत दान करता है ।

रा टवाद सां कृ तक का य-धारा डॉ. राजेश हजेला


क मख
ु कव य ी सभ
ु ा कुमार चौहान ने सलाहकार (राजभाषा)
वसंत के आगमन का च ण ाि त-बेला के भारतीय वमानप न ा धकरण, फ खाबाद

132 वां अंक 31 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
राजभाषा प र मा

दनांक 14.12.2022 को पूव अ य एवं मु य कायपालक अ धकार ,


रे लवे बोड, ी वी. के. पाठ क अ य ता म आयोिजत रे लवे बोड
राजभाषा काया यन स म त क 145वीं बैठक क झल कयां।

132 वां अंक 32 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
राजभाषा प र मा

संसद य राजभाषा स म त क दस
ू र उप-स म त वारा कए गए व भ न
रे ल कायालय एवं सं थान म राजभाषा नर ण के य।

132 वां अंक 33 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
राजभाषा प र मा

दनांक 14.02.2023 को संयु त नदे शक, राजभाषा, ी रसाल संह


वारा रे ल भवन के स मेलन क म राजभाषा नदे शालय के
अ धका रय /कमचा रय के लए आयोिजत हंद कायशाला के य।

132 वां अंक 34 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
राजभाषा प र मा

राजभाषा नदे शालय वारा आयोिजत काय म क कुछ झल कयां।


( दनांक-07.02.2023)

अ तरा य म हला दवस

132 वां अंक 35 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
लेख

जास ाक भारत क बे टयां

सम त भारतवष म 26 जनवर को भाई िजतनी ह ममता वह अपने लए


तलाशती है क तु ममता के ने हल नाम
एक ह गूंज सुनाई दे ती है , सारे जहाँ से
पर सहानुभू त ह पाती ह। वह घण
ृ ा नह ं
अ छा ह दो ताँ हमारा, गणतं दवस जो
कर पाती अपने भाई से क तु चढ़ जाती
होता है हमारा, इसी दन भारतवष क
सम त जा को स ा मल थी, क तु है अपने ह कलेजे के भीतर।
गहन अ ययन और वमश करने के प चात बेट का शर र वच लत यं क
यह महससू हुआ क भारतवष क तमाम तरह वयं ह ज द बढ़ जाता है
जास ाक ि याँ आज भी क़ैद म, अं ेज ता याव था क नशा नयाँ सीने पर
के नह ं अपने ह जास ाक पता से, उभरती ह पता माँ को कन खय से दे खते
जास ाक भाई से, जास ाक प तदे व से, ह इशार म डपटते ह। कैसी माँ हो बेट
और यहाँ तक अपनी उपे त माँ से भी। अभी तक चन
ु र भी नह ं सँभाल पाती....!
भारतवष को "सारे जहाँ से अ छा बेट क आ मा नम हो जाती ह,
ह दो ताँ हमारा" य कहा जाता ह, जवानी चाँद क तरह पौ णम अव था म
य क भारतवष म बेट नह ं ज म लेती पदा पत होती ह ऐसी अव था म बेट के
ज म लेती ह सा ात ् ल मी माता, "पहल अंतःकरण म कोई चाँद क तरह छा जाता
बेट धन क पेट " हाँ वह ऐसा ह कुछ कहा ह क तु उसका पता स य ह। दहाड़ते नह ं
जाता ह न? बेट के पैदा होते ह पड़ो सय ह, मारते नह ं ह, बेट से अपने तथाक थत
को द त लग जाते ह। सम त पता बैल हो ेम क कुबानी चाहते ह!
जाते ह। जुआर रख जाता है कंधे पर। वे वह जानती है क बस कैदखाना
भार से झुक जाते ह। बदल जाएगा कैदखाने का पयवे क भी
उपे त समाज म ज मी उपे त बदल जाएगा। फर भी उसे सज़ा या ता
बेट का नाम अपे ा रखा जाता ह, बेट कैद ह बने रहना ह ताउ । बेट फर भी
धान क खेत क तरह बड़ी होने लगती ह, हर उ के हर मोड़ पर बचा ले जाती है
उ रायन से बहती हुई परु वाई उसके सीने पे वयं को। वह छोट प सल के पीछे कसी
आँचल लगा दे ती ह माँ- पता क आँख म पुरानी कैप को लगाकर लखती है और

132 वां अंक 36 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
क वता
सबसे संद
ु र आलेख वाला कप घर लाती है । डर कस बात का
वह बना यूशन के भी क या व यालय म डर कस बात का......।।
थम आती है क तु उ च श ा उसके डर कस बात का
भाइय के लए सुर त रखी जाती है । यूँ असफलता से डर
भी अ छे घर क बे टयाँ व व व यालय या यास ह न कर.....।।
डर कस बात का,
नह ं ससुराल जाती ह!
कोई दे ख लेगा या टोक दे गा,
ेम पर लखी सबसे सु दरतम ले कन या बगाड़ लेगा.....।।
डर कस बात का,
शखर पर नह ं पहुंचगे न,
हम फर से यास कर लग......।।
डर कस बात का,
क वोह बलवान है ,
ले कन व त हमारे साथ है ......।।
डर कस बात का,
न चय भर नह ं हो रहा है ,
बाक तो जीतना मिु कल नह ं है ....।।
-शैले क पल

"गज़ल: बेट "


क वताओं को गंगा म बहा दे ने के प चात िजस दन से वदा होकर बेट चल गई
भी, वह ब चे के नाम म ेमी को बचा उस दन से मेरे घर क रौनक चल गई।
लेती है वह अपने ह से के लए वं चत है
वह हक़ के लए गड़ गड़ाती है । बेट ने जब नुकसान है नफा है , या ये है र म द ु नया
भी कुछ चाहा बचा हुआ पाया, बचे हुए म मेरे लए तो घर क , दौलत चल गई।
भी सतत अधरू ा पाया, वह कह ं पूर नह ं
है । आपके स य समाज क सबसे स य रोज़ा-नमाज़ व त से,हर दन कुराने पाक
गा लय म भी नह ं। बेट के साथ घर क , इबादत चल गई।

जास ाक भारत क बे टयाँ,


आज़ाद का अमत बेट बड़ी हुई तो, फुसत मल थी मां को
ृ महो सव मनाना चाहती
बेट गई तो मां क , ताक़त चल गई ।
ह।

संतोष कुमार
बेट से घर पता का,बसता कहां "सल म"
न सग अधी क
ये कह के िज दगी क , हक़ क़त चल गई।
मंडल रे ल च क सालय भोपाल,
सल म खान,
पि चम म य रे लवे
व र ठ लोको पॉयलट

132 वां अंक 37 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
कहानी

(1) कया। उनक आँख लाल थीं। मुंह से तेज


शराब क बू आ रह थी। जलती हुई सगरे ट
"कल होल है ।"
को एक ओर फकते हुए वे कुरसी खींच कर
"होगी।"
बैठ गये। भयभीत हरनी क तरह प त क
" या तुम न मनाओगी?"
ओर दे खते हुए क णा ने पूछा- ''दो दन
"नह ं।"
तक घर नह ं आए, या कुछ तबीयत खराब
''नह ं?''
थी? य द न आया करो तो खबर तो भजवा
''न ।''
दया करो। म ती ा म ह बैठ रहती हूं।''
''' य ? ''
'' या बताऊं य ?'' उ ह ने क णा क बात पर कुछ भी
''आ खर कुछ सुनूं भी तो ।'' यान न दया। जेब से पये नकाल कर
''सुनकर या करोगे? '' मेज़ पर ढे र लगाते हुए बोले- ''पं डतानी जी
''जो करते बनेगा ।'' क तरह रोज़ ह सीख दया करती हो क
''तुमसे कुछ भी न बनेगा ।'' जआ
ु न खेलो, शराब न पीयो, यह न करो,
''तो भी ।'' वह न करो। य द म, जुआ न खेलता तो
''तो भी या कहूँ? आज मुझे इतने पये इक ठे कहाँ से मल
" या तुम नह ं जानते होल या कोई भी जाते? दे खो पूरे प ह सौ है । लो, इ ह
योहार वह मनाता है जो सखु ी है । िजसके उठाकर रखो, पर मझ
ु से बना पछ
ू े इसम
जीवन म कसी कार का सुख ह नह ं, वह से एक पाई भी न खच करना समझीं?
योहार भला कस बरते पर मनावे? '' क णा जुए म जीते हुए पय को
''तो या तुमसे होल खेलने न आऊं? '' म ट समझती थी। गर बी से दन काटना
'' या करोगे आकर?'' उसे वीकार था। पर तु च र को ट
सक ण ि ट से क णा क ओर दे खते हुए करके धनवान बनना उसे य न था। वह
नरे श साइ कल उठाकर घर चल दया । जगत साद से बहुत डरती थी इस लए
क णा अपने घर के काम-काज म लग गई। अपने वतं वचार वह कभी भी कट न

(2) कर सकती थी। उसे इसका अनुभव कई बार


हो चक
ु ा था। अपने वतं वचार कट
नरे श के जाने के आध घंटे बाद ह
करने के लए उसे कतना अपमान, कतनी
क णा के प त जगत साद ने घर म वेश
लांछना और कतना तर कार सहना पड़ा

132 वां अंक 38 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

था। यह कारण था क आज भी वह अपने लाल हो गई।


वचार को अ दर ह अ दर दबा कर दबी
( 3 )
हुई ज़बान से बोल - '' पया उठाकर तु ह ं
सं या का समय था। पास ह बाबू
न रख दो? मेरे हाथ तो आटे म भड़े है ।''
भगवती साद जी के सामने बाल चौक से
क णा क इस इनकार से जगत साद
सुर ल आवाज आ रह थी।
ोध से तल मला उठे और कड़ी आवाज से
पूछा-- या कहा?'' ''होल कैसे मनाऊं?''

क णा कुछ न बोल नीची नजर कए ''सैया बदे स, म वारे ठाढ़ , कर मल मल


हुए आटा सानती रह । इस चु पी से जगत पछताऊं।''
साद का पारा एक सौ दस ड ी पर पहुंच होल के द वाने भंग के नशे म चरू
गया। ोध के आवेश म पये उठा कर थे। गाने वाल नतक पर पय क बौछार
उ ह ने फर जेब म रख लये- ''यह तो म हो रह थी। जगत साद को अपनी द ु खया
जानता ह था क प नी का खयाल भी न
तुम यह करोगी। म था। पया बरसाने वाल
तो समझा था इन दो म उ ह ं का सब से
-तीन दन म प हला न बर था। इधर
तु हारा दमाग़ क णा भूखी- यासी
ठकाने आ गया छटपटाती हुई चारपाई
होगा। ऊट-पटांग बात पर करवट बदल रह
भल
ू गई होगी और थी।
कुछ अकल आ गई
''भाभी, दरवाजा
होगी। पर तु सोचना
खोलो'' कसी ने बाहर
यथ था। तु ह
से आवाज द । क णा
अपनी व व ा का ने क ट के साथ उठकर
घमंड है तो मुझे भी दरवाजा खोल दया।
कुछ है । लो! जाता हूँ अब रहना सुख से दे खा तो सामने रं ग क पचकार
लए हुए
''कहते-कहते जगत साद कमरे से बाहर नरे श खड़ा था। हाथ से पचकार छूट कर
नकलने लगे। गर पड़ी। उसने आ चय से पछ
ू ा-
पीछे से दौड़कर क णा ने उनके कोट
''भाभी यह या?''
का सरा पकड़ लया और वनीत वर म
क णा क आँख छल छला आई, उसने ं धे
बोल - ''रोट तो खा लो म पये रखे लेती
हुए कंठ से कहा-
हूँ। य नाराज होते हो?'' एक जोर के
झटके के साथ कोट को छुड़ाकर जगत ''यह तो मेर होल है, भै या।''
साद चल दये। झटका लगने से क णा सुभ ा कुमार चौहान
प थर पर गर पड़ी और सर फट गया।
(संकलन)
खन
ू क धारा बह चल , और सार जाकेट

132 वां अंक 39 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
लेख

भारत म हर साल 24 जनवर को ने काम के घंटे कम करने, बेहतर वेतन


और वोट दे ने क माँग के साथ वरोध
रा य बा लका दवस (National Girl
दशन नकाला था.
Child Day) मनाया जाता है । 24 जनवर
एक साल बाद अमे रक सोश ल ट
1966 को इं दरा गांधी ने भारत क पहल
पाट ने पहल बार रा य म हला दवस
म हला धानमं ी के प म शपथ ल थी,
मनाने क शु आत क . लारा जेट कन ने
अत: भारतीय रा य कां ेस पाट ने 24
1910 म कॉपेनहे गन म आयोिजत
जनवर को म हला सशि तकरण के प म
इंटरनेशनल कां स ऑफ़ व कग वीमेन म
चन
ु ा था। बा लका दवस को मनाने का
अंतररा य म हला दवस मनाने का
उ दे य, समाज को बा लकाओं क ि थ त
से अवगत कराना है । ताव दया था. इसके बाद से ह 8 माच
को अंतररा य म हला दवस का आयोजन
होता है ।
रा य म हला दवस
अंतररा य म हला दवस कपेन के
13 फरवर भारत का रा य म हला
मुता बक़, "बगनी रं ग याय और ग रमा का
दवस है । सरोिजनी नायडू भारत क मुख
सच
ू क है . हरा रं ग उ मीद का रं ग है . सफ़ेद
वतं ता सेनानी व कव य ी ह। उ ह भारत
रं ग को शु धता का सूचक माना गया है . ये
को कला यानी नाइ टंगेल ऑफ इं डया भी
तीन रं ग 1908 म टे न क वीमस सोशल
कहा जाता है । इतना ह नह ं वह आजाद
एंड पॉ ल टकल यू नयन (ड यूएसपीयू) ने
भारत क पहल म हला रा यपाल भी रह
तय कए थे."
ह। सरोिजनी नायडू का ज म 13 फरवर
इस वष का थीम “ डिजटऑल: ल गक
1879 को हुआ था। उनके काय और
समानता के लए नवाचार और
म हलाओं के अ धकार के लए उनक
ौ यो गक ” (DigitALL: Innovation and
भू मका को दे खते हुए 2014 से सरोिजनी
technology for gender equality) था।
नायडू के ज म दन के मौके पर रा य
इस थीम के पीछे यह वचार है क: ल गक
म हला दवस मनाया जाता है ।
समानता ा त करने और सभी म हलाओं
और लड़ कय के सशि तकरण के लए
अंतरा य म हला दवस
डिजटल युग म नवाचार और तकनीक
अंतररा य म हला दवस का
प रवतन और श ा।
आयोजन एक म आंदोलन था, िजसम
1908 यूयॉक शहर म 15 हज़ार म हलाओं संकलन

132 वां अंक 40 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
लेख

 पहला म हला व व व यालय-मह ष कव ने  पहल म हला एयर वाइस माशल-पी.


साल 1916 म पण
ु े म पांच छा के साथ बंदोपा याय
एसएनडीट व व व यालय शु कया  इं डयन एयरलाइंस क पहल म हला
था। चेयरपसन-सुषमा चावला
 पहल क य वदे श मं ी एवं द ल क  द ल क पहल और अं तम मुि लम
पहल म हला मु यमं ी - सुषमा वराज म हला शासक-रिजया सु ताना
 नोबेल शां त पुर कार जीतने वाल पहल  अशोक च ा त करने वाल पहल
म हला-मदर टे रेसा (1979) म हला-नीरजा भनोट
 माउं ट एवरे ट पर चढ़ने वाल पहल  इंि लश चैनल पार करने वाल पहल
भारतीय म हला-बछ पाल (1984) म हला-आरती साहा
 बुकर पुर कार जीतने वाल पहल भारतीय  भारत र न पाने वाल पहल म हला-इं दरा
म हला-अ ं ध त रॉय (1997) गांधी
 ' मस व ड' बनने वाल पहल भारतीय  ानपीठ पुर कार ा त करने वाल पहल
म हला-र ता फा रया म हला-आशापूणा दे वी
 पहल म हला राजदत
ू - मस सी.बी मथ
ु मा  अंटाक टका पहुचने वाल पहल भारतीय
 माउं ट एवरे ट पर दो बार चढ़ने वाल म हला -महला मसू ा
पहल म हला-संतोष यादव  अंतररा य ओलं पक स म त क पहल
 भारतीय रा य कां ेस क पहल म हला भारतीय म हला सद य -नीता अंबानी
अ य -एनी बेसट  सात महा वीपीय चो टय पर चढ़ाई करने
 कसी भारतीय रा य क पहल म हला वाल पहल भारतीय म हला पवतारोह -
मु यमं ी- ीमती सुचत
े ा कृपलानी ेमलता अ वाल
 संघ लोक सेवा आयोग क थम म हला  माउं ट एवरे ट पर चढ़ने वाल पहल
अ य -रोजे म लयन बेटू द यांग म हला-अ णमा स हा
 पहल म हला पु लस महा नदे शक (DGP)-  माउं ट एवरे ट को फतह करने वाल पहल
कंचन चौधर भ टाचाय जुड़वां बहन-ताशी और नै सी म लक
 पहल म हला लेि टनट जनरल-पुनीता  लंदन क रॉयल सोसायट म साथी के प
अरोड़ा म चन
ु ा गई पहल भारतीय म हला

132 वां अंक 41 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
क वता

वै ा नक -गगनद प कंग काश! मेर भी ब टया


 भारत क पहल म हला र ा मं ी एवं
होती.........
पहल म हला व मं ी- ीमती नमला
सीतारमण
 संयु त रा क अ य एवं पहल म हला न जाने कतने सजदे कये और
राजदत
ू - वजय ल मीपं डत लखी कतनी च ठयाँ
 पहल ि टह न म हला आईएएस अ धकार दो यारे बेटे तो दए उसने
- ांजल पा टल पर नह ं द एक ब टया
 भारतीय तटर क म पहल म हला घर आंगन महक जाता है उसके आने से
डीआईजी-नूपुर कुल े ठ नह ं कोई चाहत रहती है
 पहल म हला मु य चन
ु ाव आयु त- ीमती बा क फर ज़माने से
वी. एस रमा दे वी
 पहल म हला कै बनेट मं ी- राजकुमार जब वो चलती तो खनकती उसक पायल है
अमत
ृ कौर उसक सादगी के तो हर माँ- बाप कायल है
 भारत क पहल म हला ेजुएट-काद बनी उसका बचपन अठखे लयाँ लेता है और कहता
गांगूल उसके इद गद ह मेरा संसार रहता
 भारत क पहल म हला डॉ टर-आनंद बाई जब वो बड़ी होकर मेरे साथ रहती
जोशी नह ं हूँ मै बेटे से कम ऐसा कहती
 भारत क पहल म हला आईपीएस
अ धकार - करण बेद फर वो दन भी आता जब होते उसके हाथ
 भारत क पहल म हला सु ीम कोट पीले
यायाधीश-एम फा तमा बीवी और हमारे दामन ख़श
ु ी के आंसओ
ु से हो
 भारत क पहल म हला लोकसभा पीकर- जाते गीले
मीरा कुमार बेट माँ- बाप क आन बान शान होती है
 भारत क पहल म हला श क एवं हे ड उसके होने से ह िज दगी आसन होती है
म े स-सा व ी बाई फुले
 अंत र म जाने वाल दे श क पहल उसके न होने क कमी मझ
ु े आज भी
भारतीय मूल क म हला-क पना चावला खलती है
 भारत थम म हला रा प त व राज थान सच ह कहा है कसी ने
क थम म हला रा यपाल- तभा पा टल ब टया क मत वाल को ह मलती है
 पहल म हला आ दवासी रा प त - ौपद ब टया क मत वाल को ह मलती है ........
मुमू
नीतेश कुमार सोने
-संकलन सहायक वा ण य बंधक,जबलपुर, प.म.रे

132 वां अंक 42 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
यं य

बजट और म यम वग

“म यम वग” का होना भी कसी समय चायप ी को दबा कर अि तम बू द


तक नचोड़ लेना ह म यम वग वालो के
वरदान से कम नह है । कभी बो रयत नह ं
होती। िजंदगी भर कुछ ना कुछ आफत लगी लए परमसुख क अनुभु त दे ता है ।

ह रहती है । ये लोग म े शनर का इ तेमाल नह


करते, सीधे अगरब ी जला लेते ह। म यम
म यम वग क ि थ त सबसे दयनीय
वग भारतीय प रवार के घर म “गेट टुगेदर”
होती है , इ हे तैमूर जैसा बचपन नसीब
नहां होता, यहाँ “स यनारायण भगवान क
होता है , न अनूप जलोटा जैसा बुढ़ापा, फर
भी अपने-आप म उलझते हुए य त रहते कथा” होती है ।

है । म यम वग होने का भी अपना फायदा म यम वग लोगो क आधी िज़ंदगी


है चाहे बीएमड यू का भाव बढ़े या ऑडी तो “बहुत महँगा है ” बोलने म ह नकल
का या फर आई-फोन लांच हो जाए, कुछ जाती है । इनक “भख ू ” भी होटल के रे स
फक नह पड़ता। पर डपड करती है , दरअसल महं गे होटल
क मे यू-बूक म म यम वग इंसान ‘फूड-
म यम वग लोग क आधी िजंदगी
आइट स’ नह ं बि क अपनी “औकात” ढूंढ
तो झड़ते हुए बाल और बढ़ते हुए पेट को
रोकने म ह चल जाती है । इनके घर म रहा होता है ।

पनीर क स जी तभी बनती है , जब दध


ू इ क-मोह बत तो अमीर के चोचल है ,
गलती से फट जाता है और म स-वेज क म यम वग वाले तो “ याह” करते ह। इनके
स जी भी तभी बनती ह जब रात वाल जीवन म कोई वैलटाइन नह ं होता,
स जी बच जाती है । इनके यहाँ ू ट , ठं डा “िज मेदा रयाँ” िजंदगी भर बजरं ग-दल सी
पेय एक साथ तभी आते है , जब घर म पीछे लगी रहती ह।
कोई ब ढ़या वाले र तेदार आ रहे होते ह।
म यम वग य द ू हा-द ु हन भी मंच
म यम वग वाल के कपड़ क तरह पर ऐसे बैठे रहते ह, मानो जैसे कसी भार
खाने वाले चावल क भी तीन वेराइट होती सदमे म हो। अमीर शाद के बाद हनीमन

है । डेल , कैजुवल और पाट वाला। छानते पर चले जाते ह और म डल लास लोग

132 वां अंक 43 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

क शाद के बाद टे ट और बतन वाले ह है ।


इनके पीछे पड़ जाते ह।
म यम वग के सपने भी ल मटे ड होते
म यम वग बंदे को पसनल बेड और है “टं क भर गई है , मोटर बंद करना है ”।
म भी शाद के बाद ह गैस पर दध

अ ट हो पाता है . उबल गया है ,
म यम वग बस ये चावल जल गया
समझ लो क जो तेल है , इसी टाईप के
सर पे लगाते है वह तेल सपने आते है ।
मँह
ु पर भी रगड़ लेते ह।
दल म
एक स चा म यम अन गनत सपने
वग आदमी गीजर बंद लए बस चलता
करके तब तक नहाता ह जाता है ,
रहता है , जब तक क चलता ह जाता
नल से ठं डा पानी आना है ।
शु ना हो जाए। म
कृपया अ यथा न ल िजए। म वयं
ठं डा होते ह एसी बंद करने वाला म यम
भी म यम वग से ह हूँ। सफ आन द के
वग आदमी चंदा दे ने के व त नाि तक हो
लए है । आन द उठाइये और मु कुराइए।
जाता है और साद खाने के व त
आि तक। शंकर कुमार
या याता, बहु वषयक श ण सं थान,
दरअसल म यम वग तो चौराहे पर
लगी घ ट के समान है , िजसे लूल -लंगड़ी,
अंधी-बहर , अ पमत-पूणमत हर कार क
सरकार पूरा दम से बजाती है । म यम वग
को आजतक बजट म वह मला ह जो
अ सर हम मं दर म बजाते ह। फर भी
ह मत करके म यम वग आदमी पैसा
बचाने क बहुत को शश करता ह ले कन
बचा कुछ भी नह ं पाता। हक कत म
म यम वग क हालत पंगत के बीच बैठे
हुए उस आदमी क तरह होती है , िजसके
पास पूड़ी-स जी चाहे इधर से आये, चाहे
उधर से, उस तक आते-आते ख म हो जाती

132 वां अंक 44 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
क वता

सेवा नव ृ यां
वो खश
ु नसीब ह

वो खश
ु नसीब ह क
िजनके घर ह बे टयाँ।
बेट से कसी तरह
न कमतर ह बे टयाँ।
मत कैद कर के रखो
इनको घर के अंदर-
अब द ु नया को बदल रह ं
पढ़कर ह बे टयाँ।
मिु कल वतन पे आए
तो तलवार उठाकर-
आती वो ल मीबाई
सी बढ़कर ह बे टयाँ।
बचे पाल क तरह ी शवनाथ साद एवं ीमती रे खा शमा, सहायक
नदे शक/राजभाषा लगभग 37 साल क रे ल सेवा के
जो मौका मले तो-
प चात ् 28.02.23 को सेवा नव ृ हुए। अपनी सेवा के
चढ़ जातीं अब एवरे ट दौरान उ होन हंद के योग- सार म सराहनीय
के ऊपर ह बे टयाँ। योगदान दया। उनके आगामी जीवन के लए
वो क पना चावला सी राजभाषा नदे शालय क ओर से हा दक शुभकामनाएं।

अ तर म जाती।
ह मत म कई लोग
से बढ़कर ह बे टयाँ।
पर लोग के दःु ख दे खकर
आती ह ले के यार।
म रयम कभी टे रेसा सी
बनकर ह बे टयाँ।
नह ं ह बोझ ये क
इनसे जग हुआ रौशन।
दौलत जहाँ क धरती
का जेवर ह बे टयाँ।
डॉ. अनरु ाग माथरु
च धरपरु , द ण पव
ू रे लवे

132 वां अंक 45 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
क वता

बेट का वदा
आज बेट जा रह है , अपने घर झूल चल हो रानी,
मलन और वयोग क
द ु नया नवीन बसा रह है । मेरा गव, समय के चरण
पर कतना बेबस लोटा है ,
मलन यह जीवन काश मेरा वैभव, भु क आ ा पर
वयोग यह युग का अँधेरा, कतना, कतना छोटा है ?
उभय द श कादि बनी, आज उसाँस मधुर लगती है ,
अपना अमत
ृ बरसा रह है । और साँस कटु है , भार है ,
तेरे वदा दवस पर,
यह या, क उस घर म बजे थे, ह मत ने कैसी ह मत हार है ।
वे तु हारे थम पजन,
यह या, क इस आँगन सुने थे, कैसा पागलपन है ,
वे सजीले मद
ृ ल
ु नझुन, म बेट को भी कहता हूँ बेटा,
यह या, क इस वीथी कड़ुवे-मीठे वाद व व के
तु हारे तोतले से बोल फूटे , वागत कर, सहता हूँ बेटा,
यह या, क इस वैभव बने थे, तुझे वदाकर एकाक
च हँसते और ठे , अपमा नत-सा रहता हूँ बेटा,
दो आँसू आ गये, समझता हूँ
आज याद का खजाना, उनम बहता हूँ बेटा,
याद भर रह जायगा या?
यह मधुर य , सपन बेटा आज वदा है तेर ,
के बहाने जायगा या? बेट आ मसमपण है यह,
जो बेबस है , जो ता ड़त है ,
गोद के बरस को धीरे -धीरे उस मानव ह का ण है यह।
भूल चल हो रानी, सावन आवेगा, या बोलँ ग
ू ा
बचपन क मधुर ल कूक के ह रयाल से क याणी?
तकूल चल हो रानी, भाई-ब हन मचल जायगे,
छोड़ जा नवी कूल, ला दो घर क , जीजी रानी,
नेहधारा के कूल चल चल हो रानी, महद और महावर मानो
मने झूला बाँधा है, ससक ससक मनुहार करगी,

132 वां अंक 46 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

बूढ़ ससक रह सपन म,


याद कसको यार करगी? मेर लाडल

भ व य बनु ना, व न परू े करना,


द वाल आवेगी, होल आवेगी,
पर तु प रवार क नींव मत दरकन दे ना|
आवगे उ सव,
’जीजी रानी साथ रहगी’ ब च के?
चांदनी क पर है मेर लाडल
यह कैसे स भव?
यार क रा गनी है मेर लाडल

भाई के जी म उ ठे गी कसक,
नाचती मेरे आंगन म न ह करण
सखी ससकार उठे गी,
ह क रौशनी मेर लाडल
माँ के जी म वार उठे गी,
ब हन कह ं पुकार उठे गी! दे खो पेि सल से कागज पे कस यान से
लखती बाहर खड़ी है मेर लाड़ल
तब या होगा झम
ू झम

जब बादल बरस उठगे रानी? पापा उठ जाओ अब चाय पी लो गरम
कौन कहे गा उठो अ ण तम
ु सुनो, मझु से फर कह रह मेर लाड़ल
और म कहूँ कहानी,
कैसे चाचाजी बहलाव, या क ं कॉि प टशन क को चंग म अब
चाची कैसे बाट नहार? पढ़ने को जा रह मेर लाड़ल
कैसे अंडे मल लौटकर,
च डयाँ कैसे पंख पसारे ? सन
ु लया रब ने एक कॉलेज म
नौकर पा गई है मेर लाडल
आज वास ती ग
बरसात जैसे छा रह है । रो रहा हूं मगर ख़ुश हूं साजन के घर
मलन और वयोग क डोल म जा रह मेर लाड़ल

द ु नयाँ नवीन बसा रह है ।


द प जगमग सजाती है साजन के घर
आज बेट जा रह है ।
एक गहृ ल मी है मेर लाड़ल
मोद कुमार भ ट नीलांचल
माखनलाल चतव
ु द
मु य टकट नर क, पि चम म य रे ल, कटनी
(संकलन)

श ण काय म

ीमती श शबाला एवं ीमती पु पलता माटा, सहायक नदे शक/राजभाषा नदे शालय/रे लवे बोड ने क य अनुवाद
यूरो, राजभाषा वभाग, गह
ृ मं ालय वारा आयोिजत उ च तर य अनुवाद श ण काय म म भाग लया।

132 वां अंक 47 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
क वता

न या ब टया क पहल रे लया ा

मेर न ह च ड़या, बैठ रे ल म पहल बार ।


पल
ु कत ह षत मन म, आँख म कौतक ु बार बार ।।
टे शन पर आई पहल बार, दे खी भीड़ अपार ।
पापा क गोद म ब टया को, लागे न कोई डर ।।
म ती म चढ़ती ए केलेटर पर, बेट उमंग भर ।
रे ल ने लगायी मशीन, कतनी सु दर उड़न पर ।।
ऊपर जाती है सीढ़ , मजा बहुत आ रहा ।
टे शन पर भी गाडन के, झूले सा है नजारा ।।
कतनी बड़ी दखती है , े न ये ल बी ल बी ।
पापा कहाँ बठाएंगे, जहाँ न लगे ठं डी ।।
बैठे न क कुशन सीट पर, मन म म ती है भर ।
ऊधम इधर मचाने म, इक पल क भी न दे र कर ।।
मजा आ रहा खेल म , तेज है चलती रे ल ।
खड़क से सब भाग रहे , पशु खेत पौधे और फूल ।।
नद नमदा के ऊपर, आया एक बड़ा सा पल ु ।
नीचे बहती न दया, करती अठखेल कल कल ।।
चले जबलपरु अपने घर से, बैठे छुक छुक े न ।
“ ीधाम “ आया पहले, दाद के घर वाला टे शन ।।
ीधाम टे शन का,स ध है “आलू बंडा” ।
पापा ने भी मुझे चखाया, ले कन थोड़ा – थोड़ा ।।
बेट खश
ु है ,लाड़ जताते आते जाते या ी ।
ट ट अंकल ने भी, दे द है टॉफ ।।
इटारसी टे शन पर, मला ना ता टे ट ।
मुझको भी मला चखने, मीठा म क वेर टे ट ।।
आया है भोपाल, अब उतरगे हम सब ।
बुआ के घर जाके, मजे करगे खब
ू ।।
कतनी अ छ छुक छुक रे ल , ब च का रखती यान ।
दाद , बुआ और सब से मलवाती, बना हुए परे शान ।।
पहल ह या ा म, ब टया हुई इतनी खश ु ।
परू े रे ल प रवार को, मल रहा आशीष अशेष ।।
-नरो म नामदे व
मु य वा ण य नर क (मु यालय),
पि चम म य रे ल जबलपरु

132 वां अंक 48 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा
क वता

िश ा और रा टीय पु न थान

श ा यि त व क सम दबी हुई है , उसके वकास क गंज ु ाइश


दखाई नह ं दे ती। स ची श ा उसे इन
वशेषताओं का समु चय है । कसी एक
ब धन से मु त करती है । स चा ान
ब द ु को लेकर हम श ा को प रभा षत
अथवा श ा केवल वह है , जो शर र को
नह ं कर सकते, कहने का ता पय सरल
रोग एवं अश तता से मु त करे , हाथ-पैर
और वभा वक है क श ा उस के क
तथा अ य कमि य को अकम यता से
परध पर ग तमान सरल रे खीय गत
मु त करे , दय क कठोरता एवं ई या से
करता हुआ आवे शत कण है जो अपने माग
मु त करे , तथा स पूण मनु य को सभी
म आने वाले अ य कण से टकराकर ऊजा
कार के ब धन से मु त करे , भावनाओं
ा त करता है और प र कृत होकर अख ड
को लोलुपता से, शि त को मद से तथा
परध क ओर अपना ल य नधा रत
आ मा को ु ता एवं अ भमान से मु त
करता है ।
करे ।’
श ा क प रभाषा दे ते हुए गाँधीजी
व याथ , श क और पा य म इन
लखते ह- ‘ श ा से मेरा आशय बालक
तीन से मलकर ह व यालय का नमाण
तथा मनु य म न हत शार रक, मान सक
होता है । आज िजस बात को बहुरा य
एवं आि मक े ठ शि तय का सवागीण
कंप नयाँ अपने फायदे क ि ट से वकालत
वकास है ’। इसी वचार को उ ह ने अ य
कर रह ह यह श ा यव था को लघु
‘सा व या या वमु तये’ अथवा ‘ श ा वह
आकार दे ने वाल बात है । व यालय वह
है , जो मुि त क ओर वृ करे ’ इस प
थान है जहाँ व याथ का सवागीण
म भी तुत कया है । न उपि थत होता
वकास होता है । समाज के सारे भेदभाव
है क वे कौन से ब धन ह, िजनसे श ा
मटाकर ऊॅच-नीच क भावना का अंत करता
मुि त दलवाती है । दस
ू रे श द म शर र,
व यालयी प रवेश समाज के वकास का
मन व आ मा क वे कौन सी े ट व ृ याँ
ढाँचा सु नि चत करता हुआ दे श को भावी
ह, िजनका वकास श ा वारा होता है ।
नाग रक दान कराता है । कह सकते ह क
गाँधी- वचारधारा के मुख या याकार
समाजीकरण क या का मूलभूत आधार
काका कालेलकर इस प रभाषा का
व यालयी श ा म न हत है ।
वै वीकरण इस प म करते ह: ‘मनु य
श क अपने व या थय से सं े ण
ब धन म है । वह अ ानी है । वह अपनी
करता हुआ तादा य था पत करता है ।
ाकृत व ृ य का दास है तथा प रि थ तय
क ा-क का यह परं परागत श ण कारगर
से जकड़ा हुआ है । फलतः उसक आ मा

132 वां अंक 49 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

तो है परं तु व या थय क च अ ययन लए सीखने-सीखाने को यावहा रक/


म स य एवं ऊजा के साथ बनी रहे इसके ायो गक मंच उपल ध कराना श ा
लए श ा यव था म कुछ तकनीक यव था म पुन थान का योतक है ।
श ण शा का समावेश होना चा हए जो अगर श ा म समय के साथ-साथ
क ा म दये जा रहे या यान का ह सा नवाचा रक ि ट का समावेश होता रहे तो
हो। श क थानीय संसाधन को श ा म यह समाज के लए अमू य उपहार होगा।
शा मल कर श ण को रोचक ढं ग से रा के पुन थान म श ा का मह वपूण
तुत कर सकता है । अगर इस कार क योगदान है ।
श ा को क ा-क म व या थय को श ा के मा यम को लेकर हम
दया जाएगा तो यह व या थय के हताथ बहुत अ धक परे शान होने क आव यकता
होगा। क ा-क का यह सं े ण नह ं है । हाँ इतना अव य है क हम केवल
आ मानुभू त के तर से आगे बढ़कर एक ह वक प को अं तम स य न मान
व याथ जीवन यि त व म अ भ यंजना बैठ य क श ा महज पा य म ह नह ं
क मता को पन
ु ज वत हुआ करता यह तो जीवन है । सतत और अनवरत प
यि त व वकास म सहायक और नेत ृ व से चलने वाल या है । या जीवन के
कौशल संबंधी यावहा रक प रवेश को ज म वशद अनभ
ु व और भ व य के गभ से
दे गा। अंकु रत होती बीज पी नाग रकता को भला
जो व या व याथ अपने गाँव, कसी नि चत समय, नि चत पा य म
अपने प रवेश म रहकर सीखते ह वह जीवन और मा नि चत मा यम से ह श ा
भर साथ रहती है । बालक िजस प रवेश म दया जाना यायसंगत होगा? वक प कई
रहता है , जीता है वह वातावरण उसको हो सकते ह परं तु श ा का नजीकरण
अपनेपन का एहसास महसूस कराता है । अं तम समाधान नह ं। श ाव और
बालक उन सब व तुओं को यान से दे खता सरकार तं और श ा यव था के नी त-
है , समझता है और उस आंच लकता से नयमक वारा वतमान ि थत कई
वयं को जोड़ लेता है । यह से व या थय संभावनाओं को लेकर आयी है। श ा
म व तुओं को आ मसात करने का गुण यव था को बेहतर बनाने के लए
वक सत होता है । व तओ
ु ं को सहे जने के आ म नभरता के साथ-साथ शास नक तं
साथ-साथ वह उनसे लगाव भी रखता है । को द ु त करना समय क माँग है ।
कह सकते ह क वा त वक श ा यि त बढ़ती जनसं या के सम चन
ु ौ तयाँ
के यि त व को और समाज के हर एक अपार ह और चन
ु ौ तय का सामना मानवता
नाग रक को तभी पूण प से श त कर का परम कत य है । हम वतमान यथाथ से
पाती है जब सखने- सखाने के संसाधन मँह
ु नह ं मोड़ सकते ह। हम अगर वैि वक
थानीय चीज से जुड़े हुए ह । नय मत तर पर भारत को लेकर जाना है तो हम
दनचया के काय-कलाप म व या थय के हर उस े म पूर स यता के साथ काय

132 वां अंक 50 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

करना होगा िजससे वकास अपने गण


ु ा मक होनी चा हए। कसान को नई तकनीक से
प रवतन क दशा को तय करे । श ा हर प रचय कराकर श त करना होगा। इन
गुणा मक वकास का मूल है । सब बात का एक लू ट
ं तैयार करना ह
रा नमाण म हमेशा से श ा, मह वपूण आव यकता है । च क सा प ध त
च क सा और कृ ष ने मह वपूण योगदान के वारा हम आ म नभर भारत के सपने
दया है । इन तीन वषय का आपसी को साकार कर सकते ह। हम च क सा के
सम वय ह रा के पुन थान क दशा हर एक पहलू पर वचार करना होगा।
तय करता है । य य प उपयु त तीन बंद ु पारं प रक च क सा के साथ-साथ वै ा नक
ाचीन समाज का ह सा रह ं ह और ढ़ॉचा न मत कया जाना भी च क सा को
वकास के अनवरत चरण वारा आधु नक नई दशा दान करे गा। योग- श ा इस
भारतीय सं कृ त म समा गई ह। िजससे दशा म मह वपूण भू मका नभा सकता है
आज हमारा समाज अपनी परं पराओं से जुड़ी य क योग म सभी का हताथ संभव है
हुई जानकार को अपने यावहा रक जीवन और अपार संभावना भी है । हम योग-
म लागू करे तो हम परं परा को आधु नकता च क सा के कई हजार श वर ामीण े
से जोड़कर नवाचार उ प न कर सकते ह। म थायी प से था पत कर दे ने चा हए।
कह सकते ह क रा उपयु त बंदओ
ु ं म िजससे पवतीय े का पलायन संभवतः
स यता दखाए तो हम वैि वक तर पर समा त हो जाएगा। लोग को अपने ह े
आ म नभरता के उदाहरण ह गे और व व म काय करने को मल जायेगा। हमालयी
पटल पर भारतीय व तुओं के नयातक भी े आ दकाल से ह कई औष धय का क
ह गे। है । यहाँ अपार संभावनाएँ बांह पसारे इंतजार
श ा, च क सा और कृ ष का म खड़ी ह।
मौ लक व प वै ा नक होना चा हए, साथ एक योजना िजसम अपार-असीम-
ह परं परागत प भी अपनी ि थ त बनाये आकाश जैसी संभावनाएँ ह, वह है हमालयी
रखे। कहने का ता पय यह है क हम औष धय क च क सा वारा आ म नभरता
च क सा और कृ ष म कई प रवतन ला और वरोजगार के साथ-साथ पलायन भी
सकते ह। हम अपनी परती भू म के क जायेगा। ामीण तर पर कई लघु
साथ-साथ कृ ष यो य भू म को भी अ धक उ योग को था पत कर वकास का नया
से अ धक उपजाऊ बनाना होगा। संचाई अ याय लखा जा सकता है । हम सबको
साधन के लए थानीय संसाधन को मलकर कृ त से ह तादा य था पत
मलकर अपनाना होगा। बीज का सह करना होगा।
चन
ु ाव करना होगा। फसल क सुर ा से पवतीय े म औष धय के अपार
लेकर मंडी तर तक फसल के दाम तय भंडार ह िजनम मु य प से तुलसी,
करने ह गे। दे श के कसान को पुनज वत तेजप ा, अ वगंधा, आंवला, हरड़, बहे ड़ा,
अथात आ म े रत करना पहल ाथ मकता बेल गलोय, लैमन ास आद वारा

132 वां अंक 51 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

इ यु नट को बढ़ावा दे ने के साथ-साथ मु दे ह और कई उभरते हुए चेहर के साथ


औष धय के नमाण से नयात वारा कई सवाल िजनका जवाब शायद शोध का
आ म नभरता भी ा त क जा सकती है । वषय हो।
भारत का उ च हमालयी े और म य रा नमाण और पन
ु थान म
हमालयी े जीवन क संजीवनी से भरा श ा के मह व से बढ़कर कुछ नह ं है।
पड़ा है । श क, छा और पा य म इनके मूल म
च क सा और कृ ष जैसे समाज, स टम और पँूजीप त वग बैठा है ,
अ तआव यक वषय क मूलभूत समझ और श ा यव था ब च के उस खलौन
और पा रभा षक श दावल व यालयी के समान है िजसके पंख क ग त राजनी त
पा य म म शा मल कया जाना एवं क हवा तय करती है । श क के लए
वषय को अंतवयि तक संबंध वारा राजनी त से कह ं अ धक छा नी त है ।
श ण का मा यम बनाना पा य म कहने का ता पय यह है क श क क
अ ययन संबंधी साम ी म मनोरं जन तो िज मेदार /दा य वबोध सबसे बड़ा काय और
दान करता ह है साथ ह श ा के कई सबसे मह वपूण मु दा है । स टम को
उ दे य को एक सू म परोते हुए नवीन चा हए क वह अपनी यव था ठ क करे ।
उ भावनाओं को ज म दे ता है । अगर एक भी अ यापक श ा यव था म
अगर श ा यव था म इन सब कमजोर सा बत
हुआ तो उसके कई
बंदओ
ु ं पर वचार कया जाए और द ु प रणाम हम रज ट के प म मलगे।
पा य म म ‘कुछ अंश करके सीखने के रा पुन थान के लए हम सबको
स धांत’ को शा मल कया जाए तो अपनी पूर शि त के साथ अपने दे श क
न संदेह व या थय क यावहा रक और मताओं को पहचानने क ज रत है । हम
ायो गक समझ वक सत होगी और वह वदे शी व तओ
ु ं का मोह यागना होगा।
दमागी कसरत वारा कुछ नवाचार अव य िजन व तओ
ु ं को हम वदे श से आयात
करे गा। यह तभी संभव है जब हमार श ा करते ह उनका अपने ह दे श म सज
ृ न
का ढाँचा सै धां तक से अ धक यावहा रक करना होगा। यह सोचने क बात है क
होगा। रटने से कह ं यादा ायो गक होगा िजस ई वर क हम पज
ू ा करते ह उ ह भी
और इस बात को व ान श ण पण
ू करता चीन जैसे दे श से आयात करते ह। हमारे
है । यहाँ श ा तं यावहा रक कहने से भगवान हमसे कैसे खश
ु रह सकते ह।
मतलब यह है क हम जो श ा व यालय/ गणेशजी क मू त के यापार से भि त तो
व व व यालय म ा त हो रह है या वह हम करते ह परं तु हमार भि त क शि त
रोजगार क गारं ट दे ती है ? या का अथ चीन ा त करता है । इस तरह तो
व या थय को श ण सं थान म आज हम आ म नभर बनने से रहे ।
जो श ा मल रह है उससे उनका जीवन- आज दे श वषम प रि थ तय से
यापन ठ क से संभव है ? ऐसे कई वलंत घरा हुआ है । समाज और सं कृ त को

132 वां अंक 52 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

‘कोरोना’ जैसी व व यापी महामार ने जकड़ साथ-साथ भावना मकता के जीवंत आि मक


रखा है । ऐसे म परू ा श ा तं चरमरा गया संतुि ट को ऑनलाइन मा यम पूण करने म
है । श ा यव था क इस तरह क शत- तशत स म नह ं है । इतना सब होने
बदहाल भ व य म कई न छोड़ती है , तो के बावजद
ू भी ऑनलाइन क मख
ु ता को
हम वपदा से लड़ने और नई रणनी त नकारा नह ं जा सकता है । गांधी का
तैयार करने का सझ
ु ाव भी दे ती है । इस सामािजक आदश है ’सव दय’। सव दय का
तरह क सम या से नपटने के लए हमको अथ है सबक उ न त और उसका येय है ,
आ म नभर बनना होगा। हम भ व य क हदय प रवतन। गाँधीवाद के मल
ू तंभ दो
चन
ु ौ तय को
यान म रखते हुए एक है , स य और समबु ध से सबके त
परे खा तैयार करनी होगी। मतलब ऐसा अ हंसा का भाव उ प न हो जाता है । इस
लू ट
ं तैयार करना होगा िजसम अपार तरह गाँधी के जीवन दशन म याग और
संभावनाएँ ह और आपदा राहत का बड़ा तप का ाधा य है तथा भोग और आनंद
पैकेज हो और हमार श ा यव था का तर कार। कला म भी उ ह ने शव और
आधु नक संसाधन से लैस हो। साथ ह स य पर ह बल दया, सुंदर को उ ह ने
श क भी श त ह। तब तो हम इन दोन से या तो अ भ न माना या
पुन थान क बात सोच सकते ह। बैठे-बैठे अ वीकार कया। गांधीवाद वचारधारा म
तो पुन थान होने से रहा। सरकार क कलाओं के साथ नै तक स ब ध अ भ न
पहल ाथ मकता श ा यव था म सुधार प से जुड़ा हुआ है । इस स ब ध म उनके
को लेकर होनी चा हए। इस बीच ऑनलाइन ऊपर रि कन एवं टा सटॉय के वचार क
मा यम वारा श ण दे ने का काय चल प ट छाया है ।
रहा है परं तु यह हर तर के व या थय के हम भारतीय रा उ थान और
लए हतकर नह ं। और न ह येक पुन थान को लेकर हमेशा चचा को क म
व याथ के पास एं ोएड मोबाइल ह रखते ह और जन-समुदाय के बीच मंच से
उपल ध है । ले कन वतमान संदभ म राजनी तक ट पणी दे ते हुए हमेशा ‘मेरा
ऑनलाइन का वक प जोर पकड़ रहा है । भारत महान’ वाल उि त कहते ह।
सरकार इसे श ण क मु यधारा म सं वधान क तावना भी ‘हम भारत के
शा मल करने क सोच बना रह है । परं तु लोग‘ से ारं भ होती है । ले कन या
यह श ा यव था म सुधार के साथ आदरणीय व वजन हम सभी न न ल खत
तत
ु हो सकता है , नवाचार के साथ बात क ओर यान दे ते ह क -
परोसा जा सकता है और क ा-क श ण  * वतं भारत म द जाने वाल श ा
म गण
ु ा मक व ृ ध भी कर सकता है । भारतीय नह ं है?
ले कन कसी श क का क ा-क श ण/  * श ा का मा यम वदे शी भाषा या
सं े ण, व याथ , श क और दोन के वदे शी भाषा ?
म य पा य म से बनने वाला तादा य के  * श ा का उ दे य अ छ नौकर ा त

132 वां अंक 53 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

करवाना है या यि त व का सम वकास बाद अपनी मातभ


ृ ाषा म काय करना पड़ता
करना? है । दे श क आधी ऊजा तो हम भाषा के
 * भारत म सम वकास क अवधारणा च कर म ह यय कर रहे ह। हम भारत
या है ? को वक सत होते दे खना है तो इस वषय
 * श ा के यावहा रक आयाम कौन-कौन पर गंभीरता से वचार करना होगा।
से ह? भाषा क एकता से पहले जातीय
 * अं ेजी श ा का प रणाम बु ध व म एकता ज र है अथात ् पहले हम भारतीय ह
एवं ह नता बोध है ? और भारत क पहचान व शि त ह द
 * भारतीय श ा वैि वक संकट का भाषा है । वह ं ह द भाषा रा य एकता
नवारण करने वाल है ? का ताज है , इसम कोई शंका नह ं। वयं
उपयु त सभी बंद ु कसी भी ह द कई भाषा के श द का म ण ह।
भारतीय के लए शोध के वषय हो सकते ह ह द -उद ू के ववाद को सुलझाने के लए
परं तु इन बात क जमीनी हक कत कुछ एक म यम माग क आव यकता गाँधी जी
और कहती है । ‘ क तु राजनी त का प वारा महसूस क जाने लगी िजसका सू म
नराधार नह ं है । आज का जीवन िजन सं ान उपयु त दया जा चक
ु ा है य क
आ थक वषमताओं के बीच से गुजर रहा है ‘‘जब तक ह द-ू मुि लम वैमन य कायम
वह भी इस चे टा का एक कारण है । रहे गा तब तक उसका प व वध होगा।
राजनी त म यि तगत आ ोश और आवेश वह कह ं तो फारसी ल प म लखी जायेगी
य त होता है , ले कन जब यह आ ोश और उसम फारसी और अरबी श द क
सा ह य म आ जाता है तो वह सा हि यक धानता होगी। कह ं वह दे वनागर लप म
तर को गरा दे ता है ।’ लखी जायेगी और तब उसम सं कृत श द
जब हम भाषा, सा ह य और क बहुतायत होगी। जब दोन के दय एक
सं कृ त क बात करते ह तो हम य भल
ू हो जायगे, तब एक ह भाषा के ये दोन
जाते ह क हम तो कसी और भाषा के प भी एक हो जायगे और उसके पास
च कर म उलझकर रह गए ह। हम कस सवमा य प म सं कृत, फारसी, अरबी
सं कृ त क बात करते ह? ाचीन सं कृ त वगैरह के वे सभी श द ह गे, जो उसके पण

तो हमार सं कृत क ह दे न है । या हम वकास और वचार- काशन के लए
अपनी श ा का मा यम अपनी थानीय आव यक ह गे।‘‘
बोल /मातभ
ृ ाषा को नह ं अपना सकते? भाषा आज वै वीकरण के युग म
तो कभी भी वकास म आड़े नह ं आती। बहुसं कृ तवाद एवं बहुभाषावाद अपने पैर
या हम अपनी भाषा म श ा ा त नह ं पसार चक ु ा है । हंद भाषा/मातभ
ृ ाषा के त
कर सकते? हम दस
ू र भाषा म सोचना रा वाद भाव क आव यकता समय क
पड़ता है, फर अपनी हंद भाषा म उस माँग है । हंद भाषा के त वशेष
अनुवाद को समझना पड़ता है और उसके अ भ च/भाव ऐसे ह जैसे क धम नय म

132 वां अंक 54 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

बहने वाले र त क साथकता उसक वाल ख


ंृ ला है । उ त ख
ंृ ला म हम कहां
शु धता पर नभर करती है । हंद े मय / पर ि थत ह और हम या करना है ,यह
व वान को टन के चादर क तरह झट से सब बतलाने वाला इ तहास ह है । और
गरम और फट से ठं डा नह ं होना चा हए। हमारे दे श का यह इ तहास एक भाषा को
य क चार- सार/जाग कता/ दशा- संकेत आधार बनाकर नह ं लखा जा सकता। हम
कसी भी वषयव तु को मू यवान बना भारत क सम त भाषाओं को इस काय के
सकता है । लए मह वपूण मानना होगा। कसी भाषा
आवाज और त व न म मु य का स मान करने का अथ होता है उस
अंतर व न के अनुसरण/मा यम का है । भाषा को बोलने वाले समुदाय का स मान।
अगर सह अनुसरण/मा यम हो तो ह द भाषा का स पक य द भारतवष क
त व न सकारा मकता क ओर बढ़ती है अ य भाषाओं से नरं तर बढ़ता रहे गा तो
तो मा यम गुणा मक व ृ ध का संकेत दे ता नि चत ह ह द के मा यम से रा क
है । उदाहरण के लए झींगुर क आवाज/ भावनाओं क अ भ यि त म सहायता
सामू हक वर उनक एका म हमा का मलेगी। (तुलना मक अ ययन, संपादक-डॉ.
नाद-तान-लय संगीत सम वयशीलता और बी. एच. राजूरकर और डॉ. राजमल बोरा,
अपनी भाषा के त अका य ेम कट प ृ ठ सं या-15, वाणी काशन, नई द ल ।
करता है । िजसक त व न हमारे कान म ‘ येक रा का उसके ज म से ह
गँज
ू ती है वा तव म वह अ व मरणीय एक मूल वभाव होता है। उस मल
ू वभाव
उपलि ध क सामू हक भाषा है । सं कृ त का के अनुसार ह वह रा इस जीवन को
नादमय स दय। झींगुर बहुत छोटा ाणी है दे खता है , जो उसक जीवन ि ट कहलाती
परं तु भाषाई र त /अि मता क अखंड है । येक रा क यह जीवन ि ट और
झंकार को कई-कई घंट तक बना साज के व व ि ट ह उस रा का वधम
नवाचा रक तान के साथ सन
ु ाया करता है। कहलाता है । इस वधम के आधार पर ह
या झींगरु के एक चण
ू क फांक को हम उस रा क इस जगत म एक भू मका
नगल न सकगे, ऑ खर हमारा अतीत नि चत होती है । हमारे दे श का वभाव
भाषाई एकांत का उपजी य/सं कृ त का आ याि मक है । इस लए भारत म अपने
उ थान मंच है । मानवीय मू य का शव वधम के अनस
ु ार ह रा जीवन क सभी
दे श है । यव थाएँ बनी है । अथात ् वभाव व वधम
इ तहास म वकास का एक अथ के अनुसार यवहार और यव थाएँ सब एक
वाधीनता क धारणा म वकास भी है। दस
ू रे के अनुकूल और अनु प होने से एक
इ तहास ‘समय क पहचान’ बढ़ाने म हमार सम जीवन शैल बनती है , वह रा क
सहायता करता है और च तन के लए हम सं कृ त कहलाती है । श ा सं कृ त क
उ ेिजत भी करता है । इ तहास वा तव म वाहक है । पीढ़ दर पीढ़ इस सं कृ त को
अतीत, वतमान और भ व य को जोड़ने श ा ह ह ता त रत करती है । भारतीय

132 वां अंक 55 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

श ा, भारतीय सं कृ त को प र कृत करने, उ योग को बढ़ावा दे ने के लए बक वारा


उसका संवधन करने और उसका ह तारण आ थक मदद दे कर मॉडल गाँव का नमाण
करने वाल होनी चा हए, जो नह ं है । कया जाए। श ा को क म रखकर
(भारतीय श ा ंथमाला, मु य प ृ ठ-लेखन वै ा नक ढ़ॉचा न मत कया जाए। जल
एवं संपादन- इंदम
ु त काटदरे , अहमदाबाद, संर ण से लेकर पवतीय े म कृ ष को
सह संपादक-वंदना फड़के ना सक, सुधा बढ़ावा दे ने के लए े क भौगो लक
करं जगावकर अहमदाबाद, वासुदेव जाप त, प ृ ठभू म को भी यान म रखा जाए।
जोधपुर, काशक-पुन थान काशन सेवा भारत के पवतीय े म अपार
ट, सं करण यास पू णमा, युगा द, 9 संभावनाएँ ह, िजनम पयटन, औष ध, धन
जुलाई 2017) साम ी, कागज उ योग, लघु एवं म यम
रवस माई ेशन के तहत अब समय वग के कारखान का नमाण, लकड़ी
आ गया है क भारत का पुन थान ामीण उ योग, फल एवं सि जय का उ पादन,
तर से ारं भ हो। वतमान ‘कोरोना‘ मुग पालन, भेड़, खरगोश, बकर , मौन
महामार ने शहर जनजीवन को बुर तरह पालन, बीज एवं नई प ध का नमाण
से भा वत कया है । वकास और उ योग करना, नद -घाट प रयोजना वारा बजल
के क कहे जाने वाले शहर से मजदरू का का उ पादन और ऐसे व यालय का
पलायन शहर जीवन-शैल को भा वत नमाण करना जो यावसा यक पा य म
करता है । दस
ू र ओर रवस-माई ेशन के को यान म रखते हुए नये कोस को
तहत जो मजदरू शहर छोड़कर गाँव गये ह संचा लत कर। उपयु त सभी बंदओु ं को
उनके पास भी भला गाँव म कौन-सा काय व यालयी/ व व व यालयी पा य म म
रखा है िजससे वह अपनी आजी वका का शा मल कया जाए तो हमारा व याथ
उ चत नवाह कर सक। हाँ, इतना ज र आ म नभर तो बनेगा ह , साथ ह भारतीय
हुआ है क बंद घर के ताले खल
ु गए ह अथ यव था का ाफ भी समयानस
ु ार बढ़ता
गाँव म लोग के आने से रौनक बढ़ है । जायेगा। इन सब बात का सह मू यांकन
अब सरकार को ामीण तर पर कुछ नये सरकार को समय रहते कर लेना चा हए।
और थायी ोजे ट लाने चा हए। िजससे ‘एक व वधतापण
ू जातं म मनु य
रवस-माई ेशन को सह दशा मले और के नकता मि त क का वभाव पहचान
ामीण े म वकास क ग त तेज हो को बहु-आयामी बनाता है । क तु एक रा
सके। मनरे गा जैसी योजना ‘है ड-टू-माउथ‘ को ग तशील एवं जीवंत बनाने के लए एक
क उि त को च रताथ करती है। ामीण रा य पहचान अ याव यक है । जब रा
तर पर शै क सं थान का नमाण, नये खतरे म हो तो रा य पहचान सव प र हो
व यालय, शै क यो यता के अनु प जाता है । ‘( ह द ू नशाने पर, लेखक-
सं थान का नमाण और उनम ामीण सु म णयन वामी, डायमंड बु स,पेज-18)
युवाओं को रोजगार साथ ह लघु एवं कु टर वामी ववेकानंद जी ने कहा था हम ऐसी

132 वां अंक 56 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

सवस प न श ा चा हए जो हम मनु य पोटल का वकास भारत वकास वेश


बना सके। श ा सफ उस जानकार का वार-एक रा य पहल के एक भाग के प
नाम नह ं है , जो आपके मि त क म भर म सामािजक वकास के काय े क
द गई है । हम तो भाव या वचार को इस सूचनाएं/जानका रयां और सच
ू ना एवं
कार आ मसात करना चा हए, िजससे ौ यो गक पर आधा रत उ पाद व सेवाएं
जीवन नमाण हो, मानवता का सार हो दे ने के लए कया गया है । भारत वकास
और च र गठन हो। वामी ववेकानंद जी वेश वार भारत सरकार के इले ॉ नक
के इ हं वचार से े रत हो करके और सूचना ौ यो गक मं ालय क एक
‘ धानमं ी मोद ‘ जी इसम एक और तंभ पहल और गत संगणन वकास क
जोड़ने क बात करते हुए नवो मेष सी.डैक है दराबाद के वारा कायाि वत है ।
(Innovation) क बात करते ह। जब इसके अंतगत कृ ष/ वा य/ श ा/
(Innovation) अटक जाता है तो िजंदगी समाजक याण/ऊजा/ई-शासन योजना और
ठहर जाती है । कोई युग, कोई काल, कोई आकां ा मक िजला इन बंदओ
ु ं पर व तार
यव था ऐसी नह ं हो सकती है क जो से परे खा तैयार क गई है । योजना के
(Innovation) के बना चल सकती है । अंतगत यि त अपना पंजीकरण कर अपने
जीवंतता का भी अगर एक मह वपूण ल य लए अपने िजले म काय तलाश कर सकता
है तो वह (Innovation) है । और अगर है । यह सरकार क ओर से पुन थान क
(Innovation) नह ं है तो िजंदगी बोझ होती दशा म सकारा मक पहल है ।
है । यव थाएं, वचार, िजंदगी, परं पराएं ये धानमं ी नर मोद जी ने भारतीय
सब बोझ-सी बन जाती ह। अगर हम इन उ योग प रसंघ (CII) के सालाना बैठक को
चार पहलओ
ु ं को लेकर अपनी उ च श ा संबो धत करते हुए भारत के पुन थान क
के पन
ु थान के बारे म सोचगे, तो हम दशा म आ म नभर बनाने के लए
एक सह दशा दखाई दे ती है । उ च श ा ‘आ म नभर भारत अ भयान’ के तहत
म कई सध
ु ार क आव यकता बनी हुई है। ताव तत
ु कया। इस बैठक म पीएम
हम उ च श ा के लए सव थम बजट मोद जी ने कहा है क हमार सरकार
नधा रत करना होगा। श ा का ढाँचा ाइवेट से टर को दे श क वकास या ा म
बेहतर बनाने के लए (RISE) साझीदार मानती है भारत को फर से तेज
[Revitalising of Infrastructure and वकास के पथ पर लाने के लए,
Systems in Education] का गठन कया आ म नभर भारत बनाने के लए 5 चीज
गया है । [HEFA] (Higher Education बहुत ज र ह, जो मशः इस कार ह-
Funding Agency) क थापना भी क । ‘इंटट यानी इरादा, इ लूजन यानी
जो उ च श ा सं थान के गठन म समावेशन, इ वे टमट यानी नवेश,
आ थक सहायता मुहैया कराएगी। इ ा चर यानी बु नयाद ढांचा,
म हला-ई हाट- वकासपी डया- इस इनोवेशन यानी नवो मेष। ‘उपयु त बंद ु

132 वां अंक 57 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

कसी भी श थल पड़ी अथ यव था को यास के साथ.साथ म हलाएं वयं भी


ग त दे ने म स म ह। आज को वड-19 आज काफ जाग क हो रह ह। म हलाएं
(कोरोना) से मंद ग त से चल रह जीवन- वयं सहायता समूह के ज रए एकजुट काय
शैल के म य यह अ भयान राहत बू टर के करते हुए सफलता क ओर बढ़ रह ह।
प म काम करे गा। वयं सेवी संगठन को सरकार व भ न
प रवार क सभी बु नयाद ज रत ायोिजत काय म जैसे नाबाडए रा य
को पूरा करने म अपना जीवन सम पत म हला कोषए यूएनडीपी के ज रए सहायता
करने वाल म हलाओं को सह मायन म भी उपल ध करा रह है । इसम कोई संदेह
आज भी अपने अ धकार से वं चत रखा नह ं क आज म हलाएं सीढ़ दर सीढ़
गया है । समाज अपनी स पूणता को तब ग त क राह पर अ सर ह, ले कन इसका
तक नह ं पा सकता जब तक क द ु नया क मतलब यह नह ं क म हलाओं के खलाफ
आधी आबाद को उसके अ धकार एवं अपराध समा त हो गए ह। िजतना वो तेजी
आजाद और स मान से वं चत रखा जाता से आगे बढ़ रह ह उनके खलाफ अपराध
है । जीवन के सभी े म म हलाओं क उतने ह बढ़ रहे ह। क या भू ्रणह याएं
भू मका को पहचानते हुए संयु त रा क म हलाओं के त यौन हंसा और दहे ज
ओर से पहल बार वष 2008 म 15 उ पीड़न जैसी बुराइयां समाज म आज भी
अ टूबर को ’अंतररा य ामीण म हला कायम ह। म हलाओं का सह मायने म
दवस’ क भी शु आत क गई। सश त करने के लए अभी और साथक
भारत सरकार क ओर से ामीण यास करने क आव यकता है । ऐसे म
म हलाओं को सश त बनाने के लए म हला दवस एक तीक के प म उभरकर
वतमान म कई काय म चलाए जा रहे ह। हमारे सामने आता है जो उनके अ धकार
उनम मख
ु प से वण जयंती ाम के लए काय करने को े रत करता है ।
वरोजगार योजना, रा य ामीण रोजगार बेट बचाओ बेट पढ़ाओ योजना-
मशन, राजीव गांधी कशोर सशि तकरण धानमं ी नर मोद ने दे श क बे टय के
योजना, जननी सरु ा योजना, महा मा उ थान और उ ह वावलंबी बनाने के लए
गांधी रा य ामीण रोजगार गारं ट योजना बेट बचाओ बेट पढ़ाओ योजना क शु आत
शा मल ह। इसके अलावा म हलाओं को क थी। इस योजना से काफ मदद मल है
सुर ा दान करने के लए सरकार ने वष और दे श म लोग का बे टय के त
1990 म एक बड़ा कदम उठाया। इस वष नज रया भी बदला है ।
सरकार ने रा य म हला आयोग क Priyadarshini ( यद शनी योजना)
थापना क जो म हलाओं के अ धकार क - म य गंगा के मैदानी इलाक म म हला
सुर ा और उ ह अपनी भू मका के त सशि तकरण और आजी वका काय म के
जाग क करता है । लए एक पायलट प रयोजना जो वतमान म
वभ न सरकार गैर सरकार यूपी और बहार म लागू क जा रह है । यह

132 वां अंक 58 जनवर -माच, 2023


रे ल राजभाषा

लाभा थय को सश त मता नमाण के


मा यम से उनक राजनी तकए कानूनीए हँसी- ठठोल
वा य सम याओं के समाधान के लए
भी सश त करे गी। य यप यद शनी
योजना का मु य उ दे य रोजगार क
सु वधाओं को बढ़ावा दे ना है । इस योजना के
लाभाथ अपने वा य के साथ साथ
कानूनी और राजनै तक मु द पर भी अपनी
मताओं को बढ़ा सकगे। रा पुन थान
क दशा म इस कार क योजनाओं को
चरणब ध तर के से लागू करना और
करवाना मह वपूण कदम है ।
आपदा को अवसर म बदलने के
लए माननीय धानमं ी ी नर मोद
वारा दनांक 12 मई 2020 को रा को
संबो धत करते
हुए एक राहत पैकेज,
आ म नभर भारत अ भयान क शु आत क
है को वड-19 महामार संकट से लड़ने म
आ म नभर भारत अ भयान (Aatm
Nirbhar Yojana) नि चत प से एक
मह वपूण भू मका नभाएगा और एक
आधु नक भारत क पहचान बनेगा। पीएम
मोद राहत पैकेज जो क आ म नभर भारत
अ भयान है , के अंतगत क सरकार वारा
20 लाख करोड़ पए, जो दे श क जीडीपी
का लगभग 10% है घो षत कया है ।
रा पुन थान को ग त दे ने के
लए हम Global Citizen और Global
village के दशन पर सोचना ह होगा। यह
वजन तो हमारे सं कार और भारतीय
सं कृ त का ाचीनकाल से ह ह सा रहा
है । हम भारतीय क ाचीन सं कृ त तो
वसध
ु व
ै कुटु बकम ् और सव भव तु सु खनः
क रह है ।
डॉ. च कांत तवार
दे हरादन
ू , उ राख ड

132 वां अंक 59 जनवर -माच, 2023


रे ल मं ालय, रे ल भवन, नई द ल

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